कार ड्राइव करते हुए देवराज चौहान की निगाह पेट्रोल की सुई पर पल भर के लिए ठहरी। कार में पेट्रोल अब न के बराबर ही बचा था। आठ-दस किलोमीटर से ज्यादा का पेट्रोल नहीं था कार में।

देवराज चौहान ने अपना ध्यान पुनः सामने की तरफ लगा दिया। तभी कानों में तीव्र हॉर्न का स्वर पड़ा। बैक मिरर में देखा। पीछे रफ्तार से आती कार थी, जो कि साइड मांग रही थी। देवराज चौहान ने उसे साइड दी तो वो कार ओवरटेक करती हुई तूफानी गति से आगे बढ़ती चली गई और कुछ ही पलों में निगाहों से ओझल हो गई।

ये हाईवे था।

पूना से लौट रहा था देवराज चौहान। बहुत ही खास काम की वजह से आठ दिन पहले देवराज चौहान पूना पहुंचा था और काम निपटाकर अब वापस मुंबई आ रहा था। दोपहर हो रही थी। सूर्य अपने पूरे दमखम के साथ जैसे आसमान के बीचो-बीच ठहरा हुआ था। मुंबई सीमा में प्रवेश करने में एक घंटा अभी बाकी था।

देवराज चौहान ने पुनः पेट्रोल की सुई पर निगाह मारी फिर सामने देखते हुए सिगरेट सुलगा ली। पिछले आधे घंटे से हाईवे पर कोई पेट्रोल पंप नहीं आया था कि कार में पेट्रोल डलवा सके। आठ-दस किलोमीटर आगे तक कोई पेट्रोल पम्प नहीं आया तो परेशानी खड़ी हो सकती थी। टंकी खाली होने की वजह से, कार ने रुक जाना था।

तभी कार ड्राइव करते हुए देवराज चौहान की निगाह सड़क के किनारे, कुछ आगे, पेट्रोल पम्प के बोर्ड पर जा ठहरी। जो पहले से ही ये दर्शा रहा था कि यहां पेट्रोल पम्प है। देवराज चौहान ने कश लेकर सिगरेट बाहर उछाली और स्पीड कम कर दी। फिर देखते ही देखते पेट्रोल पम्प आ गया और देवराज चौहान ने कार को जरा-सा मोड़ा और आगे जाकर कार रोक दी।

छोटा-सा पेट्रोल पम्प था।

नीचे की कच्ची जगह पर ईंटें लगा रखी थी। कहीं-कहीं ईंटों पर सीमेंट का पलस्तर किया हुआ था। वहां सिर्फ दो मशीनें लगी थी। एक पर पेट्रोल और दूसरे पर डीजल लिखा हुआ था। पीछे की तरफ थोड़ा-सा हटकर दो कमरे बने हुए थे और एक तरफ छोटा-सा केबिन था।

परंतु इस वक्त वहां कोई भी नजर नहीं आ रहा था।

देवराज चौहान ने हर तरफ नजर मारने के बाद, हॉर्न बजाया। कोई नहीं आया। दूसरी बार हॉर्न बजाया। तब भी कोई नहीं आया।

देवराज चौहान ने पुनः सोच भरी निगाहों से हर तरफ देखा और लगातार दो बार हॉर्न बजाया। साथ ही कार से बाहर निकला।

तभी दो कमरों में से एक कमरे का दरवाजा खुला और पच्चीस बरस की खूबसूरत युवती बाहर निकलकर, उस तरफ बढ़ी। देवराज चौहान की निगाह उस पर ठहर गई। वो दूध की तरह सफ़ेद स्कर्ट और वैसी ही कमीज पहने थी। स्कर्ट घुटनों के नीचे तक लंबी थी। लंबे बालों की खूबसूरत चुटिया कमर तक जा रही थी। वो खूबसूरत थी। अच्छी फिगर थी। बाईं तरफ गाल पर हल्का-सा तिल था। जो कि पास आने पर नजर आया। वो तिल उसे और भी खूबसूरत लग रहा था।

पास पहुंचकर वो शांत भाव में मुस्कुराई और देवराज चौहान से चाबी लेकर पेट्रोल टंकी का ढक्कन खोला और फिर पेट्रोल पाईप मशीन से पकड़कर टंकी के भीतर डाला।

"कितना?" युवती का स्वर शांत था।

"फुल कर दो।" देवराज चौहान ने उसे देखा।

युवती ने पाइप का लीवर दबा दिया।

"तुम अकेली हो पेट्रोल पम्प पर?" देवराज चौहान ने पूछा।

"हां।"

"तुम्हारा अकेले होना, ऐसी सुनसान जगह पर, तुम्हारे लिए खतरा पैदा कर सकता है।"

"यहां दो आदमी और होते हैं, वो आने ही वाले हैं।" उसने लापरवाही से कहा और छिपी निगाह से उस कमरे की तरफ देखा, जहां से निकलकर वो आई थी। कमरे के जरा से खुले दरवाजे के पीछे उसने रिवाल्वर की नाल की झलक और किसी व्यक्ति की झलक स्पष्ट तौर पर पा ली थी।

टंकी फुल हो गई।

युवती ने लीवर छोड़ा। टंकी बंद करके, पेट्रोल की पाईप को वापस मशीन में फंसाकर, कार की चाबियां देवराज चौहान के हवाले कर दीं। देवराज चौहान ने पेट्रोल के पैसे दिए और स्टेयरिंग सीट पर जा बैठा। तभी युवती पास पहुंची और बोली।

"वन मिनट मिस्टर---!"

देवराज चौहान ने उसे देखा।

युवती पलटी और पेट्रोल की मशीन के पास ही स्टूल पर रखी बिल बुक की स्लिप पर, पैन उठाकर लिखा और पर्ची फाड़कर, वापस आई और देवराज चौहान को थमा दी।

"थैंक्स---।" युवती ने पीछे हटते हुए सामान्य स्वर में कहा।

देवराज चौहान ने हौले से सिर हिलाया और कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी। पर्ची को उसने पास की सीट पर लापरवाही से रख दिया। कार पेट्रोल पम्प से निकलकर सड़क पर आई और तेजी से आगे बढ़ गई।

दस मिनट पश्चात ही सड़क के किनारे ढाबेनुमा होटल नजर आया तो देवराज चौहान ने कार वहां ले जा रोकी। सुबह व्यस्त होने की वजह से ब्रेकफास्ट भी नहीं कर पाया था। और अब लंच का वक्त हो चुका था। देवराज चौहान ने वहां लंच लिया। कॉफी ली। उसके पश्चात जब वहां से चलने के लिए ड्राइविंग सीट पर बैठा तो बरबस ही उसकी निगाह बगल की सीट पर पड़ी, पेट्रोल पम्प की पर्ची पर पड़ी। जिस पर बड़े-बड़े शब्दों में HELP (सहायता) लिखा हुआ था।

जब पेट्रोल पम्प वाली युवती ने उसे पर्ची दी थी तो उसे देखे बिना यूं ही सीट पर रख दिया था। देवराज चौहान की नजरें पर्ची पर ही थी परंतु मस्तिष्क तेजी से चल रहा था। एकाएक उसे लगने लगा, वो युवती जैसे वास्तव में किसी खतरे में है। पेट्रोल के पैसे देने के पश्चात उसने पैसों की पर्ची नहीं मांगी थी। बल्कि युवती ने उसे रुकने को कहकर, उसे पर्ची थमा दी थी जिस पर HELP लिख दिया। मुंह से शायद वो इसलिए कुछ ना कह सकी होगी कि कोई उस पर निगाह रख रहा होगा।

मामला क्या है?

कैसी मुसीबत में है वो?

देवराज चौहान के होंठ भिंच गए। पर्ची से निगाहें हटाते हुए उसने कार स्टार्ट की और बैक करने के पश्चात कार को वापस पेट्रोल पम्प की तरफ दौड़ा दिया। पेट्रोल पम्प से उसे निकले पैंतालीस मिनट हो चुके थे। दस मिनट कार चलाई थी और तीस-पैंतीस मिनट लंच लेने में लगे थे।

इतनी देर में युवती के साथ कुछ बुरा ना हो गया हो?

देवराज चौहान दस मिनट में ही वापस उसी पेट्रोल पम्प पर पहुंचा।

■■■

शांत-सुनसान नजर आ रहा था पेट्रोल पम्प। ठीक पहले की ही तरह। कार उसने पेट्रोल वाली मशीन के पास रोकी थी। तीव्र धूप के कारण वीरानी का कुछ ज्यादा ही एहसास हो रहा था। हर तरफ निगाह मारने के पश्चात देवराज चौहान ने रिवाल्वर निकाली और टांग के नीचे दबाकर हॉर्न बजाया। नजरें कुछ पीछे बने उन दोनों कमरों पर जा टिकी थी जहां से पहले वो युवती निकलकर आई थी।

उसी पल देवराज चौहान की निगाह केबिन की तरफ गई। उसके देखते ही देखते केबिन का दरवाजा खुला और वो युवती निकलकर उसकी तरफ बढ़ी। वही, सफेद शर्ट और स्कर्ट पहनी थी। वही, लंबी चुटिया।

वो पास पहुंची। मुस्कुराई।

"हैलो---।" उसने झुकते हुए देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

"क्या हुआ?" आप अभी टैंक फुल करवा कर गए थे। दोबारा कैसे आना हुआ?" वो शांत लहजे में बोली।

"तुम्हें नहीं मालूम?"

"मुझे---? नहीं-मुझे नहीं मालूम। आप आए हैं तो आप ही बताएंगे।" वो पुनः मुस्कुराई।

देवराज चौहान ने सीट पर पड़ी पेट्रोल पम्प की पर्ची उठाकर उसकी तरफ बढ़ाई।

"देखो इसे। इस तुमने ही HELP लिखा है?" देवराज चौहान का स्वर शांत था।

उसने पर्ची देखी फिर हौले से हंस पड़ी।

"सॉरी। मुझे नहीं मालूम था कि मेरे इस छोटे से मजाक को आप गंभीरता से ले लेंगे।" उसने कहा।

"ये मजाक था?"

"हां। अकेले में मैं बोर हो रही थी तो यह मजाक कर दिया। मैं माफी चाहती हूं कि मेरे बेकार से मजाक की वजह से आपको वापस आना पड़ा। वैसे आपका आना मुझे अच्छा लगा कि दुनिया में भले इंसान अभी बाकी हैं जो दूसरों को मुसीबत में फंसे देखकर, उनके काम आना पसंद करते हैं।"

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

वो मुस्कुराकर कह उठी।

"पानी पिएंगे। गर्मी बहुत है। गला सूख रहा है।"

"धन्यवाद। तो मैं जाऊं---।"

"जी। मैंने वास्तव में मजाक किया था। वैरी सॉरी।"

सब ठीक था, परंतु जाने क्यों देवराज चौहान को सब ठीक नहीं लग रहा था।

देवराज चौहान ने कार आगे बढ़ाई तो पीछे से वो बाय-बाय करने लगी। कार सड़क पर आई और रफ्तार पकड़ती चली गई। इस दौरान देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली थी। उसका मन इस बात के लिए हां नहीं कर रहा था कि युवती ने HELP लिखकर मजाक किया है। समझदार इंसान कभी भी ऐसा मजाक नहीं कर सकता। ये मजाक कोई वक्त बिताने का साधन नहीं हो सकता कि...।

देवराज चौहान की सोचें रुकीं।

होंठ भिंच गए। उसने फौरन कार को साइड करते हुए, उसे रोक दिया। चेहरे पर अजीब-से भाव नजर आने लगे थे। पहले जिस युवती ने उसकी कार में पेट्रोल डाला था, उसके गाल पर छोटा-सा तिल था। और अब जिस युवती ने उससे बात की थी उसके गाल पर तिल नहीं था। पहनावा। बालों का रूप। कपड़े या फिर उसके शरीर का आकार-प्रकार अवश्य पहले वाली युवती से मिल रहा था।

तो धोखा खा गया वो?

शायद इसलिए कि दोनों युवतियों में बहुत हद तक समानता थी। जिसने सहायता मांगी थी वो कोई और थी और अब जिससे मिला, वो कोई और ही थी।

देवराज चौहान ने कार को वापस मोड़ा और पेट्रोल पम्प से कुछ पहले ही कार को रोककर इंजन बंद किया। रिवाल्वर जेब में डाली और कार से बाहर निकलकर सड़क से उतरता हुआ सावधानी से पेट्रोल पम्प के पिछवाड़े की तरफ बढ़ने लगा। सामने की तरफ से जाने से, वो लोग जो भी थे सावधान हो सकते थे। पेट्रोल पम्प पर पहले मिलने वाली युवती, जिसने टंकी फुल की थी। वो खतरे में थी। उसने सहायता मांगी थी। यानि कि कुछ लोगों ने पेट्रोल पम्प पर कब्जा कर रखा है।

■■■

वो तब तक वैसे ही खड़ी, जाती कार को देखती रही, जब तक कि देवराज चौहान की कार पेट्रोल पम्प से निकलकर निगाहों से ओझल नहीं हो गई। फिर हाथ में पकड़ी पेट्रोल पम्प की पर्ची को देखा जिस पर HELP लिखा हुआ था। चेहरे पर सख्ती सी आ गई थी। उसके बाद वो उन दो कमरों की तरफ बढ़ी जो पेट्रोल पम्प के अहाते में एक तरफ बने हुए थे।

एक कमरे के दरवाजे के पास पहुंचकर ठिठकी और दरवाजा थपथपा कर बोली।

"खोलो---।"

तुरंत ही थोड़ा-सा दरवाजा खुला तो वो भीतर प्रवेश कर गई।

दरवाजा पुनः बंद हो गया।

कमरे में मौजूद फोल्डिंग पर उस युवती को डाला हुआ था। हाथ-पांव बांध रखे थे और मुंह में कपड़ा ठूंस रखा था। उसके बदन पर इस वक्त कमीज-सलवार था। एक तरफ मौजूद पुरानी सी दो कुर्सियों पर दो व्यक्ति बैठे थे। चेहरों से वो खतरनाक लग रहे थे। एक ने हाथ में रिवाल्वर थाम रखी थी।

उनके अलावा दरवाजा खोलने वाले व्यक्ति ने कीमती कपड़े पहन रखे थे। वो कोई अमीर आदमी लग रहा था। इस वक्त सबके चेहरों पर गंभीरता थी।

वो युवती आगे बढ़ी और फोल्डिंग पर पड़ी युवती के मुंह में फंसा कपड़ा निकाला।

"पहचाना इसे---।" कड़वे स्वर में कहते हुए युवती ने HELP वाली पर्ची सामने की।

पर्ची पर निगाह पड़ते ही उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। चेहरे पर बेबसी-भय और गुस्से के भाव नजर आ रहे थे। पर्ची से निगाह हटाकर वो उसे देखने लगी।

"क्या बात है आशा?" दरवाजा खोलने वाले व्यक्ति ने पूछा।

आशा फौरन घूमी और पर्ची उसके सामने करते हुए कह उठी।

"ओमी साहब! कुछ देर पहले एक आदमी कार में पेट्रोल डलवाने आया था। ये तब की बात है जब हम इसे कवर करके केबिन से यहां लाए थे।" आशा दांत भींचे कह उठी--- "ये सोचकर कि आने वाला इसे पहचानता ना हो। पेट्रोल डालने के लिए इसे ही बाहर भेजा ये वार्निंग देकर कि आने वाले को हम लोगों के बारे में कुछ नहीं बताएगी, और उसे फौरन चलता कर देगी। अगर इसने हमारे इशारे के खिलाफ काम किया तो हम इसे शूट कर देंगे।"

"हां।" ओमी साहब ने आशा के हाथ से पर्ची थामते हुए कहा--- "ये कुछ देर पहले की बात है।"

"ये तब आने वाले को मुंह से तो कुछ नहीं बता सकी। क्योंकि हमारी निगाह इस पर थी। अलबत्ता पेट्रोल की पर्ची पर HELP लिखकर, उसे पर्ची थमा दी। कुछ आगे जाकर उसकी निगाह पर्ची पर पड़ी होगी तो वो वापस आ गया। तब तक मैं इसके सफेद कपड़े पहन चुकी थी। मेकअप से मेरा हुलिया ऐसा बना हुआ है तो वो मुझे पहचान नहीं पाया कि मैं वो नहीं हूं। कठिनता से ये कहकर उसे वापस भेजा कि मैंने पर्ची पर HELP लिखकर मजाक किया था। अगर वो ये जान जाता कि मैं कोई और हूं तो बेकार में कोई नई मुसीबत खड़ी हो जाती।"

ओमी साहब ने सिर हिलाया और पर्ची लापरवाही से एक तरफ उछाल दी।

"यूं समझो कि सस्ते में छूट गए।" कहने के पश्चात ओमी साहब के चेहरे पर मुस्कान उभरी।

"मैं समझी नहीं---?"

"युवराज पाटिल ने नसीमा को इतना बड़ा काम सौंपा है। वो भी अकेले, तो ये यूं ही बेकार तो होगी नहीं। काबिलियत इसमें कूट-कूट कर भरी होगी। अगर ये बात ध्यान रखें तो समझो अभी इसने अपने बचाव में कुछ खास किया ही नहीं और हमने तो ऐसे अचानक इस तरह पकड़ा कि ये तब भी बचाव में कुछ नहीं कर सकी---।"

आशा ने गहरी सांस ली।

"तुम लोग बच नहीं सकते।" फोल्डिंग पर बंधी पड़ी गुर्रा उठी--- "युवराज पाटिल के मामले में आने का मतलब तुम लोग बहुत अच्छी तरह जानते हो कि---।"

"इस वक्त तो तुम्हें अपनी फिक्र होनी चाहिए।" कुर्सी पर बैठा बदमाश खतरनाक स्वर में कह उठा।

नसीमा दांत पीसकर बारी-बारी सबको घूरने लगी।

"कब तक आएंगे, वो लोग?"

"कभी भी आ सकते हैं।" नसीमा एक-एक शब्द चबाकर कड़वे स्वर में कह उठी--- "साथ ही तुम्हें ये भी समझा चुकी हूं कि युवराज पाटिल के रास्ते में मत आओ। उसके सामने अंडरवर्ल्ड में तुम्हारी हैसियत कुछ भी नहीं है। वो तुम्हें छोड़ेगा नहीं और---।"

'उसे पता भी नहीं चलेगा कि मैं इस मामले के पीछे हूं।" ओमी साहब हंसे।

"मैं बताऊंगी उसे कि---।"

"जिंदा रही तो अवश्य बताना कि---।"

"मुझे मौत का खौफ मत दिखाओ ओमी। जीना-मरना अल्लाह के हाथ में है और---।"

"इस वक्त तुम्हारे लिए अल्लाह मैं ही हूं।" ओमी साहब के चेहरे पर जहरीली मुस्कान उभरी--- "क्योंकि तुम्हारी जिंदगी और मौत मेरे हाथ में है और मैं तुम्हें मौत ही दूंगा।"

"बहुत घमंड कर रहे हो अपने पर। लेकिन मुझे ही अल्लाह की ताकत पर भरोसा है। मेरी जिंदगी के दिन पूरे हो गए हैं तो अल्लाह तुम्हारे जरिए मुझे मौत देगा। जिंदगी बाकी है तो अल्लाह ही मुझे बचाएगा।"

"तो फिर यूं समझो कि ऊपर वाले ने तुम्हारी जान लेने के लिए ही मुझे भेजा है।" ओमी साहब हंसे--- "आने वाले वक्त में मैं मुंबई अंडरवर्ल्ड की बड़ी ताकत बनकर सामने आने वाला हूं। तब युवराज पाटिल को तो वो जगह भी नजर नहीं आएगी, जहां उसने छिपना होगा।"

"युवराज पाटिल का चेहरा याद करो तो ऐसी बातें मुंह से नहीं निकलेंगी।" नसीमा ने उसे घूरा।

"मैं बेकार के चेहरों को नहीं सोचता। अपने काम से मतलब रखता हूं। इसके मुंह में कपड़ा दे दो।"

"खत्म ही कर देते हैं इसे। अब इसकी जरूरत ही क्या है।" कुर्सी पर बैठा बदमाश कह उठा।

"काम हो जाने दो। हो सकता है तो मौके पर इसकी जरूरत पड़ जाए। कपड़ा ठूंसो मुंह में---।"

बदमाश कुर्सी से खड़ा होकर फोल्डिंग की तरफ बढ़ा।

"ओमी!" नसीमा दांत भींचे कह उठी--- "मैं जिंदा रहूं या मरूं, लेकिन युवराज पाटिल तुम्हें छोड़ेगा नहीं। वो जान लेगा कि यहां क्या हुआ था और तुमने उसके काम में गड़बड़---।"

तब तक बदमाश ने कपड़े का गोला बनाकर उसके मुंह में फंसा दिया।

नसीमा छटपटा कर रह गई।

ओमी साहब ने आशा को देखा।

"तुम केबिन में जाओ। वो लोग कभी भी आ सकते हैं। उन्हें शक नहीं होना चाहिए।"

आशा सिर हिलाकर पलटी और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गई।

बदमाश फोल्डिंग के पास से हटा और आगे बढ़कर दरवाजा बंद कर लिया।

■■■

आशा कमरे से बाहर निकली तो एकबारगी सूर्य की तेज धूप से आंखें चौंधिया गई। माथे पर हाथ रखकर आंखों को राहत भरी छाया दी। पेट्रोल पम्प पर नजर मारते हुए सामने सड़क पर निगाह मारी। उसके देखते ही देखते एक बस और और दो कारें सड़क से गुजर गई। सड़क के किनारे मौजूद पेड़ वाहनों के गुजरने की वजह से तेजी से हिलने लगे थे। वो तेजी से केबिन की तरफ बढ़ गई।

पास पहुंचकर केबिन का दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश कर गई। दरवाजा बंद होता चला गया। ये सामान्य-सादा सा केबिन था। छोटे से टेबल के अलावा तीन कुर्सियां थीं। दीवार के साथ चार फीट ऊंची अलमारी रखी हुई थी। फर्श सीमेंट का था। छत पर लटकता पंखा चल रहा था जो कि मौजूदा गर्मी को पूरी तरह दूर नहीं कर पा रहा था। टेबल पर पुराने मॉडल का फोन रखा हुआ था। आशा कुर्सी पर जा बैठी और दरवाजे की तरफ देखा। दरवाजे के शीशे काले होने की वजह से भीतर से, बाहर फैली धूप का एहसास कम हो रहा था। उसने हाथ बढ़ाकर टेबल का ड्राअर खोला और वहां रखी रिवाल्वर बाहर निकाल ली। रिवाल्वर की मैग्जीन निकालकर चैक की, फिर उसे वापस डालकर, रिवॉल्वर को ड्राअर में रखकर, उसे बंद कर दिया। अब कोई काम नहीं था सिवाय इंतजार करने...।

तभी बाहर से इंजन की आवाज आई।

आशा फौरन उठी। शीशे से बाहर देखा। एक टैम्पो पेट्रोल-डीजल की मशीनों के पास रुक रहा था। आशा ने बिना वक्त गंवाए ड्राअर में से रिवाल्वर निकालकर स्कर्ट में छुपाई और दरवाजा खोलकर, बाहर निकलते हुए टैम्पो की तरफ बढ़ गई। चाल-ढंग सामान्य था, परंतु सतर्क थी। जिनका इंतजार था, वो किसी भी रुप में वहां आ सकते थे और उसे सिर्फ सफेद कपड़ों के दम पर ही उन्होंने पहचानना था।

"तुम डालोगी पेट्रोल---।" टैम्पो से उतरते हुए उसका ड्राईवर बोला।

"हां। कोई ऐतराज है तुम्हें?" आशा ने शांत भाव से कहा।

"मुझे तो पेट्रोल लेना है। कोई भी डाले।" टैम्पो ड्राईवर उसे सिर से पांव तक देखता हुआ बोला--- "तुम ही पेट्रोल डालती हो तो मैं यहां रोज-रोज पेट्रोल डलवाने आऊंगा। क्या चीज हो---।"

"उस्ताद जी बस करो। सेठ साहब हमारा इंतजार कर रहे हैं।" टैम्पो की खिड़की से एक छोकरा सिर बाहर निकालकर बोला।

"मालूम है। मालूम है।"

"कितना पेट्रोल डालना है?" आशा ने पेट्रोल की पाईप मशीन को हैंगर से उठाते हुए पूछा।

"पन्द्रह लीटर डाल दे।" ड्राईवर ने पेट्रोल की टंकी का ढक्कन खोलते हुए कहा।

आशा ने पेट्रोल डाला। पैसे लिए।

ड्राईवर पेट्रोल की टंकी का ढक्कन बंद करते हुए मुस्कुराकर बोला।

"तेरे को सिर से पांव तक देखकर इतनी गर्मी में भी आंखों को ठंडक पड़ गई। दोबारा जल्दी आऊंगा...।"

जवाब में आशा के होंठों पर छोटी सी मुस्कान उभरी और पलटकर केबिन की तरफ बढ़ गई।

टैम्पो चला गया।

आशा केबिन में पहुंची। कुर्सी पर बैठते हुए पैसों को टेबल पर रखा और स्कर्ट में फंसी रिवाल्वर निकाल वापस ड्राअर में रख दी। एक नजर पंखे को देखकर, कमीज का ऊपरी बटन खोल दिया। धूप की वजह से केबिन अब तपने लगा था। गर्मी बढ़ रही थी।

तभी दरवाजे पर आहट हुई।

आशा की गर्दन जल्दी से उस तरफ घूमी तो देवराज चौहान को भीतर प्रवेश करते पाया। हाथ में रिवाल्वर दबी हुई थी। उसे पुनः सामने पाकर आशा दो पल के लिए हक्की-बक्की रह गई। यह तो अपने सपने में भी नहीं सोचा था कि ये आदमी फिर आ सकता है, वो भी रिवाल्वर के साथ।

"तुम?" हैरानी भरा स्वर उसके मुंह से निकला।

"हां।" देवराज चौहान मुस्कुराया।

"तुम तो चले गए थे। फिर तुम यहां...।"

"मैं जरूर चला गया होता अगर तुम्हारे गाल पर छोटा-सा तिल होता, जो मैंने पहली मुलाकात में देखा था।"

आशा का हाथ तुरंत अपने गाल पर पहुंचा। नजरें देवराज चौहान पर थीं।

"माना कि तुम्हारा रंग-रूप, पहनावा। लगभग हर चीज लड़की जैसी है, जिससे मैं पहले मिला था। जिसने मेरी कार में पेट्रोल डाला था।जिसने पेट्रोल की रसीद पर HELP लिखकर, पर्ची मुझे दी थी। लेकिन वो तिल बनाना तुम या तुम्हारे साथी भूल गए जो उसके गाल पर था। अब समझी मैं वापस क्यों आया?"

आशा ठगी-सी बैठी उसे देखती रही।

"तुम्हारे बाकी साथी उस कमरे में हैं जहां से तुम कुछ देर पहले निकली थीं---।" देवराज चौहान ने पूछा।

वो कुछ नहीं कह सकी।

"वो युवती कहां है जिससे मैं पहले मिला था।" देवराज चौहान की नजरें उस पर थीं।

"वहीं। कमरे में। तुम-तुम चाहते क्या हो? कौन हो तुम?" आशा ने खुद को संभालने की कोशिश की।

"मैं तो राह चलता राहगीर हूं। किसी ने मुझसे सहायता मांगी तो आ गया।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा--- "मामला क्या है? क्या करना चाहते हो तुम लोग?"

"मैं नहीं बता सकती?" आशा ने इंकार में सिर हिलाया।

"उस लड़की का क्या करोगे, जिसे उस कमरे में कैद कर रखा है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"आशा, कई पलों तक देवराज चौहान को देखती रही फिर सामान्य स्वर में बोली।

"उसे खत्म कर दिया जाएगा। तुम पुलिस वाले हो?"

"नहीं---। मैं---।"

आशा का हाथ तेजी से टेबल के ड्राअर की तरफ बढ़ा, रिवाल्वर निकालने के लिए। ये देखते ही देवराज चौहान तेजी से उस पर झपटा और उसकी कलाई थामते हुए हाथ में दबी रिवाल्वर की नाल की चोट उसकी कनपटी पर की तो, छोटी सी कराह के साथ कुर्सी पर बैठे ही बैठे सिर टेबल पर जा सटा। ऐसे लगने लगा जैसे वो बैठे-बैठे गहरी नींद में डूब गई हो।

होंठ भींचे देवराज चौहान पीछे हट गया। चेहरे पर कठोरता नजर आने लगी थी। फिर ये तसल्ली करने के पश्चात कि आशा बेहोश है, रिवाल्वर हाथों में लेकर सावधानी से केबिन का दरवाजा खोलकर बाहर निकला और सामने नजर आ रहे, उन दो कमरों की तरफ बढ़ गया।

जिस कमरे से पहले नसीमा निकली थी, देवराज चौहान उसके दरवाजे के सामने पहुंचकर ठिठका और दरवाजा थपथपाया। भिंचे दांत। कठोर चेहरा। हाथों में दबी रिवाल्वर। वो नहीं जानता था कि भीतर कितने आदमी हैं और दरवाजा खुलने पर उसे इतना वक्त भी नहीं मिलता था कि मौजूद आदमियों की गिनती कर सके। भीतर जो लोग भी थे, सामने अजनबी को देखकर, उन्होंने फौरन हरकत में आ जाना था। और...।

तभी दरवाजा खुला।

सामने कीमती कपड़े पहने वही व्यक्ति खड़ा था। दरवाजा खोलने पर सामने आशा की अपेक्षा किसी और को पाकर चौंका। तभी देवराज चौहान के हाथ में दबी रिवाल्वर से, तेज आवाज के साथ गोली निकली और उसकी छाती में जा धंसी। उसके शरीर को तीव्र झटका लगा। वो पीछे को जा गिरा।

देवराज चौहान की निगाह फुर्ती के साथ कमरे में गई। कुर्सी पर बैठे दो व्यक्तियों को उसने जल्दी से उठते देखा। एक के हाथ में रिवाल्वर थी, दूसरा उठते हुए जेब से रिवाल्वर निकाल रहा था।

देवराज चौहान ने दांत भींचे उनका निशाना लेकर दो बार ट्रेगर दबाया। एक के सिर में गोली लगी और दूसरे की गर्दन में। उन्हें तड़पने का भी मौका नहीं मिला और नीचे गिरने से पहले ही वे खत्म हो चुके थे।

हाईवे का ये सुनसान इलाका था। यही वजह थी कि गोलियां चलने की तेज आवाज के बावजूद भी कोई हलचल नहीं हुई थी। ऊपर से तपती, तेज दोपहरी। कोई और जगह होती तो गोलियों की आवाजों में भगदड़ मच जानी थी, परंतु यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ था।

देवराज चौहान ने फोल्डिंग पर बंधी पड़ी नसीमा को देखा। फिर उसी कठोर मुद्रा में आगे बढ़ा और उसके मुंह में फंसा कपड़ा बाहर निकाला तो वो गहरी-गहरी सांसें लेने लगी।

"तुम-तुम वही हो ना, जिसकी कार में मैंने पेट्रोल---।" नसीमा ने कहना चाहा

"हां। जिससे तुमने सहायता मांगी थी।" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर कहा। इसके साथ ही नसीमा के हाथ-पैरों के बंधन खोलने लगा। उस छोटे से कमरे में तीन लाशें पड़ी थीं। लाशों से बहता खून कमरे के फर्श पर फैलता जा रहा था और वहां खामोशी छाई हुई थी।

बंधनों के आजाद होते ही नसीमा जल्दी से फोल्डिंग से नीचे उतर आई।

"क्या हो रहा है ये सब?" देवराज चौहान ने नसीमा से पूछा।

"बताती हूं। वो कहां है, जिसने सफेद कपड़े---?"

"केबिन में---।" देवराज चौहान ने कहा।

"अभी आई---।" कहने के साथ ही वो जल्दी से बाहर निकल गई।

देवराज चौहान कमरे के दरवाजे पर पहुंचा। बाहर देखा।

वो केबिन की तरफ जा रही थी और केबिन में प्रवेश कर गई।

देवराज चौहान उधर ही देखता रहा।

नसीमा उल्टे पांव केबिन से बाहर आई। कंधे पर उसने बेहोश आशा का शरीर लाद रखा था। जब वो पास आई तो देवराज चौहान ने उसे भीतर आने का रास्ता दे दिया। भीतर आते ही उसने आशा को फोल्डिंग पर लिटाया और उसके कपड़े खोलने लगी, तो देवराज चौहान कह उठा।

"ये क्या कर रही हो?"

"ये मेरे कपड़े हैं। इन कपड़ों को पहनना मेरे लिए बहुत जरूरी है।" नसीमा ने कहा।

"मैंने पूछा है, यहां क्या हो रहा है---?"

"दो मिनट रुको। सब बता दूंगी।"

रिवाल्वर थामें देवराज चौहान खड़ा रहा।

आशा के बदन पर मौजूद स्कर्ट-कमीज उतारने के पश्चात वो अपने कपड़े उतारने लगी तो ठिठककर देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान उसे ही देख रहा था।

"मैंने कपड़े बदलने हैं। तुम बाहर जा सकते हो?" नसीमा कह उठी।

"बाहर जाने में मुझे कोई एतराज नहीं है।" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका--- "लेकिन मुझे नहीं मालूम कि यहां क्या हो रहा है। इस वक्त यहां उनकी तीन रिवाल्वरें भी पड़ी हैं जिन्हें मैंने शूट किया---।"

"निश्चिंत रहो। तुम्हें, मुझसे कोई खतरा नहीं है।" नसीमा मुस्कुरा उठी।

"मुझे अपनी नहीं, तुम्हारी फिक्र है।" देवराज चौहान की आवाज में सर्द भाव आ गए--- "कि अगर तुमने रिवाल्वर का इस्तेमाल मुझ पर करने की कोशिश की तो, तुम भी जिंदा नहीं बचोगी।"

"ऐसा कुछ भी नहीं होगा।"

देवराज चौहान ने उसे गहरी निगाहों से देखा फिर कमरे से बाहर निकलकर, तेज धूप में कदम उठाकर केबिन की तरफ बढ़ गया। हाईवे पर से भी, इस वक्त कोई वाहन जाता दिखाई ना दिया। केबिन में पहुंचकर कुर्सी पर बैठा और सिगरेट सुलगा ली। रिवाल्वर हाथ में ही थी। अभी दो कश ही लिए थे कि गोली चलने का धमाका उसके कानों में पड़ा। नजरें केबिन के शीशे से होती हुई, उन दो कमरों की तरफ उठीं।

तभी कमरे के दरवाजे से नसीमा निकली और केबिन की तरफ बढ़ने लगी।

देवराज चौहान समझ गया कि इसने, उस युवती को शूट कर दिया है। नसीमा की शरीर पर पहले की ही तरह सफेद लंबी स्कर्ट और सफेद शर्ट पड़ी नजर आ रही थी।

देवराज चौहान सोच भरी निगाहों से उसे देखता रहा।

■■■

नसीमा ने भीतर प्रवेश किया। ठिठककर, मुस्कुराते हुए देवराज चौहान को देखा। अब तो तनाव मुक्त लग रही थी। चेहरे पर बिल्कुल सामान्य भाव थे। वो अट्ठाईस-तीस बरस की होगी। उसके हाव-भाव में चुस्ती थी। आंखों में समझदारी के भाव झलक रहे थे। आगे बढ़कर कुर्सी पर बैठती हुई बोली।

"बहुत-बहुत मेहरबानी तुम्हारी कि तुमने मेरी जान बचाई। वरना इन लोगों ने मुझे जिंदा नहीं छोड़ना था।"

"मैंने भी उन लोगों को इसलिए सीधे-सीधे शूट किया कि, यहां बैठी उस युवती से मालूम कर चुका था कि तुम्हें कभी भी मारा जा सकता है। एक को घेरकर ज्यादा लोग मारें तो मेरी नजरों में ये गलत बात है। वैसे पर्ची पर लिखे शब्द मैंने कुछ देर बाद देखे। वरना पहले ही यहां पहुंच गया होता।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

नसीमा ने उसके हाथ में दबी रिवाल्वर को देखा।

"मेरी जान बचाने के बदले तुम जो भी कीमत चाहते हो तो, वो कीमत तुम्हें मिल सकती है।" नसीमा बोली।

"रुपए-पैसे के लालच में मैंने ये काम नहीं किया।"

"मुझे लगता है मैंने तुम्हें पहले भी कहीं देखा है।" एकाएक नसीमा कह उठी।

"हो सकता है।" देवराज चौहान ने लापरवाही से कहा और रिवाल्वर जेब में डाल ली।

"क्या नाम है तुम्हारा?"

देवराज चौहान ने उसकी आंखों में देखा फिर कह उठा।

"यहां पर क्या हो रहा था? तुम कौन हो और मरने वाले, ये कौन लोग थे?"

नसीमा कुछ पल सोच भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखती रही।

"नहीं बताना चाहती?" उसे खामोश पाकर देवराज चौहान कह उठा।

"सोच रही हूं अगर तुम्हें ना बताऊं तो तुम क्या करोगे?" नसीमा कह उठी।

"कुछ नहीं। ये सब मैं यूं ही पूछ रहा हूं। अगर तुम्हारा इंकार है तो मैं यहां से चला जाऊंगा। मेरे पास अपने बहुत काम हैं। बीती बातों पर सोचकर मैं अपना वक्त बर्बाद नहीं करता।" कहकर देवराज चौहान ने कश लिया।

"हूं।" नसीमा ने हौले से सिर हिलाया--- "मैंने तुम्हें पहले कहां देखा है?"

"मालूम नहीं---।"

दो क्षणों की चुप्पी के बाद नसीमा कह उठी।

"मैं युवराज पाटिल के लिए काम करती हूं। जानते हो ना युवराज पाटिल को। मुंबई अंडरवर्ल्ड का बड़ा है। नाम तो सुना ही रखा होगा।" कहते हुए उसकी निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।

देवराज चौहान उसे देख रहा था।

"जवाब नहीं दिया तुमने?"

"तुमने जो कहना-बताना है, कहती रहो।" देवराज चौहान ने पुनः कश लिया--- "मुझे जिस बात की समझ नहीं आएगी, वो तुझसे पूछ लूंगा।"

"गुड। समझदार हो।" नसीमा मुस्कुरा पड़ी--- "वैसे मेरा नाम नसीमा है। मैं लड़की अवश्य हूं परंतु बड़े-बड़े काम कर जाती हूं। युवराज पाटिल को मुझ पर पूरा भरोसा है। मैंने उसके बड़े-बड़े कामों को सफलता के साथ अंजाम दिया है। वो खतरनाक महत्वपूर्ण काम भी मेरे हवाले कर देता है। इसके साथ ही मेरी इज्जत करता है। मैं उसके खास ओहदेदारों में गिनी जाती हूं और लगभग उसकी हर वक्त मीटिंग में शामिल होती हूं। जरूरत पड़ने पर युवराज पाटिल अपने खास ओहदेदारों से सलाह लेता है। मेरी सलाह पर उसने कई बार अमल किया है।"

"तुम मुझे ये समझाना चाहती हो कि मुंबई अंडरवर्ल्ड किंग युवराज पाटिल की निगाहों में तुम्हारी खास अहमियत है।" देवराज चौहान ने कहा।

"खास नहीं, बहुत ही खास अहमियत है।"

"समझ गया---।"

"और जिन लोगों ने मुझे पकड़ रखा था वो ओमी था। मुंबई का चढ़ता हुआ बदमाश। युवराज पाटिल को कमजोर करने के लिए पीठ पीछे ओमी वार करता रहता है और अभी तक हमारे हाथ से बचा हुआ था।" कहते हुए नसीमा के स्वर में गंभीरता आ गई--- "ये पेट्रोल पम्प युवराज पाटिल का ही है। खास-खास शब्दों में इस जगह को इस्तेमाल किया जाता है। जैसा कि आज। पूना से एक पार्टी के साथ, आज यहां सौदा होना है। युवराज पाटिल सत्तर करोड़ के चोरी के हीरे, पूना की पार्टी को बेच रहा है।।यहां की जगह तय हुई है। पूना वाली पार्टी को खबर मिल चुकी है कि इस पेट्रोल पम्प पर सफेद स्कर्ट-शर्ट में, पेट्रोल डालने वाली लड़की से हीरे लेकर, उसे तीस करोड़ नकद देना है और वो पार्टी तीस करोड़ नकद लेकर कभी भी, पूरे दिन में यहां पहुंचेगी और लेन-देन होगा। इसी वजह के कारण पेट्रोल पम्प पर मौजूद लोगों को दिन भर के लिए यहां से हटा दिया गया है। पूना वाली पार्टी चाहती है कि कोई ये ना जान सके कि उसने चोरी के हीरे खरीदे हैं।"

"सत्तर करोड़ के हीरों की कीमत, तीस करोड़ रुपए?'" देवराज चौहान ने उसे देखा।

"चोरी का माल, कम दामों में ही जाता है।" नसीमा ने मुस्कुराकर कहा--- "परंतु जाने कैसे ओमी तक इस सौदे की खबर पहुंच गई। या तो ये बात हमारी तरफ से 'लीक' है या फिर पूना वाली पार्टी की तरफ से। दो घंटे पहले ही ओमी अपने साथियों के साथ यहां पहुंचा और मुझे बंदी बना लिया। अपने साथ आशा नाम की लड़की को भी लाया, जिसका रंग-रूप काफी हद तक मेरे साथ मिलता था और उसने मेरे कपड़े उतरवाकर खुद पहन लिए। मेरे से चोरी के हीरे भी ले लिए, ताकि पूना वाली पार्टी को वो चोरी के हीरे देकर, तीस करोड़ नकद लेकर खिसक सके। लेकिन इत्तेफाक से तुम आए और सारी बाजी ही पलट गई।" नसीमा ने गहरी सांस ली।

देवराज चौहान ने कश लेकर सिगरेट एक तरफ उछाल दी।

"हीरे मिल गए?" देवराज चौहान ने पूछा।

"हां। ओमी के जेब में थे। मैंने निकाल लिए।" कहने के साथ ही उसने शर्ट की जेब में हाथ मारा, जहां हीरों की थैली उसने रखी हुई थी।

"इतना बड़ा सौदा तुम्हें अकेले ही नहीं करना चाहिए। साथ में कुछ आदमी और होने चाहिए।"

"मैं पहले ही कह चुकी हूं कि ऐसे सौदे मैं कई बार कर चुकी हूं। वैसे भी युवराज पाटिल का कहना है कि बड़े सौदों में जितनी कम भीड़ हो उतनी ही खामोशी से चुपचाप सौदा निपट जाता है।" नसीमा ने कहा।

"अब यहां मेरा कोई काम नहीं है। मैं चलता हूं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।

"तुम्हारी कार कहां है?" नसीमा ने पूछा।

"पेट्रोल पम्प के बाहर, ढलान में खड़ी है।"

"मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि मैंने तुम्हें पहले कहां देखा है!" नसीमा की आवाज में सोच के भाव थे।

देवराज चौहान ने नसीमा को देखा फिर दरवाजे की तरफ बढ़ा।

तभी बाहर एक विदेशी वैन, पेट्रोल-डीजल के मशीनों के पास आकर रुकी।

"ठहरो।" नसीमा के होंठों से निकला।

देवराज चौहान ठिठका।

"बाहर जो वैन आई है वो पूना वाली पार्टी की भी हो सकती है। अगर वो पार्टी की वैन है तो मुझे अकेला देखना चाहेंगे और तुम इस वक्त केबिन से निकल रहे हो। ऐसे में सौदे में गड़बड़ भी हो सकती है।" नसीमा कह उठी--- "केबिन के शीशे काले हैं। बाहर से वो लोग ये नहीं देख सकेंगे कि तुम केबिन में हो।"

"अच्छी बात है।" देवराज चौहान ने कहा--- "पांच-दस मिनट रुक जाने से अगर तुम्हारा काम बनता है तो मुझे रुकने में कोई हर्ज नहीं है। तुम जाओ। मैं केबिन में ही हूं।"

नसीमा खुलकर मुस्कुरा उठी।

"तुम वास्तव में बहुत ज्यादा समझदार हो। ऐसे बहुत कम लोगों से मुलाकात होती है।" वो केबिन के दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए बोली--- "वैसे ये जरूरी भी नहीं कि वैन में पूना वाली पार्टी हो। मैं अभी आई।" कहने के साथ ही नसीमा ने केबिन का दरवाजा खोला और बाहर निकल गई।

देवराज चौहान कुर्सी पर बैठ गया। नजरें बाहर ही रहीं, वैन पर।

■■■

वैन में दो व्यक्ति नजर आ रहे थे। एक ड्राइविंग सीट पर। दूसरा उसकी बगल में।

नसीमा को केबिन से निकलते देखकर स्टेयरिंग सीट वाला कह उठा।

"वो आ रही है।"

दोनों की निगाह नसीमा पर थी।

"लगती तो वही है।" वो पुनः बोला--- "सफेद कमीज। लम्बे बाल। युवराज पाटिल ने यही हुलिया बताया था चीफ को। चीफ ने तुम्हें यही हुलिया बताया था?"

"हां।" बगल वाला नसीमा को देखते शांत स्वर में बोला--- "इसी से लेन-देन होना है।"

"तुमने इसे पहले देखा है?"

"नहीं---।"

"खूबसूरत भी है। हसीन भी। युवराज पाटिल को इतने बड़े सौदे में ऐसी नाजुक चीज को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था।"

"युवराज पाटिल पागल नहीं है जो इसे इस्तेमाल कर रहा है। वैसे भी चीफ के साथ युवराज पाटिल कई बार लेन-देन कर चुका है। ऐसे में वो जिसे भी चीफ के साथ लेन-देन के लिए भेजेगा, निश्चिंत होकर भेजेगा।"

नसीमा पास आती जा रही थी।

"गोम्स!" वो पुनः कह उठा--- "मुझे बात करने देना। तुम बीच में मत आना।"

"मेरा बीच में आने का कोई मतलब नहीं कृष्णकांत। चीफ ने ये मामला तुम्हें निपटाने को कहा है। तुम जो कहोगे। मैं वही करूंगा। लेकिन चीफ ने जिस ढंग से काम पूरा करने को कहा है, वैसे ही करना---।"

नसीमा पास आ पहुंची।

"हैलो---।" कृष्णकांत ने मुस्कुराकर कहा--- "मुझे नहीं मालूम था कि यहां इतनी खूबसूरत लड़की मिलेगी।"

"टंकी की चाबी---।" नसीमा ने शांत स्वर में कहा।

"नाम क्या है तुम्हारा?" उसने उसी लहजे में पूछा।

नसीमा ने गहरी निगाहों से उसे और फिर ड्राइविंग सीट पर बैठे व्यक्ति को देखा।

"मेरा काम पेट्रोल डालना है, नाम बताना नहीं। चाबी दो।" नसीमा का स्वर भावहीन था।

"हम पूना से आए हैं। चीफ ने भेजा है हमें---।"

नसीमा मन ही मन सतर्क हो गई।

"तो तुम्हारे चीफ ने मेरा नाम भी तुम्हें बताया होगा।"

"नहीं---।"

"नहीं बताया तो फिर पूछने का कोई फायदा नहीं है। काम है तो काम की बात करो।" नसीमा की निगाहों पर टिक गई।

"हीरे।"

"तीस करोड़---।"

"हीरे दिखाओ।"

"पहले तीस करोड़ नकद देख लेना, मैं ज्यादा बेहतर समझती हूं।" नसीमा के स्वर में दृढ़ता थी।

"दिखा दे।" गोम्स ने कहा--- "कोई हर्ज नहीं।"

कृष्णकांत ने नसीमा को होंठ सिकोड़कर देखा फिर दरवाजा खोलकर नीचे उतरा और वैन के पीछे वाले हिस्से की तरफ बढ़ा। नसीमा उसके साथ हो गई। वो सतर्क थी।

कृष्णकांत ने वैन का दरवाजा थपथपाया।

दूसरे ही पल वैन का दरवाजा खुला। भीतर लाइट ऑन थी। एक व्यक्ति कुर्सी पर बैठा नजर आया। पास ही तीन सूटकेस रखे हुए थे।

"पूर्बी।" कृष्णकांत ने सामान्य स्वर में कहा--- "सूटकेसों को खोलकर इसे नोट दिखा दे।"

"यही पार्टी है?" उसने नसीमा को घूरा।

"हां। पहले ये नोट देखना चाहती है।"

"पेट्रोल पम्प पर तय बात के मुताबिक अकेली है या यहां कुछ लोग भी छिपे हुए हैं, तीस करोड़ छीनने के लिए?"

"मैं अकेली हूं।" नसीमा शब्दों पर जोर देकर कह उठी--- "युवराज पाटिल का तुम्हारे चीफ के साथ सौदा पहली बार नहीं हो रहा। तुम लोग बातों में ज्यादा वक्त खराब कर रहे हो।"

"दिखा दे पूर्बी---।" कृष्णकांत ने कहा।

वो उठा और तीनों सूटकेसों को बारी-बारी खोल दिया।

पांच सौ और सौ की गड्डियों से भरे हुए थे सूटकेस।

नसीमा की निगाह तीनों सूटकेसों पर गई।

"हर सूटकेस में दस करोड़ हैं। मतलब कि पूरे तीस करोड़ कहते।" हुए पूर्बी ने तीनों सूटकेसों को बंद किया।

"इन सूटकेसों को केबिन के पास रख दो।" नसीमा ने कहा।

"सयानी बनती है।" कहते हुए पूर्बी मुस्कुरा पड़ा।

नसीमा की नजरें पूर्बी पर जा टिकीं।

"पहले हीरे हमारे हवाले करो।" कृष्णकांत ने कहा।

"जब तक तीस करोड़ रुपया वैन के भीतर रहेगा मैं हीरे कैसे तुम लोगों को दे सकती हूं।" नसीमा मुस्कुराई।

कृष्णकांत और पूर्बी की नजरें मिलीं।

"ठीक है।" कृष्णकांत ने कहा--- "सूटकेस वैन से बाहर आ जाएंगे। पहले हम हीरे देखना चाहेंगे।"

नसीमा ने स्कर्ट की जेब में हाथ डालकर छोटी-सी थैली निकाली। थैली हथेली पर रखकर उसे खोलकर, बीच में पड़े हीरों को दिखाया और उसके बाद थैली बंद करके वापस जेब में डाल ली।

"ये हैं हीरे?" कृष्णकांत ने धूप में तपते नसीमा के चेहरे को देखा।

"हां। पूरे सत्तर करोड़ के---।"

"क्यों पूर्बी!" कृष्णकांत ने उसे देखा--- "अब क्या इरादा है?"

"सब ठीक है तो निपटा दो काम---।"

पूर्बी के शब्द पूरे भी नहीं हुए थे कि कृष्णकांत ने झपट्टा मारकर नसीमा को बांहों में जकड़ा और वैन के खुले दरवाजे के भीतर लुढ़का दिया। नसीमा ने फौरन खुद को संभालना चाहा कि पूर्बी ने हथेली उसके होंठों पर टिकाई और रिवाल्वर निकालकर उसकी छाती से लगा दी।

तब तक कृष्णकांत फुर्ती से भीतर आ चुका था। वैन का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया।

"गोम्स भाग ले।" वो चिल्लाया।

"ओ•के•।" गोम्स की मध्यम-सी आवाज आई और अगले ही पल वैन हिली और धीरे-धीरे स्पीड पकड़ती चली गई। ये सब दो पलों में ही हो गया।

वैन के भीतर लाइट ऑन थी।

नसीमा उसी मुद्रा में पड़ी आंखें फाड़े उन दोनों को बारी-बारी देख रही थी।

"कृष्ण!" पूर्बी एकाएक हंसा--- "कितनी आसानी से सारा काम हो गया।"

"वो तो होना ही था।" कृष्णकांत मुस्कुराया--- "युवराज पाटिल बेवकूफ है, जिसने हमारे चीफ पर अंधा भरोसा किया और उसके कहने पर हीरे देकर किसी को अकेला ही भेजा। मुंबई में युवराज पाटिल बेशक अंडरवर्ल्ड का बड़ा है लेकिन पूना में हमारे चीफ का ही इशारा चलता है।"

"वैसे भी चीफ और युवराज पाटिल के बीच झगड़े की नौबत नहीं आएगी। चीफ ने युवराज पाटिल को यही कहना है कि उसके आदमी धोखेबाज निकले जो उन दोनों का माल ले उड़े। रही बात इस लड़की की तो इसे हाईवे पर कहीं भी मार कर फेंक देते हैं। जैसा कि चीफ ने कहा था।"

"ये वैन तो चोरी की है। इसकी लाश वैन में रहने देंगे। अपनी वैन जहां खड़ी है, नोटों वाले सूटकेस उस में रखकर अपने रास्ते पर चले जाएंगे।" कृष्णकांत ने सिगरेट सुलगा ली।

"हीरे निकाल इसकी जेब से---।"

कृष्णकांत हीरे निकालने लगा तो नसीमा ने अपना हाथ हीरों वाली जेब पर रख दिया।

"पूर्बी!" कृष्णकांत बोला--- "कहती है मेरे हीरे मत निकालो।"

"औरत जात है। नखरे तो दिखाएगी।" पूर्बी ने नसीमा को सिर से पांव तक देखा--- "कृष्ण---!"

"हां।"

"मजे लें---?" पूर्बी की आंखों में एकाएक चमक आ गई थी।

"वैन में ही---।"

"बढ़िया जगह है।"

"गोम्स साला कहेगा कि वो सूखा रह गया।" कृष्णकांत की निगाह भी नसीमा के बदन पर फिरने लगी।

"साले को वैन चलाने दे। हम---।"

"ये तो शोर कर डालेगी और---।"

"हाईवे पर, सौ की रफ्तार से दौड़ती वैन से उठने वाले शोर को सुनने के लिए बाहर क्या इसकी मां बैठी है।" पूर्बी कड़वे स्वर में कह उठा--- "वैसे दो मिनट के बाद शोर डालना बंद कर देगी।"

"रुक जरा। इसकी तलाशी लेने दे। युवराज पाटिल ने से भेजा है। इसके पास हथियार अवश्य होगा।" कहने के साथ ही कृष्णकांत ने तलाशी लेकर, स्कर्ट में फंसी रिवाल्वर ली--- "देखा, अगर मैं इसकी तलाशी ना लेता तो पहला मौका मिलते ही इसने हमें शूट कर देना था। युवराज पाटिल की भेजी है तो खतरनाक होगी ही।" कहने के साथ ही कृष्णकांत ने रिवाल्वर अपनी जेब में डाल ली।

नसीमा जोरों से हिली। हाथ के इशारे से मुंह पर रखा हाथ हटाने को कहा।

"तड़प रही है।" पूर्बी दांत फाड़कर हंसा।

कृष्णकांत की कठोर निगाह नसीमा के चेहरे पर जा टिकी।

"तेरे हाथ मुंह से हाथ हटाया जा रहा है, अगर चीखी-चिल्लाई तो उसी वक्त तुझे शूट कर देंगे। हाईवे पर गोली की आवाज सुनने वाला कोई नहीं होगा।" उसकी आंखों में दरिंदगी आ गई थी।

नसीमा ने आंखों से इशारा किया कि वो शोर नहीं डालेगी।

कृष्णकांत के इशारे पर पूर्बी ने अपने होंठों पर से हथेली हटा ली थी। खुद कुर्सी पर पीछे हट कर, जमकर बैठ गया। हाथ में दबी रिवाल्वर का रुख, नसीमा की तरफ ही रखा। वो सतर्क था।

वैन के फर्श पर पड़ी नसीमा ने चंद गहरी सांसें लीं फिर उठ बैठी।

"आज का दिन ही मुसीबतों वाला है।" कहते हुए नसीमा के होंठों पर मुस्कान उभर आई।

कृष्णकांत और पूर्बी की नजरें मिलीं।

"ये पागल तो नहीं है।" पूर्बी होंठ सिकोड़कर कह उठा।

"मैं तुम्हें किस तरफ से पागल लगती हूं।" नसीमा ने उसे देखा।

"तुम हमारी बातें सुन चुकी हो। हम तुमसे मजे लेकर, तुम्हारी हत्या करने जा रहे हैं।"

"मालूम है। पर क्या तुम लोग, मेरे हाथ-पांव जोड़ने पर, मुझे छोड़ दोगे?"

"कभी नहीं?"

"तो फिर रोने से क्या फायदा---?"

"पूरी तो नहीं। आधी पागल है।" कृष्णकांत ने कश लिया।

नसीमा ने गंभीर होते हुए दोनों को देखा।

"तुम लोग जो कर रहे हो, अपने चीफ के इशारे पर कर रहे हो। इसमें तुम्हारी गलती नहीं है। लेकिन युवराज पाटिल को तुम लोग ठीक से नहीं जानते। शायद तुम्हारा चीफ भी ठीक से नहीं जानता।" नसीमा का स्वर शांत था।

"शिक्षा दे रही है। ग्रहण कर ले।" पूर्बी ने व्यंग्य भरे लहजे में कहा।

"युवराज पाटिल मुंबई में दम-खम रखता होगा, पूना में---।"

"भूल में हो।" नसीमा बात काटकर कह उठी--- "युवराज पाटिल अपने आप हस्ती रखता है। उसके दिमाग तक कोई नहीं पहुंच सकता। उसने मुझे सत्तर लाख के हीरे देकर अकेले भेजा तो सोच-समझकर ही भेजा होगा। मुंबई हो या पूना उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। युवराज पाटिल के संगठन का जर्रा-जर्रा मजबूत है। तब ना तो तुम्हारा चीफ बचेगा और ना ही तुम लोग। वो तुम लोगों के परिवारों को भी खत्म कर देगा। युवराज पाटिल का कहना है कि जिसे खत्म करो तो, उसके पीछे वालों को भी खत्म कर दो, ताकि कभी कोई संपोला, सांप बनकर फिर कभी रास्ते में ना आ जाए। मैं तुम लोगों को यही सलाह दूंगी कि युवराज पाटिल के खिलाफ कभी भी...।"

पूर्बी!" कृष्णकांत ने कड़वे स्वर में कहा--- "ये तो हमें डरा रही है। तेरे को डर नहीं लग रहा।"

"मैंने दो दिन पहले ही डर ना लगने वाला इंजेक्शन लगवाया था।" पूर्बी व्यंग से हंसा--- "इसलिए कुछ दिन मुझे डर नहीं लगेगा। ये तो युवराज पाटिल का हौवा बनाकर बता रही है।"

"तुम लोग मेरी बात को मजाक समझ---।"

"छोड़ बेकार की बातों को।" पूर्बी रिवाल्वर निकालकर कड़वे स्वर में कह उठा--- "ये बता कि तू कपड़े खुद उतारेगी या ये कष्ट हमें ही उठाना होगा? टैम नहीं है। जल्दी बता।"

"मैं खुद ही उतार दूंगी। तुम कष्ट क्यों करते हो।" कहते हुए नसीमा खड़ी हो गई--- "बताना तो नहीं चाहिए। लेकिन इस वक्त बता देना जरूरी है कि तुम्हारे चीफ के आदमियों में युवराज पाटिल के कई आदमी हैं। युवराज पाटिल का एक इशारा मिलते ही उन्होंने तुम्हारे चीफ के साथ-साथ तुम लोगों को भी---।"

"कपड़े उतार।" पूर्बी गुर्रा उठा।

नसीमा ने दोनों को बारी-बारी देखा।

"आज पहली बार है कि मुझे अपनी मर्जी के बिना इस तरह कपड़े उतारने पड़ रहे हैं। लेकिन इसका मुझे अफसोस नहीं है। यह ठीक है कि तुम मेरी हत्या करने वाले हो। लेकिन मैं जानती हूं युवराज पाटिल इस धोखेबाजी और मेरी मौत का तुम लोगों से ऐसा बदला लेगा कि---।"

तभी वातावरण में फायर की मध्यम-सी आवाज गूंजी।

वैन की बॉडी से गोली टकराने की आवाज आई।

वैन भागती रही।

कृष्णकांत और पूर्बी की नजरें मिलीं।

"पेट्रोल पम्प पर इसके साथी थे।" कृष्णकांत दांत भींचकर कह उठा--- "अब वो हमारे पीछे हैं।"

"तुम ठीक कहते हो। तब उसने कहा, ये वहां अकेली है। हमें वो जगह चैक करनी चाहिए थी।" पूर्बी के होंठों से निकला।

नसीमा की आंखों के सामने देवराज चौहान का चेहरा नाच उठा।

तभी गोम्स का स्वर उसके कानों में पड़ा।

"कोई कार हमारे पीछे है। वहीं से वैन पर गोलियां चलाई जा रही हैं।"

"तू वैन भगाता रह। कार से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर---।" पूर्बी गुर्रा उठा।

"हाईवे पर किस तरह पीछा छुड़ाऊं।"

"जो भी कर। कुछ कर---।"

वैन की रफ्तार और तेज होने लगी।

कृष्णकांत ने रिवाल्वर निकाल ली।

"पेट्रोल पम्प पर युवराज पाटिल के कितने आदमी थे?" कृष्णकांत ने खा जाने वाले स्वर में पूछा।

"एक भी नहीं।" नसीमा के होंठों से निकला।

"झूठ बोलती है हरामजादी।" पूर्बी दांत किटकिटा उठा--- "वहां युवराज पाटिल के आदमी थे। तभी तो इतनी जल्दी वो हमारे पीछे लग गए। तभी तू डर भी नहीं रही थी, अपनी मौत की बात सुनकर---।"

"मैं सच कह रही हूं। पेट्रोल पम्प पर युवराज पाटिल का कोई आदमी नहीं था। मैं वहां अकेली आई थी।

नसीमा की आवाज में दृढ़ता को महसूस करके, दोनों एक-दूसरे को देखने लगे।

"ये सच कहती भी हो सकती है।" कृष्णकांत विश्वास-अविश्वास में फंसा, कह उठा।

"ये झूठ भी हो सकती है।" पूर्बी ने खा जाने वाली निगाहों से नसीमा को देखा।

"विश्वास कर लो मेरा।" नसीमा ने शांत स्वर में कहा--- "पीछे जो भी है, वो युवराज पाटिल का आदमी नहीं हो सकता।"

तभी उनके कानों में पुनः फायर की आवाज गूंजी।

इस बार शायद गोली वैन से नहीं टकराई।

कृष्णकांत और पूर्बी के चेहरे दरिंदगी से भर उठे थे।

"जो भी हमारे पीछे हैं, इस हाईवे पर उसका मुकाबला किए बिना, उससे छुटकारा नहीं पाया जा सकता।"

"कर लेंगे मुकाबला---।"

"वो ज्यादा लोग हो सकते हैं।" कृष्णकांत ने दांत भींचे।

"गोम्स!" पूर्बी ऊंचे स्वर में बोला--- "कितने लोग हैं हमारे पीछे?"

"एक कार है। भीतर भी शायद एक ही बैठा है।" गोम्स की आवाज आई।

"एक---।"  वहशी स्वर में कह उठा पूर्बी--- "कोई दिक्कत नहीं। अभी उससे छुटकारा पा लेते हैं।"

"ये भी हो सकता है कि किसी को इस सौदे की खबर लग गई हो और वो हमसे माल छीनना चाहता हो।"

"कृष्ण! अगर ये बात होती तो अकेला नहीं होता। पांच-दस लोग तो कम से कम होते ही---।"

"और अगर युवराज पाटिल के आदमी पेट्रोल पम्प पर होते तो वो दो-चार अवश्य होते। इस लड़की की सहायता के लिए युवराज पाटिल अकेले आदमी को तो पेट्रोल पम्प पर छुपाकर नहीं रखता।"

दोनों एक-दूसरे को देखते रहे।

नसीमा शांत खड़ी उन्हें देख-सुन रही थी।

"मेरे ख्याल से किसी को अचानक ही हमारे इस सौदे की खबर लग गई और वो आनन-फानन हमसे माल छीनने के लिए आ गया। यही हो सकता है।" पूर्बी ने कहा।

"जो भी हो। अभी सच सामने आ जाएगा। पीछे आने वाला अकेला है।" कृष्णकांत ने मौत भरे स्वर में कहा फिर नसीमा से बोला--- "हीरे मेरे हवाले करो।"

इस वक्त इंकार करना ठीक नहीं था। हालात बिगड़े हुए थे। नसीमा ने खामोशी से स्कर्ट की जेब से हीरों की थैली निकाली और उसे दी। कृष्णकांत ने थैली जेब में डाल ली। नसीमा को पूरा विश्वास था कि पीछे आने वाला वही व्यक्ति है, जिसने पेट्रोल पम्प पर, ओमी से बचाया था और जो केबिन में था। लेकिन ये बात भी सोच रही थी कि इन लोगों से वो निपट पाएगा कि नहीं?

"गोम्स।" कृष्णकांत की आवाज में खूंखारता थी। स्वर ऊंचा था।

"हां।" ड्राइविंग केबिन से गोम्स का स्वर आया।

"कोई ठीक जगह देखकर वैन साईड कर। पीछे वाले से निपटना है।"

"ठीक है।"

कृष्णकांत ने खा जाने वाली निगाहों से नसीमा को देखा।

"तुम वैन के भीतर रहोगी। दरवाजा हम बाहर से बंद कर देंगे। समझी क्या?"

नसीमा ने हौले से सिर हिला दिया।

कुछ पलों बाद ही ऐसा लगा जैसे वैन ने मुख्य सड़क छोड़ दी हो। वैन जोरों से दाएं-बाएं हिलने लगी। वैन के पीछे वाले हिस्से में खड़े तीनों खुद को संभाले रहे।

"वैन को रोक रहा हूं।" गोम्स की आवाज आई--- "कार अभी पीछे नहीं है।"

"ठीक है।"

तभी वैन रुकी।

रिवाल्वर थामें कृष्णकांत और पूर्बी जल्दी से वैन का दरवाजा खोलकर बाहर कूदे और पलटकर वैन का दरवाजा बंद करते हुए, बाहर से कुंडी लगाई और इधर-उधर देखा। सामने ही जौहड़ था। बरसात का पानी इकट्ठा हुआ, तालाब जैसा लग रहा था। इधर-उधर पेड़ और झाड़ियां थीं। दोनों ने रिवाल्वरें थामें भागते हुए अपनी पसंदीदा जगहों पर ओट ले ली।

तब तक गोम्स भी वैन से बाहर आ चुका था। रिवाल्वर हाथ में नजर आ रही थी। चेहरे पर कठोरता थी। इधर-उधर देखने के पश्चात उसने कुछ दूर नजर आ रहे मिट्टी के टीले के पीछे ओट ले ली।

सन्नाटा और चुप्पी छा चुकी थी वहां।

सिर्फ वैन खड़ी नजर आ रही थी।

■■■

देवराज चौहान ने कार की स्पीड कम कर ली।

जहां से वैन ने सड़क छोड़ी थी। देवराज चौहान ने उससे पहले ही कार को सड़क के किनारे रोका और इंजन बंद करके बाहर निकला। यहां से वैन नजर नहीं आ रही थी। ढलान के कुछ आगे पेड़ थे। वैन उन पेड़ों के पीछे पहुंच चुकी थी। देवराज चौहान कार वहीं छोड़कर पैदल ही कच्चे रास्ते में बढ़ता चला गया। वैन आगे से मुड़ी थी और वो कुछ पहले ही मुड़कर कच्चे में चला गया था। रिवाल्वर जेब में रख ली थी।

कुछ आगे पेड़ों के पार पहुंचकर देवराज चौहान ठिठका। अब उसे दाईं तरफ जाना था। जिधर वैन थी। देवराज चौहान को पूरा विश्वास था कि हाईवे पर फासला होने की वजह से वैन वालों में उसे नहीं देखा होगा। ऐसे में अब अगर सामने पहुंच पाए तो, नहीं पहचाना जा सकता कि, वही उनके पीछे हैं।

देवराज चौहान के इस ख्याल में थोड़ा-सा खतरा अवश्य था, परंतु वो इस खतरे को उठाने का फैसला कर चुका था। अभी उस तरफ जाने की अपेक्षा देवराज चौहान कुछ और आगे सीधा गया फिर दाईं तरफ मुड़कर लापरवाही भरे ढंग से आगे बढ़ने लगा। लेकिन उसकी छिपी निगाह हर तरफ थी।

करीब पांच मिनट बाद उसे तालाब नजर आने लगा।

वो तालाब के इस तरफ था। तालाब के दूसरी तरफ कुछ दूर हाईवे था। यानि कि उसे देखने वाला एकाएक ये नहीं सोच सकता था, वो हाईवे की तरफ से आया होगा।

कुछ आगे बढ़ा तो झाड़ियों के पीछे उसे छिपा-बैठा पूर्बी नजर आया। उसकी पीठ इस तरफ थी। देवराज चौहान कई पलों तक वहां खड़ा उसे देखता रहा। फिर एकाएक ऊंचे स्वर में पुलिसिया ढंग में कह उठा।

"ऐ! कौन है तू? खड़ा हो जा।"

पूर्बी हड़बड़ाकर जल्दी से खड़ा हुआ और पीछे देखा। हाथ में रिवाल्वर थी।

देवराज चौहान दोनों हाथ जेबों में डाले कठोर निगाहों से उसे देख रहा था।

"तो तू है वो हत्यारा, जिसने कल यहां तीन-तीन खून किए थे। मैं जानता था कि पेड़ के पीछे छुपा रखे दो लाख लेने तो जल्दी ही आएगा। तेरे लिए ही मैंने पुलिस का पहरा यहां लगवाया था। पकड़ा ही गया तू---।"

"पुलिस?" पूर्बी के होंठों से निकला।

"रिवाल्वर फेंक दे। मैं सब-इंस्पेक्टर सुरेंद्र पाल हूं। तीन-तीन खून करके तू बच नहीं सकता।" पुलिसिया कठोर स्वर में कहने के साथ ही देवराज चौहान ने रिवाल्वर निकाल ली--- "खबरदार! मुझ पर गोली चलाने की मत सोचना। कई पुलिस वाले पास ही इधर-उधर की छानबीन कर रहे हैं। वो तेरे को भून देंगे।"

पूर्बी हड़बड़ाया खड़ा था। कुछ पल तो समझा ही नहीं कि क्या हो गया है।

"म-मैंने कोई खून नहीं किया।" पूर्बी के होंठों से निकला।

"थाने चलकर सब बोलेगा तू। रिवाल्वर फेंक दे। तेरे जैसों को मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं।"

"मैं सच कहता हूं इंस्पेक्टर साहब, मैंने कोई खून नहीं किया।"

"नहीं किया तो यहां क्या रिवाल्वर लेकर बारात में आया है।" देवराज चौहान उखड़े स्वर में कह उठा--- "कल ही सारा दिन लगाकर तीन लाशें उठाईं।

"मेरे दोस्तों से पूछ लो। हम तो यहां पहली बार आए...।"

"दोस्त-कहां हैं दोस्त-किधर हैं?"

"कृष्ण---!" पूर्बी ने ऊंचे स्वर में पुकारा--- "बाहर आना।"

एक पेड़ की ओट से कृष्णकांत बाहर आया। उसके चेहरे पर उलझन और हाथ में रिवाल्वर थी।

"गोम्स! तू भी आ।" पूर्बी ने ऊंचे स्वर में पुकारा।

गोम्स भी बाहर आ गया।

"ये पुलिस वाले हैं और कहते हैं कल हमने यहां तीन-तीन खून किए हैं।" पूर्बी कह उठा।

"हूं। तो पूरा गैंग है यहां पर। सबके पास रिवाल्वरें---।"

"हम शरीफ लोग हैं।" कृष्णकांत ने कहा--- "हम---।"

"वो तो मैं देख रहा हूं कि तुम लोग कितने शरीफ हो। अपनी रिवाल्वरें नीचे फेंक कर बात करो। पुलिस के सामने हथियार पकड़कर बात करने का मतलब जानते हो।" देवराज चौहान इस वक्त बिलकुल पुलिस वालों की तरह बोल रहा था कि, वो घिसे हुए तीनों भी उस पर शक ना कर सके।

तीनो ने एक-दूसरे को देखा फिर रिवाल्वरें नीचे गिरा दीं। उन्हें इस वक्त ये बात परेशान कर रही थी कि कुछ दूर खड़ी वैन के भीतर, वो लड़की शोर ना कर दे। या फिर वैन की तलाशी लेकर, सूटकेसों में मौजूद तीस करोड़ के बारे में ये पुलिस वाला ना जान ले। जेब में मौजूद सत्तर करोड़ के हीरों की थैली का इस पुलिस वाले को पता ना चल जाए। अभी तक वो यही समझ रहे थे कि आसपास और भी पुलिस वाले हैं। तभी वो चुप थे। अगर मालूम होता कि सामने वाला अकेला है तो अब तक निपटा दिया गया होता।

ये बात तो वे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि यही इंसान उनका पीछा कर रहा था।

"इकट्ठे खड़े हो जाओ और बताओ, यहां क्या कर रहे थे?"

तीनों पास-पास आकर खड़े हुए। गोम्स कह उठा।

"इंस्पेक्टर...इंस्पेक्टर साहब---।"

"सब-इंस्पेक्टर सुरेंद्र पाल---।"

"हां-हां---वही। मैं---।"

आगे वो कुछ भी नहीं कह सका।

देवराज चौहान के हाथ में दबी रिवाल्वर से एक के बाद एक तीन शोले निकले। गोलियां चलने की तीव्र आवाज आई। गोम्स के चेहरे को उड़ा गई गोली। कृष्णकांत के छाती में लगी और पूर्बी के कंधे में। गोम्स और कृष्णकांत को तो दोबारा सांस लेने का भी मौका ना मिल पाया।

परंतु पूर्बी कंधे पर हाथ रखकर चीखते हुए नीचे जा गिरा। वो बराबर चीखता जा रहा था और तड़पे जा रहा था। देवराज चौहान ने दांत भींचकर एक बार फिर निशाना लिया। गोली उसके सिर में लगी और वो शांत पड़ गया। इसके साथ ही गहरा सन्नाटा छा गया था। सामने तीन लाशें पड़ी थी जो कि कुछ समय पूर्व ही चल-फिर रहे थे। दरिंदगी मचल रही थी, देवराज चौहान की आंखों में।

फिर देवराज चौहान की निगाह वैन की तरफ गई। वो नहीं जानता था कि वैन के भीतर नसीमा के साथ क्या हुआ। रिवाल्वर जेब में डालने के पश्चात वो वैन के पास पहुंचा और सिटकनी हटाकर वैन का दरवाजा खोला।

सामने ही नसीमा खड़ी थी। उसके चेहरे के भाव ये बात स्पष्ट जाहिर कर रहे थे, वो जानने को बेताब थी कि बाहर क्या हो रहा है। देवराज चौहान को सामने देखकर, नसीमा की आंखें सिकुड़ी फिर उसके होंठों पर मुस्कान फैल गई।

"तुमने एक बार फिर मेरी जान बचाई।" नसीमा मुस्कुरा कर बोली।

"जब वो लोग तुम्हें जबर्दस्ती वैन में डालकर ले गए तो मैं समझ गया कि उनके मन में बेईमानी आ गई है। ऐसे में तुम्हें बचाने का फर्ज मेरा बनता था आओ।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।

"तुम सामने हो तो इसका मतलब वो तीनों अब नहीं रहे।" नसीमा वैन से बाहर आते हुए बोली।

"तीनो उधर हैं।"

बाहर आकर नसीमा ने उस तरफ देखा। कुछ दूर पड़ी उनकी लाशें स्पष्ट नजर आ रही थीं। वो लाशों के पास गई। कृष्णकांत की जेब से हीरों की थैली निकालकर स्कर्ट की जेब में डाल ली।

"तुम्हारा निशाना शानदार है। उन्हें खत्म करने में तुमने गोलियां बर्बाद नहीं कीं---।" पास आकर नसीमा ने कहा।

देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली।

"तीनों खतरनाक थे। एक साथ कैसे शूट किया तीनों को। कुछ आवाजें मुझ तक आ रही थीं, परंतु समझ नहीं पाई उन बातों को।" नसीमा की उत्सुकता से भरी सवालिया निगाह उस पर जा टिकी।

"तुम वक्त बर्बाद कर रही हो। यहां रुकना ठीक नहीं।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।

"हां।" नसीमा ने गहरी निगाहों से उसे देखा--- "ठीक कहते हो। लेकिन वैन में पड़े तीनों सूटकेस साथ ले जाने हैं।"

"यहां कहां जाना है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"उसी पेट्रोल पम्प पर छोड़ देना।"

"उधर हाईवे पर, कुछ पीछे मेरी कार खड़ी है। उसे पहचानती हो तुम। ले आओ और सूटकेस में रख लो।"

नसीमा सिर हिलाकर, सड़क की तरफ बढ़ गई।

■■■

एक घंटे बाद कार वापस पेट्रोल पम्प पर रुकी।

एक सूटकेस डिग्गी में था और दो पीछे वाली सीट पर।

"सूटकेस बाहर निकाल लो।" देवराज चौहान ने कहा--- "अब मैं रुकना नहीं चाहता।"

नसीमा उसे देखकर मुस्कुराई।

"लगता है दो बार मेरी जान बचाकर डर रहे हो कि तीसरी बार कोई मुसीबत ना आ जाए।"

"मुझे मुंबई पहुंचना है।"

"कोई बात नहीं। एक छोटी-सी मेहरबानी मुझ पर करो। सिर्फ आधा घंटा मेरे साथ और रह लो। पूरे एक अरब रुपए का माल है मेरे पास। दो बार मैं आज जाने क्यों मुसीबत में फंसते-फंसते बची हूं। आधे घंटे में कुछ लोग आकर, ये सब ले जाएंगे, फिर चले जाना।" नसीमा की निगाह उस पर थी।

देवराज चौहान ने उसे देखा।

"मैं जानता हूं इस तरह तुम्हें रुकने को कहना गलत बात है, लेकिन---।"

देवराज चौहान ने इंजन बंद किया और कार से बाहर आ गया।

"शुक्रिया।" नसीमा खुलकर मुस्कुराई।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

दोनों केबिन में पहुंचे। नसीमा ने सबसे पहले नम्बर मिलाकर फोन पर बात की।

"ठाकुर---।" किसी को पेट्रोल पम्प पर भेजो। मेरे पास एक अरब रुपए का माल है। वो ले जाना है।"

"क्या मतलब? तुम तो---।"

"ठाकुर---।" सख्त सा हुआ नसीम का स्वर--- "मेरी बात सुनी---?"

"हां---।"

"एक अरब का माल यहां से ले जाने के लिए जिम्मेवार लोगों को भेजना। बाकी बातें बाद में। कितनी देर लगेगी?"

"हमारे कई आदमी उधर ही हैं। पन्द्रह मिनट में तुम्हारे पास पहुंच जाएंगे।" ठाकुर की आवाज कानों में पड़ी।

नसीमा ने रिसीवर रख दिया।

कुर्सी पर बैठा देवराज चौहान उसे ही देख रहा था।

कुर्सी पर बैठते हुए नसीमा मुस्कुराई फिर बोली।

"यहां खाने-पीने का इंतजाम नहीं है।"

"मेरी इच्छा भी नहीं है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

"तुमने खुद को खतरे में डालकर, दो बार मेरी जान बचाई है। मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहती हूं।"

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

"अपनी मेहनत की एवज में तुम्हें युवराज पाटिल की तरफ से मुनासिब रकम मिल सकती है।" नसीमा बोली।

"तुम मुसीबत में फंसी थीं। मैंने तुम्हारी मदद कर दी। पैसों के लिए मैंने ये काम नहीं किया।"

"हूं।" नसीमा खुलकर मुस्कुराई--- "ठीक है, पैसों के लिए ना सही। अब अगर मैं दस-पन्द्रह दिन तुम्हारे साथ रहना चाहूं, तुम्हारे बैड पर आना चाहूं तो क्या मना करोगे? नहीं करोगे ना।"

देवराज चौहान की नजरें नसीमा पर जा टिकीं।

"यकीन मानो। मैं युवराज पाटिल के लिए काम अवश्य करती हूं लेकिन मेरे शरीर के साथ कोई खेलता नहीं है। युवराज पाटिल औरतों की इज्जत करता है। मेरी मर्जी के बिना कोई मुझे छू भी नहीं सकता। ये मत समझ लेना कि मैं हर किसी का स्वागत करती रहती हूं। मैं इज्जतदार हूं। तभी तुम्हारे एहसान को थोड़ा सा उतारना चाहती हूं जोकि दो बार तुमने मेरी जान बचाकर किया है।" नसीमा का स्वर शांत था।

देवराज चौहान मुस्कुराया।

नसीमा भी मुस्कुरा पड़ी।

"तो ये पक्का रहा कि अगले पन्द्रह दिन हम साथ रहेंगे और---।"

"मुझे खुशी होगी, अगर ऐसी बात तुम दोबारा मुझसे ना करो।" देवराज चौहान बोला।

नसीमा की आंखें सिकुड़ी। चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे। वो देवराज चौहान को देखती रही।

देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली।

"क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम अजीब आदमी हो---?" नसीमा के होंठों से ठहरा स्वर निकला।

"नहीं। मैं अजीब नहीं। ठीक आदमी हूं---।" देवराज चौहान ने उसे देखा।

केबिन में कई पलों तक खामोशी रही।

"तुम कोई शरीफ आदमी नहीं हो।" नसीमा ने सिर हिलाकर कहा--- "तुमने दो बार मेरी जान बचाई। तीन की जान तुमने पहले ली और तीन की ही बाद में। आसानी से छः को मार दिया और माथे पर शिकन नहीं।"

"तो क्या शिकन होनी चाहिए?"

"मेरा ये मतलब नहीं था।" नसीमा ने सिर हिलाकर कहा।

"क्या कहना चाहती हो तुम?" देवराज चौहान नसीमा को देखने लगा।

"सिर्फ ये कि एक अरब रुपए का माल तुम्हारे सामने है। सत्तर करोड़ के हीरे और तीस करोड़ नकद सूटकेसों में। रिवाल्वर तुम्हारे पास है। सिर्फ एक बार ट्रेगर दबाने में तुम हाथों-हाथ एक अरब रुपया कमा सकते हो।"

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।

"लालच दे रही हो मुझे?"

"नहीं। सवाल कर रही हूं तुमसे कि अभी तक तुमने ये सब क्यों नहीं किया?" नसीमा बोली।

"इसके दो कारण हैं?"

"क्या?"

"एक तो यह कि जिसकी मैंने जान बचाई। उसी की जान लूं। ये बात किसी भी तरफ से ठीक नहीं। बिना कारण मैं कभी भी किसी की जान नहीं लेता।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

"खूब। किसी की जान लेने के लिए, एक अरब रुपया कारण नहीं है क्या?" नसीमा कुछ हैरान हुई।

"मेरी निगाहों में नहीं---।"

देखती रही नसीमा, देवराज चौहान को। फिर बोली।

"और दूसरी वजह?"

"किसी से कोई चीज छीन लेना, मेरी फितरत में शामिल नहीं है।"

"मैं किसी चीज की नहीं। एक अरब रुपए की बात कर रही हूं।" नसीमा के होंठों से निकला।

"मेरे लिए एक ही बात है।"

"ऐसा इंसान मैंने अब तक नहीं देखा शायद कभी देख भी नहीं पाऊंगी।" नसीमा के चेहरे पर अजीब से भाव नजर आने लगे थे। हैरानी ही हैरानी थी उसकी आंखों में।

उसके चेहरे के भावों को देखकर देवराज चौहान मुस्कुराया।

कुछ पलों बाद नसीमा ने गहरी सांस ली फिर कह उठी।

"अच्छी बात है। अगर तुम चाहो तो मैं युवराज पाटिल के पास तुम्हें बढ़िया काम दिला सकती हूं। मुझे पूरा भरोसा है कि तुम जैसा दिलेर इंसान, बहुत जल्द युवराज पाटिल का सबसे खास आदमी बन जाएगा।"

देवराज चौहान खुलकर मुस्कुरा पड़ा।

नसीमा के चेहरे पर एक बार फिर हैरानी उभरी।

"क्या हुआ-- मैंने कुछ गलत कर दिया क्या?".

"तुम मेरे लिए कुछ करना चाहती हो, क्योंकि मैंने दो बार तुम्हारी जान बचाई।" देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान थी--- "और तुम जो-जो भी मेरे लिए करना चाहती हो, उसमें से मुझे किसी भी बात में दिलचस्पी नहीं।"

नसीमा के हैरानी भरे चेहरे के होंठ सिकुड़ गए। वो पैनी निगाहों से देवराज चौहान को देखती रही। करीब मिनट भर की खामोशी के बाद कह उठी।

"मेरे ख्याल में तुम कुछ खास हो। कौन हो तुम?" नसीमा का लहजा उलझन से भर उठा था।

"देवराज चौहान---।"

"देवराज चौहान? कौन देवराज चौहान?" नसीमा के होंठ हिले।

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

दूसरे ही पल नसीमा से चिंहुककर कुर्सी से उछलने वाले अंदाज में खड़ी होती चली गई।

"तुम-तुम देवराज चौहान। डकैती मास्टर देवराज चौहान। व-वही हो ना तुम। हां वही हो। मैंने कई बार अख़बारों में तुम्हारी तस्वीर देखी है। ओह---  तभी तो मुझे तुम्हारा चेहरा पहचाना सा लग रहा था। ओह माई गॉड मेरे सामने देवराज चौहान जैसी खतरनाक शख्सियत बैठी है।"

देवराज चौहान गहरी सांस लेकर रह गया।

तभी बाहर किसी वाहनों के आ ठहरने की आवाजें आईं।

दोनों ने शीशे के दरवाजे से बाहर देखा। आने वाली दो कारें। दोनों कारों में से करीब सात आदमी बाहर निकले। देवराज चौहान ने नसीमा को देखा।

"युवराज पाटिल के आदमी हैं ये।" नसीमा अपने पर काबू पाते हुए कह उठी।

दो ने दरवाजा धकेल कर भीतर प्रवेश किया। वहां देवराज चौहान को देखकर ठिठके। नसीमा अभी तक पूरी तरह संयत नहीं हुई थी कि सामने देवराज चौहान बैठा है।

"सब ठीक है?" नसीमा के चेहरे के भावों को देखकर, एक ने पूछा। उसका हाथ जेब में चला गया था।

नसीमा ने सहमति से सिर हिलाया।

"हां। बाहर जो कार खड़ी है, उसमें तीन सूटकेस हैं। तीस करोड़ रुपया है उनमें।" धीमे स्वर में कहते हुए नसीमा ने स्कर्ट की जेब से हीरों की थैली निकाली--- "और इसमें सत्तर करोड़ के हीरे हैं। हिफाजत से ले जाओ।"

उसने थैली थाम ली। एक निगाह देवराज चौहान पर मारी।

"आप शायद ठीक नहीं लग रहीं नसीमा जी। अगर कोई बात है तो बता दीजिए। इसे हम संभाल लेंगे।" वो पुनः बोला।

नसीमा के होंठों पर छोटी सी मुस्कान उभरी।

"किसी वहम में मत पड़ो। मैं ठीक हूं। तुम लोग सामान लेकर जाओ।"

दोनों जाने के लिए पलटने लगे कि नसीमा कह उठी।

"ध्यान से जाना। एक अरब रुपए का माल है तुम लोगों के पास। रास्ता भूल मत जाना।"

दोनों ने नसीमा को देखा।

"हमें रास्ता याद है।" दूसरा कह उठा।

"वहां पहुंचकर ठाकुर से मिलना।"

दोनों बाहर निकल गए।

देवराज चौहान और नसीमा की निगाहें बाहर ही रहीं।

वो तब तक बाहर उन्हें ही देखते रहे, जब तक कि बाहर वालों ने तीनों सूटकेस अपनी कार में नहीं रखे और वो दोनों पेट्रोल पम्प से निकलकर निगाहों से ओझल नहीं हो गई।

देवराज चौहान और नसीमा की नजरें मिलीं।

"मैं जा रहा हूं।" देवराज चौहान उठा--- "मुझे मुम्बई जाना है।"

नसीमा का चेहरा बता रहा था कि उसके मस्तिष्क में सोचों ने तेज रफ्तार पकड़ रखी है।

"जल्दी है जाने की---।" नसीमा के होंठ खुले।

"यहां मेरा कोई काम नहीं है और मेरे पास इतना वक्त नहीं कि---।"

"देवराज चौहान जैसे डकैती मास्टर को अपने सामने पाकर, मैं बहुत ही अजीब सा महसूस कर रही हूं।" नसीमा एक-एक शब्द पर जोर देते हुए सोच भरे स्वर में कह उठी--- "तुमने दो बार मेरी जान बचाई है।"

"मैंने तुम पर कोई एहसान नहीं किया। जो हुआ, तुम्हें भूल जाना चाहिए।" देवराज चौहान ने कहा--- "वापस जाकर इस बारे में युवराज पाटिल से बात करनी चाहिए। ओमी तो अब नहीं रहा। और जिस पार्टी ने लेन-देन में गड़बड़ की है। उससे युवराज पाटिल अपने ढंग से बात करेगा।"

"तुम ठीक कहते हो। जो तुमने कहा, वो युवराज पाटिल का ही मामला है।" नसीमा सिर हिलाते हुए मुस्कुराकर कह उठी--- "लेकिन यहां पर युवराज पाटिल मेरी जान नहीं बचा सकता था। यहां तुमने ही मेरी जान बचाई। इसलिए तुम्हारा और मेरा, एक अलग मामला पैदा हो गया है। अपनी जान बचाने के बदले मैं तुम्हारे किसी काम आना चाहती हूं लेकिन मेरी कही किसी भी बात में तुम्हारी दिलचस्पी पैदा नहीं हुई। और ये बाद में मालूम हुआ कि तुम देवराज चौहान हो। ऐसे में मेरी कही उन बातों में तुम्हारी दिलचस्पी पैदा भी नहीं हो सकती। जबकि अभी भी मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहती हूं।

देवराज चौहान खुलकर मुस्कुराया।

"तुम बेकार में, मेरे लिए कुछ करने की सोचकर परेशान हो रही हो। वैसे मेरे ख्याल में मैंने तुम्हारे लिए ऐसा कुछ भी नहीं किया कि तुम ये सब बातें सोचो। चलता हूं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान पलटा और आगे बढ़ते हुए दरवाजा धकेलकर बाहर निकला।

इससे पहले कि दरवाजा बंद होता, नसीमा ने फौरन आगे बढ़कर दरवाजा पकड़ा।

"सुनो---।"

देवराज चौहान ठिठका। गर्दन घुमाकर नसीमा को देखा।

"सिर्फ पांच मिनट।" नसीमा का चेहरा गंभीर और आंखों में सोचें दौड़ रही थीं--- "मेरी एक बात और सुन लो। अगर इसमें भी तुम्हारी दिलचस्पी न हुई तो मैं फिर तुम्हारा वक्त खराब नहीं करूंगी।"

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

"प्लीज---।"

देवराज चौहान ने सिर हिलाया और वापस केबिन में आ गया। नसीमा कुर्सी पर बैठ गई। वो कुछ बेचैन-सी लग रही थी। उसने कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए देवराज चौहान से कहा।

"बैठ जाओ।"

बिना कुछ कहे देवराज चौहान बैठ गया।

नसीमा ने पहलू बदला।

देवराज चौहान की शांत निगाह पाटिल पर थी।

"देवराज चौहान!" नसीमा जैसे एक-एक शब्द पर जोर देकर कह उठी--- "मैंने तुम्हारे बारे में बहुत कुछ सुन रखा है। बहुत ही खूबसूरत और निराले अंदाज में योजनाबद्ध तरीके से डकैतियां डालते हो। तुम्हारे बारे में खबरें मैं दिलचस्पी से पढ़ती और सुनती हूं। तुम कभी डकैती में असफल नहीं हुए।"

"शायद हुआ हूं---।"

"मैंने तो कभी नहीं सुना---।" नसीमा ने देवराज चौहान के चेहरे पर निगाह मारी।

"मुझे मालूम है कि तुम ठीक कह रही हो कि तुमने कभी नहीं सुना।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "लेकिन उस डकैती को मैं असफल ही मानता हूं कि डकैती के बाद किसी वजह से सारी दौलत मेरे हाथ से निकल जाए और ऐसा कई बार मेरे साथ हुआ है और ऐसी खबर अखबार या पुलिस वालों को नहीं मिल पाती।"

"हां।" नसीमा ने सिर हिलाया--- "हो सकता है। लेकिन जो भी हो, मैंने तुम जैसा डकैती मास्टर कभी नहीं देखा। डकैतियां सफलता से करते हो। पुलिस को तुम्हारी तलाश है, लेकिन अपनी सावधानी के कारण बचे हुए हो। मैं ही क्या अंडरवर्ल्ड का हर छोटा-बड़ा तुम्हारा कायल है।"

देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से नसीमा को देखा।

"तुम कहना क्या चाहती हो?"

"मैं एक बार फिर तुम्हारा कमाल देखना चाहती हूं।" नसीमा मुस्कुरा पड़ी।

"क्या मतलब?"

सोचों में डूबी कुछ देर खामोश खड़ी रही नसीमा।

देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली।

"तुमने बिना किसी लालच के दो बार मेरी जान बचाई। ये बात मैं कभी नहीं भूल सकती। यही वजह है कि मैं तुम्हारे किसी काम आना चाहती हूं। अगर काम आ सकी तो मुझे खुशी होगी।" नसीमा पुनः कह उठी--- "मैं तुम्हें ऐसी डकैती करने का मौका देना चाहती हूं कि अगर तुम कामयाब रहे तो, शायद हाथ आई दौलत की कीमत का अनुमान लगाने में ही तुम्हें कई दिन लग जाएं।"

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े। नजरें नसीमा पर जा टिकीं।

"पसंद आई मेरी बात?"

"आगे कहो---।" देवराज चौहान के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था।

नसीमा मुस्कुरा पड़ी।

"मेरे ख्याल में अब मैं सही रास्ते पर जा रही हूं। कम से कम मेरी बात तुम्हें सुनने के लायक तो लगी।" नसीमा कहने के साथ ही गंभीर-सी नजर आने लगी--- "युवराज पाटिल, मुंबई अंडरवर्ल्ड डॉन, जिस के कामों में मेरे खास अहमियत होती है। जिसकी ओहदेदार हूं मैं और अपने कामों में मेरी कीमत वो जानता है। वो ही युवराज पाटिल कुछ ही दिनों में अपना खास ठिकाना कहीं और बना रहा है और ये बात कोई नहीं जानता। उसका वो ठिकाना गुप्त होगा। पुलिस और दुश्मनों से बचने के लिए। युवराज पाटिल और मेरे अलावा इस बात को उसके दो अन्य खास ओहदेदार ठाकुर और वजीर शाह ही जानते हैं।"

देवराज चौहान नसीमा का एक-एक शब्द ध्यान से सुन रहा था।

"युवराज पाटिल की आदत है कि किसी भी काम में ज्यादा भीड़भाड़ इकट्ठी नहीं करता। अपनी सारी दौलत गुप्त ठिकाने पर ट्रांसफर करते वक्त भी उसने सिक्योरिटी का कोई इंतजाम नहीं रखा है। युवराज पाटिल का कहना है कि अगर सिक्योरिटी का इंतजाम रखेगा तो उसके गुप्त ठिकाने के बारे में सारे जान जाएंगे। जिस तक उसकी दौलत के सड़क पर पहुंचने की खबर  नहीं भी पहुंचनी, उस तक भी खबर पहुंच जाएगी और उसकी बड़ी दौलत को पाने के लिए अंडरवर्ल्ड के लोग जान हथेली पर रखकर भी उसे छीन ले जाने की चेष्टा करेंगे। इसलिए इतनी बड़ी दौलत को अपनी गुप्त जगह पर ले जाने का काम वो बहुत ही सही तरीके से कर रहा है। जब ऐसा होगा तो तब उस बेहिसाब दौलत की हिफाजत के लिए मैं, ठाकुर और वजीर शाह ही साथ होंगे। यानी कि अगर उस दौलत को ले जाए जाने की खबर कोई जान ले और सोच-समझकर कोई उस पर हाथ डालना चाहे तो आसानी से, खास परेशानी नहीं होगी, उस बे-हिसाब दौलत का मालिक बन सकता है।"

देखता रहा देवराज चौहान, नसीमा को।

नसीमा भी खामोश सी, उसे देखने लगी।

"मजा आया कुछ?" नसीमा एकाएक मुस्कुराई।

"हां। सुनकर अच्छा लगा। लेकिन तुम युवराज पाटिल से गद्दारी करने जा रही हो।" देवराज चौहान बोला।

"नहीं। मैं उस इंसान के काम आ रही हूं जिसने बिना वजह, बिना लालच के, खुद को खतरे में डालकर मेरी जान बचाई। वरना इस वक्त तक मैं जिंदा ना होती।" नसीमा ने गंभीर स्वर में कहा।

"युवराज पाटिल को मालूम हो गया तो तुम्हें छोड़ेगा नहीं।"

"इस बारे में सोचना मेरा काम है।"

देवराज चौहान ने सोच भरे ढंग में कश लिया।

"वो सामान किस तरह किस में ले जाया जाना है। ये बस बातें मैं तुम्हें एक-दो दिन में बता दूंगी। तुम बहुत ही आसानी से युवराज पाटिल की बेहिसाब दौलत को हासिल कर सकते हो, जो उसने गैरकानूनी काम करके कमाई है।"

"इस सारे मामले में तुम्हें क्या फायदा होगा?"

"मेरा फायदा हो चुका है।"

"कैसे?"

"मुझे जान का फायदा मिला है। वरना अब तक मैं मर चुकी होती। इस वक्त मैं तुम्हारे फायदे की सोच रही हूं।"

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

"क्या देख रहे हो देवराज चौहान?"

"तुम्हारी बातों को समझने की कोशिश कर रहा हूं।"

"मेरी बातों में ऐसा कुछ नहीं है कि तुम्हें उस पर गौर करना पड़े। सीधी बात तुम्हारे सामने है। और मेरे ख्याल में मेरी बात में तुम्हारी दिलचस्पी होनी चाहिए। क्योंकि मेरी बात मानकर, तुम अपने पसंदीदा डकैती जैसे काम को अंजाम दे सकोगे। और मुझे खुशी होगी कि मैं तुम्हारे किसी काम आई।"

"युवराज पाटिल की बेहिसाब दौलत को पाने की कोशिश करना, मैं गलत नहीं समझता।"

"मतलब कि तुम तैयार हो---?"

"हां।"

नसीमा का चेहरा खुशी से भर उठा।

"ओह! मैं कितनी खुश हूं देवराज चौहान कि तुम्हें बता नहीं सकती। मेरी कही कोई बात तो तुम्हें अच्छी लगी। मैं सब ठीक कर दूंगी। तुम्हें युवराज पाटिल के प्रोग्राम के बारे में बता दूंगी। तुम्हें हर बात पता चल जाएगी। हर इंतजाम बता दूंगी जो बंद कमरे में युवराज पाटिल करेगा। और मुझे पूरा यकीन है कि तुम अपने इस काम में पूरी तरह सफल रहोगे।"

देवराज चौहान ने कश लिया और उसे देखने लगा।

"तुम्हें मालूम है युवराज पाटिल अपनी कितनी बड़ी दौलत को गुप्त ठिकाने पर ट्रांसफर कर रहा है?"

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

"सच बात तो ये है कि मैं भी नहीं जानती। लेकिन ये अवश्य जानती हूं कि उसके पास बे-हिसाब दौलत है। जब सब कुछ तुम्हारे हाथ आएगा, तब तुम्हें मेरे शब्दों का एहसास होगा।"

देवराज चौहान के चेहरे पर छोटी मुस्कान उभरी।

"तुम्हें खुशी नहीं हो रही देवराज चौहान?" नसीमा कह उठी।

"पेड़ पर आम लगा देखकर मुझे खुशी होने की आदत नहीं है। मैं मेहनत करने में यकीन रखता हूं।"

"बहुत जल्दी तुम्हें इस सारे प्रोग्राम के बारे में जानकारी दे दूंगी---। अपना फोन नंबर मुझे बता दो, ताकि---।"

"फोन मैं कर लूंगा। अपना कोई नंबर बता दो---।" देवराज चौहान कह उठा।

क्षणिक सोच के पश्चात नसीमा ने फोन नम्बर बताया।

"इस फोन नम्बर पर तुम मुझसे बात कर सकते हो। लेकिन अपना नाम क्या बताओगे, देवराज चौहान कहना ठीक नहीं---।"

"मैं सुरेंद्र पाल के नाम से तुम्हें फोन करूंगा। कब करूं?"

"दोपहर बाद हर रोज कर लिया करो। ये बात ज्यादा लंबी नहीं जाएगी। आज-कल में पाटिल ने फैसला करना है कि अपनी बेशुमार दौलत को कैसे ठिकाने पर पहुंचाना है।"

देवराज चौहान खड़ा हुआ।

"जा रहे हो?"

"हां---।"

"फोन करना मुझे। मैं इंतजार करूंगी।"

देवराज चौहान मुस्कुराया और पलटकर केबिन का दरवाजा खोलते हुए बाहर निकल गया।

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