इंस्पेक्टर एक बड़ी-बड़ी मूंछों वाला मराठा था जो कि अपनी लाल-लाल आंखों से जीतसिंह को यूं घूर रहा था जैसे निगाहों से ही उसे भस्म कर डालना चाहता हो । उसका मोटा थुलथुल जिस्म कुर्सी में यूं फंसा हुआ था कि वो हिलता था तो कुर्सी साथ हिलती थी, पहलू बदलता था तो कुर्सी साथ पहलू बदलती थी ।


जीतसिंह एक लगभग अट्ठाईस साल का मामूली शक्ल-सूरत वाला दुबला-पतला युवक था । उसके सिर के बाल घुंघराले और घने थे, भवें घनी थीं और मूंछें भी भवों से मैच करती हुई ही थीं । उस वक्त वो एक तंग जीन और जीन के कपड़े जैसी ही पूरी बांह की सामने से खुली कमीज पहने था ।


"क्या नाम है तेरा ?" -इंस्पेक्टर खूंखार लहजे में बोला । 


"बद्रीनाथ ।" - जीतसिंह दबे स्वर में बोला । "कहां का रहने वाला है ?"


"बम्बई का ।”


"असल कहां का रहने वाला है ? "


"नैनीताल का ।"


“इधर गोवा में कैसे पहुंच गया ?" "रिजक की तलाश ले आयी ।"


"बम्बई में रिजक का तोड़ा था ?"


"हां। और नैनीताल में उससे भी ज्यादा ।"


" ज्यादा नहीं बोलने का । जो पूछा जाए उसी का जवाब देने का है । "


"ज... जी हां ।"


"इधर पणजी में कब से है ?"


“ए... एक महीने से ।"


" एक महीने में ही इधर दुकान का मालिक कैसे बन गया ?"


"मैं मालिक नहीं, उस दुकान का मुलाजिम हूं । कारीगर हूं । मालिक बीमार रहता है । दुकान पर नहीं आ सकता । उसके घर में और कोई दुकान सम्भालने वाला नहीं है इसलिये दुकान को ताला पड़ सकता था । उसने मेरे पर एतबार किया इसलिए..."


"दुकान तू चलाता है ?"


“आजकल । वक्ती तौर पर । मालिक तंदरुस्त हो जाएगा तो खुद आ बैठेगा ।"


"तब तक तू दुकान ही साफ कर देगा "मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं ।"


“आगे हो जाएगा !”


"नहीं होगा, जनाब । मैं ईमानदार आदमी हूं । "


"देखे मैंने तेरे जैसे बहुत ईमानदार । "


जीतसिंह खामोश रहा ।


"उधर काम क्या है तेरा ?"


"पहले तो तालों को चाबियां लगाना ही था । अब सारी दुकानदारी संभालता हूं।"


"वो सब तू इत्तफाकन करता है । तेरा अहम काम तालों की मरम्मत करना और उनकी चाबियां तैयार करना है । ठीक ? "


जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।


" यानी कि कारीगर आदमी है ?"


वो खामोश रहा । उसने बेचैनी से पहलू बदला |


“तालातोड़।”


"तालाजोड़, हुजूर | बिगड़ा ताला ठीक करने वाला । चाबी खो जाए तो ताले की नयी चाबी बनाकर देने वाला।”


“यानी कि हर तरह के ताले की चाबी बना लेता है।" "जी हां ।"


"ऐसे ताले की भी जिसकी चाबी कभी खोती ही नहीं ।” 


“जी ?"


"तिजोरी खोल लेता है। वॉल्ट खोल लेता है । "


"क्या कह रहे हैं, जनाब ! मैंने तो ऐसा कुछ करने का कभी ख्याल तक नहीं किया । "


"कभी नहीं किया, अब तो करेगा ! आगे तो करेगा ।"


"हरगिज नहीं ।"


" या शायद कर भी चुका है !"


"क... कर चुका हूं ?" - जीतसिंह दहशतनाक लहजे से बोला ।


"कल रात ।"


"क्या कह रहे हैं, हुजूर! मैं तो..."


"कल रात कहां था ?"


"वहीं जहां हमेशा होता हूं । मालिक के घर में । "


"मालिक के साथ ही रहता है ?"


"जी हां ।”


“कुछ ज्यादा ही लट्टू है वो तेरे पर ।”


"घर में रहने की जगह देने के बदले में तनखाह में से पैसा काटता है, जनाब । फोकट में मेहरबान कोई नहीं होता गरीब आदमी पर ।”


"तू गरीब आदमी है ?"


"जी हां ।"


"तेरे पास हुनर है । हुनरमन्द आदमी को तो गरीब नहीं होना चाहिए।”


"साहब, मैं ऐसा- वैसा काम नहीं करता ।"


" साबित कर सकता है कि कल सारी रात तू अपने मालिक के घर में था ?"


"आप मालिक से तसदीक कर लीजिए । "


" उसे क्या खबर होगी ? वो बीमार आदमी तो सोया पड़ा रहा होगा सारी रात ।”


"कल रात ऐसा नहीं था, जनाब । कल उसकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब थी । आधी रात तक तो वो सो ही नहीं पाया था । फिर सोया था तो घंटे-घंटे में उठ के बैठ जाता था । कभी उसे पेशाब आ जाता था तो कभी उसका दिल घबराने लगता था ! यूं खुद उठता था तो मुझे भी उठा देता था । सारी रात मैं उसके साथ उठक-बैठक करता रहा । सुबह पांच बजे कहीं जाकर मैं थोड़ा सो पाया ।”


"पक्की बात ?"


"जी हां । "


"तेरा मालिक तेरी इस बात की तसदीक करेगा ?"


"जी हां | जरूर करेगा ।"


"अगर ये बात गलत निकली तो ?"


"सवाल ही नहीं पैदा होता, जनाब, बात गलत निकलने का ।"


"कहीं तूने अपने मालिक को तेरी खातिर झूठ बोलने के लिए तैयार तो नहीं किया हुआ ?"


"साहब, वो क्या मेरा कोई सगेवाला है जो.... "


"ज्यादा बात नहीं । ज्यादा बात नहीं ।" जीतसिंह ने होंठ भींच लिए । "तू जानता है तुझे यहां थाने में क्यों लाया गया है ?" “नहीं जानता ।”


" जानना चाहता है ?"


"चाहता तो हूं।"


“कल रात ओल्ड गोवा मे एक वारदात हुई थी । वहां जिस सड़क पर तेरी तालों की दुकान है, उस पर तेरी दुकान से कोई सौ गज परे एक बैंक है जिसको लूटने की कल रात कोशिश की गयी थी । वो तीन आदमी थे जो बैंक के बाहरी दरवाजे का ताला खोलकर सुन रहा है ? खोलकर । तोड़कर नहीं । - भीतर दाखिल होने में कामयाब हो गए थे। कमबख्तों ने बैंक की सेफ भी खोल ली थी लेकिर फिर भी माल लूटने में कामयाब नहीं हो सके थे। पूछ क्यों ?" -


"क्यों ?"


"क्योंकि सेफ में ऐसा इन्तजाम था कि रात के वक्त उसका दरवाजा खुलते ही एक अलार्म बजने लगता था ।"


"ओह !"


" उन तीन में से एक को पुलिस ने ठौर मार गिराया था, दूसरे को गिरफ्तार कर लिया था लेकिन तीसरा भाग निकलने में कामयाब हो गया था । जो गिरफ्तार हुआ था उसने अपने बयान में बताया था कि जो भाग गया था, वही उनका एक्सपर्ट था जिसने कि सेफ का ताला खोला था । ऐसा एक एक्सपर्ट" इंस्पेक्टर अपलक उसे घूरता हुआ बोला- "इस घड़ी मेरे सामने बैठा है।"


"तौबा, हुजूर।" - जीतसिह बौखलाये स्वर में बोला- "मैं और डकैतों का साथी ! मैं तो कभी सपने में भी ऐसी जुर्रत करने का ख्याल नहीं कर सकता ।"


"तेरी दुकान बैंक से बहुत करीब है। बैंक से भागा आदमी दुकान में पनाह पा सकता था । "


"लेकिन दुकान बन्द थी और मैं मालिक के घर में उसकी तीमारदारी में लगा हुआ था ।"


"फिर तू अपने आपको बहुत खुशकिस्मत समझ ।"


जीतसिंह की जान में जान आयी ।


"लेकिन मेरी एक बात गौर से सुन ।" - इंस्पेक्टर कर्कश स्वर में बोला - "मेरे सुनने में आया है कि अपने काम में तू कुछ ज्यादा ही माहिर है । ऊपर से यहां तू परदेसी है और, बकौल अपने, गरीब आदमी है । तुझे अपने हुनर का कोई फायदा उठाने का ख्याल भले ही न आता हो लेकिन किसी और को तेरे हुनर का फायदा उठाने का ख्याल बखूबी आ सकता है । तू किसी के भड़काये शेर हो सकता है और ऐसा दांव लगाने का ख्याल कर सकता है जिस में एक ही बार मे वारे-न्यारे हो जायें ।"


"साहब, मैं ऐसा..."


"शट अप ।"


जीतसिंह सहमकर चुप हो गया ।


“आइन्दा दिनों में पिछली रात जैसी कोई वारदात मेरे थाने के इलाके में हुई तो सबसे पहले मेरी तवज्जो तेरी ही तरफ जायेगी । और उसके बाद तेरा क्या होगा ये तू खुद सोच सकता है। सोच सकता है न ?”


जीतसिंह बड़ी कठिनाई से सहमति में सिर हिला पाया ।


"मैं जानता हूं इस वक्त तू क्या सोच रहा है ! तू सोच रहा है कि यूं तो किसी और का किया भी मुझे भरना पड़ सकता है । तू ठीक सोच रहा है। ऐसा हो सकता है । ऐसा न हो, इसका सबसे सेफ तरीका है कि तू जहां से आया है, वहीं वापिस चला जा । मैं अपने थाने के इलाके में तालातोड़ नहीं मांगता । सेफ क्रैकर्स नहीं मांगता । लॉक बस्टर्स नहीं मांगता । लॉकरर ओपनर्स नही मांगता । समझ गया ? मुंडी मत हिला । मुंह से बोल ।"


"ज..जी हां । "


"ये मेरी तेरे को वार्निंग है । तेरे भले के लिए । याद रखना भूल नहीं जाना । क्या !"


"नहीं भूलूंगा ।"


"मेरी तेरे पर नजर रहेगी। एक भी कदम गलत उठाया तो अन्दर । सींखचों के पीछे । सालोंसाल । क्या !”


वो खामोश रहा ।


"अब फूट ।"


भारी कदमों के साथ जीतसिंह थाने से रुख्सत हुआ ।


***


गाहे-बगाहे सिगरेट के कश लगाता और स्टियरिंग थपथपाता एंजो टैक्सी में बैठा था जबकि उसने जीतसिंह को थाने की इमारत से बाहर निकलकर सड़क पर देखा ।


उसने हौले से हॉर्न बजाया ।


जीतसिंह की निगाह टैक्सी की दिशा में उठी और फिर वो लम्बे डग भरता हुआ उधर बढ़ा ।


ऐंजो जीतसिंह की उम्र का गोवानी युवक था जो कि किराये की टैक्सी चलाता था । ये बहुत बड़ा इत्तफाक था कि जो पहला आदमी जीतसिंह को गोवा में टकराया था वो एंजो था और उससे उसकी दोस्ती हो गई थी ।


जीतसिंह करीब पहुंचा तो एंजो ने हाथ बढ़ाकर उसकी तरफ का टैक्सी का दरवाजा खोल दिया। जीतसिंह टैक्सी में उसके पहलू में आ बैठा । ऐंजो ने उसे एक सिगरेट दिया और भी नया सिगरेट ले लिया । खुद


"तू इधर कब से है ?" - जीतसिंह बोला ।


“तभी से है जब से तू इधर है।" - ऐंजो बोला- "तेरे पीछू-पीछू ही तो आया । इधर थोड़ा बाजू हटकर वेट किया ।"


"बाजू हटकर क्यों ?"


"वो एस एच ओ - गायकवाड़ बहुत कड़क इंस्पेक्टर है साला ! मेरे को बहुत डेंजर लगा कि तेरा हिमायती समझकर वो मेरे को भी न पकड़ ले । तेरी हिमायत के जुर्म में क्या ?"


जवाब देने की जगह जीतसिंह ने खामोशी से सिगरेट का कश लगाया ।


“क्या हुआ ?" - एंजो उत्सुक भाव से बोला - "तेरे को काहे पकड़ा वो इंस्पेक्टर ?"


"कहता है कल रात कुछ लोगों ने ओल्ड कोर्ट रोड के एक बैंक को लूटने की कोशिश की थी जो कि कामयाब नहीं हुई थी । तीन जनों में से एक पुलिस की गोली से मारा गया था, एक पकड़ा था और एक भाग गया था । इंस्पेक्टर को शक है कि जो भाग गया था वो मैं था । "


“तू ! अपना फिरेंड | बद्री !"


"हां । बैंक की सेफ उसी ने खोली बताते हैं जो कि भाग निकलने में कामयाब हो गया था ।”


"वो तू था ?" "पागल हुआ है !” "तो फिर कौन था?”


"मुझे क्या पता ?"


"लेकिन था कोई तेरे जैसा ही आर्टिस्ट जो कि बैंक के पेचीदा ताले खोल सकता था ?"


"खोल ही लिया बताते हैं सब कुछ उसने । तकदीर से ही कामयाब न हो सके वो लोग । उस अलार्म की खबर नहीं थी उन्हें जिसने एकाएक बजकर उनका काम बिगाड़ा ।"


"इतनी बड़ी वारदात हुई कल रात ! छापे में तो कुछ नहीं छपा ।”


"कल वक्त रहते अखबारों तक खबर नहीं पहुंची होगी । आज छपेगा ।"


"सांता मारिया ! कोई साला अपना आयडिया पहले ही फालो कर गया।"


"ऐंजो, तू जब से मुझे मिला है तभी से हमेशा मुझे उकसाता रहता है कि मैं अपने हुनर को किसी बड़े काम में इस्तेमाल करू ? अब देख, अभी मैंने कुछ भी नहीं किया तो उस इंस्पेक्टर ने मुझे थाने पकड़ मंगवाया और मेरी वो दुर्गति की जो शातिर मुजरिमों की की जाती है, वो मेरे से यूं पेश आया जैसे पक्के हिस्ट्रीशीटरों से पेश आया जाता है । आगे के लिए वार्निंग भी दे दी। मुझे ये तक कह दिया कि गोवा छोड़ जाने में ही मेरी भलाई थी । ये सब तब हुआ जब कि मैंने कुछ भी नहीं किया । कुछ किया होता तो सोच मेरी क्या गत बनती ?"


"कुछ नहीं होता।" - एंजो लापरवाही से बोला - "कुछ हुआ भी नहीं है । पुलिस वालों का तो काम ही है चोर बहकाना, लोगों को खौफजदा करके अपना मतलब निकालना टैरर फैलाना । तू कुछ करता तो मैं गारंटी करता है कि फेल न होता । वो साले अप्रेंटिस लोग थे जो अलार्म की बाबत न सोच सके । तू ऐसी गलती नहीं करने वाला । तू जब कुछ करेगा तो एकदम परफेक्ट करेगा ।"


जीतसिंह हंसा ।


"हंसने का नहीं है। मेरे को मालूम ।”


जीतसिंह फिर हंसा ।


"माई डियर फिरेंड मैं सीरियस है। मैं तेरे को भी सीरियस होना मांगता है ।"


"क्या सीरियस होना मांगता है ?" - जीतसिंह कदरन संजीदगी से बोला - "मेरे को क्या अपने हुनर का अखबार मे इश्तिहार देना चाहिए कि किसी वॉल्ट का, सेफ का कैसा भी पेचीदा ताला खुलवाने के लिए बद्रीनाथ तालातोड़ से सम्पर्क करें ? । दो बड़े वॉल्ट खुलवाने पर एक छोटी सेफ फ्री खोली जाएगी । तसल्लीबख्श काम की गारंटी | दुकान का वक्त दस से आठ | इतवार की छुट्टी । "


"तू मजाक का रहा है । "


"नहीं।"


"तू चिड़ के, खुनस खा के बोल रहा है ।"


"अरे, नहीं ।”


"पहले तू य बोल तेरे को मोटा माल मांगता है या नहीं मांगता ?"


"किस को नहीं मांगता?"


"मैं किस को नहीं जानता। मैं तेरे को जानता है। मैं तेरे से पूछा । तू अपना बोल ।”


“मांगता है। सच पूछे तो बहुत जल्दी मांगता है । एक खास रकम तो मैं चाहता हूं कि आंख बंद करू, आंख खोलूं तो वो मेरी झोली में हो ।”


"खास रकम ! "


“दस लाख रुपया ।”


"खास किसलिए ?"


"ये एक लम्बी कहानी है । कभी सुनाऊंगा ।”


" मैं कभी सुनेगा । अभी मेरे को उसी लाइन पर रहने का है जिस पर मैं अभी चालू हुआ । भटकाने का नहीं है । क्या !”


जीतसिंह खामोश रहा ।


"देख, मैं साला भाड़े का टैक्सी चलाता है। बारह-तेरह घंटे की शिफ्ट लगाता है तो तब कहीं जा के दो टेम का खाना और एक टेम की फेनी कमा पाता है। तू साला अक्खी दिहाड़ी उस तालों की दुकान पर एड़ियां रगड़ता है तो मेरे से उन्नीस-बीस जितना ही कमा पाता है। माई डियर फिरेंड, दिस इज नो लाइफ । हमारे से ज्यादा तो कोई साला बैगर सेंट फ्रांसिस की चर्च के सामने बैठकर चैरिटी में कमाता है । "


"लेकिन..."


"मेरी पूरी बात सुन । मैं अभी वहीं पहुंचता है जहां तू मेरे को पहुंचना मांगता है। तू अभी जो छापे के इश्तिहार की बाबत बोला उसका तेरा मतलब ये था कि हुनर दिखारे के लिये मौका भी तो होना चाहिए । ठीक ?"


"ठीक ।"


"लेकिन मौका होने से पहले मौके को इस्तेमाल करने की, उसको कैश करने की नीयत भी तो होनी चाहिए । सैवरल

टाइम्स मैं तेरे को हिंट दिया कि माई डियर फिरेंड तेरे को अपने आर्ट का फायदा उठाना चाहिए, तू एक टेम भी बात को सीरियसली नहीं लिया। हंसी में उड़ा दिया बात को जैसे कि अभी भी उड़ा रहा है । तेरे को खाली दस लाख मांगता है - मेरे को नहीं मालूम क्यों मांगता है। लेकिन होगा कोई वजह । मेरे को एक करोड़ मांगता है, दस करोड़ मांगता है, सौ करोड़ मांगता है और बिना वजह मांगता है। मेरे को गॉड आलमाइटी कोई हुनर नहीं दिया जिसको कि मैं कैश कर सकता है, तेरे को दिया, तभी मैं तेरे को बार-बार हिंट दिया कि कुछ करना मांगता है, कुछ करना मांगता है ! तू हमेशा कुछ नहीं बोला या नक्की बोला । माई डियर फिरेंड, एक बार हां बोल के देख फिर साला मैं ही तेरे को चलता-फिरता इश्तिहार बन के दिखायेगा ! मैं - एंजो - जो कि अक्खी गोवा स्टेट में टैक्सी लेकर फिरता है । तू हां बोल फिर देख एंजो क्या करता है !"


"क्या तो करता है, लेकिन कब करता है ? साल-छ: महीने में ?"


"तेरे को क्या जल्दी है ?"


" है जल्दी मेरे को । मेरे पास सिर्फ एक महीने का टेम है।" 


" यानी कि वन मंथ में तेरे को दस लाख रुपया मांगता है ?" 


"हां"


" फिर भी हां बोलने में साला अक्खा वन मन्थ वेस्ट कर दिया ?"


"उसकी वजह से जो आज थाने में मेरे साथ बीती । कुछ न किये भी मिट्टी पलीत है तो क्यों न कुछ कर गुजरने से हो ।”


" एग्जैक्टली । तो अब तेरी हां है ? "


"हां"


"मैं विद इन वन वीक तेरे को कुछ करके दिखाता है। मैं बाम्बे हैदराबाद, अहमदाबाद, बैंगलोर तक भाई लोगों में फैलाता है कि एक टॉप का लॉकमैन मेरा फिरेंड है । फिर देखना कैसे-कैसे और कैसे तेरा भी काम बनता है और मेरा भी काम बनता है ।"


"लेकन मेरी एक शर्त है ।”


"क्या ?"


"मेरा पहला और आखिरी काम वही होगा जो कि मुझे आता है । मैं ताला खोलूंगा - भले ही वो किसी लॉकर का हो, किसी सेफ का हो या वॉल्ट का हो । कैसा भी ताला खोल दिखाने की मैं गारंटी करता हूं । यही मेरा काम होगा । मैं किसी खून-खराबे में, किसी सशस्त्र डकैती में या ऐसे ही किसी और काम में शरीक नही होऊंगा ।"


"बिल्कुल ठीक । तू साला आर्टिस्ट है । अपन आर्ट दिखयेगा और बस फिनिश ! मैं साला डिरेवर है, अपनी डिरेवरी दिखायेगा और बस फिनिश । नो ब्लड बाथ । नो आड रॉबरी । नो नथिंग | ओके ?"


जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।


"अब बोल तेरे को वन मिलियन रुपीज क्यों मांगता है ?"


तत्काल जीतसिंह खिड़की से बाहर देखने लगा ।


ऐंजो ने एक आह-सी भरी और फिर टैक्सी को स्टार्ट करके उसे आगे बढ़ा दिया ।


***


एक हफ्ते की जगह पांच ही दिनों में एंजो शुभ समाचार के साथ जीतसिंह के पास पहुंचा ।


“फिगारो आइलैंड ।” - वो धीमे किन्तु संतुलित स्वर में बोला "कलंगूट बीच से पचास किलोमीटर पर है। कोई ढाई सौ किलोमीटर के एरिया वाला बीच समुद्र में आइलैंड है ये । आवाजाही के लिए कलंगूट बीच से रेगुलर स्टीमर सविस है । मालूम ?”


"मालूम।" - जीतसिह बोला ।


“वहां बड़े-बड़े रईस लोगों की एस्टेट हैं। ऐसा ही एक रईस एस्टेट और ओनर बुलबुल ब्रांडो नाम का एक आदमी है जो कि साल में दस महीने फारेन में रहता है और सिर्फ दो महीने के लिए यहां आता है। माई डियर फिरेंड । दिस बुलबुल ब्रांडो इज फिल्दी रिच। हाल ही में उसकी एस्टेट पर एक मर्डर केस हो गया था जिसकी वजह से फिगारो आइलैंड से उसका ऐसा मन खट्टा हुआ बताते हैं कि उसने अपनी एस्टेट को बेच देने का और इण्डिया को हमेशा के लिये गुडबाई कह देने का फैसला कर लिया है। आजकल एस्टेट बन्द है। वहां का आलीशान मैंशन भी बन्द है जिसकी वक्ती देखभाल के लिए वहां अब सिर्फ एक केयरटेकर, एक केयरटेकर का नौजवान लड़का और एक वाचमैन रहते हैं । वहां मैंशन की पहली मंजिल पर मास्टर बैडरूम में एक वाल सेफ है जिसके भीतर कि लाखों-करोड़ो के जवाहरात, जेवरात और कैश रोकड़ा बंद होने की उम्मीद है। भाई लोगों का उसी सेफ पर हाथ साफ करने का इरादा है । "


“भाई लोग ?” - जीतसिंह की भवें उठीं ।


"जिन में से दो हम हैं बाकी चार और हैं जिनसे आज रात हमारी मुलाकात होगी।”


"कहां ?"


"फिगारो आइलैंड पर । "


"आइलैंड पर कहां ?"


"उधर ईस्ट एण्ड के नाम से जाना जाने वाला एक इलाका है जहां कि एक पुराना पुर्तगाली बंगला है । आज रात नौ बजे हमें उधर ही पहुंचने का है जहां कि बंगले का प्रेजेंट ओनर जैक रिकार्डो हमें मिलेगा ।"


"वो भी भाई लोगों में से एक है ? "


"हां । बाकी आदमी भी उसी के हैं जिसमें कोई तालातोड़ या कोई टॉप का ड्राइवर नहीं है । ये कमी तू और मैं पूरी करेंगे |"


"हूं । बाकी के तीन जनों में क्या खूबी है ?"


"वो हिटमैन हैं । कोई खून-खराबे की या किसी मुठभेड़ की नौबत आ जाने पर जो करना होगा, वो तीनों करेंगे । "


" ऐसा कोई अन्देशा है ?"


" है तो नहीं । वो एक सुनसान एस्टेट बताई जाती है जहां ऐसा कुछ होने वाला लगता तो नहीं ।”


"फिर इतने आदमी किसलिये ? फिर बाकी तीन जनों की क्या जरूरत है ? उन जैसा तो एक ही काफी होगा ।"


"तू रिकार्डो से इस बाबत सवाल करना । शायद उसे तेरी बात जंच जाए और वो इतने आदमी जरूरी न समझे । "


"वो तीन आदमी हैं कौन ?"


"एक का नाम फरताब है जो कि रिकार्डो का जोड़ीदार है । बाकी दो फरताब के आदमी हैं जिसमें से एक तो कोई मोरानो नाम का लोकल छोकरा है और दूसरा कोई बम्बई का भाई है जो आज ही बम्बई से पणजी और पणजी से फिगारो पहुंचेगा ।"


"उसका क्या नाम है ?"


"पता नहीं ।”


"एंजो, आदमी ज्यादा हैं। ज्यादा आदमी होने से झमेले बढ़ते हैं और माल में हिस्सा घटता है।"


"तेरे को ऐसा तजुर्बा कैसे है ?”


"इसमें तजुर्बे की क्या बात है ?" - जीतसिंह हड़बड़ाकर बोला - "ये तो व्यवहार की बात है जिसे कि बच्चा भी समझ सकता है। "


"ठीक बोला तू । हम पहले इसी बाबत अपने होस्ट जैक रिकार्डो से बात करेंगे । ओके ?"


जीतसिंह ने अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।


न जाने क्यों उसे ये बात आंदोलित कर रही थी कि एक आदमी बम्बई से आ रहा था ।


और एंजो को उसका नाम तक नहीं मालूम था ।


***