पूर्वाभास

‘हज़ार हाथ’ के अन्त में मायाराम बावा की विमल के खिलाफ हालदुहाई नक्कारखाने में तूती की आवाज बन के रह जाती है। बावजूद अपना कत्ल और सशस्त्र डकैती का अपराध कुबूल करने के वो पुलिस को ये विश्वास नहीं दिला पाता कि दिल्ली में अरविन्द कौल के नाम से जाना जाने वाला सफेदपोश बाबू मशहूर इश्त‍िहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल था। यूं दिल्ली पुलिस के चंगुल में फंसने से बाल-बाल बचे विमल को उसके खास दोस्त और सी.बी.आई. के एन्टीटैरेरिस्ट स्क्वायड के उच्चाधिकारी योगेश पाण्डेय की संजीदा राय ये होती है कि वो फौरन से पेशतर दिल्ली से कूच कर जाये क्योंकि मायाराम बावा चुप नहीं होने वाला था और अगर आज नहीं आया था तो कल पुलिस को उसकी बातों पर यकीन आ सकता था। विमल योगेश पाण्डेय की राय पर अमल करता है, वो माडल टाउन वाली कोठी, बमय सामान, खड़े पैर बेच देता है, सुमन वर्मा को वापिस गोल मार्केट की कोविल हाउसिंग सोसायटी में स्थित उसके फ्लैट में भेज देता है, अपने चार मास के दुधमुंहे बच्चे सूरज को सुमन के पास छोड़ता है और नीलम की जिद पर उसे साथ लेकर मुम्बई के लिये रवाना हो जाता है।

एयरपोर्ट पर विमल को सुमन से फोन पर वार्निंग मिलती है कि पुलिस फिर उसकी फिराक में सुमन तक पहुंच गयी थी, लिहाजा वो जितनी जल्दी हो सके, दिल्ली से निकल जाये। एयरपोर्ट पर ही डाक के जरिये उसे इरफान की वार्निंग मिलती है कि उसकी मुम्बई से संक्षिप्त-सी गैरहाजिरी में होटल सी-व्यू पर ओरियन्टल होटल्स एण्ड रिजार्ट्स नामक कम्पनी ने, जो स्वयं को होटल का मालिक बताती थी, होटल को मुकम्मल तौर से खाली कराकर उस पर अपना कब्जा कर लिया था और ‘कम्पनी’ के भूतपूर्व सिपहसालार और होटल के वर्तमान सिक्योरिटी आफिसर श्याम डोंगरे का यूं कत्ल हो गया था कि कत्ल साफ-साफ गैंग किलिंग जान पड़ता था, लिहाजा हो सके तो वो वक्ती तौर पर मुम्बई में कदम रखने से परहेज करे। विमल इरफान की वार्निंग को नजरअन्दाज करके मुम्बई का प्लेन पकड़ लेता है।

‘कम्पनी’ का पतन अमरीकी माफिया के एशियन एम्पायर के चीफ कन्ट्रोलर रीकियो फिगुएरा को मुम्बई अन्डरवर्ल्ड के हालात में दखलअन्दाज होने के लिये मजबूर करता है। वो दुबई के ‘भाई’ से काठमाण्डू में मीटिंग करता है, वो ‘भाई’ को हुक्म देता है कि वो दिल्ली में गुरबख्श लाल की जगह लेने के लिये वहां के लोकल दादा लेखूमल झामनानी को तैयार करे और मुम्बई में या तो सोहल को गजरे की जगह ‘कम्पनी’ का सरगना बनने के लिये मनाये या उसकी हस्ती मिटा दे।

पहाड़गंज थाने वाले अरविन्द कौल को छोड़ चुकने के बाद महसूस करते हैं कि वे उसके साथ आये योगेश पाण्डेय और उसकी हिमायत में थाने पहुंचे उसके एम्पलायर शिवशंकर शुक्ला का कुछ ज्यादा ही रौब खा गये थे। लिहाजा वो नये सिरे से खामोशी से कौल की तफ्तीश में लगते हैं तो सब-इन्स्पेक्टर जनकराज को मालूम होता है कि कौल घर और दफ्तर से गायब था, उसकी बीवी नीलम का कहीं पता नहीं था और सुमन वर्मा नाम की कुंआरी लड़की के पास एक चार महीने का बच्चा था जो कि कौल और नीलम की औलाद हो सकता था। इस बात से बेखबर, कि नीलम विमल के साथ मुम्बई चली गयी थी, वो इस उम्मीद में सुमन की निगरानी शुरू करा देता है कि देर सबेर मां बच्चे के पास लौट के आयेगी, वो नीलम को गिरफ्तार कर लेंगे और फिर उसी से कुबूलवायेंगे कि कौल कहां गायब हो गया था।

उंगलियों के निशानों के एक लम्बे जंजाल के बाद जनकराज ये स्थापित करने में कामयाब हो जाता है कि कौल वास्तव में सोहल था और मायाराम ने उसकी बाबत जो कुछ भी कहा था, बिल्कुल सच कहा था। तब कौल की बाबत शुक्ला से सवाल किया जाता है तो वो कहता है कि कौल उसकी नौकरी छोड़ कर वापिस सोपोर चला गया था। उसे बताया जाता है कि कौल सोपोर नहीं, मुम्बई गया था तो शुक्ला इस बाबत अनभिज्ञता जाहिर करता है।

विमल और नीलम मुम्बई पहुंचते हैं तो एयरपोर्ट पर मुस्लिम वेशभूषा अख्त‍ियार करके अताउल्लाह खान नाम के शारजाह के अन्य मुसाफिर और उसके एयरपोर्ट पर उसे लेने आये उसके बेटे मोहसिन खान की मदद से निर्विघ्न एयरपोर्ट से निकलते हैं और मालाबार हिल पर स्थित एक लोकल इन्डस्ट्रियलिस्ट शेषनारायण लोहिया की शरण में पहुंचते हैं। पहले ही विमल की इरफान और विक्टर से मुलाकात हो चुकी होती है जो कि इस बात की तसदीक करते हैं कि एयरपोर्ट पर कुछ लोग उसकी निगरानी के लिये मौजूद थे जो कि उसके मुस्ल‍िम बहुरूप में उसे पहचान नहीं पाये थे। इरफान से उसे मालूम होता है कि जो कम्पनी होटल सी-व्यू पर काबिज हुई बैठी थी, उसका मैनेजिंग डायरेक्टर महेश दाण्डेकर एक हल्का, जरायमपेशा आदमी था जो कि गजरे की मौत के बाद ‘कम्पनी’ की उजड़ी गद्दी पर काबिज होने के सपने देख रहा था और उसने खुद या ‘भाई’ की शह पर श्याम डोंगरे का कत्ल करवाया हो सकता था।

विमल लोहिया से ओरियन्टल होटल्स एण्ड रिजार्ट्स नामक कम्पनी की बाबत, उसके निजाम की बाबत और उसके एम.डी. महेश दाण्डेकर की बाबत जानकारी हासिल करता है। वो लोहिया को बताता है कि अपने किसी व्यक्त‍िगत लाभ के लिये वो खुद भी होटल सी-व्यू पर — ‘कम्पनी’ पर नहीं — काबिज होने का तमन्नाई था और ऐसा वो राजा गजेन्द्र सिंह नामक एक नई शख्सियत को सामने लाकर करना चाहता था। लोहिया उसकी अपने दोस्त और ओरियन्टल के एक डायरेक्टर राजेश जठार से मुलाकात कराता है जो कि उसे ओरियन्टल, एम.डी. महेश दाण्डेकर और ओरियन्टल के होटल सी-व्यू की बाबत आइन्दा इरादों से ताल्लुक रखती बहुत मार्के की बातें तो बताता ही है, उसकी आइन्दा होने वाली बोर्ड मीटिंग के बारे में भी बताता है जहां कि विमल राजा गजेन्द्र सिंह के प्रतिनिधि के तौर पर जाने का फैसला करता है।

दिल्ली में तुगलकाबाद के खंडहरों में दिल्ली के दादाओं की बिरादरी की, यानी कि झामनानी, पवित्तर सिंह, भोगीलाल और ब्रजवासी की, मीटिंग होती है, जहां झामनानी उन्हें बताता है कि दुबई से ‘भाई’ का और सिंगापुर से रीकियो फिगुएरा का हुक्म था कि वो दिल्ली में हेरोइन के उस व्यापार को अपने हाथ में लें जो कि सोहल के हाथों गुरबख्श लाल की मौत के बाद से ठप्प पड़ा था। यानी कि वो सोहल की इस धमकी का मुकाबला करने के लिये कमर कसें कि अगर उन्होंने हेरोइन के धन्धे में हाथ डालने की जुर्रत की तो वो सब को मार गिरायेगा। झामनानी बिरादरी का सरगना बन के सोहल के खिलाफ ये स्ट्रेटेजी तैयार करता है कि जैसे सोहल अपने दुश्मनों को नंगा करके मारता था, वैसे ही वो भी सोहल को नंगा करके मारें। यानी कि वो उसके दिल्ली और मुम्बई में उपलब्ध तमाम हिमायतियों की शिनाख्त करें और बारी बारी सब का कत्ल कर दें। यूं सोहल जब तनहा रह जायेगा तो उसको मार गिराना मामूली बात होगी। झामनानी बताता है कि सोहल के तमाम हिमायतियों की उन्हें शिनाख्त मायाराम बावा नाम का वो शख्स करा सकता था जो कि पहाड़गंज थाने के लाॅकअप में बन्द था और सोहल का जानी दुश्मन था क्योंकि उसी की वजह से वो गिरफ्तार था लेकिन अब वो आगे पंजाब पुलिस को सौंपा जाने वाला था क्योंकि उन्हें मायाराम की बतौर इश्त‍िहारी मुजरिम तलाश थी। बिरादरी में फैसला होता है कि मायाराम को तब पंजाब पुलिस के चंगुल से छुड़ा लिया जाये जबकि वो जेल वैन में बन्द करके दिल्ली से अमृतसर ले जाया जा रहा होगा। मायाराम सोहल की बाबत मालूमात की खान था और वो तमाम मालूमात सोहल की लाश गिराने के सिलसिले में उनके खूब काम आ सकती थी।

लिहाजा दिल्ली की अन्डरवर्ल्ड बिरादरी हेरोइन का व्यापार फिर खड़ा करने के लिये और सोहल का मुकाबला करने के लिए मुकम्मल तौर से तैयार थी।

मुम्बई में विमल इरफान, विक्टर और तालातोड़ आकरे के साथ होटल की खुफिया सुरंग के रास्ते रात को चोरों की तरह होटल में दाखिल होता है और वहां से गजरे का पासपोर्ट, जिस पर कि गजरे के हस्ताक्षरों का नमूना था, और वो शेयर सर्टिफिकेट, जो कि गजरे को ओरियन्टल के बीस प्रतिशत शेयरों का मालिक बताता था, चोरी करता है। उन दोनों चीजों के साथ वो अपने पूर्वपरिचित मास्टर फोर्जर दरबारीलाल के पास नागपाड़ा पहुंचता है। दरबारीलाल शेयर सर्टिफिकेट पर गजरे के नकली दस्तखत बना कर ये स्थापित करने में विमल की मदद करता है कि गजरे ने काठमाण्डू में वो शेयर राजा गजेन्द्र सिंह नाम के अनिवासी भारतीय को कैश पेमेंट के बदले में बेच दिये थे और वो पेमेंट गजरे ने वहां के ज्यूरिच ट्रेड बैंक में अपने नाम जमा करा दी थी। गजरे के हस्ताक्षरों के अन्तर्गत वो कैश पेमेंट की एक नकली रसीद भी तैयार कराता है। विमल उससे राजा गजेन्द्र सिंह का जाली पासपोर्ट तैयार करवाता है और साथ में कुछ ऐसे कागजात भी तैयार करवाता है जिससे ये स्थापित हो कि वो राजा साहब मूल रूप से पटियाले के थे लेकिन नैरोबी में जा बसे थे तो नान-रेजीडेंट इन्ड‍ियन बन गये थे।

इरफान से विमल को खबर लगती है कि कोई अन्डरवर्ल्ड में फैला रहा था कि ‘भाई’ उससे मिलना चाहता था। विमल उस बात को शह देता है तो धारावी में स्थित पास्कल के बार में उसकी मुलाकात ‘भाई’ की जगह उसके खास आदमी और दाहिने हाथ छोटा अंजुम से होती है। छोटा अंजुम ‘भाई’ के खास नुमायन्दे के तौर पर विमल की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाता है और ‘कम्पनी’ की खाली गद्दी पर गद्दीनशीन होने का दावतनामा पेश करता है। सोहल न सिर्फ वो दावतनामा नाकुबूल करता है बल्क‍ि ये ऐलान करता है कि जो कोई भी ‘कम्पनी’ की खाली गद्दी पर काबिज होने की कोशिश करेगा वो ‘कम्पनी’ के पिछले तीन आकाओं की तरह ही उसके हाथों मारा जायेगा। छोटा अंजुम उसे ‘भाई’ की ताकत का, रीकियो फिगुएरा के जलाल का खौफ दिलाता है लेकिन विमल पर उसका कोई असर नहीं होता। आखिरकार वो विमल के इनकार की सूरत में उसकी निश्चित मौत की तरफ इशारा करता है लेकिन न वो विमल को ‘भाई’ का तरफदार बनाने में कामयाब हो पाता है और न उसे उसकी किसी हौलनाक अंजाम से खौफजदा कर पाता है। उलटे विमल की ये घोषणा उसके छक्के छुड़ा देती है कि वक्त आने पर वो ‘कम्पनी’ के बड़े महन्तों की तरह ‘भाई’ और फिगुएरा को भी खत्म कर देगा, भले ही दोनों भारत से बाहर पाये जाते थे। छोटा अंजुम विमल से ये दरख्वास्त करके, कि वो ‘भाई’ से उसके मोबाइल फोन पर बात कर ले, उससे जुदा होता है।

विमल विक्टर को उसके पीछे लगा देता है और इरफान को कहता है कि वो छोटा अंजुम के लोकल पते ठिकाने की खोज खबर निकाले।

दिल्ली में झामनानी बिरादरीभाइयों को बताता है कि छ: किलो प्योर हेरोइन की पहली खेप उनके लिये मुम्बई पहुंच गयी थी और अब कैसे उसे सेफ वहां से दिल्ली लाया जाना था। फिर वो सब सोहल के हिमायतियों का सर्वनाश करने की शुरुआत कुशवाहा से करने का फैसला करते हैं। वो लोटस क्लब पहुंचते हैं जहां वो पहले कुशवाहा को समझाते हैं कि वो सोहल की चमचागिरी छोड़ दे और हेरोइन के नये शुरू होने जा रहे धन्धे में उनके साथ शामिल हो जाये। कुशवाहा इनकार कर देता है तो ब्रजवासी उसे और उसके एक सहायक द्विवेदी को प्वायंट ब्लैंक शूट कर देता है। ऐन उसी वक्त वहां पुलिस का एक सब-इन्स्पेक्टर पहुंच जाता है और दो कत्लों का चश्मदीद गवाह बन जाता है। बिरादरीभाई कनाट प्लेस थाने के एस.एच.ओ. देवीलाल को लाखों की रिश्वत देकर उस दुश्वारी से निजात पाते हैं।

पहाड़गंज थाने में एस.एच.ओ. नसीब सिंह अपने ए.सी.पी. प्राण सक्सेना को रिपोर्ट करता है कि वो निर्विवाद रूप से साबित कर सकता था कि गैलेक्सी का मुलाजिम अरविन्द कौल वास्तव में सोहल था और उसका हिमायती और उसे थाने से छुड़ा ले जाने वाला सी.बी.आई. का बड़ा साहब योगेश पाण्डेय उस हकीकत से वाकिफ था। वे पाण्डेय से मिलने उसके आफिस में पहुंचते हैं, उसके सामने अपनी खोज को सविस्तार बयान करते हैं और पाण्डेय पर ढंका छुपा इलजाम लगाते हैं कि वो कौल की हकीकत से वाकिफ था और जानबूझ कर एक खतरनाक इश्त‍िहारी मुजरिम का हिमायती बनने का अपराध कर रहा था। पाण्डेय घबरा जाता है। वो उनसे थोड़ी देर की गैरहाजिरी की इजाजत मांग कर अपने बॉस जगदीप कनौजिया के पास जाता है जो पहले तो तमाम किस्से को पाण्डेय की व्यक्त‍िगत समस्या बता कर उसकी कोई मदद करने से इनकार कर देता है लेकिन जवाब में जब पाण्डेय उसे धमकी के अन्दाज में ये बताता है कि उसकी गिरफ्तारी से महकमे की ये पोल खुल सकती थी कि बादशाह अब्दुल मजीद दलवई नाम के टैरेरिस्ट, आर्म्स स्मगलर और देश के दुश्मन को उन्होंने अपनी कोशिशों से गिरफ्तार नहीं किया था बल्कि सोहल ने बादशाह को तश्तरी में सजा कर उनके हवाले किया था जबकि उसकी गिरफ्तारी का यश खुद कनौजिया ने लूटा था, तो कनौजिया उसको उस संकट से उबारने को तैयार हो जाता है। वो सीधे पुलिस कमिश्नर से बात करता है जो आगे टेलीफोन पर ही ए.सी.पी. प्राण सक्सेना को झाड़ लगाता है और उसे फौरन हैडक्वार्टर अपने हुजूर में पेश होने का हुक्म देता है। नतीजा ये होता है कि थाने को हुक्म हो जाता है कि अरविन्द कौल वाले केस को खामखाह तूल न दि‍या जाये, उसे सोहल समझ कर उसे तलाश करने में वक्त बर्बाद न किया जाये और योगेश पाण्डेय के तो करीब भी न फटका जाये। वो काम वैसे भी मुमकिन नहीं रह जाता क्योंकि कनौजिया पाण्डेय को लम्बी छुट्टी अप्लाई करके फौरन स‍परिवार किसी अज्ञात स्थान के लिये रवाना हो जाने पर मजबूर कर देता है।

लेकिन एस.एच.ओ. अपनी जाती जिद के तहत सुमन की निगरानी फिर भी इस उम्मीद में बरकरार रखता है कि आखिर कभी तो नीलम कौल वहां अपने बच्चे के पास लौट कर आयेगी।

मुम्बई में विमल मेकअप में नीलम के साथ — वो भी मर्दाना मेकअप किये विमल की सैक्रेट्री बनी होती है — ओरियन्टल की बोर्ड मीटिंग में पहुंचता है और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सामने गजरे का बीस प्रतिशत का शेयर सर्टिफिकेट राजा गजेन्द्र सिंह के नाम ट्रांसफर किये जाने के लिये पेश करता है। एम.डी. महेश दाण्डेकर उसकी सख्त मुखालफत करता है लेकिन वो चेयरमैन रणदीवे को वैसी ही पुरजोर मुखालफत के लिये तैयार नहीं कर पाता। विमल वहां ये घोषणा भी करता है कि राजा साहब होटल को टेकओवर करके खुद चलाना चाहते थे और वो ही वो इकलौते शख्स थे जो मवालियों के अड्डे के तौर पर बदनाम हो चुके उस होटल की बिगड़ी साख संवार सकते थे। वो इस मामले में राजा साहब को सिर्फ छ: महीने आजमाने की फरमायश करता है। चेयरमैन इस मुद्दे पर डायरेक्टर्स की वोटिंग कराने की बात कहता है। दाण्डेकर की सीधे पेश नहीं चलती तो वो चेयरमैन को गुपचुप में ये समझाने की कोशिश करता है कि राजा साहब का सैक्रेट्री वो कथित कौल वास्तव में सोहल था लेकिन इस मामले में वो किसी को भी आश्वस्त नहीं कर पाता। आखिरकार वोटिंग होती है। लेकिन फैसला नहीं हो पाता क्योंकि वहां हाजिर दस डायरेक्टरों के पांच पांच वोट बंट जाते हैं और नतीजा ‘टाई’ हो जाता है। नतीजतन विमल को अगले रोज फिर आने को कहा जाता है जबकि डायरेक्टरों की बेहतर या बद्तर हाजिरी में वोटिंग फिर होनी होती है।

अपने हक में बोर्ड का फैसला न हो पाने में विमल को दाण्डेकर ही अड़ंगा दिखाई देता है जो कि उसे साफ लगा था कि गजरे की तरह होटल पर और ‘कम्पनी’ के निजाम पर काबिज होने के सपने देख रहा था। दाण्डेकर के होते अगले रोज की वोटिंग में विमल को राजा गजेन्द्र सिंह को होटल सौंप देने के प्रस्ताव का पिट जाना निश्च‍ित दिखाई देता है। लिहाजा उसी रात को वो दाण्डेकर को यूं मार डालता है कि देखने पर, और तफ्तीश पर भी, उसकी मौत साफ साफ एक हादसा लगे।

छोटा अंजुम के पीछे लगा विक्टर पता लगाता है कि वो दादाभाई नौरोजी रोड पर‍ स्थित एक हाई क्लास वेश्यालय का रेगुलर क्लायन्ट था जहां कि वो हमेशा रात ग्यारह बजे ही पहुंचता था और जहां वो वी.आई.पी. ट्रीटमेंट पाता था।

छोटा अंजुम को दाण्डेकर के ‘हादसे’ की खबर लगती है जिसे कि वो आगे ‘भाई’ तक पहुंचाता है।

उस हादसे के बाद मौकायवारदात से थोड़ा परे ही सड़क से गुजरती एक टैक्सी में से विमल पर गोलियां बरसाई जाती हैं। विमल उस हमले से बाल बाल बचता है। हमलावर भाग जाते हैं, पीछे विमल को जो बात हैरान करती है वो ये होती है कि हमलावर उसे उसके मेकअप में भी पहचानते थे।

आधी रात को करनाल के पास बिरादरीभाइयों के आदमी उस जेल वैन पर घात लगाते हैं, जिसमें बन्द करके मायाराम को अमृतसर ले जाया जा रहा होता है, वो बड़ी कामयाबी से मायाराम को रिहा करा लेते हैं और उसे एक उजाड़, नामालूम जगह पर ले जाते हैं जहां कि उसने आखिरकार झामनानी और बाकी बिरादरीभाइयों के रूबरू होना होता है।

(यहां तक की कहानी आपने ‘दमनचक्र’ में पढ़ी। अब आगे पढ़‍ि‍ये ...)

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