द वाचमैन: आधी छोड़ पूरी को धावे
अपने आलीशान बेडरूम में किंग साइज़ पलंग पर लेटी वह युवती एकटक सीलिंग को देखे जा रही थी। कमरे में सेंट्रलाईज एसी लगा था, जिससे निकलकर चारों तरफ फैलती ठण्डी हवा जुलाई के महीने में भी उसके बदन में सिहरन सी पैदा कर रही थी।
उसने कई बार सोचा कि या तो एसी बंद कर दे या फिर बेड पर पड़ी चादर को अपने अर्धनग्न बदन के ऊपर खींच ले, मगर कर कुछ नहीं रही थी, क्योंकि दिमाग तो कहीं और ही लगा हुआ था।
युवती की उम्र यही कोई 26-27 साल रही होगी, रंगत खूब गोरी, माथा चौड़ा और आँखें बड़ी-बड़ी थीं। कुल मिलाकर बेहद खूबसूरत और हॉट दिखाई दे रही थी।
उसके बदन पर मैरून कलर का बेहद झीना टॉप था, जो सिमटता हुआ नाभि से बहुत ऊपर तक पहुँच गया, जबकि कमर के निचले हिस्से को ढकने के लिए औसत से कहीं छोटी हॉफ पैंट पहन रही थी, जिसके कारण उसकी लंबी और सुडौल टांगे एकदम नग्न दिखाई दे रही थीं।
अपने संगमरमर से तराशे जिस्म पर उसने कोई बेहद महंगा और सुगंधित इत्र लगा रखा था, जिसकी खूशबू से पूरा कमरा गमक रहा था, जिसका आनंद वह खुद भी लेती जान पड़ती थी।
बहुत देर तक वह यूँ ही पलंग पर चित लेटी जाने किन ख्यालों में खोई रही, फिर एकदम से पोज बदल कर पेट के बल लेट गयी और दोनों टांगों को यूँ ऊपर नीचे हिलाने लगी, जैसे स्विमिंग पूल में तैराकी कर रही हो।
कुछ वक्त ऐसे ही गुजर गया। फिर अचानक ही उसे सिरहाने की तरफ पलंग से करीब दस फीट की दूरी पर स्थित खिड़की के खोले जाने की आहट महसूस हुई, जिसे सुनकर वह चौंकती हुई उठ बैठी।
तब तक खिड़की पूरी की पूरी खुल चुकी थी, जिसके उस पार मौजूद साये की शक्ल उसे ठीक ढंग से तो नहीं दिखाई दे रही थी, मगर पहचान फिर भी लिया उसे।
“तुम?” वह हैरानी से बोली – “वहाँ क्या...।”
“शी...।” साये ने अपने होठों पर उंगली रखकर उसे चुप कराया और अपने
करीब आने का इशारा करते हुए कहा – “इधर बाहर कुछ गड़बड़ लग रही है मुझे।”
“कैसी गड़बड़?”
“कोई अभी-अभी बाउंड्री फांदकर भीतर दाखिल हुआ है।”
“वॉट?” चौंकती हुई वह उठ खड़ी हुई और लपककर खिड़की के पास पहुँची – “किधर है, कौन है?”
“दाईं तरफ को दीवार के साथ सटकर खड़ा है।”
सुनकर युवती ने खिड़की से बाहर गर्दन निकाल कर दाईं तरफ को झांका।
उसी वक्त साये ने पूरी बेरहमी का प्रदर्शन करते हुए अपने बायें हाथ से उसके बाल पकड़े और सिर को नीचे झुकाने के साथ ही दायें हाथ में थमें छुरे को ‘खचाक’ से उसकी गर्दन में घुसेड़ दिया। तत्पश्चात वापिस खींचा और फिर से घुसेड़ दिया।
मुँह से चीख निकाल पाने से भी पहले युवती के प्राण उसके शरीर का साथ छोड़ चुके थे।
बेमिसाल खूबसूरती की मालकिन अब एक डरावने दृश्य में तब्दील हो चुकी थी।
साये के शरीर का बहुत सारा हिस्सा खून से रंग चुका था, मगर उस बात की उसे जरा भी परवाह नहीं थी, क्योंकि सावधानी वश उसने पहले ही एक प्लास्टिक का बना रेन कोट अपने कपड़ों के ऊपर डाल रखा था। हाथों में ग्लब्स तक मौजूद थे। और जूते उसने अपने साइज़ से कहीं बड़े पहने हुए थे।
तभी कॉल बेल बज उठी।
साया जरा भी नहीं चौंका, जैसे उसे पहले से मालूम था कि वहाँ कोई आने वाला था। उसने छुरे को वहीं फेंका और जल्दी-जल्दी रेनकोट उतराना शुरू कर दिया, मगर ग्लव्स नहीं उतारे।
कुछ क्षण बाद एक दूसरी खिड़की के जरिये इमारत के भीतर दाखिल होकर उसने स्टोर रूम में कदम रखा और वहाँ से एक मोटा सरिया उठाकर मेन गेट की तरफ बढ़ चला।
दरवाजे पर पहुँचकर उसने यथासंभव आवाज बदलते हुए सिर्फ एक शब्द में सवाल किया- “कौन?”
आगंतुक ने अपना नाम बता दिया।
वह जवाब साये के लिए कितना अप्रत्याशित था, इसका अंदाजा उसकी इस वक्त की शक्ल देखकर बखूबी लगाया जा सकता था। वह एकदम से हड़बड़ा उठा। पहले उसका दिल हुआ कि भाग जाये, मगर क्षण भर विचार करने के बाद
उसने अपना इरादा बदल दिया।
एक कदम आगे बढ़कर उसने दरवाजे की चिटखनी गिराई और लपककर दीवार के साथ सटकर यूँ खड़ा हो गया कि दरवाजा खुलने पर उसकी ओट में हो जाता।
बाहर खड़े शख्स का दिल किसी अंजानी आशंका से धड़क उठा, क्योंकि आवाज उसे जानी पहचानी नहीं लगी थी। सावधानीवश उसने कमर में खुंसी अपनी रिवाल्वर बाहर निकाली और दरवाजे को भीतर की तरफ धकेलते हुए अंदर कदम रखा।
कहीं कोई दिखाई नहीं दिया, सामने या दायें-बायें भी नहीं।
‘दरवाजा खोलने वाला कहाँ गया?’
अगले ही क्षण उसे एहसास हो गया कि वह शख्स दरवाजे की ओट में छिपा हो सकता था। वह ख्याल मन में आते ही उसने बड़ी तेजी से उस तरफ को घूमने की कोशिश की, मगर तब तक देर हो चुकी थी।
पीछे से किसी वजनी और सख्त चीज का प्रहार किया गया।
वह त्योरा कर मुँह के बल फर्श पर गिरा, रिवाल्वर उसके हाथों से छिटककर दूर चली गयी। फिर यूँ महसूस हुआ जैसे कोई तेजी से उसके बगल से गुजर रहा हो। उस बात का एहसास होते ही उसने अंदाजे से हमलावर को पकड़ने के लिए अपना दायां हाथ चला दिया। किसी की नंगी टांग का पिछला हिस्सा उसके हाथों में आ गया, उसने जकड़ने की पूरी कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो पाया। अगले ही पल आक्रमणकारी वहाँ से भाग निकला।
उस खिड़की की तरफ, जिसके जरिये उसके कदम भीतर पड़े थे।
आगंतुक का सिर फूट चुका था, आँखों के आगे अंधेरा सा छाता महसूस हो रहा था। यूँ लग रहा था जैसे किसी भी वक्त उसकी चेतना लुप्त हो जायेगी, जिसका मतलब था उसकी मौत, क्योंकि खून बहुत तेजी से बह रहा था और अस्पताल पहुँचाने वाला कोई नहीं था वहाँ।
बड़ी मुश्किल से अपने शरीर की समूची ताकत एकत्रित कर के उसने जेब से मोबाइल बाहर निकाला, और कॉल करने की कोशिश करने लगा, मगर बस कोशिश ही कर सका, अगले ही पल उसकी चेतना लुप्त हो गयी।
वह बेहोशी के गर्त में समा गया।
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