मोना चौधरी ने रिसीवर उठाकर नम्बर मिलाया।
“यस।” कुछ पलों बाद महाजन की आवाज कानों में पड़ी।
“तैयार हो?”
“पांचवें मिनट पूरा तैयार हो जाऊंगा बेबी।”
“उस टी प्वाईंट पर तुमने एक घंटे तक पहुंचना है।” मोना चौधरी बोली- “मैं वहां खड़ी मिलूंगी।”
“मैं, तुम्हें टी प्वाईंट पर खड़ा मिलूंगा।”
मोना चौधरी ने रिसीवर रखा फिर दीवार में फिट आदमकद शीशे के सामने पहुंचकर खुद को देखा। ब्लू जीन की टाईट पैंट और उसके ऊपर ढीली-ढाली कॉटन की ब्राऊन कलर की शर्ट कूल्हों तक को ढांप रही थी। खूबसूरत चेहरे पर किसी तरह का मेकअप नहीं था। छोटी-छोटी सोने की बालियां, जो कि कानों से चिपकी सी महसूस हो रही थीं। ब्वाय कट बाल। बालों की एक मोटी लट माथे पर अटखेलियां सी करती महसूस हो रही थी।
मोना चौधरी इस वक्त कॉलेज में पढ़ने वाली शरारती युवती जैसी नजर आ रही थी। कमीज के कॉलर ठीक करके वो शीशे के सामने से हटीं और कलाई पर बंधी घड़ी पर नज़र मारी। फिर आगे बढ़कर टेबल के ड्राअर से छोटी सी रिवॉल्वर निकालकर, पैंट की जेब में ठूंसी और दरवाजे की तरफ बढ़ी। टी प्वाईंट पर पहुंचने के लिये कम से कम एक घंटे की ड्राइविंग करनी थी। वहां महाजन ने मिलना था और फिर महाजन के साथ, खास काम के लिए आगे जाना था। दरवाजे के पास पहुंची ही थी कि फोन की बेल बज उठी।
बेल बंद होने का इन्तजार करने लगी। लेकिन वो बजती रही।
वो ठिठकी। फौरन पलटकर फोन की तरफ देखा। वहीं खड़े-खड़े मोना चौधरी ने आगे बढ़कर रिसीवर उठाया।
“हैलो।
“मोना चौधरी?” उसके कानों में मर्दाना अजनबी स्वर पड़ा।
“यस!” मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े।
“मैं-मैं-मेरा नाम सतीश ठाकुर है। मैं....”
“मैं किसी सतीश ठाकुर को नहीं जानती।” मोना चौधरी कह उठी।
“तुम ठीक कह रही हो। हम पहले कभी नहीं मिले और।”
“मेरा फोन नम्बर कहां से लिया?”
“पुलिस वाले ने दिया था।” आने वाली आवाज बेजान-थकी सी महसूस हो रही थी।
मोना चौधरी के माथे पर बल नजर आने लगे।
“पुलिस वाले का नाम क्या है?”
“इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी।
इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी के बारे में जानने के लिए पढ़ें, अनिल
मोहन का, मोना चोधरी सीरीज़ का पूर्वप्रकाशित उपन्यास ‘डाइनामाईट’।
“मामला क्या है?” मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव नज़र आने लगे थे- “इंस्पेक्टर मोदी तुम्हें, इस तरह मेरा फोन नम्बर नहीं दे सकता। वो जानता है ये बात मुझे पसन्द नहीं आयेगी।”
“तुम ठीक कहती हो। ये बात उसने मुझे पहले ही कह दी थी।” गहरी सांस लेने के साथ शब्द मोना चौधरी के कानों में पड़े- “लेकिन इंस्पेक्टर मोदी की भी मजबूरी थी तुम्हारा नम्बर देना और मेरे पास भी इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं था।”
“साफ-साफ कहो कि...”
“मैं भारी मुसीबत में हूं।”
“तुम कैसी भी मुसीबत में हो। मुसीबत से तुम्हें इंस्पेक्टर मोदी छुटकारा दिला सकता है।”
“वो इस वक्त शहर में नहीं है। अपने मां-बाप और बीवी के पास गांव गया हुआ है। छुट्टी पर है। चाहकर भी वो यहां फौरन नहीं पहुंच सकता। इंस्पेक्टर मोदी पर मेरे कुछ एहसान हैं। वो शहर में होता तो शायद मुझे तुम्हारी जरूरत ही नहीं पड़ती। फोन पर उससे बात हुई थी मेरी । बहुत सोच समझकर उसने मुझे तुम्हारा फोन नम्बर दिया कि तुमसे बात करूं। मैं मरने जा रहा हूं और कुछ वजह है कि पुलिस पास भी नहीं जा सकता।”
मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव थे।
“बात क्या है?”
“पहली बात तो ये है कि मेरे पास कुछ जानकारी है। जो मैं इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी को बताना चाहता था। लेकिन वो शहर में है नहीं। फोन पर बात तो हुई। लेकिन फोन पर उसे सब कुछ नहीं बता सकता था। मोदी ने ही इस बारे में सलाह दी कि मोना चौधरी से मैं कैसी भी बात खुलकर कर सकता हूं। तुम पर भरोसा कर सकता हूं।” सतीश ठाकुर के स्वर में कोई दम-खम महसूस नहीं हो रहा था- “दूसरी बात ये है कि रात भर से मैं भागा फिर रहा हूं। खाना तो क्या, दो घूँट पानी भी पीने को नहीं मिला । वो लोग मेरी जान ले लेना चाहते हैं । इस वक्त भी मैं घिरा हुआ हूं। एस०टी०डी० बूथ से बोल रहा हूं। बाहर वो लोग मेरी तलाश में हैं। जब बाहर निकलूंगा तो उनकी नजरों में आ जाऊंगा।”
“कौन हैं वो लोग?”
“इस छोटे से सवाल का जवाब लम्बा है। फोन पर नहीं बता सकता।” सतीश ठाकुर का व्याकुल स्वर उसके कानों में पड़ा- “तुम जहां कहो, मैं वहीं पहुंचने की कोशिश करता हूं। हमारी बात हो गई तो शायद सब कुछ ठीक हो जाये। शायद मैं बच जाऊं। मोदी न कहा था कि तुम हर तरह का मामला संभाल सकती...”
“इस वक्त मैं व्यस्त हूं।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा- “मैं कहीं जा रह...”
“प्लीज मोना चौधरी । मुझे सिर्फ अब तुम्हारा ही सहारा है। मैं घिरा पड़ा हूं। वो मेरी जान ले लेना चाहते हैं और मेरे पास बताने को बहुत कुछ
है। तुम आ जाओगी तो मेरी जान भी बचा लोगी। इन्कार मत करो। तुम्हारी हां में कईयों का भला हो जायेगा।” सतीश ठाकुर की आवाज में तड़प और याचना के भाव आ गये थे- “जो मैं तुम्हें बताना चाहता हूं। वो सुनोगी तो तुम्हें लगेगा कि मेरे पास आकर तुम्हारा वक्त खराब नहीं हुआ। मेरे शब्दों
पर भरोसा करो मोना चौधरी । मैं...”
“इस वक्त तुम कहां पर हो?” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में पूछा। सतीश ठाकुर ने बताया।
“मतलब कि तुम यहां से दस मिनट में ब्लू मून होटल के बाहर पहुंच सकते हो।”
“हां” सतीश ठाकुर का लम्बी सांस लेने का स्वर कानों में पड़ा- “अगर उन लोगों से बच पाया तो।”
“तुम मुझे ब्लू मून होटल के बाहर मिलो। मैं वहां पहुंच रही हूं।” मोना चौधरी ने कहा।
“कोशिश करता हूं वहां पहुंचने की।” सतीश ठाकुर का बेजान सा स्वर मोना चौधरी के कानों में पड़ा।
“रुको। जहां तुम हो। मैं वहीं आ जाती-।”
“नहीं। ये ठीक नहीं होगा। ये एस० टी० डी० बूथ है। मैं यहां ज्यादा देर रुक नहीं सकता। मेरी तलाश में वो लोग यहां भी झांक सकते हैं। मैं यहां से निकल जाना चाहता हूं।”
“ठीक है। ब्लू मून होटल के बाहर ही मिलो।”
“एक बात और मोना चौधरी।” सतीश ठाकुर का सपाट स्वर उसके कानों में पड़ा- “अगर मैं मर गया। हमारी मुलाकात न हो सकी तो उस हालत में भी तुम्हें पच्चीस लाख रुपया नकद मिल सकता है, मेरे हत्यारे को तलाश करके और जो मैं तुम्हें बताना चाहता हूं, मेरे हत्यारे को ढूंढने के दौरान उस बात को जानकर, तुम बहुतों का भला कर सकती हो। तुमने ऐसा कुछ किया तो मेरी आत्मा को बहुत शान्ति मिलेगी।”
मोना चौधरी के होंठ पुनः सिकुड़े।
“तुम्हारी बात मेरी समझ से बाहर है। तुम मर गये तो पच्चीस लाख मुझे कौन देगा?” मोना चौधरी बोली।
“मेरा वकील । हाई कोर्ट में बत्तीस नम्बर आफिस उसका है। मैंने खतरा महसूस करके कल दोपहर को ही वकील से मिलकर वसीयत की और उसके हवाले कर दी। वसीयत में ये बात स्पष्ट तौर पर दर्ज है कि मेरी हत्या होने पर, जो भी मेरे हत्यारे को कानून की गिरफ्त में पहुंचायेगा, उसे पच्चीस लाख दिया जाये।”
मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव उभरे रहे।
“मैं निकलूं यहां से।” सतीश ठाकुर की आवाज उसके कानों में पड़ी- “ब्लू मून होटल के सामने।”
“मैं पहुंच रही हूं।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया। चेहरे पर गम्भीरता थी। वो तेज-तेज कदमों से दरवाजे की तरफ बढ़ती चली गई।
☐☐☐
महाजन के शरीर पर नीला सूट था। उसने टाई की नॉट ढीली की। टाई हमेशा उसे फदै की तरह लगती थी। लेकिन सूट के साथ टाई लगाना उसे अच्छा भी लगता था। कुछ देर पहल ही की शेव की वजह से चेहरा चमक रहा था। फिर उसने एक निगाह कमरे के दरवाजे पर मारी। उसके बाद बैड के नीचे हाथ डालकर बोतल निकाली और उसका ढक्कन खोला।
इससे पहले कि बोतल होंठों से लगाता-पीछे से चूड़ियों की खनखनाहट के साथ हाथ आया और उसकी कलाई थाम ली। महाजन गहरी सांस लेकर रह गया। वो पलटा।
निगाह, मुस्कराती हुई राधा पर पड़ी।
राधा के बारे में जानने के लिए अनिल मोहन का, मोना चौधरी सीरीज का रवि पॉकेट बुक्स से पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे पढ़ें।’
कंधे पर लहराते सिल्की बाल। गोरा चमकता चेहरा। कानों में झुमके और नाक में हीरे की नथ चमक रही थी। होंठों पर गहरी लाल लिपिस्टिक। मांग में सिन्दूर। माथे पर बिन्दिया। कलाईयों में अभी भी चूड़ा पहना हुआ था। तीन महीने हो चुके थे उसे महाजन से ब्याह करके, उसकी पत्नी बने।
कोई भी उसे देखकर नहीं कह सकता था कि ये वही राधा है जो शम्बूझा के कबीले की अनपढ़, गंवार राधा थी। महाजन ने राधा की हर
तरह की पढ़ाई का इन्तजाम कर रखा था। एक औरत उसे पढ़ाने-लिखाने और रहन-सहन के तौर-तरीके सिखाने आती थी और राधा गम्भीरता से सब कुछ सीख रही थी। क्योंकि वो जानती थी कि इस दुनिया के रिवाज़ सीखना अच्छा लगता है नीलू को और महाजन को खुश रखने में वो किसी तरह की कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। महाजन ही उसका सब कुछ था।
महाजन था तो वो थी। महाजन नहीं था तो वो भी नहीं थी। महाजन के अलावा राधा को और कुछ भी नजर नहीं आता था। महाजन से शुरू होकर, महाजन पर आकर ही उसकी दुनिया खत्म होती थी।
ऐसा प्यार था राधा का।
राधा ने इस वक्त गुलाबी रंग की साड़ी और वैसा ही ब्लाऊज पहन रखा था। खूबसूरत तो वो थी ही। इस वक्त तो और भी कयामत ढा रही थी।
“गलत बात नीलू।” राधा ने प्यार से कहा और उसके हाथ से बोतल ले ली- “मैंने कितनी बार मना किया है कि अच्छे लोग दिन में शराब नहीं पीते। रात को बेशक पेट भरकर पी लिया करो।”
“मैं पी कहां रहा था।” महाजन ने मुंह बनाया- “स्वाद चख रहा था।”
“स्वाद भी रात को चखते हैं।” राधा ने बोतल एक तरफ रख दी- “बाहर जा रहे हो?”
“हां। बेबी से मिलना है।”
“बहुत खूबसूरत लग रहे हो।” राधा पास आई और महाजन से सट गई- “सुनो!”
“क्या?”
“सम्भोग करते हैं।” कहते हुए राधा ने उसके गले पर ‘किस’ की।
“तुम्हें कितनी बार कहा है कि यहां ऐसे शब्द का इस्तेमाल...”
“ओह, सॉरी। भूल गई।” राधा खिलखिलाकर हंस पड़ी- “मेरा मतलब था प्यार करते...”
“रात को किया था। मुझे-।”
“वो रात थी। अब दिन.....।”
“प्लीज राधा। बेबी से मिलना है मुझे। देर हो जायेगी। वापस आकर।”
“वापस आओगे तो प्यार भी करोगे। मैं इस वक्त की बात कर रही हूं नीलू । तुम जब तक बाहर रहोगे। मेरा मन नहीं लगेगा। इस, प्यार की यादों के सहारे मैं वक्त बिता लूंगी। आओ।”
“लेकिन राधा, वो बेबी।”
“नीलू।” राधा ने महाजन को घूरा- “तुम्हारी हर बात मैं आंखें बंद करके मान लेती हूं। और तुम सिर्फ मेरी ये बात आंखें बंद करके मान लिया करो। पत्नी को ऐसी बातों के लिए मना नहीं करते।”
“लेकिन राधा। बेबी मेरा इन्तजार-।”
“चलो भी।” राधा ने उसकी छाती पर हाथ रखकर जोर से धक्का दिया तो महाजन लड़खड़ाकर बैड पर जा गिरा- “तुम भी कमाल के हो नीलू । जब देखो न-न करते रहते हो।” कहने के साथ ही राधा साड़ी खोलने लगी।
महाजन समझ गया कि राधा की बात माने बिना जान बचने वाली नहीं।
☐☐☐
मोना चौधरी ब्लू मून होटल के सामने पहुंची। कार को उसने एक तरफ खड़ा कर दिया था। अचानक उसे ध्यान आया कि सतीश ठाकुर जो भी है, वो उसे नहीं पहचानती। उसकी कोई निशानी भी नहीं पूछी और उसकी बातों से ये स्पष्ट जाहिर था कि उसने भी पहले कभी उसे नहीं देखा। ऐसे में वो दोनों एक-दूसरे को पहचानेंगे कैसे? कुछ हद तक ये समस्या वाली बात थी।
मोना चौधरी ने हर तरफ नज़र दौड़ाई।
सामने ही सड़क पर वाहन रफ्तार के साथ आ-जा रहे थे। हॉर्न और इंजनों का शोर बराबर गूंज रहा था। दिन के ग्यारह बज रहे थे। पीछे चार मंजिला ब्लू मून होटल खड़ा था। होटल की दोनों साईडों में कतार में बड़ी-बड़ी दुकानें-शोरूम बने नज़र आ रहे थे। होटल के बाहरी गेट पर दो दरबान सफेद वर्दी में मौजूद थे। होटल में आने-जाने वालों को कोई परेशानी न हो, वे इस बात का ध्यान रख रहे थे।
मोना चौधरी चौड़े फुटपाथ पर खड़ी थी।
पैदल चलते लोग फुटपाथ पर से गुजर रहे थे।
सतीश ठाकुर से बात किए बीस मिनट हो चुके थे। वो जहां था, वहां से यहां तक का रास्ता दस मिनट का था और अभी तक फुटपाथ पर खड़ा ऐसा कोई व्यक्ति नज़र नहीं आया था कि जिसके बारे में वो सोच सके कि, वो सतीश ठाकुर हो सकता है।
सतीश ठाकुर ने कहा था कि वो खतरे में है। हो सकता है उसे उन लोगों ने घेर लिया हो और मार दिया हो।
कोई बड़ी बात नहीं कि ऐसा हो गया हो।
मोना चौधरी ने पुनः इधर-उधर निगाह मारी और सोचा कि पन्द्रह-बीस मिनट इन्तजार के बाद से चल देगी। टी प्वाईंट पर महाजन पहुंचने वाला होगा। उसे टी प्वाईंट पर पहुंचने में अब देर हो जायेगी। अभी तीन-चार मिनट ही बीते होंगे कि फुटपाथ पर आगे बढ़ रहे लोगों में से एक आदमी अलग हुआ और मोना चौधरी के पास पहुंचकर उिठका। मोना चौधरी की निगाह उसकी तरफ घूमी।
“मैं।” वो धीमे स्वर में बोला- “सतीश ठाकुर हूं।”
“और मैं मोना चौधरी।” मोना चौधरी का स्वर शांत था।
“मैं कुछ परेशान था कि अगर यहां पहुंच गया तो तुम्हें पहचानूंगा कैसे।” सतीश ठाकुर का स्वर धीमा ही रहा- “पहले तो कभी तुम्हें देखा हीं था। खैर, हम मिल गये। उन लोगों से बच आया हूं मैं। बहुत कठिनता से बचा हूं। हर वक्त खुद को आड़ में रखने की चेष्टा की कि वो मुझे शूट न कर सकें।”
“अब वो लोग कहां हैं?” मोना चौधरी ने पूछा।
“मैं नहीं जानता।” सतीश ठाकुर परेशान सा नज़र आया- “हो सकता है, वो मुझे देख रहे हो। या फिर ये भी हो सकता है कि मैं उनकी निगाहों से बच निकला होऊं।”
मोना चौधरी ने उसे सिर से पांव तक निहारा।
सामान्य कद-काठी का वो तीस बरस का व्यक्ति था। चेहरे से अच्छे खानदान का लग रहा था। कीमती कपड़े पहन रखे थे। लेकिन वे कुछ मैले से हो रहे थे। दो-तीन दिन की शेव भी बढ़ी हुई थी।
“आओ।” मोना चौधरी बोली- “वो सामने मेरी कार है। मुझे कहीं पहुंचना है। रास्ते में बताते जाना कि क्या बात है? तुम्हें कैसी सहायता चाहिये मुझसे?”
उसने सिर हिलाया और मोना चौधरी के साथ कार की तरफ बढ़ गया।
“मैं जिस झंझट में फंसा ।” सतीश ठाकुर चलते-चलते बोला- “उसमें फंसने का मेरा कोई इरादा नहीं था। बस जो हुआ, यूं ही होते-होते हो गया। उस दिन....”
तभी फायर का तेज धमाका वहां गूंजा।
मोना चौधरी के साथ चलते सतीश ठाकुर के शरीर को तीव्र झटका लगा। वो तीव्रता से लड़खड़ाकर दो कदम आगे बढ़ गया। मोना चौधरी की निगाह उसकी बगल पर जा टिकी। जहां सूराख नजर आ रहा था और अब खून बहना शुरू हुआ था। देखते ही देखते वो छाती के बल नीचे जा गिरा। मोना चौधरी को उसे थामने का मौका ही नहीं मिला।
दो पल के लिए वो हक्की-बक्की रह गई।
फुटपाथ पर से गुजरने वाले लोग भी चौंके।
बगल में लगी गोली से, मोना चौधरी ने गोली आने की दिशा का अनुभव लगाया और नजरें खुद-ब-खुद ही सड़क पार उठती चली गई। सड़क पर से वाहन आ-जा रहे थे। सड़क के उस पार उसे सफेद रंग की शर्ट पहने एक व्यक्ति खड़ा नजर आया। उसका रिवाल्वर वाला हाथ अभी भी उठा हुआ था।
मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया। उसने रिवॉल्वर जेब से निकाली।
तभी सड़क पार मौजूद व्यक्ति ने फायर कर दिया। निशाना वो ही थी। उसका निशाना वास्तव में सच्चा था। अगर मोना चौधरी खुद को नीचे ना गिरा लेती तो गोली ने उसके शरीर में प्रवेश कर जाना था। दूसरे ही पल वो उठी और रिवॉल्वर हाथ में थामे सड़क की तरफ दौड़ पड़ी। सड़क पर से गुजरने वाले वाहनों से भी वो बच रही थी। इसके साथ ही वाहनों की ब्रेकों और टायर घिसटने की आवाजें वातावरण में गूंज उठीं।
तभी एक गोली और आई।
परन्तु मोना चौधरी के स्थिर न रहने की वजह से वो बच गई।
अब तक वो आधी सड़क पार कर चुकी थी। इसके साथ ही उसने रिवॉल्चर वाला हाथ सीधा किया और दौड़ते हुए उस व्यक्ति का निशाना लेकर दो बार ट्रेगर दबाया। वो व्यक्ति शायद इस बात की आशा नहीं कर रहा था कि इस खूबसूरत युवती के पास रिवॉल्वर होगी और वो इतनी हिम्मत दिखाते हुए, पास आकर गोली भी चला सकेगी।
यूं ही किए गये दोनों फायरों में से एक गोली उस व्यक्ति के ठीक दिल वाले हिस्से में लगी। दूसरी खाली गई। वो उछलकर नीचे गिरा । मोना चौधरी जब पास पहुंची तो उस व्यक्ति का दिल धड़कना बंद कर चुका था। दांत भीचे मोना चौधरी कई पलों तक उस व्यक्ति का चेहरा देखती रही। उसे पहले कभी नहीं देखा था।
रिवॉल्वर थामे मोना चौधरी की नज़रें उस पर से हटीं और इधर-उधर फिरने लगीं। इस बात का उसे पूरा विश्वास था कि मरने वाले के साथी भी पास ही होंगे। ये अकेला नहीं हो सकता। लोग ठिठके से, डरे से सब देख रहे थे, परन्तु वे सब दूर थे। कोई पास नहीं आया।
अगले ही पल मोना चौधरी झुकी और उसके कपड़ों की तलाशी लेने लगी। तलाशी में उसके कपड़ों से छोटा सा पर्स मिला। जिसे कि मोना चौधरी ने अपनी जेब में डाला और तेजी से सड़क पार करके सतीश ठाकुर के पास पहुंची। उसे चैक किया। वो मर चुका था।
मोना चौधरी के होंठों से गहरी सांस निकली। सतीश ठाकुर बताना चाहता था। बता नहीं सका। उन बातों को सीने में दबाये ही इस दुनिया से चला गया । वक्त कम था। इस वक्त दो तरफ से खतरा था मोना चौधरी को। उस व्यक्ति के साथियों से। जो कि यकीनन पास ही थे। दूसरा, कभी भी पुलिस पैट्रोलिंग कार वहां पहुंच सकती थी। उसने जल्दी से सतीश ठाकुर के कपड़ों की तलाशी ली। पर्स के अलावा ऐसा कुछ नहीं था कि जिसे साथ ले जाने की सोचती। उस पर्स को भी जेब के हवाले किया और आगे बढ़कर कार में बैठो। रिवॉल्वर गोदी में रख ली। आस-पास देखते हुए कार स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी। मोना चौधरी को आशा थी कि उस पर फायरिंग होगी, परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। वहां से दूर निकल आने पर उसने कलाई में बंधी घड़ी में वक्त देखा। देर हो चुकी थी। महाजन कब का टी प्वाइंट पर पहुंचा, उसका इन्तजार कर रहा होगा।
रास्ते में सुनसान जगह पर कार रोककर मोना चौधरी ने कार की नम्बर प्लेट को उतारकर, कार में छिपा रखी, दूसरी नम्बर प्लेट लगा दी। वहां पहले वाले नम्बर को जाने कितने लोगों ने नोट कर लिया होगा। ऐसे में पुलिस उसे आसानी से पकड़ सकती थी। नम्बर प्लेट बदलकर कुछ हद तक तो बचाव था। पहले वाली नम्बर प्लेट उसने सड़क से ही कच्चे में दूर फेंक दी थी, परन्तु कार का रंग भी उसे फंसा सकता था। पहली फुर्सत मिलते ही उसने कार बदलने को सोच ली। तय वक्त से दो घंटे देरी से मोना चौधरी टी प्वाइंट पर पहुंची। महाजन वहां नहीं मिला। जबकि उसे विश्वास था कि महाजन अभी भी उसका इन्तजार कर रहा होगा। आखिरकार को इसी नतीजे पर पहुंची कि महाजन लम्बे इन्तजार के पश्चात यहां से चला गया होगा कि, वो कहीं फंस गई है। शायद यहां न पहुंचे। मोना चौधरी कार
बैठी और वापस चल पड़ी।
☐☐☐
मोना चौधरी अपने फ्लैट का दरवाजा खोलने लगी कि पीछे से नंदराम सकलानी की मधुर आवाज सुनकर उसके चेहरे पर मुस्कान रेंग गई।
“वड़ी मोन्ना नी। क्या हाल है नी?”
मोना चौधरी पल्टी।
अपने फ्लैट के दरवाजे पर खड़ा नंदराम दांत फाड़ रहा था।
“अच्छा हाल है।” मोना चौधरी ने शराफत कहा।
“आजकल तू किधर रहता है वड़ी। दिखता ही नहीं।” नंदराम ने आंखें नचाकर पूछा।
“मैं तो यहीं रहती हूं। नज़र तो तुम नहीं आते नंदराम।”
“आह। साईं, डार्लिंग नंदराम बोल। नंदराम मत बोल नी। दिल को बोत ठण्डक मिलेगी नी।”
मोना चौधरी के चेहरे पर छाई मुस्कान गहरी हो गई।
“तुम्हारी बीवी नहीं देखी, बोत वक्त हो गया।”
नंदराम दांत फाड़कर हंसा।
“उसके पास तो दिखने का टैम ही नहीं है साईं।”
“ऐसा क्या हो गया?”
“तेरे को बताया न वड़ी कि वो बच्चा जनने वाली हैं। साथ ही आफिस का काम। उसे फुर्सत कहां है नी?”
“और इस वक्त वो बॉस के साथ टूर पर होगी।”
“करकैक्ट साईं। पक्की बात कही।”
“फारेन टूर पर।”
“वड़ी, वो तो पिछली बार फारेन टूर पर थी नी। अब तो गोवा गई है, बॉस के साथ टूर पर।”
“गोवा?”
“हां। साईं, बोत अच्छी जगह है नी। तूने देखा है गोवा?”
“हां।” मोना चौधरी बराबर मुस्करा रही थी- “देखा है। बहुत अच्छी जगह है। और जब गोवा में दिन-रात सैकेट्री साथ रहे तो गोवा, बहुत-बहुत अच्छी जगह है।”
“दिन-रात नहीं नी। सिर्फ दिन में। होटल में अलग-अलग कमरे होते हैं उनके।”
“गोवा में तो कमरों की जरूरत सिर्फ नींद लेने के लिए पड़ती है।”
“क्या बोला? मैं समझा नहीं साईं।”
“आधी रात तक तो समुन्द्र के तट पर, रेत पर, चांदनी रात का मजा लिया जाता है। वहां से तो उठने का मन ही नहीं करता। दो जवां जिस्म पास में हों तो फिर कहना ही क्या। थककर चूर-चूर तो वहीं पे हो जाते हैं जोड़े और वापस होटल आकर सिर्फ नींद ही लेनी होती है। ठीक है ना, नंदराम?”
“ठीक बोला नी। पिछली बार मेरी बीवी ने बताया था कि गोवा में समन्दर के किनारे रेत पर बैठकर उसने बॉस के साथ बियर पी थी। बोली, बॉस ने बोला तो, इन्कार नहीं कर सकी। उस दिन बॉस को थकावट बहुत हो गई थी तो बियर पीकर, बॉस की टांगें दबाई। फिर बोती बियर के असर से नींद आ गई। रेत पर ही, वहीं सो गई। तेरे को पता है नी, अगले ही दिन बॉस ने मेरी बीवी को मेरे लिए सूट का कपड़ा खरीद कर दिया। सिलाई अलग से दी। वो सूट मेरे को बोत जंचता है नी।”
मोना चौधरी हौले से हंसी।
“क्या हुआ बड़ी? मैंने गलत बोला क्या?”
“मैं तो ये सोच रही हूं कि तेरी बीवी बोत कमाल की चीज है।
लम्बे समय से अपने बॉस को संभाल रखा है। वरना अब तक तो ऐसे बॉस दस सैकेट्रियां बदल लेते हैं।”
“वो बात तो है नी। मेरी बीवी बोत समझदार है, छोड़ इस बात को आ नी। मारते हैं।” नंदराम ने दांत फाड़े।
“क्या?”
“बियर-बियर मारते हैं नी। फ्रीजर में लगा रखी है। एकदम चिल्ड। मेरी बीवी अपने बॉस के पास से बियर की बड़ी वाली पेटी उठा लाई थी। मैं तो मजे से बियर मारता रहता हूं।”
“तुम्हारी बीवी का बॉस भी बहुत सयाना है।”
“वो कैसे नी?”
“तेरे को बियर भेज दी कि तू बियर मारता रहे और वो-।” मोना चौधरी गहरी सांस लेकर रह गई।
“साईं, तेरा वो यार-वार, भीतर है नी।” एकाएक नंदराम बोला।
“यार?” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।
“वो ही। जो पीता-वीता रहता है नी।”
मोना चौधरी ने अपने दरवाजे पर निगाह मारी। वो समझ गई कि महाजन भीतर है।
“एक बात तो बता मोन्ना डार्लिंग।”
“क्या?”
“तू उस पियक्कड़ के साथ दरवाजा बंद करके भीतर घंटों क्या करता है नी?”
“पापड़ बेलती हूं।” मोना चौधरी ने मुस्कराकर कहा और चाबी से डोर लॉक खोलने लगी।
“कभी मेरे साथ भी दरवाजा बंद करके पापड़ बेल ले साईं। मज्जा ही आ जायेगा।”
“पहले अपनी बीवी के पापड़ बिलते तो देख ले।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश करके दरवाजा बंद कर लिया।
महाजन ने बोतल टेबल पर रखी और मोना चौधरी को देखा।
“सॉरी बेबी। मैं लेट हो गया। टी प्वाईंट पर वक्त पर नहीं पहुंच सका।” कहते हुए महाजन ने कुछ लम्बी ही सांस ली- “देरी की वजह मत पूछना।”
मोना चौधरी दरवाजा बंद करके पलटी।
“राधा की वजह से देर हुई होगी।”
“यहां कब पहुंचे?” आगे बढ़कर मोना चौधरी बैठते हुए बोली।
“पन्द्रह-बीस मिनट हो गये।”
“मैं इस वक्त सीधी टी प्वाईंट से ही आ रही हूं।”
“ये कैसे हो सकता है।” महाजन के होंठों से निकला- “मैं जब वहां पहुंचा तो तुम वहां नहीं थीं।”
“ठीक कह रहे हो।” मोना चौधरी मुस्करा पड़ी- “मैं इसलिए वहां नहीं थी कि तुमसे ज्यादा देरी से मैं वहां पहुंची थी। मुझे वहां न पाकर, ये सोचकर वहां से चले आये कि, मैं तुम्हारा इन्तजार करके वहां से चली आई हूं। जबकि मैं तुमसे भी बाद में वहां पहुंची थी।”
“ओह!” महाजन ने सिर हिलाया। टेबल से बोतल उठाकर घूँट भरा । बोतल वापस टेबल पर रखी- “लेकिन तुम कैसे लेट हो गईं?”
मोना चौधरी ने सतीश ठाकुर वाली बात बताई।
महाजन गम्भीर सा नज़र आने लगा।
“सतीश ठाकुर की हत्या से जाहिर है कि वो वास्तव में किसी की कोई खास बात जान गया था।”
“हां।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया।
“इंस्पेक्टर मोदी शायद जानता हो कि सतीश ठाकुर क्या बताना चाहता था।”
“मोदी भी नहीं जानता।” मोना चौधरी ने सोचभरे स्वर में कहा- “मुझे याद है, सतीश ठाकुर ने फोन पर कहा था कि उसने मोदी को भी कुछ नहीं बताया।”
महाजन कुछ पल मोना चौधरी को देखता रहा। फिर बोला।
“तुमने बताया कि सतीश ठाकुर ने कहा था अगर उसके हत्यारे को कानून की गिरफ्त में पहुंचाया जाये तो उसका वकील उस व्यक्ति को पच्चीस लाख देगा। ऐसी वसीयत की है उसने।”
“हां।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “सतीश ठाकुर को बहुत हद तक विश्वास रहा होगा कि वो लोग जो भी हैं उसे जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। उसने ये भी कहा था कि उसके हत्यारे तक पहुंचते हुए, उन बातों की भी जानकारी हो जायेगी, जो बातें वो बताना चाहता है।
“मैं इस बात का मतलब नहीं समझा।” महाजन ने को देखा।
“मुझे भी कुछ नहीं मालूम।” मोना चौधरी ने कहा- “शायद इस बात का जवाब हमें तभी मिले, जब हम सतीश ठाकुर के हत्यारे को तलाशने निकले।”
“ऐसा इरादा है तुम्हारा?”
मोना चौधरी ने महाजन को देखा फिर जेब से दो पर्सों को निकालते हुए बोली।
“इनमें से एक पर्स सतीश ठाकुर का है और एक उसका, जिसने सतीश ठाकुर को मारा है। मुझे पूरा विश्वास है कि इन पर्सों में उनके बारे में अवश्य ऐसी कोई जानकारी होगी कि उनके बारे में मालूम हो सके। लेकिन मेरा इरादा इन पर्सी को खोलकर देखने का नहीं है।”
“मतलब कि सतीश ठाकुर के मामले में तुम्हारी कोई दिलचस्पी नहीं?” महाजन ने सिग्रेट सुलगा ली।
“नहीं।” कहने के साथ ही मोना चौधरी उठी और दोनों पर्स टेबल के ड्राअर में रखकर वापस आ गई।
महाजन ने बोतल से घूँट भरा फिर कश लेकर कह उठा।
“विक्रम दहिया के बारे में सोचा जाये?”
“हां। उसी के बारे में सोचना है।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी- “पैतीस लाख मुझे एडवांस में मिल चुके हैं और बाकी के पैंतीस लाख उसकी हत्या करने के बाद मिलेंगे। हो सकता था कि आज ही दहिया टी प्वाईंट पर हमारा निशाना बन जाता। लेकिन हम वहां वक्त पर नहीं पहुंच सके।”
“वो अवश्य वहां से गुजरा होगा। मेरे पास पक्की खबर थी कि विक्रम दहिया गुप्त रूप से कहीं जा रहा है और खुद ही कार ड्राईव करता टी प्वाईंट से निकलेगा।” महाजन कह उठा- “लेकिन वो वक्त हाथ से निकल गया। कोई जरूरी भी नहीं था कि वो वहां से गुजरता और हम उसका निशाना ले लेते । मत भूलो बेबी, वो विक्रम दहिया है। सफेदपोश दादा। उसने अपराधों की दुनिया में, पैट्रोल टैंकर लूटकर, उसका पैट्रोल बेचकर, कदम रखा था और आज शहर में उसका एक होटल, तीन फैक्ट्रियां और कई शो-रूम हैं। साथ ही कई तरह के गैरकानूनी काम करता है। विक्रय दहिया के खिलाफ कोई उंगली उठाने की हिम्मत नहीं करता।”
मोना चौधरी का चेहरा सख्त सा नज़र आने लगा।
“रिवॉल्वर से निकलने वाली गोली कमजोर और ताकतवर का भेद-भाव नहीं करती। वो सिर्फ अपना काम करती है।” मोना चौधरी के स्वर में मौत सी ठण्डक आ गई थी- “तुम अपने तौर पर विक्रम दहिया को नज़र में लेने की कोशिश करो और मैं अपने ढंग से। उसके आदमियों के बीच उसे शूट करना शायद ठीक नहीं होगा। हमारे लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। आज की तरह हमें मौका देखना है कि वो कहीं अकेला या एक-दो लोगों के साथ हो? ताकि उसे आसानी से शूट किया जा सके।”
“विक्रम दहिया के यहां मेरी जो पहचान वाला काम करता है, जिसने आज टी प्वाईंट से दहिया के अकेले निकलने की खबर दी थी, उससे बात
करता हूं कि वो फिर ऐसी कोई विक्रम दहिया के बारे में खबर दे।”
“महाजन!” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर बोली- “विक्रम दहिया की हत्या का ठेका जो हमने लिया है वो हमने हर हाल पूरा करना है। पैंतीस लाख एडवांस ले चुके हैं। और जो भी पैंतीस लाख देकर विक्रम दहिया जैसे इन्सान की हत्या करवाना चाहता है, वो कोई शरीफ इन्सान तो होगा नहीं।”
“जो विक्रम दहिया की हत्या करवाना चाहता है, उसने बार में कुछ नहीं बताया?”
“नहीं।” मोना चौधरी ने गम्भीरता से सिर हिलाया- “मैंने बहुत पूछा, लेकिन उसने कुछ नहीं बताया। चार दिन पहले रात के दस बजे फोन आया था। फोन पर उससे बात हुई। उसकी आवाज भी मैंने पहले कभी नहीं सुनी थी। उसने सीधे-सीधे विक्रम दहिया की हत्या की बात की कि उसकी हत्या के लिए वो ठीक-ठाक पैसा दे सकता है। विक्रम दहिया कोई ऐसा शरीफ इन्सान नहीं कि मुझे सोचना पड़े कि उसकी जान क्यों लूं। उसने जाने कितनी जानें ले रखी हैं। मेरे पूछने पर भी उसने अपने बारे में कुछ नहीं बताया। बहरहाल मैंने एक करोड़ कीमत रखी विक्रम दहिया की मौत की। और बाद में सत्तर लाख में हत्या का सौदा तय हुआ। आधा एडवांस के तौर पर उसने अगले दो घटों में ही पहुंचा दिया।”
“आनन-फानन सौदा तय होना अजीब सा नहीं लगता क्या?” महाजन बोला।
“इसमें अजीब वाली कोई बात नहीं है।” मोना चौधरी बोली- “वो जो भी है, विक्रम दहिया को खत्म करवाने के रास्ते की तलाश कर रहा होगा कि कहीं से उसे मेरे बारे में पता लगा और मुझसे बात हो गई।”
महाजन ने बोतल उठाकर घूँट भरा।
मोना चौधरी कुछ कहने लगी कि तभी फोन की बेल बज उठी।
“हैलो।” मोना चौधरी ने हाथ उठाकर रिसीवर उठाया।
“मोना चौधरी! पहचाना मुझे।” आवाज कानों में पड़ी।
“पहचान लिया।” मोना चौधरी सतर्क सी नज़र आने लगी। महाजन की निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी।
“पैंतीस लाख मिल गये होंगे। जो मैंने एडवांस भेजे थे।” वो आवाज पुनः कानों में पड़ी।
“हां। चाहो तो वापस ले सकते हो।”
“वापसी का मैंने नहीं सोचा। मैं तो बाकी के पैंतीस लाख तैयार रखे बैठा हूं कि तुम विक्रम दहिया को खत्म करो और।”
“विक्रम दहिया को खत्म करना इतना आसान होता तो तुम पांच लाख में, ये काम किसी और से करवा लेते।”
“तुम्हारा कहना सही है।”
“जब काम हो जायेगा, तुम्हें मालूम हो जायेगा।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा- “लेकिन मैं तुम्हारा नाम-ठिकाना नहीं जानती। काम होने के बाद तुम्हें कहां तलाश करूंगी।”
“बाकी के पैंतीस लाख के लिए?”
“हां।”
“मुझे तलाश करने की जरूरत नहीं। बाकी का पैंतीस लाख भी अभी भिजवा देता हूं।”
मोना चौधरी के होंठों पर हल्की सी मुस्कान उभरी।
“कोई जरूरत नहीं। मुझे तुम पर विश्वास है। तो ये बात तुमने तय कर रखी है कि अपने बारे में नहीं बताओगे।”
“इस काम में मेरे बारे में जानने की जरूरत कहीं भी नहीं है।”
“ठीक है। अब मैं तुम्हारे बारे में पूछूगी भी नहीं।” मोना चौधरी बोली।
“वैसे आज तुमने बहुत अच्छा मौका खो दिया। वरना बाकी के पैंतीस लाख भी इस वक्त तुम्हारे पास होते।”
“क्या मतलब?”
“तुम टी प्वाईंट पर गई थीं। नीलू महाजन भी टी प्वाईंट पर गया था और विक्रम दहिया भी टी प्वाईंट से कार में अकेला ही निकला था। यानि कि तुम्हें खबर थी कि विक्रम दहिया वहां से निकलने वाला है। वो वहां से निकला भी। और तो और उसकी कार का टायर टी प्वाईंट के पास ही पंचर हुआ। वो अकेला था। उसने वहां स्टैप्नी बदलने में पन्द्रह मिनट लगाये। तब सिर्फ एक गोली उसका काम खत्म कर सकती थी।”
“तो ये काम तुम कर देते।” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।
“मैं वहां नहीं था। मेरा आदमी इत्तफाक से वहां से गुजरा और उसने विक्रम दहिया को देखा।” आवाज आई।
“तो ये काम उसे कर देना चाहिये था।”
“तब उसके पास रिवॉल्वर नहीं थी।” आने वाला स्वर भावहीन था- “तुम्हारे और नीलू महाजन के वहां पहुंचने से पैंतालीस मिनट पहले की बात थी ये। महाजन को टी प्वाईंट पर पहुंचने में देर क्यों हो गई, ये मैं नहीं जानता। लेकिन तुम सतीश ठाकुर के मामले में न आती तो विक्रम दहिया अब जिन्दा न होता।”
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।
“सतीश ठाकुर को तुम जानते हो?”
“नहीं। उसके बारे में मालूम करना पड़ा। तुम्हारी वजह से कि तुम, मेरा काम छोड़कर क्या कर रही हो।”
“और क्या मालूम हुआ सतीश ठाकुर के बारे में?”
“सतीश ठाकुर में तुम्हारी कोई दिलचस्पी है?”
“नहीं।”
“तो फिर उसके बारे में मत पूछो। तुम्हें विक्रम दहिया में दिलचस्पी लेनी चाहिये कि- “मुझे मेरा काम मत समझाओ।” मोना चौधरी का स्वर सामान्य था।
दूसरी तरफ से आवाज नहीं आई।
“तुम्हारी बातों से ये तो स्पष्ट हो गया कि तुम, मुझ पर नज़र रख रहे हो।”
“मैं नहीं, मेरा एक आदमी। ऐसा करना जरूरी भी है, ताकि मुझे मालूम होता रहे कि विक्रम दहिया के बारे में तुम क्या कर रही हो और जब वो मरे तो, मेरा आदमी तुरन्त मुझे ये अच्छी खबर दे दे। तुम्हारी अन्य किसी बात से मुझे या मेरे आदमी को कोई वास्ता नहीं।”
“कोई मुझ पर नज़र रखे, ये मुझे पसन्द नहीं।” मोना चौधरी का स्वर सख्त सा हो गया।
“मेरे आदमी से जब भी तुम्हें असुविधा हो। बता देना। वो तुम पर नज़र रखना बंद कर देगा।”
“तुम्हें कैसे बताऊंगी। तुम्हारां फोन नम्बर मेरे पास नहीं।”
“मैं वक्त-वक्त पर तुम्हें फोन करता रहूंगा। मुझे आशा है कि तुम विक्रम दहिया को जल्दी खत्म करोगी।”
“कम से कम ये तो बता सकते हो कि विक्रम दहिया से तुम्हारा दुश्मनी क्या है?”
“ऐसी कोई भी बात जानने की चेष्टा न करा जो तुम्हारे काम की न हो। तुम्हारे काम की बात इस वक्त सिर्फ ये है कि विक्रम दहिया को कहां घेरना है? कहां उसे शूट करना है।। अपना सारा दम-खम, इस बात पर लगा दो।” इसके साथ ही दूसरी तरफ से लाईन कट गई।
सोचों में डूबे मोना चौधरी ने रिसीवर रखा।
“उसी का फोन था जो विक्रम दहिया को खत्म करवाना चाहता है?” महाजन ने कहा।
“हां। उसने पक्का सोच रखा है कि अपने बारे में नहीं बतायेगा।” मोना चौधरी ने कहा- “उसका आदमी मेरी हरकतों पर नज़र रख रहा है कि विक्रम दहिया के बारे में मैं क्या कर रही हूं।”
“ये तो गलत बात है।” महाजन फौरन बोला- “हम क्या-कैसे कर रहे हैं, किसी को न ही मालूम हो। अच्छा है। उसे कहा क्यों नहीं कि अपना आदमी, तुम पर से हटा ले।”
“इसका कोई फायदा नहीं होता।” मोना चौधरी मुस्कराई- “जवाब में वो यही कहता कि अभी हटा समझो। लेकिन वो मुझ पर नजर रखता ही। क्योंकि उसने पैंतीस लाख मुझे दे रखे हैं। उसे अपने पर से हटाने का एक रास्ता है कि, जब भी वो मुझे पीछा करता नजर आये, उसे शूट कर दूं।”
“ऐसा हुआ तो वो दूसरा आदमी तुम पर नज़र रखने को लगा देगा।”
“समझदार होगा तो नहीं लगायेगा।” मोना चौधरी का स्वर कड़वा हो गया।
महाजन ने गहरी सांस ली और उठ खड़ा हुआ।
“ओ०के० बेबी। मैं विक्रम दहिया के बारे में पता करता हूं कि वो अकेला कहां गया है, या फिर वो कब वापस लौटेगा। शायद कोई काम की जानकारी मिल सके।”
“वो अकेला गया है तो अकेला आयेगा भी।” मोना चौधरी ने महाजन की आंखों में झांका।
“समझ गया।” महाजन ने टेबल पर पड़ी बोतल उठाते हुए कहा “कोशिश करता हूं कि मालूम हो कि विक्रम दहिया कहां गया है और कब लौटेगा। वैसे ये जान पाना आसान नहीं। देखता हूं।” महाजन बाहर निकल गया।
☐☐☐
मोना चौधरी जिस अपार्टमेंट के फ्लैट में रहती थी, उसी अपार्टमैंट के बगल के अपार्टमैंट के गेट के बाहर पब्लिक फोन से एक आदमी धीमे स्वर में बात कर रहा था।
“तारा बोल रहा हूं। सतीश ठाकुर को तो प्यारेलाल ने खत्म कर दिया। मरने से पहले सतीश ठाकुर किसी खूबसूरत लड़की के साथ था। उस लड़की ने अपनी रिवॉल्वर से प्यारेलाल को गोली मार दी।”
“प्यारेलाल मर गया?” उधर से आती आवाज तारा के कान में पड़ी।
“हाँ।”
“वो लड़की हमारे लिए खतरा पैदा कर सकती है। सतीश ठाकुर ने उसे जाने क्या-क्या बता दिया हो।”
“ऐसा हो सकता है।”
“वो लड़की कहां है?”
“में तब से उस पर बराबर नज़र रख रहा हूं।” तारा का स्वर बेहद धीमा था- “मैंने देख लिया है कि वो किस अपार्टमेंट के, कौन से फ्लैट में रहती है।”
“ये अच्छा किया। वो लड़की कहां-कहां गई?”
“सतीश ठाकुर के मरने और प्यारे को मारने के बाद वो टी प्वाईंट
पर गई। फिर वापस अपने फ्लैट में आ गई। मैं उसके अपार्टमेंट के बाहर से ही बात कर रहा हूं। अब क्या करना है?”
“उस लड़की का जिन्दा रहना हमारे लिए ठीक नहीं। सतीश ठाकुर ने उसके सामने मुंह फाड़ा है तो वो बड़ा खतरा बन सकती है हमारे लिए। खत्म कर दो उसे।”
“मैं अकेला हूं। प्यारे तो मर चुका है।”
“वताओ कहां पर हो। मैं बंदे भेजता हूं।” तारा ने अपनी जगह बताकर फोन रख दिया।।
एक घंटे बाद तारा के पास छः आदमी पहुंचे।
तारा, अपार्टमेंट के सामने सड़क पर, धूप में पेड़ से टेक लगाये खड़ा था।
“इतने लोगों की क्या जरूरत है।” उनके पास पहुंचते ही तारा ने कहा।
“तेरे को कितने चाहिये?” एक ने कहा।
“एक ही बहुत है। निशाना ही तो लगाना है उसका।” तारा बोला।
“ठीक है। एक तू रख । बाकी के पांच उस लड़की की फ्लैट की तलाशी लेंगे। उसके बारे में जानने की चेष्टा करनी है कि वो कौन है।” वो ही आदमी
बोला- “जो लड़की रिवॉल्वर रखती है। जो सरेआम प्यारेलाल को गोली मारने का हौसला रखती है। उसके बारे में जानना जरूरी है।”
“ये काम तुम अपनी मर्जी से नहीं कर सकते देवास।” तारा बोला।
“ऊपर वालों से मेरी बात हो चुकी है। उन्होंने ही लड़की के बारे में मालूम करने का आर्डर दिया है।”
“फिर तुम कुछ भी कर सकते हो।”
“कौन से अपार्टमेंट में, कितना नम्बर फ्लैट है?” देवास ने पूछा।
“वो वाला अपार्टमैंट है।” कहने के साथ ही तारा ने फ्लैट नम्बर बताया।
“अभी वो भीतर ही है?” देवास ने अपार्टमैंट पर नज़र मारी।
“हां।”
“ठीक है। इन्तजार करो। जब वो बाहर निकलेगी तो एक आदमी को साथ लेकर, उसके पीछे हो जाना। उसे खत्म करने के लिए।” देवास बोला- “इधर हम उसके फ्लैट की तलाशी लेंगे।”
बिन्दा!” तारा ने एक व्यक्ति को देखा- “तू मेरे साथ रहेगा।”
बिन्दा नाम के व्यक्ति ने सहमति से सिर हिला दिया।
☐☐☐
आखिकार तीन घंटे के इन्तजार के बाद, शाम चार बजे उखड़ा सा देवास बोला।
“बहुत हो गया। अब और इन्तजार करना मेरे बस का नहीं है।”
“तो क्या वापस जाओगे?” तारा ने पूछा।
“वापस नहीं। अपार्टमेंट में जाऊंगा। लड़की के फ्लैट में।”
“इस तरह सीधा उसके सामने जाना ठीक नहीं रहेगा। वो कोई आम लड़की नहीं लगती।”
“कौन सी तोप है वो। देवात के चेहरे पर सख्ती उभरी- “हम पांच हैं। साली को सांस लेने का मौका नहीं मिलेगा।”
“मेरे ख्याल से ऐसा करना ठीक नहीं होगा। आगे तुम्हारी मर्जी।” -मैं उसके फ्लैट में ही जा रहा हूं। वहीं उसे खत्म भी कर दूंगा। तुम्हारा काम भी हो जायेगा।”
“मेरे काम की फिक्र मत करो। अपने काम की तरफ ध्यान दो।” तारा बोला- जब वो बाहर आयेगी। मैं बिन्द्रा के साथ मिलकर आसानी से उसे निपटा दूंगा। मैं उसके फ्लैट पर जा रहा।”
“वो रही। तारा के दांत भिंच गये।
उसने अपार्टमेंट के गेट के बाहर कार निकलती देखी थी। ये सुबह वाली कार नहीं थी। महाजन की कार थी। लेकिन मोना चौधरी उसे ड्राईव कर रही थी।
‘बिन्द्रा! आ। उधर हमारी कार है। तारा तेजी से उधर बढ़ा। पक्का यही लड़की है? पीछे से देवास बोला- “गलती तो नहीं कर रहा।”
“वही है। तू इसके फ्लैट में जाकर तलाशी ले।”
कुछ दूर खड़ी कार में तारा और बिन्द्रा बैठे और कार तेजी से मोना चौधरी की कार के पीछे दौड़ पड़ी।
पन्द्रह मिनट बाद ही मोना चौधरी को इस बात का पक्का विश्वास हो गया कि बराबर पीछे आ रही नीली कार, उसका ही पीछा कर रही है। लेकिन क्यों?
मोना चौधरी ने कार को उस रास्ते पर डाल दिया, जहां भीड़-भाड़ कम होती थी। दस मिनट बाद ही उसकी कार सुनसान सड़क पर थी। नीली कार बराबर पीछे थी। इन लोगों के बारे में जानना जरूरी था कि ये लोग कौन हैं और क्यों उसका पीछा कर रहे हैं। उससे क्या चाहते हैं?
कुछ पलों बाद मोना चौधरी ने छोटी सी सड़क के किनारे कार रोकी और इंजन बंद कर दिया। तभी पीछे से आती कार उसकी कार के आगे आ रुकी और आनन-फानन तारा और बिन्द्रा हाथों में रिवॉल्वरें थामे कार से बाहर निकले और मोना चौधरी की कार के पास आ पहुंचे।
“हिलना मत।” तारा ने हाथ में दबी रिवॉल्वर हिलाकर कठोर स्वर में कहा- “दोनों हाथ स्टेयरिंग पर रख लो।”
मोना चौधरी ने दोनों हाथ स्टेयरिंग पर रख लिए। नज़रें उन दोनों पर थीं।
“बाहर निकलो।” बिन्द्रा ने दांत भींचकर कहा और दरवाजा खोल दिया।
मोना चौधरी कार से बाहर आ गई।
तारा तैयार था कि मोना चौधरी कोई हरकत करे और वो उसे तुरन्त शूट करे।
परन्तु मोना चौधरी ने कोई हरकत नहीं की।
“कौन हो तुम लोग?” मोना चौधरी सपाट स्वर में बोली- “पहले कभी नहीं देखा।
“और अब के बाद देखोगी भी नहीं।” तारा ने खतरनाक स्वर में कहा।
“मैं समझी नहीं।”
“आज सुबह तूने हमारे साथी को शूट किया था।” तारा ने खा जाने वाली आवाज में कहा।
मोना चौधरी चौंकी।
“ओह! तो वो तुम्हारा साथी था, जिसने सतीश ठाकुर को गोली मारी।”
“हां। तुमने...”
“क्यों मारा सतीश ठाकुर को?”
“फालतू के सवाल मत करो। ये बताओ कि तुम्हें सतीश ठाकुर ने क्या बताया?”
मोना चौधरी ने बारी-बारी दोनों को देखा।
“कुछ भी बताया हो। तुम लोगों को क्या लेना-देना?”
“हम लोगों को तुम्हारी जान लेनी है। तुम्हारी जान लेने के आर्डर हमें मिल चुके हैं। देखने में तो कॉलेज में पढ़ने वाली लगती हो और लेकिन हो खतरनाक । तुम्हारी मौत के बाद मालूम हो जायेगा कि तुम कौन हो। तुम...”
“मुझे खत्म करने आये हो?” मोना चौधरी ने टोका।
“हां”
“क्यों?”
“क्योंकि ऊपरवाले नहीं चाहते कि जो तुम्हें सतीश ठाकुर ने बताया है, वो तुम किसी और को बताओ।”
“अगर मैं कहूं कि सतीश ठाकुर ने मुझे कुछ नहीं बताया। मैं उसे जानती तक नहीं।”
“जानती नहीं तो तुम लोगों की मुलाकात कैसे हो गई? उसकी जान लेने वाले को तुमने गोली क्यों मारी?”
“वो मुझे भी शूट करने जा रहा था। उसने मुझ पर गोली चलाई थी।”
“अगर तुम सतीश ठाकुर के साथ, उस मामले में नहीं थी। उस बारे में कुछ नहीं जानती थी तो हमारे आदमी पर गोली चलाने के बाद तुम वहां से भाग निकलती कार पास ही खड़ी थी और...”
“तारा।” बिन्द्रा ने दांत भींचकर टोका- “खत्म कर साली को। इन बातों का क्या फायदा।”
“ठीक कहता है।” तारा ने सिर से पांव तक मोना चौधरी को देखा- “इसके कपड़ों की तलाशी ले। रिवॉल्वर मिलेगी।”
बिन्द्रा ने सावधानी से तलाशी ली। मोना चौधरी की पैंट की जेब से रिवॉल्वर मिली। इस बीच बिन्द्रां के हाथ कई बार उसकी छातियों से टकराये। जब वो रिवॉल्वर निकालकर पीछे हटा तो चेहरे के भाव बदले हुए थे।
मोना चौधरी के मस्तिष्क में सोचें तेजी से दौड़ रही थीं।
“तारा!” बिन्द्रा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी- “दमदार माल लगता है। खूबसूरत भी बहुत है।”
“क्या?” तारा के होंठों से निकला।
मोना चौधरी के चेहरे पर मध्यम सी मुस्कान उभर आई।
“मेरे से क्या पूछता है?” बिन्द्रा की नजरें मोना चौधरी के खास अंगों पर फिर रही थी- “तेरी आंखें नहीं हैं क्या? उन आंखों को फाड़कर देख। ऐसा कड़क माल पहले कभी देखा है।”
तारा की नजरें भी पहली बार मोना चौधरी के सिर से पांव तक गईं। मोना चौधरी समझ चुकी थी कि सामने खड़े दोनों व्यक्ति अपने लक्ष्य से भटककर उसके रूप-जाल में फंस चुके थे। उसकी खूबसूरती का जाल इन पर पड़ चुका था और मोना चौधरी के सामने इस वक्त सबसे अहम सवाल था कि उसकी जान लेने वाला, इन लोगों के पीछे कौन है, जिसके इशारे पर सतीश ठाकुर को भी खत्म कर दिया गया है। उसके बारे में मालूम हो जाये तो, ये बात भी मालूम हो सकती है कि सतीश ठाकुर उसे क्या बताना चाहता था। ये सारा मामला क्या है, जिसमें वो खामखाह ही फंसी जा रही है।
“बात तो तेरी ठीक है।” तारा होंठ सिकोड़कर बोला- “लेकिन....”
“लेकिन की जगह बची है क्या?” हंस पड़ा बिन्द्रा।
“इसे शूट करने का आर्डर है और।” तारा ने कहना चाहा।
“शूट को बाद में देख लेंगे। पहले इसे तो देख ले बिना कपड़ों के।”
तारा के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे।
“ये खतरनाक है। इसने।”
“इसकी रिवॉल्वर हमने ले ली है। खाली हाथों से ये हमारा क्या कर लेगी। ज्यादा मत डर । जो भी हो। है तो ये लड़की ही। तुम तो यूं ही इसे सिर पर चढ़ा रहे हो। मेरे ख्याल में ये बहुत ज्यादा मजा देगी।”
“इतनी आसान नहीं हो वो बात। जो तुम लोग सोच रहे हो।”
मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान थी।
“क्या मतलब?”
दोनों की निगाहें मोना चौधरी पर जा टिकीं।
“लगते तो समझदार हो, परन्तु बेवकूफों की तरह मतलब पूछ रहे हो।” मोना चौधरी ने होंठ सिकोड़कर कहा- “एक तरफ मुझे शूट करने को कह रहे हो और दूसरी तरफ मजे लेने की बात भी कर रहे हो। तुम लोग मुझे गोली मारने वाले हो, ये जानते हुए, मैं तुम लोगों को मजे दे सकती हूं?”
बिन्द्रा हौले से हंस पड़ा।
“तारा! बोलती तो ये ठीक है।”
“मेरी मान। छोड़ इस झंझट को। मजे कहीं और ले लेंगे। खत्म करते हैं इसे और।”
“इतनी जल्दी फैसले पर मत पहुंचा कर।” बिन्द्रा ने तारा से कहा और आंख से इशारा कर दिया। मोना चौधरी ने छिपी निगाहों से उस आंख के इशारे को देखा। लेकिन यही दर्शाया कि उसने कुछ नहीं देखा- “इसकी जान लेकर हमे क्या मिलेगा। कुछ भी नहीं। छोड़ देंगे तो तगड़े मजे देगी। कसम से मैंने तो कभी पहले ऐसी खूबसूरत लड़की को बांहों में भी नहीं लिया। बाकी बातें तो बाद की हैं।”
“तुम्हारा मतलब कि छोड़ दें इसे?” तारा की सोचें कुछ नर्म पड़ीं।
“वो ही तो कह रहा हूं।” बिन्द्रा जल्दी से बोला- “मजे लेकर छोड़ देते हैं और जाकर कह देंगे कि मार दिया इसे । जरा सी तो बात है, जिसे तुम खामखाह लम्बी किए जा रहे हो।”
मोना चौधरी को देखते हुए तारा कुछ पल खामोश रहा।
“अब सोचने की बात क्या रह गई?” बिन्द्रा कह उठा।
“ठीक है। जैसा तू कहे।” कहकर तारा ने जानबूझकर लम्बी सांस ली।
बिन्द्रा ने तगड़ी मुस्कान के साथ मीना चौधरी को देखा।
“क्यों-पसन्द आई मेरी बात? तेरी जान कितनी आसानी से बच रही है।” बिन्द्रा बोला।
“ये भी तो हो सकता है कि तुम लोग बाद में मुझे गोली मार दो।” मोना चौधरी ने दोनों को देखा।
“पागलों वाली बातें मत करो। इतने कमीने नहीं हैं हम। जो कहते है वहीं करते हैं।” बिन्द्रा ने मुंह बनाकर कहा।
मोना चौधरी मुस्करा पड़ी।
“ये तो बाद में पता चलेगा कि तुम लोग अपनी बात पर खरे उतरते हो या नहीं?”
“हमसे बढ़िया खरे बंदे, दूसरे नहीं मिलेंगे। सड़क छोड़ और उधर चल। उधर झाड़ियां हैं। आ तारा।”
“मैं यही खड़ा हूं।” तारा ने दोनों को देखा- “पहले तू हो ले।”
बिन्द्रा ने रिवॉल्वर जेब में डाली और मोना चौधरी वाली रिवॉल्वर कार के बोनट पर रखी फिर आगे बढ़कर मोना चौधरी की कलाई पकड़ी और सड़क छोड़कर, झाड़ियों की तरफ बढ़ते कह उठा।
“चल। तेरी जान बच रही है। बदले में तगड़ा जश्न होना चाहिये।” मोना चौधरी कुछ नहीं बोली। अलबत्ता आंखों में वहशी चमक आ ठहरी थी।
बीस मिनट बीत गये।
तारा हाथ में रिवॉल्वर थामे, कार से टेक लगाये खड़ा था। अभी तक कोई भी वाहन इस छोटी सी सड़क पर से नहीं निकला था। हर तरफ शान्ति थी। उसकी निगाह बार-बार कुछ दूर नज़र आ रही झाड़ियों की तरफ उठ जाती थी, जिनकी ओट में मोना चौधरी और बिन्द्रा थे। मन ही मन वो इस बात को लेकर बेचैन था कि ये सारा मामला जल्दी निबटे और वो लड़की को खत्म करे।
उसकी सोचों के मुताबिक बिन्द्रा ने खामखाह झाड़ियों के पीछे जाने का झंझट पाल लिया है। लेकिन जब मोना चौधरी की, सिर से पांव तक की झलक आंखों के सामने नाचती तो सोचता कोई हर्ज नहीं। गोली मारने से पहले ऐसी हुस्न परी के साथ मजे ले लेने चाहिये।
तभी आहट पाकर तारा ने गर्दन घुमाई तो तुरन्त सीधा हो गया।
चार कदम की दूरी पर मोना चौधरी खड़ी थी। होंठों पर मुस्कान। आंखों में मदहोशी। कमीज के दो बटन खुले हुए थे जहां उसका ईमान हिलाने के लिए बहुत कुछ नजर आ रहा था।
तारा की निगाह रह-रहकर वही जा रही थी वो सूखे होंठों पर जीभ फेर रहा था। चेहरे पर अजीब से भाव आ उहरे थे। तभी मोना चौधरी बोली।
“बिन्द्रा कहता है ऐसा बढ़िया, पहले नहीं लगा।”
तारा की निगाह फौरन झाड़ियों की तरफ गई। फिर मोना चौधरी को देखा।
“बिन्द्रा?”
“आ रहा है।” कहते हुए मुस्कराकर मोना चौधरी ने झाड़ियों की तरफ देखा- “थक गया है। धीरे-धीरे अपना सामान समेट रहा है। जब तक हम झाड़ियों तक पहुंचेंगे, वो बाहर आ जायेगा। आओ।”
तारा सिर हिलाकर आगे बढ़ा।
“रिवॉल्वर हाथ में ही पकड़े रखोगे। और मेरे वाली रिवॉल्वर अभी तक बोनट पर पड़ी है।” मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा- “दोनों रिवॉल्वरों को कार के भीतर रख दो। अब इनकी जरूरत ही क्या है।”
तारा ने ऐसा ही किया। दोनों रिवॉल्वरों को कार के भीतर रखा
और मोना चौधरी के साथ झाड़ियों की तरफ बढ़ गया। रह-रहकर उसकी निगाह मोना चौधरी की खुली कमीज के भीतर जा रही थी।
“रहा नहीं जा रहा।” मोना चौधरी हौले से मुस्कराई।
तारा के होंठों पर भी मुस्कान फैल गई।
“सब्र करो। अभी सब कुछ हो जायेगा। जो बिन्द्रा के साथ हुआ है।” कहकर मोना चौधरी ने गहरी सांस ली।
दोनों झाड़ियों के पास पहुंचकर ठिठके।
तारा की निगाह झाड़ियों के भीतर की खाली जगह पर गई तो
चिहुंक पड़ा।
जमीन पर पड़े बिन्द्रा की गर्दन एक तरफ लटकी हुई थी। उसका शरीर अजीब से अंदाज में जमीन पर पड़ा था और आंखें फटी-फटी सी एक तरफ हुई पड़ी थीं।
हक्का-बक्का सा तारा बिन्द्रा की लाश को देखता रह गया।
दूसरे ही पल वो तेज-तेज सांसें लेने लगा और फुर्ती के साथ मोना चौधरी की तरफ पलटा। लेकिन ठिठक सा गया। चेहरे पर से कई रंग आकर गुजर गये।
मोना चौधरी के चेहरे पर मौत के भाव नाच रहे थे। भिंचे दांत ।
आंखों में खतरनाक भाव। हाथ में दबी बिन्द्रा की रिवॉल्वर का रुख तारा की तरफ था।
“तो तुम लोग मुझे गोली मारने वाले थे।” मोना चौधरी के स्वर में जहरीली फुफकार थी।
तारा सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया। चेहरे का रंग फक्क पड़ चुका था।
“तुमने देखा था कि मैं कैसे निशाना लगाती हूं। आज सुबह मैंने तुम्हारे साथी को मारा था।”
सूखे होंठों पर जीभ फेरकर तारा ने एक कदम पीछे हटाया।
“और अब मैंने तुम्हारे दूसरे साथी की जान ले ली।”
तारा एक कदम पीछे हटा। आंखों में मौत का खौफ दिखाई देने लगा था।
“अब तुम्हारी बारी है।”
“न-नहीं।” तारा के होंठों से भय से भरा खरखराता सा स्वर निकला।
“अपनी मौत की सुनकर, सबको इसी तरह डर लगता है।” मोना चौधरी ने कड़वे स्वर में कहा।
“मुझे मत मारो । मैं-मैं मरना नहीं चाहता।” कम्पन भरे स्वर में कहते हुए तारा और भी पीछे हट गया।
“कोई भी नहीं मरना चाहता। लेकिन तुम जैसे लोग, दूसरों के कहने पर मौत बांटते फिरते हैं। तुम।”
“म-मुझे माफ कर दो। मैं...”
“माफ भी किया जा सकता है। चाहो तो अपनी जान बचा सकते हो। मैं भूल सकती हूं कि तुम मेरी जान लेने वाले थे।”
“सच?”
“सतीश ठाकुर का क्या मामला है?”
“मैं नहीं जानता।” तारा ने जल्दी से कहा।
“मरना चाहते हो?”
“मैं सच कह रहा हूं कि इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता। हमें कहा गया कि सतीश ठाकुर को खत्म करना है तो, हम सतीश ठाकुर के पीछे लग गये।” तारा रह-रहकर सूखे होंठों पर जीभ फेर रहा था- “इतना ही पता चला था कि सतीश ठाकुर ऊपर वालों के लिए कुछ खास जान गया है। जो कि नहीं जानना चाहिये। वो बातें बाहर चली गई तो हमारे हक में अच्छा नहीं होगा।”
“लेकिन सतीश ठाकुर मुझे कुछ नहीं बता सका। पहले ही उसे शूट कर दिया गया। फिर मेरी जान लेने पर क्यों लग गये?”
“मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता। मैंने सारे हालातों की खबर ऊपर दी तो, हमें यही ऑर्डर दिया गया कि तुम्हें भी खत्म कर दिया जाये कि कहीं सतीश ठाकुर ने तुम्हें कुछ बता न दिया हो।” एक ही सांस में तारा कहता जा रहा था- “जिस ढंग से तुमने हमारे आदमी को गोली मारी। उसे जानने के बाद, कुछ को ये ऑर्डर दिया गया कि वो मालूम करें कि असल में तुम कौन हो । यूं ही कोई रिवॉल्वर पास में रखकर नहीं घूमता। मेरे ख्याल में इस वक्त वो लोग तुम्हारे फ्लैट की तलाशी ले रहे होंगे कि मालूम हो, असल में तुम कौन हो?”
मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
“मेरे फ्लैट की तलाशी लेने का प्रोग्राम था?” मोना चौधरी का स्वर कठोर हो गया।
“हां। तुम अपने अपार्टमैंट से निकलीं तो हम तुम्हारे पीछे लग गये और तुम्हारे फ्लैट की तलाशी के लिए वहीं आदमी मौजूद थे। उन्होंने अवश्य तुम्हारे फ्लैट की तलाशी ले ली होगी। वो अपना काम पूरा करना जानते हैं।”
मोना चौधरी के चेहरे पर कठोरता नज़र आने लगी।
“तुम्हें ऑर्डर देने वाला कौन है?” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द चबाकर पूछा।
तारा के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे।
मोना चौधरी ने रिवॉल्वर सीधी की और खतरनाक स्वर में कह उठी।
“मरना चाहते हो?”
“न-नहीं।”
“तो बताओ, कौन तुम्हें ऑर्डर देता है।” मोना चौधरी का लहजा सर्द हो गया।
“परेरा। ललित परेरा।” तारा के होंठों से निकला।
“ललित परेरा?” मोना चौधरी होंठ भींचकर बोली- “ये कौन है?”
“गोल धारा के पास उसका होटल है। लेकिन चोरी-छिपे होटल जुआ चलता है। मोटी आमदनी होती है।”
“होटल का नाम?”
“गोल धारा जगह के नाम पर ही, होटल का नाम उसने धारा होटल रखा हुआ है।”
“सतीश ठाकुर का ललित परेरा के साथ क्या सम्बन्ध है?”
“मैं नहीं जानता। जो जानता था, बता दिया। मेरे जैसे लोग तो परेरा के इशारे पर काम करते हैं। वो क्या करता है। किस-किस से उसकी बातचीत है। इन बातों से हमारा कोई वास्ता नहीं होता।” तारा हर बात का जवाब जल्दी से जल्दी देने की चेष्टा कर रहा था- “अब तो मुझे जाने दो। मैंने सब कुछ बता दिया है।”
उस पल फायर का तीव्र धमाका हुआ और गोली तारा के नाक को फोड़ती हुई, सिर की हड्डी से टकराकर पीछे वाले हिस्से से बाहर निकल गई।
तारा के जिस्म को हल्का सा झटका लगा और नीचे जा गिरा।
मर गया था वो।
☐☐☐
मोना चौधरी अपने अपार्टमैंट पर पहुंची।
बाहर अंधेरा छाना शुरू हो गया था। शाम के आठ बज रहे थे। उसके चेहरे पर सामान्य भाव थे, परन्तु आंखों में कठोरता ठहरी हुई थी। फ्लैट के दरवाजे के पास पहुंचकर ठिठक गई
“मोना डार्लिंग!”
मोना चौधरी ने पलटकर देखा। गैलरी पार, अपने फ्लैट का दरवाजा खोले नंदराम बाहर झांक रहा था।
“बहुत देर कर दी। तुम्हारे मेहमान यार तो चले गये साईं ।” नंदराम ने दांत फाड़े।
“मेहमान-चार?”
“हां। वो ही, जिन लोगों को तुमने बुलाया था। वो।”
“मैंने किसी को नहीं बुलाया।” मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया।
नंदराम पूरा दरवाजा खोलकर खड़ा हो गया।
“ये कैसे हो सकता है नी। चो पूरे पांच थे वड़ी और मैंने उन्हें छाती ठोंककर, लाईन लगाकर, तुम्हारे फ्लैट में जाते देखा। तुमने नहीं बुलाया तो साईं, उन्होंने फ्लैट का दरवाजा बिना चाबी के खोल लिया। तुमने ही तो चाबी दी होगी कि नहा-धोकर आराम करो नी। मैं अभी आती हूं।”
“तुमने उन्हें दरवाजे का लॉक खोलते हुए देखा था?”
“वो तो नेई देखा वड़ी। मुझे बाहर झांकने में देर हो गई। जब देखा तो वो अन्दर को जा रहे थे।”
“गए कब?”
“एक घंटा हो गया। एक ने कंधे पर हरा वाला बैग लटका रखा था।”
“हरा वाला बैग?”
“हां नी, वो ही। वो ही।”
मोना चौधरी दांत भिंच गये। उसने दरवाजा खोला तो वो खुला ही था। वो भीतर प्रवेश कर गई। नंदराम कुछ कह रहा था। उसने सुना नहीं। दरवाजा भीतर से बंद कर लिया।
मोना चौधरी ने तसल्ली भरी निगाह ड्राईंग रूम में हर तरफ मारी। देखने पर ऐसा नहीं लगता था कि वहां कोई आया हो। मोना चौधरी दूसरे कमरे में पहुंची और उस तरफ देखा। जहां हरे रंग का बड़ा वाला बग रखा था। वो वहां नजर नहीं आया। स्पष्ट था कि जो लोग तलाशी लेने आये थे। वो उस बैग को भी साथ ले गये थे। जिसमें कि पैंतीस लाख रुपया लूंस-ठूसकर भरा हुआ था। वो ही पैंतीस लाख, जो कि विक्रम दहिया की हत्या करने के सिलसिले में उसे एडवांस के तौर पर आधी रकम दी थी। पैंतीस लाख से भरे बैग को वो लोग ले गये थे।
मोना चौधरी फ्लैट की बाकी जगहों पर नज़र मारने लगी।
वो दो पर्स, जिसमें एक सतीश कुमार का था। दूसरा उसका, जिसे उसने शूट किया था, जिन परों को ड्राअर में रखा था, वो भी वहाँ नहीं थे। यानि की पूरे फ्लैट से पैंतीस लाख से भरा बैग और वो दोनों पर्स गायब हुए थे। कई जगहों से ये स्पष्ट महसूस हो रहा था कि बहुत ही बारीकी और सावधानी से तलाशी ली गई है। पैंतीस लाख को ठिकाने लगाने का उसे वक्त न मिला पाया था, वरना वे इस तरह हाथ से न जाते। साथ ही उसे इस बात की तसल्ली थी कि उसके बारे में वो लोग नहीं जान पाये होंगे। क्योंकि फ्लैट में ऐसा कुछ था ही नहीं कि जो यह बात साबित करता कि वो मोना चौधरी है।
मोना चौधरी का चेहरा गुस्से से भरा पड़ा था।
सतीश ठाकुर से उसका किसी तरह का कोई वास्ता नहीं था। सुबह उससे, कोई बात नहीं हो पाई थी। परन्तु जबर्दस्ती उसका वास्ता पैदा किया जा रहा था। वो इस मामले से दूर रहना चाहती थी लेकिन उसे जबर्दस्ती इस मामले में खींचा जा रहा था। सुबह उसकी जान लेने की कोशिश की गई। शाम को दो हत्यारे उसे घेरने में लग गये। उसके फ्लैट की तलाशी ली गई और पैंतीस लाख रुपये से भरा बैग ले गये।
“ललित परेरा।” दांत भींचे मोना चौधरी बड़बड़ा उठी।
☐☐☐
मोना चौधरी ने धारा होटल की पार्किंग में कार रोकी तो रात के नौ बज रहे थे। यहां पार्किंग में कारों की लम्बी कतारें लगी हुई थीं। जिससे स्पष्ट हो रहा था कि इस होटल को पसन्द किया जाता है। यहां के बढ़िया खाने की वजह से या जुआघर होने की वजह से। पार्किंग में कार छोड़कर मोना चौधरी होटल के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ी। इस वक्त उसने ढीला-ढाला टॉप और घुटने से लम्बी काले रंग की स्कर्ट पहन रखी थी। होंठों पर सुर्ख लिपिस्टिक और सिल्की जैस सिर के बालों की वजह से वो किसी गुड़िया की तरह लग रही थी। टांगों पर स्टाकिंग्स थी और पांवों में बैली पहन रखी थी।
उसे पास आता पाकर, दरबान ने फौरन शीशे का चमकता दरवाजा खोल दिया।
“गुड ईवनिंग मैडम?”
जवाब में मोना चौधरी सिर हिलाती हुई भीतर प्रवेश कर गई। सामने ही बहुत बड़ी होटल की लॉबी थी। गद्देदार सोफे और फर्श से मैच करता कारपेट बिछा रखा था। एक तरफ लम्बा सा रिसैप्शन डैस्क था। जिसके पीछे दो युवतियां मौजूद थीं। पांच लोग वहां खड़े व्यस्त थे। लॉबी में सोफा चेयरों पर भी लोग बैठे बातचीत कर रहे थे। कुछ सुस्ता रहे थे। लोगों का आना-जाना जारी था। बहुत ही शांत और दिल को सकून पहुंचाने वाला माहौल था। मोना चौधरी ने तसल्ली से भरी निगाह हर तरफ मारी। वो यहां
के माहौल को पहचानने की चेष्टा कर रही थी। लॉबी के एक किनारे पर दीवार पर छोटी सी पट्टी पर लिखा था बार रूम। दूसरे कोने पर इस तरह डायनिंग रूम लिखा था। ठीक सामने बीचो-बीच लिफ्ट नज़र आ रही थी।
और मोना चौधरी को जरूरत थी ललित परेरा की।
परेरा के आदमियों ने उसे ताजा-ताजा पैंतीस लाख की चोट दी थी। वो पैंतीस लाख ललित परेरा के पास पहुंच चुके होंगे। नहीं पहुंचे तो कम से कम उसके आदमियों के पास ही होंगे। साथ ही जो उसकी जान लेने की कोशिश की गई। वो जुदा हिसाब था। लेकिन मोना चौधरी अच्छी तरह जानती थी कि ललित परेरा पैंतीस लाख आसानी से वापस नहीं देगा। उस
पर से अपने आदमी नहीं हटायेगा। इस वक्त तो उसे सीधा करने के लिए एक ही रास्ता था। एक ही नाम था। वो था सतीश ठाकुर।
मोना चौधरी ने सोच लिया था कि ललित परेरा से क्या बात करनी है।
वो रिसैप्शन पर पहुंची। एक आदमी से फुर्सत पाकर रिसैप्शनिस्ट ने उससे पूछा।
“यस मैडम । मैं आपकी क्या सहायता कर सकती हूं?”
“मिस्टर ललित परेरा से मिलना है।” मोना चौधरी ने मुस्कराकर कहा।
“परेरा साहब से।” उसके होंठों से निकला- “आपकी अप्वाईमैंट है क्या?”
“नहीं। मैं...”
“सॉरी मैडम!” रिसैप्शनिस्ट ने टोका- “परेरा साहब से आज नहीं मिल पायेंगी। वैसे भी इस वक्त वो भी रिंग में हैं। आप अपने बारे में जानकारी दे दीजिये। उसके बाद परेरा साहब चाहेंगे तो आपको मिलने का वक्त दे देंगे।”
मोना चौधरी जानती थी कि अपने बारे में, परेरा तक खबर पहुंचाना, खतरे से खाली नहीं था। वो तुरन्त उसे ठिकाने लगाने का इन्तजाम कर देगा। वो तो अचानक ही परेरा के सिर पर पहुंच जाना चाहती थी।
मोना चौधरी रिसैप्शन के पास से हट गई और लापरवाह सी चलती बाररूम की तरफ बढ़ने लगी। रिसैप्शनिस्ट की बात से जाहिर था कि ललित परेरा होटल में ही है। ये खबर भी तसल्लीबख्श थी। उस तक कैसे पहुंचना है, इसका भी कोई न कोई रास्ता निकल ही जायेगा। मोना चौधरी बाररूम में पहुंची। वो अच्छे साईज का हॉल था। कुर्सियां-टेबल सलीके के साथ लगा रखी थीं। एक तरफ आम के आकार का बार काऊंटर दिखाई दे रहा था। जिक्र करने के लायक सब से खास बात तो ये थी कि बार काऊंटर के पीछे मौजूद कर्मचारी और सर्व करने वाले, सब की सब युवतियां थीं। खूबसूरत थी और सबने सफेद यूनिफार्म पहन रखी थी। कॉलरों पर गुलाब का फूल लगा बागबाररूम की स्टाफ युवतियां सबसे जुदा और खूबसूरत थीं। घुटने के ऊपर तक की छोटी सी स्कर्ट पहन रखी थी। कुल मिलाकर आलम ये था कि जो न भी पीता हो, यहां का नजारा देखकर वो भी दो पैग मार लेगा।
मोना चौधरी ने दो कुर्सियों वाली टेबल संभाल ली।
कुछ ही पलों में खूबसूरत सी वेट्रेस मुस्कराती हुई पास पहुंची।
“गुड ईवनिंग मैडम।”
“ईवनिंग।”
“क्या लेना पसन्द करेंगी आप?”
“पहली बार पीने जा रही हूं।” मोना चौधरी भी मुस्कराई- “तुम बताओ, मुझे क्या लेना चाहिये?”
“फिर तो लाईट ‘बियर’ आपको लेनी चाहिये।” वेट्रेस ने फौरन कहा।
“जैसा तुम ठीक समझो।”
वेट्रेस चली गई।
मोना चौधरी की निगाह वहां बैठे लोगों पर घूमने लगी।
दो मिनट में ही वेट्रेस बियर का मग सर्व कर गई।
मोना चौधरी ने घूँट भरा। मग वापस टेबल पर रख दिया। इस दौरान वो ये बात नोट कर चुकी थी कि एक टेबल पर अकेला बैठा बूढ़ा सा व्यक्ति बार-बार उसे देख रहा है। मोना चौधरी ने बियर का आधा मग खाली किया, एकाएक उस बूढ़े को अपनी टेबल छोड़ते देखा।
व्हिस्की का गिलास हाथ में थामे उसकी तरफ आने लगा।
मोना चौधरी की निगाह उस पर जा टिकी।
“हैलो।” पास आकर वो मुस्कराया- “मैं यहां बैठ जाऊं तो क्या तुम्हें एतराज होगा?”
“नहीं होगा।” मोना चौधरी भी मुस्कराई।
“मेरा भी यही ख्याल था कि तुमे इन्कार नहीं करोगी।” कहने के साथ ही वो बैठ गया- “यहां तुम्हें पहले कभी नहीं देखा।”
“पहली बार आई हूं।”
“तभी। वैसे तुम खूबसूरत हो। मालूम है?”
“मालूम है।” मोना चौधरी खुलकर मुस्कराई- “लेकिन आप जिस उम्र के दौर से गुजर रहे हैं, वो उम्र इस तरह की बातों की इजाजत नहीं देती आपको।”
“उम्र! क्या हुआ है मेरी उम्र को? पैंसठ का हूं।” वो हौले से हंसा- “उम्र में कुछ नहीं रखा। मेरा दिल देखो। अभी तक जवान है। दिल ही इन्सान को जिन्दा रखता है मिस....?”
“मोना।”
“गुड नेम। मुझे गुलशन वर्मा कहते हैं। क्या करती हो?”
“कुछ नहीं। मम्मी-पापा अमेरिका में रहते हैं। मुझे हिन्दुस्तान पसन्द है। यहां रहती हूं।”
“वास्तव में। हिन्दुस्तान जैसा दूसरा कोई देश नहीं। जो मजे यहां हैं, वो कहीं भी नहीं।” कहने के साथ ही गुलशन वर्मा ने गिलास को एक ही सांस में खाली किया- “खूबसूरती तो पूरी दुनिया में मौजूद है। लेकिन हिन्दुस्तान में खूबसूरती के साथ, अनमोल सादगी भी मिलती है। जो किसी दूसरे देश में नहीं मिलती।”
मोना चौधरी मुस्कराई। मग से छूट भरा।
तभी काला सूट पहने, होटल का एक कर्मचारी गुलशन वर्मा के पास पहुचा।
“सर!” उसने कहा- “कीमती लाल जी आ गये हैं।”
“आ गया पट्ठा। अब आयेगा मजा।” गुलशन वर्मा खुलकर मुस्कराया- “कहां है वो?”
“वहीं पर। आपका इन्तजार कर रहे हैं।” उसने मोना चौधरी पर निगाह मारकर कहा।
“उसे भी तो मेरे बिना, खेल में मजा नहीं आता। आ रहा हूं।”
काले सूट वाला चला गया।
गुलशन वर्मा के मुंह से निकले ‘खेल’ शब्द पर मोना चौधरी समझ गई कि होटल में चलने वाले जुए के खेल के सम्बन्ध में बात हो रही है।
“ताश खेलने का शौक है?” गुलशन का ने मोना चौधरी को देखा।
“खेलने का तो खास शौक नहीं है, लेकिन खेलते देखने का शौक हैं।” मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा।
“ये तो और बढ़िया बात है। आओ मेरे साथ।”
“कहां?”
“ताश का खेल देखना।”
“ताश? लेकिन यहां-कहां?”
गुलशन वर्मा ने सिर आगे करके धीमे स्वर में कहा।
“होटल में छिपे तौर पर, बड़े पैमाने पर जुआ होता है। वहां हर कोई नहीं जा सकता।”
“ये कैसे हो सकता है?”
“क्यों नहीं हो सकता?”
“पुलिस को पता चल गया तो।”
“पता है पुलिस को।” गुलशन वर्मा हौले से हंसकर बोला- “ललित परेरा ने सारा मामला संभाल रखा है। पुलिस को वक्त पर हफ्ता देता है। थाने वालों के लिए होटल में खाना-पीना फ्री है। वो तो पैक कराकर घर वालों के लिए भी ले जाते हैं। ऐसे में वो जुआघर बंद क्यों करना चाहेंगे। वो तो चाहेंगे, ये धंधा और भी बढ़े।”
“ओह!” मोना चौधरी ने गहरी सांस लेकर कहा।
“खेल देखने की इच्छा हो तो चलो। मेरी मेहमान बनकर तुम वहां जा सकती हो।”
“मैं जरूर चलूंगी। बियर का ‘बिल’ पे कर।”
“उसकी तुम फिक्र मत करो।” कहने के साथ ही गुलशन वर्मा उठा और मोना चौधरी के ‘बिल’ के लिए दूर मौजूद वेट्रेस को खास ढंग से इशारा किया तो वेट्रेस ने सिर हिला दिया।
मोना चौधरी उठ खड़ी हुई।
“आओ।”
“लेकिन ‘बिल’?” मोना चौधरी ने कहना चाहा।
“वो मेरे खाते में चढ़ गया है।”
मोना चौधरी उसके साथ बाहर की तरफ बढ़ी।
“मिस्टर वर्मा! क्या आप हर खूबसूरत लड़की को जुआघर ले जाते....?”
“नहीं। ऐसा आज पहली बार हो रहा है।” गुलशन वर्मा हंस पड़ा- “शायद इसलिए कि तुम बहुत खूबसूरत हो। इस उम्र में मैं सिर्फ खूबसूरती की तारीफ कर सकता हूं। इससे आगे दिलचस्पी नहीं लेता।”
“आगे दिलचस्पी क्यों नहीं?”
“मेरे ख्याल में इस उम्र में ऐसे काम मुझे शोभा नहीं देते।”
गुलशन वर्मा ने लापरवाही से कहा- “मेरी तीन बेटियां हैं, जिनके ब्याह कर चुका हूं। उनके भी बच्चे हो चुके हैं। उनकी नजरों में मैं गिरना नहीं चाहता।”
☐☐☐
गुलशन वर्मा के साथ मोना चौधरी ऐसे कमरे में पहुंची, जिसे आफिस का रूप दिया हुआ था। बाहर वर्दी पहने एक व्यक्ति कुर्सी पर मौजूद था और भीतर टेबल के पीछे एक व्यक्ति बैठा था।
“आईये मिस्टर वर्मा ।” वो बोला।
“कैसे हो?”
“हमेशा की तरह ठीक।” कहते हुए उसकी निगाह मोना चौधरी पर गई- “आज साथ में कौन है?”
“मेरी मेहमान।” गुलशन वर्मा ने मुस्कराकर कहा।
“मुझे कोई एतराज नहीं। आप फैसला कर लीजिये कि इसे भीतर ले जाना ठीक रहेगा?” उसने कहा।
“ठीक रहेगा। तभी तो साथ लाया हूं।” गुलशन वर्मा मुस्कराया। जवाब में वो व्यक्ति भी मुस्कराया और टेबल के नीचे लगे एक बटन को दबा दिया। पास की दीवार में छोटा सा रास्ता बन गया। नीचे जाने के लिए सीढ़ियां नज़र आने लगीं।
“जाईये मिस्टर वर्मा।”
तब तक गुलशन वर्मा उस तरफ कदम बढ़ा चुका था।
मोना चौधरी साथ थी।
दोनों सीढ़ियां उतरने लगे। पीछे की दीवार वापस अपनी जगह आ गई थी। सीढ़ियों में मध्यम पर्याप्त रोशनी थी। सीढ़ियां समाप्त हुईं तो सामने ही दरवाजा था जिसे गुलशन वर्मा ने खोलकर मोना चौधरी को देखा।
“आओ।”
दरवाजे के भीतर मोना चौधरी को तीव्र रोशनी और कई लोगों की झलक मिली। मोना चौधरी मुस्कराकर आगे बढ़ी और भीतर प्रवेश कर गई। वर्मा भी भीतर आ गया।
“ऊपर कमरे में जो बैठा था। वो ललित परेरा था क्या?” मोना चौधरी ने पूछा।
“नहीं। वो तो होटल का छोटा सा नौकर है।”
मोना चौधरी की निगाह उस मीडियम साईज के हॉल में घूमने लगी।
वहां धुएं और व्हिस्की की मिली-जुली गंध थी। पन्द्रह टेबलें वहां बिछी हुई थीं। टेबलों के गिर्द जरूरत के मुताबिक कुर्सियां रखी हुई थीं हर टेबल पर ताश का खेल चल रहा था। टेबलों पर नोटों के ढेर लगे हुए थे।
खूबसूरत युवतियां कम कपड़ों में व्हिस्की और बियर सर्व कर रही थीं। इस सारे सामान को वा हॉल के साथ लगे कमरे से ला रही थी। स्पष्ट था कि उस कमरे में बाररूम बना रखा था।
“आओ मोना। वहां मेरी टेबल है। वो बैठा है हरामी कीमती लाल ।” कहकर गुलशन वर्मा उस तरफ बढ़ा।
मोना चौधरी आगे बढ़ती हुई, वहां के महील का जायजा ले रही थी। गुलशन वर्मा खाली पड़ी कुर्सी पर जा बैठा था और खेल में व्यस्त हो गया था। पास जाकर खड़ी मोना चौधरी, खोज भरी निगाहों से इधर-उधर देख रही थी। कभी-कभार वर्मा से भी बात कर लेती थी। उसके खेल में बातों ही बातों में हिस्सा ले लेती थी। वहां कई औरतें भी खेल रही थीं। कभी-कभार किसी टेबल पर से शोर उठ जाता था। फिर थम जाता। आधे घंटे बाद ही मोना चौधरी के कानों में किसी की आवाज पड़ी।
“गुड ईवनिंग परेरा साहब!”
मोना चौधरी ने फौरन गर्दन घुमाई।
उसने सफेद सूट पहन रखा था। हल्के नीले रंग की शर्ट थी। पैंतालिस-सैंतालिस बरस की उम्र रही होगी उसकी। देखने में वो ठीक-ठीक ही था।
“ईवनिंग मिस्टर मेहता। कैसे हैं आप?”
“बहुत बढ़िया।”
“लगता है आज पत्ते अच्छे पड़ गये हैं।” उसने हंसकर कहा।
“ठीक कहा। चार दिन की कसर पूरी हो गई है।”
तो ये है ललित परेरा?
मोना चौधरी की निगाह बराबर ललित परेरा पर टिकी थी। परेरा धीरे-धीरे चलता हुआ हर टेबल पर रुकता। हंस-मुस्कराकर दो-चार बातें करता। फिर दूसरी टेबल पर पहुंच जाता। उस टेबल पर भी आया। वर्मा के पास खड़ी मोना चौधरी की तरफ देखने की भी शायद उसने जरूरत नहीं समझी।
वहां भी वो दो-चार बातों करके आगे बढ़ गया। मोना चौधरी की निगाह परेरा पर टिकी रही।
दस मिनट बाद ही मोना चौधरी ने ललित परेरा को दूसरी तरफ नजर आने वाली सीढ़ियों की तरफ बढ़ते देखा। मोना चौधरी ने एक निगाह, खेल में व्यस्त गुलशन वर्मा पर मारी फिर वहां से हटी और लापरवाही भरे ढंग से टेबलों को पार करते हुए सामान्य चाल में उस तरफ बढ़ने लगी।
ललित परेरा सीढ़ियां चढ़ने लगा था। फिर नजर आना बंद हो गया। मोना चौधरी जब सीढ़ियों के पास पहुंची तो उसने ललित परेरा को सबसे ऊपर की सीढ़ी पर खड़े पाया। उसी पल उसने दीवार पर लगे एक बटन को दबाया तो बे-आवाज, वो दीवार इतनी सरक गई कि एक आदमी उसमें से निकल सके। देखते ही देखते वो उस रास्ते से बाहर निकल गया।
दीवार वापस अपनी जगह पर आ गई।
रास्ता बंद हो गया। मोना चौधरी फुर्ती से सीढ़ियां चढ़ने लगी। आखिरी सीढ़ी पर दीवार के पास पहुंचकर वो ठिठकी और दीवार पर लगा बटन दबा दिया। दूसरे ही पल दीवार एक तरफ सरक गई। उस रास्ते से पार मोना चौधरी को सजा-सजाया कमरा नज़र आया। दो पल के लिए वो ठिठकी सी खड़ी रही फिर भीतर प्रवेश कर गई। वो रास्ता धीरे-धीरे बंद होता चला गया।
वो सामान्य साईज से कुछ बड़ा कमरा था। एक तरफ डबल बैड बिछा था। दूसरी तरफ टेबल के गिर्द चार कुर्सियां मौजूद थीं। फर्श पर कारपेट बिछा था।
मोना चौधरी की घूमती निगाह ललित परेरा पर जा टिकी। जो उसे ही देख रहा था।
“कौन हो तुम और इस तरह मेरे पीछे-पीछे क्यों आईं?” ललित परेरा का स्वर शांत था- “तुम्हें यहां पहले कभी नहीं देखा। किसी की मेहमान बनकर जुआघर में आई हो क्या?”
“इतने सवाल एक साथ?” मोना चौधरी मुस्कराई।
ललित परेरा ने होंठ सिकोड़कर उसे घूरा फिर सिर हिलाकर कह उठा।
“सारे जवाब एक साथ न देकर, एक-एक करके दे दो।”
“मैं तुमसे बात करना चाहती हूं परेरा ।”
“इस वक्त मैं अपने ऑफिस में होता हूं। वहां मेरे लिए कई काम पड़े हैं।” परेरा ने कहा।
“तो तुम्हारे आफिस में चलते हैं।” मोना चौधरी ने कहा।
“यही मतलब था मेरा। आओ।”
मोना चौधरी ललित परेरा के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
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