दरवाजा खुद माला जायसवाल ने खोला । उसके होंठों पर एक मित्रतापूर्ण मुस्कराहट थी ।
“हल्लो ।” - वह मीठे स्वर में बोली - “प्लीज कम इन ।”
सुनील के चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आए । उसे उम्मीद थी कि कोई नौकर दरवाजा खोलेगा । नौकर उसका नाम पता पूछकर किसी सेक्रेटरी को बुला लायेगा । सेक्रेट्री उससे छत्तीस तरह के सवाल पूछेगा और फिर रूखे स्वर में फतवा सुना देगा कि मैडम उससे नहीं मिल सकती । किसी अखबार के रिपोर्टर को इन्टरव्यू देने जैसे फालतू काम के लिए उनके पास वक्त नहीं ।
लेकिन यहां तो शुरूआत ही चौंका देने वाली हुई थी । माला जायसवाल ने न केवल स्वयं दरवाजा खोला था बल्कि वह एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट के साथ उसका स्वागत कर रही थी और उसे अपनी राजमहल जैसी आलीशान कोठी के भीतर आने के लिए आमन्त्रित कर रही थी ।
माला जायसवाल गरीब कभी भी नहीं थी लेकिन हाल ही में जायसवाल इन्डस्ट्रीज के मालिक और उसके चाचा सेठ हुकम चन्द जायसवाल की मौत के बाद उसे और उसकी छोटी बहन सरिता को लगभग तीन करोड़ रुपये की जायदाद विरासत में मिली थी। उस विरासत की वजह से आज की तारीख में माला जायसवाल भारत के इने गिने रईसों में से एक थी । सुनील उसी विरासत के सिलसिले में माला जायसवाल का इन्टरव्यू लेने वहां आया था ।
“बैठो ।” - अपने रेलवे प्लेटफार्म जैसे विशाल ड्राइंगरूम के एक राज सिंहासन जैसे सोफे की ओर संकेत करती हुई माला जायसवाल बोली ।
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला और बैठ गया ।
माला जायसवाल एक बगल के सोफे पर बैठ गई । उसकी तीखी निगाहें सुनील का सिर से पैर तक मुआयना करने लगीं ।
“मैडम...” - सुनील पहलू बदलता हुआ बोला ।
“क्या नाम है तुम्हारा ?” - माला जायसवाल उसकी बात काट कर बोली ।
“सुनील कुमार चक्रवर्ती ।” - सुनील शिष्ट स्वर से बोला ।
“किस नाम से पुकारा जाना पसन्द करते हो ? सुनील । सुनील साहब । चक्रवर्ती साहब । मिस्टर चक्रवर्ती । मिस्टर एस के चक्रवर्ती... या कुछ और ?”
“आपको मुझे किस नाम से पुकारने में सहूलियत दिखाई देती है ?”
“मेरे ख्याल से सुनील ही ठीक रहेगा ।”
“मैं भी इसी नाम से पुकारा जाना पसन्द करता हूं । मेरे सारे कद्रदान मुझे इसी नाम से पुकारते हैं ।”
“कद्रदान ?”
“जी हां । ऊपर वाले की इनायत है । कम नहीं हैं ।”
“लड़कियां ।”
“लड़कियां भी ।”
“हो सकता है । अच्छे खासे खूबसूरत आदमी हो ।”
सुनील शरमाया ।
“उम्र क्या है तुम्हारी ?”
“तीस साल ।”
“कुंवारे हो ?”
“जी हां ।”
“शादी की ही नहीं ।”
“जी हां । तभी तो कुंवारा हूं ।”
“सोचा शायद तलाक-वलाक हुआ हो ।”
“ऐसा कुछ नहीं हुआ ।”
“शादी का इरादा तो है न ?”
“कभी सोचा नहीं इस बारे में ।”
“वैसे ठीक-ठाक तो हो न ?”
“जी !” - सुनील तनिक चौंका - “क्या मतलब ?”
“मेरा मतलब कोई ऐसा नुक्स तो नहीं है तुमसे जिसकी वजह से कोई ‘शादी से पहले या शादी के बाद हम से मिलिए । इंगलैंड अमरीका तक मशहूर शाही हकीम साहब की सेवाओं से लाभ उठाइयें’ जैसी हालत पैदा हो जाए ।”
सुनील हक्का-बक्का सा उसका मुंह देखने लगा । वह तो इन्टरव्यू लेने आया था और यहां उलटा उसका इन्टरव्यू लिया जाने लगा था ।
“कुर्बान !” - सुनील होंठों में बुदबुदाया ।
“क्या कहा ?”
“जी कुछ नहीं । मैं कह रहा था कि मैं एकदम फिट हट्टा-कट्टा, रेस के घोड़े की तरह तैयार जवांमर्द हूं । कहिए तो एकआध दर्जन लड़कियों से फिटनेस का सर्टिफिकेट ले आऊं ? या इस इमारत की एकाध चौखट हिलाकर दिखाऊं ?”
“जरूरत नहीं । और जो पूछा जाए सिर्फ उसका जवाब दो । अगर जवाब देने से एतराज है तो तशरीफ ले जाओ दरवाजा खुला है ।”
“अब जबकि मैं यहां पहुंच ही गया हूं, मैंडम, तो मैं अपना मतलब हल हो जाना के बाद ही तशरीफ ले जाना पसन्द करूंगा ।”
“ठीक है । क्या काम करते हो ?”
अब सारे सिलसिले में सुनील को भी मजा आने लगा था । शायद माला जायसवाल अपने आपको ज्यादा होशियार समझती थी और अपना मजाक पसन्द आदत से उस असुविधा में डालना चाहती थी । हालांकि पार्टी के उखड़ जाने का खतरा था लेकिन फिर भी सुनील ने उसे थोड़ा बहुत घिसने का फैसला कर लिया ।
“तस्वीरें खींचता हूं, मैडम ।” - सुनील शिष्ट स्वर से बोला ।
“अच्छा ! फोटोग्राफर हो । किस चीज की तस्वीरें खींचते हो ?”
“ग्रहण की ।”
“क्या !” - वह हैरानी से उसक मुंह देखती हुई बोली ।
“जी हां । मैं तिपाई पर कैमरा फिट करके इन्तजार में बैठ जाता हूं । ज्यों ही ग्रहण लगता है मैं उसकी तसवीर खींच लता हूं ।”
“आखिरी तसवीर कब खींची थी ?”
“छ: साल पहले । जब सूर्य ग्रहण लगा था ।”
“ओह, आई सी ।” - माला जायसवाल के होंठो पर एक व्यंग्यपूर्ण मुस्कराहट उभर आई - “यानी कि बेकार हो ।”
सुनील ने यूं सिर झुका लिया जैसे अपनी यूं पोल खुल जाना उसे अच्छा न लगा हो ।
“रहते कहां हो ?”
“बैंक स्ट्रीट में ।”
“बैंक स्ट्रीट में कहां ?”
“जी... जी वो... दरअसल, तन्दुरुस्ती के लिए खुली हवा की बहुत जरूरत होती है और आप तो जानती ही हैं कि बड़े शहरों में ऐसा कमरा तलाश कर पाना जहां खुली और ताजा हवा आती हो बहुत मुश्किल होता है । इसलिए मैं... मैं...”
“फुटपाथ पर रहते हो ?”
“आप जितनी खूबसूरत हैं उतनी ही समझदार भी हैं ।” - सुनील बोला । मन ही मन वह सोच रहा था कि कैसी अहमक औरत है देखती नहीं कि पांच सौ रुपये का सूट पहने हुए हूं । लेकिन शायद एक करोड़पति औरत को पांच सौ रुपये का सूट पहनने वाला भिखारी और फुटपाथ का बाशिन्दा ही मालूम होता है ।
“बातें अच्छी करते हो ।” - माला जायसवाल बोली - “मिस्टर सुनील, छ:-सात साल में एक बार ग्रहण की फोटो खींचने में और फुटपाथ पर साने से जिन्दगी कैसे कटेगी । भविष्य में क्या करोगे तुम ?”
“वही जो आज तक करता आया हूं । यानी कि कुछ भी नहीं । मैं सिर्फ आज की फिक्र करता हूं मैडम । कल किसने देखा है ।”
“तुम अपने आज के जीवन से सन्तुष्ट हो ?”
“सन्तुष्ट होने के सिवाये और चारा ही क्या है ?”
“तुम्हारे जीवन की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है ?”
“है क्यों नहीं । मैं भी चाहता हूं कि मेरे पास आपकी कोठी जैसी ही अलीशान कोठी हो, एक बीस फुट लम्बी कार हो । आप जैसी खूबसूरत और जवान बीवी हो, बैंक में बेशुमार दौलत हो, समाज में...”
“बस, बस, बस । हो कुछ भी नहीं और चाहते सब कुछ हो । रहते फुटपाथ पर हो लेकिन इरादे चांद को सीढी लगाने के रखते हो ।”
“मैडम जब सपना ही देखना है तो क्यों न एक अच्छा सा खूबसूरत सपना देखा जाए । और यह सपना मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, अपने जैसे तमाम फुटपाथ पर रहने वालों के लिए देखता हूं ।”
“तुम कम्यूनिस्ट हो ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । मेरे तो सारे खानदान में कोई कम्यूनिस्ट नहीं हुआ । मैं तो हमेशा कांग्रेस को वोट देता हूं ।”
“उससे क्या होता है । इस बार तो कम्यूनिस्टों ने भी कांग्रेस को वोट दी है ।”
“लेकिन मैं हमेशा से ही कांग्रेस को वोट देता चला आ रहा हूं ।”
“कांग्रेस का प्रत्याशी तुम्हें वोट के सौ पचास रुपये दे देता होगा ।”
“मैं बहुत खुद्दार आदमी हूं, मैडम ।” - सुनील छाती फुलाकर बोला - “मैं खुद बिक जाना पसन्द कर सकता हूं लेकिन वोट बेचना नहीं । मेरी वोट इन्दिरा गांधी की अमानत है । इन्दिरा गांधी मेरी अम्मा है । मैं उसका बच्चा हूं...”
“बस बस, भाषण मत दो । कभी गिरफ्तार हुए हो ?”
हे भगवान ! यह औरत कैसे कैसे सवाल पूछ रही है !
“बहुत बार ।” - सुनील प्रत्यक्षत: बोला - “लेकिन सजा कभी नहीं हुई ।”
“क्या अपराध किये थे ?”
“कोई नहीं इसीलिए तो सजा नहीं हुई ।”
माला जायसवाल कुछ क्षण चुप रही और फिर बोली - “तुम अपने बारे में कुछ और बताना चाहते हो ?”
“आप मुझसे मेरे बारे में कुछ और पूछना चाहती हैं ?”
माला जायसवाल एकदम चुप हो गई । उसके चेहरे पर गहन गम्भीरता के भाव उभर आये । वह यूं सुनील का सिर से पांव तक मुआयना करने लगी जैसे वह कोई कीड़ा हो जिसका वह माइक्रोस्कोप से परीक्षण कर रही हो ।
“ईमानदार आदमी मालूम होते हो ।” - अन्त में वह निर्णयात्मक स्वर से बोली - “तुम पर भरोसा किया जा सकता है ।”
सुनील उलझनपूर्ण नेत्रों से उसकी ओर देखने लगा । अब यह औरत कौन सा स्टण्ट मारने वाली थी ।
“कुछ रुपया कमाना चाहते हो ?”
“नेकी और पूछ-पूछ । कितना ?”
“पच्चीस हजार ।”
सुनील के मुंह से सीटी निकल गई ।
“बदले में क्या करना होगा मुझे ?”
“काम बहुत आसान है ।” - गोल्डन जुबली मुस्कराहट का बल्ब फिर उसके चेहरे पर जल उठा ।
“क्या करना होगा मुझे ?”
“तुम्हें मुझसे शादी करनी होगी ।”
सुनील भौंचक्का सा उसका मुंह देखने लगा । पानी सिर से ऊंचा होता जा रहा था । आखिर मजाक की भी कोई हद होती है ।
“देखिए मैडम ।” - सुनील विनीत स्वर से बोला - “मैं बहुत गरीब आदमी हूं । मजाक की भी कोई हद होती है । इतना भयंकर मजाक मैं बरदाश्त नहीं कर सकता । मेरा हार्ट फेल हो सकता था । उस सूरत में मेरा खून आपके सर पर होता ।”
“यह मजाक नहीं है” - वह गम्भीर स्वर से बोली - “और फैसला करने में किसी जल्दबाजी की जरूरत नहीं है । तुम मुझे एक दो घण्टे सोचकर जवाब दे सकते हो ।”
“आप नशे में तो नहीं हैं ?”
“बकवास मत करो ।”
“मुझे ही क्यों चुना आपने ?”
“क्योंकि तुम दिलचस्प आदमी हो और अभी तुमने खुद कहा था कि तुम्हारी जिन्दगी की तमन्ना है कि तुम्हारी मेरे जैसी खूबसूरत और जवान बीवी हो । तुम्हारी मन की मुराद पूरी हो रही है ।”
“लेकिन... लेकिन...”
“और तुम्हें मेरे साथ जिन्दगी भर बंधे रहने की जरूरत भी नहीं है । तुम्हें सिर्फ दो तीन महीने मेरा पति बन कर रहना होगा...”
दो तीन महीने पति बनकर रहना होगा ! सुनील होंठों में बुदबुदाया - जैसे शादी न कर रही हो अपनी कम्पनी में किसी को चपरासी की टैम्परेरी नौकरी पर रख रही हो ।
“दो तीन महीने बाद मैं तुम्हें तलाक दे दूंगी और साथ में पच्चीस हजार रुपये बोनस दूंगी ।”
बोनस !
ऐसी की तैसी ! सुनील उठकर खड़ा हो गया ।
“मैडम” - सुनील शुष्क स्वर से बोला - “मैं इतना सस्ता बिकने वाला आदमी नहीं हूं । आपको जरूर कोई धोखा हो गया मालूम होता है । लगता है आप मुझे कोई और आदमी समझ रही हैं ।”
“कोई और आदमी !” - वह अचकचा कर बोली - “यानि कि तुम... यानी कि तुम... यहां मेरे विज्ञापन के जवाब में नहीं आए हो ?”
“विज्ञापन ! कैसा विज्ञापन ?”
“जो आज सवेरे के अखबार में था ।”
“मैं किसी विज्ञापन के बारे में नहीं जानता, मैडम । मैं तो यहां अपने अखबार के लिए आपका इन्टरव्यू लेने आया था ।”
“अखबार ! इन्टरव्यू ! तुम हो क्या चीज ?”
“नाम बता ही चुका हूं । मैं ‘ब्लास्ट’ का विशेष प्रतिनिधि हूं और जायसवाल इन्डस्ट्रीज की नई मालिकन की हैसियत से मैं आपका ‘ब्लास्ट’ के लिए इन्टरव्यू लेने आया था ।”
और सुनील ने अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर उसका ओर बढाया ।
माला जायसवाल ने कार्ड लिया, उस पर एक सरसरी निगाह डाली और कार्ड को मेज पर उछाल दिया ।
“तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ?” - वह नाराजगी भरे स्वर से बोली ।
“आपने मुझे मौका ही कहां दिया, मैडम !” - सुनील असहाय भाव से हाथ फैलाता हुआ बोला - “मुझ पर निगाह पड़ते ही आपने मशीनगन की तरह मुझ पर सवाल बरसाने आरम्भ कर दिये और...”
“लेकिन तुमने झूठ क्यों बोला ? तुमने यह क्यों कहा कि तुम बेकार हो और फुटपाथ पर सोते हो वगैरह...”
“हंसी मजाक के इस सिलसिले की शुरूआत आपने की थी । मैंने इसे जरा आगे बढा दिया ।”
“अजीब मसखरे आदमी हो !”
“शुक्रिया ।”
“मैंने यह बात तुम्हारी तारीफ में नहीं कही थी ।”
“मुझे तो तारीफ ही लगी यह ।”
“अजीब...”
“मसखरा आदमी हूं मैं । आपने अभी बताया है मुझे ।”
“अब क्या चाहते हो ?”
“इन्टरव्यू, मैडम ।” - सुनील विनीत स्वर में बोला ।
“अभी मुझे वक्त नहीं । फिर आना ।”
“फिर कब ?”
“आधी रात को ।”
“जी !”
“क्यों ? आधी रात को नहीं आ सकते हो क्या ?”
“आ तो सकता हूं लेकिन... आधी रात को...”
“मुझे तो तभी फुरसत है ।”
“अगर मैं कल आ जाऊं तो ?”
“आल राइट । कल आधी रात को आ जाना ।”
“यानी कि आना मुझे आधी रात को ही पड़ेगा ?”
“कोई जरूरी नहीं है । मत आना ।”
“आना तो पड़ेगा ही मैडम । सिर के बल चर कर आना पड़ेगा । आखिर नौकरी तो करनी ही है । नौकरी में नखरा कैसा । और वैसे भी मुझे सिर के बल चलकर लोगों के पास पहुंचने का बहुत अभ्यास हो गया है ।”
“वैरी गुड ।”
“कहां आना होगा, मैडम ?”
“यहीं आ जाना । मेरे क्लब से लौटने तक आधी रात हो चुकी होती है । मैं यहीं मिलूंगी तुम्हें ।”
“आल राइट । मैं हाजिर हो जाऊंगा । एण्ड थैंक्यू वैरी मच मैडम ।”
उसी क्षण कोने में एक तिपाई पर रखे टेलीफोन की घन्टी बज उठी ।
“एक्सक्यूज मी ।”
वह टेलीफोन की ओर बढ गई ।
सुनील ड्राइंग रूम से बाहर निकल आया और इमारत के प्रवेश द्वार की ओर बढा । उसने द्वार की ओर हाथ बढाया ही था कि द्वार बाहर की ओर से खुला और एक आदमी सीधा उसकी छाती से आ टकराया ।
“आई एम सारी ।” - वह हड़बड़ाए स्वर से बोला ।
“नैवर माइन्ड ।” - सुनील बोला ।
“मेरा नाम गिरीश है । मैं माफी चाहता हूं मुझे पहुंचने में देर हो गई ।”
“तुम अखबार में छपे विज्ञापन के जवाब में आए हो ?”
“जी हां ।”
सुनील ने उसे सिर से पांव तक देखा । वह उसी की आयु का एक दुबला पतला युवक था । वह एक घिसा हुआ पुराना सूट पहने हुए था और उसके चेहरे से भी सम्पन्नता नहीं झलक रही थी ।
“देर की परवाह मत करो, प्यारे लाल” - सुनील उसकी पीठ थपथपाता हुआ बोला - “मैदान साफ है सीधे अन्दर चले जाओ । भीतर तुम्हारा ही इन्तजार हो रहा है लेकिन प्यारे काम तभी ही बनेगा अगर तुम कुंवारे हो और इतने जवां मर्द हो कि तुम्हें कारपोरेशन के सांड की तरह भी इस्तेमाल किया जा सके ।”
“जी !” - गिरीश नामक वह युवक चौंधिया गया ।
“गुड लक, मैन, गो अहेड, गो राइट अहेड ।”
सुनील इमारत से बाहर निकल आया ।
वह अपनी साढे सात हार्स पावर की मोटर साइकिल पर सवार हुआ और सीधा एक न्यूज स्टैण्ड पर पहुंचा ।
सबसे पहले उसने ‘ब्लास्ट’ देखा ।
“उसी दिन के ‘ब्लास्ट’ के दूसरे पृष्ठ पर वर्गीकृत विज्ञानों के ‘सिचुएशन वेकेन्ट’ के कालम में उसे वह विज्ञापन मिल गया जिसका माला जायसवाल ने जिक्र किया था:
जरूरत है एक सुन्दर, स्वस्थ, अविवाहित, और कुलीन परिवार के नौजवान की । असाधारण नौकरी, तगड़ा वेतन । अत्यन्त गोपनीय । टेलीफोन नम्बर 569466
पर सम्पर्क स्थापित कीजिए ।
सुनील ने टेलीफोन डायरेक्ट्री में माला जायसवाल का नम्बर देखा । विज्ञापन में लिखा नम्बर उसी का था ।
सुनील ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर दृष्टिपात किया । अभी दिन के ग्यारह ही बजे थे । माला जायसवाल से दुबारा मुलाकात में अभी तेरह घन्टे बाकी थे ।
एक ख्याल उसके दिमाग में आया ।
क्या वह औरत वाकई उसे आधी रात को इन्टरव्यू देगी या यह भी उसने उसे बेवकूफ बनाने के लिए यूं ही कह दिया था ।
जाऊंगा जरूर - सुनील दृढता से होंठों में बुदबुदाया - अगर पट्ठी ने मुझे सिर्फ बेवकूफ बनाने के लिए ही आधी रात को बुलाया है तो वह भी याद करेगी कि कोई मिला था ।
उसने अपनी मोटर साइकिल ‘ब्लास्ट’ के आफिस की ओर दौड़ा दी ।
***
यूथ क्लब में सुनील रमाकांत और क्लब के कुछ अन्य स्थायी सदस्यों के साथ रमी की मेज पर जमा हुआ था ।
सुनील ने घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
सवा ग्यारह बज गए थे ।
“मेरी आखिरी गेम ।” - सुनील बोला ।
“क्यों ?” - रमाकान्त हैरानी से बोला - “अभी तो बुधवार का दिन खत्म होने में ही पैंतालीस मिनट बाकी हैं ।”
“मुझे एक बहुत जरूरी काम से कहीं पहुंचना है ।”
“जरूरी काम । इस वक्त ?”
“हां ।”
“कोई छोकरी का चक्कर तो नहीं है ।”
“है ।”
“फिर किसी के फटे में टांग अड़ाने जा रहे हो ?”
“नौकरी करने जा रहा हूं ।”
“आधी रात को ?”
“हां ।”
“क्यों घिस रहे हो ?”
“मैं सच कह रहा हूं ।”
गेम खतम हुई । सुनील रमी की मेज से उठ खड़ा हुआ ।
“गुड नाइट, दोस्तो ।” - सुनील बोला ।
“स्कोर क्या है तुम्हारा ?” - एक अन्य खिलाड़ी ने पूछा ।
“सिक्सटी डाउन ।” - सुनील बोला ।
वह क्लब से बाहर की ओर चल दिया ।
रमाकांत भी उसके पीछे-पीछे आ गया ।
क्लब की पोर्च में सुनील रुका । उसने अपना लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाल लिया ।
रमाकांत ने भी अपना चार मीनार का पैकेट निकाला ।
दोनों ने एक सिगरेट सुलगाया ।
“क्या किस्सा है ?” - रमाकांत चार मीनार का ढेर सारा कड़वा धुआं उगलता हुआ बोला ।
“तुमने माला जायसवाल का नाम सुना है ?” - सुनील ने पूछा ।
“माला जायसवाल । वह सेठ हुकमचन्द जायसवाल की भतीजी ?”
“हां !”
“उसका नाम किसने नहीं सुना ।”
“सिर्फ नाम ही सुना है या कुछ जानते भी हो उसके बारे में ?”
“काफी कुछ जानता हूं । सात आठ साल पहले वह यूथ क्लब में आया करती थी । तब माला और उसकी छोटी बहन सरिता अपने बाप के साथ रहती थीं जो कि तब जिन्दा था । उनका बाप गरीब तो नहीं था लेकिन अगर सेठ हुकुमचन्द जायसवाल की हैसियत से उसका मुकाबला किया जाए तो वह गरीब ही था । अपने बाप की मौत के बाद दोनों लड़कियां अपने चाचा के पास रहने के लिए चली गई थीं । माला पर अपने चाचा की रईसी का असर इस रफ्तार से हुआ था कि सबसे पहले तो उसने यूथ क्लब ही आना छोड़ दिया था । पूछने पर फरमाने लगी कि यूथ क्लब तो एक ऐसी जगह है जैसे ताजमहल होटल के मुकाबले में कोई ढाबा हो और यह कि वह तो उसे किस तरह बरदाश्त कर रही थी वर्ना वह शुरू से ही जानती थी कि उस जैसी लड़की के लिए यूथ क्लब जैसी जगह में कदम रखना अपनी इज्जत खराब करना था जबकि हकीकत यह है कि उन दिनों हमने उसे यूथ क्लब का सदस्य बनाकर अपनी ओर से उस पर अहसान किया था ।”
“और ?”
“जिन दिनों इसका बाप मरा था तब वह लगभग बाइस साल की थी और सुनील, बाई गॉड बेहद इश्कियाई हुई लड़की थी । नौजवान उसके पीछे यूं पड़े रहते थे जैसे... जैसे... छोड़ो बड़ी गन्दी बात जुबान से निकल रही थी ।”
“आगे बोलो ।”
“उन्हीं दिनों उसने बड़े अप्रत्याशित ढंग से एक फौजी अफसर से शादी कर ली थी ।”
“खुद ही ?”
“और क्या ! कोर्ट में विवाह हुआ था । बाप मर चुका था । और अपने चाचा के बारे में वह समझती थी कि उसे उसके निजी मामलों में दखल देने का कोई हक नहीं । सच पूछो तो चाचा को तो नोट गिनने से ही फुरसत नहीं होती थी । उसे तो यह पता ही नहीं लगता था कि उसकी भतीजियां क्या गुल खिला रही हैं । लेकिन फिर भी माला के यूं शादी कर लेने पर वह बहुत आग बबूला हुआ था लेकिन उसका क्रोध जल्दी ठण्डा हो गया था ।”
“कैसे ?”
“शादी होने के दो तीन महीने बाद ही हिन्दोस्तान पाकिस्तान की जंग छिड़ गई थी । वह फौजी अफसर फ्रन्ट पर भेज दिया गया था और छुट्टी ।”
“क्या मतलब ?”
“लड़ाई में उसका कुछ पता ही नहीं लगा कि क्या हुआ ? पता नहीं वह मारा गया या पाकिस्तानियों द्वारा कैद कर लिया गया । बहरहाल उसका नाम न तो मरने वालों की लिस्ट में था और न कैदियों की लिस्ट में था ।”
“फिर तो शायद वह जिन्दा हो ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । अगर वह जिन्दा होता तो अब तक राजनगर में लौट आया होता । सात साल तो हो गए हैं ।”
“नाम क्या था उस फौजी अफसर का ?”
“कोई कश्यप था । पूरा नाम याद नहीं । लोग उसे मेजर कश्यप ही कहते थे ।”
“तुम्हारी याददाश्त बड़ी तगड़ी है । इतनी पुरानी बातें याद हैं तुम्हें ?”
“उसकी एक वजह है ।”
“क्या ?”
“तब मैं भी ताजा ताजा जवान हुआ था और इश्क का बुखार जवानी में बड़ी रफ्तार से चढता है । उन दिनों माला जायसवाल के आशिकों की लिस्ट में मेरा नाम सबसे ऊपर था । फिर पता नहीं कहां से यह साला मेजर कश्यप आ टपका था और एक जेबकतरे की तरह मुझे माला जायसवाल को काटकर ले गया था । भाई साहब उन दिनों तो मेरा जी चाहता था कि मैं मेजर कश्यप का खून कर दूं ।”
“छोटी बहन सरिता भी ऐसी ही है ?”
“कैसी ? माला जैसी ?”
“हां ।”
“नहीं । वह तो बड़ी चरित्रवान लड़की थी । सेठ हुकुमचन्द जायसवाल ने खुद बड़ी धूमधाम से उसकी शादी की थी ।”
“किससे ?”
“जायसवाल इन्डस्ट्रीज के वर्तमान प्रैसीडेंट से । नाम मुझे मालूम नहीं ।”
“सेठ हुकुमचन्द जायसवाल का कोई अपना बाल बच्चा नहीं है ?”
“कभी कभी तो एकदम अहमकों जैसी बात करते हो । अगर उसका अपना कोई बाल-बच्चा होता तो क्या यह अपनी सारी जायदाद आनी दो भतीजियों के नाम कर जाता ? भाई साहब, उसका बाल बच्चा तो क्या इन दो भतीजियों के अलावा उसका कोई दूर दराज का रिश्तेदार भी नहीं है ।”
“आई सी !”
“माला जायसवाल में तुम्हारी क्या दिलचस्पी है ?”
“मैं उसका ‘ब्लास्ट’ के लिए इन्टरव्यू लेने जा रहा हूं ।”
“इस वक्त ?”
“हां ।”
“क्यों घिस रहे हो ?”
“ईमान से । मैं दिन में उसके पास गया था । बोली कि वह केवल रात को ही इन्टरव्यू दे सकती है ।”
“मुझे तो कुछ दाल में काला दिखाई दे रहा है ।”
“दिखाई तो मुझे भी दे रहा है लेकिन वह काला दाल में मैंने नहीं डाला ।”
“गुरु, मेरी राय मानो । अगर वाकई उसने तुम्हें इन्टरव्यू देने के लिए आधी रात को बुलाया है तो मत जाओ ।”
“क्यों ?”
“बहुत मर्दखोर औरत है वह । तुम्हारा हलुवा बनाकर खा जाएगी ।”
“मैं भी कोई कम औरतखोर नहीं हूं ।” - सुनील छाती फुला कर बोला ।
उसने अपना बचा हुआ सिगरेट फेंक दिया ।
रमाकान्त ने नया सिगरेट सुलगा लिया ।
“पछताओगे ।” - रमाकांत बोला ।
“और फिर उसने मुझे दो तीन महीने की एक ऐसी टैम्परेरी नौकरी की आफर दी है जिसमें मुझे पच्चीस हजार रुपये बोनस मिलेगा ।”
“क्या ?” - रमाकांत के नेत्र फैल गए ।
“जी हां । वह तो पहले ही मुझ पर फिदा है ।”
“और नौकरी क्या है ?”
“मुझे उसके पति की पोस्ट मिल रही है ।”
रमाकांत ने सन्द‍िग्ध नेत्रों में उसकी ओर देखा - “क्या बात है । आज तो तुमने पी भी नहीं । फिर भी ऐसी बहकी बहकी बातें क्यों कर रहे हो ?”
“मैं हकीकत बयान कर रहा हूं प्यारेलाल” - सुनील बोला - “उसकी कम्पनी में एक पति की टैम्परेरी जगह खाली है वह मुझे मिल रही है ।”
“सुनील, मुझ से झूठ बोलोगे तो तुम्हारी नई सहेली मर जाएगी । यह मेरी बद्दुआ है ।”
“मेरी नई सहेली तो माला जायसवाल ही है । और वह तो अभी मरने का कोई इरादा नहीं रखती, खास तौर से इसलिए क्योंकि वह मुझ पर मर चुकी है । आहा कितना रुतबा पैदा हो जाएगा यह नौकरी मिल जाने के बाद । आज तक मैं यही कहा करता था कि साहब मैं ‘ब्लास्ट’ में विशेष प्रतिनिधि की हैसियत से काम कर रहा हूं और कोई रोब ही नहीं खाता था और अब मैं कहां करूंगा कि साहब मैं जायसवाल इन्डस्ट्रीज में मालकिन के पति की हैसियत से काम कर रहा हूं, लोगों के फ्यूज उड़ जायेंगे, भाई साहब ।”
“लानत है तुम पर ।”
“जल रहे हो ? तुम्हारी पुरानी माशूका से शादी कर रहा हूं मैं ।”
“मेरी जूती जलती है” - रमाकांत झगड़ालू औरतों की तरह हाथ नचाता हुआ बोला - “और सच पूछो तो मुझे बिल्कुल विश्वास नहीं हुआ है कि तुम माला जायसवाल के पास जा रहे हो । इस वक्त तो कोई तुम्हें उसकी कोठी के पास भी नहीं फटकने देगा ।”
“तो फिर कहां जा रहा हूं मैं ?”
“जहन्नुम में ।”
“खुदा ऐसे जहन्नुम में हर किसी को भेजे ।”
और सुनील ने आगे कदम बढाया ।
“सुनो ।”
सुनील ठिठका । उसने घूमकर रमाकांत की ओर देखा ।
“तुम्हारी नियुक्ति वाकई जायसवाल इन्डस्ट्रीज में माला जायसवाल के पति के पद पर हो रही है ?” - रमाकांत ने पूछा ।
“तुम्हारी कसम ।” - सुनील बड़ी संजीदगी से बोला ।
“उसके यहां कोई डिप्टी पति की जगह खाली है ?”
“मैं पूछूंगा ।”
“अगर हो तो मुझे भरती करवा देना ।­”
“मैं कोशिश करूंगा ।”
“मालकिन को मेरी ओर से विश्वास दिला देना कि मैं मेहनती आदमी हूं और बहुत ईमानदारी से काम करूंगा ।”
“मैं बात करूंगा ।”
“और तनख्वाह थोड़ी कम भी होगी तो मुझे एतराज नहीं होगा ।”
“मैं बात करूंगा ।”
“बहुत मेहरबानी साहब । गरीब आदमी हूं । डिप्टी पति की यह नौकरी अगर मुझे मिल जाए तो मेरे पाप कट जायेंगे । मैं बहुत ईमानदारी से काम करूंगा ।”
“ईमानदारी से काम करोगे तो जल्दी ही तरक्की पा जाओगे ।”
“यानी कि जल्दी ही डिप्टी पति से पति बना दिया जाऊंगा ?”
“करेक्ट ।”
“हजार बार लानत है तुम पर ।” - रमाकांत एकाएक भड़क कर बोला ।
सुनील ने जोर से अट्ठहास किया ।
रमाकांत पांव पटकता हुआ वापिस क्लब में घुस गया ।
सुनील अपनी मोटर साइकिल पर सवार हुआ और शंकर रोड की ओर उड़ चला । रास्ते सुनसान पड़े थे । केवल दस मिनट में वह शंकर रोड पर माला जायसवाल की कोठी के सामने पहुंच गया । उसने मोटर साइकिल को फुटपाथ पर ही खड़ा कर दिया । फाटक को ठेलकर वह भीतर प्रविष्ट हुआ । मुख्य द्वार के सामने पहुंचकर उसने घन्टी बजाई ।
भीतर कहीं घन्टी बजने की धीमी आवाज आई लेकिन जवाब में कोई दरवाजा खोलने नहीं आया ।
सुनील ने घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
पौने बारह बजने को थे ।
शायद माला जायसवाल अभी क्लब से लौटी नहीं थी ।
लेकिन घर में कोई नौकर चाकर तो होगा ।
उसने फिर घन्टी बजाई ।
जवाब नदारद ।
सुनील ने धीरे से द्वार को धक्का दिया ।
द्वार खुला था ।
सुनील भीतर प्रविष्ट हो गया ।
सड़क पर खड़े रहकर बारह बजने का इन्तजार करने का कोई मतलब नहीं था । आखिर माला जायसवाल से उसकी आधी रात की अप्वायन्टमेंट थी । उसे भीतर ड्राइंग रूम में बैठकर इन्तजार करने का हक पहुंचता था ।
“कोई है ?” - सुनील जोर से बोला ।
जवाब सन्नाटे से मिला ।
सुनील गलियारा पार कर के ड्राइंग रूम में पहुंचा । ड्राइंग रूम की बत्तियां जल रही थीं और...
ड्राइंग रूम के बीचों बीच औंधे मुंह माला जायसवाल पड़ी थी । उसके सिर का पिछला भाग तरबूज की तरह फट गया था और उसमें से खून बह-बह कर उसकी गरदन और कंधों के आस पास जमा हो रहा था । समीप ही एक पीतल का भारी फूलदान पड़ा था । फूलदान पर खून और खून में चिपके हुए माला जायसवाल के सिर के भूरे बाल दिखाई दे रहे थे ।
सुनील ने आगे बढकर सावधानी से उसकी नब्ज पर हाथ रखा ।
नब्ज गायब थी ।
भारी फूलदान के एक ही वार से किसी ने माला जायसवाल का काम तमाम कर दिया ।
सुनील उठकर खड़ा हो गया । उसने ड्राइंग रूम में आसपास दृष्टि दौड़ाई । एक सोफा और वह तिपाई जिस पर फूलदान रखा था उलटे पड़े थे । लगता था माला जायसवाल को हत्यारे की नीयत का पता लग गया था और उसने अपना बचाव करने की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो सकी थी ।
उसी क्षण ड्राइंग रूम एक हृदय विदारक चीख से गूंज उठा ।
सुनील चिहुंक कर वापिस घूमा ।
द्वार पर एक युवती खड़ी थी । उसकी आंखें आतंक से बाहर निकली पड़ रही थी और चेहरा कागज की तरह सफेद था । उसके दोनों हाथ उसके मुंह की ओर उठे हुए थे और लगता था जैसे वह फिर चीखने लगी हो ।
“मैडम, प्लीज !” - सुनील लपककर उसके पास पहुंचा और याचनापूर्ण स्वर में बोला ।
युवती के मुंह से चीख नहीं निकली लेकिन उसके चेहरे के भावों में कोई परिवर्तन नहीं आया । उसने एक गहरी सांस खींची और फिर हकलाती हुई बोली - “तुम...तुम... तुमने...”
“नहीं, नहीं, नहीं ।” - सुनील जल्दी से बोला - “मैंने कत्ल नहीं किया है । मैं तो अभी यहां पहुंचा हूं ।”
“म - मा - माला... मर गई ?”
“हां ।”
युवती ने नेत्र बन्द कर लिए और वह यूं लहराई जैसे बेहोश होकर गिरने वाली हो लेकिन जल्दी ही किसी प्रकार उसने स्वयं को सम्भाल लिया ।
“तु... तुम कौन हो ?”
“मेरा नाम सुनील है । मैं ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर हूं । मैडम से मेरी अप्वायन्टमेंट थी ।”
“इस वक्त ?”
“जी हां ।”
युवती के चेहरे पर अविश्वास के भाव उभरे ।
“आपकी तारीफ ?”
“मैं माला की बहन हूं ! सरिता ।”
“सरिता ! आप... आप तो जायसवाल इन्डस्ट्रीज के प्रैसीडेन्ट की पत्नी हैं न ?”
“हां ।”
“आप यहीं रहती हैं ?”
“नहीं । मैं तो लिंक रोड पर रहती हूं ।”
“आप इतनी रात गए यहां कैसे आई ?”
“माला के मंगेतर ने मुझे फोन किया था । वह बहुत परेशान था । उसने मुझसे प्रार्थना की थी कि मैं आज की रात माला के यहां रह जाऊं । बुधवार रात को माला सारे नौकरों को छुट्टी दे देती है इसलिए वह कोठी में अकेली रह जाती है । ऐसा हर बुधवार को होता है लेकिन आज माला के मंगेतर का ख्याल था कि माला को कोठी में एक साथी की जरूरत थी ।”
“आपने वजह नहीं पूछी ?”
“पूछी थी लेकिन वह खुद परेशान था और ठीक से बात नहीं कर पा रहा था ।”
“ये मंगेतर कौन साहब हैं ?”
“उसका नाम अविनाश कुमार है ।”
“और माला जी उससे शादी करने वाली थीं ?”
“मंगेतर से शादी ही होनी होती है और क्या ?”
कमाल है । अगर माला जायसवाल का कोई मंगेतर था तो उसने पति के लिए अखबर में विज्ञापन क्यों दिया था ? वह तो सुबह उससे ही शादी करने को तैयार मालूम होती थी ।
“आपने मिस्टर अविनाश कुमार के आपको फोन करके यहां आने को कहने की खुद कोई वजह सोची ?”
“मेरी समझ में कुछ नहीं आया था । कुछ समझने के लिए ही मैं जल्दी से जल्दी यहां पहुंची थी ।”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “मैं पुलिस को फोन करता हूं ।”
“पुलिस !” - सरिता फुसफुसाई और फिर एक सोफे पर ढेर हो गई । उसने नेत्र बन्द कर लिए ।
सुनील कोने में रखे टेलीफोन के पास पहुंचा । उसने पुलिस हैडक्वार्टर का नम्बर डायल किया और माला जायसवाल की हत्या की सूचना दे दी ।
***
इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल अपने दल बल के साथ आया । आते ही उसने सुनील को यूं देखा जैसे राजमहल में चोर घुस आया हो लेकिन वह मुंह से कुछ नहीं बोला ।
पुलिस की रुटीन चालू हो गई ।
उसके निर्देश पर एक आदमी ने सरिता के पति को फोन कर दिया था ।
सुनील ड्राइंग रूम के एक तनहा कोने में एक बड़ी सी ऐश ट्रे गोद में रखकर बैठ गया था और सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा था ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद जमीन रौंदता हुआ प्रभूदयाल उसके पास पहुंचा । उसने यूं कहर भरी निगाहों से सुनील को देखा जैसे सोच रहा हो कि वह उसके हाथ पांव तोड़ दे या उसे उठाकर पटक दे । अन्त में वह एक स्टूल घसीट कर उसके सामने बैठ गया ।
“सिगरेट बुझाओ !” - प्रभूदयाल कठिन स्वर से बोला ।
बड़े आज्ञाकारी ढंग से सुनील ने अपना ताजा सुलगाया सिगरेट ऐश ट्रे में झोंक दिया और ऐश ट्रे मेज पर रख दी ।
“शुरू करो !” - प्रभूदयाल ने आदेश दिया ।
“क्या ?”
“अपनी राम कहानी ।”
“मेरा जन्म सन् उन्नीस सौ बयालीस में पूर्वी बंगाल के गोपालगंज नामक गांव में हुआ । बचपन में मैं...”
“शट अप !” - प्रभूदयाल इतनी जोर से दहाड़ा कि ड्राइंग रूम में मौजूद सारे आदमी उस ओर देखने लगे ।
“कमाल है । तुम्हीं ने तो मुझे अपनी राम कहानी सुनाने को कहा था ।”
“बकवास मत करो । मैंने तुम्हें माला जायसवाल की मौत से अपना सम्बन्ध बयान करने के लिए कहा है ।”
“ओह ! आई एम सॉरी ।” - सुनील बोला उसने प्रभूदयाल को सविस्तार अपनी माला जायसवाल से सुबह की मुलाकात का विवरण सुना दिया ।
कहानी समाप्त होते ही प्रभूदयाल के चेहरे पर तीव्र अविश्वास के भाव उभर आये ।
“यानी कि आज सुबह ग्यारह बजे माला जायसवाल ने तुम्हें और तुमने माला जायसवाल को पहली बार देखा था ?” - वह बोला ।
“करैक्ट ।” - सुनील बोला ।
“और तुम पर निगाह पड़ते ही उसने तुम्हें शादी के लिए प्रपोज कर दिया ?”
“हां !”
“और अब तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी इस बकवास पर विश्वास कर लूं ।”
“मत करो लेकिन हकीकत तो यही है ।”
“देखो मिस्टर, यह किसी मामूली औरत का नहीं सेठ हुकुमचन्द जायसवाल की करोड़पति भतीजी की हत्या का मामला है । इसमें पुलिस कमिश्नर तक की निजी दिलचस्पी होगी । तुम अपनी बकवास से मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर सकते हो लेकिन पुलिस कमिश्नर के सामने तुम्हारी यह कामेडी नहीं चलेगी ।”
“इन्स्पेक्टर साहब, पुलिस कमिश्नर तो क्या अगर स्वयं गृह मन्त्री भी मुझसे जवाब तलब करेंगे तो मेरा यही जवाब होगा जो मैंने आपको दिया है और यही हकीकत है ।”
“यानी कि तुम पर निगाह पड़ते ही माला जायसवाल तुम पर फिदा हो गई और तुमसे प्रार्थना करने लगी कि सुनील मुझसे शादी कर लो वरना मेरी जिन्दगी दुश्वार हो जायेगी ?”
“इतना मक्खन लगाने की बात नहीं थी । उसने मुझे शादी के लिए कहा था और एक टैम्परेरी पति की तलाश में उसने अखबार में विज्ञापन भी दिया था ।”
“विज्ञापन ! पति के लिए ?”
“हां ।”
“कौन से अखबार में ?”
“‘ब्लास्ट’ में । आज के ‘ब्लास्ट’ में । शायद और अखबारों में भी, लेकिन आज के ‘ब्लास्ट’ में मैंने खुद वह विज्ञापन देखा है । बगल के बैडरूम में जिसमें इस वक्त सरिता लेटी हुई है, मैंने आज का ‘ब्लास्ट’ पड़ा देखा था । चाहो तो अखबार मंगवाकर खुद देख लो ।”
प्रभूदयाल उठकर बैडरूम की ओर बढा ।
सुनील उसके पीछे-पीछे हो लिया ।
बैडरूम में अखबार फर्श पर पड़ा था । प्रभूदयाल ने अखबार उठाकर लेकिन वह अखबार का बीच का हिस्सा था । अखबार के बाहरी चार पृष्ठ वहां नहीं थे और वर्गीकृत विज्ञापन का कालम दूसरे पेज पर होता था
“बाकी अखबार कहां गया ?” - प्रभूदयाल बोला ।
“मुझे क्या मालूम ?” - सुनील बोला ।
प्रभूदयाल ने वह अखबार भी वहीं फेंक दिया और एक सिपाही को बुलाकर उसे कहीं से उस दिन का ‘ब्लास्ट’ लाने का आदेश दिया ।
“अच्छा !” - प्रभूदयाल सुनील की ओर घूमा - “माला जायसवाल ने तुमसे शादी करने के लिए कहा और तुमने इन्कार कर दिया ।”
“और क्या करता ? मैं तो समझा था कि वह मुझे उल्लू बनाने की कोशिश कर रही है । वास्तव में जैसा कि मुझे बाद में मालूम हुआ, वह मुझे कोई और आदमी समझ रही थी । कोई गिरीश नाम का आदमी उसके विज्ञापन के जवाब में मेरे बाद यहां आया था और शायद उसने मुझे ही गिरीश समझ लिया था ।”
“गिरीश ! कौन गिरीश ?”
सुनील ने उसे उस युवक के बारे में बताया जो सुबह उसके बाद में वहां पहुंचा था ।
“यह बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताई ?”
“सॉरी, मैं भूल गया था ।”
“गिरीश का हुलिया बयान करो ।”
सुनील ने गिरीश का हुलिया बयान कर दिया ।
“और अब यहां आधी रात को तुम क्या करने आये थे ?”
“उसने मुझे इन्टरव्यू के लिए बुलाया था ।”
“आधी रात को ?”
“हां ।”
“यानी कि तुम्हें अपने अखबार के लिए उसका इन्टरव्यू लेना था और उसने तुम्हें आधी रात को आने के लिए कहा ?”
“हां ।”
“तुम पछताओगे ।” - प्रभूदयाल दहाड़ कर बोला ।
“अब क्या हो गया है ?”
“सच सच बताओ तुम इस वक्त यहां क्या करने आए थे ?”
“उसका इन्टरव्यू लेने ।”
“क्यों बकवास कर रहे हो । मैं कैसे मान लूं कि एक ऊंची सोसायटी की औरत एक मामूली अखबारची को इन्टरव्यू के लिए आधी रात को बुलाएगी ।”
“प्रभू, बाई गॉड ऐसा ही हुआ था । मेरा ख्याल है कि उसने मुझे आधी रात को आने के लिए यह सोचकर कहा था कि मैं आऊंगा नहीं ।”
“लेकिन तुम आ गए ।”
“और क्या ? और मेरा काम क्या है ? मैं भला क्यों न आता ? मुझे तो अगर वह यह कहती कि वह माउन्ट एवरेस्ट की चोटी पर मुझे इन्टरव्यू देगी तो मैं वहां पहुंच जाता ।”
उसी क्षण एक सिपाही एक सूरत से ही रईस लगने वाले और आकर्षक व्यक्तित्व वाले आदमी को लेकर ड्राइंग रूम में पहुंचा ।
“मेरा नाम शान्तिस्वरूप है ।” - सिपाही के मुंह खोलने से पहले ही वह अधिकारपूर्ण स्वर से बोला - “मैं जायसवाल इन्डस्ट्रीज का प्रेसीडेन्ट हूं । मुझे किसने फोन किया था ?”
“मैंने” - प्रभूदयाल आदरपूर्ण स्वर से बोला - “मेरा नाम इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल है ।”
“मेरी बीवी कहां है ?”
“बगल के बैडरूम में । वे बहुत नर्वस हैं इसलिए उन्हें भीतर आराम करने के लिए कहा गया है ।”
“मैं उसे घर ले जा रहा हूं ।”
“अभी नहीं ।”
“क्यों ?”
“अभी हमने उनका बयान नहीं लिया है ।”
शान्तिस्वरूप ने उपेक्षापूर्ण नेत्रों से प्रभूदयाल को देखा और दृढ कदमों से बैडरूम की ओर बढ गया ।
प्रभूदयाल ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की ।
“रईस आदमी है न” - सुनील व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला - “अगर वह तुम्हें रौंदता हुआ भी गुजर जाता तो भी तुम हीं हीं करते उसके सामने खड़े रहते ।”
“अपना थबड़ा बन्द रखो ।” - प्रभूदयाल जले भुने स्वर से बोला ।
उसी क्षण जैसे ड्राइंग रूम में तूफान आ गया । एक आदमी पागलों की तरह ड्राइंग रूम में घुसा । उसके पीछे-पीछे एक सिपाही भाग रहा था और उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा था । जाहिर था कि वह आदमी सिपाही के रोके रुका नहीं था और जबरदस्ती घुस आया था ।
“कहां है वह ?” - वह बदहवास स्वर से बोला - “कहां है वह ?”
“ऐ मिस्टर !” - सिपाही ने उसकी बांह पकड़ी लेकिन उसने सिपाही की बांह झटक दी ।
“छोड़ दो हवलदार ।” - प्रभूदयाल ने आदेश दिया ।
सिपाही अलग हट गया ।
“कौन कहां है ?” - प्रभूदयाल ने कठोर स्वर से पूछा ।
“माला !”
“और तुम कौन हो ?”
“मेरा नाम अविनाश है । मैं माला का मंगेतर हूं ।”
सुनील ने उसको सिर से पांव तक देखा । वह एक सुन्दर नयन नक्श वाल साफ सुथरा युवक था ।
“माला कहां है ?” - उसने फिर से पूछा ।
“वह मर चुकी है । किसी ने उसकी हत्या कर दी है । उसकी लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजी जा चुकी है ।”
“हे भगवान ! हे भगवान !” - अविनाश ने अपना माथा थाम लिया । उसके चेहरे का रंग उड़ गया था ।
“मिस्टर अविनाश !” - प्रभूदयाल तीव्र स्वर से बोला - “अपने आपको सम्भालो और मेरे एक दो सवालों का जवाब दो ।”
“क्या पूछना चाहते हैं आप ?” - वह कम्पित स्वर से बोला । अपनी जेब से रूमाल निकाल कर वह अपने चेहरे पर फिराने लगा ।
“तुम माला जायसवाल के मंगेतर हो ?” - प्रभूदयाल ने पूछा ।
“जी हां ।”
“तुम्हारी उससे शादी होने वाली थी ?”
“जी हां । जल्दी ही ।”
“मैंने सुना है उसने अखबार में पति के लिए विज्ञापन दिया था । आपको इस बात की खबर है ?”
“जी हां ।”
“यानी कि आप जानते हैं कि...”
“जी हां । जी हां । मुझे पता है माला ने अखबार में ऐसा विज्ञापन दिया था ।”
“और आप उसके मंगेतर हैं । यह क्या किस्सा है ?”
“किस्सा यह है इन्स्पेक्टर साहब... क्या मैं बैठ सकता हूं ?”
“हां, हां । जरूर ।”
अविनाश बैठ गया । उसने एक बार फिर अपने चेहरे पर रुमाल फिराया और गहरी सांस लेकर बोला - “सेठ हुकुमचन्द जायसवाल अपनी वसीयत के अनुसार सारी जायदाद अपनी माला और सरिता नाम की दोनों भतीजियों के नाम छोड़ कर गए हैं । जायसवाल इन्डस्ट्रीज की एक दर्जन मिलों में आज तीन करोड़ रुपये का सरमाया लगा हुआ है जबकि शुरूआत में सेठ हुकुमचन्द जायसवाल की एक छोटी सी कपड़ा मिल थी । इस इन्डस्ट्री को उन्होंने अपने खून से सींचा है और...”
“आप कहना क्या चाहते हैं ?” - प्रभूदयाल उतावले स्वर से बोला ।
“मैं वहां पहुंच रहा हूं । सेठ जी चाहते थे कि जायदाद मिलने के बाद भी किसी प्रकार उनकी भतीजियों की दिलचस्पी जायसवाल इन्डस्ट्रीज नाम के उनके द्वारा रोपे गये वृक्ष में बनी रहे । अर्थात् ऐसा न हो कि वे दोनों मिलें बेचकर नकद रुपया हासिल कर लें और फिर उसे उजाड़ना शुरू कर दें । इसलिए बूढे सेठजी ने वसीयत में भी शर्त रखी थी कि दोनों लड़कियां जायसवाल इन्डस्ट्रीज के ही किसी कर्मचारी से विवाह करें । सरिता तो पहले ही कम्पनी के प्रेसीडेन्ट शान्ति स्वरूप से ब्याही हुई है और माला के लिए भी यह जरूरी था कि वह सेठ जी की मौत के तीस दिन के अन्दर अन्दर कम्पनी के ही किसी वेतन-भोगी कर्मचारी से ब्याह कर ले ।”
“और अगर वह ऐसा न करे तो ?” - सुनील ने पूछा ।
“आपकी तारीफ ?” - अविनाश बोला ।
“ये भी हैं कोई चीज” - सुनील के जुबान खोलने से पहले ही प्रभूदयाल बोल पड़ा - “तुम अपना बयान जारी रखो ।”
“सेठ जी को मरे तीन सप्ताह हो गए हैं । अगले सप्ताह में अगर माला कम्पनी के किसी कर्मचारी से ब्याह नहीं करती तो वह जायदाद के अपने हिस्से से बेदखल हो जाती और फिर उसका हिस्सा भी सरिता को मिल जाता ।”
“लेकिन फिर तुम इस तसवीर में कैसे फिट होते । तुम माला के मंगेतर कैसे थे ? क्या यह अच्छा नहीं होता कि तुम पहले जायसवाल इन्डस्ट्रीज में नौकरी हासिल करते और फिर माला से शादी कर लेते ।”
“जहां तक जायसावाल इन्डस्ट्रीज की नौकरी का सवाल है नौकरी तो मैं वहां की करता ही था । मैं जायसवाल इन्डस्ट्रीज का शिपिंग इन्चार्ज था । शान्ति स्वरूप मुझे सख्त नापसन्द करता है और वह यह तो बिल्कुल नहीं चाहता कि मेरी माला से शादी हो । जिस दिन सेठ हुकुमचन्द जायसवाल की वसीयत पढी गई और उसे मालूम हुआ कि माला के भावी पति का कर्मचारी होना जरूरी है उसने मुझे उसी क्षण नौकरी से निकाल दिया और मेरे बारे में अपने पर्सनल विभाग को विशेष हिदायत दे दी कि जाने-अनजाने किसी भी प्रकार मुझे किसी भी मिल के किसी भी खाते में कुली तक की नौकरी के लिए भरती न किया जाए । सेठ जी अपनी वसीयत में अनजाने में यह सहूलियत कर गए हैं यानी कि माला का भावी पति मिल का कर्मचारी होना चाहिए था चाहे वह अफसर हो चाहे चपरासी । चाहे उसकी नौकरी एक साल की हो चाहे एक दिन की । शर्त सिर्फ यह है कि शादी के समय वह कम्पनी के पे रोल (Pay Roll ) पर होना चाहिए ।”
“फिर ?”
“फिर मैंने ही माला को यह सुझाया कि वह किसी भी आदमी से चुपचाप शादी कर ले, उसे अपनी सिफारिश से जायसवाल इन्डस्ट्रीज में कोई भी नौकरी दिला दे और फिर कुछ समय बाद उसे तलाक दे दे । इससे वसीयत की शर्त पूरी हो जाती, दौलत उसके हाथ में आ जाती और वह फिर किसी से शादी करने के लिए आजाद होती ।”
“विज्ञापन का जबाव कैसा रहा ?”
“विज्ञापन ने बहुत लोगों का ध्यान आकर्षित किया था । सुबह सात बजे से ही टेलीफोन काल शुरू हो गई थी । माला ने गिरीश को चुना था । बारह बजे गिरीश को जायसवाल इण्डस्ट्रीज की कपड़ा मिल में नौकरी दिलवा दी गई थी । पांच बजे तक उसने वहां काम किया था । छ: बजे उसकी माला से शादी हो गई थी और... और” - एकाएक अविनाश की मुट्ठियां भिच गई - “आज नौकरों की छुट्टी थी और वह आदमी... गिरीश... यहां माला के साथ अकेला था ।”
“गिरीश के बारे में और क्या जानते हो ?”
“ज्यादा कुछ नहीं । शरीफ आदमी था । माला को भी शरीफ और भला मानस लगा था । पच्चीस हजार रुपये के लालच में भला वह माला से टैम्परेरी तौर पर शादी करने के लिए क्यों न तैयार हो जाता । खास तौर पर जबकि उसने खुद बताया था कि उसकी माली हालत बहुत खराब थी और जब तक रुपये पैसे का कोई मुनासिब सिलसिला न बन जाए वह अपनी प्रेमिका से शादी नहीं कर सकता था ।”
“उसकी प्रेमिका ?”
“जी हां । उसका कल्पना नाम की किसी लड़की से प्रेम सम्बन्ध था । लड़की भी उससे प्रेम करती थी । दोनों शादी करना चाहते थे लेकिन रुपये पैसे की कमजोरी की वजह से शादी की नौबत नहीं आ रही थी । लड़की कारपोरेशन के दफ्तर मे टाइपिस्ट थी और वह बेकार था । कहता था कि ऐसी हालत में शादी कर लेते तो जीवन नर्क बन जाता । माला से टैम्परेरी शादी वह रुपये के लालच में ही करने के लिए तैयार हुआ था । यहां से रुपया हासिल हो जाने के बाद उसकी माली हालत इतनी मजबूत हो जाती कि वह अपनी प्रेमिका से ब्याह कर लेता ।”
“गिरीश ने कल्पना नाम की अपनी प्रेमिका को स्थिति बताई थी ?”
“क्या मतलब ?”
“भई विज्ञापन की नौकरी क्या है यह तो उसे यहां आकर ही पता लगा होगा ? आखिर उसे माला से शादी करनी थी । क्या यह बात उसने अपनी प्रेमिका को नहीं बताई होगी ?”
“बताई होगी । वह आधे घण्टे के लिए यहां से गया तो था । वापिस आकर ही उसने हामी भरी थी । मेरा ख्याल है तब वह कल्पना को ही सारी स्थिति की सूचना देने गया होगा ।”
“लेकिन मान लो अगर वह माला से शादी कर चुकने के बाद उसे तलाक देने से इन्कार कर देता ?”
“माला ने उससे एक ऐग्रीमेंट साइन करवा लिया था ।”
“कैसा ऐग्रीमेंट ?”
“कि जायदाद का फैसला हो जाने के बाद जब उसे कहा जायेगा वह माला को तलाक दे देगा ।”
“कानून की निगाहों में ऐसा ऐग्रीमेंट दो कौड़ी का होता है ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“क्या मतलब ?” - अविनाश तीव्र स्वर में बोला ।
“हमारे समाज मे शादी को दो आत्माओं का मिलन और एक पवित्र रिश्ता माना जाता है । ऐसे किसी ऐग्रीमेंट के दम पर किसी पति को अपनी पत्नी को तलाक देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता । आखिर गिरीश डेढ करोड़ रुपये की जायदाद की मालकिन का पति था ।”
अविनाश हक्का-बक्का-सा सुनील का मुंह देखने लगा ।
“और अगर गिरीश और माला की शादी माला के मरने से पहले सचमुच हो गई थी तो अब वह मामूली आदमी डेढ करोड़ रुपये की जायदाद का कानूनी वारिस है ।”
अविनाश के चेहरे का रंग उड़ गया । वह यूं कुर्सी मे धसक गया जैसे गुब्बारे में से हवा निकल गई हो ।
कई क्षण कोई कुछ नहीं बोला ।
“गिरीश को जायसवाल इन्डस्ट्रीज की कपड़ा मिल में नौकरी किसने दिलवायी थी ?” - सुनील ने पूछा ।
प्रभूदयाल ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला और फिर चुप हो गया । शायद यही सवाल वह खुद अविनाश से पूछना चाहता था ।
“मैंने” - अविनाश बोला - “मैं उसे यहां से सीधा कपड़ा मिल ले गया था । वहां का असिस्टेण्ट पर्सनल मैनेजर मित्तल मेरा दोस्त है । उसने तुरन्त गिरीश को नौकरी दे दी थी और बाकी का सारा दिन उसने वहां काम भी किया था ।”
“क्या नौकरी मिली थी उसे ?”
“क्लर्क की ।”
“इन्स्पेक्टर साहब !” - एकाएक अविनाश उत्तेजित स्वर में बोला - “जरूर इसी आदमी ने माला का खून किया है । वह यहां माला के साथ अकेला था । वह कुछ भी कर सकता था ।”
“शादी तुम्हारे सामने हुई थी ?” - प्रभूदयाल ने पूछा ।
“जी हां ।” - अविनाश बोला ।
“कहां ?”
“आर्य समाज मन्दिर में ।”
“कोर्ट में क्यों नहीं ?”
“क्योंकि उसके लिए पहले नोटिस देना पड़ता है और नोटिस के एक महीने बाद शादी होती है । उतना समय नहीं था ।”
“शादी के बाद वे लोग यहां वापिस आए थे ?”
“हां ।”
“उस वक्त तुम कहां थे ?”
“मैं भी यहीं उनके साथ आया था । नौकर-चाकर बुधवार की साप्ताहिक छुट्टी कर चुके थे । एक आखिरी नौकर जो पीछे रह गया था वह भी हमारे यहां पहुचने के बाद चला गया था । मैं यहां गिरीश और माला को अकेला नहीं छोड़ना चाहता था लेकिन माला कहती थी कि मेरी यहां उनके साथ ठहरने की जरूरत नहीं थी । रात को मैं मजबूरन यहां से चला तो गया था लेकिन बाद में जब मेरा मन नहीं माना था तो मैंने सरिता को फोन किया था कि आज की रात वह माला के साथ उसकी कोठी पर रह जाए ।”
“उसने वजह नहीं पूछी ?”
“पूछी थी लेकिन मैंने टाल दिया था । मेरा ख्याल था कि जब सरिता यहां पहुंचोगी तो माला उसे खुद ही सब कुछ बता देगी । सरिता को यहां आने के लिए कह देने के बाद भी मेरे मन में कुलबुलाहट मची रही । माला के अनिष्ट की आशंका में मुझे नींद नहीं आ रही थी । आखिर गिरीश था तो एक अजनबी ही न । अन्त में जब मैं और सस्पेंस न बरदाश्त कर सका तो सीधा यहां चला आया। यहां मैंने कोठी के आगे पुलिस की जीप खड़ी देखी, दरवाजे पर पुलिस का सिपाही खड़ा देखा तो मेरा कलेजा कांप गया । भीतर आया तो मालूम हुआ कि... कि...”
“शाम को तुम यहां से किस वक्त गए थे ?”
“सात बजे ।”
“तुम्हारे यहां से जाने से लेकर अब वापिस लौटकर आने के बीच में यहां क्या हुआ इस बारे में तुम्हें कुछ नहीं मालूम ?”
“मुझे कैसे मालूम होता इन्स्पेक्टर” - अविनाश हाथ फैलाकर बोला - “वह तो अब गिरीश ही बता सकता है ।”
“हम जल्दी ही उसे तलाश कर लेंगे । आखिर यह डेढ करोड़ रुपये की विरासत का मामला है । वह छुपा नहीं रह सकता ।”
“वह नौजवान इतना अहमक‍ नहीं होगा जो इतनी मामूली बात न जानता हो कि कोई अपनी पत्नी का खून करके विरासत में पत्नी की जायदाद हासिल नहीं कर सकता ।” - सुनील बोला ।
“क्या मतलब ?” - प्रभूदयाल तीव्र स्वर से बोला ।
“मतलब यह कि बिना किसी आधार के यह बात मानकर चलना कि गिरीश कातिल है, सरासर मूर्खता होगी ।”
“गिरीश के सिवाय और कौन कातिल हो सकता है ?”
“सरिता ! अगर माला रास्ते से हट जाए तो उसे पूरी तीन करोड़ की जायदाद मिल सकती है ।”
“लेकिन माला गिरीश से शादी करके मरी है ।”
“ठीक है लेकिन आप लोग गिरीश को हत्यारा सिद्ध करने पर भी तो तुले हुए हैं । अगर वह हत्यारा सिद्ध हो गया तो वह तो फांसी पर लटक जाएगा । जायदाद फिर भी सरिता को ही मिलेगी ।”
“लेकिन सरिता तो पहले से ही रईस है । वह भला दौलत की खातिर अपनी बहन का कत्ल क्यों करेगी ?”
“कुछ लोग दौलत के मामले में बहुत लालची होते हैं । अगर उन्हें कुबेर का खजाना भी मिल जाए तो भी उनकी दौलत की हवस खतम नहीं होगी ।”
“लेकिन सरिता तो हत्या के बाद यहां आई थी और जब अविनाश ने उसे उसकी कोठी पर फोन किया था तब वह वहां मौजूद थी ।”
“अभी हत्या का समय निर्धारित नहीं हुआ है । सम्भव है सरिता माला की हत्या करके अपनी कोठी पर पहुंची हो और सरिता माला की हत्या करके अपनी कोठी पर पहुंची हो और बाद में अविनाश का फोन आया हो और वह उलटे पांव यहां लौट आई हो ।”
उसी क्षण भड़ाक से बैडरूम का दरवाजा खुला और शांति स्वरूप बाहर निकला । वह बेहद क्रोधित दिखाई दे रहा था ।
“अभी मैंने किसी को अपनी बीवी पर माला की हत्या का इलाज लगाते सुना था” - वह गुर्राया - “कौन था वह ?”
अविनाश और प्रभूदयाल की निगाहें अपने आप सुनील की ओर उठ गई ।
“मैंने वह सम्भावना जाहिर की थी ।” - सुनील लापरवाही से बोला ।
शांति स्वरूप ने सुनील को यूं घूरा जैसे एकाएक उसके सिर पर सींग उग आए हों ।
“इन्सपेक्टर !” - वह अधिकारपूर्ण स्वर से बोला ।
“फरमाइये !” - प्रभूदयाल बोला ।
“यह आदमी तुम्हारे साथ है ?”
“नहीं ।”
“तो फिर यह यहां क्या कर रहा है ?”
“आपकी साली ने इसे बुलाया था ।”
“क्यों ?”
“सुनील ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर है । इसका कहना है माला जी ने इसे इन्टरव्यू का टाइम दिया था ।”
“आधी रात का !”
“जी हां ।”
शांति स्वरूप सुनील की ओर घूमा और बोला - “तुम मेरी बीवी पर सरासर इलजाम लगा रहे हो । मैं तुम पर मानहानि का मुकद्दमा चला सकता हूं ।”
“मैंने केवल एक सम्भावना व्यक्त की थी ।” - सुनील सावधानी से बोला ।
“यह मेरी साली का घर है । मैं चाहूं तो तुम्हें यहां से उठवाकर बाहर फिंकवा सकता हूं ।”
“तो फिंकवाइये न साहब, रोका किसने है ?”
शांति स्वरूप कुछ झण सुनील को घूरता रहा और फिर एकदम प्रभूदयाल की ओर घूमी - “मेरी बीवी को नर्वस ब्रेक डाउन हो गया है । मैं उसे अपने साथ ले जा रहा हूं ।”
“लेकिन उनका बयान...” - प्रभूदयाल बोला ।
“अभी नहीं हो सकता । चाहो तो इस बारे में पुलिस कमिश्नर से बात कर लो ।”
“क्या जरूरत है, साहब ?” - प्रभूदयाल असहाय भाव से बोला - “ऐसे मामले में कमिश्नर साहब क्या कहेंगे मालूम है ।”
“गुड ।” - शांति स्वरूप बोला । वह वापिस बैडरूम में घुस गया । एक मिनट बाद वह अपनी बीवी को सहारा दिए हुए फिर ड्राइंग रूम से बाहर निकल गया ।
“प्रभू” - शांति स्वरूप के जाते ही सुनील बोला - “मैं अपनी पहली थ्योरी में थोड़ा सुधार करना चाहता हूं ।”
“क्या ?” - प्रभूदयाल अनमने स्वर से बोला ।
“इस आदमी के हत्यारा होने की ज्यादा सम्भावना है । यह आदमी मुझे ऐसा लगता है जो अपनी साली का डेढ करोड़ रुपये का हिस्सा हड़पने के लिए उसका खून कर दे या करवा दे । दौलत इसकी बीवी को मिली या इसको मिली, बात एक ही है ।”
“यह बात तुम इसलिए कह रहे हो क्योंकि उसने तुम्हें अपनी साली की कोठी से बाहर फिकवा देने की धमकी दी थी ।”
“उस धमकी की क्या कीमत है । ऐसी धमकियां तो मुझे पैसे वाले लोग देते ही रहते हैं ।”
“मिस्टर अविनाश !” - प्रभूदयाल अविनाश की ओर मुड़ा - “आपकी राय में क्या शान्ति स्वरूप अपनी साली का कत्ल कर सकता है ?”
अविनाश कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “मुझे यह आदमी सख्त नापसन्द है । अगर माला की हत्या के मामले में यह फांसी पर लटक जाए तो मुझे अफसोस नहीं होगा लेकिन फिर भी मेरा मन गवाही नहीं देता कि इस आदमी ने अपनी साली की हत्या की होगी ।”
“गिरीश के मिल जाने के बाद माला की हत्या के इस रहस्य के काफी परदे उठदे उठेंगे ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“अब आप” - प्रभूदयाल सुनील से सम्बोधित हुआ - “यहां से खुद तशरीफ ले जायेंगे या मैं आपको कहीं छोड़कर आऊं ?”
“नहीं, नहीं” - सुनील सहज स्वर से बोला - “तुम क्यों तकलीफ करते हो मैं खुद चला आऊंगा ।”
“आप भी चाहें तो तशरीफ ले जा सकते हैं ।” - प्रभूदयाल अविनाश से बोला - “जब तक पोस्टमार्टम की रिपोर्ट नहीं आती तब तक आपकी जरूरत नहीं पड़ेगी ।”
“ओके !” - अविनाश बोला ।
सुनील और अविनाश लगभग साथ साथ ही कोठी से बाहर निकले ।
“लगता है मैंने आपको पहले कहीं देखा है, मिस्टर अविनाश ।” - सुनील बोला ।
“मैंने इन्सपेक्टर को कहते सुना था कि आप ‘ब्लास्ट’ के रिपोर्टर हैं” - अविनाश बोला - “ब्लास्ट के दफ्तर में ही कभी देखा होगा मुझे ।”
“मुमकिन है । वहां आप आते रहते हैं क्या ?”
“अक्सर । न्यूज एडीटर राय मेरा पुराना दोस्त है । कभी उधर से गुजरूं तो उसे मिलने चला जाया करता हूं ।”
“अब कभी तशरीफ लायें तो मुझे भी दर्शन दीजिएगा ।”
“जरूर ।”
“मुझे आपकी मंगेतर की मौत का अफसोस है ।”
उत्तर में अविनाश ने एक सर्द आह भरी ।
“ओके दैन । गुड नाइट ।” - सुनील बोला ।
“गुड मार्निंग । डेढ बज रहा है साहब ।” - अविनाश बोला ।
“ओह यस, गुड मार्निंग” - सुनील बोला ।
वह अपनी मोटर साइकिल की ओर बढ गया ।
***
सुनील यूथ क्लब पहुंचा ।
रमाकांत सोने की तैयारियां कर रहा था ।
सुनील धम्म से एक कुर्सी पर ढेर हो गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“फ्लैट का किराया नहीं दिया क्या ?” - रमाकांत ने सहज स्वर से पूछा ।
“क्या मतलब ?”
“रात के दो बजे यहां आ टपके, शायद अपने फ्लैट में घुसते ऐसी तैसी हो रही हो कि कहीं मकान मालिक गरदन न पकड़ ले ।”
“किसकी मां न सवा सेर सोंठ खाई है जो मेरी गरदन पकड़ेगा ।” - सुनील अकड़ कर बोला ।
“तो फिर चौखटा यहां कैसे नमूदार हो रहा है ।”
“तुम्हारे जैसे मनहूस आदमी का मुंह देखकर माला जायसवाल का इन्टरव्यू लेने गया था इसलिए सब घपला हो गया ।”
“क्या घपला हो गया ? इन्टरव्यू नहीं दिया उसने ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि तुम्हारी बद्दुआ काम कर गई है । तुम्हीं ने तो कहा था कि अगर मैं तुमसे झूठ बोलूंगा तो मेरी नई सहेली मर जाएगी ।”
“यानी कि... यानी कि...”
“माला जायसवाल खुदा को प्यारी हो गई है । जब मैं उसकी कोठी पर पहुंचा था तो आत्मा शरीर से किनारा कर चुकी थी ।”
“किस्सा क्या है ?” - रमाकांत सजग स्वर से बोला ।
सुनील ने उसे आद्योपान्त सारी कहानी सुना डाली ।
“एक बात मुझे भारी उलझन में डाले हुए है ।” - सुनील बोला ।
“क्या ?” - रमाकांत ने पूछा ।
“पुलिस के आने से पहले मैंने बैडरूम में एक अखबार पड़ा देखा था । मैंने उस अखबार का जिक्र बाद में इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल से किया था लेकिन जब प्रभूदयाल बैडरूम में अखबार लेने गया था तो वहां अखबार के भीतरी चार पृष्ठ ही मौजूद थे । बाहर के चार पृष्ठ जिनमें से दूसरे पृष्ठ पर वर्गीकृत विज्ञापन छपे थे वहां नहीं थे ।”
“शायद तुमने पूरा अखबार देखा ही नहीं था, भीतरी चार पृष्ठ ही देखे थे ।”
“नहीं, मुझे अच्छी तरह याद है, मैंने पूरा अखबार देखा था ।”
“तो बाहरी पेज उड़कर कहीं सोफे के नीचे घुस गये होंगे या किसी अन्य कमरे में उड़ गए होंगे ।”
“हो सकता है” - सुनील ने स्वीकार किया - “प्रभूदयाल ने बाकी पेज तलाश करने की कोशिश नहीं की थी । उसने नया अखबार मंगवा लिया था ।”
“यह महत्वहीन बात है । इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अखबार वहां पहले था बाद में नहीं था या शुरू से ही नहीं था । अखबार का हत्या से क्या सम्बन्ध हो सकता है ?”
सुनील चुप रहा ।
“अब इजाजत हो तो मैं सो जाऊं ?” - रमाकांत जमहाई लेता हुआ बोला ।
“नहीं” - सुनील दृढ स्वर से बोला - “अभी नहीं ।”
“क्या मतलब ?”
“तुम्हारे लिए एक काम है ।”
“ऐसी की तैसी काम की । यह सोने का वक्त है, काम करने का नहीं । काम है तो सवेरे बात करना ।”
और रमाकांत बिस्तर में घुसने की तैयारी करने लगा ।
सुनील ने सिगरेट फेंक दिया और लपककर कुर्सी से उठा । उसने रमाकांत को गरदन से पकड़कर बिस्तर से अलग कर दिया और उसे एक कुर्सी पर धकेल दिया ।
“मैं तुमसे कमजोर नहीं हूं” - रमाकांत दहाड़ कर बोला - “बाई गॉड, तुम्हारे हाथ पैर तोड़कर पार्सल से तुम्हारे घर भिजवा दूंगा ।”
“कोशिश करके देखो तो ।” - सुनील चैलेंज भरे स्वर से बोला और एक पेशेवर बाक्सर की मुद्रा में रमाकांत के सामने जमकर खड़ा हो गया ।
रमाकांत ने कुर्सी पर पहलू हदला और फिर अपेक्षाकृत धीमे स्वर से बोला - “यार हो इसलिए लिहाज कर देता हूं वर्ना तुम तो हो क्या चीज ! क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा ।”
“बक चुके ?”
“बाई गाड, मैं यह शहर छोड़ जाऊंगा ।”
“शहर तो क्या अगर तुम यह दुनिया भी छोड़ जाओ तो भी मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगा ।”
“सच !” - रमाकांत हर्षित स्वर से बोला - “ओके ! इट्स ए डील । तुम दूसरी दुनिया में पहुंचकर मेरा इन्तजार करो मैं थोड़ी नींद लेकर आता हूं ।”
“फिलहाल नींद को भूल जाओ ।”
“क्या काम है ?” - अन्त में रमाकांत हथियार डालता हुआ बोला ।
“गिरीश का पता लगाना है ।” - सुनील बोला ।
“कैसे ?”
“मैंने तुम्हें कल्पना नाम की एक लड़की के बारे में बताया था जो कि कारपोरेशन के दफ्तर में टाइपिस्ट है । वह गिरीश की प्रेमिका है । उसके माध्यम से तुम्हें गिरीश का पता लग सकता है । सम्भव है गिरीश कल्पना के घर में ही छुपा हो ।”
“लेकिन मेरे बाप, कल्पना से सम्पर्क स्थापित करने के लिए भी तो कारपोरेशन का दफ्तर खुलने की इन्तजार करनी पड़ेगी । कल दस बजे से पहले कुछ नहीं हो सकता ।”
“हो सकता है” - सुनील दृढ स्वर में बोला - “कल दस बजे तो कल्पना के कारपोरेशन के दफ्तर में पहुंचने से पहले पुलिस वहां पहुंची होगी । तुमने यह काम पुलिस से पहले करना है ।”
“कैसे ?”
“अक्ल से काम लो । अपने आदमियों को कारपोरेशन के दफ्तर भेजो । वहां रात को कोई चौकीदार जरूर ड्यूटी देता होगा ।”
“लेकिन क्या यह जरूर है कि चौकिदार को कल्पना के घर का पता मालूम ही हो ?”
“कतई जरूरी नहीं है लेकिन उसे अगर कल्पना के घर का नहीं तो कारपोरेशन के किसी अन्य कर्मचारी का, किसी क्लर्क का, किसी अन्य टाइपस्ट का, किसी चपरासी का पता जरूर मालूम होगा । कोशिश करने पर तुम्हें कोई न कोई ऐसा आदमी जरूर मिल जायेगा जो कल्पना के घर का पता जानता होगा ।”
“मैं इन्तजाम करवाना हूं ।” - रमाकांत मरे स्वर से बोला ।
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला ।
रमाकांत ने बुरा-सा मुंह बनाया ।