‘ब्लास्ट’ के ऑफिस के केबिन में चपरासी जिस आदमी को छोड़ कर गया, वह बन्दर था ।
बन्दर का वास्तविक नाम जुगल किशोर था, लेकिन सुनील ने उसके माता-पिता के अलावा किसी को उसे जुगल कहते नहीं सुना था । हर कोई उसे बन्दर कहता था और बन्दर को इससे कतई एतराज नहीं था । बल्कि अब तो वह बन्दर के नाम से पुकारा जाने का इतना आदी हो चुका था कि एक बार तो जुगल की आवाज सुनने पर उसे यही ख्याल नहीं आता था कि उसे पुकारा जा रहा है ।
बन्दर सुनील का पुराना मित्र था, लेकिन स्वयं सुनील भी नहीं जानता था कि उसे बन्दर नाम किसने दिया था । बहरहाल जुगल को जानने वाले लोग दो चार ही थे जबकि बन्दर को सारा राजनगर जानता था ।
बन्दर मेडिकल कालेज का विद्यार्थी था और एक जमाने से लगातार फेल हो रहा था । वह न पास होता था और न कालेज छोड़ता था । कालेज के अधिकारी उसे निकाल इसलिये नहीं पाते थे क्योंकि वह कालेज बन्दर के डैडी द्वारा दिये गये लाखों रूपये के अनुदान के दम पर ही चल रहा था । कालेज जाना बन्दर की हॉबी थी । कुछ तो वह था ही नालायक और कुछ अपनी इस हॉबी को बरकरार रखने के लिये वह जान बूझकर फेल हो जाने में कोई हर्ज नहीं मानता था ।
बन्दर एक बेहद दुबला पतला तीखे नाक नक्श वाला सुन्दर युवक था । लेकिन उसके व्यक्तित्व का सबसे अधिक महत्वपूर्ण अंग था उसका चश्मा । उसकी आंखें इतनी कमजोर थीं कि बिना चश्मे के उसे दो फुट पर स्थित वस्तु धुंधली दिखाई देती थी । वह एक विशेष प्रकार का चश्मा लगाता था । जिसके शीशे और फ्रेम दोनों इतने मोटे थे कि हैरानी होती थी कि उसकी नाजुक सी नाक इतना बोझ सम्भाल कैसे पाती है ।
बन्दर की दूसरी विशेषता यह थी कि वह लड़कियों से मित्रता गांठने में अपना सानी नहीं रखता था । स्वयं उसके अपने कथनानुसार एक लम्बे अरसे की कालेज लाइफ में उसने और सीखा ही क्या था ! कितना ही नकचढी लड़की क्यों न हो - बन्दर किसी न किसी प्रकार उसे अपनी पटड़ी पर ले आता था । अब यह एक अलग बात थी कि लड़कियां उससे मित्रता कम जताती थीं, उसे उल्लू ज्यादा बनाती थीं ।
बन्दर की तीसरी, चौथी, पांचवीं, दसवीं, सौंवी, हजारवी, विशेषता यह थी कि उसका बाप करोड़पति था ।
सुनील ने बड़े वितृष्णापूर्ण भाव से बन्दर को देखा । उसकी नाक पर से चश्मा गायब था और बिना चश्मे के बन्दर का आगमन एक भारी तूफान के आगमन से कम नहीं होता था ।
“कैसे हो प्यारे भाई !” - वह तनिक उत्तेजित स्वर में एक अलमारी को सम्बोधित करता हुआ बोला ।
“अबे ओ बन्दर के बच्चे !” - सुनील खीज कर बोला - “चश्मा लगा ले ।”
बन्दर ने एक बार आंखें मिचमिचाई और फिर वह सुनील की मेज के सामने आकर एक कुर्सी पर ढेर हो गया ।
“यह तुमने केबिन में अपने मेज की पोजीशन क्यों बदल ली है ?” - बन्दर बोला ।
“जरूरत थी ।” - सुनील ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया ।
“पहले तो मेज दरवाजे के सामने होती थी और मैं समझा था कि मेज आ भी वहीं होगी । मेज की पहली जगह पर पता नहीं कौन साहब खड़े थे जिन्हें मैं तुम्हें समझकर सम्बोधित कर बैठा ।”
“वह एक अलमारी थी, बेटे ।” - सुनील बोला - “जिनसे तुम बातें कर रहे थे और अगर तुमने अपना वह जंगी चश्मा अपनी नाक पर लगाया हुआ होता तो यह बात तुम्हें भी मालूम हो जाती ।”
“ओह- हक्क- अच्छा, अच्छा !” - बन्दर झेंपता हुआ बोला ।
“चश्मा लगा लो ।” - सुनील ने राय दी ।
“चश्मे को मारो गोली !” - बन्दर एकदम उत्तेजित होता हुआ बोला - “आज मैं तुम्हें वह बात सुनाने आया हूं कि तुम फड़क जाओगे ।”
“लेकिन तुम चश्मा लगा क्यों नहीं लेते हो !”
बन्दर ने सुनील को यूं घूरा जैसे उसे सुनील का यह सवाल कतई पसन्द न आया हो । वह नाराज होकर बोला - “तुम्हें बन्दर से मतलब है या चश्मे से ?”
“चश्मे वाले बन्दर से !” - सुनील बोला - “क्योंकि चश्मे के बिना तुम्हारी पहचान कर पाना बड़ा मुश्किल हो जाता है ।”
“चश्मा टूट गया है ।” - बन्दर ने उतनी ही नाराजगी भरे स्वर से बताया ।
“तो नया बनवा लो ।”
“मैं आर्डर दे आया हूं । ऑप्टीशन कहता है कि चश्मा एक हफ्ते में बनकर तैयार होगा ।”
“क्यों घिस रहे हो यार ?” - सुनील अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला ।
“मैं सच कह रहा हूं । मेरा चश्मा कोई ऐसा वैसा तो है नहीं जो हर चश्मे वाले की दुकान से मिल जाये । मेरे चश्मे के एक-एक शीशे में आठ-आठ, दस-दस नम्बर होते हैं ।”
“एक शीशे में ?” - सुनील आश्चर्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“हां । एक चश्मे के दो शीशों में । ऐसे चश्मे को बनाने के लिये एक हफ्ता तो बहुत कम समय है ।”
“सच कह रहे हो ?” - सुनील ने सन्दिग्ध स्वर में पूछा ।
“एकदम सच ।” - बन्दर शत प्रतिशत झूठ बोलता हुआ बोला ।
“कहीं फिर किसी लड़की ने यह तो नहीं कर दिया कि तुम चश्मे के बिना ज्यादा सुन्दर लगते हो ?”
“नहीं तो ।” - बन्दर मासूमियत भरे स्वर में बोला ।
“ऑल राइट ।” - सुनील जैसे विरोध का पटाक्षेप करता हुआ बोला ।
चश्मे का किस्सा खत्म होने के बाद सुनील ने पहली बार इस बात पर गौर किया कि बन्दर के चेहरे पर दो तीन दिन की शेव बढी हुई थी और वह एक पुराना सा बिना क्रीज का सूट पहने हुए था ।
“लेकिन यह तुमने हुलिया क्या बना रखा है ?” - सुनील बोला ।
“प्यारे भाई, इसी हुलिये की बदौलत तो मैं आज एक तोप के गोले से टकरा गया हूं ।” - बन्दर झूमकर बोला ।
“तोप का गोला ?” - सुनील उलझकर रह गया ।
“हां । राजनगर की सबसे फारवर्ड लड़की ।”
“उसका नाम तोप का गोला है ।”
“यार !” - बन्दर चिड़कर बोला - “बात की सैंस समझा करो । शब्दों के पीछे लट्ठ लेकर मत पड़ जाया करो ।”
“अच्छा, अच्छा । अब जल्दी से कह डालो, किस्सा क्या है ?”
“सुनील प्यारे !” - बन्दर एकदम फिर उत्साहित हो उठा - “वह लड़की मुझे हर्नबी रोड के मोड़ पर मिली थी । बाई गाड, क्या फॉरवर्ड अटैक था । बस यूं समझ लो कि जैसे फुटबाल लेकर सीधी दुश्मन के गोल में घुसी जा रही हो ।”
“बकवास बन्द करो ।” - सुनील उसे डाक्टर बोला - “और यह बताओ कि हुआ क्या था ?”
“वह लड़की मेरे सामने आकर खड़ी हो गई और मुझे परखने लगी - जैसे यह अनुमान लगा रही हो कि अगर मैं बकरा होता - तो मुझ में से कितना मीट निकलता । मैंने भी छूटते ही अपना फार्मूला नम्बर आठ इस्तेमाल कर दिया ।”
“वह क्या होता है ?” - सुनील फिर हैरान हो उठा ।
“फार्मूला नम्बर आठ यह होता है कि अगर कोई लड़की तुम्हारे में दिलचस्पी जाहिर करे - तो तुम्हें भरपूर बेरुखी का प्रदर्शन करना चाहिये जैसे किसी लड़की का तुम्हारे में दिलचस्पी जाहिर करना तुम्हारे लिये कोई विशेष बात नहीं है ।”
“इससे क्या होता है ?”
“इससे लड़की पर आपका रौब जम जाता है और वह जल्दी पटती है ।”
“वह पटी ?”
“नहीं । अभी तो पहली मुलाकात हुई है । और फिर उसकी तो लाइन आफ एक्शन ही एकदम अलग थी ।”
“अच्छा !”
“हां । वह काफी देर मुझे घूर चुकने के बाद एकदम बोली - मिस्टर, पांच सौ रूपये कमाना चाहते हो ?”
सुनील ने सन्दिग्ध नेत्रों से बन्दर को घूरा ।
“मैंने कहा न, वह बड़ी फारवर्ड लड़की थी ।” - बन्दर जल्दी बोला ।
सुनील एकदम गम्भीर हो उठा । लक्षण अच्छे नहीं थे । उसे महसूस होने लगा था कि बन्दर फिर किसी बखेड़े में अपनी टांग फंसा आया ।
“पांच सौ रूपये के बदले में वह तुमसे क्या चाहती थी ?” - सुनील ने व्यग्रतापूर्ण स्वर में कहा ।
“लिटन रोड पर एक दीपक लॉज नाम की इमारत है । वहां दूसरी मंजिल के एक फ्लेट में कमल मेहरा नाम का एक आदमी रहता है । मुझे उसके फ्लैट में से एक रिवॉल्वर निकालकर लानी है ।”
“चोरी ?”
बन्दर चुप रहा ।
“कैसे ?” - सुनील ने पूछा ।
“उस लड़की ने मुझे बताया कि शाम को पांच बजे कमल मेहरा अपने फ्लैट पर नहीं होगा । उसने मुझे उसके फ्लैट की चाबी दी और साथ ही यह भी बताया कि रिवॉल्वर बैडरूम में रखे एक मेज की दराज में है और उस दराज की चाबी वार्डरोब में टंगे एक पुराने ओवरकोट की जेब में पड़ी रहती है । ...यह रही फ्लैट की चाबी ।”
और बन्दर ने अपनी जेब में से चाबी निकालकर सुनील को दिखाई ।
“म... मतलब यह है कि तुमने यह काम करना स्वीकार कर लिया ?”
सुनील के नेत्र फैल गये ।
“और क्या इन्कार कर देता ?” - बन्दर हैरानी से बोला ।
“लेकिन क्यों.... क्यों ?”
“रोमांच ! सस्पेन्स । एडवेन्चर ।” - बन्दर मग्न स्वर में बोला ।
“जानते हो चोरी के इल्जाम में पकड़े जाने पर कितने महीने की सजा होती है ?”
“पकड़े जाने पर ही तो । पकड़ा कौन जायेगा ?” - बन्दर लापरवाही से बोला - “एक मिनट की तो बात है । गया और आया । मैं इस चाबी से फ्लैट का द्वार खोलकर भीतर घुस जाऊंगा । रिवाल्वर निकाल कर लाने में मुझे अधिक से अधिक दो मिनट लगेंगे । अगर दुर्भाग्य से उतने में कोई आ जाये तो तुम सीटी बजाकर मुझे संकेत कर देना मैं फौरन बाहर निकल आऊंगा ।”
“क्या ?” - सुनील आंखें निकालकर बोला - “मैं बाहर खड़ा पहरा दूंगा ? मैं सीटी बजाकर तुम्हें संकेत दूंगा ?”
“क्या हर्ज है ?”
“हर्ज ! तुम मुझे चोरी में अपने साथ शामिल करना चाहते हो ?”
“शामिल होने को कौन कह रहा है, सुनील भाई ।” - बन्दर हाथ फैलाकर बोला - “भीतर तो मैं घुसूंगा । तुम तो केवल फ्लैट के बाहर कारीडोर में खड़े रहोगे ।”
“माई फुट ! मेरा दिमाग ठीक है अभी ।”
“इसमें दिमाग का हवाला देने की क्या जरूर आ पड़ी है ?”
सुनील कुछ क्षण बेबसी के भाव से उसे घूरता रहा और फिर बोला - “तुमने अभी कहा था कि वह लड़की बहुत फारवर्ड थी ?”
“हां !”
“खूबसूरत थी ?”
“बेहद ।”
“जवान थी ?”
“थी ।”
“तभी तो तुम्हारी अक्ल पर पत्थर पड़ रहे हैं ।”
“क्यों ?”
“अबे साले, वह लड़की तुझे जेल भिजवाने का इन्तजाम कर रही है । अगर तू चोरी करता पकड़ा गया तो खुद तो मरेगा ही अपने परिवार का नाम भी बदनाम करेगा ।”
“लेकिन मैं पकड़ा काहे को जाऊंगा ?” - बन्दर जिद भरे स्वर में बोला ।
“लेकिन तुमने ऐसी बात स्वीकार कैसे कर ली ?”
“उसके कहने का ढंग ही ऐसा था कि मैं इन्कार नहीं कर सका । और फिर वह साली खूबसूरत भी तो थी ।”
“इसी तरह किसी दिन कोई खूबसूरत लड़की प्यार से तुम्हारे कन्धे पर हाथ रखकर तुम्हें किसी इमारत की आठवीं मंजिल से नीचे कूद जाने के लिये कहेगी तो तुम कूद जाओगे ?”
“कूद जाऊंगा ।” - बन्दर झोंक में बोला ।
“बन्दर के बच्चे तुमने यह भी सोचा है कि जब उसके पास फ्लैट की चाबी है और उसे यह भी मालूम है कि रिवाल्वर कहां है तो वह रिवाल्वर खुद क्यों नहीं निकाल लाती ? इस काम के लिये वह तुम्हें पांच सौ रूपये क्यों दे रही है ?”
“मैंने पूछा नहीं उससे ।” - बन्दर सरल स्वर में बोला - “दुबारा मिलेगी तो पूछूंगा ।”
“बेटे, तुम्हारे इस फटीचर लिबास में उसने तुम्हें कोई चोर उचक्का समझा ओर उस रिवाल्वर को चुराने के लिये तुम्हें पांच सौ रूपये की ऑफर दे दी ।”
“हां, यही तो बात है ।” - बन्दर खुश होकर बोला - “जब उसे बाद में यह पता लगेगा कि मैं वास्तव में क्या हूं और उसने मुझे क्या समझा था, तो वह भौंचक्की रह जायेगी । उसके बाद मेरा ऐसा रंग जमेगा उस पर कि दुनिया भर के धोबी नहीं उतार सकेंगे । और मजेदार बात तो यह है सुनील भाई कि उसने मुझे यूं अहसान सा करते हुए दो सौ रूपये एडवांस दिये थे जैसे मैंने जिन्दगी में सौ के नोट की सूरत न देखी हो ।”
“तुमने यह हुलिया क्या बना रखा है ?” - सुनील विषय बदलने के लिये फिर अपने पुराने सवाल पर आ गया ।
“पिछले दो दिनों से यही सूट पहने नौकरों की क्वार्टरों में सो रहा हूं ।” - बन्दर लापरवाही से बोला ।
“क्यों ?”
“डैडी ने घर से निकाल दिया है ।”
“क्यों ?”
“डैडी फरमाते हैं कि जो इन्सान पिछले पांच साल से लगातार मैडिकल कालेज में फेल हो रहा हो, वह उनका बेटा नहीं हो सकता और जो उनका बेटा नहीं, वह भला उनकी कोठी में कैसे रह सकता है ?”
“तुम्हें शर्म तो नहीं आई होगी ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । अगर शर्म आती तो मैं एम बी बी एस में पास ही न हो जाता ।”
“नौकरों के क्वार्टरों में से नहीं निकाला उन्होंने तुम्हें ?”
“अगर उन्हें मालूम हो जाये कि मैं नौकरों के क्वार्टरों में रह रहा हूं तो जरूर निकाल देंगे ।”
“तुम बेइज्जती महसूस नहीं करते ?”
“बेइज्जत कैसी ? सुनील भाई यह पहली बार थोड़े ही है जब मैं घर से निकाला गया हूं ? ऐसा उत्पात तो मेरे डैडी आये दिन मचाते हैं लेकिन चार दिन बाद ही वे खुद मुझे यूं राजनगर में ढूंढते फिर रहे होते हैं जैसे पुलिस किसी इश्तहारी मुजरिम को ढूंढ रही हो ।”
“क्यों ?” - सुनील आश्चर्यपूर्ण स्वर से बोला ।
“क्योंकि तब तक उन्हें होम मिनिस्ट्री का नोटिस मिला जाता है । मम्मी सत्याग्रह कर देती है कि अगर डैडी बरखुरदार को यानी कि मुझे कोठी पर लौटाकर नहीं लाये तो वे जहर खा लेंगी । नतीजा यह होता है कि डैडी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाती है और वह मेरी तलाश में कुओं में जाल डलवाने लगते हैं । इकलौती औलाद होने का यही तो फायदा है प्यारे भाई ?”
“तुम अपने मां-बाप की भावनाओं का बड़ा नाजायाज फायदा उठाते हो ।”
“फिर क्या हुआ ? औलाद तो कृतघ्न होती ही है, मैं ही क्यों अपवाद बनूं ?” - और फिर एकाएक जैसे बन्दर को भूली बातें याद आ गई हो, वह एकदम बदले स्वर में बोला - “अबे, सुनील भाई ! यह क्या आदत हुई तुम्हारी । साली असली बात को एकदम गोल कर जाते हो । उठो और मेरे साथ चलो ।”
“कहां ?”
“अरे वहीं । दीपक लाज में । कमल मेहरा के फ्लैट में ।”
“मैं नहीं जाऊंगा ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मेरा दिमाग अभी ठीक है ।”
“यह बात तुम सौंवी बार दोहरा रहे हो । मैं जानता हूं तुम्हारा दिमाग ठीक है । दिमाग तो मेरा खराब है । तुम मेरे साथ चलो और एक तटस्थ दर्शक की तरह सीन से एकदम अलग यूं खड़े रहना - जैसे बन्दर का तमाशा देख रहे हो ।”
सुनील बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी दबा पाया ।
“ओके ?” - बन्दर उसे उकसाता हुआ बोला ।
“नहीं । और मेरी नेक राय यही है कि तुम भी सारा किस्सा भूल जाओ ।”
“सवाल ही नहीं पैदा होता ।” - बन्दर निश्चयात्मक स्वर में बोला - “प्यारे, यह तो बन्दर की जबान है । एक बार जो कह दिया, कह दिया । अब एक बार तो मैं उस कमल मेहरा की औलाद के फ्लैट में जरूर घुसूंगा चाहे मुझे उसका कत्ल ही क्यों न कर देना पड़े ।”
“जरूर घुसो ।”
“तुम नहीं जाओगे ?”
“नहीं ।”
“नहीं ?” - बन्दर ने फिर दोहराया ।
“नहीं । नहीं । नहीं । ए डैफिनेट, सरटैन पाजीटिव एण्ड एब्सोल्यूट नो ।”
“लेकिन हर्ज क्या है ?”
“हर्ज ही हर्ज है । तुम मेरे दोस्त हो । मैं अपनी आंखों के सामने तुम्हें ऐसी मूर्खतापूर्ण हरकत करते नहीं देख सकता ।”
“इसीलिये तो कहता हूं कि मेरे साथ चलो । दीपक लाज पहुंचने तक सम्भव है मेरा ही इरादा बदल जाये । या उस लड़की का ही ख्याल गलत हो और पांच बजे कमल मेहरा अपने फ्लैट पर ही हो ।”
“अभी तो तुम कह रहे थे कि यह तुम्हारी आन का सवाल है । तुम हर हाल में उसके फ्लैट में घुसोगे, चाहें तुम्हें उसका कत्ल ही क्यों न करना पड़े ।”
“मेरा खोपड़ा फिर गया है । मुझे खुद पता नहीं लगता मैं क्या कह रहा हूं । तुम चलो यार । इस बार अपने मूर्ख दोस्त की प्रार्थना स्वीकार कर लो ।”
“तुम अकेले क्यों नहीं जाते ?” - सुनील तनिक नम्र स्वर में बोला ।
“मुझे तुम्हारे नैतिक सहयोग की जरूर है । तुम्हारी मौजूदगी में मेरा हौसला दस गुणा हो जाता है ।”
“जैसे कोई किला फतह करने जा रहे हो ।”
“किला ही है यार, मेरे लिये तो । अब चल भी दो । पांच बजने में केवल पैंतालीस मिनट बाकी रह गये हैं ।”
“अच्छा !” - सुनील एकदम निर्णयात्मक स्वर में बोला - “चलूंगा लेकिन तुम्हें मेरी तीन शर्तें माननी होंगी ।”
“क्या ?” - बन्दर सशंक स्वर में बोला ।
“पहली तो यह है कि मैं वाकई तुम्हारे इस अभियान में तुम्हें कोई सक्रिय सहयोग नहीं दूंगा चाहे तुम्हें पुलिस पकड़कर ले जाये या उस फ्लैट का मालिक तुम्हें उसी रिवाल्वर की गोली से उड़ा दे, जिसे चुराने का तुम अरमान लेकर जा रहे हो ।”
“मंजूर ।” - बन्दर उत्साहपूर्ण स्वर में बोला ।
“दूसरी यह किसी छोकरी के बहकावे में आकर फिर कभी ऐसी बेवकूफी भरी और गैरकानूनी हरकत करना स्वीकार नहीं करोगे ।”
“मंजूर ।” - बन्दर पहले से आधे उत्साह में बोला ।
“और तीसरी और आखिरी शर्त यह है कि फौरन चश्मा लगा लो ।”
बन्दर एकदम हड़बड़ा गया ।
“लेकिन... लेकिन सुनील भाई !” - वह हकलाता हुआ बोला - “मैंने... मैंने बताया न कि चश्मा टूट गया है ।”
“यह घिस्सा तुम किसी और को देना ।” - सुनील बोला - “मैं तुम से कल नहीं मिला था । मैं तुम्हारी आदत खूब जानता हूं । तुम्हारा मुर्गा बनाने के लिये तुम्हें फिर किसी लड़की ने कह दिया होगा कि तुम चश्मे के बिना अधिक सुन्दर लगते हो ।”
“लेकिन प्यारे भाई, चश्मा तो सचमुच ही...”
“शटअप ! अगर मेरी यह शर्त स्वीकार नहीं है तो मैं तुम्हारे साथ जाने से इन्कार करता हूं ।”
बन्दर ने बुरा सा मुंह बनाया और फिर बड़े बेमन से कोट की जेब से चश्मा निकालकर नाक पर टिका लिया ।
“अब तुम्हें कुछ सृष्टि पहले से ज्यादा चमकदार, ज्यादा रंगीन नहीं लग रही क्या ?” - सुनील ने चुटकी ली ।
“अपनी चोंच बन्द रखो ।” - बन्दर चिड़कर बोला ।
“वैसे इस बात तुम्हारी चश्मा रहित सुन्दरता का बखान गीता सीता, नीता, पपीता, फजीता में से किसने किया था ?”
“कीप यूअर ब्लडी माउथ शट ।” - बन्दर दहाड़ा और नाक पर टिके चश्मे की पोजीशन ठीक करने लगा ।
सुनील खिलखिलाकर हंस पड़ा ।
***
सुनील ने अपनी मोटर साइकिल लिटन रोड पर स्थित दीपक लाज के सामने खड़ी कर दी ।
“यही इमारत है न ?” - सुनील ने पूछा ।
“यही होगी !” - बन्दर बोला - “बाहर दीपक लाज लिखा तो है । मैं भी तो यहां पहली बार आया हूं ।”
“चलो !” - सुनील बोला ।
दोनों लाबी में आ गये ।
सुनील को एक कोने में एक दीवार के साथ पब्लिक टेलीफोन लगा दिखाई दिया ।
“सुनो !” - सुनील बोला - “कमल मेहरा के फ्लैट में टेलीफोन है ?”
“पता नहीं ।” - बन्दर ने उत्तर दिया ।
“दीपक लाज इमारत तो बहुत शानदार है । ऐसा तो नहीं लगता कि यहां गरीब आदमी रहते हों । टेलीफोन होगा ।”
“डायरेक्ट्री में देखते हैं ।”
और बन्दर टेलीफोन की तरफ बढा ।
वह कुछ क्षण टेलीफोन की बगल में स्टैण्ड पर रखी डायरेक्ट्री से उलझा रहा और फिर बोला - “टेलीफोन है ।”
“उसके फ्लैट पर फोन करके देखो कि वह फ्लैट पर है या नहीं ।”
“मेरे पास दस दस के खुले सिक्के नहीं है ।” - बन्दर बोला ।
“उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, बेवकूफ ! तुम्हें उससे कोई बात थोड़े ही करनी है । अगर दूसरी ओर से उत्तर मिले तो रिसीवर रख देना ।”
“ओ ! अच्छा ।”
बन्दर ने रिसीवर उठा लिया और कमल मेहरा का नम्बर घुमा कर कितनी ही देर रिसीवर कान से लगाये खड़ा रहा ।
“घन्टी जा रही है ।” - उसने बताया ।
“थोड़ी देर और घन्टी जाने दो ।” - सुनील बोला - “अगर दूसरी ओर से कोई फोन न उठाये तो सम्बन्ध विच्छेद कर देना ।”
कुछ देर बाद सुन्दर ने रिसीवर हुक पर लटका दिया ।
“जयन्ती की सूचना ठीक थी ।” - बन्दर बोला - “कमल मेहरा अपने फ्लैट पर नहीं है ।”
“जयन्ती उस लड़की का नाम है ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां ।” - बन्दर लिफ्ट की ओर बढता हुआ बोला ।
दोनों लिफ्ट में घुस गये ।
बन्दर ने दूसरी मंजिल का बटन दबा दिया ।
“अगर तुम रिवाल्वर चुराने में सफल हो गये तो तुम जयन्ती से सम्पर्क कैसे स्थापित करोगे ? उसने अपना पता-ठिकाना कुछ बताया है ?”
“पता नहीं बताया उसने । वह आठ बजे तक मुझे हर्नबी रोड के सी मोड़ पर मिलेगी - जहां वह मुझे पहली बार मिली थी ।”
लिफ्ट दूसरी मंजिल पर आकर रूक गई ।
दोनों बाहर निकल आये ।
लिफ्ट की साइड में एक गलियारा था - जिसके दोनों ओर द्वार थे । बन्दर एक-एक द्वार पर लगे नाम पर देखने लगा ।
“यह है ।” - वह बाईं ओर के तीसरे फ्लैट के सामने रुकता हुआ बोला ।
सुनील चुप रहा ।
बन्दर ने द्वार का हैन्डिल पकड़कर घुमाया और द्वार को भीतर की तरफ धक्का दिया ।
“ताला लगा हुआ है !” - बन्दर फिर बोला ।
“बेटे !” - सुनील बोला - “यह स्प्रिंग-लाक है । भीतर और बाहर दोनों ओर से समान रूप से बन्द हो सकता है - इसलिये इस बात की शत प्रतिशत गारन्टी नहीं है कि अगर ताला लगा हुआ है तो भीतर कोई नहीं है ।”
“तो फिर ?”
“मतलब यह कि सावधानीवश दो तीन बार फ्लैट की घन्टी बजा दो । अगर भीतर कोई होगा तो उत्तर मिल जायेगा ।”
“लेकिन टेलीफोन तो किसी ने नहीं उठाया था ?” - बन्दर बोला ।
“ठीक है । डबल चैकिंग करने में कोई हर्ज है क्या ?”
“तुम तो यूं जासूसी झाड़ रहे हो जैसे हम किसी बैंक के स्ट्रांग रूम में घुसने वाले हों ।” - बन्दर बोला ।
“भाड़ में जाओ ।” - सुनील झल्लाकर बोला - “जो जी में आये करो ।”
बन्दर ने यूं सुनील को ओर देखा, जैसा उसका दिल टूट गया हो - “तुम भी एकदम ऐन्टीफ्लोजिस्टीन टाइप के यार हो ।” - बन्दर बैल पुश पर उंगली का दबाव देता हुआ बोला ।
भीतर कहीं घन्टी बजने की आवाज सुनाई दी ।
बन्दर प्रतीक्षा करने लगा ।
द्वार नहीं खुला ।
बन्दर ने दो बार फिर घंटी बजाई - लेकिन परिणाम वहीं निकला भीतर से उत्तर नहीं मिला ।
“भीतर वाकई कोई नहीं है ।” - बन्दर बोला ।
“तो घुस जाओ ।” - सुनील बोला ।
सुनील द्वार के सामने से हट गया । उसने फ्लैट के सामने की दीवार से पीट टिका ली और अपनी जेब से अपनी प्रिय सिगरेट लक्की स्ट्राइक का एक सिगरेट निकाल कर सुलगा लिया । वह लापरवाही से छोटे-छोटे कश लेने लगा और बन्दर के कार्यकलापों का अवलोकन करने लगा ।
गलियारा खाली था ।
बन्दर ने चाबी लगाकर द्वार खोला और बड़ी फुर्ती से भीतर घुस गया ।
द्वार उसके पीछे बन्द हो गया ।
सुनील व्यग्रता से प्रतीक्षा करने लगा ।
“कौन हो तुम ?” - उसी क्षण कमल मेहरा के फ्लैट के भीतर एक गर्जदार आवाज सुनाई दी ।
सुनील हड़बड़ा गया । उसने सिगरेट फेंक दिया और लपक कर फ्लैट के द्वार की बगल में जा पहुंचा ।
“म... म... मैं... मैं..” - बन्दर का हकलाता हुआ स्वर सुनील के कान में पड़ा - “तुम... आप... आपका नाम कमल मेहरा है ?”
“तुमसे मतलब ?” - गर्जदार आवाज फिर सुनाई दी ।
“म-मतलब तो है ही । तुम्हारा नाम कमल मेहरा है ?”
“माल लो, फिर ?”
बन्दर का स्वर सुनाई नहीं दिया । सुनील समझ गया, बन्दर को बात नहीं सूझ रही थी । वह फंस गया था ।
“क्या चाहते हो तुम कमल मेहरा से ?” - गर्जदार आवाज फिर सुनाई दी ।
“म... मैं उससे मिलने आया था ।” - बन्दर का स्वर सुनाई दिया ।
“तुम चोर हो । तुमने बाहर से चाबी लगाकर दरवाजा खोला है । मैं तुम्हें...”
“दरवाजा पहले ही खुला हुआ था ।” - बन्दर का मरा हुआ स्वर सुनाई दिया ।
“तुम झूठ बोल रहे हो । दरवाजे में ताला लगा हुआ था । तुम चोरी करने के लिये यहां घुसे हो । मैं तुम्हें पुलिस में दे दूंगा ।”
सुनील की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ?
“जाते कहां हो ?” - गर्जदार आवाज फिर गूंजी - “भागने की कोशिश करोगे तो हाथ पांव तोड़ दूंगा । जहां हो वहीं खड़े रहो ।”
फिर हाथापाई के स्वर सुनाई देने लगे । फिर धम्म से दरवाजे के साथ कुछ टकराया । सुनील को बन्दर की कराह सुनाई दी । वैसी ही धम्म धम्म की आवाज दो तीन बार फिर गूंजी । फिर फ्लैट का द्वार खुला और बन्दन का शरीर यूं उछलता हुआ गलियारे से पार सामने के फ्लैट से टकराया, जैसे विपक्षी टीम के खिलाड़ी ने फुटबाल को सीधे गोल में किक मार दी हो ।
फिर एक हाथ द्वार से बाहर निकला और बन्दर का चश्मा उसकी छाती पर आ गिरा ।
द्वार भड़ाक से बन्द हो गया ।
सुनील मुंह बाये सब कुछ देखता रहा ।
बन्दर गलियारे के फर्श पर पड़ा लम्बी सांसे ले रहा था । उसका चेहरा उत्तेजना और अपमान से लाल हो रहा था ।
उसी क्षण उस फ्लैट का द्वार खुला जिससे बन्दर का शरीर जा कर टकराया था और उसमें मुंह में पाइप लगाये एक अंग्रेज प्रकट हुआ । उसे फर्श पर पड़ा बन्दर नहीं दिखाई दिया । वह सुनील की ओर देखता हुआ बोला - “यस, यू नाक्ट दा डोर (द्वार तुमने खट-खटाया था ) ?”
“नो, नाट मी (नहीं) ।” - सुनील बोला और उसने बन्दर की ओर संकेत कर दिया ।
अंग्रेज ने पहली बार बन्दर को देखा । उसने पाइप मुंह से निका लिया और बन्दर से बोला - “वैल, मिस्टर ।”
बन्दर ने उत्तर नहीं दिया । उसने चश्मा फिर नाक पर टिका लिया और उठने का उपक्रम करने लगा ।
“दरअसल आपका द्वार किसी ने नहीं खटखटाया था ।” - सुनील जल्दी से बोला - “यह साहब फिसल गये थे और इनका शरीर आपके फ्लैट के द्वार से टकराया था और आपने समझा शायद किसी ने द्वार खटखटाया है ।”
“ओ, आई सी ।” - अंग्रेज बोला - “एनीथिंग आई कैन डू फार यू, मिस्टर (मैं तुम्हारे लिये कुछ कर सकता हूं) ?” - उसने बन्दर से पूछा ।
उत्तर सुनील ने दिया - “इट्स आल राइट । आई विल टेक केयर आफ हिम (आप चिन्ता मत कीजिये । मैं सम्भाल लूंगा इसे) ।”
“वैरी वैल !” - अंग्रेज बोला और उसने द्वार बन्द कर दिया । सुनील बन्दर की ओर बढा ।
बन्दर उछलकर खड़ा हो गया । उसक मुट्ठियां तनी हुई थीं और नथुने फड़क रहे थे ।
“जान से मार दूंगा ।” - वह भड़ककर बोला और कमल मेहरा के फ्लैट के द्वार की ओर लपका ।
“पागल हुए हो क्या ?” - सुनील उसे रोकता हुआ बोला ।
“तुम छोड़ो यार मुझे ।” - बन्दर स्वयं को सुनील की पकड़ से स्वतन्त्र करने का उपक्रम करता हुआ बोला - “उस साले ने फाउल किया था । उसने तब मेरे जबाड़े पर घूंसा मारा था जब मैं उसके आक्रमण की कतई आशा नहीं कर रहा था । मैं सतर्क नहीं था ।”
“अगर सतर्क होते तो क्या कर लेते तुम ?” - सुनील व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“व्यंग्य की जरूरत नहीं है । मैं उसे जरूर पीटूंगा ।”
“और नतीजा यह होगा कि मुझे तुम्हारा छिन्न-भिन्न शरीर बोरे में भरकर ले जाना पड़ेगा ।”
“तुम तो मेरे साथ तमाशा देखने आये हो न ?”
“तमाशा देखने तो आया ही हूं । तुमने खुद ही तो स्वीकार किया था कि तुम्हारा परिणाम कुछ भी हों, मैं तो केवल एक तटस्थ दर्शक की तरह घटनास्थल पर मौजूद भर ही रहूंगा ।”
बन्दर ने कुछ बोलने के लिये मुंह खोला ।
“मेरी बात सुनो ।” - सुनील हाथ उठा कर उसे रोकता हुआ बोला - “तुम इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि जो कुछ हुआ है, उसकी आशा खुद तुम्हें भी नहीं थी । उस लड़की के आश्वासन और भरपूर चैकिंग के बावजूद भी कमल मेहरा अपने घर पर ही निकला । किसी कारणवश टैलीफोन की घन्टी और कालबैल नहीं सुन सका । सम्भव है वह बाथरूम में रहा हो और पानी वगैरह के शोर में उसे घन्टी की आवाज सुनाई न दी हो । बहरहाल वर्तमान स्थिति में तुम्हारा भड़कना बेकार है । अब तुम्हारी नाजुक सेहत के लिये अच्छा यही है कि तुम ठंडे ठंडे यहां से लौट जाओ । सारी घटना एकदम भूल जाओ और जयन्ती का नाम अपनी उन लड़कियों की लिस्ट में चढा लो जो दुर्घटनावश तुम्हारे सारे एन्टीफ्लोजिस्टीन हथकंड़ों के इस्तेमाल के बावजूद भी तुम्हें हासिल नहीं हो सकी । ...बीच में मत टोको मेरी पूरी बात सुनो - तुम जबरदस्ती उसके घर में घुसे थे । चोरी का इल्जाम न सही ट्रेसपासिंग का इल्जाम तो हर हाल में तुम पर लग सकता है और उसने तुम्हें रंगे हाथ पकड़ा था । यह तो कमल मेहरा की शराफत थी कि उसने तुम्हारे चेहरे पर दो तीन घूंसे जमा कर ही सब्र कर लिया वर्ना अगर वह अपनी धमकी के अनुसार तुम्हें पुलिस के हवाले कर देता तो तुम अपना सारा इश्क भूल जाते ।”
“इश्क तो मैं फांसी के तख्ते पर भी नहीं भूल सकता ।” - बन्दर उसी प्रकार भड़कता हुआ बोला - “अगर जहां तक कमल मेहरा का सवाल है, उसके दो तीन घूंसों के बदले में बीस-पच्चीस घूंसे मारूंगा ही । तुम जितना कमजोर मुझे साबित करने का प्रयत्न कर रहे हो वास्तव में मैं उतना कमजोर हूं नहीं । और कमल मेहरा भी कोई पहलवान नहीं है । मैं मजे से पीट सकता हूं उसे ।”
“तुम मानोगे नहीं ।”
“यह मेरी आन का सवाल है सुनील भाई । आशिक टूट जाता है पर झुकना नहीं और फिर जयन्ती से तो मैंने अभी तक इश्क की आखिरी मंजिल तक दो चार होना है ।”
“यह तुम्हारा आखिरी फैसला है ।”
“हां, चाहे तुम मुझे सहयोग दो या न दो ।”
“मेरे सहयोग की तो तुम बात ही मत करो । मैं बेवकूफी भरी हरकतों का कायल नहीं हूं ।”
“आल राइट ।” - बन्दर बोला और फिर बन्धन छुड़ाने लगा ।
“ठीक है बेटा ।” - सुनील उसे छोड़ता हुआ बोला - “तुम कमल मेरा से भिड़ो । तब तक मैं हस्पताल में फोन करता हूं कि एक एम्बूलेंस भेज दें ।”
“दरवाजा खोलो, कमल मेहरा के बच्चे !” - बन्दर द्वार पर घूंसे बरसाता हुआ बोला - “मैं तुम्हें चैलेंज करता हूं कि अगर हौसला है तो बाहर आओ । कम आन । ओपन अप । आई डेयर यू ।”
बन्दर द्वार भड़भड़ाता रहा ।
सुनील ने दीवार के साथ पीठ टिका ली और तमाशा देखने लगा ।
उसी क्षण द्वार खुला ।
सुनील के ही कद काठ का एक आदमी द्वार पर दिखाई दिया ।
“तुम गये नहीं अभी ?” - वह आदमी गुर्राया ।
“तुम्हारा हुलिया बिगाड़े बिना कैसे जाऊंगा प्यारे भाई !” - बन्दर बोला और उसका घूंसा उस आदमी के चेहरे से टकराया ।
वह आदमी हड़बड़ाकर पीछे हटा । उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव छा गये, जैसे उसे बन्दर जैसे ढांचे के आदमी से आक्रमण की आशा न हो ।
इससे पहले कि वह सम्भल पाता, बन्दर ने ताबड़ तोड़ चार पांच घूंसे उसके पेट में जड़ दिये । उस आदमी के चेहरे पर पीड़ा के भाव उभर आये और वह वहीं जमीन पर लेट गया ।
सुनील हैरानी से बन्दर का मुंह देखने लगा । बन्दर किसी आदमी को पीट दे, यह संसार का आठवां आश्चर्य था ।
बन्दर ने हालीवुड की फिल्मों के खलनायक की तरह भड़ाक से द्वार का दूसरा पट भीट खोल दिया और मुट्ठियां ताने उस आदमी की ओर बढा ।
“कम ऑन, कमल मेहरा के घोड़े ।” - बन्दर बोला - “स्टैण्ड अप एंड फाइट । मैं तुम्हें फर्श पर पड़े पड़े पीटने से इन्कार करता हूं ।”
सुनील भी द्वार से भीतर झांकने लगा ।
उस आदमी ने अपने सिर को एक जोरदार झटका दिया । फिर सुनील ने उसका एक हाथ पेंट की जेब की ओर बढता हुआ देखा और फिर वह एक झटके से अपने पैरों पर खड़ा हो गया ।
बन्दर उसकी ओर बढता-बढता रूक गया ।
उस आदमी के हाथ में एक रिवाल्वर चमक रहा था ।
“नहीं !” बन्दर आतंकित स्वर में चिल्लाया ।
अब तमाशा ही देखते रहना असम्भव था । सुनील बिजली की तरह उसके रिवाल्वर वाले हाथ की ओर झपटा । उसने अपने शरीर के धक्के से बन्दर को एक ओर धकेल दिया और दोनों हाथों से उस आदमी का रिवाल्वर वाला हाथ जकड़कर रिवाल्वर का रुख फर्श की ओर कर दिया ।
उसी क्षण एक जोरदार धमाका हुआ । फर्श पर से ढेर सा सीमेन्ट उखड़ गया और गोली फर्श में धंस गई ।
दूसरी गोली चलाने का अवसर उसे नहीं मिला । सुनील ने अपना एक हाथ स्वतन्त्र किया और फिर उसके घूंसे का एक प्रचंड प्रहार उस आदमी के जबड़े पर पड़ा ।
सुनील का एक ही घूंसा उसके लिये काफी सिद्ध हुआ । उसके मुंह से एक हाय निकली, रिवाल्वर उसकी उंगलियों से निकलकर टन्न की आवाज के साथ फर्श पर आ गिरा और वहीं लोट गया ।
सुनील ने झपटकर रिवाल्वर उठा लिया और उसे आदमी के उठने की प्रतीक्षा करने लगा, लेकिन वह चेतना खो चुका था ।
“भागो !” - सुनील उल्टे पांव फ्लैट से बाहर लपकता हुआ बन्दर से बोला ।
गलियारे में पहुंचकर सुनील को हाथ में थामे रिवाल्वर का ख्याल आया । उसने रिवाल्वर फ्लैट के भीतर की ओर उछाल दिया और फिर लिफ्ट की ओर भागा ।
बन्दर कुछ कदम सुनील के पीछे भागा फिर वह वापिस लौटा और उसने फर्श पर से रिवाल्वर उठा लिया । वह रिवाल्वर को कोट की भीतरी जेब में ठूंसता हुआ सुनील के पीछे भागा ।
फ्लैटों के द्वार फटाफट खुलने लगे थे ।
दोनों नीचे पहुंच गए ।
संयोगवश उस समम लॉबी में कोई नहीं था ।
सुनील अपनी मोटर साइकिल के समीप पहुंचा । उसने मोटर साइकिल स्टार्ट की और बड़ी फुर्ती से सीट पर बैठ गया ।
बन्दर के पीछे बैठते ही मोटर साइकिल हवा से बातें करने लगी ।
***
सुनील ने मोटर साइकिल एक रेस्टोरेन्ट के सामने रोक दी ।
बन्दर पिछली सीट से उतर पड़ा ।
दोनों रैस्टोरेन्ट में घुस गये ।
वे रैस्टोरेन्ट के एक एकान्त कोने में स्थित एक खाली मेज पर जा बैठे ।
सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया और बड़े चिन्तापूर्ण ढंग से गहरे कश लेने लगा ।
कितनी ही देर तक कोई कुछ नहीं बोला ।
वेटर उनके समीप आ खड़ा हुआ ।
“ऐस्प्रेसो !” - सुनील ने आर्डर दिया ।
वेटर सिर झुकाकर वहां से हट गया ।
“बन्दर बेटे !” - अन्त में सुनील बोला - “गनीमत समझो कि दीपक लाज में रहने वालों लोगों का ध्यान बड़ी देर बाद उस हंगामे की ओर आकृष्ट हुआ वर्ना इस समय हम किसी जेलखाने की कोठरी में बैठे सत्संग कर रहे होते ।”
“आजकल तो सुना है जेलखाने की कोठरियों में पंखे भी लगे होते हैं और सफाई का पूरा-पूरा ख्याल रखा जाता है ।”
“बेटा, तुम चाहे जहन्नुम में जाओ लेकिन जेल की कोठरी एयर कन्डीशन्ड ही क्यों न हो, मैं वहां तक तुम्हारा साथ नहीं दे सकता । हालांकि आज तुमने मुझे फंसवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।”
“फंसे तो नहीं ।”
“बहुत बेशरम हो । मैं तो अब पछता रहा हूं कि क्यों मैंने तुम्हारी रक्षा के लिये कमल मेहरा पर छलांग लगाई । अच्छा होता उसके रिवाल्वर की गोली तुम्हारा भेजा उड़ा देती । पाप कट जाता ।”
“मैं किसी कमल मेहरा की गोली खाकर मरने के लिये पैदा नहीं हुआ । मेरे हाथ की रेखायें कहती हैं कि मैं एक सौ नौ साल तक जियूंगा, पांच शादियां करूंगा और मरने से पहले कम से कम एक बार भारत के मंत्रिमंडल में जरूर शामिल किया जाऊंगा । और अगर मैं आज ही मर जाता तो पांच शादियां कौन करता, कैबिनेट मिनिस्टर कौन बनता ?”
“तुम कौन से मंत्री बनोगे ?”
“सौंदर्य प्रसाधन और हेयर स्टाइल मंत्री !” - बन्दर छाती फुलाकर बोला ।
“यह कौन सा विभाग है ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“अभी नहीं हैं लेकिन हो जायेगा ।”
“मतलब यह कि तुम आज अपने जीवित बच आने को कोई विशेष घटना नहीं मानते ?”
“नहीं ।”
“बरखुरदार, एक सौ नौ साल जी पाने का ख्याल तो छोड़ दो । अगर छोकरियों के चक्कर में पड़कर बेवकूफ बनना नहीं छोड़ोगे तो एक दिन शहीद हो जाओगे ।”
उसी समय वेटर काफी ले आया ।
बन्दर ने काफी में चीनी डाली और कप में चम्मच चलाता हुआ बोला - “सुनील भाई, आज आठ बजे जब तुम मेरे साथ चल कर जयन्ती की सूरत देखोगे तो खुद तो गश खा ही जाओगे बल्कि यह भी स्वीकार करोगे कि ऐसी लड़की के लिये शहीद हो जाना भी गौरव की बात है ।”
“अब क्या झक मारने के लिये उससे मिलने जाओगे ?”
“क्यों ?”
“उसका काम तो हुआ नहीं । रिवाल्वर तो तुम चुरा नहीं पाये ।”
“यह क्या है ?” - बन्दर जेब से कमल मेहरा वाली रिवाल्वर निकाल कर सुनील को दिखाता हुआ बोला ।
सुनील के मुंह से आश्चर्य भरी सिसकारी निकल गई ।
“यह तो वही रिवाल्वर है न जो मैंने कमल मेहरा के हाथ से छीनी थी और बाद में उसी के फ्लैट में फेंक दी थी ?” - सुनील ने पूछा ।
“राइट ।”
“तुम इसे उठा क्यों लाये ?”
“क्योंकि प्यारे भाई, ये वही रिवाल्वर है जिसे चुराने के लिये मुझे जयन्ती ने कहा था ।” - बन्दर ने बताया ।
“जो जयन्ती ने कहा था कि बैडरूम की एक मेज की दराज में है ?”
“बिल्कुल वही ।”
“तुम्हें कैसे मालूम है, यह वही रिवाल्वर है ?”
“तुम्हें इस रिवाल्वर में कोई असाधरणता नहीं दिखाई देती ?”
“एक असाधारणता क्या, यह तो रिवाल्वर ही अनोखी है ।” - सुनील बोला - “यह रिवाल्वर थोड़े ही है । यह तो तोप का पाकेट एडीशन है । इसकी बैरल देखो, कम से कम दस इंच लम्बी है । पक्के लोहे की बनी हुई रिवाल्वर है यह । इसका दस्ता भी ठोस लोहे का है और इसका वजन भी आम रिवाल्वरों से कम से कम पांच गुना ज्यादा है । फायर किये जाने पर तुमने देखा ही है, यह तोप जैसा गर्जन करती है । ऐसी रिवाल्वर तो किस्से कहानियों की चीज है । कमल मेहरा के पास होने के स्थान पर यह किसी म्यूजियम में होनी चाहिये थी । उन्नीसवी शताब्दी के दुर्दान्त डाकू ऐसी रिवाल्वर इस्तेमाल किया करते थे ।”
“इस रिवाल्वर के बारे में लगभग ये ही बातें मुझे जयन्ती ने थी । इस रिवाल्वर की सबसे बड़ी पहचान उसने यह बताई थी कि इसके दस्ते पर दो क्रास की हुई हड्डियों पर एक खोपड़ी का चिन्ह बना हुआ है, देखो ।”
और बन्दर ने रिवाल्वर का दस्ता सुनील के सामने कर दिया ।
सुनील ने देखा वाकेई उस पर वह चिन्ह बना हुआ था ।
“अब भगवान के लिये इसे जेब में रखो । किसी ने देख लिया तो खामखाह बखेड़ा होगा ।”
बन्दर ने रिवाल्वर जेब में रख ली ।
“तुम आठ बजे जयन्ती से मिलने जाओगे ?”
“यह भी कोई पूछने की बात है ? तुम भी तो साथ चलोगे ।”
“इतना फसाद हो जाने के बाद भी तुम यह महसूस नहीं करते कि तुम इस बखेड़े से दूर ही रहो ।”
“जितना फसाद होना था, हो चुका । अब तो बखेड़े वाली कोई बात रही ही नहीं है ।”
“बन्दर बेटे !” - सुनील उसे समझाता हुआ बोला - “मेरा कहा मानो ! इस रिवाल्वर को किसी कूड़े के ड्रम में या गन्दे नाले में फेंक दो और अपने दिमाग में से जयन्ती की ख्याल कतई निकाल दो ।”
“यार, यह तुम मुझे उल्टी सीधी सलाह मत दिया करो ।” - बन्दर चिड़ कर बोला - “जब बात क्लाइमैक्स पर पहुंच रही है तो तुम मुझे उसे भूल जाने की राय दे रहे हो ।”
“अच्छा, अच्छा !” - सुनील बात खत्म करने के से भाव से बोला - “जो जी में आये करो । मेरी ओर से चाहे कुएं में छलांग लगा दो ।”
और वह चुपचाप काफी पीने लगा ।
***
सवा आठ बज चुके थे ।
सुनील और बन्दर हर्नबी रोड के मोड़ पर खड़े थे ।
बन्दर बार बार घड़ी देख रहा था और बड़ी बेचैनी से जयन्ती की प्रतीक्षा कर रहा था ।
सुनील मोड़ पर लगे लोहे के रेलिंग पर कोहनियां टिकाये खड़ा था और अपार निर्लिप्तता के भाव से सिगरेट फूंक रहा था ।
साढे आठ बज गए ।
जयन्ती नहीं आई ।
बन्दर और व्यग्र दिखाई देने लगा ।
सुनील ने एक उचटती सी नजर उस पर डाली और फिर सिगरेट पीने में मग्न हो गया । बन्दर के साथ समय बरबाद करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था । बन्दर बेहद खुशामद करके, दोस्ती का वास्ता देकर, उसे अपने साथ लाने में सफल हो गया था और अब वह वहां खड़ा भरपूर बोर हो रहा था ।
पौने नौ बज गये ।
“अब क्या यहीं अपनी कब्र बनाने का इरादा है ?” - सुनील तिक्त स्वर से बोला ।
“बस थोड़ी देर और सुनील भाई !” - बन्दर बेसब्री से बोला ।
सुनील चुप हो गया ।
नौ बज गये ।
“मैं जा रहा हूं ।” - सुनील सिगरेट का बचा हुआ टुकड़ा जमीन पर फेंकता हुआ बोला - “तुम चाहे जिन्दगी भर यहीं खड़े रहना ।”
“मैं भी चलता हूं ।” - बन्दर बेमन से बोला ।
“शुक्र है ।” - सुनील बोला ।
“लेकिन वह आई क्यों नहीं ?” - बन्दर बड़बड़ाया ।
“उसे कोई लंगूर मिल गया होगा ।”
“मजाक मत करो, यार ।” - बन्दर बड़बड़ाया ।
“अच्छा मजाक नहीं करता । लेकिन तुम भी उसका ख्याल छोड़ो । अब वह सोच कर सब्र कर लो कि वो तुम्हारा मुर्गा बना गई ।”
“लेकिन मुझे मुर्गा बनाने में उसे क्या मिलता ?” - बन्दर चिन्तित स्वर से बोला ।
“भगवान जाने या जयन्ती जाने ।”
“और फिर उसने मुझे दो सौ रूपये भी तो दिये ।”
सुनील चुप रहा ।
“और उसकी बात भी सच थी । यह असाधारण रिवाल्वर वाकई कमल मेहरा के फ्लैट में थी ।”
“होगी कोई बात, यार ! दुनिया में बड़ी-बड़ी अनोखी बाते होती रहती हैं । अब तुम जयन्ती को गोली मारो और चलो यहां से ।”
“जयन्ती को तो गोली मार दी लेकिन इस रिवाल्वर का क्या होगा जो मेरे कोट की जेब में मन भर पत्थर की तरह रखी है ।”
“मैंने तुम्हें पहले भी कहा था, इसे किसी कूड़े के ड्रम में या गटर में फेंक दो ।”
“लेकिन यार, यह तो अच्छी बात नहीं है ।”
“क्यों ?”
“मान लो आज किसी मजबूरी के कारण ही जयन्ती यहां न आ पाई हो और काल या परसों या किसी और दिन वह कहीं मिल गई तो कूड़े के ड्रम या गटर में से रिवाल्वर दुबारा मिलेगी नहीं ।”
“जयन्ती अब तुमसे मिलने वाली नहीं हैं ।”
“लेकिन माल लो अगर मिल गई ?”
“तो फिर रिवाल्वर अपने घर ले जाओ ।”
“लेकिन मैं तो आजकल नौकरी के क्वार्टरों में रह रहा हूं और वहां से भी कभी भी निकाल दिये जाने की सम्भावना है ।”
“अपने किसी नौकर को रखने के लिये दे दो उसे ।”
“अव्वल तो कोई मानेगा नहीं और अगर मान गया तो हर समय यही खतरा लगा रहेगा कि कहीं वह रिवाल्वर लेकर डैडी के पास न पहुंच जाये और डैडी समझें लड़का नालायक तो था ही अब अपराधी भी बन गया है ।”
“आखिरी तुम चाहते क्या हो ?” - सुनील उकता कर बोला ।
“मैं चाहता हूं कि यह रिवाल्वर तुम अपने पास रख लो ।”
“असम्भव ! मैं तो चोरी का माल रखने के लिये हरगिज भी तैयार नहीं होऊंगा ।”
“तो फिर इसका कुछ करो यार ! मैं तो माना बेवकूफ हूं लेकिन क्या तुम्हारा मास्टर माइन्ड भी इसके लिये कोई सुरक्षित स्थान नहीं खोज सकता ?”
सुनील चुप हो गया । फिर वह एकदम निर्णय सा करता हुआ बोला - “चलो !”
“कहां ?” - बन्दर ने पूछा ।
“रिवाल्वर का इन्तजाम करने ।”
“कहां इन्तजाम करोगे ?”
“महात्मा गांधी रोड पर एक पान-शाप (ऐसी दुकान जहां वस्तुयें गिरवी रखी जाती हैं) है । मैं यह रिवाल्वर वहां गिरवी रखने जा रहा हूं । इससे रिवाल्वर सुरक्षित भी रहेगी । और जब चाहोगे तुम्हें वापिस भी मिल जायेगी ।”
“अरे तुम ही रख लो सुनील भाई !”
“नहीं ।” - सुनील कठोर स्वर से बोला ।
“ओके दैन ।” - बन्दर बोला ।
दोनों फिर मोटर साईकल पर आ बैठे ।
महात्मा गान्धी रोड पर सुनील ने मोटर साइकिल ‘पान-शाप’ (Pawn Shop) से करीब पच्चीस गज दूर ही पार्क कर दी ।
“रिवाल्वर मुझे दो ।” - सुनील बोला ।
बन्दर ने चुपचाप रिवाल्वर दे दी ।
सुनील ने रिवाल्वर खोल कर देखा । चैम्बर में अभी पांच गोलियां बाकी थीं । सुनील ने रिवाल्वर पैंट की बैल्ट में खोंस लिया ।
“आओ ।” - वह बोला ।
बन्दर उसके साथ हो लिया ।
दोनों पान-शाप पर जा पहुंचे ।
दुकानदार उठ खड़ा हुआ । उसने पहले सुनील को देखा, फिर बन्दर को एकदम नजरअन्दाज करके वह चिकने चपड़े स्वर से सुनील से बोला - “यस सर । ऐनी सरविस फार मी (मेरे योग्य कोई सेवा) ?”
प्रत्यक्ष था उसे बन्दर के मुकाबले में सुनील अधिक आकर्षक व्यक्तितव का स्वामी लगा था ।
“मेरे चेहरे को गौर से देखो ।” - सुनील ड्रामा सा करता हुआ बोला ।
दुकानदार उलझनपूर्ण ढंग से उसका चेहरा देखने लगा ।
“पहचाना मुझे ?” - सुनील ने फिर पूछा ।
“न... नहीं साहब ।” - दुकानदार हिचकिचाहट भरे स्वर से बोला ।
“नहीं पहचाना !” - सुनील भारी आश्चर्य का प्रदर्शन करता हुआ बोला - “मुझे नहीं पहचाना तुम ने ?”
“नहीं साहब ।”
“मेरी सूरत तुम्हें किसी से मिलती जुलती नहीं लगती ?”
दुकानदार ने फिर सुनील को घूरा और निर्णयात्मक स्वर से बोला ।
“नहीं साहब ।”
“कभी सुलताना डाकू का नाम सुना है ?”
“जी हां, सुना हैं ।”
“कभी उसकी तसवीर देखी है ?”
“बहुत देखी है ?”
“तुम फिर भी नहीं पहचानते मुझे ?”
“नहीं । क्या आप...”
“मैं नहीं । मैं सुलताना डाकू का पोता हूं ।”
“अच्छा ।” - दुकानदार ऐसे भाव से बोला जैसे बेहद प्रभावित हुआ हो - “बड़ी खुशी की बात है ।”
“नहीं” - सुनील एक दम ऊंचे स्वर से बोला - “यह खुशी की बात नहीं है यह मेरा दुर्भाग्य था कि मेरा दादा एक डाकू था ।”
“खैर साहब । गलती हुई । यह खुशी की बात नहीं है । आप मेरे योग्य सेवा बताइये ।”
प्रत्यक्ष था कि दुकानदार उखड़ रहा था ।
सुनील ने पैन्ट की बैल्ट में से रिवाल्वर खींच ली । उसने रिवाल्वर दुकानदार के सामने काउन्टर पर रख दी ।
बन्दर हतप्रभ सा कभी दुकानदार को और कभी सुनील को देख रहा था ।
“यह रिवाल्वर” - सुनील भावुक स्वर से बोला - “मेरे दादा की अर्थात् सुलताना डाकू की है । यही वह रिवाल्वर है जिसके प्रताप से सुलताना डाकू ने अंग्रेज पुलिस अफसर फ्रेडरिक यंग को छटी का दूध याद दिला दिया था । जब मेरे दादा को यह पता लगेगा कि मैं उनकी आखिरी निशानी को गिरवी रख रहा हूं तो उनकी आत्मा तड़प उठेगी ।”
दुकानदार के चेहरे से सम्मान के भाव एक दम उड़ गये और उनका स्थान एक व्यवसाय सुलभ कठोरता ने ले लिया ।
“तो यह बात है ?” - बड़बड़ाया - “तुम यह रिवाल्वर गिरवी रखने आये हो और इसकी कीमत बढाने के लिये ही इतनी व्याख्या दे रहे हो ।”
“मैंने झूठ नहीं कहा है, प्यारे दुकानदार । यह रिवाल्वर सचमुच ही सुलताना डाकू की है ।”
“सुलताना डाकू को हो या उसके बाप की” - दुकानदार रूखे स्वर से बोला - “तुम तो इसे गिरवी रखना चाहते हो न ?”
“हां ।” - सुनील यूं बोला जैसे उसका दिल डूबा जा रहा हो ।
“मैं रिवाल्वर गिरवी नहीं रखता ।”
“क्यों ?”
“मेरे पास पहले ही बहुत रिवाल्वर पड़ी हैं । कोई उन्हें छुड़ाने नहीं आता और अक्सर ये चोरी की होती हैं इसलिये कभी कभी पुलिस के हाथों भी बड़ा परेशान होना पड़ता है ।”
“लेकिन दुकानदार साहब ।” - सुनील याचानापूर्ण स्वर से बोला - “अगर आपने यह रिवाल्वर गिरवी नहीं रखी तो मेरा तो कबाड़ा हो जायेगा ।”
“मैं अपनी गर्ल फ्रेंड को होटल द फ्रांस जैसे महेंगे होटल में डिनर खिलाने का वादा कर चुका हूं और मेरी जेब में एक पैसा भी नहीं है ।”
“जब पैसा नहीं था तो ऐसा वादा क्यों किया ?”
“क्योंकि मुझे उम्मीद थी कि सुलताना डाकू की रिवाल्वर को तो कोई भी गिरवी रखने में सम्मान का अनुभव करेगा ।”
“सम्मान-वम्मान कुछ नहीं ।” - दुकानदार बोला - “रिवाल्वर नहीं तुम्हारा सूट शानदार है । और यह गिरवी रखना चाहो तो सौदा हो सकता है ।”
“अगर सूट ही गिरवी रख दिया दुकानदार साहब तो फिर होटल द फ्रांस में तो क्या मुझे कोई भटियार खाने में भी नहीं घुसने देगा ।”
सुनील ने देखा बन्दर खा जाने वाले नेत्रों से दुकानदार को घूर रहा था ।
“खैर, चलो” - दुकानदार किंचित नम्र स्वर से बोला - “तुम भी क्या याद करोगे । लिये लेते हैं । तुम्हारे दादा की आखिरी निशानी भी । जहां इतना लोहा पड़ा है, थोड़ा और सही ।”
दुकानदार ने रिवाल्वर उठा लिया और उसे हाथों में उलटता पलटता हुआ बोला - “कितने रुपये चाहियें ?”
“दो सौ रुपये ।” - सुनील धैर्यपूर्ण स्वर से बोला ।
“बीस रूपये ।” - दुकानदार रिवाल्वर काउन्टर पर सुनील के सामने रखता हुआ बोला ।
“सिर्फ बीस रूपये !” - सुनील हैरानी से चिल्लाया - “सुलताना डाकू की रिवाल्वर के । दुकानदार साहब आप मजाक तो नहीं कर रहे ।”
“बीस रूपये बहुत है । और यह रिवाल्वर सुलताना डाकू की है या किसी चमार की इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है । सुलताना डाकू तो क्या, तुम चाहों तो बीस-बीस रूपये में मुझसे विलायती डाकुओं भी इससे भी शानदार रिवाल्वर ले जाओ ।”
“यह बात तो तुम मेरी मजबूरी का फायदा उठाने के लिये कह रहे हो । अच्छा चलो डेढ सौ रूपये दे दो ।”
“पच्चीस रुपये ।”
“लेकिन सुलताना डाकू ने इसी रिवाल्वर से सौ आदमी मार गिराये थे ।”
“अच्छा” - दुकानदार ने आश्चर्य व्यक्त किया - “तुमने पहले क्यों नहीं बताया ? इसी बात पर तीस रुपये ।
“अच्छा चलो, सौ रुपये दे दो । इससे कम में तो मेरा काम नहीं चलेगा ।”
“पैंतीस रुपये ।”
“दुकानदार साहब इसमें पांच कारतूस भी तो हैं ।”
“चालीस रुपये ।”
“अच्छा पिचहत्तर दे दो ।”
“चालीस ।”
“अच्छा लाओ बाबा ।” - सुनील हथियार डालता हुआ बोला । दुकानदार रसीद बनाने लगा ।
“मुझे माफ करना दादा जी” - सुनील आसमान की ओर हाथ उठा कर बोला - “मैं जल्दी ही आपकी आखिरी निशानी यहां से छुड़ा लूंगा ।”
दुकानदार ने रसीद और चालीस रुपये सुनील को दिये ।
“थैंक्यू दुकानदार जी ।” - सुनील बोला ओर बन्दर को लेकर दुकान से बाहर निकल आया ।
सुनील ने रुपये और रसीद दोनों बन्दर को थमा दीं और बोला ।
“यहां रिवाल्वर सुरक्षित रहेगी । कभी जयन्ती तुम से टकरा जाये तो रिवाल्वर ले जाना वर्ना रसीद फाड़ कर फेंक देना ।”
“लेकिन इतना ड्रामा करने की क्या जरूरत थी ?”
“प्यारेलाल, यह इतने ड्रामे का ही असर था कि दुकानदार ने बिना ही हुज्जत किये चुपचाप रिवाल्वर रख ली थी । वर्ना रिवाल्वर जैसी चीज गिरवी रखते हुए ये लोग हजार-हजार सवाल पूछते हैं ।”
बन्दर चुप हो गया ।
***
अगले दिन सुबह ।
निरन्तर बजती हुई काल-बैल की आवाज से सुनील की नींद खुल गई ।
वह बेमन से बिस्तर से निकला और गाउन पहनता हुआ फ्लैट के मुख्य द्वार की ओर बढा ।
उसने घड़ी देखी । अभी केवल आठ बजे थे । वह और भी खीज उठा । आज उसका ‘आफ’ था इसलिये इतनी जल्दी उठ जाना उसे अच्छा नहीं लग रहा था ।
सुनील ने जल्दी से द्वार खोल दिया ।
सामने बदहवास सा बन्दर खड़ा था । उसने मजबूती से आने हाथ में समाचार पत्र थामा हुआ था ।
“कहीं तुम यह सोच कर तो घन्टी नहीं बजा रहे थे कि मैं मर गया हूं ।” - सुनील चिढ कर बोला ।
वह गम्भीर था ।
सुनील रास्ते से हट गया और बन्दर के साथ बैडरूम की ओर बढा ।
वह फिर जाकर बिस्तर में दुबक गया । बन्दर एक कुर्सी पलंग के पास घसीट कर उसके सामने बैठ गया ।
“लगता है” - सुनील उसे घूरता हुआ बोला - “लगता है तुम्हारे बाप ने तुम्हें नौकरों के क्वार्टरों में से भी निकाल दिया है । तभी तो...”
“बकवास बन्द करो” - बन्दर झल्लाए हुए ढंग से समाचार उसके सामने फेंकता हुआ बोला - “जरा अखबार पर एक दृष्टि डालो और फिर सारा मजाक भूल जाओगे ।”
“क्या हो गया है ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“कमल मेहरा भगवान को प्यारे हो गए ।” - बन्दर बोला ।
“कब ? कैसे । कहां ?”
“कल शाम को पांच बजे । रिवाल्वर की गोली खा कर । दीपक लाज स्थित अपने फ्लैट पर । ...तुम अखबार पढो । पहले पृष्ठ पर नीचे दाईं ओर खबर है । खबर पढने के बाद मेरी तरह तुम्हारा भी हुलिया न बिगड़ा तो मेरा नाम बन्दर से बदल कर जुगल रख देना ।”
उसने बन्दर द्वारा निर्दिष्ट स्थान पर दृष्टि डाली । मोटे-मोट अक्षरों में हैड लाइन थी ।
दीपक लाज में हत्या
सुनील नीचे लिखा विवरण जोर-जोर से पढने लगा -
लिटन रोड स्थित दीपक लाज नाम की एक इमारत के निवासियों उस समय सनसनी फैल गई जब उन्हें मालूम हुआ कि इमारत की दूसरी मन्जिल के एक फ्लैट के कमल मेहरा नामक निवासी की दिन दहाड़े हत्या कर दी गई है । हत्यारे जबरदस्ती कमल मेहरा के फ्लैट में घुस गये और कमल मेहरा को शूट करके फरार हो गये ।
कमल मेहरा के बगल के फ्लैट में रहने वाली सुमित्रा नाम की महिला ने लगभग पांच बजे कमल मेहरा के फ्लैट में कुछ गड़बड़ सुनी । उन्होंने सावधानी से अपने फ्लैट का द्वार खोलकर बाहर झांका । कमल मेहरा के फ्लैट के सामने दो आदमी खड़े थे । एक दुबला पतला, तीखे नयन नक्श वाला कालेज का विद्यार्थी सा लगने वाला लड़का था । उसके चेहरे पर एक मोटे फ्रेम का चश्मा लगा हुआ था । वह बेहद उत्तेजित था और जोर जोर से कमल मेहरा के फ्लैट का द्वार भड़भड़ा रहा था ।
“यह मैं हूं ।” - बन्दर नर्वस स्वर से बोला ।
“चुप रहो । आगे पढने दो ।” - सुनील बोला और फिर अखबार पढने लगा । आगे लिखा था -
उसके साथ एक शानदार व्यक्तित्व का स्वामी और, सुमित्रा देवी के कथनानुसार ‘फिल्म अभिनेता सा लगने वाला’ युवक खड़ा था । वह अपने चश्मे वाले साथी की तरह उत्तेजित नहीं था ।
“यह तुम हो । साली कहती है, तुम फिल्म अभिनेता लगते हो ।”
“शट अप । आगे पढने दो ।”
फिर कमल मेहरा के फ्लैट का द्वारा खुला और चश्मे वाला लड़का कमल मेहरा पर टूट पड़ा । सुमित्रा देवी को उनकी सूरतें तो नहीं दिखाई दे रही थीं लेकिन मार कुटाई की धमा धम साफ सुनाई दे रही थी । उसके बाद न जाने क्या हुआ कि फिल्म अभिनेता सा लगने वाला युवक भी फ्लैट में घुस गया । अगले ही क्षण गोली की आवाज से वातावरण गूंज उठा । सुमित्रा देवी दहल गई । लेकिन वे पूर्ववत् अपने फ्लैट के द्वार के पीछे छुपी खड़ी बाहर झांकती रहीं । गोली की आवाज के फौरन बाद ही सुमित्रा देवी ने दोनों को कमल मेहरा के फ्लैट से बाहर निकलते देखा । दोनों कारीडोर में भाग रहे थे । फिल्म अभिनेता सा लगने वाला युवक आगे था और उस के हाथ में एक विचित्र से आकार की रिवाल्वर थी जिसकी नाल में से धुआं निकल रहा था । तभी सुमित्रा देवी द्वार के पास से हट गई और टेलीफोन की ओर भागी । तब तक बाकी फ्लैट के द्वार भी खुलने लगे थे । सुमित्रा देवी ने पुलिस को फोन कर दिया । पुलिस फौरन ही पहुंच गई थी लेकिन तब तक कमल मेहरा के प्राण पखेरू उड़ चुके थे । शेष पृष्ठ आठ पर -
सुनील पृष्ठ आठ पलटने लगा ।
“वहां कुछ नहीं है ।” - बन्दर जल्दी से बोला - “वहां पुलिस की तफ्तीश का विवरण है जिसमें मेरी बातें विस्तार से लिखी हुई हैं जो इस पृष्ठ पर हैं ।”
“फिर भी पढ लेने में क्या हर्ज है ?” - सुनील बोला ।
“मर्जी तुम्हारी ।” - बन्दर बोला ।
सुनील आठवें पृष्ठ पर छपा विवरण पढने लगा ।
“अरे सुनील भाई” - उसी क्षण उसके कान में बन्दर का आश्चर्य भरा स्वर पड़ा - “यह क्या है ?”
“क्या है ?” - सुनील ने अखबार रखते हुए पूछा ।
उसने देखा बन्दर बगल में रखी मेज पर पड़ी पत्रिकाओं की ओर झपट रहा था ।
“क्या क्या है ?” - सुनील ने पूछा - “क्या पूछ रहे थे तुम ?”
“यह, यह ।” - बन्दर एक पत्रिका उठाता हुआ बोला ।
“ओह, यह फिल्म फेयर है” - सुनील बोला - “इसमें हैरान होने वाली कौन सा बात है ?”
सुनील ने देखा बन्दर फिल्म फेयर के मुख पृष्ठ पर वहीदा रहमान की तसवीर के स्थान पर पत्रिका की बैक में छपे साबुन के विज्ञापन को देख रहा था ।
“सुनील भाई, मैं इसकी बात कर रहा हूं ।” - बन्दर साबुन का विज्ञापन उसके सामने करता हुआ बोला ।
“इसमें क्या विशेषता है ? यह ‘सुन्दरता’ साबुन का विज्ञापन है । साबुन की पृष्ठभूमि में जिस लड़की का क्लोज अप छपा है वह कोई अभिनेत्री होगी जिन्हें यह वहम हो गया है कि सुन्दरता साबुन के प्रयोग से उनका रंग रूप खिल उठता है ।”
“अबे यह अभिनेत्री नहीं है ।” - बन्दर बेसब्री से बोला ।
“तो फिर कोई माडल होगी !” - सुनील लापरवाही से बोला ।
“तुम एकदम सूअर आदमी हो यार ।” - बन्दर चिड़ कर बोला - “साले अपनी ही हांके जाते हो दूसरे की नहीं सुनते हो । एक्ट्रेस होगी, माडल होगी । तुम्हारी अम्मा होगी । और मैं यह बकवास करना चाहता हूं कि यह वही लड़की है जिसने कल मुझे कमल मेहरा के फ्लैट से रिवाल्वर चुराने के लिये कहा था ।”
“क्या ?” - सुनील के नेत्र फैल गये ।
“हां, यह सुन्दरता साबुन के विज्ञापन वाली लड़की ही जयन्ती है ।” - बन्दर बोला ।
“श्योर !” - सुनील वह तस्वीर देखता हुआ बोला ।
“श्योर लाइक हैल । प्यारे, बन्दर अपने आप को पहचानने में गलती हो सकती है लेकिन किसी एन्टीफ्लोजिस्टीन टाइप की लड़की को पहचानने में नहीं । यही जयन्ती है या यूं कह लो कि यही वह लड़की है जिसने मुझे अपना नाम जयन्ती बताया था ।”
सुनील एकदम गम्भीर हो उठा ।
बन्दर व्यग्रतापूर्ण नेत्रों से उसे घूरता रहा ।
“हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे ।” - सुनील बड़बड़ाया ।
“यह क्या कोई शेर था, सुनील भाई ?” - बन्दर ने बड़ी मासूमियत से पूछा ।
“यह तेरा सिर था, सूअर ! साले तेरी एण्टीफ्लोजिस्टीन लड़की ने तुम्हें तो मरवाया ही साथ ही मुझे भी फंसवा दिया ।”
“अब इसमें उस लड़की का क्या अपराध है !” - बन्दर लड़की की हिमायत लेता हुआ बोला - “उसने तो केवल चोरी के लिये कहा और वहां खून भी हो गया । और फिर खून कोई हमने थोड़े ही किया है ।”
“खून हमने नहीं किया । लेकिन हर बात हमारे विरुद्ध जा रही है । उस सुमित्रा देवी ने यूं हमारा हुलिया बयान कर दिया जैसे उसने कभी हमें सामने बैठा कर हमारी तसवीर बनाई हो । फिल्म अभिनेता से लगने वाले तो राजनगर में हजारों युवक मिल जायेंगे लेकिन तुम्हारे इस जंगी चश्मे वाला तुम्हारे सिवाय कोई दूसरा आदमी नहीं मिलेगा ।”
“तो फिर कुछ करो न, सुनील भाई ।” - बन्दर बोला ।
“बन्दर” - सुनील प्यार से बोला - “मैं यूं करता हूं । मैं पुलिस के सामने स्वीकार कर लेता हूं कि कमल मेहरा की हत्या मैंने की है और फिर आत्माहत्या का लेता हूं । इससे तुम साफ बच जाओगे और जयन्ती भी तुम्हारा रौब खा जायेगी ।”
“हां, यह ठीक है” - बन्दर एकदम झोंक से बोला और फिर एकदम बात उसकी समझ में आ गई - “ही, ही - सुनील भाई तुम तो मजाक कर रहे हो । भला यह कैसे हो सकता है । तुम साले एक ही तो मेरे एण्टीफ्लोजिस्टीन दोस्त हो । कुछ और करो न, यार ! तुम जो जीनियस हो ।”
“अच्छा” - सुनील एकदम निर्णयात्मक स्वर से बोला - “चश्मा उतारो ।”
“क्यों ?” - बन्दर एकदम बौखला गया ।
“चश्मा उतारो । और जब तक यह हंगामा खतम नहीं हो जाता, चश्मा तुम्हारी नाक पर नहीं दिखाई देना चाहिये ।”
“चश्मा उतारने से तो मुझे कोई इन्कार नहीं है, सुनील भाई । मेरी सारी सहेलियां यही कहती हैं कि मैं चश्मे के बिना खूबसूरत लगता हूं...”
“दरअसल वे यह कहती हैं कि काश, तुम चश्मे के बिना खूबसूरत लगते ।”
“एक ही बात है लेकिन तुम मेरा चश्मा क्यों उतरवाना चाहते हो ?”
“क्योंकि तुम्हारा यह जंगी चश्मा तुम्हारा ट्रेड मार्क बन गया है । अगर यह चश्मा तुम्हारी नाक पर रहा तो तुम तो फंसोगे ही मुझे भी फंसवाओगे और जेल कितनी ही शानदार क्यों न हो, फिर भी जेल ही होती है ।”
“आलराईट” - बन्दर शराफत से बोला - “जब इस फ्लैट से बाहर निकलूंगा तो चश्मा उतार दूंगा ।”
“फाइन ।” - सुनील बोला और फिर सुन्दरता साबुन के विज्ञापन पर झुक गया ।
सुनील ने देखा, सुन्दरता साबुन के विज्ञापन के निचले भाग में दाई ओर एक शब्द छपा हुआ था - न्यूवेज ।
सुनील ने पत्रिका रख दी और बाहर ड्राइंगरूम में रखे टेलीफोन की ओर बढा ।
बन्दर ने कुछ बोलने के लिये मुंह खोला लेकिन फौरन ही उसने होंठ भींच लिये ।
सुनील ने यूथ क्लब के नम्बर डायल कर दिये ।
दूसरी ओर घन्टी बजने की आवाज सुनाई देने लगी । सुनील जानता था कि सुबह के समय यूथ क्लब के पी बी एक्स बोर्ड पर आपरेटर नहीं होती और ऐसे समय में रमाकांत की लाइन डायरेक्ट होती है और घन्टी सीधी उसी के फोन में जाकर बजती है ।
सुनील ने घड़ी देखी, साढे आठ बजे थे ।
निरन्तर तीन मिनट घंटी बजते रहने के बाद दूसरी ओर से टेलीफोन उठाया गया और फिर उसे रमाकांत का खीझ भरा स्वर सुनाई दिया - “हल्लो, मर्डर क्लब ।”
“क्या मुझे यूथ क्लब के स्वामी श्री रमाकांत जी से सम्बोधित होने का सौभाग्य प्राप्त है ?” - सुनील ने प्यार भरे स्वर से पूछा ।
“जी हां, यह उन्हीं का दुर्भाग्य है कि उनका सुनील कुमार चक्रवर्ती जैसा उल्लू का पट्ठा दोस्त राजनगर में रहता है जो किसी शरीफ आदमी को दो क्षण चैन से सोने भी नहीं देता ।” - रमाकांत उसकी आवाज पहचान कर सख्त नाराजगी भरे स्वर से बोला ।
“हुजूर” - सुनील खुशामद भरे स्वर से बोला - “मैं माफी चाहता हूं ।”
“माफी चाहो, या न चाहो” - उत्तर मिला - “मैं एक बजे से पहले कोई काम की बात सुनूंगा । तब तक के लिये गुड बाई ।”
“अरे, अरे, रमाकांत, भगवान के लिये टेलीफोन बन्द मत करना । बाई गाड बड़ा आवश्यक काम है । जिन्दगी मौत का सवाल है ।”
“सच कह रहे हो ?” - रमाकांत का संदिग्ध स्वर सुनाई दिया ।
“एकदम सच । मैंने तुमसे पहले कभी सच... मेरा मतलब है झूठ बोला है ?”
“क्या हो गया है ?”
“बन्दर की करामात ।”
“क्या मतलब ?”
“उसके चक्कर में पड़ कर ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि मुझे अपने गले में और फांसी के फन्दे में कुछ हाथ का ही फासला दिखाई देता है ।”
“हुआ क्या है ?”
“यह मैं बाद में बताऊंगा । फिल्हाल तुम दो काम करवाओ ।”
“क्या ?”
“पहले तो यह है कि फिल्म फेयर के इस अंक में आखिरी पृष्ठ पर सुन्दरता साबुन का एक विज्ञापन छपा है । उस विज्ञापन के साथ जिस लड़की की तसवीर छपी है, मैं उसके बारे में जानकारी चाहता हूं ।”
“किसी लड़की के बारे में यूं कैसे पता लगा सकता है । भारत में तो लाखों करोड़ों लड़कियां हैं ?”
“ताव मत खाओ । तरीका मैं बताता हूं । उस विज्ञापन के नीचे न्यूवेज लिखा है जिससे यह प्रगट होता है कि सुन्दरता साबुन का या विज्ञापन न्यूवेज एडवरटाइजिंग एजेन्सी के माध्यम से छपा है या एजेन्सी राजनगर में ही है । उनसे पता लग सकता है कि उन्होंने विज्ञापन के साथ जिस माडल का फोटो सैट किया है, वह कौन है ?”
“यार, एडवरटाइजिंग एजेन्सियों वाले अपने माडलों के बारे में बताते नहीं हैं ।”
“कोई तिगड़म भिड़ाओ न यार ।”
“मैं कोशिश करूंगा ।”
“जरूर और सम्भव है कि उस लड़की का नाम जयन्ती हो ।”
“क्या मतलब ?”
“बन्दर को उस लड़की ने अपना यही नाम बताया था ।”
“किस्सा क्या है ?”
“किस्सा फिर बताऊंगा ।”
“आल राइट ।” - रमाकांत ने भी और अधिक अनुरोध नहीं किया - “दूसरा काम क्या है ?”
“लिटन रोड पर दीपक लाज नाम की एक इमारत है । उसकी मंजिल के एक फ्लैट में कमल मेहरा नाम के एक आदमी की हत्या हो गई है । मुझे उसके बारे में पूरी पूरी जानकारी चाहिये ।”
“किस प्रकार की जानकारी ?”
“जैसे हत्या कब हुई । गोली कौन से कैलिबर के रिवाल्वर की थी । लाश कहां पाई गई ? गोली शरीर के किस भाग में लगी थी ? क्या हत्या का कोई गवाह है ? पुलिस किस लाइन पर काम कर रही है ? वगैरह वगैरह ।”
“अच्छा ।”
“कमल मेहरा के फ्लैट की बगल में ही सुमित्रा देवी नाम की एक महिला रहती है । वह हत्या की चश्मदीद गवाह है । पुलिस उसके बयान को काफी महत्व दे रही है । जरा उसे भी टटोलने का प्रयत्न करना ।”
“ओके । तुम यह सब कुछ लेबारू के लिये करवा रहे हो या कोई केस है ?”
“फिलहाल कुछ मत पूछो । मैं क्लब में आकर तुम्हें सब कुछ बताऊंगा । अभी तो तुम इसे बन्दर की करामात के नाम पर याद रखो ।”
“आल राइट ।”
और दूसरी ओर से सम्बन्ध विच्छेद होने का स्वर सुनाई दिया । सुनील ने भी रिसीवर रख दिया ।
“अब ?” - बन्दर बोला ।
“इन्तजार ।” - सुनील जम्हाई लेता हुआ बोला - “जब तक रमाकांत की रिपोर्ट नहीं आ जाती ।”
बन्दर चुप रहा ।
“बन्दर, माई सन !” - सुनील प्यार से बोला - “आई कैन किल यू फार स्पायलिंग माई हाली डे बन्दर बेटे, जी चाहता है, मेरी छुट्टी बरबाद करने के बदले में तुम्हें जान से मार दूं ।”
बन्दर ने यूं सूरत बनाई जैसे सचमुच मर गया हो ।
***
लगभग एक बजे रमाकांत सुनील के फ्लैट पर पहुंचा ।
“आओ प्यारेलाल ।” - सुनील हर्षित से बोला - “तुम्हारा तो हम खुदाई फरिश्ते की तरह इन्तजार कर रहे हैं ।”
रमाकांत ने जैसे सुना ही नहीं । उसने मशीन की तरह सुनील से हाथ मिलाया और फिर बन्दर की ओर आकर्षित होता हुआ बोला - “हल्लो, जुगल ।”
“यार, तुम गलत नाम मत लिया करो ।” - बन्दर चिड़कर बोला ।
“आल राइट” - रमाकांत गलती स्वीकार करने के भाव से बोला - “हल्लो, बन्दर ।”
“हल्लो, यूथ क्लब ।” - बन्दर ने उत्तर दिया ।
“तुम मेरी ओर देखो यार” - सुनील बोला - “यहां बेजार बैठे हैं, तुझे अठखेलियां सूझी हैं ।”
“क्या देखूं ?”
“क्या समाचार है ?”
“पहले तुम बताओ किस्सा क्या है ?”
सुनील ने आद्योपान्त सारी घटना सुना डाली ।
“प्यारे” - रमाकांत चिन्तित स्वर से बोला - “लक्षण बड़े खराब हैं । सुमित्रा के अलावा एक और भी गवाह है जो तुम लोगों की शिनाख्त कर सकता है ।”
“कौन ?” - सुनील ने पूछा ।
“कमल मेहरा के फ्लैट के एकदम सामने वाले फ्लैट में एक अंग्रेज रहता है, उसने भी हत्यारों का सुमित्रा वाला ही हुलिया बयान किया है और वह चश्मे वाले को विशेष रूप से पहचानता है ।”
बन्दर ने हड़बड़ा कर चश्मा उतार लिया ।
“लेकिन जिस समय अंग्रेज ने देखा था, उस समय तक तो गोली नहीं चली थी ।” - सुनील बोला ।
“उस समय तक गोली नहीं चली थी, यह ठीक है” - रमाकांत बोला - “लेकिन उस समय तुम ही दो संदिग्ध आदमी थे जो कमल मेहरा के फ्लैट के सामने गलियारे में मौजूद थे । और सुनील तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि केस की तफ्तीश तुम्हारा दोस्त इन्स्पेक्टर प्रभू दयाल ही कर रहा है ।”
“मारे गये !” - सुनील बड़बड़ाया ।
“सिर्फ यही नहीं । मेरे कानों में यह भी सूचना पड़ी है । कि प्रभू दयाल के हाथ कोई बड़ा तगड़ा सूत्र लग गया है ।”
“क्या ?”
“वह उस सूत्र को बेहद गुप्त रख रहा है । उसका कथन है कि वह सूत्र इन दो में से एक हत्यारे को पहचानने में बड़ा सहायक सिद्ध हो सका है ।”
“तुम यह पता नहीं लगा सके कि वह सूत्र क्या है ?”
“नहीं । मैं जौहरी और राकेश दोनों को इस लाइन पर लगा रखा है । वे कहते हैं कि प्रभूदयाल उस सूत्र के विषय में कतई जुबान नहीं खोल रहा है ।”
“और ?”
“और यह कि कमल मेहरा की लाश फ्लैट के बैडरूम के फर्श पर पाई गई थी ।”
“लेकिन हम तो उसके बैडरूम में तो क्या, उसके फ्लैट के भीतर पांच फुट आगे तक भी नहीं गये ।” - बन्दर हैरानी से बोला ।
“बन्दर ठीक कहता है” - सुनील बोला - “हम तो उसको मुख्य द्वार के समीप ही गिराकर भाग आये थे ।”
“खैर तुम आगे सुनो ।”
“कहो ।”
“गोली कमल मेहरा की गरदन में से आर पार हो गई है । उसकी तत्काल मृत्यु हो गई थी । जो गोली कमल मेहरा को लगी थी वह पुलिस की खोज में बरामद नहीं हो पाई है ।”
“क्या मतलब ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“मतलब यह कि गोली कमल मेहरा की गर्दन में से गुजरती खिड़की के रास्ते बाहर निकल गई और उसके बाद बहुत ढूंढने पर भी नहीं मिली ।”
“क्या रिवाल्वर की गोली का इतना शक्तिशाली होना सम्भव है कि गोली शरीर में से गुजरने के बाद भी इतना फासला तय कर जाये कि ढूंढे न मिले ।”
“साधारणतया नहीं । लेकिन जिस रिवाल्वर की गोली कमल मेहरा, को लगी है, पुलिस का कथन है कि वह इतनी ही शक्तिशाली है ।”
“क्या पुलिस को घटना स्थल पर वह रिवाल्वर मिली है जिसकी गोली कमल मेहरा को लगी है ।”
“नहीं ।”
“तो फिर ?”
“बताता हूं । फ्लैट के मुख्य द्वार के पास ही फर्श में भी एक गोली धंसी हुई मिली है । पुलिस ने वह गोली निकाल ली है । उसी गोली के आधार पर पुलिस ने यह धारणा बनाई है कि कमल मेहरा की हत्या एक बड़े असाधारण रिवाल्वर द्वारा हुई है ।”
“यार, क्या कह रहे हो ?” - सुनील घबरा गया । उसके दिमाग में वह रिवाल्वर घूम गई जो उन्होंने पान-शाप पर गिरवी रखी थी । वह भी तो असाधारण थी ।
“तुम पूरी बात तो सुनो !” - रमाकांत बोला - “फर्श में से जो गोली निकली है उसके पीतल के खोल पर क्रास की हुई दो हड्ड‍ियां और एक खोपड़ी का चिन्ह बना हुआ है । पुलिस का कथन है कि वह गोली सिर्फ एक विशेष प्रकार के रिवाल्वर से ही चलाई जा सकती है और वैसी केवल दो ही रिवाल्वर इस संसार में हैं । उन रिवाल्वरों का स्वामी कुख्यात डाकू कहरसिंह था जिसने आज से चालीस साल पहले सारे भारत में तहलका मचा रखा था । अपनी दुर्लभता के कारण वह रिवाल्वर ऐतिहासिक महत्व की वस्तु बन गई है ।”
“उस कहरसिंह की उस रिवाल्वर का हुलिया मालूम है ?” - सुनील ने धड़कते दिल से पूछा ।
“हां । प्रभूदयाल का कथन है, डाकू कहरसिंह पर लिखी गई एक पुस्तक में उसकी रिवाल्वर की तसवीर है । दोनों रिवाल्वरें हूबहू एक जैसी हैं और अपने जीवन में कहर सिंह उन्हें एक साथ प्रयोग में लाया करता था । वह कम से कम दस इन्च लम्बी बैरल वाली पक्के लोहे की रिवाल्वर है । रिवाल्वर का दस्ता भी ठोस लोहे का है और उसका वजन आम रिवाल्वरों से कम से कम पांच गुणा अधिक है । फायर किये जाने पर वह तोप की तरह गरजती है और उस रिवाल्वर के दस्ते पर भी डाकू कहर सिंह का वहीं विशेष चिन्ह बना हुआ है जो कमल मेहरा के फ्लैट के फर्श में से बरामद हुई गोली पर है अर्थात दो क्रास की हुई हड्डियों पर एक खोपड़ी ।”
रमाकांत निश्चय ही उस रिवाल्वर का जिक्र कर रहा था जो वे लोग कमल मेहरा के फ्लैट में से निकाल कर लाये थे ।
“लेकिन यह दावा कैसे किया जा सकता है कि फर्श में से निकली गोली और कमल मेहरा को लगी गोली एक ही रिवाल्वर से निकली है ?”
“उस गोली की अनोखी शक्त‍ि के कारण । कहर सिंह के रिवाल्वर के इलावा और किसी रिवाल्वर की गोली इतनी शक्ति नहीं रखती है ।”
“लेकिन रमाकांत, हमारी मौजूदगी में से उस रिवाल्वर में से केवल एक गोली चली थी और वही फर्श में धंस गई थी । उसके बाद हम कमल मेहरा को फर्श पर खड़ा छोड़ कर भाग खड़े हुए थे । यह मैंने तुम्हें बताया ही है कि बन्दर रिवाल्वर अपने साथ ले आया था । हम कमल मेहरा को जीवित छोड़ कर आये थे । अगर उसकी हत्या वाकई डाकू कहर सिंह की रिवाल्वर से हुई है तो फिर निश्चय ही हत्या उस आदमी ने की है जिसके पास डाकू कहर सिंह की दूसरी रिवाल्वर है ।”
“बशर्ते कि संसार में वाकई ऐसी केवल दो रिवाल्वर हों ।” - बन्दर बोला ।
“करेक्ट ।” - सुनील ने कहा ।
“पुलिस जानती है दूसरी रिवाल्वर किसके पास है ।” - रमाकांत गम्भीरता से बोला ।
“अच्छा !” - सुनील हैरानी से बोला ।
“हां । मैंने बताया न कि वह रिवाल्वर इतनी दुर्लभ है कि ऐतिहासिक महत्व की चीज बन गई है । कुछ ही महीनों पहले एक पत्रिका में डाकू कहर सिंह की उन रिवाल्वर पर एक लेख छपा था । उस लेख के अनुसार उन दो रिवाल्वरों में से एक तो राजनगर के प्रसिद्ध संग्रहकर्ता कुंवर नारायण सिंह नामक सज्जन के पास है और दूसरी का पता नहीं कहां गई ?”
“दूसरी कमल मेहरा के पास थी ।” - सुनील बड़बड़ाया ।
“और अब तुम लोगों के पास है ।” - रमाकांत बोला ।
“पुलिस ने कुंवर नारायण सिंह को चैक किया ?”
“हां । इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल खुद कुंवर नारायण सिंह से मिलने गया था । वह बैलेस्टिक एक्सपर्ट को साथ लेकर गया था । एक्सपर्ट ने कुंवर नारायण सिंह वाली रिवाल्वर को अच्छी तरह एग्जामिन किया था और वह यह बात दावे के साथ कह सकता है कि वह रिवाल्वर पिछले कई सालों से इस्तेमाल नहीं की गई ।
“अर्थात यह निश्च‍ित है कि हत्या उस रिवाल्वर से नहीं हुई ?” - सुनील बोला ।
“हां ।”
“इसका तो मतलब यह हुआ कि अगर वैसी कोई तीसरी रिवाल्वर नहीं है तो हत्या हमारे वाली रिवाल्वर से हुई है ।”
“राइट ।”
“लेकिन यह असम्भव है ।” - सुनील फट पड़ा ।
रमाकांत चुप रहा ।
“रिवाल्वर हम अपने साथ लेकर आये थे और हम कमल मेहरा को जीवित छोड़ कर आये थे । रमाकांत, या तो कमल मेहरा डाकू कहर सिंह की रिवाल्वर से नहीं मरा और या फिर ऐसी ही कोई तीसरी रिवाल्वर भी है ।”
“तो फिर कुंवर नारायण सिंह ने कोई गड़बड़ की है ।” - बन्दर बोला ।
“तीनों ही बातें गलत हैं” - रमाकांत जोर देकर बोला - “कमल मेहरा डाकू कहर सिंह की ही रिवाल्वर से मरा है, संसार में डाकू कहर सिंह की रिवाल्वर जैसी कोई तीसरी रिवाल्वर नहीं है और कुंवर नारायण सिंह ने कोई गड़बड़ नहीं की है ।”
“यह एकदम असम्भव है ।” - सुनील बेबसी से बोला ।
“होगा ।” - रमाकांत ने लापरवाही से उत्तर दिया ।
“कहीं न कहीं जरूर कोई गड़बड़ है ।”
“होगी ।”
“कुंवर नारायण सिंह के पास डाकू कहर सिंह की रिवाल्वर कहां से आई ?”
रमाकांत ने अनभिज्ञतापूर्ण ढंग से कंधे उचकाये ।
“मालूम करो ।”
“अच्छा ।” - रमाकांत अनिच्छापूर्ण स्वर से बोला ।
“और कमल मेहरा के पास ऐसी प्रसिद्ध रिवाल्वर कहां से आई ?” - सुनील जैसे अपने आप से बोला ।
“अब यह मत कह देना कि मैं यह भी पता लगाऊं ।” - रमाकांत जल्दी से बोला - “कमल मेहरा मर चुका है ।”
“नहीं कहूंगा ।” - सुनील बोला - “सुन्दरता साबुन वाली उस लड़की के बारे में कुछ पता चला ?”
“हां । बहुत मुश्किल से पता चल पाया ।” - रमाकांत शान्त स्वर से बोला ।
“कौन है वह ?”
“वह कुंवर नारायण सिंह की लड़की है ।” - रमाकांत शांत स्वर में बोला ।
“क्या ?” - सुनील यूं चिल्लाया जैसे भूत देख लिया हो ।
“मैं ठीक कह रहा हूं । और चिल्लाओ नहीं । मेरे कानों में पर्दे बहुत कमजोर हैं ।”
“वह कुंवर नारायण सिंह की लड़की है ?” - इस बार बन्दर बोला ।
“हां । उसका वास्तविक नाम जयन्ती है । विज्ञापनों के लिए माडलिंग उसका पेशा नहीं है । न्यूवेज एडवर टाइजिग एजेन्सी का डायरेक्टर कुंवर नारायण सिंह का मित्र है । जयन्ती को अपनी तसवीर छपवाने का शौक है इसलिए वह कभी कभी न्यूवेज के विज्ञापनों में दिखाई दे जाती है ।”
“जयन्ती का बाप संग्रहकर्ता है ।” - सुनील बड़बड़ाया - “उसके बाप के पास डाकू कहर सिंह की एक दुर्लभ रिवाल्वर है । संसार में उस जैसी केवल एक रिवाल्वर और है जो कमल मेहरा के पास थी । जयन्ती ने बन्दर को कोई मामूली चोर समझ कर उसे पांच सौ रुपये का लालच देकर कमल मेहरा के फ्लैट में रिवाल्वर चुरा लाने को कहा था । बन्दर बात समझ में आती है । जयन्ती ने वह रिवाल्वर चुराने के लिये तुम्हें इसीलिये कहा था क्योंकि उसके बाप की उस रिवाल्वर में दिलचस्पी थी और सीधे तरीके से कमल मेहरा शायद रिवाल्वर देने के लिये तैयार नहीं हो रहा था ।”
“लेकिन इसमें साली हत्या कहां से आ घुसी ?” - बन्दर उखड़ कर बोला ।
“यही तो समझ नहीं आ रहा है । मुझे तो कमल मेहरा बड़ा रहस्यपूर्ण चरित्र लग रहा है । रमाकांत कमल मेहरा के विषय में कुछ पता लगा ?”
“नहीं, लेकिन मेरे आदमी काम कर रहे हैं ।”
“और सुमित्रा देवी के विषय में ?”
“काम हो रहा है लेकिन अभी रिपोर्ट नहीं आई ।”
“और कुछ ?”
“बस ।”
“ओके रिपोर्ट देते रहना ।”
“वह तो हो जायेगा लेकिन बेटे, इस बार इस भागदौड़ का बिल कौन देगा ?”
“बन्दर ।” - सुनील ने बन्दर की ओर संकेत किया - “इसी ने मुझे इस बखेड़े में फंसाया है ।”
“रमाकांत ने बन्दर की ओर देखा ।”
“लेकिन आज कल तो मैं यतीम हूं, भाइयो ।” - बन्दर हाथ फैलाकर बोला - “मैं घर से निकाल दिया गया हूं ।”
“तो फिर क्या हुआ ? घर से तो तुम अक्सर निकाले जाते हो । जिन्दगी भर तो घर से बाहर नहीं रहोगे ।” - सुनील बोला ।
“फिर ठीक है ।” - बन्दर बोला ।
“डन !” - रमाकांत सन्तुष्ट स्वर से बोला और उठ खड़ा हुआ ।
“बाद में मैं तुम्हें कहां ढूंढूं ?” - रमाकांत ने सुनील से पूछा ।
“मैं खुद तुमसे सम्पर्क स्थापित कर लूंगा ।” - सुनील बोला - “तुम्हें तकलीफ नहीं करनी पड़ेगी ।”
“ओके दैन ।” - रमाकांत बोला ।
रमाकांत ने दोनों से हाथ मिलाया और वहां से विदा हो गया ।
“बन्दर ।” - रमाकांत के जाने के बाद सुनील बोला - “रिवाल्वर की गिरवी की वह रसीद निकालो ।”
“क्यों ?”
“वह रिवाल्वर वापिस लानी है ।”
“क्यों ?”
“क्यों !” - सुनील बोला - “कारण पूछ रहे हो । बेटे, सुबह के अखबार में उस रिवाल्वर के विषय में एक शब्द नहीं छपा है लेकिन शाम के अखबर में उस रिवाल्वर के विषय में वे तमाम बातें होगी जो अभी रमाकांत हमें बता कर गया है । अगर पान शाप के मालिक की नजर में शाम का अखबार पड़ गया तो वह पुलिस को रिपोर्ट देने में एक क्षण भी नहीं लगायेगा कि वैसी ही एक रिवाल्वर दो आदमी जिनमें से एक मोटे फ्रेम और उतने ही मोटे शीशों का चश्मा लगाता है और दूसरा किस्म अभिनेताओं जैसा आकर्षक है, उसके पास गिरवी रख गये है । उस रिवाल्वर पर तुम्हारी और मेरी दोनों की उंगलियों के निशान हैं परिणाम समझते हो न ?”
बन्दर के शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई ।
“तुम क्यों डर रहे हो ?” - सुनील ने व्यंग्य किया - “तुम्हें तो जेल जाने से कोई एतराज नहीं था ? आजकल तो, तुम्हारे ही कथनानुसार जेल में पंखे लगे होते हैं और सफाई का खास ख्याल रखा जाता है ।”
“जेल तो ठीक है, यार लेकिन फांसी से तो मुझे सख्त एतराज है सुना है गरदन ये... लम्बी हो जाती है ।”
सुनील के चेहरे पर मुस्कराहट दौड़ गई ।
बन्दर ने जेब से रसीद और चालीस रुपये निकाले और उन्हें सुनील की ओर बढाता हुआ बोला - “मैं भी चलूं ?”
“नहीं तुम यहीं बैठो ।” - सुनील बोला - “चश्मा मैं तुम्हें लगाने नहीं दूंगा और चश्मे के बिना तुम्हरा ढांचा दुर्घटनाओं से बचाना कठिन हो जाता है ।”
बन्दर ने बुरा सा मुंह बनाया और चुप हो गया ।
“यहां से बाहर मत निकलना ।” - सुनील द्वार की ओर बढता हुआ बोला - “और अगर बाहर जाओ तो चश्मा यहीं छोड़ कर जाना ।”
“अच्छा, मेरे बाप ।” - बन्दर झुंझलाया ।
सुनील फ्लैट से बाहर निकल गया ।
***
सुनील महात्मा गांधी रोड पर स्थिति पान-शाप पर पहुंचा ।
उसके चेहरे पर फटकार बरस रही थी ।
दुकानदान ने भरपूर उपेक्षा के भाव से उसे देखा ।
“मुझे पहचानते हो न दुकानदार जी ?” - सुनील बोला ।
“हां ।” - दुकानदार बोला - “तुम सुलताना डाकू के पोते हो न ।”
“जी हां ।”
“आज अपने दादा का क्या गिरवी रखने आये हो ?”
“आज मैं कुछ गिरवी रखने नहीं आया, दुकानदार जी । बल्कि आज तो मैं दादा की पवित्र यादगार, वह रिवाल्वर वापिस लेने आया हूं ।”
“अच्छा क्या कल तुम्हारी प्रेमिका तुम्हारे साथ डिनर के लिये नहीं गई ?”
“यह बात नहीं है, दुकानदार जी ।”
“तो फिर ?”
“रात को दादा जी मुझे स्वप्न में दिखाई दिये ।” - सुनील भावुक स्वर से बोला ।
“अच्छा ।” - दुकानदार ने आश्चर्य व्यक्त किया ।
“हां । वे बड़े ताड़नापूर्ण स्वर से बोले कि बेटा तुझे यूं मेरी आखिरी निशानी गलत हाथों में नहीं पहुंचानी चाहिये थी । मैं बहुत शर्मिंदा हुआ । मैंने दादा जी से वादा किया कि मैं अगले दिन रिवाल्वर वापिस ले आऊंग और उसे फिर कभी अपने से अलग नहीं करूंगा ।”
“च.. च.. ।” - दुकानदार ने दुख प्रकट किया ।
“मेरे दादा की आखिरी निशानी मुझे वापिस दे दो, दुकानदार जी ।” - सुनील बोला और उसने रसीद और चालीस रुपये मेज पर रख दिये ।
दुकानदार ने नोट उठा लिये । उसने नोट गिने और फिर बोला - “बीस रुपये और दो ।”
“क्यों ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“चालीस रुपये तो मैंने तुम्हें दिये थे । अगर तुम रिवाल्वर वापिस लेना चाहते हो तो तुम्हें साठ रुपये देने पड़ेंगे ।”
“दुकानदार जी, जुल्म कर रहे हो ।” - सुनील ने विरोध किया - “केवल एक दिन में चालीस रुपये पर बीस रुपये ब्याज ?”
“तुम रिवाल्वर एक साल बाद ले जाना तब भी मैं तुमसे बीस रुपये ही फालतू लूंगा ।” - दुकानदार लापरवाही से बोला ।
सुनील का जी तो चाहा कि वह दुकानदार के जबड़े पर एक घूंसा जमा दे लेकिन उसने मरता क्या न करता के से भाव दस-दस के दो और नोट निकाल कर मेज पर रख दिये ।
दुकानदार ने नोट उठाये और रिवाल्वर उसके सामने पटक दी ।
सुनील ने रिवाल्वर का चैम्बर खोल कर देखा । भीतर पांच गोलियां मौजूद थी ।
“कल तो तुम चालीय रुपये के लिये मरे जा रहे थे ।” - दुकानदार बोला - “लेकिन आज तो तुम्हारे पास बहुत पैसे हैं ।”
“अपने दादा की आखिरी निशानी की रक्षा के लिये मैंने एक दूसरे वस्तु गिरवी रखने वाले दुकानदार की हत्या कर दी है ।” - सुनील उसे खा जाने वाली नजरों से घूरता हुआ बोला ।
दुकानदार हड़बड़ा गया ।
सुनील ने रिवाल्वर अपनी पैंट की बैल्ट में खोंसा, ऊपर से कोट के बटन बन्द किये और दुकानदार पर आखिरी कहर भरी दृष्टि डाल कर दुकान से बाहर निकल आया ।
सुनील दुकान से कुछ दूर खड़ी अपनी मोटर साइकिल के समीप पहुंचा ।
वह कुछ क्षण विचारपूर्ण मुद्रा में मोटर साइकिल के पास खड़ा रहा । केस से सम्बन्धित बहुत सी बातें थी, बहुत से लोग थे, जिन्हें वह चैक करना चाहता था लेकिन वह कोई ‘लाइन आफ एक्शन’ निर्धारित नहीं कर पा रहा था ।
अन्त में उसने मन ही मन कुछ फैसला किया और फिर उस ने मोटर साइकिल को किक मार दी ।
उसने मोटर साइकिल का रूख लिटन रोड की ओर कर दिया । रास्ते में थोड़ी देर के लिये वह एक डिर्पाटमेंट स्टोर के सामने रूका । जब वह स्टोर से बाहर निकला तो उस के सिर पर एक शानदार हैट दिखाई दे रहा था ।
वह दीपक लाज के सामने जा पहुंचा ।
वह अपार लापरवाही का प्रदर्शन करता हुआ लिफ्ट के रास्ते दूसरी मन्जिल पर पहुंचा ।
कमल मेहरा के फ्लैट पर पुलिस की सील लगी हुई थी । सुनील एक उचटती सी नजर सील पर डालकर आगे बढ गया ।
अगले ही फ्लैट के द्वार पर सुमित्रा देवी की नेम प्लेट लगी हुई थी । सुमित्रा देवी के फ्लैट के सामने खड़ा सुनील केवल क्षण भर के लिये हिचकिचाया और फिर उसने बैल-पुश पर उंगली रख दी ।
सुनील धड़कते दिल से द्वार खुलने की प्रतीक्षा करता रहा । उसके दिमाग में यह बात हथौड़े की तरह बज रही थी - क्या सुमित्रा उसे पहचान लेगी । अगर सुमित्रा ने अपने कथित फिल्म अभिनेता से लगने वाले युवक को पहचान लिया तो...
उसी समय फ्लैट का द्वार खुला ।
द्वार पर एक लगभग पैंतीस वर्ष की महिला प्रकट हुई ।
“सुमित्रा देवी ?” - सुनील ने शिष्ट स्वर से पूछा ।
सुमित्रा की दृष्टि उसके चेहरे पर गड़ी हुई थी । सुनील मन ही मन कांप रहा था । अगर सुमित्रा देवी ने एकदम शोर मचा दिया तो क्या वह यहां से निकल भागने में सफल हो सकेगा ।
सुमित्रा देवी की दृष्टि उसके चेहरे से हटकर सारे शरीर पर घूम गई ।
सुनील तीव्र उत्कंठा मन में दबाये चुप चाप यूं खड़ा रहा जैसे बम फटने की प्रतीक्षा कर रहा हो ।
बम नहीं फटा ।
“फरमाइये, मेरा ही नाम सुमित्रा देवी है ।” - वह महिला उसे घूरती हुई बोली ।
“मेरा नाम सुनील कुमार चक्रवर्ती है” - सुनील हैट उतार कर हाथ में लेता हुआ बोला - “मैं ब्लास्ट का विशेष प्रतिनिधि हूं ।”
“फिर ?” - सुमित्रा वैसे ही तटस्थ स्वर से बोली ।
“मैं अपने अखबार के लिये आपका इन्टरव्यू लेना चाहता हूं ।”
“किस विषय में ?”
“आपके पड़ोस में कमल महरा नाम के व्यक्ति की हत्या हो गई है न । उस...”
“लेकिन उस विषय में तो जो कुछ मुझे मालूम था, वह मैं पहले ही बता चुकी हूं और वह अखबार में छप भी चुका है ।”
“आप ठीक कह रही हैं” - सुनील चिकने-चुपड़े स्वर से बोला - “लेकिन अखबार में तो केवल आपका बयान छपा है । हम घटना से सम्बन्धित आपकी जानकारी को आप ही के नाम से एक लेख के रूप में प्रकाशित करना चाहते हैं ।”
“मेरे नाम से ?” - सुमित्रा ने पूछा ।
सुनील को यूं लगा जैसे इस विचार से उसे खुशी हुई हो ।
“जी हां ।” - वह बोला - “लेख हमारा विभाग लिखेगा लेकिन वह प्रकाशित आप के नाम से किया जायेगा ।”
“ब्लास्ट में ?”
“ब्लास्ट के मैगजीन सैक्शन में ।”
सुमित्रा तनिक हिचकिचाई ।
“वास्तव में सुमित्रा देवी जी” - सुनील उसे उत्साहित करने का प्रयत्न करता हुआ बोला - “बयान तो एक जल्दबाजी की चीज होती है जो पुलिस केवल खानापूरी के लिये लेती है उसका वास्तविक महत्व पुलिस तभी समझती है जब केस की असली तफतीश शुरू होती है और तब पुलिस के आदमी गवाहों से ठोक ठोक कर एक एक बात तीस तीस बार पूछते हैं । उस समय बहुत सी ऐसी बातें सामने आती हैं जो उन्होंने अपने पहले बयान के समय पुलिस को नहीं बताई होती । हम अखबार वाले इस बात को अच्छी तरह समझते हैं । इस लिये अपने पाठकों की दिलचस्पी को नजर में रखते हुए हम किसी एक प्रमुख गवाह आप हैं इसलिये हमरा अखबार आप के सहयोग की अपेक्षा कर रहा है ।”
सुमित्रा कुछ क्षण अनिश्चित सी मुद्रा बनाये खड़ी रही और फिर बोली - “क्या नाम बताया था तुम ने अपना ?”
“सुनील । सुनील कुमार चक्रवर्ती ।”
“तुम कौन से पेपर के प्रतिनिधि हो ?”
“ब्लास्ट ?”
“जरा एक मिनट यहीं ठहरो ।” - वह बोली और उसे भड़ाक से सुनील की नाक के सामने द्वार बन्द कर लिया ।
सुनील ने आसपास देखा गलियारा खाली था ।
वह एक दम घुटनों के बल बैठ गया और उसने द्वार के की-होल पर आंख लगा दी ।
सुमित्रा टेलिफोन कर रही थी ।
सुनील को सुमित्रा के होंठ हिलते दिखाई दे रहे थे लेकिन उसे उसकी बात का एक भी शब्द सुनाई नहीं दे रहा था ।
उसी क्षण सुमित्रा ने फोन रख दिया ।
सुनील जल्दी से उठ खड़ हुआ और बड़े तटस्थ भाव से द्वार के साथ लग कर खड़ा रहा ।
उसी क्षण द्वार खुला और सुमित्रा द्वार पर प्रकट हुई ।
“भीतर आ जाओ ।” - वह बोली ।
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला और फ्लैट में घुस गया ।
“बैठो -” उसने एक सोफे की ओर संकेत किया ।
“थैंक्यू -” सुनील बोला और निर्दिष्ट स्थान पर बैठ गया ।
सुमित्रा उस के सामने बैठ गई ।
“पूछो क्या पूछना चाहते हो ?” - वह बोली ।
“सुमित्रा देवी जी, आपका बयान तो हम अखबार में छाप ही चुके हैं” - सुनील बड़ी सावधानी से शब्द चयन करता हुआ बोला - “इसलिये मैं आप को अधिक तकलीफ न देकर आप से कुछ सीधे सवाल ही पूछूंगा ।”
“अच्छा ।” - सुमित्रा बोली ।
“आप का ध्यान सब से पहली बार कमल मेहरा के फ्लैट की ओर कब आकृष्ट हुआ था ?”
“जब मुझे उस के फ्लैट का द्वार पीटे जाने का स्वर सुनाई दिया था” - सुमित्रा बोली - “क्योंकि कालबैल की मौजूदगी में द्वारा पीटा जाना मुझे बड़ा विचित्र सा लगा था । और द्वार भी इस ढंग से पीटा जा रहा था जैसे कोई ढोल पीटा जा रहा हो । मेरा ध्यान इस ओर आकृष्ट होना स्वाभाविक ही था ।”
“जी हां, प्रत्यक्ष है । लेकिन सुमित्रा देवी जी, सम्भव है, वे हत्यारे उस समय से पहले भी बाहर गालियारे में मौजूद हों ?”
“सम्भव है । लेकिन मुझे उनकी मौजूदगी का आभास तभी हुआ जब मैंने दरवाजा पीटा जाते सुना ।”
“आपको यह बात कुछ अस्वाभाविक नहीं लगती कि उस तमाम हंगामे की आवाज केवल आप ही के कानों में पड़ी जब कि इसी फ्लैट पर छ: फ्लैट और भी आबाद हैं ।”
“इसमें हैरानी की कौन-सी बात है ? सम्भव है और लोगों को इस तरह द्वार भड़भड़ाया जाना अस्वाभाविक न लगा हो इसलिए उन्होंने द्वारा खोलकर बाहर झांकने की जरूरत न समझी हो ।”
“जी हां आप ठीक कह रही हैं । दरवाजा कौन खटखटा रहा था ? चश्मे वाला या अभिनेता-सा लगने वाला युवक ?”
“चश्मे वाला ।”
“आप उसे दुबारा देखें तो पहचान लेंगी ?”
“फौरन ।”
“क्या पहचान है उसकी ?”
“उसकी सब से बड़ी पहचान उसका असाधारण चश्मा था, मिस्टर ।”
“माफ कीजियेगा, ये तो कोई अच्छी पहचान नहीं ।”
“क्यों ?” - सुमित्रा देवी तनिक उखड़े स्वर से बोली ।
“मान लीजिये, वह युवक अपना चश्मा उतारकर आप के सामने आये तो भी क्या आप उसे पहचान लेंगी ?”
सुमित्रा ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“और वह दूसरा युवक ।” - सुनील मन ही मन डरता हुआ बोला - “जिसके बारे में आपने कहा था कि वह फिल्म अभिनेताओं जैसा आकर्षक था, उसे दुबारा देखने पर पहचान लेंगी आप ?”
“हां ।”
“कोई विशेष पहचान ?”
“विशेष कुछ नहीं लेकिन अगर वह दुबारा मेरे सामने पड़ जाये तो मैं जरूर पहचान लूंगी ।”
“फिर भी कद, काठ में कैसा था वह ?”
“अच्छा लम्बा ऊंचा जवान था, तीखे नाक नक्श थे और... और... बस यूं समय लो कि कद काठ में तुम्हारे जैसा था वह ।”
“कहीं वह हत्यारा मैं ही तो नहीं था ?” - सुनील ने अपने स्वर में उपहास का पुट उत्पन्न करते हुए पूछा ।
“मजाक मत करो मिस्टर ।” - सुमित्रा नाराज स्वर में बोली ।
“मैं माफी चाहता हूं !” - सुनील शिष्ट स्वर में बोला ।
सुमित्रा चुप रही ।
“आप अपने फ्लैट के द्वार पर जहां खड़ी थीं, वहां से आपको फ्लैट के द्वार पर खड़ा कमल मेहरा खड़ा दिखाई दे रहा था ?” - सुनील ने फिर वार्तालाप शुरू किया ।
“नहीं ।”
“आपने कहा है कि द्वार खुलते ही चश्मे वाला युवक कमल मेहरा पर टूट पड़ा था और उन में मार कुटाई होने लगी थी ?”
“हां ।”
“जब आपको कमल मेहरा दिखाई नहीं दे रहा था तो आप यह कैसे कह सकती हैं कि उन में मार कुटाई हो रही थी ।”
“मुझे आवाजें सुनाई दे रही थीं ।”
“दरवाजे के समीप ही ।”
“हां ।”
“तभी आपने फायर की आवाज सुनी ?”
“हां ।”
“क्या दोनों के हाथ में रिवाल्वर थी ?”
“सम्भव है दोनों के हाथ में हो । लेकिन उस समय मेरा ध्यान अभिनेता-सा लगने वाले युवक पर ही था । उसके हाथ में रिवाल्वर थी और नाल में से धुआं निकल रहा था ।”
“लेकिन कमल मेहरा पर हमला चश्मे वाले ने किया था ?”
“हां ।”
“फिर तो सम्भव है कि उसके पास भी रिवाल्वर हो ।”
“सम्भव है ।”
“लेकिन आपको अच्छी तरह याद नहीं ।”
“मेरा ख्याल है रिवाल्वर दोनों के पास थी ।”
“उनको भागते देखने के फौरन बाद ही आपने द्वार बन्द कर लिया और पुलिस को फोन कर दिया ?”
“हां ।”
“उस समय कितने बजे थे ?”
“लगभग सवा पांच ।”
“आप जानती हैं कि कमल मेहरा की लाश बैडरूम में पाई गई थी ?”
“हां ।”
“लेकिन आप के कथनानुसार कमल मेहरा की और चश्मे वाले की मार-पीट फ्लैट के द्वार के पास हुई थी और तभी फायर भी हुआ था ।”
“हां ।”
“तो फिर लाश बैडरूम के द्वार पर कैसे पहुंच गई ?”
“सम्भव है कमल मेहरा स्वयं को चश्मे वाले के बन्धन से छुड़ाकर बैड रूम की ओर भागा हो और चश्मे वाले ने गोली दाग दी हो ।”
“जी हां, सम्भव है । आप बहुत समझदार हैं ।” - सुनील प्रशन्सात्मक स्वर से बोला ।
सुमित्रा चुप रही ।
“आप कमल मेहरा के बारे में कुछ जानती हैं ?”
“मैं भला क्या जानूंगी उसके बारे में !” - सुमित्रा तनिक चौंक कर बोली ।
“आखिरी वह आपका पड़ोसी था ।”
“पड़ोसी जरूर था । लेकिन मुझे उसकी सूरत देखे महीनों गुजर जाते थे । वह कई कई दिन फ्लैट पर नहीं आता था और आता था तो शायद बहुत रात गये जब कि मैं सो चुकी होती थी ।”
“कमल मेरा यहां कब से रह रहा है ?”
“लगभग एक साल से ।”
“क्या उससे कोई लड़की मिलने आया करती थी ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“बस, एक आखिरी सवाल और, सुमित्रा देवी जी” - सुनील निर्णयात्मक स्वर से बोला - “अभी जब मैं आपके फ्लैट पर आया था और आप से इन्टरव्यू की मांग की थी तो आपने मुझे बाहर खड़े छोड़कर द्वार बन्द कर लिया था और थोड़ी देर बाद द्वार खोलकर मुझे भीतर बुलाया था । क्या मैं इसका कारण जान सकता हूं ?”
“मैंने ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में फोन किया था, मिस्टर ।” - सुमित्रा देवी गर्वपूर्ण स्वर में बोली - “मैं किसी अनजाने आदमी को अपने फ्लैट में नहीं घुसने देती क्योंकि मैं नहीं चाहती कि कमल मेहरा की तरह कोई मुझे भी दिन दिहाड़े कत्ल कर जाये । ‘ब्लास्ट’ में वाकई कोई तुम्हारे हुलिये का सुनील कुमार चक्रवर्ती काम करता है, तुम्हारे दफ्तर में फोन कर के यह बात कनफर्म कर लेने के बाद ही मैं ने तुम्हें भीतर घुसने दिया था ।”
“आप बहुत सतर्क रहती हैं ।” - सुनील प्रसंशात्मक स्वर में बोला ।
“रहना ही पड़ता है ।”
“अच्छा, सावित्री देवी जी ।” - सुनील उठता हुआ बोला - “मैं आप को इस लेख का ड्राफ्ट तैयार करके दिखा दूंगा ।”
“अच्छा ।”
“क्या आप लेख के साथ अपना चित्र भी छपवाना चाहती हैं ?”
“नहीं, नाम ही काफी है ।”
“ओके ।” - सुनील बोला - “नमस्कार ।”
“नमस्कार ।” - सावित्री ने उत्तर दिया ।
सुनील हैट सिर पर जमाता हुआ फ्लैट से बाहर निकल आया । यह लिफ्ट द्वारा नीचे आया और इमारत से बाहर निकल कर अपनी मोटर साइकिल की ओर बढा ।
सुनील ने मोटर साइकिल स्टार्ट कर दी और उसे मुख्य सड़क पर डाल दिया ।
उसी क्षण एक टैक्सी दीपक लाज के सामने से हिली और सुनील की मोटर साइकिल के पीछे लग गई ।
सुनील को यह जानते देर नहीं लगी कि उसका पीछा किया जा रहा है ।
सुनील के चेहरे पर एक मुस्कराहट दौड़ गई । उसका पीछा करने वाला इस खेल में अनाड़ी था । टैक्सी द्वारा मोटर साइकिल का पीछा एक बचकानी हरकत थी । क्योंकि मोटर साइकिल तो किसी भी संकरी सी गली में जा सकती थी जब कि कार के लिये अपनी चौड़ाई जितना रास्ता तो चाहिये ही ।
एक स्थान पर उसे पब्लिक टैलीफोन बूथ दिखाई दिया ।
उसने मोटर साइकिल बूथ के सामने रोक दी ।
टैक्सी मोटर साइकिल के समीप से होती हुई सीधी आगे निकल गई और सड़क पर लगभग दो सौ गज आगे जाकर रूक गई । टैक्सी में से ड्राइवर बाहर निकला और टैक्सी का हुड खोल कर उस पर झुक गया ।
सुनील अपार निर्लिप्तता का प्रदर्शन करता हुआ टैलीफोन बूथ में घुस गया ।
उसने जेब में से एक दस का और एक पांच का सिक्का निकालकर हाथ में थामा और फिर रिसीवर को हुक से हटाकर ‘ब्लास्ट’ के नम्बर डायल कर दिये ।
“हल्लो, ‘ब्लास्ट’ हेयर ।” - दूसरी ओर से उसे रिसेप्शनिस्ट रेणु का मधुर स्वर सूनाई दिया ।
सुनील ने जल्दी से सिक्के कायन वाक्स में डाल दिये और फिर तेज स्वर से बोला - “हल्लो, हल्लो ।”
“यस ।”
“रेणु, मैं सुनील बोल रहा हूं ।”
“बोलो न, राजा ।” - दूसरी ओर से रेणु का रोमान्टिक स्वर सुनाई दिया - “तुम्हारी आवाज तो कानों में स्काच विस्की घोल देती है ।”
“रेणु, शट अप । आई एम सीरियस ।”
“अच्छा !” - रेणु ने आश्चर्य व्यक्त किया - “कब से ?”
“रेणु प्लीज । मेरी बात का जबाब दो ।”
“कोई बात पूछो तो जबाब दूं न, जानी ।” - रेणु बोली ।
“क्या अभी आधा घन्टा पहले किसी ने मेरे बारे में कोई फोन किया था ?”
“कैसा फोन ?”
“क्या किसी औरत ने यह पूछा था कि क्या ‘ब्लास्ट’ में कोई सुनील कुमार चक्रवर्ती काम करता है ?”
“औरत ने ?”
“हां ।”
“नहीं तो ।”
“श्योर ?”
“श्योर । बात क्या है ?”
“बात तुम्हारी समझ नहीं आयेगी ।” - सुनील बोला और उसने रिसीवर हुक पर टांग दिया ।
वह बूथ से बाहर निकला और फिर मोटर साइकिल पर आ बैठा ।
टैक्सी ड्राइवर ने भी हुड गिराया और टैक्सी फिर सुनील के पीछे लग गई ।
सुनील एक दर्जन विभिन्न तरीकों से टैक्सी वाले को डाज दे सकता लेकिन उसने ऐसा कोई प्रयत्न नहीं किया । वह पीछा करने वाले को एकदम नजरअन्दाज करके मोटर साइकिल को नगर की विभिन्न सड़कों पर ड्राईव करता रहा ।
अन्त में उसने मोटर साइकिल यूथ क्लब के कम्पाउन्ड में ला कर रोक दी ।
उसने कनखियों से पीछे देखा । टैक्सी भी बाहर सड़क पर फुट पाथ की बगल में आ रुकी थी । पिछली सीट पर फैल्ट हैट लगाये एक आदमी बैठा था जिसका चेहरा इतनी दूर से पहचान पाना असम्भव था ।
सुनील ने मोटर साइकिल में से चाबी निकाल ली और क्लब में घुस गया ।
रिसैप्शन के काउन्टर पर एक वेटर खड़ा था ।
“गुड आफ्टर नून सर ।” - वह सुनील को देखकर बोला ।
सुनील ने सिर को हल्का सा झटकादेकर अभिवादन स्वीकार किया और पूछा - “रमाकांत है ?”
“नहीं साहब ।”
“कहां गया है ?”
“मालूम नहीं साहब ।”
“अच्छा, मैं उसके कमरे में जा रहा हूं । अगर वह आये तो उससे बता देना ।”
“अच्छा साहब ।”
सुनील पहली मन्जिल पर स्थित रमाकांत के कमरे में आ गया । उसने अपना हैट मेज पर उछाल दिया और खुद पलंग पर ढेर हो गया ।
कुछ क्षण यूं पड़ा रहने के बाद वह उठ बैठा । उसने अपनी पैन्ट की बैल्ट में खौंसी हुई डाकू कहर सिंह की रिवाल्वर निकाल ली और उसका निरीक्षण करने लगा ।
रिवाल्वर का एतिहासिक महत्व मालूम हो जाने के कारण अब वह उसे अधिक प्रभावित कर रही थी ।
कुछ देर यूं ही रिवाल्वर को उलटते पलटते रहने के बाद उसने रिवाल्वर का चैम्बर खोल दिया । चैम्बर में आठ गोलियों का स्थान था, जिनमें से पांच स्थानों में गोलियां मौजूद थीं ।
सुनील ने पांचों गोलियां बाहर निकाल ली और एक एक करके उन्हें परखने लगा । हर गोली के ऊपर क्रास की हुई दो हड्डियों और एक खोपड़ी का चिन्ह बना हुआ था ।
सुनील को एक गोली बाकी गोलियों से भार में कुछ हल्की लगी । उसने उस हल्की गोली के अतिरिक्त चारों गोलियों बिस्तर पर रख दी । वह हल्की गोली को उलटने पलटने लगा ।
उसने गोली के चपटे सिरे पर लगे पीतल के खोल को थोड़ा सा उमेठा तो वह ढक्कन की तरह खुल गया ।
गोली बीच में से खोखली थी ।
सुनील ने गोली के भीतर झांका ।
भीतर उसे एक रोल किया हुआ कागज दिखाई दिया । उसने अपने फाउन्टेन पैन के निब की नोक में उस कागज को फंसा कर उसे बाहर खींच लिया ।
सुनील ने उस कागज को खोला तो उसके मुंह से एक आश्चर्य भरी सिसकारी निकल गई ।
वह हजार रुपये के एक नोट का ठीक आधा भाग था । नोट को कैंची द्वारा सरल रेखा में कांटने के स्थान पर टेढे ढंग से काटा गया था ।
सुनील कितनी ही देर उस हजार रुपये के नोट के आधे भाग को घूरता रहा ।
यह क्या मुसीबत है - सुनील बड़बड़ाया ।
उसने उस आधे नोट को हर ओर से उलट पलट कर देखा, लेकिन उसे कहीं कोई असाधारण बात दिखाई नहीं दी ।
कुछ न कुछ असाधारण होना तो चाहिये ही इसमें - वह फिर बड़बड़ाया - वर्ना यह आधा नोट इस रहस्यपूर्ण ढंग से डाकू कहर सिंह की दुर्लभ रिवाल्वर के चैम्बर में एक खाली कारतूत में नहीं ठुंसा हुआ होता ।
सुनील उठा और उसने रमाकांत की राईटिंग टेबल के दराज टटोलने शुरू कर दिये, एक दराज में उसे एक मंगनीफाईग लैंस पड़ा मिल गया ।
उसने लैंस उठा लिया और वापिस बिस्तर पर आकर उसकी सहायता से हजार रुपये के आधे नोट के देखने लगा । अब उसे नोट पर छपा हुआ पैट्रन पहले से बीस गुणा बड़ा दिखाई दे रहा था । नोट के टेढे मेढे कटे हुए भाग पर उसे बड़े बारीक बारीक कुछ अक्षर लिखे हुए दिखाई दिये ।
सुनील लैंस को उस अक्षरों के एक दम ऊपर लाकर लैंस को सावाधानी से नोट के टेढे मेढे भाग पर फोकस करने लगा ।
शब्द अब उसे स्पष्ट दिखाई देने लगे । लिखा था -
चौथी - उत्तरी-हाल कमरा दौ सौ मान सिंह - वह मन ही मन बुदबुदाया - क्या मतलब हुआ इसका ?
वह कितनी देर उन पांच शब्दों को अपने मन में दोहराता रहा लेकिन वे शब्द उसे निरर्थक ही लगे ।
अन्त में वह इस परिणाम पर पहुंचा कि इन शब्दों के बीच के शब्द कट कर हजार रुपये के नोट के दूसरे टुकड़े पर पहुंच गए हैं । दूसरे टुकड़े के शब्द भी ऐसे ही निरर्थक होंगे जैसे कि उस टुकड़े के । जब तक दोनों टुकड़े एक साथ न जुड़े इन शब्दों का कोई अर्थ नहीं ।
सुनील का दिमाग भन्ना गया ।
उसने हजार रुपये के नोट के टुकड़े को अपने हैट के इर्द-गिर्द लिपटे रिबन में खोंस लिया ।
फिर उसने खाली गोली पर भी पीतल की टोपी लगाई और पांचों गोलियां फिर रिवाल्वर में भर दी । उसने चैम्बर बन्द किया और रिवाल्वर को फिर पैंट की बैल्ट में खोंस कर ऊपर से कोट के बटन बन्द कर लिए ।
उसी समय कमरे में रमाकांत प्रविष्ट हुआ ।
“हल्लो” - रमाकांत उसे देखकर हैरानी से बोला - “तुम यहां क्या कर रहे हो ?”
“तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा हूं, प्यारेलाल” - सुनील बोला - “नीचे तुम्हें किसी ने बताया नहीं कि मैं यहां हूं ?”
“नहीं तो ।” - रमाकांत एक कुर्सी पर ढेर होता हुआ बोला ।
“तुम कहां गये थे ?”
“तुम्हारा काम हो रहा है, भाई । बहुत आदमी लगा रखे हैं । रिपोर्ट क्लैक्ट करता फिर रहा हूं ।”
“कोई नई बात ?”
“फिलहाल कुछ नहीं लेकिन कुछ ही घन्टों में बहुत कुछ मालूम होने की सम्भावना है । मैंने जौहरी को विश्वनगर भेजा हुआ ।”
“विश्वनगर क्यों ?”
“डाकू कहर सिंह विश्वनगर में ही मरा था । वहीं उसकी पुलिस से आखिरी मुठभेड़ हुई थी । उन दिनों विश्वनगर आज जैसा आधुनिक शहर नहीं था । डाकू कहर सिंह के जमाने में तो वह एक कसबा सा था । डाकू कहर सिंह की पुलिस के साथ आखिरी मुठभेड़ में विश्वनगर जनता ने भी पुलिस का बहुत साथ दिया था । उस जमाने के लोग अब भी विश्वनगर में मौजूद होंगे उनमें से अगर एक भी जौहरी से टकरा गया तो डाकू कहर सिंह की रिवाल्वर के बारे में बहुत सी नई बातें मालूम हो जायेंगी जैसे वे रिवाल्वर कुंवर नारायण सिंह और कमल मेहरा के पास कैसे पहुंची । जौहरी प्लेन से गया है और कोई नई बात मालूम होते ही फौरन ही ट्रंक काल कर देगा ।”
“फाइन ।” - सुनील सन्तुष्ट स्वर से बोला ।
“लेकिन प्यारे, एक बात याद रखना बहुत पैसा खर्च हो रहा है । यह पैसा किसी व्यापारी की जेब से नहीं तुम्हारी जेब से निकलने वाला है ।”
“ठीक है यार । फिलहाल तो अपनी जान बचाने की पड़ी हुई है । अगर जिन्दा रहे तो बहुत पैसा कमा लेंगे ।”
रमाकांत कुछ नहीं बोला ।
“जयन्ती और कुवंर नारायणसिंह का पता क्या है ?” - सुनील ने पूछा ।
“सुबह बताया नहीं था मैंने ?”
“नहीं ।”
“उसका आफिस मैजिस्टक सर्कल पर यूको बैंक बिल्डिग में हैं । वह एक ट्रेवलिंग एजेन्सी का डायरेक्टर है । प्रिंस लेन पर आठ नम्बर कोठी में वह रहता है ।”
सुनील ने डायरेक्टरी उठाई और उसमें कुंवर नारायण सिंह की कोठी का टैलीफोन नम्बर देखने लगा । फिर उसने रमाकांत की एक्सेटेन्शन पर डायरेक्ट लाइन मांगी और वह नम्बर डायल कर दिया ।
दूसरी ओर घन्टी जाने लगी ।
“हल्लो !” - कुछ क्षण बाद दूसरी ओर से उत्तर दिया ।
जयन्ती है ?” - सुनील ने अधिकारपूर्ण स्वर से पूछा ।
“आप कौन साहब बोल रहे हैं ?” - दूसरी ओर से पूछा गया ।
“कहर सिंह ।” - सुनील बोला ।
“लाइन होल्ड कीजिये । मैं मेम साहब को अभी बुलाता हूं ।”
“अच्छा ।” - सुनील बोला और रिसीवर को कान से लगाये बैठा रहा ।
ओपन लाइन की सांय सांय की आवाज उसके कान में आती रही ।
“रमाकांत” - वह रिसीवर कान से लगाये लगाये ही रमाकांत से सम्बोधित हुआ - “तुमने कहा था कि प्रभूदयाल के हाथ में कोई तगड़ा सूत्र आ गया है जिसकी सहायता से वह हत्यारों में से एक को बड़ी आसानी से पहचान सकता है ?”
“हां ।”
“कुछ पता लगा वह सूत्र क्या है ?”
“नहीं । प्रभूदयाल तो उसकी किसी को भनक नहीं पड़ने दे रहा ।”
“जब से तुमने यह बात बताई है मैं तभी से याद करने का प्रयत्न कर रहा हूं कि मैं या बन्दर वहां ऐसा क्या छोड़ आये हैं जो प्रभूदयाल के हाथ में पड़ गया है ।”
“कुछ याद आया ?”
“कुछ भी नहीं । कुछ छोड़कर आये हों तो याद आये न ।” - सुनील बोला । उसी क्षण उसे टैलीफोन में जयन्ती का स्वर सुनाई दिया - “हल्लो, हू इज स्पीकिंग प्लीज ?”
“आप मुझे भूल गई मालूम होती हो ।” - सुनील गम्भीर स्वर से बोला ।
“कौन हो तुम ?” - उसके कान में जयन्ती का सशंक स्वर सुनाई पड़ा ।
“पहचाना नहीं ?”
“नहीं ।”
“मैं वही हूं जिसे कभी तुम हर्नबी रोड मोड़ पर मिली थी और जिसे तुमने दो सौ रुपये एडवांस दिये थे और...”
“बस बस !” - जयन्ती घबराई हुई आवाज में बोली ।
सुनील चुप हो गया ।
“क्या चाहते हो ?” - जयन्ती ने पूछा ।
“कल आठ बजे तुम हर्नबी रोड के मोड़ पर आई क्यों नहीं ?”
“टैलीफोन पर यह मत पूछो । मुझे केवल यह बताओ कि फोन क्यों किया है तुमने ?”
“मैं तुम्हारी अमानत तुम्हें सौंपना चाहता हूं ।”
“क्या मतलब ?” - जयन्ती चौकी ।
“वह रिवाल्वर...”
सुनील ने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
“तुम्हारे पास है ?” - जयन्ती का व्यग्र स्वर सुनाई दिया ।
“हां ।”
“सच कह रहो हो ?”
“इसमें झूठ बोलने वाली कौन सी बात है ?”
“मैं तुम से फौरन मिलना चाहती हूं । कहां मिल सकते हो मुझे ?”
“जहां तुम कहो ।”
“तुम इस समय कहां हो ?”
“मेहता रोड पर ।”
“तुम हर्नबी रोड के मोड़ पर ही आ जाओ । ठीक आधे घन्टे बाद तुम्हें वहां मिलूंगी ।”
“आल राइट । साथ में बाकी रूपया लाना मत भूलना ।”
“नहीं भूलूंगी ।” - और दूसरी ओर से सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने भी रिसीवर रख दिया ।
सुनील उठकर खिड़की के समीप पहुंचा । उसने पर्दा हटाकर बाहर झांका ।
जो टैक्सी उसका पीछा करती हुई वहां तक आई थी, वह अब भी क्लब के सामने सड़क पर फुटपाथ के सहारे खड़ी थी । टैक्सी का ड्राइवर गायब था लेकिन पिछली सीट पर काली फैल्ट वाला आदमी अब भी बैठा था । उसका चेहरा अब भी दिखाई नहीं दे रहा था । वह खिड़की से हट गया ।
“क्या बात है ?” - रमाकांत ने उत्सुकता से पूछा ।
“क्लब के सामने एक टैक्सी खड़ी है” - सुनील बोला - “वह दीपक लाज से ही मेरे पीछे लगी हुई है । मेरी मोटर साइकिल क्लब के सामने खड़ी है । मैं पिछले रास्ते से यहां से निकल जाऊंगा । ये लो मोटर साइकिल की चाबी । मेरे जाने के पन्द्रह मिनट बाद मोटर साइकिल गैरेज में रखवा देना । और अपने किसी आदमी को उस टैक्सी की निगरानी के लिए कह देना । मोटर साइकिल गैरेज में रखी जाती देखने के बाद टैक्सी वाला क्लब के सामने रूकेगा नहीं । तब तुम्हारे आदमी ने बड़ी सावधानी से उसका पीछा करना है
“ओके ।” - रमाकांत सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाता हुआ बोला।
“मैं चला ।” - सुनील बोला और कमरे से बाहर निकल गया ।