“यह रेडियो सीलोन का व्यापार विभाग है ।” - रेडियो पर अनाउन्सर का व्यवसायिक स्वर सुनाई दे रहा था - “हमारा अगल प्रोग्राम सुनने से पहले सुनिये एक सन्देश ।”
अनाउन्सर एक क्षण के लिये रुका और फिर बोला - “यह सन्देश राजनगर के डाक्टर भारद्वाज के लिये है । भारद्वाज, जो इस समय विशालगढ में कहीं हैं, उनसे प्रार्थना है कि फौरन घर वापिस लौट आयें, क्योंकि उनकी पत्नी श्रीमती रेणुका भारद्वाज सख्त बीमार हैं ।”
कर्नल मुखर्जी ने सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और बुझे हुए पाइप को दुबारा सुलगाने में मग्न हो गये ।
वह विशेष संदेश उन्हीं के द्वारा प्रसारित करवाया गया था, वह संदेश उनकी स्पेशल इंटेलिजैंस के कुछ विशेष सदस्यों के लिये एक संकेत था कि अगर उन्होंने वह संदेश सुना है तो वे जहां कहीं भी हों तत्काल मुखर्जी से सम्पर्क स्थापित कर लें । साधारण रेडियो सुनने वालों के लिये वह संदेश निरर्थक था । संसार में केवल चार ही ऐसे व्यक्ति थे जो उस सन्देश का महत्व समझते थे । चारों मुखर्जी के टॉप एजेन्ट थे ।
उसी क्षण अनाउन्सर ने संदेश को फिर दोहराया -
“राजनगर के डाक्टर भारद्वाज, जो इस समय विशालगढ में कहीं हैं, से प्रार्थना है कि वे फौरन घर वापिस लौट आयें क्योंकि उनकी पत्नी श्रीमती रेणुका भारद्वाज सख्त बीमार हैं ।”
कर्नल मुखर्जी ने हाथ बढाकर रेडियो का स्विच आफ कर दिया । उन्होंने पांव कुर्सी के सामने रखी तिपाई पर फैला दिये, अपने नेत्र मूंद लिए और पाइप के हल्के-हल्के कश लगाते हुए प्रतीक्षा करने लगे ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद उनकी मेज पर रखे कई टेलीफोनों में से एक की घन्टी बज उठी । कर्नल मुखर्जी ने नेत्र खोल दिये और टेलीफोनों की ओर दृष्टि दौड़ाई ।
घन्टी अल्ट्राफोन की बज रही थी । अल्ट्राफोन एक नये ढंग का टेलीफोन सिस्टम था । उसमें साधारण टेलीफोन के साथ एक इलैक्ट्रानिक बल्बों में भरा हुआ बक्सा सा लगा दिया जाता था । जिसके कारण कोई अल्ट्राफोन की लाईन टेप करके नहीं सुन सकता था । वह टेलीफोन मुखर्जी की कोठी पर विशेष रूप से प्रतिरक्षा मंत्रालय की ओर से लगाया गया था ।
मुखर्जी ने हाथ बढाकर टेलीफोन का रिसीवर उठा लिया उसे कान से लगाकर शान्त स्वर से बोले - “यस ।”
“राजनगर 88321 ?” - दूसरी ओर किसी ने पूछा ।
“यस ।”
“मैं डाक्टर भारद्वाज बोल रहा हूं । कर्नल मुखर्जी से बात करना चाहता हूं ।”
“मुखर्जी स्पीकिंग ।”
“गुड ईवनिंग सर ।”
“तुम इस समय कहां हो ?”
“मैं विश्वनगर के फ्लाइंग क्लब से बोल रहा हूं । मैं फौरन यहां से रवाना हो रहा हूं । चार घण्टे में आपके पास पहुंच जाऊंगा । मेरे पास रेसिंग कार है । क्या कोई बुरी खबर है, सर ?”
“कार्ल प्लूमर जिन्दा है ।” - मुखर्जी बोले और उन्होंने रिसीवर को क्रेडिल पर रख दिया ।
उसने नेत्र फिर मुंद गए ।
लगभग दस मिनट बाद टेलीफोन की घण्टी फिर बज उठी । मुखर्जी ने रिसीवर फिर उठाकर कान से लगा लिया और बोले - “यस ।”
“राजनगर 88321 ?”- दूसरी ओर से किसी ने प्रश्न किया ।
“दैट्स राइट ।”
“मेरा नाम भारद्वाज है । मैं कर्नल मुखर्जी से बात करना चाहता हूं ।”
“बोल रहा हूं ।”
“गुड ईवनिंग सर ।” - दूसरी ओर से उत्तर मिला - “सुनील बोल रहा हूं । फौरन आ रहा हूं, सर । झेरी में हूं । लगभग सवा घण्टे में पहुंच जाऊंगा ।”
“ओके ।”
“किस्सा क्या है, सर ?”
“कार्ल प्लूमर जिन्दा है ।” - मुखर्जी बोले और उन्होंने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।
उसके बाद अल्ट्राफोन की घण्टी नहीं बजी । प्रत्यक्ष था उसके द्वारा प्रसारित संदेश स्पेशल इन्टेलिजैंस के केवल दो व्यक्तियों के ही कानों में पड़ पाया था लेकिन फिर भी मुखर्जी सन्तुष्ट थे । पिछली बार भी कार्ल प्लूमर के मामले में सुनील और रामू ने ही काम किया था । दोनों ही कार्ल प्लूमर को अच्छी तरह जानते थे । दोनों ने ही कार्ल प्लूमर को लिंक नाम के अमरीकी जहाज सहित अपनी आंखों के सामने समुद्र में डूबते देखा था लेकिन फिर भी कार्ल प्लूमर जिन्दा था और राजनगर में ही देखा गया था ।
कार्ल प्लूमर एशिया के एक बहुत विशाल स्पाई रिंग का चीफ आर्गेनाइजर था । उसकी राष्ट्रीयता का किसी को ज्ञान नहीं था । नाम से वह जर्मन और इंगलिश रक्त के मिश्रण से उत्पन दोगली औलाद मालूम होता था । लेकिन पिछली बार कार्ल प्लूमर के भारत में पदार्पण के बाद जो घटनायें घटी थीं उससे यह सिद्ध हो गया था कि कार्ल प्लूमर ने पड़ोसी शत्रु-राष्ट्र नैटसीकाप से बड़े गहरे सम्बन्ध हैं । नैट्सीकाप डिक्टेटर जनरल ब्यूआ से कार्ल प्लूमर के बड़े गहरे और निजी सम्बन्ध सिद्ध हो चुके थे । जनरल ब्यूआ की ही खातिर कार्ल प्लूमर ने भारत के महान वैज्ञानिक चन्द्रशेखरन और उनके चमत्कारिक आविष्कार डेस्ट्रायर का अगुवा करवा लिया था और बाद में ‘यार्क लाइन’ नाम के अमरीकी जहाज पर लदा हुआ करोड़ों रुपयों का सोना लूटा था । डेस्ट्रायर की सहायता से ‘यार्क लाइन’ को तबाह करने की कोशिश की थी लेकिन मुखर्जी की स्पेशल इन्टैलीजैंस के सदस्यों के हस्तक्षेप की वजह से सफल नहीं हो सका था । (कार्ल प्लूमर और उससे सम्बन्धित घटनाओं और व्यक्तियों की विस्तृत जानकारी के लिये पढिये उपन्यास ‘खतरनाक अपराधी ।’
जब सुनील ने कर्नल मुखर्जी को कार्ल प्लूमर की मृत्यु की सूचना दी थी तो मुखर्जी ने भारी शांति का अनुभव किया था लेकिन अब कार्ल प्लूमर के जीवित होने के समाचार ने उन्हें फिर चिन्तित कर दिया था । कार्ल प्लूमर के दुबारा मैदान में उतर आने के प्रमाणस्वरूप कई छोटी-छोटी तोड़-फोड़ की घटनायें होनी शुरू हो गई थी और मुखर्जी शीघ्र ही किसी बड़ी शरारत की आशा कर रहे थे ।
कार्ल प्लूमर अपने शारीरिक विकासों के कारण कभी छुप नहीं पाता था । उसके चेहरे पर घनी दाढी-मूंछें थीं सिर एक दम गंजा था । उसकी पीठ कुबड़ी थी और एक टांग दूसरी टांग से थोड़ी छोटी मालूम होती थी जिसकी वजह से वह छड़ी के सहारे लंगड़ाकर चलता था ।
उसी क्षण उसके इकलौते नौकर धर्मसिंह ने कमरे में प्रवेश किया । धर्मसिंह मुखर्जी का पीर, बावर्ची, भिश्ती, खैर सभी कुछ था । कभी-कभार तो वह मुखर्जी की गाड़ी भी ड्राइव किया करता था ।
मुखर्जी ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसकी ओर देखा ।
“कोई डाक्टर भारद्वाज नाम के साहब आपने मिलने आए हैं ।” - धर्मसिंह बोला ।
“बुलाओ ।” - वे बोले और उन्होंने तिपाई से पांव हटा लिये ।
धर्मसिंह उल्टे पांव वापिस लौट गया ।
शायद सुनील आया है । मुखर्जी ने सोचा और प्रतीक्षा करने लगे ।
***
मुखर्जी की विशाल मेज के दूसरी ओर सुनील और रामू बैठे थे और मुखर्जी के बोलने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
मुखर्जी ने एक गर्वपूर्ण दृष्टि अपनी ब्रांच के दो सुयोग्य एजेन्टों पर डाली । कोई सोच भी नहीं सकता था कि वे दोनों भारतीय सीक्रेट सरविस की ब्रांच स्पेशल इन्टेलिजैन्स के सदस्य हो सकते हैं ।
सुनील नगर के प्रसिद्ध समाचार-पत्र ‘ब्लास्ट’ का विशेष प्रतिनिधि था । अपने सर्कल में वह एक असाधारण प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति के रूप में जाना जाता था और पुलिस अधिकारियों और अपने परिचितों के विचार से वह तलवार की धार पर चलने जैसी रिस्क भरी और हंगामाखेज जिन्दगी गुजार रहा था । ऐसे व्यक्ति के विषय में कोई स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था कि वह सीक्रेट एजेन्ट हो सकता है । मुखर्जी द्वारा दिये गये किसी भी कठिन से कठिन कार्य में भी उसने आज तक असफलता का मुंह नहीं देखा ।
रामू का पूरा नाम रामनाथ मल्होत्रा था लेकिन उसका रिकार्ड था कि बचपन से लेकर अब तक उसकी मित्रता के दायरे में किसी ने उसे रामनाथ मल्होत्रा या रामनाथ नहीं कहा था । सब उसे रामू के ही नाम से पुकारते थे और उसे यही नाम पसन्द था । पैंतीस वर्ष का रामू बेहद आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था । वह भारतीय वायुसेना में विंग कमांडर था । बाद में वह फेफड़ों में कुछ विकार उत्पन्न हो जाने के कारण वायुसेना की सेवाओं से मुक्त कर दिया गया था ।
अपनी सरविस के समय में रामू सबसे अधिक कुशल और जांबाज पायलेट समझा जाता था । एयरफोर्स के सीनियर आफिसर उसे गर्व की दृष्टि से देखा करते थे । भारत पाक युद्ध में उसने ऐसे अदभ्य साहस का परिचय दिया था और ऐसे विकट अभियानों में सफलता पाई थी कि देश का बच्चा-बच्चा उसका नाम जान गया था ।
वायुसेना की नौकरी से मुक्त कर दिए जाने के संयोगवश ही वह मुखर्जी के सम्पर्क में आ गया था और अब वह जन साधारण की नजर में लापरवाही और अलमस्ती की जिन्दगी बिताने वाला एक एयरफोर्स का रिटायर आफिसर था लेकिन मुखर्जी की नजर में वह उनकी ब्रांच का एक होनहार सदस्य था ।
“सर !” - एकाएक सुनील बोल पड़ा - “कार्ल प्लूमर ।”
“वाकई जिन्दा है ।” - मुखर्जी ने वाक्य पूरा किया ।
“लेकिन यह असम्भव है ।” - सुनील तनिक उत्तेजित स्वर में बोला - “हम लोगों ने खुद ‘लिंकन’ नाम के उस जहाज के परखच्चे उड़ते देखे थे जिसमें कार्ल प्लूमर और उसके सारे साथी मौजूद थे । हमारी आंखों के सामने लिंकन समुद्र में डूब गया था क्यों रामू ?”
“जी हां ।” - रामू ने सुनील की बात का अनुमोदन किया ।
“डेस्ट्रायर को ठीक आठ बजे फटने के लिये सैट किया गया था । चन्द्रशेखरन ने खुद मेरे सामने यह काम किया था और आठ बजे डेस्ट्रायर फट भी गया था । यार्क लाइन नाम के जिस जहाज में हम थे । वह अभी लिंकन से दो मील दूर ही हटा था कि विस्फोट हो गया था । आप तो सर जानते ही हैं कि डेस्ट्रायर नाम का भयानक शस्त्र एक वर्गमील के क्षेत्र में से मानवा, वनस्पति वगैरह का समूल नाश कर देने की क्षमता रखता है ‘डेस्ड्रायर, की इसी विशेषता के कारण कार्ल प्लूमर ने ‘डेस्ट्रायर’ और चन्द्रशेखरन का अगुवा किया था । फिर यह करिश्मा कैसे सम्भव हो सकता है सर कि जहाज के तो चीथड़े उड़ जायें और कार्ल प्लूमर उसमें से फिर भी साफ बच निकले ?”
“तो फिर समझ लो करिश्मा ही हो गया है ।” - मुखर्जी गम्भीर स्वर में बोले - “कार्ल प्लूमर लिंकन में से सही-सलामत बचकर निकल आया है ।”
सुनील चुप हो गया ।
“कार्ल प्लूमर कहां देखा गया है, सर ?” - रामू ने प्रश्न किया ।
“नैट्सीकाप हाई कमीशन की इमारत में ।” - मुखर्जी ने बताया - “हाई कमीशन का एक चपरासी हमारा आदमी है । वह कार्ल प्लूमर को अच्छी तरह पहचानता हैं । उसने मुझे सूचना भिजवाई कि कार्ल प्लूमर नैट्सीकाप हाई कमीशन में एक विशेष अतिथि के रूप में मौजूद है ।”
“क्या हम उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते ?”
“किस अपराध में ?”
“चन्द्रशेखरन और उनके आविष्कार का अगुवा करने के अपराध में, एस्पियानेज के अपराध में ?”
“वे सब इल्जाम हम उसके विरुद्ध सिद्ध कैसे करेंगे । काम तो कार्ल प्लूमर के आदमी करते हैं । वह खुद तो सामने आता ही नहीं है । वैज्ञानिक चन्द्रशेखरन इस बात की पुष्टि कर सकते थे कि उनका अगुवा करने वाला आदमी कार्ल प्लूमर था लेकिन उनका स्वर्गवास हो चुका है और सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह नैट्सीकाप हाई कमीशन की शरण में है ।”
“क्या हम उसे अवांछित व्यक्ति घोषित करके देश से निकाल नहीं सकते हैं ?”
“निकाल सकते हैं लेकिन उसका लाभ कुछ नहीं होगा ।”
“क्यों ?”
“हमारी इस हरकत के जवाब में नैट्सीकाप की सरकार अपने देश में से भारतीय हाई कमीशन के किसी अधिकारी को वही इल्जाम लगाकर जो कार्ल प्लूमर पर लगायेंगे, अवांछित व्यक्ति घोषित करके नैट्सीकाप से निकाल देंगे । सारे संसार को यह बात मालूम होगी । हम यह बात कभी सिद्ध नहीं कर सकेंगे कि हम सच्चे हैं, नैट्सीकाप सरकार झूठी है । नैट्सीकाप चाहे हमारा शत्रु राष्ट्र है लेकिन फिर भी हम उसके और अपने राष्ट्र के बीच के सम्बन्धों में किसी प्रकार का बिगाड़ पैदा करने के मामले में पहल नहीं करना चाहते ।”
“तो फिर ?”
“फिलहाल हम केवल सावधानी बरत सकते हैं । समय आने पर हम किसी पर भी हाथ डालने से नहीं हिचकेंगे । अभी सीधे कार्ल प्लूमर पर चढ दौड़ने का समय नहीं आया है । हमारी एक गलत हरकत हमारी विदेश नीति को बदनाम करने का कारण बन सकती है । हम नहीं चाहते कि विश्व प्रैस में खामखाह हमारे देश का नाम उछाला जाये । कार्ल प्लूमर इस बार बड़ा खतरनाक खेल खेल रहा है । हमें शीघ्र ही उसके और उसके हिमायतियों के चेहरे से नकाब उठाने का मौका मिल सकता है ।”
“कार्ल प्लूमर क्या कर रहा है ?” - सुनील ने पूछा ।
“वह ऐसी हरकतें कर रहे हैं या खरीदे हुए आदमियों से करवा रहे हैं जिससे हमारे अपने मित्र राष्ट्रों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बिगड़ सकते हैं । कार्ल प्लूमर ऐसी स्थितियां पैदा करने की कोशिश कर रहा है कि हम अपने मित्र राष्ट्रों की मित्रता पर और नीयत पर सन्देह करने लगें और हमारे मित्र राष्ट्रों के सम्बन्धों में इतनी गलतफहमियां पैदा हो जायें कि हम लोग मित्रता का दामन छोड़ कर युद्ध की हद तक पहुंच जायें ।”
“ऐसा भी किया जा सकता है ?” - सुनील हैरानी भरे स्वर में बोला ।
“ऐसा किया जा रहा है । कार्ल प्लूमर कर रहा है ।” - मुखर्जी कठोर स्वर से बोले ।
“कैसे ?”
“बड़ी आसानी से । एक ऐसा आदमी या एक ऐसी संस्था जिसमें लाखों करोड़ों रुपया खर्च करने की क्षमता हो यह काम बड़ी आसानी से कर सकते हैं ।”
“लेकिन कैसे ?”
“बताता हूं । इंग्लैंड हमारा मित्र राष्ट्र है । मान लो कोई इंग्लैंड का जासूस भारत में जासूसी करता हुआ पकड़ा जाता है और यही सिलसिला चलता रहता है । ऐसी सूरत में क्या भारत और इंग्लैंड के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण रह पायेंगे ?”
“नहीं... लेकिन ऐसा होगा क्यों ?”
“होगा क्योंकि एक तीसरा व्यक्ति चाहता है कि ऐसा हो । भारत एक गरीब देश है । यहां लाखों ऐसे लोग मिल जायेंगे जो भारी अभाव का जीवन व्यतीत कर रहे हैं और एक मोटी रकम की खातिर कुछ भी करने के लिये तैयार हो जाते हैं । मान लो कार्ल प्लूमर ऐसे लाखों व्यक्तियों में से किसी से सम्पर्क स्थापित करता है और उसे कहता है कि उसे इंग्लैंड जाना होगा, जहां उसे इंग्लैंड के किसी नेवल बेस पर जाकर एक गुप्त कैमरे से वहां की कुछ तस्वीरें लेनी होंगी । वहां पर वह गिरफ्तार कर लिया जाएगा और पर इल्जाम लगाया जाएगा कि वह भारतीय स्पाई है । वहां उस पर मुकदमा चलेगा और उसे पांच छः साल की सजा हो जाएगी । सजा के समय के दौरान में अगर वह अपना मुंह बन्द रखेगा तो कार्ल प्लूमर उसे दो लाख रुपये देगा । आधा रुपया वह उसके भूखे नंगे परिवार को एडवांस में दे देगा और बाकी का आधा रुपया उसे जासूसी के इलजाम में सजा भुगत लेने के बाद में मिल जाएगा । हजारों लोग इस आफर को लपकने के लिये तैयार हो जायेंगे ।”
“लेकिन यह भी तो सम्भव है कि ब्रिटिश सरकार उसे जासूसी के इल्जाम में पकड़ कर गोली से ही उड़ा दे । जब जिन्दगी ही नहीं रही तो...”
“शांति के दिनों में ऐसा नहीं होता है । स्पाई केवल युद्ध के दौरान में गोली से उड़ाए जाते हैं । शांति के दिनों में उन्हें केवल कैद की सजा ही दी जाती है । ऐसा हर राष्ट्र में होता है ।”
“लेकिन उस गिरफ्तार किए गए जासूस के बारे में ब्रिटिश सरकार भारत सरकार से भी तो बात करेगी ।”
“जरूर करेगी । भारत सरकार का सीधा और सच्चा उत्तर यह होगा कि हमें ऐसे किसी आदमी की जानकारी नहीं है । हमने अपने किसी स्पाई को इंग्लैंड में जासूसी करने के लिए नहीं भेजा है । जो आदमी ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किया है, वह हम नहीं जानते कौन है । ब्रिटिश सरकार यही समझेगी कि भारत सरकार झूठ बोल रही है । किसी एक राष्ट्र का जासूस जब दूसरे राष्ट्र में जासूसी करता पकड़ा जाता है तो पहला राष्ट्र सदा यही कहता है कि उन्हें उस जासूस की कोई जानकारी नहीं है वह हमारा आदमी नहीं है । उदाहरण के तौर पर अमेरीकन पायलेट जान पावर्स की घटना याद करो जिसका यू-2 प्लेन रूसी सरकार ने गिरा लिया था और बाद में रूसी सरकार ने जान पावर्स पर स्पाई होने का इलजाम लगाया था । अमरीकी सरकार का पहला उत्तर यही था कि उन्हें जान पावर्स के बारे में कोई जानकारी नहीं है । बाद में उन्होंने कहा था कि यू-2 एक वैदर प्लेन था जो अनजाने में रूसी सीमा में घुस आया था मतलब यह कि अमेरिकी सरकार ने यह स्वीकार नहीं किया था कि जान पावर्स उनका स्पाई था और गलत इरादे से ही रूसी सीमा में घुसा था । बाद में रूसियों ने भी क्या जान पावर्स को गोली से उड़ा दिया था ? नहीं ! उसे केवल कुछ वर्षों की सजा हुई थी और उस सजा की अवधि को भी बाद में काफी घटा दिया था । अब तुम लोग मेरी बात ज्यादा अच्छी तरह समझ गए होगे ।”
सुनील और रामू दोनों ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“इसी प्रकार कार्ल प्लूमर द्वारा ही दौलत का लालच देकर तैयार किया हुआ कोई ब्रिटिश नागरिक भारत में जासूसी करता हुआ गिरफ्तार कर लिया जाता है । ब्रिटिश सरकार से पूछे जाने पर वही उत्तर मिलता है जो पहले भारत सरकार ने दिया था । अर्थात, ब्रिटिश सरकार का उस आदमी से कोई सम्बन्ध नहीं है । भारत सरकार भी यही समझती है कि ब्रिटिश सरकार झूठ बोल रही है । इसी प्रकार की कुछ घटनायें भारत और इंग्लैंड में और हो जाती हैं । नतीजा क्या होगा ? दोनों राष्ट्रों में एक दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना बढती जाएगी । मित्रता के सम्बन्ध समाप्त हो जायेंगे और अगर उसके बाद भी यह सिलसिला चालू रहा तो युद्ध की भी नौबत आ जाएगी ।”
“यह तो बड़ी गम्भीर बात है ।” - सुनील बोला ।
“तुम्हें याद है पिछले दिनों एक भारतीय इंग्लैण्ड में उनके नवीनतम एयरशिप आर-105 को आग लगाने का प्रयत्न करता हुआ पकड़ा गया था ?”
“जी हां, याद है ।” - सुनील बोला ।
“वह कार्ल प्लूमर का ही खरीदा हुआ आदमी था । ब्रिटिश सरकार ने उस आदमी की हरकतों का जिम्मेदार हमें ठहराया था जबकि हमें उसकी जानकारी तक नहीं थी । इसी प्रकार एक अंग्रेज हवाई जहाज द्वारा हमारे फौजी अड्डों की हवाई जहाज में से तस्वीरें लेता हुआ पकड़ा गया था ।”
“यह तो अभी कुछ ही दिन पहले की बात है ।”
“यह भी कार्ल प्लूमर की ही बदमाशी का नमूना था फिर एक अंग्रेज ने हमारे प्रतिरक्षा मंत्रालय में से कुछ गुप्त कागजात चुराने का प्रयत्न किया था । लन्दन में एक हिन्दोस्तानी रेल की पटरियों पर बारूद बिछाता हुआ पकड़ा गया था । इसी प्रकार और भी कितनी ही घटनायें हो चुकी हैं और सबके लिए जिम्मेदार है, कार्ल प्लूमर । और शीर्घ ही हम लोगों ने उनकी हरकतों को रोकने के लिए कुछ किया नहीं तो भारत और इंगलैंड जन्म-जन्मान्तर के लिए एक-दूसरे के शत्रु बन जायेंगे और सम्भव है कि युद्ध की भी नौबत आ जाये ।”
मुखर्जी चुप हो गए । उन्होंने पाइप को होंठों से लगाया और उसके दो-तीन लम्बे-लम्बे कश लिए लेकिन बात के दौरान पाइप बुझ चुका था । मुखर्जी ने पाइप के तम्बाकू की ऊपरी तह को थोड़ा-सा कुरेदा और उसे दोबारा सुलगा लिया । कुछ देर वे धूम्रपान का आनन्द लेते रहे फिर बोले - “आज सारे संसार में शांति के प्रस्तावों और निशस्त्री की बातें होती हैं । लेकिन जब तक विभिन्न राष्ट्रों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास की भावनायें बनी रहेंगी तब तक इन बातों की क्या कीमत है ? युद्ध कोई भी नहीं चाहता । जिन राष्ट्रों ने पिछले महायुद्ध का मजा चखा है वे तो विशेष रूप से बचना चाहते हैं लेकिन अगर आपका कोई पडोसी रोज अपने घर की खिड़की में खड़ा होकर आपको गालियां देता है, आपकी बीवी को छेड़ता है आपके बच्चों को पीटता है, आपके घर के आंगन में गन्दगी के ढेर फेंक देता है तो आप कब तक उससे शांतिपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखेंगे ? उसे अपनी हरकतों को रोकने के लिए मजबूरन आपको उससे लड़ना ही पड़ेगा । ऐसी स्थिति में भी अगर आप नहीं लड़ेंगे तो मुहल्ले के बाकी लोग आपका मजाक उड़ायेंगे, आप पर फब्तियां कसेंगे कि आप डरपोक हैं, नपुन्सक हैं, इस काबिल ही नहीं हैं कि आप अपने पड़ोसी को उसकी गलत हरकतों से रोक सकें । परिणामस्वरूप आपका खून फिर खौल उठेगा और आप अपने पड़ौसी पर चढ दौड़ेंगे । भारत को मित्र राष्ट्रों से युद्ध करवाने के लिए कार्ल प्लूमर इसी साइकालोजी में मिलती-जुलती बातों का सहारा ले रहा है ।”
मुखर्जी फिर चुप हो गए ।
कई क्षण कोई कुछ नहीं बोला ।
“संयोगवश ।” - मुखर्जी फिर बोले - “कार्ल प्लूमर से सम्बन्धित कुछ बातों की जानकारी हमें दी गई । जैसे लिटन रोड पर सिल्वर हाउस नाम की एक इमारत है । उस इमारत का स्वामी रफीक नाम का एक शख्स है । यह देखो उसकी एक तस्वीर ।”
और मुखर्जी ने डबल वेट पेपर पर प्रिंट की हुई एक आठ गुणा दस की तस्वीर उसके सामने रख दी ।
सुनील और रामू एक साथ तस्वीर देखने लगे । तस्वीर लगभग पैंतीस साल के एक क्रूर से लगने वाले आदमी की थी और पोज से मालूम होता था कि तस्वीर उसकी जानकारी के बिना ली गई थी ।
“लिटन रोड की उस इमारत में” - मुखर्जी ने बताया - “कई संदिग्ध प्रकार के व्यक्ति आते रहते हैं । लेकिन रफीक ही एक ऐसा आदमी है जो वहां स्थाई रूप से दिखाई देता है । हमें विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ है कि सिल्वर हाउस कार्ल प्लूमर का हैड आफिस है और रफीक उसका राइट हैंड मैन है । सिल्वर हाऊस में ही कार्ल प्लूमर या उसके आदमी हमारे देश के आदमियों को देश से गद्दारी करने का सबक पढाते हैं और रुपया देकर उनका ईमान खरीदने की कोशिश करते हैं ।”
“खुद कार्ल प्लूमर सिल्वर हाउस में आता है ?”
“अभी तक नहीं आया है, या आया है तो हमें मालूम नहीं हुआ है । लेकिन हमें पूरा भरोसा है कि सिल्वर हाउस से कार्ल प्लूमर का गहरा सम्बन्ध है । सिल्वर हाउस में टेलीफोन है । मैंने उसकी लाइन टेप करवाई हुई है । लाइन चौबिस घन्टे मानीटर की जाती है लेकिन आज तक उस पर ऐसी कोई बात नहीं कही गई है जो संदेहप्रद दो और कार्ल प्लूमर को फंसाने की दशा में आगे बढने में हमारी सहायता कर सकती हो । उन्हें मालूम हो कि उनकी टेलीफोन लाइन टेप की गई है और वे लोग जानबूझ कर टेलीफोन पर कोई महत्वपूर्ण बात न करने की विशेष रूप से सावधानी बरतते हों या वे कोई कोड भाषा का इस्तेमाल करते हों जो हमारी समझ में न आती हो । बहरहाल सिल्वर हाउस की टेलीफोन लाइन टेप करने से हमें कोई फायदा नहीं पहुंच रहा है ।”
“आपने रफीक को चैक करवाया ?”
“वह नैट्सीकाप हाई कमीशन में ही नौकरी करता है । प्रत्यक्ष में उसमें कोई आपत्तिजनक बात दिखाई नहीं देती है, लेकिन फिर भी यह बात निःसंदेह कि वह कार्ल प्लूमर और उसके कुकृत्यों से सम्बन्धित है ।”
“इस सिलसिले में हमें क्या करना होगा ?” - रामू ने पूछा ।
“तुम लोगों को सिल्वर हाउस की निगरानी करनी है । जब भी तुम्हें सिल्वर हाउस में कोई असाधारण काम होता दिखाई दे तुम उसमें हस्तक्षेप कर दो । स्थित ऐसी है कि उन लोगों के साथ खुलकर खेलने में हमें लाभ भी है और सहूलियत भी होगी । वे लोग और उनके कृत्य एक्सपोज हो जायेंगे तो हम ज्यादा सहूलियत से उन पर हाथ डाल सकेंगे ।”
“ओके सर ।”
“और तुम लोगों को सिल्वर हाउस की निगरानी केवल रात को ही करनी पड़ेगी ।”
“क्यों ?”
“दिन में सिल्वर हाउस में उल्लू बोलते हैं । वहां अगर कुछ होगा तो रात में ही होगा । वैसे लिटन रोड एक घना बसा हुआ इलाका है । दिन में लिटन रोड पर स्थित सिल्वर हाउस में कोई असाधारण घटना घटित होने की सम्भावना कम ही है । मेरे स्टाफ के दो ही आदमी हैं जो कार्ल प्लूमर को अच्छी तरह पहचानते हैं । तुम दोनों एक बार उससे टकरा भी चुके हो इसलिये इस नए अभियान के लिये भी मैंने तुम लोगों को ही चुना है ।”
“पिछली बार हमारे साथ गोपाल ने भी काम किया था ?” - सुनील बोला ।
“सिर्फ तुम्हारे साथ । रामू उससे नहीं मिला है । वैसे भी गोपाल कार्ल प्लूमर के ताल्लुक में नहीं आया था लिंकन में तुम और रामू ही गये थे । वैसे जो कोड संकेत रेडियो पर प्रसारित किया गया था, वह गोपाल के लिए भी था लेकिन शायद सन्देश उसके कानों में पड़ा नहीं । मैंने नीलकमल रेस्टोरेन्ट में भी उसकी तलाश करवाई थी लेकिन वह वहां भी नहीं है । इसलिये तुम दोनों को ही सब काम करना होगा ।”
“हम करेंगे ।” - दोनों लगभग एक साथ ही बोले ।
“मुझे तुम दोनों पर बहुत भरोसा है ।” - मुखर्जी बोले और फिर चुप हो गये ।
***
रामू की दाढी बढी हुई थी उसके सिर के बाल बिखरे हुए थे और धूल से भरे हुए थे । उसका शरीर चीथड़ों से चिपटा हुआ था । वह लिटन रोड पर सिल्वर हाउस के सामने फुटपाथ पर एक बिजली के खम्बे से पीठ लगाये हुए बैठा था पिछले चार दिनों से वह इसी प्रकार एक गन्दे भिखारी के रूप में इसी स्थान पर बैठकर सिल्वर हाउस की निगरानी कर रहा था । किसी ने कभी उसकी ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया था । पिछले चार दिनों में रामू को रफीक और उसके कुछ साथियों की सूरतें कई बार दिखाई दी थीं लेकिन अभी तक कोई असाधारण घटना नहीं घटी थी । न ही कभी सिल्वर हाउस में कार्ल प्लूमर का पदार्पण हुआ था ।
एकाएक सिल्वर हाउस के एकदम सामने एक कार आकर रुकी ।
रामू सतर्क हो गया ।
कार में से दो आदमी निकले । फिर उन्होंने पिछली सीट का द्वार खोला । दोनों आदमियों ने कार के भीतर हाथ डाल दिये पहले उनके हाथों में किसी की टांगें दिखाई दीं और फिर उन दोनों आदमियों के हाथ में संभाला हुआ एक शरीर कार से बाहर निकल आया ।
उसी क्षण एक जोरदार ठक की आवाज हुई ।
जो शरीर कार में से बाहर निकाला जा रहा था, उसका सिर भड़ाक से कार के द्वार के ऊपरी भाग से जा टकराया था किसी के मुंह से किसी प्रकार की कोई आवाज नहीं निकलीं । दोनों आदमियों ने उस शरीर को सम्भाला और उसे सिल्वर हाउस के मुख्य द्वार की ओर ले चले ।
कार फौरन आगे बढ गई ।
कार के बीच में से हटते ही रामू ने देखा कि शरीर को संभालते हुए दो व्यक्तियों में से एक रफीक था । दूसरे व्यक्ति को उसने पहली बार देखा था ।
वह शरीर एक वृद्ध आदमी का मालूम होता था उसके सिर पर बड़ी-सी टोपी थी, चेहरे पर लम्बी दाढी-मूंछें थीं ।
पलक झपकते ही रफीक और उसका साथी वृद्ध को उठाए सिल्वर हाउस के भीतर प्रवेश कर गये और सिल्वर हाउस का मुख्य द्वार दुबारा बन्द कर दिया ।
रामू लपककर अपने स्थान से उठा और सड़क की ओर चल दिया ।
थोड़ी ही दूर उसी फुटपाथ पर टेलीफोन बूथ था ।
रामू ने एक सतर्क दृष्टि अपने चारों ओर डाली । रास्ते सुनसान पड़े थे ।
वह लपककर टेलीफोन बूथ के भीतर घुस गया ।
उसने अपने फटे हुए कपड़ो में से दस-दस के सिक्के निकाले और हुक से रिसीवर उतार लिया ।
उसने तेजी से एक नम्बर डायल कर दिया और दूसरी ओर से उत्तर मिलने की प्रतीक्षा करने लगा ।
दूसरी ओर से रिसीवर उठाये जाते ही उसने जल्दी से कायन बाक्स में दस-दस पैसे के दोनों सिक्के डाल दिये और जल्दी से बोला - “हल्लो, हल्लो सुनील ।”
“हां ।” - दूसरी ओर से उत्तर मिला ।
“रामू बोल रहा हूं । फौरन यहां आ जाओ । मैं लिटन रोड के मोड़ पर तुम्हारा इन्तजार करूंगा ।”
“आता हूं ।” - तत्काल उत्तर दिया ।
रामू ने रिसीवर हुक पर टांग दिया । और सावधानी से दायें-बायें देखकर फुर्ती से टेलीफोन बूथ से बाहर निकल आया ।
फिर वह लड़खड़ाता हुआ लिटन रोड के मोड़ की ओर बढ गया ।
मोड़ के समीप पहुंचकर वह फिर फुटपाथ पर एक खम्बे का सहारा लेकर बैठ गया ।
एक सिपाही उस पर उचटती सी दृष्टि डालकर उसकी बगल से गुजर गया ।
रामू ने उसकी ओर सिर उठाकर देखने की भी तकलीफ नहीं की ।
रामू प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग दस मिनट बाद तेज रफ्तार से चलती हुए एक कार आकर लिटन रोड के मोड़ पर रुक गई । क्षण-भर के लिए कार की हैडलाइट्स बुझी फिर जली और फिर बुझी तो फिर न जली ।
रामू लपककर अपने स्थान से उठा और कार के समीप पहुंच गया । उसने कार का अगला द्वार खोला और भीतर घुस गया ।
भीतर सुनील बैठा था ।
“क्या किस्सा है ?” - सुनील ने पूछा ।
“अभी एक आदमी को बेहोशी की हालत में सिल्वर हाउस के भीतर ले जाया गया था । रफीक और उसका एक अन्य साथी उसे उठाकर भीतर ले गये थे । वे लोग एम्बैसी की गाड़ी पर आये थे ।”
“एम्बैसी की गाड़ी पर ?” - सुनील चौंका ।
“हां, इसीलिये तो मुझे मामला महत्वपूर्ण लग रहा है । यह एम्बैसी की ही कार थी । मैंने उसकी नम्बर प्लेट पर सी डी लिखा हुआ साफ देखा था ।”
“तुम्हें कैसे मालूम है कि बूढा बेहोशी की हालत में लाया गया था ? सम्भव है वह बीमार हो और वे लोग उसे बीमार होने की वजह से ही कहीं से सिल्वर हाउस में लेकर आये हों ।”
“मेरा दावा है, वह बेहोश था । बूढे को कार से निकालते समय असावधानीवश उन्होंने बूढे का सिर भड़ाक से कार के द्वार के ऊपरी भाग से टकरा दिया था । परिणामस्वरूम बूढे के मुंह से सी तक भी नहीं निकली थी और न ही रफीक और उसके साथी ने ही किसी प्रकार का खेद प्रकट किया था । नहीं तो ऐसे मौके पर आदमी कम से कम सॉरी तो कह ही देता है । सुनील, वह बूढा निश्चय ही अचेत है और इस बात की पूरी सम्भावना है कि वह अपनी इच्छा के विरुद्ध सिल्वर हाउस में लाया गया है ।”
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “रामू, मैं वहां जाता हूं ।”
“इरादा क्या है तुम्हारा ?”
“मैं सिल्वर हाउस के भीतर प्रवेश करने जा रहा हूं । अब से ठीक दस मिनट बाद तुम गाड़ी को सिल्वर हाउस के सामने ला खड़ी करना ।”
“वे लोग तुम्हें भीतर घुसने देंगे ?” - रामू ने संदिग्ध स्वर में पूछा ।
“मैं कोई न कोई तिकड़म भिड़ा लूंगा ।”
“ओके दैन । विश यू गुड लक ।”
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला और कार से बाहर निकल आया ।
वह लापरवाही से टहलता हुआ सिल्वर हाउस की ओर बढा । उसके होंठों में से हल्के स्वरों में ‘बर्लिन मेलोडी’ की धुन निकल रही थी ।
रामू चुपचाप कार में बैठा रहा ।
अभी वह सिल्वर हाउस से थोड़ी दूर पर ही था कि सामने से एक पुलिस के सिपाही ने आकर उसे रोक दिया ।
“कौन हैं आप ?” - सिपाही ने अधिकारपूर्ण स्वर में पूछा ।
सुनील थमक गया । सीटी बजानी उसने फौरन बन्द कर दी और विनोदपूर्ण स्वर से सिपाही से बोला - “तुम्हें क्या दिखाई देता हूं, हवलदार ?”
“मेरा मतलब है, इतनी रात को आप यहां क्या कर रहे हैं ?” - सिपाही सन्देहपूर्ण स्वर में बोला ।
सुनील ने अपनी जेब से सिगरेट केस निकाल लिया । वह सिगरेट केस उसे मुखर्जी ने दिया था । कुछ सिगरेट सादे थे जो केवल पीने के काम आते थे कुछ सिगरेट मैग्नीशियम के एक कम्पाउन्ड से भरे हुए थे जो सुलगाये जाने पर वातावरण में एक अच्छा-खासा धमाका और गहरे धुयें के बादल पैदा कर देते थे सुनील ने लापरवाही से एक सिगरेट निकालकर होंठों से लगाया, सिगरेट केस के ही साथ सम्बद्ध लाइटर से उसे सुलगाया, सिगरेट केस को जेब के हवाले कर दिया और सिगरेट का एक गहरा कश लेता हुआ सिपाही से बोला - “वह सामने का मकान देख रहे हो हवलदार ।”
सुनील का संकेत सिल्वर हाउस की ओर था ।
“क्या है उस मकान में ?” - सिपाही ने पूर्ववत् संदिग्ध स्वर से पूछा ।
“उसमें रफीक नाम के एक साहब रहते हैं ।” - सुनील सहस्य पूर्ण स्वर से बोला - “अभी थोड़ी देर पहले वे इमारत में एक बूढे आदमी को लाये हैं जो बेचारा बहुत बीमार है, मरने वाला है ।”
“क्या बीमारी है उसे ?”
“पागल है... एकदम पागल । पागलपन का बड़ा भयानक दौरा पड़ता है उसे । उस हालत में जो आदमी उसके हाथ में आ जाता है वह उसकी धज्जियां उड़ा देता है ।”
“तुम्हारा उससे क्या सम्बन्ध है ?”
“मैं उसका डॉक्टर हूं । मैं खुद बड़ा डरता हुआ उसे देखने जा रहा हूं । आज तो सुना है वह किसी के काबू में नहीं आ रहा है । आज तो मुझे उसके सामने जाते बहुत डर लग रहा है । लगता है आज वह पागल मुझे जरूर जान से मार डालेगा । हवलदार साहब, उस इमारत का नाम सिल्वर हाउस है । मैं अभी उसके भीतर जा रहा हूं । इस वक्त दो बजे हैं । तुम्हारी ड्यूटी तो लिटन रोड पर ही रहती है न ?”
“हां ।” - सिपाही अनिश्चित स्वर से बोला ।
“अगर मैं दस-पन्द्रह मिनट में सिल्वर हाउस से बाहर नहीं निकला तो हवलदार साहब समझ लीजिए कि मेरा काम तमाम हो गया । सवा दो बजे के बाद बराय मेहरबानी आकर लाश उठवा ले जाना । तब तक के लिए अलविदा ।”
और सुनील पहले की तरह सीटी बजता हुआ सिल्वर हाउस की ओर बढ गया ।
सिपाही वहीं खड़ा उल्लू की तरह पलकें झपकता रहा ।
सुनील सिल्वर हाउस के सामने जा खड़ा हुआ । उसने एक उड़ती सी नजर विशाल इमारत के विस्तार पर दौड़ाई और फिर मुख्य द्वार की ओर बढा ।
उसी समय ऊपर की किसी मन्जिल से शीशे टूटने की जोरदार आवाज आई और फिर शीशे के ढेर सारे टुकड़े सुनील के पीछे फुटपाथ पर फैल गए । शीशों की झल्लाहट के साथ ही एक आदमी की पीड़ा भरी चीख वातावरण के सन्नाटे को तलवार की धार की तरह काट गई ।
सुनील ने सिर उठाकर ऊपर देखा । उसके सिर के एकदम ऊपर पहली मन्जिल की एक खिड़की के शीशों के परखच्चे उड़ गए थे ।
“आप इसी घर के भीतर जाने की बात कर रहे थे ?”
उसे अपने पीछे सिपाही का स्वर सुनाई दिया । वह न जाने कब चुपचाप सुनील के पीछे आ खड़ा हुआ था ।
“हां, हवलदार साहब ।” - सुनील सिपाही की ओर घूमकर बोला - “यही है वह सिल्वर हाउस जिसके भीतर एक भयानक पालग मौजूद है । उसके पागलपन का एक नमूना अभी आपने देखा है । इतनी खूबसूरत खिड़की के परखच्चे उड़ा दिए हैं उसने और अभी देखा आपने कितनी जोर से चीखा था वह ।”
“आप सम्भाल लेंगे उसे ?” - सिपाही ने नम्र स्वर से पूछा ।
“सम्भालना ही पड़ेगा ।” - सुनील बोला । उसने मुख्य द्वार की चौखट में लगी काल बैल का बटन दबा दिया ।
थोड़ी देर शांति रही । द्वार नहीं खुला ।
सुनील ने फिर घन्टी बजाई ।
इस बार द्वार खुल गया था । द्वार स्वयं रफीक ने खोला था ।
“भीतर क्या हो रहा है ?” - सिपाही ने सख्त आवाज में पूछा ।
“कुछ भी नहीं सन्तरी जी ।” - रफीक तनिक चिन्तित स्वर में सिपाही से बोला - “अब मैं आ ही गया हूं । मैं सब सम्भाल लूंगा ।”
और फिर वह रफीक से सम्बोधित हुआ - “मैं डाक्टर हूं । शायद आप ही ने मुझे फोन करके बुलाया था । मैं मरीज को देखने आया हूं ।”
और इससे पहले कि रफीक मुंह से विरोध का एक शब्द भी निकल पाता, सुनील मुख्य द्वार से भीतर प्रवेश कर गया था ।
“गुड नाइट हवलदार साहब ।” - वह मीठे स्वर से बोला और उसने हाथ बढाकर द्वार बन्द कर दिया । उसका हर एक्शन ऐसा था जैसे सिल्वर हाउस का स्वामी रफीक नहीं, वह खुद हो ।
“कौन हो तुम ?” - रफीक क्रूर स्वर से बोला ।
“मैं डाक्टर हूं ।” - सुनील सहज स्वर से बोला - “मरीज देखने आया हूं, तुम ही ने तो बुलाया है मुझे ।”
“हमने नहीं बुलाया तुम्हें ।”
“तो बड़े भाई, सिपाही के सामने जब मैं भीतर घुस रहा था, उस समय तुम्हें मेरा विरोध करना चाहिये था ।”
“लेकिन तुम हो कौन ?”
“बताया तो था मैं डाक्टर हूं ।”
रफीक एक क्षण उसे घूरता रहा । फिर उसने द्वार की भीतर से चिटकनी चढा दी और सुनील की ओर बढा ।
सुनील ने सिगरेट का आखरी कश लगाकर उसे फर्श पर फेंक दिया ।
समीप आते ही रफीक का दायां हाथ घूंसे की सूरत में सुनील के जबड़े की ओर घूम गया ।
सुनील ने बड़ी फुर्ती से वार बचा लिया । दुबारा घूंसा चलाने का उसने रफीक को मौका नहीं दिया । उसके पांव की एक जोरदार ठोकर रफीक के पेट में पड़ी । रफीक बिलबिला गया और लड़खड़ाकर पीछे हटा । सुनील ने आगे बढकर एक जोरदार हुक उसकी ठोडी के नीचे जमाया । रफीक के पांव उखड़ गये और वह जमीन पर लोट गया ।
सुनील आगे बढा और उसके फर्श पर गिरे हुए शरीर पर झुक गया । रफीक के मुंह से एक कराह निकली और उसने करवट बदलने का प्रयत्न किया ।
सुनील ने एक और भरपूर घूंसा उसकी छाती पर जमा दिया । रफीक के मुंह से एक क्षीण-सी आह निकली और उसकी चेतना लुप्त हो गई ।
सुनील ने फुर्ती से उसके अचेत शरीर को अपने कन्धों पर लाद लिया और हॉल के एक दूसरे कोने में स्थित एक कमरे की ओर बढ चला ।
उसने रफीक के अचेत शरीर को उस कमरे में डाल दिया और बाहर से कमरे का दरवाजा बन्द करके चिटकनी चढा दी ।
वापस आकर उसने अपने चारों और दृष्टि दौड़ाई । अभी तक वहां रफीक के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के दर्शन नहीं हुए थे ।
सुनील चुपचाप सीढियां चढने लगा ।
वह पहली मंजिल पर आ गया ।
पहली मंजिल पर आकर उसने वह कमरा बड़ी आसानी से ढूंढ निकाला जिसकी कुछ देर पहले खिड़कियां टूटी थीं ।
कमरा खाली था ।
सुनील के चेहरे पर उलझन के भाव आ गये लेकिन शीघ्र ही बात उसकी समझ में आ गई । पुलिस मैन घटनास्थल देखने के लिये भीतर आने का अनुरोध भी कर सकता था । इसलिये शायद वृद्ध को उस कमरे में से हटा दिया गया था ।
सुनील कमरे से बाहर निकल आया ।
एक-एक करके उसने पहली मंजिल के सारे कमरे टटोल डाले ।
कहीं कोई न था ।
वह दूसरी मन्जिल की ओर जाने वाली सीढियों की ओर बढा ।
अभी उसने तीन-चार सीढियां ही तय की थीं कि ऊपरली मन्जिल के एक कमरे का दरवाजा खुला और उसमें से एक आदमी निकलकर सीढियों के सिरे पर आ खड़ा हुआ ।
सुनील केवल एक क्षण के लिये ठिठका और फिर सिर झुकाये बदस्तूर सीढियां चढा रहा ।
सीढियों में केवल एक जीरो वाट का बल्ब जल रहा था । उस सीमित प्रकाश में ऊपर वाले आदमी को सुनील को पहचान लेना सम्भव नहीं था ।
आधी सीढियां तय कर चुकने के बाद सुनील ने सिर झुकाये-झुकाये ही घरघराती आवाज से पूछा - “सब ठीक है ?”
“सब ठीक है ।” - तत्काल उत्तर मिला ।
प्रत्यक्षतः उसका ब्लफ चल गया था । सीढियों के सिरे पर खड़ा आदमी उसे पहचान नहीं पाया था । वह सुनील को अपना ही साथी समझा था ।
सुनील सिर झुकाये तेजी से सीढियां चढता रहा ।
चार सेकेण्ड बाद जब सुनील एकदम उसके सिर पर पहुंच गया तब उसे मालूम हुआ कि सुनील उसका साथी नहीं था लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।
सुनील ने उसे घूंसों पर धर लिया ।
कुछ ही क्षण में उसका शरीर रेत के बोरे की तरह फर्श पर आ गिरा ।
सुनील ने उसकी बांहें थाम लीं और उसे वापिस उस कमरे की ओर घसीटने लगा जिसमें से सुनील ने उसे निकलते देखा था ।
सुनील उसे घसीटता हुआ उस कमरे में भीतर ले गया । उसने उसे एक ओर डाल दिया और कमरे में अपनी दृष्टि दौड़ाई ।
कमरे के एक कोने में एक पलंग था जिस पर उस बूढे का शरीर पड़ा था, जिसका जिक्र रामू ने किया था ।
सुनील पलंग के समीप पहुंचा ।
वृद्ध के हाथ-पांव बंधे हुये थे । उसके मुंह पर कसकर एक पट्टी बांधी हुई थी ताकि वह चिल्ला न सके । उसके नेत्रों पर एक बड़े शीशों वाला काले रंग का चश्मा चढा हुआ था ।
वह अभी तक अचेत था ।
सुनील ने बड़ी सावधानी से वृद्ध के शरीर को उठाकर अपने कन्धे पर लाद लिया । वृद्ध का वजन उसकी आशा से बहुत कम था ।
सुनील वृद्ध को उठाये हुए कमरे से बाहर निकल आया । उसने अपना एक हाथ क्षण भर के लिये मुक्त करके कमरे का द्वार बाहर से बन्द कर दिया और वापिस नीचे की ओर ले आने वाली सीढियां उतरने लगा ।
ग्राउन्ड फ्लोर पर पहुंचते ही एक नई रुकावट उसके सामने आ गई ।
हाल में अपने एक अन्य साथी के साथ रफीक खड़ा था । शायद रफीक के साथी ने ही रफीक को कमरे से निकाला था ।
दोनों के हाथ में रिवाल्वर थे और उनकी नजरें सुनील पर टिकी हुई थीं ।
सुनील सीढियों पर ठिठक गया ।
“रुको मत ।” - रफीक ने आदेश दिया ।
“ओके बाय ।” - सुनील व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला और फिर सीढियां उतरने लगा ।
नीचे आकर वह कुछ क्षण रफीक और उसके साथ के हाथों में थमी रिवाल्वर को घूरता रहा ।
“इसे सोफे पर लिटा दो ।” - रफीक बोला ।
“बेहतर ।” - सुनील बोला और उसने बड़ी सावधानी से वृद्ध को अपने समीप पड़े एक सोफे पर लिटा दिया ।
सुनील फिर रफीक के सामने आकर खड़ा हुआ । उसने अपना सिगरेट केस निकालने के लिये जेब की ओर हाथ बढाया ।
“जेब में हाथ मत डालो ।” - रफीक का साथी गुर्राया ।
“डरो मत ।” - सुनील बोला - “सिगरेट केस निकाल रहा हूं ।
मेरे पास रिवाल्वर नहीं है ।”
सुनील ने सिगरेट केस निकाल लिया । उसने चुनकर एक सिगरेट निकाली और उसे सुलगाकर सिगरेट केस फिर जेब में डाल लिया ।
“रिवाल्वर क्यों दिखा रहे हो मुझे ?” - वह बड़ी सावधानी से सिगरेट का एक छोटा-सा कश लेता हुआ बोला - “मुझे पुलिस के हवाले करोगे ?”
“तुम चोर हो । जबरदस्ती यहां घुसे हो ।” - रफीक बोला ।
“लेकिन सिपाही के सामने मैंने यही कहा था कि मैं डाक्टर हूं और इस घर में विजिट पर आया हूं । उस समय तुमने मेरी बात का विरोध नहीं किया था । अगर तुम मुझे चोर कह कर पुलिस के हवाले करोगे तो सबसे पहले पुलिस तुमसे यह पूछेगी कि पहले डाक्टर के रूप में मुझे भीतर आने से रोका क्यों नहीं था ? और फिर तुम इस वृद्ध के बारे में क्या सफाई दोगे जिसके तुमने हाथ-पांव और मुंह बांधकर जबरदस्ती गिरफ्तार करके रखा हुआ है ? पागलों के साथ भी ऐसा दुर्व्यवहार नहीं किया जा सकता ।”
“तुम्हें पुलिस को नहीं सौंपा जायेगा ।” - रफीक का साथी निश्चयात्मक स्वर से बोला ।
“तो फिर मेरा क्या अचार डालोगे ?” - सुनील व्यंगपूर्ण स्वर में बोला - “तुम लोग मुझे यहां रोककर भी तो नहीं रख सकते । बाहर खड़े हुए सिपाही को मैंने कहा था कि अगर मैं दस-पन्द्रह मिनट के अन्दर-अन्दर इस इमारत से बाहर न निकलूं तो इसका मतलब यह होगा कि मुझे जबरदस्ती भीतर रोका जा रहा है । सिपाही अभी भी बाहर मौजूद होगा और मुझे पूरा विश्वास है कि पन्द्रह मिनट बाद वह इस इमारत का दरवाजा जरूर खटखटा देगा ।”
रफीक एक क्षण चुप रहा और फिर अपने साथी की ओर घूमकर बोला - “ऊपर की किसी खिड़की में से झांककर देखो, बाहर सिपाही खड़ा है ?”
रफीक का साथी सीढियों की ओर बढ गया ।
सुनील लापरवाही का प्रदर्शन करता हुआ बड़ी सावधानी से सिगरेट के कश लगाता रहा । हर कश के बाद सिगरेट को गौर से देख लेता था ।
रफीक का साथी वापस लौट आया और दुबारा रफीक के पास आकर खड़ा हो गया । रिवाल्वर अभी भई उसके हाथ में थी ।
“सिपाही एकदम दरवाजे के सामने खड़ा है ।” - उसने रफीक को बताया ।
सुनील के चेहरे पर मुस्कराहट दौड़ गई ।
“ऐसी की तैसी सिपाही की ।” - रफीक जलकर बोला - “उस की वजह से तुम बच नहीं सकते । अगर वह भीतर आने की कोशिश करेगा तो वह अपनी जान से हाथ ध बैठेगा ।”
“मतलब यह कि तुम मुझे जान से मार डालना चाहते हो ?”
रफीक के चेहरे पर एक विषैली मुस्कराहट फैल गई । उस का रिवाल्वर वाला हाथ सुनील की ओर तन गया । सुनील ने पहली बार देखा, रिवाल्वर की नाल पर साइलेंसर चढा हुआ था ।
“जरा एक सैकण्ड ठहरो ।” - सुनील अपना बायां हाथ उठाकर बोला - “मुझे सिगरेट तो पी लेने दो ।”
रफीक एक क्षण के लिये झिझका ।
सुनील ने जल्दी से सिगरेट के दो-तीन कश लगाये और फिर जल्दी से बचे हुए टुकड़े को रफीक और उसके साथी के पैरों के समीप फेंक दिया ।
सिगरेट के टुकड़े में से पहले हल्की-सी हिस्स की आवाज आई और फिर उसमें से एकदम एक बेहद चौंधिया देने वाले प्रकाश का धमाका-सा फूट पड़ा ।
रफीक और उसके साथी की आंखें चौंधिया गई ।
एक क्षण के बाद प्रकाश गायब हो गया और वातावरण गहरे धुएं के बादलों से भर गया ।
सुनील एकदम इस सोफे की ओर झपटा जिस पर उसने वृद्ध को लिटाया था । उसने वृद्ध को उठाकर दुबारा कंधे पर लादा और धुएं के बादलों में से गुजरता हुआ मुख्य द्वार की ओर झपटा ।
एक हल्की पिट की आवाज हुई और एक गोली सनसनाती हुई सुनील के समीप से गुजर गई ।
उसने फुर्ती से द्वार खोला और बाहर निकल गया ।
धुएं के बादल उसके पीछे-पीछे कमरे में से द्वार के बाहर सड़क की ओर उबल पड़े ।
बाहर हैरान-सा पुलिस का सिपाही खड़ा था ।
“आग ! आग !” - सुनील गला फाड़कर चिल्लाया - “बचाओ ! बचाओ !”
वह लपककर सिपाही के पास पहुंचा और बोला - “हवलदार साहब, इमारत में आग लग गई है । भगवान के लिये बाकी लोगों को बचाओ । मरीज को तो मैं निकाल लाया हूं लेकन भीतर आग से घिरे हुए और लोग भी हैं...”
सिपाही तोप में से छूटे गोले की तरह इमारत के भीतर की ओर लपका ।
सुनील वृद्ध को उठाये फुटपाथ पर आ गया ।
उसी क्षण रामू ने कार को उसकी बगल में ला खड़ा किया ।
सुनील वृद्ध सहित पिछली सीट पर जा बैठा ।
अगले ही क्षण गाड़ी लिटन रोड के सुनसान रास्ते पर दौड़ गई ।
सिल्वर हाऊस के कुछ ही दूर सड़क के एक कोने से एक नीले रंग की शेवरलेट गाड़ी आ खड़ी हुई थी । गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर जो आदमी बैठा था, उसके चेहरे पर घनी दाढी-मूछें थीं और सिर एकदम से गंजा था । उसकी पीठ पर हल्का-सा कूबड़ था । वह छड़ी का सहारा लेकर कार से बाहर निकला । अभी उसने छड़ी के सहारे लंगड़ा कर चलते हुए सिल्वर हाउस का द्वार भड़ाक से खुलते हुए देखा और उसमें से सुनील वृद्ध को कन्धे पर लादे हुए भागकर बाहर निकलते देखा ।
लंगड़ा वापस अपनी गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर आ बैठा ।
एक एम्बेसेडर कार सिल्वर हाउस के सामने आकर रुकी । सुनील वृद्ध सहित उसमें जा बैठा ।
एम्बेसेडर सड़क पर दौड़ चली ।
लंगड़े ने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और सावधानी से एम्बेसेडर का पीछा करने लगा ।
“कहां चलूं ?” - एम्बेसेडर को ड्राइव करता हुआ रामू पूछ रहा था ।
“हैडक्वार्टर ।” - सुनील ने उत्तर दिया ।
“भीतर आग कैसे लग गई थी ?”
“आग नहीं लगी थी ।” - सुनील मुस्कराता हुआ बोला - “केवल धुआं उठा था और वह मेरे मैग्नीशियम के सिगरेट की करामात थी । उसी की वजह से तो मैं जिन्दा बाहर निकल आया हूं, वरना मैं रफीक के हाथों शहीद हो गया था ।”
“बूढा अभी भी बेहोश है ?”
“हां । लेकिन हाथ-पांव खोलता हूं इसके ।”
सुनील ने वृद्ध के हाथ और पैरों में से रस्सियां अलग कर दीं । फिर उसके मुंह पर बंधा हुआ कपड़ा खोल दिया ।
मुंह पर बंधे हुए कपड़े के साथ-साथ वृद्ध की दाढी भी उतर आई । सुनील भौंचक्का सा कभी वृद्ध की दाढी को ओर कभी उसके मुंह की ओर देखने लगा ।
सुनील ने हाथ बढाकर उसकी मूंछों को पकड़ा ।
मूछें भी उसके हाथ में आ गाई ।
उसने उसके सिर पर जमी टोपी पर हाथ मारा । टोपी उतरकर सीट के नीचे गिर पड़ी और टोपी के नीचे से रेशम जैसे लम्ब, मुलायम और काले बाल समुद्र की तरह लहरें मारते हुए एक बेहद जवान और खूबसूरत चेहरे पर बिखर गए ।
“रामू ।” - सुनील आतंकित स्वर से चिल्लाया ।
“क्या हुआ ?” - रामू हड़बड़ाकर बोला । अनजाने में ही उसने गाड़ी को जोर से ब्रेक लगा दी । उसने जल्दी से गाड़ी को सड़क के एक कोने पर खड़ा कर दिया और पिछली सीट पर झांकता हुआ बोला - “क्या हुआ ? सांप निकल आया क्या ?”
“अबे, इस बूढे को देख ।”
“क्या हुआ है इसे ?”
“यह लड़की है ईडियट । चेहरे पर नकली दाढी-मूछें लगी हुई थीं ।”
“हैं !” - रामू के मुंह से निकला और वह भी झुककर लड़की का चेहरा देखने लगा - “अबे, यह क्या घपला है ?”
“भगवान जने ! तुम गाड़ी स्टार्ट करो और जल्दी हैडक्वार्टर पहुंचो । मेरा ख्याल है, मैं इस लड़की को पहचानता हूं ।”
“कौन है यह परी ?” - रामू ने उत्सुकता से पूछा ।
“पहले हैडक्वार्टर पहुंचो । फिर बताऊंगा ।”
रामू ने दोबारा गाड़ी स्टार्ट कर दी ।
सुनील आंखें फैलाये उस लड़की के चेहरे को घूरता रहा ।
रामू एम्बेसेडर को नगर की विभिन्न सड़कों पर दौड़ाये लिये जा रहा था ।
सुनील और रामू दोनों ही साये की तरह अपने पीछे लगी हुई नीली शैवरलेट गाड़ी से बेखबर थे । उसके मस्तिष्क में क्षण भर के लिये भी यह सम्भावना नहीं उभरी थी कि उनका पीछा किया जा सकता है ।
***
वर्तमान अभियान के लिये तो मुखर्जी ने जो हैडक्वार्टर चुना था, एक उजाड़-सी दो मन्जिली इमारत थी । इमारत के चारों ओर बहुत बड़ा कम्पाउन्ड था और कम्पाउनड में इमारत की ऊंचाई से भई ऊंचे-ऊंचे पेड़ उगे हुए थे ।
इमारत के भीतर के एक कमरे में एक पलंग पर लड़की पड़ी थी और सुनील और रामू उसके होश में आने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
एकाएक लड़की के शरीर में हरकत हुई । फिर उसने नेत्र खोल दिये ।
सुनील ने रामू को संकेत किया ।
रामू दूसरे कमरे में गया और हाथ में एक शीशे का गिलास थामे हुए वापिस लौटा । गिलास में एक रंगहीन तरल पदार्थ था ।
लड़की पलंग पर उठकर बैठ गई थी और विस्फारित नेत्रों से अपने चारों ओर देख रही थी ।
“घबराओ नहीं ।” - सुनील आश्वासनपूर्ण स्वर से बोला ।
“मैं कहां हूं ?” - लड़की क्षीण भरे स्वर में बोली ।
“घबराओ नहीं । तुम मित्रों में हो ।”
“तुम लोग कौन हो ?”
“अभी सक कुछ बताते हैं ।” - सुनील बोला । उसने रामू के हाथ से गिलास लेकर लड़की की ओर बढा दिया और कहा - “इसे पी जाओ । तुम्हारी तबीयत एकदम ठीक हो जायेगी ।”
लड़की एक क्षण हिचकिचाई । फिर उसने सुनील के हाथ से गिलास थाम लिया और गिलास के तरल पदार्थ को एक ही सांस में पी गई ।
रामू ने गिलास उसके हाथ से थाम लिया ।
“तुम उन बदमाशों के चंगुल में कैसे फंस गई थी ?” - सुनील ने प्रश्न किया ।
“तुम लोग कौन हो ?” - लड़की ने उत्तर देने का स्थान पर एक नया प्रश्न किया ।
“मेरा नाम सुनील है ।” - सुनील ने बताया - “यह रामू है । फिलहाल हम तुम्हें अपने नाम ही बता सकते हैं लेकिन इतना विश्वास रखो कि तुम शत्रुओं में नहीं हो ।”
लड़की चुप रही ।
“और संयोगवश मैं तुम्हें पहचानता हूं ।”
लड़की ने एकदम सिर उठाया और हैरानी से सुनील को देखने लगी ।
“तुम पहचानते हो मुझे ?” - उसने पूछा ।
“हां और इसलिये तो मैं यह जानने का ज्यादा इच्छुक हूं तुम उन बदमाशों के चंगुल में कैसे फंस गई ।”
“कौन हूं मैं ?”
“तुम्हारा नाम सोनिया है न ?”
लड़की ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“और तुम करोड़पति सेठ मनसुखानी की इकलौती बेटी हो ।”
“हां, लेकिन तुम कैसे जानते हो मुझे ?”
“तुम एक उत्सव में अपने डैडी के साथ आई थी । मैं भी वहां मौजूद था ।”
“कहां ?”
“छोड़ो ! तुम पहले हमारे सवालों का जवाब दो ।”
“पूछो ।”
“तुम उन बदमाशों के चंगुल में कैसे फंस गई ?”
“नैटसीकाप हाई कमीशन में एक पार्टी थी । मेरे डैडी भी वहां आमन्त्रित थे । मैं भी उनके साथ पार्टी में गई थी । आधी रात तक डांस और ड्रिंक्स का प्रोग्राम चलता रहा था । बाद में न जाने क्यों मेरी तबियत खराब होने लगी थी । मैं हाई कमीशन की इमारत में ही एक बैडरूम में आराम करने चली गई थी । वहां पर एक आदमी मेरे लिये गर्म काफी का कप लेकर आया था । उसने कहा था कि काफी हाई कमिश्नर की पत्नी ने विशेष रूप से मेरे लिये भेजी है । वह आदमी मुझे काफी देकर चला गया । मैंने काफी पी ली । काफी समाप्त होते ही मेरी चेतना लुप्त होने लगी और फिर थोड़ी देर बाद मैं एकदम होश खो बैठी । जब मुझे होश आया तो मैं एक अजनबी जगह पर मौजूद थी । मेरे शरीर पर मरदाने कपड़े थे । मेरे सिर पर जबरदस्ती एक टोपी मंढी हुई थी और चेहरे पर लम्बी दाढी-मूछें बनाई हुई थीं । एक आदमी रस्सी लेकर मेरे हाथ बांधने का प्रयत्न कर रहा था ।”
“फिर ?”
“फिर क्या मैंने कस कर उस आदमी के हाथ पर काट खाया । वह बुरी तरह चीखा और मुझ पर से उसकी पकड़ छूट गई । मैं लपक कर उससे अलग हट गई । वह फिर मेरी ओर झपटा । मैंने एक गुलदस्ता उस पर फेंक कर मारा लेकिन गुलदस्ता उस आदमी को लगने के स्थान पर खिड़की के शीशों से जा टकराया और फिर उस आदमी ने मुझे दुबारा दबोच लिया । उसने मेरे सिर पर एक जोरदार प्रहार किया और मैं दुबारा अचेत हो गई । उसके बाद मेरी यहीं तुम लोगों के सामने आंख खुली है ।”
“तो वह चीख उस आदमी की थी जो बाहर सड़क पर सुनाई दी थी ?”
सोनिया ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“हम तो समझे थे कि वह तुम्हारे साथ ज्यादती करने की कोशिश कर रहे हैं ।”
सोनिया चुप रही ।
“लेकिन किसी को इस प्रकार तुम्हारा अगवा करने की क्या जरूरत थी ?” - सुनील बोला ।
“मुझे खुद समझ में नहीं आ रहा है ।” - सोनिया बोली ।
“तुम स्वयं हाई कमिशनर की मेहमान थी । हाई कमीशन की इमारत में से सैकड़ों मेहमानों में से इस प्रकार किसी को उठा कर ले जाना भारी हौंसले का काम है । उन्होंने तुम्हारे चेहरे पर दाढी मूछें वगैरह इसीलिये लगाई थीं ताकि यह मालूम न हो सके कि हाई कमीशन की इमारत में से किसी लड़की को जबरदस्ती ले जाया जा रहा है । बूढे आदमी को यूं ले जाना उतना सन्देहास्पद नहीं है । पूछे जाने पर कहा जा सकता है कि उसकी तबियत खराब हो गई या वह शराब ज्यादा पी जाने के कारण होश खो बैठा है । सैकड़ों मेहमानों की मौजूदगी में एक बूढे आदमी में कोई दिलचस्पी नहीं लेता लेकिन अगर इस प्रकार तुम इमारत से बाहर ले जाई जाती तो सबका ध्यान तुम्हारी ही ओर होता । बाद में तफ्तीश के समय तक बूढे को तो सब भूल जायेंगे । और नौकरों वगैरह से पूछे जाने पर यही उत्तर मिलेगा कि उनकी जानकारी में कोई लड़की इमारत से बाहर नहीं ले जाई गई है ।”
सोनिया चुप रही ।
“जो लोग तुम्हें उठाकर लाए थे तुमने उसमें से किसी को पहले कभी देखा था ?”
“नहीं ।”
“तुम्हारे ख्याल से तुम्हें उठाकर ले जाने में किसकी दिलचस्पी हो सकती है । ऐसी हरकत कौन कर सकता है ? सोचो ।”
सोनिया सोचने लगी ।
एकाएक सुनील को एक ख्याल आया ।
“सुनो, सोनिया ।” - वह सोनिया की ओर झुककर बोला - “तुमने पार्टी में किसी ऐसे आदमी को देखा था जिसके चेहरे पर घनी दाढी-मूंछ हों और वह सिर से गंजा हो, जिसकी पीठ पर छोटा-सा कूबड़ हो और जो छड़ी के सहारे लंगड़ा कर चलता हो ?”
“हां ।” - सोनिया उत्तेजित स्वर में बोली - “वह था वहां ।”
“तुम जानती हो वह कौन है ?” - सुनील ने सतर्क स्वर से पूछा ।
“हां ।” - सोनिया बोली - “उसने स्वयं को नैटसीकाप का बहुत बड़ा नेता बताया था ।”
“नाम भी बताया था उसने ?”
“हां । कार्ल प्लूमर ।”
“तुम कैसे जानती हो उसे ?”
“कुछ दिन पहले वह हमारी कोठी पर आया था मेरे डैडी से मिलने ।”
“किस सिलसिले में ?”
“उसके साथ एक अन्य नवयुवक था । जिसका परिचय कार्ल प्लूमर ने महाराज कुमार आफ विजयनगर के रूप में बताया था । कार्ल प्लूमर चाहता था कि मेरे डैडी मेरी शादी महाराज कुमार से कर दें ।”
“अच्छा ।”
“हां ।”
“तुम्हारे डैडी ने क्या कहा ?”
“मेरे डैडी तो उन लोगों से बहुत प्रभावित हुए थे । प्रत्यक्षतः उन्हें मेरी शादी महाराज कुमार से कर देने में कोई एतराज वाली बात दिखाई नहीं दी थी ।”
“फिर ?”
“लेकिन मुझे ऐतराज था । मैंने महाराज कुमार से शादी करने से साफ इन्कार कर दिया था ।”
“क्यों, बदसूरत था वह ?”
“नहीं । वह तो अभिनेताओं जैसा सुन्दर आदमी था । आक्सफोर्ड में पढा था और तौर तरीकों से भी बेहद सभ्य और कुलीन व्यक्ति मालूम होता था ।”
“तो फिर ऐतराज क्या था ?”
“ऐतराज यह था कि मैं किसी दूसरे युवक से मुहब्बत करती थी और उसी से शादी भी करना चाहता थी ।”
“फिर क्या हुआ ?”
“वे लोग बड़ी शालीनता का प्रदर्शन करते हुए वापिस लौट गये । एक सप्ताह बाद जिस लड़के से मैं मुहब्बत करती थी एक मोटर एक्सीडेंट में मारा गया ।”
“अरे ! कैसे ?”
“कैसे क्या ? वह फास्ट ड्राइविंग का शौकीन था, बड़ी तेज गाड़ी चलाता था । एक मोड़ पर गाड़ी उससे सम्भली नहीं और सीधी एक ट्रक से जा टकराई । बड़ा भयकर एक्पीडेंट हुआ था । गाड़ी के परखच्चे उड़ गये थे और उसकी तत्काल मृत्यु हो गई थी ।”
“च... च... च ।”
“महाराज कुमार ऑफ विजयनगर को इस दुर्घटना का पता लगा । कुछ दिन बाद कार्ल प्लूमर महाराज कुमार के साथ फिर हमारी कोठी पर आया और उसने एक फिर मेरे डैडी से आग्रह किया कि वे मेरी शादी महाराज कुमार से कर दें । मैंने फिर इंकार कर दिया ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि न जाने क्यों मेरे मन में यह बात घर कर गई थी कि मोटर दुर्घटना में मेरे प्रेमी की मृत्यु में उन लोगों का कोई न कोई हाथ था ।”
“ऐसा कोई संकेत मिला था तुम्हें ?”
“नहीं । तुम चाहे इसे किताबी बात समझो, लेकिन मेरे मन में से बार-बार ये ही आवाज निकल रही थी कि मेरे प्रेमी की मृत्यु का कारण वही लोग थे । शायद उन्होंने मेरे प्रेमी को मेरी और महाराज कुमार की शादी में रुकावट समझा इसलिये उन्होंने वह रुकावट दूर कर दी थी ताकि बाद में महाराज कुमार से शादी करने में मेरे इन्कार की कोई वजह न रह जाए । चाहे यह बात सरासर गलत हो लेकिन यह मेरे मन में इस बुरी तरह बैठ गई थी कि मैं महाराज कुमार से अपनी शादी के बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी इसलिये मैंने साफ इन्कार कर दिया ।”
“फिर ?”
“पहले तो उन लोगों के कहने में आकर मेरे डैडी ने मुझ पर दबाव डालने की कोशिश की थी लेकिन जब मैंने महाराज कुमार में जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई तो उन्होंने भी उन लोगों से इन्कार कर दिया । मेरे डैडी ने कहा कि वह अपनी बेटी की मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते । उन्होंने बिना किसी हुज्जत के मेरे निर्णय को स्वीकार कर लिया और वापिस चले गये । बाद में हम लोग कार्ल प्लूमर और महाराज कुमार को एकदम भूल ही गये । पिछली रात नैटसीकाप हाई कमीशन की इमारत में ही मैंने उन लोगों को दुबारा देखा था ।”
“वहां महाराज कुमार भी था ?”
“हां और उसने मुझसे बात भी की थी ।”
“क्या ?”
“उसने बड़ी शिष्टता से मुझ से पूछा था कि क्या मैं उसके बारे में अपनी राय दोहरा नहीं सकती ?”
“तुमने क्या कहा ?”
“मैंने कहा मैं सोचूंगी और वहां से अलग हो गई ।”
“सोनिया, एक बात सोचकर बताओ ।” - सुनील गम्भीर स्वर में बोला - “क्या हाई कमीशन में से तुम्हारा अगुवा करने में उन लोगों का हाथ हो सकता है ?”
“वे भला मेरा अगुवा क्यों करवायेंगे ?”
“महाराज कुमार तुमसे शादी करना चाहता है । शायद वह तुम्हें हासिल करने के लिये जबरदस्ती के तरीके इस्तेमाल करने पर उतर आया हो ।”
“वह क्या जबरदस्ती कर सकता है मुझसे ? वह मुझसे जबरदस्ती शादी कैसे कर सकता है ?”
“यह सब तो वह ही जाने लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि तुम्हारा अगवा करवाने में उन्ही लोगों का हाथ हो ?”
“मुझे तो यह सम्भव मालूम नहीं होता । वे तो बहुत ऊंचे और खानदानी लोग मालूम होते हैं । मुझे विश्वास नहीं होता कि एक लड़की को हासिल करने के लिये वे ऐसी नीच हरकत पर उतर आयेंगे ।”
“तो फिर एक विदेशी राष्ट्र के हाई कमीशन में से एक करोड़पति की लड़की का अगुवा करवाने का हौसला कौन कर सकता है ?”
सोनिया चुप रही । प्रत्यक्ष था कि उसके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था ।
“सुनो ।” - सुनील बोला - “कार्ल प्लूमर नैटसीकाप के हित के लिये भारत में भारत के मित्र राष्ट्रों में एक ऐसे तनाव की स्थिति पैदा करने का प्रयत्न कर रहा है जिसकी वजह से नौबत युद्ध तक पहुंच सकती है । हाई कमीशन मे से निकालकर तुम्हें लिटन रोड की सिल्वर हाउस नाम की जिस इमारत में ले जाया गया था, वह कार्ल प्लूमर के आदमियों का अड्डा है । इससे साफ जाहिर होता है कि तुम्हारा अगुवा करने में कार्ल प्लूमर का हाथ था ।”
“लेकिन अगर मान भी लिया जाये कि कार्ल प्लूमर हमारे देश का शत्रु है और वह भारत और उसके मित्र राष्ट्रों में लड़ाई करवाना चाहता है तो मेरा इन बातों से क्या वास्ता है । मेरा अगुवा करवा लेने या महाराज कुमार ऑफ विजयनगर से जबरदस्ती मेरी शादी करवा देने से उसे क्या फायदा होगा । मैं शादी महाराज कुमार से करती हूं या काले चोर से, इससे कार्ल प्लूमर की स्थिति पर क्या फर्क पड़ता है ?”
“कुछ तो बात होगी ही । वर्ना कार्ल प्लूमर जैसा आदमी तुम्हारे डैडी के पास जाकर तुम्हारी शादी किसी विशेष व्यक्ति से कर देने का अनुरोध न करता ।”
“लेकिन महाराज कुमार...”
“चोर का साथी गिरहकट ! मुझे पूरा विश्वास है, वह भी फ्रॉड ही होगा ।”
“लेकिन वह आदमी स्टेट की रोल्स रायल गाड़ी पर आता है । हीरो की अंगूठियां और मालायें पहनता है...”
“जरूर पहनता होगा । लेकिन क्योंकि वह कार्ल प्लूमर का साथी है, इसलिये कहीं न कहीं जरूर गड़बड़ होगी ।”
सोनिया चुप रही ।
सुनील ने लक्की स्ट्राइक का एक सिगरेट सुगला लिया और सोचने लगा ।
“मेरे बारे में क्या सोचा है तुमने ?” - एकाएक सोनिया ने पूछा ।
“तुम्हारे लिये यही अच्छा है कि तुम अभी थोड़ी देर यहीं रहो ।” - सुनील ने उत्तर दिया - “बाद में हम लोग तुम्हें तुम्हारे डैड़ी के पास छोड़ आयेंगे ।”
“अभी क्यों नहीं ?”
“जो लोग तुम्हें भगा कर ले गये थे, वे भी यही आशा कर रहे होंगे कि हम लोग तत्काल तुम्हें तुम्हारे डैडी के पास पहुंचा देंगे । मेरा दावा है कि वे लोग इसी ताक में होंगे कि तुम अपनी कोठी पर पहुंचो और वे तुम्हें दुबारा ले उड़ें । इसलिए तुम्हारा हित इसी में है कि तुम थोड़ी देर आउट ऑफ सरकुलेशन रहो ।”
“कितनी देर ?”
“मैं अभी यहां से वापिस जा रहा हूं । मैं यह जानने का प्रयत्न करूंगा कि तुम्हारे गायब हो जाने से सम्बन्धित व्यक्तियों पर क्या प्रतिक्रिया हो रही है । उसके बाद ही मैं तुम्हें बता पाऊगा कि तुम्हें यहां कितनी देर रहना पड़ेगा । ओके ?”
“ओके ।” - सोनिया अनिच्छापूर्ण स्वर में बोली ।
सुनील ने सिगरेट जमीन पर फेंक दिया और उठ खड़ा हुआ ।
“यहां तुम्हें किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होगी ।” - वह बोला - “रामू तुम्हारी हर जरूरत पूरी कर देगा ।”
सोनिया चुप रही ।
“मैं जा रहा हूं ।” - सुनील रामू से बोला ।
“ओके ।” - रामू ने उत्तर दिया ।
सुनील कमरे से बाहर निकल गया ।
***
रात ढल गई थी और सुबह का झुटपुटा वातावरण में फैला हुआ था ।
संयोगवश ही रामू खिड़की के पास पहुंचा और उसने परदे को थोड़ा सा हटाकर बाहर झांका ।
जो दृश्य उसे बाहर दिखाई दिया, उसे देखकर वह एकदम हड़बड़ा गया ।
इमारत के कम्पाउन्ड में एक एम्बुलेन्स ने प्रवेश किया । उसके पीछे ही दो एम्बेसेडर गाड़ियां और थीं ।
एम्बुलेन्स इमारत के मुख्य द्वार के एकदम सामने आ खड़ी हुई । दोनों एम्बेसेडर गाडियां पीछे ही खड़ी हो गईं ।
तीनों गाड़ियों में से बड़ी फुर्ती से कई आदमी निकल आये ।
रामू ने देखा वे कम से कम पन्द्रह आदमी थे और उनमें से आधे के हाथों में मशीनगन थी ।
एक आदमी खाली हाथ था । उसने आगे बढकर इमारत का मुख्य द्वार खटखटाया ।
रामू खिड़की से अलग हट गया और तेजी से उस कमरे की ओर भागा जिसमें सोनिया थी ।
“सोनिया ।” - वह बौखलाया हुआ बोला ।
“क्या हुआ ?” - सोनिया ने हड़ब़ड़ाकर पूछा ।
“दुश्मन के आदमियों ने इस इमारत पर हमला बोला दिया है । पता नहीं उन्हें कैसे मालूम हो गया है कि तुम इस इमारत मे मौजूद हो । प्रत्यक्ष में वे तुम्हें ही लेने आये हैं । वे कई आदमी हैं और हथियारों से लैस हैं । मैं अकेला उन्हें रोक नहीं सकता हूं । वे किसी भी क्षण आ घुसेगें ।”
“तुम कहना क्या चाहते हो ?”
“मैं कहना यह चाहता हूं कि उनका विरोध करने के स्थान पर मैं यहां से गायब हो रहा हूं । वे चाहेंगे भी तो इस इमारत में मुझे तलाश नहीं कर पायेंगे । अगर वे तुम्हें पूछें तो तुम यही कहना कि तुम यहां अकेली थीं । वे लोग तुम्हें यहां से निकाल ले जायेंगे तो मैं चुपचाप उनका पीछा करूंगा और यह मालूम कर लूंगा कि वे तुम्हें कहां ले जा रहे हैं । हम शीघ्र ही तुम्हें वहां से स्वतन्त्र करा लेंगे ।”
नीचे मुख्य द्वार पर चोट पड़ रही थीं । दरवाजा किसी भी क्षण टूट कर गिर सकता था ।
“अच्छी बात है ।” - सोनिया बोली ।
“घबराओगी तो नहीं ?”
“नहीं ।”
“यह मत समझना कि हम लोग तुम्हें धोख दे रहे हैं । वर्तमान स्थिति में यही उचित है जो मैं कर रहा हूं ।”
“दैट्स आल राइट । आई अन्डरस्टैण्ड ।”
एकाएक द्वार टूट कर गिरने की आवाज आई और फिर सीढियों पर कई पैरों के एक साथ पड़ने की धमक सुनाई दी ।
रामू तेजी से इमारत के पृष्ठ भाग की ओर भागा ।
पिछले भाग में वह एक कोने वाले कमरे में पहुंचा । उस कमरे का फर्श पत्थर की चार गुणा चार फुट की सिलों का बना था । रामू ने कोने की एक सिल को अपने स्थान से उठाया । वह सिल सन्दूक के ढक्कन की तरह उठती चली आई और भीतर पतली-सी सीढियां दिखाई देने लगीं ।
रामू भीतर घुस गया । सिल उसने पूर्ववत अपने स्थान पर सरका दी ।
वह तेजी से अंधेरी गोलदार सीढियां उतरने लगा ।
सीढियों के सिरे पर एक गलियारा था । रामू उस गलियारे को पार करके दूसरे सिरे पर पहुंचा । दूसरे सिरे पर एक छोटा सा रोशनदान था । रामू ने सावधानी से उस रोशनदान को खोला और बाहर झांका ।
रोशनदान बाहर जमीन के लेवल के साथ खुलता था । उस रोशनदान के रास्ते रामू को कार एम्बुलैंस और मशीनगन लेकर खड़े आदमी स्पष्ट दिखाई दे रहे थे ।
एक मिनट बाद बड़ी फुर्ती से दो आदमी स्ट्रेचर सम्भाले इमारत से बाहर निकले । स्ट्रेचर पर अचेतावस्था में सोनिया पड़ी थी । उन्होंने स्ट्रेचर को एम्बुलैंस में लाद दिया । एक आदमी एम्बुलैंस के पिछले भाग मे प्रवेश कर गया और दूसरा ड्राइविंग सीट पर ड्राइवर की बगल में जा बैठा ।
एम्बुलैंस के द्वार बन्द हो गये ।
बाकी आदमी भी कारों में जा बैठे ।
पहले एम्बुलैंस स्टार्ट हुई और उसके बाद दोनों कारें भी स्टार्ट हो गईं ।
रामू रोशनदान के पास से हट गया । वह तेजी से एक अन्य गलियारे की ओर भागा । वह गलियारा एक तहखाने जैसे विशाल कमरे में जाकर समाप्त हो गया ।
उस कमरे में एक कार और एक मोटर साइकिल खड़ी थी । मोटर साइकिल मिलिट्री की थी और उसके हैन्डिल के साथ लोहे का हैलमेट लटक रहा था ।
रामू ने हैलमेट उतारकर अपने सिर पर रख लिया और मोटर साइकिल स्टार्ट करने के लिए किक मारी ।
मोटर साइकिल तत्काल स्टार्ट हो गई । रामू मोटर साइकिल पर सवार हो गया और उसने ऐक्सीलेटर दबा दिया । मोटर साइकिल कमरे से निकलकर एक कमरे जितने ही चौड़े गलियारे में आ गई । गलियारे के दूसरे सिरे पर लोहे का शटर लगा हुआ था ।
शटर के समीप मोटर साइकिल के पहुंचते ही शटर अपने आप खुल गया । मोटर साइकिल गलियारे से खुले मैदान में आ गई ।
पीछे शटर अपने आप बन्द हो गया ।
इमारत का कम्पाउण्ड खाली हो चुका था ।
उसने मोटर साइकिल को कम्पाउन्ड के मुख्य द्वार की ओर बढा दिया ।
दूर सड़क पर पूरी रफ्तार से तीनों गाड़ियां जा रही थीं । सबसे आगे एम्बूलैंस थी और उनके पीछे एम्बेसेडर गाड़ियां थी ।
रामू सावधानी से उनका पीछा करने लगा । एक मील आगे जाकर एकाएक एम्बेसेडर गाड़ियां बाईं ओर सड़क पर घूम गईं और एम्बूलैंस सीधी चलती रही ।
रामू ने अपनी मोटर साइकिल एम्बूलैंस के पीछे डाल दी ।
वह बड़ी सावधानी से मोटर साइकिल चला रहा था और मोटर साइकिल और एम्बूलेंस में एक बड़ा सुरक्षित फासला रखे हुए था ।
एम्बूलैंस नगर की विभिन्न सडकों से होती हुई उस रास्ते पर आ गई जो शहर से बाहर की ओर जाता था ।
रामू पीछा करता रहा ।
एम्बूलैंस सड़क से बाहर आ गई और तारकपुर की पहाड़ियों की ओर चल दी ।
तारकपुर की पहाड़ियों की चढाई शुरु होने से पहले ही एम्बूलैंस बाईं ओर घूम गई ।
लगभग दस मिनट वह उसी टूटी-फूटी सड़क पर दौड़ती रही ।
रामू बड़ी सतर्कता से पीछा करता रहा ।
एम्बूलैंस समुद्र की ओर बढ रही थी ।
समुद्र के समीप पहुंचकर वह सड़क के नीचे उतर आई और समुद्र से थोड़ी दूर एक कच्ची सड़क पर चल पड़ी ।
रामू ने मोटर साइकिल की रफ्तार घटा दी और अपने और एम्बूलैंस के बीच का फासला और बढ जाने दिया ।
लगभग चार गज आगे बढने पर एम्बूलैंस एक लोहे के फाटक के सामने आकर रुक गई ।
फौरन ही किसी ने फाटक खोल दिया । एम्बूलैंस फाटक के भीतर प्रवेश कर गई । फाटक दोबारा बन्द हो गया ।
रामू ने अपनी मोटर साइकिल कच्ची सड़क से नीचे उतार दी और सड़क के आसपास उगे पेड़ों के पीछे की ओर बढा दी ।
घनी झाड़ियों में से जाकर उसने मोटर साइकिल को रोक दिया ।
वह मोटर साइकिल से नीचे उतर आया । उसने मोटर साइकिल को स्टेन्ड पर खड़ा किया और पेड़ों के पीछे छुपता हुआ दबे पांव फाटक की ओर बढा ।
समीप आकर उसे देखा फाटक एक कांटेदार तारों के झाड़ से बनी दीवार में था । कांटेदार तारों ने एक विशाल अहाता घेरा हुआ था । अहाते के बीचों बीच फाटक से कम-से-कम सौ गज दूर पेड़ों के झुरमुट के बीच एक पत्थर की बनी हुई एक मंजिल इमारत की झलक दिखाई दे रही थी । अहाते के बाईं ओर पिछले कोने में एक विशाल अर्धवृत्ताकार हैंगर दिखाई दे रहा था ।
पेड़ केवल इमारत के आस-पास ही थे । विशाल अहाते में कहीं पेड़ दिखाई नहीं दे रहे थे ।
पेड़ों के झुरमुट में ही एक स्थान पर उसे एम्बूलैंस खड़ी दिखाई दी ।
वह पैदल ही पेड़ों और झाड़ियों के पीछे होता हुआ समुद्र की ओर चल पड़ा ।
वह समुद्र के समीप पहुंच गया ।
समुद्र के आस-पास का सारा इलाका सुनसान पड़ा था । एक लगभग बीस साल का लड़का समुद्र के पानी में तैर रहा था ।
“ऐ, बात सुनो ।” - रामू ने उसे आवाज दी ।
लड़का करीब आया ।
“यहां आस-पास कहीं फोन है ?” - रामू ने पूछा ।
लड़के ने एक बार उसे सिर से पांव तक घूरा और फिर उसके पीछे की ओर संकेत करते हुए बोला - “इस कच्ची सड़क के सिरे पर एक साहब लोगों का बंगला है, उसमें टेलीफन है ।”
लड़का उसी इमारत का पता बता रहा था, जिसमें अभी एम्बूलैंस गई थी ।
“उसके अलावा और कोई टेलीफोन नहीं है ?” - रामू ने पूछा ।
“एक टेलीफोन गांव में है ।” - लड़के ने बताया ।
“गांव कहां है ?”
“गांव यहां से एक मील दूर है और टेलीफोन गांव के डाकखाने में है ।”
“आस-पास और कोई टेलीफोन नहीं है ?”
“न ।”
रामू निराश हो उठा । गांव जाकर टेलीफोन करने में बहुत समय लग सकता था । उतने समय के लिये वह पत्थरों वाली इमारत की निगाह छोड़ नहीं सकता था । सम्भव था कि वह टेलीफोन करने जाये और उसकी अनुपस्थिति में सोनिया यहां से भी हटा दी जाये ।
फिर उसे उस लड़के से सहायता लेने की सूझी ।
“सुनो, तुम्हारा नाम क्या है ?”
“दिलीप ।”
“मेरा एक काम करोगे ।”
“क्या ?”
“रहते कहां हो ?”
“उस गांव में ।” - दिलीप एक ओर हाथ उठाता हुआ बोला - “क्या काम है ?”
“तुम डाकखाने से मेरी ओर से टेलीफोन कर आओ ।”
लड़का अनिश्चित-सा दिखाई देने लगा ।
“बदले में मैं तुम्हें दस रुपये दूंगा ।”
“लाओ ।” - लड़का एकदम बोला ।
रामू ने दस का नोट निकालकर उसके हवाले कर दिया ।
“क्या कहना है टेलीफोन पर ?” - लड़के ने पूछा ।
“हिन्दी जानते हो ?”
“हां ।”
“मैं तुम्हें लिख देता हूं ।” - रामू बोला । उसने अपनी जेब से एक कागज और पैन निकाला । उसने कागज पर पहले दो टेलीफोन नम्बर लिखे और फिर पूछा - “इस जगह का क्या नाम है ?”
“जहां आप खड़े हैं ?” - लड़के ने पूछा ।
“हां ।”
“इस जगह का कोई नाम नहीं है ।”
“अगर मुझे किसी को इस जगह के बारे में संकेत देना हो तो मैं क्या लिखूं ।”
“बंगले की ओर जो सड़क जाती है, उसका नाम बीच लेन है और बंगले के गांव का नाम महन्तपुर है ।”
रामू ने कागज पर सुनील के नाम संदेश लिखने का इरादा छोड़ दिया । उसने कागज पर केवल अपना नाम लिखा और उसे दिलीप को थमा दिया ।
“देखो !” - रामू बोला - “मैंने इस कागज पर अपना नाम और दो टेलीफोन नम्बर लिख दिये हैं । तुम गांव में जाकर इन नम्बरों पर टेलीफोन कर दो । दोनों में एक नम्बर पर तुम्हें जरूर वह आदमी मिल जायेगा जिसका नाम मैंने कागज पर लिखा है ।”
“उसे क्या कहना होगा मुझे ?”
“उसे इस तरफ का अता-पता अच्छी तरह समझा देना और कहना कि वह फौरन यहां आ जाये । अगर वह पूछे तो बता देना कि तुम रामू के कहने पर उसे टेलीफोन कर रहे हो ।”
“अच्छी बात है ।”
“जाओ फिर ।”
लड़का फौरन गांव की ओर चल दिया ।
लड़के के चले जाने के बाद रामू कच्चे रास्ते से होता हुआ वापिस इमारत के समीप पहुंच गया ।
भीतर के वातावरण में उसे किसी प्रकार का परिवर्तन दिखाई नहीं दिया ।
उसने सावधानी से इमारत की चारदीवारी का चक्कर लगाना आरम्भ कर दिया ।
यह जानकर उसे बहुत सन्तोष हुआ कि इमारत से बाहर निकलने का चारदीवारी के समुद्र की ओर से भाग में बने फाटक के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं था और उस रास्ते से भी बाहर मुख्य रास्ते पर आने के लिए फाटक के सामने से गुजरती हुई वही कच्ची सड़क था जिसका नाम दिलीप ने बीच लेन बताया था ।
रामू ने फाटक के समीप ठहरने के स्थान पर कच्ची सड़क के सिरे पर ही पहुंच जाना उचित समझा ।
कच्ची सड़क के सिरे पर आकर वहं पेड़ों के झुरमुट में पड़ी एक चट्टान पर बैठ गया और प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग दो घन्टे बाद उसे गांव की ओर से दिलीप आता दिखाई दिया ।
रामू जल्दी से उठ खड़ा हुआ और लपककर उसके पास पहुंचा ।
“फोन कर आये ?” - रामू ने व्यग्रता से पूछा ।
दिलीप ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“क्यों, क्या हुआ ?”
“डाकखाने का टेलीफोन खराब है । लाइन ठीक करने के लिए मैकेनिक आये हैं । कहते हैं तीन बजे से पहले ठीक नहीं होगा ।”
रामू चिन्तित हो उठा । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह राजनगर संदेश कैसे पहुंचाये ।
“और कोई टेलीफोन नहीं है यहां ?” - उसने दिलीप से फिजूल सा प्रश्न कर दिया ।
“नहीं ।” - दिलीप ने उत्तर दिया ।
“देखो यार, मेरी मदद करो । मैं तुम्हें बहुत रुपये दूंगा ।”
“क्या मदद करूं ?” - दिलीप बोला - “मैं तो हर मदद करने के लिए तैयार हूं ।”
“तुम्हें मोटर साइकिल चलानी आती है ?”
“नहीं ।”
“तुम लोगों को अगर महन्तपुर से राजनगर जाना हो तो कैसे जाते हो ?”
“बस भी जाती है । गाड़ी भी जाती है ।”
“इस वक्त कोई बस या गाड़ी जाने वाली है ?”
“नहीं, गाड़ी शाम के पांच बज से पहले कोई नहीं है और बस दो बजे जायेगी ।”
“जल्दी राजनगर पहुंचने का कोई तरीका नहीं है ?”
लड़का सोचने लगा ।
“आप अभी मोटर साइकिल का जिक्र कर रहे थे ?” - अन्त में वह बोला ।
“हां !” - रामू बोला ।
“मोटर साइकिल कहां है ?”
“झाड़ियों में रखी है । क्यों ?”
“हमारे गांव का एक आदमी टैम्पो चलाता है । आजकल उसका टैम्पो बिगड़ा हुआ है, इसलिये वह कोई काम नहीं कर रहा है । मेरा ख्याल है, उसे मोटर साइकिल चलानी आती है, मैं उसे बुला लाता हूं ।”
“वैरी गुड ।” - तुम फौरन बुला लाओ उसे ।
“अच्छा !” - और लड़का वापिस गांव की ओर जाने के लिए मुड़ा ।
“सुनो !” - रामू बोला ।
लड़के ने रामू की ओर देखा ।
रामू ने अपनी जेब से कुछ नोट निकालकर उसे थमा दिये और बोला - “ये रुपये रख लो । शायद टैम्पो वाला आदमी रुपये की झलक देखे बिना यहां आना पसन्द न करे ।”
लड़के ने उससे रुपये ले लिए और गांव की ओर चल दिया ।
रामू फिर प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग एक घन्टे बाद दिलीप एक तहमद और बनियान-धारी लम्बे-तगड़े आदमी के साथ वापिस लौटा ।
तहमद वाले ने रामू को सलाम किया ।
“इसका नाम हीरासिंह है ।” - दिलीप बोला - “इसे मोटर साइकिल चलानी आती है । यह आपका काम कर देगा । मैं भी इसके साथ चला जाऊंगा आप समझा दीजिए कि राजनगर में कहां जाना है !”
“सुनो ।” - रामू बोला - “राजनगर में पटेल रोड पर एक उजाड़ सी दो मंजिली इमारत है जिसके कम्पाउण्ड में लगे विशाल फाटक पर बड़े-बड़े अक्षरो में 12 लिखा है । आस पड़ोस में वह इमारत बारह नम्बर के नाम से जानी जाती है । तुम बेहिचक उस इमारत में घुस जाना । वहां तुम्हें सुनील नाम के एक साहब मिल जाएंगे । तुम उन्हें सारी स्थिति बयान कर देना और उन्हें अपने ही साथ ले आना ।”
“अगर वे वहां न हुये तो ?”
“तो भी तुम उस इमारत में घुस जाना । इमारत का मुख्य द्वार टूटा पड़ा है । भीतर हाल में टलीफोन है । तुम वहां से 88321 पर टेलीफोन करके स्थिति बयान कर देना । जो आदमी टेलीफोन सुनेगा, वही सुनील को ढूंढ निकालेगा ।”
“अच्छी बात है ।” - हीरासिंह बोला - “और कुछ ?”
“बस ।”
“मोटर साइकिल कहां है ?”
“तुम यहीं ठहरो मैं लाता हूं ।”
और रामू इमारत के समीप झाड़ियों में छिपी मोटरसाइकिल लाने चला गया ।
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