भारतीय गुप्तचर जासूसी संस्था के चीफ मार्शल ने अपने कमरे में प्रवेश किया और आगे बढ़कर दीवार में लगी सामान्य से बड़ी स्क्रीन के सामने कुर्सी पर बैठते हुए मोबाइल उठाया और नम्बर मिलाकर फोन कानों से लगा लिया। साथ ही सामने लगे कई स्विचों में से कुछ बटन दबाए तो स्क्रीन रोशन हो उठी।

कानों में लगाए फोन में अब बेल बजने लगी थी। स्क्रीन चमक रही थी, परंतु वो खाली थी।

“हैलो मार्शल।” तभी मार्शल के कानों में उधर से आवाज पड़ी। इसके साथ ही स्क्रीन रोशन हो उठी। स्क्रीन पर बाजार का छोटा-सा दृश्य नजर आया। लोग आ जा रहे थे। उन्हीं में से एक व्यक्ति दिखा, जो कि सफेद कमीज पहने सड़क किनारे जाता, कान से फोन लगाए बात कर रहा था।

“मैं तुम्हें देख रहा हूं टॉम। नीदरलैंड में कब तक टिके रहोगे। तुमने तीन दिन से मुझे फोन भी नहीं किया।” मार्शल बोला।

“मुझ पर यहां की सरकार नजर रख रही है। अभी बात नहीं करना ही ठीक है।”

“क्या अब भी तुम उनकी नजरों में हो?” मार्शल ने पूछा।

“हाँ। वो मेरे पीछे हैं।”

मार्शल फौरन सामने लगा छोटा-सा लीवर धीमे-धीमे एक तरफ करने लगा। अब स्क्रीन पर जाते उस आदमी के पीछे की तस्वीर स्क्रीन पर नजर आने लगी। मार्शल की निगाह स्क्रीन पर टिकी थी।

फिर मार्शल की निगाह नीले बैंक की शर्ट पहने एक आदमी पर जा टिकी जो तेजी से आगे बढ़ रहा था।

“तुम्हारा पीछा करने वाला नीली चैक शर्ट में है। मैं उसे भी देख पा रहा हूँ।”

“वो अकेला नहीं है। और भी है। तीन लोग है। उनसे पीछा छूटने पर ही तुमसे बात करूंगा।”

“काम हो चुका है न?”

“पूरी तरह। वो इसलिए मेरे पीछे हैं कि अभी उन्हें सिर्फ शक है कि मैंने उसे गोली मारी हो सकती है। वह सौ के करीब लोग थे। पार्टी चल रही थी सब नीदरलैंड सरकार में ऊँचे ओहदे पर मौजूद थे और मेहमान के तौर पर कई देशों के राजदूत भी मौजूद थे। मैंने वेटर के कपड़े पहने, वहीँ हाल में सामान सर्व करते, सायलेंसर लगी रिवॉल्वर से अमेरिका के राजदूत को खत्म कर दिया और कोई न जान सका कि गोली कहाँ से आई है। उसके बाद मैंने रिवॉल्वर से भी छुटकारा पा लिया। उसे किसी अन्य की कोट की जेब में डाल दिया था। लेकिन वहां मौजूद एक सिक्योरिटी वाले को जाने कैसे मुझ पर शक हो गया। तब मेरी तलाशी ली गई। पूछताछ की गई। परंतु मेरे खिलाफ उन्हें कुछ नहीं मिला। लेकिन उसके बाद मैंने पाया कि मुझ पर नजर रखी जा रही है। मेरा पीछा किया जा रहा है। परंतु अभी तक मैंने पीछा छुड़ाने की चेष्टा नहीं की।”

“उन्हें पीछा करने दो। वो तुम पर सिर्फ शक कर रहे हैं। थोड़ा भी यकीन होता तो तुम्हें गिरफ्तार कर लिया गया होता।”

“फुर्सत में आने के बाद तुम्हें फोन करूंगा मार्शल।”

“ओके टॉम।” कहने के साथ ही मार्शल ने फोन बंद किया तो सामने ही रोशन स्क्रीन से तस्वीरें गायब हो गई। हाथ बढ़ाकर मार्शल ने एक स्विच को छेड़ा तो स्क्रीन बंद हो गई। मार्शल कुर्सी छोड़कर उठा और टेबल की तरफ बढ़ गया।

तभी हाथ में दबा मोबाइल बजने लगा।

“हैलो।” मार्शल ने कॉलिंग स्विच दबाकर फोन कान से लगाया।

“मार्शल, मैं कामरान बोल रहा हूं।”

“तुम तो कामनी के पीछे सूरत में थे।” मार्शल कह उठा।

“हां मार्शल। कल कामनी मुम्बई से सूरत पहुंच गई। एक जगह किसी

से मिली और उसे अपना सूटकेस दे दिया फिर खुद होटल में जा ठहरी। जिसने सूटकेस लिया उस पर हमारी नजर है। सुनील उस पर नजर रखे हुए है। आज सुबह ग्यारह बजे कामनी होटल से निकली और सूरत के एक बाजार में पहुंचकर दुकानों पर खरीददारी के लिए जाने लगी।

“वो किसी से मिली? किसी से बात की?”

“दुकानदारों से, सेल्समैनों से वो बात करती है, परंतु हम नहीं जानते कि वो क्या बात कर...।”

“उनमें से कोई भी इकबाल खान सूरी का आदमी हो सकता है।”

“सम्भव है... ।”

“वो दुबई से मुम्बई बिना वजह नहीं आई। इकबाल खान सूरी उसे मुम्बई भेजने का खतरा नहीं उठाएगा। अगर उसने ऐसा किया है तो जरूर कोई खास बात रही होगी। हमें वो बात जाननी...”

“कामनी को पकड़ लें?”

“बेवकूफी मत करो। ऐसा करते ही इकबाल खान सूरी सतर्क हो जाएगा और कामनी भी मुंह नहीं खोलने वाली । तुम उस पर नजर...”

“नजर तो हम रख रहे हैं, परंतु एक गड़बड़ हो गई है। किसी ने कामनी को शूट करना चाहा। मेरे खयाल में वो आदमी बाबा रतनगढ़िया का है और मुम्बई से ही कामनी के पीछे है। मुम्बई में जो हमला कामनी पर हुआ, वो बाबा रतनगढ़िया के आदमियों ने ही किया था और अब भी उसके आदमी पीछे हैं। कुछ देर पहले बाजार में कामनी को शूट करने की चेष्टा की गई परंतु उसी समय जाने कहां से देवराज चौहान ने बीच में आकर कामनी को बचा लिया।”

“देवराज चौहान?” मार्शल चौंका- “डकैती मास्टर देवराज चौहान?”

“वो ही। ‘मैं पाकिस्तानी’ के मिशन के दौरान मैंने देवराज चौहान को अच्छी तरह देखा था। अब उसे देखते ही पहचान लिया कि वो देवराज चौहान है। उसने कामनी को बचाया ही नहीं, जबर्दस्ती कार में अपने साथ ले गया।

जबकि कामनी उसके साथ जाने को तैयार नहीं थी और बचाओ-बचाओ और हैल्प कहकर चीख रही थी। देवराज चौहान अकेला है। साथ में जगमोहन नहीं है।

“इसका मतलब देवराज चौहान और कामनी पहले से एक-दूसरे को नहीं जानते?” मार्शल के माथे पर बल नजर आ रहे थे।

“नहीं। मेरे खयाल में ये इत्तफाक ही था कि देवराज चौहान ने उस आदमी को रिवॉल्वर निकालकर, कामनी को शूट करने की कोशिश करते देखा तो उसे बचाने की भावना से बीच में आ गया। दोबारा उस पर हमला न हो, इस भावना से उसे उठाकर ले गया। वो कामनी को समुद्र किनारे बनी एक काटेज में ले आया है। हम उस पर नजर रखे हुए हैं। अब हम क्या करें मार्शल?”

“देवराज चौहान के बीच में आ जाने से मामला अजीब-सा हो गया है कामरान।”

“ये भी सम्भव है कि देवराज चौहान पहले ही कामनी को जानता हो।”  उधर से कामरान ने कहा।

“ये कभी नहीं हो सकता। देवराज चौहान कैसा इंसान है मैं जानता हूं। वो इकबाल खान सूरी तो क्या उसके आदमियों की परछाईं से भी दूर रहेगा। कामनी से उसका पहले से वास्ता होना सम्भव ही नहीं है। मुझे पूरा यकीन है कि देवराज चौहान कामनी की हकीकत से वाकिफ नहीं है। कामनी की असलियत का उसे जरा भी पता होता तो वो उसे छोड़कर अलग हो गया होता।”

“हम क्या करें, हमें बताओ।”

“तुम लोग देवराज चौहान और कामनी पर नजर रखो और हर तीन घंटे बाद मुझे रिपोर्ट देते रहो।” मार्शल के चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे रहे थे- “देवराज चौहान का इस मामले में आ जाना हमारे लिए बुरा नहीं है। मेरा काम देवराज चौहान पूरा करेगा। उसे कामनी के करीब आ लेने दो। देवराज चौहान ने उसकी हत्या होने से बचाया। आगे भी हो सकता है, वो ऐसा ही कुछ करे और ये बात मेरे लिए बेहतर है। उन दोनों में जितनी पहचान बढ़ेगी, उतना ही अच्छा होगा।”

“मैं समझा नहीं मार्शल?”

“उन पर नजर रखो और मुझे रिपोर्ट देते रहो।” कहकर मार्शल ने फोन बंद किया। होंठ सिकुड़ चुके थे परंतु आंखों में चमक नजर आ रही थी। टेबलपर रखे इंटरकॉम का रिसीवर उठाकर बटन दबाया और रिसीवर कान से लगा लिया।

दूसरी तरफ बजर बजते सुना फिर सतनाम की आवाज कानों में पड़ी।

“यस मार्शल।”

“मालूम करो कि जगमोहन कहां है।”

“जगमोहन? देवराज चौहान का साथी?”

“कुछ घंटे पहले उसे वरसोवा के इलाके में देखा गया था। वो कार ड्राइव करता कहीं जा रहा था। हमारे एक एजेंट ने उसे देख लिया था और फोन पर मुझे बताया भी।” उधर से सतनाम ने कहा।

“तो जगमोहन मुम्बई में ही है।” मार्शल ने सोच-भरे स्वर में कहा।

“यस मार्शल।”

“कामनी के मामले में देवराज चौहान ने दखल दे दिया है। मार्शल बोला।”

“नहीं मार्शल।” सतनाम की चौंकी आवाज आई- “ये कैसे हो...”

“कामरान से बात कर लेना। ये हो चुका है।”

“देवराज चौहान से मिलने आई थी कामनी?”

“नहीं। कामरान का कहना है कि कामनी पर गोली चलने वाली थी तब देवराज चौहान के बीच में आकर दखल दिया और कामनी को अपने साथ ले गया। इस समय वे दोनों सूरत में समुद्र किनारे एक कॉटेज में मौजूद है।”

“क्या देवराज चौह्मन को पता नहीं है कि वो इकबाल खान सूरी की प्रेमिका और उसके सुरक्षा इंतजामों के देखने वाली कामनी है।”

“तुम ही इस बात का जवाब दो सतनाम।”

“मेरे खयाल में देवराज चौहान नहीं जानता। अगर जानता होता तो कामनी के पास फटकता भी नहीं।

“मेरा भी ये ही खयाल है। महज कामनी को बचाने की खातिर वो इस मामले में आ गया है। मुझे अब अपने इस काम की योजना बदलनी पड़ेगी। हमारा ये काम अब देवराज चौहान करेगा। इस काम में कामनी की पहचान का उसे फायदा जरूर मिलेगा।”

“इस काम में देवराज चौहान?” उधर से सतनाम अजीब-से स्वर में बोला- “क्या वो हमारा काम करेगा?”

“जरूर करेगा। उसे करना ही पड़ेगा।” मार्शल दृढ़ स्वर में कह उठा।

☐☐☐

“इस तरह एक सौ दस करोड़ का माल हमारा हो जाएगा। कार ड्राइव करते ओंकारनाथ ने कहा। बगल में बैठा देवराज चौहान कार की खिड़की से बाहर देखता रहा।

सड़क पर हैवी ट्रैफिक था। इंजनों का और हॉर्न का शोर ही हर तरफ से सुनाई दे रहा था। दिन के ग्यारह बज रहे थे। चढ़ते सूर्य की गर्मी भी अपना असर दिखाने लगी थी।

पैंतीस वर्षीय ओंकारनाथ ने देवराज चौहान पर नजर मारते हुए कहा। “तुमने मेरी योजना सुनकर कोई जवाब नहीं दिया। मैंने सही योजना बनाई है कि एक सौ दस करोड़ तक हम कैसे आसानी से पहुंच सकते हैं और उसे ले जा सकते हैं। अगर तुम्हें कहीं कमी लगी है तो कहो।”

“मेरी कार तक चलो।”

“मेरी प्लानिंग इतनी बुरी तो नहीं कि तुम्हें अपनी कार याद आने लगे।” ओंकारनाथ कह उठा।

“मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूं कि मेरे पास समय कम है। कहीं पर जाना है मैंने।”

“मैं आधे घंटे से तुम्हें योजना बता रहा हूं, सुनने के बाद उसके बारे में कुछ तो कहो।”

“तुम्हारी प्लानिंग में मुझे कोई दम नहीं लगा।” देवराज चौहान ने कहा।

“सच में?” ओंकारनाथ ने गहरी सांस ली।

“ये बच्चों वाली योजना है और जिस तरह तुम तीनों गार्डों को शूट करने की सोच रहे हो, वो तो और भी घटिया बात हो गई। मैं किसी की हत्या करके दौलत पर हाथ नहीं मारता।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

ओंकारनाथ कार आगे बढ़ाए जा रहा था।

“ठीक है।” ओंकारनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा- “तुम योजना बनाओ।”

“मैं?”

“हां। सब कुछ तुम्हें बता दिया है कि कहां पर हाथ मारना है और वहां क्या-क्या इंतजाम है। तुम ही कोई बढ़िया-सी योजना बनाओ कि एक सौ दस करोड़ पर हाथ साफ किया जा सके।”

मैं अपनी योजना बनाने नहीं, तुम्हारी सुनने आया था। सरबत सिंह ने मुझे मजबूर किया कि एक बार तुम्हारी बात सुन लूं। मैंने तुम्हारी बात सुन ली, परंतु मेरा वक्त ही खराब हुआ।”

“इतनी भी बुरी नहीं है मेरी योजना।”

देवराज चौहान चुप रहा।

ओंकारनाथ ने एक जगह सड़क किनारे कार रोकी। बायीं तरफ फुटपाथ के पार कारों की लम्बी-चौड़ी पार्किंग नजर आ रही थी। वहीं पर ही देवराज चौहान की कार खड़ी थी।

देवराज चौहान कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकला।

“तुम सच कह रहे हो कि मेरी योजना में कोई दम नहीं।”

“हां। देवराज चौहान ने दरवाजा बंद किया।

“अगर मैं तुम्हें इसी योजना पर चलकर एक सौ दस करोड़ पर सफलता से हाथ मार कर दिखा दूं तो तुम क्या कहोगे?”

“मुझे दिखाने के वास्ते कुछ मत करना। मरोगे। जो ठीक लगे वो ही करना। अगर तुमने मुझे बताई इसी योजना पर काम किया तो तुम्हें भगवान भी नहीं बचा सकेगा।” कहने के साथ ही देवराज चौहान कार पार्किंग की तरफ बढ़ गया। हर तरफ कारों की कतारें नजर आ रही थीं। पार्किंग वाले लड़के वहां बिखरे अपनी-अपनी जगह पर ड्यूटी दे रहे थे। एक तरफ छाया के लिए प्लास्टिक शीट का छप्पर डालकर नीचे बेंच डाल रखा था। कभी कोई कार आ रही थी तो कोई जा रही थी। देवराज चौहान की कार सड़क की तरफ की पहली कतार में थी। वहां से सड़क सामने ही स्पष्ट नजर आ रही थी। देवराज चौहान अपने कार में बैठा। कार स्टार्ट की फिर कार का ए.सी. ऑन किया।

उसी पल पार्किंग में तेज रफ्तार से आती एक कार उसके बगल में आ रुकी।

देवराज चौहान की निगाह बगल में आ खड़ी हुई कार की तरफ उठी। उस कार में शीशे काले थे। परंतु आगे वाली सीटों पर दो लोगों के बैठे होने का आभास मिल रहा था। देवराज चौहान को उनके हाथ में दबी गन की झलक मिली तो उसके होंठ सिकुड़े। फिर खिड़की का शीशा नीचे होते देखा। तीस वर्ष का व्यक्ति दिखा। उसी ने गन थाम रखी थी। स्टेयरिंग सीट पर बीस-बाईस वर्ष का युवक बैठा था। कार में धीमी आवाज में स्टीरियो चल रहा था। स्टेयरिंग सीट पर बैठा युक्क स्टीरियो के म्यूजिक में मस्त था। जैसे उसे अपने साथी की हरकतों की परवाह ही न हो। दूसरे ने शीशा नीचे करके गन की नाल खिड़की से बाहर सामने सड़क की तरफ कर दी।

देवराज चौहान ने उस तरफ देखा। सामने सड़क से दोनों तरफ से आता जाता ट्रैफिक था।

देवराज चौहान समझ नहीं पाया कि वो किसका निशाना लेना चाहता है। तभी उसकी निगाह बगल में खड़ी कार में बैठे देवराज चौहान पर पड़ी। दोनों की नजरें मिलीं। गन वाले के चेहरे पर कटोरता आ गई।

देवराज चौहान ने अपनी निगाह घुमा ली। गन वाला कुछ पल उसे घूरता रहा फिर गन पर निगाह टिका ली। स्टेयरिंग सीट पर बैठा युवक स्टीरियो से उठते म्यूजिक पर, स्टेयरिंग पर उंगलियों की थाप दे रहा था। देवराज चौहान की निगाह सामने सड़क पर आते-जाते वाहनों पर बी।वो समझने की चेष्टा कर रहा था आखिर ये चलती कारों में से अपने शिकार का निशाना कैसे ले सकेंगे। यूं ही उत्सुकता के नाते वो ठहर गया था। जबकि ऐसे नाजुक वक्त में उसे यहां नहीं रुकना चाहिए था। सावधानी के तौर पर उसने रिवॉल्वर निकालकर अपनी गोद में रख ली कि गन वाला गुस्से में गन का मुंह उसकी तरफ भी घुमा सकता है।

देवराज चौहान की निगाह सड़क पर टिकी रही।

इस दौरान एक-दो पल के लिए आती-जाती कारों में से ठीक सड़क पार

‘बेनूर ज्वेलर्स’ का बोर्ड भी दिखाई दे जाता था। उसके शीशे का दरवाजा। वहां बैठा गार्ड। शीशे का काफी बड़ा शो-केस।

एकाएक देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।

वो सतर्क हो उठा।

मस्तिष्क में उसी पल ये विचार कौंधा कि ये सड़क पर जाते ट्रैफिक में से किसी पर नहीं बल्कि सड़क पार ‘बेनूर ज्वैलर्स’ पर किसी का निशाना लेने की चेष्टा में हैं।

देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर, बगल में खड़ी कार की खिड़की पर

वो ही पोजीशन थी। खिड़की से निकली गन, गन पर आंख लगाए तीस वर्ष का वो व्यक्ति। गर्मी में उसके माथे और गालों पर पसीने की लकीरें बह रही थी। देवराज चौहान ने उस गन की नाल का पीछा किया।

गन की नाल सीधा बेनूर ज्वैलर्स पर थी।

“मुझे क्या।” देवराज चौहान ने इस विचार के साथ सिर को झटक दिया और स्टार्ट कार की गियर डाली।

तभी गन का रुख उसकी तरफ हो गया।

देवराज चौहान चौंका।

उस व्यक्ति ने गन से इशारा किया अपना शीशा नीचे करे।

देवराज चौहान ने आधा शीशा नीचे किया।

“तुम यहीं रहोगे, जब तक हमारा काम खत्म नहीं हो जाता।” गन वाला कह उठा।

“क्यों?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“तुम यहां से जाकर, पुलिस को खबर कर सकते हो कि यहां कुछ होने वाला है।”

“मैं ऐसा क्यों करूंगा?”

“हीरो बनने के लिए।”

मैं पुलिस के मामले में नहीं आना चाहता।”

“ये तो अच्छी बात है। तुम यहीं रहो। पहले हम यहां से जाएंगे फिर तुम जाना। बाद में पुलिस को मेरे हुलिए के बारे में कुछ बताया तो तुम्हें भी शूट कर दूंगा।” वो बोला।

दूसरा अभी तक म्यूजिक सुनने में व्यस्त था।

“हिलना मत। इसी तरह कार में रहो।”

देवराज चौहान ने गियर पर न्यूटल पर ले आया। इंजन चल रहा था।

ए.सी. ऑन था।

“कार का इंजन बंद कर दो।” गन वाले ने कहा।

“तो ए.सी. भी बंद हो जाएगा।” देवराज चौहान ने कहा।

“तुम कार में बैठे क्या कर रहे थे।” उसने गन को पुनः सामने की तरफ कर लिया था और आंख गन पर लगा दी।

“अभी कार में आकर बैठा ही था। तभी तुम आ गए।”

“ठीक है। इसी तरह बैठे रहो।”

देवराज चौहान ने सड़क पार जाती कारों के बीच में से बेनूर ज्वैलर्स पर नजर मारी।

“तुम क्या करना चाहते हो?” देवराज चौहान ने पूछा।

“देख नहीं रहे।”

“तुम सड़क पर जाती कारों में से किसी पर गोली चलाने वाले हो।”

“चुप रहो।”

देवराज चौहान चुप कर गया। नजरें सड़क पार बेनूर ज्वैलर्स पर टिका दीं।

इसी पल ‘बेनूर ज्वैलर्स’ के दरबान ने शीशे का दरवाजा खोला और भीतर से करीब अट्ठाईस वर्ष की बेहद खूबसूरत युवती बाहर निकली। उसने जींस की पैट और स्कीवी पहन रखी थी। 5-5 फुट हाइट थी। आंखों पर काला चश्मा लगा रखा था। शो रूम की तीन सीढ़ी उतरकर वो आगे बढ़ गई।

तभी देवराज चौहान के कानों में फायरिंग का तेज धमाका गूंजा।

गन वाले ने गोली चला दी थी।

देवराज चौहान समझ गया कि निशाना वो युवती ही है।

परंतु गोली उस तक न पहुंच सकी और सड़क पर जाती कार में जा धंसी “सत्यानाश।” उसने गन वाले को बड़बड़ाते देखा। गन फौरन खिड़की से भीतर कर ली।

तभी कार स्टार्ट हुई और बैक होने के पश्चात तेजी से बाहर निकलने वाले रास्ते पर दौड़ गई।

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली और सड़क पार बेनूर ज्वैलर्स की तरफ देखा।

अब वो युवती वहां नहीं दिखी।

देवराज चौहान ने भी कार को बैक किया और पार्किंग से बाहर निकलने

वाले रास्ते की तरफ बढ़ गया। उसकी सोचों में वो गन वाला, उसका साथी जो म्यूजिक सुनने में व्यस्त था या वो लड़की घूम रही थी। वो लड़की की हत्या करना चाहते थे। परंतु उसे लड़की ऐसी न लगी कि हत्या हो जाने के काबिल लगे। वो साधारण-सी खूबसूरत-सी आम उन युवतियों की तरह लगी, जो कि कदम-कदम पर नजर आ जाती हैं।

देवराज चौहान ने पार्किंग के पैसे दिए और कार सड़क पर ले आया।

दूसरी वाली कार कहीं भी नजर नहीं आई थी। शायद वो तेजी से जा चुकी थी।वो दोबारा फिर उस युवती को शूट करने की चेष्टा करेंगे। देवराज चौहान ने सोचा कि गन वालों का प्लान गलत था।

उन्हें सड़क पार से निशाना नहीं लेना चाहिए था। कोई भी कार बीच में आ सकती थी। ऐसा ही हुआ। उन्हें “बेनूर ज्वैलर्स” के बाहर ही कार में बैठकर उसके बाहर आने का इंतजार करना चाहिए था। इस तरह उसे शूट करने में आसानी होती और गोली चलाकर वहां से निकला भी जा सकता था।

सड़क पर कुछ आगे जाते ही देवराज चौहान ने मार्किट की तरफ नजरें घुमाई तो उसी पल उसकी आंखें सिकुड़ गईं। वो युवती दुकानों के सामने से, दुकानों को देखती आगे बढ़ रही थी। कंधे पर लेडीज पर्स लटका हुआ था। वो शापिंग करने में व्यस्त थी। मार्किट से अपने मन पसंद की चीज खोज रही थी।

इस बात से पूरी तरह अंजान थी कि उसकी जान भारी खतरे में है। कभी भी, कहीं से भी गोली आकर उसे लग सकती है।

देवराज चौहान ने कुछ उलझन महसूस की। युवती के हाव-भाव से ऐसा न लगा कि वो किसी प्रकार की गलत युवती है। अगर वो गलत होती, कोई उलटा काम किया होता तो इस तरह बेखौफ सी बाजार में न घूम रही होती।

तो वो लोग इसे क्यों मारना चाहते हैं?

अगले ही पल देवराज चौहान चौंका।

वो वाली ही कार उसे सड़क के उस पार दिखी। वो सड़क किनारे खड़ी थी और युवती उससे उलटी दिशा में कुछ आगे जा रही थी। मतलब कि वो अभी भी उसे शूट करने की ताक में है।

युवती को बचाना चाहिए।

वो गलत नहीं लगती।

उसे जरूर पता होगा कि कोई उसकी जान क्यों लेना चाहता है।

एक बार युवती को सतर्क कर देना चाहिए।

इस विचार के साथ ही देवराज चौहान ने तेजी से कार आगे बढ़ा दी। कुछ आगे जाकर ‘कट’ था।

वो कार भी वहीं से मुड़ी होगी। देवराज चौहान ने कार को वहां से वापस मोड़ा और दुकानों की तरफ किनारे पर लाया और सड़क किनारे कार रोक कर बाहर निकला और आगे बढ़ गया फुटपाथ पर। युवती इधर से ही आ रही थी। देवराज चौहान की निगाह उस युवती को देखने की अपेक्षा कर रही थी आगे बढ़ते हुए।

परंतु कई कदम आगे जाने पर भी युवती नहीं दिखी तो वो ठिठका । फौरन सड़क के किनारे की तरफ देखा तो उस कार को बीस कदम आगे खड़े पाया।

मतलब कि युवती कहीं पास ही थी। देवराज चौहान सतर्कता से वहां बने शो-रूम के भीतर बाहर से ही देखने लगा।

लेकिन तुरंत ही ठिठक गया।

एक शो-रूम के बाहर वो ही गन वाला टहल रहा था। उसका दायां हाथ जेब के भीतर था। स्पष्ट था कि दायां हाथ जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर टिका हुआ था कि युवती सामने वाले शो-रूम से बाहर आये और वो उसे शूट करे। उसकी नजर कहां थी, उसने पहचान लिया।

देवराज चौहान आगे बढ़ा शो-रूम की तरफ। पास पहुंचा।

दरबान ने तुरंत शीशे वाला दरवाजा खोला।

देवराज चौहान भीतर प्रवेश कर गया और ठिठक कर उस बड़े शो-रूम में नजरें घुमाईं।

वो युवती नजर आ गई।

जींस की पैंट और पीली स्कीवी।

ये साड़ियों का शो-रूम था और वो अपने लिए साड़ी पसंद कर रही थी।

दो सेल्सगर्ल उसे साड़ी दिखा रही थीं। देवराज चौहान समझ चुका था कि ये शरीफ-सी युवती भारी मुसीबत में है। ये ज्वैलरी देख रही है। साड़ी खरीद रही है और बाहर उसकी हत्या के लिए वो आदमी मंडरा रहा है।

तभी एक सेल्सगर्ल युवती उसके पास पहुंचकर, मुस्कराकर बोली।

“मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूं सर?”

“मैं अपनी पत्नी को ढूंढ रहा था।” देवराज चौहान ने कहा—“उसे साड़ी खरीदनी थी और यहीं मिलना था। लगता है अभी तक वो पहुंची नहीं। मैं फिर आऊंगा।”

“आप यहां बैठकर मैडम के आने का इंतजार कर सकते हैं। या तब तक मैडम के लिए साड़ियां पसंद कर।”

“मैं फिर आऊंगा।” देवराज चौहान ने मुस्कराकर कहा और शो-रूम से बाहर निकल आया।

वो आदमी अभी भी एक तरफ जेब में हाथ डाले खड़ा था।

देवराज चौहान की उससे नजरें मिलीं।

उस आदमी के चेहरे पर कठोरता उभरी।

देवराज चौहान ने कार की तरफ देखा ।

स्टेयरिंग सीट पर बैठा युवक स्टेयरिंग पर उंगलियों से तबला-सा बजा रहा था। देवराज चौहान उस व्यक्ति की तरफ बढ़ गया।

“हैलो।” देवराज चौहान पास पहुंचकर बोला—“तुम भी यहां हो।”

“दफा हो जाओ।” वो गुर्रा उठा।

“मैं जानता हूं तुम किसकी जान लेने के चक्कर में हो। वो नीली जींस और पीली स्कीवी वाली है न?”

उसने कठोर निगाहों से देवराज चौहान को देखा।

“तुम भी मरना चाहते हो?” वो बोला।

“नहीं।”

“दोबारा मुझे नजर आए तो गोली मार दूंगा।”

“क्यों मारना चाहते हो उसे। वो तो मुझे शरीफ-सी लगती है।” देवराज

चौहान ने कहा।

“तुम खिसक लो।”

“क्यों पड़े हो उसके पीछे।”

दोनों ने एक-दूसरे की आंखों में देखा फिर वो कह उठा।

“उसे मारने के मुझे दस लाख मिले हैं?”

“दस लाख? मिल गये या मिलने वाले हैं?”

“मिल गये हैं। दफा हो जाओ तुम यहां से।” वो दांत किटकिटा उठा।

“किसने दिए दस लाख?”

“हरामजादे मरना चाहता है तू। भाग जा यहां से।” वो गुर्रा उठा।

“तू मुझे नहीं मार सकता।”

“क्यों?” क्रोध में उसका चेहरा तपने लगा था।

“इस वक्त तू एक ही गोली चला सकता है। मेरे पर चला ले या उस पर। एक फायर करने पर शोर इतना होगा कि दूसरी गोली चलाने से पहले ही तुझे भागना पड़ेगा। तूने रिवॉल्वर पर साईलैंसर क्यों नहीं लगाया?”

“तुझे साईलैंसर की क्या जानकारी?”

“तेरे को गन पर भी साईलैंसर लगा लेना चाहिए था। गन पकड़ने के ढंग से तो तू मुझे पुराना खिलाड़ी लगा, परंतु अनाड़ीपन अभी भी तेरे में झलकता है कि भरे बाजार में गोली चलाने वाला है और साइलैंसर नहीं...’

“तू कौन है?”

“मैं पुलिस वाला हूं।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

“पु-पुलिस वाला?” वो हड़बड़ाया।

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

वो नर्वस-सा दिखने लगा था।

“अब क्या इरादा है तेरा?” देवराज चौहान बोला- “गिरफ्तार करूं तुझे?”

“न-नहीं। वो सकपका-सा उठा।”

“अब तो छोड़ रहा हूं, दोबारा दिखा तो नहीं छोडूंगा। फूट ले यहां से।”

उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। हिचकिचाया।

“सुना नहीं फूट ले।”

“मुझे काम करने दे। तेरे को एक लाख रुपया दूंगा।” वो धीमे स्वर में कह उठा।

“तो बहुत जरूरी है ये काम करना।” देवराज चौहान बोला।

“उधर कार में रखा है पैसा। लाख तुझे अभी दे दूंगा। पहले मुझे काम कर लेने दे। वो भीतर क्या कर रही है?”

“साड़ी खरीद रही है।” देवराज चौहान बोला—”लफड़ा क्या है?”

“लफड़ा?”

“कौन इस लड़की को खत्म करना चाहता...।”

“मुझे नहीं पता।

“कैसे नहीं पता। तूने तो कहा कि दस लाख दिए...।”

“मैं नहीं जानता वो कौन है। फोन आया, बात हो गई। कोई मुझे दस लाख दे गया। लड़की की तस्वीर भी और बता गया कि लड़की इस वक्त कहां पर मौजूद है।”

“ हूँ।”

“अब तुम...”

“कहां रहती है लड़की? नाम क्या है उसका?”

“तुम क्यों पूछ रहे हो?”

“आदत है पुलिस वाला जो ठहरा । मरने के बाद लड़की की लाश को, उसके घर जो पहुंचाना है।”

“तू अपना लाख ले और चला जा। ये लफड़ा भूल जा।”

“लाख गाड़ी में रखा है।”

“हां। तू गाड़ी के पास पहुंच। मैं इधर काम निबटाकर...”

“दूध पीते बच्चे को क्यों साथ में रखा है, जो सिर्फ म्यूजिक सुनने का काम करता है। किसी मौके पर तेरे को सहायता की जरूरत पड़ गई तो क्या होगा। वो तबला ही बजाता रहेगा।”

उसने देवराज चौहान को घूरा।

“पुलिस वाले को ऐसे मत देख । बुरा भुगतेगा।” देवराज चौहान एकाएक तीखे स्वर में बोला।

वो संभल गया।

“तेरा नाम क्या है?” देवराज चौहान ने पूछा।

“नहीं बताता।”

“तू मुझे कुछ भी नहीं बता...”

“देख तू अपना लाख रुपया ले और चला जा। मुझे मेरा काम करने दे।”

“दे-मैं जाऊं।”

“तू कार के पास चल। मैं गोली मार के आता हूं।” उसने हाथ अपनी जेब में डाले कहा।

“गोली से शोर होगा। तेरे साथ मैं भी फंस...”

“कुछ नहीं होगा। हम कार में बैठकर भाग जाएंगे और... ।”

“जेब में रिवॉल्वर पर हाथ है।”

“हाँ।”

“कौन-सी रिवॉल्वर है?”

“जर्मन मेक की है। ढाई लाख की ली थी। इससे चार को उड़ा चुका हूं।”

“मतलब कि वो लड़की पांचवा शिकार है।”

“वो आ गई।” उसके होंठों से निकला।

देवराज चौहान की निगाह तुरंत शो-रूम के शीशे के दरवाजे की तरफ घूमी।

वो बाहर निकल रही थी। हाथ में दुकान का लिफाफा था। मतलब कि साड़ी खरीद लाई थी।

देवराज चौहान ने फौरन उस व्यक्ति को देखा।

उसी पल उसने रिवॉल्वर निकाली थी।

देवराज चौहान ने फौरन हाथ का घूंसा, उसके हाथ पर मारा। हमला अचानक हुआ था। रिवॉल्वर छिटककर फुटपाथ के बरामदे में जा गिरी। तेज आवाज उभरी। लोगों का आना-जाना रुका।

युवती का ध्यान भी इस तरफ आकर्षित हुआ। वो ठिठक गई।

वो आदमी नीचे गिरी रिवॉल्वर पर झपटने को हुआ। देवराज चौहान ने जोरदार ठोकर उसके कुल्हों पर मारी। वो धड़ाम से लुढ़कता हुआ एक बूढ़ी औरत की टांगों से जा टकराया।

औरत चीख उठी।

देवराज चौहान ने आगे बढ़कर नीचे पड़ी रिवॉल्वर को जोरों की ठोकर मारी।

रिवॉल्वर दूर सरकती चली गई। देवराज चौहान फौरन उस युवती के पास पहुंचा जो हैरानी से ये सब देख रही थी।

“तुम्हारी जान खतरे में है।” देवराज चौहान ने उसकी कलाई पकड़ी—“ये आदमी तुम्हें मारने आया है। जल्दी से मेरे साथ चलो।”

युवती घबरा उठी।

“बचाओ। हैल्प।” इसके साथ ही उसने देवराज चौहान के हाथ से अपनी कलाई छुड़ा ली।

“बेवकूफी मत करो। वो तुम्हें मारने के दस लाख ले चुका है। वो...”

“हैल्प-हैल्प।” युवती गला फाड़कर चीखी—“बचाओ मुझे,ये आदमी मेरा अपहरण कर रहा...।”

असहाय-सा देवराज चौहान युवती को देखने लगा।

युवती चीखे जा रही थी।

आस-पास के लोग स्तब्ध से खड़े थे।

किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

तब तक नीचे गिरा वो आदमी उठ चुका था और मामला खराब होता देखकर वो चंद कदम की दूरी पर खड़ी अपनी कार की तरफ दौड़ा और देखते-ही-देखते कार में जा बैठा। कार तेजी से दौड़ गई। युवती एकाएक बदहवास-सी फुटपाथ पर दौड़ने लगी। पर्स और साड़ी का लिफाफा उसने थाम रखा था। देवराज चौहान उसके पीछे दौड़ता चिल्लाया।

“बेवकूफ, होश में आओ। वो कहीं गए नहीं हैं, पास ही में हैं। तुम खतरे में...”

“चले जाओ मेरे पीछे से।” युवती भागते हुए चीखी-“बचाओ-बचाओ मुझे।”

देवराज चौहान के दांत भिंच गए।

पास पहुंचकर उसने युवती की बांह पकड़ ली।

“छोड़ो मुझे । छोड़ो-पुलिस-बचाओ...।”

“तुम्हारी जान खतरे में हैं। मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं।”

“तुम बदमाश हो जो मुझे...”

“मैंने तुम्हें उस आदमी से बचाया है। वो तुम्हें गोली मारने वाला था। अब तक तुम मर चुकी होती। इस वक्त भी वो कहीं पास ही में हैं और तुम्हें मारे बिना चैन नहीं लेंगे। मेरी बात को समझो और मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें बचा सकता हूं। तुम्हें छोड़कर चला गया तो दस मिनट में तुम मरी पड़ी होगी।”

“बचाओ। बचाओ।” युवती गला फाड़ कर चीख उठी।

लोग इकट्ठे होने लगे। देवराज चौहान ने उसकी बांह नहीं छोड़ी थी और दस कदम आगे उसकी कार खड़ी थी। देवराज चौहान समझ गया कि यहां रुका तो हालात उसके खिलाफ हो जाएंगे। अकेले या फिर युवती के साथ,जैसे भी हो, उसे यहां से चले जाना चाहिए। एकाएक देवराज चौहान ने युवती की बांह को झटका दिया और फौरन झुककर उसे कंधे पर उठा लिया और तेजी से अपनी कार की तरफ बढ़ा।

युवती चीखने-चिल्लाने लगी।

छूटने के लिए हाथ-पांव मारने लगी।

कार के पास पहुंचकर देवराज चौहान ने पीछे का दरवाजा खोला और किसी प्रकार युवती को कार के भीतर ठूंसा। युवती उसी पल बाहर निकलने को हुई कि देवराज चौहान ने हाथ के अंगूठे से उसकी कनपटी को दबा दिया।

उसी पल युवती बेहोश होकर कार की पीछे वाली सीट पर लुढ़कती चली गई।

देवराज चौहान तुरंत स्टेयरिंग सीट पर बैठा और कार स्टार्ट की।

“क्यों साहब?” एक पचास वर्ष का आदमी पास आकर बोला—“लड़की को क्यों उठाकर ले जा रहे...।”

देवराज चौहान ने कार दौड़ा दी।

☐☐☐

मुम्बई!

जगमोहन कुछ देर पहले ही बंगले पर पहुंचा था। दोपहर के दो बज रहे थे। नहा-धोकर घर के कपड़े पहने और सोहनलाल को फोन किया। बात हुयी।

“क्या कर रहा है?” जगमोहन ने पूछा।

“नानिया की सेवा करने में लगा हूं।” उधर से सोहनलाल ने कहा।

“मतलब?”

“पंद्रह दिन बाद घर लौटा हूं। किसी काम के सिलसिले में जयपुर में था।”

वापसी पर नानिया ने खूब खरी-खोटी सुनाई कि इतने दिन गायब रहा। अब जाकर मामला ठंडा हुआ है। घर में राशन-पानी खत्म है, नानिया के साथ बाजार जा रहा हूं सामान लेने। शादी की है तो काम भी करने पड़ेंगे। तू शादी क्यों नहीं कर लेता?”

“ताकि मेरा हाल भी तेरी तरह हो जाए।” जगमोहन मुस्कराया।

“मेरे हाल में क्या बुराई है?” उधर से सोहनलाल ने गहरी सांस लेकर कहा।

“मैं ऐसे ही बढ़िया हूं।”

“बता, फोन कैसे किया?”

“सोचा था लंच एक साथ करते हैं। देवराज चौहान मुम्बई से बाहर है। फुर्सत है, पर तू तो फंसा पड़ा है।”

“फंसा समझ, कुछ भी समझ, पर अभी मैं आ नहीं सकता।”

जगमोहन ने फोन बंद कर दिया। चेहरे पर मुस्कान फैली थी। फिर वो

देखने लगा कि लंच के लिए, खाने के लिए किचन या फ्रिज में क्या-क्या सामान पड़ा है। जो भी खाने का सामान पड़ा था, उसमें से कुछ खाकर अपना काम चलाया और कॉफी बनाकर कमरे में पड़ी कुर्सी पर आ बैठा घूंट भरा।

तभी कॉलबेल बजी।

सोहनलाल आ गया होगा। ये सोच कर कॉफी का प्याला एक तरफ रखा और कमरे से निकलकर हॉल में पहुंचा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

दरवाजा खोला...।

“तुम?” जगमोहन चौंका–“तुम फिर...?” उसके होंठों से बरबस ही

निकला।

सामने मार्शल खड़ा था।

भारतीय जासूसी संस्था का चीफ मार्शल, जो कि उसकी निगाहों में खतरनाक इंसान था।

जगमोहन ठगा-सा उसे देखता रह गया।

मार्शल के गम्भीर चेहरे पर मुस्कान उभरी। वो कह उठा। “जाने-अंजाने में हमारी मुलाकातें बराबर हो रही हैं। मैंने नहीं सोचा था। कि इस बार मुलाकात इतनी जल्दी होगी।”

“अभी तो तुम्हारा काम करके हम फारिग हुए हैं। मुसीबत भरा बुरा और खतरनाक काम।” (विस्तार से जानने के लिए पढ़िए अनिल मोहन का राजा पॉकेट बुक्स से पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘मैं पाकिस्तानी’)। मैं तुम्हारा काम करके कभी खुश नहीं हुआ।”

“तुमने और देवराज चौहान ने दो बार मेरे लिए काम किया।”

“दोनों ही बार मौत की सवारी की।” जगमोहन के चेहरे पर तीखे भाव उभरने लगे। पहली बार मार्शल के लिए 'डेथ वारंट' और 'शिकारी' में काम किया था।

मार्शल मुस्कराया।

“दोनों बार तुमने हमें मौत के मुंह में फेंका।”

“मेरा ऐसा इरादा नहीं था। परंतु तुम लोग ही ऐसे हालातों में फंस गए। डेथ वारंट, में तो तुम ही चूक गए थे और काम को भूलकर फ्रोजा से प्यार करने लगे थे। ये ही चूक तुमसे हुई और मामला गड़बड़ हो गया था । फ्रोजा तुमसे खेल, खेलती रही थी।”

“मैं पुरानी बातें नहीं करना चाहता।” जगमोहन की आंखों के सामने फ्रेजा का चेहरा नाच उठा।”

“मैं भी नहीं करना चाहता।”

“अब क्यों आए हो?” जगमोहन के चेहरे पर सख्ती उभरी।

“काम के लिए।”

“तुम्हारा काम हम कभी भी नहीं करेंगे।”

“भूल गए तुम कि इस बार मैंने तुम्हें ज्यादा कीमत देने का वादा...”

“बेहतर होगा तुम जाओ यहां से।” जगमोहन ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की।

“मुझे भीतर तो आने दो।”

“नहीं। तुम मुसीबत का दूसरा रूप हो। मैं तुम्हारी छाया से भी दूर रहना चाहता हूं।”

मार्शल मुस्कराकर जगमोहन को देखने लगा।

“तुम हमारे पास मत आया करो। तुम्हारे अपने पास ढेरों काबिल एजेंट

हैं। फिर हमारे पास क्यों...”

“इस बार तो तुम लोगों ने ही मुझे आने को मजबूर किया।”

“हमने?” जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।

“देवराज चौहान ने मेरे काम में दखल दे दिया है।” मार्शल बोला।

जगमोहन चौंका।

“इसी वजह से मुझे आना पड़ा। मैं जानता हूं कि जगमोहन से तो मुझे

मिलना ही पड़ेगा। बात तो तुम्हीं से तय करनी पड़ती है कि काम की कीमत

क्या होगी। सोचा इस बार बात पहले से ही तय कर लूं।”

“देवराज चौहान तुम्हारे काम में दखल नहीं दे सकता।” जगमोहन कह उठा।

“वो सूरत में है।” मार्शल ने जैसे जगमोहन को याद कराया।

“हाँ।” जगमोहन सतर्क हुआ।

“मुझे भीतर आने दो।” मार्शल ने गम्भीर स्वर में कहा।

दोनों की निगाहें मिली। जगमोहन पीछे हट गया।

मार्शल भीतर आया तो जगमोहन दरवाजा बंद करते हुए कह उठा।

“हम जल्दी ही ये बंगला खाली कर देंगे। तब तुम हमें तलाश नहीं कर सकोगे।”

“मुझे मालूम है तुम लोगों ने तीन बंगले देखे हैं। उनमें से किसी एक को खरीदने की सोच रहे...।”

“तुम्हें कैसे पता?”

“मुझे सब पता रहता है।”

जगमोहन, मार्शल को घूरने लगा।

मार्शल आगे बढ़ा और हॉल में मौजूद सोफे पर जा बैठा।

जगमोहन वहां पहुंचकर सामने बैठता कह उठा।

“तुम सूरत की क्या बात कर...।”

“देवराज चौहान सूरत शहर में है। अब से साढ़े तीन घंटे पहले उसने मेरे काम में दखल दे दिया है।”

“अनजाने में उससे ऐसा हो गया होगा।”

“यकीनन। अनजाने में ही ऐसा हुआ। परंतु जब से मेरे पास ये खबर पहुंची, मैंने कुछ और ही योजना बना ली।”

“तुम्हारी योजना की में परवाह नहीं करता। अब हम तुम्हारे लिए कोई काम नहीं करने वाले।” जगमोहन तीखे स्वर में कह उठा –“कैसे दखल दिया देवराज चौहान ने तुम्हारे काम में?”

“देवराज चौहान का वास्ता एक लड़की से पड़ गया है सूरत में। मेरे एजेंट उस पर नजर रखे हुए थे। उस लड़की की जान को खतरा था, कुछ लोग उसे मार देना चाहते थे। ये बात देवराज चौहान ने पहचान ली और उसे बचाने में लग गया। आखिरी खबर के मुताबिक देवराज चौहान उस लड़की को जबर्दस्ती अपने साथ ले गया है।”

“जबर्दस्ती?”

“हां। ये ही खबर मिली कि जो कुछ हुआ उससे लड़की बौखला गई। वो भाग जाना चाहती थी परंतु आसपास मंडराते हत्यारों की वजह से देवराज चौहान उसे जबर्दस्ती अपने साथ ले गया।” मार्शल गम्भीर स्वर में बोला।

“तुम्हारे आदमी भी तो वहां मौजूद थे, वो लड़की को बचा सकते...।”

“मेरे आदमी उस लड़की पर नजर रख रहे थे। अचानक जिस तरह देवराज चौहान ने मामले में दखल दिया, वो भी उससे उलझ कर रह गए थे। सब कुछ बहुत जल्दी में हुआ था। मेरे एजेंटों को भी तब ही पता चला कि कोई लड़की की जान लेना चाहता है, जब देवराज चौहान का दखल इस मामले में आया।” मार्शल ने जगमोहन को देखा।

“तो अब मेरे पास क्यों आए हो?”

“इकबाल खान सूरी उर्फ भगता ठाकुर का नाम तो तुमने सुन ही रख होगा?”

जगमोहन सतर्क हो गया। मार्शल पर नजरें टिकी थी।

“जानता हूं। इसे कौन नहीं जानता।”

“इकबाल खान सूरी आज-कल ‘दुबई का आका’ बना हुआ है। वहीं बैठ कर वो हिन्दुस्तान में, खासतौर मुम्बई में अपने बेनामी धंधों को चला रहा है। उसके आदमी, उसके लिए इस तरह काम करते हैं जैसे वो हिन्दुस्तान में ही मौजूद हो। इकबाल खान सूरी का दूसरा पांव पाकिस्तान में रहता है। हमारे पास खबर है कि वो पाकिस्तान की कम्पनियों में पैसा लगा रहा है। आर्थिक रूप से पाकिस्तान की सहायता कर रहा है। बदले में पाकिस्तान सरकार उसका पूरा ध्यान रखती है। उसे गुप्त ठिकाना दे रखा है। उससे और भी सहायता की आशा रखती है। इकबाल खान सूरी को पाकिस्तान में हर तरह का काम करने की छूट है। उस पर पाकिस्तान का कानून लागू नहीं होता।”

“ये सब मुझे क्यों बता रहे हो...।” जगमोहन सतर्क दिख रहा था।

“सूरत में देवराज चौहान जिस लड़की की जान बचाने में लगा है, वो इकबाल खान सूरी की खास प्रेमिका है और उसके साथ ही रहती है। सिर्फ एक वो ही है जो इकबाल खान सूरी का सही पता बता सकती है। दुबई में मेरे एजेंट इकबाल खान सूरी के काफी करीब पहुंच गए थे। उस पर हाथ डालने ही वाले थे कि वो अचानक गायब हो गया। उसे मेरे एजेंटों पर शक हो गया था या वो इत्तेफाकन गायब हुआ, ये मैं नहीं कह सकता, परंतु वो गायब हो गया और महीने से उसके बारे में कोई खबर नहीं मिली। फिर अचानक ही इकबाल खान सूरी की प्रेमिका कामनी उर्फ नसरीन शेख के मुम्बई एयरपोर्ट पर उतरने की खबर मिली तो वो हमारी निगाहों में आ गई। मेरे एजेंट उस पर नजर रखने लगे। हम जानना चाहते थे कि वो हिन्दुस्तान में क्या करने आई है और इकबाल खान सूरी का कुछ पता चल सके। अभी उस पर नजर रखी ही जा रही थी कि देवराज चौहान बीच में आ गया और उसे अपनी योजना बदल कर नई योजना बनानी पड़ी...।”

“तुम कामनी नाम की उस लड़की को पकड़ कर उससे पूछ...।”

“इस तरह वो कुछ नहीं बताने वाली। ये इकबाल खान सूरी का मामला है, वो दुबई का आका बना बैठा है। वो क्या पागल है जो उसने अपनी प्रेमिका को इस तरह खुलेआम हिन्दुस्तान भेज दिया। जरूर इसके पीछे कोई खास बात है।”

जगमोहन ने सिर हिलाया फिर बोला।

“तुम अपनी किस योजना का जिक्र कर रहे थे?”

“वो बताने का अभी वक्त नहीं आया।”

“कब वक्त आएगा उसका?” जगमोहन ने होंठ सिकोड़े।

“जब देवराज चौहान सामने होगा।”

जगमोहन ने उखड़ेपन से पहलू बदल कर कहा।

“तुम्हारा कोई भी काम करने का हमारा इरादा नहीं है।”

“इरादा बन जाएगा।” मार्शल मुस्कराया।

“नहीं...।”

“बन जाएगा। ‘मैं पाकिस्तानी’ में देवराज चौहान भारी खतरे में पड़ गया था, उस काम की कीमत तो मैंने तुम्हें चुका दी थी पर कुछ अपनी तरफ से दूंगा और नए काम की कीमत भी उतनी होगी, जितनी पिछले काम की थी।”

“वो कम थी।”

“इस बार काम में ज्यादा खतरा नहीं है।”

“हर बार तुम ऐसा ही कहते...।”

“मैं सच कह रहा हूं, जब मेरी योजना सुनोगे तो समझ जाओगे।”

“तुम तो इस तरह कह रहे हो, जैसे मैंने काम की हां कर दी हो।”

“वो हो ही जाएगी।”

“भूल में हो।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।

“पैसा तुम्हारी पसन्द का होगा तो हां क्यों नहीं होगी।”

“मैं पैसे के पीछे इतना भी पागल नहीं हूं कि अपनी या देवराज चौहान की जान खतरे में डालूं।”

“इस बार खतरा कम है। मेरी योजना पर मेरे आदमी काम पर लग चुके हैं। देवराज चौहान और तुम्हें हर रास्ता साफ मिलेगा जब इस काम में अपने कदम रखोगे। तुम क्या सोचते हो मुझे तुम लोगों की चिंता नहीं होती? मुझे हर उस इंसान की चिंता होती है जो देश की बेहतरी की खातिर अपने को खतरे में डाल रहा हो। मेरे एजेंट मेरे बच्चों की तरह हैं, परंतु कभी-कभी मैं भी इतना बेबस हो जाता हूं कि हाथ पर हाथ रखकर मौत के तमाशे को देखना पड़ता है।”

“जैसे कि पिछली बार ‘मैं पाकिस्तानी’ में देवराज चौहान की मौत का तमाशा देखा।”

“मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी कि...।”

“अगर मैं खुल कर मैदान में, तब न आया होता तो, शायद देवराज चौहान बच न पाता।” जगमोहन गुस्से से कह उठा।

मार्शल ने गहरी सांस ली फिर बोला।

“मैं तुम्हें उस लड़की के बारे में बता रहा था कामनी उर्फ नसरीन शेख। वो बेहद खतरनाक लड़की है। कराटे में ब्लैक बेल्ट ले रखी है और निशाना ऐसा लगाती है कि तुम सोचते ही रह जाओगे। कभी वो फिल्मों में काम पाने मुम्बई पहुंची थी। टी.वी. ऐडों में काम किया उसने, तभी उसका सम्पर्क इकबाल खान सूरी से बन गया और वो दुबई पहुंच गई। धीरे-धीरे वो इकबाल खान सूरी की खास बन गई। इकबाल खान ने उसे यूरोप भेजा जहां उसने जूडो–कराटे सीखा। हथियार चलाना सीखने के लिए पाकिस्तान गई। अब वो इकबाल खान सूरी के पास, करीब रहती है। उसकी प्रेमिका का काम भी करती है, बॉडीगार्ड का भी। उसकी सुरक्षा के सारे मामले वो ही देखती है। इकबाल खान सूरी उस पर पूरा भरोसा करता है। इन सब बातों की रिपोर्ट हमारे पास कब से है। ऐसे में कामनी का हिन्दुस्तान में आना, बेवजह नहीं हो सकता।”

“तुम कहते हो कि देवराज चौहान उसे बचाने पर लगा है।” जगमोहन बोला।

“हां, क्योंकि देवराज चौहान उसकी हकीकत नहीं जानता।”

“वो तो मैं अभी उसे बता देता।”

“ऐसी गलती मत करना जगमोहन।”

“क्या मतलब?”

“देवराज चौहान उसे बचाने की खातिर, उसे अपने साथ ले गया है। ये एक अच्छी बात हो गई। उनके बीच बात, आगे जैसी भी चले, परंतु उनमें बेहतर सम्बंध बन जाने की पूरी संभावना है।”

“तुम ऐसा ही चाहते हो?”

“बेशक।”

“क्यों?”

“क्योंकि जो मेरी योजना है, उसमें ऐसा होना देवराज चौहान के लिए बेहतर रहेगा।”

“तुम्हारी योजना?” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा –“तुम ज्यादा ही हवा में उड़ रहे हो कि हम तुम्हारा काम करेंगे।”

“इस बारे में हम बाद में बात...।”

“मैं अभी देवराज चौहान को कामनी की हकीकत बताने जा...।”

“बेवकूफी मत करना। जो काम अंजाने में बेहतर हो गया, उस पर पानी मत फेरना। मैंने विश्वास के दम पर ही तुम्हें सारी बता बताई है। मैं कहने आया हूं कि तुम खुद को तैयार रखो, मेरे काम के लिए। तुम्हें ही मुझसे ज्यादा परेशानी होती है, देवराज चौहान को इतनी नहीं होती। तुम सोच के रखो कि अबकी बार के काम की, क्या मुनासिब रकम लेनी है मुझसे। जबकि इस बार बहुत कम खतरा रहेगा।”

“मैं काम के बारे में नहीं जानता तो कैसे...।”

“जब देवराज चौहान वापस आ जाएगा, तब काम के बारे में बताऊंगा।”

“तुम्हारे एजेंट उन पर नजर रखे हुए हैं।”

“हां।”

“कुछ पता चला कि इकबाल खान सूरी की प्रेमिका हिन्दुस्तान क्या करने आई है?”

“अभी नहीं मालूम हुआ?”

“कौन लोग उसकी जान लेना चाहते...।”

“बाबा रतनगढ़िया।”

“रतनगढ़िया, अंडरवर्ल्ड डॉन?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“हां। इकबाल खान सूरी ने सालों पहले इंडिया से भागकर दुबई का रास्ता पकड़ा तो तब बाबा रतनगढ़िया इकबाल खान सूरी के लिए काम किया करता था। परंतु उसके दुबई जाने के बाद बाबा रतनगढ़िया ने मुम्बई में अपने पांव फैलाने शुरू कर दिए जबकि दुबई में बैठा इकबाल खान सूरी मुम्बई में अपना सिक्का चलते देखना चाहता था उधर रतनगढ़िया का कहना था इकबाल ने मुम्बई छोड़ दी तो यहां धंधा क्यों करता है इस प्रकार दोनों में ठनती चली गई। बाबा रतनगढ़िया ने इकबाल के जाने के बाद काफी ताकत हासिल कर ली थी। अपने पैर भी फैला चुका था। अब वो खुले तौर पर इकबाल के गुर्गों को टक्कर देने लगा था और सालों तक दोनों तरफ से आदमी मरते रहे। वे एक-दूसरे पर हमला करते रहे। इकबाल खान सूरी के दुबई जाकर बैठ जाने से भी मुम्बई में उसकी ताकत में कोई खास कमी नहीं आई थी। पूरे हिन्दुस्तान में उसके आदमी काम करते रहते हैं। इकबाल खान सूरी और बाबा रतनगढ़िया के बीच सालों से रुतबे की लड़ाई चल रही है और अब तक बाबा रतनगढ़िया मुम्बई अंडरवर्ल्ड का बड़ा बन चुका है। उधर इकबाल पाकिस्तान और श्रीलंका में भी व्यस्त हो गया है। ऐसे में इकबाल और बाबा की लड़ाई हल्की पड़ गई है परंतु फिर भी वे एक-दूसरे पर वार करने का मौका नहीं चूकते जैसे कि कामनी के मुम्बई एयरपोर्ट पर पहुंचने का पता बाबा रतनगढ़िया को पहले से ही था। बाबा के लिए ये सुनहरा मौका था कामनी को खत्म करके, इकबाल खान सूरी को चोट देने का। मौका देखकर बाबा के आदमियों ने कामनी पर मुम्बई में ही उसे खत्म करने के लिए हमला कराया था परंतु शातिर कामनी वहां से बच निकली और...।”

“बाबा रतनगढ़िया को कैसे पता चला कि कामनी दुबई से मुम्बई पहुंच रही...।”

“बाबा रतनगढ़िया के हाथ लम्बे हैं। उसका कोई आदमी दुबई में, इकबाल के आदमियों के बीच मौजूद है, जिसने पहले ही कामनी के आने की खबर उसे दे दी थी।”

मार्शल ने कहा –“इसमें कोई शक नहीं कि अंडरवर्ल्ड के लोगों के हाथ, पुलिस से कहीं ज्यादा लम्बे होते हैं। पुलिस जो खबर दस साल में ढूंढ निकालती है उसे अंडरवर्ल्ड वाले 24 घंटे में ले आते हैं। यही वजह है कि पुलिस अंडरवर्ल्ड के लोगों पर काबू नहीं पा पाती। पुलिस ड्यूटी देती है, अपना फर्ज पूरा करती है, नौकरी करती है और कानूनन एक दायरे से बाहर नहीं निकल सकती, परंतु अंडरवर्ल्ड के लोगों के लिए कोई सीमा रेखा नहीं होती। शहर और देश की सरहदें उनके लिए मायने नहीं रखतीं। वो कहीं भी पहुंच जाते हैं उनके अपने रास्ते...।”

“मार्शल।” जगमोहन ने टोका।

“हां।”

“तुम्हारा प्लान क्या है। तुम करना क्या चाहते हो?”

मार्शल ने जगमोहन को देखा। चुप रहा।

“मैं कामनी की बात कर रहा हूं। इकबाल खान सूरी की बात कर रहा हूं और देवराज चौहान की बात कर रहा हूं।”

“सब बातों का जवाब दूंगा, जब देवराज चौहान भी सामने होगा।”

“अभी नहीं।”

“नहीं।”

“तुम मेरे पास सिर्फ ये कहने आए थे कि तुम हमसे काम लेने वाले हो।”

“हां।”

“जरूरी तो नहीं कि हम तुम्हारा काम...।”

“देवराज चौहान मेरा काम शुरू कर चुका है अंजाने में। देवराज चौहान और कामनी का साथ देखकर ही, मैंने नई योजना तैयार कर ली और तुम्हारे पास आ गया। समझो इस वक्त देवराज चौहान मेरे लिए काम शुरू कर चुका है।”

“मुफ्त में?” जगमोहन ने व्यंग्य से कहा।

“जब तुम्हें काम का पता चल जाए तो मुनासिब रकम तय करके, पैसा पहले ही ले लेना।”

“तुम जबर्दस्ती वाले अंदाज में बात कर रहे हो।”

“मैं अपना काम निकालने के लिए हर तरह के तरीके इस्तेमाल करता...।”

“वो तो मैं ‘डेथ वारंट’ में देख ही चुका हूं।” जगमोहन का स्वर कड़वा हो गया –“तब तुमने मेरे और देवराज चौहान के साथ ज्यादती की थी। बाद में हम ये सोच कर चुप कर गए कि तुमने जो किया, देश के फायदे के लिए किया। परंतु हर बार तो ऐसा नहीं चलेगा कि तुम्हारी बात मानते रहें।”

“दौलत में बहुत ताकत होती है।” मार्शल मुस्करा पड़ा –“तुम दौलत के काबू में आ जाते हो।”

जगमोहन ने मार्शल को घूरा।

“मैंने ठीक कहा न?”

“जरूरी तो नहीं मार्शल कि हर बार दौलत का तीर काम कर जाए।”

“इस बार भी दौलत का तीर काम करेगा।”

“तुम बहुत कमीने हो। बहुत ही ज्यादा कमीने।”

“मैंने तुम्हारी बातों का कभी बुरा नहीं माना, जबकि पहले भी तुम मुझे बहुत कुछ कह चुके हो। ये मामला मेरे एजेंट देख रहे थे। उन्होंने ही इसे पूरा करना था। तुम लोगों का इस मामले से कोई मतलब ही नहीं था। परंतु इत्तेफाक से देवराज चौहान ने इस मामले में दखल दे दिया और मैंने देवराज चौहान  को स्वीकारते हुए, अपने काम के लिए नई योजना बना ली। याद रखना मेरी बात कि अभी देवराज चौहान से इस बारे में कुछ मत कहना।”

“तुम पागल हो जो सोचते हो में चुप रहूंगा।”

“तुमने अपने लिए जुबान बंद रखोगे, क्योंकि ये काम मैं तुम लोगों के नाम लिख चुका हूं। मैं चाहता हूं देवराज चौहान और कामनी उर्फ नसरीन शेख के बीच कुछ अच्छे सम्बंध बन जाएं। भविष्य में ये बात बहुत काम आनी है।”

“अच्छे सम्बंधों से तुम्हारा मतलब जिस्मानी सम्बंध से तो नहीं है?” जगमोहन ने पूछा।

“ऐसा हो जाए तो बुरा क्या है?”

“तुमने देवराज चौहान को क्या समझ रखा है। दो बार तुम्हारा काम क्या कर दिया। तुम सिर पर चढ़ गए। देवराज चौहान शादीशुदा है। उसकी पत्नी है और दूसरी औरत के बारे में तो वो सोचता भी नहीं। तुम सम्बंध बनाने की बात कर...।”

“मैं ऐसी कोई बात नहीं कर रहा। ऐसा हो जाए तो बुरा नहीं होगा, मेरी योजना को देखते हुए। नहीं तो उनमें दोस्ताना सम्बंध तो बन ही सकते हैं क्योंकि देवराज चौहान कामनी को बाबा रतनगढ़िया के आदमियों से बचा रहा है। ऐसे में कामनी कुछ तो शुक्रगुजार होगी उसकी।” मार्शल ने शब्दों को चबाकर कहा।

“जब तक तुम पूरी योजना नहीं बताओगे, मैं समझ नहीं सकता, तुम क्या चाहते हो?”

“देवराज चौहान के सामने होने पर बताऊंगा। मेरे काम के लिए तुम तैयार रहना। आना-कानी मत करना और पहले की तरह भागने की कोशिश मत करना। मेरी नजर तुम पर भी है और देवराज चौहान पर भी।” मार्शल कहकर उठा और बाहर निकलता चला गया जबकि जगमोहन के चेहरे पर सोचें और गम्भीरता नजर आ रही थी। मार्शल का दूसरा नाम मुसीबत था।

☐☐☐

देवराज चौहान गुजरात के शहर सूरत में था।

कल रात दस बजे सूरत शहर पहुंचा था मुम्बई से। यूं आने का मन नहीं था परंतु सरबत सिंह की बात टाल भी नहीं सका था। सरबत सिंह से मुलाकात उसकी ज्यादा पुरानी नहीं थी, कुछ दिन पहले सरबत सिंह के साथ मिलकर एक छोटा-सा काम किया था। दो दिन पहले से सरबत सिंह का फोन आने लगा कि उसकी खास पहचान वाला ओंकारनाथ सूरत में रहता है और वो कहीं पर एक सौ दस करोड़ की डकैती करने को कह रहा है। प्लान उसने बना रखा था, उसे सिर्फ तुम जैसे इंसान की जरूरत है, जो इस काम में उसका हाथ बंटा सके। देवराज चौहान ने जाने को इंकार किया तो सरबत सिंह ने उससे रिक्वेस्ट की कि एक बार सूरत जाकर ओंकारनाथ का प्लान तो सुन लो।

सरबत सिंह की रिक्वेस्ट को देवराज चौहान मना नहीं कर सका था।

सरबत सिंह ने बताया कि वो भी सूरत का है और उसके बाप का एक मकान सूरत की रैंडर नाम की जगह पर है, जो कि समुद्र किनारे पर स्थित है। सरबत सिंह उससे मिला और मकान की चाबी देते हुए कहा कि वो रैंडर स्थित उसके मकान पर ही ठहरे। इस तरह मकान की कुछ देखभाल भी हो जाएगी। उसने ये भी कहा कि उस मकान की सफाई करने हर पंद्रह दिन में एक बार, एक काम वाली आती है। ऐसे में मकान लगभग उसे साफ ही मिलेगा। साथ ही उसने ओंकारनाथ का फोन नम्बर दे दिया। देवराज चौहान ने उसे मना कर दिया था कि उसका नम्बर ओंकारनाथ को न दे। वो खुद ही सूरत पहुंचकर ओंकारनाथ को फोन कर लेगा और इस तरह वो रात दस बजे सूरत में रैंडर नाम की जगह पर, सरबत सिंह की कॉटेज पर आ पहुंचा था। पांच सौ मीटर की दूरी पर समुद्र था और समुद्र से टकरा कर आती ठंडी हवा में समुद्र की खुशबू-भरी महसूस हो रही थी। ऐसा माहौल देवराज चौहान को अच्छा लगा। आस-पास और भी कॉटेज थे परंतु वे कुछ-कुछ फासले पर थे और घर के आस-पास की मिट्टी में समुद्र की रेत मिक्स थी।

मकान की लाइट चालू थी। मकान के भीतर पहुंचकर देवराज चौहान ने लाइट ऑन कर दी। साफ-सफाई जैसा माहौल था भीतर। वहां आराम से रहा जा सकता था। किचन भी ठीक हालत में थी। मकान का एक कमरा पक्का बना हुआ था, बाकी के तीन कमरे लकड़ी के थे। छत भी लकड़ी का फट्टों से बनाई हुई थी। किचन में खाने का कोई सामान नहीं था। ज्यादा इच्छा भी नहीं थी खाने की और वो रात आराम से बिताई देवराज चौहान ने।

अगले दिन यानी कि आज वो ओंकारनाथ से मिला।

ओंकारनाथ की प्लानिंग बचकाना लगी उसे उसकी बात में कोई दम नहीं दिखा। मुम्बई वापस जाने का इरादा करके वो ओंकारनाथ से अलग हुआ कि तभी इस लड़की के चक्कर में उलझ गया।

कोई उसकी जान लेना चाहता है।

दस लाख में जान लेने का सौदा हो चुका है। पैसे दिए जा चुके हैं और आज उसके सामने ही लड़की को मारने की चेष्टा की गई। परंतु लड़की उसे ऐसी न लगी कि उसकी हत्या की जाए। वो मध्यम वर्गीय, परिवार की शरीफ लड़की लगी और निश्चिंत होकर बाजार में खरीददारी कर रही थी। ऐसे में वो बीच में आ गया और उस वक्त तो लड़की को किसी तरह बचाया परंतु इतना उसे समझ आ गया कि हत्यारे लड़की का पीछा नहीं छोड़ने वाले। लड़की को कुछ नहीं हो और उसे सतर्क कर सके, इस कारण वो लड़की को जबर्दस्ती साथ ले आया था।

परंतु लड़की को लग रहा था कि जैसे वो ही उसका अपहरण कर रहा है।

वो उसके साथ आने को तैयार नहीं थी।

ऐसे में उसे समझाना आसान नहीं था कि कोई उसकी जान के पीछे है।

अब वो लड़की को कार में डाल कर रैंडर स्थित सीधा समुद्र के किनारे वाले कॉटेज में ले आया था, जो कि सरबत सिंह की थी। लड़की अभी तक बेहोश थी और उसे एक कमरे में बेड पर लिटा दिया था।

ये काफी खुली जगह में मकान बना हुआ था। मकान के आसपास खुली जगह थी फिर पांच फुट की चारदीवारी थी। मकान से दूर तक फैला समुद्र स्पष्ट नजर आता था। यहां-वहां बने और भी कॉटेज नजर आ रहे थे परंतु इस तरफ शांति थी। लोगों का आना-जाना कम ही रहता था परंतु शाम के वक्त लोगों का आना बढ़ जाता था। तब लोग समुद्र किनारे टहलने आ जाते थे। परंतु वे किनारे की तरफ ही रहते। मकानों की तरफ नहीं आते थे।

सुबह देवराज चौहान घर से नहा-धोकर निकल गया था और ओंकारनाथ से मिलने से पहले एक रेस्टोरेंट में नाश्ता किया था, परंतु अब किचन में था फ्रिज में खाने का कोई सामान नहीं था। लड़की पता नहीं, होश में आने पर उसकी बात समझती भी है या नहीं। जबकि देवराज चौहान इरादा कर चुका था कि लड़की को यकीन दिलाने के बाद जाने देगा, ताकि अपनी सुरक्षा के बारे में सतर्क रहे। ऐसे में खाने-पीने का सामान घर में होना जरूरी था।

देवराज चौहान उस कमरे में पहुंचा जहां लड़की बेड पर बेहोश पड़ी थी। वो वैसे ही पड़ी थी जैसे कि उसे लिटाया गया था। अभी तक बेहोश थी। देवराज चौहान ने उसे चेक किया फिर काफी तलाश के बाद उसने हाथ-पांव बांधने के लिए डोरी को तलाशा और लड़की के हाथ-पांव बांधे उसके बाद अंगूठे से उसकी कनपटी को एक बार फिर दबाया कि वो गहरी बेहोशी में चली जाए। उसके बाद घर को बाहर से बंद करके, आसपास देखा, दूर तक फैले समुद्र को देखा।

ऐसा कोई न दिखा जो यहां नजर रखता हो।

उसके बाद कार में बैठा और बाजार की तरफ सामान लेने चल दिया।

☐☐☐

दो घंटे बाद देवराज चौहान लौटा।

खाने-पीने का सामान ले आया था। सामान को कार से निकालकर भीतर रखा और फ्रिज का सामान फ्रिज में लगाया, किचन का किचन में रखा, इस दौरान लड़की पर नजर मार चुका था, वो बेहोश थी।

देवराज चौहान ने अपने लिए कॉफी बनाई, ब्रेड पर मक्खन लगा लिया था, वो खाता रहा। वो शांत था। चेहरे पर खास सोचें नहीं थी। ओंकार सिंह को पूरी तरह अपने दिमाग से निकाल दिया था।

कॉफी के घूंट लेता वो छोटे-से ड्राइंग रूम में पड़ी कुर्सी पर आ बैठा। ड्राइंग रूम में फर्नीचर के नाम पर चार कुर्सियां, पुराना-सा सेंटर टेबल और एक दीवान रखा था।

अभी कॉफी समाप्त की ही थी कि उसका मोबाइल बज उठा।

दूसरी तरफ मुम्बई से सरबत सिंह था।

“ओंकारनाथ से मिले या अभी मिलना है?” सरबत सिंह की आवाज कानों में पड़ी।

“कल मिला था। उसका सारा प्रोग्राम बेकार लगा। मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है।” देवराज चौहान बोला।

“ओह, बता दिया ओंकार को ये बात?”

“कह दी।”

“वो तो बहुत कह रहा था कि मेरी योजना बहुत शानदार है। ऐसी है, वैसी है।”

“मैं उसकी बात को भूल चुका हूं।”

“वो तो तुम्हारी इच्छा पर है। फिर तो आज मुम्बई आ रहे होंगे?”

“शायद आज का दिन रुकूँ।”

“होटल में ठहरे हो या मेरी उसी कॉटेज पर?”

“तुम्हारी कॉटेज पर। इसे कॉटेज कहना ठीक रहेगा। ये अच्छी लोकेशन पर है। यहां से पूरा समुद्र दिखता है।”

“मेरे बाप को समुद्र बहुत अच्छा लगता था। इसीलिए उसने यहां जमीन खरीदकर कॉटेज बनाई थी। मजे से रहो यहां पर। अपना ही माल है। मैं कामवाली को फोन कर देता हूं। वो रोज आकर सफाई कर...।”

“जरूरत नहीं। ऐसे ही ठीक है।”

“वैसे वो पंद्रह दिन में एक बार सफाई करने तो आती ही है।”

“मेरा कुछ पता नहीं कि कब मैं यहां से चल दूं।”

“ठीक है। जब मुम्बई पहुंची तो मुझे एक फोन लगा देगा, मैं तुमसे कॉटेज की चाबी ले जाऊंगा।”

बात खत्म हो गई।

देवराज चौहान ने फोन बंद करके जेब में रखा और कॉफी का खाली प्याला किचन में रखने के बाद उस कमरे में पहुंचा, जहां लड़की थी। वो लड़की के हाथ-पांवों के बंधनों को खोलने लगा। अब बांधने की जरूरत नहीं थी। वो तो इसलिए बांध गया था कि उसके पीछे से लड़की को होश आए तो कहीं यहां से भाग न जाए।

कुछ देर और बीती तो लड़की को होश आने लगा।

तब देवराज चौहान ड्राइंग रूम में कुर्सी पर सिगरेट सुलगाए बैठा था।

लड़की को पूरा होश आ गया।

वो कमरे में नजरें दौड़ाने लगी। फिर तुरंत ही उठ बैठी। उसकी निगाह बेड पर पड़ी दोनों डोरियों पर गई जिससे उसके हाथ-पांव बांधे थे। उसने अपनी कलाइयों को देखा। डोरी एक तरफ उछाल दी।

चेहरे पर परेशानी दिखने लगी थी।

वो बेड से उतरी और खुले दरवाजे के पास पहुंची बाहर झांका तो ड्राइंग रूम में बैठा देवराज चौहान दिखा तो कुछ पल वो उसे देखती रही फिर पीछे हट गई। चंद पल वैसे ही खड़ी रही। उसे कुछ घंटे पहले का बीता वक्त याद आया कि उसके साथ क्या हुआ था बाजार में।

वो दरवाजे से हटी और कमरे की खिड़की को खोला। ये कॉटेज की पिछली तरफ का हिस्सा था और रेतीली जमीन नजर आ रही थी। अन्य कॉटेजों को भी देखा, जो वहां बनी हुई थी।

“होश आ गया तुम्हें।”

देवराज चौहान की आवाज को सुनते ही वो फिरकनी की तरह घूमी।

देवराज चौहान दरवाजे की चौखट पर खड़ा था।

दोनों की नजरें मिली।

लड़की के होंठ भिंच गए।

“भागने की सोच रही हो।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

वो वहीं खड़ी देवराज चौहान को देखती रही।

“भागने की कोई जरूरत नहीं। तुम आराम से यहां से जा सकती हो।”

लड़की, देवराज चौहान को देखती रही।

“नाम क्या है तुम्हारा?” देवराज चौहान ने पूछा।

“तुम कमीने इंसान।” लड़की एकाएक भड़ककर कह उठी –“मुझे भरे बाजार से उठा लाए और अब मेरा नाम पूछते हो। तुम क्या समझते हो कि मैं तुम्हें अपना नाम बता दूंगी।”

“तुम्हारे भले के लिए तुम्हें उठाकर...।”

“भला? तुम जैसे लोग आए दिन लड़कियों को सड़कों से उठाते हैं और उन्हें हवस का शिकार बनाकर मार देते हैं या छोड़कर चले जाते हैं। लेकिन मैं ऐसी लड़की नहीं हूं, मुझे हाथ भी लगाया तो...।”

“तुम्हें कोई हाथ नहीं लगाएगा।”

लड़की दांत भींचे देवराज चौहान को देख रही थी।

“मैं यहां पर अकेला हूं और तुम्हें मुझसे कोई खतरा नहीं है। लड़कियों के मामले में मैं शरीफ आदमी हूं।”

“जो इंसान भरे बाजार से लड़की को उठा लाए, वो शरीफ कैसे हो सकता है।”

देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।

“तुम अपने इरादे में कामयाब नहीं हो सकते। मैं-मैं...।” एकाएक वो पलटी और खुली खिड़की की चौखट पर चढ़ गई।

इससे पहले कि वो खिड़की के पार कूद पाती, देवराज चौहान ने तीर की भांति झपट्टा मारा और उसकी बांह पकड़कर वापस खींच लिया। लड़की, लकड़ी के फर्श पर जा गिरी। वो चीखी।

देवराज चौहान ने खिड़की के पल्ले बंद कर दिए।

लड़की संभली और चीख कर बोली।

“ये क्या कर रहे हो। मुझसे दूर रहो, मैं प्रेग्नेंट हूं।”

“तुम्हारे पेट में बच्चा है। सॉरी, इसकी मुझे जानकारी नहीं थी।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“फिर तो तुम्हें और भी ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी कोई हरकत न करो कि तुम्हें तकलीफ हो।”

“मुझे जाने दो।”

“मैं तुम्हें रोक नहीं रहा। तुम्हारे भले के लिए तुम्हें यहां लाया हूं। तुम्हें मेरी बात सुननी चाहिए।”

“अपनी बात सुनाने के लिए मुझे इस तरह उठाकर लाए हो?” वो कह उठी।

“हां।”

“तुम पागल हो। मैं तुम्हें जानती तक नहीं और...।”

“मैं भी तुम्हें नहीं जानता।” देवराज चौहान मुस्कराया।

“आज से पहले तुमने इस तरह कितनी लड़कियों को उठाया?”

“एक को भी नहीं।”

“तो अपने पागलपन की शुरुआत तुमने मुझसे की है।” लड़की तीखे स्वर में उठी।  

देवराज चौहान ने कठोर नजरों से उसे देखा।

नीचे बैठी लड़की सतर्क हुई।

“तुम्हें ये जरूर जान लेना चाहिए कि मैं तुम्हें इस तरह क्यों उठाकर लाया।

“ब-बोलो–बताओ।”

“खड़ी हो जाओ।”

लड़की खड़ी हो गई और बोली।

“अगर तुम किसी बुरी हरकत को अंजाम देने के फेर में हो तो...।”

“पानी लोगी?”

“नहीं।”

“चाय-कॉफी?”

“नहीं।”

“खाने-पीने की जरूरत हो तो...।”

“मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। तुम अपनी बात कहो और मुझे जाने दो। मैं यहां नहीं रुक सकती। मुझे घर जाना है।” लड़की ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा –“तुम्हारी हिम्मत की दाद देती हूं जो मुझे इस तरह उठा लाए।”

“बेड पर बैठ जाओ।” देवराज चौहान बोला।

“बेड पर? नहीं बैलूंगी। तुम्हें जो कहना है, ऐसे ही कहो।” लड़की शक भरे स्वर में कह उठी।

देवराज चौहान कमरे से बाहर गया और दूसरे ही पल कुर्सी लेकर लौटा और कमरे के भीतर, दरवाजे के पास कुर्सी रखकर, उस पर बैठता कह उठा।

“जब बैठना चाहो, बैठ जाना। मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि तुम्हारी जान खतरे में है।”

“मेरी जान खतरे में है?” उसकी आंखें सिकुड़ी।

“कोई तुम्हें खत्म करने के लिए दस लाख रुपए हत्यारे को दे चुका है और...।”

लड़की अजीब-सी निगाहों से देवराज चौहान को घूरने लगी।

“जो हत्यारा तुम्हारे पीछे लगा है, मैं इत्तेफाकन उससे मिल चुका हूं वो हर हाल में...।”

“तुम पागल हो। पूरे पागल हो...।” लड़की के होंठों से निकला।

“मेरी बात को ध्यान से सुनो कि...।”

“मैं तुम्हारी झूठी बात में फंसने वाली नहीं। मुझे कोई नहीं मारना चाहता। तुम बकवास कर रहे...।”

“बेवकूफ मैंने तुम्हें बचाया है, वरना अब तक तुम मर चुकी...।”

“मैं मर चुकी होती। तुम-तुम कोई सनकी हो, जो मुझे यूं ही उठा लाए और...।”

“जब तुम बैनूर ज्वैलर्स में थी, तब हत्यारा सामने सड़क पार कार पार्किंग में था। मेरी कार की बगल में उसकी कार आ खड़ी हुई। मैंने सब देखा, जब तुम बैनूर ज्वैलर्स से बाहर निकली तो उसने गोली चलाई, जो कि...।”

“गोली चलाई।” लड़की ने दांत भींचकर कहा –“लेकिन मुझे तो नहीं लगी। आसपास भी किसी को नहीं...।”

“मैंने कहा है, तब वो सड़क पार कार पार्किंग से निशाना ले रहा था। उसने गोली चलाई और वो गोली सड़क पर जाती किसी कार में जा घुसी जो कि अचानक ही सामने आ गई थी।” देवराज चौहान ने कहा।

चंद पल चुप रहकर लड़की कड़वे स्वर में बोली।

“तुम बकवास कर रहे हो। मैं बैनूर ज्वैलर्स में थी। कोई मुझ पर गोली चलाने के लिए सड़क पार इतनी दूर पार्किंग में जगह क्यों चुनेगा। वो तो बहुत दूर है। सड़क पर से हर समय ट्रैफिक आता-जाता रहता है। सुनो, मैं तुम्हारी बातों में नहीं फंसने वाली। अगर तुम मुझे उलझा कर, मेरे साथ रेप करने की कोशिश करना चाहते हो तो भूल जाओ। मैं प्रेग्नेंट हूं और तुम्हें अपने पास भी नहीं आने दूंगी। बेशक अपनी जान दे दूंगी अगर तुमने कोई कोशिश की तो...।”

देवराज चौहान शांत भाव से लड़की को देखता रहा।

“मुझे जाने दो।”

“नहीं।”

“क्यों?”

“मैं तुम्हें यकीन दिलाना चाहता हूं कि सच में कोई तुम्हारी जान के पीछे है। कोई तुम्हें मारना चाहता है।”

“मुझे यकीन दिलाकर क्या करना चाहते हो?”

“तुम्हारी जान बचाना चाहता हूं। ताकि तुम सतर्क रहो और अपने को बचा सको। ये जान सको कि कौन तुम्हें मारना...।”

“ठीक है। मुझे यकीन आ गया कि कोई मुझे मारना चाहता है। अब मुझे जाने दो।”

“जब मुझे भरोसा हो जाएगा कि तुम्हें यकीन आ गया है तो तुम्हें जाने दूंगा।” देवराज चौहान ने कहा।

“तो इस बात का तुम्हें भरोसा भी होना चाहिए।”

“हां।”

“फिर तो तुम मुझे यकीन दिलाओ कि कोई मेरी हत्या कराना चाहता है। उसने हत्यारे को दस लाख भी दे दिए हैं। इधर मैं तुम्हें भरोसा दिलाऊंगी कि मुझे तुम्हारी बात का पूरा भरोसा है।” लड़की तीखे स्वर में कह उठी।

“तुम मेरी बात को मजाक समझ रही हो।”

“मजाक नहीं चाल। तुम मेरे साथ कोई चाल चलने के फेर में हो। मेरे ख्याल में मुझसे रेप करने का बढ़िया मौका देख रहो। जरूरी तो नहीं कि लड़की पर झपटकर रेप किया जाए। मैंने पढ़ रखा है कि लड़की को अपनापन दिखाकर, उसका बन कर, उसका विश्वास जीतकर भी कुछ लोग रेप करते हैं और भाग जाते हैं। तुम वैसे ही लगते हो मुझे। इसके सिवाय तो तुम्हारे लिए मेरे पास और कोई चीज है नहीं।” लड़की ने कठोर स्वर में कहा।

“ऐसा कुछ नहीं है। मैं फिर कहता हूं कि इस मामले में मैं शरीफ हूं।”

“सब ऐसा ही तो कहते हैं।” लड़की ने दांत भींचकर कहा।

“मैं ऐसा नहीं हूं।”

“क्यों, क्या तुम मर्द नहीं हो?”

देवराज चौहान मुस्कराया फिर बोला।

“मुझे खुशी है कि मैंने आज तुम्हें बचा लिया।”

“तुमने बचा लिया?”

“जब तुम साड़ी खरीद कर शो-रूम से बाहर निकली तो वो हत्यारा तुम्हें गोली मारने जा रहा था, पर मैंने उसके हाथ से रिवॉल्वर गिरा दी। इसी से ही उसका काम गड़बड़ हो गया।” तब वो तुमसे महज आठ कदम दूर था।

“बहुत बहादुर हो तुम।” लड़की ने व्यंग्य से कहा।

“मैंने सच कहा है।”

“रिवॉल्वर देखकर लोग दूर भाग जाते हैं और तुमने देखा कि जब वो रिवॉल्वर निकालकर मुझ पर गोली चलाने जा रहा है तो तुमने उसकी रिवॉल्वर गिरा दी। खूब –वैसे मैंने तुम्हें वहां किसी से उलझते देखा था। ये सब तुम्हारा ही पैदा किया ड्रामा हो सकता है कि तुम अपनी बात का मुझे यकीन दिला सको। तुम्हारा-मेरा वास्ता ही क्या है?”

“कुछ नहीं।”

“फिर तुमने मुझे क्यों बचाया?”

“इंसानियत के नाते।”

“ठीक है। अब ये बताओ कि तुम चाहते क्या हो?” लड़की ने सिर हिलाकर कहा।

“तुम्हें यकीन दिलाना चाहता हूं कि कोई तुम्हें मार देना चाहता है।”

“जब हमारा कोई रिश्ता नहीं तो तुम मेरा भला क्यों चाहते हो। मेरी जान की तुम्हें चिंता क्यों है।”

“दुनिया में अभी भले लोग बचे हुए हैं।”

“तो तुम खुद को भला कह रहे हो।”

“तुम्हारे मामले में।”

“तुम्हें कोई काम नहीं है?”

“बहुत काम है मुझे। फुर्सत ही नहीं रहती कि...।”

“तो फिर क्यों अपना और मेरा वक्त खराब कर रहे हो। तुम अपने रास्ते लगो और...।”

“मैं इस समय, वक्त का सही इस्तेमाल कर रहा हूं। तुम्हारी जिंदगी बचाने की कोशिश में हूं।”

“ये सब करके तुम अपना, कोई काम साधना चाहते हो।” लड़की के दांत भिंच गए।

“तुम्हारा मतलब कि मैं तुमसे झूठ कह रहा हूं।” देवराज चौहान बोला।

“पूरी तरह। कोई मेरी जान नहीं लेना चाहता।” लड़की ने दृढ़ स्वर में कहा।

“ये झूठ बोलकर मुझे क्या मिलेगा?”

“तुम जानो।”

“मतलब कि तुम मानने को तैयार नहीं कि कोई तुम्हारी जान लेना चाहता है।”

“कोई भी मेरी जान नहीं लेना चाहता ये तुम्हारे दिमाग की उपज है।”

“फिर तो मैंने तुम्हें बचाकर गलत किया।”

“बकवास मत करो और मुझे जाने दो यहां से। तुम्हारा-मेरा कोई मतलब नहीं...।”

उसी पल लड़की जेब में पड़ा मोबाइल बज उठा।

लड़की ने जल्दी से फोन निकाला और बात की। उसे डर था कि सामने बैठा इंसान फोन न छीन लें।

परंतु देवराज चौहान शांति से बैठा रहा। उसे देखता रहा।

“हैलो-मम्मा।” एकाएक लड़की की आंखों से आंसू निकलने लगे –“एक बदमाश ने मेरा अपहरण किया है, वो मुझे छोड़ नहीं रहा। अजीब-अजीब-सी बातें कर रहा...मैं नहीं जानती मैं कहां हूं पर ये जगह समुद्र के किनारे पर है...हां तुम पुलिस को फोन करो। मुझे बचा लो मम्मा मैं...।” उधर से फोन बंद हो गया।

लड़की का चेहरा आंसुओं से भीगा था।

उसने फोन जेब में डालकर, भर्राये स्वर में कहा।

“अब तुम्हें पुलिस आकर पकड़ लेगी। मुझे जाने दो और तुम भी भाग जाओ।

देवराज चौहान कुर्सी पर बैठा शांत-सा लड़की को देखे जा रहा था।

“मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो। इस तरह तो रेप से पहले देखा जाता है।” लड़की तीखे स्वर में कह उठी।

“ये बात किसने बताई तुम्हें?”

“फिल्मों में देखा है।”

“तुम्हारी मां का फोन आया था?”

“हां। अब मम्मा, पुलिस को मेरे अपहरण के बारे में बता रही होगी।” लड़की हिम्मत से कह उठी।

“अपने गाल साफ कर लो।”

“मेरा सारा मेकअप खराब कर दिया।” लड़की ने हाथ से आंसुओं भरे गालों को साफ किया।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया। फिर बोला।

“तुम जानती हो कि मैं तुमसे क्या कह रहा हूं।”

“मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि तुम ऐसी बकवास कर रहे हो जिसे मैं कभी नहीं मान सकती।”

“यहां से जाना चाहती हो?”

“हां, अभी...।”

“तो मेरे से ढंग से बात करो।” देवराज चौहान शांत-सा बोला –“जो मैं पूछ रहा हूं, वो ही बात करो।”

“फिर तुम मुझे जाने दोगे?”

“हां।”

“ठीक है, बोलो।”

“अब तक मैंने तुमसे क्या कहा, वो सारी बातें मुझे बताओ।” देवराज चौहान ने कहा।

“फिर वो ही बात, मैं...।”

“यहां से जाना है तो तुम्हें मेरी बातों पर ही चलना होगा।” देवराज चौहान ने उसे सख्त निगाहों से देखा।

“पुलिस आती ही होगी। फिर देखूंगी तुम्हारा हाल। दो डंडे पड़ेंगे तो, ऊंट की गर्दन की तरह सीधे हो जाओगे।”

देवराज चौहान ने कश लिया। खामोश रहा। उसे देखता रहा।

“ऐसे क्या देख रहे हो?”

“लगता है तुम यहां से जाना नहीं चाहती।”

“ठीक है।” लड़की सिर हिलाकर बोली –“तुमने अब तक कहा कि मेरी जान को खतरा है। किसी ने किसी को दस लाख दिए हैं कि वो मुझे मार दे। ऐन मौके पर तुमने उसे देख लिया जो मुझे मारना चाहता है और तुम कहते हो कि तुमने उससे मुझे बचाया, वरना वो मुझे मार चुका होता। उसके बाद तुम जबर्दस्ती मुझे उठाकर अपनी कार में ले गए और मुझे बेहोश कर दिया। यहां ले आए और अब कहते हो कि मैं तुम्हारी बातों का यकीन करूं, जो भी तुम कह रहे हो। लेकिन मेरा कोई दुश्मन नहीं है, जो मेरी जान लेने के लिए दस लाख खर्च करे। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया कि किसी को मेरी जान लेनी पड़े। मेरी सीधी-साधी जिंदगी है। मेरी नजरों में तुम कोई बदमाश हो जो अपना कोई मतलब निकालने के लिए मुझे यहां ले आए और मुझ पर दबाव बना रहे हो कि मैं तुम्हारी बातें मानूं। मैं तुमसे डरने वाली नहीं। अगर तुमने मेरे से रेप की कोशिश की तो मैं तुम्हें मार दूंगी या अपनी जान दे दूंगी। इस बात की भी परवाह नहीं करूंगी कि मेरे पेट में बच्चा है। मैं ऐसी-वैसी लड़की नहीं हूं। अच्छी तरह समझ लो मिस्टर।”

“कह लिया।”

“हां।”

“तो अब पांच मिनट के लिए मान लो कि मैंने जो कहा है, वो सौ प्रतिशत सच है।”

“नहीं।”

“क्या नहीं। मान नहीं सकती या मेरी बातें सच नहीं हैं।”

“दोनों ही बातों में नहीं है।” लड़की ने दृढ़ स्वर में कहा।

“मतलब कि तुम्हें लगता है मैं झूठ कह रहा हूं।” देवराज चौहान बोला।

“ये बात तो मैं कब से कह रही हूं।”

कश लेकर देवराज चौहान ने सिगरेट नीचे फेंकी और जूते से मसली।

“ये भी यकीन नहीं कि वो हत्यारा तुम्हें मारने के लिए, तुम्हें ढूंढ़ रहा होगा।”

लड़की बरबस ही हंस पड़ी।

देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।

“मैंने तुम्हें कहा न कि दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो मुझे मारना चाहे।” वो बोली।

“तुम जैसे लोग ही मरते हैं।”

“क्या मतलब?”

“जो लोग ये सोचते हैं कि उन्हें कोई नहीं मार सकता, उन्हीं को लोग मार जाते हैं, जैसे कि तुम। मुझे समझ में नहीं आता कि तुम मेरी बात का जरा भी यकीन नहीं कर रही। एक बार भी गम्भीरता से नहीं सोचा।”

“क्योंकि मेरा कोई दुश्मन नहीं है।” लड़की सपाट स्वर में बोली।

देवराज चौहान लड़की को देखता रहा।

“अब मैं जाऊं? मैंने तुम्हारी बातों का जवाब दे दिया है।” उसने कहा।

“तुम या तो बहुत चालाक हो या बहुत ही बेवकूफ।” देवराज चौहान ने होंठ भींचे कहा।

“मैं बहुत समझदार हूं। तुम मेरी चिंता न करो। अब मैं जा सकती हूँ न?”

“नहीं।”

“लेकिन तुमने अभी तो...।”

“तुम्हें मेरी बात का जरा भी यकीन नहीं, यहां से बाहर जाओगी तो मारी जाओगी। मुझे झूठा समझ रही हो, जबकि मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं।” कहने के साथ ही देवराज चौहान उठा और कुर्सी दरवाजे से हटा कर रखा दी।

“तो तुम मुझे नहीं जाने दोगे?” लड़की ने गुस्से से देवराज चौहान को कहने देखा। “नहीं, इस कमरे से निकलो। आओ मेरे साथ।”

“कहां?”

“किचन में, कॉफी बनानी है।”

“मैं तुम्हारे लिए कॉफी नहीं बनाऊंगी।” लड़की ने गुस्से से, दृढ़ स्वर में कहा।

“कॉफी मैं बनाऊंगा। तुम मेरे साथ रहोगी।”

“मैं यहीं ठीक...।”

“मैं नहीं चाहता कि तुम यहां से भागो और बाहर कोई तुम्हारी जान ले ले। हर पल मेरे साथ रहोगी तुम।”

“नहीं, मैं...।”

तभी देवराज चौहान तेजी से लड़की की तरफ बढ़ा।

“खबरदार, मुझे हाथ मत लगाना।” पीछे हटती वो चीखी।

देवराज चौहान ने उसकी कलाई पकड़ ली और दरवाजे की तरफ बढ़ा।

“तुम मेरा रेप करने के लिए मुझे ले जा रहे हो, मैं अपनी जान दे दूंगी लेकिन तुम्हें कामयाब नहीं होने दूंगी।” उसके साथ चलती लड़की ने तड़पकर कहा –“अभी पुलिस यहां आती ही होगी, वो तुम्हें पकड़ लेगी।”

लड़की की कलाई पकड़े देवराज चौहान किचन में पहुंचा।

लड़की परेशान दिखाई दे रही थी।

“तुम किचन में ही खड़ी रहोगी। मेरे पास।” देवराज चौहान उसकी कलाई छोड़ता कठोर स्वर में बोला –“तुमने हर वक्त मेरे पास रहने की कोशिश करनी है। मैं तुम्हें भागने का मौका नहीं देना चाहता।”

“तुम बहुत बड़े पागल हो।”

“मैं कॉफी बना रहा हूं। तुम पिओगी। तुम्हारे लिए बनाऊं?”

लड़की चुप रही।

देवराज चौहान कॉफी बनाने लगा। पास ही कांच की खिड़की थी जिससे बाहर देखा जा सकता था। उस खिड़की के बाहर, सामने समुद्र दिखाई दे रहा था। एक छोटी बोट समुद्र में किनारे के पास की तरफ घूम रही थी।

लड़की गुस्से से देवराज चौहान को देखे जा रही थी।

कॉफी बनाते देवराज चौहान बोला।

“तुमने आज लंच लिया?”

वो चुप रही।

“तुम्हारे लिए खाली पेट रहना ठीक नहीं। मुझे भूख लग रही है। मैं फ्रिज से सैंडविच लाने जा रहा हूं तुम्हें चाहिए तो...।”

“ले आओ।” लड़की अभी भी गुस्से में थी।

देवराज चौहान ने प्लेट उठाई और किचन से बाहर निकल गया।

गैस पर कॉफी रखी थी। लड़की की निगाह किचन की खिड़की के बाहर नजर आते समुद्र पर जा टिकी। जहां एक छोटी-सी, सफेद रंग की बोट चक्कर काट रही थी। चेहरे पर सोच के भाव थे। वो शीशे की खिड़की ऐसी नहीं थी कि वहां से बाहर निकलकर भागा जा सके। इस वक्त वो जाने क्या सोच रही थी।

देवराज चौहान प्लेट में सैंडविच के छ: पीस रखे वापस लौटा।

“ये लो।” किचन की शैल्फ पर प्लेट रखते बोला और एक सैंडविच खुद उठाकर खाने लगा।

लड़की ने भरपूर हिचकिचाहट के साथ एक सैंडविच उठाया और धीरे-धीरे खाने लगी। देवराज चौहान कॉफी बनाने में व्यस्त हो चुका था।

“तुम मुझे कब जाने दोगे?” लड़की ने शांत स्वर में पूछा।

“जब तुम्हें मेरी बात का भरोसा हो जाएगा कि कोई तुम्हारी जान लेना चाहता है।”

“भरोसा दिलाना जरूरी है क्या?”

“बहुत जरूरी है। मैं बस, तुम्हें बचाना चाहता हूं।”

“तुम अजीब-से नहीं हो क्या?”

“क्यों?”

“मैं तुम्हें जानती नहीं और तुम मुझे बचाने की बात कह रहे हो। कहीं तुम मेरी खूबसूरती पर फिदा तो नहीं हो गए।”

“मैंने तुम्हारी खूबसूरती नहीं देखी। ये बात तुम अपने मुंह से कह रही हो।”

“तो तुमने मुझे अभी तक देखा नहीं?” लड़की कड़वे स्वर में कह उठी।

“देखा।” देवराज चौहान को गिलासों में डालता बोला –“परंतु मेरे दिमाग में एक ही बात है कि तुम्हें यकीन दिला दूं कि तुम्हारी जान खतरे में है। मैं औरतों की इज्जत करता हूं और शादीशुदा हूं।”

“मतलब कि तुम मेरा रेप नहीं करना चाहते?”

“ये विचार तुम्हारे दिमाग की उपज है। इसमें जरा भी सच्चाई नहीं।”

“कहीं तुमने सैंडविच या कॉफी में बेहोशी की दवा तो नहीं मिला दी कि मैं बेहोश हो जाऊं और तुम...।”

“तो सैंडविच मत खाओ। कॉफी मत पिओ।” देवराज चौहान बोला –“अपना कॉफी का गिलास उठाओ और ड्राइंग रूम में चलो। भागने की कोशिश मत करना। मैं तुम्हें इस तरह नहीं जाने दूंगा।”

देवराज चौहान ने अपना कॉफी का गिलास और सैंडविच प्लेट उठा ली।

लड़की ने देवराज चौहान को देखते गिलास उठाया और किचन से बाहर निकल गई।

दोनों ड्राइंग रूम में पहुंचे।

देवराज चौहान ने सैंडविच की प्लेट सेंटर टेबल पर रखी और एक सैंडविच उठाकर खाता हुआ खिड़की की तरफ बढ़ गया। दूसरे हाथ में कॉफी का गिलास था। खिड़की पर खड़ा होकर बाहर देखने लगा। आसमान में बादल छाने लगे थे। मौसम और भी सुहावना होने लगा था। ठंडी हवा में तेजी का एहसास होने लगा था। समुद्र में वो छोटी सफेद बोट अभी भी घूम रही थी। वो ज्यादा दूर नहीं थी। किनारे से हजार, बारह सौ मीटर दूर होगी।

देवराज चौहान पलटा और खिड़की से टेक लगाकर कॉफी का घूंट भरा।

लड़की कुर्सी पर बैठी उसे ही देख रही थी।

देवराज चौहान ने बचा-खुचा सैंडविच मुंह में डालते हुए कहा।

“कॉफी मत पीना, इसमें बेहोशी की दवा है।”

जवाब में लड़की ने फौरन कॉफी का गिलास उठाकर घूंट भर लिया।

देवराज चौहान ने महसूस किया कि लड़की जिद्दी किस्म की है। जो ठान लेती है, वो ही करती है। उस पर विश्वास नहीं करना तो नहीं करना। बेशक बात कुछ भी हो। ऐसी लगी वो देवराज चौहान को। प्लेट में रखे सारे सैंडविच को खत्म कर चुकी थी। वो भूखी होगी। ये महसूस करके देवराज चौहान ने कहा।

“फ्रिज में काफी कुछ खाने के लिए रखा है। जो पसंद हो ले लो।”

वो चुप रही और खाती रही।

“तुम्हारे विचार से तो तुम्हें अब तक बेहोश हो जाना चाहिए था, क्योंकि खाने-पीने के सामान में बेहोशी की दवा मिली है।”

“तो तुम मेरा रेप नहीं करना चाहते।”

“ये विचार मेरे मन में भी नहीं आया।” देवराज चौहान मुस्कराकर बोला।

“ऐसे मर्द मैंने पहले नहीं देखे। उनकी तो पहली कोशिश ही ये ही होती है कि...।”

“तुम्हारा वास्ता अभी मर्दो से पड़ा नहीं दिखा।”

लड़की ने तीखी निगाहों से देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान पलटा जीर पुन बाहर समुद्र में दौड़ती बोट को देखने लगा।

“ये कॉटेज तुम्हारी है?”

देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा और वहां से हटकर, लड़की के सामने कुर्सी पर जा बैठा।

“मेरे दोस्त की है।” देवराज चौहान बोला।

“मतलब कि तुम यहां नहीं रहते।”

“नहीं। कल रात पहली बार मैं यहां आया। आज यहां पर मेरा पहला दिन है।”

“कहीं बाहर से आए हो?”

“मुम्बई से।”

“मुम्बई में ही रहते हो या कहीं और।” लड़की अब कुछ संजीदा लगने लगी थी।

“मुम्बई में रहता हूं।”

“नाम क्या है तुम्हारा?”

“सुरेंद्र पॉल।”

“क्या करते हो?”

“इससे तुम्हें मतलब नहीं होना चाहिए।” देवराज चौहान ने कहा।

लड़की ने कॉफी का घूंट भरा और गम्भीर स्वर में बोली।

“तुम्हारा कहना है कि उस आदमी ने मुझ पर रिवॉल्वर से गोली चलानी चाही परंतु तुमने रिवॉल्वर गिरा दी।”

“तुम्हें कैसे पता कि मैंने रिवॉल्वर गिरा दी। मैंने तो नहीं कहा।”

“मैंने रिवॉल्वर गिरती देखी थी।”

“देखी थी।”

उसने सहमति से सिर हिलाया।

“फिर भी तुम मेरी बात का भरोसा नहीं कर रही कि...।”

“मुझे इस बात का यकीन नहीं कि कोई मेरी जान लेना चाहता है।”

“तुम्हारे ख्याल से तब क्या हुआ था, जब तुम साड़ी खरीदकर वहां से बाहर निकली?” देवराज चौहान ने पूछा।

“मैं नहीं जानती। मैंने सिर्फ तुम्हें ही देखा पास आते और मैं घबरा गई।

“तब तुमने किसी को भागते देखा?”

“हां।”

“वो ही तुम पर गोली चलाने वाला था लेकिन मेरे बीच में आने से भाग गया।”

“जब उसने रिवॉल्वर निकाली तो तुम्हें डर नहीं लगा मिस्टर सुरेन्द्र पाल।” वो गम्भीर थी।

“नहीं।”

“जबकि लोग रिवॉल्वर देखकर ही घबरा जाते हैं।”

देवराज चौहान ने कॉफी का गिलास रखा और जेब से रिवॉल्वर निकालकर उसे दिखाई।

लड़की की आंखें फैल गईं। वो बोली।

“तुमने उसकी रिवॉल्वर ले ली।”

“ये मेरी है।”

“तुम्हारी?”

“हाँ। मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि मुझे रिवॉल्वर से डर क्यों नहीं लगा क्योंकि ये मैं भी रखता हूं।”

लड़की की सांसें तेज-तेज चलने लगी।

“तुम-तुम भी बदमाश हो?”

“तुम्हारे लिए नहीं।”

“मतलब कि हो।”

“नहीं।” देवराज चौहान रिवॉल्वर जेब में रखता कह उठा –“मैं गलत इंसान होता तो तुम्हें बचाने की चेष्टा न कर रहा होता।”

“क्या मालूम वहां पर जो हुआ हो, वो तुम्हारी ही कोई चाल हो?”

“मैं चाल चलकर तुमसे क्या ले लूंगा। क्या तुम बहुत अमीर हो?”

“नहीं।”

“बेहतर होगा कि मेरा भरोसा कर लो, मैं जो कह रहा हूं वो ही सच है।”

“भरोसा करने की कोशिश तो कर रही हूं।” लड़की ने सोच-भरे स्वर में कहा –“परंतु तुमने जिस तरह मुझे उठाकर कार में डाला, बेहोश किया, यहां ले आए, ये काम कोई साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता।”

“मैं साधारण ही हूं और उस वक्त जाने कैसे मुझ में, हिम्मत आ गई थी ये सब करने की।”

लड़की चुप रही।

देवराज चौहान उसे सोचने का मौका देना चाहता था।

“तुमने उसे देखा जो मुझे गोली मारना चाहता था?” लड़की पुनः बोली।

“हां।”

“कौन था वो?”

“मेरे लिए तो अजनबी था। मैंने तो उसे पहले नहीं देखा था। वो दो थे। एक को मैंने हमेशा कार के स्टेयरिंग पर ही बैठे देखा। मैंने दो बार उन्हें देखा। पहली बार कार पार्किंग में देखा जब पहली बार उन्होंने तुम्हारा निशाना लिया।

“तो तुम दुकान की तरफ कैसे आ गए?”

“समझो कि उनके पीछे ही वहां पहुंचा। मुझे दोबारा वहाँ देखकर उसने मुझे धमकी दी कि मैं वहां से चला जाऊं, वरना वो मुझे गोली मार देगा। मैंने उसे झूठ ही कहा कि मैं पुलिस वाला हूँ तो वो मुझे लाख रुपया देने का लालच देने लगा करता था कार में दस लाख पड़े हैं, उसमें से एक लाख मुझे दे देगा। पहले उसे गोली मारने दूं। तुम्हें मारने के लिए उसने ताजे-ताजे ही दस लाख किसी से लिए थे।” देवराज चौहान ने कहा।

“तो तुमने उसे पहले नहीं देखा?”

“नहीं। सूरत शहर में तो मैं वैसे भी किसी को नहीं जानता। परंतु इस बारे में तुम सोच सकती हो कि ऐसा कौन है जो तुम्हें मारना चाहता है। सोचोगी तो तुम्हें पता चल जाएगा।”

“कोई नहीं है।”

“सोचो। जल्दी मत करो। कोई तो है ही जो तुम्हें मारना चाहता है।”

लड़की चुप हो गई। चेहरे पर सोचें दिखने लगी।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और उठकर कमरे में टहलने लगा। फिर खुली खिड़की पर पहुंचकर बाहर समुद्र में देखा। वो छोटी बोट अभी भी समुद्र में सामने ही चक्कर काटे जा रही थी। बाहर मौसम सुहावना हो गया था। आसमान में बादल छा गए थे। कहीं-कहीं पर से बादलों की गर्जन भी सुनाई दे जाती थी।

उस बोट को देखते देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ गईं।

देर से समुद्र के किनारे की तरफ बोट का चक्कर काटे जाना अजीब लगा उसे। खिड़की पर खड़ा वो बोट को ही देखता रहा कि एकाएक पलटा और दूसरे कमरे में पहुंचा। वहां लकड़ी की पुरानी अलमारी में उसने दूरबीन देखी थी। अलमारी खोली और दूरबीन निकालकर वापस कमरे में पहुंचा।

लड़की अपनी जगह पर बैठी थी।

बाहर की ठंडी हवा खिड़की से कमरे में आने लगी थी।

दूरबीन पर धूल जमी हुई थी कि उसे सालों से इस्तेमाल न किया गया हो। देवराज चौहान दूरबीन को साफ करने लगा। उसे देखती वो लड़की कह उठी।

“मौसम अच्छा हो गया है। मैं बाहर घूमना चाहती हूं।”

“तुमने सोचा कि कौन तुम्हारी जान लेना चाहता है।”

“कुछ समझ नहीं पा रही। बहुत उलझनें मेरे सामने आ रही है।”

“कैसी उलझनें?”

जवाब में वो चुप कर गई।

दूरबीन साफ करके देवराज चौहान खिड़की पर पहुंचा और उसे आँखों पर लगाकर बोट का फोकस लेने लगा। दूरबीन पावर फुल थी। सरबत सिंह के बाप ने ही अपने शौक के तौर पर इसे लिया होगा। इसके सहारे वो समुद्र में दूर तक जरूर देखता होगा। बटन घुमाकर समुद्र में दौड़ती बोट का फोकस ले लिया।

अब बोट इतनी स्पष्ट दिखने लगी जैसे कि दस कदम दूर हो।

बोट में दो लोग बैठे थे।

उन दोनों के चेहरों पर नजर पड़ते ही देवराज चौहान बुरी तरह चौंका।

वो दोनों ही थे जो इस लड़की की जान के पीछे लगे थे। एक कार चलाने वाला और दूसरा गोली चलाने वाला। कार चलाने वाला लड़का अब बोट चला रहा था और दूसरा उसकी बगल में बैठा था। उसकी निगाह बार-बार इसी कॉटेज की तरफ उठ रही थी। देवराज चौहान ने आंखों से दूरबीन हटाई और पलटकर बोला।

“वो यहां भी आ पहुंचे।”

“कौन?” लड़की के होंठों से निकला।

“तुम्हारी जान के पीछे जो लोग पड़े हैं, मैं उनकी बात कर रहा हूं। मेरे पास आओ।”

लड़की तुरंत उठकर पास आ गई।

“तुम दूरबीन आंखों पर लगाकर, देखो, जो बोट समुद्र में चक्कर लगा रही है। उनके चेहरे तुम्हें साफ दिखेंगे। तुमने उन्हें पहचानना है कि उन्हें तुमने पहले कहां देखा है।” देवराज चौहान बोला।

“हटो तो।” दूरबीन थामती लड़की ने कहा।

देवराज चौहान खिड़की से हट गया।

लड़की वहां खड़ी हुई और दूरबीन आंखों में लगाकर, समुद्र में घूमती बोट को देखने लगी।

करीब दो मिनट तक देखती रही फिर आंखों से दूरबीन हटाते कह उठी।

“मैंने इन दोनों को पहले कभी नहीं देखा।”

“ध्यान से देखो, शायद...।”

“देख लिया है। मैंने इन दोनों को पहले कभी नहीं देखा।” लड़की ने दृढ़ स्वर में कहा।

देवराज चौहान ने खिड़की से बोट की तरफ देखते हुए कहा।

“इन दोनों को किसी ने दस लाख देकर, तुम्हारी हत्या का सौदा किया है। लेकिन मैंने तो सोचा था कि मैं इन लोगों को पीछे छोड़ आया हूं, परंतु ये मेरे पीछे थे। मुझे यहां पर आते देख लिया था।” देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।

“तुम्हें पता नहीं लगा?”

“नहीं। ये चालाक लोग हैं। जबकि मैंने इन्हें कम आंका था।” देवराज चौहान ने लड़की को देखा।

“कहीं ये सब तुम्हारा ड्रामा तो नहीं?”

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी। वो लड़की को देखता रह गया।

“मेरा ड्रामा?” उसके होंठों से निकला।

“ये तुम्हारे ही आदमी हो और अपनी चाल के तहत मुझे यकीन दिलाना चाहते हो कि...।”

“कैसी चाल?”

“तुम्हें पता होगा।”

“बेवकूफ अब तक तुम्हें यकीन आ जाना चाहिए था कि मैं जो कह रहा हूं वो सच है।”

लड़की ने कुछ नहीं कहा और खिड़की से बाहर समुद्र में चक्कर लगाती बोट को देखने लगी। उसके चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी। जबकि देवराज चौहान उसे घूरे जा रहा था।

“आओ।” देवराज चौहान ने एकाएक उसकी कलाई पकड़ी और दरवाजे की तरफ बढ़ा।

“कहां?” उसके साथ चलती लड़की ने कहा।

“मौसम सुहावना हो गया है। तुम बाहर घूमना चाहती थी न?”

“ले-लेकिन बाहर वो हैं, जिन्हें तुम कहते हो कि वो मेरी जान लेना चाहते हैं।”

“ये तो और भी अच्छी बात है।” देवराज चौहान ने दरवाजा खोला।

तेज ठंडी हवाएं उनके जिस्म से आ टकराई।

“अच्छी बात है?”

“तुम्हें यकीन आ जाएगा, जब वो तुम पर गोली चलाएंगे।” देवराज चौहान ने बाहर निकलते हुए कहा। उसने लड़की की बांह छोड़ दी थी। वो भी बाहर आ गई थी। आसमान में रह-रहकर बादल गरज रहे थे।

मौसम सच में शानदार था।

दोनों की निगाह समुद्र में चक्कर काटती बोट पर थी।

तेज हवा के संग समुद्र की लहरें भी उछलने लगी थी।

“उन्होंने अगर मुझ पर गोली चलाई तो मैं मर भी सकती हूं।” लड़की परेशानी से कह उठी।

“कम-से-कम तुम्हें मेरी बात का यकीन तो आ जाएगा कि कोई तुम्हें मारना चाहता है।”

देवराज चौहान ने पुनः उसकी कलाई पकड़ी और समुद्र किनारे की तरफ बढ़ गया। “तुम गलत कर रहे हो, वो मुझे गोली मार देंगे।”

“पर तुम्हें तो भरोसा नहीं कि कोई तुम्हारी जान लेना चाहता है।”

“फिर भी तुम ऐसा कह रहे हो तो खतरा है ही।” लड़की अजीब-सी स्थिति में फंसी महसूस कर रही थी –“वापस चलो।”

परंतु देवराज चौहान उसकी कलाई पकड़े समुद्र किनारे की तरफ बढ़ता रहा। हवा के संग रेत भी उड़ रही थी। आंखों में पड़ रही थी।

“वो मुझे मार देंगे। ये तुम क्या कर रहे हो?”

“मैं तुम्हें यकीन दिलाने की चेष्टा कर रहा हूं।”

“इस तरह यकीन दिलाते हैं कि मैं मारी जाऊं। तुम क्या सच में पागल हो।”

“वो देखो, अब बोट ने चक्कर काटने छोड़ दिए हैं। वो एक जगह पानी में रुक रही है।” देवराज चौहान बोला।

युवती ने उस तरफ देखा।

बोट पानी में एक जगह ठहर गई थी और पानी के साथ हिल रही थी।

“वे रुक क्यों गए?” लड़की ने पूछा।

वे दोनों भी लगभग किनारे पर आ पहुंचे थे। पांवों की रेत अब गीली थी। वे रुक गए।

“तुमने बताया नहीं कि वे रुक क्यों गए?”

“उनके पास पावरफुल गन है। मेरे ख्याल में वे वहीं से तुम्हारा निशाना लेंगे।” देवराज चौहान ने कहा।

“ये क्या कह रहे हो, अगर ऐसा है तो मुझे यहां लेकर क्यों खड़े...।”

इसी पल मोटी-मोटी बूंदों के रूप में बरसात होने लगी।

बरसात भी ऐसी तेज कि सिर्फ दस सेकेंड में उन्हें भिगो दिया। मूसलाधार बारिश शुरू हो गई थी। ऐसी बरसात कि पंद्रह कदम दूर देखना भी सम्भव नहीं हो पा रहा था। समुद्र में वो बोट धुंधली-सी दिखने लगी थी तो कभी-कभी वो दिखती भी नहीं थी। समुद्र के पानी से बरसात की मोटी बूंदें टकराने का शोर उठ खड़ा हुआ था।

देवराज चौहान ने लड़की की बांह पकड़कर चिल्लाते हुए कहा।

“कॉटेज की तरफ चलो।”

दोनों तेजी से कॉटेज की तरफ बढ़ गए। पांव रेत में धंस रहे थे।

कॉटेज के दरवाजे तक पहुंचकर दोनों रुके। बरसात में बुरी तरह गीले हो चुके थे। देवराज चौहान के जूतों तक में पानी भर गया था। लड़की भी पूरी तरह भीग चुकी थी। “बहुत तेज बरसात शुरू हो गई।” लड़की ने परेशान स्वर में कहा –“मेरा सारा मेकअप धुल गया।”

“मेरे ख्याल में आज तुम दूसरी बार बची हो।” देवराज चौहान बोला –“बरसात ने तुम्हें बचा लिया।”

“वो कैसे?”

“उन्होंने यकीनन गन से तुम्हारा निशाना लेना था और तुम बच न पाती।”

“ऐसा था तो तुम मुझे वहां लेकर क्यों गए?”

“तुम्हें यकीन दिलाने के लिए।”

“मैं मर जाती तो यकीन का क्या फायदा।” लड़की ने तीखे स्वर में कहा।

“तुम्हें मेरी बात पर भरोसा करना चाहिए कि कोई तुम्हारी जान लेने के लिए हत्यारा भेज चुका है।”

“पता नहीं तुम क्यों मेरे पीछे पड़ गए।”

“तुम्हें बचा रहा हूं और तुम मेरी बात का विश्वास नहीं कर रही। ये तो सरासर ज्यादती है।”

“भीतर चलो अब। मैं पहनूंगी क्या। मेरे पास कपड़े...।”

“जो साड़ी खरीदी थी वो पहन लेना।”

“ब्लाउज नहीं है। वो नहीं पहन सकती।”

“तो मेरे कपड़े पहन लो।” देवराज चौहान दरवाजे पर से कॉटेज में प्रवेश कर गया। लड़की भी भीतर आई।

“मेरे साथ कोई गड़बड़ तो नहीं करोगे?”

“बकवास मत करो। ऐसा कहकर तुम सामने वाले को कुछ करने पर उकसा रही हो। उसे याद दिला रही हो कि वो...।”

“तुम मुझे जाने क्यों नहीं देते?” लड़की झल्लाकर कह उठी।

“मैं नहीं चाहता कि यहां से जाकर तुम अपनी जान गंवाओ। हत्यारे यहां तक आ पहुंचे हैं।”

“तुम मुझे मम्मा के पास छोड़ दो। फिर मुझे कोई नहीं मार सकेगा।”

“बेवकूफ, हत्यारे तुम्हारी ताक में बाहर घूम रहे हैं।”

देवराज चौहान ने अपने बैग से पैंट-कमीज निकालकर उसे दी।

“उस कमरे में जाकर पहन लो और दरवाजा भीतर से बंद किया तो मैं उसी वक्त दरवाजा तोड़ दूंगा।”

“तुम कमरे में मत आना।” उसने कपड़े उठाए और पीछे के कमरे की तरफ बढ़ गई।

“खिड़की से भागने की गलती मत करना, हत्यारे तुम्हारी ताक में बाहर मौजूद हैं।”

देवराज चौहान ने कहा।

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