बैंक लुटेरों की गिरफ्तारी

रात के ग्यारह बजे थे।
आगे पीछे चलती दो बड़ी गाड़ियां साउथ दिल्ली के सरिता विहार इलाके में दाखिल हुईं और सामान्य रफ्तार से आगे बढ़तीं, पॉकेट-डी स्थित शॉपिंग कांप्लेक्स के सामने पहुंचकर रुक गयीं।
पहली गाड़ी फॉर्च्यूनर थी, जबकि दूसरी इनोवा जिसपर कमर्शिल नंबर प्लेट लगी हुई थी। दोनों के ही भीतर ड्राईवर को मिलाकर पांच-पांच लोग सवार थे, जो गाड़ी रुकते के साथ ही नीचे उतर आये।
उनके बाईं तरफ को करीब बीस कदमों की दूरी पर सड़क थी, जिसके उस पार रिहाईसी इलाका दिखाई दे रहा था। मेन इंट्रेंस पर लोहे का एक खूब बड़ा, किंतु सींकचों वाला फाटक लगा था, जैसा कि इस तरह की सोसाइटीज में आम देखने को मिल जाया करता है।
फाटक का एक पल्ला पूरा का पूरा खुला था जबकि दूसरा बंद था। उस बंद दरवाजे के पीछे दो गार्ड कुर्सी डाले बैठे थे। जबकि उतने ही खुले दरवाजे के सामने खड़े नजर आ रहे थे।
दोनों गाड़ियों में वहां पहुंचे लोगों में से एक सीनियर इंस्पेक्टर विराट सिंह राणा था, दूसरा सब इंस्पेक्टर सुलभ जोशी, तीसरा एएसआई महेश गुर्जर, जबकि बाकी के सातों सिपाही थे, अलबत्ता वर्दी तो उनमें से कोई एक भी पहने हुए नहीं था।
उल्टा सुलभ जोशी को छोड़कर बाकी के लोग सूट बूट में सजकर वहां पहुंचे थे। बस जोशी ही वह इकलौता शख्स था जिसने शूट की बजाये ग्रे कलर की पैंट और टी शर्ट पहन रखी थी, और वह कपड़े आपस में जरा भी मैच करते नहीं लग रहे थे।
जोशी के हाथों में एक पॉलीबैग थमा था, जो बेहद हल्का जान पड़ता था, जबकि बाकी के लोगों के पास तो उतना सामान भी नहीं था, बल्कि था ही नहीं क्योंकि सब के सब खाली हाथ दिखाई दे रहे थे।
“आगे हम दो दो की संख्या में सोसाइटी के भीतर दाखिल होंगे - विराट अपनी टीम को समझाता हुआ बोला - गार्ड अगर पूछताछ करें तो सबका बस एक ही जवाब होगा कि बख्शी साहब की पार्टी में जा रहे हैं, वैसे मुझे नहीं लगता कि वैसी कोई नौबत आयेगी।”
“एंड डोंट वरी - सुलभ जोशी बोला - पार्टी सच में चल रही है। जहां बहुत से मेहमान पहुंचे होंगे, बहुत से अभी पहुंचने वाले भी होंगे। इसलिए हमें टोकने की कोशिश कोई नहीं करने वाला।”
“भीतर दाखिल होकर हम लोग तब तक नाक की सीध में आगे बढ़ते रहेंगे जब तक कि रास्ता खत्म नहीं हो जाता - विराट बोला - उसके बाद रुककर अपने बाकी के साथियों का इंतजार करेंगे, समझ गये?”
“यस सर।”
“एक सवाल पूछूं सर?” महेश बोला।
“दो पूछ लो।”
“हम गेट पर अपनी पहचान बताकर भी तो अंदर जा सकते हैं। भला पुलिस को रोकने की कोशिश वहां खड़ा कोई गार्ड क्यों करेगा?”
“नहीं करेगा, लेकिन ऐसे मामलों में किसी बाहरी पर यकीन करना मुसीबत को दावत देने जैसा होता है। मान लो इत्तेफाक से उनमें कोई ऐसा गार्ड है जो असलम एंड पार्टी से मिला हुआ है। ऐसा शख्स क्या हमारे बारे में फौरन उन्हें इत्तिला करने से बाज आ जायेगा?”
“नहीं आयेगा सर कबूल, लेकिन उस बात के चांसेज निल हैं। वे लोग कोई सालों से यहां डेरा डाले नहीं बैठे हैं जो गेट पर ड्यूटी करते गार्ड्स से उनकी इस हद तक गहरी पहचान बन जायेगी कि उन्हें बचाने की कोशिश में जुट जायें।”
“बात यहां सिर्फ और सिर्फ सावधानी बरतने की है महेश, क्योंकि पिस्तौल से निकली गोलियां इस बात की परवाह नहीं करतीं कि उनके सामने कानून का कोई रखवाला खड़ा है, या अपराधी। हर किसी पर उनका असर एक जैसा ही होता है। और मैं नहीं चाहता कि हमें अपनी टीम के किसी सदस्य को एंबुलेंस में रखकर मोर्ग भिजवाने की जिम्मेदारी निभानी पड़े, डू यू अंडरस्टैंड?”
“ऐसी कड़क आवाज में बोलेंगे सर तो ना समझते हुए भी हर कोई समझदार बनकर दिखा देगा।”
महेश की उस बात पर सब हौले से हंस पड़े।
“नितिन एंड दयाशंकर, मूव।”
सुनकर दो सिपाही फौरन आगे बढ़ गये।
बाकी लोग इंतजार करने लगे, फिर जैसे ही वो दोनों गेट से भीतर दाखिल होते दिखाई दिये, विराट ने दो अन्य सिपाहियों को रवाना कर दिया। फिर एएसआई महेश गुर्जर एक सिपाही के साथ वहां से निकल गया।
सबसे आखिर में जोशी और विराट वहां पहुंचे। इंट्रेंस पर मौजूद चारों गार्ड्स में से किसी एक ने भी उनकी तरफ निगाह उठाकर देखने कोशिश नहीं की।
वह रास्ता करीब दो सौ मीटर लंबा था, जिसके आखिर में सोसाइटी की बाउंड्री वॉल थी, और उसके पार मथुरा रोड। सोसाइटी के चारों तरफ बाउंड्री वॉल्स के साथ-साथ काफी सारा स्पेस खाली पड़ा था, जिसका इस्तेमाल वहां के वाशिंदे पार्किंग के रूप में करते थे।
“जोशी साहब - आखिरी छोर पर खड़ी अपनी टीम के पास पहुंचकर विराट राणा बोला - हमारे शिकार किस बिल्डिंग में हैं?”
“लेफ्ट साईड की दूसरी बिल्डिंग में फर्स्ट फ्लोर पर सर।”
“वहां और कितने फ्लैट हैं?”
“टोटल दो हैं, जिनमें से एक का दरवाजा सीढ़ियों के दहाने से बाईं तरफ को आखिर में है, जबकि दूसरे का दायें छोर पर। इसलिए उम्मीद कर सकते हैं कि किसी तरह की असुविधा का सामना हमें नहीं करना पड़ेगा।”
“गुड - कहकर उसने महेश गुर्जर की तरफ देखा - अब ध्यान से मेरी बात सुनो।”
“यस सर।”
“हम पूरी कोशिश करेंगे कि यहां गोली चलाने की नौबत न आने पाये, आई तो वह गोली सिर्फ और सिर्फ मेरी होनी चाहिए। बावजूद इसके तुममें से हर किसी को जरूरत पड़ने पर ट्रिगर दबाने की खुली छूट है।”
“कॉपी दैट।”
“नितिन, दयाशंकर और अमरजीत बिल्डिंग के इस पिछले हिस्से को कवर करेंगे, जबकि तुम अनुराग और मुकेश फ्रंट में रहोगे। ऊपर बस मैं और जोशी जायेंगे।”
“यस सर।”
“इत्तेफाक से अगर वे लोग हमारे काबू में आने की बजाये भाग खड़े होते हैं, तो कोशिश करना कि जिंदा पकड़ाई में आ जायें, मगर बच के निकलने नहीं देना है हरमाजादों को, भले ही पैरों की बजाये खोपड़ी में ही बुलेट क्यों न उतारनी पड़ जाये, समझ गये?”
“यस सर।”
“बढ़िया टेक योर पोजिशन।”
सुनकर सब दो हिस्सों में बंट गये।
जोशी ने अपने हाथ में थमे पॉलीबैग से एक मैरून कलर की शर्ट निकाली और टीशर्ट के ऊपर पहन लिया। तत्पश्चात उसी रंग की एक पी कैप सिर पर चढ़ाया और पॉलीबैगे को दूर उछाल दिया।
अपनी वर्तमान वेष भूसा में सुलभ जोशी अब साफ-साफ उन गार्ड्स में से एक दिखाई देने लगा जो इंट्रेंस पर खड़े ड्यूटी दे रहे थे।
तत्पश्चात दोनों उस बिल्डिंग के सामने पहुंचे, जहां महेश दो सिपाहियों के साथ पहले ही पोजिशन ले चुका था। विराट ने क्षण भर को वहां ठिठक कर एक नजर दायें-बायें दौड़ाई फिर जोशी के साथ सीढ़ियां चढ़ता चला गया।
रात का वक्त ऊपर से सरिता विहार का इलाका। जहां रात को बेवजह घर से बाहर निकलने वालों की संख्या हमेशा नागण्य ही होती है। विराट सबसे पहले बाईं तरफ के फ्लैट पर पहुंचा और बिना आहट किये दरवाजे के साथ अपने कान सटा दिये।
भीतर से किसी भी प्रकार के हलचल का आभास उसे नहीं मिला। जिससे उसने यही अंदाजा लगाया कि घर के लोग सो चुके थे। तत्पश्चात वह सीढ़ियों के दहाने पर खड़े जोशी के पास पहुंचा फिर दोनों वहां मौजूद दूसरे फ्लैट की तरफ बढ़ गये।
तब तक विराट की सर्विस रिवाल्वर उसके हाथ में आ चुकी थी अलबत्ता जोशी ने पिस्तौल निकालने की कोई कोशिश नहीं की, जो कि उनकी योजना का ही एक हिस्सा था।
दूसरे दरवाजे के करीब पहुंचकर विराट राणा उसके बगल में दीवार के साथ चिपक कर खड़ा हो गया। तब एसआई जोशी ने बड़े ही सहज भाव से फ्लैट की कॉलबेल पुश कर दी।
कोई रिस्पांस सामने नहीं आया।
उसने फिर से बेल बटन पुश किया, साथ ही इस बार दरवाजे पर हौले से दस्तक देते हुए आवाज भी लगा दी, “साहब जी, ओ साहब जी, जरा दरवाजा तो खोलिये।”
तत्काल भीतर की तरफ आहट उत्पन्न हुई।
“कौन है?” पूछा गया।
“गार्ड हूं साहब जी।”
“गार्ड है तो जाकर गेट पर ड्यूटी कर, इतनी रात गये हमें क्यों तंग कर रहा है?”
“क्या करूं साहब जी - जोशी बड़े ही दीन हीन लहजे में बोला - पुलिस का हुक्म है इसलिए बजाना तो पड़ेगा ही। सालों ने खामख्वाह का काम पकड़ा दिया हमें, जबकि करना उन्हें खुद चाहिए था।”
“पुलिस, वो क्यों आई है?”
“ग्राउंड फ्लोर पर जो डॉक्टर साहब रहते थे न, उनका मर्डर हो गया है, इसीलिए आस-पास की बिल्डिंग में रहते सभी लोगों को पूछताछ के लिए नीचे बुलाया गया है। हमने अपना काम कर दिया, अब आप चाहे जायें या न जायें, आपकी मर्जी।”
“जरा रुक जाना नहीं अभी।”
“वक्त नहीं है साहब जी, और लोगों को भी तो खबर करना है हमें।”
“एक मिनट की देर हो जायेगी, तो कोई फांसी पर नहीं चढ़ा देगा तुझे।”
“ठीक है जल्दी बोलिये क्या बात है?”
“दो कदम पीछे हटकर खड़ा हो।”
“क्यों?”
“मैजिक आई से देखना है कि तू गार्ड ही है न?”
“क्यों मजाक कर रहे हो साहब जी? - कहता हुआ वह दो कदम पीछे हट गया - ठीक है लो कर लो अपनी तसल्ली।”
अगले ही पल दरवाजा खोल दिया गया, मगर बस इतना ही कि भीतर खड़ा शख्स जोशी से आमने सामने बात कर सके, ना कि वह बाहर निकल आया था।
गेट पर प्रगट हुआ शख्स खूब हट्टा-कट्टा युवक था, जिसने एक नजर जोशी को सिर से पांव तक देख डाला, जबकि मैजिक आई के जरिये पहले ही उस काम को अंजाम दे चुका था, फिर पूछा, “किसका मर्डर हो गया बताया तूने?”
“ग्राउंड फ्लोर पर रहते डॉक्टर साहब का।”
“फिर तो बहुत सारे पुलिसवाले आये होंगे?”
“हां जी, एक दर्जन से कम तो क्या होंगे। बड़े बड़े अफसर भी पहुंचे हुए हैं। चाहो तो नीचे झांककर देख लो खुद ही पता लग जायेगा - कहकर वह दाईं तरफ को मुड़ा - मैं जरा आपके पड़ोसी को खबर कर दूं।”
बिल्डिंग की सीढ़ियां कुछ यूं बनी हुई थीं कि एक फ्लोर चढ़ने के लिए दो बार मुड़ना पड़ता था और हर दूसरे मोड़ पर बाहर की तरफ एक रेंलिग थी जिसके जरिये झांककर बड़ी आसानी से नीचे देखा जा सकता था।
गेट खोलने वाले लड़के ने जब गार्ड को दूसरे फ्लैट की तरफ बढ़ता पाया तो दरवाजे को चौखट के साथ सटाता हुआ बाहर निकला और बड़े ही सहज भाव से रेलिंग की तरफ बढ़ चला।
उसी वक्त विराट ने अपने बायें हाथ का फंदा उसके गले में कसते हुए दायें हाथ में थमी रिवाल्वर उसकी कनपटी से सटा दी।
“आवाज न निकले।” वह सांप की तरह फुंफकारा।
लड़के के होश उड़ गये।
“भीतर कितने लोग हैं?”
“द...दो।”
“या तीन?”
“नहीं बस दो ही हैं।”
“कहां हैं?”
“सामने सोफे पर।”
उसी वक्त जोशी वापिस मुड़कर उनके पास पहुंच गया और अगले दो सेकेंड में लड़के के बदन को ऊपर से नीचे तक थपथपाकर ये सुनिश्चित कर लिया कि वह हथियारबंद नहीं था।
“क्लीन।”
“ठीक है संभालो इसे।”
कहकर विराट ने लड़के की गर्दन से अपना हाथ वापिस खींच लिया, फिर आगे बढ़कर जोर की लात दरवाजे में जमाई और रिवाल्वर सामने की तरफ ताने फ्लैट में दाखिल हो गया।
सामने आमने सामने रखे सोफे पर बाहर वाले लड़के के ही हमउम्र दो अन्य युवक बैठे थे। दोनों के हाथों में कांच के गिलास थे और सेंटर टेबल पर आधी से ज्यादा भरी एक बोतल रखी हुई थी, उसी के बगल में एक ऐश ट्रे रखा था, जो सिगरेट के टोटों से अटा पड़ा था।
आहट पाकर दोनों में से एक उछलता हुआ उठ खड़ा हुआ, क्योंकि उसका मुंह दरवाजे की तरफ था, जबकि दूसरे को खतरे का एहसास तब हुआ जब विराट की चेतावनी उसके कानों में पड़ी।
उठकर खड़े हो चुके लड़के का दायां हाथ विद्युत गति से कमर में खुंसी रिवाल्वर की तरफ बढ़ा।
“डोंट मूव।” विराट गुर्राया।
जवाब में रिवाल्वर की तरफ बढ़ता उसका हाथ जहां का तहां ठिठक गया।
“दोबारा ऐसी कोई कोशिश तभी करना, जब खुद पर यकीन हो कि मेरे गोली चलाने से पहले तुम अपनी पिस्तौल निकालने में कामयाब हो जाओगे, क्योंकि गोली चलाने में मैं जरा भी नहीं हिचकूंगा, पूछो क्यों?”
“क...क्यों?”
“क्योंकि अब तक छप्पन वाले एकाउंट में बस दो लाशें गिरनी ही बाकी रह गयी हैं। मुझे खुशी होगी अगर उसकी संख्या आज सत्तावन हो जाये। इसी बहाने कम से कम दया नायक का रिकॉर्ड तो टूटेगा।”
तब तक दूसरा लड़का भी उठ खड़ा हुआ।
“करना चाहते हो?” विराट ने पूछा।
“क...क्या?”
“कोशिश, कमर में खुंसी पिस्टल निकालने की?”
तत्काल दोनों ने इंकार में मुंडी हिला दी।
“गुड अब शराफत से अपने दोनों हाथ ऊपर उठा लो।”
हुक्म का पालन हुआ।
“हो कौन तुम?” उनमें से एक ने डरते डरते पूछा।
“जरा वेट तो करो यारों, जल्दी क्या है? - कहकर उसने आवाज लगाई - रास्ता साफ है जोशी साहब, आ जाओ।”
सुनकर बाहर खड़ा सुलभ जोशी तीसरे युवक को गन प्वाइंट पर लिए भीतर आ गया।
“इधर अपने साथियों के पास आकर खड़ा हो जा।”
वह हो गया।
“तलाशी लो बाकी दोनों की।”
जोशी फौरन उस काम में जुट गया।
अगले ही पल दोनों की कमर से एक एक पिस्तौल बरामद हो गयीं।
“फ्लैट की भी तलाशी लो, देखो कोई और तो छिपा नहीं बैठा है यहां।”
सुनकर जोशी पूरी सावधानी के साथ दो बेडरूम्स वाले उस फ्लैट का कोना खुदरा देख आया। कहीं कोई नहीं था, ना ही ऐसा कुछ बरामद हुआ जिससे पता लगता कि उनका चौथा साथी भी वहीं रह रहा था।
“पुलिसवाले हो?” तीनों में से एक ने सवाल किया।
“तुम लोगों को कोई शक है?”
जवाब किसी ने नहीं दिया, मगर अचानक ही तीनों व्याकुल दिखाई देने लगे।
विराट ने सर्विस रिवाल्वर को वापिस होलस्टर में पहुंचाया और कोट के नीचे कमर में खुंसी एक अन्य रिवाल्वर बाहर निकाल ली, जिसपर चढ़ा साइलेंसर दूर से ही दिखाई दिये जा रहा था।
तब जाकर जोशी की समझ में आया कि बाहर विराट ने ये क्यों कहा था कि अगर गोली चलाने की नौबत आई तो वह गोली सिर्फ और सिर्फ उसी की होगी। जाहिर था वह नहीं चाहता था कि फायर की आवाज बिल्डिंग के दूसरे वाशिंदों के कानों तक पहुंचे।
“चलो नाम बताओ अपना-अपना।”
“संजय।”
“फरखूद्दीन।”
“नीरज।”
“और तुम्हारा बॉस असलम कहां है?” विराट ने पूछा।
“वह तो रॉबरी के अगले रोज ही अपनी जान से हाथ धो बैठा था।”
“ठीक है एक बार फिर से पूछता हूं - वह मुस्कराता हुआ बोला - तुम्हारा बाप असलम कहां है बच्चों?”
“बता तो रहे हैं - संजय बोला - वह मर चुका है।”
विराट ने बेहिचक गोली चलाकर उसका घुटना फोड़ दिया। फायर की आवाज भले ही नहीं गूंजी, लेकिन संजय के गले से निकलने वाली चींखों को फ्लैट के अंदर दबाये रख पाना संभव नहीं था। वह फर्श पर गिरकर जोर जोर से चिल्लाने लगा।
“मुंह बंद कर।” विराट ने घुड़का।
“कैसे बंद करूं बहन चो...” - वह पहले से कहीं ज्यादा जोर से चिल्लाया - तेरे को लगी होती तो पता लगता।”
“तो फिर ठीक है मैं ही बंद किये देता हूं।” कहकर उसने दूसरी गोली चलाई जो कि संजय के दायें कान को हवा देती पीछे की दीवार में जा घुसी।
वह सूखे पत्ते की तरफ कांप उठा।
“क्या सर - जोशी बोला - इतना कच्चा निशाना है आपका?”
“यार होना तो नहीं चाहिए, अच्छा रुको फिर से ट्राई करता हूं।”
कहकर उसने रिवाल्वर का रुख अभी संजय की तरफ किया ही था कि उसने दोनों हाथों से अपना मुंह कसकर भींच लिया। अलबत्ता दर्द के कारण थोड़ी बहुत आवाज तो फिर भी निकल ही रही थी।
“फरखूद्दीन।” विराट दूसरे शख्स की तरफ मुखातिब हुआ।
“ज...जी जनाब?”
“असलम कहां है?”
“खुदा कसम...” बोलता बोलता वह क्षण भर को चुप्पी साध गया फिर बोला - सामने वाले फ्लैट में है जनाब।”
“शुक्र है यहां कोई तो समझदार निकला।”
“जी जनाब, मैं क्या जानता नहीं कि आप लोगों से झूठ बोलने का अंजाम कितना भयानक हो सकता है।”
“फ्लैट में और कौन है उसके साथ?”
“बस एक लड़की है?”
“कौन लड़की?”
“हमें तो गश्ती ही लगी थी जनाब, मगर असलम ने बताया था कि लड़की कोई उभरती हुई मॉडल है जिसे अस्सी हजार में बस एक रात के लिए हासिल कर पाया है।”
“ग्रेट, इसे कहते हैं माले मुफ्त दिले बेहरहम - जोशी हंसता हुआ बोला - इन सालों की पांच हजार की औकात नहीं है सर और अस्सी हजार की कॉलगर्ल के साथ बड़ा खलीफा ऐश कर रहा है।”
“जिसमें हम खलल डालकर रहेंगे।”
“चलो फरखू जरा आवाज देकर अपने बाप को दरवाजा खोलने को कहो, और सावधान करने की कोशिश तो बिल्कुल भी मत करना, वरना अंजाम तुम जानते हो - कहकर विराट ने उसे दरवाजे की तरफ बढ़ने का इशारा किया और जोशी से बोला - निगाह रखो बाकी दोनों पर।”
फिर फरखुद्दीन पर गन ताने विराट राणा उसके पीछे पीछे दरवाजे की तरफ बढ़ चला।
उसी वक्त खुद की तरफ तनी रिवाल्वर की परवाह न करते हुए नीरज ने बला की फुर्ती दिखा दी। पलक झपकने जितनी देर में उसने सेंटर टेबल पर रखी शराब की बोतल को उठाया और जोशी के सिर को निशाना बनाते हुए पूरी ताकत से फेंक मारा।
बचने की कोशिश में सुलभ जोशी ने तेजी से बाईं तरफ को डुबकी मारी, बोतल उसके सिर की बजाये कंधे से टकराई, मगर बहुत ज्यादा झुक गया होने के कारण उसका बैलेंस बिगड़ा और फिसलकर नीचे गिर गया। उधर बोतल फेंकते के साथ ही नीरज बड़ी तेजी से दरवाजे तक पहुंच चुके विराट पर झपटा और उसे लिये दिये नीचे गिर गया।
बोतल फर्श से टकराकर चूर चूर हो गयी।
आगे कई काम एक साथ हुए।
नीरज जो कि विराट के रिवाल्वर वाले हाथ को जकड़े उसके ऊपर सवार होने की कोशिश कर रहा था, जोशी ने उसके हाथ का निशाना लेकर गोली चला दी, उसी क्षण विराट ने नीरज को अपने ऊपर से धकेलकर जोशी की तरफ गिरा दिया।
नतीजा ये हुआ कि जो गोली नीरज के हाथ में लगनी चाहिए थी, वह सीधा उसकी पीठ में पेश्वस्त होकर दिल में जा घुसी।
वह ठौर मारा गया।
उधर दरवाजे के पार पहुंच चुका फरखूद्दीन अपने साथियों की परवाह किये बगैर जी जान से कूदता फांदता सीढ़ियां उतरता चला गया।
संजय की तरफ उस वक्त किसी का भी ध्यान नहीं था, उस बात का फायदा उठाते हुए, और घुटने में लगी गोली को नजरअंदाज कर के वह जैसे तैसे अपनी जगह से उठा और बिना सोचे समझे खिड़की खोलकर बाहर कूद गया।
उधर नीरज को गोली लगते ही विराट बड़ी तेजी से उठकर फरखुद्दीन के पीछे दौड़ा, मगर इससे पहले कि उस तक पहुंच पाता, नीचे खड़े महेश गुर्जर ने इतनी जोर का मुक्का फरखुद्दीन के थोबड़े पर जमाया कि भागने की कोशिश करता वह पीठ के बल फर्श पर जा गिरा।
“ऊपर ले चलो इसे।” कहता हुआ विराट वापिस सीढ़ियां चढ़ता चला गया।
संजय को कमरे से गायब देखकर जोशी को तुरंत ये बात समझ में आ गयी कि वह खिड़की के रास्ते नीचे कूद गया था, मगर उस बात की कोई परवाह इसलिए नहीं हुई क्योंकि उधर पहले से तीन सिपाही खड़े थे और संजय का घुटना फूटा पड़ा था, ऐसे में उसके बच निकलने का कोई मतलब नहीं बनता था।
फिर भी अपनी तसल्ली के लिए खिड़की से नीचे झांककर देखा तो संजय को तीनों सिपाहियों की गिरफ्त में फड़फड़ाता पाया। आगे जोशी ने वहीं से इशारा कर के उन सबको ऊपर आने को कह दिया।
दो मिनट बाद एक लाश, एक घायल और चाक चौबंद फरखुद्दीन वापिस उसी फ्लैट के भीतर थे, जहां से भागने की कोशिश में उनकी बुरी गत बनी थी। अलबत्ता तब तक विराट को यकीन आ चुका था कि असलम वहां दूसरे फ्लैट में छिपा नहीं हो सकता था।
उसने फरखू को गरेबान से थामा और एक कस का घूंसा उसकी पसलियों में जड़ दिया, फरखू एकदम से फड़ककर रह गया, इस हद तक कि एक बार को लगा उसकी जान ही निकल गयी थी।
मगर नहीं, वह मरा नहीं था।
“अब बता असलम कहां है?”
“वो सच में मर चुका है जनाब।”
“फिर तो तुम्हारा भी मर जाना ही बेहतर होगा?” कहकर उसने निःसंकोच उसके दायें पंजे पर गोली चला दी।
फरखू ने चिल्लाने की कोशिश की तो महेश ने उसका जबड़ा भींच लिया। लिहाजा उसे बस तड़पने का ही मौका हासिल हो पाया, कोई आवाज तो नहीं निकल पाई मुंह से।
“अगली बार मैं तुम्हारा कंधा तोड़ूंगा मियां, और तीसरी गोली आंख में मारूंगा, फिर भी जुबान बंद रखने में कामयाब हो गये तो मैं वादा करता हूं कि हार मानकर यहां से चला जाऊंगा।”
फरूखू के मुंह से गों गों की आवाजें निकलने लगीं।
“ठीक है मत बता।” कहकर विराट ने रिवाल्वर उसके कंधे पर टिका दी।
फरखू जोर से छटपटाने लगा।
“सर जी रुकिये - महेश जल्दी से बोला - मुंह तो इसका बंद कर रखा है, बोलेगा कैसे?”
“अरे तो पहले बताना चाहिए था, खामख्वाह बेचारा अपने कंधे से हाथ धो बैठा होता, ऐसी लापरवाही बरतोगे तो कैसे काम चलेगा?”
“सॉरी सर जी।”
“अब बता असलम कहां है?”
फरखू ने फिर से गों गों की आवाजें निकालीं।
इस बार विराट ने रिवाल्वर उसकी आंख पर टिका दी, “अंधा होने को तैयार हो जा फरखू।”
सुनकर वह फिर छटपटाने लगा।
विराट की उंगलियां ट्रिगर पर कस गयीं।
महेश फिर बोल पड़ा, “इसका मुंह तो अभी भी बंद है सर जी, जवाब कैसे देगा?”
“हद है यार, छोड़ते क्यों नहीं?”
“आपका हुक्म जो नहीं हुआ।”
“छोड़ दो, अब नहीं चींखेगा ये।”
महेश ने अपना हाथ वापिस खींच लिया।
“खुदा कसम साहब जी - फरखू हांफता हुआ, दर्द से तड़पता हुआ बोला - असलम सच में मर चुका है।”
“क्या कह रहे हो यार, ऐसा कैसे हो सकता है? राजा तो सबसे बाद में मरता है, या कैद कर लिया जाता है - कहकर उसने बाकी पुलिसवालों की तरफ देखा - बोलो भई सही कह रहा हूं न मैं?”
“एकदम सही बात है सर जी।”
“तो फिर इनका बॉस पहले कैसे मर सकता है?”
“डकैती में उसे गोली लगी थी - फरखू जल्दी से बोला - जिसके बाद हम लोग असलम को वहां से निकालने में तो जरूर कामयाब हो गये, लेकिन जान नहीं बच पाई उसकी। अगली सुबह तक दर्द से तड़पता रहा फिर सांसें थम गयीं।”
“लाश कहां है?”
“यमुना के हवाले कर दी थी।”
“कैसे आदमी हो मियां, धर्म कर्म में कोई आस्था है या नहीं तुम्हारी?”
“कब्र खोदकर दफनाने का वक्त नहीं था जनाब, वैसा करते तो हम सब धर लिए जाते। इसलिए यमुना में फेंक दिया।”
“जैसे अभी बच ही गये हो।”
इस बार उसने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
“चलो ये बताओ कि लूट का माल कहां है?”
फरखू ने व्याकुल भाव से संजय की तरफ देखा।
“ठीक है मरने पर ही तुले हो तो तुम्हारी आखिरी ख्वाहिश हम जरूर पूरी करेंगे।”
कहकर विराट ने उसके माथे पर गन रखी ही थी, कि वह गिड़गिड़ा उठा, “गोली मत चलाना जनाब, खुदा के वास्ते गोली मत चलाना।”
“ठीक है नहीं चलाता, बता माल कहां है?”
“बिल्डिंग के नीचे एक मारूति ऑल्टो खड़ी है, उसी की डिक्की में बंद है।”
“पूरे डेढ़ करोड़?”
“पता नहीं, गिनने का मौका ही नहीं मिला, लेकिन लूट की पूरी रकम उस गाड़ी में ही रखी है।”
“चाबी?”
“संजय के पास।”
सुनकर विराट ने गर्दन घुमाई ही थी कि संजय ने अपनी जेब से चाबी निकालकर उसे थमा दी। जैसे जरा सी देर होते ही गोली खा जाने का अंदेशा हो।
आगे वह चाबी महेश के हवाले कर के उसे नीचे भेज दिया गया, जिसने मिनट भर बाद लौटकर खबर दी कि कार की डिक्की में बहुत सारा रूपया एक बोरे में बंद कर के रखा हुआ था।
“तुम लोगों ने तो हद ही कर दी मियां, क्या जरूरत थी होशियारी दिखाने की? खामख्वाह तुम्हारा एक साथी अपनी जान से हाथ धो बैठा, संजय का घुटना टूट गया, और तुम्हारे पंजे में सुराख बन गया, चुपचाप खुद को हमारे हवाले कर देते तो ऐसी नौबत क्यों आती?”
“गलती हो गयी साहब जी।” संजय गिड़गिड़ाता हुआ बोला।
“कोई बात नहीं आगे से ध्यान रखना, पुलिस पर हमला करना कोई अच्छी बात थोड़ी ही होती है। और भाग निकलने की कोशिश तो बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए। तुम जैसे लोग हमारे हाथों से बचकर निकलने लगे तो हम बेचारों की तो नौकरी ही चली जायेगी, बोलो सही कह रहा हूं न?”
दोनों ने एक साथ ऊपर नीचे गर्दन हिलाकर हामी भरी।
“अब एक आखिरी सवाल, यहां आस-पास कोई ऐसा रेस्टोरेंट है जो आधी रात को भी खुला हो, वो क्या है न कि तुम लोगों के चक्कर में अभी तक डिनर नहीं किया हमने।”
फरखू ने अजीब सी निगाहों से उसे देखा।
“बोलो भई, चुप क्यों हो?”
“कालिंदी कुंज से थोड़ा पहले मिल जायेगा।”
“थैंक यू।”
तत्पश्चात विराट ने स्थानीय थाने के इंचार्ज को फोन कर के उन तीनों के बारे में जानकारी दी, और आकर केस टेक ओवर करने को बोल दिया। क्योंकि रॉबरी का वह मामला उन्हीं के पुलिस स्टेशन में रजिस्टर्ड किया गया था।
लोकल पुलिस वहां अपेक्षा से जल्दी पहुंच गयी। आगे वहां से फारिग होने में विराट और उसकी टीम को बामुश्किल दस मिनट का वक्त लगा होगा। तत्पश्चात सब फार्चुनर और इनोवा में सवार होकर रेस्टोरेंट की तलाश में निकल पड़े।
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