दिसम्बर की बहुत ही सर्द रात थी। घने कोहरे के कारण बीस–पच्चीस गज से ज्यादा दूर साफ देख पाना नामुमकिन था।

उस वक्त एक बजकर चालीस मिनट हुए थे।

शहर की एक पाश कॉलोनी के आखिरी सिरे पर एक काली एम्बेसेडर कार प्रगट हुई।

कार की हैडलाइट्स ऑफ थीं और इंजिन बंद।

अपनी पूर्व गति द्वारा उत्पन्न वेग के कारण, तनिक ढलुवाँ सड़क पर वो लगभग निःशब्द और तेजी से फिसल रही थी।

करीब तीन सौ गज फिसलने के बाद कार एक शानदार तीन मंजिला इमारत के मेनगेट की बगल में जा रुकी।

उस इमारत के तमाम दरवाजे और खिड़कियाँ बंद थे। अन्दर कहीं से भी रोशनी या जागरण का कोई चिन्ह नजर नहीं आ रहा था।

इमारत में प्रत्येक खंड पर छह कमरे थे। ग्राउंड फ्लोर पर एक डाक्टर का परिवार रहता था। फर्स्ट फ्लोर पर एक रिटायर्ड ब्रिगेडियर की रिहाइश थी।

इमारत का मालिक काशीनाथ जावेरी टॉप फ्लोर पर रहता था। परिवार के नाम पर उसकी एक आठ वर्षीया बेटी रूबी ही थी। उसकी पत्नी रंजना करीब डेढ़ साल पहले उससे तलाक लेकर दूसरी शादी कर चुकी थी।

काली कार में मौजूद इकलौता आदमी ड्राइविंग सीट वाला दरवाजा खोलकर बाहर निकला और बहुत ही धीरे से दरवाजा पुनः बन्द कर दिया।

उसने घने कोहरे में लिपटी खड़ी इमारत की ओर देखा फिर सड़क पर दोनों ओर निगाहें दौड़ाई और फिर गेट से भीतर दाखिल हो गया।

औसत कद–बुत वाला वह आदमी काला सूट और काली फैल्ट हैट पहने था। कोट का कॉलर खड़ा किया हुआ फैल्ट हैट माथे पर इस ढंग से झुका रखी थी कि उसका चेहरा लगभग ढंक सा गया था। गले में टाई की जगह काला स्कार्फ लिपटा हुआ था। दोनों हाथ काले दस्तानों से ढंके थे पैरों में रबर सोल के काले जूते थे।

सर से पाँव तक काले लिबास वाले उस आदमी के कदमों से जरा भी आहट पैदा नहीं हो रही थी। अलबत्ता उसकी चाल से सतर्कता साफ झलकती थी।

करीब बीस गज, लम्बा ड्राइव–वे पार करने के बाद वह इमारत की साइड में उस स्थान पर पहुंचा जहाँ करीब सोलह फुट ऊपर पहले खंड की लम्बी बालकनी थी और उससे उतनी ही ऊँचाई पर दूसरे खंड की बालकनी थी। उन बालकनियों में दो–दो कमरों के दरवाजे खुलते थे। उनसे मुश्किल से डेढ़ फुट के फासले पर बरसाती पानी की निकासी वाला पाइप था जो ऊपर इमारत की छत तक गया हुआ था।

काले लिबास वाले ने दोनों बालकनियों और उस तरफ की बंद खिड़कियों को गौर से देखा। फिर गेट पर निगाह डाली और फिर नीचे झुककर अपने जूते उतार लिए।

दोनों जूते कोट की, जेबों में ठूंसने के बाद उसने गले से काला स्कार्फ खोलकर नकाब की तरह अपने चेहरे पर बाँध लिया। फिर दोनों हाथों में पाइप थामा और अभ्यस्त चोर की भांति तेजी से ऊपर चढ़ने लगा।

कुछ ही सेकण्डों में वह दूसरे खंड की बालकनी में जा पहुंचा।

उसने पुनः अपने जूते पहन लिए। पैंट की जेब से नाइलोन की एक मोटी रस्सी का रोल निकालकर उसका एक सिरा बालकनी की रेलिंग के साथ मजबूती से बाँधा और शेष रस्सी नीचे लटका दी। जरूरत पड़ने पर जल्दबाजी में भागने के लिए यह प्रबन्ध आवश्यक था।

फिर उसने बालकनी के पहले बंद दरवाजे की डोर नाब घुमाने की कोशिश की। आशा के अनुरूप दरवाजा भीतर से लॉक्ड था। उसने अपनी हिप पॉकेट से एक चाबी निकाल ली। वह जानता था इस इमारत के तमाम दरवाजे लॉक्ड होने पर बाहर भीतर दोनों तरफ से खोले जा सकते है। और दोनों सूरतों में एक ही चाबी इस्तेमाल होती है।

की होल में चाबी फँसाकर उसने धीरे–धीरे घुमाई। लॉक आसानी से खुल गया।

उसने धीरे–धीरे थोड़ा सा दरवाजा खोला।

अन्दर अंधेरा था।

वह जानता था वो कमरा मास्टर बैडरूम है। अपनी पत्नी से तलाक के बाद काशीनाथ ने उस कमरे में सोना बंद कर दिया था। वह और उसकी बेटी बगल वाले दूसरे बैडरूम में सोया करते है।

काले लिबास वाले के हक में यह बेहद अच्छी बात थी क्योंकि उसकी मंजिल सिर्फ मास्टर बैडरूम ही था।

अचानक पास ही सड़क पर कहीं चौकीदार की सीटी की आवाज सुनकर उसने दरवाजा और ज्यादा खोला और तुरन्त भीतर रेंग गया।

दरवाजा पुनः बंद करके कई पल खड़ा अंधेरे में घूरता रहा।

उसे कुछ दिखाई तो नहीं दिया, लेकिन बायीं ओर बगल वाले कमरे में सोए काशीनाथ के खर्राटों की धीमी आवाजें जरूर सुनाई दी।

उस खंड के भूगोल, वहाँ मौजूद तमाम चीजों और काशीनाथ की आदतों से भली–भांति परिचित होने की वजह से वह जानता था दोनों कमरों के बीच का दरवाजा दूसरी तरफ से लॉक्ड होगा।

उसने अपने कोट के बटन खोल लिए। पैंट की बैल्ट में खुँसी रिवाल्वर पर हाथ फिराने के बाद कोट की भीतरी जेब से एक पैंसिल टार्च निकाली।

टार्च ऑन करके पहले उसने रोशनी अपने आस–पास डाली, फिर बीच वाले बंद दरवाजे पर और फिर धीरे–धीरे पूरे कमरे का निरीक्षण करने के बाद बायीं ओर दोनों कमरों के बीच वाली दीवार पर दरवाजे की बगल में लटकी पेंटिंग पर रोशनी डाली।

वह दबे पैरों चलकर पेंटिंग के पास पहुँचा।

टार्च मुँह में दबाकर उसने पेंटिंग उतारकर नीचे रख दी।

अब उस स्थान पर दीवार में लगी एक ढाई फुट गुणा दो–फुट आकार की सेफ का दरवाजा साफ नजर आ रहा था।

दरवाजे पर बायीं ओर ऊँचाई के बीचो–बीच स्टील का मोटा मजबूत हैंडिल लगा था। उससे तनिक नीचे चाबी डालने के लिए सुराख बना हुआ था। दरवाजे के ऊपरी हिस्से में दो डायल नजर आ रहे थे। बड़े डायल पर पूरी गोलाई में अंग्रेजी वर्णमाला के ए से जैड तक सारे अक्षर लिखे थे और प्रत्येक अक्षर के सामने एक गोल छेद बना था। उसकी बगल में लगे छोटे डायल पर जीरो से नौ तक के अंक लिखे थे और प्रत्येक अंक के सामने एक छेद बना था।

काले लिबास वाले ने सेफ का काम्बीनेशन मन–ही–मन दोहराया।

लगभग दो साल पहले जब उसे इस काम्बीनेशन का संयोगवश पता चला था तब उसने सोचा भी नहीं था एक दिन इस जानकारी को सेफ लूटने के लिए इस्तेमाल करेगा।

उसने काम्बीनेशन को बस एक कागज पर नोट करके रख छोड़ा था। लेकिन पिछले करीब दो महीनों से हर वक्त वह किसी मंत्र की भांति काम्बीनेशन का मन–ही–मन जाप करता रहा था।

टार्च को पूर्ववत् मुँह में दबाए उसने काम्बीनेशन के मुताबिक बड़े डायल के खास अक्षरों को एक–एक करके घुमाना आरम्भ कर दिया।

अंतिम अक्षर घुमाते ही सेफ के अंदर 'क्लिक' की हल्की सी आवाज सुनाई दी।

उसकी आँखें खुशी से चमकने लगीं।

उसने तुरन्त सेफ का हैंडिल नीचे घुमाया। हैंडिल करीब तीस डिग्री के कोण तक घूमकर रुक गया।

काले लिबास वाला छोटे डायल की ओर आकर्षित हुआ।

उस पर लिखे अंकों को भी उसने काम्बीनेशन के अंकों की तरतीब से घुमाया। अंतिम अंक घुमाने के बाद पुनः क्लिक की आवाज सुनाई दी और इस दफा हैंडिल भी साठ डिग्री के कोण तक घूम गया।

उसने अपने कोट की भीतरी जेब से एक लम्बी मोटी चाबी निकाली।

दरवाजे में बने की होल में चाबी डालकर घुमाई।

तुरन्त 'क्लिक' की आवाज सुनाई दी।

उसने कांपते हाथ से हैंडिल घुमाया। वो आसानी से पूरा नीचे घूम गया।

काले लिबास वाले की धड़कनें बढ़ गई थीं।

उसने धीरे–धीरे हैंडिल को बाहर की ओर खींचा तो दरवाजा खुलने लगा।

उसने सेफ का दरवाजा पूरी तरह खोल दिया।

अन्दर सेफ में दो ही खाने थे। ऊपर वाले खाने में कागजात के दर्जनों रोल्स के अलावा कुछ नहीं था। लेकिन निचले खाने में एक तरफ सौ रुपए के नोटों की करीब पचास गड्डियाँ सजी हुई थीं और शेष खाने में विभिन्न आकार के लगभग डेढ़ दर्जन चाँदी के बने नक्काशीदार ज्वैल बाक्सेज रखे थे।

काले लिबास वाला फटी–फटी आँखों से उसी खाने को ताके जा रहा था।

कई क्षण निश्चल खड़ा रहने के बाद मानों अचानक उसे अपना असली मकसद याद आ गया। वह तुरंत झुका और पंजों और घुटनों के बल नीचे बैठ गया।

उसने बड़े आकार वाला एक ज्वैल बाक्स खाने के बाहर निकाला, खोलकर टार्च की रोशनी में देखा और वापस रख दिया।

इसी प्रकार चार बाक्स निकाले, उन्हें भी खोलकर देखा और पुनः वापस रख दिए।

लेकिन पाँचवां और सबसे बड़ा बाक्स खोलते ही उसका मन मयूर खुशी से नाच उठा।

करीब चौदह इंच लम्बे, छह इंच चौड़े और छह इंच ऊँचे उस बाक्स के अन्दर सुर्ख मखमल का अस्तर लगा था। ढक्कन के अन्दर लगे मखमल पर सोने के तारों द्वारा की गई सुन्दर कशीदाकारी में कढ़ा हुआ था–कनकपुर कलैक्शन। बाक्स के पैदे वाले भाग में चार इंच गुणा चार इंच आकार वाली चाँदी की तीन डिब्बियाँ बराबर–बराबर सजी हुई थीं।

उसने एक–एक करके तीनों डिब्बियों के ढक्कन खोल दिए। अगले ही क्षण सम्मोहित सा देखता रह गया।

सुर्ख मखमल का अस्तर लगी इन डिब्बियों में से पहली में चार हूबहू एक जैसे हीरे मौजूद थे, दूसरी में वैसे ही चार मोती थे और तीसरी में चार नीलम। उन हीरे, मोती और नीलम का आकार असामान्य था और चमक आश्चर्यजनक। मामूली टार्च के प्रकाश में भी उनसे किरणें फूटती प्रतीत हो रही थीं।

उसने पहले तीनों डिब्बियों बन्द की। फिर बाक्स का ढक्कन बन्द करके उसे अपने कोट के नीचे कंधे से लटकते थैले में डाल लिया। फिर उसने नोटों की गड्डियाँ उठाकर थैले में भरनी शुरू कर दी।

वह मुश्किल से आधी गड्डियाँ ही थैले में भर पाया था अचानक कमरे में तीव्र प्रकाश फैल गया। साथ ही कड़कता हुआ स्वर गूंजा।

–"हैंड्स अप।"

पल भर के लिए काले लिबास वाले के समूचे जिस्म को मानो लकवा सा मार गया।

वह अपने स्थान से हिल भी नहीं सका। नोटों की गड्डियों समेत थैले की ओर बढ़ता उसका हाथ जहाँ था वहीं रुक गया।

मुंह में दबी टार्च निकलकर नीचे आ गिरी।

–"सुना नहीं!" पुनः चेतावनी दी गई–"हाथ ऊपर करके खड़े हो जाओ।"

काले लिबास वाले के हाथ से छूटकर नोटों की गड्डियाँ नीचे फर्श पर जा गिरी।

तुरंत सारी स्थिति उसकी समझ में आ गई।

हमेशा हल्की नींद सोने वाला काशीनाथ अचानक जाग गया था। फिर शायद उसे शक हुआ कि घर में कोई चोर है और वह अपने शक की जाँच करने आ पहुँचा। इधर वह खुद अपने काम में इतना मसरूफ था दरवाजा खोले जाने की आहट भी नहीं सुन सका।

वह बगैर देखे ही समझ गया था कि काशीनाथ खुले दरवाजे में उसकी ओर पिस्तौल ताने खड़ा है। लेकिन अब तक वह भी अपना अगला कदम निश्चित कर चुका था।

मौजूदा हालात में उसके जिस्म का सारा ऊपरी भाग तिजोरी के मोटे दरवाजे की आड़ में था। उसने ऐसा जाहिर किया मानो उठने की कोशिश कर रहा है। फिर उसने अपनी बैल्ट में खुँसी रिवाल्वर निकाली और अनुमान मात्र से दरवाजे की ओर लगातार दो फायर झोंक दिए।

बन्द स्थान में फायरों की आवाज जोर से गूंजी लेकिन उससे भी जोर से गूंजी दरवाजे में खड़े काशीनाथ की आतंकपूर्ण चीख।

काले लिबास वाले ने सावधानी पूर्वक सेफ के दरवाजे की आड़ से अपना सर तनिक बाहर निकाला।

काशीनाथ का चेहरा पीड़ा से विकृत था। दोनों हाथों से छाती को दबाए वह धीरे–धीरे झुक रहा था। पिस्तौल उसके पैरों के पास कारपेट पर पड़ी थी।

अचानक उसके घुटने मुड़े और वह उसी मुद्रा में कारपेट पर औंधा जा गिरा।

तभी एक अन्य पतली घुटी सी चीख उभरी।

भागते कदमों की हल्की सी आहट भी सुनाई दी।

फिर दरवाजा खुलने और बन्द किए जाने की आवाजें और फिर पतली आवाज–"बचाओ! बचाओ!"

काले लिबास वाला समझ गया। काशीनाथ की आठ वर्षीया बेटी रूबी बगल वाले कमरे से निकलकर बाहर भाग रही थी।

इमारत के निचले खंड पर खिड़कियाँ खुलने और–"क्या हुआ?" की आवाजें सुनाई देने लगी थीं।

रूबी लगातार बचाओ–बचाओ चिल्ला रही थी।

काले लिबास वाला फौरन खड़ा हो गया।

उसने अपने कोट के बटन बंद किए, झपट कर दरवाजा खोला। रिवाल्वर हाथ में लिए बाहर बालकनी में आ गया।

नीचे उस साइड की लगभग सभी खिड़कियों में अब रोशनी 'नजर आ रही थी। लेकिन उनमें से कोई भी खिड़की खुली नहीं थी।

रिवाल्वर कोट की जेब में डालकर काले लिबास वाला रेलिंग के ऊपर से गुजरकर वहां बंधी रस्सी के सहारे लटक गया और तेजी से फिसलने लगा।

अचानक पहले खंड की बालकनी की बगल वाली खिड़की खुली और एक औरत चिल्लाई।

–"रंजीत, जल्दी आओ। एक नकाबपोश भाग रहा है। शूट हिम।"

रस्सी के सहारे फिसलते काले लिबास वाले ने जवाब में रौबीले पुरुष स्वर में कहा जाता सुना।

–"घबराओ मत रानी, मैं राइफल ला रहा हूं।"

काले लिबास वाला नीचे पहुँच गया।

रस्सी छोड़कर उसने जेब से रिवाल्वर निकाली और अंधाधुंध गेट की ओर भाग खड़ा हुआ।

अब तक इमारत में पूरी तरह जाग हो चुकी थी।

–"पकड़ो! पकड़ो!" एक आदमी चिल्लाया।

–"पुलिस को फोन करो।" एक स्त्री आतंकित स्वर में चिल्ला रही थी–"काशीनाथ जी का पता लगाओ।"

काले लिबास वाला सकुशल गेट से गुजर गया।

इस भाग–दौड़ ने उसके छक्के छुड़ा दिए थे।

चेहरे पर बंधा स्कार्फ नीचे खिसक कर गले में झूल रहा था।

उसने काली कार का दरवाजा खोला और ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। उसका जिस्म पसीने से तर था। सांसें लुहार की धौंकनी की तरह चल रही थीं। दिल हथौड़े की भांति पसलियों में धाड़–धाड़ बजने लगा था।

इग्नीशन लॉक में 'की' लगाते वक्त उसका हाथ बुरी तरह काँप रहा था।

तभी पीछे से तेज सीटी की आवाज सुनाई दी और एक टार्च का तीव्र प्रकाश कार के पृष्ठ भाग पर पड़ा।

काले लिबास वाला पूरी तरह बदहवास हो चुका था। लेकिन उसने पीछे मुड़कर देखने की बजाय गियर फंसाने की कोशिश जारी रखी।

अचानक फायर की जोरदार आवाज वातावरण में गूंज गई।

राइफल से निकली गोली कार की डिग्गी के ढक्कन के पिछले हिस्से में आ घुसी।

काले लिबास वाले ने तत्क्षण पूरी ताकत से एक्सीलेटर दबा दिया।

कार तोप से छूटे गोले की भांति सड़क पर दौड़ गई।