देवराज चौहान ने सड़क के किनारे कार रोकी कि जगमोहन दरवाजा खोल कर बाहर निकला।
"मैं पांच मिनट में आया।" कहते हुए वो सामने नजर आ रहे शॉपिंग सेंटर की तरफ बढ़ गया।
देवराज चौहान ने इंजन बंद किया और सिगरेट सुलगा ली।
पीछे वाली सीट पर सोहनलाल पसरा, गोली वाली सिगरेट के कश ले रहा था।
"इधर क्या काम है जगमोहन को ?" सोहन लाल ने पूछा।
"किसी से मिलना था।" देवराज चौहान ने कार से बाहर देखते हुए कहा ।
"किससे ?"
"ये मैं भी नहीं जानता। पूछा भी नहीं मैंने।"
आज गर्मी ज्यादा थी। तेज धूप थी और हवा चलने का कहीं अता-पता नहीं था। रह-रहकर चेहरे पर पसीने की लकीरें नजर आने लगती थी । देवराज चौहान के गालों और गले पर आये पसीने को उल्टी हथेली से साफ किया और जेब से रुमाल निकाल कर चेहरे पर फेरने लगा।
सोहनलाल ने कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा। दोपहर के ढाई बज रहे थे।
"कहीं लंच करें। आज नाश्ता भी ठीक से नहीं किया। भूख लग रही है।" सोहनलाल बोला।
"जगमोहन को आने दो। लंच भी ले लेंगे।"
"यहां से थोड़ा आगे ही, एक रेस्टोरेंट है, वहां...।"
सोहनलाल अपनी बात पूरी ना कर सका ।
तभी दरवाजा बाहर से खुला, जहां से जगमोहन निकल कर गया था और चालीस-ब्यालीस बरस का एक आदमी भीतर आ बैठा। दरवाजा बंद कर लिया।
देवराज चौहान ने आंखे सिकोड़कर उसे देखा ।
सोहनलाल भी सीधा होकर बैठ गया।
"कौन हो तुम, और भीतर कैसे बैठ गये ?" देवराज चौहान कह उठा।
सोहनलाल का हाथ जेब में पड़ी रिवाल्वर पर जा पहुंचा।
"तुम्हारे पास बैठकर मुझे अच्छा लग रहा है देवराज चौहान।" वो व्यक्ति मुस्कुरा कर बोला।
देवराज चौहान सतर्क नजर आने लगा।
सोहनलाल ने रिवाल्वर निकाल कर हाथ में ले ली ।
"मेरा नाम प्रताप कोली है।" वो पुनः बोला।
"बाहर निकलो।" पीछे बैठे सोहनलाल ने कहा।
"ऐसा मत कहो मैं तुम्हारा दोस्त हूं सोहनलाल।"
"ओह ! तो तुम मुझे भी जानते हो।"
"दोस्तों के बारे में जानकारी रखनी पड़ती है।"
तभी देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी ।
कार के बोनट के पास जो व्यक्ति टेक लगाकर खड़े हो गये थे। यकीनन वो इसी प्रताप कोली के साथ थे ।
"ये आदमी तुम्हारे ही हैं।" देवराज चौहान बोला।
"हां। लेकिन इस बारे में तुम्हें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं। ये हमारी सुरक्षा के लिए हैं।"
"सुरक्षा? किससे ?"
"तुम्हारे दुश्मन से, या मेरे दुश्मन से। कोई हम पर अचानक हमला न कर दें।" प्रताप कोली मुस्कुरा कर कह उठा ।
"तुम हमारा पीछा कर रहे थे ?"
"हां।"
"क्यों ?"
"तुमसे बातें जो करनी थी।"
"क्या चाहते हो ?" पूछते हुए देवराज चौहान ने कश लिया और सिगरेट बाहर उछाल दी ।
"सौदा।"
"बोलते रहो।"
"सिर्फ एक मर्डर के लिए मैं तुम्हें तगड़ी रख दूंगा।" प्रताप कोली ने कहा ।
"किसी और को ढूंढ लो।"
"क्यों ?"
"मैं किसी के लिए काम नहीं करता। किसी के कहने पर किसी का मर्डर नहीं करता।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा।
"देवराज चौहान, तुम तो यूं कह रहे हो, जैसे किसी का मर्डर किया ही ना हो।" प्रताप कोली ने उसे देखा।
"देवराज चौहान मुस्कुराया ।
"ये हुई न बात।" प्रताप कोली भी मुस्कुरा पड़ा- "तुम मुस्कुराते हुए बहुत अच्छे लगते हो।"
"दरवाजा खोलो और बाहर निकल जाओ।"
"क्या?" प्रताप कोली के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे- "तुम काम करने की तैयार नहीं हो?"
"नहीं।"
"तो मुस्कुराये क्यों?"
"तुम्हारी बात पर।"
प्रताप कोली ने पहलू बदला और खुद पर सब्र रखते हुए उठा-
"एक मर्डर के लिए तुम्हें एक करोड़ रुपया दे सकता हूं।"
"कार से निकलो।"
"ठीक है, डेढ़ करोड़...।"
"बाहर निकल जाओ।" देवराज चौहान का स्वर शांत था । प्रताप कोली ने देवराज चौहान से पूछा-
"बुरा ना मानो तो एक बात पूछूं...?"
देवराज चौहान उसे देखने लगा।
"तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है?"
"इसमें बे-ठिकाने आने वाली कौन सी बात आ गई ?"
"मैं तुम्हें एक मर्डर के लिए डेढ़ करोड़ रुपए दे रहा हूं और तुम ना-ना करते फिर रहे हो।"
"मैं किसी के कहने पर किसी का मर्डर नहीं करता।"
"बेशक डेढ़ करोड़ मिले?"
"ठीक समझे- तुम यहां से बाहर निकलो।"
प्रताप कोली कुछ कहने लगा कि पीछे से सोहनलाल ने रिवाल्वर वाला हाथ आगे कर दिया।
प्रताप कोली ने रिवाल्वर पर नजर मारी, फिर गर्दन घुमाकर सोहनलाल को देखा।
सोहनलाल ने दांत फाड़ दिए ।
"मैं शराफत की बातें कर रहा हूं और तुम लोग मुझे रिवाल्वर दिखा रहे हो।"
"हम भी शराफत से बात कर रहे हैं। रिवाल्वर चलाई नहीं, दिखाई है। तेरे को दस बार कह दिया कि निकल बाहर तो बाहर निकल जा। देवराज चौहान मर्डर नहीं करेगा। बात खत्म, रास्ता नाप ले अपना ।"
प्रताप कोली ने सिर हिलाया और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया ।
"अब मेरा पीछा मत करना।" देवराज चौहान ने कहा।
प्रताप कोली कुछ ना बोला। वहीं खड़ा रहा।
तभी सामने से जगमोहन आता दिखा तो सोहनलाल कह उठा-
"साहब आ रहे हैं, पीछे हट जा।"
प्रताप कोली एक तरफ हट गया।"
देवराज चौहान के कार स्टार्ट करते ही, बोनट से टेक लगाकर खड़े दोनों व्यक्ति एक तरफ हो गये।
जगमोहन पास पहुंचा। उसने प्रताप कोली और दोनों व्यक्तियों पर नजर मारी।
"क्या बात है?" जगमोहन ने पूछा ।
"अंदर बैठ।" भीतर से सोहनलाल ने कहा- "मैं बताता हूं।"
उलझन में फंसा जगमोहन कार के भीतर बैठा, दरवाजा बंद किया तो देवराज चौहान ने कार आगे बढ़ा दी ।
प्रताप कोली कार को जाता देखता रहा ।
वो दोनों आदमी उसके पास पहुंचे और एक ने पूछा।
"क्या हुआ- क्या बोला देवराज चौहान ?"
"नहीं माना।" प्रताप कोली ने कहते हुए जेब से मोबाइल निकाला और नंबर मिलाने लगा।
"तुमने क्या ऑफर दी ?"
"डेढ़ करोड़ ।" प्रताप कोली ने फोन कान से लगा लिया ।
"तब भी नहीं माना, हैरानी है।" दूसरा बोला।
तभी प्रताप कोली के कानों में दूसरी तरफ से दिनेश चुरू की आवाज पड़ी।
"बोल।"
"देवराज चौहान से बात की, वो नहीं मानता।"
"क्या कहता है ?"
"मेरे को कार से बाहर निकाल दिया, बोलता है कि वो किसी के कहने पर किसी का मर्डर नहीं करता।" प्रताप कोली ने फोन पर कहा ।
"तूने ठीक से बात नहीं की होगी।" दिनेश चूरू की सोच भरी आवाज कानों में पड़ी।
"तेरे को ऐसा क्यों लगता है क्यों ?"
दिनेश चूरू की तरफ से आवाज आई ।
प्रताप कोहली फोन कानों से लगाए खड़ा रहा ।
"देवराज चौहान गया ?"
"हां।"
"उस पर इस वक्त कौन नजर रख रहा है ?"
"मुकेश ।"
"मैं देवराज चौहान से बात करूंगा। मुकेश से कहना कि मुझे खबर करे, देवराज चौहान किधर है।"
"ठीक है, मैं अभी मुकेश को फोन कर देता हूं।" प्रताप कोली ने फोन काटा और मुकेश का नंबर मिलाया ।
"हैलो।" फौरन ही मुकेश की आवाज कानों में पड़ी।
"कहां है देवराज चौहान ?"
"अभी-अभी उनकी कार एक रेस्टोरेंट के सामने रुकी है, मेरा ख्याल है कि वो लंच करेंगे। हां, वो अब कार से बाहर निकले हैं और...अब रेस्टोरेंट की तरफ जा रहे हैं।"
"ठीक है। दिनेश को फोन कर और देवराज चौहान की पोजीशन उसे बता। दिनेश वहां पहुंचेगा।"
■■■
जगमोहन को जब पता चला की एक मर्डर के लिए कोई डेढ़ करोड़ दे रहा था और देवराज चौहान ने इंकार कर दिया तो, उसका मूड खराब हो गया।
"क्या हर्ज था।" जगमोहन के उठा- "उनसे बात कर लेते । एक मर्डर ही तो करना था।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। ड्राइव करता रहा।
जगमोहन ने गर्दन घुमा कर सोहनलाल को देखा।
"तूने देवराज चौहान को समझाया नहीं ।"
"समझाया?" सोहनलाल सकपका उठा- "मैं समझाऊंगा ?"
"तेरे को समझाने में शर्म आती है ?"
"समझदार को क्या समझाता मैं।"
"कोई समझदार नहीं होता। इंसान बूढ़ा हो जाने के बाद भी नई-नई बातें सीखता रहता है। कई बार समझ नहीं होती परंतु समझाने पर आ जाती है। एक बार तो समझाया होता देवराज चौहान को ।"
"अच्छा।" सोहनलाल ने कुछ ज्यादा ही लंबी सांस ली।
"क्या अच्छा?"
"अब समझाऊंगा।"
"तो समझा।"
"ये मौका तो हाथ से निकल गया।अगले किसी मौके पर समझाऊंगा।"
जगमोहन ने सोहनलाल को घूरा ।
सोहनलाल दांत दिखा कर कह उठा-
"भूख लग रही है, तेरे को बढ़िया जगह लंच कर आता हूं।"
"मेरी तो भूख मिट गई। अब तो नमक का भी स्वाद नहीं आयेगा।" जगमोहन ने उखड़े स्वर में कहा।
कुछ देर बाद सोहनलाल के कहने पर एक रेस्टोरेंट के सामने कार रोक दी।
■■■
तीनों ने लंच किया ।
इसी दौरान जगमोहन उखड़ा-सा चुप-चुप ही रहा ।
देवराज चौहान जगमोहन की मीठी नाराजगी को महसूस करके मुस्कुराने लगता था ।
लंच के बाद वेटर बर्तन ले गया । उन्होंने तीन कॉफी का आर्डर दिया।
तभी उनके पास पैंतीस वर्षीय व्यक्ति आ खड़ा हुआ। कठोर से चेहरे, परंतु सभ्य-से दिखने वाले इस व्यक्ति के चेहरे पर शांत सी मुस्कान उभरी हुई थी ।
तीनों ने उसे आते देखा तो वो बोला-
"क्या मैं आप लोगों के साथ बैठ सकता हूं ?"
"क्यों ?" जगमोहन ने उसे घुरा ।
देवराज चौहान एकटक उस व्यक्ति को देख रहा था।
"मैं प्रताप कोली का दोस्त हूं, जो कुछ देर पहले देवराज चौहान से मिला था।"
"डेढ़ करोड़ वाला प्रताप कोली ?"
"हां-वो ही।"
जगमोहन का चेहरा चमक उठा।
"बैठो-बैठो, खड़े क्यों हो ?"
सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा ।
देवराज चौहान का चेहरा शांत था।
दिनेश चुरू खाली पड़ी कुर्सी पर बैठ गया ।
"नाम क्या है तुम्हारा ?" जगमोहन ने पूछा ।
"दिनेश चूरु।"
"इस काम के लिए मैं इंकार कर चुका हूं।" देवराज चौहान ने कहा ।
"सुन तो लेने दो क्या कहता है।" जगमोहन बोला- "शायद कोई नई बात लेकर आया हो।"
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा ।
जगमोहन ने तुरंत मुंह फेर लिया और सोहनलाल से बोला-
"तुम इसे समझाओ, तब तक मैं दिनेश चूरू से बात करता हूं।"
सोहनलाल खामोश रहा।
"तो तुम लोग किसी का मर्डर करवाना चाहते हो देवराज चौहान से और बदले में डेढ़ करोड़ दे रहे हो।"
"हां।"
"अब तुम्हें क्या कहूं, खून-खराबा अच्छी बात नहीं होती।"
"इस काम का दो करोड़ भी मिल सकता है।"
"दो करोड़, एक मर्डर के लिए ?"
दिनेश चूरू ने सिर हिलाया ।
"लेकिन देवराज चौहान का उसूल है कि दो बन्दों की लड़ाई में दखल न दो। तुम जिसका मर्डर कराना चाहते हो, उसका तुम लोगों के साथ पंगा होगा- इसलिए हमारा बीच में आना किसी भी तरफ से ठीक नहीं।"
दिनेश चूरू के चेहरे पर गंभीरता नजर आने लगी।
"जिसे मारना है, हमारी उससे कोई दुश्मनी नहीं।"
"कोई दुश्मनी नहीं ?"
"जरा भी नहीं।"
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखकर कहा-
"सुना तुमने ! ये शरीफ लोग हैं। जिसकी जान लेना चाहते हैं, उसके साथ इनकी कोई दुश्मनी नहीं है।"
"मेरी बात को मजाक में मत लो जगमोहन।"
"मैं मजाक में नहीं ले रहा, गंभीर हूं । ये बताओ कि फिर क्यों उसकी जान लेने के लिए दो करोड़ खर्च कर रहे हो ?"
"वो एक सफेदपोश है। दिखावे के तौर पर सफेद धंधे करता है और शहर में इज्जतदारों की तरह रहता है। जबकि हकीकत में वो ड्रग्स किंग है। नशे का व्यापार करता है वो और युवा पीढ़ी को बर्बादी की गर्त में भेज रहा है।"
"कौन है वो ?"
"रतनचंद कालिया। शहर का नामी आदमी है।"
देवराज चौहान एकटक दिनेश चुरू को देख रहा था ।
जगमोहन ने फौरन देवराज चौहान से कहा-
"अगर ये सही कह रहा है तो फिर मर्डर किया जा सकता है।"
"मैं सही कह रहा हूं।"
"माना कि तुम सही कह रहे हो, लेकिन तुम क्यों दो करोड़ खर्च कर रहे हो। शहर में आगे भी ढेरों लोग हैं...।"
"मैं नहीं खर्च कर रहा।"
"तो ?"
"शोरी साहब खर्च कर रहे हैं।"
"ये कौन है साहब?"
"नागेश शोरी। शहर के चंद दौलतमंदो में से एक हैं और शोरी साहब को नशे से सख्त नफरत है। दो करोड़ इनके लिए ऐसी रकम है जैसे हम लोगों के लिए सो-सौ रुपये। शोरी साहब को पैसे की ज्यादा भी परवाह नहीं है।"
जगमोहन के चेहरे पर सोच के भाव नाच उठे, वो दिनेश चुरू को देखने लगा था।
दिनेश चूरु गंभीर था ।
तभी वेटर तीन कॉफी ले आया ।
"एक और कॉफी ले आओ।" जगमोहन ने कहा ।
वेटर चला गया।
"इस काम के लिए तुम्हें दो लाख में भी बंदे मिल सकते हैं।" जगमोहन ने कहा ।
"शिकार दमदार हो तो, शिकारी को भी दमदार होना चाहिये। तभी बात बनती है।" दिनेश चूरु बोला- "हमने कम से कम बीस नामी आदमियों की लिस्ट शोरी शाह को सौंपी जो ये काम करने का हौसला रखते हैं और उन बीस में से उन्होंने, देवराज चौहान को पसंद किया कि ये काम देवराज चौहान को सौंपा जाये। उसके बाद हम लोगों ने देवराज चौहान को गुप-चुप तौर पर ढूंढने में दो महीने लगा दिए। अब जाकर हमारी बात हो रही है।"
देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा।
"लो तुम कॉफी पियो। खाली बैठोगे तो मुझे देखते रहोगे।" जगमोहन ने उसकी तरफ कॉफी का प्याला सरकाया।
"एक मर्डर के लिए दो करोड़ कम नही होते।"
"अभी मोल-भाव का वक्त नहीं आया।"
"क्या मतलब ?"
"पहले ये देखना है कि रतनचंद कालिया के बारे में तुमने जो कहा है, क्या वो सच है ?" जगमोहन बोला।
"सच है।"
"तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता।"
"तो?"
"हम खुद पता लगायेंगे।"
दिनेश चुरू ने जेब से अखबारों की कटिंग का पुलिन्दा निकालकर उसके सामने टेबल पर रखा ।
"ये अखबारों की कटिंग्स है, जिनसे ये स्पष्ट हो जाता है कि रतनचंद कालिया ड्रग्स के धंधे में गले तक फंसा पड़ा है। इन खबरों में, पुलिस द्वारा ड्रग्स को जब्त किये जाने की जगहों का विवरण है और हर जगह रतनचंद कालिया ही है।"
"इन अखबारों की कटिंग को तुम साथ लिए घूम रहे हो?" जगमोहन के होंठ सिकुड़े।
"यहां आने से पहले इन्हें साथ ले लिया, कि कहीं जरूरत ना पड़ जाए और जरूरत पड़ गई। इन अखबारों में छपी खबर से ये साफ है कि रतनचंद कालिया ड्रग्स किंग है। उसके ठिकानों पर जितने भी आदमी पकड़े गये, उन्होंने पुलिस के सामने कबूला कि रतनचंद कालिया के लिए काम करते हैं । परंतु रतन चंद कालिया इतना बेशर्म है कि वो साफ मना करता है कि वो ड्रग्स का धंधा करता है।"
"तो पुलिस ने उसे छोड़ दिया ?"
"केस चल रहा है। रतनचंद कालिया जमानत पर है और अपने को बचाने के लिए बड़े-बड़े वकीलों की फौज खड़ी कर रखी है। शोरी साहब को नहीं लगता कि वो कभी कानून के शिकंजे में फंसेगा।"
"इसलिए शोरी साहब उसका मर्डर करा देना चाहता है।"
दिनेश चुरू में सहमति से सिर हिलाया ।
"कुछ बात गले नहीं उतर रही।" जगमोहन सोच भरे स्वर में बोला- "शोरी के पास कोई ठोस वजह नजर नहीं आ रही कि वो रतनचंद कालिया का मर्डर क्यों कराना चाहता है। कालिया ड्रग्स का धंधा करता है, कानून उसे सजा नहीं दे पा रहा, इसलिए वो कालिया का मर्डर कराना चाहता है, जंच नहीं रहा कुछ ।"
"तुम्हें क्या, तुम मर्डर करो और दो करोड़ गिन लो ।"
"हमने मर्डर करने की दुकान नहीं खोल रखी, ना ही हम किसी के कहने पर किसी की जान लेते हैं। ये तो तू सुन ही चुका है। फिर किसी की जान ले सकते हैं, बशर्ते कि वो आदमी जीने की काबिलियत ना रखता हो। अब ये तुम्हें साबित करना है कि रतनचंद कालिया जीने की काबिलियत खो चुका है। वो ड्रग्स किंग है, देश को नशे की गर्त में धकेल रहा है तो उसे जरूर मारना चाहिए, परंतु नागेश शोरी क्यों उसे मरवा देना चाहता है, ये बात...।"
"साल भर पहले नागेश शोरी की खूबसूरत पत्नी नशे की लत में पड़ कर अपनी जान गंवा बैठी। शोरी उसे बहुत प्यार करता था। शोरी ने अपनी पत्नी को बचाने की बहुत चेष्टा की, लेकिन नशा जीत गया और उसकी पत्नी मर गई। ये है वजह कि नागेश शोरी साहब नशे का व्यापार करने वाले को खत्म करा देना चाहते हैं।"
"हूं, तो ये है असल बात।" जगमोहन कह उठा ।
देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा ।
"बोलो देवराज चौहान।" दिनेश चुरु बोला- "तुम...।"
"मैं तुमसे बात कर रहा हूं, तुम मेरे से बात करो। देवराज चौहान के पास सोचने को बहुत कुछ है। देवराज चौहान ने क्या काम करना है और क्या नहीं, ये मैं ही तय करता हूं ।"
"तुम तय करते हो?"
"हां, और कितना पैसा लेना है, ये भी मैं तय करता हूं।"
"पैसा तो दो करोड़ है ही।"
"ये तुम लोगों ने तय किया है, मैंने नहीं। ये बात बाद में तय करेंगे । उससे पहले तो ये देखना है कि रतनचंद कालिया सच में ड्रग्स के धंधे में फंसा हुआ है। तुम अपना फोन नंबर दो और जाओ ।"
"लेकिन...।"
"जल्दी मत करो। गर्म मत हो। तुमने अपनी समस्या हमें बता दी, अब आगे काम हमारा है नोट आते हुए मुझे बुरे नहीं लगते । परंतु तुम्हें दो-तीन दिन का इंतजार करना होगा कि तुम्हारी बातों की सच्चाई जानी जा सके।"
"तो मैं शोरी साहब से क्या कहूं... वो...।"
"रतनचंद कालिया के बारे में हमें जो कहा है, वो सच है तुम परसों तुमसे बात करेंगे। नागेश शोरी से भी मिलेंगे। अपना फोन नंबर दो । कार्ड-वार्ड है तो ठीक, नहीं तो यूं ही कागज पर लिख दो। सब चलेगा। अब हमारे पीछा मत रहना। कोई हम पर नजर ना रखे। हमारी गाड़ी उल्टी चल पड़ी तो सब रगड़े जाओगे। समझे कि नहीं ?"
"समझा ।"
"समझा-समझा क्या कर रहा है, फोन नंबर दे और खिसक ले।" जगमोहन मुंह बना कर कह उठा।
■■■
दिनेश चुरु अपना फोन नंबर दे कर चला गया ।
जगमोहन ने देवराज चौहान से पूछा -
"तुम्हें क्या लगता है ?"
"गड़बड़ ।"
"कैसी गड़बड़ ?"
"मेरा ख्याल है कि असल बात कोई और ही है रतनचंद कालिया की हत्या करवाने के पीछे।"
"पता करता हूं कि रतनचंद कालिया वास्तव में ड्रग्स किंग है ।"
देवराज चौहान ने हाथ बढ़ाकर अखबारों की कटिंग्स का बंडल उठा लिया ।
"ये भी पता करना है कि रतनचंद कालिया और नागेश शोरी के बीच क्या कोई दुश्मनी है ।"
जगमोहन में सिर हिलाया और सोहनलाल से कहा-
"फुर्सत में है तो मेरे साथ लग जा इस काम में।"
"फुर्सत ही है, अभी लग जाते हैं इस काम में।" सोहनलाल कह उठा ।
■■■
रात के दस बज रहे थे। दिन भर के कामों से फारिग होकर देवराज चौहान ने, दिनेश चुरू का दिया ख्वाबों की कटिंग्स का बंडल देखना शुरू कर दिया। छोटी-बड़ी अठारह-बीस कटिंग्स थी। पढ़ते-पढ़ते देवराज चौहान कटिंग्स की खबरें पूरी तरह पढ़ गया। उन खबरों से जाहिर हो रहा था कि रतनचंद कालिया का व्यापार भारी पैमाने पर करता है। इसी सिलसिले में उस पर केस चल रहा था और वो जमानत पर छूटा हुआ था।
यानी कि दिनेश चुरू ने जो भी कहा था, सच कहा था ।
परंतु जाने क्यों देवराज चौहान को कुछ अटपटा लग रहा था। क्या अटपटा लग रहा है, ये बात समझ नहीं आ रही थी उसे। देवराज चौहान ने वक्त देखा, रात के ग्यारह बज रहे थे। जगमोहन और सोहनलाल अभी तक नहीं लौटे थे ।
देवराज चौहान किचन में पहुंचा और कॉफी बनाई। इस दौरान सोचो में डूबा रहा। फिर कॉफी के घूंट लेता हुआ, प्याले के साथ ड्राइंग रूम में पहुंचा दो कॉलबेल बजी ।
देवराज चौहान दरवाजे के पास ही बनी खिड़की पर पहुंचा और जरा सा पर्दा हटा कर बाहर देखा।
पोर्च की लाइट ऑन थी और जगमोहन, सोहनलाल को वहां देखा
देवराज चौहान ने दरवाजा खोला।
दोनों भीतर आये। सोहनलाल ने दरवाजा बंद किया।
"डिनर किया?" जगमोहन ने पूछा ।
"हां, फ्रिज में जो पड़ा था, उससे काम चला लिया।" देवराज चौहान ने कहा ।
"हम भी खाकर आ रहे हैं ।"
दोनों सोफे पर जा बैठे ।
देवराज चौहान ने हाथ में पकड़े प्याले से कॉफी का घूंट भरा और बैठता हुआ बोला-
"क्या रहा?"
"रतनचंद कालिया ड्रग्स किंग ही है।" जगमोहन ने कहा ।
"कैसे पता चला?"
हम ड्रग्स के खरीददार बन कर कुछ लोगों से मिले और उनसे ही हमें जानकारी मिली कि रतनचंद कालिया ड्रग्स किंग है।"
"पक्का?"
"इससे ज्यादा और क्या पक्का होगा कि सबकी जुबान पर रतनचंद कालिया का ही नाम है कि इस शहर में ड्रग्स का धंधा वो ही कंट्रोल करता है और किसी अन्य के टिकने नहीं देता । वो खतरनाक आदमी माना जाता है।"
देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा।
"नागेश शोरी के बारे में भी पता किया।" सोहनलाल ने कहा-"शोरी बेहद दौलतमंद इंसान है। कई बड़े धंधों का मालिक है। उसकी पहुंच ऊंची है। अपने आप में दम रखता है साल भर पहले उसकी पत्नी को नशे की आदत की वजह से मरना पड़ा। धीरे-धीरे वो बहुत ज्यादा नशा करने लगी थी। इलाज से कोई फायदा न हुआ और वह मर गई।"
"रतनचंद कालिया और नागेश शोरी में सीधी दुश्मनी क्या है ?"
"कुछ भी नहीं। हमने पता नहीं किया, लेकिन दोनों में लिंक यही मिला है कि रतनचंद कालिया नशे का धंधा करता है और नागेश की बीवी को नशे की लत की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ी ।" सोहनलाल ने कहा ।
"तो हम ये सोचें कि दिनेश चुरू ने जो भी कहा, ठीक कहा है ?" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
"यही नतीजा निकलता है।" जगमोहन बोला ।
"लेकिन दो करोड़ कम दे रहा है वो।" जगमोहन ने दोनों को देखा ।
"कम है ?" सोहनलाल ने हैरानी से उसे देखा ।
"वैसे तो ठीक है।" जगमोहन मुस्कुराया- "लेकिन नागेश शोरी की जो हैसियत पता लगी है आज, उस हिसाब से कम है।"
"कल हम नागेश शोरी से मिलेंगे।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।
■■■
अगले दिन सुबह नौ बजे जगमोहन ने दिनेश चुरू को फोन किया।
"हैलो !" दिनेश चुरू का स्वर कानों में पड़ा ।
"मैं- पहचाना ?"
"जगमोहन ?" दिनेश चुरू की आवाज में उत्साह उभरा ।
"ठीक पहचाना। नागेश से हमारी मुलाकात का इंतजाम कर।" जगमोहन ने कहा ।
"काम करने को तैयार हो ?"
"तभी तो कह रहा हूं ।"
"शोरी साहब से मिलने की जरूरत क्या है?" दिनेश चुरू ने कहा।
"क्या मतलब?"
"सौदा हो गया, शिकार तुम लोगों के सामने हैं, काम खत्म करो और नोट लो।"
"काम खत्म करके नोट? पागल तो नहीं हो गया...मैं नोट पहले लेता हूं । उसके बाद काम शुरू करता हूं ।"
"एक करोड़ तुम्हें पहले दे...देता...।"
"सुन।" जगमोहन एकाएक उखड़ा- "काम करवाना है ?"
"हां, तभी तो...।"
"तो नागेश शोरी से मुलाकात का इंतजाम करवा, हम चमचों से फाइनल बात नहीं करते।"
"ठीक है।" दिनेश चुरू ने गहरी सांस ली- "तुम आधे घंटे बाद मुझे फोन करना।"
जगमोहन ने एक घंटे बाद दिनेश चुरू को फोन किया ।
"4 नंबर वरसोवा पर आ जाओ। देवराज चौहान भी साथ होगा ना ?"
"उसके बिना मैं क्या करने आऊंगा।" जगमोहन ने कहा और फोन रख दिया।
■■■
देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल 4 नंबर वरसोवा पर पहुंचे ।
बहुत शानदार और बड़ा बंगला था ।
मुख्य गेट पर दो गनमैन खड़े थे। उसके पास ही मौजूद था प्रताप कोली। वो उन्हें देखते ही मुस्कुरा कर उनकी तरफ बढ़ा और कह उठा-
"आइये, मैं आप लोगों के लिए ही यहां खड़ा था।"
गनमैनों ने विशाल गेट को खोला तो कार भीतर ले गये। जगमोहन ने पोर्च में ले जाकर कार रोकी, वहां तीन विदेशी कारें पहले से ही मौजूद थीं।
तीनों कार से बाहर निकले तो पीछे से प्रताप कोली, उनके पास आ पहुंचा।
"आइये-आइये।" आगे चलने का उपक्रम करता कह उठा।
"मैं यही रहूंगा ।" सोहनलाल ने कहा ।
"बाहर ?" प्रताप कोली ने उसे देखा ।
"हां ।" अगर तुम भीतर नहीं जाना चाहते तो मैं तुम्हारे बैठने का कहीं प्रबंध कर...।"
"मुझे भूल जाओ और इन्हें भीतर ले जाओ।" सोहनलाल ने आस-पास नजरें दौड़ाते हुए कहा।
"मर्जी तुम्हारी । परंतु आज से पहले किसी मेहमान ने ऐसा नहीं किया कि वो बाहर रहें...।"
सोहनलाल ने उसकी तरफ पीठ कर ली।
प्रताप कोली, देवराज चौहान और जगमोहन को लेकर भीतर चला गया।
दो मिनट भी ना बीते होंगे कि दिनेश चुरु सोहनलाल के पास पहुंचा।
"मुझे पता चला है कि तुम भीतर तो नहीं आये।" वो बोला।
"तुम्हें कोई परेशानी है ?" सोहनलाल ने उसे देखा।
"परेशानी तो होनी चाहिए। यहां कोई आये और बाहर ही रुक जाये।" दिनेश चुरू ने कहा ।
"एक आदमी बाहर भी होना चाहिए।"
"तो तुम हम पर किसी तरह का शक कर रहे हो ?"
"मैं सावधानी बरत रहा हूं। भीतर मेरा कोई काम नहीं था, इसलिए बाहर रुक गया।"
"ठीक है। मैं तुम्हारे साथ रहूं तो तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा ?"
"मुझे अकेला छोड़ दो।"
"जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन यहां सब ठीक है। तुम्हें किसी भी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं ।" कहकर वो भीतर चला गया।
सोहनलाल सतर्कता भरे अंदाज में बाहर ही टहलने लगा।
■■■
वो पचास बरस का, गठे जिस्म का मालिक था। उसने सूट पहना हुआ था। चेहरे पर दौलत की चमक विद्यमान थी। उसके हाव-भाव में चुस्ती थी । ए.सी. की ठंडक उस कमरे में फैली हुई थी।
उसके अलावा वहां दो अन्य आदमी भी थे ।
हरीश मोगा और अवतार सिंह। दोनों इस वक्त सतर्क थे ।
देवराज चौहान और जगमोहन के वहां प्रवेश करते ही, उनकी निगाहें उन पर जा टिक गई थीं।
प्रताप कोली दरवाजे से भीतर कुछ आकर ठिठक गया था।
देवराज चौहान की निगाह नागेश शोरी पर जा टिकी थी।
नागेश शोरी मुस्कुरा कर आगे बढ़ा और देवराज चौहान से हाथ मिलाता कह उठा-
"देवराज चौहान को अपने सामने पाकर मुझे बहुत खुशी हो रही है।"
"मुझे भी ।"
नागेश शोरी ने जगमोहन से भी हाथ मिलाया।
फिर वो एक तरफ मौजूद कुर्सियों पर जा बैठे।
अवतार सिंह एक तरफ मौजूद फ्रिज के पास पहुंचा, उसे खोला और लिम्का की बोतल निकाल कर फ्रिज के ऊपर ही रखे गिलासों में डाली और उन्हें लिए आगे बढ़ा और उन तीनों के बीच मौजूद टेबल पर गिलास रखे और पीछे हटते हुए वापस अपनी जगह पर खड़ा हुआ।
देवराज चौहान ने अवतार सिंह, हरीश मोगा और प्रताप कोली पर नजर मारकर कहा-
"क्या इनका यहां मौजूद रहना ठीक है ?"
"इनसे मेरा कुछ नहीं छिपा, फिर भी तुम्हें परेशानी हो तो...।"
"अगर ये तुम्हारे विश्वासी है तो मुझे कोई परेशानी नहीं है।"
नागेश शोरी ने गिलास उठाया और लिम्का का घूंट भरा ।
"रतनचंद कालिया से तुम्हारी क्या दुश्मनी है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"कोई दुश्मनी नहीं ।" संजीदा होता नागेश शोरी बोला- "वो ड्रग्स का व्यापार करता है और मेरी खूबसूरत बीवी ड्रग्स की लत की वजह से अपनी जान गंवा बैठी। मैं उसे बहुत प्यार करता था। उसके बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था। मैं नहीं जानता कि कब उसने नशा करना शुरू किया। मुझे इसका तब पता चला, वो जब इस रास्ते पर काफी आगे जा चुकी थी। फिर भी मैंने पूरी कोशिश की कि उसे बचा लूं। उसकी नशे की आदत छुड़ा लूं, परंतु कामयाब नहीं हो सका। वो मर गई।"
देवराज चौहान उसे देखता रहा।
"उसके बाद मुझे नशे से, ड्रग्स के और नशे के व्यापार करने वालों से नफरत हो गई । तब मैंने नशे के व्यापार करने वाले अंजाने दुश्मनों की तलाश शुरू की तो पता चला कि शहर का ड्रग्स किंग रतनचंद कालिया है।"
"और तुमने उसे मरवा देने का इरादा बना लिया।"
"ऐसी बात नहीं। पहले मेरा इरादा था कि उसे कानून की गिरफ्त में पहुंचा दूं। इसके लिए मैंने बहुत मेहनत की। मेरे इशारे पर अखबारों ने रतनचंद कालिया को बेनकाब करना शुरू कर दिया। कानून को उनके पीछे डलवा दिया। परंतु खास फायदा नहीं हुआ। कानून के हाथों में पहुंचकर भी वो आजाद हो गया। अब जमानत पर है और केस चल रहा है। मुझे नहीं लगता कि उसे सजा हो पायेगी। क्योंकि वो खुद भी दम रखता है। जो जज इस केस को देख रहा है, सुना है कि उसने जज को भी खरीद लिया है। आखिरकार थक हार कर मैंने उसे खत्म करवा देने का फैसला कर लिया।"
"इस तरह तुम कानून को अपने हाथ में ले रहे हो।"
"मैंने अच्छे काम के लिए सोचा है, इसलिए कानून का मुझे जरा भी डर नहीं है। वैसे भी किसी को पता नहीं लगेगा कि ये सब मैंने करवाया है।"
"बात बाहर भी निकल सकती है।"
"ऐसा हुआ तो मैं अपने को बचा लूंगा। तुम मेरी चिंता मत करो। अपने काम के बारे में सोचो। मैंने सुना है कि तुम बेहतरीन निशानेबाज हो। यही वजह है कि मैंने इस काम के लिए तुम्हारा चुनाव किया है।" नागेश शोरी मुस्कुराया।
"मुझे रतनचंद कालिया के बारे में भीतरी जानकारी चाहिए होगी।"
"प्रताप कोली और दिनेश चुरू के पास तुम्हारे काम की हर जानकारी है। इस बारे में तुम्हें वक्त खराब करने की जरूरत नहीं। ये दोनों काम के दौरान तुम्हारे साथ ही रहेंगे।"
"मेरे साथ ?"
"अगर तुम्हें एतराज ना हो तो। ये तुम्हारे काम आयेंगे। ये रास्ते में आने वाली हर समस्या को दूर करेंगे। इनकी वजह से तुम्हें जरा भी परेशानी नहीं होगी।" नागेश शीरी ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।
"साथ रहने दो।" जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा- "हमें क्या एतराज है।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई। कश लिया, फिर बोला-
"रतनचंद कालिया को लेकर जो वजह तुमने बताई है, वो ही वजह है उसे मारने की, दूसरी वजह तो नहीं ?"
"जो मैंने बताया है सिर्फ वो ही वजह है। दूसरी वजह कोई नहीं।"
"दूसरी वजह हुई तो तुम मुसीबत में पड़ सकते हो। मुझसे कोई झूठ बोले, ये मुझे पसंद नहीं।"
"तुम।" नागेश शोरी मुस्कुराया- "निश्चिन्त होकर अपना काम शुरू कर सकते हो।"
देवराज चौहान ने कश लिया। बोला कुछ नहीं ।
"तुम्हारी बात हो गई हो तो मैं बात कर लूं।" जगमोहन कह उठा।
देवराज चौहान खामोश रहा तो जगमोहन, नागेश शोरी से बोला-
"अब हम जरा नोटों की बात कर लें।"
"नोटों की ? वो तो हो गई ।"
"क्या हुई ?"
"इस बात का दो करोड़ तुम लोगों को मिलेगा, बेशक एक घंटे में काम निपटा लो।"
"दो करोड़ किसने कहा- क्या मैंने ?"
"नहीं।" नागेश शोरी मुस्कुराया- "ये ऑफर मेरी तरफ से दी गई थी ।"
"तो अभी हमने अपनी डिमांड नहीं रखी।"
"मैंने तो सोचा था कि सौदा तय हो गया।"
"तुम्हारे सोचने से क्या होता है। इस काम का कम से कम पांच करोड़ लगेगा।"
"पांच करोड़ !"
"तुम्हारे लिए तो मामूली रकम है।"
"तुम्हारा मतलब है कि मैं अपनी दौलत लुटा-लुटा कर बर्बाद कर दूं ?"
"तुम लुटा नहीं रहे, बल्कि हमसे कत्ल करवा रहे हो रतनचंद कालिया का। ये सब तुम अपनी मर चुकी खूबसूरत पत्नी की आत्मा की शांति पहुंचाने के लिए कर रहे हो। रतनचंद कालिया की हत्या करना आसान नहीं शोरी, तभी तुमने देवराज चौहान को चुना और दो करोड़ जैसी रकम की ऑफर दी।" जगमोहन ने कहा।
"और अब तुम नाजायज फायदा उठाने की फिराक में हो।" नागेश शोरी ने कहा ।
"ऐसा तो नहीं।"
"ऐसा ही है, तभी तो तुम पांच करोड़ मांग रहे हो।"
"तुम्हारे लिए ये मामूली रकम है।"
"देवराज चौहान।" शोरी बोला- "मैं दो करोड़ से ज्यादा नहीं...।"
"मेरे से बात करो। जब देवराज चौहान तुमसे बात कर रहा था तो मैंने दखल नहीं दिया, अब वो मेरी बात में दखल नहीं देगा। नोटों की बात तय करना मेरा काम है, देवराज चौहान का नहीं। देवराज चौहान शरीफ बंदा है। वो तुम्हारा काम मुफ्त में भी कर देगा। इसी वास्ते मैं देवराज चौहान से चिपका रहता हूं।"
"मैं दो करोड़ से ज्यादा नहीं दे सकता।"
"फिर तो तुम्हारा काम नहीं होगा । किसी ऐसे को ढूंढ लो जो दो लाख में काम कर दे।"
जगमोहन और नागेश शोरी की नजरें मिलीं।
"ये तुम गलत बात कर रहे हो।"
"मैं ऐसे ही बात करता हूं।"
"तुम्हें दो करोड़ दस लाख दे दूंगा।"
"मैं पांच करोड़ की बात कर रहा हूं।"
"इतना मैं नहीं दे सकता।"
जगमोहन उठा और देवराज चौहान से बोला-
"हमें यहां से चलना चाहिए।"
"ठीक है।" नागेश शोरी कह उठा- "मैं ढाई करोड़ देने को तैयार हूं।"
"जरा-जरा क्या आगे बढ़ रहे हो। सीधे-सीधे क्यों नहीं कहते कि तीन करोड़ दोगे। जगमोहन बोला ।
"चलो !" नागेश शोरी मुस्कुराया- "ऐसा ही सही।"
"एडवांस-नकद-पहले-। उसके बाद काम शुरू होगा और खत्म हो जायेगा।"
"शाम को ले जाना।"
"कितने बजे ?"
"प्रताप कोली और दिनेश तुम्हारे साथ रहेंगे, इन्हे फोन पहुंच जायेगा।" नागेश शोरी ने कहा ।
"ये ठीक रहेगा।"
■■■
रतनचंद कालिया ।
साठ वर्ष का सेहतमंद किन्तु पतला-सा था वो। या यूं कह लें कि कद-काठी सामान्य थी । सिर के बाल आधे से ज्यादा सफेद थे और सफेद में काले बाल उसे आकर्षक बनाते थे। क्लीन चेहरा। सीधे हाथ की चार उंगलियों में रंग-बिरंगे हीरों की अंगूठियां पड़ी रहती थी। गले में सोने की भारी जंजीर, जिसके साथ मोटा हीरा फंसा रहता था।
एक ही निगाह में महसूस हो जाता था कि दौलतमंद ही नहीं, दौलत का मजा भी ले रहा था।
शहर का जाना-माना व्यक्ति था वो।
इस वक्त बांद्रा स्थित बहुत बड़े और शानदार बंगले में मौजूद था। करीब दो हजार गज में बना था। आठ साल पहले उसका हजार गज का बंगला था, बगल का बंगला बिका तो वो उसने खरीदा, उसके बाद दोनों बंगलों को एक करके दो मंजिला बंगला बना लिया ।
रतनचंद कालिया अपने बंगले की पहली मंजिल पर स्थित अपने कमरे की खिड़की पर खड़ा, बाहर का नजारा कर रहा था। उसे याद नहीं कि पहले कभी वो खिड़की पर कब खड़ा हुआ था। खुले में आने से कतराता था। क्योंकि उसे मालूम था कि उसके दुश्मन बहुत हैं, कोई भी उसकी जान ले सकता है।
खिड़की के आगे बंगले का नीचे वाला हिस्सा था। उसके बाद बंगले की दीवार, फिर आगे सड़क तक काफी बड़ा हिस्सा खुला हुआ था। वो सड़क व्यस्त रहती थी। सड़क पार बहुत बड़ी खुली जगह के पश्चात डीरीट्रेक्ट सेंटर की आसमान को छूती पांच-सात इमारतें बनी हुई थी। कोई पन्द्रह मंजिल की तो कोई बाइस मंजिल की। मतलब की रतनचंद कालिया के बंगले के सामने इमारत के नाम पर डिरीट्रेक्ट सेंटर ही पड़ता था, जो कि सौ से डेढ़ सौ मीटर दूर था ।
रतनचंद कालिया खिड़की से हट गया ।
ये काफी बड़ा कमरा था। एक तरफ शानदार डबल बेड लगा था। दूसरी तरफ तीन कुर्सियां और पॉलिश की गई गोल टेबल थी। फर्श पर कालीन था। दीवार पर ही टी.वी. स्क्रीन लगी दिखाई दे रही थी। तीसरी तरफ छोटा सा सोफा लगा था कि बैठने की जरूरत हो तो बैठा जा सके। वो सोफे पर जा बैठा था।
तभी उसके कानों में कदमों की आहट पड़ने लगी ।
रतनचंद कालिया की निगाह दरवाजे की तरफ उठी।
पचपन बरस की औरत ने देखते-ही-देखते भीतर प्रवेश किया । वो साड़ी में सजी-धजी खूबसूरत लग रही थी। उसके भीतर आते ही परफ्यूम की महक रतनचंद की सांसो में पड़ी। वह मुस्कुरा कर बोला-
"आज तो बहुत खूबसूरत लग रही हो।"
"हटो जी ! आप तो इस उम्र में भी छेड़ने से नहीं हटते।" वो मुस्कुरा कर कह उठी। उसका नाम सोनिया था।
"क्या हुआ है, मेरी उम्र को?"
"बच्चे घर में है। मैं तो ये बताने आई थी कि पवन और आस्था के साथ मैं अपने भाई के घर जा रही हूं। पहले ही देर हो गई है। सगाई की रस्म शुरू होने वाली होगी।"
"गनमैनों को तैयार रहने को कह दिया था?"
"हां, वो तैयार ही है । मैं तो दुखी हो गई हूं इन गनमैनों से जहां भी जाती हूं, साथ भेज देते हैं। बच्चे भी तंग आ चुके हैं।"
"ये जरूरी है।"
रतनचंद कालिया ने गंभीर स्वर में कहा ।
"मैं जा रही हूं। रात को शायद ना आ सकूंगी, कल ही दिन में किसी वक्त आयेंगे हम। और भाई के घर पहुंच कर मैं गनमैनों को वापस भेज दूंगी। मुझे नहीं अच्छा लगता कि वे भाई के घर के आस-पास मंडराते रहें।"
रतनचंद कालिया ने सिर हिला दिया ।
"आप भी चलते तो कितना अच्छा रहता।"
"मुझे काम है। परंतु वादा रहा कि शादी में जरूर चलूंगा।" सोनिया चली गई ।
रतनचंद कालिया ने वक्त देखा, शाम के चार बज रहे थे। वो उठा ही था कि फोन बजा ।। तिपाई पर रखा लैंडलाइन का फोन बज रहा था, जिसका नंबर बहुत कम लोगों के पास था।
आगे बढ़कर रतनचंद कालिया ने रिसीवर उठाया ।
"हैलो।"
"नमस्कार।" खुशनुमा-सी आवाज दूसरी तरफ से आई।
"नमस्कार।" रतनचंद उलझन में पड़ा- "मैंने आपको पहचाना नहीं ।"
"जबरदस्ती के मेहमान को, कम लोग ही पहचानते हैं कालिया साहब।" उधर से पूर्ववतः लहजे में कहा गया ।
रतनचंद कालिया की आंखें सिकुड़ी ।
"कौन हो तुम ?"
"ये पूछो क्या काम है ।"
"बोलो।"
"तुम्हारी हत्या की शानदार साजिश को जन्म दे दिया गया है।"
"मेरी हत्या की साजिश ?"
"आज रच दी गई है।"
रतनचंद कालिया की आंखें सिकुड़ी।
कुछ पल खामोशी रही ।
"कैसा लगा सुनकर?" उधर से पुनः कहा गया ।
"कौन हो तुम?"
"अपने बारे में बताना ठीक नहीं, निशानी के तौर पर मेरा कोई भी नाम रख सकते हो।"
"कैसा नाम?"
"कोई भी- चलो तुम मुझे 'केकड़ा' कह लो ।"
"केकड़ा ?"
"बुरा नहीं है। तो मैं तुम्हारी हत्या के बारे में...।"
"तुम क्या समझते हो कि मैं तुम्हारी कहीं बात पर यकीन कर लूंगा।"
"मत करो, जल्दी ही अंजाम तुम्हारे सामने आ जायेगा।"
"कौन मेरी जान लेना चाहता है?"
"एक ने तुम्हारी मौत की सुपारी दी है, दूसरा तुम्हें मारेगा। परंतु नाम मैं किसी का भी नहीं बताऊंगा।"
"क्यों?"
"क्या फायदा बताने का, मेरे को तो कुछ मिल नहीं रहा।"
"तुम जो भी लाख-दो-लाख लेना चाहते हो, मेरे से ले लो, मुझे उनके नाम...।"
"लाख दो लाख !" उधर से केकड़ा ने हंस कर कहा- "मेरी नहीं तो अपनी इज्जत का भी ख्याल कर लो। तुम्हारे नाम की सुपारी तीन करोड़ में दी गई है। इसी से समझ जाओ कि तुम्हारी मौत निश्चित ही है। जिसने सुपारी ली है, वो अंडरवर्ल्ड का नामी बंदा है। काम हाथ में लेकर हर हाल में पूरा करता है। तुम मृत्यु के द्वार पर खड़े हो रतनचंद।"
रतनचंद कालिया को एकाएक टांगों में कम्पन-सा महसूस हुआ।
उसे लगा जैसे रिवाल्वर थामे, हथेली में पसीना भर आया हो।
"अपनी सुरक्षा के इंतजाम फौरन से भी फौरन कर लो। मुझे नहीं लगता कि तुम बचोगे, लेकिन तुम्हें बचने की चेष्टा अवश्य करनी चाहिए। मेरी पूरी हमदर्दी तुम्हारे साथ है रतनचंद कालिया।"
"हैलो ।"
"हां-हां, कहो।" केकड़ा का शांत स्वर कानों में पड़ा- "सुन रहा हूं फोन पर हूं ।"
"तुम ये सब मुझे बता रहे हो- "इसमें तुम्हारा क्या फायदा ?"
"आने वाले वक्त में मैं तुम्हें मुर्गा बनाऊंगा। खबर देने के बदले तुमसे मोटे नोट वसूलूंगा। अभी तो खेल शुरु हुआ है। एक बात और, मेरे बारे में जानने की चेष्टा कभी मत करना, वरना मैं फोन करना बंद कर दूंगा और तुम ताजा खबरों से दूर हो जाओगे।"
"सुनो...तुम अभी मुझे मिलो। मैं तुम्हें नोट...।"
"नोट भी लूंगा। मुझे लेने की जल्दी नहीं है तो, तुम्हें देने की जल्दी क्यों पड़ी है। मेरी मानो तो रिवाल्वर नीचे रखो और अपनी सुरक्षा का इंतजाम करो। मामला सच में गंभीर है रतन चंद तेजी दिखाओगे तो शायद बच सको।
"लेकिन केकड़ा...तुम...।"
"मैं तुम्हें फिर फोन करूंगा ।" इसके साथ ही लाइन कट गई।
रतनचंद कालिया हाथ में रिसीवर थामे खड़ा रहा, फिर रिसीवर वापस रखा। चेहरा सख्त हो चुका था। आंखें और होंठ में सिकुड़न थी। आगे बढ़कर उसने टेबल का ड्राज खोला और रिवाल्वर निकाल कर उसकी मैग्जीन चेक की, फिर उसे जेब में रखने के पश्चात जेब से मोबाइल निकाला और एक नंबर मिलाया।
फौरन नंबर मिला और आवाज कानों में पड़ी-
"कहिये।"
"सुंदर, इसी वक्त मेरे पास आओ।" कहकर रतनचंद कालिया ने फोन बंद किया और जेब में रखते बड़बड़ा उठा-
"केकड़ा...।"
■■■
सुन्दर, जो कि बंगले के दूसरे हिस्से में मौजूद था, वो पांच मिनट में वहां आ पहुंचा ।
पैंतीस बरस का सुन्दर, समझदार व्यक्ति लग रहा था वो। उसने पैंट-शर्ट पहन रखी थी। तेईस बरस की उम्र में ही वो नामी निशानेबाज बन चुका था। कई प्रतियोगिता उसने जीती थीं। बी.एस.एफ. में नौकरी करता था, परंतु अपने ऑफिसर से झगड़ा कर लेने की वजह से उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ा । तब वो नौकरी की तलाश में था और रतनचंद कालिया से उसकी मुलाकात हो गई। रतनचंद कालिया ने उसके निशानेबाजी के गुण की वजह से अपने पास रख लिया और दस सालों में सुन्दर आज रतनचंद कालिया का सबसे खास गनमैन था और जरूरत पड़ने पर सलाहकार के रूप में हैसियत रखता था।
जब-जब रतनचंद कालिया मुसीबत में पड़ा, सुन्दर ने उसे मुसीबत से निकाला ।
और आज भी रतनचंद कालिया खुद को मुसीबत में फंसा महसूस कर रहा था ।
"सर !" सुन्दर ने भीतर प्रवेश करते ही कहा।
रतनचंद कालिया ने उसे देखा और बैठने को कहा।
सुंदर बैठ गया।
कुछ पल कमरे में अजीब सी खामोशी छाई रही । फिर रतनचंद ने कहा-
"मैं अपने को अजीब-सी स्थिति में फंसा महसूस कर रहा हूं।"
"मुझे बताइए सर ।"
"अभी मुझे एक फोन आया। फोन करने वाले ने अपना नाम नहीं बताया, कहने लगा, याद रखने के तौर पर मुझे 'केकड़ा' कह सकते हो। केकड़ा कहता है कि आज मेरे हत्या की सुपारी दी गई है।"
"हत्या की सुपाड़ी ?" सुन्दर चौंका।
"हां।" रतनचंद कालिया ने सिर हिलाया- "उसने यही कहा तीन करोड़ में मेरी हत्या की सुपारी दी गई है, लेने वाला अंडरवर्ल्ड का नामी इंसान है और वो मेरी जान लेकर रहेगा।"
"वो...मजाक कर रहा...।"
"नहीं, वो मजाक नहीं कर रहा था।" रतनचंद कालिया ने कहते हुए इंकार में सिर हिलाया ।
"ये आप कैसे कह सकते हैं कि वो मजाक नहीं...।"
"उसकी बातों से मैंने महसूस किया था कि वो सच कह रहा है।"
"ओह।"
"ये गंभीर मामला है। तभी मैंने तुम्हें बुलाया। उसने जो कहा है, सच कहा है।"
"परंतु उसने अपने बारे में क्यों नहीं बताया कि वो कौन है ।" सुंदर बोला।
"अपने बारे में नहीं बताना चाहता...।"
"आपने उससे पूछा?"
"हां, परंतु उसने बताने से इंकार कर दिया।"
"उसने ये नहीं बताया कि किसने तीन करोड़ में आपकी मौत की सुपारी दी और किसने ये ठेका उठाया ?"
"नहीं बताया।"
"तो ये बात उसने आपको क्यों बताई- क्या चाहता है वो?"
"मेरे ख्याल से दौलत। उसने कहा है कि वो मुझे इस बारे में और भी खबर देता रहेगा। लेकिन पहले अपनी सुरक्षा के इंतजाम कर लूं। उसके बाद मुझसे बात करेगा।" रतनचंद कालिया ने गंभीर स्वर में कहा।
"और आप उसकी कहीं बातों को सच मानते हैं।"
"वो सच कह रहा था।"
सुंदर चुप रहा। सोचों में गुम रहा ।
"मुझे अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने हैं।"
"हुक्म दीजिये।"
"तुम बताओ, मुझे कैसे अपनी सुरक्षा करनी चाहिये ?"
"सर, सबसे पहले तो मैं कहूंगा कि मुझे नहीं लगता कि फोन करने वाले ने आपसे सच कहा है।"
"ऐसा क्यों लगता है ?"
"पता नहीं, परंतु किसी अंजान आदमी की कही बात को फौरन सच मान लेना, अजीब सी बात है।"
"मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगता। किसी के पास इन बातों के भीतरी जानकारी है और वो मुझे जानकारी देकर, दौलत कमाना चाहता है। सीधा-सा सौदा है।" रतनचंद कालिया ने कहा।
"बेहतर होगा कि आप खुद को कुछ दिनों के लिए बंगले में कैद कर लें।" सुन्दर बोला।
"ये नहीं हो सकता। मैं अपने जरूरी काम नहीं छोड़ सकता।"
"तो सुरक्षा बढ़ा लीजिए।"
"हां, इस बारे में सोचा जायेगा।"
"जिसने आपकी हत्या की सुपारी दी है, अगर अंडरवर्ल्ड का पुराना है तो दूर रहकर आपको शूट करेगा।"
रतनचंद कालिया ने सुन्दर को देखा।
"निशाना लेगा?"
"अगर वो मंजा हुआ खिलाड़ी है तो निशाना ही लेगा।" सुन्दर ने कहा- "बेहतर होगा कि आप खुले में ना रहें।"
"मैं कोशिश करूंगा।"
"पूरी तरह इस बात पर विश्वास ना करें। वो आपको करीब आकर भी मार सकता है। आपको आस-पास वालों से सतर्क रहना होगा।"
"मतलब कुछ भी हो सकता है।"
सुन्दर ने सिर हिलाया ।
रतनचंद कालिया के चेहरे पर बेचैनी भरे भाव नजर आने लगे।
"ये सब बातें समस्या वाली थी।"
"अवश्य सर। आप कभी भी खुले में अकेले ना रहें। दूसरों से घिरे रहें। कार में भी अकेले ना बैठें। अकेले आदमी का निशाना लेना आसान होता है । हर तरफ से आपको सतर्कता बरतनी होगी। मैं आपके साथ रहूंगा। सब इंतजामों पर नजर रखूंगा।"
"गुड।"
"आपको कब बाहर जाना है ?"
"एक घंटे बाद ।"
"ठीक है, मैं सब गनमैनों को समझा देता हूं कि आपकी जान को खतरा है और आपको घेरे में रखें।" सुन्दर बोला- "केकड़े ने दोबारा फोन करने के लिए कोई वक्त बताया ?"
"नहीं।"
"मुझे अभी भी उसकी बात पर विश्वास नहीं हो रहा।"
सुन्दर को देखता रतनचंद कालिया मुस्कुराया ।
"क्या हुआ सर ?"
"अगर कोई तुम्हें फोन करके कहे कि तुम्हारी हत्या की साजिश रची जा रही है- तुम्हारे नाम की सुपारी छोड़ दी गई है-तो तुम क्या करोगे? क्या तुम्हें उसकी बात पर विश्वास नहीं आयेगा? भूल जाओगे उसे?"
"मैं समझा गया सर।"
"क्या ?"
"अपनी जान की बात हो तो हर किसी बात का विश्वास करना पड़ता है। क्या पता कि कहने वाले ने ठीक ही कहा हो।"
"बेशक किसी ने मजाक किया हो, परंतु मैं इस बात को मजाक में नहीं ले सकता। क्योंकि मेरी जान का सवाल है। मेरी सुरक्षा के लिए तुम बढ़िया-से-बढ़िया इंतजाम करो। इस तरह कि मेरा कोई मेरा निशाना भी ले तो गोली मुझ तक ना पहुंच सके।"
रतनचंद कालिया बेहद शांत परंतु ,तनाव में भरा लग रहा था।
■■■
देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल, प्रताप कोहली और दिनेश चुरू ने एक होटल के अगल-बगल के कमरे बुक कराये और वहां डेरा जमा लिया। चारों एक कमरे में आ गये और कॉफी मंगा ली गई।
"रतनचंद कालिया के बारे में बताओ कि कहां पर उसका निशाना लिया जा रहा है?" देवराज चौहान बोला।
"कई जगहों पर उसे शूट किया जा सकता है।" प्रताप कोली ने कहा- "उसके कई जगह ऑफिस हैं। दिनभर वो एक से दूसरे ऑफिस में जाता रहता है, रास्ते में कहीं भी उसे शूट किया जा सकता है। यूं वो अपने चार गनमैनों के बीच घिरा रहता है। उसके कई दुश्मन हैं, जो उसकी जान ले लेना चाहते हैं, इसलिए वो सतर्क रहता है।"
"पहले कभी उस पर हमला हुआ?" देवराज चौहान ने पूछा।
"कई बार। लेकिन हर बार बच निकला। खतरे में पाकर वो अपने को बचाने का तगड़ा इंतजाम कर लेता है। ये सब हमें पहले नहीं पता था, परंतु अब छानबीन करने पर पता चला। एक बार उसके दुश्मन ने उसका घर से निकलना दुश्वार कर दिया था। एक के बाद एक उस पर जानलेवा हमले हो रहे थे, अपने को बचाना उसके लिए कठिन हो गया था। ये छः महीने पहले की बात है। तब रतनचंद कालिया ने आर-डी-एक्स (R.D.X.) को बुला लिया था।"
"आर-डी-एक्स?" जगमोहन के होंठों से निकला- "तो इस बारूद का उसने क्या इस्तेमाल...।"
"मैंने कहा है आर-डी-एक्स को उसने बुला लिया था।" प्रताप कोली कह उठा- "तीनों लोगों की तिकड़ी है ये। और ये तीनों आर-डी-एक्स बारूद से कम नहीं। बहुत खतरनाक हैं तीनों ।"
जगमोहन ने देवराज से पूछा ।
"तुमने सुना है ये नाम?"
"नहीं।"
"तुमने?" जगमोहन ने सोहनलाल को देखा ।
सोहनलाल ने इंकार में सिर हिला दिया ।
जगमोहन ने प्रताप कोली से कहा ।
"ये आर-डी-एक्स के बारे में बताओ।"
"बताया तो, तीन लोगों की तिकड़ी है। ये जो कर जायें, वो ही कम है। ये तीनों एक साथ होते हैं तो फौज से कम नहीं होते। जिस तरह आर-डी-एक्स बहुत होता है, उसी तरह तीनों के इकट्ठे हो जाने पर बारूद जैसे ही हैं। इन तीनों को आर-डी-एक्स का नया संस्करण ही समझो।" प्रताप कोली ने गम्भीर स्वर में कहा- "तीनों एक साथ ही काम करते हैं। कोई अकेला काम नहीं करता। किसी का काम करने की ये भारी कीमत वसूलते हैं और काम भी पूरा करते हैं।"
"मतलब के काबिल बंदे हैं।"
"बहुत। आर-डी-एक्स का मुकाबला करना, मेरे ध्यान में तो किसी के लिए भी आसान नहीं। ये ऐसे-ऐसे काम कर जाते हैं कि सामने वाले को पलटने का भी वक्त नहीं मिलता। ये तीनों जीते-जागते आर-डी-एक्स हैं।"
"जीता-जागता आर-डी-एक्स।" जगमोहन ने बड़बड़ा कर देवराज चौहान को देखा ।
देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"तुम क्यों मुस्कुराये?"
"प्रताप कोली आर-डी-एक्स की तिकड़ी के बारे में इतना कह रहा है तो वो जरूर दम रखते होंगे।" देवराज चौहान ने कहा ।
"रतनचंद कालिया ने अपनी सुरक्षा के लिए आर-डी-एक्स को बुला लिया, तो ?"
"अभी तो ऐसा कुछ नजर नहीं आता। क्योंकि रतनचंद कालिया को पता नहीं कि हम उसकी जान लेने वाले हैं। हो सकता है कि आने वाले वक्त में उसे मौका ही न मिल पाये कुछ कर पाने का। हम पहली बार में ही सफल हो जायें।"
"मान लो हम पहली बार में सफल हों सकें और उसने आर-डी-एक्स को बुला लिया तो इस रतनचंद की हत्या करेंगे या आर-डी-एक्स से निपटेंगे? प्रताप कोली जैसे उनके बारे में बता रहा है तो वो हकीकत में मुसीबत होंगे।"
"तुम उनसे डर रहे हो ?"
"नहीं। सोच रहा हूं कि उनके बीच में आ जाने की वजह से कहीं मुसीबत ना बढ़ जाये।"
"आर-डी-एक्स के बारे में हमें सोचना नहीं चाहिये।" सोहनलाल बोला- "हम पहली बार में ही सफल होंगे और रतनचंद को किसी की सहायता लेने का मौका नहीं मिलेगा एक गोली और काम खत्म।"
"कह देने से काम खत्म नहीं हुआ करते प्यारे सोहनलाल ।" जगमोहन ने मुंह बनाकर कहा- "जूता रगड़ाई करनी पड़ती है।"
"मुझे पता है।" सोहनलाल ने बुरा सा मुंह बनाया।
जगमोहन ने प्रताप कोली से कहा-
"आर-डी-एक्स के बारे में और बताओ।"
प्रताप कोली ने दिनेश चुरू को देखकर कहा-
"तू बता, मेरे पास तो और कुछ है नहीं बताने को।"
"उसका ठिकाना किधर है?"
"नहीं पता।" दिनेश चुरू ने कहा- "इनके नाम मालूम हैं।"
"वो ही बता।"
"आर से राघव है। दूसरा डी से धर्मा और तीसरा एक्स से एक्स्ट्रा (X-TRA) है।"
"राघव धर्मा और एक्स्ट्रा- ये एक्स्ट्रा क्या हुआ?"
"पता नहीं, लेकिन तीसरे को एक्स्ट्रा (X-TRA ) ही कहा जाता है। इस तरह वे आर-डी-एक्स कहलाते हैं।"
"देखेंगे इस साले जीते-जागते आर-डी-एक्स को।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।
"हमें क्या जरूरत है देखने की!" देवराज चौहान ने कहा- "उनके रास्ते अलग है और हमारे अलग। हमें रतनचंद का निशाना लेना है और अपने रास्ते पर चले जाना है, आर-डी-एक्स की तरफ से ध्यान पूरी तरह हटा लो।"
जगमोहन सिर हिला कर रह गया ।
"तुम दोनों।" देवराज चौहान ने कहा- "रतनचंद कालिया के आने-जाने के बारे में पता करो और नक्शा बनाकर बारीकी से मुझे समझाओ कि कल किधर-किधर जायेगा। कैसा-कैसा रास्ता होगा उसका ?"
"यूं तो हमें पता है, लेकिन फिर भी पक्के तौर पर मालूम करके दो घंटों में बता देते हैं।" प्रताप कोली ने कहा ।
"किससे पता करोगे ?"
"हमारा आदमी है, रतन चंद कालिया के आदमियों के बीच ।"
"तो उसी से ये काम क्यों ना करवा लिया। वो आसानी से रतनचंद कालिया को...।"
"हर काम, हर किसी के बस का नहीं होता और रतनचंद कालिया बेहद शातिर हैं। यूं ही ड्रग्स किंग नहीं कहलाता। सामने होने पर भी उसकी जान लेना आसान नहीं।" प्रताप कोली बोला ।
"चल।" दिनेश चुरु, प्रताप कोली से बोला- "रतनचंद के बारे में ताजा जानकारी ले आयें।"
प्रताप कोली उठने लगा तो जगमोहन बोला ।
"यहीं बैठे रहो।"
"क्यों?"
"अभी हमें नोट नहीं मिले। पूरे तीन करोड़। नोट मिलेंगे तो काम की तरफ ध्यान देंगे। वक्त क्या हुआ है ?"
"साढ़े सात।"
"नागेश शोरी ने कहा था कि शाम तक तुम दोनों में से किसी के फोन पर नोटों के बारे में खबर दी जायेगी। पहले खबर लो, नोट हमें दो, उसके बाद बाकी की बातें। कल से हम वक्त खराब कर रहे हैं और माया का एक टुकड़ा भी हाथ नहीं लगा।"
जगमोहन की बात सुनकर दोनों ने एक दूसरे को देखा ।
"शोरी साहब को फोन कर।" प्रताप कोली ने कहा। ।
दिनेश चुरू ने फोन निकाला और नंबर मिलाने लगा। साथ ही कमरे के कोने में पहुंच गया। मिनट बात करने के पश्चात वो पास आकर कह उठा-
"शोरी साहब कह रहे हैं कि तीन करोड़ तैयार हैं। डिलीवरी कैसे लोगे?"
"इस होटल के बाहर नोट भिजवा दे। उसके बाद मैं नोट ठिकाने लगाने जाऊंगा और तुम दोनों जानकारी लेने जाना।"
"शोरी साहब।" दिनेश चुरू फोन पर बोला- "नोट यहीं भिजवा दीजिये। होटल के बाहर।"
"ठीक है। मेरे आदमी बाहर पहुंच कर फोन कर देंगे।" कहकर उधर से नागेश शोरी ने फोन बंद कर दिया।
दिनेश चुरू ने फोन जेब में रखा ।
"कितनी देर तक नोट आयेंगे ?" जगमोहन ने पूछा।
"एक घंटे तक।"
"सोहनलाल, तू मेरे साथ चलना। माल ठिकाने लगाना है।"
■■■
जगमोहन और सोहनलाल रात साढ़े दस बजे नोटों को ठिकाने लगा कर लौटे ।
देवराज चौहान होटल के कमरे में मौजूद था।
"दिनेश और प्रताप नहीं लौटे क्या?" जगमोहन ने पूछा।
"नहीं।"
"सोहनलाल, तू डिनर का ऑर्डर दे। भूख बहुत लगी है।"
सोहनलाल उस तरफ बढ़ गया, जिधर इन्टरकॉम पड़ा था।
"नोट संभालने का काम भी बहुत ज्यादा होता है।" जगमोहन ने कहा- "साले ने दो सूटकेसों में भरकर नोटों की गड्डियां भिजवा दीं। मैंने तो गिनती भी नहीं की। यूं ही सूटकेस रख आया हूं।"
देवराज चौहान मुस्कुराया ।
"पूरे ही भिजवाए होंगे।" जगमोहन भी मुस्कुरा पड़ा- "दस बीस लाख कम भी हुआ तो क्या फर्क पड़ता है।"
"नोटों की तरफ ज्यादा ध्यान होना भी ठीक नहीं।" देवराज चौहान ने कहा ।
"हम नोटों के लिए ही काम करते हैं।"
"नहीं, हम कुछ करने के लिए काम करते हैं, वरना नोट तो इतने हैं कि खत्म नहीं होंगे।"
"धीरे बोलो, क्यों लोगों को सुना रहे हो।"
"मैंने कुछ नहीं सुना।" पास आता सोहनलाल कह उठा।
"पक्का ?"
"पक्का कुछ नहीं सुना।" सोहनलाल पास बैठता कह उठा- "तूने मेरा ढाई लाख देना है, वो...।"
"चुप कर, बाद में बात करेंगे।"
"बाद में कब?"
"फुर्सत में, जब हम दोनों अकेले होंगे।" जगमोहन ने मुंह बनाकर कहा- "जब देखो, ढाई लाख ही मांगता रहता है।"
"तू देकर काम खत्म कर।" सोहनलाल मुस्कुराया ।
"दे दूंगा।"
"कब?"
"जल्दी ही, मांगना मत, मैं खुद ही दूंगा।"
"दे दिए तूने और मैंने ले लिए।"
जगमोहन ने गहरी सांस ली और देवराज चौहान से कहा-
"उनको अब तक आ जाना चाहिए था ।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।
कुछ देर बाद डिनर आया तो वे खाने में व्यस्त हो गये।
■■■
जब उनका खाना समाप्त हुआ तो प्रताप और दिनेश आ पहुंचे।
"बहुत देर लगा दी।" सोहनलाल उन्हें देखते ही बोला ।
"जिससे काम था, वो बंदा नहीं मिल रहा था।"
दोनों बैठ गये।
"अब मिला वो?"
"हां।"
"बताओ क्या बात हुई ?" जगमोहन ने कहा।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली ।
"थोड़ी-सी गड़बड़ लग रही है।"
"क्या?"
"आज दोपहर के बाद से रतनचंद कालिया अपनी सुरक्षा में खास ध्यान देने लगा था।"
"दोपहर बाद से?" देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी ।
"हां।" प्रताप कोली ने सिर हिलाया ।
"इस आदमी ने ये तो बताया होगा कि ऐसा क्यों करने लगा रतनचंद?" देवराज चौहान बोला।
"वो नहीं जानता।"
"अपनी सुरक्षा में क्या खास किया रतनचंद ने ?"
"पहले सिक्योरिटी वाली कार उसकी कार के आगे और पीछे होती थी, वो अपनी कार में अकेला होता था। आज कार में उसके साथ तीन आदमी बैठे। दो पीछे उसके साथ, एक आगे। यूं उसकी कार काले शीशे वाली होती है। उसके भीतर नहीं झांका जा सकता और उसकी कार के साथ रहने वाले गनमैनों की कार भी साथ ही रही। आज कार को सुन्दर ड्राइव कर रहा था।"
"सुन्दर कौन है?"
"रतनचंद कालिया का सबसे खास आदमी। माना हुआ निशानेबाज है।"
"सुन्दर का हुलिया बताओ।"
दिनेश चुरू ने सुन्दर का हुलिया बताया ।
"लेकिन...।" जगमोहन बोला- "आज ही रतनचंद ने सुरक्षा क्यों बढ़ाई अपनी?"
"इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता।"
"तुम लोगों के अलावा कौन जानता है कि हम उसे निशाना बनाने वाले हैं ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"हम दोनों के अलावा अवतार सिंह और हरीश मोगा ही जानते हैं।"
"वो दोनों कैसे लोग हैं ?"
"वहम में मत पड़ो, सालों से वो शोरी साहब के साथ हैं।" प्रताप कोली ने कहा।
"तुम दोनों का अपने बारे में क्या ख्याल है?"
"वक्त बर्बाद मत करो, इस तरह की बात करके।"
"किसी ने तो ये बात रतनचंद तक पहुंचाई है कि उसे मारा जाने वाला है।" देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला।
प्रताप और दिनेश की नजरें मिलीं।
"तुम्हारा मतलब कि रतनचंद को पता चल गया है कि हम इसी कोशिश में हैं।" दिनेश चुरू के होंठों से निकला।
"हां । तभी तो उसने अपनी सुरक्षा एकाएक बढ़ा दी।"
"नहीं, ये बात भला उसे कैसे मालूम हो सकती है।" प्रताप कोली ने तेज स्वर में कहा।
"तुम दोनों और हरीश मोगा, अवतार सिंह के द्वारा।"
"हमें से कोई भी गद्दार नहीं है।"
"गद्दार के चेहरे पर नहीं लिखा होता कि वो गद्दार है।" देवराज चौहान ने तीखे स्वर में कहा।
"हम दोनों तो तुम लोगों के साथ यहां आ गये थे। हम कैसे गद्दारी कर सकते...।"
"सिर्फ एक छोटा सा फोन करके गद्दारी को अंजाम दिया जा सकता है।"
"हमने ये काम नहीं किया।"
"मैंने ये नहीं कहा कि तुम दोनों में से किसी ने ये काम किया है।" देवराज चौहान ने कश लिया- "हरीश मोगा या अवतार सिंह भी भी ये काम कर सकते हैं। सोचो, क्या उनका किसी तरह का वास्ता है रतनचंद कालिया से ?"
दोनों ने एक-दूसरे को देखा।
"नहीं।" प्रताप कोली दृढ़ता भरे स्वर में कहा उठा- "ना तो वे दोनों गद्दार हैं और ना ही हम ।"
"तो, कैसे खबर पहुंची रतनचंद के पास कि उसे मारने की तैयारी की जा रही है।"
"तुम गलत भी हो सकते हो।"
"वो कैसे?"
"हो सकता है रतनचंद ने अपनी सुरक्षा में बढ़ोतरी यूं ही कर ली हो, या फिर उसे आज किसी खास जगह जाना हो, जहां उसके लिए खतरा हो सकता था। इसलिए उसने आदमी बढ़ा लिए हों।" दिनेश चुरू ने कहा ।
"अगर ये बात है तो कल सुबह पता चल जायेगा।" जगमोहन बोला।
"वो कैसे?"
"कल वो अपनी क्या सुरक्षा रखता है, ये देखकर ।"
कुछ पल उनके बीच चुप्पी रही।
"तुम लोग क्या पता लगा कर आये हो ?"
"रतनचंद का कल का प्रोग्राम पता लगाया है कि वो कहां-कहां जायेगा। परंतु इस प्रोग्राम में कुछ आगे पीछे भी हो सकता है। इसलिए हमारी बताई बातों पर पूरा यकीन ना किया जाये।"
"तुम बताओ।" देवराज चौहान बोला।
दिनेश चुरु बताने लगा ।
वे सब सुनते रहे ।
इसके बाद देवराज चौहान अपनी जरूरत के मुताबिक बातें पूछने लगा।
एक घंटा उनकी बातें चलीं।
"कल सुबह आठ बजे तुम दोनों हमारे साथ, उसके काबला देवी वाले ऑफिस पर चलना।" देवराज चौहान ने कहा ।
"वहां क्या होगा?"
"जहां उसकी कार खड़ी होती है, उस जगह को देखना है, उसके आसपास देखना है।"
प्रताप कोली और दिनेश चुरू की नजरें मिलीं ।
"तो तुम कल उसका निशाना लोगे ?"
"ऐसा हो सकता है, टेलीस्कोप गन भी चाहिए मुझे।"
"कब चाहिए?"
"सुबह नौ बजे।"
"मिल जायेगी।" प्रताप कोली ने सिर हिलाया- "रतनचंद कालिया काबला देवी वाले ऑफिस में सुबह दस, साढ़े-दस पंहुचेगा और वहां पर बारह बजे तक रहेगा। वहां उसका निशाना लेने में खतरा हो सकता है।"
"कैसा खतरा?"
"काबला देवी वाले ऑफिस में हर वक्त पांच-सात खतरनाक लोग मौजूद रहते हैं । साथ में जो गनमैन होंगे, वो अलग। उधर उसे मारा गया तो वे तुम्हें ढूंढ भी सकते हैं।" प्रताप कोली ने गंभीर स्वर में कहा ।
"मैंने उसे पास जाकर नहीं मारना। टेलीस्कोप गन का इस्तेमाल करना है। दूर रहूंगा मैं, उन्हें पता भी नहीं चलेगा कि गोली किधर से आई, जब तक समझेंगे, मैं जा चुका होऊँगा। तुम सुबह आठ बजे मेरे साथ वहां चलोगे, मैंने वहां ऐसी जगह का चुनाव करना है कि जहां से उसका निशाना ले सकूं।"
"रतनचंद कालिया को पहचानते हो?"
"तुमने अखबारों की जो कटिंग्स दी थी, उनमें छपी रतनचंद की तस्वीर देखी थी।"
"फिर ठीक है।"
"नौ बजे तक मुझे टेलीस्कोप गन मिल जानी चाहिये।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।
"उसके बाद हमारे यहां रहने की तो जरूरत नहीं?" दिनेश चुरू ने पूछा।
"नही। तुम दोनों इसी होटल में आ जाना। मैं यहीं आ जाऊंगा।"
■■■
अगले दिन सुबह देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल और प्रताप कोली जब काबला देवी रोड पर पहुंचे तो, सवा आठ बज रहे थे। लोगों की भीड़ अभी वो नहीं थी, जो घंटे बाद हो जानी चाहिए थी।
बिजनेस कॉम्लेक्स था ये। उसके आगे लंबी-चौड़ी पार्किंग थी, फिर सड़क जिस पर से वाहन आ-जा रहे थे। जगमोहन ने पार्किंग में कार ले जाकर रोकी थी।
"सोहनलाल ।" देवराज चौहान ने कहा- "तुम इधर-उधर घूमते सतर्क रहकर हम पर नजर रखोगे कि कोई हममें दिलचस्पी तो नहीं ले रहा। ऐसा कुछ लगे तो मुझे फौरन खबर करना।"
"ठीक है।" सोहनलाल ने कहा और बाहर निकल गया ।
"जगमोहन तुम कार की ड्राइविंग सीट पर रहो और आस-पास नजरे रखो, जब मैं वापस आकर कार में बैठूं तो कार को यहां से ले चलना तुम्हारा काम होगा।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
जगमोहन ने सिर हिला दिया।
फिर देवराज चौहान और प्रताप कोली कार से बाहर निकले ।
देवराज चौहान ने सिगरेट निकाल कर होंठों में दबाई और धीमे स्वर में बोला-
"उस तरफ चलो, जिधर रतनचंद कालिया की गाड़ी पार्क होती है।"
दोनों एक तरफ चल पड़े ।
पार्किंग के काफी बड़े हिस्से को पार करके प्रताप कोली ठिठका।
"वो सामने दायीं तरफ रतनचंद की कार खड़ी होती थी। वहां पर दूसरा कोई कार खड़ी नहीं करता।"
"उसी तरफ बढ़ो।" कश लेता देवराज चौहान कह उठा- "किसी को शक ना हो कि हम खास तौर से उस जगह पर जा रहे हैं। वहां पर हमने एक मिनट बिताना है। इस दौरान हममें बराबर बातें होती रहें, ताकि कोई देखे तो यही सोचे कि हम अपनी ही किसी उलझन में फंसे पड़े हैं। सब कुछ सामान्य ढंग से होना चाहिए।"
"समझ गया ।"
"चलो ।"
दोनों आगे बढ़े और फिर एक जगह कोली ठिठका तो देवराज चौहान रुक गया ।
"ठीक इसी जगह पर रतनचंद की कार खड़ी होती है, जहां हम इस वक्त खड़े हैं।"
दोनों बातें करने लगे ।
इस तरह कि देखने वालों को लगे कि उनमें कोई बहस छिड़ रही है।
साथ ही साथ देवराज चौहान की नजरें आसपास की इमारतों पर फिर रही थीं।
"कार की डिग्गी किस तरफ होती है?" एकाएक देवराज चौहान ने पूछा ।
"तुम्हारी तरफ। कार खड़ी करने के पश्चात एक गनमैन हमेशा कार के पास ही रहता है।" प्रताप कोली ने बताया ।
दोनों की बहस जैसी बातें चलती रहीं।
फिर देवराज चौहान बोला-
"चलो यहां से।"
दोनों आगे चल पड़े।
"क्या देखा वहां से ?"
"उधर जो चार-मंजिला इमारत है, उसकी पहली मंजिल की खिड़की मुझे चाहिये, जिस पर ए.सी. लिखा हुआ है।"
प्रताप कोली की नजरें उस तरफ घूमीं।
सड़क के उस पार थी वो इमारत ।
"देखना पड़ेगा की वो जगह किसी का घर है या ऑफिस।"
"रतनचंद कालिया का निशाना लेने के लिए मुझे वो ही जगह चाहिये।"
"मैं समझता हूं। इंतजाम हो जायेगा। दिनेश को आने दो। वो आता ही होगा।" कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा- "पौने नौ हो चुके हैं, नौ बजे तक वो हर हाल में...।"
तभी प्रताप कोली का फोन बजा ।
"हैलो।" प्रताप कोली ने फोन निकालकर बात की।
"मैं गन ले आया हूं।"
"किधर हो?"
"जगमोहन की कार से पन्द्रह कदम दूर मैंने कार खड़ी की है, किधर पहुंचूं ?"
"सड़क की तरफ जाओ, जहां पीपल का पेड़ नजर आ रहा है।"
"सब ठीक तो है?"
"हां।" प्रताप कोली ने फोन बंद करके जेब में रखा और देवराज चौहान से बोला- "आओ।"
दोनो आगे बढ़ गये ।
कुछ दूर पीपल के पेड़ के पास जा पहुंचे ।
अब लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। सड़क पर ट्रैफिक बढ़ गया था। पार्किंग में कारें आकर लगने लगीं थीं। हर पल जैसे शोर बढ़ता ही जा रहा था।
दिनेश चुरु उनके पास आ पहुंचा। उसने गिटार वाला लम्बा बक्सा-सा थाम रखा था। स्पष्ट था कि टेलीस्कोप और गन उसके भीतर थी। प्रताप कोली उसे देखकर कह उठा-
"देवराज चौहान को एक जगह चाहिये, जहां से निशाना लेना है।"
"दिक्कत क्या है ?"
"उस जगह पर कब्जा करना है। सामने उस तरफ। अभी पता नहीं कि वो घर है या कोई ऑफिस।"
"यहां ऑफिस ही होंगे। घर होने की संभावना कम ही है। उधर चलते हैं, जो भी होगा, संभाल लेंगे।"
तभी देवराज चौहान बोला-
"किसी को डरा-धमका तो सकते हो, लेकिन चोट मत पहुंचाना। रिवाल्वर है तुम दोनों के पास ?"
"है। परंतु चोट भी पहुंचानी पड़ सकती है। तुम्हें इससे क्या ।"
"अपने मतलब के लिए मैं किसी को तकलीफ नहीं देता। ऐसी बातों से बचकर काम करता हूं। जब तक मेरे साथ हो, ये बात ध्यान में रखना। बाद में जो भी करो मुझे कोई मतलब नहीं।" देवराज चौहान ने आदेश भरे स्वर में कहा- "मेरी बात से बाहर जाकर कोई काम करने की चेष्टा की तो मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं ।"
"तुम जैसा चाहोगे, वैसा ही होगा देवराज चौहान। हम चाहते हैं तुम शोरी साहब का काम पूरा कर दो।"
"आओ ।"
फिर तीनों सड़क पार करने लगे उस तरफ जाने के लिये ।
सड़क पार की। कुछ आगे बढ़े तो ऊपर जाती ढाई फीट चौड़ी सीढ़ियां दिखीं। जिनकी शुरुआत सड़क के किनारे पर से हो रही थी। आगे प्रताप कोली था, बीच में देवराज चौहान और पीछे गिटार का कवर थामे दिनेश चुरू।
वे ऊपर पहुंचे तो वहां दो फीट चौड़ी सीमेंट की बनी रहादारी दिखी।
"इधर, वो जगह इधर है।" देवराज चौहान कहते हुए एक तरफ बढ़ा।
यहां ऑफिस भी बने हुए थे और रहने को घर भी थे। सब कुछ मिला-जुला था।
देवराज चौहान एक बंद दरवाजे पर ठिठका। भीतर से रेडियो चलने की आवाज आ रही थी ।
प्रताप कोली और दिनेश चुरु भी उसके पास आकर ठिठक गये ।
वहां कॉलबेल नहीं थी। देवराज चौहान ने दरवाजा थपथपाया।
फौरन ही दरवाजा खुला ।
दरवाजा खोलने वाली चौबीस बरस की नवविवाहिता युवती थी। हाथ में शादी का चूड़ा पहना हुआ था ।
"नमस्कार।" देवराज चौहान ने हाथ जोड़कर कहा ।
"नमस्कार...आप कौन...?" उसने पूछना चाहा ।
"भीतर चलिये बताते हैं ।"
तभी युवती के पीछे एक युवक आ पहुंचा, जो कि उसका पति ही था ।
"क्या बात है शालू, ये कौन हैं?"
तभी देवराज चौहान युवती को एक तरफ करके भीतर प्रवेश करता चला गया।
प्रताप कोली और दिनेश चुरू ने भी ऐसा ही किया ।
"ये आप भीतर क्यों आ रहे हैं ?" युवक ने कहना चाहा ।
दिनेश चुरू ने फौरन दरवाजा बंद किया ।
कमरे में कुर्सियों पर साठ बरस का व्यक्ति और पचपन बरस की औरत बैठी थी। वो यकीनन युवक के माँ-बाप थे।
"कौन हैं आप सब- और क्यों...?" युवक के पिता ने कहना चाहा ।
देवराज चौहान बोल पड़ा-
"हम यहां थोड़ा सा वक्त बिताना चाहते हैं, कुछ ही देर में चले जायेंगे।"
"लेकिन...।" पिता ने कहना चाहा ।
प्रताप कोली ने उसी पल रिवाल्वर निकाल ली ।
"जुबान बंद रखो । सुना नहीं तुम लोगों ने कि कुछ देर बाद हम चले जायेंगे।" कोली गुर्रा उठा।
रिवाल्वर देखते ही उन चारों की जुबानें बंद हो गईं।
"थोड़ी देर की बात है। अपने पर काबू रखो और शांत रहो।" दिनेश चुरू ने कहा ।
"म...मुझे ऑफिस जाना है।" वो युवक कह उठा ।
"जरूर जाना।" प्रताप कोली कहर भरे स्वर में बोला।
"दस बजे बॉस के साथ मीटिंग है। वो...।"
"जिंदगी से प्यार है या बॉस के साथ मीटिंग से?" प्रताप कोली ने रिवाल्वर वाला हाथ सीधा किया।
युवक का चेहरा फक्क पड़ गया, उसका पिता घबराकर अपने बेटे से बोला-
"चुपचाप बैठ जा। कोई शब्द मुंह से मत निकालना।" फिर वो कोली से बोला- "ये अब चुप रहेगा।"
प्रताप कोली ने चारों तरफ खतरनाक निगाह मारी ।
"हम नहीं चाहते कि आप लोगों को कोई तकलीफ दें। कुछ देर बाद हम चले जायेंगे। तब तक सब खामोश बैठे रहे।"
चारों चुप रहे।
देवराज चौहान तब तक दूसरे कमरे में जा चुका था।
प्रताप कोली ने दिनेश चुरू के हाथ से गिटार वाला केस लिया और बोला-
"इसका ध्यान रखना। और कोई चालाकी करने की कोशिश करे तो गोली मार देना।"
दिनेश चुरू ने रिवाल्वर निकाल ली। बोला-
"किसी ने भी शरारत की तो मैं चारों को गोली मार दूंगा।"
"हम कुछ नहीं करेंगे।" युवक की माँ कह उठी ।
प्रताप कोली गिटार का केस थामे दूसरे कमरे में चला गया।
"तुम लोगों में से चाय कौन अच्छी बनाता है?" दिनेश चुरू ने कहा।
"मैं बना देता हूं।" युवक ने कहा।
"तुम नहीं। बैठे रहो।" दिनेश चुरू ने रिवाल्वर वाला हाथ हिलाया-"तुम्हारी माँ चाय बनायेगी, कोई शरारत नहीं करेगी।"
वो औरत तुरंत उठ गई ।
सामने ही किचन था। दिनेश चुरु किचन के भीतर काम करने वाले को देख सकता था।
"जाओ, चाय बनाओ। मुझे मेहमान समझो। तुम लोग शरारत नहीं करोगे तो, फिर मुझसे डरने की जरूरत नहीं।"
■■■
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