सबको एक साथ हल्का सा झटका लगा।

इसके साथ उनकी नजरें एक-दूसरे पर फिरने लगीं।

मोगा हंस कर कह उठा।

“शैतान के अवतार की दुनिया में आप सब लोगों का स्वागत है। पचास बरसों से आप सबका इन्तजार करते हुए मालिक के हुक्म की तारीफ कर रहा था। अब कुछ दिन आराम करूंगा।”

देवराज चौहान, मोना चौधरी, जगमोहन, महाजन, सोहनलाल,

पारसनाथ, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, नगीना और राधा के चेहरे गम्भीर थे। नजरें मोगा पर थीं।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और खड़ा होते बोला।

“तो हम शैतान के अवतार की दुनिया में पहुंच गये हैं।”

“बेशक।”

“शैतान का अवतार हमारे साथ क्या करेगा?”

“मैं क्यों पूछूँ उससे।” मोगा हंसा-“मालिक का काम, तो मालिक ही जाने देवा।”

“शैतान का अवतार मिलेगा कहां?” मोना चौधरी का चेहरा सख्त हो उठा।

“मुझे क्या पता। वो कहीं भी हो सकता है। यहां भी, वहां भी, कहीं भी। किसी के भी रूप में।” मोगा पुनः हंसते हुए कह उठा-“उसकी असीमित अद्भुत शक्तियों का कोई अंत नहीं। बेपनाह ताकतों का मालिक है वो। उससे बड़ा इस धरती पर कोई दूसरा नहीं। हर कोई उसकी पूजा करता है।”

“झूठ कहते हो तुम।” मोना चौधरी कह उठी-“कोई शैतान के अवतार की पूजा नहीं करेगा। हमारी दुनिया में भगवान हैं। लोग उनकी पूजा करते हैं। लेकिन कुछ लोग नहीं भी करते।”

“ऐसा तो यहां भी होता है।” मोगा ने सिर हिलाया-“ऐसों के बारे में जब पता चलता है तो उन्हें तुरन्त खत्म करके, उनका लहू घड़े में डालकर, शैतान के अवतार को भेज दिया जाता है। उस लहू से शैतान का अवतार स्नान करता है तो मालिक की शैतानी ताकतों को और भी बल मिलता है। नहाने के बाद वो लहू एक गड्ढे में इकट्ठा हो जाता है, जिसे कि शैतान के अवतार का प्रसाद मानते लोग उसे ग्रहण करते हैं।”

“म्हारे को तो यो पागलों की जगहो लागे हो।” बांकेलाल राठौर ने मोगा को घूरते हुआ कहा।

“बाप, ये इधर का सिस्टम होएला।”

“शैतान के अवतार की नगरी में किसी अच्छी बात की उम्मीद नहीं की जा सकती।” नगीना कह उठी।

“नीलू!” राधा ने महाजन से कहा-“तेरे को डर तो नहीं लग रहा?”

“डर?” महाजन ने राधा को देखा-“मुझे डर क्यों लगेगा?”

“इस ठिगने की बात सुनकर।” राधा ने मुंह बनाकर मोगा से कहा-“इसकी बातों में मत आना। ये उल्टी-उल्टी बातें करके हमारी फूंक सरका रहा है कि हम डर जायें। लेकिन हम भी इसकी बातों में आकर डरने वाले नहीं।”

महाजन हाथ आगे करके, होंठों ही होंठों में कुछ बड़बड़ाया तो

उसी पल हाथ में बोतल नजर आने लगी। बोतल खोलकर दो तगड़े घूंट भरे और बोतल थामे उठ खड़ा हुआ।

“मैं जानता हूं नीलसिंह कि पेशीराम ने तेरे को ये शक्ति दी है कि तू जब चाहे नशे के पानी को हासिल कर सके।” मोगा आदत के मुताबिक हंसते हुए कह उठा-“तुम सबको मौत के मुंह में फेंक दिया पेशीराम ने। बहुत मतलबी निकला वो। गुरुवर की सहायता करने का दम उसमें नहीं है। शैतान के अवतार से भला कौन टक्कर लेगा। सबसे ऊंचा है वो। तुम लोगों को आगे कर दिया। खुद छिप गया।”

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई।

“तू बहुत ज्यादा बोल रहा है मोगा।” जगमोहन की आवाज कठोर हो गई।

“क्या मतलब?” मोगा ने जगमोहन को देखा।

“तेरा काम हमको यहां लाना था। जैसा कि तूने कहा। क्या तेरे को शैतान के अवतार ने फालतू बोलने को कहा?”

“नहीं।”

“तो अपनी जुबान बंद रख।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा-“जो हम पूछे उसी का जवाब देना।”

“ठीक है जग्गू?” मोगा ने शराफत से कहा।

पारसनाथ अपने खुरदुरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए कह उठा।

“ये टापू, ये महल जिसमें हम मौजूद हैं, इसके बाहर क्या है?”

“पानी से बाहर आकर ये सारी जगह शैतान के अवतार की दुनिया का ही हिस्सा बन चुकी है।” हौले से हंस कर मोगा कह उठा-“आओ तुम लोगों को इस महल से बाहर ले जाकर मैं अपने फर्ज से मुक्ति पा सकूं। शैतान का अवतार तुम लोगों से तीन जन्म पहले का बदला लेगा, जब मिन्नो और देवा ने मालिक की जान ली थी। तुम सब शैतान के अवतार के हाथों मर कर, दोबारा हमारी ही दुनिया में जन्म लोगे और शैतान के अवतार के सेवक बन जाओगे। जो एक बार शैतान के अवतार के हाथों मर जाये तो उसकी रुह पर, मालिक का कब्जा हो जाता है। फिर वो कभी भी किसी दूसरी दुनिया में जन्म नहीं ले सकता।”

“ये दुनिया धरती पर कहां है?” मोना चौधरी सख्त स्वर में बोली-“या फिर धरती के नीचे कहीं-?”

“मैं क्यों बताऊं।” मोगा हंसा-“ये तो शैतान की महामाया है। मालूम है तुम लोगों को, शैतान कहां पर रहते हैं। जिसके सामने तो शैतान का अवतार भी, बहुत कमजोर है।”

“कहां रहता है शैतान?” देवराज चौहान ने पूछा।

“ऊपर।” मोगा ने बांह छत की तरफ उठाई। उसके एक हाथ की उंगली भाले के समान सीधी थी-“चार आसमानों के ऊपर शैतान रहता है। वहीं से वो अपनी दुनिया चलाता है। उसके इशारे के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता। वो ही दुनिया का असली मालिक है। उस जैसा दूसरा कोई नहीं।”

देवराज चौहान और मोना चौधरी की आंखें मिलीं।

“तुमने देखा है शैतान को?” देवराज चौहान ने पूछा।

“क्यों मजाक करता है देवा।” मोगा हंसा-“मेरे जैसे मामूली इन्सान को शैतान क्यों दर्शन देगा। वो तो अपने खास-खास शिष्यों को दर्शन देता है। जिन्होंने शैतानी विद्या बहुत ज्यादा सीखी होती है।”

“शैतान यहां आता होगा?” देवराज चौहान की नजरें उस पर थीं।

“नहीं। वो कभी यहां नहीं आया।”

“तो फिर शैतान और शैतान के अवतार में मुलाकात ही नहीं

होती होगी।” मोना चौधरी कह उठी।

“क्यों नहीं होती। शैतान का अवतार जाता है, शैतान का आशीर्वाद लेने आसमानों के पार।”

“आसमानों के पार जा पाना आसान नहीं है। तुम-।”

“शैतान के अवतार के लिये क्या कठिन है, जबकि शैतान का आशीर्वाद साथ हो।” मोगा हंस कर कह उठा-“काला महल है शैतान के अवतार के पास। जब भी शैतान से मिलना होता है शैतान का अवतार काला महल पर सवार होकर आसमानों के पार चला जाता है। हम सब देखते हैं उस छोटे से खूबसूरत काले महल को, आसमानों के पार जाते हुए। अभी दस वर्ष पहले ही तो शैतान का अवतार महल में सवार होकर शैतान का आशीर्वाद लेने गया था। कई बार जा चुका है शैतान का अवतार काले महल में सवार होकर शैतान के पास।”

ये एक नई बात थी इन सबके लिये।

“इच्छा हो तो कुछ खाने का प्रबन्ध करूं?” मोगा ने हंस कर पूछा।

“नहीं।” जगमोहन बोला-“तुम हमें यहां से बाहर ले चलो।”

“आओ-आओ।” मोगा बाहर दरवाजे की तरफ बढ़ा-“जैसे भीतर आये थे, वैसे ही तो बाहर जाना है। तब आस-पास काले

समन्दर का पानी था। अब जमीन देखने को मिलेगी। शैतान के अवतार की दुनिया देखोगे।”

सब उसके पीछे चल पड़े।

“नीलू!” राधा कह उठी-“मुझे तो ये पागल लगता है। इसकी बातें तेरी समझ में आ रही हैं क्या?”

“हां।” महाजन के चेहरे पर सोच के भाव थे।

“तो फिर मुझे भी समझाकर समझदार बना दे। मैं तो कुछ भी समझ नहीं पा रही।”

“अभी चुप कर। बाद में समझाऊंगा।”

“हां, ये ठीक है। तब हम प्यार भी कर लेंगे।”

मोगा उन सब को लेकर बाहर पहुंचा।

छोटे से महल के बाहर वो सब कुछ नहीं था, जो इन लोगों ने रात को महल में प्रवेश करते वक्त देखा था। और जहां पानी देखा था, वहां आस-पास छोटा सा शहर नजर आ रहा था।

मकान, सड़कें, कुछ जगह स्मारक जैसी दिखाई दे रही थीं। दूर कहीं आसमान को छूता हुआ स्याह बुत नज़र आ रहा था। लोग आ-जा रहे थे। कोई घोड़े पर सवार था। कोई बैल पर। कहीं पर ऊंट, बंधे भी नज़र आ रहे थे। सेहतमंद-खूंखार से नज़र आने वाले कुत्ते सड़कों पर घूमते दिखाई दे रहे थे। कहीं घोड़ा गाड़ी थी तो कहीं बैल गाड़ी।

कोई ठिगना इन्सान था तो कोई लम्बा-चौड़ा।

औरतें भी थीं।

हर कोई अपने काम में व्यस्त दिखाई दे रहा था।

सब ने कपड़े पहने हुए थे। कमीज-पैंट। कुर्ता-पायजामा। औरतों ने साड़ी-कमीज-सलवार। सब वैसे ही कपड़े पहने थे जैसा कि आम कपड़े पहनने का चलन होता है।

नज़र आने वाले मकान, कोई छोटे थे तो कोई बड़े। कोई ज्यादा ऊंचाई लिए हुए थे तो कोई कम ऊंचा था। मकान वालों ने अपनी पसन्द के मुताबिक मकानों को अलग-अलग रंगों से पोत रखा था।

यहां कुछ भी ऐसा नहीं था जो उन्हें अपनी दुनिया से जुदा लगता।

सब उत्सुकता भरी निगाहों से हर चीज को देखने-समझने की कोशिश कर रहे थे।

“नीलू!” राधा, महाजन की बांह पकड़कर कह उठी-“ये कौन-सा शहर है?”

“मालूम नहीं।”

राधा ने मोगा को देखा।

“क्यों ठिगने, इस शहर का नाम क्या है?”

“नाम?” मोगा हौले से हंसा-“ये शैतान के अवतार का शहर है। कैसा लग रहा है देखने में?”

“बहुत अच्छा। मैं यहां घर बनाऊंगी। जगह बुरी नहीं है रहने के वास्ते।”

“शैतानों के घरों के बीच इन्सान नहीं रह सकते।” मोगा वैसे ही हंसा-“यहां शैतानों के लिये जिन्दगी है और इन्सानों को मौत मिलती है।”

“नीलू!” राधा ने मोगा को घूरते हुए कहा-“ये ठिगना पागल है। देख तो कैसी बद्तमीजी से जवाब दे रहा है। तू यहां पर जमीन खरीद कर मकान बना। मैंने डण्डा मारकर शैतानों को सीधा न कर दिया तो मेरा नाम राधा नहीं।”

जवाब में मोगा हंसा। बोला कुछ नहीं।

देवराज चौहान ने कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा फिर कश

लेकर मोगा से बोला।

“तीन घण्टे पहले ये महल काले समन्दर से शैतान के अवतार

की दुनिया के लिये रवाना हुआ था। इस हिसाब से अब सुबह के छः बजे होने चाहिए। लेकिन यहां तो दोपहर का समय हो रहा-?”

“देवा!” मोगा हंस कर कह उठा-“अपनी दुनिया और वहां का वक्त तुम बहुत पीछे छोड़ आये हो। भूल जाओ, उन सब चीजों

को। अब तुम में से कोई भी उस दुनिया में कभी भी वापस नहीं

जा सकता। आगे की सोचो कि अब क्या होगा?”

देवराज चौहान होंठ भींचे मोगा को देखता रहा।

तभी मोना चौधरी कह उठी।

“ये महल और आसमान की जगह भरे-पूरे इलाके के बीच आ

निकली है। अगर तुम लोग अपनी शैतानी ताकतों से इस जगह को काले समन्दर में ले गये थे तो तब यहां क्या रहा होगा?”

“कुछ नहीं।” मोगा ने हंस कर दोनों हाथ हिलाये-“जमीन का जितना हिस्सा काले समन्दर में गया था, यहां पर उतना हिस्सा गहरे कुएं की तरह हो गया था। तब कोई इस तरफ नहीं आता। अब जमीन का हिस्सा वापस अपनी जगह आ गया है तो यहां फिर पहले जैसा हो गया। यहां के लोगों के लिये ये सब बातें मामूली हैं। ऐसी बहुत बातें यहां होती हैं। बेहतर होगा, हैरान होना छोड़ दें।”

तभी सामने से छः फीट का लम्बा-चौड़ा व्यक्ति आता नज़र आया। वो खुशी से मोगा की तरफ हाथ हिलाता हुआ आ रहा था। मोगा भी उसे देखकर हाथ हिलाने लगा।

“मोगा!” वो पास आकर मोगा के गले लग गया-“कितनी खुशी की बात है कि पचास बरस से शैतान के अवतार ने जिस काम पर तेरे को लगाया था, वो तूने पूरा कर लिया। मौत के मेहमानों को ले आया।”

“शैतान का आशीर्वाद हो तो, फिर काम पूरा क्यों नहीं होगा।”
मोगा बेहद खुश था। वो बोला-“ये मेरा भाई है डोगा। जुड़वां है। ये लम्बा हो गया। मैं छोटा रह गया।”

“मुझे तो हैरानी है कि तू इतना लम्बा भी कैसे हो गया?” राधा मुंह बनाकर कह उठी।

मोगा हंस पड़ा।

“अब मैं चलता हूं।”

“हम क्या करेंगे?” सोहनलाल ने कहा।

“मजे ले गुलचंद। घूमो-फिरो। तुम लोगों को कोई रोके-टोकेगा नहीं। सिर्फ मौत ही तुम लोगों का रास्ता रोकेगी। शैतान के अवतार की शक्तियों से तुम लोग नहीं बच सकोगे। मैंने अपना काम पूरा किया। आगे की मालिक जाने। चल डोगा। आज तो हमने अपनी बहन का ब्याह भी करना है?”

मोगा और डोगा आगे बढ़ गये।

“ओ ठिगने!” राधा कह उठी-“हमें छोड़कर कहां जा रहा है।”

वो दोनों आगे बढ़ते रहे।

“म्हारी मूंछों की तरहो वो थारे पांवों से चिपको का। उसो की ड्यूटी खत्म। वो बोलो हो।”

“मैंने तेरे से बात नहीं की मूंछों वाले।” राधा ने बांकेलाल राठौर को घूरा।

“तंम म्हारी मूंछों पर बुरो नजरों डालो हो। अंम ये बातो-।”

“बाप!” रुस्तम राव कह उठा-“ठण्डा हो जा।”

“छोरे! यों बारो-बारो म्हारी मूछों को ‘वडने’ वास्ते बुरी नज़र डालो हो।”

“बच्ची होएला बाप-।”

“अंम भी बच्चो होएला। म्हारी मूंछों के सारो बालो कालो-कालो हौवे।”

“काला रंग लगाया होगा। मैं सब समझ चुकी हूं कि शहर में लोगों के बाल काले क्यों नज़र आते हैं, जबकि मुंह में दांत भी नहीं होते।” राधा ने तेज स्वर में कहा।

“का बोलो हो तम। म्हारे मुंह में दांतो न होवे। अंम अभ्भी पूरो जवान हौवो। वो म्हारी गुरदासपुरो वाली जानो हो भीतरो की बात। म्हारों मुंह मतो खुलवा, वरनो अंम-।”

“नीलू, इसे कहो मेरे मुंह न लगे।”

“का? अंम थारो मूं लगो का? तंम म्हारी मूंछों पर बुरी नज़र डालो हो। अंम-।”

“बाप, बच्ची होएला। ये तो-।”

“छोरे-।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया और उखड़ी निगाह राधा पर थी-“म्हारे को तो यो बच्ची न लगो हो। भारो गड़बड़ लगो हो।”

“का गड़बड़ होएला बाप?”

“म्हारों को तो ये बुढ़ियो लगो। दांत नकली लगो और पूरो बालों पर खिजाब लगायो लगतो हो और-।”

“नीलू!” राधा मुंह लटकाकर कह उठी-“देख तो ये मुझे बुढ़िया

कह रहा-।”

“राधा चुप कर।” महाजन की नज़रें हर तरफ घूम रही थीं-“मैं इससे बाद में बात करूंगा।”

“ठीक है। अपनी बहादुरी दिखा देना इसे-।”

देवराज चौहान और मोना चौधरी की नज़रें मिलीं।

“मोना चौधरी!” पारसनाथ सपाट स्वर में कह उठा-“मेरे ख्याल में हम बहुत बड़े खतरे के बीच खड़े हैं। यहां हमें जो भी नज़र आ रहा है वो असल नहीं है। शैतान के अवतार की दुनिया देखने में इस तरह सीधी-सादी नहीं हो सकती। यहां कि दुनिया का असली चेहरा कुछ और ही है।”

पाठकों, उपन्यास का पूरा मजा लेने के लिये आपको “देवराज

और मोना चौधरी एक साथ” वाला पूर्व प्रकाशित उपन्यास “पहली चोट” पढ़ना होगा। वैसे “पहली चोट” की मुख्य घटनाएं कुछ इस तरह थीं। अपने कामों में उलझा देवराज चौहान ऐसे हालातों में फंस जाता है कि राकेशनाथ नाम के व्यक्ति से उसे वायदा करना पड़ता है कि वो मोना चौधरी की हत्या कर देगा, परन्तु फकीर बाबा (पेशीराम) आकर देवराज चौहान को रोकता है कि आगामी दो महीनों में वो मोना चौधरी के सामने न पड़े, वरना दोनों में झगड़े की शुरूआत होने पर, सितारों के हिसाब से उसकी मौत निश्चित है। जगमोहन, नगीना, बांकेलाल राठौर, सोहनलाल और रुस्तम राव इसे रोकने की भरपूर कोशिश करते हैं, परन्तु देवराज चौहान मोना चौधरी को खत्म करने के लिये दिल्ली रवाना हो जाता है। तब नगीना देवराज चौहान के साथ हो जाती है। कुछ हादसों के बाद जब फकीर बाबा (पेशीराम) महसूस करता है कि झगड़ा टलने वाला नहीं तो उन्हें कहता है कि अगर मरना ही है तो गुरुवर की सहायता करते हुए जान दो। गुरुवर को शैतान का अवतार परेशान कर रहा है। गुरुवर ऐसे यज्ञ में बैठे हैं, जिसे अधूरा छोड़कर उठ नहीं सकते। अपनी सारी शक्तियां बाल में समेट कर कहीं छिपा दी हैं गुरुवर ने। और शैतान का अवतार शक्तियों से भरी बाल को तलाश कर रहा है। अगर बाल उसे मिल गई तो शैतान की ताकतें बढ़ जायेंगी। किन्हीं कारणों से, गुरुवर की आज्ञा न होने के कारण, वो स्वयं इन मामलों में दखल नहीं दे सकता। आखिरकार देवराज चौहान और मोना चौधरी व अन्य सब गुरुवर की सहायता के लिये तैयार हो जाते

हैं, तो फकीर बाबा उन सबको ना-मालूम जगह पर शैतान के अवतार की शैतानी जमीन पर पहुंचा देता है। जहां मायावी-जादुई-तिलिस्मी जिन्न और प्रेत-प्रेतनी का बोल-बाला है। आईये अब आगे पढ़ें, देवराज चौहान और मोना चौधरी एक साथ वाले उपन्यास “दूसरी चोट” में।

“ठीक कह रहो हो पारसनाथ।” मोना चौधरी गम्भीर थी-“लेकिन एक बात मेरी समझ से परे है कि मोगा के कहे मुताबिक मैंने और देवराज चौहान ने शैतान के अवतार को तीन जन्म पहले मारा था तो हमारे यहां आते ही शैतान का अवतार हमें खत्म कर देता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कोई भी हमारी तरफ ध्यान नहीं दे रहा। हमारी मौजूदगी जैसे इनके लिये कोई अहमियत ही न रखती हो।”

देवराज चौहान कश लेकर कह उठा।

“ऐसी बात नहीं है। शैतान का अवतार हमारे प्रति लापरवाह नहीं है। बल्कि वो निश्चिंत है कि उसने हमें अपने घेरे में ले लिया है। यहां से हम कहीं भी नहीं जा सकते। फिर वो हमें अभी खत्म करे या कुछ बाद में, उसे क्या फर्क पड़ेगा।”

“यहां से निकल कर हमें शहर या सड़कों पर घूमना चाहिये।” जगमोहन बोला-“तब देखते हैं कि क्या होता है? ये भी मालूम करेंगे कि शैतान का अवतार कहां पर मिलेगा।”

तभी गूंजता हुआ स्वर उनके कानों में पड़ा, जैसे आवाज आकाश से आ रही हो।

इस गूंजती आवाज के साथ ही नज़र आने वाले लोग जमीन पर छाती के बल लेटने लगे। देखते ही देखते क्षणों में वो सब लोग मृतप्रायः अवस्था में जमीन पर पड़े दिखने लगे। उनकी बांहें सिर से ऊपर थीं और दोनों हाथ नमस्कार की मुद्रा में जुड़े

हुए थे।

“देवा। मिन्नो।” आवाज ऐसी थी जैसे कहीं ढोल-नगाड़ा बज रहा हो।

देवराज चौहान, मोना चौधरी, पारसनाथ, जगमोहन, सोहनलाल, महाजन, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, नगीना और राधा की नज़रें आवाज वाले को तलाश करने लगीं।

परन्तु कोई भी न दिखा।

“तुम दोनों को देखकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है देवा-मिन्नो।” किसी गहरे कुएं से आती वो आवाज पुनः वहां गूंजी-“पचास बरस पहले जब मुझे शैतान ने सितारों की स्थिति को देखते हुए बताया कि तुम दोनों कभी भी यहां आ सकते हो तो मैंने मोगा को तुम लोगों के स्वागत का काम सौंप दिया। आखिर सितारों की दशा तुम सबको मेरे पास ले ही आई।”

“वो तो ठीको हौवे। पण तंम हौ वो कौन?”

“मुझे पहचाना नहीं भंवर सिंह?”

“तन्ने का अपणो बहना म्हारे को दियो कि अंम थारे को जरूरो

ही पहचानो।”

जवाब में हंसी कानों में पड़ी।

“मैं शैतान का अवतार हूं। शैतान तो चार आसमानों के पार

बैठा है। लेकिन अपने वजूद को जिन्दा रखने के लिये वो किसी न किसी को अपना कारिन्दा बनाकर भेजता रहता है। सारे जहान में उसके कारिंदे फैले हैं जो ऊपरी हरकतों से शैतान के वजूद को जिन्दा रखते हैं। अगर ऐसा न हो तो दुनिया का चक्र ही जाम हो जाये।”

“शैतानी हरकतें बंद होने से चक्र कैसे जाम हो सकता है?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“दुनिया में अगर बुराई ही नहीं रहेगी तो अच्छाई का गुणगान कौन करेगा। सब अच्छा ही करेंगे तो फिर वे अच्छाई भी समाप्त हो जायेंगी। अच्छाई को जिन्दा रखने के लिये बुराई जरूरी है। अगर शैतान पूरी दुनिया में फैले अपने सितारों को समेट लेगा, सब सुखी हो जायेंगे। तो फिर तुम लोग अपने भगवान को क्यों याद करोगे। अच्छाई तभी तक जिन्दा है, जब तक बुराई है। तुम्हारे भगवान की सिर्फ तब तक पूजा होगी, जब तक शैतान अपनी हरकतें जारी रखेगा। इसलिये तुम सबको शैतान के आगे सिर झुकाना चाहिये कि वो तुम लोगों के भगवान के अस्तित्व को जिंदा रखे हुए है।”

“ये बात तो तम परफेक्ट करेला है।”

“भगवान और शैतान तराजू के दो पलड़े हैं और दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।” आवाज पुनः आई-“भगवान नहीं होगा तो शैतान अपना चक्र किस पर चलायेगा? क्योंकि तब तो सब शैतान के पुजारी होंगे। शैतान के पास तो करने को कुछ बचेगा ही नहीं। इसलिये जितनी भगवान की अहमियत है, उतनी ही शैतान की। शैतान को दुनिया बुरा कहती है। बेवकूफों, अगर शैतान ही न हो तो भगवान की जरूरत ही क्या है।”

एकाएक राधा कह उठी।

“नीलू-!”

“हां-।”

“ये जो छिपकर बोल रहा है। सोचा जाये तो इसकी बात में दम है। ठीक ही तो कहता ये कि-।”

“चुप कर-।”

“ठीक है। नहीं बोलती। लेकिन यहां से कहीं चल। प्यार करते हैं। ये बातें तो-।”

“चुप-।”

राधा खामोश हो गई।

“तुम नज़र क्यों नहीं आ रहे?” मोना चौधरी का स्वर तेज

था।

“अभी वक्त नहीं आया मिन्नो तुम लोगों के सामने आने का।

बहुत जल्द सामने आऊंगा।”

“क्या तुम शैतान के कहने पर हमें यहां लाये हो?” देवराज

चौहान ने पूछा।

“नहीं। शैतान के बुरे सितारों के असर की वजह से तुम सबको

यहां आना ही था। लेकिन जब शैतान ने मुझे खबर दी तो मैं तुम लोगों का इन्तजार करने लगा।” शैतान के अवतार के स्वर में गुस्सा में आ गया था-“ये तुम लोगों का तीसरा जन्म है। पहले जन्म में तुम दोनों ने मिलकर मेरी जान ले ली थी। तब मैंने अपनी जान की माफी मांगी थी। हाथ जोड़े थे। तुम दोनों के पांव पकड़े थे। लेकिन तुम दोनों को मुझ पर दया नहीं आई। तड़पा-तड़पा कर मारा मुझे। जग्गू गुलचंद, त्रिवेणी, भंवरसिंह, परसू, नीलसिंह सब ही तो थे तब।”

“कोई तो वजह होगी कि तेरी जान ली?” देवराज चौहान की

आवाज में भी सख्ती आ गई।

“कोई भी वजह हो, लेकिन मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि तुम

सबने मुझे तड़पा-तड़पा कर मारा था।” शैतान के अवतार का स्वर खतरनाक हो गया-“मैं मर गया। मेरी आत्मा को शरीर छोड़ने के बाद भटकना पड़ा। जाने कब तक मेरी आत्मा भटकती रही। मेरी आत्मा का कोई जगह न मिली कि उसे चैन मिल पाता। तभी शैतान ने मेरी आत्मा को अपनी पनाह में लिया। मुझे आराम मिला। सुकून का एहसास हुआ, जैसे रोते बच्चे को उसकी मां ने उठाकर गोद में ले लिया हो। फिर शैतान ने मुझे रंग-रूप दिया। मैं उसकी सेवा में लग गया। उसने मुझे अपनी विद्या सिखाई। मैं उसकी सिखाई हर विद्या में बहुत ही जल्दी निपुण हो गया। शैतान को जब लगा कि दुनिया में जाकर मैं उसका नाम रोशन कर सकता हूं तो उसने मुझे नीचे भेज दिया। आज मेरे पास ताकत है। अपने पहले जन्म की मौत का बदला आसानी से तुम लोगों से ले सकता हूं।”

“तो फिर सोच क्या रहे हो?” पारसनाथ सपाट स्वर में कह उठा-“अपना बदला लेते क्यों नहीं। इस तरह बातें करके वक्त क्यों बर्बाद कर रहे हो।”

शैतान के अवतार की हंसी जैसे कुएं से बाहर आती महसूस हुई सबको।

“मैं वक्त बरबाद कर रहा हूं परसू? नहीं, मैं वक्त नहीं बरबाद कर रहा। मेरे पास तो वक्त ही वक्त है। तुम सब ऐसी जगह पर

हो, जहां से वापस नहीं जा सकते। यहां हवा भी चलती है तो मेरे इशारे पर। तुम क्या चाहते हो कि मैं आसानी से तुम लोगों को मौत दे दूं जबकि तुम लोगों ने मुझे तड़पा-तड़पा कर मारा था। जैसी मौत तुम लोगों ने दी थी। उससे भी बुरी मौत तुम लोगों को दूंगा। उससे भी ज्यादा तड़पा-तड़पा कर मारूंगा, जैसे मुझे तड़पा कर मारा था।”

“अच्छी तरह याद है तुम्हें अपनी मौत-।” मोना चौधरी दांत

भींचे कह उठी।

“मुझे तो वो वक्त आईने की तरह नज़र आ रहा है।”

“तो एक आईना और तैयार कर ले द्रोणा। क्योंकि इस बार तेरे को और भी बुरी मौत मारूँगी।” गुर्रा उठी मोना चौधरी।

पल भर की शान्ति के बाद, शैतान के अवतार का कठोर स्वर कानों में पड़ा।

“तो तूने मुझे पहचान लिया मिन्नो।”

“हां द्रोणा। ज्यादा तो नहीं, लेकिन कुछ-कुछ याद आ रही है तेरी मौत।” मोना चौधरी दरिन्दगी भरे स्वर में कह उठी-“सपने की तरह जरा-जरा सी मस्तिष्क में अभी उठी थी।”

शैतान के अवतार की हंसी में इस बार जहरीले भाव आ गये।

“सब याद आ जायेगा मिन्नो। कर्म हमेशा सामने आते हैं। और-।”

“अपने कर्मों को याद कर द्रोणा कि तूने क्या करना चाहा-।”

“शैतान के अवतार के रूप में आज अपने उस जन्म का कर्म

याद करता हूं तो मुझे खुशी होती है कि मैंने शैतान की दुनिया को बढ़ाने को कोशिश की। तभी तो शैतान ने मुझे अपनी सेवा में लिया। अब तुम सब तड़प-तड़प कर मरोगे।” शैतान के अवतार का हंसी से भरा स्वर उनके कानों में पड़ रहा था-“अपनी दुनिया में, मैं तुम सबको आजाद छोड़ता हूं। अपनी मौत तुम लोग खुद तलाश करोगे और मर जाओगे। मेरी दुनिया में कोई भी आसान मौत नहीं मरता। मैं भी देखता हूं कि तुम लोग कब तक खुद को जिन्दा रखते हो।”

“क्या मतलब?”

“वक्त के साथ-साथ धीरे-धीरे सारे मतलब तुम लोगों की समझ में आ जायेंगे। इस वक्त तुम लोग मौत के ऐसे समन्दर के बीच हो कि जिसे तैर कर पार नहीं कर सकते। मौत ही तुम सबका भाग्य है अब। बुरे सितारे छल के रूप में तुम्हारे साथ हैं। वो सितारे खुद-ब-खुद ही तुम लोगों को मौत के दरवाजों पर ले जायेंगे। मैं जा रहा हूं। शैतान की पूजा का वक्त हो रहा है। आज तो मैं बहुत खुश हूं कि मेरे दुश्मन मेरे शिकंजे में आ गये हैं और बहुत जल्द तड़प-तड़प कर मरेंगे। शैतान की जय हो।”

सब एक-दूसरे को देख रहे थे।

शैतान के अवतार की आवाज अब नहीं सुनाई दे रही थी।

“द्रोणा-!” मोना चौधरी ने ऊंचे स्वर में पुकारा।

परन्तु जवाब में शैतान के अवतार की आवाज नहीं आई।

उधर जो लोग जमीन, सड़कों पर पेट के बल लेट गये थे, वो उठने लगे। ऐसे लगा जैसे कोई मृत शहर, जिंदा होना आरम्भ हो गया हो। हलचल और लोगों की आवाजें पुनः आरम्भ हो गईं।

“नीलू, शैतान का भूत चला गया।”

देवराज चौहान ने गम्भीर निगाहों से मोना चौधरी को देखा।

“द्रोणा कौन था, पहले जन्म में?”

“द्रोणा।” मोना चौधरी के चेहरे पर गहरी सोच के भाव नजर आने लगे थे-“मुझे ठीक से कुछ याद नहीं।”

“लेकिन तुमने उसे द्रोणा कहा कि हमारे पहले वाले जन्म में उसका नाम द्रोणा था। वो इस बात को माना।” देवराज चौहान ने अपने शब्दों पर जोर दिया-“और तुम कहती हो कि मुझे याद नहीं।”

“हां। वास्तव में मुझे कुछ याद नहीं। जब उसकी आवाज सुन

रही थी तो तब ध्यान आया था कि वो द्रोणा है। जाने मस्तिष्क

की कौन-सी परत में उसका चेहरा चमका था।” गम्भीर थी मोना चौधरी-“छः फीट लम्बा कद। कद-काठी ठीक थी। होंठों पर छोटी-छोटी मूंछें थीं। कानों में बड़ी-बड़ी सोने की बालियां। इसके अलावा कुछ और मुझे याद नहीं।”

“याद आ जायेगा।” जगमोहन ने सोच भरे स्वर में कहा-“पहले भी तो दालूबाबा, हाकिम, पेशीराम और गुस्वर के बारे में इसी तरह याद आया था। और बाद में बहुत कुछ स्पष्ट तौर पर याद आ गया था।”

मोना चौधरी ने जगमोहन को देखा। कहा कुछ नहीं। आंखों

में उलझन थी।

“बातो तो ईब यो हौवो कि ईब का करो हो?” बांकेलाल राठौर

का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।

“मूंछ तो ये इस तरह मरोड़ता रहता है जैसे इसी के पास बाल हो।” राधा बड़बड़ा उठी।

कुछ पल उनके बीच चुप्पी रही।

देवराज चौहान और मोना चौधरी की नज़रें मिलीं।

“हमें नहीं मालूम कि हम कैसी जगह हैं। यहां के हालात क्या

हैं? जब तक हमें इस जगह के बारे में जानकारी न हो, तब तक

हम कोई फैसला नहीं कर सकते कि इन हालातों में हमें क्या कदम उठाना चाहिये।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा-“सबसे पहले तो हमें आसपास की जगह को अच्छी तरह देख लेना चाहिये।”

“मैं भी यही सोच रहा था।” महाजन ने कहने के पश्चात दो

तगड़े घूंट भरे।

किसी के द्वारा इंकार किया जाने का सवाल ही नहीं था।

वो सब आगे बढ़े और सड़क पर आ गये। सूर्य का पश्चिम की तरफ झुकना आरम्भ हो गया था। शाम के चार बज रहे थे। वहां

आते-जाते लोग, उनकी तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं दे रहे थे। सड़क के दोनों तरफ। दुकानें थीं। जहां हर तरह का सामान मिल रहा था। मकान थे।

सब कुछ देखते हुए, चेहरों पर गम्भीरता समेटे, वे आगे बढ़ते रहे।

दूर से जो आसमान को छूता काला बुत नज़र आ रहा था। कुछ ही देर में वो उसके करीब पहुंच गये थे। करीब दो सौ फीट ऊंचे बुत की चौड़ाई पचास फीट से ज्यादा ही थी। वो लोहे का था

और उसके एक हाथ में तलवार और दूसरे में बालों से पकड़ा कटा सिर थमा था। कमर पर कपड़ा बंधा दर्शाया गया था। बुत का चेहरा क्रूरता का दूसरा रूप लग रहा था। गले में खोपड़ियों और हड्डियों की माला नज़र आ रही थी। सिर के बाल पीछे को जाते, गर्दन से नीचे तक लम्बे थे। कानों में बड़ी-बड़ी बालियां थीं।

ये सब कुछ लोहे का ही था।

“क्या शानदार बनो हो यो बुतो। म्हारी गुरदासपुरो वाली जब

मरो तो अंम उसो का ऐसा ही शानदार बुत बनायो दो।”

“मेरे ख्याल में ये शैतान के अवतार का बुत है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“शैतान का या शैतान के अवतार का।”

आसपास से गुजरते लोग चलते-चलते बुत के आगे सिर झुका देते थे।

महाजन ने हाथ में पकड़ी बोतल में घूंट भरा।

“सुनना भाई।” सोहनलाल ने पास से गुजरते व्यक्ति को टोका।

उसने रुक कर सोहनलाल और सबको देखा।

“क्या है?”

“ये लोहे का बुत किसका है?”

“तुम नहीं जानते।” उसके होंठों से निकला फिर नजरें सब पर गईं-“समझा तुम लोग ही वो मेहमान हो, जिन्हें मोगा लाया है। शैतान के अवतार के दुश्मन हो। अब जिन्दा नहीं बचोगे।”

“मैंने पूछा ये बुत किसका है?”

“शैतान के अवतार का।”

“जा निकल ले। यही पूछना था।” सोहनलाल ने कहा और गोली वाली सिगरेट सुलगाने लगा।

उसने सोहनलाल को घूरा फिर आगे बढ़ गया।

“कितनी अजीब बात है कि ये लोग हमारी मौजूदगी की ज़रा भी परवाह नहीं कर रहे।” जगमोहन कह उठा।

“इसमें अवश्य कोई खास राज है।” मोना चौधरी के होंठ सोच भरी मुद्रा में भिंच गये।

“मेरे ख्याल में जल्दी ही शैतान का अवतार कोई हरकत करेगा। हमें इस तरह खुला छोड़कर वो आराम से नहीं बैठ सकता। वो जल्द से जल्द हमारी मौत देखना चाहेगा।” देवराज चौहान ने कहा।

“कैसी हरकत?” नगीना ने देवराज चौहान को देखा।

“मालूम नहीं।” देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया।

तभी बांकेलाल राठौर कह उठा।

“जो भी होवे। म्हारे को तो भूखो लगे हो।” उसकी नज़र सामने

दिखाई दे रही खाने-पीने वाली दुकान पर थी-“वहां खाने को चल्लो हो।”

सबने दुकान को, फिर एक-दूसरे को देखा।

वे गम्भीर थे।

“यहां पर खाने-पीने का क्या सिस्टम है? खाने के बदले कैसा पैसा देना पड़ता है। हमें नहीं मालूम।” महाजन गम्भीर स्वर में कह उठा-“खाने-पीने को लेकर कोई नई बात न खड़ी हो जाये।”

“महाजन परफेक्ट कहेला है।”

“ठीको। अंम खाने को जाये। तम सबो ही म्हारे को देखो। कोई गड़बड़ो हौवो तो म्हारी हेल्प करो।” कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर मूंछों पर हाथ फेरता सामने आ रही दुकान की तरफ बढ़ गया।

“मूंछों पर हाथ फेरता है और हेल्प के लिये भी कहता है। कैसा मर्द है ये।” राधा मुंह बनाकर कह उठी-“नीलू को तो देखो, न तो मूंछे हैं और न ही हेल्प के लिये कहता है। ऐसे होते हैं मर्द।”

☐☐☐

बांकेलाल राठौर ने दुकान के भीतर प्रवेश किया। सामान्य साईज की दुकान थी। भीतर दो टेबल और उसके आसपास कुर्सियां पड़ी थीं। एक आदमी फट्टे पर आराम की मुद्रा में बैठा था। उसके पास ही तीन पतीले रखे थे। जो कि ढके हुए थे।

दूसरा व्यक्ति भी मस्ती से एक तरफ बैठा था। वहीं बैठे-बैठे

उसने बांकेलाल राठौर को देखा।

“का देखो हो। खाने को माल लायो हो या ना ही।” बांकेलाल राठौर बोला।

“क्या खाएगा?” उसने वहीं बैठे-बैठे पूछा।

“का हौवे थारो पतीलो में?”

“इन्सान का कलेजा है। ताजा है। बच्चे का दिमाग भी ताजा ही बना है। यहां बासी माल नहीं मिलता। सांप की चटनी है कुत्ते का खून मिलाकर बनाई गई है और स्वाद में ला-जवाब है। ज्यादा चटपटा खाना हो तो चटनी में, सांप के जहर की दो बूंदें डाल दूंगा। उबले हुए बिच्छू है, स्वादिष्ट मसाले में लपेट कर खायेगा तो-।”

“तम म्हारे को खाने के वास्ते आईटम बतायो हो या म्हारे को कुत्तो समझो हो।” बांकेलाल राठौर के चेहरे पर गुस्सा उभरा।

“क्या मतलब?”

“ये का खानो की चीजो हौवो का। थारी तो-।”

तभी पतीले के पास बैठा व्यक्ति कह उठा।

“तुम वो तो नहीं हो, जिन्हें मोगा लाया है।”

“अंम वो ही हौवे। तम म्हारी मूंछों उखाड़ो का-।”

“ये तो शैतान के अवतार का दुश्मन है।”

“लेकिन शैतान के अवतार ने कहा है कि इन लोगों को कुछ नहीं कहना है।” पतीले के पास बैठे व्यक्ति ने शान्त स्वर में कहा-

“इन्हें शैतानी खाना पसन्द नहीं आएगा। दूसरा दे दे।”

वो व्यक्ति बिना कुछ कहे उठा और पतीले की तरफ बढ़ गया। थाल उठाकर पतीले से पीले से रंग की सब्जी जैसी कोई चीज डाली। साथ ही कपड़े में लिपटी रोटियां निकाल कर थाल में रखीं और थाल को बांकेलाल राठौर के सामने रख दिया।

“ये का सब्जी हौवे?”

“यहां का मीठा फल है। जो सादा खाना चाहें तो वो इसी मीठे फल की सब्जी खाते हैं।” उसने कहा।

“इसमें कुत्तो-बिल्लो तो न हौवे?”

“ये स्वच्छ खाना है। जैसा कि तुम लोग अपनी दुनिया में खाते हो।”

“ठीको। पर एक बातो कानों में डालो कि खा के म्हारे को उल्टो आवे तो अंम थारा काम तो निपटा ही दयो।”

उस व्यक्ति ने कुछ नहीं कहा और वापस जाकर अपनी जगह बैठ गया।

बांकेलाल राठौर ने खाना शुरू किया। खाना वास्तव में सादा और स्वादिष्ट था।

“पाणी-वाणी भी टेबल पर मारो के ना?”

“किसका खून चाहिये। बन्दर का, मुर्गे का, चिड़िया का या-?”

“पागल की औलादो अंम पाणी मांगो हो। लहू नहीं-।”

“सादा पानी दे इसे।” पतीले के पास बैठा व्यक्ति कह उठा-“कब आयेगी तेरे को अकल।”

बांकेलाल राठौर को पानी दिया।

खाना खाने के बाद बांकेलाल राठौर ने मूंछ पर हाथ फेरा और कह उठा।

“अब बोल। थारे पर का रोकड़ा मारूं?”

वो व्यक्ति मुस्करा पड़ा।

“शैतान के अवतार के दुश्मनों से हम सामान की कीमत नहीं लेंगे। मौत तो भाग्य है तुम्हारा। तुम लोगों को यहां बुलाकर, शैतान के अवतार ने तुम लोगों को मौत का मेहमान बनाया है।”

“अंम थारा सारा खाना खा जायो। तम तब भी म्हारे से रोकड़ा न लयो।”

“नहीं। तुम कुछ भी करो। तुम लोगों को कुछ नहीं कहा जायेगा। शैतान के अवतार का हुक्म ही समझो ये।”

“अंम थारी कुड़ी को भगा ले जायो।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया-“तब तो तम डण्डों उठायो हो।”

“नहीं। सब माफ है तुम्हें कोई भी तुम्हें कुछ नहीं कहेगा।”

“वाह! तबो तो मज्जो ही आ गयो। इधरो भी मूं मारो। उधरो भी मूं मारो।” बांकेलाल राठौर उठ खड़ा हुआ-“ईब तंम म्हारी बात सुन्नो। वो इधर रास्ता पार म्हारे बंदों खड़े हो। तम उनके वास्ते बर्तनों में स्वच्छ खानो और सादो पानी डालो हो। वो भी खायो। ध्यान रखियो उसो के सामने। कुत्ता-बिल्लियों को खानों का जिक्र मत करियो। नेई तो वो थारी कोई खासो ही ‘डिश’ बना देवें।”

“अभी खाना लगा देता हूं।” उसने कहा।

“ईक बात तू मन्ने और बतायो कि शैतान के अवतारों का झोपड़ा किधर को हौवे?”

“क्या मतलब?”

“शैतानो के अवतारो में कहां मिल्लो। अंम उसो के घरो का ब्लाक पूछो हो।”

“वो तो बे-पनाह ताकतो का मालिक है।” वो व्यक्ति आदर भाव से कह उठा-“हम गरीब क्या जाने वो कहां रहता है।”

“उसो के घरो तक कोई ट्रेन-प्लेन जावे का?”

“मेरे पास तुम्हारी बात का जवाब नहीं है।”

“ठीको। बीको। तम सादा खाना बर्तनो में फिट करियो। अंम उन सबो को भेजो हो।”

सब वहां से खाना खाकर आगे बढ़ गये।

शाम होने को आ चुकी थी।

शैतान का अवतार किधर रहता है? किस दिशा में वो हो सकता है? कइयों से पूछने पर भी उसके बारे कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी। कोई नहीं जानता था कि वो किधर रहता है।

आगे बढ़ने की कोई मुनासिब दिशा न पाकर वो सब रास्ते

पर आगे बढ़ते रहे। एक ही जगह बैठे रहने का कोई फायदा नहीं था। अब तो शाम भी ढलने लगी थी।

“शैतान का अवतार हमारी तरफ से लापरवाह नहीं हो सकता।” देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में कहा-“वो बराबर हमें देख रहा होगा। हमारी हरकतों पर नज़र रख रहा होगा।”

“आज तो वो जश्न मना रहा होगा कि जन्मों पुराने दुश्मन उसके पंजे में आ फंसे हैं।” मोना चौधरी भिंचे स्वर में बोली।

“मुझे पूरा विश्वास है कि हम कभी भी बहुत बड़े खतरे से

दो-चार हो सकते हैं।” नगीना ने आसपास देखते हुए कहा-“शैतान के अवतार ने कहा था कि वो हमें नहीं मारेगा। बल्कि हम खुद अपनी मौत तलाश कर लेंगे।”

“भाभी ठीक कह रही हैं।” जगमोहन ने कहा-“हमारे लिये मौत से भरे खतरे बिछे पड़े हैं।

“बहना तू फिक्र नेई करियो। अंम शैतान के अवतारो को ‘वड’

के रख दयो।”

“लेकिन बाप वो किधर होएला?”

“छोरे। वो हरामी शैतान का अवतारो जल्दी ही कहीं पे तो मिल्लो हो। तब देखो अंम उसो को-।”

“बेबी!” महाजन बोला-“इस तरह हम कब तक चलते रहेंगे।

कुछ ही देर में अंधेरा हो जायेगा। ये छोटा सा शहर है। ये भी अब खत्म होता जा रहा है। आगे क्या है, हमें कुछ पता नहीं।”

“नीलू!” राधा कह उठी-“तू घबरा मत, मैं तेरे साथ हूं।”

मोना चौधरी ने महाजन पर निगाह मारी।

“हमारे पास चलते रहने के अलावा रास्ता ही क्या है?” मोना

चौधरी बोली।

“मेरे ख्याल में हम किसी मुनासिब जगह पर, किसी मकान में, रुक सकते हैं। रात गुजार सकते हैं। साथ ही इस बात के लिये

सोच-विचार कर सकते हैं कि शैतान के अवतार तक पहुंचने के लिये क्या किया जाये?”

“महाजन की बात पर सोचना चाहिये।” पारसनाथ ने कहा।

“मेरे ख्याल में तो ये ठीक कह रहा है।” सोहनलाल बोला।

इससे पहले कि मोना चौधरी कुछ कहती। एक नन्हीं-सी चिड़िया राधा से टकराती हुई, नीचे जा गिरी। राधा हड़बड़ाकर पीछे हुई। सब ठिठक गये। उनकी निगाह नीचे गिरी चिड़िया पर गई। कुछ ही देर में अंधेरा होने वाला था। शहर जैसी जगह अब पीछे छूटने लगी थी। जंगल जैसी जगह शुरू हो चुकी थी। छोटे-बड़े घने-पतले पेड़ ही आगे, दूर तक नज़र आ रहे थे। कहीं झाड़ियां थीं तो कहीं पर महक वाले फूलों का डेरा था। कभी-कभार फूलों की महक का झोंका उनकी सांसों से टकरा जाता था।

वो नन्ही-सी चिड़िया सुनहरी थी। उसके पंखों का रंग चटकीला

और इतना तेज था कि बहुत ही सुन्दर नज़र आ रही थी, परन्तु

इस वक्त नीचे पड़ी वो गहरी-गहरी सांसें ले रही थी। डेढ़ इंच लम्बा-पतला, माचिस की तीली के साईज का तीर उसके पेट के आर-पार हो रहा था। लगता था जैसे अभी-अभी किसी ने निशाना बांध कर उसके पेट में तीर मारा हो, परन्तु वो नन्हीं-सी मुट्ठी में भर आने वाली चिड़िया और नन्हा-सा तीर। कैसे लगाया होगा निशाना लगाने वाले ने। ये बातें उलझन में डालने वाली थीं।

“हाय-हाय।” राधा जल्दी से आगे बढ़ी और नीचे पड़ी चिड़िया को उठाकर हथेली में रखा-“कैसे जालिम लोग हैं यहां, जो ऐसी खूबसूरत चिड़िया की जान लेने में भी पीछे नहीं हटते।”

“ठहरो।” देवराज चौहान एकाएक तेज स्वर में बोला।

राधा तब चिड़िया के पेट में धंसा तीर निकालने जा रही थी।

राधा का हाथ रुका। उसने देवराज चौहान को देखा।

दूसरों ने देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान, राधा के पास पहुंचा। भिंचे होंठ। चेहरे पर शक और आंखों में सिकुड़न।

“क्या है। तुम कौन होते हो हुक्म देने वाले।” राधा ने उखड़े स्वर में कहा-“हुक्म देने का शौक है तो नगीना को दे। मैं तो नीलू के अलावा किसी का हुक्म नहीं सुनती।”

“तुम चिड़िया में धंसा तीर निकालने जा रही थीं।” देवराज चौहान ने कहा-“तीर मत निकालना।”

“निकालूंगी नहीं क्या?” राधा ने देवराज चौहान को घूरा-“देखते नहीं कितनी नन्ही-सी प्यारी-सी चिड़िया है। जाने किस कमीने ने इसे तीर मार दिया। कितनी दर्द हो रही होगी इसे।”

“तुम तीर नहीं निकालोगी।” देवराज चौहान की आवाज में सख्ती आ गई।

“चिड़िया के शरीर से तीर निकालने में तुम्हें क्या एतराज है?” पारसनाथ की नज़र देवराज चौहान पर जा टिकी।

“ये कोई शैतान के अवतार की चाल हो सकती है।” देवराज चौहान ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।

“चाल!” जगमोहन के होंठों से निकला।

“हां। पेशीराम ने हमे पहले ही सतर्क किया था कि शैतान के अवतार की धरती पर हमारा वास्ता जादुई, तिलस्मी-जादू-टोना और जिन्न-प्रेत जैसी चीजों से पड़ सकता है। ये चिड़िया, ये तीर ऐसी किसी बात से वास्ता रखता हो सकता है।”

सब एक-दूसरे को देखने लगे।

“मुझे तो आपकी बातें अजीब-सी लग रही हैं।” नगीना कह उठी।

“बहना!” बांकेलाल राठौर गम्भीर स्वर में बोला-“देवराज चौहान जो भी कहो हो अपनो अनुभवों के आधारो पर ठीको ही कहो हो। दालू बाबो और हाकिम को जबो हम खत्म करो हो। तबो ये सब ही हुआ हो। तबो तिलस्मो के खतरो और जादुई तमाशों से अंम सबो को ठोक के बीणो बजो हो। इब भी ऐसो हुओ तो कौनो बड़ो बातो हो।”

“हां।” महाजन ने बोतल से घूंट भरा-“ये चिड़िया जादुई- तिलस्मी भी हो सकती है। हो सकता है, इसमें फंसा तीर निकाला जाये तो ये किसी दानव-राक्षस के रूप में हमारे सामने आ जाये। ये बात वास्तव में हैरान कर देने वाली है कि सिगरेट की डिब्बी के साईज की चिड़िया और माचिस की तीली के साईज का छोटा सा तीर, कैसे मारा गया होगा इसे। क्या निशाना लगाने के लिये ये चिड़िया ही मिली थी। जरा से तीर को किस चीज से बांध कर निशाना लगाया होगा। इस चिड़िया या इस तीर में कोई सच्चाई नहीं है। ये धोखेबाजी और भ्रम में लिपटी कोई चीज है।”

महाजन के शब्दों के साथ ही वहां सन्नाटा छा गया।

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई और मोना चौधरी

को देखा।

“तुम खामोश क्यों हो मोना चौधरी? क्या तुम्हें लगता है, ये

सब गलत कह रहे हैं? सोहनलाल ने कहा।

मोना चौधरी ने सोहनलाल को देखा फिर नज़रें राधा की हथेली पर पड़ी चिड़िया पर जा टिकीं।

“देवराज चौहान का अंदेशा बहुत हद तक ठीक है। तुम सब भी सही कह रहे हो।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा-“ऐसे मायावी हादसों का हम पहले भी सामना कर चुके हैं।” ये सब जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित उपन्यास “जीत का ताज”, “ताज के दावेदार”, “कौन लेगा ताज”-“ऐसे में बेहतर यही होगा कि हम इस चिड़िया की तरफ से ध्यान हटा लें। इसके शरीर में धंसे तीर को नजरअंदाज कर दें।”

तभी रुस्तम राव, राधा के पास पहुंचा और हथेली में पड़ी चिड़िया को देखता हुआ बोला।

“बाप, ये तो पक्का शैतान के अवतार का ही झमेला होएला। चिड़िया के शरीर में तीर घुसेला, पण खून बाहर को नई आईला। ये चिड़िया चाल होएला।”

“फेंक दो इसे।” मोना चौधरी के स्वर में फैसले के भाव थे।

“कोई फायदा नहीं होगा।” पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए कह उठा-“शैतान के अवतार ने अगर हमारे गिर्द जाल कसना शुरू कर दिया है तो हम ज्यादा देर उसकी चालों से बच नहीं सकते। उसकी भेजी इस चिड़िया के जाल में नहीं फंसेंगे तो वो किसी दूसरे रूप में हम पर चाल फेंकेगा। उससे हम ज्यादा देर बच नहीं सकते।”

“जितनी देर बच सकते हैं, उतनी देर तो हमें बचने की कोशिश करनी ही चाहिये।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“मरना ही है? ये सोचकर कुएं में छलांग नहीं लगाई जाती। जब तक सांस है, तब तक हिम्मत से काम लेना चाहिये।”

मोना चौधरी ने शान्त मुस्कान के साथ देवराज चौहान को देखा।

“मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूं।” जब तक हिम्मत है हमें-।” मोना चौधरी ने कहना चाहा।

“दिमाग खराब हो गया है तुम सब का। ये बेचारी दर्द से तड़प रही है-और तुम लोग जादुई-मायावी जिन्न-प्रेत की बातें कर रहे हो।” राधा झल्ला कर कह उठी-“जब से वो ठिगना मिला है, तब से ही मेरे सामने अजीब-अजीब बातें हो रही हैं। मैं लोगों की तरह पागल नहीं हूं। बेचारी।” कहने के साथ ही राधा ने हथेली पर रखी चिड़िया के नन्हे से पेट में धंसा तीर पकड़ा।

मात्र सेकेंड का खेल था।

“राधा, नहीं।” महाजन ने चीख कर कहना चाहा।

उसी पल राधा ने तीर बाहर खींच लिया था।

सब की एकटक निगाह राधा की हथेली पर पड़ी चिड़िया पर ठहर गई थी।

तीर निकलते ही निश्चल पड़ी चिड़िया के नन्हे से शरीर में उतार-चढ़ाव होने लगा। जैसे वो सांसें ले रही हो। तीर निकलने पर भी कहीं से खून नहीं झलका था।

राधा ने हाथ में पकड़े छोटे से तीर को एक तरफ उछाल दिया।

गहरा-तीखा-पैना सन्नाटा वहां छा चुका था।

कई सेकेंड बीत गये।

“देखा तुम लोगों ने।” राधा कह उठी-“बेचारी को कितनी राहत मिली होगी तीर निकलने पर। तुम लोग खामख्वाह बात को पहाड़ जितना बड़ा कर रहे थे। किसी का भला करो तो, भगवान उसका भला करता है। बुरी बला से बचाता है।”

कोई कुछ नहीं बोला।

महाजन ने गहरी सांस लेकर घूंट भरा।

मिनट भर बीत गया। चिड़िया की तरफ से सबका ध्यान हटने लगा।

“अब हमें ये सोचना चाहिये कि आगे क्या करना है।” सोहनलाल ने गम्भीर निगाहों से देवराज चौहान को देखा-“आगे जंगल जैसा इलाका शुरू हो रहा है और रास्तों का हमें ज्ञान नहीं।”

“मैंने पहले ही कहा है कि आगे जाने की अपेक्षा हम पीछे, शहर में ही रात गुजार लेते हैं और रात भर में आराम करने के साथ-साथ ये भी तय कर लेंगे कि शैतान के अवतार तक कैसे पहुंचा जाये।”

“मैं चिड़िया को उस पेड़ के नीचे रख देती हूं।” कहते हुए राधा सामने नज़र आ रहे पेड़ की तरफ बढ़ी-“इसके लिये मैं जितना

कर सकती थी कर दिया। दवा तो है नहीं कि इसके जख्म पर लगा दूँ।” राधा पेड़ के पास पहुंची और नन्ही-सी चिड़िया को वहां रखकर लौट आई।

“ये रात शहर में ही बिता लेने में मुझे कोई एतराज नहीं।” देवराज चौहान ने कहा और सिगरेट सुलगा ली-“लेकिन मुझे नहीं लगता कि शैतान का अवतार हम लोगों को यहां चैन से रहने देगा। वो कोई बड़ी हरकत करेगा।”

“देखेंगे, क्या करता है।” मोना चौधरी दांत भींचकर कह उठी-“चलो वापस, उसी शहर में चलते हैं।”

अब शहर की लाइटें जलनी आरम्भ हो गई थीं।

रोशनी और अंधेरे का मिलन हो रहा था।

सब वापस चल पड़े कि कम से कम ये रात आराम से बिताई

जा सके।

तभी उनके कानों में स्पष्ट-सी टूटी-फूटी कराह पड़ी।

“ये आवाज कैसी?”

“कौन है?”

वो सब फुर्ती के साथ पल्टे। हाथों में रिवाल्वरें नजर आने लगीं। सतर्कता से भरी खूंखार निगाहें उस दिन की बुझती रोशनी में, हर चीज को भेदने लगीं।

फिर एकाएक उनकी निगाहें उस पेड़ के नीचे जाकर ठहरने लगीं।

जहां राधा ने उस नन्हीं, घायल चिड़िया को रखा था।

***