प्रेतात्मा से मुठभेड़
पत्नी के साथ एसीबी हैडक्वार्टर गया अतुल कोठारी वापिस बंगले पर लौटने की बजाये मां कालका के मंदिर चल गया, वहां दोनों पति पत्नी ने पूजा अर्चना की, प्रसाद चढ़ाया, सीढ़ियों पर बैठे भिखारियों में सौ सौ के नोट बांटे फिर घर की तरफ रवाना हो गये, जहां पहुंचते पहुंचते शाम के पौने चार बज गये।
गाड़ी बंगले पर पहुंची तो उसने पाया कि दो बावर्दी पुलिसवाले गार्ड से बातें कर रहे थे।
“लीजिए साहब आ गये।” गार्ड ने कहा तो विराट ने पीछे मुड़कर देखा।
तभी कोठारी अपनी कार से नीचे उतर आया।
“क्या बात है इंस्पेक्टर?”
“तकलीफ देने के लिए माफी चाहता हूं सर। मैं आपकी बेटी के केस का इंवेस्टिगेशन ऑफिसर हूं, कुछ सवाल करने जरूरी लगे इसलिए यहां चला आया।”
“विराट राणा?”
“यस सर।”
“अच्छा किया, मैं बारह बजे के करीब एसीबी हैडक्वार्टर गया था, वहीं से पता लगा कि केस के इंचार्ज तुम हो। इसलिए मिलना तो मैं भी चाहता था तुमसे।”
“फिर तो यकीनन अच्छा हुआ सर।”
जवाब में कुछ कहने की बजाये कोठारी थोड़ी देर के लिए जाने किस सोच में पड़ गया, फिर बोला, “बात हम अंदर चलकर करेंगे, मगर वह फौरन होगी या आधे घंटे बाद, ये एक सवाल पर डिपेंड करता है इंस्पेक्टर।”
“हुक्म कीजिए।”
“तांत्रिक अनुष्ठानों पर, तंत्र-मंत्र की शक्ति पर, ओझा और पंडितों पर, यकीन करते हो तुम? मेरा मतलब है क्या तुम्हें लगता है कि सच में किन्हीं खास लोगों के पास इस किस्म की शक्तियां होती हैं, या ये कि हो सकती हैं?”
“मंत्र शक्ति एक बार मैं अपनी आंखों से देख चुका हूं सर इसलिए मेरा जवाब हां में है - वह सावधानी से शब्दों का चयन करता हुआ बोला, क्योंकि साफ-साफ महसूस हो रहा था कि उस बात का जरूर कोई खास मतलब था - बाकी चीजों के बारे में सिर्फ इतना कह सकता हूं कि कभी देखा नहीं है, लेकिन सुना बराबर है। वह भी ऐसे लोगों के मुंह से जिनके कहे पर अविश्वास नहीं जताया जा सकता।”
“ठीक है वेट करो।” कहकर वह अपनी कार के पास पहुंचा।
भीतर बैठी कनिका ने थोड़ा सा विंडो ग्लास डाउन किया फिर पूछा, “क्या हुआ?”
“मैं चाहता हूं कि आगे यहां जो कुछ भी होने वाला है, उसमें ये दोनों पुलिसवाले हमारे साथ रहें।”
“ये कैसे मुमकिन है डॉर्लिंग - वह थोड़ा हड़बड़ाकर बोली - फिर जरा ये भी तो सोचो, कि बाद में ये लोग जाने किस किस से उस बात का जिक्र करते फिरेंगे, क्या तब तुम्हारी बदनामी नहीं होगी?”
“हो, मैं भुगत लूंगा।”
“जरूरत क्या है?”
“मधु को तलाशने का काम इन्हीं के जिम्मे है, इसलिए मैं चाहता हूं कि अगर कोई खास बात सामने आये - जो कि मुझे यकीन है नहीं आयेगी - तो इन लोगों को उसकी हाथ के हाथ खबर लग जाये, ताकि फौरन चेक कर के सच और झूठ का फैसला किया जा सके।”
“ठीक है तुम्हारी मर्जी।”
“गुड, तुम अंदर पहुंचो, मैं इन दोनों को साथ लेकर आता हूं - कहकर वह वापिस विराट के पास लौटा - चलो इंस्पेक्टर।”
तब तक गार्ड गेट खोल चुका था, शोफर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी, जबकि अतुल कोठारी के साथ विराट और जोशी पैदल ही अंदर की तरफ बढ़ चले।
“मेरा साला दावा करता है इंस्पेक्टर कि उसके पास ऐसी तांत्रिक शक्तियां हैं, जिनके जरिये मेरी बेटी के बारे में कोई ना कोई खबर जरूर निकाल लेगा - आगे बढ़ते कोठारी ने बताना शुरू किया - मेरा ऐसी बातों पर कोई यकीन तो नहीं है, लेकिन ये सोचकर मैंने उसे इजाजत दे दी कि कुछ बनेगा नहीं तो बिगड़ भी नहीं जायेगा।”
“आपके एकदम सही फैसला लिया सर।” विराट जबरन अपनी हैरानी दबाता हुआ बोला।
“उसके लिए ठीक चार बजे नकुल एक अनुष्ठान करने वाला है जो कि यहां के बेसमेंट में होना है, और वक्त बहुत कम है इसलिए मैं आप दोनों को चाय भी ऑफर नहीं कर सकता।”
“उसकी कोई जरूरत भी नहीं है सर, आपकी तरह हम भी दिल से चाहते हैं कि आपकी बच्ची का पता लग जाये, वैसा चाहे किसी अनुष्ठान के जरिये ही क्यों न हो।”
“थैंक यू।”
तत्पश्चात सब लोग बेसमेंट में पहुंचे।
कनिका उनसे पहले ही वहां पहुंच गयी थी और इस वक्त नकुल के बगल में बैठी थी, जो काले रंग का एक चोगा पहने हुए था। सामने एक लोहे का बड़ा तगाड़ रखा था, जिसमें लकड़ियों की चिता सजाई गयी थी, अलबत्ता आग अभी नहीं जल रही थी।
तगाड़ के सामने एक मानव खोपड़ी रखी थी। जिसके दोनों तरफ बालों के गुच्छे पड़े थे। एक थाली में कई अजीबो गरीब चीजों के साथ हड्डी का बना चम्मच रखा था। कम से कम विराट और जोशी को तो वैसा ही लगा था।
प्रकाश वहां बस इतना ही था कि सब एक दूसरे को दिखाई दे जायें, जिसके लिए एक टेबल लैंप को एकदम फर्श की तरफ झुका कर जला दिया गया था। लैंप में लगा बल्ब लाल रंग की रोशनी फेंक रहा था, जिसके कारण वहां का माहौल बड़ा रहस्यमयी प्रतीत हो रहा था।
नकुल के इशारे पर सब जूते उतारकर उसके सामने तगाड़ के दूसरी तरफ बिछे आसन पर बैठ गये। तब जाकर विराट को ढंग से कनिका की सूरत दिखाई दी।
उसका चेहरा थोड़ा लंबा था, आंखें बड़ी-बड़ी, नाक सुतवां, बाल कंधों से थोड़ा नीचे पहुंच रहे थे, और कर्ली थे। गर्दन लंबी और होंठ पतले, कुछ कुछ सोनम कपूर जैसा लुक दिखाई दे रहा था।
वह स्लेटी रंग की साड़ी और लो कट ब्लाउज पहने थे, जिसमें आसमान से उतरी अप्सरा नजर आ रही थी। साड़ी के कलर की बाबत विराट का अंदाजा गलत भी हो सकता था क्योंकि टेबल लैंप एकदम कनिका के करीब ही रखा था जो कि लाल रोशनी फेंक रहा था, जिसके कारण उसका चेहरा तपता सा दिखाई दे रहा था।
अलबत्ता इस बात में कोई शक नहीं था कि मनीराज गोपालन ने उसकी खूबसूरती का बखान बिना किसी अतिश्योक्ति के किया था।
बहन के विपरीत भाई बेहद आम शक्लो सूरत वाला युवक था। कद उसका लंबा था और काले रंग के चोगे में वह पूरा का पूरा तांत्रिक ही जान पड़ता था।
आखिरकार नकुल ने आंख बंद किया, अंदाजे से थाली में हाथ डालकर मुट्ठी भर चावल उठाया, फिर कोई अजीब सा मंत्र पढ़ते हुए हाथ ऊपर ले जाकर यूं छिड़क दिया कि वहां बैठे हर शख्स के ऊपर जाकर गिरे ही गिरे।
उसने दोबारा मुट्ठी भरी और उठकर कनिका के चारों तरफ चावल के दानों का एक वृत सा बना दिया। तत्पश्चात वैसा ही उसने बाकी सबके साथ किया और वापिस अपने आसन पर आकर बैठ गया।
“मैं जानता हूं आपमें से कोई भी मुझपर यकीन नहीं करता - वह यूं बोला जैसे किसी किताब से पढ़कर बोल रहा हो - कोई बात नहीं, थोड़ी देर बाद करने लग जायेंगे। मगर वैसा वक्त आने से पहले आप सभी के लिए चेतावनी है। कोई भी मेरा अनुष्ठान पूरा होने से पहले अपनी जगह से नहीं उठेगा। मेरे द्वारा बनाये गये अक्षत घेरों से बाहर तो हरगिज भी नहीं निकलेगा। भले ही यहां आपको कितनी भी डरावनी चीजें क्यों न दिखाई देने लग जायें। हो सकता है आपको आत्मायें खुद पर हमला करती नजर आने लगें, ये भी हो सकता है कि आप सब खून में नहा जायें, या कोई डरावनी आवाज आपको भाग जाने का हुक्म देने लगे। मगर किसी भी हाल में आपको अपनी जगह नहीं छोड़नी है। छोड़ेंगे तो कुछ भी हो सकता है। कुछ भी से मेरा मतलब है आप में से किसी की जान भी जा सकती है। इसलिए अभी भी वक्त है, कोठारी साहब को छोड़कर जो भी यहां से बाहर जाना चाहे जा सकता है, क्योंकि जरूरत सिर्फ उन्हीं की पड़ने वाली है। इनके जरिये ही मैं आह्वान के बाद यहां पहुंची शक्तियों को मधु की तलाश में भेज पाऊंगा, क्योंकि मधु की यादें सबसे ज्यादा इन्हीं के जेहन में होंगी।”
कोई अपनी जगह से नहीं हिला।
“पुलिस ऑफिसर्स से विनती है कि अपनी अपनी रिवाल्वर निकालकर कहीं दूर फेंक दें। नहीं फेंक सकते तो अनलोड कर लें, ताकि घबराहट में आपके हाथों कोई गोली न चल जाये।”
सुनकर जोशी ने विराट की तरफ देखा तो उसने सहमति में सिर हिला दिया। तत्पश्चात दोनों ने नकुल को दिखाते हुए गन अनलोड कर के गोलियां अपनी जेब में और रिवाल्वर को गोद में रख लिया।
“आखिरी चेतावनी - नकुल का लहजा इस बार बड़ा ही भयानक था - कोई भी कैसी भी आवाज नहीं निकालेगा, चीखने जितनी तो हरगिज भी नहीं।”
इस बार भी सब चुप रह गये।
तब नकुल ने वहां रखा लोटा बायें हाथ की हथेली पर रखा और दायें हाथ की अंजुली पानी से भरते हुए मुंह के पास ले जाकर कोई मंत्र पढ़ा फिर पूरी ताकत से तगाड़ में रखी लकड़ियों पर फेंक दिया।
तत्काल अग्नि जल उठी।
कोठारी विस्मित निगाहों से नकुल की तरफ देखने लगा। मगर विराट और जोशी पर उसका कोई खास असर इसलिए नहीं हुआ क्योंकि बाबा महाकाल पहले ही वैसा एक चमत्कार उन्हें दिखा चुका था।
“अंडालिका, चंडालिका, मंडालिका - नकुल दोनों हाथ हवा में उठाकर गरजता हुआ बोला - प्रगट हों, प्रगट हों, प्रगट हों। हे पवित्र आत्माओं आज तुम्हारे इस साधक को तुम्हारी जरूरत है। आओ, आ जाओ, अब आ भी जाओ। कहां हो तुम, किधर हो, चली आओ।”
कहकर उसने चावल के कुछ दाने उठाये, मुंह के पास ले जाकर मंत्र बुदबुदाया और उन्हें अग्नि के हवाले कर दिया। लपटें एकदम से ऊंची हो उठीं।
“आओ चली आओ कहां हो तुम? - कहने के बाद वह पहले से कहीं ज्यादा जोर से बोला - धोखा देने की सोचना भी मत, वरना पछताओगी, आज मेरा अभीष्ट पूरा नहीं हुआ तो मैं तुम्हें नकारा समझ लूंगा, आओ चली आओ।”
कुछ नहीं हुआ।
तब उसने थाली में रखे कुछ नाखून उठाये, मुंह के पास ले जाकर मंत्र बुदबुदाया फिर पूरी ताकत के साथ हवनकुंड में फेंक दिया।
उसी वक्त वहां जलता टेबल लैंप एकदम से बुझ गया। अब बेसमेंट में बस वहां जलती आग की ही रोशनी थी, जिसके पीछे नकुल का चेहरा बड़ा ही वीभत्स नजर आ रहा था। अलबत्ता स्पष्ट कुछ दिखाई नहीं दे रहा था क्योंकि बीच में आग की ऊंची लपटें और थोड़ा धुआं फैला हुआ था।
नाखूनों की आहूति के बाद भी कुछ नहीं हुआ तो नकुल ने वहां पड़े बालों का एक गुच्छा उठाया और जोर से बोला, “आओ या मरो, करो या भष्म हो जाओ। अंडालिका, मंडालिका, चंडालिका, ये तुम्हें मेरी आखिरी चेतावनी है।”
कहकर जैसे ही वह बालों के गुच्छे को अग्नि के पास ले गया, हॉल में किसी के जोर जोर से कराहने की आवाजें सुनाई देने लगीं। सबके रोंगटे खड़े हो गये। यूं लग रहा था जैसे कोई भयानक पीड़ा से गुजर रहा हो।
“मैं सच में भष्म कर दूंगा।”
“ऐसा मत करना अघोरी - एक स्त्री स्वर उनके कानों में पड़ा - अंडालिका तो तेरी दासी है।”
“मंडालिका भी।” दूसरी आवाज।
“चंडालिका भी।” तीसरी आवाज।
सुनकर नकुल ने बालों के गुच्छे को फर्श पर रखा और थाली से तीन कपूर की तरह कागज में लिपटी चीजें उठाकर हवन कुंड में डाल दिया। आग की लपटें पहले से कहीं ज्यादा ऊंची हो उठीं, साथ ही दिखाई दिया एक ऐसा अविश्वसनीय नजारा जिसने विराट और जोशी को भी आश्चर्य में डाल दिया।
आग की लपटों में तीन जनाना आकृतियों का आभास हुआ, यूं लगा जैसे तीन औरतें उन लपटों में घिरी हुई हों। फिर एक आवाज सबके कानों तक पहुंची।
“क्षमा अघोरी क्षमा, बोल क्या चाहता है तू?”
“ध्यान से सुनो कि मैं क्या चाहता हूं, करो कि मैं जो चाहता हूं - नकुल बुलंद लहजे में बोला - खोजो हर तरफ, देखो पूरी दुनिया में। आकाश, पाताल, और पृथ्वी तीनों छान मारो। कहां छिपी है मधु बताओ, देखकर उसका अक्श अतुल कोठारी के अंर्तमन में।”
तत्पश्चात अजीब सी आवाजें आने लगीं, जैसे कोई हंस रहा हो, या जैसे कुछ लड़कियां बातें कर रही हों। कुछ भुनभुनाया सा, झुंझलाया सा भी महसूस हो रहा था।
सब सांस थामें कुछ सामने आने का इंतजार करने लगे।
वह सिलसिला कुछ देर तक चला, फिर एक स्पष्ट किंतु धीमा नारी स्वर सबके कानों में पड़ा, “नहीं मिली, नहीं मिली। मायाजाल में उलझा है सबकुछ। हर तरफ घना अंधकार है, जिसे तुझे अपने खून से मिटाना होगा अघोरी, फिर तू देख पायेगा मधु को, महसूस कर पायेगा छल बल को, धुंध साफ हो जायेगी, ख्वाहिश पूरी हो जायेगी।”
“खून?”
“क्यों डर गया? - कोई लड़की हंसी - भांजी के लिए इतना भी नहीं कर सकता? बहुत डरपोक है रे तू।”
“कर सकता हूं, अभी करता हूं। झूठ हुई तुम्हारी बात तो आज खत्म होगा तुम्हारा संसार। रहम की भीख न मांग पाओगी, अमावस की चाह तो क्या पूरा कर पाओगी।” कहकर उसने चाकू उठाया।
सब एकदम हतप्रभ रह गये, साफ-साफ भले ही कुछ नहीं दिखाई दे रहा था, लेकिन इतना आभास फिर भी हो गया कि नकुल अपना अंगूठा चीर रहा था।
“अब क्या करना है?”
सन्नाटा।
“बोलो क्या करना है?”
सन्नाटा।
“मेरे साथ ऐसा खेल महंगा पड़ेगा कमीनियों, अभी जला डालूंगा।”
“खून की आहूति दे अघोरी फिर तेरी साधना अवश्य पूरी हो जायेगी।”
सुनकर उसने अपने अंगूठे से निकलते खून को वहां जलती आग में गिराना शुरू कर दिया।
“जला अपना अंगूठा जला। मांस जलने की गंध सबको महसूस होने दे, तभी तेरा अभीष्ठ पूरा हो पायेगा।”
नकुल ने वैसा ही किया, खून टपकते अंगूठे को आग के भीतर कर दिया। अगले ही पल उसका शरीर जोर जोर के झटके लेने लगा। मुंडी यूं दायें बायें होने लगी जैसे कोई जबरन किये दे रहा हो।
तत्पश्चात उसके मुंह से अजीब सी आवाजें निकलने लगीं, जैसे कोई कुछ चबा रहा हो, जैसे कोई शैतान दांत किटकिटा रहा हो, फिर उसने यूं बोलना शुरू किया जैसे भारी तकलीफ में हो, “अंधकार! घोर अंधकार, अमावस की काली रात। हर तरफ सन्नाटा। सन्नाटे में हवेली, हवेली में नरसंहार। हर तरफ एक धुंध, कहकहों की आवाजें। अंधेरा, घना अंधेरा, जिसके बीच से निकले सात मानव, सातों के हाथों में बच्ची, चलते रहे, चलते रहे, कुछ दूर निकल गये, फिर कुछ छिड़क कर उसकी चिता जला दी, वह जल गयी, हाय मेरी भांजी जल गयी। मार डाला कमीनों ने, जलाकर मार डाला उसे। विश्वासघात घोर विश्वासघात। नर्क में जायेंगे सब, आह नर्क में जायेंगे सब - कहकर वह जोर जोर से चींखने लगा - बचाओ, बचाओ।”
और अगले ही पल एकदम से पीठ के बल नीचे जा गिरा। उसका शरीर जोर जोर से तड़पने लगा। मुंडी यूं छटपटा रही थी जैसे किसी से गर्दन छुड़ाने की कोशिश कर रहा हो।
‘क्या वह शख्स मर रहा था?’ विराट ने खुद से पूछा।
मगर जवाब आसान कहां था।
उसने उठने की कोशिश की, तभी कनिका ने इशारे से मना कर दिया।
कुछ देर तक नकुल फर्श पर बुरी तरह तड़पता रहा फिर शांत पड़ गया। उसके शरीर में कोई हरकत शेष नहीं दिखाई दे रही थी। विराट और जोशी को तो जैसे यकीन ही आ गया कि नकुल अपनी जान से हाथ धो बैठा था।
मगर कनिका कोठारी अभी भी ज्यों की त्यों, जहां की तहां तठस्थ हुई थी। भाई की तरफ निगाह घुमाकर भी देखने की उसने कोशिश नहीं की।
‘क्या पुलिस को जानबूझकर उस खेल में शामिल किया गया था, क्योंकि दोनों मियां बीवी जानते थे कि अनुष्ठान के दौरान क्या होने वाला था?’ विराट ने एक बार फिर से खुद से सवाल किया।
और इस बार कनिका को इशारा करने के मौका दिये बगैर उठकर लपकता हुआ नकुल के पास पहुंच गया। उसकी नब्ज चेक की तो वह सामान्य ही मिली, मगर धड़कने बहुत बढ़ी हुई थीं, और सांस तो वह ले ही नहीं रहा था।
विराट ने एक पल भी जाया किये बिना उसे अपने दोनों हाथों में उठा लिया और किसी भी बात की परवाह किये बगैर बेसमेंट से ऊपर की सीढ़ियां चढ़ता चला गया।
“जोशी।” नकुल को फर्श पर लिटाता वह जोर से बोला।
“यहीं हूं सर।”
“कहीं से पानी लेकर आओ, जल्दी करो।”
“पानी - वह हड़बड़ाया - कहां से लाऊं?”
“ये मैं बताऊं तुम्हें?”
“सॉरी।” कहकर उसने बौखलाये अंदाज में इधर उधर देखा, फिर उसे बेसमेंट में रखे पानी के लोटे का ख्याल हो आया। तेजी से सीढ़ियां उतरता वह नीचे पहुंचा और वहां से लोटा उठा लाया।
लेकिन उसकी जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि उसके जाते के साथ ही लॉन में चलते पानी पर विराट की निगाह पड़ गयी। उसने एक बार फिर नकुल को उठाया और ले जाकर लॉन के सूखे हिस्से पर लिटाने के बाद पानी के पाईप का रूख उसकी तरफ कर दिया।
थोड़ा पानी उसके मुंह पर डालने के बाद पाईप नीचे फेंका और हिला डुलाकर उसे होश में लाने की कोशिश करने लगा। ये अलग बात थी कि उसके सांसें तब भी बंद थीं।
विराट ने उसकी छाती को पंप करना शुरू कर दिया। हालांकि धड़कनें चल रही थीं इसलिए उसकी कोई जरूरत नहीं थी, मगर और कुछ सूझ भी तो नहीं रहा था उसे। बहरहाल नतीजा तुरंत सामने आया। नकुल के चेहरे की रंगत वापिस लौटने लगी, सांसें भी चल निकलीं, फिर थोड़ी देर बाद उसने आंखें खोल दीं।
तब तक वहां कोठारी मियां बीवी के अलावा, घर के तमाम नौकर चाकर भी इकट्ठे हो चुके थे, और हैरानी के साथ वह नजारा देख रहे थे।
“ठीक हो तुम?” विराट ने पूछा।
“हां..हां ठीक हूं।”
“क्या हुआ था?”
“गलत जगह पर पहुंच गया था।”
“मतलब?”
“एक ऐसी जगह चला गया, जहां एंट्री परमिटेड तो नहीं ही थी, वहां का रखवाला या मालिक जो कोई भी था, बहुत ही ताकतवर शख्स था। हालांकि चेतावनी उसने मुझे पहले ही दे दी थी, मगर एक तो मुझे यकीन था कि उसका मुकाबला कर लूंगा, दूसरी बात ये कि मैं मधु के बारे में जानने को इतना बेसब्रा हो रहा था कि कोई भी खतरा मोल लेने को तैयार हो गया। वो तो अच्छा हुआ जो आप मुझे आसन से उठाकर बाहर ले आये, वरना वह कमीना मेरी जान लेकर ही मानता।”
विराट ने पल भर को अजीब सी निगाहों से उसे देखा फिर सवाल किया, “था कौन, तुमने किसी हवेली का भी जिक्र किया था?”
“हां वह कोई हवेली ही थी, कहां स्थित है इसका पता नहीं लगा सका क्योंकि जगह एकदम अंजान थी। दूर दूर तक खेत खलिहान फैले हुए थे। कुछ गांव भी दिखे, मगर वहां तक पहुंचने ही नहीं दिया कमीने ने। कहता था मैंने उसकी सल्तनत में बिना इजाजत प्रवेश किया था जिसकी सजा मौत थी।”
“कोई नाम भी बताया था?”
“हां बताया था कुछ महाराज कर के था, लेकिन मैं ढंग से सुन नहीं पाया था, क्योंकि वहां कई आत्माओं के ठहाके गूंज रहे थे। हर तरफ चींख पुकार भी मची हुई थी।”
“कहीं चंद्रशेखर महाराज तो नहीं कहा था?”
“एग्जैक्टली, आप जानते हैं उसके बारे में?”
“तुमने कुछ और भी कहा था - विराट उसकी बात को नजरअंदाज कर के बोला - जैसे कि सात लोग, जला डाला, वगैरह वगैरह।”
“हां, चेहरे भले ही उनके क्लियर नहीं थे, लेकिन गिनती में सात ही थे। साये जैसे दिखाई दे रहे थे। उनमें से चार साये कद में लंबे थे, जबकि तीन बहुत छोटे, जो कि बाकी के चारों के कंधों तक ही पहुंच रहे थे।”
“क्या वो सब भी प्रेतात्मायें ही थीं?”
“नहीं, अगर वैसा होता तो आग में मधु को जला डालने की कोशिश हरगिज भी नहीं कर पाये होते, क्योंकि किसी भी प्रेतात्मा के लिए अग्नि काल के समान होती है, सब के सब तुरंत भष्म हो गये होते।”
“क्या बकवास कर रहे हो तुम? - उसकी बात अब तक पूरी शांति के साथ सुनता कोठारी भड़क कर बोला - मेरी बेटी को भला कोई आग के हवाले क्यों करेगा, क्या दुश्मनी थी उसके साथ किसी की?”
“मैं नहीं जानता जीजू, काश कि मैं उन सब का चेहरा देख पाया होता। मगर उस कमीने चंद्रशेखर ने तो मुझे यूं काबू में कर लिया कि हर तरफ एक अजीब सी धुंध छा गयी। फिर वह मुझे खत्म करने ही जा रहा था कि मैं उसके रचे जाल से बाहर निकल आया। मगर इतना यकीन जानिये कि अब हमारी मधु जिंदा नहीं मिलने वाली जीजू।” कहकर वह जोर जोर से रोने लग गया।
“तुम्हें इसकी बातों पर यकीन है इंस्पेक्टर?” कोठारी ने घबराकर विराट से सवाल किया।
“नहीं, लेकिन इसके कहे की जांच कर लेने में कोई हर्ज नहीं है - कहकर उसने वापिस नकुल के चेहरे पर निगाहें टिका दीं - ये बताओ कि जहां तुमने मधु को जलाये जाते देखा था, वह जगह हवेली से कितनी दूर थी?”
“पचास मीटर, बड़ी हद पचहत्तर, इससे ज्यादा नहीं।”
“कोई पहचान उस जगह की?”
“एक खूब बड़ा और घना पेड़ लगा हुआ था, शायद नीम का था, पक्का नहीं कह सकता। उसी के नीचे वह चिता जलती देखी थी मैंने। और एक बात अभी कहे देता हूं कि मेरी तांत्रिक शक्तियों पर शक करने से कुछ हासिल नहीं होगा। अगर आपको जरा भी अंदाजा है कि जिस हवेली का मैंने जिक्र किया था, वह कहां हो सकती है, तो जाकर जांच पड़ताल कीजिए, कोई न कोई सुराग जरूर मिल जायेगा।”
“जरूर करेंगे, वह बात तो मैं पहले ही कह चुका हूं। और बेशक मैं उस हवेली को भी जानता हूं। आप बस एक आखिरी सवाल का जवाब दे दो, फिर मैं लगता हूं अपने काम पर?”
“पूछिये?”
“शनिवार की रात को तुम कहां थे?”
“कहां था? - उसने अपने दिमाग पर जोर डालने की कोशिश की फिर कनिका की तरफ देखता हुआ बोला - दीदी तुम्हें याद है कि उस रात हमने डिनर कब किया था?”
“याद है, ग्यारह बजे के बाद, फिर तुम लॉन में वॉक करने चले गये, इसलिए मैं नहीं जानती कि उसके बाद बंगले से बाहर निकले थे या नहीं।”
“नहीं गया था, वॉक के बाद अपने बेडरूम में जाकर सो रहा था मैं।”
विराट ने कोठारी की तरफ देखा, मानो पूछना चाहता हो कि क्या उसका साला सच बोल रहा था।
“मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता, क्योंकि उस रात मैं मुंबई में था, जहां से रविवार की अर्ली मॉर्निंग फ्लाईट पकड़कर वापिस लौटा था। मेरे ख्याल से दस बजे तक घर पहुंच गया था।”
“ठीक है सर, मैं जाकर इंवेस्टिगेट करता हूं, इस यकीन के साथ, बल्कि उम्मीद के साथ कि आपके साले साहब अपने तांत्रिक अनुष्ठान में फेल हो गये थे, इसलिए मधु के साथ वह नहीं हुआ हो सकता, जिसका जिक्र ये हमसे कर के हटे हैं।”
“भगवान करें तुम्हारा सोचा ही सही हो इंस्पेक्टर - कनिका बोली - बल्कि सही ही निकलेगा, ये - उसने नकुल की तरफ देखा - कोई भगवान थोड़े ही है, जो यहां बैठे बैठे इतनी बड़ी बात का पता लग गया इसे।”
जवाब में विराट ने बड़े ही गंभीर भाव से सहमति में सिर हिलाया फिर जोशी को गेट की तरफ बढ़ने का इशारा कर दिया।
“शनिवार की रात यहां किसकी ड्यूटी थी?” बाहर निकलकर उसने गार्ड से सवाल किया।
“शम्भू की सर।”
“अभी कहां मिलेगा?”
“अपने घर पर ही होगा, मगर पता साहब लोगों को मालूम होगा, मुझे नहीं, हां मोबाईल नंबर दे सकता हूं अगर आप चाहें।”
“ठीक है नोट करा दो।” कहकर उसने गार्ड का बताया नंबर अपने मोबाईल से डॉयल कर के काट दिया।
तत्पश्चात दोनों बाहर खड़ी फॉर्च्यूनर में सवार हो गये।
“इस बार तो लगता है सर कि हत्यारा हमें पारलौकिक चीजों पर यकीन दिलाकर ही मानेगा। जिस तरह से नकुल ने हमारी आंखों के सामने तीन आत्माओं का आह्वान कर के दिखाया, वह अपने आप में अद्भुत बात थी, कम से कम मैंने तो अपने जीवन में वैसा चमत्कार कभी नहीं देखा।”
“फिर तो मान ही लो जोशी साहब कि आज के वक्त में भी ऐसे तंत्र मंत्र के ज्ञाता मौजूद हैं जो आत्माओं से बात कर सकते हैं, उनसे अपनी चाकरी करा सकते हैं।”
“ठीक कहते हैं सर, और कहीं उसका कहा सच निकल आया तो ऐसे ज्ञानी पुरूष के चरण छूने कम से कम एक बार तो कोठारी के बंगले पर जरूर आऊंगा मैं।”
“ये कहो कि छूने के बहाने कनिका कोठारी का दीदार करने आओगे - विराट हंसता हुआ बोला - जिसपर तुम्हारी निगाहें तकरीबन पूरे अनुष्ठान के दौरान टिकी रही थीं।”
“मैं इंकार नहीं करूंगा सर, बेसमेंट में उसकी सूरत से मेरी निगाह हटकर ही राजी नहीं हो रही थी। जैसे कोई जादू कर दिया हो उसने। दिल होता था बस उसे देखता रहूं। मगर इसका मतलब ये नहीं है कि मैं किसी गलत मंशा से उसकी तरफ देख रहा था।”
“तुम तो सफाई देने लगे।” विराट फिर हंस पड़ा।
“आपका वहम दूर करने की कोशिश कर रहा हूं।”
“अब रहने भी दो जोशी साहब, मैं क्या तुमसे आज मिला हूं?”
“आपको लगता है मेरी फितरत ही ऐसी है?”
“नहीं है, तभी तो उसको एकटक देखना तुम्हारे दिल की हालत साफ बयान किये दे रहा था। औरतों को घूरना तुम्हारी आदत में शुमार होता तो पहले भी वैसा करते जरूर दिखाई दिये होते।”
“शुक्र है आप मेरे चरित्र पर उंगली नहीं उठा रहे।”
“अभी तक तो नहीं।”
“आगे भी कोशिश यही रहेगी सर कि आपका जवाब हर बार ‘नहीं’ में ही हो।”
“छोड़ो उस बात को, ये बताओ कि नकुल के कहे पर, यानि इस बात पर कितना यकीन है तुम्हें कि मधु को जलाकर मार दिया गया?”
“जिस दावे के साथ उसने वह बात कही थी सर, उसको ध्यान में रखकर कहूं तो सौ फीसदी यकीन है। इस बात पर भी है कि उसके पास कोई ना कोई शक्ति जरूर है, तभी तो आत्माओं का आह्वान करने में कामयाब हो गया।”
“अगर ऐसा है तो जो काम उसने आज किया है, उसे रविवार को ही क्यों नहीं कर डाला? तब जबकि मधु की गुमशुदगी के बारे में पता लगा था।”
“उसे उम्मीद रही होगी कि लड़की को हम लोग ढूंढ निकालेंगे, या उसके दोस्तों के भी लापता हो जाने की वजह से सोच रहा होगा कि मधु भी उनके साथ ही कहीं चली गयी होगी।”
“हो सकता है, आगे उसके प्रलाप पर यकीन करें तो मधु को उसके सातों दोस्तों ने मिलकर जलाया था, और मान लो हवेली के आस-पास जलाये जाने के सबूत अगर हमारे हाथ लग जाते हैं, तो उसके बाद हम क्या करेंगे जोशी साहब?”
“सातों को अंदर कर देंगे और क्या करेंगे सर?”
“किस बिना पर? इसलिए क्योंकि मधु के तांत्रिक मामा ने हमसे कहा था कि हत्यारों की संख्या सात थी? क्या कोर्ट में केस लगते ही मुंह के बल नहीं जा गिरेगा?”
“गिरफ्तार होने के बाद वह सातों भी तो कुछ बकेंगे सर, फिर उसी के जरिये सबूत जुटाने में भी कामयाब हो जायेंगे हम।”
“मुझे तो मामला कुछ और ही जान पड़ता है।”
“वजह?”
“पहले ये बताओ कि तुम्हें क्या लगता है? - विराट ने पूछा - मधु को जान से मार देने का इरादा उन सातों ने पहले से बना रखा होगा या इत्तेफाक से उस हवेली में ऐसा कुछ घटित हो गया जिसके कारण उसकी जान लेनी पड़ गयी?”
“मेरे ख्याल से तो प्री प्लांड मर्डर नहीं हो सकता सर। होता तो लड़की के मोबाईल की लोकेशन उनके आस-पास नहीं मिली होती हमें। फिर किया ये होता कि सब के सब अपना मोबाईल घर से निकलने से भी पहले ऑफ कर चुके होते, ताकि बाद में जो लोकेशन मधु की हासिल होती, उससे किसी और के वहां होने का पता नहीं लगता हमें।”
“बेशक, मुझे भी यही लगता है कि वह मर्डर प्री प्लांड नहीं था। ऐसे में सवाल ये बनता है कि हवेली में ऐसा भला क्या हुआ हो सकता है, जिसके कारण उन्हें अपने ही दोस्त की जान लेनी पड़ गयी?”
“जरा उन सबका किरदार भी तो देखिये सर, एकदम बिंदास, किसी बात की कोई फिक्र नहीं, ऐसे लोग जो महज ये देखने के लिए गिरफ्तार हो जाना पसंद करते हैं कि लॉकअप में रात गुजारना कैसा होता है। ऊपर से खुद को हर प्रकार के एहसासों से दूर बताते हैं।”
“मतलब क्या हुआ इस भाषण का?”
“मधु गेम में हार गयी थी, जिसकी सजा न्यूड डांस था। मेरे ख्याल से तो कोई भी लड़की इतनी बेशर्म नहीं हो सकती कि सात लोगों के सामने जिसमें से चार मर्द थे, बिना कपड़ों के डांस करने को तैयार हो जाती। मुझे यकीन है कि वह भी नहीं हुई होगी। मगर वह हार गयी थी, इसलिए सब उसे सजा देना चाहते थे, और जब लाख कोशिशों के बावजूद भी लड़की अपने कपड़े उतारने को तैयार नहीं हुई तो गुस्से में आकर उनमें से किसी ने उसका गला दबा दिया, किसी धारदार हथियार से उसकी जान ले ली, या गोली ही मार दी गयी होगी, जिसके बाद साक्ष्य मिटाने की गरज से उसकी लाश को आग के हवाले कर दिया गया और आगे वह कहानी गढ़ी गयी जो हम उनके मुंह से पहले ही सुन चुके हैं।”
“लेकिन उनकी कहानी के कुछ हिस्से को नकुल भी तो सच बताता है। जैसे कि चंद्रशेखर महाराज की भटकती आत्मा वाली बात, जिसने खुद उसे भी कुछ क्षणों के लिए परलोक के दर्शन करा दिये थे?”
“पहले लाश जलाये जाना साबित तो हो जाये सर, फिर सोचेंगे कि असल में क्या हुआ हो सकता है।”
“अभी अभी एक वजह मेरे भी जेहन में आई है।”
“यानि मिस्ट्री सॉल्व।”
“इतने उतावले मत बनो, क्योंकि वजह मामूली है और बहुत दूर की कौड़ी दिखाई देती है।”
“क्या?”
“दो महीने पहले गायब हुआ राहुल हांडा अभी तक नहीं मिला, इसलिए बहस के लिए मान लो कि उसका भी कत्ल किया जा चुका है।”
“ठीक है मान लिया।”
“और कातिल उसके सात दोस्तों में से ही कोई एक था, मगर ये बात कोई नहीं जानता था कि उसे किसने मारा, लेकिन हवेली की पार्टी वाली रात को हत्यारे के मुंह से कोई ऐसी बात निकल गयी जिससे मधु को पता लग गया कि राहुल का कत्ल उसी ने किया था। हत्यारा उस बात को सामने नहीं आने देना चाहता था इसलिए उसने लड़की को खत्म कर दिया।”
“अगर ऐसा था तो साक्ष्य मिटाने में बाकी लोगों ने उसकी हैल्प क्यों की?”
“क्योंकि मधु को उसने यूं खत्म किया था जिससे बाकी सबको वह महज हादसा लगा था। यानि आगे जो मुसीबत टूटती वह सातों पर टूटती इसलिए मिलकर फैसला किया कि मधु कोठारी की लाश को आग के हवाले कर दिया जाये। फिर जानबूझकर एक ऐसी कहानी गढ़ी जिसपर विश्वास भले ही कोई नहीं करता, मगर कील ठोंककर उनके कहे को गलत भी करार नहीं दे सकता था क्योंकि हवेली के किस्से आस-पास के गांवों में खूब मशहूर हैं।”
“और राहुल का हत्यारा जयदीप नहीं हो सकता, क्योंकि उसने तो बीस दिन पहले ही पापी मंडली जॉयन की थी।”
“अच्छा सुझाया, एक काम करते हैं, केस को मधु वाले एंगल से ना टटोलकर राहुल की हत्या वाले एंगल से इंवेस्टिगेट करते हैं, जैसा कि पहले दिन करना शुरू किया था। और संभावित कातिलों की लिस्ट से जयदीप के साथ साथ मधु को भी बाहर कर देते हैं। आगे बतौर कातिल हमारे सामने बस छह लोग बचे रह जाते हैं, जिनपर हमें खास ध्यान देना है - फिर क्षण भर रुककर बोला - एसीपी साहब आज हवेली में फॉरेंसिक टीम भेजने वाले थे, जरा फोन कर के मालूम तो करो कि वे लोग पहुंचे हैं या नहीं?”
“साहब को फोन नहीं कर सकता मैं।”
“महेश को कर लो, मैंने उसे मुखिया को उठाने भेजा था, इसलिए उसी इलाके में गया होने के कारण कोई ना कोई खबर जरूर होगी उसके पास।”
जोशी ने एएसआई महेश गुर्जर का नंबर डॉयल कर के उस बारे में दरयाफ्त किया तो पता लगा वह मुखिया प्रवीन सिंह को एसीबी हैडक्वार्टर पहुंचा भी चुका था। ये भी क्लियर हो गया कि फॉरेंसिक टीम हवेली की खाक छान रही थी, और एसीपी राजावत खुद अपनी देख रेख में वह काम करा रहा था।
जोशी ने वह बात विराट को बताई तो उसने फौरन गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी।
चंद्रशेखर महाराज की हवेली उस वक्त छावनी में तब्दील हुई दिखाई दे रही थी। दो दर्जन पुलिस वाले, जिसमें से छह हरियाणा पुलिस के जवान थे, एसीपी राजावत की अगुआई में बाहर खड़े होकर फॉरेंसिक टीम के फारिग होने का इंतजार कर रहे थे। ज्यादा संख्या में फोर्स का इंतजाम इसलिए किया गया था क्योंकि इलाका देहाती था, और कई बार ऐसी जगहों पर खामख्वाह के बवेले उठ खड़े होते थे। फिर हवेली तो पहले से ही विवादों के घेरे में थी।
गांव के लोगों की तादाद वहां निरंतर बढ़ती जा रही थी, अलबत्ता दखलअंदाज होने वाला उनमें से एक भी नहीं था। सब दूर खड़े तमाशा देख रहे थे। अटकलें लगा रहे थे। वहां क्या चल रहा था, इस मुद्दे पर अपना-अपना ज्ञान बघार रहे थे। ये अलग बात थी कि माजरा किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था।
गाड़ी को हवेली के गेट से थोड़ा परे खड़ा कर के विराट राणा और सुलभ जोशी नीचे उतरकर एसीपी की तरफ बढ़ चले, जो उस वक्त गेट के पास खड़ा मोबाईल पर किसी से बात कर रहा था।
दोनों ने उसके फारिग होने का इंतजार किया, फिर विराट ने पूछा, “कुछ पता लगा सर?”
“बाहर चबूतरे और सीढ़ियों पर जो खून साफ किया गया था, वह ना सिर्फ इंसानी है, बल्कि उसका ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव है जो कि मधु कोठारी का भी था। बाकी काम अभी चल रहा है, देखो कुछ खास हासिल होता है या नहीं।”
“होना तो बराबर चाहिए सर, खून अंदर भी तो फैला हुआ है।”
“तुम्हें कैसे मालूम?”
विराट बस क्षण भर को सकपकाया फिर बात संभालता हुआ जल्दी से बोला, “लगता है आप भूल गये कि कल रात हम दोनों ने यहां का फेरा लगाया था। उसी दौरान सरसरी नजर भी डाल ली थी, जिसमें खून के धब्बे हमारी आंखों से छिपे नहीं रह सके थे।”
“जिक्र क्यों नहीं किया?”
“सॉरी सर, बात ध्यान से उतर गयी थी।”
“इट्स ओके, वेट एंड सी।”
“हम जरा हवेली के आस-पास नजर मारकर आते हैं सर।”
“क्यों?”
“क्या पता कोई सुराग हासिल हो जाये।”
“ठीक है जाओ।”
सुनकर दोनों हवेली की दीवार के साथ-साथ दाईं तरफ को आगे बढ़ते चले गये। उनकी निगाहें दूर दूर तक दौड़ रही थीं, पेड़ भी कई दिखाई दिये मगर उनमें से ऐसा कोई नहीं था जिसे घना कहा जा सके, क्योंकि सब के सब कीकड़ के पेड़ थे, जिनमें से आधे से ज्यादा सूखे पड़े थे।
मगर आखिरी छोर पर पहुंचकर जब दोनों बायें मुड़े तो थोड़ी दूरी पर मौजूद एक पेड़ पर उनकी निगाह पड़कर रही। पेड़ बड़ा भी था और घना भी, हां नीम का था या कोई और, ये बात वहां से नहीं मालूम पड़ रही थी।
दोनों की चाल में अचानक ही तेजी आ गयी।
वह पेड़ हवेली के पीछे की तरफ उससे कम से कम भी सौ मीटर की दूरी पर था, मगर वैसा कोई दूसरा पेड़ वहां नहीं दिखाई दे रहा था, इसलिए दोनों ने सहज ही सोच लिया कि नकुल को हवेली और पेड़ के बीच फासले का अंदाजा लगाने में गलती हो गयी थी। वैसे भी अनुष्ठान के वक्त जिस तरह की मानसिक स्थिति से वह गुजर रहा था, उसमें ऐसे अंदाजों का गलत निकल आना कोई बड़ी बात नहीं कही जा सकती थी।
ज्यों ज्यों दोनों पेड़ के करीब पहुंचते जा रहे थे, उनकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी, क्योंकि आगे ना सिर्फ नकुल के कहे का सच झूठ सामने आ जाना था, बल्कि ये भी पता लग जाने वाला था कि तंत्र मंत्र जैसी शक्तियों का वास्तव में कोई वजूद है या नहीं।
चलते चलते जोशी की निगाह अपने आगे की जमीन पर पड़ी तो वह जहां का तहां ठिठक गया। सामने कुछ छोटे छोटे धब्बे दिखाई दे रहे थे। काले रंग के धब्बे, जिसे जमीन पर बैठकर गौर से देखा तो पता लगा कि वह खून था।
विराट तब तक कुछ कदम आगे जा चुका था, मगर जोशी को वहां की जमीन का मुआयना करते देखकर वापिस लौट आया, “क्या हुआ?”
“नकुल की बात सच होती जान पड़ती है सर।” कहकर उसने बैठे ही बैठे अपने पीछे निगाह दौड़ाई तो वैसे ही कई धब्बे और दिखाई दे गये, जो पहले इसलिए नहीं दिखे थे क्योंकि उनका पूरा का पूरा ध्यान पेड़ की तरफ था।
“तुम्हारा मतलब है ये खून के धब्बे हैं?”
“लगते तो वैसे ही हैं सर।”
“जो कि तब बने होंगे जब मधु कोठारी की लाश को हवेली से निकाल कर पेड़ तक पहुंचाया जा रहा होगा?”
“बशर्ते कि सच में वैसा कुछ हुआ हो।” कहकर जोशी उठ खड़ा हुआ।
दोनों पेड़ के करीब पहुंचे तो पाया कि वह नीम का ही पेड़ था। मगर ये देखकर उनका मन निराशा से भर उठा कि उसके नीचे किसी लाश को जलाये जाने के कोई चिन्ह मौजूद नहीं थे। हां खून के धब्बे वहां तक पहुंचे बराबर दिखाई दे रहे थे।
“यह जगह कोई अखाड़ा तो नहीं हो सकती, है न सर?”
“मतलब?”
“जरा ध्यान से यहां की मिट्टी को देखिये - जोशी बोला - यूं लग रहा है जैसे यहां कई लोगों ने जमकर उछल कूद की हो। कई जोड़ी पैरों के निशान भी साफ दिखाई दे रहे हैं।”
“पैरों के नहीं जोशी साहब, जूतों के।”
“मेरे कहने का मतलब वही था सर।”
“फिर तो बाकी की बात भी कह ही डालो, जिसको बोलने के लिए बहुत बेकरार दिखाई दे रहे हो।”
“लगता है पकड़ लिया सर ने?”
“नहीं तुम बताओ।”
“मुझे लगता है सर कि लाश को जलाने के बाद यहां जमीन में दफ्न कर दिया गया था, या फिर पहले गड्ढा खोदकर लाश उसके भीतर डाली गयी और तेल छिड़क कर आग लगा दिया गया। फिर खोदी गयी मिट्टी को वापिस गड्ढे में डालकर उसे भर दिया गया और जो उछल कूद यहां की गयी दिखाई देती है वह इसलिए है क्योंकि बाद में खुदाई के निशान मिटाने की असफल कोशिश की गयी थी। बस समझ में ये नहीं आ रहा कि गड्ढे से निकली बाकी की मिट्टी कहां गयी, आस-पास तो दिखाई नहीं दे रही है।”
“कहीं दूर ले जाकर फेंक आये होंगे - विराट बोला - वरना एक नजर में ही पता लग जाता कि यहां कोई गड्ढा खोदकर वापिस भर दिया गया था।”
“यानि आपको मेरी बात से इत्तेफाक है?”
“यस ऑफ कोर्स, प्लीज कैरी ऑन।”
“मतलब?”
“खोदकर देखो भाई।”
“मैं खोदूं?”
“और कौन खोदेगा? मैं तुम्हारा सीनियर हूं, इसलिए इतने मामूली काम खुद कैसे कर सकता हूं, हां तुम साथ नहीं होते तो मजबूरी होती।”
जोशी हंसा।
“काम में ध्यान लगाओ भई।”
“खोदना चाहूं भी तो कैसे खोदूं सर? कोई औजार भी तो होना चाहिए।”
“प्रॉब्लम तो है यार। ऐसा करते हैं कि थोड़ी मिट्टी उंगलियों से कुरेद कर देखते हैं, कुछ हासिल होने की उम्मीद हुई तो एसीपी साहब को खबर कर देंगे, जिसके बाद आगे का काम फॉरेंसिक टीम खुद कर लेगी।”
“ठीक है।” कहकर जोशी नीचे बैठकर अपने पंजों से मिट्टी खोदने लगा, विराट भी पूरे मनोयोग के साथ उस काम में जुट गया।
मिट्टी थोड़ी जम सी गयी थी, इसलिए दिक्कत तो हो रही थी, मगर हार मानने को उनमें से कोई भी तैयार नहीं था, इसलिए कामयाबी हासिल हो जाना महज वक्त की बात थी।
जो कि होकर रही।
एक ही जगह पर छह सात इंच की खुदाई करने के बाद जो मिट्टी निकलनी शुरू हुई उसका काफी सारा हिस्सा काला नजर आ रहा था, जैसे किसी ने मिट्टी में राख मिलाकर वहां दबा दिया हो।
फिर जोशी के हाथ कुछ लगा, मगर ऊपर खींचने की कोशिश की तो नाकामयाबी का सामना करना पड़ा, लेकिन उसके इर्द गिर्द की थोड़ी मिट्टी और खोदने के बाद जब इंसानी उंगलियों का नजारा हुआ तो दोनों ने अपने हाथ वापिस खींच लिये।
अब इस बात में कोई शक नहीं रह गया था कि वहां किसी का कंकाल ही दबा पड़ा था, जो कि मौजूदा हालात में मधु कोठारी के अलावा और किसी का नहीं हो सकता था।
विराट ने फोन पर वह सूचना एसीपी को दी, जिसके दो मिनट बाद ही फॉरेंसिक टीम के कुछ साईंटिस्ट के साथ राजावत वहां आ खड़ा हुआ।
खुदाई शुरू हो गयी। सब उत्सुकता के साथ रिजल्ट की प्रतीक्षा करने लगे। वहां लाश ही दबी पड़ी थी इसका पता तो फावड़े के तीन चार प्रहारों के बाद ही चल गया, अब तो बस ये साबित होना बाकी था कि वह लाश मधु कोठारी की थी या नहीं।
दस मिनट बाद एक अधजला मानव कंकाल दिखाई देने लगा। मृतक के जिस्म पर कई जगह मांस के लोथड़े अभी भी मौजूद थे। और कई जगहों को देखकर ऐसा लगता था जैसे किसी गिद्ध ने उसे नोंच खाया हो।
लाश को गड्ढे से निकालकर एक स्ट्रेचर पर लिटा दिया गया।
“ये मधु कोठारी की लाश है?” एसीपी ने पूछा।
“और किसकी हो सकती है सर?”
“पता कैसे लगा इसके यहां दबा होने का?”
“बहुत लंबी कहानी है सर जिसपर आपको जरा भी यकीन नहीं आने वाला। इसलिए वापिस लौटकर इत्मिनान के साथ सुनाऊंगा।
“डेड बॉडी को जांच के लिए लैब ले जाना होगा।” टीम का इंचार्ज बोला।
“बेशक ले जाइये, मगर जाने से पहले कुछ बताकर जाइये ताकि हम अपनी इंवेस्टिगेशन आगे बढ़ा सकें।”
“मरने वाली कोई लड़की थी।”
“उस बारे में हम पहले से जानते हैं, फिर कानों के इयर रिंग भी साबित किये दे रहे हैं कि लाश किसी लड़की की ही है।” एसीपी बोला।
“आगे मेरा ख्याल है कि जलाये जाने से पहले ही इसकी मौत हो चुकी थी। जिसकी वजह खतरनाक ढंग से किया गया ऐसा हमला रहा हो सकता है जो कोई जानवर ही कर सकता है। उसने पंजा मार मारकर इसके शरीर का गोश्त नोंच खाया था।”
“आपका मतलब है किसी वहशी इंसान का कारनामा है?”
“नहीं जानवर का मतलब यहां जानवर ही है। ऐसा वाइल्ड एनिमल जिसके नाखून बहुत लंबे थे, पंजे शक्तिशाली थे - कहकर उसने अपना दायां हाथ उठाकर पंजों को अकड़ाया और झपटने वाले अंदाज में राजावत की तरफ तानता हुआ बोला - ऐसे, इस तरह से हमला किया गया लगता है। जहां भी पंजा मारा मांस का एक बड़ा लोथड़ा शरीर से अलग कर दिया। घाव गर्दन, छाती और पेट पर किये गये, जिसमें से पेट वाला जख्म तो जल चुकने के बाद भी साफ नजर आ रहा है।”
“यहां इतना भयानक जानवर कहां से आ गया?”
“वह जानना आप लोगों का काम है।”
“और कुछ?”
“लड़की के गले में एक चैन है जिसमें जड़ा हीरे का पेंडेंट बहुत कीमती मालूम पड़ता है, जहां तक मेरा अपना अनुमान है चार-पांच लाख से कम का तो क्या होगा, ये बात भी जाहिर करती है कि हत्यारा कोई आम शख्स नहीं था। होता तो कम से कम चैन तो जरूर निकाल ले गया होता।”
“जानवर का चैन में भला क्या इंट्रेस्ट हो सकता है?”
“एग्जैक्टली।”
“लेकिन कोई जानवर अपने शिकार को आग के हवाले कैसे कर सकता है?”
“नहीं कर सकता, इसलिए मुझे लगता है कि जान लेने वाला और जलाने वाला एक नहीं था। और जिन लोगों ने इसे जलाया था उसमें से कम से कम दो महिलायें थीं। अगर आग के हवाले करने वालों की संख्या बस दो ही थी तो समझ लीजिए कि दो महिलाओं ने लाश पर डीजल छिड़ककर आग लगा दी थी।”
“इस दावे की कोई खास वजह?”
“उस तरफ हमारा ध्यान विराट ने दिलाया है, इसलिए आप इन्हीं से पूछ लीजिएगा। हम वापिस जाकर हवेली का काम खत्म करते हैं, वैसे वहां से कुछ खास मिलने की उम्मीद नहीं है क्योंकि भीतर फैला खून भी किसी जानवर का ही लगता है। बाकी सतही रिपोर्ट हम कल दोपहर तक आपको सौंप देंगे, डिटेल्स में जाने में वक्त लगेगा।”
“इसकी पहचान का कोई जरिया?”
“अगर गले की चैन और हाथ की अंगूठी से पहचान मुमकिन हो सके तो करवा लीजिए, वरना तो डीएनए के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। हां अगर कोई पहले से ही आपकी निगाहों में है, कोई ऐसा जो इसे जानता हो सकता है, तो जल चुका होने के बाद भी चेहरे में बहुत कुछ ऐसा बाकी रह गया है जिसके जरिये शिनाख्त मुमकिन हो सकती है।”
“है, ये लड़की बीते शनिवार से लापता थी, मैं इसके बाप को यहीं बुलाये लेता हूं, वह पहचान गया तो हमारा काम आसान हो जायेगा, क्योंकि डीएनए के मिलान में तो आपका डिपार्टमेंट तीन चार महीने लगा देता है।”
“अभी तो ये काम साल भर में जाकर मुमकिन हो पायेगा, क्योंकि पंद्रह दिनों पहले हमने एक ऐसे ही ढांचे का डीएनए सैंपल अहमदाबाद भेजा था जिसके लिए आठ महीने इंतजार करने को कहा गया है।”
“ठीक है मैं बुलाता हूं उसे - कहकर एसीपी ने विराट की तरफ देखा - खबर करो भई कोठारी को, मगर ये मत बताना कि उसे मधु की लाश देखने को बुलाया जा रहा है उसे।”
“खातिर जमा रखिये सर, ऐसा अंदेशा उसे पहले से है, इसलिए अलग से कोई शॉक नहीं लगने वाला।” कहकर उसने मोबाईल निकाला और कोठारी का नंबर डॉयल कर दिया।
तिमारपुर गांव का मुखिया प्रवीन सिंह उस वक्त लॉकअप के भीतर घुटनों में सिर दिये बैठा था। गांव पहुंचे छह पुलिसवालों ने उसे क्यों अपनी गिरफ्त में ले लिया, या इस वक्त वह किस इलाके में था, इसका उसे आभास तक नहीं हो रहा था।
गांव में उसका बहुत दबदबा था, वह अपनी गिरफ्तारी में अड़ंगा डालने की कोशिश करता तो उपद्रव मच जाता, मगर उसने तो ये सोचकर खुद को पुलिस के हवाले कर दिया कि थानेदार के साथ उसकी अच्छी दोस्ती थी, इसलिए थोड़ी पूछताछ, जो कि बेवजह की ही साबित होनी थी, कर के आखिरकार तो उसे छोड़ ही दिया जाने वाला था।
मगर थाने तो वह पहुंचा ही नहीं, वहां के तो एक एक कमरे से वाकिफ था वह। जबकि ये जगह उसे पूरी तरह अंजान दिखाई दे रही थी। इसलिए चिंता में बराबर पड़ गया, मगर घबराया हुआ जरा भी नहीं था, क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी उसे हाल फिलहाल की ऐसी कोई बात याद नहीं आ रही थी, जिसमें उसने कानून तोड़ा हो।
‘जरूर पुलिस किसी गलतफहमी का शिकार हो रही थी’ वह खुद से बोला, फिर अगले ही पल उसका चित्त शांत होता चला गया था।
पांच बजे के करीब उसे गिरफ्तार किया गया था और अब अंधेरा घिर चुका था, जिसका पता उसे हवालात के पिछले हिस्से में लगे रोशनदान के जरिये बखूबी हुए जा रहा था।
टाईम देखने का उसके पास जो जरिया था वह बस मोबाईल ही था जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया था।
गिरफ्तार हुए कई घंटे बीत चुके थे, मगर अब तक उससे कोई पूछताछ नहीं की गयी थी, असल में वही बात उसे परेशान किये दे रही थी।
क्या माजरा था?
धीरे धीरे उसका मन एक बार फिर विचलित होने लगा।
आगे दस मिनट और गुजरे तो जैसे उसके मन की मुराद पूरी हो गयी।
गिरफ्तार करने वाला एएसआई महेश गुर्जर हवालात का दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हुआ।
“चलिए मुखिया जी, अब आपसे बात करने का वक्त आ गया है?”
“वह तो तुम जी भरकर कर लो बेटा, मगर कम से कम इतना तो बता दो कि मैंने किया क्या है? क्यों तुमने मुझे गिरफ्तार कर के यहां बंद कर रखा है?”
“उसका जवाब इंस्पेक्टर साहब देंगे, चलिए।”
मुखिया उठ खड़ा हुआ।
महेश उसे लेकर इंटेरोगेशन रूम में पहुंचा और एक कुर्सी पर बैठने का इशारा कर के बाहर निकल गया।
थोड़ी देर बाद एक लड़का चाय का गिलास और एक प्लेट में बिस्कुट उसके सामने रख गया।
भूख उसे बराबर लगी थी इसलिए बिस्कुट और चाय फौरन हजम कर गया, फिर इंस्पेक्टर साहब के वहां पहुंचने का इंतजार करने लगा। मगर पहुंचा एक सिपाही, वह भी किसी कैदी को गर्दन से थामे हुए।
आगे कैदी को फर्श पर गिराकर वह घुटनों के बल उसके करीब बैठ गया, फिर दनादन उसपर घूंसे बरसाने लगा। मुखिया की तरफ उस वक्त सिपाही की पीठ थी इसलिए वह बस उसके हाथों को ऊपर नीचे होता ही देख पा रहा था, मगर कैदी के मुंह से निकलने वाली चीखें बता रही थीं कि वार जोरदार ढंग से किया जा रहा था।
कुछ देर वह सिलसिला चला फिर सिपाही ने उठकर एक जोर की लात कैदी को जमाई और सवाल किया, “अब बता अपना जुर्म कबूल करेगा या नहीं?”
“मैंने कुछ नहीं किया साहब जी।” दर्द से तड़पता कैदी बोला।
“लगता है तू ऐसे नहीं मानेगा, चल उठकर कपड़े उतार अपने।”
कैदी ने उसकी बात नहीं सुनी, वह बस चिल्लाता रहा, तड़पता रहा और बेगुनाही की रट लगाता रहा। तब सिपाही ने आवाज लगाकर दो अन्य सिपाहियों को वहां बुलवाया और कैदी के हाथ और पांव बंधवा दिये, फिर एक शीशी में चिमटी डालकर बड़ा सा बिच्छू बाहर निकाला और कैदी की शर्ट के बटन खोलकर बिच्छू को उसके सीने पर रख दिया।
प्रवीन सैनी ध्यान से वह क्रिया कलाप देखने लगा।
अगले ही पल कैदी ने जोर जोर से तड़पना शुरू कर दिया, मगर सिपाहियों ने उसे यूं जकड़ रखा था कि वह अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहा था।
“इसे मेरे ऊपर से हटाओ साहब, मर जाऊंगा मैं।”
“तो मर जा साले, रिपोर्ट में लिख देंगे कि बिच्छू के डंक से तेरी जान चली गयी, जो हवालात में कैसे आ घुसा हमें क्या पता?”
“मैं मरना नहीं चाहता साहब।”
“वह लड़की भी कहां मरना चाहती थी बहन चो... जिसके साथ तूने रेप करने के बाद उसका मर्डर कर दिया था। तेरे जैसों को सांप से कटवाना चाहिए लेकिन साहब ने मना कर दिया, वरना इंतजाम तो मैं उसका भी कर सकता था।”
“मुझे बचा लो साहब।”
“अपना गुनाह कबूल कर लेगा तो डॉक्टर के पास पहुंचा देंगे, वरना तो आज तेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा।”
“मैं सब कबूल कर लूंगा - कैदी के मुंह से झाग निकलने लगा - बस मुझे मरने से बचा लो।”
“बाद में मुकर तो नहीं जायेगा?”
“नहीं साहब, जल्दी करो।”
“इसे डॉक्टर के पास ले जाओ - पहले वाला सिपाही बोला - मैं साहब को बता देता हूं कि अपना जुर्म कबूल करने को तैयार है।”
“ठीक है।” कहकर बाकी सिपाहियों ने उसे उठाया और कमरे से बाहर निकल गये।
तभी वहां इकलौते बचे रह गये सिपाही ने यूं चौंककर प्रवीन सिंह की तरफ देखा जैसे उसकी उपस्थिति का अभास ही न रहा हो।
“तू कौन है बे?”
“प...प्रवीन सिंह।”
“रेप कर के आया है?” पूछता हुआ सिपाही उसकी तरफ बढ़ा।
“न....नहीं।”
“पता लग जायेगा, सब पता लगा लूंगा मैं। वैसे भी तेरे जैसे बुड्ढों से निपटने के लिए बहुत सारे पैंतरे आते हैं मुझे, देखना एक थप्पड़ खाये बिना ही तू अपना गुनाह कबूल कर लेगा।”
“हो गयी तुम्हारी बकवास?” उसी वक्त जोशी के साथ वहां पहुंचता विराट राणा बोला।
“सॉरी सर।”
“निकल ले यहां से।”
“बस दो मिनट दीजिए सर, मेरे पास ढेर सारी छिपकलियां हैं, जिन्हें अभी इसपर छोड़े देता हूं, फिर आपके पूछे बिना ही सबकुछ बता देगा।”
“पहले मुझे ट्राई कर लेने दे, अब दफा हो यहां से।”
“ठीक है जनाब।” कहकर उसने एक चेतावनी भरी निगाह मुखिया पर डाली और कमरे से बाहर निकल गया।
उसकी उन निगाहों से मुखिया को कितना भय महसूस हुआ, हुआ भी या नहीं, वो जुदा बात थी, मगर हैरानी के भाव बराबर उसके चेहरे पर दृष्टिगोचर हो रहे थे। जैसे वह कुछ सोच रहा हो, या समझने की कोशिश कर रहा हो।
तभी विराट उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया।
“कैसे हैं प्रवीन सिंह जी?”
“ठीक हूं सर।”
“कोई तकलीफ?”
“नहीं सर तकलीफ तो कोई नहीं हुई - वह थोड़ा झिझकता हुआ बोला - बस ये बता देते तो बड़ी मेहरबानी होती कि मुझे यहां क्यों लाया गया है?”
“कत्ल का इल्जाम है साहब आप पर - विराट गहरी सांस लेकर बोला - वैसे आपकी उम्र को देखते हुए लगता तो नहीं है कि आपने किया होगा, मगर क्या करें, घटनास्थल पर उस रात बस आपही थे जो अपने तीन दोस्तों के साथ दिखाई दिये थे, इसलिए सजा तो होकर रहेगी।”
“कत्ल! सजा! ये कैसी बात कर रहे हैं साहब? - वह एकदम से घबरा उठा - मैं भला किसी का कत्ल क्यों करूंगा?”
“अगर नहीं किया था तो हरिद्वार क्यों भाग गये?”
“भाग गया? अरे नहीं सर, आपको जरूर कोई गलतफहमी हो रही है। मैं तो अपने दोस्तों के साथ बस गंगा स्नान करने गया था। आप खुद सोचकर देखिये कि अगर मेरा इरादा कहीं भाग जाने का होता तो क्या दो-तीन दिन बाद गांव वापिस लौट आता?”
“सारे सबूत आपके खिलाफ हैं मुखिया जी, बच तो नहीं पायेंगे, इसलिए अच्छा होगा सच कबूल कर लें, मुझे बहुत बुरा लगेगा अगर आपके साथ सख्ती से पेश आना पड़ा तो।”
“मैंने कुछ नहीं किया है साहब, कसम उठवा लीजिए। और किसके कत्ल की बात कर रहे हैं आप? मैंने तो ऐसी कोई खबर सुनी नहीं।”
“वह हम बाद में बतायेंगे आपको, पहले आप ये बताइये कि चंद्रशेखर महाराज की हवेली के बारे में क्या जानते हैं? जो भी जानते हैं साफ साफ कह डालिये।”
“नाम मत लीजिए साहब उस जगह का, एक बार जो कोई भी उसके भीतर कदम रखता है जिंदा वापिस नहीं लौटता, बल्कि रात के वक्त तो हवेली के आस-पास जाना भी मुसीबत बन जाता है, अंदर जाना तो दूर की बात है।”
“आप गये हैं कभी?”
“आखिरी बार चार-पांच साल पहले गया था, जब चंद्रशेखर महाराज का भतीजा विदेश से लौटा था। मैं गांव वालों के साथ उससे ये विनती करने पहुंचा था कि वह अपने पूर्वजों का दाह संस्कार विधिवत ढंग से करा दे, क्योंकि उनकी आत्मा आज भी भटक रही है। मगर उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी, उल्टा हंसकर हमारी बात को मजाक में उड़ा दिया। और अगले ही दिन वापिस भी लौट गये। तभी से उस हवेली को ताला बंद था, मगर पिछले शनिवार को खुल गया। महाराज के भतीजे का बड़ा बेटा अपने दोस्तों के साथ वहां रात बिताने पहुंचा था। मैंने वहां हलचल देखी तो जाकर समझाया उसे कि रात को हवेली में रुकना खतरनाक हो सकता है, मगर माना कोई नहीं। उसके बाद मैं गांव पहुंचा और बाद में हरिद्वार के लिए रवाना हो गया।”
“हवेली पहुंचते वक्त आपने अपना मोबाईल क्यों बंद कर लिया था?”
“कौन कहता है कि बंद कर लिया था?”
“मैं कहता हूं, जिसके पास आपके मोबाईल की पूरी पूरी डिटेल्स मौजूद हैं। अब बताइये क्यों बंद कर रखा था आपने मोबाईल? बल्कि उसी रात दो बजे के बाद दोबारा भी बंद कर दिया था।”
“बाद में तो बैटरी खत्म होने की वजह से बंद हो गयी थी साहब, जिसका मुझे पता ही नहीं लगा, लेकिन शनिवार को हवेली पहुंचने के वक्त मेरा मोबाईल ऑन था, इस बात की कसम खा सकता हूं मैं।”
“आपको लगता है मैं झूठ बोल रहा हूं?”
“नहीं आप लोग भला झूठ क्यों बोलेंगे साहब, ठीक है आप कहते हैं तो मैं मान लेता हूं कि बंद ही रहा होगा, मगर उस बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता जी।”
“पता लगे बिना बंद हुआ मोबाईल दोबारा ऑन भी तो नहीं किया जा सकता मुखिया जी।”
“बात तो आपकी ठीक है साहब, लेकिन अब क्या कहूं? मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा।”
“ठीक है अब कत्ल के बारे में सुन लीजिए। उस रात जो बच्चे हवेली में ठहरे थे उनमें से एक की हत्या कर दी गयी थी - विराट ने अपनी निगाहें उसके चेहरे पर गड़ा दीं - वह भी आपके वहां से जाने के महज दो ढाई घंटे बाद, और वही वह वक्त था जब आप गांव से भाग निकले थे।”
“अरे क्या कह रहे हैं साहब, मेरी उन बच्चों से भला क्या दुश्मनी जो उनमें से किसी का कत्ल कर दूंगा? फिर जरा गौर से मेरी तरफ देखिये, क्या मैं आपको ऐसा शख्स लगता हूं जो एक हट्टे कट्टे लड़के को मार गिराने में कामयाब हो जाये? वह भी ऐसे लड़के को जो अकेला न हो।”
“कत्ल लड़की का हुआ था।”
“आप कहते हैं सर तो जरूर हुआ होगा, मगर मैं नहीं जानता कि किसने किया, या क्यों किया? मुझे तो इस बात पर भी हैरानी हो रही है कि आप मुझे किसी का कातिल समझ रहे हैं।”
“वजह भी तो है।”
“सिर्फ इतनी कि मैं उन्हें उस मनहूस हवेली के सामने खड़ा देखकर समझाने चला गया था कि रात के वक्त वहां रुकना खतरनाक साबित हो सकता है, क्या इसीलिए मैं किसी लड़की का कातिल हो गया? जबकि मेरी जगह कोई और भी होता तो उन्हें वहां देखकर समझाने जरुर गया होता। क्योंकि ये बात तो उधर का बच्चा बच्चा जानता है कि हवेली में मौत बसती है। और हम गांव के लोग आप शहरी लोगों की तरह भी नहीं होते साहब जो किसी को मुसीबत में देखकर आंखें बंद कर लें।”
“जबकि उन बच्चों का कहना है कि वे लोग क्योंकि आपकी बात मानकर वहां से निकल नहीं गये, इसलिए गुस्सा होकर आपने उनमें से एक की जान ले ली - कहकर विराट ने साफ साफ झूठ का सहारा लिया, जिसका कोई असर होने की उम्मीद उसे जरा भी नहीं थी - और सबसे अहम बात ये कि उनमें से कईयों ने कातिल के रुप में आपको साफ पहचान भी लिया था, आप इंकार करेंगे तो उन्हें बुलाकर आपसे आमना-सामना भी कराया जा सकता है।”
“फिर तो बुला ही लीजिए साहब। मुझे नहीं लगता कि कोई किसी पर इस हद तक झूठा इल्जाम लगा सकता है। जरूर उन बच्चों को कोई गलतफहमी हो रही है, जो कि सामने आयेंगे तो दूर हो जायेगी, क्योंकि मैं उन्हें समझा बुझाकर वहां से चले जाने के बाद वापिस उस जगह पर नहीं लौटा था। और वहां कोई कत्ल हो भी गया था, तो वह कारनामा चंद्रशेखर महाराज या उनके परिवार के सदस्यों की भटकती आत्मा का क्यों नहीं रहा हो सकता? - कहकर उसने पूछा - लाश मिल गयी है?”
“हां क्यों?”
“कैसे मारा गया है उसे?”
“क्यों पूछ रहे हैं?”
“इसलिए क्योंकि जान अगर महाराज के पिशाच ने ली होगी तो हैवान की हैवानियत साफ दिखाई दे जायेगी। कत्ल यूं किया गया होगा जैसे किसी जंगली जानवर ने चीर फाड़कर रख दिया हो उसे।”
“आपको कैसे पता?”
“पता है, क्योंकि वहां से जब भी कोई लाश बरामद हुई है उसी हाल में हुई है। जगह-जगह से मांस गायब, जैसे किसी शेर ने अपने शिकार को नोंच खाया हो, इंसान क्या उतने भयानक तरीके से मारता है किसी को?”
“यानि कई लाशें बरामद हो चुकी हैं हवेली से?”
“कहते तो लोग यही हैं, मगर मैंने सिर्फ एक को देखा था, वह हमारे ही गांव का रहने वाला था। और खास बात ये है कि पिशाच के तब के किये धरे को अपनी आंखों से देखने वाले दो लोग अभी भी जिंदा हैं।”
“आप बीस साल पहले मारे गये अजब सिंह की बात कर रहे हैं, जिसकी मौत की खबर पुलिस तक को नहीं लगने दी गयी थी। आपको तो पता ही होगा मुखिया जी, आखिर आपके ही तो इशारे पर उसकी लाश आनन-फानन में जला दी गयी थी?”
“आप जानते हैं उस बारे में?” वह हैरानी से बोला।
“जानकारियां हासिल करनी पड़ती हैं साहब, तभी तो आप जैसे मुजरिमों को जेल भेज पाते हैं हम।”
“मैं मुजरिम नहीं हूं, और अजब सिंह की बची खुची लाश को जलाने का फैसला मेरा नहीं बल्कि गांव के पंडित और ओझाओं का था, जिनका मानना था कि प्रेत के शिकार बने शख्स की लाश को जितनी जल्दी खाक कर दिया जाये उतना ही अच्छा है, वरना वह खुद भी प्रेत बन जाता है - फिर क्षण भर को रुककर बोला - हालांकि गांव वालों के साथ मिलकर मैंने उसकी लाश जला जरूर दी इंस्पेक्टर साहब, मगर तब तक उसकी आत्मा प्रेतयोनि में पहुंच चुकी थी, इसलिए फायदा तो कुछ भी नहीं हुआ। आगे चलकर अजब सिंह की प्रेतात्मा ने ऐसा उपद्रव मचाया कि मुझे और मेरे परिवार को खून के आंसू बहाने को मजबूर कर दिया।”
“मैं समझा नहीं।”
“देखिये मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि जो हुआ वह अजब सिंह की आत्मा ने किया था या चंद्रशेखर महाराज के पिशाच ने, क्योंकि गांव के एक पहुंचे हुए तांत्रिक ने बताया था कि मेरे बेटे पर उन दोनों की ही दुष्टात्माओं ने कब्जा कर रखा था। उनमें से किसने उस कुकृत्य को अंजाम दिया मैं नहीं जानता, मगर परिणाम तो भयानक ही रहा, एक रोज मेरा बेटा और बहू दोनों असामयिक काल का ग्रास बन गये।” कहते हुए मुखिया का गला भर आया।
“ओह, ये तो बहुत बुरा हुआ, कब की बात है?”
“अजब सिंह की मौत के कुछ दिनों बाद की।”
“हुआ क्या था? अगर आप बताना चाहें।”
“सुन लीजिए, वैसे भी उसमें छिपाने को धरा ही क्या है, जबकि पूरा गांव उस बात का गवाह है - कहकर उसने सिलसिलेवार ढंग से बताना शुरू किया - महीना जून का था और रात अमावस की, उन दिनों हमारे गांव में बस चार-पांच घंटे ही बिजली रहा करती थी, वह भी रात को आयेगी या दिन में कोई अनुमान नहीं होता था। मैं घर के बाहर बरामदे में सोया हुआ था, जब अचानक ही गांव के कुत्तों ने जोर जोर से भौंकना शुरू कर दिया। फिर उनके भौंकने की आवाज जब लगातार मुझे अपने करीब आती महसूस हुई तो ये सोचकर उठ बैठा कि कहीं कोई चोर उचक्का न चला आ रहा हो। उस रात मैंने पहली बार किसी दैत्य को अपनी आंखों से देखा था। वह आकार में इतना बड़ा था कि मुझे सिर्फ उसके कमर तक का ही हिस्सा दिखाई दे रहा था जो कि लंबे लंबे बालों से भरा पड़ा था। मेरी तो जैसे सांस ही रुक गयी, डर के मारे बदन कांप उठा, ध्यान फौरन चंद्रशेखर महाराज की तरफ चला गया। साथ ही ये सोचकर थोड़ी हैरानी भी हुई कि वह दुष्ट हवेली से बाहर निकल आया था, जबकि पहले वैसा कुछ सुनने में नहीं आया था।”
“भ्रम हुआ होगा आपको।”
“मैं मान लेता कि भ्रम ही था इंस्पेक्टर साहब, या मैंने कोई सपना देखा था, मगर आगे जो कुछ भी घटित हुआ उसने साबित कर दिया कि मैं किसी भ्रम का शिकार नहीं हो रहा था। फिर एक जोड़ी पैर दो जोड़ियों में बदल गये। दूसरा क्योंकि उस जितना विशालकाय नहीं था इसलिए मुझे उसके चेहरा दिखाई दे गया। खून से रंगा भयानक चेहरा जो कि अजब सिंह का था। मैंने उठकर वहां से भागने की कोशिश की एकदम से जाने क्या हुआ कि मेरे हाथ पांव शिथिल पड़ गये, अपनी मर्जी से उंगली तक हिला पाने की स्थिति में नहीं रह गया।”
“भय की अधिकतावश ऐसा हो जाया करता है।”
“हो सकता है वैसा ही हुआ हो - कहकर मुखिया ने आगे बताना शुरू किया - मेरे देखते ही देखते दोनों दुष्ट घर के बंद दरवाजे को पार कर गये। फिर अंदर से मुझे कलावती के जोर से चीखने की आवाज सुनाई दी। उस चीख को सुनकर भी मैं अपनी जगह से नहीं उठ पाया। और बाद में तो जैसे जरूरत ही खत्म हो गयी। मैंने वह नजारा देखा इंस्पेक्टर साहब, जिसे देखकर मर ही नहीं गया यही बहुत था।”
“ऐसा क्या देख लिया था?”
“मेरा बेटा नंदू अपनी बीवी कलावती को गर्दन से थामे घर से बाहर निकला, और गली में खड़े होकर जोर जोर से ठहाके लगाने लगा। किसी अनिष्ट की आशंका मुझे साफ नजर आ रही थी, इसलिए मैंने फिर से उठने की कोशिश की, और इस बार कामयाब भी हो गया। मैं उठकर तेजी से नंदू के पास पहुंचा और चिल्लाकर बोला कि ‘ये क्या कर रहा है नंदू, पागल हो गया है क्या?’ जवाब में वह पहले से कहीं ज्यादा बुलंद आवाज में हंसने लगा, जैसे कोई शैतान ठहाके लगा रहा हो।”
“आपने अपनी बहू को बेटे के चंगुल से छुड़ाने की कोशिश नहीं की?”
“आप कोशिश की बात करते हैं, जबकि मैंने लठ तक चला दिया नंदू पर, लेकिन असर कुछ नहीं हुआ। फिर मेरे देखते ही देखते पहले से वहां मौजूद दोनों शैतानों ने दायें बायें से नंदू को थामा और हवा में ऊंचा उठते चले गये। मुझे और कुछ नहीं सूझा जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। आस-पास के घरों में रहते लोग तुरंत लाठी डंडा लेकर बाहर निकल आये। मगर वह नजारा देखकर किसी की भी आगे बढ़ने की मजाल नहीं हुई, हो भी जाती तो कर कुछ नहीं सकते थे, क्योंकि तब तक वह चारों बहुत ऊंचा उठ चुके थे। हमारे देखते ही देखते नंदू ने अपने दांत कलावती की गर्दन पर गड़ा दिये। जगह जगह से मांस नोंचा और चबर-चबर खाना शुरू कर दिया। कुछ क्षण वह सिलसिला चला फिर कलावती एकदम से नीचे आ गिरी, कुछ क्षण बाद मेरे बेटे का भी वही हाल हुआ।”
“दोनों मर चुके थे?”
“नहीं, नंदू अभी जिंदा था, उसके मुंह से खून टपक रहा था, और होशो हवास में तो बिल्कुल भी नहीं था। जबकि कलावती की लाश खून से सराबोर थी, इसलिए उसके जिंदा बचे होने की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती थी। हमने नंदू को होश में लाने की कोशिश की तो थोड़े प्रयासों के बाद वह उठकर बैठ गया। फिर ज्योंहि उसकी निगाह कलावती पर पड़ी जोर जोर से रोने लगा। बहुत प्यार करता था वह अपनी बीवी से, जो आखिरकार उसी के हाथों मारी गयी थी। नंदू को जैसे ही पता लगा कि कलावती को उस हाल में पहुंचाने वाला वही था, चुपचाप बिना कुछ कहे घर के भीतर चला गया। जबकि हम लोग कलावती की लाश जलाने के बारे में विचार करने लगे। गांव के लोगों को इकट्ठा किया गया, खासतौर से ओझा और पंडितों को। उन लोगों ने ही हमें ये सलाह दी कि लाश को अग्नि नंदू के हाथों से दिलवाना ही सही रहेगा। सुनकर मैं भीतर गया तो पता लगा उसने अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर रखा था। बहुत आवाजें लगाने पर भी न तो उसने जवाब दिया, ना ही दरवाजा खोला, तब घबराकर हमने दरवाजा तोड़ दिया। सामने पंखे के साथ मेरे नंदू की लाश लटक रही थी - मुखिया एकदम से रो पड़ा - आत्महत्या कर ली थी उसने इंस्पेक्टर साहब।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
बहुत देर तक दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला, जबकि सुलभ जोशी तो पहले से ही खामोशी अख्तियार किये हुए था।
“आप लोगों ने - आखिरकार विराट ने चुप्पी तोड़ी - उस बार भी पुलिस को इंफॉर्म करना जरूरी नहीं समझा?”
“जरूरत तो खैर कोई नहीं थी, क्योंकि जो हुआ था उसे गांव के कई लोगों ने देखा था। मगर खबर किसी तरह कोतवाल साहब के कानों तक पहुंच गयी, जो कि मेरे रिश्तेदार हैं। उन्होंने मौका मुआयना किया, सबके बयान लिए और बहुत दिनों तक केस पर दिमाग भी खपाया, मगर हासिल कुछ नहीं कर पाये। करते भी तो क्या करते, किसी प्रेत को आपका महकमा भला गिरफ्तार कैसे कर सकता था?”
“आपके परिवार के साथ जो कुछ भी घटित हुआ मुखिया जी उसका मुझे अफसोस है, चाहे जिस वजह से भी हुआ हो। मगर इस बार मधु कोठारी नाम की लड़की का हत्यारा जेल पहुंचकर रहेगा, चाहे वह कोई पिशाच ही क्यों न हो।”
“ठीक है साहब कोशिश कर के देख लीजिए, मैंने तो आज तक ऐसा नहीं सुना जब किसी प्रेत को अदालत ने सजा सुना दी हो।”
“इस बार जरूर सुनेंगे। मगर वह बाद की बात है, अभी तो मुझे यही यकीन आना बाकी है कि अजब सिंह के साथ, आपके बेटे बहू के साथ, और अब मधु कोठारी के साथ जो कुछ भी घटित हुआ था वह प्रेतलीला ही थी।”
“और किसी तरह से हुआ होता इंस्पेक्टर साहब तो क्या उसके साथी बच्चों ने देखा नहीं होता?”
“देखा बराबर था तभी तो आपका नाम ले रहे हैं।”
“गलत ले रहे हैं।”
“अजब सिंह की हत्या पर गौर कर के कहूं तो इस बार भी करीब करीब वही सबकुछ दोहराया गया लगता है। लड़की को बड़े ही भयानक तरीके से पहले कत्ल किया गया, फिर उसकी लाश को जला दिया गया, जैसा कि अजब सिंह के साथ किया गया था। ऐसे में मैं ये क्यों न समझूं कि इस बार भी जो हुआ वह आपके इशारे पर ही किया गया था।”
“मैं ऐसा क्यों करूंगा इंस्पेक्टर साहब, फिर कोई वजह भी तो हो, या आपको मैं सनकी दिखाई देता हूं, जिसने बेवजह कई जाने ले लीं।”
“सनकी नहीं मुखिया जी, चालाक दिखाई दे रहे हैं। किसी कारण से आप नहीं चाहते कि गांव के लोग उस हवेली के आस-पास जाना शुरू कर दें। आप उन सबको डराकर रखना चाहते हैं। इसीलिए आज तक भूत प्रेतों की भ्रांति को हवा देते रहते हैं। अजब सिंह के साथ जो कुछ हुआ वह बीस साल पहले घटित हुआ था, जाहिर है इतने लंबे अरसे में लोग बाग उस घटना को भूलने लगे होंगे। फिर नौजवान पीढ़ी तो वैसे भी इस तरह की बातों पर यकीन नहीं करती। यही वजह रही कि आपको एक बार फिर से वहां कुछ भयानक कर दिखाना याद हो आया, जिसका शिकार इस बार एक मासूम लड़की बन गयी। ऐसी लड़की जिसकी आपके साथ कोई रंजिश नहीं थी।”
“आप गलत कर रहे हैं साहब। जरा सोचकर देखिये कि हवेली को भुतहा साबित कर के भी मुझे क्या हासिल हो जायेगा?”
“हो सकता है आप उसे खरीदना चाहते हों, मगर जगह इतनी बड़ी है कि कीमत चुका पाना आपके वश से बाहर है। इसीलिए आपने उसे भुतहा साबित कर दिया ताकि मालिक को भूले से भी हवेली का कोई ग्राहक न मिले, जो कि अगर नहीं मिला तो जाहिर है औने पौने दामों पर बेचने के लिए तैयार हो जायेगा, आपको असल में उसी वक्त का इंतजार है।”
“अगर ऐसा है सर जी तो अजब सिंह की मौत के बाद ही मैंने वैसी कोई कोशिश क्यों नहीं की? या पांच साल पहले जब चंद्रशेखर महाराज का भतीजा गांव आया था तो उससे सौदे की बात क्यों नहीं की?”
“हमें क्या पता आपने वैसी कोई कोशिश की या नहीं। ये भी हो सकता है कि आपने सौदे की बात तो की हो मगर जो रकम उसे ऑफर की वह चिड़या के चुग्गे जितने थी, इसलिए भतीजा हवेली बेचने को तैयार नहीं हुआ। और वह इलाका क्योंकि बहुत पिछड़ा हुआ और देहाती है इसलिए कोई बिल्डर भी वहां पैसे लगाना नहीं चाहता होगा। ऐसे में मालिक के पास सही वक्त का इंतजार करने के अलावा और चारा भी क्या है? जो कि वह करता बराबर दिखाई दे रहा है।”
“उस हवेली को तो मैं मुफ्त में भी लेने को तैयार नहीं होने वाला इंस्पेक्टर साहब, कीमत चुकाकर हासिल करना तो दूर की बात है।”
“आप तो ऐसा कहेंगे ही, असलियत बयान करना भला कैसे अफोर्ड कर सकते हैं, वह भी पुलिस के सामने।”
“एक बात पूछूं इंस्पेक्टर साहब?”
“पूछिये?”
“मरने वाली लड़की किसी बड़े बाप की बेटी तो नहीं थी?”
“हां थी, क्यों पूछ रहे हैं?”
“और उसका बाप बेहद पॉवरफुल इंसान होगा, जैसे कि कोई अरबपति, कोई नेता, या वैसा ही कोई और, है न?”
“बिजनेसमैन है।”
“मतलब कि दबाव खूब पड़ रहा है आप लोगों पर केस को जल्दी से जल्दी सॉल्व करने का?”
“कहना क्या चाहते हैं?”
“गुस्सा ना होने का वादा करें तो बोलूं।”
“बेहिचक बोलिये।”
“तो बात ये है इंस्पेक्टर साहब कि जितना वक्त आप बलि का बकरा तलाश करने में लगा रहे हैं, उतने में ईमानदारी से कोशिश करते तो असल कातिल ही आपके हाथ लग गया होता, या यही साबित हो जाता कि जो किया वह किसी प्रेतात्मा ने ही किया था।”
सुनकर बरबस ही विराट राणा हंस पड़ा, फिर बोला, “आप गलत सोच रहे हैं, हम किसी बलि के बकरे की तलाश में नहीं हैं। लेकिन कातिल को ढूंढ निकालना हमारी जिम्मेदारी है इसलिए हर किसी से पूछताछ करनी ही पड़ती है, ऊपर से आपकी स्थिति भी तो बेहद संदिग्ध है।”
“मेरा जन्म तिमारपुर में ही हुआ था इंस्पेक्टर साहब, और अब तक जिंदगी के अड़तालीस साल गुजार चुका हूं वहां। लोग इज्जत देते हैं, अलग अलग मुद्दों पर मशवरा करने आते हैं, मदद मांगने भी चले आते हैं, जिसमें आज तक तो शायद ही किसी को निराशा का सामना करना पड़ा हो, क्योंकि ईश्वर की कृपा से पैसे रुपयों की कोई कमी नहीं है मेरे पास। बाप दादा की छोड़ी इतनी जमीने हैं कि बेच दूं तो हाथ के हाथ करोड़पति बन जाऊंगा, अरब का अकड़ा भी छू लूं तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी।”
“कहना क्या चाहते हैं मुखिया जी?”
“यही कि मैं भागकर कहीं नहीं जा सकता, इस उम्र में तो हरगिज भी नहीं। मोहमाया बहुत बुरी चीज होती है, जो मुझे अपने नाती पोतों के साथ बुरी तरह जोड़े हुए है, उनमें जान बसती है मेरी। इसलिए विनती कर रहा हूं कि मुझे जाने दीजिए। वैसे भी आप मेरे खिलाफ जो कुछ कहकर हटे हैं वह कानून की निगाहों में किसी सबूत का दर्जा नहीं रखता, हां बाद में कुछ ऐसा हासिल हो जाये, जिससे आपको लगने लगे कि कोर्ट में मेरा जुर्म साबित कर सकते हैं, तो तिमारपुर आपने देख ही रखा है। जब चाहें आकर मुझे गिरफ्तार कर लीजिएगा, इस वक्त तो मुझे कातिल मानकर आप बस अपना वक्त ही बर्बाद कर रहे हैं।”
विराट ने क्षण भर को उसकी बात पर विचार किया फिर बोला, “ठीक है समझ लीजिए की आपके कहे से इत्तेफाक हो आया मुझे, इसलिए फिलहाल आपको आजाद किया जा रहा है, जा सकते हैं।”
“बहुत बहुत धन्यवाद जी - अपने दोनों हाथ जोड़ता हुआ वह बोला और उठकर दरवाजे की तरफ बढ़ गया। वहां पहुंचकर ठिठका, फिर घूमकर वापिस विराट की तरफ देखता हुआ बोला - एक बात और कहनी है इंस्पेक्टर साहब।”
“क्या?”
“आपके आने से थोड़ी देर पहले यहां एक कैदी को लाया गया था, जिसके सीने पर आपके एक सिपाही ने बिच्छू छोड़ दिया था। वह कैदी डर के मारे बुरी तरह चीख चिल्ला रहा था, और बिच्छू को हटा लेने की मिन्नतें कर रहा था।”
“सिपाही की शिकायत कर रहे हैं आप?”
“ना जी मैं कौन होता हूं किसी की शिकायत करने वाला। मगर इतना कहना चाहता हूं कि हम गांव के लोग सौ कदम दूर से भी बिच्छू को पहचान सकते हैं, जबकि वह तो मेरे से सात-आठ फीट की दूरी पर ही था।”
“मतलब क्या हुआ मुखिया जी?”
“बस इतना साहब जी कि आगे से मुझे जैसे किसी देहाती को डराना हो तो असली बिच्छू मंगवा लीजिएगा।” कहकर वह कमरे से बाहर निकल गया।
विराट और जोशी क्षण भर को हकबकाये फिर जोर से हंस पड़े।
“दिमाग तो चकरघिन्नी बनकर रह गया सर इस केस में - सुलभ जोशी मुखिया की खाली की गयी कुर्सी पर बैठता हुआ बोला - जिसे देखो वही एक भयानक कहानी सुनाने बैठ जाता है।”
“लेकिन कहानी ऐसी है जोशी साहब जिसमें हर किसी का कहा आपस में मैच हो रहा है - कहकर उसने जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला और सुलगाने का उपक्रम करता हुआ बोला - हवेली में भूतों का उत्पात पापी मंडली पहले ही कबूल कर चुकी है। नकुल उसी बात को डंके की चोट पर साबित कर चुका है। आगे गांव के लोग तो उन बातों के गवाह हैं ही, मुखिया के बेटे और बहू की मौत को भी जोड़ दो तो हमारे पास ये दावा करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता कि सब झूठ बोल रहे हैं, कहानी सुना रहे हैं। एक बार को हम ये मान सकते हैं कि मुखिया और गांव वाले एक जैसा बयान दे सकते हैं, या उन सबकी मिली भगत से वैसी कहानियां सामने आ रही थीं। मगर नकुल! वह तो प्रवीन सिंह को जानता तक नहीं होगा। इसी तरह पापी मंडली भी शनिवार की रात पहली बार ही उससे मिली थी। ऐसे में हर कोई एक मिलती जुलती कथा कैसे कह सकता है?”
“यानि प्रेतों का वास बराबर है उस हवेली में?”
“कबूल करते कलेजा फटता है लेकिन कोई न कोई गड़बड़ तो जरूर है। अगर नहीं है तो भी हमें अपने स्तर पर उस बात को साबित कर के दिखाना होगा, ताकि आगे इस बात को दरकिनार कर के जांच आगे बढ़ा सकें कि केस में किन्हीं पैरानॉर्मल एक्टीविटीज का दखल है। तब हमारा पूरा ध्यान किसी लौकिक हत्यारे पर होगा, इसलिए कातिल को ढूंढ निकालना भी आसान हो जायेगा। जबकि अभी तो हमारा हर कदम दो हिस्सों में बंटा हुआ है।”
“पैरानॉर्मल घटनायें कोई अचंभे की बात नहीं हैं सर, अमेरिका जैसे विकसित देश तक मानते हैं कि इस तरह की चीजें संसार में मौजूद हैं। भूतों को पकड़ने वाली मशीनें तक इजाद कर ली गयीं, जिनमें गीगर काउंटर्स, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड डिटेक्टर्स, आयन डिटेक्टर्स, इंफ्रारेड कैमरा और सेंसिटिव माइक्रोफोन्स इत्यादि तो बेहद प्रचलित बताई जाती हैं।”
“लेकिन उनकी पकड़ में कोई एक भूत भी नहीं आया होगा आज तक। जबकि आम सुनने को मिल जाता है कि वैज्ञानिक तक ऐसी बातों पर यकीन करते हैं, या फलां जगह रिसर्च में ये सामने आया कि भूत होते हैं। मगर जब उन बातों की तह में जाओगे तो सहज ही पता लग जायेगा कि असल में वैसा कभी कुछ नहीं हुआ। जहां तक मैंने पढ़ा है भूतों और आत्माओं पर अध्ययन के लिए 1882 में सोसाइटी फॉर फिजिकल रिसर्च बनाई गई थी, जिसकी प्रेसीडेंट और इन्वेस्टिगेटर इलेनॉर सिडविक नामक एक महिला थी। उसे असली फीमेल घोस्टबस्टर कहा जाता था। इस सोसाइटी ने भूत-प्रेत जैसी चीजों पर गहरा रिसर्च किया लेकिन अंततोगत्वा वह फिजूल का काम ही साबित हुआ था।”
“जरूर हुआ होगा सर, मगर इस तरह की बातें आज भी आये दिन सामने आती रहती हैं, बल्कि भूतों की तो कहें ही क्या, पुर्नजन्म भी साबित हुआ बताया जा चुका है। ऐसे में क्या सच है और क्या झूठ अंदाजा लगा पाना संभव नहीं है।”
“हम मुद्दे से भटक रहे हैं जोशी साहब।”
“सॉरी सर, बताइये क्या करना है?”
“मजाक में मुंह से निकली बात को अब अमल में लाकर दिखाना है।”
“यानि हवेली में रात गुजारनी होगी?”
“बेशक, इसके अलावा और कोई चारा नहीं है। अगर भूत है तो वह हमें ये सोचकर नहीं बख्श देगा कि हम पुलिसवाले हैं। इसलिए सामने जरूर आयेगा, उत्पात भी पक्का मचायेगा, तब या तो हम उसके होने पर यकीन कर लेंगे, या फिर मान लेंगे कि सब सुनी सुनाई बातें हैं।”
“इससे बेहतर भी तो कुछ कर सकते हैं सर।”
“क्या?”
“किसी बड़े तांत्रिक को अपने साथ लेकर चलते हैं, भले ही हम ऐसे लोगों पर यकीन नहीं करते, मगर उनका नाम खामख्वाह तो नहीं हो गया होगा, आंशिक रूप से ही सही कुछ तो जानते ही होंगे।”
“हमारे कलीग्स को पता लग गया जोशी साहब तो हंसेगे हमपर, और बात कहीं साहब लोगों के कानों तक पहुंच गयी तो लेने के देने पड़ जायेंगे।”
“जैसे आपको परवाह है ऐसी बातों की?”
“भाई जिस बात में लॉजिक न हो उसकी तो परवाह करनी ही पड़ेगी न?”
“खबर तो तब लगेगी न सर जब हम लगने देंगे? इसलिए मेरी मानिये तो एक बार किसी तंत्र मंत्र के ज्ञाता को आजमाकर देख ही लेते हैं। और कुछ नहीं तो हमारी ये सोच ही पुख्ता हो जायेगी कि तंत्र-मंत्र सब बेकार की बातें हैं।”
“एक बार फिर सोच लो जोशी साहब?”
“सोच लिया सर, जो होगा देखा जायेगा। इसलिए किसी तांत्रिक को पकड़कर हवेली की सैर करा ही देते हैं इस बार।”
“तांत्रिक जैसे कि बाबा महाकाल?”
“या नकुल, या फिर दोनों।”
“नकुल भला हमारी बात मानने को तैयार क्यों होगा?”
“भांजी मरी है उसकी, हमारी हैल्प करना तो बनता है।”
“ठीक है फोन लगाओ उसे, ज्यादा से ज्यादा इंकार कर देगा और क्या?”
जोशी ने लगाया फिर संपर्क होते ही ये कहकर मोबाईल विराट को थमा दिया कि इंस्पेक्टर साहब बात करेंगे।
“कहिए विराट जी क्या बात है?”
उसने बताया।
लाईन पर चुप्पी छा गयी।
“क्या हुआ, और कुछ नहीं तो यही कह दीजिए की नहीं आ सकते।”
“आने से मुझे ऐतराज नहीं है इंस्पेक्टर साहब - नकुल बड़े ही गंभीर लहजे में बोला - हालांकि जो बात मैं पहले से जानता हूं उसे साबित करने की कोशिश बेवजह का काम लगता है, फिर भी मैं आपका कहा मानने को तैयार हूं, लेकिन...”
“क्या लेकिन?”
“वह बहुत ताकतवर है, मैं चाहकर भी उसका मुकाबला नहीं कर पाऊंगा। तब होगा ये कि मेरे साथ-साथ वहां जो कोई भी मौजूद होगा मारा जायेगा। प्रेतात्मायें ऐसी ही होती हैं, या तो काबू में आ जाती हैं, या काबू करने की कोशिश करने वाले को खत्म कर देती हैं, बीच का कोई रास्ता नहीं होता।”
“ऐसा कहना भी तो इंकार की श्रेणी में ही आता है नकुल जी?”
“नहीं, बस चेतावनी दे रहा हूं। बाकी मौत का क्या है, एक दिन तो आनी ही है। इसलिए आप जो चाहते हैं मैं वहां चलकर करने को तैयार हूं।”
“हम एक और तांत्रिक को भी अपने साथ ले आयें तो उससे कुछ भला हो सकता है?”
“अगर कोई बहुत पहुंचा हुआ हो तो ला सकते हैं, किसी ऐरे गैरे को पकड़ लाये तो उसका खून भी आपके ही सिर होगा।”
“साबित तो यही करता है कि खुदा से भी दस हाथ ऊपर है।”
“फिर तो जरूर ले आइये, एक से भले दो।”
“ठीक है मैं लोकेशन आपको भेज दूंगा, रात दस बजे पहुंच जाइयेगा।”
“ग्यारह बजे आऊंगा, क्योंकि जो करना है वह ठीक बारह बजे शुरू किया जायेगा। वैसे आप उस दूसरे शख्स से भी वक्त की बाबत पूछ सकते हैं। अगर वह कहता है कि दस बजे अनुष्ठान किया जा सकता है, तो ना ही लाना बेहतर होगा। क्योंकि आज रात बारह बजे ज्यादा उपयुक्त समय दूसरा कोई नहीं है ऐसे कामों के लिए।”
“ठीक है मैं आपको खबर कर दूंगा।”
“मैं इंतजार करूंगा।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
“नकुल तो एकदम श्योर जान पड़ता है जोशी साहब।”
“क्यों नहीं होगा सर, आखिर भुगत जो चुका है।”
“अब मैं बाबा महाकाल को फोन लगाता हूं, देखें कम्बख्त तैयार भी होता है या नहीं?”
“चलकर आमने सामने बात करते हैं सर, तब उसे राजी कर लेना ज्यादा आसान काम होगा।”
विराट ने क्षण भर उस बात पर विचार किया फिर उठता हुआ बोला, “पहले किसी दूसरे के नंबर से कॉल करवा कर जान लेते हैं कि अवेलेबल है। हम खुद पूछेंगे तो बहाना कर देगा।”
“ठीक है चलिए।”
तत्पश्चात दोनों इंटेरोगेशन रूम से बाहर निकल गये।
गोविंदपुरी के इलाके में पहुंचकर विराट ने अपनी गाड़ी को गली के बाहर ही खड़ा कर दिया क्योंकि आगे रास्ते की चौड़ाई बेहद कम थी। वे लोग क्योंकि पहले भी कई बार वहां का फेरा लगा चुके थे इसलिए जानते थे कि महाकाल का घर कौन सा है।
ऑफिस से निकलने से पहले जोशी ने एक सिपाही से फोन कराया था, जिसने बाबा को बताया था कि उसकी बीवी पर किसी चुड़ैल ने कब्जा जमा रखा था, तब बाबा ने उसे अपना पता नोट करवाकर कहा था कि वह रात दस बजे तक जब चाहे मिलने आ सकता था।
दोनों पैदल चलते दोनों महाकाल के घर के सामने पहुंचे। जोशी ने हौले से दरवाजे पर दस्तक दी और खोले जाने का इंतजार करने लगा।
दरवाजा अनपेक्षित रुप से ज्यादा देर से खुला।
सामने महाकाल खड़ा था।
घुटनों तक पहुंचता काला चोगा, मस्तक पर भभूत का टीका, गले में खूब लंबी माला और आंखें लाल जो उसकी सांवली रंगत को बेहद भयानक बनाये दे रही थीं।
“नमस्कार बाबा जी।” दोनों ने अपने हाथ जोड़ दिये।
उनपर निगाह पड़ते ही महाकाल के मुंह से गहरी आह निकल गयी, “अब क्या कर दिया मैंने?”
“हद करते हैं बाबा जी, हम इतनी दूर से चलकर आपसे मिलने आये हैं, और एक आप हैं कि बजाये हमारा स्वागत करने के बेगानों की तरह सवाल कर रहे हैं?” जोशी बोला।
“हमारी समझ में नहीं आता कि तुम दोनों बार बार हमें परेशान करने क्यों चले आते हो यहां? शहर में क्या इकलौता तांत्रिक मैं ही हूं? किसी और के पास जाकर अपना माथा क्यों नहीं फोड़ते?”
“तांत्रिक तो बहुतेरे होंगे बाबा जी, मगर क्या करें हमारा काम किसी ऐरे गैरे से नहीं चलता, इसलिए टॉप के लेबल पर दस्तक देते हैं। चलिए भीतर चलकर बात करें।”
“यहीं कहो जो कहना है?” वह रुष्ट स्वर में बोला।
“क्या बाबा जी, दोस्तों के साथ कोई ऐसे पेश आता है?”
“अगर दोस्त तुम्हारे जैसे होते हैं तो ईश्वर ही बचायें।”
“हद है यार - कहते हुए जोशी ने बाबा के कंधे पर हाथ रखा और उसे लिए दिये जबरन भीतर दाखिल हो गया - ऐसी भी क्या बेरुखी है, जबकि इस बार तो हम तुम्हारे भक्त बनकर आये हैं, ना कि पुलिस ऑफिसर।”
“भक्त कंधे पर हाथ नहीं रखा करते इंस्पेक्टर, वो कदमों में झुककर हमें प्रणाम करते हैं और हमारा आशीर्वाद लेकर खुद को धन्य समझने लगते हैं।”
“वर्दी पहन रखी है न बाबा जी, इसलिए अभी वैसा कुछ नहीं कर सकता, मगर कभी बिना वर्दी के यहां पहुंचकर आपको साष्टांग दंडवत प्रणाम जरूर करेंगे, चलिए अभी कहीं बैठकर बात करते हैं।”
तत्पश्चात जोशी ने बाबा को यूं भीतर लेजाकर सोफे पर बैठाया जैसे घर महाकाल का नहीं खुद उसका हो। फिर विराट के बैठ चुकने के बाद खुद भी एक चेयर पर जम गया।
“क्या चाहते हो?” बाबा भुनभुनाता हुआ बोला।
“मदद।”
“कैसी मदद?”
“एक बड़े पिशाच को पकड़कर दिखाना है।”
“मजाक मत करो।”
“नहीं ये मजाक नहीं है - विराट बोला - तुम्हें आज रात हमारे साथ एक हवेली में चलकर वहां रहते प्रेत को अपने काबू में करना है, या फिर ये साबित करना है कि उस जगह पर कोई प्रेतात्मा नहीं है।”
“मुफ्त में?”
जोशी ने घूरकर देखा उसे।
“नहीं मुफ्त में नहीं - विराट बोला - बताओ दक्षिणा कितनी देनी होगी?”
बाबा ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।
“यकीन करो बाबा जी तुम्हारा मेहनताना जरूर मिलेगा। भले ही मुझे अपनी जेब से देना है, फिर भी मिलेगा - कहकर उसने पूछा - कितना चाहिए?”
“पहले पूरी बात बताओ।”
जवाब में विराट भूत प्रेतों से रिलेटेड अब तक का तमाम किस्सा उसे सुनाने के बाद बोला, “मैं जानना चाहता हूं कि चंद्रशेखर महाराज की आत्मा इतना उत्पात क्यों मचा रही है, उसने मधु कोठारी को क्यों मार गिराया? वहां हमारे साथ एक और तांत्रिक होगा, जो पहले भी उस प्रेत से दो चार हो चुका है, बल्कि मरता मरता बचा था।”
“क्या हुआ था?”
विराट ने बताया।
“फिर तो बहुत ताकतवर लगता है वह दुष्ट।”
“तुम्हें डर लग रहा है?”
“हम किसी से नहीं डरते इंस्पेक्टर।”
“तो फिर कहो कि चलने को तैयार हो।”
“पचास हजार।”
“पचास हजार?” विराट ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।
“कम लग रहा है न? समझ लो मैंने ये सोचकर लिहाज किया कि पैसे तुम अपनी जेब से देने वाले हो, और जो काम करवाने जा रहे हो वह निःस्वार्थ है, वरना तो दो लाख से कम हरगिज भी नहीं मांगता।”
“पचास हजार कम लग रहा है तुम्हें?”
“क्योंकि है ही कम, मगर कोई बात नहीं कभी कभार कुछ काम नफा नुकसान सोचे बिना भी कर लेने चाहिएं।”
“ये मत भूलो बाबा जी कि यही काम हम तुमसे बांह मरोड़कर जबरन भी करवा सकते हैं।” जोशी गुस्से से बोला।
सुनकर महाकाल ने जोर का ठहाका लगाया।
“दिमाग हिल गया है इसका।”
“तुम्हारा हिल गया है सब इंस्पेक्टर सुलभ जोशी, जो ये सोचते हो कि अनुष्ठान जैसे काम किसी से जबरन करवाये जा सकते हैं। क्या कर लोगे अगर वहां पहुंचकर झूठ मूठ का आडंबर करने के बाद मैं ये कह दूं कि उस हवेली में कोई भूत प्रेत नहीं रहता?”
“कुछ नहीं कर सकते - विराट ने कबूल किया - मगर मुझे यकीन है कि तुम धोखा नहीं दोगे। फिर इंसानियत के नाते भी तो कोई फर्ज बनता है तुम्हारा। अगर वहां सच में कोई प्रेत लोगों की जानें ले रहा है, तो उसे रोकना और किसका काम है? पुलिस तो ऐसे मामलों में कुछ करने से रही।”
“हमारा काम है, हम जैसों का काम है - बाबा बड़े ही बुलंद लहजे में बोला - प्रेत चाहे कितना भी ताकतवर क्यों न हो इंस्पेक्टर वह महाकाल के सामने आखिरकार तो बौना ही साबित होता है। मगर समझ में ये नहीं आ रहा कि ऐसे किसी प्रेत से उसका किया धरा कबूल करवाकर तुम्हारा क्या भला होगा, उसे गिरफ्तार तो नहीं कर सकते न?”
“नहीं, लेकिन उसके आतंक से लोगों को मुक्ति बराबर दिलाई जा सकती है। जो कि मैं दिलाना चाहता हूं, ताकि फिर से कोई राहगीर उसकी पाशविकता का शिकार न बन जाये।”
“ठीक है चालीस हजार दे देना।”
“मुझे मंजूर है।”
“पहुंचना कब है?”
“वो तो तुम बताओगे।”
सुनकर बाबा ने सेंटर टेबल पर रखे एक नोट पैड पर उस दिन का पंचाग बनाया, मन ही मन कुछ गणना की, फिर बोला, साढ़े ग्यारह बजे तक पहुंचना होगा, क्योंकि अनुष्ठान हर हाल में बारह बजे शुरू करना पड़ेगा, ना एक सेकेंड आगे ना एक सेकेंड पीछे।”
“ठीक है।”
“और पैसे एडवांस में देने होंगे।”
“एकाउंट नंबर बताओ मैं अभी ट्रांसफर किये देता हूं।”
“गूगल पे कर दो मेरे नंबर पर।”
विराट ने फौरन कर दिखाया।
“अब कुछ सामानों के नाम नोट करो, जिन्हें रात को हवेली पर साथ लेकर आना है तुम लोगों को।”
विराट ने वह काम भी किया। मगर लिस्ट में दर्ज सामानों के नाम बड़े ही अजीबो गरीब थे इसलिए पूछ बैठा, “ये सब मिलेंगे कहां से?”
“चौदह नंबर के सामने एक पूजा सामग्री की दुकान है, उम्मीद है सब वहीं मिल जायेगा। कुछ कम रह गये तो दुकानदार खुद बता देगा कि कहां मिलेंगे। फिर भी दो चार चीजें हासिल ना कर सको तो मुझे एडवांस में बता देना, मैं अपने साथ ले आऊंगा।”
“फिर सारा इंतजाम तुम खुद क्यों नहीं कर लेते, पेमेंट मैं कर दूंगा। चाहो तो वह भी एडवांस में ले लो।”
“नहीं, बात विश्वास की होती है इंस्पेक्टर। सामानों का इंतजाम मैंने किया तो बाद में तुम्हारे मन में ये बात आ सकती है कि मैंने खामख्वाह ही पैसे बनाने के लिए एक लंबी चौड़ी लिस्ट तुम्हें थमा दी। क्योंकि कई चीजें ऐसी भी होती हैं जिनकी कोई जरूरत ही नहीं पड़ती, मगर इंतजाम कर के रखना होता है ताकि ऐन वक्त पर अनुष्ठान में कोई बाधा न पहुंचने पाये।”
“समझ लो मुझे तुमपर यकीन है।”
“तो भी खुद करो जाकर, मेहनत के बाद हासिल चीजों पर विश्वास ज्यादा होता है, उनका मजा अलग होता है, इसलिए संतुष्टि भी खूब मिलती है।”
“ठीक है हम कर लेंगे।” कहकर उसने महाकाल को हवेली का पता समझाया और उठकर जोशी के साथ बाहर निकल आया।
“आपने खामख्वाह इतनी फीस भर दी उसकी - जोशी भुनभुनाया - जबकि काम होना अभी बाकी है, जिसमें वह सफल हो पायेगा भी या नहीं कहा नहीं जा सकता।”
“भई पेमेंट मैंने उसकी सफलता या असफलता को ध्यान में रखकर नहीं की है। उसकी मेहनत को ध्यान में रखते हुए की है जो करने से वह इंकार नहीं करने वाला।”
“आपकी ये फैंसी बातें मेरी समझ से बाहर हैं।”
“समझने की कोशिश करो जोशी साहब, वह आधी रात को उतनी भयानक जगह पर पहुंचकर पूजा पाठ करेगा, अपना वक्त देगा हमें, जिसकी फीस तो बनती है न?”
“चालीस हजार?”
“जो कि मैं अफोर्ड कर सकता हूं।”
“हां वो तो आप बराबर कर सकते हैं। मैं भूल गया था कि गुजारा करने के लिए पुलिस की नौकरी नहीं करते आप मेरी तरह। करते होते तो एक महीने की तंख्वाह उसके हवाले यूं न कर देते जैसे मंगते के कटोरे में एक रुपये का सिक्का डाल दिया हो।”
“अब जाने भी दे यार, कम से कम आज रात ये वहम तो दूर हो जायेगा कि दुनिया में भूत प्रेत नाम की कोई चीज नहीं होती, उतना हासिल क्या कम होगा?”
“और उल्टा हो गया तो?”
“तो भी पैसों की वसूली हो जायेगी, ये सोचकर कि आगे से ऐसा कोई केस सामने आ गया तो हम आंख मूद कर ये नहीं कह देंगे कि सब नौटंकी है।”
तब तक दोनों गली नंबर चौदह के सामने पहुंच चुके थे, इसलिए वह वार्तालाप वहीं समाप्त हो गया।
रात साढ़े ग्यारह बजे विराट और जोशी चंद्रशेखर महाराज की हवेली पहुंचे तो बाबा महाकाल को अपना इंतजार करता पाया, जो कि फाटक के करीब खड़ा उनकी राह देख रहा था।
नकुल तब तक वहां नहीं पहुंचा था।
चाबी जोशी के पास थी इसलिए गाड़ी से उतरते के साथ ही वह गेट खोलने के लिए आगे बढ़ गया। फिर जैसे ही वह फाटक के करीब पहुंचा महाकाल ने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया।
“क्या हुआ?”
“हमारी गाड़ी की पिछली सीट पर एक बैग रखा हुआ है, जरा लेकर तो आओ उसे।”
“मैं लेकर आऊं?”
“मत लाओ, विराट को बोल दो। और थोड़ा विनम्र बनो, यहां पुलिसिया हेकड़ी दिखाने से कोई लाभ नहीं होगा।”
जोशी बुरी तरह कसमसाता हुआ वहां खड़ी बाबा की ऑडी तक पहुंचा तो उसने रिमोट का बटन दबाकर गाड़ी को अनलॉक कर दिया। पिछली सीट पर एक खूब बड़ा बैग रखा था जिसे उठाकर जोशी बाबा के पास वापिस लौट आया।
महाकाल ने उसमें से तांबे का बना पिरामिंड के आकार वाला एक लोटा निकाला और उसका ढक्कन खोलकर भीतर मौजूद लिक्विड में से थोड़ा सा अपने दायें हाथ की हथेली पर पलट लिया। फिर कोई मंत्र बुदबुदाने के बाद फाटक पर उसका छिड़काव करने लगा।
कुछ कदमों की दूरी पर अपनी गाड़ी की टेक लिए खड़ा विराट राणा पूरी खामोशी से वह नजारा देखता रहा।
“हम मानव मात्र के कल्याण के लिए आगे बढ़ रहे हैं प्रभु - महाकाल ऊपर की तरफ देखता दोनों हाथ जोड़कर बोला - रक्षा करना, हम सबकी रक्षा करना।”
तत्पश्चात उसने जोशी को ताला खोलने का इशारा कर दिया।
उसी वक्त रेड कलर की एक अल्ट्रोज वहां आ खड़ी हुई।
गाड़ी से उतरकर नकुल उनकी तरफ बढ़ा, फिर जैसे ही उसकी निगाह महाकाल पर पड़ी, वह बावला सा हुआ तेजी से आगे बढ़कर उसके चरणों में लोट गया, “मेरा प्रणाम स्वीकार करें गुरूदेव।”
“सानंद रहो वत्स, यहां कैसे पहुंच गये?”
“तुम दोनों एक दूसरे को जानते हो?” विराट ने हैरानी से पूछा।
“ऑफ कोर्स जानते हैं - नकुल बोला - बाबा जी मेरे गुरू हैं, तांत्रिक विद्या इनसे ही तो सीखी है मैंने - फिर महाकाल की तरफ देखकर बोला - मैं यहां इंस्पेक्टर साहब के बुलावे पर आया हूं गुरूदेव, बस ये नहीं जानता था कि आप यहां पहुंचने वाले हैं, वरना मेरी जरूरत ही क्या थी।”
“एक से भले दो होते हैं बच्चा, चलो भीतर चलते हैं।”
तत्पश्चात आगे पीछे चलते हुए चारों हॉल में दाखिल हो गये। विराट अपने साथ दो बड़ी चार्जिंग लाईट लेकर आया था, जिनका प्रकाश वहां पर्याप्त उजाला फैलाये दे रहा था।
जबकि जोशी दो बड़े कार्टन बॉक्स अपने हाथों में उठाये था, जिसमें बाबा की नोट कराई तमाम पूजन सामग्री मौजूद थी। जिसे उसने और विराट ने मिलकर तीन अलग अलग दुकानों से खरीदा था। और कीमत! वह तो एकदम हैरान कर देने वाली थी, पूरे बीस हजार।
हॉल में पहुंचकर बाबा ने वहां का एक राउंड लगाया फिर खुले हिस्से के नीचे पहुंचकर अपने बैग से एक कुश आसन निकाला और आलथी पालथी मारकर बैठ गया।
फिर वैसा ही एक आसन उसने नकुल को थमाकर अपने सामने बैठने का इशारा कर दिया। उनकी देखा देखी विराट और जोशी नंगे फर्श पर पालथी मारकर बैठ गये।
आगे बाबा ने कॉर्टन बॉक्स खोलने के लिए अपनी तरफ खींचा ही था कि नकुल ने उसे रोक दिया, “इतना बड़ा पाप मेरे सिर मत डालिये गुरूदेव। मेरे रहते आपको तैयारी करनी पड़े! उससे पहले डूबकर मर नहीं जायेगा आपका ये शिष्य।”
सुनकर बाबा महाकाल ने बड़े ही गर्व के साथ विराट और जोशी की तरफ देखा, मानो जताना चाहता हो कि लोग उसे कितनी इज्जत देते हैं।
नकुल तैयारियों में जुट गया।
उसी दौरान बाबा ने सवाल किया, “इंस्पेक्टर ने बताया कि आज शाम तुम्हारा किसी भयानक प्रेत से मुकाबला हुआ था?”
“ठीक बताया था, मैं उस वक्त अपनी भांजी को तलाशने की कोशिश कर रहा था गुरूदेव जिसके लिए तीन आत्माओं का सहारा भी लिया, सबकुछ नजर भी आ गया, लेकिन उस दुष्ट ने वापिस निकलने से पहले ही मुझे थाम लिया। वो तो भला हो इंस्पेक्टर साहब का जिन्होंने फौरन मुझे आसन से हटा दिया, वरना तो उसने मार ही डाला होता मुझे।”
“तुम जानते हो ऐसा करना नियमों के खिलाफ है। हम अपनी शक्तियों के जरिये किसी को प्रेतबाधा से मुक्त भर कराते हैं, गुमशुदा लोगों को ढूंढने लग जाना, किसी के कातिल का पता लगाना, ये काम हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आते, फिर क्यों तुमने नियम तोड़ने की कोशिश की?”
“मैं और क्या करता गुरूदेव, मेरी भांजी लापता थी, जीजा जी उसकी सलामती को लेकर अधमरे हुए जा रहे थे। फिर एक और बात थी जिसने मुझे वह दुस्साहस करने को मजबूर कर दिया।”
“कौन सी बात?”
“आपको पता ही है कि दीदी की शादी कितने बड़े आदमी के साथ हुई है। मैं भी दीदी के साथ वहीं रहता हूं, क्योंकि बचपन से उन्हीं के साथ रहा हूं। मुसीबत ये है कि मेरा जीजा मुझे अव्वल दर्जे का नकारा समझता है, इसलिए मैंने सोचा मधु को खोज निकालूंगा तो कुछ तो एहसान मानेगा मेरा। मगर अफसोस कि वह जिंदा नहीं मिली, इसलिए सारे किये कराये पर पानी फिर गया।”
“बात चाहे जो भी हो, आगे से ऐसा दुस्साहस कभी मत करना, वरना धीरे धीरे तुम्हारी तंत्र शक्तियां क्षीण पड़ती जायेगी, और एक दिन तुम किसी काम के नहीं रह जाओगे।”
“जी गुरूदेव।”
“मेरी एक बात सदैव याद रखना नकुल। सृष्टि हमेशा संतुलन से चलती है। इसलिए जरूरी है कि हर इंसान वही काम करे जिसके लिए विधाता ने उसका चुनाव किया है। क्या होगा अगर महिलाओं की जगह पुरूष प्रतिज्ञा कर लें कि अब से बच्चा वही जनेंगे। क्या होगा अगर किसी डॉक्टर को मोची की जगह और मोची को उठाकर डॉक्टर की जगह खड़ा कर दिया जाये? क्या होगा अगर बॉर्डर पर खड़े फौजियों को अंदर बुलाकर आम आदमी के हाथों में बंदूक थमाकर सरहद पर भेज दिया जाये?”
“कोई भी अपना काम ढंग से पूरा नहीं कर पायेगा गुरूदेव। सबकुछ उलट पुलट होकर रह जायेगा।”
“बेशक, यही बात तुम्हें भी समझनी होगी वत्स।”
“आपकी आज्ञा शिरोधार्य है गुरूदेव।”
आगे पंद्रह मिनटों के भीतर सारी तैयारी कर ली गयी। जो करीब करीब वैसी ही थी जैसा कि विराट और जोशी अतुल कोठारी के घर पर देख चुके थे। सिवाय एक मिट्टी के कलश के जिसके इर्द गिर्द लाल कपड़ा लपेटकर उसका मुंह खुला छोड़ दिया गया था।
“ठीक बारह बजे तुम अग्नि प्रज्वलित कर देना।” महाकाल बोला।
“जी गुरूदेव।”
“और तुम क्योंकि उस दुष्टात्मा से पहले ही दो चार हो चुके हो, तो जाहिर है कि तुम्हें यहां देखकर वह सहज ही भड़क उठेगा। इसलिए मैं तुम्हें आधार बनाकर ही उसका आह्वान करूंगा, फिर हम दोनों मिलकर उसे इस मिट्टी के कलश में बंद कर देंगे, कोई ऐतराज?”
“कैसी बात करते हैं, आपका हुक्म है तो इंकार कैसे कर सकता हूं।”
“एक और बात, यहां बैठे ये दोनों पुलिसवाले हमें इसलिए लेकर नहीं आये हैं कि इन्हें हमपर विश्वास है, बल्कि इसलिए लाये हैं ताकि ये बात साबित कर सकें कि दुनिया में तंत्र मंत्र या भूत प्रेत जैसा कुछ भी नहीं होता। और हमें आज इन्हें झूठा साबित कर के दिखाना है।”
“पूरी तरह से यकीन बेशक नहीं है बाबा जी - अब तक खामोशी से उनकी बातें सुन रहा विराट बोला - मगर आंशिक रूप से यकीन करने की वजह इस बार सामने है, इसलिए कम से कम आज रात तो हम आप पर विश्वास कर ही रहे हैं, कल का पता नहीं।”
“इसलिए - महाकाल उसकी बातों को नजरअंदाज कर के नकुल से बोला - हमें अपनी पूरी शक्ति लगा देनी है इस अनुष्ठान में। प्रेत कितना भी भयानक क्यों न हो आज उसे हर हाल में कैद कर के दिखाना होगा।”
“मैं जानता हूं आप कर लेंगे गुरूदेव, क्योंकि आप नहीं कर पाये तो दुनिया में दूसरा कोई तो क्या ही कर पायेगा?”
बाबा ने एक बार फिर गर्वीले अंदाज में विराट की तरफ देखा, मुस्कराया और आंखें बंद कर के बैठ गया।
तत्पश्चात इंतजार शुरू हो गया।
आगे ज्योंहि बारह बजे नकुल ने वहां सजाई गयी लकड़ियों के बीच रखे एक गत्ते के टुकड़े को माचिस की तीली दिखा दी। जिनमें भक्क से आग लग गयी, क्योंकि उनपर काफी सारा घी गिराया जा चुका था।
अग्नि प्रज्वलित होते ही बाबा आंखें बंद कर के बैठ गया।
फिर उसने हाथ में जल लेकर बड़ा ही अजीब मंत्र पढ़ना शुरू किया, “कोला कुकरा रंगा ठोप, तेज परेत टोपा टोप, गहाईं जा पंथे-पंथे, भूत प्रेत आते जाते, हीतारामे दीला हांक, सत्य गुरू मोर बचन, आ बान बाबा आ जा।”
इसी तरह वह एक के बाद एक जाने कौन कौन से मंत्र पढ़ता, फिर हाथ में लिए जल को पूरी ताकत से नकुल के ऊपर फेंक देता। फेंककर गौर से उसका चेहरा तकता और एक नया मंत्र पढ़ना शुरू कर देता।
वह प्रक्रिया उसने कई बार दोहराई, फिर नकुल दायें बायें ऊपर नीचे और पीछे की तरफ देखने लगा। हर तरफ निगाहें दौड़ाने के बाद उसने अपना रुख महाकाल की तरफ किया तो उसने पूछा, “वह दुष्ट दिखाई दिया वत्स?”
“नहीं गुरूदेव हर तरफ शांति है।”
“कुछ भी नहीं दिखा?”
“दिखा।”
“क्या?”
“लाशें - नकुल यूं बोला जैसे नींद में हो - अनगिनत लाशें, राजा की रानी की, मंत्री की सिपाही की, औरत बच्चे बूढे़े जवान, सबको मार गये शैतान।”
“कौन शैतान मार गया?” महाकाल ने सख्त लहजे में पूछा।
“महाराज के दुश्मन।”
“कौन महाराज?”
“हवेली का मालिक चंद्रशेखर महाराज।”
“कब की घटना है?”
“पता नहीं, लेकिन सबकी पोशाकें बताती हैं कि घटना पुराने जमाने की है। अजीब से वस्त्र, तलवारें और संगीने, बंदूक भी, पक्का बहुत पहले की बात है।”
“कोई कलेंडर ढूंढो।”
“नहीं है।”
“कुछ और ढूंढो जिससे उनकी मौत की तारीख का पता लग सके।”
“नहीं है, हर तरफ देख लिया, मगर लाशों के अलावा और कुछ नहीं दिखता गुरूदेव।”
“महाराज का प्रेत, वह कहां है?”
“यहां कोई प्रेत नहीं है।”
सुनकर महाकाल ने फिर से हाथ में जल लिया और नया मंत्र पढ़ना आरंभ कर दिया, ‘जल खोलो, थल खोलो, खोलो सबकी माया, असी कोस की पृथ्वी खोलो, स्वरसती की दाया, सोने कोठिला रूपया पिहान, ओमे राखो पीर परान, पीर परान पर खड़ा रहे बाबा हनुमान, पवनसुत हनुमान।” कहकर उसने जल फिर से नकुल पर छिड़क दिया।
“अब तुम्हारी दृष्टि का दायरा बड़ा हो चुका है, देखो हर तरफ देखो, कहीं तो नजर आयेगा, हवेली के भीतर न हो तो बाहर देखो, आस-पास जहां तक नजर जाये वहां तक देखो, मत भूलो कि हमें उस दुष्ट को कैद करना है।”
“मुझे तो कहीं भी नहीं दिख रहा महाराज, यहां बस लाशें हैं, किसी प्रेत का दूर दूर तक नामोनिशान नहीं है।”
“अपनी भांजी पर ध्यान केंद्रित करो, क्या हुआ था उसके साथ?”
“मायाजाल में फंस गयी थी, शैतान ने मार डाला और इंसानों ने जला दिया। दोस्त दुश्मन बन गये, विश्वास खंड खंड होकर बिखर गया।”
“दोस्तों ने ही तो नहीं मार दिया उसे?”
“धुंध है गुरूदेव, हवेली के भीतर उसका कोई एहसास नहीं है। मुझे तो बस मधु की लाश ही दिखाई दे रही है। खून से सनी हुई, कई लोग उसे उठाये ले जा रहे हैं। फिर उसके शव को आग के हवाले कर दिया गया।”
“फिर से कोशिश करो।”
“नहीं कर सकता।”
“दुष्टात्मा को तलाश करो।”
“नहीं कर सकता, वह यहां नहीं है, जा चुकी है। शायद उसे कोई और ठिकाना हासिल हो गया है।”
महाकाल ने गहरी सांस ली फिर बोला, “ठीक है वापिस लौट आओ।” कहने के बाद उसने लोटे से जल लेकर उसका छिड़काव नकुल पर किया तो वह एकदम से नार्मल दिखाई देने लगा।
“अजीब बात है नकुल - महाकाल बोला - आमतौर पर प्रेत अपना ठीया नहीं छोड़ते, उसके इर्द गिर्द ही मंडराते रहते हैं। ऐसे में मुझे हैरानी है कि वह कहीं और चला गया।”
“शनिवार को अमावस थी गुरूदेव, क्या पता वह बस उसी दिन बाहर आता हो।”
“अगर ऐसा होता तो आज अनुष्ठान के दौरान तुम्हें हरगिज भी नहीं दिखाई दिया होता।”
“क्यों न एक कोशिश और कर लें गुरूदेव?” उसने पूछा।
“कोई हर्ज नहीं, तैयार हो जाओ।”
तत्पश्चात सबकुछ पहले की तरह दोहराया जाने लगा। जिसमें पंद्रह मिनट और लग गये, मगर नतीजा इस बार भी ढाक के तीन पात वाला ही रहा।
आखिरकार बाबा महाकाल अपने आसान से उठ खड़ा हुआ। उसकी देखा देखी सबने अपनी जगह छोड़ दी। फिर बाबा ने वहां का हर कमरा देख डाला, और सब पहली मंजिल पर पहुंचे। वहां भी ढेरों कमरे बने हुए थे, मगर जिस चीज की उसे तलाश थी वह नहीं मिली। आखिरकार छत तक होकर सब वापिस नीचे लौट आये।
“यहां कुछ नहीं रखा इंस्पेक्टर, नकुल ने जिस प्रेत को देखा था वह या तो हवेली छोड़कर जा चुका है या फिर किसी ने उसे प्रेत योनि से मुक्ति दिला दी है। ये भी हो सकता है कि उस योनि में उसका समय पूरा हो गया हो। बात चाहे जो भी हो यहां बने रहने का अब कोई औचित्य नहीं है।”
तत्पश्चात सब बाहर निकल आये।
“मैं चलूं इंस्पेक्टर साहब?” नकुल ने पूछा।
“बेशक जा सकते हैं, आने के लिए थैंक्स।”
सुनकर उसने हौले से गर्दन हिलाई और अपनी अल्ट्रोज में सवार होकर निकल गया।
“मैं तुम्हारी दक्षिणा वापिस लौटा रहा हूं इंस्पेक्टर।” कहकर महाकाल ने अपना मोबाईल बाहर निकाल लिया।
विराट सकपका सा गया, “रहने दो बाबा, मेहनत तो तुम कर ही चुके हो भले ही कोई परिणाम सामने नहीं आया, इसलिए मेहनताना समझकर ही रख लो।”
“मैं जरूर रख लेता अगर तुम जो करा रहे थे, उसके साथ तुम्हारा निजी स्वार्थ जुड़ा होता, मानव कल्याण के कार्य में असफल होकर मैं मेहनताना नहीं ले सकता।” कहकर उसने पैसे विराट के नंबर पर ट्रांसफर कर दिये।
“तुम रख सकते हो महाकाल, क्योंकि मैं उनपर तुम्हारा हक समझता हूं। फिर चालीस हजार रूपये मेरे लिए कोई बड़ी रकम भी नहीं है।”
“उसकी कोई जरूरत नहीं है, अब चलता हूं।”
“बस एक मिनट और।”
“कुछ पूछना चाहते हो?”
“हां, नकुल को कैसे जानते हो?”
“बताया तो मेरा शिष्य था।”
“उसके अलावा कुछ, जैसे कि वह कहां का रहने वाला है, या अतुल कोठारी के साथ उसकी बहन की शादी क्योंकर मुमकिन हो पाई?”
“देखो उस बारे में मैं बस उतना ही जानता हूं जितना नकुल ने मुझे बताया था।”
“वही बता दो।”
“दोनों भाई बहन पलवल के रहने वाले हैं। मां बाप का साया जब सिर से उठा तो कनिका 16 साल की और नकुल 12 का था। आगे बहन ने ही उसकी देख रेख की, दोनों का पेट भरा। वक्त आगे बढ़ा तो लड़की ने एक जागरण मंडली जॉयन कर ली। बहुत अच्छा भजन गाती थी और खूबसूरत तो थी ही। अपने जीवनकाल में उसने ऐसी कई मंडलियां बदलीं और आखिरकार एक बड़े महंत के खेमे में पहुंच गयी, जिन्हें बड़े बड़े आयोजन कर के प्रवचन के लिए बुलाया जाता था। वहां जाकर लड़की पूरी की पूरी साध्वी बन गयी। उसकी वाणी में ओज था और चेहरे पर ऐसा आकर्षण कि लोग बाग मंत्रमुग्ध होकर उसे सुनने लग जाते थे। वह बात मैं इसलिए जानता हूं क्योंकि एक बार नकुल के अनुरोध पर उसके साथ कनिका का प्रवचन सुनने गया था।”
“कोठारी के साथ शादी कैसे मुमकिन हो पाई उसकी?”
“उसका आगाज भी एक बड़े आयोजन के दौरान ही हुआ था, जिसका बंदोबस्त लालकिला के रामलीला ग्राउंड में किया गया था। अतुल कोठारी ने उसे देखा और देखते ही उसपर आसक्त हो गया। बाद में क्या हुआ मैं नहीं जानता, लेकिन परिणीति दोनों के विवाह के रूप में ही हुई थी, ये बात तुम खुद भी जानते हो।”
“नकुल आपके पास कैसे पहुंच गया? या पहले से उसे जानते थे?”
“सालों पहले एक बार उसके गांव गया था, तंत्र मंत्र में तब भी उसे बहुत विश्वास था और गांव के लोगों का झाड़ फूंक भी किया करता था, जिससे उन्हें फायदा बराबर पहुंच रहा था क्योंकि सब उसे मान देते थे। वहीं से वह मेरे साथ चिपक गया और आगे कई सालों तक पलवल से दिल्ली तक रोज अप डाउन कर के मेरे पास तंत्र मंत्र सीखने के लिए आता रहा।”
“आखिरी बार कब आया था?”
“कनिका और अतुल की शादी के बाद मिठाई लेकर आया था, उसके बाद नकुल की शक्ल मैंने आज यहीं देखी है।”
“अच्छा अब एक बात का जरा सोच समझकर जवाब दो कि क्या चंद्रशेखर महाराज के भूत के बारे में उसने हमसे झूठ कहा हो सकता है? क्योंकि भूत जैसी कोई बात तो तुम्हें यहां दिखी नहीं।”
“तुम मेरे शिष्य पर शक कर रहे हो और चाहते हो कि मैं उस बात की पुष्टि करूं, ये कैसे संभव है?”
“अरे एक सवाल ही तो पूछा है महाराज - जोशी बोला - सीधा सीधा जवाब क्यों नहीं दे देते?”
“क्योंकि सीधा जवाब मेरे पास है ही नहीं।”
“ठीक है हम टेढ़े वाले से ही काम चला लेंगे।”
“तो सुनो, ऐसा मेरे जीवन में पहली बार हुआ है जब कोई प्रेत अपना ठीया छोड़कर कहीं और चला गया हो। हां यहां से कोई वाहक मिल गया हो तो नहीं कह सकता।”
“वाहक मतलब?”
“कोई शरीर जिसपर सवार होकर उसके साथ निकल लिया हो।”
“ऐसा कुछ हुआ था, इसका पता लगाने का कोई तरीका?”
“नहीं है, लेकिन नकुल ने उसे जितना शक्तिशाली बताया है, अगर वह सच में उतना ही है, तो जल्दी ही तुम लोगों को उसके कहीं होने का प्रमाण मिल जायेगा, क्योंकि ऐसे दुष्ट प्रेत ना तो खुद चैन से रहते हैं ना ही दूसरों को रहने देते हैं।”
“मतलब वह किसी और को भी मार सकता है?”
“अवश्य ही मारेगा, मगर असल में जो होगा वह तुम्हें उसके वाहक का किया धरा लगेगा। डिटेल्स में कहूं तो जिस शख्स पर वह सवार हुआ है उसके जरिये लोगों को मार सकता है। और ज्यादातर उम्मीद इसी बात की है कि मरने वालों में वही लोग होंगे, जो शनिवार की रात मधु के साथ यहां मौजूद तो रहे थे, मगर जिंदा वापिस लौटने में कामयाब हो गये थे।”
“क्यों हो गये, उसने तभी सबको क्यों नहीं खत्म कर दिया?”
“मेरे ख्याल से उसका इरादा लड़की को खत्म कर के उसके शरीर पर कब्जा जमाने का रहा होगा, जिसमें विघ्न इसलिए पड़ गया क्योंकि बाकी लोगों ने मिलकर उसकी लाश को तुरंत आग के हवाले कर दिया था।”
“तुम्हें लगता है मधु के दोस्तों ने ही उसे जला दिया था?”
“क्यों आपको कुछ और लगता है? जबकि पुलिस ऑफिसर होने के नाते इतनी सी बात तो आपकी समझ में फौरन आ जानी चाहिए कि वह कारनामा किसी प्रेत का नहीं हो सकता। दुनिया के किसी भूत में इतनी शक्ति नहीं है कि वह अग्नि के जरिये किसी के शव को जला सके। फिर जलायेगा ही क्यों, नहीं जलाता तो आप उसका क्या बिगाड़ लेते?”
“ठीक कहा बाबा जी, खैर आपने अपना कीमती वक्त दिया इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।”
“अगर सच में शुक्रगुजार होना चाहते हो तो मेरी एक बात मान जाओ।”
“क्या?”
“तुम दोनों फिर से अपनी सूरत कभी मत दिखाना मुझे।” कहकर वह अपनी ऑडी की तरफ बढ़ गया।
विराट और जोशी की हंसी छूट गयी।
“अब क्या इरादा है सर?” बाबा की गाड़ी वहां से निकल जाने के बाद जोशी ने पूछा।
“लाख रूपये का सवाल है।”
“जवाब भी जरूर होगा आपके पास।”
“देखो यहां से तो हमारे हाथ कुछ लग नहीं, यानि हम वहीं हैं जहां पहले खड़े थे। महाकाल तो एक तरह से हमें अधर में लटका गया। यानि प्रेतों का वजूद हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता। मधु को किसी प्रेत ने मार गिराया हो सकता है और वह किसी के षड़यंत्र का शिकार भी हुई हो सकती है।”
“एक बात तो फिर भी माननी पड़ेगी सर।”
“क्या?”
“बाबा की नीयत बुरी नहीं है, वरना आपके पैसे वापिस नहीं लौटाये होते। इसलिए हमें इस बात पर यकीन करना ही पड़ेगा कि अगर यहां सच में कोई प्रेत होता तो वह पक्का उसे अपने काबू में कर लेता।”
“पता नहीं क्या होता यार, हमारी तो मति भ्रष्ठ हो गयी थी जो ऐसा कुछ करने के लिए निकल पड़े। अब तो मैं सच में ये सोचकर डर रहा हूं कि कहीं साहब लोगों को पता लग गया तो फौरन हमारी मानसिक स्थिति पर सवाल खड़े कर देंगे।”
“जैसे हम कुछ बताने ही वाले हैं।”
इस बार विराट ने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
“आगे हमारी स्ट्रेटजी क्या होगी?”
“वही जो इस केस से पहले हुआ करती थी।”
“मतलब?”
“आगे यही मानकर चलेंगे कि दुनिया में भूत प्रेत जैसी कोई चीज नहीं होती। मतलब कि अपना पूरा ध्यान किसी शातिर की तलाश में लगायेंगे, जो कि हमें पहले ही कर देना चाहिए था। और रणनीति ये होगी कि अभी और इसी वक्त से बाकी के सातों दोस्तों की निगाहबीनी शुरू करनी पड़ेगी, कुछ इस तरह से कि उन्हें खबर न लगे।”
“आपका इरादा उन सबके घरों की निगरानी करवाने का है?”
“नहीं, इतना मैन पॉवर हमारे पास नहीं है, क्योंकि चौबीसों घंटे सात लोगों पर निगाह रखने के लिए कम से कम भी चौदह आदमी चाहिए होंगे, जिसकी इजाजत एसीपी साहब हरगिज भी नहीं देने वाले।”
“फिर?”
“हम उन सबके मोबाईल पर निगाह रखेंगे, ये हो ही नहीं सकता कि आज के जमाने में एक नौजवान लड़का या लड़की कहीं जाये और मोबाईल अपने पीछे घर पर छोड़ दें।”
“मोबाईल नंबर्स की निगरानी तो पहले से ही चल रही है सर। उसके अलावा कुछ कहिए।”
“कल सुबह एक एक कर के सबसे पूछताछ करेंगे। तुरंत कोई रिजल्ट सामने नहीं भी आया तो शनिवार को जरूर आयेगा। जिस तरह का उनका किरदार है, उसको ध्यान में रखकर कहूं तो अपने दो दोस्तों की मौत से कोई सबक नहीं लेने वाले और फिर कहीं इकट्ठा हो जायेंगे वह मनहूस गेम खेलने के लिए, क्या नाम बताया था उसका?”
“गेम ऑफ डैथ।”
“हां वही, और इस बार अगर ऐसा हुआ तो हमें उनपर निगाह रखने का मौका सहज ही हासिल हो जायेगा, फिर देखेंगे कि कातिल बचकर कहां जाता है।”
“आपको लगता है अभी कुछ और कत्ल भी हो सकते हैं?”
“हां यही लगता है, जिसे होने देने से हर हाल में रोकना होगा हमें।”
“यानि अभी कुछ नहीं करना?”
“करना है न।”
“क्या?”
“घर चलकर एक गहरी नींद मारनी है।”
तत्पश्चात दोनों फॉर्च्यूनर में सवार हो गये।
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