महाजन ने कार रोकी और इंजन बंद किया। सामने कॉफी शॉप थी ।
"बेबी।" महाजन दरवाजा खोलते बोला--- "कॉफी लेते हैं। मैं यहीं पर कॉफी लेकर आता हूँ। जल्दबाजी में गलत फैसला नहीं लेना है हमें। पारसनाथ जो कह रहा है, उस पर भी गम्भीरता से सोचना चाहिये। इसकी बात में भी दम हो सकता है। मुझे तो पारसनाथ की बात जंच रही है, लेकिन इसका ये भी मतलब नहीं कि तुम गलत हो। आगे जो भी करना है सोच-समझ कर करना है।" कहने के साथ ही महाजन कॉफी शॉप की तरफ बढ़ गया।
मोना चौधरी आगे वाली सीट पर बैठी थी।
पारसनाथ पीछे वाली सीट पर था। उसने दरवाजे का आधा शीशा नीचे किया और सिग्रेट सुलगा ली। शांत बैठा कश लेने लगा। मोना चौधरी ने पुश्त से सिर टिकाकर आँखें बंद कर ली थी।
महाजन के वापस आने तक दोनों में कोई भी बात नहीं हुई। दोनों के चेहरों पर सोचें दौड़ती दिख रही थी। महाजन आया तो तीन कॉफी लिए हुए था। उसने मोना चौधरी और पारसनाथ को एक-एक कॉफी का गिलास दिया और तीसरा गिलास खुद थामे ड्राइविंग सीट पर आ बैठा। दरवाजा बंद कर लिया। घूंट भरा।
"क्या फैसला लिया?" महाजन ने मोना चौधरी को देखा।
मोना चौधरी चुप रही।
महाजन ने गर्दन मोड़कर पीछे बैठे पारसनाथ को देखा।
"तुम कहो।"
"इस मामले में मुझे देवराज चौहान जरा भी कसूरवार नहीं लगता।" पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा--- "सब कुछ कठपुतली की वजह से हुआ। विलास डोगरा ने अब्दुल्ला से कठपुतली नाम का खतरनाक नशा तैयार करवाया और देवराज चौहान और जगमोहन को धोखे से पिला दिया। उसके बाद देवराज चौहान और जगमोहन को कुछ भी होश नहीं रहा कि वे क्या कर रहे हैं? ये हालत उनकी तीन दिन तक रही। उन तीन दिनों में, दोनों ने मुम्बई अंडरवर्ल्ड किंग पूरबनाथ साठी की हत्या की और मोना चौधरी की जान के पीछे भी पड़े। मोना चौधरी को पाने के लिये, देवराज चौहान और जगमोहन ने तुम्हें और राधा को बंधक बना लिया। उस कठपुतली नाम के नशे की वजह से दोनों तीन दिनों तक बहुत हिंसक रहे। इस पर मुझे एतराज नहीं। परन्तु उनसे ये सब कुछ विलास डोगरा करा रहा था, जो पर्दे के पीछे आराम से बैठा सब कुछ देखता रहा और---।"
"तुम्हें कैसे पता कि विलास डोगरा---।"
"मैं पहले ही बता चुका हूं कि मैं अब्दुल्ला से मिल चुका हूँ और उसके मुँह से सब कुछ निकलवा लिया। अब्दुल्ला का कहना है कि कठपुतली नाम के नशे का सेवन करते वक्त, जिस मुद्दे पर बात की जा रही हो, कठपुतली का असर शुरू होने पर वो ही मुद्दा दिमाग पर सवार रहता है और फिर उसी पर चलने लगता है। देवराज चौहान और जगमोहन को जब धोखे से कठपुतली नाम के नशे का सेवन कराया जा रहा था तो विलास डोगरा तब उनसे पूरबनाथ साठी को खत्म करने और मोना चौधरी को खत्म करने की बात कर रहा था। इसी कारण...।"
“ये बात तेरे को अब्दुल्ला ने बताई?" महाजन ने पूछा।
“हाँ। इसी कारण कठपुतली नाम के नशे की गिरफ्त में आते ही देवराज चौहान और जगमोहन, पूरबनाथ साठी और मोना चौधरी को मारने निकल पड़े। पूरबनाथ साठी उनके हाथों मारा गया। परन्तु मोना चौधरी ने खुद को किसी तरह बचा लिया, हालांकि देवराज चौहान और जगमोहन ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी मोना चौधरी को मारने की। परन्तु यह सब कुछ कठपुतली ही करा रही थी उनसे। उन्हें नहीं होश था कि वो क्या कर रहे हैं। अब होश आया तो वो नहीं जानते कि बीते तीन दिनों में उन्होंने क्या-क्या किया। ये कठपुतली की खासियत है कि नशा उतरने के पश्चात् कुछ भी याद नहीं रहता कि नशे में उन्होंने क्या-क्या किया।" पारसनाथ गम्भीर स्वर में कह रहा था--- "अब नशा उतरने के बाद उन्होंने जरूर पता कर लिया होगा कि नशे में उन्होंने क्या-क्या किया। उनके साथ हरीश खुदे नाम का आदमी भी रहा। खुदे से उन्हें काफी कुछ पता चल गया कि वो क्या कर बैठे हैं। यही वजह है कि वो होश आने के बाद से छिपे बैठे हैं। बीते दो-तीन दिनों से उनकी कोई हवा भी नहीं मिली। ये जुदा बात है कि अब बिल्ले ने एक करोड़ रुपया लेकर बता दिया है कि वो उसके घर में ही छिपे बैठे हैं।" ये सब बातें जानने के लिए अनिल मोहन का उपन्यास 'सबसे बड़ा गुण्डा' पढ़ें। "परन्तु मुझे देवराज चौहान और जगमोहन किसी भी तरफ से कसूरवार नहीं लगते। ये सारा खेल विलास डोगरा का है। मोना चौधरी ने खुद माना है कि विलास डोगरा ने, दुबई से बंदा उठवा लाने का सौदा किया परन्तु फिर ये काम पूरबनाथ साठी के हवाले कर दिया था । विलास डोगरा को इससे बेइज्जती महसूस हुई और उसने देवराज चौहान और जगमोहन द्वारा ये खेल, खेल डाला। यानी कि सारा किया-धरा विलास डोगरा का है, देवराज चौहान और जगमोहन निर्दोष हैं।"
महाजन के चेहरे पर गम्भीरता नज़र आ रही थी। उसने मोना चौधरी को देखा।
मोना चौधरी के चेहरे पर कठोरता थी।
कार में चंद पल सन्नाटा छाया रहा।
"बेबी, तुमने पारसनाथ की बात सुनी। अगर इसकी बातें सच हैं तो तुम्हें ये सोचकर देवराज चौहान और जगमोहन का पीछा छोड़ देना चाहिये कि तब वो कठपुतली के नशे की गिरफ्त में थे और उन्हें नहीं पता कि वो क्या कर रहे थे। उनके पीछे बैठा विलास डोगरा ये सब खेल खेल रहा था। हमें विलास डोगरा की गर्दन पकड़नी... ।"
"मुझे देवराज चौहान और जगमोहन ने मारने की कोशिश की।" मोना चौधरी कठोर स्वर में बोली।
"वो तो ठीक है परन्तु ।”
“तुम्हें और राधा को भी वे मारने जा रहे थे। ये बात क्यों भूलते...।"
“मैं कुछ भी भूला नहीं हूँ परन्तु पारसनाथ की बात में दम है। पारसनाथ ने जो कहा है, अपनी तसल्ली करने के बाद ही कहा है। इसकी बात को हम हवा में नहीं उड़ा सकते। तुम चाहो तो एक बार अब्दुल्ला से बात कर लो।"
"मुझे पारसनाथ की बात पर भरोसा है।" मोना चौधरी होंठ भींचे कह उठी।
"तो समस्या कहाँ है...।"
"मुझे देवराज चौहान ने मारना चाहा, विलास डोगरा ने नहीं... वो...।"
"तब देवराज चौहान और जगमोहन कठपुतली नाम के नशे की गिरफ्त में...।"
"तो उन्हें भूल जाऊँ?" मोना चौधरी गुर्रा उठी।
"भूलना ही ठीक होगा। क्योंकि वे खुद नहीं जानते कि उन तीन दिनों में उन्होंने क्या किया।"
"वे दोनों निर्दोष हैं।" पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।
“वो दोनों तब तुम्हारे पास भी आये थे पारसनाथ।" मोना चौधरी बोली।
“हाँ। तब तुमने उनकी हालत नहीं देखी। मैंने देखी थी। उनकी लाल सुर्ख आँखें, होंठों पर गालियाँ, मरने-मारने पर आमादा थे। तब मुझे नहीं पता था कि कठपुतली नाम का नशा उन्हें नचा रहा है। पता होता तो एक-दो दिन के लिए उन्हें रैस्टोरेंट में ही कैद कर लेता और वो ठीक हो जाते। पारसनाथ गम्भीर स्वर में कह रहा था--- “अब बिल्ला को एक करोड़ देकर तुम्हें ये तो पता चल गया है कि वो बिल्ला के एक कमरे वाले घर में छिपे पड़े हैं। परन्तु मैं इस हक में ज़रा भी नहीं हूँ कि तुम उन्हें कुछ कहो।"
"मेरे चुप बैठने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।" मोना चौधरी ने दाँत भींचकर कहा--- "बिल्ला ने एक करोड़ में ये खबर देवेन साठी को भी बेची है। देवेन साठी उन्हें नहीं छोड़ेगा।"
“मैं देवेन साठी को तो नहीं समझा सकता, परन्तु तुम्हें समझा सकता हूँ। अब देवराज चौहान और जगमोहन के मामले में मैं तुम्हारे साथ नहीं हूँ। क्योंकि उनकी कोई गलती नहीं है। ये सब किया-धरा विलास डोगरा का है। अगर तुम विलास डोगरा की तरफ बढ़ो तो मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूँ।"
"विलास डोगरा कभी भी नहीं मानेगा कि उसने ऐसा कुछ किया है।" मोना चौधरी बोली।
"वो बेशक ना माने। परन्तु हम तो जानते हैं कि देवराज चौहान और जगमोहन को नचाने के पीछे वो है। उसे ढूंढो और खत्म कर दो। हमारा असली शिकार वो ही है।" पारसनाथ ने कहा।
"ये बात तो अब तक देवराज चौहान और जगमोहन को भी पता लग गई होगी कि विलास डोगरा ने गड़बड़ की है।" महाजन ने कहा--- "अगर उन्हें मौका मिले तो वो विलास डोगरा को नहीं छोड़ेंगे।"
“शायद उन्हें मौका ना मिले।" पारसनाथ गम्भीर था--- "देवेन साठी आज ही उन दोनों को निपटा देगा। इस वक्त वो उन्हें मारने की तैयारियाँ कर रहा होगा। उसके आदमी उस इलाके में पहुंचने शुरू हो गये होंगे जहाँ वे दोनों मौजूद हैं।"
"ये गलत हो रहा है।" महाजन कह उठा।
"पर हम देवेन साठी को ये बात नहीं समझा सकते ।" महाजन ने मोना चौधरी से कहा।
"तुम्हें पीछे हट जाना चाहिये बेबी। वो दोनों निर्दोष हैं और अब तो देवेन साठी उन्हें घेर रहा है। तुम कुछ मत करो। देखें वहाँ पर आज क्या होता है। देवेन साठी इस समय बेकाबू हो रहा होगा।"
मोना चौधरी के होंठ भिंचे रहे।
पारसनाथ ने नई सिग्रेट सुलगा ली।
खामोशी रही कार में।
"अगर तुम मेरी बात से सहमत नहीं हो तो मैं अभी कार से बाहर निकलने जा रहा हूँ।" पारसनाथ बोला--- "फिर इस मामले में तुम जो भी करो। उससे मेरा कोई मतलब नहीं होगा।"
मोना चौधरी ने गर्दन घुमा कर पारसनाथ से कहा।
"तुम गलत कर रहे हो।"
"तुम्हें मेरी बात मान लेनी चाहिये कि देवराज चौहान और जगमोहन निर्दोष...।"
"मान ली।" मोना चौधरी एकाएक कह उठी।
पारसनाथ ने गहरी सांस ली। बोला।
"अब ठीक है, हमें विलास डोगरा की गर्दन पकड़नी है। मैं तुम्हारे साथ इस काम में...।"
"पहले देवराज चौहान का हाल देखो। वो देवेन साठी के हाथों से बचने वाला नहीं।" मोना चौधरी बोली ।
"इस बारे में देवेन साठी से बात करके देखें।" महाजन कह उठा।
"कोई फायदा नहीं।" पारसनाथ ने इन्कार में सिर हिलाया--- "देवराज चौहान और जगमोहन के हाथों उसका भाई पूरब नाथ साठी मारा गया है। वो अपने भाई की मौत का बदला लेकर रहेगा।"
"लेकिन हमें ये तो देखना चाहिये कि बिल्ला के घर पर आज होता क्या है।" महाजन बोला--- "वैसे मुझे नहीं लगता कि देवराज चौहान और जगमोहन बचेंगे। देवेन साठी पागल हुआ पड़ा है और उसके पास ताकत भी है।"
“वहां चलते हैं। परन्तु हम इस मामले में दखल नहीं देंगे।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
इनकी कार से सौ कदम पीछे....
■■■
कार में बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव मौजूद थे, जो इन पर तब से निगाह रखे हुए थे जब मोना चौधरी माटुंगा के मेन चौराहे के पास, बस स्टॉप पर बिल्ला से मिली थी और उसे एक करोड़ देकर, देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे के बारे में जानकारी ली थी कि वो इस वक्त कहाँ छिपे हुए हैं।
"बाप।" रुस्तम राव सामने वाली कार पर नज़रें टिकाये बोला।
"कह दे छोरे ।"
“आपुन की समझ में नेई आईला कि वो तीनों क्या करेला ।" रुस्तम राव ने कहा।
"कॉफी पियो हो वो तीनों। महाजनों उधरो सो कॉफी लाकर दयो हो उन्हें।"
"आपुन का मतलब वो नेई होईला। मतलब होईला कि सड़क किनारे कार में बैठ कर कॉफी पीने का क्या मतलब होईला। आपुन की समझ में ये बात नेई आईला बाप। माटुंगा बस स्टॉप पर उसे (बिल्ला) ब्रीफकेस क्यों देईला। कोई चककर होईला बाप। इधर आपुन की समझ में नेई आईला।" रुस्तम राव गम्भीर था।
बांके ने अपने हाथ की उंगली मूंछ को लगाई ।
"छोरे। महारे को तो लागे हो कि यो तीनों किसी गम्भीर विषयों पर बातों करो हो।”
"आपुन भी येई सोचेला ।"
"ऐसो गम्भीर विषयो कि फैसलो भी तुरन्त-फुरन्त करनो होवे। सड़कों पर कॉफी पीनो का तो यो ही मतलब हौवे।"
“अब आपुन क्या करेला ?"
"महारे को तो बहणो बोल्लो हो कि पारसनाथो और महाजनो को उठाना हौवे। पण यो मोननो चौधरो साथो चिपके हो तो कामो कैसे हौवे। थारे दिमाग में कोईयो प्लॉन हौवे का?"
"आपुन दीदी (नगीना) को पोज़िशन बता के बात करेला।" रुस्तम राव ने फोन निकाला।
"कर लयो बातो। बहणो (नगीना) बोल्लो हो कि पारसनाथो और महाजनो पर हाथ डालनो का मौको बढ़िया मिल्लो तो तब उसे फोन करो हो। वो खुदो आवे महारे पास, इस कामो के वास्ते...।"
रुस्तम राव ने नम्बर मिलाया और फोन कान से लगा लिया।
दूसरी तरफ बेल जाने के बाद नगीना की आवाज कानों में पड़ी।
"हैलो।"
"दीदी। आपुन रुस्तम।" रुस्तम राव ने कहा--- "इधर मौका नहीं मिलेला उन पर हाथ डालने का।"
"क्या पोजिशन है?" उधर से नगीना ने पूछा।
रुस्तम राव ने सब कुछ बताया।
कुछ पलों की चुप्पी के बाद नगीना की आवाज कानों में पड़ी।
“मोना चौधरी ने किस आदमी को ब्रीफकेस दिया था। उसे पहले देखा है कभी?"
"नेई दीदी ।"
"ब्रीफकेस में क्या हो सकता है?"
"आपुन को तो ब्रीफकेस में नोट लगेला । ख्याल है ये आपुन का।"
"तुम दोनों उनके पीछे लगे रहे। वो क्या करते हैं, बताते रहना और जब महाजन और पारसनाथ पर हाथ डालने को मौका सही हो तो मुझे तुरन्त फोन कर देना।" उधर से नगीना ने कहा और फोन बंद कर दिया था।
"बाप, दीदी कहो, इन पर नज़र रखेला ।”
"नज़रों तो उनहों पर ही टिको हौवे।" बांके का हाथ मूंछ पर पहुँचा।
"देवराज चौहान बुरा फंसेला ।"
"बोत बुरो फंसो हो वो दोनों। महारे को तो बचते ना दिखो हो।" बांके लाल राठौर ने गहरी सांस ली--- "वो उधर से चलेला है बाप।"
मोना चौधरी वाली कार को उन्होंने वहाँ से आगे बढ़ते देखा ।
बांके ने फौरन कार स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी। पुनः पीछा शुरू हो गया।
“सतर्कता से बाप।” रुस्तम राव बोला--- “आपुन के पीछा करने का उन्हें पता लगेला तो पंगा खड़ा होईला ।"
"पंगो हौवे तो अंम सब को 'वड' दयो छोरे ।" बांकेलाल राठौर का स्वर सख्त हो गया था।
■■■
नगीना ने फोन बंद किया तो सोहनलाल और सरबत सिंह की निगाह उसने अपने पर पाई। ये जगह सरबत सिंह का घर था और देवराज चौहान ने सरबत सिंह को फोन करके, नगीना की सहायता करने के लिए कहा था, जिसकी एवज में सरबत सिंह इस वक्त नगीना के साथ, उसकी सहायता के लिए मौजूद था।
"रुस्तम था।" नगीना बोली--- "वो बांके के साथ मिन्नो और महाजन, पारसनाथ के पीछे हैं।" कहने के साथ ही नगीना वहाँ से निकलकर अन्य कमरे में पहुंची जहाँ पाटिल बंधा पड़ा था।
"मुझे इस प्रकार बंधे हुए बहुत तकलीफ हो रही है।" पाटिल कसमसाकर कह उठा।
नगीना शांत भाव से उसे देखती रही।
"मुझे इस तरह बांधने से क्या फायदा?" पाटिल पुनः बोला।
"तुम देवेन साठी के खास आदमी हो और देवराज चौहान को मारने के लिए उसे ढूंढ रहे हो और देवराज चौहान मेरा पति है। इसलिए तुम्हारा अपहरण करवा कर, तुम्हें यहाँ रखना पड़ा।” नगीना ने सामान्य स्वर में कहा--- "तुम्हें इस बात पर खुशी होनी चाहिये कि हमने तुम्हारी जान ना लेकर, तुम्हें संभाल रखा है।"
पाटिल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। फिर बोला ।
"देवेन साठी की पत्नी के साथ तुमने क्या किया?"
"तुम्हें कैसे पता कि हमने उसके साथ कुछ किया है।"
"कल दोपहर को मैंने उसे यहाँ देखा था। वो उसकी पत्नी आरु ही है ना?"
“हाँ। वो देवेन साठी की पत्नी आरु ही है। देवेन साठी के दोनों बच्चे गुंजन और अर्जुन भी यहाँ है।"
पाटिल व्याकुल सा नगीना के खूबसूरत चेहरे को देखने लगा।
"क्या देख रहे हो तुम?" नगीना कह उठी।
"तुम बहुत खतरनाक खेल, खेल रही हो। क्या तुम इस खेल के काबिल हो?"
"पूरी तरह।"
"देवेन साठी को तुम ठीक से जानती नहीं, वो।"
"देवेन साठी इन्सान ही है ना?" नगीना बोली--- "मैं इन्सानों को अच्छी तरह जानती हूँ। वो कितने भी ताकतवर हों, परन्तु कहीं ना कहीं आकर वो कमजोर हो जाते हैं। मुकाबला नहीं कर सकते।"
"तो तुमने उसकी पत्नी और बच्चों को इसलिए उठवा लिया कि देवराज चौहान की तरफ बढ़ते देवेन साठी के कदमों को रोक सको।"
"सही कहा।"
"देवेन साठी को पता है कि उसकी पत्नी बच्चों का अपहरण हो गया है।"
"मैं नहीं जानती।"
"नाम क्या है तुम्हारा?"
"नगीना।"
"तुमने शेर के खुले मुँह में हाथ डाल दिया है। देवेन साठी घायल शेर की तरह...।"
"साठी इस वक्त जिसके पीछे पड़ा है वो शेर से भी ज्यादा खतरनाक है। तुम अभी---?"
पाटिल, नगीना को गम्भीर नज़रों से देखने लगा।
"देवराज चौहान ने देवेन साठी के भाई पूरब नाथ साठी को बेवजह मारा। तो वो अपने भाई की मौत का बदला...।"
"खामोश रहो। इस बारे में तुम कुछ नहीं जानते।"
“और है ही क्या जानने को?"
“विलास डोगरा ने देवराज चौहान और जगमोहन को कठपुतली नाम का नशा देकर, उनकी दिमागी शक्ति छीनकर, उनसे ये काम करवाया है। हर बात का जिम्मेवार विलास डोगरा है।" नगीना का स्वर कठोर हो गया।
"तुम्हारी इस बात पर कौन विश्वास करेगा।"
"इस वक्त तो तुम करोगे।"
"मैं--क्यों?"
"तुम मेरी कैद में हो और मैं तुम्हें बुरी मौत भी दे सकती हूँ। ऐसे में मैं तुम्हें सफाई क्यों दूंगी, जबकि तुम्हें छोड़ने का मेरा इरादा ज़रा भी नहीं है।" नगीना ने शब्दों को चबाकर कहा--- "तुम ही सोचो कि, तुमसे गलत बात क्यों कहूँगी।"
पाटिल नगीना को देखने लगा।
नगीना जाने के लिए पलटी तो पाटिल कह उठा।
"अपनी बात को तुम साबित कर सकती हो?"
"क्या साबित करना है?"
“यही कि विलास डोगरा...।"
"मैं साबित कर सकती हूँ। विलास डोगरा की गर्दन पकड़ कर उसके मुँह से सच निकलवा सकती हूँ। परन्तु ऐसा कुछ भी करने से देवराज चौहान ने मुझे मना कर दिया है। विलास डोगरा से वो खुद ही निपटेगा ।"
"ऐसा देवराज चौहान ने कहा?"
“हाँ। देवराज चौहान हालातों को मेरे से बेहतर जानता है। वो ही विलास डोगरा को---।"
"साठी की पत्नी आरु और उसके बच्चों का क्या करोगी तुम?"
"उनके दम पर मैं साठी को, देवराज चौहान से पीछे रखूंगी और देवराज चौहान तब विलास डोगरा को बुरी मौत देगा।"
"तुमने साठी को, उसके परिवार के दम पर रोक भी लिया तो मोना चौधरी को कैसे रोकोगी। वो भी तो देवराज चौहान और जगमोहन के पीछे है। देवराज चौहान ने उसे भी मारने की कोशिश---।"
"वो भी इन्तज़ाम हो जायेगा।"
"तुमने साठी को बताया कि उसकी पत्नी-बच्चे तुम्हारे पास हैं।"
"अभी नहीं बताया। मोना चौधरी पर भी काबू पा लूं फिर दोनों से बात।"
"तुम सच कहती हो कि सारी शरारत विलास डोगरा की है।" पाटिल ने पूछा।
"तुम्हें सफाई देने का मेरा कोई इरादा नहीं है।" नगीना ने तीखी निगाहों से उसे देखा।
"तुम अगर मुझे साठी से फोन पर बात करने दो तो शायद मैं उसे समझा सकूं विलास डोगरा के बारे में कि---।"
"जरूरत नहीं। मुझे हालात संभालने आते हैं।" नगीना ने कहा और कमरे से बाहर निकल कर एक अन्य कमरे के दरवाजे के पास पहुँची, जिसका दरवाजा बंद था और बाहर से कुंडी लगी हुई थी।
नगीना ने कुंडी हटाकर दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश कर गई।
भीतर बैड पर आरू बैठी थी और पास में ग्यारह बरस का गुंजन और सात बरस का अर्जुन बैठा था।
नगीना को आया पाकर आरु ने दोनों बच्चों को बाँह से थाम लिया। आरु का चेहरा फक्क सा था।
"तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?" नगीना एकाएक मुस्करा कर कह उठी।
आरु और दो बच्चे नगीना को देखते रहे।
"मैंने तुमसे पहले भी कहा था और अब भी कहती हूँ कि अगर तुम कोई शरारत नहीं करती तो मेरी बहन बनकर रहोगी। मुझसे डरो मत। मैं तुम्हारा या तुम्हारे बच्चों का जरा भी बुरा नहीं करूंगी।" नगीना ने कहा।
"हमें छोड़ दो।"
"अभी नहीं।" नगीना ने इन्कार में सिर हिलाया--- "अभी मेरा काम नहीं हुआ। तुम्हारे पति देवेन साठी को कुछ समझाना है। उससे बात करनी है। लेकिन ये मेरा वादा है तुमसे कि तुम्हारा पति मेरी बात माने या ना माने, कैसी भी स्थिति में तुम्हें या तुम्हारे बच्चों को कोई नुकसान नहीं होगा। बाद में तुम तीनों को छोड़ना ही है। साठी पर दबाव बनाने के लिए तुम तीनों को उठाया गया है।"
"मेरे पति से बात कर ली?" आरु ने सूखे होंठों पर जीभ फेर कर कहा।
"अभी नहीं। पहले उसे तड़प लेने दो। तुम लोगों की तलाश में भागदौड़ कर लेने दो फिर उससे बात की जायेगी।"
"पाटिल को मैंने दूसरे कमरे में देखा था।"
"हाँ। वो भी हमारी कैद में है।"
"पाटिल ने ही तुम्हें मेरे बंगले का पता बताया होगा।"
“वो ना बताता तो मैं सच में उसे मार देती।" नगीना बोली।
"बात क्या है?"
"तुम्हारा पति, मेरे पति की जान के पीछे पड़ा है और...।"
"वो तो आजकल देवराज चौहान के पीछे...।"
"देवराज चौहान ही मेरा पति है।"
"ओह। देवराज चौहान ने तो पूरबनाथ साठी की हत्या की...।"
"जरूर। ऐसा ही हुआ।" नगीना सिर हिलाकर कह उठी--- "परन्तु देवराज चौहान की पूरबनाथ साठी से कोई दुश्मनी नहीं थी। इस मामले के पीछे विलास डोगरा है। विलास डोगरा ने धोखे से देवराज चौहान और जगमोहन को 'कठपुतली' नाम का नशा दे दिया। वो नशे की गिरफ्त में फंस गये। विलास डोगरा ने उसे पूरबनाथ साठी और मोना चौधरी को मारने को कह दिया। नशे में फंसे वो नहीं जानते थे कि वो क्या कर रहे हैं। उन्होंने पूरबनाथ साठी को मार दिया परन्तु मोना चौधरी हाथ से बच निकली और तीन दिन तक बचती ही रही। उस नशे का असर तीन दिन बाद खत्म हो गया तो देवराज चौहान और जगमोहन के कदम रुक गये। उस नशे की खास बात तो ये थी कि नशा उतरने के बाद उन्हें नहीं पता कि नशे के दौरान उन्होंने क्या-क्या किया।"
आरु बच्चों की बांहें पकड़े नगीना को देखे जा रही थी।
"नशे से होश में आने पर, खबरों से उन्हें पता चला कि उन्होंने क्या-क्या कर डाला। पूरबनाथ साठी को बेशक देवराज चौहान ने मारा है, परन्तु उससे ये सब विलास डोगरा ने करवाया।” नगीना ने पुनः कहा।
"तुमने देवेन को ये बात बताई?" आरु के होंठों से निकला।
"वो मानेगा इस बात को ?"
आरु चुप रही।
"तुम मानती हो इस बात को ?"
हौले से आरु की गर्दन इन्कार में हिली।
"इसी वजह से ये बात देवेन साठी को नहीं कही कि वो मानेगा नहीं। इसी कारण तुम लोगों को उठा कर मंगवा लिया कि तुम तीनों मेरे कब्जे में होगे तो साठी को मेरी बात सुननी पड़ेगी। अपने कदम पीछे हटाने पड़ेंगे। इससे देवराज चौहान को मुनासिब वक्त मिलेगा कि विलास डोगरा से अपना हिसाब-किताब बराबर कर सके।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।
"तुम भी ऐसे कामों में दिलचस्पी रखती हो।"
"कैसे काम?"
"ये ही, खून-खराबा और...।"
"नहीं। बिल्कुल नहीं। देवराज चौहान ने मुझे शांत जिन्दगी दे रखी है। उसे पसन्द नहीं कि मैं ये सब करूँ। जबकि इन कामों का मुझे तर्जुबा बहुत है। परन्तु इस बार हालात ऐसे हो गये कि देवराज चौहान के कहने पर ही मुझे खुलकर सामने आना पड़ा और यह सब करना पड़ रहा है। इस मामले में देवराज चौहान का कोई दोष नहीं, परन्तु विलास डोगरा ने उसे बुरी तरह फंसा डाला है। मैं तो ऊपरी तौर पर देवराज चौहान के काम निपटा रही हूँ। एक बार देवराज चौहान खुले में घूमने को आजाद हो जाये उसके बाद मामला वो ही संभालेगा।" सोचों में डूबी नगीना कह उठी--- "आज पहली बार मैंने उसके मामले में दखल दिया है।"
"मुझे अपने बच्चों की चिन्ता है।" आरु व्याकुल स्वर में कह उठी।
"तुम और तुम्हारे बच्चों को कुछ नहीं होगा। ये मेरी जुबान है, अगर तुम सहयोग के साथ आराम से रहती हो यहाँ।"
"म...म कुछ नहीं करूंगी। आराम से इस बंद कमरे में बैठी हूँ।" आरु ने जैसे अपनी सफाई दी।
"ऐसे ही कुछ दिन और बिता लो।"
"बच्चों को भूख लगी है।"
"मैं अभी खाने को...।"
"ये पिज्जा खाना चाहते हैं।"
"अभी मंगवा देती हूं।" कहकर नगीना कमरे से बाहर निकली और दरवाजा बंद कर दिया।
वो उस कमरे में आई जहाँ सोहनलाल और सरबत सिंह थे।
"सरबत भैया।" नगीना ने कहा--- "बच्चों को खाने को पिज्जा ला दो।"
सरबत सिंह पिज्जा लेने चला गया।
नगीना सोफे की कुर्सी पर बैठती सोहनलाल से बोली।
"अब तुम्हारी तबीयत कैसी है सोहन भैया?"
"पहले से तो काफी अच्छा हूँ।" सोहनलाल ने मुस्कराकर अपने शरीर को टटोला।
"महाजन और पारसनाथ ने तुम्हें खासी यातना दी।” नगीना गहरी सांस लेकर मुस्कराई।
"देवराज चौहान और जगमोहन ने महाजन और राधा को तकलीफ दी थी तो मेरे साथ ऐसा करके उन्होंने कुछ गलत नहीं किया।"
नगीना ने कुछ नहीं कहा। चेहरे पर गम्भीरता और सोचें ठहरी हुई थी।
■■■
देवेन साठी ने कलाई पर घड़ी में वक्त देखा। शाम के चार बज रहे थे। वो कमरे में टहलने लगा। होंठ भिंचे हुए थे। चेहरा सुलग रहा था। वो अपने होटल के कमरे में मौजूद था और जाफर से सारे इन्तज़ाम करा रहा था जहाँ पर देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे मौजूद थे। घण्टे भर से जाफर का फोन नहीं आया था, वो अब फोन के इन्तज़ार में था।
फोन आया। देवेन साठी ने बात की। दूसरी तरफ जाफर ही था।
"साठी साहब।" उधर से जाफर ने कहा--- “आपने जैसा कहा था, वैसा ही इन्तजाम कर दिया गया है। उस पूरे इलाके में हमारे आदमी फैल चुके हैं। सब हथियार बंद हैं। बिल्ला के घर आसपास हमारे आदमियों की तगड़ी घेराबंदी हो चुकी है।"
"वो तीनों वहीं पर हैं?"
"मुझे पूरा विश्वास है कि वो भीतर ही हैं। उस एक कमरे वाले घर का दरवाजा खुला हुआ है। भीतर एक से ज्यादा लोगों के होने का पता चला है। हमारा जो आदमी उस घर के सबसे करीब है, उसने बताया कि थोड़ी देर पहले एक भीतर से निकला और खुले दरवाजे के पास ही बैठकर नहाने लगा।"
"बहुत गंदी जगह है वो।"
"एक कमरे के घर हैं उधर। वहाँ बाथरूम नहीं है। बाथरूम का काम सब बाहर ही करते हैं। कुछ लोगों ने कमरे के बाहर कच्चा-पक्का बाथरूम बना रखा है।" दूसरी तरफ से जाफर ने कहा।
"मैं कुछ ही देर में वहां आ रहा हूँ। तब तक शान्ति रहनी चाहिये।" देवेन साठी ने कहा।
"अगर उनमें से कोई वहाँ से निकलकर कहीं जाना चाहे तो?"
"पकड़ लो।"
"गोली चलाने की जरूरत पड़े तो---।"
"तुम इतने लोग हो। अगर कोई वहाँ से निकलकर जाना चाहे तो क्या उसे पकड़ नहीं सकते।" देवेन साठी ने होंठ भींच कर कहा।
“पकड़ने-पकड़ने के चक्कर में अगर उसने गोली चला दी तो---?"
"तू उल्लू का पट्ठा है।" साठी गुर्रा उठा।
जाफर की आवाज नहीं आई।
"पाटिल होता तो मुझे कोई समस्या ही नहीं आनी थी। उसने सब संभाल लेना था। पता नहीं वो कहाँ मर गया? जो कहा है, वो ही करो। वैसे ही मामला संभालो। मैं पहुँच रहा हूँ।" कहकर देवेन साठी ने फोन बंद कर दिया। चेहरे पर कठोरता नाच रही थी। वो बड़बड़ा उठा--- "देवराज चौहान आज मैं तेरे से अपने भाई पूरबनाथ साठी की मौत का बदला लूंगा ।"
तभी हाथ में पकड़ा फोन बज उठा।
"हैलो।" साठी फोन पर गुर्रा पड़ा।
"साठी साहब---।"
देवेन साठी फौरन संभला। फोन पर दूसरी तरफ जाखड़ था, जो कि आरु और बच्चों की देखभाल के लिए बंगले पर मौजूद रहता था। इन कामों में ऐसा उलझा था कि आरु और बच्चों को जैसे भूल ही गया था।
"हां जाखड़--?"
"मैडम और बच्चे आपके पास हैं क्या?" उधर से जाखड़ ने परेशान स्वर में पूछा।
साठी बुरी तरह चौंका।
"क्या बकवास कर रहा है। वो तो बंगले पर---।"
"कल से मैडम और बच्चे बंगले पर नहीं हैं।"
"जाखड़---।" साठी गुर्रा उठा।
"कल सुबह कोई मैडम आई और आपकी मैडम, बच्चों को लेकर उनके साथ चली गई। उसके बाद ना तो वो लौटी और ना फोन---।"
"किसके साथ गई आरु?"
"कह नहीं सकता। मैं उस वक्त बाथरूम में था। नौकर ने बताया कि वो आने वाली मैडम ने अपनी मैडम का रिश्तेदार बताया...।"
"आरु का ऐसा कोई रिश्तेदार नहीं है जिसे मैं ना जानता होऊं। आरु मुझे बताये बिना किसी के साथ नहीं जायेगी। वो बंगला नहीं छोड़ेगी। क्या वो औरत पहले भी आरु से मिलने आई थी?"
"मैडम से मिलने कोई नहीं आता फिर अभी तो अफगानिस्तान से लौटी हैं। वो तो---।"
"आरु और बच्चों की तलाश करो जाखड़ ।" देवेन साठी गुर्रा उठा--- "जरूर कोई गड़बड़ है। कब गई आरु बच्चों को लेकर ?"
"कल सुबह। तब बच्चे स्कूल जाने वाले थे।"
"आरु और बच्चे किसी मुसीबत में पड़ गये हैं?" देवेन साठी शब्दों को चबाकर कह उठा--- "मुझे बताये बिना आरु बंगला नहीं छोड़ सकती? जबकि वो बच्चों को भी साथ लेकर गई है, तुमने ये बात पहले क्यों नहीं बताई ?"
"मैंने सोचा मैडम किसी रिश्तेदार के साथ गई---।"
"आरु और बच्चों की तलाश करो जितने आदमी चाहिये ले लो। मुझे जल्दी से खबर दो उनके बारे में।” देवेन साठी ने कहा और फोन बंद कर दिया। चेहरे पर परेशानी टपक रही थी।
■■■
नगीना उस वक्त चाय के घूंट ले रही थी जब उसका मोबाइल बजने लगा।
सोहनलाल और सरबत सिंह सामने ही सोफों पर धंसे हुए थे। कुछ देर पहले ही वो पाटिल को खाना खिलाकर हटे थे। इसके लिए उसके बंधन खोले गये थे। तब तक सरबत सिंह रिवॉल्वर हाथ में थामें खड़ा रहा था। खाना खाने के बाद पाटिल बाथरूम गया तो सरबत सिंह बाथरूम के खुले दरवाजे पर रिवॉल्वर थामें जा खड़ा हुआ था। जब पाटिल सब कामों से फारिग हुआ तो पुनः उसके हाथ-पांव बांध दिए गये थे। इस काम में उन्हें आधा घंटा लग गया था।
नगीना ने फोन पर बात की। दूसरी तरफ बांकेलाल राठौर था।
“बहणा।" उधर से बांके ने कहा--- "मोननो चौधरी, महाजनों और पारसनाथो, एको घटिया इलाके में पहुँचो है ओरो एको गली की मोड़ो पर खड़ी हो गयो। पर महारे को कुछो ठीको ना लागे हो---।"
"क्यों?"
"इधरो मनने को और ना आदमी दिखो हो ।”
"बेला, महाजन, पारसनाथ ने वहाँ किसी से बात की?"
"ना बहणो---।"
"तुम्हें क्या लगता है, वो क्या करने वाले हैं?"
"म्हारी समझ में तो कुछ ना आये। पर ठीको ना लागे हो।"
"कौन-सा इलाका है वो ?"
उधर से बांकेलाल राठौर ने बताया।
सुनते ही नगीना चिंहुक उठी।
"ओह...।" नगीना के होंठों से बेचैनी भरा स्वर निकला।
"क्या हो गयो ?"
"देवराज चौहान और जगमोहन इसी इलाके में छिपे हैं।" नगीना के होंठों से निकला।
"यो तो गड़बड़ हो गयो।"
"बेला, पारसनाथ और महाजन के अलावा और लोग भी दिखे तुम्हें उधर ?"
“हाँ। म्हारे को इधरो कुछो ठीको ना लागो हो।"
"तुम दोनों वहीं रहो। मैं पहुँच रही हूँ वहाँ---।” नगीना ने होंठ भींचकर कहा।
"थारे पौंचने से पैले ही कुछो हो गया तो?"
"तुम दोनों ने कुछ नहीं होने देना है।" नगीना कठोर स्वर में बोली--- "खुलकर सामने आ जाओ। वो तीनों तुम लोगों को देख लेंगे तो सम्भल जायेंगे। तब फौरन कुछ नहीं करेंगे।"
"ठीको। अंम समझो थारी बातो---।"
नगीना ने फोन बंद किया तो सोहनलाल बोला।
"क्या हुआ?"
"शायद मिन्नो को पता चल गया है कि देवराज चौहान और जगमोहन कहाँ छिपे हुए हैं। वो महाजन और पारसनाथ के साथ उस जगह पर जा पहुंची है। हमें तुरन्त वहां चलना है। तुम यहीं रुको सोहन भैया। तुम्हारी तबीयत ज्यादा ठीक नहीं है और फिर किसी को तो यहाँ रुकना ही है पाटिल, आरु और उन बच्चों की निगरानी के लिए। तुम मेरे साथ चलो सरबत भैया। अब हालात बिगड़ने लगे हैं।"
■■■
"इसी पतली गली के भीतर पांच नम्बर का वो मकान है, जहां देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुद मौजूद है।" मोना चौधरी ने गली के किनारे खड़े हुए पारसनाथ और महाजन को देखकर कहा--- "लेकिन मुझे लगता है देवेन साठी अपना काम शुरू कर चुका है। इधर-उधर टहलते हमें कई आदमी दिखाई दे रहे हैं, जिनकी मौजूदगी यहाँ गैर जरूरी है। वो साठी के आदमी हो सकते हैं। इस गली में ही यहाँ-वहाँ फैले ऐसे तीन लोग हमें दिखाई दे रहे हैं। दो हमसे कुछ दूर गली के बाहर खड़े हैं।"
"तो देवेन साठी, देवराज चौहान और जगमोहन पर हाथ डालने जा रहा है।" पारसनाथ बोला।
"देवराज चौहान बचने वाला नहीं।" महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा।
"मेरे बस में कुछ नहीं है।" पारसनाथ ने सख्त स्वर में कहा--- "वरना मैं देवराज चौहान को बचाने की कोशिश जरूर करता।"
महाजन ने मोना चौधरी को देखा।
मोना चौधरी होंठ भींचे शांत खड़ी थी।
"तुम्हारा क्या ख्याल है बेबी ?" महाजन ने पूछा।
"मैं इस मामले में दखल नहीं देना चाहती। ये ही बहुत है कि मैं इस मामले से पीछे हट गई हूँ।" मोना चौधरी बोली।
“देवराज चौहान तुम्हारी पूर्व जन्म की बहन बेला का पति है। और---।"
"पर वो मुझे कभी पसन्द नहीं आया। देवराज चौहान ने हमेशा---।"
"बांके...।" पारसनाथ के होंठों से निकला-- "रुस्तम राव---।"
मोना चौधरी और महाजन की निगाहें भी उधर घूमी ।
सामने से बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव इसी तरफ आ रहे थे ।
"ये-ये यहाँ कैसे?" महाजन कह उठा।
“अब हालात खतरनाक हो जायेंगे।" मोना चौधरी होंठ भींचे बोली--- “देवराज चौहान भी यहाँ और साठी भी दूर नहीं होगा। वो देवराज चौहान को खत्म करना चाहेगा और ये, ऐसा ना हो, उसकी कोशिश करेंगे?"
"इसका मतलब इन्हें पता है कि देवराज चौहान यहाँ है।" पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।
बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव उनके पास आकर रुके। दोनों के चेहरों पर गम्भीरता और तीखे भाव मौजूद थे। उन्होंने तीनों को देखा और बांकेलाल राठौर कह उठा।
"म्हारे को अब सीधी बातो करनो चाहिये।"
जवाब में तीनों खामोश रहे।
"तंम इधरो का करो हो?" बांकेलाल राठौर के चेहरे पर सख्ती थी।
रुस्तम राव का चेहरा भी कठोर दिखाई दे रहा था।
"म्हारे को खूब पतो हौवे कि तंम इधरो का करो हो। म्हारी बातो मानो तो भाग लयो इधरो से।"
"क्या मतलब?" मोना चौधरी बोली।
"तंम देवराज चौहान को मारने के वास्ते इधरो आयो हो। अंम यो ना होने दयो। तंम म्हारा कुछो ना बिगाड़ सको हो और अंम थारे की 'वड' दयो। देवराज चौहान थारे बस में ना आये हो।"
"हम कुछ नहीं कर रहे।"
"तंम करो हो।"
“नहीं। हम यहाँ देवराज चौहान को मारने के लिए नहीं आये बल्कि ये देखने आये हैं कि वो कैसे मरता है।" मोना चौधरी ने होंठ भींचकर कहा--- "हम सिर्फ तमाशबीन हैं। दूर खड़े होकर सब देखेंगे।"
"थारा का मतलब हौवे ?” बांकेलाल राठौर की आँखें सिकुड़ी।
रुस्तम राव के माथे पर बल दिखने लगे थे।
"देवेन साठी को पता है कि देवराज चौहान यहाँ है।"
"उसे कैसो पतो?"
"जैसे हमें पता लगा।"
"थारे को देवराज चौहान के बारों में कैसो पतो लगो?"
"बिल्ला ने एक करोड़ लेकर हमें ये खबर बेची कि देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे उसके घर पर छिपे हुए हैं। उसने ये खबर देवेन साठी को भी बेची है।"
बांकेलाल राठौर की आँखें सिकुड़ी।
“उस बस स्टॉप पर तुमने ब्रीफकेस में उसे करोड़ रुपया दिएला। वे बिल्ला होएला?" रुस्तम राव ने कहा।
“हाँ। वो ही बिल्ला था।"
"तो तुम लोग हम पर नज़र रखे हुए हो।" महाजन कह उठा ।
"थारो कोईयो प्रोग्राम ना हौवे देवराज चौहानो पर हाथो मारणे का?"
"नहीं।" मोना चौधरी बोली।
"ये काम साठी करो हो।"
“हाँ। उसके आदमी हरकत में आ चुके हैं।"
"किधरो है वो ?"
"गली में देखो, यहाँ-वहाँ तीन आदमी खड़े हैं। गली के बाहर की तरफ देखो इधर-उधर खड़े दो आदमी दिख रहे हैं और भी आदमी वहाँ फैल चुके हैं। उन्हें तलाश करोगे तो वो दिख जायेंगे।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा--- "इस वहम में मत रहो कि तुम लोग देवराज चौहान और जगमोहन को बचा लोगे। आज उनकी जिन्दगी का आखिरी दिन है। देवेन साठी अपने भाई की हत्या का बदला, उनकी हत्या करके लेगा।"
बांकेलाल राठौर के होंठों से गुर्राहट निकली। हाथ मूंछ पर पहुँच गया।
"अंम सबो को 'वड' दयो।" वो गुर्रा उठा।
"इतना भी आसान नेई होईला, जितना आसानी से तुम बोएला ।" रुस्तम राव का स्वर खतरनाक हो गया।
“मुझे नहीं लगता कि तुम देवराज चौहान को बचा लोगे।" मोना चौधरी गम्भीर दिखी--- "यहाँ हर तरफ देवेन साठी के आदमी नज़र आ रहे हैं। घेराबंदी हो चुकी है। साठी भी यहाँ आने वाला होगा। बीच में दखल दिया तो तुम दोनों भी मरोगे।"
"तंम भी तो देवराज चौहानो और जगमोहनो के पाछे हौवो---।"
"मैंने अपना इरादा छोड़ दिया है।"
"काये को ?"
“तुम्हारे लिए ये जानना ही बहुत है कि मैं देवराज चौहान के पीछे नहीं हूँ।"
बांकेलाल राठौर कठोर निगाहों से मोना चौधरी को देखने लगा ।
तभी पारसनाथ सपाट स्वर में बोला।
"तुम दोनों को ये सोचना चाहिये कि देवराज चौहान और जगमोहन को कैसे बचाना है।"
"देवराज चौहानो कितनो नम्बर मकान में हौवो ?"
"413---।"
"अंम अभ्भी उसी के पासो जाके बाहर के हालात बता दयो। वो---।"
"ये गलती मत करना बांके ।" पारसनाथ कह उठा--- "सब कुछ जानकर देवराज चौहान और जगमोहन यहाँ से खिसकने की कोशिश करेंगे और बाहर फैले आदमी उन्हें भूनकर रख देंगे।"
बांकेलाल राठौर का चेहरा सख्त हो गया।
"कितने आदमी इधर फैलेला बाप ?"
“पाँच तो यहीं से नज़र आ रहे हैं।" महाजन ने कहा--- "बाकियो की तलाश में हमने नज़रें नहीं घुमाई। परन्तु कम से कम भी यहाँ पर तीस-पैंतीस आदमी तो जरूर होंगे। उनका मुकाबला नहीं किया जा सकता।"
"तुम लोग किसकी तरफ होईला?"
"किसी तरफ भी नहीं।" महाजन बोला--- “हम यहाँ सिर्फ देखने आये हैं कि क्या-कैसे सब कुछ होता है।"
"मेरी जरूरत हो तो मुझे बता देना।" पारसनाथ कह उठा।
मोना चौधरी और महाजन की निगाह पारसनाथ की तरफ उठी।
"तंम म्हारे साथी हौवे ?"
"कहोगे तो मैं तुम्हारे साथ हूँ।"
"तंम तो मोन्ना चौधरी के बगली हो। तंम म्हारा साथ क्यों दयो हो?"
"क्योंकि देवराज चौहान ने कुछ नहीं किया। उसे इन हालातों में फंसाया गया है।"
"किसने बाप?"
"विलास डोगरा ने--।"
"म्हारे को पता ना हौवे, तंम म्हारे को सारो मामलो बता दयो।"
"तुम दोनों यहाँ वक्त खराब कर रहे हो। देवराज चौहान और जगमोहन की जान खतरे में है।" पारसनाथ ने कहा।
बांके और रुस्तम राव की नज़रें मिली।
"छोरे तुरन्त-फुरन्त कुछ करनों की जरूरतों हौवे ।"
"आपुन जरा दीदी से बात करके पोज़िशन बतायेगा।" कहने के साथ ही रुस्तम राव ने फोन निकाला और वहाँ से हट गया।
"देवराज चौहानों बे-कसूरों हौवे तो थारे को भी महारा साथ देना चाहो।" बांके ने मोना चौधरी से कहा।
"उसने मेरी जान लेने का भरसक प्रयत्न किया था।" पढ़ें 'सबसे बड़ा गुण्डा'--- "ऐसे में मैं उसके खिलाफ कुछ नहीं कर रही, ये ही बहुत है। उसने महाजन और राधा को भी मारना चाहा था।" मोना चौधरी पूरी तरह नाराज थी।
"जो थारा मन चाहो।" बांकेलाल राठौर बोला--- “वो बिल्ला किधर मिल्लो हो, पतो हौवे कुछो।"
"नहीं।"
"क्या करोगे बिल्ला का?" महाजन ने पूछा।
“देवराज चौहानों और जगमोहनो बिल्लो के घरों में हौवे हो और बिल्लो ने गद्दारी करोके, ये बात देवेन साठी को बता दयो। अम बिल्लो की गर्दनों तौड़ दयो। 'वड' दयो उसो को।"
"वो तो कहीं बैठा नोट गिन रहा होगा।" महाजन ने गहरी सांस लेकर कहा।
तभी रुस्तम राव पास आता बांके लाल राठौर से बोला ।
"बाप। दीदी पन्द्रह मिनट में इधर पौंचला। इधर का सब मामला बतायेला उसे।"
"दीदी कौन?" मोना चौधरी ने पूछा।
"थारी पूर्व जन्मों की बहनो बेला।" बांके ने बताया फिर बोला--- "इधरो से चल्लो छोरे। इनो का संग छोड़ देना चाहो। महारी इनो का लेन अलगो-अलगो हौवे।"
बांके और रुस्तम राव उनके पास से दूर चले गये।
"तो तुम देवराज चौहान के लिए इनका साथ देने को तैयार हो पारसनाथ।" मोना चौधरी कह उठी।
"क्योंकि देवराज चौहान को इन हालातों में विलास डोगरा ने फंसाया है। वो निर्दोष है। अगर तुम भी इनका साथ दो तो मुझे खुशी होगी मोना चौधरी।" पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।
"मैं जरूरत नहीं समझती। वैसे भी बाजी देवेन साठी के हाथ में है। आज देवराज चौहान और जगमोहन की जिन्दगी का आखिरी दिन है। देवेन साठी के रास्ते में जो भी आया, वो उसे कुचलकर रख देगा। दूर रहकर ही मामले को देखना ठीक है।" मोना चौधरी ने बेहद शांत स्वर में कहा---- “ऐसे में हम चाहें भी तो, तो भी कुछ नहीं कर सकते। देवेन साठी हमें भी रगड़ देगा। उसके पास ताकत है।"
■■■
हरीश खुदे ने घड़ी पर निगाह मारी। पाँच बज रहे थे।
जगमोहन कुर्सी पर बैठा था जबकि देवराज चौहान बैड पर लेटा सिग्रेट के कश ले रहा था।
"बिल्ला का इन्तज़ार कर रहा है?" जगमोहन ने पूछा।
"हां। वो पांच बजे तक आने को कह गया था।" खुदे बोला--- “खाना भी लाना था। आज हमने लंच भी नहीं किया। पता नहीं साले को ऐसा क्या काम पड़ गया जो घंटों से दफा हुआ पड़ा है।"
"ज्यादा भूख लग रही है तो तू खाने को ले आ।" जगमोहन ने कहा।
"ऐसी बात नहीं। मैं तो बिल्ले के बारे में सोच रहा हूँ कि इतने घंटे वो कभी बाहर नहीं रहा। कमीना कहीं टुन्नी के पास ना चला गया हो।" खुदे ने कलप कर कहा--- "हर समय टुन्नी-टुन्नी की रट लगाये रहता है।"
"तुम्हारी पत्नी का तो वो दीवाना है।" जगमोहन मुस्कराया।
"हरामजदा है साला।" खुदे ने कड़वे स्वर में कहा--- "अगर हमें छिपने के लिए उसके इस एक कमरे वाले घर की जरूरत नहीं होती तो दो मिनट में उसे सीधा कर देता। मैं तो चुपचाप वक्त टपा रहा हूँ। लेकिन जाते वक्त उसकी खोपड़ी तोड़ कर जाऊँगा।" कहने के साथ ही खुदे ने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा।
"बिल्ला को फोन ।"
"उस कंगाल के पास फोन कहां, मैं तो टुन्नी को फोन कर रहा हूँ, बिल्ला कहीं उसके पास ना बैठा हो।" खुदे ने चिन्ता भरे स्वर में कहा और फोन कान से लगा लिया--- “ऐसी कोई जगह नहीं, जहाँ बिल्ला इतनी देर बिता सके।"
फोन लग गया। बेल जाने के पश्चात् टुन्नी की आवाज कानों में पड़ी।
“शुक्र है, तुमने फोन तो किया। आ रहे हो अब ।"
"तुम्हें बता तो चुका हूँ कि मैं घर पर नहीं आ सकता। देवेन साठी के आदमी घर पर नजर रख रहे---।"
“हाँ, वो तो अभी भी हैं। बाजार गई थी तो गली के बाहर उन्हें देखा था। तुमने कहा था कि अपना सामान तैयार रखूं हमें मुम्बई से फौरन निकल जाना होगा। कब चलना है?" उधर से टुन्नी ने पूछा।
"अभी नहीं।" खुदे ने गहरी सांस ली।
"क्या मतलब अभी नहीं ?"
“थोड़ा सा प्रोग्राम बदल...।"
"तुम अभी भी देवराज चौहान और जगमोहन के साथ हो?" टुन्नी ने बीच में ही पूछा।
“हाँ।"
“जब से वो तुम्हें ले गये हैं, तब से मैं तुम्हें देख भी नहीं पाई।" टुन्नी की आवाज में नाराजगी थी।
"ये ही बड़ी बात है कि मैं अभी जिन्दा बचा हुआ हूँ।"
"तुम किस प्रोग्राम की बात कर रहे थे?"
"मैं तुम्हें बता रहा था कि देवराज चौहान ने मुझसे वादा किया है कि इस मामले से निकलने के बाद वो बड़ी डकैती करेंगे और मैं भी उस डकैती में हिस्सा लूंगा और मुझे बड़ी रकम मिलेगी। इसलिए मुझे इन दोनों के साथ रहना पड़ रहा है। डकैती के बाद हम अमीर बन जायेंगे टुन्नी। बस थोड़ी देर की बात है।"
"कितनी देर?"
“थोड़ी देर---महीना या डेढ़ महीना।" खुदे, देवराज चौहान और जगमोहन पर नज़र मारता कह उठा।
"तो क्या इतनी देर मैं अकेली रहूँगी?"
"रह ले टुन्नी। कोई फर्क नहीं पड़ता। उसके बाद तो हम हमेशा ही एक साथ रहेंगे। बहुत पैसा होगा हमारे पास। कार होगी, बंगला होगा। हमारे बच्चे भी होंगे। मौज ही मौज होगी।"
"पर डेढ़ महीना, मैं तेरे बिना।"
"समझा कर टुन्नी। मैं वहाँ आया तो देवेन साठी के आदमी मुझे पकड़ लेंगे या मार देंगे। हालात बहुत खराब हुए पड़े हैं। कुछ वक्त निकल जाने दे, उसके बाद सब ठीक हो जायेगा।" खुदे ने समझाने वाले स्वर में कहा।
"तेरे बिना मेरा दिल नहीं लगेगा।" टुन्नी उदास स्वर में, उधर से बोली।
"लग जायेगा। तू ये सोच कि जैसे मैं हांगकांग गया हूँ और डेढ़ महीने बाद वहाँ से दौलत लेकर लौटूंगा।"
टुन्नी के गहरी सांस लेने की आवाज आई।
"मेरी प्यारी टुन्नी, तू तो बहादुर---।"
"चल-चल, बच्चों की तरह मुझे बहला मत। मेरा तो मन खराब हो गया है ये सुनकर कि तू अभी डेढ़ महीना और मुझे नहीं मिलेगा। शादीशुदा होकर भी, कंवारी सी जिन्दगी बितानी पड़ रही है।"
"थोड़ी दिनों की तो बात...।"
"इन बातों से तू दिल लगाने की कोशिश मत कर। मैं सब समझती हूँ। अब देवराज चौहान या जगमोहन तेरी ठुकाई तो---।"
"नहीं-नहीं। अब तो वो बहुत अच्छे हैं मेरे साथ। सब ठीक है।" खुदे ने जल्दी से कहा ।
“ठीक है, अब जैसा तू चाहे, मैं तो।"
“आज बिल्ला तो नहीं आया तेरे पास?" एकाएक खुदे ने पूछा।
“वो कमीना क्यों आयेगा। लेकिन वो हाथ धोकर पीछे पड़ा है। पता नहीं मुझमें उसे क्या दिख गया। दो घंटे पहले उसने फोन जरूर किया था मुझे। उल्टी-पुल्टी बकवास कर रहा---।"
"क्या कह रहा था?" खुदे के दाँत भिंच गये।
“पागल हो गया है वो मुझे कह रहा था तेरे को रानी बनाकर रखूंगा। कहता है दो करोड़ रुपया है उसके पास। ये भी कहा कि खुदे की तू चिन्ता मत कर, उसका इन्तज़ाम हो जायेगा। वो और भी जाने क्या भौंकता, मैंने पहले ही फोन बंद कर दिया।"
खुदे के माथे पर बल दिखे।
"बिल्ला की इन बातों का क्या मतलब हुआ ?"
“ये तू सोच। मुझे तो वो पागल लगा...।"
"वो तेरे से ये बात गलत नहीं कहेगा कि उसके पास दो करोड़ रुपया है।" खुदे तेज स्वर में कह उठा--- "तेरे को रानी बनाने को कह रहा था। उसने तेरे से कहा कि खुदे का इन्तज़ाम हो जायेगा, ये कब की बात है ?"
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह भी खुटे पर जा टिकी।
"दो घंटे हो गये उसका फोन आये।"
“तूने उससे पूछा नहीं कि दो करोड़ उसके पास कहाँ से आये?"
"मैंने उसकी बकवास पर ध्यान नहीं।"
“वो तेरे से बकवास नहीं कर सकता। वो तो हमेशा तेरे सपने देखता है। वो कमीना...।" खुदे के होंठ भिंच गये--- "तू आराम से रह। किसी बात की चिन्ता मत कर। बंद करता हूँ।" कहकर खुदे ने फोन बंद किया और देवराज चौहान और जगमोहन को देख कर बोला--- "दो घंटे पहले बिल्ला ने टुन्नी को फोन करके कहा कि उसके पास दो करोड़ रुपया है। बिल्ला टुन्नी से ये बात गलत नहीं कहेगा। वो टुन्नी को फंसाने के चक्कर में है। ये भी कहा कि खुदे का इन्तज़ाम हो जायेगा। वो दो सौ रुपये का बंदा भी नहीं है तो उसको दो करोड़ कहाँ से मिल....।"
उसी पल देवराज चौहान चौंक कर बैड से नीचे आ खड़ा हुआ।
"निकलो यहां से। बिल्ला ने गद्दारी कर दी है। हमारे बारे में उसने मोना चौधरी या देवेन साठी को बता कर दो करोड़ रुपया ले लिया है। वो सुबह से इन्हीं कामों के लिए गायब है। हम खतरे में हैं।"
जगमोहन हक्का बक्का रह गया।
"क्या-क्या कह रहे हो ?" खुदे के होंठों से कांपता स्वर निकला।
"बिल्ला हमसे धोखा कर गया है। वो हमसे गेम खेल गया ।" देवराज चौहान के होंठ भिंच गये थे ।
"वो-वो ऐसा नहीं कर--।"
"सच में।" जगमोहन के होंठों से निकला--- "सच में उसने ऐसा किया होगा। तेरे होते वो टुन्नी को नहीं पा सकता, क्योंकि टुन्नी तेरी पत्नी है। ये गेम खेलकर उसने नोट भी पैदा कर लिए और तेरे मरने का भी इन्तजाम कर दिया। हमारे बारे में बताने के लिए ही उसे दो करोड़ मिले हैं। देवराज चौहान ठीक कहता है कि उसने मोना चौधरी या देवेन साठी को हमारे यहाँ पर होने की खबर बेची है। हमें फौरन यहाँ से निकल चलना चाहिये।"
खुदे हक्का-बक्का हो चुका था। वो दोनों को देखे जा रहा था।
देवराज चौहान ने जेब से रिवॉल्वर निकाली और उसे चैक करता बोला।
"चलो यहां से---अभी, ऐसे ही चलो।"
"साला, हरामजादा।" खुदे का चेहरा एकाएक धधक उठा--- "धोखेबाज...।"
"उसे छोड़ो और चलो।" रिवॉल्वर जेब में रखता देवराज चौहान दरवाजे की तरफ बढ़ने लगा कि तभी जेब में पड़ा मोबाइल बजने लगा। देवराज चौहान ने ठिठक कर मोबाइल निकाला और बात की। दूसरी तरफ नगीना थी।
"कहो।" देवराज चौहान ने फोन पर कहा ।
"बाहर के हालात ठीक नहीं हैं। आप बाहर मत निकलना ।" नगीना की आवाज कानों में पड़ी।
"क्या मतलब?"
"मैं अभी बाहर ही पहुँची हूँ।" दूसरी तरफ से नगीना ने कहा--- "बिल्ले का घर है वो जहाँ आप हैं, हैं ना?"
“हाँ।" देवराज चौहान के होंठों से निकला ।
“आप लोगों के यहाँ होने की खबर बिल्ला ने मिन्नो और देवेन साठी को दे दी है। बदले में पैसा लिया है। इस वक्त जहाँ पर आप हैं, वहां हर तरफ देवेन साठी के आदमी फैले नज़र आ रहे हैं। मोना चौधरी, महाजन और पारसनाथ भी यहाँ है, परन्तु मिन्नो ने आपके रास्ते से हट जाने की सोच ली है, उसे पता चल गया है कि ये मामला कठपुतली से जुड़ा हुआ है और विलास डोगरा इस मामले के पीछे है। इस वक्त आपको देवेन साठी की तरफ से खतरा है।"
"देवेन साठी कहाँ है?" देवराज चौहान के दाँत भिंच गये।
"मेरे ख्याल में वो यहाँ कभी भी आ पहुंचेगा।"
"बाहर देवेन साठी के आदमी फैले हैं, ये बात पक्की है?" देवराज चौहान गुर्राया ।
“हाँ। बांके और रुस्तम यहाँ पहले से ही मौजूद थे। इस वक्त वो मेरे पास खड़े हैं। ये मिन्नो से मिल भी चुके हैं। उन्हीं से काफी बातें इन्हें पता चली। सरबत सिंह भी मेरे पास है।" उधर से नगीना की आवाज आ रही थी--- "यहाँ मौजूद देवेन साठी के आदमी उसके आने का इन्तजार कर रहे हैं फिर---।"
"देवेन साठी का परिवार कहाँ है?"
“मेरे पास। मैं सब ठीक कर लूंगी। अभी आप बाहर मत निकलना।" नगीना की आवाज कानों में पड़ी--- "ये ही कहने के लिए मैंने फोन किया है। बाहर के हालात आप लोगों के लिए ठीक नहीं हैं।"
देवराज चौहान के होंठ भिंच गये।
जगमोहन आंखें सिकोड़े, देवराज चौहान को देख रहा था।
"मैं फोन बंद कर रही हूँ। फिर बात करूंगी।" उधर से नगीना ने कहा और फोन बंद कर दिया था।
देवराज चौहान ने कान से फोन हटाया। चेहरा सुलग रहा था।
"क्या बात है?" जगमोहन के होंठों से कठोर स्वर निकला।
"हमारा ख्याल ठीक था कि बिल्ला धोखेबाजी कर गया है।" देवराज चौहान शब्दों को चबाकर कह उठा--- "गद्दारी करने से ही उसके पास दो करोड़ रुपया आया। उसने हमारे बारे में देवेन साठी और मोना चौधरी को बता दिया है। इस वक्त बाहर देवेने साठी के आदमी फैले हैं और वो स्वयं कभी भी यहाँ पहुँच सकता है। हम घिर चुके हैं।"
"साला, कुत्ता।" हरीश खुदे गुर्रा उठा--- "बहुत बुरी मौत मारूंगा बिल्ले को।"
जबकि जगमोहन, देवराज चौहान की बात सुनकर ठगा सा रह गया था।
"बाहर देवेने साठी के आदमी फैले हैं। नगीना भाभी ने ये बात बताई?"
"हाँ।"
“सत्यानाश।" जगमोहन के दाँत भिंच गये--- "और मोना चौधरी?"
“वो भी बाहर है। परन्तु वो अब हमारे पीछे नहीं है। उसे कठपुतली और विलास डोगरा के बारे में पता चल गया है।"
“अब क्या होगा।" खुदे परेशान सा कह उठा--- "हम बच नहीं सकेंगे।"
तीनों एक-दूसरे को देखने लगे।
उनके चेहरों पर परेशानी और क्रोध दिखाई दे रहा था।
"मुझे पता होता कि बिल्ला ऐसा कुछ करेगा तो मैंने कब का उसे मार देना था।" खुदे खतरनाक स्वर में कह उठा।
"उसे जो करना था, वो कर गया ।" देवराज चौहान कठोर स्वर में बोला।
"टुन्नी को फोन करके कहा कि दो करोड़ है उसके पास। कमीने ने टुन्नी को ही अपने चक्कर में लेने के लिए गद्दारी की। उधर से नोट ले लिए और सोचा देवेन साठी या मोना चौधरी यहाँ मुझे मार देंगे और उसका रास्ता साफ हो जायेगा। मैं उसकी बातों को हल्के में लेता रहा, परन्तु वो हरामजादा, मेरी पत्नी के बारे में गम्भीर था। उसे चाहने के चक्कर में ही बिल्ला ने इतना बड़ा कदम उठा लिया। एक बार वो हरामजादा मेरे हाथ लग---।"
"अब क्या किया जाये ?" गुस्से से भरा जगमोहन बेचैन लहजे में कह उठा।
"हमारा बाहर निकलना खतरनाक है।" देवराज चौहान ने होंठ भींच कर कहा।
"तो?"
देवराज चौहान ने जगमोहन और खुदे पर निगाह मार कर कहा।
"अगर कुछ हो सकता है तो वो नगीना ही करेगी ।" देवराज चौहान ने जेब से रिवॉल्वर निकाली और उसे थपथपा कर कठोर स्वर में कह उठा--- "हमें हर तरह के हालातों के लिए तैयार रहना चाहिये ।"
"कुत्ता-हरामजादा।" खुदे बड़बड़ा उठा।
"भाभी शायद देवेन साठी को रोक ना सकें। उनके साथ कौन-कौन है?"
"बांके, रुस्तम, सरबत सिंह।"
"मेरे ख्याल में भाभी के लिए ये मामला संभालना कठिन हो जायेगा।" जगमोहन बोला।
"नगीना हर तरह के हालातों में काम करती है। लगता है तुम उसे भूल गये।"
"मैं भूला नहीं हूँ।"
"वो पूरी कोशिश करेगी, मामला संभालने की।"
"बाहर देवेन साठी के आदमी मौजूद हैं?"
"हाँ।"
“अच्छी तरह घेरा डाल रखा होगा। साठी ने तसल्ली से पूरी तैयारी की होगी कि हम किसी भी हाल में बच ना सकें। उसके पास पूरा वक्त रहा, तैयारी करने का।" जगमोहन ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा--- "बिल्ला ने गलत किया। हमें बुरी तरह फंसा डाला। उसका दिमाग खराब हो गया था जो उसने ऐसा कर डाला। पैसा तो हम भी उसे दे सकते थे।"
“बिल्ला के हाथ पैसा कमाने और खुदे को रास्ते से हटाने का आसान मौका हाथ लगा था। वो खुदे की पत्नी को पाना चाहता है। इससे बढ़िया मौका और क्या होगा कि पैसा मिलने के साथ खुदे भी मारा जाये। वो जानता है कि देवेन साठी खुदे को नहीं छोड़ेगा। क्योंकि पूरब नाथ साठी की हत्या के वक्त ये हमारे साथ था। साठी इसे भी हत्या का जिम्मेवार मानता है।"
"मैं कहाँ फंस गया।" खुदे कह उठा।
"बिल्ला ने गड़बड़ ना की होती तो इतने बुरे हालात नहीं होने थे।" जगमोहन ने कहा।
"उस हरामजादे को तो मैं बुरी मौत---।"
"अभी तो अपनी जान की फिक्र करो।" जगमोहन गुर्राया--- "हम लोग इस वक्त बुरे फंस चुके हैं।"
"वो भाभी शायद हमें बचा ले।" खुदे ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा।
जगमोहन गहरी सांस लेकर रह गया।
"देखते हैं अब क्या होता है।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा और रिवॉल्वर जेब में रखते हुए सिग्रेट सुलगा ली--- "हमें हर तरह के हालातों के लिए तैयार रहना है। किसी भी पल कुछ भी हो...।"
तभी खुदे का फोन बजा ।
"हैलो।" खुदे ने जल्दी से बात की।
"ये बिल्ला क्या पागल हो गया है।" उधर से टुन्नी का तीखा स्वर कानों में पड़ा।
"क्या हुआ?" खुदे के होंठों से निकला।
“अभी फोन आया उसका। फोन पर कहने लगा टुन्नी अब कुछ ही देर की बात है। उसके बाद हमें मिलने से कोई नहीं रोक सकता। मैं पूछती वो कमीना क्या कहना चाहता है मुझे। कुछ मेरी भी समझ में आये।"
"तुमने उससे नहीं पूछा।" खुदे कड़वे स्वर में बोला ।
"पूछने से पहले ही उसने फोन बंद कर दिया ।"
"वो अगर तेरे सामने आ जाये तो कुछ भी पूछे बिना उसका सिर फोड़ देना कि वो जिन्दा ना रहे।” खुदे गुर्रा उठा ।
"मैं समझी नहीं।"
“उसने हमारे ठिकाने के बारे में देवेन साठी को बताकर, उससे पैसे लिए हैं। अब हालात ये है कि बाहर देवेन साठी के आदमी फैले हैं और कभी भी कुछ भी हो सकता है। बिल्ला सोचता है कि साठी मुझे मार देगा और बिल्ला तुझे पा लेगा।"
"पा लेगा?" टुन्नी का कड़वा स्वर कानों में पड़ा--- "मैं क्या सड़क पर पड़ी कोई चीज हूँ जो मुझे उठाकर जेब में रख लेगा। उस कुत्ते का तो मैं बुरा हाल करूंगी। एक बार मेरे सामने पड़---।"
"मैं फोन बंद करता हूँ।" खुदे गम्भीर स्वर में बोला--- “फिर बात करूँगा।" कहने के साथ ही खुदे ने फोन बंद किया और देवराज, चौहान, जगमोहन को देखकर बोला--- "बिल्ला भी बाहर ही कहीं मौजूद है और यहाँ के हालातों पर नज़र रखे हुए है।"
तीनो की नज़रें मिली।
वहाँ मौत सा सन्नाटा ठहर चुका था।
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उस तंग गली के बाहर एक के बाद एक पाँच कारें आकर रुकी और उसमें से धड़ाधड़ आदमी बाहर निकलने लगे। सब के सब खतरनाक इरादों से भरे लग रहे थे। वे सब हथियारबंद थे। शाम के छः बजने वाले थे। एक कार से देवेन साठी और जाफर बाहर निकले। देवेन साठी का चेहरा कठोर हुआ पड़ा था।
तभी एक आदमी तेज-तेज कदमों से चलता पास पहुँचा।
"साठी साहब, वो तीनों भीतर ही हैं।" उसने कहा।
"तुमने देखा।"
"जगमोहन दो घंटे पहले कमरे के बाहर नहा रहा था और भीतर दो और थे तब। बाहर से भीतर काफी कुछ दिख पाता है। दरवाजा तो दोपहर से ही खुला हुआ उनका। यहाँ सब एक कमरे के घर हैं।" वो बोला।
"घेराबंदी ठीक है हमारे लोगों की?" साठी ने पूछा।
“एकदम बढ़िया। वो बचकर भाग नहीं सकते।" तब तक साठी की निगाह पचास कदम दूर खड़ी मोना चौधरी पर पड़ गई थी। वो उसकी तरफ बढ़ गया।
मोना चौधरी पारसनाथ के साथ खड़ी थी। महाजन कुछ दूर खड़ी कार के भीतर पिछली सीट पर अधलेटा सा पड़ा था। मोना चौधरी और पारसनाथ की निगाह भी साठी पर टिक गई थी।
साठी पास पहुँचा और सख्त स्वर में बोला ।
“मैं जानता हूँ कि देवराज चौहान के ठिकाने की खबर बिल्ला ने तुम्हें भी बेची है।"
मोना चौधरी खामोश रही।
"लेकिन तुम्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं। मैं सब संभालने जा रहा हूँ। अब देवराज चौहान बुरी मौत मरेगा।”
"मैं अब इस मामले में नहीं हूँ।" मोना चौधरी ने कहा।
"इस मामले में नहीं हो, क्या मतलब?" साठी बोला।
"देवराज चौहान ने जो किया, वो उससे नशे में करवाया गया है। मुझे पता लगा वो बेकसूर है।"
साठी के चेहरे पर जहरीले भाव उभरे।
"वो दूध पीता बच्चा है जो उससे उसकी मर्जी के खिलाफ कुछ करवाया जा सके।"
"कठपुतली नाम के नशे के आगे वो बच्चा ही है।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा--- “इस सारे मामले के पीछे विलास डोगरा है। मझे किसी पार्टी के लिए दुबई से एक बंदा यहाँ मंगवाना था। इस काम के लिए मैंने पहले विलास डोगरा से बात की फिर ये काम तुम्हारे भाई पूरबनाथ साठी को दे दिया। इससे विलास डोगरा के अहम को चोट पहुंची और उसने सारा मामला प्लॉन करके कठपुतली नाम के नशे का इस्तेमाल देवराज चौहान और जगमोहन पर किया। वो खास तरह का नशा है उसके बारे में सुनोगे तो समझ जाओगे कि ऐसा हो सकता है और तुम---।"
"अपनी ये बकवास मुझे मत सुनाओ।"
"ये सच है साठी।" पारसनाथ कह उठा--- "परन्तु इस सच को मानने में काफी कठिनाई पेश आती है। फिर हम...।"
“देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे ने मेरे भाई को मारा है।" साठी गुर्रा उठा।
"हरीश खुदे के बारे में तो हम नहीं जानते...।"
"मैं जानता हूँ उसे अच्छी तरह। आठ साल तक खुदे ने मेरे लिए काम किया...।"
"देवराज चौहान और जगमोहन ने जब तुम्हारे भाई को मारा, तो वो अपने होश में नहीं थे और विलास डोगरा का इशारा उन्हें चला रहा था। विलास डोगरा ने अपनी बेइज्जती का बदला लिया है देवराज चौहान और जगमोहन को मोहरा बना कर। इस मामले में असली खिलाड़ी विलास डोगरा है। बदला लेना है तो उससे लो।" पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।
"देवराज चौहान ने मेरे भाई को मारा---।"
"मेरे ख्याल से देवराज चौहान ने नहीं, विलास डोगरा ने तुम्हारे भाई को मारा है।" पारसनाथ बोला।
“मैं तुम्हारी ये बकवास सुनने नहीं आया यहाँ।" कहकर साठी पलट कर जाने को हुआ।
“देवराज चौहान को मारने की तेरी राह इतनी भी आसान नहीं रहेगी साठी।" मोना चौधरी कह उठी।
साठी फौरन पल्टा और खतरनाक निगाहों से मोना चौधरी को देखने लगा।
मोना चौधरी चेहरे पर गम्भीरता समेटे साठी को देख रही थी।
“क्या कहना चाहती हो मोना चौधरी ?" साठी की आँखें सिकुड़ गई।
“यहाँ पर देवराज चौहान की पत्नी नगीना भी मौजूद है, उसे बचाने के लिए।" मोना चौधरी बोली।
"देवराज चौहान की पत्नी। पत्नी भी है उसकी ?" साठी उपहास भरे स्वर में कह उठा।
मोना चौधरी कुछ नहीं बोली।
पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा था।
"कहाँ है वो ?" कहते हुए साठी ने नज़रें घुमाई।
"कुछ देर पहले वो मुझसे यहीं पर मिली थी।"
साठी की निगाह, मोना चौधरी पर आ ठहरी।
"तेरा मतलब कि वो मुझे देवराज चौहान को मारने से रोक लेगी। ये ही कहना चाहती है ना तू?"
“हाँ।"
“तू अभी यहीं है ना मोना चौधरी। यहीं रह---देवराज चौहान की लाश देखकर जाना, कुछ ही मिनटों में, समझी ना।" साठी गुर्राया।
"मैं तुझे सतर्क कर रही हूँ साठी कि देवराज चौहान की पत्नी को तू हल्के में ना ले।" मोना चौधरी बोली।
"तो क्या करूँ?" साठी ने जहरीले स्वर में कहा।
"तेरे को देवराज चौहान तक पहुँचने में बहुत मेहनत करनी---।"
"इधर देखती है ना तू। हर तरफ मेरे आदमी फैले हैं, जो भी सामने आया, उसे चीर-फाड़ कर सुखा देंगे।" देवेन साठी ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा--- "मुझे अपने भाई की मौत का बदला लेना है और देवराज चौहान की जान लेकर रहूँगा। देवराज चौहान की पत्नी की मुझे ज़रा भी परवाह नहीं है। एक औरत मेरा बिगाड़ ही क्या सकती है।"
"मैं भी तो औरत हूँ साठी।"
साठी ने मोना चौधरी को घूरा।
"देवराज चौहान की पत्नी साधारण औरत नहीं है। जो काम तुम करते हो, इन कामों में वो महारथी है।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा--- “वो क्या करेगी मैं नहीं जानती, परन्तु इतना पता है कि देवराज चौहान को बचाने के लिए वो पूरी ताकत लगा देगी। मेरा ख्याल तो ये है कि वो तुझे किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने देगी।"
देवेन साठी के होंठों से गुर्राहट निकली और पलट कर अपनी कारों और अपने आदमियों की तरफ बढ़ गया। तभी उसकी निगाह सड़क पार दूसरी तरफ खड़े बिल्ला पर पड़ी जिसने अपने दोनों हाथों में एक-एक ब्रीफकेस उठा रखा था। साठी ने उस पर से नज़रें हटा ली और अपने आदमियों के पास जा पहुँचा।
पारसनाथ ने भी बिल्ला को देख लिया था।
"मैं अभी आया।" कहकर पारसनाथ सड़क पार खड़े बिल्ला की तरफ बढ़ गया।
बिल्ला फुटपाथ पर सतर्क सा खड़ा हर तरफ नज़रें घुमा रहा था। हाथों में थमें ब्रीफकेसों में एक-एक करोड़ रुपया भरा पड़ा था। साठी को देखकर उसे खुशी हुई कि सब ठीक चल रहा है। मोना चौधरी को भी वो देख चुका था और सोच रहा था कि खुदे साठी से बच गया तो मोना चौधरी से नहीं बच सकेगा। उसने पारसनाथ को आते देखा और देखता रहा।
पारसनाथ उसके पास पहुँच कर कड़वे स्वर में बोला ।
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
"तुम कौन हो?" बिल्ला बोला।
"मेरी आवाज से भी नहीं पहचाना?"
"नहीं।"
"मैं पारसनाथ हूँ। उसने मुझसे फोन पर बात की थी।"
“ओह, पहचान गया।” बिल्ला ने दाँत फाड़े--- “पर तूने मुझे कैसे पहचाना?"
“जब तू मोना चौधरी को देवराज चौहान की खबर बेचकर ये ब्रीफकेस ले रहा था तो तब मैं कुछ दूर कार में बैठा तुझे देख रहा था।"
"समझ गया।"
“तूने ऐसा क्यों किया? पहले तो देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे को अपने घर में ठहराया फिर उनके बारे में देवेन साठी और मोना चौधरी को बता दिया।" पारसनाथ के सपाट स्वर में कठोरता थी।
"मैंने उन्हें अपने घर में नहीं ठहराया। खुदे खुद ही देवराज चौहान और जगमोहन को मेरे यहाँ ले आया...।"
"जो भी हो तूने गद्दारी क्यों की उनके साथ ?"
बिल्ले की आँखों में चमक आ गई। बोला कुछ नहीं ।
“देवराज चौहान और जगमोहन से तेरी क्या दुश्मनी है?"
"कोई दुश्मनी नहीं। मेरे यहाँ आने से पहले तो मैंने उन्हें देखा भी नहीं था।"
"फिर उन्हें मुसीबत में क्यों डाला?"
"मेरी बात तो खुदे से है। खुदे की पत्नी टुन्नी मुझे चाहती है।" बिल्ला ने दाँत फाड़कर कहा।
"तुझे चाहती है?"
"हाँ---।"
"मुझे तो तेरे में ऐसा कुछ दिखता नहीं कि कोई शादीशुदा औरत तेरे पर फिदा हो।"
"वो मुझे बहुत चाहती है। मैं भी टुन्नी को बहुत चाहता हूँ। दो दिल मिलने को बेकरार हैं, हम तड़प रहे हैं एक-दूसरे के बिना। टुन्नी खुदे को फोन करके मेरे से बात करने को कहती है, पर वो बात कराता नहीं। आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है। लेकिन जब तक खुदे जिन्दा है, मेरा और टुन्नी का मिलन नहीं होने देगा।"
"तो तूने खुदे को मरवाने के लिए उनकी खबर साठी और मोना चौधरी को बेची।" पारसनाथ ने कड़वे स्वर में कहा।
बिल्ले ने सहमति से गर्दन हिलाई।
"तूने ये नहीं सोचा कि ऐसा करने से देवराज चौहान और जगमोहन खामखाह फंस जायेंगे।"
"मुझे क्या।" बिल्ले ने दाँत दिखाए--- “अब तो मुझे दो करोड़ रुपया भी मिल गया। एक करोड़ मोना चौधरी से, दूसरा करोड़ देवेन साठी से। टुन्नी और मैं अब जीवनभर बहुत खुश रहेंगे। हम दोनों एक साथ रहेंगे और घूमा करेंगे। उसे ऊटी घुमाऊंगा। पूना और खंडाला घुमाऊंगा। महबालेश्वर की सैर करेंगे---आह, कितना मजा आयेगा टुन्नी के साथ। वो कीमती-कीमती साड़ियां पहनेगी उसे स्कर्ट भी पहनवाऊँगा। जींस भी पहनेगी। मैंने सब सोच रखा है कि हमने क्या-क्या करना है। खुदे के मर जाने पे वो भी बहुत खुश होगी। मेरी आज की रात टुन्नी के साथ ही बीतेगी। जश्न होगा हम दोनों के बीच। जिस्मों के मिलने का जनून। एक साथ पीने का जश्न और नई जिन्दगी की शुरुआत का जश्न---।"
पारसनाथ, बिल्ला के खुशी से चमकते चेहरे को देख रहा था।
“टुन्नी को पता है कि तूने ये सब किया है?" पारसनाथ ने उसे घूरा।
“उसे क्या जरूरत है बताने की। सरप्राईज दूंगा उसे, खुदे की मौत की खबर सुनाकर ।"
"यहाँ क्यों आया है?"
“क्यों नहीं आऊँगा। खबर पक्की तो कर लूं कि खुदे मर गया, तभी तो टुन्नी के पास जाकर उसे बताऊँगा कि... वो देख, साठी अपने आदमियों के साथ गली में जा रहा है, अब खुदे की खैर नहीं।"
पारसनाथ ने उस तरफ निगाह मारी।
साठी अपने आदमियों के साथ तंग गली में प्रवेश कर गया था। तभी पारसनाथ की निगाह बांके और रुस्तम पर पड़ी, जो अभी-अभी जाने कहाँ से आकर गली के किनारे के पास पहुँचते जा रहे थे। फिर पारसनाथ ने बिल्ला को देखकर कहा।
"मुझे तेरी जिन्दगी ज्यादा लम्बी नहीं दिखती।"
"तेरी आंखें खराब हैं।" बिल्ला ने मुंह बनाया--- "मैं और टुन्नी पूरे सौ साल तक जिएंगे।"
"टुन्नी तो जरूर जी लेगी। पर तेरी जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं।" कहकर पारसनाथ वहाँ से हटा और बांके रुस्तम की तरफ बढ़ गया। चेहरे पर गम्भीरता और चिन्ता दिख रही थी।
बांके और रुस्तम गली के किनारे खड़े, भीतर देख रहे थे।
"कुछ सोचा है देवराज चौहान और जगमोहन को बचाने के लिए?" पारसनाथ पास पहुँचकर बोला।
दोनों ने फौरन पारसनाथ को देखा।
"साठी अपने आदमियों के साथ देवराज चौहान की तरफ गया है।" पारसनाथ होंठ भींचकर बोला।
"म्हारे को पतो नाही का होना हौवे।" बांके लाल राठौर चिन्तित स्वर में कह उठा--- “म्हारे को तो नगीना बहणो बोल्लो हो तंम पीछो को रहो अंम मामलो संभाल लयो। म्हारी तो खोपड़ी में कुछ भी ना आयो हो कि का हौवे ईब---।"
"नगीना क्या करेगी, बताया नहीं ?"
"म्हारे को कुछ ना बोल्लो हो।" बांके बोला।
"मैं तुम दोनों को बिल्ला के बारे में बताना चाहता हूँ। तुम उसे पूछ रहे थे ना?"
“वो किधर होईला बाप ?” रुस्तम राव के होंठों से गुर्राहट निकली।
"उस तरफ। सड़क पार। फुटपाथ पर खड़ा है। दोनों हाथों में ब्रीफकेस थाम रखे हैं, दिखा वो---।"
बांके और रुस्तम की निगाह बिल्ला पर जा टिकी ।
"वो कबूतरों सा दिखो हो, बिल्ला हौवे वो?"
"वही है।" कहकर पारसनाथ, मोना चौधरी की तरफ बढ़ता चला गया।
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