पुलिस के होमीसाइड डिपार्टमेंट का इंस्पेक्टर प्रभूदयाल मन ही मन कुढ रहा था लेकिन वह मजबूर था । उसके उच्च अधिकारियों ने उसे विशेष रूप से निर्देश दिये थे कि कम से कम हत्या के इस मामले में प्रेस को पूरी-पूरी छूट दे दी जाये अर्थात् किसी भी समाचार-पत्र के किसी भी रिपोर्टर को हत्या के इस केस को किसी भी ढंग से कवर करने की इजाजत दी जाये । रिपोर्टरों को घटनास्थल का निरीक्षण करने का पूरा-पूरा मौका दिया जाये, उन्हें लाश की या घटनास्थल की तस्वीरें खींचने से न रोका जाये । अगर केस से सम्बन्धित कोई व्यक्ति सामने आया है तो रिपोर्टरों को उसका इन्टरव्यू लेने की पूरी-पूरी सुविधा दी जाये और मृत के विषय में पुलिस को जो कुछ भी मालूम है वह सब प्रेस को बिना किसी काट-छांट के बता दिया जाये ।
साधारणतया प्रभूदयाल प्रेस के फोटोग्रफरों और रिपोर्टरों को घटनास्थल के पास भी नहीं फटकने देता था । विशेष रूप से जब प्रेस के लोगों की भीड़ में ब्लास्ट का विशेष प्रतिनिधि सुनील कुमार चक्रवर्ती भी मौजूद हो ।
सुनील बड़ी शान से गले में कैमरा लटकाये कर्नल मुखर्जी की वाल्टन रोड पर स्थित दोमंजिली कोठी में, जिसमें उनका आफिस भी था, घूम रहा था ।
प्रभूदयाल इस तथ्य से परिचित नहीं था कि कर्नल मुखर्जी सीआईबी (सेन्ट्रल इन्टेलीजेन्स ब्यूरो) की एक नव संस्थापित शाखा स्पेशल इन्टेलीजेन्स के डायरेक्टर थे और उसका यह जान पाना, कि सुनील भी इन्टेलीजेन्स का सदस्य है अगले सौ साल में भी सम्भव नहीं था क्योंकि मूल रूप से स्पेशल इन्टेलीजेन्स के स्टाफ के लिए चने ही ऐसे लोग गये थे जो कहीं काम-धन्धों में लगे हुए हों और जिनके जासूस होने के विषय में कोई स्वप्न में भी न सोच सकता हो । कर्नल मुखर्जी के कथनानुसार ऐसे ही लोगों की नियुक्ति से स्पेशल इन्टेलीजेन्स ब्रांच का मिशन सफल हो सकता था । देश में विदेशी एदेशी एजेन्टों की भरभार के कारण सी आई बी के जासूस छिपे नहीं रह पाते थे और कई बार इसका बड़ा भयंकर परिणाम भी निकला था । इसलिए स्पेशल इन्टेलीजेन्स ब्रांच के स्टाफ में होटल के वेटरों, टैक्सी ड्राइवरों और मिस्त्रियों से लेकर सेना के अवकाश प्राप्त अफसर, टेलीफोन आपरेटर, कालेज के छात्र और छात्रायें तक मौजूद थीं । स्पेशल इन्टेलीजेंस के सदस्यों का वास्तविक धन्धा कोई भी हो लेकिन उनकी कार्यक्षमता असाधारण थी और वे भारत और भारतीयता पर मरने वाले लोग थे । अपना स्टाफ चुनने के लिए कर्नल मुखर्जी ने इन्हीं विशेषताओं को मापदण्ड माना था ।
स्पेशल इन्टेलीजेन्स ब्रांच को केवल वही केस सौंपे जाते थे जिनमें या तो सी आई बी के एजेन्ट असफल हो जाते थे और या जिनमें उनका गुप्त रूप से कार्य कठिन हो जाता था और ऐसे मौके बहुत कम आते थे । नेशनल रिसर्च लेबोरेट्री के अध्यक्ष चन्द्रशेखर का उनके महान आविष्कार डेस्ट्रायर सहित फाम प्लूमर द्वारा अगवा कर लिए जाने वाले केस के बाद आठ महीने गुजर चुके थे लेकिन अभी तक कर्नल मुखर्जी ने सुनील को दुबारा नहीं बुलाया था और न ही पिछले आठ महीनों में सुनील ने कर्नल मुखर्जी की दुबारा सूरत देखी थी । यह एक संयोग ही था कि हत्या कर्नल मुखर्जी की कोठी पर हुई थी और सुनील अपने अखबार के प्रतिनिधि के रूप में वहां मौजूद था ।
लाश ग्राउन्ड फ्लोर पर स्थित सामने के गोल कमरे में पड़ी थी जो ड्राइंगरूम की तरह प्रयुक्त होता था ।
वह एक चीनी लड़की थी और कमरे के बीच में रखे एक सोफे पर बैठी थी । उसका मुंह सामने की खिड़की की ओर था जो इमारत की बगल से गुजरती हुई गैरेज की ओर जाने वाली राहदारी में पड़ती थी । उस खिड़की के शीशे टूटे हुए थे । चीनी लड़की की छाती के बाईं ओर दिल के पास दो सुराख दिखाई दे रहे थे और उस स्थान पर उसका सफेद ब्लाऊज खून से एकदम लाल हो उठा था । लड़की की पीठ सोफे के साथ टिकी हुई थी और उसका चेहरा उसकी छाती पर झुका हुआ था । उसके चेहरे पर किसी प्रकार के आश्चर्य, भय या आतंक का निशान नहीं था । दोनों गोलियां दिल में घुस जाने के कारण उसकी तत्काल मृत्यु हो गई थी । लगता था कि उसकी हत्या इतने अप्रत्याशित ढंग से की गई थी कि उसके चेहरे पर किसी प्रकार के भाव प्रगट होने से पहले उसके प्राण निकल चुके थे ।
लड़की के कागजात देखने से केवल इतना जाना जा सकता था कि उसका नाम तिन-हा था और वह आज ही पानी के जहाज द्वारा हांगकांग से आई थी । वह मुखर्जी से मिलने क्यों आई, यह एक एक रहस्य था जो किसी पर प्रकट नहीं हो पाया था । मुखर्जी को अपने नौकर धर्मसिंह द्वारा इतना मालूम हो सका था कि उनकी अनुपस्थिति में वह चीनी लड़की फिलिप मैक्सटन नाम के विदेशी के साथ उसकी कोठी पर आई थी और उसने कर्नल मुखर्जी से मिलने की इच्छा व्यक्त की थी । कर्नल साहब उस समय कोठी में मौजूद नहीं थे इसलिए धर्मसिंह ने दोनों को ड्राइंगरूम में बिठा दिया था । लगभग दस मिनट बाद उसे गोलियां चलने की आवाज आई थी और वह किचन से एकदम भागता हुआ ड्राइंगरूम में आ पहुंचा था । उस समय खिड़की का शीशा टूटा पड़ा था और तिन-हा का चेतनाहीन शरीर सोफे पर ढुलका पड़ा था । उसकी छाती में से बुरी तरह खून बह रहा था और अंग्रेज साहब बदहवास से कोठी से बाहर भागे जा रहे थे ।
उसने फौरन पुलिस को फोन कर दिया था । पुलिस और प्रेस फोटोग्राफरों द्वारा घटनास्थल और लाश के चित्र लिए जा चुकने के बाद प्रभूदयाल ने लाश उठवाने की आज्ञा दे दी थी ।
सूत्र के नाम पर उसे खिड़की से बाहर गलियारे में पड़ा वह गोली चलाने के बाद रिवाल्वर वहीं फेंक दी थी । वह छत्तीस कैलीबर का विदेशी माडल का रिवाल्वर था और उसका नम्बर रेती द्वारा घिसकर मिटा दिया था । फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट के अनुसार उस पर किसी प्रकार की उगलियों के निशान नहीं थे । या तो हत्यारा दस्ताने पहने हुए था, या फिर उसने गोली चलाने के बाद रिवाल्वर को रूमाल से साफ कर दिया था ।
लाश उठवाई जा चुकने के बाद प्रभूदयाल मैक्सटन की ओर आकर्षित हुआ ।
“मिस्टर मैक्सटन !” - प्रभूदयाल गम्भीर स्वर में बोला ।
“यस !” - मैक्सटन बोला ।
“मैं आपसे कुछ प्रशन पूछना चाहता हूं ।”
“पूछिए ।”
“जरा मेरे साथ बगल के कमरे में चलिये ।”
“चलिये ।” - मैक्सटन बोला और प्रभूदयाल के साथ हो लिया । दो-तीन रिपोर्टर उनके पीछे-पीछे चल दिये ।
“आप लोग कहां घुसे चले आ रहे हैं ?” - प्रभूदयाल झल्लाकर बोला ।
“मिस्टर मैक्सटन का बयान हम भी सुनना चाहते हैं ।” - एक रिपोर्टर बोला ।
“हम भी इनसे कुछ पूछना चाहते हैं ।” - एक और बोला ।
“यस ! एट लीस्ट वी वान्ट टू लिसन टू हिम ।” - कोई और रिपोर्टर बोला ।
“पहले मुझे इनसे अपनी तफ्तीश पूरी कर लेने दीजिये, बाद में जो मर्जी पूछियेगा ।” - प्रभू बोला ।
“लेकिन आपको इनसे जो कुछ पूछना है, वह हमारे सामने ही क्यो नहीं पूछते ? आखिर हम भी तो इनसे वही कुछ पूछना चाहते हैं, यहीं हमारे सामने पूछिये । इससे समय भी बचेगा और मिस्टर मैक्सटन को एक ही बात कई बार दोहराने की जहमत भी नहीं उठानी पड़ेगी ।”
सबने इसका अनुमोदन किया ।
सुनील चुप था । वह जान-बूझकर बैकग्राउण्ड में रहने का प्रयत्न कर रहा था ।
“ठीक ही तो कह रहे हैं ये लोग ।” - मुखर्जी अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “हर्ज क्या है इसमें ? आप क्यों खामखाह मिस्ट्री पैदा कर रहे हैं, इंस्पेक्टर साहब !”
प्रभूदयाल कसमसाकर चुप हो गया । अगर उसके उच्चअधिकारियों ने उसे पहले ही प्रेस को सहयोग देने के निर्देश न दिये होते तो वह कर्नल मुखर्जी की तो क्या स्वयं भगवान की भी परवाह न करता ।
प्रभूदयाल कई क्षण चुप रहा । सब लोग आशापूर्ण नेत्नों से कभी प्रभूदयाल को और कभी मैक्सटन को देख रहे थे ।
अन्त में प्रभूदयाल बोला - “मिस्टर मैक्सटन !”
“यस आफीसर ।” - मैक्सटन ने सतर्क स्वर में उत्तर दिया ।
“आप हांगकांग के निवासी हैं ?”
“जी नहीं ! मैं अमेरिका का रहने वाला हूं । मैं टूरिस्ट हूं, हांगकांग तो मैं केवल घूमने-फिरने गया था ।”
“आप भारत में किस सिलसिले में आये हैं ?”
“यहां भी मैं टूरिस्ट की हैसियत से आया हूं ।”
“आप यहां कर्नल मुखर्जी से मिलने आये थे ?”
“मैं नहीं, तिन-हा कर्नल मुखर्जी से मिलने आई थी । मैं तो केवल एक एस्कार्ट के रूप में उसके साथ आ गया था । मैं तो कर्नल साहब को जानता या पहचानता भी नहीं हूं ।”
“तिन-हा से आपका क्या सम्बन्ध है ?”
“कोई सम्बन्ध नहीं है । सच पूछिये मैं तिन-हा को भी नहीं जानता हूं ।”
सब लोग एकदम आश्चर्य से मैक्सटन का मुंह देखने लगे । रिपोर्टर मशीन की-सी गति से सारा वार्तालाप अपनी शार्ट हैंड की कापियों में नोट किये जा रहे थे ।”
“आप तिन-हा को भी नहीं जानते हैं ?” - प्रभूदयाल हैरानी से बोला ।
“जी हां । ठीक कह रहा हूं । हांगकांग से जहाज पर चढने से पहले मैंने कभी तिन-हा की सूरत नहीं देखी थी । वह भी भारत जा रही थी और मैं भी भीतर जा रहा था । मेरा उससे एक सहयात्री जितना ही परिचय था ।”
“तो आप तिन-हा के साथ कर्नल मुखर्जी की कोठी पर कैसे आये ?”
“हम दोनों ही राजनगर के बन्दरगाह पर उतरे थे । सफर के दौरान में मेरी उससे अच्छी मित्रता हो गई थी । वह अकेली लड़की थी और हांगकांग से बाहर कभी कदम नहीं रखा था उसने । भारत में पहुंचने पर वह बौखला-सी गई थी । भाषा की भी खासी समस्या थी उसके सामने । कैण्टोनीज के अलावा वह टूटी-फूटी अंग्रेजी ही बोल पाती थी, इसलिए वह बड़ी दिक्कत महसूस कर रही थी । उसी ने मुझसे कहा था कि मैं कम से कम वाल्टन रोड पर स्थित कर्नल मुखर्जी की कोठी पर उसे छोड़ आऊं । मैंने उसकी बात स्वीकार कर ली थी ।”
“उसने आपको यह नहीं बताया कि कर्नल मुखर्जी को कैसे जानती थी ?”
“नहीं ।”
सुनील रिपोर्टरों की भीड़ में सबसे पीछे खड़ा बड़े गौर से मैक्सटन की बातें सुन रहा था । उसे मैक्सटन के स्वर में एक बड़ी विचित्र प्रकार की अस्वाभाविकता खटक रही थी । ऐसा लगता था जैसे वह किसी रटी-रटाई स्पीच को टेप रिकार्डर की तरह दोहरा रहा हो ।
कर्नल मुखर्जी की सतर्क नजरें सुनील के चेहरे पर टिकी हुई थी ।
“अब मुख्य घटना के विषय में कुछ बताइये ।” - प्रभूदयाल बोला ।
“बताने लायक है ही क्या साहब ?” - मैक्सटन हाथ फैलाकर बोला - “सब कुछ पलक झपकते ही हो गया था ।”
“क्या हुआ था ?”
“मैं तिन-हा के साथ ड्राइंगरूम में बैठा हुआ था । नौकर हमें बिठाकर वापिस जा चुका था । हम लोग कर्नल साहब की प्रतीक्षा कर रहे थे । एकाएक धांय-धांय की आवाज हुई और अगले ही क्षण तिन-हा का निष्चेष्ट शरीर सोफे पर लुढका हुआ था । उसके मुंह से चीख भी नहीं निकल पाई थी कि उसके प्राण निकल गये थे । मैं हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ । मेरी दृष्टि गोली की आवाज की दिशा में उठ गई । खिड़की का शीशा चकनाचूर हो चुका था और टूटी खिड़की में से मुझे केवल एक क्षण के लिए मानव शरीर की झलक मिली । मैं ड्राइंगरूम से बाहर की ओर भागा । काले सूट से ढकी एक मानव आकृति कोठी की चारदीवारी फांदकर भाग खड़ी हुई । मैं पीछे भागा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । बाहर सड़क पर एक काले रंग की कार खड़ी थी । कार की ड्राइविंग सीट पर एक आदमी पहले से ही बैठा हुआ था और कार का इन्जन भी स्टार्ट था । हत्यारा लपक कर कार में घुस गया और अगले ही क्षण तूफान की गति से भागती हुई कार दृष्टि से ओझल हो गई । मैं मुंह बाये सड़क पर खड़ा रहा ।”
“आपने कार का नम्बर देखा था ?” - प्रभू ने पूछा ।
“नहीं इन्पेक्टर साहब, जब तक मैं सड़क पर पहुंचा, कार इतनी दूर जा चुकी थी कि नम्बर पढ पाना असम्भव था ।”
“कार कौन-सी थी ?”
“मैं तो केवल कार का रंग सकता हूं । वह एकदम काले रंग की गाड़ी थी । मेक मुझे मालूम नहीं क्योंकि उस ढंग की गाड़ी मैंने पहले नहीं देखी ।”
“हत्यारे का हुलिया बयान कर सकते हैं आप ?”
“नहीं । मैंने तो खिड़की में उसकी हल्की सी झलक देखी थी जो हत्यारे को पहचान पाने के लिए कतई पर्याप्त नहीं थी । सिवाय इसके कि वह एक दुबला-पतला और लम्बा आदमी था जो काले रंग के कपड़े पहने हुए था और आंखों पर काला चश्मा लगाये हुए था । मैं हत्यारे के विषय में कुछ नहीं बता सकता ।”
प्रभूदयाल चुप हो गया ।
“मिस्टर मैक्सटन ।” - एक रिपोर्टर बोल पड़ा - “आपके ख्याल से हत्यारा गोली चलाने के बाद रिवाल्वर घटनास्थल पर ही क्यों फेंक गया ?”
“मैं इसका क्या उत्तर दे सकता हूं साहब ।” - मैक्सटन विचित्र स्वर में बोला - “मैं कोई जासूस थोड़े ही हूं । मैं तो इस विषय में इतना ही जानता हूं जितना कि आप या अन्य कोई भी साधारण आदमी ।”
वह रिपोर्टर फिर नहीं बोला ।
“घटनास्थल पर तिन-हा के पास केवल इतना ही सामान था ?”
“नहीं ।” - मैक्सटन बोला - “वह यहां अपने साथ केवल बैग हो लाई थी । उसका बाकी सामान अभी भी बन्दरगाह पर ही पड़ा है ।”
“और सामान क्या-क्या था उसके पास ?”
“दो सूटकेस थे, एक छोटी अटैची थी और एक...”
“एक क्या ?” - प्रभू ने उत्सुक स्वर से पूछा ।
“एक बहुत बड़ा और बहुत भारी ताबूत जैसा बक्सा था । लगभग छ: फुट लम्बा, तीन फुट चौड़ा और ढाई फुट ऊंचा ।”
“उस बक्से में क्या था ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“आपने तिन-हा से पूछा नहीं ?”
“पूछा था लेकिन उसने उसने कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं दिया था । मैंने समझा वह बताना नहीं चाहती, इसलिए मैंने कुरेदा नहीं उसे ।”
प्रभूदयाल फिर चुप हो गया ।
“इज दैट आल ?” - मैक्सटन ने आस-पास दृष्टि दौड़ाते हुए पूछा ।
प्रभूदयाल ने एक सरसरी नजर रिपोर्टरों पर डाली । सब चुप रहे ।
सुनील सिर झुकाये अपनी नोट बुक में कुछ नोट करने में व्यस्त था ।
प्रभू मैक्सटन की ओर मुड़ा । उसने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि सुनील बोल पड़ा - “मिस्टर मैक्सटन !”
मैक्सटन आवाज की दिशा में घूमा लेकिन सुनील ने सिर नहीं उठाया । उसके स्ट्रा हैट का अप भाग एकदम उसके चेहरे पर झुक आया था ।
“यस प्लीज !” - मैक्सटन उलझनपूर्ण स्वर में बोला । उसे समझ नहीं आ रहा था कि प्रश्नकर्ता कौन है ।
“अमेरिका के कौन से नगर के रहने वाले हैं आप ?” - सुनील ने पूछा ।
“मैं न्यूयार्क का रहने वाला हूं ।” - मैक्सटन बोला ।
“न्यूयार्क में कहां रहते हैं आप ?”
“फोरटी सेकेण्ड स्ट्रीट में ।”
“फिर तो आप पार्क लेन के परिवार को तो जरूर जानते होंगे । उनके परिवार के छोटे बड़े सारे सदस्यों की यह आदत थी कि वे सुबह ब्रेकफास्ट से पहले बीच पर स्विमिंग के लिये जरूर आते थे । वे लोग पैदल ही बीच तक चले आते थे । दस पन्द्रह मिनट समुद्र में डुबकियां लगा लेने के बाद वे पैदल ही वापिस पार्क लेन चले जाते थे । कैसा भी खराब मौसम क्यों न हो उनका यह ब्रेकफास्ट से पहले का आधे घण्टे का प्रोग्राम कभी नहीं बदलता । उनके अड़ौसी-पड़ौसी उन्हें झक्की कहा करते थे । अपनी इस अनोखी आदत और अपने सौ साल पुराने लाल ईटों के मकान के कारण वे सारे न्ययार्क में मशहूर हैं । न्यूयार्क का बच्चा-बच्चा जानता है उन्हें ।”
“जी हां !” - मैक्सटन बोला - “मैं जानता हूं उन्हें । अपनी इस आदत के कारण जानसन परिवार के लोगों में उपहास का एक विषय बन गया था लेकिन वे लोग कभी परवाह नहीं किया करते ।”
सुनील चुप हो गया ।
कर्नल मुखर्जी आश्चर्यपूर्ण नेत्नों से सुनील की ओर देखने लगे ।
“इस सवाल का केस से क्या सम्बन्ध हुआ ?” - प्रभूदयाल उलझनपूर्ण स्वर से बोला ।
“केस से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है ।” - सुनील शान्त स्वर से बोला - “जब मैं कालेज में पढता था तब जानसन साहब का बड़ा लड़का मेरा पत्र-मित्र था । मैक्सटन साहब भी क्योंकि न्यूयार्क के ही रहने वाले हैं, इसलिए मैं उनने मैं उनसे यह पूछने का लोभ संवरण नहीं कर सका था कि जानसन परिवार ने अभी तक अपनी आदत बदली है या नहीं ।”
“नहीं बदली बदली साहब ।” - मैक्सटन बोला - “अभी भी वे लोग जलूस की सूरत में पैदल ही बीच पर तशरीफ लाते हैं । उनका कथन है सुबह सवेरे समुद्र के पानी में दस मिनट तैर लेने से अच्छा व्यायाम हो जाता है ।”
“जी हां, जी हां ।” - सुनील गम्भीर स्वर से बोला - “वैसे उनका ख्याल गलत नहीं है ।”
प्रभूदयाल के कानों में घण्टियां सी बजने लगीं । वह सुनील की इस टोन को खूब पहचानता था । वह समझ गया कि सुनील के इस अनोखे प्रश्न के पीछे कोई गहरा तात्पर्य निहित था । लेकिन क्या ? पूछने से कोई लाभ नहीं था । सुनील हरगिज भी कुछ नहीं बतायेगा ।
“और कुछ ?” - मैक्सटन ने प्रभूदयाल से पूछा ।
“फिलहाल बस ।” - प्रभूदयाल बोला - “आप ठहरे हुए कहां हैं ?”
“इम्पीरियल में ।”
“रूम नम्बर ?”
“रूम नम्बर अभी मुझे मालूल नहीं है, मैंने तो केवल होटल में सामान भिजवा दिया था और खुद तिन-हा के साथ यहां को चला आया था । आप मेरे कमरे कमरे का नम्बर होटल क्लर्क से पूछ लीजियेगा ।”
“बेहतर । अभी आप राजनगर में कुछ दिन ठहरेंगे न ?”
“जी हां, तीन चार रोज ठहरूंगा ।”
“उसके बाद ?”
“उसके बाद भारत के अन्य प्रसिद्ध नगरों में जाऊंगा और फिर बाद में पाकिस्तान चला जाऊगा ।”
“खैर फिलहाल हमें आपसे कुछ नहीं पूछना है लेकिन हम पर एक कृपा कीजियेगा ।”
“हमें सूचित किये बिना राजनगर से तशरीफ मत ले जाइएगा । हमें आपकी फिर जरूरत पड़ सकती है ।”
“वैरी वैल ।”
“थैंक्यू वैरी मच ।” - प्रभू बोला और वहां से हट गया ।
“जेण्टलमैन !” - मैक्सटन रिपोर्टर से बोला - “मे आई बी एक्सक्यूज्ड नाऊ ?”
“ओह श्योर !” - कई स्वर एक साथ सुनाई दिये ।
“एण्ड थैंक्स फार बींग सो जनरस टू प्रेस ।”
उसी क्षण कितने ही कैमरों की फ्लैश लाईट के बल्ब का प्रकाश मैक्सटन के चेहरे पर पड़ा ।
मैक्सटन मुस्कराया और लम्बे डग भरता हुआ इमारत के मुख्य द्वार की ओर चल दिया । सुनील कैमरा खोलकर उसमें से एक्सपोज की हुई फिल्म का रोल निकाल रहा था ।
कर्नल मुखर्जी सुनील की ओर बढे । एक क्षण के लिए वे सुनील के पास रुके । उनका हाथ सुनील की कोट की जेब से टकराया और फिर वे इमारत के भीतरी भाग की ओर चल दिये । सुनील ने फिल्म को एल्यूमीनियम के खोल में बन्द करके जेब में डाल लिया और कैमरे में नई फिल्म डालकर कैमरा बन्द कर दिया । उसने कैमरे को कंधे पर लटका लिया ।
फिर उसने बड़े इत्मीनान से अपनी जेब से अपने प्रिय सिगरेट लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला । पैकेट के साथ ही उसके हाथ में वह तह किया हुआ कागज भी आ गया, जो कर्नल साहब जाते-जाते जेब में डाल गये थे । उसने सिगरेट के पैकेट की ओट में रखकर कागज खोला । कागज पर केवल एक वाक्य लिखा था ।
बाहर मेरी कार में प्रतीतक्षा करो ।
सुनील ने पैकेट में से एक सिगरेट निकालकर सुलगाया । सिगरेट सुलगा चुकने के बाद सुनील ने उस कागज को भी माचिस दिखा दी ।
सुनील धीरे-धीरे सिगरेट के कश लेने लगा । इंस्पेक्टर प्रभूदयाल रिपोर्टरों से घिरा हुआ था और इस समय स्वयं को बड़ा महत्वपूर्ण आदमी समझ रहा था । किसी को यह जानने की चिंता नहीं थी कि भीड़ में ब्लास्ट का रिपोर्टर सुनील भी मौजूद है या नहीं । सुनील चुपचाप इमारत से बाहर निकल आया ।
***
कर्नल मुखर्जी की शेवरलेट गाड़ी कोठी के बाहर फुटपाथ के साथ लगी खड़ी थी ।
सुनील स्टियरिंग का द्वार खोलकर भीतर जा बैठा । इग्नीशन की चाबी इग्नीशन में लटक रही थी । सुनील ने गाड़ी स्टार्ट की और उसे फर्स्ट गियर में डालकर धीमी रफ्तार से गाड़ी चलाता सड़क पर चल दिया । कोठी से लगभग पचास गज आगे पहुंचकर उसने इंजन बन्द कर दिया । वह स्टियरिंग की सीट छोड़कर दाईं ओर सरक गया ।
उसने एक नया सिगरेट सुलगा लिया और हल्के-हल्के कश लेता हुआ मुखर्जी की प्रतीक्षा करने लगा । लगभग दस मिनट बाद मुखर्जी आये । वे चुपचाप स्टियरिंग पर आ बैठे ।
उन्होंने अपने कोट की जेब में से पाइप और तम्बाकू का पाउच निकाला, कितनी ही देर वे बड़ी तन्मयता से पाईप के कप में तम्बाकू भरते रहे । फिर उन्होंने पाउच जेब के हवाले किया और माचिस निकाल ली । उन्होंने पाईप सुलगा लिया । तीन चार लम्बे-लम्बे कश लेकर ढेर सारा धुआं उगल चुकने के बाद उन्होंने सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और फिर उन्होंने गाड़ी स्टार्ट कर दी । गाड़ी तारकोल की चिकनी सड़क पर फिसलने लगी ।
“बिना किसी विघ्न बाधा के बात करने के लिये चलती कार से अच्छी जगह कोई नहीं है ।” - मुखर्जी बोले ।
“यस सर !” - सुनील ने शिष्ट स्वर से स्वीकार किया । मुखर्जी कई क्षण चुप रहे ।
सुनील बड़ी शांति से उनके दोबारा बोलने की प्रतीक्षा करने लगा । मुखर्जी अपने जीवन की स्टेज पर पहुंच चुके थे, जहां इंसान के कार्यकलापों में एक विशेष प्रकार का ठहराव, इत्मीनान झलकने लगता है, जहां पहुंच जाने पर जल्जबाजी, उतावलापन और हड़बड़ाहट बहुत पीछे रह जाते हैं ।
कई क्षण बाद मुखर्जी बड़े संतुलित स्वर में बोले - “इंस्पेक्टर प्रभूदयाल को अपने उच्च अधिकारियों से विशेष रूप से निर्देश मिले थे कि वह केस में प्रेस को पूरी-पूरी दिलचस्पी लेने दे । इस व्यवस्था का मात्र कारण यह था कि बात में कोई असाधारणता भी न लगे और तुम्हें हालात को अच्छी तरह समझने और मिस्टर फिलिप मैक्सटन से दो चार होने का पूरा-पूरा मौका मिल जाये । केवल तुम्हें सीन में लाने के लिए बाकी रिपोर्टरों के साथ इतनी रियायत बरती गई है ।”
सुनील के चेहरे पर आश्चर्य के भाव प्रकट हुए लेकिन वह मुंह से कुछ नहीं बोला ।
“मैक्सटन के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है ?” - मुखर्जी ने पूछा ।
“उससे कोई स्थायी ख्याल बनाने लायक मुलाकात मेरी हुई नहीं है लेकिन एक बात मैं दावे के साथ कर कह सकता हूं ।”
“क्या ?”
“मैक्सटन कभी न्यूयार्क में नहीं रहा ।”
मुखर्जी एकदम चौंक पड़े - “हाउ कैन यू से दैट ? (यह तुम कैसे कह सकते हो) ?”
“मैंने उससे न्यूयार्क की पार्क लेन में रहने वाले जानसन परिवार के विषय में प्रश्न किया था । जानसन परिवार मेरी कल्पना की उपज थी । पार्क लेन के ऐसे किसी परिवार के बारे में मैं नहीं जानता । इसलिये उनके किसी लड़के से मेरी पत्र मित्रता होने का सवाल ही पैदा नहीं होता । वह तो मैक्सटन को परखने के लिये एक ट्रेप-क्वेश्चन था और वह उसमें फंस गया ।”
“मैं तुम्हारी बात नहीं समझा ।”
“मैंने उससे कहा था कि जानसन परिवार को सारा न्यूयार्क जानता है क्योंकि वे रोज सुबह ब्रेकफास्ट से पहले पैदल ही बीच पर स्वीमिंग के लिये आया करते थे और दस पन्द्रह मिनट तैरने के बाद पैदल ही वापस लौट जाया करते थे । उनका यह स्वीमिंग ट्रिप केवल आधे घंटे में समाप्त हो जाता था अर्थात् पार्क लेन के अपने काल्पनिक लाल ईटों वाले मकान से आने जाने में उन्हें केवल पन्द्रह मिनट लगते थे । मेरा कहने का ढंग इतना स्वाभाविक और विश्वासपूर्ण था कि मैक्सटन ने अपनी अज्ञानता छुपाने के लिए फौरन हामी भर दी कि वह जानसन परिवार को जानता है ।”
“लेकिन मान लो संयोगवश न्यायार्क में सचमुच ही कोई ऐसा जानसन परिवार हो ?”
“मान लिया लेकिन पार्क लेन फिर भी न्ययार्क में एक ही है और वह समुद्र के किनारे से दस मील दूर है । जानसन परिवार तो क्या, कोई सुपरमैन भी दस मील का फासला सात आठ मिनट में तय नहीं कर सकता । अगर मैक्सटन वाकई कभी न्यूयार्क में रहा होता तो उसे मालूम होता कि पार्क लेन बीच के समीप नहीं, बीच से दस मील दूर है ।”
“शाबाश !” - मुखर्जी प्रशंसापूर्ण स्वर से बोले ।
सुनील चुप रहा ।
“लेकिन तुम्हें मैक्सटन से ऐसा कोई सवाल पूछने का ख्याल कैसे आया ?”
“मैक्सटन कहता है कि वह अमेरिकन है लेकिन उसका अंग्रेजी का उच्चारण एकदम अंग्रेजों जैसा था । उसके उच्चारण से पहले मैं उसे अंग्रेज ही समझा था लेकिन जब उसने कहा कि वह अमेरिकन है और फोर्टी सैकेण्ड स्ट्रीट न्यूयार्क का रहने वाला तो मैं उसे परख लेने का लोभ संवरण नहीं कर सका ।”
“देखो सुनील ।” - मुखर्जी बोले - “तुम्हारा तर्क तो बड़ा वजनी है, लेकिन यह हकीकत के सामने एकदम फीका पड़ जाता है ।”
“क्या मतलब ?”
“प्रत्यक्ष में मैक्सटन की बहुत सी बातें संदिग्ध हो सकती हैं लेकिन वास्तव में वह फोर्टी सैकेण्ड स्ट्रीट न्यूयार्क का ही रहने वाला है और इस बात की पुष्टि बड़े विश्वसनीय सोर्स द्वारा हो चुकी है ।”
“कैसे ?”
मुखर्जी ने अपना एक हाथ स्टियरिंग से हटाकर कोट की भीतरी जेब में डाला और दो 4-6 की तस्वीरें निकालकर सुनील की ओर बढाते हुए बोले - “ये तस्वीरें देखो ।”
सुनील ने तस्वीरे ले लीं और उन्हें बड़ी गौर से देखने लगा । दोनों में फिलिप मैक्सटन का चेहरा दिखाई दे रहा था । दोनों रेडियो फोटोग्राफ थे जो सरकार के ओवरसीज कम्यूनिकेशन सर्विस के स्टेशनों द्वारा रिसीव किए जाते हैं । इसलिए वे फोटोग्राफ उतने स्पष्ट नहीं थे जितने स्टूडियो में नैगेटिव से बनाये हुए प्रिंट होते हैं । लेकिन फिर भी वे मैक्सटन की सूरत पहचान लेने के लिए पर्याप्त थे ।
“एक फोटोग्राफ” - मुखर्जी बोले - “अमेरिका के खुफिया विभाग एफ बी आई (फैडरल ब्यूरो आफ इन्वैस्टीगेशन) द्वारा भेजा गया है और दूसरा इण्टरपोल (अन्तर्राष्ट्रीय पुलिस) के पैरिस स्थित हैडक्वार्टर द्वारा ।”
“क्या वह कोई पेशवर मुजरिम है ?” - सुनील ने उत्सुकता से पूछा ।
“फिर गलत अनुमान लगाया तुमने ।” - मुखर्जी बोले - “वह एक एफ बी आई का एजेन्ट है और पिछले दो सालों से इंटरपोल के लिए काम कर रहा है । एफ बी आई की सरविस में उसे दस साल हो गये हैं और उसकी कार्यदक्षता और ईमानदारी को संदेह की नजरों से नहीं देखा जा सकता । यह मैं नहीं कह रहा हूं । मैं केवल मैक्सटन के एफ बी आई के उच्च अधिकारियों की राय दोहरा रहा हूं ।”
“फिर वह अपने प्रति इतनी संदेहपूर्ण बातें क्यों करता है ?”
“यही तो समझ में नहीं आ रहा है । अगर एफ बी आई और इण्टरपोल ने उसका रेडियो फोटोग्राफ केबल द्वारा उसका विवरण न भेजा होता तो मैं मैक्सटन का भरोसा नहीं करता । लेकिन उस विवरण से मालूम होता है कि हमें ही उसे परखने में गलती हुई है ।”
“लेकिन आपको इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि मैक्सटन सच बोल रहा है या झूठ ?”
“बहुत फर्क पड़ता है । मुझे संदेह है कि मैक्सटन ने ही उस चीनी लड़की की हत्या की है ।”
“जी ?” - सुनील एकदम चौंककर बोला ।
“हां, इस संदेह का आधार मैं स्वीकार करता हूं, बहुत वजनी तो नहीं है लेकिन एकदम दतना लचर भी नहीं हैं कि उस पर विचार ही न किया जाये ।”
“आधार क्या है ?”
“हत्या के बाद हत्यारा रिवाल्वर घटनास्थल पर ही क्यों फेंक गया ? यही सवाल कुछ देर पहले एक रिपोर्टर ने मैक्सटन से पूछा था लेकिन किसी ने भी इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया था । मैं फिर पूछता हूं कि हत्यारा रिवाल्वर घटनास्थल पर क्यों फेंक गया ? अपने साथ क्यों नहीं ले गया ? रिवाल्वर पुलिस के हाथ पड़ जाने से हत्यारे के पकड़े जाने की सम्भावना बढ जाती है । आखिर हत्यारे ने दिन-दहाड़े इतनी साहसिक हत्या करने के बाद इतनी मामूली-सी गलती क्यों की ? क्या जवाब है इस बात का तुम्हारे पास ?”
कार अनजानी सड़कों से गुजरी जा रही थी । मुखर्जी का पाईप बुझ चुका था लेकिन वह उसे दुबारा सुलगाने का उपक्रम किये बिना आदतन बुझे हुए पाईप के ही कश लगाये जा रहे थे और तनिक उत्तेजित दिखाई दे रहे थे ।
सुनील चुप रहा ।
“अब तर्क के लिए मान लो कि वह रिवाल्वर मैक्सटन की है और उसने तिन-हा की हत्या की है । ऐसी सूरत में क्या वह रिवाल्वर अपने पास रखना पसन्द करेगा ?”
“नहीं ।”
“वह तिन-हा के साथ ड्राइंगरूम में बैठा हुआ था । धर्मसिंह वापिस किचन में जा चुका था । मैक्सटन किसी बहाने से उठकर थोड़ी देर के लिए बाहर निकला आया होगा और बाहर खिड़की के पास खड़े होकर उसने तिन-हा को गोली से उड़ा दिया होगा । फिर उसने रिवाल्वर को अपनी उंगलियों के निशानों से मुक्त करके वहीं खिड़की के पास फेंक दिया होगा । और बाहर की ओर भाग निकला होगा किसी काल्पनिक हत्यारे को पकड़ने के लिए काली कार में भागने वाले हत्यारो की काल्पनिक दास्तान गढ ली । न तो वह हत्यारे की सूरत देख सका । न वह कार का नम्बर देख सका और न ही वह कार का मेक बता सकता है । मैं कहता हूं कि ऐसी कोई कार या हत्यारा वास्तव में था ही नहीं । यह सब मैक्सटन के दिमाग की उपज है ।”
“इस थ्योरी में दो बड़ी भारी गड़बड़ हैं ।” - सुनील विचारपूर्ण स्वर में बोला ।
“क्या ?”
“एक तो यह कि मैक्सटन हांगकांग से राजनगर तक एक ही जहाज पर तिन-हा के साथ आया है । तिन-हा की हत्या करना अगर इतना ही आवश्यक था तो भी उसने सफर की समाप्ति पर तिन-हा के आपकी कोठी पर पहुंचने तक इन्तजार क्यों किया ? वह बड़ी आसानी से उसे रास्ते में कहीं भी समाप्त कर सकता था ?”
“इस सवाल का जवाब मैं तुम्हें बाद में दूंगा । बल्कि जब केस के सारे तथ्य सामने आ जायेंगे तो जवाब तुम खुद ही समझ जाओगे । तुम अपनी दूसरी बात कहो ।”
“दूसरी बात यह है कि आप स्वीकार करते हैं कि मैक्सटन एफ बी आई का एजेन्ट है और एफ बी आई द्वारा इस बात की पुष्टि हो चुकी है ।”
“हां !” - मुखर्जी हिचकिचाहट-भरे स्वर में बोले ।
“ऐसा आदमी भला हत्या जैसा जघन्य अपराध क्यों करेगा ?”
“यही तो मेरी समझ में नहीं आ रहा है !” - कर्नल मुखर्जी झुंझलाकर बोले । स्टियरिंग पर उनकी उंगलियां कस गई और वे जोर-जोर से बुझे हुए पाईप के कश लगाने लगे ।
“किस्स क्या है ?” - सुनील ने पूछा ।
“बताता हूं ।” - मुखर्जी गम्भीरता से बोले - “उससे पहले यह चिट्ठी देखो ।”
और उन्होंने अपनी जेब में से एक तह किया हुआ कागज निकालकर सुनील की ओर बढा दिया ।
सुनील ने कागज खोला ।
पत्र बड़ी टूटी-फूटी और गलत अंग्रेजी में लिखा हुआ था । हैण्ड राईटिंग से ऐसा लगता था जैसे पत्र का लेखक अंग्रेजी लिखने का आदी न हो ।
पत्र का सार इस प्रकार था ।
एम्पायार होटल
वांचई
हांग कांग ।
मिस्टर मुखर्जी सर,
मेरा नाम तिन-हा कपूर है । मैं रमेश कपूर की पत्नी हूं । अपने जीवन काल में रमेश ने मुझे बताया था कि अगर मेरे ऊपर कोई बहुत भारी मुश्किल आ पड़े तो मैं आपसे सम्पर्क स्थापित करूं । आज ऐसा ही भारी मुश्किल का समय आ गया है, इसलिए मैं आपको यह पत्र लिख रही हूं ।
कल एक कार दुर्घटना में रमेश की मृत्यु हो गई है । रमेश ने बहुत बार मुझसे कहा था कि यह उसका भारी दुर्भाग्य होगा अगर उसकी मृत्यु विदेश में हो गई । उसकी हार्दिक अभिलाषा थी कि उसका अन्तिम संस्कार उसकी मातृभूमि में ही हो । रमेश की अचानक मौत हो जाने के कारण उसकी अन्तिम इच्छा की पूर्ति की जिम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी है । मैं एक गरीब चीनी लड़की हूं । मेरे पास न तो इतना पैसा है और न ही मैं ऐसे साधन जुटा सकती हूं कि मैं रमेश की लाश वापिस भारतवर्ष ला सकूं । मैं नहीं जानती, रमेश से आपके सम्बन्ध कैसे हैं, लेकिन अगर आपका रमेश से कभी भी, तनिक भी लगाव रहा है तो भगवान के लिए उसकी अन्तिम इच्छा पूरी करने में पूरी सहायता कीजिये । मुझे शीघ्र ही पर्याप्त धन भिजवा दीजिये ताकि मैं लाश को दाह-संस्कार के लिए भारत लाने का इन्तजाम कर सकूं ।
तिन-हा कपूर ।
पत्र की भाषा में एक अजीब तरह का दर्द था । सुनील का दिल तनिक भारी हो उठा ।
उसने पत्र की फिर पहले की तरह तह करके मुखर्जी को वापिस कर दिया और फिर बोला - “तिन-हा ! ये ही चीनी लड़की है जो आज आपके फ्लैट पर कत्ल कर दी गई है ?”
“हां !”
“रमेश कपूर कौन था ?”
“रमेश कपूर मेरी ब्रांच का एक सदस्य था । एक लम्बे अरसे से वह हांगकांग में इंटरपोल के लिए काम कर रहा था ।”
“क्या काम ?”
“हांगकांग अफीम और अफीम से ही बनने वाले एक अफीम से कई गुणा अधिक मादक और घातक पदार्थ हेरोइन की स्मगलिंग का संसार का सबसे बड़ा अड्डा है । हांगकांग से मादक पदार्थों का यह जहर सारे संसार की रगों में फैलाया जाता है । संसार का कोई देश ऐसा नहीं है जहां भारी मात्रा में अफीम और हेरोइन नहीं पहुंचाई जाती । न केवल ये मादक पदार्थ स्मगल करके दूसरे देशों में पहुंचाये जाते हैं बल्कि इन मादक पदार्थों का व्यापार करने वाले लोग अपने एजेण्टों द्वारा युवकों और और नवयुवतियों को जान-बूझकर इन नशीली चीजों का आदी बना रहे हैं ताकि उनका व्यापार और बढे, और देशों की तरह भारत की इस कुचक्र का शिकार है । हर साल हजारों औंस हेरोइन नाजायज तरीकों से भारत में लाई जाती है । भारत के अधिकतर लोगों में क्योंकि शिक्षा का अभाव है और काफी कमाई न होने के कारण वे किसी कीमती नशे का खर्चा सहन नहीं कर सकते । इसलिए भारत में लोग ज्यादा तेजी से हेरोइन के आदी बने रहे हैं । हेरोइन का यह व्यापार क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का अपराध है इसलिये यह केस इंटरपोल को सौंपा गया था । इंटरपोल ने ही पता लगाया था कि सारे संसार में हेरोइन की सरकुलेशन हांगकांग से कन्ट्रोल की जाती है । इंटरपोल की सहायता के लिए हमने अपने एजेण्ट रमेश कपूर को भेजा था जो काफी लम्बे अरसे से हांगकांग में काम कर रहा था और वह हेरोइन के व्यापारियों के दल से काफी हद तक परिचित भी हो गया था ।”
मुखर्जी क्षण भर के लिए चुप हो गये ।
सुनील आंखों में गहरी दिलचस्पी का भाव लिए उसके दुबारा बोलने की प्रतीक्षा करने लगा ।
“इस आपरेशन में रमेश कपूर ने अनोखे दुस्साहस का परिचय दिया था । उसने हांगकांग में कुछ ऐसे लोग खोज निकाले थे जो हेरोइन के व्यापारियों से सम्बन्धित थे और भारत, पाकिस्तान, लंका, नेपाल वर्मा, मलाया वगैरह देशों में हेरोइन की स्मगलिंग में सक्रिय भाग लेते थे । कुछ ही महीनों में उन लोगों का विश्वासपात्र बनकर वह स्वयं भी हेरोइन का स्मगलर बन गया था और बाकायदा स्मगलिंग करने लगा था । रमेश कूपर का मिशन था स्मगलिंग रिंग के मुखिया और विभिन्न देशों में फैले उनके एजेण्टों की जानकारी हासिल करन ताकि एक ही झटके में सारे स्मगलिंग रिंग का ही समूल नाश कर दिया जाये ।”
“उसे सफलता मिली ?” - सुनील ने उत्सुकता से पूछा ।
“हां, किसी हद तक । हमें यह तो पता नहीं लगा कि वह स्मगलिंग रिंग के लीडर के बारे में जानकारी हासिल कर सका या नहीं, लेकिन उसने जो बड़ा काम किया वह यह था कि उसने कितने ही देशों में फैले हुए स्मगलरों के एजेंटों के नाम, पते और वे कोड जान लिए थे, जिनके सन्दर्भ में हांगकांग से उन लोगों से सम्पर्क स्थापित किया जाता था । उसने ट्रांसमीटर पर जो आखिरी सन्देश मुझे भेजा था, उसका अर्थ था कि लिस्ट बहुत लम्बी है और उन्हें ट्रांसमीटर पर प्रसारित करने में भारी खतरा है इसलिए वह किसी अन्य तरीक से लिस्ट को मेरे पास पहुंचाने का प्रयत्न करेगा । उसने क्या तरीका सोचा था, यह उसने मुझे नहीं बताया । इससे पहले कि हम दूसरी बार उससे सम्पर्क स्थापित कर पाते, मुझे तिन-हा की यह चिट्ठी मिली जो अभी मैंने तुम्हें दिखाई है और मुझे मालूम हुआ कि रमेश कपूर एक कार दुर्घटना में हांगकांग में मारा गया है ।”
“फिर ?”
“पहले तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि रमेश सचमुच ही मर गया है । मैं समझा कि कोई चीनी लड़की किसी प्रकार जान गई है कि रमेश कपूर से मेरा कोई सम्बन्ध है और अब वह स्वयं को उसकी पत्नी बताकर उसकी लाश भारत लाने के खर्चे की सूरत में मुझसे कुछ धन ऐंठने का प्रयत्न कर रही है । रमेश ने अपने किसी वायरलैस सन्देश में कभी भी मुझसे यह जिक्र नहीं किया था कि उसने तिन-हा नाम की किसी चीनी लड़की से शादी कर ली है । उसने एक बार यह जरूर कहा था कि वह एक चीनी लड़की की सहायता से स्मगलिंग रिंग का सदस्य बनने का प्रयत्न कर रहा है, लेकिन शादी के बारे में उसने कभी नहीं बताया था । अतः मैंने हांगकांग पुलिस को केवल भेजकर रमेश कपूर के बारे में इन्क्वायरी की और मुझे मालूम हुआ कि रमेश कपूर वाकई कार दुर्घटना में मर गया है । खुद उसकी चीनी पत्नी ने उसकी लाश की शिनाख्त की है ।”
मुखर्जी क्षण भर रुके और फिर बोले - “मुझे बेहद अफसोस हुआ । रमेश कपूर मुझ तक वह लिस्ट पहुंचा पाने से पहले ही दुर्घटना का शिकार हो गया और हमारी बरसों की मेहनत पर पानी फिर गया । भगवान जाने वह मरने से पहले लिस्टें किस सूरत में कहां रख गया है, किसे सौंप गया है ? हमारे पास रमेश कपूर की हांगकांग की जिन्दगी से सम्पर्क बनाने वाली एक ही कड़ी रह गई थी और वह थी उसकी चीनी पत्नी तिन-हा, बशर्ते कि वह वाकई रमेश की पत्नी थी ।”
“आपने तिन-हा को रमेश की लाश भारत लाने के लिए धन भेजा ?”
“हां ! अगले ही रोज मैंने तिन-हा को खर्चे की पर्याप्त राशि भिजवा दी और साथ ही सरकारी तौर पर इस बात का भी इन्तजाम करवा दिया गया कि उसे लाश भारत एक लाने में किसी प्रकार की असुविधा न हो । तिन-हा ने लाश को एक छ फुट लम्बे, तीन फुट चौड़े और ढाई फुट गहरे एयरटाइट क्रेट में बन्द करवा लिया । क्रेट के भीतर शीशे (Lead) की मोटी शीट लगी हुई थीं ताकि लाश सड़ने न लगे और फिर तिन-हा उस क्रेट को लेकर बारत आने वाले एक जहज पर सवार हो गई थी ।”
“यह क्रेट वही है जिस बारे में मैक्सटन ने कहा था कि वह अभी भी तिन-हा के बाकी सामान के साथ राजनगर की बन्दरगाह पर पड़ा है ?”
“हां !”
“खैर, फिर ?”
“मैं अपनी बची-खुची आशा तिन-हा पर लगाये बैठा था । मेरा विचार था कि अगर तिन-हा वाकई रमेश कपूर की पत्नी है तो सम्भव है कि रमेश ने वे लिस्टें उसे सौंप दी हों या वह ये जानती हो कि वे लिस्टें कहां हैं । इसलिए मैं बड़ी व्यग्रता से तिन-हा के राजनगर पहुंचने की प्रतीक्षा कर रहा था । आज मुझे मालूम हुआ था कि जस जहाज पर तिन-हा आ रही है, वह आज बन्दरगाह पर लगने वाला है । मैं तिन-हा को लेने के लिए बन्दरगाह पहुंच गया । मैं तिन-हा को पहचानता तो था नहीं । जहाज से जो भी चीनी लड़की अकेली उतरती, मैं तो उसे ही तिन-हा समझ लेता । लेकिन तिन-हा क्योंकि मैक्सटन के साथ थी इसलिए वह बन्दरगाह पर मेरी बगल में से गुजर गई और मैंने उसकी ओर ध्यान ही नहीं दिया । मैं चीनी लड़कियों के एक अन्य झुंड में तिन-हा की प्रतीक्षा में रहा और उतने अरसे में तिन-हा मेरी कोठी पर पहुंच गई और कत्ल कर दी गई । भगवान जाने वह लिस्टों के विषय में कुछ जानती थी या नहीं ।”
“सम्भव है उसके सामान से कोई सुराग हाथ लगे ।” - सुनील ने सुझाया ।
“जो बैग वह मेरी कोठी पर लेकर आई थी, उसे बड़ी बारीकी से चैक कर लिया गया है । उसमें हमारी अपेक्षित वस्तु नहीं है । उसका बन्दरगाह पर रखा हुआ सामान भी मैं शीघ्र ही चेक करवा लूंगा, लेकिन सुनील ! मेरा मन कहता है, हमें उसमें से कुछ हाथ लगने वाला नहीं है ।”
“मैक्सटन इस तस्वीर में कहां फिट होता है ?” - सुनील ने कुछ क्षण बाद पूछा ।
“वह भी सुनो ।” - मुखर्जी बोले - “मैक्सटन किसी अन्य केस के सिलसिले में हांगकांग में काम कर रहा था । वह कहता है कि वह रमेश कपूर को जानता था और उसे यह भी मालूम था कि रमेश कपूर वहां किस प्रकार का काम कर रहा था । रमेश कपूर बहुत खतरनाक काम कर रहा था और वह जानता था कि कभी भी उसका राज खुल सकता है इसलिए हर क्षण उसे अपने सिर पर तलवार लटकती महसूस होती थी । दुश्मन अगर यह जान जाता कि रमेश कपूर वास्तव में इंटरपोल का एजेंट है तो वे लोग उसे फौरन कत्ल कर देते । मैक्सटन कहता है कि रमेश ने उससे कहा था कि अगर कभी उसे कुछ हो जाये तो वह कम से कम उसकी चीनी पत्नी को सुरक्षित रूप से भारत पहुंचा दे । फिर एकाएक ही रमेश कार दुर्घटना का शिकार हो गया । मैक्सटन को जब मालूम हुआ कि रमेश मर गया है तो वह तिन-हा के पास पहुंचा और फिर बाद में वह तिन-हा को लेकर भारत की ओर रवाना हो गया । यह मैक्सटन की वास्तविक कहानी है । अपने टूरिस्ट होने की और तिन-हा को जहाज पर चढने से पहले न जानने की जो कहानी उसने पुलिस और प्रेस को बताई थी, वह मेरी गढी थी । मैंने ही उसे ऐसा बयान देने के लिए कहा था ताकि वास्तविक बात छुपी रहे ।”
“क्या तिन-हा को रमेश की लाश भारत लाने के लिए सच ही धन की जरूरत थी ?”
“मेरे ख्याल से नहीं । तिन-हा ने शायद वह पत्र मुझे इसलिए लिखा था ताकि शत्रु पक्ष को किसी प्रकार का सन्देह न हो और लाश को जहाज में लादने में कोई आनाकानी न हो ।”
“मैक्सटन को मालूम था तिन-हा राजनगर में किसके पास जाएगी ?”
“हांगकांग से चलते समय उसे कुछ मालूम नहीं था । वह कहता है कि तिन-हा पूछने पर उसे यह नहीं बताती थी कि वह भारत में कहां जायेगी । केवल राजनगर के बन्दरगाह पर उतरने के बाद उससे मैक्सटन को बताया था कि वह मेरे पास आ रही है ।”
“मैक्सटन जानता था कि आप कौन हैं ?”
“जानता तो नहीं, लेकिन अगरह वह वास्तव में इण्टरपोल का सदस्य है तो जान सकता है ।”
“मैक्सटन को हांगकांग से भारत आने में कोई पासपोर्ट और वीसा वगैरह की दिक्कत नहीं हुई ?”
“भई, वह इन्टरपोल का सदस्य है और उसके पास अन्तर्राष्ट्रीय पासपोर्ट है ।”
“आपने उसके कागजात देखे हैं ?”
“देखे हैं । सब ठीक हैं । वह फारटी सैकिंड स्ट्रीट न्यूयार्क का फिलिप मैक्सटन ही है जो एफ बी आई और इण्टरपोल से सम्बन्धित है । एफ बी आई ने अपने केवल में अपने फिलिप मैक्सटन नाम के जासूस के आस्तित्व की पुष्टि की है ।”
“फिर भी आप उस पर सन्देह कर रहे हैं ?”
“हां, चाहे तुम इसे अपनी हिमाकत समझ लो और चाहे यह समझ लो कि मेरी सिक्स्थ सैन्स काम कर रही है ।”
सुनील चुप हो गया ।
“अब अपने इस सवाल का जवान तो तुम्हें मिल ही गया होगा कि मैक्सटन से उसे कहीं रास्ते में ही क्यों न कत्ल कर दिया ? मान लो मैक्सटन शत्रु पक्ष का आदमी है और उसे यह मालूम नहीं कि तिन-हा रमेश की लाश लेकर भारत क्यों और किसके पास जा रही है । इसलिए तिन-हा को चेक करने के लिए वह उसके संरक्षक के रूप में उसके साथ भारत चला आया । शायद उसे मेरी कोठी पर आकर ही पता लगा हो कि मैं कौन हूं और तिन-हा क्यों मुझसे मिलने आई है ? सम्भव है कि मेरी कोठी पर पहुंच जाने के बाद तिन-हा स्वयं को सुरक्षित समझने लगी हो और उसने मैक्सटन को निरापद व्यक्ति समझकर उसे कोई बड़ी महत्वपूर्ण और शत्रु पक्ष के लिए घातक बात बता दी हो जैसे कि वह जानती है कि वे लिस्टे कहां हैं और वह मुझे उन लिस्टों को ठिकाना या उन्हें हासिल करने का तरीका बताने आई है । ऐसी सूरत में भला मैक्सटन क्या करता ? समय बहुत कम था । तिन-हा का मुंह बन्द रखने का एक ये ही तरीका था कि उसकी हत्या कर दी जाये और मैक्सटन ने उसे मार डाला ।”
“लेकिन सर, अगर यह सच भी है कि मैक्सटन अपने देश के साथ, खुफिया विभाग के साथ और इंटरपोल के साथ गद्दारी कर रहा है तो भी आप उसका बिगाड़ क्या सकते हैं ? वह अपने कागजात दिखाकर सिद्ध कर चुका है कि वह एफ बी आई का एजेन्ट है । आप एफ बी आई को केवल भेजकर इस बात की पुष्टि भी कर चुके हैं । ऐसी सूरत में आप मैक्सटन का बिगाड़ भी क्या सकते हैं ? बिना सबूत के उस पर हाथ डालने से भारी हंगामा खड़ा हो सकता है ।”
“मैं जानता हूं ।” - मुखर्जी धीरे से बोले - “इसीलिए तो मैंने तुम्हें बुलाया है कि तुम कुछ करो । सुनील, संभव है मैक्सटन तो जैसा एफ बी आई के अधिकारियों ने कहा है सच ही बड़ा ईमानदार एजेण्ट हो लेकिन जो मैक्सटन हमारे सामने है वह वास्तव में मैक्सटन न हो बल्कि मैक्सटन के भेष में कोई और बहरूपिया हो ।”
“यह कैसे हो सकता है ?” - सुनील अविश्वासपूर्ण स्वर से बोला ।
“क्यों नहीं हो सकता ?” - मुखर्जी जोर देखकर बोले - “क्यों नहीं हो सकता ? लोगों ने प्लास्टिक मेकअप में करिश्मे कर दिखाये हैं । सम्भव है यह आदमी प्लास्टिक मेकअप का बहुत बड़ा मास्टर हो । ऐसी सूरत में उसके लिए मैक्सटन का रूप धारण कर लेना क्या मुश्किल है ? वास्तविक मैक्सटन तिन-हा के संरक्षक के रूप में भारत आ रहा था । शत्रुओं को सन्देह हो गया । फिर इस बहुरूपिये ने किसी प्रकार मैक्सटन को अपने अधिकार में कर लिया और उसके कागजात वगैरह हथिया लिए । फिर उसने अपने चेहरे पर मैक्सटन का मेकअप किया और ठाठ के साथ यहां चला आया ।”
“लेकिन सर, इतना परफेक्ट मेकअप कैसे सम्भव है ?”
“क्यों सम्भव नहीं है ? प्लास्टिक मेकअप से तो तुम्हें देवानन्द बनाया जा सकता है ।”
“प्लास्टिक मेकअप से सूरत ही तो बदली जा सकती है । लेकिन आदमी की शिनाख्त के लिए उसके अतिरिक्त भी तो बहुत-सी बातें होती हैं । आदमी आंखों से पहचाना जा सकता है । आवाज से पहचाना जा सकता है । बात करने के लहजे से पहचाना जा सकता है । अपनी आदतों से पहचाना जा सकता है ।”
“मान लिया । लेकिन हमारे पास तो उसे केवल सूरत और उसके कागजात से पहचानने के साधन हैं । उसके आईडेंटिटी कार्ड का फोटोग्राफ बहुत पुराना है और जो रेडियो फोटोग्राफ हमें भेजे गये हैं । वे इतने स्पष्ट नहीं हैं कि हम आंखों की बनावट जैसे बारीक फर्क महसूस कर सकें । और भारत में कौन है जो उसकी आवाज से, आदतों से या बात करने के लहजे से पहचानेगा ?”
“अगर कोई ऐसा आदमी हो तो” - सुनील विचारपूर्ण स्वर से बोला - “मैक्सटन की पोल खुल सकती है ।”
“हां, बशर्ते कि यह वाकई असली मैक्सटन न हो । सम्भावना इस बात की भी तो है कि ये ही असली मैक्सटन हो और मेरा सन्देह निराधार हो ।”
“आप एक-दो बातें पता लगाइये सर !” - सुनील निर्णयात्मक स्वर से बोला ।
“क्या ?”
“एक तो एफ बी आई से मैक्सटन के परिवार और उसके घनिष्ठ मित्रों के विषय में जानकारी हासिल कीजिए । सम्भव है इनमें से कोई आजकल भारत में हो और मैक्सटन की शिनाख्त कर सके ।”
“और ?”
“जिस जहाज से तिन-हा और मैक्सटन भारत आये हैं, उसका कैप्टन अभी राजनगर में ही होगा । उससे पूछिये कि हांगकांग और भारत के बीच रास्ते में जहाज पर कोई असाधारण घटना तो नहीं हुई ?”
“इससे क्या होगा ?”
“अभी मुझे नहीं मालूम । यह घटना के प्रकार पर निर्भर करता है ।”
“खैर, और ?”
“तिन-हा के सामान की बड़ी बारीकी से तलाशी लीजिए । सम्भव है लिस्टें लाश वाले क्रेट या तिन-हा के सूटकेसों में मिल जायें ।”
“यह भी हो जायेगा । मैंने तिन-हा का सामान बन्दरगाह से कोठी पर लाने के लिए आदमी भेज दिये हैं, और कुछ ?”
“फिलहाल बस ।”
“अभी दो बजे हैं । शाम के छः बजे तक मैं सारी जानकारी हासिल कर लूंगा । उसके बाद तुम मेरे से सम्पर्क स्थापित कर लेना ।”
“ओ० के० सर !”
“अब तुम यहां उतर जाओ ।”
सुनील ने खिड़की से बाहर झांका । कार न जाने कब वापिस वाल्टन रोड पहुंच गई थी । मुखर्जी की कोठी अभी दूर थी ।
“आपकी कोठी के बाहर मेरी मोटरसाइकिल खड़ी है ।”
“वहां तक पैदल चले जाओ ।”
“बेहतर ।” - सुनील बोला और गाड़ी रुकने पर अपनी ओर का द्वार खोलकर बाहर फुटपाथ पर आ खड़ा हुआ ।
उसने द्वार बन्द कर दिया । कार आगे बढ गई ।
सुनील ने अपनी जेब से एक लक्की स्ट्राइक का सिगरेट निकालकर सुलगाया और टहलता हुआ फुटपाथ पर चलने लगा ।
मुखर्जी ने कभी ऐतराज नहीं किया था लेकिन फिर भी वह उनके सामने सिगरेट पीने से झिझकता था ।
***
शाम के लगभग साढे छः बजे सुनील ने कर्नल मुखर्जी की कोठी का टेलीफोन नम्बर डायल किया । कर्नल मुखर्जी का यह टेलीफोन नम्बर डायरेक्ट्री में नहीं था और इस नम्बर की जानकारी स्पेशल इंटैलीजेंस के सदस्यों और मुखर्जी के नौकर धर्मसिंह के अतिरिक्त किसी को नहीं थी ।
“हैलो !” - दूसरी ओर से उत्तर मिलने पर वह बोला - “78321 ।”
“यस सर !” - उत्तर मिला ।
“कर्नल साहब हैं ?”
“जी हां, हैं । आप कौन साहब बोल रहे हैं ?”
“डाक्टर भारद्वाज ।”
“जरा होल्ड कीजिए । साहब दूसरी लाइन पर बिजी हैं ।”
“अच्छा ।”
सुनील टेलीफोन कान से लगाये प्रतिक्षा करने लगा ।
दूसरी ओर से केवल ओपन लाईन की सांय-सांय सुनाई दे रही थी ।
कई क्षण बाद उसके कान में मुखर्जी की प्रभावशाली आवाज पड़ी ।
“सर, मैं सुनील बोल रहा हूं ।” - सुनील बोला ।
“तुम इस समय कहां हो ?” - मुखर्जी के स्वर में व्यग्रता का पुट था ।
“माडर्न काफी हाउस में ।”
“यह कहां है ?”
“मेहता रोड पर ।”
“तुम मुझे काफी हाउस के सामने मिलना । मैं पांच मिनट में पहुंचता हूं ।”
और सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर हुक पर टांग दिया और वापिस अपनी टेबल पर आ गया ।
उसने बिल चुकाया और उठ खड़ा हुआ ।
वह काफी हाउस के हाल में ही मुख्य द्वार के समीप बने बुक स्टाल पर आ खड़ा हुआ और पत्रिकायें देखने लगा ।
रह-रहकर उसकी दृष्टि फुटपाथ की ओर उठ जाती थी ।
थोड़ी ही देर बाद उसे फुटपाथ पर मुखर्जी की शेवरलेट रुकती दिखाई दी ।
सुनील ने सिगरेट फेंक दिया और बाहर आ गया ।
वह कार के दूसरी ओर के द्वार पर पहुंचा और उसे खोल चुपचाप भीतर बैठ गया ।
मुखर्जी ने कार स्टार्ट कर दी ।
कार भीड़-भाड़ वाले इलाके से निकलकर एक कम ट्रैफिक वाली सड़क पर आ गई ।
“बहुत भारी चोट हो गई, मिस्टर ।” - मुखर्जी सख्त स्वर से बोले ।
“क्या हो गया ?” - सुनील ने सशंक स्वर से पूछा ।
“तिन-हा का सामान हाथ से निकल गया । हम देख ही नहीं पाए, उससे क्या था और साथ ही हमारे दो आदमी भी मारे गए ।”
“कैसे ?”
“मेरे दो आदमी एक स्टेशन वैगन पर तिन-हा का सामान लाद कर बन्दरगाह से वाल्टन रोड आ रहे थे । बन्दरगाह से वाल्टन रोड आने वाली सड़क तुम जानते हो, जो दिन में भी सुनसान पड़ी रहती है । एक स्थान पर एक ट्रक सड़क पर इस प्रकार तिरछा खड़ा था कि स्टेशन वैगन उसे क्रास करके आगे नहीं निकल सकती थी । स्टेशन वैगन रुक गई । ड्राइवर पहले तो हार्न देता रहा लेकिन जब किसी ने कुछ नहीं सुना तो वह स्टेशन वैगन से बाहर निकल आया ।
उसी क्षण ट्रक में से किसी ने एक बम स्टेशन वैगन पर फेंका । स्टेशन वैगन के परखचे उड़ गए । स्टेशन वैगन के भीतर बैठे एक आदमी और बाहर खड़े ड्राइवर के शरीर क हड्डी की बोटी भी नहीं मिली । सिर्फ इतना ही नहीं, बाद में शत्रुओं ने स्टेशन वैगन के भग्नावशेषों पर और पेट्रोल छिड़क दिया ताकि कुछ भी बाकी न बच सके । अगले ही क्षण ट्रक वहां से भाग निकला ।”
“आपको इस घटना की जानकारी कैसे हुई ?”
“दूर सड़क पर एक साइकिल वाला आ रहा था । उसने यह घटना देखी थी और बाद में उसी ने सूचना दी थी । जब तक पुलिस घटनास्थल तक पहुंची तब तक सब कुछ राख के ढेर में परिवर्तित हो चुका था ।”
“बेचारा रमेश चाहता था कि उसकी लाश का दाह-संस्कार उसके अपने देश में हो, लेकिन शायद उसने ऐसे वीभत्स दाह-संस्कार की कल्पना नहीं की होगी । उसकी लाश की तो दुर्गति हुई ही, साथ ही उन लिस्टों के हमारे हाथ लगने की आखिरी आशा भी तिन-हा के सामान के साथ स्वाहा हो गई ।”
मुखर्जी के चेहरे पर क्रोध और विवशता के भाव परिलक्षित हो रहे थे ।
“जहाज के कैप्टन से कुछ पता लग सका ?” - सुनील ने कई क्षण बाद प्रश्न किया ।
“हां !” - उसने दो बातें ऐसी बताई हैं, जिन्हें सन्देह की दृष्टि से देखा जा सकता है ।” - मुखर्जी बोले ।
“क्या ?”
“एक तो यह कि जहाज के ब्वायलर में कोयला झोंकने वाला एक मजदूर चोरी के इल्जाम में पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया गया था । जिस समय वह पकड़ा गया था, उस समय जानते हो वह क्या कर रहा था ?”
सुनील ने प्रश्नसूचक दृष्टि से मुखर्जी को देखा ।
“वह जहाज के कार्गो होल्ड में रखे उस क्रेट को खोलने का प्रयत्न कर रहा था जिसमें रमेश कपूर की लाश थी ।”
“मतलब यह हुआ कि उस क्रेट पर शुरू से ही शत्रुओं की नजर थी ।”
“ऐसा ही मालूम होता है ।”
“क्या ऐसा हो सकता है कि रमेश की लाश के साथ लिस्टें भी उसी क्रेट में हों ।”
“हो क्यों नहीं सकता ? होने को तो सभी कुछ हो सकता है लेकिन अब क्या फर्क पड़ता है । तिन-हा का सामान स्वाहा हो जाने के बाद तो हमें यह आशा करनी चाहिए कि लिस्टें उस क्रेट में नहीं थी ।”
“और दूसरी बात क्या थी ?”
“जहाज का डेक्सटर नाम का एक आदमी समुद्र में गिरकर मर गया ।”
“समुद्र में कैसे गिर गया वह ?”
“कैप्टन कहता है हमें पता नहीं । वास्तव में किसी ने उसे समुद्र में गिरते देखा नहीं । अगले दिन जब सारे जहाज पर तलाश करने के बावजूद भी वह कहीं दिखाई नहीं दिया तो यह समझ लिया गया था कि वह अपनी असावधानी के कारण डेक से समुद्र में जा गिरा था । राजनगर पहुंचने पर उसका सामान कस्टम अधिकारियों को सौंप दिया गया । सामान की अच्छी जांच पड़ताल की गई थी लेकिन डेक्सटर कौन है, वास्तव में कहां का निवासी है, कुछ पता नहीं लग पाया था । उसका सामान अभी भी लावारिस कस्टम में पड़ा है ।”
“लेकिन उसके पासपोर्ट पर उसकी राष्ट्रीयता, पता वगैरह तो होगा ?”
“पासपोर्ट जाली था । इसलिए बाकी विवरण की प्रमाणिकता के विषय में तुम खुद अनुमान लगा सकते हो ।”
“मैक्सटन के बारे में कोई नई बात पता लगी ?”
“हां ! मैक्सटन का कोई परिवार वगैरह नहीं है और न उसका कोई घनिष्ट मित्र हैं । वह बेहद नीरस आदमी समझा जाता है और घनिष्टता की हद तक तो उसकी किसी से जानकारी हो ही नहीं पाती है । उसके अपने परिवार के नाम पर उसकी एक बीवी है, जो अपने पति और अपने विवाहित जीवन से एकदम असन्तुष्ट है । शादी को छः बरस हो गये हैं और अभी तक कोई औलाद नहीं हो पाई है उसके । इस बात के लिए वह मैक्सटन को दोषी ठहरती है और अब वह इसी ग्राउंड पर उसे तलाक देना चाहती है ।”
“आजकल मिसेज मैक्सटन कहां हैं ?”
“पता नहीं, कम से कम न्यूयार्क में नहीं है । क्या यह जानकारी मैक्सटन को चैक करने के लिए किसी प्रकार का फायदा पहुंचा सकती है ?”
“यह तो निर्भर करता है ।”
“किस बात पर ?”
“इस बात पर कि आप मैक्सटन की बीवी को तलाश कर सकते हैं या नहीं ?”
“इससे क्या फर्क पड़ेगा ?”
“इससे भारी फर्क पड़ेगा । मैक्सटन के स्थान पर अगर हमारे सामने कोई बहरूपिया है तो वह कितने ही तगड़े मेकअप में क्यों न हो, मैक्सटन की बीवी से उसकी असलियत नहीं छुप सकती । जो मैक्सटन हमारे सामने है, अगर वह मेकअप में कोई दूसरा आदमी है तो उसका फ्राड कोई खोल सकता है तो उसकी बीवी । आप उसकी बीवी को ढूंढ निकालिये, बाकी काम एकदम आसान हो जायेगा ।”
“क्या असम्भव बातें करते हो ?” - मुखर्जी अकड़कर बोले - “इतनी बड़ी दुनिया में से एक अकेली औरत कैसे ढूंढकर निकाली जा सकती है ?”
“तरकीब मैं बताता हूं । काम आप कीजिए ।” - सुनील आत्मविश्वासपूर्ण स्वर से बोला ।
“क्या तरकीब है ?” - मुखर्जी ने संदिग्ध स्वर से पूछा ।
“सर ।” - सुनील धीमे स्वर से बोला - “तरकीब यह है...”
***
रात के लगभग नौ बजे सुनील के 2 - बैंक स्ट्रीट स्थित फ्लैट के फोन की घंटी बज उठी ।
“हैलो ।” - सुनील रिसीवर उठाकर बोला ।
“मुखर्जी स्पीकिंग ।” - दूसरी ओर से आवाज आई ।
“यस सर !” - सुनील बोला ।
“तुम्हारी बताई तरकीब इस्तेमाल की गई है । इस समय मैक्सटन की बीवी लेक व्यू होटल के तीन सौ चौदह नम्बर कमरे में मौजूद है ।”
“थैंक्यू सर !”
“तुम गोपाल को जानते हो न ? चन्द्रशेखरन के अगवा वाले केस में तुम उसके साथ काम कर चुके हो ।”
“जी हां, जानता हूं ।”
“उसे होटल इम्पीरियल की निगरानी के लिए भेज दिया गया है, राइट ?”
“यस सर !”
“और कुछ ?”
“फिलहाल इतना ही काफी है ।”
“ओ के दैन । गो अहेड ।”
और दूसरी ओर से सम्बन्ध-विच्छेद हो गया ।
सुनील ने भी रिसीवर रख दिया ।
उसने अपना गहरे भूरे रंग का शानदार सूट पहना और हाथ में ब्रीफकेस थामे हुए बाहर निकल आया ।
उसने अपने फ्लैट का ताला लगाया और सीढियां उतरकर इमारत से बाहर निकल आया ।
उसकी मोटरसाइकिल इमारत के सामने एक अहाते में खड़ी थी, लेकिन सुनील ने उसे साथ ले जाने का उपक्रम नहीं किया ।
वह अपने हाथ में चाबियां उछालता हुआ बगल की इमारत को ओर बढा जिसके ग्राउण्ड फ्लोर पर कई गैरेज थे । उन गैरेजों में से एक सुनील की चमचमाती हुई एम्बेसेडर गाड़ी खड़ी रहती थी जो उसे उपहार स्वरूप मिली थी और जो बेहद कम इस्तेमाल होती थी । क्योंकि उसकी नजर में उसकी साढ़े सात हार्स पावर की मोटरसाइकिल के मुकाबले का मोटर व्हीकल दुनिया में बना ही नहीं था ।
सुनील ने गैरेज में से कार निकाली और इम्पीरियल होटल की ओर चल दिया ।
होटल के समीप पहुंचकर उसने कार भीतर होटल की पार्किंग में ले जाने के स्थान पर बाहर ही खड़ी कर दी और फिर पैदल ही होटल के कम्पाउण्ड में घुस गया ।
होटल की बगल में एक टैक्सी स्टैंड था, जिस पर उस समय चार-पांच टैक्सियां खड़ी थीं और उनके ड्राइवर एक चारपाई पर बैठे गप्पें हांक रहे थे ।
उन ड्राइवरों में से एक गोपाल भी था । वह ड्राइवरों जैसी खाकी वर्दी पहने हुए था और बड़े धड़ल्ले से बीड़ी के कश लगा रहा था । उसने एक उड़ती-सी नजर सुनील पर डाली और फिर गप्पें हांकने में मग्न हो गया ।
सुनील अपने दायें हाथ में ब्रीफकेस लटकाये सन्तुलित कदमों से चलता हुआ होटल में घुस गया ।
वह रिसेप्शन पर पहुंचा ।
“आपके यहां एक मिस्टर फिलिप मैक्सटन ठहरे हुए हैं ?” - सुनील ने रिसेप्शन क्लर्क से पूछा ।
“जी हां ।” - क्लर्क ने उत्तर दिया ।
“क्या वे इस समय अपने कमरे में मौजूद हैं ?”
क्लर्क ने काउण्टर की पिछली दीवार पर लगे चाबियां टांगने वाले बोर्ड पर दृष्टि डाली और फिर बोला - “जी हां !”
“क्या मैं उनसे मिल सकता हूं ?”
“मैं मिस्टर मैक्सटन से अभी पूछता हूं ।” - क्लर्क बोला और उसने काउंटर पर रखा फोन उठा लिया ।
“रूम फाइव थर्टी प्लीज ।” - वह आपरेटर से बोला ।
थोड़ी देर क्लर्क चुप रहा और फिर एकदम आदरपूर्ण स्वर से बोला - “गुड ईवनिंग मिस्टर मैक्सटन ! आई एम सारी टू डिस्टर्ब यू एट दिस, आवर... बट ए जेण्टलमैन वांट्स टू सी यू... दि नेम इज...”
और उसने प्रश्नसूचक दृष्टि से सुनील की ओर देखा ।
“चक्रवर्ती ।” - सुनील जल्दी से बोला ।
“दि नेम इज मिस्टर चक्रवर्ती ।” - क्लर्क फिर रिसीवर में बोला - “यस सर !”
क्लर्क के चेहरे के भावों से सुनील को यूं लगा जैसे मैक्सटन उसे टालने का प्रयत्न कर रहा हो ।
“जरा टेलीफोन मुझे दो ।” - वह बोला और उसने लगभग जबरदस्ती ही रिसीवर क्लर्क के हाथ से झपट लिया ।
“मिस्टर मैक्सटन !” - वह रिसीवर अपने कान से लगाकर बोला - “चक्रवर्ती आन दिस साइड ।”
“यस मिस्टर चक्रवर्ती ।” - उसे मैक्सटन का रुक्ष स्वर सुनाई दिया ।
“मैं एक महत्वपूर्ण विषय पर आपसे बात करना चाहता हूं ।”
“इस समय ?”
“जी हां !”
“क्या वह महत्वपूर्ण विषय सुबह तक इन्तजार नहीं कर सकता ?”
“विषय इन्तजार कर सकता है, मैं नहीं । मैं बहुत बिजी आदमी हूं मिस्टर मैक्सटन ।”
“लेकिन आप हैं कौन ?”
“मैं एक वकील हूं ।”
“और विषय क्या है ?”
“विषय के बारे में फोन पर कुछ कहना उचित न होगा ।”
“फिर भी कोई संकेत तो दीजिए ।”
“संकेत के तौर पर इतना जान लीजिए कि आपकी पत्नी आपको तलाश करती हुई भारत पहुंच गई है और मैं उसका वकील हूं ।”
मैक्सटन के मुंह से घबराहटभरी सिसकारी-सी निकल गई । सुनील के कान में वह आवाज यू पड़ी जैसे सांप फुंफकार रहा हो ।
“प्लीज कम अप मिस्टर चक्रवर्ती । आई एम वेटिंग फार यू ।”
“कमिंग राइट अवे ।” - सुनील बोला और उसने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
“मिस्टर मैक्सटन का रूम नम्बर क्या है ?” - उसने क्लर्क से पूछा ।
“पांच सौ तीस । मिस्टर मैक्सटन ने आपको ऊपर आने के लिए कहा है ?” - वह संदिग्ध स्वर से बोला ।
“तुम्हें शक है ?” - सुनील बड़ी कठोरता से उसे आग्नेय नेत्रों से घूरता हुआ बोला ।
“नो सर ।” - क्लर्क हड़बड़ाकर बोला - “नाट एट आल सर ।”
सुनील बिना क्लर्क की ओर दोबारा देखे काउण्टर से हट गया ।
वह लिफ्ट की सहायता से होटल की पांचवीं मन्जिल पर पहुंचा ।
पांच सौ तीस नम्बर कमरे के सामने जाकर उसने द्वार को धीरे से खटखटाया ।
मैक्सटन ने द्वार खोला ।
“गुड ईवनिंग टु यू ।” - सुनील मुस्कराकर बोला - “आई एम चक्रवर्ती ।”
“गुड ईवनिंग ।” - मैक्सटन से उससे हाथ मिलाया - “प्लीज कम इन मिस्टर चक्रवर्ती ।”
सुनील कमरे में प्रविष्ट हो गया । मैक्सटन बड़े गौर से उसके चेहरे को देख रहा था ।
“प्लीज सिट डाउन ।” - वह बोला ।
सुनील एक कुर्सी पर बैठ गया ।
मैक्सटन भी पलंग के सिरे पर बैठ गया ।
“मेरी पत्नी भारत कैसे पहुंच गई ?”
“क्यों ? अमेरिकन महिलाओं का भारत आना बुरा समझा जाता है क्या ?”
“नहीं, नहीं ।” - मैक्सटन जल्दी से बोल पड़ा - “मेरा यह मतलब नहीं था । मेरा मतलब है, उसे यह कैसे मालूम हो गया कि मैं भारत में हूं । मुझे तो भारत में कदम रखे हुए अभी एक पूरा दिन भी नहीं हुआ है ।”
“आपकी पत्नी कहती है कि उसे आपके हांगकांग होने का ज्ञान था । कोई प्राइवेट जासूस उसने आपके पीछे लगाया हुआ था । उसने आपके हांगकांग में होने के विषय में सूचना भेजी ही थी कि आप हांगकांग से गायब हो गये थे । फिर उस जासूस ने हांगकांग से बाहर जाने वाले सारे हवाई जहाजों और पानी के जहाजों की पैसेंजर लिस्ट चैक की थी और उसे आपका नाम राजनगर आने वाला जहाज की पैसेंजर लिस्ट में दिखाई दे गया था । परिणामस्वरूप आपकी पत्नी आपको स्वागत के लिए आपसे पहले ही राजनगर पहुंच गई ।”
“लेकिन क्यों ?”
“मिस्टर मैक्सटन, क्या आपको पत्नी के भारत आने की खुशी नहीं हुई ?”
“खुशी को गोली मारिये साहब, मैं पूछता हूं आखिर उसने क्यों मेरे पीछे प्राइवेट जासूस लगाया हुआ था ? वह यहां आई क्यों ? वह मुझसे चाहती क्या है ?”
“आपको नहीं मालूम ?” - सुनील बनावटी विस्मय प्रकट करता हुआ बोला ।
“पहेलियां मत बुझाइये ।” - मैक्सटन रुक्ष स्वर से बोला ।
“आपकी पत्नी आपसे तलाक चाहती है ।” - सुनील स्थिर स्वर से बोला ।
“तलाक !”
“जी हां ।”
“लेकिन क्यों ?”
“क्योंकि आप उसमें कतई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । आप अधिकतर न्यूयार्क से बाहर रहते हैं और जब न्यूयार्क वापिस जाते हैं तब भी आप उससे ऐसी घनिष्टता से पेश नहीं आते जैसी घनिष्टता से एक अच्छे पति को अपनी पत्नी के साथ पेश आना चाहिए । आपकी शादी को छः बरस हो गये हैं लेकिन अपनी क्रूरता के कारण आप अपनी पत्नी को विवाहित जीवन के आनन्द से वंचित रख रहे हैं ।”
“वह समझती है कि इस आधार पर उसे तलाक मिल जायेगा ।”
“मैं उसका वकील हूं । मैं समझता हूं इस आधार पर यूं” - सुनील चुटकी बजाता हुआ बोला - “तलाक मिल जायेगा और मेरा समझना बहुत काफी है ।”
“अच्छा मान लिया, तलाक मिल जायेगा उसे ।” - मैक्सटन उतावले स्वर से बोला - “अब आप क्या चाहते हैं ?”
“आप थोड़ी देर के लिए मेरे साथ चलिये ।”
“कहां ?”
“लेक व्यू होटल में जहां आपकी पत्नी ठहरी हुई है ।”
“क्यों ?”
“ताकि आपसे कुछ लीगल पेपर्स पर साइन करवाये जा सकें ।”
“अगर मैं न जाऊं ?”
“तो मिस्टर मैक्सटन, आपकी पत्नी यहां पहुंच जायेगी और उसके बाद, विश्वास कीजिए, एक हंगामा खड़ा हो जायेगा ।”
“कौन करेगा हंगामा ?”
“आपकी पत्नी । एक बार यहां पहुंच जाने के बाद वह इस बात की परवाह नहीं करेगी कि आप एक बड़े होटल में ठहरे हुए एक इज्जतदार आदमी हैं । आपको सरे बाजार खराब करते समय वह इस बात की परवाह नहीं करेगी कि इस सिलसिले में उसकी भी तौहीन होगी । उसने बहुत सब्र कया है, मिस्टर मैक्सटन । उसके सब्र का इम्तहान मत लीजिये । अच्छा है आप मामला शान्ति से निपटा लें ।”
“लेकिन केवल कागजात पर दस्तखत करने की खातिर तुम मुझे लेक व्यू होटल ले जाना चाहते हो ? मुझझे यहीं दस्तखत क्यों नहीं करवा लेते तुम ?”
“नहीं ।” - सुनील गम्भीरता से बोला - “आपका लेक व्यू होटल में अपनी बीवी के सामने जाना जरूरी है ।”
“लेकिन क्यों ?”
“क्योंकि आपकी बीवी ही अपने पति फिलिप मैक्सटन को पहचानती है, मैं नहीं ।”
“तो तुम्हारा मतलब है, मैं फिलिप मैक्सटन नहीं ?”
“मैंने यह नहीं कहा । देखिये साहब, मैं वकील हूं । हर विषय को सन्देह की दृष्टि से देखना मेरा काम है । मैं केस में कोई लूप होल छोड़ने में विश्वास नहीं रखता । मेरी नजर में आपकी पत्नी द्वारा आपकी शिनाख्त बहुत जरूरी है । अगर मिसेज मैक्सटन आपकी शिनाख्त अपने पति के रूप में कर लेंगी तो मैं कागजात पर आपके दस्तखत करवाने में आपका दो मिनट से अधिक समय नहीं लूंगा ।”
मैक्सटन कई क्षण चुप रहा और फिर झुंझलाये स्वर से बड़बड़ाया - “लेकिन यह हो कैसे सकता है कि यूं एकाएक मेरी पत्नी न्यूयार्क से राजनगर पहुंच गई हो ?”
“संसार विचित्रओं का घर है ।” - सुनील दार्शनिकतापूर्ण स्वर से बोला ।
“मैं कहता हूं, वह औरत मेरी पत्नी नहीं हो सकती ।”
“तो फिर आप थोड़ी-सी तकलीफ गवारा करके लेक व्यू होटल चले जाइये और खुद अपनी आंखों से देख आइये कि होटल के तीन सौ चौदह नम्बर कमरे में मौजूद महिला आपकी पत्नी है या नहीं ।”
“मैं कहीं नहीं जा सकता ।”
“बेहतर ।” - सुनील शान्ति से बोला - “आप मत जाइए । मैं उन्हें यहां बुला लाता हूं ।”
“नहीं ।”
“तो फिर यह समस्या कैसे हल होगी ?”
“तो देखो मिस्टर चक्रवर्ती ।” - मैक्सटन एकदम निर्णयात्मक स्वर से बोला - “मैं इस समय लेक व्यू होटल नहीं जा सकता, चाहे वह औरत यहां आकर हंगामा खड़ा कर दे या जंग । हालांकि मुझे तो सारी बात ही एक बेवकूफी-भरी हरकत लगती है लेकिन फिर भी मैं आपकी ईमानदारी पर विश्वास करके आपको इतना सहयोग दे सकता हूं कि कल सुबह मैं आपके साथ लेक व्यू होटल चला चलूं । ओके !”
“ओके !”
“आप कल सुबह यहां आ जाइये, मैं आपके साथ चला चलूंगा ।”
“सूट्स मी ।” - सुनील उठता हुआ बोला - “मैं कल सुबह दस बजे यहां आ जाऊंगा ।”
मैक्सटन भी उठ खड़ा हुआ ।
सुनील ने मैक्सटन से हाथ मिलाया और द्वार की ओर बढ चला । मैक्सटन ने आगे बढकर द्वार खोल दिया ।
द्वार से बाहर निकलकर एक बार फिर सुनील ने मिलाने के लिए हाथ बढा दिया - “मैं कष्ट के लिए क्षमा प्रार्थी हूं ।”
“कोई बात नहीं ।” - मैक्सटन बोला - “मिस्टर चक्रवर्ती !”
“यस ।”
“लगता है ।” - मैक्सटन विचारपूर्ण स्वर से बोला, “मैंने आपको पहले कहीं देखा है ।”
“मुमकिन है ।” - सुनील शान्ति से बोला - “मैक्सटन साहब, दरअसल बात यह है कि मैं सिगरेट तो पीता हूं लेकिन आदतन कभी माचिस अपने पास नहीं रखता । सम्भव है कभी मैंने आपसे सिगरेट सुलगाने के लिए माचिस मांगी हो ।”
“आप तो मजाक कर रहे हैं ।”
“मैं गम्भीर हूं और फिर सम्भव है आपको वहम ही हुआ हो । विदेशियों को शुरू-शुरू में सारे हिन्दोस्तानियों की सूरतें एक-सी ही मालूम होती हैं ।”
“लेकिन मुझे तो आपकी आवाज भी सुनी हुई मालूम होती है ।”
“अगर मैंने कभी आपसे माचिस मांगी होगी तो स्वाभाविक है आपने मेरी आवाज भी सुनी होगी ।”
“सम्भव है ।” - एकाएक मैक्सटन बड़े बोर स्वर से बोला - “ऐनी वे, मिस्टर चक्रवर्ती गुड नाइट ।”
“गुड नाईट ।” - सुनील बोला और लिफ्ट की ओर बढ गया ।
उसे अपने पीछे मैक्सटन के कमरे का द्वार बन्द होने की आवाज आई ।
सुनील लिफ्ट द्वारा नीचे आया और फिर होटल से बाहर निकल आया ।
वह अपनी कार में जा बैठा ।
उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और स्टियरिंग पर कोहनियां टिकाये होटल के मुख्य द्वार को देखने लगा । होटल के विशाल मुख्य द्वार के बड़े-बड़े शीशों में से रिसेप्शन का पूरा काउण्टर, टेलीफोन बूथ और लिफ्ट साफ दिखाई दे रही थीं ।
लगभग चार सिगरेटों के बाद उसे लिफ्ट में से मैक्सटन निकलता दिखाई दिया ।
मैक्सटन रिसेप्शन काउण्टर पर पहुंचा । कुछ क्षण बाद वह लम्बे डग भरता हुआ एक टेलीफोन बूथ के समीप पहुंचा और भीतर घुस गया ।
लगभग पांच मिनट बाद वह बूथ में से बाहर निकला और फिर होटल से बाहर निकला ।
द्वार पर खड़े एक बेल ब्वाय से उसने कुछ कहा । बेल व्वाय ने आदरपूर्ण ढंग से सिर झुकाया और फिर उच्च स्वर से बोला - “टैक्सी ।”
बाहर टैक्सी स्टैंड पर चारपाई पर बैठे ड्राइवरों में से गोपाल उठा । उसने बीड़ी सड़क पर फेंकी और एक टैक्सी की ओर बढा ।
अगले ही क्षण उसने टैक्सी लाबी में मैक्सटन के सामने ला खड़ी की ।
मैक्सटन ने गोपाल से कुछ कहा और गोपाल ने स्वीकृति-सूचक ढंग से सिर हिलाया और फिर मैक्सटन टैक्सी की पिछली सीट का दरवाजा खोलकर भीतर जा घुसा । उसने अपना सिर सीट के साथ टिका दिया । हाव-भाव से वह बेहद चिन्तित दिखाई दे रहा था ।
टैक्सी एक झटके के साथ आगे बढी और कम्पाउण्ड से बाहर निकल गई ।
सुनील के चेहरे पर एक रहस्यमय मुस्कराहट फैल गई । उसने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और उसे बैंक स्ट्रीट ले जाने वाली सड़क पर डाल दिया ।
उसने टैक्सी का पीछा करने का उपक्रम नहीं किया ।
उसके चेहरे पर सन्तुष्टि के भाव थे ।
***
अगले दिन सुबह पूरे दस बजे सुनील इम्पीरियल होटल में मैक्सटन के कमरे का द्वार खटखटा रहा था ।
मैक्सटन ने द्वार खोला ।
“मार्निंग ।” - सुनील मुस्कराया ।
“मार्निंग ।” मैक्सटन बोला - “मैं तैयार हूं ।”
“तो चलिये ।” - सुनील बोला ।
मैक्सटन ने द्वार बन्द करके उसे ताला लगाया और सुनील के साथ नीचे आ गया ।
उसके चेहरे से निश्चिन्तता टपक रही थी ।
“हाउ अबाउट ए कप आफ टी ?” - मैक्सटन ने पूछा ।
“नो थैंक्स ।” - सुनील बोला - “मैं चाय पीकर आया हूं ।”
“आल राईट ।” - मैक्सटन बोला । उसने कमरे की चाबी काउंटर पर क्लर्क को सौंपी और होटल से बाहर निकल आया ।
“टैक्सी ले लें ?” - मैक्सटन बोला ।
“नहीं, मैं कार लाया हूं ।” - सुनील बोला और वह कम्पाउण्ड में बने कार पार्क की ओर बढ गया, जहां उसकी एम्बेसेडर खड़ी थी ।
एम्बेसेडर के हुड के साथ टेक लगाये गोपाल खड़ा था । वह इस समय शोफर की चमचमाती हुई सफेद वर्दी पहने हुए था, टोपी उसने अपनी बगल में दबाई हुई थी ।
उन्हें कार की ओर आता देखकर उसने टोपी सिर पर पहन ली और फिर बड़ी तत्परता से कार की पिछली ओर का द्वार खोल दिया ।
दोनों के कार में सवार हो जाने के बाद वह ड्राइविंग सीट पर आ बैठा और गाड़ी को पार्किंग से निकालकर बाहर की ओर ले चला ।
“कहां चलूं साहब ?” - उसने पूछा ।
“लेक व्यू होटल ।” - सुनील ने उत्तर दिया ।
गाड़ी के लेक व्यू होटल पहुंच जाने तक कोई कुछ नहीं बोला ।
मैक्सटन और सुनील होटल की लाबी में उतर गये और फिर भीतर जाकर लिफ्ट द्वारा तीसरी मन्जिल पर पहुंचे और फिर उन्होंने तीर से चौदह नम्बर कमरे का द्वार खटखटा दिया ।
जिस औरत ने द्वार खोला उसे देखकर सुनील की आंखें चौंधिया गई । वह भूरे वाल और नीली आंखों वाली फिल्म अभिनेत्रियों जैसी खूबसूरत औरत थी । वह बड़े-बड़े कालरों वाली सफेद सिल्क की बुशर्ट और काली स्कर्ट पहने हुए थी, जिसके कारण वह अपनी वास्तविक आयु से बहुत ही कम मालूम होती थी ।
“हैलो, मिस्टर चक्रवर्ती ?” - वह मुस्कराई और फिर मैक्सटन की ओर आकर्षित होकर बड़े व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोली - “एण्ड हाऊ आर यू माइ डियर हसबैंड ?”
मैक्सटन ने कोई उत्तर नहीं दिया । वह चुपचाप कमरे के भीतर घुस गया और वह कुर्सी पर ढेर हो गया ।
मिसेज मैक्सटन और सुनील भी भीतर आकर बैठ गये ।
“शुक्र है” - मिसेज मैक्सटन फिर व्यंगात्मक स्वर से बोली - “न्यूयार्क से हजारों मील की दूरी ही सही लेकिन तुम्हारे दर्शन तो हुए ।”
“तुम यहां कैसे आ पहुंची ?” - मैक्सटन चिढे स्वर से बोला ।
“वण्डरफुल !” - वह बोली - “दस महीने बाद मुलाकात होने के बाद मुझे पूछने के लिए पहला सवाल कितना बढिया चुना है । मुझसे यह नहीं पूछा कि मैं जिन्दा हूं या मर गई । पिछले दस महीने मैंने कैसे गुजारे । उल्टे पत्थर की तरह मेरे सिर पर यह सवाल पटक दिया कि मैं यहां कैसे पहुंची ? कैसे खुदगर्ज इन्सान हो तुम ? बजाय मुझ पर खुशी जाहिर करने के तुम...”
“अजनबियों के सामने मेरे बारे में ऐसी बातें करने में तुम्हें शर्म आनी चाहिए ।” - मैक्सटन एकदम लाल होकर बोला ।
“कौन अजनबी है यहां ?” - वह तमककर बोली - “मिस्टर चक्रवर्ती मेरे वकील हैं, तुम मेरे पति हो । अजनबी कौन है यहां ? और फिर तुम्हारे जैसे दुखदाई इन्सान की करतूतों का वर्णन तो मुझे चौराहे पर खड़े होकर करना चाहिए ।”
“तुम चाहती क्या हो ?” - मैक्सटन उखड़कर बोला ।
“वाह, अभी तक तुम्हें यही पता नहीं लगा कि मैं चाहती क्या हूं । मैं तलाक चाहती हूं । तलाक । मैं आजाद होना चाहती हूं ताकि मैं किसी मर्द से शादी कर सकूं ।”
“इसके लिए यूं भूत की तरह मेरे पीछे पड़ने की क्या जरूरत थी, तुम न्यूयार्क में मेरा इन्तजार भी तो कर सकती थी ?”
“बहुत इन्तजार कर चुकी हूं मैं । तुम्हारे न्यूयार्क लौटने की आशा खो चुकने पर ही मैं तुम्हारे पीछे-पीछे यहां आई हूं मेरे सब्र का प्याला भर चुका है ।”
इससे पहले कि मैक्सटन कुछ बोल पाता, सुनील बोल पड़ा - “जरा आप लोग पहले मेरी बात सुनो ।”
दोनों सुनील को देखने लगे ।
“मुझे आप लोगों के व्यक्तिगत झगड़ों में कोई दिलचस्पी नहीं है । इसलिए पहले जो मेरा काम है वह मुझे आप कर लेने दीजिए ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“मैडम ।” - सुनील ने मिसेज मैक्सटन को सम्बोधित किया ।
“यस मिस्टर चक्रवर्ती !” - वह बोली ।
“ये साहब आपके पति हैं ?”
“यस !”
“श्योर ?”
“श्योर ।”
“आप इनकी कोई विशेष पहचान बता सकती हैं ?”
“विशेष पहचान ?”
“जी हां ! जैसे इनके शरीर पर कोई पुराना चोट का निशान था इनकी कोई विशेष आदत ?”
“इनकी पीठ पर बायें कन्धे के नीचे दो इन्च लम्बा चोट का निशान है ।”
“मिस्टर मैक्सटन ।” - सुनील मैक्सटन की ओर मुड़ा ।
“यह क्या हिमाकत है ?” - मैक्सटन झल्लाया - “अब मैं यहां कपड़े उतारूं ?”
“क्या हर्ज है ?” - सुनील भोले स्वर से बोला ।
“नानसेंस ।”
“मैं आपसे प्रार्थना करता हूं ।”
मैक्सटन कुछ क्षण खा जाने वाले नेत्रों से दोनों को देखता रहा । फिर अपना कोट उतार कर पलंग पर फेंक दिया और कमीज को पतलून में से खींचकर कन्धों से ऊपर चढा ली और फिर सुनील की ओर पीठ करके खड़ा हो गया ।
मिसेज मैक्सटन द्वारा बताये स्थान पर वाकई दो इन्च लम्बा चोट का निशान था ।
“थैंक्यू सर !” - सुनील निराशापूर्ण स्वर से बोला - “थैंक्यू वरी मच इनडीड ।”
मैक्सटन ने अपनी कमीज व्यवस्थित की और कोट पहन लिया ।
“और यह श्रीमती जी आपकी पत्नी है ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां ।” - मैक्सटन विष भरे स्वर से बोला - “मेरी बदकिस्मती है यह ।”
“मेरे लिए भी इनकी पत्नी होना कोई विशेष गौरव का विषय नहीं है ।” - वह भी उसी स्वर से बोली ।
“प्लीज !” - सुनील हाथ उठाकर बोला - “प्लीज ! शान्त हो जाइये । मिस्टर मैक्सटन, आपको तलाक में कोई ऐतराज है ?”
“ऐतराज ! मुझे खुशी होगी ।” - मैक्सटन बोला - “बशर्ते कि प्रापर्टी सैटलमैंट और एलीमनी के नाम पर मेरे से एक पैसा न मांगा जाए ।”
“मैं थूकती हूं तुम्हारे पैसे पर ।” - वह गुर्राई ।
“यह और भी अच्छी बात है । मुझे कोई ऐतराज नहीं है, वकील साहब ।”
“तो आप मेरे साथ चलिये और कुछ कागजात पर अपने साइन कर दीजिए ।”
“चलिये ।” - मैक्सटन बोला और बिना मिसेज मैक्सटन पर दूसरी दृष्टि भी डाले बाहर निकल आया ।
सुनील ने कमर तक झुककर मिसेज मैक्सटन का अभिवादन किया और बाहर निकल गया ।
उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कराहट थी ।
दोनों होटल से बाहर निकल आये और कार में आ बैठे ।
गोपाल ने कार स्टार्ट की । कार तारकोल की चिकनी सड़क पर फिसलने लगी ।
इस बार गोपाल ने यह नहीं पूछा कि जाना कहां है ।
मैक्सटन गम्भीर मुद्रा बनाये चुपचाप बैठा था ।
कार चलती रही ।
सुनील कुछ क्षण उसके चेहरे का निरीक्षण करता रहा । फिर उसने अपनी जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला और उसे खोलता हुआ बोला - “मिस्टर मैक्सटन !”
“यस ।” - मैक्सटन यन्त्नचालित-सा बोल पड़ा और फिर वह एकाएक यूं चहका जैसे बिजली का करेंट छू गया हो ।
“सिगरेट पीजिए ।” - सुनील ने लापरवाही से सिगरेट का पैकेट उसकी ओर बढा दिया ।
मैक्सटन ने गौर से सुनील के चेहरे को देखा लेकिन वहां अपार निर्लिप्तता के अतिरिक्त और कोई भाव दिखाई नहीं दे रहा था । मैक्सटन ने दीर्घ निश्वास ली और पैकेट में से एक सिगरेट निकाल लिया ।
सुनील ने भी एक सिगरेट ले लिया । पहले उसने मैक्सटन का सिगरेट सुलगाया ।
“थैंक्स ।” - मैक्सटन बोला ।
सुनील ने अपना सिगरेट भी सुलगा लिया ।
रास्ता घटता रहा ।
उसी क्षण गोपाल ने हाथ बढाकर रियर व्यू मिरर का एंगल बदल दिया ।
अब रियर व्यू मिरर में सुनील को अपनी कार के पीछे आता ट्रैफिक दिखाई देने लगा ।
सुनील को गोपाल के इस एक्शन का अर्थ कम से कम पांच मिनट बाद समझ में आया ।
एक क्रीम कलर की फियेट गाड़ी काफी अरसे से उनकी गाड़ी का पीछा कर रही थी ।
सुनील तनिक चिन्तित हो उठा ।
एकाएक मैक्सटन बोल उठा - “हम कहां जा रहे हैं ?”
सुनील ने जैसे सुना ही नहीं, वह चुपचाप सिगरेट पीता रहा ।
गोपाल ने रियर व्यू मिरर फिर अपनी ओर मोड़ लिया था ।
“मिस्टर चक्रवर्ती !” - मैक्सटन उसका घुटना छूकर तनिक व्यग्रतापूर्वक स्वर में बोला ।
“फरमाइये ।” - सुनील बोला ।
“हम कहां जा रहे हैं ?”
“जरूर पूछियेगा !” - सुनील शान्ति से बोला ।
“यह क्या बात हुई ?”
“तो सुन लीजिए, मिस्टर डेक्सटर । हम लोग पुलिस हैड क्वार्टर जा रहे हैं ।”
मैक्सटन एकदम हड़बड़ा कर बोला - “पुलिस हैडक्वार्टर क्यों ! और यह तुम मुझे डेक्सटर क्यों कह रहे हो ?”
“क्योंकि आपका असली नाम डेक्सटर ही है ।” - सुनील नम्र स्वर से बोला - “और देखिये साहब, कोई शरारत करने की कोशिश मत कीजिएगा ।”
सुनील ने अपनी जेब से रिवाल्वर निकाला और उसे मैक्सटन को यूं दिखाता हुआ बोला, जैसे वह रिवाल्वर न हो कोई बहुत ऊंचे दर्जे की कलाकृति हो - “यह रिवाल्वर देख रहे हैं आप, 38 कैलिबर की दस फायर करने वाली यह रिवाल्वर जर्मनी की बनी हुई है । मोजर कहते है इसे । बेहद खतरनाक रिवाल्वर है यह । आप इसे एक छोटी-मोटी तोप समझिए । इसकी एक गोली शरीर में इतना बड़ा झरोखा बना देती है कि उसमें से बड़े आराम से चूहे बिल्लियां कूद सकते हैं । मेरा साहब मुझे यह रिवाल्वर बड़े खास मौकों पर बड़े खास लोगों के विरुद्ध इस्तेमाल करने के लिए देता है । इस समय आग...”
“यह क्या बकवास है ?” - मैक्सटन चिल्लाया - “मैं कहता हूं तुम उतारो मुझे यहां । ड्राइवर, गाड़ी रोको ।”
गोपाल के कान पर जूं भी नहीं रेंगी ।
“ड्राइवर !” - मैक्सटन गोपाल के कन्धे पकड़े कर झंझोड़ता हुआ चिल्लाया ।
“चुपचाप बैठे रहिये ।” - सुनील कर्कश स्वर में बोला - “वरना भेजा उड़ा दूंगा ।”
मैक्सटन ने एकदम अपने हाथ-पांव ढीले छोड़ दिए । उसके चेहरे से भय झलकने लगा था ।
“तुम कौन है ?” - उसने थरथराते स्वर से पूछा ।
“आपके लिए तो मैं मौत का परवाना हूं । आप पर एफ बी आई के जासूस फिलिप मैक्सटन और चीनी लड़की तिन-हा की हत्या का मुकदमा चलाया जाएगा ।”
“क्या बकवास कर रहे हो ?” - वह फिर चीखने लगा - “मैं ही एफ बी आई का जासूस फिलिप मैक्सटन हूं और मैंने तिन-हा की हत्या नहीं की । मैं भारतीय पुलिस और सीक्रेट सर्विस के अफसरों को अपना आइडेन्टी कार्ड दिखा चुका हूं और अभी तुम्हारे सामने मेरी पत्नी ने मुझे पहचाना है ।”
“आप जरूरत से ज्यादा होशियारी दिखाने के चक्कर में फंस गए हैं साहब ।” - सुनील बोला - “जिस औरत से आप अभी मिल कर आ रहे हैं वह आपकी, मेरा मतलब है फिलिप मैक्सटन की पत्नी नहीं है ।”
“क्या ?”
“चिल्लाइये नहीं । शान्ति से बैठे रहिए । और मेरी बात सुनिये । आपको एक्सपोज करने का जाल बड़ी होशियारी से फैलाया गया था और हमें खुशी है कि आप उसमें बड़ी आसानी से फंस गए हैं ।”
मैक्सटन चुप रहा ।
गोपाल चुपचाप गाड़ी चला रहा था ।
क्रीम कलर की कार अब भी उनका पीछा कर रही थी ।
सुनील फिर बोला - “हमें सन्देह था कि आप वास्तविक फिलिप मैक्सटन नहीं बल्कि उसके भेष में कोई और आदमी हैं । लेकिन इस बात को सिद्ध करने का कोई साधन नहीं था और केवल सन्देह के आधार पर हम आप पर हाथ नहीं डालना चाहते थे । इसलिए कथित मिसेज मैक्सटन को तस्वीर में लाया गया । मैंने कल शाम को आपको आकर बताया कि मिसेज मैक्सटन राजनगर में है और तलाक के सिलसिले में आपका उससे मिलना बहुत जरूरी है । इस नई सूचना से आप घबरा गए क्योंकि आप जानते थे कि आपका प्लास्टिक मेकअप कितना ही बढिया क्यों न हो मिसेज मैक्सटन से आपकी असलियत छुपी नहीं रह सकेगी । मिसेज मैक्सटन फौरन जान जायेंगी कि आप मैक्सटन नहीं हैं । आप मेकअप से अपनी सूरत तो बदल सकते हैं लेकिन आपका अंग्रेजी का उच्चारण आपकी चुगली कर देता है । आप अंग्रेजी अमेरिकनों की तरह नहीं, अंग्रेजों की तरह बोलते हैं क्योंकि आप वास्तव में अंग्रेज हैं । यह एक बात है जो हमने नोट की थी । मिसेज मैक्सटन तो आपके बहुरूप में कितनी ही कमियां पकड़ लेती ।”
सुनील क्षण भर उसके चेहरे के बदलते हुए भाव देखने के लिए रुका और फिर बोला - “फिर आपको एक तरकीब सूझ गई । आपने मुझे यह कहकर टाल दिया कि आप अगले दिन सुबह दस बजे मेरे साथ चलेंगे । बातचीत में मैंने आपको यह तो बताया ही था कि मिसेज मैक्सटन लेक व्यू होटल के तीन सौ चौदह नम्बर कमरे में ठहरी हुई हैं । मेरे इम्मीरियल से जाते ही आप होटल से निकले और लेक व्यू होटल में मिसेज मैक्सटन के पास जा पहुंचे ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?” - वह एकदम चौंक पड़ा ।
“आपने इम्पीरियल से जो टैक्सी लेक व्यू होटल जाने के लिए ली थी, उसे भी यहां आदमी चला रहा था ।” - सुनील गोपाल की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
मैक्सटन के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आये ।
“आपने लेक व्यू होटल में मिसेज मैक्सटन की खुशामद करके और उन्हें एक मोटी रकम रिश्वत में देकर इस बात के लिए तैयार कर लिया कि अगली सुबह जब आप मेरे साथ वहां पहुंचें तो मिसेज आपको मैक्सटन के रूप में पहचान ले । शिनाख्त को मजबूत करने के लिए आपने उसे अपनी पीठ के चोट के निशान के विषय में भी बता दिया । स्कीम तो आपने अच्छी सोची थी और इसके सफल होने की भी गारन्टी थी । लेकिन ट्रेजिडी यह हो गई कि लेक व्यू होटल के तीन सौ चौदह नम्बर कमरे में ठहरी हुई महिला मिसेज मैक्सटन नहीं थी । वह भी आपको फांसने के लिए फैलाए गये जाल का एक अंग थी । सच पूछिये, हमें तो मालूम ही नहीं है कि मिसेज मैक्सटन कहां है और सूरत-शक्ल में कैसी हैं । न ही आपने मिसेज मैक्सटन को कभी देखा था, वरना जब उस औरत को देखते ही जान जाते कि वह मिसेज मैक्सटन नहीं थी । नकली मिसेज मैक्सटन को पहले ही कह दिया था कि अगर आप उससे इस प्रकार की कोई प्रार्थना करें तो वह थोड़ी-बहुत आनाकानी के बाद उसे स्वीकार कर ले । ऐसा ही हुआ । आप निश्चिन्त होकर होटल वापिस लौट आए । कहां तो आपका मिसेज मैक्सटन से सामना हो जाने के नाम से ही दम निकल रहा था और कहां अगली सुबह आप खुशी-खुशी मेरे साथ चले आए । आप रातोंरात राजनगर से गायब भी हो सकते थे लेकिन आपने पुलिस से वादा किया था कि आप बिना पूर्व सूचना के कहीं नहीं जायेंगे, अगर आप यूं गायब हो जाते तो पुलिस आपको तलाश करने में जमीन-आसमान एक कर देती । पकड़े जाने पर आपके लिए आपके इस एक्शन की सफाई मुश्किल हो जाता ।”
सुनील चुप हो गया ।
उसने पिछली खिड़की में से देखा । फोर्ड गाड़ी अभी भी साये की तरह उसकी गाड़ी का पीछा कर रही थी ।
“अभी थोड़ी देर पहले आपने नकली मिसेज मैक्सटन के सामने आपने मिस्टर मैक्सटन होने का शानदार अभिनय किया है, उसके लिये तो आपको बेस्ट एक्टर का पुरस्कार मिलना चाहिए, मिस्टर डेक्सटर ।”
“तुम मूर्ख हो ।” - वह बोला - “तुम मेरे खिलाफ कुछ सिद्ध नहीं कर सकते । मैं मैक्सटन हूं और मैक्सटन ही रहूंगा और इस हकीकत को कोई चैलेंज नहीं कर सकता । तुम्हारी इस दो कौड़ी की कहानी पर कोई विश्वास नहीं करेगा ।”
“बड़े प्रबल आशावादी हैं आप ।” - सुनील व्यंग्यपूर्व स्वर से बोला - “वास्तव में आपके विरुद्ध सिद्ध करने लायक कुछ बाकी ही नहीं रह गया है । आपको अपने प्लास्टिक मेकअप पर बहुत नाज है । लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, अधिक से अधिक एक घन्टे में आपकी असली सूरत हमारे सामने आ जायेगी । जिस जहाज पर आप हांगकांग से राजनगर आए हैं, उसका कप्तान आपको डेक्सटर नाम के अंग्रेज यात्री के रूप में पहचानते के लिए अभी भी राजनगर में मौजूद है । कहने की जरूरत नहीं है कि आपने जहाज पर एफ बी आई के एजेन्ट फिलिप मैक्सटन को, जो कि अपने सरंक्षण में तिन-हा को भारत ला रहा था, कत्ल करके उसकी लाश समुद्र में फेंक दी और स्वयं उसका रूप धारण कर लिया । जहाज का कैप्टन समझा कि डैक्सटर दुर्घटनावश समुद्र में जा गिरा है । रमेश कपूर द्वारा बनाई गई हेरोइन के एजेण्टों की लिस्टें पहले आपने तिन-हा के सामान में तलाश की होंगी । जब आपको लिस्टें वहां नहीं मिलीं तो आपने जहाज के एक कोयला झोंकने वाले मजदूर के जहाज के कार्गो होल्ड में रखे उस ताबूत को खोलने के लिए तैयार किया जिसमें रमेश कपूर की लाश रखी थी लेकिन वह अपने इस उपक्रम में पकड़ा गया । फिर आप भारत पहुंच गए । शायद रास्ते भर तिन-हा ने आपको यह नहीं बताया कि वह राजनगर में कहां जाएगी । राजनगर आकर तिन-हा कर्नल मुखर्जी की कोठी पर पहुंची । किसी प्रकार आपको मालूम हो गया कि कर्नल मुखर्जी का सम्बन्ध सी आई बी से है आपको तिन-हा से खतरा दिखाई देने लगा । क्या पता वह लिस्टों के बारे में क्या जानती हो । अतः आपने उसकी हत्या कर दी । रमेश कपूर की लाश वाले क्रेट पर आप लोगों को फिर भी सन्देह था । आप उसे खोलकर तो देख नहीं सके इसलिए आपने उसे नष्ट कर देना ही उचित समझा । अगर लिस्टें उसमें होंगी तो खुद ही भस्म हो जायेंगी । मैं गलत तो नहीं कह रहा हूं, डेक्सटर साहब ?”
डेक्सटर का चेहरा राख की तरह सफेद हो चुका था । अच्छी खासी ठंडक में भी उसके चेहरे पर पसीने की बून्दें चुहचुहा आई थीं । उसके चेहरे के भाव ही सुनील के अनुमान की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त थे ।
सुनील ने एक बार फिर पिछली खिड़की से बाहर झांका ।
क्रीम कलर की फोर्ड ने अभी भी उसका पीछा नहीं छोड़ा था ।
“जरा पीछे देखिए ।” - सुनील एकाएक बोला ।
मैक्सटन पिछली खिड़की में से बाहर देखने लगा ।
“वह क्रीम कलर की फोर्ड देख रहे हैं आप ?”
“देख रहा हूं ।”
“वह लेक व्यू होटल से ही हमारा पीछा कर रही है ।”
“तो मैं क्या करूं ?”
“उसमें आपके साथी हैं ?”
“मुझे क्या मालूम ?”
“उसमें आपके साथी हो सकते हैं ?”
“मेरा कोई साथी नहीं है ।”
“आल राइट ।” - सुनील बोला और चुप हो गया ।
गोपाल चुपचाप गाड़ी चला रहा था ।
उसी क्षण गोपाल ने कार कचहरी की चार मन्जिली इमारत के कम्पाउण्ड में मोड़ दी । उसी इमारत की दूसरी मन्जिल पर पुलिस हैडक्वार्टर था ।
सुनील ने पीछे मुड़कर देखा ।
फोर्ड बहुत पीछे रह गई थी ।
गोपाल ने गाड़ी पार्किंग में खड़ी कर दी ।
“आइये ।” - सुनील कार से बाहर निकलता हुआ बोला ।
मैक्सटन भी बाहर निकल आया ।
तीनों इमारत की लाबी की ओर चल दिए ।
अभी वे लॉबी से थोड़ी दूर ही थे कि एकाएक मैक्सटन के मुंह से एक हल्की सी हाय निकली । क्षण भर के लिए उसके पांव लड़खड़ाये और वह वहीं जमीन पर ढेर हो गया ।
सुनील एकदम चहकद पड़ा ।
मैक्सटन की खोपड़ी के पिछले भाग में सुराख दिखाई दे रहा था, जिसमें से फव्वारे की तरह रक्त बह रहा था ।
किसी ने साइलेन्सर लगी रिवाल्वर से उसका भेजा उड़ा दिया था ।
सुनील ने फुर्ती से पीछे घूमकर देखा ।
बाहर सड़क पर क्रीम कलर की वही फोर्ड दिखाई दे रही थी, जो इतने अर्से से उनका पीछा कर रही थी । पलक झपके ही फोर्ड पूरी रफ्तार से भागती हुई उसकी दृष्टि से ओझल ही गई ।
“गोपाल ।” - सुनील बोला और मैक्सटन की लाश की परवाह किए बिना कार की ओर भागा ।
मैक्सटन के जमीन पर गिरे निश्चेष्ट शरीर की ओर अभी एक-दो आदमियों का ही ध्यान गया था । एक पुलिसमैन बड़ी लापरवाही से उस ओर बढा था ।
“मैक्सटन का क्या होगा ?” - गोपाल उसके साथ भागता हुआ बोला ।
“वह मर चुका है । इसलिए हमारे किसी काम का नहीं है । कोई न कोई उसे सम्भाल लेगा ।”
दोनों कार में घुस गये । गोपाल स्टेयरिंग पर बैठा । उसने गाड़ी के स्टार्ट किया और फिर गाड़ी को उसने इतनी तेजी से कम्पाउण्ड से बाहर की ओर मोड़ा कि एक ओर के पहिये जमीन से ऊंचे उठ गए ।
पूरी रफ्तार से कार उस ओर भाग दी जिधर फोर्ड गई थी ।
तोड़ी ही दूर जाने पर उन्हें फोर्ड दिखाई दे गई ।
“कार को उन लोगों की कार की बगल में ले जाने की कोशिश करो ।” - सुनील उतावले स्वर से बोला ।
गोपाल मुंह से कुछ नहीं बोला । उसने कार की रफ्तार और बढा दी ।
सड़कों पर ट्रैफिक बहुत था । गोपाल एक दक्ष ड्राइवर था वर्ना अभी तक एक्सीडेंट हो गया होता ।
लेकिन फोर्ड का ड्राइवर भी कम दक्ष नहीं था । वह गाड़ी को इतने अप्रत्याशित ढंग से एक सड़क से दूसरी सड़क पर मोड़ देता था कि गोपाल गड़बड़ा जाता था ।
“गोपाल ।” - सुनील उतावले स्वर से बोला - “उसके पास पहुंचो न ।”
“कैसे पहुंचूं यार ?” - गोपाल उखड़कर बोला - “बीच में और भी तो गाड़ियां हैं । क्या मैं अपनी कार उनके ऊपर से दौड़ा दूं ? जो मुमकिन है, मैं कर रहा हूं ।”
सुनील चुप रहा । वह बेहद बेचैन दिखाई दे रहा था ।
उसी क्षण फोर्ड एक चौराहे के समीप पहुंची । फोर्ड के चौराहे तक पहुंचने से पहले ही सिगनल हरे से लाल हो गया ।
“अब ठीक है ।” - सुनील तनिक संतोषपूर्ण स्वर से बोला ।
क्षण भर के लिए फोर्ड लाल सिगनल पर रुकी ।
गोपाल अपनी कार को फोर्ड के पीछे कतार में खड़ी गाड़ियां से आगे निकालकर ले गया ।
उसी क्षण फोर्ड फिर चल पड़ी और लाल बत्ती की परवाह किए बिना चौराहे से बायें घुम गई ।
चौराहे के नुक्कड़ पर खड़ा ट्रैफिक का सिपाही सीटी बजाने लगा, लेकिन फोर्ड नहीं रुकी । सिपाही ने अपनी नोटबुक और पेन्सिल निकाल ली ।
उसी क्षण गोपाल ने भी अपनी गाड़ी फोर्ड की दिशा में घुमा दी ।
सिपाही सीटी बजाने लगा लेकिन कौन सुनता था ।
जिस सड़क पर दोनों गाड़ियां अब दौड़ रही थीं, उस पर ट्रैफिक कम था ।
“वह शहर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है ।” - गोपाल बोला - “यह रास्ता आगे जाकर तारकपुर की पहाड़ियों की ओर जाने वाले हाईवे से मिल जाता है ।”
सुनील चुप रहा ।
गोपाल काफी रफ्तार से गाड़ी दौड़ा रहा था लेकिन फोर्ड अभी भी उससे बीस-पच्चीस गज आगे थी ।
कारें तारकपुर की पहाड़ी सड़क पर पहुंच गई । मोड़ खतरनाक होते चले जा रहे थे ।
सुनील ने रिवाल्वर निकाल लिया ।
“गोली चलाओगे ?” - गोपाल बोला ।
“और क्या ? उसकी गाड़ी में पेट्रोल खत्म होने का इन्तजार करूंगा ।” - सुनील बोला ।
उसने अपने रिवाल्वर वाला हाथ खिड़की से बाहर निकाला और अगली गाड़ी के टायर का निशाना लगाकर गोली चला दी ।
इतनी तेज रफ्तार से जाती गाड़ी के टायर को निशाना बना लेना एक करिश्मे से कम नहीं था ।
निशाना चूक गया ।
दोनों गाड़ियां एक खतरनाक मोड़ में घूमीं और फिर सड़क के सीधे टुकड़े पर आ गईं ।
सुनील ने लगातार दो फायर किए ।
निशान फिर चूक गया ।
उसी क्षण फोर्ड से एक फायर हुआ और उनकी गाड़ी की विंड-स्क्रीन का शीशा चटक गया । गोली शीशे में से निकलकर गोपाल और सुनील के सिरों के बीच में से गुजरती हुई पिछली सीट के कुशन में धंस गई ।
गोपाल ने घबराकर स्पीड कम कर दी ।
“स्पीड कम क्यों कर रहे हो ?” - सुनील बोला ।
“सुनील साहब, वह बड़े हाई कैलिबर के राईफल की गोली थी । फोर्ड के समीप पहुंचना खतरे से खाली नहीं है । वे लोग हमें भून डालेंगे । इसीलिए शायद वे शहर की भीड़-भाड़ वाली सड़कें छोड़कर बाहर निकल आए हैं । आपकी रिवाल्वर यूं उनका मुकाबला नहीं कर सकेगी ।”
“ऐसी की तैसी ।” - सुनील झल्लाया - “तुम गाड़ी चलाओ । जो होगा देखा जाएगा ।”
“ओके ।” - गोपाल बोला और उसने रफ्तार फिर बढा दी ।
गाड़ी फोर्ड के समीप पहुंची ही थी कि राईफल के फायरों से फिर वातावरण गूंज उठा । एक गोली फिर विंड स्क्रीन से टकराई और इस बार शीशा सारे का सारा उखड़ कर नीचे आ गिरा ।
“सम्भल कर बैठ जाओ ।” - सुनील बोला ।
उसने कार का अपनी साइड का दरवाजा खोल दिया । दरवाजे के निचले भाग में अपने पांव और खिड़की में अपनी बाई बांह फंसाकर वह दरवाजे के साथ एकदम कार से बाहर झूल गया ।
“यह क्या कर रहे हो ?” - गोपाल घबराकर बोला - “मरोगे क्या ?”
“तुम गाड़ी चलाने की ओर ध्यान दो ।” - सुनील कर्कश स्वर से बोला ।
रायफल की एक गोली सनसनाती हुई सुनील के सिर के पास से गुजर गई ।
गोपाल के हाथ स्टेयरिंग पर और मजबूती से जम गए ।
सुनील ने बड़ी सावधानी से अपने रिवाल्वर वाले हाथ की कोहनी कार के द्वार पर टिका ली और कार के स्थिर होने की प्रतीक्षा करने लगा ।
रायफल की एक गोली सनसनाती हुई आई और सुनील के सिर के समीप कार की बॉडी में घंस गई ।
फोर्ड उस समय एक खतरनाक मोड़ के समीप पहुंच रही थी ।
सुनील के जबड़े कस गए । उसने रिवाल्वर वाले हाथ को स्थिर करके फायर कर दिया ।
फोर्ड की बाईं ओर का पिछला पहिया बोल गया ।
बेहद तेज रफ्तार से जाती हुई फोर्ड एकदम एक शराबी की तरह झूलने लगी । लगता था जैसे गाड़ी एकदम ड्राईवर के कन्ट्रोल से बाहर हो गई थी । ब्रेकों की चरमराहट और फटे हुए टायर के सड़क पर घिसटने की आवाज से वातावरण गूंज उठा ।
उसी क्षण गाड़ी मोड़ पर पहुंच गई ।
अगले ही क्षण वह भड़ाक से मोड़ पर लगे तारकोल के ड्रमों से टकराई । गाड़ी का पिछला भाग फिरकनी की तरह घूम गया और फिर गाड़ी दो-तीन ड्रमों को अपनी लपेट में लेती हुई नीचे कई सौ फुट गहरे खड्डे में जा गिरी ।
गोपाल ने अपनी गाड़ी को मोड़ के समीप लाकर रोक दिया ।
सुनील ने रिवाल्वर जेब में रख ली और सड़क के किनारे पर आकर नीचे झांकने लगा ।
गोपाल भी उसके समीप आ खड़ा हुआ ।
फोर्ड नीचे खड्डे में पड़ी थी और उसमें से आग की लपटें निकल रही थीं ।
“स्वाहा !” - सुनील भावहीन स्वर से बोला ।
गोपाल चुप रहा ।
“चलो, चलें ।” - सुनील वहां से हटता हुआ बोला ।
“कहां ?”
“बैक टू पैवेलियन ।”
***
कर्नल मुखर्जी की कोठी में उनके आफिस के कमरे के बाहर खड़ा धर्मसिंह पहरा दे रहा था ताकि कोई भीतर न जा सके ।
भीतर कर्नल मुखर्जी की विशाल मेज की दूसरी ओर सुनील और गोपाल बैठे थे ।
कर्नल मुखर्जी बेहद गम्भीर थे ।
“नकली मैक्सटन की तत्काल मृत्यु हो गई थी । उसका भेजा उड़ गया था ।” - कई क्षण बाद मुखर्जी बोले ।
सुनील और गोपाल दोनों चुप रहे ।
“हत्यारों की जो कार खड्डे में गिरी थी, उनमें भी सब कुछ जलकर राख हो गया था । पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार कार में तीन आदमी थे । पुलिस के पहुंचने तक केवल उनकी हड्डियों के ढांचे ही बाकी रह गए थे ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“शत्रु ने कदम-कदम पर हमें मात दी है । हमारे आगे बढने के सारे रास्ते ब्लाक हो गए हैं । लगता है रमेश कपूर द्वारा हासिल की गई लिस्टें अब हमें नहीं मिल पायेगी । हमें उनका लोभ छोड़ना ही होगा ।”
“लेकिन सर !” - सुनील बोला - “जो काम रमेश कपूर कर सका है, वह कोई और भी तो कर सकता है ।”
“बहुत मुश्किल है ।” - मुखर्जी बोले - “शत्रु एक बार धोखा खा सकता है, बार-बार नहीं । जो कुछ रमेश कपूर कर पाया था, वह उसकी कई महीनों की मेहनत थी और उसकी मेहनत से ज्यादा उसकी सफलता में संयोग का हाथ था । आवश्यक नहीं कि वैसा ही संयोग दुबारा किसी दूसरे एजेन्ट को भी हासिल हो जाए ।”
“लेकिन सर, यह भी तो सम्भव है ।” - गोपाल बोला - “कि लिस्टें अभी भी नष्ट न हुई हों, वे कहीं सुरक्षित हों ।”
“कहां ?”
गोपाल कुछ क्षण रुका और फिर हिचकिचाता हुआ बोला - “हांगकांग में ।”
“हांगकांग में कहां ?”
गोपाल चुप हो गया । प्रत्यक्ष था कि इस प्रश्न का उत्तर उसके पास नहीं था ।
“रमेश कपूर ने हांगकांग में एक लम्बा अरसा काम किया है ।” - सुनील बोला - “वह हांगकांग में कहीं रहता भी होगा । अगर तिन-हा वास्तव में ही उसकी पत्नी थी तो उसने कहीं घर भी बनाया होगा । उसके कोई यार-दोस्त भी होंगे । उसकी कथित पत्नी का कोई जानकारी का दायरा होगा । रमेश कपूर तो कार दुर्घटना का शिकार होकर एकाएक मर गया था । सम्भव है वे लिस्टें उसके निजी सामान में कहीं हों या उसने वे लिस्टें सुरक्षा के हेतु अपने किसी विश्वासनीय मित्र को सौंप दी हों ।”
“सम्भव तो है ।” - मुखर्जी बोले - “लेकिन हम उसके ऐसे विश्वासनीय मित्र को या हांगकांग में रमेश के निवास स्थान को ढूंढें कैसे ? हमने तो हमेशा ट्रांसमीटर पर ही उससे सम्पर्क स्थापित किया है । उसने अन्त तक हमें यह नहीं बताया कि वह हांगकांग में कहां रहता है और उसकी जानकारी के दायरे में कौन लोग आते हैं ।”
“क्यों ?” - सुनील ने पूछा ।
“क्योंकि जिस वेव लैंग्थ (Wave length) पर हम रमेश कपूर से बात करते थे अगर उसी वेव लैंग्थ को शत्रु का ट्रांसमीटर पकड़ ले तो रमेश कपूर की पोल खुल सकती थी ।”
“मेरे विचार से अभी भी रमेश के हांगकांग के जीवन को चैक करा जा सकता है ।” - सुनील बोला ।
“तिन-हा का आपको जो पत्र आया था, उस पर एम्पायर होटल का पता लिखा था और एम्पायर होटल के ही पते पर आपने तिन-हा को रुपये का ड्राफ्ट भी भेजा था । सम्भव है तिन-हा और रमेश कपूर का एम्पायर होटल से काफी गहरा सम्बन्ध हो । मेरे ख्याल से अगर एम्पायर होटल को चैक किया जाए तो कुछ हाथ लगने की सम्भावना हो सकती है ।”
“किसी को हांगकांग भेजना पड़ेगा ।” - मुखर्जी विचारपूर्ण स्वर में बोले ।
“मैं चला जाता हूं ।” - गोपाल एकाएक बोल पड़ा - “मुझको कैन्टोनीज भाषा का अच्छा ज्ञान भी है ।”
“नहीं गोपाल ।” - मुखर्जी बोले - “तुम पहले कभी हांगकांग नहीं गए हो । लेकिन सुनील मेरी स्पेशल इन्टैलीजेन्स ब्रांच में शामिल होने से पहले रक्षा मंत्रालय के एक केस के सिलसिले में हांगकांग जा चुका है इसलिए इसे वहां काम करने में कई मामले में बहुत सहूलियत होगी ।”
“राईट सर !” - सुनील ने अनुमोदन किया ।
“तुम हांगकांग जाने के लिए तैयार रहो । मैं तुम्हारा फारेन एक्सचेंज और पासपोर्ट वगैरह का इन्तजाम करवाकर देता हूं ।”
“ओके सर ! इसके अलावा मुझे रमेश कपूर और तिन-हा की तस्वीरों की भी जरूरत पड़ेगी ।”
“वे भी मिल जायेंगी । रमेश कपूर की तस्वीर तो हमारे विभाग की फाईल में मिल जायेगी और तिन-हा की लाश की तस्वीर को ही मैं आर्टिस्ट द्वारा ऐसी री-टच करवा दूंगा कि मालूम न हो कि वह लाश की फोटो है ।”
“वैरी वैल सर !” - सुनील बोला ।
मुखर्जी अब किंचित सन्तुष्ट दिखई दे रहे थे ।
***
जिस समय सुनील वापिस बैंक स्ट्रीट में पहुंचा, उस समय अन्धकार छा चुका था । उसने कार को गैरेज में खड़ी करके गैरेज को ताला लगाया और अपने फ्लैट वाली इमारत की सीढियां चलने लगा ।
वह लापरवाही से सीढियां चढता हुआ अपने फ्लैट के सामने पहुंचा ।
उसने स्प्रिंग लाक में चाबी लगाकर ताला खोला और वह भीतर घुस गया । उसने भीतर से द्वार बन्द किया और बत्ती जला दी ।
उसने कोट उतारा और लापरवाही से ड्राइंगरूम के एक सोफे की ओर उछाल दिया ।
कोट हाथ से निकल जाने के बाद सुनील को वह आदमी दिखाई दिया ।
सुनील ठिठककर खड़ा हो गया ।
वह लगभग सुनील की ही उम्र का नवयुवक था लेकिन वह डील-डौल में सुनील से दुगना लगता था । वह काले रंग की टाईट पैंट और चमड़े की जैकेट पहने हुए था । वह लापरवाही से एक सोफे पर बैठा हुआ था और उसने अपने भद्दे और जूतों वाले पांव अपने सामने वाली कांच की मेज पर टिकाये हुए थे । उसकी खूंखार आंखें सुनील पर टिकी हुई थीं लेकिन उसने व्यक्तित्व की सबसे खतरनाक चीज वह रिवाल्वर थी जो उसने बड़ी लापरवाही से अपने दायें हाथ में थामी हुई थी ।
“मैं तो इन्तजार करता करता थक गया था बड़े साहब ।” - वह खरखराती हुई आवाज में बोला - “लगता था आप कभी तशरीफ ही नहीं लायेंगे ।”
सुनील का दिल धड़कने लगा । उसे आसार अच्छे नजर नहीं आ रहे थे । उसे सबसे अधिक इस बात का अफसोस हो रहा था कि उसकी अपनी रिवाल्वर उसके कोट की जेब में थी जिसे वह फ्लैट में घुसते ही उतारकर फेंक चुका था ।
“कौन हो तुम ?” - सुनील अपने स्वर में अधिकार का भाव उत्पन्न करते हुए बोला - “भीतर कैसे घुसे हो ?”
उसके चेहरे पर मुस्कराहट दौड़ गई । उसने रिवाल्वर की नोक से अपनी नाक खुजलाई और फिर उसने अपनी जेब से एक लगभग दस इन्च लम्बी रिवाल्वर की नाल के व्यास से थोड़ी ज्यादा चौड़ी एक लोहे की ट्यूब निकाल ली ।
सुनील के होंठ सूखने लगे । वह साइलेन्सर था ।
“तुम यहां से फौरन बाहर निकल जाओ, वर्ना मैं पुलिस को बुलाता हूं ।” - सुनील चिल्लाकर बोला लेकिन उसके गले में से आवाज नहीं निकली ।
“हल्ला मत कीजिए बड़े साहब ।” - वह शान्ति से बोला - “फिलहाल तो आपके लिए मैं ही पुलिस हूं ।”
और वह साइलेन्सर को रिवाल्वर की नाल पर चढाने लगा ।
“तुम चाहते क्या हो ?” सुनील नम्र स्वर से बोला ।
वह उठकर खड़ा हो गया । साइलेन्सर रिवाल्वर पर कस चुका था । सुनील ने देखा वह उससे कम से कम चार इन्च ऊंचा था ।
“मैं आपको शूट करना चाहता हूं बड़े साहब ।” - वह ऐसी लापरवाही से बोला कि सुनील के शरीर में सिर से पांव तक झुरझुरी सी दौड़ गई ।
“क्यों ?” - सुनील बोला - “मैंने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा ?”
“कुछ नहीं ।”
“तो फिर मेरी जान के पीछे क्यों पड़े हुए हो बड़े भाई ?”
“क्योंकि लोगों की जान के पीछे पड़ना मेरा बिजनेस है ।” - वह बोला ।
सुनील को अपने से पांच फुट की दूरी पर साक्षात मौत खड़ी दिखाई दे रही थी ।
“क्या चार्ज करते हो ?”
“पांच-छ: सौ रुपये ।” - वह बोला - “लेकिन न जाने क्यों लोगों ने आपकी जान को इतना कीमती समझा है कि मुझे एक हजार रुपये दे रहे हैं ।”
“एक हजार रुपये कौन दे रहा है तुम्हें ?”
“बड़े साहब, मैं आम खाने से मतलब रखता हूं पेड़ गिनने से नहीं । मेरी मेहनत के लिए मुझे रुपया मिलना चाहिए, चाहे काला चोर दे ।”
“फिर भी कौन है वह आदमी जो मुझे जीवित नहीं देखना चाहता ?”
“उसकी चिन्ता छोड़िये अपनी चिन्ता कीजिए ।”
और उसने रिवाल्वर सुनील की ओर तान दी - “और बड़े साहब, हिलियेगा नहीं । मैं गोली आपके दिल से गुजार देना चाहता हूं ताकि आपको कम से कम तकलीफ हो ।”
“केवल एक हजार रुपये के लिए तुम एक आदमी का खून कर रहे हो ?” - सुनील बोला ।
“हां ।”
“इतने खतरनाक काम के लिए यह तो बड़ी मामूली रकम है । अगर पकड़े गए तो फांसी पर लटक जाओगे ।”
“मुझे मालूम है और एक खून के लिए एक हजार रुपया मुझे काफी मेहनताना मालूम होता है ।”
“तुम्हें मेरा खून करने के एक हजार रुपये मिल रहे हैं । अगर तुम मेरी जान छोड़ दो तो मैं तुम्हें दो हजार रुपये देने लिए तैयार हूं ।”
“नहीं बड़े साहब !” - वह कठोर स्वर से बोला - “मैं बिजनेस करता हूं और बिजनेस में ईमानदारी बहुत बड़ी चीज मानता हूं ।”
उसी क्षण टेलीफोन की घन्टी बज उठी ।
वह एकदम चौंका और उसकी दृष्टि बैडरूम की ओर घूम गई जिधर से घन्टी बजने की आवाज आ रही थी ।
सुनील वह सुनहरा अवसर चूकने वाला नहीं था । उसने एकदम हत्यारे पर छलांग लगा दी । सुनील का बायां हाथ उसके रिवाल्वर वाले हाथ की कलाई पर पड़ा और उसका सिर सड़ाक से उसकी नाक और मुंह से जा टकराया ।
दोनों एक-दूसरे से उलझे हुए शीशे की मेज पर आकर गिरे और मेज के शीशे के टाप और लकड़ी के पायों वगैरह के परखचे उड़ गए ।
सुनील के आक्रमण ने हत्यारे को हड़बड़ा तो दिया लेकिन फिर भी अभी तक उसके हाथ में से रिवाल्वर नहीं छूटी थी ।
सुनील उससे गुथा हुआ था और उसने मजबूती से उसका रिवाल्वर वाला हाथ थामा हुआ था । सुनील ने उसके सम्भलने से पहले ही अपने दायें हाथ को कैरेट चाप की शक्ल में हत्यारे की मोटी गर्दन पर घुमा दिया ।
उसके मुंह से एक चीख सी निकली और रिवाल्वर से उसकी पकड़ ढीली पड़ गई ।
सुनील ने लपककर रिवाल्वर उठा ली ।
लेकिन उसी क्षण हत्यारे के दायें हाथ का एक भरपूर घूंसा सुनील की आंखों के बीच में पड़ा । उसकी आंखों के सामने लाल-पीले सितारे नाच गए । उसे यूं लगा जैसे उसके माथे से हत्यारे का घूंसा नहीं, स्टीम रोलर आ टकराया हो ।
रिवाल्वर सुनील के हाथ से निकलकर रेडियोग्राम से टकराई और फिर टन्न की आवाज के साथ फर्श पर उलट गया ।
हत्यारे की आंखों में मौत नाच रही थी । उसका चेहरा खून से लथपथ होकर भयानक हो उठा था ।
सुनील बड़ी मेहनत से फर्श से उठने का प्रयत्न कर रहा था ।
हत्यारे ने अपने भारी बूट वाले पांव की ठोकर सुनील की खोपड़ी पर जमानी चाही लेकिन सुनील ने रास्ते में ही उसका पांव पकड़ लिया और उसकी टांग की जोर से मरोड़कर छोड़ दिया ।
वह उलटकर एक सोफे पर जा गिरा ।
सुनील उछलकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया । तब तक हत्यारा भी सोफे से उठ चुका था ।
रिवाल्वर दोनों के बीच में पड़ी थी । सुनील प्रतीक्षा करने लगा कि हत्यारा रिवाल्वर उठाने के लिए झुके और वह अपने बूट की ठोकर से उसकी खोपड़ी तोड़ दे, लेकिन वह मूर्ख नहीं था । रिवाल्वर पर झपटने के स्थान पर वह पागल बैल की तरह सुनील की ओर झपटा ।
सुनील के दायें हाथ का घूंसा उसके चेहरे पर पड़ा । उसके सिर ने जोर से झटका खाया लेकिन उसके पांव नहीं उखड़े ।
सुनील ने अपने सिर की एक जोरदार ठोकर फिर उसकी नाक पर जमाई और वह लड़खड़ा गया । उसकी पीठ पीछे की दीवार से टकराई और दीवार पर लगी हुई सुनील की वह तस्वीर एक झन्नाके की आवाज से नीचे आ गिरी, जिसमें वह पंडित जवाहरलाल नेहरू से हाथ मिला रहा था ।
सुनील ने झपट कर उसकी गर्दन पर अपना बायां हाथ जमाया और दायें हाथ के छ: सात घूंसे ताबड़तोड़ उसके पेट में जमा दिए । हत्यारे की टांग लड़खड़ाई और उसका शरीर ढीला पड़ गया । सुनील ने अपना हाथ रोक लिया और यहीं वह धोखा खा गया ।
हत्यारे की दाईं टांग का घुटना वज्र की तरह उसके पेट से जा टकराया । उसके मुंह से एक लम्बी हाथ निकली और वह एकदम पीछे उलटकर सोफे से जा टकराया ।
सुनील बड़े प्रयत्न से जल्दी से उठ खड़ा हुआ लेकिन हत्यारा उस पर नहीं झपटा । सुनील उस पर छलांग लगाने ही लगा था कि वह ठिठक कर खड़ा हो गया ।
हत्यारे के हाथ में चाकू था । उसका चेहरा पहले से दस गुना अधिक खूंखार लग रहा था । सारा चेहरा यूं कुचला पड़ा था जैसे वह सड़क कूदने वाले इन्जन से टकरा गया हो । उसके भयानक चेहरे पर क्षीण-सी मुस्कराहट थी और वह सम्पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अपना चाकू वाला हाथ आगे फैलाये धीरे-धीरे सुनील की ओर बढ रहा था ।
सुनील की रीढ की हड्डी पर ठण्डक की लहर-सी दौड़ गई । वह अपने नेत्रों को उसके चेहरे पर जमाये पीछे हटने लगा ।
एकाएक हत्यारा उस पर झपटा ।
उसी क्षण सोफे की पीठ पर पड़ा हुआ अपना कोट सुनील के हाथ में आ गया ।
हत्यारे का चाकू वाला हाथ घूमा ।
कोट में से रिवाल्वर निकालने का समय नहीं था, इसलिए सुनील ने अपना कोट ही आगे कर दिया ।
चाकू कोट में घुस गया और एक झटके के साथ कोट को नीचे तक चीरता चला गया ।
हत्यारे ने चाकू वापिस खींच लिया ।
सुनील ने कोट को फैलाकर हत्यारे के मुंह पर फेंक मारा ।
कोट से हत्यारे का मुंह ढक गया ।
सुनील ने झपट कर उसका चाकू वाला हाथ पकड़ लिया और फिर अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपने दायें हाथ का प्रचण्ड घूंसा इतनी जोर से हत्यारे के कोट से ढके जबाड़ पर जमाया कि सुनील को अपनी उंगलियों पर से खाल हिलती हुई महसूस हुई ।
हत्यारे के हाथ से चाकू निकल गया । उसका शरीर एक क्षण के लिए लड़खड़ाया और फिर भड़ाक से फर्श पर आ गिरा ।
सुनील ने हांफते हुए अपनी पीठ दीवार से टिका दी और लम्बी-लम्बी सांसें लेने लगा । उसके नेत्र मुंदे जा रहे थे और उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी भी क्षण बेहोश होकर गिर पड़ेगा ।
उसी क्षण भड़ाक से फ्लैट का द्वार खुला और एक सब-इन्स्पेक्टर और दो पुलिसमैन फ्लैट में घुस आये । सब-इन्स्पेक्टर के हाथ में रिवाल्वर था ।
उनके भीतर घुसते ही हत्यारे के शरीर में हरकत हुई । उसने जमीन पर गिरे-गिरे ही अपनी बाईं ओर करवट बदली । कोट उसके चेहरे से अलग जा गिरा । उसने झपटकर जमीन पर गिरी रिवाल्वर उठाई और गोली चला दी ।
गोली सुनील की खोपड़ी से दो इंच दूर दीवार में धंस गई और वहां से ढेर-सारा प्लास्टर उखड़ कर उसके कदमों में आ गिरा ।
तभी सब-इन्स्पेक्टर ने फायर कर दिया ।
“नहीं ।” - सुनील चिल्लाया ।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी । सब-इन्स्पेक्टर की गोली ने हत्यारे के फेफड़े फाड़ दिये थे ।
वह क्षण भर तड़फड़ाया और फिर उसका सिर फर्श पर लुढक गया ।
सब-इन्स्पेक्टर ने रिवाल्वर, अपने होल्स्टर में रख ली ।
दोनों सिपाही लपककर हत्यारे के समीप पहुंच गये ।
“आप यहां कैसे आ पहुंचे, दरोगा जी ?” - सुनील ने सब-इन्स्पेक्टर से पूछा ।
“सामने की इमारत के फ्लैट में से किसी ने आप दोनों की लड़ाई होती देखी थी ।” - सब-इन्स्पेक्टर बोला - “उसने पुलिस स्टेशन पर फोन कर दिया था ।”
“ओह !” - सुनील बोला ।
“मामला क्या है ?” - सब-इन्स्पेक्टर ने पूछा ।
उसी क्षण टेलीफोन की घन्टी बज उठी ।
“मैं अभी फोन सुनकर आता हूं ।” - सुनील बोला और बैडरूम में घुस गया ।
उसने रिसीवर उठा लिया और बोला - “हल्लो ! सुनील स्पीकिंग ।”
“सुनील, मैं मुखर्जी बोल रहा हूं ।” - दूसरी ओर से मुखर्जी की आवाज आई ।
“यस सर ।” - सुनील बोला ।
“मैंने अभी दो-तीन मिनट पहले भी फोन किया था ।” - वे बोले ।
“उसी फोन-काल ने तो मेरी जान बचा दी, सर ।” - सुनील
“क्या हुआ था ?”
सुनील ने सारी बात कह सुनाई और फिर बोला - “सर, लगता है कोई नहीं चाहता है कि मैं हांगकांग जाऊं ।”
“लेकिन किसी को मालूम कैसे हो गया कि तुम हांगकांग जा रहे हो ?” - मुखर्जी का चिन्तित स्वर सुनाई दिया ।
“यही तो मेरी समझ में नहीं आ रहा है, सर ।” - सुनील बोला - “मेरे ख्याल से तो आपके, मेरे और गोपाल के अलावा किसी चौथे आदमी को तो अभी इस बात की भनक भी नहीं पड़नी चाहिए थी लेकिन फिर भी बात लीक हो गई और यह पहला मौका नहीं है जब ऐसा हुआ है ।”
“लेकिन यह हुआ कैसे ?” - मुखर्जी भड़क उठे ।
“जरूर आपकी कोठी में ही कोई हमारी बातें सुनता है ।”
“कौन सुन सकता है ? बातचीत के दौरान धर्मसिंह हमेशा दरवाजे पर खड़ा रहता है ।”
“क्या धर्मसिंह ही...”
“नानसैंस ।” - मुखर्जी उसकी बात काटकर बोले - “धर्मसिंह गद्दारी नहीं कर सकता ।”
“लेकिन सर चैक करने में क्या हर्ज है ?”
“ठीक है, मैं चैक करूंगा ।” - वे बोले - “मैंने तुम्हें यह बताने के लिए फोन किया था कि प्लेन पर तुम्हारी सीट रिजर्व हो चुकी है । तुम्हारे लिए फारेन करेन्सी का इन्तजाम हो चुका है और पासपोर्ट भी तैयार है । वहां, हांगकांग पुलिस का एक अंग्रेज सुपरिटेन्डेन्ट इन्टरपोल से सम्बन्धित है । मैंने उसे तुम्हारे बारे में सूचना भिजवा दी है । आवश्यकता पड़ने पर तुम उससे सहायता ले सकते हो । उसका नाम मिस्टर पार्कर है ।”
“राइट सर ।”
“तुम्हारे कागजात, पासपोर्ट, प्लेन का टिकट वगैरह मैं तुम्हारे फ्लैट पर भिजवा रहा हूं ।”
“ओके सर !”
“एण्ड आई विश यू गुड लक ।”
“थैंक्यू सर ।”
दूसरी ओर से सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर रख दिया और वापिस ड्राइंगरूम की ओर चल दिया ।
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