वरसोवा की मछुआरों की बस्ती से विमल अभी कम-से-कम एक मील दूर था । उस वक्त उसकी कार पेड़ों से घिरी एक तंग सड़क से गुजर रही थी ।
सामने से एक कार उसकी तरफ आ रही थी ।
कार को रास्ता देने के लिए विमल को अपनी कार के बायें पहिये सड़क से नीचे उतार देने पड़े ।
पीछे से एक टैक्सी आ रही थी । उसकी रफ्तार से लग रहा था कि उसका ड्राइवर विमल की कार को ओवरटेक करने के लिए उतावला हो रहा था लेकिन अब सामने से आती कार की वजह से ऐसा हो पाना संभव नहीं रहा था ।
कार को बाबू चला रहा था ।
पीछे टैक्सी में मारियो और जिमी मौजूद थे ।
सामनी कार विमल की कार के समीप पहूंची ।
फिर उसकी बगल से गुजरने के स्थान पर एकाएक बाबू ने कार को दायें घुमा दिया ।
कार तिरछी होकर ऐन विमल की कार के सामने आन खड़ी हुई ।
विमल ने जोर से ब्रेक के पैडल पर पांव दबाया ।
उसकी कार भड़ाक से दीवार बनी खड़ी सामने कार से टकराई और फिर स्थिर हो गई ।
विमल के शरीर ने एक जोर का झटका खाया । उसकी छाती पहले स्टियरिंग से जाकर ठुकी और फिर पीछे सीट से टकराई ।
ब्रेकों की चरचराहट से वातावरण गूंज रहा था ।
टैक्सी यूं विमल की कार के पीछे आकर लगी कि विमल की कार टैक्सी और सामनी कार के बीच में सैंडविच बन गई ।
आनन-फानन बाबू अपनी कार में से और मारियो और जिमी टैक्सी में से बाहर बिखर पड़े ।
तीनों अपने चेहरों पर नकाब ओढे थे ।
हर नकाब एक ऐसे थैले थी जो उन्होंने सिर पर गरदन तक ओढ़ा हुआ था और जिसमें केवल आंखों के स्थान पर दो छोटे-छोटे छेद थे ।
पलक झपकते ही वे तीनों विमल के सिर पर पहुंच गए ।
इससे पहले कि विमल संभल भी पाता, उन्होंने विमल को दबोच लिया । उन्होंने विमल को टैक्सी से बाहर घसीट लिया ।
जिमी ने अपनी एक बांह उसकी गरदन के गिर्द लपेटकर उमेठी और दूसरे हाथ में थमी रिवॅाल्वर की नाल बड़ी बेरहमी से उसके कान में घुसेड़ दी ।
“खबरदार !” - वह बोला ।
“कौन हो तुम लोग ?” - विमल बोला ।
किसी ने जवाब देना जरूरी नहीं समझा ।
दो जोड़ी हाथ बड़ी फुर्ती से, बड़ी दक्षता से, उसके जिस्म को टटोलने लगे ।
“क्या चाहते हो ?” - विमल बोला ।
“शटअप !” - मारियो झुंझलाए स्वर में गुर्राया ।
डायरी विमल के पास से बरामद न हुई ।
“कार में देखो ।” - वह बाबू से बोला ।
बाबू ने आनन-फानन कार टटोलनी आरम्भ की ।
तभी टैक्सी एकाएक बैक होती हुई वहां से दौड़ चली ।
किसी ने ड्राइवर को रोकने की कोशिश नहीं की ।
प्रत्यक्षत: वहां मचे उत्पात से घबराकर टैक्सी ड्राइवर ने अपनी सवारियां और अपना भाड़ा छोड़कर वहां से भाग निकलने में ही अपना कल्याण समझा था ।
“नहीं है ।” - कार से बाहर निकलकर बाबू ने घोषणा की ।
उसके स्वर से साफ जाहिर हो रहा था कि उसे तलाश से पहले से मालूम था कि डायरी नहीं मिलने वाली थी ।
“कहां है ?” - मारियो आंखे निकालता हुआ विमल से बोला ।
“क्या ?” - विमल बोला ।
“डायरी । लिटल ब्लैक बुक । जो तुमने बखिया के वाल्ट में से निकाली है ।”
“मेरे पास नहीं है ।”
“तो फिर किसके पास है ?”
विमल ने जवाब न दिया ।
“सरदार के बच्चे !” - मारियो ने विमल की नाक अपनी उंगलियों में पकड़कर एक बार जोर से उमेठी - “मैने तेरे से एक सवाल पूछा है ।”
“तुम लोग जानते हो, मैं कौन हूं ?” - पीड़ा से बिलबिलाता हुआ विमल बोला ।
“हां, जानते हैं ।”
“फिर भी तुम्हारी मेरे से उलझने की हिम्मत हुई ?”
“साले !” - मारियो ने उसके पेट में घूंसा जमाया - “हमारी हिम्मत दिखाई नहीं दे रही तुझे ?”
विमल घूंसे की मार से दोहरा हो गया लेकिन पीछे से उसकी गरदन थामे खड़े जिमी ने उसे फिर वापिस घसीटकर कर दिया ।
विमल ने कसकर अपने होंठ भींच लिए ।
“जल्दी बोल, डायरी कहां है ?” - मारियो गर्जा - “वरना अभी हाथ-पांव तोड़कर यहां...”
एक फायर की आवाज हुई ।
एक गोली सनसनाती हुई आकर विमल की कार से टकराई । गोली जिमी के कंधे को लगभग छूती हुई गुजरी थी ।
जिमी ने घबराकर विमल को छोड़ दिया ।
वह आंखें फाड़े पेड़ों के उस झुरमुट की तरफ देखने लगा जिधर से गोली चली मालूम होती थी ।
एक फायर और हुआ ।
लेकिन गोली कहां गई, किसी को पता नहीं चला ।
तीनों बगोले की तरह अपनी कार की तरफ झपटे ।
विमल में उनकी दिलचस्पी एकाएक कतई खत्म हो गई थी ।
एकाएक विमल भागते हुए मारियो पर झपटा ।
मारियो की गरदन उसके हाथ में आ गई ।
बाबू ने उसकी पसली में एक जोर की लात जमाई ।
मारियो की गरदन तो विमल के हाथ से छूट गई लेकिन विमल का एक हाथ उसके चेहरे पर कुछ इस ढंग से पड़ा कि उसके चेहरे पर से उसकी नकाब नुचती चली गई ।
विमल को केवल एक हल्की सी झलक मारियो के चेहरे की मिली ।
फिर वह सड़क पर ढेर हो गया ।
तीनों आनन-फानन सामनी कार में जा घुसे ।
पेड़ों के झुरमुट में से उन पर गोलियां अब भी बरस रही थीं ।
कार एक बार बैक होकर सीधी हुई और फिर तोफ से छूटे गोले की तरह से वहां से दौड़ चली ।
विमल तनिक कराहता हुआ उठकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ ।
नकाबपोशों की कार के वहां से रुखसत होते ही गोलियां चलनी बंद हो गई थीं ।
तनिक आशंकित, तनिक आतंकित, विमल आंखें फाड़-फाड़कर पेड़ों के झुरमुट की तरफ देख रहा था ।
एक आदमी ने पेड़ों की ओट से बाहर कदम रखा ।
वह कुछ कदम आगे बढ़ा तो विमल को ठीक से उसकी सूरत दिखाई दी ।
उसने शांति की एक गहरी सांस ली ।
वह वागले था ।
रिवॅाल्वर अभी भी उसके हाथ में थी ।
वह विमल के समीप पहुंचा ।
“भाग गए साले ।” - विमल बोला ।
“तुम ठीक हो न ?” - वागले ने पूछा ।
“हां । तुम बड़े मौके पर पहुंचे, दोस्त !”
“मैं पहुंचा नहीं । था ही यहां ।”
“अच्छा ! क्यों ?”
वागले ने तुरंत उत्तर न दिया ।
विमल ने नोट किया, वागले के चेहरे पर अजीब-सी परेशानी और व्यथा के भाव थे ।
“कौन थे ये लोग ?” - वागले रिवॅाल्वर अपने कोट की जेब में रखता हुआ बोला ।
“उन्हें छोड़ो । उनकी बात में करेंगे । पहले यह बताओ, तुम यहां क्या कर रहे थे ? खैरियत तो है ?”
“खैरियत” - वागले गंभीर स्वर में बोला - “नहीं है, दोस्त !”
“क्यों, क्या हुआ ?”
“तुका और देवा को बखिया के आदमी पकड़कर ले गए हैं ।”
“क्या ?” - विमल बुरी तरह से चौंका ।
“कम्पनी का सिपहसालार मैक्सवैल परेरा खुद बेशुमार आदमियों के साथ यहां पहुंचा था । उन्होंने सारी बस्ती घेर ली थी । बच निकलने की कोई सूरत नहीं थी । मैं भी महज इसलिए बच गया था क्योंकि हल्ले के वक्त मैं तुका और देवा के साथ नहीं था और कोई मुझे पहचानता नहीं था । तुम इसलिए बच गए क्योंकि तुम बस्ती में थे नहीं ।”
“लेकिन” - विमल के मुंह से निकला - “कम्पनी को हमारे इस ठिकाने का पता कैसे लगा ?”
“पता नहीं कैसे पता लगा ! बहरहाल हालात ये हैं कि शांताराम के दो बाकी बचे भाई बखिया की गिरफ्त में हैं और बस्ती में तुम्हारे वहां पहुंचने का इंतजार हो रहा है ।”
“ओह !”
“तुम्हें खबरदार करने की नीयत से मैं यहां रास्ते में छुपा खड़ा था कि यहां मुझे कुछ और ही ड्रामा देखने को मिला । चाहते क्या थे ये लोग ?”
“लिटल ब्लैक बुक ।”
“क्या ?”
“है न हैरानी की बात ! लिटल ब्लैक बुक हमने बखिया के वाल्ट से निकाली थी यानी कि वह वाल्ट में लगे बम की वजह से उसी में भस्म नहीं हो चुकी, इस बात की तो अभी खुद बखिया को खबर नहीं लेकिन उन नकाबपोशों को थी । न सिर्फ खबर थी बल्कि वह उसके मेरे पास होने की भी उम्मीद कर रहे थे । मुझे पकड़ते ही उन्होंने सबसे पहले मेरी तलाशी ली थी । शुक्र है कि डायरी मेरे पास नहीं थी ।”
“कमाल है ! ऐसे साधन-सम्पन्न नकाबपोश थे कौन ये हरामजादे ?”
“वागले, उन तीनों में से एक का नकाब मैंने नोच लिया था इसलिए उसकी सूरत की एक मुख्तसर-सी झलक मुझे मिली थी ।”
“यानी कि तुम उसे दोबारा देखोगे तो पहचान लोगे ?”
“अगर मेरी आंखो ने धोखा नहीं खाया तो मैं उसे अभी पहचानता हूं ।”
“अच्छा ! कौन था वो ?”
“वह मारियो नाम का एक बदमाश था जो कभी गोवा के मशहूर गैंगस्टर एंथोनी एल्बुकर्क का बॉडीगार्ड हुआ करता था ।”
“तुम जानते हो उसे ?”
“हां, जानता हूं । उसे भी और उसके बॉस को भी । गोवा में उन लोगों से मेरे दो-दो हाथ भी हो चुके हैं ।”
“कब ?”
“जब गोवा में उनमें और उनके प्रतिद्वन्द्वी मैगुअल अल्फांसो में भयंकर गैंगवार छिड़ी थी, वह गैंगवार जिसकी वजह मैं था और जिसका समापन अपने वक्त के सबसे शक्तिशाली दादा विशंभरदास नारंग की मौत के साथ हुआ था ।”
“ओह ! तुमने मारियो को ठीक तो पहचाना था ?”
“ठीक से पहचानने लायक वक्त तो मुझे उसकी सूरत देखने का नहीं मिला था । फिर गोवा की वह गैंगवार बहुत पुरानी बात भी हो चुकी है । लेकिन फिर भी नकाबपोश की शक्ल देखते ही जो बिजली मेरे जेहन में कौंधी थी, वह यही कहती थी कि वह एंथोनी एल्बुकर्क का बॉडीगार्ड मारियो ही था । आज भले ही वह एल्बुकर्क से संबंधित न हो, लेकिन...”
“वह आज भी एल्बुकर्क से संबंधित है ।”
“अच्छा !”
“लेकिन अब वह उसका बॉडीगार्ड नहीं, उसका खास आदमी है, उसका लेफ्टिनेंट है, उसका दायां हाथ है ।”
“वागले ! क्या एल्बुकर्क बखिया की खिलाफत में खड़ा होने की हिम्मत कर सकता है ?”
“नहीं कर सकता । लेकिन लिटल ब्लैक बुक एक इकलौती शक्ति है जो बखिया के खिलाफ किसी का भी पलड़ा भारी कर सकती है । उस डायरी की हमारे पास मौजूदगी की खबर बम्बई के अंडरवर्ल्ड में फैलने से हमारी शामत आ सकती है । अभी हम सिर्फ एक बखिया से लोहा ले रहें हैं, फिर बखिया जैसे दर्जनो बड़े दादा हमारे पीछे पड़ जाएंगे ।”
“लेकिन मैं फिर पूछता हूं, किसी को मालूम कैसे हो सकता है कि डायरी हमारे पास है ?”
“क्या पता, क्या माजरा है !”
“वैसे” - विमल ने झिझकते हुए पूछा - “डायरी का क्या हुआ ?”
“डायरी सुरक्षित है ।” - वागले ने बताया - “मेरे पास है ।”
“ओह !”
“अब तुका और देवा का क्या होगा ?”
विमल ने तुरंत उत्तर न दिया ।
तुकाराम और देवाराम का अंजाम उसे बहुत आतंकित कर रहा था ।
‘कम्पनी’ के हाथों दोनों भाइयों की बहुत बुरी गत बन सकती थी ।
उनकी जीवाराम से भी ज्यादा दुर्गति हो सकती थी ।
फौरन कुछ करना बहुत जरुरी था ।
अपनी खातिर वह अपने मेहरबानों को बकरे की तरह जिबह होने नहीं दे सकता था ।
एक क्षण में उसने अपना अगला कदम निर्धारित कर लिया ।
“डायरी दिखाना ।” - वह बोला ।
वागले ने कोट की भीतरी जेब से डायरी निकालकर उसके हाथ में रख दी ।
विमल ने डायरी को बीच में से खोला और दोनों तरफ से पूरी तरह से भरा हुआ एक वरका छांटकर, उसे फाड़ लिया । उस वरके की उसने चार तह लगाई और उसे जेब में रख लिया । बाकी की डायरी उसने वागले को वापस सौंप दी ।
“इसे बहुत संभालकर रखना, वागले !” - वह बोला - “यह डायरी ही काले पहाड़ के चंगुल से तुका और देवा को छुड़ाएगी ।”
“मैं अपनी जान से ज्यादा हिफाजत करूंगा इसकी ।” - वागले बोला ।
“वैसे यह करोड़ों का माल है । बखिया से या उसके किसी दुश्मन से तुम इसके करोड़ो रुपये खड़े कर सकते हो ।”
वागले ने आहत भाव से उसकी तरफ देखा और धीरे से बोला - “मैं नमकहराम नहीं ।”
“जानकर खुशी हुई ।”
“तुम्हारा इरादा क्या है ?”
“इरादा बड़ा खतरनाक है । इरादा शेर को उसकी मूंछ के बाल से पकड़ने का है । फिलहाल और कुछ मत पूछो । फिलहाल डायरी को लेकर तुम किसी ऐसी सुरक्षित जगह पर पहुंच जाओ जहां जरूरत पड़ने पर मैं निर्विघ्न तुमसे संपर्क स्थापित कर सकूं । है कोई ऐसी जगह तुम्हारी निगाह में ?”
“है । कोलीवाड़ा में ‘मराठा’ नाम एक होटल है । उसका मालिक सलाउद्दीन मेरा दोस्त है । मैं वहां चला जाता हूं ।”
“ठीक है । लेकिन एक बात का ध्यान रखना ।”
“क्या ?”
“डायरी की वजह से जरूर हम लोग किसी की निगाहों में हैं । आज सिवरी जाते वक्त और वहां से लौटते वक्त कई बार मुझे लगा था कि मैं किसी की निगाहों में था लेकिन मैंने बात की वहम समझकर अपने दिमाग से झटक दिया था । अब अभी जो नकाबपोशों का हमला मुझ पर हुआ है, उससे लगता है कि वह मेरा वहम नहीं था और यह कि मुझे बहुत चौकन्ना रहना चाहिए था । वागले, इसी तरह कोई तुम्हारे पीछे भी लग सकता है ।”
“मुझे कोई नहीं जानता ।” - वागले पूरे विश्वास के साथ बोला ।
“फिर भी सावधान रहना । डायरी हाथ से न निकलने पाए । डायरी हाथ से निकल गई तो हम यकीनन बाजी हार जाएंगे ।”
“डायरी को कुछ नहीं होगा ।”
“गुड ! गाड़ी में बैठो, मैं तुम्हें रास्ते में कहीं उतार दूंगा ।”
दोनो गाड़ी में सवार हो गए ।
***
मारियो और उसके साथी अपनी कार पर सवार होकर वहां से ज्याद दूर नहीं गए थे । उसके इशारे पर बाबू ने कार को रेत में उतारकर पेड़ों के एक झुरमुट के पीछे खड़ा कर दिया था ।
गोली की चपेट में आने से जिमी बाल-बाल बचा था । इसीलिए वह बुरी तरह से आतंकित था ।
“सांता मारिया !” - उसके मुंह से बार-बार निकल रहा था - “सांता मारिया !”
“शटअप !” - मारियो दांत पीसकर बोला ।
“वह तो अपुन हो गया समझो, बाप लेकिन यह तो बताओ कि किसी खुदाई फरिश्ते की तरह सोहल का कौम-सा मददगार वहां पहुंच गया था ?”
मारियो के पास उसका जवाब नहीं था ।
“डायरी उसके पास नहीं थी ।” - बाबू बोला - “मैंने पहले ही बोला था कि डायरी उसके पास हो ही नहीं सकती थी ।”
“मुझे मालूम है, तुमने पहले क्या बोला था ।” - मारियो झल्लाया ।
“फिर भी...”
“थोबड़ा बंद ।”
बाबू चुप हो गया ।
“सोहल की कार वापिस आ रही है ।” - एकाएक जिमी बोला ।
मारियो ने भी दूर सड़क की तरफ निगाह दौड़ाई ।
“यह वापिस क्यों आ रहा है ?” - मारियो चिंतित भाव से बोला - “यह वरसोवा क्यों नहीं पहुंचा ?”
“साथ कोई और भी है ।” - बाबू दबे स्वर में बोला ।
“यह जरूर वही आदमी होगा” - जिमी बोला - “जिसने हम पर गोलियां बरसाई थीं ।”
“हो सकता है ।” - मारियो बोला - “बाबू, तैयार हो जा । हमने उनके पीछे लगना है ।”
“क्या फायद ?” - बाबू बड़बड़ाया - “अब तो हमें गारंटी के साथ मालूम है कि डायरी सोहल के पास नहीं है ।”
“जो डायरी सोहल के पास नहीं है, वह उसके किसी संगी-साथी के पास हो सकती है ।”
“बाप, पहले तुम ही कह रहे थे कि ऐसी चीज को सोहल अपने कलेजे से लगाकर रखेगा ।”
“ठीक है । ठीक है । मेरी पहली बात गलत निकली तो इसका यह मतलब नहीं कि मेरी हर बात गलत निकलेगी ।”
“लेकिन...”
“ईडियट, जब मैंने उससे डायरी के बारे में पूछा था तो तुमने सुना नहीं था कि उसने क्या जवाब दिया था ?”
“क्या जवाब दिया था ?”
“उसने कहा था कि डायरी मेरे पास नहीं है । अगर वह डायरी के वजूद से बेखबर होता तो उलटे मुझसे सवाल करता कि कौन-सी डायरी ? कैसी लिटल ब्लैक बुक ? क्या समझे ?”
बाबू खामोश रहा ।
“डायरी वहां हो सकती है जहां वे इस वक्त जा रहे हैं ।”
“वे कहां जा रहे हैं ?”
“यह इनके पीछे लगे बिना कैसे मालूम होगा, ईडियट ?”
विमल की कार करीब आई और फिर उनके सामने से गुजरी ।
“पीछे चलो ।” - मारियो ने आदेश दिया - “लेकिन सावधानी से । बहुत सावधानी से । बहुत ज्यादा सावधानी से ।”
बाबू ने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया । उसने गाड़ी का इंजन स्टार्ट किया और हौले से उसे गियर में सरका दीया ।
***
तुकाराम और देवाराम - ‘कम्पनी’ के हाथों सपरिवार हलाक हुए शांताराम के बाकी बचे दो भाई - होटल सी व्यू के अंडरवर्ल्ड में फेमस तहखाने में बखिया के सामने मौजूद थे ।
बखिया के अलावा वहां जो लोग मौजूद थे, तुकाराम उनमें से मैक्सवैल परेरा, जोजो, इकबालसिंह और शांतिलाल को बखूबी पहचानता था । अभी तक उनके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं हुआ था लेकिन जो कुछ होने वाला था, उससे वे बेखबर नहीं थें ।
वे अपनी इस मूर्खता पर पछता रहे थे कि वरसोवा वाले उनके ठिकाने का राज फाश हो जाने के बाद भी वे वहां टिके रहे थे । चाहे देवाराम ने सोमानी समेत उन तमाम लोगों को मार डाला था जिन्होंने सोमानी को वरसोवा में उनकी मौजूदगी का जिक्र करते सुना था लेकिन फिर भी उन्हें वहां टिके नहीं रहना चाहिए था ।
जैसे इंतजाम के साथ उन लोगों ने वरसोवा की उस बस्ती पर धावा बोला था, उससे तो यही लगता था कि देर-सवेर सोहल का भी उनके जाल में आ फंसना अवश्यभावी था ।
लेकिन फिलहाल सोहल आजाद था ।
इत्तफाक से आजाद था ।
और संकट और दुश्वारी के उस निपट अंधेरे में अगर कोई उम्मीद की नन्ही-सी किरण उन्हें दिखाई देती था तो वह सोहल ही था ।
तुकाराम ने अपने युवा भाई की तरफ देखा ।
देवाराम उसे चिंतित जरूर दिखाई दिया लेकिन भयभीत न दिखाई दिया ।
बेचारा !
तुकाराम को दिल से अपने बीससाला भाई के लिए अफसोस हुआ ।
बखिया से यह उम्मीद करना तो बेकार था कि वह तुकाराम की जान ले ले और उससे आधी उम्र के भाई देवाराम को छोड़ दे ।
“सोहल कहां है ?” - बखिया ने बड़े सहज भाव से उससे सवाल किया ।
“मालूम नहीं ।” - तुकाराम बोला ।
“लेकिन तुम्हरे साथ था वो ? वरसोवा के उस मकान में ?”
“हां ।”
“फिर कहां चला गया ?”
“पता नहीं । बताकर नहीं गया था वो ।”
“लेकिन लौटेगा वहीं ?”
“हां ।”
“तू बड़ा है न ?”
“हां ।”
“तुकाराम नाम है तेरा ?”
“हां ।”
“हूं !” - बखिया सहमति में गरदन हिलाता हुआ बोला - “समझदार है तू । अपने उस भाई से ज्यादा समझदार है तू जो परसों यहां पकड़कर मंगवाया गया था । क्या नाम था उसका ?”
“जीवा । जीवाराम ।”
“वह खामखाह झूठ बोलता था । तू कम-से-कम झूठ नहीं बोलता ।”
तुकाराम चुप रहा ।
“तो तू कबूल करता है कि सोहल तुम लोगों की पनाह में था और तू और तेरे भाई उसके हिमायती बने हुए थे ?”
“हां ।”
“क्यों ? क्यों किया ऐसा ?”
“अपने भाई शांताराम और उसके कुनबे की मौत का बदला लेने के लिए किया ।”
“ले लिया बदला ?”
“मुकम्मल तौर से नहीं ।”
“मुकम्मल तौर से नहीं !” - बखिया गर्जा - “सुनो तो हरामजादे का जवाब ! जवाब सुनो तो हरामजादे का ! मुकम्मल तौर से क्या बदला लेता तू ? पकड़ा न जाता तो बखिया को पछाड़ लेता ?”
“हां ।”
“हां । कहता है, हां ! दीदादिलेरी देखो कुत्ते के पिल्ले की । कहता है, बखिया को पछाड़ लेता ! साला कहीं यह तो नहीं समझ रहा कि बखिया ने इसे यहां इसकी मिजाजपुर्सी के लिए बुलाया है । गले लगकर मिलने के लिए बुलाया है ।”
“जोजो, मिजाजपुर्सी शुरू करे इसकी ?” - परेरा बोला ।
“अभी नहीं । अभी इनके जोड़ीदार को भी आ लेने दो । आता ही होगा वो । फिर इकट्ठी मिजाजपुर्सी होगी इनकी । बहुत यारी जो है हरामजादों में ।”
कोई कुछ न बोला ।
“लेकिन पहले उनके सामने उस कुत्ते के पिल्ले की मिजाजपुर्सी करो जिसने पेट्रोल पंप की सेफ का माल लूटने की जुर्रत की थी । क्या नाम था उसका ?”
“तिलकराज !” - परेरा बोला ।
“कोई बड़ा दादा निकला वो ?”
“नहीं, बॉस ! मामूली चोर था वो । सिंगल हैंड ऑपरेटर । अकेला काम करने वाला ।”
“अच्छा ! फिर भी मजाल तो देखो हरामजादे की । साली मक्खी ने शेर की मूंछ का बाल नोचने की हिम्मत की है । कहां है वो ?”
“यहीं है ।”
“पेश करो ।”
परेरा ने दो प्यादों को संकेत किया ।
कुछ क्षण बाद भय से अधमरा हुआ जा रहा तिलकराज बखिया के सामने पेश किया गया ।
बखिया की खूंखार शक्ल पर एक निगाह-भर पड़ जाने से उसे अपने दिल की धड़कन रुकती महसूस हुई ।
“तो तू है वो महारथी” - बखिया अपनी लाल-लाल आंखों से उसे घूरता हुआ बोला - “जिसने बखिया के ठीये पर वार करने की जुर्रत की थी ?”
तिलकराज के मुंह से बोल न फूटा ।
“हरामजादे !” - बखिया कहर-भरे स्वर में बोला - “बखिया का माल लूटना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन उसके माल को लूटकर उसे हज्म कर जाना बहुत बड़ी बात है । बहुत बड़ी बात है बखिया के माल को हज्म कर जाना । तुझसे हुआ हज्म बखिया का माल ?”
भय से जड़ हुआ तिलकराज बड़ी मुश्किल से इन्कार में गरदन हिला पाया ।
“लेकिन” - बखिया अपने एक हाथ का घूंसा दूसरे हाथ की हथेली पर जमाता हुआ दहाड़ा - “कोशिश तूने बराबर की । बराबर की कोशिश तूने । अपनी करतूत की सजा जानता है ?”
तिलकराज खामोश रहा ।
“यानी कि नहीं जानता ! अभी जान जाएगा । अभी का अभी जान जाएगा । जानेगा कैसे नहीं ! जोजो !”
“सर !” - जोजो तत्पर स्वर में बोला ।
“उल्टा टांग दे हरामजादे को ।”
आनन-फानन रहम की बेतहाशा फरियाद करते तिलकराज को छत से लटकते एक हुक के सहारे उलटा टांग दिया गया ।
“आज ऐसा कमाल दिखा अपना कि शांताराम के बाकी बचे इन दोनों भाइयों का सिर्फ नजारा करने से ही हार्ट फेल हो जाए । परेरा !”
“यस, बॉस ।”
“यह तेरी जिम्मेदारी है कि ये दोनों भाई अभी सामने आने वाले नजारे की तरफ से पीठ न फेरने पाएं । आंखें भी न बंद करने पाए ये अपनी । इन्हें अच्छी तरह से दिखाई देना चाहिए की अभी थोड़ी देर बाद इनका और इनके जोड़ीदार सोहल का क्या हश्र होने वाला है ।”
“ऐसा ही होगा, बॉस !”
परेरा ने एक कोड़ा संभाल लिया ।
जोजो ने अपना ब्लेड की धार जैसे पैने फल वाला चाकू निकाल लिया ।
“प्याज की तरह छील दे हरामजादे को ।” - बखिया गर्जा ।
जोजो मुस्कराता हुआ हुआ हुक से उलटे लटके तिलकराज के पास पहुंचा ।
तिलकराज की घिग्घी बंध गई हुई थी और आतंक से उसकी आंखें फटी पड़ रही थी ।
जोजो ने सबसे पहले उसके जिस्म पर से उसके कपड़े उधेड़े ।
फिर उसने बड़ी मुस्तैदी से, बड़ी नफासत से, अपना पसंदीदा काम करना आरंभ कर दिया ।
परत-परत करके वह तिलकराज के जिस्म से उसकी चमड़ी और गोश्त उतारने लगा ।
वातावरण उसकी हृदय विदारक चीखों से गूंजता रहा, गूंजता रहा ।
तुकाराम और देवाराम को वह हौलनाक नजारा जबरन देखना पड़ रहा था । उनमें से किसी के आंखें बंद करते ही या पीठ फेरते ही परेरा के हाथ में थमा कोड़ा लपलपाता हुआ उसके जिस्म से आ टकराता था ।
फर्श पर तिलकराज के जिस्म से उतरी चमड़ी और गोश्त का ढेर लगने लगा ।
तुकाराम और देवाराम के अलावा वहां मौजूद किसी आदमी के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी । जाहिर था कि उस तहखाने में ऐसे तमाशे देखने के वे आदी थे ।
***
अगली कार होटल सी व्यू के सामने रुकी ।
बाबू ने उससे बहुत परे अपनी कार रोक दी ।
“बॉस !” - जिमी बोला - “ये तो बखिया के हैडक्वार्टर पहुंच गए !”
“फिलहाल” - मारियो तनिक चिंतित भाव से बोला - “ये होटल सी व्यू के सामने पहुंचे है ।”
“एक ही बात है ।”
“नहीं है एक ही बात ।”
“अगर” - बाबू बोला - “ये दोनों अलग हो गए तो ?”
“तो गाड़ी तुम्हारे हवाले ।” - मारियो ने तुरंग निर्णय लिया - “इन दोनों में से जो भी गाड़ी ले जाए, तुम उसके पीछे लग लेना । जो टैक्सी पर या किसी और वाहन पर सवार होगा, उसके पीछे मैं लग जाऊंगा । ओके ?”
दोनों ने सहमति में सिर हिलाया ।
“अब हमारे में संपर्क-सूत्र बॉस का टेलीफोन नम्बर होगा । मौका लगते ही वहां फोन बजाना और हालात की खबर करना ।”
“ठीक है ।” - जिमी बोला ।
“बाप !” - एकाएक बाबू बोला - “गाड़ी में से तो सोहल निकल रहा है !”
“मैं भी बाहर निकल रहा हूं ।” - मारियो कार का दरवाजा खोलता हुआ बोला - “तुम लोग साये की तरह इस दूसरे आदमी के पीछे लग जाओ । पहला मुनासिब मौका हाथ आते ही तुमने इसे धर दबोचना है । डायरी इसके पास भी हो सकती है ।”
“डायरी किसी के पास नहीं हो सकती ।” - बाबू बोला - “वाल्ट नहीं खुल सकता ।”
“अबे स्साले तोते !” - मारियो झल्लाया - “अपनी यह रट छोड़ेगा या नहीं ?”
“यह रट नहीं, हकीकत है ।”
“फिर भी थोबड़ा बंद रख ।”
“बाबू ने दांत भींच लिए ।
“बाप !” - जिमी बोला ।
“अब क्या है ?” - मारियो गुर्राया ।
“तुम बाबू के साथ दूसरे आदमी के पीछे जाओ । सोहल के पीछे मुझे जाने दो ।”
“क्यों ?”
“उसने तुम्हारा नकाब जो नोच लिया था । वह तुम्हारा चौखटा पहचान सकता है ।”
“नहीं पहचान सकता । उसने नकाब ही नोचा था । मेरी सूरत पर उसकी निगाह नहीं पड़ी थी ।”
“सोच लो । तुम अकेले भी हो ।”
“अकेले तो तुम भी होओगे ।”
“लेकिन...”
“अगली कार रवाना हो रही है । तुम मेरी मेरी फिक्र मत करो । पहला मौका हाथ आते ही मैं फोन करके और आदमी बुला लूंगा ।”
मारियो कार से बाहर निकल आया ।
बाबू ने कार को तब तक होटल के सामने से रवाना हो चुकी अगली कार के पीछे लगा दिया जिसे कि उस वक्त वागले चला रहा था ।
विमल कुछ क्षण फुटपाथ पर खड़ा वागले की दूर होती हुई कार को देखता रहा और फिर घूमकर होटल के कम्पाउंड में दाखिल हो गया ।
सोहल का वह एक्शन मारियो के लिए सख्त हैरानी का बायस था ।
***
एकाएक हुक पर लटके तिलकराज ने चीखना बंद कर दिया ।
जोजो ने हाथ रोका ।
उसने तिलकराज की एक सलामत कलाई पकड़कर उसकी नब्ज देखी ।
नब्ज बंद हो चुकी थी ।
“खतम ।” - वह बोला ।
“लानत !”- बखिया मुंह बिगाड़कर बोला - “सिर्फ पंद्रह मिनट ही चला प्रोग्राम ! क्या होता जा रहा है आजकल के नौजवानों को ? कोई दम-खम ही नहीं इनमें !”
“जोजो !”
“शांताराम के भाइयों के साथ यह प्रोग्राम लंबा चलना चाहिए ।”
“लंबा ही चलेगा, बखिया साहब । खूब लंबा चलेगा । खासतौर से” - उसने एक क्षण ठिठककर एक सरसरी, उम्मीद-भरी निगाह देवाराम पर डाली - “छोटे वाले के साथ ।”
“बढिया ।”
तुकाराम ने बड़े व्यथित भाव से अपने नौजवान भाई की तरफ़ देखा ।
देवाराम के चेहरे पर उसे निडरता और दिलेरी के अलावा कुछ न दिखाई दिया ।
उलटे लटके तिलकराज के बालों के साथ पोंछ-पोंछकर जोजो अपने चाकू पर से खून साफ करने लगा ।
“दिल मजबूत हैं तुम्हारे ।” - बखिया तुकाराम और देवाराम की तरफ घूमा - “दोनों सही-सलामत खड़े हो बखिया के सामने । हार्ट फेल नहीं हुआ तुममें से किसी का ।”
दोनों खामोश रहे ।
“एक बात का जवाब दो ।”
“कौन-सी बात का ?” - तुकाराम बोला ।
“रोडरी को किसने मारा था ? तुम दोनों में से किसी ने या उस सरदार के बच्चे ने ?”
“मैंने ।” - देवाराम बड़ी दिलेरी से बोला ।
“शाबाश !” - बखिया फुंफकारा - “साले संपोलिए ! फिर तो तेरे को बखिया अलग से इनाम देगा । खुद इनाम देगा । खुद बखिया इनाम देगा तुझे ।”
वह बोलता-बोलता रुक गया ।
उसकी निगाह दरवाज़े की तरफ़ उठ गई ।
एक सूट-बूटधारी व्यक्ति दौड़ता हुआ भीतर दाखिल हो रहा था ।
वह उन व्यक्तियों में से एक था जो होटल की प्राइवेट लिफ्टों के सामने गार्डों के साथ तैनात होते थे ।
“क्या है ?” - परेरा ने डपटकर पूछा ।
“साहब !” - वह हांफता हुआ बोला - “बाहर एक आदमी आया है ।”
“तो क्या हुआ ?”
“साहब, वह अपना नाम सोहल बता रहा है ।”
“क्या ?”
“और कह रहा है कि बखिया साहब खबर की जाये कि वह उसके इस्तकबाल के लिए खुद हाजिर हों ।”
सब एक-दूसरे के मुंह देखने लगे ।
सबके चेहरों पर अविश्वास के भाव थे ।
“इधर सामने आ ।” - फिर बखिया बोला ।
वह आदमी डरता-झिझकता बखिया के सामने पेश हुआ ।
“तूने ठीक से सुना था ?” - बखिया बोला - “सोहल बताया था उसने अपना नाम ?”
“जी हां, साहब ।”
“उसका हुलिया बयान कर ।”
उसने किया ।
वह निश्चय ही सोहल का हुलिया था ।
कोई मेकअप नहीं ।
कोई छुपाव का जरिया नहीं ।
सोइल !
खालिस सोहल !
“अब वो कहां है ?” - बखिया के स्वर में तनिक व्यग्रता का पुट आ गया ।
“बाहर लॉबी में बैठा है ।”
“उसकी निगरानी के लिए” - परेरा बोला - “किसी गार्ड को लगाकर आए हो ?”
“जी नहीं ।” - सूट वाला बौखलाया ।
“जब वह खुद चलकर यहां आया है” - इकबाल सिंह बोला - “तो वह खिसक नहीं जाने वाला ।”
“इकबाल सिंह ठीक कर रहा है ।” - बखिया बोला ।
“मैं देखूं उसे जाकर ?”
“नहीं ।” - बखिया एकाएक अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ - “वह बखिया के इस्तकबाल का ख्वाहिशमंद है । उसकी कम-से-कम यह ख्वाहिश बखिया जरूर पूरी करेगा ।”
वह तुकाराम की तरफ घूमा ।
“जोड़ीदार आ गया तुम्हारा ।” - वह बोला - “खुश हो जाओ अब ।”
तुकाराम चुप रहा ।
उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि सोहल यूं यहां पहुंच गया था ।
क्या माजरा था ?
***
डायरी की मौजूदा अहमियत से, अपने मालिकान को छुड़ाने में उसके संभावित रोल से, अगर वागले थर्राया न हुआ होता और डायरी की अपनी जान से ज्यादा हिफाजत करने के लिए अगर वह दृढप्रतिज्ञ न होता तो शायद इतनी जल्दी और इतनी आसानी से उसकी तवज्जो इस हकीकत की तरफ न जाती कि उसका पीछा किया जा रहा था ।
अपने पीछे लगी कार को उसने फौरन पहचान लिया ।
वह वही कार थी जिसमें उसने उन बदमाशों को भागते देखा था जिन्होंने कि सोहल पर आक्रमण किया था ।
अब वही बदमाश उसके पीछे लगे हुए थे ।
अपनी कार के रियर व्यू मिरर में उसे अपने पीछे लगी कार साफ दिखाई दे रही थी । वह देख रहा था कि उस वक्त पिछली कार में केवल दो आदमी थे ।
लेकिन तीसरे का न दिखाई देना उसे इस बात का सुबूत न लगा कि वह आस-पास कहीं नहीं था ।
वह चिंतित हो उठा ।
कैसे वह अपने पीछे लगे बदमाशों से पीछा छुड़ाए ?
उस वक्त उसकी कार वैस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर दौड़ रही थी ।
हाइवे पर दिन के उस वक्त बेतहाशा ट्रैफिक था इसलिए कम-से-कम वहां उसे कोई खतरा महसूस नहीं हो रहा था ।
लेकिन वहां चलती सड़क पर वह अपने पीछे लगे लोगों से पीछा भी तो नहीं छुड़ा सकता था ।
उसका दिमाग तेजी से कोई तरकीब सोच रहा था ।
फिर उसे एक तरकीब सूझी ।
कार उस वक्त बांद्रा से गूजर रही थी ।
उसने कार को एक डिपार्टमेंट स्टोर के सामने रोका । उस स्टोर की तरफ उसे उसके बाहर लगे पब्लिक टेलीफोन के बोर्ड ने आकर्षित किया था ।
पब्लिक टेलीफोन बूथ स्टोर के पिछवाड़े में था ।
वह उसमें घुस गया ।
उसने ‘मराठा’ का नम्बर डायल किया ।
‘मराठा’ का मालिक सलाउद्दीन उसका जिगरी - भाइयों से ज्यादा अजीज - दोस्त था ।
सलाउद्दीन लाइन पर आया तो वह बोला - “मियां, मैं वागले बोल रहा हूं ।”
“वागले !” - सलाउद्दीन की आवाज आई - “कहां से बोल रहे हो ?”
“मियां, मेरी बात गौर से सुनो । मैं इस वक्त बांद्रा में हूं । लेकिन मैं फौरन यहां से रवाना हो रहा हूं । अपनी घड़ी देख लो । अब से ऐन पंद्रह मिनट बाद तुमने मुझे सायन में वहां के बड़े पोस्ट ऑफिस में मिलना है ।”
“लेकिन...”
“सुनते रहो । बीच में मत बोलो । वहां मुझे देखकर तुम मेरे करीब आने की कोशिश मत करना । मैं अपने-आपको सुरक्षित पाऊंगा तो टॉयलेट में चला जाऊंगा । तुम वहां मेरे पीछे आ जाना । लेकिन वहां भी अगर मैं तुमसे बोलूं तो बोलूं, जब तक मेरी तरफ से इशारा न हो, तुम मेरे से बात करने की कोशिश मत करना ।”
“तौबा ! तुम तो मेरे छक्के छुड़ाए दे रहे हो । माजरा क्या है ?”
“जो मैंने कहा है, तुम समझ गए ?”
“समझ तो गया लेकिन...”
“ठीक पंद्रह मिनट बाद । सायन के पोस्ट ऑफिस में ।”
वागले ने रिसीवर रख दिया ।
फिर दिखावे के लिए उसने वहां से एक-दो चीजें खरीदीं ।
बाहर निकलकर वह दोबरा कार पर सवार हो गया ।
उसने कार फिर आगे सड़क पर दौड़ा दी ।
***
जोजो और परेरा के बीच में बड़ी शान से चलते हुए विमल ने यूं वहां कदम रखा जैसे वह किसी ड्रामे का सबसे अहम किरदार था । वह शानदार सूट पहने हुए था और एक मीठी मुस्काराहट खेल रही थी ।
उनके आगे-आगे बखिया चल रहा था ।
“हल्लो, ऐवरीबॉडी !” - वह चहका ।
कोई कुछ न बोला ।
बखिया अपनी कुर्सी पर जा बैठा ।
उसकी सूरत से साफ जाहिर हो रहा था कि विमल का व्यवहार उसे उलझन में डाल रहा था ।
“तो तू होता है सोहल ?” - अंत में वह बोला ।
“सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल ।” - विमल एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “एस एस एस एस । यानी कि फोर एस । यानी कि मैं ।”
विमल ने हौले से सिर नवाया ।
“कहते हैं जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर को भागता है ।”
“जरूर भागता होगा ।” - विमल बोला - “मुझे अफसोस है कि इस बारे में मेरी कोई जाती जानकारी नहीं । दरअसल आज तक कोई गीदड़ मेरी जिंदगी में नहीं आया । बखिये तो बहुत आये लेकिन गीदड़ नहीं आया ।”
उसने ढेर सारा धुआं बखिया की तरफ उगला ।
“इसकी तलाशी लो ।” - बखिया ने हुक्म दिया ।
“तलाशी !” - विमल सकपकाया - “मेहमाननवाजी का यह कौन-सा तरीका है ? आपके यहां क्या मेहमानों की अंटी के पैसे छीन लेने का रिवाज है ?”
“कतरनी बहुत चलती है तेरी ।”
“हां । बहुत चलती है । हमेशा धार देकर जो रखता हूं इसे ।”
परेरा तलाशी के लिए खुद उसकी तरफ बढा ।
विमल ने बड़ी फुर्ती से अपनी पतलून की बैल्ट में खुंसी रिवॉल्वर निकालकर अपने हाथ में ले ली ।
तुरंत एक दर्जन रिवॉल्वरें उसकी तरफ तन गई ।
विमल मुस्कराया ।
उसने अपनी रिवॉल्वर बखिया के सामने मेज पर उछाल दी ।
“तलाशी का मकसद अगर यह है” - वह बोला - “तो इसे मैं ही पूरा किए देता हूं लेकिन आप वाकई मेरा बटुआ हथियाना चाहते हैं तो बात दूसरी है ।”
बखिया ने परेरा को इशारा किया ।
परेरा परे हट गया ।
“थैंक्यू !” - विमल बोला - “थैंक्यू वेरी मच !”
फिर वह शांतिलाल की तरफ घूमा ।
“क्या हाल हैं, शांतिलाल जी ?” - वह बड़े मीठे स्वर में बोला - “खोपड़ी कैसी है ? हाथ की उंगली कैसी है ? बाकी कल-पुर्जे कैसे हैं ? और आपकी पसंदीदा, लेकिन निहायत दगाबाज, छोकरी सिल्विया का क्या हाल है ? अभी भी आपके साथ ही सोती है न ?”
शांतिलाल का चेहरा सुर्ख हो गया । उसने जोर से दांत पीसे ।
“सुलेमान साहब नहीं दिखाई दे रहे यहां !” - विमल बोला - “कुछ तो नहीं गया उनको ?”
“क्या होना था उन्हें ?” - बखिया बोला ।
“शायद इंतकाल फरमा गए हों । आदमी का क्या भरोसा है ! पानी का बुलबुला ही तो है वो । क्या पता कब फूट जाए !”
“तुझे हम यूं नहीं फूटने देंगे । तू चाहेगा तो बहुत कि तू पानी के बुलबुले की तरह से फूटकर निजात पा जाए लेकिन ऐसा होगा नहीं । ऐसा होने नहीं दिया जाएगा । बखिया नहीं होने देगा ऐसा ।”
“गुड ! गुड गुड ! ऐसी सर्विस मैं पसंद करता हूं । आई एक ग्लैड ।”
फिर उसने हुक से उलटे लटकते लहूलुहान तिलकराज पर निगाह डाली ।
“मेरी दावत के लिए ।” - वह बोला - “क्या यहां सालम बकरा भूने जाने का प्रोग्राम बन रहा है ?” - फिर एकाएक उसने आंखे फैलाई - “वाहे गुरु सच्चे पातशाह ! यह मैं क्या देख रहा हूं ? यह बकरा कहां है, यह तो आदमजात है ! साहबान, मुझे यह किसी ने नहीं बताया था कि बखिया और उसके लेफ्टीनेंट आदमखोर हैं । बखिया साहब, बहुत बुरी तरह से बखिए उधेड़े आपने इस बेचारे गरीब आदमी के !”
“तेरे बखिए हम इससे अच्छी तरह उधेड़ेंगे ।” - बखिया दांत पीसता हुआ बोला ।
“गुड । अच्छी कारीगरी का मैं हमेशा से ही कद्रदान रहा हूं । आई एक ग्लैड ।”
“अभी थोड़ी देर और ग्लैड हो ले, बेटा ।”
विमल ने उसकी बात की ओर ध्यान न दिया ।
उसने इकबालसिंह, परेरा और जोजो पर निगाह डाली ।
संध्या से हासिल जानकारी की बिना पर जोजो को उसने तुरंत पहचान लिया लेकिन बाकी दोनों के बारे में लगता था, संध्या ने उसे कुछ नहीं बताया था ।
“आपकी तारीफ ?” - वह इकबालसिंह से बोला ।
इकबालसिंह ने बखिया की तरफ देखा ।
बखिया एकाएक यूं मुस्कराया जैसे वह अपने मातहतों को सोहल की दिलजोई की इजाजत दे रहा हो ।
“बंदे को” - इकबालसिंह सिर नवाकर बड़े अदब से बोला - “इकबालसिंह कहते है ।”
विमल ने परेरा की तरफ देखा ।
“मैक्सवैल परेरा एट युअर सर्विस, सर !” - वह बोला ।
“गुड ! गुड !”
“हुजूर, यहां कैसे तशरीफ लाए ?”
“हमें खबर लगी थी” - विमल बड़ी शान से बोला - “कि हमारे साथी यहां हैं । हम उन्हें लेने आए हैं ।”
सब फिर एक-दूसरे का मुंह देखने लगे ।
विमल की हर बात उनकी समझ से बाहर थी ।
“तुका ! देवा !” - विमल बोला - “मेहमाननवाजी के लिये बखिया साहब का शुक्रिया अदा करो, इन्हें नमस्ते करो और चलो यहां से ।”
“लाइक दैट ?” - परेरा चुटकी बजाता हुआ बोला ।
“यस ।” - विमल ने भी उसकी नकल में चुटकी बजाई - “लाइक दैट । ऐनी ऑब्जेक्शन ? कोई एतराज, साहबान ?”
परेरा ने उलझनपूर्ण भाव से बखिया की तरफ देखा ।
तुकाराम और देवाराम के चेहरे पर भी गहरी उलझन के भाव थे ।
“बहुत ड्रामा हो चुका ।” - एकाएक बखिया हत्थे से उखड़ गया - “हरामजादे को छत से उलटा टांग दो । पहले इसी की खबर लो ।”
“जरूर । जरूर ।” - विमल बड़ी बेबाकी से बोला - “बखिया साहब के हुक्म की फौरन तामील हो । लेकिन पहले मुझे एक मिनट की मोहलत दो ।”
“वो किसलिए ?” - उसकी तरफ बढता परेरा बोला ।
“ताकि आज की मुलाकात की यादगार के तौर पर जो तोहफा मैं बखिया साहब के लिए लाया हूं, वह मैं उन्हें पेश कर सकूं ।”
“तोहफा !”
विमल ने अपनी जेब से एक लिफाफा निकाला और उसे बखिया के सामने मेज पर उछाल दिया ।
“विद कम्पलीमेण्ट्स ऑफ सोहल ।” - वह बोला - “सोहल के सौजन्य से ।”
चेहरे पर उलझन के भाव लिये बखिया ने लिफाफा उठाया ।
लिफाफा बंद नहीं था ।
उसके भीतर मौजूद चार तहों हुआ इकलौता कागज बखिया ने बाहर निकाला ।
उसने कागज को खोला ।
उस पर पहली निगाह पड़ते ही वह बुरी तरह चौंका ।
उसने कई बार कागज को उलट-पलटकर देखा ।
फिर वह भौचक्का-सा विमल का मुंह देखने लगा ।
“यह... यह...”
“उस माल का नमूना है” - विमल बोला - “जो मैंने अलग बांधकर रखा है और तफसील से कहा जाए तो यह उस डायरी का एक वरका है जो लिटल ब्लैक बुक के नाम से जानी जाती है और जिसके बारे में कहा जाता है कि उसमें बखिया की जान है ।”
बखिया के मुंह से बोल न फूटा ।
बड़ी अविश्वासपूर्ण निगाहों से वह कभी अपने हाथों में थमे डायरी के उस पन्ने को और कभी अपने सामने खड़े विमल को देखता रहा ।
चेहरे पर एक रसस्यपूर्ण मुस्कराहट लिये, स्थिति का भरपूर आनन्द लेता हुआ, विमल खामोश खड़ा रहा ।
हर कोई - तुकाराम और देवाराम भी - स्तब्ध खड़ा था ।
***
अगली कार डाकखाने के सामने जाकर रुकी ।
जिमी और बाबू ने कार वाले को, कार से निकलकर डाकखाने में दाखिल होते देखा ।
“यह डाकखाने में क्या करने गया है ?” - बाबू बोला ।
“पता नहीं ।” - जिमी चिंतित भाव से बोला - “कहीं इसे हमारी खबर तो नहीं लग गई ?”
“इसके व्यवहार से ऐसा लगता तो नहीं ।”
“यह डाकखाने में क्यों आया ?”
“कोई काम होगा इसे । बांद्रा में डिपार्टमेंटल स्टोर में भी घुसा था यह ।”
“यहां चिट्ठी-विट्ठी की फिराक में होगा ।”
“मुझे दाल में काला दिखाई दे रहा है ।”
“मतलब ?”
“बाबू, यह कहीं हमें डॉज देने की फिराक में तो नहीं ?”
“डॉज ! वो कैसे ?”
“इस डाकखाने से मैं वाकिफ हूं । इसका पिछवाड़े की सड़क की तरफ से भी रास्ता है । हमें भुलावे में डाले रखने के लिए कार सामने खड़ी छोड़कर अगर यह पिछवाड़े से निकलकर यहां से खिसक गया तो ?”
“यह तो बड़े घोटाले वाली बात कर रहे हो, गरु !”
“हां ।” - जिमी एकाएक कार का दरवाजा खोलता हुआ बोला - “यह घोटाले वाली ही बात है । बाबू, मैं पिछवाड़े में जा रहा हूं । अगर इसने उधर से खिसकने की कोशिश की तो मैं उसके पीछे लग जाऊंगा । यह सामने से निकला तो तुम इसे संभालना । बराबर ?”
“बराबर ।”
जिमी ने कार से बाहर कदम रखा ।
वागले ने डाकखाने के भीतर कदम रखा ।
उसे पूरा विश्वास था कि उसके पीछे लगे दोनों व्यक्तियों में से कोई उसके पीछे डाकखाने में नहीं घुसा था ।
लेकिन वह आश्वस्त न हुआ ।
उसके पीछे कोई ऐसा आदमी भी लगा हो सकता था जो अभी तक उसकी निगाह में नहीं आया था ।
उसने और तसल्ली कर लेना जरूरी समझा ।
वह उस खिड़की की तरफ बढा जहां डाक टिकटें बिकती थीं ।
कनखियों से उसने देख लिया था कि सलाउद्दीन हॉल में मौजूद था ।
उसने खिड़की से डाक की कुछ टिकटें खरीदीं ।
उसकी सतर्क निगाह न देखते हुए भी हॉल में हर तरफ देख रही थीं ।
वह आश्वत हो गया कि वह किसी की निगाहों में नहीं था ।
फिर वह खिड़की से हटा और टायलेट की तरफ बढा । रास्ते में उसने सलाउद्दीन को एक गुप्त संकेत किया ।
वह टायलेट में दाखिल हो गया ।
उस वक्त वहां कोई नहीं था ।
वह यूरीनल के एक स्टाल में जाकर खड़ा हो गया ।
कुछ क्षण बाद सलाउद्दीन ने टायलेट में कदम रखा । उसने एक उड़ती-सी निगाह वागले पर डाली और फिर उसकी बगल के स्टाल में जा खड़ा हुआ ।
“क्या माजरा है ?” - वह धीरे से बोला ।
“बताता हूं ।” - वागले सावधानी से टायलेट के बंद दरवाजे की तरफ देखता हुआ बोला ।
उसने अपनी जेब से वह मोटा लिफाफा निकाला जो उसने बांद्रा के डिपार्टमेंट स्टोर से खरीदा था । उस लिफाफे के भीतर बखिया की लिटल ब्लैक बुक थी और लिफाफा बाहर से बंद था ।
उसने लिफाफा जल्दी से सलाउद्दीन को थमा दिया ।
“इसे जेब में रख लो !” - वह जल्दी से बोला ।
लिफाफा फौरन सलाउद्दीन की जेब में कहीं गायब हो गया ।
“क्या है यह ?” - वह मंत्रमुग्ध स्वर में बोला ।
“मियां” - वागले गंभीर स्वर में बोला - “यह हमारी बरसों की दोस्ती का इम्तहान है । इस लिफाफे में तुम्हारे दोस्त का धड़कता हुआ दिल है जोकि इस वक्त तुम्हारे रहमोकरम का मोहताज है ।”
“अच्छा !”
“कुछ लोग इस लिफाफे की खातिर मेरे पीछे पड़े हुए है इसलिए इसे मैं तुम्हें सौंप रहा हूं । मियां, इस पर जिंदगियों का दारोमदार है । अपने इस दोस्त की खातिर अगर तुम इस लिफाफे की हिफाजत न कर सके तो तुम्हारा यह दोस्त अपने आकाओं की निगाहों से गिर जाएगा, वह नमकहराम और अहसान फरामोश करार दे दिया जाएगा ।”
“ऐसा ?”
“हां ।”
“खातिर जमा रखो, दोस्त ! इस लिफाफे को कुछ नहीं होने वाला । यह एक दोस्त का ही नहीं, एक सच्चे मुसलमान का वादा है तुमसे ।”
“शुक्रिया । शुक्रिया । अब तुम जाओ यहां से ।”
“और तुम ?”
“आखिरकार तो मैं तुम्हारे होटल में ही पहुंचूंगा लेकिन अपने पीछे लगे लोगों से पीछा छुड़ा लेने के बाद ।”
“वो हैं कौन लोग ? कसम है मुझे पाक परवरदिगार की, मैं अभी उन अल्लामारों को जहन्नुम रसीद करता हूं ।”
“उसकी जरूरत नहीं ।”
“लेकिन...”
“मियां, यह मेरा वहम भी हो सकता है कि कोई लोग मेरे पीछे लगे हुए हैं । बहरहाल तुम फूटो यहां से । मैं बाद में पहुंच जाऊंगा ।”
“जैसा तुम कहो ।”
“एक बात और ?”
“वह क्या ?”
“मुझसे पहले मुझे पूछता हुआ वहां कोई और पहुंच सकता है । तुम उसे सबसे ऊपर वाले इकलौते कमरे में टिका देना ।”
“लेकिन मैं उसे पहचानूंगा कैसे ?”
“मियां, किसी को यह मालूम नहीं है कि आज की तारीख में मैं वहां आने वाला हूं । वहां आकर जो भी मुझे पुछे समझ लेना, अपना आदमी है ।”
“बेहतर ।”
सलाउद्दीन वहां से विदा हो गया ।
लेकिन वागले फिर भी वहां से बाहर न निकला ।
वह वहां से हटा और एक लैवेटरी में घुस गया ।
लिटल ब्लैक बुक की हिफाजत की दोहरी गारंटी के लिए अभी उसने बहुत काम करना था ।
***
“डायरी नष्ट नहीं हुई ?” - एक लम्बी खामोशी के बाद बखिया के मुंह से निकला ।
“डायरी एकदम सुरक्षित है और” - विमल एक क्षण ठिठका और फिर बड़े अर्थपूर्ण स्वर में बोला - “मेरे पास है ।”
“डायरी तेरे पास है ?”
“डायरी में से फाड़ा हुआ यह एक वरका जो अभी मैंने आपकी खिदमत में पेश किया है, क्या यह साबित नहीं करता कि डायरी मेरे पास है ?”
“तूने वाल्ट खोला था ?”
“यह भी कोई कहने की बात है ! और कैसे आती डायरी मेरे पास ?”
“तूने बखिया के करोड़ो के माल को आग लगा दी ?”
“मैं तुम्हारा इससे कहीं ज्यादा नुकसान कर सकता था, राजबहादुर बखिया । मैं डायरी को भी बाकी माल के साथ भस्म हो जाने दे सकता था ।”
“तूने वाल्ट कैसे खोला ?”
“वैसे ही जैसे जरूरत पड़ने पर फिर खोल लूंगा ।”
“जोशी ने बखिया को धोखा दिया था ?”
“गलत । जोशी जैसा ईमानदार और कैरेक्टर वाला आदमी तुम्हारी सारी आर्गेनाइजेशन में दूसरा नहीं होगा ।”
“तो फिर ?”
“छोड़ो । वाल्ट कैसे खुला, यह इस बात पर सिर धुनने का वक्त नहीं ।”
“डायरी कहां है ?”
“मेरे पास है ।”
“वापस करो ।”
“यूं ही ?” - विमल हंसा - “खामखाह ?”
“साले !” - बखिया दांत पीसकर बोला - “हंसता है ?”
“हां ! साला हंसता है ।”
“जोजो दस मिनट में तेरे से कुबुलवा लेगा कि तूने डायरी कहां छुपाई है ।”
“कबूल । मूझे जोजो की काबलियत पर रत्ती-भर भी शक नहीं ।”
“फिर भी तुझे इसका खौफ नहीं ? फिर भी तू समझता है कि तू खामोश रह सकता है ?”
“हां । मैं खामोश रह सकता हूं । मैं ऐसा खामोश हो सकता हूं कि खुदा भी मेरी जुबान नहीं खुलवा सकता ।”
“जोजो !” - बखिया गला फाड़कर चिल्लाया - “पकड़ ले साले को । चमड़ी उधेड़ दे हरामजादे की । दस मिनट में मालूम होना चाहिए कि इसने डायरी कहा छुपाई है ।”
“उससे पहले मालूम होगा ।” - जोजो पूरे विश्वास के साथ बोला ।
उसने विमल की तरफ कदम बढाया ।
“जोजो” - विमल चेतावनी भरे स्वर में बोला - “मेरे पास भी फटका तो तुम्हें यहां मेरी लाश पड़ी दिखाई देगी ।”
“क्या ?” - बखिया अचकचाकर बोला ।
“यह देखो, क्या है ?” - विमल ने अपने दायें हाथ के अंगूठे और पहली उंगली में थमा एक कैप्सूल बखिया को दिखाया - “यह एक कैप्सूल है ।” - उसने कैप्सूल अपने मुंह में डाल लिया - “यह जहर का कैप्सूल है । जोजो ने मेरी तरफ एक कदम भी बढाया तो मैं इसे चबा जाऊंगा । दस सैकेंड में मैं यहां मरा पड़ा होऊंगा । फिर तुम सारे जने मिलकर उम्र-भर ढूंढते रहना डायरी ।”
सबको जैसे सांप सूंघ गया ।
“यह ट्रिक मैंने तुम्हारे ही आदमी से सीखी है ।” - विमल बोला ।
“हमारे आदमी से ?”
“जोशी से । जो अपनी एक खोखली दाढ में हमेशा एक जहर का कैप्सूल रखता था । वह वाल्ट की हिफाजत करने में फेल हो गया था इसलिए उसने वहीं कैप्सूल चबाकर आत्महत्या कर ली थी ।”
“ओह ! ओह !”
“अब बोलो, बखिया साहब ! शांताराम के भाई यहां से जाएं या अभी रुकें ?”
बखिया के चेहरे पर गहरी दुविधा के भाव प्रकट हुए ।
“मैं हफ्ता-दस दिन जवाब का इंतजार नहीं कर सकता ।” - विमल चेतावनी-भरे स्वर में बोला ।
“जाएं ।” - बखिया एकाएक निर्णयात्मक स्वर में बोला - “खुशी से जाएं ।”
“आपको इनसे कोई शिकायत नहीं ?”
“नहीं । कतई नहीं ।”
“कोई अदावत ?”
“न ।”
“अपने किसी ओहदेदार को हुक्म दीजिए कि वह इन्हें बाहर तक छोड़ आएं ।”
“इकबालसिंह, शांताराम के भाइयों को बाइज्जत होटल से बाहर छोड़ आओ ।”
“आओ ।” - इकबालसिंह मंत्रमुग्ध स्वर में बोला ।
“इकबालसिंह को” - विमल बोला - “साथ में यह भी समझा दीजिए कि इसने किसी को इन लोगों के पीछे नहीं लगाना है । इनको दोबारा पकड़ मंगवाने का कोई इंतजाम नहीं करना है ।”
“इकबालसिंह !” - बखिया बोला - “सुना ?”
“जी हां ।” - इकबालसिंह बोला - “सुना ।”
“गुड ।” - विमल बोला ।
उसने तुकाराम और देवाराम को इशारा किया ।
दोनों भाई झिझकते हुए आगे बढे ।
विमल के सामने से गुजरते समय तुकाराम एक क्षण को ठिठका ।
“भिंडी बाजार के झोपड़पट्टे में” - वह होंठों में बुदबुदाया - “अकरम लॉटरी वाले को पूछना । हम वहीं होंगे ।”
विमल ने हौले से सहमति में सिर हिलाया ।
“या हम बाहर कहीं रुकें ?”
“नहीं ।” - विमल धीरे से बोला - “यहां से जल्दी-से-जल्दी ज्यादा-से-ज्यादा दूर, निकल जाओ ।”
तुकाराम ने धीरे से हामी भरी और देवाराम के साथ आगे बढ गया।
इकबाल सिंह के साथ वे दोनों वहां से बाहर निकल गए ।
पीछे मुकम्मल सन्नाटा छाया रहा ।
विमल खामोशी से पाइप के कश लगाता रहा ।
बखिया प्रत्यक्षत: सुसंयत मुद्रा बनाए रहा लेकिन मन-ही-मन वह अंगारों पर लोट रहा था ।
इकबालसिंह के लौटने तक वहां वही आलम रहा ।
विमल ने मुंह से पाइप निकाला और एक नकली जम्हाई ली ।
“अब” - वह बोला - “बंदा भी इजाजत चाहता है ।”
“डायरी ।” - बखिया के मुंह से निकला - “डायरी का क्या होगा ?”
“उसकी बाबत मैं आपको चिट्ठी लिखकर खबर कर दूंगा, या तार दे दूंगा ।”
“क्या खबर कर दोगे ?”
“यह आप मेरी चिट्ठी पढकर जान जाएंगे ।”
“लड़के ! मजाक मत कर ।”
“लड़का मजाक नहीं कर रहा है ।”
बखिया ने बड़े बेबसी के भाव से अपने ओहदेदारों की तरफ देखा ।
“इधर आ !” - एकाएक बखिया बोला ।
“किधर आऊं ?” - विमल ने नकली हड़बड़ाहट जाहिर की ।
“इधर मेरे पास । परेरा !”
“यस, बॉस !”
“सरदार के लिए एक कुर्सी ला ।”
तुरंत जैसे जादू के जोर से वहां एक कुर्सी प्रकट हुई ।
बखिया के इशारे पर परेरा ने खुद कुर्सी बखिया के करीब रख दी ।
“बैठ ।” - बखिया बोला ।
विमल कुर्सी पर जा बैठा ।
उसने एक निर्लिप्त निगाह मेज पर पड़ी अपनी रिवॉल्वर की तरफ डाली ।
“अगर” - वह रिवॉल्वर की तरफ हाथ बढाता हुआ बोला - “इजाजत हो तो...”
“हां, हां । ले ले ।”
विमल ने रिवॉल्वर उठाकर जेब में रख ली ।
डायरी में वाकई बड़ी शक्ति थी । डायरी की वजह से ही उस वक्त बखिया नाम का शेर बकरी की तरह मिमिया रहा था ।
“अब” - विमल बोला - “एक सवाल पूछने की भी इजाजत हो तो...”
“वह भी पूछ ।” - बखिया बोला ।
विमल तनिक उसकी तरफ झुका और बड़े गंभीर स्वर में बोला - “स्ट्रेचर संभालकर रखा है न ?”
“स्ट्रेचर ?” - बखिया अचकचाकर बोला ।
“लगता है, आपकी एम.जी.आर. 4937 नंबर की मेटाडोर के ड्राइवर ने मेरा पैगाम आप तक नहीं पहुंचाया ?”
“कैसा पैगाम ?”
“मैटाडोर में नीलम की लाश की जगह जो खाली स्ट्रेचर मुझे मिला था, वह मैंने आपके पास भिजवाया था । संभालकर रखने के लिए ।”
“वह किसलिए ?”
“बखिया साहब, आपने कभी स्ट्रेचर देखा है ?”
“देखा है ।”
“फिर तो यह भी देखा होगा कि उसकी बनावट अर्थी जैसी ही होती है यानी कि जरूरत पड़ने पर स्ट्रेचर भी अर्थी के तौर पर इस्तेताम किया जा सकता है ।”
“ओह ! तो तू यह कहना चाहता है कि स्ट्रेचर की सूरत में तूने बखिया के लिए अर्थी भिजवाई थी ?”
“कितने समझदार आदमी हैं आप !” - विमल प्रशंसात्मक स्वर में बोला ।
बखिया के तमाम ओहदेदार स्तब्ध खड़े यह वार्तालाप सुन रहे थे और उन्हें लग रहा था कि बखिया किसी भी क्षण सोहल पर झपट पड़ेगा और अपने खाली हाथों से ही उसकी तिक्का बोटी अलग कर देगा ।
लेकिन ऐसा न हुआ ।
उलटे कुछ क्षण बाद जब बखिया बोला तो उसके स्वर में इतनी नम्रता थी कि वे सब हैरानी से बखिया का मुंह देखने लगे ।
“सरदार !” - बखिया बोला ।
“फरमाइए ।” - विमल बड़े अदब से बोला ।
“इधर मेरी तरफ देख ।”
सोहल ने स्थिर नेत्रों से बखिया की तरफ देखा ।
“तू क्या चाहता है ?”
“जो मैं चाहता हूं, उसकर भरपाई आपके लिए मुमकिन नहीं ।”
“फिर भी बखिया सुने तो सही ?”
“क्या होगा सुनने में ?”
“फिर भी ?”
“सबसे पहले तो मैं आपके मुहम्म्द सुलेमान, शांतिलाल और जोजो नाम के उन तीनों ओहदेदारों का खून पी जाना चाहता हूं जिनकी वजह से नीलम की जान गई । कसम है मुझे अपने वाहेगुरु की, नीलम की इज्ज्त लूटने वालों को, उसे मौत के मुंह में धकेलने वालों को, मैं जिंदा नहीं रहने दे सकता । मैं जानता हूं, अपने दो ओहदेदारों की जान के मुकाबले में डायरी की आपकी निगाह में ज्यादा कीमत है । मैं जानता हूं कि मैं अभी यहीं, शांतिलाल और जोजो को शूट करने की कोशिश करूं तो आप मुझे रोकेंगे नहीं और मुहम्म्द सुलेमान को भी आप तश्तरी में रखकर, सोने का वर्क लगाकर मेरे सामने पेश करेंगे । लेकिन इस वक्त मैं...”
“अरे बेवकूफ !” - बखिया झल्लाया - “नीलम जिंदा है ।”
“वाह ! कमाल है !” - विमल व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “महान राजबहादूर बखिया उर्फ काला पहाड़ इतना लचर झूठ बोलकर मुझसे डायरी हथियाने की उम्मीद कर रहा है।”
“लड़के ! बखिया झूठ नहीं बोलता ।”
“आप इस हकीकत को झुठलाना चाहते हैं कि इसी होटल के सुइट नंबर 805 में नीलम मुहम्म्द सुलेमान और इन दो हरामजादों के सामूहिक बलात्कार का शिकार बनी थी ?”
“तुम्हारी छोकरी के साथ बद्फैली हुई, इसका बखिया को अफसोस है ।”
“अब अफसोस करने से क्या होता है ?”
“लेकिन तुम्हारी छोकरी मरी नहीं है ।”
“उसने होटल की आठवीं मंजिल से नीचे छलांग नहीं लगाई थी ?”
“नहीं लगाई थी ।”
“नीलम ने आत्महत्या नहीं की ?”
“नहीं की ।”
“यह बात क्या रोडरीगुएज की मालूम नहीं थी ?”
“मालूम थी ।”
“तो फिर उसने मुझे यह कैसे कह दिया था कि वह नीलम की लाश मेटाडोर में लदवाकर महालक्ष्मी रेस कोर्स भेज रहा था ?”
“वह तुझे फंसाने की एक चाल थी जिसमें कि तू फंसा नहीं । क्या मेटाडोर में लाश निकली थी ?”
“नहीं ।”
“फिर ? अगर लाश हमारे पास होती तो ड्रामा मुकम्म्ल करने के लिए क्या हम उसे मेटाडोर में न भेजते ?”
“ऑल राइट । मैंने मान ली आपकी बात कि नीलम नहीं मरी है । इससे ज्यादा खुशी की खबर मेरे लिये और क्या हो सकती है ! अब बरायमेहरबानी उसे बुला दीजिए यहां, ताकि उसकी सूरत देखकर मुझे आपकी बात पर विश्वास हो सके ।”
“यही तो हम नहीं कर सकते ।”
“क्यों नहीं कर सकते ?” - विमल आंखे निकालकर बोला - “अगर वह जिंदा है तो...”
“वह जिंदा तो है लेकिन हमारे कब्जे में नहीं है ।”
“आपके कब्जे में नहीं है तो किसके कब्जे में है ?”
“पुलिस के ।”
“क्या !”
“नीलम जिस दिन हमारी गिरफ्त में आई थी, उसी दिन उसे यहां से पुलिस पकड़कर ले गई थी । खुद पुलिस कमिश्नर ऊपर तेरे सुइट में पहुंचा था और नीलम को वहां से गिरफ्तार करके ले गया था ।”
“कहानी अच्छी गढ लेते हैं आप ।”
“यह हकीकत है ।”
“पुलिस कमिश्नर को कैसे खबर लग गई कि नीलम यहां थी ?”
“इस बात का हमारे पास कोई जवाब नहीं । पुलिस कमिश्नर तो ऐन मौके पर जैसे जादू के जोर से यहां नमूदार हुआ था । हमें खुद हैरानी है कि पुलिस को नीलम की यहां मौजूदगी की कैसे खबर लग गई !”
“मुझे आपकी बात का विश्वास नहीं । मुझे आपकी जुबान पर विश्वास नहीं । आप मेरे दुश्मन हैं । आप मुझसे झूठ बोल सकते हैं लेकिन जो मेरे दोस्त हैं, जो मुझसे झूठ नहीं बोल सकते और जिनकी जुबान पर मुझे विश्वास है, उनका दावा है कि नीलम मर चुकी है । आप लोगों के जुल्म से बचने के लिए इस होटल की आठवीं मंजिल से छलांग लगाकर वह आत्महत्या कर चुकी है ।”
बखिया ने असहाय भाव से अपने ओहदेदारों की तरफ देखा ।
“सोहल ।” - इकबालसिंह बोला - “बखिया साहब ठीक कह रहे हैं ।”
विमल ने घूरकर उसे देखा ।
इकबालसिंह ठिठका ।
“तुम देख रहे हो” - विमल बदस्तूर उसे घूरता हुआ बोला - “इस वक्त मैं तुम्हारे साहब से बात कर रहा हूं ?”
इकबालसिंह सकपकाया ।
“जब दो बड़े आदमी बात कर रहे हों तो लल्लू-पंजुओं को बीच में दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए ।”
इकबालसिंह का चेहरा लाल हो गया । उसने आहत भाव से बखिया की तरफ देखा ।
बखिया ने उसकी तरफ ध्यान न दिया । वह धीरे-धीरे अपने एक हाथ का घूंसा अपने दूसरे हाथ की खुली हथेली पर बजा रहा था ।
“सरदार !” - अंत में वह बोला - “हम तुझे कैसे विश्वास दिलाएं कि नीलम पुलिस की गिरफ्त में है ।”
“सोचिए कोई तरकीब ।” - विमल बोला - “लेकिन मुझसे यह उम्मीद न रखिए कि मैं पुलिस से पूछने जाऊंगा कि नीलम उनकी गिरफ्त में है या नहीं ।”
“लेकिन पहले तू इस बात से तो इत्तफाक जाहिर कर कि बखिया जो कह रहा है, सच कह रहा है ।”
“बखिया झूठ बोल रहा है । बखिया दिन को रात बता रहा है ।”
“अरे, छोकरे...”
“ताव खाने से कोई फायदा नहीं होगा, बखिया साहब !”
“लेकिन...”
“पहले मेरी बात सुनिये ।”
“क्या बात सुनूं ?”
“मुझे आपकी इस बात पर रत्ती-भर विश्वास नहीं कि नीलम जिंदा है और आपके जुबानी जमा खर्च से होने वाला भी नहीं । मुझे एक ही तरीके से आपकी बात पर विश्वास हो सकता है । और वह तरीका यह है कि अगर नीलम पुलिस की गिरफ्त में है तो आप उसे वहां से छुड़वाइये और जीती-जागती सही सलामत मेरे सामने लाकर खड़ी कीजिये ।”
“हम उसे पुलिस की गिरफ्त से कैसे छुड़ा सकते हैं ?”
“तरकीब आप मुझसे पूछना चाहते हैं ?”
“बखिया के कहने का मतलब है कि हम उसे पुलिस की गिरफ्त से नहीं छुड़ा सकते ।”
“यह बात आप कह रहे हैं ?” - विमल के स्वर मे व्यंग्य का पुट था - “महान राजबहादुर बखिया कह रहा है ? बम्बई का बादशाह कह रहा है ?”
बखिया ने बैचेनी से पहलू बदला ।
“ठीक है ।” - एकाएक वह निर्णयात्मक स्वर में बोला - “हम कोशिश करेंगे ।”
“गुड !” - विमल उठता हुआ बोला - “मैं आपकी कोशिश की कामयबी की वाहेगुरु से दुआ मांगूगा ।”
“अगर हम तेरी छोकरी को सही-सलामत, चौकस तेरे पास लौटने में कामयब हो गए तो तू वादा करता है कि तु वैसे ही सही-सलामत और चौकस लिटल ब्लैक बुक बखिया को लौटा देगा ?”
“लौटा दूंगा, लेकिन...”
“तू डायरी की कोई नकल तैयार करने की कोशिश नहीं करेगा ?”
“नहीं करूंगा, लेकिन...”
“क्या लेकिन ?”
“बदले में आपको भी एक वादा करना होगा ।”
“क्या ?”
“कि आप शांताराम के बाकी बचे दो भाइयों को अपने कहर का शिकार बनाने की कोशिश नहीं करेंगे ।”
“चाहे वे बखिया की आंख मे डंडा करने का अपना प्रोग्राम अभी भी जारी रखें ?”
“नहीं, वे भी कुछ नहीं करेंगे ।”
“इस बात की गारंटी तू लेता है ?”
“हां ।”
“तेरी गारंटी के बावजूद अगर वे बखिया को चोट पहुंचाते रहने से बाज न आए तो ?”
“तो आपके जो जी में आए करना ।”
“ठीक है । बखिया वादा करता है कि अगर उन लोगों कि तरफ से कोई शरारत न हुई तो बखिया की वजह से शांताराम के भाइयों का बाल भी बांका नहीं होगा ।”
“बखिया वादा ही करता है या उसे निभाता भी है ?”
“कसम है बखिया को अपने पुरखों के खून की ।” - बखिया दहाड़कर बोला । उसने अपने एक हाथ का घूंसा जोर से अपने दूसरे हाथ की हथेली पर जमाया - “बखिया जो वादा करता है उसे जरूर निभाता है । वादाखिलाफी से और जुबान देकर मुकर जाने वाले शख्स की जात से नफरत है बखिया को ।”
“जानकर खुशी हुई । साथ ही अफसोस भी हुआ कि यह काबिलेतारीफ खूबी बखिया के ओहदेदारों में नहीं ।”
“जरूर तेरा इशारा मोहम्मद सुलेमान की तरफ है ।”
“हां । मेरा इशारा उसी हरामजादे मुहम्मद सुलेमान की तरफ है जो शाम तक नीलम को हाथ न लगाने का वादा मुझसे करके भी शाम से पहले ही....”
“बखिया सुलेमान की करतूत से नावाकिफ नहीं ।” - बखिया बीच में ही उसकी बात काटकर बड़े बेसब्रेपर से बोला - “बखिया सुलेमान की उस छिछोरी, गैरजिम्मेदार हरकत से शर्मिंदा है । अपनी उस हरकत की वजह से ही आज की तारीख में मेरा सबसे ऊंचा ओहदेदार तुझे यहां दिखाई नहीं दे रहा । मुहम्म्द सुलेमान बखिया की निगाहों से हमेशा के लिए गिर चुका है ।”
“अब क्या वो” - विमल ने सावधान स्वर में पूछा - “होटल में भी नहीं रहता ?”
“अभी रहता है लेकिन रह नहीं पाएगा । ‘कम्पनी’ के नाम पर धब्बा बन चुका शख्स ‘कम्पनी’ की छत्रछाया में नहीं रह सकता । उसे होटल से रुख्सत हो जाने का हुक्म बस हुआ ही समझो ।”
“आई सी ।”
“तो तू वादा करता है ?”
“हां । मैं वादा करता हूं कि अगर नीलम सही-सलामत मुझ तक पहुंचा दी गई तो मैं डायरी लौटा दूंगा ।”
“यह एक मर्द का वादा है ?”
“यह वाहेगुरु के खालसा का वादा है ।”
“बढिया ! अब यह बता कि तेरी छोकरी की रिहाई की खबर अगर हम तुझे दे तो कहां दें ?”
“मेरा पता नोट कर लीजिये ।”
“परेरा !”
“यस, बॉस !” - परेरा बोला ।
“सरदार का पता नोट कर ।”
“बोलो, सरदार साहब !” - परेरा बोला ! उसने नोट-बुक और पेंसिल निकाल ली ।
“कालीचरण मल्होत्रा ।” - विमल बोला - “उर्फ सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल । सुइट नम्बर 805, होटल सी व्यू, जुहू, बम्बई - 400054 ।”
परेरा हैरानी से विमल का मुंह देखने लगा ।
“इसमें हैरानी की क्या बात है ?” - विमल बोला - “वह सुइट क्या अब मेरे नाम नहीं रहा ?”
“तुम यहां रहोगे ?”
“कोई एतराज ?”
“नहीं, एतराज तो नहीं ।”
“तो फिर जरूर तुम्हें इस फाइव स्टार डीलक्स होटल का बिल चुकाने की मेरी क्षमता पर शक होगा ?”
“पैसे की क्या कमी होगी तुम्हारे पास ?” - परेरा के स्वर में वितृष्णा का पुट था - “तुम ‘कम्पनी’ का ही लाखों रुपया लूट चुके हो ।”
“खतम करो यह किस्सा ।” - एकाएक बखिया बीच में बोल पड़ा - “तो तू अपना पता नहीं बताना चाहता ?”
“जब तक डायरी मेरे पास है, तब तक मेरा यही पता है ।”
“ठीक है । सम्पर्क बनाए रखना । चाहे यहीं से करना लेकिन बखिया को रोज टेलीफोन करना ।”
“मैं दिन में दो बार करूंगा । अब बंदा इजाजत चाहता है ।”
उसने बखिया की तरफ हाथ बढाया ।
बखिया ने उठकर उससे हाथ मिलाया ।
उसके असाधारण आकार के हाथ के नीचे विमल को अपनी उंगलियां चटकती हुई महसूस हुई ।
यह कोई मामूली बात नहीं थी कि सत्तर साल की उम्र में भी बखिया इतना शक्तिशाली था ।
विमल घूमा और आगे बढा ।
शांतिलाल और जोजो के सामने वह ठिठका ।
दोनों मुस्कराए ।
कुछ क्षण विमल के चेहरे पर कोई भाव न आया, फिर उसके होंठ एक जहर से बुझी मुस्कराहट की सूरत में फैले । उसने अपने दाएं हाथ की पहली उंगली को पहले शांतिलाल और फिर जोजो की छाती पर यूं फिराया जैसे चाक से ब्लैकबोर्ड पर क्रॉस बना रहा हो ।
“यह क्या कर रहे है ?” - दोनों के मुंह से लगभग एक साथ निकला ।
“निशान लगा रहा हूं ।” - विमल वैसे ही मुस्कराता हुआ बोला - “टारगेट पर वह जगह मार्क कर रहा हूं जहां अपनी चलाई गोली के टकराने की मैं उम्मीद कर रहा हूं ।”
“क्या बकते हो ?” - शांतिलाल हड़बड़ाकर बोला ।
“शांतिलाल !” - विमल अपनी वही उंगली खंजर की तरह उसकी तरफ भोंकता हुआ बड़े नफरत भरे स्वर में बोला - “यू आर ए मार्क्ड मैन ।” - फिर वैसे ही वह उंगली जोजो की तरफ भोंकी - “एण्ड यू टू ।”
दोनों बौखलाकर बखिया की तरफ देखने लगे ।
“हम दोनों से मुलाकात के लिए तैयार रहना ।”
“तुम दोनों !” - जोजो अपने एकाएक सूख आए होंठों पर जुबान फेरता हुआ बोला ।
“हां । मैं और तुम्हारी मौत ।”
फिर अपने पीछे एक बेहद स्तब्ध वातावरण छोड़कर विमल वहां से विदा हो गया ।
“परेरा !” - विमल के दृष्टि से ओझल होते ही बखिया बोला ।
“यस, बॉस !” - परेरा तत्पर स्वर में बोला ।
“इसके पीछे कोई बहुत होशियार आदमी लगा । उसे समझा देना कि सरदार को पता न लगने पाए कि उसका पीछा किया जा रहा है । अगर उसे लगे कि ऐसा पता लगे बिना नहीं रह सकता तो वह बेशक सरदार का पीछा छोड़ दे ।”
“मैं अभी इंतजाम करता हूं ।” - परेरा बोला और बाहर को लपका ।
बखिया वापिस कुर्सी पर बैठ गया । वह कुछ क्षण खामोश बैठा रहा, फिर उसने हाथ के इशारे से इकबालसिंह और शांतिलाल को अपने करीब बुलाया ।
दोनों आगे बढे और बड़े अदब की मुद्रा बनाए उसके सामने जा खड़े हुए ।
“पता लगवाओ” - बखिया चिंतित भावा से बोला - “कि सोहल की छोकरी पुलिस के पास किस हाल में है और कहां है ।”
“आपका इरादा” - इकबालसिंह बोला - “लड़की को पुलिस के चंगुल से छुड़वाने का है ?”
“हां ।”
“लेकिन...” - शांतिलाल ने कहना चाहा ।
“बखिया जानता है, तुम क्या कहना चाहते हो ।” - बखिया उसकी बात काटकर बड़े बेसब्रेपन से बोला - “बखिया भूला नहीं है कि कभी तुम्हारी इस राय के जवाब में उसने यह कहा था कि सोहल की छोकरी को पुलिस के पंजे से छुड़ाने की कोशिश भी करना हिमाकत होगी । लेकिन आज वक्त की जरूरत यही है कि हम यह हिमाकत करें । सोहल के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकने वाला एक बहुत बड़ा तुरुप का पत्ता वह लड़की पहले भी थी और आज भी है । मौजूदा हालात में उस लड़की के हमारी गिरफ्त में आए बिना लिटल ब्लैक बुक बखिया को वापस हासिल होती दिखाई नहीं देती ।”
कोई कुछ न बोला ।
“हमारे मुकद्दर के देवता आजकल हमारे दायें नहीं हैं । हमारे बहुत पासे उलटे पड़े है । शांताराम के भाइयों का अपनी करतूतों की कोई सजा पाए बिना यूं यहां से निकल जाना बखिया के मुंह पर बहुत करारा तमाचा था, यह भी हमारे लिए कम हतक की बात नहीं थी कि सोहल यहां आया और यूं वापस चला गया जैसे वह शेर की मांद में ना घुसा हो बल्कि चौपाटी पर टहलने आया हो । यह बखिया के लिए डूब मरने का मुकाम था कि सोहल उसके सामने उसके दो ओहदेदारों को मौत की धमकी दे गया और बखिया खामोश बैठा रहा ।” - वह एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “लेकिन फिर भी आज की तारीख में बखिया के लिए यह बहुत खुशगवार खबर है कि लिटल ब्लैक बुक सलामत है, वाल्ट में हुए बम-विस्फोट में वह नष्ट नहीं हुई है । साहबान, डायरी किसी भी कीमत में वापिस बखिया के पास पहुंचनी चाहिए । सोहल की छोकरी पुलिस के कब्जे में हो या मिलिटरी के, वह वापस सही-सलामत यहां, मेरे सामने पहुंचनी चाहिए ।”
“हमें क्या करना चाहिए ?” - इकबालसिंह बोला ।
“पुलिस के महकमे में हमारे खरीदे हुए लोगो की कमी नहीं । उन्हीं से पूछो कि लड़की कैसे हमारे कब्जे में आ सकती है । वहां से कोई मतलब हल न हुआ तो फिर कोई नयी तरकीब सोची जाएगी । इकबालसिंह, यह काम तुमने करना है, खुद करना है और फौरन करना है ।”
“ठीक है ।”
“शांतिलाल ?”
“यस, बॉस !”
“सुलेमान कहां है ?”
“अभी तो यहीं है । होटल में ही ।”
“उसे कह दो कि अब होटल में उसके लिए जगह नहीं ।”
“यह मैं कहूं ?” - शांतिलाल हड़बड़ाकर बोला ।
“हां !” - बखिया सख्ती से बोला - “बखिया की यही ख्वाहिश है कि मुहम्म्द सुलेमान यह बात अपने से दो सीढी नीचे के ओहदेदार से सुने कि वह किस हद तक बखिया की निगाहों में गिर चुका है । उसे जता देना कि वह इसे बखिया की रहमदिली समझे कि बखिया ने उसे सिर्फ कम्पनी के हैडक्कर्टश्र की छत्रछाया से रुख्सत किया, ‘कम्पनी’ से रुख्सत नहीं किया, इस दुनिया से रुख्सत नहीं किया । कसम है बखिया को उसके पुरखों के खून की ऐसी रहमदिली उसने किसी सगेवाले से नहीं दिखाई । आज रोडरी जिंदा होता तो वह बखिया के इस फैसले की वजह से उस पर बहुत खफा हुआ होता ।”
शांतिलाल खामोश रहा ।
बखिया ने एक नफरत भरी निगाह हुक पर टंगी तिलकराज की लाश पर डाली ।
“जोजो ?” - वह बोला ।
“यस, बॉस !”
“लाश ठिकाने लगवा दो ।”
बखिया उठ खड़ा हुआ ।
वह सैशन की समाप्ति का सकेंत था ।
***
जिमी ने एक जोर की जम्हाई ली और अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह डाली ।
घड़ी रुकी हुर्इ थी ।
“सांता मारिया !” - वह बड़े वितृष्णापूर्ण ढंग से होंठों में बुदबुदाया । उसने अपनी कलाई को जोर-जोर से तीन-चार झटके दिए तो घड़ी फिर चल पड़ी । लेकिन इसके लिए यह कहना मुहाल था कि घड़ी कितना अरसा बंद रही थी और वह कितने अरसे से डाकखाने के पिछवाड़े में मौजूद था । लेकिन उसे लग रहा था कि इंतजार करते उसे बहुत वक्त हो गया था ।
उसने आगे बढकर एक सरसरी निगाह डाकखाने के विशाल हॉल में डाली ।
सोहल का साथी उसे कहीं दिखाई न दिया ।
वह डाकखाने में दाखिल हुआ ।
लम्बे डग भरते हुए उसने हॉल को पार किया और सामनी सड़क पर पहुंचा ।
वहां डाकखाने के सामने कार में बाबू मौजूद था ।
वह बाबू के करीब पहूंचा ।
“क्या हुआ ?” - बाबू बोला ।
“कुछ नहीं ।” - जिमी बोला - “मैं इंतजार करते बोर हो गया था इसलिए तुम्हें देखने चला आया था । वह इधर नहीं आया ?”
“जाहिर है कि नहीं आया । आया होता तो मैं यहां होता ?”
“उधर भी नहीं आया वो । हॉल में भी नहीं है । कहां मर गया हरामजादा ?”
“वह भीतर ही होगा । गाड़ी तो खड़ी है उसकी ।”
“भीतर इतनी देर से क्या कर रहा होगा वो ? यहां से निकलने का कोई तीसरा रास्ता तो नहीं ?”
“दिखाई तो नहीं देता ।”
जिमी खामोश रहा ।
“यहां खड़े रहने से क्या फायदा ?” - बाबू बोला - “तुम्हारी यहां मौजूदगी के दौरान वह पिछवाड़े से निकल गया तो ?”
जिमी हड़बड़ाया ।
“ठीक है ।” - वह बोला - “मैं जाता हूं । मै भीतर तलाश करता हूं उसे ।”
बाबू ने सहमति में सिर हिलाया।
“टाइम क्या हुआ है ?”
बाबू ने बताया ।
अपनी घड़ी को ठीक करता हुआ जिमी वापस हॉल में दाखिल हो गया ।
तभी उसे टायलेट में से बाहर निकलता सोहल का साथी दिखाई दिया ।
जिमी ने तुरंत उसकी तरफ से निगाह फिरा ली और लंबे डग भरता हुआ पिछवाड़े की तरफ बढ गया ।
वहां सड़क पर उसने ऐसी जगह पोजीशन ले ली जहां से कि डाकखाने का पिछला दरवाजा साफ दिखाई दे रहा था ।
बह प्रतीक्षा करने लगा ।
पांच मिनट बाद जैसे अंडों पर पांव रखता हुआ सोहल का साथी वहां से बाहर निकला और पैदल एक तरफ चल दिया ।
“सांता मारिया !” - जिमी के मुंह से निकला ।
वह खुश था कि उसे पिछवाड़े वाले रास्ते की बात समय रहते सूझ गई थी वरना सोहल का साथी तो उनके हाथ से निकल ही गया था । वे सामने बैठे यही समझते हरते कि जब तक डाकखाने के सामने उसकी कार खड़ी थी, तब तक वह निश्चय ही डाकखाने के भीतर था और वह पिछवाड़े के रास्ते वहां से फूट भी गया होता ।
वह साये की तरह वहां से फूट भी गया होता ।
वह साये की तरह उसके पीछे लग गया ।
***
विमल की होटल में मौजदूगी के दौरान मारियो ने लॉबी से ही फोन करके एक कार और दो आदमी वहां बुलवा लिए थे ।
उन्हीं आदमियों से उसे मालूम हुआ कि सोहल और शांताराम के भाइयों के बरसोवा वाले ठिकाने पर बखिया के आदमियों ने हल्ला बोला था और वे वहां से तुकाराम और देवाराम को पकड़कर ले गए थे ।
“लेकिन” - मारियो हैरानी से बोला - “तुकाराम और देवाराम को तो मैंने अभी तुम लोगों के यहां पहुंचने से थोड़ी देर पहले उड़ते पंछी की तरह आजाद यहां से निकलकर जाते देखा था ! खुद इकबालसिंह उन्हें बाहर तक छोड़ने आया था और बाइज्ज्तत टैक्सी में बिठाकर गया था ।”
“कमाल है !” - दोनों में से एक बोला - “लेकिन बाप, उधर तो बहुत हंगामा बरपा था । बखिया के दर्जनों आदमी अभी भी उधर सोहल के इंतजार में मौजूद हैं ।”
“सोहल को गिरफ्तार करने के लिए ?”
“और नहीं तो क्या ?”
“लेकिन सोहल तो अभी खुद अपनी मर्जी से यहां पहुंचा था ।”
“बाप, वह नहीं जानता होगा कि यह बखिया का हैडक्वार्टर है ।”
“अबे साले, सोहल को रिसीव करने के लिए बखिया खुद लॉबी में आया था और उसे अपने साथ भीतर लेकर गया था ।”
“ऐसा कैसे हो सकता था ?”
“ऐसा मेरी आंखों के सामने हुआ है ।”
“यह करिश्मा है ।”
“यह करिश्मा मैंने खुद अपनी इन दो आंखों से देखा है ।”
“यह कमाल है ।”
“क्या गोरखधंधा है ?” - मारियो एकाएक गुस्से में अपने बाल नोचता हुआ बोला ।
तभी विमल ने होटल से बाहर कदम रखा ।
***
“देवा ।” - भिंडी बाजार की तरफ बढती टैक्सी में तुकाराम बड़ी गंभीरता से अपने पहलू में बैठे अपने भाई से संबोधित हुआ - “तू गांव चला जा ।”
देवाराम ने सकपकाकर अपने भाई की तरफ देखा ।
“समझ ले, बम्बई शहर से तेरा दाना-पानी हमेशा के लिए उठ गया ।”
“सिर्फ मेरा ? आपका नहीं ?”
“मैं अभी यहीं रहूंगा ।”
“वो किसलिए ?”
“ज्यादा सवाल मत पूछ और अपने बड़े भाई का कहना मान ।”
“आप मुझे गांव की सुरक्षा में भेजकर खुद यहीं, अकेले, मौत से दो-दो हाथ करना चाहते हैं ?”
“देवा, मेरे भाई, मेरे बच्चे, तू अभी छोटा है, नौजवान है, तेरे सामने सारी जिंदगी पड़ी है । तूने अभी जिंदगी में कुछ नहीं देखा ।”
“हो सकता है । लेकिन एक चीज मैंने देखी है, आज ही देखी है और बहुत करीब से देखी है ।”
“क्या ?”
“मौत ! साक्षात् मौत ! आपको यह करिश्मा नहीं लगता कि हम यूं बखिया के हाथों से बच गए ?”
“करिश्मा क्या, मुझे तो अभी तक विश्वास नहीं आ रहा कि ऐसा कुछ हो गया है ।”
“आप यह समझ लीजिए कि बखिया के जुल्मोसितम के जेरेसाया देवा आज आपके साथ शहीद हो गया । समझ लीजिए कि वह पहले ही मौत के मुंह में पहुंच चुका है ।”
“देवा मेरे साथ बहस मत कर और गांव चला जा ।”
“गांव मैं जाऊंगा तो आपको साथ लेकर जाऊंगा ।”
“तू अपने पिता की उम्र के अपने बड़े भाई का कहना नहीं मानेगा ?”
“यह कहना नहीं मानूंगा । बखिया के कहर से खौफ खाकर, एक डरे हुए कुत्ते की तरह अपनी टांगों में दुम दबाकर, अपनी जिंदगी के लिए गांव में पनाह तलाशता मैं यहां से नहीं भागूंगा ।
“देवा !”
“मैं जानता हूं, आपके जेहन में कोई बहुत खतरनाक इरादा करवट बदल रहा है । भाई साहब, जो जंग मेरे तीन भाईयों की मौत की वजह बनी, वो मैं आपको अकेले नहीं लड़ने दूंगा । कसम है मुझे शान्ता, जीवा और बाले की दिवंगत आत्माओं की, मैं आपको यहां अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगा ।”
देवा का गला रूंध गया ।
“देवा ।” - तुकाराम कातर स्वर में बोला - “मेरे बच्चे ।”
उसने देवाराम को खींचकर अपने कलेजे से लगा लिया ।
***
विमल को पूरा विश्वास था कि बखिया उसका पीछा करवाने से बाज नहीं आने वाला था, इसलिए वह बहुत सावधान था । उसे पूरी उम्मीद थी कि उसके होटल से निकलते ही कोई उसके पीछे लग जाने वाला था । ऐसे किसी आदमी की शिनाख्त करके उसे डॉज देने के इरादे के साथ ही उसने होटल से बाहर कदम रखा था ।
लेकिन कुछ क्षण बाद अपने पीछे लगा जो आदमी उसकी निगाह में आया, वह मारियो था ।
अब मारियो को उसने साफ पहचाना ।
उसकी टैक्सी के पीछे लगी काली फियेट के ड्राइवर की बगल में बैठा शख्स निश्चय ही गोवा के मशहूर गैंगस्टर एंथोनी एल्बुकर्क को भूतपूर्व बॉडीगार्ड और वर्तमान लेफ्टिनेंट मारियो था ।
उससे पीछा छुड़ाना उसे कोई बड़ा काम न लगा ।
पीछे लगे आदमी की खबर हो तो उससे पीछा छुड़ाना हमेशा ही मामूली काम हेाता था ।
और फिलहाल उसे कोई जल्दी भी नहीं थी ।
उसने सीट की पीठ से अपना सिर टिका लिया और सीट पर अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया ।
उस घड़ी में पिछले दिनों को हाहाकारी घटनाक्रम न्यूज रील की तरह उसके मानसपटल पर उभरने लगा ।
वह ख्यालों में खो गया ।
अपनी जिंदगी का कौन-सा रूप उसने सोचा था और कौन-सा रूप सामने आया था ।
“दाता ।” - वह होठों में बुदबुदाया - “सोचै सोचि न होवई जे सोची लखवार !”
अपनी कल्पना में वह एक बार फिर चंडीगढ में नीलम के फ्लैट के इत्मीनान और सकून में पहुंच गया । उसे उस औरत की कुर्बानी की याद आई जो उसकी कोई नहीं थी लेकिन सिर्फ उसी की वजह से खूखांर भेड़ियों के चंगुल में फंसी हुई थी ।
नीलम ! जो उसके हर दु:ख-सुख में शरीक थी और जो चंडीगढ से लेकर बम्बई तक हर जगह साये की तरह उसके साथ थी ।
चंडीगढ में उसके मुंह से निकल गया था कि उसकी आने वाली जिंदगी में उसकी सलामती इस बात पर निर्भर करती थी कि उस को प्लास्टिक सर्जरी से नया चेहरा हासिल हो जाता । स्लेटर नाम के जिस डॉक्टर से उसे नया चेहरा हासिल हो सकता था, उसकी ऐसी सेवाओं की फीस पांच लाख रुपये थी, जबकि विमल के पल्ले एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी । वह रकम उसके लिए नीलम ने मुहैया की थी, अपना मकान बेचकर । अपने जेवर बेचकर । बैंक से अपनी फिक्स डिपाजिट निकलवाकर ।
फिर विमल अपनी हरजाई बीवी की तलाश में, उसे उसके कुकर्मों की सजा देने की नीयत से चण्डीगढ से इलाहाबाद से बम्बई पहुंचा । वहां उसने सुरजीत को बान्द्रा के एक फैशनेबल फ्लैट में अकेले रहते पाया । सुरजीत ने ही उसे बताया कि उसका यार ज्ञानप्रकाश डोगरा उससे उकता चुका था लेकिन उसने यारी का इतना फर्ज जरूर निभाया था कि उसने सुरजीत को वह ऐश्वर्यशाली फ्लैट दे दिया था और हर पहली तारीख को वह खर्चे-पानी के लिए उसे दो हजार रुपये भिजवा दिया करता था ।
विमल वहां अपनी बेवफा और हरजाई बीवी का कत्ल करने आया था । उसके कुकर्मो के बदले में वह उसे मौत की सजा देने आया था, लेकिन विमल ने ऐसा नहीं किया । उसकी जगह उसने अपनी बीवी को इतना जलील किया कि अगर उस जलालत की जगह उसे मौत की सजा भी मिलती तो वह कई दर्जे कम होती ।
उसने उसी रात पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली ।
सुरजीत कौर ने साबित कर दिया कि वह बेवफा थी, लेकिन बेहया नहीं था । उसने विमल की जानबख्शी कबूल नहीं की । उसने अपनी जान खुद ले ली । उसने साबित करके दिखाया कि यह हारकर भी जीत गई थी और विमल जीतकर भी हार गया था ।
उन्होने सुरजीत की लाश को रेफ्रीजरेटर में बंद करके रेफ्रीजरेटर समुद्र में फेंक दिया ।
पहली तारीख को विमल ने सखाराम चित्रे नामक उस आदमी को धर दबोचा जो सुरजीत को दो हजार रुपये की माहवारी पहुंचाने के लिए उसके फ्लैट पर पहुंचा था ।
सखाराम चित्रे के माध्यम से वह उसके बॉस रुस्तम भाई अंधेरीवाला तक पहुंचा जो कि अंधेरी की न्यू बाम्बे टूरिस्ट टैक्सी सर्विस का मालिक था ।
रुस्तम भाई से उसे मालूम हुआ कि डोगरा अब बम्बई के अंडरवर्ल्ड के बेताज बादशाह राजबहादुर बखिया उर्फ काला पहाड़ के गैंग का एक महत्वपूर्ण आदमी बन चुका था और स्थायी तौर पर काले पहाड़ की ‘कम्पनी’ के नाम से जानी जाने वाली आर्गेनाइजेशन के हैडक्वार्टर होटल सी व्यू की दूसरी मंजिल के एक सुइट में रहता था ।
रुस्तम भाई ने विमल से वादा करके भी, कि वह विमल की बावत डोगरा को आगाह नहीं करेगा, उसने वादाखिलाफी की और डोगरा को विमल के अपने पास आगमन के बारे में सब कुछ बता दिया । उसने उसे यह भी बताया कि विमल सुरजीत को पहले ही कत्ल कर चुका था और अब वह फिराक में था डोगरा के कत्ल की और उन पचास हजार रूपयों की जिन्हें इलाहाबाद में डकार डोगरा गया था लेकिन जिनके गबन के इल्जाम में जेल की हवा सोहल को खानी पड़ी थी ।
विमल और नीलम होटल सी व्यू पहुंचे और उसकी आठवीं मंजिल पर स्थित सुइट नम्बर 805 में बुक हो गए । वहां थोड़ी-सी कोशिश से ही विमल ने इस बात की तसदीक कर ली कि डोगरा वहीं रहता था ।
एक रात की विमल ने होटल के पहलू में खड़ी एक कार को आग लगा दी । उसे उम्मीद थी कि उस आग से मचे कोहराम की वजह से डोगरा अपने सुइट की बाल्कनी पर प्रकट होगा और वह बड़ी सहूलियत से उसे शूट कर देगा ।
ऐसा हुआ भी, लेकिन डोगरा बाल-बाल बचा । विमल द्वारा उसकी बाल्कनी पर बरसाई गई गोलियों में एक भी उसे न लगी । लेकिन उस आक्रमण से वह इतना बौखलाया कि वह मदद हासिल करने की नीयत से कम्पनी के अपने से ऊंचे ओहदेदार मुहम्मद सुलेमान की शरण में पहुंच गया । उसने सारा वाकया सुलेमान के समने बयान किया ।
सुलेमान का जो जवान उसे मिला, उसने उसकी दुश्वारियों को दोबाला कर दिया ।
सुलेमान ने कहा कि सोहल से अदावत डोगरा का जाती मामला था, जिसे वह खुद ही भुगते । इस बाबत ‘कम्पनी’ कह कोई मदद उसे मुहैया नहीं कराई जा सकती थी और यह कि क्योंकि उसकी वजह से ‘कम्पनी’ के इज्जतदार होटल पर गोलियां बरसने की नौबत आई थी, इसलिए जब तक वह सोहल से अपनी अदावत का कोई आर या पार जैसा निपटारा नहीं कर लेता तब तक के लिए वह होटल का अपनी सुइट खाली कर दें ।
उसी रोज आधी रात को विमल आठवीं मंजिल की अपनी बाल्कनी से एक रस्सी के सहारे नीचे दूसरी मंजिल की एक बाल्कनी पर उतरा । वह बाल्कनी डोगरा जैसे ही ‘कम्पनी’ के एक अन्य ओहदेदार शान्तिलाल के सुइट की थी जोकि उस वक्त अपने बेडरूम में सिल्विया नामक ‘कम्पनी’ की एक होस्टेस के साथ लिपटा सोया पड़ा था ।
सिल्विया की सहायता से विमल डोगरा के सुइट तक पहुंचा लेकिन उसकी सारी मेहनत बेकार गई । सुइट खाली पड़ा था । मुहम्मद सुलेमान के आदेश के तहत डोगरा वहां से पहले ही कूच कर गया था ।
विमल रस्सी के सहारे ही वापिस लौटा । लेकिन सिल्विया की धोखेबाजी की वजह से ‘कम्पनी’ के प्यादों को उसकी खबर लग गई ।
बड़ी कठिनाई से वह अपनी बाल्कनी तक पहुंच पाया ।
प्यादे उसके सुइट में भी पहुंचे लेकिन उन्होंने विमल और नीलम को संपूर्ण नग्रावस्था में पलंग पर एक - दूसरे से गुत्थमगुत्था हुए सोये पाया ।
यही समझा गया कि चण्डीगढ से हनीमून के लिए वहां आए उस नव-विवाहित जोड़े को अपनी मदहोशी में दरवाजा भीतर से बंद करने का ख्याल नहीं रहा था, ‘चोर’ चुपचाप उनकी बाल्कनी में पहुंच गया था और रस्सी के सहाने नीचे शान्तिलाल की बाल्कनी में पहुंच गया था और रस्सी के सहारे नीचे शान्तिलाल की बाल्कनी में उतर गया था ।
‘कम्पनी’ की छत्रछाया से बेपनाह होकर डोगरा होटल नटराज में पहुंचा ।
उसका कोई अता-पता हासिल करने की नीयत से विमल और नीलम डोगरा के लेफ्टिनेंट घोरपड़े के घर पहुंचे । वहां विमल ने अपने-आपको सुलेमान साहब का ‘खास आदमी’ कालीचरण और नीलम को कम्पनी की होस्टेस रोजी बताया जोकि घोरपड़े का इनाम हो सकती थी - उस सूरत में जबकि वह यह बताने में कामयाब हो जाता कि डोगरा कहां था । विमल ने उसे कहा कि डोगरा का ‘कम्पनी’ से पत्ता कट चुका था, होटल से उसे निकाला जा चुका था, उसके खलास होने का हुक्म हो चुका था और उसकी जगह लेने के लिए कोई मुनासिब आदमी भी तलाश किया जा रहा था जोकि खुद घोरपड़े ही हो सकता था ।
घोरपड़े फूलकर कुप्पा हो गया । उसने बताया कि उसे डोगरा का पता तो नहीं मालूम था लेकिन एक जगह से उसका पता जाना जा सकता था ।
वह जगह सायन में स्थित मिसेज पिन्टो का वेश्यालय थी ।
बकौल घोरपड़े डोगरा पक्का औरतखोर था । औरत के बिना वह एक दिन भी नहीं रह सकता था । वह जहां भी होगा, मिसेज पिन्टो के वेश्यालय से उसने अपने लिए कोई कॉलगर्ल जरूर तलब की होगी । यानी कि उसने मिसेज पिन्टो को जरूर बताया होगा कि उसके लिए कॉलगर्ल मिसेज पिन्टो को जरूर बताया होगा कि उसके लिए कॉलगर्ल मिसेज पिन्टो ने कहां भेजनी थी ।
वे सायन पहुंचे । वहां घोरपड़े ने जबरन मिसेज पिन्टो से कुबुलवा लिया कि उसने संध्या नामक एक कॉलगर्ल को मैरिन ड्राइव पर स्थित होटल नटराज के सुइट नंबर 412 में डोगरा के पास भेजा था ।
मिसेज पिन्टो डोगरा को खबरदार न कर सके, इसलिए घोरपड़े को उसकी छाती पर बिठाकर विमल नीलम के साथ होटल नटराज पहुंचा । वहां विमल ने पहले डोगरा के साथ मौजूद कॉलगर्ल संध्या को वहां से विदा किया और फिर डोगरा का कत्ल कर दिया । डोगरा की जेब से केवल पांच सौ रुपये बरामद हुए । यानी कि ‘कम्पनी’ अब उसकी साढे सैंतालीस हजार रुपये की कर्जाई थी जोकि हर हाल में उसने ‘कम्पनी से वसूल करने थे ।
(यहां तक की कहानी आपने ‘हारजीत’ में पढी ।)
डोगरा की लाश के पास से ही विमल ने डोगरा के बॉस मुहम्मद सुलेमान को फोन किया और उसे यह क्लासिक धमकी दी:
“सुलेमान साहब, अगर चौबीस घंटों में आपने मेरा रुपया मुझे न लौटाया तो रूपया लौटाने में हर एक दिन की देरी का मैं आप पर एक लाख रूपया रोज के हिसाब से जुर्माना करूंगा और रोज आपकी आर्गेनाइजेशन के एक आदमी को मौत के घाट उतार दूंगा ।”
अपनी इस धमकी पर विमल सबसे पहले ‘कम्पनी’ के एक शिवाजी राव नाम के एक ओहदेदार का कत्ल करके खरा उतरा । शिवाजीराव एक दुर्दान्त हत्यारा था जो शान्ताराम नामक एक स्मगलर और उसके सारे परिवार का कत्ल करने के इल्जाम में गिरफ्तार था । जिस रोज वह अदालत से ‘लैक औफ एवीडेंस’ की बिना पर बरी होकर छूटा, उसी रोज विमल ने दिन-दहाड़े, सरेआम उसे शूट कर दिया ।
शान्ताराम के तुकाराम, बालेराम, जीवाराम और देवाराम नामक चार भाइयों ने इसे अपने भाई की मौत का बदला माना, वे विमल के मुरीद बन गए और उसके सहयोगी बनने के लिए उसे तलाश करने लगे ।
‘कम्पनी’ के आदमी विमल को पहले से ही तलाश कर रहे थे । और अब पुलिस को भी मालूम हो चुका था कि मशहूर इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल उर्फ नितिन मेहता उर्फ कालीचरण अब बम्बई में था और वहां एकाएक छिड़ पड़ी गैंगवार में घी में खिचड़ी की तरह हिला-मिला हुआ था ।
पुलिस को भी उसकी तलाश थी ।
विमल का अगला आक्रमण कम्पनी की सरपरस्ती में चलने वाले जुआघर क्लब-29 पर हुआ, जहां कैसीनो का वाल्ट तो एक एकाउंटेंट की हिम्मत और होशियारी से लुटने से बच गया लेकिन एक गार्ड मारा गया । क्लब के इंचार्ज ‘कम्पनी’ के शान्तिलाल नामक एक ओहदेदार के हाथ की एक उंगली कटी और वहां मौजूद करोड़ों रुपयों में से विमल के पल्ले सतत्तर हजार पांच सौ रुपये की हकीर रकम पड़ी ।
यानी कि काला पहाड़ अभी भी पूरे पौने दो लाख की रकम का विमल का कर्जाई था ।
अब विमल के आतंक की खबर मुहम्मद सुलेमान के ऊपर के ओहदेदार जॉन रोडरीगुएज तक पहुंची । वह बखिया का हायां हाथ माना जाता था और ‘कम्पनी’ के निजाम में उससे ऊपर केवल बखिया ही था ।
जॉन राडरीगुएज ने सुलेमान को अल्टीमेटम दिया कि चौबीस घंटों में या तो वह विमल को तलाश करके उसे खलास कर दे और या उसकी मांग कबूल करके वह रकम उसे सौंप दी जाए जिस पर कि विमल अपना हक मानता था ।
किसी नये टार्गेट की तलाश में विमल संध्या नाम की उस कॉलगर्ल से मिला जिसे डोगरा के कत्ल की रात को उसने डोगरा के पहलू में पाया था । संध्या उसकी अहसानमंद थी कि डोगरा के साथ उसने उसे भी शूट नहीं कर दिया था । उसने ‘कम्पनी’ के निजाम और उसके ओहदेदारों के बारे में विमल को कमाल की जानकारी दी । ‘मटका’ नाम के जुए और कम्पनी के सारे एशिया मेूं फैले हेरोइन के व्यापार के बारे में विमल को संध्या से ही मालूम हुआ ।
अगली रात को विमल ने मिसेज पिन्टो के बंगले की आग लगा दी । आग की खबर सुनकर ‘कम्पनी’ के प्रॉस्टीच्यूशन ट्रेड का इंचार्ज पालकीवाला जब वहां पहुंचा तो विमल ने उसे शूट कर दिया । वहीं विमल तुकाराम की निगाह में आ गया जोकि विमल के वहां प्रकट होने की उम्मीद में ही बंगले की निगरानी कर रहा था । विमल के पीछे लगकर तुकाराम को दो बातें मालूम हुई: कि वह कम्पनी की ऐन नाक के नीचे बखिया के हैडक्वार्टर होटल सी व्यू की आठवीं मंजिल के सुइट नंबर 805 में रह रहा था । और उसके साथ जो उसका सहयोगी था, वह वास्तव में एक सुंदर युवती थी ।
तुकाराम ने बागले नाम के अपने एक आदमी को विमल की निगरानी के लिए होटल सी व्यू में प्लांट कर दिया ।
उसी रात विमल ने जॉन रोडरीगुएज को कोठी में घुसकर भारी उत्पात मचाया और यह स्थापित कर दिया कि वह जब चाहता जॉन रोडरीगुएज जैसे समर्थ और शक्तिशाली आदमी को भी चींटी की तरह मसल सकता था । नतीजा यह हुआ कि विमल को कह दिया गया कि उसकी मांग कबूल कर ली गई थी, इसलिये वह अपनी मारकाट बंद कर दे । लेकिन वास्तव में वह एक गहरी चाल थी जो विमल को खत्म कर सकती थी । विमल को जो रकम सौंपी जानी थी, वह उन्होंने ऐसे ब्रीफकेस में बंद की थी जिसमें बम फिट था । ब्रीफकेस से नोट निकालते ही ब्रीफकेस बम की तरह फट सकता था और जिस व्यक्ति के अधिकार में वह होता, उसकी जान ले सकता था ।
वह ब्रीफकेस कम्पनी के सिपहसालार दण्डवते ने आधी रात को बोरीवली स्टेशन पर विमल को सौंप दिया । लेकिन उस बम का शिकार हुआ वह सब-इंस्पेक्टर, जिसने विमल को गिरफ्तार करके ब्रीफकेस अपने अधिकार में ले लिया था और उसमें से नोट बरामद किए थे ।
विमल पुलिस से बच गया लेकिन होटल सी व्यू में घोरपड़े द्वारा पहचान लिए जाने की वजह से नीलम सुलेमान की गिरफ्त में आर गई ।
सुलेमान विमल के वहां पहुंचने का इंतजार करने लगा ।
बकौल उसके अब जबकि पंछी खुद ही जाल में फंसने के लिए पर तोल रहा था तो उसके पीछे भागने का क्या फायदा था ।
यानी कि उसे विमल की होटल में पहुंचने की गारंटी थी ।
विमल का ‘कम्पनी’ के हाथों में पड़ जाना अब सिर्फ वक्त की बात थी ।
(यहां तक की कहानी आपने ‘विमल का इंसाफ’ में पढ़ी ।)
जैसा कि अपेक्षित था, विमल होटल पहुंचा लेकिन वागले उसे होटल के बाहर से ही वहां से भगाकर ले गया । उसी ने विमल को बताया कि नीलम मुहम्म्द सुलेमान के चंगुल में पहुंच गई थी और यह कि वह शान्ताराम के भाईयों का आदमी था और उसे मिलवाने चैम्बूर ले जा रहा था ।
चैम्बूर के रास्ते से ही विमल ने सुलेमान को फोन किया ।
सुलेमान ने उसे अल्टीमेटम दिया कि अगर वह नीलम को भारी दुर्गति से बचाना चाहता था तो वह शाम तक स्वयं को ‘कम्पनी’ के हवाले कर दे ।
विमल उसके लिए भी तैयार हो गया लेकिन वागले ने उसे जबरन ऐसा करने से रोका ।
विमल की मुलाकात शान्ताराम के भाइयों से हुई । उन्होने उसे बताया कि क्योंकि बखिया उनका भी दुश्मन था और वे भी उसका सर्वनाश चाहते थे इसलिए वे चारों भी विमल की ऐसी कोई भी मदद करने को तैयार थे जो बखिया की बादशाहत ढहाने का सामान कर सके । साथ ही उन्होंने शाम से पहले नीलम की रिहाई की भी कोई सूरत निकालने का वादा किया ।
वह मदद हासिल होते ही विमल ने उन चारों भाइयों में सबसे छोटे भाई देवाराम के साथ ‘कम्पनी’ के जेकब सर्कल वाले ऑफिस पर हल्ला बोल दिया । वहां उसने ‘कम्पनी’ के ओहदेदार कान्ति देसाई को ‘कम्पनी’ के कफ परेड वाले हैड ऑॅफिस में अपने से ऊपर के ओहदेदार को यह फोन करने पर मजबूर किया कि वह कालीचरण (विमल) को उसके पास भेज रहा था । फिर विमल ने देसाई को शूट कर दिया और वहां से ‘मटके’ का बाइस लाख रूपया लूट लिया ।
देवाराम ने ऑफिस में बम लगा दिए जिसकी वजह से उनके वहां से निकलते ही सारा ऑफिस ही स्वाहा हो गया ।
नीलम को छुड़ाने को कोई तरकीब शान्ताराम के बाकी भाइयों को न सूझी तो उन्होंने पुलिस कमिश्नर को फोन कर दिया और उसे होटल सी व्यू के सुइट नंबर 805 में सोहल की सहयोगिनी नीलम की मौजूदगी और सोहल की संभावित मौजदूगी के बारे में बता दिया ।
पुलिस कमिश्नर खुद होटल सी व्यू पहुंचा । सुइट नंबर 805 में उसके तब कदम तब कदम पड़े जबकि ‘कम्पनी’ के सिपहसालर दण्डवते और एक ओहदेदार शान्तिलाल के मना करने के बावजूद सुलेमान नीलम के साथ मुंह काला कर चुका था और नीलम को टॉर्चर करने की नीयत से ‘कम्पनी’ के जल्लाद जोजो को वहां तलब कर चुका था ।
पुलिस कमिश्नर नीलम को गिरफ्तार करके अपने साथ ले गया ।
विमल कालीचरण बनकर मोटलानी से मिलने की नीयत से ‘कम्पनी’ के कफ परेड वाले ऑफिस में पहुंचा ।
उस ऑफिस की जिमी नामक एक आदमी निगरानी कर रहा था ।
कालीचरण के बहुरूप में भी उसने विमल को पहचान लिया ।
तुरंत उसने वह सनसनीखेज खबर फोन पर अपने बॉस मारियो को दी और यह भी संभावना व्यक्त की कि सोहल वहां को अभेद्य वाल्ट खोलकर उसमें से ‘लिटल ब्लैक बुक’ निकालने की फिराक में हो सकता था ।
विमल मोटलानी के ऑफिस तक पहुंचा ।
वहां उसने मोटलानी को मजबूर किया कि वह अपने से बड़े बॉस जॉन रोडरीगुएज को टेलीफोन करे ।
रोडरीगुएज अभी लाइन पर ही था कि विमल ने मोटलानी को शूट कर दिया ।
उसने रोडरीगुएज को धमकी दी कि अगर नीलम को कुछ हुआ तो मोटलानी की तरह ही वह रोडरीगुएज समेत ‘कम्पनी’ के एक-एक ओहदेदार को मौत के घाट उतार देगा ।
रोडरीगुएज ने उसे बताया कि उसी रात बखिया गोवा से वापिस लौट रहा था और यह फैसला उसी के हाथ में था कि नीलम को छोड़ा जाना चाहिए था या नहीं । उसने विमल को यह आश्वासन दिया कि अगली सुबह तक सुलेमान नीलम पर कोई जुल्म नहीं ढाएगा इसलिए तब तक वह भी कम्पनी का कोई नया नुकसान न करे ।
फिर रोडरीगुएज को मालूम हुआ कि तब तक नीलम उनके हाथों से निकलकर पुलिस के हाथों में पहुंच चुकी थी ।
पुलिस कमिश्नर ने खुद नीलम को सोहल के बारे में क्रॉस-क्रेश्चन किया लेकिन नीलम ने यह तक कबूल न किया कि वह सोहल को जानती थी ।
सोहल की बखिया के खिलाफ छेड़ी गई जंग की वजह से उन दिनों बम्बई में ऐसा माहौल बना हुआ था कि ‘कम्पनी’ के खिलाफ उठने वाले हर कदम के लिए सोहल को जिम्मेदार माना जाता था ।
इस स्थिति का तिलकराज नामक एक मामूली चोर ने यह फायदा उठाया कि उसने महालक्ष्मी रेसकोर्स के सामने के एक पेट्रोल पम्प पर डाका मारा जहां कि सेफ में ‘कम्पनी’ का बीस लाख रुपया बंद था । ‘कम्पनी’ का वह रुपया हथिया लेने के बाद उसने वहां मौजूद राहुलराव और गंगवानी नामक ‘कम्पनी’ के आदमियों को अपना नाम सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल बताया ।
विमल रात को दादर में संध्या के घर पहुंचा ।
उसने संध्या को नीलम की गिरफ्तारी के बारे में बताया और उससे प्रार्थना की कि वह ‘कम्पनी’ का कोई ऐसा भेद उसे बताए जो कि निलम को छुड़वाने में उसकी कोई मदद कर सकता हो ।
संध्या ने उसे ‘लिटल ब्लैक बुक’ के बारे में बताया और कम्प्यूटर कंट्रोल वाले अभेद्य वाल्ट के बारे में बताया जिसमें कि बुकरम की काली जिल्द वाली ‘लिटल ब्लैक बुक’ के नाम से बम्बई के सारे अंडर वर्ल्ड में जानी जाने वाली डायरी बंद रहती थी । उसी डायरी में सारे एशिया में फैले बखिया के नारकटिक्स ऑपरेशन का रिकार्ड निहित था । बकौल संध्या वह डायरी उस तोते की तरह थी जिसमें बखिया नामक राक्षस की जान थी । यानी कि जिसके पास वह डायरी होती उसी की मुट्ठी में बखिया की जान होती । उसने उसे वाल्ट और उसके भीतर रखी डायरी के संरक्षक रतनलाल जोशी के बारे मे भी बताया । उसने बताया कि वॉल्ट खोलने के लिए दरकार वॉल्ट का नंबर कहने को सिर्फ जोशी को ही मालूम होता था लेकिन वास्तव में वह नंबर जोशी अपनी बीवी को भी बताकर रखता था ताकि अगर उसकी याददाश्त दगा दे जाए तो वह बीवी से नंबर मालूम कर सके ।
विमल अभी संध्या के फ्लैट में ही था कि ‘कम्पनी’ का सिपहसालर दण्डवते, जिसे कि पहले से शक था कि वह सोहल से मिली हुई थी, वहां पहुंच गया ।
वागले, जोकि शान्ताराम के भाइयों की हिदायत पर विमल की निगरानी के लिए साये की तरह विमल के पीछे लगा हुआ था, की मेहरबानी से वहां विमल दण्डवते के काबू में आने से बाल-बाल बचा ।
दण्डवते जब संध्या को ‘कम्पनी’ के जल्लाद जोजो के हवाले करने की नीयत से जुहू ले जा रहा था तो विमल ने उस पर हमला कर दिया और उसका कत्ल करके संध्या को उसके चंगुल से छुड़ाया ।
उसने संध्या को यह समझाकर गाड़ी पर चढा दिया कि अब उसका उस शहर से कहीं कूच कर जाने में ही कल्याण था ।
संध्या, जोकि विमल को अपना भाई मानती थी, उसके कहने पर बम्बई छोड़ जाने के लिए गाड़ी में सवार हो गई ।
उधर सुलेमान को यह चिन्ता सता रही थी कि बखिया के आते ही उसकी मिट्टी पलीद होने वाली थी । वह रात को ‘कम्पनी’ के अन्य ऊंचे, अपने बराबर के, ओहदेदार साहबजादा आफताब खान से मिला और उसके साथ मिलकर उसने ऐसा षड्यंत्र रचा कि अगर सोहल वाकई बखिया को मारने में कामयाब हो जाए तो उसकी बादशाहत उसके दायें हाथ रोडरीगुएज के हाथ में न जाने पाए ।
उसी रात को बखिया गोवा से वापिस लौटा । उसने अपने तमाम ओहदेदारों की मीटिंग बुलाई और हालात का जायजा लिया । उस मीटिंग में उसने सुलेमान को बुरी तरह से जलील किया । अगले रोज उन्हें सोहल के खिलाफ क्या कदम उठाना चाहिए था, इस महत्वपूर्ण मंत्रणा में उसने सुलेमान को शामिल करना तक जरूरी न समझा ।
अगली सुबह विमल ने जॉन रोडरीगुएज को फोन किया । रोडरीगुएज ने उसे कहा कि नीलम को इसी तरीके से रिहा किया जा सकता था कि वह होटल सी व्यू में आकर बखिया से मिले और वहां से लौटती बार नीलम को अपने साथ ले जाए ।
विमल ने उस टालमटोल वाले जबाव को इनकार का दर्जा दिया ।
‘कम्पनी’ के एक अन्य ओहदेदार इकबालसिंह ने विमल की उस कॉल को ट्रेस करने का एडवांस में इंतजाम किया हुआ था । उसने बखिया को बताया कि वह कॉल चैम्बूर से आई थी और वही वह इलाका था, जहां शान्ताराम के भाई रहते थे ।
दण्डवते की गैरहाजिरी में बखिया ने मैक्सवैल परेरा नामक अपने एक लेफ्टिनेंट को ‘कम्पनी’ का सिपहसालार मुकर्रर किया और उसे आदेश दिया कि वह शान्ताराम के भाईयों को चैक करवाए ।
विमल रोडरीगुएज को टेलीफोन करके वापिस लौटा तो शान्ताराम के भाइयों ने उसे यह हौलनाक लेकिन झूठी खबर सुनाई कि नीलम के साथ होटल सी व्यू सुइट नंबर 805 में सारी रात सामूहिक बलात्कार को प्रोग्राम चला था और सुबह नीलम किसी प्रकार सुइट की बाल्कनी से नीचे कूदकर आत्महत्या करने में कामयाब हो गई थी ।
नीलम के उस दर्दनाक अंजाम की खबर सुनकर विमल खून के आंसू रोया ।
उसने फिर रोडरीगुएज को फोन किया और उसे कहा कि वह कम-से-कम नीलम की लाश उसे सौंप दे ताकि उसकी मिट्टी तो खराब न हो, ताकि वह तरीके से उसका अंतिम संस्कार तो कर सके ।
रोडरीगुएज ने नीलम की लाश लौटाने की हामी भर दी । नीलम तो वास्तव में सही-सलामत पुलिस की हिरासत में थी लेकिन वे विमल को उसकी लाश सौंपने के बहाने उसे अपने कब्जे में करने की उम्मीद कर रहे थे । विमल ने लाश महालक्ष्मी रेसकोर्स के सामने के मैदान में मंगवाई थी । रोडरीगुएज ने वहां अपने इतने आदमी पहले ही भेज दिए कि लाश लेने वहां आकर विमल बचकर नहीं जा सकता था ।
लेकिन बालेराम और देवाराम की सहायता से विमल ने वह मेटाडोर रास्ते में ही घेर ली जिसमें कि लाश होनी चाहिए थी ।
मेटाडोर में से लाश न निकली ।
उस घटना से बखिया को विश्वास हो गया कि विमल अकेला नहीं था, उसे बम्बई में बड़ी मुस्तैद मदद हासिल थी ।
उसकी तवज्जो फिर शान्ताराम के भाइयों की तरफ गई ।
तभी इकवालसिंह ने पता लगावा कि विमल की दूसरी टेलीफोन कॉल शान्ताराम के भाइयों के घर में लगे टेलीफोन से आई थी ।
बखिया ने ‘कम्पनी’ के सिपहसालार परेरा को कहर बनकर शान्ताराम के भाइयों पर टूट पड़ने का आदेश दिया ।
परिणामस्वरूप जीवाराम गिरफ्तार हो गया ।
लेकिन उसके बाकी तीन भाई और विमल उस गुमनाम टेलीफोन कॉल की वजह से बच गए जो वास्तव में अमीरजादा आफताब खान ने परेरा के चैम्बूर पहुंचने से पहले तुकाराम को कर दी थी ।
केवल खान को ही यह मालूम था कि अगली शाम को बखिया अपने बीमार भाई से मिलने कल्याण जाने वाला था ।
उसने यह बात भी फोन करके तुकाराम को बता दी ताकि वे कल्याण में बखिया के कत्ल का सामान कर सकें ।
गिरफ्तार जीवाराम को यातनाएं देकर सोहल का पता जानने की कोशिश की गई लेकिन जीवाराम ने कुछ न बताया । जोजो ने उसे इतना टॉर्चर किया कि उसके प्राण निकल गए ।
बखिया ने उसकी लाश चैम्बूर में उसके भाइयों के घर के सामने लैंप पोस्ट के साथ लटकवा दी ।
विमल और देवाराम ने जोशी की बीवी पर दबाव डालकर वॉल्ट का नंबर मालूम कर लिया ।
वॉल्ट खोलने की नीयत से जब वे कफ परेड पहुंचे तो उस वक्त वहां की निगरानी करते जिमी के साथ उसका एक सहयोगी बाबू और बॉस मारियो भी शामिल हो चुके थे ।
विमल ने जोशी के सामने वॉल्ट खोलकर भीतर से लिटल ब्लैक बुक निकाल ली और भीतर एक बम प्लांट कर दिया ।
वॉल्ट खुल जाने से वाल्ट से संरक्षक जोशी को इतनी आत्मग्लानि हुई कि उसने आत्महत्या कर ली ।
विमल और देवाराम डायरी के साथ वहां से रवाना हुए तो जिमी, बाबू और मारियो उनके पीछे लग गए ।
पीछे वाल्ट में रखा बम फूटा ।
एक भीषण विस्फोट हुआ ।
बखिया खुद वहां पहुंचा । उसने जोशी को मरा पाया और हालात ने इस बात की चुगली की कि वाल्ट कोई बाहरी आदमी खोल चुका था । लेकिन उस वाल्ट का ऑटोमैटिक कम्प्यूटर कंट्रोल उसे यूं बंद कर चुका था कि वह किसी भी सूरत में चौबीस घंटे से पहले नहीं खुल सकता था ।
भीतर का नुकसान जानने के लिए चौबीस घंटे का इंतजार अनिवार्य था ।
उसी रात विमल और देवाराम जॉन रोडरीगुएज के बंगले में घुसे ।
उसी रात वहां सोमानी नाम का मुखबिर आया हुआ था जो रोडरीगुएज के लिए यह सनसनीखेज खबर लाया था कि शान्ताराम के भाई वरसोवा की मछुआरों की बस्ती में छुपे हुए थे और उस वक्त वहां शान्ताराम के केवल दो भाई मौजूद थे ।
देवाराम ने रोडरीगुएज को तब शूट कर दिया जब वह नीलम के बारे में कुछ कहने जा रहा था ।
वहां से निकासी की कोशिश में उन्होंने रोडरीगुएज के सारे अंगरक्षकों को भी शूट कर दिया ।
फिर उन्होंने बाहर रास्ते में सोमानी को भी जा पकड़ा और उसका भी काम तमाम कर दिया ।
‘कम्पनी’ की एक कॉलगर्ल जजाबेल की सूझबूझ और होशियारी से सोहल के नाम से कम्पनी की बीस लाख रुपया लूटने वाला तिलकराज गिरफ्तार हो गया और लूट का तकरीबन सारा रुपया उसके पास से बरामद कर लिया गया ।
अगले रोज बखिया ने वाल्ट खोला तो उसे भीतर राख के एक ढेर के अलावा कुछ न दिखाई दिया ।
उसकी जान, उसकी शक्ति, लिटल ब्लैक बुक समेत वाल्ट की हर चीज स्वाहा हो चुकी थी ।
बखिया को वह सोहल की सबसे बड़ी - उसके बायें हाथ जॉन रोडरीगुएज के कत्ल से भी बड़ी - चोट थी ।
उसी रात कल्याण में बखिया पर किया गया आक्रमण इत्तफाक से विफल हो गया ।
बदले में बालेराम बखिया के एक बॉडीगार्ड की गोली का निशाना बन गया और विमल और देवाराम बड़ी मुश्किल से जान बचाकर वहां से भागने में कामयाब हो पाए ।
बखिया जानता था कि आफताब खान और जॉन रोडरीगुएज के अलावा किसी की मालूम नहीं था कि वह कल्याण जाने वाला था । रोडरीगुएज क्योंकि मर चुका था इसलिए उसका खान पर शक करना स्वाभाविक था ।
उसने खान की हत्या करके उसकी लाश गायब करवा दी ।
फिर दोपहर तक शान्ताराम के भाइयों के खिलाफ तकदीर ने ही बखिया का दांव चला दिया ।
रोडरीगुएज के बंगले में देवाराम ने जिन गार्डो को अपनी गोलियों का निशाना बनाया था, उनमें से एक मरा नहीं था, केवल गंभीर रूप से घायल हुआ था । अस्पताल में एक बार उसे होश आया तो उसने बताया कि उसने खुद सोमानी की रोडरीगुएज साहब को बताते सुना था कि शान्ताराम के भाई वरसोवा में मछुआरों की बस्ती में एक मकान में छुपे हुए थे ।
शान्ताराम के दो बाकी बचे भाई तुकाराम और देवाराम ‘कम्पनी’ की गिरफ्त में आ गए । विमल संयोगवश वहां नहीं था इसलिए बच गया और वागले इसलिए बच गया क्योंकि ‘कम्पनी’ के प्यादों की फौज में उसे जानने-पहचानने वाला कोई नहीं था ।
(यहां तक की कहानी आपने ‘मौत का नाच’ में पढी)
विमल ने एक बार खिड़की से बाहर निगाह डाली ।
टैक्सी तभी माहिम क्रीक से पार हुई थी ।
“दाता ।” - वह आह भरकर बोला - “तेरा अन्त न जाई लखया ।”
“कुछ अपुन से बोला, साहब ?” - टैक्सी ड्राइवर बोला ।
विमल ने तुरंत उत्तर न दिया । अब आगे ट्रैफिक-भरी डबल रोड आ गई थी । उसने एक बार उचककर मीटर की तरफ निगाह डाली और फिर जेब से एक बीस का नोट निकाला ।
“हां ।” - वह बोला - “तुम्हीं से बोला ।”
“क्या बोला, बाप ?”
विमल ने हाथ बढाकर नोट ड्राइवर की गोद में डाल दिया और बोला - “मैं अभी टैक्सी से उतर जाऊंगा लेकिन जब मैं टैक्सी रोकने को कहूं तो उसे बाईं ओर फुटपाथ से लगाकर रोकने की कोशिश मत करना । उसे दाईं ओर सड़कों के बीच की पटड़ी के करीब करके रोकना ।”
“पीछू से कोई गाड़ी आ टकराएगी, बाप ।” - ड्राइवर बोला ।
“एक सैकण्ड में कु्छ नहीं होने का ।”
ड्राइवर ने एक निगाह मीटर पर डाली, फिर गोद में पड़े बीस के नोट को देखा और फिर सहमति में सिर हिला दिया ।
विमल ने एक गुप्त निगाह अपने पीछे डाली ।
काली फियेट बदस्तूर उसके पीछे लगी हुई थी । उस वक्त टैक्सी और काली फियेट के बीच में चार-पांच वाहन थे ।
कुद क्षण बाद विमल को बगल की सड़क पर विपरीत दिशा से आती एक डबल डैकर बस दिखाई दी ।
“रोको !” - एकाएक वह बोला ।
ड्राइवर ने टैक्सी रोकी ।
विमल का हाथ पहले से ही दाईं ओर के दरवाजे के हैंडल पर था ।
टैक्सी अभी पूरी तरह से गतिशून्य हुई भी नहीं थी कि विमल ने दरवाजा खोलकर टैक्सी से बाहर छलांग लगा दी । वह दोनों सड़को के बीच की पटड़ी पर चढ गया और डबल डैकर के वहां से गुजरने से पहले झपटकर उसके सामने से सड़क पार कर गया ।
टैक्सी तब तक फिर स्पीड पकड़ चुकी थी और वाहनों के प्रवाह का अंग बन चुकी थी ।
मारियो विमल की उस अप्रत्याशित हरकत से बुरी तरह बौखलाया । यू टर्न लेकर दूसरी तरफ की सड़क पर आने के लिए बीच की पटड़ी में ब्रेक दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था ।
उसने कार रुकवाई और यूं अंधाधुंध उसमें से बाहर निकला कि पीछे से आती एक मेटाडोर की चपेट में आने से बाल-बाल बचा ।
वह पटड़ी पर चढ़कर जब तक परली सड़क पर पहुंचा, तब तक विमल का वहां नामोनिशान भी नहीं था ।
फिर एकाएक विमल उसे तब तक वहां से काफी दूर निकल जा चुकी डबल डैकर बस की पिछली खिड़की में दिखाई दिया ।
व्याकुल भाव से उसने आसपास निगाह दौड़ाई ।
वहां कोई टैक्सी नहीं थी ।
और उसकी अपनी कार तुरंत उस सड़क पर आ नहीं सकती थी ।
दूर होती जा रही डबल डैकर को देखकर-देखकर हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं था ।
विमल अगले ही स्टैंड पर डबल डैकर से उतर गया ।
उसने एक टैक्सी पकड़ी और भिंडी बाजार की तरफ रवाना हो गया ।
वह नहीं जानता था कि जो ट्रिक उसने मारियों से पीछा छुड़ाने के लिए इस्तेमाल की थी, उसी ने उसका अपने पीछे लगे बखिया के आदमियों से भी छुड़ा दिया था ।
भिंडी बाजार पहुंचकर वह टैक्सी पर से उतरा और पैदल चलता हुआ वहां की झोपड़ पट्टी में पहुंचा ।
जिस पहले ही आदमी से उसने अकरम लॉटरी वाले के बारे में पूछा वह उसे उसका पता बताने के स्थान पर उसे बाकायदा उसकी खोली तक छोड़कर आया ।
निश्चय ही अकरम लॉटरी वाला उस झोंपड़ पट्टी की कोई मशहूर हस्ती था ।
अकरम लॉटरी वाले की खोली पर ताला झूल रहा था ।
पता नहीं शान्ताराम के भाई वहां पहुंचे ही नहीं थे या वहां पहुंचकर दोबारा कहीं चले गए थे ।
उसकी झोपड़ी के ऐन सामने एक दीवार पर मशहूर इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल की गिरफ्तारी पर सवा लाख रूपये के इनाम की घोषणा वाला पोस्टर लगा हुआ था ।
विमल को ज्यादा देर वहां टिकना खतरे से खाली न लगा ।
‘वाहेगुरू सच्चे पातशाह !’ - वह होंठों में बुदबुदाया - ‘तू मेरा राखा सबनी थाहीं ।’
उसने फिर एक टैक्सी पकड़ी और कोलीवाड़ा की तरफ रवाना हो गया ।
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