यात्रा आरम्भ करने से पूर्व

पिछले दो साल से एक महामारी ने पूरी दुनिया को परेशान कर रखा है। दो साल लोगो ने घरों में काटे हैं, वर्क फ्रॉम होम, लॉक डाउन, सोशल डिस्टेंस, क्वारंटाईन जैसे शब्द सामान्य प्रचलन में आ गए, लोग अपनों से दूर रहे, कितने ही लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए, शायद ही कोई ऐसा बचा था जो इस महामारी के प्रभाव एवं दुष्प्रभावों से अछूता रहा। यह हमारी पीढ़ी द्वारा देखि गयी प्रथम महामारी थी जो वैश्विक स्तर पर विकराल थी और जिससे बचने का कोई स्पष्ट उपाय किसी के पास नहीं था। पिछले समय में अकेलेपन के कारण डिप्रेशन एंजायटी, असुरक्षा, तनाव, मानसिक बीमारियों ने एक बड़ी आबादी को अपनी चपेट में ले लिया था।  एक राज्य से दूसरे राज्य में जाना तो छोड़िये लोग अपने कस्बे, मुहल्ले, शहर में भी घूमने फिरने के लिए प्रतिबंधित थे, राज्य अथवा शहर में जाना तो बॉर्डर पार करने के समान था।
चौराहों पर एम्बुलेंस, पुलिस के सायरन, सेनिटाइजर का छिड़काव करते दानवाकार वाहन और अजीब से यंत्र घूम रहे थे, जिन्हे लोगो ने अब तक केवल साइंस फिक्शन मूवीज में ही देखा थ। पीपीई किट में लिपटे शरीर, काली थैलियों में बंधे मानव देह, अंतिम संस्कार तक को तरसते परिजन, ना जाने कितने ही लोग इस महामारी और भयानक काल में समाप्त हो गए, काल कवलित हो गए।  भयंकर नकारात्मकता के इस माहौल ने सबको बुरी तरह तोड़ कर रख दिया, लेकिन धीरे धीरे ही सही किन्तु वैक्सीन बनने की खबरों ने सकारात्मकता का संचार किया।
ढेरों प्रतिबंध झेलते लोग वैक्सीन की तरफ उम्मीद से देखते, यह टेस्ट वह टेस्ट, कहीं जाओ तो गले से लेकर नाक तक में सलाइयां घुसा कर टेस्ट किये जाते, मतलब पूरी मानवता ऐसी स्थिति में आ चुकी थी जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। धीरे धीरे हालत सामान्य होने लगे, वैक्सीनेशन शुरू हुए और सबसे पहले हम भारतीयों ने सौ करोड़ वैक्सीनेशन करके एक सफल इतिहास रच दिय।  धीरे धीरे दुनिया वापस सामान्य होने लगी, अरसे से घर की चारदीवारी में बंद रहने वाले लोग अब खुली हवा में सांस लेने लगे। आने वाली पीढ़ियां यकीन नहीं करेंगी कि हम उस समय के गवाह रहे हैं जब घूमना तो छोड़िये जॉगिंग करने पर भी लोग अरेस्ट होने लगे थे। घर परिवार से दूर रहने के पश्चात् उनका महत्व समझ में आने लगा। दुनिया सामान्य तो होने लगी थी लेकिन इस दौर ने काफी कुछ बदल कर रख दिया था। सब की तरह मैंने भी दो साल अकेले रहकर काटे हैं, परिवार से वीडियों कॉल के जरिये सम्पर्क में रहता था, हालात यह थे कि अपनी दो वर्षीय बेटी से तक आठ नौ महीनों में एकाध बार मिलता था, धीरे धीरे मिलने का यह अंतराल कम होता गया और तीन महीने अथवा दो महीने पर मिलने लगा किन्तु उसमे भी इंफेक्शन के डर के कारन मै काफी सोच विचार करता था।
इस समय ने सबको बदल कर रख दिया था, वैक्सीनेशन आरम्भ होने के बाद दुनिया अपने अपने कामों पर लगने लगी थी, सबकुछ भूलकर दुनिया फिर चलने लगी। समय कठोर और भावनाशून्य होता है, वह बड़े से बड़ा घाव भर देता है, अब समय था रिकवरी का, मानसिक और शारीरिक रूप से वापस स्वयं को सुचारु करने का, कहीं यात्रा करने से बेहतर उपाय मेरे लिए तो कोई और नहीं था।
मेरा व्यग्तिगत अनुभव हैं मनुष्य के तनाव और अवसाद को कम करने का सबसे सरल उपाय है यात्रा, यात्रा मनुष्य को बदल देती है, यात्रा उसे रिचार्ज कर देती है। फिर मुझे कहां जाना चाहिए था? सोशल मीडया पर ऐसे में मुलाकात हुयी श्याम भाई से जो राजस्थान से थे। फोन नंबर्स का आदान प्रदान हुआ और लम्बी लम्बी बातें होने लगी, यात्रा की योजना बनने लगी। श्याम भाई ने आखिरकार हिमाचल प्रदेश में स्थित कैलाश श्रृंखला में से एक कैलाश श्रीखंड महादेव की योजना बनाई। श्रीखंड कैलाश महादेव जी की कठिनतम यात्राओं में से एक मानी जाती है, जो साल में मात्र पंद्रह बीस दिन के लिए ही खुलती है।
इस यात्रा में नदी, नाले, पहाड़, जंगल, बरसात, बर्फबारी, ऊंचाई,फिसलन,ग्लेशियर, पत्थरीली चढाई जैसे अनेक प्राकृतिक स्वरूपों से भेंट होती है। जिस प्रकार पंच केदार में पांच मंदिरों की श्रृंखला है, उसी प्रकार कैलाश में पांच कैलाश माने जाते हैं, जिनमे कैलाश ( चीन), मणिमहेश, श्रीखंड कैलाश, किन्नर कैलाश ( हिमाचल प्रदेश) और आदिकैलाश ( उत्तराखंड) गिने जाते हैं। हम इस यात्रा हेतु उत्साहित थे और तैयारियों पर चर्चा करने लगे थे। किन्तु हमारी उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब पता चला कि हिमाचल राज्य सरकार ने पिछले वर्ष की भाँती इस वर्ष भी श्रीखंड महादवे यात्रा पर रोक लगा दी है। यह खबर सुनकर पूरा उत्साह ही बैठ गया, अब क्या करे कहाँ जाए? फिर इस योजना पर चर्चा ही बंद हो गई, यात्रा अब पुन: एक साल के लिए आगे बढ़ चुकी थी तो इस साल उसपर चर्चा करके अपना मन खराब करने का कोई मतलब ही नहीं था। फिर जुलाई बीता, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर आया और उत्तराखंड के चारधाम यात्रा को सिमित श्रद्धालुओं की संख्या के साथ अनुमति मिल गयी। उत्तराखंड सदैव से ही मेरा पसंदीदा स्थान रहा है, यहाँ मै अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक सहज रहता हु, तो मैंने पंचकेदार की अपनी अपूर्ण यात्रा को ही पूर्ण करने की योजना बना ली।
पंचकेदार श्रृंखला में पांच मंदिर हैं, केदारनाथ, मद्ममहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर। जिनमे से अब तक मै केदारनाथ दो बार और तुंगनाथ तीन बार जा चुका हूँ। अपने पिछले यात्रा वृतांत 'कण कण केदार' में मैंने अपनी तुंगनाथ यात्रा का सविस्तार से उल्लेख किया है जिसमे मै उसकी ऊपरी चोटी चंद्रशिला तक नहीं पहुँच पाया था, उस समय कपाट भी बंद थे। उसके बाद और एक बार दिसंबर में ही तुंगनाथ जाने का संयोग बना था और भारी बर्फ के कारण आधे मार्ग से लौटना पड़ा तो हम कार्तिक स्वामी चले गए। उसके बाद एक बार और केदारनाथ जाने का संयोग बना और केदारनाथ से फ़ौरन बाद मै तुंगनाथ भी चला गया, तुंगनाथ जी के दर्शन हुए और चंद्रशिला भी सफलतापूर्वक पहुँच गया।
श्रीखंड महादेव की यात्रा बंद होने के बाद मन में यह भय भी था कि कहीं उत्तराखंड कि यात्राएं भी ना बंद हो जाये, यात्राएं बंद थी किन्तु पूरी उम्मीद थी कि शायद दीपावली के एकाध दो महीने पहले खुल जाएँ। यात्रा खुलवाने के लिए राज्य सरकार अपना पूर्ण प्रयास कर रही थी, और अंतत वह दिन भी आ गया जब आधिकारिक रूप से चार धाम यात्रा खोलने का आदेश आ गया। लेकिन अभी ठीक से खुश भी नहीं हुए थे कि पता चला यात्रा सिमित श्रद्धालु संख्या के साथ ही होगी, चारों धाम के लिए श्रद्धालुवों की संख्या सिमित कर दी गयी थी।
केदारनाथ के लिए प्रतिदिन हजार श्रद्धालुओं की संख्या सुनिश्चित की गयी। अब इसमें हुआ यह कि चारधाम देवस्थानम बोर्ड की वेबसाइट पर यात्री रजिस्ट्रेशन के लिए जब पहुंचे तब देखा कि महीने भर के रजिस्ट्रेशन समाप्त हो चुके थे, अर्थात महीना भर के यात्रियों का कोटा पूर्ण हो चुका था, जिस कारण नए आवेदन अब एक महीने बाद ही खुलने थे। मन खराब हो गया, लेकिन फिर सोचा चलो कोई बात नहीं, केदारनाथ नहीं जाएंगे बाकी के केदार कर लेता हूँ, वहाँ अलग से रजिस्ट्रेशन की कोई आवश्यकता नहीं थी।  बस देहरादून स्मार्ट सिटी पोर्टल की वेबसाइट पर ई पास बनाना अनिवार्य था। ई पास बनाने के लिए वेबसाइट में फॉर्म भरने लगा तो वहां आपका गंतव्य स्थान, गंतव्य की ग्रामपंचायत की डिटेल्स, पिनकोड, जहां रुकने वाले हैं वहाँ का पता, आने का कारण, यदि होटल में रुक रहे हैं तो बुकिंग रसीद अपलोड कीजिए। आरटीपीसीआर या दो वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट भी अपलोड कीजिए। चूँकि मै मुंबई से आ रहा था और उस समय महाराष्ट्रा कोविड के मामलों में रिकॉर्ड तोड़ रहा था तो हमारे लिए दो डोस सर्टिफिकेट के अलावा आरटीपीसीआर भी आवश्यक था। फॉर्म में इतनी माथापच्ची देखकर मन खराब हो गया, इससे सरल तो पासपोर्ट का फॉर्म होता है, यह सोच कर मै खीज गया।
फिर श्याम भाई का फोन आया, श्याम जी से मेरी मुलाकात सोशल मीडिया पर एक घुमक्कड़ ग्रुप के जरिये हुयी थी। श्याम जी राजस्थान से थे और हमारी अक्सर यात्राओं को लेकर फोन पर लम्बी लम्बी बाते होती रहती हैं। मैंने पंचकेदार की योजना बतायी किन्तु उन्होंने असमर्थता जाहिर कर दी क्योकि वे बाइक पर जा रहे थे, सपत्नीक। तो मेरा उनके साथ आना सम्भव नहीं था, वे खेद व्यक्त करते रहे तो मैंने समझाया कि इतना अफ़सोस करने की जरूरत नहीं है, आप जाइये हम फिर कभी किसी यात्रा में साथ होंगे, फिलहाल ईश्वर की यही इच्छा है तो यही सही। अब मै अकेला था, हालांकि यात्री संख्या सिमित होने के कारण मन अब भी असमंजस में था, कुछ दिन ऐसे ही बीत गए, मैंने फिर कुछ सोचकर टिकट बुक कर दिया कि यदि बिच में यात्री संख्या में इजाफा हुआ तो चला जाऊंगा, लेकिन ई पास वाली दिक्कत अभी भी थी, उसकी इतनी फॉर्मेलिटीज देख कर ही भरना असम्भव लग रहा था। 
मैंने फिर भी प्रतीक्षा करना ही उचित समझा, इसी बिच एक ट्रेवल ग्रुप से एक युवक से सम्पर्क हुआ जो रूपकुंड जाने की योजना बना रहा था, उसे किसी साथी की आवश्यकता थी। अब मै तो पंचकेदार नहीं जा रहा था, और कहीं ना कहीं जाने का मन था तो मैंने इच्छा जताई, इनबॉक्स में एकदूसरे के नंबर्स शेयर हुए और योजना बनी, लेकिन मन अब भी बेचैन था।
ऐसा नहीं था कि मुझे रूपकुंड में दिलचस्पी नहीं थी, रूपकुंड अत्यंत ऊंचाई पर स्थित एक झील है, जहां रहस्यमयी ढंग से मनुष्यो के कंकाल मिलते हैं, उन कंकालों के विषय में अनेक कहानियां है, रूपकुंड हाई एल्टीट्यूड ट्रेक है, शायद दो दिन लगते है करने में, और इस दौरान खुद का टेंट, स्लीपिंग बैग इत्यादि भी चाहिए होते है। बिच में सुना था कि बुग्यालों के संरक्षण हेतु उत्तराखंड सरकार ने रूपकुंड में कैम्पिंग वगैरह बैन कर दिया था। खैर मुझे ज्यादा जानकारी नहीं थी, कोई और समय होता तो मुझे रूपकुंड जाने में खासी दिलचस्पी होती किन्तु अब दीपावली महीनाभर पर थी, दीपावली तक सारे चारधाम और पंचकेदार कपाट बंद हो जाते हैं (कल्पेश्वर को छोड़ कर ) फिर छह महीने बाद ही खुलते है, इस बार यात्रा से चुकने का अर्थ था छह सात महीने की और प्रतीक्षा और मुझमे अब उतना धैर्य नहीं बचा था।
दो अक्टूबर की टिकट थी, और तीस सितंबर हो रहा था मुझे निर्णय लेना था। मैंने सामने वाले युवक से क्षमा मांगी और रूपकुंड आने में असमर्थता व्यक्त कर दी। और एक तारीख को अपनी टिकट कैंसल कर दी और अपने आप को ईश्वर की मर्जी पर छोड़ दिया। इसी बिच श्याम भाई अपनी यात्राओं पर निकल पड़े थे और तस्वीरें भेज रहे थे, उनकी तस्वीरें देख देख कर मन और बेचैन होने लगा था, किन्तु अभी भी स्थिति एकदम अनिश्चित थी। और इसी बिच चार धाम यात्रियों की संख्या पर लगी हुयी रोक भी हटा दी गयी, अब उम्मीद जगी, मैंने फ़ौरन ऑफिस में दस दिन की छुट्टी अप्लाई कर दी। लोगो को पता चल गया कि मै उत्तराखंड की यात्रा पर जा रहा हूँ, ऑफिस के ही एक सहकर्मी वसंत ने केदारनाथ जाने की इच्छा दिखाई, और मेरे साथ चलने का प्रस्ताव रखा। मै अकेला यात्रा करने वाला व्यक्ति हूँ, इसलिए मै जल्दी अपनी जिम्मेदारी पर किसी को ले जाने से कतराता हूँ, क्योकि मेरी योजना एकदम मन मौजी होती है, मै कभी भी कहीं भी निकल सकता हूँ, मैंने वसंत को समझाया भी।
"मेरी योजना में केदारनाथ प्रायोरिटी में नहीं है, मै दो बार केदारनाथ जा चुका हूँ, मुझे पंचकेदार करने हैं, रुद्रनाथ के कपाट बंद हो चुके है इसलिए मै मदमहेश्वर, तुंगनाथ जाऊँगा और वापसी में केदारनाथ होते हुए आऊंगा।" मैंने समझाया।
"ठीक है, मै भी इसी पैटर्न पर चलूँगा। कर लूंगा।" वसंत ने कहा। मैंने उसे देखा, वह समझ नहीं रहा था। उसे लग रहा था यह यात्राएं हंसी मजाक है जो वह पहली बार में ही तीन केदार कर लेगा, मैंने उसे समझाया।
"भाई तीनों केदार हाई एल्टीट्यूड पर हैं, हाई एल्टीट्यूड की अपनी समस्याएं होती हैं, यहाँ थकान जल्दी लगती है, सांस फूलती है, रक्तचाप भी बढ़ जाता है। ठीक से एक्लेमटाइज ना हो तो शरीर साथ नहीं देता, सिरदर्द, थकान, इल्यूजन से लेकर हार्ट अटैक तक की समस्या आती है अगर हम ठीक से तैयारी ना करें तो। दूसरे यहाँ की ठंड अत्यधिक जबरदस्त होती है, अगर तुम्हे लगता है मामूली जैकेट या स्वेट शर्ट से काम चल जायेगा तो मुश्किल है। तीसरी बात, मै फक्कड़ किस्म का यात्री हूँ, घुमक्क्ड़ी में कभी भी लग्जरी की उम्मीद नहीं करता, जो मिला खा लेता हूँ, जहां जगह मिली रह लेता हूँ। घुमक्क्ड़ी ही मेरा मुख्य उद्देश्य होती और उसी पर ध्यान देता हूँ, दिखावा, शो ऑफ़ यह सब मुझ से नहीं होता।" मैंने बताया।
"हाँ मैं भी यह सब कर लूंगा, जॉगिंग करूंगा, एक्सरसाइज करूंगा। मै भी पहाड़ी हूँ, मेरा गाँव महाबलेश्वर है, वह भी पहाड़ है। वहाँ भी ठंड पड़ती है, कभी कभार बर्फ भी पड़ती है।" वसंत ने कहा तो मैंने माथा पिट लिया।
"भाई सबसे पहली बात माथेरान में बर्फ गिर ही नहीं सकती, वह ओले होते है जो कभी कभार गिरते हैं, उसे स्नोफॉल नहीं बोलते। और जितना टेम्प्रेचर महाबलेश्वर में रातों को अथवा सर्दियों में होता है उतना तापमान हिमालयीन क्षेत्रों में दोपहर में होता है। माइनस तापमान से अभी तुम्हारा पाला नहीं पड़ा है इसलिए हल्के में ले रहे हो। रही बात पहाड़ो में रहने की तो भाई महाबलेश्वर और गढ़वाल के पहाड़ों में बहुत ज्यादा फर्क है, उनकी तुलना मत करो, महाराष्ट्रा का सबसे ऊंचा शिखर है कलसुबाई जो पंद्रह सौ फ़ीट की ऊंचाई पर है। और हमारी यात्रा का आरम्भ ही दो हजार फुट की ऊंचाई से होगा, देवप्रयाग संगम ही कलसुबाई से पांच सौ फ़ीट ऊंचा है, अब कल्पना कर लो और मुख्य बात मुझे अपनी यात्रा में विघ्न पसंद नहीं, तुम पहली बार जा रहे हो तकलीफें होंगी लेकिन उन तकलीफों की वजह से मैं अपनी योजनाओ को बिगड़ता नहीं देख सकता। तुम केवल केदारनाथ चले जाओ, मै सोनप्रयाग तक पहुंचा दूंगा, उसके बाद अपना देख लेना। मै मदमहेश्वर और तुंगनाथ से वापसी के समय तुम्हे साथ लेते आऊंगा।" मैंने बताया तो वसंत मान गया कि ठीक है यही सही लेकिन मै चलूँगा।
अब मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था ज्यादा ना-नुकुर कैसे करता। मैंने टिकट चेक किया, चेयर कार उपलब्ध थी। मुझे चेयर पर बैठ कर यात्रा करने में कोई समस्या नहीं थी लेकिन वसंत ने कभी छह घंटे से अधिक ट्रेन का सफर नहीं किया था, उसके लिए चौबीस घंटे से ऊपर का सफर वह भी चेयर पर लगभग मुश्किल था। दूसरे उसे उसी हाल में आगे भी लम्बी लम्बी बस यात्राएं करनी थी। वह मार्ग में ही थक जाता तो ट्रेकिंग करने के लिए क्या ऊर्जा बचती? उपर से मुझे दिल्ली एक काम था और मै इनकी वजह से दिल्ली की योजना नहीं बदल सकता था। वाया दिल्ली गरीब रथ की टिकट मिल गयी, मैंने बिना क्षण गंवाए दो टिकट्स बुक कर दिए। फिर मुझे याद आया वसंत का एक ही डोस हुआ है, दूसरी वैक्सीनेशन में समय था, मैंने उसे आरटीपीसीआर रिपोर्ट के लिए कह दिया कि जाने से पहले बनवा लें। अब सब ठीक था, 27 अक्टूबर की टिकट हो चुकी थी, उसने भी छुट्टी के लिए आवेदन दिया और स्वीकार भी हो गया।
***
खर्चे का लेखा जोखा
अगले दिन वसंत ने मेरे पास आकर कहा कि उसका एक मित्र और है जो यात्रा में आना चाहता है, यह सुनकर मेरा दिमाग खराब हो गया और मैंने उसे साफ़ साफ़ कह दिया कि तुम दोनों अपनी योजना बना के निकल जाओ, तुम्हारे भरोसे मै अपनी योजनाओ को नहीं बदलने वाला, मजाक बना रखा है एकदम। यह सुनकर उसका मुंह बन गया।
"तुम्हे केदारनाथ जाना है, ठीक है मै तुम्हे हरिद्वार से सोनप्रयाग तक की बस में बिठा दूंगा और आगे के लिए गाइड कर दूंगा, मै अपने रास्ते और तुम दोनों अपने रास्ते चले जाना।" मैंने दो टूक कह दिया, उसने मेरी शर्त मान ली।
मैंने उसे रोज 3-4 किलोमीटर जॉगिंग करने की सलाह दी, उसने हाँ कह दिया। यह बात और थी कि उसके चेहरे पर कभी किसी प्रकार की फुर्ती या तेज दिखाई नहीं दिया जो जॉगिंग करने वालो के चेहरों पर दिखाई देता है, मै समझ गया था कि वह आलस कर रहा है और बहाने बना रहा है। मैंने उसे चेताया भी कि इस लापरवाही पर आगे अफ़सोस होगा। लेकिन उसने गंभीरता से नहीं लिया, मैंने उनकी परवाह छोड़ दी, और मै अपनी तैयारियों में लग गया। उन्हें भी आवश्यक वस्तुओं की सूचि दे दी जिसकी सूचि जस की तस मै यहां दे रहा हूँ।
SR
THINGS TO CARRY
QT
1
वाटर बॉटल
1
2
जींस
2
3
ट्रेक पैंट्स
2
4
अंडरवेयर्स
5
5
फूल स्लीव टी शर्ट
3
6
HALF टी शर्ट
2
7
जूते
1
8
स्लीपर/चप्पल
1
9
थर्मोकोट्स
1
10
विंटर जैकेट
1
11
ऊनि दस्ताने
1
12
कनटोप
1
13
मोबाइल चार्जर
1
14
पावर बैंक
1
15
फेसवाश
1
16
वैसलीन
1
17
सनस्क्रीम
1
18
हेयर आयल
1
19
डियोड्रंट
1
20
टॉवेल/ गमछा
1
21
गर्म मोज़े
3
22
चॉकलेट्स
23
दवाइयां, सरदर्द,बुखार, एसिडिटी, लूज मोशन्स इत्यादि
24
ड्राइफ्रूट्स
मैंने सूचि तो दे दी, साथ में यह  भी कह दिया कि बिना मतलब का अतिरिक्त सामान साथ ना रखें। मैंने सूचि में दो जिन्स भले लिख दिया था किन्तु मैंने कह दिया कि उसकी आवश्यकता नहीं है। हम कुल मिला कर दस बारह दिन के लिए जा रहे हैं, एक जिन्स तो पहने रहेंगे दूसरी बैग में रहेगी। कपडे धोने के अवसर तो शायद ही मिलेंगे, ट्रेक में कई बार एक ही कपड़ों में दो तीन दिन भी बिताने पड जाते है। इसलिए अतिरिक्त जिन्स ना ही रखने की मैंने सलाह दी क्योकि इससे बैग का वजन बढ़ जाता, और अपने पिछले अनुभवों से मैंने सीखा था कि वजन जितना कम हो यात्रा उतनी ही सुविधाजनक हो जाती है।
मैंने वसंत को यह भी समझाया कि एक बार यात्रा शुरू हो गयी तो बैग्स हमेशा हमारी पीठ पर ही रहेंगे इसलिए उसी हिसाब से आवश्यकता का सामान रखना है। वसंत के मित्र महेश ने भी अपनी टिकट उसी ट्रेन में करवा ली और संयोग से उसी बोगी में सीट भी मिल गयी। मेरा उससे कुछ खास परिचय नहीं था हालांकि मै उसे थोडा बहुत जानता था। अब समय था ई- पास का, तो मैंने देहरादून स्मार्ट सिटी पोर्टल पर जाकर ई-पास बनवा लिया और गन्तव्य के पते के तौर पर एक होटल की रसीद कांटेक्ट डिटेल्स और आधार इत्यादि भर दिया। रजिस्ट्रेशन सफल हुआ और ई-पास डाउनलोड हुआ। इसी बिच वसंत ने बजट पूछा तो मैंने दस हजार कैश में रखने के लिए कह दिया, यह उसकी उम्मीद से कहीं कम था। लेकिन मैंने उसे निश्चिंत रहने के लिए कह दिया, मै जानता था इससे ज्यादा पैसे नहीं लगने थे। अब हम तीन लोग थे तो होटल वगैरह के खर्चों में वैसे भी बराबरी के हिस्से होने थे, तो खर्चे और कम हो जाते। सब कुछ ठीक था लेकिन फिर अचानक उत्तराखंड में मौसम बदला और भयानक बरसात आरम्भ हो गयी।
बरसात के कारण उत्तराखंड में चार धाम यात्रा भी चार दिनों के लिए स्थगित कर दी गयी। बदरीनाथ मार्ग टूट गया, हजारों श्रद्धालु अलग-अलग जगहों पर फंसने की खबरें आने लगी। अलग अलग घटनाओ में 60 से अधिक लोग मारे जा चुके थे, मौसम का यह रूप देखकर अब चिंता होने लगी कि इस बार महादेव आखिर चाहते क्या है? दिल घबराने लगा, पता नही श्रीखंड महादेव की यात्रा की ही भाँती कहीं यह यात्रा भी निरस्त ना करनी पड़ जाए। महादेव का स्मरण करके मैंने सब उन्ही पर छोड़ दिया, हमारी टिकट पंद्रह दिन बाद की थी तो सब ठीक होने तक प्रतीक्षा करने के आलावा हमारे पास और कोई मार्ग नहीं था। तब तक मैंने वसंत और महेश से अपनी योजना का एक कच्चा खाका खर्चे के विवरण सहित साझा कर दिया, जिसके अनुसार योजना बननी थी।
SR
PLAN
MODE
EXPENCES
DAYS
1
MUMBAI TO DELHI
TRAIN
2293
DAY 1
DELHI TO HARIDWAR
TRAIN/BUS
HARIDWAR STAY
500
DAY 2
LUNCH DINNER
200
2
HRIDWAR TO SONPRAYAG
BUS
600
SONPRYAG STAY
1000
DAY 3
LUNCH/ DINNER
200
3
SONPRYAG TO GAURIKUND
TAXI/JIPSI
30
4
GAURIKUND TO KEDARNATH
TREK 16 KM
BREAKFAST ETC
150
KEDARNATH DARSHAN
DINNER/LUNCH
300
RETURN TO GAURIKUND
DAY 4
5
GAURIKUND TO GUPTKASHI
TAXI/JIPSI
100
NIGHT STAY AT GUPTKASHI
500
DINNER/LUNCH
200
DAY 5
6
GUPTKASHI TO RANSI/UKIMATH
TAXI/JIPSI
100
DAY5
RANSI STAY
500
LUNCH DINNER
200
7
RANSI TO GONDAR
TREK 12KM
DAY6
STAY
500
LUNCH/ DINNER
200
8
GONDAR TO MADMAHESHWAR
HOTEL STAY
500
DAY 7
DINNER/LUNCH
200
DARSHAN
9
MADMAHESHWAR TO RANSI
TREK
DAY 8
RANSI OR UKIMATH STAY
500
LUNCH/ DINNER
200
10
UKIMATH TO CHOPTA
TAXI/JIPSI
200
DAY 9
TUNGNATH DARSHAN
RETURN TO UKIMATH
TAXI/JIPSI
200
UKIMTH NIGHT STAY
500
LUNCH/ DINNER
200
11
UKIMATH TO RISHIKESH
BUS
600
DAY10
RISHIKESH STAY
500
LUNCH/ DINNER
200
12
RETURN TO MUMBAI
TRAIN
800
DAY 11
10680
12
सूचि में हुयी स्पेलिंग मिस्टेक्स को नजरअंदाज कीजियेगा, वह केवल खर्चे को समझने के लिए एवं उसका सही सही अंदाजा लगाने के लिए तैयार किया गया था।  मैंने इसमें लगभग हर सम्भव खर्चे को अधिकतम पर रखा था, जबकि वास्तविकता में कुछ चीजों के खर्चे लिखित विवरण से कम ही पड़ने थे। जिन चीजों के खर्चे में कटौती सम्भव नहीं थी वह ट्रेन और बस के खर्चे थे। और बता दूँ कि होटल के खर्चे में 500-1000 भले लिखा है किन्तु तीन लोगो का मिला कर डेढ़ सौ से तीन सौ ही पड़ने थे।
अब हमारे पास हमारी योजना के अनुसार पूरी तैयारी थी। मिशन समझा दिया गया था, बस उत्तराखंड की नयी अपडेट्स की प्रतीक्षा थी। और खुशकिस्मती से बरसात रुकते ही यात्रा शुरू कर दी गयी, यात्रा शुरू होते ही हजारों की संख्या में फंसे श्रद्धालुओं की एकदम बाढ़ सी आ गयी और केदारनाथ गौरीकुंड में हजारों की संख्या में बढ़ते यात्रियों की वीडियोज-तस्वीरें आने लगी। इसी बिच कुछ यात्रियों और व्लॉगर्स ने केदारनाथ में होती अनाप शनाप लूट के विषय में बताना शुरू कर दिया।
लोग ज्यादा थे और सुविधाएं कम तो हर चीज के दाम अनाप शनाप हो गए थे, एक मित्र जो केदारनाथ गए थे उन्हें एक कमरे के लिए ग्यारह हजार रूपये तक बताये गए थे जो सामान्य दिनों में 500 से हजार तक मिल जाता था। मनमाने दाम वसूले जा रहे थे। अव्यवस्था फ़ैल रही थी, रोज की ऐसी खबरों से मेरी हिम्मत टूटती जा रही थी। लेकिन मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी और यात्रा के दिन तक की प्रतीक्षा करते रहा, दुसरा कोई रास्ता भी तो नहीं था। मैंने एक सप्ताह पूर्व ही अपनी जरूरत का सारा सामान और बैग पैकिंग कर लिया था जिससे ऐन समय पर हड़बड़ी ना हो और कोई चीज छूट ना जाए। टिकट्स, ई-पास, डबल वैक्सीन सर्टिफिकेट, आधार, इत्यादि कागजातों के प्रिंटआउट ले लिए, उनके पीडीएफ मोबाइल के एक फोल्डर में अलग से सेव कर लिए।
कुल मिलाकर मै पूरी तरह से हर परिस्थिति के लिए स्वयं को तैयार कर चुका था। जूतों के विषय में मात्र मै अब तक उलझन में था, क्योकि कायदे से हम अक्टूबर अंत एवं नवंबर प्रथम सप्ताह तक उत्तराखंड में रहने वाले थे और इस समय बर्फबारी आरम्भ होने लगती है। ऐसे में जूते सही होने चाहिए थे अन्यथा बर्फ में चलना मुश्किल हो जाता, लेकिन ठंड और बारिश के बावजूद बर्फ पड़नी शुरू नहीं हुयी थी, मेरे पास वुडलैंड के जूते थे लेकिन मै उन्हें पहनकर केदारनाथ जाने की सोच भी नहीं सकता था, ऊपर से मदमहेश्वर और तुंगनाथ भी जाना था, हफ्ते भर में आराम से 70-72 किलोमीटर की चढ़ाई करनी थी, ऐसे में जूते आरामदायक होने चाहिए थे। तो मैंने अपने सामान्य जूते निकाले जिन्हे पहनकर मैंने दो बार केदारनाथ यात्रा की थी, वे सस्ते होने के बावजूद काफी आरामदायक थे। पुराने हो गए थे लेकिन निरंतर चलने के हिसाब से वही सही थे, बर्फबारी के ज्यादा आसार नहीं लग रहे थे तो भारी भरकम जूतों का विचार त्याग दिया।
***