1- माँ
पूरा हॉल भरा हुआ था। अंतिम दर्शन के लिए लोगों की कतार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। बाहर भी लोगों का हुजूम भरा पड़ा था। शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी आँखें नम न हुई हों। दिन के ग्यारह बजे थे और अंतिम यात्रा का समय हो रहा था। कुछ बुजुर्ग महिलाओं ने चलने का इशारा किया।
अभिनव ने अपने पिता को सहारा देकर खड़ा किया। अभिनव का बेटा अरनव अभी भी पूछता जा रहा था,
“पापा, दादी को कहाँ ले जा रहे हैं?” अभिनव ने अपनी पत्नी स्मृति से अरनव को हॉल से बाहर ले जाने को कहा।
अभिनव अपने छोटे से बेटे के प्रश्न का क्या उत्तर देता। वह तो खुद माँ को खोकर सहज नहीं हो पा रहा था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी माँ अजिता, जो उसकी जिन्दगी का अभिन्न हिस्सा थी, वह उसे हमेशा के लिए छोड़कर जा रही थी। वह आखिरी बार अपनी माँ के पास गया। उनके चहेरे पर वही गंभीर और तेज़ का भाव था जो वह बचपन से देखता आया था। उसकी याद में माँ की छवि तब से है जब, वह स्कूल जाने लगा था। सुबह स्कूल जाते समय, माँ और बेटे के बीच तकरार रहती थी। अभिनव स्कूल न जाने के बहाने बनाता और अजिता उसे तरह-तरह से मनाती, समझाती और कभी-कभी गुस्सा भी हो जाती।
अजिता के दिन की शुरुआत किचन से ही होती थी। अभिनव को उठाने के पहले वह उसका टिफिन बना लेती थी क्योंकि अभिनव को स्कूल के लिए जगाना और तैयार करना उसके लिए किसी जंग से कम नहीं होता था। काम समेट कर वह अभिनव को जगाने कमरे की तरफ जाती और कुछ देर वह अपने सोते हुए प्यारे बेटे को खड़ी देखती रहती।
नरम बिस्तर में सोये हुए अपने बच्चे को देखकर माँ के दिल में मातृत्व की धारा बहने लगती। अपने लाडले को जगाना अजिता को एक पल के लिए गलत लगता। मन कहता कि सोने दूँ लेकिन अगला पल एक जिम्मेदार माँ का होता जो उसे जगाने को मजबूर करता। धीरे से अपना स्नेह भरा हाथ अभिनव के माथे पर सहलाती और आवाज़ लगाती “अभिनव उठो, अभिनव उठो।”
अभिनव चौंककर अपने ख्यालों के सागर से बाहर आ गया। उसे लगा कि जैसे माँ उसे बुला रही है। उसने मुड़कर नीचे देखा, उसकी माँ लाल कपड़ो में लिपटी उसी शांत भाव से लेटी हुई थी। उसका मन व्यथित हो उठा। बचपन के पल रह रह कर याद आ रहे थे। अपनी छोटी-छोटी उँगलियाँ अपनी माँ की हथेली में पकड़ा कर कितना बेफ्रिक हो जाता था वह। तब उसे अपने चिंता करने की जरुरत नहीं महसूस होती। नर्सरी क्लास तक वह स्कूल के बस स्टाप तक कभी खुद चल कर नहीं गया। माँ की गोद में ही जाता था।
एक कंधे पर बैग टांग कर, दूसरी तरफ अभिनव को गोद में उठाए और जिद्द में किये गये उसके उल्टे सीधे सवालों का जबाब देते हुए माँ का बस स्टाप तक पहुँचना याद आ रहा था। स्टॉप घर से बहुत दूर तो नहीं था लेकिन पहली मंजिल से उतर कर वहाँ तक आते आते वह हाँफने लगती लेकिन अभिनव गोद से नहीं उतरता और फिर जब बस आती तो स्कूल बस में बैठा कर खिड़की से माँ को तब तक हाथ हिलाता जब तक दूर से उनकी गाड़ी दिखाई देती रहती और शायद तब तक उस की माँ भी वहीं खड़ी रह कर हाथ हिलाती रहती।
“कंधा दो बेटा, अपनी माँ को विदा करने का समय है।” किसी ने अभिनव से कहा।
कैसे दे वह अपनी माँ को कंधा जिनके कंधे पर सिर रखकर वह अपनी सारी परेशानी भूल जाया करता था। उसे लग रहा था उसकी सारी शक्ति क्षीण होती जा रही है। अपनी जगह पर खड़ा रहना भी मुश्किल लग रहा था।
वह संभाल कर नीचे बैठ गया और माँ को देखने लगा। वह पल बहुत भारी हो रहा था उसके लिए। ऐसा नहीं कि उसने कभी ऐसी कमजोरी न महसूस की हो पर तब माँ एक मजबूत चट्टान की तरह उसे सहारा देकर उठा देती थी।
जिन्दगी के पन्नें उसकी यादों के समन्दर में उड़ रहे थे जिनके हर पन्ने में माँ की यादों की खुशबू थी। वह उन पन्नों में बीते हुए हर लम्हें को संजोकर रख लेना चाहता था जिनमें उसकी माँ के अलग अलग रुप थे। एक रुप तो उस दिन भी था उनका शांत गंम्भीर और तेज़ से भरा व्यक्तित्व। उसने अपनी माँ को हमेशा एक हिम्मती और दृढ़ संकल्प लेने वाली औरत के रुप में देखा था। कैसे कर सकी वह इस तरह जो पचास साल पहले उन्नीस साल की एक अल्हड और अनुभवहीन बहू के रुप में एक अनजान परिवार में आई थी। कैसी रही होगी माँ तब?
2-समझौता
बारहवीं की परीक्षा खत्म होते ही अजिता के पिताजी उसकी शादी ढूँढने लगे। अजिता ने पहले बहुत मना किया। वह एक अच्छी छा़त्रा थी और उसने अपने करियर के कुछ सपने देखे थे। उसे उस समय शादी करने का मन नहीं था। लेकिन फिर अजिता की माँ ने उसे समझाया कि उसकी शादी ऐसी जगह करेंगे जहाँ उसकी पढ़ाई चलती रहे। आखिरकार अजिता शादी के लिए मान गई क्योंकि पिताजी बिमार रहते थे और वह जल्द ही अपनी जिम्मेदारी पूरी कर देना चाहते थे। अजिता को केवल इस बात की तसल्ली थी कि उसकी पढ़ाई जारी रहेगी, अजिता के पति विजय एक पढ़े लिखे सभ्य इंसान थे। उन्हें अजिता की पढ़ाई जारी रखने से कोई एतराज नहीं था।
उसके लिए शादी गुड्डे-गुड़ियों के खेल से ज्यादा कुछ नहीं था, इसलिए वह जब विदा हो रही थी तो उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके घर वाले क्यों रो रहे हैं, जबकि उसके पति का घर तो पास में ही था। बड़े भोलेपन में माँ के पास जाकर बोली, “आप लोग इतना रो क्यों रहें हैं। हम पास ही में तो रहेंगें। आप लोग चुप हो जाइए नहीं तो हमें भी रोना आ जाएगा।”
अपनी भेाली मासूम बेटी को गले लगाकर माँ बोली, “मेरी प्यारी बच्ची, तुम हमेशा खुश रहना। जाओ, खुशी खुशी जाओ अब हम नहीं रोएँगे” यह कहकर उन्होनें साड़ी के पल्लू से अपने आँसू पोछें और अपनी बेटी के सर पर हाथ रख दिया।
“अम्मा! मैं जा रही हूँ, आप पिताजी का ध्यान रखना और यह कहकर अपने सपनों को साथ में लिए उसने उस घर की दहलीज की तरफ अपने कदम बढ़ाए जहाँ चले हुए हर कदम का हिसाब देना पड़ता है। लेकिन वह इन सबसे अनजान अपनी ही दुनिया में मस्त थी। उसे न तो माँ-बाप से दूर जाने का एहसास था और न ही अनजान परिवार में अनजान लोगों के साथ रहने की कोई फिक्र थी। उसे तो सब लोगों की इस बात पर विश्वास था कि “लड़की का ससुराल ही उसका अपना घर होता है और वहाँ के लोग उसके अपने होते हैं।” तो इसलिए उसे परेशान होने की क्या जरुरत थी। जहाँ वह जा रही थी वहाँ तो सब उसके अपने लोग ही होगें। उसके भाग्य में क्या लिखा था उसकी उसे चिंता नहीं थी।
“बहू अपने मायके जाने की जिद्द कर रही है।”
“नहीं, अभी कैसे भेज सकते हैं। आप उससे बता क्यों नहीं देती कि अभी दिन शुभ नहीं चल रहे हैं। कम से कम दो महीने तक नहीं भेज सकते।”
“बताया था, लेकिन उसे यह बात समझ में नहीं आ रही। उसके मायके वाले भी बार-बार भेजने पर जोर दे रहे हैं।“
“आप उन लोगों को कह दीजिये कि बार-बार न आयें। बहू को तभी भेजेंगे जब समय सही होगा।”
“सब कहा था लेकिन उनका कहना है कि बहू के पिताजी की तबियत ठीक नहीं है इसलिए वह अजिता को देखना चाहते हैं। अजिता भी अपने पिताजी से मिलने को व्याकुल हो रही है।
“आप बहू को गाँव ले जाइये यहाँ से दूर चली जाएगी तो उसका मन भी बदल जाएगा और वहाँ सबसे मुलाकात भी हो जाएगी। यहाँ रहेगी तो परेशान ही रहेगी क्योंकि दो महिने से पहले भेजना ठीक नहीं रहेगा।”
“बात तो ठीक है लेकिन विजय को इतने दिनों की छुट्टियाँ नहीं मिल पाएगी।”
“विजय यहीं रहेगा। आप अजिता को लेकर चले जाइए। विजय को मैं समझा दूँगा और जब उसकी छुट्टि मिल जायेगी तो वह भी वहाँ आ जाएगा।”
“ठीक है भईया, जैसा तुम ठीक समझो।”
अजिता के ससुर नहीं थे इसलिए उसकी सास अपने देवर से पुछ कर ही कोई निर्णय करती थी।
अजिता को जब गाँव जाने की बात पता चली तो वह पहले परेशान हो गई लेकिन फिर उसे लगा इस बहाने उसे गाँव देखने का मौका मिलेगा। इसलिए बाद में वह खुशी से वहाँ जाने को तैयार हो गई।
3-गाँव का जीवन
“अम्मा, बहू तो आपकी रुप रंग से बहुत सुंदर है। बातचीत भी अच्छी कर लेती है लेकिन अगर कामकाज़ नहीं जानती तो सब बेकार है। सुना है कि पढ़ी लिखी है तो शायद उसकी माँ ने कुछ सिखाया भी नहीं।” गाँव की एक महिला पड़ोसी अजिता की सास से कह रही थी।
"हाँ, काम तो अभी नहीं आता है पर धीरे धीरे सीख जाएगी। अभी उम्र तो कम ही है उसकी।"
"हमने सुना है कि जब आप शादी होकर आई थी उम्र तो आपकी भी कम थी। सोलह साल की उम्र में भी आप सारे काम में निपुण थी। आपकी बहुरानी तो इतनी छोटी भी नहीं है, जो खा पीकर सोने चली गई है। वह महिला हँसते हुए बोली,
"अरे! धीरे बोलो सुन लेगी वह। अभी थोड़ी देर पहले ही सोने गई है। उसके पहले मेरे साथ गेंहू साफ कर रही थी। जया बोली
इस बात पर वह महिला पहले हँसी और बोली "कोई बात नहीं अम्मा। आपका मन न हो तो उससे काम मत कराओ लेकिन बाद में आप ही पछताओगी। पता चला कि बहुरानी सो रही है और सासू माँ खाना बना रही है।
वह महिला यह कह कर चली गई। लेकिन अजिता की आँखों से उसकी अल्हना की खुमारी उड़ा दी और उसके अन्तर्मन को झकझोर कर रख दिया।
जब से वह गाँव में आई थी उसे इसी तरह की बातों का सामना करना पड़ रहा था। सभी आकर उसके रूप रंग की तो तारीफ करते लेकिन उसकी पढ़ाई और घर के काम काज़ का ताना जरूर मारते। उसे उन औरतों पर बहुत गुस्सा आता।
"उन्हें क्या मतलब अगर उसे काम नहीं आता। उसकी अपनी सास को तो दिक्कत है नहीं।"
"यह क्या कर रही हो भाभी? लाइये रस्सी मुझे दीजिए। मैं कुंऐ से पानी निकाल देता हूँ, पानी औरतें नहीं निकालती है। और आप तो बिलकुल नहीं।" बैग नीचे रख कर विजय का भाई अजय बोला।
वह उसी समय शहर से गाँव आया था। बाहर अपनी भाभी को कुंऐ से पानी निकालते हुए देखा तो अपना सारा सामान उतार कर तेज कदमो से अंदर आ गया।
अजय और अजिता एक ही उम्र के थे इसलिए अजय उसे अपने भाभी के रूप से ज्यादा हम उम्र की सहपाठी के रूप में देखता था। वह अजिता के पढ़ाई में रुचि रखने से प्रभावित था क्योंकि उसने अपने परिवार की औरतों का पढ़ाई की तरफ रुझान बहुत कम देखा था।
भईया मैं रस्सी खीच लूँगी। मैं रोज़ ही सबके लिए पानी निकालती हूँ। अजिता अचानक अजय को वहाँ देखकर हड़बड़ा गई थी।
“आप पानी की बाल्टी कुंऐ से खींच लेती हैं? मुझे तो लगता नहीं।” यह कहकर अजय ने ज़बरदस्ती रस्सी अपने हाथों में ले ली और बाल्टी ऊपर खींचने लगा।
अजिता वहाँ से हट गई।
“कब आए तुम यहाँ, भाभी का हाल चाल लेने आए हो।” पड़ोस की एक महिला ने अपनी छत से अजय को देखा तो बोली।
अजय मुस्कुराया और बोला- “हाँ चाची, भाभी का ही हाल लेने आया हूँ कि गाँव में रहकर कहीं गाँव वाली तो नहीं हो गई यह और देखिए सच ही निकला, यहाँ आकर पक्का गाँव वाली ही बन गई हैं।"
“गाँव वाली, अरे तुम्हारी भाभी एक महीने में बहुत काम सीख गई है। इसे तो पहले कुछ भी नहीं आता था, अब तो सारे काम कर लेती है। एक महीना और रहेगी तो निपुण हो जाएगी।”
“काम सीख गई है” अजय ने बाल्टी से रस्सी खोलते हुए चौंक कर कहा और अजिता की तरफ देखा।
दो दिन अजय वहाँ रहा तो देखा कि बारहवीं पास शहर की एक लड़की घर में झाड़ू पोंछा, बर्तन, कपड़े धोना, पानी भरना, चूल्हे में खाना बनाना और गेहूं साफ करना, जैसे काम कर रही है।
“अम्मा, भाभी यह सारे काम क्यों कर रही हैं। यहाँ क्या यह सब काम करने आई थी?” अजय अपनी माँ से बोला।
“तुम चुप रहो, बेकार की बातें मत करो, औरतों को यह सारे काम तो आने ही चाहिए, ब्याह हो गया है अब भी नहीं सीखेगी क्या?”
“हाँ तो इतना सब काम एक साथ सीखने की क्या ज़रूरत है। धीरे-धीरे आ जाएगा। उनकी यह सब करने की आदत नहीं होगी।”
“आदत नहीं है तो पड़ जाएगी। यही उम्र है सीखने की और हमने तो इतना भी कहा नहीं था। वह तो अपने आप ही सब सीखकर कर रही है। तुम ना टोको, वह कर रही है तो करने दो। गाँव वाले मेरा मज़ाक बनाते नहीं थकते हैं कि पढ़ी लिखी बहू लाई हो तो घर के काम नहीं करेगी।”
4-अजिता की मज़बूरी
अम्मा का गुस्सा देखकर अजय चुप हो गया और उसने उसी दिन वापस शहर लौटने का मन बना लिया। अजिता ने उसे रोकने की कोशिश की तो वह बोला,
“आपको जो करना है करीये और मुझे जो करना है मुझे करने दीजिए। मैं यहाँ हँसने बोलने के लिए आया था। लेकिन यहाँ किसी के पास बात करने का समय ही नहीं है। वैसे भी मुझे शहर जाकर कॉलेज के लिए फॉर्म भरना है। लग रहा है आपने तो घर ग्रहस्थी का फॉर्म भर दिया है।”
“नहीं भईया ऐसा नहीं है। मैं भी फॉर्म भरूँगी। आपको तो मालूम है कि मुझे पढ़ने का कितना शौक है।” कहते-कहते अजिता का गला भर आया लेकिन खुद को संभालते हुए बोली,
“दरअसल मुझे वाकई में घर के काम बिल्कुल नहीं आते थे। अब शादी हो गई है तो करना ही है। इसलिए पहले मैं इन्हे सीख लूँ फिर पढ़ाई भी कर लूँगी।”
अजय ने भाभी का चेहरा देखकर और कुछ कहना ठीक नहीं समझा इसलिए बस इतना बोला,
“मैं अपना फॉर्म भरूँगा। अगर आप कहें तो आपके लिए भी ले आऊँ।”
“नहीं अभी नहीं,” अजिता ने धीरे से मुस्कुराने की कोशिश की। मन बहुत दुखी हो रहा था। अजिता अंदर चली गई। पता नहीं क्यों उसे अपने अम्मा और पिताजी की बहुत याद आ रही थी। शादी के बाद वह उनसे मिल नहीं पाई थी।
“दिन अशुभ चल रहे हैं।” ऐसा कहकर उसे गाँव भेज दिया गया। यह शुभ और अशुभ दिन की बात उसे समझ नहीं आ रही थी। माँ बाप से मिलने के लिए कौन सा दिन अशुभ हो सकता है। वह लोग भी उसे बहुत याद कर रहे होंगे। वह कभी भी उनसे दो दिन से ज़्यादा अलग नहीं रही थी। उसे याद आया कि एक बार वह अपने मामा के साथ नानी के घर चली गई थी। तब पिताजी तीन दिन बाद ही उसे लेने वहाँ आ गये थे।
वहाँ सब लोग हँसने लगे, नानी बोली,
“दामाद जी, अभी तो अजिता को यहाँ से ले जा रहे हो पर जब ससुराल जाएगी तो कैसे वापस लाओगे?”
उस समय अजिता को समझ नहीं आया था कि ससुराल से क्यों नहीं वापस ला पायेंगे लेकिन अब उसे एहसास हुआ कि ससुराल से बेटी को लाना कितना मुश्किल होता है।
जैसे-तैसे अजिता ने गाँव में दूसरा महीना काटा और वापस शहर आ गई। लौटते समय विजय उसे लेने आए थे। जिद्द करके वह पहले अपने मायके गई। अचानक बेटी दामाद को देखकर, पिताजी इतना खुश हुए कि शाम तक उनका बुखार उतर गया। थोड़ी देर रुक कर वह लोग अपने घर चलने को तैयार हुए। माँ ने पता नहीं क्या अपनी बेटी की आँखो में पढ़ लिया था कि चलते समय बोली,
“अपना भी ध्यान रखना। खुद खुश रहोगी तभी किसी और को भी खुश रख पाओगी।”
अजिता ने माँ को भरोसा दिलाते हुए कहा, “आप परेशान नहीं होइए अम्मा। आपकी दी हुई शिक्षा मुझे हमेशा याद रहेगी।”
माँ अपनी बेटी का हाथ पकड़कर बैठ गई, तभी विजय की आवाज़ सुनाई दी। “अजिता जल्दी करो अब चलना चाहिए घर में सब सोच रहे होंगे कि हम लोग कहाँ रह गए होंगे।
बाहर निकलते समय विजय के चेहरे पर कुछ परेशानी साफ दिख रही थी। वह जिस बात के लिए डर रहा था वह मुसीबत मिश्रा आंटी के रूप में सामने से आ रही थी।
“अजिता अपने मम्मी-पापा से मिलकर ससुराल जा रही थी इसलिए वह बहुत खुश थी लेकिन विजय बहुत डरे हुए थे।
रास्ते में उसने अजिता को मायके जाने वाली बात किसी को ना बताने के लिए कहा। वह लोग जब घर पहुँचे तो उस समय वहाँ केवल अजय था। चाचा-चाची और उनके बच्चे किसी रिश्तेदार के घर गये थे। विजय की जान में जान आई यह देखकर कि घर में कोई और नहीं था। अजिता ने सामान अपने कमरे में रखा और सबके लौटने के पहले खाना तैयार करने के लिए तुरंत किचन में चली गई।
5-ससूराल की मुसीबत
सासू माँ को दो दिन बाद गाँव से आना था, तो उसे विश्वास हो गया था कि उसके मायके जाने वाली बात किसी को पता नहीं चलेगी।
लेकिन विजय ने बताया कि अम्मा की ख़ास सहेली मिश्रा आंटी ने उसे अजिता के मायके से निकलते समय देख लिया है और अगर उन्होंने यह बात घर में बता दी तो भूचाल आ जाएगा।
“आप घबराइए नहीं, अगर उन्होंने बता दिया तो मैं कह दूँगी कि मैंने ही जिद्द की थी बल्कि आपने तो मना किया था। इसलिए जो कुछ कहना होगा मुझे कह दिया जाएगा। इसलिए आप परेशान नहीं होइये।
अजिता पसीना पोछती हुई किचन से बाहर आते हुए बोली। उसका गोरा चेहरा गर्मी से लाल हो गया था। वह आकर कमरे में पंखे के नीचे खड़ी हो गई।
विजय ने उसे देखा और सोचने लगा कि जिसे इस उम्र में कॉलेज जाना चाहिए था वो गर्मी मे आठ-दस लोगों का खाना बना रही है। उसे अपने ऊपर ग्लानि हो रही थी कि क्यों उसने अजिता को शादी के पहले पढ़ाई जारी रखने का अश्वासन दिया था। उसे अपने घर के माहौल से लगता नहीं है कि अजिता अब आगे पढ़ पाएगी।
तभी दरवाजे पर घंटी बजी अजय ने दरवाजा खोला बाहर से मिश्रा आंटी की आवाज़ सुनाई दी। मिश्रा आंटी की आवाज़ सुनते ही विजय की धड़कने बढ़ गई। अटकले लगाने लगा कि वह अभी क्यों आई होंगी। ‘अम्मा गाँव गई हैं, यह तो उन्हें मालूम था। वह घर तभी आती थी जब अम्मा हो। क्या बात हो सकती है। कहीं वह उन्हें वही बात बताने तो नहीं आई हैं।’
बाहर से आ रही आवाज़ सुनकर अजय ने कहा अरे नहीं आंटी, भईया भाभी तो दोपहर को ही घर पर आ गये थे। ट्रेन थोड़ी लेट थी इसलिए घर आते आते चार बज गये थे। चाचा जी जल्दी खाना खाते हैं ना इसलिए भाभी तो अब तक खाना बना भी चुकी हैं। अगर देर से आती तो इतनी जल्दी कैसे बना पाती।
अजय जान बूझकर तेज़ बोल रहा था ताकि विजय और अजिता सुन लें कि वह मिश्रा आंटी से क्या कह रहा है। मिश्रा आंटी धीरे बोलती थी इसलिए वह क्या कह रही थी सुनाई नही पड़ रहा था।
अजय फिर बोला, “हो सकता है भाभी के घर से उस समय कोई और जा रहा होगा और आपको लगा होगा कि भईया भाभी हों। आपको तो मालूम है कि विजय भईया बिना अम्मा से पूछे कोई काम कर नहीं सकते। हाँ मैं उनकी जगह होता तो शायद कर सकता था।”
फिर अजय ने आवाज़ लगाई “भईया देखिए मिश्रा आंटी आई हैं, आप लोगों से मिलने बाहर आ जाइए।
विजय की झूठ बोलने की आदत नहीं थी लेकिन अजिता की परेशानी बढ़े नहीं इसलिए उसने बिगड़ती हुई बात बना ली। मिश्रा आंटी को पहले विश्वास तो नहीं हुआ लेकिन बाद में वह इस बात से सहमत हो गई कि उन्होंने जिसे देखा था वो कोई और रहा होगा। उन्हें मालुम था कि विजय झूठ नहीं बोल सकता और बिना अपनी अम्मा से पूछे कोई काम नहीं कर सकता।
अजिता ने भी उन्हें गरम हलवा और आलू की पकोड़ी चाय के साथ बनाकर खिलाई तो वह सारी बातें भूलकर, जितनी देर रही अजिता की तारीफ़ ही करती रही। अजिता को पता था कि मिश्रा आंटी को खाने में क्या चीज़े पसंद है। गाँव में इतने दिन रहकर अजिता परिवार, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के पसंद नापसंद के बारे में काफ़ी जान चुकी थी। मिश्रा आंटी के जाने के बाद विजय ने अजय से पूछा,
“तुम्हें कैसे पता चला कि हम लोग अजिता के मायके गये थे”
“मुझे नहीं पता था वह तो मिश्रा आंटी ने ही बताया मैं तभी समझ गया था कि आप लोग वहाँ गए होंगे क्योंकि आपकी ट्रेन तो जल्दी आ जाती है। पहले मैं सोच रहा था कि आप लोग कहीं और घूमने गए होंगे इसलिए घर आने में देर हो रही है। लेकिन भईया आपने यह बहुत अच्छा किया कि भाभी को उनके पापा मम्मी पापा से मिलवा दिया।”
“लेकिन अगर किसी और को पता चल गया तो अजिता की खैर नहीं।” विजय बोला
“उसके चेहरे पर अभी तक डर दिख रहा है। कैसे पता चलेगा आंटी को? अब विश्वास हो गया है कि वह कोई और था और भईया मैं तो बताऊँगा नहीं।”
मुस्कुराते हुए अजय बोला।
अजय संजीदा होकर बोला, “डरिए मत भईया। यह कोई पाप नहीं है। पता चल भी जाए तो क्या होगा? मम्मी पापा से ही तो मिलने गई थी भाभी।”
विजय ने अजय को देखा और अजय ने अजिता को, जो अपने देवर की आभारी थी, कि कोई तो है ससुराल में जो उसकी भावनाएँ समझता है।
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