सुबह 9:40 बजे ।

देवराज चौहान गोवा एयरपोर्ट से कंधे पर बैग लटकाए बाहर निकला । सामने खड़ी टैक्सी ली और ड्राइवर से होटल डी-वामा मारो चलने को कहा । डी-वामा मारो गोवा के अच्छे होटलों में गिना जाता था । दो बार पहले भी वो इसी होटल में रुक चुका था, परंतु इस बार वो अकेला था । जगमोहन मुम्बई में ही था और एक डकैती की प्लानिंग में व्यस्त था । उसके पास इस वक्त ढेरों काम थे । देवराज चौहान भी इस वक्त डकैती की तैयारी में ही गोवा पहुँचा था । डकैती के पहले के कामों को पूरा करने में लगा हुआ था ।

25 मिनट में ही टैक्सी डी-वामा मारो के सामने जा रुकी । डी-वामा मारो समंदर के किनारे से आधा किलोमीटर की दूरी पर मौजूद था और तीसरी-चौथी मंजिल की बालकनी से दूर नजर आते समंदर को निहारा जा सकता था । कमरे में बैठकर समंदर को और उसमें मौजूद जहाजों को आते-जाते देखना मजेदार अनुभव था । किराया देने के बाद कंधे पर बैग लटकाए देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया और सीधा रिसेप्शन पर पहुँचा । जहाँ खूबसूरत गोवानी युवतियाँ मौजूद थी । एक ने मुस्कुराकर देवराज चौहान का स्वागत किया ।

"वेलकम सर । होटल डी-वामा मारो में आपका स्वागत करता है ।"

"थैंक्यू मैम !" देवराज चौहान ने बैग कंधे से उतारकर नीचे रखा, "माय नेम इज सुरेंद्र पाल । मेरी बुकिंग है ।"

"जस्ट ए मिनिट सर !" युवती ने रजिस्टर खोला और चेक करने के बाद बोली, "यस सर । आपकी बुकिंग है । रूम नंबर 104 ।" इसके साथ ही युवती ने दूर खड़े पोर्टर को इशारा किया ।

पोर्टर तुरंत पास पहुँचा ।

"सर का सामान रूम नंबर 104 में पहुँचा दो ।"

पोर्टर ने बैग उठा लिया ।

"मेरे दोस्त मिस्टर स्मिथ वाल्टर किस रूम में ठहरे हुए हैं ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

रिसेप्शनिस्ट ने कीबोर्ड पर नजर मारी फिर कहा ।

"मिस्टर स्मिथ वाल्टर रात 11:00 बजे चेकआउट कर गए थे । दो घंटे बाद उनकी फ्लाइट थी स्विट्जरलैंड के लिए ।"

देवराज चौहान की आँखें सिकुड़ीं ।

"चले गए ?"

"यस सर ! परंतु आपके लिए एक लिफाफा छोड़ गए हैं ।" रिसेप्शनिस्ट युवती ने कीबोर्ड के पास से ओपन बॉक्स के खाने में रखा लिफाफा उठाकर देवराज चौहान को दिया । उस पर सुरेंद्र पाल लिखा था ।

"थैंक्स मैम ।" कहकर देवराज चौहान पोर्टर के साथ लिफ्ट की तरफ बढ़ गया ।

कुछ ही पलों बाद पोर्टर के साथ लिफ्ट में मौजूद था । उसने लिफाफा खोला और भीतर रखे कागज को निकाला जिस पर उसके लिए कुछ लाइनें लिखी थीं ।

मैंने जो जानकारी तुम्हें देनी थी, उसे अभी हासिल नहीं कर पाया । कुछ दिन लग सकते हैं । मैं वापस स्विटजरलैंड जा रहा हूँ । तुम्हें भी स्विटजरलैंड आना पड़ेगा । वहाँ मोरागेसी एवेन्यू पर रेड राकसी होटल में रुकना । सुरेंद्र पाल के नाम से कमरा बुक करा रहा हूँ उसमें । आने की खबर मुझे दे दोगे तो एयरपोर्ट पर लेने जरूर आऊँगा ।

देवराज चौहान ने दो बार वो पत्र पढ़ा फिर उसे वापस जेब में रख लिया । पोर्टर 104 नंबर कमरे में उसका बैग रख गया । अब गोवा में उसका कोई काम नहीं था । परंतु एक दिन उसने यही पर रहकर डकैती की प्लानिंग पर फिर से विचार करने का फैसला किया कि कोई ग़लती न रह जाए ।

देवराज चौहान ने कॉफी मँगवाई और बैग में से कुछ कागज निकालकर उसकी जाँच पड़ताल में लग गया । लंच तक वो इसी काम में लगा रहा । पता ही नहीं चला कि 4 घंटों का वक्त कैसे बीत गया । फिर उसने जगमोहन को फोन किया । दो बार बेल गई और जगमोहन ने कॉल रिसीव की ।

"स्मिथ वाल्टर से बात हो गई ?" जगमोहन का स्वर कानों में पड़ा ।

"वो रात की फ्लाइट से स्विट्जरलैंड चला गया ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"अजीब बेवकूफ है । तुम्हें बुलाकर खुद स्विट्जरलैंड लौट गया ।"

"मेरे लिए रिसेप्शन पर पत्र छोड़ गया है ।" देवराज चौहान ने पत्र में लिखी बातों के बारे में बताया, "अब मुझे स्विटजरलैंड जाना होगा । कल मुम्बई आकर मैं वीजा के लिए अप्लाई करूँगा ।

"वीजा तो गुलाम मोहम्मद दो दिन में लगवा देगा ।"

"तुमने जिन-जिन लोगों के नामों की लिस्ट दी थी, उसमें से कुछ नाम मैंने छाँटें हैं जो इस डकैती में हमारे साथ काम करेंगे । इन सब के बारे में जानकारी है मुझे कि ये लोग काम के लायक हैं । अगर इनमें से कोई हमारे साथ काम न करना चाहे तो उसके बदले तुम किसी और को चुन लेना ।"

"छाँटें हुए नाम बता दो ।" उधर से जगमोहन ने कहा ।

"मोहन भौंसले, काका मेहर, रवीना, ललित कालिया, जैकी, सोनिया ।"

"सोनिया ? वही जो मोहन भौंसले की पत्नी है ?" उधर से जगमोहन ने पूछा ।

"वही । सोनिया बीयर बार में काम करती थी शादी के पहले । हमने उससे जो काम लेना है, वो काम बढ़िया ढंग से कर सकती है । असल काम तो उसी से कराना है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"मोहन भौंसले प्लेन में चढ़ने का काम करेगा ?"

"हाँ, वो सोनिया का पति है । इस काम में पति-पत्नी का होना जरूरी है । तभी तो एयरपोर्ट पर हंगामा खड़ा होगा ।"

"ठीक है । तीन-चार दिन मैं व्यस्त हूँ । उसके बाद मैं उन लोगों से बात करनी शुरू करूँगा ।"

"मारियो गोवानी और मोहिते को भी हम इस काम में लेंगे ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"मेरे ख्याल में तो इनकी जरूरत नहीं ।"

"जरूरत है । डकैती में सफल होने के साथ-साथ हमारे फँसने के चांस भी हैं । इस बार का काम टेढ़ा है । अगर फँसे तो मारियो हमें वहाँ से निकालेगा । उसे इसी बात का पैसा मिलेगा ।"

"मर्जी तुम्हारी ।" उधर से जगमोहन ने गहरी साँस ली, "मैं तो सोच रहा हूँ कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो ये दोनों बिना कुछ किए मुफ्त का पैसा ले जायेंगे ।"

"पर इस बार हमें बैकअप तैयार रखना ही होगा ।" देवराज चौहान बोला, "रमेश गोरे को हम सेट कर चुके हैं । उसे कुछ पैसा भी दे दिया है । इसके अलावा डकैती में कोई भी और नहीं चाहिए हमें ।"

"तुम कब आ रहे हो ?"

"कल । अभी मैं होटल से निकल रहा हूँ । लंच करूँगा और प्लेन की टिकट बुक करवाऊँगा कल की । वीजा लगवाने के लिए गुलाम मोहम्मद को फोन कर देना ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद किया । उसके बाद रूम लॉक करके लिफ्ट की तरफ बढ़ गया । लंच वो होटल से बाहर ही लेना चाहता था कि कल की मुम्बई वापसी की टिकट भी बुक करा लेगा ट्रैवल्स एजेंट से ।

लिफ्ट से निकलकर देवराज चौहान रिसेप्शन पर चाबी छोड़ने के लिए आगे बढ़ रहा था और ठीक उसी वक्त एक जोड़ी आँखें उस पर टिक चुकी थीं । उन आँखों में सवाल था कि देवराज चौहान इस वक्त गोवा में क्या कर रहा है । वो आँखें और किसी की नहीं, मोना चौधरी की थीं । लॉबी में पड़े सोफे पर मोना चौधरी महज पाँच मिनट पहले ही आकर बैठी थी । वहाँ 6-7 लोग और भी बैठे थे । दो तो अखबार पढ़ने में व्यस्त थे । एक मैगजीन के पन्ने पलटता वक्त बिता रहा था । एक अपना ब्रीफकेस खोलें कागजों को चेक कर रहा था । लॉबी में हल्के म्यूजिक की धुन बज रही थी ।

मोना चौधरी ने देवराज चौहान को रिसेप्शन पर रूम की चाबी छोड़ते और बाहर की तरफ बढ़ते देखा तो वो समझ गई कि देवराज चौहान इसी होटल में ठहरा हुआ है । मोना चौधरी की निगाह होटल में आस-पास घूमी परंतु जगमोहन उसे कहीं भी नहीं दिखा । शायद रूम में हो । ये सोचकर मोना चौधरी लॉबी के सोफे से उठी और होटल से बाहर निकलने वाले गेट की तरफ बढ़ गई । मोना चौधरी ने जींस की पैंट और नीले रंग की स्कीवी भी पहनी हुई थी । कंधों तक जाते बाल, कदम उठाने पर हल्की-सी उछाल दे रहे थे ।

देवराज चौहान होटल से बाहर निकला और ठिठककर आस-पास देखा । ये जगह गोवा का व्यस्त इलाका था । कुछ आगे जाते ही भीड़ भरा बाजार शुरू हो जाता था । वहाँ अच्छे रेस्टोरेंट भी थे और ट्रैवल्स एजेंट भी । देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और आगे बढ़ गया । दोपहर का वक्त था । हल्की धूप निकली हुई थी । परंतु गर्मी खास नहीं थी क्योंकि तेज हवा चल रही थी । आसमान में बादलों के टुकड़े मंडरा रहे थे ।

देवराज चौहान सिर्फ 50 कदम भी आगे गया होगा कि मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी ।

"तुम्हें गोवा में देखकर हैरानी हो रही है ।"

देवराज चौहान फौरन ठिठककर पलटा । चार कदमों के फासले पर मोना चौधरी मौजूद थी । देवराज चौहान ने होंठ सिकुड़े । मोना चौधरी एकटक देवराज चौहान को देख रही थी ।

"मैंने सोचा नहीं था कि तुम से यहाँ मुलाकात होगी ।" देवराज चौहान बोला, "कुछ हैरानी हुई ।"

"मुझे भी । मोना चौधरी पास आई, "अकेले हो ?"

"हाँ ।"

"जगमोहन ?"

"मुम्बई में ।"

मोना चौधरी ने सोच भरे अंदाज में सिर हिलाकर कहा ।

"चले । जहाँ तुम जा रहे थे । मैं भी इस वक्त गोवा में अकेली हूँ ।"

"तुम इतने आराम से पहले कभी पेश नहीं आई ।" कहकर देवराज चौहान चलने लगा । मोना चौधरी भी साथ थी ।

"कहाँ जा रहे हो ?" मोना चौधरी ने पूछा ।

"मुम्बई वापसी की प्लेन टिकट बुक कराने ।" देवराज चौहान ने कश लेकर कहा ।

"शाम को फ्लाइट से जा रहे हो ?"

"कल सुबह की ।"

"रात गोवा में रह कर क्या करोगे ?" मोना चौधरी ने शांत स्वर में पूछा ।

देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर चलते-चलते मोना चौधरी को देखा ।

"तुम ऐसे सवाल पूछ रही हो जो कि तुम्हें नहीं पूछना चाहिए ।"

"कुछ बात तो होगी जो तुम्हारा प्रोग्राम पूछ रही हूँ । गोवा में किसी काम से आए हो क्या ?"

"मुझे यहाँ कोई काम नहीं ।"

"मुझे लगा कि कहीं तुम भी वही काम करने आए हो जिसके फेर में मैं हूँ ।"

"मेरे ख्याल में इस बार हमारे रास्ते अलग हैं । मैं गोवा में कोई काम नहीं कर रहा ।" देवराज चौहान बोला ।

"सुनकर मन को आराम मिला ।" मोना चौधरी एकाएक मुस्कुरा पड़ी, "बेला (नगीना) कैसी है ?"

"खुश है ।"

दोनों बाजार में आ पहुँचे । देवराज चौहान ठिठककर बोला ।

"तुम मेरे साथ क्यों हो मोना चौधरी ?"

"उलझन में हूँ ।" मोना चौधरी ने देवराज चौहान को देखा, "मुझे तुम्हारी जरूरत है भी और नहीं भी ।"

"क्या मतलब ?"

"महाजन को आना था गोवा आज सुबह कि रात को मेरे साथ काम कर सके । ये दो लोगों का काम है । परंतु राधा की तबीयत खराब होने की वजह से वो नहीं आ रहा । पारसनाथ सिंगापुर गया हुआ है सितारा के साथ ।"

"तुम अपने काम में मुझे इस्तेमाल करने की सोच रही हो ।"

"अगर तुम मानो तो ।"

"मुझे कल मुम्बई पहुँचकर जरूरी काम करना है । मैं किसी काम में नहीं फँसना चाहता हूँ ।"

"ये लम्बा काम नहीं है । दो या तीन घंटों में सब कुछ निपट जाएगा ।" देवराज चौहान ने मोना चौधरी के चेहरे पर नजर मारी ।

मोना चौधरी का चेहरा शांत-सा दिख रहा था ।

"यहीं रुको ।" देवराज चौहान ने कहा, "मैं सामने नेट कैफ़े से मुम्बई की टिकट बुक करा लूँ ।"

मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा । देवराज चौहान सड़क पार करता नेट कैफे की तरफ बढ़ गया ।

30 मिनट बाद वापस लौटा और मोना चौधरी से बोला ।

"तुमने लंच लिया ?"

"नहीं ।"

"चलो, लंच लेते हैं । तब तुम मुझे बताना कि तुम मुझसे क्या चाहती हो ? उसके बाद ही कुछ कह सकूँगा ।"

■■■

आधे घंटे बाद देवराज चौहान और मोना चौधरी एक रेस्टोरेंट में बैठे लंच ले रहे थे । उनकी कोई पहचान वाला दोनों को इस प्रकार शांति से बैठे देखता तो हैरान जरूर होता । वरना आज तक तो यही होता आया था कि दोनों एक-दूसरे के सामने पड़े और मुसीबत खड़ी हो गई । परंतु आज सब कुछ शांत दिखाई दे रहा था ।

लंच के दौरान दोनों में कोई बात नहीं हुई । उसके बाद वेटर टेबल साफ कर गया और कॉफी आ गई । देवराज चौहान ने कॉफी का घूँट भरा । मोना चौधरी को देखा । मोना चौधरी उसे ही देख रही थी ।

"कहो ।" देवराज चौहान ने कहा, "तुम किस काम में मेरी सहायता चाहती हो ?"

"एक बेमिसाल, बेशकीमती हीरा, आज रात गोवा के कैसीनो में बेचने के लिए लाया जा रहा है । जिसकी कीमत लगाना आसान नहीं । वैसे वो 800 करोड़ रुपए का आँका गया है ।"

"800 करोड़ । किसने लगाई उसकी क़ीमत ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"ब्रिटेन के एक अमीर आदमी ने । वो उस हीरे को पाना चाहता है । इस काम में वो मेरे को 500 करोड़ दे रहा है । आज रात महाजन के साथ काम करने की पूरी प्लानिंग थी । परंतु महाजन नहीं आ सका । जबकि मेरे को एक ऐसे विश्वसनीय व्यक्ति की जरूरत है, जो ईमानदारी से मेरा साथ दे सके उस हीरे को उड़ाने में ।" मोना चौधरी बोली, "तभी मैंने तुम्हें देखा । पहले तो मुझे लगा कि तुम भी उसी हीरे को पाने के लिए मुम्बई में आए हो । फिर... ।"

"मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है । मैंने हीरे के बारे में सोचा भी नहीं । मुझे जानकारी भी नहीं ।"

"तो मैंने यही सोचा कि शायद तुम मेरे काम आ सको ।"

"हीरा किसका है ?"

"समरपाल चित्रा का ।"

"वो जो किसी राजे-महाराजे के वंशज से हैं ।" देवराज चौहान के होंठों से निकला ।

"तुम जानते हो उसे ?"

"इतना ही, जितना अभी कहा ।"

"समरपाल चित्रा को विरासत में बहुत बड़ी दौलत मिली थी जो कि बूढ़ा होने तक उसने उजाड़ दी । उसके पास कुछ ही बेशकीमती चीजें हैं, जिसमें से ये हीरा भी है । उसी हीरे का सौदा वो आज रात गोवा में कर रहा है ।"

"अगर वो हीरा उसके हाथ से निकल गया तो वो पूरी तरह बर्बाद हो... ।" 

"हीरे का बीमा कराया हुआ है उसने । शायद 300 करोड़ का बीमा ।" मोना चौधरी बोली ।

देवराज चौहान ने सिर हिलाया ।

"साथ दोगे मेरा ?"

"खतरा कितना है ?"

"न कम, न ज्यादा । कीमत के हिसाब से खतरा कम है ।"

"खरीददार कौन है ?"

"दुबई का एक शेख । अमीर शेख । सुना है वो इतना अमीर है कि दुबई का पाँचवा हिस्सा उसी का है ।"

बातों के दौरान दोनों कॉफी पी रहे थे ।

"सौदा कहाँ हो रहा है ?"

"समुंदर में तैरती कैसीनो पर । एक विशाल पुराने जहाज को कैसीनो का रूप दिया गया है । दो मंजिला है वो । ऐसे कई कैसीनो रूपी जहाज तुम्हें समंदर में खड़े दिखाई दे जाएँगे ।

"जानता हूँ । कैसीनो का नाम क्या है ?"

"रेड रोज कैसीनो ।"

"तुम्हारा प्लान क्या है ?"

"इसके लिए तुम्हें वापस होटल चलना होगा ।"

"क्यों ?"

"वहाँ पर प्लान भी बताऊँगी और कुछ दिखाऊँगी भी ।"

"अगर तुम्हारा प्लान मुझे पसंद आया तभी इस काम में तुम्हारा साथ दूँगा ।" देवराज चौहान उठते हुए बोला ।

"मंजूर है ।" मोना चौधरी भी उठ खड़ी हुई ।

■■■

दिल्ली ।

करोल बाग में स्थित चेंबर ऑफ जमुना प्रसाद की बिल्डिंग में पहली मंजिल पर अर्जुन भारद्वाज की सुपर डिटेक्टिव एजेंसी का ऑफिस ।

अर्जुन भारद्वाज महज पाँच मिनट पहले अपने ऑफिस में पहुँचा था । सुबह से अभी ऑफिस पहुँचा था । किसी केस के सिलसिले में सुबह ही गुड़गाँव चला गया था । नीना ऑफिस में मौजूद थी और बंसल कंप्यूटर पर बैठा एक केस की क्लोजिंग रिपोर्ट तैयार कर रहा था । पंडित सप्ताह की छुट्टी पर अपने घर जयपुर गया हुआ था । अर्जुन ने सिगरेट सुलगाई और टेबल पर पड़ी फाइलों को देखा, जो कि नीना ने उसी के लिए रखी थी ।

तभी नीना दरवाजा खोलकर भीतर कदम रखती कह उठी ।

"मेरे लिए कुछ काम सर ?"

"एक कॉफी और जे. के. मल्होत्रा को फोन कर दो कि उनका काम हो गया है । बाकी की फीस ले आए और रिपोर्ट ले जाए ।"

"मिस्टर मल्होत्रा को ये पसंद आएगा कि वो खुद यहाँ... ।"

"पसंद आएगा । मल्होत्रा ने ही कहा है कि मैं उनके पास न आऊँ । उन्हें बुला... ।" उसी पल बाहर कुछ शोर-शराबा हुआ । बंसल की आवाज भी सुनाई दी ।

"मैं देखती... ।" कहती हुई नीना पलटी कि दो लंबे-तगड़े जवान दरवाजा धकेलकर भीतर आ गए ।

पीछे बंसल दिखा ।

"ये जबरदस्ती भीतर आ गए सर । पूछने पर कि आप हैं, सीधा भीतर... ।"

"ठीक है बंसल ।" अर्जुन भारद्वाज इन दोनों को गहरी निगाहों से देखते हुए बोला, "तुम जाओ ।"

बंसल पीछे से गायब हो गया । उन दोनों की उम्र 30-35 के आस-पास थी । तगड़े स्वस्थ थे । चेहरों पर जैसे खतरनाक भाव स्थाई थे । एक की नाक चपटी थी जैसे कभी पुरानी चोट लगी हो वहाँ पर ।

नीना कभी अर्जुन को देखती तो कभी उन दोनों को ।

"तू अर्जुन भारद्वाज है । प्राइवेट जासूस ।" एक ने सड़क छाप अंदाज में कहा ।

"हाँ, तुम लोग कौन हो ? आराम से बैठो और... ।"

"समरपाल चित्रा साहब का नाम सुना है ?"

"जरूर सुना है । वो आधा बदमाश है, आधा शरीफ है । तुम्हारा उससे क्या पंगा हो गया ?" अर्जुन भारद्वाज ने दोनों को देखा ।

"अभी का अभी हमारे साथ चल । समरपाल साहब ने तेरे को बुलाया है, फौरन ।"

अर्जुन भारद्वाज की आँखें सिकुड़ीं ।

"मेरे को ?"

"प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज को । तू ही है न अर्जुन भारद्वाज ?" दूसरा बोला ।

अर्जुन भारद्वाज ने सहमति से सिर हिलाया ।

"तो बैठा क्यों है, खड़ा हो और हमारे साथ चल । वक्त कम है ।"

"किस बात का वक्त कम है ?"

"ये तो तेरे को समरपाल साहब ही बताएँगे । खड़ा हो जा ।" दूसरा गुर्रा उठा ।

"ये क्या बात हुई कि मेरे ही ऑफिस में घुसकर... ।"

उसी पल एक ने रिवॉल्वर निकाल ली ।

अर्जुन भारद्वाज चुप कर गया ।

"तू सही बोला कि समरपाल साहब आधे बदमाश और आधे शरीफ हैं । कोई और वक्त होता तो तेरी अकल सीधी कर देता । इस वक्त तू सीधी तरह अभी के अभी हमारे साथ चल ले, नहीं तो तेरे हक में बहुत बुरा होगा ।"

अर्जुन भारद्वाज उसी पल खड़ा हो गया ।

"मैं भी साथ चलूँ सर ?" नीना कह उठी ।

"नहीं ।" अर्जुन भारद्वाज ने कहा, फिर रिवॉल्वर वाले से बोला, "इसे वापस रख ले ।"

"चल रहा है न हमारे साथ ?"

"हाँ, पर ये तरीका ग़लत है ।"

■■■

समरपाल चित्रा ।

शानदार जिंदगी बिता रहा था, आलीशान बंगले में । रहना-खाना नवाबों जैसा । कभी उसकी पुश्तो में कोई राजा था । तब की ही दौलत चली आ रही थी परंतु समरपाल चित्रा ने दौलत इस तरह दोनों हाथों से लुटाई कि अब उस दौलत की अवशेष ही बचे थे । इतना ही बचा था कि अपनी बाकी की जिंदगी बिता ले । परिवार के नाम पर पत्नी और दो बेटियाँ थीं । जिनकी वो खास परवाह नहीं करता था । सामने दिख जाए तो हाल-चाल पूछ लेता था । उसकी अपनी जिंदगी में ही इतने पंगे थे कि फुर्सत ही नहीं मिलती थी । बंगले की ऊपरी मंजिल पर उसके आदमी हमेशा मौजूद रहते थे कि कहीं झगड़ा-फसाद हो जाए तो समरपाल चित्रा सबसे आगे । इलेक्शन में दोनों तरफ की पार्टियों को करोड़ों रुपया देता था कि जो भी जीतेगा उसकी भी हुकूमत चलती रहे । चार हत्याओं के केस समरपाल चित्रा पर चल रहे थे परंतु अदालत के सामने परेशानी ये आ गई थी कि उसके खिलाफ सारे गवाह गायब हो चुके थे । वो कहाँ गए, किधर गए, किसी को पता नहीं था, पुलिस खोजबीन करके थक गई थी । उसके केसों से जुड़े पुलिस वालों की ट्रांसफर हो गई थी । वहाँ पर अपने पुलिस वाले आ गए जो कि उसके इशारे पर काम करते थे ।

उम्र सत्तावन साल थी समरपाल चित्रा की ।

दिल्ली ही नहीं, मुम्बई में भी समरपाल चित्रा का नाम चलता था । फिल्मों में पैसा लगाना और फ़िल्मी पार्टियाँ ज्वॉइन करना उसका शौक था । मशहूर हीरोइनों से मिलकर उसे प्रसन्नता होती थी । एक फिल्म में उसने सिर्फ इसीलिए पैसा लगा दिया कि उस हीरोइन ने उसे फिल्मी पार्टी में चूम लिया था और उसके पास कोई फिल्म नहीं थी । इसी से खुश होकर समरपाल चित्रा ने उसके लिए फिल्म प्रोड्यूस कर दी थी । परंतु कई महीनों से उसका हाथ तंग चल रहा था । दो और हीरोइनें उसे चूम चुकी थी कि वो उसके लिए भी फिल्म प्रोड्यूस कर देगा । शायद कर भी देता लेकिन हाथ तंग हो जाने की वजह से उसने अपने पास मौजूद बेशकीमती हीरा बेचने की सोची थी । बिचौलियों ने खरीददार के नाम पर शेख को तैयार भी कर लिया था । आज रात गोवा के कैसीनो में शेख के साथ मीटिंग थी । दोपहर के 3:00 बज रहे थे । शाम 6:00 बजे की फ्लाइट से गोवा जाना था लेकिन परेशानियों का जाल उसके चेहरे पर बिछा हुआ था ।

तभी एक आदमी ने खबर दी कि अर्जुन भारद्वाज आ गया है ।

समरपाल चित्रा उसी पल अपने विशाल बंगले के उस हिस्से में पहुँचा, जहाँ अर्जुन भारद्वाज को लाया गया था । बेसमेंट का एक कमरा था जहाँ अर्जुन भारद्वाज टहल रहा था । पास में वही दोनों लाने वाले आदमी थे कि तभी समरपाल चित्रा ने भीतर प्रवेश किया । अर्जुन भारद्वाज ने ठिठककर उसे देखा ।

"ये है ?" समरपाल चित्रा की निगाह अर्जुन पर थी ।

उसने अपने आदमियों से पूछा था ।

"जी साहब जी ।" एक ने कहा ।

"ठीक है । तुम दोनों बाहर जाओ । दरवाजा बंद कर लो । कोई भीतर न आए ।" समरपाल चित्रा ने कहा ।

दोनों बाहर निकल गए । दरवाजा बंद हो गया । ये सजा सजाया कमरा था । सोफे लगे थे ।

"बैठो जासूस साहब ।" समरपाल चित्रा ने गंभीर स्वर में कहा, "मुझे तुमसे बेहद खास, महत्वपूर्ण और जरूरी काम है ।"

"मुझे रिवॉल्वर दिखाकर यहाँ लाया गया ।"

"मैंने ही कहा था कि तुम्हें जल्दी लाएँ । तकलीफ हुई हो तो माफी चाहता हूँ । तुम दिल्ली के मशहूर प्राइवेट जासूस हो । मैं दिल से तुम्हारी इज्जत करता हूँ । लेकिन इस वक्त ये सब करना जरूरी था । मुझे पहचानते हो ?"

"हाँ । अखबारों में कई बार तस्वीर देखी है ।"

"खामखा ही मशहूर हो गया मैं ।" समरपाल चित्रा सोफे पर जा बैठा, "तुम भी बैठो ।"

अर्जुन भारद्वाज बैठ गया ।

"मेरे पास समय कम है । 6:00 बजे की फ्लाइट से मुझे गोवा जाना है । तुम मेरे साथ चलोगे ।"

"मैं ? लेकिन... ।"

"वक्त कम है । बात सुनो मेरी ।" समरपाल चित्रा ने गंभीर स्वर में कहा, "जो बातें हममें हो रही हैं, वो बाहर न जाए । मुझे जानते हो तो मेरी हैसियत से भी वाकिफ होगे । हो या नहीं ?"

"हूँ ।" अर्जुन भारद्वाज की निगाह समरपाल चित्रा पर टिक चुकी थी ।

"तो अब सुनो । मैं एक बेशकीमती हीरा साढ़े आठ सौ करोड़ में बेचने जा रहा हूँ ।"

"साढ़े आठ सौ करोड़ ?"

"बड़ी रकम है । बहुत बड़ी रकम है । लेकिन वो हीरा इससे भी ज्यादा की कीमत का है । पर मैंने काम निपटाने की सोची और पार्टी को हाँ कर दी । आज रात गोवा में हीरा परखने के बाद सौदा हो जाएगा ।"

"मतलब कि पैसे का लेन-देन हो जाएगा ?" अर्जुन भारद्वाज बोला ।

"यही मतलब है मेरा । पैसा मैं किस रूप में और कैसे ले रहा हूँ ये मुझ पर छोड़ दो ।" समरपाल चित्रा ने व्याकुल स्वर में कहा ।

अर्जुन भारद्वाज ने उसकी परेशानी भाँप ली थी ।

"आपकी इन बातों में मेरा क्या काम ?"

अर्जुन पर नजरें टिकाए समरपाल चित्रा ने पहलू बदलते हुए कहा ।

"मुझे खबर मिली है कि कुछ दिन से कोई गुप्त तौर पर हीरे के बारे में, सौदे के बारे में पूछताछ कर रहा था जैसे कि हीरे का सौदा कब होगा, कहाँ होगा, किन हालातों में होगा ? हालाँकि ये खबर मेरे बेहद खास लोगों को ही है । परंतु मुझे डर है कि कहीं ये खबर बाहर न निकल गई हो । कोई हीरे पर हाथ न डाल दे ।"

"आपको कैसे पता चला कि कोई पूछताछ करता फिर रहा है ?"

"मेरे खास आदमी ने दो दिन पहले मुझे बताया था । उसने बताया कि उसे कोई आदमी मिला । अपना नाम तो उसने नहीं बताया परंतु हीरे की जानकारी देने के बदले वो दो लाख देने को तैयार था । अब इस बात का क्या भरोसा कि उसने जानकारी उधर भी दी हो और मुझे भी बता दिया । अगर उसने ऐसा नहीं किया तो किसी और ने दो लाख लेकर जानकारी दे दी हो । ये बता दिया हो कि गोवा में कहाँ पर हीरे का सौदा हो रहा है । दो दिन से तो मैंने इन बातों की परवाह नहीं की परंतु आज जब हीरे के सौदे का वक्त करीब आया तो मुझ पर चिंता सवार हो गई कि कहीं कोई मेरे से हीरा न छीन ले ।"

"आपका मतलब है कि मैं हीरे की रक्षा करूँ ? उसे सुरक्षा दूँ ?" अर्जुन बोला ।

"तुम दिल्ली के माने हुए प्राइवेट जासूस हो । काबिल हो । मैं तुम्हें अपना दोस्त मानते हुए तुम से सहायता माँगता हूँ । आज की रात गोवा में हीरे के करीब रहो कि उसे कोई लूटना चाहे तो लूट न सकें । सब ठीक रहा तो कल सुबह तुम्हें तुम्हारी फीस के तौर पर पाँच लाख दूँगा ।" समरपाल चित्रा ने धीमे स्वर में कहा । चिंता के भाव उसके शब्दों में स्पष्ट तौर पर झलक रहे थे, हो सकता है ऐसा कुछ भी न हो, परंतु मैं हीरे के आस-पास तुम्हारा इंतजाम चाहता हूँ ।"

"मेरा तो काम ही आप जैसे लोगों की सेवा करना है ।" अर्जुन भारद्वाज ने मुस्कुराकर कहा, "एक रात के पाँच लाख मिलेंगे तो मैं सेवा करने से पीछे हट ही नहीं सकता ।"

"ओह । तुमने मुझे बहुत बड़ी राहत दे दी । तुम शाम को मेरी फ्लाइट में ही... ।"

"मेरे साथ मेरे दो असिस्टेंट नीना और बंसल भी जाएँगे ।"

"बेशक । मैं उनकी भी टिकट बुक करा देता हूँ ।" समरपाल चित्रा ने जल्दी से कहा ।

"मुझे ये बताइए कि गोवा में हीरा कहाँ है ?"

"ये बातें प्लेन में हो जाएँगी । मैं तुम्हें सब कुछ बता दूँगा । तुम अपने असिस्टेंट के साथ एयरपोर्ट पर पहुँचो । ठीक 5:00 बजे मैं तुम्हें एयरपोर्ट के बाहर मिलूँगा ।"

"मैं हीरा देखना चाहता हूँ ।" अर्जुन भारद्वाज कह उठा ।

"वो हीरा आज सुबह मेरे चार खास आदमी लेकर गोवा पहुँच चुके हैं । प्लेन में मैं हीरे को गोवा नहीं ले जा सकता था । बात बाहर निकल जाती । इससे हीरा खतरे में पड़ जाता ।" समरपाल चित्रा ने व्याकुल स्वर में कहा, "बाकी जो भी पूछना हो प्लेन में पूछना । वक्त कम है, चलने की तैयारी करो ।"

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"यही है हीरा ।" मोना चौधरी ने अपने बैग से अंडे के साइज का हीरा निकालकर देवराज चौहान को दिखाया जो कि हल्के गुलाबी रंग का था और खूबसूरत डिजाइन में था । आकर्षक और लुभावना था, "ये दुर्लभ हीरा है । माना जाता है कि ये दुनिया का इकलौता ऐसा हीरा है जो रात में अंधेरे से भरे कमरे में रखा जाए तो कमरे में गुलाबी प्रकाश फैलाकर, कमरा रोशन कर देता है । दुनिया में ऐसा कोई भी हीरा नहीं है जो रात को बंद कमरे में प्रकाश फैला देता हो । सन् 1628 में गोलकुंडा की खान से ये मिला था और किसी ने गायब कर दिया । इसके बाद ये हीरा समरपाल चित्रा के वंशजों के पास नजर आया ।"

देवराज चौहान ने हीरे को हाथ में लेकर देखा ।

"मतलब कि अंधेरे में यह हीरा गुलाबी रोशनी देने लगता है ।" देवराज चौहान बोला ।

"नहीं । ऐसा नहीं है कि अंधेरे में ये रोशनी छोड़ेगा ।" मोना चौधरी ने कहा, "अगर तुम रात के अंधेरे में हीरा लेकर खड़े हो जाओ तो ये रोशनी नहीं देगा । क्योंकि अंधेरे में भी रोशनी वाली कई चीजें होती है जैसे कि चंद्रमा, तारे या ऐसा ही कुछ और । परंतु ये हीरा ऐसे अंधेरे में रोशनी छोड़ता है जहाँ प्रकाश नाम की कोई चीज न हो । जैसे कि कमरे को अच्छी तरह बंद कर लिया जाए । खिड़कियाँ ढक ली जाएँ । रोशनी के नाम पर वहाँ कुछ भी न हो । तब उस गहरे अंधेरे में हीरे के भीतर कुछ क्रिया, कुछ हलचल या बदलाव होता है और धीरे-धीरे ये रोशनी छोड़ने लगता है । 10 बाई 12 के सामान्य कमरे को ये पूरी तरह अपनी गुलाबी रोशनी से रोशन कर देता है और वो गुलाबी रोशनी भी अद्भुत होती है जो कि देखते ही बनती है । इसी वजह से ये हीरा बेशकीमती माना जाता है ।"

"लेकिन ये हीरा तो तुम्हारे पास है जबकि तुम कह रही थी कि हीरे को रात को समुंदर में तैरती कैसीनो से उड़ाना है ।"

"ये उस हीरे की हूबहू नकल है ।"

"नकल ?"

"हाँ ! ये नकल भी समरपाल चित्रा ने 20 साल पहले तैयार करवाई थी ताकि असली हीरे को चोरी होने से बचाया जा सके । हीरा कभी-कभी भारत सरकार के कहने पर महत्वपूर्ण नुमाइश में रखा जाता था । समरपाल चित्रा को लगता था कि नुमाइश में हीरे को कोई चोरी कर सकता है । ऐसे में उसने नकल वाले इस हीरे को नुमाइश में रखना शुरू कर दिया । 8 साल पहले ऐसी ही एक नुमाइश में रखा नकल वाला ये हीरा कुछ लोगों ने उड़ा लिया । ये काम ब्रिटेन की उसे अमीर इंसान ने करवाया था जिसके लिए इस वक्त मैं काम कर रही हूँ । परंतु उसे बाद में पता चला कि नुमाइश में रखा गया हीरा तो नकली था । बाद में समरपाल सिंह ने स्वयं माना कि जो हीरा चोरी हुआ है वो नकली था ।"

"हूँ ।" देवराज चौहान ने हथेली में रखे हीरे को उछाला, "देखने पर लगता नहीं कि ये नकली है ।"

"ये बातें मुझे उसी आदमी ने बताई । मैंने उससे हीरे की ये नकल ले ली कि बाद में वापस दे दूँगी । परंतु मेरा प्रोग्राम है कि असली हीरा खिसकाकर नकली वहाँ रख दिया जाए और हम वहाँ से निकल आए । जब तक वहाँ पर बाद खुलेगी कि हीरा नकली है, हम वहाँ से दूर हो चुके होंगे ।" मोना चौधरी ने कहा ।

"तुम्हारी प्लानिंग क्या है ? देवराज चौहान ने हीरा मोना चौधरी की तरफ उछाल दिया था ।

मोना चौधरी ने हीरा लपका और बोली ।

"रेड रोज कैसीनो, किनारे से 1 किलोमीटर दूर समंदर में खड़ा है । वहाँ तक जाने के लिए किनारे पर कैसीनो की फोर्स मौजूद रहती हैं । जोकि कैसीनो जाने वालों को, कैसीनो तक पहुँचा देती है । जो व्यक्ति उन्हें कैसीनो जाने के लायक नहीं लगता, उसे बोट में नहीं बिठाया जाता, या उसे कहा जाता है कि वो पैसा दिखाएँ कि कैसीनो में खेलने के लायक उसके पास पैसा है या नहीं ? कैसीनो के लोग बोट के पास घूमते रहते हैं कि कोई ग़लत आदमी कैसीनो तक न पहुँच जाए । इस बात की वो भरपूर नजर रखते हैं । कैसीनो दो मंजिला है । नीचे वाले हिस्से में खाना-पानी म्यूजिक, बार रूम और जुए की कुछ मशीनें लगी हैं । ऐसी मशीनें कि जहाँ ज्यादातर औरतें अपना दिल बहलाती है जुआ खेलकर । ऊपर की मंजिल पर बड़ा जुआ खेला जाता है । वहाँ पर हर कोई नहीं जा सकता । जो इंसान उन्हें जुआ खेलने के लायक नहीं लगता, उसे रोक लिया जाता है । सवाल किए जाते हैं । उसकी जेब का वजन देखा जाता है । वहाँ पर टोकन काउंटर से टोकन लिए जाते हैं जोकि मशीनों पर खेले जाते हैं । हर मशीन पर जुआ खिलाने के लिए एक आदमी मौजूद होता है कैसीनो का । वहाँ पर गैरकानूनी तौर पर ताश के पत्तों यानी कि फ्लश का गेम भी होता है और बहुत बड़े दाँव लगाए जाते हैं । कैसीनो में खूबसूरत युवतियाँ, कैसीनो की ड्रेस डाले लोगों को ड्रिंक सर्व करती रहती हैं । कैसीनो के गार्ड भी वहाँ मौजूद रहते हैं कि कोई झगड़ा न हो । अगर कोई हारने के बाद, खूब पीकर हंगामा करता है तो उसे जबरदस्ती बोट में बैठाकर किनारे को छोड़ दिया जाता है ।"

कहकर मोना चौधरी रुकी ।

देवराज चौहान का ध्यान पूरी तरह उसके शब्दों पर था ।

"तुम रेड रोज कैसीनो गई हो ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"कल रात गई थी । 11:00 बजे से 3:00 बजे तक वहीं रही । कैसीनो रूपी जहाज की हर जगह मैंने देखी । कैसीनो के किचन से लेकर छत तक । थोड़ा-बहुत मशीनों पर खेली भी कि कोई मुझ पर शक न करें ।"

"तू इसमें ऐसी कौन-सी जगह है जहाँ हीरे का सौदा किया जाएगा ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"सबसे ऊपर, जहाज की छत पर बहुत बड़ा हॉल कमरा मौजूद है । सजा-सजाया, फर्निश्ड कमरा । वहाँ पर ही आज रात हीरे का सौदा होगा । मैं रात को आसानी से उस कमरे में जा पहुँची थी । वहाँ कोई पहरा नहीं था । वो कमरा कैसीनो वाले मोटे किराये पर मीटिंग के लिए देते हैं । जब वहाँ लोग होते हैं तो कैसीनो की तरफ से वहाँ गार्ड या गनमैन मौजूद होते हैं । वेट्रेस भी ड्रिंक और खाना-पानी सर्व करने के लिए होती हैं । चूँकि किराये के तौर पर मोटी रकम वसूली जाती है इसलिए कैसीनो उस कमरे में रुकने वालों को बेहतर सर्विस देता है ।"

"ऊपर उस कमरे तक जाने के लिए सीढ़ियाँ होंगी ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"हाँ ।"

"अगर सीढ़ियों पर एक गार्ड भी खड़ा हो जाए तो ऊपर नहीं जाया जा सकता ।"

"सही बात ।"

"ऊपर कमरे से बाहर भी गार्ड मौजूद होंगे ।"

मोना चौधरी ने सहमति से सिर हिलाया ।

"तो तुमने क्या सोचा कि काम कैसे होगा ? तुम्हारा प्लान क्या है ?"

मोना चौधरी चंद क्षण चुप रहकर कर उठी ।

"मेरे ख्याल से आज रात उस कमरे में दस से ऊपर, पन्द्रह तक लोग मौजूद होंगे । दुबई का शेख, दो उसके साथी होंगे । कम से कम चार सिक्योरिटी वाले होंगे और दो लोग हीरा परखने वाले होंगे । इसी तरह समरपाल चित्रा के साथ कम से कम चार लोग तो जरूर होंगे । पाँच भी हो सकते हैं । हीरे को लेकर वो जरूरत से ज्यादा सतर्क होगा । क्योंकि हीरे को चोरी करने की कोशिश हो चुकी है ।"  

"वहाँ इतने आदमी होंगे । ये तुम्हारा ख्याल है या पक्की खबर है ?"

"लगभग पक्की ही खबर है । कैसीनो के एक कर्मचारी को पचास हजार रुपए देकर कल मैंने ये जानकारी ली है । वो जो भी जानता था उसने सब मेरे को बता दिया और आज रात भी मेरे से संपर्क करेगा जब मैं जहाज पर जाऊँगी । जो नई बात उसे पता लगी होगी, वो मुझे बताएगा । क्योंकि मैंने उसे आज भी पच्चीस हजार रुपये देने का वादा किया है ।"

"समझा । तुम काम कैसे करोगी रात को और मुझे क्या करना होगा ?"

"पन्द्रह लोगों के लिए करीब दस वेट्रेस वहाँ सर्विस के लिए लगाई जाएगी । उनमें से एक मैं भी रहूँगी ।"

"तुम ?" देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े ।

"हाँ, कैसीनो का वही कर्मचारी मेरे लिए आज वेट्रेस की ड्रेस का इंतजाम कर देगा । मैं भी उन्हीं वेट्रेस में शामिल हो जाऊँगी जो जहाज की छत पर बने कमरे में सर्विस दे रही होंगी ।" मोना चौधरी ने देवराज चौहान को देखा, "उसी दौरान मैं असली हीरा उठाकर वहाँ पर ये वाला रख दूँगी । तब तुम मेरे बताएँ वक्त पर वहाँ की लाइट गुल कर दोगे । लाइट सिर्फ तीस सेकंड के लिए बंद करनी है, उसके बाद उसे ऑन कर देना है ।"

"मतलब कि तुम मेरे से सिर्फ लाइट बंद करने और ऑन करने का काम लेना चाहती हो ?" देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"हाँ ।"

"ये काम तो तुम उस कर्मचारी से भी ले सकती हो जिसे नोट देकर जानकारी ले रही ।"

"वो ये काम नहीं कर सकता । क्योंकि जिन दो बड़े जनरेटरों उसे पूरी कैसीनो को लाइट सप्लाई की जाती है, वहाँ पर जबरदस्त पहरा होता है । क्योंकि लाइट नहीं तो कैसीनो ठप्प । रात को सारा खेल ही लाइट का होता है । कोई भी दुश्मन कैसीनो को फेल करने के लिए लाइट में खराबी पैदा कर सकता है । वहाँ पर दो गनमैन पहरा देते हैं और तीन लाइट के कर्मचारी मौजूद रहते हैं । उस तरफ हर कोई नहीं जा सकता ।"

"कहाँ रखे है वो दोनों जनरेटर ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"जहाज की बेसमेंट में । वो जगह ही जनरेटर रखने के लिए बनाई गई है ।"

"तो मुझे कैसे पता चलेगा कि कब मुझे लाइट बंद करनी है ?"

"तुम अपने काम के लिए तैयार रहोगे । मैं तुम्हें फोन करूँगी ।"

"तब तुम्हारे पास इतना वक्त होगा कि तुम मुझे फोन कर सको ।" 

"फोन करने का तो वक्त होगा परंतु बात करने का नहीं । मेरा फोन आने को तुम इस बात का सिग्नल मानोगे कि तीस सेकंड के लिए पूरी जहाज की लाइट बंद कर दो ।" मोना चौधरी ने कहा ।

"मैं ऐसा कर दूँगा । लेकिन तुम्हें कुछ अंदाज देना होगा कि ये काम उस आधे, पौने घंटे के दौरान होगा । क्योंकि मैनेजमेंट के गार्डों पर काबू पाना है । मुझे वक्त का अंदाजा रहेगा तो मैं अपना काम पहले से ही शुरू कर दूँगा ।"

"मैं समझ गई । रात को तुम्हें बता दूँगी कि ये काम किस वक्त के बीच होगा ।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कहा ।

"कहने को तो ये काम बहुत आसान लग रहा है परंतु आसान है नहीं ।"

"आगे कहो ।" मोना चौधरी की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी ।

"इतने लोगों के बीच हीरे को बदलना और वहाँ से निकल जाना, आसान नहीं लगता । कभी खतरा हो सकता है । लाइट के गुल होते ही जिसके पास तब हीरा होगा, वो उसे मजबूती से मुट्ठी में कैद कर लेगा । अंधेरे के तीस सेकंड में तुम उससे हीरा लेकर उसे नकली वाला शायद न थमा सको ।"

"मैंने कब कहा कि ये आसान काम है ।" मोना चौधरी गंभीर स्वर में बोली ।

"ये खतरे वाला काम है । तुम तब उनके हाथों में पड़ गई, तो वो तुम्हें कभी जिंदा नहीं छोड़ेंगे ।"

"ये भी जानती हूँ । पर तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है ।"

देवराज चौहान और मोना चौधरी की नजरें मिली ।

"ये सब करके निकल जाना मेरे बाएँ हाथ का खेल है ।"

"मैं जानता हूँ, तुम माहिर खिलाड़ी हो । इसमें कोई शक नहीं । परंतु तुम्हारी जगह मैं होता तो हीरा पाने के लिए कुछ और ही सोचता । जैसे कि उनकी व्हिस्की बोतल में बेहोशी की दवा मिला देता ।"

"जरूरत नहीं । इसके बिना भी मैं काम कर जाऊँगी, अगर तुमने मेरे पसंद के वक्त में तीस सेकंड के लिए लाइट बंद कर दी तो ।"

"ये काम मैं कर दूँगा ।"

"मैं हीरे में से तुम्हें भी हिस्सा दूँगी । तुम... ।"

"मुझे कुछ नहीं चाहिए । मैं तो इसलिए तुम्हारे काम आ रहा हूँ कि कुछ महीने पहले तुम मेरी सहायता के लिए आगे आई थी ।" (ये सब जानने के लिए पढ़ें राजा पॉकेट बुक्स में प्रकाशित अनिल मोहन का उपन्यास "बबूता और राजा देव")

"वो तो मैं बेला(नगीना) के कहने पर आई थी । मैंने तुम पर कोई एहसान नहीं किया था ।"

"लेकिन मैं इस वक्त तुम्हारे काम उसी वजह से आ रहा हूँ ।" देवराज चौहान ने कहा । 

कुछ पल ठहरकर मोना चौधरी बोली ।

"तुम आज शाम आठ बजे तक रेड रोज कैसीनो पहुँच जाओगे । मैं तुम्हें नोटों से भरा ब्रीफकेस दूँगी कि वहाँ जुआ खेल सको और पूरे कैसीनो को देख लो कि किस तरफ बेसमेंट में जाने का रास्ता है, जहाज की छत पर कमरा किस हॉल में है । वहाँ के रास्ते कहाँ-कहाँ है, अगर गड़बड़ होने की हालात में तुम्हें वहाँ से फौरन निकलना पड़े तो... । रात ग्यारह बजे तक तुम्हें ये सब बातें जान लेनी है । मेरे ख्याल में रात बारह बजे के बाद हीरा बेचने वालों की मीटिंग शुरू होगी ।"

देवराज चौहान ने कश लिया । उसके चेहरे पर सहमति के भाव थे ।

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