ढलती हुई रात के साथ होटल ‘ज्यूल बाक्स’ की रंगीनियां भी बढती जा रही थी । होटल का आर्केस्ट्रा वातावरण में पाश्चात्य संगीत की उत्तेजक धुनें प्रवाहित कर रहा था । जवान जोड़े एक दूसरे की बांहों में बांहें फंसाये संगीत की लय पर थिरक रहे थे । जो लोग नृत्य में रूचि नहीं रखते थे, वे डांस हाल के चारों ओर लगी मेजों पर बैठे अपने प्रिय पेय पदार्थों की चुस्कियां ले रहे थे ।
ऐसे लोगों में से सुनील भी एक था ।
वह एक अन्धेरे से कोने में बियर का लम्बा गिलास अपने सामने रखे बैठा हुआ था और होटल के कर्मचारियों की गतिविधि को परखने की चेष्टा कर रहा था ।
सुनील को विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ था कि ज्यूल बाक्स का मालिक माइक गुप्त रूप से एक जुआघर का संचालन कर रहा था और उसे जुआघर के विषय में बहुत कुछ ज्यूल बाक्स का मालिक होने की सम्भावना थी । नगर के बहुत ऊंची श्रेणी के लोग भी माइक के जुआघर में जुआ खेलते आते थे लेकिन यह आज तक किसी को भी मालूम नहीं हो सका था कि जुआघर वास्तव में है कहां ? यहां तक कि उन लोगों को भी उसकी स्थिति का ज्ञान न था जो कई बार वहां जुआ खेल चुके थे । यहीं कारण था कि यह जानते हुये भी कि माइक जुआ खिलवाता है, पुलिस उसका कुछ बिगाड़ नहीं पा रही थी ।
कई बार ज्यूल बाक्स की तलाशी ली गई थी । लेकिन वहां ऐसा कुछ भी नहीं मिला था । जिसमें यह सिद्ध हो सके कि ज्यूल बाक्स का कोई भाग जुआघर के रूप में प्रयुक्त होता है ।
पुलिस सुपरिन्टेडेंट रामसिंह का अनुमान था कि ज्यूल बाक्स कोई गुप्त तहखाना है जहां किसी जुआरी को तभी ले जाया जाता है जब माइक या उसका कोई विश्वासनीय आदमी जुआरी को पूरी तरह परख लेता है । क्योंकि रामसिंह कई बार आने डिपार्टमेंट के आदमियों को जुआ खेलने की नीयत से वहां भेज चुका था लेकिन एक भी आदमी जुआघर तक ले जाया नहीं गया था । हर बार उन्हें यही कहा गया था कि ज्यूल बाक्स ऊंचे लोगों का ऊंचा होटल है । जहां जुए जैसे किसी काम को प्रोत्साहन देकर वे अपना स्तर नहीं गिराना चाहते ।
“हैलो ।” - एक मधुर स्त्री का स्वर सुनकर सुनील चौंक पड़ा ।
उसने एक भरपूर दृष्टि अपने सामने खड़ी उस युवती पर डाली जो विदेशी वेषभूषा में थी और मरकरी लाइट के जगमगाते हुये प्रकाश में अनिद्य सुन्दरी लग रही थी ।
“हैलो ।” - सुनील स्थिर स्वर में बोला ।
“मेरा नाम मोना है ।” - युवती धीरे-धीरे कूल्हे थिरकाती हुई बोली - “आप मेरे साथ डांस करना पसन्द करेंगे ?”
“यह उल्टी बात क्यों ?”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह है कि डांस के लिये तो पुरुष स्त्रियों से प्रार्थना करते हैं जब कि आप...”
“ओ, नैवर माइन्ड दैट ।” - मोना हंसकर उसकी बात काटती हुई बोली - “दरअसल मिस्टर... क्या नाम है आपका ?”
“सुनील ।”
“हां तो, मिस्टर सुनील, दरअसल मैं ज्यूल बाक्स की होस्टेस हूं । मेरी नियुक्ति ही इस काम के लिये हुई है कि मैं उन लोगों का मनोरंजन करूं जो अपनी पार्टनर नहीं लाते हैं, आपकी शाम को रंगीन बनाने के लिये मेरी सेवायें प्रस्तुत हैं ।”
“किस हद तक ?” - सुनील में अर्थपूर्ण स्वर में पूछा ।
“किसी भी हद तक ?” - मोना बेफिक्री से बोली ।
सुनील कुछ क्षण तक सोचता रहा और फिर धीरे से बोला - “लेकिन मेरा मनोरंजन महिलाओं से नहीं होता है ।”
“तो फिर कैसे होता है ?” - मोना असमंजसपूर्ण दृष्टि से उसे देखती हुई बोली ।
“ऐसे ।” - सुनील बोला और उसने अपने दोनों हाथों से ऐसा ऐक्शन किया जैसे ताश के पत्ते फेंट रहा हो ।
मोना कितनी ही देर नजरों से सुनील को तौलने की चेष्टा करती रही और फिर बोली - “कितना ऊंचा खेलते हो ?”
“तुम्हारे पास कितने ऊंचे खेलने का इन्तजाम है ?”
मोना फिर चुप हो गई ।
“चलो ।” - क्षण भर बाद वह निर्णय-सा करती हुई बोली ।
“कहां ?”
“मनोरंजन के लिये ।”
सुनील का दिल धड़कने लगा । आज उसे ज्यूल बाक्स में आना सार्थक होता मालूम हो रहा था । वह जुआघर का पता पा ले तो एक बार फिर ‘ब्लास्ट’ सारे प्रतिद्वन्दी अखबारों से बाजी मार ले जायेगा, विशेष रूप से, क्रानिकल जिसके अपने रिपोर्टर भी इसी लाइन पर काम कर रहे थे ।
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
मोना उसका मार्ग निर्देशन करती हुई मुख्य द्वार की ओर बढ चली । उसी समय हाल में जैसे भूचाल सा आ गया ।
ज्यूल बाक्स का मुख्य द्वार भड़ाक से खुला और हाल में बदहवास सा एक युवक प्रविष्ट हुआ । उसके बाल बिखरे हुये थे और रक्त की आड़ी-तिरछी धारायें पपड़ियों के रूप में चेहरे पर जमी हुई थी । जिस कारण उसका चेहरा वीभत्स हो उठा था । उसके कपड़े धूल से अटे हुये थे और पांव यूं लड़खड़ा रहे थे जैसे वह बेहद पिये हुये हो ।
स्टीवर्ट ने आगे बढकर उसे रोकना चाहा ।
युवक के दांये हाथ का घूंसा बिजली की तेजी से स्वीवर्ट के जबड़े पर पड़ा और वह एक लम्बी हाय के साथ एक मेज पर उलट गया । उस मेज के आस-पास बैठी हुई महिलायें दहशत से चीखें मार-मार कर हाल के एक कोने की ओर भागी ।
मोना का चेहरा एकाएक पीला पड़ गया और वह सुनील का हाथ छुड़ाकर होटल के भीतरी भाग ही ओर लपकी और अगले ही क्षण सुनील की दृष्टि से ओझल हो गई ।
आर्केस्ट्रा बजना बन्द हो गया था ।
“माइक कहां है ?” - युवक हाल के बीच में आकर दहाड़ा ।
किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया । लोग धीरे-धीरे होटल के बाहर की ओर खिसक रहे थे । प्रत्यक्ष था कि वे लोग किसी घपले में नहीं फंसता चाहते थे ।
युवक ने एक वेटर के गिरेबान को पकड़ लिया और उसे बुरी तरह झिंझोड़ता हुआ बोला - “माइक कहां है ?”
वेटर की घिग्गी बन्ध गई थी ।
“उस हरामजादे को बुलाओ और उसे कहो कि अगर मुझे अभी सात हजार रूपये न लौटाये गये तो मैं उसके जुआघर का राज खोल दूंगा ।”
और उसने एक झटके से वेटर को परे धकेल दिया ।
सुनील के कान खड़े हो गये । वह लपककर उस युवक के सामने आया और बोला - “आपको मालूम है, माइक का जुआघर कहां है ?”
“हां मालूम है ।” - वह झूमता हुआ बोला - “मुझे साला आज ही मालूम हुआ है ।”
“कैसे मालूम हुआ आपको ?” - सुनील ने उतावले स्वर में पूछा ।
“मुझे यहां से मोना नाम की एक होस्टेस ले गई थी । मैं वहां सात हजार रुपये जीता था । मैं नशे में था । वापसी में मोना ने या उसकी कार के ड्राइवर ने मेरी जेब से रुपया निकालकर मुझे कार से बाहर धकेल दिया... लेकिन तुम साले यह पूछने वाले कौन हो ? मुझे माइक के बारे में बताओ... माइक कहां है ? माइक !”
“लेकिन माइक का जुआघर है कहां ?” - सुनील ने उसे झिंझोड़ते हुये पूछा ।
“हट” - युवक सुनील को धकेलते हुये चिल्लाया - “माइक को लाओ । नहीं तो इस होटल में आग लगा दूंगा । ज्यूल बाक्स का डिब्बा बना दूंगा । माइक ! माइक ! !”
युवक फिर बहक गया ।
सुनील परेशान सा खड़ा उससे मतलब की बात कहलवाने की तरकीब सोच रहा था ।
उसी समय कोई बोल पड़ा - “माइक आ रहा है ।”
माइक का नाम सुनकर युवक भी तनकर खड़ा हो गया और चिल्लाया - “कहां है वह उल्लू का पट्ठा ?”
सुनील ने देखा, माइक एक लम्बा किन्तु पतले शरीर का क्रिश्चियन था । वह एक बहुमूल्य सूट पहने हुआ था । उसका चेहरा क्रोध से भभक रहा था । शायद पूरी घटना की सूचना उसे मिल चुकी थी ।
वह युवक के सामने आकर खड़ा हो गया ।
“तुम माइक हो ?” - युवक ने झुककर पूछा ।
उत्तर में माइक के बांये हाथ का घूंसा युवक के पेट से टकराया । युवक के मुंह से एक कराह निकली और वह दर्द से बिलबिला कर दोहरा हो गया । माइक के दांये हाथ का घूंसा बिजली की तरह उसकी खोपड़ी पर पड़ा ।
युवक फर्श पर माइक के कदमों में लुढक गया । वह कई क्षण निश्चेष्ट पड़ा रहा ।
माइक ने यूं हाथ झाड़े जैसे मच्छर मारकर हटा हो और फिर आर्केस्ट्रा की दिशा में घुमकर चिल्लाया - “संगीत शुरू करो ।”
सुनील सकते की हालत में एक खम्बे के पास खड़ा था ।
माइक ने एक बार निश्चेष्ट पड़े युवक के शरीर को देखा और फिर अपने अपने बूट की ठोकर युवक की पसलियों में मारी ।
यहीं माइक धोखा खा गया ।
मार पड़ने के कारण युवक का काफी नशा हिरन हो चुका था । उसने माइक की टांग पकड़ ली । उसने टांग को एक बार पूरी शक्ति से गोलाई में घुमाया और जोर का झटका देकर छोड़ दिया ।
माइक मुंह के बल हाल के चिकने फर्श पर गिरा ।
युवक खड़ा हो गया और माइक के उठने की प्रतीक्ष करने लगा ।
दो तीन वेटर युवक की ओर झपटे ।
“ठहरो” - माइक उठता हुआ गरजा - “इस चूहे को कोई हाथ नहीं लगायेगा ।”
माइक घूंसा तानकर युवक की ओर लपका लेकिन युवक सतर्क था । उसने झुकाई देकर माइक के कन्धे को अपने बांये हाथ से पकड़ा और दाए हाथ का एक भरपूर घूंसा उसकी नाक पर जड़ दिया । अपना वजन न सम्भाल सकने के कारण माइक बार काउन्टर से टकराया और कई बोतलें उलट गयीं । उसके गले से निकली हाथ कांच की झनझनाहट से खो गई ।
“बरखुरदार !” - युवक उसकी ओर फिर बढता हुआ बोला - “तुम्हारी हड्डियों का सुरमा तो मैं बनाऊंगा ही, साथ ही तुम्हारे जुआघर का भी भंडा फोडूंगा और उस हरामजादी मोना-सोना से सात हजार रुपये भी वसूल करूंगा ।”
युवक ने माइक को उसके कोट के कालर से पकड़कर उठाया और उसके बाद तो उसने माइक को धुनकर रख दिया ।
माइक फर्श पर औंधा गिरा ।
युवक फिर उसकी ओर बढा ।
माइक बड़े कष्ट से पलटा और उसका दांय हाथ कोट की जेब में सरक गया ।
युवक एक विेजेता की तरह उसकी ओर बढ रहा था ।
उसी समय माइक के हाथ में एक रिवाल्वर चमक उठी ।
“नहीं ! नहीं ।” - सुनील चिल्लाया ।
रिवाल्वर ने एक बार आग उगली । युवक ठिठककर खड़ा हो गया । क्षण भर के लिये उसके चेहरे पर आतंक, पीड़ा और भय के भाव परिलक्षित हुये और फिर वह त्यौराकर फर्श पर गिर पड़ा ।
उसके माथे में एक सुराख दिखाई देने लगा था जिसमें से धुंआ निकल रहा था । हाल में मौत का सन्नाटा छाया हुआ था ।
माइक उठकर खड़ा हो गया ।
“कुत्ता !” - बड़बड़ाया और उसने दो और गोलियां उस युवक की छाती में धंसा दी ।
सुनील काउन्टर पर रखे टेलीफोन की ओर लपका । उसने काउन्टर पर खड़े क्लर्क को परे धकेला और रिसीवर उठा कर तेजी से पुलिस के नम्बर डायल करने लगा ।
“हैलो, हैलो पुलिस ।” - दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह चिल्लाया - “हैलो, मैं ज्यूल बाक्स से बोल रहा हूं । यहां एक हत्या...”
अगले शब्द उसके मुंह में ही रह गये । कोई भारी चीज उस के सिर से टकराई । उसकी आंखों के सामने लाल-पीले सितारे नाच उठे और वह लहराकर फर्श पर ढेर हो गया ।
***
पुलिस के दो सिपाही उसे झिंझोड़ रहे थे ।
सुनील ने एक बार जोर से आंखें मिचमिचाई और फिर आंखें फाड़-फाड़कर अपने चारों ओर देखने लगा ।
वह एक सुनसान सड़क पर पड़ा था । उससे लगभग पांच फुट दूर उसकी मोटर साइकिल उलटी पड़ी थी उसके मुंह का स्वाद बिगड़ा हुआ था जैसे कोई कसैली चीज खा ली हो ।
तनिक होश आने के बाद ज्यूल बाक्स की घटना उसके नेत्रों के सामने घूम उठी । उसका हाथ मशीन की तरह अपने सिर के पिछले भाग पर पहुंच गया । खोपड़ी बुरी तरह फूली हुई थी और उसमें से खून अब भी रिस रहा था ।
वह स्थिति को समझने में असफल सिद्ध हो रहा था ।
“मैं यहां कैसे आ गया ?” - सुनील बड़बड़ाया ।
“रात के बारह बजे शराब पीकर मोटर साईकिल दौड़ाते फिरोगे तो और कहां पहुचोगे, बाबूजी ।” - एक पुलिस वाला व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “यह तो शुक्र करो कि मोटर साइकिल खम्भे से टकरा जाने के बाद भी आप जिंदा हो वर्ना कब के ऊपर पहुंच चुके होते ।”
“बाबूजी अगर सम्हाली नहीं जाती तो इतनी पीते क्यों हो !” - दूसरा सिपाही बोला ।
“मैंने शराब पी है ।” - सुनील ने धीरे से पूछा ।
“अच्छा तुम्हें नहीं मालूम ।” - पहला सिपाही बोला ।
“बड़े भाई पता नहीं कितने गैलन विस्की पी गये हो । मुंह से भभूके छूट रहे हैं ।” - दूसरा बोला ।
सुनील की समझ में अब आया कि उसका मुंह कसैला क्यों हो रहा था ।
“लेकिन संतरी साहब, मैंने तो सिर्फ एक मग बियर पी थी ।” - सुनील बोला ।
“तुम्हारा मलतब है कि एक मग बियर से तुम पर एक ऐसा नशा छा जाता है कि तुम मोटर साइकिल को बिजली के खम्भे में दे मारते हो ?”
“मैंने मोटर साइकिल खम्भे में नहीं मारी है ।” - सुनील ने प्रतिवाद किया ।
“तो फिर खम्भा मोटर साइकिल से टकराया होगा ।”
“लेकिन संतरी साहब...”
“शोर मचाने की जरूरत नहीं है ।” - सिपाही कड़े स्वर से बोला - “अभी पुलिस की जीप यहां आ रही है । सफाई पुलिस स्टेशन पहुंच कर देना ।”
सुनील चुप हो गया । उसका मस्तिष्क धीरे-धीरे सक्रिय हो रहा था ।
लगभग पांच मिनट बाद पुलिस की गाड़ी आई और सुनील को उसमें सवार करा दिया गया ।
पुलिस स्टेशन पहुंचने तक सुनील स्वयं को पूरी तरह संतुलित कर चुका था ।
यह सुनील का दुर्भाग्य ही था कि उस समय पुलिस स्टेशन पर इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल की ड्यूटी थी ।
“अच्छा तो यह आप हैं ?” - प्रभूदयाल व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
सुनील ने स्वयं को एक कुर्सी पर ढेर कर दिया और फिर शांति ने बोला - “आपको क्या दिखाई दे रहा है ?”
“जानते हो शराब पीकर मोटर साइकिल चलाने के अपराध में तुम बन्द किये जो सकते हो ? अभी तो नशे में बहक कर तुमने मोटर साइकिल खम्भे में दे मारी है और अपने ही हाथ-पांव तुड़वाये हैं जबकि सम्भावना इस बात की थी कि तुम चार-पांच राहगीरों को कुचल देते ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुम एक जिम्मेदार नागरिक हो ।” - प्रभू दयाल को तो जैसे सुनील को फटकारने का वांछित अवसर मिल गया था - “इस शहर में तुम्हें अच्छा खासा सम्मान प्राप्त है, तुम ‘ब्लास्ट’ जैसे जिम्मेदार अखबार का प्रतिनिधित्व करते हो, क्या तुम्हारा यह कृत्य तुम्हारे स्तर का है ?”
“अब अपनी ही हांके जाओगे या मुझे भी कहने दोगे ?” - सुनील जलकर बोला ।
“अभी कुछ कहना बाकी है क्या ?”
“अभी मैंने कहा ही क्या है ?”
“तुम्हारी सूरत ही तुम्हारी कहानी कह रही है ।”
“मेरी सूरत पर मत जाओ, प्यारे भाई ! इतिहास गवाह है कि यह पहली बार नहीं है जबकि क्राइम ब्रांच के इन्स्पेक्टर प्रभू दयाल ने सुनील कुमार चक्रवर्ती स्पेशल कारसपोन्डेंट ब्लास्ट की सूरत देखकर धोखा खाया है ।”
“मैं मजाक के मूड में नहीं हूं, सुनील ।” - प्रभू दयाल उखड़ कर बोला ।
“क्यों ख्वामखाह अपने आपको महत्व दे रहे हो ! मजाक करने के लिये सारे राजनगर में क्या तुम ही बचे हो ?”
“सुनील !” - प्रभूदयाल चिल्लाया ।
“गरजने की जरूरत नहीं है ।” - सुनील बोला - “मैं रिपोर्ट दर्ज कराना चाहता हूं ।”
“कैसी रिपोर्ट ?”
“ज्यूल बाक्स में मुझ पर घातक हमला कर दिया गया है ।”
“सुनील, यह घिस्सा चलेगा नहीं ।”
“अब मेरी भी बात सुनोगे या अपनी ही हांके जाओगे ?”
“बको ।” - प्रभूदयाल बोला जैसे उसे अपनी बात कहने का अवसर देकर वह उस पर भारी एहसास कर रहा हो ।
उत्तर में सुनील ने ज्यूल बाक्स में घटी सारी घटना कह सुनाई ।
“प्रभू ?” - सुनील बोला - “यह माइक का ही काम है । उसके आदमियों ने ही मेरा अचेत शरीर होटल में से लाकर तीन मील दूर सुनसान सड़क पर ला पटका था, मेरे मुंह में विस्की डाल दी थी और मोटर साइकिल खम्भे में दे मारी थी ताकि बाद में यही समझा जाये कि मैं शराब के नशे में एक्सीडेंट कर बैठा ।”
“तुम्हारे पास इस बात को सिद्ध करने को कोई साधन है कि तुम ज्यूल बाक्स में घायल हुये हो ?” - प्रभूदयाल ने विचारपूर्ण स्वर से पूछा ।
“ज्यूल बाक्स में इतने आदमी थे । कईयों ने मुझ पर आक्रमण होता हुआ देखा होगा और फिर माइक ने वहां एक आदमी की हत्या भी तो की है । आखिर तुम उस हत्या को महत्व क्यों नहीं दे रहें हो ?”
“देखो सुनील ।” - प्रभूदयाल के स्वर में असाधारण गम्भीरता थी - “ज्यूल बाक्स में एक आदमी को गोली लगने का समाचार तो हमें मिला है और मेरे आदमी उस सिलसिले में तहकीकात भी कर रहे हैं लेकिन उस घटना को जो रंग तुम देने की चेष्टा कर रहे हो, वास्तव में वैसा कुछ नहीं हुआ है ।”
“क्या मतलब ?” - सुनील हैरान होकर बोला ।
“लगभग चार घंटे पहले माइक ने स्वयं टेलीफोन करके हमें सूचना दी थी कि उसे एक आदमी पर गोली चलानी पड़ी है ।”
“किसलिये ?”
“पूरी बात मुझे मालूम नहीं है । मेरे आदमियों ने अभी रिपोर्ट नहीं भेजी है । बहरहाल जो तुम कह रहे हो वैसा नहीं हुआ है ।”
“प्रभू !” - सुनील उत्तेजित होकर चिल्लाया - “यह फ्राड है । माइक ने एक आदमी की हत्या की है ।”
“की होगी ।” - प्रभूदयाल लापरवाही से बोला - “अभी हमारे सामने ऐसा कोई सबूत नहीं आया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि माइक हत्यारा है ।”
“तुम जो कुछ मैंने कहा है उसे नजर में रखते हुये तहकीकात करोगे तो बहुत कुछ सामने आयेगा ।”
“तहकीकात हो रही है और तहकीकात कैसे होती है ? यह हमें तुमसे नहीं सीखना है ।”
सुनील का चेहरा क्रोध से लाल हो उठा । वह चिल्लाया - “तुम... तुम...”
“नाउ !” - प्रभूदयाल बोला - “शटअप एण्ड गैट आउट । अगली बार फिर कभी शराब के नशे में गाड़ी चलाते हुये पकड़े गये तो महीना भर तो मजिस्ट्रेट के सामने भी पेश नहीं होने दूंगा । लाकअप में ही सड़कर रह जाओगे ।”
“प्रभू मैं कहता हूं...”
“तुम कुछ नहीं कहते हो ।” - प्रभूदयाल गरजा - “टेक दि हैल आउट आफ हेयर ।”
सुनील स्वयं को बेहद अपमानित अनुभव करता हुआ पुलिस स्टेशन से बाहर निकल आया ।
***
जिस समय सुनील ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में पहुंचा, उस समय एक बजने वाला था । ‘ब्लास्ट’ का प्रभात संस्करण आउट होने में अभी दो घंटे बाकी थे ।
उसे देखते ही चपरासी ने सलाम ठोका और फिर आश्चर्य चकित स्वर से बोला - “साहब आपके तो चोट लगी मालूम होती है, सारे चेहरे पर खून फैला हुआ है ।”
“हां, हां ? शोर मत मचाओ ।” - सुनील भन्नाये स्वर से बोला - “कहीं से स्प्रिट और रूई लेकर आओ ।”
“बहुत अच्छा, साहब ।”
सुनील अपने केबिन में धंस गया । वहां उसका एक सहयोगी जगत बैठा था ।
उसने एक नजर सुनील को देखा और फिर स्वयं को अपने सामने पड़े कागजों में उलझाता हुआ बोला - “बड़े अच्छे मौके पर आये, यार ।”
“क्यों ?” - सुनील ने स्वयं को एक कुर्सी पर ढेर करते हुये पूछा ।
जगत ने एक लम्बा-सा कागज सुनील के सामने फैक दिया ।
“जरा यह प्रूफ पढ दो आप ।” - वह बोला - “लोकल न्यूज की आखिरी न्यूज है यह ।”
सुनील ने बिना प्रतिवाद किये कागज उठाया और उसे लापरवाही से पढना आरम्भ कर दिया । पहली चार-पांच लाइनें पढने के बाद ही वह कुर्सी पर तनकर बैठ गया । उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव परिलक्षित होने लगे ।
जगत ने सुनील की इस प्रतिक्रिया को नोट नहीं किया था ।
सुनील ने कागज शुरू से पढना आरम्भ कर दिया । लिखा था - होटल ज्यूल बाक्स में दिन दहाड़े डाका डालने का प्रयत्न असफल ।
होटल के मालिक माइक का साहसपूर्ण कृत्य ।
होटल ज्यूल बाक्स में मनोरंजनार्थ आये हुये लोगों में उस समय सनसनी फैल गई जब एक युवक होटल में प्रविष्ट हुआ और फिर अपने दांये हाथ में थामे आटोमैटिक रिवाल्वर से हवा में फायर करता हुआ चिल्लाया - “कोई अपनी जगह से हिले नहीं वर्ना भूनकर रख दूंगा ।”
सब लोग सकते की हालत में अपने-अपने स्थान पर जड़वत हो गये । आर्केस्ट्रा बजना बन्द हो गया और उस भयानक सन्नाटे के बीच वह युवक हाथ में रिवाल्वर थामे होटल के कैश काउन्टर की ओर बढा ।
काउन्टर पर पहुंचकर उसने रिवाल्वर कैशियर की छाती पर रख दी और अपने बांये हाथ में पकड़ा एक चमड़े का बैग उसके सामने पटकता हुआ बोला - “कैश का सारा रुपया इसमें डाल दो ।”
कैशियर ने कांपते हाथों से बैग को नोटों से भर दिया ।
युवक ने बैग बन्द किया और उसे लेकर रिवाल्वर थामे बाहर के ओर चल दिया ।
ग्राहकों या होटल कर्मचारियों में से कोई भी उसे रोकने का साहस न कर सका । युवक राजसी ठाठ से लूट का मल समेट बाहर की ओर बढता चला गया ।
उसी समय मुख्य द्वार से ज्यूल बाक्स के मालिक माइक ने प्रवेश किया । उसे देखकर एक वेटर चिल्ला उठा - “साहब ! यह आदमी कैश लूटकर भाग रहा है ।”
माइक ने यह सुना तो वह युवक का रास्ता रोककर खड़ा हो गया ।
“रास्ते से हटो ।” - युवक रिवाल्वर उसकी ओर तानते हुये चिल्लाया ।
लेकिन माइक रास्ता छोड़ने के बजाय युवक की आंखों में आंखें डाले उसकी ओर बढने लगा ।
युवक ने माइक पर फायर झोंक दिया ।
सौभाग्य से गोली माइक को नहीं लगी । तभी माइक को ख्याल आया कि उसकी जेब में भी रिवाल्वर है । उसने बड़ी तटस्थता से जेब से रिवाल्वर निकाली और इससे पहले कि युवक दूसरा फायर कर सके माइक के रिवाल्वर से निकली गोली युवक के माथे में सुराख करती हुई गुजर गई । युवक के हाथ से कैश वाला बैग और रिवाल्वर निकलकर जमीन पर गिर गये और वह भी लहराकर फर्श पर ढेर हो गया ।
सबके मुंह से शांति की गहन निश्वांस निकल गई ।
उस लुटेरे युवक से निपटने में माइक ने जिस मानसिक तटस्थता का परिचय दिया है, वह प्रशंसनीय है । युवक का इस प्रकार की अनेकों घटनाओं से सम्बन्ध बताया जाता है । देश के विभिन्न नगरों में वह पहले भी इसी तरीके से बैकों और होटलों में डाके डाल चुका है पुलिस युवक की शनाख्त वगैरह के विषय में काम कर रही है ।
(देखिये चित्र पृष्ठ सात पर ऊपर)
“इस न्यूज के साथ तस्वीर कौन-सी जा रही है ?” - सुनील ने पूछा ।
जगत ने आठ गुना दस की एक तस्वीर उसकी ओर बढा दी ।
तस्वीर में खून के तालाब में डूबी हुई युवक की लाश पड़ी थी । उसके दांये हाथ के पास एक रिवाल्वर पड़ी थी और बांये से कुछ दूर एक चमड़े का बैग पड़ा था जिसमें से सौ-सौ के नोट बाहर झांक रहे थे ।
तस्वीर में गौर करने वाली बात यह थी कि युवक के दोनों हाथों पर दस्ताने चढे हुये थे जबकि सुनील ने उसे नंगे हाथ देखा था ।
सुनील न्यूज वाला कागज और तस्वीर हाथ में दबाये बाहर की ओर लपका ।
“अबे, यह प्रूफ कहां ले जा रहा है ?” - जगत चिल्लाया - “इसे अभी मशीन पर जाना है ।”
“यह खबर नहीं छपेगी ।” - सुनील केबिन में से निकलता हुआ बोला ।
“सुनील साहब, रुई और स्प्रिट ।” - चपरासी उसे देखकर रूई और स्प्रीट की शीशी सामने करता हुआ बोला ।
“इसे अपने सिर में पलट लो ।” - सुनील बोला और आंधी की तरह ब्लास्ट के चीफ एडीटर मलिक साहब के कमरे में घुस गया । संयोगवश मलिक साहब उस समय आफिस में मौजूद थे ।
सुनील ने इतनी जोर से द्वारा खोला था कि मलिक साहब का मेज पर पड़े कई कागज हवा में उड़ गये ।
“यह क्या बदतमीजी है ?” - वे चिल्लाये ।
“यह बदतमीजी नहीं, मलिक साहब ।” - सुनील कागज और तस्वीर मलिक साहब के सामने पटकथा हुआ बोला - “वह खबर है जो ब्लास्ट में नहीं जायेगी ।”
“क्यों ?” - मलिक की भवें सिकुड़ गयीं ।
“क्योंकि ‘ब्लास्ट’ को इस बात का गौरव प्राप्त है कि आज तक फ्रेम की हुई झूठी खबर नहीं छपी, उसमें आज तक प्रमाणित समाचार ही प्रकाशित होते हैं । क्या आप यह चाहते हैं कि ‘ब्लास्ट’ का यह रिकार्ड टूट जाये ?”
“मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा ।”
“आपने यह समाचार पढा है ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां, हां ।”
“मलिक साहब, उस युवक की सरासर हत्या की गई है । माइक ने क्रोध में अन्धा होकर उसे गोली मार दी थी । बाद में परिस्थिति को ऐसा रंग दिया था जिससे यह मालूम हो कि वह डकैती की नीयत से ज्यूल बाक्स में आया था और दुर्घटनावश माइक के हाथों मारा गया था । ज्यूल बाक्स में आने वाले लोगों पर माइक का काफी प्रभाव है इसलिये कोई भी माइक की कहानी को झुठलायेगा नहीं । माइक ही...”
“लेकिन तुम यह सब कैसे जानते हो ?” - मलिक साहब ने बात काटकर पूछा ।
“क्योंकि सारी घटना मेरी आंखों के सामने घटी थी और” - सुनील अपने सिर का घाव दिखाता हुआ बोला - “माइक की धांधली का यह सर्टीफिकेट मुझे भी मिला है ।”
“आखिर हुआ क्या था ?”
सुनील ने एक बार फिर सारी घटना दोहरा दी ।
मलिक साहब गम्भीर हो उठे ।
“अगर वास्तव में ऐसा हुआ है, सुनील” - वे बोले - “तो होटल में उस समय मौजूद आ‍दमियों में से कोई तो सच्ची घटना को सामने लाने का इच्छुक होगा ही ।”
“जरूर होगा ।” - सुनील बोला - “लेकिन मलिक साहब कोई खुद चलकर तो बयान देने आयेगा नहीं और पुलिस जिस ढीले-ढाले ढंग से मामले की तफ्तीश कर रही है, उससे तो साफ जाहिर है कि उन्हें माइक की कहानी की सत्यता में जरा भी संदेह नहीं है । मैंने इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल को यह बात सुनाई थी तो उसने मेरा मजाक उड़ा दिया था ।”
मलिक साहब कई क्षण चुप रहे ।
“भई, हमें तो यह समाचार न्यूज एजेन्सी से प्राप्त हुआ था ।” - वे बोले - “इसलिये हमने उसे ज्यों का त्यों प्रेस में दे दिया था । अब तुम जैसे चाहो इसकी ड्राफ्टिंग कर लो ।”
“आपको तो कोई आपत्ति नहीं है न ?”
“आपत्ति कैसी ?”
“क्योंकि हमारा अखबार बाकी अखबारों से एकदम उल्टी बात कर रहा होगा इसलिये हमारा दायित्व बहुत बढ जायेगा ।”
“दायित्व की चिन्ता मत करो । मुझे तुम पर भरोसा है सुनील ।”
“थैंक्यू, मलिक साहब ।”
“डोंट मैंशन ।”
सुनील ने समाचार का प्रूफ और तस्वीर वहीं फाड़कर रद्दी की टोकरी में डाल दी और मलिक साहब के कमरे से बाहर निकल आया ।
***
अगले दिन ‘ब्लास्ट’ के समाचार के सारे नगर में चर्चे थे । सुनील ने सारी घटना को बड़े शानदार ढंग से शब्दों में ढाला था । अन्त में उसने पुलिस के रवैये पर करारी चोट की थी ।
सुबह से ही ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में उत्सुक लोगों के धड़ाधड़ टेलीफोन आ रहे थे । कोई ‘ब्लास्ट’ के स्पष्ट भाषण की सराहना करता था तो कोई इसे अखबार को प्रसिद्ध करने का स्टन्ट कहकर उन्हें समाचार को सत्य सिद्ध करके के लिये प्रमाण प्रस्तुत करने का चैलेन्ज भी कर देता था ।
“यह तुमने क्या नया शोशा छोड़ दिया !” - रिसेप्सनिष्ट रेणु जो दिन भर से टेलीफोन काल रिसीव करती-करती परेशान हो चुकी थी, सुनील को देखकर बोली ।
“सब तुम्हारी ही खातिर हो रहा है मेम साहब ।” - सुनील बेफिक्री से बोला ।
“क्या मतलब ?” - रेणु हैरान होकर बोली ।
“मतलब यह कि स्त्रियों की खूबसूरती मेकअप की मोहताज होती है ।”
“यह ज्यूल बाक्स में हुई हत्या का स्त्रियों की खूबसूरती से क्या सम्बन्ध है ?”
“बड़ा गहरा सम्बन्ध है !”
“कैसे ?”
“देखो । किसी महापुरुष ने कहा है कि आदिकाल से लेकर आज तक औरतों के डिजाइन में तो रत्ती भर भी अन्तर नहीं आया है । लेकिन उनके स्टाइल आये दिन बदलते रहते हैं क्योंकि लिपस्टिकों के रंग और मेकअप के तरीके आये दिन बदलते रहते हैं । मतलब यह हुआ कि औरतों के व्यक्तित्व में उनके ढांचे का उतना महत्व नहीं है जितना का ऊपर की पालिश और...”
“क्या उल्टी-सीधी हांक रहे हो ?” - रेणु उसे टोककर बोली - “इसमें मेरी खातिर कहां से आ गई ?”
“वही तो बता रहा हूं ।” - सुनील तनिक भी हतप्रभ हुए बिना बोला - “लेकिन ऊपर के पालिश में बहुत रुपया खर्च होता है क्योंकि मेकअप का सामान दिन व बिन मंहगा होता जा रहा है । ठीक है ?”
“हां । लेकिन...”
“सुनो ! अगर ‘ब्लास्ट’ में ऐसी ही खबर छपती रहें जो ‘ब्लास्ट’ को छोड़कर किसी दूसरे अखबार में दिखाई न दें तो निश्चय ही ब्लास्ट की सेल बढेगी । ब्लास्ट की सेल बढेगी तो मालिक साहब को लाभ होगा । उन्हें लाभ होगा तो वे अपने कर्मचारियों का वेतन बढायेंगे । फिर तुम्हें भी अधिक वेतन मिलेगा तो तुम्हें अपनी पालिश का बढिया सामान खरीदने में और सहूलियत हो जायेगी । बढिया पालिश से तुम और सुन्दर लगोगी जिससे तुम ज्यादा मोटा मुर्गा फांस सकोगी । बस एक बार कोई मुर्गा फंसना चाहिये । फिर तो सारी जिन्दगी चैन से गुजर जायेगी । अब बताओ यह शोशा छोड़ने से तुम्हें फायदा हुआ या नहीं ?”
“अच्छा तो मुझे फायदा पहुंचाने की खातिर ही कल तुम अपना सिर तुड़वा आये थे ?”
“और क्या ?”
“और प्रमिला की खातिर तो शायद तुम जहर ही खा लो ।”
“जहर ?” - सुनील मुंह बिगाड़ कर बोला - “क्या बात कर रही हो रेणु ? भला वह भी कोई लड़की है । उसकी खातिर जहर तो क्या मिठाई भी नहीं खाई जा सकती । उसकी खातिर कुछ करने का इरादा भी करने से पहले तो अच्छा है कि आदमी चिड़ियाघर में जाकर मगरमच्छ के गले में हाथ डाल दे ।”
“कभी यह बात प्रमिला के सामने कहो न !” - रेणु बोली ।
“कह दूंगा । वह मुझे खा...”
उसी समय पी वी एक्स बोर्ड की पायलेट लाइट जल उठी, रेणु एकदम व्यस्त हो उठी -  “हैलो, ब्लास्ट हेयर ।”
कुछ क्षण सुन चुकने के बाद वह माउथ पीस पर हाथ रख कर सुनील से बोली - “तुम्हारी काल है कहां रिसीव करोगे ?”
“कौन है ?” - सुनील एकदम दिलचस्पी प्रकट करता हुआ बोला ।
“पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह ।”
सुनील का सारा उत्साह ठण्डा पड़ गया । जिस ढंग से ज्यूल बाक्स की हत्या का वर्णन सुनील ने अखबार में किया था । उससे उसे पूरा विश्वास था कि कोई न कोई ऐसा आदमी जो उस रात ज्यूल बाक्स में रहा हो, स्वयं को घटना की सत्यता को प्रमाणिक करने के लिये गवाह के रूप में जरूर प्रस्तुत करेगा । वह सुबह से ही ऐसे किसी आदमी के फोन का इन्तजार कर रहा था । लेकिन अभी तक किसी ने भी ब्लास्ट से सम्पर्क स्थापित नहीं किया था ।
“काल मेरे केबिन में डायरेक्ट कर दो ।” - सुनील बोला और तेज कदमों से अपने केबिन की ओर बढ गया ।
“जस्ट ऐ मूमेन्ट सर ।” - रेणु फोन पर कह रही थी - “आई एम पुटिंग यू टू मिस्टर सुनील ।”
केबिन में आकर सुनील ने अपना फोन उठाया और मेज के किनारे पर बैठता हुआ बोला - “हैलो, सुपर साहब ।”
“सुनील ।” - दूसरी ओर से आवाज आई - “यह ब्लास्ट में क्या लिख मारा है तुमने ।”
“तुमने अखबार पढा है ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां ।”
“तो फिर मुझसे क्या पूछ रहे हो ?”
“मैं तुमसे इस घटना की प्रमाणिकता के विषय में पूछ रहा हूं ।”
“सुपर साहब । जो कुछ मैंने लिखा है वह उतना ही सच है जितना कि तुम्हारा नाम रामसिंह है ।”
“सिद्ध कर सकते हो इसे ?”
“क्यों नहीं !”
“देखो सुनील । जो कुछ ब्लास्ट में छपा है वह न केवल माइक की सामाजिक प्रतिष्ठा पर सीधा आक्रमण है बल्कि पुलिस की योग्यता को भी चैलेंज है । अगर तुम अपने कथन को सिद्ध न कर सके तो दोनों के कोप का भोजन बनोगे ।”
“देखा जायेगा ।” - सुनील लापरवाही से बोला ।
“तुम्हारी जानकारी के लिये मैं तुम्हें यह बता देना चाहता हूं कि आज माइक और इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल दोनों ही मुझसे मिले थे । माइक ब्लास्ट पर दो लाख रुपये का मानहानि का दावा करने वाला है और इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल क्योंकि तुम्हारी कहानी से ज्यादा माइक की कहानी पर विश्वास करता है । इसलिये वह माइक को हर प्रकार का सहयोग देने वाला है । प्रभू को जरा सा मौका मिलने की देर है, वह तुम्हें रगड़ कर रख देगा ।”
“आखिर तुम कहना क्या चाहते हो ?”
“मैं कहना चाहता हूं कि मैं तुम्हारा मित्र जरूर हूं लेकिन इस मामले में मुझसे किसी प्रकार के सहयोग की आशा मत रखना ।”
“किससे सहयोग की आशा न रखूं ? अपने मित्र रामसिंह से या पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह से ?”
दूसरी ओर से कई क्षण कोई आवाज नहीं आई । फिर राम सिंह बोला - “पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह से ।”
“तो फिर मेरे मित्र रामसिंह से प्रार्थना है कि वह माइक से एक प्रश्न पूछे ।”
“क्या ?”
“अगर माइक ने उस युवक को अपनी सुरक्षा के लिये ही गोली मारी थी तो फिर उसने तीन गोलियां क्यों चलाई ? क्या एक ही गोली उस युवक के आक्रमण से माइक का बचाव नहीं कर सकती थी ?”
रामसिंह चुप रहा ।
“हैलो ।” - सुनील जोर से बोला ।
“सुनील ।” रामसिंह का स्वर सुनाई दिया - “हो सकता है तुम्हारी ही बात ठीक हो लेकिन परिस्थिति...”
“ऐसी की तैसी परिस्थिति की । मैंने सच कहा है और सच की जीत का मुझे पूरा भरोसा है ।”
“खैर ! मैंने चेतावनी दे दी तुम्हें कि इस बार तुम बहुत ऊंची छलांग लगा रहे हो ।”
“धन्यवाद ।” - सुनील कड़वे स्वर में बोला ।
दूसरी और से कनैक्शन कट गया ।
सुनील ने टेलीफोन पटका और ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर से बाहर निकल आया ।
अन्धेरा हो चला था । सड़क पर चहल पहल बहुत बढ गई थी । सुनील ने आस-पास दूर-दूर तक नजर दौड़ाई लेकिन उसे कहीं भी टैक्सी दिखाई नहीं दी । उसकी मोटर साइकिल अभी भी रिपेयर शाप में पड़ी थी ।
सुनील पैदल ही चल पड़ा ।
उसका मस्तिष्क एक शतरंज के खिलाड़ी की तरह माइक के विरूद्ध अपनी अगली चाल सोच रहा था ।
“एक्सक्यूज मी ।” - किसी ने उसे टोका ।
सुनील रुक गया उसने नजर उठाकर टोकने वाले सज्जन को देखा । उसने सुनील का शुक्रिया अदा किया और फिर शिष्ट स्वर से बोला ।
“आपको मालूम है ब्लास्ट का दफ्तर कहां है ?”
“बस यहां से पांच छ: ब्लाक ही आगे है ।” - सुनील बोला - “वैसे मैं भी ‘ब्लास्ट’ से ही सम्बन्धित हूं । मुझे खुशी होगी अगर मैं ही आपकी कोई सेवा कर सकूं ।”
वह आदमी क्षण भर हिचकिचाया और फिर बोला - “मैंने आज का ‘ब्लास्ट’ पढ़ा था ।”
“फिर ?”
“फिर यह कि आप लोगों ने जो कुछ लिखा है वह शत-प्रतिशत सच है ।”
“आप कैसे जानते हैं !”
“क्योंकि मैं भी कल ज्यूल बाक्स में मौजूद था जब यह घटना घटी थी माइक ने उस युवक की सरासर हत्या की थी ।”
सुनील उत्साहित हो उठा । ऐसे ही किसी आदमी की उसे तलाश थी ।
“आप सही बात अपने बयान के रूप में हमें ‘ब्लास्ट’ में छापने की अनुमति दे सकते हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“देखिये” - वह आदमी हिचकिचाता हुआ बोला - “मैं पब्लिसिटी से बहुत डरता हूं । इसलिये मैं पुलिस में नहीं गया ।”
“हम आपका नाम सामने नहीं लायेंगे । आप मुझे एक लिखित बयान दे दीजिये और हम उसे बिना आपका जिक्र बीच में लाये छाप देंगे ।”
वह आदमी असमन्जसपूर्ण मुद्रा बनाये खड़ा रहा ।
“भाई साहब ।” - सुनील उसे उत्साहित करता हुआ बोला - “आप जानते नहीं हैं इस घटना के सही तथ्यों पर प्रकाश डाल कर आप समाज का कितना बड़ा उपकार करेंगे । माइक जैसे लोगों का खात्मा होना ही चाहिये । आज जैसे वह युवक मारा गया कल हम या आप या कोई और भी इसी प्रकार अपनी जान से हाथ धो सकता है । आपके बयान देने से माइक के आदमियों द्वारा निकट भविष्य में होने वाले न जाने कितने अपराधी टल सकते हैं !”
“बेहतर ।” - वह आदमी धीरे से बोला - “मैं हर प्रकार का सहयोग देने के लिए तैयार हूं ।”
“तो फिर आइये ।” - सुनील उसका हाथ पकड़कर आफिस की ओर अग्रसर होता हुआ बोला ।
“ब्लास्ट के दफ्तर में नहीं, साहब ।” - वह बोला ।
“क्यों ?”
“फिलहाल मैं यह नहीं चाहता कि कोई यह समझे कि मैं स्वयं चलकर बयान देने गया था । मैं यह प्रकट करना चाहता हूं कि अखबार वालों ने ही मुझे खोज निकाला था ।”
“तो फिर किसी रेस्टोरेन्ट में चलें ?” - सुनील ने पूछा ।
“नहीं, आप मेरे साथ आईये ।”
सुनील बिना कोई विरोध किये उसके साथ चल दिया ।
वह आदमी कुछ क्षण सुनील के साथ-साथ घने बाजारों की भीड़भाड़ में चलता रहा और फिर एक गली में घुस गया ।
“आप कहां जा रहे हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“अपने घर ।” - उसने संक्षिप्त सा उत्तर दिया ।
सुनील चुप हो गया ।
वह आदमी संकरी-संकरी गलियां तय करने लगा ।
“अभी और कितनी दूर चलना है ?” - सुनील ने पूछा - “मैं तो चलते-चलते थक गया ।”
“बस साहब ।” - वह आदमी मुस्कराकर बोला - “इतने बेरहम थोड़े ही हैं हम । लौटती बार तो हम आपको गली से बाहर तक स्ट्रेचर पर और उसके बाद एम्बूलैंस पर भेजेंगे ।”
“क्या मतलब ?”
“अभी बताता हूं ।” - वह आदमी बड़े इत्मीनान से बोला और दूसरे ही क्षण उसके दाये हाथ का घूंसा सुनील के जबड़े पर पड़ा । सुनील पीछे की ओर लड़खड़ाया और धम्म से उसकी पीठ दीवार के साथ जा टकराई । आक्रमण ऐसे अप्रत्याशित ढंग से हुआ था कि सुनील को कुछ भी समझने का मौका नहीं मिला । उस आदमी ने आगे बढकर उसे कमीज के कालर से पकड़ा और एक घूंसा उसके मुंह पर जड़ कर उसने कालर छोड़ दिया । सुनील एक बार फिर दीवार से टकराया और फिर फरफराकर जमीन पर ढेर हो गया । उस आदमी के बूट की ठोकर उसके पेट में पड़ी और वह बिलबिला कर दोहरा हो गया । उसके मुंह से एक लम्बी हाय निकली और उसने अपने हाथ-पांव गली की ऊबड़-खाबड़ जमीन पर ढीले छोड़ दिये ।
“हत तेरे की ।” - वह आदमी बड़बड़ाया - “साहब तो दो ही हाथों में ठण्डे हो गये ।”
वह आदमी घुटनों के बल सुनील के शरीर के पास बैठ गया और सुनील की आंखों की पुतलियां देखने लगा ।
“उठो न, रिपोर्टर प्यारे ।” - वह आदमी सुनील के गाल थपथपाता हुआ बोला - “इतने दिनों बाद तो माइक ने हाथ सेकने का मौका दिया है और तुम दो ही मिनट में लम्बे लेट गये ।”
उसी समय सुनील के दोनों हाथ बिजली की तरह उस आदमी की गरदन से लिपट गये । सुनील ने अपने शरीर की सारी शक्ति संचित करके उसकी गरदन को एक जोर का झटका दिया । उस आदमी का शरीर हवा में एक कलाबाजी खा गया और फिर धड़ाम से जमीन पर आकर गिरा । उसके मुंह से एक चीख निकल गई । उसके चेहरे पर दर्द से अधिक आश्चर्य के भाव परिलक्षित हो रहे थे । शायद उसे सुनील से चोट खा जाने की स्वप्न में भी आशा नहीं थी वह आदमी लड़खड़ाता हुआ फर्श से उठने लगा । सुनील उसके सीधे होने की प्रतीक्षा करता रहा । उसके सीधे होते ही सुनील ने बांयें हाथ का एक हुक उसके मुंह पर दिया । उसके मुंह में से रक्त की लकीर फूट पड़ी । साथ ही सुनील का दांया हाथ वज्र की तरह उसकी खोपड़ी पर आकर गिरा, उसका शरीर एक लम्बी कराह के साथ फिर फर्श पर लहरा गया । लेकिन इस बार सुनील ने उसे जमीन नहीं चूमने दी । उसने रास्ते में ही उस आदमी के शरीर को रोका और उसके पेट में लगातार तीन-चार भरपूर घूंसे जड़ दिये । उसका शरीर रेत के बोरे की तरह सुनील की बांहों में झूल गया ।
“मुझे स्ट्रेचर और एम्बूलेंस पर भेज रहे थे, बड़े भाई” - सुनील विषैले स्वर से बोला - “क्यों न मैं ही तुम्हें सीधा अर्थी पर भेज दूं ।”
सुनील ने दोनों हाथों से उसका सिर पकड़ा और पूरी शक्ति से उसे दीवार के साथ टकरा दिया । इस बार उस आदमी के मुंह से कराह निकली । वह पूरी तरह चेतना खो बैठा ।
सुनील ने उसके अचेत शरीर को यूं फर्श पर डाल दिया जैसे वह मरे हुये चूहे को ड्रम में डाल रहा हो ।
वह अपने चेहरे को हाथ से पोंछता हुआ लौटने के लिये घूमा ।
दो लम्बे चौड़े शरीर उसका रास्ता रोके खड़े थे ।
“तुम कहां से टपक पड़े हो, बड़े भाईयों ।” - सुनील ने आश्चर्य व्यक्त करते हुये पूछा ।
“यह नारायण है ।” - उनमें से एक आदमी बोला - “यह कहता था कि वह तुम्हारे लिये अकेला ही काफी है जबकि मेरा ख्याल था कि तुम्हारी धुनाई हम तीनों के हाथों से सामूहिक रूप से होनी चाहिये ।”
“इसको अपने बल प्रदर्शन का मौका देने के लिये ही अभी तक हम दोनों अलग खड़े थे ।” - दूसरा बोला ।
“तो अब क्या इरादे हैं ?” - सुनील ने लापरवाही से पूछा । उसका एक हाथ धीरे-धीरे अपनी पैंट की चमड़े की बैल्ट की ओर सरक रहा था जिसमें एक मोटा-सा लोहे का बक्कल लगा हुआ था ।
“इरादा क्या होना है !” - पहला आदमी बोला - “नारायण का अधूरा काम हम पूरा किये देते हैं ।”
और वे दोनों उसकी ओर झपटे ।
“रुको-रुको ?” - सुनील चिल्लाकर बोला ।
वे क्षण भर के लिये रुक गये ।
“भाइयो” - वह नाटक सा करता हुआ बोला - “धुनाई तो मेरी होनी है लेकिन मेरे इस सूट ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है । अभी परसों नया सिलवाया है ।”
“चाहते क्या हो तुम ?”
“मैं चाहता यह हूं कि मेरा भुरकुस निकालने से पहले कम से कम मुझे कोट उतारने का मौका तो दे ही दो । अगर तुम लोगों के हाथों से जिन्दा बच गया तो कभी फिर पहन लूंगा, और वैसे भी मुझे नाक आउट करने में तुम्हें भी सहूलियत हो जायेगी क्योंकि फिर मेरे शरीर पर जरा करारे हाथ पड़ेगे ।”
दोनों विचित्र दृष्टि से एक-दूसरे का मुंह देखने लगे ।
“यह हमें घिस्सा देने की कोशिश कर रहा है ।” - दूसरा बोला और फिर सुनील की ओर झपट पड़ा ।
लेकिन सुनील का कोट तब तक उसके शरीर से उतरकर हाथ में आ चुका था । उसने यह कोट फैलाकर झपटते हुये आदमी की ओर फेंक दिया । क्षण भर के लिये कोट से उसका चेहरा पूरी तरह ढंक गया । उतनी देर में सुनील की लोहे के बक्कल वाली बैल्ट उसकी पैंट में से निकलकर उसके हाथ में आ चुकी थी उसने बैल्ट घुमाकर उसका भरपूर प्रहार कोट से ढंके हुये चेहरे पर किया । वह आदमी लड़खड़ाकर पीछे हटा और अपने साथी से टकराया । सुनील को सम्भलने के लिये इतना समय पर्याप्त था उसने उन दोनों आ‍दमियों को बैल्ट से धुन कर रख दिया वे दोनों बैल्ट के प्रहार से बचकर सुनील तक पहुंचने की लाख चेष्टा करते थे, लेकिन उस संकरी सी गली में वे बैल्ट के प्रहार से बच नहीं रहे थे ।
कुछ क्षणों बाद उनमें से एक आदमी धराशाई हो गया । दूसरे ने जब अपने साथी का यह हाल देखा तो वह उल्टे पांव भागा ।
लेकिन सुनील पर तब तक शैतान सवार हो चुका था । उसने बैल्ट को यूं घुमाया कि वह भागने वाले की टांग में जा लिपटी । उसने बैल्ट को एक जोर का झटका दिया । वह आदमी मुंह के बल जमीन पर गिरा । सुनील ने उसे दोबारा उठने का मौका नहीं दिया । बैल्ट के दो-तीन भरपूर हाथों ने ही उस आदमी की भी चेतना लुप्त कर दी ।
सुनील का हाथ रुक गया । वह बुरी तरह हांफ रहा था वह दीवार के साथ पीठ लगाकर कई क्षण अपने सांसों को व्यवस्थित करने की चेष्टा करता रहा । उसका जबड़ा बुरी तरह दुख रहा था । नारायण के दो घूंसे वाकई बड़े जोर के पड़े थे ।
फिर उसने अपनी बैल्ट को पैंट पर कसा, पहले आदमी के नीचे से अपना कोट निकाला और उसे पहनता हुआ गली के बाहर की ओर चल दिया ।
गली बाहर आकर जिस बाजार से मिलती थी उसके एक और कार्पोरेशन का बोर्ड लगा हुआ था जिस पर लिखा था -
मेहता रोड ।
सुनील को मेहता रोड के एक कोने में एक पब्लिक टेलीफोन बूथ दिखाई दिया ।
सुनील ने बूथ में घुसकर डायरेक्टरी में होटल ज्यूल बाक्स का नम्बर देखा और फिर नम्बर डायल कर दिया ।
“होटल ज्यूल बाक्स प्लीज ।” - दूसरी ओर से आपरेटर का स्वर सुनाई दिया ।
“मिस्टर माइक देयर ?” - सुनील ने पूछा ।
“जस्ट होल्ड आन ।”
सुनील रिसीवर कान से लगाये खड़ा रहा ।
“हैलो, माइक स्पीकिंग ।” - कई क्षण बाद माइक का स्वर सुनाई दिया ।
“माईक !” - वह कर्कश स्वर में बोला - “मेहता रोड की एक गली में तुम्हारे तीन आदमी, जिनमें से एक का नाम नारायण है, अधमरी हालत में पड़े हैं, उन्हें वहां से उठवा लेना ।”
“कौन हो तुम ?” - माइक का हड़बड़ाया स्वर सुनाई दिया ।
“सरदार ।”
“सरदार कौन ? पूरा नाम बताओ ?”
“सरदार वल्लभ भाई पटेल ।”
और सुनील ने रिसीवर हुक पर पटक दिया और बूथ से बाहर निकल आया ।
मेहता रोड पर उसे एक टैक्सी मिल गई । उसने ड्राइवर को बैंक स्ट्रीट स्थित अपने फ्लैट का पता बताया और फिर पिछली सीट पर अपना शरीर ढीला छोड़ दिया ।
***
सुनील की आंख खुल गई ।
कोई लगातार उसके फ्लैट की घण्टी बजाये जा रहा था ।
सुनील ने घड़ी देखी, सूर्योदय में अभी भी कम से कम डेढ घन्टा बाकी था ।
इतनी सवेरे कौन हो सकता है ! सुनील सोचता हुआ बिस्तर से निकला और अपनी नींद से भरी आंखों को झपकाता हुआ मुख्य द्वार की ओर बढ गया । केवल प्रमिला ही कभी-कभी इतनी सवेरे आया करती थी लेकिन वह तो घण्टी कभी भी नहीं बजाती थी ।
घन्टी अभी भी बज रही थी ।
“खोलता हूं ।” - सुनील ऊंचे स्वर से बोला ।
घण्टी बजनी बन्द हो गई ।
सुनील नींद की मदहोशी में द्वारा खोलने वाला ही था कि रात की लड़ाई चलचित्र की तरह उसकी आंखों के सामने घूम गई ।
द्वार में आंख की सीध में लगभग आधे इन्च व्यास का एक छिद्र था जिसमें एक ऐसा शीशा लगा हुआ था । जिसमें से भीतर से बाहर तो देखा जा सकता था लेकिन बाहर से भीतर देखना सम्भव नहीं था ।
सुनील ने उसे छिद्र पर अपनी आंख लगा दी ।
वे चार थे । उसमें से तीन वही थे जिनसे पिछली रात सुनील की मेहता रोड की गली में लड़ाई हुई थी । सबसे आगे नारायण था और उसके हाथ में एक रिवाल्वर चमक रही थी जिसकी लक्षय, अगर बीच में द्वार न होता तो सुनील के पेट की ओर था ।
सुनील एकदम दीवार से पीछे हट गया और फिर जोर से चिल्लाया - “अभी खोलता हूं जरा कपड़े पहन लूं ।”
सुनील को भय था कि कहीं देर होती देखकर वे लोग द्वारा ही न तोड़ दें ।
उसने बिजली की फुर्ती से नाइट सूट उतारकर पैंट-कमीज पुलोवर और कोट पहना जूते पैंट की जेब में खोंसे और किचन में घुस गया ।
किचन की खिड़की पिछली गली में पड़ती थी । गली लगभग पांच फुट चौड़ी थी ।
घन्टी फिर बज उठी ।
“एक मिनट !” - सुनील चिल्लाया ।
वह खिड़की की सिल पकड़कर उस पर चढ गया । किचन की खिड़की के साथ ही लोहे का रेन पाइप था । वह बन्दरों की तरह पाइप पकड़कर इमारत की छत की ओर सरकने लगा ।
अब घण्टी के साथ-साथ द्वार को खड़खड़ाने का स्वर भी सुनाई दे रहा था ।
“द्वार तोड़ दो ।” - उसे नारायण की चिल्लाहट सुनाई दी - “और एक आदमी छत पर चला जाये । वह जरूर भागने की चेष्टा कर रहा है । तुम छत से पिछली गली पर नजर रखना । नीचे गली में एक आदमी पहले से ही नजर रख रहा है ।”
सुनील पूरी तेजी से पाइप पर चढता रहा ।
अनजाने में ही उससे एक अक्लमन्दी हो गई थी कि वह पाइप के सहारे नीचे उतरने के स्थान पर छत पर पहुंचने की चेष्टा कर रहा था । अगर उसने गली में उतरने की चेष्टा की होती तो अभी तक भूनकर रख दिया होता । अन्धकार के कारण वह नीचे वाले को पाइप पर चढता दिखाई नहीं दिया था ।
वह छत पर पहुंच गया ।
सीढियों की ओर से किसी के छत पर आने की आवाज आ रही थी ।
सुनील स्टार्ट लेने के लिये गली की ओर वाली छत की मुंडेर से लगभग दस कदम पीछे हटा फिर एकदम मुंडेर की ओर भागा और उसने सामने वाली इमारत की छत पर छलांग लगा दी ।
सामने वाली इमारत की मुंडेर उसके हाथ में आ गई ।
अगर उसकी छलांग आधा फुट भी इधर समाप्त हो गई होती तो चार मन्जिली इमारत से गली की पक्की सड़क पर गिरकर उसके शरीर की धज्जियां उड़ जातीं ।
उसी समय सुनील के फ्लैट वाली छत पर एक आदमी प्रकट हुआ । सुनील ने मुंडेर के साथ-साथ नीचे की ओर जाता हुआ पाइप पकड़ लिया और नीचे उतरने लगा ।
ऊपर चढने से नीचे उतरना आसान काम था ।
पाइप के साथ सुनील को जो पहली खिड़की दिखाई दी, वह उसकी सिल पर चढ गया ।
सुनील को हैरानी कि इतना शोर-शराबा मचने के बाद भी उसकी बिल्डिंग के किसी भी निवासी के कान पर जूं नहीं रेंगी थी ।
यहां तक उसके एकदम बगल वाले फ्लैट में रहने वाली प्रमिला को भी कुछ पता नहीं लगा था । शायद सर्दियों के मौसम का असर है, सुनील ने सोचा ।
सौभाग्य से वह खिड़की खुली थी । सुनील ने अन्दर छलांग लगा दी । यह किचन की खिड़की थी । सुनील ने देखा यह खिड़की उसके फ्लैट के एकदम पड़ती थी और उसमें से सुनील का पूरा बैडरूम और ड्राइंगरूम का काफी बड़ा भाग दिखाई दे रहा था ।
नारायण अपने साथियों के साथ द्वार तोड़कर अन्दर घुस आया था ।
सुनील ने धीरे से खिड़की बन्द कर दी ।
उसी समय उस फ्लैट में किसी के पांवों की आवाज सुनाई दी जो निरन्तर तेज होती जा रही थी । कोई किचन की ओर आ रहा था ।
इससे पहले कि सुनील कुछ फैसला कर पाता, किचन का द्वार खुला और एक महिला प्रकट हुई । उसकी एक बांह अपने ड्रेसिंग गाऊन में थी और दूसरी बांह पहनती-पहनती ही वह किचन की ओर चल पड़ी थी । उसके शरीर पर ड्रेसिंग गाऊन के अतिरिक्त, जो अभी पूरी तरह पहना भी नहीं गया था, और कोई कपड़ा नहीं था । शायद वह सीधी बिस्तर में से निकलकर आ रही थी ।
क्षण भर के लिये वह विस्फारित नेत्रों से सुनील को देखती रही, फिर उसने बड़ी तेजी से अपने शरीर को ड्रेसिंग गाऊन से ढका और फिर वह चिल्लाने ही वाली थी कि सुनील ने झपटकर उसका मुंह दबोच लिया ।
“भगवान के लिये चिल्लाने की चेष्टा मत कीजिये ।” - सुनील विनयपूर्ण स्वर से बोला - “मैं चोर नहीं हूं ।”
वह सुनील के बंधन से निकलने के लिये हाथ-पांव झटकने लगी लेकिन सुनील की पकड़ बहुत मजबूत थी । कुछ क्षणों बाद उसने विरोध करना छोड़ दिया ।
“आप चिल्लायेंगी तो नहीं ?” - सुनील ने उसके शरीर को शिथिल होते देखकर पूछा ।
उसने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
सुनील ने उसे छोड़ दिया ।
उसकी सांस धोंकनी की तरह चल रही थी ।
“जोर आजमाइश करने के लिये मैं ही मिली थी ।” - हांफते हुये वह बोली ।
“मुझे अफसोस है ।” - सुनील विनय की मूर्ति बनता हुआ बोला ।
“आखिर यह तमाशा क्या है ?” चोर तो तुम लगते नहीं हो । सूरत से तो अच्छे-खासे शरीफ और पढे-लिखे इन्सान लग रहे हो ।”
“आपने बिल्कुल ठीक पहचानता है मैं शरीफ हूं और पढा-लिखा भी ।”
“लेकिन मेरी किचन में कहां से टपक पड़े हो ?”
“मैं सामने वाली बिल्डिंग में रहता हूं ।” - सुनील बोला ।
“लेकिन सुबह-सुबह यहां कैसे आ पहुंचे ?”
“छत कूदकर ।”
“क्या ?” - वह हैरानी से बोली ।
“देखिये ।” सुनील वातावरण के तनाव को कम करने के अभिप्राय से बोला - “डार्विन ने कहा है कि इन्सान के पूर्वज बन्दर थे । अपने पूर्वजों का थोड़ा बहुत प्रभाव तो आज भी इन्सान में परिलक्षित होना ही चाहिये ।”
महिला के चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट फूट पड़ी ।
“लेकिन डार्विन की थ्योरी को सिद्ध करने की जरूरत क्यों आ पड़ी थी ?” - उसने पूछा ।
“दरअसल बात यह हुई कि पिछली रात को मैं अपनी एक परिचित महिला को डिनर के लिये अपने फ्लैट पर ले आया था रात को बहुत देर हो गई, सर्दी भी बहुत बढ गई थी और उसे नगर के एकदम दूसरे सिरे पर जाना था, इसलिये मैंने उसे रात को वहीं सो रहने के लिए तैयार कर लिया । आप यकीन कीजिये, मैंने किसी गलत इरादे से उसे अपने फ्लैट पर नहीं रोका था लेकिन अभी लगभग आधा घन्टा पहले बड़ी गड़बड़ हो गई ।”
“क्या हुआ ?” - वह दिलचस्पी लेती हुई बोली ।
“उस महिला के पति ने मेरा द्वार आ खटखटाया । साथ में वह एक फोटोग्राफर भी लाया था । मैं उस महिला के सम्मान की रक्षा के लिये खिड़की में से निकल कर भाग लिया । अब यह कहकर अपने पति को प्रभावित कर सकती है कि मैं तो एक रात के लिये उसे अपना फ्लैट उधार देकर स्वयं कहीं और सोने के लिये चला गया था ।”
“क्या मैं इस कहानी पर विश्वास कर लूं ?”
“कर ही लीजिये ।” - सुनील क्षण भर रुककर बोला - “वर्ना दूसरी इससे अधिक विश्वास करने योग्य कहानी सोचने में तो मेरे दिमाग के पेंच ढीले हो जायेंगे ।”
“आल राइट ।” - वह बोली - “अगर तुम्हारा इरादा वाकई कोई शरारत करने का नहीं है तो चुपचाप यहां जब तक चाहो रहो । तुम्हारी कहानी कुछ भी हो, मुझे उसमें दिलचस्पी नहीं है, मैं बैडरूम में जा रही हूं कपड़े पहनने के लिये । मेरे पीछे-पीछे मत चले आना ।”
“ओ के मैडम ।” - सुनील सिर को तनिक झुकाता हुआ बोला - “एण्ड थैंक्यू वैरी मच ।”
“नो मैडम बिजनेस ।” - वह बोली - “काल मी मिस ।”
“मिस...”
“मिस सोनिया ।”
“राइट मिस सोनिया... थैंक्स अगेन ।”
सोनिया किचन से बाहर चली आई ।
सुनील ने जरा-सी खिड़की खोलकर बाहर झांका । भोर का हल्का सा प्रकाश फैलने लगा था । सुनील के फ्लैट वाली इमारत की छत पर अब भी एक आदमी अपने ओवरकोट की जेब में हाथ डाले घूम रहा था । सुनील ने नीचे झांका । गली में भी उसे एक आदमी दिखाई दिया ।
लेकिन साथ ही उसे एक और चीज दिखाई दी । सोनिया के फ्लैट तक टेलीफोन के तार आ रहे थे ।
एक विचार बिजली की तरह सुनील के दिमाग में कौंध गया कहीं यह औरत कपड़े बदलने के बहाने बैडरूम में जाकर पुलिस को तो फोन नहीं कर रही ।
सुनील किचन में से निकलकर बैडरूम की ओर लपका ।
उसने बैडरूम के द्वार के साथ अपने कान लगा दिये । भीतर से टेलीफोन के डायल से निकलने वाली विेशेष प्रकार की कड़कड़ की आवाज आ रही थी ।
सुनील ने एक झटके से द्वार खोला ।
लेकिन सुनील आगे न बढ सका । कमरे में दो पलंग बिछे हुये थे । उनके बीच में एक छोटी से तिपाई थी जिस पर टेलीफोन रखा था । सोनिया दोनों पलगों के बीच के स्थान में खड़ी टेलीफोन का डायल घुमा रही थी । सुनील को आगे बढने से जो चीज रोक रही थी, वह थी सोनिया के दांये हाथ में थमी एक छोटी सी रिवाल्वर जिसकी नाल का रुख सुनील की छाती की ओर था ।
“वहीं खड़े रहो ।” - वह बर्फ जैसे ठन्डे स्वर से बोली । अगर एक कदम भी आग बढे तो मैं यह परखने के लिये मजबूर हो जाऊंगी कि वह छोटा सा खिलौना इन्सान की खोपड़ी में कितनी बड़ी खिड़की बना सकता है ।”
“लेकिन मेरी बात सुनो ।” - सुनील बोला ।
“चुपचाप वहीं खड़े रहो ।”
वह फिर नम्बर डायल करने लगी । उसे एक ही बार में टेलीफोन के डायल और सुनील दोनों पर नजर रखने में बड़ी कठिनाई का आभास हो रहा था ।
सुनील उसकी एक एक गतिविधि को लक्ष्य कर रह था ।
नम्बर मिला चुकने के बाद उसने रिसीवर और अच्छी तरह कान से दबा लिया । फिर उसके चेहरे पर झुंझलाहट के भाव छा गये । शायद उसे बिजी टोन मिल रही थी ।
उसने फिर से डायलटोन प्राप्त करने के लिये प्लन्जर को दबाया और दोबारा नम्बर डायल करने लगी, लेकिन इस बार उसका घ्यान डायल करने की ओर अधिक था ।
सुनील चुपचाप किसी असतर्क क्षण की प्रतीक्षा करता रहा ।
आखिरी नम्बर डायल कर चुकने के बाद क्षण भर के लिये उसका ध्यान सुनील की ओर से पूरी तरह हट गया ।
सुनील ने एकदम अपने स्थान से छलांग मारी । वह एक पलंग पर औंधे जा पड़ा । सोनिया के ट्रेगर दबा सकने से पहले ही उनका रिवाल्वर वाला हाथ सुनील की पकड़ में आ चुका था ।
सोनिया कुछ क्षण अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करती रही, फिर उसमें सफलता न मिलती देखकर उसने टेलीफोन का रिसीवर सुनील के सिर में दे मारा ।
सुनील दर्द से बिलबिला उठा क्योंकि रिसीवर की चोट बिल्कुल उसी स्थान पर पड़ी थी जहां ज्यूल बाक्स में खाई चोट के कारण उसका सिर पहले ही फटा हुआ था ।
लेकिन सोनिया का हाथ उसके हाथ से नहीं छूटा । उसने सोनिया की बांह को एक जोर का झटका देकर अपनी ओर खींचा ।
सोनिया के हाथ से रिसीवर छूट गया और वह धड़ाम से सुनील की बगल में पलंग पर आ गिरी, लेकिन रिवाल्वर अब भी उसके हाथ में था ।
सुनील ने सोनिया का शरीर अपने शरीर से दबा लिया और उसके हाथ से रिवाल्वर को छीनने की चेष्टा करने लगा । विरोध में सोनिया के बांये हाथ के लम्बे-लम्बे नाखूनों ने सुनील का मुंह खरोंच डाला ।
दोनों के शरीर एक दूसरे से लिपटे हुये उलटकर पलंग से नीचे फर्श पर आ गिरे ।
सुनील ने अपने शरीर का सारा भार सोनिया पर डाल दिया । उसका रिवाल्वर वाला हाथ अब भी सुनील की पकड़ में था ।
सोनिया का ड्रेसिंग गाऊन खुल गया और वह उसके शरीर के नीचे दबी निस्सहाय भाव से अपने सिर को दांये-बांये झटक रही थी, वह सुनील के बालों को पकड़ने की चेष्टा कर रही थी, लेकिन वे किसी तरह उसके हाथ में नहीं आ पा रहे थे ।
फिर एक बार सोनिया की गर्म-गर्म सांस फुंफकार की तरह सुनील के कान में पड़ी और सोनिया ने पूरे जोर से अपने दांत सुनील की गरदन में धंसा दिये ।
सुनील दर्द से बिलबिला उठा । क्रोध से उसका चेहरा लाल हो गया । अभी तक वह सोनिया को केवल अपने अधिकार में लाने की चेष्टा कर रहा था ताकि वह उसके हाथ से रिवाल्वर छीन सके । उसने उसे चोट पहुंचाने की चेष्टा नहीं की थी, लेकिन अब उसने सोनिया की रिवाल्वर वाली बांह पकड़ी और तीन-चार बार पूरी शक्ति से पलंग के पाये के साथ दे मारी ।
रिवाल्वर सोनिया के हाथ से छिटककर दूर जा गिरी ।
उसी समय उनके सिर पर एक आदमी की आवाज गूंज उठी - “हैलो ।”
सुनील ने झटके से सिर ऊपर उठाया । टेलीफोन का रिसीवर टेलीफोन की लम्बी तार के सहारे झूल रहा था । आवाज टेलीफोन से आ रही थी ।
“हैलो, हैलो !” - एक तेज आवाज फिर गूंज आई ।
उसी समय सोनिया बोल पड़ी - “मिस्टर रामपाल यहां...”
बाकी शब्द सोनिया के मुंह में ही रह गये सुनील की हथेली फौलाद की तरह उसके मुंह पर जम गई ।
“हैलो !” - टेलीफोन में से आवाज आई - “माइक का कोई एक्शन नोट किया है क्या तुमने...? हैलो ।”
सोनिया के मुंह से एक घुटी सी आवाज निकल गई ।
“हैलो, मुझे तुम्हारी आवाज सुनाई नहीं दे रही है । टेलीफोन बन्द करके फिर डायल करो । शायद फोन में कोई गड़बड़ है ।”
दूसरी ओर से कनैक्शन कट जाने से कट की हल्की सी आवाज आई ।
सुनील के चैन की सांस ली । उसने सोनिया के मुंह पर से हाथ हटा लिया । जहां सुनील की उंगलियां जमी थीं वहां सोनिया के चेहरे पर लाल लाल रेखायें उभर आई थीं ।
“उठने दो मुझे !” - वह कहराकर बोली ।
सुनील को अब ख्याल आया कि सोनिया का शरीर अब भी उसके नीचे दबा हुआ था । उसने हाथ बढाकर सोनिया की रिवाल्वर उठा ली और फिर सोनिया के शरीर के ऊपर से उठ खड़ा हुआ ।
सोनिया भी अपने गाउन से अपने शरीर को ढकने का असफल प्रयत्न करती हुई उठ खड़ी हुई । वह पलंग के एक किनारे पर बैठ गई और लम्बी-2 सांसें भरने लगी ।
सुनील ने एक स्टूल खींचा और उसके सामने बैठ गया । रिवाल्वर उसने अपनी गोद में रख लिया ।
“अब शुरू हो जाओ ।” - कुछ क्षण बाद सुनील कर्कश आवाज में सोनिया से बोला ।
“क्या मतलब ?”
“रामपाल कौन है ?”
सोनिया चुप रही ।
“यहां तुम माइक के कौन से एक्शन नोट करने के लिये कह रही हो ?”
सोनिया फिर भी चुप रही ।
“माइक से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है ?”
सोनिया ने भरपूर नजर सुनील पर डाली और फिर नेत्र झुका लिये ।
“सोनिया !” - सुनील कड़े स्वर से बोला - “अभी तुमने इस रिवाल्वर की यह करामात देखने की इच्छा प्रकट की थी कि यह इन्सान की खोपड़ी में कितनी बड़ी खिड़की बना सकती है ? कहो तो तुम्हारे माथे में सुराख पैदा करके दिखाऊं ?”
“सुनील !” - सोनिया धीरे से बोली - “मौत तो मेरी निश्चित हो गई है लेकिन तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर न देकर तो मैं शायद तुम्हारे हाथों बच जाऊं लेकिन तुम्हें कुछ बता कर मैं उन लोगों के हाथों से नहीं बच सकूंगी जिनके लिये मैं काम कर रही हूं ।”
“तुम मेरा नाम कैसे जानती हो ?”
“नाम ही नहीं, मैं तुम्हारे विषय में सब कुछ जानती हूं ।”
“कैसे ?”
सोनिया चुप रही ।
“तुम यहां कब से रह रही हो ?”
“पिछले तीन दिनों से ।”
“क्यों ?”
“तुम पर नजर रखने के लिये ।”
“किसके आदेश पर ?”
सोनिया ने फिर कोई उत्तर नहीं दिया ।
सुनील कई क्षण विचारपूर्ण मुद्रा बनाये चुपचाप बैठा रहा फिर उसने मन ही मन एक निश्चिय किया और सोनिया से बोला - “उठो ।”
“क्यों ?”
“तुम्हें बाथरूम में बन्द करूंगा ।”
“क्यों ?”
“मैं नहीं चाहता कि मेरे इस इमारत से निकलते ही तुम फिर पुलिस को या अपने रामपाल को फोन करना आरम्भ कर दो ।”
सोनिया उठ खड़ी हुई । सुनील ने उसे ले जाकर बाथरूम में बन्द कर आया ।
“अगर चिल्लाई तो गोली मार दूंगा । द्वार बन्द करते समय उसने सोनिया को चेतावनी दी ।”
सुनील ने किचन की खिड़की से बाहर झांका । उसकी हत्या करने के लिये आये हुये लोग शायद विदा हो चुके थे । कहीं नारायण का कोई साथी दिखाई नहीं दे रहा था ।
वह वापस बैडरूम में लौट आया ।
उसने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और यूथ क्लब के नम्बर डायल कर दिये । क्योंकि यूथ क्लब की टेलीफोन आपरेटर दस बजे से पहले नहीं आती थी इसलिये उसे रमाकांत की डायरेक्ट लाइन मिल गई ।
“हैलो !” - दूसरी ओर से रमाकांत का नींद से डूबा हुआ स्वर सुनाई दिया ।
“रमाकांत, मैं सुनील हूं ।” - सुनील बोला ।
“हत तुम्हारा सत्यनाश मारा जाये ।” - रमाकांत भन्नाया - “साले किसी शरीफ आदमी की सोने भी नहीं दोगे कि नहीं ।”
“रमाकांत !” - सुनील कठोर स्वर में बोला - “मजाक का समय नहीं है, गौर से मेरी बात सुनो ।”
दूसरी ओर से कई क्षण कोई आवाज नहीं आई फिर रमाकांत का गम्भीर स्वर सुनाई दिया - “कहो ।”
“बैंक स्ट्रीट में मेरे फ्लैट वाली इमारत की पिछली गली में एक मन्जिली इमारत है जिसकी तीसरी मन्जिल के एक फ्लैट में सोनिया नामक एक लड़की रहती है, उसकी असाधारण लम्बाई और बेहद सुन्दर चेहरा उसकी पहचान के लिये काफी है । अब से ठीक आधे घन्टे बाद वह अपने फ्लैट से निकलेगी और रामपाल नाम के किसी व्यक्ति से सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा करेबी । तुम कई आदमी उसकी निगरानी के लिये भेज दो । बाद में मैं यह सुनना पसन्द नहीं करूंगा कि लड़की तुम्हें डॉज दे गई । मुझे रामपाल और इस लड़की के विषय में पूरी जानकारी चाहिये । समझे ।”
“यह सब तो मैं समझ गया लेकिन सवाल तो यह है कि अगर उसने फ्लैट से बाहर निकलने के स्थान पर फोन पर ही रामपाल से सम्बन्ध स्थापित कर लिया तो ?”
“फोन तुम्हारी और मेरी बातचीत खत्म होने के फौरन बाद ही बिगड़ जायेगा ।”
“लेकिन इस बात की क्या गारन्टी है कि वह किसी रामपाल से सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा करेगी ही ?”
“रमाकांत ।” - सुनील गरजा ।
“अच्छा बाबा, चिल्लाता क्यों है ? सब हो जायेगा ।”
“तुम्हारे आदमी कितनी देर तक यहां पहुंच जायेंगे ?”
“अधिक से अधिक पन्द्रह मिनट में ।”
“ओ के !” - कहकर सुनील ने लाइन काट दी ।
फिर सुनील ने टेलीफोन के रिसीवर का इयरपीस खोलना शुरू कर दिया । इयरपीस अलग करके उसने भीतर से डायफ्राम निकाल दिया । डायफ्राम उसने अपने कोट की जेब में डाला और इयरपीस को दोबारा रिसीवर पर फिट कर दिया ।
अब टेलीफोन बेकार हो चुका था और किसी साधारण व्यक्ति को यह पता भी नहीं लग सकता था कि टेलीफोन में क्या खराबी आ गई है ।
सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया और फ्लैट में चहलकदमी करने लगा । उसे यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि बैडरूम के एक कोने में एक मूवी कैमरा रखा था ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद उसने खिड़की में से नीचे गली में झांका । नीचे जौहरी, दिनकर और राकेश आम लोगों की तरह टहल रहे थे । लेकिन उसका सारा ध्यान सोनिया के फ्लैट पर था ।
सुनील सन्तुष्ट होकर खिड़की से हट गया ।
वह वापस बाथरूम के द्वारा पर लौट आया उसने दरवाजे की चिटकनी को धीरे से इतना खोल दिया कि अगर भीतर से दरवाजे को दो-तीन धक्के भी पड़ें तो चिटकनी खुल जाये ।
“मैं जा रहा हूं । सोनिया !” - सुनील ऊंचे स्वर से बोला - “लेकिन विश्वास रखो दोबारा लौटकर जरूर आऊंगा ।”
“गो टू हैल ।” - भीतर से सोनिया की दबी हुई आवाज आई ।
सुनील चुप रहा । वह फ्लैट से बाहर निकल आया और इमारत की सीढियां उतरने लगा ।
सोनिया की रिवाल्वर अब उसके कोट की जेब में थी ।
***
सुनील ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर की इमारत से दो-तीन ब्लाक दूर ही टैक्सी से उतर गया । वह बड़ी सावधानी से इमारत के पिछले दरवाजे से दफ्तर में घुसा । उसे भय था कि सामने की ओर माइक का कोई आदमी रिवाल्वर जेब में रखे उसकी प्रतीक्षा न कर रहा हो ।
दफ्तर में पहुंचते ही उसे मलिक साहब ने बुला लिया ।
सुनील मलिक साहब के दफ्तर में घुस गया ।
मलिक साहब ने एक भरपूर दृष्टि सुनील पर डाली और फिर बोले - “ब्लास्ट के नाम नोटिस ईशू हो गया है ।”
“किस सिलसिले में ?”
“माइक ने हम पर दो लाख रुपये का मान हानि का दावा कर दिया है ।”
“आप चिन्ता मत कीजिये, मलिक साहब ।” - सुनील आश्वासन भरे स्वर में बोला - “माइक के विरुद्ध मैं कई सबूत इकट्ठे कर चुका हूं । आज रात को मैं उससे मिलने के लिये जाने वाला हूं उसके बाद न केवल वह हमरे विरुद्ध बोलना बन्द कर देगा बल्कि ज्यूल बाक्स में हुई हत्या का जिम्मेदार भी ठहराया जायेगा ।”
“तुम आज रात माइक से मिलने वाले हो ?”
“जी हां ।”
“अपनी सुरक्षा का क्या इन्तजाम किया है तुमने ?”
“यह ।” - और सुनील ने जेब से सोनिया वाली रिवाल्वर निकालकर दिखा दी ।
“सुनील किसी गड़बड़ में मत फंस जाना ।” - मलिक साहब चिंतित स्वर से बोले ।
“कुछ नहीं होगा, मलिक साहब ।”
“बेहतर ।”
सुनील उन्हें अभिवादन करके बाहर निकल आया ।
दिन भर वह अपने केबिन में बैठा अखबार के लिये रिपोर्ट तैयार करता रहा था उसने अपने पर हुये दोनों आक्रमणों को बड़े प्रभावशाली ढंग से शब्दों में ढाला था अन्त में उसने पुलिस की भी खूब खबर ली थी जो एक नागरिक के जीवन सुरक्षा के विषय में कुछ भी नहीं कर रही थी । गुण्डे लोगों के घरों के दरवाजे बलपूर्वक तोड़कर भीतर घुस जाते हैं और पुलिस को पता भी नहीं लगता ।
शाम को अन्धकार हो जाने के बाद रमाकांत का फोन आया ।
“सुनील !” - रमाकांत बोला - “मेरे आदमियों ने सोनिया का पीछा किया था ।”
“फिर ?”
“वह अपने फ्लैट से सीधी ज्यूल बाक्स में गई थी ।”
“ज्यूल बाक्स में ?” - सुनील हैरान होकर बोला ।
“हां, और रामपाल नाम के जिस आदमी के साथ उसने सम्पर्क स्थापित किया था वह माइक का पार्टनर है । अधिक तो हमें कुछ मालूम नहीं हो सका है लेकिन इतना जरूर पता लगा है कि रामपाल माइक के विरुद्ध कोई षडयन्त्र रच रहा है जिसका एक मोहरा वह लड़की सोनिया भी है ।”
“और कुछ ?”
“और यह कि दिनकर ने बड़ा साहस करके रामपाल की एक फोटो खींच ली थी । वह मैं तुम्हारे पास भेज रहा हूं । इससे तुम्हें रामपाल की पहचान हो जायेगी । वैसे सोनिया और रामपाल दोनों पर नजर रखी जा रही है । कोई और बात होगी तो तुम्हें सूचित कर देंगे ।”
“रामपाल रहता कहां है ?” - सुनील ने पूछा ।
“रामपाल और माइक दोनों एक ही कोठी में रहते हैं । हर्नबी रोड पर चौबीस नम्बर कोठी है ।”
“ओ के कोई नई बात हो तो फौरन बताना मुझे ।”
“बेहतर ।”
सुनील ने फोन रख दिया ।
लगभग आधे घन्टे बाद रमाकांत का आदमी सुनील को रामपाल की तस्वीर दे गया । तस्वीर बड़ी साफ-सुथरी खिंची थी । सुनील कई क्षण उसे गौर से देखता रहा यहां तक कि रामपाल की सूरत भली प्रकार उसके मस्तिष्क में बैठ गई । अब वह उसे कहीं भी देखकर पहचान सकता था ।
सुनील ने उसकी तस्वीर मेज की दराज में फेंकी और ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर से बाहर निकल आया ।
रात हो गई थी । सड़कें कृत्रिम प्रकाश से जगमगा रही थी । सुनील कई क्षण विचारों में डूबा हुआ सड़क पर चलता रहा । सड़क पर एक पब्लिक टेलीफोन बूथ देखकर वह रुक गया ।
वह बूथ में घुस गया । उसने डायरेक्ट्री में माइक की कोठी का नम्बर देखा और फिर वह नम्बर डायल कर दिया ।
“हैलो !” - दूसरी ओर से एक स्त्री का स्वर सुनाई दिया ।
“माइक देयर ।” - सुनील ने प्रभावपूर्ण स्वर में पूछा ।
“जरा होल्ड कीजिये ।” - वह स्त्री बोली और फिर उसका ऊंचा स्वर सुनील के कानों में गूंज गया - “रामपाल कोई माइक को पूछ रहा है ।”
शायद वह स्त्री अपने टेलीफोन का माउथपीस ढकना भूल गई थी ।
“उससे पूछो कौन है वह ?” - एक मद्धम-सा पुरुष स्वर सुनाई दिया ।
“हैलो ।” - स्त्री सुनील से बोली - “मे आई नो हू इज स्पीकिंग ?”
“इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल ।” - सुनील ने संतुलित स्वर से कहा ।
“इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल है ।” - स्त्री किसी से बात कर रही थी ।
“क्या ?” - एक आश्चर्य से भरा स्वर सुनाई दिया - “जरा फोन मुझे दो ।”
“हैलो इन्स्पेक्टर ।” - फोन से एक पुरुष स्वर सुनाई दिया - “आप माइक से बात करना चाहते हैं ?”
“हां ।” - सुनील ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया ।
“आप जरा होल्ड रखिये, मैं माइक को अभी बुलाता हूं । दरअसल आज कोठी पर एक पार्टी हो रही है । माइक मेहमानों में ही कहीं उलझा हुआ है । मैंने नौकर को भेजा है, उसे बुलाकर लाने के लिये ।”
“आल राइट ।” - सुनील बोला ।
सुनील को टेलीफोन कान में लगाकर खड़े हुये दो मिनट हो गये । टेलीफोन बूथ के बाहर एक आदमी प्रतीक्षा कर रहा था ताकि सुनील बूथ में से निकले और वह फोन कर सके ।
“हैलो ।” - सुनील माउथपीस के पास मुंह ले जाकर बोला - “अभी कितनी देर और...”
“बस, साहब माइक आ ही रहा है ।”
एक आधारहीन संदेह सुनील के दिमाग में घूमने लगा ।
उसने एक मिनट और इन्तजार किया । फिर उसने अपने सिर को एक झटका दिया और रिसीवर को धीरे से हुक पर रख दिया ।
वह बूथ से बाहर निकल आया ।
अपनी बारी की प्रतीक्षा में खड़ा युवक जल्दी से बूथ में घुस गया और रिसीवर उठाकर नम्बर डायल करने लगा ।
सुनील अभी बूथ से दस कदम दूर ही गया था कि उसे सामने सड़क की ओर से एक कार आकर ब्रेकों की भयानक चरचराहट के साथ रुक गई । कार की पिछली सीट में से तीन आदमी झपटते हुये बाहर निकले । उनमें से दो टेलीफोन बूथ के आस-पास खड़े हो गये और तीसरे ने एक झटके से बूथ का दरवाजा खोल दिया । उसने बांये हाथ से भीतर टेलीफोन करते हुये युवक के कोट का कालर पकड़ा और दांये हाथ का एक वजनी घूंसा युवक के पेट में दे मारा । चेहरे पर आश्चर्य और दर्द के भाव लिये हुये युवक लड़खड़ाया लेकिन बूथ में सीमित स्थान होने के कारण फर्श पर लुढकने के स्थान पर दीवार से टकराकर रह गया ।
उस आदमी के सात-आठ घूंसे लगातार युवक के शरीर के विभिन्न भागों पर पड़े । अन्त में युवक का शरीर एक बार लहराया और वह उस आदमी की बांहों में ढेर हो गया ।
बाहर खड़े दोनों आदमियों ने युवक की बगलों में हाथ डालकर उसे सहारा दिया और उसे ले जाकर कार में डाल दिया ।
पलक झपकते ही वे सब कार में सवार हो गये और कार दृष्टि से ओझल हो गई ।
सुनील की रीढ की हड्डी में एक ठन्डक की लहर दौड़ गई थी । सर्दियों में भी उसके चेहरे पर हल्की-हल्की पसीने की बूंदें चुहचूहा आई थीं ।
“भले बचे ।” - वह शांति की एक दीर्घ नि:श्वास लेकर बड़बड़ाया ।
प्रत्यक्ष था कि वह युवक सुनील के धोखे में मारा गया था । अगर सुनील आधा मिनट भी और टेलीफोन बूथ में रह जाता तो...
उसके शरीर में एक बार फिर झुरझुरी दौड़ गई । उसे अब समझ आया कि वे लोग उसे टेलीफोन में क्यों उलझाये रखना चाहते थे, लेकिन जो बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी वह यह थी कि उन्हें संदेह कैसे हुआ कि वह इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल नहीं, कोई और बोल रहा है ।
सुनील ने एक टैक्सी ली और हर्नबी रोड पर चौबीस नम्बर कोठी के सामने पहुंच गया ।
कोठी का लान बिजली के प्रकाश में जगमगा रहा था । खूब चहल-पहल थी । लगता था कि पार्टी को जैसे अभी अभी अधिक समय नहीं हुआ था ।
द्वार पर एक गोरखा चौकीदार खड़ा था ।
सुनील ने अपनी जेब से लक्की स्ट्राइक पैकेट निकाला । उसने उसमें से एक सिगरेट निकालकर सुलगाई और उसके लम्बे कश लेता हुआ बड़ी लापरवाही से भीतर घुस गया ।
चौकीदार ने एक बार संदिग्ध दृष्टि से उसे देखा और फिर बोला - “बड़ी देर से आये आप, साहब ?”
“हां ।” - वह बोला - “रास्ते में गाड़ी खराब हो गई थी ।”
सुनील आगे बढ गया ।
चौकीदार ने उसे भी कोई निमन्त्रित मेहमान समझा था ।
सुनील लान की भीड़-भाड़ में मिल गया । किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया । विस्की सर्व हो रही थी । सब शराब पीने में मग्न थे ।
सुनील ने भी एक वेटर को रोक कर स्काच का एक पैग ले लिया और लान की भीड़ में घूमने लगा ।
माइक और रामपाल में से कोई वहां नहीं था ।
“माइक कहां है ?” - उसने एक वेटर को रोककर पूछा ।
“अभी तो यहीं थे, साहब ?” - वेटर आदरपूर्ण स्वर में बोला - “शायद कोठी के भीतर हों ।”
“और रामपाल ?”
“वे भी भीतर ही होंगे साहब !”
सुनील लान में से निकलकर बड़ी लापरवाही से कोठी के मुख्य द्वार की तरफ बढ गया ।
सीढियों में दो आदमी बैठे शराब पी रहे थे । उनके बीच में स्काच की एक बोतल रखी थी । शायद उन्हें भीड़-भाड़ पसन्द नहीं थी ।
उनमें से एक इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल था जो इस समय पुलिस यूनीफार्म के स्थान पर एक शानदार सूट पहने हुये था ।
सुनील एकदम पीछे हट गया । प्रभूदयाल की नजर उस पर नहीं पड़ी थी । सुनील को अब समझ आया कि टेलीफोन बूथ में उसकी उपस्थिति कैसे प्रकट हुई थी ? उसने स्वयं को इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल बताया था ज‍बकि इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल पहले ही उनकी नजरों के सामने कोठी में मौजूद था ।
सुनील कोठी का पूरा चक्कर काटकर पिछवाड़े की ओर पहुंच गया । पिछवाड़े में एक कमरे की खिड़की खुली थी । सुनील ने एक बार अपने आस पास देखा और फिर वह उस खिड़की पर चढकर भीतर कूद गया ।
यह एक छोटा सा कमरा था जो शायद साधारणतया प्रयोग में नहीं लाया जाता । खिड़की वाली दीवार को छोड़ बाकी तीनों दीवारों में एक दरवाजा था । सामने का द्वारा खुला था लेकिन अगल-बगल के द्वार बन्द थे ।
सुनील कुछ क्षण वहीं खड़ा कोठी के विस्तार का नक्शा अपने दिमाग में बैठाने की चेष्टा करता रहा ।
उसी समय दाईं ओर का द्वार धीरे-2 खुलने लगा ।
सुनील ने पास-पास देखा । छिपने का कोई स्थान नहीं था उसका दांया हाथ अनजाने में ही कोट की जेब में सरक गया जिसमें सोनिया की रिवाल्वर पड़ी थी । उसकी उंगलियां रिवाल्वर की मूठ पर कस गयीं ।
उस द्वार में से कमरें में एक घबराई हुई स्त्री प्रविष्ट हुई, उसका सारा ध्यान अपने ब्लाउज के भीतर कुछ छिपाने में लगा हुआ था ।
सुनील को देखते ही वह चिहुंककर खड़ी हो गई । उसका हाथ बिजली की सी तेजी से ब्लाउज में से बाहर निकल आया । उसने बड़ी फुर्ती से साड़ी के पल्ले को ब्लाउज के इर्द-गिर्द लपेटा और अपने को सन्तुलित किया - “आप यहां क्या कर रहे हैं ?”
“माइक को तलाश कर रहा हूं ।” - सुनील सतर्क स्वर से बोला - “एक जरूरी काम था इसलिये पार्टी को बीच में ही छोड़कर जाना चाहता हूं । सोचा, माइक से विदा ले लूं । बाहर किसी ने बताया माइक भीतर है इसलिये यहां चला आया ।”
“ओह !” - स्त्री के मुंह से शांति की एक गहन नि:श्वास निकल गई ।
“आप...?” - सुनील ने शिष्ट स्वर से पूछा ।
“मैं माइक की पत्नि हूं, कैरोल ।” - वह शालीनता से बोली - “और आप ?”
“मैं अल्फा बीटा गामा हूं ।” - सुनील बोला ।
“जी !” - कैरोल आश्चर्य से आंखें फैलाकर बोली ।
“जी, दरअसल बात यह है कि मैं मैथिमैटिक्स का प्रोफेसर हूं । मेरे विद्यार्थी मुझे अल्फा बीटा गामा कहते हैं और यह नाम इतना मशहूर हो गया है कि मैं अपना असली नाम भूल गया हूं ।”
“ओ के प्रोफेसर अल्फा बीटा गामा ।” - कैरोल यूं बोली जैसे वार्तालाप समाप्त करना चाहती हो - “सी यू ।”
सुनील तो स्वयं जल्दी से जल्दी उससे पीछा छुड़ाना चाहता था । इसलिये वह जल्दी से बोला - “ओ के मैडम थैंक्यू । बस इतना और बता दीजिये कि इस समय माइक कहां है ?”
“इस कमरे में ।” - कैरोल उस कमरे की ओर संकेत करती हुई बोली जिसमें से वह अभी निकल कर आई थी - “शराब के नशे में धुत्त पड़ा है ।”
“मैं जरा मिल लूं ?”
“क्यों नहीं, शौक से ।”
सुनील उस कमरे में घुस गया । उस कमरे में घुसते ही उस की सांस सूख गई । वह उल्टे पांव द्वार की ओर पलटा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी । कैरोल ने अत्याधिक तेजी से द्वार को बाहर से बन्द कर दिया था । सुनील की निगाहें फिर कमरे के फर्श पर जम गई ।
फर्श पर पीठ के बल माइक का मृत शरीर पड़ा था । उसकी छाती में बांई ओर गोली का सुराख था जिसमें से खून अभी भी रिस रहा था जिससे वह प्रकट होता था कि माइक की हत्या हुये अधिक समय नहीं हुआ था । लाश के पास एक 12 कैलीबर की रिवाल्वर पड़ी थी जो शक्ल सूरत में सुनील की जेब में रखी रिवाल्वर जैसी ही थी । रिवाल्वर की मूठ में आर पार एक छोटा सा सुराख था ।
कमरे में एक और द्वार था । सुनील ने उसे खोलने की कोशिश की लेकिन वह भी बाहर से बन्द था । दुर्भाग्य से उस कमरे की खिड़की में लोहे की सलाखें लगी थी । खिड़की के ऊपर एक रोशनदान था जिसमें से निकला तो जा सकता था लेकिन उस तक पहुंचना सैकिन्डों का काम नहीं था ।
सुनील स्वयं को एक चूहेदान में फंस गया महसूस कर रहा था ।
सुनील कुछ क्षण तक सोचता रहा फिर उसने दोनों दरवाजों की भीतर से चिटकनी लगा दी ताकि कोई एकदम कमरे में न जा सके ।
कमरे के एक कोने में स्टील की अलमारी रखी थी सुनील उसे सरकाकर रोशनदान के नीचे लाने की चेष्टा करने लगा । अलमारी बेहद भारी थी और सुनील के पूरा जोश लगाने के बावजूद भी एक समय में एक दो इन्च से अधिक नहीं सरक रही थी । अलमारी को घसीट कर रोशनदान के नीचे लाने में उसकी सांस धोंकनी की तरह चलने लगी थी और वह अच्छी खासी सर्दी के बावजूद भी पसीने से तर हो गया था ।
उसी समय बाहर से द्वारा खटखटाया जाने लगा ।
“वह भीतर है ।” - कैरोल कह रही थी - “उसने शायद माइक को गोली मार दी है । गोली चलने की आवाज सुनी थी ।”
सुनील पूरी शक्ति से आलमारी पर चढने की चेष्टा करने लगा लेकिन हाथों में आये पसीने के कारण हर बार उस छ: फुट लम्बी आलमारी के सिरे उसके हाथ से खिसक जाते थे ।
द्वारा बदस्तूर खड़खड़ाया जा रहा था ।
“उसके पास रिवाल्वर है ।” - कैरोल का भयभीत स्वर सुनाई दिया - “कहीं फिर वह गोली न चला दे ।”
“रामपाल ।” - एक भारी स्वर सुनाई दिया - “माइक ने पार्टी में एक इन्सपेक्टर को भी बुलाया था । तुम उसे क्यों नहीं बुलाते ?”
“वह पता नहीं कहां है” - रामपाल के नाम से सम्बोधित किये जाने वाला आदमी बोला - “असली पुलिसवाला जान, जरूरत पड़ी तो खिसक गया कहीं ।”
“तो फिर हम ही कुछ करे ।” - कोई बोला ।
“क्या करें ?” - रामपाल का स्वर सुनाई दिया ।
“किसी आदमी को पुलिस स्टेशन फोन करने के लिये कहो !”
“कह दिया है ।”
“लेकिन पुलिस के आने तक क्या हत्यारा भीतर बैठा रहेगा ।”
“द्वार तोड़ दो ।” - भारी आवाज वाला जोश भरे स्वर से बोला - “जो होगा देखा जायेगा ।”
दरवाजे पर भरपूर चोटें पड़ने लगी ।
सुनील ने पूरा जोर लगा कर रोशनदान के बीचों बीच लगा लोहे का सींखचा उड़ा दिया ।
“किसी को पिछवाड़े की ओर भी भेज दो ।”
“कोई जरूरत नहीं है ।” - कैरोल का स्वर सुनाई दिया - “खिड़की में सींखचे लगे हुये हैं वह ऊपर से नहीं भाग सकता ।”
जिस समय द्वार टूट कर गिरा, सुनील अपना शरीर रोशनदान में से बाहर निकाल चुका था ।
“वह रहा ।” - कोई चिल्लाया ।
सुनील ने रोशनदान में से लान में छलांग लगा दी ।
“पकड़ो, पकड़ो ।” - उसके पीछे कई आदमी एक साथ चिल्ला रहे थे ।
लान में एक ओर एक मोटर साइकिल खड़ी थी । सुनील ने जल्दी से उसे स्टैन्ड से उतारा और उसे किक मार दी । मोटर साइकिल में ताला नहीं लगा हुआ था ।
सुनील मोटर साइकिल पर तीर की तरह कोठी से बाहर की ओर लपका ।
कोठी के गेट पर एक छोटा सा केबिन था जिसमें गोरखा चौकीदार बैठा था ।
“क्या हो गया, साहब !” - वह मोटर साइकिल आती देख कर चिल्लाया ।
“हत्या ।” - सुनील चिल्लाया - “पुलिस को बुलाने जा रहा हूं ।”
चौकीदार हक्का-बक्का सा अन्धकार में विलीन होती हुई मोटर साइकिल की बैक लाइट को देखता रहा ।
रास्ते में फ्लाइंग स्क्वायड की एक जीप सर्र से उसकी बगल में से निकल गई ।
सुनील ने मोटर साइकिल एक अन्धेरी सड़क पर फेंक दी । कुछ ही दूर चलने पर उसे एक टैक्सी मिल गई ।
वह रेलवे स्टेशन पहुंच गया ।
सुनील ने घड़ी देखी बारह बज गये थे ।
सुनील एक पब्लिक टेलीफोन बूथ में घुस गया ।
उसने रमाकांत को फोन किया ।
कितनी ही देर घन्टी बजती रहने के बाद रमाकान्त ने रिसीवर उठाया । शायद वह नींद से जगा था ।
“हैलो ।” - उसका चिड़चिड़ा स्वर सुनाई दिया ।
“रमाकांत ।” - सुनील बोला - “मैं सुनील हूं ।”
“यार तुम किसी को चैन से मरने भी दोगे या नहीं ।” - रमाकांत भन्नाया - “तुम्हें हमेशा ऐसा ही समय मिलता है टेलीफोन करने के लिये ।”
“रमाकांत...”
“किसी शरीफ आदमी को चैन से सोने भी तो नहीं देते ।”
“अबे सुन तो सही...”
“मैं तो कल अपना बोरिया बिस्तर यूथ क्लब से उठा रहा हूं । मैं बैंक स्ट्रीट से कम से कम बीस किलोमीटर दूर कोई फ्लैट लूंगा और वहां का एड्रैस और टेलीफोन नम्बर तुम्हारे बाप को भी पता नहीं लगने दूंगा ।
“रमाकांत ।”
“मर गया रमाकांत ।”
सुनील ने उखड़कर टेलीफोन बन्द कर दिया ।
पांच मिनट बाद उसने फिर रमाकांत का नम्बर मिलाया, इस बार रमाकांत ने टेलीफोन फौरन ही उठा लिया ।
“यह क्या हरकत थी ?” - रमाकांत बोला इस बार उसके स्वर में नींद की अलसाहट नहीं थी ।
“कौन सी ?”
“टेलीफोन क्यों बन्द कर दिया था तुमने ?”
“तुम्हारे लैक्चर से भी छुटकारा पाना था या नहीं ।”
“लैक्चर तो हो लिया । अब कहो क्या बात थी... साली नींद तो आंखों से उड़ ही गई है ।”
“यह तो बहुत ही अच्छा हुआ ।”
“मतलब की बात करो ।”
“आल राइट !” - सुनील एकदम बदले स्वर से बोला - “रमाकांत अपने काम, से काम आधी दर्जन आदमी हर्नबी रोड पर चौबीस नम्बर कोठी पर फौरन भेज दो ।”
“बेहतर !” - रमाकांत झोंक में बोला ।
“और...”
“कहां ?” - सुनील के दोबारा बोलने से पहले ही उसका चौंका हुआ स्वर सुनाई दिया ।
“हर्नबी रोड, कोठी नम्बर चौबीस ।” - सुनील बोला ।
“यह तो माइक की कोठी का पता है ।” - रमाकांत बोला ।
“राइट ।”
“क्या हो गया है वहां ?”
“रमाकान्त ।” - सुनील व्यस्त स्वर में बोला - “एक ही बार में सारी बात सुन लो । वहां माइक की हत्या हो गई है । हत्या के समय मैं वहीं था । माइक की पत्नी कैरोल ने मुझे फंसाने की चेष्टा की थी । उसने मुझे उस कमरे में बन्द कर दिया था जिसमें माइक की लाश पड़ी थी । मैं किसी प्रकार वहां से भागने में सफल हो गया था लेकिन मुझे सन्देह है कि कई लोगों की नजर मुझ पर पड़ी थी । इस सिलसिले में मेरे फंस जाने की पूरी सम्भावना है । पुलिस घटनास्थल पर पहुंच चुकी है । प्रभूदयाल भी वहां है लेकिन ड्यूटी पर नहीं है, लेकिन फिर भी तफ्तीश में वह अपनी टांग तो अड़ायेगा ही और अगर उसे यह पता लग गया कि मैं तफ्तीश में कहीं फिट होता हूं तो वह मुझे फांसे बिना छोड़ेगा नहीं । कोठी में मेहमानों की बहुत भीड़ है । तुम अपने आदमियों से कहो कि वे जाकर मेहमानों में हिल-मिल जायें और मेहमानों की बात को गौर से सुनें । तफ्तीश के बाद पुलिस किस नतीजे पर पहुंची है, यह जानना भी बहुत जरूरी है । याद रखो, रमाकांत कोई डिटेल तुम्हारे अदमियों की नजर से बचनी नहीं चाहिये ।”
“चिन्ता मत करो ।”
“और कैरोल पर विशेष रूप से नजर रखने की आवश्यकता है । मुझे इससे सम्बन्धित एक-एक तथ्य की जानकारी चाहिये । मैंने उसे उस कमरे में निकलते देखा था जिसमें बाद में माइक की लाश मिली थी । या तो हत्या उसने स्वयं की है, या फिर वह हत्या के विषय में बहुत कुछ जानती है । रमाकांत, कैरोल इस केस में बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होने वाली है ।”
“और कुछ ?”
“जो बात मैं सबसे जल्दी जानना चाहता हूं वह यह है कि मुझे वहां किस-किसने देखा है और वे किस हद तक मुझे दोबारा देखकर पहचान लेने का दावा करते हैं ।”
“हो जायेगा ।”
“मैं आज अपने फ्लैट पर नहीं जा रहा हूं । मैं किसी होटल में जा रहा हूं । कल सुबह मैं तुम्हें फिर फोन करूंगा । ओ के ?”
“ओ के ।” - रमाकांत का स्वर सुनाई दिया ।
सुनील ने रिसीवर हुक पर पटका और बाहर निकल आया । उसके दिमाग पर चिन्ता का भारी बोझ था । लेकिन होठों से सीटी के स्वर फूट रहे थे ।
उसने अपने दोनों हाथ कोट की जेब में ठूंसे और उसी प्रकार सीटी बजाता हुआ टैक्सी स्टैन्ड की ओर बढ चला ।
एकाएक वह चिहुंककर खड़ा हो गया । सीटी बजनी एकदम बन्द हो गई और चेहरे पर बदहवासी छा गई ।
रिवाल्वर जेब में से गायब था ।