“देवराज चौहान कहां है?” श्याम सुन्दर ने सामने वाले के कंधे को जोर से हिलाते हुए पूछा।

सामने वाले ने अजीब सी निगाहों से श्याम सुन्दर को देखा। वह भी अपने आप में कुछ कम नहीं था। खान के नाम से जाना जाता था। उम्र बीत गई थी गैरकानूनी काम करते-करते। दो बार जेल जा चुका था। अब अवैध रूप में, परन्तु पुलिस वालों की निगाहों में रहकर दारू का अड्डा और उसके पीछे वाले हॉल में रात को नाच-गाने के दो शो कराता था। खासी कमाई हो रही थी। टेढ़े बंदों को संभालने के लिए, आठ-दस दमदार आदमी रखे हुए थे। ऐसे में किसी की हिम्मत नहीं थी कि उससे गलत अंदाज में बात कर पाता।

परन्तु सामने वाला कर रहा था।

देखते ही देखते खतरनाक से लगने वाले दो व्यक्ति पास आ गए। लेकिन श्याम सुन्दर के चेहरे से लग रहा था कि उन दोनों दादाओं की उसे जरा भी परवाह नहीं है।

“तू कौन है?” खान ने शब्दों को चबाकर पूछा।

“श्याम सुन्दर कहते हैं मुझे।” उसने दांत भींचकर कहा –“आगे कुछ मत पूछना। क्योंकि जवाब नहीं मिलने वाला। बोल देवराज चौहान कहां है?”

“कौन देवराज चौहान?”

“वो, डकैती मास्टर! समझा क्या?”

खान के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।

“समझा। पूरी तरह समझ गया।” खान ने सिर हिलाया –“वो यहां क्या करेगा?”

“वो यहां आया था। मालूम है मुझे।” श्याम सुन्दर ने दांत भींचकर कहा।

“आया था। परसों आया था।” खान ने लापरवाही से कहा –“किसी से उसने पेमेंट लेनी थी और यहां का वक्त तय हुआ था। यह बात भी मुझे उसके जाने के बाद पता चली कि अण्डरवर्ल्ड की इतनी बड़ी हस्ती, यहां आई थी। तेरे को क्या?”

“मेरे को उसका गला काटना है। बता कहां मिलेगा?” श्याम सुन्दर गुर्राया।

खान अजीब से अन्दाज में मुस्कराया।

“मेरे को पूछता है देवराज चौहान कहां है। कहां मिलेगा। अबे गधे की औलाद । कहां मैं और कहां देवराज चौहान । मेरा उससे क्या वास्ता। कहने से पहले सोच तो लिया कर।” खान के स्वर में व्यंग्य भर आया था –“वैसे तू उसकी गर्दन काटने का इरादा रखता है?”

“इरादा नहीं रखता। गर्दन काटूंगा।” श्याम सुन्दर का चेहरा धधक उठा।

“अपना पता मुझे दे जा।”

“क्यों?”

“तेरा चेहरा मैंने देख लिया है। अखबार हर रोज पढ़ता हूं। मैं जानता हूं बहुत जल्द अखबार के किसी पन्ने पर तेरी हत्या की खबर के साथ तेरी तस्वीर होगी और पुलिस की तरफ से अपील की गई होगी कि फलां-फलां जगह पर लावारिस लाश मिली है। किसी को इसके होते-सोते के बारे में जानकारी हो तो पुलिस को खबर करे। तेरे को पता ही होगा कि ऐसी लाशों को पुलिस ज्यादा देर नहीं रखती। दो दिन बाद ही संस्कार कर देती है। अगर तेरी भी लाश लावारिस जल गई तो? इसलिए कह रहा हूं। अपना पता दे दे। अखबार में खबर पढ़ते ही तेरे घरवालों को, अगर हैं तो–खबर भिजवा दूंगा।”

श्याम सुन्दर दांत पीसकर गुर्राया और रिवॉल्वर निकाल ली।

“जानता नहीं मेरे को।”

खान ने उसके हाथ में थमी रिवॉल्वर पर निगाह मारी।

खान के पास खड़े दोनों साथियों के हाथ में भी रिवॉल्वरें नजर आने लगी।

“नहीं जानता तेरे को।” खान का स्वर सख्त हो गया –“तू कोई तोप है। बम है। गोला है। बारूद है। मिसाइल है। परमाणु बम है। क्या है तू। या फिर बहुत बड़ा दादा है तू। बला क्या है तू? और तू जो भी है, बन्दूक की गोली की तरह निकल जा यहां से। जो खिलौना तूने हाथ में पकड़ रखा है, ऐसी चीजें तो आजकल पन्द्रह साल के बच्चे भी पकड़ लेते हैं। फूट ले यहां से।”

श्याम सुन्दर गुस्से से खान को देखता रहा।

खान का पचास वर्षीय चेहरा बता रहा था कि खुद को कठिनता से जब्त किए हुए है।

“यह रिवॉल्वर तूने पांच साल पहले खान पर निकाली होती तो अब तक मरा पड़ा होता। बच गया तू। पांच साल देर से मेरे सामने आया। अब मैं खून-खराबा पसन्द नहीं करता। धंधा संभालता हूं। अगर तू मजबूर करेगा तो, परहेज भी नहीं है मुझे, तेरी लाश ठिकाने लगाने से। लेकिन क्या फायदा तेरी जान लेने का। तू देवराज चौहान का गला काटने के लिए भागा फिर रहा है तो वो ही तेरे को साफ कर देगा। मैं अपने को कष्ट क्यों दूं। इसी तरह ढूंढता रह, देवराज चौहान को। जब उसे खबर लगेगी तो तेरे को मिलने के वास्ते वह जरूर आयेगा।”

श्याम सुन्दर खतरनाक निगाहों से, खान को देखता रहा।

“ये –।” खान ने उसके हाथ में दबी रिवॉल्वर की तरफ इशारा करके कठोर स्वर में कहा –“अन्दर डालता है या मैं ही इसे तेरे अन्दर डाल दूं–?”

श्याम सुन्दर ने दांत किटकिटाते हुए रिवॉल्वर जेब में डाल ली।

परन्तु खान के आदमियों ने रिवॉल्वरें जेब में नहीं डाली।

“इंसानों की तरह बात कर। देवराज चौहान ने तेरी भैंस खोल ली है जो तू।”

“तेरे को इससे कोई मतलब नहीं कि उसने मेरी भैंस खोली है या मुर्गी चुराई है।” श्याम सुन्दर शब्दों को दांतों में पीसता हुआ बोला –“देवराज चौहान का पता जानता है तो बता।”

“नहीं जानता।” खान, एकाएक शांत भाव से मुस्कराया।

“वह यहां फिर आएगा?”

“वह जब पहली बार आया तो तब, मुझे मालूम नहीं हुआ था तो दूसरी बार का क्या पता?”

“ऐसा कोई आदमी बता सकते हो जो देवराज चौहान के बारे में बता सके। माल दूंगा–रोकड़ा।”

“मैं–।” खान मुस्कराया –“ऐसे किसी आदमी को नहीं जानता।”

“देवराज चौहान दोबारा यहां आए तो बोल देना, श्याम सुन्दर उसे नहीं छोड़ेगा। उसकी गर्दन काट कर ही दम लूंगा | वह क्या समझता है कि उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”

“ज्यादा तो नहीं। थोड़ा–बहुत सुन रखा है, देवराज चौहान के बारे में। मेरे खयाल में वह अपने को तेरी तरह तोप तो नहीं समझता।” खान ने होंठ सिकोड़कर अजीब से स्वर में कहा।

श्याम सुन्दर गुर्राया।

“अपना पता बता दे। अगर गलती से देवराज चौहान यहां आ गया। वैसे आने वाला नहीं। तो उसे तेरे पते पर भेज दूंगा। ताकि तू उसकी गर्दन काट सके।” खान ने तीखे स्वर में कहा।

“जरूरत नहीं है मुझे अपना पता बताने की।” श्याम सुन्दर गुर्राया –“नाम बता देना उसे । श्याम सुन्दर। तब वह भी मुझे तलाश करेगा और कुछ ही घंटों में हमारी मुलाकात हो जायेगी।”

“बढ़िया बात है।” खान का स्वर एकाएक कठोर हो गया –“अब तू एक बात मेरी तरफ से समझ ले कि मेरे जैसे बंदों की जगह पर कुत्तों की तरह गुर्राते हुए नहीं आते। अगर मैं भी तेरी तरह कुत्ता बन जाता तो, तेरी लाश ही पीछे वाले रास्ते से बाहर जाती। दोबारा आना तो इंसान बन कर आना।”

श्याम सुन्दर गुर्राया और दांत भींच पलट कर बाहर की तरफ बढ़ता चला गया।

खान ने अपने दोनों आदमियों को देखा।

“जाओ तुम दोनों। इसे अपनी मौत को तलाश करने दो।”

☐☐☐

श्याम सुन्दर।

चालीस वर्ष का बेहद स्वस्थ, फुर्तीला और हर तरफ नजर रखने वाला इंसान था। उसकी आंखों की सख्ती में कभी-कभार क्रूरता की झलक मिल जाती थी। उसके चलने के ढंग से ही स्पष्ट हो रहा था कि वह आदतन कठोर व्यक्ति है।

जीन्स-पैंट के ऊपर बनियान सी पहन रखी थी और उसके ऊपर लैदर की जैकेट।

खान के ठिकाने से निकलने के बाद वह तेज-तेज कदमों से रास्ता तय करता हुआ चंद गलियों से गुजर कर सड़क पर खड़ी अपनी कार के पास पहुंचा। भीतर बैठा। कार स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी। उसकी सतर्क निगाहें दाएं-बाएं, बैक मिरर के द्वारा पीछे, हर तरफ घूम रही थी। शायद वह इस बात की तसल्ली कर रहा था कि कोई पीछे तो नहीं है। कोई उस पर नजर तो नहीं रख रहा?

लेकिन ऐसा कुछ भी, न तो नजर आया और न ही उसने महसूस किया।

कुछ देर बाद उसने कार को ऐसी सड़क पर ले जाकर, किनारे रोका, जहां से बहुत कम ट्रैफिक गुजर रहा था। इंजन बंद करने के बाद उसने आसपास तसल्ली से भरी निगाह मारी फिर कलाई पर बंधी घड़ी की दोनों सुइयां घुमाकर तीन के अंक पर की और घड़ी चेन पर लगे, न नजर आने वाले, सुई जितने छोटे से बटन को दबाया तो उसी पल घड़ी में से ऐसी आवाज आने लगी, जैसे रेडियो ऑन हो, परन्तु स्टेशन कैच न कर रहा हो। कड़कड़ की मध्यम सी आवाज, उसे सुनाई पड़ने लगी।

वह घडी को होंठों तक ले गया।

“हैलो–हैलो, श्याम सुन्दर हियर–हैलो–।”

“श्याम सुन्दर!”

“जी।”

“खान के यहां गए?”

“हां। खान से मुलाकात कर आया हूं। मेरे खयाल में खान के द्वारा यह बात काफी हद तक फैल जायेगी कि मैं यानी कि श्याम सुन्दर उसे मारने के लिए ढूंढ रहा है। अगर यह खबर देवराज चौहान तक पहुंची तो पक्के तौर पर मुझे तलाश करेगा कि –।”

“हाँ। मैं देवराज चौहान की आदत जानता हूं।” आवाज आई –“वह तुम्हें यकीनन तलाश करेगा। लेकिन हम खान के भरोसे हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठ सकते। तुम्हें आगे काम करना है।”

“क्या?”

“देवराज चौहान का खास है, सोहनलाल। गोली वाली सिगरेट पीने वाला नशेड़ी। लेकिन उसके हाथों में जादू है। तिजोरी, ताला, वॉल्ट यानी कि ऐसा कुछ भी खोलना, उसके लिए मामूली बात है। अपने काम में वह कभी भी नाकामयाब नहीं हुआ। देर-सवेर में कामयाबी हासिल करके ही रहता है।”

“जी।”

“मैं तुम्हें उसके घर के बारे में बताता हूं। वह एक कमरे के छोटे से फ्लैट में अकेला रहता है। वह सूखा-पतला है और अपने कपड़ों की तरफ कभी भी ध्यान नहीं देता। आदत से मजबूर है। देखने में लगता है, जैसे कई दिनों से भूखा है और खाना मांगने लगेगा। कहने को उसे मस्त-मौला इंसान भी कह सकते हैं।”

“यस सर।”

“वह बहुत तेज है। देवराज चौहान का पता-ठिकाना जानता है लेकिन मर जायेगा। बतायेगा नहीं।”

“समझ गया।”

“देवराज चौहान जहां भी है, उसे बाहर निकालना है। और वह तभी बाहर निकलेगा। सामने आयेगा, जब उसे मालूम होगा कि कोई उसकी जान लेने के लिए, उसे ढूंढता फिर रहा है।” घड़ी में से महीन आवाज निकल कर श्याम सुन्दर के कानों में पड़ रही थी –“सोहनलाल का पता नोट करो। और उससे जाकर मिलो। उससे क्या बात करनी है। कैसे करनी है। तुम्हें अच्छी तरह समझाया जा चुका है।”

“राइट। आप सोहनलाल का पता बताइये।”

☐☐☐

श्याम सुन्दर, सोहनलाल के फ्लैट पर पहुंचा। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बाहर मोटा सा ताला लटक रहा था। उसने कार से बाहर निकलने की चेष्टा नहीं की। घड़ी के द्वारा पुनः बात की।

“सोहनलाल घर पर नहीं है। बाहर ताला है।”

“एक जगह का पता और नोट करो।” घड़ी से महीन-मध्यम आवाज आई –“यहां से सोहनलाल अकसर सिगरेट में डालने के लिए गोली खरीदने जाता है।”

“ओ. के., मैं सोहनलाल को वहां देखता हूं।”

श्याम सुन्दर को उस जगह का पता बताया गया।

श्याम सुन्दर ने सड़क पर ही कार रोकी। इंजन बंद किया। बाहर निकला और दरवाजा लॉक किया फिर सामने नजर आ रही बस्ती को देखा। जहां कच्चे-पक्के मकान और बेहद छोटी-छोटी गलियां बनी नजर आ रही थी।

श्याम सुन्दर ने उस जगह को अच्छी तरह देखा फिर सड़क की ढलान उतरता हुआ बस्ती की गलियों में प्रवेश करता चला गया। पता श्याम सुन्दर के पास था। इसलिए उस जगह को तलाश करने में कोई खास दिक्कत नहीं आई। वह दस मिनट में ही वहां पहुंच गया।

“मेरे लाल मेरे प्यारे। मेरे दोस्त। मेरे हमसफर। मेरे सब कुछ। इतना कठोर मत बन। नर्म हो जा। थोड़ा सा नर्म हो जा। जरा सा नीचे आ जा। इतना ऊपर भी मत चढ़ कि मेरा हाथ तुझ तक न पहुंच सके।” सोहनलाल दांत फाड़ता हुआ मक्खन वाले लहजे में कहे जा रहा था –“मेरे से नाराजगी। ये तो बोत गलत बात है। तेरे को कितनी बार बोला है, देर-सवेर हो जाती है। कभी हाथ लगा और न लगा। कभी माल जेब में हुआ तो कभी न हुआ। हालात जो भी हो, हमारा रिश्ता नहीं बिगड़ना चाहिये। सब ठीक हो जायेगा। तू मेरा पैकेट दे। मैं चलूं और –।”

“एक बार सुन ले। लाख बार सुन ले।” कुर्सी पर बैठे उस आदमी ने सख्त स्वर में कहा –“आठ हजार रुपया तेरी तरफ हो चुका है। जब तक वह नहीं मिलेगा। तेरे को पैकेट नहीं मिलेगा।”

“बस! सिर्फ आठ हजार । याद कर। एक बार बारह हो गया था। हो गया था ना। तब भी तूने ऐसा ही किया था। लेकिन दो दिन बाद तुझे दिया ना। कब से समझा रहा हूं। कभी देर-सवेर हो जाती है। चिन्ता मत किया कर। उधार मोटा न हो तो देने में भी मजा नहीं आता। तू समझ तेरे पैसे बैंक में जमा हैं। डूबे नहीं। जल्दी से पैकेट दे। मुझे कहीं खास काम पर जाना है।”

“कुछ नहीं मिलेगा।” वह व्यक्ति जैसे पक्का फैसला कर चुका था कि उधार पहले लेना है।

सोहनलाल ने सिर को थोड़ा सा आगे किया और आहिस्ता से बोला।

“उल्लू के पट्ठे। अगले दो घंटों में मैं तगड़ा हाथ मारने जा रहा हूं। आधी रात के बाद मेरे पास पैसा ही पैसा होगा। कम से कम दस-पन्द्रह लाख का हाथ है। तू आठ हजार को रो रहा है। मैं –।”

“मुझे नहीं मालूम कि तू क्या करने जा रहा है।” उसने सोहनलाल को घूरा –“आठ हजार देकर, उधार का पहले वाला खाता बंद कर और नया खोल ले। तेरे को कितनी बार बोला है, पांच हजार के ऊपर उधार मिलना बंद। फिर भी तू पांच का आठ कर गया।”

“जहां आठ वहां दस सही। जल्दी कर–मैं–।”

“आदमियों को बुलवाकर तुझे बाहर फिकवाऊं या इज्जत से जाता है।” उसने उखड़े स्वर में कहा।

“तो नौबत यहां तक आ गई?” सोहनलाल ने मुंह बनाया।

तभी सौ के नोटों की गड्डी टेबल पर गिरी।

दोनों ने निगाहें घुमाई।

पास में श्याम सुन्दर खड़ा था।

सोहनलाल की आंखें सिकुड़ी। उसने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। श्याम सुन्दर शांत भाव से सोहनलाल को देख रहा था। सोहनलाल ने कुर्सी पर बैठे आदमी को देखा।

“तू जानता है इसे?”

“नहीं।” उसने सोहनलाल से कहा। फिर टेबल पर पड़ी नोटों की गड्डी पर नजर मारकर उसे देखा –“क्या चाहिये।”

“यह दस हजार हैं। आठ हजार सोहनलाल के उधार के बाकी बचे दो के पैकेट इसे दे दो।”

उस व्यक्ति ने प्रश्नभरी निगाहों से सोहनलाल को देखा।

सोहनलाल मन ही मन सतर्क हुआ।

“ले लूं?” उसने सोहनलाल से पूछा।

“फटाफट उठा ले।” सोहनलाल श्याम सुन्दर को गहरी निगाहों से देखते हुए बोला –“आते माल को तो कभी भी नहीं छोड़ते।” जबकि वह मन ही मन सोच रहा था कि कोई गड़बड़ है। खामख्वाह तो यह दस हजार की गड्डी देने से रहा। पक्के तौर पर चारा फेंक रहा है और चारा खाने में सोहनलाल को एतराज कहां?

“श्याम सुन्दर कहते हैं मुझे।” श्याम सुन्दर ने शांत स्वर में कहा।

“जरूर कहते होंगे।” सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट निकाली और सुलगाकर कश लिया।

“तुमसे काम है।”

“वो तो नजर आ ही रहा है।”

“मैं सामने सड़क पर कार में हूं।”

“आता हूं।” सोहनलाल के चेहरे पर सोच के भाव थे –“लेकिन आज की रात तो मेरे पास मिनट भर की भी फुर्सत नहीं है। बुक हूँ। तुम –।”

“मैं कल सुबह तक इंतजार कर सकता हूं।” कहने के साथ ही वह पलटा और बाहर निकलता चला गया।

सोहनलाल के होंठ सिकुड़ गये। इतना तो वह समझ चुका था कि ये जो भी है, काइयां इंसान है। और इसे जो भी काम है, यकीनन खास ही होगा। वरना इस तरह दस हजार बरबाद करने से रहा।

☐☐☐

सोहनलाल को आते पाकर उसने कार का दरवाजा खोल दिया। सोहनलाल भीतर बैठा तो श्याम सुन्दर ने कार आगे बढ़ा दी। सोहनलाल ने गोली वाली नई सिगरेट सुलगाई।

“मैं –।” श्याम सुन्दर कहने लगा तो सोहनलाल ने टोका।

“अभी नहीं। दो मिनट बाद में बात करना। पहले ये बता, तूने उसको गड्डी क्यों दी?”

“बुरा क्या किया?”

“बुरा।” सोहनलाल ने मुंह बिगाड़ा –“तूने मेरा खरा-खरा दस हजार का नुकसान करा दिया। उससे मैंने पन्द्रह हजार लेना है। साले ने मेरे से अपना काम कराया था, बाद में रकम देने से पीछे हट गया। मैं उससे वो पन्द्रह हजार बराबर कर रहा था। और तू अक्लमंद बनकर बीच में आ टपका।”

श्याम सुन्दर के चेहरे पर कठोरता नजर आने लगी।

“तूने सोचा, दस हजार आगे करके, सोहनलाल को चारा फेंक दूंगा और वह तेरे काम के लिए फटाफट हां कर देगा। तेरे को यह तो सोच लेना चाहिये था कि सामने वाला बेवकूफ नहीं है।”

श्याम सुन्दर खामोश रहा।

“कार रोक।”

“क्या?”

“रोक तो सही।”

श्याम सुन्दर ने सड़क के किनारे कार रोक दी।

“वह देख, सामने चाय का स्टाल है। जा वहां से चाय लेकर आ। पीनी हो तो अपने लिए भी ले आना, पैसे मैं दूंगा। फैन–वैन भी बेशक खा ले।” सोहनलाल ने लापरवाही से कहा।

श्याम सुन्दर ने तीखी निगाहों से सोहनलाल को देखा।

“मैं–मैं लाऊं।”

“तेरे से ही कह रहा हूं।” सोहनलाल ने मुंह बनाया –“तेरे को मेरे से काम है ना?”

“हां।” श्याम सुन्दर के होंठों से निकला।

“तो फिर जा –चाय ला। आज सुबह से चाय पीनी नसीब नहीं हुई।”

होंठ भींचे श्याम सुन्दर कार से निकला और चाय की स्टाल की तरफ बढ़ गया।

कार में बैठा सोहनलाल उसे देखता रहा, इस बात को तो वह महसूस कर चुका था कि यह श्याम सुन्दर खतरनाक बंदा है। जाहिर है, जो काम उससे लेना चाहता है, वह भी खतरनाक ही होगा और उसका काम ताले तिजोरियां खोलना है। मतलब कि कहीं तगड़े फेर में होगा।

श्याम सुन्दर चाय ले आया। एक ही लाया। सोहनलाल को चाय का कप थमाकर भीतर आ बैठा। सोहनलाल घूँट भरने के बाद बोला।

“अपने लिए नहीं लाये।”

“मैं चाय नहीं पीता।”

“तो दूध ले आना था।”

श्याम सुन्दर ने सुलगती निगाहों से उसे देखा।

“बहुत बकवास कर रहा है तू।”

“तेरी आवाज ऊंची हो रही है। खैर बता–काम क्या है।” सोहनलाल ने पुन: चाय का घूंट भरा।

“मुझे देवराज चौहान की गर्दन काटनी है।” श्याम सुन्दर गुर्राया।

सोहनलाल जोरों से चौंका। चाय प्याले से छलकते-छलकते बची।

“देवराज चौहान की गर्दन?”

“हां, साले को जिन्दा नहीं छोड़ना है मैंने।”

सोहनलाल ने गहरी सांस लेकर, हौले से सिर हिलाया।

“काट दे देवराज चौहान की गर्दन । मेरे से क्या पूछता है। लेकिन उसने ऐसा क्या कर दिया।”

“यह बताने की मैं जरूरत नहीं समझता।” श्याम सुन्दर कड़वे स्वर में बोला।

सोहनलाल जानता था कि कई ऐसे थे जो देवराज चौहान को खत्म कर देना चाहते थे। यह भी उन्हीं में से कोई एक होगा। सोहनलाल ने उसकी बात को कोई खास अहमियत नहीं दी।

“तो यह बताने के लिए तू मेरे पास आया।” सोहनलाल ने अजीब सी निगाहों से उसे देखा।

“नहीं। मैं यह जानना चाहता हूं कि इस वक्त देवराज चौहान कहां हैं?”

“जानने में कोई एतराज नहीं। लेकिन बताने वाला भी तो कोई होना चाहिये। मालूम करते रहो, लोगों से।”

श्याम सुन्दर ने दांत भींचकर रिवॉल्वर निकाली और हाथ बढ़ाकर सोहनलाल के पेट से लगा दी। सोहनलाल ने रिवॉल्वर को, उसे देखा और फिर चाय का घूंट भरा।

“तू जानता है, देवराज चौहान कहां रहता है?”

“पागल है क्या, मैं कैसे जानूंगा कि देवराज चौहान कहां रहता है?”

“तू देवराज चौहान के साथ काम करता है।”

“मैं उसके साथ काम नहीं करता और न ही करना चाहता हूं। लेकिन देवराज चौहान तो ठहरा आखिर देवराज चौहान ही, मेरे इंकार करने पर वह मानेगा तो नहीं। जब भी उसे काम होता है। आता है और कान पकड़कर ले जाता है। मुझमें इतनी हिम्मत कहां कि इंकार कर सकूँ।”

“और तुम जानते हो कि वह कहां रहता है। कहां मिलेगा?” श्याम सुन्दर ने दांत भींचकर कहा।

“दिमाग खराब है तुम्हारा।” सोहनलाल मुंह बिगाड़कर बोला –“वह क्या मुझे चाय पिलाने के लिए अपने ठिकाने पर ले जायेगा। अपना सत्यानाश कराना है उसने।”

श्याम सुन्दर का चेहरा दरिन्दगी से सुर्ख हो उठा।

“ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत कर किसी की जान लेना मेरा बाएं हाथ का खेल है।” श्याम सुन्दर का स्वर वहशी हो उठा था –“सीधी तरह बताता है देवराज चौहान के बारे में, या तेरे को साफ करूं!”

“मुझे मारेगा?”

“मारूंगा नहीं, बल्कि तू अभी मरने जा रहा है।”

उसके चेहरे के हाव-भावों से लगा कि वह वास्तव में गोली मार सकता है।

सोहनलाल का दिमाग तेजी से चल रहा था।

“चाय का मजा खराब कर दिया।” सोहनलाल ने उखड़े स्वर में कहा, प्लास्टिक का कप बाहर फेंका –“तो तू मुझे गोली मार देगा। धमकी दे रहा है या सच कह रहा है।”

“गोली चलाकर दिखाऊँ?”

“जल्दी मत कर। लगा रहा। बैठा रह। चिपका रह।” सोहनलाल ने उसे घूरा।

“तू जानता है कि देवराज चौहान कहां रहता है। यह खबर लेकर ही मैं तेरे पास पहुंचा हूं।”

“दुश्मन ने उड़ाई होगी।” सोहनलाल ने सोच भरे स्वर में कहा।

“क्या?”

“खबर –।”

श्याम सुन्दर ने नाल का दबाव बढ़ाया।

“इसे पीछे कर ले। गोली चल गई तो मैं खामख्वाह रगड़ा जाऊंगा।”

“बता देवराज चौहान कहां मिलेगा। मुझे वहां ले चल।”

“तू तो ऐसे बात कर रहा है जैसे लालबत्ती चौक पर, देवराज चौहान बैठा हमारा इन्तजार कर रहा हो। भाई मेरे जरा धीमे चल। जल्दबाजी अच्छी निशानी नहीं होती। तो तू देवराज चौहान की गर्दन काटना चाहता है। बढ़िया–अगर उसने ही तेरी गर्दन साफ कर दी तो?”

“परवाह नहीं।”

“मतलब कि तेरी हालत मरो या मारो वाली हुई पड़ी है।” सोहनलाल सोच भरी नजरों से उसे देख रहा था।

श्याम सुन्दर भी खूंखार निगाहों से उसे देख रहा था।

“सच बात तो यह है कि अगर तेरा सिर फोड़ना मेरे बस में होता तो अब तक मैं तेरा काम निपटाकर, कहां का कहां चला गया होता। लेकिन यह हो नहीं सकता।” सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई –“और तू देवराज चौहान का पता-ठिकाना पूछ रहा है। जिसे आनन-फानन नहीं बताया जा सकता।”

“बताने के लिए नोट लेगा क्या?”

“नहीं। देवराज चौहान को मालूम हो गया तो डण्डे मारेगा।” सोहनलाल ने शांत स्वर में कहा –“सुन, इस वक्त में व्यस्त हूं। अंधेरा हो रहा है। मुझे काम पर जाना है। और जब मुझे काम की जल्दी होती है, तब मैं कोई भी बात ठीक तरह से नहीं कर सकता। जा, तू कल मिलना। मेरे घर।”

“मैं कहीं नहीं जाऊंगा।” श्याम सुन्दर दांत भींचकर बोला –“तेरे साथ रहूंगा। जब तक तू मुझे देवराज चौहान के पास नहीं ले जाता। तब तक।”

“समझ गया।” सोहनलाल ने कहा –“वैसे भी मुझे एक आदमी की जरूरत थी। तेरे पास तो कार भी है।”

“क्या मतलब?”

“श्याम सुन्दर साहब । मैंने ठीक नौ बजे एक ऑफिस में हाथ मारना है। वहां बीस लाख नगद पड़ा है।”

“नहीं। तू फंस गया तो मैं देवराज चौहान के पास –।”

“मेरे काम में दखल मत दे।” सोहनलाल का स्वर सख्त हुआ –“टांग अड़ाकर मेरे धंधे पर लात मारने की कोशिश मत कर। तेरे को देवराज चौहान चाहिए। ले चलूंगा उसके पास। बाहर ही बुला लूंगा उसे। जैसे तू चाहेगा। वैसे ही होगा। लेकिन पहले मुझे ये काम कर लेने दे।”

श्याम सुन्दर दांत भींचे सोहनलाल को घूरता रहा।

“देखता क्या है?” सोहनलाल स्पष्ट तौर पर उखड़ा हुआ लग रहा था।

“मुझे कोई एतराज नहीं कि तू बीस लाख का हाथ मारे।” श्याम सुन्दर रिवॉल्वर वाला हाथ पीछे करता हुआ बोला –“लेकिन मैं नहीं चाहता कि हाथ मारने के चक्कर में फंस जाए।”

“नहीं फसूंगा। सब मामला फिट है।” एकाएक सोहनलाल मुस्कराया।

“कैसे?” श्याम सुन्दर ने होंठ सिकोड़े।

“उस ऑफिस चैम्बर का चौकीदार मेरा खबरी है। सब कुछ उसका ही बताया हुआ है कि पहली मंजिल एडवरटाइजिंग फिल्म मेकर की कम्पनी है। कल एड फिल्म की शूटिंग करनी है कम्पनी ने। शूटिंग में सुनील शेट्टी आयेगा। उसने कहना है कि लिप्टन चाय पीकर ही वह फिल्मी हीरो बना है। लिप्टन चाय न पीता तो, आज वह सफल हीरो न होता। इस काम के उसे बीस लाख एडवांस मिलने हैं। उस एड फिल्म की हीरोइन नई लड़की है। चौकीदार ने कल ही बता दिया था कि उसने एड कम्पनी के मालिक और लड़की की बातें सुनी है। आज शाम आठ से दस के बीच ऑफिस में वह उस लड़की के पूरे टेस्ट लेगा कि, कल बनने वाली एड फिल्म में वह सुनील शेट्टी के साथ खड़े होने लायक है कि नहीं।”

“समझा। लेकिन –।”

“आगे सुन–उस एड कम्पनी का मालिक अपनी बीवी से बहुत डरता है। खासतौर से, बीवी के बाप से, जिसने उसे एडवरटाइजिंग कम्पनी खुलवा कर दी है। मैंने कैमरा वगैरह पूरी तरह तैयार रखा है। आठ और दस के बीच जब वह उस युवती की नपाई कर रहा होगा तो, बंद ताला खोलकर, चुपके से भीतर जाकर, उनकी तस्वीर उतार कर पूछूंगा कि उसकी बीवी को और उसके ससुर को फोन करके बुला लूं। तो ऑफिस की तिजोरी में रखा बीस लाख फौरन मेरे हवाले कर देगा।”

“समझा।”

“समझदार है, जो हर बात जल्दी समझ जाता है। मतलब कि इस काम में कोई खतरा नहीं। वह इस तरह बीस लाख मुझे देगा। जैसे सुनील शेट्टी को नहीं, मुझे देने को रखे हों। उस में से दो लाख चौकीदार को देने हैं। फिर बाहर खड़ी तेरी इस कार में बैठ जाऊंगा। तुम कार दौड़ा देना। उसके बाद फुर्सत से बात कर लेंगे कि देवराज चौहान को कहां पर तुम्हारे सामने पेश करूं।”

श्याम सुन्दर ने आंखें सिकोड़कर सोहनलाल को घूरा।

“मैंने तो सुना है कि तुम देवराज चौहान के खास हो।”

“खास।” सोहनलाल कड़वे स्वर में बोला –“काए का खास। हर तरफ नोटों का बोलबाला है मेरे भाई। मैं नोटों का ही खास हूं। जब मुझसे ताले नहीं खुलेंगे तो देवराज चौहान मेरी गली से गुजरना भी बंद कर देगा कि कहीं मैं सौ का नोट न मांग लूं। यहां सब खास है और कब कोई आम बन जाये। मालूम नहीं।”

श्याम सुन्दर ने कुछ नहीं कहा।

“तो अब तू, इस काम में मेरे साथ रहेगा।” सोहनलाल बोला –“इस काम के निपटने के बाद ही, देवराज चौहान के बारे में, कोई बात की जायेगी। पहले मत करना। और यह सिर्फ मेरा काम है। मेरी मेहनत है। हिस्सा मांगने मत बैठ जाना। पहले बोल देता हूं कहीं बाद में, झगड़ा करने लगे। हां, तेरा दस हजार दे दूंगा, जो तूने दिया था।”

☐☐☐

रात के नौ बज रहे थे।

देवराज चौहान ने रेस्टोरेंट के सामने सड़क पार कार रोकी और इंजन बंद किया। बगल में बैठा जगमोहन कार का दरवाजा खोलते हुए, बाहर निकलते हुए बोला।

“मैं लेकर आता हूँ।” इसके साथ ही दरवाजा बंद करके सड़क पर से गुजरते ट्रैफिक से बचकर निकलते सड़क पार की और रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ गया।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और वक्त गुजारने वाले अन्दाज में कश लेने लगा।

मिनट भर भी न बीता होगा कि तूफान की तरह कार का दरवाजा खुला और एक आदमी ने भीतर प्रवेश करते हुए, हाथ में थमी रिवॉल्वर, देवराज चौहान की कमर से सटा दी।

सब कुछ ऐसी रफ्तार से हुआ कि देवराज चौहान को कुछ भी समझने का मौका नहीं मिला।

आते-जाते वाहनों की रोशनी कभी-कभार उसके चेहरे पर पड़ जाती थी। वह पचास बरस का क्लीन-शेव्ड व्यक्ति था। सिर पर पी कैप थी। चेहरे पर खतरनाक भाव थे। शरीर भरा-भरा सा था।

देवराज चौहान ने आंखें सिकोड़कर उसे देखा।

“नम्बरदार हूं मैं। सुना तूने।” वह रिवॉल्वर का दबाव बढ़ाकर गुर्राया।

देवराज चौहान ने उस पर निगाहें टिकाये हौले से सिर हिलाया।

“मुझसे क्या चाहते हो?”

“मैंने क्या चाहना है।” वह दांत भींचकर बोला –“बता, श्याम सुन्दर ने तेरे को क्या कहा?”

“श्याम सुन्दर?” देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से उसे देखा।

“हां, श्याम सुन्दर।”

“मैं किसी श्याम सुन्दर को नहीं जानता।”

“मतलब कि अभी तक वह तेरे को नहीं मिला?” उसका स्वर बेहद कठोर था।

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

“तू देवराज चौहान ही है ना?”

देवराज चौहान मन ही मन चौंका।

“हाँ।”

“तो कान खोलकर सुन ले, नम्बरदार की बात। श्याम सुन्दर तेरे को ढूंढ रहा है। जिससे भी तेरे बारे में पूछता है, उसे कहता फिर रहा है कि वो तेरी गर्दन काटेगा। ऐसा वह इसलिए बोल रहा है कि तेरे से मिलना चाहता है। वह तेरे से जो काम करने को कहे, तूने वह काम नहीं करना है। कान खोलकर सुन लिया कि नहीं?”

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

उसने कमर में रिवॉल्वर का दबाव बढ़ाया।

“सुना कि नहीं?”

“सुना। लेकिन अभी मैं श्याम सुन्दर से नहीं मिला । मुझे नहीं मालूम कि वह मुझसे क्या चाहता है।”

“वो तेरे को मैं बता देता हूं।” नम्बरदार ने दांत भींचकर कहा –“वो तेरे को डकैती-लूट के लिए कहेगा। लेकिन खबरदार, उसकी बात नहीं माननी है तूने । अगर मानी तो जिन्दा नहीं छोडूंगा। नम्बरदार नाम है मेरा।”

देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।

“तुमने जो कहा, मैंने सुना।” देवराज चौहान का स्वर शांत था –“लेकिन अभी श्याम सुन्दर से मेरी मुलाकात नहीं हुई। मैं नहीं जानता कि वह कैसा –क्या काम मुझसे चाहता है। सुनने के बाद ही फैसला कर सकूँगा कि –।”

“फैसला–वैसला कर लिया है तूने।” नम्बरदार ने गुर्राकर रिवॉल्वर का दबाव बढ़ाया–“अगर तूने श्याम सुन्दर की बात मानी। उसका कहा किया तो सारी की सारी गोलियां तेरे जिस्म में उतार दूंगा। होगा तू देवराज चौहान । नम्बरदार हूं मैं। भूलना मत मुझे। उस हरामी श्याम सुन्दर को तो मैं देखूंगा।”

देवराज चौहान होंठ सिकोड़े देखता रहा उसे।

“चलता हूं। मेरी बात भूलना नहीं।” कहने के साथ ही वह कार से निकला और देखते ही देखते, अंधेरे में गुम होकर, निगाहों से ओझल हो गया।

देवराज चौहान की हालत अजीब सी थी। श्याम सुन्दर को जानता तक नहीं था। नाम तक नहीं सुना था। देखने का सवाल तो दूर की बात थी। और उसके बारे में पहले ही धमकी मिल गई थी कि वो जो कुछ भी कहे उसे नहीं मानना है। जिसने अपना नाम नम्बरदार बताया, उसे भी पहले कभी नहीं देखा था।

मतलब कि श्याम सुन्दर जो भी है, उसे तलाश कर रहा है?

जगमोहन आ पहुंचा। हाथ में ब्रीफकेस था। भीतर बैठते हुए उसने ब्रीफकेस पीछे वाली सीट पर रखा। देवराज चौहान को कार स्टार्ट करते पाकर, जगमोहन ने कहा।

“पेमेंट दे दी है रामसिंह ने। पहले से ही ब्रीफकेस तैयार रखा था। चलो।”

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

“क्या हुआ?”

देवराज चौहान ने उसे नम्बरदार के बारे में बताया।

“कमाल है।” जगमोहन के होंठों से निकला –“कहां गया वह?”

“गया।” देवराज चौहान ने गहरी सांस ली –“उसके पास रिवॉल्वर थी। तैयार थी। मेरी जेब में थी। मैं इस हालत में नहीं था कि उससे कुछ पूछ सकता। धमकी देकर वह चला गया।”

“लेकिन यह श्याम सुन्दर है कौन?”

“क्या मालूम?”

“वो नम्बरदार कह रहा था कि श्याम सुन्दर तुम्हें तलाश कर रहा है।” जगमोहन बोला।

“हां मतलब कि जल्दी ही वह, हमें मिलेगा।”

“वो बाद की बात है।” देवराज चौहान ने रेस्टोरेंट पर नजर मारी –“इस वक्त हमारे सामने सबसे बड़ी बात तो यह है कि हम माथे पर अपने बारे में लेबल लगाये नहीं घूम रहे कि हम कौन हैं। फिर एकाएक वह मौके पर, ठीक यहां कैसे आ गया। जाहिर है कि उसे, हमारे यहां पहुंचने का इन्तजार था।”

जगमोहन चौंका।

“मतलब कि रामसिंह।” उसके होंठों से निकला।

“हां।” देवराज चौहान ने होंठ भींचकर सिर हिलाया –“रामसिंह के अलावा किसी को नहीं मालूम था कि हम यहां आने वाले हैं। रामसिंह, नम्बरदार को अवश्य जानता होगा।”

“विश्वास नहीं आता।” जगमोहन ने अजीब से स्वर में कहा –“रामसिंह की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती।”

“बात करके देखते हैं।”

दोनों कार से बाहर निकल आये।

रामसिंह चालीस वर्ष का पतला सा व्यक्ति था। रेस्टोरेंट का मालिक था। कोई खास काम करवाने के लिए उसने किसी के द्वारा देवराज चौहान से सम्बन्ध बनाया था। जब काम हो गया तो उसने तयशुदा रकम देवराज चौहान के यानी कि जगमोहन के हवाले कर दी और काम खत्म हो गया था।

लेकिन दस मिनट बाद ही दोबारा देवराज चौहान और जगमोहन को अपने ऑफिस में प्रवेश करता पाकर चौंका और जल्दी से खड़ा होकर, दोनों को देखने लगा।

दोनों उसे घूर रहे थे।

“पैसे कम हैं क्या?” रामसिंह जल्दी से बोला –“मैंने तो पूरे ही रखे थे। फिर भी हो सकता है, मुझसे गलती हो गई हो गिनने में। कम हैं तो और दे देता हूं।”

“तुमने किसे बताया कि मैं यहां आने वाला हूं।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में पूछा।

रामसिंह का चेहरा फक्क पड़ गया। बोला कुछ नहीं।

“मतलब कि तूने हमारे आने के बारे में, किसी को बताया है।” जगमोहन के दांत भिंच गये।

“मैं–मैं क्या करता।” रामसिंह जल्दी से कह उठा –“उसने मेरी छाती पर रिवॉल्वर रख दी थी। बहुत खतरनाक है वह। रिवॉल्वर उसके पास, मैं क्या करता।”

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिली।

“क्या पूछ रहा था?” देवराज चौहान का स्वर सख्त ही था।

“कह रहा था कि मुझे मालूम है तूने देवराज चौहान को कोई काम सौंपा है। काम करके वह, तेरे से पेमेंट लेने भी आयेगा। बता कब आयेगा। बताने के अलावा मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था।”

“उसका नाम–नाम बताया उसने?”

“नहीं।”

“हुलिया बता –। देखने में वह कैसा लगता था?”

रामसिंह ने हुलिया बता दिया।

वह नम्बरदार का हुलिया था।

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

“यही था, जो कार में मुझसे मिला –।” देवराज चौहान ने कहा।

“और कुछ पूछा उसने?” जगमोहन ने रामसिंह को देखा।

“नहीं।”

“कब आया था वह?”

“कल –।” रामसिंह ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी –“इसमें मेरी कोई गलती नहीं।”

रामसिंह की वास्तव में कोई गलती नहीं थी। उसकी जगह कोई और होता तो उसे भी मुंह खोलना पड़ता। क्योंकि छाती पर रिवॉल्वर रखी थी। न बोलता तो, जान जाती।

देवराज चौहान और जगमोहन रेस्टोरेंट से बाहर आ गये।

“लेकिन उसे कैसे पता चला कि रामसिंह का कोई काम हम कर रहे हैं।” जगमोहन बोला।

“यह कोई बड़ी बात नहीं। ऐसी बातें जैसे-तैसे बाहर आ ही जाती हैं।” देवराज चौहान ने कहा।

“ये नम्बरदार का मामला मेरी समझ में नहीं आया।”

देवराज चौहान मुस्कराया।

“आ जायेगा।”

“कैसे?”

“श्याम सुन्दर को तुम भूल रहे हो, जो हमें तलाश कर रहा है।”

देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा –“वह कहीं न कहीं हमें तलाश कर रहा होगा। हम तक पहुंचने की कोशिश कर रहा होगा। और अब हम भी थोड़ी सी कोशिशें करेंगे उसे तलाश करने की। जल्दी मुलाकात हो जायेगी। वरना वह, शायद हम तक न पहुंच सके।”

“श्याम सुन्दर हमें कहां तलाश कर सकता है?”

“वह जरा भी समझदार हुआ तो वहां-वहां जायेगा, जहां कभी हमारा जरा भी ताल्लुक रहा होगा। मतलब कि हमारी पहचान वालों को, हमारे बारे में टटोल रहा होगा।” देवराज चौहान का स्वर गम्भीर था।

“जैसे कि सोहनलाल?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“हां। अगर उसे सोहनलाल के बारे में खबर हुई तो –।” देवराज चौहान ने कहा –“कल हम उन लोगों को चेक करेंगे, जो हमें जानते हैं, जिनसे हमारा वास्ता रहा है। श्याम सुन्दर हमें अगर तलाश कर रहा है तो, मिल जायेगा। मुझे श्याम सुन्दर से ज्यादा नम्बरदार में दिलचस्पी है, वह क्यों श्याम सुन्दर के काम में अड़चन डालने की पूरी चेष्टा कर रहा है। यहां तक कि हमें धमकी देने में भी उसे, हिचक महसूस नहीं हुई।”

☐☐☐

देवराज चौहान और जगमोहन जब कार में बैठकर चले गये तो अंधेरे में छिपे नम्बरदार की आंखों में तीव्र चमक उभरी। उसने फौरन कलाई पर बंधी घड़ी के डायल पर निगाह मारी। घड़ी की चमकती सुइयां स्पष्ट नजर आ रही थी। उसने दोनों सुइयों को तीन के अंक पर किया और चेन में लगा, छोटा सा बटन दबा दिया।

अगले ही पल घड़ी में से भिनभिनाहट की आवाज आने लगी।

“हैलो–हैलो, नम्बरदार दिस साइड। हैलो, नम्बरदार...।”

“कहो नम्बरदार, देवराज चौहान मिला।” घड़ी से बारीक सी आवाज निकली।

“मिला।” नम्बरदार घड़ी को मुंह के पास ले जाकर आसपास देखता हुआ सतर्क स्वर में बोला –“सब ठीक रहा। और काम भी वैसे ही हुआ, जैसा सोचा गया था।”

“गुड।”

“उसके बाद देवराज चौहान और जगमोहन रेस्टोरेंट में गये। जाहिर है कि रामसिंह से पूछने गये होंगे कि उनके वहां आने का किसी को कैसे पता चला? लेकिन फिक्र की कोई बात नहीं। रामसिंह मेरे बारे में कुछ नहीं जानता। रिवॉल्वर के दबाव में ही उसने देवराज चौहान के आने का वक्त बताया था।”

“तुम्हारी बात का देवराज चौहान पर क्या असर हुआ?” घड़ी में से पतली सी आवाज आई।

“कह नहीं सकता। लेकिन वह स्पष्ट तौर पर उलझन में लग रहा था। रेस्टोरेंट से निकल कर, वह दोनों कार में जा चुके हैं। मेरे खयाल में इस मामले में वे अब गौर करेंगे। शायद श्याम सुन्दर को तलाश करने की कोशिश भी करें।”

“हूं। ठीक है। तुम वापस पहुंचो। जरूरत पड़ी तो फिर, काम बोला जायेगा।”

“ठीक है।”

☐☐☐

“जल्दी आना।”

सोहनलाल कार से उतरने लगा तो श्याम सुन्दर ने जैसे याद दिलाने वाले अन्दाज में कहा।

सोहनलाल ने ठिठक कर उसे देखा।

“चिन्ता मत कर भाई। डिनर के लिए नहीं जा रहा हूं। धंधे पर जा रहा हूं।” कहने के साथ सोहनलाल कार से निकला और सामने नजर आ रहे बिजनेस कॉम्पलेक्स की तरफ बढ़ गया। गले में कैमरा लटका हुआ था। कमीज, पैंट के बाहर झूल रही थी और पैंट में औजार फंसे थे।

जब सोहनलाल निगाहों से ओझल हो गया तो श्याम सुन्दर ने घड़ी के द्वारा बात की।

“क्या रहा, श्याम सुन्दर?” घड़ी में से महीन आवाज निकलकर उसके कानों में पड़ी।

“इस वक्त मैं सोहनलाल के साथ हूं।”

“उसने देवराज चौहान के बारे में बताया?”

“नखरे दिखा रहा है। लेकिन मैं उससे जान लूंगा।” श्याम सुन्दर ने तीखे स्वर में कहा।

“सोहनलाल के मुंह से, देवराज चौहान के बारे में जानना आसान काम नहीं है। गलतफहमी में मत रहना।”

श्याम सुन्दर ने कुछ नहीं कहा।

“सोहनलाल कहां है?”

“बीस लाख का हाथ मारने गया है किसी एड एजेंसी में।” श्याम सुन्दर मुंह बनाकर बोला।

“क्या?”

“हां। और मुझे अपना ड्राइवर बनाकर बिठा गया है कि जब वह नोटों के साथ आकर, कार में बैठे तो, मैं कार को दौड़ा ले जाऊं। जिन्दगी में यही काम करने को बाकी रह गया था। वह भी कर लिया।”

घड़ी में से हंसने की आवाज आई।

“नम्बरदार कुछ देर पहले मिला था देवराज चौहान से। उसने अपना चक्कर चलाया है। हो सकता है देवराज चौहान तुम्हें खुद ही तलाश करे। नहीं तो, नम्बरदार से यह फायदा तो हुआ कि देवराज चौहान को मालूम हो गया कि श्याम सुन्दर नाम का व्यक्ति उसे तलाश कर रहा है।”

“समझ गया।”

“आगे जो हो बताना।”

श्याम सुन्दर ने घड़ीनुमा ट्रांसमीटर बंद करके, वक्त को सही किया।

आधा घंटा बीत गया।

पैंतालीस मिनट फिर एक घंटा गुजरा।

सोहनलाल वापस नहीं लौटा। श्याम सुन्दर को भारी तौर पर उकताहट और बेचैनी होने लगी। सोहनलाल का काम, बीस-पच्चीस मिनट या फिर आधे घंटे के ऊपर का नहीं था। जब दस मिनट और बीते तो श्याम सुन्दर कार से निकला और इमारत की तरफ बढ़ गया।

रात के इस वक्त, अधिकतर ऑफिस बंद थे। कुछ एक खुले हुए भी थे। वहां मौजूद चौकीदारों को सोहनलाल का हुलिया बताकर, उसके बारे में पूछा। परन्तु कोई भी ठीक जवाब न दे पाया। नीचे लगे इंडेक्स से उसने पहली मंजिल पर स्थित एडवरटाइजिंग ऑफिस के बारे में जाना और ऊपर जाकर देखा। ऑफिस का दरवाजा खुला हुआ था। वहां बैठे व्यक्ति से लग रहा था जैसे वह लुट-पुट गया हो।

श्याम सुन्दर ने सोहनलाल का हुलिया बताकर पूछा।

“यह व्यक्ति यहां आया था?”

“हां।” उसने रो देने वाले स्वर में कहा –“मेरा बीस लाख ले –।”

“कितनी देर हो गई उसे गये?” उसकी बात पर ध्यान न देकर श्याम सुन्दर ने पूछा।

“आधा घंटा हो गया।”

श्याम सुन्दर के होंठ भिंच गए। फौरन समझ गया कि उसे बेवकूफ बनाकर, सोहनलाल किसी और रास्ते से खिसक गया है।

“उल्लू का पट्ठा।”

“क्या?” वह व्यक्ति हड़बड़ाकर, उसे देखने लगा।

श्याम सुन्दर बाहर निकलता चला गया।

वहां से कार पर सीधा सोहनलाल के फ्लैट पर पहुंचा।

दरवाजे पर दिन वाला ही मोटा ताला लटक रहा था। श्याम सुन्दर कई पलों तक ताले को घूरता रहा। अभी वापस नहीं लौटा तो, बाद में लौटेगा। इतना पैसा लेकर आयेगा कहां? श्याम सुन्दर ने कार को साइड करके, वहीं टिके रहने का फैसला कर लिया, सोहनलाल के इंतजार में।

☐☐☐

श्याम सुन्दर कार में सो गया था। दो बार उसकी आंख खुली। सोहनलाल के फ्लैट की तरफ नजर मारी। परन्तु ताला लटकता ही नजर आया। उसके बाद जब उसकी आंख खुली तो दिन निकल आया था। कई घंटे कार में ही बिताने की वजह शरीर कई जगह से टूटा-फूटा लग रहा था।

सोहनलाल के फ्लैट पर नजर पड़ी तो एकाएक सतर्क नजर आने लगा। दरवाजे पर अब ताला लगा नजर नहीं आ रहा था। स्पष्ट था कि दरवाजा भीतर से बंद था। सोहनलाल भीतर है? इस सोच के साथ ही श्याम सुन्दर के होंठ भिंच गये। वह दरवाजा खोलकर बाहर निकला और छोटी सी सड़क पार करके, दरवाजे पर पहुंचा और जोर से थपथपाया।

दूसरी बार थपथपाने पर सोहनलाल ने दरवाजा खोला। आंखें नींद से भरी हुई थीं।

“तू तो मजे से कार में नींद लेता रहा।” सोहनलाल मुंह बनाकर बोला –“थोड़ा मुझे भी सोने देता।”

श्याम सुन्दर ने गुस्से से उसे भीतर की तरफ धक्का दिया और खुद भी अन्दर आकर दरवाजा बंद किया, फिर आगे बढ़कर, सोहनलाल की गर्दन पकड़कर गुर्राया।

“रात को कहां खिसक गया था?”

“खिसक गया था मैं?” सोहनलाल अपनी गर्दन छुड़ाता हुआ बोला –“बेवकूफ बनाता है मुझे। मैं जब बाहर आया तो तू वहां था ही नहीं। कार भी नहीं थी।”

“साले। मैं भीतर गया था जहां से तूने बीस लाख मारा। तब तेरे को गये आधा घंटा हो चुका था।”

“तू भीतर क्यों गया?” सोहनलाल ने मुंह बनाया –“मैं तेरे को कार में बिठाकर गया था।”

श्याम सुन्दर के होंठों से गुर्राहट निकली और रिवॉल्वर निकाल कर नाल उसके पेट में टिका दी।

“बहुत हो गया। देवराज चौहान के पास ले चल मुझे।”

“यही खराबी है तेरे में। बात-बात पर रिवॉल्वर निकाल कर आगे कर देता है। माना तेरे पास रिवॉल्वर है। लेकिन इसे भीतर रख। तब तक हवा मत लगने दे, जब तक कि देवराज चौहान सामने न आये।”

“देवराज चौहान के पास ले चल मुझे।” श्याम सुन्दर पुनः गुर्राया।

“फिर वही बात। हौसला रख। लंच के वक्त तो देवराज चौहान नींद से उठता है।” सोहनलाल ने मुंह बनाकर कहा –“और वह इस बात को कभी पसन्द नहीं करता कि कोई उसकी नींद में खलल डाले। आराम से बैठ। सुबह का वक्त है। चाय बनाता हूँ। दोनों भाई मिल बैठकर पियेंगे।” कहकर सोहनलाल हिलने को हुआ तो श्याम सुन्दर ने सख्ती से उसकी बांह पकड़ ली।

सोहनलाल को लगा जैसे बांह में कोई लोहे का शिकंजा कस गया हो।

“देवराज चौहान का ठिकाना बता दे। बाकी सब मैं संभाल लूंगा।”

“दिमाग खराब हो गया है तेरा।” सोहनलाल ने अपनी बांह छुड़ाते हुए कहा –“अपने साथ-साथ मुझे भी मरवायेगा क्या। जगमोहन को क्यों भूलता है। उसकी खोपड़ी फिर जाये तो वह, देवराज चौहान से भी खतरनाक हो जाता है। तेरे को उनका पता बता दूं कि बाद में जगमोहन आकर मेरी जान ले ले।”

“मैं जगमोहन को भी खत्म कर दूंगा। तू पता बता।”

“जा-जा। तेरे जैसे सूरमा बहुत देखे हैं। जगमोहन को भी खत्म कर देगा। देवराज चौहान को भी मार देगा। कौन सी भैंस का दूध पीकर पैदा हुआ है।” सोहनलाल का स्वर एकाएक तीखा हो गया।

श्याम सुन्दर रिवॉल्वर थामे दांत भींचे उसे घूरता रहा।

जबकि सोहनलाल का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था कि इससे कैसे छुटकारा पाये?

“मेरे से बात करनी है तो सबसे पहले रिवॉल्वर जेब में डाल ले और दोबारा इसे हवा मत लगाना।”

दांत भींचे श्याम सुन्दर ने रिवॉल्वर जेब में डाल ली।

“अब जरा इन्सान बनकर बात कर। दिमाग से काम ले। रिवॉल्वर लेकर नहीं निकल पड़ते कि मां-मां मैं देवराज चौहान को खत्म करने जा रहा हूं। तू बच्चा तो है नहीं। समझदार बन। मैं तेरे को चाय पिलाता हूं।”

“लेकिन देवराज चौहान?”

“फिर तोते वाली रट। तेरी मां ने तेरे को थोड़ी देर के लिए चुप बैठना नहीं सिखाया क्या?” सोहनलाल दहाड़ा –“उस कुर्सी पर बैठ जा। अभी तेरे से बात करता हूं। आराम से बैठना। कुर्सी की टांग कमजोर है। तोड़ मत देना।”

और कोई रास्ता न पाकर, खून के घूंट पीते श्याम सुन्दर ने रिवॉल्वर जेब में डाली और कुर्सी पर बैठ गया।

सोहनलाल चाय बनाने के लिए छोटी सी किचन में चला गया।

पांच मिनट बाद वह चाय के दो गिलासों के साथ लौटा और एक उसे थमाता हुआ बोला।

“अब ठीक है। समझदार इन्सान, इस तरह आराम से बैठ कर बात करते हैं।” अपना गिलास थामे सोहनलाल कुर्सी पर बैठा और घूंट भरकर बोला –“बता, मेरे को क्या देगा?”

“तेरे को?” श्याम सुन्दर की आंखें सिकुड़ी।

“हां। मैंने इस बारे में बहुत सोचा है। तू देवराज चौहान के बिना मानेगा नहीं तो मुझे भी बहती गंगा में हाथ धो लेने दे। मैं तेरे को देवराज चौहान के सामने खड़ा कर दूंगा। बदले में मेरे को कितना रोकड़ा देगा।”

“लेकिन तूने तो पैसे लेने से इनकार –।”

“वो पहले की बात थी। ये अब की बात है। रकम बोल।”

श्याम सुन्दर समझ गया कि सोहनलाल उसे बेवकूफ बना रहा है। देवराज चौहान का पता नहीं बताना चाहता।

“तू बोल, तेरे को क्या चाहिए?” श्याम सुन्दर उसे घूरकर बोला।

“पचास लाख।”

“उस पेड़ का नाम भी बता दे, जहां नोट लगे होते हैं। ताकि मैं तोड़कर, तेरे लिए ला सकूँ।”

सोहनलाल ने आंखें सिकोड़कर उसे देखा।

“मतलब कि तेरे को पैसे देना मंजूर नहीं।”

“ज्यादा चालाकी की तो सीधे-सीधे गोली मार दूंगा। खोटा पैसा भी नहीं मिलेगा और तू देवराज चौहान का पता बतायेगा। बोल, इंकार करता है तो मारूं गोली। और सवाल नहीं पूछूंगा।”

सोहनलाल समझ गया कि यह तो फेवीकोल लगाकर चिपक गया है। इस जोड़ को तोड़ना आसान नहीं।

“ठीक है। दोपहर तक इंतजार कर।” सोहनलाल ने अपने चेहरे पर गम्भीरता लाकर कहा –“देवराज चौहान को नींद से उठ लेने दे। फिर तू जहां कहेगा, फोन करके उसे बुला लूंगा।”

“अगर यह तेरी चालबाजी है तो।”

“शराफत से कह रहा हूं। मेरा चेहरा नहीं देख रहा। मैं झूठा लगता हूं तुझे।” सोहनलाल उखड़ा।

“अच्छी बात है।” श्याम सुन्दर, दांत भींचकर उसे घूरता हुआ बोला –“मैं यहीं हूं। तेरे साथ। दोपहर तक तू अपनी बात पर खरा नहीं उतरा तो तुझे मारकर चला जाऊंगा।”

“तू इंसान है या क्या है। बात-बात पर गोली की बात करता है।” सोहनलाल ने चाय का गिलास खाली करके रखा और गोली वाली सिगरेट सुलगाकर कश लिया –“मेरे को तगड़ी नींद आ रही है। तूने बेवक्त आकर जगा दिया। मैं सोने जा रहा हूं। साढ़े बारह बजे उठा देना मुझे।”

श्याम सुन्दर खा जाने वाली निगाहों से उसे देखता रहा।

कश लेता सोहनलाल फोल्डिंग बैड पर जा लेटा।

☐☐☐

साढ़े बारह का वक्त ही नहीं आया कि श्याम सुन्दर, उसे उठा पाता।

ग्यारह बजे जगमोहन वहां आ पहुंचा। दरवाजा खुला ही था। वह दरवाजे से एक कदम भीतर आया तो श्याम सुन्दर पर नजर पड़ते ही ठिठक गया। फिर सोहनलाल को देखा जो आराम से सोया हुआ था।

“कौन हो तुम?” जगमोहन की निगाह पुनः श्याम सुन्दर पर जा टिकी।

“तुम कौन हो?” श्याम सुन्दर ने उसे सिर से पांव तक देखा।

उसके सवाल पर जगमोहन के होंठ, अजीब अन्दाज में सिकुड़े।

“आ मेरे यार।” सोहनलाल की नींद से भरी आंखें खुली-“बहुत दिनों बाद आया कमलनाथ। आ–बैठ।”

कमलनाथ? जगमोहन मन ही मन चौंका। उसकी निगाह पुनः श्याम सुन्दर पर गई। इस इंसान की मौजूदगी में सोहनलाल का उसे कमलनाथ कहना जाहिर करता था कि कहीं न कहीं गड़बड़ है।

“बैठ कमलनाथ खड़ा क्यों है?”

मन ही मन सतर्क जगमोहन आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठा।

सोहनलाल सीधा हुआ। गोली वाली सिगरेट सुलगाई। कश लिया।

“कल तू कहां गायब हो गया था।” सोहनलाल बोला –“तेरे से कहा था कि बीस लाख का हाथ मारना है।”

जगमोहन कुछ नहीं समझा, लेकिन उसके होंठों से निकला।

“कहीं फंस गया था।”

“वो काम तो खैर मैंने निपट लिया।” कहने के बाद सोहनलाल ने श्याम सुन्दर को देखा, जो उसे ही देख रहा था –“यह करेगा तेरा काम। इसके पास तो देवराज चौहान का पूरा टाइम टेबल रहता है।

देवराज चौहान का नाम सुनकर, जगमोहन चौंका।

सोहनलाल, जगमोहन को देखकर मुस्कराया। पुनः गोली वाली सिगरेट का कश लिया।

“कमलनाथ।” सोहनलाल ने स्वर को गम्भीर बनाते हुए कहा –“यह मेरा खास यार है, श्याम सुन्दर है...।”

“श्याम सुन्दर?” जगमोहन ने चौंक कर उसकी तरफ देखा।

“क्या हुआ?” उसे चौंकता पाकर, सोहनलाल ने अजीब से स्वर में पूछा।

“कुछ नहीं।” जगमोहन खुद पर काबू पाता हुआ बोला –“तुमने इसे पहले कभी नहीं मिलवाया?”

“दूसरे शहर में रहता है।” सोहनलाल बोला –“तो मैं कह रहा था कि इसकी जेब में रिवॉल्वर है और यह देवराज चौहान को खत्म करना चाहता है। मालूम नहीं क्या मामला है। ले जा इसे देवराज चौहान के पास। लेकिन ध्यान रखना कि यह देवराज चौहान का पता बताने की एवज में फूटी कौड़ी भी नहीं देना चाहता। मैंने कोशिश करके देख लिया है।”

अब जगमोहन की आंखों में कड़वे भाव उभरे। उसने श्याम सुन्दर को देखा।

उसकी आंखों में उभरे भावों को देखकर, श्याम सुन्दर सतर्क हुआ। हाथ जेब की तरफ बढ़ा।

“हाथ को मत हिलाओ।” जगमोहन ने दांत भींचकर कहा।

लेकिन श्याम सुन्दर ने परवाह किए बिना रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली।

जगमोहन ने उसकी रिवॉल्वर की परवाह नहीं की। उसे घूरता रहा।

“देवराज चौहान को पहचानता है?” जगमोहन भिंचे स्वर में बोला।

“पहचान जाऊंगा।” श्याम सुन्दर उसे घूरता हुआ बोला –“अखबार में कभी तस्वीर देखी थी।”

“जगमोहन को पहचानता है?”

“नहीं।”

जगमोहन उठा। लम्बा कदम उठाकर उसके पास पहुंचा और जोरदार घूंसा उसके चेहरे पर मारा। इसके साथ ही रिवॉल्वर निकाल ली। यह सब अचानक हुआ। श्याम सुन्दर संभल न सका। कुर्सी के साथ लुढ़कने को हुआ कि संभल गया। तभी जगमोहन की रिवॉल्वर उसके सिर से जा सटी।

“अपनी रिवॉल्वर फेंक।”

कोई और रास्ता न पाकर, श्याम सुन्दर ने रिवॉल्वर नीचे गिरा दी।

“अच्छी तरह पहचान ले जगमोहन को।” जगमोहन ने सख्त स्वर ने कहा।

श्याम सुन्दर चौंक कर उसे देखने लगा।

“तुम–तुम जगमोहन हो?” उसके होंठों से निकला।

“हाँ।” जगमोहन ने भिंचे दांतों से कहा और नीचे पड़ी उसकी रिवॉल्वर को ठोकर मारकर दूर कर दिया–“देवराज चौहान की जान लेगा तू रिवॉल्वर लिए घूम रहा है। बोल–बोल उतारूं तेरी खोपड़ी में गोली।”

“ऐसी बात नहीं है।” श्याम सुन्दर जल्दी से बोला –“गोली मत चला देना। पहले मेरी बात तो सुन लो?”

“सुना।”

“रिवॉल्वर हटाओ। मेरा यकीन मानो, मैं कुछ नहीं करूंगा।” श्याम सुन्दर ने विश्वास दिलाने वाले स्वर में कहा।

“तू अब कर भी क्या सकता है।” जगमोहन का चेहरा कठोर हो चुका था –“अपने हाथ-पांवों पर काबू रखना। तेरे जैसे कई आए और चले गये। लेकिन देवराज चौहान अपनी जगह सलामत खड़ा है, अभी तक।”

श्याम सुन्दर कुछ नहीं बोला

जगमोहन ने उसके सिर से रिवॉल्वर हटाई और वापस कुर्सी पर आ बैठा।

सोहनलाल गम्भीर निगाहों से श्याम सुन्दर को देखे जा रहा था।

“फूट –।” जगमोहन गुर्राया –“क्यों पड़ा है देवराज चौहान के पीछे।”

“दरअसल मैं देवराज चौहान की जान नहीं लेना चाहता।” श्याम सुन्दर ने संभले स्वर में कहा –“मैं देवराज चौहान से मिलना चाहता था। लेकिन मैं जानता था कि इस तरह देवराज चौहान नहीं मिलेगा। अगर मैं यह कहने लगूं कि, मैं देवराज चौहान की जान लेना चाहता हूं और यह बात देवराज चौहान तक पहुंचे तो वह अवश्य मुझे कहीं न कहीं पकड़ लेगा। इस तरह देवराज चौहान से मुलाकात हो जायेगी।”

जगमोहन के चेहरे पर तीखे भाव उभरे।

“बहुत हिम्मत वाला काम किया।” जगमोहन ने शब्दों को चबाकर कहा –“जिन्दा है अभी तू। बच गया। बोल, क्यों मिलना चाहता था तू देवराज चौहान से।”

“यह बात मैं देवराज चौहान से –।”

“मुझे बता।” जगमोहन की आवाज सुलग उठी।

श्याम सुन्दर दो पलों के लिए खामोश हुआ फिर कह उठा।

“एक जगह डकैती डालनी है। लूट करनी है। अस्सी-नब्बे करोड़ की लूट है। एक अरब की रकम ही समझो। यह काम सौ आदमी मिलकर नहीं कर सकते। लेकिन एक अकेला, देवराज चौहान कर लेगा। मैं जानता हूं। इसलिए देवराज चौहान से मिलने की कोशिश कर रहा था। इस काम में वक्त भी ज्यादा नहीं बचा।”

जगमोहन उसे घूरता रहा।

“बाकी सब तो ठीक है।” सोहनलाल गहरी सांस लेकर कह उठा –“लेकिन देवराज चौहान को तेरा तलाश करने का ढंग मेरे गले में जाने क्यों फंस रहा है।”

“देवराज चौहान से मिलने के लिए कोई-न-कोई रास्ता तो अपनाना ही था।” श्याम सुन्दर ने कहा।

“हां।” सोहनलाल ने गम्भीरता से सिर हिलाया –“लेकिन सीधे-सीधे भी बात हो सकती थी।”

“मैंने सोचा, हो सकता है, देवराज चौहान मेरी बात में दिलचस्पी न ले। इसलिए।”

“खैर छोड़।” सोहनलाल ने पहले जैसे स्वर में कहा –“इस बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं निकलेगा। तू यूं ही ढीले-ढाले जवाब देता रहेगा। आगे बात कर।”

श्याम सुन्दर ने जगमोहन को देखा।

“कहां है अस्सी-नब्बे करोड़ –क्या माल है?” जगमोहन ने उसे घूरते हुए सख्त स्वर में कहा।

“आगे की बात मैं देवराज चौहान के सामने करूंगा।” श्याम सुन्दर ने शांत स्वर में कहा।

“क्यों?” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा, “मेरे सामने क्यों नहीं?”

“इसलिए कि देवराज चौहान के सामने सब कुछ मुझे दोबारा दोहराना पड़ेगा।”

जगमोहन, श्याम सुन्दर को देखता रहा।

“बेकार के शक-वहम में मत पड़ो।” श्याम सुन्दर कह उठा –“मेरे कहने पर विश्वास करो।”

जगमोहन को वह सब याद था जो रात देवराज चौहान ने बताया था। वह नम्बरदार जो कोई भी था। सच कह रहा था कि श्याम सुन्दर उनकी तलाश में है और किसी लूट-डकैती के लिए कहेगा। जगमोहन उससे नम्बरदार के बारे में पूछना चाहता था परन्तु साथ ही उसने महसूस किया कि यह बातें देवराज चौहान के सामने ही हों तो बेहतर रहेगा क्योंकि इसकी बातें सुनकर आखिरी फैसला तो देवराज चौहान ने ही करना था।

जगमोहन ने सोहनलाल को देखा।

“देवराज चौहान को फोन कर।”

“मेरी मान।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा –“रहने दे।”

“क्यों?” जगमोहन ने सोहनलाल को गहरी निगाहों से देखा।

“मालूम नहीं क्यों, श्याम सुन्दर साहब, मेरे गले के नीचे नहीं उतर रहे। बीच में ही फंसे पड़े हैं।” सोहनलाल ने गम्भीर निगाहों से श्याम सुन्दर को देखा –“जाने क्यों, शुरू से ही इसका देवराज चौहान से मिलना, मुझे ठीक नहीं लग रहा।”

जगमोहन ने कठोर निगाह श्याम सुन्दर पर मारी फिर सोहनलाल से कहा।

“तू फोन करके आ।”

सोहनलाल गहरी सांस लेकर उठ खड़ा हुआ और श्याम सुन्दर से बोला।

“तेरा थोबड़ा मुझे शुरू से ही पसन्द क्यों नहीं आ रहा?”

जवाब में श्याम सुन्दर मुस्कराया।

“कभी-कभी ऐसा होता है लेकिन मुझे विश्वास है कि जल्दी ही मेरा थोबड़ा तुझे पसन्द आने लगेगा।”

“मुझे तो ऐसा नहीं लगता।” कहने के साथ ही सोहनलाल बाहर निकलता चला गया।

जगमोहन और श्याम सुन्दर की नजरें मिलीं।

“तुम हो कौन?” जगमोहन ने पूछा।

“नाम तुम जान ही चुके हो। इसके अलावा कुछ बताने की मैं जरूरत नहीं समझता।” श्याम सुन्दर ने शांत स्वर में कहा –“हम किसी काम के लिए मिल रहे हैं न कि लम्बी रिश्तेदारी के लिए। मेरी बात सुनने के बाद, काम करने की इच्छा हो तो ठीक, नहीं तो अपने-अपने रास्ते।”

“कानून वाले पुलिस वाले पहचानते हैं तुम्हें?”

“बहुत अच्छी तरह।” श्याम सुन्दर कड़वे स्वर में कह उठा –“कुछ ज्यादा ही पहचान है।”

दस मिनट में सोहनलाल वापस लौटा।

“एक घंटे तक देवराज चौहान आ रहा है।” सोहनलाल ने कहा।

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