बुधवार : 19 नवम्बर

नवीन सोलंके अपने बॉस के हुजूर में पेश हुआ।

बॉस अमर नायक था जोकि मुम्बई अन्डरवर्ल्ड का बड़ा डॉन था और मवाली था, समगलर था, रैकेटियर था।

नवीन सोलंके अमर नायक का डिप्टी ही नहीं, उसका टॉप का हैंचमैन भी था जब कि सूरत से म्यूनिसिपैलिटी के क्लर्क जैसा निरीह प्राणी लगता था।

हाल में मुम्बई में ऐसे वाकयात हुए थे जिन की वजह से भाईगिरी से कम्पीटीशन घट गया था और इस बात ने उनकी काफी ताकत बढ़ाई थी। बड़े डॉन महबूब फिरंगी ने—जो कि टॉप डॉन और सियासी लीडर बहरामजी कान्ट्रैक्टर के बाद ताकत और रसूख में नम्बर दो समझा जाता था—अपने तीन खास लेफ्टीनेंट्स को मार कर खुद को भी शूट कर लिया था, बल्लू कनौजिया और उस की साइड किक सरताज बख्शी का बड़े रहस्यपूर्ण हालात में कत्ल हो गया था और तीसरा बड़ा डॉन सलमान गाजी कानून के शिकंजे में ऐसा आया था, कोर्ट केसों में ऐसा फंसा था कि जुबानी तो नहीं कहता था कि रिटायर था लेकिन तमाम अन्डरवर्ल्ड जानता था कि इरादतन नहीं तो मजबूरन रिटायर था।

लिहाजा बहरामजी के बाद अब कोई नामलेवा बड़ा मवाली मुम्बई अन्डरवर्ल्ड में मकबूल था तो वह अमर नायक था जो हमेशा बहरामजी की मौत की कामना करता था लेकिन उसके खिलाफ कोई कदम उठाने का हौसला न वो कभी कर सका था और, बाखूबी जानता था कि, न आइन्दा कभी कर सकता था।

कुछ वाकयात ऐसे भी हुए थे जिनकी वजह से इस बात ने बहुत तूल पकड़ा था कि नेताजी बहरामजी कान्ट्रैक्टर—जो कि मराठा मंच नाम की राजनैतिक पार्टी का सुप्रीमो था, सदन में चालीस एम.एल.ए. और केन्द्र में तीन एम.पी. की ताकत वाला लीडर था—खामोशी से, ढ़ंके छुपे ढंग से बेजान मोरावाला नाम के अपने एक करीबी को फ्रंट बनाकर अपने समगलिंग के पुराने कारोबार में फिर सक्रिय था। वजह ये बताई जाती थी कि गोवा में उसकी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था, उसकी पार्टी वहां एक भी सीट नहीं निकाल पायी थी, जिसकी वजह से उसे इतना भारी माली नुकसान उठाना पड़ा था कि उसकी भरपाई के लिए उसे फिर समगलिंग के धन्धे में कदम डालना पड़ा था। लोकल सरकारी अमले की भरपूर कोशिशों और इस बाबत खुद बहरामजी से लम्बी पूछताछ के बाद पुलिस इस बाबत कुछ स्थापित नहीं कर पायी थी। जब कि हकीकत ये थी कि बहरामजी समगलिंग के धन्धे से बाहर कभी था ही नहीं, बेजान मोरावाला को फ्रंट के तौर पर खड़ा कर के अपना वो पुराना धन्धा वो बाकायदा चला रहा था।

बहरहाल हालात में आयीं तमाम हालिया तब्दीलियां अमर नायक के हक में थीं और उसने समगलिंग के धन्धे में पसर कर दिखाना शुरू कर भी दिया हुआ था।

नवीन सोलंके ने बॉस का अभिवादन किया।

अमर नायक ने गर्दन को हल्के से खम दे कर अभिवादन स्वीकार किया और बोला—“बैठ।”

कृतज्ञ भाव से सोलंके उसके सामने बैठ गया।

“कैसे आया?”—नायक बोला।

“डॉक से खबर है।”—सोलंके संजीदगी से बोला—“खास खबर है। आप को बोलने लायक खबर है। इसलिये आया।”

“मैं सुनता है न?”

“डॉक पर जो हमारा आदमी है—फोरमैन चितलकर कर के जो हमारा आदमी है—आप को मालूम, बॉस।”

“मालूम। आगे?”

“बोलता है कस्टम वाले सख्ती करने लगे हैं। कहीं कोई शिकायत हुई है कि इन्दिरा डॉक पर कस्टम वालों और गोदी कर्मचारियों की मिलीभगत से समगलिंग का धन्धा चलता है।”

“क्या नयी बात है!”

“पण शिकायत...”

“होती ही रहती हैं। धन्धा फिर भी चलता है।”

“पण सख्ती...”

“दिखावे को होती है। धन्धा चलता है।”

“पण ये टेम जेनुइन सख्ती है। बड़ी सख्ती है। ऐन ऊपर से आये आर्डर के तहत बड़ी सख्ती है।”

“ऐसा?”

“हां, बॉस।”

“हमारे...कारोबार पर असर डाल सकती है?”

“हां, बॉस।”

“ऐसा तो नहीं होना चाहिये! कल ही दुबई से हीरों की बड़ी खेप आ रही है। कल रात हमारा ख़ास आदमी हुसैन डाकी हीरों की बड़ी खेप के साथ बन्दरगाह पर उतरने वाला है। शाम छ: बजे। मालूम?”

“बरोबर मालूम, बॉस, उसी वास्ते इधर आया।”

“अरे, इधर आना जरूरी या कल के वास्ते कुछ करके दिखाना जरूरी?”

“कल के वास्ते कुछ कर के दिखाना जरूरी।”

“किया?”

“तुम ओके बोलेगा तो करेगा न, बॉस! इमीजियेट करके।”

“बोले तो?”

“बॉस, प्रॉब्लम से चितलकर खबरदार किया तो सॉलूशन से भी वहीच भीड़ू खबरदार किया।”

“समझा?”

“बॉस, चितलकर बोलता है कि आने वाले दिनों में पहले का माफिक माल निकलवाना मुमकिन नहीं। उधर हमारी सेटिंग होने के बावजूद माल पकड़ा जायेगा। साथ में माल लाने वाला हमारा भीड़ू भी।”

“वो मैं समझ गया। असल बात पर आ। वो जो चितलकर सोलूशन करके बोला, वो क्या है? हल क्या है?”

“चितलकर बोलता है कुछ माल डिक्लेयर करने का।”

“बोले तो?”

“बॉस, जैसे कल बीस करोड़ के हीरे आ रहे हैं, उन में से आधे यानी दस करोड़ के हीरे हुसैन डाकी को कस्टम पर डिक्लेयर करने का। उन पर बाकायदा कस्टम ड्यूटी भरने का और रसीद और क्लियरेंस सर्टिफिकेट हासिल करने का। उस क्लियरेंस के दम पर पूरा माल बाहर होगा।”

“चितलकर गारन्टी करता है?”

“वह तो करता ही है। कस्टम पोस्ट पर जो हमेरे से सैट भीड़ू है, वो भी गारन्टी करता है।”

“अगर आधा माल डिक्लेयर करें तो ड्यूटी कितनी?”

“एक करोड़।”

“इतनी?”

“फायदा भी देखो न, बाप!”

“हूँ।”

कुछ क्षण खामोशी रही।

“लेकिन”—फिर नायक बोला—“जब कस्टम पर इतनी सख्ती बताता है तो पार्ट ड्यूटी भरने से भी टोटल माल कैसे बाहर आयेगा?”

“बॉस, समझो।”

“क्व‍िज प्रोग्राम मत कर, सोलंके। तू समझा।”

“कस्टम पर टोटल माल ही पेश होगा लेकिन वहां मौजूद हमारे आदमी की मेहरबानी से माल को अन्डरअवैल्युएट किया जायेगा। टोटल माल को दस करोड़ का माल अवैल्युएट किया जायेगा और उस पर ड्यूटी भरने को बोला जायेगा। ईजी!”

नायक ने घूर कर उसे देखा।

सोलंके हड़बड़ा कर परे देखने लगा।

“इस खिदमत के लिए”— नायक बोला—“कस्टम के हमारे भीड़ू को भी कुछ मांगता होयेंगा?”

“वो तो...है न बरोबर!”

“कितना?”

“बीस।”

“लाख।”

“लाख ही, बाप। और क्या हजार!”

“हूँ।”

फिर खामोशी छा गयी।

“उस को बोल...क्या नाम है उसका?”

“वीरेश हजारे।”

“उसको...हजारे को...बोल, अगर उसको खुद को बीस पेटी मांगता है तो माल को दो या तीन करोड़ पर अवैल्यूएट करवाये।”

“ये नहीं हो सकता, बॉस।”

“तू बोल तो सही!”

“मैं, बोला था। मैं तो पहले पांच बोला, फिर छ: बोला, वो सुनने तक को तैयार न हुआ, दो या तीन खोखा पर किधर से मानेगा!”

“हूँ। अभी बोले तो बीस करोड़ का माल तब हाथ लगेगा जब कि एक करोड़ बीस लाख रुपिया पल्ले से खर्चा करना पड़ेगा!”

“बॉस”—सोलंके का स्वर दब गया—“हमेरा तो छ: करोड़ ही लगा न!”

“तेरे को कैसे मालूम?”

“तुम्हीं बोला, बॉस।”

“मैं बोला?”

“बरोबर, बॉस।”

“काहे वास्ते?”

“बॉस, मैं तुम्हेरा फर्स्ट लेफ्टिनेंट है, ये वास्ते। तुम राजी से सब बात मेरे से शेयर करता है।”

“ऐसा?”

“बरोबर, बॉस।”

“पण, भूल जाता है साला कि क्या शेयर किया! बोले तो बॉस अक्खा घोंचू।”

“अरे, नहीं, बॉस।”

“कुछ याद नहीं रख सकता।”

“अरे, नहीं, बॉस। तुम्हेरे को एक टेम में सौ बातें मगज में रखने का, हजार बातें मगज में रखने का। कभी एक ठो, दो ठो, इधर उधर कहीं नीचू में दब जाता होयेंगा जैसे...जैसे ये टेम हुआ।”

“दुबई से लौटा हमेरा आदमी ड्यूटी भरने को रोकड़ा किधर से लायेगा?”

“फोन लगायेगा न! हमेरे को कस्टम पर पहुंचाना होगा।”

“हमेरे से सवाल नहीं होगा?”

“कस्टम का हमेरा भीड़ू—वीरेश हजारे—गारन्टी करता है नहीं होगा।”

“अगर उसकी गारन्टी में फच्चर पड़ गया तो?”

“नहीं पड़ेगा।”

“पड़ गया तो?”

“तो बुरा होगा। तो हुसैन डाकी पर डायमंड समगलिंग का चार्ज लगेगा। तो बड़ा पंगा होगा। बाप, बोले तो, अक्खा माल हाथ से निकल जायेगा और हमेरा एक भीड़ू भी फंस जायेगा।”

“ऐसा तो नहीं होना चाहिए!”

सोलंके खामोश रहा।

“ये साला कस्टम का सख्ती भी अभीच होने का था!”

“अभी...क्या बोलेगा, बॉस!”

“साला कैसा लेफ्टीनेंट है! जो बोलने के टेम बोलता है क्या बोलेगा!”

सोलंके ने खेदभरी शक्ल बनायी।

“इतनी बड़ी कैश रकम की कोई सफाई देनी पड़ गयी तो कौन देगा?”

“डाकी ही देगा।”

“क्या बोलेगा?”

“लोकल डायमंड डीलर से एडवांस में डील सेट किया। डील की एक शर्त यह भी है कि अराइवल पर कस्टम ड्यूटी का इन्तजाम वो करेगा।”

“उसको इस बात की खबर है? मालूम है ऐसा बोलना है?”

“है न, बॉस!”

“लोकल डायमंड डीलर की बाबत सवाल हुआ तो?”

“चितलकर बोलता है नहीं होगा। जब सब मिलीभगत से होगा तो क्यों होगा!”

“अरे, फिर भी हुआ तो?”

“तो एक डीलर पेश होगा जो बाद में ढूंढ़े नहीं मिलेगा।”

“ये इन्तजाम किसका है?”

“हुसैन डाकी का। उस के दुबई में बैठे बॉस का जिसके जरिए यह डील सेट हुआ। बॉस, एक बार वो माल कस्टम से बाहर आया नहीं कि हुसैन डाकी ढूंढ़े नहीं मिलेगा।”

“इंक्वायरी हुई तो?”

“काहे को होगी! जब सब सेट है...”

“हुई तो?”

“वहम करता है, बॉस। तो मालूम पड़ेगा कि डायमंड डीलर को ऐसे किसी डील की खबर ही नहीं। कोई उसकी जानकारी के बिना उसके नाम का बेजा इस्तेमाल किया।”

“हूँ। कोई पंगा पड़ गया तो...”

“बॉस, नहीं पड़...”

“ठीक। ठीक। नहीं पड़ सकता। मैं ये पूछता है कि कोई पंगा पड़ ही गया तो हमारा नाम बीच में आयेगा या नहीं आयेगा? ये बात का जवाब दे।”

“नहीं आयेगा। बॉस सब हमेरे—तुम्हेरे—वफादार हैं; जान दे देंगे, खाली पीली में जुबान नहीं खोलेंगे।”

“बढ़िया। बोले तो मेरे को सब मंजूर। सब इन्तजाम कबूल।”

“यानी कि रोकड़े का मोस्ट अर्जेंट कर के इन्तजाम हो जायेगा?”

“हो जायेगा।”

“फिर क्या वान्दा है!”

“पण अभी मैं कुछ और बोलने का। अभी मेरी बात सुन।”

“बोलो, बॉस।”

“मेरे को हुसैन डाकी की खाली माल के साथ बन्दरगाह से बाहर आने तक की सर्विस मांगता है।”

“बोले तो?”

“उस को माल को बन्दरगाह से आगे मूव नहीं करने का। बन्दरगाह से बाहर कदम रखते ही उसकी ड्यूटी खत्म, जिम्मेदारी खत्म।”

“ऐसा?”

“उसको बोला गया था कि उस को मनोरी पहुंचने का था क्यों कि उसके पासपोर्ट पर उसका जो पता है, वो मनोरी का है, इस वास्ते उसका बन्दरगाह से उधर जाना नेचुरल लगना था। बाद में उसने मनोरी के सिद्धिविनायक बीच रिजार्ट में माल तेरे को सौंपना था, या नया आर्डर मिलने पर इधर मलाड में मेरे पास ले कर आना था। पण अब ये प्रोग्राम कैंसल करने का। अब मेरे को मांगता है कि वो मनोरी जाने की जगह बन्दरगाह से ही नक्की करे। क्या वान्दा है?”

“कोई वान्दा नहीं। पण...उसको ये बात मालूम?”

“नहीं। उसको तो मनोरी पहुंचने को ही बोला गया था। पण अब मालूम होगी न!”

“ऐसा क्यों, बॉस? हुसैन डाकी पर, बोले तो, बेऐतबारी?”

“अरे, नहीं रे। बेएतबारी नहीं, एहतियात। क्या!”

“पण...”

“अरे, सोच। समझ। वो पूरी तरह से हमेरा भीड़ू नहीं। मनोरी तक का लम्बा रास्ता है। क्या वान्दा है एहतियात बरतने में! क्या वान्दा है अगर खुश्‍की पर माल हमेरे किसी पूरी तरह से जाँचे परखे आजमाये भीड़ू के कब्जे में हो!”

“ओह!”

“अभी समझा?”

“हां, बॉस। तो माल...”

“उस से बन्दरगाह पर ही ले लिया जायेगा और उसे गायब हो जाने के लिए फारिग कर दिया जायेगा। हमेरा कोई खास भरोसे का आदमी डाकी को बन्दरगाह पर मिलेगा जिसे वो उधरीच माल सौंप देगा। फिर हमेरा वो आदमी हमेरे तक माल पहुंचायेगा।

“मनोरी? सिद्धिविनायक बीच रिजार्ट?”

“अरे, इधर। मलाड वैस्ट। क्यों कि वो खास भरोसे का भीड़ू।”

“जो कि डाकी नहीं है?”

“ठीक है डाकी। हमेरे काम करता है। दुबई वालों के भरोसे का है। पण खास और सिर्फ हमेरा भीड़ू तो नहीं! बन्दरगाह से आगे माल को हैंडल करने का वास्ते मेरे को खास, सिर्फ हमेरा भीड़ू मांगता है।”

“कौन?”

“अरे, बोला न खास! फुल भरोसे का, परखा आजमाया हुआ, मुस्तैद, जिम्मेदार भीड़ू। नाम तू बोल।”

सोलंके ने सहमति में सिर हिलाया और फिर संजीदगी से उस बात पर विचार किया।

“सावन्त।”—फिर उत्साहपूर्ण स्वर में बोला—“शिशिर सावन्त।”

“वो सब हैंडल कर लेगा?”

“हैंडल तो कर लेगा पर्फेक्ट कर के! पण इस बाबत इजाजत हो तो मैं भी कुछ बोले?”

“बोल।”

“बॉस, जब खबरदार होना मांगता है तो बिल्कुल ही खबरदार क्यों नहीं होता?”

“वो कैसे?”

“बड़े माल का मामला है, न आये तो भले ही न आये पण एक भीड़ू की नीयत में फर्क आ सकता है। अगर उसके साथ कोई दूसरा होगा तो दूसरे की हाजिरी की वजह से पहले की नीयत मैली करने की मजाल नहीं होगी। यही बात दूसरे पर भी लागू होगी।”

“बात तो तेरी ठीक है लेकिन अगर सावंत को माल की किस्म की या उस की कीमत की खबर ही न हो तो?”

“ये मुमकिन नहीं होगा, बॉस। बड़ा प्रोजेक्ट है, उसकी असलियत तो उस पर—अगर मेरी राय के मुताबिक दो हुए तो दोनों पर—खोलनी ही होगी। उन को हमेरे माल की कीमत का अन्दाजा होना जरूरी वर्ना वो पूरी तरह मुस्तैद कैसे होंगे, जिम्मेदार कैसे बनेंगे?”

“बात तो तेरी ठीक है! अभी बोले तो तेरा दो भीड़ू वाला आइडिया मेरे को पसन्द। पसन्द और मंजूर। अभी बोल, दूसरा भीड़ू कौन?”

“दूसरे भीड़ू के बारे में मेरे को सोचने का। जांचने परखने का। शाम तक बोलेगा मैं।”

“ठीक है।”

“आठ बजे आता है। इजाजत दो, बॉस।”

“अरे, तेरे को इजाजत ही इजाजत है। आना आठ बजे।”

“थैंक्यू बोलता है, बॉस।”—सोलंके उठ खड़ा हुआ—“अभी जाता है अर्जेंट कर के। शाम को आता है।”

उसने बिग बॉस का अभिवादन किया और वहां से रुखसत पायी।

 

नवीन सोलंके ने बहुत सोच विचार कर, बहुत ठोक बजा कर जो दूसरा भीड़ू चुना, उस का नाम जोकम फर्नान्डो था। वो कोई तीस साल का दुबला पतला, लम्बा तड़ंगा, गोरी रंगत वाला क्लीनशेव्ड नौजवान था। सिर के बाल फिल्म स्टार्स की तरह तरशवा कर रखता था और लम्बी कलमें रखता था। उसकी पसन्दीदा पोशाक डेनिम की जींस-जैकेट थी जो वो चेक की लाल कमीज के साथ या गोल गले की काली टीशर्ट के साथ बारह महीने पहनता था। अपनी शक्ल सूरत के बारे में उसे खास खुशफहमी थी कि वो किसी फिल्म स्टार से कम नहीं लगता था। पिछले चार साल से वो अमर नायक के गैंग में था और गैंग में उस का इसी बात का बड़ा रौब स्थापित था कि बढ़िया पर्सनैलिटी वाला था और शक्ल सूरत, रख रखाव से मवाली तो बिल्कुल नहीं लगता था।

वो गोवानी था लेकिन बड़े फख्र के साथ अपनी बैकग्राउन्ड पुर्तगाल से बताता था। अक्सर रौब से बताता था कि उस के बाप दादा सरकारी अमले में थे जो कि पता नहीं सच था या नहीं। सन् 1961 में 450 साल के पुर्तगाली कन्ट्रोल से जब गोवा आजाद हुआ था तो बोलता था कि उस के तमाम रिश्‍तेदार पुर्तगाल चले गये थे, खाली उस के पिता ने ही गोवा में—हिन्दुस्तान में—बने रहने को तरजीह दी थी।

वो बाइस साल का था जबकि परनेम से मुम्बई आया था। अपनी पर्सनैलिटी के बारे में खुशफहम हर नौजवान की तरह दो साल उसने फिल्म स्टूडियोज के धक्के खाते गुजारे थे, फिर कुछ खास किस्म के दोस्तों की सोहबत में उसका रुझान भाईगिरी में बना था। और दो साल उसने उस फील्ड में भी धक्के ही खाये थे लेकिन फिर तकदीर ने उसका साथ दिया था, उसे अमर नायक के गैंग में जगह मिल गयी थी जिस में शुरुआती दौर में उसने प्यादे के तौर पर हर तरह का ऐसा काम किया था जिसमें वो किसी सीनियर भाई के साथ महज शरीक होता था। लेकिन फिर एकाएक उसे कुछ ऐसे मौके मिले थे जिनमें स्वतन्त्र रूप से उसने कमाल का काम कर के दिखाया था और नतीजतन नवीन सोलंके की निगाहों में चढ़ गया था।

अब वो गैंग का एक ऐसा ‘इम्पॉर्टेंट कर के’ भीड़ू था जिसकी हैसियत और औकात गैंग में आम प्यादों से ऊपर मानी जाती थी।

दुबई से हीरों की बड़ी खेप की आमद की उसे भनक थी और उसका दिल बराबर ये गवाही भी देता था कि उस सिलसिले में उसका कोई रोल निकल सकता था। उस उम्मीद के आसरे उसने पहले से कुछ तैयारियां की हुई थीं जिन का तभी कोई फायदा था जब कि उसकी वो उम्मीद, और वैसी चन्द और उम्मीदें, पूरी होतीं।

जोकम फर्नान्डो जैसे क्राइम की दुनिया का पुर्जा बने हर नौजवान को हमेशा ये मलाल होता था कि वो टॉप के भाइयों जैसी करिश्‍माई तरक्की नहीं कर पाते थे, क्राइम की दुनिया में भरपूर मुंह काला कर चुकने के बाद भी उन की हैसियत अन्डरडॉग जैसी ही, आलसो रैन जैसी ही बनी रहती थी। लिहाजा हर ऐसा नौजवान किसी ऐसे मौके के सपने देखता था जिस में चील जैसा एक ही झपट्टा उसके सब वारे न्यारे कर देता।

नवीन सोलंके ने जब उसे बुलाया और मान दे कर, बाजू में बैठा कर सविस्तार उस काम के बारे में बताया जिस को अंजाम देने के लिए उसे खास तौर से चुना गया था तो सोलंके अभी अपनी बात आधी ही कह पाया था कि जोकम के मन में खुशी के, प्रत्याशा के अनार फूटने भी लगे थे।

बीस करोड़ के हीरे!

उसके कब्जे में!

फिर सोलंके ने अपनी बात मुकम्मल की तो उसे मालूम पड़ा कि सिर्फ उसके कब्जे में नहीं। उस ऑपरेशन में उसके साथ शिशिर सावंत भी शामिल था जो कि उस से उम्र में कोई पांच साल बड़ा था और गैंग का उससे ज्यादा सीनियर मेम्बर था। उस बात से हतोत्साहित होने की जगह तत्काल उसके खुराफाती दिमाग की चर्खी घूमने लगी थी और सोलंके के पास से उठ के जाने से भी पहले ही वो सोचने लगा था कि कैसे वो उस दुश्‍वारी से पार पा सकता था, शिशिर सावन्त नाम के फच्चर को रास्ते से हटा सकता था, कैसे वो उसे अपने हक में इस्तेमाल कर सकता था! बहरहाल अभी उसके पास कल शाम तक का वक्त था, उस दौरान वो अपनी एकाएक भेजे में आयी स्कीम को और पालिश कर सकता था या अलीशा की मदद से कोई नयी स्कीम सोच सकता था।

अलीशा वाज़ भी उस की तरह गोवानी थी, वो दो साल उस की प्रेमिका रही थी और अब पिछले दो साल से इस खास फर्क के साथ उसकी बीवी थी कि उसने शादी की गैंग में किसी को कानोकान खबर नहीं होने दी थी। वजह ये थी कि अमर नायक के गैंग में शादीशुदा नौजवान प्यादे की तरक्की बहुत मुश्‍किल से होती थी, समझा जाता था कि शादी बना कर नौजवान भीड़ू जज्बाती हो जाता था और बेहिचक खतरा मोल लेने से कतराने लगता था। ऐसे भीड़ू को गैंग से बाहर तो नहीं कर दिया जाता था लेकिन उस को जानजोखम वाले वो बड़े काम नहीं सौंपे जाते थे जिन की शाबाशी बड़ी होती थी, ईनाम बड़ा होता था। अलीशा वाज़ खूबसूरत, गोवानी लड़की थी जो कि अन्धेरी में गारमेंट्स के एक बड़े शोरूम में सेल्सगर्ल की नौकरी करती थी और जोगेश्‍वरी ईस्ट के एक छोटे से किराए के फ्लैट में रहती थी। उसका फ्लैट ऐसे इलाके में था जिसमें अधिकतर गोवानी बसते थे इसलिए स्थानीय बाशिन्दों ने उस इलाके का नाम लिटल गोवा रखा हुआ था। वहां बसी गोवानी कम्यूनिटी में आपसी भाईचारा स्वाभाविक तौर पर बना हुआ था इसलिये अलीशा जब आगन्तुक जोकम को अपना कज़न बताती थी तो किसी की भवें नहीं उठती थीं, सब को सहज ही वो बात कबूल होती थी।

बहरहाल दो साल से जोकम का ये राज बरकरार था कि वो शादी बना चुका था। गैंग में अलीशा वाज़ के वजूद से भी कोई वाकिफ नहीं था और लिटल गोवा में वो सब को ‘अपना अलीशा बेबी का कज़न’ के तौर पर कबूल था।

वो जोगेश्‍वरी पहुंचा।

अलीशा उसे देख कर बहुत खुश हुई और बगलगीर हो कर मिली।

“क्या कर रही है?”—जोकम ने निरर्थक सा प्रश्‍न किया।

“कुछ नहीं।”—वो मुदित मन से बोली—“अभी आयी।”—उसने आंखों में दिल रख कर जोकम को देखा—“अब करूंगी।”

“क्या?”

“डमडम! अक्खा!”

“अच्छा, वो?”

“हां, वो। बोले तो कुछ समझता हैइच नहीं।”

“अभी समझा न!”

“थैंक गॉड। तो खड़ेला काहे है खम्बा का माफिक! चल। हिल।”

“वो...वो...बोले तो अभी नहीं।”

“वाई?”

“आज रात मैं इधरीच है।”

“ओह! दैट्स गुड न्यूज।”

“अभी मेरे सामने बैठ। सीरियस करके बात करने का।”

“ओके। पण पहले काफी...”

“नहीं मांगता।”

“या ड्रिंक?”

“अरे, नहीं मांगता।”

“मैन, मेरे को मांगता है न!”

“ओह! तो ड्रिंक।”

“विस्की?”

“आज वोदका। विद कोकोनट वाटर। तेरे साथ चीयर्स बोलने का।”

“गुड! टू वोदका विद कोकोनट वाटर कमिंग अप राइट अवे, माई लार्ड एण्ड मास्टर।”

वो किचन में गयी और ट्रे पर रखे दो ड्रिंक्स के साथ लौटी।

दोनों ने आजू बाजू बैठ के चियर्स बोला।

“अभी बोलो”—अलीशा बोली—“क्या सीरियस कर के बात करने का?”

“हनी”—जोकम संजीदगी से बोला—“जिस मौके का मेरे को इन्तजार था, वो आन पहुंचा है।”

“बोले तो?”

जोकम ने बोला।

अलीशा ने पूरी संजीदगी से सब सुना।

“जो सपना मैं आज तक देखता था”—आखिर में जोकम बोला—“वो ये था कि बड़ा माल काबू में आते ही मैं बिना टेम वेस्ट किये तेरे को साथ ले कर इधर से निकल लेता और सीधा परनेम पहुंच के दम लेता जहां के मेरे मूल की इधर किसी को कतई कोई खबर नहीं। पणजी में मेरा एक पूरे भरोसे का फिरेंड है जो हवाला डीलिंग्स का कारोबार करता है। हाथ आया माल मैं उसके हवाले करता और तेरे को साथ ले कर मनीला के लिए रवाना हो जाता जहां कि अपनी फीस काट कर मेरा दोस्त डालर में या लोकल करेंसी पेसो में मुझे मेरी पेमेंट का इन्तजाम कर देता।”

“ओके।”—अलीशा संजीदगी से बोली।

“मेरी ये स्कीम तब कारआमद थी जब कि मेरा मनचाहा माल अकेले मेरे हाथ लगता। लेकिन अब माल दो जनों के हाथ लगना है जिन में से एक जना मैं हूं और दूसरा शिशिर सावंत कर के एक भीड़ू है जो कि भाई लोगों का मेरे से भी ज्यादा भरोसे का है। इस वजह से मेरे मगज में एक नवीं स्कीम आयेली है।”

“क्या?”

“माल शिशिर सावन्त ले कर भाग गया।”

“आई डोंट अन्डरस्टैण्ड।”

“अरे, बड़े माल की ताक में मैं हो सकता हूं तो कोई दूसरा नहीं हो सकता?”

“हो सकता है। दूसरा शिशिर सावंत?”

“बरोबर।”

“वो माल ले के भाग गया! बीस करोड़ के हीरे ले के भाग गया?”

“बरोबर।”

“तुम ने—जिस की माल की हिफाजत के मामले में बराबर की जिम्मेदारी थी—भाग जाने दिया?”

“मैंने रोका न, बरोबर! जान की बाजी लगा कर रोका। पण कामयाब न हो सका।”

“जान की बाजी लगा कर?”

“मेरे पर अटैक किया न दूसरा भीड़ू! शिशिर सावंत। मेरे को शूट कर के निकल लिया। पण मेरा गुड लक कि बुलेट कन्धे में लगा। क्या!”

पहले से संजीदा वो और संजीदा हो गयी। उसने खामोशी से वोदका का एक घूंट पिया।

“क्या!”—जोकम फिर बोला।

“सावंत का क्या होगा?”—अलीशा बोली।

“वही, जो होना जरूरी।”

“क्या होना जरूरी?”

“खल्लास!”

“लाश बरामद होगी तो...”

“नहीं होगी।”

“क्यों?”

“पोटला बनाने का न!”

“क्या बनाने का?”

“खल्लास कर के लाश गायब करने का।”

“ओह!”

“वजन बान्ध के समुद्र में। हमेशा के वास्ते गायब। पार्टनर को शूट करके माल के साथ भाग गया साला। बिग बॉस की वफादारी पर थूक गया।”

“वो काम वो कर गया जो तुम्हेरे को करने का!”

जोकम हड़बड़ाया, उसने घूर कर अलीशा को देखा।

“बोले तो अभी खून से अपना हाथ रंगेगा! एकीच क्राइम बाकी जो तुम अभी तक नहीं किया। वो ब्लडी अब करेगा!”

“माई डियर, ये बातें तब सोचने का था जब कि मैंने क्राइम की काली कोठरी में पहला कदम रखा था, उसमें गहरा धंस चुकने के बाद अब ये बातें सोचने का, सोच कर खौफ खाने का क्या फायदा!”

“जोकम, मगज से उतर गया क्या कि खून की सजा फांसी होती है?”

“पकड़े जाने पर।”

“झूठी तसल्ली है।”

“जब लाश बरामद नहीं होगी तो कैसे पक्की होगा कि खून हुआ? वो तो साला माल के साथ फरार हुआ!”

“जैसे तुम होगा?”

“हां।”

“और पकड़ में नहीं आयेगा?”

“कैसे आयेगा! मैं साला फिलीपाइन्स में...”

“अबू सलेम भी वहीं से इन्डिया पकड़ कर लाया गया था।”

जोकम हड़बड़ाया। उसने वोदका का एक बड़ा घूंट हलक में उतारा।

“कौन लाया?”—फिर दिलेरी से बोला—“साला पुलिस लाया। लीगली एक्स्ट्राडाइट करा के लाया। क्योंकि उनको मालूम अबू सलेम फिलीपाइन्स में। हमेरा पुलिस से क्या मतलब? हमेरा किसी से भी क्या लेना? साला एक भीड़ू मुम्बई से निकल कर किधर गया...”

“दो। मैं। युअर वाइफ।”

“... किसी को कैसे मालूम होयेंगा?”

“वक्त खराब हो तो...”

“ब्लडी हैल! वक्त खराब खामखाह! अरे, जो बात तेरे को शुरू से मालूम, मेरी जो स्कीम, जो ख्वाहिश, जो जिन्दगी की अकेली बड़ी ख्वाहिश, तेरे को शुरू से मालूम, उसमें अब फच्चर काहे वास्ते?”

“फच्चर तुम खुद डालता है, मैन।”

“क्या बोला?”

“बड़ा फच्चर। मर्डर। पहले मर्डर का कब बोला?”

“अभी स्कीम चेंज हुआ न!”

“मर्डर इस एक्सट्रीम क्राइम। मर्डर नहीं मांगता मेरे को।”

“पण जरूरी।”

“नहीं मांगता।”

“अक्खी ईडियट साली! अरे, जोखम बिना ऐसा कोई काम होता है! साला बड़ा काम, बड़ा जोखम।”

“फिर बड़ी सजा। मेरे को विडो होना नहीं मांगता।”

“ठोक देंगा साला, जो ईडियट का माफिक बोला। अरे, कुछ नहीं होगा मेरे को। खाली कन्धे में गोली। पन्द्रह बीस दिन में ऐन फिट मैं। क्या!”

उसने जवाब न दिया।

जोकम ने गिलास खाली किया और मेज पर रखा।

“जा, नवें ड्रिंक बना के ला।”

वो उठ कर ट्रे के साथ किचन में गयी और नये ड्रिंक्स के साथ लौटी।

“माई हनीचाइल्ड”—जाम काबू में करता जोकम मीठे स्वर में बोला—“वहम नहीं करने का।”

“जोकम”—अलीशा व्याकुल भाव से बोली—“मेरे को तुम को कुछ याद दिलाने का।”

“क्या?”

“एक स्टोरी जो तुम्हीं मेरे को सुनाया।”

“अरे, क्या?”

“बल्लू कनौजिया—जो अब मर चुका है—के गैंग का सावन झंकार करके एक भीड़ू जो डॉक वर्कर था, बॉस लोगों के हुक्म पर चार करोड़ के हीरे उधर से निकाला, उसको हीरों के साथ उधर अपना गिरफ्तारी देने का था क्यों कि ऐसीच बॉस लोगों का हुक्म था। ही एक्टिड स्मार्ट, डायमंड्स को किसी और तरीका से अपनी गर्लफ्रेंड के पास पहुंचा दिया, पुलिस ने थामा तो क्लीन पाया। ओवरनाइट लॉक अप में रखा, खूब इंक्वायरी किया, थर्ड डिग्री भी दिया, वो कुछ बक के न दिया तो मार्निं‍ग में उसको छोड़ दिया। वो आधे हीरों के साथ बॉस लोगों के पास गया और स्टोरी किया कि बाकी आधे पुलिस हड़प गया। सोचा, भाई लोग स्टेशन हाउस में एसएचओ से नहीं पूछने जाना सकता कि ऐसा किया था या नहीं किया था। मैन, तुम खुद मेरे को बताया कि हाफ दि डायमंड्स उसकी गर्लफ्रेंड के पास से बरामद किये भाई लोगों ने। यानी झंकार की स्कीम फेल, आधा माल हड़पने की उसकी कोशिश फेल। ब्लडी सेम डे पोर्ट की एक रोड पर उस का बॉडी किसी वहीकल की चपेट में आया पाया गया और उसका गर्लफ्रेंड धारावी में अपने घर के पंखे से टंगा पाया गया। याद आ गया?”

“क्या कहना मांगता है तेरे को?”—जोकम उखड़े स्वर में बोला।

“मेरे को जो कहना मांगता था, मैं कह चुकी। माई डियर हसबैंड, लक फेवर न करे तो कुछ सीधा नहीं होता।”

“अरे, ये क्या नया ही मूड दिखाने लग गयी है? कल तक इस मामले में तू मेरे साथ थी, आज खिलाफ क्यों बोल रही है?”

“कल तक मर्डर का कोई जिक्र नहीं था।”

“अरे, उसके अलावा कोई चारा नहीं।”

“तो वेट करने का।”

“किस बात का वेट करने का?”

“सेफर चांस का वेट करने का।”

“नानसेंस! ऐसा चांस रोज रोज नहीं आता। जो वक्त पर आये चांस को न थामे, उसको कैश न करे, वो साला अक्खा ईडिएट।”

“सोच लो।”

“तू सोच ले। जैसा मूड, जैसा मिजाज दिखा रही है, उसके तहत तू सोच ले।”

“मैं सोच लूं! क्या?”

“मैं रुकूं या जाऊं?”

वो भावविह्वल हो उठी, उसने गिलास ट्रे में रख दिया और खींच कर जोकम को अपने अंक में भर लिया।

“आई लव यूं।”—वो फुसफुसाती सी बोली—“आई लव यू फ्राम दि कोर आफ माई हार्ट। दैट्स वाई आई मैरिड यू। आई एम विद यू, माई डार्लिंग, कम हैल ऑर हाई वाटर, कम डेविल ऑर डीप सी।”

“थैंक्यू।”

“आई स्व‍ियर बाई सेंट फ्रांसिस, आई एम विद यू।”

“थैंक्यू, माई लव।”

जोकम ने भी गिलास को तिलांजलि दी और कस कर अलीशा को अपने साथ लिपटा लिया।

 

मुम्बई अन्डरवर्ल्ड में जो हालिया उथल पुथल हुई थीं, वो सब से ज्यादा उन गैंग्स के प्यादों के लिये दुश्‍वारी का बायस बनी थीं जिनके बिग बसिज़ एकाएक खुदा के घर रुखसत हो गये थे या रुखसत कर दिये गये थे। सरपरस्त न रहने की वजह से ऐसे गैंग बिखर गये थे। फिर जब उन्होंने किसी और गैंग की सरपरस्ती हासिल करने की कोशिश की थी तो उन्हें इसी वजह से दुत्कार कर भगा दिया था कि वो उस गैंग के प्यादे थे जिस के बॉस को—तमाम अन्डरवर्ल्ड जानता था—सीरॉक एस्टेट वाले विग बॉस ने खल्लास करवाया था। ऐसे कई प्यादों ने बहरामजी कान्ट्रैक्टर के भरोसे के आदमी खालिद को और बहरामजी के समगलिंग के धन्धे के कथित फ्रंट बेजान मोरावाला को पनाह के लिये अप्रोच करने की कोशिश की थी लेकिन किसी ने भाव नहीं दिया था—उन्हें बल्लू कनौजिया नाम के गद्दार के गैंग का कोई भीड़ू बिल्कुल नहीं मांगता था, महबूब फिरंगी के गैंग का कोई भीड़ू नहीं मांगता था अलबत्ता सलमान गाजी के—जो कि खुद को भाईगिरी से रिटायर हो गया बताता था—गैंग का कोई भीड़ू अभी इस उम्मीद में पनाह पाने की कोशिश नहीं करता था क्योंकि किसी को यकीन नहीं था कि उन का बॉस रिटायर हो रहा था या हो गया था। वो समझते थे वो एक अफवाह थी जो कि मुल्क के कायदे कानून को—गोवा में सलमान गाजी के खिलाफ गम्भीर केस था जिस में वो बड़ी मुश्‍किल से जमानत हासिल कर सका था—गुमराह करने के लिये बाकायदा फैलाई जा रही थी। यानी कोर्ट कचहरी के झंझटों से निजात पा लेने के बाद—जो कि सब को यकीन था कि आखिर सलमान गाजी पा ही लेता—वो फिर अपने पुराने धन्धों में सक्रिय हो जाने वाला था और उस की फिर पूछ होने लग जाना महज वक्त की बात थी।

बहरहाल बाकी गैंग्स के प्यादों का बुरा हाल था और फिलहाल वो गैरकानूनी धन्धों के आकाश में कटी पतंग बने हुए थे।

कटी पतंग बने ऐसे दो भीड़ू बल्लू कनौजिया के गैंग के थे जिन को उन हालात में ये दूर की सूझी थी कि अगर ऐसे तमाम प्यादे संगठित हो जाते तो वो अपना गैंग खड़ा कर सकते थे। वो दो प्यादे—जो वस्तुत: गैंग में प्यादों से बेहतर स्थिति में होते थे—सुहैल पठान और विराट पंड्या थे। उन्होंने नये गैंग का आइडिया बाकायदा बेरोजगार हो गये प्यादों की मीटिंग बुलाकर सरकाया था तो उन्हें वैसा जोशोखरोशभरा रिस्पांस नहीं हासिल हुआ था जैसे की कि वो अपेक्षा कर रहे थे। मीटिंग में शामिल हुए ज्यादातर भीड़ू लोगों ने बोलेगा। बतायेगा। खबर करेगा जैसे चलताऊ, टालू जवाब दिये थे, बाकी में से कुछ ने ऐसी किसी शिरकत से साफ मना कर दिया था और कुछ ने, मुश्‍किल से तेरह जनों ने, उस बाबत हामी भरी थी।

कुछ ने मजबूरी के हवाले चार पैसे बनाने का ये खतरनाक रास्ता अख्तियार किया था कि वो बड़े अन्डरवर्ल्ड बासिज़ के नाम का फर्जी हवाला देकर वसूली का, एक्सटॉर्शन का धन्धा करने लगे थे। कोई बकरा छांटते थे—जैसे कोई बिल्डर, कोई फिल्म निर्माता—उसे किसी बड़े डॉन—जैसे दाउद, राजन, शकील, साटम—के नाम की हूल देते थे और एक मोटी रकम की मांग इस धमकी के साथ खड़ी करते थे कि अगर अदायगी न हुई तो बिग बॉस के हुक्म पर उन्हें खल्लास कर दिया जायेगा। कुछ लोग उस धमकी से डर जाते थे और चुपचाप रकम अदा कर देते थे लेकिन ज्यादातर पुलिस की पनाह में जाना पसन्द करते थे। पुलिस ने पिछले दिनों यूं कोई तीस आदमी गिरफ्तार किये थे तो ये राज खुला था कि वो बिखर चुके गैंग्स के मामूली प्यादे थे जो बड़े गैंगस्टर्स के नाम का हौवा खड़ा कर के अपना मतलब हल करने की फिराक में होते थे।

अब राज्य का ऐन्टीएक्सटॉर्शन सैल इस सिलसिले में बहुत सक्रिय हो उठा था, नतीजतन ऐसे प्यादों की दाल नहीं गल रही थी। फिर भी हैरानी थी कि संगठित होने का, एक जुट होने का आइडिया उन को मुतमईन नहीं कर सका था।

बाद में ‘बोलेगा। बतायेगा। खबर करेगा। वालों ने न बोला था, न बताया था, न खबर की थी तो इस सिलसिले में पहल करने वाले दोनों भीड़ू सुहैल पठान और विराट् पंड्या भी हतोत्साहित हो गये थे। लेकिन ये अरमान फिर भी उन के मन से नहीं निकला था कि काश उन का अपना गैंग होता, वो भी तरक्की करके हाजी मस्तान, करीम लाला, छोटा राजन, अबू सलेम, अरुण गावली, छोटा शकील, गुरु साटम जैसी हैसियत के अन्डरवर्ल्ड डॉन बन पाते और राज बहादुर बखिया, बहरामजी कान्ट्रैक्टर, महबूब फिरंगी वगैरह जैसा बनने के ख्वाब देख पाते। लेकिन अब सूरतअहवाल ये था कि वो एक बहुत छोटे लैवल पर संगठित थे जिसमें किसी का कोई बड़ा खिलाड़ी बन पाना, बड़ा खेल खेल पाना मुमकिन नहीं था—हालांकि ऐसे किसी मौके की तलाश में वो फिर भी रहते थे, हमेशा रहते थे—इसलिये उन छोटे खिलाड़ियों का मौजूदा फील्ड आफ आपरेशन सिर्फ बन्दरगाह था जहां वो जैसे तैसे छोटे मोटे करतब करने में कामयाब हो जाते थे और किसी बड़े करतब की ताक में हमेशा रहते थे।

फिलहाल उन के ‘कैजुअल गैंग में, न तीन में न तेरह में’ गैंग में, जो बाकी जोड़ीदार थे उन का सरगना एक उम्रदराज पुराना मवाली था जिसका नाम कीरत मेधवाल था और जो कम्पनी के निजाम के दौरान इब्राहीम कालिया का प्यादा रह चुका था। इसी वजह से सब उसकी इज्जत करते थे और उसे ‘जरनैल’ कह कर बुलाते थे। कीरत मेधवाल ‘जरनैल’ का दर्जा गैंग के बॉस का तो कोई नहीं मानता था, क्योंकि जब गैंग ही नहीं था तो बॉस कहां से होता, लेकिन फिर भी उसके जो दो अहम काम थे, उन में से एक उन आठ-दस खूंटे से उखड़े प्यादों को एकजुट करके रखना था और दूसरा निरन्तर इस सूंघ में रहना था कि कौन सा बड़ा बाप अभी भी उन्हें भाव दे सकता था और इज्जत से, मान से उन्हें अपने गैंग में शामिल कर सकता था।

लेकिन वो नौबत पता नहीं कब आती, आती भी या नहीं।

उस घड़ी रात के नौ बजने को थे जब कि सुहैल पठान और विराट पंड्या बन्दरगाह के इलाके में डिमेलो रोड के एक बार में मौजूद थे। बार में उस घड़ी रौनक तो थी लेकिन फिर भी बहुत मेजें खाली थीं। उस इलाके में आये दिन नया बार खुलता था और अब वहां इतने बार हो गये थे कि आपसी कम्पीटीशन से बचे रह पाना नामुमकिन हो गया था। उसी वजह से वो बार के पिछवाड़े की जिस टेबल पर बैठे थे, उसके आस पास की टेबलें फिलहाल खाली थीं। उन्होंने पहुंचते ही ड्रिंक्स तो मंगा लिये थे लेकिन पठान नोट कर रहा था कि पंड्या उसमें अपेक्षित रुचि नहीं ले रहा था।

“क्या रे?”—पठान बोला।

पंड्या ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा।

“ये टेम क्या है तेरे मगज में?”

“बोले तो है तो सही कुछ, भाया!”

“तो बोलता काहे नहीं?”

“बोलता है न! बोलने के वास्ते ही तो तेरे साथ इधर आ के बैठेला है।”

“मैं सुनता है।”

“वो क्या है कि बन्दरगाह से एक बड़ी झकास टिप हाथ लगी है।”

“टिप!”

“हां। बड़ी टिप। मार्के की टिप। ऐन पर्फेक्ट टिप। जिसे कि हम कैश कर सकें तो... तो भाया, एक ही बार में वारे न्यारे हो जायेंगे।”

“आगे बोल।”

“भाया, ये ऐन डीप इन साइड इनफर्मेशन है जो करिश्‍मा ही जान कि किसी तरीके से मेरे हाथ लग गयी वर्ना टॉप बॉस का टॉप सीक्रेट था, किसी को भनक नहीं लगने वाली थी।”

“टॉप बॉस कौन?”

“अमर नायक।”

“उसका टॉप सीक्रेट क्या?”

“कल उसका एक भीड़ू दुबई से एकदम इकसठ माल का बड़ा लॉट ले कर आ रयेला है...”

“एकदम इकसठ बोला! बोले तो बिल्कुल खरा माल?”

“हां। जो भीड़ू माल ला रहा है उस का नाम हुसैन डाकी है, उसके शिप के बन्दरगाह पर आकर लगने का टेम शाम छ: बजे का है और इकसठ माल का बड़ा लॉट...सोच क्या?

“हेरोइन।”

“नक्को।”

“वैसा ही कोई हाई फाई ड्रग?”

“नक्को। ड्रग नहीं, भाया, ड्रग नहीं।”

“तो?”

“हीरे। कीमत बीस खोखा!”

“ब-बीस...बीस करोड़!”

“बरोबर।”

“फेंकता है साला।”

“अरे, नहीं, भाया।”

“बन्दरगाह के आजकल के सख्ती के माहौल में एक बल्क में इतना बड़ा लॉट लाने की हिम्मत नहीं हो सकती किसी की।”

“हो रही है न! हुसैन डाकी ला रहा है न!”

“यकीनन पकड़ा जायेगा।”

“कस्टम पर डिक्लेयर करके लायेगा तो कैसे पकड़ा जायेगा?”

“क्या बोला?”

“कस्टम पर डिक्लेयर करके लायेगा।”

“पक्की बात?”

“ऐसीच टिप मिली मेरे को।”

“इतने बड़े ‘भाई’ का माल आ रहा है, बोलता है कैरियर ला रहा है, तो साला आकर कस्टम पर डिक्लेयर करेगा?”

“हां।”

“बंडल! तेरी टिप में लोचा।”

“नहीं है। टिप सौ टांक करेक्ट है। पूरे भरोसे की है।”

“अरे, खजूर, बड़े मवाली का, बोले तो टॉप के गैंगस्टर का, समगलिंग का माल किधर डिक्लेयर करके आता है?”

पंड्या ने संजीदगी से उस बात पर विचार किया।

“उस में कोई भेद हो सकता है।”—फिर बोला—“बोले तो होगा ही। मेरे को टिप सरकाने वाला इस पहलू पर कोई भी रौशनी नहीं डाल सका कि माल कस्टम से बाहर कैसे आयेगा। पण वो गारन्टी करता है, बाहर आयेगा बरोबर।”

“नहीं आयेगा।”

“सुनता नहीं है! समझता नहीं है...

सब सुनता है, सब समझता है मैं। बन्दरगाह की आजकल की सख्ती...”

“अरे, सख्ती मालूम मेरे को। एक ही ट्यून पकड़ के काहे वास्ते बैठेला है तू? मेरे को बन्दरगाह से मिली किसी टिप में आज तक लोचा नहीं निकला। टिप सरकाने वाला मेरा भरोसे का भीड़ू है—बोले तो हमारे स्वर्गवासी बॉस बल्लू कनौजिया के भरोसे का भीड़ू था—अगर वो बोलता है जो माल मैं बोला वो आ रहा है तो आ रहा है। अगर वो बोलता है माल बिना किसी पंगे के बाहर निकलेगा तो निकलेगा।”

“पण...”

“तेरे पण की मां की। बस नहीं करता साला कुतरा।”

पठान सकपकाया, उसने अपलक भुनभुनाते, भड़कने को उतारू पंड्या को देखा।

“घूंट लगा।”—फिर धीरे से बोला—“मगज चैन पायेगा।”

“सॉरी!”—पंड्या ने अपना जाम उठा कर एक लम्बा घूंट भरा।

“वांदा नहीं।”

“मैं खाली ये बोलता है, भाया, कि अगर टिप गलत है, गलत हो नहीं सकती पण बहस के लिये बोलता है कि गलत है, अगर ऐसा कोई माल असल में नहीं आ रहा जिस का टिप सरकाने वाला बोला तो वो हमारे हाथ नहीं लगेगा, बस इतनी सी बात है।”

“तू...तू वो माल झपटने की फिराक में है?”

“और मैं ये कथा तेरे को एन्टरटेन करने के वास्ते करता है?”

“हूं।”

“भाया, तू ये मान के चल कि माल आ रहा है, बड़े गैंगस्टर अमर नायक के बीस करोड़ के हीरों का लॉट उसका कैरियर हुसैन डाकी दुबई से लेकर आ रहा है और वो कैसे भी बचायेगा, माल को कस्टम की पकड़ाई में आने से बचायेगा। माल बन्दरगाह से बाहर पहुंचेगा। ओके?”

“तू बोलता है तो ओके पण...”

“फिर पण?”

“सुन। सुन। प्लीज, सुन।”

“ओके। सुनता है। बोल।

“तू हुसैन डाकी को पहचानता है?”

पंड्या सकपकाया।

“जवाब दे?”

“न-हीं।”

“वो भीड़ू पहचानता है जो तेरे को टिप सरकाया?”

“नहीं।”

“तो तेरे को कैसे मालूम होयेंगा शिप से उतरने वाले सैंकड़ों पैसेंजर्स में से कौन हुसैन डाकी? कौन अमर नायक का कैरियर जिसके पोजेशन में हीरों का इतना बड़ा लॉट?”

“अच्छा वो?”

“हां, वो। जवाब दे।”

“देता है। सुन। मैं कैरियर को नहीं पहचानता पण उस भीड़ू को पहचानता है न बरोबर जिस को वो बाहर आके माल सौंपेगा!”

“क्या बोला?”

“वही, जो तू सुना। अभी सुन जो मेरे को एक दूसरी टिप से मालूम पड़ा। शिशिर सावन्त है वो भीड़ू, जो अमर नायक के टॉप के लेफ्टीनेंट नवीन सोलंके का खास, जिसे कि दुबई से आया कैरियर हुसैन डाकी—जो कोई भी वो है—बन्दरगाह से बाहर निकल कर माल सौंपेगा। बोले तो कल शाम बन्दरगाह के बाहर शिशिर सावन्त मौजूद। वो उधर जिस पैसेंजर से मिले सीक्रेट कर के, वो हुसैन डाकी। ऐनी प्राब्लम?”

पठान प्रभावित दिखाई देने लगा।

पंड्या शान से, विजेता के से भाव से हंसा, उसने अपने जाम से एक घूंट पिया।

“तेरा इरादा”—पठान दबे स्वर में बोला—“उस शिशिर सावंत करके भीड़ू को अपना निशाना बनाने का है?”

“हमारा इरादा”—पंड्या ने ‘हमारा’ पर विशेष जोर दिया—“शिशिर सावंत को अपना निशाना बनाने का है।”

“हूं।”

“अभी बोल, क्या बोलता है?”

“इतने मोटे माल को रिसीव करने के लिये वो अकेला बन्दरगाह पहुंचेगा?”

पंड्या फिर सोच में पड़ गया।

“बड़ा लॉट है।”—फिर बड़बड़ाता सा बोला—“करोड़ों का माल है। कोई बैक अप हो सकता है।”

“अभी आई बात समझ में।”—पठान बोला—“वो तेरा शिशिर सावन्त उधर दर्जन भर प्यादों के बैक अप के साथ पहुंचा तो...”

“तो किस्सा खत्म। हमारा प्रोजेक्ट फेल।”

“यानी मानता है न कि बैक अप हो सकता है पक्की कर के?”

“पक्की कर के नहीं मानता। कोई काम खामोशी से होना मांगता हो तो भीड़ से परहेज किया जाता है। पण...अभी क्या बोलेगा!...पण फिर भी बोलता है। हम वाच रखेंगे। शिशिर सावंत के साथ हमें कोई बड़ा बैक अप दिखाई दिया तो नक्की करेंगे। वर्ना जैसा माहौल पायेंगे, उसके मुताबिक एक्ट करेंगे। नाओ ऐनी प्राब्लम!”

पठान ने हिचकिचाते हुए इंकार में सिर हिलाया।

“तो ड्रिंक मंगा।”

तत्काल पठान ने वेटर को इशारा किया।

दोनों को नये ड्रिंक सर्व हुए।

“जरनैल से बात करने के बारे में क्या खयाल है?”

पंड्या पहले ही इंकार में सिर हिलाने लगा।

“अरे, मशवरा करने में क्या हर्ज है?”

“अभी नहीं। अभी जो बैक अप का फच्चर आन पड़ा है, उसकी वजह से अभी नहीं।”

“वो अक्ल वाला भीड़ू है, बैक अप से निपटने का कोई तरीका सुझा सकता है।”

“क्या तरीका सुझा सकता है? ऐसे बैक अप से निपटने का एक ही तरीका जो हमेरे को भी मालूम। बड़े बाप के दर्जन भर प्यादों को हैंडल करने के वास्ते दो दर्जन भीड़ू मांगता होयेंगा। अपना जरनैल भी किधर से लायेंगा साला इतना भीड़ू?”

“ठीक।”

“ले भी आये तो साला बड़ा गलाटा होयेंगा। साला गैंगवार किस को मांगता है! हम अमर नायक के गैंग से भिड़ने लायक साले कब को हो गये!”

“बरोबर बोला।”

“ये साला साइलेंट आपरेशन। साइलेंटली कंडक्ट करने का। खाली दो भीड़ू—तू और मैं—साइलेंटली कन्डक्ट करने का। टिप सही निकली, कल हम कुछ कर पाये तो बढ़िया वर्ना समझना कुछ हुआ ही नहीं, कभी कुछ मगज में आया ही नहीं।”

“ठीक।”

“कामयाब हो गये तो जरनैल को शान से बोलेंगे न कि क्या कारनामा किया!”

“वो बोलेगा नहीं उसको खबर क्यों न की?”

“अरे, नहीं बोलेगा। बोले तो खुश होगा। शाबाशी देगा। जो भीड़ू बड़ी कामयाबी की खबर देता हो, उसको कौन टोकता है! उसमें कौन नुक्स निकालता है!”

“खबर देना जरूरी?”—पठान का स्वर धीमा पड़ा।

“क्या बोला?”

“अगर हम कामयाब हो गये तो कामयाबी की खबर जरनैल को करना जरूरी?”

“हां, भाया, जरूरी।”—पंड्या का स्वर भी संजीदा हुआ।

“सोच कर बोला न!”

“सोच कर ही बोला। ऊपर वाले की मेहर से माल हाथ में आ गया तो...तो...बीस करोड़ के हीरे! हम कैसे हैंडल कर पायेंगे? हीरों से हमारा पहले कब वास्ता पड़ा? क्या करेंगे?”

“इसलिये जरनैल जरूरी!”

“हां।

वो क्या करेगा?”

“अरे, वो उम्रदराज है, हम से कहीं ज्यादा तजुर्बेकार है, कहीं ज्यादा शयाना है, कहीं ज्यादा दुनिया देखे है, कुछ तो करेगा! कुछ तो सुझायेगा ऐन फिट करके!”

“हूं।”

“और, भाया, अभी साला ये टेम है इतना आगे सोचने का? ये तो बोले तो वही मसल हुई कि गांव अभी बंधा नहीं, मंगते इकट्ठे हो गये। बीवी अभी हामला भी नहीं हुई, बच्चे को स्कूल में भरती कराने की फिक्र हो गयी!”

“ठीक बोला। तो कुछ करने का तो साइलेंटली करने का!”

“हां। अभी ओके बोल।”

“ओके।”

“और नये ड्रिंक्स मंगा। ताकि कल की कामयाबी के नाम पर चियर्स बोलें।”

सहमति में सिर हिलाते पठान ने वेटर को इशारा किया।