मुम्बई !
देवराज चौहान ने कार के स्टेयरिंग में कोहनी और सिग्रेट सुलगाकर पुनः स्टेयरिंग थाम लिया। वो मध्यम गति से कार चला रहा था। दोपहर के 12:30 बजे थे। सड़कों पर ट्रैफिक था। उसके चेहरे पर सोचें नाच रही थी। रह-रहकर वो कश ले रहा था कि तभी मोबाइल बजने लगा। देवराज चौहान ने फोन निकाल कर बात की।
"हैलो ।"
"देवराज चौहान ।" उधर से आती मर्द की आवाज कानों में पड़ी।
देवराज चौहान ने आवाज को पहचाना । वो माथुर था ।
"कहो ।" देवराज चौहान एक हाथ से स्टेयरिंग संभाले बोला ।
"तुमने काम शुरू नहीं किया ?" दूसरी तरफ से कहा गया ।
"काम शुरू हो चुका है माथुर ।"
"तुम तो मुम्बई में हो, फिर कैसे काम शुरू...।"
"काम शुरू हो चुका है । तुम्हें फिक्र करने की जरूरत नहीं । अब काम को पूरा करना मेरा काम है ।" देवराज चौहान ने कहा।
"काम पूरा हो जाएगा ?"
"पूरी कोशिश होगी कि काम पूरा हो जाए ।"
"ऐसा मत कहो, तुमने काम पूरा करना है देवराज चौहान । ये बहुत जरूरी है कि...।"
"कहा तो, मेरी तरफ से कोशिश पूरी होगी कि काम पूरा हो जाए । जगमोहन काम पर लग चुका है और वो मुझे कभी भी अपने पास बुला सकता है । मैं उसी के इंतजार में हूं ।" देवराज चौहान बोला--- "ये पक्का है न कि 24 तारीख को बाल्को खंडूरी काठमांडू के ब्लू स्टार पहुंचेगा ।"
"पक्का है ।"
"निश्चिंत रहो, तुम्हारा काम हो रहा...।"
"मुझे हालातों की खबर देते रहना देवराज चौहान ।" उधर से माथुर की आवाज आई ।
"जरूर । तुम्हें पता चलता रहेगा कि मैं कैसे और क्या-क्या काम कर रहा हूं । मैं ही तुम्हें फोन करूंगा, इस बारे में तुम फोन मत करना ।
कहने के साथ ही देवराज चौहान ने फोन बंद करके जेब में रखा और सिग्रेट का कश लिया । चेहरे पर सोचें उभरी हुई थी ।
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नेपाल की राजधानी, काठमांडू ।
काठमांडू के बीचोबीच, भीड़-भरा इलाका इंद्रा चौक ।
इंद्रा चौक को काठमांडू का बेहद खास इलाका माना जाता है। मशहूर है ये जगह क्योंकि इसके आसपास बहुत संख्या में मंदिर हैं काठमांडू के जैसे कि शिवा टैम्पल, अन्नपूर्णा टैम्पल, भीमसेन टैम्पल, अदखो नारायण टैम्पल, हरिशंकर टैम्पल, शवेत मछंदर नाथ टैम्पल, तारा देवी टैम्पल के अलावा और भी हैं ।
यहां स्थानीय लोगों और टूरिस्टों का दिन भर और शाम को भी जमावड़ा लगा रहता है । मंदिर काफी बड़े और विशाल हैं । वो सब देखने लायक है ।कलाकारों ने उन्हें बहुत खूबी से बनाया है और एकाध को छोड़कर वो सारे मंदिर सैकड़ों वर्षो पुराने हैं। काठमांडू की पहली शान वो मंदिर ही हैं । अधिकतर मंदिरों के साथ लगता लम्बा-चौड़ा बाजार है, जहां स्थानीय लोगों के अलावा विदेशियों को टहलते देखा जा सकता है।
अधिकतर दुकानों वाले नेपाली ही हैं, परंतु कहीं-कहीं पर हिन्दुस्तानी लोगों को भी देखा जा सकता है, ये वो लोग हैं जिनके बाप-दादा कभी यहां आकर बस गए थे। काठमांडू में साल के नौ महीने सर्दी रहती है और जिस मौसम को काठमांडू के लोग गर्मी कहते हैं, उसमें भी ठंड होती है । खूबसूरत नगरी है काठमांडू । यहां जो देखने में मजा है, वो कहने-सुनने में नहीं और काठमांडू की दूसरी शान है यहां के कसीनो । यानी कि जुआघर ।
काठमांडू मंदिरों के अलावा जुआघरों का शहर है। सरकार द्वारा लाइसेंस प्राप्त जुआघर यहां चलते हैं । परंतु ये सब जुआघर स्थानीय लोगों के लिए ना होकर, नेपाल के बाहर के लोगों के लिए हैं जो कि टूरिस्ट होते हैं । स्थानीय लोग जुआघरों में नौकरी तो कर सकते हैं, परंतु जुआ नहीं खेल सकते । इन जुआघरों से नेपाल सरकार को तगड़ा रेवन्यू मिलता है । खुद नेपाल सरकार भी टूरिस्टों को कसीनो में जाकर मन बहलाने की सलाह देती है ।
सच बात तो ये है कि काफी संख्या में टूरिस्ट यहां कसीनो में जुआ खेलने की खातिर ही आते हैं। यहां दस-बारह तो ऐसे कसीनो हैं जो कि हर शाम विदेशियों से भरे रहते हैं और सुबह तीन बजे तक जुए की महफिलें चलती रहती है । यहां मशीनें लगी हैं जुआ खेलने की कि कसीनो वालों को पैसे देकर सिक्के लो और मशीनों पर जुआ खेलो । जुआ खेलने की टेबलें हैं जहां पर कसीनो का कर्मचारी जुआ खिलाता है । लोग बड़ी-बड़ी रकमें लगाते हैं, हारते हैं । जीतते कम ही है । परंतु लोग खेलने और पैसे लुटाने में लगे रहते हैं ।
ये सब हालात को सामान्य दिनों में सामान्य वक्त में रहते परंतु एक वक्त ऐसा भी आता है, जिसे सीजन का वक्त कहा जाता है। दिसम्बर का महीना होता है जब क्रिसमस और नया साल आने वाला होता है। तो पर्यटकों की बाढ़ आ जाती है कसीनो में । पर्यटक ढेर सारे लोगों के साथ काठमांडू पहुंचते हैं ।
कसीनो में जुआ खेलने के लिए और कसीनो वाले भी कोई कसर नहीं छोड़ते, पयर्टकों को लुभाने की । यही वजह है कि दिसम्बर के महीने में हर कसीनो में ताश के पत्ते भी शुरू हो जाते हैं कि पर्यटक बड़ी रकमें लगाकर दिल खोलकर खेलें । इसके लिए खेलने वालों को, कसीनो में नोट देकर टोकन लेने होते हैं। टोकन देने के बदले कसीनो दस परसेन्ट खुद रखता है और जब आप जीत पर टोकन कैश कराते हैं तो सब कुल रकम का दस प्रतिशत कसीनो लेता है । इन सब बातों में, खास बात तो ये है कि दिसम्बर का महीना चल रहा है।
अगर काठमांडू की कसीनो की दुनिया की बात करें तो छः-सात कसीनो के नाम जिक्र के काबिल है, जो कि बढ़िया माने जाते हैं, परंतु नम्बर वन पर ब्लू स्टार कसीनो आता है जो कि इंद्रा चौक से महज तीन सौ कदमों की दूरी पर स्थित है, ब्लू स्टार कसीनो की सबसे ज्यादा खूबी यह है कि कसीनो की इमारत के साथ लगती इमारत में ब्लू स्टार होटल भी है । दोनों इमारतों के बीच रास्ता भी है कि आप अगर ब्लू स्टार होटल में ही रुके हैं तो ब्लू स्टार कसीनो भीतर ही भीतर पलों में पहुंच सकते हैं । जुआरियों के लिए ये अच्छी बात है कि ब्लू स्टार होटल में ठहरे और ब्लू स्टार कसीनो में पलों में पहुंच सकें। होटल काफी बड़ा, शानदार और महंगा है । परंतु आराम की भी सब सुविधाएं वहां मौजूद है । खास बात ये कि ब्लू स्टार होटल का कर्मचारी ब्लू स्टार कसीनो में प्रवेश नहीं कर सकता । ये नियम था । होटल के कर्मचारी होटल में ही रहते हैं अलबत्ता कसीनो के कर्मचारी होटल में अवश्य आ सकते हैं । कसीनो के कर्मचारियों की तनख्वाह भी ज्यादा थी और वहां पर उन्हीं कर्मचारियों को लगाया जाता था, जो कि हर तरफ से भरोसे के हों । होटल का मैनेजर मंगल जोगी नाम का स्थानीय व्यक्ति था । जो कि मोटा और लटके गालों वाला था । कसीनो का मैनेजर बाज बहादुर नाम का स्थानीय व्यक्ति था जो कि आकर्षक व्यक्तित्व का, बावन वर्ष का था । ब्लू स्टार होटल और कसीनो का मालिक अजीत गुरंग था, जो कि पैंतालीस वर्ष का था । उसके दादा ने साठ वर्ष पहले ब्लू स्टार कसीनो चार कमरों जैसी छोटी जगह से शुरू किया था और जब अजीत गुरंग पैदा हुआ तो उसके बाद धंधा बढ़ा, तो जगह भी बढ़ती चली गई और आज ब्लू स्टार बहुत मोटे बिजनेस के रूप में होटल और कसीनो की शक्ल में खड़ा था ।
इस ब्लू स्टार होटल में जगमोहन दो दिन पहले ही वेटर की नौकरी पर लगा था ।
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दोपहर का एक बजा था । जगमोहन की ड्यूटी सुबह छः बजे से लेकर दोपहर दो बजे तक थी । दूसरी मंजिल की राहदारी में खाने की ट्रॉली धकेलता जगमोहन एक कमरे के बंद दरवाजे के सामने ठिठका और बाहर लगी बेल दबा दी । चंद पल बाद भीतर से पूछा गया।
"कौन है ?"
"वेटर सर ।" जगमोहन ने कहा ।
तुरंत ही दरवाजा खुला । खोलने वाला चालीस वर्ष का व्यक्ति था । जगमोहन खाने की ट्रॉली धकेलता भीतर प्रवेश कर गया और टेबल पर ट्रॉली से खाने से भरे बर्तन उठा-उठाकर रखने लगा । कमरे में उस आदमी के अलावा एक औरत भी थी जो की बेड पर रजाई ओढ़े पड़ी थी। खाना टेबल पर लगाने के बाद जगमोहन ने उस आदमी से पूछा-
"कुछ और चाहिए सर ?"
"नहीं।" उसने नेपाली मुद्रा का सौ का नोट निकालकर जगमोहन की तरह बढ़ाया---- "तुम जाओ ।"
जगमोहन ने नोट लेकर, मुस्कुराते हुए सलाम मारा और ट्रॉली बाहर धकेलता बाहर निकला और राहदारी में आगे बढ़ता चला गया । जिस्म पर होटलों के वेटरों की वर्दी मौजूद थी । वो सीधा किचन डिपार्टमेंट में पंहुचा । ट्रॉली छोड़ी और एक कमरे में पंहुचा । ये होटल की दूसरी मंजिल पर, वेटरों का ठिकाना था । रामसिंह वेटरों का हैड था और होटल के कस्टमर जब इंटकॉम पर ऑर्डर देते तो वो सुनता था और वेटरों को आर्डर की पर्ची थमा देता था । जगमोहन जब वहां पहुंचा तो उस वक्त कोई वेटर वहां नहीं था । वहां रखे बैंच पर जगमोहन बैठा । टेबल कुर्सी रखे। रामसिंह किसी रजिस्टर पर व्यस्त था । उसने एक निगाह जगमोहन पर मारी ।
"तुम्हारी ड्यूटी खत्म होने वाली है ।"
"अभी चालीस मिनट बाकी है ।" जगमोहन बोला ।
"काम कैसा लग रहा है ?"
"काम को क्या देखना ।" जगमोहन ने गहरी सांस ली--- "पेट पालना है तो नखरे कैसे ।"
"कस्टमर लोग कभी-कभी बढ़िया टिप भी दे देते हैं ।" रामसिंह ने कहा ।
"मुझे अभी सौ रुपया मिला है ।" जगमोहन ने खुश होकर कहा।
"सौ रुपया ?" रामसिंह ने गर्दन उठाकर उसे देखा--- "किधर हैं?"
जगमोहन ने फौरन सौ का नोट निकालकर उसे दिखाया ।
"इधर आ ।" रामसिंह के कहने के साथ हाथ का इशारा भी किया ।
जगमोहन उठकर उसके पास पहुंचा ।
रामसिंह ने उसके हाथ से सौ का नोट ले लिया।
"ये क्या ?" जगमोहन ने मुंह बनाया ।
"दिल छोटा मत कर। मेरे से बना के रख। तेरे को बढ़िया-बढ़िया कस्टमर के पास भेजा करूंगा कि 'टिप' बढ़िया मिले । लेकिन तेरे को आधी देनी होगी, ये बात किसी से कहना नहीं, तेरे-मेरे बीच की बात है ।"
"वो तो ठीक है, पर तुमने तो पूरा ही सौ का नोट ले लिया ।"
"पहली बार है इसलिए लिया । अब के बाद आधी-आधी 'टिप' बांट लिया करेंगे ।"
जगमोहन ने मुंह लटका कर सिर हिला दिया ।
"बैठ जा ।"
जगमोहन पास की बैंच पर बैठा और बोला।
"रामसिंह भाई । तुम कोई चक्कर चलाकर, मेरी नौकरी कसीनो में लगवा दो ।"
"क्यों इधर मैं तेरे को काटता हूं क्या ?"
"वो बात नहीं । कसीनो की तनख्वाह ज्यादा है । इसलिए...।"
"कसीनो में आसानी से किसी को ड्यूटी नहीं दी जाती । उधर भरोसे के लोगों को रखा जाता है । तू तो इधर बिल्कुल नया है । दो साल होटल में ड्यूटी दे। बढ़िया काम कर, उसके बाद ही तेरा जुगाड़ भिड़ा सकूंगा ।" रामसिंह ने कहा ।
"अभी नहीं ?"
"हो ही नहीं सकता ।"
"अगर तू कसीनो में मेरी ड्यूटी लगा देता है तो मैं तेरे को तीन महीने की तनख्वाह दूंगा ।"
रामसिंह ने जगमोहन को घूरकर कहा ।
"मरा जा रहा है कसीनो में काम पाने को ।"
"ऐसा ही समझ ले ।"
"कसीनो के मैनेजर बाज बहादुर साहब हैं । उनका नाम ही बाज नहीं, वो बाज जैसी नजर भी रखते हैं और वो नियम के बहुत पक्के हैं । उनकी हां के बिना कसीनो में कोई नौकरी नहीं पा सकता । यहां के मालिक गुरंग साहब कहें तो अलग बात है।"
"तुम गुरंग साहब से सिफारिश लगवा दो ।"
"मैं कौन होता हूं सिफारिश लगवाने वाला। मेरी औकात ही क्या है । तूने वेटरी करनी है तो कर नहीं तो निकल ले ।"
जगमोहन चुप रहा ।
तभी इंटरकॉम बजा। रामसिंह ने बात की। पैड के कागज पर आर्डर नोट किया फिर कागज जगमोहन को देता बोला---
"ये ले, दो सौ पन्द्रह का आर्डर है । ये भी बढ़िया 'टिप' देता है । हेरा-फेरी नहीं करना । 'टिप' आधी-आधी बांटेंगे । मेरे से बना के रख । फायदा होगा ।"
जगमोहन ने आर्डर का कागज पकड़ा और बाहर निकलकर किचन की तरफ बढ़ गया ।
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जगमोहन ब्लू स्टार होटल की इमारत से बाहर निकला और पैदल ही आगे बढ़ने लगा । अब शरीर पर साधारण कपड़े थे कमीज-पैंट और जैकिट । ये भीड़-भरा इलाका था । सामने ही सड़क पर ढेरों ट्रेफिक निकल रहा था । पास ही अन्नपूर्णा टैम्पल की आवाज आ रही थी । सूर्य मध्यम-सा निकला हुआ था । धूप से गर्मी का एहसास नहीं हो रहा था । ठंडी हवा में तेजी थी जो कि ठंड को बढ़ा रही थी । परंतु भागते लोगों को देखकर ऐसा लगता था । जैसे उन्हें ठंड का पता ही ना हो । दूर बर्फ से ढंकी पहाड़ियों और पहाड़ नजर आ रहे थे । काठमांडू का मौसम इन दिनों बेहद सर्दी वाला था।
जगमोहन ने तीन किलोमीटर दूर एक कॉलोनी कमरा ले रखा था । बीस मिनट का पैदल का रास्ता था, जिसे वो पैदल ही तय करता था । अभी आधा रास्ता भी नहीं किया होगा कि जेब में पड़ा मोबाइल बजने लगा ।
"हैलो ।" चलते हुए जगमोहन ने फोन पर बात की।
"मजे में हो ?" उसके कानों से आवाज पड़ी ।
"ये सूर्य थापा था । काठमांडू का रहने वाला था । देवराज चौहान की पहचान वाला था और इसी ने ही जुगाड़ भिड़ाकर उसकी नौकरी होटल ब्लू स्टार में लगवाई थी । परंतु कसीनो में नौकरी नहीं लगवा सका था ।
"उस काम का क्या हुआ ?" जगमोहन ने पूछा ।
"उसी वास्ते फोन किया है ।" सूर्य थापा की आवाज आई--- "बाज बहादुर काठमांडू के मेन पोस्ट ऑफिस पहुंचा है । वहां पोस्ट मास्टर के साथ बैठा गप्पे लड़ा रहा है । वो दोनों दोस्त हैं । अभी उसके बाहर निकलने में वक्त है। काम किया जा सकता है।"
"पोजीशन क्या है ?"
"दो आदमी तो अभी पीछे हैं उसके । पन्द्रह मिनट में तीन और को इधर पहुंचा सकता हूं ।"
"वो अकेला है ?"
"पूरी तरह । कसीनो वो शाम के पांच बजे से पहले नहीं पहुंचता। हो सकता है वो यहां से अपने घर जाए ।"
"अभी काम किया जाए तो, काम होगा ?"
"क्यों नहीं होगा । मैंने सारी तैयारी कर रखी है । पर खर्चा थोड़ा ज्यादा बैठेगा । पांच आदमी इस काम में इस्तेमाल किए जाएंगे। उसके पास दो रिवॉल्वरें होंगी । बाज बहादुर जैसे आदमी को उठाना भी है, रखना भी है । पचास हजार का खर्चा बैठेगा। हर एक को दस हजार देने पड़ेंगे । ये मत सोचना कि इसमें कुछ मेरा है । मैं तो देवराज चौहान की खातिर...।'
"ठीक है, काम शुरू कर दो ।" जगमोहन ने कहा--- "मैं कहां पहुंचूं ?"
"खोरा रोड पर, नेपाल बैंक का बाहर पहुंचो। मैं उधर न भी दिखूं, तब भी वहीं रहना । तुम्हें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा ।"
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बाज बहादुर मेन पोस्ट ऑफिस से बाहर निकला और पार्किंग में खड़ी अपनी कार की तरफ बढ़ गया । वो पैंट-कमीज के ऊपर कोट पहने था और सिर पर गर्म टोपी ले रखी थी । तभी फोन बज उठा उसका।
"हैलो ।" जेब से मोबाइल निकाल कर बात की।
"लंच तैयार है ।" उधर से उसकी पत्नी की आवाज आई ।
"पन्द्रह मिनट में घर पहुंच रहा हूं ।" बाज बहादुर ने कहा ।
"इतनी सर्दी में भी घर नहीं बैठा जाता आपसे । रात भर तो कसीनो में ड्यूटी पर रहते हैं और दिन में भी उड़े रहते हैं ।"
बाज बहादुर मोबाइल जेब में डालता बड़बड़ाया ।
"ये औरतें तो हर वक्त बोलती ही रहती हैं । कौआ चुप कर जाएगा, पर ये नहीं ।"
कार के पास पहुंचते ही बाज बहादुर की निगाह सामने से आते आदमी पर पड़ी । वो उसे ही देखता पास आ रहा था । बाज बहादुर ने कार खोली कि तब तक वो आदमी पास आ पहुंचा।
"नमस्कार बाज बहादुर साहब ।" वो मुस्कुराकर बोला ।
जवाब में बाज बहादुर ने सिर हिलाया ।
"कसीनो तो बढ़िया चल रहा है । सुना है कसीनो का स्ट्रांग रूम हमेशा नोटों से भरा रहता है । करोड़ो रुपया होता है उसमें ।"
बाज बहादुर की आंखें सिकुड़ी। उसमें तीखी निगाहों से उस आदमी को घूरा।
"कौन हो तुम ?"
'मैंने सोचा आप से दोस्ती कर लें तो, मोटे नोट मिल जाएंगे ।" वो धीमे स्वर में कह उठा।
तभी बाज बहादुर को अपने पीछे किसी के आने का एहसास हुआ ।
वो पलटा ।
दो और आदमियों को वहां पाया ।
बाज बहादुर सतर्क हो उठा ।
"चुपचाप अपनी कार में बैठो ।" पीछे वाले दो में से एक गुर्राया--- "हम तुम्हारा अपहरण कर रहे हैं ।"
"क्या बकवास कर रहे हो ?" बाज बहादुर की आंखें सिकुड़ी ।
दूसरे ने जेब में पड़ी रिवॉल्वर की झलक दिखाकर कहा ।
"समझे, ये बकवास नहीं है। एक सप्ताह से तुम्हारे पीछे लगे हुए हैं । कार में बैठो ।"
"क्या चाहते हो ?" बाज बहादुर ने मामले की गंभीरता को समझा ।
"ये भी बता देंगे । अब चुपचाप सीधी तरह कार में बैठ जा । वरना गोली मार देंगे ।"
"कुछ पैसा चाहिए तो...।"
"कितना ?"
"दस-बीस हजार ही दे सकता...।"
"सुना ।" एक ने कहर भरे अंदाज में अपने साथी से कहा--- "दस-बीस हजार देने को कह रहा है। हम क्या भिखमंगे हैं । साला लाख रुपया तो तनख्वाह लेता है । कसीनो के स्ट्रांग रूम में करोड़ों रुपए पड़े रहते हैं और हमें...।"
तभी एक और आदमी पास आ पहुंचा और खतरनाक स्वर में बोला ।
"आनाकानी कर रहा है तो गोली मार दे ।"
"सुना ।" पहले वाला बोला--- "हम कई हैं । दस-बीस हजार से हमारा पेट नहीं भरने वाला । करेंगे तेरे से बात। भीतर बैठ ।"
उसके बाद बाज बहादुर को धकेलने के अंदाज में कार की पिछली सीट पर बैठा दिया गया। दो आदमी उसकी अगल-बगल में बैठ गए। एक ने ड्राइविंग सीट संभाली और चौथा बगल में बैठा । कार आगे बढ़ गई ।
"देखो, तुम लोग गलत काम कर रहे...।"
"चुप कर ।" कार चलाने वाला गुर्रा उठा ।
"मैं पच्चीस हजार दे सकता हूं । अभी इस वक्त ।"
"इसे चुप रहने को कह दे, नहीं तो गोली मार दूंगा ।" कार चलाने वाला कह उठा ।
"चुप हो जा । बाज बहादुर की बगल में बैठा आदमी कह उठा--- "नहीं तो ये सच में तेरे को गोली मार देगा ।"
बाज बहादुर सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया ।
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जगमोहन के हाथ-पांव बंधे हुए थे । अंधेरे से भरे छोटे-से कमरे में पड़ा था । रोशनी के नाम पर वहां बेहद मध्यम रोशनी का पीला- सा बल्ब जल रहा था, उसमें भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था । सड़े फलों की बदबू आने का एहसास हो रहा था, जैसे कि ये फ्रूट मंडी जैसी कोई जगह हो । कमरे का दरवाजा बाहर से बंद था । तभी दरवाजा खुला और बाज बहादुर को धक्का देते दो लोगों ने भीतर प्रवेश किया। फिर उसके हाथ-पांव बांधे जाने लगे ।
"ये सब क्यों कर रहे हो । मैं तुम लोगों को पचास हजार रुपया देने को तैयार हूं ।" बाज बहादुर कह उठा ।
"चुप कर ।" गुर्राकर कहा गया--- "जो कहना हो हमारे बॉस से कहना ।"
"अपने बॉस को बुलाओ । मैं उससे बात...।"
"यहीं पड़ा रह । वो तेरे से मिलने आएगा ।"
बाज बहादुर हाथ-पांवो को बांधकर दोनों बाहर निकले और दरवाजा बंद हो गया ।
"कहां फंस गया मैं ।" बाज बहादुर ठंडे फर्श पर पड़ा उस अंधेरे-से भरे कमरे कमरे में नजर दौड़ाने लगा ।
"ये तो अभी शुरुआत है बेटे ।" जगमोहन कह उठा ।
"तुम कौन हो ?" बाज बहादुर ने चौंककर आवाज की तरफ नजरें घुमाई । अभी अंधेरे में देखने के लिए उसकी आंखें अभ्यस्त नहीं हो पाई थी । परंतु अब उसे लगा कि तीन कदमों की दूरी पर कोई और भी है ।
"मुझे भी तुम्हारी तरह बांधकर रखा गया है ।" जगमोहन ने कहा--- "तुम से आधा घंटा पहले ही मुझे यहां लाया गया है । ये पागल लोग हैं । मैं हिन्दुस्तानी हूं । दोस्त ने यहां काठमांडू में नौकरी लगवा दी तो यहां आकर नौकरी करने लगा। इन्होंने मुझे एक होटल से बाहर निकलते देखा तो ये सोच कर उठा लिया कि मैं टूरिस्ट हूं । मुझसे अच्छे नोट मिल जाएंगे । कितना कहा कि मैं गरीब बंदा हूं । वेटर की नौकरी करता हूं पर मेरी बात नहीं मानी । तुम्हारी तरह मुझे भी कहा कि बॉस ही बात करेगा ।"
"हम किस जगह पर हैं ?" बाज बहादुर ने पूछा ।
"पता नहीं । सड़े फलों की बदबू बहुत आ रही है ।"
"तुमने आते वक्त जगह देखी नहीं जो...।"
"आंखों पर कपड़ा बांधकर लाया गया ।" जगमोहन बोला ।
"मेरी आंखों पर भी कपड़ा बांध दिया गया था, यहां लाने से पहले ।"
"तुम्हारे पास मोबाइल फोन है ?"
"था, निकाल लिया, इन लोगों ने ।"
"तुम तो बात करने के लिए लहजे से नेपाली लगते हो ।"
"हां ।"
"क्या नाम है तुम्हारा ?"
"बाज बहादुर ।"
"मालदार होगे, तभी तो तुम्हें उठाया गया ।
"ब्लू स्टार कसीनो में मैनेजर हूं ।"
"ब्लू स्टार ?" जगमोहन की चौंकने की आवाज आई--- "मैं भी तो ब्लू स्टार होटल में काम करता हूं । ओह, बाज बहादुर साहब हैं आप । नमस्कार साहब। मैं आपको पहचान नहीं पाया । बहुत अंधेरा है इधर और...।"
"तुम ब्लू स्टार में वेटर हो ?"
"जी साहब जी ।"
"हैरानी है कि तुम्हें इन लोगों ने उठा लिया ।"
"हिन्दुस्तानी हूं। ड्यूटी खत्म करके होटल से निकला था और इन्होंने टूरिस्ट समझ कर अपहरण कर लिया। आपको तकलीफ में देखकर मुझसे सहा नहीं जा रहा । मैं आपके लिए कुछ कर भी नहीं सकता ।" जगमोहन ने अफसोस भरे स्वर में कहां ।
"हम दोनों ही इस वक्त छेद वाली कश्ती पर सवार हैं ।" बाज बहादुर ने गहरी सांस ली ।
"आप तो बहुत बड़े खतरे में फंस गए । आपको तो ये लोग छोड़ेंगे नहीं ।"
"इसी बात की तो मुझे चिंता है। क्या नाम है तुम्हारा ?"
"जगमोहन, साहब जी ।"
"लोग तो नेपाल से हिन्दुस्तान पैसा कमाने आते हैं । तुम नेपाल आए हो ।"
"काठमांडू मेरे को बहुत अच्छा लगता है, इसलिए...।"
"हम कैसे बच सकते हैं जगमोहन, इस बारे में सोचो ।"
"मुझे तो ये बदमाश बहुत खतरनाक लगते हैं । साहब जी, हम चिल्लाना शुरू कर देते हैं, बाहर कोई तो हमारी आवाज...।"
"बेवकूफी वाली बातें मत करो । इस तरह हम बच नहीं सकते।" बाज बहादुर ने गम्भीर, चिंतित स्वर में कहा ।
"मुझे तो आपकी चिंता हो रही है साहब जी । मैं तो गरीब बंदा हूं, जब इन्हें पता चलेगा तो मेरे हाथ-पांव तोड़ कर मुझे छोड़ देंगे, परंतु आपको तो छोड़ने वाले नहीं । इन्होंने बताया नहीं कि ये आपसे क्या चाहते हैं ।"
"अभी कुछ नहीं कहा । लेकिन पैसों की बात कर रहे थे ।"
"अगर पचास हजार देने को तो कह रहे थे ।"
"मेरे ख्याल में पचास हजार इन्हें कम लग रहा है ।" बाज बहादुर व्याकुल स्वर में बोला--- "ये खतरनाक लोग लगते हैं ।"
जगमोहन ने जवाब में कुछ नहीं कहा ।
वहां इतनी भी रोशनी नहीं थी कि दोनों एक-दूसरे का चेहरा ठीक से देख पाते ।
"साहब जी । मुझे तो बहुत सर्दी लग रही है ठंडे फर्श पर ।"
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दो घंटे बाद दरवाजा खुला और तीन आदमियों ने भीतर प्रवेश किया । उनमें एक मोटा और ठिगना था । उसके चेहरे कम रोशनी में स्पष्ट नहीं दिख रहे थे । ठिगना कोने में पड़ी कुर्सी को खिसकाकर उस पर बैठ गया । दरवाजा बंद करके बाकी दोनों वहीं पर खड़े रहे । ठिगना व्यक्ति नेपाली लहजे में जगमोहन से कह उठा ।
"तू क्या कहता है कि तू वेटर है ब्लू स्टार होटल में ?"
"जी हां " जगमोहन जल्दी-से बोला--- "मैं वेटर...।"
"तू टूरिस्ट है हरामजादे, हमसे झूठ बोलता है ।" वो कुर्सी से उठा और जगमोहन को ठोकर मारी ।
जगमोहन बिलबिलाकर कह उठा ।
"मैं वेटर हूं, गरीब बंदा हूं। दो दिन पहले ही तो ब्लू स्टार में नौकरी पर लगा हूं ।"
"नाम क्या है तेरा ?"
"जगमोहन ।"
"होटल में तेरा हैड कौन है ?"
"रामसिंह दूसरी मंजिल पर मेरी ड्यूटी है । मैं सच कह रहा हूं ।" जगमोहन याचना भरे स्वर में कह उठा ।
ठिगना वापस कुर्सी पर बैठा और कठोर स्वर में बोला---
"अगर तेरी बात गलत निकली तो जानता है हम तेरी कैसी हालत करेंगे ।"
"गला काट देना साहब जी । मैं झूठ नहीं बोलता । मैं तो मामूली-सा वेटर हूं ।"
ठिगना अपने दोनों आदमियों से बोला ।
"इसके बारे में ब्लू स्टार से पता करना कि ये वेटर है या टूरिस्ट ?"
"हम पता लगा लेंगे ।" उन दोनों में से एक आदमी ने कहा।
फिर ठिगना बाज बहादुर से बोला ।
"हां तो बाज बहादुर साहब । यहां पर तुम्हें मजा तो आ रहा होगा ।"
"तुम बहुत गलत कर रहे हो ।"
"ये ही अपना धंधा है । मालदार लोगों को उठाओ और पैसे लो।" ठिगना हंसा--- "तुम तो बहुत मालदार हो ।"
बाज बहादुर की आवाज नहीं आई ।
"बाज बहादुर ।" ठिगना पुनः बोला--- "हर महीने एक-आध का कत्ल करना पड़ता है जो हमारी पसंद के पैसे हमें नहीं देता । समझदार लोग तो ऐसी नौबत नहीं आने देते। तुम्हारा अपने बारे में क्या ख्याल है, क्या तुम समझदार हो ?"
बाज बहादुर खामोश रहा ।
"तुम पर तो बहुत पहले से हमारी नजर थी । कसीनो में मैनेजर हो । लाख रुपया तनख्वाह है । कसीनो का स्ट्रांग रूम नोटों से भरा रहता है और अब तो कुछ दिन बाद क्रिसमस और न्यू ईयर आने वाला है । स्ट्रांग रूम नोटों से ठसाठस भर जाएगा। तुम्हारे कसीनो की जितनी कमाई होती है, उतनी कमाई किसी दूसरे कसीनो में नहीं होती । सुना है न्यू ईयर के मौके पर अजीत गुरंग तुम्हें एक महीने की तनख्वाह इनाम के तौर पर देता है ।"
"मैं वहां नौकर हूं ।"
"नौकर ?" ठिगना हंसा--- "तुम तो वहां के मालिक से भी ज्यादा हैसियत रखते हो। मुझे पता है कसीनो में तुम्हारी कितनी चलती है । मालिक होने के बावजूद भी गुरंग उधर झांकता नहीं। सब कुछ तुम ही सम्भालते हो । ठिगने ने कहा ।
"मैं तुम्हें एक लाख रुपया दे सकता हूं, मुझे छोड़ने के लिए ।" बाज बहादुर कसमसा कर कह उठा ।
"लेकिन मैंने तो तुमसे पैसा मांगा ही नहीं ।"
"पैसे के लिए ही तो मुझे उठाया गया है ।" बाज बहादुर बोला ।
"मैंने तो तुम्हें अपना दोस्त बनाने के लिए, तुम्हें उठाया है । तुम्हें अपना दोस्त बनाना चाहता हूं ।" ठिगने की आवाज में मुस्कुराहट के भाव थे--- "मेरा दोस्त बनने के लिए तुम्हें भी खुश होना चाहिए ।"
"क्या चाहते हो, साफ-साफ बोलो ।" बाज बहादुर कह उठा ।
"साहब जी को तकलीफ देकर तुम अच्छा नहीं कर रहे ।" जगमोहन ने कहा ।
ठिगना उठा और आगे बढ़कर जगमोहन को ठोकर मारी ।
जगमोहन कराह उठा ।
"तुम अपनी जुबान बंद रखो, वेटर की औलाद ।" ठिगना गुर्रा उठा ।
जगमोहन ने फिर कुछ नहीं कहा और ठिगना वापस कुर्सी पर जा बैठा ।।
"हां तो बाज बहादुर, मेरे प्यारे दोस्त। मैं नए साल की शाम को तुम्हारे कसीनो का स्ट्रांग रूम लूटना चाहता हूं जो कि उस रात नोटों से भरा होगा। करोड़ों की रकम वहां होगी । बहुत अच्छा लगता होगा, उस स्ट्रांग रूम को नोटों से भरे देखकर, है न ?"
"तुम पागल हो गए हो ।" बाज बहादुर व्याकुल और हैरान-सा कह उठा--- "उस कसीनो को कोई नहीं लूट सकता ।"
"हम लूटेंगे और तुम लुटवाओगे ।" ठिगना होंठ भींचे बोला--- "बाद में इसे डकैती कहा जाएगा । क्योंकि पांच-छः लोग इसमें शामिल होंगे ।"
"तुम सच में पागल हो ।"
"अच्छा ।" ठिगने ने व्यंग से कहा ।
"कसीनो के स्ट्रांग रूम तक पहुंचा ही नहीं जा सकता। वहां पर तगड़ी सिक्योरिटी...।"
"तुम किस मर्ज की दवा हो बाज बहादुर । सिक्योरिटी तुम्हारे इशारे पर ही तो चलती है । तुम चाहोगे तो हम आसानी से स्ट्रांग रूम के भीतर पहुंच जाएंगे । लोगों के अपहरण करने के धंधे से मैं तंग आ गया हूं । जो लोग मेरी बात नहीं मानते, या यूं कह लो कि हर महीने तो एक-दो हत्या करनी पड़ती है तो सोचा क्यों ना कसीनो की मोटी रकम न्यू ईयर को लूट कर सारी उम्र मजे किए जाएं । ये सोचते ही तुम्हारा ध्यान आ गया बाज बहादुर साहब ।"
"मैं कुछ नहीं कर सकता तुम्हारे लिए ।"
"तुम सब कुछ कर सकते हो । तुम तो चाबी हो उस स्ट्रांग रूम तक जाने के लिए ।"
"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है जो ऐसा सोचे हुए हो ।" बाज बहादुर बोला--- "मैं इसमें कुछ नहीं कर...।"
तभी ठिगना उठा । जेब से रिवॉल्वर निकाली और आगे बढ़कर नाल उसके गाल पर रख दी ।
"अब बोलो । क्या कहा तुमने ? मैंने ठीक से सुना नहीं ।" ठिगने के लहजे में वहशी गुर्राहट थी ।
बाज बहादुर के होश उड़ गए ।
ठिगना उसके गाल से रिवॉल्वर हटाकर वापस, जेब मे डालता कह उठा ।
"मैं जानता हूं तुम मेरी बात जरुर मानोगे । बेशक अपनी जान की खातिर मानो । लेकिन तुम चाहो तो तुम्हें भी उस दौलत में से मोटी रकम हिस्से के रूप में मिल जाएगी । हम अपने साथी का हमेशा ख्याल रखते हैं ।"
"मैं तुम्हारी बात नहीं मान रहा ।" बाज बहादुर भय से चीख उठा।
"तुम्हारी तो ऐसी-तैसी ।" ठिगना पुनः रिवॉल्वर निकाल कर गुर्राया--- "साले मरना ही है तो...।"
"गोली मत चलाना ।" जगमोहन घबरा कर कह उठा--- "साहब जी को कुछ मत कहना ।"
"साले-पिल्ले ।" ठिगने की ठोकर जगमोहन की कमर में पड़ी ।
जगमोहन कराह उठा और बोला ।
"साहब जी को सोचने का मौका दो । मैं इन्हें समझाऊंगा । इस तरह उसकी जान लेने से तुम लोगों को क्या मिलेगा ।"
"तू समझाएगा ।" ठिगने ने शब्दों को चबाकर कहा ।
"हां ।"
"कब तक समझा लेगा ?"
"सुबह तक का तो वक्त दो--- मैं...।"
"नहीं जगमोहन । मैं ये काम नहीं...।" बाज बहादुर ने कहना चाहा ।
"साहब जी । जान से बढ़कर कोई चीज नहीं होती । फिर ये कसीनो का स्ट्रांग रूम लूटने को ही तो कह रहे हैं । वहां तक तो कोई भी जुगाड़ भिड़ाकर पहुंच सकता है । इसमें आपकी क्या गलती है ।" जगमोहन कह उठा ।
"शाबाश ।" ठिगना हंसा--- "तू समझदार है। मुझे भरोसा है कि सुबह तक तू बाज बहादुर को रास्ते पर ले आएगा। अगर कल सुबह तक बाज बहादुर ने हमें सहयोग देना शुरू नहीं किया तो मैं तुम दोनों को गोली मार दूंगा ।"
"मुझे भी ?" जगमोहन ने घबराकर कहा ।
"इसे समझाने की बात कहकर, अब तू भी इस मामले में आ गया है । कल सुबह आऊंगा मैं, तब तक...।"
"सुबह तक तो हम इसी ठंड में मर जाएंगे । कमरे का नंगा-ठंडा फर्श । ओढ़ने को भी कुछ नहीं फिर...।"
"इन्हें यहां पर बिस्तर ला दो ।" ठिगने ने अपने दोनों आदमियों से कहा ।
"जी ।"
"कड़ी नजर रखो इन पर । भागने की कोशिश करें तो शूट कर दो ।" ठिगने ने कठोर स्वर में कहा ।
"खाने-पीने को भी मिलेगा ?"
"इनके खाने-पीने का इंतजाम भी कर देना ।" ठिगना बोला ।
"हमारे हाथ-पांव तो खोल दो । इस तरह बंधे रहेंगे तो...।"
ठिगने ने आगे बढ़कर जगमोहन की कमर में जोरों की ठोकर मारी ।
जगमोहन चीखा ।
"जुबान बंद कर हरामी के वरना...।"
■■■
फर्श पर गद्दे बिछे थे। ऊपर रजाई थी । जगमोहन और बाज बहादुर की टांगे बंधी थी, परंतु अभी-अभी हाथ खोले थे एक ने। दूसरा दरवाजे पर खड़ा सख्त निगाहों से इन्हें देख रहा था । ठीगना जा चुका था। कलाइयां खोलने वाले ने दोनों को स्टील का एक-एक गिलास थमाया और बोतल खोलने लगा ।
"ये क्या कर रहे हो ?" जगमोहन ने पूछा ।
"व्हिस्की दे रहा हूं ।"
"म...मैं साहब जी के सामने नहीं पी सकता ।" जगमोहन ने बाज बहादुर को देखा ।
"पी ले । नहीं तो ठंड से मर जाएगा ।" वो आदमी फिर कह उठा।
"नहीं, मैं साहब जी के सामने...।"
"पी ले जगमोहन ।" बाज बहादुर ने कहा--- "अब क्या छोटा क्या बड़ा हम एक ही कश्ती पर सवार हैं ।"
उसने गिलासों में व्हिस्की डाली ।
"पी लो ।"
"पी लो ?" जगमोहन ने गुस्से से कहा--- "इसमें पानी-सोडा डालो । ये तो गला जला देगी ।"
उसने गिलास में पानी मिलाया ।
बाज बहादुर एक ही बार में आधा गिलास खाली कर गया ।
परंतु जगमोहन ने अपना गिलास नीचे रखते हुए कहा ।
"साहब जी, मैं आपके सामने व्हिस्की नहीं पी...।"
"ये सर्दी का मेवा है जगमोहन । ठंडे इलाकों में ये दवा मानी जाती है ।" बाज बहादुर ने कहा--- "चुपचाप पी जा ।"
जगमोहन ने घूंट भरा और उस आदमी से बोला ।
"साथ उसके कुछ खाने को भी दोगे या ऐसे ही चलाने का इरादा रखते हो ।"
"साला, बहुत बड़-बड़ कर रहा है ।" वो आदमी बोतल एक तरफ रख कर बाहर निकल गया ।
दूसरा आदमी दरवाजे के पास खड़ा रहा।
"क्या बजा है ?" बाज बहादुर ने कहा।
"छः बजे है ।" वो आदमी बोला ।
"ओह, कसीनो में मेरा इंतजार हो रहा होगा ।" बाज बहादुर बेचैनी से कह उठा
उस आदमी ने बाज बहादुर को देखा ।
बाज बहादुर ने उसे देखा फिर धीरे-धीरे खिसककर जगमोहन के पास आ गया ।
तभी गया आदमी वापस आ गया । उसने नमकीन का लिफाफा उनके पास रख दिया ।
"बस।" जगमोहन बोला--- "सिर्फ जरा सी नमकीन । इतनी सर्दी में मुर्गा तो होना ही चाहिए। क्यों साहब जी ?"
"अबे क्या अपने बाप की बारात में आया है जो तेरी खातिरदारी करें ।" वो आदमी तीखे स्वर में कह उठा ।
"ये साले ठंडे फर्श पर पड़े ही ठीक थे ।" दरवाजे के पास खड़ा आदमी कह उठा ।
दूसरा आदमी पुनः बाहर निकल कर चला गया ।
बाज बहादुर ने दरवाजे पर खड़े आदमी पर नजर मारी, फिर धीरे से बोला ।
"जगमोहन ।"
"जी साहब जी ।" जगमोहन की आवाज भी धीमी थी ।
"तूने तो मुसीबत मोल ले ली कि मेरे को समझाएगा । मैं ये काम नहीं कर सकता । कसीनो में डकैती का मतलब बहुत बड़ा है, वो भी न्यू ईयर वाली रात। ऐसे में तो बहुत बड़ा कांड हो जाएगा।" बाज बहादुर फुसफुसाया ।
"मैं तब बीच में ना आता तो वो आपको गोली मार देता । ये बहुत खतरनाक लोग हैं ।"
"खतरनाक तो हैं ही । पर अब क्या होगा ।" बाज बहादुर ने चिंतित स्वर में कहकर घूंट भरा ।
"मुझे तो खुद समझ में नहीं आ रहा कि क्या होगा । मैं तो डरा बैठा हूं ।
"कल वो हम दोनों को गोली मार देंगे ।"
"चाहे कुछ भी हो, कसीनो में डकैती के लिए, इनकी सहायता मत कीजिएगा। जहां रोजी-रोटी होती है, वहां पर दगाबाजी नहीं की जाती। मैं तो अपनी जान देने को तैयार हूं आपके लिए।" जगमोहन धीमे-से बोला ।
"जान तो सबसे कीमती होती है, पर मैं कसीनो नहीं लुटाऊंगा।" बाज बहादुर ने कहा।
"ये ही तो मैं कह रहा हूं ।"
"तुम बचने का रास्ता सोचो ।"
"वो ही तो कर रहा हूं ।"
"क्या ?"
"अपनी टांगों के बंधन खोल रहा हूं।"
"त-तो फिर क्या करोगे ?"
"इन लोगों से भिड़ जाऊंगा ।"
"ये खतरनाक बात होगी । ये तुम्हें मार देंगे ।" बाज बहादुर चिंतित स्वर में बोला।
"आपको बचाने के लिए कुछ तो करना होगा । नहीं तो कल सुबह ये आपको मार देंगे ।"
बाज बहादुर ने दरवाजे पर खड़े बदमाश को देखा । वो आराम से खड़ा था ।
"खोल लिए ।" जगमोहन फुसफसाया ।
"टांगों के बंधन ?"
"हां ।"
बाज बहादुर ने बैठे-बैठे बेचैनी से पहलू बदला ।
"आप आराम से पियो साहब जी। इसे मैं संभालता हूं । जहां कमजोर पड़ूं आप आ जाना ।
"परंतु मेरी टांगे बंधी हुई हैं ।"
"ओह । फिर आप बैठे रहिए ।" जगमोहन एक गिलास पास ही फर्श पर रखा--- "मैं इसे संभालने की कोशिश करता हूं । तब तक आप टांगों के बंधन खोलने की कोशिश कीजिए । अगर मेरा दांव चल जाए तो रुकना नहीं है, भाग निकलना है यहां से।"
बाज बहादुर ने सिर हिलाया।
"जगमोहन ने रजाई हटाई और उठते हुए बोला।
"ओ भाई, बहुत तेज लगी है ।" जगमोहन उसकी तरह बढ़ा--- "किधर जाऊं ?"
"मेरे साथ चल । पास ही...।" कहते-कहते वो ठिठका और चौंककर बोला--- "तुमने टांगे कैसे खोल ली ?"
तभी जगमोहन उस पर झपट पड़ा। सीधा उससे टकराया और दोनों दरवाजे से जा टकराए। वो खुद को बचाने की खातिर जगमोहन से लिपट गया और दोनों गुत्थम-गुत्था होकर नीचे गिर पड़े ।
बाज बहादुर जल्दी-से अपनी पांवों के बंधन खोलने में व्यस्त था। चेहरे पर घबराहट थी।
उस व्यक्ति ने जगमोहन के चेहरे पर जोरों का घूंसा मारा। जवाब में जगमोहन ने दो-तीन घूंसे एक साथ उसके चेहरे पर मारे तो वो कराह उठा ।
"जल्दी आइए साहब जी ।" जगमोहन उसका मुकाबला करता बोला--- "ये मुझ पर भारी पड़ रहा है ।"
बाज बहादुर जल्दी-से अपने बंधनो को खोल लेने की चेष्टा कर रहा था । उसे ये ज्यादा डर लग रहा था कि इसका साथी वहां न आ जाए। तभी जगमोहन उछलकर रजाई पर जा गिरा। इससे पहले उठता कि वो व्यक्ति उस पर आ गिरा । जगमोहन के होंठों से कराह निकली गई । उसने जगमोहन की छाती पर घूंसा मारा। जगमोहन उससे लिपट गया और दोनों एक तरफ लुढ़कनियां चले गए। जगमोहन ने उसे दोनों बांहों से ही भींच रखा था ।
"कमीनो । तुम लोग साहब जी को मारने की धमकी देते हो । तुम्हारी ऐसी-तैसी ।" जगमोहन ने उसके चेहरे पर घूंसा मारा।
तभी बाज बहादुर टांगों के बंधन खोलकर, फुर्ती से उठा और उसके पास पहुंचा ।
"मैं आ गया जगमोहन । अब...।"
"साहब जी आप भाग जाइए। मैंने संभाला रखा है इसे । निकल जाइए आप ।"
"तुम भी तो साथ चलो ।" बाज बहादुर परेशान-सा कह उठा।
"मैंने इसे पकड़ रखा है ।" जगमोहन ने पुनः उस आदमी के चेहरे पर घूंसा मारा--- "आप...।"
तभी उस आदमी ने जगमोहन को अपने ऊपर से पटक दिया और फुर्ती से खड़ा हुआ, परंतु तब तक पास खड़े बाज बहादुर ने बांहें फैलाकर उसे पकड़ लिया तो उसने घुटने की ठोकर बाज बहादुर की टांगों के बीच मार दी।
बाज बहादुर तड़पकर दोहरा होता चला गया । अपने दोनों हाथ टांगों के बीच रख लिए । तब तक जगमोहन संभल कर खड़ा हो चुका था। उसने वहां मौजूद आदमी की कनपटी पर जोरदार घूंसा मारा। उसकी आंखों के सामने लाल-पीले तारे नाचे । दूसरे घूंसे में रजाई पर जा गिरा और शांत पड़ गया । जगमोहन जल्दी-से कह उठा ।
"साहब जी । क्या हुआ ?"
"इसने मेरी टांगों के बीच बहुत बुरा मारा...।"
"लाइए मैं देखता हूं...।" जगमोहन ने हाथ आगे बढ़ाया ।
"रहने दो । क्या कहते हो ।" बाज बहादुर झल्लाकर बोला ।
"ओह ।" जगमोहन ने तुरंत अपने हाथ पीछे कर लिए फिर कहा--- "यहां से निकल चलिए साहब जी ।"
बाज बहादुर को जैसे होश आया । उसने रजाई पर औंधे पड़े व्यक्ति को देखा ।
"इसे क्या हुआ ?"
"पता नहीं, लड़ता-लड़ता गिर गया। मैंने तो सिर पर दो घूंसे मारे थे । मौका अच्छा है, चलिए साहब जी ।"
अपनी टांगों के बीच के दर्द को भूलकर बाज बहादुर दरवाजे की तरफ लपका ।
जगमोहन उसके साथ था । दोनों कमरे से बाहर निकले। ये कोई गोदाम जैसी जगह थी । शायद फल-फ्रूट रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज । दोनों अंधेरे में छुपते-छिपाते किसी तरह वहां से बाहर निकले और आगे बढ़ गए । अंधेरी से भरी गली में कीचड़ था। सर्दी बढ़ गई थी । शरीर में जोरों की कंपकपी लगी थी । वे गली के बाहर पहुंचे तो सामने सड़क पर वाहन जा रहे थे ।
"पता नहीं मेरी कार कहां है ।" बाज बहादुर कह उठा ।
"साहब जी । कार को छोड़िए और निकल चलिए । मैं किसी टैक्सी को रोकता हूं ।"
बाज बहादुर घबराया हुआ था ।
"कहां जाएंगे । कसीनो या घर ?"
"घर जाऊंगा ।" बाज बहादुर आस-पास देखता कह उठा ।
दोनों तेजी से सड़क के किनारे आगे बढ़े जा रहे थे ।
जल्दी ही उन्हें खाली टैक्सी मिल गई ।
"बैठिए साहब जी ।" जगमोहन टैक्सी का दरवाजा खोलता हुआ बोला।
बाज बहादुर फौरन भीतर जा बैठा।
जगमोहन ने टैक्सी का दरवाजा बंद कर दिया।
"तुम भी आओ जगमोहन ।" बाज बहादुर ने जल्दी से कहा ।
"मैं अपने कमरे पर जाऊंगा साहब जी । हमें जल्दी से निकल जाना चाहिए । कहीं वो लोग फिर आ गए तो...।" कहने के साथ ही जगमोहन ने टैक्सी ड्राइवर से कहा--- "साहब जी को इनके घर पहुंचा दो ।"
"तुम मुझसे कल मिलना जगमोहन ।"
"जी साहब जी " जगमोहन ने दोनों हाथ जोड़ दिए ।
"मैं दोपहर बाद कसीनो आऊंगा ।"
जगमोहन ने सिर हिला दिया ।
टैक्सी आगे बढ़ गई ।
ठंड से ठिठुरते जगमोहन ने दोनों हाथ जैकेट की जेबों में डाले और आगे बढ़ गया।
■■■
अगले दिन सुबह ठीक छः बजे जगमोहन अपनी वेटर की नौकरी पर हाजिर था ।
दिन के ग्यारह बजे जब वो व्यस्त चल रहा था तो रामसिंह का बुलावा आया ।
जगमोहन रामसिंह के पास पहुंचा ।
राम सिंह उसे घूरने लगा ।
"मेरे से कोई गलती हो गई राम सिंह जी ?" जगमोहन उसकी नजरों को पहचान कर बोला--- "सुबह पचास रुपये ही 'टिप' के मिले थे वो तो हमने बांट लिए । उसके बाद तो कोई 'टिप' नहीं मिली ।"
"क्या किया है तुमने ?" राम सिंह की आंखें भी सिकुड़ गई ।
"क्या किया है ?" जगमोहन घबराकर बोला ।
"गुरंग साहब का बुलावा आया है तुम्हारे लिए ।"
"तो इसमें कौन-सी बड़ी बात है । मैं अभी आर्डर पूछकर, सर्व कर देता...।"
"मैं होटल और कसीनो के मालिक गुरंग साहब की बात कर रहा हूं ।" राम सिंह झल्लाया ।
"व-वो भला क्यों बुलाने लगे ?"
"मैसेज आया है मुझे कि तुम्हें फौरन उनके ऑफिस में भेजूं । तभी पूछा कि क्या गड़बड़ की है तुमने ?"
"म-मैंने कोई गड़बड़ नहीं की राम सिंह जी--- मैं...।"
"गुरंग साहब इस तरह कभी किसी को नहीं बुलाते । उन्हें जो बात कहनी होती है, वो मैनेजर मंगल जोशी साहब से ही बात करते हैं और अभी-अभी मुझे जोशी साहब का फोन आया । पहले तो उन्होंने तुम्हारे बारे में पूछा, फिर तुम्हें गुरंग साहब के पास उनके ऑफिस में भेजने को कहा । कुछ तो किया ही है तुमने ।"
"नहीं राम सिंह जी--- मैं तो...।"
"पहले गुरंग साहब के पास जाओ ।"
"मैं तो जानता ही नहीं कि उनका ऑफिस किधर है ।"
"सबसे नीचे पहुंचो और वहां किसी से पूछ लेना ।" राम सिंह ने कहा ।
"ठीक है ।" जगमोहन पलटने लगा तो रामसिंह बोला ।
"मुझे बता दो कि तुमने क्या किया है । शायद मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकूं ।"
"मैंने कुछ नहीं किया ।"
जगमोहन लिफ्ट से ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचा और पूछने के बाद ब्लू स्टार होटल और कसीनो के मालिक अजीत गुरंग के ऑफिस का दरवाजा खोलकर भीतर झांका।
भीतर बाज बहादुर को देखा और एक अन्य व्यक्ति को देखा।
"मैं आऊं साहब जी ।"
"आओ जगमोहन ।" बाज बहादुर ने मुस्कुरा कर फौरन कहा--- "भीतर आ जाओ।"
जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया। हाथ जोड़कर गुरंग को नमस्ते की । गुरंग पैनी निगाहों से उसे देख रहा था, जबकि जगमोहन बाज बहादुर से कह उठा ।
"साहब जी । रात तो बुरे बचे । नहीं तो आज वो हमें मार देते।"
"तुम्हारी हिम्मत से ही सब हुआ । मैं तो...।"
"बस साहब जी, अचानक ही मुझे गुस्सा आ गया और मैं उससे भिड़ गया...।"
"इनसे मिलो ।" बाज बहादुर उसकी बात को काटते बोला--- "ये होटल और कसीनो के मालिक गुरंग साहब हैं ।"
जगमोहन ने एक बार फिर गुरंग को हाथ जोड़कर नमस्ते की।
"तुम्हें क्यों पकड़ लिया था उन लोगों ने ?" अजीत गुरुंग ने पूछा।
"साहब जी, मैं कल दो बजे होटल से अपनी ड्यूटी खत्म करके बाहर निकला । हिन्दुस्तानी हूं । उन्होंने समझा कि मैं टूरिस्ट हूं। मेरे से अच्छे पैसे मिल सकते हैं तो उन्होंने उठा लिया मुझे। कार मेरे पास लाकर रोकी और मुझे कार में खींच लिया। मैं तो घबरा गया था कि ये लोग मेरे साथ क्या कर रहे हैं।" जगमोहन ने कहा।
"मैनेजर साहब तुम्हारी तारीफ कर रहे हैं कि तुम्हारी वजह से बचे।" गुरंग बोला।
"मैं तो बस यूं ही...।" जगमोहन चुप कर गया।
"उन लोगों को तुमने पहले कभी देखा है ?" गुरंग ने पूछा।
"मैंने नहीं देखा । चार दिन पहले तो मैं काठमांडू पहुंचा साहब जी ।"
"तुमने मैनेजर साहब को बचाकर बहुत बड़ा काम किया है ।"
"साहब जी, मैं तो खुद ही मुसीबत में था ।"
"कसीनों में नौकरी करोगे ?"
"जरूर करूंगा साहब जी। वहां पैसा ज्यादा मिलता है ।" जगमोहन ने खुश होकर कहा।
"अब कितनी तनख्वाह है तुम्हारी ?"
"पच्चीस सौ ।"
"कसीनो में तुम्हारी तनख्वाह मैनेजर साहब तय करेंगे । ईमानदारी से काम करना । शिकायत नहीं मिलनी चाहिए हमें।"
"मैं ईमानदारी से काम करूंगा साहब जी ।" जगमोहन के चेहरे पर खुशी नाच रही थी।
अजीत गुरंग बाज बहादुर से कह उठा।
"बाज, तुम हर वक्त अपने साथ सिक्योरिटी के दो हथियारबंद व्यक्ति रखोगे। जब भी खुले में जाओगे, तुम्हारे साथ दो आदमी होंगे । ये बड़ी बात है कि कसीनो को लूटने की खातिर तुम पर हाथ डाला गया ।"
"मैं अपनी पर्याप्त सुरक्षा रखूंगा ।" फिर बाज बहादुर ने जगमोहन से कहा--- "वेटर की नौकरी छोड़ दो और जाकर नींद ले लो । अब तुम कसीनो में काम करने जा रहे हो। रात भी तुम्हें जागना पड़ेगा ।"
"जी साहब जी ।"
"शाम को पांच बजे कसीनो में आकर मुझसे मिलना। तुम्हें काम समझा दूंगा ।"
जगमोहन दोनों को नमस्ते करके वहां से चला गया ।
"बाज ।" अजीत गुरंग ने गम्भीर स्वर में कहा--- "क्रिसमस और नया साल आ रहा है । कोई भी लोग ऐसे लूटने की चेष्टा कर सकते हैं । सुरक्षा के स्पेशल इंतजाम करो कि सब ठीक चले । इंतजाम ऐसे हों कि यहां आने वालों के लिए समस्या खड़ी न हो। सब कुछ ठीक-ठाक करके मुझे बताओ, फिर मैं देखूंगा कि कहीं कमी तो नहीं रह गई।"
■■■
जगमोहन ब्लू स्टार होटल के बाहर निकला और आगे बढ़ गया। उसके होंठों पर शांत-सी मुस्कान थी । वो ब्लू स्टार कसीनो में घुसना चाहता था और काम बन गया था। फोन निकालकर सूर्य थापा को फोन किया । बात हो गई ।
"कल मैंने काम बढ़िया किया ?" उधर से सूर्य थापा ने पूछा ।
"एकदम बढ़िया। मामला फिट हो गया ।" जगमोहन हंसा ।
"कसीनो में काम मिल गया ?"
"लगता तो है। बाज बहादुर ने कसीनो में नौकरी देने को कहा है।"
"ये तो बढ़िया हो गया । मेरा आदमी कहता है कि तुमने उसे घूंसे ज्यादा मारे ।" सूर्य थापा की आवाज उधर से कानों में पड़ी।
"उसे पांच हजार रुपए मेरी तरफ से दे देना।"
"मेरे पास पैसे नहीं है । तुम पैसे दो कि मैं उन्हें दे सकूं। दस-दस हजार पांचो को दे देना।
"एक घंटे बाद कल वाली जगह पर ही मिलना। पैसे ले लेना।"
"ठीक है । वैसे तुम करना क्या चाहते हो ?"
"क्या मतलब ?"
"अगर कसीनो में डकैती करनी है तो मुझे भी साथ ले लो । दो पैसे मैं भी कमा लूंगा।"
"ऐसा कुछ नहीं है । डकैती करने के लिए ये सब नहीं किया जा रहा ।"
"ये कह कर मुझे जूल तो नहीं दे रहे ?"
"तुमसे झूठ बोलूंगा क्या।"
"फिर भी अगर डकैती का प्रोग्राम बने तो मुझे जरुर याद करना।" उधर से सूर्य थापा की आवाज आई।
"वहम में मत पड़ो । ये डकैती का प्रोग्राम नहीं बन रहा ।"
"तुम्हारी मर्जी । देवराज चौहान आएगा तो तुम काठमांडू में अकेले ही हो ।"
"देवराज चौहान आएगा। तुम एक घंटे बाद कल वाली जगह पर मिलो और पैसे ले लो।" कहकर जगमोहन ने बात खत्म की।
फुटपाथ पर आगे बढ़ते जगमोहन ने पुनः फोन मिलाया। फौरन ही देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।
"हैलो ।"
"मैं ।" जगमोहन बोला।
"कहो ।"
"काम बन गया । कसीनो में मैंने जगह पा ली ।" जगमोहन बोला ।
"ये अच्छा हुआ । तुम अच्छी तरह कसीनो का हाल देखना । स्टॉफ से दोस्ती बढ़ाना कि मौके पर कोई मुसीबत खड़ी न करें।"
"तुम कब आओगे ?"
"तीन-चार दिन तक। बेहतर होगा कि मेरे आने तक तुम मेरे लिए वहां पर नौकरी का इंतजाम कर लो ।"
"बाज बहादुर जो कि कसीनो का मैनेजर है, वो शीशे में उतरा हुआ है। मैं तुम्हारे लिए भी जल्दी ही नौकरी का इंतजाम कर लूंगा।"
"इंतजाम होते ही मुझे बता देना।" उधर से देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया था।
जगमोहन ने फोन जेब में डाला और आगे बढ़ता चला गया ।
उसके बाद जगमोहन अपने कमरे पर गया। वहां पर से नोटों की गड्डियां उठाकर, कल वाली जगह पर पहुंचा जहां सूर्य थापा पहले से ही मौजूद था। जगमोहन ने उसे नोट दिए। उसके साथ चाय पी। इसी दौरान सूर्य थापा ये ही कहता रहा कि अगर कसीनो में डकैती का प्रोग्राम है तो उसे भी साथ ले लो काम पर। जगमोहन ने उसे भरोसा दिलाया कि उसका इरादा डकैती करने का नहीं है।
सूर्य थापा से मिलने के बाद जगमोहन फुर्सत में था । वो जानता था कि कसीनो की ड्यूटी पर, रात को जागना है, परंतु उसका नींद लेने का कोई इरादा नहीं था। वो काठमांडू की सड़कों पर टहलता रहा। बाजारों में घूमने लगा। तभी उसे सामने शेवता मछंदर नाथ मंदिर दिखा तो, वो मंदिर में प्रवेश कर गया। काफी बड़ा मंदिर था। बीच रास्ते के दोनों तरफ पार्क बना था। जिस पर चबूतरे जैसी सीटें लगी थी बैठने को। धूप में लोग सीटों पर और घास पर बैठे थे । कई परिवार और टूरिस्ट परिवार वहां पर नजर आ रहे थे । ये शांत जगह अच्छी लगी जगमोहन को और वहीं पार्क में, धूप में जा बैठा।
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शाम पांच बजे जगमोहन ब्लू स्टार कसीनो पहुंच गया। बाहर अंधेरा छाने वाला था । सर्द हवा चल रही थी और ठंड बढ़ गई थी । रिसैप्शन पर जगमोहन ने मैनेजर साहब को पूछा। जब उसने नाम बताया अपना तो उसे कुछ इंतजार करने को कहा और करीब दस मिनट बाद एक आदमी उसके पास आ पहुंचा।
"जगमोहन जी ।" वो बोला--- "मेरा नाम ओम नाटियर है। मैनेजर साहब ने आज दिन में ही मुझे आपके बारे में बता दिया था कि आप उनके खास हैं और पांच बजे यहां आएंगे। मैनेजर साहब ने कहा था कि उनके आने तक आपको सारा कसीनो दिखा दूं ।"
"मैनेजर साहब कब तक आएंगे ।
"छः बजे तक तो आ ही जाते हैं ।" ओम नाटियार ने कहा--- "चलिए, कसीनो देख लीजिए ।"
"हां, चलो ।"
ओम नाटियार, जगमोहन को लेकर आगे बढ़ गया ।
"तुम यहां पर क्या करते हो ?" जगमोहन ने ने पूछा।
"सिक्योरिटी में हूं।
नाटियार, जगमोहन को कसीनो दिखाने लगा ।
ब्लू स्टार कसीनो काफी बड़ा और कई भागों में बंटा हुआ था। वहां आने वाले ग्राहक को काफी लोगों की नजरों से गुजरना पड़ता था और इस बात का पता आने वाले को नहीं लगता था। अगर किसी कस्टमर के ठीक नहीं होने का शक होता तो उसके पीछे सिक्योरिटी का आदमी लग जाता और हर पल उसकी हरकतों पर नजर रखी जाती थी। रिसैप्शन के सामने ही बॉर एंड रैस्टोरेंट था। वहां पर कस्टमर अपना खाना-पीना कर सकता था। पूरे जुआघर में कस्टमर को व्हिस्की सर्व की जाती थी। रिसैप्शन की तरफ जाते रास्ते के बाद एक बहुत बड़ा हॉल आता था। जहां सौ से ऊपर जुए की मशीनें लगी हुई थी । हॉल के दो कोनों में दो काउंटर बने थे, जहां से खेलने वाला, पैसे देकर मशीनों पर खेलने के लिए टोकन ले सकता था । और बाद में टोकनों को वहां से ही कैश करा सकता था। शाम से ही अक्सर हॉल टूरिस्टों से भरा रहता। कोने में बार काउंटर मौजूद था। जहां से आप टाइम पास के लिए, आराम के लिए व्हिस्की, वोडका, स्कॉच के पैग ले सकते थे । उस हॉल के पास अन्य हॉल में जुआ कई रूपों में मौजूद था। जैसे कि कैरम बोर्ड का खेल। जैसे कि बोल को फेंककर छेद में डालना। निशानेबाजी, बिलियर्ड के अलावा दो लोग आपस में नोट रखकर कैसी भी शर्त लगा सकते हैं। किसी भी खेल की। इसके लिए एक तरफ बने काउंटर पर पर जाकर दोनों पार्टियों को पैसा जमा कराने पड़ते। अपने खेल के बारे में बताना पड़ता। तब उन्हें पैसों की रसीद मिलती और एक कर्मचारी उनके साथ जाता और रैफरी जैसा काम करके देखता कि कौन जीता, कौन हारा और जीतने वाले को, शर्त के अनुसार रकम दे दी जाती। इसमें कसीनो जीत की रकम में से पन्द्रह प्रतिशत सर्विस टैक्स के रूप में ले लेता था । जो कि कसीनो की कमाई होती थी। पयर्टकों के लिए यहां हर तरह के जुए का इंतजाम था। उससे आगे एक अन्य हॉल में, जो कि पहले वाले हॉल से बड़ा था, उसमें दो जगह बार काउंटर बने हुए थे। हॉल में जगह-जगह टेबलें बिछी थी। जिनके गिर्द कम-से-कम छः कुर्सियां और आठ कुर्सियां थी। ये ताश का जुआ था। यहां पर खिड़की ताश की कैसी भी गेम खेल सकते थे। वहीं पर मौजूद काउंटर पर खेलने के लिए कैश टोकन लेने पड़ते हैं । यहां पर कसीनो टोकन लेने वाले पांच प्रतिशत फीस के रूप में काटता था और जब टोकन कराए जाते तो दस प्रतिशत कसीनो अपने हिस्से की रकम काटता था। इस हॉल में लोगों को सीटें ही नहीं मिलती थी। उनकी बारी ही नहीं आती थी। पैंतालीस टेबलें थी जो कि हर शाम भर जाती। क्रिसमस और न्यू ईयर पर तो यहां साल भर की सबसे ज्यादा भीड़ होती और हर शाम करोड़ों रुपया इधर से उधर होता। कोई खाली होकर जाता तो कोई जीतकर । कसीनो को अपना हिस्सा मिल जाता था। कसीनो को मोटी कमाई जो जुए की मशीनों से होती, जहां लोग टोकन डालकर कर जुआ खेलते और अक्सर हारते ही थे। इन सब बातों के अलावा कसीनो के चप्पे-चप्पे पर सिक्योरिटी अपनी पैनी निगाह रखती थी । हर जगह सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे थे और कंट्रोल रूम से कैमरा द्वारा हर तरफ देखते नजर रखी जाती । कसीनो के प्रवेश द्वार से लेकर भीतर के हर कोने तक सिक्योरिटी के हथियारबंद आदमी फैले रहते। वो इस बात के प्रति हमेशा चौकस रहते कि कुछ बेवकूफ लोग हथियार के दम पर कसीनो की दौलत लूटने न आ जाएं।
ओम नाटियार ने जगमोहन को सब कुछ दिखाया।
इस वक्त वे ताश वाले जुआ हॉल में थे और चंद टेबलों पर ही अभी लोग मौजूद थे।
"अगले दो घंटों में सबकी टेबलें फुल हो जाएंगी ।" नाटियार बोला--- "पन्द्रह दिसम्बर के बाद तो पहली जनवरी तक जरा भी फुर्सत नहीं होती। ड्यूटी का कोई वक्त नहीं होता सिर्फ काम और काम ही होता है ।"
उसी हॉल में से जगमोहन को एक तरफ काले शीशे वाला एलमुनियम का दरवाजा दिखा, जिसके पास दो गनमैन खड़े थे। वो गनमैन हर तरफ से सतर्क लग रहे थे।
"वो दरवाजा कौन-सा है ?" जगमोहन ने पूछा ।
"उधर स्ट्रांग रूम है । नाटियार ने बताया--- "वहां हर किसी को जाने की इजाजत नहीं होती ।"
"स्ट्रांग रूम से मतलब ?"
"जुआघर में, रात में करोड़ों रुपए इकट्ठा हो जाता है। लोग पैसे देकर, टोकन लेते हैं जुआ खेलने के लिए। ऐसे में उन पैसे को सुरक्षा देना जरूरी हो जाता है। यहां-वहां तो रखा नहीं जा सकता। तब उस पैसे को कसीनो के स्ट्रांग रूम में रखा जाता है। क्रिसमस और न्यू ईयर पर तो यहां इतने लोग आते हैं कि पांव रखने की जगह नहीं होती। दिसम्बर का आखिरी सप्ताह मालिकों के लिए कमाई का होता है तो हम लोगों के लिए मुसीबत से भरा। सारे साल की मेहनत जैसे, दिसम्बर की आखिरी दस दिनों में ही होती है।"
"मैं स्ट्रांग रूम देख सकता हूं ।" जगमोहन बोला ।
"स्ट्रांग रूम के भीतर तो मैं नहीं जा सकता । वहां पर सिर्फ खास लोग ही प्रवेश पा सकते हैं ।" नाटियार ने कहा।
"तो क्या स्ट्रांग रूम की सुरक्षा पर वो दो लोग ही हैं ?"
"वहम में मत रहना । बहुत कड़ी सुरक्षा है। तुम अगर ये सोचते हो कि उस दरवाजे को खोलते ही सामने स्ट्रांग रूम है तो गलत सोचते हो। आसान नहीं है कि किसी का स्ट्रांग रूम पर पहुंच जाना। दो बार बेवकूफ लोग स्ट्रांग रूम तक पहुंचने की कोशिश कर चुके हैं, परंतु हमारे गार्डों ने उन्हें मार गिराया। बहुत तगड़ी सिक्योरिटी है उस तरफ। दिसम्बर की आखिरी सप्ताह हर रात तीस-चालीस करोड़ की रकम इकठ्ठी हो जाती है । कुछ ऐसे भी खिलाड़ी होते हैं जो अपने साथ लाने वाला पैसा कसीनो में जमा करा देते हैं और जरूरत के मुताबिक लेते रहते हैं। वो पैसा भी स्ट्रांग रूम में रखा जाता है समझो कि साठ करोड़ की रकम तो हर रात वहां होती ही है ।"
"ये तो बहुत बड़ी रकम है ।"
"रकम के हिसाब से ही सिक्योरिटी है । स्ट्रांग रूम में रखे पैसे को कोई नहीं ले जा सकता ।" नाटियार बोला ।
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