पूर्वाभास
‘जौहर ज्वाला’ का आखिरी मंजर सोलह मई मंगलवार की सुबह दिल्ली में लेखूमल झामनानी के फार्म पर वाकया होता है जबकि मुबारक अली और उसके साथी सोहल और नीलम को रिहा कराते हैं, ‘भाई’ और बिग बॉस रीकियो फिगुएरा वक्त रहते फार्म से उड़ जाते हैं और विमल बिरादरीभाइयों की - यानी कि झामनानी, पवित्तर सिंह, भोगीलाल और ब्रजवासी की - मुश्कें कस कर उन्हें पुलिस के रहमोकरम पर छोड़ जाता है । बिरादरीभाइयों की रखवाली के लिये वो झामनानी के ही दो खास कारिन्दों अमरदीप और शैलजा को तैनात करता है जिन्होंने कि विमल की फार्म से रवानगी के दो घन्टों बाद उन्हें मौकायवारदात पर मौजूद ए.सी.पी. प्राण सक्सेना और इन्स्पेक्टर नसीबसिंह के हवाले कर देना होता है और खुद भी पुलिस के हवाले होकर बिरादरीभाइयों के खिलाफ वादामाफ गवाह का रोल अदा करना होता है ।
विमल नीलम के साथ मुम्बई होटल सी-व्यू की सुरक्षा में पहुंच जाता है जहां उसे ये चिन्ता फिर भी सताती है कि भविष्य में फिर कभी भी बाजरिया नीलम और सूरज उस पर वार हो सकता था, बावजूद इसके कि होटल में मां बेटे की सुरक्षा के बहुत पुख्ता इन्तजामात थे ।
रीकियो फिगुएरा वापिस काठमाण्डू पहुंच जाता है और दिल्ली में अपनी पराजय और जख्मों को सहलाता ‘भाई’ पूना, अपने एक खुफिया ठिकाने पर, पहुंचता है जहां फिगुएरा उसे फटकार लगाता है और खबरदार करता है कि उसका हुक्म अभी भी स्टैण्ड करता था कि एक महीने के अन्दर अन्दर - जिसमें से कि ग्यारह दिन गुजर भी चुके थे - उसने या तो सोहल की ‘कम्पनी’ की मुखालफत की जिद तोड़नी थी या उसकी हस्ती मिटा देना थी ।
पीछे दिल्ली के हालात से वाकिफ होने के लिये ‘भाई’ अपने दोस्त अमृतलाल नाग एम.पी. उर्फ नेताजी को दिल्ली फोन लगाता है ।
फार्म में बन्धे पड़े झामनानी को अपने दो कारिन्दों हिम्मत सिंह और मुकेश बजाज की सूरत में बड़ी खुफिया, बड़ी नामुमकिन मदद हासिल हो जाती है जिससे उत्साहित होकर वो इन्स्पेक्टर नसीबसिंह से हालात को बिरादरीभाइयों के हक में मोड़ कर लीपापोती करने के लिये एक करोड़ रुपये की डील करता है । नतीजतन महाकरप्ट पुलिसिया नसीबसिंह ऐसी चाल चलता है कि अमरदीप और शैलजा मारे जाते हैं, ए.सी.पी. प्राण सक्सेना भी मारा जाता है और हालात को यूं मैनीपुलेट करता है कि ये लगता कि बिरादरीभाइयों को लाचार पाकर अमरदीप और शैलजा की नीयत खराब हो गयी थी, उन्होंने फार्म को लूटने की कोशिश की थी तो ए.सी.पी. प्राण सक्सेना ने अपनी जान पर खेल कर उन्हें मार गिराया था और खुद फर्ज की राह पर शहीद हो गया था । क्योंकि रिश्वत के एक करोड़ रुपये का तुरन्त भुगतान उन हालात में सम्भव नहीं था इसलिये फार्म पर उपलब्ध छः किलो हेरोइन वो अपने कब्जे में कर लेता है और उसे फार्म से बाहर कहीं छुपा आता है । फिर हवलदार तरसेमलाल - जो कि सोहल से हमदर्दी दिखाने की सजा के तौर पर मार डाला गया होता है - की लाश गायब कर दी जाती है, सारे यार्ड में फैले बेशुमार हथियार ठिकाने लगा दिये जाते हैं और यूं जाहिर किया जाता है कि पुलिस और दो विश्वासघाती आतताइयों के बीच - जो कि दो पुलिस अफसरों को वहां जबरन बन्धक बनाये बैठे थे - हुई मुठभेड़ के अलावा वहां कुछ भी नहीं हुआ था । कुछ हुआ था तो बस एक बेचारा युवा ए.सी.पी. शहीद हुआ था ।
बिरादरीभाई हवा की तरह आजाद हो जाते हैं ।
ये खबर विमल तक बाजरिया मुबारक अली, ‘भाई’ तक बाजरिया अमृतलाल नाग और फिगुएरा तक बाजरिया ‘भाई’ पहुंचती है ।
मौकायवारदात पर तफ्तीश के लिये महरौली जोन का डी.सी.पी. एस.पी. श्रीवास्तव पहुंचता है जो कि फौरन भांप जाता है कि तमाम करतूत इन्स्पेक्टर नसीबसिंह की थी जो कि बिरादरीभाइयों के हाथों ऐसा बिका था कि उसने उनकी खातिर अपने ए.सी.पी. का कत्ल करने से भी गुरेज नहीं किया था लेकिन वो उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाता क्योंकि नसीबसिंह ने बहुत महारत से वारदात पर लीपापोती की होती है । वो झामनानी से पूछताछ करता है तो झामनानी वहां बिरादरीभाइयों की मौजूदगी की वजह एक पार्टी बताता है जो वहां आयोजित की गयी थी लेकिन एकाएक खूनखराबा वाकया हो जाने की वजह से जिसके मेहमान वहां से रुख्सत हो गये थे । डी.सी.पी. झामनानी से उन तमाम मेहमानों की - बमय नाम, पता, फोन नम्बर - लिस्ट हासिल करता है ।
डी.सी.पी. श्रीवास्तव तमाम वाकये की खबर इन्स्पेक्टर नसीबसिंह के - और दिवंगत ए.सी.पी. प्राण सक्सेना के भी - आला अफसर डी.सी.पी. मनोहरलाल को करता है और उस पर अपना शक जाहिर करता है कि तमाम किया धरा नसीबसिंह का था जिसने जरूर बिरादरीभाइयों से कोई मोटी रिश्वत खायी थी । डी.सी.पी. मनोहरलाल नसीबसिंह को अपने ऑफिस तलब करता है, उसका बयान सुनता है, उसे क्रास क्वेश्चन करता है तो वो भी इसी नतीजे पर पहुंचता है कि झामनानी के फार्म पर हुए ड्रामे की असल कहानी कोई और ही थी जिस पर पर्दा डालने की हरचन्द कोशिश इन्स्पेक्टर नसीबसिंह कर रहा था । नतीजतन, पेंडिंग डिपार्टमेंटल इंक्वायरी, वो नसीबसिंह को सस्पेंड कर देता है और उसे चेता देता है कि आइन्दा उसकी पर मूवमेंट वाच की जाने वाली थी, उसकी टेलीफोन कॉल्स तक टेप की जाने वाली थी और बिरादरीभाइयों से उसके, प्रत्यक्ष या परोक्ष, ताल्लुकात पर खास निगाह रखी जाने वाली थी ।
अगले रोज सुबह दिल्ली में किंग्सवे कैम्प के एक खुफिया ठीये पर बिरादरीभाइयों की मीटिंग होती है जिसमें पवित्तर सिंह पिछले रोज जो कुछ हुआ उसके लिये झामनानी को जिम्मेदार ठहराता है क्योंकि उसने हाथ आते ही सोहल को मार गिराने की जगह उसकी खिल्ली उड़ाने की, उसको जलील करने की कोशिश की । उस बात पर पवित्तर सिंह और झामनानी में काफी तकरार होती है जिसमें भोगीलाल और ब्रजवासी थोड़ी बहुत कमीबेशी में झामनानी की तरफदारी करते हैं लेकिन बाद में पवित्तर सिंह की इस राय से सब इत्तफाक जाहिर करते हैं कि सोहल के आइन्दा कहर से बचने के लिये - जो कि उन्हें जिन्दा जान कर उन पर टूट के रहना था - वक्ती तौर पर उन्हें अन्डरग्राउन्ड हो जाना चाहिये था और किसी को ढूंढे नहीं मिलना चाहिये था । अलबत्ता मोबाइल फोनों के जरिये वो आपसी सम्पर्क बाखूबी बनाये रख सकते थे ।
साथ में झामनानी के मेहमानों की लिस्ट को - जो कि उसने डी.सी.पी. श्रीवास्तव को बना कर दी थी - उनकी सलामती की एक कमजोर कड़ी तसलीम किया जाता है क्योंकि लिस्ट में दर्ज दो मेहमानों से - जिनमें से एक साधूराम मालवानी था - झामनानी सम्पर्क नहीं कर सका था और उन्हें अपने हक में गवाही देने के लिये पट्टी नहीं पढा सका था ।
झामनानी उसी बाबत फौरन कुछ करने का वादा करता है ।
उसी रोज -यानी कि बुधवार सत्रह मई को - मुम्बई में बिलाल नाम का एक आदमी होटल सी-व्यू की लॉबी में बम प्लांट करने की कोशिश करता है लेकिन होटल के सिक्योरिटी चीफ तिलक मारवाड़े के खास आदमी पवन डांगले की मुस्तैदी और चौकन्नेपन की वजह से पकड़ा जाता है । पूछे जाने पर वो अपने आपको भाड़े पर उठने वाला भीड़ू बताता है जिसने कि दो लाख रुपये की फीस की एवज में जेकब परदेसी से वो काम पकड़ा था, जेकब परदेसी इनायत दफेदार करके बड़े बाप का खास आदमी था और खुद दफेदार आगे ‘भाई’ का खास आदमी था । वो आगे बताता है कि उसे आधा रोकड़ा मिलना अभी बाकी था जो कि दगड़ी चाल के एक ईरानी रेस्टोरेंट में जेकब परदेसी उसे देता । उसे जेकब परदेसी से मिलने जाने के लिये रिहा कर दिया जाता है और इरफान, विक्टर, बुझेकर और पिचड़ उसकी निगरानी में लग जाते हैं । परदेसी का एक और आदमी जमीर मिर्ची परदेसी को पहले ही खबर कर देता है कि काम नहीं हुआ था, बिलाल पकड़ा गया था और अब वो दगड़ी चाल ले जाया जा रहा था । परदेसी ऐन इरफान वगैरह की नाक के नीचे बिलाल का कत्ल कर देता है । तदोपरान्त इरफान बुझेकर, पिचड़ और विक्टर को परदेसी का कोई पता निकालने के लिये उधर ही छोड़ कर होटल लौट आता है ।
दिल्ली में झामनानी का खास आदमी मुकेश बजाज सस्पेंड हुए इन्स्पेक्टर नसीबसिंह से पहाड़गंज थाने के परिसर में ही स्थित उसके फ्लैट में जाकर मिलता है और करोड़ रुपये की अदायगी के बदले में झामनानी के माल की - छः किलो हेरोइन की - सुपुर्दगी की मांग करता है । नसीबसिंह उसे अपनी कड़ी निगरानी की बाबत बताता है और कहता है कि उन हालात में वो न रकम कुबूल कर सकता था न माल - जो कि उसने छतरपुर में फार्म के करीब के एक खंडहर में छुपाया हुआ था - डिलीवर कर सकता था, उसके पास इतनी बड़ी रकम या माल पकड़ा जाता तो झामनानी गिरफ्तार होकर रहता । बजाज नसीबसिंह को झामनानी का वास्ता देकर धमकाता है और कैसे भी फौरन हेरोइन की सुपुर्दगी की मांग करता है तो नसीबसिंह उसे उलटा धमकाने लगता है कि अगर उसके साथ पंगा लिया गया तो वो तमाम बिरादरीभाइयों के खिलाफ अप्रूवर बन जायेगा जिसकी कि उसके डी.सी.पी. को उसे ऑफर भी थी ।
बजाज वो खबर झामनानी तक पहुंचताता है तो झामनानी बहुत लाल पीला होता है, तब बजाज उसे सलाह देता है कि क्योंकि नसीबसिंह इतना तो कुबूल कर ही चुका था कि हेरोइन छतरपुर के करीब के खंडहरों में से किसी में छुपी हुई थी इसलिये खुद वो इसे तलाश करने की कोशिश कर सकते थे । उस काम को अंजाम देने के लिये बजाज उन आदमियों को इकट्ठा करने का पेशकश करता है जो कि मुबारक अली के भड़काये उसे दगा देकर भाग गये थे और ऐसे पचास आदमियों में से ग्यारह को बहला फुसला कर, ‘झामनानी खता माफ कर देगा, उजरत बढा देगा’ का झांसा देकर वापिस बुला लाने में वो कामयाब भी हो जाता है ।
उसी रोज मुम्बई में नीलम और सूरज होटल सी-व्यू के टॉप फ्लोर के अपने सुइट से गायब पाये जाते हैं - बावजूद सख्त निगरानी के गायब पाये जाते हैं । इरफान के - जिसके सिर निगरानी के इन्तजाम की जिम्मेदारी होती है - छक्के छूट जाते हैं । सख्त पूछताछ के बाद उस वारदात के लिये फ्लोर वेटर गोविंद भाटे को जिम्मेदार पाया जाता है जिसने कि बैडरूम का एक कार्पेट बदलने के लिये हाउसकीपिंग स्टाफ को उधर आने दिया था और जरूर वो ही पुराने कार्पेट में लपेट कर नीलम और बच्चे को वहां से निकाल ले गये थे । आगे हाउसकीपर से तफ्तीश होती है तो मालूम होता है कि उसके पास कार्पेट बदलने की कोई डिमांड नहीं आयी थी । लिहाजा वो बाहर से आये आदमी थे जो कि गोविन्द भाटे की मदद से - जिसने बाद में कुबूल किया था कि वो ‘कम्पनी’ का प्यादा था - अगवा की उस वारदात की अंजाम देने में कामयाब हुए थे ।
लेकिन अगवा की वारदात को झुठलाती नीलम की एक चिट्ठी बरामद होती है जो वो विमल के नाम बैडरूम में छोड़ कर गयी होती है और जिसके मुताबिक क्योंकि वो विमल के पांव की बेड़ियां नहीं बनना चाहती थी, इसलिये वो खुद उसे छोड़ कर किसी नामालूम जगह के लिये रुख्सत हो गयी होती है । लेकिन वो बात सम्भव नहीं थी क्योंकि जान से जाने से पहले भाटे खुद कुबूल कर चुका होता है कि इनायत दफेदार के हुक्म पर उसने अगवा के ड्रामा को स्टेज करने और कामयाब बनाने में मदद की थी । नतीजतन यहीं फैसला होता है कि वो चिट्ठी नकली थी ताकि अगवा के नाम पर विमल तड़प न जाता, आग बबूला न हो उठता । फिर भी अगवा हुआ था तो कोई मांग भी पेश हो के रहती जिसके इन्तजार में फिलहाल खामोश रहा जा सकता था ।
इनायत दफेदार ‘भाई’ के प्रतिनिधि के तौर पर तारदेव में स्थित ओरियन्टल होटल्स एण्ड रिजॉर्ट्स के ऑफिस में पहुंचता है, चेयरमैन रणदीवे से मिलता है और उसे बोलता है कि ‘भाई’ होटल पर कब्जा मांगता था इसलिये वो लोग राजा साहब से हुई ओरियन्टल की लीज को कैंसल करके दो दिन में होटल ‘भाई’ के हवाले करने का इन्तजाम करें वर्ना ‘भाई’ का कहर उन पर और ओरियन्टल के तमाम डायरेक्टर साहबान पर टूट कर रहेगा । रणदीवे दफेदार को डांट कर भगा देता है लेकिन ‘भाई’ की धमकी से निर्लिप्त नहीं रह पाता । वो उस बाबत पुलिस कमिश्नर जुआरी से बात करता है तो उसकी सुरक्षा के लिये उसे एक गनर मुहैया करा दिया जाता है जो कि उसे कोई खास तसल्ली नहीं देता । नतीजतन वो ओरियन्टल के राजेश जठार और मोहसिन खान नामक दो डायरेक्टर साहबान को साथ लेकर राजा साहब से मिलने के लिये होटल सी-व्यू पहुंचता है ।
उन्हें राजा साहब का टका सा जवाब मिलता है कि लीज कैंसल नहीं हो सकती थी । रणदीवे अपनी और अपने डायरेक्टर साहबान की जान को खतरा बताता है तो राजा साहब का जवाब होता है कि वो उनकी जाती प्राब्लम थी । रणदीवे कोर्ट में जाने की धमकी देता है जिसका राजा साहब पर कोई असर नहीं होता । तब रणदीवे मजबूरन वो कदम उठाने की बात करता है जो वो नहीं उठाना चाहता था, वो ये रहस्योदघाटन करता है कि वो, राजेश जठार और मोहसिन खान जानते थे कि राजा साहब सोहल था । रणदीवे सविनय कहता है कि अगर सोहल उनकी प्राब्लम को अपनी प्राब्लम नहीं समझेगा तो मजबूरन उन्हें अपनी उस जानकारी के साथ पुलिस के पास जाना पड़ता, राजा साहब गिरफ्तार हो जाता और फिर होटल अपने आप ही मौजूदा लीज से आजाद हो जाता । विमल उनसे सहयोग करने का वादा करता है और कहता है कि दो दिन बाद जब दफेदार जवाब मांगने आये तो वो उसे जवाब दें कि एक भारी कम्पैंसेशन की एवज में राजा साहब एक हफ्ते में होटल खाली कर देने के लिये तैयार हो गये थे । यूं उन्हें नौ दिन की मोहलत मुहैया हो जाती जिसके दौरान ‘भाई’ के जहन्नुमरसीद हो जाने की पूरी पूरी सम्भावना थी ।
वो लोग खुशी खुशी वापिस लौटे जाते हैं ।
दिल्ली में शाम की जीओज क्लब में डी.सी.पी. मनोहरलाल की डी.सी.पी. श्रीवास्तव से मुलाकात होती है । मुलाकात के दौरान वार्तालाप में इन्स्पेक्टर नसीबसिंह की सस्पेंशन और झामनानी के फार्म पर मेहमानों की लिस्ट का जिक्र आता है । श्रीवास्तव बताता है कि लिस्ट में दर्ज कुछ मेहमानों को चैक किया गया था लेकिन वो सब झामनानी के पढाये तोते निकले थे इसलिये उस तफ्तीश को वक्तबरबादी जान कर ड्राप कर दिया गया था । उसी क्षण क्लब के टी.वी. पर एक न्यूज फ्लैश होती है जिसके मुताबिक परसों रात आधी रात के बाद विवेक विहार निवासी बिजनेसमैन साधूराम मालवानी एक पार्टी से घर लौट रहा था तो वो मॉब फ्यूरी का शिकार हो गया था । एक गलतफहमी के तहत कुछ लोगों ने उसकी कार रोक कर उसे इस बुरी तरह धुनना शुरू कर दिया था कि अगर तभी वहां पुलिस की एक गश्ती गाड़ी न पहुंच गयी होती तो वो यकीनन ठौर मारा जाता । खबर के मुताबिक मालवानी परसों रात से ही प्रीत विहार के एक नर्सिंग होम में भरती था ।
वो खबर डी.सी.पी. मनोहरलाल को चौंकाती है क्योंकि एक साधूराम मालवानी झामनानी की गैस्ट लिस्ट में भी दर्ज था । अगर टी.वी. न्यूज वाला शख्स वही मालवानी था तो वो तो झामनानी के फार्म पर मौजूद हो ही नहीं सकता था ।
तत्काल प्रीत विहार थाने के एस.एच.ओ. को फोन किया जाता है और उसे नर्सिंग होम जाकर मालवानी की बयान लेने का हुक्म दिया जाता है ।
लेकिन इत्तफाक ऐसा होता है कि लिस्ट के जिन दो साइयों से झामनानी का सम्पर्क नहीं हो सकता होता, उनसे सम्पर्क बनाने के लिये झामनानी पहले ही ब्रजवासी के साथ निकला होता है । लिहाजा प्रीत विहार के नर्सिंग होम में मालवानी के पास वो दोनों पहले पहुंच जाते हैं जहां कि झामनानी अपने सिन्धी भाई को अपने हक में बयान देने के लिये तैयार कर लेता है और यूं एक बार फिर झामनानी का खेल बिगड़ते बिगड़ते बच जाता है ।
रात आठ बजे पवित्तर सिंह अपनी कार खुद चालाता सुजान सिंह पार्क के टैक्सी स्टैण्ड पर पहुंचता है जो कि उसे मालूम होता है कि मुबारक अली का पक्का अड्डा था । वहां मुबारक अली उसे नहीं मिलता तो वो उसके जोड़ीदार करतारे के पास सन्देशा छोड़ के जाता है कि वो कल शाम चार बजे वहां मुबारक अली के लिये फोन करेगा लिहाजा उसे अड्डे पर रोक कर रखा जाये । वो बात फरीद नाम का अड्डे का एक क्लीनर भी सुनता है और उसके जरिये वो बात आखिरकार मुकेश बजाज और फिर झामनानी तक पहुंचती है जो कि हैरान होता है कि आखिर क्यों सरदार साईं मुबारक अली से - दुश्मन के कैम्प के आदमी से, सोहल के खासुलखास से - मिलना चाहता था ।
रात को बुझेकर, पिचड़ और विक्टर आकर इरफान और शोहाब को रिपोर्ट करते हैं । जेकब परदेसी का पता तब तक वो नहीं निकाल पाये होते लेकिन उस मीटिंग में ये बात उठती है कि दगड़ी चाल में बिलाल का कत्ल करने वाले को कैसे मालूम था कि बिलाल उधर ईरानी के रेस्टोरेंट में पहुंचने वाला था जो वो उसके कत्ल का उधर एडवांस में इन्तजाम करके रख सका । तब जमीर मिर्ची नाम का वो टैक्सी ड्राइवर सब को याद आता है जो कि विक्टर का दोस्त था, जो उन्हें दगड़ी चाल के रास्ते में माहिम काजवे की लालबत्ती पर मिला था जिसे विक्टर ने खुद बताया था कि वो भायखला जा रहा था, जरूर वो बिलाल को जानता था और समझ गया था कि वो गिरफ्तार था और भायखला ले जाया जा रहा था, लिहाजा जरूर आगे उसी ने इस बाबत एडवांस में किसी को खबर पहुंचायी थी ।
इरफान जमीर मिर्ची को थामने का हुक्म देता है ।
रात को इनायत दफेदार मुम्बई पुलिस के डी.सी.पी. डिडोलकर के घर पहुंचता है जिसकी बाबत कि उसे मालूम होता है कि वो ‘कम्पनी’ का पिट्ठ था और ‘कम्पनी’ के निजाम के दौरान ‘कम्पनी’ के बिग बॉसेज के हाथों फुल बिका हुआ पुलिसिया था । दफेदार उसे ‘भाई’ के खास आदमी के तौर पर अपना परिचय देता है और उसे ‘भाई’ का हुक्म सुनाता है कि वो किसी भी तरीके के कथित राजा गजेन्द्र सिंह एन. आर. आई. फ्रॉम नैरोबी को - जो कि होटल सी-व्यू का मालिक बना बैठा था लेकिन जो असल में कोई एन. आर. आई. नहीं, मशहुर इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल था - एक्सपोज करे । डिडोलकर उसे एक कठिन काम मानता है इसलिये दो दिन में अपना जवाब देने के लिये कह कर दफेदार को रुख्सत कर देता है ।
उसी रात को दफेदार मुम्बई ने नब्बे किलोमीटर दूर पनवल और नेराल के बीच एक ऊबड़खाबड़, विंस्टन प्वायंट के नाम से जाने जाने वाले, इलाके के एक तारीक लेकिन मुकम्मल तौर से महफूज बंगले में ‘भाई’ से रूबरू मिलता है और दिनभर की भाग दौड़ की - जिसमें बिलाल का कत्ल भी शुमार होता है - अपनी रिपोर्ट पेश करता है । ‘भाई’ इस बात से असंतोष जाहिर करता है कि डी.सी. पी. डिडोलकर ने अपना जवाब दो दिन में देना था लिहाजा वो दफेदार को सुपारी किलर बारबोसा की तलाश का हुक्म देता है ताकि उसे राजा गजेन्द्र सिंह की सुपारी दी जा सकती । साथ ही वो एक वफादार आदमी को जेल भिजवाने की बात करता है जो ये दावा करे कि वो ‘भाई’ का लोकल पता जानता था जो कि वो जेल से रिहाई के बदले में सोहल को बता सकता था ।
सोहल की लाश गिराने के ‘भाई’ के उस चौतरफा इन्तजाम से दफेदार को इत्तफाक नहीं होता लेकिन वो हर बात के लिये हामी भरता है ।
यहां तक की कहानी आपने ‘चाण्डाल चौकड़ी’ में पढी । अब आगे....
***
0 Comments