पाकिस्तान का शहर, इस्लामाबाद।

एक मध्यम वर्गीय इलाके के अपने घर में भुल्ले खान नाश्ते के बाद, अपने छोटे से बच्चे के साथ बेडरूम में, उससे बातें कर रहा था जबकि बच्चा महज सवा साल का था। जवाब में बच्चा हंस रहा था और किलकारियां मार रहा था। सुबह के साढ़े नौ बज रहे थे। उसकी पत्नी अफसाना किचन में व्यस्त थी। भुल्ले ने बनियान और पायजामा पहन रखा था। कहीं जाने का उसका कोई इरादा नहीं लगता था। कल ही भुल्ले खान पांच दिन के बाद घर लौटा था और अभी वो घर पर ही रहना चाहता था कि उसका मोबाइल बजने लगा। भुल्ले ने एक तरफ रखे मोबाइल को उठाया और, बच्चे के पास आकर, उसे अपनी उंगली थमाता फोन पर बोला।

"हैलो।"

"भुल्ले खान।" उधर से जो आवाज आई, उसे भुल्ले ने पहचान लिया था। वो इकबाल खान की आवाज थी।

"कहो इकबाल।" भुल्ले कुछ संभला।

"सात को भेजना है। करोगे काम या किसी और को फोन करूं?" इकबाल खान की आवाज आई।

"मैं काम को कभी इंकार नहीं करता। मिलेगा क्या?" भुल्ले ने पूछा।

"एक का बीस।"

"कहां पर आऊं?"

"मेरे प्रॉपर्टी वाले ऑफिस में आ जाओ। ये काम जल्दी का है।" कहकर इकबाल खान ने फोन बंद कर दिया था।

■■■

एक घंटे बाद भुल्ले, इकबाल खान के प्रॉपर्टी वाले ऑफिस में मौजूद था।

"सात लोगों को सीमा पार करानी है।" इकबाल खान टेबल पर नोटों की गड्डियां रखकर बोला--- "पूरे एक लाख, चालीस हजार हैं। इस बार पहले दे रहा हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि तुम काम पूरा कर दोगे।"

भुल्ले खान ने गंभीर निगाहों से नोटों को देखा, फिर नजरें इकबाल खान के चेहरे पर जा टिकी।

"बात क्या है?" भुल्ले बोला।

"क्या?" इकबाल खान ने भुल्ले खान की आंखों में झांका।

"तुम पैसा, काम के कई दिन बाद देते हो और इस बार पहले दे रहे हो। कोई बात तो है।"

इकबाल खान कुछ पल खामोश रहकर बोला।

"इस बार सीमा तक जाने के लिए गाड़ी भी दे रहा हूं। बाहर खड़ी है। रास्ते का सारा खर्चा भी मेरा होगा।"

"दिल खोलकर मेहरबानी कर रहे हो।" भुल्ले मुस्कुराया--- "इस मेहरबानी की वजह भी बता दो।"

"सात लड़कों के साथ बहुत से हथियार भी सीमा पार पहुंचाने हैं। उस तरफ पहुंच चुके मेरे लोग, हथियारों की मांग कर रहे हैं। उनके पास गोलियां-बारूद खत्म हो गया है। वो बेकार बैठे हैं। तुम कई बार मेरे लड़कों को सीमा पार करा चुके हो। सही से काम किया तुमने। इसलिए सबसे पहले तुम्हें ही फोन किया।"

"ये काम करना तो मेरा धंधा है।" भुल्ले ने कहा--- "मैं तो सबकी सेवा करता हूं।"

"तुम्हें अभी रवाना होना होगा। सातों लड़के तैयार हैं। बाहर खड़ी वैन में गोला-बारूद रखा जा चुका है। दिन भर का सफर है। रात को ही सीमा पर पहुंच सकोगे। मैं चाहता हूं। रातो रात में मेरे लड़कों को असले के साथ सीमा पार करा दो।"

भुल्ले खान टेबल पर रखे नोटों को अपनी तरफ खिसकाता कह उठा।

"लड़के कहां हैं?"

"वजीरपुर में।"

"उन्हें यहीं बुला लो। तब तक मैं इन नोटों को ठिकाने लगाकर आता हूं। घंटे भर में सफर शुरू हो जाएगा।"

■■■

उसी रात पाकिस्तान-हिन्दुस्तान की सीमा पर, पाकिस्तान की तरफ से एक बंद वैन पहुंची। चारों तरफ अंधेरा सन्नाटा छाया हुआ था। कहीं भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। बहुत दूर एक छोटे से गांव में एक लाइट जलती हुई दिखाई दे रही थी। झींगुरों की आवाजें वातावरण में गूंज रही थी। जब वैन यहां पहुंची थी तो वैन की हैडलाइट बंद थी। वैन को ड्राइविंग सीट से, दरवाजा खोलकर भुल्ले खान नीचे उतरा और अंधेरे में खोज भरी दृष्टि दौड़ाई।

"तुम लोग अपना सामान लेकर बाहर निकलो। यहीं रहना, मैं अभी आया।" भुल्ले ने वैन की बॉडी थपथपाकर कहा और सीमा की तरफ बढ़ गया। गहरे सन्नाटे में उसके कदमों की आवाजें उठ रही थी। आस-पास झाड़ियां खड़ी थीं। पचास कदम चलकर वो सीमा की ऐसी जगह पर पहुंचा, जहां कांटेदार तारों की बाड़ लगी हुई थी। मिनट भर वहीं खड़ा वो तारों के उस पार देखता रहा। दूसरी तरफ अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था। कोई हलचल नहीं दिखी। वो वापस वैन के पास आ गया।

इकबाल खान के भेजे सातों लड़के, वैन में से अपने हथियार निकाल रहे थे जो कि दो बोरों में भर रखे थे। कुछ गनें उनके कंधों पर भी थी। तभी एक, भुल्ले से कह उठा।

"हिन्दुस्तानी सैनिक हमें पकड़ तो नहीं लेंगे।"

"आज रात इस तरह कोई हिन्दुस्तानी सैनिक नहीं है।" भुल्ले ने जवाब दिया।

"तुम्हें कैसे पता?"

"ये मेरा धंधा है, इन बातों की जानकारी रखने के मेरे अपने रास्ते हैं। तुम लोग जरा भी फिक्र मत करो।"

हथियारों और गोला-बारूद से भरे बोरे, लड़कों ने संभाल लिए। तीन-तीन ने एक-एक बोरा संभाल लिया था। सातवां गन हाथ में थामें सावधान खड़ा था।

"ये बोरे उठाकर हिन्दुस्तानी सीमा के ज्यादा भीतर नहीं जा सकोगे। नजर में आ जाओगे।" भुल्ले खान ने कहा।

"हमने इन बोरों को मुनासिब जगह पर गड्ढा खोदकर, जमीन में छुपा देना है और बाद में निकाल ले जाएंगे।"

"ठीक है, चलो-हम...।"

"हाल्ट।" तभी एक कड़कती आवाज उनके कानों में पड़ी--- "हाथ ऊपर कर लो।"

"फौरन हाथ ऊपर करो।" भुल्ले ने अपने हाथ ऊपर करते हुए कहा--- "वरना वो गोली चला देंगे।"

"लेकिन ये हैं कौन?"

"सीमा की रक्षा करने वाले हमारे सैनिक।"

बोरे छोड़कर सबने हाथ ऊपर उठा लिए।

"अब क्या होगा?"

"सब ठीक है।" भुल्ले गंभीर स्वर में बोला--- "तुम लोगों में से कोई भी ना बोले। मैं बात करूंगा।"

"हाथ ऊपर।" इस बार दूसरी कड़कती आवाज आई।

भुल्ले खान देख चुका था कि वो दो हैं। उनके हाथों में गनें हैं। वो सायों की तरह लग रहे थे।

"हमारे हाथों ऊपर हैं ऑफिसर।" भुल्ले खान ने ऊंचे स्वर में कहा।

"हम पास आ रहे हैं। जरा भी हाथ नीचे किये तो मारे जाओगे।"

"मैं कैप्टन नसीम चौधरी हूं। मिलिट्री इंटेलिजेंस से।" भुल्ले खान ने कहा।

"हाथ ऊपर रखो।" वो ही कड़कती आवाज आई।

फिर वो दोनों सावधानी से बढ़ते कुछ करीब आ गए।

"कौन है कैप्टन?" एक आवाज कानों में पड़ी।

"मैं।" भुल्ले खान ने कहा। उसके हाथ ऊपर थे।

उसी पर टॉर्च की रोशनी भुल्ले के चेहरे पर पड़ी। भुल्ले आंखें मिचमिचा उठा।

"यहां क्या हो रहा है?"

"ये मिलिट्री इंटेलिजेंस का निशान है। कुछ लोगों को सीमा के उस पार भेजा जा रहा है।" भुल्ले का स्वर शांत था।

"अपना पहचान पत्र दिखाओ।"

"मेरी पैंट की पिछली जेब में है।"

वो सैनिक सतर्कता से भुल्ले के करीब आया पीठ की तरफ पहुंचकर उसकी पीछे की जेब टटोली फिर एक कार्ड बाहर निकालकर टॉर्च की रोशनी में  कार्ड देखा। भुल्ले का चेहरा टॉर्च की रोशनी में देखा। चंद पल बीते कि सैनिक भुल्ले को जोरदार सैल्यूट देते हुए कहा।

"माफ कीजिएगा जनाब। हम आपको पहचान नहीं सके।"

भुल्ले ने अपनी बांहें नीचे की और उसके हाथ से कार्ड लेते, जेब में रखते कहा।

"कोई बात नहीं जवान। इसी प्रकार सतर्कता से ड्यूटी देते रहो।"

"जी जनाब।"

"जाओ। हमें अपना काम करने दो।" भुल्ले का स्वर शांत था।

देखते ही देखते वो दोनों जवान वहां से दूर चले गए।

बाकी सब भी अपने हाथ नीचे कर चुके थे।

"तुम मिलिट्री इंटेलिजेंस वाले हो?" एक ने पूछा।

"जुबान बंद रखो और चलो यहां से। मुझे सब इंतजाम रखने पड़ते हैं। ये कार्ड नकली है। इस कार्ड से मैं कई बार बच चुका हूं।" भुल्ले खान बोला--- "हमारा यहां ज्यादा देर रुके रहना, ठीक नहीं। आओ।"

फिर वे बोरों को उठाये सीमा पार लगी कांटेदार तारों के पास पहुंचे। भुल्ले ने जेब से कटर निकाला और पलक झपकते ही तीन तारें काट दीं। वो सातों दोनों बोरों के साथ, उस तरफ निकल गए। भुल्ले ने फुर्ती के साथ तारों को आपस में फंसा दिया कि देखने पर वो कटी हुई ना लगे फिर पलटा और वैन की ड्राइविंग सीट पर जा बैठा। वैन स्टार्ट की। बिना हैडलाइट जलाए वैन को घुमाकर वापस मोड़ा और वैन दौड़ा दी।

■■■

देवराज चौहान और जगमोहन आठ दिनों से इस्लामाबाद में थे। वजह थी वसीम राणा। पाकिस्तानी वसीम राणा की बहन की शादी थी। वसीम राणा आठ साल पहले सरहद पार करके हिन्दुस्तान के मुंबई शहर आ पहुंचा था। मकसद था पैसा कमाना और किसी के द्वारा उसकी मुलाकात देवराज चौहान से हो गई। तब देवराज चौहान एक डकैती की तैयारी के लिए आदमियों को इकट्ठा कर रहा था। वसीम राणा को पैसे की जरूरत थी और जगमोहन के कहने और देवराज चौहान ने वसीम राणा को डकैती में शामिल कर लिया था। उस काम में वसीम राणा को उन्नीस करोड़ रूपया हिस्से में आया। वसीम की जिंदगी बन गई। उसने पाकिस्तान वापस जाने का मन बना लिया। परंतु मन ही मन देवराज चौहान का एहसानमंद था कि उसकी वजह से उसे उन्नीस करोड़ मिल पाया। देवराज चौहान और जगमोहन का शुक्रिया पर शुक्रिया अदा करने के बाद वो पाकिस्तान चला गया। परंतु देवराज चौहान और जगमोहन के संपर्क में रहा। उसके फोन अक्सर आते रहते और हालचाल पूछने का सिलसिला जारी रहा। अब तीन महीने से वो फोन पर कह रहा था कि उसने बहन की शादी तय कर दी है और उन दोनों को इस्लामाबाद आना है। उसका आदमी उन्हें कश्मीर के पुंछ इलाके में मिलेगा जो कि सीमा पार कराकर, इस्लामाबाद तक उन्हें उसके पास पहुंचा देगा।

देवराज चौहान और जगमोहन इस वक्त कोई खास काम नहीं कर रहे थे और वसीम राणा उन्हें इतने प्यार से आमंत्रण दे रहा था कि वो इंकार नहीं कर सके। इस प्रकार, वक्त आने पर दोनों, कश्मीर के पुंछ इलाके में, वसीम राणा की बताई जगह पर पहुंचे, वहां पर उन्हें भुल्ले खान मिला, जिसके बारे में वसीम राणा ने पहले ही बता दिया था। भुल्ले खान तीस बरस का साधारण कद का युवक था परंतु चालाक और तेज था। उन्हें आसानी से सीमा पार ले गया और वसीम राणा के पास इस्लामाबाद पहुंचा दिया।

इस प्रकार देवराज चौहान और जगमोहन वसीम राणा की बहन की शादी में शामिल हुए। वसीम राणा उन दोनों को आया पाकर बेहद खुश रहा। शादी से ज्यादा खुशी उनके आने की थी। वसीम राणा पाकिस्तान में इज्जतदार बिजनेसमैन बना हुआ था। उसने बताया कि उस उन्नीस करोड़ से उसने खुद को बिजनेस की दुनिया में जमा लिया और आज सब कुछ बढ़िया चल रहा है। सब कुछ उनकी मेहरबानी से ही हुआ। दोनों को बंगले के ही एक कमरे में ठहराया गया। शादी हो गई। आए रिश्तेदार भी चले गए। चार दिन बीत गए थे शादी को और उन्हें यहां पहुंचे आठ दिन हो चुके थे। ऐसे में देवराज चौहान और जगमोहन ने वापस हिन्दुस्तान जाने कहा।

"कुछ और नहीं रुकोगे?" वसीम राणा गंभीर हो गया।

"बस इतना ही वक्त था हमारे पास।" जगमोहन बोला--- "मुंबई में हमारे काम पड़े हैं।"

"आज मैं जो कुछ भी हूं, तुम दोनों की ही वजह से हूं।" वसीम राणा की आंखें भर आईं--- "कई बार तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं सरहद पार करके हिन्दुस्तान तुम लोगों से उन्नीस करोड़ लेने ही गया था।"

"हमने तुम्हें कुछ नहीं दिया। तुमने काम किया और अपना हिस्सा लिया।" देवराज चौहान मुस्कुराया।

"इस सारी बात में तुम्हारी मेहरबानी भी तो शामिल थी।" वसीम राणा ने गीली आंखें साफ कीं।

"छोड़ो इन बातों को। हमें सीमा के पास कैसे पहुंचाओगे?"

"भुल्ले खान करेगा ये काम। वही तुम दोनों को लाया और वो ही उधर पहुंचाएगा। मैंने उसे पहले ही इस काम के लिए कह रखा है कि कोई काम हाथ में मत लेना। तब से वो आराम से बैठा हुआ है और हर रोज का पचास हजार रुपया अपनी फीस ले रहा है।" वसीम राणा मुस्कुराया।

"पचास हजार, रोज का?" जगमोहन ने मुंह बनाया।

"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।" वसीम राणा ने कहा--- "कब जाना चाहोगे तुम लोग?"

"जब भी तुम भेजो।"

"मैं आज भुल्ले खान को यहां बुला लेता हूं। जो तैयारी करनी है उसी ने करनी है। वो समझदार और तेज है। मुझे जब भी कोई तकलीफ होती है तो भुल्ले खान को ही याद करता हूं। वो ज्यादा पैसे जरूर लेता है, पर काम तसल्ली से करता है।"

■■■

चार घंटे बाद भुल्ले खान वहां पहुंचा।

"भुल्ले इन्हें वापस छोड़ना है।" वसीम राणा ने कहा।

"ठीक है।" भुल्ले खान ने सिर हिलाया--- "मैं तैयारी कर लेता हूं, कल या परसों चल पड़ते हैं।"

"कल क्यों नहीं?" जगमोहन बोला।

"सरहद को भी तो देखना है कि जहां से मैंने तुम दोनों को इस उस पार ले जाना है वहां पर हिन्दुस्तानी मिल्ट्री का पहरा कैसा है।"

"मुझे पता चला है कि तुम रोज का पचास हजार  ले रहे हो वसीम से।"

भुल्ले खान मुस्कुरा पड़ा।

"ये ज्यादा है।"

"राणा साहब के पास नोट बहुत हैं।" भुल्ले खान कह उठा--- "आप क्यों चिंता करते हैं। फिर दो लोगों को सीमा पार से लाना और उन्हें वापस पहुंचाना भी बहुत खतरे वाला काम है। लेकिन मैं काम करूंगा तो फंसने वाली बात नहीं होगी। इसलिए पैसा ज्यादा नहीं है। काम ठीक से हो जाना चाहिए।"

वसीम राणा मुस्कुरा कर बोला।

"तुम अपनी तैयारी करो भुल्ले खान।"

भुल्ले खान चला गया।

"एक-दो दिन तो तुम दोनों हो ही, तब तक इस्लामाबाद घूम लो। मैं घुमाता हूं ये शहर।"

"इस्लामाबाद हमारे लिए नया नहीं है।" देवराज चौहान बोला--- "कई बार घूम चुके हैं।"

"जरूर घूमे होंगे, पर मेरे साथ घूमने का मजा ही कुछ और होगा।" वसीम राणा ने मुस्कान के साथ कहा--- "आज रात का खाना हम बाहर खाएंगे और आधी रात से पहले नहीं लौटेंगे।"

■■■

तीसरे दिन भुल्ले खान सुबह ग्यारह बजे ही कार लेकर पहुंच गया। फोन पर उसने पहले ही देवराज चौहान को, जगमोहन को चलने के लिए तैयार रहने को कहा था। भुल्ले अकेला नहीं था। उसके साथ अहमद खान नाम का, उसी की उम्र का युवक था, जो कि उसका चचेरा भाई था।

देवराज चौहान और जगमोहन ने वसीम राणा से विदाई ली तो राणा रो पड़ा। उसने कहा कि वो भी साथ चलता है, परंतु भुल्ले खान ने इंकार कर दिया कि यहां से आगे आपका कोई काम नहीं। उसके बाद देवराज चौहान और जगमोहन कार में बैठे। अहमद खान कार चला रहा था। उसने कार आगे बढ़ा दी।

"ये कौन है?" जगमोहन ने पूछा।

"ये मेरा कजन ब्रदर।" भुल्ले खान बोला--- "मेरे चाचे का लड़का।"

"प्रोग्राम क्या है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"इस्लामाबाद से करोर पहुंचेंगे, करोर पहुंचने में शाम हो जाएगी। परंतु हम चलते रहेंगे और रात ग्यारह बजे कोटली पहुंचकर कार छोड़ देंगे। कोटली सीमा की तरफ का आखिरी कस्बा है।" भुल्ले खान गंभीर स्वर में कह रहा था--- "वहां से आगे घना जंगल है, पहाड़ है, करीब तीन घंटे का रास्ता हमें पैदल ही तय करना है। उसके बाद सीमा पार कर ली जाएगी।"

"परंतु जब तुम हमें पुंछ से लाए थे तो तब दूसरा रास्ता था।" जगमोहन बोला।

"रास्ते बदलते रहते हैं। इन दिनों उस रास्ते पर ज्यादा पहरा है।"

"कैसे पता?"

भुल्ले खान ने कार चलाते अहमद की तरफ इशारा किया।

"इसने बताया। इसके दो आदमी उस तरफ की सीमा पर नजर रखे हैं।"

"तुम काम क्या करते हो?"

"यही सब।"

"मतलब कि लोगों को सीमा पार कराना?"

"हां। वैसे हर तरह के काम करता हूं जहां से नोट मिले, परंतु सीमा पार कराने में नोट ज्यादा है। आजकल यहां से काफी लोग हथियारों के साथ सीमा पार जाते रहते हैं। मुझे अच्छे पैसे मिल जाते हैं उन्हें सीमा पार कराने के।"

"तुम आतंकवादियों को सीमा पार कराकर हिन्दुस्तान भेजते हो।"

"ऐसा मत कहो। वो लोग भी अपनी रोटी-पानी के जुगाड़ में रहते हैं।" भुल्ले खान ने मुस्कुराकर कहा।

"पर वो हिन्दुस्तान में जाकर आतंक फैलाते हैं।"

"मुझे इससे कोई मतलब नहीं।"

"वसीम राणा को कैसे जानते हो?"

"राणा साहब मेरे से कभी-कभार काम लेते हैं और अच्छे नोट देते हैं। उनका काम मैं दिल से करता हूं।"

"रात जहां से हमें सीमा पार कराओगे, वहां पकड़े जाने का खतरा तो नहीं?"

"खतरा तो होता ही है, परंतु निकल जाओगे। मैं तुम लोगों के साथ रहूंगा। अहमद कहता है कि उस तरफ खतरा नहीं होगा रात को।"

अब तक खामोशी से कार चला रहा अहमद खान कह उठा।

"तुम्हें इनके साथ सीमा पार करने की क्या जरूरत है भुल्ले?"

"राणा साहब ने कहा है कि इन्हें पुंछ तक सुरक्षित पहुंचाना है। जाना पड़ेगा। पुंछ से ही लाया था इन्हें।"

"सीमा से सीधा रास्ता है पुंछ का। एक घंटे में ये पहुंच जाएंगे।" अहमद खान ने कहा।

"मुझे साथ जाना ही होगा। राणा साहब से ऐसी ही बात फिक्स हुई थी।"

अहमद खान ने बैक मिरर द्वारा देवराज चौहान, जगमोहन को देखकर बोला।

"सुना है तुम लोग हिन्दुस्तान के बहुत बड़े डकैती मास्टर हो।"

"किसने बताया?" जगमोहन कह उठा।

"भुल्ले ने।"

"और तुम्हें वसीम राणा ने बताया होगा।" जगमोहन भुल्ले से बोला।

"हां। मैंने पूछा था। राणा साहब ने बताया कि तुम दोनों उनके खास हो।"

"तुम दोनों में देवराज चौहान कौन है?" अहमद खान ने कार ड्राइव करते पूछा।

"मैं हूं।" देवराज चौहान का स्वर सामान्य था।

"मैंने तुम्हारे बारे में सुन रखा है। तुम पाकिस्तान भी कई बार आ चुके हो। हामिद अली से तुम्हारा कोई पंगा है। शायद तुमने उसके भाई को पाकिस्तान आकर मारा था।"

"बहुत ज्यादा खबर रखते हो।" देवराज चौहान मुस्कुराया।

"यूं ही पता चल गया। अगर अली को पता चल जाता कि तुम इस्लामाबाद में हो तो वो तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ता।"

"उसे बताता कौन?" जगमोहन ने कहा।

"हम क्यों बताते?" अहमद खान बोला।

"तो बात खत्म। वैसे ये बात मन से निकाल दो कि वो हमें मार देता।" जगमोहन मुस्कुराया।

"मार देता, पाकिस्तान में हामिद अली का मुकाबला कोई नहीं कर सकता।"

"इस बात पर, बात करने का कोई फायदा नहीं।"

"राणा साहब से कैसे दोस्ती हो गई?"

"इन बातों को रहने दो।" देवराज चौहान बोला--- "ज्यादा जानकारी होना भी नुकसानदेह हो जाता है।"

■■■

रात का 1:30 बज रहा था।

देवराज चौहान, जगमोहन और भुल्ले खान, गहरे अंधेरे और पहाड़ी जंगल में तेजी से संभलकर आगे बढ़ रहे थे । ये हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का सीमा वाला हिस्सा था। अहमद खान, कोटली में ही रुक गया था। भुल्ले ने उससे कहा था कि वो सुबह तक इन्हें पुंछ में पहुंचाकर वापस आ जाएगा। जबकि अहमद खान इस बात पर जोर दे रहा था कि उसे पुंछ तक जाने की क्या जरूरत है। इन्हें सीमा पार करा कर ही वापस आ जाना। आगे का रास्ता सीधा ही है। इस पर देवराज चौहान ने भुल्ले से कहा कि अहमद ठीक कह रहा है। सीमा पार करके वो पुंछ तक आसानी से पहुंच जाएंगे। परंतु भुल्ले का कहना था कि वसीम राणा से यही बात तय हुई थी कि तुम दोनों को पुंछ इलाके में पहुंचाना है।

भुल्ले खान एक जगह ठिठक गया। वो दोनों भी रुके।

ये जगह एक छोटे से पहाड़ की चोटी थी। सफेद बर्फ चमक रही थी। पहाड़ पर टेढ़े-मेड़े पेड़ खड़े थे। वातावरण में ठंडक थी। बहती हवा सर्दी बढ़ा रही थी। हर तरफ सुनसानी और गहरा अंधेरा फैला था।

"क्या देख रहे हो?" देवराज चौहान ने पूछा।

"हिन्दुस्तानी मिलिट्री को।" भुल्ले खान की नजर अंधेरे को भेदने का प्रयास कर रही थी--- "सप्ताह में दो-तीन दिन वो इस तरफ सख्त पहरा रखते हैं। परंतु अहमद ने यही बताया था कि आज इधर पहरा नहीं होगा।"

"उसे किसने खबर दी?"

"मिलिट्री के एक-दो सैनिकों से दोस्ती कर रखी है अहमद ने। उन्हें नोट भी देने पड़ते हैं कि वो ऐसी खबरें देते रहें।"

"बातचीत कैसे होती है?"

"फोन पर। उन्हें फोन दे रखा है।" भुल्ले खान नजरें दौड़ाता कह उठा--- "मेरे ख्याल में आज की रात सब ठीक है। आओ, आगे बढ़ना है। दस मिनट में हम सीमा पार करके काफी आगे निकल चुके होंगे।"

वे तीनों आगे बढ़े।

पहाड़ की चोटी का काफी बड़ा हिस्सा समतल था। उस समतल हिस्से पर पेड़ भी नहीं खड़े थे। शायद सैनिकों ने उन्हें काट दिया होगा कि कोई उनका पीछे न छिप सके।

वे तीनों सतर्कता से आगे बढ़ते रहे।

"पाकिस्तानी सैनिक भी तो यहां पहरे पर होंगे।" जगमोहन बोला।

"वो इधर पहरा नहीं देते।"

"क्यों?"

"जरूरत ही नहीं है। हिन्दुस्तान से पाकिस्तान जो आएंगे, वो इधर के ही लोग होंगे।" भुल्ले खान ने कहा--- "अब जरा कदमों को तेजी से उठाओ। पांच मिनट तक हमें बहुत तेज चलते रहना होगा। सब ठीक ही लग रहा है। इधर आज पहरा नहीं है। तुम लोगों को पुंछ पहुंचाकर, वापस भी लौटना है मुझे।"

"तुम वापस लौट जाओ। हम निकल जाएंगे।" देवराज चौहान बोला।

"तो राणा साहब को क्या कहूंगा कि तुम दोनों को पुंछ नहीं पहुंचाया। वो मुझे एक पैसा भी नहीं देंगे और रिश्ता खराब होगा, वो अलग। तुम दोनों को पुंछ तक जरूर पहुंचाऊंगा।" भुल्ले ने कहा।

अब वे तीनों बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे थे। गहरे अंधेरे में इस तरह आगे बढ़ने से गिर जाने का खतरा था। परंतु भुल्ले खान जैसे यहां के रास्तों से वाकिफ था। वो आगे-आगे चल रहा था और देवराज चौहान, जगमोहन पीछे-पीछे। पांच-सात मिनट बीते कि भुल्ले खान कह उठा।

"अब ठीक है, हम सीमा पार कर आए हैं। खतरा टला नहीं है, हिन्दुस्तानी मिलिट्री रात को इधर गश्त भी लगाती है।" अब वे तीनों उस छोटे पहाड़ की ढलान से उतर रहे थे, जहां टेढ़े पेड़ खड़े नजर आ रहे थे--- "ये ढलान पार करके आगे निकल जाएं तो फिर कोई खतरा नहीं होगा।"

पांच मिनट में ही ढलान पार हो गई। गहरे अंधेरे में पहाड़ रूपी चट्टानें और सायों की तरह पेड़ खड़े नजर आ रहे थे। देवराज चौहान और जगमोहन को रास्ता समझ नहीं आ रहा था परंतु भुल्ले खान जैसे यहां का जर्रा-जर्रा जानता था। वो एक क्षण भी नहीं रुका और उन्हें पीछे आने का इशारा करके आगे बढ़ गया।

देवराज चौहान और जगमोहन उसके पीछे थे।

अभी वे पन्द्रह कदम ही चले होंगे कि देवराज चौहान ठिठकता हुआ बोला।

"यहां कोई है।"

भुल्ले खान और जगमोहन भी रुक चुके थे।

"पागलों वाली बातें मत करो।" भुल्ले खान ने कहा--- "चलो यहां से, इधर हमारे अलावा कोई नहीं है।"

"मैंने किसी के चलने की आवाजें सुनी। दो-तीन कदमों की।" आस-पास देखता देवराज चौहान बोला।

"वहम मत करो। निकल चलो यहां से। सैनिकों की गश्ती टुकड़ी आ गई तो खतरे में पड़ जाएंगे।" भुल्ले खान ने कहा।

वो फिर आगे चल पड़े।

देवराज चौहान की निगाह हर तरफ जा रही थी।

"हाल्ट।" तभी वातावरण में हाथ वाले स्पीकर से निकलती आवाज गूंजी--- "वहीं रुक जाओ। हिलना मत।"

उसी पल तीव्र रोशनी वाली टार्चों का प्रकाश उनके चेहरों पर आ पड़ा।

वे रुक चुके थे। रोशनी चेहरों पर पड़ते ही उनकी आंखें बंद होने लगी।

"सूबेदार जीतसिंह।" स्पीकर से निकलती वही आवाज सुनाई दी--- "पहचानो इन्हें।"

रोशनी बराबर उनके चेहरों पर पड़ रही थी और वो नहीं जानते थे कि कितनों ने उन्हें घेर रखा है। ये तो समझ में आ गया था कि ये हिन्दुस्तानी सैनिक हैं।"

"फंस गए।" जगमोहन, देवराज चौहान की तरफ देखकर कह उठा।

"जिस तरह से इन्होंने हमें घेरा है, उससे तो लगता है जैसे इन्हें पता था कि हम आने वाले हैं।" देवराज चौहान बोला।

"खबरदार, जो अपनी जगह से हिले भी। तुम लोग भारतीय सैनिकों के घेरे में हो। तुम लोग पाकिस्तान से सीमा पार करके आए हो। हमारे सैनिकों ने तुम्हें निशाने पर ले रखा है। जरा भी हरकत की तो गोलियां चल जाएंगी।"

जवाब में सन्नाटा छाया रहा।

"सूबेदार जीतसिंह।" वो आवाज पुनः गूंजी।

"देख रहा हूं मेजर साहब।" एक नई आवाज सुनाई दी।

चंद पल सन्नाटे में गुजरे।

भुल्ले खान, देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरों पर टार्चों की रोशनी में चमक रहे थे।

"मेजर साहब।" सूबेदार जीतसिंह की आवाज उभरी--- "हमें सही खबर मिली थी, ये डकैती मास्टर देवराज चौहान ही है।"

"ठीक से पहचानो सूबेदार।"

"ठीक से पहचान लिया है मेजर साहब। मैंने देवराज चौहान की तस्वीर बहुत अच्छी तरह से अखबार में देख रखी है। ये वही डकैती मास्टर है, यही अभी-अभी पाकिस्तान से सीमा पार करके आया है। बाकी दोनों में एक इसी देवराज चौहान का साथी जगमोहन और दूसरा भुल्ले खान होना चाहिए जो सीमा पार कराने का धंधा करता है।"

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देवराज चौहान, जगमोहन और भुल्ले खान के हाथों को पीछे करके हथकड़ियां लगी थी। पिंडलियों पर रस्सी बांध दी गई थी। तीनों को खुली जीप के फर्श पर डाल दिया था। कुल मिलाकर वो पन्द्रह मिलिट्री वाले थे और चार वाहन थे। ये सब कुछ उन्होंने पहाड़ के टूटे, बड़े से हिस्से के पीछे छिपा रखा था।

कतार में सब वाहन वापस चल पड़े।

उनकी जीप में, उनके पास चार हथियार बंद सैनिक बैठे थे। एक जीप चला रहा था और एक उनकी बगल में आगे बैठा था। आगे-पीछे बाकी गाड़ियां थीं। हैडलाइटें रोशनी थी। उबड़-खाबड़ रास्ता था, वे सारे वाहन मध्यम गति से आगे बढ़ते रहे। तभी नीचे पड़ा देवराज चौहान कह उठा।

"भुल्ले।"

"हां।" भुल्ले खान की आवाज कानों में पड़ी।

"हिन्दुस्तानी मिलिट्री को पहले से ही पता था कि हम इधर से आज रात सीमा पार से आने वाले हैं। ये हमारे नाम भी जानते हैं। ये खबर तेरे से बाहर गई।" देवराज चौहान ने कहा।

"तेरा मतलब कि मैंने खबर दी।?"

"ये मेरा मतलब नहीं हैं। ऐसा होता तो तू हमारे साथ ना होता। परंतु कहीं से तो खबर बाहर गई।"

"बात सही हो सकती है तेरी।" भुल्ले खान बोला।

"किसे पता था कि हम इस रास्ते सीमा पार करके...।"

"अहमद खान।" भुल्ले खान के होंठों से निकला--- "साले अहमद खान ने ही गड़बड़ की है। इस बात को उसके अलावा कोई और नहीं जानता था और वो मुझे इस बात पर जोर दे रहा था कि पुंछ तक न जाऊं। सीमा से ही वापस आ जाऊं। उसने ही कहा था कि इधर से जाना ठीक होगा। उसी ने ये सारी गड़बड़ की है। कमीनापन दिखा दिया उसने।"

"अहमद खान की हिन्दुस्तानी मिलिट्री से बातचीत होती है।"

"होती रहती है। हमारा काम ही ऐसा है। इस तरह का रास्ता भी मुझे उसी ने बताया था कि आज रात इधर हिन्दुस्तानी सैनिक नहीं होंगे। गद्दार, हरामजादा। मैं उसे छोडूंगा नहीं।" भुल्ले खान गुस्से से कह उठा।

"अपनी खैर मना।" जगमोहन बोला--- "हम इस वक्त हिन्दुस्तानी सैनिकों के कब्जे में हैं ये हमें बचने को मौका नहीं देने वाले। तेरा तो पता नहीं। पर हम लंबी मुसीबत में पड़ गए हैं।"

"साला अहमद।"

"अहमद कब से तेरे साथ काम कर रहा है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"हम साथ काम नहीं करते, पर कभी-कभी मिलकर काम कर लेते हैं। आज की तरह। ये धंधा मैंने ही शुरू किया था। दस साल पहले। अहमद को काम चाहिए था। वो मेरा चचेरा भाई है तो उसे भी इस काम में ले लिया। अल्लाह कसम, अगर पहले पता होता कि अहमद गद्दारी करेगा तो साले का गला काट चुका होता।"

"गुस्सा मत कर। अब के हालातों पर सोच।"

"सोचना क्या है। यहां से मैं अब बचने वाला नहीं। तुम लोग मेरी वजह से फंसे हो।"

"वजह मत ले बीच में। अहमद को भूल जा। नहीं तो वक्त तुझे ये सब बातें भुला देगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "मिलिट्री के हाथों से बचा नहीं जा सकता। हम सीधे जेल में पहुंचेंगे। मेरे ख्याल में एक लंबे सफर की शुरुआत हो चुकी है। आने वाला वक्त मुसीबतों से भरा होगा। बहुत सब्र के साथ आने वाले वक्त से मुकाबला करना होगा।"

"खामखाह ही फंस गए।" जगमोहन कह उठा।

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पांच किलोमीटर के बाद सफर खत्म हुआ। यहां जमीन का काफी बड़ा हिस्सा समतल था। कई जगह रोशनी हो रही थी। हर तरफ छोटे-बड़े मिलिट्री के तम्बू लगे दिख रहे थे। रात के इस वक्त तीव्र सर्दी का एहसास हो रहा था। जिस जीप के फर्श पर वे पड़े थे वो काफी ठंडा था। उन्हें वहां से उठाकर एक बड़े से तम्बू के भीतर मिट्टी के फर्श पर डाल दिया गया। भीतर तेज रोशनी का बल्ब जल रहा था। वहां एक चारपाई और दूसरी तरफ एक टेबल और तीन कुर्सियां रखी थी। टेबल पर आधी भरी बोतल और एक गिलास के अलावा, प्लेट में भुना हुआ, आधा खाया मुर्गा रखा था।

उसी पल कदमों की आवाजें गूंजी और टैंट का पर्दा उठा और सवा छः फीट लम्बे, पचपन बरस के एक सिख ऑफिसर ने भीतर प्रवेश किया। उसके पीछे सूबेदार जीतसिंह और एक अन्य सैनिक था। वो दोनों अपनी जगह बनाकर सतर्क खड़े हो गए और सवा छः फीट के सिख ऑफिसर से उन तीनों को देखने के बाद कहा।

"इनके बंधन खोल दो।"

आवाज से पहचाना कि ये वही मेजर था जो कि उन्हें पकड़ने के वक्त स्पीकर पर बोल रहा था।

सूबेदार जीतसिंह ने फौरन झुककर, जूते के पास से पैंट को ऊपर उठाकर जुराब में फंसा चाकू निकाला और उसका फल खोलते हुए आगे बढ़कर तीनों की पिंडलियों के बंधन काटे फिर चाकू वापस रखकर जेब से चाबी निकाली और तीनों की हथकड़ी खोल दी। उसके बाद वापस अपनी जगह पर आ खड़ा हुआ।

देवराज चौहान फौरन उठ बैठा।

मेजर, देवराज चौहान को देखकर शांत भाव में मुस्कुराया।

जगमोहन और भुल्ले खान भी खड़े हो गए।

"मैं हिन्दुस्तानी मिलिट्री का मेजर कमलजीत सिंह हूं।" मेजर ने कहा--- "तुम लोग अपने नाम बोलो।"

"देवराज चौहान।"

"भुल्ले खान।"

जगमोहन चुप रहा।

"तुमने अपना नाम नहीं बताया?" मेजर कमलजीत सिंह ने जगमोहन को देखा।

"नाम को छोड़ो मेजर। नोटों की बात करो।" जगमोहन ने कहा--- "तुम्हें पहले से ही आने की खबर थी, पकड़ लिया तुमने। तुम जीत गए। हमें छोड़ने के कितने नोट लोगे? एक करोड़ बहुत होगा। हमारी गिरफ्तारी से तुम्हें कुछ नहीं मिलने वाला। तुम हमें पुलिस के हवाले कर दोगे तो पुलिस से सौदा पटाना पड़ेगा।"

"अच्छी बात कही तुमने। नाम बोलो।" मेजर कमलजीत सिंह टेबल पर रखी बोतल से गिलास तैयार करने लगा।

"जगमोहन।"

"जगमोहन। गुड।" मेजर कमलजीत सिंह ने गिलास उठाकर घूंट भरा फिर कुर्सी पर बैठता कह उठा--- "जा सकते हो तुम तीनों।"

"क्या?" जगमोहन चौंका।

"एक करोड़ लिए बिना छोड़ रहा हूं निकल जाओ यहां से।"

"तुम इतने बड़े दानी तो नहीं...।"

"सूबेदार।"

"यस सर।"

"दस तक गिनती करो अगर ये लोग यहां से ना जाएं तो शूट कर दो। गिनती शुरु करो।"

"एक-दो-तीन-चार...।"

देवराज चौहान, जगमोहन और भुल्ले खान फौरन टैंट से बाहर निकल गए।

मेजर कमलजीत सिंह ने गिलास से पुनः घूंट भरा और उसे रखकर मुर्गा खाने लगा।

सूबेदार जीतसिंह और अन्य सैनिक वहां सतर्क खड़े थे।

दो मिनट भी नहीं बीते कि देवराज चौहान, जगमोहन, भुल्ले खान वापस भीतर आ गए।

"बहुत जल्दी वापस आ गए।" मेजर कमलजीत सिंह ने मुर्गा खाते हुए कहा--- "गए नहीं?"

"तुम हमें बेवकूफ बना रहे हो।" जगमोहन तीखे स्वर में कह उठा--- "बाहर जर्रे-जर्रे पर तुम्हारे जवान फैले हैं। अगर हम भीतर नहीं आते तो वो हमें मार देते।"

"तुम लोगों ने क्या सोचा कि निकल जाओगे। बेवकूफ हो जो ऐसा सोचा। वैसे भी मैं तुम लोगों को दिखा देना चाहता था कि बाहर का क्या हाल है। जब भी किसी को कैद मिलती है तो वो सबसे पहले फरार होने का रास्ता सोचता है। ऐसे में अब तुम लोग फरार होने का रास्ता सोचोगे तो बाहर मौजूद बीस सैनिकों को ध्यान में रखकर सोचोगे। जवानों को मैं इस बात का ऑर्डर दे चुका हूं कि तुम लोग अगर भागो तो वो तुम्हें शूट कर दें।"

"करोड़ कम लग रहा तो दो करोड़ में सौदा कर लो।"जगमोहन ने कहा।

"बहुत नोट हैं तेरे पास।"

"बस काम ही चलता है।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा--- "अब तो माल खाली होने के कगार पर है।"

मेजर कमलजीत सिंह मुस्कुराकर जगमोहन को देखने लगा।

होंठ सिकोड़े देवराज चौहान टैंट में बिछी चारपाई पर जा बैठा।

"मेजर, तुम सरदार हो और मैंने सिगरेट लगानी है।" देवराज चौहान बोला--- "ना लगाऊं?"

"टैंट से बाहर जाकर लगा ले। जब खत्म हो जाए तो भीतर आ जाना।" मेजर कमलजीत सिंह ने कहा।

देवराज चौहान भीतर, वहीं पर बैठा रहा।

भुल्ले खान भी चारपाई पर जा बैठा। वो चुपचाप-सा था।

जगमोहन टेबल के पास पड़ी खाली कुर्सी पर जा बैठा।

मेजर कमलजीत सिंह ने मुर्गा रखकर गिलास उठा लिया।

"तुम्हें हमारे आने की, हमारे नामों की पहले ही खबर थी।" देवराज चौहान ने कहा।

मेजर ने सिर हिला दिया।

"किसने दी खबर?"

"ये नहीं बताया जा सकता।" मेजर कमलजीत सिंह ने कहा।

"अब तुम्हारे इरादे क्या हैं?"

"इरादे?" मेजर ने गिलास रख दिया।

"हां, इरादे। जिस तरह तुमने हमें पकड़ा, यहां लाए। उसके बाद हमारे बंधन नहीं खोलने चाहिए थे, परंतु तुमने खोल दिए। तुमने कोई भी सख्त व्यवहार हमारे साथ नहीं किया।" देवराज चौहान बोला।

"वहम में मत रहना। मेरा सख्त व्यवहार ना ही देखो तो अच्छा है।" मेजर ने शांत स्वर में कहा--- "वैसे हो तो तुम डकैती मास्टर। पैसा लूटते हो, परंतु मैंने सुना है कि तुमने पाकिस्तान जाकर अली को मारा तो उसके बाद संगठन की कमान उसके भाई हामिद अली ने संभाल ली। हामिद अली तुम्हें मारकर अपने भाई की मौत का बदला भी लेना चाहता है, तुम्हें मारने के लिए वो हिन्दुस्तान भी गया था।"

"हां।"

"अली का तुमसे क्या झगड़ा हुआ था जो तुम्हें पाकिस्तान जाना पड़ा?"

"इन बातों का जवाब देना जरूरी है?" देवराज चौहान ने कहा।

"कोई जरूरी नहीं।" मेजर ने घूंट भरते सोच भरे स्वर में कहा--- "मैं तुम्हें पुलिस के हवाले करने जा रहा हूं।"

"कर दो।"

"तुम्हें हाथ आया पाकर, पुलिस को बहुत खुशी होगी।" मेजर मुस्कुराया।

देवराज चौहान मुस्कुराया। परंतु चुप रहा।

"दो करोड़ हाथ से गंवा रहे हो। ढाई ले लेना।" जगमोहन मुस्कुराया।

"तुम चुप रहो। मुझे डकैती मास्टर देवराज चौहान से बात करने दो।" मेजर ने सामान्य स्वर में कहा।

जगमोहन ने फिर कुछ नहीं कहा।

"मेरा काम करके तुम खुद को बचा सकते हो।" मेजर ने शांत स्वर में कहा।

"कैसा काम?"

"जब मुझे किसी ने बताया कि हिन्दुस्तान का डकैती मास्टर देवराज चौहान, पाकिस्तान के इस्लामाबाद में किसी दोस्त की बहन की शादी में गया है, वसीम राणा की बहन की शादी में, तो तभी से ही मैंने प्रोग्राम तय कर लिया था कि मैंने अब आगे क्या करना है। तुम्हारे बारे में बीते चार दिन से खबरें मुझे मिल रही थी। ये भी कि तुम वापस आने वाले हो तो मैंने ही तुम्हारी वापसी का प्रोग्राम बनाया कि तुम्हें इस रास्ते से सीमा पार कराई जाए।"

"अहमद खान।" भुल्ले खान के होंठों से निकला--- "मेजर तुम्हें ये सारी खबर अहमद खान ने दी।"

मेजर ने भुल्ले खान को देखा फिर देवराज चौहान से बोला।

"अब तुम मेरे प्लान के मुताबिक मेरे हाथों में हो। तुम फंस चुके हो। इधर मेरा एक काम पाकिस्तान में बहुत बुरी तरह से फंस गया है कि उसे लेकर मैं चिंता में हूं। मेरे उस काम को अब तुम जैसा ही आदमी पूरा कर सकता है। डकैती मास्टर देवराज चौहान अगर चाहे तो ये काम जरूर कर सकता है। अपने जवानों को उस पार भेजने का खतरा अब और नहीं ले सकता। अगर तुम मेरा काम करते हो तो तुम्हें आजाद कर दूंगा। पुलिस के हवाले नहीं करूंगा।"

"अपने काम की खातिर ही तुमने हमें पकड़ा।"

"हां। वरना हम मिलिट्री वालों को देवराज चौहान में कोई दिलचस्पी नहीं है।" मेजर ने अपना गिलास खाली कर दिया।

"काम बोलो।"

मेजर ने वहां खड़े सैनिक से कहा।

"इन तीनों के लिए खाली गिलास लाओ।"

सैनिक जाने लगा तो जगमोहन बोला।

"मेरे लिए मत लाना। मैं नहीं पीता।"

"मैं भी नहीं पीता।" भुल्ले खान ने कहा--- "पर कभी-कभी पी लेता हूं। आज नहीं पिऊंगा।"

सैनिक बाहर चला गया। तुरंत ही वो गिलास लिए वापस लौटा। गिलास टेबल पर रखा तो मेजर में रम से गिलास तैयार किया और उठाकर देवराज चौहान के पास पहुंचकर बोला।

"ये तुम्हारा है।"

देवराज चौहान ने गिलास लिया। घूंट भरा।

मेजर वापस कुर्सी पर बैठते हुए कह उठा।

"अभी सब कुछ जानना चाहोगे या नींद लेना चाहोगे। रात बीती जा रही है।"

"काम के दौरान मैं रात-दिन की परवाह नहीं करता। तुम्हें जो कहना है कहो।" देवराज चौहान बोला।

"मुझे ऊपर से आर्डर मिले कि छः बेहतरीन सैनिकों की छंटाई करके, एक दल बनाया जाए और उसे गोरिल्ला दल का नाम दिया जाए। मैंने ऐसा ही किया और तीन दिन में मैंने अपने छः बेहतरीन सैनिक छांटकर गोरिल्ला दल तैयार कर लिया। उसके बाद ऊपर से मिलिट्री के दो बड़े अधिकारी आये और गोरिल्ला दल को बताया गया कि उन्हें पाकिस्तान के इस्लामाबाद मिलिट्री एरिया के बीच घुसना है और रूम नंबर सोलह की अलमारी में रखी काले रंग की फाइल को उड़ा लाना है। फाइल में मौजूद कागजों का बंडल बनाकर जेब में रखना है और वापस आ जाना है। कहने को तो ये बात बेहद साधारण थी परंतु बेहद खतरनाक काम था ये। दूसरे देश की मिलिट्री एरिया में घुसकर वहां से कागजों को निकाल लाना मौत को दावत देने जैसा था। ये काम किसी बेहतरीन जासूस के लिए ही मुनासिब था, परंतु इस काम को अब गोरिल्ला दल के छः सदस्यों को करना था।"

"क्या है उस फाइल में?"

"हिन्दुस्तान के खिलाफ साजिश। बड़े अधिकारियों के पास पक्की खबर आई कि पाकिस्तान हिन्दुस्तान पर चोरी छिपे एक ओर हमले की तैयारी करने में लगा है और उस फाइल में हमले की रूपरेखा तैयार है। साथ ही वो कुछ ऐसे आतंकवादी लोगों को दिल्ली तक पहुंचाने की चेष्टा में है, जो दिल्ली के बड़े नेताओं की हत्या करें। हम उन कागजों को हासिल करके दुनिया के सामने पाकिस्तान की 'पोल' खोलना चाहते थे। यही वजह थी कि छः बेहतरीन सैनिकों को तैयार करके उन्हें गोरिल्ला दल का नाम दिया गया। उन्हें पाकिस्तान भेज दिया गया। गोरिल्ला दल के सदस्यों पर निगाह रखने के लिए हमने तीन अन्य सैनिक, दल के पीछे भेजे, ताकि हमें खबर मिलती रहे कि वो अपने काम को लेकर किस स्थिति में है। गोरिल्ला दल इस्लामाबाद पहुंचा। वहां स्थित में एजेंटों से मिला। पन्द्रह दिन रेकी करने के बाद उन्होंने अपना प्लान तैयार किया और आधी रात को वे सब मिलिट्री के उस छोटे से ठिकाने पर जा पहुंचे। वहां क्या हुआ। कैसे हुआ, कोई खबर नहीं है, परंतु छः में से गोरिल्ला दल के दो मेंबर ही बाहर निकल सके। बाकी चार मारे गए। वहां देर तक फायरिंग चली थी। उसी शाम मुझे अजीत नाम के गोरिल्ला का पाकिस्तान से फोन आया था कि चार लोग मारे गए, परंतु वे कामयाब रहे। फाइल उन्हें मिल गई है। वे किसी भी वक्त वापस आ सकते हैं। ये बुरी खबर भी थी और अच्छी खबर भी थी। मेरे चार बेहतरीन सैनिक पाकिस्तान की जमीन पर मारे गए थे लेकिन ये अच्छा रहा कि वे सफल हो गए। मैं उनकी वापसी का इंतजार करने लगा कि अगले दिन, उन तीन सैनिकों, जो कि उन पर नजर रख रहे थे, उनमें से एक का फोन आया कि दोपहर में अजीत की लाश मिली है। किसी ने उसे मार दिया और उसके पास कोई कागज नहीं है। ये बुरी खबर थी। गोरिल्ला दल खत्म हो गया था। पांच गोरिल्ला मारे गए थे अब एक ही गोरिल्ला बचा था। उसी रात उन तीनों सैनिकों में से एक का फोन आया कि किसी ने उसके दोनों साथियों को शूट कर दिया है। वो भी अपने को खतरे में महसूस कर रहा है। इतनी दूर बैठकर हम हालात को ठीक से समझ नहीं पा रहे थे कि इस्लामाबाद में क्या हो रहा है। कौन हमारे लोगों को मार रहा है। हमारी सारी आशा उस आखिरी बचे गोरिल्ला पर ही थी। जिन कागजों के लिए ये खेल खेला गया, वो शायद उसके पास सुरक्षित हों। वो हमारी तरफ ही आ रहा हो। हमने इस्लामाबाद स्थित अपने एजेंटों को अलर्ट किया कि वो इस मामले पर नजर रखे। वहां क्या चल रहा था हमें कोई खबर नहीं थी। तीसरे दिन आखिरी गोरिल्ला का फोन आया। उसने बताया कि वो सारे कागज उसके पास सुरक्षित हैं। परंतु वो खतरे में है और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी I.S.I. और मिलिट्री के एजेंटों से बचता फिर रहा है और वापस आने की कोशिश कर रहा है। मैंने उसे कहा कि उसे जो अपने एजेंटों के पते दे रखे हैं, उनसे संपर्क करे। परंतु ज्यादा बात नहीं हो पाई। संपर्क टूट गया।"

मेजर ने अपना नया गिलास तैयार किया।

देवराज चौहान का आधा भरा गिलास हाथ में था।

जगमोहन और भुल्ले खान गंभीर से बैठे थे।

"फिर?" देवराज चौहान ने घूंट भरा--- "उसके बाद...?"

"उसके बाद लोकल एजेंट इस्लामबाद वालों ने खबर दी कि आखिरी बचा गोरिल्ला मिलिट्री वालों के हाथों में पड़ गया है। उसे बंदी बना लिया गया है, परंतु उसके पास से वो कागज बरामद नहीं हुए वो महत्वपूर्ण कागज या तो उसने किसी को रखने के लिए दिए हैं या कहीं छुपा दिए हैं। हमें इस बात का कुछ भी पता नहीं है। यही वो वक्त था जब तुम्हारे इस्लामाबाद जाने का पता चला तो मैंने सोचा कि ये काम अब तुमसे लिया जा सकता है।"

"मैं क्या कर सकता हूं।" देवराज चौहान ने कहा।

"अभी तक, गोरिल्ला ने अपना मुंह नहीं खोला उन कागजों के बारे में। उसने पाकिस्तान के अधिकारियों को नहीं बताया कि वो कागज उसने कहां रखे हैं। हमारे एजेंटों ने भीतर की यही खबर हमें दी है। संभव है कि आने वाले दिनों में वो यातनाओं के आगे मुंह बंद ना रख सके और बता दे इस वक्त वो मिलिट्री हैडक्वार्टर में कैद है।"

"क्या वो जानते हैं कि वो हिन्दुस्तानी मिलिट्री का आदमी है?"

"इस बारे में मुझे खबर नहीं।" मेजर ने गंभीर स्वर में कहा--- "मैं चाहता हूं कि हालात और बिगड़ें इससे पहले ही तुम इस्लामाबाद पहुंचो और गोरिल्ला को वहां से निकालो और उससे कागज हासिल करो। उसके साथ वापस हम तक पहुंच जाओ। वक्त बहुत कीमती है। हमें वो कागज और आखिरी बचा गोरिल्ला चाहिए।"

देवराज चौहान ने घूंट भरा। चुप रहा।

"ये काम करोगे देवराज चौहान?" मेजर ने गंभीर स्वर में पूछा।

"काम किया जा सकता है।" जगमोहन बोला--- "पर नोट भी तो खर्चो। ये तो करोड़ों का सौदा है।"

"पैसा एक भी नहीं मिलेगा।" मेजर बोला--- "खर्चा-पानी जरूर मिल जाएगा। परंतु काम का पैसा नहीं दिया जाएगा। हां है तो ठीक, नहीं तो एक घंटे में तुम लोगों को पुलिस के हवाले कर दिया जाएगा।"

"तुम्हारा मतलब कि पूरी तरह मुफ्त में?" जगमोहन कह उठा।

"हिन्दुस्तानी हो ना तुम।" मेजर बोला।

"पूरी तरह।" जगमोहन ने उसे देखा।

"तो पैसा बहुत कमा लिया होगा, अब देश के लिए भी कोई काम कर दो।"

"वो तो हम कभी-कभी करते ही रहते हैं। परंतु तुम ही सोचो कि तुम्हारा गोरिल्ला पाकिस्तान के इस्लामाबाद शहर के मिलिट्री हैडक्वार्टर में बंदी है। उसे वहां से निकालना कोई मजाक तो है नहीं। हमारी जान भी जा सकती है।"

"काम बिना पैसे के ही करना होगा।" मेजर बोला।

"ये तो गलत बात है।"

"गलत बात तो तब होगी जब तुम लोग पुलिस के हाथों में पहुंच जाओगे।"

"तुम तो ब्लैकमेल वाला सिस्टम चला रहे हो।"

मेजर ने देवराज चौहान को देखा, जो कि गहरी सोच में डूबा दिखा।

"मेजर साहब कुछ तो...।"

"तुम जानते हो सीमा पार करना इस प्रकार कितना बड़ा जुर्म है। इसी जुर्म के लिए सारी उम्र के लिए जेल हो सकती है। ऊपर से डकैती जैसे काम करते हो। पुलिस ने पाकिस्तानी जासूस होने का इल्जाम भी तुम पर लगा देना है। परंतु मैं इन सब बातों से तुम्हें बचाता, एक नया रास्ता दिखा रहा हूं।"

"वो तो तुम अपना मतलब साध रहे हो।"

"मेरी बात मानने में तुम्हारा मतलब भी निकलता है। आजाद रहोगे।"

जगमोहन कुछ कहने लगा कि भुल्ले खान कह उठा।

"मेजर साहब ठीक कह रहे हैं।"

"तो तुम्हें मेजर साहब की बात समझ में आ गई?" जगमोहन ने भुल्ले को घूरा।

भुल्ले ने कुछ नहीं कहा।

"तू सोच रहा है कि इस तरह पाकिस्तान पहुंच जाएगा और जान छूटेगी तेरी।" जगमोहन ने कहा।

"तेरे को क्या पता कि मेरे दिमाग में क्या चल रहा है।" भुल्ले खान ने गंभीर स्वर में कहा।

"क्या चल रहा है?"

भुल्ले खान चुप रहा।

"कहो देवराज चौहान।" मेजर बोला--- "मेरा ये काम करोगे या जेल जाना पसंद करोगे?"

"उस गोरिल्ला का नाम क्या है?"

"कैप्टन रंजन गुलाटी।"

"कहां का रहने वाला है वो?"

"दिल्ली का।"

"मुझे उसकी तस्वीर दिखा देना।"

"तो तुम मेरा ये काम करने को तैयार हो?" मेजर कमलजीत सिंह मुस्कुरा पड़ा।

"हां। इस काम में कोई बुराई नहीं। परंतु सफलता का पता नहीं कि आगे क्या होता है।" देवराज चौहान ने कहा।

"मुझे यकीन है कि तुम सफल होओगे। सूबेदार जीत सिंह का कहना है कि तुम मजबूत इंसान हो और इरादे के पक्के हो। तुम जब अली को मारने पाकिस्तान गए थे तो ये बराबर पाकिस्तान से अपने एजेंटों से तुम्हारे बारे में खबरें जान रहा था।" मेजर ने शांत स्वर में कहा--- "परंतु तुम यहां से गए और खिसक भी सकते हो। तुम ऐसा ना कर सको, इसके लिए जमानत के तौर पर मैं तुम्हारे साथी जगमोहन को अपने पास रखूंगा।"

"क्या मतलब?" जगमोहन उखड़ा--- "तुम मुझे अपनी कैद में रखोगे।"

"जरूरी है।"

"तो पाकिस्तान में देवराज चौहान का साथ कौन देगा?"

"मेरे एजेंट, वहां देवराज चौहान से मिलेंगे। वो इसे हर सहायता देंगे।"

"मैं भी देवराज चौहान के साथ जाऊंगा।" जगमोहन ने झुंझलाकर कहा।

मेजर मुस्कुराकर जगमोहन को देखने लगा।

"मेजर।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "यकीन रखो, मैं धोखेबाजी नहीं करूंगा।"

"जगमोहन के बिना क्या तुम्हारा काम नहीं चलता?"

"ये मेरे साथ रहे तो बेहतर होगा।"

"तुम्हारे साथ मेरे बेहतर से बेहतर एजेंट होंगे। परंतु जगमोहन मेरे पास रहेगा। भुल्ले खान को साथ ले जाना चाहो तो बेशक ले जा सकते हो। उस गोरिल्ला को वहां से निकालना बहुत जरूरी काम है। मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता। उसे तुम वहां से निकालोगे। जगमोहन तब तक मेरे पास ही रहेगा।"

"इस्लामाबाद में तुम्हारे एजेंट हैं तो उनसे ये काम क्यों नहीं ले सकते?" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।

"वो खबरों के लेनदेन वाले एजेंट हैं। इस तरह का काम कर पाना उनके बस का नहीं है कि इस्लामाबाद के मिलिट्री हैडक्वार्टर से मेरे गोरिला को उड़ा लें।" मेजर कमलजीत सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा--- "इस काम के लिए देवराज चौहान जैसे शातिर लोगों की जरूरत है।"

"मेरे बिना देवराज चौहान कुछ नहीं कर सकता।" जगमोहन पुनः झल्लाया।

"तुम पुलिस के फंदे में नहीं फंसना चाहोगे जगमोहन।" मेजर ने उसे देखा।

जगमोहन कसमसाकर रह गया।

"देवराज चौहान को इस्लामाबाद में हर सहायता मिलेगी। हथियारों से लेकर आदमियों तक की सहायता। इसके अलावा भी हर तरह की सहायता। वहां देवराज चौहान को तुम्हारी कमी महसूस नहीं होने दी जाएगी।"

"ये तो तुम ज्यादती कर रहे हो मेरे साथ। देवराज चौहान जुबान वाला बंदा है। इसने कहा है तो तुम्हारा काम जरूर करेगा। ये मैदान छोड़कर भागेगा नहीं, मुझे भी इसके साथ जाने दो। तुम्हारा काम बढ़िया ढंग से होगा।"

"जीतसिंह।" मेजर ने कहा--- "गोरिल्ला दल की फाइल लाओ।"

"जी मेजर साहब।" सूबेदार जीत सिंह ने कहा और बाहर निकल गया।

"मैं तुम्हें आखिरी बचे गोरिल्ला यानी कि कैप्टन रंजन गुलाटी की तस्वीर दिखा देता हूं देवराज चौहान।"

"मुझे साथ जाने दो मेजर।" जगमोहन व्याकुल सा कह उठा।

"तुम पुंछ के मिलिट्री बेस में कैद रहोगे। बाहर घूमना चाहोगे तो मेरे दस जवान हर वक्त तुम्हारे साथ रहेंगे। भागने की कोशिश की तो मार दिए जाओगे। कोई रियायत नहीं मिलेगी। समझदारी इसी में है कि तुम आराम से मेरे कैदी बन कर रहो। देवराज चौहान जब काम करके वापस आ जाएगा तो तुम्हें आजाद कर दिया जाएगा।"

"अगर काम पूरा ना हो सका तो तब क्या होगा?" जगमोहन कह उठा।

"तब।" मेजर सोच भरे स्वर में बोला--- "मेरे एजेंट मुझे इस बात के बारे में बताएंगे कि देवराज चौहान ने काम पूरा करने की कोशिश की या नहीं। अगर इसने ईमानदारी से कोशिश की होगी तो तब भी तुम्हें छोड़ दिया जाएगा।"

"अगर मैं तुम्हें गारंटी दूं कि मुझे साथ जाने दो। तुम्हारा काम पूरा हो जाएगा तो?" जगमोहन ने कहा।

"मुझे तुम्हारे गारंटी की जरूरत नहीं। ये काम देवराज चौहान करेगा।" मेजर गंभीर स्वर में बोला।

"तुम तो कहीं पर भी हाथ रखने नहीं दे रहे।"

तभी खामोश बैठा भुल्ले खान बोल पड़ा।

"मेरा क्या होगा?"

"तुम मेरे साथ जाओगे।" देवराज चौहान ने कहा।

"तुम।" जगमोहन ने मेजर से कहा--- "भुल्ले खान को क्यों नहीं जमानत के तौर पर रख लेते?"

"मैं नहीं रहूंगा।" भुल्ले खान ने फौरन ऐतराज जताया।

"जमानती के रूप में तुम्हें रखने पर, देवराज चौहान ये काम गंभीरता से पूरा करने की कोशिश करेगा। अगर चौहान ने जानबूझकर ये काम बिगाड़ने की चेष्टा की तो तुम्हें शूट कर दिया जाएगा।" मेजर का स्वर कठोर हो गया--- "कान खोल कर सुन लो देवराज चौहान, तुम्हें ये काम जगमोहन की खातिर हर हाल में पूरा करना है। मेरे एजेंट मुझे बता देंगे कि तुमने ठीक से इस काम को पूरा करना चाहा कि नहीं। जगमोहन की जान अब तुम्हारे हाथ में है।"

देवराज चौहान का चेहरा गंभीर रहा। कहा कुछ नहीं।

तभी सूबेदार जीत सिंह ने भीतर प्रवेश किया। हाथ में फाइल थाम रखी थी।

फाइल में छः कागज थे। हर कागज पर एक तस्वीर लगी थी और उस पर कुछ लिखा भी हुआ था। मेजर कमलजीत सिंह ने छोटे गोरिल्ला कैप्टन रंजीत गुलाटी की तस्वीर देवराज चौहान को दिखाई।

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भोर का उजाला फैलने के साथ ही देवराज चौहान ने भुल्ले खान के साथ वापस सीमा पार की और पाकिस्तान की जमीन पर प्रवेश कर गए। वातावरण में ठंडक व्याप्त थी। रात भर जागने के कारण दिन का उजाला आंखों को परेशान करने लगा था। आंखों में जलन उठनी आरंभ हो गई थी। देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता थी। उसे जगमोहन का ख्याल रह-रहकर आ रहा था, जो कि मेजर कमलजीत सिंह की कैद में पुंछ के मिलिट्री एरिया में उसकी आंखों के सामने जवानों के साथ रवाना कर दिया गया था। मेजर ने उसे इस्लामाबाद के एजेंटों के फोन नंबर लिख कर दे दिए थे कि किसी को भी या सबको, अपने काम में इस्तेमाल कर सकता है। इनसे संपर्क बनाने के लिए कोडवर्ड 'गोरिल्ला' रखा गया था कि गोरिल्ला सुनते ही वो उसे फौरन पहचान जाएंगे और भी जरूरत की कई बातें मेजर ने देवराज चौहान को बता दी थी। मेजर, सूबेदार जीत सिंह और चार जवान इन्हें सीमा तक छोड़ने आए थे और मेजर ने बातों के दौरान देवराज चौहान पर दबाव बनाए रखा कि काम पूरा जरूर करे। देवराज चौहान भी मिलिट्री से वास्ता रखते इस काम पर गंभीरता से सोच रहा था। वो जानता था कि पाकिस्तानी मिलिट्री हैडक्वार्टर से गोरिल्ला को बाहर निकाल लाना आसान बात नहीं थी। ढेरों तरह की मुश्किलें आनी थी। देवराज चौहान ने अंत में मेजर से इतना ही कहा कि जगमोहन का पूरा ध्यान रखे, उसे कोई तकलीफ ना हो।

इधर भुल्ले खान का दिमाग पागल हुआ था। ये ठीक था कि उसे हिन्दुस्तानी मिलिट्री के हाथों से निकल आने पर खुशी थी, परंतु आज से पहले कभी ऐसा ना हुआ था कि वो फंस जाए। सारा किया-धरा अहमद खान का था। कहने को उसका चचेरा भाई था परंतु काम दुश्मनों जैसा किया। भुल्ले खान का खून खौल रहा था। जगमोहन के फंस जाने का दोषी भी वो खुद को मान रहा था। काम तो उसका था, इन दोनों को सीमा पार कराकर पुंछ इलाके में पहुंचाना था। अहमद खान तो यूं ही साथ चल पड़ा था। अब उसे क्या पता था कि अहमद खान के मन में क्या चल रहा है। उसके मुंह से ही अहमद खान ने जाना था कि वो हिन्दुस्तान के डकैती मास्टर देवराज चौहान को सीमा पार से लाया है और कुछ दिन बाद उसे वापस भी पहुंचाना है। अहमद खान ने उसे भी हिन्दुस्तानी मिलिट्री के हाथों में फंसा दिया। इसी बात पर सुलग रहा था भुल्ले खान।

"साले ने जिंदा रहने वाला कोई काम नहीं किया है।" भुल्ले खान बड़बड़ा उठा।

"क्या कहा?" दो कदम पीछे चलते देवराज चौहान ने कहा।

"उस कमीने अहमद खान को याद कर रहा हूं।"

"वो तुम्हारा भाई?"

"भाड़ में गया भाई। ऐसे भाइयों से तो राह चलते अच्छे।" भुल्ले खान गुर्रा उठा--- "अब दोबारा उसे मेरा भाई मत कहना। उससे तो दुश्मन भी अच्छे होते हैं। हरामीने हमारी खबर हिन्दुस्तानी मिलिट्री तक पहुंचा दी। हमारा सारा प्रोग्राम उन्हें बता दिया। मैं उसे इस धंधे में लाया। मेरे से ही सीखा सब कुछ और मेरे पर तलवार चला दी। कमीने को मैं बताऊंगा कि भुल्ले खान भाई का रिश्ता निभाना जानता है तो दगाबाजी की सजा देना भी जानता है।"

"वो तुम्हारा भाई---।"

"भाई मत कहो। ऐसे लोग आसपास रहे तो जिंदगी सुरक्षित नहीं रहती। मुझ पर इस तरह का दोबारा वार भी कर सकता है अहमद। साले का मर जाना ही अच्छा है। जिंदा रहा तो मुसीबत बनेगा मेरे लिए।" भुल्ले खान बहुत गुस्से में दिख रहा था--- "अब तुम ही बताओ कि राणा साहब को मैं क्या मुंह दिखाऊंगा। क्या कहूंगा कि अहमद ने धोखेबाजी कर दी और जगमोहन को हिन्दुस्तानी मिलिट्री के हवाले कर आया हूं और देवराज चौहान मेरी गलती की वजह से मुसीबत में पड़ गया है। मेरी अपनी भी कोई इज्जत है कि नहीं। अहमद की तो ऐसी तैसी। मेरे को हिन्दुस्तानी मिलिट्री पकड़ लेगी तब भी उसने ऐसा किया। उसने सोचा होगा कि दोबारा पाकिस्तान लौटूंगा ही नहीं।"

"इतना गुस्सा करेगा तो ठीक से सोच नहीं पाएगा भुल्ले। मैंने तो तेरे से कोई शिकायत नहीं की।"

"क्योंकि तू जानता है कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं। शिकायत करके होगा भी क्या। सुन भाई देवराज चौहान, भुल्ले खान तेरे से वादा करता है कि तेरे काम में, तेरा साथ देगा।"

दोनों तेजी से उस जंगली-पहाड़ी रास्ते से आगे बढ़े जा रहे थे।

"काम?"

"वही जो हिन्दुस्तानी मेजर ने तेरे को करने को कहा है। गोरिल्ला वाला काम। मेरे से जो गलती अंजाने में हुई, उसकी भरपाई मैं इसी तरह करूंगा। मैं हर कदम पर तेरे साथ रहूंगा।"

"ये काम खतरनाक है।"

"तो क्या मैं खतरनाक नहीं। लोगों को सीमा पार कराता हूं हर तरह के लोग मिलते हैं और उनसे निपटता भी हूं। मैं तेरे काफी काम आ सकता हूं पर पहले तुझे मेरे साथ चलना होगा।"

"किधर?"

"अहमद की तरफ। उसका काम तो निपटा दूं। सांसे लेता रहा वो तो मुझे वापस आया पाकर, और भी तगड़ा झटका देगा, क्योंकि वो समझ जाएगा कि मैं मामला भांप गया हूं। उसका किस्सा खत्म करना जरूरी है, बड़ी बात नहीं कि तेरी खबर वो हामिद अली तक भी पहुंचा दे। ऐसे कमीनों का क्या भरोसा।"

"ठीक है। अब प्रोग्राम क्या है तेरा?"

"कोटली पहुंचकर, होटल में रुकेंगे और नींद लेंगे।" भुल्ले खान ने कहा--- "शाम को इस्लामाबाद के लिए कार पर चल देंगे और कल सुबह इस्लामाबाद पहुंच जाएंगे। पहले मैं अहमद से अपना हिसाब चुकता करूंगा। उसके बाद तुम्हारे साथ गोरिल्ला वाले काम पर लग जाऊंगा। पर पहले अहमद का काम निपटाऊंगा।"

■■■

इस्लामाबाद।

अगले दिन सुबह ग्यारह बजे।

अहमद खान अपने घर से निकला और कार में बैठकर चला ही था कि उसका फोन बज उठा। उसने कार एक तरफ रोकी और फोन पर बात की।

"हैलो।"

"अहमद साहब, आदाब।" दूसरी तरफ से आवाज आई--- "मिजाज कैसे हैं?"

"जनाब आसिफ साहब।" अहमद मुस्कुराया--- "मिजाज बड़े अच्छे हैं। हुक्म दीजिए। इस बार देर से याद किया आपने।"

"काम बहुत है फुर्सत ही नहीं मिलती। पांच लोगों को उस पर भेजना है।"

"कब?"

"तैयारी पूरी है। बेशक आज ही ये काम कर दीजिए।"

"ठीक है। मैं अपने आदमियों से बात करता हूं फिर फोन करूंगा।"

"इस बात का खास ख्याल रखना है कि हिन्दुस्तान के जवान उन्हें पकड़ ना लें।"

"इस बार ऐसा क्या खास हो गया?" अहमद खान हंसा।

"वो कीमती हथियार उस पार ले जा रहे हैं। पकड़े गए तो हथियारों का नुकसान हो जाएगा।"

"समझ गया। मैं उन्हें बढ़िया रास्ते से निकालूंगा कि पकड़े ना जाएं। अपना पैसा मैं हाथों-हाथ लूंगा। मुझे भी अपने लोगों को पैसा देना पड़ता है।"

"वो पांचों जब आपकी बताई जगह पर पहुंचेंगे तो आपको डेढ़ लाख दे देंगे।"

बात खत्म हो गई।

अहमद खान नहीं जानता था कि जब वो घर से निकला तो एक कार तभी उसके पीछे लग गई थी। उसमें देवराज चौहान और भुल्ले खान मौजूद थे। रात भर के लंबे सफर के बाद वो सीधे अहमद खान के घर के बाहर सुबह आठ बजे आ पहुंचे थे और घर पर नजर रखने लगे थे। भुल्ले खान गुस्से से भरा हुआ था। कोटली से ही उसने दो रिवाल्वरों का इंतजाम कर लिया था। एक देवराज चौहान को दी और दूसरी खुद रख ली थी। भुल्ले खान को पक्का पता नहीं था कि अहमद खान घर पर है या नहीं। वो अहमद को फोन करके उसे सतर्क नहीं करना चाहता था। परंतु जब ग्यारह बजे उसने अहमद को घर से बाहर निकलते देखा तो अपनी कार उसकी कार के पीछे लगा दी।

"हरामजादे को अब नहीं छोडूंगा।" भुल्ले खान ने दांत पीसकर कहा।

देवराज चौहान का चेहरा भी कठोर हो गया था।

परंतु दो मिनट बाद ही अहमद खान की कार को सड़क के किनारे रुकते देखा तो भुल्ले खान ने कुछ फासला रखकर, पीछे ही कार रोक दी और सख्त स्वर में बोला।

"वो फोन पर बात कर रहा है।" भुल्ले खान इंजन बंद करता बोला--- "मैं उसे लेकर आता हूं।"

"तुम्हें दिक्कत भी आ सकती है।" देवराज चौहान बोला--- "मैं ले आता हूं।"

"इतना काम तो भुल्ले खान भी कर सकता है।" कहने के साथ ही भुल्ले खान कार से निकला और जेब में रखी रिवाल्वर को थपथपाते अहमद की कार की तरफ बढ़ गया।

जब भुल्ले खान कार के पास पहुंचा तब अहमद की बातचीत खत्म ही हुई थी।

भुल्ले खान ने कार का दरवाजा खोला और अहमद की बगल में जा बैठा।

अहमद की निगाह जब भुल्ले खान पर पड़ी तो उसके चेहरे का रंग फक्क पड़ गया।

"त...तुम?" अहमद खान के होंठों से निकला।

"तू कोटली में रुका क्यों नहीं?" भुल्ले ने सामान्य स्वर में कहा--- "मुझे छोड़कर वापस क्यों चला आया?"

"रु...रु... रूका तो था।"

"शेख से पूछा मैंने तो उसने बताया कि तू नहीं रुका था।"

"मैं... मैं दूसरी जगह रुक गया था। शेख के पास नहीं ठहरा।

"मेरी वापसी का इंतजार क्यों नहीं किया?"

अहमद खान का चेहरा फक्क था।

"किया तो था।"

"रात तूने घर में ही बिताई ना?"

"ह... हां।"

"तो फिर तू कोटली में कहां रुका। सीधा इस्लामाबाद तो आ गया।" भुल्ले ने अहमद को देखा।

अहमद खान ने मुस्कुराने की चेष्टा की। भुल्ले खान को देखा।

"बाहर निकल।"

"बा...बाहर?"

"पीछे मेरी कार खड़ी है। उसमें बैठ।" भुल्ले ने अहमद की आंखों में देखा।

भुल्ले की आंखों में उभरी खतरनाक चमक को पहचान कर अहमद सिहर-सा उठा।

"मुझे बहुत जरूरी काम...।"

"मेरे पास तेरे लिए सबसे जरूरी काम है। निकल और पीछे की कार में...।"

"मैं तेरे से दो घंटे बाद मिलता हूं। तब...।"

भुल्ले ने रिवाल्वर निकाल ली।

अहमद खान रिवाल्वर देखकर कांप उठा।

"तेरे को पता है ना अहमद कि रिवाल्वर जैसी चीज को मैं बहुत कम इस्तेमाल करता हूं।"

"भुल्ले तू...।"

"चूहे-बिल्ली का खेल मेरे साथ मत खेल।" भुल्ले खान का चेहरा सख्त हो गया--- "मैं बच्चा नहीं हूं।"

"ये क्या भुल्ले, मैं... मैं तेरा भाई हूं।"

"और भाई को तूने हिन्दुस्तानी मिलिट्री के हवाले कर...।"

"ये तू क्या कह रहा...।"

"बाहर निकल।" भुल्ले ने रिवाल्वर की नाल अहमद खान की कमर से लगा दी--- "तेरे को पता है कि भुल्ले को जब गोली चलानी होती है तो वो किसी बात की परवाह नहीं करता। अगर तू भागा तो समझ ले मरा।"

अहमद खान ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। भुल्ले को देखता रहा।

"पीछे वाली कार में बैठता है या गोली मारूं?" भुल्ले गुर्रा उठा।

"भुल्ले मैं तेरा भाई...।"

"तू मेरा भाई है तभी तो मैंने गोली नहीं चलाई। कार से बाहर निकल, नहीं तो गोली चल जाएगी।" भुल्ले गुर्रा उठा।

अहमद खान बाहर निकला।

उधर से भुल्ले बाहर निकला। रिवाल्वर जेब में रख ली और कार के साथ घूमकर अहमद खान के पास आ पहुंचा। अहमद डरा सा भुल्ले खान को ही देख रहा था।

"कार की तरफ चल।"

भुल्ले, अहमद को कार के पास ले आया।

तभी आगे का दरवाजा खोलकर देवराज चौहान बाहर निकला।

देवराज चौहान को देखते ही अहमद खान के होश उड़ गए जैसे। वो मुंह खोले देवराज चौहान को देखने लगा। देवराज चौहान के चेहरे पर सख्ती छाई थी। उसने कार का पिछला दरवाजा खोल दिया।

"चल बैठ भीतर।"

"भुल्ले मैं...।" अहमद खान ने घबराए स्वर में कहना चाहा।

"अंदर बैठ, तेरे को मेजर कमलजीत सिंह से मिलवाते हैं।" भुल्ले ने कड़वे स्वर में कहा।

"म...मेजर कमलजीत...।"

तभी देवराज चौहान ने उसकी बांह पकड़ी और पास खींचकर, कार के खुले दरवाजे से भीतर धकेला और खुद भी भीतर बैठकर दरवाजा बंद कर लिया। सड़क पर ट्रैफिक आ-जा रहा था। लेकिन किसी को नहीं पता था कि इधर क्या हो रहा है। भुल्ले ड्राइविंग सीट पर बैठा और कार आगे बढ़ा दी।

अहमद खान का चेहरा पीला पड़ चुका था।

देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ली और अहमद खान से बोला।

"तूने पूछा नहीं कि जगमोहन कहां है?"

अहमद खान सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया।

"तू मेरा चचेरा भाई है।" भुल्ले खान तीखे स्वर में कह उठा--- "मेरा कितना ध्यान रखता है। मुझे हिन्दुस्तानी मिलिट्री के हवाले कर दिया। तूने तो सोचा होगा कि पाकिस्तान में अब मेरी वापसी होने से रही।"

"म...मैंने ऐसा कुछ नहीं सोचा।"

"मेजर कमलजीत सिंह ने हमें अपने पास बिठाया। खिलाया-पिलाया। रम पिलाई। उसके बाद इज्जत से वापस सीमा पार करा दी और तेरा नाम लेकर बताया कि तूने क्या खेल खेला।"

"न...हीं। मेजर मेरा नाम नहीं बता सकता।" अहमद के होंठों से निकला।

"क्यों? नाम क्यों नहीं बता सकता?" भुल्ले खान खतरनाक ढंग से हंसा।

अहमद ने होंठ भींच लिए।

भुल्ले मध्यम गति से कार चलाता बोला।

"बता सारा मामला क्या है। मैं तेरे से जानना चाहता हूं।"

"म... मामला।" अहमद खुद को पूरी तरह फंसा महसूस कर रहा था।

"तुझे अच्छी तरह पता है कि मैं क्या पूछ रहा हूं। मेजर को देवराज चौहान के बारे में तूने क्यों बताया?"

"मैंने नहीं बताया, मैंने तो जीत सिंह से फोन पर यूं ही देवराज चौहान के बारे में बात की थी।"

"सूबेदार जीत सिंह।" भुल्ले बोला--- "क्या बात की?"

"बातों-बातों में उसने बताया था कि हिन्दुस्तान का डकैती मास्टर देवराज चौहान पाकिस्तान में किसी की शादी में आया हुआ है। अगले दिन जीत सिंह का फोन आया कि देवराज चौहान को वापसी पुंछ की तरफ से सीमा पार करा दूं।"

"और तूने ऐसा कर दिया। कितना मिला सूबेदार जीत सिंह से?"

"अभी तक तो कुछ नहीं।" अहमद ने बेचैनी से कहा।

"तेरे को पता था कि उधर वाले मेरे को पकड़ने वाले हैं। फिर भी तूने ये सब किया।"

"मैंने तुझे कितनी बार तो कहा था कि उनके साथ मत जा। पर तू नहीं माना।" अहमद कह उठा।

"तूने मुझे स्पष्ट क्यों नहीं बताया?"

"तेरे को ये बात पसंद नहीं आती कि मैंने देवराज चौहान के बारे में उन्हें बता दिया है।"

"तेरी वजह से भी मैं भी हिन्दुस्तानी मिलिट्री के हाथ लग गया।" भुल्ले खान दांत भींचकर बोला--- "तूने बहुत बड़ी गद्दारी की मेरे साथ। मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि तू मुझे दुश्मन देश के मिलिट्री के हवाले कर देगा।"

"तेरे को रोका तो था।"

"बहुत बड़ा कुत्ता है तू।"

"ऐसा मत कह भुल्ले। आखिर हैं तो हम भाई ही। तू नाराज क्यों होता है।" अहमद समझाने वाले स्वर में कह उठा--- "ये सब मैंने तेरे को फंसाने के लिए तो किया नहीं। मैंने तो---।"

"चुप रह। तेरे पास कहने को कुछ नहीं है।" भुल्ले खान ने कहा।

"इसे कह, मेरे पर से रिवाल्वर हटा ले।" अहमद ने देवराज चौहान को देखा।

"ये बहुत बड़ी बात है कि अभी तक देवराज चौहान ने तेरे को गोली नहीं मारी।"

अहमद, भुल्ले खान की आवाज के भावों को महसूस करके सिहर उठा।

"म...मुझे कहां ले जा रहे हो?" अहमद के होंठों से कांपता स्वर निकला।

एकाएक भुल्ले खान हौले से हंसकर कह उठा।

"तू इतना घबरा क्यों रहा है। हम भाई हैं। जैसे तू मेरा बुरा नहीं चाहता, वैसे ही मैं तेरा बुरा नहीं चाहता।"

"लेकिन-लेकिन मैं।"

"सूबेदार जीतसिंह और मेजर कमलजीत सिंह हमारे साथ पाकिस्तान में आ पहुंचे हैं।"

"क्या, क्यों?" अहमद चौंका।

"उन्हें कुछ काम है। तेरे को उनके पास ही ले जा रहे हैं। सूबेदार जीत सिंह ने तुझे बुलाया है।"

"अच्छा। वो है कहां?"

"उन्हीं जंगलों में, जहां पांच साल पहले हम रिवाल्वर से पक्षियों का निशाना लिया करते थे।"

"वो वहां छिपे हैं?" अहमद उलझन में पड़ गया--- "जगमोहन कहां है?"

"जगमोहन उनके पास ही है। वो अपने किसी काम में हमारी सहायता चाहते हैं।" भुल्ले खान कार चलाते बोला।

अहमद को ये सोचकर राहत मिली कि सब ठीक है।

"ऐसी बात थी तो सुबह ही मुझे फोन कर देते। मैं वहीं पहुंच जाता।" अहमद बोला।

"हम सीधे कोटली से आ रहे हैं। मेजर और सूबेदार को जंगल में छोड़ा और तेरे पास आ पहुंचे कि तुझे घर से बाहर जाते देखा। अब समझा सारी बात।" भुल्ले खान ने सामान्य स्वर में कहा।

"त-तो तूने रिवाल्वर क्यों निकाली मुझे।"

"अब तेरे से ये भी तो जानना था कि तूने क्यों और कहां पर गड़बड़ की। सीधे-सीधे तो तू बताता नहीं।"

अहमद को चैन मिला कि हालात ठीक है।

देवराज चौहान ने उस पर से रिवाल्वर हटाकर जेब में रख ली।

भुल्ले खान एक घंटे बाद कार को घने जंगलों में ले आया था। इस्लामाबाद की सीमा पर मौजूद ये घने और गहरे जंगल थे। इस तरफ लोग कम ही आते थे। इस इलाके से कभी-कभार अक्सर लोगों के कंकाल मिलते थे। किसी की हत्या करने के लिए ये जगह बहुत बेहतर थी।

"वो दिन याद है अहमद, जब हम गोलियां चलाकर पक्षियों का शिकार किया करते थे।" भुल्ले कह उठा।

"हां। कितना मजा आता था।" अहमद मुस्कुराया।

"मुझे वो वक्त हमेशा ही याद रहता आता रहेगा।" भुल्ले खान ने जंगल के भीतर एक जगह कार रोक दी।

"जीत सिंह और वो मेजर कहां है?" अहमद बाहर झांकता कह उठा।

"थोड़ा आगे। यहां से पैदल चलना होगा। कार आगे ले जाने में दिक्कत है।"

तीनों बाहर निकले।

देवराज चौहान महसूस कर चुका था कि जंगल बहुत गहरा है।

"इस तरफ।" भुल्ले खान आगे बढ़ता कह उठा--- "वो लोग इस तरफ है।"

तीनों उसी दिशा में आगे बढ़ गए।

"भुल्ले।" अहमद मुस्कुरा कर बोला--- "आज फिर शिकार करें पक्षियों का। वो दिन ताजा करते हैं। मजा आएगा।"

"आज भी शिकार करेंगे अहमद।" भुल्ले खान ठिठका और रिवाल्वर निकालकर अहमद की तरफ कर दी।

अहमद उसी पल ठिठक गया। रिवाल्वर भुल्ले के हाथ में देखकर आंखें फैल गईं।

देवराज चौहान सतर्क हो गया था।

"ये-ये क्या भुल्ले। तूने तो कहा था कि...।"

"तूने मुझे धोखा देकर बहुत बुरा किया अहमद। तू जिंदा रहा तो मेरे लिए मुसीबतें खड़ी करेगा।" भुल्ले खान गुर्रा उठा।

"नहीं भूले मैं।"

धांय-धांय।

दो गोलियों की आवाजें जंगल में गूंजी और गोलियां अहमद खान की छाती में जा धंसी।

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