"ओफ्फो—अब ये क्या उठा लिया आपने?"
"जुदाई'।"
अमिता का दिल धक्क से रह गया—जाने क्यों मुंह से कम्पित स्वर निकाला—"'ज-जुदाई'।"
"हां भई—।" तोताराम ने हल्की-सी मुस्कान के साथ सामान्य स्वर में कहा—"मैं प्रेम बाजपेयी का बहुत पुराना पाठक हूं—और ''जुदाई'' बाजपेयी की लेटेस्ट रचना है, जिसे मनोज पॉकेट बुक्स ने प्रकाशित किया है।''
"वह तो मैं जानती हूं, लेकिन आप पिछले तीन दिन से लगातार इसे अपने साथ चिपकाए फिर रहे हैं, ऐसा इसमें क्या है?"
धीमे से हंसते हुए तोताराम ने जवाब दिया—"तुम नहीं समझोगी।"
"क्या मतलब?"
"तुम उपन्यास नहीं पढ़ती हो ना, इसीलिए तुम्हें उपन्यास की कशिश का अन्दाजा भी नहीं है—मैं तभी से बाजपेयी का पाठक हूं जब विधायक नहीं था—तब मेरे पास काफी समय होता था—बाजपेयी का कोई भी उपन्यास प्रकाशित होते ही उसे एक ही बैठक में पढ़ जाना मेरे लिए खाना खाने से भी ज्यादा जरूरी होता था—इच्छा तो अब भी यही होती है, लेकिन क्या करूं—इतना समय ही नहीं मिलता—विधायक हूं न—पिछले तीन दिन से चौबीस घण्टे मेरे साथ है—खाली समय मिलते ही पढ़ना शुरू कर देता हूं—अब भी पचास पेज बाकी रह गए हैं।"
"अब आप सम्राट में मेरे साथ डिनर लेने चल रहे हैं या इस कलमुही ''जुदाई'' के बाकी पचास पेज पढ़ने—?"
तोताराम ने हंसते हुए ही जवाब दिया—"तुमने तो तिल का पहाड़ बना दिया—मैं तुम्हारे साथ डिनर लेने ही जा रहा हूं।"
"मैं तुमसे बात करती रहूंगी और तुम इसमें डूबे रहना।"
"ऐसा नहीं होगा—मैं सिर्फ खाली समय में ही इसे पढूंगा—चलें?"
"चलते हैं—मैं जरा अपने कमरे से अपना पर्स लेकर आती हूं।" कहने के बाद बुरा-सा मुंह बनाती हुई अमिता मुड़ी और तेज कदमों के साथ अपने कमरे की तरफ बढ़ गई—उसी पीठ देखता हुआ तोताराम होंठों-ही-होंठों में बुदबुदाया—"मैं जानता हूं अमिता कि तू किस हद तक गिर सकती है और यदि तू उस हद तक गिरी तो मनोज पॉकेट बुक्स से निकली प्रेम बाजपेयी की यह लेटेस्ट रचना ही तेरे लिए फांसी का फन्दा बन जाएगी—''जुदाई''—सारी दुनिया के सामने तुझे नग्न कर देगी।"
¶¶
वह तोताराम राजनगर के कैंट क्षेत्र से विधानसभा में विपक्ष का विधायक था, जो कि सम्राट होटल के हॉल में अभी-अभी अपनी बीवी के साथ प्रविष्ट हुआ था—लम्बे-चौड़े हॉल में तीव्र प्रकाश था—अधिकांश सीटें भरी हुई थीं—कुछ रिक्त भी थीं। उन्हीं में से एक तरफ वह जोड़ा बढ़ गया।
अमिता के गोरे-सुडौल और तराशे गए बदन पर कीमती साड़ी थी, जबकि तोताराम खद्दर का कलफ लगा सफेद चिट्ठा कुर्ता-पायजामा पहने था—उसके दाएं हाथ में अब भी 'जुदा' थीं—सीट पर बैठने के कुछ देर बाद ही वेटर आ गया।
तोताराम ने कहा—"अपनी पसन्द का आर्डर दे दो, अमिता।"
"अभी नहीं—।" अमिता ने अपना श्रृंगार से पुता चेहरा वेटर की तरफ उठाकर कहा—"पहले हम एक राउण्ड डांस करेंगे—उसके बाद डिनर लेंगे।"
जब वेटर 'जैसी इच्छा' कहकर चला गया, तब तोताराम ने कहा—"डांस और मैं—?"
"क्यों—क्या हुआ?" अमिता ने आंखें निकालीं।
"मैं भला डांस कैसे कर सकता हूं?"
"क्यों नहीं कर सकते?"
चारों तरफ देखते हुए तोताराम ने कहा—"यहां बहुत से ऐसे लोग बैठे हैं, जो मुझे जानते हैं—वे देखेंगे तो क्या कहेंगे?"
"क्या कहेंगे, अपनी बीवी के साथ डांस करना क्या जुर्म है?"
"ओफ्फो—तुम समझती क्यों नहीं, अमिता—मैं इस शहर का विधायक हूं—मेरा यूं तुम्हारे साथ फ्लोर पर जाकर डांस करना अच्छा नहीं लगता—किसी ने फोटो खिंचवाकर अखबार में छपवा दिया तो जबरदस्ती सरदर्द करने वाला स्कैण्डल खड़ा हो जाएगा।"
"तो फिर मैं यहां क्या आपका मुंह देखने आई हूं?" अमिता भड़क उठी।
"अरे!—नाराज क्यों होती हो?"
"नहीं तो क्या खुश होऊं?" अमिता बिफर पड़ी—"मुझे नहीं लेना ऐसा डिनर—आप ही बैठो यहां—मैं चली।"
"अरे-रे कहां जाती हो?" तोताराम बौखला गया।
अमिता गुर्रा-सी उठी—"मैं तो आपसे शादी करके पछताई—यदि मुझे पता होता कि विधायक से शादी करके अपने सारे अरमानों का खून करना पड़ता है तो ये शादी कभी न करती।"
"अमिता!"
"मैं जा रही हूं।" कहने के साथ ही एक झटके से अमिता उठ खड़ी हुई।
तोताराम ने जल्दी से उसका हाथ पकड़कर दबे स्वर में कहा—"ठ-ठहरो अमिता, बैठो—मैं वैसा ही करुंगा बाबा, जैसा तुम कहती हो, लेकिन भगवान के लिए बैठ जाओ।"
गुस्से में भुनभुनाती हुई-सी अमिता बैठ गई—तोताराम उसके उखड़े हुए मूड को सामान्य करने की चेष्टा करने लगा—कम-से-कम इस हॉल में वह तमाशा बनना नहीं चाहता था।
दस मिनट के अन्दर तोताराम ने अमिता का मूड फ्रैश कर दिया था—अचानकर अमिता ने कुर्सी से उठते हुए कहा—"मैं अभी टॉयलेट से होकर आती हूं।"
तोताराम ने गर्दन हिलाकर स्वीकृति दी।
अमिता टॉयलेट की तरफ बढ़ गई, जबकि मौका मिलते ही तोताराम ने ''जुदाई'' खोल ली और पढ़ने लगा—टॉयलेट की तरफ बढ़ती हुई अमिता के कदमों में जाने क्यों हल्की-सी लड़खड़ाहट थी—हॉल के एयरकंडीशन्ड होने के बावजूद मेकअप से पुते चेहरे पर पसीने की नन्हीं-नन्हीं बूंदें उभर आईं—टॉयलेट के समीप पहुंचकर उसने कनखियों से तोताराम की तरफ देखा—वह किताब में डूबा हुआ था—अमिता फुर्ती के साथ एक केबिन में घुस गई।
किसी मर्द ने उससे पूछा—"क्या रहा?"
"मैंने उसे डांस के लिए तैयार कर लिया है।"
"गुड।" मर्द ने कहा—"अब तुम सिर्फ अपने होंठों पर यह लगा लो।"
अमिता ने अपने सामने फैली मर्द की हथेली देखी—हथेली पर एक छोटी-सी डिबिया रखी थी—डिबिया में मरहम जैसा कोई पदार्थ था—उसी पदार्थ पर दृष्टि टिकाए अमिता ने थोड़े भयभीत स्वर में कहा—"म-मुझे डर लग रहा है, दीवान।"
"डर—डरने की क्या बात है?"
"पता नहीं क्यों—ऐसा लगता है जैसे कि उसे मुझ पर शक हो गया है।"
"यह तुम्हारे मन का वहम है और यदि इसे सच मान भी लिया जाए तो क्या फर्क पड़ता है—उस बेचारे की जिन्दगी अब है ही कितनी देर की?—इस हॉल से उसकी लाश ही निकलेगी।"
"यदि किसी को पता लग गया कि उसका कत्ल हमने किया है तो—?"
"तुम तो बेकार ही डर रही हो—किसी को पता नहीं लगेगा—हमारा तरीका ही ऐसा है—जल्दी करो—देर होने पर वह चौंक सकता है—बस, फ्लोर पर डांस करते समय तुम्हें सिर्फ उसके सीने पर एक प्यारा-सा चुम्बन लेना है—वही चुम्बन उसके लिए मौत साबित होगा।"
अमिता ने डिबिया से थोड़ा-सा मरहम लेकर लिपस्टिक से पुते अपने होंठों पर ठीक इस तरह लगा लिया जैसे लिपस्टिक लगाई जाती है—अब उस मरहम और लिपस्टिक का मिश्रण उसके होंठों पर लगा हुआ था।
"अब तुम जाओ।" दीवान नामक व्यक्ति ने डिबिया बन्द करने के बाद अपनी जेब में डालते हुए कहा—"अब—जब हम मिलेंगे तो हमारे बीच तोताराम नाम की दीवार नहीं होगी अमिता।"
"पहले ये तो देखो कि वह क्या कर रहा है?—यदि वह संयोग से इधर की देख रहा हुआ और मुझे इस केबिन से निकलते देख लिया तो...।"
इस बीच दीवान ने धीरे-से केबिन का पर्दा सरकाकर हॉल में झांका और फिर अमिता ने मुखातिब होकर बोला—"वह कोई किताब पढ़ रहा है।"
अमिता को जैसे एकदम कुछ याद आया—"अरे हां, एक बात और कहनी है, दीवान?"
"क्या?"
"वह प्रेम बाजपेयी की ''जुदाई'' नामक किताब पढ़ रहा है।"
"फिर?"
"इस उपन्यास को वह पिछले तीन दिन से लगातार अपने साथ चिपकाए हुए है—जैसे वह उसकी सबसे प्यारी चीज हो।"
"अच्छी किताब होगी।"
"ओफ्फो—तुम समझ नहीं रहे हो, दीवान।"
"क्या समझाना चाहती हो?"
"मुझे लगता है कि उस उपन्यास के पीछे जरूर कोई रहस्य है।"
दीवान ने चकित स्वर में पूछा—"किताब के पीछे क्या रहस्य हो सकता है!"
"यही तो मैं नहीं समझ पा रही हूं, मगर पिछले तीन दिन से ''जुदाई'' को उसका यूं अपने साथ चिपकाए रखना मुझे अजीब-सा लग रहा है—मुझे सन्देह-सा हो रहा है।"
"किस बात का संदेह?"
"यही तो मैं नहीं जानती, लेकिन उसका ''जुदाई'' को हर क्षण साथ लिए फिरना...।"
दीवान ने हल्की-सी आवाज के साथ कहा—"मैं बताऊं वह ''जुदाई'' को अपने साथ क्यों लिए फिर रहा है?"
"क-क्या तुम जानते हो?—हां-हां—बताओ...।"
"क्योंकि कुछ ही देर बाद इस दुनिया से खुद उसी की 'जुदाई' होने वाली है।"
"मजाक मत करो, दीवान—प्लीज, सीरियसली सोचो कि ऐसा क्या उस उपन्यास में क्या है, जिसकी वजह से वह उसे एक मिनट के लिए भी खुद से जुदा नहीं कर रहा है?"
"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, अमिता—साधारण-सी बात भी तुम्हें सिर्फ इसलिए अजीब-सी लग रही है, क्योंकि कुछ ही देर बाद तुम उसे मौत का एक चुम्बन देने वाली हो—ये उपन्यास पढ़ने वाले लोग बड़े चस्की होते हैं—उपन्यास का पीछा तब तक नहीं छोड़ते, जब तक पूरा न पढ़ लें।"
अमिता संतुष्ट न हो सकी।
जबकि दीवान ने कहा—"काफी देर हो गई है—अब तुम जाओ।"
¶¶
फ्लोर पर तोताराम को बांहों में लिए अमिता थिरकती रही—अमिता रह-रहकर उससे लिपट जाती थी, जबकि तोताराम थोड़ा झिझक रहा था—तोताराम को फ्लोर पर देखकर एक अखबार के संवाददाता ने फ्लोर का दृश्य अपने कैमरे में कैद कर लिया—यह देखते ही तोताराम ने अमिता को अपने से अलग किया।
वह तेजी से गले में कैमरा लटकाए संवाददाता की तरफ लपका। अभी उसने फ्लोर से नीचे कदम रखा ही था कि—एकदम हॉल की सभी लाइटें ऑफ हो गईं।
अंधेरा छा गया—घुप्प अन्धेरा।
या तो सारे शहर की ही लाइट चली गई थी या किसी ने होटल का मेन स्विच ऑफ कर दिया था—हॉल में मौजूद सभी लोगों के साथ-साथ तोताराम की आंखों के सामने भी घने अंधेरे के कारण हरे-हरे दायरे चकरा उठे—वह ठिठक-सा गया।
पहले पल तो अचानक ही अन्धेरा हो जाने के कारण सारे हॉल में सन्नाटा-सा छा गया—फिर अजीब-सी गहमागहमी उभरी—जब हॉल में अन्धेरा छाए एक मिनट हो गया तो आवाजें गूंजने लगीं—सिसकारियां भी उभरीं—कदाचित् कुछ जोड़ों ने अन्धेरे का लाभ उठाने की ठान ली थी—किसी मनचले ने जोर से सीटी भी बजा दी।
समय गुजरने के साथ ही वातावरण में हंगामा होता जा रहा था कि—धांय—।
अंधेरे में कोई रिवॉल्वर गर्जा—एक शोला लपका।
हॉल के वातावरण में किसी नारी की दर्दनाक चीख गूंज उठी—यह चीख यकीनन अमिता की थी—इस चीख के बाद तो हॉल में जैसे हाहाकार मच गया—डरी और सहमी हुई-सी बहुत-सी चीखें गूंजने लगीं—लोग अपने-अपने स्थान छोड़कर इधर-उधर भागने लगे।
अंधेरे में एक-दूसरे से टकराते, चीखते, गिरते, उठकर पुनः भागते—फायर की आवाज ने वहां आतंक फैला दिया था।
कोई घबराए हुए स्वर में चीख पड़ा—"यहां कत्ल हो गया है—लाइट ऑन करो।"
तभी—धांय—।
दूसरा फायर।
इस बार हॉल तोताराम की चीख से झनझना उठा।
भगदड़ मच गई—आतंक फैल गया।
फिर—अचानक ही सारा हॉल पहले की तरह चकाचौंध कर देने वाली रोशनी से भर गया—लोग जहां-के-तहां रुक गए—आंखें चुधिया गईं—होटल का मैंनेजर चीख पड़ा—"पुलिस के आने से पहले कोई भी व्यक्ति हॉल से बाहर न निकले।"
चेहरे पीले पड़ गए—आतंक पुता पड़ा था उन पर।
हर दृष्टि हटकर फर्श पर पड़े तोताराम के लहूलुहान जिस्म पर चिपक गई—तोताराम के जिस्म को लाश इसीलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अभी तक जिस्म में थोड़ी हरकत थी।
गोली उसके पेट में लगी थी।
दोनों हाथों से अपना पेट दबाए तोताराम उठ खड़ा हुआ—उसके सफेद कपड़े बुरी तरह खून से रंग चुके थे—उसके चेहरे पर असीम पीड़ा के भाव थे—सारा शरीर बुरी तरह कांप रहा था—कुछ कहने के लिए उसने मुंह खोला—मुंह के अन्दर से ढेर सारा खून उबल पड़ा।
देखने वालों की चीखें निकल गईं, किन्तु किसी ने आगे बढ़कर तोताराम को सहारा देने का साहस न किया—ऐसे अवसरों पर कौन रिस्क लेता है—सभी जानते हैं कि ऐसी बेवकूफी करने पर व्यक्ति पुलिस की चक्करदार प्रक्रिया में उलझ जाता है।
सभी मूक दर्शक बने असीमित दर्द से छटपटाते तोताराम को देखते रहे—हां, आगे बढ़कर संवाददाता ने इस दृश्य का फोटो जरूर ले लिया।
पेट को दबाए तोताराम लड़खड़ाता हुआ अपनी सीट की तरफ बढ़ा—दर्द में डूबी उसकी आंखें मेज पर रखी ''जुदाई'' पर गड़ी हुई थीं—हर पल, वह कुछ बोलने की भरपूर चेष्टा कर रहा था, किन्तु मुंह से घुटी-घुटी चीखों के अलावा एक भी स्पष्ट शब्द नहीं निकला।
संवाददाता अब लगातार उसके फोटो ले रहा था।
तोताराम अपनी सीट के करीब पहुंचकर लड़खड़ाया—बड़ी मुश्किल से उसने मेज पकड़कर स्वयं को गिरने से रोका—खून से सना दायां हाथ बढ़ाकर मेज पर रखी ''जुदाई'' उठा ली—किताब का आवरण खून से लथपथ हो गया—उस किताब को हाथ में लिए तोताराम घूमा—किताब वाला हाथ उसने ऊपर उठा लिया—कुछ कहने के लिए पुनः मुंह खोला—संवाददाता के कैमरे का फ्लैश चमका।
तोताराम के कंठ से अन्तिम हिचकी निकली—उसका शरीर लाश बनकर फर्श पर लुढ़कता चला गया—खून में डूबी 'जुदाई' एक तरफ पड़ी रह गई—बैक पर छपे प्रेम बाजपेयी के चित्र पर भी कई जगह खून के धब्बे लग गए थे।
¶¶
विजय के गोरे-चिट्टे एवं गठे हुए जिस्म पर इस वक्त सिर्फ एक अण्डरवियर था—लाल रंग का चुस्त अंडरवियर—शेष सारे जिस्म पर आवश्यकता से अधिक तेल मला हुआ था—तेल लगे जिस्म पर फिसल रहा था ढेर सारा पसीना।
फिसलता भी क्यों नहीं?
किसी ऐसी व्यक्ति का पसीने से तर-बतर हो जाना स्वाभाविक ही है जो कि पिछले दो घण्टे से अपने कमरे की दीवार को सरकाने की चेष्टा कर रहा हो—वह बुरी तरह हांफ रहा था—दोनों हथेलियां दीवार पर टेककर उसने एक बार फिर इस तरह ताकत लगाई, जैसे कोई धक्के से स्टार्ट होने वाली कार को धक्का लगा रहा हो, परन्तु दीवार टस से मस न हुई।
"धत् तेरे की।" कहने के साथ ही उसने अपने माथे से पसीने पौंछा और हाथ झटकता हुआ बोला—"इस दुनिया में तुम कुछ नहीं कर सकते, विजय दी ग्रेट।"
एकाएक कमरे के बाहर से आवाज उभरी—"विजय—विजय—।"
"हांय—ये तो अपने तुलाराशि की आवाज है।" विजय एकदम पछाड़-सी खा गया और फिर बड़ी तेजी से वह फर्श पर दीवार के सहारे उल्टा खड़ा हो गया—सिर नीचे—पैर ऊपर—चेहरा दीवार की तरफ किए वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा—"जल तू जलाल तू—आई बला को टाल तू—जल तू जलाल तू—आई बला को टाल तू।"
उसे देखते ही सुपर रघुनाथ दरवाजे पर ठिठक गया—मुंह से स्वयं ही यह वाक्य निकल गया—"अरे—ये तुम क्या कर रहे हो, विजय?"
विजय अपनी ही धुन में कहता चला गया—"जल तू जलाल तू—आई बला को टाल तू।"
"विजय।" रघुनाथ ने पुनः पुकारा।
"जल तू जलाल तू—आई बला को टाल तू।"
"ओफ्फो—तुम अपनी इन ऊट-पटांग हरकतों से कभी बाज नहीं आओगे।" कहने के साथ ही रघुनाथ लम्बे-लम्बे कदमों के साथ कमरे में दाखिल हो गया—वह उस वक्त अपनी सम्पूर्ण यूनीफॉर्म में था—भारी जूतों की ठक-ठक ठीक विजय के समीप जाकर रुकी—विजय अब बाकायदा हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा था—रघुनाथ ने एक बार पुनः उसे पुकारा, परन्तु जब इस बार भी विजय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसने उसके दोनों पैर पकड़कर जोर से झटका दिया।
चित्त अवस्था में फर्श पर पड़ा वह आंखें बन्द किए बुदबुदा रहा था—"हनुमान जब नाम सुनावे—भूत-पिशाच निकट नहीं आवे।"
"ओफ्फो—।" रघुनाथ झुंझलाहट भरे स्वर में चीख पड़ा—"विजय।"
विजय ने पट्ट से आंखें खोल दीं—रघुनाथ पर दृष्टि पड़ते ही वह एकदम उछल पड़ा और चीखा—"भ-भूत—भूत—भूत पिशाच निकट नहीं आवे—हनुमान जब नाम सुनावे।"
हनुमान चालीसा का पाठ करता हुआ वह सारे कमरे में दौड़ा फिर रहा था—दृष्टि हर क्षण रघुनाथ पर थी—आंखों में ऐसे भाव थे जैसे रघुनाथ को वह सचमुच भूत समझ रहा हो, रघुनाथ अपने स्थान पर जड़वत्-सा खड़ा रह गया—बड़ी अजीब-सी स्थिति थी उसकी—वह पागलों की-सी अवस्था में चीख पड़ा—"उफ्फ—ये मैं हूं विजय—रघुनाथ।"
"हांय—।" कहकर विजय एकदम रुक गया—जैसे बहुत तेज चलती हुई गाड़ी में अचानक ही ब्रेक लगा दिए गए हों—वह ऊंट की तरह गर्दन उठाकर बोला—"प-प्यारे तुलाराशि—ये तुम हो—ओफ्फो, तुमने क्यों नहीं बताया, हम तो समझे थे कि...।"
"ये अपनी मूर्खतापूर्ण हरकतें तुम कब छोड़ोगे विजय?" रघुनाथ ने उसकी बात बीच ही में काटकर कहा—"वहां दीवार के सहारे उलटे खड़े तुम क्या कर रहे थे?"
विजय उछलकर सीधा सोफे पर जा गिरा और फिर इस बात की परवाह किए बिना वह पालथी मारकर बैठे गया कि उसके जिस्म पर लगे तेल से सोफा खराब भी हो सकता था, बोला—"दीवार की जड़ में झांककर देख रहे थे प्यारे कि दीवार साली इंच-दो इंच हटी भी है कि नहीं?"
"दीवार हटी है?" रघुनाथ की बुद्धि चकरा गई।
"हां प्यारे—मगर गर्दिश में हैं तारे—एक ही जगह इकट्ठे हो गए हैं सारे।"
आगे बढ़कर रघुनाथ उसके सामने वाले सोफे पर बैठता हुआ बोला—"दीवार भला कैसे हट सकती है?"
"वाह—क्यों नहीं हट सकती?" विजय एकदम किसी झगड़ालू औरत के समान हाथ नचाकर बोला—"कहते हैं कि दुनिया में एक भी काम
ऐसा नहीं है, जिसे इंसान न कर सके—तुम हमारी ये ऊबड़-खाबड़ हालत देखकर समझ ही गए होंगे कि हम दीवार को अपनी जगह से सरकाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि लोग साले गलत कहते हैं—दीवार टस-से-मस नहीं हुई।"
रघुनाथ को लगा कि विजय का दिमाग उस वक्त खाली था और यदि उसने सावधानी से काम न लिया तो विजय उसे लम्बे समय तक बोर कर सकता है, अत: उसने जल्दी से कहा—"मैं तुम्हारे पास एक बहुत ही जरूरी काम से आया हूं, विजय।"
विजय ने एकदम धूनी रमाकर समाधि में लीन किसी साधू की-सी मुद्रा बना ली और आंखें बन्द करके बोला—"हम जानते हैं, बच्चा।"
"त-तुम जानते हो?" रघुनाथ चौंक पड़ा—"म-मगर क्या?"
"कल रात एक विधायक की हत्या हो गई है।"
"हैं—!" रघुनाथ सचमुच उछल ही पड़ा—"त-तुम्हें कैसे मालूम?"
आंखें बन्द किए विजय उसी मुद्रा में कहता चला गया—"हम अन्तर्यामी हैं, बच्चा—तुम्हें उस विधायक के कातिल की तलाश है—आज सुबह-सुबह तुम पर हमारे बापूजान की झाड़ पड़ी है—उन्होंने अल्टीमेटम दे दिया है कि अगर तुमने जल्दी-से-जल्दी विधायक तोताराम के हत्यारे को ससुराल नहीं पहुंचाया तो तुम्हारे कान आंखों की जगह और आंखें कानों की जगह लगा दी जाएंगी—जरा सोचो तुलाराशि, कितने हैंडसम लगोगे तुम?"
"विजय।"
रघुनाथ कुछ कहना ही चाहता था कि विजय ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया, बोला—"जनता ने सम्बन्धित थाने का घेराव किया—ईंट-पत्थर चलाए—तुम्हारी नाक में दम हो गया।"
"य-यह सब तुम्हें कैसे मालूम!" रघुनाथ सचमुच हैरत में पड़ गया।
विजय ने आंखें खोलीं और फिर उसे चिढ़ाने वाले अन्दाज में बोला—"हमें हैरत इस बात की है प्यारे तुलाराशि कि तुम्हें पुलिस सुपरिंटेंडेण्ट किस बेवकूफ ने बना दिया?"
"क्या मतलब?"
"हम तुम्हें इसीलिए सुपर-इडियट कहा करते हैं।"
"तुम मेरा अपमान कर रहे हो, विजय।"
"अबे अपमान नहीं करूं तो क्या तुम्हें सिर पर बैठा कर भंगड़ा करूं?" विजय ने आंखें निकालीं—"कोई छोटा-सा मोटा इंस्पेक्टर भी इस कमरे में घुसते ही जान सकता है कि ये सब बातें मुझे कैसे पता लगीं, लेकिन एक तुम हो—बन गए पुलिस सुपरिंटेंण्डेण्ट—अकल के नाम पर दिवालिए।"
"कमरे में घुसते ही भला कोई कैसे जान सकता है कि...।"
"जरा ध्यान से हमारे कमरे की खूबसूरती को देखो।"
असमंजस में पड़ा रघुनाथ सचमुच सारे कमरे को और कमरे में रखीं वस्तुओं को ध्यान से देखने लगा—अन्त में उसकी दृष्टि सोफों के बीच पड़ी सेण्टर टेबल पर रखे अखबार पर स्थिर हो गई—बोला—"ओह—तोताराम की हत्या का समाचार शायद अखबार में छपा है?"
"सीधी-सी बात है—जब विधायक मरेगा तो समाचार जरूर छपेगा।"
"म-मगर मैं क्या जानता था कि तुमने अखबार पढ़ लिया है?"
"कमरे में घुसते ही यदि तुमने मेज पर अस्त-व्यस्त पड़े अखबार को ध्यान से देखा होता तो समझ गए होते कि मैं अखबार पढ़ चुका हूं। उसी में लिखा है कि हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग के साथ जनता ने थाने का घेराव करके पथराव किया।”
“ ये तो अखबार में कहीं भी नहीं छपा होगा कि सुबह-सुबह ठाकुर साहब ने मुझे झाड़ पिलाई।"
"अखबार में नहीं मेरी जान—वह तुम्हारे चेहरे पर छपा है।"
"क्या मतलब?"
"शहर के बच्चे-बच्चे की तरह हम भी कम-से-कम यह तो जानते ही हैं कि तोताराम विधानसभा में जिस पार्टी की तरफ से विधायक था, वह पार्टी इस वक्त विपक्ष में है और सत्तारूढ़ पार्टी की नाक में दम करने के लिए किसी भी इशू की विपक्ष को तलाश रहती है—उनके विधायक का कत्ल हो गया है—इससे अच्छा इशू उन्हें कहां मिलेगा—थाने पर जान-बूझकर पथराव किया गया—सारे शहर में अब जगह-जगह शोक सभाएं होंगी—सरकार की कार्य-कुशलता पर उंगलियां उठेंगी—इस हत्या को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जाएगी—इसीलिए सरकार ने पुलिस पर दबाव डाला होगा कि तोताराम का हत्यारा जल्दी-से-जल्दी पिंजरे में पहुंचना चाहिए—वही दबाव झाड़ के रूप में हमारे बापूजान के मुंह से तुम तक पहुंचा है।"
"तुम बिल्कुल ठीक समझ रहे हो, विजय।"
"अखबार में छपी घटना के बाद जब तुम यहां आए तो हम समझ गए कि यहां क्यों आए हो?"
"मुझे तुम्हारी समझदारी पर फख्र है, विजय।"
"जिस तरह आए हो, प्यारे, उसी तरह लौट भी जाओ।"
"क्यों विजय?"
"अबे ये कोई बात हुई, साली।" विजय एकदम से भड़क उठा—"तुम काहे के सुपरिंटेंडेण्ट हो—कहीं कत्ल होता है तो पकड़ेगा विजय—कहीं साली कोई जेब भी कट जाती है तो तुम सिर के बल सीधे यहां चले आते हो—आज तक खुद तुमने कहीं कोई केस भी हल नहीं किया है—बने फिरते हो सुपरिंटेंडेण्ट—हुंह—अबे शर्म आनी चाहिए तुम्हें—पुलिस के नाम पर धब्बा हो तुम।"
"विजय!"
"फूटो प्यारे। मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता—केस खुद हल करो।"
"प-प्लीज विजय।" रघुनाथ ने बटरिंग की—"तुम तो यार बड़े अच्छे हो—बस, इस केस में मदद कर दो—वादा करता हूं—फिर कभी तुम्हारे पास नहीं आऊंगा।"
"देखो प्यारे—।"
"प-प्लीज विजय।" रघुनाथ याचना-सी कर उठा।
"धत्—धत्—धत्—।" जल्दी-जल्दी कहने के साथ ही विजय ने तीन बार अपना हाथ मस्तक पर मारा और फिर बोला—"जमाने धत् तेरे की।"
रघुनाथ धीमे-से मुस्करा उठा, जबकि विजय अपना माथा पकड़े—आंखें बन्द किए बैठा रहा—उसने चेहरे पर ऐसे भाव एकत्रित कर लिए थे, जैसे किसी की मृत्यु पर मातम मना रहा हो—जब विजय ने काफी देर तक भी अपनी मुद्रा न तोड़ी तो रघुनाथ कह उठा—"क्या हुआ विजय—तुमने अपनी ये मातमी सूरत क्यों बना ली?"
"तुम सूरत को छोड़ो प्यारे, अपनी राम कहानी सुनाओ।"
रघुनाथ ने ठंडी सांस ली—उसके ख्याल से विजय काफी जल्दी लाइन पर आ गया था—वह जानता था कि अगर विजय को पुनः मौका दिया गया तो वह पुनः बकवास करने लगेगा और उसी बोरियत से बचने के लिए रघुनाथ ने जल्दी से कहा—"तोताराम अपनी बीवी के साथ डिनर के लिए सम्राट में गया था—वहां उसने बीवी के साथ डांस...।"
"वह सब कुछ हम अखबार में पढ़ चुके हैं, प्यारे।" विजय ने टोका—"तुम सिर्फ यह बताओ कि तुम्हारे वहां पहुंचने के बाद क्या हुआ—वहां मौजूद लोगों ने किस तरह के बयान दिए—और अब तुम्हें हत्यारे तक पहुंचने में क्या दिक्कत है?"
"सम्राट होटल के मैंनेजर ने फोन से कोतवाली में वारदात की सूचना दी थी—उस वक्त मैं भी वहीं था, अतः सूचना मिलते ही मैं खुद भी रवाना हो गया—जब मैं वहां पहुंचा तब हॉल का दरवाजा मैंनेजर ने खोला—पुलिस दल के साथ मैं अन्दर पहुंच गया, वहां गहरा सन्नाटा था—सभी सहमे हुए से चेहरों पर आतंक लिए जहां के तहां खड़े थे—अमिता की लाश फ्लोर के समीप पड़ी थी, जबकि तोताराम की लाश उसकी सीट के समीप—।"
"'जुदाई'—कहां थी?"
"हां—मैं जानता हूं कि अखबार वालों ने बाजपेयी की इस किताब के बारे में विशेष रूप से छापा है—मरने से पहले जब उसने किताब वाला हाथ ऊपर उठाया था—बारूद नामक अखबार में वह फोटो भी छपा है।"
"हमने यह पूछा था प्यारे कि वह किताब कहां थी?"
"लाश के हाथ में।"
"ओह—बाजपेयी का बड़ा तगड़ा पाठक था—मरता हुआ भी...।"
"नहीं विजय—मेरे ख्याल से तो तोताराम के साथ वह किताब सिर्फ इसलिए नहीं थी कि तोताराम बाजपेयी का पाठक था—पाठक चाहे जितना जबरदस्त हो, लेकिन जब मौत दो कदम दूर खड़ी हो तो किसी को उपन्यास पढ़ने का इतना महत्व देने और अंतिम समय पर किताब को उठाकर कुछ कहने की कोशिश करने के पीछे जरूर कोई रहस्य है?"
"क्या रहस्य है?"
"क-कुछ भी हो सकता है।" रघुनाथ एकदम गड़बड़ा गया, किन्तु शीघ्र ही स्वयं को सम्भालकर बोला—"शायद तोताराम उस किताब के जरिए कुछ कहना चाहता था?"
"खैर—वह किताब कहां है?"
रघुनाथ ने जेब से किताब निकालकर मेज पर डाल दी—विजय ने थोड़ा-सा झुककर किताब उठाई—आवरण पृष्ठ के सिरों पर भी खून लगा था—विजय ने किताब खोली—भीतरी पृष्ठ साफ थे, यानी यदि कोई उपन्यास पढ़ना चाहे तो आराम से पढ़ा जा सकता था—विजय बीच-बीच में से उसके पृष्ठ उलटकर देखने लगा, जबकि रघुनाथ कह रहा था—"मुझे लगता है कि इस किताब के जरिए तोताराम निश्चित रूप से कुछ कहना चाहता था, इसीलिए मैंने बड़ी बारीकी से इसका एक-एक पृष्ठ उलटकर देखा, मगर कहीं भी तोताराम ने कुछ नहीं लिखा है, पता नहीं वह इस किताब को इतना महत्व देकर किस रूप में क्या कहना चाहता था...?"
"तुमने किताब पूरी पढ़ी है, प्यारे?"
"नहीं।"
"मुमकिन है कि पूरी किताब पढ़ने के बाद ही कोई तथ्य निकलता हो?"
उलझन में फंसे रघुनाथ ने कहा—"कत्ल का उपन्यास के कथानक से भला क्या सम्बन्ध हो सकता है?"
"कुछ भी हो सकता है प्यारे, लेकिन फिलहाल तुम इस चक्कर में उलझकर अपने दिमाग का फलूदा मत निकालो—इसे हम देख लेंगे—तुम हमारे सवालों का जवाब दो।"
"पूछो।"
"ह्त्याएं किस सिचुएशन में हुईं?"
"वह तो तुम अखबार में पढ़ ही चुके होंगे।"
"हम तुम्हारे मुखारविन्द से सुनना चाहते हैं, रघु डार्लिंग।"
"हॉल में मौजूद सभी लोगों का एक जैसा बयान था—उनके मुताबिक तोताराम और अमिता फ्लोर पर डांस कर रहे थे—विधायक को फ्लोर पर देखकर हॉल में मौजूद सभी लोग दिलचस्प निगाहों से उसे देख रहे थे—वहीं बारूद का संवाददाता भी था, जिसने इस दृश्य को अपने अखबार के लिए चटपटा मसाला समझा—उसने तुरन्त अमिता के साथ डांस कर रहे तोताराम का फोटो ले लिया—तोताराम, शायद नहीं चाहता था कि उसकी ऐसी फोटो किसी अखबार में छपे, अतः अमिता को छोड़कर वह तेजी से बारूद के संवाददाता की तरफ बढ़ा—अभी उसने फ्लोर से नीचे पहला कदम रखा ही था कि सारे हॉल में घुप्प अंधेरा छा गया।"
"लाइट गई थी या किसी ने मेन स्विच ऑफ किया था?"
"मैंने स्विच।"
"किसने?"
"पता नहीं लग सका—स्विच पर से फिंगर प्रिन्ट्स भी लिए गए, किंतु कोई निशान नहीं मिले—लगता है कि ऑफ करने वाले ने दस्ताने पहन रखे थे।"
"खैर—फिर क्या हुआ?"
"अंधेरा होते ही हॉल में खलबली-सी मच गई—लोग एक-दूसरे को देख भी नहीं सकते थे, इसी तरह एक मिनट के करीब गुजर गया, तब अन्धेरे में पहला फायर हुआ।"
"एक मिनट गुजरने के बाद?"
"हां—।" रघुनाथ ने बताया—"सबका यही कहना है कि फायर हॉल में अंधेरा होने के करीब एक मिनट बाद हुआ—गोली अमिता को लगी।"
"जबकि अंधेरा इतना गहरा था कि लोग एक-दूसरे को नहीं देख सकते थे?"
"हां।"
"मामला यहीं आम वारदातों से हटकर हो जाता है, प्यारे।" विजय ने कहा—"ऐसे सार्वजनिक स्थानों पर जब गोली से कत्ल होते हैं तो किसी छुपे हुए स्थान से हत्यारा अपने शिकार पर गोली दागता है, गोली चलने के बाद ही घटनास्थल पर अंधेरा कर दिया जाता है, यह अंधेरा कत्ल करने के लिए नहीं, बल्कि हत्यारा अपने भाग निकलने के लिए करता है—ऐसे सार्वजनिक स्थान पर जहां हत्यारे के शिकार के अतिरिक्त अन्य बहुत से लोग भी हों, हत्यारा कभी हत्या करने से पूर्व अंधेरा नहीं करेगा, क्योंकि अंधेरे में वह हत्या कर ही नहीं सकता—अंधेरा होने के बाद जहां कोई किसी को नहीं देख सकता था—वहां गोली एक मिनट बाद चली है—एक मिनट में अंधेरे के कारण बौखलाया हुआ व्यक्ति कहीं-का-कहीं पहुंच सकता है—तब, सबसे पहले यह सवाल उठता है कि हत्यारे ने अपने शिकार का निशाना कैसे लिया और शिकार भी एक नहीं—दो थे—अंधेरे में दो शिकारों को निशाने पर लेना असम्भव है।"
"इसी पॉइंट ने तो मुझे चकराकर रख दिया है।"
"मेन स्विच पर किसी की उंगलियों के निशान नहीं थे?"
"नहीं।"
"मतलब ये कि ऑफ करने के बाद उसे ऑन भी हत्यारे ने ही किया था?"
"मैं समझा नहीं...।"
"हत्यारे ने जरूर दस्ताने पहन रखे थे, क्योंकि उसकी इन्टेंशन ही हत्या की थी, लेकिन कोई साधारण आदमी भला दस्ताने क्यों पहनेगा—स्विच ऑफ हुआ—हत्याओं के बाद स्वयं ही ऑन भी हो गया—कोई निशान न मिलने का अर्थ है कि उसे ऑन भी हत्यारे ने ही किया।"
"इससे क्या नतीजा निकला?"
"हत्यारे को भागने के लिए अंधेरे की जरूरत नहीं थी।"
"फिर उसने अंधेरा क्यों किया?"
"हत्याएं करने के लिए!"
"अभी तो तुम कह रहे थे कि अंधेरे में अपने शिकारों को निशाना बनाना एकदम असम्भव होता है।"
"इस हत्यारे के लिए शायद अंधेरे में ही निशाना लेना ज्यादा आसान था।"
"पता नहीं तुम क्या बक रहे हो?"
"बक नहीं रहे, प्यारे—वही कह रहे हैं, जो वारदात से नजर आता है—हत्यारे के अंधेरा करने और हत्याओं के बाद पुनः मेन स्विच ऑन कर देने से जाहिर है कि हत्यारा जानता था कि प्रकाश के मुकाबले अंधेरे में ज्यादा ठीक निशाना लगा सकता है।"
"ऐसा भला कैसे हो सकता है?"
"यही तो पता लगाना है, मेरी जान।" कहने के साथ ही उसने आंखें बन्द कर लीं—दोनों पैर सोफों के बीच रखी सेण्टर टेबल पर पसार दिए—रघुनाथ हक्का-बक्का-सा उसे देख रहा था—होंठों-ही-होंठों में विजय जाने क्या-क्या बुदबुदाने लगा—अचानक ही वह बुरी तरह उछलकर चीख पड़ा—"वो मारा साले पापड़ वाले को!"
"क-क्या हुआ?" रघुनाथ चौंका।
"तोताराम और अमिता की लाशें कहां हैं, प्यारे?"
"अभी तक पुलिस के चार्ज में हैं।"
"जियो प्यारे, मुझे उन दोनों के कपड़े चाहिएं?"
"कपड़े? म-मगर उन कपड़ों का तुम क्या करोगे?"
"उन्हें पहनकर नाचूंगा, मेरी जान।" कहने के साथ ही उसने साफे से सीधी जम्प बाथरूम के दरवाजे पर लगाई, बोला—"तुम उनके कपड़े यहां मंगाओ—तब तक हम नहा-धोकर उन्हें पहनने के लिए तैयार होते हैं।"
¶¶
हालांकि रघुनाथ समझ न सका था कि विजय ने तोताराम और अमिता के कपड़े क्यों मांगे थे, परन्तु इतना वह जानता था कि हत्या से उन कपड़ों का निश्चित रूप से कोई सम्बन्ध जरूर रहा होगा, अतः उसने फोन करके एक इंस्पेक्टर से वे कपड़े मंगा लिए—पन्द्रह मिनट बाद ही इंस्पेक्टर कपड़े लिए वहां पहुंच गया—रघुनाथ ने कपड़े मेज पर रखवा लिए और इंस्पेक्टर को विदा कर दिया—अब रघुनाथ को विजय के बाथरूम से निकलने की प्रतिक्षा थी। विजय बीस मिनट बाद बाहर निकला।
बाथरूम से वह पूरी तरह तैयार होकर निकला था—उसके जिस्म पर काली कमीज और वैसी ही बैलबॉटम थी—बाल कढ़े हुए थे—बाहर निकलते ही उसने रघुनाथ को आंख मारी—रघुनाथ ने कहा—"कपड़े आ गए हैं, विजय।"
उसकी तरफ बढ़ते हुए विजय ने कहा—"अब तुम यहां से फूटो, प्यारे।"
"क-क्या मतलब?" रघुनाथ उछल पड़ा।
"फूटने का मतलब है चलते-फिरते नजर आओ।" विजय ने कहा।
"म-मगर।"
"अगर-मगर कुछ नहीं मेरी जान—नहाने के बाद बड़ी जोर से भूख लगी है—अच्छे बच्चों की तरह यहां से उठकर नाक की सीध में सीधे घर जाओ—रैना बहन से कहो कि उनका प्यारा भइया आने वाला है—आलू के फर्स्ट क्लास परांठे और घीए का रायता बनाए।"
"ल-लेकिन हत्यारा।"
"हम वहीं एक घण्टे में आ रहे हैं—तुम्हें हत्यारे का नाम भी बताएंगे।"
"क-क्या मतलब?" रघुनाथ उछल पड़ा—"एक घण्टे में हत्यारे का नाम?"
"तुम फूटो प्यारे, ये कपड़े और ''जुदाई'' यहीं छोड़ जाओ।"
यह सुनकर रघुनाथ की आंखें हैरत से फटी-की-फटी रह गईं कि एक घण्टे में विजय हत्यारे का नाम बता देने का दावा कर रहा था—उस वक्त वहां से उठकर जाने की उसकी बिल्कुल इच्छा नहीं थी—मगर वह जानता था कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो विजय बिदक जाएगा और फिर उसे लाइन पर लाना लगभग असम्भव हो जाएगा, अतः वह उठकर चला गया—जाते-जाते उसने कई बार कहा कि वह परांठे पर उसका इन्तजार करेगा, अतः वह आए जरूर।
रघुनाथ के जाने के बाद विजय ने अपने नौकर को आवाज दी—"अबे ओ पूरे शेर!"
"स-सरकार।" कंधे पर अंगोछा डाले पूर्ण सिंह जाहिर हुआ।
"बाहर वाले बुकस्टाल से प्रेम बाजपेयी का लेटेस्ट उपन्यास 'जुदाई' खरीद ला।"
¶¶
मेरे उपन्यासों के नियमित पाठक तो मेरे प्रमुख पात्रों को जानते ही हैं, फिर भी यहां अपने नए पाठकों की सुविधा हेतु संक्षेप में प्रमुख पात्रों का परिचय दे रहा हूं—कृपया मेरे नियमित पाठक क्षमा करें।
विजय—राजनगर के आई.जी. पुलिस ठाकुर साहब का लड़का है—ठाकुर साहब की दृष्टि में विजय एक आवारा, बदचलन और नाकारा व्यक्ति है—वे नहीं जानते कि विजय भारतीय सीक्रेट सर्विस का हीरा है—पहले कभी वह सीक्रेट सर्विस का चीफ था—मगर फील्ड वर्क बढ़ जाने के कारण उसने चीफ के पद से इस्तीफा दे दिया—अपने एक साथी अजय को उसने सीक्रेट सर्विस का चीफ बनाया और स्वयं साधारण सदस्य बनकर रह गया—यही वजह है कि अजय उसे हमेशा 'सर' कहता है। अपनी हकीकत छुपाए रखने के लिए विजय ने खुद को आवारा प्रूव कर रखा है—विजय अपने माता-पिता से अलग अपनी कोठी में रहता है—विजय का दोस्त है—रघुनाथ।
दोस्त पहले था, किन्तु शायद अब दोस्त कहना उचित नहीं है, चूंकि मेरी लिखी क्रान्ति सीरीज में यह भेद खुल चुका है कि असल में रघुनाथ उसका बहनोई है—क्रान्ति सीरीज में अचानक ही यह भेद खुला था कि रैना विजय की चचेरी बहन है, जिसे वह सिर्फ दोस्त की पत्नी समझकर भाभी कहता था—अजय और रैना सगे भाई-बहन हैं—रघुनाथ पुलिस में सुपरिंटेंडेण्ट के पद पर आसीन है—रैना और रघुनाथ का एक लड़का है, विकास।
विकास—सारे जहां में एजेण्ट स्क्वायर के नाम से मशहूर।
भारतीय सीक्रेट सर्विस का कोहिनूर।
विकास की उम्र इक्कीस-बाईस के बीच है—वह खूब लम्बा है—गोरा-चिट्टा...हष्ट-पुष्ट—कसरती जिस्म—गोल चेहरे और घुंघराले बालों वाला यह युवक इतना सुन्दर है कि युवा लड़कियां जब उसे देखती हैं तो बस देखती ही रह जाती हैं—मगर विकास लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं रखता—रखेगा भी कैसे—विजय और अलफांसे जैसे गुरूओं का शिष्य जो है—उसके दिल में तो सिर्फ एक ही भावना है—देशभक्ति की भावना।
वह अपनी खूबसूरती से कई गुना ज्यादा खतरनाक है—उसका नाम सुनते ही भारत के दुश्मनों के छक्के छूट जाते हैं—दुश्मन और दोस्त उसे विकास नहीं कहते—दरिन्दा कहते हैं। हिंसक, दुर्दान्त, बेरहम और राक्षस कहते हैं।
कहें भी क्यों नहीं—देश के दुश्मनों को देखते ही वह पागल जो हो जाता है। देश के लिए दीवाने युवक का नाम है, विकास...दोस्तों का दोस्त—दुश्मनों का दुश्मन—साक्षात् मौत ने अपना नाम बदल कर विकास रख लिया है—विकास उसे कहते हैं, जो बड़ों का आदर करे—देश के लिए कुर्बान हो जाने को आतुर रहे—मौत के जबड़ों में फंसकर भी हंसे—कहकहे लगाए—बस एक ही खराबी है विकास में—वह भड़कता बहुत जल्दी है—देश की तरफ किसी ने आंख उठाकर देखा नहीं कि लड़का उन आंखों को फोड़ देने के लिए झपट पड़ेगा—अगर रास्ते में उसके बड़े आएं—आदरणीय उसका रास्ता रोकें तो—उनका भी निरादर करने से नहीं चूकता जालिम-गुस्से में पागल हो जाता है वह—जासूस होकर मुजरिमों जैसी हरकतें कर बैठता है।
एक है—धनुषटंकार।
अजीबो-गरीब बन्दर—ओह सॉरी—उसे बन्दर नहीं कहना है—मेरा भाग्य अच्छा है कि इस वक्त वह मेरे आस-पास नहीं है वरना अब तक मेरे गाल पर उसकी पांचों उंगलियां उभर आई होतीं—जी हां—वह स्वयं को बन्दर कहलवाना बिल्कुल पसन्द नहीं करता है—वह जिस्म से बन्दर है, परंतु दिमाग से इंसान।
आप चौंक रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है—दरअसल हुआ यूं कि बहुत पहले डॉ. लाजारूस नामक एक ऐसा वैज्ञानिक मुजरिम बन बैठा, जो मस्तिष्क प्रतिरोपित करने में सिद्धहस्त था—उसने मोण्टो नाम के जेबकतरे को पकड़ा और उसका मस्तिष्क एक बन्दर के जिस्म में प्रतिरोपित कर दिया—धनुषटंकार वही मोन्टो है—बंदर के जिस्म वाला मोन्टो इन्सान की तरह सोचता-समझता और लिखता है, परन्तु बेचारा बोल नहीं सकता।
वह विजय के हाथ लगा—विजय से उसे विकास ने ले लिया।
धनुषटंकार विजय को डबल गुरू और विकास को गुरू कहता है, क्योंकि विकास ने उसे बहुत-सी विधाएं सिखाई हैं—वह रघुनाथ की कोठी पर रैना और विकास के साथ ही रहता है।
इस वक्त।
रघुनाथ, रैना, विकास और धनुषटंकार ड्राइंग रूम में बैठे विजय की प्रतीक्षा कर रहे थे—रघुनाथ ने वहां पहुंचकर सभी को बता दिया कि विजय आने वाला है—यह भी कि क्यों?
यह सुनकर रैना, विकास और धनुषटंकार को आश्चर्य हुआ कि विजय इतनी जल्दी तोताराम और उसकी बीवी के हत्यारे का राज खोलना वाला था—रैना रायता बना चुकी थी—आलू की पिट्ठी और मड़ा हुआ आटा किचन में तैयार रखा था।
इन्तजार था सिर्फ विजय का।
विकास ने रिस्टवॉच देखते हुए कहा—"आपने कहा था, डैडी—अंकल एक घंटे में आ जाएंगे, लेकिन अब डेढ़ घण्टा हो चुका है।"
"लगता है कि विजय भइया अब नहीं आएंगे।" रैना बोली।
"क-क्यों नहीं आएगा।" रघुनाथ कह उठा—"वह जरूर आएगा।"
"आपको तो विजय भइया बस यूं ही झांसा दे देते हैं।"
"नहीं—आज उसने मुझे झांसा नहीं दिया है।"
चंचल मुस्कराहट के साथ विकास ने पूछा—"यह आप कैसे कह सकते हैं?"
"म-मुझे यकीन है।"
सोफे की पुश्त पर बैठे सूटेड-बूटेड धनुषटंकार ने अपने छोटे से कोट की जेब से पव्वा निकाला और होंठों से लगा लिया—दो-तीन घूंट हलक से उतारने के बाद उसने पव्वे का ढक्कन बन्द करके बड़ी स्टाइल से जेब में रखा ही था कि लॉन में एक कार रुकी।
"विजय आ गया है।" कहने के साथ ही हर्षित-सा रघुनाथ उछलकर न सिर्फ खड़ा हो गया, बल्कि तेजी से कमरे के बाहर की तरफ लपका—विकास और रैना भी सोफे से उठ खड़े हुए थे—धनुषटंकार एक सिगार सुलगाने में व्यस्त हो गया।
फिर—विजय कमरे में दाखिल हुआ।
लम्बा लड़का आगे बढ़कर पूरी श्रद्धा के साथ उसके चरणों में झुक गया—विजय के हाथ में तोताराम और अमिता के कपड़े तथा 'जुदाई' की दो प्रतियां थीं—एक खून से सनी, दूसरी बिल्कुल साफ—विकास के बाद धनुषटंकार ने विजय के चरण स्पर्श किए।
"नमस्ते बहन।" विजय ने कहा।
"नमस्ते भइया, बहुत देर लगाई—हम सब कितनी देर से आपका इन्तजार कर रहे हैं।"
"सुबह-सुबह इस सुपर-इडियट के काम में फंस गया था।"
उत्सुकतापूर्वक रघुनाथ ने पूछा—"कुछ पता लगा, विजय।"
"सब कुछ पता लग गया है, प्यारे।"
"क-क्या पता लगा है—वे हत्याएं किसने कीं?"
"आलू के पराँठे कहां हैं?"
"ओह!" रघुनाथ जल्दी से बोला—"तुम जाओ रैना—जल्दी से परांठे बनाओ—मैं जानता हूं कि जब तक इसके सामने परांठे नहीं आएंगे, तब तक यह एक शब्द भी नहीं बकेगा।"
मुस्कराती हुई रैना किचन की तरफ चली गई।
हाथ का सामान सोफा सैट के बीच पड़ी मेज पर रखता हुआ विजय सोफे में धंस गया—विकास और रघुनाथ उसके सामने वाले सोफे पर बैठ गए—धनुषटंकार पुश्त पर बैठा आराम से सिगार फूंक रहा था—न सिर्फ रघुनाथ ने बल्कि विकास ने उत्सुकता के कारण कई बार मर्डर केस सम्बन्धित वार्ता छेड़ने की कोशिश की, लेकिन वह विजय ही क्या जो समय से पहले कुछ बता दे, अतः सबसे पहले उसने पेट भर कर परांठे खाए—रघुनाथ, विकास और मोन्टो ने भी उसका साथ दिया।
रैना फुर्ती से उन्हें खाना खिलाती रही।
अब रैना भी उनके बीच आ बैठी थी—एक लम्बी डकार के साथ सोफे पर पसरते हुए विजय ने कहा—"तुम अपने कपड़े उतारकर तोताराम के कपड़े पहन लो प्यारे दिलजले।"
सभी हल्के-से चौंके, रैना ने कहा—"क्या कह रहे हो, भइया—एक मृत आदमी के कपड़े—!"
"तुम कब से इन बेकार की बातों में पड़ने लगीं, बहन—कपड़े पहनो, दिलजले।"
विकास ने कपड़े पहन लिए।
तोताराम का कुर्ता पेट वाले स्थान से बुरी तरह से खून में सना हुआ था—कुर्ते में वहीं एक गोली का निशान भी स्पष्ट नजर आ रहा था—विजय एक झटके के साथ सोफे से उठा और तोताराम के कपड़े पहने विकास के नजदीक पहुंचकर उसके सीने पर उंगली रखकर बोला—"ये क्या है, रघु डार्लिंग—?"
"लिपस्टिक लगे होंठों से यहां किसी ने चुम्बन लिया है।"
"किसने?"
"अमिता ने।"
"यह तुम कैसे कह सकते हो कि यह चुम्बन अमिता ने ही लिया था?"
रघुनाथ ने बताया—"मैं इस निशान को पहले ही देख चुका था—अमिता के होंठों पर लिपस्टिक का भी यही कलर है—वही तोताराम के साथ डांस भी कर रही थी—डांस के दौरान उसी ने यह चुम्बन लिया होगा—पति के सीने पर चुम्बन लेना कोई जुर्म नहीं है।"
"मगर ये साधारण चुम्बन नहीं था।"
"क्या मतलब?"
"इस चुम्बन के कारण ही तोताराम का कत्ल हो सका है।"
विकास भी बुरी तरह चौंक पड़ा—"आप कहना क्या चाहते हैं, गुरू?"
"कमरे की सभी खिड़कियां और दरवाजे बन्द कर दो, गान्डीव प्यारे—पर्दे भी अच्छी तरह खींच दो—सूर्य की एक भी प्रकाश किरण कमरे में दाखिल नहीं होनी चाहिए।"
किसी की समझ में नहीं आया कि विजय आखिर करना क्या चाह रहा था, फिर भी—सभी ने चुपचाप उसके आदेशों का पालन किया—कमरे में घोर अंधेरा छा गया—घुप्प अंधेरा—हाथ को नहीं देख पा रहा था—उसी अन्धेरे में विजय की आवाज गूंजी—"कत्ल होने से पहले सम्राट होटल के हॉल में ऐसा ही या इससे भी कहीं ज्यादा गहरा अन्धेरा व्याप्त हो गया था—रैना बहन, तुलाराशि और तुम भी ध्यान से देखो गान्डीव प्यारे—क्या कमरे के इस अन्धेरे में कुछ चमक रहा है?"
"अरे हां, सचमुच।" रैना की आवाज—"हवा में तैरते हुए होंठों के निशान मुझे साफ चमक रहे हैं, भइया—जैसे चमकीले होंठों का धब्बा चल-फिर रहा हो।"
"तुम कमरे में चहल-कदमी कर रहे हो न, विकास।"
"हां गुरू।"
"क्या समझे, रघु डार्लिंग?"
"अन्धेरे में चमकने वाला ये होंठों का वही धब्बा है, जो रोशनी में तोताराम के कुर्ते पर सिर्फ लिपस्टिक के एक धब्बे के रूप में नजर आता है।"
"यानि अगर तुम चाहो तो अन्धेरे में आसानी से विकास को निशाना बना सकते हो?"
"मैं समझ गया विजय।"
"म-मगर—?" रैना ने पूछा—"लिपस्टिक का वह दाग इतना चमक क्यों रहा है, भइया?"
उसके सवाल का जवाब देने के स्थान पर विजय ने कहा—"खिड़कियां खोल दो, मोन्टो।"
कमरा पुनः प्रकाश से भरने लगा—किसी शोले की तरह चमकता होंठों का धब्बा लुप्त हो गया—अब वे सभी एक-दूसरे को भली प्रकार देख सकते थे—मोन्टो सोफे की पुश्त पर आ बैठा—रघुनाथ और रैना विजय के सामने वाले सोफे पर और विकास ने विजय के आदेश पर तोताराम के कपड़े उतार कर रख दिए। तब विजय ने कहा—“ प्यारे तुलाराशि, अब तुम समझ गए होंगे कि गहरे अंधेरे में हत्यारे ने अपने सही लक्ष्य पर गोली कैसे चलाई?"
"ल-लेकिन—।"
"अमिता के होंठों पर सिर्फ लिपस्टिक ही नहीं लगी थी, बल्कि फासफोरस भी लगा था या यूं कहना ज्यादा बेहतर होगा कि लिपस्टिक और फॉसफोरस का मिश्रण अमिता के होंठों पर लगा था—फॉस्फोरस एक ऐसा रासायनिक पदार्थ है, जो अन्धेरे में आग के समान चमकता है—यह चुम्बन अमिता ने जान-बूझकर तोताराम के कुर्ते पर लगाया था, ताकि हत्यारा आराम से अन्धेरे में अपने शिकार को देखकर उसे लक्ष्य कर सके।"
"य-ये तुम क्या कह रहे हो, विजय?" रघुनाथ उछल पड़ा—"क्या तुम्हारे कहने का अर्थ यह नहीं निकलता कि अमिता हत्यारे से मिली हुई थी?"
"बिल्कुल यही मतलब निकलता है, प्यारे।"
"म-मगर—वह तो खुद हत्यारे की गोली का शिकार हुई है।"
"क्योंकि सिर्फ अमिता ही जानती थी कि हत्यारा कौन है?"
"क-क्या मतलब?"
"मतलब प्रेम बाजपेयी का यह उपन्यास बताएगा।" विजय ने मेज से खून में सनी 'जुदाई' उठाकर हाथ में ली और बोला—"'जुदाई' की ये दूसरी प्रति तुम उठा लो दिलजले।"
विकास ने 'जुदाई' की प्रति उठा ली।
"सातवां पृष्ठ खोलो।"
विकास ने पृष्ठ खोलने के साथ ही कहा—"खोल दिया।"
"सात नम्बर पृष्ठ की सोलहवीं पंक्ति पर उंगली रखो।"
पंक्तियों गिनकर उसके आदेश का पालन करने के बाद बोला—"रख ली।"
"अब गिनकर इस पंक्ति के ग्यारहवें शब्द पर पहुंच जाओ।"
"पहुंच गया।"
"इस शब्द का दूसरा अक्षर क्या है?"
विकास ने बताया—"दी।"
"तुम अपनी डायरी में 'दी' लिख लो, गान्डीव प्यारे।" विजय का आदेश होते ही धनुषटंकार ने जेब से डायरी निकाली और पेंसिल से उस पर 'दी' लिखा।
विजय ने पुनः कहा—"अब जरा आठवाँ पेज खोलो प्यारे दिलजले।"
"हूं—।" विकास ने पेज खोल लिया।
"तेरहवीं पंक्ति के आठवें शब्द का दूसरा अक्षर बोलो।"
विकास ने देखकर आधे मिनट बाद बताया—"वा—।"
"वा' लिखो गान्डीव प्यारे।'' विजय ने कहा—"तुम मुस्तैदी के साथ डायरी में वे अक्षर लिखते रहो, जो अपना दिलजला बोलता जाए।"
स्वीकृति में गर्दन हिलाते हुए मोन्टो ने डायरी में लिखे 'दी' के आगे 'वा' लिख लिया।
''अब जरा नौवें पृष्ठ की दूसरी पंक्ति के नौवें शब्द का दूसरा अक्षर बोलो, प्यारे।''
''न—।'' विकास ने आधे मिनट बाद कहा।
"गुड।" विजय ने कहा—"अब इन तीन अक्षरों को मिलकर शब्द बना 'दीवान'।''
"म-मगर—।" रैना बोली—"आप किसी विशेष पृष्ठ की विशेष पंक्ति के विशेष शब्द के विशेष अक्षर ही क्यों बोल रहे हैं, विजय भइया?"
"क्योंकि ''जुदाई'' की जो प्रति मेरे हाथ में है, इसमें तोताराम ने इन्हीं विशेष अक्षरों को 'बॉलपैन' से पूरी तरह मिटा रखा है, यानी इस प्रति में ये अक्षर पढ़े नहीं जा रहे हैं।"
"मैं समझी नहीं, भइया।"
"ये देखो—।" विजय ने दसवां पृष्ठ खोलकर रैना के सामने रखा, बोला—"क्या इस पृष्ठ में तुम्हें कहीं कोई ऐसा अक्षर नजर आ रहा है, जिसके ऊपर बॉलपैन से इस बुरी तरह छोटा-सा धब्बा बनाया गया हो कि अक्षर न चमक रहा हो?"
"हां।"
"वह अक्षर कौन-सी पंक्ति के कौन से शब्द का कौन-सा अक्षर है?"
रैना ने आधे मिनट बाद बताया—"अट्टारहवीं पंक्ति के नौवें शब्द का पहला अक्षर।"
"गुड—अब जरा उस प्रति में देखकर तुम बताना प्यारे दिलजले कि दसवें पृष्ठ की अट्ठारहवी पंक्ति के नौवें शब्द का पहला अक्षर क्या है?"
"मे—।" विकास ने बताया।
विजय ने धनुषटंकार से कहा—"तुम लिख लो, गान्डीव प्यारे।"
धनुषटंकार के गर्दन झुकाकर अक्षर लिख लिया।
"इस तरह विभिन्न पृष्ठों पर बॉलपैन से भिन्न अक्षरों को दबाया गया है।" विजय ने बताया- "हमारे ख्याल से उन सभी अक्षरों को मिलाने से कुछ ऐसे वाक्य बनेंगे, जो शायद तोताराम मर्डस केस को हल करने में सहायक सिद्ध होंगे।"
"ओह—!" सभी की आंखें चमक उठीं।
विजय बोला—"निःसन्देह तोताराम ने अपनी बात कहने का यह बड़ा ही दिलचस्प और अनूठा तरीका अपनाया है—तोताराम के दिमाग की तारीफ करनी होगी—यूं तो इस उपन्यास के पृष्ठों पर लाखों अक्षर बिखरे पड़े हैं, परन्तु तोताराम का सन्देश उन चन्द अक्षरों को मिलाने से ही बनेगा, जिन्हें उसने इस प्रति में बॉलपैन से छुपा रखा है—अत: तुम जल्दी-जल्दी इस प्रति के मिटे हुए अक्षरों की पृष्ठ संख्या—पंक्ति और शब्द बोलो—विकास वे शब्द बताता रहेगा और तुम लिखते रहोगे, गान्डीव—हम सो रहे हैं—जब तोताराम का संदेश पूरा हो जाए तो हमें जगा लेना।"
उसने सचमुच आंखें बन्द कर लीं।
रघुनाथ, रैना और विकास एक-दूसरे की तरफ देखकर मुस्कराए—फिर उन्होंने उसके आदेश का पालन करना शुरू कर दिया—रैना जिस क्रम में बोल रही थी, उसे विस्तारपूर्वक तो नहीं लिखा जा सकता, किन्तु सुविधा के लिए पूर्ण तालिका निम्न प्रकार बनी—
पेजपंक्तिशब्दअक्षरनिकला अक्षर
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81382वा
9292न
101892मे
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771161त
78611रा
8118141है
उपरोक्त तालिका के अन्तिम कॉलम में लिखे अक्षरों को मिलाने पर ये इबारत बनती है—"दीवान मेरा राजनीतिक दुश्मन है—अमिता के उससे नाजायज सम्बन्ध हैं—मुझे उनसे जान का खतरा है।"
धनुषटंकार की डायरी पर लिखे तीन वाक्यों को पढ़ते ही रघुनाथ के मुंह से निकला—"ओह, तो क्या तोताराम कि हत्या दीवान ने की है?"
"क्या अब भी तुम्हें किसी तरह का सन्देह है, प्यारे?" विजय ने आंखें खोल दीं।
"म-मगर—दीवान तो उसी राजनैतिक पार्टी से सम्बन्धित है—जिसका तोताराम था।"
"यही हत्या का मुख्य कारण है।"
"मैं समझा नहीं।"
"'जुदाई' के उपरोक्त अक्षरों से बनी इबारत से जाहिर है रघु डार्लिंग कि हमारे देश की राजनीति बहुत ही घटिया—निम्नस्तरीय और गन्दी हो गई है—शीशे की तरह साफ है कि तोताराम और दीवान राजनैतिक दुश्मन थे—उनकी दुश्मनी का मुख्य कारण दोनों का एक ही क्षेत्र से एक ही पार्टी का नेता होना था।"
"एक ही पार्टी के दो नेता भला एक-दूसरे के दुश्मन कैसे हो सकते हैं?"
"आज की राजनीति यह कहती है रघु प्यारे कि एक ही क्षेत्र से दो भिन्न पार्टियों के नेताओं में उतनी दुश्मनी नहीं होती जितनी एक क्षेत्र के एक ही पार्टी के दो नेताओं के बीच होती है—तोताराम और दीवान एक ही पार्टी के एक ही क्षेत्र से दो नेता थे—एक म्यान में एक ही तलवार रह सकती है—दीवान हर बार यह कोशिश करता था कि कैंट से चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का टिकट उसे मिल जाए, परन्तु हाईकमान में तोताराम के सम्बन्ध दीवान से अच्छे थे, इसलिए चुनाव टिकट हमेशा उसे ही मिला—दीवान को जंच गया कि जब तक तोताराम है, तब तक कैंट से उसे पार्टी टिकट नहीं मिलेगा—अतः उसने अपना रास्ता साफ कर लिया—तोताराम की मृत्यु ने कैंट की सीट रिक्त कर दी है—दीवान की पार्टी में अब उसके स्तर का कोई भी नेता नहीं है, अतः भविष्य में जब भी इस रिक्त सीट पर चुनाव होगा तो पार्टी टिकट दीवान को मिल जाएगा।"
"उफ्फ—।" रैना कह उठी—"सिर्फ टिकट के लिए—?"
"जिसे तुम सिर्फ टिकट कह रही हो, रैना बहन, वह नेताओं के लिए लाटरी का वह टिकट होता है, जो आने वाला है—।"
"ल-लेकिन विजय, दीवान ने अमिता को तैयार कैसे कर लिया?"
"तोताराम तड़क-भड़क की जिन्दगी से दूर सादा रहने वाला था, जबकि उसे पत्नी ठीक विपरीत विचारों वाली मिल गई—तोताराम अपनी व्यस्त जिंदगी में से उसके लिए समय भी कम ही निकाल पाता था—यह बात दीवान ने भांप ली होगी कि अमिता तोताराम से असन्तुष्ट रहती है, अतः उसने घात लगा कर फन्दा फेंका होगा—अमिता फंस गई—अमिता को उसने अपने प्रेमजाल में फंसाकर बहका लिया—प्रेम का भूत जब सिर पर सवार होता है तो अच्छे-खासे आदमी की बुद्धि को जंग लगा देता है, प्यारे—अमिता को अपना ही पति अपने प्रेम के बीच दीवार महसूस होने लगा—फिर दीवान ने धीरे-धीरे उसे मानसिक रूप से तोताराम को रास्ते से हटाने में मदद करने तक के लिए तैयार कर लिया।"
"मगर—'जुदाई' से निकले इस सन्देश से जाहिर होता है कि तोताराम को उनके सम्बन्धों की पूर्ण जानकारी थी—फिर उसने कोई एक्शन क्यों नहीं लिया—अपनी बात कहने के लिए उसने यह टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता क्यों अपनाया—जो सन्देश 'जुदाई' में छुपाकर वह अपने साथ लिए फिरता था, उसे उसने पहले ही पुलिस को क्यों नहीं बता दिया—यदि उसने ऐसा किया होता तो शायद उसकी हत्या नहीं होती।"
"तुम्हारा कहना ठीक है प्यारे, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता था।"
"क्यों?"
"यह बात फैलते ही कि उसकी बीवी के दीवान से सम्बन्ध हैं, उसका राजनैतिक कैरियर खत्म हो जाता—मतदाताओं के दिलों में उसके लिए इज्जत और सम्मान न रहता—उसे ही बचाने के लिए उसने सब कुछ छुपाए रखा, हां 'जुदाई' में अपना सन्देश हमेशा साथ लिए वह इसलिए घूमता था कि यदि अमिता और दीवान इतने नीचे गिरें जितने कि गिर गए तो 'जुदाई'—किताब उसकी हत्या का सारा भेद खोल दे।"
"अगर वह पहले बता देता तो उससे सिर्फ उसका राजनैतिक कैरियर ही खराब होता—लेकिन अब तो वह...।"
"यह तो विडम्बना है प्यारे—नेताओं को कैरियर जिन्दगी से प्यारा होता है।"
"परन्तु भइया—।" रैना ने पूछा—"जब अमिता ने दीवान की मदद की थी तो दीवान ने उसी को क्यों और कैसे मार ड़ाला?"
"दीवान ने अमिता से जो काम ले लिया था, उसके बाद दीवान के लिए अमिता न केवल बिल्कुल बेकार थी, बल्कि खतरनाक भी थी—खतरनाक इसलिए क्योंकि वह जानती थी कि उसके पति का कत्ल दीवान ने किया था—अतः उसने एकमात्र राजदार को भी वहीं खत्म कर दिया।"
"ओह—लेकिन दीवान ने अन्धेरे में अमिता को गोली कैसे मारी?"
विकास ने कहा—"उसके तो होंठों पर ही फॉसफोरस युक्त लिपस्टिक लगी थी।"
"ओह—।" रैना के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे उपरोक्त प्रश्न करके वह स्वयं शर्मिन्दा हो गई हो।
कई क्षणों के लिए उनके बीच खामोशी छा गई, फिर एकाएक रघुनाथ ने पूछा—"तो अब तुम्हारी क्या राय है, विजय—क्या मैं दीवान को गिरफ्तार कर लूं?"
"नहीं—।" विजय चिढ़े हुए से अन्दाज में बोला—"जाकर उसकी आरती उतारो।"
"म-मेरा मतलब...।"
"अबे, खाक मतलब है तुम्हारा—जाने किस हुड़कचुल्लू ने तुम्हें सुपरिंटेंडेण्ट बना दिया—धेले की अक्ल नहीं है—अबे, जब सारी रामायण ही खत्म हो गई है तो उसे गिरफ्तार करने के बारे में पूछने का क्या मतलब?"
गड़बड़ाकर रघुनाथ ने कहा—"मैं तो एक राय ले रहा था, यार।"
"तुम हमेशा राय ही लेते रहोगे तुलाराशि या कभी खुद भी कुछ करोगे?"
"क्या मतलब, विजय?"
"अजी मतलब को मारो गोली—तुम साले बिल्कुल नामाकूल, गधे, बेवकूफ और मूर्ख हो—आज तक एक भी ऐसा केस नहीं है, जिसे तुमने खुद हल किया हो—साली कहीं जेब भी कटेगी तो विजय दा ग्रेट के पास दौड़े चले आओगे।"
"तुम मेरा अपमान कर रहे हो, विजय।"
"अबे, अपमान न करूं तो क्या तुम्हें सिर पर बैठाकर भांगड़ा करूं?"
उसकी इस बात पर रैना और विकास खिलखिलाकर हंस पड़े—उनके हंसने ने रघुनाथ के तन-बदन में सचमुच आग लगा दी—झेंप, झुंझलाहट और क्रोध के कारण उसका चेहरा लाल हो गया—रैना, विकास और धनुषटंकार के सामने उसे सचमुच विजय के शब्द अच्छे नहीं लगे—अजीब-सी उत्तेजना के कारण उसका सारा शरीर कांपने लगा था, जबकि आदत के मुताबिक विजय अपनी ही धुन में कहता चला गया—"तुम्हें तो अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए, प्यारे—तुम्हारे बस का कुछ नहीं है—बेकार ही चिपके पड़े हो—किसी काबिल आदमी को आने दो।"
"विजय!"
"अमां चीख क्यों रहे हो, प्यारे—यदि हम न हों तो तुम एक दिन भी अपने पद पर...।"
रघुनाथ चीख पड़ा—"तुम चुप होते हो विजय या नहीं?"
"ओह—हमारी बिल्ली हमें ही म्याऊं—ये आंखें किसी और को दिखाना, प्यारे—अब सुन लो—आज तक तुम्हारी जो मदद की सो की, लेकिन भविष्य में मैं किसी केस में तुम्हारी मदद नहीं करूंगा।"
रघुनाथ ने उसे घूरा—दांत पीसे और फिर तेज कदमों के साथ कमरे से बाहर निकल गया—विकास खिलखिलाकर हंस पड़ा—जबकि रैना थोड़ी गम्भीर थी—फिर बोली—"वे सचमुच नाराज हो गए हैं, भइया।"
"अजी नाराज होकर क्या हमें सूली पर चढ़वाएगा?"
"फिर भी—आपको उन्हें इस तरह टीज नहीं करना चाहिए।"
"तुम बीच में पड़कर या बोलकर बेकार ही अपना दिमाग खराब कर रही हो, रैना बहन—मैं उसकी नस-नस से वाकिफ हूं—तुम्हारी शादी से बहुत पहले से जानता हूं उसे—ऐसी मुद्रा में मैंने उसे पहले भी कई बार देखा है—पहले तो वह मेरा दोस्त ही था और तुम भाभी—ये तो बाद में पता लगा कि तुम मेरी चचेरी बहन हो और उस रिश्ते से वह मेरा बहनोई हो गया।"
"फिर भी—पहले मैंने उन्हें कभी आपके मजाक का इतना बुरा मानते नहीं देखा।"
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