मधु अपने कमरे में अधलेटी सी बैठी थी । उसकी प्यारी बिल्ली किट्टी उसकी गोद में सिमटी हुई थी ।
उसी क्षण ड्राइंग रूम से टेलीफोन की घन्टी बजने की आवाज आई।
मधु ने अपने स्थान से उठने का उपक्रम नहीं किया । लेकिन जब कितनी ही देर बाद तक घन्टी बजनी बन्द नहीं हुई तो वह घर के नौकरों पर और अपनी चाची विद्या पर झुंझलाती हुई बड़े अनिच्छा पूर्ण ढंग से अपने स्थान से उठी । बिल्ली को उसने अपने कमरे के फर्श पर छोड़ दिया ।
“यहीं रहना ।” - वह बोली - “मेरे पीछे मत आना ।”
“मिआऊ ।” - उत्तर में बिल्ली बोली ।
मधु ड्राइंगरूम में आ गई । उसने टैलीफोन का रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और बोली - “हैलो ।”
“कौन बोल रहा है ?” - दूसरी ओर से एक भारी आवाज आई ।
“मधु” - मधु बोली - “आप कौन बोल रहे हैं ?”
“मधु क्या तुम मेरी आवाज नहीं पहचानती ?”
“नहीं ।” - मधु तनिक झुंझला कर बोली - “आप कौन बोल रहे हैं ?”
कुछ क्षण दूसरी ओर से कोई उत्तर नहीं मिला फिर कोई सतर्क स्वर में बोला - “मधु, तुम्हें अपने चाचा ईश्वर लाल की याद है ?”
“हां, हां, याद हैं । आप क्या कहना चाहते हैं उनके बारे में ?”
“मैं तुम्हारा चाचा ईश्वर लाल बोल रहा हूं ।”
मधु सन्नाटे में आ गई । उसका मुंह खुला का खुला रह गया ।
ईश्वर लाल !
ईश्वर लाल जो दस साल से गायब था और जिसके बारे में विद्या चाची के अलावा सब को विश्वास था कि उसका चाचा ईश्वर लाल कब का मर चुका था । अगर वह जीवित होता तो वह कम से कम मधु को अपने बारे में जरूर जानकारी देता जैसे कि उसने दस साल पहले एकाएक गायब हो जाने के दो तीन महीने बाद दी थी । उसे आपके चाचा ईश्वर लाल का श्रीनगर से भेजा एक पिक्चर पोस्टकार्ड मिला था जिस पर डल लेक का दृश्य अंकित था और जिसके दूसरी और ईश्वर लाल के हैंडराइटिंग में लिखा हुआ था ।
प्रिय मधु,
समय बहुत आनन्द से गुजर रहा है । तुम्हें शायद विश्वास न हो लेकिन यह हकीकत है । कि हमें सबसे ज्यादा मजा तैरने में आ रहा है ।
तुम्हारा चाचा
ईश्वर लाल
उस पत्र के बाद में मधु को अपने चाचा की कोई खोज खबर नहीं मिली थी । मधु का और मधु के दूसरे चाचा रोशन लाल का पूरा विश्वास था कि ईश्वर लाल मर चुका है लेकिन चाची विद्या कहती थी कि ईश्वर लाल जिन्दा है और वह उस से डरता है इसलिये न घर वापिस लौटता है और न अपनी खोज खबर देता है ।
विद्या की इस धारणा की वजह से मधु और रोशन लाल को बहुत नुकसान हो रहा था, ईश्वर लाल एक रईस आदमी था और दस साल पहले जब वह गायब हुआ था उस समय वह लाखों की चल और अचल सम्पत्ति का स्वामी था । ईश्वर लाल की वसीयत के अनुसार उसकी मौत के बाद उसकी सारी सम्पत्ति तीन भागों में बांटी जाने वाली थी । एक भाग मधु को मिलने वाला था दूसरा रोशन लाल को और तीसरा चाची विद्या को । लेकिन क्यों कि चाची विद्या यह बात हरगिज हरगिज मानने को तैयार नहीं थी कि उस का पति मर चुका है और ईश्वर लाल की मौत को सिद्ध करने का कोई साधन नहीं था इसलिये जायदाद का बंटवारा नहीं हो रहा था और विद्या सांप की तरह सारी जायदाद पर कुंडली मार कर बैठी हुई थी और रोशन को, विशेष रूप से मधु को, पैसे पैसे के लिये तरसा रही थी । अगर जायदाद का फैसला हो जाता तो मधु कम से कम दस लाख रुपये की चल अचल सम्पत्ति की स्वामिनी बन जाती लेकिन वर्तमान स्थिति में उसे अपनी छोटी से छोटी जरूरत के लिये भी चाची विद्या के सामने हाथ फैलाना पड़ता था ।
रोशन लाल विरासत की जायदाद का मधु जितना मोहताज तो नहीं था क्योंकि उसका छोटा मोटा बिजनेस था जिससे वह अपनी अकेली जान की खातिर प्रयाप्त पैसा कमा लेता था लेकिन फिर भी वह स्वयं को विरासत में मिलने वाली दौलत के लिये लालायित तो रहता ही था । हाल ही में उसने एक वकील से बात की थी और उसे मालूम हुआ था कि अगर कोई आदमी सात साल तक बिल्कुल गायब रहता है और उसके परिवार को उसकी हवा तक नहीं मिलती तो वह कानून की निगाहों में मृत माना जा सकता है । इस कानून की वजह से अब ऐसी स्थिति पैदा हो गई थी कि अब विद्या को अपने स्वर्गीय जेठ की लड़की मधु को और अपने देवर रोशन लाल को उनका हिस्सा देना ही पड़ना था । लेकिन अभी इस सिलसिले में कोई बात हुई ही नहीं थी कि विद्या के इस विश्वास को पुष्टि हो गयी थी कि उसका पति जहां भी था सही सलामत था ।
आज दस साल बाद खुद ईश्वर लाल टेलीफोन पर बोल रहा था ।
एकाएक मधु के मन में एक संदेह पनपा ।
इस बात का क्या प्रमाण था कि टेलीफोन पर दूसरी ओर से बोलने वाला आदमी ईश्वर लाल ही था ?
“क... क्या कहा आपने ?” - मधु सशंक स्वर से बोली ।
“मुधु बेटी, मैं ईश्वर लाल बोल रहा हूं ।” - वही प्यार भरी आवाज फिर सुनाई दी - “तुम्हारे आसपास कोई है तो नहीं ।”
“नहीं । मैं यहां अकेली हूं लेकिन आप... मेरे चाचा जी तो...”
“मैं मरा नहीं हूं । मैं इस वक्त सही सलामत राजनगर में मौजूद हूं और तुमसे टेलीफोन पर बात कर रहा हूं ।”
“लेकिन...”
“तुम्हें मेरी हकीकत पर संदेह हो रहा है न ?”
मधु हिचकिचाई ।
“इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है । वर्तमान स्थिति है ही संदेहजनक। अगर मैं तुम्हें दस साल पहले की कुछ ऐसी बातें बताऊं जो केवल तुम्हारे और मेरे से सम्बन्धित थी तो क्या तुम्हें विश्वास हो जायेगा कि मैं ईश्वर लाल ही हूं ।”
“मैं सुन रही हूं ।” - मधु सतर्क स्वर से बोली ।
“तुम्हें याद है जब तुम दस साल की थी तो तुम्हारे पास रूही नाम की एक काली बिल्ली हुआ करती थी । एक बार पड़ीसियों का कुत्ता तुम्हारी बिल्ली के पीछे पड़ गया था और उसी भाग दौड़ में बिल्ली किचन की चिमनी में गिर गई थी और मैंने उसे वहां से निकाला था ?”
“हां, याद है ।” - मधु उत्तेजित स्वर से बोली ।
“और उससे एक साल पहले एक बार तुम्हें बुखार हो गया था लेकिन तुम्हारी केक खाने की इच्छा हो रही थी और मैंने तुम्हारी चाची की निगाह बचाकर तुम्हें किचन में से चुरा कर केक लाकर दिया था ।”
“हां ।” - मधु मंत्रमुग्ध स्वर से बोली - “याद है ।”
“और जब तुम आठ साल से भी कम थी तो एक बार तुम ने गेंद मारकर अपनी चाची का सुनहरी मछलियों का शीशे का टैंक तोड़ दिया था । तुम्हारी चाची इतनी नाराज हुई थी कि वह अपनी छड़ी से तुम्हारी पिटाई करने वाली थी लेकिन उसी वक्त मैं गया था और मैंने तुम्हें बचाया था ?”
“हां ।”
“और तुम मुझे जबरदस्ती अपनी जूठी चाकलेट खिलाया करती थी ?”
“हां, हां । मुझे सब याद है । चाचा ची आप...”
“धीरे । धीरे । अब तुम्हें विश्वास हो गया कि मैं तुम्हारा चाचा ईश्वर लाल हूं ।”
“हां ।”
“जब तुमने मुझे आखिरी बार देखा था तब तुम दस साल की थी, अगर अब तुम मुझे देखो तो पहचान लोगी ?”
“पहचान लूंगी ।” - मधु विश्वासपूर्ण स्वर से बोली - “मुझे आपकी सूरत अच्छी तरह याद है, चाचा जी ।”
“वैरी गुड । तुम्हारी चाची घर पर है ?”
“है ।”
“उसे यह हरगिज भी मत बताना कि मैंने तुम्हें फोन किया था ।”
“लेकिन लेकिन क्यों ?”
“ये सब बातें मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा । मैं दस साल बाद इस शहर में लौटा हूं । मैंने बहुत से बखेड़े सुलझाने हैं और तुम्हें मेरी मदद करनी है।”
“मैं क्या मदद कर सकती हूं ?”
“तुमने ‘ब्लास्ट’ के रिपोर्टर सुनील कुमार चक्रवर्ती का नाम सुना है?”
“सुना है ।”
“मैं उससे मिलना चाहता हूं । तुम उससे सम्पर्क स्थापित करो और उसे सारी बात बता दो । आज रात को नौ बजे तुम उसे ब्लिस होटल लेकर आना । तुम्हें मालूम है ब्लिस होटल कहां है ?”
“नहीं ।”
“ब्लिस होटल रौनक बाजार में है । यह एक घटिया सा होटल है । रौनक बाजार पहुंच कर तुम्हें ब्लिस होटल तलाश करने में कठिनाई नहीं होगी ।”
“आप उस घटिया होटल में क्यों ठहरे हुये हैं चाचा जी ?” - मधु ने व्यग्र स्वर से पूछा ।
“मुलाकात होने पर मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगा । तुम ठीक नौ बजे सुनील के साथ वहां पहुंच जाना और हीरा नन्द नाम के आदमी के बारे में पूछना । हीरा नन्द तुम लोगों को मेरे पास ले आयेगा । समझ गयीं ?”
“समझ गयी ।”
“और इस विषय में सुनील के सिवाय किसी को कुछ मत बताना विशेष रूप में अपनी चाची को ।”
“अच्छा ! लेकिन चाचा जी आप ठीक तो हैं ?”
लेकिन उत्तर के स्थान पर दूसरी ओर से सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
उसी क्षण मधु के कानों में विद्या चाची की छड़ी की ठक ठक की आवाज पड़ी । विद्या की एक दुर्घटना में एक टांग काफी चोट खा गई थी । जिसकी वजह से वह छड़ी के सहारे बिना चल नहीं पाती थी ।
मधु ने जल्दी से रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
“किस का फोन था ?” - विद्या सन्दिग्ध स्वर से बोली ।
“ए... ए... एक स... सहेली थी ।” - मधु हड़बड़ा कर बोली ।
विद्या पैनी निगाहों से मधु को घूरती रही । मधु और नर्वस हो गई ।
“सहेली थी या सहेला था ।” - विद्या बोली ।
“नहीं आंटी, सहेली थी ।”
“तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो ?”
“नहीं तो... म... मैं तो जरा भी नहीं घबराई हुई ।”
विद्या की आंखों से सन्देह का छाया नहीं गई ।
मधु जबरन अपने चेहरे पर एक आश्वासनपूर्ण मुस्कराहट लाकर विद्या को देखती हुई अपने कमरे की ओर बढी ।
विद्या छड़ी ठकठकाती हुई उसके पीछे चल पड़ी ।
मधु अपने कमरे में आ गई ।
“आजकल तुम्हारे बहुत फोन आने लगे हैं ।” - विद्या बोली ।
“चाची, अगर तुम्हें मेरे फोन आने से एतराज है तो मैं अपनी सहेलियों से मना कर दूंगी कि वे मुझे फोन न किया करें ।”
“सहेलियों से नहीं, सहेलों से मना करो ।”
“मुझे कोई लड़का टेलीफोन नहीं करता है, आपको गलतफहमी हुई है ।”
“मुझे... अरे इस बिल्ली को क्या हो रहा हैं ?”
मधु की निगाह अपने आप किट्टी की ओर उठ गई और फिर उसके नेत्र फैल गये ।
बिल्ली फर्श पर बिछे कालीन पर पड़ी थी । उसकी रीढ की हड्डी अकड़ी हुई थी और पन्जे फैले हुए थे । उसके जबड़े कसे हुये थे और मुंह की कोरों से हल्की हल्की सफेद झाग निकल रही थी । उसका शरीर रह रहकर यूं झटका खा जाता था जैसे एकाएक उसे बिजली का तार छुआ दिया जाता हो ।
“किट्टी” - मधु आतंकित स्वर से बोली - “किट्टी को क्या हो रहा है ?”
“इसके पास मत जाओ” - विद्या तीव्र स्वर से बोली - “मुझे कोई गड़बड़ लग रही है ।”
लेकिन मधु ने चाची की बात नहीं सुनी । उसने मेज पर से मेजपोश खींच लिया और उसमें बिल्ली को लपेटने लगी ।
“क्या कर रही हो ?” - विद्या बोली ।
“मैं इसे डाक्टर के पास ले जा रही हूं ।”
उसी क्षण कमरे में रोशन लाल प्रविष्ट हुआ । रोशन लाल एक लगभग पैंतालीस साल का दुबला पतला आदमी था । वह विधुर था और उसके कोई औलाद भी नहीं थी । वह स्थायी रुप से एक होटल में रहता था और वहां कभी कभार आता था । उसके वहां आगमन का मुख्य उद्देश्य मधु से मिलना ही होता था । विद्या उसे कोई खास पसन्द नहीं थी और न ही विद्या को वह पसन्द था ।
“क्या हुआ ?” - वहां कोई गड़बड़ थी यह समझते उसे देर नहीं लगी।
“किट्टी को कुछ हो गया है” - मधु जल्दी से बोली - “मैं उसे डाक्टर के पास ले जा रही हूं ।”
“क्या हुआ है ?”
“पता नहीं ।”
“मेरी कार ड्राइव वे में खड़ी है । मेरे साथ चलो ।”
मधु ने बिल्ली को मेजपोश में लपेट कर अपनी गोद में ले लिया और चाचा रोशन लाल के साथ हो ली ।
विद्या अनिश्चित सी वहीं खड़ी रही ।
रोशन लाल की पुरानी सी फोर्ड गाड़ी ड्राइव वे में खड़ी थी । रोशन लाल ड्राइविंग सीट पर जा बैठा । मधु उसकी बगल की सीट में बैठ गई! बिल्ली को उसने गोद में लिटा लिया । बिल्ली का शरीर भयंकर झटके खा रहा था और वह बुरी तरह तड़प रही थी ।
कार चल पड़ी ।
एकाएक मधु को ख्याल आया कि बिल्ली के हंगामें में वह चाचा ईश्वर लाल की टेलीफोन काल को एकदम भूल गई थी । उसे यह बिल्कुल याद नहीं रहा था कि उसने ब्लास्ट के रिपोर्टर सुनील कुमार चक्रवर्ती से सम्पर्क स्थापित करना था ।
***
बिल्ली को एक जानवरों के डाक्टर के क्लिनिक में ले जाया गया । डाक्टर ने बीमार बिल्ली को अपने अधिकार में कर लिया और उन्हें बाहर वेटिंग रूम में बैठने के लिये कहा ।
मधु और रोशन लाल वेटिंग रूम के एक बैंच पर बैठ गये ।
“मैंने आज वकील से पक्की बात कर ली है ।” - एकाएक रोशन लाल बोला ।
“कौन सी बात ?” - मधु बोली ।
“वही जिसके बारे में मैंने तुम्हें पहले बताया था । ईश्वर लाल को गायब हुये दस साल हो गये हैं । वकील कहता है कि ऐसी स्थिति में सात साल बाद आदमी कानून की निगाह में मृत मान लिया जाता है । मैं आज विद्या से इसी विषय में बात करने गया था लेकिन तभी यह बिल्ली वाली घटना हो गई । वापिसी में मैं विद्या से बात करूंगा । अगर उसने वर्तमान स्थिति को चुपचाप स्वीकार करके सीधे से हमारा हक हमें देना स्वीकार नहीं किया तो कल या परसों तक मेरा वकील हम दोनों की ओर से उसे नोटिस सर्व कर देगा ।”
“लेकिन चाचा जी, विद्या चाची को तो पूरा विश्वास है कि बड़े चाचा जी जिन्दा हैं ।”
“उसके विश्वास से कुछ नहीं होता । अगर ईश्वर लाल जिन्दा है भी तो भी वह वर्तमान स्थिति में कानूनी तौर पर मृत समझा जायेगा और उसकी वसीयत के अनुसार उसकी जायदाद का बटवारा होगा ही ।”
“लेकिन...”
“लेकिन क्या ?”
“चाची जी” - मधु फट पड़ी - “बड़े चाचाजी सचमुच जिन्दा हैं ?”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“उन्होंने मुझे फोन किया था ।”
“क्या !” - रोशन लाल का मुंह खुला का खुला रह गया ।
“थोड़ी देर पहले कोठी पर उन्होंने मुझे फोन किया था ।”
“लेकिन यह कैसे हो सकता है ?”
“लेकिन यह हुआ है ।”
“वह जरूर कोई बहरूपिया होगा ।”
“वे ईश्वर लाल चाचा जी ही थे ।”
“विश्वास नहीं होता । दस साल तक एक आदमी ऐसा गायब रहे कि उसको तलाश करने की सब कोशिशे नाकामयाब हो जायें और फिर वह करिश्मे की तरह एकाएक कहीं से टपक पड़े ।”
मधु चुप रही ।
“फोन पर ईश्वर लाल ने क्या कहा था ?”
“उन्होंने मुझे कहा था कि मैं ‘ब्लास्ट’ के सुनील कुमार चक्रवर्ती नाम के रिपोर्टर से सम्पर्क स्थापित करूं और आज रात को नौ बजे रौनक बाजार में स्थित ब्लिस होटल में पहुंचू । वहां मैं हीरानन्द नाम के एक आदमी के बारे में पूछूंगा । फिर हीरा नन्द चाचा हमें बड़े चाचा जी के पास ले जायेगा ।”
“ब्लास्ट के रिपोर्टर से ईश्वर लाल का क्या वास्ता है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“मुझे तो इसमें कोई धोखाधड़ी दिखाई देती है । मेरे ख्याल से तो हमें सारी घटना की सूचना पुलिस को देनी चाहिये ।”
“बड़े चाचा जी ने कहा था कि इस बारे में मैं किसी को न बताऊं । आपको भी नहीं । हमारे पुलिस को सूचना देने से कोई गड़बड़ न हो जाये ।”
“तुम्हें पूरा विश्वास है कि तुमने ईश्वर लाल से ही बात की थी, किसी बहरूपिये से नहीं ?”
“जी हां ।”
“तुमने उसकी आवाज पहचान ली थी ।”
“आवाज तो नहीं पहचानी थी लेकिन मुझे इस विषय में कोई संदेह नहीं है कि मैंने टेलीफोन पर बड़े चाचा जी से ही बात की थी । उन्होंने मेरे बचपन की कुछ ऐसी घटनायें बयान की थी जिन की जानकारी किसी बाहरी आदमी को सम्भव नहीं ।”
“मुझे सारी बात सुनाओ ।”
मधु ने टेलीफोन पर हुआ सारा वार्तालाप शुरू से आखिर तक दोहरा दिया ।
रोशन लाल बेहद गम्भीर हो गया ।
“कमाल है !” - वह बोला ।
मधु चुप रही ।
“मेरी समझ में यह नहीं आता कि अगर ईश्वर लाल राज नगर लौट आया है तो वह सीधा घर क्यों नहीं आया, उस थर्ड क्लास होटल में क्यों गया ? और फिर उसने मुझे टेलीफोन क्यों नहीं किया ? मैं उसका सगा भाई हूं ।”
“शायद उन्होंने आपको टेलीफोन किया हो लेकिन आप से सम्पर्क स्थापित न हो सका हो ।”
“यह हो सकता है । और विद्या को उसने इसलिये फोन नहीं किया होगा क्योंकि विद्या उसकी वापिसी पर खुशी तो जाहिर क्या करेगी उल्टे उसकी जान खा जाती । तुम्हें यह बात शायद याद न हो, क्योंकि तुम उस समय केवल दस साल की बच्ची थी, कि आम धारणा यह थी कि ईश्वर लाल विद्या से दुखी होकर भागा था और उसके साथ कोई खूबसूरत नौजवान लड़की भी थी जिसके साथ उसका रोमांस चल रहा था और यह बात विद्या को भी मालूम है । ईश्वर लाल अगर विद्या को फोन करता तो विद्या तो फोन पर ही ईश्वर लाल का पलस्तर उखाड़ना शुरू कर देती । ...तुमने विद्या को इस बारे में कुछ बताया है ?”
“नहीं ।”
उसी क्षण डाक्टर ने वेटिंग रूम में कदम रखा ।
“बिल्ली को जहर दिया गया था ।” - वह गम्भीर स्वर से बोला ।
“अरे !” - रोशन लाल के मुंह से निकला ।
“अब कैसी है वह ?” - मधु ने व्यग्र स्वर से पूछा ।
“अब यह ठीक है और खतरे से बाहर है । उसके पेट से सारा जहर निकाला जा चुका है ।”
“लेकिन यह कैसे सम्भव है !” - मधु यूं बोली जैसे अपने आप से कह रही हो - “भला बिल्ली को कोई क्यों जहर देगा ?”
“और मेरी राय में बिल्ली का जहर खा जाना कोई दुर्घटना नहीं थी । उसको जान बूझ कर जहर दिया गया था । जहर की गोलियां दूध के पेड़ों में लपेट कर बिल्ली को डाली गई थी और बिल्ली अनजाने में उसे खा गयी थी । बिल्ली को आप लोग फौरन यहां ले आये थे इसलिये वह बच गई है क्योंकि सारा जहर अभी उसके पेट में घुला नहीं था ।”
“लेकिन उसे जहर दिया किसने ?”
“यह तो आप ही बेहतर जानती होंगी । किसी पड़ोसी को आप की बिल्ली से नफरत होगी और उसने उसे जहर देकर मार डालना चाहा होगा ।”
“लेकिन बिल्ली तो इस घटना के दौरान में घर से निकली ही नहीं ।”
“तो फिर...”
डाक्टर ने जान बूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
“तो फिर क्या ?”
“तो फिर घर के ही किसी आदमी ने...”
“नानसैंस !” - मधु डाक्टर की बात काट कर बोली - “घर में किसी को बिल्ली से इतनी नफरत नहीं है कि वह उसे जहर देकर मार डालने की कोशिश करे ।”
“तुम्हारी चाची को तुम्हारी बिल्ली नापसन्द है ।” - रोशन लाल बोला।
“नापसन्द है लेकिन चाची की बिल्ली से इतनी नफरत नहीं कि वह उसे जहर दे दे और वैसे भी विद्या चाची घर में डिक्टेटर की हैसियत रखती है । अगर उन्हें बिल्ली से इतनी नफरत होती तो वे वैसे ही कह देती कि मैं बिल्ली को कहीं दफा कर आऊं ।”
रोशन लाल चुप रहा ।
“बिल्ली की हालत तेजी से सुधर रही है” - डाक्टर बोला - “आप दो घन्टे बाद उसे ले जाइयेगा लेकिन मेरी राय में अगर आप उसे कुछ दिन घर से दूर रखें तो ज्यादा अच्छा होगा । क्यों कि सम्भव है घर में जिस आदमी ने बिल्ली को एक बार जहर देने की कोशिश की है, वह ऐसी कोशिश दुबारा भी करे ।”
“ठीक है” - मधु बोली - “हमारा माली काली चरण हमारी कोठी में नहीं रहता । वह बाहर से आता है । बिल्ली उससे हिली मिली भी हुई है। मैं कुछ दिन के लिये बिल्ली काली चरण को सौंप दूंगी ।”
“गुड आइडिया ।” - रोशन लाल बोला ।
“थैंक्यू वैरी मच, डाक्टर ।” - मधु बोली - “मैं दो घन्टे बाद आकर बिल्ली को ले जाऊंगी ।”
“ओके ।”
रोशन लाल और मधु क्लिनिक से बाहर निकल आये ।
“तुम तो अब सुनील से मिलने जाओगी ?” - रोशन लाल बोला ।
“मेरे साथ आप भी चलिये न ।” - मधु बोली ।
“मैं नहीं जा पाउंगा” - रोशन लाल खेदपूर्ण स्वर से बोला - “मुझे एक बहुत जरूरी काम है लेकिन रात दो बजे ब्लिस होटल के सामने मैं तुम्हें मिल जाऊंगा ।”
“अगर सुनील नाम के उस रिपोर्टर ने मेरे साथ ब्लिस होटल चलने से इन्कार कर दिया तो ?”
“मेरे ख्याल से ऐसा नहीं होगा । आखिर ईश्वर लाल ने कुछ सोच कर ही तुम्हें सुनील के पास जाने के लिये कहा होगा । शायद उसने सुनील से तुम्हारे बारे में पहले ही बात कर ली हो । अगर ऐसा नहीं भी हुआ होगा तो भी मुझे उम्मीद है वह इनकार नहीं करेगा । वह अखबार का रिपोर्टर है । सनसनीखेज खबरों की सूंघ में रहना उसका काम है । आज से दस साल पहले ईश्वर लाल राज नगर का बहुत प्रतिष्ठ‍ित आदमी था । उसका एकाएक गायब हो जाना आज तक लोगों के लिये है रानी का विषय बना हुआ है । सुनील दस साल से गायब आदमी से एकाएक मुलाकात का मौका आज कैसे छोड़ देगा ।”
“पता नहीं कैसा आदमी हो वह ?”
“कौन ? सुनील ?”
“हां ।”
“मैंने जिक्र सुना है उसका । अच्छा ही आदमी होगा । और फिर ‘ब्लास्ट’ एक बहुत प्रतिष्ठाप्राप्त अखबार है । हमें अपेक्षा करनी चाहिये कि उसके कर्मचारी भी भले ही होंगे ।”
“आप मेरे साथ नहीं चले सकते ?”
“सॉरी, बेबी । अगर मेरे पास वक्त होता तो मैं जरूर चलता और वैसे भी यह कोई ऐसा काम नहीं है जिसमें तुम्हें मेरी सहायता की जरूरत पड़े ।”
“आल राइट ।”
“तुम्हें पूरा विश्वास है कि बिल्ली कोठी से बाहर नहीं निकली थी ?”
“हां ।”
“उस वक्त घर पर कौन कौन था ?”
“चाची थी, नौकर था और रसोइया था ।”
“ऐसा हो सकता है कि कोई और आदमी घर में आया गया हो और तुम्हें खबर न लगी हो ?”
“हो सकता है ।”
उसी क्षण सड़क पर एक टैक्सी जाती दिखाई दी । रोशन लाल ने उसे रुकने का संकेत किया । टैक्सी रोशन लाल की कार के समीप आ रूकी ।
“ओके ।” - रोशन लाल अपनी कार का दरवाजा खोलकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया - “तुम टैक्सी ले लो ।”
“चाचा जी !” - एकाएक मधु व्यग्र स्वर से बोली ।
“हां ।”
“बड़े चाचा जी ने मुझे कहा था कि मैं उनके बारे में किसी से जिक्र न करूं और उन्होंने मुझे और उस रिपोर्टर को ही ब्लिस होटल में आने के लिये कहा था । लेकिन मैंने आपको सारी बात पहले ही बता दी है और आप नौ बजे ब्लिस होटल भी जाने वाले हैं । कहीं बड़े चाचा जी नाराज तो नहीं हो जायेंगे ?”
“अरे कुछ नहीं होगा” - रोशन लाल आश्वासनपूर्ण स्वर से बोला - “ईश्वर लाल मेरा सगा भाई है । वह मुझ से मिल कर खुश ही होगा । तुम किसी प्रकार की चिन्ता मत करो ।”
मधु ने बड़े अनिश्चयपूर्ण ढंग से सिर हिला दिया ।
रोशन लाल की कार आगे बढ गई ।
मधु भी टैक्सी में जा बैठी ।
***
ईश्चर लाल के राजनगर से गायब होने के मामले में शायद ही कोई ऐसी बात थी जो सुनील को पहले से नहीं मालूम थी । उन दिनों उसे ‘ब्लास्ट’ में नई नई नौकरी मिली थी और ‘ब्लास्ट’ के मालिक और चीफ एडीटर मलिक साहब को प्रभावित करने के लिये उसने उस रहस्य को सुलझाने की जी तोड़ कोशिश की थी लेकिन उसे उस सिलसिले में रंचमात्र भी सफलता प्राप्त नहीं हुई थी ।
ईश्वर लाल के गायब होने से सम्बन्धित तमाम बातें सुनील को जुबानी याद थी ।
ईश्वर लाल एक सफल और समृद्ध बिजनेस मैन था, समाज में उसकी प्रतिष्ठा थी और वह एक बड़ा ही सफल और संतोषजनक जीवन जी रहा था । दस जनवरी उन्नीस सौ साठ की रात को हमेशा की तरह उसने डाइनिंग रूम में अपनी पत्नी विदा और भतीजी मधु जो कि अपने पिता के मर जाने वजह से उसी पर आश्रित थी और उसी के साथ रहती थी - के साथ खाना खाया था । भोजन के बाद वह अपनी कोठी में ही बने अपने आफिसनुमा कमरे में चला गया था । उस रात उसके आफिस में कोई आदमी उससे मिलने आया था । उस आदमी के आगमन की कोठी में किसी और को खबर नहीं थी - नौकरों को भी नहीं क्योंकि किसी नौकर ने या घर के दूसरे आदमी ने उस आगन्तुक के लिये दरवाजा नहीं खोला था और उसे ईश्वर लाल तक नहीं पहुंचाया था । इससे जाहिर होता था कि ईश्वर लाल को उस आगन्तुक के आगमन की खबर थी और वह खुद ही उसे अपने आफिस तक लाया था । कोठी के एक नौकर ने एक आदमी को ड्राइव वे पर पैदल कोठी की ओर बढता तो देखा था लेकिन वह अच्छी तरह उसकी सूरत नहीं देख सका था लेकिन फिर भी उसने डरते डरते यह संदेह व्यक्त‍ किया था कि वह आदमी ईश्वर लाल का छोटा भाई रोशन लाल था । ईश्वर लाल के आफिस में ईश्वर लाल और उस आगन्तुक में होते वार्तालाप की आवाजें विद्या के कानों में भी पड़ी थी और उसका भी यही ख्याल था कि अपने पति की आवाज के अतिरिक्त जो दूसरी आवाज उसने सुनी थी वह रोशन लाल की थी । रोशन लाल से इस बारे में पूछा गया था तो उसने बड़े सबल शब्दों में कहा था कि उस रात तो वह अपने भाई की कोठी के पास फटका भी नहीं था ।
लेकिन आगन्तुक जो भी था, विद्या के कानों में पड़ी बातों से यह साफ जाहिर होता था कि आगन्तुक ईश्वर लाल से धन की मांग कर रहा था और ईश्वर लाल बड़े क्रोधित स्वर में उसे एक पैसा भी देने से इन्कार कर रहा था । ईश्वर लाल यह कहता सुना गया था कि अगर वह हर किसी को यूं रुपया उधार या दान देने लगे तो जल्दी ही वह खुद सड़क पर मूंगफली बेचता दिखाई देगा ।
उसके बाद विद्या ऊपरली मंजिल पर स्थित बैडरूम में चली गयी थी और फिर उसे या कोठी के किसी अन्य प्राणी को यह पता नहीं लगा था कि वह आगन्तुक कोठी से कब विदा हुआ ।
अगली सुबह ईश्वर लाल भी गायब पाया गया । दस जनवरी उन्नीस सौ साठ की उस रात के बाद ईश्वर लाल को किसी ने नहीं देखा । उसकी तलाश में उसके बिजनेस के सहयोगियों द्वारा, उसके सगे सम्बन्धियों द्वारा और यहां तक कि पुलिस द्वारा भी जमीन आसमान एक कर दिया गया था लेकिन किसी को भी ईश्वर लाल की हवा तक नहीं मिली थी । न ही ईश्वर लाल के गायब होने से सम्बन्धित किसी गड़बड़ या स्कैण्डल की गुंजायश दिखाई दी थी । ईश्वर लाल की मामूली से मामूली चीज भी कोठी से गायब नहीं थी, जो कपड़े वह डिनर के समय पहने हुये था, उन्हीं में वह गायब हो गया था । उसकी चैक बुक उसके आफिस की मेज की दराज में पाई गई थी और प्रत्यक्षत: वह अपने साथ रुपये पैसे के नाम पर कुछ भी नहीं लेकर गया था जबकि उसके गायब होने के समय उसके निजी बैंक एकाउन्ट में लगभग तीन लाख रुपये जमा थे । उस दिन के बाद से उस एकाउन्ट में से चालीस हजार रुपये के एक चैक के अलावा एक नया पैसा नहीं निकलवाया गया था और उस चैक के बारे में भी ईश्वर लाल ने उस रात को अपने एकाउन्टेट को फोन पर बता दिया था कि वह चालीस हजार रुपये का एक चैक काट रहा था ।
ईश्वर लाल के गायब होने के बाद लोगों ने कई अफवाहें उड़ायी थी, कई अटकलें लगायी थी और उन दिनों जिस अफवाह ने जब से ज्यादा हवा पकड़ी थी, वह यह थी कि ईश्वर लाल अपनी अधेड़ उम्र की झगड़ालू लंगड़ी बीवी से तंग आकर किसी जवान छोकरी के साथ भाग गया है । गायब होने के पांच छ: महीने पहले के अरसे में वह दो तीन बार एक नौजवान लड़की के साथ देखा भी गया था । ईश्वर लाल किसी लड़की के साथ ही भागा था, इस बात की पुष्टि ईश्वर लाल द्वारा अपनी भतीजी मधु को श्रीनगर से भेजे एक पिक्चर पोस्टकार्ड से भी होती थी जिस पर डाकखाने की पांच मई उन्नीस सौ साठ की मोहर थी । पिक्चर पोस्टकार्ड पर एक ओर डल लेक का दृश्य अंकित था और दूसरी ओर ईश्वर लाल के अपने हस्तलेख में लिखा था -
प्रिय मधु !
समय बहुत आनन्द से गुजर रहा है । तुम्हें शायद विश्वास न हो लेकिन यह हकीकत है कि हमें सबसे ज्यादा मजा तैरने में आ रहा है ।
तुम्हारा चाचा
ईश्वर लाल
यह बात निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुकी थी कि हस्तलेख ईश्वर लाल का ही था । उसने पत्र में लिखा था कि हमें सबसे ज्यादा मजा तैरने में आ रहा है । हमें शब्द का प्रयोग यह साफ जाहिर करता था कि श्रीनगर में ईश्वर लाल अकेला नहीं था । उसके साथ कोई और भी था जिसके साथ उसका समय बहुत आनन्द से गुजर रहा था । वह पत्र यह भी सिद्ध करता था कि गायब होने के लगभग छ: महीने बाद ईश्वर लाल श्रीनगर में था ।
उस पिक्चर पोस्टकार्ड के मिलते ही ईश्वर लाल की फौरन श्रीनगर में तलाश करवाई गई थी, लेकिन वहां ईश्वर लाल की या उसकी कथित सहयोगिनी की हवा भी नहीं मिली थी ।
बाद में ईश्वर लाल की एक वसीयत प्रकश में आई थी जिसके अनुसार ईश्वर लाल की सारी चल और अचल सम्प‍त्ति विद्या, मधु और रोशन लाल को बराबर-बराबर बांटी जाने वाली थी, लेकिन क्योंकि इस बात का कोई प्रमाण नहीं था कि ईश्वर लाल मर चुका है, इसीलिये उसका कोई फैसला नहीं हो रहा था और अब तक ईश्वर लाल की लाखों की सम्पत्ति विद्या के अधिकार में थी ।
और आज ईश्वर लाल एकाएक जैसे आसमान से टपक पड़ा था ।
मधु ने सुनील से बात की थी और सुनील ने सहर्ष मधु के साथ ब्लिस होटल जाना स्वीकार कर लिया था । वह तो खुद उत्कंठा से मरा जा रहा था और वह इसे भगवान का दिया वरदान समझ रहा था कि ईश्वर लाल ने किसी और अखबार के प्रतिनिधि से सम्पर्क स्थापित करने के स्थान पर सुनील से मिलने की इच्छा व्यक्त की थी । सुनील का ईश्वर लाल से कतई वास्ता नहीं था । उसने अपनी जिन्दगी में कभी ईश्वर लाल की सूरत नहीं देखी थी और यह उसके लिये काफी हद तक हैरानी का विषय था कि ईश्वर लाल उसे कैसे जानता था और उसने अपनी भतीजी को सुनील को अपने साथ लाने के लिये क्यों कहा था लेकिन उसे तो आम खाने से मतलब था न कि पेड़ गिरने से । उसे एक बेहद पेचीन्दे रहस्य का पर्दा उठाने का मौका मिल रहा था और अभी उसके अतिरिक्त उनके किसकी प्रतिद्वन्दी अखबार को किसी जमाने के राजनगर के उच्च समाज के सबसे बड़े आधार स्तम्भ ईश्वर लाल के जीवित राजनगर वापिस लौट आने की खबर तक नहीं थी ।
मधु ने उसे कहा था कि वह उसे ठीक पौने नौ बजे शंकर रोड़ के मोड़ पर मिल जायेगी ।
सुनील अपनी मोटर साईकिल पर शंकर रोड के मोड़ पर पहुंचा ।
मधु एक बिजली के खम्बे के साथ सटकर खड़ी थी ।
सुनील ने उसके समीप लाकर मोटर साइलिक खड़ी कर दी ।
मधु मुस्कराई ।
“मेम साहब !” - सुनील बोला - “आपको मोटर साईकिल की सवारी से कोई परहेज तो नहीं है ?”
“क्यों पूछा आपने ?” - मधु असमंजसपूर्ण स्वर में बोली ।
“इसलिये कि अगर आपको मोटर साईकिल की सवारी नागवार गुजरती हो तो मैं अपने इन साढे सात घोड़ों को यहीं बान्ध दूं और हम टैक्सी ले लें ।”
“आपने यह कैसे सोच लिया कि मुझे मोटर साईकिल की सवारी नागवार गुजरती होगी ?”
“क्योंकि मैंने सुना है कि केक और मक्खन खाकर पली हुयी औरतें कार के आधा फुट मोटे गद्दे पर पसर कर सफर करने में ही आराम महसूस करती हैं । मोटर साईकिल जैसी सवारी पर तो उनके ब्यूटी स्पेशलिस्टों को हजारों रुपये देकर बड़े सलीके से कसवाये हुये नट बोल्ट ढीले हो जाने का अन्देशा रहता है ।”
“मिस्टर सुनील !” - मधु एक गहरी सांस लेकर बोली - “मैं आपकी बातों से यह फैसला नहीं कर पा रही हूं कि आप आदतन मजाक पसन्द हैं या आदतन बदतमीज !”
“कुर्बान !” - सुनील बोला ।
“क्या फरमाया आपने ?”
“मैंने फरमाया है तशरीफ रखिये । मंजिल खोटी हो रही है ।”
मधु सुनील के पीछे मोटर साईकिल पर बैठ गई ।
सुनील ने मोटर साईकिल को दुबारा सड़क पर डाल दिया ।
“बुरा मत मानियेगा, मेम साहब !” - सुनील बोला - “मैंने अक्सर देखा है कि आप जैसी शानदार पैकिंग और पालिश और रख-रखाव वाली लड़कियां मोटर साईकिल को दफ्तर के क्लर्कों और असिस्टेन्टों की सवारी समझती हैं और इसे बड़ी हकारत की नजर से देखती हैं । बीस फुट लम्बी कार पर सवार होकर मेरे जैसे रिपोर्टर की बगल से सर्र से गुजर जाने वाली मेम साहबों की किस्म से मेरा यह पूछना जरूरी था कि उसे मोटर साईकिल की सवारी करने से जुकाम तो नहीं हो जायेगा।”
“आपने मुझे इस किस्म की मेम साहबों में कैसे शामिल कर लिया?”
“क्योंकि आप ईश्वर लाल की भतीजी हैं और राजनगर के रईसों के शंकर रोड नाम के उस इलाके में रहती हैं जहां वह आदमी गरीब समझा जाता है जो इम्पाला गाड़ी नहीं रख सकता ।”
“आप कोई ट्रेड यूनियनिस्ट तो नहीं हैं ?”
“नहीं ।”
“कम्यूनिस्ट ?”
“नहीं ।”
“लोक सभा के मिड-टर्म इलैक्शन में खड़े हो रहे हैं ?”
“नहीं ।”
“आपकी बातों से तो वर्ग संघर्ष और इंकलाब की बू आती है ।”
“मैं समझ गया ।”
“क्या ?”
“तुम बहुत अच्छी लड़की हो । शंकर रोड पर रहती हो फिर भी बहुत अच्छी लड़की हो और इसलिये मैं तुम्हें ‘आप’ और ‘मेम साहब’ कहना बन्द कर रहा हूं ।”
“शंकर रोड का जिक्र तो तुम यूं करते हो जैसे रंडी बाजार का जिक्र कर रहे हो ।”
“राम, राम ! कैसी भयंकर बातें करती हो । मैं शंकर रोड की हाई क्लास मेमों को रेडियों जैसा ‘ऊंचा’ मेरा मतलब है ‘नीचा’ दर्जा दे सकता हूं ।”
“तुम मेरी समझ से बाहर हो । या तो तुम कोई बहुत ही ऊंचे दर्जे के बुद्धिजीवी आदमी हो और या फिर...”
“या फिर क्या ?”
“कह दूं ?”
“बिल्कुल कह दो ।”
“छोड़ो ।”
“अब कह भी चुको ।”
“मैं तुम्हारे बारे में कोई भली बात कहने वाली नहीं थी ।”
“कोई हर्ज नहीं । मुझे गालियां सुनने का शौक है ।”
“विवाहित हो ?”
“नहीं ।”
“तो फिर गालियां सुनने का शौक कैसे पैदा हुआ ?”
“क्योंकि मैं जिस लड़की से शादी करने से इन्कार करता हूं, वही गालियां देने लगती है ।”
“और इन्कार क्यों करते हो ?”
“क्योंकि मुझसे शादी जैसे नाजुक विषय पर बात करने वाली लड़कियां अक्सर शंकर रोड पर रहने वाली होती हैं जिन्हें नाक साफ करना बाद में आता है और सैक्स की समझ पहले आ जाती है ।”
“तुम्हें एक राय दूं ?”
“बोलो ।”
“तुम किसी पांच साल की लड़की से शादी कर लो । उसके बाद उसे अपनी निगरानी में ही सब कुछ सिखाना । नाक साफ करना भी और...”
“और क्या ? तुम्हें बातें अधूरी छोड़ने की आदत मालूम होती है ।”
“अधूरी बात पूरी बात से ज्यादा दिलचस्प होती है ।”
“लेकिन...”
“रौनक बाजार आ गया और वह रोशन लाल चाचा जी की कार खड़ी है ।”
मधु के निर्देश पर सुनील ने मोटर साईकिल फुटपाथ के साथ लगाकर खड़ी एक पुरानी सी फोर्ड गाड़ी की बगल में खड़ी कर दी । फोर्ड की ड्राईविंग सीट पर रोशन लाल बैठा था । उन्हें देखकर वह कार से बाहर निकल आया । मधु ने सुनील और रोशन लाल का परिचय करवाया । दोनों ने हाथ मिलाया ।
“ब्लिस होटल सामने ही है ।” - रोशन लाल बोला ।
“अब नौ बज गये हैं ।” - सुनील अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर दृष्टिपात करता हुआ बोला - “आइये चलें ।”
रोशन लाल एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “मेरे ख्याल से मेरा जाना ठीक नहीं होगा । हीरा नन्द नाम का वह आदमी जिसके बारे में ईश्वर लाल ने फोन पर बताया था, केवल मधु और तुम्हारी अपेक्षा कर रहा होगा । मुझे साथ देखकर कहीं वह हमें ईश्वर लाल तक ले जाने से इन्कार ही न कर दे ।”
“मेरे ख्याल से तो हीरा नन्द ही ईश्वर लाल होगा ।” - सुनील बोला - “ईश्वर लाल ही हीरा नन्द के नाम से ब्लिस होटल में रह रहा होगा ।”
“अगर ऐसा हुआ तो तुम लोग उसे मेरे बारे में बताना कि मैं भी आया हुआ हूं । अगर मेरा भाई ठीक समझेगा तो मुझे बुला भेजेगा ।”
“और अगर हीरा नन्द ईश्वर लाल चाचा जी न हुये तो ?” - मधु बोली।
“तो फिर हीरा नन्द जहां तुम लोगों को ले जायेगा, वहां मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा । फिलहाल मैं यहीं कार में बैठा हूं ।”
“ओके ।”
सुनील और मधु आगे बढ गये ।
वे ब्लिस होटल की इमारत में प्रविष्ट हुये । एक सड़े से रिसैप्शन काउन्टर के पीछे रिसैप्शनिस्ट बैठा था ।
“यहां कोई मिस्टर हीरा नन्द ठहरे हुये हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां ।” - रिसेप्शनिस्ट बोला - “लेकिन इस वक्त वे होटल में नहीं हैं।”
“कहां गये हैं ?”
“मालूम नहीं ।”
“कब के गये हुये हैं वे ?”
“काफी देर हो गई है । दो तीन घंटे पहले भी एक आदमी उन्हें पूछता हुआ आया था, वे तब भी होटल में नहीं थे ।”
“वे यहां कब से ठहरे हुये हैं ?”
“साल से ज्यादा हो गया है ।”
“वे कहीं जाते हैं तो बता कर नहीं जाते ?”
“यह तो उनकी मर्जी पर निर्भर होता है । कभी बता जाते हैं, कभी नहीं बता कर जाते ।”
“उन्होंने हमें यहां नौ बजे मिलने का वक्त दिया था ।”
“रिसैप्शनिस्ट चुप रहा ।”
“कभी ऐसा भी होता है कि वे रात को वापिस लौटते ही नहीं ?”
“हो जाता है । कई बार हो जाता है, लेकिन अक्सर जब उन्हें रात को लौटना नहीं होता तो वे बताकर जाते हैं ।”
उसी क्षण काउन्टर पर रखे टेलीफोन की घन्टी बज उठी ।
रिसैप्शनिस्ट ने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और बोला - “ब्लिस होटल !”
कुछ क्षण रिसैप्शनिस्ट टेलीफोन सुनता रहा । बीच में एक दो बार उसने बड़े अर्थपूर्ण ढंग से सुनील की ओर देखा और फिर बोला - “एक मिनट लाईन होल्ड करिये ।”
उसने रिसीवर का माउथ पीस हाथ से ढक लिया और फिर सुनील से बोला - “आपका नाम सुनील है ?”
“हां ।”
“आपके नाम हीरा नन्द का सन्देश है कि उन्होंने कहा है कि उन्हें अफसोस है कि वे आपसे होटल में नहीं मिल सके लेकिन उन्होंने आपको फौरन नेपियन हिल पर स्थित कारपोरेशन की पानी की टंकी के समीप पहुंचने के लिये कहा है ।”
“लाइन पर हीरा नन्द है ?” - सुनील तीव्र स्वर से बोला ।
“नहीं कोई और आदमी है जो हीरा नन्द का संदेश दे रहा है ।”
“मेरी बात कराओ ।”
“लीजिये ।” - रिसैप्शनिस्ट ने रिसीवर सुनील की ओर बढा दिया ।
सुनील ने रिसीवर कान से लगाया और बोला - “हैलो...”
रिसीवर में डायल टोन आ रही थी ।
सुनील ने बुरा सा मुंह बनाया और रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
“लाइन कट चुकी थी ।” - सुनील बोला - “आओ मधु ।”
“हीरा नन्द के लिये मैसेज हो तो बता जाईये ।” - रिसैप्शनिस्ट बोला।
“कोई मैसेज नहीं है ।” - सुनील बोला ।
सुनील और मधु होटल से बाहर निकल गये ।
वे रोशन लाल की फोर्ड के पास पहुंचे ।
“क्या हुआ ?” - रोशन लाल से व्यग्र स्वर से पूछा ।
“हीरा नन्द होटल में नहीं है ।” - सुनील बोला - “और इस बात की सम्भावना भी दिखाई नहीं देती कि हीरा नन्द ही आपका भाई ईश्वर लाल है क्योंकि रिसैप्शनिस्ट के कथनानुसार हीरा नन्द तो ब्लिस होटल में एक साल से रह रहा है । अगर इतने अरसे से ईश्वर लाल राजनगर में रह होता तो उसकी लाख छुपने की कोशिश के बावजूद भी अब तक वह बीसियों लोगों द्वारा पहचाना जा चुका होता ।”
“अब ?”
“हीरा नन्द ने हमारे नाम संदेश भेजा है कि उसे ब्लिस होटल में हमसे ने मिल पाने का खेद है और हमें फौरन नेपियन हिल पर स्थित कारपोरेशन की पानी की टंकी के पास पहुंचना चाहिये ।”
“वह हमें वहां मिलेगा ?” - रोशन लाल संदिग्ध स्वर से बोला ।
“ऐसा ही मालूम होता है ।”
“लेकिन यह बखेड़ा क्यों ?”
“भगवान जाने । जहां हीरा नन्द ने हमें बुलाया है वह एक उजाड़ इलाका है । शायद ईश्वर लाल रौनक बाजार के भीड़भाड़ वाले इलाके में हमसे मिलने से घबरा गया हो । शायद वह न चाहता हो कि किसी अवांछित व्यक्ति को यह मालूम हो कि वह राजनगर लौट आया है ।”
“तुम्हारी राय में हमें नेपियन हिल पर जाना चाहिये ?”
“क्या हर्ज है ?”
“आल राइट ।” - रोशन लाल अपनी कार का इंजन स्टार्ट करता हुआ बोला - “मधु तुम मेरे साथ आ जाओ ।”
मधु हिचकिचाई । उसने विचित्र नेत्रों से सुनील की ओर देखा और फिर जाकर अपने चाचा की कार में बैठ गई ।
सुनील भी अपनी मोटर साईकिल पर सवार हो गया ।
वे लोग नेपियन हिल की ओर बढे ।
पन्द्रह मिनट में वे नेपियन हिल पर स्थित पानी की टंकी के समीप पहुंच गये । वह एक अन्धेरा और उजाड़ इलाका था ।
रोशन और मधु कार से बाहर निकल गये । सुनील भी मोटर साईकिल से उतरकर उनके समीप आ खड़ा हुआ ।
“यहां तो कोई भी नहीं है ।” - मधु बोली ।
“टंकी के पास एक कार खड़ी है ।” - सुनील बोला ।
“ड्राइविंग सीट पर कोई आदमी भी बैठा दिखाई दे रहा है ।” - रोशन लाल बोला ।
“हीरा नन्द !” - सुनील ने जोर से आवाज लगाई ।
टंकी के पास खड़ी कार में बैठी आकृति के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई ।
कोई प्रतिक्रिया नहीं ।
“चाचा जी !” - मधु जोर से बोली ।
“तुम्हारे पास टार्च है ?” - एकाएक सुनील रोशन लाल से बोला ।
“है ।” - रोशन लाल बोला । वह अपनी कार में से टार्च निकाल लाया।
सुनील ने टार्च जलाई और उसके प्रकाश में टंकी की ओर बढा । रोशन और मधु उसके पीछे हो लिये ।
वे कार के समीप पहुंचे ।
सुनील ने टार्च का प्रकाश कार के भीतर डाला ।
मधु के मुंह से हल्की सी चीख निकल गई ।
कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा आदमी स्टेयरिंग व्हील पर पड़ा हुआ था । उसकी एक बांह नीचे लटकी हुई थी और दूसरी स्टेयरिंग व्हील से लिपटी हुई थी । उनकी बांयी कनपटी में एक सुराख दिखाई दे रहा था जो रिवाल्वर की गोली से ही पैदा हो सकता था । उस सुराख से निकले खून से उसकी बांयी ओर का सारा चेहरा खून से लथपथ था ।
“क्या यह आपका भाई ईश्वर लाल है ?” - सुनील ने रोशन लाल से पूछा ।
“नहीं...।” - रोशन लाल कंपित स्वर से बोला ।
“श्योर ?”
“श्योर ।”
“यह हीरा नन्द हो सकता है ।” - मधु धीमे स्वर में बोली ।
“यह कोई भी हो सकता ।” - सुनील बोला - “हम लोग हीरा नन्द को पहचानते नहीं हैं ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“मैं पुलिस को फोन करके आता हूं ।” - सुनील निर्णयात्मक स्वर से बोला - “तब तक आप लोग अपनी कार में जाकर बैठिये । और मधु तुम्हारी कोठी का नम्बर क्या है ?”
“क्यों ?”
“शायद ईश्वर लाल ने तुम्हें कोठी पर फिर फोन किया हो और तुम्हारे लिये कोई सन्देश छोड़ा हो ।”
मधु ने नम्बर बता दिया ।
सुनील ने पेन निकाल कर नम्बर अपने बांये हाथ की हथेली पर लिखा लिया ।
सुनील वापिस आकर अपनी मोटर साइकिल पर सवार हो गया । सबसे नजदीक टेलीफोन वहां से आधा मील दूर पैट्रोल पम्प पर था ।
सुनील पैट्रोल पम्प पर पहुंचा ।
उसने पुलिस हैडक्वार्टर का नम्बर डायल कर दिया । दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह बोला - “मैं सुनील कुमार चक्रवर्ती बोल रहा हूं । मैं ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर हूं । मैं एक हत्या की सूचना देना चाहता हूं ।”
“हत्या किसकी हुई है ?” - दूसरी ओर से किसी ने तीव्र स्वर में पूछा।
“मालूम नहीं ।”
“लाश कहां है ?”
“नेपियन हिल पर पानी की टंकी के पास एक बार में पड़ी है ।”
“पुलिस वहां पहुंच रही है । आप वहीं रहियेगा ।”
“ओके ।”
सुनील ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।
फिर उसने मधु का बताया नम्बर डायल किया ।
उत्तर में दूसरी ओर से एक पुरुष स्वर सुनाई दिया ।
“कौन बोल रहा है ?” - सुनील अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
“मैं भागी राम बोल रहा हूं, साहब ।” - दूसरी ओर से वही पुरुष स्वर आदरपूर्ण ढंग से बोला ।
“तुम कौन हो ?”
“नौकर हूं साहब ।”
“सुनो, मुझे मधु मेम साहब ने फोन करने के लिये कहा था । क्या उनका कोई फोन आया था ?”
“नहीं साहब ।”
“शायद फोन किसी और ने सुना हो और...”
“कोठी में इस वक्त मेरे सिवाय कोई और है ही नहीं साहब ।”
“कहां गये सब लोग ?”
“बड़ी बीवी जी की तबियत एकाएक खराब हो गई थी । वे लोग उन्हें विक्टोरिया अस्पताल ले गये हैं ।”
“तुम विद्या जी की बात कर रहे हो ?”
“जी हां ।”
“क्या हुआ उन्हें ?”
“पता नहीं । एकाएक ही उनकी तबियत बेहद खराब हो गई थी । मुझे तो साहब, ऐसा लग रहा था जैसे...”
“जैसे क्या ?”
“कुछ नहीं साहब ।”
“अरे बोलो ।” - सुनील डपट कर बोला ।
“जैसे उन्हें जहर दिया गया हो ।” - नौकर फट पड़ा ।
“यह कब की बात है ?”
“लगभग सवा नौ बजे की ।”
“ओह !”
“आप कौन बोल रहे हैं, साहब ?”
सुनील ने धीरे से रिसीवर को हुक पर टांग दिया ।