कॉल बैल की आवाज सुनकर सुनील ने फ्लैट का द्वार खोला ।

द्वार पर एक लगभग तीस साल की बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाली और सूरत से ही सम्पन्न दिखाई देने वाली महिला खड़ी थी ।

सुनील को देखकर वह मुस्कराई ।

“फरमाइये ।” - सुनील बोला ।

“मिस्टर सुनील ।” - महिला ने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।

“मेरा ही नाम है ।” - सुनील बोला ।

“मैं आप ही से मिलने आई हूं, मिस्टर सुनील ।” - वह बोली ।

सुनील एक क्षण हिचकिचाया और फिर द्वार से एक ओर हटता हुआ बोला - “तशरीफ लाइये ।”

महिला भीतर प्रविष्ट हुई । सुनील के निर्देश पर वह एक सोफे पर बैठ गई ।

सुनील उसके सामने बैठ गया और बोला - “फरमाइये ।”

“मेरी नाम कावेरी है ।” - वह बोली ।

सुनील चुप रहा । वह उसके आगे बोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।

“आप की सूरत से ऐसा नहीं मालूम होता जैसे आपने मुझे पहचाना हो ।”

“सूरत तो देखी हुई मालूम होती है” - सुनील खेदपूर्ण स्वर से बोला - “लेकिन याद नहीं आ रहा, मैंने आपको कहां देखा है ।”

“यूथ क्लब में ।” - कावेरी बोली - “जब तक मेरे पति जीवित थे, मैं यूथ क्लब में अक्सर आया करती थी ।”

“आपके पति...”

“रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल ।” - कावेरी गर्वपूर्ण स्वर में बोली - “आपने उन का नाम तो सुना ही होगा ?”

“रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल का नाम इस शहर में किसने नहीं सुना होगा !” - सुनील प्रभावित स्वर में बोला ।

रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल राजनगर के बहुत बड़े उद्योगपति थे और नगर के गिने-चुने धनाढ्य लोगों में से एक थे । सुनील उन्हें इसलिये जानता था, क्योंकि वे यूथ क्लब के फाउन्डर मेम्बर थे । यूथ क्लब की स्थापना में उनके सहयोग का बहुत बड़ा हाथ था । लगभग डेढ वर्ष पहले हृदय की गति रुक जाने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी । मृत्यु के समय उनकी आयु पचास साल से ऊपर थी ।

सुनील ने नये सिरे से अपने सामने बैठी महिला को सिर से पांव तक देखा और फिर सम्मानपूर्ण स्वर में बोला - “मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं, मिसेज जायसवाल ?”

“मिस्टर सुनील” - कावेरी गम्भीर स्वर में बोली - “सेवा तो आप बहुत कर सकते हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या आप वाकई मेरे लिये कुछ करेंगे ?”

“रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की पत्नी की कोई सेवा अगर मुझ से सम्भव होगी तो भला वह क्यों नहीं करूंगा मैं ?” - सुनील सहृदयतापूर्ण स्वर में बोला ।

“थैंक्यू, मिस्टर सुनील ।” - कावेरी बोली और चुप हो गई ।

सुनील उसके दुबारा बोलने की प्रतीक्षा करने लगा ।

“शायद आपको मालूम होगा” - थोड़ी देर बाद कावेरी बोली - “कि मैं रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की दूसरी पत्नी थी और उनकी मृत्यु से केवल तीन साल पहले मैंने उनसे विवाह किया था । अपनी पहली पत्नी से रायबहादुर साहब की एक बिन्दु नाम की लड़की थी जो इस समय लगभग सत्तरह साल की है और, मिस्टर सुनील, बिन्दु ने अर्थात मेरी सौतेली बेटी ने ही एक ऐसी समस्या पैदा कर दी है जिसकी वजह से मुझे आपके पास आना पड़ा है । आप ही मुझे एक ऐसे आदमी दिखाई दिये हैं जो एकाएक उत्पन्न हो गई समस्या में मेरी सहायता कर सकते हैं ।”

“समस्या क्या है ?”

“समस्या बताने से पहले मैं आपको थोड़ी-सी बैकग्राउन्ड बताना चाहती हूं ।” - कावेरी बोली - “मिस्टर सुनील, बिन्दु उन भारतीय लड़कियों में से है जो कुछ हमारे यहां की जलवायु की वजह से और कुछ हर प्रकार की सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण और किसी भी प्रकार के चिन्ता या परेशानी से मुक्त जीवन का अंग होने की वजह से आनन-फानन जवान हो जाती हैं । जब रायबहादुर साहब से मेरी शादी हुई थी उस समय बिन्दु एक छोटी-सी, मासूम-सी, फ्रॉक पहनने वाली बच्ची थी, फिर जवानी का ऐसा भारी हल्ला उस पर हुआ कि मेरे देखते-ही-देखते वह नन्ही, मासूम-सी, फ्रॉक पहनने वाली लड़की तो गायब हो गई और उसके स्थान पर मुझे एक जवानी के बोझ से लदी हुई बेहद उच्छृंखल, बेहद स्वछन्द, बेहद उन्मुक्त और बेहद सुन्दर युवती दिखाई देने लगी । सत्तरह साल की उम्र में ही वह तेईस-चौबीस की मालूम होती है । रायबहादुर के मरने से पहले तक वह बड़े अनुशासन में रहती थी क्योंकि रायबहादुर साहब के प्रभावशाली व्यक्तित्व की वजह से उसकी कोई गलत कदम उठाने की हिम्मत नहीं होती थी लेकिन पिता की मृत्यु के फौरन बाद से ही वह शत-प्रतिशत स्वतन्त्र हो गई है और अब जो उसके जी में आता है, वह करती है ।”

“लेकिन आप... क्या आप उसे... आखिर आप भी तो उसकी मां हैं ?”

“जी हां । सौतेली मां । केवल दुनिया की निगाहों में । खुद उसने कभी मुझे इस रुतबे के काबिल नहीं समझा । जिस दिन मैंने रायबहादुर साहब की जिन्दगी में कदम रखा था, उसी दिन से बिन्दु को मुझ से इस हद तक तब अरुचि हो गई है कि उसने कभी मुझे अपनी मां के रूप में स्वीकार नहीं किया, कभी मुझे मां कहकर नहीं पुकारा ।”

“तो फिर वह क्या कहती है आपको ?”

“पहले तो वह सीधे मुझे नाम लेकर ही पुकारा करती थी लेकिन एक बार रायबहादुर साहब ने उसे मुझे नाम लेकर पुकारते सुन लिया तो उन्होंने उसे बहुत डांटा । उस दिन के बाद उसने मेरा नाम नहीं लिया लेकिन उसने मुझे मां कहकर भी नहीं पुकारा ।”

“तो फिर क्या कहकर पुकारती थी वह आपको ।”

“कुछ भी नहीं । वह मुझे से बात ही नहीं करती थी इसलिये मुझे कुछ कह कर पुकारने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी उसे । कभी मेरा जिक्र आ ही जाता था तो और लोगों की तरह वह भी मुझे मिसेज जायसवाल कह कर पुकारा करती थी । रायबहादुर साहब की मृत्यु के बाद से वह कभी-कभार घर पर आये अपने मित्रों के सामने मुझे ममी कह कर पुकारती है लेकिन इसमें उसका उद्देश्य अपने मित्रों के सामने मेरा मजाक उड़ाना ही होता है ।”

“लेकिन वह ऐसा करती क्यों है ?”

“क्योंकि उसे मुझसे शुरू से घृणा है और इस घृणा की भावना की बुनियाद में मुख्य बात यही है कि वह एक करोड़पति की इकलौती बेटी है और मैं शादी से पहले एक पांच सौ रुपया महीना कमाने वाली डाक्टर थी । गलत किसम के लोगों ने उसके अपरिपक्व मस्तिष्क में यह बात ठोक-ठोक कर भर दी है कि मैंने रायबहादुर साहब को अपने रूप-जाल में फंसा कर उन्हें अपने साथ शादी करने के लिये मजबूर किया था । अर्थात मैंने उनकी दौलत की खातिर उनसे शादी की थी । रायबहादुर साहब दिल के मरीज थे और हर कोई जानता था कि वे किसी भी क्षण परलोक सिधार सकते थे । शादी के समय भी उनकी आयु लगभग पचास साल थी । पचास साल के दिल के मरीज रईस से जब कोई जवान लड़की शादी करेगी तो उसकी नीयत पर शक तो किया ही जायेगा, मिस्टर सुनील ।”

“जबकि वास्तव में ऐसी बात नहीं थी ?”

“कैसी बात ?”

“कि इस सिलसिले में आपकी नीयत खराब हो ! कि आपने रुपये की खातिर रायबहादुर साहब से विवाह किया हो !”

कावेरी ने कई क्षण उत्तर न दिया, फिर वह दृढ स्वर में बोली - “जी हां, इस विषय में मेरी नीयत खराब नहीं थी । मैंने दौलत की खातिर रायबहादुर साहब से विवाह नहीं किया था । मेरे हृदय में वाकई उनके लिये गहरे अनुराग की भावना पैदा हो गयी थी । एक बार उन्हें दिल का दौरा पड़ा था तो वे इलाज के लिये उस नर्सिंग होम में भरती हुई थे जिससे मैं डाक्टर थी । बड़े डाक्टर ने उनकी देखभाल के लिये मुझे नियुक्त किया था । वे एक महीना अस्पताल में रहे थे और संयोगवश ही मेरी उनसे घनिष्टता हो गयी थी । एक महीने बाद वे नर्सिंग होम से विदा हो गये थे । उन्होंने मुझे बिन्दु के बारे में बताया था और यह भी बताया था कि इस संसार में उनका कोई दूर का रिश्तेदार भी नहीं था । अगर वे मर गये तो बिन्दु एकदम बेसहारा और अनाथ हो जायेगी । मिस्टर सुनील, दिलचस्प बात तो यह थी कि वे अपनी बेटी के भविष्य के प्रति बेहद चिंतित थे । उन्हें इस बात की भारी चिन्ता थी कि कहीं बिन्दु के जिम्मेदारी की उम्र में कदम रखने से पहले वे मर न जायें लेकिन अपने को जीवित रखने की दिशा में कोई प्रयास नहीं करते थे । हम डाक्टर एक दिल के मरीज से जिस प्रकार के संयम की अपेक्षा करते हैं, उसके वे कतई कायल नहीं थे । और नर्सिंग होम में वे अपनी मर्जी से तो आते ही थे । नर्सिंग होम तो उन्हें हमेशा एम्बूलैंस में डालकर लाया जाता था ।”

कावेरी एक क्षण रुकी और फिर बोली - “मिस्टर सुनील, वे आराम कतई नहीं करते थे । न अपने धन्धे में और न मनोरंजन में । जैसे दिन भर दफ्तर में कड़ी मेहनत करने के बाद वे शाम को क्लब में जाकर हर रोज शराब भी जरूर पीते थे और आधी रात तक ताश भी जरूर खेलते थे । खाना भी वे डटकर खाते थे । इस प्रकार की दिनचर्या वाले दिन के मरीज का अधिक दिनों तक जीवित रह पाना सम्भव नहीं होता । मुझे मालूम था कि वे बहुत जल्दी ही स्वर्ग सिधार जायेंगे ।”

“फिर भी आपने उनसे शादी की ?”

“जी हां ! क्योंकि वे मुझे बहुत मानते थे । मुझे विश्वास था कि अगर मुझे उनके जीवन की बागडोर अपने हाथ में लेने का अवसर मिल जाये तो मैं उन्हें संयम का जीवन बिताने के लिये मजबूर कर दूंगी और फिर उन्हें जल्दी मरने नहीं दूंगी । रायबहादुर साहब से नर्सिंग होम के सम्पर्क के दौरान मेरे मन में यह भावना इतनी प्रबल हो उठी थी कि जब उन्होंने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो मैं इनकार न कर सकी । लेकिन मैंने उन पर यह शर्त जरूर ठोक दी थी कि अगर वे मुझसे शादी करेंगे तो उन्हें वैसे रहना होगा जैसे मैं उन्हें रखना चाहूंगी । उन्होंने मेरी शर्त झट स्वीकार कर ली । मिस्टर सुनील, एक भारी त्याग की भावना से ही मैंने उनसे विवाह किया था । उस वक्त यह तो मुझे सूझा ही नहीं था कि मेरे और उनके सम्बन्ध का गलत अर्थ भी लगाया जा सकता था । लोग मुझे गोल्डडिगर (Gold Digger) समझ सकते थे ।”

“आपकी देखभाल से रायबहादुर साहब के जीवन पर कुछ फर्क पड़ा ?”

“भारी । यह मेरा दुर्भाग्य था कि तीन साल बाद एकाएक उनके हृदय की गति रुक गई, वरना जिस हद तक संयम और सुधार मैं उनकी दिनचर्या में पैदा कर चुकी थी उससे ऐसा लगता नहीं था कि अब अगले कुछ वर्षों तक उन्हें कुछ ही पायेगा । उनके दिल की दशा बहुत सुधर गयी थी और सच पूछिये तो शादी के बाद के तीन साल भी वे इसीलिये जिये क्योंकि उन्हें संयम की जिन्दगी बिताने के लिये मजबूर किया गया था ।”

“समस्या क्या है ?” - सुनील वास्तविक विषय पर आने के उद्देश्य से बोला ।

“समस्या बिन्दु ही है ।”

“वह तो हुआ लेकिन, बिन्दु की वजह से ही सही, समस्या है क्या ?”

कावेरी कुछ क्षण तक यूं चुप रही जैसे समस्या बताने के लिये उ‍चत शब्द तलाश कर रही हो ।

सुनील धैर्यपूर्ण मुद्रा बनाये उनके बोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।

“रायबहादुर साहब की वसीयत के अनुसार” - अन्त में कावेरी बोली - “जब बिन्दु अट्ठारह साल की हो जायेगी तो ढेर सारी अचल सम्पत्ति के अतिरिक्त वह नकद पच्चीस लाख रुपये की स्वामिनी हो जायेगी और दुर्भाग्यवश यह बात राजनगर में हर किसी को मालूम है ।”

“दुर्भाग्यवश क्यों ?”

“क्योंकि बिन्दु एक साल में अट्ठारह साल की हो जायेगी और फिर वह स्वतन्त्र रूप से एक भारी सम्पत्ति की स्वामिनी होगी । उसको इस सम्पत्ति को किसी भी ढंग से बरबाद करने का पूरा अधिकार होगा । इसलिये बहुत-से गलत किस्म के लोग शहद पर मक्खियों की तरह उसके इर्द-गिर्द जमघट लगाये रहते हैं । बिन्दु इस बात से बड़ी प्रसन्न होती है कि वह इतने ढेर सारे लोगों के आकर्षण का केन्द्र है । वह खूबसूरत है, जवान है इसीलिये उसे अपनी जवानी और खूबसूरती की नुमायश करने का बहुत शौक हो गया है । उसमें अभी इतनी अक्ल तो है नहीं कि वह समझ सके कि लोग उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उसकी ओर आकर्षित नहीं होते बल्कि वे उसकी सम्पत्ति पर घात लगाये हुए हैं जिसकी कि वह एक साल बाद एकदम स्वतन्त्र स्वामिनी बनने वाली है । वह यह नहीं समझती कि राजनगर में वही एक अकेली खूबसूरत लड़की नहीं है । नगर में उससे भी अधिक खूबसूरत लड़कियां मौजूद हैं लेकिन उन लड़कियों के पीछे ज्यादा लोग ज्यादा देर तक इसीलिये नहीं पड़े रहते क्योंकि वे केवल सुन्दर ही हैं बिन्दु की तरह मूर्ख और भारी धन-सम्पत्ति की स्वामिनी बनने वाली नहीं हैं ।”

“इस विषय में आप ने बिन्दु को कभी समझाने की कोशिश नहीं की ?”

“एक बार की थी । उसने मुझे ऐसा जवाब दिया था कि इस विषय में दुबारा एक शब्द भी जुबान पर लाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई थी ।”

“क्या कहा था उसने ?”

“उसने कहा था कि क्योंकि मेरे अपने विचार बड़े नीच थे और क्योंकि खुद मैंने रायबहादुर साहब की दौलत हथियाने की खातिर उन्हें अने रूप-जाल में फांसा था इसलिये उस के सम्पर्क में आने वाला हर आदमी मुझे अपने जैसा ही नीच और दौलत का दीवाना मालूम होता था ।”

“ऐसी बातें वो साफ-साफ आपके सामने कह देती है ?”

“जी हां । नौकरों के सामने कह देती है । आखिर उसको मुझसे डरने की जरूरत क्या है ? जो दौलत उसे मिलने वाली है, उस पर तो मैं कोई बन्धन लगा नहीं सकती । मिस्टर सुनील, उसे तो मेरी सूरत देखना गंवारा नहीं है । मेरे साथ एक ही घर में मौजूद भी वह इसलिये है, क्योंकि रायबहादुर साहब वसीयत में यह शर्त लगा गये है कि ज‍ब तक बिन्दु का विवाह न हो जाये तब तक उसे मेरे साथ रहना पड़ेगा और अगर वह नहीं रहेगी तो उसे उनकी वसीयत में से एक धेला नहीं मिलेगा ।”

“आई सी !”

कावेरी चुप रही ।

“और रायबहादुर साहब की वसीयत के अनुसार आपको क्या मिला है ?”

कावेरी कुछ क्षण हिचकिचाई और फिर बोली - “मेरे नाम भी रायबहादुर साहब अपनी ढेर सारी अचल सम्पत्त‍ि और लगभग पच्चीस लाख रुपया नकद छोड़ गये हैं ।”

“और बाकी सम्पत्ति ? रायबहादुर साहब के पास तो बहुत दौलत थी ।”

“बाकी सम्पत्ति का एक बहुत बड़ा भाग वे धर्मार्थ छोड़ गये हैं । और बाकी को उनके पुराने नौकरों में बांट दिया गया है ।”

“मेरे से आप किस सेवा की अपेक्षा कर रही हैं ?”

“वही बताने जा रही हूं ।” - कावेरी बोली - “मिस्टर सुनील, वैसे तो बिन्दु के पीछे हर वर्ग के और हर आयु के लोग घूमते हैं लेकिन पहले बिन्दु सब में समान रूप से दिलचस्पी लेती थी । अब एकाएक वह एक आदमी में जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी लेने लगी है, इतनी ज्यादा कि उसने अपनी मित्रमंडली के अधिकतर सदस्यों को काटना आरम्भ कर दिया है ।”

“और वह आदमी कौन है ?”

“उसका नाम मुकुल है । मुकुल विदेशों में फैली हिप्पी कल्ट का शत-प्रतिशत भारतीय डुप्लीकेट है । हिप्पियों जैसा ही उसका पहनावा है, वैसे ही वह दाढी-मूंछ और बाल वगैरह रखता है, वैसे ही वह मैजेस्टिक सर्कल पर स्थ‍ित मैड हाउस नाम के एक रेस्टोरेन्ट में गिटार बजाता है और अंग्रेजी के गाने गाता है । मैड हाउस हिप्पियों का अड्डा है । नौजवान जोड़े आधी-आधी रात तक वहां नाचते-गाते रहते हैं ।”

“आप कभी वहां गई हैं ?”

“जी हां एक बार गई थी । मैं देखना चाहती थी कि जिस जगह की इतनी चर्चा होती होती थी और जहां से बिन्दु कभी रात के एक बजे से पहले लौटती नहीं थी, आखिर वह थी क्या बला ! मिस्टर सुनील, वह रेस्टोरेन्ट वाकई मैड हाउस है । ऐसी बेहूदा हरकतें होती है वहां, ऐसा गुल-गपाड़ा मचता है कि कोई नया आदमी तो वहां जाकर पागल हो जाये । कोई संभ्रांत व्यक्ति वहां जाने के बारे में सोच भी नहीं सकता ।”

“आपने मुकुल को देखा ?”

“जी हां और इस बात की कल्पना मात्र से ही मेरा दिल दहल गया कि बिन्दु उस आदमी के बारे में इस हद तक गम्भीर थी कि उससे शादी करना चाहती थी ।”

“शादी !”

“जी हां । बिन्दु ने मुझे कुछ नहीं बताया है लेकिन मैंने और लोगों के मुंह से सुना है कि वह मुकुल नाम के उस देसी हिप्पी से शादी करना चाहती है । हे भगवान ! कैसा वीभत्स रूप था उसका ! पैंतीस साल से कम उसकी उम्र नहीं थी । उसने लम्बे-लम्बे बाल रखे हुए थे जो वह गरदन को झटका देता था तो उसके चेहरे पर आ गिरते थे । उसने गले में गिटार लटकाई हुई थी, वह गिटार बजा रहा था और गला फाड़-फाड़ कर भगवान जाने क्या गा रहा था ! मुझे तो उस आदमी से ऐसी अरुचि हुई कि मैं फौरन वहां से चली आई । अगले दिन मैंने बिन्दु से बात की ।”

“फिर ?”

“पहले तो वह इस विषय में कोई बात करने के लिये तैयार ही न हुई लेकिन जब मैंने उसे रायबहादुर साहब की इज्जत का वास्ता दिया तो वह बोली कि वह शीघ्र ही मुकुल से शादी करने वाली थी और उसके इस कृत्य से रायबहादुर साहब की इज्जत पर कोई आंच नहीं आने वाली थी । वह बोली कि मेरे जैसे लोगों को मुकुल इसलिये बुरा लगता था, क्योंकि हक आधुनिक सभ्यता से बहुत पिछड़े हुए लोग थे और आज की तेजरफ्तार जिन्दगी से कदम मिलाकर चल पाना हमारे बस की बात नहीं थी । मैंने खानदान की बात की तो उसने उसे एक पुराना, घिसा-पिटा और दकियानूसी विचार बताया । मैंने कहा कि मुकुल उससे उम्र में कम से कम पन्द्रह वर्ष बड़ा था तो वह‍ बोली कि रायबहादुर साहब भी तो मुझ से कम से कम बीस वर्ष बड़े थे फिर मैंने उन से शादी क्यों की ? मैंने कहा कि सम्भव था कि वह उस की दौलत हथियाने के लिये उससे शादी करना चाहता था । उत्तर में वह बड़े व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली कि मैं अपनी स्थिति भूले जा रही थी । मैंने भी तो रायबहादुर साहब की दौलत हथियाने के लिये ही शादी की थी । बोली, अव्वल तो ऐसी बात थी नहीं लेकिन अगर वास्तव में मुकुल ऐसा कर भी रहा था तो तकलीफ क्यों हो रही थी । मैंने पूछा कि वह मुकुल के बारे में क्या जानती थी तो वह बोली कि मुकुल के बारे में उसे कुछ जानने की जरूरत ही नहीं थी । कहने का मतलब यह है कि उस लड़की के पास हर बात का नपा-तुला जवाब मौजूद है । उस हिप्पी ने उस पर ऐसा जादू कर दिया है कि उसका कोइ उतार मुझे नहीं सूझ रहा है । उसका बिन्दु पर इतना अधिक प्रभाव है कि वह खुद भी अपने खूबसूरत शालीनतापूर्ण और कीमती परिधान उतार कर हिप्पियों जैसे बेहूदा और बेढंगे कपड़े पहनने लगी है ।”

कावेरी चुप हो गई ।

“मैडम” - सुनील धैर्यपूर्ण स्वर में बोला - “मैं दसवीं बार आप से यह सवाल पूछ रहा हूं कि मैं इस मामले में आपकी क्या सहायता कर सकता हूं ?”

“आप मुकुल के बारे में जानकारी हासिल करने में मेरी सहायता कर सकते हैं ।”

“क्या मतलब ?”

“देखिये, बिन्दु पर वह इस हद तक हावी हो चुका है कि उसके बारे में मैं बिन्दु की राय तो बदल नहीं सकती हूं लेकिन शायद मैं मुकुल को बिन्दु का पीछा छोड़ने के लिये मजबूर करने में सफल हो जाऊं ।”

“कैसे ?”

“मुकुल इस शहर का रहने वाला नहीं है । हाल ही में वह किसी अन्य शहर से राजनगर आया है ।”

“कहां से ?”

“मुझे नहीं मालूम ।”

“फिर ?”

“उस आदमी की शक्ल-सूरत से मैं इतना तो अन्दाजा लगा ही सकती हूं कि वह किसी कुलीन परिवार का सदस्य नहीं है । मेरे दिमाग में एक आशंका पैदा हो रही है, या यह कह लीजिये कि एक आशा जाग रही है, कि शायद वह कोई जरायमपेशा आदमी हो । शायद वह किसी अन्य शहर में ऐसा कोई बखेड़ा कर बैठा हो कि उसे वहां से भागना पड़ा हो । शायद आज भी पुलिस को उस की तलाश हो । उसका हिप्पियों वाला पहरावा देखकर न जाने क्यों मुझे ऐस लगता है जैसे वह वास्तव में हिप्पी बनने का शौकीन नहीं बल्कि अपना रूप बदलने के लिये ऐसा स्वांग भर रहा है ।”

“आप का ऐसा सोचने का कोई आधार तो होगा ?”

“आधार कोई विशेष नहीं है लेकिन मेरा दिल कहता है कि जो मैं सोच रही हूं वह सच हो सकता है । जिस घटना से मेरे मन में यह विचार पनपा था, वह मैं आप को सुनाती हूं ।”

“सुनाइये ।”

“एक बार बिन्दु मुकुल को कोठी पर अपने साथ लाई थी और मैंने छुप कर मुकुल को स्टडी करने का प्रयत्न किया था । उसके कुछ ऐसे ऐक्शन मैंने नोट किये थे जो मुझे हिप्पियों के स्वभाव से मेल खाते दिखाई नहीं दिये थे ।”

“जैसे ?”

“वह अपने हिप्पियों वाले बेढंगे परिधान में ही कोठी में आया था और नंगे पांव था । उसके पांव मिट्टी से अटे हुए थे । जब वह ड्राईंग रूम मे प्रविष्ट होने लगा था तो उसने पायदान पर अच्छी तरह रगड़कर अपने पांव साफ किये थे और फिर भीतर प्रविष्ट हुआ था । एक आदमी, जो अपनी फिजिकल अपीयरेंस, पहरावे इत्यादि के प्रति हिप्पियों जितना उदासीन हो, वह भला इस बात की परवाह क्यों करेगा कि उसके मिट्टी से सने पैरों से ड्राईंग रूम में बिछा कीमती कालीन खराब हो जायेगा । फिर मैंने उसे ड्राईंग रूम में अकेले बैठे देखा । वह ड्राईंग रूम में रखी हर चीज को बड़ी प्रशंसात्मक और लालसाभरी निगाहों से देख रहा था । फिर उसने खुद अपने आप पर दृष्टि डाली थी और अपनी बेढंगी उगी दाढी और लम्बे, रूखे बालों को यूं खुजलाया था जैसे उसे अपने आप से भारी विरक्ति हो रही हो । मिस्टर सुनील, उस समय मेरे मन में यह विचार घर कर गया था कि यह आदमी अपनी नेचर की वजह से हिप्पी नहीं था बल्कि किसी मजबूरी की वजह से उस रूप को मेकअप की तरह इस्तेमाल कर रहा था ।”

“शायद आपकी बात सच हो । मैं तो मनोविज्ञान को कोई विशेष समझता नहीं हूं ।”

“लेकिन मुझे दिन-ब-दिन विश्वास होता जा रहा है कि उस आदमी के बारे में जो मैंने सोचा है, वह सच है ।”

“खैर, अगर मान भी लिया जाये कि मुकुल कोई पुराना अपराधी है तो फिर आप क्या करेंगी ?”

“फिर तो काम बड़ा आसान हो जायेगा । फिर तो मैं उसे सीधे-सीधे धमका सकती हूं कि वह बिन्दु का पीछा छोड़ दे वरना मैं पुलिस को उसकी खबर कर दूंगी ।”

“आप उसे ब्लैकमेल करेंगी ?”

“क्या हर्ज है ? मिस्टर सुनील, मैं अपने मृत पति के प्रति यह अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझती हूं कि मैं बिन्दु को गुमराह होने से बचाऊं । बिन्दु ने मुझे कभी मां नहीं माना लेकिन मैंने उसे हमेशा अपनी बेटी माना है । बिन्दु जिस रास्ते पर जा रही है, उसकी ओर से मैं अपनी आंखें बन्द नहीं कर सकती । किसी-न-किसी प्रकार मैंने बिन्दु को बरबाद होने से बचाना ही है । इस सन्दर्भ में धमकी और ब्लैकमेल तो बड़े मामूली काम हैं ।”

“लेकिन अगर वह आप की धमकी में न आया और उसने बिन्दु से शादी कर ली और उसे लेकर भाग गया तो ?”

“बिन्दु अभी नाबालिग है । वह मेरी मर्जी के बिना उससे शादी नहीं कर सकती । अगर वह बिन्दु को लेकर भागा तो मैं एक नाबालिग लड़की को बरगलाने और उसका अगवा करने के अपराध में उसे गिरफ्तार करवा दूंगी । एक बार वह पुलिस के चक्कर में आ गया तो इस बात का मैं पूरा इन्तजाम करवा दूंगी कि वह उसी में फंसा रहे । मिस्टर सुनील, दोहराने की जरूरत नहीं कि मैं रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की विधवा हूं और इस नगर में रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल के प्रभाव से पुलिस भी बरी नहीं था । मेरी सहायता करना पुलिस अपने लिये सम्मान का विषय समझेगी और यह बात मैंने गर्वोक्ति के रूप में नहीं, केवल आप पर अपनी सामर्थ्य प्रकट करने के लिये कही है ।”

“अगर ऐसी बात है तो आप सीधे पुलिस से ही सहायता का अपील क्यों नहीं करती । पुलिस मुकुल के पिछले जीवन के बखिये ज्यादा अच्छी तरह उधेड़ सकती है ।”

“नहीं ।” - कावेरी नकारात्मक ढंग से सिर हिलाती हुई बोली - “उससे तो बहुत गड़बड़ हो जायेगी । अगर मैंने ऐसा किया और बिन्दु को इसकी खबर हो गई तो वह तूफान खड़ा कर देगी और फिर मेरे और उसके बीच में उत्पन्न हो चुकी घृणा की खाई और चौड़ी हो जायेगी । मैं मुकुल के बारे में एकदम गुप्त रूप से जानकारी हासिल करना चाहती हूं इसीलिये मैं आपके पास आई हूं । मिस्टर सुनील, यह बड़ा नाजुक मामला है । इसे बड़े नाजुक ढंग से हैण्डल करना बहुत जरूरी है ।”

“लेकिन अगर मुकुल आपके सन्देह के अनुसार जरायमपेशा आदमी न निकला तो ?”

“तो फिर मैं उसे रुपये से खरीदने की कोशिश करूंगी । बिन्दु की दौलत के लिये उसे इन्तजार करना पड़ेगा जबकि मैं उसे बिन्दु की दौलत के लिये उसे इन्तजार करना पड़ेगा जबकि मैं उसे बिन्दु का पीछा छोड़ने के लिये तत्काल एक मोटी रकम अदा कर सकती हूं ।”

“अगर आप उसे न खरीद पाईं तो ?”

“क्यों नहीं खरीद पाऊंगी ?”

“शायद वह इसलिये बिकने के लिये तैयार न हो क्योंकि शायद वह बिन्दु से सच्ची मुहब्बत करता हो !”

“फिर तो समस्या ही खत्म हो जायेगी । अगर ऐसा हुआ तो मैं खुद बड़ी खुशी से बिन्दु की शादी उससे कर दूंगी । फिर भला मुझे क्या एतराज होगा ! मिस्टर सुनील, आखिर मैं बिन्दु की दुश्मन तो नहीं । मैं तो केवल गलत किस्म के धनलोलुप व्यक्तियों से उसकी रक्षा करना चाहती हूं । मैं तो मुकुल के इसलिये खिलाफ हूं क्योंकि वह मुझे बिन्दु के प्रति कतई ईमानदार दिखाई नहीं देता । अगर मेरा ख्याल गलत है तो फिर मैं भला उनके रास्ते में रोड़े क्यों अटकाऊंगी ?”

“मैं आपकी बात समझ गया” - सुनील बोला - “मैं मुकुल के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश करूंगा ।”

“शुरुआत कब से करेंगे आप ?” - कावेरी ने पूछा ।

“अभी से । इसी क्षण से ।” - सुनील घड़ी पर दृष्टिपात करता हुआ बोला । रात के आठ बजने को थे ।

“ओके दैन ।” - कावेरी उठती हुई बोली - “फिर मैं आपका वक्त बरबाद नहीं करूंगी ।”

सुनील भी उठ खड़ा हुआ ।

कावेरी ने पर्स खोला और एक विजिटिंग कार्ड सुनील की ओर बढा दिया - “यह मेरा कार्ड है । इस पर मेरी कोठी का पता और टेलीफोन नम्बर लिखा है । इसे रख लो । काम आयेगा ।”

सुनील ने कार्ड लेकर जेब में रख लिया ।

“और यह भी रख लो ।”

सुनील ने देखा कावेरी उसकी ओर नोटों की एक मोटी गड्डी बढा रही थी ।

“इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, मिसेज जायसवाल ।” - सुनील मुस्करा कर बोला ।

“लेकिन...”

“वाकई इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, मिसेज जायसवाल । रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल के यूथ क्लब पर बहुत अहसान हैं । मुझे आप से किसी काम के बदले में धन स्वीकार करने में बहुत शर्म आयेगी, विशेष रूप से ऐसे काम के लिये जिस में कुछ खर्च होने वाला नहीं है ।”

कावेरी हिचकिचाई ।

“मैं आपसे गलत नहीं कह रहा हूं, मिसेज जायसवाल ।”

कावेरी ने नोट वापिस पर्स में रख लिये ।

“आल राइट ।” - वह बोली - “कोई जानकारी हासिल हो तो सूचित करना ।”

“जरूर करूंगा ।”

कावेरी मुस्काई और फिर लम्बे डग भरती हुई फ्लैट से बाहर निकल गई ।

***

सुनील ने अपनी मोटरसाइकल मैजेस्टिक सर्कल की पार्किंग में खड़ी की और फिर चारों ओर दृष्टि दौड़ाई ।

मैड हाउस नाम का रेस्टोरेन्ट एक बहुत लम्बी-चौड़ी पांच मंजिली इमारत की बेसमेंट में था । वह इमारत लिबर्टी बिल्डिंग के नाम से प्रसिद्ध थी । मैड हाउस के अतिरिक्त उसमें लिबर्टी नाम का एक सिनेमा था, एक बैंक था, कोलाबा नाम का एक और रेस्टोरेन्ट था, कुछ बड़े-बड़े दफ्तर थे, कुछ रिहायशी फ्लैट थे और सारी पांचवी मंजिल पर एक बहुत ऊंचे दर्जे की नाइट क्लब थी ।

सुनील मैड हाउस की ओर बढा ।

एकदम फुटपाथ पर ही मैड हाउस में प्रविष्ट होने का दरवाजा था । दरवाजे पर से ही बेसमेन्ट में ले जाने वाली घुमावदार सीढियां आरम्भ हो जाती थीं । दरवाजे की बगल की दीवार पर एक छोटा-सा नियोन-साइन चमक रहा था जिस पर लिखा था -

मैड हाउस डिस्कोथेक

MAD HOUSE DISCOTHEQUE

द्वार पर एक लोहे का जालीदार जंगला लगा हुआ था जिसके सामने एक वर्दीधारी गेटकीपर खड़ा था ।

विदेशी हिप्पियों का का एक जोड़ा एक-दूसरे की बगल में बांह डाले सुनील की बगल में से गुजर गया और लोहे का जंगला ठेलकर मैड हाउस की सीढियां उतर गया ।

सुनील उनके पीछे बढा ।

दरवाजे पर खड़े वर्दीधारी गेटकीपर ने हाथ बढाकर उसे रोक दिया ।

“सॉरी सर ।” -वह बोला ।

सुनील ने उसे घूरकर देखा और फिर बोला - “मतलब ?”

“पार्टनर के बिना अन्दर जाने की आज्ञा नहीं है ।”

“पार्टनर का क्या मतलब ?”

“कोई मेम साहब साथ लेकर आइये । आप अकेले अन्दर नहीं जा सकते । यह यहां का नियम है ।”

“लेकिन ऐसा कोई नियम बनाने का तुम्हें कोई हक नहीं है । यह एक रेस्टोरेन्ट है और इसमें हर कोई जा सकता है ।” - सुनील जोर से बोला ।

“सॉरी, मैं आपको नहीं जाने दे सकता । मैं केवल गेटकीपर हूं । मुझे आदेश है कि पीक-आवर्स में मैं अकेले आदमी की अन्दर न जाने दूं । अगर आपको कोई शिकायत है तो शिकायत मैनेजर से कीजिए ।”

“मैं मैनेजर से मिलना चाहता हूं ।”

“मैनेजर थोड़ी देर बाद बाहर आयेगा । उससे बात कर लीजिएगा ।”

“मैं उससे अभी मिलना चाहता हूं ।”

“सॉरी । मैं गेट छोड़कर उसे अन्दर बुलाने नहीं जा सकता ।”

“तो मुझे अन्दर उसके पास जाने दो ।”

“सॉरी ।”

सुनील ने जबरदस्ती भीतर घुसने का प्रयत्न किया लेकिन गेटकीपर ने बड़ी सफाई से बिना किसी विशेष उपक्रम के उसे एक ओर धकेल दिया । वह बहुत शक्तिशाली था ।

उसी समय एक सिख युवक सीढियां चढकर ऊपर आया ।

“क्या बात ?” - उसने गेटकीपर से पूछा ।

“ये साहब जबरदस्ती भीतर घुसना चाहते हैं ।” - गेटकीपर बोला ।

“डोंट मेक ए सीन, मिस्टर ।” - सिख युवक बोला - “भीतर जगह नहीं है ।”

“और अगर मेरे साथ कोई लड़की होती तो भीतर जगह हो जाती ?”

“तब तुम्हारे लिये जगह बनाने की कोशिश की जाती ।”

“तुम मैनेजर हो ?”

“हां ।”

“तुम ऐसे किसी को भीतर जाने से नहीं रोक सकते ।”

“हां, शायद ।” - वह उदासीन स्वर में बोला ।

“मैं ‘ब्लास्ट’ का प्रतिनिधि हूं । मैं तुम लोगों का पुलन्दा बान्ध दूंगा ।”

“क्या बान्ध दोगे ?”

“ऐसी तैसी कर दूंगा ।”

“कर देना । चाहे तुम ब्लास्ट में हमारे खिलाफ लिखो, चाहे पुलिस में रिपोर्ट करो, चाहे हमारे पर केस कर दो लेकिन भगवान के लिए यहां तमाशा खड़ा मत करो । इधर हम आठ बजे के बाद किसी अकेले आदमी को भीतर नहीं आने देते और ऐसा हम कर सकते हैं या नहीं इस बारे में लोकसभा तक में सवाल उठाया जा रहा है । जब हमारे ‘राइट ऑफ एडमिशन’ को चैलेंज किया जायेगा । तो हम भुगत लेंगे । फिलहाल तो हम वही करेंगे जो कर रहे हैं । मिस्टर, यह वास्तविक अर्थों में मैड हाउस (पागलखाना) है । हम यहां आठ बजे के बाद अकेले आदमी को नहीं घुसने देते क्योंकि अकेला आदमी कभी-कभी बहुत बखेड़ा खड़ा कर देता है । हमें बड़ा कडुआ तजुर्बा है इस बात का । एण्ड नाओ प्लीज स्क्रैम ।”

सुनील एक ओर हट गया ।

सिख युवक कुछ क्षण गेटकीपर से बात करता रहा और फिर वापस सीढियां उतर गया ।

“साहब” - गेटकीपर बोला - “कोई चलती-फिरती पकड़ लो । क्या फर्क पड़ता है ?”

“शटअप, डैम यू ।” - सुनील फुंफकार कर बोला ।

गेटकीपर दूसरी ओर देखने लगा ।

सुनील सड़क के समीप की रेलिंग के साथ लग कर खड़ा हो गया । उसने अपनी कलाई घड़ी पर दृष्टिपात किया तो पाया साढे नौ बजने वाले थे । उसने अपनी जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया । वह सोचने लगा ।

अपने साथ किसी लड़की को ले आना उसके लिए कोई कठिन काम नहीं था लेकिन उसे किसी ने बताया ही नहीं था कि मैड हाउस में प्रवेश पने के लिये लड़की को प्रवेश-पत्र की हैसियत से साथ रखना पड़ता था ।

उसी क्षण उसे मैड हाउस के द्वार का जंगला हटाकर बाहर निकलती एक खूबसूरत ऐंग्लो इंडियन लड़की दिखाई दी । वह एक टाइट और घुटनों से ऊंची स्कर्ट और कसा हुआ ब्लाउज पहने थी । उसके कटे हुए भूरे बाल उसके चेहरे पर उड़ रहे थे और वह अपने कन्धे पर एक कैमरा और एक बड़ा-सा बक्सा लटकाये थी ।

सुनील में नेत्र चमक उठे ।

वह फ्लोरी थी । सुनील उसे अच्छी तरह जानता था । वह फ्री-लांस फोटोग्राफर थी और अधिकतर फिल्मी पत्रिकाओं के लिये सिनेमा स्टारों की रंगीन तस्वीरें खींचा करती थी ।

फ्लोरी मैड हाउस से निकली और कोने पर मोड़ घूमकर बगल के फुटपाथ पर चलने लगी ।

सुनील तेज कदमों से उसकी ओर बढा ।

“हल्लो, हार्ट अटैक ।” -उसके समीप आकर सुनील धीरे से बोला और उसके साथ कदम मिलाकर चलने लगा ।

फ्लोरी ने चौंक कर उसकी ओर देखा । सुनील पर दृष्टि पड़ते ही उसके चेहरे पर मुस्कराहट फूट पड़ी । वह तत्काल रुक गई ।

“हल्लो, हैंडसम ।” - वह मीठे स्वर में बोली ।

“नो हैंडसम बिजनेस ।” - सुनील बोला - “कॉल मी बाई माई नेम ।”

“क्यों ?” - वह माथे पर बल डालकर बोली ।

“ताकि मुझे विश्वास हो जाये कि तुमने मुझे पहचान लिया है । हैंडसम तो शायद तुम्हें राजनगर का हर नौजवान मालूम होता है ।”

“ओके । हल्लो, सुनील कुमार चक्रवर्ती, दि एस रिपोर्टर ऑफ ब्लास्ट ।” - वह नाटकीय स्वर मे बोली ।

“अब ठीक है । हल्लो, फ्लोरी ।”

“मेरे ख्याल से तीन साल बाद मुलाकात हो रही है ।”

“हां और इसे मुझ को अपना सौभाग्य समझना चाहिए कि तीन साल बाद भी तुमने न केवल मुझे पहचान लिया है बल्कि इस काबिल भी समझा है कि दो बातें करने क लिये रास्ते में रुक जाओ ।”

“तुम्हें कौन भूल सकता है, राजा । तुम दो सौ बातें करो ।”

“कहां जा रही हो ?”

“कहीं भी नहीं । बगल की इमारत में ही एक मित्र का स्टूडियो है । पन्द्रह मिनट का काम है वहां ।”

“अभी घर तो नहीं जा रही हो न ?”

“नहीं, घर तो बारह बजे से पहले कभी नहीं जाती हूं । मेरा कौन-सा खसम बैठा है जो नाराज हो जायेगा !”

“अभी तक अकेली हो ?”

“हां ।”

“क्यों ?”

“कोई शादी ही नहीं करता ।”

“छोड़ो ।” - सुनील अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला - “तुम्हीं किसी को लिफ्ट नहीं देती होगी वरना तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की से शादी करने के लिए तो लोग लालायित रहते होंगे ।”

“लेकिन कोई ढंग का आदमी तो नहीं मिलता ।”

“ढंग का आदमी कैसा होता है ?”

“जैसे तुम हो ?”

सुनील ने एक दम यूं बौखलाने का अभिनय किया जैसे किसी न उस पर छुपकर हमला कर दिया हो ।

फ्लोरी खिलखिला कर हंस पड़ी ।

“तुम्हारी कोई आदत नहीं बदली ।” - वह बोली - “शादी का जिक्र आया नहीं और तुम्हारे प्राण सूखे नहीं ।”

“तुम्हारी कोई आदत नहीं बदली है ।” - सुनील बौखलाये स्वर में बोला - “तुम भी तो कहीं पर भी कैसा भी मजाक करने पर उतर आती हो ।”

“लेकिन मैं गम्भीर हूं ।”

“जल्दी से विषय बदलो नहीं तो मेरे दिल की धड़कन तेज होती चली जायेगी ।”

“ओके । इरादा क्या है ?”

“इरादा बड़ा नेक है । इतनी मुद्दत के बाद मिली हो । कहीं सैर करा दो ।”

“कहां चलोगे ?”

“कहीं भी, जहां तुम्हें आसानी हो । वैसे सबसे समीप तो मैड हाउस ही है ।”

“वहीं चलते हैं । वहां सैर भी हो जायेगी और धन्धा भी ।”

“धन्धा ?”

“हां । तुम पन्द्रह मिनट यहीं मेरा इन्तजार करो, फिर मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगी ।”

“ओके ।”

फ्लोरी लम्बे डग भरती हुई आगे बढ गई ।

सुनील ने एक नया सिगरेट सुलगा लिया और उसके लौटने की प्रतीक्षा करने लगा ।

वह सन्तुष्ट था । फ्लोरी उससे बहुत अच्छे समय पर टकराई थी ।

ठीक पन्द्रह मिनट बाद फ्लोरी वापिस आ गई । उस के कन्धे पर कैमरा वगैरह अब भी लटक रहा था ।

“चलो ।” - वह बोली ।

“यह ताम-झाम तो छोड़ आती ।” - सुनील बोला ।

“यह छोड़ आती तो धन्धा कैसे होता ?

“क्या करती हो आजकल ?”

“सब कुछ बताऊंगी । यहां से तो हिलो ।”

सुनील उसके साथ मैड हाउस की ओर बढ गया ।

फ्लोरी को देखकर गेटकीपर ने जोर से सलाम मारा और बड़ी तत्परता से द्वार खोला । फिर उसने सशंक नेत्रों से सुनील की ओर देखा । तत्काल सुनील ने अपनी बांह फ्लोरी की बांह में डाल दी और गेटकीपर को देखकर एक आंख दबायी ।

गेटकीपर के नेत्रों से शंका के भाव उड़ गये । उसके होंठों पर एक मुस्कराहट फूट पड़ी ।

फ्लोरी उस ड्रामे से बेखबर थी ।

सीढियां उतरकर के नीचे आ गये ।

प्रकाश के अप्रत्यक्ष साधनों से प्रकाशित वह एक बहुत बड़ा तहखाना था । तहखाने के तीन चौथाई भाग में विचित्र आकारों की मेज-कुर्सियां लगी हुई थीं । मेज ऐसी थीं जैसे किसी विशाल पेड़ का तना काटकर रख दिया गया हो और कुर्सियों के स्थान पर पीपों की सूरत के स्टूल पड़े थे । दीवारों की पूरी-पूरी लम्बाई-चौड़ाई में विचित्र प्रकार के चित्र अंकित थे जैसे सामने की दीवार पर अंकित चित्र में एक आतंकित-सी पूर्णतया नग्न युवती भागती दिखाई गई थी और उसके पीछे बीस-पच्चीस भेड़ों का झुण्ड भाग रहा था । छत से गुब्बारे और बड़े-बड़े सितारे लटके हुए थे । सितारों पर बीटल्स के चित्र अंकित थे । साधारणतया जहां वैलकम लिखा होता था, वहां बड़े-बड़े शब्दों में लिखा था स्टे आउट (Stay Out) ।

खाली स्थान में दीवार के सहारे बैंड स्टैण्ड था और उसके सामने डांस फ्लोर बना हुआ था । बैंड स्टैण्ड पर चार बीटलों के ही डुप्लीकेट युवक बैठे थे । उनमें से एक प्यानो बजा रहा था, दूसरा एक बहुत बड़ी गिटार की टांग तोड़ रहा था, तीसरा साइड ड्रम की हड्डी-पसली अलग करने पर तुला हुआ था और चौथा इतने जोर से सैक्सोफोन को फूंक रहा था कि उसकी गरदन की नसें तनी हुई थीं और आंखे बाहर निकली आ रही थीं ।

डांस फ्लोर पर कुछ जोड़े नाच रहे थे या नाचने की कोशिश कर रहे थे । फ्लोर पर इतनी भीड़ थी कि किसी का व्यवस्थित ढंग से हाथ-पांव हिलाना सम्भव नहीं दिखाई देता था ।

तहखाना शोर और सिगरेट के धुएं से भरा हुआ था ।

तहखाने में मौजूद हर किसी में एक बात समरूप थी । सबके चेहरे जवानी की उमंग से दमक रहे थे । वहां पर मौजूद अधिकतर युवक और युवतियां अट्ठारह से लेकर बाइस साल तक की आयु की थीं ।

एक ही स्थान पर परिधानों की इतनी विविधता सुनील ने पहले कभी नहीं देखी थी । कुछ विदेशी हिप्पी तहमद और कुर्ता पहने दिखाई दे रहे थे । कुछ विदेशी हिप्पी महिलायें गले से लेकर पांव तक का एक जोगिये रंग का ढीला-ढाला कुर्ता-सा पहने हुए थीं । एक हिप्पी तो केवल कमर में लाल रंग की लुंगी लपेटे हुए था । गले में पड़े एक बड़े से कण्ठे के अतिरिक्त उनके शरीर पर और कुछ भी नहीं था । कुछ लड़कियां इतनी ज्यादा मिनी स्कर्ट पहने हुए थीं कि वे जरा भी टांगें फैलाती थीं, तो उनके अण्डरवियर दिखाई दे जाते थे ।

फ्लोरी उसकी बांह थामे उसे बैण्ड स्टैण्ड के समीप पड़ी एक मेज पर ले आई । वह मेज भी पेड़ के तनों जैसी थी, उसके समीप कनस्तरों की सूरत में दो स्टूल पड़े थे ।

“बैठो ।” - फ्लोरी बोली ।

सुनील बैठ गया । दूसरे स्टूल पर फ्लोरी बैठ गई । एक मिनट से भी कम समय में वह भी उस शोर-शराबे का अंग बन गई । संगीत की ताल पर वह जमीन पर अपने पांव पटकने लगी और अपने दोनों हाथों से चुटकियां बजाने लगी । उसके होंठों से विचित्र प्रकार की आवाजें निकल रही थीं ।

फिर एकाएक संगीत बन्द हो गया । जोड़ों ने नृत्य करना बन्द कर दिया । कुछ जोड़े वापिस अपनी मेजों पर जा बैठे, लेकिन कुछ वहीं डांस फ्लोर पर ही खड़े रहे ।

“क्या पियोगे ?” - फ्लोरी सुनील की ओर झुकती हुई बोली ।

“जो मर्जी पिला दो ।” - सुनील मुस्कराता हुआ बोला ।

“ओके ।” - वह बोली और उसने एक वेटर को संकेत किया । फ्लोरी शायद उस स्थान पर हर किसी की जानी-पहचानी थी । वेटर तत्काल उनकी मेज पर पहुंचा ।

सुनील ने देखा वेटर रोमन सैनिकों जैसा परिधान पहने हुए था और उसके हाथ में ट्रे के स्थान पर बड़ा-सा लकड़ी का टुकड़ा था जिसका आकार ढाल से मिलता-जुलता था ।

“वही ।” - फ्लोरी वेटर से बोली ।

वेटर ने एक उचटती-सी दृष्टि सुनील पर डाली और फिर सिर झुकाकर वहां से विदा हो गया ।

“एक सिगरेट देना ।” - फ्लोरी बोली ।

सुनील ने लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकालकर उसकी ओर बढा दिया । दोनों ने एक-एक सिगरेट सुलगा ली ।

“तुमने क्या मंगाया है ?” - सुनील ने उससे पूछा ।

“हैंडसम ।” - वह सिगरेट का एक लेकर नाक से धुआं निकालती हुई बोली - “जब तुमने बात मर्जी पर छोड़ी है तो फिर चाहे मैंने जहर मंगाया हो । तुम्हें पीना पड़ेगा ।”

“ओके । ओके ।” - सुनील बोला ।

“तुम मैड हाउस में पहली बार आये हो न ?”

“तुम्हें कैसे मालूम ?”

“अगर तुम पहले कभी आये होते तो मैंने तुम्हें जरूर देखा होता ।”

“तुम यहां रोज आती हो ?”

“हां । और वैसे भी अगर तुम यहां के रंग-ढंग जानते होते तो अपने साथ एक गर्ल फ्रैंड लेकर ही आते और सूट पहनकर यहां आने की गलती कभी नहीं करते । हर कोई तुम्हें यूं घूर रहा है जैसे राजमहल में चोर घुस आया हो ।”

“तो फिर क्या पहनकर आता ?”

“कोई भी ऐसी पोशाक जो तुम्हें सबसे बेहूदा लगती हो । जिसे पहनकर तुम्हें घर से बाहर निकलने में भी शर्म महसूस होती हो ।”

“अगली बार ख्याल रखूंगा ।” - सुनील बोला ।

“हां, जरूर ।” - फ्लोरी बोली । उसने सिगरेट का एक और कश लिया और उसे बगल की मेज पर बैठे एक विदेशी हिप्पी की ओर बढा दिया । हिप्पी ने बिना प्रश्न किये सिगरेट ले लिया और उसे अपनी मेज पर पड़ी एक भौंडी-सी ऐश-ट्रे में डाल दिया ।

सुनील ने हैरानी से फ्लोरी की ओर देखा ।

“हमारी मेज पर ऐश ट्रे नहीं है न !” - फ्लोरी बड़े मासूम स्वर में बोली ।

“मैं अपने सिगरेट का क्या करूं ?”

“तुम बचे हुए टुकड़े को बुझाकर अपनी जेब में रख लेना ।”

“गम्भीर हो ?”

“नहीं ।” - फ्लोरी मुस्कराती हुई बोली और उठ खड़ी हुई - “मैं अभी आती हूं ।”

उसने अपने कन्धे का बोझ मेज पर रख दिया, बैग में से चार लिफाफे निकाले और फिर मेजों के बीच में से गुजरती हुई आगे बढ गई ।

सुनील की दृष्टि ने उसका अनुसरण किया ।

वह एक मेज पर रुकी । उसने एक युवती का कन्धा थपथपाया । युवती ने सिर उठाकर उसकी ओर देखा । फ्लोरी ने एक लिफाफा उसकी ओर बढा दिया । युवती ने लिफाफा लेकर खोला । भीतर कुछ तस्वीरें थीं । तस्वीरें उसने अपने साथियों की ओर बढा दीं और फिर उसने अपनी जेब में से कुछ नोट निकालकर फ्लोरी की ओर बढा दिये । फ्लोरी नोट लेकर आगे बढ गई । उसके बाद वह भीड़ में कहीं गुम हो गई ।

सुनील सारे तहखाने में दृष्टि दौड़ाने लगा । मुकुल का जैसा हुलिया कावेरी ने उसे बताया था वैसे हुलिये वाले कम से कम एक दर्जन आदमी वहां मौजदू थे । उस भीड़ में से मुकुल को पहचान पाना बड़ा कठिन काम था । वास्तव में उसके पास तो यह जानने का भी साधन नहीं था कि मुकुल वहां था भी या नहीं ।

सुनील ने अपने सिगरेट का आखिर कश लगाया, उसे मेज के कोने से रगड़ा और जमीन पर फेंक दिया ।

उसी क्षण फ्लोरी वापिस आ गई ।

“तस्वीरों का क्या किस्सा है ?” - सुनील ने पूछा ।

“मैं फोटोग्राफर हूं और ये लोग” - फ्लोरी तहखाने में मौजूद लोगों की दिशा में हाथ घुमाती हुई बोली “नाचते-गाते हुए अपनी तस्वीरें खिंचवाने के शौकीन हैं । बस यही किस्सा है । हर शाम को कम से कम दो सौ रुपये की कमाई हो जाती है ।”

“और फिल्मी पत्रिकाओं के लिये फिल्म स्टारों की तस्वीरें खींचने का धन्धा तुम अब भी करती हो ?”

“हां ।”

“फिर तो पांचों उंगलियां घी में हैं ।”

“वे तो पहले भी थीं । अब मैड हाउस के इस नये धन्धे की वजह से सिर भी कढाई में आ पड़ा है ।”

सुनील हंसा ।

उसी क्षण वेटर वहां पहुंचा ।

उसने चाय की एक केतली, कप, दूध, चीनी और भुने हुए काजुओं की एक प्लेट मेज पर रख दी औ वहां से विदा हो गया ।

फ्लोरी ने दूध और चीनी एक ओर सरकाई और प्यालों में चाय डालने लगी । चाय का एक कप उसने सुनील की ओर सरका दिया और बोली - “पियो ।”

“दूध ! चीनी !” - सुनील बोला ।

“ऐसे ही पियो । यह विशेष प्रकार की चाय है, दूध और चीनी मिलाने से इसका मजा मारा जाता है ।”

“लेकिन...”

“पियो तो । अगर मजा न आये तो दूध और चीनी मिला लेना ।” - वह बोली और अपनी चाय की चुस्कियां लेने लगी ।

सुनील ने अपना कप उठाकर एक घूंट पिया और फिर उसके नेत्र फैल गये ।

“आ गया न मजा !” - फ्लोरी बोली ।

“फ्लोरी !” - सुनील बौखलाये स्वर में बोला - “यह तो...”

“श-श...”

सुनील फौरन चुप हो गया ।

वह चाय नहीं थी । वह कोका कोला मिली हुई विस्की थी जो सूरत में चाय जैसी मालूम होती थी ।

“तुम्हीं ने तो कहा था कि मैं जो मर्जी पिला दूं ।” - फ्लोरी अपना निचला होंठ दांतों में दबाकर बोली ।

“लेकिन मेरा यह मतलब तो नहीं था ।”

“तुम्हारा यह मतलब इसलिये नहीं था क्योंकि तुम्हें यहां ऐसी किसी चीज के हासिल होने की आशा नहीं थी ।”

“यह ‘चाय’ यहां हर किसी को हासिल है ।”

“नहीं । केवल जाने-पहचाने लोगों को ।”

“और कोई तो गड़बड़ नहीं होती ?”

“नहीं होती ।”

“यहां का मैनेजमैंट इस बात के लिये जिद क्यों करता है कि यहां जो भी आदमी आये अपने साथ गर्ल फ्रेंड लेकर आये ।”

“इस बात को यूं समझो राजा, कि जब हर आदमी अपना खाना साथ लेकर आयेगा तो फिर वह किसी दूसरे की थाली पर क्यों झपटेगा ?”

“लेकिन कभी-कभी दूसरे की थाली में आपकी अपनी थाली से बढिया खाना भी तो होता है !”

“जिस किसम के लोग यहां आते हैं, वे ऐसे फर्क महसूस नहीं करते ।”

सुनील चुप हो गया और चाय की चुस्कियां लेने लगा ।

उसी क्षण बैंड स्टैण्ड पर एक लड़की प्रकट हुई और जोर से बोली - “बॉयज ! बॉयज !”

तहखाने में काफी हद तक शान्ति छा गई ।

सुनील ने देखा, वह लड़की एक बेहद टाइट पतलून और खुले गले की बुशशर्ट पहने हुए थी । बुशशर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुए थे और उसमें से उसके उन्नत वक्ष का पर्याप्त भाग दिखाई दे रहा था । उसके गले में एक संगमरमर के बड़े-बड़े नक्काशीदार मनकों की माला थी और कानों में हाथी दांत के असाधारण आकार के इयरिंग थे । उसके बाल कटे हुए थे ।

“बॉयज !” - वह जोर से बोली - “नाओ, माई मुकुल विल मेक दि सीन वीद ए सांग नम्बर ।”

सुनील सावधान हो गया ।

लोग तालियां और सीटियां बजाने लगे ।

“माई मुकुल !” - सुनील बोला - “क्या मतलब !”

“यह लड़की मुकुल से सादी करने वाली है । इसलिये मुकुल को अपनी प्रॉपर्टी समझती है ।”

“लड़की है कौन ?”

“तुमने रायबहादूर भवानी प्रसाद जायसवाल का नाम सुना है ?”

“उनका नाम किसने नहीं सुना ?”

“यह उनकी लड़की है । बिन्दु ! बाप के मर जाने के बाद उनका नाम रोशन कर रही है । मुकुल नाम के जिस आदमी से कोई घसियारिन भी शादी करने को तैयार न हो, उससे रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की सुपुत्री शादी कर रही है । जितना महान बाप था, उतनी ही बेहूदा लड़की पैदा की है ।”

बिन्दु बैंड स्टैण्ड के कोने पर पहुंची, उसने समीप की मेज पर बैठे एक युवक की ओर हाथ बढा दिया । युवक ने उसका हाथ पकड़ लिया और एक झटके से स्टेज पर चढ आया । बिन्दु सीधी उसकी छाती से जाकर टकराई । उसने बिन्दु की बगल से कमर में हाथ डाला और स्टेज के बीच में पहुंच गया ।

लोग और जोर-जोर से तालियां पीटने लगे ।

“यह मुकुल है ?” - सुनील ने पूछा ।

फ्लोरी ने स्वीकारत्मक ढंग से सिर हिला दिया ।

मुकुल टखनों से ऊंची पतलून और सामने से खुली जैकेट पहने हुए था । उसकी बालों भरी नंगी छाती पर कितने ही कंठे, हार और मालायें लटक रही थीं । उसके चेहरे पर बिखरी हुई दाढी-मूंछ थीं और सिर पर औरतों जैसे ही कन्धे तक लटकते हुए बाल थे । वह पैरों से नंगा था ।

बिन्दु उसके शरीर के साथ और सट गई ।

मुकुल ने हाथ उठाकर लोगों को चुप रहने का संकेत किया ।

लोग धीरे-धीरे चुप हो गये ।

“बॉयज !” - वह जोर से बोला - “माई चिक विल मेक दि सीन विद मी ।”

लोगों ने फिर तालियां बजाकर हर्ष प्रकट किया ।

मुकुल ने बैंड बजाने वालों को कुछ निर्देश दिये और फिर माइक हाथ में लेकर गाने लगा ।

बिन्दु उसके साथ गा रही थी ।

लोग बड़ी तन्मयता से सुन रहे थे ।

“गाता अच्छा है ।” - सुनील फ्लोरी की ओर झुककर बोला ।

“हां ।” - फ्लोरी ने भावहीन ढंग से स्वीकार किया ।

गाना समाप्त हुआ । तहखाना तालियों की आवाज से गूंज उठा और मुकुल से और गाने की फरमायश होने लगी ।

“पांच मिनट बाद ।” - मुकुल जोर से बोला और बिन्दु को साथ लिये बैण्ड स्टैण्ड से उतर गया । वे दोनों उस मेज पर जा बैठे जिस पर से मुकुल उठकर आया था ।

“यह मुकुल है क्या बला ?” - सुनील ने पूछा ।

“एक खुशकिस्मत इन्सान है जिस पर नगर की सबसे खूबसूरत और सबसे अमीर लड़की मरती है ।” - फ्लोरी बोली ।

“लेकिन यह है कौन ?”

“सुनील” - फ्लोरी गम्भीर स्वर में बोली - “दरअसल इसके बारे में कोई भी विशेष कुछ नहीं जानता है । पिछले सात-आठ महीने से ही यह राजनगर में दिखाई दे रहा है । इससे पहले यह अपने कथनानुसार दिल्ली, बैंगलोर, लखनऊ, कलकत्ता और चण्डीगढ वगैरह में रह आया है लेकिन मैंने सुना है कि वास्तव में यह बम्बई का रहने वाला है । और पता नहीं क्यों कभी बम्बई का जिक्र आ जाने पर यह बात को टालने की कोशिश करने लगता है ।”

“और बस ?” - सुनील बोला ।

“और है ही नहीं कुछ ।” - फ्लोरी बोली ।

“वैरी गुड । मुकुल पांच मिनट बाद वाकई आयेगा ?”

“हां ।”

सुनील कुछ क्षण सोचता रहा और फिर फ्लोरी की ओर झुकता हुआ बोला - “स्वीटहार्ट, मेरा एक काम कर दो ।”

“क्या ?”

“अभी जब मुकुल स्टेज पर आये तो मुझे इसकी एक तस्वीर खींच दो ।”

“क्या करोगे ?”

“सवाल मत पूछो । प्लीज ।”

“ओके ।” - फ्लोरी लापरवाही से बोली ।

“क्लोज अप चाहिये ।”

“ऑल राइट । क्लोज अप ही मिलेगा ।”

“थैंक्यू ।”

“मुकुल आ गया ।” - सुनील बोला ।

फ्लोरी ने स्टेज की ओर देखा । उसने अपना कप उठाकर एक ही सांस में खाली किया, अपना कैमरा और बक्से वगैरह को कन्धे पर लादा और उठ खड़ी हुई ।

“तस्वीर मुझे जल्दी चाहिये ।” - सुनील बोला ।

“कितनी जल्दी ?”

“जितनी जल्दी तुम दे सकती हो ।”

“एक घन्टा ।”

“पन्द्रह मिनट ।”

“लेकिन मैंने अभी कैमरे में नई फिल्म डाली है ।”

“कोई बात नहीं । मुकुल के स्नैप के बाद फिल्म निकाल लेना । पैसे मैं दूंगा ।”

“ओके ।”

मुकुल स्टेज पर खड़ा था । उसके गले में एक गिटार लटक रही थी । फिर वह जोर-जोर से गिटार के तार छेड़ने लगा और फिर एल्विस प्रिसले की तरह टांगें फड़काता हुआ अंग्रेजी का कोई गीत गाने लगा ।

फ्लोरी बैंड स्टैण्ड के समीप पहुंच गई और मुकुल पर अपना कैमरा फोकस करने लगी । किसी का ध्यान फ्लोरी की ओर नहीं था । अधिकतर लोग गीत की ताल पर चुटकियां बजा रहे थे ।

फिर फ्लैश बल्ब का तीव्र प्रकाश मुकुल पर पड़ा ।

मुकुल एक क्षण के लिये चौंका । उसकी आवाज थरथराई । गिटार के तारों को छेड़ते हुए उसके हाथ एक क्षण के लिये अपनी गति खोने लगे और फिर सब ठीक हो गया । मुकुल दुबारा पूरी तन्मयता से गिटार बजाने लगा और गाना गाने लगा ।

फ्लोरी लम्बे डग भरती सीढियों की ओर बढ गई ।

सुनील ने अपना कप खाली किया और एक नया सिगरेट सुलगा लिया ।

मुकुल ने अपना गीत समाप्त किया । लोगों ने तालियां बजाईं । सुनील को यूं लगा जैसे गीत लोगों की अपेक्षा से पहले समाप्त हो गया हो ।

मुकुल ने गिटार को गले से उतारकर बैंड स्टैण्ड के एक कोने में टिका दिया और नीचे उतर आया । अपनी टेबल की ओर बढने के स्थान पर वह तहखाने की पिछली दीवार में बने एक दरवाजे की ओर बढा । दरवाजा खोलकर वह भीतर घुस गया । दरवाजा उसके पीछे बन्द हो गया ।

सुनील फ्लोरी की प्रतीक्षा करने लगा ।

लगभग दो मिनट बाद मुकुल उस दरवाजे से बाहर निकला और फिर वापस आकर अपनी टेबल पर बैठ गया ।

थोड़ी देर बाद पिछले दरवाजे में से एक मोटा-ताजा ठिगने से कद का आदमी निकला । मेजों में से गुजरता हुआ वह आगे बढा और सुनील से तीन-चार मेजों दूर एक मेज पर बैठ गया । उस मेज पर पहले से ही दो लड़के और दो लड़कियां मौजूद थीं । मोटा स्टूल पर पहले से बैठे एक युवक के साथ बैठ गया ।

उसी क्षण फ्लोरी भीतर प्रविष्ट हुई । सुनील ने कलाई घड़ी पर दृष्टिपात किया । फ्लोरी ठीक तेरह मिनट में वापिस लौटी थी ।

फ्लोरी सीधी सुनील की मेज के समीप पहुंची । वह अपने द्वारा रिक्त स्थान पर दुबारा आकर बैठ गई । उसने एक बन्द लिफाफा सुनील की ओर बढा दिया ।

सुनील ने लिफाफा खोला । भीतर दो तस्वीरें थीं, उसने एक तस्वीर को थोड़ा-सा बाहर खींच कर देखा । वह मुकुल का बड़ा स्पष्ट कलोज अप था । उसी क्षण उसकी दृष्टि अपने से थोड़ी दूर बैठे मोटे आदमी पर पड़ी ।

वह गिद्ध की तरह सुनील की देख रहा था । सुनील से निगाहें मिलते ही वह फौरन दूसरी ओर देखने लगा ।

सुनील ने तस्वीर को दुबारा लिफाफे के भीतर धकेला और लिफाफे को कोट की भीतरी जेब में रख लिया ।

बैंड फिर बजने लगा था । इस बार बैंड पर किसी तेज नृत्य की धुन बज रही थी और धुन पर ढेर सारे जोड़े डांस फ्लोर पर आकर नृत्य करने लगे थे ।

“हम भी नाचें, हैंडसम ?” - फ्लोरी बोली ।

“सॉरी, मुझे यह नाच नहीं आता ।” - सुनील बोला ।

“कमाल करते हो !” - फ्लोरी हैरानी से बोली - “इस में नाच आनी वाली कौन-सी बात है ? बस मेरे सामने खड़े होकर रबड़ की गेंद की तरह फुदकते रहना और अपने हाथ-पांव झटकते रहना । बाकी लोग भी यही कह रहे हैं ।”

“मुझे... मुझे शर्म आती है ।”

फ्लोरी ने विस्मयपूर्ण नेत्रों से उसकी ओर देखा और फिर खिलखिला कर हंस पड़ी ।

“बाई गॉड, हैण्डसम” - वह हंसती हुई बोली - “यू आर रीयल क्यूट ।”

सुनील शरमाया ।

फ्लोरी हंसती रही ।

“फ्लोरी” - एकाएक सुनील बोला - “मैं चलता हूं ।”

“क्यों ?” - फ्लोरी बोली - “क्या हुआ ?”

“कुछ नहीं । एक बहुत ही जरूरी काम याद आ गया है । मैं तुमसे फिर मिलूंगा ।”

“मतलब हल हो जाने पर खिसक रहे हो !” - फ्लोरी शिकायत भरे स्वर में बोली ।

“नहीं, ऐसी बात नहीं है, फ्लोरी । वाकई मुझे बहुत जरूरी काम है ।”

“ओके । फिर कभी मिलना । जो लिफाफा मैंने तुम्हें दिया है, उस पर मेरा पता लिखा हुआ है । जरूर आना ।”

“जरूर आऊंगा ।”

“वैसे शाम को मैं हमेशा यहीं होती हूं ।”

“अच्छा । वेटर को बुलाओ ।”

“क्यों ?”

“बिल अदा करने के लिये और इस फोटोग्राफ के लिये भी...”

“अब मैं क्या केतली मारकर तुम्हारा खोपड़ा तोड़ दूं ?”

“लेकिन...”

“स्क्रैम, मैन । दिस इज ऑन मी ।”

सुनील ने प्रतिवाद करना चाहा, लेकिन फिर ख्याल छोड़ दिया ।

फ्लोरी केवल मुस्कराई ।

सुनील सीढियों की ओर बढ गया । सीढियों के समीप पहुंचकर उसने एक बार घूमकर पीछे देखा ।

मुकुल उसी की ओर देख रहा था । उसे अपनी ओर देखते देखकर उसने फौरन बगल में बैठी बिन्दु की ओर सिर झुका लिया ।

उसने मोटे आदमी की ओर देखा ।

वह बड़ी तन्मयता से अपने साथियों से बातें कर रहा थ ।

सुनील सीढियां तय करके बाहर आ गया ।

गेटकीपर उसे देखकर मुस्कराया । सुनील ने अपने कोट की जेब में हाथ डाला । उसने एक नोट निकालकर चुपचाप गेटकीपर की ओर बढा दिया । नोट गेटकीपर की वर्दी में कहीं गायब हो गया । मुस्कराहट में उसके होंठ और फैल गये ।

सुनील रोड क्रॉसिंग पर आ खड़ा हुआ । सड़क से पार पार्किंग थी जहां वह अपनी मोटरसाइकल खड़ी करके आया था ।

बत्ती हरी होने से पहले इसने एक बार पीछे घूम कर देखा ।

मैड हाउस के दरवाजे पर मोटा आदमी खड़ा था और उसी की ओर देख रहा था ।

उसी क्षण बत्ती हरी हुई ।

सुनील सड़क पार कर गया, लेकिन वह अपनी मोटरसाइकल के लिये पार्किंग की ओर बढने के स्थान पर टैक्सी स्टैण्ड की ओर बढा ।

एक टैक्सी ड्राइवर ने उसे अपनी टैक्सी में बैठने का संकेत किया ।

सुनील टैक्सी में जा बैठा ।

“किधर चलूं, साहब ?” - टैक्सी वाले ने पूछा ।

सुनील ने मैड हाउस की ओर देखा ।

लिबर्टी बिल्डिंग की साइड में से एक काली फियेट निकली । एक क्षण के लिये वह मैड हाउस के सामने रेलिंग के साथ सड़क पर रुकी । सुनील ने मोटे आदमी को जल्दी से फियेट का पिछला दरवाजा खोल कर भीतर बैठते देखा । फिर फियेट फौरन आगे बढी और सुनील की टैक्सी के पीछे लग गई ।

लिबर्टी बिल्डिंग से सौ गज आगे ही एक अन्य चौराहा था, जिस पर ट्रैफिक सिग्नल की लाल बत्ती चमक रही थी ।

सुनील ने मन ही मन कुछ फैसला किया और फिर ड्राइवर से बोला - “सुनो, तुम्हारा नाम क्या है ?”

“गजराज ।” - ड्राइवर बोला ।

“गजराज ।” - सुनील बोला - “यहां से हर्नबी रोड के साढे चार रुपये लगते हैं । तुम मेरा एक काम कर दो तो मैं तुम्हें दस रुपये दूंगा ।”

“क्या काम, साहब ?” - ड्राइवर सशंक स्वर से बोला ।

“तुमने हर्नबी रोड पर स्थित यूथ क्लब देखी है ?”

“देखी है, साहब ।”

सुनील ने अपनी जेब से मुकुल की तस्वीरों वाला लिफाफा निकाला । लिफाफे की दो तस्वीरें में से एक उसने लिफाफे में ही रहने दी और दूसरी तस्वीर उसने वापिस अपनी जेब में रख ली, फिर उसने लिफाफा और दस रुपये का एक नोट ड्राइवर की ओर बढा दिया।

“यह लिफाफा यूथ क्ल्ब में रमाकांत नाम के साहब को दे आना ।”

“आप साथ नहीं चल रहे हैं ?”

“नहीं । मैं यहीं उतर रहा हूं ।”

“अगर रमाकांत साहब क्लब में न हुए तो ?”

“तो लिफाफा रिसैप्शन पर छोड़ आना और रिसैप्शनिस्ट को बता देना कि लिफाफा रमाकांत के लिये है ।”

ड्राइवर ने सुनील से लिफाफा और नोट ले लिया और बोला - “अच्छी बात, साहब ।”

उसी क्षण चौराहे की बत्ती लाल हो गई ।

सुनील जल्दी से टैक्सी का दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया और फुटपाथ पर आ खड़ा हुआ ।

काली फियेट थोड़ी आगे बढी, फिर रुकी और फिर मोटा आदमी भी उस में से बाहर निकल आया । फियेट आगे बढ गई ।

सुनील को अब इस विषय में कोई सन्देह नहीं था कि मोटा उसके पीछे लगा हुआ था ।

सुनील ने अपनी कलाई घड़ी पर दृष्टिपात किया ।

सवा ग्यारह बजे थे ।

सुनील दुबारा ‘मैड हाउस’ में घुस गया ।

इस बार गेटकीपर ने उसे रोकने का उपक्रम नहीं किया । पता नहीं वह नोट की रिश्वत का असर था या गेटकीपर को मालूम था कि सुनील के साथ की लड़की अभी भी भीतर ही थी ।

तहखाने में जाकर वह वापिस उस मेज की ओर बढा जहां वह फ्लोरी को छोड़ कर गया था ।

फ्लोरी अभी भी वहां पर मौजूद थी लेकिन अब उसके सामने सुनील की सीट पर एक दुबला-पतला सा चश्माधारी लड़का बैठा था ।

सुनील पर दृष्टि पड़ते ही फ्लोरी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव आ गये । फिर वह उस चश्माधारी युवक की ओर घूमी और मीठे स्वर में बोली - “स्क्रैम, बस्टर ।”

युवक ने बड़े आहत भाव से फ्लोरी को देखा, फिर सुनील को देखा, दुबारा फ्लोरी को देखा और फिर अपना कॉफी का मग हाथ में लेकर उठ खड़ा हुआ और तत्काल वहां से हट गया ।

“बैठो ।” - फ्लोरी बोली ।

सुनील बैठ गया ।

“क्या हुआ ? वापिस कैसे आ गये ? तुम्हें तो बहुत जरूरी काम था ।”

“काम हो गया ।” - सुनील बोला ।

“इतनी जल्दी ?”

“हां ।”

“और इसलिये तुम फौरन यहां वापिस आ गये ?”

“हां ।”

“कमाल है !”

“कमाल कुछ नहीं, ब्राइट आइज ।” - सुनील मधुर स्वर में बोला - “दरअसल तुम इतनी मुद्दत के बाद मिली हो कि मैं तुम्हारे संसर्ग में और समय गुजारने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं ।”

“जबकि अभी दस मिनट पहले तुम्हें यहां एक क्षण भी रुकना गंवारा नहीं था ।”

“तुम मुझे वाकई बहुत जरूरी काम था और फिर मैं फौरन वापिस आने के इरादे से ही गया था ।”

“तुमने ऐसा कहा तो नहीं था ?”

“गलती हो गई ।”

“हैरानी है ।”

सुनील चुप रहा ।

“आज तुम बड़ी रहस्यपूर्ण हरकतें कर रहे हो ।” - वह बोली ।

सुनील मुस्कराया । वह दो-तीन बार गुप्त रूप से सिढियों की ओर दृष्टिपात कर चुका था । मोटा आदमी पीछे भीतर नहीं आया था । उसने आसपास दृष्टि दौड़ाई मुकुल और बिन्दु उसे कहीं दिखाई नहीं दिये ।

“भूख लगी है ।” - एकाएक सुनील बोला ।

“तो फिर खाना खाओ ।” - फ्लोरी बोली ।

“यहां नहीं । कहीं और चलते हैं ।”

“कहां ?”

“कहीं भी । यहां से बाहर निकलो ।”

“ओके ।” - फ्लोरी बोली और उसने अपना कैमरा वगैरह मेज से उठाकर कन्धे पर लाद लिया ।

सुनील उठ खड़ा हुआ ।

वे द्वार की ओर बढे ।

“यहां से बाहर निकलने का कोई और रास्ता नहीं है ?” - एकाएक सुनील ने पूछा ।

फ्लोरी ने हैरानी से उसकी ओर देखा और बोली - “क्या किस्सा है, राजा ?”

“कोई किस्सा नहीं है” - सुनील हड़बड़ा कर बोला - “मैंने केवल एक सवाल पूछा है ।”

फ्लोरी कुछ क्षण चुप रही और फिर बोली - “और कोई रास्ता नहीं है ?”

“नैवर माइन्ड ।” - सुनील बोला और उसने अपनी बांह फ्लोरी की एक बांह में डाल दी ।

वे मैड हाउस से बाहर निकल आये ।

मोटा आदमी सामने रेलिंग के साथ लगा हुआ सिगरेट पी रहा था ।

“कहां चलें ?” - फ्लोरी ने पूछा ।

“कोलाबा ।” - सुनील बोला ।

“अगर कोलाबा ही जाना था तो मैड हाउस में क्या खराबी थी ?”

“वहां दम घुट रहा था ।”

फ्लोरी फिर नहीं बोली । दोनों आगे बढे । लिबर्टी सिनेमा के बगल में ही लिबर्टी बिल्डिंग की पहली मंजिल पर स्थित कोलाबा की सीढियां थीं । वे रेस्टोरेन्ट में पहुंचे और कोने की मेज पर बैठ गये ।

थोड़ी देर बाद ही मोटा आदमी भी रेस्टोरेन्ट में प्रविष्ट हुआ और उनसे थोड़ी दूर एक खाली मेज पर बैठ गया ।

एक वेटर सुनील की टेबल पर आया । उसने सुनील के सामने मीनू रख दिया ।

सुनील ने डिनर का ऑर्डर दिया ।

वेटर चला गया ।

सुनील ने जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला । उसने एक सिगरेट फ्लोरी को दिया, एक खुद लिया और फिर पहले फ्लोरी का और फिर अपना सिगरेट सुलगा लिया । दोनों छोटे-छोटे कश लगाते हुए सिगरेट का आनन्द लेने लगे ।

सुनील ने अपनी कलाई पर बन्धी घड़ी पर दृष्टिपात किया ।

पौने बारह बजने वाले थे ।

उसने मन ही मन हिसाब लगाया और यह फैसला किया कि टैक्सी ड्राइवर गजराज अब तक जरूर यूथ क्लब पहुंच चुका होगा ।

“मैं एक मिनट में आया, डार्लिंग ।” - सुनील बोला । उसने सिगरेट ऐश ट्रे में झोंक दिया और उठ खड़ा हुआ । रेस्टोरेन्ट के मुख्य द्वार के पास दीवार पर कायन बॉक्स लगा हुआ था । सुनील उसके समीप पहुंचा, उसने हुक से रिसीवर उठाया और यूथ क्लब का नम्बर डायल कर दिया ।

दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही उसने तत्काल कायन बॉक्स में सिक्के डाले और फिर बोला - “रमाकान्त, प्लीज ।”

“जरा होल्ड कीजिये ।” - दूसरी ओर से कोई पुरुष स्वर सुनाई दिया ।

सुनील रिसीवर कान से लगाये प्रतीक्षा करने लगा ।

थोड़ी देर बाद उसके कान में रमाकांत की आवाज पड़ी - “हल्लो, रमाकांत स्पीकिंग ।”

“रमाकांत” - सुनील गम्भीर स्वर में बोला - “मैं सुनील बोल रहा हूं ।”

“बोलो, प्यारयो । कहां से बोल रहे हो ?”

“मैंने अभी एक टैक्सी ड्राइवर के हाथ तुम्हारे पास एक तस्वीर भेजी थी । वह तुम्हें मिल गई है ?”

“वह तस्वीर तुमने भेजी थी ?”

“हां ।”

“मैं तो उसे रद्दी की टोकरी में फेंकने लगा था । पहले तो मैं समझा कि किसी ने मजाक किया था । फिर सोचा शायद मामला गम्भीर हो । शायद चिड़ियाघर से कोई जानवर पिंजरा तोड़कर निकल भागा हो और चिड़ियाघर के अधिकारी नगर में हर जगह उसकी तस्वीर भेज रहे हों ताकि उसे पहचानने में आसानी रहे और जिसके हाथ में वह जानवर आ जाये वह उसे चिड़ियाघर में वापिस पहुंचा दे ।”

“रमाकांत, मजाक बन्द करो ।”

“ओके ।”

“जिस ‘जानवर’ की तस्वीर मैंने तुम्हें भेजी है, उसका नाम मुकुल है । वह मैजेस्टिक सर्कस पर लिबर्टी बिल्डिंग में स्थित ‘मैड हाउस’ नाम के डिस्कोथेक में गिटार बजाता है और विलायती गाने गाता है ।”

“यह देसी हिप्पी विलायती गाने गाता है ?”

“हां । और उसका हिप्पी का लिबास फ्रॉड भी हो सकता है ।”

“क्या मतलब ?”

“मतलब यह कि शायद वह कोई जरायमपेशा आदमी या फरार मुजरिम हो या पुलिस और परिस्थितियों की निगाहों से छुपने के लिये ही शायद उसने यह रूप धारण कर लिया हो ।”

“तुम यह सब अपने वड्डे भापा जी को क्यों बता रहे हो ?”

“मुझे इस आदमी के बारे में जानकारी चाहिये ।”

“कैसी जानकारी ?”

“इसके पिछले जीवन के बारे में जो कुछ भी जान पाओ ।”

“यह राजनगर का ही रहने वाला है ?”

“नहीं ।”

“तो फिर ?”

“वैसे तो पिछले कुछ समय में यह भारत के कई नगरों में धक्के खाता रहा है लेकिन मुझे विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ है कि वास्तव में बम्बई का रहने वाला है । तुमने मुझे एक बार बताया था कि बम्बई तुम्हारा कोई कान्टैक्ट है । अगर राजनगर में तुम्हें इसके बारे में कोई जानकारी हासिल न हो पाये तो इस तस्वीर को अपने बम्बई वाले आदमी के पास भेज दो । वैसे मुझे आशा नहीं है कि राजनगर में इसके बारे में कोई जानकारी हासिल हो सके । राजनगर में वह सात-आठ महीने पहले ही आया है ।”

“यह बात पक्की है कि वह बम्बई का ही रहने वाला है ?”

“मुझे किसी दूसरे आदमी ने बताया है लेकिन मुझे बात पक्की ही मालूम होती है ! वैसे भी सुना है कि बातों में बम्बई का जिक्र आ जाने पर वह बात को टालने की कोशिश करने लगता है ।”

“फिर तो बड़ा आसान काम है ।” - रमाकांत एकाएक तमक कर बोला - “बस, मैं यह तस्वीर बम्बई भेज देता हूं । बम्बई में तीस चालीस लाख बालिग लोग तो रहते ही होंगे । मेरा आदमी उन तीस-चालीस लाख आदमियों को बारी-बारी यह तस्वीर दिखायेगा । कोई-न-कोई तो उसे पहचान ही लेगा । सन् 1980 की अक्टूबर तक मैं तुम्हें यह बात बताने में सफल हो जाऊंगा कि वास्तव में मुकुल क्या चीज है ! वह अपनी पतलून कौन-से दर्जी से सिलवाता है, कौन-सा टूथपेस्ट इस्तेमाल करता है, कौन-सी...”

“मजाक मत करो, रमाकांत । यह इतना कठिन काम नहीं है जितना तुम इसे सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हो ।”

“मजाक तुम कर रहे हो । यह भुस के ढेर में सूई तलाश करने जैसा काम है ।”

“भुस के ढेर में सूई तलाश करना कोई कठिन काम नहीं होता ।”

“अच्छा !” - रमाकांत के स्वर में व्यंग्य का गहरा पुट था ।

“प्यारेलाल, भुस के ढेर में सूई तलाश करना इसलिये कठिन काम माना जाता है क्योंकि सूई के मुकाबले में भुस का ढेर बड़ा कीमती होता है । लेकिन अगर कोई भुस के ढेर का नुकसान गंवारा कर ले तो सूई तलाश करना बड़ा आसान काम है ।”

“कैसे ?”

“भुस के जिस ढेर में सूई खोई है, उसको आग लगा दो । जब भुस का ढेर राख बन जाये तो राख को छान लो । तो सूई साली कहां जायेगी ? इसलिये रमाकांत साहब, अक्ल से काम लो । जब सूई, का महत्व भुस के ढेर से ज्यादा हो तो सूई ढूंढना बड़ा आसान काम होता है ।”

रमाकांत ने उत्तर न दिया ।

“मुकुल को मैंने गिटार बजाते देखा है । वह वाकई गिटार बजाना जानता है । इतना अच्छा गिटार बजाना चार छः महीने में नहीं आ सकता । गिटार बजाने की वैसी योग्यता वर्षों के निरन्तर अभ्यास के बाद ही पैदा हो सकती है । यही बात उसके गाने के ढंग पर भी लागू होती है । उसका गिटार बजाने और गाने का एक्शन, स्टेज पर आने का ढंग वगैरह भी इस बात की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं कि वह लोगों के मनोरंजन के लिये होटलों क्लबों वगैरह में उस प्रकार गाने बजाने का आदी है । तुम्हें सारी बम्बई में उसके बारे में पूछताछ करने को जरूरत नहीं है । वहां के मैड हाउस जैसे रेस्टोरेन्ट और क्लबों में ही पूछताछ करने से काम बन जायेगा और ऐसे ठिकाने बम्बई में कई हजारों की तादाद में नहीं होंगे । पुलिस स्टेशन पर पूछताछ करने पर भी कोई नतीजा हासिल हो सकता है ।”

“अगरचे कि उसकी पहचान के मामले में उसकी दाढी-मूंछ और उसके लम्बे बाल रुकावट न बने ?”

“करैक्ट ।”

“सम्भव है नाम भी मुकुल न हो ?”

“बिल्कुल सम्भव है । इसीलिये तो तुम्हें उसकी तस्वीर भेजी है ।”

“और नगदऊ का क्या इन्तजाम है ?”

“कोई इन्तजाम नहीं है ।”

“फिर काम भी नहीं होगा ।”

“काम होगा, डैडी, और इसलिये होगा क्योंकि इसमें तुम्हारे भूतपूर्व ग्रैंडफादर की टांग फंसी हुई है ।”

“कौन ?” - रमाकांत संशक स्वर में बोला ।

“रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल ।”

“ओह ! उनका क्या किस्सा है ?”

“किस्सा फिर बताऊंगा ।”

“ओके ।”

“ओके । गुड लक ।”

सुनील ने रिसीवर को हुक पर टांग दिया । उसने एक उड़ती दृष्टि दूर बैठे मोटे आदमी की ओर डाली । वह सुनील की ओर ही देख रहा था ।

वह वापिस फ्लोरी की बगल में आ बैठा ।

“क्या किस्सा है ?” - फ्लोरी बोली ।

“कुछ नहीं ।” - सुनील बोला - “यूं ही एक दोस्त को फोन करने गया था ।”

“आधी रात को ?”

“हां ।”

“मुकुल की तस्वीर का क्या करोगे ?”

“बच्चों को डराया करूंगा ।”

“टाल रहे हो ?”

“हां ।” - सुनील बड़ी शराफत से बोला ।

उसी क्षण वेटर खाना ले आया ।

सुनील ने देखा, दूर बैठा मोटा आदमी कॉफी पी रहा था ।

फ्लोरी और सुनील ने खाना शुरू किया ।

दो मिनट बाद सुनील एकाएक धीमे स्वर में बोला - “फ्लोरी !”

फ्लोरी ने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।

“मेरी एक मदद करोगी ?”

“क्या ?”

“एक बदमाश मेरे पीछे लगा हुआ है ।”

फ्लोरी के मुंह से सिसकारी निकल गई ।

“नहीं, नहीं । इतनी गम्भीर बात नहीं है । लेकिन मेरा उससे पीछा छुड़ाना बहुत जरूरी है ।”

“कहां है वह ?”

“वह यहीं रेस्टोरेन्ट में मौजूद है । मैं उसे बड़ी आसानी से डॉज दे सकता हूं, लेकिन इसके लिये मुझे थोड़ी-सी तुम्हारी सहायता की जरूरत है ।”

“मै क्या कर सकती हूं ।”

“मैं अभी खाना छोड़कर क्लॉक रूम की ओर जा रहा हूं और वापिस नहीं आऊंगा । उधर से भी बाहर जाने का रास्ता है । तुम यहां बैठी बदस्तूर खाना खाती रहना और यही जाहिर करना जैसे मैं अभी लौट कर आ जाऊंगा । मेरे पीछे लगा हुआ बदमाश भी यही समझेगा कि मैं खाना बीच में छोड़कर गया हूं इसलिये लौटकर आऊंगा ।”

“ओके ।”

“थैंक्यू । थैक्यू वैरी मच ।”

“लेकिन आज तुम वाकई बहुत रहस्यपूर्ण हरकतें कर रहे हो, राजा ।”

सुनील ने उत्तर न दिया । उसने अपनी जेब में हाथ डाल कर कुछ नोट निकाले और उन्हें चुपचाप सोफे पर अपने और फ्लोरी के बीच मे रख दिया ।

“यह क्या है ?”

“जब वेटर बिल लेकर आयेगा तब मैं यहां मौजूद नहीं होऊंगा इसलिये...”

“तौहीन कर रहे हो ?”

“फ्लोरी, प्लीज । आखिर तुम्हें मैंने आमंत्रित किया था ।”

“फिर क्या हुआ ?”

“देखो, बहस मत करो । बिल चुकाना मर्द का काम होता है और इसे मर्द को ही करने दो ।”

“मैं तुमसे ज्यादा कमाती हूं ।”

“फ्लोरी ! प्लीज, बहस मत करो ।”

“ओके । ओके ।”

सुनील फिर खाना खाने लगा ।

फिर एकाएक वह अपने स्थान से उठा । वह फ्लोरी की ओर देखकर मुस्कराया और फिर दूर बैठे आदमी की ओर बिना दृष्टिपात किये मेजों के बीच में से गुजरता हुआ उस द्वार की ओर बढा जिस पर हरे रंग के जगमगाते शब्दों में लिखा हुआ था - जेंट्स ।

सुनील वह द्वार ठेल कर बाहर पतले से गलियारे में निकल आया । उस गलियारे के एक सिरे पर सिनेमा हॉल की बाल्कनी का बाहर निकलने का दरवाजा था और दूसरे सिरे पर नीचे जाती हुई सीढियां थीं, जो अक्सर सिनेमा देखकर बाल्कनी से निकलने वाले लोगों द्वारा ही प्रयोग में लाई जाती थी । गलियारे के दूसरी ओर क्लाक रूम था ।

सुनील क्लाक रूम का द्वार ठेलकर भीतर घुस गया । क्लाक रूम की शीशे की स्क्रीन में से उसे बाहर का खाली गलियारा दिखाई दे रहा था ।

सुनील प्रतीक्षा करने लगा ।

मोटा आदमी गलियारे में प्रकट नहीं हुआ ।

सुनील क्लाक रूम से बाहर निकल आया और लम्बे डग भरता हुआ सीढियों की ओर बढा । वह तेजी से सीढियां उतरने लगा । सीढियां नीचे लिबर्टी सिनेमा के बुकिंग ऑफिस की बगल में समाप्त होती थीं ।

सुनील सिनेमा से बाहर निकला और सड़क पर आ गया ।

उसने तेजी से सड़क पार की और उस ओर बढा जिधर उसने अपनी मोटरसाइकल खड़ी की थी ।

उसने पार्किंग में से मोटरसाइकल निकाली और उसे मुख्य सड़क पर ले आया ।

मोटे आदमी का कहीं नाम निशान भी नहीं था ।

***

बैंक स्ट्रीट की तीन नम्बर इमारत के सामने सुनील ने अपनी मोटरसाइकल रोक दी । उसने मोटरसाइकल को इमारत की सीढियों के पास खड़ा करके ताला लगाया, सीढियों के रास्ते अपने फ्लैट के सामने पहुंचा और फ्लैट के मुख्य द्वार का ताला खोलकर भीतर प्रविष्ट हो गया । उसने दरवाजे को भीतर से बन्द करने के लिए हाथ बढाया तो उसी क्षण किसी ने भीतर से बन्द करने के लिए हाथ बढाया तो उसी क्षण किसी ने बाहर की ओर से दरवाजे को भरपूर धक्का दिया । दरवाजे का पल्ला भड़ाक से सुनील के चेहरे पर टकराया । फिर आनन-फानन तीन आदमी भीतर घुस गये । उनमें सबसे आगे वही मोटा आदमी था जो मैड हाउस से उसके पीछे लगा हुआ था और जिसे सुनील अपने ख्याल में ‘कोलाबा’ रेस्टोरेन्ट में डॉज देकर चला आया था ।

मोटे के हाथ में रिवाल्वर थी उसने रिवाल्वर की नाल को सुनील की छाती पर टिकाया और उसे पीछे की ओर धकेला । सुनील लड़खड़ाता हुआ पीछे हटा और ड्राईंग रूम में आ गया ।

मोटे के पीछे खड़े दोनों आदमी पेशेवर बदमाश मालूम हो रहे थे । उनके चेहरों से क्रूरता टपक रही थी ।

“तुम्हारा नाम सुनील है ।” - मोटा यूं बोला जैसे उससे पूछ न रहा हो बल्कि उसे बता रहा हो ।

“हां ।” - सुनील बोला - “भले आदमी लोगों के घरों में यूं प्रविष्ट नहीं होते जैसे तुम हुए हो ।”

“चिन्ता मत करो ।” - मोटा बोला - “हम में से कोई भला आदमी नहीं है ।”

“क्या चाहते हो ?”

“तुम्हारी टांग बहुत लम्बी होती जा रही है । तुम खामखाह उसे ऐसे मामलों में अड़ाते फिरते हो जिनसे तुम्हारा कोई मतलब नहीं होना चाहिये । आज मैं तुम्हारी टांग तोड़ने आया हूं ।”

“तुम्हारे कौन-से मामले में टांग अड़ाई है मैंने ?”

“ऐसे सवाल मत करो जिनके जवाब तुम्हें मालूम हैं । आज ‘मैड हाउस’ में तुमने जो हरकत की है, वह तुम्हें नहीं करनी चाहिये थी । इस बार तो मैं सिर्फ तुम्हारी टांग ही तोडूंगा लेकिन अगर तुमने दुबारा कोई वैसी हरकत की तो तुम्हारी लाश कारपोरेशन के किसी भंगी को किसी गन्दे नाले में पड़ी मिलेगी ।”

“लेकिन मुझे पता तो लगे मैंने क्या किया है ? मैंने कौन-से तुम्हारे खेत के गन्ने उखाड़ लिये हैं ?”

मोटे ने उत्तर न दिया । वह एक ओर हट गया और अपने पीछे खड़े आदमियों से बोला - “यह आदमी बोलता बहुत है । इसका थोबड़ा बन्द करो ।”

पीछे खड़े दोनों आदमी दृढ कदमों से सुनील की ओर बढे ।

सुनील ने एकाएक मोटे आदमी पर छलांग लगा दी लेकिन मोटा सावधान था । सुनील का हाथ मोटे के रिवाल्वर वाले हाथ पर पड़ने के स्थान पर हवा में ही लहराकर रह गया । मोटा एक अनुभवी मुक्केबाज की तरह एक कदम पीछे हटा और फिर उसका रिवाल्वर वाला हाथ हवा में घूमा ।

रिवाल्वर की नाल भड़ाक से सुनील की कनपटी से टकराई । सुनील को यूं लगा जैसे उसकी कनपटी से तोप का गोला आकर टकराया हो । उसके नेत्रों के सामने लाल-पीले सितारे नाच गये । वह पीछे की ओर लड़खड़ाया और सोफे पर ढेर हो गया ।

एक आदमी ने उसे कॉलर से पकड़ लिया और एक झटके के साथ उसे सोफे से खड़ा कर दिया । फिर उसके दूसरे हाथ का भरपूर घूंसा सुनील के पेट में पड़ा । उस दौरान उसने सुनील के गिरहबान से अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी थी । सुनील उसकी पकड़ में ही दोहरा हो गया । उस आदमी का दूसरा घूंसा सुनील की गरदन के पृष्ठ भाग से टकराया । साथ ही उसने सुनील का गिरहबान छोड़ दिया । सुनील मुंह के बल फर्श पर जाकर गिरा । दूसरे आदमी का पांव हवा में घूमा और उसकी भरपूर ठोकर सुनील की पसलियों में पड़ी । सुनील फुटबाल की तरह दूसरी ओर पलट गया । पीड़े के अधिक्य से उसके नेत्रों में आंसू आ गये ।

कुछ क्षण के लिये किसी ने उस पर नया प्रहार करने का उपक्रम न किया ।

“सुनील” - मोटे का प्यार भरा स्वर उसके कानों में पड़ा - “उठकर अपने पैरों पर खड़े हो जाओ ।”

सुनील ने जमीन से उठने का उपक्रम न किया ।

मोटा आगे बढा और सुनील के सिर पर आ खड़ा हुआ । उसने अपना दायां पांव ऊपर उठाया और फिर उसे यूं सुनील की खोपड़ी पर पटका जैसी ओखली में मसूल मार रहा हो लेकिन सुनील तत्काल करवट बदल गया । मोटे का पांव भड़ाक से फर्श पर टकराया और वह लड़खड़ा गया । सुनील ने लेटे-लेटे ही हाथ बढाकर उसकी टांग खींच ली । मोटा धड़ाम से फर्श पर आ गिरा । रिवाल्वर उसके हाथ से निकल गई । सुनील बिजली की तेजी से रिवाल्वर की ओर झपटा लेकिन मोटे के दोनों साथियों ने उसे रास्ते में ही दबोच लिया ।

“सुनील साहब !” - एकाएक कहीं से कोई पुरुष स्वर सुनाई दिया - “क्या उठा-पटक मचा रखी है ! आधी रात को तो आराम करने दो ।”

मोटा तब तक सम्भल चुका था । उसने फर्श से रिवाल्वर उठा ली थी ।

“जल्दी करो ।” - वह अपने साथियों से बोला - “यह शायद नीचे के फ्लैट वाला बोल रहा था । मुझे डर है कहीं वह ऊपर न आ जाये ।”

मोटे का सिग्नल मिलने की देर थी कि एक आदमी ने अपने एक हाथ से उसका मुंह दबोच लिया और दूसरे हाथ से उसकी बांह पकड़ ली । दूसरे आदमी ने अपने बायें हाथ से उसकी दूसरी बांह पकड़ी और फिर खाली हाथ से सुनील के शरीर के विभिन्न भागों पर ताबड़-तोड़ घूंसे जमाने लगा ।

सुनील को किस्तों में अपनी जान निकलती महसूस होने लगी ।

“काफी है ।” - मोटे की आवाज उसे यूं सुनाई दी जैसे किसी गहरे कुएं में निकल रही हो - “तलाशी लो ।”

किसी ने सुनील के शरीर से उसका कोट नोच लिया । सुनील की चेतना लुप्त नहीं हुई थी लेकिन वह अपनी उंगली भी हिला पाने की स्थिति में नहीं रहा था । उसके दिमाग में सायं-सायं हो रही थी और उसे ऐसा लग रहा था, जैसे उसका सिर अभी हजार टुकड़ों में विभक्त होकर कमरे में बिखर जायेगा । अपने शरीर का कोई अंग उसे अपने शरीर से सम्बन्धित नहीं मालूम हो रहा था । बदमाशों के रूखे और कठोर हाथ उसे अपने शरीर पर पड़ते मालूम हो रहे थे लेकिन वह किसी भी बात का रंच मात्र भी विरोध करने की स्थिति में नहीं था ।

किसी ने बड़ी बेरहमी से उसके शरीर को उलट दिया । फिर उसे अपनी कमीज अपने शरीर से अगल होती दिखाई दी ।

“चलो ।” - कोई जोर से बोला ।

किसी का भारी पांव सुनील के पेट पर पड़ा । सुनील के मुंह से एक कराह निकल गई । उसे भारी कदमों की धम धम सुनाई दी । फिर कोई दरवाजा भड़ाक की आवाज से बन्द होने का शोर सुनाई दिया ।

सुनील ने अपने दांत भींच लिये और अपनी बची-खुची शक्ति का संचय करने का प्रयत्न करने लगा । उसका कांपता हुआ हाथ सोफे की बांह की ओर बढा । बड़ी मुश्किल से सोफे की बांह उसकी पकड़ में आई । उसने अपने सिर को एक जोर का झटका दिया और फिर वह अपने पैरों पर खड़ा होने का उपक्रम करने लगा । बड़ी कठिनाई से वह सीधा खड़ा होने में सफल हो पाया । वह लड़खड़ाता हुआ खिड़की की ओर बढा, खिड़की के समीप आकर उसने चौखट का सहारा ले लिया और नीचे सड़क पर झांका । उसे कुछ भी स्पष्ट दिखाई न दिया । रह-रहकर उसे अपने नेत्रों के सामने सितारे नाचते दिखाई दे जाते थे । सुनील ने अपने सिर को झटका दिया, तीन-चार बार अपनी आंखें मिचमिचाई और फिर नीचे झांका ।

इमारत के समीप, लैम्प पोस्ट के एकदम नीचे एक काले रंग की एम्बैसेडर खड़ी थी । एम्बैसेडर की बायीं ओर का पिछला दरवाजा कार की बाडी के साथ एक रस्सी से बन्धा हुआ था । दरवाजे का आस-पास का ढेर सारा पैंट भी उखड़ा हुआ था । उसी दरवाजे की एकदम बीच में एक भारी डैंट दिखाई दे रहा था ।

उसी क्षण मोटा और उसके दोनों साथी इमारत से बाहर निकले । जल्दी से वे उस कार में सवार हुए । अगले ही क्षण कार स्टार्ट हुई और बैंक स्ट्रीट में दौड़ती हुई दृष्टि से ओझल हो गई ।

बहुत कोशिश करने के बावजूद सुनील उस कार का नम्बर न देख सका ।

फिर वह वहीं खिड़की के समीप फर्श पर बैठ गया । उसके नेत्र अपने आप मुंद गये ।

लगभग पांच मिनट बाद उसने नेत्र खोले । उसका सारा शरीर बुरी तरह दुख रहा था लेकिन अब उसे अपनी चेतना लुप्त होती महसूस नहीं हो रही थी । उसने कुछ लम्बी-लम्बी सांसें लीं, अपनी आंखों को अपने हाथ के पृष्ठ भाग से रगड़ा और फिर उठकर खड़ा हो गया ।

उसने देखा उसके शरीर पर केवल पतलून और बनियान मौजूद थी । पतलून की जेबें बाहर की ओर उल्टी हुई थीं और कमीज फर्श पर पड़ी थी । उसका कोट एक सोफे की पीठ पर पड़ा था । कोट और पतलून की जेबों का सारा सामान फर्श पर बिखरा पड़ा था । एक-एक करके उसने सारी चीजें समेटनी आरम्भ कर दीं ।

चश्मा ।

फाउन्टेन पैन ।

‘ब्लास्ट’ का आइडेन्टिटी कार्ड ।

डायरी ।

कुछ जरूरी कागजात ।

रूमाल ।

चाबियां ।

लगभग साढे तीन सौ रुपये के नोट ।

उसकी जेबों में से निकली गई कोई भी चीज चोरी नहीं गई थी । सब कुछ मौजूद था । मोटे के साथियों ने उसकी भरपूर तलाशी ली थी लेकिन वे कुछ भी साथ लेकर नहीं गये थे ।

फिर एकाएक उसे मुकुल की तस्वीर का ख्याल आया और फिर उसकी समझ में आ गया कि मोटे के साथी उसकी जेबों में क्या तलाश कर रहे थे ।

मुकुल की तस्वीर उसकी जेब में से गायब थी ।

वह लड़खड़ाते कदमों से चलता हुआ बैडरूम की ओर बढा ।

उसने एक अलमारी खोलकर उसमें से ब्रांडी की बोतल निकाली । उसने एक गिलास को तीन-चौथाई ब्रांडी से भरा और फिर उसमें बिना पानी मिलाये ब्रांडी को हलक में उंढेल लिया । नीट ब्रांडी उसके गले से लेकर पेट तक लकीर-सी खींचती चली गई लेकिन शीघ्र ही उसे स्वयं में शक्ति का संचार होता अनुभव हुआ ।

उसने नये कपड़े निकालकर पहने, सिर पर एक फैल्ट हैट जमाई और फ्लैट से बाहर आ गया । उसने फ्लैट को ताला लगाया और सीढियों से गुजरता हुआ इमारत से बाहर आ गया ।

वह अपनी मोटरसाइकल के समीप पहुंचा । बड़ी कठिनाई से वह मोटरसाइकल स्टार्ट कर पाया । उसके शरीर का एक-एक जोड़ बुरी तरह दुख रहा था ।

वह मोटरसाइकल पर सवार हुआ और दुबारा मैजेस्टिक सर्कल की ओर उड़ चला ।

मैजेस्टिक सर्कल से थोड़ी दूर ही उसने फुटपाथ पर चढाकर अपनी मोटरसाइकल खड़ी कर दी । उसने फैल्ट हैट का अग्र भाग अपने माथे पर और झुका लिया और फिर सर्कल की ओर बढा । उसने घड़ी पर दृष्टिपात किया । एक बजने को था ।

वह सिर झुकाये मैड हाउस के समीप से गुजरा । ‘मैड हाउस’ अभी बन्द नहीं हुआ था । बेसमेन्ट से विलायती धुनों की आवाजें अभी भी जा रही थीं ।

लिबर्टी सिनेमा के सामने एकाएक वह ठिठक गया । सिनेमा के सामने फुटपाथ के साथ-साथ तीन-चार कारें खड़ी थीं जिनमें से एक वही काले रंग की एम्बैसेडर थी जिस पर उसने मोटे को और उसके दोनों साथियों को सवार होकर बैंक स्ट्रीट से जाते देखा था । कार की बायीं ओर का पिछला दरवाजा कार की बॉडी के साथ एक रस्सी से बांध हुआ था । उसी दरवाजे के आसपास का ढेर सारा पेन्ट भी उखड़ा हुआ था और दरवाजे के एकदम बीच में एक भारी डेंट दिखाई दे रहा था ।

कार का नम्बर था - आर जे एस 2128

नम्बर सुनील के दिमाग में लिख गया ।

उसी क्षण उसकी निगाह ‘मैड हाउस’ के मुख्य द्वार पड़ी ।

वहां गेटकीपर के समीप वही मोटा आदमी खड़ा था जो सुनील के फ्लैट में उसकी मरम्मत करके भागा था । वह अपने पहले वाले दो साथियों के साथ खड़ा बातें कर रहा था ।

सुनील ने अपनी फैल्ट हैट का सामने का कोना और अपने माथे पर झुका लिया और फिर लिबर्टी सिनेमा की पोर्टिको के एक खम्बे की ओट में हो गया ।

कुछ क्षण बाद मोटे के साथी मोटे से अगल हुए और फिर मोड़ घूमकर दृष्टि से ओझल हो गये ।

मोटा सिनेमा की ओर बढा ।

सुनील खम्बे के पीछे और सिमट गया ।

मोटा चलता हुआ सिनेमा की पोर्टिको में पहुंचा । वह सुनील से केवल तीन फुट दूर से गुजरा । फिर सुनील ने उसे सिनेमा के बगल की कपड़ों की दुकान के पास के दरवाजे के भीतर प्रविष्ट होते देखा ।

सुनील खम्बे के पीछे से निकला और लपक कार आगे बढा ।

मोटा भीतर सीढियों की बगल में बनी लिफ्ट में प्रविष्ट हो रहा था । उसके देखते लिफ्ट का दरवाजा बन्द हुआ और लिफ्ट ऊपर उठने लगी ।

सुनील लिफ्ट के समीप पहुंचा । उसने लिफ्ट के इन्डीकेटर पर अपनी निगाह जमा दी । इन्डीकेटर में इमारत की मंजिलों के नम्बर लगे हुए थे । लिफ्ट जिस मंजिल से गुजरती थी, उस मंजिल के नम्बर की बत्ती जल जाती थी ।

पांचवीं मंजिल की बत्ती जली और फिर जली रह गई ।

लिफ्ट पांचवीं मंजिल पर जाकर रुक गई थी ।

पांचवीं मंजिल पर केवल फोर स्टार नाइट क्लब थी ।

सुनील सोचने लगा । मोटे जैसे आदमी का फोर स्टार नाइट क्लब से क्या वास्ता हो सकता था ?

उसने एक सिगेरट सुलगाया और सोचने लगा । अगर मोटा और फोर स्टार नाइट क्लब किसी भी रूप से एक-दूसरे से सम्बन्धित थे तो इतनी रात गये नाइट क्लब में जाना खतरनाक सिद्ध हो सकता था ।

उसने मोटे का थोड़ी देर वहीं इन्तजार करने का फैसला किया ।

वह लिफ्ट के पास से हटकर बाहर फुटपाथ पर आ गया ।

लगभग पांच मिनट बाद लिफ्ट के इन्डीकेटर में पांच नम्बर की बत्ती बुझ गई और कुछ क्षण बाद चार नम्बर की बत्ती जल उठी ।

लिफ्ट नीचे आ रही थी ।

सुनील ने सिगरेट का बचा हुआ टुकड़ा फेंका दिया और लपककर सड़क पार कर गया । वह सड़क के पार एक पेड़ की ओट में खड़ा हो गया ।

लिफ्ट नीचे पहुंची, उसका द्वार खुला, मोटा लिफ्ट में से निकला और लम्बे डग भरता हुआ सीधा सिनेमा के सामने फुटपाथ के साथ खड़ी अपने आर जे एस 2128 नम्बर वाली काली एम्बैसेडर की ओर बढा ।

सुनील पेड़ के पीछ से निकलकर तेजी से उस ओर बढा जहां वह अपनी मोटरसाइकल खड़ी करके आया था ।

मोटा कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ चुका था ।

सुनील अपनी मोटरसाइकल के पास पहुंचा ।

मोटे ने कार स्टार्ट की, उसे वहीं से ही यू टर्न दिया और चौराहे की तरफ बढा । चौराहे के ट्रैफिक सिग्नल की बत्तियां कब की बुझ चुकी थीं । काली एम्बैसेडर बन्दूक से छूटी गोली की तरह चौराहा पार कर गई ।

सुनील ने तत्काल अपनी मोटरसाइकल मोटे की कार के पीछे लगा दी । वह बड़ी सावधानी से कार का पीछा करने लगा ।

रास्ते में सुनसान पेड़ थे और मोटरसाइकल के साढे सात हॉर्स पावर के शक्तिशाली इंजन की आवाज उस सन्नाटे में काफी ऊंची मालूम पड़ रही थी । किसी भी क्षण मोटे को पता लग सकता था कि एक मोटरसाइकल उसका पीछा कर रही थी ।

सुनील कार और मोटरसाइकल के बीच में अधिक-से-अधिक फासला रखकर मोटरसाइकल चलाता रहा । मोटे के किसी एक्शन में उसे ऐसा आभास नहीं मिल रहा था कि उसे अपना पीछा किये जाने की जानकारी हो चुकी थी ।

मोटे की कार भगत सिंह रोड की ओर मुड़ गई । मोड़ काटते ही कार के रफ्तार कम हो गई ।

सुनील सावधान हो गया । उसने भी मोटरसाइकल की रफ्तार कम कर दी ।

भगत सिंह रोड की एक इमारत के सामने फुटपाथ पर चढाकर मोटे ने कार खड़ी कर दी ।

सुनील ने मोटरसाइकल रोक दी ।

मोटे ने कार को ताला लगाया और इमारत में प्रविष्ट हो गया ।

सुनील मोटरसाइकल से उतरकर उस इमारत की ओर भागा ।

इमारत का मुख्य द्वार खुला था । ड्योढी में से ही ऊपर की ओर सीढियां जा रही थीं । मोटा उस तीनमंजिली विशाल इमारत से कहीं गायब हो चुका था । इमारत की हर मंजिल पर कम से कम चार फ्लैट थे और सुनील के पास यह जानने का कोई साधन न था कि मोटा उन बारह फ्लैटों में से किस में घुस गया था ।

वह बाहर फुटपाथ पर आ गया । उसने इमारत की ऊंचाई की ओर निगाह दौड़ाई । इमारत अन्धकार के गर्त में डूबी हुई थी । वहां कोई बत्ती नहीं जल रही थी ।

उसी क्षण दूसरी मंजिल के दायीं ओर के फ्लैट की खिड़कियों मे प्रकाश दिखाई दिया ।

सुनील तनिक आशान्वित हो उठा । मोटा शायद उसी फ्लैट में गया था ।

वह फुटपाथ पर खड़ा उस प्रकाशित खिड़की की ओर देखता रहा ।

पांच मिनट बाद बत्ती बुझ गई और इमारत फिर पहले जैसी अंधेरी हो गई ।

मोटे के उस फ्लैट में होने की काफी सम्भावना थी । फ्लैट की बत्ती मोटे के इमारत के प्रविष्ट होने के बाद उतनी ही देर जली थी जितनी देर में कोई आदमी कपड़े बदलकर बिस्तर में प्रविष्ट हो सके ।

उसने इमारत का नम्बर देखा । द्वार के पास एक लड़की की तख्ती लगी थी जिस पर लिखा था - शान्ति सदन, साठ - भगत सिंह रोड ।

इसी क्षण इमारत के आगे एक स्कूटर आकर रुका, उसमें से एक युवक बाहर निकला, उसने स्कूटर वाले के पैसे चुकाये और फिर इमारत की ओर बढा ।

सुनील की ओर देखकर वह ठिठका ।

“भाई साहब” - सुनील आगे बढकर बोला - “आपको मालूम है यहां वर्मा जी कौन-से फ्लैट में रहते हैं ?”

“शान्ति सदन में ?” - युवक ने पूछा ।

“जी हां ।”

“वर्मा जी...” - युवक सोचने लगा ।

“ठिगने से कद के हैं । कुछ आकार में जरा डबल ही हैं । सांवले से हैं । चेहरे पर बारीक-सी मूंछे रखते हैं । उम्र लगभग पैंतीस साल है ।”

“आप तो सोहन लाल का हुलिया बयान कर रहे हैं लेकिन मैंने किसी को उसके नाम के साथ कभी वर्मा लगाते तो नहीं सुना । अगर सोहन लाल ही वर्मा है तो वह तो दूसरी मंजिल पर सामने वाले भाग में दायीं ओर के फ्लैट में रहता है ।”

“मैं जिन वर्मा जी के बारे में पूछ रहा हूं, उनका नाम तो राधे मोहन है ।”

“राधे मोहन नाम के कोई साहब इस इमारत में नहीं रहते ।”

“अच्छा ! ओके, थैंक्यू । मुझ ही से कोई गलती हो गई मालूम होती है ।” - सुनील बोला और युवक को वहीं खड़ा छोड़कर आगे बढ गया ।

युवक कुछ क्षण उलझनपूर्ण नेत्रों से उसे जाता देखता रहा और फिर कन्धे उचकाकर सीढियों की ओर बढ गया ।

सोहन लाल ! - सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से गरदन हिलाता सुनील धीरे से बुदबुदाया ।

मोटे का नाम और पता उसे आसानी से मालूम हो गया था ।

उसने मोटरसाइकल सम्भाली और उस का रुख हर्नबी रोड की ओर मोड़ दिया ।

यूथ क्लब में तीन-चार लोग अभी भी हॉल में बैठे बतिया रहे थे । रमाकांत ऊपर अपने कमरे में जा चुका था । वह सीढियां चढकर पहली मंजिल पर स्थित रमाकांत के कमरे के सामने पहुंचा ।

कमरे का द्वार बन्द था । उसने द्वार खटखटाया ।

“कौन है ?” - भीतर से रमाकांत का रूखा स्वर सुनाई दिया ।

“सुनील ।” - सुनील बोला ।

“अगले साल आना ।”

“दरवाजा तो खोलो ।”

“कहा न बाबा, अगले साल आना और अगर तुम मुकुल नाम के उस हिप्पी के बारे में कुछ पूछने आये हो तो अभी उसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम हुआ है । जब कुछ मालूम होगा तो मैं तुम्हें टेलीफोन कर दूंगा । मेरे पास कोई अलादीन का चिराग नहीं है जो मैं...”

“अरे ओ वड्डे भापा जी !” - सुनील चिल्लाकर बोला - “अब बके ही जाओगे या दरवाजा भी खोलोगे !”

“अच्छा, अगले साल नहीं तो कल सुबह आ जाना ।”

सुनील ने पूरी शक्ति से अपने कन्धे का प्रहार दरवाजे पर किया । दरवाजे की चूलें हिल गई ।

तत्काल द्वार खुला । द्वार पर उसे ड्रेसिंग गाउन में लिपटा हुआ रमाकांत दिखाई दिया ।

“यह क्या बदतमीजी है ?” - वह क्रोधित स्वर में बोला ।

“क्या कहने !” - सुनील कमरे में प्रविष्ट होता हुआ बोला - “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ।”

“क्या आफत आ गई है ?”

“तुम इतना उखड़ क्यों रहे हो ?” - सुनील ने एक कुर्सी पर बैठते हुए पूछा ।

“आज मैं रम्मी में तीन सौ रुपये हार गया हूं ।” - रमाकांत झुंझलाये स्वर में बोला ।

“बस ! इतनी-सी बात ? मरे क्यों जा रहे हो ? आज हारे तो कल जीत जाओगे ।”

“कोई गारन्टी है ?”

“गारन्टी नहीं है लेकिन सिर्फ तीन सौ रुपये हारने से तुम्हारा हार्ट फेल क्यों हो रहा है ? इतना कमाते हो । आफत क्या आ गई ?”

रमाकांत ने गहरी सांस ली और देवदास जैसी मुद्रा बनाकर गम्भीर स्वर में बोला - “यहां बेजार बैठे हैं, तुझे अठखेलियां सूझी हैं ।”

“लो, सिगरेट पियो ।” - सुनील जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकालता हुआ बोला ।

“मैं यह घोड़े की लीद की सिगरेट नहीं पीता ।” - रमाकांत बोला - “मैं अपना ब्रांड पियूंगा ।”

और उसने ड्रैसर से अपनी चार मीनार का पैकेट उठा लिया ।

सुनील ने पहले अपना और फिर रमाकांत का सिगरेट सुलगा दिया ।

“कैसे दर्शन दिये ?” - रमाकांत ने पूछा ।

सुनील ने एक कागज पर आर जे एस 2128 लिखा और कागज रमाकांत की ओर बढा दिया ।

“यह एक काली एम्बैसेडर कार का नम्बर है । इसके मालिक का पता लगाना है ।”

रमाकांत ने कागज लेकर लापरवाही से ड्रैसर पर फेंक दिया ।

“यह काम फौरन होना है, प्यारेलाल ।”

रमाकांत ने कागज की ड्रैसर से उठाकर अपने गाउन की जेब में रख लिया और फिर बोला - “और ?”

“और सुनो ।” - सुनील ने पहले मोटे का हुलिया बयान किया और फिर बोला - “यह आदमी भगत सिंह रोड की शांति सदन नाम की साठ नम्बर इमारत में रहता है । यह लगभग निश्चित ही है कि उसका नाम सोहन लाल है और शान्ति सदन की दूसरी मंजिल के सामने भाग का दायीं और वाला फ्लैट उसका है । मैजेस्टिक सर्कल पर लिबर्टी बिल्डिंग नाम की इमारत है । उस इमारत की पांचवीं मंजिल पर फोर स्टार नाइट क्लब नाम की एक नाइट क्लब है और बेसमेंट में मैड हाउस नाम का एक डिस्कोथेक है ।”

“मुझे मालूम है । तुम जल्दी-जल्दी चलाओ और फिर यहां से दफा होने का प्रोग्राम बनाओ ।”

“ओके । तुमने यह पता लगाना है कि क्या सोहन लाल फोर स्टार नाइट क्लब से या मैड हाउस से किसी रूप में सन्बन्धित है ? और यह कि उसका मुकुल से या मुकुल का उस से क्या सम्बन्ध है !”

“अच्छी बात है । और ?”

“और मुझे एक रिवाल्वर दिलाओ ।”

“क्या ?” - रमाकांत आंखें निकालकर बोला ।

“मैंने कहा है, मुझे एक रिवाल्वर दिलाओ ।”

“क्यों ? क्या करोगे उसका ? किसी का खून करना है क्या ?”

“किसी का खून नहीं करना है, मेरे बाप । मुझे रिवाल्वर अपनी सुरक्षा के लिए चाहिये ।”

“क्यों ? एकाएक तुम्हें अपनी सुरक्षा की क्यों जरूरत महसूस होने लगी है ?”

“मैं अभी पिटकर आ रहा हूं ।”

“पिटकर आ रहे हो ?”

“हां । बुरी तरह से ।”

“कब ?”

“अभी थोड़ी ही देर पहले । जिस सोहन लाल का मैंने तुम से जिक्र किया है, वह अपने बदमाशों के साथ जबरदस्ती मेरे फ्लैट में घुस आया था और मेरी ऐसी मरम्मत करके गया है कि मुझे यूं लगता है जैसे मेरे ऊपर से स्टीम रोलकर गुजर गया हो ।”

“फिर भी तुम इतने ढीठ हो कि घर बैठकर आराम करने के स्थान पर आधी रात गये सड़कों पर कूदते फिर रहे हो !”

“हां ।” - सुनील बड़ी शराफत से बोला ।

“क्या हां ?”

“मैं इतना ढीठ हूं पिटकर आराम करने के स्थान पर आधी रात गये सड़कों पर कूदता फिरता हूं ।”

“इसका मतलब यह हुआ कि सिर्फ तुम ढीठ ही नहीं, अहमक भी हो ।”

“हूं ! अब तुम फटाफट रिवाल्वर दिलाओ ।”

“ओह माई गॉड !” - रमाकांत अपना माथा ठोक कर बोला - “सेम ओल्ड गेलेन्ट मिस्टर सुनील । सेम ओल्ड स्टोरी ऑफ ए डैमसेल इन डिस्ट्रैस ! मैं पूछता हूं तुम्हें जब अक्ल आयेगी ?”

“ओह, शटअप ।”

“कहीं तुम रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की खूबसूरत और कड़क जवान विधवा से इश्क तो नहीं लड़ा रहे हो ?”

“अब तुम बकवास करनी बन्द करते हो या मैं तुम्हारे एक-दो दांत तुम्हारे हलक में धकेल दूं ।”

“पिटकर आने के बाद भी तुम्हारे में इतना दम है ?”

“है ।” - सुनील नथुने फुलाकर बोला ।

“फिर मैं चुप कर जाता हूं ।”

“अब रिवाल्वर निकालो ।”

“मैं तुम्हें रिवाल्वर नहीं दे सकता ।”

“क्यों ?”

“मैं नहीं चाहता कि कोई घपला हो ।”

“क्या घपला हो सकता है ?”

“मुझे भय है कि कहीं तुम जाकर सोहन लाल की हत्या न कर दो और तुम्हें रिवाल्वर देने की वजह से तुम्हारे साथ-साथ मैं भी न फंस जाऊं ।”

“ऐसा कुछ नहीं होगा” - सुनील झल्लाकर बोला - “अगर मुझे सोहन लाल की हत्या करनी होती तो मैं तुम्हें उसके बारे में बताता ही क्यों ?”

“यह तो तुम ठीक कह रहे हो ।”

“तो फिर निकालो रिवाल्वर ।”

रमाकांत ने सिगरेट ऐश ट्रे में डाला और कोने में रखी एक मेज के दराज का ताला खोलकर रिवाल्वर निकाल लाया ।

सुनील ने देखा वह 38 कैलिबर की छोटी नाल वाली रिवाल्वर थी । उसने रिवाल्वर का चैम्बर खोलकर देखा । चैम्बर पूरा भरा हुआ था । उस ने रिवाल्वर अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस ली ऊपर से बटन बन्द कर लिये ।

वह उठ खड़ा हुआ ।

“एक बात तो बताते जाओ ।” - रमाकांत तनिक व्यग्र स्वर में बोला ।

“पूछो ।”

“इस मामले में कोई नगदऊ के दर्शन नहीं होंगे ?”

“नहीं होंगे ।”

“और जो खर्चा हो रहा है, उसका क्या होगा ? मैंने जौहरी को प्लेन से बम्बई भेजा है ।”

“तुम्हारे खर्चे की भरपाई हो जायेगी ।”

“कैसे ?”

“कैसे मत सोचो । तुम आम खाने से मतलब रखो, पेड़ गिनने से नहीं ।”

“फिर भी ।”

“फिर कुछ नहीं । मैं जाता हूं । अगर इस बार तुमने मुझे टोका तो मैं अगली मार्च तक तुम्हारे इस कमरे में से नहीं टलूंगा ।”

“जाओ बाबा जाओ ।” - रमाकांत बौखला कर बोला - “कहो तो मैं तुम्हें घर तक छोड़ आऊं ?”

“उसकी जरूरत नहीं । मेहरबानी । गुडनाइट ।”

“गुड मार्निंग ।” - रमाकांत मुंह बिगाड़कर बोला ।

“ओके । गुड मॉर्निंग ।” - सुनील बोला और कमरे से बाहर निकल गया ।