पुलिस इन्स्पेक्टर बहुत विनयशील था, बहुत चालाक था ।
उसके होठों पर एक मित्रता और सदभावनापूर्ण मुस्कराहट थी । लेकिन आंखों में एक लोमड़ी जैसी सतर्कता भरी हुई थी ।
“मैं आपको असमय कष्ट देने के लिए बहुत बहुत माफी चाहता हूं, मिस्टर प्रमोद ।" - इन्स्पेक्टर चिकने-चुपड़े स्वर में बोला ।
प्रमोद चुप रहा ।
“मेरा नाम आत्माराम है।" - इन्स्पेक्टर ने बताया - "आपको पुलिस हैडक्वार्टर पर लिवा लाने के लिए सिपाही भेजते समय जो पहला विचार मेरे दिमाग में आया था वह यह था कि एक पुलिस इन्स्पेक्टर की ड्यूटी भी कितनी अप्रिय होती है। कितने अप्रिय काम करने पड़ते हैं उसे । अब आप अपना ही उदाहरण लीजिए। आप एक जिम्मेदार नागरिक हैं । अच्छी खासी सामाजिक स्थिति है आपकी । नगर के ऊंचे सर्किल से सम्बंध रखते हैं आप । आपका पुलिस स्टेशन पर बुलाया जाना आपके लिये काफी अरुचिकर सिद्ध हो सकता है, यह मैं खूब समझता हूं । लेकिन फिर भी आप मेरी ईमानदारी पर विश्वास कीजिए । अगर आपसे किन्हीं प्रश्नों का उत्तर पाना कम महत्वपूर्ण न होता तो मैं हरगिज भी आपको यहां आने का कष्ट नहीं देता ।"
"आपका मुझसे कुछ प्रश्न पूछना एकदम महत्वपूर्ण हो उठा है ?" - प्रमोद हैरानी का प्रदर्शन करता हुआ बोला ।
"जी हां ।" - इन्स्पेक्टर आत्माराम बड़े इत्मीनान से बोला।
"मैं इसे अपने लिए गौरव का विषय समझंगा।" - प्रमोद अपने स्वर को हल्के से व्यंग्य का पुट देता हुआ बोला - "या मुझे भयभीत हो जाना चाहिये ?"
आत्माराम के होठों पर फैली मुस्कराहट में कोई अन्तर नहीं आया लेकिन उसके नेत्र और कठोर हो उठे ।
"प्लीज ।" - वह बोला- "मिस्टर प्रमोद, आप प्रश्न बाद में पूछियेगा । पहले प्रश्न करने का मौका मुझे दीजिये । "
प्रमोद चुप रहा ।
"हालांकि हम आपके पिछले जीवन के विषय में पूरी जानकारी रखते हैं। लेकिन प्रश्न मैं आपसे केवल पिछले कुछ घंटों में घटी घटनाओं के विषय में पूछना चाहता हूं।"
“आप मेरे पिछले जीवन के विषय में पूरी जानकारी रखते हैं ?" - इस बार प्रमोद सच ही हैरान हो उठा।
“जी हां । "
"क्या आप वषों से मेरे पीछे लगे हुए हैं ?"
“जी नहीं । पिछले कुछ घंटों में ही हमारे विभाग का ध्यान आपकी ओर आकर्षित हुआ है। इस समय सुबह के साढ़े दस बजे हैं । छ: घंटे पहले अर्थात सुबह साढ़े चार बजे तक हम आपके विषय में उतना ही जानते थे जितना कि किसी भी अन्य नागरिक के बारे में जानते हैं। लेकिन अब हम आपके पिछले जीवन के विषय में लगभग सब कुछ जानते हैं ।”
"
और वह कथित 'सब कुछ' आपने केवल छ: घंटों में जाना है ?"
“जी हां । "
"माफ कीजिए इन्स्पेक्टर साहब" - प्रमोद बोला - "मुझे तो आपका दावा एकदम आधारहीन लग रहा है । केवल छ: घंटे के अल्प समय में किसी व्यक्ति के पिछले जीतन के बारे में आप 'पूरी जानकारी कैसे हासिल कर सकते हैं ?"
“मिस्टर प्रमोद” - आत्माराम विनोदपूर्ण स्वर सें बोला - "लगता है आपको अपने देश के पुलिस विभाग की कार्यदक्षता और कार्यप्रणाली का कोई भी आभास नहीं है । जानकारी हासिल करने के पुलिस विभाग के अपने तरीके होते हैं, अपने जरिये होते हैं, जिनकी साधारण नागरिक कल्पना भी नहीं कर सकता । कितने थोड़े समय में हम कितनी ज्यादा जानकारी हासिल कर सकते हैं इसका एक नमूना मैं अभी आपके सामने प्रस्तुत करता हूं।"
आत्माराम ने अपनी एक मेज का एक दराज खोला और उसमें से एक ऐसे ढंग से कुछ टाइप किये हुए पेपर बाहर खींच लिए जैसे कोई टोप में से खरगोश निकाल रहा हो । उसने मशीनी ढंग से पेपरों को एक स्थान से पढ़ना आरम्भ कर दिया ।
प्रमोद कुमार तिवारी, आयु बत्तीस वर्ष, कद लगभग पांच फुट आठ इंच, वजन लगभग अस्सी किलोग्राम, एथलीटों जैसा पुष्ट शरीर, साफ सुथरा नाक नक्शा, भूरे बाल, नीली आंखें । दिल्ली विश्वविद्यालय का ग्रेजुएट । बाद में एलएलबी की डिग्री भी प्राप्त की । ला का अच्छा विद्यार्थी होने के बावजूद भी कभी वकील बनने में दिलचस्पी नहीं ली । अध्ययन समाप्त करने के बाद राजनगर में रहने लगा । फिर एकाएक राजनगर से गायब हो गया । उस समय उसकी आयु लगभग बाइस वर्ष थी । अगले सात-आठ वर्ष वह चीन में रहा । शुरू के कुछ वर्ष वह चीन के सदियों पुराने मठों में कन्सन्ट्रेशन का आर्ट सीखता रहा और फिर न जाने क्यों मठों को छोड़कर पेकिंग में आ बसा । अपने याट-टो नाम के चीनी नौकर पर बहुत निर्भर करता है । याट-टो को नौकर से भी अधिक अपना मित्र मानता है। चीन में वह आखिरी बार सिडनी क्रेमर नाम के एक भारतीय संग्रहहकर्ता द्वारा देखा गया था । चीन में वह इंडोनेशिया का नागरिक समझा जाता था । सन उन्नीस सौ बासठ में जब भारत और चीन में गहरा मतभेद उत्पन्न हो गया तो वह चीन से गायब हो गया । आम धारणा यह थी कि वह चीनियों द्वारा कत्ल कर दिया गया था । लेकिन चार महीने पहले वह हांगकांग में फिर दिखाई दिया । कुछ दिन वहां भटकते रहने के बाद वह भारत में वापिस लौट आया और राजनगर में रहने लगा। साथ में उसका नौकर याट-टो भी था । राजनगर में गिने-चुने दो-चार पुराने लेकिन गहरे दोस्त ही उसका सोशल सर्कल हैं । राजनगर के नैशनल बैंक की कमर्शियल स्ट्रीट ब्रांच में उसका अकाउंट है जिसमें लगभग बारह सौ रुपये जमा हैं लेकिन किसी प्रकार की आर्थिक चिन्ताओं से एकदम मुक्त है । कमर्शियल स्ट्रीट में ही मार्शल हाउस नाम की शानदार छ: मन्जिली इमारत की तीसरी मंजिल के एक फ्लैट में रहता है जिसका किराया छ: सौ रुपये महीना है। राजनगर के चीनी इलाके चायना टाउन में उसके कई दोस्त हैं और वह अक्सर चायना टाउन में जाता रहता है। कई बार वह चायना टाउन जाता है तो वहां पर एकदम गायब हो जाता है और कई-कई दिन अपने फ्लैट पर नहीं लौटता है । वह एडवेंचरप्रिय व्यक्ति है और उसके मित्रों के कथनानुसार किन्हीं बन्धनों में बंधकर रह पाना उसका स्वभाव नहीं है।"
आत्माराम रुक गया । उसने दूसरा पृष्ठ पलटा लेकिन फिर एकदम सारे पेपर मेज पर रखता हुआ बोला - "मेरे विचार से अपनी बात की सत्यता सिद्ध करने के लिए इतना ही नमूना काफी है ।"
"कमाल है !" - प्रमोद प्रभावित स्वर में बोला ।
आत्माराम संतुष्ट भाव से उसे देखता रहा ।
"लेकिन आप मेरे बारे में इतना जान कैसे गये ?"
आत्माराम केवल मुस्कराया । प्रत्यक्ष था, वह अपने जानकारी के साधन को प्रकट नहीं करना चाहता था ।
प्रमोद ने भी फिर प्रश्न नहीं किया ।
"जो कुछ अभी मैंने आपको पढकर सुनाया है उसमें कोई गलती तो नहीं है ?" - आत्माराम ने पूछा ।
"नहीं।" - प्रमोद ने स्वीकार किया ।
"थैंक यू ।" - आत्माराम बोला- "लेकिन इस रिपोर्ट की एक बात मेरी समझ में नहीं आई । "
"क्या ?"
"यह कन्सन्ट्रेशन क्या बला है ? यह कौन सा आर्ट है?"
"क्या यही वह महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसके कारण आपने मुझे पुलिस हैड स्वार्टर बुला भेजा है ?"
"नहीं ।" - इन्स्पेक्टर आत्माराम बोला - " और न ही यह जरूरी है कि आप इसका उत्तर दें । यह प्रश्न मैंने अपनी ज्ञानवृद्धि के लिए पूछ लिया है । यह एकदम आप ही की इच्छा पर निर्भर करता है कि आप कन्सन्ट्रेशन के विषय में मुझे कुछ बताना चाहते हैं या नहीं।"
“इन्स्पेक्टर साहब" - प्रमोद ने बताया- "कन्सन्ट्रेशन एकाग्रता को कहते हैं प्रत्यक्ष में तो यह एक बड़ी मामूली सी बात लगती है लेकिन वास्तव में यह एक बेहद पेचीदी कला है और इस कला की प्रवीणता तो क्या अंश मात्र जानकारी के लिये भी वर्षों की निरन्तर साधना की आवश्यकता होती है । कन्सन्ट्रेशन का मतलब होता है अपनी तमाम मानसिक शक्तियों को एक बिन्दु पर, एक फोकस पर एकत्रित कर लेना । किसी एक विचार का इतनी एकाग्रता से मनन करना कि आप उस समय के दौरान में सारे संसार को भूल जायें स्वयं अपने आपको भूल जायें ।”
"यह क्या मुश्किल बात है ?" - आत्माराम हैरान होकरबोला- "मैं तो कई बार घंटों एकाग्रचित होकर एक ही घटना, एक ही विचार पर मनन करता रहता हूं। कई बार तो मैं अपने ख्यालों में इतना खो जाता हूं कि अगर कोई मुझे आवाज दे तो मुझे पता नहीं लगता। मेरे कान के पास टेलीफोन की घंटी बजती रहती है मुझे सुनाई नहीं देती । अगर यही कन्सन्ट्रेशन है तो यह तो कोई ऐसा आर्ट नहीं है जिसे सीखने की खातिर आप चीन के पुराने मठों के धक्के खाते रहे ।”
प्रमोद के चेहरे पर मुस्कराहट दौड़ गई ।
"क्या मैंने गलत कहा है कुछ ?" - आत्माराम तनिक खीज भरे स्वर में बोला ।
"मैं आपकी भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाना चाहता । इन्स्पेक्टर साहब ।" - प्रमोद मुस्करा कर बोला - "लेकिन जिसे आप कन्सन्ट्रेशन समझते हैं, वास्तव में कन्सन्ट्रेशन नहीं है । आप या आप जैसा कोई भी अन्य आदमी जब यह समझता है कि वह पूर्ण एकाग्रता से अपनी सारी मानसिक शक्तियों को एक ही बिन्दु पर, एक ही विचार पर केन्द्रित किये हुए है तो वास्तव में उस समय वह अपनी मानसिक शक्तियों के केवल एक छोटे से भाग को ही अपने अधिकार में कर पाया होता है । आप घंटों की बात करते हैं, मैं आपके सामने हकीकत कह रहा हूं कि उस आदमी की कन्सन्ट्रेशन का रिकार्ड केवल सात सेकंड का है अर्थात वह अपनी सारी मानसिक शक्तियों को केवल सात सेकंड के लिये अपने वश में कर सकता है और उसके बाद वह अपना संतुलन खो बैठता है। मैं पांच वर्ष तक निरन्तर उसके निरीक्षण में साधना करता रहा लेकिन कभी भी साढ़े चार सेकेंड से अधिक अपने मस्तिष्क पर पूर्ण रूप से कन्ट्रोल नहीं पा सका ।”
"मैं नहीं जानता" - आत्माराम अविश्वास पूर्ण स्वर में बोला - "मैं घंटों..."
"ठहरिये । मैं आपको एक उदाहरण देता हूं जो काफी हद तक आपकी भ्रान्ति दूर कर देगा ।"
"क्या ?"
प्रमोद ने मेज पर से एक पेंसिल उठा ली । उसने पेंसिल अपने दायें हाथ में सीधी पकड़ ली और इन्स्पेक्टर से बोला - "केवल दो सेकंड के लिये इस पेंसिल की नोक पर अपनी सारी मानसिक शक्तियों को केन्द्रित करने का प्रयत्न कीजिये
"अच्छा ।” - आत्माराम पेन्सिल की नोक पर दृष्टि जमाता हुआ बोला ।
"और जब आप समझें कि पेंसिल की नोंक पर कंसंट्रेट करने लगे हैं तो मुझे हाथ हिला कर संकेत कर दीजियेगा।"
"ओके ।" - आत्माराम बोला ।
आत्माराम एकदम आंखें फाड़कर पेंसिल की नोक को घूरने लगा । प्रमोद का ध्यान उसके हाथ पर था ।
उसी क्षण आत्माराम का हाथ हिला ।
प्रमोद ने पेंसिल मेज पर रख दी ।
"यह क्या हुआ ?" - आत्माराम बोला- "मैंने एकाग्रता से पेंसिल की नोक को देखना शुरू ही किया था कि आपने पेंसिल मेज पर रख दी ।"
"बुरा मत मानिये, इन्स्पेक्टर साहब ।" -प्रमोद बोला "आप में कन्सन्ट्रेशन की एक सेकंड के हजारवें भाग जितनी भी क्षमता नहीं है । "
"क्या मतलब ?"
“आपको मालूम है जब मैं दायें हाथ में पैन्सिल थामे हुए था, तब मेरा बायां हाथ क्या कर रहा था ?”
“हां ।” - आत्माराम विजयपूर्ण स्वर में बोला- "आप बांये हाथ से धीरे-धीरे मेज खटखटा रहे थे।"
" और जिस समय आप पेंसिल की नोक पर कंसंट्रेट कर रहे थे उस समय मेरा बायां हाथ क्या कर रहा था ?"
“उस समय भी आप बायें हाथ से धीरे-धीरे मेज ठकठका रहे थे।"
चीन में जब कोई पैन्सिल को नोंक पर कंसंट्रेट करता है तो उसकी सारी मानसिक शक्तियां पेंसिल की नोक पर ही केन्द्रित होती हैं, उसे केवल पेंसिल की नोक ही दिखाई देती है । अगर आप सत्य ही पेंसिल की नोक पर कंसंट्रेट कर रहे होते तो आपको अपना हाथ हिलाना याद नहीं रहता । आपको यह दिखाई नहीं देता कि मेरा बांया हाथ क्या कर रहा था । आपको मेरे बायें हाथ द्वारा मेज ठकठकाये जाने की आवाज सुनाई नहीं देती । वास्तव में आपकी मानसिक शक्तियों का केवल एक छोटा सा भाग ही पेंसिल की नोक पर केन्द्रित था । आपकी चेतना का एक भाग मेरे बांये हाथ की हरकत नोट करने में रत था । आपकी चेतना का एक अन्य भाग आपको यह याद रखने में सहायता दे रहा था कि कन्सन्ट्रेशन आरम्भ करते ही आप ने अपना हाथ हिलाकर मुझे संकेत देना है। इसी प्रकार परोक्ष में आपकी चेतना का एक बहुत बड़ा भाग न जाने कितने सांसारिक कार्यों की व्याख्या में जुटा हुआ था । मैं आपको विश्वास दिलाता हूं इन्स्पेक्टर कि कन्सन्ट्रेशन हरगिज-हरगिज भी कोई आसान काम नहीं है । "
आत्माराम के चेहरे ने कई रंग बदले ।
कन्सन्ट्रेशन की महत्ता और दुरूहता को समझने के लिये मैं आपको पौराणिक उदाहरण देता हूं।" - प्रमोद बोला |
आत्माराम ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे देखा ।
" द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरू थे । वे उन्हें अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा दिया करते थे । राजकुमार बड़ी लगन से शिक्षा ग्रहण करते रहे थे । शिक्षा के दौरान में जब एक बार राजकुमार बहुत कुछ सीख चुके थे, द्रोणाचार्य ने राजकुमारों की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उन्होंने पेड़ की एक बहुत ऊंची शाखा पर एक काठ की चिड़िया बना कर बैठा दी । फिर उन्होंने राजकुमारों को बुलाया और उन्हें बताया कि उन्हें धनुष बाण द्वारा चिड़िया की आंख को निशाना बनाना है । सबसे पहले उन्होंने दुर्योधन को बुलाया । दुयोंधन ने अपने धनुष पर बाण चढ़ा लिया निशाना लगाने के लिये तत्पर हो गया ।
'तुम्हें चिड़िया दिखाई दे रही है ?' - दोणाचार्य ने पूछा
'जी हां गुरूदेव ।' - उत्तर मिला ।
'और क्या दिखाई दे रहा है ?"
'और मुझे वह शाखा दिखाई दे रही है, जिस पर चिड़िया बैठी है । दुर्योधन ने कहा - 'और पेड़ के पत्ते' और पेड़ की अन्य शाखायें दिखाई दे रही हैं । आसमान दिखाई दे रहा है।'
‘निशाना लगाओ ।' - द्रोणाचार्य ने आदेश दिया ।
दुर्योधन ने निशाना लगाया, निशाना चूक गया ।
इसी प्रकार दुशासन, नकुल, सहदेव, युधिष्ठर, भीम वगैरह सब की परीक्षा ली गई । गुरू ने सबसे वही प्रश्न पूछे । सबने दुर्योधन वाला ही उत्तर दिया । सबने निशाना लगाया । सब का निशाना चूक गया । अन्त में द्रोणाचार्य ने अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को बुलाया ।
अर्जुन ने भी धनुष पर तीर चढ़ा दिया ।
'चिड़िया दिखाई दे रही है ?' - द्रोणाचार्य ने वही प्रश्न अर्जुन से पूछा ।
'नहीं।' - अर्जुन ने उत्तर दिया- 'मुझे केवल चिड़िया की आंख दिखाई दे रही है ।'
'और क्या दिखाई दे रहा है ?'
'और तीर की नोक दिखाई दे रही है ।'
'और क्या दिखाई दे रहा है।' - गुरू ने प्रसन्न स्वर में पूछा।
'और मुझे कुछ नहीं दिखाई दे रहा है ।'
'निशाना लगाओ ।' - आदेश मिला ।
अर्जुन ने तीर चलाया । निशाना अचूक था । तीर एकदम चिड़िया की आंख में जाकर लगा । कहने का मतलब यह है इन्स्पेक्टर साहब कि निशाना लगाते समय अर्जुन की सारी मानसिक शक्तियां केवल एक शार्प फोकस पर केन्द्रित थीं और वह फोकस था चिड़िया की आंख । इसीलिए वह अचूक निशाना लगा पाने में सफल हो पाया था । अगर अब भी आप यह समझते हैं कि कन्सन्ट्रेशन एक बड़ा आसान काम है और आप कई बार घंटों एक ही विचार पर अपनी चेतना को केन्द्रित कर लेने में वाकई सफल हो जाते हैं और आपको अपनी इस क्षमता के विषय में कोई भ्रान्ति नहीं है तो आपकी मर्जी ।”
इन्स्पेक्टर आत्माराम के चेहरे की मुस्कराहट किसी हद तक लुप्त हो चुकी थी । और अब उसकी आंखों में सतर्कता के साथ-साथ कठोरता भी झलकने लगी थी ।
"खैर छोड़िये, प्रमोद साहब ।" - वह बोला - "मान लिया आप ठीक कह रहे हैं । आखिर आप जैसे व्यस्त व्यक्ति को मने पुलिस हैड क्वार्टर कन्सन्ट्रेशन की घटना पर लैक्चर देने के लिए तो बुलाया नहीं है ।”
“शुरूआत आपने की थी। मैंने तो अपनी भरपूर योग्यतानुसार आपके प्रश्न का उत्तर दिया था।”
"बड़ी कृपा की आपने ।” - आत्माराम बोला - “अब मैं आपसे वे प्रश्न पूछने जा रहा हूं जिनके उत्तर पाना मैं आपको पहले ही बता चुका हूं मेरे विभाग के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो उठा है ।"
"पूछिये ।" - प्रमोद प्रत्यक्ष में लापरवाही का प्रदर्शन करता हुआ बोला ।
"पिछली रात आप सेठ रमण भाई देसाई की कोठी पर एक पार्टी में मौजूद थे।”
“जी हां । "
"
आपके साथ कविता ओबेराय नाम को एक महिला भी थी । कविता ओबेराय से आप पुराने परिचित हैं जो आप ही उसे उस पार्टी में लेकर गए थे। आप रात को साढ़े बारह बजे के करीब कविता ओबेराय के साथ उस पार्टी से वापिस लौटे थे ?"
"मुझे ठीक समय याद नहीं है लेकिन बाकी बातें ठीक ।" - प्रमोद बोला ।
आत्माराम एक क्षण चुप रहा । फिर उसने अपनी मेज की एक दूसरी दराज खोली और उसमें एक छोटा सा चौकोर, साधारणतया स्त्रियों द्वारा प्रयुक्त होने वाला रूमाल निकाल लिया ।
"इस रूमाल को पहचानते हैं आप ?" - उसने पूछा ।
"नहीं।" - प्रमोद ने फौरन उत्तर दिया । "
“इतनी जल्दी उत्तर देने की जरूरत नहीं है, प्रमोद साहब।” - आत्माराम स्थिर स्वर से बोला - "रूमाल को अपने हाथ में ले लीजिये इसे पहचानने की कोशिश इसमें लगी सुगन्ध को पहचानने की कोशिश कीजिये और फिर जवाब दीजिए | "
और फिर उसने लगभग जबरदस्ती ही रूमाल प्रमोद के हाथ में थमा दिया ।
प्रमोद कुछ क्षण हर कोण से रूमाल का निरीक्षण करता रहा और फिर उसने लापरवाही से रूमाल को मेज पर रख दिया ।
"लगता है" - प्रमोद बोला- "आप इस रूमाल को बहुत महत्व दे रहे हैं ?"
"जी हां । "
“लेकिन मेरे विचार से यह मामूली रूमाल कोई भारी महत्व की चीज नहीं हो सकता । किसी केस की तफ्तीश के दौरान में मिला, यह रूमाल किसी भारी अर्थ का प्रतिपादन कर सकता हो ऐसा मुझे नहीं लगता। रूमाल खोते ही रहते हैं । लोग अक्सर रूमाल कहीं रखकर भूल जाते हैं...
"कमाल है, साहब ।" - आत्माराम उसकी बात काटकर बोला - "आप रूमाल को तो पहचान नहीं पाये हैं । लेकिन रूमाल के स्वामी के बचाव में बहुत कुछ कहे दे रहे हैं । और फिर मैंने यह भी तो नहीं कहा कि यह रूमाल हमें किसी केस की तफ्तीश के दौरान में हासिल हुआ है।"
"सहज बुद्धि की बात है, इन्स्पेक्टर साहब ।" - प्रमोद जमहाई लेता हुआ बोला- "जब आप किसी नागरिक को सिपाही भेजकर बिस्तर में से विशेष रूप से जगवा कर पुलिस हैडक्वार्टर बुला भेजते हैं, तो इस रूमाल का सम्बन्ध किसी न किसी केस से तो होगा ही। नहीं तो आपको इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि मैं रूमाल पहचानता हूं या नहीं ।” --
"आप कोई बहुत समझदार आदमी हैं।" - आत्माराम मुस्करा कर बोला ।"
प्रमोद चुप रहा ।
"आपने देखा है रूमाल के कोने पर लाल रंग के धागे से अंग्रेजी का अक्षर ओ ( 0 ) कढा हुआ है।"
"मैंने देखा है । "
"क्या यह रूमाल आपकी मित्र कविता ओबेराय का हो सकता है ?"
“सम्भव है हो । सम्भव है न भी हो । क्योंकि कविता ओबेराय के सर नेम का प्रथम अक्षर भी ओ है केवल इतने ही आधार पर मैं कोई राय कायम नहीं कर सकता।"
आपने यह रूमाल या ऐसा कोई और रूमाल कविता ओबेराय के पास देखा है ?"
"मुझे ध्यान नहीं ।"
"कविता ओबेराय अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त आर्टिस्ट हैं ?"
"जी हां ।"
हैं ?" "उनके चित्र देश और विदेश में लाखों रुपये में बिकते
"जी हां । "
"फिर तो वे बड़ी धनवान औरत होंगी ?"
"जी हां ।"
"वे विधवा हैं ?"
“जी हां । "
"सात-आठ साल पहले उन्होंने महेन्द्र नाथ नाम के एक सज्जन से शादी की थी ?"
"जी हां । "
"महेन्द्र नाथ की मृत्यु के समय आप कहां थे ?"
"चीन में ।"
"महेन्द्र नाथ आपका अच्छा मित्र था ?”
"जी हां । "
"
आप कविता ओबेराय को उसकी शादी से पहले जानते थे ?"
"नहीं । महेन्द्र नाथ की कविता ओबेराय से शादी होने के बाद ही मैं कविता ओबेराय से परिचित हुआ था ।"
"महेन्द्र नाथ आगका बहुत पक्का दोस्त था । स्वाभाविक है उसके घर काफी आते जाते होंगे और उसके माध्यम से कविता ओबेराय से भी काफी मिलते जुलते रहे होंगे ।"
" जी हां । " - प्रमोद तनिक हिचकिचा कर बोला । T
"कविता ओबेराय उन दिनों आज जैसी गम्भीर महिला नहीं थी बल्कि हंसमुख और मिलनसार लड़की थी ?"
"जी हां । "
“महेन्द्र नाथ की शादी के कितने अरसे बाद आप चीन चले गये थे ?"
"ठीक तीन महीने बाद ।"
" सुना है आप एकाएक ही बड़े अप्रत्याशित ढंग से चीन कूच कर गए थे ।" को
"जी हां । "
"क्यों ?"
“कारण आपकी समझ में नहीं आयेगा ।"
"मतलब कि आप बताना नहीं चाहते ।"
प्रमोद चुप रहा ।
"कविता ओबेराय की इस समय क्या आयु होगी ?"
" मैंने कभी पूछा नहीं ?"
“फिर भी आपका अनुमान क्या है ?"
“पैंतीस-छत्तीस साल ।"
" और आपकी ?"
प्रमोद ने एकदम घूरकर आत्माराम को देखा लेकिन उनका चेहरा सलेट की तरह साफ था ।
"बत्तीस साल ।" - प्रमोद धीरे से बोला ।
“आपका कविता ओबेराय से केवल मित्रता का ही सम्बन्ध है ? "
"जी हां । "
"कोई रोमांटिक अटैचमेंट ?"
प्रमोद फिर भी चुप रहा ।
“आप जवाब नहीं दे रहे हैं ?"
"जब आप कोई जवाब के काबिल बात पूछेंगे तो जरूर जवाब दूंगा ।"
"बेहतर ।" - आत्माराम पैंतरा सा बदलता हुआ बाला - "पार्टी के बाद आप कविता ओबेराय को सीधे उसके फ्लैट पर छोड़ने चले गये थे या कहीं और भी गये थे।"
"मैं थोड़ी देर के लिए चायना टाउन में गया था ।”
“कहां ?"
“अपने कुछ मित्रों के पास ।"
"इतनी रात गये ?"
"जी हां, । मेरे चीनी मित्र मेरे देर सवेर आने पर कोई एतराज प्रकट नहीं करते ।"
" उस समय भी कविता ओबेराय आपके साथ थीं ?"
“जी हां । दरअसल कार मेरी थी और मैं ही उन्हें उनके
फ्लैट पर छोड़कर आने वाला था ।”
को भी जानते हैं ?" “आप कविता ओबेराय की छोटी बहन सुषमा ओबेराय
"जी हां । जानता हूं।"
"वह भी आर्टिस्ट है ?"
"जी हां । "
“उतने ही ऊंचे दर्जे की जितनी कि कविता ओबेराय?"
"जी हां । आर्ट की जानकरी तो उसकी अपनी बड़ी बहन जितनी ही है । लेकिन क्योंकि उसके स्वभाव में खिलन्दड़ापन ज्यादा है इसलिये वह अपने आर्ट के प्रति उतनी जिम्मेदार और सीरियस नहीं है जितनी कि उसकी बड़ी बहन ।"
"क्या यह सच है कि सुषमा ओबेराय बहुत ऊंची ऊंची नाइट क्लबों में घूमती है और कभी-कभी नगर के बड़े होटलों में किसी हद तक संदिग्ध चरित्र के लोगों के साथ देखी जाती है । वह उतनी ही निर्भीकता के साथ पुरुषों से मिलती है जिसे कोई पुरुष अपने पुरुष मित्रों से मिलता है । उसके रहन-सहन का ढांचा बीटनीकों जैसा है। रहती तो वह अपनी बड़ी बहन के साथ शंकर दास रोड स्थित फ्लैट में ही है लेकिन कई बार ऐसा हो जाता है कि वह दो-दो तीन-तीन दिन घर नहीं लौटती है ?"
"सम्भव है सच हो । लेकिन मेरे खयाल से मुझे किसी के व्यक्तिगत जीवन के विषय में किसी आक्षेपपूर्ण राय का समर्थन करने का अधिकार नहीं है । "
"बेहतर ।" - आत्माराम बोला- "अब राजेन्द्र नाथ कि विषय में कुछ बताइये?"
“क्या बताऊं उनके विषय में ?"
"आप इस नाम के किसी सज्जन को जानते हैं ?"
"जानता हूं।"
"कौन है वह ?"
"राजेन्द्र नाथ कविता ओबेराय का देवर है । "
" अर्थात् कविता ओबेराय के मृत पति महेन्द्र नाथ का छोटा भाई ?”
"जी हां । "
"उसके विषय में कोई विशेष बात जानते हों आप ?"
"मैं राजेन्द नाथ को इतना अधिक नहीं जानता कि उसके विषय में कोई विशेष बात जान पाऊं ?”
"क्या यह सच है कि ओबेराय बहने राजेन्द्र नाथ के साथ कोई विशेष सम्पर्क नहीं रखना चाहतीं । लेकिन वह जबरदस्ती स्वयं को उन पर लादता रहता है और यह प्रकट करने का प्रयत्न करता है कि वह उनका बहुत बड़ा हितचिन्तक है ? उसकी आय का कोई प्रत्यक्ष साधन नहीं है । और वह समय समय पर कविता ओबेराय से बड़ी रकमें । मांगता रहता है । क्लबों और होटलों में घूमने के अतिरिक्त उसे कोई काम नहीं है। उधार मांगी रकमें वह बुरी तरह रेस के घोड़ों पर दांव लगा लगाकर और क्लबों में जुआ खेल-खेल कर खर्च कर देता है । वह एकदम निकम्मा आदमी है । अगर कविता ओबेराय उसे उधार न दे तो शायद भूखा मर जाए । लेकिन फिर भी उसके ठाठ में कोई कमी नहीं आती है।"
"मुझे नहीं मालूम ।" - प्रमोद उखड़ कर बोला - "इस मामले में राजेन्द्र नाथ ने या कविता ओबेराय ने मुझे अपना हमराज बनाने की ओर ध्यान नहीं दिया है।"
आत्माराम चुप हो गया ।
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