इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया और इंस्पेक्टर रामलाल को देखा।
“उसका ध्यान रखना।” मोदी ने समझाने वाले स्वर में कहा –“नीलू महाजन बहुत खतरनाक इंसान है। उसके बारे में किसी गलतफहमी में मत पड़ना।”
“चिंता मत करो मोदी।” इंस्पेक्टर रामलाल ने दांत भींचकर कहा –“तुम जब आओगे, वह ऐसे ही मिलेगा।”
“गुड! मैं –।”
तभी हवलदार ने भीतर प्रवेश किया।
“सर! सर वह खूनी होश में आ गया है।”
मोदी और रामलाल की आंखें मिली।
“आओ।” कहते हुए मोदी दरवाजे की तरफ बढ़ा।
मोदी, रामलाल और हवलदार के साथ लॉकअप तक पहुंचा।
महाजन, मोदी को देखते ही चौंका और जल्दी से सलाखों के पास पहुंचा।
“मोदी तुम।”
मोदी ने मुस्कराकर, रामलाल को देखा।
“मेरा नाम तो ऐसे ले रहा है, जैसे मेरे साथ खास याराना हो इसका।” मोदी व्यंग्य से कह उठा।
इंस्पेक्टर रामलाल हंसा । हवलदार हौले से मुस्कराया।
“मुझे यहां क्यों बंद किया गया है। आखिर मैंने किया क्या है?” महाजन ने दांत भींचकर कहा।
“सुना तुमने ।” मोदी ने कड़वे स्वर में रामलाल से कहा –“अब इसे यह भी बताना पड़ेगा कि इसे क्यों बंद किया गया है। और इसने किया क्या है। कोई बड़ी बात नहीं कि अभी पूछे, मेरा बाप कौन था?”
महाजन के दांत भिंच गए।
“इसके बाप का नाम-पता तो मैं बता दूंगा।” इंस्पेक्टर व्यंग्य भरे स्वर में कह उठा।
महाजन दांत भींचे, मोदी और रामलाल को देखता रहा।
“मजा तो आया होगा, खुद को यहां पाकर।” मोदी जहरीले स्वर में हंसा।
“मैं पूछता हूं मुझे यहां क्यों बंद किया गया है?” नीलू महाजन गुर्रा उठा।
मोदी हंसा और पलटकर आगे बढ़ता हुआ कह उठा।
“आओ रामलाल।”
महाजन पीछे से उन्हें पुकारता रहा।
लेकिन वह चले गए।
महाजन ने गुस्से से घूंसा, सलाखों पर मारा।
“ऐसे नहीं टूटेगी।” लॉकअप में बैठा व्यक्ति हंसा –“अपना सिर मारो, सलाखों पर।”
“चुप।” महाजन के दांत भिंचे हुए थे।
“मैं कहां बोल रहा हूं।” उसने गहरी सांस ली।
महाजन ने जेब में पड़ा सिगरेट का पैकेट निकाला और सिगरेट सुलगाई।
“पागल हैं यह पुलिसवाले।”
“क्यों?” वह व्यक्ति पुनः बोला।
“मुझे लॉकअप में बंद कर दिया और बता नहीं रहे कि बंद क्यों किया है?” महाजन ने शब्द चबाए।
“वह पागल नहीं हैं। तुम पागल हो।”
“मैं?”
“हां।”
“क्यों?”
“तुम्हें मालूम होना चाहिए कि तुमने ऐसा क्या किया कि पुलिसवालों को तुम्हें बंद करना पड़ा।”
“मैंने तो कुछ भी नहीं किया।”
“ठीक कहते हो। मैंने भी कुछ नहीं किया।” वह व्यंग्य भरे स्वर में हंसा –“पागल हैं यह पुलिसवाले जो खामख्वाह राह चलते लोगों को पकड़कर बंद करते फिर रहे हैं।”
दांत पीसते हुए महाजन वापस पत्थर वाली सीट पर जा बैठा। कलाई पर बंधी घड़ी में उसने वक्त देखा। शाम के सात बज रहे थे।
☐☐☐
रात को साढ़े ग्यारह बजे एक कांस्टेबल और एक हवलदार वहां पहुंचे। कांस्टेबल के हाथ में राइफल थी और हवलदार ने खाने की दो प्लेटें थाम रखी थी। कांस्टेबल ने लॉकअप के दरवाजे पर लटक रहा ताला खोला तो हवलदार खाने की प्लेट थामे भीतर आया।
महाजन अपनी जगह पर बैठा, शांत निगाहों से उसे देख रहा था।
हवलदार ने लॉकअप में मौजूद व्यक्ति के सामने प्लेट रखी और आगे बढ़कर महाजन के पास प्लेट रख दी। महाजन ने देखा, प्लेट में दो सूखी रोटियों के साथ प्याज था।
“खा लो।” कहकर हवलदार जाने को हुआ।
“यह खाना है?” महाजन के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला।
“तुम्हें क्या लगता है।” हवलदार ने पलटकर तीखे स्वर में कहा।
“मुझे नहीं मालूम था कि तुम लोग ऐसा खाना खाते हो।” महाजन की आवाज में व्यंग्य भर आया।
“बहुत ज्यादा बोलता है तू।”
दूसरा व्यक्ति खाना खाने में व्यस्त हो चुका था।
महाजन उठा और हवलदार की बांह थाम ली।
“खबरदार।” लॉकअप के बाहर खड़ा कांस्टेबल गुर्राया –“पीछे होकर बैठ जाओ।”
महाजन ने उसकी बांह छोड़ी और जेब से पर्स निकालकर, सौ का नोट उसे थमाया।
“क्या है?”
“यह तेरे लिए है। सिर्फ एक बात बता दे मुझे।” महाजन ने जल्दी से कहा।
“क्या?”
“मुझे यहां क्यों बंद किया गया है। किस जुर्म में बंद किया गया है।”
हवलदार ने होंठ सिकोड़कर लॉकअप के बाहर खड़े कांस्टेबल को देखा।
“उसके लिए भी ले।” कहने के साथ ही महाजन ने हवलदार को सौ का नोट और थमाया।
हवलदार ने दोनों नोट जेब में डाले और बोला।
“अच्छा मजाक करता है पूछ कर। खैर, मजाक में सही। लेकिन तूने बहुत बड़ी गलती कर दी। अगर बलात्कार कर ही लिया तो जाने देता। मारने की क्या जरूरत थी।”
महाजन को लगा जैसे उसके सिर पर पहाड़ टूट पड़ा हो।
“किसकी –बात कर रहे हो तुम?”
“अनिता –अनिता राजपाल की।”
महाजन की आंखें फैलती चली गई।
“अब तू कहेगा कि तू उसे नहीं जानता।” हवलदार ने व्यंग्य से कहा।
“म...मैं उससे मिलने गया था। मैं–।”
“और रगड़ दिया उसे।”
“मैंने कुछ नहीं किया। बल्कि मुझे ही।”
“मैं जज हूं क्या?” हवलदार दांत फाड़कर बोला।
महाजन हक्का-बक्का सा उसे देखे जा रहा था।
“अदालत में सफाई देना। सब कुछ कर गुजरने के बाद मुझसे पूछता है कि क्या हुआ।'” हवलदार कहते हुए लॉकअप से बाहर निकला –“ड्रामेबाजी के लिए मैं ही मिला था।”
कांस्टेबल ने फौरन सलाखों वाला दरवाजा बंद किया और ताला लगा दिया।
महाजन के कानों में उन दोनों के जाने की ठक-ठक गूंजती रही। महाजन को अपने पांवों के नीचे से फर्श खिसका हुआ महसूस हो रहा था। तो उसे बलात्कार और हत्या के जुर्म में पकड़ा गया था। उसने तो कुछ नहीं किया। वह जब दूसरे कमरे में गया तो, किसी ने उसके सिर पर चोट मारकर, उसे बेहोश कर दिया था। होश आया तो लॉकअप में था?
“खा ले।” लॉकअप में मौजूद व्यक्ति की आवाज सुनकर उसे होश आया– “रोटियां पहले ही पापड़ बनी हुई हैं और बन गई तो सिर्फ देख सकेगा। खा नहीं सकेगा।”
“यह लोग कह रहे थे कि म...मैंने बलात्कार और हत्या की है।” महाजन के होंठों से निकला।
“नहीं की?”
“नहीं।”
“फिर तो यह पागल हैं तेरे को पकड़ लाए।” उसने व्यंग्य से कहा –“कोई बात नहीं, क्या फर्क पड़ता है। जाने कितने बेगुनाह सजा काटते हैं। तू भी काट लेना। क्या फर्क पड़ता है।”
लेकिन महाजन के होश उड़े हुए थे।
☐☐☐
महाजन ने हिसाब लगाया कि लॉकअप में बीती रात शायद उसकी जिंदगी की सबसे बुरी रात थी। आंख खुलते ही उसने वहां मौजूद व्यक्ति से पूछा।
“तेरे पास व्हिस्की होगी?”
“व्हिस्की सुबह-सुबह? लॉकअप में?” उसने अजीब-से स्वर में कहा –“तेरा दिमाग तो ठीक है?”
“ठीक कहता है?” महाजन ने गहरी सांस ली –“मेरा ही दिमाग खराब हो गया है।”
एक बार एक सिपाही नजर मारने तो आया लेकिन चाय-पानी किसी से नहीं पूछा।
साढ़े सात बजे हथियारबंद सिपाही के साथ दो हवलदार आए और उसके हाथों में हथकड़ी डालकर, पुलिस स्टेशन से बाहर ले जाते बाहर ले जाते चले गए।
बाहर पुलिस जिप्सी खड़ी थी। ड्राइविंग सीट पर ड्राइवर मौजूद था। पीछे वाली जगह पर इंस्पेक्टर रामलाल बैठा हुआ था। दोनों हवलदारों ने उसे जिप्सी में धकेला और खुद भी बैठ गए।
“चलो।”
ड्राइवर ने फुर्ती के साथ जिप्सी आगे बढ़ा दी।
“आखिर यह सब हो क्या रहा है?” महाजन गुस्से से भरे स्वर में कह उठा –“मैंने किसी की जान नहीं ली। किसी को नहीं मारा। आखिर मुझसे भी तो कुछ पूछो।”
“पुलिसवालों का काम होता है केस और गवाह तैयार करके मुजरिम को कोर्ट में पेश करना।” इंस्पेक्टर रामलाल ने शांत स्वर में कहा –“उसके बाद मुजरिम को जो कहना होता है, अपने वकील की मार्फत कोर्ट में कहता है।”
“मैं मुजरिम नहीं हूं।”
“कोर्ट में बोलना।”
महाजन के दांत भिंच गए।
“तुम लोग मेरा बयान नहीं लोगे?”
“लेंगे। जरूर लेंगे। लेकिन तुम्हारा बयान वही होगा, जो हम चाहेंगे।” रामलाल हंसा।
“कि मैंने हत्या-बलात्कार किया है।”
“पहले बलात्कार फिर हत्या?” इंस्पेक्टर रामलाल ने शब्दों पर जोर देकर कहा।
महाजन ने उसकी आंखों में झांका।
“किसने देखा है?”
“जिन्होंने देखा है, उन गवाहों के बयान लिए जा चुके हैं। वह तुम्हें पहचानते हैं।”
“मेरा चेहरा अच्छी तरह दिखा दिया होगा, अपने बनाये गवाहों को?” महाजन कड़वे स्वर में बोला।
इंस्पेक्टर रामलाल के चेहरे पर मुस्कान उभरी।
“और सब मोदी के कहने पर कर रहे हो?”
“मोदी?”
“इंस्पेक्टर विमलकुमार मोदी।” महाजन ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।
“इंस्पेक्टर मोदी हैडक्वार्टर में तैनात है। सौ नंबर पर कॉल मिलने पर वह घटनास्थल पर गया था। जहां लोगों की भीड़ इकट्ठी हुई थी। तुम्हें रंगे हाथों पकड़ा गया। बलात्कार करने के बाद तुम उस मासूम की हत्या करके हटे ही थे कि तभी खुले दरवाजे से किसी ने तुम्हें ऐसा करते देखा और वहीं पड़ा टेबल उठाकर, उसने तुम्हें बेहोश किया और सौ नंबर पर खबर कर दी।”
“यह तुम मुझे बता रहे हो या याद कराने की कोशिश कर रहे हो कि ऐसा हुआ होगा।”
रामलाल मुस्कराया।
“और यह सब काम मैं दरवाजा खोलकर कर रहा था।”
“हां। शराब के नशे में, तुम्हें होश ही कहाँ था कि तुम क्या कर रहे हो। अच्छे-बुरे की सोच से दूर हो चुके थे तुम | वहां पर शराब की खाली बोतल मिली है। जिस पर तुम्हारी उंगलियों के निशान हैं।”
“खाली बोतल।” महाजन ने दांत भींचे –“वह तो पूरी भरी बोतल थी। दो-तीन घूंट ही मैंने लिए थे।”
“गवाहों के सामने उस बोतल को कब्जे में किया गया है।” रामलाल हंसा।
“गवाह?” महाजन के होंठ भिंच गए –“जैसे तुम –वैसे तुम्हारे गवाह।”
रामलाल हंसा।
“तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैंने कुछ नहीं किया।” महाजन गुर्राया –“मैं देखता हूं कि तुम मुझे कैसे अपराधी साबित करते हो। आज कोर्ट में पेश तो करोगे ही, तब –।”
“तुम्हें आज कोर्ट में पेश नहीं किया जाएगा।”
“क्यों –किसी को भी गिरफ्तार करने के चौबीस घंटों के भीतर उसे कोर्ट में पेश करना जरूरी होता है।”
“लेकिन तुम घायल हो। तुम्हारे सिर पर चोट पड़ी है और डॉक्टर का कहना है कि कम से कम एक दिन तुम्हें आराम करने की सख्त जरूरत है।” इंस्पेक्टर रामलाल ने सिर हिलाते हुए कहा –“इस सिलसिले में कोर्ट में अर्जी पहुंच जाएगी कि तुम्हें दो दिन बाद पेश किया जाएगा।”
महाजन का दिल कर रहा था कि इसका सिर फाड़ दे।
“ऐसा क्यों कर रहे हो तुम लोग?”
“इंस्पेक्टर मोदी चाहते हैं कि केस को पक्का करके कोर्ट में पेश किया जाए। इसके लिए एक-दो दिन तो चाहिए ही।”
“कमीने हो तुम लोग। खामख्वाह मुझे फंसा रहे हो।” महाजन ने दांत भींचकर कहा।
तभी पास में बैठा हवलदार गुस्से से उठा।
“साले। साहब को गाली देता है।” कहते हुए उसने हाथ में थमी राइफल का बट मारना चाहा।
परंतु रामलाल ने उसे रोक दिया।
“इसे कुछ मत कहो। जब इंसान कानून के फंदे में फंस जाए तो उसका गुस्सा जायज है।”
“गलत कह रहे हो।” महाजन पुनः गुर्राया –“यूं कहो कि जब पुलिस वाले ही खामख्वाह किसी को फंसा दे तो उसका दिमाग खराब होगा ही। जैसे कि मेरा हो रहा है।”
इंस्पेक्टर रामलाल गहरी सांस लेकर, सड़क पर जाते ट्रैफिक को देखने लगा।
“मैं फोन करना चाहता हूं।” महाजन ने भिंचे स्वर में कहा।
“कर लेना। पहले हम अपने कामों से तो फुर्सत पा लें।”
इंस्पेक्टर रामलाल, महाजन को लेकर पुलिस हेडक्वार्टर पहुंचा।
☐☐☐
हेडक्वार्टर में उसे वहां ले जाया गया जहां ‘मोर्ग’ (वह जगह जहां लाशों को, डैड बॉडी को रखा जाता है) था। इंस्पेक्टर मोदी पहले से ही वहां मौजूद था।
महाजन ने खा जाने वाली निगाहों से मोदी को देखा।
और मोदी ने एक बार भी महाजन को देखने की कोशिश नहीं की।
“देर तो नहीं हुई, मुझे?” रामलाल ने मोदी से पूछा।
“नहीं। मैं दो मिनट पहले ही पहुंचा हूं।” मोदी ने कहा फिर महाजन को देखा –“तुम्हें उस युवती की लाश दिखाई जाएगी। जिसके साथ बलात्कार करके तुमने हत्या…”
“मैंने कुछ भी नहीं भी किया।” महाजन गुर्राया।
“तुम्हारी बात भी सुनी जाएगी। पहले हम जो कह-कर रहे हैं। वह देख सुन लो।”
महाजन की आंखें सुलग उठीं।
हवलदारों को बाहर छोड़कर मोदी, इंस्पेक्टर रामलाल, महाजन को लिए भीतर प्रवेश कर गए। भीतर जबरदस्त ठंडक थी। एक तरफ बने केबिन में, वहां की देख-रेख के लिए व्यक्ति मौजूद था। उन्हें देखते ही वह व्यक्ति केबिन से निकलकर उनके पास पहुंचा।
“नमस्कार इंस्पेक्टर साहब।” उसने मोदी को सलाम किया।
मोदी ने सिर हिलाकर कहा।
“एक सौ चार नंबर बॉडी कहां है? जो आधी रात को पोस्टमार्टम के बाद आई है।”
“आइए सर।”
वह उन सबको लेकर दीवार से सटकर खड़े बड़े से बॉक्स के पास पहुंचा और उसमें से एक ड्राअर को बाहर खींचा। जोकि भीतर से काफी गहरा था। उसमें बॉडी मौजूद थी। युवती का मृत चेहरा स्पष्ट नजर आ रहा था।
महाजन के लिए वह चेहरा अजनबी था।
वह अनिता राजपाल नहीं थी। जिससे वह मिला था।
“तुमने इसके साथ बलात्कार किया और फिर इसकी हत्या की।” मोदी ने महाजन को देखा।
“नहीं। यह अनिता राजपाल नहीं है। मैं इससे नहीं मिला था।” महाजन ने सख्त स्वर में कहा।
“बकवास मत करो। अब तुम बच नहीं सकते।” मोदी ने भी सख्त स्वर में कहा – “बेहतरी इसी में है कि जो किया है मान लो। मैं तुम्हारी सजा कम करवाने की कोशिश करूंगा।”
“सजा...कैसी सजा...मैंने तो कुछ किया ही नहीं।” महाजन का बुरा हाल था।
मोदी ने दांत भींचकर इंस्पेक्टर रामलाल से कहा।
“इसके केस में लिखो कि इसने अनिता राजपाल को पहचाना कि इसी के साथ।”
“यह झूठ है। मैंने नहीं पहचाना। यह, वह है ही नहीं, जिससे मैं मिला और –।”
उसकी बात पर ध्यान न देकर, रामलाल ने कहा।
“इसके बयान में यह बात नोट हो जाएगी।”
“बयान –कैसा बयान –मैंने तो कोई बयान नहीं दिया।”
“तुम्हारा बयान हम तैयार कर रहे हैं।” मोदी ने कड़वे स्वर में कहा।
“तुम तैयार कर रहे हो। ठीक है करो।” महाजन ने सुलगते स्वर में कहा –“अगर मेरा बयान तुम तैयार कर रहे हो तो, उसके नीचे साइन तो मेरे ही चाहिए।”
“वह भी हो जाएंगे।” मोदी ने कड़वे स्वर में कहा।
“मतलब कि साइन, तुम खुद ही कर लोगे?”
“नहीं। तुम करोगे। तुम जैसों को सीधा करने का हमारे पास बढ़िया से बढ़िया रास्ता है।”
“सीधा करने का –मैं टेढ़ा ही कब हुआ था। मोदी –मुझे लगता है कि तुम्हारा वक्त आ गया है। कानून की आड़ में तुम मनमानी नहीं कर सकते। तुम –।”
“गैरकानूनी काम करने में तुम अपनी मनमानी कर सकते हो तो मैं कानून की आड़ में अपनी क्यों नहीं चला सकता।” मोदी ने उसे घूरा –“तुम पुलिस कस्टडी में हो। जल्द ही सीधे हो जाओगे। चलो रामलाल।”
मोदी रामलाल और महाजन बाहर निकलने वाले दरवाजे की तरफ बढ़े।
“तुम मुझे खामख्वाह फंसा रहे हो।”
“पुलिस वाले तो सबको ही खामख्वाह फंसाते हैं। फालतू का वक्त जो होता है हमारे पास।”
“तुम।”
“चुप रहो।” मोदी ने कहा फिर रामलाल से बोला –“आज इसकी फाइल तैयार हो जाएगी?”
“हां।”
“ध्यान रखना। अनिता राजपाल ने और इसने दोनों ने बैठकर शराब पी। उसके बाद इसने जबरदस्ती की। अनिता राजपाल के मना करने पर इसने चोट मारकर बेहोश किया और बेहोशी की हालत में उसके साथ बलात्कार किया और फिर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी।”
महाजन का मस्तिष्क हवा में उड़ रहा था।
“यह सब बातें मिस्टर महाजन ने कबूल की है।” रामलाल ने याद दिलाने वाले अंदाज में पूछा।
“हां। बयान के तौर पर सब लिखो। उसके बाद डंडा चढ़ाकर इसके साइन करवाता हूं।” मोदी ने कड़वे स्वर में कहते हुए महाजन को घूरा।
महाजन ने गहरी सांस लेकर सिर हिलाया।
“ठीक है भाई। धरती के भगवान हो इस वक्त मेरे लिए। जो चाहो, कर सकते हो। लेकिन यह बता कि इस झूठे मामले को खत्म करने का क्या लेगा। रकम बोल।”
“तुम मुझे रिश्वत देने को कह रहे हो?” मोदी ने चलते-चलते उसे घूरा।
“तेरे जैसों को इसके सिवाय और कहा भी क्या जा सकता है।” महाजन गुर्राया –“रकम बोल।”
“मैं रिश्वत नहीं लेता।”
“तेरे को मैं अच्छी तरह जानता हूं। यह बता मुझे किसके इशारे पर फंसा रहा है।”
“फंसा रहा हूं।” मोदी ने कड़वे स्वर में कहा –“या तेरे को किए की सजा दे रहा हूं।”
“मेरे से अच्छी तरह तू जानता है कि मैंने क्या किया है। कौन से झंडे लहराए हैं।”
मोदी के चेहरे पर कड़वी मुस्कान फैली।
वह तीनों मोर्ग से बाहर आ गए। बाहर आते ही हवलदारों ने महाजन को अपने घेरे में ले लिया। महाजन ने हथकड़ी में बंधे अपने दोनों हाथों को देखा।
“मैं फोन करना चाहता हूं।” महाजन ने उसे देखा।
मोदी ने सिगरेट सुलगाई।
“दो घंटे तक मैं तुम्हारे पास आता हूं। वहीं, थाने में। इस बारे में तभी बात करूंगा।”
“व्हिस्की की बोतल मुझे।”
“बाकी बात लॉकअप में। रामलाल, इसे वापस ले जाओ।”
☐☐☐
पुलिस स्टेशन पहुंचने के बाद, महाजन को लॉकअप में बंद कर दिया। महाजन के चेहरे पर क्रोध और खीज के भाव उभरे पड़े थे। गुस्से में चेहरा लाल हुआ पड़ा था।
“आ गए।”
महाजन ने देखा, वह व्यक्ति अभी भी लॉकअप में मौजूद था।
“तुम...तुम गए नहीं?” महाजन के होंठों से निकला।
“मैंने?” वह हंसा-”मैंने कहां जाना है?”
महाजन पत्थर के बेंच पर बैठा और सिगरेट सुलगा ली।
“कोर्ट में पेश नहीं होना। उसके बाद जेल में।”
“मेरे लिए यही जेल है।” उसने मुस्कराकर कहा –“किसी हफ्ते दो दिन और कभी तीन दिन के लिए बंद कर देते हैं।”
“क्यों?”
“इनके बाप का राज जो हुआ।” उसकी आवाज में कड़वापन आ गया –“गरीब आदमी हूं। रेहड़ी लगाकर घर को पालता हूं। लेकिन मेरी जवान बहन पर इसी थाने के हवलदार की नजर पड़ गई।”
“तो क्या हुआ?”
“बहन खूबसूरत है। हवलदार छः महीनों से बोल रहा है कि अपनी बहन की शादी उससे कर दूं। मैं नहीं मानता तो मुझे सबक सिखाने के लिए यहां बंद कर देता है। अब उससे कौन कहे कि बेकसूर को क्यों बंद किया हुआ है। सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।”
महाजन के होंठ सिकुड़े।
“तू क्यों इंकार करता है। बहन की शादी हवलदार से करा दे।” महाजन ने सलाह देने वाले अंदाज में कहा।
“मरता मर जाऊंगा। लेकिन बहन की शादी उस हरामी हवलदार से नहीं करूंगा। बेशक सारी उम्र बहन कुंवारी ही क्यों न घर पर बैठी रह जाए।” उसके चेहरे पर गुस्सा आ गया –“मालूम है तुम्हें। उस हवलदार ने एक बीवी छोड़ी हुई है। उससे दो बच्चे हैं। फिर जाने कहां से बीस साल की लड़की को पंद्रह हजार में खरीद लाया और उसे घर पर ला रखा है। ऐसे को कौन अपनी बहन देगा। गरीब हूं कोई बेइज्जत नहीं। बहन का गला घोंट दूंगा। लेकिन उसके साथ शादी नहीं करूंगा।”
महाजन ने उसकी तरफ से मुंह घुमा लिया और अपनी स्थिति पर गौर किया। मोदी उसके साथ जो कर रहा था, वह उसके लिए ठीक नहीं था। कानून की निगाहों में वह पहले ही गैरकानूनी काम करने वाला था। ऐसे में मोदी उसके खिलाफ जो कर रहा था, वह नुकसानदेह साबित हो सकता था। मोदी सारे मामले को जिस तरह तोड़-मरोड़कर पेश कर रहा था, उससे वह उसे भारी परेशानी में डाल सकता था। जाने उसके दिमाग में क्या है। अगर उसने अदालत में उसे बलात्कारी और हत्यारा साबित कर दिया तो वह कहीं का नहीं रहेगा। सारी उम्र जेल में बितानी पड़ सकती है।
लेकिन महाजन को मामला समझ में नहीं आ रहा था।
उसे जो लाश दिखाई गई, वह उसं अनिता राजपाल की नहीं थी। जिसे वह मिला था। फिर वह लाश किसकी है? कोई सीधे मुंह उससे बात करने को राजी नहीं था।
पुलिस अनिता राजपाल के यहां कैसे पहुंची। वह किस स्थिति में पुलिस के हत्थे चढ़ा। कुछ भी तो उसे मालूम नहीं था। उसके लिए सब कुछ अंधेरे में था।
उसने बलात्कार-हत्या नहीं की।
जिस अनिता राजपाल से मिला था। लाश उसकी नहीं। किसी और की थी और उसे ही अनिता राजपाल कहा जा रहा था। लेकिन उसकी बात कोई नहीं सुन रहा था। कोई विश्वास नहीं कर रहा था। मोदी ने तो जैसे कमर कसी हुई थी, उसे हर हाल में इस मामले में फंसाना ही है।
उससे कुछ कहा-पूछा नहीं गया।
उसका बयान खुद पुलिसवाले ही तैयार कर रहे हैं। हर बात महाजन को भारी तौर पर उलझाए दे रही थी। महाजन समझ नहीं पा रहा था कि आखिर मोदी चाहता क्या है?
तभी एक हथियारबंद सिपाही के साथ हवलदार आया। लॉकअप का दरवाजा खुलने के बाद हवलदार खाने के बर्तन लिए भीतर आया और महाजन के आगे रखता हुआ बोला।
“तबीयत से खा। बाद में साब लोग तेरा मुर्गा बनाकर हलाल करेंगे।”
महाजन ने देखा, खाने का सामान ताजा और बढ़िया था।
हवलदार उस व्यक्ति की तरफ पलटा और मूंछों पर उंगली फेरकर बोला।
“क्यों बे, तेरी अक्ल ठिकाने आई कि नहीं?”
“नहीं।” उसकी आवाज में गुस्सा आ गया।
“तो तू अपनी बहन की शादी मुझसे नहीं करेगा?”
“कभी नहीं।” गुस्से में उसका चेहरा लाल हो गया।
“ठीक है बेटे।” हवलदार ने कठोर स्वर में कहा –“अभी साहब से बात करके तेरे को किसी केस में लंबा बंद कराता हूं। तेरे लिए अब यही रास्ता बचा है। वैसे भी तेरी बहन मेरे हाथों से दूर नहीं है। कल शाम को मिली थी वह मुझे। बहुत मुस्कराकर बात कर रही थी। अब की बार उससे ही शादी की बात करूंगा।”
“दफा हो जा। मैं तेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहता।” वह चीखा।
“नखरे तो देख साले के।” कहने के साथ वह बाहर निकला तो सिपाही ने पुनः ताला लगा दिया।
वह, महाजन को देखकर गुर्राया।
“देखा हरामी को।”
“मैं अपने को नहीं देख पा रहा, तो और कुछ क्या देखूंगा।” महाजन ने गहरी सांस ली।
☐☐☐
दोपहर के दो बजे इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी वहां पहुंचा। वह अकेला ही लॉकअप में आया था। खुद ही उसने ताला खोला और भीतर आकर, नीलू महाजन के पास आकर बैठा और शांत भाव से सिगरेट सुलगाई और कश लेकर मुस्कराते हुए महाजन को देखा।
महाजन दांत भींचे उसे ही घूर रहा था।
“कैसे हाल है?”
“जितने बुरे होने चाहिए। कम से कम उतने बुरे तो नहीं हैं।” महाजन ने खा जाने वाले स्वर में कहा।
“वो तो मैं देख ही रहा हूं।'” मोदी ने सिर हिलाया –“लेकिन आने वाले वक्त में सब भूल जाओगे। रियायती दरों पर भी तुम लम्बे समय तक जेल में रहोगे। इतना बड़ा अपराध तुम्हें नहीं करना चाहिए था। हत्या-बलात्कार। सोच तो लेते कि क्या कर रहे हो। मेरे ख्याल में शराब के नशे में तुम्हें होश।”
“बकवास मत करो।” महाजन ने दांत भींचकर कहा –“मेरे सामने तमाशा मत खड़ा करो।”
मोदी ने लॉकअप में मौजूद व्यक्ति पर नजर मारी।
“मैं फोन करना चाहता हूं। तुम मुझे फोन क्यों नहीं करने दे रहे।” महाजन ने कड़वे स्वर में कहा।
“फोन? किसे करोगे? अपनी बेबी–मोनी चौधरी को या पारसनाथ को?” मोदी मुस्कुराया।
“मालूम हो जाएगा तुम्हें। मुझे फोन करने दो।”
“ऐसे नहीं।” मोदी ने जेब से तह किए दो कागज निकाले –“इन कागजों पर तुम्हारा बयान दर्ज है।”
“मेरा बयान।”
“हां।” मोदी ने मुस्कराकर गर्दन हिलाई।
“लेकिन मेरा तो बयान नहीं लिया गया है और न ही मैंने बयान दिया है।” महाजन के होंठों से निकला।
“यह तुम्हारा बयान है।” मोदी ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।
“यह तुम कहते हो?”
“हां।”
“लेकिन मैं नहीं कहता।”
“तुम्हारी बात सुनने वाला, इस वक्त यहां कोई नहीं है। सिर्फ मैं हूं। इसलिए वैसी ही बात करो, जो मैं कह रहा हूं। यह तुम्हारा बयान है। तुमने दिया है।”
“और इसमें लिखा है कि मैंने बलात्कार किया। हत्या की। मैं अपने सारे गुनाह मानता हूं। तब मैं शराब के नशे में धुत था और जो किया होश में नहीं किया।” महाजन कड़वे स्वर में बोला।
“हां। कुछ ऐसा ही है।”
“और तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं कभी भी नशे में नहीं होता।”
“यह बात अदालत को समझाना।” मोदी तीखे अंदाज में मुस्कराया –“मैं तो यह कह रहा था कि अगर तुम फ़ोन करना चाहते हो तो तुम्हें इस बयान पर साइन करने होंगे।”
“दिमाग तो नहीं खराब है तुम्हारा?” महाजन ने दांत भींचे।
“इसमें दिमाग खराब होने वाली कोई बात नहीं है।” मोदी ने शांत स्वर में कहा –“तुम इन कागजों पर साइन कर दोगे तो मैं तुम्हें फोन करने की इजाजत दे सकता हूं। फोन करके तुम अपने मददगारों को बुला सकते हो। अपने बचने के रास्ते तैयार कर सकते हो। नहीं तो तुम्हारी मर्जी। तुम अदालत में पेश होओगे। मैं ऐसे हालात पैदा कर दूंगा कि कोर्ट से सीधा तुम जेल पहुंचोगे और तुम्हारा जो वकील होगा, जाहिर है कि मैं उसे पटा लूंगा और वह तुम्हारे बारे में किसी को खबर नहीं देगा। किसी को तुम्हारे बारे में तभी मालूम होगा, जब तुम जेल में सजा काटना भी शुरू कर दोगे।”
“मोदी।” महाजन ने गुस्से में कहा –“तुम मुझे क्यों फंसा रहे हो?”
“मैं तो अपना फर्ज पूरा कर रहा हूं। किया तुमने है। सजा तो भुगतनी पड़ेगी।”
महाजन, देर तक मोदी को घूरता रहा।
मोदी, इस दौरान शांत रहा।
“तो तुम चाहते हो कि मैं अपने मददगारों को बुलाऊं।” महाजन का दिमाग तेजी से दौड़ने लगा था।
“नहीं। मैं चाहता हूं तुम इस बयान पर साइन कर दो।”
“अदालत में मैं बयान से मुकर सकता हूं।”
“वहां तुम जो भी करना। मैं इस वक्त की बात कर रहा हूं। करते हो साइन।”
“हां।”
“क्या?” मोदी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।
“ला, कागज दे। जो तूने बयान लिखा है। मैं उस पर साइन कर देता हूं।”
मोदी ने अपनी एकाएक बिगड़ी हालत पर काबू पाया। कागज उसकी तरफ बढ़ाए।
“शर्त यह है कि तुम मुझे फोन करने दोगे।” महाजन ने कागज थामते हुए कहा।
“हाँ।” कहते हुए मोदी ने उसे पेन थमाया।
महाजन ने कागज पर साइन किए।
“पहले फोन करा। फिर कागज दूंगा।” महाजन कागजों को तह करता हुआ बोला।
मोदी ने सोच भरी निगाहों से महाजन को देखते हुए जेब से मोबाइल फोन निकाला और उसकी तरफ बढ़ाया। महाजन ने जल्दी से फोन थामा और उसे ऑन करके बटन पुश करता हुआ बोला –“मोबाइल फोन कब से रखने लगे?”
मोदी कुछ नहीं बोला।
“ऊपर से मोटी कमाई कर रहे हो। तुम जैसा पुलिस वाला और करेगा भी क्या?”
एक ही बार में लाइन मिली। दूसरी तरफ से बेल हुई। लेकिन किसी ने रिसीवर नहीं उठाया। होंठ भीचे महाजन ने दूसरा नंबर दबाया।
बेल हुई। फौरन ही रिसीवर उठाया गया। पारसनाथ की आवाज कानों में पड़ी।
“हैलो।”
“पारसनाथ। मैं महाजन।”
“कहो।”
“बेबी को फोन किया था। लेकिन वह शायद फ्लैट पर नहीं है।” महाजन ने मोदी को देखते हुए जल्दी में कहा और पुलिस स्टेशन का पता बताते हुए बोला –“मोदी ने मुझे फंसाने की पूरी तैयारी कर रखी है और उसके रंग-ढंग ठीक नजर नहीं आ रहे। वह ऐसे जुर्म में मुझे फंसा रहा है, जो मैंने नहीं किया। उस मामले से मेरा दूर-दूर तक वास्ता नहीं।”
दूसरी तरफ से आवाज नहीं आई।
“पारसनाथ।” महाजन व्याकुल स्वर में बोला।
“हां।”
“जो मैंने कहा, सुना?”
“सुन रहा हूं।”
“सुनो मत। कुछ करो। वरना मोदी...।”
दूसरी तरफ से पारसनाथ ने लाइन काट दी।
महाजन ने आहत भाव से फोन कान से हटाकर इंस्पेक्टर मोदी को देखा। मोदी मुस्कराया। अपना हाथ बढ़ाकर उसने महाजन से मोबाइल फोन और बयान के कागज लिए और पलटकर लॉकअप के खुले दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
बाहर निकलकर उसने सलाखों वाला दरवाजा बंद करके, ताला लगाया।
महाजन, बुत सा बना, मोदी को देखे जा रहा था।
“बाय।” मोदी हंसा –“मुझे तो नहीं लगता कि, पारसनाथ आएगा तुम्हारे लिए।”
महाजन को भी कुछ ऐसा ही लग रहा था।
“मैं एक फोन और करना चाहता हूं।”
“अभी मैं व्यस्त हूं। फिर जब आऊं। तब याद दिलाना।” मोदी हंसा।
“मोदी, एक फोन।” महाजन तेजी से लॉकअप की सलाखों की तरफ बढ़ा।
मोदी हंसता हुआ आगे बढ़ गया।
महाजन दांत पीसकर गुर्रा उठा।
☐☐☐
पारसनाथ ने मोना चौधरी से फोन पर सम्बंध बनाने की कोशिश की। लेकिन दूसरी तरफ से फोन की घंटी बजती रही। रिसीवर नहीं उठाया गया।
पारसनाथ समझ गया कि मोना चौधरी अपने फ्लैट पर नहीं है।
पारसनाथ जल्दी से तैयार होकर सीढ़ियां उतरकर नीचे रेस्टोरेंट में पहुंचा। रोजमर्रा की भांति वहां लोग बैठे खा पी रहे थे। बातें कर रहे थे। पारसनाथ रुका नहीं, रेस्टोरेंट से बाहर निकलता चला गया और पार्किंग में मौजूद कार में बैठा और उस पुलिस स्टेशन की तरफ चल पड़ा। जहां लॉकअप में महाजन मौजूद था।
कम शब्दों में बताई महाजन की बात को पारसनाथ ठीक तरह से समझ नहीं पाया था कि असल मामला क्या है? लेकिन उसके लिए इतना ही बहुत था कि महाजन को पुलिस ने पकड़ रखा है।
आधे घंटे में वह पुलिस स्टेशन पहुंचा और इंस्पेक्टर के कमरे के बारे में पूछा हुआ जब वह रामलाल के ऑफिस में पहुंचा तो वहां मोदी को भी बैठे पाया।
पारसनाथ को एकाएक सामने पाकर, मोदी की आंखें सिकुड़ी।
रामलाल ने उसे प्रश्न-भरी निगाहों से देखा।
पारसनाथ आगे बढ़ा और कुर्सी सरकाकर उस पर बैठता हुआ बोला।
“महाजन कहां है?”
“लॉकअप में।” मोदी ने तुरंत खुद को संभाला और मुस्कराकर बोला –“तुम्हारे आने की आशा नहीं थी।”
“यह कौन है?” रामलाल ने पूछा।
“क्या किया है महाजन ने?” पारसनाथ की आंखें मोदी पर थी।
“बलात्कार और हत्या।”
“महाजन ने?” पारसनाथ के होंठों से निकला। आंखें सिकुड़ी।
“हां।”
पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा।
“यह कौन है?” रामलाल ने पुनः टोका।
“तुम्हें गलतफहमी हो रही है मोदी।” पारसनाथ ने कठोर स्वर में कहा।
“गलती की कोई गुंजाइश नहीं।” मोदी ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा –“उस वक्त महाजन नशे में धुत्त था। उसे न तो अपनी होश थी और न दुनिया की। अच्छे-बुरे की कोई पहचान नहीं थी और उस वक्त अनिता राजपाल भी उसके साथ पी रही...।”
“कौन अनिता राजपाल?” पारसनाथ ने कठोर स्वर में टोका।
“वही, जिसके साथ बलात्कार किया गया और जिसकी महाजन ने हत्या की।” मोदी बोला –“और अनिता राजपाल मालूम है किसकी औलाद थी?”
“किसकी?”
“सूरजप्रकाश राजपाल की। वही सूरजप्रकाश, जो खरबपति है। जिसके शहर में कई बड़े बिजनेस हैं। जो हर पंद्रह दिन में अपने यहां पार्टी देता है और शहर की तमाम बड़ी हस्तियां वहां मौजूद हो जाती हैं। बड़े-बड़े नेता तक मौका मिलते ही उसकी जी हजूरी करने में लग जाते हैं। वह, मरने वाली का बाप है।”
पारसनाथ उसकी आंखों में देखता रहा।
“महाजन के हक में सबसे बढ़िया बात तो यह है कि सूरजप्रकाश राजपाल इस वक्त शहर में नहीं है। वह कहां है, मालूम करने पर भी पता नहीं चल पाया और मैंने राजपाल के न होने की वजह से इस बात को जग जाहिर नहीं किया कि उसकी बेटी की इस तरह बुरी तरह हत्या की है। अखबारों को भी खबर नहीं दी। जब तुम इस बात का अंदाजा लगा सकते हो कि यह खबर आम होने पर महाजन की क्या हालत होगी।”
पारसनाथ ने पुनः अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा और सिगरेट सुलगाई।
“कौन है यह?” समलाल ने पुनः पूछा।
“तुम जो इल्जाम महाजन पर लगा रहे हो। वह मानता है सब बातों को?”
जवाब में मोदी ने जेब से कागज निकाला और पारसनाथ की तरफ बढ़ाया।
“पढ़ लो। यह महाजन का बयान है। नीचे उसके साइन है।”
पारसनाथ ने उसके हाथ से कागज लेते हुए कहा।
“बयान वाले कागज को जेब में डाले क्यों घूम रहे हो। इसे तो इस केस की फाइल में होना चाहिए।”
मोदी कुछ नहीं बोला।
“महाजन को कोर्ट में पेश नहीं किया?”
“यह काम, कल होगा।”
पारसनाथ ने बयान वाले कागज पर लिखी, सब बातों को पढ़ा।
“मोदी।” पारसनाथ ने वह कागज वापस करते हुए कहा –“तुम, महाजन को फंसा रहे हो।”
“यह बात, महाजन के बयान में लिखी है?” मोदी ने कागज लेकर व्यंग्य से कहा।
“ऐसा ही समझ लो।”
“मैं तो सब समझ रहा हूं।” पारसनाथ ने मोदी की आंखों में झांका –“लेकिन तुम नहीं समझ रहे।”
“क्या नहीं समझ रहा?”
“कि आने वाला वक्त तुम्हारे लिए कैसा हो सकता है।” पारसनाथ का चेहरा कठोर हो गया।
“तुम मुझे धमकी दे रहे हो?” मोदी की आंखें सिकुड़ी।
“हां।” पारसनाथ का सपाट स्वर कठोर था।
दोनों कई पलों तक, एक-दूसरे की आंखों में देखते रहे।
“महाजन से मेरी बात कराओ।” पारसनाथ उठते हुए बोला।
मोदी ने रामलाल को देखा।
“इसकी, महाजन से बात करवा दो।”
इंस्पेक्टर रामलाल ने कांस्टेबल को बुलाकर, पारसनाथ को उसके साथ कर दिया।
“कौन है यह?” पारसनाथ के जाने के बाद रामलाल ने पूछा।
“पारसनाथ। नीलू महाजन की खास पहचान वाला है।” मोदी ने मुस्कराकर कहा।
“मुझे तो खतरनाक इंसान लगा है यह।”
“ठीक लगा है तुम्हें। जिसे बंद कर रखा है। महाजन! वह क्या कम खतरनाक है।”
रामलाल ने बैचेनी से पहलू बदला।
“यह साला पारसनाथ, क्या करेगा?”
“कुछ नहीं कर सकता। बात हमारी नहीं। कानून की है और कानून से टक्कर लेना आसान नहीं।” मोदी ने लापरवाही से कहा और सिगरेट सुलगा ली।
दो मिनट बाद ही पारसनाथ लौटा।
“बहुत जल्दी आ गए।” मोदी उसे भीतर प्रवेश करता देखकर कह उठा।
पारसनाथ पास आकर ठिठका।
“इस सारे मामले को खत्म करने के लिए तुम जो चाहते हो, वह मिल जाएगा।” पारसनाथ ने कठोर स्वर में कहा।
“यह वैसा मामला नहीं है कि ले-देकर निपटारा किया जा सके।” मोदी ने सिर हिलाकर कहा।
“तो कैसा मामला है। तुम क्या चाहते हो?”
“सूरजप्रकाश राजपाल से वास्ता रखते मामले को दबाया नहीं जा सकता।”
पारसनाथ ने कठोर निगाहों से उसे देखा।
“मोदी। तुमने महाजन का कोई बयान नहीं लिया। उससे कुछ नहीं पूछा। अपनी मनमर्जी का बयान तैयार किया और उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर, उस पर साइन करवा लिए। महाजन अनिता राजपाल से मिलने गया था। लेकिन वो लाश तुमने अनिता राजपाल कहकर दिखाई, महाजन उससे नहीं मिला था।”
मोदी के चेहरे पर अजीब सी मुस्कान उभरी।
“महाजन इस वक्त बुरी तरह फंसा हुआ है। वह तरह-तरह के बहाने मारेगा। उसकी बातें सुनने का कोई फायदा नहीं। वह तो यह भी कह देगा कि हत्या के वक्त मेरे साथ था।”
“महाजन ऐसा नहीं है। वह...।”
“रहने दो पारसनाथ। कोई फायदा नहीं। कल महाजन को अदालत में पेश करना है। अगर वह अपना जुर्म कबूल करता है तो ठीक, नहीं रिमाण्ड पर लेकर उसकी अक्ल सीधी कर दी जाएगी।”
“ऐसा कर सकोगे तुम।” पारसनाथ ने शब्दों को चबाकर कहा।
“क्यों नहीं कर सकता। कौन रोकेगा मुझे?”
“इसका जवाब तो मैं अभी दे देता। लेकिन कल सुबह होने में बहुत वक्त है और इतने वक्त में बहुत कुछ हो सकता है। जैसे मैं जानता हूं कि महाजन निर्दोष है। वैसे ही तुम भी जानते हो। अगर तुमने कहा होता कि महाजन ने हत्या की है, तो शायद मैं मानता। लेकिन बलात्कार वाली बात कहकर यह साबित कर दिया कि मामला सिरे से ही झूठा है।” कहने के साथ ही पारसनाथ पलटकर बाहर निकल गया।
रामलाल ने अचकचाकर इंस्पेक्टर विमलकुमार मोदी को देखा।
“वह तुम्हें पुलिस स्टेशन में धमकी दे गया और तुमने कोई एक्शन नहीं लिया।”
“जरूरत नहीं समझी।” मोदी मुस्कराया।
“कमाल है। क्यों जरूरत नहीं समझी।”
मोदी के चेहरे पर छाई मुस्कान में, कड़वेपन के भाव आ गए।
☐☐☐
पारसनाथ वापस रेस्टोरेंट में पहुंचा। उसके चेहरे पर गंभीरता उभरी पड़ी थी। मस्तिष्क में महाजन और मोदी भरे पड़े थे। उसे पूरा विश्वास था कि मोदी, महाजन को फंसा रहा है या फिर महाजन किसी और के बिछाये जाल में फंस गया है।
जो भी हो महाजन, बलात्कार जैसा काम नहीं कर सकता।
काउंटर पर रुककर पारसनाथ ने फोन अपनी तरफ सरकाया और मोना चौधरी के नंबर पुश करने लगा। काउंटर पर खड़े व्यक्ति ने उसे सलाम किया। परंतु वह अपनी ही उलझनों में उलझा पड़ा था। पहले की तरह अब भी फोन की बेल बजती रही। लेकिन रिसीवर नहीं उठाया गया।
पारसनाथ ने रिसीवर रखा।
मोना चौधरी अभी नहीं लौटी थी। फोन के साथ पड़ी ऐश-ट्रे में उसने सिगरेट डाली और ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया। रेस्टोरेंट के ऊपर तीन कमरों का खूबसूरत सेट बना रखा था। रेस्टोरेंट बंद होने पर बाहर आने-जाने के लिए वह पीछे वाला रास्ता इस्तेमाल करता था। शाम के पांच से ऊपर का वक्त हो चुका था। वह जानता था कि कुछ और शाम गहराते ही भीड़ होनी आरंभ हो जाएगी।
पारसनाथ के मस्तिष्क में सिर्फ यह बात घूम रही थी कि महाजन को कैसे बचाया जाए। उसके पास इतना इंतजाम तो था ही कि रात को लॉकअप से महाजन को निकाल ले। परंतु यह समस्या का हल नहीं था। महाजन के इस तरह लॉकअप से फरार होने का मतलब था कि वह वास्तव में अपराधी है।
लेकिन वह जानता था कि महाजन इतना घटिया काम नहीं कर सकता।
ऊपर पहुंचकर पारसनाथ ने छोटे से खूबसूरत ड्राइंगरूम में प्रवेश किया कि एकाएक कदम जड़ हो गए। आंखों पर विश्वास नहीं आया । सामने ही सोफे पर अधलेटी सी मोना चौधरी मौजूद थी।
हमेशा की तरह ही मोना चौधरी का खूबसूरत चेहरा चमक रहा था। उसके ब्वॉय कट बालों की दो लटें माथे पर झूल रही थीं। कानों में पड़े टॉप्स चमक रहे थे। बदन पर जींस की पैंट और वैसी ही जींस की ढीली-ढाली कमीज झूल रही थी।
मोना चौधरी की चमक भरी निगाह, पारसनाथ पर टिक चुकी थी।
“मुझे यहां देखकर, इतने हैरान क्यों हो रहे हो पारसनाथ?” मोना चौधरी मुस्कराई।
पारसनाथ को जैसे होश आया।
“ओह ! मैंने तो सोचा भी नहीं था कि भीतर आने पर तुम नजर आओगी।” गंभीर स्वर में कहने के साथ ही पारसनाथ ने कदम आगे बढ़ाये और कुर्सी पर जा बैठा –“दरअसल मैं तुम्हें दोपहर को भी फोन कर रहा था और नीचे से अभी फोन किया।”
“तुम कुछ परेशान लग रहे हो।” मोना चौधरी की पैनी निगाह, पारसनाथ के चेहरे पर थी।
पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा।
“हाँ। इस वक्त ऐसा कुछ हो सकता है।” कहने के साथ ही पारसनाथ ने पास ही मौजूद इंटरकॉम पर दो कॉफी लाने को कहा और रिसीवर रखकर मोना चौधरी को देखा।
“क्या बात है?” भोना चौधरी ने पारसनाथ की आंखों में झांका।
“मोना चौधरी।” पारसनाथ ने गंभीर स्वर में कहा –“महाजन बलात्कार जैसा काम कर सकता है?”
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी। वह फौरन सीधी होकर बैठ गई।
“नहीं।” मोना चौधरी की आवाज में सख्ती थी –“क्यों?”
“महाजन, व्हिस्की के नशे में इतना धुत हो सकता है कि उसे किसी बात का होश ही न रहे।”
“नहीं। व्हिस्की महाजन के लिए पानी की तरह है और पानी पीकर कोई होश नहीं गंवाता।” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ चुकी थी –“महाजन कहीं फंस गया है क्या?”
हाँ।” पारसनाथ ने गंभीरता से सिर हिलाया –“इंस्पेक्टर मोदी ने उसे।”
“मोदी?” मोना चौधरी के होंठों से निकला –“विमल कुमार मोदी?”
“हां। वही इंस्पेक्टर मोदी –उसने महाजन को बलात्कार और हत्या के जुर्म में गिरफ्तार करके लॉकअप में डाला हुआ है। कल वह, महाजन को अदालत में पेश करेगा। गिरफ्तार करने के बाद, मोदी ने महाजन से कोई पूछताछ नहीं की। खुद ही उसका बयान लिखकर, उस पर महाजन से साइन करवाए और...।”
“महाजन ने साइन कर दिए?”
“करने पड़े। मोदी उसे फोन करने नहीं दे रहा था। फोन करने की शर्त थी कि पहले वह उसके तैयार बयान पर साइन करे। कोई और रास्ता न पाकर, महाजन ने ऐसा किया।”
“तुम महाजन से मिले?” मोना चौधरी के चेहरे पर कठोरता भरा खिंचाव स्पष्ट नजर आने लगा था।
“अभी, मिलकर ही आ रहा हूं।” पारसनाथ ने गंभीरता से सिर हिलाया।
“वह क्या कहता है?”
“उसका कहना है कि वह अनिता राजपाल से मिलने गया था। किसी काम के लिए उसने ही मारिया के बार में फोन करके उससे बात की और कोई काम करवाने के लिए, उसे बुलाया था। वह उससे मिलने गया और वहां पर किसी ने उसे सिर पर चोट मारकर बेहोश कर दिया। होश आया तो लॉकअप में था।”
मोना चौधरी के होंठ भिंच गए।
“महाजन कहता है कि आज सुबह उसे अनिता राजपाल की लाश दिखाई गई। और वह लाश उस युवती की नहीं थी जो अनिता राजपाल के रूप में उससे मिली थी। परंतु उसके कहने पर भी, मोदी उसकी बात पर तवज्जो नहीं दे रहा। वह महाजन के खिलाफ केस तैयार करने पर लगा है।”
मोना चौधरी, पारसनाथ को देखती रही।
“अनिता राजपाल, सूरजप्रकाश राजपाल की बेटी है जो कि इस शहर की हस्ती है। मोदी बता रहा था कि सूरज प्रकाश शहर में नहीं है। और उसने अनिता की हत्या की खबर अभी आम नहीं की है। खबर आम होने पर महाजन का बचना आसान नहीं रह जाएगा।”
“महाजन।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर बोली –“बलात्कार नहीं कर सकता और इसी दम पर मैं कह सकती हूं कि उसे फंसाया गया है।”
“मेरा भी यही ख्याल है।”
“महाजन को या तो मोदी ने फंसाया है, या फिर किसी और ने।” मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा –“तुम क्या कहते हो, महाजन को फंसाने का काम मोदी का हो सकता है?”
“हो भी सकता है और नहीं भी।” पारसनाथ ने गंभीर स्वर में कहा –“मैंने मोदी से बात की है। वह कोई बात सुनने को तैयार नहीं। लगता है जैसे वह हाथ धोकर, महाजन के पीछे पड़ा है।”
मोना चौधरी के होंठ भिंच गए।
“मोदी नहीं मानता तो मुझे उसके कमिश्नर शेखर दीवान से बात करनी पड़ेगी।” मोना चौधरी ने शब्दों को चबाकर कहा –“मोदी, कमिश्नर दीवान के अंदर ही काम करता है।”
पारसनाथ के चेहरे पर सोच के भाव थे। जवाब में वह कुछ नहीं बोला।
☐☐☐
इंस्पेक्टर विमलकुमार मोदी ने कमिश्नर शेखर दीवान के ऑफिस में प्रवेश किया। कमिश्नर दीवान को सैल्यूट दिया कि तभी उसकी निगाह मोना चौधरी पर पड़ी। मेकअप करके मोना चौधरी ने अपने चेहरे को बदल रखा था। लेकिन मोदी ने उसे फौरन पहचाना और सतर्क हो गया।
“सर।”
“आओ मोदी। बैठो।” कमिश्नर दीवान ने गम्भीर स्वर में कहा।
मोदी आगे बढ़ा और कुर्सी पर जा बैठा।
कमिश्नर दीवान ने मोना चौधरी की तरफ इशारा किया।
“पहचाना?”
“यस सर।” मोदी ने सिर हिलाकर कहा।
“मोना चौधरी का कहना है कि तुम महाजन को जानबूझकर फंसा रहे हो।” कमिश्नर दीवान ने कहा।
“नो सर।” मोदी का लहजा एतराज वाला था –“भला मुझे क्या पड़ी है महाजन को जबरदस्ती फंसाने की। उसने अनिता राजपाल के साथ बलात्कार के बाद उसकी –।”
“झूठ है यह।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा –“महाजन का कहना है कि जिस लड़की से वह मिला था, वह वह नहीं, जिसकी लाश तुमने उसे मोर्ग में दिखाई थी।”
“यह बात महाजन पुलिस को उलझाने के लिए कह रहा है।” मोदी ने जवाब दिया।
“मतलब कि उसने जो कहा तुमने गौर नहीं किया। जरा भी तवज्जो नहीं दी।” मोना चौधरी बोली।
“गौर करने या ऐसा कुछ सोचने की जरूरत ही नहीं है।” मोदी ने लापरवाही से कहा।
“इसलिए जरूरत नहीं है कि तुम अपना केस पूरी तरह तैयार कर चुके हो।” मोना चौधरी ने उसे घूरा।
“कल महाजन को अदालत में पेश करना है तो उसकी फाइल तैयार करनी ही पड़ेगी।”
“तुमने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि महाजन के सिर पर चोट करके, उसे वहीं बेहोश कर दिया गया था और जब उसे होश में लाया गया तो वह लॉकअप में था।”
“इसमें सोचने की कोई बात नहीं है।”
“है। सोचने की बात है। सिर पर पड़ी चोट से वह बेहोश हुआ और बेहोश इंसान बलात्कार, हत्या नहीं कर सकता। और अगर उसे बाद में बेहोश किया गया है तो, किसने किया उसे बेहोश?”
“उसी बिल्डिंग में रहने वाले अन्य व्यक्ति ने।” मोदी ने मोना चौधरी को देखते चुभते स्वर में कहा –“इत्तेफाक से दरवाजा खुला था और उसकी हरकत को बाहर से गुजरते उस व्यक्ति ने देख लिया था।”
“खूब। तो महाजन दरवाजा खोलकर बलात्कार और हत्या कर रहा था।”
“हां। क्योंकि वह शराब के नशे में था। इस हद तक कि अपना अच्छा बुरा नहीं देख पाया। जब महाजन वहां पहुंचा तो उस बिल्डिंग वाचमैन ने सहारा देकर उसे अनिता राजपाल तक पहुंचाया था। क्योंकि तब वह इतनी पिए हुए था कि, कार से बाहर भी निकल नहीं पा रहा था।” मोदी ने कहा।
“और इस हालत में वह, वहां कार चलाकर पहुंचा था।” मोना चौधरी ने दांत भींचे।
“हां। नशे में टुन से टुन आदमी भी ड्राइव कर लेता है।”
“महाजन के खिलाफ तुमने जो गवाह तैयार किया है उनसे मैं बात करूंगी मोदी –।”
“सॉरी! तुम किसी भी तरह से कानून के मामले में दखल नहीं दे सकती।” मोदी ने सख्त स्वर में कहा –“गवाहों से फालतू बात करने की इजाजत तो अदालत भी नहीं देती।” इसके साथ ही मोदी ने कमिश्नर दीवान को देखा –“कहिए सर।”
“मैं महाजन के बारे में ही तुमसे बात करना चाहता था।” कमिश्नर दीवान ने कहा।
मोदी ने जेब से कागज निकाल और उसे खोलकर कमिश्नर की तरफ बढ़ाया।
“यह महाजन का बयान है सर –।”
“वह बयान, जिसे तुम लोगों ने तैयार किया है और महाजन से जबरदस्ती साइन करवाए हैं।”
“महाजन कोई बच्चा नहीं है कि उससे जबरदस्ती साइन करवा लिए जायें। ऐसा कोई शक है तो कमिश्नर साहब महाजन को देख सकते हैं कि उसके साथ कोई जबरदस्ती नहीं की गई।”
मोना चौधरी खा जाने वाली निगाहों से मोदी को देखती रही।
मोदी ने मुंह घुमा लिया।
कमिश्नर दीवान ने बयान पढ़ने और हस्ताक्षर देखने के बाद मोना चौधरी से कहा।
“मोना चौधरी। तुम्हें गलतफहमी हो रही है। महाजन को बेकसूर तुम इसलिए बता रही हो कि वह तुम्हारी पहचान वाला है।”
“नो मिस्टर दीवान।” मोना चौधरी अपने शब्दों पर जोर देकर बोली –“मैं आपसे फिर कह रही हूँ कि इंस्पेक्टर मोदी महाजन को फंसाने की कोशिश कर रहा है। महाजन –।”
“महाजन से मेरी कोई दुश्मनी नहीं है सर। मैं भला उसे क्यों फंसाऊंगा।”
“तुमने ठीक तरह से इस मामले की छानबीन नहीं की।”
“तुम्हारा कहना गलत है।”
“तो फिर तुम्हारी छानबीन का निशाना ही महाजन को फंसाना था।” मोना चौधरी का स्वर कठोर हो गया।
मोदी ने मुस्कराकर कमिश्नर दीवान को देखा।
“सर! आज दिन भर की भागदौड़ से मैं थक गया हूं। अगर कोई खास काम न हो तो, मैं चलूं। आराम करना चाहता हूँ। सुबह महाजन को अदालत में पेश करना है।”
मोना चौधरी के दांत भिंच गए।
“तुम्हें और कुछ पूछना है मोना चौधरी?” कमिश्नर दीवान ने उस देखा।
“मिस्टर दीवान, मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि इस मामले में महाजन निर्दोष है। वह बलात्कार जैसा काम नहीं कर सकता।” मोना चौधरी एक-एक शब्द पर जोर देकर कह उठी।
कमिश्नर दीवान ने बयान वाला कागज मोदी की तरफ बढ़ाकर कहा।
“मोदी इस केस पर काम कर रहा है। और इसकी बातें तुमने सुन ही ली हैं। अब तुम ही कहो कि कानूनी तौर पर मैं इस मामले में तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूं।”
“मिस्टर दीवान कानून की सीमा में रहकर कुछ नहीं किया जा सकता। इस बात से आप भी अच्छी तरह वाकिफ हो चुके हैं। तभी तो कानून का पाला छोड़कर, अपने बेटे के हत्यारों से मौत का बदला लेने के लिए, दौलत लेकर मेरे पास आए थे।” मोना चौधरी कड़वे स्वर में कह उठी –“लेकिन मैं तुम्हें बीता वक्त याद नहीं दिला रही। यह समझा रही हूँ कि कानून की आंख की बात मेरे सामने मत करो। कानून की आंख वही देखती है, जो उसे दिखाया जाता है।”
मोदी उठा और मुरकराकर कमिश्नर दीवान से बोला।
“मैं चलूं सर।”
कमिश्नर दीवान ने उसे देखा और हौले से सिर हिला दिया।
मोदी पलटकर बाहर निकलता चला गया।
मोना चौधरी और कमिश्नर दीवान की निगाहें मिली।
“मतलब कि आप महाजन को झूठे केस से नहीं बचा सकते।”
“मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है कि मैं इंस्पेक्टर मोदी को झूठा साबित कर सकूँ।” कमिश्नर दीवान ने गम्भीर स्वर में कहा।
“आप मोदी को कह सकते हैं कि वह, महाजन को छोड़ दे और –।”
“मैं, ऐसा कोई गलत आर्डर नहीं दे सकता।” कमिश्नर दीवान का स्वर धीमा हो गया।
“अच्छी बात है मिस्टर दीवान।” मोना चौधरी उठते हुए बोली –“आपके हाथ कानून से बंधे हुए हैं। इसीलिए आपको गलत बात को गलत साबित करने लिए भी सबूत चाहिए। लेकिन मेरे हाथ हर बंधन से आजाद हैं। मैं आपको जल्द ही बता दूंगी कि महाजन इस मामले में निर्दोष है।” मोना चौधरी पलटी और तेज कदमों से आगे बढ़ती हुई बाहर निकल गई।
चेहरे पर बेचैनी लिए कमिश्नर दीवान, कई पलों तक दरवाजे को देखते रहे।
☐☐☐
इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी हेडक्वार्टर से बाहर निकला और पार्किंग में खड़ी पुलिस कार में जा बैठा। फिर कार स्टार्ट की और बैक करने से पश्चात बाहर जाने वाले गेट की तरफ लेता चला गया।
रात का अंधेरा हर तरफ फैल चुका था। सात-आठ बज रहे थे।
मोदी की कार हेडक्वार्टर से निकलकर सड़क पर आई तेजी से दौड़ पड़ी। मोदी के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान थिरक रही थी। तभी उसके मोबाइल फोन में सिग्नल मिलने लगा। मोदी ने फोन का स्विच ऑन किया और कान से लगाया।
“हैलो –।”
“मैं बोल रहा हूँ –।”
“क्या मालूम किया?”
“खोजबीन का अभी तक यही नतीजा निकला है कि वह पटना चला गया है।” आवाज आई।
“पटना –? पक्का कह रहे हो?”
“हां। उसके एक खास साथी को पकड़ा है। उसी से यह मालूम हुआ –।” आवाज आई।
“पटना कहां?”
“जेल रोड पर, कोई झा है। उसके यहां गया है।”
“पटना की जेल रोड पर?”
“हां। उसी जेल रोड पर हिन्दुस्तान टाइम्स की बिल्डिंग है। उसके पास ही कहीं झा का बंगला है।”
“वहां क्या करने गया है?”
“मालूम नहीं।”
“मैं समझता हूं। सब समझता हूं। लेकिन वह बच नहीं सकेगा। दो तरफा मार जब पड़ती है तो भागने के भी सारे रास्ते बंद हो जाते हैं।” मोदी ने खतरनाक स्वर में कहा –“तुम टोह लेते रहो। कोई नई खबर मिले तो बताना। मैं फिर बात करूंगा।” इसके साथ ही मोदी ने फोन बंद किया और जेब में डाला।
तभी उसके सिर से रिवॉल्वर की नाल आ सटी।
मोदी चौंका। पल भर के लिए कार लहराई फिर संभल गई।
“कौन हो तुम?” मोदी के होंठों से गुर्राहट निकली –“मुझे जानते नहीं। मैं इंस्पेक्टर मोदी हूं। साले ऐसा बंद करूंगा कि बूढ़ा होकर ही बाहर निकलेगा।”
“जानता हूं तेरे को।” पारसनाथ का कठोर स्वर उसके कानों में पड़ा।
“तुम–? तुम यहां क्या कर रहे हो?” मोदी के होंठों से हक्का-बक्का स्वर निकला।
“तुझे अपनी पसंद की जगह पर ले जाऊंगा। वहां टेढ़ी उंगली से तेरा घी निकालूंगा।” पारसनाथ की आवाज में दरिंदगी थी –“चल, वापस मोड़।”
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