पूरे तीन साल बाद प्रमोद राजनगर लौटा था।


प्लेन से उतरकर टरमिनल की ओर बढ़ते समय जो पहली जानी-पहचानी सूरत प्रमोद को दिखाई दी थी, वह पुलिस इन्स्पेक्टर आत्माराम की थी ।


फिर उसे अपना वफादार नौकर यांग टो दिखाई दिया ।


वह टरमिनल के बैरियर से बहुत परे खड़ा था । प्रमोद को देखकर उसके चेहरे पर स्वागत का अपेक्षित भाव नहीं आया । उसने एक बार प्रमोद की दिशा में देखा, एक भौं उठाई और एक इतना हल्का इशारा, कि प्रमोद ही उसे समझ सका, आत्माराम की ओर कर दिया ।


प्रमोद समझ गया कि उसके प्लेन के एयरपोर्ट पर उतरने के समय पुलिस इन्स्पेक्टर आत्माराम का वहां मौजूद होना महज इत्तफाक नहीं था । वह विशेष रूप से प्रमोद के लिये ही वहां आया मालूम होता था ।


प्रमोद ने एक सरसरी निगाह चारों ओर डाली। उसे और कोई जानी-पहचानी सूरत नहीं दिखाई दी।


कविता ओबेराय नहीं ।


सुषमा ओबेराय नहीं ।


चीनी पिता पुत्री चू की और सो हा भी नहीं ।


“नमस्ते, प्रमोद साहब ।" - प्रमोद के समीप आते ही आत्माराम बड़े मीठे स्वर में बोला- "राजनगर में आपका स्वागत है । "


“नमस्ते, इन्स्पेक्टर साहब ।" - प्रमोद प्रत्यक्षतः मधुर स्वर में बोला ।


पुलिस इन्स्पेक्टर आत्माराम एक बेहद मिलनसार और विनयशील व्यक्ति था । उसके होंठों पर हर क्षण मैत्री और सदभावना से भरी मुस्कुराहट खेलती रहती थी, लेकिन हकीकतन वह एक बेहद काईयां और चालाक आदमी था । उसकी आंखों में लोमड़ी जैसी सतर्कता दिखाई देती थी ।


“वाह-वाह ।" - आत्माराम हंसता हुआ बोला- "तो आप बन्दे को भूले नहीं हैं।"


“आपको कैसे भूल सकता हूं मैं, इन्स्पेक्टर साहब ! क्या मुझे याद नहीं कि पिछली बार जब मैं राजनगर में था तो आपने मुझे क्या-क्या कलाबाजियां खिलवाई थीं !”


"और आपने हमें ।"


प्रमोद चुप रहा ।


"क्या करें, साहब !" - आत्माराम खेदपूर्ण स्वर में बोला - "पुलिस की नौकरी ही ऐसी है। हम लोगों से तो हर किसी को शिकायत ही रहती है। आपको भी होगी ।"


"अब तो नहीं है । "


" है नहीं तो हो जाएगी ।"


"मतलब ?"


“मतलब आप अभी खुद ही समझ जायेंगे, प्रमोद साहब । जब मुझे आपके स्वागत के लिये यहां आने का हुक्म मिला था तो जो सबसे पहला विचार मेरे दिमाग में आया था वो ये था कि... " I"


"एक पुलिस इंस्पेक्टर की ड्यूटी भी कितनी अप्रिय होती है।" - प्रमोद उसकी बात काट कर उसी के स्वर में बोला - "कैसे-कैसे अप्रिय काम करने पड़ते हैं उसे । वगैरह-वगैरह ।”


“हा हा हा ।" - आत्माराम इतनी जोर से हंसा जैसे इससे ज्यादा दिलचस्प बात उसने जिन्दगी में कभी न सुनी हो "आप तो लगता है तीन साल के लम्बे अरसे में मेरी एक भी बात नहीं भूले हैं ।'


"कैसे भूल सकता हूं? आप जैसा रंगीन मिजाज पुलिस अधिकारी मैंने आज तक नहीं देखा ।”


'आपकी जर्रानवाजी है, साहब, वर्ना मैं तो निहायत मामूली आदमी हूं।"


प्रमोद चुप रहा ।


"और फिर, साहब, आप कोई मामूली आदमी तो नहीं । आप कन्सन्ट्रेशन का दुर्लभ आर्ट जानते हैं। आपको भला कोई कैसे भूल सकता है ! भूल भी जाए तो आप केवल चार सैकेण्ड कंसन्ट्रेट करके, अपना चित्त एकाग्र करके, वह बात याद कर लेते होंगे । है न ?"


प्रमोद समझ न पाया कि इंस्पेक्टर उसे घिस रहा था या उसकी तारीफ कर रहा था ।


"इन्स्पेक्टर साहब ।" - वह बोला - "क्या मैं पूछ सकता हूं कि आपको मेरे स्वागत के लिए यहां आने का अप्रिय काम करने के लिए क्यों कहा गया ?"


"शौक से पूछिये, साहब । आप न पूछते तो भी मैं आपको जरूर बताता । आप जरा मेरे साथ तशरीफ लाइये |"


"लेकिन इन्स्पेक्टर ।" - प्रमोद तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोला - "मैं लम्बे सफर से आ रहा हूं। मैं अभी प्लेन से उतरा हूं। मैं...।"


"मैं सब समझता हूं, साहब । आप थके हुए हैं । घर जाकर आराम करना चाहते हैं। मैं आपको तकलीफ देने के लिए सरासर शर्मिन्दा हूं लेकिन साथ ही आपको विश्वास दिलाता हूं कि मैं आपका बहुत कम वक्त लूंगा । बल्कि यूं कहिए कि मेरे साथ होने की वजह से आपके वक्त की बचत होगी।"


"कैसे ?"


"मैंने यहीं कहीं आपके चीनी नौकर को भी देखा था । किधर गया वह ?” - आत्माराम ने चारों ओर निगाह दौड़ाई - "वह रहा । मैं आपको कस्टम के तकल्लुफ से निकाल देता हूं । आपका बैगेज यांग टो चैक करवा देगा। जितनी देर में वह फारिग होगा, उतनी देर में मैं आपको फारिग कर दूंगा । ठीक है ?"


"ठीक है।" - प्रमोद बोला ।


“तो बुलाइए उसे ।”


प्रमोद ने यांग टो को आवाज दी ।


यांग टो दौड़ता हुआ समीप आया ।


“यांग टो" - प्रमोद चीनी में बोला- "क्या माजरा है ?"


यांग टो के जुबान खोल पाने से पहले आत्माराम बोल उठा - “च-च-च । प्रमोद साहब ऐसा मत कीजिए । कोई ऐसी जुबान बोलिए जो मेरी समझ में आए । "


"मैं इसे अपने सामान के बारे में निर्देश देने की कोशिश कर रहा था ।" - प्रमोद जरा नाराजगीभरे स्वर से बोला ।


"मैं समझा देता हूं।" - आत्माराम बोला- "सुनो, साहब से इनका बैगेज चैक ले लो और कस्टम के काउन्टर पर पहुंच जाओ । वहां कह देना कि तुम्हें इन्स्पेक्टर आत्माराम ने भेजा है। बाकी काम अपने आप हो जाएगा । आपके सामान में कोई काबिलेएतराज चीज तो नहीं, प्रमोद साहब ?"


"नहीं ।" - प्रमोद कठिन स्वर में बोला ।


“फिर क्या समस्या है ! मैं आपको चुटकियों में फारिग कर दूंगा, साहब ।”


प्रमोद ने बैगेज चैक यांग टो को थमा दिया ।


आत्माराम प्रमोद को एक विशाल हाल में स्थित एक छोटे से कमरे में ले आया । कमरे में एक विशाल मेज लगी हुई थी । आत्माराम एक कुर्सी पर बैठ गया और अपने सामने पड़ी एक कुर्सी की ओर संकेत करता हुआ बोला - "तशरीफ रखिए ।"


प्रमोद बैठ गया । उसने अपनी जेब से स्टेट एक्सप्रेस का एक पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया ।


“यकीन जानिये, मैं आपका ज्यादा वक्त लेने की कतई कोशिश नहीं करूंगा ।" - आत्माराम बोला ।


“मेहरबानी आपकी ।" - प्रमोद शुष्क स्वर में बोला ।


"अजी, साहब, मेहरबानी कैसी ! हम तो जनता के नौकर हैं । "


प्रमोद चुप रहा । आत्माराम के सामने तो बोलना ही अपराध था । वह हर बात से कोई नाकारा बात निकाल लेता था और मतलब की बात फिर टल जाती थी ।


“आप अमेरिका से सीधे भारत आ रहे हैं, मिस्टर प्रमोद ?" - एकाएक आत्माराम गम्भीर स्वर में बोला ।


"नहीं, अमेरिका से नहीं । रास्ते में मैं रोम रुका था ।” प्रमोद बोला ।


रखा है !" "लेकिन भारत की धरती पर तो आपने अभी कदम


"जी हां । "


"पिछले तीन सालों में पहली बार !"


"जी हां । "


“जगन्नाथ की हत्या के संदर्भ में मेरी आपसे मुलाकात हुई थी । उसके कुछ दिनों बात ही आप भारत से चले गए थे । तबसे आप आज ही - बल्कि अभी राजनगर वापस लौटे हैं ?"


“जी हां ।"


“आपके कविता ओबेराय और सुषमा ओबेराय नामक धनाढ्य युवतियों से बड़े घनिष्ट सम्बन्ध थे ?"


“जी हां । "


“मैंने सुना था आप सुषमा ओबेराय से, यानी कि ओबेराय बहनों में से छोटी बहन से, शादी भी करने वाले थे ["


“आपने गलत सुना था ।" - प्रमोद शुष्क स्वर में बोला


"मैंने तो यहां तक सुना था कि वास्तव में दोनों बहनें आपसे मुहब्बत करती थीं । आप बड़ी बहन से मुहब्बत करते थे लेकिन बड़ी बहन भी यह चाहती थी कि आप छोटी बहन से शादी कर लें । इस झमेले से बच निकलने की खातिर आप विदेश भाग खड़े हुए थे ।”


"गलत ! सब गलत !" - प्रमोद बोला । मन ही मन वह भुनभुना रहा था कि इंस्पेक्टर को ऐसी गहरी बातें कैसी मालूम हो गई थीं ।


“आपके चले जाने के बाद कुछ दिन तो सुषमा अपना टूटा दिल लिए परेशानहाल जिन्दगी गुजारती रही थी ।" 


आत्माराम कहता रहा - "लेकिन फिर उसने जोगेन्द्रपाल नाम के एक नवयुवक से दिल लगा लिया था । आप कभी जोगेन्द्रपाल से मिले हैं ?"


“अजीब सवाल है । आप खुद कह रहे हैं कि सुषमा ओबेराय का जोगेन्द्रपाल से परिचय तब हुआ था, जब मैं राजनगर में नहीं था और मैं अभी वापस लौटा हूं । भला मैं जोगेन्द्रपाल से कब मिलता ?"


"आपने सुना तो जरूर होगा उसके बारे में !"


"हां, सुना था । मुझे कविता ओबेराय की एक चिट्ठी से मालूम हुआ था कि सुषमा की जोगेन्द्रपाल नाम के किसी नौजवान से तगड़ी कोर्टशिप चल रही थी। सुषमा बड़ी चंचल स्वभाव की लड़की है । कोई एक इरादा, कोई एक खयाल हमेशा के लिए उसके दिल या दिमाग से घर नहीं कर पाता । उसका किसी हमउम्र नौजवान में दिलचस्पी लेना स्वाभाविक था । मुझे तो यह जानकर खुशी हुई थी कि उसे अपना कोई मनपसन्द जोड़ीदार मिल गया था ।"


"आपका दोनों बहनों से अक्सर पत्राचार होता था ?"


“दोनों से नहीं, सिर्फ कविता ओबेराय से । सुषमा को तो पता भी नहीं था कि मैं कहां था । "


"लेकिन कविता आपको अक्सर चिट्ठी लिखा करती थी


"हां"


"वह यहां के हालात के बारे में भी आपको लिखती रहती होगी।"


“हां । तभी तो मुझे सुषमा और जोगेन्द्रपाल के सम्पर्क की खबर हुई । "


"फिर तो आपको यह भी मालूम होगा कि हाल ही में जोगेन्द्रपाल किसी झमेले में फंस गया था ।”


"मालूम है । वह हरि प्रकाश सावन्त नामक एक व्यक्ति के कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार हो गया था । सैशन कोर्ट में उस पर मुकदमा चला था और उसे फांसी की सजा हो गई थी । उसने हाईकोर्ट में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील की थी ।"


“ये बातें भी आपको कविता से मालूम हुई थीं?"


“हां ।”


"वह क्या आपसे किसी प्रकार की सहायता की उम्मीद कर रही थी ?"


“अगर ऐसी बात थी तो कम से कम उसने साफ-साफ नहीं लिखा था । "


"लेकिन फिर भी आप चाहते थे कि आप इस सन्दर्भ में ओबेराय बहनों की कोई मदद कर सकें ?"


"हां ।”


" और इसीलिए आप इस नाजुक घड़ी में भारत वापस लौटे हैं ?"


"इन्स्पेक्टर साहब, मुझे कभी तो भारत आना ही था ।”


“क्यों नहीं ! क्यों नहीं ! आखिर यह आपका वतन है । अपने वतन से हर किसी को मुहब्बत होती है।"


प्रमोद चुप रहा ।


“आप हरि प्रकाश सावंत को जानते थे?"


"हां । वह एक प्रकार से सुषमा का ट्रस्टी था । आप जानते ही होंगे कि दोनों बहनें अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त आर्टिस्ट हैं। अपनी कला से उन्होंने खून धन और यश कमाया है। दोनों के पास विरासत में मिली पर्याप्त धनराशि भी है । सावंत ओबेराय परिवार का हितचिन्तक था । वह ओबेराय बहनों के पिता का मित्र था । इसीलिए सुषमा को उस पर पूरा भरोसा था । सुषमा का ट्रस्टी होने के नाते वही उसके धन को कन्ट्रोल करता था और उसे लाभदायक धन्धों में लगाता रहता था । उसका अपना धन्धा भी था । वह ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी नामक एक फर्म में पार्टनर था । मैं कम्पनी के अन्य तीन पार्टनरों को भी जानता हूं । उनके नाम सीताराम नरूला, राकेश टण्डन और जीवन गुप्ता हैं। सावंत के किसी तेल के धन्धे में विशेष रुचि के बारे में भी मैंने सुना था। और, इन्स्पेक्टर साहब, जोगेन्द्रपाल के बारे में भी मेरी अपनी एक निजी राय है ।"


"क्या ?"


"वह बेगुनाह है ।"


“अच्छा !"


"मेरी राय में उसने कत्ल नहीं किया था । वह फंसाया गया था।"


“कमाल है ! आप जोगेन्द्रपाल को जानते नहीं । आप पूरे तीन साल बाद अभी भारत वापिस लौटे हैं लेकिन आप जोगेन्द्रपाल के हक में इतनी जोरदार राय रखते हैं।”


"जी हां । "


"फिर तो आप पूरी कोशिश करेंगे कि जोगेन्द्रपाल फांसी पर न चढ पाये ?"


"जरूर करूंगा।" - प्रमोद दृढ स्वर से बोला- “और बिना किसी अंजाम की परवाह किए करूंगा ।"


"इसलिए क्योंकि वह आपकी भूतपूर्व प्रेमिका का प्रेमी है।"


प्रमोद ने कहरभरी निगाहों से आत्माराम की ओर देखा और फिर शान्त स्वर में बोला- "इसलिए क्योंकि वह मेरी भूतपूर्व, वर्तमान और भविष्य की प्रेमिका की छोटी बहन का प्रेमी है।"


"कल रात आप कहां थे ?"


"रोम में ।"


"क्या पिछली रात भी आप राजनगर आए थे ?"


"मतलब ?" - प्रमोद हैरानी से बोला- " यानी कि पिछली रात रोम से यहां आया, फिर वापिस रोम गया और अभी रोम से फिर लौटा । "


"हां"


"क्या मैं इस बेहूदे सवाल की वजह जान सकता हूं ?"


“पिछली रात को जोगेन्द्रपाल पुलिस हैडक्वार्टर के लाकअप से सैन्ट्रल जेल ले जाया जा रहा था । साढे दस बजे के करीब जेल के रास्ते में उस पुलिस वैन का एक पहिया पन्चर हो गया जिसमें जोगेन्द्रपाल था । बाद में हमें सड़क पर चौड़े तले वाले छोटे-छोटे कील फैले मिले थे। यानी कि टायर का पंचर होना कोई हादसा नहीं था । फिर जिस वक्त पुलिस वाले वैन रोक कर बैठे हुए पहिए का मुआयना कर रहे थे, दो नकाबपोश सड़क की बगल में उगी झाड़ियों के पीछे से बाहर निकल आए। दोनों सशस्त्र थे। उन्होंने पुलिस के आदमियों को कवर कर लिया और फिर उन्हीं की हथकड़ियों से उनके हाथ बांध दिए । फिर वे दोनों नकाबपोश जोगेन्द्रपाल के साथ वहां से फरार हो गए।"


"और आपका खयाल है कि पिछली रात को मैं रोम से यहां आया, मैंने जोगेन्द्रपाल को पुलिस की हिरासत से रिहा कराया और फिर वापिस रोम चला गया !"


“नाराज मत होईये, साहब । अभी आप ही ने तो कहा था कि आप बिना अंजाम की परवाह किए इस बात की पूरी कोशिश करेंगे कि जोगेन्द्रपाल फांसी पर न चढ पाए ।"


“कहा था लेकिन ऐसी कोशिश ? यह तो दीवानगी है । अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारने जैसी बात है । "


" यानी कि आपने ऐसा नहीं किया ।"


"सवाल ही नहीं पैदा होता ।”


"चलिए साहब मान लेते हैं आपकी बात । अब यह बताइए कि आपको कोई अन्दाजा है कि जोगेन्द्रपाल इस वक्त कहां छुपा हुआ हो सकता है ?"


"कतई नहीं । मैंने तो अभी राजनगर में कदम रखा है। जिस आदमी की मैंने जिन्दगी में कभी सूरत नहीं देखी, उसके बारे में मैं क्या कह सकता हूं कि वह पुलिस की गिरफ्त से निकलने में कामयाब हो जाने के बाद कहां जाकर छुपेगा !"


"क्या ओबेराय बहनों को पता था कि आप इस फ्लाइट से राजनगर लौट रहे हैं ?"


"हां । मैंने उन्हें खबर भेजी थी । "


“और अपने चीनी नौकर को भी ?"


"हां । "


"लेकिन केवल आपका नौकर ही आपको रिसीव करने एयरपोर्ट पर पहुंचा, ओबेराय बहनें नहीं आई।"


"जाहिर है । "


“न आने की कोई असाधारण वजह ही होगी ।"


"शायद ।"


"क्या वह असाधारण वजह यह हो सकती है कि वे दोनों बहनें या दोनों में से कोई एक विशेष रूप से सुषमा - इस वक्त जोगेन्द्रपाल के साथ हो ?"


"मैं इस बारे में क्या कह सकता हूं ?"


"मैंने केवल आपका अनुमान पूछा है, साहब । आपकी सहज बुद्धि में क्या आता, वह पूछा है । "


"जोगेन्द्रपाल को पुलिस की पकड़ से यूं ले उड़ना, जैसे आपने अभी बयान किया है, लड़कियों के बस का काम नहीं |"


सुषमा "कविता ओबेराय के बस का शायद न हो लेकिन ओबेराय के बस का काम तो यह हो ही सकता है । सुषमा ओबेराय से जगन्नाथ के कत्ल के दौरान तीन साल पहले मेरा वास्ता पड़ा था और मैंने हाल ही में उसके बारे में दोबारा खोजबीन भी की थी । वह बड़े ही चंचल स्वभाव की, बेहद एडवेन्चरप्रिय लड़की है । उससे कैसी भी दिलेरी, जोर-जबरदस्ती की अपेक्षा की जा सकती है ।"


प्रमोद चुप रहा ।


'और फिर जोगेन्द्रपाल उसका प्रेमी था । उसकी रिहाई ओबेराय की दिलचस्पी होना स्वाभाविक था । " में सुषमा


"इस तरीके से ? शायद वह हाई कोर्ट में बरी ही हो जाता।”


“आज की नौजवान पीढी बड़ी उतावली है। सब्र तो है ही नहीं उनमें । और जिस बात का जुनून सवार हो जाए, उसे कर डालने में ही उनकी जवानी की सार्थकता है ।"


“और इसलिए सुषमा ओबेराय ने जोगेन्द्रपाल को पुलिस की गिरफ्त से रिहा करने का जान जोखम का काम कर डाला ?"


“जी हां । क्या ऐसा नहीं हो सकता ?"


“आप कहते हैं तो हो सकता होगा।" - प्रमोद गहरी सांस लेकर बोला - "मेरे खयाल से तो नहीं हो सकता ।"


'आपके खयाल से सुषमा ओबेराय इस वक्त कहां हो सकती है ?"


" इस बारे में मेरा कोई खयाल नहीं। मैं कितनी ही बार आपको बता चुका हूं और आप खुद भी जानते हैं कि पिछले तीन साल से सुषमा ओबेराय या राजनगर की जिन्दगी से मेरा कोई रिश्ता नहीं ।”


"आपके स्थानीय चायना टाउन में कई दोस्त हैं । विशेष रूप से वह धनाढ्य चीनी चू की और उसकी बेटी सो हा । क्या ऐसा हो सकता है कि सुषमा ओबेराय या जोगेन्द्रपाल या दोनों उन चीनियों की शरण में हों ? "


"मुझसे पूछने के स्थान पर ज्यादा आसान और समझदारी का काम यह नहीं होगा कि आप इस बारे में चू की से ही जाकर सवाल करें ?"


“हमने ऐसा ही किया था ।" - आत्माराम असहाय भाव से बोला - "लेकिन वह बूढा चीनी बहुत काईयां है। उससे कोई जानकारी हासिल करने की कोशिश करना तो पानी में से मक्खन निकालने जैसा काम है ।"


प्रमोद चुप रहा ।


एकाएक आत्माराम ने मेज का एक दराज खोला और उसमें से छोटी सी हाथीदांत की प्रतिमा निकाल कर प्रमोद के सामने रख दी ।


उस प्रतिमा को देखकर प्रमोद बुरी तरह चौंका । बड़ी कठिनाई से वह अपने मन के भाव अपने चेहरे पर प्रकट होने देने से रोक पाया ।


"आप इस प्रतिमा को पहचानते हैं ?" - आत्माराम ने पूछा। 


"हां।" - प्रमोद निर्विकार भाव से बोला ।


"इस प्रतिमा में एक लम्बी दाढी वाले बूढे चीनी को दर्शाया गया है जो अपने घोड़े पर पूंछ की ओर मुंह करके बैठा हुआ है । "


“यह घोड़ा नहीं, खच्चर है । "


“आप इस प्रतिमा के बारे में मुझे कुछ बता सकते हैं ?"


"यह चाउ कोह कोह नाम के एक चीनी दार्शनिक की प्रतिमा है। चीन में इसे एक अजर-अमर व्यक्ति माना जाता है जिसमें अमानवीय शक्तियां हैं और जो असम्भव, अविश्वसनीय काम कर सकता है। जैसे वह जब चाहे स्वयं को अदृश्य बना सकता है। वह अपने खच्चर को कपड़े की तरह लपेट कर डिब्बे में बन्द करके रख सकता है । "


“आई सी ! आप इस प्रतिमा को कैसे पहचानते हैं ?"


"यह प्रतिमा मैं चीन से लाया था और अपने पिछले राजनगर आवास के दौरान यहां से जाने से पहले यह मैंने सुषमा ओबेराय को भेंटस्वरूप दी थी । "


"और कुछ बताइए इसके बारे में । "


“और क्या बताऊं ? उल्टे आप बताइए कि यह प्रतिमा आपके पास कैसे पहुंची ? आप यह मुझे क्यों दिखा रहे हैं ? जोगेन्द्रपाल के फरार हो जाने का इससे क्या सम्बन्ध है ?"


"मैं जरूर बताता लेकिन आप अभी-अभी लम्बा सफर करके आए हैं। थके हुए होंगे आप और आराम फरमाना चाहते होंगे । इसलिए मैं फिलहाल आपका और वक्त नहीं लूंगा ।” - आत्माराम उठ खड़ा हुआ । उसने प्रमोद की ओर हाथ बढा दिया - "सहयोग के लिए धन्यवाद, प्रमोद साहब |"


प्रमोद भी उठा । उसने आत्माराम का हाथ थामा और छोड़ दिया ।


“राजनगर में आप वहीं रहेंगे न जहां आप पहले रहते थे । कामर्शियल स्ट्रीट में । "


“जी हां । मार्शल हाउस । तीसरी मंजिल ।”


"थैंक्यू । थैंक्यू ।" - आत्माराम मुस्कराया ।


प्रमोद बाहर निकल गया ।


***

प्रमोद एक टैक्सी पर सवार होकर उस इमारत के सामने पहुंचा जिसमें ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी का दफ्तर था ।


वह इमारत में दाखिल हुआ । ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी के केवल एक कमरे में प्रकाश था और उसी में से लोगों की मौजूदगी का आभास मिल रहा था । प्रमोद ने वह दरवाजा ठेल कर भीतर कदम रखा ।


दरवाजे की ओर मुंह करके बैठा एक आदमी उस पर निगाह पड़ते ही उछल कर खड़ा हो गया । वह मेच के पीछे से निकला, उसने प्रमोद की ओर हाथ बढाया और चेहरे पर एक स्वागतपूर्ण मुस्कराहट लाता हुआ बोला- "आओ, आओ । शुक्र है, पहुंचे तो सही । हम तो तुम्हारे आज आने की उम्मीद छोड़ चुके थे।"


प्रमोद ने उससे हाथ मिलाया ।


वह सीताराम नरूला था । वह एक लगभग चालीस साल का हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला आदमी था ।


कमरे में एक आदमी और भी मौजूद था । वह जीवन गुप्ता था । वह नरूला से लगभग पांच साल बड़ा था और बड़ा दिशाभ्रमित-सा आदमी लगता था । उसने भी उठकर बड़े नर्वस भाव से प्रमोद से हाथ मिलाया ।


नरूला ने प्रमोद को एक कुर्सी पर बिठाया और फिर मेज की पीछे जाकर अपने स्थान पर बैठ गया ।


"सफर ठीक रहा न ?" - उसने पूछा ।


“हां ।” - प्रमोद बोला- “राकेश टण्डन कहां है ? "


"वह नहीं आ सका । उसे एक निहायत जरूरी काम था


"कोई बात नहीं । मेरा काम आप लोगों से भी चल सकता है। अगर आप लोग इजाजत दें तो मैं सीधे मतलब की बात पर आऊं ?"


"शौक से ।"


'अगर मेरी जानकारी गलत नहीं है तो हरि प्रकाश सावंत सुषमा ओबेराय का ट्रस्टी था । वही सुषमा की पूंजी जिस धन्धे को फायदेमन्द समझता था, उसमें लगाया करता था और उसने सुषमा का कोई बीस लाख रुपया इस प्रकार इस्तेमाल किया हुआ था ।"


"ठीक ।" - नरूला बोला ।


"मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या उसी सारी रकम या उस रकम का कोई हिस्सा ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी में भी लगा हुआ है जिसमें कि तुम, गुप्ता और टण्डन पार्टनर हो और सावंत भी पार्टनर था ?"


"नहीं । हमारी कम्पनी में उस रकम का कोई हिस्सा नहीं लगा हुआ ।"


"मैंने यह बात किसी वजह से पूछी थी। मेरे सुनने में आया है कि आर्थिक मामलों में सावंत ने बड़ा झमेला, बड़ा गड़बड़ घोटाला खड़ा किया हुआ था ।"


"गड़बड़ घोटाले का तो मुझे पता नहीं लेकिन हां कुछ अजीब बातें जरूर हमारी जानकारी में आई हैं। जैसे उसने बीस लाख रुपया ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी में लगाया तो था लेकिन उसने हमेशा यही कहा था कि वह रुपया उसका अपना था । सुषमा ओबेराय का रुपया उसने किसी तेल के धन्धे में लगाया था और वह धन्धा चमक नहीं पाया था लेकिन वह कहता था कि अगर सुषमा अपनी रकम वापिस चाहेगी तो वह घाटा अपने पल्ले से पूरा करके उसकी पूरी रकम उसे लौटाएगा । अपनी मौत से थोड़ा समय पहले उसने इस बारे में हमसे बात की थी और मांग की थी कि साझेदारी के खाते में से उसे बीस लाख रुपया फिलहाल उधार दे दिया जाए । हम जानते थे कि वह अपना रुपया क्यों चाहता है इसलिए टण्डन ने हामी भर दी थी और कह दिया था कि वह जब चाहे वह रकम ले सकता था । "


"उसका किसी इस्पात के धन्धे में भी दखल था ?"


"उसका नहीं, कम्पनी का । उस धन्धे में कम्पनी का साझेदारी का पैसा लगा था । "


"लेकिन मैंने तो सुना था कि वह उसका निजी धन्धा था ?"


“तुमने गलत सुना था ।" - जीवन गुप्ता पहली बार बोला- "वह सारी योजना दरअसल टण्डन की थी लेकिन उस वक्त कम्पनी का इन्कम टैक्स का कोई झमेला था जिसकी वजह से वक्ती तौर पर यह जाहिर किया गया था कि उस धन्धे में अकेला सावंत पूंजी लगा रहा था । लेकिन हकीकतन वह सारा बिजनेस साझेदारी का था । हमारे पास सावंत का गवाहों के सामने साइन किया हुआ पार्टनरशिप डीड है । "


"सुषमा ओबेराय के पैसे की कहानी दूसरी है ।" -


नरूला बोला - "वह रकम सांवत ने तेल के धन्धे में लगाई थी जो कि मैंने पहले ही कहा है फायदेमन्द साबित नहीं हुआ था लेकिन वह सुषमा का घाटा पल्ले से पूरा करने को तैयार था । उसे मालूम था कि तुम वापिस आने वाले हो और जोगेन्द्रपाल भी उसकी नीयत पर शक कर रहा था । इसीलिए सावंत ने बीस लाख रुपया कम्पनी से उधार लेकर सुषमा को लौटाने का फैसला किया था । वैसे तेल के धन्धे में सारी ही रकम नहीं डूब गई है । दस बारह लाख रुपये तो उन शेयरों की कीमत अभी भी है और फिर धंधा चमक उठने की पूरी उम्मीदें दिखाई दे रही हैं। इसीलिए सावंत अभी वे शेयर बेचना नहीं चाहता था और सुषमा के मांगने पर उसकी पूरी रकम का कम्पनी से उधार लेकर भुगतान करना चाहता था । सावंत ने चालीस लाख रुपये की इन्श्योरेन्स भी छोड़ी है इसलिए घाटा किसी को भी नहीं होने वाला । कम्पनी को सावंत को उधार दी रकम उसकी विरासत में से मिल जाती । सुषमा को अपना पैसा मिल जाता । सारा मामला बड़े सन्तोषजनक ढंग से निपट जाता । "


"सावंत ने कोई वसीयत छोड़ी है ? "


"नहीं । अकेला आदमी था वह । उसकी एक सौतेली बहन कहीं रहती है। शायद वही उसकी वारिस होगी ।"


“क्या सावंत ने इस बात का कोई विस्तृत हिसाब खाता छोड़ा है कि उसने सुषमा की रकम कैसे और कहां-कहां इनवैस्ट की थी ?"


"हां । ट्रस्टी के तौर पर हिसाब खाते की विस्तृत स्टेटमेंट छोड़ कर गया है वह । उसके अनुसार सुषमा की रकम उसने तेल के धन्धे में लगाई थी और उसने खेद प्रकट किया था कि वह फायदे का धन्धा साबित नहीं हुआ था । इसीलिए उसने लिखा था कि अगर उसे कुछ हो जाए तो सुषमा चाहे तो अपनी पूरी रकम वापिस ले सकती थी और चाहे तो वे शेयर नफे-नुकसान के जिस हाल में थे, उसी हाल में कबूल कर सकती थी ।"


"उस पर सावंत के हस्ताक्षर हैं ?"


"गवाहों के सामने किए हस्ताक्षर हैं।"


"अजीब बात है ।"


"क्या अजीब बात है ?"


"क्या उसे मालूम था वह मर जाने वाला था जो उसने ऐसी स्टेटमैंट तैयार की ?"


"सावंत बड़ा गहरा आदमी था, प्रमोद | क्या पता उसके मन में क्या था ! तेल के धन्धे में लगी सुषमा की रकम के प्रति वह चिन्तित तो था ही । धन्धे में सुषमा की रकम लगाते समय तो उसे लग रहा था कि वह सुषमा को को एक के दस करके दिखाएगा। लेकिन क्या किया जाए, धन्धा नहीं चमका ।”


"जो हुआ सो हुआ । बहरहाल मैं सावंत के हिसाब खाते को बड़ी बारीकी से चैक करना चाहूंगा । अब सवाल यह पैदा होता है कि इस सन्दर्भ में आप लोग मुझे अपना पूरा सहयोग देंगे या नहीं ?"


"क्यों नहीं देंगे ?" - नरूला बोला- "जरूर देंगे । "


जीवन गुप्ता एक क्षण चुप रहा और फिर फट पड़ा - "लेकिन मुझे तो इन बातों से तुम्हारा कोई वास्ता दिखाई नहीं देता ।"


“मैं अपना वास्ता पैदा कर रहा हूं।" - प्रमोद कठोर स्वर में बोला - "समझे ?"


"समझा । सावंत के ट्रस्ट के खाते की तुमने जांच-पड़ताल करनी है तो कर लेना लेकिन हम तुम्हें कम्पनी की साझेदारी के खाते खोल-खोलकर नहीं दिखाने वाले । टण्डन को भी इस बात से सख्त एतराज होगा ।"


"लेकिन हमें आडिट तो करवाना ही पड़ेगा।" - नरूला खंखार कर बोला - “पार्टनरशिप के धन्धे में एक पार्टनर के मर जाने पर ऐसा करवाना ही पड़ता है इसलिए अगर प्रमोद भी खाते देख लेगा तो क्या हर्ज हो जाएगा ?"


"हर्ज हो जाएगा ।" - गुप्ता बोला - "बिजनेस बिजनेस है । इस का हमारे बिजनेस से कोई वास्ता नहीं । आखिर यह होता कौन है ? क्यों इसने हमें केबल भेज दी थी कि हम लोग इसे यहां मिलें ? हम क्या इसके नौकर हैं ? हमें क्या कोई काम नहीं ? कम्पनी के मामले में जो कुछ होगा हिसाब से होगा । हमें इसको खुश करने के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं है । जो हकीकत है उसको झुठलाया नहीं जा सकता और हकीकत लिखित में सामने है । और फिर हरि प्रकाश सावंत के कत्ल के पीछे दौलत तो वजह नहीं थी । वह तो सरासर हसद की भावना का शिकार हुआ था । जोगेन्द्रपाल स्वयं को सुषमा का सरपरस्त समझता था और सावंत सुषमा से कोई वास्ता रखे, यह उसे पसन्द नहीं था । सावंत का खयाल था कि जोगेन्द्रपाल सुषमा से ज्यादा दिलचस्पी उसकी दौलत में ले रहा था । इसीलिए कत्ल की नौबत आई |"


"गुप्ता ठीक कह रहा है, प्रमोद ।" - नरूला बोला ।


“इस्पात का धन्धा पार्टनरशिप का था । इसको प्रकट करने वाले कागजात पर सावंत के हस्ताक्षर हैं ?" - प्रमोद ने पूछा ।


"गवाहों के सामने किए हुए हस्ताक्षर हैं।" - नरूला बोला।


"देखो।" - गुप्ता बोला- "तुम सीधे-साधे मामले को खामखाह उलझाने की कोशिश कर रहे हो । सुनो, अगर सावंत ने सुषमा की रकम साझेदारी के धन्धे में लगाई थी तो वह लाभ में से हिस्सा लेने की हकदार है और वह हिस्सा काफी मोटा होगा । अगर ऐसा नहीं हुआ था तो भी उसे अपनी रकम सुरक्षित वापिस मिल जाएगी। इससे बेहतर और क्या हो सकता है ? सुषमा तो दोनों ही तरीकों से फायदे में है। अगर सावंत उसकी सारी रकम डुबो देता तो तुम क्या कर लेते ? सावंत ने खुद मुझे कहा था कि उसने सुषमा की रकम तेल के धन्धे में लगाई थी और उस धन्धे के प्रति वह बहुत चिन्तित था । यही बात वह लिखत में भी छोड़ कर गया है । अगर तुम्हें इस बारे में कोई शक है तो सावंत की रिपोर्ट पुलिस में करो, अदालत में जाओ। हमारे गले पड़ने का क्या फायदा ! और जिन बातों से तुम्हारा वास्ता नहीं उनमें टांग अड़ाने से तुम्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला । जोगेन्द्रपाल ने ऐसा किया और उसका जो अन्जाम हुआ वो तुम्हारे सामने है "


प्रमोद चुप रहा ।


गुप्ता बोला- "मुझे काम है। मैं जा रहा हूं । गुड नाइट।"


वह उठा और बिना कोई अतिरिक्त औपचारिकता दिखाए कमरे से बाहर निकल गया ।


"देखो।" - नरूला मैत्रीपूर्ण स्वर में बोला- "दुनिया जानती है कि सावंत एक निहायत ईमानदार आदमी था । तुम्हें उससे किसी गड़बड़ की उम्मीद नहीं करनी चाहिए । अगर उसकी नीयत खराब होती तो क्या वह ऐसा कोई इन्तजाम करके जाता कि सुषमा को अपनी रकम सुरक्षित वापिस मिल जाए ? यह जरूर है कि उसे वह लड़का जोगेन्द्रपाल पसन्द नहीं आया था । वह... वह...।"


नरूला चुप हो गया ।


"मैं टन्डन से भी बात करना चाहता था ।" - प्रमोद बोला ।


"अगर वह यहां आ सकता होता तो जरूर आ जाता, लेकिन उसने भी वही कहना था जो हम कह रहे हैं । सुषमा का बीस लाख रुपया तो उसे मिल ही जाएगा। लेकिन अगर वह यह सिद्ध कर सकती है कि उसकी रकम सावंत ने ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी में लगाई थी तो हम उसे लाभ का हिस्सा खुशी से देने को तैयार हैं । इस्पात का धन्धा बड़ा फायदेमन्द साबित हुआ था । उस सूरत में बड़ी मोटी रकम सुषमा हाथ आ जाएगी ।" के


"सावंत का हिस्सा तकरीबन कितना होगा ?"


"लगभग दो करोड़ रुपया । उसने इस्पात के धन्धे में हमारे साथ बीस लाख रुपया लगाया था । सुषमा का इतना ही रुपया उसने तेल के धन्धे में लगाया था लेकिन इत्तफाक की बात है, इस्पात का धन्धा चमका, तेल का धन्धा नहीं चमका ।”


"हूं।"


नरूला चुप रहा ।


“ओ.के. ।” - प्रमोद उठता हुआ बोला- "मैं तुमसे फिर मिलूंगा ।"


“जरूर ।” - नरूला ने उठकर उससे हाथ मिलाया "मेरे लायक कोई सेवा हो तो निसंकोच बताना ।” -


"जरूर ।"


प्रमोद वहां से बाहर निकल गया ।


***