'कातिल हो तो ऐसा' से शुरू होने वाली इस कहानी के मुख्य किरदार का नाम आर. के. राजदान था। एक युवा बिजनेसमैन । उसके छोटे भाई का ना था। राजदान आज अपनी मेहनत, लगन और निष्ठा के बूते पर 'राजदान एसोसिएट्स' नामक कंस्ट्रक्शन कम्पनी का मालिक था । देवांश से वह बेइन्तिहा प्यार करता था ।
राजदान की पत्नी का नाम था --- दिव्या
देवांश अगर राजदान की आंखों का तारा था तो दिव्या थी उन आंखों की ज्योति । देवर भाभी के रूप में देवांश और दिव्या भी एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे ।
बात शुरू होती है तब से जब आर. के. राजदान करीब बीस दिन बाद कनाडा से भारत लौट रहा था | दिव्या और देवांश 'राजदान एसोसिएट्स' के चुनिंदा स्टाफ के साथ उसे रिसीव करने आये थे । वे सब विजिटर्स लॉबी में थे जबकि एयरपोर्ट के बाहर, कार पार्किंग में खिल रहा था एक गुल !
राजदान के ड्राइवर का नाम --- केशोराज बन्दूकवाला था। उस वक्त अपने मालिक की सिल्वर कलर की चमचमाती मर्सडीज पर कूल्हा टिकाये सिगरेट में कश लगा रहा था जब एक अत्यन्त खूबसूरत और सैक्सी लड़की ने अपने एक अन्य साथी के साथ केशोराज बन्दूकवाला को बेवकूफ बनाकर उस गाड़ी में टाइम बम फिट कर दिया जिसमें बैठकर राजदान को एयरपोर्ट से घर जाना था।
उधर --- दिव्या, देवांश और 'राजदान एसोसिएट्स' के स्टॉफ ने गर्मजोशी के साथ राजदान का स्वागत किया। मगर राजदान जाने क्यों, उदास उदास और कुछ हद तक टूटा हुआ लग रहा था । दिव्या और देवांश ने कारण जानना चाहा । राजदान ने कुछ बताया नहीं बल्कि खुद को सामान्य दर्शाने की नाकाम कोशिश करने लगा। अंततः वे एयरपोर्ट से बाहर निकले। पार्किंग में पहुंचे। देवांश ने सिल्वर कलर की उस मर्सडीज़ की ड्राइविंग सीट संभाली जिसमें टाइम बम फिट किया गया था और राजदान दिव्या के साथ पिछली सीट पर बैठा | बाकी लोग देवांश की 'जेन' और स्टाफ कार में थे ।
काफिला 'राजदान विला' की तरफ चल दिया।
रास्ते में राजदान ने दिव्या और देवांश से बबलू के बारे में पूछा । बबलू एक गरीब लड़का था। उम्र करीब सोलह साल ! उसके पिता टीचर थे । वह राजदान विला के ठीक सामने सड़क के उस पार बनी तीन मंजिला इमारत के एक फ्लैट में रहता था । जाने कैसे, राजदान का बबलू में और बबलू । का राजदान में प्यार बढ़ गया था । बबलू के प्रति राजदान की यह चाहत दिव्या और देवांश को बिल्कुल पसंद नहीं थी। उसके बारे में राजदान से बातें तक करना नहीं चाहते थे वे, अतः टॉपिक चेन्ज करने की गर्ज से कार ड्राइव करते देवांश ने राजदान से उसकी मायूसी और उखड़ेपन का कारण पूछा । जवाब में राजदान भड़क उठा, जबकि यूं भड़क उठना उसके स्वभाव में नहीं था । इससे दिव्या और देवांश को पूरा यकीन हो गया कोई बड़ी उलझन दिमाग में लेकर आया है। दोनों उस उलझन को जानने के लिए बेचैन हो उठे। बहरहाल, प्यार तो वे भी राजदान को बेइंतिहा करते थे। परन्तु तत्कालीन माहौल में कुछ पूछने की हिम्मत न जुटा सके। कार में तनावपूर्ण सन्नाटा छा गया था और शायद इस सन्नाटे के कारण ही टिक्-टिक्... टिक्-टिक्... की आवाज देवांश के कान खड़े कर सकी । टिक्-टिक् की उसी आवाज का पीछा करते वे मर्सडीज में छुपे टाइम बम तक पहुंच गये और उसे उठाकर गाड़ी से बाहर फेंका ही गया था कि वह फट गया । अर्थात् मरते-मरते बचे थे दिव्या, देवांश और राजदान!
यहां इन्ट्रोड्यूज होता है ---इंस्पैक्टर ठकरियाल । अदरक की गांठ जैसे शरीर का मालिक । बेहद काइंया और मुंहफट पुलिसिया जो दिमाग में आये उसे फट से कहने में जरा भी नहीं हिचकता। घटनास्थल पर बन्दूकवाला पहुंचते ही उसने केशोराज को भी तलब कर लिया। उसके मुंह से पार्किंग में घटी घटना की डिटेल सुनी । वह फौरन समझ गया कि बन्दूकवाला को उलझाने की घटना मर्सडीज में बम रखने के लिए की गई थी, परन्तु सबसे बड़ा सवाल था... यह सब किया किसने? कौन था उनके खात्मे का तलबगार ? क्यों मार डालना चाहता था उन्हें?
राजदान बबलू के फ्लैट में जाकर उससे मिला । बबलू को बुखार था। इसके बावजूद वह राजदान को रिसीव करने एयरपोर्ट जाना चाहता था परन्तु उसके माता-पिता ने नहीं जाने दिया। यहां जब एकान्त में राजदान और बबलू की बातें हुईं तो पता लगा -- बबलू का इश्क उसके स्कूल में पढ़ने वाली एक हमउम्र लड़की से चल रहा है। राजदान से वह उसी लड़की के बारे में घुट-घुटकर बातें करता है। बड़ा ही मासूम प्यार था बबलू और उस लड़की के बीच । राजदान की कोशिश थी - - - उस प्यार को 'मासूम' ही बनाये रखना । दरअसल, वह बच्चों को बहकने नहीं देना चाहता था ।
के पास उधर, विला में दिव्या और देवांश कुढ़ रहे थे । कुढ़न का कारण था --- राजदान का बबलू से अब तक न लौटना । उनका ख्याल था --- बबलू के मां-बाप ने अपने बेटे को जानबूझ कर राजदान के पीछे लगा रखा है ताकि वक्त आने पर किसी बहाने से 'नावां-पत्ता' झटक सकें।
उस रात दिव्या ने खुद को विशेष रूप से सजाया - संवारा। वे सभी लटके-झटके इस्तेमाल किये जो एक पत्नी अपने पति को लुभाने के लिए कर सकती थी, मगर राजदान विला के पिछले हिस्से में बने किचन लॉन की रोशनियों में खोया रहा । यह किचन लॉन खुद राजदान ही ने बनवाया था । अपने और दिव्या के लिए। दो हजार गज में फैले, उस लॉन में कृत्रिम पहाड़ और झरने थे। पेड़-पौधे और झाड़ियां थीं और थे ऊंचे-ऊंचे फव्वारे । रात के वक़्त जब वह रोशनियों से जगमगाता तो 'परिस्तान' जैसा लगता था । राजदान उसके किसी भी लटके-झटके का शिकार जब नही हुआ तो दिव्या हैरान रह गयी, बोली--- 'आखिर बात क्या है, राज, दिमाग में ऐसी क्या प्रॉब्लम लेकर आये हो कनाडा से जो तुम्हारा ध्यान किसी और तरफ नहीं लगने दे रही? मुझे बताओ राज! मैं पत्नी हूं तुम्हारी! तुम्हारी प्रॉब्लम के बारे में जानने की हकदार । और तब... राजदान बुरी तरह उत्तेजित हो उठा । जेब से एक कागज निकालकर उसकी तरफ फेंकता हुआ चीखा --- ' जानना चाहती हो तो लो, देखो इसे । ये है मेरी प्राब्लम ! कागज को पढ़ते ही दिव्या के हलक से चीख निकल गई --- 'नहीं!... ऐसा नहीं हो सकता ।' तब राजदान ने बहुत ही शान्त स्वर में कहा था - -- 'ऐसा हो चुका है। दिव्या राजदान की तरफ इस तरह देखती रह गई थी
जैसे अपने पति की तरफ नहीं बल्कि चिड़ियाघर से भागकर आये संसार के किसी विचित्र प्राणी की तरफ देख रही हो ।
अगले दिन! इंस्पैक्टर ठकरियाल ने सुबह-सुबह राजदान, देवांश और दिव्या को बन्दूकवाला सहित थाने में तलब किया। कारण था कम्मो और बुग्गा की गिरफ्तारी । बन्दूकवाला ने पुष्टि की - - ये दोनों वही हैं --- जिन्होंने गाड़ी में टाइम बम रखा था। ठकरियाल ने काफी तत्परता के साथ उन दोनों को खोज निकाला था । उन्हें सामने देखते ही देवांश मारे गुस्से के मानो पागल हो उठा । वह यह जानना चाहता था उन्होंने उसे मारने की कोशिश क्यों की? पता लगा... यह काम कम्मो और बुग्गा को मुनासिब फीस के साथ एक ऐसे नकाबपोश ने सौंपा था जो थोड़ा लंगड़ाकर चलता है ।
कम्मो-बुग्गा नकाबपोश के बारे में इससे ज्यादा जानकारी न दे सके । देवांश को शक था वे झूठ बोल रहे हैं। सच्चाई का पता लगाने के लिए उसने खुद खोजबीन करने का फैसला किया । हालांकि राजदान ऐसा नहीं चाहता था परन्तु देवांश पर हमलावर तक पहुंचने का जुनून सवार था।
***
उसके बाद देवांश नजर आता है ---एक फाइव स्टार होटल के शानदार सुइट में। वह सिगरेट पी रहा है। शराब पी रहा है। साकी है--- एक सांवली परन्तु तीखे नाक-नक्श वाली बेहद आकर्षक और सैक्सी लड़की । देवांश उसे
'विनीता' कह रहा है। उनकी बातचीत से स्पष्ट होता है कि लंगड़ा काबपोश बनकर देवांश ने ही कम्मो और बुग्गा से सौदा किया था। वह टाइम बम दिया था जो बाद में उन्होंने मर्सडीज में रखा।
फिर देवांश खुद भी उसी मर्सडीज में क्यों बैठा? क्यों बम को फटने के 'ऐन' पहले उसने गाड़ी से बाहर फेंक दिया ? इन सवालों के जवाब भी देवांश और कथित विनीता की बातचीत से ही मिलते हैं। दरअसल उनका उद्देश्य राजदान और दिव्या को दुनिया से उठा देना था ताकि उनके बाद सारी जायदाद देवांश की हो जाये, परन्तु मर्सडीज में टाइम बम किसी की हत्या करने के लिए नहीं बल्कि ठीक वही ड्रामा प्लान्ट करने के लिए रखा गया था, जो किया गया । और यह उपज थी देवांश के दिमाग की । वह जानता था.... राजदान और दिव्या के मरते ही पुलिस सीधा शक उसी पर करेगी क्योंकि उनके बाद जायदाद का वारिस वही है। ड्रामा रचा ही इसलिए गया था ताकि बाद में... तब, जबकि किसी अन्य तरीके से वास्तव में राजदान और दिव्या का मर्डर हो तो देवांश इन तर्कों के साथ खुद को शक के दायरे से दूर रख सके कि अगर उनकी हत्याओं के पीछे वह होता तो खुद उस गाड़ी में क्यों बैठता जिसमें बम था?
अर्थात् गाड़ी में टाइम बम वाली घटना को देवांश ने केवल अपनी 'एलीबी' तैयार करने के लिए अंजाम दिया था | असल मर्डर तो अब... यानी आगे, किसी और तरीके से होना था ।
***
अब जरूरत थी एक योजना की। इस काम में उनकी मदद 'विषकन्या' नामक एक किताब ने की । किताब में एक ऐसी विषकन्या का जिक्र था जिसने अपने उरोजों के निप्पल पर घातक जहर का लेप करके एक विलासी राजा को मार डाला था ।
देवांश ने किताब में तरकीब पढ़ने के बाद कहा -'तरकीब तो वाकई लाजवाब है मगर 'भैया' पर कारगर नहीं होगी। वे विलासी नहीं हैं। 'भाभी' के अलावा किसी की तरफ देख तक नहीं सकते। तब... विनीता ने कहा---'जहर दिव्या के ही निप्पल पर लगाया जायेगा । यह काम तुम्हें इस तरह करना होगा कि खुद दिव्या न जान सके तुम कब उसके निप्पल पर जहर लगा गये ? इस तरह---विनीता उसे समझाने लगी कि किस तरह राजदान की हत्या करके न केवल दिव्या को उसमें फंसाया जा सकता है, बल्कि यह भी साबित किया जा सकता है कि राजदान एसोसिएट्स का समरपाल नामक चीफ एकाउंटेंट उसका आशिक है और यह काम उसने उसी के साथ मिलकर किया है। विनीता उस वक्त देवांश को अपने शबाब के सागर में डुबोने का प्रयत्न कर रही थी जब अचानक इंस्पैक्टर ठकरियाल वहां पहुंच गया।
उसे वहां देखकर जहां विनीता और देवांश के होश फाख्ता हो गये वहीं, ठकरियाल के तो उन लोगों की जुगलबंदी मानो हलक में अटककर रह गई। उसने देवांश को थाने ले जाकर एकान्त में समझाया भी। कहा --- मैं अच्छी तरह जानता हूं! विनीता का असली नाम विचित्रा है। वह एक तवायफ की बेटी है। अगर तुम उसके मोहपाश में पड़े रहे तो निश्चित रूप से किसी बखेड़े में फंस जाओगे । मगर, सिर पर जब इश्क का भूत सवार हो तो 'मरीज' की समझ में कुछ नहीं आता।
देवांश घर पहुंचा। उस वक्त वहां बबलू और भट्टाचार्य भी थे । भट्टाचार्य राजदान के बचपन का दोस्त भी था और डॉक्टर भी। राजदान को हल्का सा बुखार था । कुछ देर बाद वह दवा असर से सो गया । भट्टाचार्य और बबलू अपने-अपने घर चले गये । देवांश अपने कमरे में । नींद नहीं आ रही थी उसे । दिमाग में लगातार वह 'प्लान' घूम रहा था जिसके तहत दिव्या के निप्पल पर जहर लगाना था। हालात का जायजा लेने रात के करीब दो बजे चोरों की मानिन्द दबे पांव कमरे से निकला । 'की - होल' के जरिए राजदान के कमरे में झांका और दिव्या को बैड से गायब पाकर हैरान रह गया | राजदान वहां अकेला सोया पड़ा था । देवांश के दिमाग में सवाल कौंधा ---रात के इस वक्त, अपने पति को यूं सोता छोड़कर दिव्या आखिर गई कहां है? वह दिव्या को खोजता किचन लॉन में पहुंचा और... ठण्डे पानी केएकझरने के नीचे नहा रही दिव्या को देखा तो उसके होश उड़ गये ।
बहके हुए युवा देवांश का जी तो जाने क्या-क्या चाहा परन्तु अपनी भावनाएं खुलकर दिव्या के समक्ष व्यक्त करने की हिम्मत नहीं जुटा सका था । अतः चुपचाप वहां से खिसक लिया। उस घटना के बाद दिव्या के प्रति देवांश का नजरिया पूरी तरह बदल चुका था ।
***
अगले दिन, तब जबकि राजदान ऑफिस जा चुका था। दिव्या शॉपिंग हेतु बाजार गई थी । देवांश उनके कमरे में पहुंचा। उसे दिव्या के उस खास पैन की तलाश थी जो सोने का बना था। जिस पर डायमण्ड्स जड़े थे। लाखों की कीमत का वह पैन दिव्या को राजदान और विचित्रा 'विषकन्या' नामक ने भेंट किया था। देवांश उस खास पैन से किताब की उन पंक्तियों को अण्डरलाइन करना जिनमें हत्या का वह विवरण था जिस तरीके से राजदान की हत्या होनी थी । उनके प्लान के मुताबिक वह किताब हत्या के बाद ‘समरपाल' के घर से बरामद होनी थी जिससे यह साबित हो जाता कि समरपाल दिव्या का आशिक है और उन दोनों ने मिलकर किताब में लिखे गये प्लान के मुताबिक राजदान की ईहलीला समाप्त की है। देवांश ने दिव्या का पैन तलाश किया । खास पंक्तियां अण्डरलाइन कीं और किताब को समरपाल के घर में छुपा भी आया । अब बाकी था - - - जहर दिव्या के निप्पल पर पहुंचाना । वह जहर जो उसने एक सपेरे से हासिल किया था।
***
रात नौ बजे के आसपास दिव्या को नहाने की आदत थी । देवांश दिन ही में बाथरूम की उस खिड़की की चटकनी अंदर की तरफ से गिरा आया जो 'फ्रंट लॉन' की तरफ खुलती थी । अपने प्लान के मुताबिक उसी खिड़की के जरिए वह पौने नौ बजे बाथरूम में दाखिल हुआ तथा ड्रेसिंग में उस अलमारी के अंदर छुपकर खड़ा हो गया, जिसमें राजदान के कपड़े थे । दिव्या ड्रेसिंग में आई। अपनी अलमारी से वे कपड़े निकालकर ड्रेसिंग टेबल के टॉप पर रखे जो स्नान के बाद उसे पहनने थे। उन्हें निकालने के बाद स्नान हेतु वह बाथरूम में चली गई । देवांश छुपे स्थान से निकला । जहर की बूंदें ब्रा की कटोरियों पर ठीक वहां टपकाईं जहां पहनी जाने के बाद
दिव्या के निप्पल को शरण लेनी थी |
तो यह था देवांश और विचित्रा का प्लान ।
इस ढंग से जहर पहुंचाया गया दिव्या के निप्पल पर ।
काम इतना आसान था कि बगैर किसी विघ्न-बाधा के करने के बाद वह पुनः अलमारी में आ छुपा। अब बस - - - उसे करना यह था कि जैसे ही स्नान के बाद दिव्या ड्रेसिंग टेबल के टॉप पर रखे कपड़े पहनकर बाथरूम से बाहर जाये, वह भी जिस खामोशी के साथ खिड़की के जरिए अंदर आया है उसी खामोशी के साथ बाहर चला जाये परन्तु... हमेशा वो होता कहां है जैसा आदमी ने सोचा होता है । जाने कैसे दिव्या को उसकी वहां मौजूदगी का अहसास हो गया और.. अहसास ही क्यों --- दिव्या ने रंगे हाथ पकड़ ही जो लिया देवांश को । जहां दिव्या उसे वहां देखकर हतप्रभ रह गयी वहीं देवाश के तो मानो होश ही उड़ गये । दिव्या के कदमों में गिर पड़ा वह । रो पड़ा ! गिड़गिड़ाया---'गलती हो गई मुझसे । मेरी इस हरकत का जिक्र भैया से मत करना ।' दिव्या इस कदर हैरान थी कि काफी देर तो कुछ समझ ही न सकी । होश आया तो उसने गुर्राकर देवांश को चुपचाप उसी रास्ते से चले जाने के लिए कहा जिससे आया था और देवांश यूं भागा जैसे सिंहनी के पंजे से हिरन निकलकर भागा हो । बौखलाया हुआ उस वक्त वह शहर की सुनसान पड़ी सड़कों पर कार दौड़ाये फिर रहा था जब दिमाग ने कहा --- 'इन हालात में अगर राजदान दिव्या के निप्पल चुसककर मर गया तो दुनिया की कोई ताकत उसे फांसी के फंदे से नहीं बचा सकेगी। कल --- जब राजदान की लाश के नजदीक खड़ा ठकरियाल यह घोषणा करेगा, यह हत्या दिव्या के निप्पल पर लगे जहर से हुई है तो दिव्या.... वह दिव्या जो इस वक्त यह समझ रही है कि देवांश ड्रेसिंग में 'नीयत खराब' होने की वजह से था... वह समझ जायेगी कि उसकी वहां मौजूदगी का असल कारण 'नीयत खराब' होना नहीं बल्कि 'यह' था ---यह कि उसी ने जहर उसके निप्पल पर पहुंचाया और जब वह यह बयान ठकरियाल को देगी तो ठकरियाल को उसे हथकड़ी पहनाने में एक सेकण्ड नहीं लगेगी।'
बचने का एक ही रास्ता था - - - यह कि वह किसी भी तरह आज की रात दिव्या और राजदान को 'हम - विस्तर' होने से रोके। यह सोचकर वह कांप उठा कि वर्तमान हालात में दिव्या की नजरों का सामना कैसे कर सकेगा! परन्तु जान बचानी थी तो सामना तो करना ही था ।
सो, घर पहुंचा ।
वहां एक ऐसी मुसीबत सामने आई जिसकी वह स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकता था । वह मुसीबत थी - - - राजदान को उसके और विचित्रा के सम्बन्धों का पता लग जाना। उन सम्बन्धों के बारे में राजदान को देवांश के मोबाइल के बिल से पता लगा था । देवांश के होश उड़ गये और उस वक्त तो उसके पैरों तले से मानो धरती ही खिसक गई जब पता लगा कि वह विचित्रा और उसकी वेश्या मां शांतिबाई के षड्यंत्र का शिकार है। उनका उद्देश्य है---राजदान की दौलत हड़प जाना । देवांश की आंखें तो खुल गईं मगर राजदान का सम्भावित कत्ल अब भी नंगी तलवार की तरह उसकी गर्दन पर लटक रहा था क्योंकि दिव्या वही कपड़े पहने हुए थी जो उसने स्नान से पूर्व ड्रेसिंग टेबल के टॉप पर रखे थे । वक्षस्थल को उसी ब्रा ने कस रखा था जिसकी कटोरियों में उसने जहर टपकाया था। अतः राजदान से छुपाकर उसने दिव्या से एकान्त में बात करने की इच्छा जाहिर की । वह दिव्या को यह इशारा देकर अपने कमरे में आ गया कि 'भैया' के साथ सोने से पहले उसे उसके कमरे में आना है। और उस वक्त एक नया ही गुल खिला जब दिव्या उसके कमरे में आई । राजदान को नींद की गोली देकर आई थी वह | रात के उस वक्त, दिव्या को अपने इतने नजदीक देखकर देवांश का विचलित होना स्वाभाविक था किन्तु अपने मनोभाव व्यक्त करने की हिम्मत नहीं थी उसमें । उस वक्त तो होश ही फाख्ता हो गये पट्ठे के जब दिव्या दौड़कर उससे आ लिपटी | थर-थर कांप रहा था देवांश । यह वैसी ही स्थिति थी जैसे आप किसी पेड़ पर लटके पके फल को ललचाई नजरों से देखें और उसी क्षण फल खुद टूटकर आपकी गोद में आ गिरे। सब कुछ हो चुकने के बावजूद देवांश विश्वास नहीं कर पा रहा था जो कुछ उसकी आंखें देख रही हैं वह सच है मगर... जो सच था, वह सच था । पता लगा - - - राजदान को एड्स है। कनाडा से वह यही बीमारी लेकर आया था। वह उसकी ब्लड रिपोर्ट थी के बाद उस रात दिव्या के हलक से चीख निकल गई थी। तब से दिव्या निरंतर 'प्यासी' थी। उस प्यासी ने जब देवांश को अपनी तरफ आकर्षित पाया, अपने ड्रेसिंग में देखा तो स्वभाविक रूप से वह उससे आ लिपटी । उस हद तक गिर चुके दिव्या और देवांश को पतन की गर्त में गिरने से भला अब कौन बचा सकता था !
***
उधर, बुग्गा और कम्मो के मुताबिक उन्हें सुपारी देने वाला नकाबपोश लंगड़ाकर चलता था | समरपाल की चाल में लंगड़ाहट देखकर इंस्पैक्टर ठकरियाल की तवज्जो उस पर गई । वह उससे मिला। बातचीत के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि नकाबपोश और भले ही चाहे जो हो लेकिन समरपाल नहीं है। वह जो भी है, कोई ऐसा शख्स है जो बेगुनाह समरपाल को इस झमेले में फंसाना चाहता है अतः ठकरियाल ने समरपाल से कहा --- 'तुम्हें किसी की हत्या के इल्जाम में फंसाने की कोशिश की जा रही है। खैरियत चाहते हो तो जैसे ही अपने आस-पास कोई असामान्य बात देखो, बगैर समय गंवाये मुझे सूचित करना ।'
वह चौकस रहने लगा। चौंका उस वक्त जब अपने बैडरूम से 'विषकन्या' मिली । तुरन्त थाने पहुंचकर टकरियाल से मिला । कहा - - - 'यह किताब मेरे बेडरूम में थी जबकि मैंने इसे कभी नहीं खरीदा ।' ठकरियाल ने किताब झपटी | उन पंक्तियों तक भी पहुंच गया जिन्हें अण्डरलाइन किया गया था । तभी उसकी आंखों के समक्ष देवांश और विचित्रा की जुगलबंदी चकरा उठी। वह समझ गया --- इन्हीं मां-बेटियों के फेर में फंसा देवांश राजदान और दिव्या की हत्या के मिशन पर काम कर रहा है। कोशिश वही, समरपाल को फंसाने की की जा रही है। किताब बता रही थी-राजदान की हत्या विषकन्या' के उरोज चुसकने से होगी।
ठकरियाल के सम्मुख लगभग सारा किस्सा खुला पड़ा था। केवल यह पता लगाना बाकी था कि 'विषकन्या' कौन बनने वाली थी? यह पता लगाने के लिए वह जा धमका --- शांतिबाई के कोठे पर । यह वही रात थी जिस रात दिव्या और देवांश पवित्रता की दीवार तोड़कर पतन के गर्त में गिरे थे। विचित्रा और शांतिवाई ने चालाक बनने की कोशिश की। अपनी तरफ से कुछ नहीं बताया परन्तु ठकरियाल ताड़ गया कि विषकन्या दिव्या को बनना है। सारी बातें समझ में आते ही उसने विचित्रा और शांतिबाई
को गिरफ्तार कर लिया ।
सुबह ! ठकरियाल राजदान विला पहुंचा। देवांश की तरफ व्यंग्यभरी मुस्कान उछाली । दिव्या के लिए उसकी आंखों में सहानुभूति थी । राजदान से कहा---'मैं एकान्त में आपसे कुछ बातें करना चाहता हूं।' और एकान्त में --- उस वक्त राजदान के पैरों तले धरती खिसक गई जब ठकरियाल ने सुबूतों के साथ साबित कर दिया कि कम्मो और बुग्गा के हाथों मर्सडीज में बम रखवाने वाला नकाबपोश भी देवांश था और धोखे से दिव्या के निप्पल पर जहर पहुंचाकर उसकी हत्या का प्रयास करने वाला भी देवांश है।
ठकरियाल को उम्मीद थी --- जब राजदान को यह हकीकत पता लगेगी तो मारे गुस्से के वह पागल हो उठेगा। मगर उस वक्त इंस्पैक्टर को दंग रह जाना पड़ा जब उसकी सभी आशाओं के विपरीत राजदान ने कहा --- 'देवांश ने जो भी किया या करना चाहता था उसमें उसका नहीं, विचित्रा और शांतिबाई का कुसूर है। उनका जहर है ही ऐसा कि इंसान के सिर पर चढ़कर बोलता है । ठकरियाल हैरान रह गया । राजदान जैसा भाई देखना तो दूर, उसकी कल्पनाओं तक से परे था । जब उसने कहा---'आपकी हत्या का प्रयास करने के इल्जाम में देवांश को गिरफ्तार तो करना ही पड़ेगा मुझे ।' तब राजदान गिड़गिड़ा उठा |बार-बार कहने लगा - - - वह
ऐसा न करे। देवांश उसकी आरजुओं का आखिरी चिराग है। ठकरियाल राजदान की तरफ उन नजरों से देखता रह गया जिन नजरों से भक्त लोग भगवान की प्रतिमाओं को देखते हैं। फिर भी, ठकरियाल था तो एक भ्रष्ट पुलिसिया ही। देवांश को बख्शने के उसने पचास लाख मांगे। राजदान तैयार हो गया । साथ ही कहा - - - 'तुम देवांश को कभी इल्म नहीं होने दोगे कि सब कुछ जानने के बाद तुम मुझे बता चुके थे और मैंने उसे बचाने के लिए रकम दी। तब, ठकरियाल ने कहा ---विचित्रा और शांतिबाई के जरिए उसे हकीकत पता लग सकती है। राजदान ने ठकरियाल को पच्चीस लाख और दिये । यह रकम विचित्रा और शांतिबाई को ठिकाने लगाने के लिए दी गई थी और... ठकरियाल जब उन्हें ठिकाने लगाने हेतु समुद्र के बीच में ले गया तो एक बार को, खुद उसी की जान के लाले पड़ गये। हालात ऐसे बने कि वह विचित्रा और शांतिबाई की लाश न देख सका । खुद ही को बड़ी मुश्किल से बचा कर निकल सका। फिर भी, उसे पूरी उम्मीद थी वे दोनों समुद्र में मर खप गई होंगी ।
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