पूर्वाभास

दस लाख रुपए की फीस की एवज में विमल सोनपुर जाकर डॉक्टर अर्ल स्लेटर से अपनी प्लास्टिक सर्जरी करवाता है और नया चेहरा हासिल करता है । डॉक्टर उसे न केवल नया चेहरा प्रदान करता है बल्कि सर्जरी के हुनर से उसकी आवाज भी तब्दील कर देता है । वहीं विमल को तुकाराम की चिट्ठी मिलती है कि बम्बई में कुछ लोगों के पास एक बहुत बड़ी वारदात की स्कीम थी लेकिन उनके पास उसे आर्गेनाइज करने लायक कोई नेता नहीं था । तुकाराम अपनी टूटी टांग की वजह से क्योंकि अभी भी चारपाई पर पड़ा था इस्लिए नेता बनने के लिए वो विमल को तुरन्त बम्बई वापिस बुलाता है ।
विमल के सोनपुर से रवाना होने से पहले डॉक्टर स्लेटर का सहायक और बाडीगार्ड सोलंकी उसे वार्निग देता है कि वह दोबारा कभी हरगिज भी सोनपुर का रुख न करे वर्ना उसका नया चेहरा उससे छीन लिया जाएगा । सोनपुर में विमल राजनगर जाता है जहां कि वह ‘ब्लास्ट’ के चीफ रिपोर्टर सुनील चक्रवर्ती से मिलता है । वह यह कहकर सुनील पर अपने नए चेहरे की पोल खोल देता है कि क्योंकि सुनील ने ही उसे नई जिंदगी दी थी इसलिए उसके नए चेहरे का भेद जान चुकने के बाद वह जब चाहता विमल की नई जिंदगी उससे वापिस ले सकता था । विमल सुनील को यह भी बताता है कि आगे उसका इरादा आर्गेनाइज्ड क्राइम की खिलाफत करना था और उसका पहला निशाना बम्बई में बैठा वहां का मौजूदा क्राइमकिंग इकबाल सिंह था ।
सुनील ‘ब्लास्ट’ के मालिक साहब को विमल की ‘ब्लास्ट’ के आफिस में मौजूदगी की बाबत बताता है और सुझाता है कि अगर उसे विमल के पीछे लगने की इजाजत दी जाती तो आनेवाले दिनों में ‘ब्लास्ट’ के हाथ बड़ा एक्सक्लूसिव, फर्स्ट हैण्ड मैटर आ सकता था ।
मलिक साहब उस प्रलोभन को नजरंदाज करके विमल को गिरफ्तार करवाने की कोशिश करते हैं लेकिन विमल अपने लिए खतरे को भांप कर पहले ही वहां से खिसक चुका होता है । विमल बम्बई पहुंचता है ।
उसे अनुमान था कि बंबई में ‘कम्पनी’ के कारनामे फिर जोर पकड़ने लगे थे, कम्पनी का एक पुराना ओहदेदार इकबाल सिंह उसकी वार्निंग को नजरअन्दाज करके बखिया की बादशाहत हथिया चुका था और ‘कम्पनी’ के नारकाटिक्स (मादक पदार्थ) के ट्रेड में पूरी-पूरी रुचि ले रहा था । उसका नया सिपहसालार श्याम डोंगरे नामक एक मवाली था जिसे इकबाल सिंह धमकी देता है कि या तो वह एक महीने के भीतर सोहल को जिन्दा या मुर्दा उसके सामने पेश करे और या कि ‘कम्पनी’ के निजाम से अपना मुंह काला करे । वह डोंगरे को यह भी सुझाता है कि तुकाराम की निगरानी करवाने से सोहल का कोई अतापता मालूम हो सकता था ।
उसी रोज कम्पनी की एक कूरियर, शी हान नाम की सिंगापुर एयरलाइन्स की एयरहोस्टेस दो किलो हेरोइन के साथ पुलिस द्वारा पकड़ ली जाती है । लड़की क्योंकि डोंगरे को जानती है और डोंगरे के माध्यम से क्योंकि हेरोइन स्मगलिंग का सम्बन्ध ‘कम्पनी’ से जोड़ा जा सकता है इसलिए इकबाल सिंह शी हान को मरवा डालने का हुक्म देता है ।
लड़की सजा का खौफ खाकर ए.सी.पी. मनोहर देवड़ा और इन्स्पेक्टर अशोक जगनानी के सामने सब कुछ बक देती है । पुलिस कमाठीपुरे के न्यू बाम्बे रेस्टोरेन्ट के गिर्द उस शख्स को गिरफ्तार करने के लिए जाल फैलाती है जिसे कि शी हान ने हेरोइन का पैकेट सौंपना था लेकिन वहां कोई शिकार जाल में नहीं फंसता । उलटे शी हान कम्पनी के जल्लाद अब्दुल गनी की चलाई गोली से गंभीर रूप से घायल हो जाती है और अब्दुल गनी खुद पुलिस की गोली से मारा जाता है ।
शी हान बड़ी खस्ता हालत में सरकारी हस्पताल के इंटेंसिव केअर यूनिट में भरती कराई जाती है और खुद पुलिस कमिश्नर हस्पताल पहुंचकर उसकी सुरक्षा के बेहद पुख्ता प्रबंध करवाकर जाता है ।
शी हान वाले आपरेशन से निराश इन्स्पेक्टर अशोक जगनानी कमाठीपुरे में न्यू बाम्बे रेस्टोरेन्ट की खुद बड़े गोपनीय तरीके से निगरानी करता है जिसका नतीजा यह निकलता है कि वह हजारा सिंह नाम के इलाके के एक डोप पैडलर को जान जाता है और उसकी और उसके कुछ ग्राहकों की टेलीस्कोपिक लैंस वाले कैमरे से तस्वीरें खींच लेता है । वह नहीं जानता होता कि ‘कम्पनी’ की जिन जरायमपेशा कारगुजारियों के वह इतना खिलाफ था, उसमें खुद उसका सगा बाप रूपचन्द जगनानी भी लिप्त था । रूपचन्द जगनानी कार्पोरेशन के दफ्तर में ड्राफ्ट्समैन की नौकरी करता था लेकिन साथ ही ‘कम्पनी’ द्वारा संचालित मटका नामक जुए का कलैक्टर भी था ।
रूपचन्द जगनानी कलैक्शन से हासिल हुई चालीस हजार रुपए की रकम रेस में हारकार अपने लिए भारी मुसीबत का सामान कर लेता है । वह अपने बॉस और ‘कम्पनी’ के ओहदेदार गोविंद दत्तानी को उस नुकसान की बाबत बताता है तो दत्तानी उसे बहुत बेइज्जत करता है ।
तुकाराम विमल को बताता है कि जौहरी बाजार में सुनारों की मार्केट में पांच सौ लाकरों वाला एक वाल्ट था जिनको मुबारक अली नामक एक मवाली, जार्ज सैबेस्टियन नामक अल्कोहलिक और उसका चमचा टैक्सी ड्राइवर, सतीश आनन्द नाम का एक छोटा-मोटा एक्टर और पक्का औरतखोर और जामवन्तराव नाम का एक डोप एडिक्ट और वाल्ट का भूतपूर्व कर्मचारी अपने कोई पच्चीस भरती के प्यादों के साथ लूटने के ख्वाहिशमन्द थे ।
विमल उनसे मिलता है और उनकी स्कीम सुनता है । उसे मालूम होता है कि जामवन्तराव के पास वाल्ट के दरवाजे की और साठ लाकरों की डुप्लीकेट चाबियां थीं । मुबारक अली इलाके में साम्प्रदायिक दंगे करवा सकता था जिसकी वजह से इलाके में कर्फ्यू लग सकता था । पच्चीस प्यादे दरकार थे पुलिस चौकी पर और कर्फ्यूग्रस्त इलाके की निगरानी पर तैनात पुलसियों पर कब्जा करने के लिए । बकौल उनके सारे इलाके के टेलीफोनों को फीड करने वाली टेलीफोन केबल सारे इलाके में फैले अन्डरग्राउन्ड सीवर में से गुजरती थी जिसे कि वे बड़ी आसानी से काट सकते थे ।
विमल उस स्कीम में बेशुमार नुक्स निकालकर उसे फेल कर देता है । वह उन्हें इलाके के सीवर सिस्टम में डकैती की बेहतर सम्भावनाएं सुझाता है और सलाह देता है कि ये किसी प्रकार कार्पोरेशन के दफ्तर से सीवर सिस्टम के सम्बन्धित नक्शों की प्रतिलिपियां हासिल करने की कोशिश करें ।
डोंगरे हस्पताल के इन्टेन्सिव केयर यूनिट के इन्चार्ज डॉक्टर दस्तूर को उसके परिवार के अनिष्ट की आशंका से त्रस्त करके अपनी तरफ मिलाता है और एक नकली एक्सीडेंटल केस बनकर हस्पताल पहुंचता है । डॉक्टर खुद उसे अटैण्ड करता है और उसे शोचनीय दशा में बताकर नर्स शीला को आदेश देता है कि उसे इन्टेन्सिव केयर यूनिट में पहुंचाया जाए । इस प्रकार नकली मरीज बनकर डोंगरे वहीं पहुंच जाता है जहां कि शी हान मौजूद थी और वह बड़ी सहूलियत से शी हान का कत्ल करके हस्पताल से फरार हो जाता है ।
बाद में पुलिस कमिश्नर जुआरी खुद नर्स शीला को क्रास-क्वेश्चन करता है तो उसे शक हो जाता है कि डॉक्टर दस्तूर ने किसी दबाव में आकर हत्यारे की मदद की थी । इस बात को डॉक्टर दस्तूर कबूल भी कर लेता है । फिर डॉक्टर दस्तूर बड़ी बारीकी से डोंगरे का हुलिया बयान करता है । उस बयान की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि डोंगरे की एक आंख नकली थी ।
उसी रात रूपचन्द जगनानी जब अपने बरसों पुराने दोस्त इकबाल सिंह से सम्पर्क स्थापित करने की असफल कोशिश करके लौट रहा होता है तो जेकब सर्कल पर गोविन्द दत्तानी के आदमी उसकी जमकर ठुकाई करते हैं जिससे तुकाराम के घर पर हुई मीटिंग के बाद चैम्बूर से लौटता सतीश आनन्द उसे निजात दिलाता है और बड़ी खस्ता हालत में उसे अपने घर ले आता है जहां हाना नाम की अपनी एक प्रेमिका और अपने एक पड़ोसी डॉक्टर दोस्त की मदद से वह रूपचन्द को उसकी मरणासन्न अवस्था से उबारता है ।
अगले रोज रूपचन्द की हालत तनिक सुधरती है तो वह आनन्द को बताता है कि वह कमेटी के दफ्तर में ड्राफ्टसमैन को नौकरी करता था । आनन्द उससे जौहरी बाजार के सीवर रूट्स की जानकारी देने वाले नक्शों की मांग करता है तो रूपचन्द यह कहकर उसका काम करने से इनकार कर देता है कि वे नक्शे ‘क्लासीफाइड’ थे और उन्हें यू किसी को मुहैया कराने का अपराध वह नहीं कर सकता था । आनन्द उसे नक्शों की कीमत भी आफर करता है लेकिन रूपचन्द उसकी आफर कबूल नहीं करता ।
रूपचन्द गोविन्द दत्तानी के कहर से पनाह पाने की नीयत से अपने बेटे के घर फोन करता है तो उसकी पत्नी मीरा से उसे मालूम होता है कि उसका बेटा, इंस्पेक्टर जगनानी, तो एक बड़े ही जरुरी काम से एकाएक गोवा चला गया था और पता नहीं कब लौटने वाला था ।
वागले को भनक मिलती है कि उनके यहां की निगरानी की जा रही थी, उस वजह से फैसला होता है कि मुबारक अली और उसके साथियों से आइन्दा मीटिंग बन्दरगाह के इलाके में स्थिेत आंटी के घर की जाए जोकि अपने बेटे विट्ठलराव खांडेकर के साथ डकैती से हासिल होने वाले माल को भी ठिकाने लगाने वाली थी और बराबर के हिस्से के बदले मे उनकी योजना को फाइनांस भी करने वाली थी ।
खांडेकर उन्हें वाल्ट के सिक्योरिटी सिस्टम की नई बारीकियां बताता है जो वाल्ट को और भी अभेद्य साबित कर देती हैं । तब विमल सुझाता है कि अगर सीवर सिस्टम की मुकम्मल जानकारी हो जाती तो उसके रास्ते वाल्ट तक, जोकि इमारत के तहखाने में था, एक सुरंग खोदकर वाल्ट में घुसने की कोशिश की जा सकती थी । तब आनन्द बताता है कि सीवर सिस्टम के नक्शे मुहैया करवाने में सक्षम व्यक्ति तो उसके घर पर ही मौजूद था । मुबारक अली जबरन रूपचन्द से वांछित जानकारी हासिल करने की पेशकश करता है लेकिन आनन्द अपनी शरण आए व्यक्ति के साथ ऐसी कोई जोर-जबरदस्ती की जाने का तीव्र विरोध करता है । विमल उस विरोध में उसका साथ देता है । नतीजतन यह फैसला होता है कि रूपचन्द को राजी से उनकी मदद करने के लिए कल्टीवेट किया जाए ।
रूपचन्द जगनानी कदरन तन्दुरुस्त होकर जिस रोज पहली बार आफिस जाता है, उसी रोज उस दत्तानी के आदमियों की फोन पर फिर बड़ी हौलनाक धमकी और साथ में यह वार्निंग मिलती है कि अगर उसने मटके की बाबत अपने पुलिस इन्स्पेक्टर बेटे के सामने मुंह फाड़ा तो उसका और उसके खानदान का बहुत बुरा हश्र होगा । खौफजदा रूपचन्द दत्तानी को फोन करता है और गिड़गिड़ाकर माल लौटाने के लिए दो सप्ताह की मोहलत हासिल करने में कामयाब हो जाता है । फिर वह आनन्द से बात करता है जोकि नक्शों के बदले में उसे बाकायदा डकैती में बराबर का हिस्सेदार बनवा देता है ।
उसकी नकली आंख की वजह से पुलिस को डोंगरे की खबर लगती है जो कि कमिश्नर के हुजूर में पेश होता है और शी हान के कत्ल के मामले में अपने हक में यह सबूत पेश करता है कि जिस रोज जिस वक्त हस्पताल में शी हान का कत्ल हो रहा था, ऐन उसी वक्त वहां से कई मील दूर वैस्ट्रन एक्सप्रेस हाइवे पर उनका एक सब-इन्स्पेक्टर उसका शराब पीकर गाड़ी चलाने का चालान काट रहा था । फिर भी कमिश्नर उसका डॉक्टर दस्तूर से आमना-सामना कराता है । डॉक्टर दस्तूर जिसकी लड़की फिर ‘कम्पनी’ के कब्जे में पहुंच चुकी होती है और वार्निंग के तौर पर जिसकी एक उंगली काट कर पार्सल द्वारा उसे भेजी जा चुकी होती है, डोंगरे को पहचानने से साफ इन्कार कर देता है । पुलिस फिर उस सब-इन्स्पेक्टर मुश्ताक अली के पीछे पड़ती है जिसने कि डोंगरे का चालान काटा होता है । उसकी चालान बुक चैक करने पर ऐसा जान पड़ता है कि चालान सम्भवत: शी हान के कत्ल के अगले दिन, लेकिन पिछले दिन की तारीख डाल कर, काटा गया था । सब-इन्स्पेक्टर मुश्ताक अली से उस बाबत पूछा जाता है तो वह कहता है इत्तफाक से चालान बुक में आगे का पन्ना पहले पलटा गया था । उसका झूठ पकड़ने के लिए जब उस रोज ड्यूटी पर उसके साथ तैनात हवलदार की तलाश की जाती है तो मालूम होता है कि वह दुर्घटनावश रेल के नीचे आकर मर चुका था ।
रूपचन्द द्वारा उपलब्ध कराए गए जौहरी बाजार के सीवर सिस्टम के आधार पर विमल डकैती की नई योजना बनाता है, सबको काम समझाता है और उन उपकरणों की लिस्ट और उनकी खुदरा खरीद का तरीका पेश करता है जोकि सुरंग की खुदाई में और डकैती में काम आने वाले थे । खुद विमल स्टेशन वैगन खरीदने कल्याण जाता है ।
मुबारक अली जिसे कि एसीटीलीन टार्च और ईंधन के सिलेन्डर खरीदने के लिए बीस हजार रुपए दिए जाते हैं, रुपए खुद डकार जाता है और वो साजोसामान वो जूहू पार्ले स्कीम के इलाके में स्थित एक सरकारी गोदाम से चुरा लेता है । वो और उसका शागिर्द जार्ज सैबेस्टियन जब सामान को एक मैटाडोर वैन पर लाद कर ला रहे होते हैं तो माहिम काजवे पर चैकिंग के दौरान मैटाडोर वैन का नम्बर नोट हो जाता है और वहां नाके पर तैनात एक सिपाही खुदाबख्श मुबारक अली की जान-पहचान वाला निकल आता है ।
श्याम डोंगरे फिर ट्रैफिक के सब-इन्स्पेक्टर मुश्ताक अली के पास पहुंचता है और उसे फिर धमका के आता है कि अगर उसने चालान की बाबत डोंगरे के खिलाफ बयान दिया तो वो भी हवलदार भीकाराम की तरह अपनी जान से हाथ धो सकता था । सब-इन्स्पेक्टर डर जाता है और डोंगरे को उससे बाहर न जाने का आश्वासन देता है ।
इन्स्पेक्टर फाल्के किसी प्रकार से भांप जाता है कि डॉक्टर दस्तूर ने अपनी जुबान पर ताला इसलिए जड़ा हुआ था क्योंकि उसकी अवयस्क बेटी की जान खतरे में थी । डकैती की तमाम तैयारियां पूरी हो जाती हैं - केवल एक लेसर बीम तत्काल नहीं मिल जाती लेकिन उसके बिना उनका काम रुकने का अन्देशा नहीं था ।
डकैती की शुरुआत वाली रात को जब विमल और वागले आंटी के घर से चैम्बूर लौट रहे होते हैं तो उन्हें अहसास होता है कि कोई एक स्टेशनवैगन पर उनके पीछे लगा हुआ था । वो उस शख्स को बड़ी चतुराई से काबू में करते हैं तो मालूम होता है कि वो डॉक्टर अर्ल स्लेटर का सहायक और बाडीगार्ड सोलंकी था जोकि विमल को बताता है कि शनिवार पांच तारीख को शाम चार बजे डॉक्टर स्लेटर का कत्ल हो गया था और उसे कत्ल का शक जिन तीन व्यक्तियों पर था उनमें से एक विमल था । वो विमल को ये भी बताता है कि अगर एक निश्चित समय तक वो वापिस सोनपुर न पहुंचा तो डॉक्टर स्लेटर की हाउसकीपर हेल्गा विमल के नए चेहरे का राज फाश कर देगी । विमल उसको विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाता है कि कत्ल के वक्त के आसपास वो बम्बई में आंटी के घर पर था । सोलंकी आश्वस्त हो जाता है और विमल का पीछा छोड़कर अन्य दो सन्दिग्ध व्यक्तियों के पीछे लगने की इच्छा व्यक्त करता है । विमल को वो बात नहीं जंचती । उसे अपना कल्याण इस बात में दिखाई देता है कि वो सोलंकी के साथ सोनपुर जाए ताकि सोलंकी विमल के सामने हेल्गा को यकीन दिला सके कि डॉक्टर स्लेटर का कातिल विमल नहीं था और यूं उसका नया चेहरा महफूज रह सके लेकिन डकैती का प्रोग्राम पहले ही निर्धारित हो चुका होने के कारण विमल सोलंकी को साथ लेकर तत्काल सोनपुर जाने में स्वयं को असमर्थ पाता है लिहाजा वो सोलंकी को गिरफ्तार करके आंटी के स्क्रैप यार्ड के एक तहखाने में तब तक के लिए बन्द कर देता है जब तक कि वो डकैती से फारिग नहीं हो जाता ।
कमिश्नर डॉक्टर दस्तूर को फिर तलब करता है और उससे कहता है कि वो जानते थे कि वो इसलिए डोंगरे की शिनाख्त शी हान के कातिल के तौर पर नहीं कर रहा था क्योंकि वो अपनी बेटी की जान को खतरे में पाता था । डॉक्टर दस्तूर उस बात से भी इन्कार करता है और कहता है कि वो अपनी नौकरी से इस्तीफा दे चुका था और अब वो हमेशा के लिए बम्बई शहर को छोड़कर जा रहा था । कमिश्नर की कोई धमकी, कोई मनुहार उसे अपने इरादे से हिलाने में और डोंगरे की शिनाख्त करने में कामयाब नहीं हो पाती ।
यहां तक की कहानी आपने ‘चेहरे पर चेहरा’ में पढी ।
अब आगे...