सुनील कुमार चक्रवर्ती, ब्लास्ट का क्राइम रिपोर्टर, अपने फ्लैट में बैठा आपे से बाहर हुआ जा रहा था। सुनील को शास्त्रीय संगीत से सख्त चिढ़ थी और उसकी पड़ोसन प्रमिला का रेडियो पूरे जोर-शोर से जैसे उसी को चिढ़ाने के लिए आधे घंटे से पक्के राग प्रसारित कर रहा था । प्रमिला सुनील के ही ऑफिस में स्टेनो थी और उसकी नस-नस से वाकिफ थी । वह जानती थी कि जिस समय सुनील बोर हो रहा हो, उस समय यदि उसे शास्त्रीय संगीत सुनने पर मजबूर कर दिया जाए तो वह खून करने को उतारू हो जाता है। 


सुनील ने कई बार जाकर प्रमिला का दरवाजा खटखटाया था, उसके छोटे भाई पप्पू की, जो कि बाहर गलियारे में बैठा रंगों से एक बिल्ली को टैक्नीकलर बना रहा था, अप्रोच प्रयोग में ला चुका था। बात मनवाने की धमकी से लेकर अपील तक के सारे स्टैंडर्ड आजमा चुका था, लेकिन प्रमिला थी कि कान लपेटकर फ्लैट में बैठी थी ।


थक-हारकर सुनील ने एक बार फिर प्रमिला का दरवाजा खटखटा दिया ।


"प्रमिला" - उसने याचनापूर्ण स्वर में कहा - "ओ प्रमिला, मेरी अच्छी प्रमिला ।"


भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला ।


"पोर्टर साहब।" - पप्पू ने दूर से ही हांक लगाई -


"अगर सिस्टी अच्छी ही होती तो आपकी बात मान ही न लेती ।"


"चुप बे।" - सुनील दांत पीसकर चिल्लाया । पप्पू सुनील को कभी रिपोर्टर नहीं कहता था, हमेशा मुंह बिगाड़कर पोर्टर कहा करता था ।


" पम्मी डार्लिंग।" - सुनील ने चिकने-चुपड़े स्वर में कहा । 


"अच्छा तो अब मैं तुम्हें डार्लिंग लगती हूं ?" - भीतर से प्रमिला की आवाज आई।


"भई दरवाजा तो खोलो।" - सुनील ने याचना की। " असंभव ।"


“अच्छा तो रेडियो ही बंद कर दो।"


"यह नहीं हो सकता। मुझे पक्के राग सुनने में मजा आ रहा है। "


“अच्छा तो रेडियो को जरा धीमा ही बजा लो।"


"मेरा रेडियो खराब है, धीमा नहीं बजता ।"


"प्रमिला की बच्ची ।" - सुनील ने दांत पीसकर कहा"कम से कम यह तो बता दो कि कौन-सा स्टेशन बजा रही हो ?"


"लोकल ।" भीतर से प्रमिला की प्रसन्नतापूर्ण - आवाज आई।


सुनील पैर पटकता हुआ अपने फ्लैट में वापिस आ गया । उसने झल्लाकर टेलीफोन उठाया और लोकल रेडियो स्टेशन के नंबर डायल कर दिये ।


"हल्लो।" - दूसरी ओर से आवाज आई।


"इस समय कौन अपने गले के पीछे लट्ठ लेकर पड़ा हुआ है ?"


"जी !"


"इस समय कौन गा रहा है ?"


“इस वक्त श्रीमान सरकारी बंदर साहब ताबड़तोड़ भीमसेन का ख्याल गा रहे हैं।"


"आप अपने मस्त कलंदर या सरकारी बंदर जो कुछ भी हैं, उन्हें चुप करा लीजिये, नहीं तो रेडियो स्टेशन पर आकर मैं उन्हें चुप करा दूंगा।" - और सुनील ने फोन बंद कर दिया ।


रेडियो की आवाज अब भी पूरे जोर-शोर के साथ उसके कानों में पिघले हुए शीशे की तरह पड़ रही थी। उसने प्रमिला के फ्लैट की ओर मुंह करके हवा में मुक्का घुमाया और एक बार फिर रिसीवर उठाकर उसने कोई नंबर घुमा दिया। उसने कौनसा नंबर घुमाया था, यह उसे स्वयं भी मालूम नहीं था ।


"हल्लो।" - दूसरी ओर से एक सुरीली आवाज आई ।


"जरा अपने पति को फोन दीजिये।" - सुनील ने अपने स्वर में गंभीरता उत्पन्न करने की चेष्टा करते हुए कहा ।


"क्या ?" दूसरी ओर से दहाड़ सुनाई दी - "मेरी अभी शादी नहीं हुई । "


"मुझे अफसोस है।" - वह जल्दी से बोला- "देखिये फोन बंद न कीजियेगा, आपके घर में आपका भाई, पिताजी जो भी पुरुष सदस्य है उसे फोन दीजिये।"


कुछ देर बाद एक भारी- सी आवाज सुनाई दी "हल्लो -


"क्या आप पिताजी हैं ?"


"नो आई एम मेजर जानकीदास ।"


"आप लाला लब्भूराम क्यों नहीं हैं ?"


"वॉट नॉनसैन्स ?"


"अच्छा तो खैर आप जाने दीजिये । वास्तव में आपसे यह पूछना चाहता हूं कि आप कितने भाई हैं ?"


'आप क्यों पूछना चाहते हैं ?"


"आप बताइये तो सही ।"


"पांच ।" - वे जरा रोब में आकर बोले ।


"पांच !" - सुनील उसके स्वर की नकल करता हुआ बोला- “छ: होते तो आप मेरा क्या बिगाड़ लेते ?"


और दूसरी ओर से गालियों का तूफान फट पड़ा।


सुनील ने झट बटन पर उंगली दबाकर लाइन काट दी। रिसीवर अब भी उसके हाथ में ही था ।


उसी समय प्रमिला कमरे में प्रविष्ट हुई ।


सुनील प्रमिला की शक्ल देखते ही एकदम माउथपीस पर झुक गया और जोर से बोला- "ओके रेणु डीयर, मैं कल सुबह आठ बजे तुम्हें तुम्हारे घर से पिक कर लूंगा, बाय डार्लिंग | "


रिसीवर को क्रेडिल पर रखकर वह चुपचाप बैठ गया जैसे उसने प्रमिला को देखा ही न हो ।


प्रमिला के चेहरे से सारे विनोद के भाव उड़ चुके थे । रेणु का नाम सुनते ही उसे आग लग गई थी ।


“किसे फोन कर रहे थे ?" - वह पास आकर जले-भुने स्वर में बोली ।


"यूं ही जरा रेणु को फोन कर रहा था।" - सुनील लापरवाही ने लापरवाही से कहा- "तुम रेडियो सुन आई ?”


"हां, आज रेणु की याद कैसे आ गई ?"


"अरे, तुम्हें मालूम नहीं है ?" - वह विस्मय का भाव प्रदर्शित करता हुआ बोला ।


"क्या ?"


"मैं रेणु पर आशिक हो गया हूं।"


"कब से ?"


"बस यूं समझ लो की अभी से । मेरा मतलब है पिछले मंगलवार से।"


"आखिर ऐसा क्या भा गया है उसमें ?" - प्रमिला ने जलकर कहा ।


“मुझे तो समूची रेणु ही भा गई है, उसकी कोई ऐसी अदा बाकी नहीं है जो मेरी नजरों से नहीं गुजरी। मैंने एक पारखी की नजर से उसके इन और आउट का विश्लेषण किया है और सच पूछो तो उसने जिस दिन से हमारे ऑफिस में जॉइन किया था, मुझे मालूम ही उस दिन हुआ था कि सुंदरता किसे कहते हैं ?"


रेणु ब्लास्ट के ही दफ्तर में रिसेप्शनिस्ट थी ।


"मैंने खूब देखा है उसे" - प्रमिला ने नारी-सुलभ जलन का प्रदर्शन करते हुए कहा- "सुन्दर तो वह हरगिज नहीं है।"


"वह सुन्दर है और शर्तिया सुन्दर है बशर्ते कि उसे एक खास कोण से देखा जाए।"


" और उस कोण की जानकारी शायद तुम्हें ही है । "


"उसके सिर्फ कुछ पोज अच्छे नहीं आते" - सुनील झोंक में बोलता चला गया "एक सामने का, एक साइड का, एक पीछे का और एक जरा तिरछा लिया हुआ । बस इसके अलावा बाकी सब ओर से वह सुन्दरता की खान है।"


" और बाकी पोज कौन-कौन से रह गए हैं ?"


"दरअसल" सुनील झोंक में बोलता गया- "मुझे वर्षों से एक ऐसी लड़की की तलाश थी जो सुन्दर हो, पढी लिखी हो और सर्विस करती हो।"


"तो यह क्यों नहीं कहते कि तुम्हें तीन लड़कियों की तलाश है ।"


"देखो प्रमिला, ये बातें तुम्हारी...."


उसी समय फोन की घंटी घनघना उठी ।"


"हल्लो।" - सुनील ने बड़ी मीठी आवाज में कहा और प्रमिला को आंख मार दी। प्रमिला बौखलाकर दूसरी ओर देखने लगी ।


सुनाई दिया । "सुनील कुमार चक्रवर्ती ?" - दूसरी ओर से स्त्री स्वर


“जी हां, फरमाइए।"


"क्या आप अभी मुझसे लेक होटल में मिल सकते हैं?"


"लेकिन आप हैं कौन ?"


"किसी विशेष कारणवश मैं आपको फोन पर अपने विषय में कुछ नहीं बता सकती ।"


"आप मुझसे क्यों मिलना चाहती हैं ?"


"यह भी फोन पर नहीं बताया जा सकता। इस समय मैं केवल इतना बता सकती हूं कि मैं लेक होटल के चालीस नंबर कमरे में हूं। अभी केवल एक घंटे पहले कमरे में से मेरी एक एक चीज चुरा ली गई है, यहां तक कि कार भी।"


"आपने पुलिस को रिपोर्ट दी है ?"


"नहीं।" 


"क्यों ?"


"मिस्टर सुनील, इस सिलसिले में कुछ बातें ऐसी हैं जिनका मेरी भलाई के लिये सब की दृष्टि में आना अच्छा नहीं । जो खबर पुलिस तक पहुंच जाती है वह अखबारों से दूर नहीं रहती।"


"लेकिन मैं भी तो रिपोर्टर हूं, आपने यह कैसे सोच लिया कि सब-कुछ जान जाने के बाद मैं उसे ब्लास्ट में छपने के लिये नहीं भेज दूंगा।"


"लेकिन साथ ही मुझे यह भी तो मालूम है कि आप थोड़ी-बहुत प्राइवेट जासूसी भी करते हैं और ऐसी हालत में आप मेरी भलाई-बुराई का भी ख्याल रखेंगे ही।"


" आप यहां क्यों नहीं आ जातीं ?"


"मिस्टर सुनील, मैंने आपको अभी बताया है कि मेरी एक एक चीज चोरी हो चुकी है, इस समय मैं केवल एक तौलिया लपेटे बैठी हुई हूं क्योंकि चोरी के समय मैं बाथरूम में थी, इसलिए मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे पहनने के लिये कुछ कपड़े भी साथ लाइए ।"


"आपका ढांचा, मेरा मतलब है, कद काठ कैसा है ?"


"जैसा आजकल की लड़कियों का होता है।"


"यानी कि मरघिल्ली-सी छिपकलियों जैसी ।"


"मिस्टर सुनील..."


"ओ अच्छा, बुरा मत मानिये। मैं तीस मिनट में आपके पास पहुंच जाऊंगा।"


"पम्मी डियर !" - सुनील फोन रखकर प्रमिला की ओर मुड़ा ।


"रेणु डीयर।" - प्रमिला ने बुरा सा मुंह बनाकर भूल सुधारी ।


"रेणु को मारो गोली ।" - सुनील खुशामद भरे स्वर में कहा- "तुम्हारी तो वह जूती के बराबर भी नहीं है.. । पम्मी, तुम्हारे कुछ पुराने कपड़े तो होंगे ही ?"


"मैं इतनी अमीर नहीं हूं कि लोगों को अपने कपड़े बांटती फिरू | "


"लेकिन तुम्हें बांटने को कौन कहता है, मैं तुम्हें उनके बदले में नए कपड़े दिलवाऊंगा ।"


"प्रोमिस !" - प्रमिला ने पिघलकर कहा


"जेंटलमैन प्रोमिस ।" - सुनील ने झुककर कहा"प्रोमिस ब्रेकर, शू मेकर।"


"लेकिन एक शर्त मेरी भी है । "


"क्या ?" - सुनील ने सशंक स्वर में पूछा।


"मुझे साथ लेकर चलना होगा।"


"अरे, तुम क्या करोगी साथ जाकर ?"


"मैं नहीं चाहती कि किसी होटल के कमरे में, एक ऐसी लड़की से तुम तन्हाई में मिलो, जो केवल तौलिया लपेटे बैठी हो ।"


उसे हां करनी पड़ी ।


कुछ देर बाद प्रमिला एक नए सलवार और जम्फर लेकर लौटी।


"पम्मी, ये एकदम नए हैं । "


"तो क्या तुम उस लड़की को ये जताना चाहते हो कि उसके पहनने के लिये किसी भिखारिन का उतरन लाए हो !"


सुनील ने हथियार डाल देना ही उचित समझा।