मैं थका-हारा परेशान-सा अपने स्कूल से घर आ रहा था।मेरे साथमेरे दो दोस्त भी थे। हम तीनों महरौली के बाजार वाले सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। सामने ही स्कूल से निकलते ही दुकान पड़ती है जिस में टेस्टी समोसे मिलते हैं। हम अक्सर खाली क्लास में बाहर आकर समोसे खाते थे। पर पिछले एक हफ्ते से मैंने उन समोसों को छुआ भी नहीं था।
मैं बारहवीं में पढ़ता हूँ। पढ़ाई में मैं साधारण हूँ। स्कूल से निकलते हीमेरे दोस्त देव ने कहा, “राघव, चलो समोसे खाते हैं।”
मैंने कहा, “मेरा मन नहीं है।”
“मैं कई दिनों से देख रहा हूँ, तुम बातें कम करते हो और तुम्हारा पढ़ाई में भी मन नहीं लग रहा है।” देव ने कहा।
तब मैंने कहा, “अच्छा चलो समोसे ले लेते हैं।”
मैंने उसका मन रखने के लिए हाँ कह दिया क्योंकि मैं उसे अपनी उदासी के बारे में नहीं बताना चाहता था।मेरे दूसरे दोस्त सोनू ने कहा, “आज राजनीति विज्ञान का काम ज्यादा मिला है। कई पन्ने लिखने हैं, इसलिए समोसे जल्दी खा लो।”
सानू ने समोसे के तीस रुपये चुका दिए। समोसे वाले ने हम तीनों के सामने प्लेट मेलाल और हरी चटनी के साथ दो-दो समोसे लाकर रख दिए। समोसे हमेशा की तरह स्वादिष्ट बने थे लेकिन मैं समोसे नहीं खा पा रहा था। किसी तरह एक-एक निवाला करके मैंने एक समोसा खाया। एक बचे समोसे को मैंने कूड़ेदान में चुपके से फेंक दिया। लेकिन तभी देव ने समोसे को फेंकते हुए देख लिया। देव ने फौरन मुझसे कहा, “समोसा क्यों फेंक दिया?”
“उस में मक्खी पड़ी थी, इसीलिए।” मैंने बहाना बना दिया। लेकिन तभी सोनू ने सुरेश हलवाई से कहा, “सुरेश, तुम्हारे एक समोसे में मक्खी पड़ी थी।” इस पर शरमाकर सुरेश मुझे एक और समोसा देने लगा।
“मुझे और समोसा नहीं चाहिए।” मैंने कहा।
“अरे मैं खिला रहा हूँ, खा ले। कब तक ऐसे उदास बैठा रहेगा?” सोनू ने कहा।
मैंने कहा, “नहीं सोनू, समोसे में मक्खी देखकरमेरा मन अब समोसे खाने का बिल्कुल भी नहीं है।”
सोनू ने कहा, “ठीक है मत खा, चलो अब घर चलते हैं।”
हम तीनों वहाँ से अपने घर के लिए चल दिए। घर जाते समय हमने कोई बात नहीं की। हम सब चुपचाप चलते रहें। हम तीनों के घर भी पास-पास ही थे।
सोनू पढ़ाई में काफी अच्छा था तो वहीं देव भी ठीक-ठाक था। बस मैं ही उनकी तरह तेज नहीं था। सोनू तो हमारी कक्षा में हमेशा ही प्रथम आता था। देव भी चौथे-पाँचवें स्थान पर आ ही जाता था।
दिल्ली में महरौली की जमीनें कुछ ऊँच-नीच लिए हुए हैं। उसके रास्तों पर कहीं पर चढ़ाई तो कहीं पर उतराई है। बाजार के कारण इन रास्तों पर बड़ी भीड़ रहती है। और चढ़ाई तो ऐसी है कि लोगों के लिए आफत ही है समझिए। उस रास्ते से स्कूल जाते-आते हमारी तो साँस फूल जाती थी। सबसे पहलेमेरा घर पड़ता था। मैं घर पहुँच चुका था।
मैंने डोरबेल बजाई तो मम्मी ने दरवाजा खोला। घर के अंदर पहुँचते ही देखा कि सामनेमेरे ट्यूशन टीचर बैठे थे। उसे वहाँ देखकर मुझे ऊबन हुई।
मेरी मम्मी ने कहा, “हाथ-मुँह धोकर पढ़ाई करो। तब तक मैं तेरा और तेरे भाई का खाना बना देती हूँ।”
टीचर ने मुझे एक घंटा अंग्रेजी पढ़ाई पर मैंने कुछ नहीं पढ़ा। ट्यूशन टीचर के जाने के बाद मैं अपनी छत पर गया। अपनी छत पर खड़े होकर चार घर दूर एक घर की छत को निहार रहा था। वह घर बहुत ही सुंदर डिजाइन की टाइलों से बना हुआ था। उसकी छत भी साफ-सुथरी थी और रेलिंग भी स्टील की लगी हुई थी। छत पर एक कमरा भी था। मैं उसे देखता रहा।
उस घर के मालिक का महरौली में एक शोरूम था जिस मेकपड़े मिलते थे। शोरूम बहुत मशहूँर था इसलिए चलता भी खूब था। मैं अपने लिए कपड़े भी वहीं से लाता था।पर मैं ऐसा इसलिए करता था क्योंकि शोरूम मालिक की लड़की सेमेरा तीन साल से चक्कर चल रहा था। वो लड़की मुझसे एक साल बड़ी थी।मेरा चक्कर उससे नौवीं कक्षा से ही था। वो बहुत ही सुंदर थी। वो कमला नेहरू कॉलेज से बी.कॉम. कर रही थी।
वैसे तो मैंने सुना था कि उसके कई ब्वॉयफ्रेंड थे, पर उसने कहा था कि वोमेरे सिवा किसी और लड़के से दोस्ती नहीं रखेगी। उस पर मुझे बहुत भरोसा था। लेकिन कोई दस दिन से उसने मुझे फोन नहीं किया था, इसीलिए मैं उदास था। दरअसल, फोन करने में दो या तीन दिन से ज्यादा का गैप नहीं करती थी। उसका फोन न आने से मैं अपनी पढ़ाई नहीं कर पा रहा था।मेरा एक ही सपना था कि इंटर के बाद मैं भी उसी की तरह किसी कॉलेज में पढ़ूँ। लेकिन विडंबना यह थी कि सरकारी स्कूल के विद्यार्थी अक्सर कॉलेज नहीं जा पाते। तब दिल्ली मेज्यादा कॉलेज भी नहीं थे। इसलिए बारहवीं में अच्छे अंक लाकर ही विद्यार्थियों को कॉलेज में दाखिला मिलता था।
करीब एक घंटे बाद मैं छत से उतर गया। तब तक खाना भी बन गया था। मैंने अपनी भूख के हिसाब से बहुत कम खाया और फिर बैठकर स्कूल से मिला होमवर्क करने लगा। शाम तक होमवर्क करके मैं क्रिकेट खेलने चला गया। देव और सोनू भी फील्ड में आ चुके थे।
“होमवर्क हो गया?” मैंने सोनू से पूछा।
“हाँ हो गया। तू अपनी बता तेरे पास निधि का फोन आया था क्या?” सोनू ने पूछा।
“नहीं आया।”
“तू पागल है, तुम ही उसे खुद फोन क्यों नहीं कर देते हो?”
“नहीं सोनू, वो फँस सकती है। उसके घर पर बहुत पाबंदियाँ रहती हैं।”
“एक मिस कॉल तो कर ही सकता है।”
“ठीक है, अगर आज उसका फोन नहीं आया तो कल करके देखूँगा।”
“एक बात कहूँ, वो तेरे प्यार के काबिल नहीं है। तू नहीं जानता वो एक बेवफा लड़की है। वो लड़कों से ऐसे बात करती है कि जैसे वो उनकी गर्लफ्रेंड हो।”
“मैं जानता हूँ, वो एक खुली हुई लड़की है। वो दूसरों जैसी नहीं है। वो हँसमुख भी है, इसलिए सबके साथ घुलमिल जाती है।”
“यार उस में सौ खामियाँ भी हों, तब भी तू मानेगा ही नहीं।”रात के दो बज रहे थे। मैं अपने कमरे में सो रहा था। तभी अचानकमेरे फोन की घंटी बजी। मैं फौरन समझ गया फोन निधि का ही होगा। मैंने तुरंत फोन उठा लिया और हैलो कहा। उसने भी हैलो कहा तो मैंने पूछा, “इतने दिनों से कहाँ गायब हो निधि?”
“वो मैं गोवा में हूँ, अपने दोस्तों के साथ। मैं कल यहाँ से चल दूँगी।”
“पर तुमने तो बताया ही नहीं था कि तुम गोवा जा रही हो?”
“हाँ नहीं बताया, नहीं तो तुम मुझ पर शक करते।”
शक की बात करते हीमेरे कान खड़े हो गए की निधि ने एसा क्या कर दिया जो मैं उस पर शक करता।
“क्या मैंने किसी बात के लिए तुम पर कभी शक किया है जो अब करता?”
“हाँ जानती हूँ, तुमने कभी मुझ पर शक नहीं किया है, लेकिन मैंने सोचा तुम परेशान हो जाओगे।”
पर मुझे लगा शक की बात शायद उसने ऐसेही कह दी होगी।
“खैर, तुम किन दोस्तों के साथ हो?”
“हम चार लड़कियाँ और दो लड़के हैं।”
“अच्छा! कहाँ-कहाँ घूमी हो तुम दस दिन में?”
“मैं यहाँ कई बीच पर गई हूँ। जानते हो, मैंने यहाँ बीयर भी पी है वो भी कई बार।”
“तुमने शराब पी निधि?”
मैं सकते में पड़ गया की उसने बीयर पी।
“हाँ पी है, पर बीयर शराब नहीं होती है।”
“तुम नहीं जानतीमेरा यहाँ क्या हाल हो रहा है इतने दिन से। मैं तुमसे बात करने को तड़प रहा था। पर तुमने फोन तक नहीं किया।”
इतना सुनकर निधि ने टॉपिक बदलते हुए पूछा, “अच्छा बताओ, पढ़ाई कैसी चल रही है?”
“बिलकुल बकवास! मैं तेरे बगैर पढ़ नहीं पाता हूँ।”
“अरे तो मैं कल ही आ जाऊँगी बाबा। अच्छा तुम मुझे कल शाम को छह बजे एयरपोर्ट लेने आ सकते हो?”
“हाँ क्यों नहीं। मैं आ जाऊँगा। तुम ठीक से आना।”
“अच्छा ठीक है, अब फोन रखती हूँ। कल डो में स्टिक एयरपोर्ट पर मिलना, ठीक है?”
“बाय निधि!” उसने भी बाय कहके फोन काट दिया।
मैं अब सो नहीं सकता था क्योंकि मेरी उदासी खत्म हो गई थी। उस आधी रात को मैं किचन में गया और एक कप चाय बनाने लगा। चाय बनाकर मैंने सोचा कि कुछ पढ़ लिया
जाए। मैंने अपनी इंग्लिश की किताब उठाई और पढ़ने लगा परमेरा ध्यान पढ़ाई से बार-बार भटक जाता था। मैं सोच रहा था कि निधि लड़कों के साथ गोवा गई है, कहीं उन में से किसी से उसका चक्कर तो नहीं चल रहा! फिरमेरा मन कहता कि नहीं ऐसा नहीं हो सकता है। यही सब सोचते हुए मैं सो गया।
अगले दिन मैं स्कूल गया और फिर स्कूल से लौटकर पढ़ाई करने लगा। फिर शाम पाँच बजे अपनी बुलेट निकाली जो दस दिन से गंदी पड़ी थी। निधि के बाद मैं अपनी बुलेट से ही तो प्यार करता था। जल्दी से बुलेट साफ करके ठीक छह बजे मैं एयरपोर्ट पहुँच गया। मैं एयरपोर्ट के बाहर खड़ा हो गया। कुछ ही देर में निधि भी आ गई।
“क्या हाल है?” निधि ने बुलेट पर बैठते हुए पूछा।
“ठीक हूँ। और तुम्हारे दोस्त कहाँ हैं? वे तो नहीं दिख रहे हैं।”
“वे तो पहले ही जा चुके हैं। असल में मुझेमेरा बैग देर से मिला है। इसलिए वे पहले चले गए।”
मैंने बुलेट स्टार्ट की और हवा से बातें करते हुए मैं महरौली की ओर चल दिया। मैंने निधि से पूछा, “वे जो तुम्हारे दोस्त गोवा में थे कहाँ के थे?”
“वेमेरे कॉलेज के थे।”
“तेरे पापा ने इजाजत कैसे दी, लड़कों के साथ गोवा जाने के लिए?”
“मैंने पापा को नहीं बताया था कि लड़के भी जा रहे हैं।”
“ओह अच्छा!”
हम महिपालपुर और फिर वसंत कुंज होते हुए महरौली पहुँचे। मैंने निधि को उसके घर छोड़ दिया और अपने घर आ गया। मैं पूरे रास्ते यही सोचता रहा कि क्या निधि मुझे अपने साथ गोवा नहीं ले जा सकती थी? पर मुझे लगा कि शायद उसने सोचा होगा कि मैं दस दिन स्कूल नहीं छोड़ सकता था।”
मैंने बुलेट पार्किंग मेलगाई और अपने घर में चला गया। पापा भी आ चुके थे। मुझे देखते ही पापा ने पूछा, “कहाँ गया था?”
“वो मैं अपने दोस्त से मिलने गया था।”
“बोर्ड के एग्जाम हैं और तुम दोस्तों के साथ घूम रहे हो? जाकर कमरे में पढ़ाई करो।”
मैं कुछ बोले बगैर वहाँ से कमरे में आ गया।
***
दो दिन बाद मैं अपनी छत पर गया तो देखा कि निधि वहाँ अपने कमरे में पढ़ रही थी। मुझे देखते ही उसने एक फ्लाइंग किस भेजा। मैंने भी उसे हवा में चूमा और उसके नंबर पर फोन किया। पर वो अभी बिजी बता रहा था इसलिए मैं छत के कोने पर खड़ा हो गया। तभी उसका फोनमेरे पास आ गया।
“और बताओ, गोवा का ट्रिप कैसा रहा?”
“बहुत बढ़िया, जानते हो गोवा में ट्रैफिक बहुत कम रहता है। वहाँ हरियाली भी बहुत है।मेरा होटल कैंडोलिम बीच के पास था। मैं वहाँ पर बस सारा दिन बीयर का मजा लेती रही। सच में, जब मैंने पहली बार बीयर पी तो इतना मजा आया कि पूछो मत।”
“मेरे प्यार से भी ज्यादा?” मैंने उसे ताना मारते हुए कहा।
“यही समझ लो।”
मैंने डरते हुए पूछा, “तुम लड़कों के साथ एक ही रूम में थी?”
“मैं जानती थी तुम ऐसे ही सवाल करोगे। हम अलग-अलग रूम में थे।”
इतना कहकर उसने फोन काट दिया। मैंने किसी खतरे के डर से दोबारा फोन नहीं किया। मैं छत से उतर गया। अब शाम हो गई थी और पापा भी घर आ गए थे।
पापा ने मुझसे पूछा, “आज पढ़ाई की?”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया। जवाब ना देने से पापा समझ गए कि मैंने पढ़ाई नहीं की। पापा ने फिर जोर से कहा, “तुम्हारा बाप उन बनियों की तरह नहीं है जिनका बाजार मेकपड़े या जूतों का शोरूम हो। नहीं पढ़ोगे तो पेट भरने के लिए मजदूरी करनी पड़ेगी।”
मैंने कुछ नहीं कहा और अपने कमरे मेजाकर पढ़ने लगा।
कुछ दिन बाद मैं अपने छत पर खड़ा निधि की छत को एकटक देख रहा था कि तभी निधि छत पर आई। उसके साथ एक लड़का भी था जिसे देखकर मैं सद में में चला गया। उस लड़के को मैं जानता था। वो लड़का महरौली में मशहूँर था। वजह थी कि वो हर चीज में नंबर वन था। उसे वहाँ देखकर लगने लगा कि निधि गईमेरे हाथ से।मेरे मन में असुरक्षा की भावना का डर समा गया। लड़का स्मार्ट तो था ही, उसके पास पैसा भी बहुत था। महरौली में उसके एक नहीं तीन जूते के शोरूम थे। उसका नाम था वंश। वो क्रिकेट भी बहुत अच्छा खेलता था। मैंने उसकी गाड़ी में एक नहीं कई बार दो लड़कियों को देखा था। लड़कियों में भी वो मशहूँर था। वो श्रीराम कॉलेज से बी.कॉम. कर रहा था। उसके पास गाड़ियाँ ही नहीं बल्कि कई मर्सिडीज और बी.एम.डब्लू. थी। दिखने में भी वो किसी मॉडल से कम नहीं था।
मैं तो उसके सामने हर चीज में पानी भरता था। हड़बड़ी में मैंने निधि को फोन लगाया पर उसने फोन नहीं उठाया। मैं ये सब देखकर नीचे उतर आया। मैं समझ गया कि निधि अब मुझे छोड़ देगी।
मैं अपने घर के हॉल में बैठा दिल जलाता रहा। कुछ देर बाद पापा आ गए। मैंने उन्हें पानी दिया, जोमेरा रोज का काम था। अचानक वो मुझे गौर से देखने लगे जो मुझे अजीब लगा। कारण था वे समझ गए कीमेरा ध्यान कहीं और है। तभी मुझे याद आया मैंने पापा को और पानी के लिए नहीं पूछा। तभीमेरा भाई अमित वहाँ आ गया। उसके साथ बैठकर मैं मूवी देखने लगा। अमित नौवीं कक्षा में पढ़ रहा था लेकिन पढ़ने में वो मुझसे तेज था।
रात हो चुकी थी। खाना खाने के बाद पापा-मम्मी सोने चले गए। मैं भी अपने कमरे मेजाकर निधि के बारे में सोचने लगा।
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