मुंबई
होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ के रिसेप्शन पर रखे फोन की घंटी लगातार बजे जा रही थी। रिसेप्शन की दीवार पर लगी घड़ी रात के साढ़े नौ बजे का टाइम दिखा रही थी। रिसेप्शन पर तीन युवतियाँ और दो युवक अपने-अपने काम को तूफानी रफ्तार से अंजाम दे रहे थे। यह समय होटल में चेक-इन करने का सबसे व्यस्त समय होता था। आखिरकार ग्रेसी ने अपने काम से फुर्सत मिलते ही लगातार बजते हुए फोन का रिसीवर उठाया।
“हैलो। ‘पर्ल रेसीडेंसी’। हाउ में आई हेल्प यू?” ग्रेसी ने अपनी आवाज में भरपूर मिठास घोलते हुए कहा।
“होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’?” किसी की परेशानी भरी आवाज ने पूछा।
“यस सर। हाउ केन आई असिस्ट यू, सर?”
“मेरा बेटा प्रदीप आपके होटल में ठहरा हुआ है। मैं रात के आठ बजे से उसका फोन मिला रहा हूँ लेकिन उसका कोई जवाब नहीं आ रहा है। मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि वो अपने कमरे में पहुँच चुका है या नहीं?” पूछने वाले की आवाज की परेशानी उसके सवाल में झलकी।
“ठीक है। आप मुझे उनका सुइट नंबर बताइये। अगर वो अपने सुइट में होंगे तो मैं उन्हें आपको फोन करने के लिए मैसेज कर देती हूँ।” ग्रेसी ने कुशलता से बात का पटाक्षेप किया।
“सुइट नंबर502।” तुरंत जवाब मिला।
“ओके। मैं आपका मैसेज ट्रांसफर करती हूँ।”
इतना कहकर ग्रेसी ने रिसीवर रख दिया। उसने इंटरकॉम से सुइट में फोन मिलाया मगर घंटी बजती रही, किसी ने फोन नहीं उठाया। फिर ग्रेसी ने पाँचवें माले पर फ्लोर मैनेजर को फोन मिलाया और उसे सुइट में जाकर यह देखने को कहा कि कस्टमर अपने कमरे में है या नहीं। अगर वो अपने कमरे में होता तो फ्लोर मैनेजर को उसे यह संदेश देना था कि वह अपने पिता से बात कर ले।
फ्लोर मैनेजर ने सुइट पर जाकर देखा और लौटकर बताया कि कस्टमर के कमरे पर लॉक लगा हुआ था। कस्टमर के आने पर उसे मैसेज देने की बात कहकर फ्लोर मैनेजर ने रिसीवर रख दिया। ग्रेसी ने काल कर के चिंतित पिता को यह सूचना दे दी।
रात को बारह बजे रिसेप्शन पर फिर घंटी बजी। अब की बार फोन उठाने वाला रिसेप्शनिस्ट मुकेश था। वही चिंता भरी आवाज फिर मुकेश को सुनाई दी। सारी बात सुनने के बाद मुकेश ने फिर पहले वाली प्रक्रिया दोहराई। फ्लोर मैनेजर ने एक बार फिर वहाँ पर ताला लगे होने की सूचना वापस रिसेप्शन पर दी। गहन चिंता में डूबे बाप ने एक बार फिर मन-मसोस कर फोन रख दिया।
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अगले दिन सुबह नौ बजे मुकेश असिस्टेंट मैनेजर संजय चुटानी के ऑफिस में उसके सामने खड़ा था। उसकी बात सुनकर संजय चुटानी के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई दी। मुकेश के मुताबिक ‘विस्टा टेक्नोलॉजी’ के पंद्रह एम्प्लॉईज कल रात से होटल में नहीं पहुँचे थे। जबकि अपने स्थापित रूटीन के अनुसार रात को हद से हद दस बजे तक उन्हें अपने-अपने सुइट में वापस होना चाहिए था।
उन सबकी सात दिन की कॉन्फ्रेंस ‘विस्टा टेक्नोलॉजी’ के अंधेरी वेस्ट स्थित कंपनी के कॉर्पोरेट ऑफिस में थी। आखिरी दिन कंपनी की तरफ से शायद मुंबई-दर्शन मार्का एक टूर का प्रोग्राम बना हुआ हो सकता था। सारी-सारी रात कोई कस्टमर न आये तो उनके लिए सिरदर्दी की कोई बात नहीं थी पर पंद्रह आदमी एक ही जगह गए हुए हों और वो वापस ना आये तो उनके लिए कुछ चिंता की बात थी। अगर उनके पास उन पंद्रह लोगों के परिवार के फोन बार-बार नहीं आ रहे होते तो उनको यह बात चिंता का विषय लगी भी नहीं होती।
उन लोगों के बारे में बार-बार होटल से पूछताछ करना होटल के प्रशासन के कान खड़े कर गया। ये भी हो सकता है, वो लोग आगे पुणे या गोवा की तरफ चले गए हों लेकिन इस बात की कोई सूचना उनके पास नहीं थी।
संजय चुटानी ने ‘सिग्मा ट्रेवल्स’ को फोन लगाया। ‘सिग्मा ट्रेवल्स’ के मालिक चरणजीत वालिया ने इस बाबत पूछने पर अपनी अनभिज्ञता जाहिर की। उसके अनुसार उस पार्टी का आगे कहीं जाने का कोई प्रोग्राम नहीं था।
“तो फिर? हमारे यहाँ तो कस्टमर्स के परिवार वालों के फोन लगातार आ रहे हैं। हम उनको क्या जवाब दें? तुम अपने ड्राइवर को फोन लगाओ और उससे पूछो कि वे लोग कहाँ पर हैं।”
“मैं उसको कई बार फोन लगा चुका हूँ लेकिन मिल नहीं रहा। आप मुझे थोड़ा वक्त दो, मैं इस बारे में पता लगाता हूँ।”
“ठीक है। अभी मैं फोन रखता हूँ। एक घंटे में कोई तसल्ली वाला जवाब नहीं मिला तो हमें पुलिस में कंप्लेंट करनी पड़ेगी।”
“अरे, सुबह-सुबह पुलिस का नाम क्यों लेते हो, बाऊ जी। मैंने कहा न मैं पता करता हूँ, बताता हूँ, जल्दी ही।”
लेकिन एक की बजाय दो घंटे हो गए, चरणजीत वालिया का कोई फोन नहीं आया। संजय चुटानी ने माधव अधिकारी से, जो कि सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर था, इस विषय में बात करना उचित समझा। माधव अधिकारी ने बात की गंभीरता को समझा और उसने संजय चुटानी को तुरंत नजदीकी पुलिस स्टेशन में रपट दर्ज करवाने को कहा। संजय ने तुरंत कार्यवाही करते हुए सौ नंबर डायल कर दिया। सौ नंबर पर सूचना देने के बाद, वो अंधेरी पुलिस स्टेशन में फोन मिलाने में व्यस्त हो गया।
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‘सिग्मा ट्रेवल्स’ का दफ्तर एसवी रोड़ से निकलते हुए बर्फ़ीवाला लिंक रोड़ पर था। ‘सिग्मा ट्रेवल्स’ का मालिक चरणजीत वालिया के बाप ने कभी मुंबई की सड़कों पर खूब टैक्सी चलाई थी और अपनी दूसरी पीढ़ी को अपने मरने पर इस ऑफिस की सौगात दे गया था। चरणजीत वालिया पैंतीस साल का जवान था लेकिन अपने खाने-पीने के शौक की वजह से एक ऐसे थुल-थुल शरीर का मालिक हो गया था जिसके कारण वह चालीस से अधिक की उम्र का लगता था।
होटल से संजय चुटानी का फोन आने पर वालिया का परेशान होना स्वाभाविक था। चरणजीत वालिया अपने ड्राइवर राकेश को फोन कर-कर के परेशान हो गया लेकिन उसका मोबाइल हर बार कवरेज क्षेत्र से बाहर का मैसेज सुना रहा था, जबकि बस के जीपीएस सिस्टम के अनुसार उसकी पोजीशन लगातार बदल रही थी। इसका मतलब ड्राइवर और बस दोनों सफर में थे और एक साथ चल रहे थे।
फिर ये बस वापस ‘पर्ल रेसीडेंसी’ क्यों नहीं पहुँची?
उसका ड्राइवर गाड़ी लेकर वापस ‘सिग्मा ट्रेवल्स’ अब तक क्यों नहीं पहुँचा था?
जीपीएस के मुताबिक बस की लोकेशन नेशनल हाइवे चार पर मुंबई-पुणे रोड़ पर पनवेल के पास दिखाई दे रही थी। कैसा अहमक़ ड्राइवर था! टोल-टैक्स कटवाए जा रहा था लेकिन अपना फोन उठाने की जहमत नहीं कर रहा था।
आखिर हैरान परेशान होते हुए वालिया ने अपने एक दूसरे ड्राइवर विनायक को बुला भेजा। उसने विनायक को उस बस की जीपीएस लोकेशन बताते हुए उस रूट पर गाड़ी खोजने को भेजा। उनके ऑफिस से ये दूरी लगभग पचास किलोमीटर के आसपास थी और ट्रैफिक हालत देखते हुए ये दूरी दो से ढाई घंटे में निपटने वाली थी। लेकिन इसके सिवाय चरणजीत वालिया के पास कोई चारा भी नहीं था।
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अंधेरी वेस्ट के पुलिस स्टेशन में सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर सुधाकर शिंदे अपने ऑफिस में बैठा एक चोरी के केस की फाइल में मगज़मारी कर रहा था। सुधाकर शिंदे एक कसरती बदन का मालिक था। उसके चेहरे पर छाया पुलिसिया रोब उसे रूखे और अड़ियल अफसरों में शुमार करवाने के लिए काफी था।
उसके ऑफिस के फोन की घंटी बजी। लाइन पर ‘पर्ल रेसीडेंसी’ का मैनेजर माधव अधिकारी था। माधव अधिकारी ने उसे अपने होटल में रात से लापता हुए कस्टमर्स की सूचना दी और सौ नंबर पर भी इसकी सूचना दर्ज़ पहले ही करवा देने की बात बतायी। किसी इकलौते आदमी की बात होती तो पुलिस उसे चौबीस घंटे के लिए इंतजार करने को कहती लेकिन यहाँ मामला पंद्रह लोगों का था। सौ नंबर से ऑनलाइन रिपोर्ट उनके ऑफिस में पहले ही आ चुकी थी।
सुधाकर शिंदे ने अपने मातहत असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर मिलिंद राणे को बुलाया और होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ चलने की तैयारी करने का निर्देश दिया। अपनी बोलेरो में सवार होकर वे लोग होटल पहुँचे, जहाँ रिसेप्शन पर ग्रेसी अपनी कुर्सी पर हमेशा की तरह मुस्तैद बैठी हुई थी।
सुधाकर शिंदे ने ग्रेसी को पुलिस स्टेशन में किसी माधव अधिकारी का फोन और सौ नंबर पर दर्ज़ हुई रिपोर्ट का हवाला देते हुए अपने आने का मकसद बताया। ग्रेसी ने वहाँ पर खड़े एक रूम बॉय को बुलाकर सुधाकर को माधव अधिकारी के ऑफिस में छोड़ कर आने को कहा।
सुधाकर ने अपने साथ आये एक हेड कांस्टेबल को अपने साथियों के साथ वहीं रुकने के लिए कहा। माधव अधिकारी ने बड़े जोशोखरोश के साथ सुधाकर शिंदे और मिलिंद राणे का अपने ऑफिस में स्वागत किया।
“हैलो इंस्पेक्टर। मैंने ही आपके ऑफिस में फोन किया था। वो क्या है कि कल रात से हमारे पंद्रह कस्टमर्स अपने रूम में नहीं पहुँचे हैं और अब दोपहर हो गयी है लेकिन अब तक उनका कोई अता-पता नहीं है।”
“आपको ये अंदेशा कब हुआ कि अब पुलिस को बुलाना चाहिए। ये भी तो हो सकता है कि उनका आगे कहीं घूमने का प्रोग्राम बन गया हो और वो लोग अभी तक वहाँ नहीं पहुँचे हो।” सुधाकर ने आशंका जाहिर की।
“शुरू में हमें भी ऐसा ही लगा था। जब उन सब के परिवार वालों के फोन हमारे पास आये तो हमने भी उन्हें यही बात कही थी। लेकिन इंस्पेक्टर शिंदे, उन लोगों में से कोई तो अपने किसी रिश्तेदार, दोस्त या खास आदमी को बताता कि उनका प्लान बदल गया है और वे लोग आगे कहीं जा रहें है।” माधव अधिकारी ने उत्तर दिया।
“वे लोग एक कंपनी में काम करते हैं तो आपके होटल से ही वे लोग एक ही ग्रुप में निकले थे?” इंस्पेक्टर सुधाकर ने पूछा।
“जी हाँ, वे सभी लोग विस्टा टेक्नोलॉजी के कर्मचारी हैं। उन लोगों की एक हफ्ते की कॉन्फ्रेंस थी। वे लोग एक बस से एक साथ ही निकलते थे और कल उनकी कॉन्फ्रेंस का आखिरी दिन था। इसलिए ऐसा हो सकता है कि वे लोग कहीं घूमने के लिए निकले हों।” माधव ने जवाब दिया।
“उन लोगों का कोई हेड या टीम लीडर तो होगा। क्या उसका कोई फोन नंबर आपके पास है?”
“टीम लीडर का तो मैं कह नहीं सकता लेकिन सभी के फोन नंबर्स की लिस्ट हमारे पास है। उसका प्रिंट मैं आपको दे देता हूँ।”
“आपने विस्टा टेक्नोलॉजी की मैनेजमेंट को इन्फॉर्म किया? क्या पता उन्हें उनके प्रोग्राम के बारे में पता हो?”
“इंस्पेक्टर साहब, क्योंकि हमारे होटल के कस्टमर लापता हैं, इस बात को देखते हुए हमने पुलिस को ही सबसे पहले इन्फॉर्म करना उचित समझा। उनके हेड ऑफिस में हमने उनके आगामी प्रोग्राम के बारे में पूछने की कोशिश की थी लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई भी सूचना होने से इंकार कर दिया।”
“हो सकता है, उन लोगों का कोई टूर विस्टा टेक्नोलॉजी ने प्लान किया हो? आपके होटल की तरफ से ऐसा कोई पैकेज तो नहीं दिया गया था?”
“हमारे होटल की तरफ से तो टूर का कोई पैकेज नहीं था। अगर हमने ऐसा कोई प्रोग्राम बनाया होता तो उन लोगों की डेस्टिनेशन की हमें सूचना होती। लेकिन हमारे होटल के लिए जो ट्रैवल कंपनी ये सब प्रोग्राम बनाती है उससे हमारे असिस्टेंट मैनेजर ने उन लोगों की बात करवा दी थी। इससे ज्यादा होटल का इस मामले में कोई रोल नहीं है।”
“हम्म, उस ट्रैवल कंपनी की सारी डीटेल्स दीजिये और अपने असिस्टेंट मैनेजर को पुलिस स्टेशन भेजिए जिससे इस मामले का पर्चा दाखिल हो सके। मैं उन लोगों के कमरों में एक बार झाँकना चाहूँगा अगर आप को कोई ऐतराज ना हो तो।”
माधव अधिकारी एक बार तो हिचकिचाया लेकिन फिर संजय चुटानी को इशारे से सुधाकर के साथ जाने का इशारा किया। सुधाकर ने मिलिंद राणे को माधव अधिकारी से उन पंद्रह लोगों की सारी जानकारी लेने के लिए कहा। मिलिंद ने माधव अधिकारी से उन पंद्रह कस्टमरों की लिस्ट, मोबाइल नंबर और ‘सिग्मा ट्रेवल्स’ की पूरी डीटेल्स ले ली।
वो लोग लिफ्ट से पाँचवीं मंजिल पर पहुँचे। हालाँकि हासिल कुछ नहीं होना था, फिर भी सुधाकर ने अपने साथ आये सिपाहियों को सभी कमरों में सरसरी तौर पर छानबीन करने के लिए कहा और बाकायदा खुद भी हरेक कमरे में गया। कमरों में रखे सामान को ज्यादा हिलाए डुलाए बिना सभी कमरों में किसी मोबाइल, डायरी या किसी कागजातनुमा चीजों के ऊपर खास तवज्जो दी गयी। उन्हें कोई कारआमद चीज उन लोगों के कमरों से बरामद नहीं हुई। सुधाकर ने फिर उन कमरों को बंद करने का आदेश दे दिया और संजय चुटानी को ताकीद की कि अब वो कमरे बिना पुलिस की अनुमति के न तो खोले जाएँ और न ही खाली किए जाएँ। अगर ऐसा होता है तो पुलिस को तुरंत खबर की जाए।
सुधाकर शिंदे होटल से फ़ारिग होने के बाद मिलिंद राणे को साथ लेकर ‘सिग्मा ट्रेवल्स’ के दफ्तर की तरफ रवाना हुआ। उनको मुंबई की ट्रैफिक में कोई डेढ़ किलोमीटर का रास्ता तय करने में चालीस मिनट लग गए। उन्हें चरणजीत वालिया अपने ऑफिस में कुर्सी पर बेचैनी से पहलू बदलता हुआ मिला। वालिया ने उनका इस तरह स्वागत किया जितना उसने कभी अपने माँ जाए भाई का भी नहीं किया था। उसे पता था कि सामने वाले के हाथ में डंडा था और उस डंडे की ताकत वो भली-भाँति जानता था।
“तुम्हें कितना टाइम हो गया यहाँ पर सिग्मा ट्रेवल्स का ऑफिस चलाते हुए?” सुधाकर ने कुर्सी पर बैठते हुए अपना पहला प्रश्न दागा।
“मेरे बाप ने अपनी जिंदगी के आखिरी टाइम में यह धंधा खड़ा कर के मुझे सौंपा था, साहब। अब मैं ही हूँ जो इसे संभालता हूँ जब तक रब मैनु साँस बख्शे।”
“पर्ल रेसीडेंसी को ट्रैवल बस तुमने दी थी।”
“जी बाउजी। हमारा उनके साथ पिछले पाँच साल से कॉन्ट्रैक्ट है।”
“हर रोज़ एक ही बस उन लोगों के लिए जाती थी या बदल-बदल कर बस भेजते थे।”
“हर रोज एक ही बस जाती थी, इंस्पेक्टर साहब। इसमें मगज़मारी कम रहती है और ड्राइवर को भी आराम रहता है।”
“क्या नाम था ड्राइवर का? उसका फोन नंबर और पता बताओ।”
चरणजीत ने अपने ड्राइवर राकेश का नंबर और उसके घर का पता लिखवाया। मिलिंद राणे ने वह मोबाइल नंबर नोट करते ही उसे मिलाना शुरू किया लेकिन वह फोन कवरेज एरिया से बाहर आ रहा था।
“ये फोन तो नहीं लग रहा है।” मिलिंद राणे ने वालिया की तरफ देखता हुए कहा।
“लग ही नहीं रहा, सर जी। मैं भी फोन कर-कर के सुबह से परेशान हो गया हूँ। अब आपके आने से कुछ देर पहले ही मैंने एक दूसरे ड्राइवर विनायक को उस बस की जीपीएस लोकेशन के हिसाब से पता लगाने के लिए भेजा है।”
“बस की जीपीएस लोकेशन क्या बता रही थी तुम्हें?”
“उसके हिसाब से तो वह बस मुंबई-पुणे रोड़ पर पनवेल के पास थी, जब मैंने अपने दूसरे ड्राइवर विनायक को भेजा था उस बस की खोज खबर लेने के लिए। अब तो बस शायद और भी नजदीक आ गयी होगी।”
“अब बस की लोकेशन क्या है? यह देखो। अपना लैपटॉप ऑन करो ताकि हमें भी कुछ पता लगे।”
चरणजीत ने मेज पर रखा हुआ लैपटॉप सुधाकर और मिलिंद की तरफ कर दिया। दोनों बड़े ध्यान से बस की लोकेशन को देख रहे थे। बस पिछले आधे घंटे से एक ही जगह पर खड़ी थी। सुधाकर ने वालिया से बस का नंबर लिया और पुलिस कंट्रोल रूम में बस का नंबर नोट करवाया। उसने उस बस को जहाँ कहीं भी हो, वहीं रोकने का आदेश देने की हिदायत जारी कर दी। चरणजीत वालिया को साथ लेकर सुधाकर अपने साथियों के साथ उसी वक्त पनवेल के लिए रवाना हो गया।
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असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर संपत राव ने ज़ोर की उबासी ली। पिछले एक हफ्ते से उसकी ड्यूटी वाशी टोल ब्रिज से पहले लगे हुए बैरियर पर लगी हुई थी। वाशी पुल नवी मुंबई को शेष मुंबई से जोड़ता हुआ एक महत्वपूर्ण पुल था। वाशी का क्षेत्र हाउसिंग सोसाइटी और सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के लिए एक उभरते हुए केंद्र के रूप में पूरी तरह से विकसित हो चुका था। इस टोल प्लाज़ा पर दिन के समय भयंकर ट्रैफिक रहती थी। संपत राव ने अपनी गाड़ी में, वायरलेस के ऊपर अभी जारी हुआ, पुलिस कंट्रोल रूम का मैसेज सुना था। यह ‘सिग्मा ट्रेवल्स’ की एक सफ़ेद रंग की टूरिस्ट बस को रोकने का आदेश था जिसका नंबर उसने अभी-अभी अपनी डायरी में लिखा था।
अपनी गाड़ी से उतर कर वह एक हवलदार, जिसका नाम हामिद था, के पास गया और उसे खासतौर पर इस नंबर की बस का ध्यान रखने के लिए कहा। उन लोगों का काम ही यही था कि संदिग्ध दिखने वाली गाड़ियों को रोक कर उनकी चेकिंग करना। भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ पर चोट करने का इरादा रखने वालों के लिए मुंबई एक सहज चुनाव थी। 26/11 की आतंकवादी घटनाओं के बाद मुंबई पुलिस का हमेशा मुस्तैद रहना एक जरूरत हो गयी थी। हामिद अपने साथी पुलिसकर्मियों के साथ मुंबई की तरफ आने वाली हर गाड़ी की तरफ खास ध्यान दे रहा था और सब की निगाहें एक सफ़ेद रंग की टूरिस्ट बस को ढूँढ रही थी।
कोई आधा घंटा गुजर जाने के बाद एक सफ़ेद रंग की टूरिस्ट बस बैरियर की तरफ आती दिखाई दी। हामिद ने संपत राव को आवाज लगाई। संपत राव ने भी बस को आते हुए देख लिया था। उसने तुरंत अपना रूख बैरियर की तरफ किया। बस के ड्राइवर ने भी सामने बैरियर को देखा। उसे पता था कि इस तरह की चेकिंग हर रोज का काम था। उसने देखा कि सामने दिखाई दे रहा हवलदार उसे रुकने का इशारा कर रहा था। ड्राइवर ने बस की स्पीड कम कर दी तो उसे इंस्पेक्टर दिखने वाला शख़्स भी बस की तरफ आता दिखाई दिया। ना जाने क्यों उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा। उसने अपनी बस को एक दम रोकने की बजाय थोड़ा आगे जा कर रोका।
संपत राव ने बस की नंबर प्लेट देखी तो नंबर तो वही था जो कंट्रोल रूम के द्वारा बताया गया था। वह तुरंत बस की तरफ लपका। अनजाने में उसका हाथ अपने रिवॉल्वर के होल्स्टर पर चला गया। रियरव्यू मिरर से पीछे देख रहे ड्राइवर ने जब ये सब देखा तो उसके होश फाख्ता हो गए। उसने आव देखा न ताव, तुरंत ड्राइवर सीट के बगल वाला दरवाजा खोला और बाहर कूद गया।
हामिद और संपत राव उसकी मंशा देख तुरंत उसके पीछे भागे। ड्राइवर चलते ट्रैफिक में से बंदूक से छूटी गोली की तरह टोल ऑफिस की तरफ भागा। उसे तेज रफ्तार से आती गाड़ियों से कोई डर न लगा। कई गाड़ियों ने उसे बचाने के लिए तेज ब्रेक लगाए, जिससे पीछे आती हुई गाड़ियाँ उनसे टकराते-टकराते रह गईं।
गाड़ियों का रुकना संपत राव और हामिद के लिए मुफीद साबित हुआ। तब तक बाकी सिपाही भी अपने डंडे संभाल कर उन दोनों के पीछे दौड़े। ड्राइवर तब तक सड़क क्रॉस कर उसके साथ लगती लोहे की रेलिंग के ऊपर से कूद गया। कुछ दूर भागने के बाद पेड़ों के झुरमुट शुरू हो गए जिससे वो कुछ समय के लिए पीछे आते संपत राव और हामिद की नजरों से ओझल हो गया। संपत राव भागते हुए ट्रांसमीटर अपने साथ ले आया था जो उसके लिए बड़ा सहायक सिद्ध हुआ। उसने ये सूचना कंट्रोल रूम को दे दी। इतने में टोल पर दो पेट्रोलिंग बाइक पर सवार दो एएसआई और उनके पीछे दो हवलदार भी उसी दिशा में पहुँच गए।
ड्राइवर लगातार भागते-भागते हाँफने लगा और मोटरसाइकल से पीछा होने का आभास होने पर उसकी साँस और ज्यादा भारी होने लगी। हामिद अब उसके पीछे कुछ ही दूरी पर था। उसने अपनी रफ्तार बढ़ाते हुए धीरे-धीरे उनकी बीच की दूरी को कम करना शुरू किया।
“ए थाम्बा। तू कुतरया। ऐसे भाग के सागर पार जाने की सोचता है, तू हरामी।” फिर तैश में हामिद ने अपना डंडा खींच के उसकी दिशा में दे मारा। हामिद का निशाना बिल्कुल सही बैठा और जाकर सीधा सामने वाले की खोपड़ी में लगा। सिर पर लगी चोट, थकान और डर के मारे बेहाल हुआ ड्राइवर बेहोश होकर धड़ाम से जमीन पर गिरा।
पहले हामिद और फिर संपत राव उसके सिर पर पहुँचे। संपत राव ने उसके कूल्हे में एक ठोकर जड़ी तो वो कुनमुनाया। उसे अपने क़ाबू में कर संपत और हामिद एक पेट्रोलिंग बाइक पर सवार होकर वापस टोल नाका पहुँचे। उस बस के मिलने और ड्राइवर के पुलिस के कब्जे में होने की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी गयी।
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