“कमीने त्यागी, तुम।” जगमोहन गुर्रा उठा।
वीरेंद्र त्यागी बेहद शांत भाव में मुस्कराया और कह उठा।
“मुझे यहां देखकर अगर ये सोचते हो कि मुझे पकड़ लोगे या मार दोगे तो ये तुम्हारी भूल है। त्यागी को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। त्यागी का मुकाबला नहीं कर सकते तुम...।”
एकाएक जगमोहन दौड़ा और सोफे पर बैठे त्यागी पर छलांग लगा दी।
वीरेंद्र त्यागी ने फुर्ती से अपनी जगह छोड़ी और एक तरफ खड़ा हो गया।
जगमोहन सोफे से टकराया और सोफे के साथ नीचे लुढ़कता चला गया। फिर फौरन ही उठा और नजरें त्यागी पर टिकीं। भिंचे दांत, धधकता चेहरा। गुस्से में कांपता शरीर।
“मैं जानता था कि मेरा इसी तरह स्वागत होगा।” त्यागी मीठे स्वर में मुस्कराकर कह उठा-“मैं तो देवराज चौहान के बस का भी नहीं हूं, सिर्फ तुम मेरा मुकाबला कैसे कर सकते हो?”
अगले ही पल जगमोहन ने रिवॉल्वर निकाल ली।
“तुम बच नहीं सकते।” जगमोहन दांत पीसते कह उठा-“मरोगे तुम। तुमने हमारे बड़े-बड़े नुकसान किए हैं। हमें मौत के मुंह में कई बार धकेला, पर अब तुम हत्थे चढ़ गए मेरे, तुम...।”
“जगमोहन।” त्यागी गम्भीर दिखा-“तुम्हें ये जरूर सोचना चाहिए कि मैं शेर की मांद में क्यों आया? मैं जानता था कि मेरे साथ ये ही व्यवहार होगा, पर फिर भी मैं आया। तुम्हें मेरे आने का कारण पूछना चाहिए।”
जगमोहन रिवॉल्वर वाला हाथ उठाए, त्यागी को मौत-सी निगाहों से देखता रहा।
“तुम्हें देवराज चौहान की जरा भी फिक्र नहीं कि वो कहां है।” त्यागी पुनः बोला।
“देवराज चौहान?” जगमोहन के मस्तिष्क को झटका लगा-“कहां है वो?”
“रिवॉल्वर वापस रखो और आराम से बात करो।”
“देवराज चौहान तुम्हारे पास है?” जगमोहन गुर्रा उठा।
“नहीं, परंतु जानता जरूर हूं कि वो इस वक्त कहां है।”
“कहां है देवराज चौहान?”
“रिवॉल्वर वापस रखो। मैं झगड़ा करने नहीं आया। तुम्हारी सहायता करने आया हूं। देवराज चौहान से मैं दुश्मनी रखता हूं। मैं जानता हूं कि तुम लोग भी मुझे छोड़ने वाले नहीं, फिर भी मैं तुम्हारे सामने आया। मेरा इरादा देवराज चौहान को कानून के हाथों में बुरी तरह फंसा देने का है, ये काम मैं करके भी दिखाऊंगा। पर मैं ये नहीं चाहता कि मेरे खास दुश्मन पर कोई और हाथ मार ले, जैसे कि रानी ताशा।”
“रानी ताशा?” जगमोहन चौंका-“तुम रानी ताशा के बारे में क्या जानते हो?”
“सब कुछ।” त्यागी ने गम्भीर स्वर में कहा-“वो खुद को दूसरे ग्रह से आया बताती है और देवराज चौहान को राजा देव कहती है, जो कि उसके तीन जन्म पूर्व का पति है। सब कुछ पता है मुझे। मेरे ख्याल में देवराज चौहान इस वक्त बड़ी मुसीबत में फंसा है। ऐसे में मैं तुम्हारी सहायता करूं तो तुम्हें एतराज नहीं होना चाहिए। देवराज चौहान नाइट सूट पहने, जिस तरह नंगे पांव पागलों की तरह ताशा-ताशा चिल्लाता सड़कों पर भाग रहा था, वो अच्छी निशानी नहीं है। पुलिस की निगाहों में आ गया तो और मुसीबत में पड़ जाएगा।”
“तुम्हें क्यों फिक्र है कि उसे पुलिस पकड़ लेगी।” जगमोहन दांत भींचे कह उठा।
“देवराज चौहान को मैं पुलिस के हाथों में फंसाना चाहता हूं।” त्यागी मुस्करा पड़ा।
जगमोहन रिवॉल्वर थामे त्यागी को घूरता रहा।
त्यागी सतर्क था।
“तो तुम यहां हमारी सहायता करने आए हो?”
“सच्चे मन से।”
“रानी ताशा के बारे में तुम्हें कैसे पता चला?”
“देवराज चौहान की पत्नी नगीना, जब प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज को सारा मामला, ताज होटल में बता रही थी तो मैं भी पास ही में मौजूद था। मैंने सब कुछ सुना और मुझे चिंता हुई कि रानी ताशा मेरे खास दुश्मन को नुकसान न पहुंचा दे। मैं तभी से इस मामले पर लग गया। अगर तुम्हें मेरा बीच में आना पसंद नहीं आया तो मैं चला जाता हूं।”
“तुम जानते हो कि इस वक्त देवराज चौहान कहां है?”
“हां।” त्यागी ने सिर हिलाया।
जगमोहन ने रिवॉल्वर जेब में रखी और बोला।
“देवराज चौहान कहां है?”
“तीन लोगों ने उसे पकड़ा, बेहोश किया और उसे कार में डालकर ले गए। मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। जब देवराज चौहान बंगले से बाहर भागा तो मैं बाहर रहकर बंगले पर नजर रख रहा था, तब मैं देवराज चौहान के पीछे गया और सब कुछ देखा। मैंने उन तीनों की कार का पीछा किया और
उनका ठिकाना देखा।” त्यागी बोला।
“तीन लोग?” जगमोहन के चेहरे पर सख्ती के भाव उभरे-“देखने में कैसे लगते थे वो?”
त्यागी ने उनका हुलिया बताया।
जगमोहन हुलिया सुनकर बुरी तरह चौंका।
“R.D.X.।” उसके होंठों से निकला।
“कौन R.D.X.?” वीरेंद्र त्यागी के माथे पर बल पड़े।
“राघव, धर्मा, एक्स्ट्रा।”
“ये कौन हैं?”
“हैं कोई...।”
“देवराज चौहान के दोस्त हैं या दुश्मन?”
“न दुश्मन, न दोस्त।”
“फिर तो तुम्हें इनका ठिकाना पता ही होगा...।”
“नहीं पता। मैं नहीं जानता कि ये कहां रहते हैं...।”
“चलो।” त्यागी मुस्कराया-“मैं तुम्हें वहां ले चलता हूं।”
जगमोहन ने कठोर निगाहों से त्यागी को देखा फिर कह उठा।
“चलो।”
दोनों बाहर निकले, कार में बैठे, जगमोहन ने कार ड्राइव की।
कार सड़कों पर दौड़ने लगी। त्यागी रास्ता बताने लगा।
“मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि तुम्हारे पास बैठूँगा।” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा।
“बुरा मत मानो। मैं तो सिर्फ तुम्हारी सहायता कर रहा हूं।”
दोनों में कई पलों तक चुप्पी रही। त्यागी बोला-“रानी ताशा की बात को तुम लोग कैसे ले रहे हो? वो सच में दूसरे ग्रह से आई है?”
जगमोहन ने होंठ भींच लिए।
“जवाब तो दो।”
“तुम्हारा इस मामले से कोई वास्ता नहीं।” जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा।
“मैं तुम लोगों की सहायता करने की सोच रहा हूं ये मामला दिलचस्प है।” त्यागी ने कहा।
“हमें तुम्हारी सहायता की जरूरत नहीं।”
“तो मैं यहीं उतर जाता हूं।”
“चुपचाप वहां का रास्ता बताते रहो, जहां देवराज चौहान है।”
त्यागी मुस्कराकर कर रह गया।
“बबूसा के बारे में तुम क्या विचार रखते हो?”
“चुप रहो। मैं इस बारे में तुमसे कोई बात नहीं करना चाहता।”
त्यागी ने फिर कुछ नहीं कहा।
दौड़ती कार एक घंटे बाद त्यागी के कहने पर एक मकान के बाहर रोक दी। अंधेरा फैल चुका था। घर के भीतर रोशनी हो रही थी। दोनों बाहर निकले। त्यागी बोला।
“ये घर है।”
“तुम यहीं रुको।” जगमोहन बोला-“मैं अभी आता हूं।”
“जैसी तुम्हारी मर्जी।”
जगमोहन आगे बढ़ा और बाहरी गेट पर लगी कॉलबेल दबा दी।
चंद पल बीते कि भीतर का दरवाजा खुला और राघव बाहर निकला।
राघव पर निगाह पड़ते ही जगमोहन ने राहत की सांस ली।
राघव गेट के पास पहुंचा तो जगमोहन को पहचानते ही हैरान हो गया।
“जगमोहन, तुम-तुम्हें यहां का पता कैसे चला?” राघव के होंठों से निकला। उसने भीतर से गेट खोला।
“देवराज चौहान तुम लोगों के पास है?”
“हां। घंटा भर पहले ही उसे होश...।”
“एक मिनट रुको।” कहकर जगमोहन पलटा और चंद कदमों के फासले पर खड़े त्यागी के पास पहुंचा-“देवराज चौहान का पता बताकर, तुमने बहुत मेहरबानी की। इस तरह की, ये हमारी पहली और आखिरी मुलाकात है।” जगमोहन के होंठ भिंचे हुए थे-“हमें तुम्हारी सहायता की जरूरत नहीं है। तुम हमारे दुश्मन हो और दुश्मन ही रहोगे। हम तुमसे पूरा हिसाब लेंगे वक्त आने पर, जो तुमने हमारे साथ किया है अब तक। अब हमारे मामले में दखल मत देना।”
“सोच लो।” त्यागी मुस्कराया-“मैं तो साफ मन से, इस मामले में तुम लोगों के साथ...।”
“हमें तुम्हारे साथ की जरूरत नहीं।”
“जल्दबाजी मत करो। मैं...।”
“चलो जाओ।” जगमोहन गुर्राया-“इस वक्त तो मैं तुम्हें इसलिए जाने दे रहा हूं कि तुमने मुझे देवराज चौहान का पता बताया है। दोबारा कभी हमारे रास्ते में नहीं आना। जो कर चुके हो, अभी तो उसका हिसाब हमने, तुमसे लेना है।”
“तो मैं जाऊं?”
“हां।”
“मैं चला गया तो फिर तुम लोगों की सहायता करने नहीं आऊंगा। मैं रानी ताशा और बबूसा के मामले में तुम्हारे बहुत काम आ सकता हूं। मुझे ये मामला आसान नहीं लगता।” त्यागी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“निकल जाओ त्यागी। हमें तुम्हारी जरूरत नहीं।” जगमोहन ने शब्दों को चबाकर कहा।
“मैंने तुम्हारी बात का बुरा नहीं माना।” वीरेंद्र त्यागी बोला-“अगर तुम्हें मेरी सहायता की जरूरत नहीं तो मुझे क्या पड़ी है, तुम्हारी सहायता करने की।” कहने के साथ ही त्यागी अंधेरे में पैदल ही आगे बढ़ गया।
जगमोहन उसे तब तक देखता रहा, जब तक कि वो निगाहों से ओझल नहीं हो गया।
राघव पास पहुंच कर बोला।
“कौन था वो?”
“इसने तुम लोगों को देवराज चौहान को ले जाते देखा और पीछा करके ये जगह देखी।”
“ओह। पर ये था कौन?”
“एक कमीना इंसान, जो मेरे मामले में दखल देने की चेष्टा में था, परंतु ये इतना कमीना है कि इसकी बात का किसी भी स्थिति में भरोसा नहीं किया जा सकता। तुम्हें इसके बारे में जानने की जरूरत नहीं।”
“ठीक है। नहीं पूछता।” राघव ने कहा।
“देवराज चौहान ठीक है?”
“हां। परंतु उसे हुआ क्या है। जब से उसे होश आया, वो चुप्प-सा है। पूछने पर भी इस बात का जवाब नहीं दे रहा कि ताशा-ताशा करता, नाइट सूट में नंगे पांव क्यों सड़कों पर दौड़ा फिर रहा...।”
“बहुत ज्यादा पी ली थी। अपने पर उसका काबू नहीं रहा। अब नशा उतर चुका होगा। भीतर चलो। मैं उसे लेने आया हूं।”
“पी ली थी। परंतु वो मुझे पिए तो नहीं लगा।”
“छोड़ो इन बातों को। भीतर चलो।” जगमोहन ने कहा और खुले गेट से भीतर प्रवेश करता चला गया।
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देवराज चौहान ड्राइंग रूप में कुर्सी पर बैठा था। शरीर पर वो ही नाइट सूट था।
जगमोहन जब वहां पहुंचा तो, देवराज चौहान पर निगाह पड़ते ही गहरी सांस ली।
देवराज चौहान ने भी उसे देखा। धर्मा और एक्स्ट्रा भी वहां मौजूद थे।
“ठीक हो?” जगमोहन ने पास पहुंचकर देवराज चौहान से पूछा।
देवराज चौहान ने हौले से सिर हिला दिया।
जगमोहन चंद पल देवराज चौहान को देखता रहा फिर गम्भीर स्वर में R.D.X. से बोला।
“तुम लोगों का धन्यवाद कि, देवराज चौहान का ख्याल रखा।”
“धन्यवाद छोड़।” एक्स्ट्रा बोला-“पर बात क्या है। क्यों देवराज चौहान सड़कों पर...।”
“बात वो ही है, जो हमेशा होती है।” जगमोहन ने मुस्कराकर कहा-“काफी ज्यादा पी ली थी। ये तो पता ही है कि जब नशा नचाता है तो कुछ नहीं चलता। ऐसे में देवराज चौहान सड़कों पर दौड़ने...।”
“तुम बात को टाल रहे हो।” राघव गम्भीर स्वर में बोला-“ये नशे में नहीं था।”
कुर्सी पर बैठा देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।
“वो नशा ही था। अब देख लो। नशा उतर गया तो कैसे आराम से बैठा...।”
“तो तुम हमें सही बात बताना नहीं चाहते?” धर्मा ने शांत स्वर में कहा।
“कुछ भी कह लो।” जगमोहन का स्वर सामान्य था।
“ताशा कौन है?”
“कोई भी नहीं है।” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान कुर्सी से खड़ा होता गम्भीर स्वर में कह उठा।
“मैं जानता हूं कि तुम लोग बखूबी समझ रहे हो कि कोई गहरा मामला है। परंतु ये हमारा मामला है। इसे हम ही देखेंगे। इस बारे में हम तुमसे कुछ कहना नहीं चाहते।”
“हमारी जरूरत हो तो कह दो।” एक्स्ट्रा ने कहा।
“नहीं, जरा-भी जरूरत नहीं।”
तभी कॉलबेल बजी।
एक पल के लिए सब ठिठककर रह गए।
फिर धर्मा आगे बढ़ा और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।
“हमें चलना चाहिए।” देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा।
“मैं भी ये ही चाहता हूं।”
एक्स्ट्रा और राघव से विदा लेकर दोनों बाहर निकले तो गेट पर धर्मा को बबूसा और धरा के साथ उलझे पाया। बबूसा कह रहा था कि राजा देव भीतर है, उसने गंध से ये बात जानी है, परंतु धर्मा इंकार कर रहा था कि यहां कोई राजा देव नहीं है। तभी देवराज चौहान और जगमोहन उनके पास पहुंच गए।
“ओह राजा देव।” बबूसा देवराज चौहान को देखते ही कह उठा-“मैंने गंध के सहारे आपको ढूंढ़ ही लिया। मुझे आपकी बहुत चिंता हो रही थी। मुझे डर था कि कहीं रानी ताशा से आपकी मुलाकात न हो जाए।”
धर्मा ने हैरानी से देवराज चौहान और जगमोहन को देखा।
“राजा देव-रानी ताशा, ये सब क्या हो रहा है।” धर्मा बोला-“कैसी गंध के सहारे...।”
“कार में बैठो बबूसा, धरा तुम भी।” देवराज चौहान ने सामने खड़ी कार को देखते हुए कहा।
बबूसा और धरा कार की तरफ बढ़ गए।
धर्मा की सवालिया निगाह अभी भी इन दोनों पर थी।
“सब ठीक है धर्मा।” देवराज चौहान मुस्कराकर बोला-“सड़क पर दौड़ते मुझे संभाल लेने का शुक्रिया।”
“लेकिन।” धर्मा ने कहना चाहा।
परंतु देवराज चौहान और जगमोहन सामने खड़ी कार की तरफ बढ़ गए।
उलझन में घिरा धर्मा गेट पर ही खड़ा रहा।
बबूसा और धरा, कार की पीछे की सीट पर बैठ चुके थे। जगमोहन ने ड्राइविंग सीट संभाली और कार आगे बढ़ा दी। देवराज चौहान बगल की सीट पर बैठा था।
“राजा देव।” बबूसा बोला-“ये देखकर मुझे खुशी हुई कि रानी ताशा से आपकी मुलाकात नहीं हुई। मुलाकात हो जाती तो जाने कैसा बुरा हो जाता। मैं तो कब से आपको गंध के सहारे तलाश करता फिर रहा था। तब मैं नहा रहा था जब रानी ताशा का फोन आया और आपने रानी ताशा से बात की। उसके बाद धरा ने मुझे बताया कि आप जगमोहन को बेहोश करके भाग निकले। मैं तो तभी से पागलों की तरह आपको ढूंढ़ता फिर रहा था।”
“मुझ तक पहुंचने में तुमने काफी मेहनत की बबूसा।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला।
“मैं तो आपका खास सेवक हूं राजा देव। आपकी सेवा करना ही तो मेरा काम है। मैंने आपसे कितना कहा था कि आपके रानी ताशा से फोन पर बात नहीं करनी है, परंतु आप नहीं माने। महापंडित ने रानी ताशा की आवाज में जादू भर रखा है जैसे। आप रानी ताशा की आवाज सुनते ही होश गंवा बैठते हैं। मैं समझ नहीं पा रहा कि महापंडित जाने क्या करना चाहता है। परंतु वो रानी ताशा का साथ पूरी तरह दे रहा है। आप महापंडित को सजा जरूर देना राजा देव। मैं तो बस इतना ही चाहता हूं कि आपको सदूर ग्रह का जन्म याद आ जाए। रानी ताशा की बेईमानी आपको पता चल जाए। आपको पता चल जाए कि रानी ताशा ने कैसे आपको धोखे से सदूर ग्रह से बाहर फेंका था। उसके बाद तो आप सब सम्भाल लेंगे राजा देव। आपका हुक्म किसी में भी टालने का साहस नहीं होगा। तब मुझे चैन मिल जाएगा।”
“पर मुझे तो कुछ भी याद नहीं आ रहा बबूसा।” देवराज चौहान ने कहा।
“ये ही तो चिंता से भरी समस्या है राजा देव। महापंडित का कहना है कि जब आप, रानी ताशा का चेहरा देख लेंगे तो तब आपको याद आना शुरू हो जाएगा। परंतु रानी ताशा आपके पास आ गई तो तूफान उठ खड़ा होगा। वो आपको अपने साथ जरूर ले जाना चाहेगी और वो पल खतरनाक होंगे। क्योंकि रानी ताशा के साथ सोमाथ को भेजा है महापंडित ने जो कि साधारण इंसान न होकर, महापंडित के द्वारा बनाया गया मशीनी मानव है। वो बहुत ताकतवर है और उसका मुकाबला करने में मुझे परेशानी होगी, क्योंकि महापंडित ने ऐसा ही कहा है।”
“पर बबूसा।” धरा बोली-“देवराज चौहान को जब तक रानी ताशा का चेहरा नहीं दिखेगा, तब तक इसे अपना वो जन्म याद कैसे आएगा। आमना-सामना तो होगा ही दोनों का।”
“ऐसा हुआ तो खतरनाक हालात सामने आ जाएंगे।” बबूसा ने चिंतित स्वर में कहा-“राजादेव उस जन्म में रानी ताशा के दीवाने रहे हैं। मुझे डर है कि कहीं इस बार भी राजा देव, रानी ताशा को देखते ही, रानी ताशा के दीवाने हो गए तो तब मुश्किल हालात सामने आ जाएंगे। राजा देव को उस जन्म की याद आनी रह जाएगी और रानी ताशा, राजा देव को अपने रूप जाल में उलझाकर, सदूर ग्रह पर वापस न ले जाए। वहां जाकर राजा देव को पहले का जन्म याद आया तो उसका कोई फायदा नहीं होगा। वो राजा देव को तो, सदूर पर ले ही गई। महापंडित वहां पर फौरन राजा देव के मस्तिष्क के उस हिस्से को साफ कर देगा, जहां पर पहले के जन्म की यादें मौजूद हैं। इस प्रकार रानी ताशा, राजा देव को वापस पा लेगी और राजा देव के साथ पहले की, की गई बेईमानी की सजा से भी मुक्त हो जाएगी। क्योंकि तब न तो राजा देव को कुछ याद आएगा और न ही सजा मिलेगी राजा देव से।”
“फिर तो तुम्हें कुछ करना चाहिए बबूसा।” धरा कह उठी।
“मेरे से जो बन पा रहा है, वो मैं कर रहा हूं, जो कर पाऊंगा, वो भी करूंगा। मैं राजा देव का सेवक हूं। राजा देव से प्यार करता हूं। परंतु महापंडित की करतूतों की वजह से मुझे परेशानी आ रही है। वो राजा देव का साथ दे रहा है। उसने मुझसे ताकतवर सोमाथ का निर्माण करके, रानी ताशा के साथ भेज दिया। अब किसी मौके पर रानी ताशा सामने आएगी तो सोमाथ भी साथ में होगा और मेरे लिए खतरा बढ़ जाएगा। मेरे पास ऐसा कोई उपाय नहीं है कि मैं राजा देव को भी बचा लूं और रानी ताशा को दूर रखते हुए, सोमाथ का भी मुकाबला कर सकूँ।”
“क्या पता सोमाथ तुमसे कमजोर हो बबूसा।” धरा ने कहा।
बबूसा ने होंठ भींच लिए।
“हो सकता है वो तुमसे डर जाए।” धरा पुनः बोली।
“ये नहीं हो सकता।”
“क्यों?”
“ये बात मुझे महापंडित ने बताई है और महापंडित कभी झूठ नहीं बोलता।” बबूसा कह उठा।
“क्या पता वो रानी ताशा का साथ देने के फेर में, झूठ बोल रहा हो।”
“महापंडित को जो बात करनी होती है, वो स्पष्ट तौर पर करता है। वह इस तरह झूठ का सहारा नहीं लेगा। अब वो रानी ताशा का साथ दे रहा है तो सबके सामने दे रहा है। चोरी से साथ नहीं दे रहा।”
“मुझे तो लगता है कि तुम्हें मानसिक रूप से कमजोर करने के लिए महापंडित ने सोमाथ के बारे में तुमसे ऐसा कहा।”
“मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं।” बबूसा ने सोच भरे स्वर में कहा-“तुम रानी ताशा को नहीं जानती, वो बहुत ही चालाक-मक्कार औरत है। वो अपना काम पूरा करना जानती है, जबकि राजा देव इन चालों से दूर रहकर अपने काम में व्यस्त रहने की आदत वाले हैं। इसी बात का मुझे डर है कि रानी ताशा कोई चाल न चल दे।”
धरा ने कुछ नहीं कहा।
“राजा देव।” चंद पलों बाद बबूसा बोला।
“हां।”
“जब रानी ताशा के साथ आपने फोन पर बात की तो क्या आप अपने पूरे होश गंवा बैठे थे?”
“मुझे कुछ भी याद नहीं रहा।” देवराज चौहान ने कहा।
“जगमोहन पर हमला किया तो तब भी पता नहीं था कि आप क्या कर रहे हैं।” बबूसा ने पूछा।
“नहीं पता था। पता होता तो मैं ऐसा करता ही क्यों?” देवराज चौहान ने गहरी सांस ली-“अपने होशाहवास में मैं जगमोहन पर हाथ नहीं उठा सकता। मुझे थोड़ा-सा याद है कि मैंने रानी ताशा से फोन पर बात की, उसके बाद मुझे कुछ भी याद नहीं। जब होश आया तो अपने को R.D.X. के पास मौजूद पाया।”
“R.D.X., वो लोग, जिस घर में आप थे?” बबूसा ने पूछा।
“हां।” फिर देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा-“तुम R.D.X. के यहां कैसे...।”
“वीरेंद्र त्यागी आया था।” जगमोहन के होंठ भिंच गए।
“त्यागी?” देवराज चौहान बुरी तरह चौंका।
“बंगले पर था, जब मैं तुम्हें ढूंढ़कर थका-हारा वापस पहुंचा।” उसके बाद जगमोहन ने त्यागी से वास्ता रखती सारी बात बताई-“इस प्रकार मैं तुम तक पहुंच सका और त्यागी को बोला कि अब वो इस मामले में दखल न दे और चला जाए। वो चला गया।”
“ये तो बहुत गलत हुआ। त्यागी ने हमारा ठिकाना देख लिया।” देवराज चौहान बोला-“उस जैसा मक्कार इंसान अब हमारे साथ कोई नई चाल चल सकता है।”
जगमोहन होंठ भींचे कार ड्राइव करता रहा।
“हमें ठिकाना बदलना होगा। नया बंगला खरीदना होगा।”
“इन हालातों में?” जगमोहन ने कहा।
“क्या मतलब?”
“अभी रानी ताशा का मामला सिर चढ़कर बोल रहा है। हम बुरी तरह उलझे पड़े हैं। ऐसे में नए बंगले को तलाश करना, उसे खरीदना, इन सब बातों में काफी वक्त लगेगा और रानी ताशा कभी भी सामने आ सकती है। बेहतर ये ही होगा कि पहले रानी ताशा का मामला खत्म हो जाए।”
“ये मामला मुझे आसानी से खत्म होता नहीं लगता जगमोहन।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“ये कोई डकैती या किसी दुश्मन का मामला नहीं है। ये एक ऐसी औरत का मामला है, जो खुद को दूसरे ग्रह से आया बताती है और मुझे वहां का राजा बताती है। मुझे वापस ले जाना चाहती है उस ग्रह पर। जबकि बबूसा की बात सुनें तो सिर और भी घूम जाता है। ये महापंडित और मेरी बातें बताने लगता है, ऐसी बातें कि कुछ समझ में नहीं आता कि मैं अचानक किस तूफान में आ फंसा हूं।”
“राजा देव। आप क्या सोचते हैं कि मैं गलत कह रहा हूं।” बबूसा बोला।
“तुम गलत नहीं हो। मुझे तुम पर विश्वास हो चुका है। परंतु मैं खुद को नहीं समझा पा रहा हूं कि मैं कैसे शिकंजे में फंस चुका हूं। समझ में नहीं आता कि ये मामला कैसे खत्म होगा।”
“अभी तो शुरू भी नहीं हुआ।” धरा कह उठी-“और तुम खत्म करने की बात कर रहे हो। शुरू तो तब होगा जब रानी ताशा सामने आएगी। जब तुम रानी ताशा का चेहरा देखोगे।”
“मैं।” जगमोहन एकाएक बोला-“मैंने रानी ताशा को देख लिया है।”
“कब?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
“तुम्हारी तलाश में मैं होटल सी-व्यू पर्ल में जा पहुंचा था, होटल का स्टाफ बनकर। बाथरूम चेक करने के बहाने मैंने कमरे में प्रवेश किया। मैंने सोमाथ को भी देखा। एक और युवती थी। और वो रानी ताशा थी, सबसे हसीन, बेहद खूबसूरत, लाजवाब, मैं तुम्हें बता नहीं सकता कि वो मुझे कितनी अच्छी लगी।”
देवराज चौहान ने गहरी सांस लेकर आखें बंद कर ली।
“वो कयामत है कयामत।” बबूसा कह उठा-“वो कभी राजा देव को भी अच्छी लगी थी, परंतु उसने राजा देव के साथ जो धोखा किया, वो मैं जानता हूं तुम नहीं जानते।”
कार बंगले पर पहुंची। अभी वो चारों कार से बाहर निकले थे कि भीतर से निकलकर दरवाजे पर नगीना आ खड़ी हुई। उसके चेहरे पर चिंता और परेशानी स्पष्ट नजर आ रही थी। वो आगे बढ़ती कह उठी।
“कहां चले गए थे आप सब लोग। मैं बंगले पर पहुंची तो यहां कोई भी नहीं था। जगमोहन का फोन भी बंगले में रखा था।” नगीना पास आ पहुंची-“कहां चले गए थे आप सब।”
“रानी ताशा का फोन आया था।” धरा बोली।
“क्या?” नगीना चौंकी-“फिर?”
“देवराज चौहान ने बात की।” धरा गम्भीर थी-“बात करते ही ये अपने होश खो बैठा। रानी ताशा उसे सी-व्यू पर्ल होटल में बुला रही थी। जगमोहन ने रोकना चाहा तो जगमोहन को बेहोश कर दिया। तब देवराज चौहान अपने होश में नहीं था। बबूसा नहा रहा था। देवराज चौहान नंगे पांव इसी हाल में भाग निकला बाहर।”
नगीना सन्न रह गई।
बाकी बात जगमोहन ने बताई कि कैसे, त्यागी के माध्यम से देवराज चौहान तक पहुंचा। इन्हीं बातों के दौरान वे सब भीतर पहुंचे कि देवराज चौहान और जगमोहन के कदम थम से गए।
बबूसा और धरा की निगाह हाल ड्राइंग रूम में मौजूद मोना चौधरी पर जा टिकी।
“मोना चौधरी?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“मैं बुलाकर लाई हूं।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा-“इस वक्त हम मुसीबत में हैं। रानी ताशा जाने क्या करना चाहती है। तो मिन्नो को मैंने अपनी सहायता के लिए बुला लिया।”
“इतनी जल्दी कैसे आ गई।” जगमोहन बोला-“ये तो दिल्ली में रहती है।”
“आज ये मुम्बई में अपने फ्लैट पर आई हुई थी।” नगीना बोली-“इत्तेफाक से मैं पहुंच गई।”
वे सब मोना चौधरी के पास पहुंचे।
“ये आपकी क्या लगती है?” धरा ने पूछा।
“बहन।” नगीना ने कहा।
“ओह। पर ये हमारी क्या सहायता करेगी।” धरा ने अजीब-से स्वर में कहा।
“ये मोना चौधरी है।” जगमोहन बोला।
“तो?”
“शायद तुम मोना चौधरी को नहीं जानती। नाम भी सुना नहीं होगा।”
“नहीं।”
“तो खामोश रहो।”
मोना चौधरी देवराज चौहान को देखकर मुस्कराई और बोली।
“बेला ने मुझे बताया कि आजकल तुम किस मुश्किल दौर से गुजर रहे हो।”
“सब ठीक है। मैं ये मामला खुद ही संभालना चाहता हूं।” देवराज चौहान ने भी मुस्कराकर कहा।
“ये आप क्या कह रहे हैं।” नगीना बोल पड़ी।
“मैं सही कह रहा हूं कि अब ये मामला मैं ही संभालूंगा।” देवराज चौहान गम्भीर हो गया-“पहले मैं इस सारे मामले को हल्के में ले रहा था। परंतु आज होश खो देने के बाद, जब मुझे होश आया तो समझ गया कि मुझे रानी ताशा को गम्भीरता से लेना होगा। अभी तक मैंने कुछ नहीं किया, परंतु अब मैं ही ये मामला देखूंगा।”
“ऐसे में मिन्नो हमारे साथ रहे तो आपको एतराज क्यों?” नगीना बोली।
“अगर मैं इस मामले को ठीक से नहीं संभाल सका तो फिर तुम मोना चौधरी को बुला सकती हो।”
नगीना ने उलझन भरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा।
“तुम परेशान मत होवो बेला। मैं किसी बात का बुरा नहीं मान रही।” मोना चौधरी ने मुस्कराकर कहा-“देवराज चौहान अगर ये मामला संभाल लेता है तो ठीक है, नहीं तो मुझे फोन कर देना, मैं आकर कोशिश कर लूंगी सब ठीक करने का।”
“तो मिन्नो को जाने दूं?” नगीना ने देवराज चौहान को देखा।
“खाना हमारे साथ खाकर जाना।” जगमोहन बोला।
“रात को महाजन दिल्ली से आ रहा है। हमें किसी काम पर पूना जाना है।” मोना चौधरी ने कहा-“इसलिए मैं खाने के लिए रुक नहीं सकती। बाय नगीना।” उसने नगीना के कंधे पर हाथ रखा-“जरूरत हो तो मुझे जरूर बुला लेना।”
नगीना ने सिर हिला दिया।
मोना चौधरी सबको बाय-बाय करती बाहर निकलती चली गई।
“तुम्हारी बहन तो बहुत अच्छी है।” धरा कह उठी।
सबने एक-दूसरे को देखा।
देवराज चौहान आगे बढ़कर सोफे पर जा बैठा।
“हमें अब इस मामले पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए।” देवराज चौहान बोला-“मुझे इस बात का एहसास हो चुका है कि रानी ताशा को हम हल्के में नहीं ले सकते। आज जैसे मैं होश खो बैठा। जगमोहन को बेहोश करके रानी ताशा की तरफ जिस हाल में भागा, वो नहीं होना चाहिए था। मुझे हैरानी है कि रानी ताशा फोन पर ही, अपनी आवाज से मेरे दिमाग पर काबू पा रही है। इस तरह तो वो मुझे बहुत ज्यादा परेशान कर देगी। मुझे उससे फोन पर बात नहीं करनी है अब।”
“मैंने तो तब भी तुम्हें फोन देने को मना किया था।” धरा ने कहा।
“हमें आगे के हालातों पर सोचना है।” देवराज चौहान का स्वर गम्भीर था-“रानी ताशा हम पर हावी होने का प्रयत्न कर रही है। हम अपने बचाव की खातिर छिपे पड़े हैं, या फिर ये कह ले कि हमने कुछ करने की कोशिश ही नहीं की। अगर किसी पर पहले ही हमला कर दिया जाए तो सामने वाले की, आगे बढ़ने की रफ्तार में कमी आ जाती है। हमें ऐसा ही कुछ करना होगा कि रानी ताशा अपनी हरकतें रोक ले और पीछे हट...।”
“पर रानी ताशा ने अभी तक किया ही क्या है?” जगमोहन बोला।
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
“उसने कुछ नहीं किया। उसका सिर्फ फोन आता है। तुम बात करते हो और होश गंवा बैठते हो। बाकी सब बातें तो बबूसा ने ही हमारे दिमाग में भरी है। अगर बबूसा हमारे पास न होता तो सब कुछ सामान्य ही था।”
“तुम्हारा मतलब कि मैंने गलत बातें कही हैं तुम्हें।” बबूसा ने शांत स्वर में कहा।
“मेरा ये मतलब नहीं था।” जगमोहन बोला-“मैं कुछ और कह रहा था देवराज चौहान से। तुम मतलब नहीं समझे।”
“माना कि रानी ताशा की तरफ से फोन आने के अलावा, दूसरी कोई बात नहीं हुई।” नगीना बोली-“परंतु रानी ताशा ने हमें परेशान कर रखा है। रानी ताशा का मामला हम पर हावी होता जा रहा है।”
“सबसे अहम बात तो ये है कि रानी ताशा हमें फोन क्यों करती है?” देवराज चौहान बोला।
“वो सी-व्यू पर्ल होटल में ठहरी है।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“भाभी कुछ घंटों पहले मैंने वहां जाकर उसे देखा है। वो सच में इंतेहाई खूबसूरत है। उस जैसी मैंने पहले कभी नहीं देखी।”
“तुमने कैसे देख लिया रानी ताशा को?” नगीना ने पूछा।
“होटल का कर्मचारी बनकर उसके कमरे में गया था।”
“अगर वो सब कुछ सच कहती है तो मुझे खुशी है कि वो इंतेहाई खूबसूरत है।” नगीना ने मुस्कराकर देवराज चौहान को देखा-“इनकी पसंद कभी भी हल्की नहीं हो सकती।”
“बेकार की बातें न करो नगीना।” देवराज चौहान बोला-“इस वक्त मैं गम्भीर हूं और...।”
“जितना तुम समझ रही हो, वो उससे भी ज्यादा खूबसूरत है।” बबूसा बोला-“वो सदूर ग्रह की सबसे खूबसूरत औरत है। ग्रह पर भी उस जैसी कोई नहीं और वो जो भी कह रही है, सच कह रही है। मैं इस बात का गवाह हूं और इस बात का भी गवाह हूं कि उसने बहुत बुरी तरह राजा देव को धोखा दिया था। मैंने देखा था, अपनी आंखों से देखा था, परंतु मैं उस वक्त कुछ नहीं कर सकता था। उन्हें रोक नहीं सकता था और उन्होंने राजा देव को ग्रह से बाहर फेंक दिया था। रानी ताशा तब सामने खड़ी ठहाके लगा रही थी। सेनापति धोमरा ने अपने तीन सहायकों के साथ राजा देव को उठाए पाइप में फेंक दिया। मैं सब देख रहा था।” बबूसा की आवाज स्वप्न से भरी थी-“उस वक्त मैंने रानी ताशा का वो हिला देने वाला रूप देखा था। वो ठहाके...राजा देव बहुत-बहुत कह रहे थे रानी ताशा को कि वो बहुत बड़ी भूल कर रही है ऐसा करके। ताशा-ताशा कहकर पुकारे जा रहे थे और रानी ताशा ठहाके लगाती जा रही थी। उन्माद उसके सिर पर सवार था। ऐसा पागलपन जो मैंने तब ही रानी ताशा में देखा था। वो नजारा मैं कभी भी नहीं भूल सकता। जब भी उस दृश्य के बारे में सोचता हूं तो मेरे शरीर में ठंडी सिहरनें दौड़ने लगती है। आंखें बंद कर लेता हूं कि जैसे मेरा दिमाग वो सब देखना भूल जाएगा। परंतु दिमाग देखता है। बार-बार देखता है। जब भी भूलने लगता हूं तो दिमाग याद दिला देता है वो कंपाने वाले लम्हे। राजा देव को ग्रह के बाहर फेंका जाना। रानी ताशा के ठहाके। ये सब कुछ देखकर मैंने कैसे सहन कर लिया। मेरे में तब जान ही नहीं बची थी कि मैं आगे बढ़ पाता, रानी ताशा को रुक जाने को कहता। मैं स्तब्ध था, शायद इसलिए कि रानी ताशा का नया रूप मेरे सामने था। राजा देव की जान रानी ताशा में बसती थी। ताशा के होंठों से आह भी निकले तो राजा देव तड़प उठते थे और उसी रानी ताशा ने राजा देव के साथ कैसा बुरा व्यवहार किया। राजा देव अगर अभी आपको वो वक्त याद आ जाए तो मैं जानता हूं कि आप अपने पर काबू नहीं रख पाएंगे और फौरन रानी ताशा की जान ले लेंगे। परंतु इस वक्त आप उस बच्चे की तरह हैं जिसे कुछ पता नहीं होता। जो हर बात से अंजान होता है। अगर मुझे आपका साथ मिले तो मैं रानी ताशा और सोमाथ का मुकाबला कर सकता हूं।” बबूसा के स्वर में दर्द था।
“कैसा साथ बबूसा?”
“आप जब रानी ताशा को देखें तो उसके दीवाने न हो जाएं। उस पर मोहित न हो जाएं। अपने होश कायम रखें। सिर्फ इतना ही साथ चाहिए कि आपका झुकाव रानी ताशा की तरफ न हो बल्कि उसे दुश्मन की तरह समझें।”
देवराज चौहान बबूसा को देखने लगा।
“जवाब दीजिए राजा देव। थोड़ा-सा साथ मांगा है आपका।” बबूसा आशा भरे स्वर में बोला।
“मैं हां कह दूं।” देवराज चौहान गम्भीरता स्वर में बोला-“और वक्त आने पर, रानी ताशा के सामने मैं अपने पर काबू न रख सका तो ये बहुत ही गलत बात हो जाएगी। परंतु मैं तुम्हारी बात याद रखूंगा और तुम्हारा साथ देने की पूरी कोशिश करूंगा। मैं खुद चाहता हूं कि रानी ताशा के सामने अपने होश कायम रखूं।”
“पता नहीं क्या होने वाला है।”
“हमें कुछ सोचना चाहिए कि हम रानी ताशा का मुकाबला कैसे करें?” जगमोहन बोला।
“रानी ताशा अभी तक सामने नहीं आई। उसने कुछ किया ही नहीं तो क्या सोचेंगे हम।” नगीना ने कहा।
“ये बात तो है।” धरा ने सिर हिलाया-“रानी ताशा ने अभी तक कुछ किया भी तो नहीं है।” धरा ने बबूसा के चेहरे पर नजर मारी-“ये सब तो हम बबूसा के कहने पर ही सोचे जा रहे हैं। उलझन में पड़े हैं। परंतु मैं बबूसा की बातों की हकीकत समझ सकती हूं क्योंकि मैं डोबू जाति तक जा पहुंची थी। वो बुरा वक्त मैं कभी नहीं भूल सकती। जोगाराम की बुरी मौत को मैंने
अपनी आंखों से देखा था।” धरा ने झुरझुरी ली-“मेरा दिमाग खराब हो गया था जो मैं उस तरफ चली गई। मैं मौत को बहुत करीब से देखकर लौटी तो डोबू जाति वाले मेरी मां तक पहुंच कर मां को अपने विशिष्ट अंदाज में मार चुके थे। चक्रवर्ती साहब और प्रकाश को मेरे सामने मारा। अगर बबूसा ने मुझे बचाया न होता तो आज मैं भी जिंदा नहीं होती। उस वक्त की याद आते ही मेरा रोम-रोम कांप उठता है।”
“तुम्हें कुछ नहीं होगा।” बबूसा बोला-“मैं तुम्हारे साथ हूं। परंतु अब डोबू जाति के हालात बदल चुके हैं। वहां पर रानी ताशा ने अपना साम्राज्य फैला दिया है। सब कुछ रानी ताशा के काबू में है। परंतु ये ज्यादा देर तक नहीं रहेगा। मेरे कहने पर सोलाम, मुम्बई में मौजूद डोबू जाति के उन योद्धाओं को इकट्ठा कर चुका है, जो तुम्हें मारने के लिए भेजे गए थे। सोलाम उन्हें बता रहा है कि रानी ताशा ने डोबू जाति को जीत लिया है। वहां के हर मुख्य आदमी को मार दिया गया है। सोलाम की बात पर वो जरूर यकीन करेंगे उसके बाद सोलाम मेरे कहे मुताबिक डोबू जाति की तरफ उन सब योद्धाओं के साथ चल देगा और किसी खास जगह पर रुककर मेरा इंतजार करेगा। यहां से फुर्सत पाकर जब मैं उनके पास पहुंच जाऊंगा तो हम सब मिलकर डोबू जाति में मौजूद, रानी ताशा के आदमियों को खत्म करेंगे और डोबू जाति को पहले की तरह आजाद कर देंगे। मैं बचपन से वहीं रहा, वहीं बड़ा हुआ। मुझे ये पसंद नहीं कि डोबू जाति पर रानी ताशा राज्य करे।”
“पर तुम तो यहां हो। वहां कैसे जाओगे?” धरा बोली।
“यहां का मामला खत्म होने के बाद उधर का रुख करूंगा। डोबू जाति में अगोमा तारों वाले कमरे में, सदूर ग्रह के दिए उन यंत्रों की देखभाल करता है, जिससे दूर मौजूद लोगों से बात की जाती है। अगोमा और सोलाम उन्हीं यंत्रों के द्वारा आपस में सम्पर्क में रहते हैं। जब मुझे जाना होगा तो मैं अगोमा से यंत्र पर बात करके जान लूंगा कि सोलाम योद्धाओं के साथ कहां पर मौजूद है। रानी ताशा डोबू जाति पर काबू पाए नहीं रख सकती।”
“ये बाद की बातें हैं।” जगमोहन बोला-“अभी तो इधर के हालातों को देखना है।”
“मेरे ख्याल में।” नगीना गम्भीर स्वर में बोली-“पहले देख लेते हैं कि रानी ताशा क्या करती है सामने आकर।”
“वो सारा मामला एक ही बार में खत्म कर देगी।” बबूसा बोला-“राजा देव को अपने साथ ले जाएगी। जो भी रोकने की कोशिश करेगा, सोमाथ उसे टिकने नहीं देगा। सम्भव है रानी ताशा के साथ सदूर ग्रह के और लोग भी हों। उनके पास जोबिना (हथियार) होगा तो वो चंद पलों में सबको राख का ढेर बना देंगे। रानी ताशा को सिर्फ राजा देव चाहिए। वो अपनी चाहत पूरी करने के लिए कुछ भी कर सकती है। किसी की भी जान ले सकती है।”
“तो फिर क्या करें बबूसा?” नगीना ने पूछा।
“मैं बताऊं।” धरा बोली-“हम चुपचाप मुम्बई से दूर निकल जाते हैं। किसी को पता नहीं चलेगा।”
“पता चल जाएगा।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला-“सदूर ग्रह पर बैठा महापंडित, अपनी मशीनों से बात करके पता लगा लेगा कि राजा देव पृथ्वी ग्रह पर कहां पर हैं और वो रानी ताशा को बता देगा। रानी ताशा फिर वहीं पहुंच जाएगी, जिस शहर में हम होंगे और ये ही हालात फिर पैदा हो जाएंगे। महापंडित की मौजूदगी में हम रानी ताशा की निगाहों से बचे नहीं रह सकते। रानी ताशा राजा देव को ढूंढ़ रही है। वो कभी भी ढूंढ़ लेगी। महापंडित की मशीनों ने राजा देव के बारे में बता दिया तो वो रानी ताशा से कह देगा कि वहां पर राजा देव मौजूद हैं।”
“तुम्हारा मतलब कि रानी ताशा से सामना हर हाल में होगा।” जगमोहन ने कहा।
“इस बात से बचा नहीं जा सकता।” बबूसा ने सिर हिलाया-“रानी ताशा खाली हाथ वापस नहीं जाने वाली। वो जो चाहती है, पा ही लेती है। पीछे हटना उसने कभी नहीं सीखा। रानी ताशा को राजा देव चाहिए तो राजा देव को वो लेकर ही रहेगी।”
“जबर्दस्ती?” नगीना का चेहरा कठोर हो गया।
“हां और रानी ताशा को कोई नहीं रोक सकता। अब तो सोमाथ जैसा ताकतवर इंसान साथ में है उसके। मैं रानी ताशा की आदत को अच्छी तरह जानता हूं फिर ये तो राजा देव का मामला है। वो अपना सोचा पूरा करके रहेगी।”
“मतलब कि देवराज चौहान को सदूर ग्रह पर ले जाएगी?” जगमोहन का स्वर कठोर हो गया।
“अवश्य।”
“मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।” जगमोहन गुर्रा उठा।
“तुम कुछ नहीं कर सकते। तुमने शायद मेरी बातों को ध्यान से सुना नहीं कि उसके साथ सोमाथ है। उसके साथ अपने आदमी भी जरूर होंगे, और उनके पास जोबिना होगा, जो पलों में सामने वाले का राख कर देता है। अब तो डोबू जाति भी रानी ताशा के कब्जे में है। डोबू जाति के योद्धाओं को भी वो इस्तेमाल कर सकती है, परंतु मुझे नहीं लगता कि वो डोबू जाति के योद्धाओं को इस्तेमाल करेगी। वो खुद ही सोमाथ और अपने लोगों के सहारे सब संभाल लेगी।”
देवराज चौहान ने गम्भीरता में डूबे सिगरेट सुलगाई।
“हमें पहले ही कुछ इंतजाम करके रखना होगा कि ऐसा वक्त आए तो उनका मुकाबला कर सकें।” जगमोहन कठोर स्वर में कहा।
तभी देवराज चौहान बबूसा से बोला।
“ये बात पक्की है कि जब मैं रानी ताशा को देखूंगा तो धीरे-धीरे मुझे सदूर ग्रह की याद आनी शुरू हो जाएगी?”
“महापंडित ने ऐसा ही कहा था।”
“वो गलत भी कह सकता है?”
“नहीं।” बबूसा दृढ़ स्वर में बोला-“महापंडित झूठ नहीं बोलता।”
“तो इसका एक रास्ता है मेरे पास।”
“क्या?” नगीना के होंठों से निकला।
“रानी ताशा सी-व्यू पर्ल होटल में ठहरी है। हम वहां नजर रख सकते हैं। वो कभी तो बाहर निकलती होगी। ऐसे में मैं उसे आसानी से देख सकता हूं।” देवराज चौहान ने कहा-“सम्भव है, रानी ताशा को मुझ तक पहुंचने में वक्त लग जाए और तब तक मुझे सदूर ग्रह की कुछ बातें याद आ जाएं।”
वो सब एक-दूसरे को देखने लगे।
“ये अच्छा आईडिया है।” धरा कह उठी।
“ये ठीक रहेगा।” जगमोहन के होंठों से निकला-“ये हमारे दिमाग में पहले क्यों न आया?”
“तो हमें रानी ताशा की सही स्थिति मालूम करनी होगी।” देवराज चौहान ने कहा।
“उसकी सही स्थिति शायद अभी हमें पता चल जाएगा।” नगीना मोबाइल निकालते बोली-“प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज ने कहा था कि वो रानी ताशा पर नजर रखेगा। उससे पूछा जा सकता है।” नगीना ने नम्बर मिलाए। फोन कान से लगा लिया।
सबकी निगाह नगीना पर थी।
“हैलो।” उधर से अर्जुन भारद्वाज की आवाज नगीना के कानों में पड़ी।
“अर्जुन साहब।” नगीना बोली-“आप इस वक्त कहां पर हैं?”
“होटल सी-व्यू पर्ल में। रानी ताशा के सामने वाला कमरा लेकर, रानी ताशा के कमरे पर नजर रखे हूं।”
“रानी ताशा के सामने वाला कमरा?”
“हां। क्यों क्या बात है?”
“आपके कमरे में रहकर रानी ताशा को देखा जा सकता है?”
“जरूर देखा जा सकता है अगर वो कमरे के दरवाजे पर आती है तो, परंतु बात क्या है?”
“मैंने आपको बताया था कि अगर देवराज चौहान, रानी ताशा के चेहरे को देख लेता है तो उसे सदूर ग्रह की बातें याद आनी शुरू हो जाएंगी।” नगीना ने कहा-“इसलिए देवराज चौहान चुपके से रानी ताशा को देखना चाहता है।”
“समझा।” उधर से अर्जुन भारद्वाज की आवाज आई-“ऐसा है तो देवराज चौहान रानी ताशा के कमरे में जाकर, रानी ताशा को देखकर, वहां से भागकर निकल सकता है।”
“ऐसा करना खतरनाक होगा। बबूसा कहता है कि रानी ताशा को ठीक सामने पाकर, देवराज चौहान होश खो सकता है। आज ही बहुत गड़बड़ हो गई। रानी ताशा का फोन आया। देवराज चौहान ने सुना और...।” नगीना ने सब कुछ बताया।
अर्जुन की जवाब में आवाज नहीं आई।
“अर्जुन जी...।” नगीना ने खामोशी पाकर कहा।
“सुन रहा हूं। सोच रहा हूं। तो आप चाहती हैं कि देवराज चौहान यहां मेरे पास आ जाए।”
“हां। वहां से मौका मिलने पर आसानी से वो रानी ताशा को देख सकेगा।”
“ख्याल बुरा नहीं है, पर खतरा भी है। रानी ताशा की नजर भी इधर पड़ सकती है।” अर्जुन का सोच भरा स्वर कानों में पड़ा।
“फिर भी ये रास्ता बढ़िया है।”
“जैसा आप चाहें नगीना जी। मुझे कोई एतराज नहीं।”
“तो रात गहरी होते ही हम आते हैं।”
“हम-हम-कौन?”
“हम सब...।”
“ये गलत होगा। ज्यादा लोगों की वजह से बात बिगड़ सकती है। मेरे साथ पहले से ही नीना है। आप सब कमरे में आ गए तो किसी तरह की भी गड़बड़ हो सकती है, जबकि ये काम खामोशी से होना चाहिए। वो लोग मुझे और नीना को जानते हैं, देख चुके हैं। हमें बहुत सतर्कता से रहना पड़ रहा है। मेरी सलाह है कि सिर्फ देवराज चौहान ही मेरे पास आए।”
नगीना एकाएक कुछ न कह सकी। फिर बोली।
“आपकी बात सही है, परंतु अगर देवराज चौहान रानी ताशा को देखकर अपने होश गंवा देता है तो उसे संभालना भी पड़ेगा। ऐसे में हम सब वहां होते तो ज्यादा बेहतर होता।”
“संभालने के लिए मैं हूं, नीना है। आप देवराज चौहान को अकेला ही भेजिए।”
“ये फैसला मैं अकेले नहीं ले सकती। बात करके आपको दोबारा फोन करती हूँ।”
“ठीक है।”
नगीना ने फोन बंद किया और अर्जुन भारद्वाज की सारी बात बताई।
“राजा देव को मैं अकेले नहीं जाने दूंगा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“रानी ताशा का चेहरा देख लेने पर, राजा देव को कुछ भी हो सकता है। ऐसे में रानी ताशा उसे देख लेगी तो, मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी।”
“अर्जुन तब देवराज चौहान को...।”
“ये मामला तुम लोगों के बस का होता तो मैं चिंता ही क्यों करता।” बबूसा ने चिंतित स्वर में कहा।
“मैं देवराज चौहान के साथ चला जाता हूं।” जगमोहन ने कहा।
“आप कुछ कहिए।” नगीना ने देवराज चौहान से कहा।
“मेरे पास कहने की कुछ नहीं है। देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला-“क्योंकि मैं नहीं जानता कि रानी ताशा को देखकर मुझ पर क्या असर होगा या कुछ भी नहीं होगा। क्या पता आने वाला वक्त कैसा हो।”
“मैं तुम्हारे साथ चलूंगा।” जगमोहन बोला।
“जैसी तुम्हारी इच्छा मैं...।”
“तुम नहीं, मैं राजा देव के पास रहूंगा।” बबूसा ने कहा-“वो जगह बहुत खतरनाक होगी। क्योंकि सामने के कमरे में रानी ताशा मौजूद होगी। राजा देव और रानी ताशा इतने करीब होंगे कि, मुझे समझ में नहीं आता कि तब क्या हो जाए। क्या पता महापंडित की मशीनें बता दें कि राजा देव कहां हैं। महापंडित रानी ताशा को बता दे। वहां पर मैं राजा देव को अकेला नहीं छोड़ सकता। हालात खतरनाक रुख की तरफ मुड़ सकते हैं।” सबकी नजरें मिलीं।
“बबूसा ठीक कहता है।” धरा बोली-“इसे ही देवराज चौहान के पास होना चाहिए। कुछ हुआ तो ये ही सब ठीक करने की कोशिश कर सकता है। ये हालातों को सबसे बेहतर जानता है।”
चंद पलों की खामोशी के बाद जगमोहन ने कहा।
“ठीक है। बबूसा, देवराज चौहान के साथ जाएगा।”
“अभी रात के दस बज रहे हैं।” नगीना बोली-“देवराज चौहान को रात-रात में ही अर्जुन के पास पहुंच जाना चाहिए।”
“रात एक बजे मैं कार पर देवराज चौहान और बबूसा को होटल के बाहर छोड़ दूंगा।”
“तो मैं अर्जुन को प्रोग्राम बता दूं?” नगीना ने पूछा।
“कह दो।” देवराज चौहान सोचों में डूबा था।
नगीना अर्जुन भारद्वाज को फोन लगाने लगी। बात हुई प्रोग्राम बता दिया।
तभी धरा कह उठी। “भगवान न करे, जैसा मैं सोच रही हूं अगर वैसा हो गया तो तब क्या होगा?”
“क्या सोच रही हो तुम?” नगीना ने उसे देखा।
“अर्जुन भारद्वाज, रानी ताशा के सामने वाले कमरे में है। देवराज चौहान और बबूसा वहां जाते हैं। कमरे के सामने पहुंचते ही हैं तो तभी रानी ताशा अपने कमरे से बाहर निकले और देवराज चौहान को देख ले तो?”
पल भर के लिए सब थम से गए। एक-दूसरे को देखने लगे।
“ऐसा हो, सम्भव नहीं लगता।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“ऐसा इत्तेफाक लाख में से एक परसेंट हो सकता है जो कि नहीं होगा। तब रात के दो बज रहे होंगे। ऐसे में कोई दरवाजा खोलकर बाहर क्यों निकलेगा?”
“ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता।” जगमोहन बोला-“ऐसा हो जाने का चांस बहुत कम है। इतना रिस्क तो हमें लेना ही होगा। अगर हम इस तरह अपनी कोशिश में सफल हो जाते हैं, देवराज चौहान रानी ताशा का चेहरा देख लेता है तो हमारी काफी समस्या हल हो जाएगी, अगर देवराज चौहान को सदूर ग्रह का जन्म याद आ जाता है तो...।”
“जरूर याद आएगा। महापंडित ने ऐसा ही कहा है।” बबूसा कह उठा।
जगमोहन सबके चेहरों पर नजर मार कर बोला।
“रात एक बजे मैं, देवराज चौहान और बबूसा होटल सी-व्यू पर्ल रवाना होंगे।”
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‘राजा देव।’ रानी ताशा बेड पर लेटी बड़बड़ा उठी-‘तुम कहां हो राजा देव। मेरे देव। तुमने तो मेरे पास आने को कहा था, तुमने कहा था कि तुम आ रहे हो, तुम तो हमेशा ही अपना वादा निभाते हो। अपना कहा कभी नहीं भूलते, फिर आते क्यों नहीं? मैं तुम्हारे बिना तड़प रही हूं। सदूर ग्रह पर तुम मुझे कितना प्यार किया करते थे। वो प्यार मैं कभी नहीं भूल सकती। इस प्यार का एहसास मुझे तब हुआ जब मैंने तुम्हें ग्रह से बाहर फेंक दिया देव।’ रानी ताशा बड़बड़ा रही थी। उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े-‘मैं बहुत बड़ी भूल कर बैठी। तीसरे ही दिन मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया। मैं सेनापति धोमरा की बातों में फंस गई थी। उसकी बातों में आ गई। तब वो किले की रखवाली कर रहा था और तुम लम्बे वक्त से पोपा का निर्माण करने के लिए गए हुए थे। मैंने तुम्हें खो दिया था राजा देव। मेरे प्यारे देव, जब मुझे इस बात का एहसास हुआ तो, मैं पागल हो गई। तुम्हें वापस भी नहीं ला सकती थी। तब मुझे पता चला कि मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूं। तुम ही मेरे प्यार हो। तुम्हारे बिना मैं वक्त नहीं बिता सकती। मुझे हर समय तुम चाहिए। अपने आस-पास, मुझे तंग करते, मुझसे शरारत करते। तुम्हारे बिना मैं कुछ भी नहीं। तब सबसे पहले मैं तलवार उठाकर धोमरा के पास गई और उसका गला कटा डाला। उसी की बातों में फंसकर मैं इतनी भूल कर बैठी थी परंतु क्या फायदा, तुम तो हमेशा के लिए चले गए थे। मेरे दिन-रात इतने भारी थे कि काटे, कट नहीं रहे थे। मैं शायद मर ही जाती, परंतु जब मैंने धोमरा को मारा तो तब महापंडित ने मुझे हौसला दिया कि तुम जिंदा हो शायद दोबारा मैं तुम्हें पा सकूं। महापंडित के ये शब्द मेरे लिए बहुत कीमती थे। मैं इसी सहारे जीने लगी मैंने बार-बार तीन जन्म बदले, महापंडित ने हर बार मुझे ताशा के रूप में, रानी के रूप में किले में बनाए रखा। बहुत कष्ट सहा, तुम्हारी याद देव। महापंडित हर जन्म में मुझे बताया करता था कि तुम बार-बार पृथ्वी पर जन्म ले रहे हो। सदूर ग्रह की बातें तुम भूल चुके हो। आह-मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहती हूं देव। तुमसे माफी मांगना चाहती हूं। तुम्हें अपने साथ वापस सदूर ग्रह पर ले जाना चाहती हूं। तुम्हारे साथ मैं फिर वही प्यार की दास्तान दोहराना चाहती हूं। अब मैं तुम्हें बहुत प्यार करूंगी। कोई भूल नहीं करूंगी। मेरी सब गलतियों को माफ कर दो देव। मैं पहले ही तुम्हारे बिछोह में बहुत दर्द सह चुकी हूं। देखो मैं तुम्हें लेने के लिए, तुम्हारे ही बनाए पोपा पर सवार होकर सदूर ग्रह से पृथ्वी पर आई हूं। शायद पोपा तुमने अंजाने में ही बना दिया होगा कि उस पर बैठकर कभी तुम्हें ही ढूंढ़ने निकलूंगी। आ जाओ देव, अब आ भी जाओ। और इंतजार नहीं होता।’ बेड पर लेटी रानी ताशा अपने ही ख्यालों में गुम बड़बड़ाए जा रही थी। आंखों से रह-रहकर आंसू बह रहे थे। इस हाल में उसका खूबसूरत-मासूम चेहरा और भी आकर्षक हो गया था। सुर्ख लिपस्टिक में लिपटे होंठ कंपकंपा से रहे थे।
तभी सोमारा की आवाज कानों में पड़ी।
“रानी ताशा।”
रानी ताशा ख्यालों से बाहर निकली। बेड के पास खड़ी सोमारा को देखा।
“आप रो रही हैं।” सोमारा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“देव नहीं आया अभी तक। उसने आने को कहा था कि वो आ रहा है।” रानी ताशा ने कांपते स्वर में कहा।
“बहुत जल्दी उससे आपकी मुलाकात हो जाएगी।” सोमारा ने प्यार से कहा।
“ऐसे ही कहती है तू।”
“सच कहती हूं। विजय बेदी, राजा देव को ढूंढ़ने के लिए सुबह शाम भटक रहा है। कुछ देर पहले ही वो सुबह का गया वापस लौटा है। वो कहता है शायद कल तक राजा देव का पता चल जाए।”
“सच।” रानी ताशा फौरन खुशी से उठ बैठी-“सच कह रही है सोमारा।”
“हां रानी ताशा, बेदी ने...।”
“मुझे रानी ताशा मत कहा कर। कितनी बार तुझे कहा है कि ताशा कह। हम सहेली हैं।”
“ठीक है, ताशा अब खाना खा लो। विजय बेदी ने होटल वालों को खाना लाने को कह दिया है। आता ही होगा।”
रानी ताशा ने गालों पर लुढ़के आंसुओं को साफ किया। उठी और बेदी को देखा।
बेदी सोफे पर बैठा उसे ही देख रहा था। सोमाथ भी एक तरफ बैठा था।
“सच में तुम कल तक राजा देव का पता लगा लोगे?” रानी ताशा ने बेदी से पूछा।
“आशा तो है।” विजय बेदी ने कहा-“एक आदमी ऐसा मिला है जो देवराज चौहान के साथी जगमोहन का पता जानता है। वो कहता है कि देवराज चौहान और जगमोहन एक साथ ही रहते हैं। परंतु इसमें कुछ खर्चा होगा।”
“कैसा खर्चा?”
“वो आदमी जगमोहन का पता बताने का, दो लाख रुपया मांगता है।” बेदी ने कहा।
“तो दे दो उसे।” रानी ताशा ने व्याकुल स्वर में कहा।
“मैं जानता था कि आप दो लाख रुपया देने को तैयार हो जाएंगी। इसी कारण मैंने उससे कल मिलने को कहा है।”
“अभी पैसा ले जाओ। अभी उससे पूछो कि...।”
“आज कुछ नहीं हो सकेगा। मैं अपनी राम कहानी बताने से रहा कि कैसे मैंने उसे ढूंढ़ा। बीच में दो लोग और भी हैं। वो आज नहीं कल ही मिल पाएगा।” बेदी का स्वर शांत था-“ऐसे काम जल्दी में नहीं होते।”
रानी ताशा सोफे पर आ बैठी। सोमारा पास में बैठ गई।
“तो कल तुम मुझे राजा देव तक पहुंचा दोगे न?”
“आशा तो है। आपसे ज्यादा मुझे जल्दी है। मैं अपना बाकी का पंद्रह लाख लेकर, सिर में फंसी गोली को ऑपरेशन से निकलवा लेना चाहता हूं। वो मेरे जीवन पर लटकती तलवार की तरह है। गोली ने अपनी जगह छोड़ी तो सिर में जहर फैल जाएगा और मैं मर जाऊंगा। पर मैं मरना नहीं चाहता। डॉक्टर वधावन इस ऑपरेशन को...।”
“अपनी बातें हमें मत सुनाओ।” सोमारा कह उठी-“रानी ताशा वैसे ही बहुत परेशान हैं।”
विजय बेदी ने तुरंत मुंह छुपाया और बड़बड़ा उठा।
“साले खुद को दूसरे ग्रह से आया बताते हैं। जब मैं तुम लोगों की बकवास सुन रहा हूं तो तुम लोग मेरी बात क्यों नहीं सुन सकते। भाड़ में जाओ। मैंने नोट लेकर ऑपरेशन कराने निकल जाना है। तुम्हारी परवाह ही कौन करता है।”
“सोमारा।” रानी ताशा ने तड़प भरे स्वर में कहा-“राजा देव को अब तक आ जाना चाहिए था।”
“राजा देव को बबूसा रोक रहा होगा। वो आपसे विद्रोह कर चुका है।”
“तुम्हारा तो पति है बबूसा, तुम उसे...।”
“इस जन्म में वो अभी तक आजाद है। शादी नहीं हुई। हम दोनों आमने-सामने भी नहीं पड़े। एक दूसरे को देखा भी नहीं।”
“ओह, फिर तो बबूसा तुम्हें भूल चुका होगा।”
“वो मुझे भूल नहीं सकता।” सोमारा ने गम्भीर स्वर में कहा-“भैया (महापंडित) ने उसका जन्म कराते समय मेरी याद उसके दिमाग में डाल दी थी। भैया ने बताया था ये। वो मुझे जरूर याद करता होगा।”
“तो बबूसा सामने पड़े तो उसे समझाना कि विद्रोह त्याग दे। वरना अंजाम बुरा होगा।”
“जरूर समझाऊंगी ताशा।” सोमारा एकाएक मुस्करा पड़ी-“एक बार उसे सामने तो पड़ने दीजिए।”
“बबूसा ने अगर विद्रोह न किया होता तो मेरी राह कितनी आसान हो जाती सोमारा।”
“राह अब भी कठिन नहीं है। आपके साथ सोमाथ है, होटल के दूसरे कमरे में ठहरे आपके दूसरे लोग भी हैं। उनके पास जोबिना है। आपकी राह में तो कोई रुकावटें डाल ही नहीं सकता।”
“परंतु राजा देव का पता नहीं मालूम हो पा रहा।”
“विजय बेदी पर भरोसा रखिए। वो पूरी कोशिश कर रहा है।” सोमारा बोली।
रानी ताशा ने हाथ उठाकर मोबाइल उठाया और बेचैनी से नम्बर मिलाने लगी।
“किसे ताशा?”
“राजा देव से पूछंगी कि वो आए क्यों नहीं?” रानी ताशा ने व्याकुलता से कहा।
रानी ताशा ने फोन कान से लगा लिया।
दूसरी तरफ बेल जाने लगी थी। तभी नगीना का स्वर कानों में पड़ा।
“कहो रानी ताशा?”
पल भर के लिए रानी ताशा ठिठक-सी गई। फिर बोली।
“कौन हो तुम?”
“नगीना, देवराज चौहान की पत्नी।”
“ओह, पृथ्वी ग्रह पर तुम राजा देव की पत्नी हो।” रानी ताशा गम्भीर स्वर में बोली।
“वो राजा देव नहीं, देवराज चौहान है।” नगीना की तीखी आवाज कानों में पड़ी।
“वो राजा देव हैं। मेरे देव, मेरा सब कुछ, मैं उन्हें...”
“वो मेरे पति हैं।”
“पहले मेरा था। मेरा उस पर ज्यादा हक है। मैं राजा देव को वापस लेने आई हूं।” रानी ताशा ने बेचैन स्वर में कहा-“राजा देव को मेरे हवाले कर दो। मैं उनके बिना नहीं रह...”
“देवराज चौहान अगर कभी तेरा था तो, वो वक्त बीत चुका है। आज देवराज चौहान मेरा है। तुम देवराज चौहान को मेरे से नहीं छीन सकती। वापस चली जाओ यहां से। तुम्हें देवराज चौहान नहीं...”
“वापस जाऊंगी जरूर, परंतु राजा देव के साथ।”
“ये तुम्हारी भूल है कि तुम देवराज चौहान को ले जा सकोगी। वो मेरा पति है।”
रानी ताशा के कोमल चेहरे पर कठोरता जगह बनाने लगी।
“वो राजा देव हैं बेवकूफ। सदूर ग्रह का राजा। वो यहां के नहीं हैं। इस दुनिया के नहीं हैं। उन्हें वापस जाना ही होगा। पृथ्वी ग्रह पर राजा देव का मन भी नहीं लग रहा होगा। वो यहां रहने को मजबूर हैं क्योंकि उनके पास पोपा नहीं है, जिस पर सवार होकर वे सदूर ग्रह पर पहुंच सकें। मैं पोपा पर सवार होकर पृथ्वी ग्रह पर आई हूं। राजा देव पोपा में बैठकर मेरे साथ सदूर ग्रह जाएंगे।”
“बकवास कर रही हो तुम। देवराज चौहान को तुम्हारी कोई भी बात याद नहीं, वो...”
“सब याद आ जाएंगी। एक बार राजा देव मेरे को देख लेंगे तो सदूर ग्रह की यादें उनके दिमाग में आने लगेंगी। एक बार उन्हें सदूर ग्रह की और मेरी यादें याद आने की देर है कि वो दौड़े चले आएंगे अपनी ताशा के पास। तुम नहीं जानती कि राजा देव मुझे बांहों में भरकर...”
“अगर वो वक्त था तो वो बीत चुका है। अब वो वक्त वापस नहीं आएगा। तुम...”
“मैं वो वक्त वापस लाने के लिए तो पृथ्वी पर आई हूं। वो वक्त पलक झपकते ही वापस लौट आएगा। मैं राजा देव को वापस सदूर ग्रह पर ले जाऊंगी। हम फिर से उसी वक्त में खो जाएंगे। बल्कि इस बार तो वक्त और भी हसीन होगा। मैं प्यार में राजा देव का पूरा साथ दूंगी और इस बात को कभी नहीं भूलूंगी कि राजा देव को वापस लाने के लिए मुझे पृथ्वी ग्रह का सफर करना पड़ा था। अब मैं कोई भूल नहीं करूंगी।”
“तुम जानती हो कि इंसान के जन्म होते हैं। कभी एक तो कभी दूसरा।” नगीना की आवाज कानों में पड़ी।
“जानती हूं। इंसान की जिंदगी कई जन्मों में बंटी रहती है। सब कुछ शरीर पर निर्भर होता है। शरीर जब तक चलता है तब तक एक जीवन होता है। बूढ़ा होकर शरीर खत्म हो जाता है तो जीवन को एक नए शरीर में प्रवेश करा दिया जाता है, वो दूसरा जीवन कहलाता है, परंतु वो पहले जन्म का ही हिस्सा होता है।”
“पृथ्वी ग्रह पर ऐसा नहीं होता। एक जीवन के साथ, शरीर के साथ सब कुछ खत्म हो जाता है। दूसरा जीवन यहां नहीं होता। हर जीवन को एक ही माना जाता है। इस जन्म में देवराज चौहान मेरा पति है।”
“क्या पृथ्वी पर पूर्वजन्म और पुनः जन्म वाली बातें नहीं होती?” रानी ताशा ने पूछा।
“होती हैं, परंतु कई लाखों में एक। पुनः जन्म के पीछे कई वजहें होती हैं। परंतु ऐसा नहीं होता, जैसे कि तुम करना चाह रही हो कि कई जन्मों पहले देवराज चौहान तुम्हारी पति था तो आज भी उस पर तुम्हारा हक हो।”
“राजा देव पृथ्वी ग्रह के नहीं हैं। सदूर ग्रह के हैं।”
“देवराज चौहान पृथ्वी का वासी ही है।” नगीना का दृढ़ स्वर रानी ताशा के कानों में पड़ा-“तुम जिस ग्रह की बात कर रही हो, वहां के बारे में उसे कुछ भी याद नहीं है।”
“मेरी याद है राजा देव को...” रानी ताशा के माथे पर बल दिखने लगे।
“नहीं है।”
“राजा देव आज भी मेरी आवाज सुनते हैं तो परेशान हो जाते हैं। वो कहते हैं कि मेरी आवाज उन्होंने कहीं सुन रखी है। ताशा-ताशा कहने लगते हैं फोन पर ही। वो मेरे पास आने को कहते हैं, परंतु कौन रोक लेता है उन्हें?”
“बबूसा।” उधर से नगीना ने मुस्कराकर कहा-“वो कहता है कि सदूर ग्रह पर वो देवराज चौहान का खास सेवक था।”
“वो सही कहता है। बबूसा एक बेहतरीन इंसान है, परंतु मेरे से विद्रोह करके उसने बुरा किया। वो ही राजा देव को मेरे पास आने से रोके हुए है, वरना राजा देव तो कब के मेरी बांहों में होते।”
“मैं ऐसा न होने देती।”
“तुम राजा देव को रोक लेती?”
“अवश्य।” नगीना के आने वाले स्वर में दृढ़ता थी-“मैं देवराज चौहान को अंधे कुएं में छलांग न लगाने देती। क्योंकि उसे कुछ भी याद नहीं। वो आज का जीवन जी रहा है। रानी ताशा उसके लिए अजनबी है। अगर उसे सब कुछ याद आ जाए और वो तुम्हारे साथ जाना चाहे तो मैं नहीं रोकूँगी देवराज चौहान को।”
“उन्हें कुछ याद आए न आए, राजा देव मेरे हैं सिर्फ मेरे।” रानी ताशा दांत भींचकर कह उठी।
“ऐसा नहीं होगा। मैं एक तरफा फैसला नहीं होने दूंगी।”
“तुम राजा देव से मेरी बात कराओ।” रानी ताशा गुस्से में आ चुकी थी।
“नहीं।”
“वो मेरे देव हैं। मेरी बात...”
“तुम्हारी आवाज में जादू है। जादू जैसा प्रभाव है।” नगीना का सख्त स्वर रानी ताशा के कानों में पड़ा-“तुम्हारी आवाज सुनकर देवराज चौहान अपने होश खो बैठता है। इसलिए तुम्हारी बात नहीं हो पाएगी।”
“तुम मुझे राजा देव से दूर करने का प्रयत्न कर रही हो।” रानी ताशा गुस्से से बोली।
“तुम देवराज चौहान की कुछ नहीं हो। जहां से आई हो, वहीं चली जाओ।”
“मैं तुम्हें मार डालूंगी।” रानी ताशा गुर्रा उठी।
“तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। तुम जरूर कोई धोखेबाज हो जो जाने क्यों देवराज चौहान के पीछे...”
“बबूसा भी धोखेबाज है?” रानी ताशा ने गुस्से से कहा।
“नहीं, वो सच्चा इंसान है...”
“बबूसा सच्चा इंसान है तो मैं कैसे झूठी हो सकती हूं। बबूसा ने सब कुछ बताया होगा। बबूसा के तार मेरे से जुड़े हुए हैं। हम सब एक ही ग्रह से हैं। एक ही हैं। परंतु वो राजा देव का बेहद खास सेवक रहा है। राजा देव भी बबूसा को पसंद करते थे। और आज बबूसा को तो उस जन्म की सब बातें याद हैं परंतु राजा देव भूल चुके हैं पृथ्वी ग्रह से जुड़कर। लेकिन महापंडित
सब ठीक कर देगा। एक बार मैं राजा देव को सदूर ग्रह पर ले जाऊं, उसके बाद महापंडित...”
“तुम देवराज चौहान को उसकी मर्जी के बिना कहीं नहीं ले जा सकोगी।” नगीना का क्रोध से भरा स्वर आया।
“तुम देखना, राजा देव अपनी मर्जी से ताशा-ताशा कहते मेरे साथ पोपा में बैठकर सदूर ग्रह पर जाएंगे।” रानी ताशा एकाएक हंसकर कह उठी-“एक बार राजा देव से मिलने की देर है उसके बाद वो मेरी बांहों में होंगे।”
उधर से नगीना ने फोन बंद कर दिया था।
रानी ताशा ने फोन वाला हाथ नीचे किया और आंखों से आंसू बह निकले।
“ये क्या ताशा?” सोमारा कह उठी-“रो क्यों रही हो?”
“राजा देव से मेरी बात नहीं हो पाई। वो मेरे बिना कैसे रह रहे होंगे।” रानी ताशा सुबक उठी।
“सब ठीक हो जाएगा, राजा देव हमें जल्दी मिल जाएंगे। मुझे देखो, मैं भी तो बबूसा से मिलना चाहती हूं और मुझे पूरा विश्वास है कि जल्दी ही बबूसा से मिलूंगी। क्यों बेदी।” सोमारा ने विजय बेदी को देखा-“कल काम होगा न? तुम हमें राजा देव के पास ले चलोगे न? वो आदमी तुम्हें राजा देव का पता बता देगा न?”
“राजा देव का नहीं, जगमोहन का।” बेदी ने गहरी सांस ली।
“एक ही बात है। तुमने ही तो कहा है कि दोनों एक साथ ही रहते हैं।”
“कहां फंस गया मैं।” बेदी बड़बड़ा उठा-“पंद्रह लाख लेने हैं तूने। चुप रह। थोड़ा और सह ले इन्हें। बात-बात पर अपने ग्रह की बात करते हैं। पर मुझे पता है ये सब ड्रामा कर रहे हैं। यहीं के लोग हैं ये।”
रानी ताशा आंसू साफ करते बोली।
“सोमारा। राजा देव की इस जन्म की पत्नी नगीना, राजा देव पर मेरा हक नहीं मानती।”
“उसके मानने या न मानने से क्या होता है, राजा देव तो आपके ही हैं।” सोमारा शांत स्वर में बोली।
“ये ही मैंने उसे कहा, पर वो मानती नहीं।”
“आप धीरज रखिए।”
“वो कहती है इस जन्म में वो उसके पति हैं। कहती है पिछला जन्म मौत के साथ खत्म हो जाता है।”
“पर हमारे सदूर ग्रह पर ऐसा नहीं है। हमारे ग्रह का जीवन-मरण भैया (महापंडित) के हाथ में है। वो जिसका जन्म लम्बा चलाने की जरूरत समझता है, उसे पुरानी यादों के साथ बार-बार पैदा करता रहता है। जैसे कि मैं-आप, ग्रह के बेहतरीन खास लोग। पृथ्वी ग्रह पर कोई और नियम लागू होता है। हमें यहां के नियम से कोई मतलब नहीं। हम तो अपने ग्रह के नियम से ही चलेंगे ताशा। हम यहां रहने नहीं आए जो यहां के नियम अपना लें। हम राजा देव को लेने आए हैं और उन्हें लेकर चले जाएंगे।” सोमारा सोच भरे शांत स्वर में कह उठी।
“सच सोमारा, हम सच में राजा देव को वापस ले जाएंगे?” रानी ताशा मुस्करा उठी।
“क्यों नहीं, सोमाथ हमारे साथ है।”
रानी ताशा ने सोमाथ को देखा।
“मैं।” सोमाथ मुस्कराया-“आपकी सेवा में हूं।”
“और ताशा।” सोमारा ने कहा-“हमारे तीन लोग होटल के दूसरे कमरे में हैं। सबके पास जोबिना है। जीत हमारी ही होगी। राजा देव को सदूर ग्रह पर ले जाएंगे हम।”
“सोमाथ।” रानी ताशा ने कहा-“तुम साथ वाले कमरे में अपने लोगों का हाल-चाल पूछ आओ।”
“मैं दिन में तीन बार उनके पास जाता हूं रानी ताशा।” सोमाथ ने कहा-“अब फिर हो आता हूं।”
“पहले मेरी बात सुनो।” एकाएक विजय बेदी कह उठा।
सबने उसे देखा।
“तुम लोगों ने अभी मेरा पंद्रह लाख रुपया देना है।” कहते हुए बेदी ने उस वार्डरोब की तरफ निगाह मारी जहां नोटों से भरा सूटकेस पड़ा था-“अगर कल देवराज चौहान मिल जाता है तो मुझे पंद्रह लाख मिल जाएगा?”
“जरूर मिलेगा।” सोमाथ बोला-“हम जो कहते हैं वो करते हैं।”
बेदी ने शराफत से सिर हिला दिया।
“कल राजा देव मिल जाएंगे न?” रानी ताशा ने पूछा।
“जरूर मिलेंगे। पूरी आशा है कि कल हम देवराज चौहान के ठिकाने पर पहुंच सकते हैं।” विजय बेदी ने गम्भीर स्वर में कहा-“परंतु मैं तुम लोगों के साथ भीतर नहीं जाऊंगा।”
“क्यों?” सोमारा कह उठी।
“देवराज चौहान बहुत बड़ा डकैती मास्टर है। जब उसे पता चलेगा कि तुम लोगों को मैं वहां तक लाया तो वो मेरी जान ले लेगा। बहुत खतरनाक है वो। मैं बाहर ही खड़ा रहूंगा। तुम लोग भीतर जाना।”
“ताशा।” सोमारा मुस्कराई-“राजा देव से तो पृथ्वी के लोग भी डरते हैं।”
“मेरे देव जैसा बलशाली कोई नहीं है। देव जहां भी जाएंगे, अपनी ताकत का दबदबा कायम कर लेंगे। इसी तरह वो प्यार भी बहुत करते हैं। मुझे वो वक्त याद आ रहा है सोमारा। जब राजा देव मुझे बांहों में लेकर...”
“वो वक्त फिर लौटने वाला है ताशा। शायद कल ही राजा देव हमें मिल जाएं।”
आंखें बंद करके रानी ताशा गहरी सांस लेने लगी।
तभी दरवाजा थपथपाया गया। वेटर खाने की ट्रॉली धकेलता भीतर ले आया था। सोमाथ ने दरवाजा खोला था। फिर सोमाथ बगल वाले कमरे में मौजूद, अपने साथियों से मिलने चला गया।
‘कब पंद्रह लाख मुझे मिले और कब मैं भागूं।’ बेदी बड़बड़ा उठा।
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