"मुखबिर से पक्की खबर मिली है कि डकैती मास्टर देवराज चौहान का साथी, जगमोहन फोर स्क्वायर मॉल पर आज शाम चार बजे आयेगा ।" इंस्पेक्टर सुमन मित्रा के सामने खड़े सब-इंस्पेक्टर अनुज दयाल ने कहा।

"ये तो अच्छी खबर है, सर ।"

"अगर जगमोहन हमारे हाथ लग गया तो उससे हम बहुत कुछ जान सकते हैं कि देवराज चौहान ने आज तक कहां-कहां डकैती की। किस-किस को मारा । उसका ठिकाना कहां है और कौन-कौन देवराज चौहान के साथी हैं। यानी कि बहुत-सी बातें, जो हम नहीं जानते, वो भी हमें मालूम हो जाएंगी । हो सकता है डिपार्टमेंट हमें तरक्की भी दे दे ।" कहकर इंस्पेक्टर सुमन मित्रा मुस्कुराया।

"मैं घेराबंदी की तैयारी करूं सर ?" सब-इंस्पेक्टर अनुज दयाल ने कहा ।

"करो ।" लेकिन हमारी पार्टी में से कोई भी आदमी ये न जान पाए कि हम किसे पकड़ने की तैयारी कर रहे हैं । जमाना खराब है । दो हजार की खातिर भी कोई ये खबर बाहर कर सकता है कि हम देवराज चौहान के साथी जगमोहन पर हाथ डालने जा रहे हैं ।"

"मैं इस बात का पूरा ध्यान रखूंगा सर।"

"हमने इस बात की भी पूरी कोशिश करनी है कि जगमोहन हमारे हाथ जिंदा लगे । अगर हमारी गोलियों से मर जायेगा तो हमें अखबारों में एक दिन की वाह-वाही मिलेगी । जिंदा हाथ लगा तो लगभग रोज ही अखबारों में इस मुद्दे पर कुछ-न-कुछ आता रहेगा और हम खबरों में बने रहेंगे, अपने डिपार्टमेंट की नजरों में ज्यादा से ज्यादा आयेंगे।"

"राइट सर । हम उसे जिंदा पकड़ने की ही कोशिश करेंगे ।"

■■■

3.50 बजे ।

जगमोहन ने फोर स्क्वायर मॉल की पार्किंग में कार रोकी और बाहर निकला । आज मौसम सुहावना था । आसमान में बादल छाए हुए थे । सुबह से ही धूप गायब थी । बीच में बूंदा-बांदी भी हुई थी । बढ़िया हवा चल रही थी।

जगमोहन मॉल के मुख्य गेट की तरफ बढ़ गया।

मॉडलिंग की बहुत बड़ी हस्ती मनीष पाटिल ने किसी के द्वारा उससे बात की थी और मुलाकात के लिए यहां का वक्त रखा था। किसी मुसीबत में फंसा हुआ था और मुसीबत से निकलने के लिए करोड़ों रुपया देने को तैयार था । वो चाहता था कि जगमोहन उसे मुसीबत से निकाल दे । इसी सिलसिले में फोर स्क्वायर में मनीष पाटिल और जगमोहन की मुलाकात होने जा रही थी । जगमोहन ने देवराज चौहान को भी चलने को कहा था, परन्तु देवराज चौहान ने व्यस्तता के कारण जाने को मना कर दिया था।

फोर स्क्वायर का शीशे का दरवाजा धकेलकर जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया ।

काफी भीड़ थी यहां ।

खरीददारी के लिए लोगों का मेला लगा नजर आ रहा था ।

भीतर प्रवेश करते ही ए.सी. की ठंडी हवा उसके शरीर से टकराई । फिर वो भी लोगों की भीड़ में शामिल हो गया । जगमोहन यहां पहले भी आ चुका था । आगे जाकर 'प्लाजा' नाम का रैस्टोरेंट था, वहीं पर मनीष पाटिल से मुलाकात होनी थी । जगमोहन सीधा 'प्लाजा' पहुंचा । जो कि काफी बड़ा रैस्टोरेंट था । वहां भी लोगों की भीड़ थी । उसने एक टेबल संभाल ली।

जगमोहन को बैठे मिनट भर ही हुआ था कि उसकी टेबल पर सादे कपड़ों में इंस्पेक्टर सुमन मित्रा आ बैठा । उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही जगमोहन मन-ही-मन चौंका । जगमोहन को पहचानते देर न लगी कि वो पुलिस वाला है ।

अगले ही पल जगमोहन उठने लगा तो सुमन मित्रा ने शांत स्वर में कहा-

"बैठे रहो...।"

जगमोहन ठिठका और सुमन मित्रा को देखकर सामान्य स्वर में कहा---

"आपने मुझसे कहा ?"

"हां, जगमोहन साहब । आपसे ही कह रहा हूं ।" इंस्पेक्टर सुमन मित्रा ने शांत स्वर में कहा--- "मैं तुम्हारे लिये ही यहां आया हूं । हमें पहले ही खबर थी कि तुम यहां आ रहे हो । ये रैस्टोरेंट पुलिस के घेरे में है और टेबल के नीचे मेरी रिवाल्वर तुम्हारी तरफ है । मेरे ख्याल में तुम हालात बखूबी समझ रहे होगे कि अब तुम बच नहीं सकते। कोई कोशिश की तो मारे जाओगे ।"

जगमोहन ठगा-सा बैठा रह गया ।

काटो तो खून नहीं ।

ऐसे हालातों की उसने कल्पना भी नहीं की थी।

मन में पहला विचार यही आया कि अच्छा हुआ देवराज चौहान उसके साथ नहीं आया ।

तभी सब-इंस्पेक्टर अनुज दयाल जगमोहन की बगल में आ बैठा ।

जगमोहन ने उसे देखा ।

अनुज दयाल ने रिवाल्वर निकालकर जगमोहन की कमर से लगा दी।

जगमोहन को समझते देर न लगी कि यहां सच में पुलिस का घेरा पड़ चुका है । ये लोग तैयारी से आये हैं । उसकी निगाह रेस्टोरेंट में घूमी । हर कोई अपने में मस्त था । किसी को यहां की कोई खबर नहीं थी ।

"अपने दोनों हाथ पीछे कर लो ।" इस्पेक्टर सुमन मित्रा ने कहा--- "तुम्हें हथकड़ी लगाई जायेगी । तुमसे शराफत से इसलिए बात हो रही है कि हम रैस्टोरेंट में मौजूद लोगों को डराना नहीं चाहते । वैसे तुम्हें गोली मारकर मुझे खुशी होगी ।"

"तुमने मुझे पहचाना कैसे ?"

"मुखबिर ने तुम्हारी अखबार में छपी पुरानी तस्वीर दे दी थी मुझे । उससे थोड़ी बहुत दिक्कत तो आई, पर पहचान लिया तुम्हें ।"

"मुझे हैरानी है कि किसी को पता था कि मैं यहां आने वाला हूं...।"

"इन्हीं बातों की खबरें तो मुखबिर हासिल करते हैं । चलो हाथ पीठ की तरफ करो।" कहकर सुमन मित्रा उठा और पीठ पीछे पैंट में फंसी हथकड़ी निकाल ली और रिवाल्वर जेब में रख ली।

सब-इंस्पेक्टर अनुज दयाल ने सावधानी से जगमोहन की कमर में रिवाल्वर लगा रखी थी।

"हथकड़ी रहने दो ।" जगमोहन कह उठा--- "ये बताओ, कितना पैसा चाहिये ?"

"पैसा ?"

"यहीं पहुंच जायेगा । एक घंटे में । कम ही रकम बताना ।"

"मुझे न तो ज्यादा चाहिये न ही कम । मुझे सिर्फ तुम चाहिये ।" इंस्पेक्टर सुमन मित्रा ने कहा और आगे बढ़कर जगमोहन के हाथ पीछे करके हथकड़ी लगाने लगा ।

सब-इंस्पेक्टर अनुज दयाल जगमोहन की कमर में सतर्कता से रिवाल्वर लगाये रहा ।

"मैं तुम्हें अच्छी खासी रकम दे सकता हूं ।" जगमोहन ने बेचैनी से कहा ।

"कितनी ?" हथकड़ी लगाता सुमन मित्रा बोला ।

"एक करोड़...।"

"मैं इसे बड़ी रकम नहीं मानता ।"

"दो करोड़...।"

"ये भी छोटी है ।"

"तीन करोड़...।"

"अपने साथ-साथ डकैती मास्टर देवराज चौहान की कीमत नहीं लगाओगे ?"

"देवराज चौहान की कीमत ?" जगमोहन के माथे पर बल पड़े ।

"तुम हाथ में आ गये हो तो देवराज चौहान भी जल्दी हाथ आयेगा । मालूम है मुझे कि तुम उसके बहुत खास हो ।"

"तुम उल्लू के पट्ठे हो ।" जगमोहन ने दांत भींच कर कहा ।

"कह लो । इस वक्त तुम जिस स्थिति में हो, उसमें मैं भी होता तो यही कहता।"

हथकड़ी लग चुकी थी ।

"पांच करोड़ दूंगा अभी । मेरे एक फोन पर घंटे भर में पैसा यहां आ जायेगा ।" जगमोहन कह उठा ।

"उठो दयाल । ले चलो इसे ।" सुमन मित्रा ने कहा ।

"तुम समझते क्यों नहीं, मैं पांच करोड़...।"

"मैं बिकाऊ नहीं हूं।"

"तुम पुलिस वाले हो और कहते हो कि बिकाऊ नहीं हो ।"

"लगता है आज तक तुम्हारा वास्ता बिकाऊ पुलिस वालों से ही पड़ा है । मेरे जैसों से नहीं पड़ा ।"

अनुज दयाल उठ चुका था । रिवाल्वर उसके हाथ में था । उसने जगमोहन की बांह पकड़कर उठाया । जगमोहन के दोनों हाथ पीठ की तरफ हथकड़ी में जकड़े हुए थे।

उनके खड़े होते ही आसपास मौजूद सादे कपड़ों में पुलिस वाले आ पहुंचे । जगमोहन को उन्होंने घेरे में ले लिया । जगमोहन खुद को बुरा फंसा महसूस कर रहा था ।

"मैं तुम्हें दस करोड़ दे सकता हूं...।" जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा ।

"दस तो क्या तुम बीस भी दोगे । बहुत डकैतियां डाली है तुमने देवराज चौहान के साथ...।" इंस्पेक्टर सुमन मित्रा ने कड़वे स्वर में कहा--- "बहुत पैसा है तुम लोगों के पास । लेकिन मुझे पैसे की जरूरत नहीं है । ले चलो इसे...।" कहने के साथ ही उसने जगमोहन के कपड़ों की तलाशी ली । जेब से रिवाल्वर मिला, जो कि उसने अपनी जेब में डाल लिया ।

जगमोहन पुलिस की गिरफ्त में पहुंच गया था।

■■■

जोशी एंड जोशी एसोसिएट ।

मुम्बई की क्रिमिनल लॉयरों (फौजदारी मामलों ) की मशहूर फर्म थी । सुमित जोशी और प्रदीप जोशी मालिक थे इस फर्म के । मुम्बई के अलावा हिन्दुस्तान के हर बड़े शहरों में इनका आफिस था । मोटी तनख्वाह पर चुन-चुन कर वकीलों को अपनी फर्म में जमा कर रखा था 

हत्या, बलात्कार, अपहरण, डकैती यानी कि अपराध कैसा भी हो, अदालत में केस लड़ते थे और अपने क्लाइंट को बाइज्जत बरी करवाते थे । बदले में क्लाइंट से मोटा पैसा लेते थे । इस फर्म के क्लाइंट देश के बड़े-बड़े इज्जतदार लोग भी थे और अंडरवर्ल्ड के खतरनाक दम वाले, पहुंच वाले लोग भी थे । आमतौर पर ये बात मशहूर थी कि जो अपराधी इनकी फीस देकर इस फर्म का क्लाइंट बन गया, वो समझो बच गया ।

बीस सालों से जोशी एंड जोशी एसोसिएट का अंडरवर्ल्ड में नाम था । पुलिस में नाम था ।

सुमित जोशी पचपन साल का था और प्रदीप जोशी तिरेपन का ।

कहने को ये दोनों वकील थे, परन्तु बेहद खतरनाक माने जाते थे ।

आमतौर पर कोई भी जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स से पंगा नहीं लेता था । बेशक उनमें पुलिस वाले हों या जज हों । सुना जाता है कि वकीलों की ये फर्म, जजों से अपने पसंदीदा फैसले ही करवाती थी । या फिर इस फर्म को यूं भी कहा जा सकता है कि काले कोट वाली, सरकारी मान्यता प्राप्त अपराधियों की संस्था थी ये ।

इस वक्त सुबह के ग्यारह बज रहे थे ।

सुमित जोशी जेल में प्रभाकर से मिला।

प्रभाकर का मुम्बई अंडरवर्ल्ड में नाम था । अपने चचेरे भाइयों और बेटे के साथ मिलकर, तूफान मचा रखा था अंडरवर्ल्ड में । तीन साल पहले पकड़ा गया । सबूतों के साथ पुलिस ने इसे कोर्ट में पेश किया । उसके बाद से अब तक कोर्ट में केस चल रहा है । प्रभाकर की जमानत तक नहीं हो पाई थी । वो जेल में पड़ा छटपटा रहा था ।

मुलाकाती कक्ष में दोनों की मुलाकात हुई ।

"तुमने मुझे ही क्यों बुलवाया ?" सुमित जोशी ने प्रभाकर से कहा।

"तेरे पांव घिसते हैं यहां तक आते हुए ?" प्रभाकर ने उसे घूरा ।

"ऐसी बात नहीं ।" सुमित जोशी मुस्कुराकर बोला ।

"मैंने तेरे को दस करोड़ फीस का दिया है और आजाद होने पर दस करोड़ और देना है ।" प्रभाकर ने कहा ।

"हां...।"

"तू अपने को बहुत बड़ा वकील कहता है ।"

"मैं नहीं कहता, दुनिया कहती है कि हमारी फर्म...।"

"बकवास मत कर । तुम दोनों भाई चोर हो ।"

"चोर ?" सुमित जोशी का चेहरा शांत रहा ।

"क्या किया तूने और तेरे भाई ने ? दस करोड़ लेकर तीन साल पहले से जेल में सड़ रहा हूं और...।"

"काम चल रहा है ।"

"भाड़ में गया तेरा काम ।" प्रभाकर गुर्राया।

"तुम्हारे खिलाफ बहुत संगीन चार्ज है । दो मुकदमों से मैं तुम्हें बरी करा चुका हूं । बाकी सब भी ठीक हो जायेगा । मेरी वजह से ही अभी तक तुम बचे हुए हो । वरना पुलिस तो...।"

"चुप कर साले कुत्ते की औलाद...।"

सुमित जोशी चुप कर गया ।

प्रभाकर के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी ।

"तूने मेरे से ये कहकर पच्चीस करोड़ रूपया लिया था कि जज मांग रहा है । सब ठीक करने का ।"

"हां, मैंने 25 करोड़ जज को...।"

"बकवास मत कर । वरना अभी तेरे को तेरी मां के पास पहुंचा दूंगा कमीने । तूने जज को एक पैसा भी नहीं दिया । मेरे बेटे ने जज से बात की, पता किया । और तू कहता है कि तूने दिया । प्रभाकर से झूठ बोलता है ?"

सुमित जोशी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरी ।

"पच्चीस करोड़ खा गया तू । तूने क्या सोचा कि प्रभाकर का माल तू हजम कर लेगा ?"

"प्रभाकर, तुम मेरी बात...।"

"चुप हो जा ।" प्रभाकर गुर्राया--- "वरना शाम तक तेरी लाश कहीं पड़ी होगी ?"

सुमित जोशी ने गहरी सांस लेकर मुंह घुमा लिया ।

"जिंदा रहना चाहता है या मरना चाहता है तू ?" प्रभाकर ने पूछा।

"कैसी बातें कर रहा...।"

"कान खोल कर सुन । बहुत हो गया । तेरे से मीठी बातें बहुत कर लीं। अब मैं ऐसे ही बात करूंगा जैसे अब कर रहा हूं । तू जिंदा रहना चाहता है या मरना ?"

"जिंदा...।" सुमित जोशी ने फंसे स्वर में कहा ।

"तो मुझे यहां से बाहर निकाल...।"

"मैं ?" सुमित जोशी चौंका--- "म...मैं बाहर निकालूं ? मैं तो वकील ही हूं, मैं...।"

"मैं जानता हूं कि तू कैसा हरामी वकील है । कुत्तों से भी गया-गुजरा है तू...। अगर तूने मुझे बाहर नहीं निकाला तो मैं अपने बेटे को कह दूंगा । वो तुम दोनों भाइयों को गोलियों से भुनवा देगा । अच्छा-बुरा सोच ले । मेरे बाहर आने का प्लान मेरे बेटे के पास है । उससे बात कर, वरना तू तो मर गया ।"

"प्रभाकर तुम...।" सुमित जोशी ने कहना चाहा।

"दफा हो जा ।" प्रभाकर ने दरिंदगी से कहा--- "मुझे बाहर निकाल, वरना तू तो गया वकील...।"

■■■

वो शाम बीती । रात भी निकल गई ।

देवराज चौहान को जगमोहन की चिंता हुई।

अगर सब कुछ ठीक रहता तो जगमोहन उसे फोन पर खबर अवश्य दे देता कि वो रात को नहीं आयेगा । परन्तु उसकी कोई खबर नहीं आई थी । ये खटकने वाली बात थी ।

अगली सुबह देवराज चौहान बंगले से बाहर निकला । कुछ दूर मार्केट में कार रोकी और वहां से पी.सी.ओ. से जगमोहन के मोबाइल पर फोन किया । अपने फोन या बंगले पर मौजूद फोन से फोन करना उसने इसलिए ठीक न समझा कि गड़बड़ होने की स्थिति में, उसका नम्बर कोई नहीं जान पायेगा।

फौरन दूसरी तरफ बेल हुई ।

"हैलो ।" अगले ही पल कानों में अंजान आवाज पड़ी ।

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी । होंठ भिंच गये ।

"हैलो...हैलो...।" उधर से आता वो स्वर फिर कानों में पड़ा ।

"कौन हो तुम ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"तुम कौन हो ?"

"जिसका ये फोन है, उससे मेरी बात कराओ ।" देवराज चौहान बोला ।

"तुम देवराज चौहान तो नहीं ?" उधर से कहा गया ।

देवराज चौहान से कुछ कहते न बना ।

"जवाब दो । क्या तुम देवराज चौहान हो ?"

"तुम अपने बारे में बताओ।"

"मैं इंस्पेक्टर सुमन मित्रा हूं । अगर तुम देवराज चौहान हो तो सुन लो कि जगमोहन पुलिस के पास है । हम उसे कोर्ट में पेश करने जा रहे हैं । हमें हर हाल में पूछताछ के लिये रिमांड मिल जायेगी । बहुत जल्द जगमोहन पुलिस को बतायेगा कि तुम कहां मिलोगे । अब तुम बच नहीं सकते । जगमोहन की तरह तुम भी जल्द ही कानून के हाथों में होंगे ।"

"अगर तुम सच में पुलिस वाले हो तो हम सौदा कर सकते हैं ।" देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा।

"सच में ? क्या तुम्हें मेरी बात मजाक लग रही है ?"

"मैं तुम्हें बहुत अच्छा पैसा दे सकता हूं जगमोहन को छोड़ने का ।"

"दस करोड़ तो जगमोहन ने लगा दिया था।  तुम क्या लगाते हो ?" उधर से इंस्पेक्टर सुमन मित्रा ने कहा।

"बीस करोड़...।"

"बात नहीं बनेगी ।"

"क्या चाहते हो ? मुंह से बोलो ।"

"मैं बिकाऊ हूं ही नहीं देवराज चौहान और तुम भी बचने वाले नहीं...।"

देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया । चेहरे पर सख्ती आ गई थी । कॉल के पैसे देकर वो पी.सी.ओ. बूथ से निकला और अपनी कार की तरफ बढ़ गया । उसे मालूम था कि कुछ ही देर में पी.सी.ओ. बूथ पर पुलिस पहुंच जायेगी उसकी तलाश में । कार स्टार्ट करके आगे बढ़ाई और सिगरेट सुलगा ली।

जगमोहन जाने कैसे पुलिस के हाथों में जा फंसा था । ये परेशानी वाली बात थी । चाहे जैसे भी हो, उसे हर हाल में पुलिस के हाथों से छुड़ाना था ।

■■■

उसके बाद देवराज चौहान दिन-भर व्यस्त रहा ।

जगमोहन के बारे में पूरी जानकारी हासिल करता रहा ।

दोपहर बाद तक, जगमोहन के बारे में पूरी जानकारी उसके पास थी।

जगमोहन को पुलिस के सख्त घेरे में सुबह ग्यारह बजे कोर्ट में पेश किया गया था । अदालत ने दस दिन के लिए जगमोहन को रिमांड पर पुलिस के हवाले कर दिया था । पुलिस जगमोहन को सीधा पुलिस हैडक्वार्टर ले गई थी ।

देवराज चौहान जानता था कि पुलिस सख्ती के साथ जगमोहन से पेश आयेगी । यातना भी दी जायेगी ।

देवराज चौहान परेशान हो उठा था । उसने सोहनलाल को फोन किया । कई बार किया । परन्तु उसका फोन नहीं लगा । हर बार स्विच ऑफ आता रहा । सप्ताह पहले ही देवराज चौहान और जगमोहन ने सोहनलाल और नानिया की शादी कराई थी । (नानिया के बारे में जानने के लिए पढ़ें ये तीन उपन्यास जथुरापोतेबाबा और महाकाली ) शायद शादी के बाद सोहनलाल नानिया के साथ हनीमून के लिए कहीं निकल गया था और अपना फोन बंद कर दिया था कि कोई डिस्टर्ब न करे?

देवराज चौहान समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे ?

आखिरकार देवराज चौहान ने इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े को फोन किया । ऑफिस का ही नम्बर था देवराज चौहान के पास । पुलिस हैडक्वार्टर का नम्बर । वहां इंस्पेक्टर शाहिद खान से बात हुई । पता चला कि वानखेड़े किसी केस के सिलसिले में मुम्बई से बाहर था ।

कोई फायदा न हो पा रहा था ।

जबकि देवराज चौहान, जगमोहन को टार्चर होने से बचाना चाहता था।

देवराज चौहान की भागदौड़ जारी रही ।

अगले दो दिन कैसे बीत गये, उसे पता ही न चल सका।

पता चला कि जगमोहन को सख्त पहरेदारी में, पुलिस हैडक्वार्टर में रखा गया है । वहां तक हर कोई पुलिस वाला नहीं पहुंच सकता । ये सब बातें उसने एक पुलिस वाले को, नोट देकर पता कीं।  पूछने पर उसने कहा कि जगमोहन को बाहर नहीं निकाला जा सकता । पुलिस उस पर बहुत ध्यान दे रही है । साथ ही उसने एक सलाह दी।

सलाह थी कि अगर तुम जगमोहन को बचाना चाहते हो तो जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स, वकीलों की फर्म में जाओ । जगमोहन के लिए कुछ हो सकता है तो वो वकील ही करेंगे ।

देवराज चौहान को वकीलों पर भरोसा नहीं था ।

जगमोहन का मामला था ।

देवराज चौहान, जगमोहन को खुद ही बाहर निकाल लाना चाहता था ।

परन्तु सब बातें जानने के पश्चात जगमोहन तक पहुंच पाना संभव नहीं लग रहा था । जब से जगमोहन के पुलिस के हाथों में पड़ने के बारे में जाना था, तब से उसकी नींद-खाना-पीना सब हराम हो गया था।

कोई और रास्ता न पाकर देवराज चौहान ने जोशी वकील भाइयों से बात करने की सोची । जबकि उसका दिल कह रहा था कि वकील इस बारे में कुछ नहीं कर सकेंगे । क्योंकि जगमोहन का नाम उसके साथ जुड़ा हुआ है । परन्तु  इस वक्त तो जैसे डूबते को तिनके के सहारे वाली बात थी।  कुछ और नहीं तो जोशी वकील भाई ही सही । दिल को इस बात की तसल्ली तो रहेगी कि वो जगमोहन को बचाने के लिए कुछ तो कर रहा है।

■■■

अगली सुबह ठीक दस बजे देवराज चौहान जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स जा पहुंचा ।

मेकअप में था देवराज चौहान ।

बदन पर खादी का सफेद कुर्ता पायजामा पहन रखा था । चेहरे पर हल्की दाढ़ी-मूछें थी । आंखों पर सफेद शीशे का चश्मा पहन रखा था।  कंधे पर थैले जैसा लटकता झोला था । पांवों में लेदर की चप्पलें थीं।

एक ही निगाह में देखने पर किसी नेता का चमचा लगता था।

रिसेप्शन पर, एक खूबसूरत युवती से बात हुई ।

"वकील साहब से मिलना है ।" देवराज चौहान बोला ।

युवती ने सिर आगे करके देवराज चौहान को सिर से पांव तक देखा, फिर पूछा-

"क्या काम है ?"

"किसी केस के सिलसिले में बात करनी है ।"

"वकील साहब की फीस बहुत ज्यादा है । तुम नहीं दे सकते ।" वो बोली--- "किसी और वकील के पास जाओ ।"

"मैं फीस दे दूंगा ।"

युवती ने बुरा-सा मुंह बनाया ।

तभी वहां से तेईस-चौबीस बरस का एक युवक निकला तो युवती ने उससे कहा-

राकेश, इन साहब की बात सुन लो । किसी केस के बारे में बात करना चाहते हैं ।"

"राकेश, देवराज चौहान के पास पहुंचा।

"इनसे बात नहीं करनी मुझे । मुझे तो प्रदीप जोशी...सुमित जोशी से मिलना है ।"

"इस वक्त ऑफिस खाली है । वकील साहब कोर्ट गये हैं । तीन बजे के बाद लौटेंगे । आकर मिल लेना ।" युवती ने कहा ।

देवराज चौहान ने आंखों पर चढ़ा चश्मा ठीक करते हुए कहा-

"कौन-सी कोर्ट गये हैं, मैं वहां मिल...।"

"वहां तुमसे कोई बात नहीं करेगा । उधर एक मिनट की फुर्सत नहीं होती उन्हें । यहां तीन के बाद आना ।"

राकेश नाम का युवक चला गया ।

"मैं बैठ कर इंतजार कर लूंगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"मतलब कि तुम पांच घंटे यहीं बैठोगे, मेरे सामने।" युवती हड़बड़ाई ।

"तुम्हें इंकार है ?"

"हां । मैं तुम्हें नहीं बैठने दूंगी । बाहर फुटपाथ पर जाकर बैठ जाओ । तीन बजे ही भीतर आना ।"

देवराज चौहान के चेहरे पर छोटी-सी मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई ।

"ठीक है । मैं तीन बजे आ जाऊंगा ।"

युवती ने चैन की गहरी सांस ली ।

देवराज चौहान जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स के ऑफिस से बाहर निकल आया।

फोन निकालकर उस पुलिस वाले का नम्बर मिलाया जो उसे भीतर की खबरें दे रहा था ।

"जगमोहन किस हाल में है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"वो ठीक है । पुलिस बराबर उससे पूछताछ कर रही है । अभी तक तो आराम से पूछताछ कर रही है ।"

"आराम से ।" देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

"हां, टॉर्चर नहीं किया गया । अभी तक पुलिस चाहती है कि वो आराम से सब कुछ बता दे । परन्तु वो मुंह नहीं खोल रहा । अभी तो तीसरा दिन ही है । मेरे ख्याल से पांच दिन बीत जाने पर ही पुलिस उस पर कुछ सख्ती करेगी ।"

"कौन पूछताछ कर रहा है उससे ?"

"कई हैं। सब पूछताछ में एक्सपर्ट है । उसे मुंह खोलना ही पड़ेगा । पुलिस जो चाहती है, बताना ही पड़ेगा ।"

"वो नहीं बतायेगा ।"

"ये बात तुम कैसे कह सकते हो ?"

"जगमोहन के बारे में खबर पाकर मुझे देते रहो और मुझसे नोट लेते रहो...।"

"फोन पर तुम मुझे कैसे नोट दोगे ?"

"मिलकर दूंगा जो पहले दिए हैं, पहले उनकी कीमत तो चुका दो ।"

"ठीक है । कोई नई बात हुई तो तुम्हें फोन करूंगा ।"

देवराज चौहान ने फोन बंद करके कुर्ते की जेब में रखा ।

जगमोहन की वजह से उसकी परेशानी चरम सीमा पर थी।

देवराज चौहान ने जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स के ऑफिस पर निगाह मारी । कुछ पल सोचता रहा, फिर दरवाजे के बाहर खड़े चौकीदारों के पास जा पहुंचा ।

"क्या है साहब जी ?" एक चौकीदार बोला--- "अभी तो आप भीतर गये थे ?"

"हां, वकील साहब को तीन बजे के बाद मिलते हैं । सुबह कोर्ट जाते हैं ।" दूसरे चौकीदार ने कहा।

"ये कैसे वकील हैं?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"धांसू वकील हैं।" एक मुस्कुराकर बोला--- "पुलिस से, जजों से, अपराधियों से सबसे याराना है । जो काम कोई नहीं कर सकता, उस काम को हमारे वकील साहब चुटकियों में कर देते हैं ।"

"पर फीस तगड़ी लेते हैं ।" दूसरा कहा उठा--- "तुम्हारा कोई केस है क्या ?"

देवराज चौहान उसके पास से हट गया।

■■■

शाम के छः बज रहे थे ।

रिसेप्शनिस्ट देवराज चौहान को कई बार कह चुकी थी कि आप भीतर जाकर वकील साहब से मिल सकते थे । परन्तु हर बार देवराज चौहान का ये ही कहना था कि मैं सबसे अंत में मिलूंगा । क्योंकि मेरी बातचीत लम्बी हो सकती है । वहां और भी कई मुलाकाती ही बैठे थे । रिसेप्शनिस्ट उन्हें बारी-बारी भेज रही थी।

तभी दो आदमी भीतर पहुंचे और बिना किसी से बात किए वकील के कमरे में जा घुसे । रिसेप्शनिस्ट ने भी उन्हें रोकने की चेष्टा नहीं की । दस मिनट बाद वो वकील के कमरे में आये और बाहर निकल गये । अब सिर्फ दो मुलाकाती ही बचे थे।

साढ़े सात बजे तक वकील से मिलने वाला और कोई नहीं बचा था ।

"अब आप भीतर जाइये ।" रिसेप्शनिस्ट बोली--- "ताकि मैं भी जाऊं...।"

देवराज चौहान उठा और आगे बढ़कर वकील के कमरे का दरवाजा धकेलकर भीतर प्रवेश कर गया । सुमित जोशी ही बैठा था । बड़ी-सी टेबल के पीछे टेबल पर फाइलें, किताबें व अन्य सामान मौजूद था । वो थका-सा लग रहा था । उसने देवराज चौहान को ऊपर से नीचे तक देखा ।

देवराज चौहान ने आंखों पर चढ़ा प्लेन ग्लास का चश्मा ठीक किया ।

"और कितने हैं बाहर ?" सुमित जोशी ने पूछा ।

"कोई नहीं । मैं आखिरी हूं...।" देवराज चौहान बोला ।

"शुक्र है । लोगों से मिलकर और जवाब देते-देते मैं थक गया हूं । तुम ही वो हो जो सुबह से मेरे ऑफिस के गिर्द मंडरा रहे हो और सबसे अंत में मुझसे मिलना चाहते थे। मेरी रिसेप्शनिस्ट ने ये बात बताई थी मुझे।"

"मैं ही हूं वो...। कहते हुए देवराज चौहान कुर्सी पर बैठा ।

"किसी नेता के पास काम करते हो ?"

"नहीं ।"

"तुम्हारे कपड़े और कंधे पर लटके थैले को देखकर तो यही लगता है । अब काम की बात करो ।"

"मेरा नाम सुरेंद्र पाल है ।"

"मुझे नहीं लगता कि मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकूंगा । मैं सिर्फ उसी का ध्यान रखता हूं, जिसके पास नोट हों ।"

"नोट तुम्हें मिल जायेंगे ।"

"तुम्हारी हालत देखकर तो नहीं लगता कि मुझे नोट मिलेंगे । मैं पैसे पहले लेता हूं...।"

"पहले ही दूंगा...।"

"किया क्या है तुमने ?"

"मैंने कुछ नहीं किया । तुमने देवराज चौहान का नाम तो सुना ही होगा !"

"देवराज चौहान...?  एक ही है जिसका नाम मैंने सुन रखा है । देवराज चौहान डकैती मास्टर ।"

"वो ही । उसका साथी । जगमोहन पुलिस के...।"

"जगमोहन के बारे में भी सुन रखा है...आगे कहो...।"

"जगमोहन पुलिस के हाथों में पड़ गया है ।"

सुमित जोशी की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी ।

"मुम्बई में ?"

"हां...। दो दिन पहले वो पुलिस के हाथों में पड़ा । इस वक्त पुलिस ने उसे रिमांड पर ले रखा है ।"

"क्या नाम बताया तुमने अपना...।"

"सुरेंद्र पाल...।"

"सुरेंद्र पाल...हूं...।" सुमित जोशी ने सिर हिलाया--- "तो जगमोहन पुलिस के हाथों में पड़ गया ।"

"हां । उसे निकालना है । रिमांड पर पुलिस वाले जगमोहन का बुरा हाल कर देंगे ।"

सुमित जोशी खामोश रहा।

"उसे बाहर निकालने के बदले तुम जो रकम कहोगे, मैं दूंगा ।"

"सीधी तरह क्यों नहीं कहते कि तुम ही डकैती मास्टर देवराज चौहान हो ।" सुमित जोशी कह उठा ।

"हां, मैं ही देवराज चौहान हूं...।"

सुमित जोशी ने सिर हिलाकर, मुस्कुराते हुए कहा-

"मैं कभी-कभी सोचा करता था कि डकैती मास्टर देवराज चौहान मेरे पास आयेगा कि नहीं । मेरी सोचें सच हो गईं ।"

"काम की बात करो...।"

"चिंता मत करो । तुम मेरे पास आ गये हो, मैं सब ठीक कर दूंगा । जरा अपना चेहरा तो दिखाओ । मेकअप उतारो अपना। इस वक्त तुम अपने दोस्त के पास हो । चेहरा तो दुश्मनों से छुपाया जाता है ।"

देवराज चौहान ने शराफत से चेहरे पर लगी दाढ़ी-मूंछ और चश्मा उतार दिया।

"वाह, कितना अच्छा है तुम्हारा चेहरा...।" सुमित जोशी खुलकर मुस्कुराया--- "तुम्हारे साथ तस्वीर खिंचवाकर अपने ऑफिस में लगा लूं तो मेरा रौब बढ़ जायेगा । परन्तु मैं ऐसा नहीं कर सकता । पुलिस मुझे परेशान कर देगी ।"

देवराज चौहान दाढ़ी-मूंछ पुनः अपने चेहरे पर लगाने लगा ।

"तो तुम जगमोहन को पुलिस के हाथों से निकालना चाहते हो ।"

"हां...।"

"पर ये काम आसान नहीं लगता । जगमोहन तुमसे जो जुड़ा है ।"

"मैंने तो सुना है कि तुम्हारे लिए कोई भी काम मुश्किल नहीं...।"

"गलत सुना है दिक्कतें तो सबके सामने आती हैं । तुम...एक बात तो मुझे बताओ ।"

"क्या ?"

"नम्बर वन डकैती मास्टर हो । तुम्हारे ढेरों कमाल मैं अखबारों में पढ़ चुका हूं । तुम तो आंखों के सामने से दौलत उड़ाकर गायब हो जाते हो । तुम्हारे लिये तो मामूली बात है जगमोहन को वहां से निकाल लाना ।"

"मामूली नहीं है ।"

"वो कैसे ?"

"क्योंकि जगमोहन का नाम मेरे साथ जुड़ा है । पुलिस ने उस पर सख्त पहरा लगा रखा है । वो पुलिस हैडक्वार्टर में है । मैं उसे वहां से बाहर नहीं निकाल सकता । बहुत सोच-समझकर मैं तुम्हारे पास आया हूं । लोगों से सुना कि तुम काबिल क्रिमिनल वकील हो।"

"जगमोहन ताजा-ताजा पुलिस के हाथ में आया है । दस-बीस दिन तो उस पर सख्त नजर रखी जायेगी । उसके बाद पुलिस वाले आदतन उसके प्रति लापरवाही बरतने लगेंगे, तब तुम उसे वहां से निकालने की चेष्टा कर सकते हो।"

"दस-बीस दिन ।" देवराज चौहान ने सुमित जोशी की आंखों में देखा--- "इतने दिनों में तो पुलिस वाले जगमोहन का बुरा हाल कर देंगे ।"

सुमित जोशी मुस्कुराया ।

देवराज चौहान ने सिगरेट निकालकर सुलगा ली ।

कुछ पल वहां खामोशी रही ।

"तुम कुछ करो । जगमोहन को पुलिस के हाथों से निकालो । मैं तुम्हें दौलत के ढेर पर बिठा दूंगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।

सुमित जोशी ने सोच भरे अंदाज में सिर हिलाया और बोला-

"मेरे साथ एक पैग लेना पसंद करोगे ? मैं थकान महसूस कर रहा हूं ।"

"जरूर लूंगा ।"

सुमित जोशी ने टेबल के नीचे का ड्रॉअर खोला और नमकीन का बड़ा-सा पैकिट, बोतल और दो गिलास निकाले । व्हिस्की के गिलास तैयार करके एक देवराज चौहान की तरफ सरकाया, दूसरा थामें घूंट भरा ।

देवराज चौहान ने गिलास उठाकर घूंट भरा।

"तुमने अभी तक कुछ नहीं कहा ?" देवराज चौहान बोला ।

"सच बता तो ये है कि अभी तक मैं मन-ही-मन इस बात का जश्न मना रहा हूं कि मेरे सामने डकैती मास्टर देवराज चौहान बैठा है ।

"तुम्हारी गोद में बैठूं ?"

"कुर्सी पर ही ठीक हो तुम।" सुमित जोशी हंसा और घूंट भरा।

तभी पीछे को लगता दरवाजा खुला और एक आदमी ने भीतर प्रवेश किया है।

देवराज चौहान की निगाह उस पर गई ।

एक ही निगाह में देवराज चौहान उसे पहचान गया कि वो सुमित जोशी का भाई प्रदीप जोशी है । दोनों के चेहरे भाई होने के नाते मिल रहे थे। देवराज चौहान ने घूंट भरा।

तभी सुमित जोशी कह उठा-

"इससे मिलो प्रदीप ये देवराज चौहान है, डकैती मास्टर ।"

"खूब ।" प्रदीप जोशी के होंठों से निकला । देवराज चौहान को देखकर हाथ बढ़ाया--- "तुमसे मिलकर खुशी हुई देवराज चौहान ।"

देवराज चौहान ने उससे हाथ मिलाया 

"क्या मामला है ?" प्रदीप जोशी ने सुमित जोशी से पूछा ।

"इसका साथी जगमोहन पुलिस के हाथों में पड़ गया है, उसे छुड़ाना है ।" सुमित जोशी बोला।

"पोजीशन क्या है ?

"रिमांड पर है ।"

"केस किसके हाथ में है ?" प्रदीप जोशी ने पूछा ।

"इंस्पेक्टर सुमन मित्रा इस मामले को संभाल रहा है ।" देवराज चौहान ने बताया ।

"रखा कहां है जगमोहन को ?"

"पुलिस हैडक्वार्टर में...।"

"फिर तो झंझट है। हमारी नहीं चलने वाली । हम तो अब इस मामले को अदालत में ही संभाल सकते हैं देवराज चौहान ।

"तब तक पुलिस वाले जगमोहन का बुरा हाल कर देंगे।"

देवराज चौहान अपने शब्दों पर जोर देकर बोला ।

सुमित और प्रदीप की नजरें मिली ।

"जगमोहन बेशक छः महीने पुलिस के पास रहे, परन्तु उसे कोई तकलीफ न हो ।" देवराज चौहान ने पुनः कहा।

सुमित जोशी...प्रदीप जोशी की नजरें पुनः मिली ।

"भूरेलाल को फोन लगा ।" सुमित जोशी बोला--- "ये इंतजाम तो हम अभी कर सकते हैं ।"

प्रदीप जोशी ने उसी पल टेबल पर रखे फोन की तरफ हाथ बढ़ाया ।

उसी क्षण फोन बज उठा ।

प्रदीप जोशी ने रिसीवर उठाया ।

"हैलो...।"

"सालों मैं जिम्मी बोल रहा हूं ।" उधर से गुस्से से भरी आवाज कानों में पड़ी ।

"एक मिनट...।" प्रदीप जोशी ने फोन सुमित की तरफ बढ़ाया--- "जिम्मी का फोन है।"

सुमित के चेहरे पर उखड़ेपन के भाव उभरे । रिसीवर पकड़कर कान से लगाया ।

"जिम्मी, कैसे हो ?" सुमित जोशी कह उठा--- "मैं तुम्हें फोन करने ही वाला...।"

"कमीने-कुत्ते । दो दिन हो गये, तुझे मेरे बाप से मिले । जेल में मिलने गया था तू । उन्होंने तेरे को कुछ समझाया था ? तेरे को तुरंत मेरे को फोन करना चाहिए था, परंतु तूने नहीं किया...तू...।"

"गुस्सा क्यों होता है । मैं तेरे को फोन करने ही...।"

"चुप कर साले...।"

सुमित खामोश हुआ । गिलास उठाकर घूंट भरा।

"मेरा बाप तो कहता है कि तुम्हें खत्म कर दिया जाये...।"

"प्रभाकर की बात की परवाह करो । जेल में बैठा इंसान गुस्से से भरा होता है । वो अपनी जगह ठीक भी होता है । उसकी आजादी जो छिन गई है । तुम्हें मुझसे आराम से बात करनी...।"

"मेरे बाप ने तेरे को क्या बोला ?"

"यही कि उसके बेटे जिम्मी के और उसके दोनों भाइयों के पास उसे बाहर निकालने की योजना...।"

"तो तू मुझसे मिला क्यों नहीं ?"

"आराम से बात कर । सब समझाता हूँ ।"

"समझा ।"

"मैं प्रभाकर का केस लड़ रहा हूं । मैंने इस केस मैंने पर बहुत मेहनत की है । इस तरह जेल से भागकर मेरी मेहनत पर पानी मत फेरो ।" 

"भाड़ में गई तेरी बातें ! मेरे बाप को बाहर निकालना है ।"

"जरूरी है उसे जेल से भगाना...?"

"बहुत जरूरी है । उसे जेल से नहीं निकाला तो मैं तेरे को गोलियों से भून दूंगा ।

"ठीक है । ठीक है । मैं तेरा प्लान जानना चाहता हूं। ये मत भूलना कि मैं वकील हूं । तुम्हारी तरह अपराधी नहीं जो...।"

"कमीने ! तू तो हमसे बड़ा हारामी है । 25  करोड़ तेरे को दिए जज को देने के लिए और वो तूने हड़प लिए ? जज से पूछा तो वो कहता है कि उसे फूटी कौड़ी नहीं मिली । लगता है तू अब जीना नहीं चाहता ?"

"जज झूठ बोलता है, मैंने उसे...।"

"गोली मारुं, आऊं तेरे पास...।" उधर से जिम्मी की फाड़ खाने वाली गुर्राहट सुनाई दी।

सुमित जोशी गहरी सांस लेकर रह गया ।

"तेरे जैसा कुत्ता मैंने दूसरा नहीं देखा ।"

"ये बता, मुझे करना क्या होगा ?" सुमित जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"मेरा प्लान सुन और...।"

"फोन पर ?"

"मेरे से मिल । कल सुबह दस बजे वहीं पर पहुंच, जहां हम पिछली बार मिले थे । नहीं पहुंचा तो समझ तू मर गया ।"

"मैं आऊंगा । जरूर आऊंगा ।"

"तेरा बाप भी आयेगा।"

"क्या तुम्हारे प्लान में मेरी कहीं पर जरूरत पड़ती है ?"

"हां । पच्चीस करोड़ तू मुफ्त में हजम नहीं कर सकता । उसकी वसूली देनी ही होगी ।"

"मैं कल सुबह दस बजे वहीं पर पहुंच जाऊंगा ।"

उधर से जिम्मी ने रिसीवर रख दिया था ।

सुमित जोशी ने भी रिसीवर रखा और प्रदीप को देखा ।

"क्या हुआ ?" प्रदीप जोशी ने कहा।

"बुलाया है । प्रभाकर को बाहर निकालने की योजना बतायेगा ।"

"लफड़ा है तो...।"

"वो पच्चीस करोड़ वसूलना चाहता है । सब कमीने हैं । सुमित जोशी ने गहरी सांस लेकर देवराज चौहान को देखा, फिर मुस्कुरा कर कह उठा--- "बहुत बुरा लगता है जब कोई बड़ा दादा रिवाल्वर लेकर मेरे ऑफिस में घुस आता है या फोन पर जान से मारने की धमकी देता है । सहना पड़ता है सब । यही तो धंधा है अपना । बुरा धंधा है।"

"तुम किसी भूरेलाल को फोन करने वाले थे ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

प्रदीप जोशी ने फौरन रिसीवर उठाया और नम्बर मिलाया ।

बात हो गई ।

"कैसा है भूरेलाल ?" प्रदीप जोशी ने मीठे स्वर में पूछा ।

"बहुत बढ़िया । तुम लोग कभी मेरे लायक कोई सेवा बताओ ।" उधर से कहा गया ।

"तेरा भतीजा कैसा है ? बांध के रखा है न अब ? फिर रेप कर दिया तो समस्या आ जायेगी ।"

"ठीक है वो, अब समझ आ गई है उसे । सुधर गया है ।"

"ये तो अच्छी बात है । लो, सुमित से बात कर ।"

सुमित जोशी ने रिसीवर थामा । बात की ।

"पुलिसगिरी कैसी चल रही है कमिश्नर ?"

"तुम सुनाओ जोशी । प्रदीप से मैं कह रहा था कि मुझे भी कभी सेवा का मौका दो ।"

"सेवा करेगा ?"

"क्यों नहीं ।"

"देख कमिश्नर । बाद में तू कहे कि ये काम मेरे बस का नहीं तो मुझे बुरा लगेगा ।" सुमित जोशी ने हंसकर कहा ।

देवराज चौहान की एक एकटक निगाह उस पर थी ।

"कह कर तो देख । तुमने मेरे भतीजे को बचाया है ,जबकि सारे सबूत उसके खिलाफ थे । मैं...।"

"तो सेवा सुन...।"

"बोल...।"

"दो-तीन दिन पहले डकैती मास्टर देवराज चौहान का साथी जगमोहन पुलिस के हाथों में पड़ गया है । इंस्पेक्टर मित्रा के पास है ये केस । उसी ने जगमोहन को पकड़ा है । इस वक्त जगमोहन रिमांड पर है और हैडक्वार्टर में रखकर उससे पूछताछ हो रही है ।"

"समझ गया...।"

"जगमोहन को बाहर निकालना है । तू कोई रास्ता निकाल ।"

उधर से कमिश्नर भूरेलाल की आवाज नहीं आई ।

"बंद हो गई बोलती...।" सुमित जोशी ने कहा ।

"सोच रहा हूं । ये तो समस्या वाला काम है सुमित...।"

"तू सेवा-सेवा करता है, जब सेवा बताई तो पीछे हट गया । हमसे यारी महंगी पड़ती है कमिश्नर । तेरे भतीजे के केस में मैंने तेरे से एक भी पैसा नहीं लिया था । इसी आस पर कि तू कभी मेरे काम आयेगा ।"

"कोशिश करता हूं । पहले मैं इस केस की पोजीशन देख लूं...।"

"लेकिन सबसे पहले एक काम कर ।"

"वो क्या ?"

"रिमांड के दौरान जगमोहन को यातना न दी जाये, इस बात का इंतजाम कर।"

"ये इंतजाम तो मैं अभी कर देता हूं । समझो हो गया ।"

"अगर तू जगमोहन को वहां से भगा देता है तो ठीक-ठाक नोट भी मिल सकते हैं ।"

"पहले मैं पोजीशन देखूंगा । उसके बाद तेरे से बात करूंगा । कल फोन करता हूं ।"

"रखता हूं फोन ।" कहकर सुमित जोशी ने रिवाल्वर रखा और देवराज चौहान से बोला--- "तुम्हारा काम हो गया । तुम चाहते थे कि पुलिस जगमोहन को यातना न दे । अब नहीं देगी । ये कमिश्नर सब ठीक कर लेगा।"

"जगमोहन को वहां से बाहर निकालना है ।"

"इस बारे में कमिश्नर कल बात करेगा मेरे से । अगर वो कुछ न कर सका तो तुम्हें फिक्र करने की जरूरत नहीं है । मैं दो महीने में जगमोहन को आजाद करा दूंगा ।" सुमित जोशी ने कहा ।

"कैसे ?"

"ये मुझ पर छोड़ दो । मेरे पास हर तरह का रास्ता है । जगमोहन के अभी अदालतों के चक्कर लगने हैं । आने-जाने के दौरान वो कभी भी भगा सकता है । जैसे कि अखबारों में लिखा होता है कि वो भाग गया...तो भाग गया । यूं ही नहीं भागते वो भगाये जाते हैं । जगमोहन भी भाग जायेगा । कम-से-कम उसके आजाद हो जाने का मैं दावा करता हूं ।"

"शुक्रिया...।"

सुमित और प्रदीप एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराये ।

"मुझे बताओ इन सब कामों की मुझे कितनी कीमत देनी होगी ?" देवराज चौहान ने गिलास उठाकर, उसे खाली किया।

"मेरी फीस देने में तुम्हें परेशानी हो सकती है ।" सुमित जोशी ने कहा ।

"नोट बोलो । मुंह से निकालो । मैं तुम्हें मुंहमांगी रकम दूंगा ।"

"तीन दिन पहले मेरा बॉडीगार्ड यानी कि मेरा गनर रोड एक्सीडेंट में मारा गया ।

"बुरा हुआ।"

"मेरे को बॉडीगार्ड की जरूरत पड़ती है । काम ही ऐसा है । मेरा कोई भी अपराधी क्लाइंट मुझे खुंदक में मारने की कोशिश कर सकता है । दो बार ऐसा हुआ, परंतु अपने बॉडीगार्ड की वजह से मैं बच गया   इन दिनों तो वैसे भी मैं कुछ ज्यादा ही परेशानी में फंसा हुआ हूं । बॉडीगार्ड के बिना मैं खुद को असुरक्षित महसूस करता हूं ।" सुमित जोशी शांत स्वर में कह रहा था--- "मेरा भाई केसों को संभालता है और मैं क्लाइंटो को । इसे कम खतरा रहता है और मुझे ज्यादा । क्योंकि सबसे मिलना होता है।  पता नहीं कब क्या हो जाये । मेरा बॉडीगार्ड तब भी मेरे पास रहता है, जब मैं किसी क्लाइंट से मिलता हूं । बहुत झंझट वाला काम है।

देवराज चौहान की निगाह सुमित जोशी पर थी ।

"मैं फीस की बात कर रहा था ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"मैं भी वही बात कर रहा हूं ।" सुमित जोशी ने सिर हिलाया।

"मैं वादा करता हूं कि दो महीनों में जगमोहन को ठीक-ठाक पुलिस की कैद से बाहर निकाल दूंगा । ये काम मैं कैसे करूंगा, वो मेरी सिरदर्दी है । तुम्हारी चिंता खत्म हो गई । क्योंकि कमिश्नर भूरेलाल ऐसा इंतजाम करने में लगा होगा कि जगमोहन को कोई यातना न दे ।"

"मुझे कैसे पता चलेगा कि जगमोहन को यातना नहीं दी जा रही ?"

"मेरी बात पर भरोसा करना चाहिए तुम्हें । जब जगमोहन आजाद हो जाये तो उससे पूछना । मेरी बात सच न निकले तो कसूरवार मैं...।"

"ठीक है । अब मैं फीस के बारे में सुनना चाहता हूं...।"

"दो महीने, जब तक जगमोहन आजाद नहीं होता, तुम मेरे बॉडीगार्ड बन जाओ ।"

"क्या ?" देवराज चौहान के होंठों से निकला ।

"ये ही मेरी कीमत है ।" सुमित जोशी ने गंभीर स्वर में कहा--- "इन दिनों मैं मुसीबतों के दौर से गुजर रहा हूं । पता नहीं कब क्या हो जाये । मेरा बॉडीगार्ड रोड एक्सीडेंट में मारा गया । अगर तुम जैसा गुणी आदमी मेरी सुरक्षा के लिए मेरे साथ रहेगा तो मुझ में हिम्मत बनी रहेगी । मेरा काम भी हो जायेगा और तुम्हारी फीस भी अदा हो जायेगी ।"

"इस काम में तुम किसी भी गनर को इस्तेमाल कर सकते...।"

"लेकिन मुझे तुम पर भरोसा होगा ।"

"क्यों ?"

"मुझे बचाने में तुम्हारी अपनी दिलचस्पी होगी । मैं मर गया तो जगमोहन आजाद नहीं हो सकेगा । इसलिए तुम मुझे मरने नहीं दोगे ।

देवराज चौहान उसे देखता रहा ।

"समझा करो देवराज चौहान । इन दिनों मैं तगड़ी मुसीबत में हूं । दो-तीन लोग मेरी जान ले लेना चाहते हैं । मैंने तुम्हारे बारे में बहुत कुछ सुन रखा है । तुम्हारे पास होने पर मैं खुद को सुरक्षित महसूस करूंगा । मेरी मजबूरी है तुम्हें ऐसी ऑफर देना । तुम्हारे आने से पहले ही मैं अपने बॉडीगार्ड को लेकर चिंतित था कि गुणी आदमी मुझे कहां मिलेगा । भगवान ने तुम्हें मेरे पास भेज दिया।"

"ऐसी बात है तो मैं किसी को तुम्हारी सुरक्षा पर लगा देता...।"

"किसी को नहीं, तुम ही । दो महीने तो मुझे सुरक्षा दोगे ।"

"मेरे पास अपने काम है, मैं व्यस्त हूं और...।"

"फिर तो तुम्हें जगमोहन का मामला किसी और के पास ले जाना होगा ।" सुमित जोशी ने कहा ।

"ये जरूरी है बीच में...।"  देवराज चौहान बोला ।

"ऐसा ही समझ लो । मैं सच में मजबूर हूं।"

तभी प्रदीप जोशी कह उठा-

"देवराज चौहान, सिर्फ दो महीने की बात है । जगमोहन को आजाद करा देंगे । ये सस्ता सौदा है तुम्हारे लिए ।"

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

"गिलास खाली हो गया तुम्हारा ।" सुमित जोशी ने कहा---- "मैं एक और पैग तैयार...।"

"रहने दो...।" देवराज चौहान ने कहा ।

"नाराजगी है क्या ?"

"मैं और नहीं लूंगा ।" देवराज चौहान उठते हुए बोला--- "मैं तुम्हारा बॉडीगार्ड बनने को तैयार हूं ।"

सुमित जोशी का चेहरा खिल उठा ।

प्रदीप जोशी भी मुस्कुरा पड़ा।

"खूब । ये बढ़िया रहा । मेरी हिम्मत बढ़ गई कि देवराज चौहान मेरा बॉडीगार्ड है । अब सब मामले ठीक हो जायेंगे । तुम कल सुबह आठ बजे मुझे मेरे घर पर मिलो । मेरा पता नोट कर लो।  प्रभाकर के बेटे जिम्मी से मिलने जाना है । इन दोनों के बारे में तुम्हें कल ही बताऊंगा । तुम हर वक्त, हर जगह मेरे पास रहोगे । बातों के बीच मौजूद रहोगे । सुनोगे, समझोगे सब । परंतु खामोश रहोगे । और तुम अच्छी तरह जानते हो ये बात कि मुझे कब बचाया जाना चाहिए और कब नहीं । जगमोहन तुम्हें मिल जायेगा, तुम्हें विदा करूंगा तो कोई शानदार गिफ्ट भी दूंगा तुम्हें, ताकि तुम हमेशा मुझे याद रखो।"

■■■

अगले दिन सुबह नौ बजे देवराज चौहान, वकील सुमित जोशी के बताये पते पर पहुंचा 

बेहद शानदार बंगला था वो ।

कोई सोच भी नहीं सकता था कि ये किसी वकील का बंगला हो सकता है । मेन गेट पर दो हथियारबंद गार्ड मौजूद थे । भीतर खूबसूरत लॉन था । पोर्च में दो विदेशी और दो देसी गाड़ियां खड़ी थी । तीन ड्राइवर भी वहां नजर आ रहे थे । देवराज चौहान के गेट पर पहुंचने पर एक गार्ड ने इंटरकॉम पर भीतर संपर्क किया । फिर वो गार्ड, देवराज चौहान से बोला-

"तुम यहीं इंतजार करो । साहब आ रहे हैं ।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

देवराज चौहान आज भी मेकअप में था । वो ही दाढ़ी, आंखों पर प्लेन ग्लास का चश्मा । परंतु पैंट-कमीज में था आज । एकदम चौकस लग रहा था । पांच मिनट ही इंतजार करना पड़ा था ।

लम्बी विदेशी कार बाहर निकली ।

गेट खुल गया था ।

कार को ड्राइवर चला रहा था । पीछे वाली सीट पर सुमित जोशी बैठा था ।

"आओ...।" सुमित जोशी कार का दरवाजा भीतर से खोलता कह उठा--- "भीतर बैठ जाओ ।"

देवराज चौहान ने सिगरेट एक तरफ उछाली और भीतर जा बैठा ।

"ऐ तुम ।" जोशी ने गार्ड को करीब बुलाया--- "इधर आओ ।" गार्ड फौरन पास पहुंचा ।

"इन साहब को देख लिया ?" सुमित जोशी ने उससे कहा ।

"जी साहब जी।"

"आज के बाद इन्हें भीतर आने से कभी मत रोकना । ये मेरे नये बॉडीगार्ड है ।"

"जी साहब जी ।"

"चलो ड्राइवर ।"

देवराज चौहान ने कार का दरवाजा बंद कर लिया ।

कर आगे बढ़ गई । सड़क पर आ गई ।

सुमित जोशी मुस्कुराकर देवराज चौहान से बोला-

"देवराज चौहान मैं बहुत खुश हूं कि...।"

"देवराज चौहान नहीं, सुरेंद्र पाल...।" देवराज चौहान ने टोका।

"ओह, मैं तुम्हारा नाम भूल जाता हूं । एक मिनट कहकर उसने दरवाजे पर लगा एक स्विच दबा दिया । देखते-ही-देखते एक पारदर्शी शीशा आगे और पीछे वाली सीटों के बीच आ ठहरा ।

"अब ठीक है ।" सुमित जोशी ने कहा--- "अब हम जो भी बात करेंगे, वो ड्राइवर तक नहीं पहुंचेगी । तुम्हें आज अपने साथ पाकर मेरी हिम्मत बढ़ गई है । ऐसा महसूस होता है कि जैसे मुझे अब कोई मार नहीं सकता ।"

"इस वहम में मत रहना...।" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "जगमोहन के बारे में कोई खबर ?"

"रात के बाद से कोई खबर नहीं । आज कमिश्नर भूरेलाल का फोन आयेगा ।"

"जगमोहन को यातना दी जा रही हो तो ?"

"मुझ पर भरोसा करना सीख लो । रात तुम्हें यकीन दिला दिया था कि ऐसा कुछ नहीं होगा।"

देवराज चौहान ने गहरी सांस लेकर कहा-

"मुझे जगमोहन की चिंता है ।"

"वो मैं समझ सकता हूं, चिंता न होती तो तुम मेरा बॉडीगार्ड बनना कभी भी स्वीकार नहीं करते ।"

"मेरी मजबूरी का तुमने खूब फायदा उठाया ।"

"गलत मत समझो । इन दिनों मैं खुद मुसीबत से निकल रहा हूं । तुम्हारा बहुत हौसला है मुझे । रिवाल्वर है तुम्हारे पास ?"

"है ।"

"ये लो ।" सुमित जोशी जेब से रिवाल्वर निकालकर उसे देता हुआ बोला--- "ये भी रख लो ।"

"तुम रखो, तुम्हें जरूरत पड़ सकती है ।"

"मेरे पास एक और है । ये तुम्हारे लिए लाया हूं...।"

देवराज चौहान रिवाल्वर लेकर जेब में रखता कह उठा-

"बहुत तैयारी से निकले हो । क्या कहीं पंगा होने वाला है ? हम जा कहां रहे हैं ?"

सुमित जोशी ने गहरी सांस ली।

कार तेजी से दौड़ी जा रही थी ।

सुमित जोशी ने कार में लगा एक स्विच दबाकर कहा-

"हमने वहीं जाना है ड्राइवर, जहां पन्द्रह दिन पहले गये थे । सुनसान जगह पर बना वो पुराना मकान ।"

"समझ गया सर ।" ड्राइवर की आवाज कानों में पड़ी।

सुमित जोशी ने वो स्विच ऑफ किया और देवराज चौहान कह उठा-

"प्रभाकर का नाम तो तुमने सुना ही होगा । अंडरवर्ल्ड में नाम है उसका ।"

"हां..।"

"वो ही प्रभाकर । मैं उसी की बात कर रहा हूं । इस वक्त मैं उसके बेटे जिम्मी से मिलने जा रहा हूं ।" सुमित जोशी कुछ बेचैन- सा हुआ--- "मैं तुम्हें बताता हूं कि प्रभाकर तीन साल से जेल में है । उसका धंधा उसका बेटा जिम्मी और प्रभाकर के दोनों भाई बांटू और गोवर्धन संभालते हैं । नाम सुना है कभी इनका या नई बात है ये तुम्हारे लिए ?"

"सुना है।"

"जिम्मी, बांटू और गोवर्धन । तीनों ही खतरनाक हैं, दरिंदे हैं । प्रभाकर की तरह । प्रभाकर तो एकबारगी अपने दुश्मन को छोड़ देगा, लेकिन ये तीनों रहम करना नहीं जानते । गोवर्धन तो पक्का निशानेबाज है और हत्यारा है । खैर, जिम्मी ने प्रभाकर को जेल से निकालने का काम मेरे हवाले किया । बदले में मैंने करोड़ों की तगड़ी फीस ली । तीन साल से प्रभाकर का केस चल रहा है कोर्ट में । परन्तु वो बचेगा नहीं। उसने हर कदम पर उलटे काम कर रखे हैं । पुलिस ने सबूतों का ढेर इकट्ठा कर रखा है । वैसे दो केसों से मैं प्रभाकर को बरी करवा चुका हूं । लेकिन अभी भी बीस से ज्यादा केस उस पर हैं । इन केसों में उलझकर प्रभाकर की जिंदगी जेल में ही बीत जायेगी । ये मेरा दावा है । जबकि प्रभाकर फौरन आजाद होना चाहता है । जिम्मी ने मुझे जज से बात करने को कहा है । उसे पच्चीस करोड़ देने को कहा। पच्चीस करोड़ मेरे हवाले कर दिया गया।  मेरे से ये गलती हुई कि वो सारा का सारा पच्चीस करोड़ मैं हजम कर गया और जिम्मी को कह दिया कि जज को दे दिया है।"

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

"ये बात जिम्मी को पता चल गई । प्रभाकर को पता चल गई । मैं उन्हें पैसा वापस देने की स्थिति में नहीं हूं । क्योंकि वो पैसा मैंने कहीं पर लगा दिया है । मैंने नहीं सोचा था कि बात इतनी जल्दी खुल जायेगी ।" सुमित जोशी ने गंभीर स्वर में कहा ।

"फिर ?"

"सच बात तो यह है कि मेरे द्वारा की गई गड़बड़ की वजह से ये लोग मुझे मार ही देते। परन्तु जिम्मी के पास कोई प्लान है प्रभाकर को जेल से निकालने का । शायद उस प्लान में उसे मेरी जरूरत है, इसी कारण अभी तक मुझे नहीं मारा गया। परन्तु मुझे पूरा विश्वास है कि काम हो जाने के बाद जिम्मी, प्रभाकर मुझे मार देंगे ।" बेचैन हुआ सुमित जोशी ।

"तुमने गलती की, पच्चीस करोड़ की बेईमानी करके...।"

"कर दी, हो गई गलती ! और अब मैं उस गलती को सुधार भी नहीं सकता ।"

'जिम्मी के पास हम क्यों चल रहे हैं ?" देवराज चौहान ने पूछा।

"वो मुझे प्लान के बारे में बतायेगा । प्रभाकर को जेल से बाहर निकालने में उसे मेरी मदद चाहिये ।"

"और तुम्हें मदद करनी पड़ेगी । क्योंकि तुमने उसका पच्चीस करोड़ खाया है ।"

"मदद करने में मुझे ऐतराज नहीं, परन्तु ये बात पक्की है कि बाद में वे मुझे मार देंगे ।"

"ऐसा भी हो सकता है ।"

"ये ही चिंता मुझे खाये जा रही है ।"

"जिम्मी कहां मिलेगा ?"

"एक पुराने से मकान पर । एक बार पहले भी मैं उससे वहां मिल चुका हूं ।"

"वो उसका ठिकाना है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"हां ।"

"और तुम सोचते हो कि वहां कोई गड़बड़ हुई तो मैं तुम्हें बचा लूंगा ।"

सुमित जोशी ने देवराज चौहान को देखा ।

"नहीं बचा सकते ?"

"शायद नहीं। वो उसका ठिकाना है।  वहां उसके इंतजाम, उसके आदमी होंगे । ऐसे में मैं उनका मुकाबला नहीं कर सकता ।"

"अभी जरूरत नहीं पड़ेगी ।"

"क्या मतलब ?"

"अभी तो वो मुझे अपना प्लान बताने के लिए बुला रहा है । अपने बाप को आजाद कराने के लिए मेरा इस्तेमाल करेगा, जब सब ठीक हो जायेगा तो तब वो मुझे शूट करायेगा। तब मुझे बचाना होगा देवराज चौहान ।"

"जब ऐसा वक्त आयेगा तो तब देखेंगे ।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा ।

"मैं मर गया तो जगमोहन को कौन आजा आजाद करायेगा ?"

देवरा चौहान ने सुमित जोशी को देखा।

"मेरे बच जाने में ही, जगमोहन का बचाव है । तुम मुझे तब जरूर बचा लोगे ।"

"मैं कोशिश करूंगा कि तुम मरो नहीं । अगर तुम मर गये  तो जगमोहन के लिये मैं कोई और रास्ता देखूंगा ।" देवराज चौहान बोला ।

"क्या तुम मुझे मरने के लिए छोड़ दोगे ?"

"नहीं । मैं तुम्हें बचाने की कोशिश, अंत तक करूंगा । अपना पूरा जोर लगा दूंगा ।"

"मैं यही सुनना चाहता था ।"

■■■

वो अलग-थलग बना पुराना मकान था, जहां ड्राइवर ने कार रोकी ।

वहां तीन कारें पहले से खड़ी थीं ।

सुमित जोशी और देवराज चौहान कार से बाहर निकले । कुछ दूरी पर दो आदमी टहलते दिखे ।

"सावधान रहना ।" सुमित जोशी ने दबे स्वर में कहा।

"संभाल नहीं सकते तो पंगा क्यों खड़ा करते हो ।" देवराज चौहान बोला ।

"एक काम उलटा पड़ता है तो दस सीधे भी पड़ जाते हैं । गड़बड़ हो जाती है कभी-कभी...।"

"बड़े दादा से तुम्हें गड़बड़ नहीं करनी चाहिये थी ।"

"रकम भी तो बड़ी थी । पच्चीस करोड़...।"

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

"तुम्हें याद है न जब तुम्हें जगमोहन मिल जायेगा तो मैं तुम्हें ऐसी शानदार गिफ्ट दूंगा जो कि तुम्हें हमेशा याद रहेगी ?"

"मुझे लालच दिखाना बंद करो ।"

"ये लालच नहीं । सच कह रहा हूं ।"

"मेरे पास दौलत की कमी नहीं । मैं गिफ्ट खुद ही ले सकता हूं । देवराज चौहान बोला।

"वो गिफ्ट क्या जो खुद ही खरीदना पड़े...मैं तुम्हें...।"

"मुंह बंद रखो और जिम्मी के बारे में सोचो । क्या वो भीतर है ?"

"पक्का, कमीना मेरे इंतजार में होगा । तुम सुनना, वो मुझे कैसी-कैसी गालियां देता है ।"

"नामी वकील होकर गालियां सुनते हो ऐसे लोगों से ?"

"ये ही तो मेरे खास हैं । इनसे ही धंधा चलता है ।"

तभी एक आदमी भीतर से निकला और उनके पास आ पहुंचा ।

"तुम्हें अकेले आना था ।" वो व्यक्ति देवराज चौहान को घूरता, सुमित जोशी से बोला।

"अकेला ही तो हूं...।"

"ये ?"

"मेरा बॉडीगार्ड है, सुरेंद्र पाल...।"

"क्यों लाये इसे ?"

"सुना नहीं, बॉडीगार्ड है ।"

"ये भीतर नहीं जायेगा । सिर्फ तुम ही जिम्मी के पास जाओ ।" वो बोला ।

सुमित जोशी ने उसे घूरते हुए कहा-

"ये मेरा बॉडीगार्ड है और मेरे साथ भीतर जायेगा तुम मुझे ज्यादा नक्शे मत दिखाओ । मत भूलो कि प्रभाकर को आजाद कराना है ।"

वो चुप रहा ।

"जिम्मी है भीतर ?" सुमित जोशी ने पूछा ।

"हां...।"

"आओ सुरेंद्र पाल...।"

सुमित जोशी और देवराज चौहान भीतर की तरफ बढ़ गये ।

वो आदमी पीछे चल पड़ा।

वे भीतर उस कमरे में पहुंचे, जहां जिम्मी मौजूद था । वो छब्बीस बरस का था ।

चार साथी भी थे वहां उसके ।

जिम्मी खा जाने वाले नजरों से सुमित जोशी को घूरने लगा।

सुमित जोशी ने असहज-सा उसे देखा ।

"ये कौन है ?"

"मेरा बॉडीगार्ड...।"

"अंडे देगा ये यहां ?" जिम्मी ने कड़वे स्वर में कहा ।

"पता नहीं...।"

"मैं तेरा गला काटूंगा तो ये तेरे को बचा लेगा ?"

"ऐसी बात नहीं । मुझे आदत है बॉडीगार्ड साथ रखने की ।" सुमित जोशी जबरन मुस्कुराया--- "इस बात को छोड़ो और काम की बात करो । मुझे बहुत काम हैं। तुम्हें भी कई काम करने होंगे।"

"काम की बात !" जिम्मी जहरीले स्वर में कह उठा--- "ठीक है, काम की बात सुनो । तुम जैसा कुत्ता इंसान मैंने पहले कभी नहीं देखा । हमारे धंधे में ईमानदारी चलती है । जुबान के सौदे होते हैं। सब अपनी बात पर कायम रहते हैं । और तुम वकील होकर भी धोखेबाजी पर उतर आये ? पच्चीस करोड़ जज को देने की अपेक्षा अपनी जेब में रख लिया...।"

"ये बात नहीं है ।"

"अच्छा, कोई और कहानी भी है ?"

"कहानी नहीं सच है ।" सुमित जोशी सूखे होंठों पर जीभ फेर कर बोला--- "मैं जज को रुपये देने जा रहा था कि रास्ते में मुझे कुछ लोगों ने घेर लिया । रिवाल्वरें निकाल ली और पैसा ले गये । तुम्हारी तरफ से ये खबर लीक नहीं हुई होगी ।"

"वकील होकर झूठ बोलना भी नहीं आता ।"

"ये सच है ।"

"जिम्मी को मत समझा कि क्या सच है । तू नम्बरी हरामजादा है । हमसे बड़ा गैरकानूनी इंसान तू है।"

"मुझे भाषण देने के लिए यहां बुलाया है ?" सुमित जोशी ने नाराजगी से कहा ।

जिम्मी ने देवराज चौहान को देखकर कहा-

"क्या नाम है तेरा ?"

"सुरेंद्र पाल...?"

"मेरी सलाह मान और इसकी बॉडीगार्ड की नौकरी छोड़ दे । बहुत से पंगा ले रखे है इसने । कोई इसे मारेगा तो तू भी साथ मरेगा ।"

देवराज चौहान खामोश रहा ।

"तू मेरे आदमी को भड़का रहा है ।" सुमित जोशी ने नाराजगी से कहा ।

"ना-समझ है, समझा रहा हूं...।" जिम्मी ने व्यंग से कहा--- "पच्चीस करोड़ तू हजम कर लेगा ?"

"म...मैंने बताया कि किसी ने पैसा मेरे से छीन...।"

"झूठ मत बोल, मेरा दिमाग खराब हो गया तो तेरा नुकसान होगा।"

"तू अपना प्लान बता, कैसे प्रभाकर को छुड़ाना चाहता है ।"

"तीन साल से मेरा बाप जेल में बंद है । आश्वासन के दम पर तूने हमसे करोड़ों लिए कि पापा को जेल से, अदालत से बचाकर निकाल लेगा, लेकिन हुआ क्या...कुछ भी नहीं ।"

"मैं कोशिश तो...।"

"चुप कर कमीने ! वरना अभी गोली मार दूंगा ।" जिम्मी गुर्रा उठा ।

सुमित जोशी ने तुरन्त होंठ बंद कर लिए ।

जिम्मी परेशानी भरे अंदाज में कमरे में चहलकदमी करने लगा ।

सुमित जोशी बेचैन-सा उसे देखने लगा ।

देवराज चौहान सतर्क था ।

जिम्मी के चारों आदमी किसी भी तरह का आदेश पाने के लिए तैयार खड़े थे ।

जिम्मी ठिठका और गर्दन घुमाकर सुमित जोशी को देखकर कह उठा-

"सुन वकील ।" स्वर में कड़वापन था--- "मैंने पापा को बाहर निकलने का प्लान बनाया है । सब कुछ फिट कर दिया है । बस एक तेरे जैसे शरीफ आदमी की जरूरत है, जो जेल के भीतर जाकर, मेरे के अन्तिम हिस्से को अंजाम दे सके ।"

"ढोल क्यों पीट रहा है ।"

"क्या मतलब ?"

"ऐसी बातें, ऐसे काम अकेले में करते है, अपने आदमी यहां से बाहर कर । वरना बात इसी तरह बाहर जाती है और पुलिस को पता चल जाती है । मैं ये नही कहता कि तेरे आदमी बेईमान हैं । परन्तु हमें सावधानी इस्तेमाल करनी है ।"

जिम्मी के चेहरे पर सोच के भाव उभरे ।

फिर जिम्मी ने इशारे से अपने आदमियों को बाहर जाने को कहा ।

वे चारों बाहर निकल गये ।

"खामखाह भीड़ लगा रखी है ।" सुमित जोशी ने कहा और आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठा।

"अपने बॉडीगार्ड को बाहर कर ।" बोला जिम्मी ।

"इसे मेरे पास ही रहने दे । अपने से ज्यादा भरोसा करता हूं इस पर । तू प्लान बता ।"

"परसों, पापा जेल से बाहर आने को तैयार होंगे । जेल से भीतर चार पुलिस वाले मेरे साथ हैं । नोट उन तक पहुंच चुके हैं । सुबह पापा नींद से उठेंगे । नहा-धोकर, शेव भी करा लेंगे । नाश्ता हो जायेगा।  उसके बाद उनका बाहर निकलने का रास्ता साफ होगा । उनका चेहरा छिपाने के लिए दाढ़ी-मूछें और काला चश्मा जेल में पहुंच चुका है ।"

सुमित जोशी, जिम्मी को देखता रहा ।

"मेरा क्या काम है ?"

"तू परसों सुबह ठीक दस बजे वकालत के काले कोर्ट में जेल के भीतर किसी से मिलने के बहाने प्रवेश करेगा । तेरे पास एक और वकीलों वाला काला कोट होगा । तेरे को मेरा पटाया एक पुलिस वाला मिलेगा जो तेरे को पापा तक ले जायेगा । पापा तब तक बैरक से बाहर जेल के सुनसान हिस्से पर मौजूद होंगे । तू काला कोट उन्हें देगा । जिसे वो पहन लेंगे । पुलिस वाली की दी गई खाकी पतलून उन्होंने पहले ही पहनी होगी । दाढ़ी-मूंछ और काला चश्मा उन्होंने लगा रखा होगा और वो तेरे साथ जेल से बाहर आ जायेंगे । कोई शक भी नहीं करेगा।"

"कोई पहचान सकता है । तब मैं भी फंसुंगा ।"

"नहीं पहचानेगा ।"

"ये ठीक नहीं है ।" सुमित जोशी ने बेचैनी से कहा ।

"ठीक तो पच्चीस करोड़ हजम करना भी नहीं था ।" जिम्मी ने कड़वे स्वर में कहा ।

"इस काम पर मैं किसी और वकील को लगा देता...।"

जिम्मी ने रिवाल्वर निकाली और दांत भींचकर आगे बढ़ते हुए सुमित जोशी के सर पर लगा दी ।

जोशी घबरा उठा । उसने देवराज चौहान को देखा ।

देवराज चौहान शांत खड़ा रहा ।

"ये काम तू ही करेगा वकील।  कान खोलकर सुन ले । क्योंकि तेरे को जेल वाले कर्मचारी अच्छी तरह पहचानते हैं । तेरे पर कोई शक नहीं करेगा । कोई कुछ पूछेगा नहीं । तेरे साथ जो भी होगा, उसे ध्यान से देखने का कोई कष्ट नहीं करेगा ।"

सुमित जोशी पूरी तरह परेशान लग रहा था।

"ये काम करना है या गोली मारुं ?"

"करूंगा ।" सुमित जोशी ने व्याकुलता से कहा ।

"तू क्या तेरा बाप भी करेगा । तूने हमारा करोड़ों रुपया खाया है । क्यों नहीं करेगा ।" कहकर उसने सिर से सटा रखी रिवाल्वर हटाई और जेब में डालता बोला--- "शुक्र है कि तू अभी तक बचा हुआ है ।"

सुमित जोशी ने गहरी सांस लेकर देवराज चौहान को देखा फिर जिम्मी से बोला-

"मेरे को सब कुछ बता कि भीतर वाले पुलिस वाले कौन हैं, कैसे-कैसे क्या होगा ?"

जिम्मी कुर्सी खींचकर जोशी के सामने बैठा और उसे एक-एक बात समझाने लगा ।

पन्द्रह मिनट दोनों की बातें होती रहीं ।

देवराज चौहान अपनी जगह पर खड़ा रहा ।

"समझ गया ?" अंत में जिम्मी बोला ।

"हां...।" सुमित जोशी ने गहरी सांस ली ।

"एक बात कान खोलकर सुन ले उल्लू के पट्ठे । अगर तेरी तरफ से कोई गड़बड़ हुई, मेरे पापा बाहर नहीं आ सके तो मैं तेरे को मार दूंगा ।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगा कि...।"

"कोशिश नहीं कुत्ते ।" जिम्मी गुर्राया--- "तूने पापा को अपने साथ लेकर आना है ।"

"हां ।" सुमित जोशी ने होंठ भींचे--- "मैं साथ लाऊंगा । अब तू मेरी बात सुन ।"

"क्या ?"

"प्रभाकर को जेल से बाहर आने के बाद, कहां रखेगा ?" सुमित जोशी शांत स्वर में बोला ।

"बहुत जगह है, जहां...।"

"तेरी जगहें, तेरे बाप को फंसा देगी ।"

"तू क्यों चिंता करता...।"

"मैं इसलिए चिंता करता हूं कि मैंने प्रभाकर को जेल से बाहर निकाला होगा। प्राभकर फंसा तो ये बात खुलते देर नहीं लगेगी कि मैं इस मामले में हूं । ये गंभीर बात है । अपने आदमियों पर भरोसा मत कर । बात बाहर निकल सकती है ।"

जिम्मी ने सुमित जोशी को घूरा।

"भेजे में पड़ी मेरी बात ?"

"वकीलों वाला अड़ंगा डाल दिया ।"

"वकील हूं तो हर पॉइंट पर गौर करुंगा ।"

"तू कहना क्या चाहता है ?"

"प्रभाकर के जेल से आने के बाद उसे ऐसी जगह पर रख, जो तुम्हारी न हो । जिसके बारे में पुलिस सोच न सके । मेरे ख्याल में प्रभाकर के बाहर आने के दस मिनट बाद ही ये बात खुल जायेगी कि वो जेल में नहीं है।"

जिम्मी ने होंठ भींचे।

"पुलिस को कम मत समझ । जब अपनी करनी पर आती है तो एक-एक पुर्जा उखाड़ देती है।  फौरन ही पूरे मुम्बई में मक्खियों की भांति पुलिस तेरे बाप की तलाश में दौड़ रही होगी । हर जगह चैकिंग हो रही होगी । अपनी मुखबिरों से तेरे बारे में खबरें पाने में होगी। क्या तुम पसंद करोगे कि प्रभाकर फिर से जेल में पहुंच जाये ?"

"क्या मुसीबत है ।"

"मैं भी फंस जाऊंगा, प्रभाकर के दोबारा फंसने पर ।"

"तेरी परवाह नहीं है मुझे...।"

"वो तो मैं जानता ही हूं ।" सुमित जोशी ने शांत स्वर में कहा।

कुछ पल वहां शांति रही।

"किसी नई जगह पर प्रभाकर को ले जाना होगा । जिसके बारे में तेरा कोई आदमी ना जानता हो ।"

"ठीक है । ऐसी जगह का इंतजाम तू ही करेगा ।"

"मैं जानता था कि तू ये ही कहेगा।" सुमित जोशी ने सिर हिलाया--- "ठीक ,है मैं कोई इंतजाम करता हूं ।"

"वकील, मेरे पापा को परसों हर हाल में जेल से बाहर आ जाना चाहिये ।"

"मैं अपने हिस्से का काम ठीक से पूरा करूंगा । बाकी का काम तुम्हे ठीक से पूरा करना होगा । जेल से बाहर आते समय प्रभाकर को किसी ने पहचान लिया तो, प्रभाकर को फरार करवाने की कोशिश में, कानून मुझे भी जेल में ठूंस देगा ।"

"करोड़ों का माल हजम किया है । कुछ तो चुकता करना ही पड़ेगा ।" कड़वे सर में जिम्मी ने कहा ।"

सुमित जोशी उठ खड़ा हुआ ।

"चलता हूं...।"

"याद रख ।" जिम्मी चेतावनी वाले स्वर में कह उठा--- "मेरे पापा जेल से बाहर नहीं निकले तो, तू मरेगा।"

"मुझे जगह का इंतजाम करना है । परसों ये काम करना है । दो दिन में मुझे कोई जगह तैयार करनी होगी।"

"सावधानी से ।" जिम्मी ने टोका--- "बात बाहर न निकले । अपने इस बॉडीगार्ड को भी समझा देना ।"

सुमित जोशी, देवराज चौहान के साथ बाहर निकला और बाहर खड़ी कार में आ बैठा । ड्राइवर से कहा-

"ऑफिस चलो । आज कोर्ट नहीं जाना है ।"

कार आगे बढ़ गई ।

सुमित जोशी ने मोबाइल निकाल कर अपने भाई प्रदीप जोशी का नम्बर मिलाया । बात होने पर कहा-

"मैं आज कोर्ट नहीं आऊंगा । वहां तुम सब संभाल लेना ।"

"ठीक है । जिम्मी से मिले ?"

"मिल आया हरामी से...।"

"क्या कहता है ?"

"शाम को मिलने पर बताऊंगा ।"

"एक काम की बात सुन । कोर्ट आते वक्त में सुबह ऑफिस गया था, कुछ फाइलें उठानी थी । वहां मैंने रतनपुरी के...।"

"रतनपुरी ?" सुमित जोशी के होठों से निकला--- "अब इसे क्या हो गया ?"

"मालूम नहीं, रतनपुरी के खास आदमी मदन को ऑफिस के बाहर सड़क पर मंडराते देखा ।"

"सत्यानाश...। तूने ये बात मुझे पहले क्यों न बताई ?"

"मैंने सोचा कि तू कोर्ट आयेगा ही, तब बताऊंगा ।"

"सोचा मत कर । बता दिया कर । तेरे से उसने बात नहीं की ?"

"नहीं । लोगों से मिलने का अधिकतर काम तू ही करता है । उसे तेरे से कुछ काम होगा ।"

"उसके बेटे को फांसी की सजा हुई है । हमने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर रखी है ।"

"रतनपुरी से हम साढ़े चार करोड़ रूपया ये कहकर ले चुके हैं कि उसके बेटे को बेदाग बरी करा देंगे ।"

"नहीं मुसीबत खड़ी हो गई ।"

"सतर्क रहना तू...।"

"देवराज चौहान है मेरे साथ।" सुमित जोशी ने देवराज चौहान पर निगाह मारी ।

"जिम्मी ने कोई मुसीबत खड़ी तो नहीं की ?"

"की । साले ने मुसीबत का टोकरा मेरे सिर पर रख दिया । शाम को बात होगी ।" कहकर सुमित जोशी ने फोन बंद किया।

वो बेचैन और परेशान नजर आ रहा था ।

"तुम्हारे दिमाग में क्या है ?"  पूछा देवराज चौहान ने ।

"मेरा दिमाग परेशान...।"

"मैं प्रभाकर और जिम्मी से वास्ता रखती बात कर रहा हूं ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"क्या होगा मेरे दिमाग में ? कुछ भी नहीं...।"

"तूने जिम्मी के सामने ये बात क्यों रखी कि प्रभाकर को जेल से निकालकर नई जगह रखना चाहिये ?"

"मैंने ये बात गलत तो नहीं कही । प्रभाकर अगर दोबारा पकड़ा गया तो बता देगा कि मैंने उसे जेल से निकाला है । तब भी मैं गया ।"

"ये ही बात है ?"

"और क्या बात होगी ?"

"मुझे लगा तुम्हारे दिमाग में कुछ नया चल रहा है । तुम कुछ करने की सोच रहे हो ।"

"फंसा पड़ा हूं । मेरी हिम्मत कहां है कुछ कर सकूं ।" सुमित जोशी एकाएक मुस्कुरा पड़ा।

"तुम नम्बरी आदमी से कम नहीं हो ।"

"धंधा ही ऐसा है । जैसे लोगों से पाला पड़ता है, वैसा ही बन गया हूं ।"

"तुम जैसे वकीलों ने कानून को बदनाम कर रखा है ।"

"जो भी कह लो, पर मेरे बॉडीगार्ड बने रहो ।"

"रतनपुरी कौन है ?"

"पूना का नामी गैंगस्टर है।"

"उसकी तुम्हारे साथ क्या कहानी है ?"

"उसके बेटे मक्खन पर कई हत्याओं का इल्जाम था । चार साल पहले वो पकड़ा गया । रतनपुरी मुझसे मिला कि उसके बेटे का केस लडूं और उसे बचा लूं । मैंने केस लड़ा । करोड़ों रुपया उससे लिया।  फैसला उसके खिलाफ गया । पन्द्रह दिन पहले ही उसे फांसी की सजा हो गई । चार दिन पहले ही मैंने हाईकोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है।"

"यानी कि अब रतनपुरी नाराज होकर तुम्हारे पीछे है ?"

"पता नहीं ।" सुमित जोशी ने गहरी सांस ली ।

"और कितने लोग तुम्हारे पीछे हैं ?"

"क्या पता...।"

"एक बात तो जिम्मी ने मुझसे ठीक कही कि तुम्हारी नौकरी छोड़ दूं, वरना तुम्हारे साथ मैं भी मारा जाऊंगा ।"

"तुम मुझे छोड़ने की तो नहीं सोच रहे ?" सुमित जोशी हड़बड़ाकर बोला ।

"तुम जगमोहन को पुलिस की मारपीट से बचाकर रखोगे ?"

"हां...।"

"उसे जेल से निकालने में मेरी सहायता करोगे ? कानूनी या गैर कानूनी तौर पर, कैसे भी सही ?"

"ह...हां ।"

"तो मैं बॉडीगार्ड तुम्हारा बना रहूंगा । याद रखना कि ये सब दो महीने के लिये है ।"

"हां, मुझे याद है । सुमित जोशी ने चैन की सांस ली ।

"मुझे हैरानी है कि तुम अभी तक जिंदा कैसे हो ?" देवराज चौहान बोला ।

"कई बार मेरी जान लेने की चेष्टा की गई ।"

"जल्दी मरोगे ।"

"ऐसा मत कहो । तुम मेरे बॉडीगार्ड हो...।"

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली और दौड़ती कार की खिड़की से बाहर देखने लगा।

सुमित जोशी ने मोबाइल पर, कमिश्नर भूरेलाल का नम्बर मिलाया । बात हो गई ।

"कैसे हो कमिश्नर ?"

"जगमोहन का मामला मैंने ठीक कर दिया है । उसे यातना नहीं दी जा रही । जुबानी पूछताछ की जा रही है ।" उधर से कमिश्नर भूरेलाल ने कहा--- "तुम यही चाहते थे न ?"

"हां । शुक्रिया । जगमोहन को वहां से निकाल किसी तरह ।"

"ये संभव नहीं...।"

"क्यों ?"

"बहुत सख्ती  है उस पर । हर वक्त पुलिस वाले उसके पास ही रहते हैं ।"

"ये मेरा जरूरी काम है ।"

"अभी तो ये काम नहीं हो सकता । अगर कभी हो सकता हुआ तो जरूर करूंगा ।"

"तेरे काम की एक बात है ।"

"क्या ?"

"रतनपुरी नाम का गैंगस्टर...।"

"वो पूना वाला ?"

"वही । पूना वाला । जिसके बेटे मक्खन को कुछ दिन पहले हाईकोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है ।"

"बात बोल...।"

"रतनपुरी का सबसे खास साथी, मदन को पकड़ने का श्रेय लेना चाहता है ?"

"कहां है वो ?"

"मेरे ऑफिस के बाहर मंडरा रहा है । मौका अच्छा है । पकड़ सकता है उसे ।"

"तेरे ऑफिस के बाहर ? तेरा कोई पंगा है उससे ?"

"मेरा कोई पंगा नहीं । तू अपने फायदे की सोच...।"

"ठीक है। मैं अभी पुलिस वालों को वहां भेजता हूं । उसके बेटे मक्खन का केस तूने ही कोर्ट में लड़ा था...।"

"मेरे बारे में मत सोच कमिश्नर । मक्खन के बारे में सोच ।"

"वो बचेगा नहीं ।"

"सुमित जोशी ने फोन बंद कर दिया, फिर ड्राइवर से बोला-

"अभी हमने ऑफिस में नहीं जाना है । किसी रेस्टोरेंट में ले चल । कॉफी पीने का मन हो रहा है ।"

देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़कर सुमित जोशी को देखा।

"तो मुखबिरी भी करते हो तुम...।" देवराज चौहान बोला ।

"पुलिस वालों से बनाकर रखनी पड़ती है । वरना तुम जैसों के काम कैसे होंगे ?" सुमित जोशी मुस्कुराया।

"ये तो बहुत गलत काम है ।"

"सब ठीक है ।"

"कल को अपने मतलब के लिये तो मुझे भी, पुलिस के हाथों में दे सकते हो ?"

"क्या बात करते हो !  मैं क्या पागल हूं ? हम दोनों अच्छे दोस्त बनते जा रहे हैं देवराज चौहान ।"

"तुम ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "किसी के दोस्त नहीं बन सकते ।"

"दिल तोड़ने वाली बातें मत करो । हम रेस्टोरेंट में चल रहे हैं, वहां कॉफी पिएंगे ।"

"ताकि तब तक पुलिस तुम्हारे ऑफिस के बाहर मंडरा रहे मदन को संभाल ले ?"

जवाब में सुमित जोशी मुस्कुरा कर उसे देखने लगा।

"तुम ज्यादा देर जिन्दा नहीं रहोगे । क्योंकि तुम्हारे जीने का ढंग बहुत गलत है ।

"सब ठीक है । तुम देखना, ऐसे ही जिंदगी बीत जायेगी और हम बुढ़ापे में एक बार फिर मिलेंगे।"

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