मोना चौधरी ने सड़क के किनारे कार रोकी और इंजन बन्द करके बाहर निकल आई । उसने पिंडलियों तक जाती स्कर्ट और ऊपर कमीज पहन रखी थी । गर्दन तक कटे बाल । माथे पर बालों की लट । होंठों पर हल्की जामुनी रंग की लिपस्टिक का शेड लगा था । बेहद खूबसूरत और आकर्षक लग रही थी वह ।

मोना चौधरी ने इधर-उधर निगाह मारी ।

दिन के ग्यारह बज रहे थे । सड़क पर से बराबर वाहन आते-जाते शोर पैदा कर रहे थे । पीछे फुटपाथ और दुकानों की लम्बी लाइन थी । तभी मोना चौधरी की निगाह पारसनाथ से टकराई । जो कि ठीक सामने, सड़क पर खड़ा नजर आया था । निगाहें मिलते ही पारसनाथ ने मोना चौधरी को आगे बढ़ने का इशारा किया और खुद भी अपनी तरफ की सड़क के किनारे-किनारे आगे बढ़ने लगा ।

मोना चौधरी इस तरफ की सड़क के किनारे से आगे बढ़ी । वह सावधान थी । सतर्क थी । उसकी छिपी निगाह हर तरफ फिर रही थी ।

पाँच मिनट उसे इसी तरह आगे बढ़ते बीत गए ।

सड़क पर दूसरी तरफ से पारसनाथ आगे बढ़ रहा था । तभी मोना चौधरी की निगाह, सड़क के किनारे खड़ी छोटी-सी विदेशी कार पर जा टिकी । उसके शीशे काले थे । भीतर क्या है, क्या नहीं ! कुछ भी नजर नहीं आ रहा था । उसने निगाह घुमाकर, पारसनाथ को देखा तो पारसनाथ ने उसी कार की तरफ इशारा किया और ठिठक गया ।

मोना चौधरी की निगाह पुनः छोटी-सी विदेशी कार पर जा टिकी थी । कुछ ही पलों में वह कार के पास पहुँचकर ठिठकी । एक निगाह सड़क पर खड़े पारसनाथ पर मारी फिर कार के पीछे वाला दरवाजा खोलकर भीतर झाँका । आगे वाली सीट पर ड्राइवर मौजूद था और पीछे वाली सीट पर पचास बरस का, कीमती कपड़े पहने एक व्यक्ति बैठा था । उस व्यक्ति के व्यक्तित्व से अमीरी की झलक मिल रही थी ।

मोना चौधरी की नजरें उस व्यक्ति से मिलीं तो वह मुस्कुराया ।

“वेलकम मोना चौधरी ।”

मोना चौधरी बिना कुछ कहे भीतर बैठी और दरवाजा बन्द कर लिया ।

“तुम ।” मोना चौधरी ने उसके चेहरे पर निगाह मारकर शांत स्वर में कहा, “गणपत सेठ हो ।”

“हाँ ! वैसे मेरे खास जानने वाले, मेरे नाम के आगे ड्रग्स किंग भी लगाते हैं ।” वह सिर हिलाकर बोला ।

“मुझसे मिलने के लिए तुमने पारसनाथ को दो लाख दिए । जबकि इस काम के लिए पारसनाथ पैसे लेने की जरूरत नहीं समझता था । लेकिन तुमने दिए ।” मोना चौधरी ने उसे देखा ।

ड्रग्स किंग गणपत सेठ मुस्कुराया ।

“मोना चौधरी ! मेरा उसूल है कि किसी से अगर काम लो, बेशक वो छोटा काम हो या बड़ा, बदले में उसे काम की कीमत अवश्य दो । सामने वाला इंकार करे, तब भी दो, क्योंकि उसने काम किया है । अपने नाम का रौब दिखाकर मैं किसी का पैसा नहीं मारता । पारसनाथ ने वैसे भी बहुत बड़ा काम किया है । मैं तुमसे मिलना चाहता था । मेरे पास आदमियों का तगड़ा नेटवर्क होते हुए भी तुम्हें तलाश कर पाना बेहद कठिन है । पारसनाथ की वजह से कितनी आसानी से मेरी तुमसे मुलाकात हो गई ।” कहने के साथ ही गणपत सेठ ने खिड़की से बाहर नजर मारकर, सड़क पार खड़े पारसनाथ को देखा, जो कभी-कभार इधर निगाह मार लेता था ।

“काम बोलो ।” मोना चौधरी ने कहा, “पारसनाथ ने मुझे बताया था, तुम कोई खास काम पूरा करवाना चाहते हो ।”

“हाँ !” गणपत सेठ ने फिर ड्राइवर से कहा, “तुम बाहर जाओ । जब मैडम कार से निकले, तब आना ।”

ड्राइवर फौरन दरवाजा खोलकर बाहर निकला और दरवाजा बन्द करके कार से दूर हो गया ।

“काम खतरनाक है ।” गणपत सेठ ने कहा ।

“जाहिर है । खतरनाक नहीं होता तो तुम मुझसे मिलने की नहीं सोचते ।”

“मैंने सोचा शायद तुम ये काम कर सको । तुम ।”

“काम बोलो । फालतू बात मत बोलो ।”

गणपत सेठ ने मोना चौधरी को घूरा फिर गहरी साँस लेकर सिर हिलाया ।

“बीते साल भर में भारत सरकार ने ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स पकड़ी है ।” गणपत सेठ ने कहा, “और हमेशा की तरह सारी ड्रग्स को इकट्ठा करके, उसे पाँच दिन बाद नष्ट किया जा रहा है ।”

“वो ड्रग्स तुम्हारी है ?” मोना चौधरी ने पूछा ।

“नहीं ! उसमें सौ-पचास करोड़ की मेरी पकड़ी गई ड्रग्स शामिल हो तो जुदा बात है ।”

“क्या चाहते हो ?”

“अगर सरकार द्वारा नष्ट की जाने वाली ब्यासी अरब की ड्रग्स मुझे मिल जाये तो उस ड्रग्स को बेचकर मैं भारी कीमत वसूल सकता हूँ । कितनी ज्यादा दौलत मेरे पास आ जायेगी, तुम शायद अंदाजा न लगा सको ।”

मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े ।

“अगर तुम सोचते हो कि सरकारी पहरेदारी में से ड्रग्स को लूट करूँगी तो तुमने गलत सोचा है । इस काम के लिए तुम्हें किसी बेवकूफ की जरूरत है, जो ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स पर मौजूद सरकारी पहरेदारियों से टकराकर, उस ड्रग्स की लूट करे ।” मोना चौधरी ने लापरवाही से कहा ।

गणपत सेठ ने मोना चौधरी के चेहरे पर नजरें टिका दीं ।

“तुम ठीक कहती हो कि इतनी बड़ी रकम की ड्रग्स पर सख्त पहरेदारी होगी ।” गणपत राय ने कहा, “और वास्तव में पहरेदारी है भी ऐसी कि उसे तोड़ पाना आसान काम नहीं !”

मोना चौधरी उसे देखती रही ।

“मेरी पूरी बात सुनने के बाद शायद तुम्हें इस काम को करने में एतराज न हो ।”

“कहो ।”

“सरकार में हमेशा से सिस्टम रहा है कि पकड़े गए नशीले पदार्थों को साल में एक बार इकट्ठा करके उन्हें जलाकर तबाह कर दिया जाता है । लेकिन इस बार उन्हें जलाया नहीं जा रहा । एक नये तरीके से सारी ड्रग्स को खत्म किया जा रहा है और उस नये तरीके की वजह से तुम्हें ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स पर हाथ फेरने का बहुत ही अच्छा मौका मिल सकता है ।”

“कहते रहो ।” मोना चौधरी बोली, “सारी बात एक ही बार में बताओ ।”

“कुछ महीने पहले गुजरात में बहुत ही विनाशकारी भूकम्प आया था ।” गणपत सेठ बोला, “उस भूकम्प में शहर के शहर तबाह हो गए थे । गाँव के गाँव जमीन में धँस गए थे । बर्बादी का बहुत ही खतरनाक आलम गुजरात में फैला था । सच बात तो ये है कि आज भी अधिकतर लोग बिना छत और बिना काम के वहाँ भटक रहे हैं ।”

गणपत सेठ के खामोश होने पर मोना चौधरी ने सिर हिलाया ।

“उस भूकम्प से जमीन में ऐसी उथल-पुथल हुई कि गुजरात में जहाँ सूखा था, वहाँ से स्वच्छ पानी की धाराएँ फूट पड़ीं । कई जगह तालाब बन गए तो कई जगह छोटी-छोटी झील की तरह जमीन से पानी बाहर निकल आया । जहाँ भूकम्प लोगों के लिए अभिशाप साबित हुआ, वहीं कुछ के लिए वरदान भी । जहाँ लोगों को पीने को भी ठीक तरह पानी नहीं मिल पाता था, अब वे नहा भी रहे हैं और फसलें भी पैदा कर रहे हैं । कांडला बंदरगाह का नाम तो तुमने सुन रखा होगा ?”

“बहुत अच्छी तरह से ।” मोना चौधरी बोली ।

कांडला बंदरगाह भी उस भूकम्प से प्रभावित हुआ था ।”

गणपत सेठ बोला, “कांडला बंदरगाह के एक तरफ मांडवी नाम की जगह पड़ ती है । मांडवी के आगे कोटेश्वर । इनके बीच में छोटे-छोटे नामालूम गाँव या फिर गाँवों से लगता कोई कस्बा है, परन्तु मांडवी से कोटेश्वर जाने का रास्ता साफ़ है । क्योंकि कोटेश्वर जाना-माना बीच है । यहाँ रिसोर्ट भी है और पर्यटकों का वहाँ आना-जाना लगा रहता है । कोटेश्वर बीच में दायीं तरफ चार किलोमीटर की दूरी पर सूनसान जगह है । शायद ही कोई जोड़ा वहाँ खिसक जाता हो । यहाँ भूकम्प से जमीनी उथल-पुथल की वजह से ढाई किलोमीटर लम्बा-चौड़ा तालाब जमीन से उभरा है और जमीन एकदम दलदली बन गई है । जमीन से निकलता वो पानी कोई सामान्य पानी न होकर कई पदार्थों से मिश्रित, अजीब-सा रासायनिक पानी है ।”

“क्या मतलब ?”

“अभी तक देश के वैज्ञानिक भी उस रासायनिक पानी को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सके हैं । भूकम्प के महीने के बाद वो तालाब लोगों की निगाह में आया, जब दो पुलिस वाले, किसी काम की खातिर उधर गए और दलदल की सतह पर टिके उस रासायनिक पानी में जा गिरे । जैसे-तैसे वो बाहर निकले परन्तु उनके शरीरों की अजीब-सी हालत होने लगी । उनके जवान शरीर की सतह, झुर्रियों से भरने लगी । माँस लटककर, काला-सा हो गया चंद घण्टों में और फिर अगले तीन दिनों में वो दोनों सिर्फ हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गए । बाद में उनमें से एक मर गया । एक अभी भी जिन्दा है ।”

मोना चौधरी, गणपत राय को देखती रही ।

“अस्सी अरब रुपये की ड्रग्स का तुम्हारी इस बात से क्या वास्ता है ?”

“अभी मालूम हो जायेगा । आगे सुन लो । आख़िरकार पानी के सारे शोधकर्ता उस पानी के बारे में जानने में लग गए कि वो क्या है ? सैकड़ों परीक्षण किये गए । आखिरकार महीने बाद एक ही निष्कर्ष निकाला गया कि उस पानी में ऐसे रसायन मौजूद हैं, जिनकी जानकारी अभी दुनिया में भी किसी को नहीं है । अभी भी इस पानी पर देश के ही नहीं, विदेशों के वैज्ञानिक भी पानी के उन नमूनों को अपने देश ले गए हैं परीक्षण के लिए ।” गणपत सेठ ने सिर हिलाकर कहा, “अब मैं तुम्हें उस अजीब-से रसायनों वाले पानी की खासियत बताता हूँ जो भूकम्प के बाद ढाई किलोमीटर के दायरे में दलदल के साथ, ऊपर आ निकला है । रसायनों मिश्रित पानी में जो चीज़ मिलती है, वो अपना असर खोकर साधारण बन जाती है, बेकार हो जाती है ।”

“मैं समझी नहीं !” मोना चौधरी के स्वर में उलझन थी ।

गणपत राय सिर हिलाकर बोला ।

“उदाहरण के तौर पर उस पानी में सोने का पीस डालो तो वो अपनी चमक खो बैठेगा । वो बिना चमक का साधारण-सा पीले फीके रंग का ठोस टुकड़ा ही रह जायेगा ।”

“ऐसी बात है तो सोने के उस पीस को रगड़कर, उसकी ऊपरी परत हटाकर नीचे से सोने की नई परत ।”

गणपत राय के चेहरे पर उभरी मुस्कान को देखकर मोना चौधरी खामोश हो गई ।

“यही तो कमाल की बात है मोना चौधरी कि सोने के पीस की ऊपरी परत हो या भीतरी परत, सब का हाल बाहरी परत जैसा ही हो जाता है, सिर्फ उस पानी के छू जाने की देर है यही हाल चाँदी का है । लोहे का है । कोई भी धातु क्यों न हो । उस पानी में डुबकी लगाते की अपनी पहचान खो बैठती है ।”

“हैरानी है ।” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।

“वास्तव में हैरानी ही है । जमीन से निकले उस पानी में जाने कौन-कौन से नये रसायन मौजूद हैं, उनकी अभी पहचान नहीं हो पायी । शोधकर्ताओं के लिए पानी में नये प्रकार के ऐसे रसायन हैं, जिन्हें पहचान करने के लिए उन्हें नया दाम देने की, वो भरपूर चेष्टाओं में लगे हैं ।” गणपत राय ने कहा ।

“ओह !”

“वो ऐसा रासायनिक पानी है कि उसमें कुछ भी डाला जाये, वो पानी उस चीज़ की पहचान, अस्तित्व या फिर वजूद कह लो, खत्म कर देता है । उसमें एक बोरी आटे की फेंकी जाये तो, पानी में भीगते ही वो आटे की बोरी, मिट्टी जैसी बन जाती है और धीरे-धीरे पानी में डूबकर, पानी के नीचे मौजूद दलदल में धँसकर जमीन के भीतर जाने कहाँ पहुँच जाती है । इस बीच अगर बोरी को दलदल में धँसने से पहले ही बाहर खींच लिया जाये तो बोरी में गीले आटे की अपेक्षा गीली मिट्टी-सी भरी होगी । आटे का वजूद खत्म हो चुका होगा । यानी कि कुल मिलाकर सब बात का मतलब ये है कि जो भी चीज़ उस पानी में भीगेगी, वो मर-मिट जायेगी ।”

“समझ गई ।” मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव थे ।

“अब मैं फिर वापस अपनी बात पर आता हूँ ।” गणपत राय कह उठा, “मादक पदार्थों को जलाये जाने पर प्रदूषण फैलता है । लेकिन इसके अलावा सरकार के पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं ! सरकार मादक पदार्थों को आबादी से दूर वीराने में किसी सुरक्षित जगह पर जला देती है परन्तु प्रदूषण तो फैलता ही है, तभी सरकार के बड़े अधिकारियों ने जमीन से निकले उस पानी के भीतर ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स फेंकने का फैसला किया । ये फैसला उन लोगों की सहमति के बाद लिया गया, जो पानी में मौजूद रसायनों की पहचान करने में लगे हैं । ड्रग्स उस पानी में डूबते ही अपना असर खो देगी और पानी के नीचे मौजूद दलदल में धँसकर, जमीन के नीचे गहराई में जाने कहाँ चली जायेगी ।”

“गुड आइडिया ।” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।

“लेकिन ढेर सारी ड्रग्स को पानी के भीतर फेंकना कठिन काम है । वह किनारे पर भी गिर सकती है और वहीं पड़ी रह सकती है । जगह घिर जायेगी । खामख्वाह की गंदगी फैलेगी ।”

“तुमने तो कहा है कि वहाँ दलदल... ।” मोना चौधरी ने कहना चाहा ।

“वो पानी की सारी सतह के नीचे नहीं है ।” गणपत सेठ ने टोका, “ढाई किलोमीटर के दायरे में वो पानी, जमीन से निकलकर फैला है और वो दलदल पानी के भीतर, करीब एक किलोमीटर के हिस्से में मौजूद है ।”

“ओह !”

“ऐसे में ड्रग्स को दलदल वाले हिस्से में सीधे-सीधे फेंकना कठिन काम है । वो पानी अगर शरीर के किसी हिस्से को भी छू जाये तो कितना खतरनाक साबित होगा, ये तुम्हें बता ही चुका हूँ । सरकार की तरफ से ड्रग्स को दलदल वाले हिस्से में फेंकने का ये प्रोग्राम बना है कि हैलीकॉप्टर से ड्रग्स की पेटियाँ नीचे फेंकी जाएँ । एक हैलीकॉप्टर को ये सारा काम पूरा करने के लिए कम-से-कम दो दिन लगेंगे । ऐसे में वो ड्रग्स भी नष्ट हो जायेगी और प्रदूषण भी नहीं फैलेगा । इस योजना को अंजाम देने के लिए भारी सिक्योरिटी में गुप्त तौर पर सारी ड्रग्स उस दलदली तालाब से मात्र एक किलोमीटर दूर, ऐसी जगह पर पहुँचाकर इकट्ठी कर दी गई है, जहाँ हैलीकॉप्टर आसानी से खड़ा हो सकता है और उड़ान भर सकता है । पाँच दिन बाद सरकार इस योजना को अंजाम देने जा रही है ।”

“सरकारी सुरक्षा के घेरे को तोड़ना आसान नहीं होगा गणपत सेठ ! मैं खामख्वाह... ।”

“जहाँ पर गुपचुप तरीके से ड्रग्स पहुँचायी गई है, वहाँ पर इस वक्त सिर्फ चार या पाँच गनमैन ही मौजूद रहकर ड्रग्स की पहरेदारी कर रहे हैं मोना चौधरी ! सिर्फ चार या पाँच गनमैन ।” गणपत सेठ का स्वर कठोर हो गया, “ऐसे में उस ड्रग्स पर हाथ फेरकर उसे उड़ा ले जाना तुम्हारे लिए मामूली काम है । तुम चाहो तो कल तक वहाँ पहुँच सकती हो, जहाँ ड्रग्स मौजूद हैं । रास्ता मैं तुम्हें बता देता हूँ । सोच लो ब्यासी अरब की कीमत कहीं ज्यादा बैठेगी ।”

मोना चौधरी ने उसकी आँखों में झाँका ।

गणपत ने सिगरेट सुलगाई । आँखों में कठोरता थी ।

“कोटेश्वर बीच से कुछ दूरी पर, सूनसान जगह पर ड्रग्स मौजूद है । वहाँ सिर्फ चार-पाँच गनमैन पहरे पर हैं । ऐसे में तुम्हें क्या परेशानी है ? तुम्हें भी तकलीफ करने की जरूरत नहीं ! तुम्हारे आदमी ये काम आसानी से कर देंगे । मेरी कहाँ जरूरत पड़ गई । तुम्हें तो... ।”

“सरकार ने मेरे हाथ-पाँव बाँध दिए हैं ।” गणपत सेठ ने गहरी साँस ली ।

“क्या मतलब ?”

“कई महीनों से मैं ड्रग्स से वास्ता रखते सरकारी लोगों से सौदा करने की चेष्टा कर रहा था कि वो औने-पौने दामों पर ड्रग्स मेरे हवाले कर दें । मैं उन्हें भारी रकम ऑफर कर चुका हूँ कि सरकारी ऑर्डर को जानते हुए दूसरों की निगाहों में धूल झोंकने के लिए, जितनी ड्रग्स को तबाह करने की जरूरत है वो रख लें, बाकी चुपके से मेरे हवाले कर दें । भरपूर कोशिश के बाद भी मेरी बात नहीं मानी गई ।”

गणपत सेठ का चेहरा कठोर हो गया।

“बल्कि मैं पूरी तरह सरकारी आदमियों की निगाह में आ गया कि उस ड्रग्स पर मेरी निगाहें हैं । जो कि हैं भी । मैं ब्यासी अरब की ड्रग्स के बारे में पूरी जानकारी रख रहा हूँ । उनके बीच मेरे आदमी हैं, जो कि भीतर की सब खबर मुझे दे रहे हैं । मैंने सोच लिया था कि ड्रग्स के तबाह होने से पहले ही उसे ले उड़ूँगा । लेकिन छः दिन पहले मुझे अपना विचार बदलना पड़ा । एंटी ड्रग्स डिपार्टमेंट के लोगों ने छः दिन पहले की शाम को मेरी कार को घेर लिया और मुझे पकड़कर अपने साथ ले गए । बहुत हिम्मत का काम किया उन्होंने मुझ पर हाथ डालकर । वरना सरकारी क्या अंडरवर्ल्ड वाले लोग भी मुझसे दूर रहना पसंद करते हैं । उनका इरादा था कि मुझ पर तगड़ा चार्ज लगाकर मुझे लम्बे वक्त के लिए कानूनी दाँव-पेंच में उलझा दें, परन्तु तब तक मुझे पकड़ ले जाने की खबर आम हो गई थी और मुझे बचाने के लिए तगड़ी सिफारिश आ गई । इस तरह मैं बच सका, परन्तु शर्त ये थी कि अगर मैंने उस ड्रग्स पर हाथ डाला तो मेरी खैर नहीं ! मैं मजबूर था । मुझे उनकी बात माननी पड़ी । न मानता तो वो मुझे कानूनी किताबों में उलझा देते । यही नहीं, उन्होंने बीस घण्टे मुझे अपने कब्जे में रखा । खाने-पीने की कोई कमी नहीं होने दी । कोई तकलीफ नहीं दी । लेकिन जब मुझे छोड़ा गया तो वापस आकर मालूम हुआ कि सावधानी के तौर पर एंटी ड्रग्स डिपार्टमेंट के लोगों ने मेरे हर खास-खतरनाक आदमी को पकड़ लिया है और कुछ पर निगरानी रख दी गई । पूछने पर मुझे स्पष्ट तौर पर कहा गया कि मेरे आदमियों की गिरफ्तारी दर्ज नहीं की गई । उन्हें सावधानी के नाते पकड़कर एक कमरे में ठूँस दिया गया है ताकि अपने वादे से पीछे हटकर, मैं ड्रग्स पाने की चेष्टा न कर लूँ ।”

तभी मोना चौधरी कह उठी ।

“मतलब की एंटी ड्रग्स डिपार्टमेंट वाले तुम्हारे बारे में किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते ।”

“ऐसा ही समझ लो ।” गणपत राय कड़वे स्वर में कह उठा, “उन्हें विश्वास हो चुका है कि इस ड्रग्स में मेरी दिलचस्पी है ।”

“फिर तो वो तुम पर नजर रख रहे होंगे, इस वक्त भी ।”

“ऐसा कुछ नहीं है ।” गणपत सेठ हाथ हिलाकर कह उठा, “वो मुझ पर नजर अवश्य रख रहे हैं लेकिन इस वक्त मैं उनकी नजरों में नहीं हूँ ।अपने बंगले से मैं ड्राइवर बनकर मूँछें लगाकर सिर पर विग लगाकर कार ड्राइव करते हुए निकला था और पीछे वाली सीट पर ड्राइवर चेहरा बदलकर कीमती कपड़े पहनकर बैठा था । ऐसे में वो मुझे नहीं पहचान सकते । उनकी दिलचस्पी सिर्फ मेरे पर निगाह रखने में है । मेरे अलावा बंगले पर क्या हो रहा है, उन्हें कोई मतलब नहीं !”

मोना चौधरी ने कार के बाहर नजरें मारीं ।

पारसनाथ सड़क पर खड़ा नजर आया ।

“चिंता मत करो । मैंने पूरी तसल्ली कर रखी है कि इस वक्त मेरे पीछे कोई नहीं है ।” वह बोला ।

“आगे बोलो ।”

“इन हालातों में मैं कुछ भी कर पाना ठीक नहीं समझता । एंटी ड्रग्स डिपार्टमेंट वाले इस बात पर बहुत सख्ती बरत रहे हैं । मैंने कुछ किया तो वो मुझे छोड़ने वाले नहीं ! इसलिए इस काम में मैं अपने आदमियों का इस्तेमाल नहीं कर सकता । यही वजह है कि तुमसे बात कर रहा हूँ ।”

“तो तुम चाहते हो कि ब्यासी अरब की ड्रग्स पर मैं हाथ मारूँ ।” मोना चौधरी बोली ।

“क्या हर्ज है ! चार-पाँच आदमियों से तो निपटना है । इस काम को करने के बदले तुम जो भी कीमत चाहोगी वो तुम्हें दे दूँगा । सारी ड्रग्स को वहाँ पहुँचा देना । बाकी का काम मेरे आदमी संभाल लेंगे । सब इंतजाम तैयार है ।”

मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव उभरे ।

“पाँचवें दिन वो लोग सारी ड्रग्स को खतरनाक रसायनों वाले उस दलदली पानी में फेंकना शुरू करेंगे । तुम्हारे पास बहुत वक्त है ।”

“बता चुके हो ये बात ।” मोना चौधरी बोली, “लेकिन जिस ढंग से तुम बता रहे हो, मैं नहीं समझती कि ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स पर हाथ डालना इतना आसान होगा ।”

“मुझे जो जानकारी मिली, वो मैंने तुम्हें दे दी ।”

“अभी कुछ नहीं कह सकती । कोटेश्वर जाकर ही फैसला कर सकूँगी ।” मोना चौधरी ने कहा ।

“फिर तो तुम आज ही कोटेश्वर के लिए रवाना हो सकती हो ।”

“इतनी आसान नहीं है मेरी रवानगी ।” मोना चौधरी ने कहा ।

“क्या मतलब ?”

“मेरी रवानगी की कीमत दो करोड़ रुपये होगी । इसमें काम करने की गारन्टी शामिल नहीं है । काम पूरा होगा या नहीं, इसका फैसला मैं वहाँ जाकर करूँगी । काम पूरा होता है तो उसके दस अरब रुपये लूँगी ।”

“मुझे मंजूर है ।” गणपत सेठ ने सहज ढंग से कहा ।

“जब पारसनाथ मुझे फोन करेगा कि उसके पास दो करोड़ रुपये और कोटेश्वर की उस जगह का नक्शा पहुँच गया है जहाँ ड्रग्स मौजूद है तो मैं उसके ठीक एक घण्टे बाद कोटेश्वर बीच की तरफ रवाना हो जाऊँगी ।”

“तुम्हें एक घण्टे में पारसनाथ का फोन आ जायेगा ।” कहने के साथ ही गणपत सेठ ने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाया । लाइन मिली, “पारसनाथ ! मैं गणपत !”

मोना चौधरी ने शीशे से बाहर देखा । सड़क पार पारसनाथ कानों में मोबाइल फोन लगाकर खड़ा था ।

“मोना चौधरी जा रही है । लेकिन तुम रुकना ।” इतना कहकर गणपत सेठ ने फोन बन्द किया ।

तभी मोना चौधरी दरवाजा खोलकर कार से बाहर निकली ।

“एक घण्टे में तुम्हें पारसनाथ का फोन आ जायेगा मोना चौधरी ।” गणपत सेठ ने जल्दी से कहा ।

“तब मैं गुजरात जाने की तैयारी शुरू कर दूँगी ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने कार का दरवाजा बन्द किया और पलटकर अपनी कार की तरफ बढ़ गई ।

पारसनाथ ने मोना चौधरी को जाते देखा, लेकिन वह अपनी जगह पर खड़ा रहा ।

☐☐☐

अगले दिन बारह बजे मोना चौधरी, महाजन के साथ कोटेश्वर बीच पर जा पहुँची थी । तीखी धूप निकली हुई थी, परन्तु समन्दर के पानी के सतह से टकराकर आती ठण्डी हवा, गर्मी से राहत पहुँचा रही थी । सफर लम्बा और कुछ तकलीफदेह ही रहा था । गुजरात में प्रवेश करने के पश्चात् भूकम्प से कई रास्ते इस तरह खराब हो चुके थे कि उन्हें छोड़कर लम्बे रास्तों का इस्तेमाल करना पड़ा था ।

कांडला बंदरगाह से, कोटेश्वर बीच तक आने वाली सड़क भी कई जगह टूट-फूट गई थी परन्तु आगे बढ़ने में उन्हें रुकावट नहीं आई । भूकंप ने गुजरात के अधिकतर हिस्सों को बुरी तरह तबाह कर दिया था । तबाही का मंजर देखते हुए ही यहाँ तक पहुँचे थे ।

गणपत सेठ से बात करने के बाद मोना चौधरी अपने फ्लैट पर पहुँची तो डेढ़ घण्टे बाद ही पारसनाथ का फोन आ गया था कि गणपत सेठ ने दो करोड़ रुपया उसे दे दिया है । मोना चौधरी ने रुपया उसे अपने पास ही रखने को कहा । पारसनाथ ने फोन पर ही गणपत सेठ का दिया नक्शा मोना चौधरी को समझाया कि कहाँ पर, सरकार ने ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स रखी हुई है । पारसनाथ ने ये भी कहा कि वह भी साथ चलना चाहता है, परन्तु मोना चौधरी ने ये कहकर मना कर दिया कि इस काम में उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी ।

उसके बाद मोना चौधरी ने साथ चलने के लिए महाजन को फोन मारा ।

और अगले दिन बारह बजे, आज गुजरात के कोटेश्वर बीच आ पहुँचे थे ।

कार धूल से अटी पड़ी थी ।

दोनों थके-टूटे बाहर निकले ।

“यहाँ पर भूकंप का ज्यादा असर नहीं हुआ ।” महाजन ने कुछ दूरी पर ठीक-ठाक खड़े रिसोर्ट को देखकर कहा ।

मोना चौधरी की निगाह हर तरफ फिर रही थी । हवा में समन्दर के पानी की महक थी ।

जहाँ उन्होंने कार रोकी थी, वहाँ करीब ही दुकानें थीं ।

खाने-पीने के लिए रेस्टोरेंट था । स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटक ठीक-ठाक संख्या में नजर आ रहे थे । दूसरे शहरों के नम्बरों वाले वाहन भी खड़े नजर आ रहे थे । कुछ लोग दुकानों में खरीददारी में व्यस्त थे । पर्यटक स्थल की दुनिया अलग ही महसूस होती थी ।

दूर-दूर तक फैले हरे-भरे पेड़ नजर आ रहे थे । जिन्हें देख के आँखों को ठंडक पहुँच रही थी । रंग-बिरंगे फूलों के दो-तीन छोटे-छोटे पार्क भी नजर आये, जहाँ लगे झूलों पर बच्चे और बड़े भी झूल रहे थे । यहाँ से कुछ दूरी पर स्थानीय लोगों की बस्ती नजर आ रही थी । दोपहर हो रही थी । इस वजह से कम ही चहल-पहल थी । ऐसी जगहों पर शाम होने के साथ ही गहमा-गहमी का माहौल शुरू हो जाता है, जो देर रात तक चलता है ।

मोना चौधरी ने महाजन को देखा । महाजन ने पैंट में फँसी बोतल निकालकर घूँट भरा ।

“मेरे ख्याल में रिसोर्ट में ठहरना ठीक नहीं होगा ।” मोना चौधरी बोली, “बड़ी जगह ठहरने से, दूसरों की निगाहों में आसानी से आ जायेंगे और आने वाले वक्त में जाने कैसे हालात पैदा होते होंगे ।”

“जैसा ठीक समझो बेबी !”

“साधारण-सा होटल देखो । मैं यहीं खड़ी हूँ । होटल पहुँचकर हमें आराम नहीं करना, बल्कि नहा-धोकर, लंच के बाद उस तरफ चलना है, जहाँ सरकार ने ड्रग्स छिपा रखी है । चार-छः किलोमीटर दूर है यहाँ से, वो जगह ।”

“ओ•के• बेबी ! मैं होटल देखकर आता हूँ ।” कहने के साथ ही महाजन आगे बढ़ गया ।

☐☐☐

सौ गज में बना वह मकान था, जिसे होटल का रूप दे रखा था । महाजन ने खुली छत पर बना पड़ा बेडरूम कमरा पसंद किया और मोना चौधरी को ले आया । बीस वर्षीय युवक उनकी सर्विस पर था । महाजन ने उसे होटल के बाहर सड़क किनारे खड़ी कार साफ़ करने को कहा और लंच के लिए बोला ।

जब तक लंच आया वह नहा-धोकर कपड़े चेंज कर चुके थे । लंच के पश्चात् जब मकान रूपी होटल से बाहर निकलकर आये तो उनकी कार साफ़ हुई, चमक मार रही थी । मोना चौधरी ने सर्विस करने वाले युवक से आसपास के रास्तों के बारे में जानकारी हासिल कर ली थी और उस रास्ते को भी पहचान लिया था, जिस पर उसे बढ़ना था ।

दोनों कार में बैठे । मोना चौधरी ने कार आगे बढ़ा दी । दोपहर के दो बज रहे थे ।

“बेबी !” महाजन ने घूँट भरा, “तुमने बताया कि जहाँ ड्रग्स मौजूद है, वो जगह यहाँ से चार-छः किलोमीटर दूर है ।”

“हाँ !”

“वहाँ !” महाजन ने मोना चौधरी पर गंभीर निगाह मारी, “ब्यासी अरब ड्रग्स की पहरेदारी पर सिर्फ चार-पाँच लोग हैं । ये कोई पहरेदारी नहीं हुई । मेरा ख्याल है कि वहाँ जबरदस्त पहरेदारी होगी ।”

“कुछ भी हो सकता है ।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा, “मेरे पास वही जानकारी है, जो गणपत सेठ ने मुझे दी है । चल रहे हैं, मालूम हो जायेगा कि वहाँ के हालात क्या हैं ।”

“वहाँ के हालातों को जानना भी आसान नहीं ! उनकी नजरों में आ गए तो... ?”

“उनकी निगाहों में ही तो आना है ।”

“क्या मतलब ?”

“कुछ किलोमीटर पर बीच है । पर्यटक आ-जा रहे हैं । कोई भी जोड़ा एकांत की तलाश में वहाँ जा सकता है ।”

“राइट बेबी !”

“और हम वो जोड़ा बन सकते हैं ।” मोना चौधरी के चेहरे पर शांत भाव थे ।”

महाजन ने सिर हिलाया ।

जिस रास्ते पर कार बढ़ रही थी, वह न तो पक्का रास्ता था और न ही साफ़ था । बहुत ही सावधानी से कार चलानी पड़ रही थी । स्पीड कम थी कार की । कभी समन्दर नजर आने लगता तो कभी वह निगाहों से ओझल हो जाता । कभी कार घने पेड़ों-झाड़ियों के बीच में से निकलती तो कभी खुली धूप जैसी जगह आ जाती । दोपहर के इस वक्त पेड़ों की छाया में बैठे दो-तीन युवा जोड़े नजर आये, जो कि स्थानीय लग रहे थे ।

करीब आधे घण्टे बाद मोना चौधरी ने समन्दर के किनारे से हटकर कुछ दूरी पर कार रोक दी । इंजन बन्द कर दिया । कार खुले में और धूप वाली जगह पर खड़ी थी ।

“यहाँ कहाँ बेबी ?”

“वो देखो । गणपत सेठ ने जो नक्शा, पारसनाथ को दिया था, उसमें कहा गया था कि लम्बी पहाड़ी चट्टान समन्दर के किनारे पर गिरी हुई है जो कि आधी पानी में और आधी पानी के बाहर रहती है ।”

महाजन की निगाह वैसी ही लम्बी-चौड़ी चट्टान पर जा टिकी ।

“फिर तो हम सही जगह पर पहुँचे हैं ।”

“इस चट्टान के इस तरफ, कुछ आगे जाकर, उस ड्रग्स को रखा हुआ है और वहाँ से एक किलोमीटर पूर्व की तरफ बढ़ा जाये तो जमीन से निकले, ढाई किलोमीटर व्यास में फैले, रासायनिक पानी का तालाब आ जायेगा जिसमें ड्रग्स को फेंका जायेगा ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी कार से बाहर आ गई ।

महाजन भी बोतल थामे कार से बाहर आ गया ।

दोनों आगे बढ़ने लगे । हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था ।

☐☐☐

“वो जगह, वो सरकारी गनमैन, ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स, यहीं आसपास होनी चाहिए ।” मोना चौधरी बेहद धीमे स्वर में फुसफुसाकर कह उठी ।

दोनों सावधानी से धीमे-धीमे आहिस्ता से दबे पाँव आगे बढ़ रहे थे ।

इस जगह को पहाड़ियों के बड़े-बड़े पत्थरों ने घेर रखा था । यहाँ तक कि कई पत्थर सौ-सौ फिट ऊँचे थे । तेज धूप की वजह से वह पहाड़ी चट्टानें तप-सी रही थीं । गहरी चुप्पी को समन्दर की लहरों की आवाजें कभी-कभार तोड़ देतीं जो कि किनारों पर आकर जमीन से टकरा रही थीं ।

दोनों के चेहरे पसीने से भर रहे थे ।

“यहाँ तो ऐसा सन्नाटा है कि जैसे कोई हो ही नहीं ! वो लोग यहाँ हैं तो उनकी कुछ तो आहट आनी चाहिए ।”

आगे बढ़ती मोना चौधरी कुछ कहने लगी कि रुक गई । सामने ही चट्टान के पीछे से टैंट होने की झलक मिली ।

“उधर ।” मोना चौधरी के होंठों से निकला, “वो लोग उधर हैं ।”

महाजन भी टैंट की थोड़ी-सी झलक पा चुका था ।

“चलो, हम शुरू हो जाते हैं !” महाजन ने कहा और मोना चौधरी की कमर में बाँह डाल ली । मोना चौधरी भी उससे सट गई । दोनों अब सामान्य ढंग से आगे बढ़े और ऐसे खिलखिला उठे थे जैसे किसी बहुत ही अच्छी बात पर हँस रहे हों ।

उनकी हँसी की आवाज ने वातावरण के सन्नाटे को तोड़ा । दस-पंद्रह कदम चलकर दोनों चट्टानों के दायरे के बीच काफी बड़ी खाली जगह में आ गए ।

वहाँ तीन टैंट आड़े नजर आ रहे थे । टैंट इतने बड़े थे कि एक में तीन व्यक्ति रात गुजार सकते थे । एक तरफ बहुत बड़ा ढेर करीने से लगाया गया था और उस पर तिरपाल डालकर, तिरपाल को रस्सियों से अच्छी तरह बाँधा गया था । वह ढेर अनाज की सौ बोरियों के बराबर था । स्पष्ट था कि वह ही ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स थी, जिसे कि तबाह किया जाना था ।

उसी क्षण मोना चौधरी और महाजन छिटककर अलग हो गए जैसे उन्हें करंट लगा हो ।

“बेबी !” महाजन के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला ।

जबकि मोना चौधरी की आँखें हैरत से फ़ैल चुकी थीं ।

कुछ कदमों की दूरी पर, वह शरीर पड़ा था । बुरी तरह विक्षिप्त था वह शरीर । जगह-जगह से वह इस तरह उधेड़ा गया था, जैसे शरीर उधेड़ने वाले को महारथ हासिल हो । शरीर की हालत देखते ही मोना चौधरी के बदन में झुरझुरी-सी दौड़ गई । खुद को संभालकर आगे बढ़ी । सतर्क निगाह हर तरफ फिर रही थी ।

उसने पास पहुँचकर उस शरीर को देखा ।

मोना चौधरी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । ।

सिर की हालत ऐसी थी, जैसे किसी चीज़ से उसे कूट-कूटकर पिचका दिया हो या फिर उस पर से भारी वाहन गुजरा हो । एक बाँह शरीर के साथ ही थी, परन्तु जैसे वह भी जुदा ही दिख रही थी । छाती और पेट पर तो माँस नजर ही नहीं आ रहा था । पूरा माँस उधड़ा पड़ा था । माँस के लोथड़े इधर-उधर बिखरे पड़े थे । एक टाँग मुड़कर शरीर के नीचे दबी सिर की तरफ जा रही थी और दूसरी टाँग सिर की तरह कुचली गई थी । खून आसपास बिखरा पड़ा था । ताजा था । स्पष्ट था कि इस घटना को बीते ज्यादा वक्त नहीं हुआ था ।

जो भी हुआ था, कुछ देर पहले ही हुआ था ।

मोना चौधरी के हाथ में रिवॉल्वर नजर आने लगी । उसने कठिनता से उस विक्षिप्त हुए पड़े शरीर से नजरें हटाई और वही नजरें अब हर तरफ घूमने लगी थीं । आँखों में खतरनाक भाव आ ठहरे थे । चेहरा कठोर हो चुका था । वह हर तरह के खतरे से निपटने को तैयार थी ।

महाजन भी पास था और उस शरीर की हालत देखकर उसे साँप-सा सूँघ गया था ।

“महाजन !” मोना चौधरी के होंठों से भींचा-सा स्वर निकला ।

“बेबी !” महाजन ने सूखे होंठ पर जीभ फेरी और तुरन्त रिवॉल्वर निकाली, “ये किसी दरिंदे का काम है । शरीर की ऐसी बुरी हालत भी हो सकती है । मैंने कभी सोचा भी नहीं !”

“दरिन्दे भी इंसान का इतना बुरा हाल नहीं करते ।” मोना चौधरी की खतरनाक निगाह हर तरफ घूम रही थी, “खतरा हमारे सिर पर है । इस शरीर से अभी भी खून बह रहा है ।”

“हाँ !” महाजन के दाँत भिंच गए, “वो पास ही कहीं है, जिसने ये सब किया है । मेरे ख्याल में कोई दूसरी पार्टी भी ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स हथियाना चाहती है । ये उसी का कारनामा है ।”

“उन तम्बुओं की तरफ से सतर्क रहो । वहाँ से हमारे लिए खतरा उठ सकता है ।” मोना चौधरी एक-एक शब्द को चबाकर खतरनाक स्वर में कह उठी, “तुम मुझे कवर करो । मैं तम्बुओं की तरफ जा रही हूँ ।”

“संभलकर बेबी !” महाजन ने दाँत भींचें कहा, “यहाँ कोई नजर क्यों नहीं आ रहा ?”

मोना चौधरी रिवॉल्वर थामे सावधानी से तम्बुओं की तरफ बढ़ने लगी ।

महाजन फुर्ती से एक चट्टान की ओट में हो गया । हाथ में रिवॉल्वर थी । सतर्क निगाह हर तरफ से मोना चौधरी पर थी । मौत से भरी उस दोपहरी सन्नाटे में मोना चौधरी के कदमों की मध्यम-सी आवाजें गूँज रही थीं ।

महाजन की निगाह मोना चौधरी पर टिक गई । वह तम्बुओं के पास पहुँचने जा रही थी ।

मोना चौधरी तम्बुओं के पास पहुँची और फुर्ती से तम्बू का कपड़ा हटाकर रिवॉल्वर वाला हाथ आगे किया । दूसरे ही पल मस्तिष्क झनझनाकर रह गया ।

भीतर एक व्यक्ति का शरीर दिखा । उस शरीर की हालत भी वैसी ही थी, जैसी वह पहले देख चुकी थी । इसके अलावा तम्बू में और कोई नहीं था । मोना चौधरी पर्दा छोड़कर फुर्ती से वहाँ से हटी और दूसरे तम्बू के पास पहुँची । वह बेहद सतर्क थी और उसके चेहरे पर अजीब-से भावों के साथ दरिंदगी नाच रही थी ।

मोना चौधरी ने दूसरे टैंट का पर्दा उठाकर भीतर झाँका ।

मोना चौधरी को अपनी साँस रुकती-सी महसूस हुई । भीतर दो व्यक्तियों के शरीर विक्षिप्त से पड़े थे । पास में उनकी गनें मौजूद थीं । उनके शरीरों से बहता खून जाहिर कर रहा था कि इस हादसे को हुए ज्यादा वक्त नहीं बीता । वहाँ से हटकर मोना चौधरी ने तीसरे तम्बू के भीतर झाँका ।

वहाँ खाना लगा पड़ा था ।

कोई व्यक्ति नहीं था ।

मोना चौधरी भीतर प्रवेश कर गई । बर्तनों में रोटी, सब्जी, दही, सलाद रखा हुआ था । उसने झुककर खाना चैक किया । खाने में अभी भी गर्मी मौजूद थी । स्पष्ट था कि ये लोग खाना खाने की, लंच लेने की तैयारी कर चुके थे कि कोई बुरा हादसा पेश आ गया ।

मोना चौधरी ने होंठ भींचें खाने के बर्तनों को गिना ।

बर्तनों में पाँच लोगों का खाना डाला गया था और उसे अभी तक चार के विक्षिप्त शरीर देखने को मिले थे । रिवॉल्वर सावधानी से संभाले मोना चौधरी तम्बू से बाहर आ गई । नजरें हर तरफ घूमी । महाजन के अलावा कोई नजर नहीं आया । न ही कोई आहट ।

मोना चौधरी ने इशारा करके महाजन को पास बुलाया ।

“तम्बुओं में क्या है बेबी ?” महाजन के होंठों से निकला । माथे पर बल थे ।

“देख लो ।” मोना चौधरी सतर्क थी ।

महाजन ने बारी-बारी तीनों तम्बुओं के भीतर झाँका । चेहरे पर अजीब-सा खौफ और गुस्सा उभरा ।

“बहुत गलत बात है बेबी !” गहरी साँस लेता महाजन गुर्रा उठा, “ड्रग्स लूटने के लिए इतने वहशियाना ढंग से इन गनमैनों की जान लेने की क्या जरूरत थी । शूट करके भी काम चलाया जा सकता था ।”

“लाशों की स्थिति बता रही है कि वे लोग पास ही हैं ।” मोना चौधरी खतरनाक स्वर में कह उठी, “वो हमें भी इसी तरह निशाना बना सकते हैं ।”

“लेकिन कामयाब नहीं होंगे ।” महाजन ने मौत भरे स्वर में कहा ।

तम्बू में पाँच लोगों का खाना लगाया गया है । हमने चार विक्षिप्त शरीर देखे हैं पाँचवीं लाश भी पास ही कहीं होगी । ढूँढ़ों उसे । अगर पाँचवीं लाश न मिले तो ये समझ लेना चाहिए कि वो पाँचवा गनमैन बाहरी लोगों के साथ मिला था और उसी ने ये सब किया, फिर खिसक गया । अब ड्रग्स पर हाथ डालने बाहरी लोग कभी भी यहाँ आ सकते हैं । पाँचवें को देखो, वो है कि नहीं !”

महाजन रिवॉल्वर थामे सावधानी से वहाँ से हट गया ।

“सतर्क रहना ।” मोना चौधरी की आवाज उसके कानों में पड़ी, “खतरा सिर पर है ।”

पाँचवें गनमैन की लाश भी मिली । उसी तरह की विक्षिप्त हालत में । ड्रग्स के ढेर के दूसरी तरफ उसका शरीर पड़ा था । उसकी तो गर्दन भी अलग हुई पड़ी थी । कुछ इस तरह कि जैसे किसी ने गर्दन को खींचकर तोड़ दिया हो ।

☐☐☐

एक घण्टा बीत गया ।

मोना चौधरी और महाजन रिवॉल्वरें थामे अलग-अलग ओट में सतर्क मौजूद रहे और इंतजार करते रहे कि जिन लोगों ने भी ये काम किया है, वो ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स लेने अवश्य आएँगे, परन्तु एक घण्टा बीत जाने पर भी वहाँ कोई नहीं आया । न ही वहाँ किसी के मौजूद होने का एहसास हुआ ।

तेज धूप और गर्म चट्टानों के बीच दोनों तपते रहे ।

आखिरकार मोना चौधरी अपनी जगह से बाहर निकलकर महाजन के पास पहुँची ।

“हे बेबी !” गंभीर-सा महाजन अपनी जगह से बाहर निकला ।

“वो लोग नहीं आये, जिन्होंने ये काम किया है ।” मोना चौधरी ने भिंचे स्वर में कहा, “हैरानी की बात है ।”

“मेरे ख्याल में बेबी हमें चोर पे मोर बनकर, सारी ड्रग्स को यहाँ से... ।”

“ऐसा करना गलती होगी ।” मोना चौधरी ने टोका । उसके होंठ भिंच गए ।

“क्यों ?”

“जिन्होंने इन सबको मारा है, वो कितने जालिम हैं, इन लाशों की हालत देखकर समझ सकते हो । अभी हम यहाँ के हालातों से वाकिफ नहीं हैं । क्या मालूम वो लोग क्या करना चाहते हैं ?” मोना चौधरी का स्वर कठोर और गंभीर था, “कम-से-कम वो हमें ड्रग्स नहीं ले जाने देंगे । इतना बड़ा कांड करके वो आराम से नहीं बैठ सकते । मुझे तो लगता है जैसे वो लोग आसपास ही कहीं छिपे हैं और हम पर नजर रख रहे हैं । हमारे आ जाने से उन्होंने अपना काम रोक दिया हो सकता है ।”

“तुम्हारी बात कुछ खास नहीं जँची बेबी !” महाजन ने सोच भरे स्वर में कहा, “वो पाँचों को ऐसी बुरी मौत मार सकते हैं तो हम दो को भी मार सकते हैं । मतलब कि वो छिपे नहीं हो सकते ।”

“फिर तो उन लोगों का यहाँ मौजूद न होना और भी हैरानी की बात है ।” मोना चौधरी ने कहा, “पाँचों गनमैन को मारकर ब्यासी अरब की ड्रग्स छोड़कर वो कहाँ चले गए । उन्हें तो जल्द-से-जल्द सारी ड्रग्स को किन्हीं वाहनों में लादकर, इस जगह से दूर हो जाना चाहिए था । फिर ये देर क्यों ?”

महाजन दाँत भींचें, रिवॉल्वर थामे इधर-उधर देखता रहा ।

“अब क्या करें बेबी ?”

“यहाँ से चलो, वापस ।”

“वापस कहाँ ?”

“कोटेश्वर बीच । होटल में ।” मोना चौधरी का स्वर गंभीर था, “जाने मुझे क्यों भारी गड़बड़ लग रही है ।”

“कैसी गड़बड़ ?” महाजन के होंठ से निकला ।

“इस वक्त कुछ समझ नहीं पा रही । निकलो यहाँ से ।” मोना चौधरी का चेहरा सख्त हो गया, “ये सरकारी आदमी थे । एंटी ड्रग्स डिपार्टमेंट का कोई आदमी यहाँ आ सकता है । इन हालातों में हम उनके सामने पड़ गए तो यहाँ जो हुआ पड़ा है, उसकी सारी जिम्मेदारी हमारे सिर पर डाल देंगे ।”

“और ड्रग्स ?”

“इस बारे में होटल चलकर सोचेंगे ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने वापसी के रास्ते पर कदम उठा दिया ।

महाजन साथ हो गया ।

उन्होंने रिवॉल्वरें थाम रखी थीं । बेहद सतर्क थे दोनों । कोई खतरा नहीं आया । कोई नजर भी नहीं आया । वे कार तक पहुँचे और हक्के-बक्के रह गए ।

“बेबी !” महाजन के होंठों से निकला ।

मोना चौधरी के होंठ भिंच गए । आँखें सिकुड़ गयीं ।

महाजन ने एक साथ बोतल से तीन-चार घूँट लिए ।

कार के भीतर सारी सीटें ऐसे उधेड़ी हुई थीं जैसे सिर की मालिश के पश्चात् बालों की हालत होती है । पीछे का दरवाजा खुला हुआ लटका-सा झूल-सा रहा था । स्टेयरिंग का ऐसा हाल था जैसे कोई बच्चा कागज के खिलौने को तोड़-मरोड़ देता है । कार की छत इस तरह पिचककर नीचे हो रही थी जैसे शरारती बच्चों ने छत पर चढ़कर धूम-धमाल किया हो ।

वह अब कार नहीं कबाड़ नजर आ रही थी ।

मोना चौधरी ने चेहरे पर आये पसीने को पोंछकर, महाजन को देखा ।

“ये सब क्या है बेबी ?” महाजन परेशान-सा हो उठा ।

“उन्हीं लोगों ने कार की ये हालत की है जिन्होंने उन पाँचों गनमैनों को बुरी मौत मारा है ।” मोना चौधरी भिंचे स्वर में कह उठी, “वो आसपास ही हैं ।”

दोनों की सतर्क नजरें हर तरफ घूमने लगीं ।

“लेकिन ये सब करने का उन्हें क्या फायदा ?”

“सीधी-सी बात है महाजन, कार न होने पर हम पैदल ही कोटेश्वर बीच तक जायेंगे । सारा रास्ता सूनसान है । वो रास्ते में कहीं भी छिपे होंगे और घात लगाकर हमें मारने की चेष्टा करेंगे ।” मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी ।

“लेकिन वो हमारे साथ ऐसा करेंगे क्यों ?”

“इसके जवाब में तो एक ही बात समझ में आती है कि वो लोग हमारे बारे में जानते हैं और ये भी जानते हैं कि हम यहाँ मौजूद ड्रग्स पर हाथ डालने आये हैं । उनके रास्ते में न आएँ, इसलिए हमें खत्म कर देना चाहते हैं ।” कहते हुए मोना चौधरी की निगाह कार की हालत पर गई, “लेकिन इसके लिए कार की इतनी बुरी हालत करने की क्या जरूरत थी, कार को वैसे भी खराब किया जा सकता था ।”

“शायद वो हमें अपनी ताकत का एहसास करा देना चाहते हैं ।” महाजन ने होंठ भींचें कहा ।

मोना चौधरी भी होंठ भींचें खड़ी रही ।

चार बज रहे थे । शाम की तीखी धूप उन्हें चुभती महसूस हो रही थी ।

“हम वापस चलेंगे महाजन !” मोना चौधरी दृढ़ स्वर में कह उठी, “देखते हैं रास्ते में वो क्या करते हैं ।”

“ये तो झंझट वाला मामला हो गया ।”

मोना चौधरी मुस्कराई । कहर से भरी मुस्कान थी उसकी।

“अभी तक जो भी हमें देखने-महसूस करने को मिला है । उससे ये बात तो स्पष्ट है कि दुश्मन खतरनाक ही नहीं, चालाक भी है । वापसी के पूरे रास्ते पर हमें हद से ज्यादा सतर्क रहना होगा । उनसे टकराव भी अवश्य होगा ।”

“देखेंगे ।” महाजन खतरनाक स्वर में कह उठा ।

“वहाँ पाँच लाशें पड़ी हैं । एंटी ड्रग्स वाले कभी भी आकर वहाँ लाशें देख सकते हैं और तुम्हारी कार यहाँ खड़ी है । ऐसे में तुम्हारा नाम उन लाशों के साथ जुड़... ।”

“ऐसा नहीं होगा ।” महाजन ने सिर हिलाकर कहा, “ये कार मेरी पहचान वाले की है, जो कि पंद्रह दिन पहले ही मारा गया था और किसी को मालूम नहीं कि उसकी कार मेरे पास है ।”

“आओ ।”

मोना चौधरी और महाजन वापस चल पड़े ।

और उनके ख्याल से रास्ते में कुछ लोग उनके आने की राह देख रहे हैं ।

मुकाबले के लिए दोनों पूरी तरह तैयार थे ।

☐☐☐

पाँच-छः किलोमीटर का रास्ता उन्होंने करीब दो घण्टे में तय किया । वे कोटेश्वर बीच पर पहुँच गए । जैसा उन्होंने सोचा था, वैसा कोई भी खतरा उनके सामने नहीं आया । रिवॉल्वर वापस कपड़ों में पहुँच चुकी थी ।

“तुम्हें हैरानी नहीं हो रही बेबी कि किसी ने भी हमारा रास्ता रोकने की चेष्टा नहीं की ।” महाजन बोला ।

“बहुत ही अजीब-सा लग रहा है ।” मोना चौधरी कह उठी, “हम जिन हालातों से निकल कर आये हैं, उन्हें देखते हुए, हमारी जान लेने की कोशिश अवश्य होनी चाहिए थी । कार को तोड़ना-फोड़ना इसी तरफ इशारा करता है ।”

“और कुछ भी नहीं हुआ ।” महाजन ने कहा और बोतल में बची व्हिस्की समाप्त करके बोतल एक तरफ फेंक दी ।

“बहुत कुछ उलझा-उलझा लग रहा है ।” मोना चौधरी का स्वर गंभीर था ।

शाम होने के साथ-साथ ही बीच पर रौनक बढ़ गई थी । समन्दर की लहरों में भी मस्ती भर आई थी और वह उछल-उछलकर किनारे की तरफ आ रही थी । युवा जोड़े कम कपड़ों में पानी का और उम्र के उस दौर का मजा ले रहे थे । कई जगह युवा जोड़े ग्रुप में थे ।

व्हिस्की-बियर खुल्लम-खुल्ला इस्तेमाल हो रही थी ।

अभी तो शाम का पूरी तरह जवान होना बाकी था ।

मोना चौधरी और महाजन होटल पहुँचे और पुनः नहा-धोकर फ्रेश हुए । मोना चौधरी ने अपने लिए चाय और महाजन ने अपने लिए व्हिस्की का ऑर्डर दिया ।

मकान रूपी होटल की छत से बीच का दृश्य साफ़ स्पष्ट नजर आ रहा था । समन्दर की लहरों की उछाल और युवा जोड़ों की मस्तियाँ । उनके शोर की आवाजें अस्पष्ट-सी कानों में पड़ रही थी ।

सूर्य पश्चिम की तरफ पूरी तरह झुक गया था । कुछ ही देर में धूप को चले जाना था । हवा में अब ठंडक-सी महसूस होने लगी थी । छत की दीवार के पास खड़ी मोना चौधरी की नजरें बीच की तरफ थीं ।

महाजन वहाँ आ पहुँचा ।

“बेबी !” महाजन गंभीर था, “मेरी समझ में अभी तक ये बात नहीं बैठ रही कि वहाँ ब्यासी अरब रुपए की ड्रग्स मौजूद है । कोई पहरेदार नहीं ! हम उसी ड्रग्स को लेने आये हैं । कोशिश करके हम इस काम को पूरा भी कर सकते हैं । लेकिन तुम्हारी किसी हरकत से नहीं लगता कि इस बारे में तुम कुछ सोच रही हो ।”

मोना चौधरी ने पलटकर महाजन को देखा ।

“महाजन !” मोना चौधरी की आवाज में ठहराव था, “क्या तुम्हें वहाँ का माहौल ठीक लगा ? पाँचों गनमैन की विक्षिप्त लाशें । हमारे वहाँ पहुँचने के कुछ पहले ही ये हुआ था । लेकिन हमें वहाँ कोई भी नजर नहीं आया । किसी ने भी हमारी जान लेने की चेष्टा नहीं की । कोई वहाँ से ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स लेने नहीं आया । ऐसे में सोचने की बात है कि उन पाँचो को क्यों मारा गया ? तम्बू में पड़ा उनका लंच ये जाहिर करता है कि उन्हें किसी खतरे की आशंका नहीं थी । वो पाँचो मिल-बैठकर आराम से खाना खाने की तैयारी में थे । अचानक उन पर हमला कर दिया गया । शायद वो अपना बचाव भी नहीं कर सके और उनकी जानें ले ली गईं । मेरे ख्याल में तो वो समझ भी नहीं पाये होंगे कि उनके साथ क्या होने जा रहा है ।”

महाजन गहरी साँस लेकर बीच की तरफ देखने लगा ।

“जिन लोगों ने उन्हें ऐसी बुरी मौत मारा है । कम-से-कम हमें ये तो पता चले कि उनका मकसद क्या है । अगर उनका मकसद ड्रग्स ले जाना है तो वो ड्रग्स क्यों नहीं ले गए, उन पाँचों को खत्म करके ।” मोना चौधरी ने कहा ।

“वास्तव में, तुम्हारी बात में दम है ।” महाजन ने सिर हिलाया ।

“वो तब वहाँ ही थे । हमारी कार पर की गई तोड़-फोड़ ये बात जाहिर करती है । ऐसे में उन्होंने हम दोनों को क्यों नहीं मारा । अगर पैदल के रास्ते में हमें कुछ नहीं कहना था तो हमारी कार को क्यों बेकार किया गया ? मतलब कि जो भी हम देख-महसूस कर रहे हैं, उसे ठीक तरह समझ नहीं पा रहे हैं । हमारे पास सवाल-ही-सवाल हैं परन्तु जवाब नहीं !” मोना चौधरी अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठी, “ऐसे में हम उस ड्रग्स को वहाँ से ले जाने की चेष्टा करते हैं तो हमारे सामने जाने कैसे हालात पैदा हो जायें ।”

“तुम्हारी बात एकदम सही है ।” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा, “लेकिन हम क्या ये सोचकर आराम से बैठ जायेंगे ।”

“बैठेंगे नहीं !” मोना चौधरी की निगाह पुनः बीच की तरफ गई, “हो सकता है, वो लोग रात को वहाँ से ड्रग्स हटाने की चेष्टा करें । हम आधी रात को वहाँ जायेंगे । साथ-ही-साथ इस बारे में भी सोच लेंगे कि हमें क्या करना चाहिए ।”

“ये अच्छा रास्ता है ।” महाजन के होंठों से निकला, “वो रात को अवश्य वहाँ से ड्रग्स हटाएँगे ।”

तभी वो युवक चाय और व्हिस्की की बोतल ले आया । चाय का प्याला तो उसने ट्रे में रखा हुआ था और बोतल को पैंट में फँसा रखा था । अजीब ढंग था उसका सामान सर्व करने का ।

महाजन ने होंठ सिकोड़कर उसे देखा ।

वह पास आकर ठिठका । उसकी आँखों में सुर्खी थी ।

“पी रखी है ?” महाजन ने उसे घूरा ।

“नहीं साहब जी !”

“तेरी आँखें बता रही हैं कि तूने... ।”

“मेरी आँखें ऐसी ही रहती हैं ।” उसकी आवाज में हल्की-सी लड़खड़ाहट थी ।

“जब हम आये तब तो तेरी आँखों में ऐसी सुर्खी नहीं थी ।” महाजन ने तीखे स्वर में कहा ।

मोना चौधरी ने हाथ बढ़ाकर ट्रे में रखा चाय का प्याला थाम लिया ।

“साहब जी, वो...। ”

“चुपकर ।” महाजन ने मुँह बनाकर कहा, “ सामान सर्व करने के लिए खुद को ठीक रखा कर ।” कहने के साथ ही महाजन ने हाथ बढ़ाकर उसकी पैंट में फँसी बोतल खींच ली, “कमरे से कुर्सियाँ और टेबल लाकर यहाँ रख ।”

ट्रे थामे वह पलटकर कमरे की तरफ बढ़ गया ।

तभी एक युवती वहाँ पहुँची । उसने मैली-सी धोती लपेट रखी थी । दो साल का एक बच्चा और दूसरा तीन-चार महीने का बच्चा उसने उठा रखा था ।

“क्यों रे !” वह युवक से कह उठी, “पाँच दिन से तू घर क्यों नहीं आया ? तेरे को ये भी नहीं पता कि बच्चों के पास पीने को दूध भी नहीं है । तनख्वाह कहाँ है ? मालिक कहता है चार दिन पहले ही तेरे को पैसे दे दिए थे । पैसे लेकर घर नहीं आया । नशों में सारा पैसा बर्बाद कर दिया क्या ?”

युवक ने उखड़े स्वर में कहा ।

“तू यहाँ क्यों आई ? बाहर सड़क पर चल । मैं वहीं आता... ।”

“कोई जरूरत नहीं वहाँ आने की । बच्चे पालने के लिए पैसा दे । मैं चली जाती हूँ । तेरे से ब्याह करके मुझे अपनी जिंदगी बर्बाद होने का अफसोस नहीं है । दुःख तो बच्चों का आता है कि ऐसा बाप पाकर ये बर्बाद... ।”

“बकवास मत कर ।” युवक ने गुस्से में कहा, “जा यहाँ से ।”

“घर के खर्चे के पैसे दे । चली जाती हूँ ।”

“नहीं हैं पैसे ।” युवक ने झल्लाकर गुस्से में कहा, “खत्म हो गए ।”

“तूने नशा करने में सारा पैसा बर्बाद कर दिया ।” युवती भड़क उठी, “इन बच्चों का ख्याल नहीं आया तेरे को । कहाँ से डालूँगी इनके पेट में दूध । मुझे भी दो सूखी रोटी चाहिए और... ।”

“गौरी, बाहर जा ! मैं अभी आकर बात... ।”

“अब क्या करनी है तेरे से बात ।” गौरी फफक उठी, “बच्चों को भूखा ही रखना था तो क्यों ब्याह किया मेरे से । ऐसे ही रहता । अपनी कमाई को नशे में फूँकता रहता । तू ही बता मैं कहाँ से पेट भरूँगी ? ये मासूम कहाँ से पेट... ?”

“दिमाग मत खा । दूसरा मिलता है तो जाकर उससे ब्याह कर ले ।” युवक गुस्से में कह उठा ।

“जरूर कर लेती, अगर इन मासूमों को पैदा न किया होता । इनकी माँ न होती मैं ।” गालों तक बह रहे थे उसके आँसू, “मेरा नहीं तो कम-से-कम बच्चों का तो ख्याल कर लिया होता । अब मुझे कहता है कि किसी और से... ।” वो फफक पड़ी ।

युवक के दाँत भिंच गए ।

तभी मोना चौधरी आगे बढ़ी और जेब से सौ-सौ के कुछ नोट निकालकर गौरी के हाथ पर रखे ।

“रख लो । अपना और बच्चों का पेट भरो ।”

“लेकिन... ।” गौरी ने मोना चौधरी से कहना चाहा ।

“जाओ । कुछ मत कहो ।” मोना चौधरी ने उसका हाथ थपथपाया । वह गंभीर थी ।

गौरी ने नोटों को मुट्ठी में भींचकर गुस्से से भरी, आँसुओं से गीली आँखों से युवक को देखा ।

“अगर तू नशा करना नहीं छोड़ेगा, मेरा और बच्चों को पेट नहीं भर सकता तो घर मत आना । मुझे जरूरत नहीं है तेरी । समझूँगी, मर गया तू । जिनके मर जाते हैं, वो भी तो जिंदगी बिताती हैं । मत आना घर ।” बेहद गुस्से में भरे स्वर में कहते हुए गौरी ने दूसरे बच्चे को उठाया और सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चली गई ।

महाजन ने कड़वी निगाहों से युवक को देखा ।

“शर्म आनी चाहिए तेरे को कि बच्चे भूखे हैं और तू नशे में पैसे बर्बाद कर देता हूँ ।” महाजन ने कहा ।

युवक ने सिर झुका लिया ।

मोना चौधरी दीवार के पास खड़ी होकर, समन्दर के किनारे की तरफ देखने लगी । सूर्य डूब चुका था । शाम का सुहावनापन बढ़ता जा रहा था । बीच पर जोड़ो की भीड़ बढ़ती जा रही थी । कोई म्यूजिक लगाकर डांस करने में लगे थे तो कुछ नाच रहे थे । कुछ अभी भी पानी में मस्ती कर रहे थे । हर कोई अपने रंग में रंगा नजर आ रहा था । बीच के आसपास के होटलों-रेस्टोरेंटों की लाइटें रोशन होनी शुरू हो गई थीं ।

“दफा हो जा ।” महाजन ने युवक से कहा, “डिनर के वक्त ऑर्डर ले जाना ।”

वह युवक खामोशी से चला गया ।

महाजन ने बोतल खोली और घूँट भरा ।

“महाजन !” मोना चौधरी पलटकर गंभीर स्वर में बोली, “ड्रग्स इस तरह घर-परिवार और लोगों को तबाह करती है । इसका धंधा करने वाले दौलतमंद हो जाते हैं और इस्तेमाल करने वाले बर्बाद हो जाते हैं ।”

“हाँ ! “ महाजन गहरी साँस लेकर कह उठा ।

☐☐☐

रात के दस बज रहे थे ।

मोना चौधरी और महाजन कमरे से बाहर छत पर ही कुर्सियाँ-टेबल बिछाए, डिनर ले रहे थे । वह युवक फुर्ती के साथ डिनर सर्व करने में व्यस्त था ।

तभी बीच की तरफ से गोलियाँ चलने की आवाजें और चीखो-पुकार सुनाई दीं । दोनों जल्दी से खड़े होकर बीच की तरफ देखने लगे । चमकती रोशनियाँ में साये रूपी लोगों के अलावा कुछ भी नजर नहीं आया ।

मोना चौधरी कुछ पल खड़ी समन्दर के किनारे को देखती रही फिर वापस कुर्सी पर आकर डिनर लेने लगी ।

महाजन भी वापस आ बैठा ।

“बेबी ! हथियारों के आसानी से मिल जाने की वजह से ही इस तरह के खून-खराबों में बढ़ोतरी होती है । जाने ये दुनिया कहाँ पहुँचना चाहती है । इनकी कोई मंजिल भी है या नहीं !”

“जिस तरह मादक पदार्थों का धंधा करने वाले हैं, उसी तरह हथियारों के सौदागर हैं ।” खाते हुए मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा, “इन लोगों का नेटवर्क इतना तगड़ा होता है कि अगर ये लोग मर जाएँ या पकड़े जाएँ, तो भी सारा काम ठीक हालत में चलता रहता है । इन कामों को रोक पाना असम्भव है । इनके अंत का कोई सिरा है ही नहीं !”

तभी उन्हें खाना सर्व करने वाला छोकरा-युवक आया । वह लम्बी-लम्बी साँसें ले रहा था ।

“क्या हुआ तेरे को ?” महाजन ने उसे देखा ।

“बीच पर गया था ।” साँसें संयत करते हुए उसने कहा, “वहाँ गोलियाँ चलीं । दो का मर्डर हो गया ।”

“दो का ?” महाजन के होंठ सिकुड़ गए ।

“हाँ, साहब ! लड़के-लड़कियों का ग्रुप था । ज्यादातर सबने ही नशा कर रखा था । एक छोकरी को लेकर दो में झगड़ा हो गया । ड्रग्स के नशे में एक लड़के ने रिवॉल्वर निकालकर लड़के और लड़की दोनों को मार दिया ।” युवक ने बताया ।

“देखा, नशा लेने वालों की हालत !” महाजन का स्वर तीखा हो गया ।

“हाँ, साहब !” युवक का सिर झुक गया, “अब, अब मैं कभी नशा नहीं लूँगा ।”

“अगर तेरे को ये अक्ल सच में आ जाये तो तेरे और तेरे परिवार के लिए बहुत अच्छा होगा ।”

“मेरा विश्वास कीजिये साहब ! अब मैं कभी भी नशा नहीं करूँगा । कसम खाता हूँ ।”

“ठंडा पानी लेकर आ ।”

वह चला गया ।

मोना चौधरी ने खाना समाप्त करके, सोच भरी निगाहों से महाजन को देखा ।

“गणपत सेठ के लिए अगर हम ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स ले उड़ते हैं तो उस ड्रग्स से जाने कितने परिवार बर्बाद हो जायेंगे । कितने बच्चे भूखे मर जायेंगे । झगड़ों में जाने कौन-कौन मरेगा ।”

महाजन ने मोना चौधरी के चेहरे पर निगाह मारकर सिर हिलाया ।

“राइट बेबी !” महाजन के स्वर में गंभीरता आ गई ।

“हम ड्रग्स को तबाह होने देंगे । उसे वहाँ से उठाएँगे नहीं !” मोना चौधरी ने दृढ स्वर में कहा ।

“और गणपत सेठ ?” महाजन के होंठों से निकला ।

“मेरे मामले में गणपत सेठ कहाँ से आ गया । मैंने उसे कहा था कि कोटेश्वर बीच जाकर ही इस बात का फैसला कर पाऊँगी कि उसका काम होगा या नहीं ! यहाँ तक आने और मामले की छानबीन के लिए उससे दो करोड़ रुपये लिए हैं । अगर वो ज्यादा हो-हल्ला करेगा तो बेशक दो करोड़ भी ले ले । मैं देने से इंकार नहीं करूँगी । लेकिन ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स पर हाथ डालने की अपेक्षा, उसका बर्बाद हो जाना पसंद करूँगी ।”

“तुम जो भी करो, मैं तुम्हारे साथ हूँ ।” महाजन बोला, “लेकिन उस ड्रग्स को कोई और भी उड़ा ले जा सकता है ।”

“ये काम वही लोग करेंगे, जिन्होंने गनमैनों को मारा है । आज रात वो लोग ड्रग्स पक्का ले जायेंगे ।” कहते हुए मोना चौधरी के चेहरे पर सख्ती आ गई, “लेकिन हम उन्हें सफल नहीं होने देंगे महाजन ।”

दोनों की आँखें मिलीं ।

“कैसे ?”

“अभी वहाँ के लिए चल देते हैं । अँधेरा हमारा सहायक रहेगा । उन लोगों को चुन-चुनकर शूट करेंगे ।”

“भारी खतरा है ? लेकिन ये काम किया जा सकता है ।”

तभी छोकरा पानी लाया और बर्तन समेटकर ले गया ।

“जाना कैसे है ? हमारी कार तो... ?”

“कार की हमें जरूरत नहीं ! वो रास्ता इस लायक नहीं कि रात को वहाँ ड्राइव की जा सके । अगर कार ले भी गए तो वहाँ पहुँचने पर कार की हेडलाइट उन लोगों को सतर्क कर देगी । अगर हेडलाइट बन्द करते हैं तो खराब और टूटे रास्ते पर ड्राइव करना कठिन हो जायेगा । पैदल ही वहाँ पहुँचेंगे ।”

“चलना कब है ?” महाजन का चेहरा सख्त हो गया था ।

“अभी ।” मोना चौधरी उठ खड़ी हुई, “रास्ता खराब है । ऊपर से अँधेरा । वहाँ रात के बारह बजे तक ही पहुँच जायेंगे ।”

☐☐☐

चंद्रमा आज पूरा खिला हुआ था ।

चंद्रमा की तीखी, चमकती रौशनी में सब कुछ स्पष्ट नजर आ रहा था । समन्दर की लहरों से टकराने की तीव्र और तरह-तरह की आवाजें रह-रहकर कानों में पड़ रही थीं ।

रात के बारह बज रहे थे, जब मोना चौधरी और महाजन वहाँ पहुँचे । हद से ज्यादा सतर्कता इस्तेमाल की थी दोनों ने कि उनके वहाँ आने के बारे में कोई जान न पाये । न तो कदमों की आवाजें गूँजी थीं और न ही साँसों की आवाजें । चट्टानों तक पहुँचने के लिए बीच में थोड़ी-सी खुली जगह थी । चंद्रमा की तीव्र रौशनी होने के कारण आसानी से उन पर निगाह पड़ सकती थी । ऐसे में उन्होंने खुली जगह को आहिस्ता-आहिस्ता रेंग कर पार किया था । नीचे रेत होने की वजह से उन्हें रेंगने में कोई खास परेशानी नहीं आई ।

चंद्रमा की रौशनी में दूर खड़ी अपनी कार को उन्होंने स्पष्ट देखा, जो कि कबाड़ बनी पड़ी थी । वह अपनी जगह पर मौजूद थी । किसी ने भी उसे हिलाने या इधर-उधर करने की हरकत नहीं की थी ।

रास्ता पार करके चट्टानों के साथ सटकर वैसे ही पड़े रहे दोनों ।

“बेबी !” महाजन फुसफुसाया, “हर तरफ शांति है । कोई आहट-शोर नहीं !”

“कुछ देर ऐसे ही पड़े रहो और आहट सुनने की कोशिश करो ।” मोना चौधरी धीमे स्वर में बोली ।

आठ-दस मिनट बीते गहरी चुप्पी के दौर से ।

“महाजन !” चंद्रमा की रौशनी में मोना चौधरी की नजरें हर तरफ जा रही थीं ।

“हाँ !”

“सच में कोई आहट-आवाज नहीं है । हो सकता है शाम को ही उन लोगों ने सारी ड्रग्स वहाँ से हटा दी हो ।”

“शायद ।”

“तुम यहीं रहो । मैं वहाँ नजर मारकर आती हूँ कि... ।”

“बेबी, वो लोग तुम्हें देख लेंगे और... ।”

“मैं खुद को छिपाकर रखूँगी ।”

“ओ•के• ।” महाजन जानता था कि इतना खतरा तो उठाना ही पड़ेगा ।

मोना चौधरी ने अपनी जगह छोड़ी और पत्थरों के ऊपर चढ़कर, बड़े पत्थर की ओट में जा खड़ी हुई और धीमे-धीमे आगे बढ़ने लगी । वह इस बात की पूरी कोशिश कर रही थी कि खुद को चट्टान की ओट में छुपा रखे । चंद्रमा की तीखी रौशनी में कम ही आये ।

दस मिनट और सावधानी इस्तेमाल करके, मोना चौधरी उस जगह के ऐसे हिस्से में पहुँच गई, जहाँ से सब कुछ स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता था । बहुत कुछ दिखा भी ।

खुले में पड़ा उस व्यक्ति का विक्षिप्त शरीर, अभी तक वैसे ही पड़ा था । यानी अभी तक वहाँ एंटी ड्रग्स डिपार्टमेंट के लोगों के कदम नहीं पड़े थे । पड़े होते तो यहाँ पुलिस-ही-पुलिस होती । ड्रग्स का ढेर अभी तक वैसा ही पड़ा था । सब कुछ वैसा ही नजर आ रहा था, जैसा कि वह दिन में छोड़कर गई थी ।

परन्तु मोना चौधरी को परेशानी ये हुई कि वहाँ कोई भी नजर नहीं आया ।

करीब आधा घण्टा बीत गया ।

कोई आहट नहीं । कोई नजर नहीं आया ।

मोना चौधरी सावधानी से वहाँ से हटी और महाजन के पास जा पहुँची ।

“क्या रहा, बेबी ?”

“कुछ समझ में नहीं आ रहा ।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा, “मुझे पूरा विश्वास था कि अँधेरा होते ही वो लोग आ जायेंगे और ड्रग्स को साथ लाये वाहनों में लादना शुरू कर देंगे ।”

“तो ऐसा कुछ नहीं हुआ ?”

“नहीं ! सब कुछ वैसा ही है, जैसा कि हम दिन में छोड़कर गए थे ।”

“कोई बात नहीं ! अभी तो पूरी रात बाकी है । वो लोग कभी भी आ सकते हैं ।” महाजन बोला ।

“लेकिन महाजन, उन लोगों को ड्रग्स लेने के लिए आ जाना चाहिए था । वो वक्त बेकार क्यों कर रहे हैं ?”

“ये बात तो वो जानें ।” महाजन उठता हुआ बोला, “हम कोई बढ़िया जगह तलाश करके आने वालों का इंतजार करते हैं ।”

पूरी रात बीत गई ।

दिन का उजाला फैलने लगा ।

मोना चौधरी और महाजन ऊँची चट्टान पर लेटे, रिवॉल्वर थामे, हर तरफ निगरानी करते रहे । लेकिन वहाँ कोई नहीं आया । कोई आहट भी सुनने को नहीं मिली । ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स वैसी की वैसी ही बँधी पड़ी थी और विक्षिप्त हालत में गनमैन का खुले में पड़ा शरीर नजर आ रहा था ।

सारी रात बीत चुकी थी ।

“अजीब बात है बेबी ।” महाजन सच में उलझन में था, “वो लोग ड्रग्स लेने क्यों नहीं आये, जिन्होंने गनमैनों को मारा ?”

“मुझे भी इसी सवाल के जवाब की जरूरत है ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “गनमैनों को खत्म करके ड्रग्स को न ले जाया जाना, वास्तव में हैरत की बात है ।”

“सारी रात खराब हो गई ।”

“वो लोग रात को नहीं आये तो दिन में उनके आने का सवाल ही नहीं !” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा, “हमें यहाँ से निकल चलना चाहिए । एंटी ड्रग्स वाले सरकारी आदमी कभी भी आ सकते हैं ।”

महाजन ने हाथ में पकड़ी बोतल से घूँट भरा ।

“ठीक है । वापस चलते हैं । वैसे हमारे पास भरपूर वक्त और मौका था ब्यासी अरब रुपये की ड्रग्स ले जाने का ।”

“ये ड्रग्स लोगों की बर्बादी और मौत का सामान है । ड्रग्स से वास्ता रखने वाले काम मैं कभी नहीं करूँगी ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी चट्टान पर खड़ी हुई और नीचे छलाँग लगा दी ।

पाँव जमीन पर लगते ही वह लड़खड़ाई फिर सम्भल गई ।

महाजन ने भी छलाँग मारी । पाँव नीचे लगते ही वह जोरों से लड़खड़ाया । फिर सम्भल गया, परन्तु उसके हाथ में थमी बोतल छूटकर, पास ही पड़े पत्थर से टकराई और तेज आवाज के साथ टूट गई ।

“न... हीं... ।” तभी युवती की दहशत भरी चीख उनके कानों में पड़ी, “वो आ गया । फिर आ गया वो । वो मुझे मार देगा । नहीं-नहीं !”

हक्के-बक्के से खड़े मोना चौधरी और महाजन ने कुछ दूर, दो चट्टानों की पतली-सी दरार में से एक युवती को निकल भागते देखा । वह चीख रही थी । उसके शरीर पर कमीज-सलवार थी । बाल बिखरे हुए थे । वह बराबर चीखते हुए भागे जा रही थी । तभी उस दरार से एक युवक निकला और युवती के पीछे दौड़ा ।

“सोनिया ! सोनिया ! रुक जाओ, सोनिया ! वो नहीं आया । तुम्हें कुछ नहीं होगा ।”

लेकिन वह युवती तो जैसे किसी आवाज को सुन ही नहीं रही थी । चीखते हुए दौड़ी जा रही थी ।

“बेबी !” महाजन के होंठ हिले, “भारी गड़बड़ है ।”

उसी पल मोना चौधरी युवती के पीछे दौड़ी ।

☐☐☐

सूर्य निकल आया था ।

कठिनता से मोना चौधरी, सोनिया पर काबू पा सकी थी । उस जगह से वह कुछ दूर आ गए थे । महाजन ने युवक को थाम रखा था । सोनिया नाम की युवती अब चीख तो नहीं रही थी परन्तु उसकी आँखों में दहशत का सागर उछल रहा था । रह-रहकर वह चिहुँक उठती और दूर-दूर तक निगाहें घुमाने लगी ।

“कौन हो तुम लोग ?” मोना चौधरी ने युवक को देखा, “यहाँ क्या कर रहे थे ? ये चीख क्यों रही थी ?”

“मैडम !” युवक सूखे होंठों पर जीभ फेरकर बोला, “हम शरीफ लोग हैं और... ।”

“तेरे से, तेरे खानदान के बारे में नहीं पूछा जा रहा ।” महाजन बोला, “जो पूछा है, वो बता । नाम क्या है तेरा ?”

“मेरा नाम विनोद है ।” उसके चेहरे पर घबराहट थी, “कल की बात है । हम बीच पर घूम रहे थे और घूमते-घूमते यहाँ आ गए ।”

“बीच से यहाँ ?”

विनोद ने सहमति से सिर हिलाया ।

“कल से यहाँ हो ?”

“हाँ !” विनोद ने सूखे होंठ पर जीभ फेरी ।

मोना चौधरी और महाजन की नजरें मिलीं ।

“कब से ?”

“कल सुबह दस बजे ही हम यहाँ पहुँच गए थे ।” विनोद ने कहा ।

“फिर ?”

“हम-हम… ।” विनोद के चेहरे पर हिचकिचाहट-सी उभरी, “हम चट्टानों की ओट में बैठ गए, कुछ वक्त आराम से बिताने के लिए । जब सूर्य तेज हो गया और गर्मी-सी लगने लगी । लंच का वक्त हो रहा था तो हमने वहाँ से वापस बीच पर चलने की सोची कि तभी हमारे कानों में एक व्यक्ति की चीख की आवाज पड़ी । हम जल्दी से चट्टानों की ओट से बाहर आ गए । उसके बाद दो आदमियों के चीखकर बात करने की आवाजें और फिर गोली चलने की आवाज सुनाई दी । उसके बाद तो चीखो-पुकार देर तक शांत नहीं हुई । हमें समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है । सोनिया का हाथ पकड़े मैं छिपते-छिपते ऊपर पहुँचा जिधर से आवाजें आ रही थीं । वो सब कुछ बड़ी-सी चट्टान के पीछे हो रहा था और हमें भी कुछ नजर नहीं आ रहा था । आगे जाकर हमने जो देखा, उसने हमें कँपा दिया । बुरे हाल में पड़े कटे-फटे व्यक्तियों के शरीर और वो... वो एक के पीछे भाग रहा था, जो कि वहाँ सामान के ढेर की तरफ बचने के लिए भाग रहा था और चीखे भी जा रहा था बचाओ-बचाओ । उसके बाद वो व्यक्ति सामान के ढेर के पीछे हो गया । वो भी पीछे था । उसके बाद दिल दहला देने वाली चीख हमारे कानों में पड़ी । हम समझ गए कि उसने उसे भी मार दिया है ।” बताते हुए विनोद का चेहरा घबराहट से भर चुका था, “मैं सोनिया के साथ वहाँ से खिसकने की सोच रहा था कि सोनिया एकाएक चीख उठी । मैंने सोनिया के होंठों पर हाथ रखकर समझाया कि वो चीखे नहीं ! फिर वो चट्टानों के पीछे से हमारी निगाहों से ओझल हो गया । कुछ देर बाद वो हमें दूर खड़ी कार के पास नजर आया । वो वहाँ खड़ी कार को गुस्से से तोड़ रहा था । मैंने मौका अच्छा देखा और सोनिया के साथ चट्टानों की दरार में जा छिपा । सोनिया इस हद तक उससे डर गई कि दरार में पहुँचते-पहुँचते बेहोश हो गई । फिर मैंने बाहर नहीं झाँका कि वो किधर गया, या फिर बाहर ही है । बेहोश सोनिया के साथ मैं दम साधे वहीं पड़ा रहा । भूख और प्यास के मारे बुरा हाल था मेरा । लेकिन जिंदगी ज्यादा प्यारी थी मुझे । रात को सोनिया को होश आया तो ये फिर चीख मारकर बेहोश हो गई । रात को कई बार ऐसा हुआ । अभी कुछ देर पहले ही होश आया था । तब मैं इसे विश्वास दिला रहा था कि हम खतरे से बाहर हैं । वो अब आसपास भी नहीं है कि तभी बाहर से कुछ टूटने की आवाज आई और ये डर से चीखती हुई दरार से बाहर निकलकर भाग खड़ी हुई ।” कहने के साथ ही विनोद गहरी-गहरी साँसें लेने लगा था । चेहरे पर भय के निशान स्पष्ट झलक रहे थे ।

“ये ठीक कह रहा है ?” मोना ने सोनिया को देखा ।

सोनिया ने अपना पीला चेहरा सहमति से हिला दिया ।

मोना चौधरी की नजरें विनोद पर जा टिकीं ।

“कौन था वो ?” मोना चौधरी ने पूछा, “तुम लोगों ने उसे अच्छी तरह देखा है ?”

विनोद की आँखों में खौफ की परछाइयाँ उभरीं ।

नीचे बैठी सोनिया ने झुरझुरी ली और खुद में सिमट-सी गई ।

“बताओ मुझे ।” मोना चौधरी बोली, “देखने में कैसा था ? उसका हुलिया बोलो । इस तरह सब कुछ बताओ कि अगर वो सामने पड़े तो आसानी से उसे पहचाना जा सके ।”

“व... व... वो इंसान नहीं... था ।” विनोद के होंठों से थरथराता स्वर निकला ।

मोना चौधरी और महाजन की उलझन भरी नजरें मिलीं ।

“वो इंसान नहीं था, जिसे तुमने देखा, जिसने उन सबकी जान ली ।” मोना चौधरी के माथे पर बल नजर आने लगे ।

“नहीं ! वो इंसान नहीं था । बिल्कुल, वो इंसान नहीं था ।”

सोनिया कँपकँपे स्वर में कह उठी, परन्तु उसकी आवाज में दृढ़ता के भाव झलक रहे थे । खौफ से आँखों की पुतलियाँ थिरके जा रही थीं ।

“तुम दोनों के दिमागों पर किसी बुरी चीज़ ने प्रभाव डाला है, जो इस तरह बे-सिर-पैर की बातें... ।”

“उसी... उसी ने डाला है जो प्रभाव डाला है । वही हम कह रहे हैं । तुम विश्वास करो । हम सच कह रहे हैं ।”

मोना चौधरी के होंठ भिंच गए ।

“तो वो इंसान नहीं था ।” महाजन बोला ।

“नहीं !”

सोनिया की भय भरी निगाह रह-रहकर हर तरफ फिरने लगी थी ।

“फिर कौन था वो ?”

विनोद और सोनिया की भय और आतंक भरी नजरें मिलीं ।

जवाब न मिलता पाकर महाजन पुनः बोला ।

“खतरनाक जानवर था ?”

“न... नहीं !” विनोद के बदन में ठण्डी झुरझुरी दौड़ती चली गई ।

“भूत-प्रेत था ?”

विनोद और सोनिया ने इंकार में सिर हिलाया ।

महाजन ने मोना चौधरी पर निगाह मारी ।

“वो इंसान नहीं था ।” मोना चौधरी कह उठी, “जानवर नहीं था । भूत-प्रेत जैसी शह नहीं थी । ये सब कुछ नहीं था तो कौन था ? आखिर कोई तो होगा ही वो ।”

“ह... म... हम उसे कोई नाम नहीं दे पा रहे हैं । ऐसा कुछ हमने पहली बार देखा ।” विनोद ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

“उसका हुलिया याद है । देखने में वो जो भी था, कैसा था ?”

विनोद और सोनिया ने सहमति में सिर हिलाया ।

“तो जो भी देखा, वो बताओ । कैसा था वो, देखने में... ?”

“वो बहुत भयावह था ।” सोनिया के होंठों से निकला । उसके शरीर में उठता कम्पन स्पष्ट दिखा ।

मोना चौधरी और महाजन की निगाहें बारी-बारी दोनों पर फिर रही थीं ।

विनोद ने सोनिया को देखा फिर सूखे होंठों पर जीभ फेरकर असंयत स्वर में कह उठा ।

“वो इंसान नहीं था जानवर भी नहीं लगता था । चार-पाँच फीट का, सेहतमंद-सा था । उसके शरीर की खाल किसी गैंडे की तरह, चमड़े जैसी मोटी महसूस हो रही थी । खाल में कई जगह पर मोटे-मोटे बाल थे । जो कि उसकी किसी हरकत के साथ दिखने बन्द हो जाते और बाद में फिर नजर आने लगते ।”

विनोद कहते-कहते ठिठका । मोना चौधरी और महाजन पर उसकी नजरें थीं ।

सोनिया भयभीत हालत में नीचे बैठी, बुझी नजरों से विनोद को देखने लगी थी ।

मोना चौधरी और महाजन की नजरें विनोद पर थीं ।

“वो दोपाया भी था और चरपाया भी ।” विनोद बोला ।

“क्या मतलब ?” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।

“वो... वो इन्सानों की तरह भी चलता था और जरूरत पड़ने पर जानवरों की तरह भी, आगे के दोनों हाथ जमीन पर रखकर चलने लगता था । उसकी हथेलियाँ छोटी-छोटी लेकिन उँगलियाँ कुछ ज्यादा ही लम्बी थीं । उँगलियों के नाखून तीखे थे और आगे को बढ़े हुए थे । यानी कि कोई नाखून सीधा और कोई मुड़ा था । उसके पैर भी हाथों की तरह छोटे थे । पैरों के नाखून भी भद्दे ढंग से बढ़े हुए थे । उसके शरीर की खाल का हिस्सा ही कमर के पास से उभर कर कूल्हों और आगे के हिस्से को ढाँप रहा था । सिर पर फोड़ो की भाँति बालों के छोटे-छोटे चंद गुच्छ थे । उसे देखने वाला पागल हो जाये । जैसे... जैसे सोनिया हो गई थी । उ... उसकी आँख... ।”

विनोद ने झुरझुरी लेकर होंठ भींच लिए ।

“बस करो ।” सोनिया के होंठों से थरथराता स्वर निकला, “जिक्र मत करो उसका । मेरी जान निकली जा रही है ।”

मोना चौधरी ने सोनिया के फक्क, पीले पड़े चेहरे पर नजर मारी ।

“तुम उसकी आँख के बारे में कुछ कह रहे थे ।” महाजन ने गंभीर स्वर में विनोद से कहा ।

“हाँ-हाँ !” विनोद ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए कहने की हिम्मत की, “जैसे ट्रांजिस्टर की सुई को इधर-से-उधर घुमाया जाता है, इसी तरह वो आँख को एक कान से लेकर दूसरे कान तक घुमा लेता था कि हर तरफ देख सके ।”

“क्या बकवास कर रहे हो ?” महाजन की आँखें सिकुड़ीं ।

“तुम्हें... तुम्हें मेरी हर बात बकवास ही लगेगी ।” विनोद एकाएक गहरी-गहरी साँसें लेने लगा, “लेकिन... लेकिन मैं जो भी कह रहा हूँ, ठीक और सच कह रहा हूँ ।” उ... उसके कान से लेकर, माथे को पार करता हुआ दूसरे कान तक एक इंच चौड़ी और करीब आधा इंच गहरी नाली जैसी जगह थी । उसमें एक रुपये के सिक्के के साइज की मोटी-सी एक आँख दायें से बाएँ फिर रही थी । वो जिधर देखना चाहता, देख लेता और... ।”

“तुम्हारा मतलब जिस तरह हम दो आँखों से हर तरफ देखते हैं । जिधर देखना होता है आँखें उस तरफ घुमा लेते हैं । इसी तरह उसकी एक आँख, एक कान से दूसरे कान तक, माथे पर से गुजरती हुई, आधा इंच गहरी और एक इंच चौड़ी पट्टी के बीच घूम रही थी ।”

“हाँ... हाँ, ठीक कहा तुमने ! मैं यही कह रहा था ।” विनोद के होंठों से निकला ।

महाजन ने अजीब-सी निगाहों से मोना चौधरी के उलझन भरे चेहरे को देखा ।

“सुना बेबी !”

मोना चौधरी ने न समझने वाले भाव में सिर हिला दिया ।

महाजन ने विनोद को देखा तो वह बोला ।

“उसके कान छोटे-छोटे थे । देखने में सिर्फ इतना ही एहसास होता था कि वो कान हैं । नाक की जगह दो छेद नजर आ रहे थे और होंठ बहुत मोटे और लटकते महसूस हो रहे थे । ठोड़ी जैसे थी ही नहीं ! उसके मोटे-मोटे गाल, होंठों के नीचे से होकर आपस में मिल रहे थे । ठोड़ी होने का एहसास नहीं होता था ।”

विनोद के खामोश होते ही सोनिया सिहरकर कह उठी ।

“बहुत डरावना था वो । मुझे हैरानी है कि उसे देखकर मेरी जान क्यों नहीं निकल गई । मैं जिन्दा कैसे हूँ अब तक !”

महाजन ने गंभीर निगाहों से मोना चौधरी को देखा ।

मोना चौधरी के चेहरे पर उलझनों का जाल स्पष्ट नजर आ रहा था ।

“ऐसा न कहो सोनिया !” विनोद कह उठा, भगवान के आगे माथा टेको कि हम उससे बच गए ।”

“वो ।” सोनिया के स्वर में थरथराहट उभरी, “वो फिर आ सकता है । यहाँ से भाग चलो विनोद !”

विनोद ने बेचैन निगाहों से मोना चौधरी और महाजन को देखा ।

“तुमने उसका जो हुलिया बताया है ।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा, “वो न तो किसी इंसान का है और न ही किसी जानवर का । ये सब किसी से कहोगे तो सुनने वाला तुम्हारी बात का विश्वास नहीं करेगा ।”

“हाँ ! कोई नहीं मानेगा मेरी बात ।”

“अगर उसे पहले किसी ने देखा होता तो ये बात लोगों में फैल चुकी होती । ऐसा कुछ पहले भी सुनने को मिला होता । इस बारे में अखबारों में भी खबर आई होती, परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ।”

विनोद और सोनिया की नजरें मिलकर रह गईं ।

कुछ देर उनके बीच चुप्पी रही ।

“सच बात तो ये है कि मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं आ रहा ।” महाजन ने चुप्पी तोड़ी ।

“मत करो विश्वास ।” विनोद सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा, “तुमने जो पूछा, मैंने उसका ही जवाब दिया है । ये नहीं कहा कि मेरी बात पर विश्वास करो । मैं यहाँ नहीं ठहरना चाहता । वो फिर आ सकता है । सोनिया, यहाँ से... ।”

“तुमने बताया था कि तुम लोगों ने गोली चलने की आवाज सुनी ।” मोना चौधरी कह उठी ।

“हाँ !” विनोद बोला, “जब चीखो-पुकार का मामला शुरू हुआ । कोई किसी को चिल्लाकर कुछ कह रहा था । इसके फौरन बाद ही गोली चलने की आवाज आई । उसके बाद तो चीखो-पुकार का सिलसिला और भी तेज हो गया था । वो डरावना रूप, जो भी था, सबको पकड़-पकड़कर चीड़ने-फाड़ने लगा ।” विनोद ने भय से भरी झुरझुरी ली ।

“उससे पहले वहाँ सब कुछ शांत था ?”

“हाँ !” विनोद ने सिर हिलाया, “हमें तो इस बात का भी एहसास नहीं हुआ कि वहाँ कोई लोग भी हैं ।”

“गोली ।” मोना चौधरी की आँखें सिकुड़ीं हुई थीं, “किसने, किस पर चलाई ?”

“मैं नहीं जानता । मैं... ।”

“म... मुझे मालूम है ।” सोनिया के होंठों से थरथराता स्वर निकला ।

सबकी निगाहें सोनिया पर गईं ।

“तुम्हें मालूम है !” विनोद के होंठों से निकला ।

सोनिया ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए अपना फक्क चेहरा हिलाया ।

“बताओ ।” मोना चौधरी के होंठ हिले ।

“वो... वो गोली उसी को मारी गई थी ।” सोनिया के होंठों से सूखा-सा स्वर निकला ।

“उस एक आँख वाले को ।” मोना चौधरी की आँखें सिकुड़ीं ।

“ह... हाँ !”

“तुम्हें धोखा हुआ है ।” विनोद ने कहना चाहा ।

“मैं सच कह रही हूँ ।” सोनिया पक्के स्वर में कह उठी ।

“जब गोली चली, तब तो हम उधर देख भी नहीं रहे थे । वो जगह हमें नजर भी नहीं आ रही थी ।”

“हाँ ! तुम ठीक कहते हो ।” सोनिया ने विनोद को देखकर अपना घबराहट भरा चेहरा हिलाया, “लेकिन बाद में छिपकर मैंने उसे ध्यान से देखा था । उसकी छाती वाले हिस्से से गोल दायरे में लाली नजर आई थी । वहाँ से थोड़ा खून भी बहता दिखा था मुझे । वो गोली उसे ही मारी गई थी । नहीं तो खुद ही सोचो, भला मरने वाले क्या अपने साथियों पर गोली चलाएँगे । उसे गोली मारी गई थी । उसे लगी तभी तो छाती से खून बह रहा था ।”

“मैंने ।” विनोद ने होंठ भींचकर कहा, “मैंने ये सब नोट नहीं किया ।”

“मैंने देखा था, उसकी छाती से खून बहते । वहाँ एक इंच के व्यास का गड्ढा जैसा दिखा था मुझे ।”

मोना चौधरी ने सिर के बालों में उंगलियाँ फिराते हुए कहा ।

“महाजन !”

“हाँ बेबी !”

“अगर इनकी बातों पर विश्वास किया जाये तो ।”

“मुझे इनकी बातों पर जरा भी विश्वास नहीं आ रहा ।” महाजन कह उठा, “जैसा हुलिया इन दोनों ने बताया है, वैसा न तो कोई जानवर होता है और न इंसान । कमाल है, गैंडे जैसी खाल । कमर से माँस की निकलती परत जो कि कूल्हों को और आगे के हिस्से को कुदरती तौर पर ढाँप रही थी । छोटे कान । नाक की जगह दो छेद । मोटे होंठ और ट्रांजिस्टर की सुई की भाँति उसकी एक आँख जो कि एक कान से दूसरे कान तक वो अपनी मर्जी से घुमाकर, हर तरफ देख लेता था । और-तो-और अगर उसे गोली लगी तो वो गोली से नहीं मरा । वहाँ मौजूद पाँचों को उसने मार दिया । वो इंसानों की तरह भी चल-फिर सकता है और जानवरों की तरह चार पैरों से भी चल सकता है ।”

मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े । महाजन को देखती रही फिर बोली ।

“मान लो, ये लोग सच कह रहे हैं ।”

महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।

“मोना ! तो...। ” महाजन ने बे-मन से कहा ।

“तो ये बात सामने आती है कि, वो जो चीज़ भी थी, उन पाँचों गनमैनों की नजरों में आ गई । वो उसे देखकर हड़बड़ा उठे । घबरा गए । चिल्लाये । इसी बीच किसी ने उस पर गोली चला दी । जब उसे गोली लगी तो उसे क्रोध आ गया फिर गुस्से में उसने सबको चीड़-फाड़कर मार दिया ।”

“मतलब कि उसे गोली न मारी जाती तो वो किसी को कुछ नहीं कहता ।” महाजन बोला ।

“शायद ।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा, “अगर इन दोनों के कहे मुताबिक ऐसा कुछ है तो उस खतरनाक शह ने पहले किसी को क्यों नहीं कुछ कहा ?”

“यही तो मैं कह रहा हूँ कि अगर उस खतरनाक शह का अस्तित्व है तो उसे पहले किसी ने क्यों नहीं देखा । सच बात तो यह है कि ऐसी कोई शह है ही नहीं, जिसके बारे में ये बता रहे हैं । ये पागल हैं । इन्हें किसी तरह का तगड़ा धोखा हुआ है । या ये पागलखाने से भागकर आये हैं, जो ऐसी उल्टी-पुल्टी बातें कर रहे हैं ।”

“तुम हमें पागल कह रहे हो ।” सोनिया गुस्से से कहते हुए खड़ी हो गई ।

महाजन ने उसे देखा । कहा कुछ नहीं !

“विनोद, चलो यहाँ से !” सोनिया बोली, “मुझे तो ये दोनों पागल लग रहे हैं ।”

विनोद ने चुभती निगाहों से महाजन को देखा ।

“एक बात कहूँ ।” विनोद ने तीखे स्वर में कहा ।

“क्या ?” महाजन के माथे पर बल दिखाई दे रहे थे ।

“हम दोनों वास्तव में पागल हैं जो तुम जैसे बेवकूफों को ये सब बताया । आओ, सोनिया !” कहने के साथ ही विनोद ने आगे बढ़कर सोनिया का हाथ पकड़ा और उस दिशा की तरफ बढ़ गया, जिधर बीच की तरफ जाने का रास्ता था ।

कई पलों तक दोनों उन्हें जाते देखते रहे ।

“मैं नहीं मानता इनकी बातों को ।” महाजन ने दाँत भींचकर उखड़े स्वर में कहा ।

“हमारी कार को जिस बुरी तरह तोड़ा गया, उसके बारे में क्या कहते हो ?” मोना चौधरी बोली ।

“इन्हीं पागल और शरारती लोगों ने हमारी कार की ये हालत की है ।”

“वापस होटल चलें ?” मोना चौधरी की नजरें दूर-दूर तक फिरने लगीं ।

“श्योर बेबी ! यहाँ कोई और मिल गया और ऐसी बातें करने लगा तो मैं पागल हो जाऊँगा । फिर मैं भी दूसरों की ऐसी ही बातें बताने लगूँगा और तब लोगों की निगाहों में ऐसी अजीबोगरीब शह का अस्तित्व आ जायेगा, जो कि वास्तव में है ही नहीं ! अखबारों में बातें उछलने लगेंगी । लोग सिर-से-सिर जोड़कर बिना अस्तित्व वाली शह के बारे में बातें करने लगेंगे ।” महाजन ने मुँह बनाकर कहा, “सब बेकार की बातें हैं ।”