पूर्वाभास
नीलम की मौत के बाद के हालात की आन्धी में तिनके की तरह उड़ता विमल ख़ुद को वापिस मुम्बई में पाता है जहाँ के एक गुरुद्वारे में कारसेवक बन जाता है
और बाहरी ज़िन्दगी से मुकम्मल नाता तोड़ लेता है। सूरज तब भी कोमल के हवाले होता है और आइन्दा उसने वहीं रहना होता है। चार महीने यूँ गुज़रते हैं तो वो अपने एक पुराने मेहरबान कैब ड्राइवर विक्टर द्वारा पहचान लिया जाता है। विक्टर बामुश्किल उसे कम से कम एक बार इरफ़ान, शोहाब से मिलने के राज़ी कर लेता है। वो मुलाकात होती है तो हालात ऐसे बन जाते हैं कि विमल को फिर वापिस अपनी उसी ज़िन्दगी में लौट आना पड़ता दिखाई देने लगता है, जिससे हमेशा के लिए किनारा करके उसने दिल्ली प्रस्थान किया था।
उसे मालम होता है कि तकाराम का चैम्बर का चैरिटेबल टस्ट बन्द पडा था क्यों कि जो पैसा – चार करोड़ रुपया-वो पीछे छोड़ कर गया था, वो चुक गया था, ट्रस्ट को चन्दा मिलना बन्द हो गया था क्योंकि ट्रस्ट बड़े मवालियों के गैंग ने हाइजैक कर लिया था और डोनर्स से चन्दा नए ट्रस्ट को, जो चैम्बूर में ही तुका के कूपर कम्पाउन्ड में स्थित ट्रस्ट से चार किलोमीटर दूर शिवाजी चौक पर था, देने के लिए मजबूर किया जा रहा था। यानी तुका के ट्रस्ट के लिए जो चन्दा था, नए ट्रस्ट के लिए वो वसूली थी। नए ट्रस्ट के तहत चैम्बूर का दाता’ भी अब कोई और था जो फरियादियों को वैसे उपलब्ध नहीं होता था जैसे कभी कूपर कम्पाउन्ड में विमल हुआ करता था। यानी कोई गैंगस्टर अपनी मुजरिमाना हरकतों से चैम्बूर का दाता' की छवि ख़राब कर रहा था और उस सिलसिले पर अंकुश लगना ज़रूरी था जो तभी लग सकता था जब विमल गुरुद्वारे की पनाह छोड़कर उनके साथ आकर जुड़ता।
थोड़ी हील-हुज्जत के बाद विमल ऐसा करना कबूल करता है।
तब विमल को बताया जाता है कि नए ट्रस्ट में फरियादियों से दुर्व्यवहार होता था, कोई मदद पाने की जगह उन्हें दुत्कार कर भगाया जाता था। सारे आडम्बर के तहत मुश्किल से बीस फीसदी फरियादियों को कोई इमदाद हासिल होती थी। कुछ फरियादियों को तो इस कदर बेइज्ज़त किया गया था कि भड़क कर चार जने वापिस लौटे थे और उन्होंने नए, शिवाजी चौक वाले, ऑफ़िस पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए थे। तदुपरान्त ट्रस्ट के स्टाफ ने उन चारों को न सिर्फ ख़ुद बुरी तरह से पीटा था, गिरफ्तार भी करा दिया था। बड़ी मुश्किल से अगले रोज़ वो चारों हवालात से मुक्ति पा सके थे।
अगले रोज़ ख़ुद फरियादी बनके विमल शिवाजी चौक पहुँचता है और खामोशी से वहाँ के निज़ाम को परखता है तो पाता है कि सच में ही वहाँ फरियादियों को दुत्कार ही मिलती थी, इमदाद के नाम पर टरकाया ही जाता था। वहाँ चौधरी बने बैठे अहसान कुर्ला और अनिल विनायक नामक दो मवालियों के सामने विमल अपनी पारिवारिक दुश्वारी की फर्जी कहानी कहता है तो मदद की जगह सलाह पाता है जो उसे पड़ोस में ही मिल सकती थी, जिसके लिए कई मील दूर शिवाजी चौक, चैम्बूर पहुँचना कतई जरूरी नहीं था। फर्जी दाताओं पर उन बातों का कोई असर नहीं होता।
फरियादी - बिमल – खाली झोली के साथ चैम्बूर का दाता के दर्शन पाए बगैर रुखसत होता है।
आखिर विमल, इरफ़ान, शोहाब में यहीं फैसला होता है, कि नया ट्रस्ट किन्हीं मवालियों के कब्जे में था और वो उनके किसी बेजा, गैरकानूनी इस्तेमाल का ज़रिया था। ट्रस्ट एनजीओ भी रजिस्टर्ड था और यूँ उसे मोटी सरकारी सालाना ग्रांट मिलती थी जो मवाली संचालक ही हज़म कर जाते थे।
मवालियों की जबरन वसूली का एक शिकार वसन्तराव कालसेकर था जो पुश्तैनी ज्वैलर था, जिसका मैरीन ड्राइव पर ‘ताज ज्वेलर्स के नाम से गोल्ड एण्ड डायमंड ज्वेलरी का शोरूम था। ज्वेलर 'भाई' लोगों की वसूली का निशाना बनता है तो उन्हें सख़्त इंकार सुनने को मिलता है। नतीजतन अगले ही रोज़ उसके आलीशान शोरूम को तहस नहस कर दिया जाता है, कुछ साबुत नहीं छोड़ा जाता। उसे दो करोड़ का नुकसान झेलना पड़ता है और आइन्दा बड़े नुकसान से बचने के लिए मवालियों की माँग के आगे झकना पड़ता है। तीन महीनों में वो दो बार बीस-बीस लाख रुपए अदा कर चुका था और अब तीसरी माँग फिर खड़ी थी।
नज़ीर टोपी और परेश काले नाम के दो प्यादे ज्वेलर के कोलाबा स्थित बंगले से बीस लाख रुपए का पैकेट कलैक्ट करते हैं तो रास्ते में विमल, इरफ़ान, शोहाब वगैरह छः जने उनसे पैकेट छीन लेते हैं और उन्हें बुरी तरह से धुन कर उन्हीं की वैगन-आर में डाल देते हैं। पैकेट वापिस ज्वेलर को लौटा दिया जाता है। कृतज्ञ ज्वेलर विमल की बाबत जानना चाहता है, लेकिन विमल जवाब टाल देता है। ज्वेलर फिर भी हिन्ट सरकाता है कि वो ‘चैम्बूर का दाता' था।
नज़ीर का नाम असल में नज़ीर सैफी था लेकिन क्योंकि वो हर घड़ी सिर पर पीक कैप पहने रहता था, इसलिए उसका नाम नज़ीर टोपी पक्का हो गया था।
मंगेश मोडक पेशे से टूरिस्ट गाइड था, 'चैम्बूर का दाता’ का घोर प्रशंसक था इसलिए इरफ़ान शोहाब से वाकिफ़ था। मोडक के हवाले एक पीक कैप की जाती है जो हूबहू वैसी थी जैसी नज़ीर टोपी पहनता था लेकिन जिसके टॉप के खोखले बटन में एक ट्रांसमिटर छुपा हुआ था। मोडक पूरी कामयाबी से हस्पताल के जनरल वार्ड में पड़ी नज़ीर टोपी की टोपी से वो टोपी बदल देता है।
पिछली रात की नज़ीर टोपी और परेश काले के साथ हई वारदात की खबर सुबह अहसान कुर्ला तक पहुँचती है तो वो अपने जोड़ीदार अनिल विनायक के साथ दोपहर को ही ज्वेलर कालसेकर के शोरूम में जा धमकता है और ज्वेलर पर इलज़ाम लगाता है कि पिछली रात की बीस लाख की रकम के लेनदेन की ख़बर उसके यहाँ से लीक हुई थी। ज्वेलर उस इलज़ाम का प्रबल विरोध करता है और गम्भीर सम्भावना व्यक्त करता है कि उसके प्यादों की नीयत बद् हो गई, रकम वो हज़म कर गए और लूट की कहानी खड़ी करने के लिए खुद एक दूसरे को ठोका।
ज्वेलर का उस बात पर जोर देना अहसान कुर्ला को और कनफ्यूज़ करता है। वापिसी के कार के सफर के दौरान अनिल विनायक सुझाता है कि वो काम उन चार असंतुष्ट, तौहीन से भड़के हुए फरियादियों का हो सकता था, कुछ दिन पहले जिन्होंने शिवाजी चौक बाले ट्रस्ट के ऑफिस पर दिन दहाडे पत्थर बरसाए थे। उनको किसी उनके प्रतिद्वन्द्वी 'भाई' की सरपरस्ती हासिल हो गई थी, उनकी तादाद भी बेतहाशा बढ़ गई थी, और उन्होंने ही लूट की उस वारदात को अंजाम देने की जुर्रत की थी।
अहसान उस बात से आश्वस्त तो नहीं होता पर यूँ पत्थरबाजों का अस्तित्व तो स्थापित होता ही है।
ड्राइवर हनीफ़ गोगा कूपर कम्पाउन्ड के पाले का भीड़ था जो कार चलाता कान खड़े कर के तमाम वार्तालाप सुन रहा होता है।
विमल को बाज़रिया इरफ़ान अहसान कुर्ला के बॉस कुबेर पुजारी की ख़बर लगती है जो बड़ा मवाली था लेकिन टॉप बॉस नहीं था जबकि वो गैंग के टॉप बॉस की जानकारी चाहता था ताकि वो उसको टपकाने की जगत कर पाता।
इरफ़ान इस बात की भी तसदीक करता है कि पत्थरबाज़ों के वजूद की बात बेबुनियाद थी लेकिन उस मिथ को खड़ी रखने में उन्हें ये फायदा था कि वो अपनी किसी भी वारदात को पत्थरबाज़ों पर थोप सकते थे।
विमल ने अन्देशा जताया कि यँ गरीबमार भी तो हो सकती थी। लिहाज़ा एहतियात की ज़रूरत थी।
फिर उन्हें जेकब परेरा कर के एक भीड़ की ख़बर लगी जो कि उस स्टीवन फेरा का ख़ास था, जिससे दिल्ली में विमल मुकाबिल था और जो अपने लोकल हिमायतियों के साथ उसके हाथों मरा था।
शोहाब ने जेकब परेरा की खोज-खबर निकालने का जिम्मा लिया। बान्द्रा की 'शंघाई मून' नामक एक नाइट क्लब का पता लगा जिसका मालिक और संचालक कोई गैंग का कुबेर पुजारी से बड़ा बिग बॉस हो सकता था।
कालसेकर जैसे माधव मेहता और हीरा करनानी नामक दो व्यापारी जानकारी में आए जो कालसेकर की तरह मवालियों की जबरन वसूली के सताए हुए थे और जो विमल के साथ कैसा भी सहयोग करने को तैयार थे।
नज़ीर टोपी हस्पताल से छुट्टी पाकर लोअर परेल में स्थित अपने फ्लैट पर लौटता है जहाँ अहसान कुर्ला और अनिल विनायक की आमद होती है, जो कि खोद-खोद कर टोपी से लूट की वारदात की बाबत सवाल पूछते हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता, सिवाय इसके कि टोपी कहता है कि हस्पताल में उसकी टोपी बदली गई थी। बदली गई टोपी का अनिल विनायक बारीक मुआयना करता है तो उसके टॉप के सजावटी बटन में छुपा ट्रांसमिटर बरामद होता है। उसकी वजह से पहले कहा जाता है कि उसी के ज़रिए लूट की पूर्व सूचना लुटेरों तक पहुंची थी लेकिन फिर ऐतराज़ होता है कि टोपी तो लूट के बाद बदली गई थी।
आइन्दा के लिए फैसला होता है कि चन्दा वसूली की टीम तीन जनों की होगी जिनमें एक गनर होगा और उस टीम में फिलहाल नज़ीर टोपी नहीं होगा।
रात दस बजे विमल एक मॉडर्न, बिगडैल नौजवान के बहुरूप में बान्द्रा स्थित नाइट क्लब ‘शंघाई मन’ में होता है। इरफ़ान उसके साथ होता है लेकिन उसका मुकाम क्लब की पार्किंग में अपनी कैब में होता है।
क्लब में विमल को वहाँ की शेफाली नाम की होस्टेस के ताल्लुक में आने का मौका मिलता है जो बाकायदा उसके साथ ड्रिंक्स शेयर करती है। विमल उसके साथ इंटीमेट होता उससे क्लब के मालिक की बाबत सवाल करता है जो, उसने सुना था कि, कोई अन्डरवर्ल्ड डॉन था। पूछने की वजह वो ये बताता है कि वो पंजाब के पाकिस्तान बार्डर पर सक्रिय स्मगलर था जिसके कब्जे में आठ किलो प्योर, अनकट हेरोइन थी जिसे वो ठिकाने लगाना चाहता था। शेफाली उस बाबत उसे जमशेद कड़ावाला का नाम सुझाती है जो कि क्लब का मैनेजर था। विमल कड़ावाला से मिलता है, कड़ावाला उससे हेरोइन के बारे में कई सवाल करता है, फिर विमल को बताता है कि आखिरी फैसला बिग बॉस एल्फ्रेड क्वीन के हाथ में था जो क्लब में रोज़ भी आ सकता था, हफ्ते, पखवाड़े के बाद भी आ सकता था।
तब शेफाली उसे बताती है कि जब बिग बॉस की विज़िट अपेक्षित होती थी तो हॉल में लाल मेज़पोश वाली एक इकलौती टेबल दिखाई देती थी। शेफाली विमल को आश्वासन देती है कि आइन्दा जब ऐसा होगा तो वो उसे एसएमएस द्वारा ख़बर कर देगी।
लोहकर नाम का एक पहले फेरे में नाउम्मीद हुआ फरियादी फरियाद लेकर फिर शिवाजी चौक पहुँचता है तो वहाँ के दुर्व्यवहार से भड़क कर आपा खो बैठता है, श्रोताओं की मेज़ का शीशा तोड़ देता है, नतीजतन ख़ुद अहसान कुर्ला उसे मार-मार के अधमरा कर देता है और बाहर फिंकवा देता है। लोहकर की तकदीर उसी हाल में उसे कूपर कम्पाउन्ड ले जाती है जहाँ विमल उसकी व्यथाकथा सुनता है। वो अपने पड़ोसी अकबर अली से परेशान था जो उसे उसके मकान की पहली मंजिल पर तामीर नहीं करने देता था क्योंकि उस तामीर से उसकी हवा रुकती थी। विमल अपने स्टाइल से अकबर अली को सीधा करता है और पड़ोसी लोहकर को चैन की साँस आती है।
मंगेश मोडक विमल की हिदायत पर टेलीफोन विभाग का लाइनमैन बन कर कार डीलर हीरा करनानी और फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर माधव मेहता के घर में घुसता है, और उनके लैंड लाइन फोन के रिसीवर में ट्रांसमिटर छुपा कर आता है जिसका उद्देश्य कहीं कुछ सुनना नहीं था, महज़ ये स्थापित करना था कि कहीं कुछ सुना जा सकता था।
मवालियों में पत्थरबाजों के वजूद को लेकर फिर बहस होती है तो सिर्फ अनिल विनायक को उनका तरफदार पाया जाता है और उनको फिर से चैक करने का अभियान शुरू किया जाता है।
रात को करनानी और मेहता से मवालियों की एक गनर वाली नई टीम पच्चीस-पच्चीस लाख रुपए वसूलती है लेकिन गनर किसी काम नहीं आता, रास्ते में फिर रोकड़ा छीन लिया जाता है और तीनों कलैक्टर्स की- हसन टकला गनर, हरीश कोली जोड़ीदार, अबरार बोगस लीडर – भरपूर ठुकाई होती है और तीनों को गम्भीर बेहोशी की हालत में उनकी वैगन-आर में डाल कर शिवाजी चौक नए ट्रस्ट के ऑफिस के द्वारे पहँचा दिया जाता है।
मवालियों तक वो ख़बर पहुँचती है तो तीनों को हस्पताल पहुंचाया जाता है। अहसान कुर्ला लूट और मारपीट की उस नई वारदात पर तड़प कर दिखाता है और जोड़ीदार अनिल विनायक के साथ सुबह सवेरे ही कार डीलर हीरा करनानी पर चढ़ दौड़ता है। लम्बी पूछताछ के बाद फोन में छुपा ट्रांसमिटर उनकी पकड़ में आता है और तफ्तीश पर वैसा ही ट्रांसमिटर करीब ही रहते फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर माधव मेहता के लैंडलाइन फोन में पाया जाता है। करनानी ज़िद करता है कि वहाँ फोन कम्पनी के लाइनमैन के अलावा कोई नहीं आया था तो यही फैसला होता है कि जो किया, उस लाइनमैन ने किया जो कि लाइनमैन था ही नहीं, उन्हीं लोगों का साथी था जिन्होंने लूट मचाई थी और कलैक्टर्स को मार-मार कर अधमरा किया था।
यानी कलैक्शन की ख़बर उधर से ही लीक हुई थी।
और बाज़रिया अनिल विनायक, उंगली फिर पत्थरबाज़ों की तरफ उठती है। उस वारदात की ख़बर लगने पर गैंग का बड़ा ओहदेदार कुबेर पुजारी ख़ुद शिवाजी चौक पहुँचता है और सारे मातहतों को बुरी तरह से फटकार लगाता है जो कुछ मगरूर हो गए थे तो कुछ लापरवाह और निकम्मे हो गए थे। ऑफिस की बदइंतज़ामी के लिए वहाँ के इंचार्ज अहसान कुर्ला को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है, उसे फौरन वहाँ से हटा कर उसकी जगह उमर सुलतान को अप्वॉयन्ट किया जाता है। अहसान पर ये भी इलज़ाम आयद होता है कि लूट की दो फौजदारी वारदातों के सन्दर्भ में उसने कूपर कम्पाउन्ड की तरफ तवज्जो न दी, नाहक सोच लिया कि वहाँ अब कुछ नहीं रखा था क्योंकि कई महीने पहले सोहल हमेशा के लिए मुम्बई छोड़ गया था। अहसान जवाब नहीं दे पाता कि जो चला गया था,
वो क्या लौट नहीं सकता था।
लिहाज़ा कूपर कम्पाउन्ड की बारीक निगाहबीनी का नया हुक्म जारी होता है और कुबेर पुजारी पत्थरबाज़ों के वजूद को सिरे से नकार कर जाता है और पुरज़ोर ऐलान कर के जाता है कि जो हुआ था, कूपर कम्पाउन्ड से हुआ था।
विमल इस बात को भूला नहीं होता कि फरियादी लोहकर को मार-मार के अधमरा कर देने वाला चाण्डाल खुद अहसान कुर्ला था। उसको सजा देने के लिए वो पास्कल के बार में उसके रूबरू होता है और उसके जाम में ज़हर मिलाने में कामयाब हो जाता है। तुरन्त हस्पताल पहुँचाया जाने पर वो जान से जाने से बच जाता है लेकिन अभी हफ्ते से ज़्यादा उसका हस्पताल में ही रहना लाज़िमी था। विमल उसको मार भी सकता था लेकिन ज़हर को जानलेवा इरादतन नहीं बनाया गया था क्योंकि लोहकर जिन्दा था।
ऐसा ही अंदाज़ था असली चैम्बूर के दाता के इंसाफ का।
उसी रात विमल को शंघाई मून की होस्टेस शेफाली का एसएमएस मिलता है कि क्लब के हॉल में लाल मेज़पोश वाली टेबल नमूदार हो चुकी थी।
जोकि इस बात की तरफ इशारा था कि बिग बॉस एल्फ्रेड क्वीन का उस रात वहाँ हाज़िरी भरना निश्चित था। लेकिन विमल के क्लब में लम्बे इन्तज़ार के बाद भी बिग बॉस नहीं आता, सन्देशा आता है कि वो बिग बॉस से जुहू के बंगला नम्बर सात में मिल सकता था।
विमल और इरफ़ान वहाँ पहुँचते हैं। बंगले का माहौल भांपने के लिए विमल बंगले की छत पर चढ़ जाता है और डोम की एक खिड़की का पल्ला सरका कर भीतर एक धागे से बंधा ट्रांसमिटर आधे रास्ते लटकाता है जिसके ज़रिए वो नीचे गोल ड्राईंगरूम में मौजूद ड्रिंक्स एनजॉय करते स्त्री पुरुष का वार्तालाप सुन पाता है, जिस से ज़ाहिर होता है उन्हें वहाँ उसी का इन्तज़ार था। पुरुष का इरादा आगन्तुक हेरोइन स्मगलर जेम्स दयाल से उसकी आठ किलो हेरोइन छीन लेने का था और यूँ उसे एक ऐसे कत्ल के लिए मजबूर करने का था जिसे, बकौल उसके, वो ख़ुद अंजाम नहीं दे सकता था।
फिर एकाएक महिला को छत पर से अपने सिर पर लटकते ‘ट्रांसमिटर' का अंदाज़ा हो जाता है। वो काल्या और नित्या नामक दो गार्ड्स को ऊपर इस आदेश के साथ दौड़ाती है कि छत पर जो कोई भी हो, उसे बेहिचक शूट कर दिया जाए। विमल दोनों से बचकर सीढ़ियाँ उतर के नीचे आ जाता है और ड्राईंगरूम में जाकर मेज़बान स्त्री-पुरुष के सामने ये कहता बैठ जाता है कि वो वहीं जेम्स दयाल था जिसका कि उन्हें इन्तज़ार था। दोनों उसकी मौजूदगी से अभी हैरान हो रहे होते हैं कि एक गार्ड नीचे आता है जिससे बात करने के लिए दोनों विमल को पीछे बैठा छोड़ कर बाहर निकल जाते हैं। विमल छुपकर गार्ड को रिपोर्ट करता सुनता है कि ऊपर छत पर कोई नहीं था और रोशनदान से कोई धागा भी नहीं लटक रहा था।
फिर तीनों वापिस आकर बैठते हैं तो महिला कहती है कि किसी वजह से मिस्टर क्वीन मीटिंग के लिए नहीं पहुँच सके थे जबकि विमल को यकीन था कि उसके सामने बैठा पुरुष ही मिस्टर क्वीन था, महिला जिसका नाम मिस्टर जाधव और खुद का मिसेज जाधव बताती थी। विमल जानना चाहता है कि मिस्टर क्वीन की गैंग में क्या हैसियत थी तो जवाब को टाल दिया जाता है और विमल को बाज़रिया कड़ावाला फिर सम्पर्क करने को बोल कर रुखसत कर दिया जाता है।
पीछे महिला इसरार से पुरुष से पूछती है कि वो कत्ल करवाना क्यों चाहता था, इतना बड़ा मवाली होकर कत्ल ख़ुद क्यों नहीं कर सकता था, तो पुरुष जवाब को टाल देता है पर इतना फिर भी बताता है कि वो गैंग में नम्बर टू था, नम्बन वन बनने की ख़्वाहिश रखता था और उसकी ख्वाहिश की पूर्ति के लिए नम्बर वन को रास्ते से हटाया जाना ज़रूरी था। ये वो फिर भी नहीं बताता कि वो काम वो ख़ुद क्यों नहीं कर सकता था।
अगले रोज़ सुबह विमल इरफ़ान के साथ फिर जुह के बंगला नम्बर सात पर वहाँ का माहौल भांपने की नीयत से पहुँचता है तो उसे खाली पाता है। वहाँ मौजूद केयरटेकर से उसको खबर लगती है कि वो बंगला फिल्म बनाने वालों को डेली, बीकली या मंथली किराए पर उपलब्ध होता था जो पिछले रोज़ एक दिन के लिए एक पटकथा लेखक और उसकी सैक्रेट्री को किराए पर दिया गया था और उस घड़ी खाली था।
कूपर कम्पाउन्ड के खुफ़िया खबरी हनीफ़ गोगा की शिवाजी चौक के ऑफिस के नए इंचार्ज उमर सुलतान के आगे पेशी होती है जो उस पर दो टूक इलज़ाम लगाता है कि वो उधर की ख़बरें कूपर कम्पाउन्ड पहुँचाता था। सुलतान उसे शूट करने पर आमादा था इसलिए हनीफ़ गोगा को सब कुछ कुबूल करना पड़ता है। तब उसकी जानबख़्शी इस शर्त के साथ होती है कि आइन्दा वो कूपर कम्पाउन्ड में उनका जासूस होगा, कूपर कम्पाउन्ड में उधर की ख़बरें भांपने के लिए अपने आँख-कान खुले रखेगा, उधर की ख़बरें सुलतान तक पहुँचाएगा और उधर कभी भनक नहीं लगने देगा कि अब उसका दर्जा डबल एजेंट का था।
रात के नौ बजे ताज ज्वेलर्स का शोरूम बन्द होने के वक्त उमर सलतान, अनिल विनायक और ख़ुद कुबेर पुजारी वहाँ पहुँचते हैं और ये मनहूस ख़बर वहाँ वजूद में आती है कि टॉप बॉस ने सोलह बड़े व्यापारियों से – जिनमें खुद ज्वेलर भी था – दो-दो करोड़ रुपए की माँग खड़ी की थी, 'भाई' बत्तीस करोड़ रुपया डॉलर में माँगता था और रकम को सबसे कलैक्ट करके शिवाजी चौक पहुँचाने का जिम्मा ज्वेलर कालसेकर का था।
मवालियों के वो हुक्म दनदना कर रुखसत पाने के बाद घर का रुख करने की जगह ज्वेलर कूपर कम्पाउन्ड पहुँचता है और वहाँ अपनी व्यथाकथा – अपनी नई ज़िम्मेदारी – बयान करता है। विमल उसे राय देता है कि रोकड़ा इकट्ठा करने की मद में वो कम से कम पाँच दिन का टाइम मिलने की ज़िद करे और पुरइसरार कहे कि क्योंकि बड़ी रकम का मामला था इसलिए माँग को बिग बॉस ख़ुद कनफर्म करे ताकि सुनिश्चित हो कि उस तरीके से कोई और ही उस रकम पर घात लगाने का इरादा नहीं रखता था। विमल ज्वेलर का मोबाइल अपने पास रख लेता है ताकि 'भाई' की अपेक्षित कॉल आए तो ज्वेलर बन कर उसे वो सुन सके।
अगले दिन सुबह अभी नौ ही बजे होते हैं कि एक वर्दीधारी इंस्पेक्टर कूपर कम्पाउन्ड पहुँचता है, इरफ़ान, शोहाब और विमल को पेश होने का हुक्म देता है और उनको हलकान, परेशान करने के लिए नाजायज़,गैरज़रूरी सवाल पूछता है जिससे साफ ज़ाहिर होता था कि दुश्मनों का पिट्ठ था। इंस्पेक्टर कम्पाउन्ड की आठ इमारतों की मिल्कियत की बाबत ख़ासतौर पर सवाल करता है और धमकी जैसा हुक्म जारी करता है कि दो दिन में उन इमारतों का मालिक - जिसका नाम आत्माराम बताया जाता था और जो मुम्बई से हज़ार किलोमीटर दर सोनपुर में रहता था – वहाँ पेश हो और मिल्कियत के तमाम कागज़ात इंस्पेक्टर को दिखाए।
विमल उस इंस्पेक्टर की बाबत – जिसका नाम वो जान गया था कि रामदास महाडिक था – मुम्बई के पुलिस कमिश्नर जुआरी को मेल भेजता है जिसका विमल से उसके छदम नाम और आइडेन्टिटी के तहत पुराना मुलाहज़ा था और मेल में इंस्पेक्टर महाडिक के अनिधिकृत किरदार को हाईलाइट करता है। आइन्दा उम्मीद ही की जा सकती थी कि कमिश्नर के किए कुछ होता। कमिश्नर ने मेल का कोई जवाब तो न दिया लेकिन ‘राजा गजेन्द्र सिंह' से - जो कि विमल ही था – पुरानी वाकफियत की उसने पूरी लाज रखी। इंस्पेक्टर महाडिक को उसके डीसीपी से बुरी तरह से फटकार लगी और तत्काल उसे थाने से पुलिस हैडक्वॉर्टर इस वार्निंग के साथ ट्रांसफर कर दिया गया कि जल्दी ही उसकी ट्रांसफर ऐसी जगह होती कि वो उस घड़ी का मातम मनाता जब वो पुलिस में भरती हुआ था।
यूँ दुश्मनों के सिखाए पढ़ाए उस फसादी इंस्पेक्टर से कूपर कम्पाउन्ड के बाशिन्दों का पीछा छूटता है।
बाज़रिया कुबेर पुजारी, कालसेकर के फोन पर 'भाई' का फोन आता है जिसे ख़ुद को कालसेकर ज़ाहिर करके विमल सुनता है। 'भाई' हुक्म सुनाता है कि बाकी पन्द्रह ट्रेडर्स से रोकड़ा उसने कलैक्ट करना था, उसका फॉरेन करेंसी में होना ज़रूरी था, काम हर हाल में चार दिन में हो जाना ज़रूरी था और रोकडा उसने अपनी निगरानी में ख़द शिवाजी चौक पहँचाना था उसका बस इतना लिहाज़ होगा कि उसके साथ 'भाई' के भीड़ भी होंगे।
पूछे जाने पर 'भाई' अपना नाम एल्फ्रेड क्वीन बताता है लेकिन वो विमल के इस सवाल को टाल जाता है कि क्या वो गैंग का टॉप बॉस था, बस इतना ही कहता है कि बिग बॉस था और कॉल कट करता है।
विमल उसकी आवाज़ पहचानता है, उसका ख़ास तकिया कलाम पहचानता है कि वो जो बोलता था, उसमें बीच-बीच में ‘जो है' पिरोता था और यकीनी तौर पर कहता है कि फोन पर वही शख़्स बोलता था जिससे वो जुह के किराए के बंगला नम्बर सात में हेरोइन स्मगलर जेम्स दयाल के तौर पर मिल चुका था।
यहाँ तक की कहानी आपने पेंगुइन में पूर्वप्रकाशित उपन्यास मैं अपराधी जन्म का में पढ़ी। अब आगे पढ़िए . . .
0 Comments