"खा... खा नीलू । आलू का एक और परांठा खा...।"
"नहीं ।" महाजन ने मुंह चलाते हुए इंकार में सिर हिलाया--- "पेट में जगह नहीं बची।"
"सिर्फ तीन परांठे तो खाये हैं ।" राधा ने मुंह बनाकर कहा--- "मैं तो छः-छः खा जाती हूं ।"
"तेरी बात और है, मैं शहर की पैदाइश हूं । एक में भी मेरा काम चल जाता है । तू कबीले की, बस्ती की पैदाइश है । वहां तो सिर्फ खाने और काम करने पर ही जोर दिया जाता है ।"
"और शहरों में किस बात पर जोर दिया जाता है ।" राधा ने महाजन को घूरा ।
"खा-पीकर आराम करने पर जोर...।"
राधा ने उसे तीखी निगाहों से देखते हुए कहा ।
"नीलू । अभी तो तू कह रहा था कि जरूरी काम पर जाना है ।"
"हां । तो...?"
"अब तू घर रहने को कह रहा है ।"
"मैंने, कब कहा ?"
"अभी कहा तो ?"
"वो तो मैं शहरी रंग-ढंग के बारे में बता रहा था ।" महाजन ने गहरी सांस ली ।
"ठीक है, ठीक है, नाश्ता कर लिया ?"
"हां, पूरा पेट भर गया ।"
"उठ जा, कपड़े डाल और काम पर निकल जा।" महाजन ने राधा को घूरा ।
"अगर जाने का मन न हो तो ?"
"जाना पड़ेगा । तूने कहा था जरूरी बात पर जाना है ।"
महाजन ने बिना कुछ कहे पानी पिया और उठ खड़ा हुआ।
"मैं तो तेरे भले की सोच रहा था राधा ।"
"कैसा भला ?"
"सोच रहा था, तेरा प्यार करने का मन होगा तो...।"
"बस । बस कोई मन नहीं है । रात तुमने ठीक से सोने नहीं दिया । तुम्हारे जाने के बाद तगड़ी नींद लूंगी ।" राधा के होंठों के बीच दबी-दबी-सी शोख मुस्कान उभर आई थी ।
"तो मैं कहां ठीक से नींद ले पाया । तुमने सोने ही कहां दिया ।" महाजन मुस्कुरा पड़ा।
"बस नीलू । बस । झूठ मत बोल । मेरी रात तुमने खराब की ।"
"खराब की ?" महाजन की आंखें सिकुड़ी ।
"मेरा मतलब है, तूने सोने नहीं दिया ।" राधा खुलकर मुस्कुरा पड़ी ।
"तेरे को शहर की हवा लग गई है । तभी तू बातें बनाने...।"
"तू काम पर जाता है या नहीं ?"
"जा रहा हूं । घर बैठने का मेरा कोई इरादा नहीं है।" महाजन ने कहा और दूसरे कमरे में चला गया ।
"पांच मिनट बाद लौटा तो पैंट-कमीज पहनी हुई थी ।
"शाम को जल्दी आना ।" राधा ने टोका ।
"क्यों ?"
"फिल्म देखनी है । शहीद-ए-आजम।"
"कल तो भगतसिंह की फिल्म देखी थी ।"
"वो दूसरी थी । अखबार में पढ़ा नहीं कि भगतसिंह पर चार-चार फिल्में दिखाई जा रही हैं ।"
"चार देखो या एक देखो बात तो एक ही है ।" महाजन ने मुंह बनाया ।
"वो बात नहीं है ।" राधा ने गहरी सांस ली ।
"तो ?"
"तुम मूंछें रख लो नीलू ?"
"मूंछें ?" महाजन के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे ।
"हां ।" राधा ने इस बार कुछ ज्यादा ही लम्बी सांस ली--- "मुझे भगतसिंह की मूंछें बहुत अच्छी लगती हैं ।"
महाजन ने राधा को घूरा, फिर उखड़े स्वर में कह उठा।
"तुम मूंछों की बात कर रही हो । मैं तो सिर पर उस्तरा फिरवाने की सोच रहा हूं ।" कहने के साथ ही वो आगे बढ़ा और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।
"नीलू । असली मूंछें न सही, नकली ही ले आना ।" पीछे से राधा ने कहा--- "रात को लगा लिया करो ।"
महाजन की तरफ से कोई जवाब नहीं आया । कुछ पलों बाद ही कार स्टार्ट होने की आवाज आई । राधा ने मुंह बनाया और दरवाजा बंद करके, डाइनिंग टेबल पर पड़े खाली बर्तनों की तरफ बढ़ गई । होंठों ही होंठों में वो नई फिल्म देवदास का गाना गुनगुना रही थी, जो दो दिन पहले ही देखी थी ।
बर्तन समेटकर किचन में रखे, इधर-उधर पड़ी घर की चीजें ठीक की। बेडरूम में जाकर बैड साफ किया । आधा घंटे में इन सब कामों से फुर्सत पा ली ।
तभी फोन की बेल बजी ।
"हैलो ?" राधा ने रिसीवर उठाया ।
"महाजन से बात कराइए ।"
"आप कौन हैं ?"
"आप मुझे नहीं जानती । महाजन ने मेरे पास आना था, आया नहीं ।"
"नीलू अभी घर से गया है, मालूम नहीं कहां गया है ।"
"फिर तो मेरे पास ही आ रहा होगा ।"
राधा ने मुंह बनाकर रिसीवर रख दिया। फिर बैड पर जा लेटी । दोपहर तक उसका नींद लेने का ही प्रोग्राम था । ताकि रात की नींद पूरी करके फ्रेश हो सके।
बैड पर लेटे राधा को दस मिनट ही हुए थे कि कॉलबेल बजी।
"मुझे मालूम था नीलू फिर आ जाएगा ।" राधा उखड़े स्वर में बड़बड़ा उठी--- "आज इसका मन नहीं है काम पर जाने को । ये बात तो मैंने सुबह ही महसूस कर ली थी, जब बैड पर बैठे-बैठे चार कप चाय पी गया था।"
"बेल पुनः बजी ।
राधा खुद में गुस्सा समेट उठी और बैडरूम से बाहर निकलते हुए कह उठी ।
"नीलू ! मैं तेरे को शाम से पहले घर में कदम नहीं रखने दूंगी । बेशक बाहर बैठा रह । रात को न खुद नींद लेता है, न मुझे लेने देता है और दिन में भी तेरे को चैन नहीं ।"
बेल एक साथ दो बार बजी।
"आ रही हूं । खोलती हूं ।" पास पहुंचकर राधा दरवाजा खोलते हुए बोली--- "मैंने तेरे को काम पर भेजा था और तू वापस...।" दरवाजा खोलते ही राधा के शब्द मुंह में रह गए ।
बाहर राधा को तीन-चार आदमी नजर आए ।
इससे पहले कि उनसे राधा कुछ कह-पूछ पाती । एक साथ दो उस पर झपटे और एक ने उसका मुंह बंद किया । दूसरे ने उसे उठाया और सामने खड़ी कार में डालकर, कार भगा दी ।
■■■
अगले दिन ।
तीखी धूप में मोना चौधरी ने आंखों पर काला स्याह चश्मा चढ़ा रखा था । दिन के बारह बज रहे थे । सड़कों ने तपना शुरू कर दिया था । जानलेवा गर्मी की वजह से, लोग घरों से या ऑफिसों से निकलना पसंद नहीं कर रहे थे । गर्मी से भरी दोपहर सिर पर चढ़ने की वजह से सड़कें खाली-सी महसूस हो रही थी ।
कार की छत तपने लगी थी । ए•सी• में जाने क्या खराबी आ गई थी कि जब उसे चालू किया तो मिनट भर चलकर बंद हो गया था । कार के भीतर हद से ज्यादा गर्मी थी, जिसे सहना मोना चौधरी की मजबूरी थी । वरना उसका मन तो होटल से बाहर निकलने का जरा भी नहीं था ।
मोना चौधरी इस वक्त हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर शहर में थी।
पहाड़ियों से ढका, लहराती सड़कों से भरा जाल । हर तरफ हरियाली थी । यहां गर्मी से अक्सर राहत मिलती थी । मनाली जाने के लिए इसी रास्ते का इस्तेमाल होता था, परन्तु इस बार गर्मी ने बुरा हाल कर दिया था ।
सामने छोटे से चौराहे पर लाल बत्ती देखी तो मोना चौधरी ने कार रोक दी । चंद कदमों के फासले पर लकड़ी के गोल बक्से पर खड़ा पुलिसमैन, पसीने से भीगा, ट्रैफिक ड्यूटी पूरी कर रहा था । जबकि इस वक्त ऐसा कोई ट्रैफिक मौजूद नहीं था कि वहां उसकी मौजूदगी को जरूरी समझा जाए ।
दूसरी तरफ एक पुलिसवाला फुटपाथ पर नजर आ रहे तने की आड़ में खड़ा बीड़ी पीते हुए अपनी ड्यूटी दे रहा था । पास ही पुरानी सी, पुलिस मोटरसाइकिल खड़ी थी ।
मोना चौधरी ने महसूस किया कि वो उसे घूर रहा है ।
लापरवाही से मोना चौधरी ने उस पर से नजरें हटाई । लाल बत्ती ऐसी हुई कि हरी नहीं हो रही थी। जबकि उस वक्त लाल बत्ती चालू रखने का मतलब मोना चौधरी को समझ नहीं आया । वाहन न के बराबर थे । उसके पीछे दो कारें आ खड़ी हुई थी । मोना चौधरी ने हॉर्न बजाकर चौराहे पर खड़े पुलिस वाले को ये बताना चाहा कि उसका वक्त खराब हो रहा है । उसे आगे बढ़ने का इशारा दे।
उस पुलिसमैन ने इशारा भी दे दिया आगे बढ़ने का ।
तभी तने की ओट में खड़ा होकर बीड़ी फूंकने वाला पुलिसमैन तेजी से करीब पहुंचा और हाथ बढ़ाकर कार के इंगीनेशन से चाबी निकाल ली ।
हल्की-सी तेज आवाज के साथ कार का ईंजन बंद हो गया ।
मोना चौधरी चौंकी । चेहरे पर अजीब से भाव उभरे । उसने फौरन पुलिस मैन को देखा ।
"लगता है तुम हर किसी के साथ ऐसा ही करते हो ?" मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा ।
"नहीं मैडम ।" पुलिस वाले ने मुस्कुराकर इंकार में सिर हिलाया--- "मैंने पहली बार ऐसा किया है ।"
पीछे वाली कार ने हॉर्न बजाया ।
"क्यों ?"
"आप बोत खूबसूरत हैं ।" उसने सामान्य मुस्कुराहट भरे लहजे में कहा--- "मैं आप जैसी खूबसूरत लड़की से शादी करना चाहता था, परन्तु मेरे बूढ़े बाप ने बिरादरी की दुहाई देकर, गांव की लड़की से मेरा ब्याह...।"
"चाबी दो । जाना है मुझे ।" मोना चौधरी ने उसे घूरा ।
पीछे वाली सीट का हॉर्न पुनः बजा ।
"मैं आपका लाइसेंस और गाड़ी के पेपर्स चैक करना चाहता हूं । इस बहाने आपसे दो बातें भी हो जाएंगी ।" वो बोला--- "मैडम पीछे वालों को जल्दी है, मैं धक्का देता हूं, आप कार को किनारे पर लगा दीजिए । तब लाइसेंस-पेपर्स आराम से चैक...।"
"तुम खामख्वाह मेरा वक्त...?"
"मैं अपनी ड्यूटी पूरी कर रहा हूं ।" इसके साथ ही उसने कार को धक्का दिया ।
कुछ ही पलों में कार साइड लग गई।
पीछे वाली कारें निकल गई ।
"वहां आ जाना ।" कहने के साथ ही वो तने की तरफ बढ़ गया ।
उसे देखती हुई मोना चौधरी सोच रही थी कि इस चिपकी मुसीबत को अपने से झाड़ना है । वो तने के पास छाया में खड़े होकर बीड़ी सुलगाने लगा था । कार की चाबी उसने जेब में डाल ली थी ।
मोना चौधरी गहरी सांस लेकर कार से निकली और उसके पास जा पहुंची ।
मोना चौधरी को देखते हुए वो ठंडी आह लेने वाले ढंग में मुस्कुराया ।
मुस्कुराई मोना चौधरी भी ।
"लाइसेंस ?" बोला वो ।
मोना चौधरी ने पैंट की जेब में हाथ डाला और तुड़ा-मुड़ा पांच सौ का नोट उसकी हथेली में थमाया ।
"ये क्या है ?" पुलिस वाले के चेहरे पर छाई मुस्कान गहरी हो गई ।
"लाइसेंस है । पुलिस में नये भर्ती हुए हो क्या ?" मोना चौधरी ने मुंह बनाया ।
तभी चौराहे पर मौजूद पुलिस वाला भागा-भागा वहां पहुंचा ।
"कितने का है ?" उसने, अपने साथी पुलिस वाले से पूछा ।
"क्या, कितने का है ?" नोट उसने मुट्ठी में भींच लिया था ।
"मैंने सब देखा है । मेमसाहब ने तेरे को नोट दिया है । आधे मेरे नहीं तो...।"
"हां-हां, मैंने कब मना किया ?"
"कितने का है ?"
"मैंने देखा नहीं । तू फिक्र क्यों करता है । तेरे को तो पता ही है कि जब घर से निकला था, जेब में दस का नोट था । दस से ऊपर जितने भी होंगे, आधे तेरे को दे दूंगा । जा ड्यूटी कर, सुना है आज बड़े साहब ने सड़कों का फेरा लगाना है ।"
"हेराफेरी मत करना ।" कहकर वो अपनी ड्यूटी बजाने सड़क पर पड़ी चौकी के पास की तरफ बढ़ गया ।
उसने मुस्कुराकर मोना चौधरी से कहा ।
"मेरा साला है । मेरी ही सिफारिश पर पुलिस में भर्ती हुआ और अब आधा मांगता है।"
मोना चौधरी शांत भाव से उसे देखती रही ।
उसने हाथ में पकड़ा नोट इस तरह खोला कि कोई दूसरा न देख सके । फिर उसे मुट्ठी में बंद करता बोला
"लाइसेंस पर तुम्हारी तस्वीर, इस वक्त तुम्हारे चेहरे से मेल नहीं खा रही । खैर, गाड़ी के कागजात दिखाओ ।"
"पांच सौ का नोट दिया है तुम्हें ।" मोना चौधरी ने कहा ।
"वो लाइसेंस है । मैं कार के पेपर्स के बारे में पूछ रहा हूं ।"
मोना चौधरी ने पांच सौ का एक नोट उसे थमा दिया।
दोनों नोट पुलिसमैन ने जेब के हवाले किए और मुंह बनाकर बोला ।
"सरकार की गलती है । तनख्वाह इतनी कम है कि कमीज सिल पाये तो, पैंट नहीं बन पाती । रुमाल होने की बात तो बहुत दूर है । ऊपर से हराम की खाने वाले, मेरे साले जैसे आ जाते हैं । मेरे घर रहकर रोटियां तोड़ता है और जब तनख्वाह मिलती है तो अपने बाप को मनीआर्डर कर देता है, उसका खर्चा भी तो निकालना पड़ता है । अभी कल ही कह रहा था कि उसके ब्याह के लिए कोई लड़की देखूं । ब्याह करवाकर भी मेरे यहां टिका रहा तो, मुझे तो बाहर दरवाजे पर ही बैठना पड़ेगा । धोने के लिए अपने पांवों तक हाथ नहीं जाता और दूसरे के पांव धोने पड़ रहे हैं । मैं तो...।"
"चलती हूं । बाकी का दुःख-दर्द उसे सुनाना । जिसका अब लाइसेंस चैक करो ।" मोना चौधरी कहकर जाने को हुई ।
"मैडम ।"
मोना चौधरी ने पुनः उसे देखा ।
उसने बीड़ी सुलगाकर कश लिया, फिर इधर-उधर देखता हुआ बोला ।
"सच में बहुत खूबसूरत हो तुम ।"
मोना चौधरी ने उसकी आंखों में झांका ।
"जरा इधर को आ जाओ ।" उसने पास ही नीचे जाती सीढ़ियों की तरफ इशारा किया ।
मोना चौधरी ने एक निगाह सीढ़ियों पर मारी ।
"उधर क्या है ?" मोना चौधरी के होंठ सिकुड़ गए थे ।
"बहुत अच्छी जगह है । सोलह सीढ़ियां उतरने के बाद, नीचे घना जंगल शुरू हो जाता है । हरे-भरे पेड़ । खूबसूरत झाड़ियां। हवा में ठंडक । जबकि यहां बहुत गर्मी है । ऐसी जगह में हाथों में हाथ लेकर बातें करना कितना सुखद होगा ।"
मोना चौधरी खुलकर मुस्कुराई ।
वो भी जवाबी अंदाज में मुस्कुराया ।
"मुझे ऐसी जगहों पर जाने की आदत नहीं है ।" मोना चौधरी ने व्यंग्य से कहा--- "फाईव स्टार होटल में कमरा बुक करा लो । वहां...।"
"फाईव स्टार ? वहां तो कमरे का किराया ही पांच हजार होता है ।"
"हाथों में हाथ लेने के लिए खर्चा तो करना ही पड़ता है ।"
उसने मोना चौधरी को घूरा ।
"ऊंचे हाथ मत मारो । अपनी बीवी की तरफ ध्यान दो । चोट लग गई तो बीवी के काम के भी नहीं रहोगे ।"
उसने सिर खुजलाया और सिर हिलाकर कह उठा।
"मैडम ! आज सुबह बड़े ऑफिसरों की मीटिंग थी । उस मीटिंग में इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी भी था । दिल्ली से आज सुबह ही आया था यहां, बिलासपुर में ।" शांत स्वर में कहते हुए उसकी निगाह मोना चौधरी के चेहरे पर थी ।
मोना चौधरी चौंकी । फिर तुरन्त ही सामान्य हो गई ।
"मैं जानता हूं आप मोदी को जानती हैं और उसका नाम सुनकर हैरान अवश्य होंगी । वो ही हुआ। मोदी खबर लाया है कि आप यानी कि मोना चौधरी बिलासपुर में है । कुछ खास काम करने आई हैं । अपने साथ वो ढेर सारे पेपर्स लाया था । जिन पर आपके चेहरे का स्कैच बना है । पुलिस वालों को उसने वो कागज दिए कि आपको देखते ही बिलासपुर पुलिस पहचान ले और मैंने पहचान लिया आपको ।" वो गम्भीर-सा कह रहा था--- "मैं जानता हूं मोना चौधरी बहुत खतरनाक है । मोदी की जुबानी आपके चंद कारनामे सुनने के बाद हिमाचल पुलिस। ने आपको "चुड़ैल एक्सप्रेस" के खिताब से नवाजा है ।"
"चुड़ैल एक्सप्रेस ?" मोना चौधरी के होंठों से निकला ।
"आपको ये उपनाम देने की गुस्ताखी हिमाचल पुलिस के बड़े ऑफिसरों ने आज सुबह ही की है । मोदी के बताये आपके कारनामे जाहिर करते हैं कि आप जहां भी पहुंचती हैं तूफान की तरह, एक्सप्रेस ट्रेन की तरह पहुंचती हैं और किसी चुड़ैल की भांति उत्पात मचाकर खिसक जाती हैं । अच्छा नाम है आपके लिए चुड़ैल एक्सप्रेस ।"
होंठ सिकोड़े मोना चौधरी उसे देखती रह गई ।
"मैं अपना परिचय करा देता हूं । जैसे कि आप देख रहे हैं कि मेरे जिस्म पर पुलिस की वर्दी है । परन्तु मैं पुलिस वाला नहीं हूं ।"
"क्या मतलब ?"
"हिमाचल की क्राइम ब्रांच का जासूस सुनील नेगी हूं । चूंकि हिमाचल में विदेशियों का ढेर लगा रहता है । उसके साथ-साथ हिमाचल में मादक पदार्थ भी प्रवेश कर जाते हैं । विदेशियों को ड्रग्स देकर मोटे नोट कमा ले । इसके लिए कई ड्रग्स माफिया हिमाचल में पैदा हो चुके हैं । मेरी ड्यूटी ऐसे लोगों को तलाश करके, उनके नेटवर्क को खत्म करने की है । मुझे तसल्ली है कि अपने काम में में सफल रहा हूं । तुम्हारी वजह से मैंने पुलिस की वर्दी पहनी कि कोई खामख्वाह मुझ पर शक न करे और तुम नजर आओ तो मैं बहुत ही आसानी से कंट्रोल कर सकूं ।"
"खूब ।" मोना चौधरी ने उसे घूरा--- "तो तुमने मुझ पर कंट्रोल कर लिया ?"
"अभी नहीं मोना चौधरी । ये सीढ़ियां उतरकर नीचे चलोगी तो तुम पर कंट्रोल कर लूंगा ।" सुनील नेगी ने उसकी आंखों में देखा ।
"मुझे तो तुम अजीब से लगे हो।"
"हां । अपना अजीबपन कभी-कभी मैं भी महसूस करता हूं । सीढ़ियों से नीचे चलें ?"
तभी मोना चौधरी ने पैंट की जेब में मौजूद छोटी-सी पिस्टल निकाली ।
नेगी ने पिस्टल की झलक देखी । चेहरा शांत रहा ।
"हिमाचल पुलिस ने मुझे चुड़ैल एक्सप्रेस का नाम दिया तो तुमने कैसे सोच लिया कि चुड़ैल पर काबू पा लोगे ।"
"एक बात तो मैं बतानी भूल ही गया ।" सुनील नेगी मुस्कुराकर कह उठा--- "मैं कभी-कभार ऐसे काम कर जाता हूं कि हिमाचल पुलिस मुझे प्रेत कह देती है । यानी कि प्रेत और चुड़ैल का मुकाबला तो हो ही सकता है ।"
"नहीं हो सकता ।" मोना चौधरी दांत भींचकर बोली--- "दफा हो जाओ । वरना...।"
"कोई फायदा नहीं मोना चौधरी ।" सुनील नेगी सपाट स्वर में कह उठा--- "जो पुलिस वाला मेरे पास आया था । वो मेरे से इस बात का इशारा ले गया था कि तुम शिकार हो । तुम्हारे लिए उसने इंतजाम कर लिया है । देख लो, विश्वास आ जाएगा ।"
मोना चौधरी ने सावधानी से नजरें घुमाईं ।
पीठ पीछे सड़क पार सादी कपड़े में दो आदमी नजर आए जो इधर ही देख रहे थे । दोनों के हाथ जेबों में थे। एक ही निगाह में, पहचाना जा रहा था कि वे पुलिस वाले हैं
दाईं तरफ वो पुलिस वाला खड़ा था । उसका हाथ भी जेब के भीतर था। जो कि इस बात को स्पष्ट कर रहा था कि उसका हाथ जेब में मौजूद रिवॉल्वर पर टिका हुआ है ।
वो तीनों पूरी तरह सतर्क नजर आये थे ।
मोना चौधरी ने सामने खड़े सुनील नेगी पर नजरें टिका दीं ।
"सीढ़ियां उतरें ?" नेगी ने सतर्क शांत स्वर में कहा ।
मोना चौधरी कुछ नहीं बोली ।
"पिस्टल मुझे दे दो ।" नेगी पुनः बोला--- "इसका इस्तेमाल किया तो, जिंदा नहीं बचोगी ।" कहने के साथ ही वो एक कदम करीब आया और मोना चौधरी के हाथ से पिस्टल ले ली ।
मोना चौधरी ने जरा भी एतराज नहीं उठाया और सड़क के किनारे सीढ़ियों की तरफ बढ़ी । जो कि कुछ नीचे सड़क पर जाकर समाप्त हो रही थी । वहां सफेद रंग की क्वालिस गाड़ी खड़ी थी । जिसकी साइड में मोटा-मोटा हिमाचल पुलिस लिखा था । मोना चौधरी समझ गई कि वे उसे इसी गाड़ी में ले जाना चाहते हैं ।
शांत भाव में मोना चौधरी सीढ़ियां उतरने लगी ।
सुनील नेगी उसके बराबर होकर सीढ़ियां उतरने लगा ।
"मैं तो यहां ऑर्डर के मुताबिक रूटीन ड्यूटी दे रहा था । मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि सच में तुमसे सामना हो जाएगा । तो कभी-कभी अविश्वास से भरे इत्तेफाक हो जाते हैं कि विश्वास ही नहीं आता...।"
"काम की बात करो ?" मोना चौधरी ने सपाट स्वर में टोका ।
"काम की बात ?" नेगी ने मोना चौधरी के चेहरे पर नजर मारी ।
"मैं झंझट-झगड़ा नहीं चाहती । जो रकम चाहिए लो और मेरे रास्ते से हट जाओ ।"
"रकम है तुम्हारे पास ?"
"तुम जैसों के लिए इंतजाम पास में रखकर चलना पड़ता है । कीमती हीरे हैं । पन्द्रह-बीस लाख की कीमत के होंगे।"
"वो तो तुमसे वैसे भी ले लूंगा ।" नेगी तीखे स्वर स्वर में कहा उठा--- "एक बात बताना भूल गया कि हिमाचल प्रदेश में अपराध करने वाले तो मेरे से परेशान रहते ही हैं सुनील नेगी के हाथ लग गए तो खैर नहीं । साथ ही हिमाचल पुलिस भी मेरे से परेशान रहती है कि मेरी वजह से अक्सर उनकी ऊपर की कमाई रुक जाती है । जब भी कोई मोटा अपराधी मेरे हाथ लगता है तो सबसे पहले उससे पूछताछ करके इस बात की लिस्ट तैयार करता हूं कि उसने कब कहां और क्यों, किस-किस पुलिस वाले को रिश्वत दी । तब रिश्वत लेने वालों का क्या हाल होता है, तुम सोच नहीं सकती हो ।"
मोना चौधरी ने आधी सीढ़ियां तय करके पीछे देखा ।
सादे कपड़े पहने वो दोनों व्यक्ति और वर्दी में पुलिस वाले ने भी सीढ़ियां उतरनी शुरू कर दी थी ।
"तुमने कुछ कहा नहीं ।" नेगी कह उठा ।
"मेरे कुछ कहने की जरूरत नहीं बची तुम्हारा जवाब सुनकर ।" मोना चौधरी बोली--- "मेरी बात न मानकर तुमने लाखों के हीरों का नुकसान कर लिया, तुम्हारे भले की खातिर मैंने ये सौदेबाजी तुम्हारे सामने रखी थी ।"
"इंस्पेक्टर मोदी तो तुम्हें बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा था ।" नेगी ने कहा--- "ऐसा तो तुममें कुछ नजर नहीं आया ।"
"मोदी का तो दिमाग खराब है ।" मोना चौधरी सामान्य भाव में बोली--- "मेरे बारे में जाने क्या-क्या कहता-फिरता है । उसकी बातों की परवाह मत करो । तुम अपनी सोचो, अपनी करो।"
सीढ़ियां समाप्त होते ही वे हिमाचल पुलिस की क्वालिस के पास खड़े थे ।
"यहां हर तरफ पहाड़ हैं । पहाड़ी रास्ते हैं । ये क्वालिस गाड़ी ऐसे रास्तों पर धोखा नहीं देती । हिमाचल पुलिस के खास-खास डिपार्टमेंट क्वालिस गाड़ी का ही इस्तेमाल करते हैं । चलाने में बढ़िया । सफर में आसान, लोग भी ज्यादा आ जाते हैं ।" सुनील ने हाथ में दबा रखे छोटी-सी पिस्टल को अपनी जेब में डालते हुए कहा--- "रास्ता मैं बताऊंगा । ड्राइव तुम करना।"
तब तक पीछे आने वाले तीनों पुलिस ऑफिसर्स भी पास आ पहुंचे थे ।
"मैं ड्राइव करूं ?" मोना चौधरी ने उन तीनों पर निगाह मारी ।
"हां । तुम ड्राइव करोगी, स्टेयरिंग हाथ में होगा तो कम से कम किसी चालाकी का इस्तेमाल करने से परहेज करोगी ।" सुनील नेगी ने मोना चौधरी को घूरा फिर उन तीनों से बोला--- "सावधान रहना इश्तिहारी मुजरिम मोना चौधरी ही है । जिसके पीछे दिल्ली से इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी को भेजा गया है । दिल्ली अंडरवर्ल्ड में इसने बहुत शोर-शराबा कर रखा है । इंस्पेक्टर मोदी की खबर बिल्कुल सही थी कि ये हिमाचल में बिलासपुर में मौजूद है । यहां ये यूं ही तो आने से रही । खास बात ही होगी ।"
मोना चौधरी बिना कुछ कहे, क्वालिस की ड्राइविंग सीट पर बैठ गई ।
सुनील नेगी उसकी बगल में बैठा ।
तीनों पुलिस अधिकारी पीछे वाली सीट पर । रिवॉल्वरें निकालकर उन्होंने हाथ में ले ली थी । रिवॉल्वरों की झलक मोना चौधरी को दिखा दी थी कि वो कोई शरारत न करें। करे तो सोच ले कि बचेगी नहीं ।
चाबी इंगीनेशन में लगी थी । मोना चौधरी ने क्वालिस स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी । आगे ढलानी रास्ता था । इधर शोर-शराबा कम था । इक्का-दुक्का मकान ही बने थे । कुछ फासले पर हरी-भरी घाटी दिखाई दे रही थी ।
"सीधी सड़क पर जाना है । आगे चौराहा आएगा वहां से रास्ता बता दूंगा ।" नेगी ने कहा ।
मोना चौधरी सामान्य गति से क्वालिस आगे बढ़ाती रही ।
"सर ।" पीछे मौजूद तीनों में से एक ने पूछा--- "ये किस मकसद से हिमाचल में आई है ।"
"इसका जवाब तो मोना चौधरी ही देगी ।"
"पूछा नहीं ।"
"पूछ लेंगे ।" सुनील नेगी के होंठों पर तीखी मुस्कान उभरी--- "अब तो इसका-हमारा साथ लंबा है ।"
ढलबा सड़क सांप की तरह लहराती नीचे जा रही थी ।
क्वालिस ड्राइव करते मोना चौधरी के चेहरे पर शांत-गम्भीर भाव थे । किसी भी तरह से वो परेशान या व्याकुल नजर नहीं आ रही थी । उसने सुनील नेगी पर हमारी निगाह मारी ।
"विश्वास नहीं आ रहा शायद तुम्हें अपनी गिरफ्तारी पर ?" नेगी मुस्कुराया ।
"मुझे तो लगता है तुम्हें विश्वास नहीं आ रहा कि, तुमने मुझे गिरफ्तार कर लिया ।" मोना चौधरी मुस्कुराई।
"सर ।" पीछे बैठा अधिकारी बोला- "ये तो जरा भी नहीं डर रही कि...।"
"जब भी कोई बड़ा अपराधी गिरफ्तार होता है तो वो कभी भी डर का दिखावा नहीं करता । यही दर्शाता है कि कानून उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा । फिर वक्त बीतने के साथ-साथ कानून के कांटो की चुभन जब उसके मस्तिष्क और शरीर पर होती है तो तब सोचने लगता है कि कहां आ फंसा ।" सुनील नेगी ने शांत स्वर में कहा--- "गैरकानूनी काम करने वालों के लिए कानून से बड़ा कोई नहीं है । कानून से कोई भी टक्कर नहीं ले सकता ।"
"ठीक कहते हो कि कानून से बड़ा कोई नहीं । कानून से टक्कर नहीं ली जा सकती ।" मोना चौधरी कह उठी--- "इसलिए मेरी कोशिश हमेशा यही रहती है कि कानून से बचकर रहा जाए । मैं दूसरी चीजों से टक्कर लेती हूं ।"
"दूसरी चीजों से टक्कर ?" नेगी ने सवालिया निगाहों से मोना चौधरी को देखा ।
"ये देखो ।"
सुनील नेगी ने सामने देखा ।
दूसरे ही पल नेगी की आंखें फैल गई ।
"सर ।" पीछे से एक ऑफिसर चीखने जैसे ढंग में कह उठा ।
उसी पल मोना चौधरी ने स्पीड बढ़ाई । ड्राइविंग डोर खोला और फुर्ती से कूद गई थी । क्वालिस जोरों के साथ सड़क के किनारे मौजूद पेड़ से तेज हवा के साथ जा टकराई थी ।
मोना चौधरी ने नहीं देखा कि गाड़ी में क्या हुआ ।
वो इस ढंग से नीचे कूदी थी कि चोट न लगे । गिरते ही उछली और दूसरी तरफ सड़क के किनारे उतरती चली गई । इधर कच्ची जमीन, झाड़ियां हरे-भरे पेड़ थे । काफी दूर छोटी सी सड़क नजर आ रही थी । बिना रुके भागती गई मोना चौधरी । काफी आगे आ जाने पर मोना चौधरी को इस बात का अहसास हो गया कि उसके पीछे कोई भी नहीं है । उसने जूतों में फंसा रखी रिवाल्वर सावधानीवश निकालकर हाथ में ले ली और उस सड़क की तरफ भागती रही ।
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सुनील नेगी के माथे पर बैंडिज हुई पड़ी थी ।
दोपहर के तीन बज रहे थे । वो ऑफिस जैसे कमरे में टहल रहा था । चेहरे पर गम्भीरता थी । उंगलियों में फंसे सिगरेट के कभी-कभार कश ले लेता था ।
पेड़ से क्वालिस जोरों से टकराई थी ।
उसका माथा गाड़ी की छत से टकराया था और वो होश खो बैठा था । मोना चौधरी का, पेड़ की टक्कर से, सैकिण्डों पहले गाड़ी से कूद जाना उसे याद आ रहा था । अपने काम में उसने इतनी फुर्ती दिखाई थी कि वो कुछ भी नहीं कर सका था । उसने सोचा भी नहीं था कि मोना चौधरी ऐसी कोई हरकत कर सकती है।
उसके साथ-साथ दो अन्य ऑफिसर भी चोट लगने की वजह से बेहोश हो गए थे । तीसरे की कलाई टूट गई थी । उसे इस बात का बेहद अफसोस था कि हाथ आकर भी मोना चौधरी बच निकली है ।
तभी दरवाजा खुला और इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी ने भीतर प्रवेश किया ।
सुनील नेगी ठिठका । मोदी को देखा ।
"हैलो ।" मोदी ने शांत भाव में कहा-- "मैं इंस्पेक्टर मोदी, दिल्ली से हूं और...।"
"सुबह देखा था तुम्हें, जब तुम मीटिंग में मोना चौधरी के बारे में बता रहे थे ।" नेगी ने टोका।
मोदी आगे बढ़कर कुर्सी पर आ बैठा ।
"हां । मुझे भी मालूम हुआ कि तुम सुबह की मीटिंग में थे । कुछ देर पहले ही सुनने में आया है कि हिमाचल प्रदेश में तुम्हारा नाम है । अपराधी तुम्हारा नाम सुनकर सतर्क हो जाते हैं ।" मोदी का लहजा सामान्य था ।
सुनील नेगी ने मोदी को देखा ।
"क्या कहना चाहते हो ?"
"यही कि मोना चौधरी तुम्हारे हाथों से निकल गई, इसका मुझे कोई अफसोस नहीं । हैरानी नहीं, तुम्हारा कोई कसूर नहीं । दरअसल मोना चौधरी पर काबू पाना आसान नहीं ।" मोदी ने भी सिगरेट सुलगा ली।
नेगी, टेबल के पीछे कुर्सी पर आ बैठा ।
"मैंने सुबह ठोक बजाकर, मीटिंग में बताया था कि मोना चौधरी किस हद तक खतरनाक है । परन्तु मोना चौधरी के सामने आते ही तुमने सोचा होगा कि खूबसूरत गुड़िया इतनी खतरनाक नहीं हो सकती ।" मोदी मुस्कुरा पड़ा ।
"शायद ।" सुनील नेगी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "ऐसा ही सोचा।"
"अब मोना चौधरी के बारे में फिर कभी ऐसा नहीं सोचेंगे। जो एक बार उसके सामने पड़ जाता है । फिर उसे नहीं भूलता । तुम भी नहीं भूल पाओगे उसे । ये भी समझाने की जरूरत नहीं कि दोबारा जब मोना चौधरी सामने पड़े तो उसके साथ कैसे पेश आना है ।" मोदी ने कश लेकर सोच भरे स्वर में कहा--- "एक गलती तुमने अवश्य की ।"
"क्या ?"
"मोना चौधरी को पहचानने पर तुमने खुद पर काबू रखना था और उस पर नजर रखते । उसे गिरफ्तार करने से जरूरी था ये जानना कि वो बिलासपुर में किस काम के लिए आई है । मोना चौधरी के बिलासपुर पहुंचने की खबर मुझे दिल्ली में अपने सूत्रों से मिली । तो मैं सीधा यहां आ गया फिर...।"
"गिरफ्तारी के बाद मोना चौधरी अगर काबू में रहती तो उसके बिलासपुर आने के बारे में पूछा जा सकता था कि...।"
"नहीं जाना जा सकता । उसकी मर्जी के बिना उससे कुछ नहीं पूछा जा सकता । मैंने सुबह ही मीटिंग में इस बात पर जोर दिया था कि उसे गिरफ्तार करने से पहले उसके बिलासपुर आने का कारण जानना है । उसके बाद ही उसे गिरफ्तार करना है। मात्र उसे गिरफ्तार करना होता तो ये काम मैं दिल्ली में कर लेता ।"
"दिल्ली में कैसे कर लेते ?"
अब मोदी, सुनील नेगी को कैसे बताता कि वो मोना चौधरी के फ्लैट के बारे में जानता ही नहीं बल्कि वहां पहुंचकर कई बार उससे मिल चुका है। परन्तु कमिश्नर रामकुमार को दी जुबान के मुताबिक वो मोना चौधरी को सीधे-सीधे गिरफ्तार नहीं कर सकता था । किसी जुर्म में, मोना चौधरी को रंगे हाथों पकड़ा जाए तो कमिश्नर रामकुमार को कोई एतराज नहीं होगा । दरअसल कमिश्नर रामकुमार कभी ऐसी मुसीबत में फंसे थे कि उनकी सहायता करने के लिए, अपना ही पुलिस डिपार्टमेंट नजरें चुराने लगा था । तब मौना चौधरी ही कमिश्नर रामकुमार के काम आई थी और इस बात को मोदी अच्छी तरह जानता था। क्योंकि तब वो खुद भी कमिश्नर रामकुमार की तरफ से इस मामले में दखल दे रहा था ।
उसकी बात पर ध्यान न देकर, मोदी ने सोच भरे स्वर में कहा ।
"मोना चौधरी इस वक्त हिमाचल में है । बिलासपुर में है । अब तुम क्या करोगे ?"
"मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उसे फिर पकड़ सकूं ।" नेगी शब्दों को चबाकर कह उठा ।
मोदी ने कश लेकर सिगरेट को टेबल पर पड़ी ऐश-ट्रे में डाल दिया ।
"कैसे ढूंढोगे उसे ?"
"मेरे लिए ये कठिन काम नहीं ।"
"हिमाचल पुलिस ने मोना चौधरी को 'चुड़ैल एक्सप्रेस' का नाम दिया है।" मोदी मुस्कुरा पड़ा ।
"अब कहता हूं कि मोना चौधरी सच में 'चुड़ैल एक्सप्रेस' है । जिस तरह मेरे कब्जे में आकर निकल गई । ऐसी तेज हरकत तो चुड़ैल ही कर सकती है ।" नेगी के होंठों पर जहरीली मुस्कान आ ठहरी--- "लेकिन इस चुड़ैल पर मैं काबू पाकर रहूंगा । हिमाचल से बाहर नहीं निकल सकेगी ये ।"
इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी ने गहरी सांस लेकर कहा ।
"अभी भी मोना चौधरी को तुम आसान समझ रहे हो ।"
सुनील नेगी ने मोदी को देखा फिर इंकार में सिर हिलाया ।
"गलत मत समझो । मैंने मोना चौधरी का नाम अपनी लिस्ट में सबसे खतरनाक अपराधी के तौर पर लिख दिया है ।"
"तो वो हिमाचल से बाहर नहीं निकल सकेगी ?"
"नहीं निकल सकेगी । उससे पहले ही मैं उसे पकड़ लूंगा ।" नेगी दृढ़ता भरे स्वर में कह उठा ।
"अगर इसी तरह हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे तो दोबारा शायद उसकी हवा भी न पा सको ।" मोदी बोला ।
"आराम से बैठने की मेरी आदत नहीं है मोदी साहब ।"
दोनों की नजरें मिली ।
"मैं हिमाचल में ड्रग्स से वास्ता रखती हरकतों पर नजर रखता हूं और उन पर काबू पाता हूं । हिमाचल सरकार की तरफ से मुझे अपना काम करने के लिए खास सुविधाएं मिली हुई है । मेरा अपना नेटवर्क है । अपने नेटवर्क को मैं पूरी तरह हरकत में ला चुका हूं । बिलासपुर तो क्या, पूरे हिमाचल में फैक्स के द्वारा, मोना चौधरी का स्केच मेरे आदमियों के पास पहुंच चुका है । अब वो हिमाचल से बचकर नहीं निकल सकेगी।"
"गुड ।" मोदी ने शांत भाव से उसे देखा--- "तो मैं कब तक आशा रखूं कि मोना चौधरी हाथ में आ जाएगी ?"
"चुड़ैल एक्सप्रेस की रफ्तार कैसी भी हो मेरे से वो ज्यादा दूर नहीं जा पाएगी ।" सुनील नेगी दांत भींचे कह उठा।
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बिलासपुर का वो पुराना मोहल्ला था ।
चार फीट की गली (ईटों का) खडंजा डाला हुआ था । दोनों तरफ पतली-पतली नालियां थी । ऊंचे-ऊंचे ऐसे मकान थे कि शायद ही वहां कहीं सूरज की रोशनी पहुंचती हो । कभी वो यूं ही सारे मकान बने होंगे । फिर जरूरत के मुताबिक एक के ऊपर एक कमरा पड़ता चला गया । इसी तरह मकानों की ऊंचाई बढ़ती रही ।
मोना चौधरी मकानों के दरवाजों पर नजर मारती आगे बढ़ती रही । किसी दरवाजे पर मकान का नम्बर लिखा था और किसी पर नहीं । धूप न आने के कारण, गली का मौसम सड़क की अपेक्षा ठंडा था । बहुत कम लोग नजर आ रहे थे । मौना चौधरी को देखकर वो अवश्य सोचने लगते कि वो यहां किसके पास आई है ।
एक दरवाजे के पास बैठी औरत के पास मौना चौधरी ठिठकी।
"लता का घर कहां है ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
"लता ?" वो औरत माना चौधरी को देखने लगी--- "कौन लता, पैंतीस नम्बर वाली ?"
"नहीं । बावन नम्बर मकान में रहती है ।"
"वो...उसका घर इसी रास्ते के आखिर में है । उसके घर के आंगन में नीम का फैला हुआ बहुत बड़ा पेड़ है । देखते ही समझ जाओगी कि मैंने उसी पेड़ के बारे में कहा है ।" उस औरत ने कहा ।
धन्यवाद के शब्दों के साथ में मौना चौधरी आगे बढ़ गई ।
कुछ ही देर में गली के मोड़ पर थी । वहां से बड़ी गली शुरू हो रही थी । उसी बड़ी गली के एक खुले मकान के अहाते में नीम का बड़ा और फैला पेड़ दिखा । मोना चौधरी बेहिचक उस मकान के गेट पर पहुंची और भीतर प्रवेश कर गई । साधारण-सा बना वो मकान काफी खुली जगह में बना हुआ था । लाइन में बने पांच कमरे नजर आ रहे थे । एक तरफ दो भैंसे और गाय बंधी थी ।
तभी मोना चौधरी की निगाह उस औरत पर पड़ी जो अभी-अभी कमरे के खुले दरवाजे से बाहर निकली थी । वो मोना चौधरी को देखकर रुक गई थी। चालीस बरस की स्वस्थ नजर आने वाली उस औरत ने सलवार कमीज पहन रखा था। चेहरे से स्थानीय लग रही थी ।
मोना चौधरी उसके पास पहुंचकर ठिठकी ।
"लता नाम है तुम्हारा ?" सामान्य लहजे में मोना चौधरी ने पूछा ।
मोना चौधरी को सिर से पांव तक देखते उसने सहमति से सिर हिलाया ।
"हां । तुम कौन हो ?"
"बनारसी दास की बेटी को लेने आई हूं । कीमत भी लाई हूं ।" मोना चौधरी ने उसकी आंखों में झांका ।
"मेरे साथ आओ ।" वो बोली और पलटकर एक कमरे की तरफ बढ़ी ।
मोना चौधरी उसके साथ चल दी ।
दोनों ने कमरे में प्रवेश किया । उस कमरे में एक चारपाई और दो कुर्सियों के अलावा अन्य कुछ नहीं था । एक दरवाजा कमरे के पीछे की तरफ लगा रहा था । मोना चौधरी को आने का इशारा करती हुई, लता नाम की औरत उस दरवाजे को पार करके कमरे से बाहर निकल गई ।
मोना चौधरी बराबर उसके पास थी ।
पीछे की तरफ चारपाई पर उसने पचास बरस के एक आदमी को लेटे पाया । बदन पर कुर्ता-पायजामा पहन रखा था । दो दिन की शेव बढ़ी हुई थी । देखने में लापरवाह, परन्तु आंखों में सतर्कता से भरा पैनापन झलक रहा था
"बज्जू ।" लता बोली ।
बज्जू ने आंखें खोली । मोना चौधरी पर नजर पड़ते ही फौरन उठ बैठा ।
"ये तेरे वास्ते आई है । छोकरी को पूछ रही है ।" कहते हुए लता ने मोना चौधरी पर नजर मारी ।
मोना चौधरी तीखी निगाहों से बज्जू नाम के व्यक्ति को देख रही थी ।
"कुर्सी ला ।" बज्जू धीमे स्वर में बोला । नजरें मोना चौधरी पर थी ।
वो भीतर की तरफ चली गई ।
"पहुंचने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई ?" उसने उसी तरह धीमे स्वर में पूछा ।
"नहीं ।"
एकाएक वो मुस्कुराया । दो दिन में बढ़ी शेव को उंगलियों से खुजलाया ।
"कोई दिक्कत नहीं हुई ?"
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी ।
"दिक्कत आनी चाहिए थी क्या ?" मोना चौधरी की आवाज में तीखा भाव आ गया ।
"मुझे खबर मिली थी कि हिमाचल के शेर ने अपना पंजा तुम्हारी गर्दन पर रख दिया है ।"
"हिमाचल का...कहीं तुम सुनील नेगी की बात तो...।"
"हां । हिमाचल की क्राइम ब्रांच का शेर कहते हैं हम लोग नेगी को । बहुत खतरनाक है ।" मुस्कान के साथ वो शांत सा कहे जा रहा था--- "मुझे तो सच में हैरानी हो रही है कि तुम सुनील नेगी के हाथों से बच निकली ।"
लता कुर्सी ले आई ।
मोना चौधरी कुर्सी पर बैठी तो बस बज्जू ने लता से कहा ।
"इसके लिए चाय-पानी का इंतजाम कर...।"
मौना चौधरी खामोश रही । लता चली गई ।
"मुझे ये भी खबर मिली कि हिमाचल पुलिस ने तुम्हारा आगा-पीछा जानने के बाद, तुम्हें चुड़ैल एक्सप्रेस का नाम दिया है । नाम तो चुनकर रखा है तुम्हारा । वैसे हिमाचल के अपराधी सुनील नेगी को प्रेत कहते हैं ।" वो हौले से हंसा ।
मोना चौधरी ने उसे देखते हुए पहलू बदला ।
उसने कुर्ते की जेब से विदेशी सिगरेट निकाली और सुलगा ली ।
"सुनील नेगी ने मुझे गिरफ्तार कर लिया है । तेरे को ये पता चला । मतलब कि मुझ पर नजर रख रहे थे तुम ?"
"हां ।"
"कब से ?"
"जब से तुम बनारसी दास के यहां से दिल्ली से चली हो । तुम अपने पर नजर रखने वालों को इसलिए नहीं पहचान पाई कि पीछे आने वाले लोगों के चेहरे बदलते रहे । वाहन बदलते रहे । ऐसे में तुम्हें शक कैसे होता ?"
"बनारसी दास ने मुझे कहा था कि यहां लता नाम की औरत से मिलना है । उसे हीरे देने हैं और उसकी बेटी...।"
"बनारसी दास तो वो ही कहेगा, जो मैंने उसे कहा । लता का इस मामले से कोई वास्ता नहीं है । वो शरीफ औरत है । यहां के लोगों की निगाहों में मैं उसका पति हूं, जो कि बाहर रहता हूं और छुट्टी मिलने पर यहां आता हूं । वैसे लता को मेरी ब्याहता ही समझो ।" बज्जू बोला--- "यहां पर मैंने ही तुमसे मिलना था ।"
"मिल लिए ।" तीखे स्वर में कह उठी मोना चौधरी-- "अब हीरे लो और बनारसी दास की लड़की को मेरे हवाले करो ।"
कहने के साथ ही मोना चौधरी ने कपड़ों में फंसा रखी कपड़े की छोटी-सी थैली निकाली और बज्जू की तरफ उछाल दी।
बज्जू ने थैली थामी और पास ही रख दी । खोलकर भी न देखा उसे ।
"तुमने पन्द्रह लाख मांगे थे और ये पन्द्रह से ज्यादा, लाख तक के हीरे हैं । लड़की मुझे दो ।"
"चाय-पानी आ लेने दो । जल्दबाजी मत करो ।" बज्जू ने मुस्कुराकर मोना चौधरी को देखा ।
"मैं लड़की को अपने सामने देखना...।"
"मैंने कब मना किया है ।" कहने के साथ ही बज्जू ने लता को आवाज लगाई ।
फौरन ही लता वहां पहुंची ।
"अपनी बहन को ले आ । प्रियंका को ।"
लता चली गई ।
"लता ने बनारसी दास की बेटी को अपनी बहन बनाकर रखा है यहां । प्रियंका को जब यहां लाया तो उसकी सुरक्षा लता ने अपने पर ले ली । मुझे भला क्या एतराज हो सकता है । मैं अपने काम से काम रखता हूं । किसी की इज्जत से नहीं खेलता ।"
"मुझे अपने चरित्र का प्रमाणपत्र मत दिखाओ ।"
"गलत क्यों कहती हो । मैं तो तुम्हें ये बता रहा हूं कि बनारसी दास की बेटी को यहां पूरी इज्जत मिल रही है ।"
"फिरौती के लिए अपहरण किया बनारसी दास की बेटी का । उसे दिल्ली से इतनी दूर लाने की क्या जरूरत थी । रकम तुम्हें वहां ही मिल जाती । दिल्ली से यहां तक मेरा पीछा करा सकते हो तो, प्रियंका को दिल्ली में आसानी से रख...।"
"बात वो नहीं है, जो तुम समझ रही हो । प्रियंका का अपहरण मैंने पन्द्रह लाख के लिए नहीं किया । खुद ही सोचो कि बनारसी दास जैसे इंसान से क्या मैं सिर्फ पन्द्रह लाख लूंगा । वैसे भी मैं अपरहण जैसे घटिया काम नहीं करता...।"
"क्या कहना चाहते हो ?"
"प्रियंका का अपहरण...।"
तभी लता, प्रियंका को ले आई ।
मोना चौधरी ने उसे फौरन पहचाना । बनारसी दास ने उसकी तस्वीर दिखाई थी । बाईस बरस की खूबसूरत, लंबे कद की युवती थी । कंधों तक कटे बाल थे । उसके जिस्म पर इस वक्त ढीला-ढाला सूट था । जो कि यकीनन लता का ही होगा । इस वक्त वो गम्भीर-बेचैन अवश्य थी । परेशान या घबराई हुई नहीं थी ।
"ये तुम्हें लेने आई है । दिल्ली से तुम्हारे पापा ने भेजा है ।" बज्जू ने मुस्कुराकर कहा-- "मैंने तो पहले ही कहा था कि फिक्र मत करो । जल्दी ही तुम्हारी रिहाई हो जाएगी ।"
प्रियंका ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर मोना चौधरी को देखा ।
"तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं दी इन लोगों ने ?"
"नहीं ।" उसने इंकार में सिर हिलाया--- "लोग तो ये अच्छे लगे हैं । फिर जाने क्यों मेरा अपहरण किया...?"
"वो ही कपड़े पहन ले । जो तूने पहले पहन रखे थे ।" बज्जू ने कहा--- "तेरे को अब मोना चौधरी के साथ जाना है ।"
"आ...।" लता ने प्रियंका के कंधे पर हाथ रखा ।
मोना चौधरी को देखती प्रियंका पलटी और लता के साथ चली गई ।
मोना चौधरी और बज्जू की नजरें मिली ।
"तुम बता रहे थे कि प्रियंका का अपहरण तुमने पैसे के लिए नहीं, किसी दूसरी वजह के लिए किया है ।"
"हां । वो वजह तुम हो । मैं तुम्हें अपने सामने देखना चाहता था ।" बज्जू पहली बार गम्भीर हुआ।
मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे । होंठ सिकुड़ गए ।
"प्रियंका का अपहरण तो यूं ही, ड्रामा ही था ।" बज्जू ने हीरों की थैली उठाकर मोना चौधरी की तरफ उछाली । मोना चौधरी ने थैली को थाम लिया--- "बेशक हीरे तुम रख लो । मेरी ये हरकत ड्रामा नहीं है मोना चौधरी ।"
मोना चौधरी के माथे पर उलझन भरी लकीरें नजर आने लगी ।
"तुमने कैसे सोच लिया था कि प्रियंका का अपहरण करके, तुम मुझसे मुलाकात कर लोगे ?"
"मेरे पास इस बात की पक्की खबर थी कि बनारसी दास से तुम्हारे अच्छे सम्बन्ध है । तुम दो-तीन बार बनारसी दास को मुसीबत से निकाल चुकी हो । लेकिन ये बात भी मैं अच्छी तरह जानता था कि बनारसी दास मुझे तुम्हारा पता-ठिकाना किसी कीमत पर नहीं बताएगा । फिर भी मैंने प्रियंका का अपहरण करके, उसे मारने की धमकी देकर बनारसी दास से तुम्हारा पता ठिकाना मालूम करने की कोशिश की । लेकिन तुम्हारे बारे में कुछ भी बताने से इंकार कर दिया । तब मैंने उसे यहां का पता देकर प्रियंका को वापस करने के लिए फिरौती की रकम पन्द्रह लाख मांगी । परन्तु शर्त मेरी ये थी कि पन्द्रह लाख के हीरे तुम लेकर आओगी । दूसरा रास्ता न देखकर बनारसी दास को मेरी ये बात माननी पड़ी।"
बज्जू की बात से मोना चौधरी की एक उलझन तो दूर हो गई थी ।
बनारसी दास से हीरे लेकर जब वो चलने लगी तो बनारसी दास ने बेचैन स्वर में कहा था कि जिन लोगों ने प्रियंका का अपहरण किया है । वो तुम्हारा बुरा कर सकते हैं । वो तुम्हारी पहचान के हैं या तुम्हारे दुश्मन हैं । मोना चौधरी के कई बार पूछने पर भी बनारसी दास ने इसके अलावा कुछ नहीं कहा था।
तब मोना चौधरी को अहसास हो गया था कि बीच में कोई बात अवश्य है ।
"बनारसी दास को सख्ती से मना कर दिया था कि वो तुम्हें कुछ नहीं बताएगा । बताया तो प्रियंका की लाश उस तक पहुंच जाएगी । यही वजह रही कि बनारसी दास ने तुम्हें कुछ नहीं बताया । बताया होता तो तुम इस तरह लापरवाही से यहां नहीं आ जाती ।"
"तुम कैसे कह सकते हो कि मैं लापरवाह हूं ।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा ।
दोनों की नजरें मिली ।
"हो सकता है लापरवाह न हो । मैंने यूं ही कह दिया होगा ।"
बज्जू ने लापरवाही से कंधों को हिलाया--- "बनारसी दास ने तुम्हें कुछ बता भी दिया होता तो भी प्रियंका को कोई नुकसान नहीं होता । लेकिन एक बार में तुम्हारा दम-खम अच्छी तरह चैक कर लेना चाहता था । इसलिए जब तुम दिल्ली से चली तो इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी को मैंने फोन पर खबर कर दी कि तुम बिलासपुर जा रही हो । वहां बहुत ही खास काम करोगी । ये सुनते ही मोदी बिलासपुर आ पहुंचा ।"
मोना चौधरी के चेहरे पर तीखे भाव उभरे ।
"तो मोदी को बिलासपुर लाने का कारनामा तुमने किया था ।"
"हां । मैं देखना चाहता था कि बिलासपुर जैसी जगह पर पुलिस के शिकंजे में तुम आकर तुम कैसे बचती हो और...।"
"देख लिया ?" मोना चौधरी ने कड़वे स्वर में कहा ।
"हां । इत्तेफाक से तुम सुनील नेगी जैसे, क्राइम ब्रांच के खतरनाक इंस्पेक्टर के हाथों में पड़ी और बच निकली ।" बज्जू के होंठों पर मुस्कान उभरी--- "सच में, जैसा सुना था । वैसा ही पाया । लेकिन नेगी जैसा इंस्पेक्टर उन लोगों में से नहीं है कि शिकार हाथ आकर निकल जाए और वो भूल जाए । सुनील नेगी हर हाल में तुम तक पहुंचने की कोशिश करेगा ।"
"तुम अपनी बात करो ।" मोना चौधरी की आवाज में तीखापन था।
तभी लता ट्रे में चाय के प्याले रख ले आई । साथ में दो छोटी प्लेटों में बिस्कुट और नमकीन थे । ट्रे को वो चारपाई के कोने में रख कर चली गई। बज्जू ने प्याला उठाकर मोना चौधरी को दिया । दूसरा खुद ले लिया । बज्जू का व्यवहार बहुत ही सामान्य था । परन्तु मोना चौधरी उसकी आंखों को पहचान चुकी थी कि वो किसी दरिंदे जैसा खतरनाक इंसान है ।
"बेहद खास काम के लिए मुझे तुम्हारी जरूरत थी । किसी ने बताया था कि ये काम तुम या देवराज चौहान आसानी से पूरा कर सकते हैं । देवराज चौहान के बारे में मालूम हुआ कि वो सिंगापुर गया हुआ है तो तुम्हारी तलाश में लग गया।"
देवराज चौहान का ज्रिक आते ही मोना चौधरी के चेहरे पर तनाव उभरा फिर गायब हो गया ।
मोना चौधरी कई पलों तक उसे देखती रही फिर शब्दों को चबाकर कह उठी ।
"इंस्पेक्टर मोदी को बीच मे डालकर तुमने बहुत बड़ी गलती की । हिमाचल प्रदेश का जासूस सुनील नेगी भी बीच में आ गया ।"
"तुम्हारे बारे में सुना बहुत था । देखना भी तो था कि तुम वास्तव में काबिल हो या नही ।"
"तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारा काम करूंगी ।" मोना चौधरी का लहजा तीखा हो गया ।
"सोचा क्या---मैंने इस विश्वास के साथ काम किया है तुम मेरा काम करोगी ।"
"वो कैसे ?" मोना चौधरी ने उसकी आंखों में झांका ।
मोना चौधरी कठोर निगाहों से उसे देखने लगी ।
"मैंने पहले भी कहा है कि अपरहण जैसे काम मुझे पसन्द नहीं । लेकिन करने पड़ते हैं । बनारसी दास की बेटी को मोहरा बनाकर तुम्हें यहां बुलवा लिया ।" बज्जू ने सामान्य स्वर में कहा।
"तुम मेरा काम करो । इसके लिए कुछ देर पहले ही राधा को मोहरा बनाया गया है ।"
"राधा ?" मोना चौधरी चौंकी ।
"नीलू महाजन की बीवी।"
दरिन्दगी नाच उठी मोना चौधरी के चेहरे पर ।
उसके कुछ कहने से पहले ही बज्जू कह उठा ।
"राधा को घंटा भर पहले ही मेरे आदमियों ने कैद कर लिया है । दिल्ली में राधा सुरक्षित है । उसकी सेहत की फिक्र मत करना । अब तुम राधा की वजह से मेरा काम करोगी ।"
"खतरनाक खेल-खेल रहे हो बज्जू ।" मोना चौधरी के होंठों से गुर्राहट निकली ।
"ऐसे खेल खेलना मेरा पेशा है ।" बज्जू ने दाएं-बाएं सिर हिलाकर कहा--- "राधा की वजह से तुम्हें काम करने के लिए तैयार किया जा रहा है । लेकिन काम की भरपूर कीमत भी मिलेगी । तुम्हें काबू करने के लिए राधा पर हाथ डालना पड़ा । ये हमारी मजबूरी थी ।"
दांत भींचे मोना चौधरी बज्जू को देखती रही ।
बज्जू कुछ नहीं बोला ।
"काम क्या है ?" मोना चौधरी के लहजे में दरिंदगी भर आई थी ।
"मालूम हो जाएगा । पहले इस बात की तसल्ली कर लो कि राधा वास्तव में मेरे आदमियों के कब्जे में है या मैं यूं ही ये सब तुम्हें कह रहा हूं । उस कमरे में फोन है । वहां से...।"
"मुझे विश्वास है कि तुम बात झूठ नहीं बोलोगे । काम की बात करो ।"
तभी प्रियंका और लता वहां आ पहुंची ।
मोना चौधरी की निगाह प्रियंका पर जा टिकी । वो स्कर्ट और टॉप में थी । यानी कि जब उसका अपहरण किया गया था, वो इन्हीं कपड़ों में थी । मोना चौधरी ने बज्जू को देखा ।
"तुमने कहा था कि तुम्हारी दिलचस्पी मेरे में है । प्रियंका में नहीं।"
बज्जू ने सहमति से सिर हिलाया ।
"मैं यहां हूं । प्रियंका को उसके पापा बनारसी दास के पास पहुंचा दो ।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा
"क्यों नहीं । अब तो राधा भी मेरे आदमियों के हाथ लग गई ।" बज्जू ने कहते हुए लता को देखा--- "लता प्रियंका को दिल्ली के लिए टैक्सी में बिठा दे । टैक्सी वाला पहचान वाला लेना कि इसे ठीक-ठाक इसके बाप तक पहुंचा दे ।"
"चल ।" लता ने प्रियंका से कहा।
प्रियंका ने मोना चौधरी को देखा ।
"जाओ । यहां से तुम दस घंटे में दिल्ली पहुंच जाओगी । मैं आधी रात के बाद तुम्हारे घर फोन जरूर करूंगी ।"
"तुम नहीं चलोगी ?" प्रियंका ने बज्जू पर निगाह मार कर पूछा।
"नहीं । मुझे यहां रुकना पड़ेगा । तुम निकल जाओ ।"
लता प्रियंका को लेकर वहां से चली गई ।
मोना चौधरी और बज्जू की नजरें मिली ।
"अभी कुछ मत कहो ।" वो कुछ कहने लगा कि मोना चौधरी ने टोका--- "प्रियंका, जब अपने पापा बनारसी दास के पास पहुंच जाएगी । हमारे बीच बाकी की बात फिर ही होगी ।"
"प्रियंका अपने पापा के पास पहुंच जाएगी । जो मैं कहूं, वो सुनो-समझो । तुम्हारी हर तरफ से तसल्ली हो, तभी काम शुरू करना ।" बज्जू ने कहा ।
"अभी मैं थकी हुई हूं ।" मोना चौधरी की आंखों में गुस्सा था--- "राधा को तुम्हारे आदमियों ने कोई परेशानी दी तो....।"
"मुझे और मेरे आदमियों को औरतों की इज्जत करना आता है ।" बज्जू के होंठों पर मध्यम-सी मुस्कान उभरी।
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रात खाने के वक्त ही बज्जू ने मोना चौधरी से बात की । लता ने खाना टेबल पर लगा दिया था और खुद भी साथ ही खाने बैठ गई थी । प्रियंका को वो टैक्सी पर दिल्ली के लिए रवाना कर आई थी । वापस आकर उसने बताया कि ड्राइवर रात के बारह बजे तक उसे दिल्ली पहुंचा देगा ।
इस वक्त नौ बज रहे थे।
मोना चौधरी नहा-धो भी चुकी थी । कपड़े वही पहन लिए थे । कुछ आराम भी कर लिया था। जबकि वो आराम से हालातों पर गौर कर रही थी । उसके लिए बज्जू नाम के इस आदमी ने पहले बनारसी दास की बेटी प्रियंका का अपहरण किया। जब वो सामने आ गई तो, प्रियंका को छोड़कर, लगे हाथ राधा का अपहरण कर लिया कि उस पर दबाव डालकर उससे मनचाहा काम लिया जा सके।
बज्जू बेहद खतरनाक व्यक्ति था । इसका एहसास हो उसे हो चुका था कि उसके हाथ भी लम्बे हैं । यहां बैठे-बैठे दिल्ली में आसानी से अपनी हरकतें जारी रखे हुए है । इस वक्त हालात ऐसे नहीं थे कि अपने ढंग से बज्जू से पेश आ पाती । क्योंकि राधा उसके कब्जे में थी, दूसरे वो ये भी जानना चाहती थी कि बज्जू आखिर चाहता क्या है । इतने लंबे हाथ-पांव ये यूं ही नहीं मार रहा होगा ।
खाना सादा और अच्छा था ।
खाना शुरू हुआ तो बज्जू बोला ।
"अगर तुम सुनना चाहो तो मैं उस काम के बारे में बात करूं, जो तुम्हें करना ही है।"
"कहो ।" मोना चौधरी का स्वर तीखा था--- "लेकिन मैं तुम्हारे काम पर तभी गौर करूंगी, जब प्रियंका अपने पापा बनारसी दास के पास पहुंच जाएगी । तुम मुझे विश्वास के काबिल नहीं लगते ।"
"मेरे बारे में तुम जो भी विचार जाहिर करो । कोई एतराज नहीं ।" बज्जू ने शांत स्वर में कहते हुए लता को देखा--- "तुमने दिल्ली फोन कर दिया कि...।"
"खाना बनाते समय दिल्ली फोन कर दिया था । अब तक तो सब निपट गया होगा ।" लता ने सिर हिलाते हुए कहा ।
"ठीक किया तुमने ?" बज्जू गम्भीर था ।
"बज्जू ।" लता ने खाना शुरू करते हुए कहा--- "काम तभी बढ़िया होता है, जो मन से किया जाए। दबाव में आकर किया गया काम कभी भी ठीक से फलता नहीं । तुम्हें मोना चौधरी चाहिए थी । लो- सामने है तुम्हारे ।"
मोना चौधरी की निगाह बारी-बारी दोनों पर जा रही थी ।
"मोना चौधरी या देवराज चौहान में से किसी एक को लेना मेरी मजबूरी थी । मुझे यही कहा...।"
"बज्जू ।" लता ने फौरन टोका--- "सिर्फ काम की बात करो ।"
"बज्जू संभला। उसने मोना चौधरी को देखा ।
"थाईलैंड से पानी का जहाज (शिप) आ रहा है । तीन-चार दिन की बात है । वो पानी का जहाज देश के दक्षिणी बन्दरगाह पर पहुंचेगा । परन्तु उसमें कुछ ऐसा सामान है, जो हम लेना चाहते हैं। हम चाहते हैं, दक्षिणी बन्दरगाह पर लंगर डालने से पहले ही वो सामान हमारे हाथों में आ जाए ।"
"तुम्हारा मतलब है कि काम चलते जहाज पर किया जाए ?" मोना चौधरी के होंठों से निकला ।
उसने सहमति से सिर हिलाया ।
"असंभव । तुम...।"
"पूरी बात सुनोगी तो संभव लगने लगेगा ।" बज्जू बोला ।
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा । धीरे-धीरे खाना खाती रही ।
बज्जू और लता बातों के बीच खाना खा रहे थे । लता को देखकर लगता था जैसे इन बातों में कोई खास दिलचस्पी न ले रही हो । वो यदा-कदा दोनों के चेहरों पर नजर मार लेती थी ।
"बहुत कम शब्दों में तुम्हें सारी बात बताता हूं ।" बज्जू कहने लगा--- "अजबसिंह ही...।"
"जहाज में समान क्या है ?" मोना चौधरी ने टोका--- "जो तुम लोग लेना चाहते...।"
"ये नहीं बताया जा सकता ।" लता एकाएक कह उठी ।
मोना चौधरी ने लता पर निगाह मारी फिर खाने में व्यस्त हो गई।
"अजबसिंह ही एक ऐसा व्यक्ति है, जिसके पास वो चाबी है कि उसके इशारों पर वो माल कहीं भी उतर सकता है । जहाज में जो लोग उस माल के साथ हैं, वो अजबसिंह की बात फौरन मानेंगे ।" बज्जू ने कहा--- "क्योंकि उस माल को संभालने का जिम्मा अजबसिंह का है । इस काम का चीफ अजब सिंह है ।
"तुमने कहा इस काम का चीफ अजबसिंह है । मतलब कि वो बहुत सारे लोग हैं ।"
बज्जू ने मोना चौधरी की आंखों में देखा फिर सहमति में सिर हिला दिया ।
"हां । वे ज्यादा लोग हैं।"
"संगठित हैं वे लोग । ग्रुप है उनका ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
"हां, अब इस बारे में ज्यादा सवाल मत पूछो ।"
"इतना तो बता दो कि तुम्हारा इन लोगों से क्या लेना-देना है । तुम क्यों इनका माल छीन लेना चाहते हो । तुम अकेले हो या तुम्हारे साथ भी दूसरे लोग हैं ।" मोना चौधरी का लहजा साधारण था ।
"ऐसी बातें पूछकर वक्त बर्बाद मत करो । जो तुमसे वास्ता न रखती हो । काम की बात करो ।" लता ने शांत स्वर में कहा, फिर बज्जू को देखा--- "दोनों सब्जियां आज अच्छी बन गई हैं। खाने में स्वाद आ रहा है।"
"ऐसी बातें पता हों तो, काम का मजा आता है ।" मोना चौधरी ने लता को देखा ।
"ज्यादा मजा लेना ठीक नहीं होता ।" लता के होंठों पर शांत सी मुस्कान उभरी--- "जो काम हम तुमसे कराना चाहते हैं, उस पर ध्यान दो । बाकी बातें देखना-समझना हमारा काम है ।"
मोना चौधरी ने मुस्कुराकर लता को देखा फिर पुनः खाना खाने में व्यस्त हो गई ।
"जहाज में सामान कहां है और उसे कैसे हासिल किया जा सकता है । ये सब अजबसिंह जानता है ।" बज्जू पुनः कह उठा--- "और अजबसिंह कहां है, ये मैं जानता हूं ।"
"क्या कहना चाहते हो ?" मोना चौधरी बोली ।
"मैं तुम्हें अजबसिंह का पता दूंगा । तुम अजब सिंह को अपने काबू में करो । गोली के दम पर ये काम करो या रूप का जाल बिछाकर । काम होना चाहिए ।" बज्जू गम्भीर स्वर में कह उठा--- "अजब सिंह के काबू में आते ही समंदर में जा रहे जहाज पर से वो सामान बाहर निकलवाया जा सकता है ।"
"कैसे ?"
"आगे का रास्ता अजबसिंह आसान कर देगा। अजबसिंह को तुम इस काम की चाबी कह सकती हो ।" लता बोली।
मोना चौधरी नजरें उठाकर लता को देखती रही फिर बोली ।
"मैं ये काम करने से इंकार भी कर सकती हूं ।"
बज्जू और लता की नजरें मिली।
"राधा को अपने कब्जे में करके तुम ये काम दबाव डालकर मुझसे नहीं करा सकते ।" मोना चौधरी के स्वर में तीखापन आता चला गया--- "जो मेहनत मैं तुम लोगों के काम पर करूंगी, वो राधा को तुम लोगों से आजाद करवाने पर लगानी बेहतर होगी ।"
"ठीक कहती हो ।" बज्जू ने शांत स्वर में कहा ।
"हम तुम्हें मजबूर नहीं करेंगे कि ये काम करो ।" लता की आवाज में गम्भीरता आ गई--- "कोई और होता तो जुदा बात थी । तुम जैसी हस्ती पर दबाव डालकर काम नहीं लिया जा सकता । ऐसा किया तो शायद हमें भी नुकसान हो।"
मोना चौधरी ने खाना खाना रोककर लता को देखा।
"मतलब कि मैं यहां से जाना चाहूं तो मुझे रोका नहीं जाएगा ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
"नहीं । बल्कि जहां कहोगी, वहां पहुंचाने का इंतजाम भी कर दिया जाएगा ।" लता ने कहा ।
मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े और वो पुनः खाना खाने में व्यस्त हो गई ।
"राधा तुम लोगों के कब्जे में है । उसका क्या होगा ?"
बज्जू ने दीवार पर लगी घड़ी पर नजर मारी।
"खाना खाकर नीलू महाजन के घर फोन करना।" बज्जू की नजरें मोना चौधरी पर जा टिकी ।
"क्यों ?"
"हर बात पर सवाल नहीं करो । मेरे ख्याल से तुम्हें वहां से राधा के बारे में कुछ सुनने को मिले ।"
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा ।
"अजबसिंह...।" बज्जू ने कहना चाहा।
"कोई बात मत करो ।" मोना चौधरी ने टोका--- "अभी मैं सिर्फ खाना खाना चाहती हूं।"
■■■
खाने के बाद बज्जू ने पुनः बात करनी चाही, परन्तु मोना चौधरी ने यही कहा कि बनारसीदास से बात करने के बाद ही फोन करेगी । नींद लेने का तीनों में से किसी का भी इरादा नहीं लग रहा था ।
मोना चौधरी की सोचें मौजूदा हालातों पर तेजी से दौड़ रही थी ।
वो जानना चाहती थी कि बज्जू कौन है । उससे ये काम क्यों कराना चाहते हैं । परन्तु इस बारे में किसी भी फैसले पर नहीं पहुंच पा रही थी । लता की बातचीत से उसे महसूस हुआ था कि इस मामले में उसकी दखलांदाजी भी पूरी है ।
तब रात के ग्यारह बज रहे थे, जब बज्जू ने कहा ।
"कुछ देर बाद बनारसीदास को फोन कर लेना । शायद प्रियंका पहुंच गई हो या फिर पहुंचने वाली होगी।"
मोना चौधरी बिना कुछ कहे आगे बढ़ी और रिसीवर उठाकर नम्बर मिलाने लगी ।
बज्जू और लता की नजरें मिली ।
मोना चौधरी ने महाजन का नम्बर मिलाया था । कुछ बार बेल होने पर रिसीवर उठाया ।
"हैलो ।"
कानों में पड़ने वाली आवाज महाजन की थी ।
"महाजन ।"
"बेबी तुम ?" उधर से महाजन की आवाज कानों में पड़ी--- "तुम कहां थी । आज दिन में दो बार तुम्हारे घर गया । कई बार फोन...।"
"मैं दिल्ली में नहीं हूं ।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा ।
"ओह । कहां हो ?"
"बिलासपुर-हिमाचल प्रदेश...।" मोना चौधरी के स्वर में सख्ती आ गई--- "राधा का अपहरण हो गया है ?"
पल भर की खामोशी के बाद महाजन की आवाज कानों में पड़ी ।
"तुम्हें कैसे मालूम ?" स्वर में उलझन भरे भाव आ गए थे ।
"बात का जवाब दो ।"
"हां । कल दिन में राधा का घर से अपहरण कर लिया था, कुछ लोगों ने । तब मैं घर नहीं था । वापस आने पर राधा को न पाकर मैंने बहुत ढूंढा । मैं तो उसे नहीं ढूंढ पाया । परन्तु आज शाम को ही कुछ लोग राधा को घर से बाहर छोड़ गए। पूछने पर राधा ने बताया कि उसे उठा ले जाने वाले लोगों ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया था । उसे इज्जत से रखा खाना-पीना वक्त पर दिया गया । उससे कोई भी बात नहीं पूछी गई और शाम को वैन में उसे घर के बाहर छोड़ दिया गया । मुझे तो समझ में नहीं आ रहा कि आखिर राधा का अपहरण क्यों किया...।"
"अब तो तुम्हें या राधा को कोई परेशानी नहीं ?" मोना चौधरी ने टोका।
"नहीं । लेकिन बिलासपुर में होते हुए तुम्हें कैसे मालूम कि राधा का अपहरण कर लिया गया है ।"
"इस बारे में फिर बात करना ।"
"पास में कोई है ?" दूसरी तरफ से महाजन ने पूछा ।
"हां ।"
"क्या वो ही लोग, जिनका राधा के अपहरण में हाथ है ?"
आखिर, महाजन ने असल बात पकड़ ही ली थी ।
"ठीक समझे ।"
"मामला क्या है ?"
"अभी मालूम नहीं । तुम फोन पर ही रहना । राधा के बारे में निश्चिंत रहो । अब उसका अपहरण नहीं होगा ।"
"कहीं ऐसा तो नहीं कि राधा का अपहरण करके तुम्हें किसी काम के लिए ब्लैकमेल किया जा रहा...।"
"राधा का अपहरण करके मुझे ये समझाया गया है कि इनके हाथ बहुत लम्बे हैं । ये बहुत कुछ कर सकते हैं ।" मोना चौधरी ने शांत बैठे बज्जू और लता पर नजर मारी--- "मुझे अपनी ताकत का एहसास करा रहे हैं।"
बज्जू और लता के नजरें मिली । कहां कुछ नहीं ।
"तुम कैद में हो ?" महाजन का भिंचा स्वर मोना चौधरी के कानों में पड़ा ।
"नहीं ।"
"मतलब कि उन्हीं लोगों के बीच हो ?"
"हां । लेकिन दोस्ताना माहौल नहीं है । बातचीत जारी है । तुम फोन पर रहना । बाद में फोन करूंगी । कहने के साथ ही मोना चौधरी ने रिसीवर रखा और दोनों को देखा--- "राधा का अपहरण करने के बाद उसे छोड़ा क्यों गया ?"
बज्जू कुछ कहने लगा कि लता बोली ।
"पहले हमारा इरादा, राधा को कैद में रखकर, तुम पर दबाव डालकर तुमसे काम लेने का था । लेकिन बाद में हमने अपना विचार ये सोचकर बदल दिया कि दबाव डालकर काम लेना ठीक नहीं होगा । महाजन के घर के बारे में हमें बाद में पता चला। पहले पता चल गया होता तो प्रियंका और बनारसीदास को इस्तेमाल न करते । राधा को दिल्ली में ही अपने कब्जे में करके, तुम्हें यहां बुला सकते थे । अब राधा भी आजाद है और प्रियंका भी । तुम पर किसी तरह का दबाव नहीं है । हमारा काम करने के लिए तुम हमसे कैसी भी सौदेबाजी कर सकती हो।"
"अभी कोई बात नहीं होगी ।" मोना चौधरी ने शब्दों में चबाकर कहा--- "प्रियंका के बारे में तसल्ली कर लूं । तब बात करेंगे ।"
बारह बजे के बाद मोना चौधरी ने बनारसी दास को फोन किया ।
बनारसी दास ने बताया कि आधा घंटा पहले प्रियंका उसके पास पहुंच गई है । वो मोना चौधरी को धन्यवाद-शुक्रिया अदा करने की कोशिश में था कि मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया ।
बज्जू के होंठों पर मुस्कान उभर आई ।
"तुम्हारी तसल्ली हो गई होगी । अब हम बात कर सकते हैं । मोना चौधरी ?" बज्जू कह उठा ।
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