“क्या कह रहे हो बबूसा।” सोमारा हक्की-बक्की रह गई। आंखें हैरानी से फैलकर चौड़ी हो चुकी थी-“तुम-तुम्हारा मतलब कि राजा देव, रानी ताशा को नहीं चाह रहे, बल्कि राजा देव की रानी ताशा पर दीवानगी, धरा की ताकतों की वजह से है। ये ही...ये ही कहना चाहते हो न तुम?”

बबूसा के चेहरे पर चिंता में डूबी गम्भीरता दिख रही थी।

“ठीक समझी तुम। पर ये बात मैं नहीं कह रहा। धरा ने मुझे बताया कि ये सब उसी की ताकतों का कमाल है, उसकी ताकतें राजा देव के सिर पर सवार हैं, जो कि उन्हें रानी ताशा की दीवाना बनाए हुए हैं।” बबूसा बोला।

“प...पर ऐसा क्यों...धरा की ताकतें ऐसा क्यों कर रही हैं?” सोमारा अजीब-से हाल में दिख रही थी।

“ये सब कुछ धरा को सदूर पर पहुंचने के लिए हो रहा है।”

“व...वो कैसे?”

“धरा सदूर ग्रह पर वापस पहुंचने को बेताब है। जैसा कि धरा ने ही मुझे बताया था कि उस जन्म में धरा की उन ताकतों ने, जो सदूर पर थीं, उन्होंने ही रानी ताशा के द्वारा राजा देव को सदूर ग्रह से बाहर फिंकवा दिया था, ये सब रास्ते तैयार किए जा रहे थे धरा को सदूर ग्रह पर लाया जा सके। रानी ताशा तो खुद ही परेशान रही कि भला वो कैसे राजा देव को ग्रह से बाहर फिंकवा सकती है। वो तो राजा देव को बहुत चाहती है। अभी तक रानी ताशा इस बात से अंजान है कि ताकतों ने उससे ये काम करवाया था और फिर रानी ताशा को अकेले छोड़ दिया। धरा की ताकतें जरूर भविष्य के बारे में ज्ञान रखती होंगी कि राजा देव आखिरकार पृथ्वी पर ही जीवन जिएंगे और एक दिन वो वापस सदूर पर अवश्य पहुंचेंगे और तब धरा साथ में आ जाएगी।”

“हैरानी हो रही है मुझे।”

“लेकिन मैं तो इन सब बातों से परेशान हुआ पड़ा हूं।” बबूसा होंठ भींचे कह उठा।

“तुम राजा देव के बारे में बता रहे थे कि...”

“हां।” बबूसा कह उठा-“धरा ने बताया कि राजा देव ने कभी भी अपनी पत्नी नगीना का साथ नहीं छोड़ा था और ऐसे में झगड़े बढ़ जाने थे, तो वो सदूर पर कैसे पहुंचती? ऐसे में धरा की ताकतों ने राजा देव के दिमाग पर काबू पाकर उन्हें रानी ताशा का दीवाना बना दिया।”

“ओह।”

“धरा का कहना है कि ऐसा करने पर ही उसकी सदूर की यात्रा शुरू हो सकी। राजा देव और रानी ताशा एक हो गए और खुशी-खुशी सदूर की तरफ चल पड़े। मेरे साथ धरा भी पोपा में सवार हो गई। बात यहीं तक रहती तो तब भी सब ठीक रहता, परंतु धरा कहती है कि सदूर ग्रह पर पहुंचते ही उसकी ताकतें राजा देव के सिर से हट जाएंगी और राजा देव (देवराज चौहान) फिर पहले की स्थिति में पहुंच जाएंगे।”

“पहले की स्थिति कैसी...क्या वो तुम्हें भी नहीं पहचानेंगे?”

“मुझे पहचानेंगे। सदूर की जो बातें उन्हें याद आ चुकी हैं, वो याद रहेंगी। परंतु वो अपनी पृथ्वी की पत्नी नगीना को हरगिज नहीं छोड़ेंगे, रानी ताशा के लिए।” बबूसा ने चिंतित स्वर में कहा।

“ये बातें धरा ने बताई?”

“हां।”

“ये तो बहुत बुरा होगा कि राजा देव सदूर पर पहुंचने के बाद रानी ताशा का साथ छोड़ देंगे और अपनी पत्नी नगीना का हाथ थाम लेंगे। रानी ताशा तो पागल हो उठेगी। वो ये बात बर्दाश्त नहीं करेगी बबूसा।”

“ये ही बात तो मुझे परेशान किए दे रही है।”

दोनों कुछ पल एक-दूसरे को देखते रहे।

“फिर तो सदूर पर पहुंचना किसी के लिए भी शुभ नहीं होगा। सोमारा बोली।

“क्या पता, सदूर पर अब क्या होने वाला है।”

“रानी ताशा किसी भी कीमत पर राजा देव को नहीं छोड़ेगी।”

“जानता हूं।” बबूसा ने बेचैनी से कहा।

“राजा देव को पाने के लिए रानी ताशा कुछ भी कर देगी। सदूर पर रानी ताशा के पास ताकतें हैं।”

“तुम ठीक कह रही हो सोमारा। ये ही बातें मैं सोच रहा हूं। रानी ताशा राजा देव को हाथ से नहीं जाने देगी। वो राजा देव से सच्चा प्यार करती है, परंतु समय बहुत तेजी से बदल रहा है, हालात पलटा खाने वाले हैं। सदूर पर पहुंचते ही तूफान उठ खड़ा होगा। मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?”

“ये सब धरा इसलिए कर रही है कि सदूर पर पहुंच सके।”

“हां।”

“तुमने धरा से पूछा नहीं कि असल में वो है कौन और क्या चाहती है?”

“वो कुछ भी नहीं बताती। इतना ही कहती है कि सदूर की जमीन पर पांव रखते ही अपने बारे में बता देगी, परंतु उससे पहले इस बारे में कुछ भी नहीं कहेगी। कहती है कि अपने बारे में एक शब्द भी कहा तो कोई भी समझ लेगा कि वो कौन है।” बबूसा होंठ भींचे कह उठा।

“ये तो हालात बहुत खतरनाक हो गए। तुम ये बातें राजा देव या रानी ताशा को बता...”

“चाहकर भी नहीं बता सकता।” बबूसा ने इंकार में सिर हिलाया-“तुम तो जानती हो कि जब भी धरा से वास्ता रखती बातें किसी को बताना शुरू करते हैं तो मुंह से कुछ का कुछ निकलने लगता है। ये सब गड़बड़ धरा की ताकतें ही करती हैं।” (ये सब विस्तार से जानने के लिए पढ़ें राजा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा का चक्रव्यूह’।)

“मैं धरा के बारे में किसी को कुछ भी बता नहीं पा रहा।”

“तुमने तो मुझे चिंता में डाल दिया बबूसा कि राजा देव की, रानी ताशा के लिए चाहत, धरा की ताकतों की इच्छा से है। रानी ताशा को मैं बहुत अच्छी तरह से जानती हूं। वो बहुत जिद्दी है और जब राजा देव को अपने हाथों से निकलता देखेगी तो वो कुछ भी कर देगी। मुझे तो डर लग रहा है कि सदूर पर पहुंचते ही तूफान उठ खड़ा होगा।”

बबूसा खामोश रहा।

“तुम कुछ करो बबूसा।”

“मैं कुछ नहीं कर सकता।”

“परंतु कुछ तो...”

“कुछ भी नहीं कर सकता। मैंने धरा पर झपटने की कोशिश की थी गुस्से में। तब मेरे मन में था कि मैं धरा का गला दबा दूंगा, परंतु दो-तीन कदमों के बाद, धरा की ताकतों ने मुझे वापस वहीं खड़ा कर दिया, जहां से मैं चला था। तब धरा बेड पर बैठी मुझे देखकर हंस रही थी। धरा की ताकतों ने उसे सुरक्षित कर रखा है। कोई भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”

“मैं व्याकुल हो रही हूं कि आखिर धरा है कौन और वो क्यों सदूर पर जा रही है।”

“कहती है सदूर पर वापस जा रही हूं। वो अपने को सदूर का बताती है।”

सोमारा बबूसा को देखने लगी।

“अब क्या होगा बबूसा?”

“जो भी होगा, बुरा ही होगा।” बबूसा सोच भरे गम्भीर स्वर में कह उठा-“सदूर पर पोपा के पहुंचते ही, धरा की ताकतें राजा देव के मस्तिष्क से हट जाएंगी तो राजा देव उसी पल रानी ताशा का साथ छोड़कर नगीना के पास आ जाएंगे। ये बात कभी भी रानी ताशा सह नहीं सकेगी। तब वो कुछ भी कर देगी।”

“परंतु तब तुम क्या करोगे?

“हां, तब क्या तुम राजा देव का साथ दोगे या रानी ताशा का?”

“मैं राजा देव का सेवक हूं सोमारा। हर तरह के हालातों में मैं राजा देव के साथ ही रहूंगा।”

“परंतु जीत रानी ताशा की होगी। क्योंकि वो सदूर की रानी है और...”

“राजा देव को याद आ चुका है कि वो सदूर के राजा हैं। बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“ऐसे मैं सदूर ग्रह को राजा देव संभालेंगे या रानी ताशा, ये नहीं कहा जा सकता। मुझे कहीं चैन नहीं मिल रहा। पहले पृथ्वी पर राजा देव को लेकर परेशान रहा अब ये नए हालात मुझे तनाव में डाल रहे हैं। रानी ताशा को भी पृथ्वी पर जाने और राजा देव को वापस लाने का कोई फायदा नहीं हुआ। पहले वो राजा देव की तलाश में परेशान थीं तो

सदूर पर पहुंचते ही अब वो इस बात से परेशान होने वाली है कि राजा देव अपनी पत्नी का साथ नहीं छोड़ना चाहते। सदूर पर पहुंचते ही राजा देव भी समस्या में घिर जाएंगे कि वो पृथ्वी से इतनी दूर सदूर ग्रह पर क्यों आ गए। मुझे भी पता नहीं कि मैं राजा देव की कितनी सहायता कर पाऊंगा। बेचैनी हो रही है मुझे कि ये इतना गम्भीर मसला है और धरा की ताकतें, इन बातों को राजा देव को, नहीं बताने दे रहीं।

“हम धरा की ताकतों का मुकाबला नहीं कर सकते।” सोमारा कह उठी।

“तुम ठीक कहती हो। धरा की ताकतों के सामने हम बहुत कमजोर हैं।” बबूसा ने होठ भींचकर कहा-“जबकि धरा कहती है कि इस वक्त तो उसके साथ दो-तीन ताकतें हैं और उसकी बाकी की ताकतें सदूर पर उसका इंतजार कर रही हैं।”

“वो कभी-कभी मुझे शैतान जैसी लगती है। जब वो मुस्कराती है और उसका निचला होंठ टेढा हो जाता है।”

“इस बात का आभास मुझे भी कई बार हुआ है।”

“अब क्या करोगे बबूसा?”

“मेरे ख्याल में मुझे पूरा ध्यान सोमाथ पर लगा देना चाहिए। सोमाथ, सदूर पर पहुंचकर, रानी ताशा का हुक्म मानते हुए हमें तगड़ा नुकसान पहुंचा सकता है। रानी ताशा ने गुस्से में पागल होकर सोमाथ से कह दिया कि राजा देव की जान ले ले, तो वो ऐसा भी कर देगा। धरा के बारे में बाद में सोचूंगा, पहले सोमाथ को खत्म करना होगा ताकि...”

“तुम तो कहते हो कि सोमाथ को मारने के लिए, कोई चक्रव्यूह रचने जा रहे हो?”

“चक्रव्यूह मेरे दिमाग में पूरी तरह अपने पंख फैला चुका है सोमारा।” बबूसा के चेहरे पर एकाएक खतरनाक मुस्कान आ ठहरी-“सोमाथ एक बार मेरे चक्रव्यूह में फंस गया तो सीधा मौत के मुंह में जाएगा।”

“कैसे फंसेगा वो?”

“जरूर फंसेगा।” बबूसा ने विश्वास भरे स्वर में कहा-“क्योंकि अब मैं अपने चक्रव्यूह को दिमाग से बाहर निकालने जा रहा हूं और जो भी होगा, सोमाथ कभी नहीं समझ सकेगा, वो सब मेरे रचे चक्रव्यूह के धागे हैं।”

“मुझे तो बताओ अपना चक्रव्यूह?”

“अभी कुछ मत पूछो सोमारा। मुझे अपना चक्रव्यूह बिछाने दो। सोमाथ को उसमें फंसने दो। आओ मेरे साथ।”

“कहां?”

“जगमोहन, नगीना और मोना चौधरी के पास। वो पोपा के पीछे वाले हिस्से में...”

“वो तो उधर केबिन में हैं। कुछ देर पहले मैंने तीनों को उस केबिन में बैठे देखा है।” सोमारा बोली।

“तो फिर वहीं चलते हैं।”

बबूसा और सोमारा उस केबिन में पहुंचे जहां मोना चौधरी, जगमोहन और नगीना थे। वो बातों में व्यस्त थे कि उनके आने पर, बातें रुक गईं और वो दोनों को देखने लगे।

बबूसा और सोमारा के चेहरे पर गम्भीरता थी।

“खास बातें हो रही थीं क्या?” बबूसा बैठते हुए बोला।

“तुम्हारे बारे में ही बात कर रहे थे।” मोना चौधरी बोली।

“क्या?”

“यही कि तुम सोमाथ के बारे में किस तरह का कदम उठाने वाले हो।”

“तुम सोमाथ पर काबू पा भी सकोगे या नहीं?” जगमोहन बोला।

बबूसा मुस्कराया फिर गम्भीर होता कह उठा।

सोमाथ अपने केबिन में चहल-कदमी कर रहा था। चेहरे पर सोच के भाव थे। वो पूरी तरह शांत दिख रहा था। उसकी सोचों का केंद्र बबूसा ही था, जिसके बारे में उसे पता था कि वो उस पर हमला करेगा। एक हमला तो बबूसा का नाकाम हो चुका था (विस्तार से जानने के लिए पढ़ें-’बबूसा का चक्रव्यूह’।) ऐसे में सोमाथ को पूरा यकीन था कि इस बार बबूसा बहुत सोच-समझकर अपना कदम उठाएगा। अब सोमाथ का इरादा भी इन लोगों को छोड़ने का नहीं था। एकाएक सोमाथ ठिठका और दीवार पर लगी स्क्रीन के पास पहुंचकर एक बटन दबाया तो स्क्रीन रोशन हो उठी। दो पलों बाद स्कीन पर पोपा के किसी भाग का दृश्य नजर आने लगा। सोमाथ स्कीन के पास लगी नॉब को धीमे-धीमे घुमाने लगा तो स्क्रीन पर दृश्य बदलने लगे।

सोमाथ की निगाह स्क्रीन पर ही टिकी थी कि एक जगह वो रुक गया। स्कीन पर बबूसा, सोमारा, नगीना, जगमोहन और मोना चौधरी दिख रहे थे। सोमाथ ने एक और बटन दबाया तो स्पीकर से निकलकर उसकी आवाजें सुनाई देने लगीं।

मोना चौधरी की आवाज सोमाथ के कानों में पड़ी।

“यही कि तुम सोमाथ के बारे में किस तरह का कदम उठाने वाले हो?”

“मेरी तैयारी पूरी हो चुकी है।” बबूसा ने कहा।

“कुछ हमें भी तो बताओ।”

चंद पल खामोश रहकर बबूसा बोला।

“अभी मैं कुछ नहीं बताऊंगा।”

“क्यों?”

“सोमाथ से मुझे ही निबटना है, ये काम कैसे होगा, ये मुझ पर छोड़ दो।”

“तो हम क्या करेंगे?” नगीना बोली।

“मेरी सहायता।”

“जब तुम हमें कुछ भी बताने को तैयार नहीं तो हम तुम्हारी सहायता कैसे कर सकेंगे।”

“जैसे मैं कहूं, वो ही करो तो मुझे तुम लोगों की सहायता मिल...”

“तुम हमें सब कुछ स्पष्ट बता क्यों नहीं देते कि तुम्हारा प्लान क्या है?” जगमोहन बोला।

“वक्त आने दो सब बता दूंगा।”

सोमाथ की शांत निगाह स्क्रीन पर थी और वो उनकी बातें सुन रहा था।

“हम तुम्हारे प्लान में कहां फिट बैठते हैं?” जगमोहन ने पूछा।

“तुम लोग सोमाथ पर छोटे-छोटे हमले करोगे।”

“छोटे-छोटे हमले?”

“वो हमें मार देगा।” नगीना बोली।

“ऐसा कुछ नहीं होगा। सोमाथ पर छोटे-छोटे हमले करके उसे उलझाना है कि उसका पूरा ध्यान तुम लोगों पर लग जाए। जबकि असली हमला तो मैंने करना है। तुम लोगों के हमले मेरे तैयार किए चक्रव्यूह का ही हिस्सा होंगे।”

“लेकिन हमारे कमजोर हमलों से सोमाथ का क्या बिगड़ेगा?”

“कुछ भी नहीं।” बबूसा ने मुस्कराकर कहा-“तुम लोगों ने उसका कुछ भी बिगाड़ना नहीं है। बस उसे इस बात का एहसास दिलाना है कि हम उसे मारने के लिए उसके पीछे पड़ चुके है।”

“इससे क्या फायदा होगा?”

“जो फायदा होगा, वो सिर्फ मैं ही जानता हूं।” बबूसा मुस्कराया-“बस तुम लोगों ने इसी तरह मेरी सहायता करनी है। इस काम के लिए हथियारों की कमी नहीं है। पोपा के पीछे वाले हिस्से में हथियार रखे हैं, अपनी पसंद का हथियार चुन लो। सोमाथ से सावधान रहना। उसके हाथ नहीं पड़ना। हथियार से उस पर हमला करना और भाग जाना। तुम सबको अपना ठिकाना पोपा के पीछे वाले हिस्से को ही बनाना होगा। मैं भी उसी जगह को अपना ठिकाना बनाऊंगा।”

“लेकिन सोमाथ हमले के बाद हमें ढूंढ़ता वहां पहुंच जाएगा।” मोना चौधरी बोली।

“वे ही तो मेरे चक्रव्यूह का अहम वक्त होगा।”

“क्या मतलब?”

“मैं जो कर रहा हूं, वो मुझे करने दो। जैसे मैं कहता हूं, वैसा ही करो।”

“मुझे नहीं लगता तुम सोमाथ पर काबू पा लोगे।” नगीना कह उठी।

“मैं उसे खत्म करने के लिए चक्रव्यूह रच चुका हूं।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा-“वो नहीं बचेगा।”

“तुम्हें अपनी योजना पर पूरा भरोसा है?”

“पूरी तरह। इस वक्त का इंतजार तो मैं कब से कर रहा था।”

मोना चौधरी, नगीना, जगमोहन की नजरें मिलीं।

“तुम्हारा साथ देना, अंधेरे कुएं में छलांग लगाने के बराबर है कि, अंजाम पता नहीं क्या होगा। परंतु हमारे पास दूसरा रास्ता भी नहीं है। तुम पर भरोसा करना हमारी मजबूरी है।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“बबूसा पर भरोसा रखकर घाटे में नहीं रहोगे।” सोमारा कह उठी।

बबूसा ने नगीना से कहा।

“राजा देव तुम्हारे पास नहीं है, इस बात की तुम्हें तकलीफ तो होगी।”

नगीना ने बबूसा को देखा और शांत स्वर में कहा।

“देवराज चौहान खुश है तो मैं खुश हूं।”

“मेरे पास तुम्हारे लिए अच्छी खबर ये है कि सदूर पर पहुंचते ही राजा देव तुमसे आ मिलेंगे।”

“क्या?” नगीना की आंखें सिकुड़ीं।

मोना चौधरी और जगमोहन की नजरें मिलीं।

“क्या कहा तुमने?” जगमोहन ने पूछा।

“राजा देव तुम लागों के पास वापस आ जाएंगे, सदूर पर पहुंचते ही।”

“ये तुम कैसे कह सकते हो?” मोना चौधरी बोली।

“मुझे पता है कि ऐसा ही कुछ होने वाला है।” बबूसा गम्भीर दिखा।

“स्पष्ट कहो।”

“इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बता सकता। परन्तु सदूर पर पहुंचकर तुम लोगों को हर बात का जवाब दे दूंगा।”

“क्या देवराज चौहान से तुम्हारी कोई बात हुई?”

“नहीं।”

“तो फिर इतनी बड़ी बात तुमने कैसे कह दी?”

“अभी मैं जवाब नहीं दे सकता।”

“मैं तुम्हारी बात का विश्वास नहीं कर सकती।” नगीना गम्भीर स्वर में बोली-“देवराज चौहान, रानी ताशा को सच्चे मन से चाहते हैं। वो ताशा को नहीं छोड़ेंगे।”

बबूसा, नगीना को देखता खामोश रह फिर कह उठा।

“आने वाले वक्त में जो होने वाला है, वो मैंने बता दिया है। अब पोपा के पीछे वाले हिस्से में चलो, जहां पोपा से बाहर जाने का दूसरा दरवाजा है, वो जगह तुम लोग देख चुके हो। वहां हथियार भी रखे हैं, बाकी बातें वहीं होंगी।” बबूसा ने कहा और सोमारा के साथ बाहर निकल गया।

जगमोहन, मोना चौधरी, नगीना भी एक-एक करके बाहर निकल गए।

सोमाथ की निगाह स्क्रीन पर टिकी थी, जहां खाली केबिन नजर आ रहा था और कोई भी आवाज नहीं उभर रही थी। फिर सोमाथ शांत स्वर में कह उठा।

“बबूसा मुझे मारने के लिए षड्यंत्र रच चुका है। परंतु वो मुझे नहीं मार सकेगा। मैं ही बबूसा को मार दूंगा।” ये शब्द अपने आप से कहने के बाद हाथ बढ़ाकर सोमाथ ने स्क्रीन ऑफ कर दी।

रानी ताशा ने अपने हाथों से, कमरे के किचन में खोनम (चाय जैसा पदार्थ) बनाया और वो गिलासों में डालकर देवराज चौहान के पास कमरे में पहुंची। उसके खूबसूरत चेहरे पर मधुर मुस्कान बिखरी हुई थी। देवराज चौहान कुर्सी पर आंखे बंद किए, पुश्त से सिर टिकाए बैठा था कि रानी ताशा पास आकर प्यार से बोली।

“देव।”

देवराज चौहान ने फौरन आंखें खोली और पास खड़ी रानी ताशा के खूबसूरत चेहरे को देखा। देखता ही रह गया। जाने कहां खो गया था वो कि रानी ताशा की हंसी से भरी आवाज सुनकर विचारों से बाहर आया।

“आप फिर मुझे इस तरह देखने लगे। मुझे तंग जरूर करोगे।”

देवराज चौहान ने मुस्कराकर खोनम का गिलास थामा और बोला।

“क्या करूं ताशा, तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि...”

“बस-बस।” अपना खोनम का गिलास थामे पास की कुर्सी पर बैठते ताशा ने हंसकर कहा-“ये बात मैं बहुत सुन चुकी हूं। मैं जानती हूं कि आप हमेशा ही मुझे पसंद करते आए हैं।”

“हां ताशा, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।”

“तो मैं कहां रह सकती हूं मेरे देव।” रानी ताशा के स्वर में कम्पन उभरा-“न जाने वो कैसा बुरा वक्त था कि हम अलग हो गए, लेकिन अब हम किसी कीमत पर अलग नहीं होंगे। एक साथ सदूर पर जीवन बिताएंगे। मैं आपका बहुत ख्याल रखूंगी। बहुत प्यार करूंगी अपने देव से।” ताशा की आंखों में आंसू चमकने लगे-“हमें किसी की नजर लग गई थी देव कि हम अलग हो गए। पर अब फिर सदूर पर पहुंच कर अपने प्यार की दुनिया को सजाएंगे।”

“हां ताशा। अब मैं तुम्हें अपने से दूर नहीं होने दूंगा।”

ताशा ने गीली आंखें हाथ से साफ की।

देवराज चौहान ने खोनम का घूँट भरते कहा।

“परंतु मुझे याद क्यों नहीं कि हम सदूर पर क्यों जुदा हो गए थे। मैं सदूर से दूर कैसे चला गया?”

खोनम का घूँट भरते-भरते ताशा का गिलास वाला हाथ कांप उठा, इस बात को सुनकर। चेहरे पर कई रंग आकर चले गए। ऐसी बात देवराज चौहान ने पहले नहीं कही थी।

देवराज चौहान की निगाह ताशा के खूबसूरत चेहरे पर टिक चुकी थी।

“ताशा।”

“हां मेरे देव।”

“तुम बताओ मुझे कि हम कैसे जुदा हो गए थे?” देवराज चौहान ने पूछा।

रानी ताशा का चेहरा एकाएक फीका दिखने लगा।

“प्यारे देव।” रानी ताशा कुर्सी से उठी और पास आकर देवराज चौहान का गाल चूमते कह उठी-“इन बातों के लिए सारी उम्र पड़ी है। सब बातें पोपा में ही कर लेंगे तो सदूर पर क्या बातें करेंगे।”

देवराज चौहान ने मुस्कराकर रानी ताशा का हाथ थाम लिया।

“हम तो प्यार करने वाले पंछी हैं। हमारे पास बातों की कमी कभी नहीं होगी।”

“कभी-कभी तो मुझे ये सब सपना लगता है कि हम सच में दोबारा मिल गए हैं।” ताशा की आवाज कांप उठी।

“हम फिर से एक हो चुके हैं ताशा। हमें कोई अलग नहीं कर सकता।”

“ये सफर मुझे बहुत लम्बा लग रहा है। हम जल्दी से सदूर पर क्यों नहीं पहुंच जाते हैं? मैं अपने देव के साथ सदूर की जमीन पर कदम रखने को बेचैन हो रही हूं। तुम्हारे बिना किला सूना है। और वो...”

“मैं भी जल्दी से सदूर को देखना चाहता हूं।”

“देव, अब तो आप सदूर को पहचान ही नहीं पाएंगे। पूरी तरह बदल चुका है सदूर। ऊंची-ऊंची इमारतें। सड़कों पर दौड़ते छोटे-छोटे वाहन। हर तरफ पक्के रास्ते। कुछ भी अब पहले जैसा नहीं रहा। जम्बरा ने बहुत मेहनत की है।”

“मेरी ताशा तो वो ही है।” देवराज चौहान ने ताशा का हाथ थाम लिया।

“हां देव।” ताशा का स्वर कांपा-“मैं तो वही हूं, तुम्हारी ताशा।”

“तुम्हारे सिवाय मुझे और कुछ नहीं चाहिए।”

ताशा ने पुनः झुककर देवराज चौहान का गाल चूमा।

“आपको पाकर मेरी दुनिया फिर से सुहावनी हो गई देव।”

बातों के दौरान दोनों खोनम भी पी रहे थे।

“अब आपको पृथ्वी ग्रह की पत्नी की तो याद नहीं आती?” रानी ताशा ने कहा।

“मैंने सिर्फ तुम्हें ही प्यार किया है ताशा। जब तुम मुझसे दूर हो गईं। सदूर के बारे में मैं सब भूल गया तो तब मैं नगीना का हाथ थाम बैठा था। मैं सिर्फ तुम्हें चाहता हूं ताशा।”

“मुझे अपने देव पर पूरा भरोसा है। आप तो मेरी जान हैं।”

“ताशा।” देवराज चौहान का स्वर प्यार में डूबा था।

“मेरे देव। सिर्फ मेरे ही हो देव।” ताशा की आवाज भी प्यार में भरी हुई थी।

“सदूर पर मैं एक नया किला बनाऊंगा ताशा। बहुत ही शानदार। बहुत ही अच्छा। हम वहीं रहा करेंगे।”

“आप किला बनाने में लग जाएंगे तो मेरे पास कौन रहेगा?” ताशा बोली।

“किला बनाने का काम जम्बरा के हवाले कर दूंगा।”

“ये ठीक रहेगा देव।” ताशा के खूबसूरत चेहरे पर मुस्कान आ गई-“जम्बरा ये काम अच्छा कर लेगा।”

“तोलका के विद्रोह के बाद, सदूर पर किसी ने विद्रोह किया?” देवराज चौहान ने पूछा।

“नहीं। उसके बाद किसी ने विद्रोह नहीं किया। सब कुछ अच्छा चल रहा है।” रानी ताशा ने कहा।

“जब मैं सदूर पर नहीं था तो महापंडित का व्यवहार तुम्हारे साथ कैसा रहा?”

“बहुत ही सहयोगपूर्ण। महापंडित ने काफी हौसला दिया मुझे।”

“अब सेनापति कौन है सदूर पर?”

“मोमाथ।”

“वो बेहतर सेनापति है?”

“हां। उसके निर्देश पर सिपाही पूरे सदूर के संभालते हैं। चूंकि मुझे पृथ्वी ग्रह पर आना था, ऐसे में सदूर की पूरी देख रेख जम्बरा के हवाले कर आई थी। जम्बरा पर मुझे सबसे ज्यादा भरोसा है।” रानी ताशा ने कहा-“जो काम मुझे परेशानी देता था, वो मैं जम्बरा को पूरा करने को कह देती थी।”

“तुम्हारा मतलब कि सदूर पर इस समय कोई समस्या सिर उठाए नहीं खड़ी है?”

“नहीं देव। सदूर पूरी तरह शांत है।” रानी ताशा बोली-“परंतु इस वक्त पोपा में मुझे समस्या दिख रही है।”

“पोपा में समस्या?”

“बबूसा परेशानी खड़ी कर रहा है।” रानी ताशा गम्भीर थी-“वो सोमाथ को खत्म कर देना चाहता है। जबकि ऐसा सम्भव नहीं बबूसा ने जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी और सोमारा के साथ मिलकर सोमाथ पर हमला भी किया। इससे पहले कि बात आगे बढ़ जाए, आपको बबूसा को समझा देना चाहिए।”

“बबूसा इस बारे में मेरी बात मानने को तैयार नहीं।”

“अब सोमाथ नहीं रुकेगा। ये बात सोमाथ ने स्पष्ट कह दी है मुझे। सोमाथ का मुकाबला नहीं किया जा सकता। मैं सोमारा को साथ लाई कि वो बबूसा को समझाएगी, परंतु वो तो स्वयं ही बबूसा को सहयोग देने लगी।”

“बबूसा, मेरी बात नहीं मान रहा।”

“हैरानी है कि आपका सेवक, आपकी बात नहीं मान रहा देव।” रानी ताशा गम्भीर थी।

“ये बात ऐसी नहीं कि मैं उससे सख्ती से बात करूं।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“सोमाथ, बबूसा की जान ले लेगा देव। क्या ऐसा होना आपको अच्छा लगेगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि बाद में आप बबूसा की मौत के दुख में डूब में जाएंगे।” रानी ताशा की निगाह देवराज चौहान पर थी।

“मुझे।” देवराज चौहान मुस्कराया-“बबूसा पर पूरा भरेसा है।”

“मैं समझी नहीं देव।”

“बबूसा जानता है कि वो क्या कर रहा है और उसका अंजाम क्या होगा। बबूसा कोई बेवकूफी नहीं करेगा।”

“सोमाथ को खत्म करने की सोचना बेवकूफी ही तो है।”

देवराज चौहान मुस्कान के साथ रानी ताशा को देखता रहा फिर बोला।

“महापंडित ने बबूसा का जन्म इस बार मेरी जैसी ताकत और मेरे जैसे दिमाग के साथ कराया है।”

“ये मुझे मालूम है।”

“तो फिर बबूसा कोई गलती नहीं करेगा। वो सोच-समझ कर ही, कुछ करेगा।”

“आपकी इच्छा देव। मैं तो आपको बता रही थी कि...”

उसी पल दरवाजा खटखटाया गया।

रानी ताशा ने बात अधूरी छोड़कर, आगे बढ़कर दरवाजा खोला।

दरवाजे पर सोमाध खड़ा था।

“रानी ताशा।” सोमाय कह उठा-“बबूसा बाकी लोगों के साथ मिलकर मुझे मारने की सोच रहा है। मैंने स्क्रीन पर उनकी बातें सुनी हैं। अब मैं भी उन्हें मार दूंगा।”

रानी ताशा ने पलटकर देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान ने सोमाथ की बात सुन ली थी। वो उठा और दरवाजे पर आ पहुंचा।

“बबूसा के साथी लोग कौन हैं?”

“जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी और सोमारा।” सोमाथ ने जवाब दिया।

“तुमने स्कीन पर सुना कि वो तुम्हें खत्म करने की सोच रहे हैं?”

“तो तुमने क्या फैसला किया?”

“वो सब मुझ पर पहले भी हमला कर चुके हैं। उस वक्त तक तो रानी ताशा ने मुझसे कह रखा था कि मैंने उन्हें कुछ नहीं कहना है परंतु हर बार मैं खामोश भी नहीं रह सकता। रानी ताशा मुझे अब इजाजत दे चुकी हैं कि मैं भी उन्हें जवाब दे सकूँ।”

“तुम्हें क्या लगता है सोमाथ कि क्या बबूसा अपनी सोच में सफल हो सकेगा?”

“वो कभी भी सफल नहीं होगा।” सोमाथ दृढ़ स्वर में बोला-“क्योंकि महापंडित ने मुझे इस तरह बनाया है कि कोई भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बबूसा ने कुछ किया तो वो ही मेरे हाथों मरेगा।”

“इस वक्त बबूसा कहां पर है?”

“पोपा के पीछे वाले हिस्से में, जहां दरवाजा है, उस जगह पर वो सब इकट्ठे हुए पड़े हैं और मेरे खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं। उस जगह को वो लोग अपने ठिकाने के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं।” सोमाथ ने बताया।

“अब तुम क्या चाहते हो?”

“मैं आखिरी बार बताने आया था कि बबूसा के इरादे मेरे लिए बुरे हैं और अब वो बचेंगे नहीं।”

“अब वो तुम पर हमला करें तो तुम कुछ भी करने को आजाद हो सोमाथ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

रानी ताशा की निगाह देवराज चौहान की तरफ उठी।

सोमाथ उसी पल पलटकर चला गया।

देवराज चौहान वापस कुर्सी पर आ बैठा।

रानी ताशा दरवाजा बंद करके गम्भीर स्वर में कह उठी।

“क्या ये अच्छा नहीं होगा देव कि आप बबूसा के फिर समझाने की चेष्टा करें।”

“बबूसा के साथ जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी भी हैं। ऐसे में किसी को कुछ समझाने की जरूरत नहीं।”

“सोमाथ उन लोगों को मार देगा।”

“मुझे फिक्र नहीं ताशा तो तुम भी फिक्र मत करो। मुझे बबूसा पर भरोसा है।” देवराज चौहान मुस्करा पड़ा-“बबूसा जानता है कि सोमाथ को मारा नहीं जा सकता। इस पर भी वो सोमाथ के पीछे है तो अवश्य उसने ऐसी बात सोच रखी होगी, जिसके कारण वो अपने इरादे से पीछे नहीं हट रहा और मुझसे भी कह चुका है कि ये उसका और सोमाथ का मामला है।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने खोनम का आखिरी घूँट भरा और गिलास एक तरफ रख दिया फिर ताशा को देखा।

ताशा एकाएक मुस्करा पड़ी और पास आकर बोली।

“मेरा देव जो भी सोचता है, ठीक ही सोचता है। परंतु एक बात का मुझे शक हो रहा है।”

“वो क्या ताशा?”

“सोमाथ की ताकत जानते हुए भी आप बबूसा के प्रति निश्चिंत हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि आपने उसे जोबिना (ऐसा हथियार, जिसके इस्तेमाल पर सामने वाला इंसान राख हो जाता है) दे दी हो।” रानी ताशा ने कहा।

“वो तो तुम्हारे अधिकार में है।”

“परंतु।” रानी ताशा ने उस दीवार की तरफ देखा, जिधर तिजोरी जैसा बक्सा फिट था और सारी जोबिना वहां पर रखी हुई थी-“आप चाहें तो वो जगह आप भी खोल सकते हैं।”

“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।” देवराज चौहान मुस्करा पड़ा-“परंतु बबूसा जानता है कि जोबिना कहां पर है और वो आया भी था जोबिना चुपके से लेने। तब मैं नहा रहा था। बबूसा ने जोबिना वाली जगह खोलकर, जोबिना निकाल भी ली थी, परंतु तभी मैं बाथरूम से बाहर आ गया और मैंने उसे जोबिना नहीं ले जाने दी। इतना ही कहा कि सोमाथ का मुकाबला करना है तो जोबिना के बिना करे। अब बबूसा जोबिना के बिना ही सोमाथ का मुकाबला कर रहा है।”

रानी ताशा मुस्करा पड़ी।

“बबूसा की हिम्मत तो देखो देव, उसने मेरी जोबिना वाली जगह भी खोल ली।” (ये सब विस्तार से जानने के लिए पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा का चक्रव्यूह’ अवश्य पढ़ें)।

देवराज चौहान कुर्सी से उठा और आगे बढ़कर रानी ताशा को बाहों में भरकर बोला।

“हमें इन बातों में अपना वक्त खराब नहीं करना है ताशा।”

“ओह देव।” रानी ताशा की बांहें भी देवराज चौहान के शरीर पर लिपटती चली गईं।

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बबूसा पोपा के उस गोल कमरे में पहुंचा, जहां कई स्क्रीनें लगी हुई थीं और यंत्रों द्वारा सदूर ग्रह से बात करने की सुविधा थी। वहां दो आदमी बैठे बातों में व्यस्त थे कि बबूसा ने उन्हें ये कहकर बाहर भेज दिया कि उसे महापंडित से कुछ गोपनीय बातें करनी है। उसके बाद बबूसा ने सदूर ग्रह पर महापंडित से सम्पर्क बनाया तो बात हो गई। स्क्रीन पर महापंडित की तस्वीर दिखने लगी।

“कैसे हो बबूसा?” महापंडित ने पूछा। स्पीकर जैसे यंत्र से महापंडित की आवाज उभरी थी।

“मेरा हाल क्या तुम नहीं जानते?” बबूसा ने तीखे स्वर में कहा।

“कुछ-कुछ जानता हूं। मेरी मशीनों ने मुझे बताया था कि तुम परेशानी की स्थिति में हो।”

“तुमने सोमाथ का निर्माण किया, इसलिए।”

“सोमाथ का निर्माण मैंने रानी ताशा की, पृथ्वी पर सुरक्षा के लेकर किया था। तुम्हारे लिए नहीं।”

“मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं।”

“कहो बबूसा।”

“तुम जानते हो कि रानी ताशा ने राजा देव को धोखे से सदूर ग्रह से बाहर फेंक दिया था।” बबूसा बोला।

“जानता हूं।”

“परंतु मुझे पता चला है कि रानी ताशा बेकसूर थी। जो भी तब हुआ, रानी ताशा के द्वारा हुआ, परंतु वो सब रानी ताशा की इच्छा से नहीं हुआ। रानी ताशा अभी भी अंजान है कि इस मामले में वो बेकसूर है।”

महापंडित की आवाज नहीं आई।

बबूसा स्कीन पर नजर आ रहे, महापंडित के चेहरे को देखता रहा।

“मुझे जवाब चाहिए महापंडित। क्या मैंने सच कहा?”

“सच कहा। मेरी मशीनों ने तब ही ये बात मुझे बता दी थी।” महापंडित का गम्भीर स्वर सुनाई दिया।

“रानी ताशा निर्दोष थी तो ये बात मुझे क्यों नहीं बताई महापंडित?”

“क्या तुम मेरी बात का भरोसा करते कि रानी ताशा निर्दोष है।”

बबूसा बेचैन दिखा।

“तुम तब कभी भी मेरी बात का भरोसा नहीं करते। क्योंकि तब धोमरा के सिपाहियों ने तुम्हें पकड़ रखा था और जो भी हुआ था तुम्हारी आंखों के सामने हुआ था तो तुम इस बात का भरोसा कैसे करते?”

अब बबूसा खामोश हो गया।

“सबसे बड़ी बात तो ये थी कि रानी ताशा की निर्दोषता की वजह तुम्हें न बता पाता, क्योंकि ये बात मेरी मशीनें भी नहीं बता सकीं कि रानी ताशा क्यों निर्दोष है। परंतु मशीनों के बताने से मैं इतना तो समझ गया था कि रानी ताशा ने कोई गुनाह नहीं किया। मेरी मशीनें कभी गलत नहीं बतातीं। लेकिन ये बात मैं किसी से भी कह नहीं सका क्योंकि बेगुनाह होने की वजह मैं नहीं जानता था।” महापंडित का गम्भीर स्वर यंत्र से उभरा।

“इसी कारण तुमने हमेशा रानी ताशा की सहायता की?” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला।

“हां। क्योंकि रानी ताशा निर्दोष थी।”

“और मैं समझता रहा कि तुम राजा देव से धोखा कर रहे हो, रानी ताशा की सहायता करके।”

“अब तुम मुझे बताओ बबूसा कि ये बात तुम्हें कैसे पता चली और क्या ये भी पता है कि रानी ताशा निर्दोष क्यों है? मैं ये जानना चाहता हूं कि रानी ताशा के निर्दोष होने की वजह क्या है।”

बबूसा के होंठ भिंच गए।

“जवाब दो बबूसा।”

“पोपा के हालात ऐसे नहीं हैं कि मैं अपना मुंह खोल सकूँ।” बबूसा बोला।

“क्या मतलब?”

“मैं इस बारे में तुम्हें बताना चाहूंगा तो मेरे मुंह से कुछ और ही निकलने लगेगा।

“ऐसा क्यों?”

“बोला तो तुम्हें बता नहीं सकता। कुछ अदृश्य ताकतें मेरी पहरेदारी कर रही हैं कि सदूर पर पहुंचने से पहले मैं किसी को कुछ न बता सकूँ जब भी बताने की चेष्टा की, तभी असफल रहा।”

“ओह, ये तो विचित्र हालात हैं।”

“सच में। मेरी हालत तुम नहीं समझ सकते।”

“तुमने राजा देव को इस बारे में बताने की चेष्टा की?”

“की, परंतु असफल रहा। कहना कुछ चाहा और निकला कुछ होठों से।”

“अब तुम्हारी परेशानी का एहसास पा सकता हूं मैं। मैं तुम्हारी परेशानी बढ़ाना तो नहीं चाहता परंतु मेरी मशीनें मुझे खतरे के संकेत दे रही है कि पोपा के सदूर पर आते ही सब कुछ बुरा होना शुरू हो जाएगा।”

बबूसा ने होंठ भींच लिए।

“उस लड़की के बारे में बताओ।”

“धरा के?”

“हां, उसके बारे में कुछ पता चला। मेरी मशीनें कहती हैं कि उस लड़की से बचकर रहो। क्या हो रहा है पोपा पर। वो लड़की क्या कर रही है। मेरी मशीनें उसकी हकीकत के बारे में क्यों नहीं बता पा रहीं।”

“धरा के बारे में मैं तुम्हें कुछ बता नहीं पाऊंगा महापंडित।”

“क्यों?”

“तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ रहे।”

“उस लड़की के बारे में बताने में तुम्हें क्या परेशानी है?” महापंडित की आवाज यंत्र से निकली।

“इतना तो तुम्हें बता ही चुका हूं कि धरा कहती है वो सदूर पर रहने वाली है और वापस जा रही है।”

“ये बात तुमने पहले बताई थी। याद है। सदूर पर वो कौन थी? पृथ्वी पर कैसे गई और अब वापस क्यों आ रही है?”

“इन बातों को पूछने पर वो कहती है कि सदूर पर पहुंचकर जवाब दूंगी।”

“अब क्यों नहीं?”

“वो सदूर पर पहुंचने से पहले अपने बारे में कुछ नहीं बताना चाहती। वो कहती है कि अपने बारे में कुछ भी बताया तो जानने वाले उसे फौरन पहचान जाएंगे और वो नहीं चाहती कि सदूर पर पहुंचते ही उसे मुसीबतों का सामना करना पड़े।”

“कैसी मुसीबत?”

“ये तो मैं नहीं जानता। पर जैसे कि तुम उसके बारे में जानकर, पोपा के सदूर पर पहुंचने पर, उसके बारे में कोई इंतजाम कर दो। उसका विचार है कि सदूर पर पहुंचने तक वो चुप रहे।”

“ऐसी क्या शख्सियत है वो कि खुद को रहस्य में लपेटे हुए है।”

“मैं तुमसे एक बात और करना चाहता हूं।” बबूसा ने कहा।

“कहो बबूसा।”

“राजा देव, रानी ताशा के दीवाने हुए पड़े हैं। उन्होंने पृथ्वी वाली पत्नी को भी छोड़ दिया है।”

“हां। तो...?”

“परंतु मुझे पता लगा है कि सदूर पर पहुंचते ही राजा देव, रानी ताशा का साथ छोड़ देंगे।”

“तुम तो मुझे हैरान कर रहे हो बबूसा।” महापंडित की तेज आवाज आई।

“वो कैसे?”

“जो बातें मैं मशीनों से जान पाता हूं वो ही बातें तुम मुझे बता रहे हो।”

“तुम्हारी मशीनों ने इस बारे में कुछ बताया?”

“हां। बताया कि सदूर पर पहुंचने के बाद रानी ताशा अकेली रह जाएगी।”

“ऐसा क्यों?”

“मशीनों ने ये भी बताया कि राजा देव अपनी पृथ्वी वाली पत्नी के साथ रहेंगे।”

“ओह, तुमने ये बात मेरे को नहीं बताई?”

“मेरे पास तो हमेशा ही बहुत बातें होती हैं बताने को। लेकिन क्या-क्या बात बताऊं। मेरी मशीनें जो मुझे बता रही हैं, उसे सुनकर मैं परेशान होता जा रहा हूं और समझने की कोशिश कर रहा हूं कि आने वाले वक्त में क्या होने वाला है। तुम ये बताओ कि तुम्हें ये बात कहां से पता चली कि राजा देव, सदूर पर पहुंचते ही रानी ताशा का साथ छोड़ देंगे?”

“ये बात मुझे-ओह-मुझे धरा के पास जाना है। वो मेरा इंतजार कर रही होगी।” बबूसा कहता चला गया जबकि उसके चेहरे के भाव, उसकी बातों से मेल नहीं खा रहे थे। वहां पर क्रोध आ गया था। फिर ठिठककर बोला-“महापंडित।”

“तुमने कहा वो लड़की तुम्हारा इंतजार कर...”

“मेरी बात सुनो।” बबूसा झल्ला उठा-’अभी मैं तुम्हारी किसी बात का जवाब नहीं दे सकता। मुझे रोक दिया जाता है।”

“कौन रोकता है?”

“ये भी नहीं बता पाऊंगा।”

“तुम्हें पोपा पर किसी ने कैदी तो नहीं बना रखा?”

“मैं ठीक हूं परंतु अजीब-सी बातों में घिरा हूं। मैं तुमसे बाद में बात करूंगा महापंडित। शायद सदूर पर पहुंचकर ही बात करूंगा। क्योंकि अभी जो बात होगी वो आधी-अधूरी ही रहेगी।” कहकर बबूसा ने सम्बंध काटा। सिर पर हेडफोन जैसी लगा रखी तारें अलग की और सारे यंत्र बंद करके वहां से बाहर आकर एक रास्ते पर बढ़ गया। चेहरे पर झल्लाहट उभरी हुई थी। क्रोध भी था चेहरे पर। कई रास्तों को पार करके, सीढ़ियां उतरकर, पोपा के नीचे के हिस्से में, केबिनों की कतार में, एक केबिन के बाहर पहुंचकर ठिठका और दरवाजा थपथपा दिया।

“आ जाओ बबूसा।” भीतर से धरा की हंसी से भरी आवाज सुनाई दी।

बबूसा ने दरवाजा खोला। दो कदम भीतर प्रवेश करके ठिठक गया।

सामने ही बेड पर धरा आल्थी-पाल्थी मारे बैठी थी। बबूसा पर निगाह पड़ते ही वो खुलकर मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया। वो शैतान की नानी जैसी दिखी।

बबूसा का चेहरा गुस्से से भर उठा।

“तू जब नाराज होता है तो कितना अच्छा लगता है।” कहते हुए धरा ने दोनों आंखें नचाईं।

“तू मेरा पीछा कब छोड़ेगी?” बबूसा ने शब्दों को चबाकर कहा।

“क्या कर दिया मैंने?”

“तू मुझे किसी को कुछ कहने क्यों नहीं देती?”

“जब तक मैं सदूर पर नहीं पहुंच जाती, तब तक तू मेरे बारे में किसी से कुछ नहीं कह सकेगा। मेरी ताकतें तुझे कुछ भी कहने नहीं देंगी। अगर तू महापंडित को मेरे बारे में बता देता तो उसने कोई खास इंतजाम कर लेना था कि मैं जब सदूर पर पहुंचूं तो वो मुझे कैद कर ले या मुझे नुकसान पहुंचा दे। मैं ऐसा नहीं होने दूंगी।”

“मेरे से झगड़ा मत ले।”

धरा हंस पड़ी।

बबूसा होंठ भींचकर धरा को देखता रहा।

“मेरा क्या बिगाड़ेगा तू?”

“कुछ तो बिगाड़ सकता हूं।”

“भूल में है तू। सदूर पर तेरे-मेरे रास्ते अलग हो जाएंगे। बहुत काम करने हैं मुझे। सब कुछ फिर से शुरू करना है। सोई ताकतों को ऊर्जा देकर उन्हें फिर उठाना है। इन सब कामों में मुझे बहुत मेहनत करनी होगी। मुझे उस वक्त में प्रवेश करके, सब कुछ आज के वक्त में लाना होगा। वहां मेरे इंतजार में सब सोए पड़े हैं। सदूर तभी कई टुकड़ों में बिखर गया था। मेरे कार्य पूर्ण होते ही सदूर के टुकड़े वापस आ मिलेंगे तो सदूर चौगुना हो जाएगा। फिर सदूर पर मेरा शासन चलेगा। सब मेरे आगे झुकेंगे। पहले की तरह। परंतु अब डुमरा कोई चाल नहीं चल सकेगा। अब...”

“डुमरा कौन?” बबूसा ने पूछा।

“नहीं जानता तू डुमरा को?” धरा के चेहरे पर सख्ती आ गई थी।

“नहीं।”

“महापंडित जानता है।” धरा खतरनाक अंदाज में हंस पड़ी।

“महापंडित के मुंह से मैंने कभी ये नाम नहीं सुना।”

“देवराज चौहान भी डुमरा के बारे में जानता है।”

“राजा देव भी जानते हैं। परंतु उन्होंने कभी इस नाम का जिक्र मेरे से नहीं किया। कौन है डुमरा?”

“क्यों बताऊं तुझे?”

“बताने में क्या हर्ज है। तेरी ताकतें तो मेरे को, किसी से कुछ कहने नहीं दे रहीं। बात मेरे तक ही रहेगी।”

धरा लम्बे पलों तक बबूसा को देखती रही फिर कह उठी।

“डुमरा, महापंडित का पिता है।”

“महापंडित का पिता, डुमरा?” बबूसा के लिए ये नई जानकारी थी-“क्या वो अभी जीवित है?”

“वो बहुत ज्ञानी है। कई शक्तियां उसके अधिकार में हैं। उसने ही अपने बेटे महापंडित को विद्वान बनाया था। परंतु पिता तो पिता ही होता है। महापंडित, डुमरा के सामने बच्चा है। बहुत कम ज्ञान है महापंडित को। डुमरा सच में महान है, परंतु मेरा दुश्मन है। उसने बहुत बुरा किया था मेरे साथ।” धरा गुर्रा उठी।

“महापंडित के पिता डुमरा से तुम्हारा क्या वास्ता?”

“अब तो बहुत गहरा वास्ता बन चुका है।” धरा का लहजा बेहद खतरनाक हो उठा-“उसने मेरा शासन तबाह कर दिया। मेरी ताकतें भी कम नहीं थीं, डुमरा के पसीने छूट गए थे मेरे से मुकाबला करके। परंतु एक बार उसने मुझे घेर ही लिया। ऐसा घेरा कि मुझे पांच सौ बरसों के लिए श्राप दे दिया। उस श्राप का मतलब ये था कि मुझे पांच सौ बरसों के लिए सदूर से दूर चले जाना होगा। परंतु उसका श्राप तभी मुझ पर लागू होता, जब मैं स्वयं उस श्राप को स्वीकार करती और मुझे करना पड़ा स्वीकार। डुमरा ने बहुत बुरी तरह मुझे फंसा डाला था।”

“क्यों स्वीकार करना पड़ा श्राप को?”

“डुमरा ने मुझे अपनी शक्तियों में ऐसा फंसा लिया था कि अगर मैं श्राप को स्वीकार नहीं करती तो जलकर राख हो जाती। मेरी मृत्यु हो जाती और कोई भी मरना नहीं चाहता। मैं भी मरना नहीं चाहती थी, इसलिए डुमरा के श्राप को स्वीकार करना पड़ा। तब डुमरा की खब चली मुझ पर। मेरे पाप को स्वीकार करते ही सदूर ग्रह कई टुकड़ों में बिखरकर छोटा-सा रह गया। अलग हो चुके सदूर ग्रह के टुकड़ों पर मेरी फौजें रहती थी। डुमरा में चाहता था कि मेरी फौजें, मेरे सदूर पर न रहने की वजह से, आम लोगों को नुकसान पहुंचाएं। डुमरा ने तब खूब चालें चली मेरे साथ।”

बबूसा हैरानी से धरा की बातें सुन रहा था।

ये सब बातें उसके लिए नई थीं। सदूर का इतिहास उसके सामने से पलटकर आ रहा था।

“फिर तुम्हारा क्या हुआ?”

“मुझे सदूर से बाहर जाना पड़ा। श्राप स्वीकार करने के बाद मैं न तो जल जाती। लेकिन डुमरा से कह दिया था मैंने कि श्राप का वक्त पूरा होते ही मैं वापस आऊंगी और सारे हिसाब बराबर करूंगी...”

“तुम ग्रह छोड़कर गई कैसे?”

“मेरी ताकतों ने मुझे पृथ्वी पर पहुंचा दिया, जहां जीवन था। वहां मैं जन्म लेने लगी और...”

“तुम्हारी ताकतें तुम्हें सदूर से इतनी दूर पृथ्वी तक कैसे पहुंचा सकती हैं।” बबूसा कह उठा।

धरा ने होंठ भींचे बबूसा को देखा फिर बोली।

“मुझे अपना शरीर सदूर पर ही छोड़ना पड़ा था। मेरी ताकतों ने मेरी ‘जान’ को पृथ्वी पर पहुंचाया था, जो कि ताकतों के लिए कठिन काम नहीं था। तब से मेरी ‘जान’ पृथ्वी पर ही जन्म लेती रही और मरती रही। मुझे नए-नए नाम मिलते रहे। नए-नए रिश्ते मिलते रहे। परंतु हर जन्म में, हर पल मुझे इस बात का एहसास रहा कि असल में मैं कौन हूं। मैं पांच सौ सालों के कष्ट से भरे वक्त को बिता रही थी। वो वक्त मेरे लिए कष्टों से ही भरा था, क्योंकि मैं सदूर की सबसे बड़ी शख्सियत थी और डुमरा ने श्राप देकर, मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया था...”

“तुम सदूर की शासक रही थी?”

“हाँ। सदूर मेरा था और हमेशा ही मेरा रहेगा।” धरा का चेहरा क्रोध से भरा था।

“डुमरा ने तुम्हें आप क्यों दिया?

“क्योंकि वो मुझे पसंद नहीं करता था। मेरे से जलता था। मेरे हाथों डुमरा का भाई मारा गया था। डुमरा मेरे से बदला लेना चाहता था और इस प्रकार श्राप देकर उसने मेरे से बदला लिया। बेवकूफ डुमरा अभी भी नहीं जानता कि उसने बहुत बड़ी मुसीबत मोल ले ली है। मुझसे झगड़ा करके। मैंने किसी का अच्छा किया तो भूल जाती हूं परंतु बुरा किया कभी नहीं भूलती। डुमरा ने मेरे साथ जो किया है उन सब बातों का अब उसे हिसाब देना होगा। एक बार उसकी चल गई, परंतु अब...”

“तुम्हारी बातें बहुत दिलचस्प हैं।” बबूसा बोला-“मुझे सब कुछ बताओ।”

“क्या सब कुछ?”

“अपने बारे में सब कुछ बताओ। मैं जानना चाहता हूं। तुम्हारी ताकतें किसी को कुछ बताने नहीं देंगी। ऐसे में बात मेरे तक ही रहेगी। मैं तुम्हारे बारे में जानने को उत्सुक हूं कि आखिर तुम्हारी हकीकत क्या है।”

धरा मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“तो मेरे बारे में जानना है तुझे?” धरा हौले से हंसी।

बबूसा ने सिर हिला दिया।

“मैं खुंबरी हूं।”

“खुंबरी?” बबूसा की आंखें हैरानी से फैल गईं-“तुम-तुम खुंबरी हो?”

“हां-हां, तो नाम सुन रखा है मेरा।” खुंबरी हंसी।

“तुम्हारा नाम तो सदूर का बच्चा-बच्चा जानता है। तुम्हारे नाम की कहानियां सुनाते हैं लोग अब बच्चों को।” बबूसा अभी तक हक्का-बक्का था-“मुझे यकीन नहीं आ रहा कि तुम खुंबरी हो। तुम-तुम...”

“खुंबरी एक ही है, दूसरी कोई पैदा हो ही नहीं सकती। सिर्फ मैं-खुंबरी।” हंस पड़ी खुंबरी-“ये जानकर मुझे बहुत ज्यादा खुशी हुई कि सदूर अभी तक खुंबरी को याद करता है। खुंबरी है ही ऐसी।”

बबूसा हैरानी से धरा को देखे जा रहा था।

खुंबरी मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

बबूसा, खुंबरी को देखे जा रहा था।

“ये मेरा चेहरा देखा है। अब का चेहरा?” खुंबरी ने अपने गालों पर हाथ फेरा-“ये खुंबरी का हू-ब-हू चेहरा है। मेरा असली शरीर तो सदूर पर सुरक्षित मौजूद है। जब मैं वहां जाऊंगी तो अपने शरीर को फिर से जीवित करूंगी।”

“फिर से जीवित करोगी? परंतु वो तो सड़ चुका...”

“मेरा शरीर, मेरे खास सेवक दोलाम ने सुरक्षित कर रखा है। इस वक्त मेरा शरीर ऐसा होगा जैसे कि मैं सोई हुई हूं। अगर मेरा शरीर जरा भी खराब हुआ तो दोलाम जानता है कि मैं उसे सख्त सजा दूंगी। वो मेरे शरीर को खराब नहीं होने देगा।”

“दोलाम तुम्हारे सेवक का नाम है?”

“हां, वो मेरा सबसे खास है। मेरा सबसे ज्यादा विश्वासपात्र।”

“तुम्हारा शरीर सदूर पर कहां रखा है?”

“बहुत ही खास जगह पर।” खुंबरी के चेहरे पर रहस्यमय मुस्कान नाच उठी। निचला होंठ टेढ़ा हो गया-“मैं सब इंतजाम करके ही सदूर से निकली थी। मैं जानती हूं डुमरा ने बहुत कोशिश की होगी कि मेरे शरीर को ढूंढ़कर नष्ट कर सके। परंतु वो मेरे शरीर को नहीं ढूंढ़ सका होगा। मेरी ताकतों ने अपनी छाया से, मेरे शरीर को छिपाकर, डुमरा की नजरों से ओझल रखा है। खुंबरी ने हमेशा ही सारे काम शानदार ढंग से किए हैं, डुमरा को अब अपना किया भुगतना होगा।”

बबूसा के चेहरे पर अजीब-से भाव छाए हुए थे।

“तुम सदूर पर पहुंचकर क्या करने वाली हो?”

“क्या करने वाली हूं।” खुंबरी हंसी-“मेरे पास करने को बहुत काम हैं। सदूर पर शासन करना है मुझे। परंतु सबसे पहले डुमरा को सबक सिखाऊंगी। उसे मृत्यु दूंगी। उसके दिए श्राप का बदला लूंगी। तब उसे...”

“तुम अपने बारे में बताओ कि तुम कौन थीं और डुमरा से तुम्हारा क्या झगड़ा रहा?” बबूसा ने पूछा।

“तो सब कुछ जानना चाहता है बबूसा।”

“हां। ये बातें मेरे लिए नई होंगी और लोगों को भी ये सब न पता होगा।”

खुंबरी के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।

“बातें ज्यादा लम्बी नहीं हैं।”

“परंतु मेरे लिए ये जानकारी अहम होगी।”

“तो सुन, सैकड़ों सालों पहले सदूर बेलगाम था।” खुंबरी ने बताया-“किसी का शासन नहीं था। कच्चे घरों में लोग रहा करते थे परंतु ताकत वाले लोग सदूर पर शासन करने के इरादे से सदूर पर अपनी हुकूमत कायम करना चाहते थे। ऐसे आठ-दस लोग थे जिनमें मेरा पिता भी था। जिनमें डुमरा का भाई ओमाच भी था। सबकी अपनी-अपनी सेना थी। परंतु अपनी हुकूमत कायम करने में कोई भी कामयाब नहीं हो पा रहा था। जो भी सबसे ताकतवर दिखता, बाकी सब उस पर टूट पड़ते और उसे खत्म कर देते। आपस में ही झगड़े शुरू हो गए थे। मैं अपने पिता की एकमात्र संतान थी और हमेशा ही पिता के कार्यों में हाथ बंटाया करती थी। पिता ने मुझे ही बेहतर ढंग से युद्ध कला सिखाई थी और मैं अपने पिता के टक्कर की शानदार योद्धा बन गई थी। उस समय सब ताकतवर लोग अपने योद्धाओं के साथ इस बात की कोशिश में इस तरह थे कि सदूर पर उनकी हुकूमत हो। आए दिन सब दलों में टकराव होता रहता हुकूमत कायम नहीं कर पाएगा। दूसरा उसे शासक नहीं बनने देगा। ऐसे में सबसे पहले डुमरा के भाई ओमाच ने सबके पास संदेश भिजवाया कि आपस में झगड़ा करने से कोई फायदा नहीं। कोई भी सदूर पर हुकूमत नहीं कर सकेगा। ऐसे में बेहतर होगा कि सदूर को बराबर-बराबर बांटकर उसका शासक बना जाए। ये सब बात बाकी आठों दलों ने पसंद की और वे बैठकर बात करने को तैयार हो गए परंतु मेरे पिता ने ये बात नहीं मानी।

“क्यों?” बबूसा ने पूछा।

“क्योंकि उस वक्त मेरे पिता के पास सबसे ज्यादा ताकत थी और उन्हें भरोसा था कि देर-सवेर में वे पूरे सदूर के शासक बन जाएगे। मेरी भी, पिता को ये ही सलाह थी कि हमें उनकी बात नहीं माननी चाहिए।”

“इन बातों के बीच डुमरा कहां था?”

“डुमरा अपना शांत जीवन जी रहा था परिवार के साथ। उसकी अपनी ही दुनिया थी। वो यज्ञ करके शक्तियों का आह्वान करता था और उन्हें अपना बनाता था। वो विद्वान था अपने कामों में। उसे अपने भाई ओमाथ से इतना ही मतलब था कि वो उसका भाई है और उनका मिलना भी कम ही होता था।”

“मतलब कि डुमरा को ओमाथ के कामों से कोई मतलब नहीं था?”

“नहीं।”

“अच्छा। फिर क्या हुआ?”

“मेरे पिता के इंकार को किसी ने भी पसंद नहीं किया। मेरे पिता को मनाने की बहुत चेष्टा की गई, परंतु वो नहीं माने। उसके बाद मैंने और पिता ने सुना कि वो सब दल आपस मे मिल गए हैं। ये हमारे लिए खतरनाक बात थी। उनके इस तरह से मिल जाने की वजह से उनकी ताकत बहुत बढ़ गई और हम कमजोर पड़ गए थे। मुझे इस बात की पूरी आशंका थी कि वो सब हमारे खिलाफ जरूर कुछ करेंगे और किया भी। एक रात सब दलों ने मिलकर हमारे ठिकाने पर हमला कर दिया। हमारे सब योद्धाओं को मार दिया गया। मेरे पिता की जान भी ले ली गई। मैं भी मारी जाती परंतु उनकी एकता और ताकत देखकर मुझे छिप जाना पड़ा। इस तरह मैं बच गई। मेरे आस-पास लाशें ही लाशें थीं। खून था। जो जिंदा बचे थे, वो किसी काम के नहीं रहे थे। मैं अचानक ही अकेली पड़ गई।”

“उन लोगों ने तुम्हें ढूंढ़ा तो होगा कि तुम जिंदा हो।”

“उसी रात के अंतिम पहर में मैंने वहां से चले जाना ठीक समझा कि तभी नागाथ को मैंने अपने करीब पाया।”

“नागाथ कौन?”

“नागाथ को लोग पागल ज्ञानी के तौर पर जानते थे, जो कि बे-पनाह ताकतों का मालिक था। अपने भले के लिए वो अपनी ताकतों से क्रूर काम भी लेता था। लोग उससे डरते थे। उधर डुमरा, नागाथ को खत्म करने के लिए अपनी शक्तियों से उस पर वार करता रहता था। दोनों में खामोश लड़ाई चलती रहती थी। डुमरा का रुख अच्छाइयों की तरफ था तो नागाथ का रुख बुराइयों की तरफ कह सकते हो तुम। डुमरा बुराई को खत्म करना चाहता था। परंतु नागाथ को जरा भी नुकसान पहुंचाना आसान काम नहीं था। वो ही नागाथ अब मेरे सामने था।”

“तुम पहले कभी नागाथ से मिली थी?”

“नहीं। मैंने उसे कभी देखा भी नहीं था। नाम अवश्य सुन रखा था। मैंने उसे देखा तो समझी कि वो कोई दुश्मन है। मैंने तुरंत तलवार उठा ली। मैं अपने पिता की मौत और हमले की वजह से घबराई हुई थी। मुझे तलवार उठाते देखकर नागाथ ने शांत स्वर में कहा, डरो मत, मैं नागाथ हूं। तुम्हारे पिता नहीं रहे, इसका मुझे अफसोस है। परंतु तुम तो बहुत ही जबर्दस्त योद्धा हो। इस तरह घबराओगी तो जीवन में कुछ भी हासिल नहीं  होगा। मेरे साथ चलो, मैं तुम्हारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए तुम्हें एक मौका दूंगा। अब ये तुम पर है कि तुम अपने जीवन को बेहतर बना पाती हो या नहीं। नागाथ मुझे अपने साथ ले गया। पहाड़ों के पार वो रहता था। वो अकेला ही रहता था। उसने मुझे अपने साथ बेटी की तरह रखा और एक दिन कहा कि उसे शरीर छोड़ने का हुक्म हो चुका है। उसे अब इस दुनिया से जाना है। परंतु वो तभी शरीर छोड़ सकता है, जबकि अपनी ताकतों को किसी काबिल इंसान के हवाले कर दे। ऐसा काबिल इंसान जो उसकी दी ताकतों बराबर इस्तेमाल करता रहे। ऐसा होने पर उसे मरने के बाद अच्छा जीवन मिलेगा। ऐसा न हुआ तो मरने के बाद उसे बुरा जीवन मिलेगा। इसलिए उसे काबिल इंसान की तलाश है। नागाथ ने कहा कि उसकी ताकतों ने उसे बताया है कि तुम बहुत काबिल हो अगर कोशिश करो तो काफी आगे जा सकती हो और सदूर पर एकछत्र राज कर सकती हो। मैं परेशान थी और उसकी बातों को ठीक से न समझ पा रही थी। उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं उसकी ताकतों की मालिक बनना चाहती हूं। उसने अपनी ताकतें देने के लिए मेरे सामने शर्त रखी कि मैं उन आठों दलों के मालिकों को खत्म कर दूं तो वो अपनी ताकतें मेरे हवाले करके अपना शरीर त्याग देगा। जितनी देर में उसके पास रही तो उतनी देर में मैं इस बात को जान चुकी थी कि नागाथ की ताकतें मेरे पास आ जाएं तो मैं सब कुछ कर सकती थी। मैंने उसकी बात मान ली और वहां से चली आई।”

“मतलब कि तुम उन आठों दलों के मालिकों को मारने को तैयार हो गई?”

“हां। इसकी एक और वजह भी थी कि उन्होंने मेरे पिता को मारा था।”

“हूं-फिर?”

“फिर मुझे बहुत लम्बा वक्त लगा उन आठों को मारने में। हर एक के पास मैं अलग-अलग रूप में पहुंची। उनका विश्वास जीता और इस तरह एक-एक करके सबकी जान ले ली। इस सारे काम को पूरा करने में मुझे इतना ज्यादा वक्त लग गया कि मैं सोचने लगी कि कहीं नागाथ अब जिंदा ही न रहा हो। जब मैं पहाड़ों के पार नागाथ की जगह पर पहुंची तो उसे वहां मौजूद पाया। नागाथ ने खुशी से मेरा स्वागत किया, कहा कि वो मेरा ही इंतजार कर रहा था। उसका समय करीब है और अब वो चैन से शरीर छोड़कर, अपने अगले सफर पर जा सकेगा। उसने मुझे बताया कि मेरा अगल कदम सदूर पर हुकूमत करना है। उसने अपनी ताकतों के बारे में मुझे समझाया कि कैसे उनका इस्तेमाल करना है। ये एक लम्बी शिक्षा थी और मैंने मन से सब कुछ जाना। फिर नागाथ ने अपनी ताकतें मुझे सौंपी और अपना शरीर त्याग दिया।

“नागाथ ने अपनी ताकतें तुम्हें किस रूप में सौंपी?”

“ये नहीं बताऊंगी बबूसा।” खुंबरी मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“तो इस प्रकार तुम्हारे पास ताकतें आ गईं।”

“हां। और मैंने ताकतों का खूब इस्तेमाल किया। सदूर पर शासन करने लगी। मेरे इशारा हर...”

“डुमरा से झगड़ा कैसे हुआ?” एकाएक बबूसा ने पूछा।

“उसने अपनी शक्तियों से जान लिया था कि मैंने उसके भाई ओमाच को मारा है। इस बात का डुमरा ने बुरा माना। परंतु तब मेरे पास नागाथ की दी ताकतें आ चुकी थीं और उनसे मुझे काम लेना भी आ गया था। ऐसे में डुमरा मेरा कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता था। मैं पूरे सदूर पर अपना साम्राज्य फैलाती जा रही थी, नागाथ की ताकतें मेरी भरपूर सहायता कर रही थीं। रास्ते में आने वाली मेरी हर परेशानी को दूर कर रही थीं। लोग मेरी हुकूमत को स्वीकार करते जा रहे थे। फिर एक दिन डुमरा रास्ते में मुझे मिला। मुझे रोककर उसने बताया कि वो डुमरा है। मैं खुशी से उससे मिली, जबकि मैं जानती थी कि डुमरा मेरी जान लेकर अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता है। उसने मुझसे पूछा कि मैंने उसके भाई ओमाच को क्यों मारा। तो मैंने कहा, उसने मेरे पिता की जान ली थी। डुमरा ने कहा, ओमाच ने तुम्हारे पिता को नहीं मारा, तो मैंने कहा वो साथ तो था। उसने कहा कि एक औरत के हाथों उसका भाई मारा गया, ये बात उसे पसंद नहीं आई। डुमरा ने कहा कि उसे पता है कि नागाथ ने अपनी ताकतों का मालिक उसे बना दिया है। अगर वो उन ताकतों को त्याग दे तो, तब मेरी जान नहीं लेगा। सच बात तो ये थी कि डुमरा नहीं चाहता था कि मैं नागाथ की ताकतों का इस्तेमाल करूं। मैंने उसे स्पष्ट तौर पर समझा दिया कि जो वो चाहता है, वैसा नहीं होने वाला। नागाथ की ताकतें मेरे साथ ही रहेंगी। डुमरा चला तो गया, परंतु उसके बाद वो अपनी शक्तियों द्वारा मुझ पर वार करने लगा। हम पक्की तरह एक-दूसरे के दुश्मन बनने लगे। मेरी ताकतें मुझे डुमरा के वारों से बचाती रहीं। मैंने भी कई बार अपनी ताकतों का वार डुमरा पर किया, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। उसकी शक्तियां उसे बचा लेती। मेरी और डुमरा की लड़ाई शुरू हो चुकी थी। इधर मेरा साम्राज्य पूरे सदूर पर फैल चुका था। मैं सदूर की रानी बन गई। हर तरफ मेरा नाम गूंजने लगा था। परंतु सदूर पर मेरे विद्रोही भी थे, मैंने अपनी सेना के योद्धाओं विद्रोहियों का अंत कराया। सदूर की मालकिन बन गई थी मैं। जो ख्वाब मेरे पिता ने देखा था उसे मैंने पूरा किया और नागाथ की ताकतों ने इस काम में मेरी इतनी ज्यादा सहायता की कि सब कुछ सरल बना दिया था मेरे लिए। परंतु डुमरा को मैं नहीं भूली थी। क्योंकि डुमरा मेरा दुश्मन था और मुझे मारने का मौका नहीं चूकना चाहता था। उसके और मेरे बीच वार होते रहते थे। ऐसे में मैंने डुमरा की तलाश में अपने योद्धाओं के लगा दिया। मेरी सेना के योद्धा सदूर के चप्पे-चप्पे पर फैले थे। परंतु भरपूर तलाश के बाद भी डुमरा कहीं न मिला। वो गुप्त जगह पर छिप गया था। डुमरा की अपेक्षा मेरी स्थिति बहुत बेहतर थी। सदूर पर मेरा कब्जा था। डुमरा को अपनी शक्तियों का सहारा था, जबकि मेरे पास हर तरह की ताकत थी। डुमरा अपनी गुप्त जगह से, मेरी जान लेने के लिए अपनी शक्तियों द्वारा वार करता रहता था।”

बबूसा गम्भीरता से खुंबरी की बातों को सुन रहा था।

“फिर क्या हुआ?” बबूसा ने उसके खामोश होते ही पूछा।

“कुछ साल बीते। सदूर पर मेरी पकड़ मजबूत हो चुकी थी। मैं खुश थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था। एक रात किले के बाहर खुले मैदान में जश्न हो रहा था। मैं कर्मचारियों को, योद्धाओं को खुश करने के लिए यदा-कदा जश्न कराती रहती थी। जश्न में कारू पीते थे सब। परंतु वो रात मुसीबत से भरी बन गई मेरे लिए। डुमरा ने अपनी कई शक्तियों के साथ मुझ पर सोची-समझी योजना के साथ हमला कर दिया। तब मैं जश्न में लापरवाह-सी, हंस-झूम रही थी। मैंने कारू भी पी रखी थी और उसी दौरान नाचते हुए मेरे गले से बटाका भी गिर गया था। जो कि...”

“क्या गिरा?”

“बटाका।”

“वो क्या होता है?”

“नागाथ की ताकतें उसी बटाका (नग) के साथ जुड़ी हुई थीं। बटाका मेरी हद में रहेगा तो तभी मैं ताकतों के बुला सकती हूं और उनसे काम ले सकती हूं। उस रात जश्न में मैंने बहुत ज्यादा कारू भी ली थी और होश गंवा बैठी थी। नाचते-नाचते बटाका भी, धागे से अलग होकर गिर गया। बटाका के अलग होते ही मैं सामान्य युवती बनकर रह गई। नागाथ की दी ताकतें मेरे से तब तक के लिए दूर हो गईं थीं जब तक कि मैं बटाका पुनः हाथों में न ले लेती या उसे धागों में फंसाकर गले में न डाल लेती...”

“इस वक्त बटाका तुम्हारे पास है?” बबूसा ने पूछा।

“नहीं।”

“तो फिर अब ताकतें तुम्हारे काम कैसे आ रही हैं। कैसे तुम्हारी सहायता कर रही हैं?”

खुंबरी मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“ये मेरा समझौता है उन ताकतों के साथ।”

“कैसा समझौता?”

“उन ताकतों को तभी एहसास हो गया था कि मैं फिर वापस आऊंगी। मैं ही उनकी साथी बनूंगी। ऐसे में वो मुझे सहायता दे रही हैं तब से ही, जबसे मैंने डुमरा के श्राप को स्वीकारा था। ताकतें चाहती हैं कि मैं वापस आकर उनकी साथी बनूं।”

“अब वो बटाका कहां है?”

“दोलाम के पास।”

“तो दोलाम क्यों नहीं उन ताकतों का मालिक बना?”

“उसे नहीं पता कि बटाका का इस्तेमाल कैसे करते हैं। ताकतों को कैसे बुलाते हैं। बटाका को इस्तेमाल करने का खास ढंग होता है। ये नहीं कि वो जिसके पास होगा, ताकतें उसके काम आने लगेंगी।”

“दोलाम को बटाका की अहमियत पता है?”

“पता है।”

“उसने कोशिश की होगी बटाका के इस्तेमाल करने...”

“कभी नहीं। दोलाम मेरा खास है। विश्वासपात्र है। वो बटाका को इस्तेमाल करने की कोशिश भी नहीं कर सकता। न ही वो जानता है कि उसे इस्तेमाल कैसे करना है। दोलाम ने बटाका को मेरी अमानत के तौर पर सम्भालकर रखा होगा।”

“अगर बटाका खो जाए तो क्या होगा?” बबूसा ने पूछा।

“तो ताकतें बटाका की जानकारी दे देती हैं कि वो कहां पर है।”

“मान लो वो पूरी तरह खो जाता है। मिलता ही नहीं तो फिर तुम्हारी क्या स्थिति होगी?”

“ऐसे में ताकतें किसी और चीज को बटाका बनाकर मुझे बता देंगी कि मैं उस चीज के बटाका के तौर पर उठा लूं। परंतु बटाका ऐसी चीज नहीं है कि खो जाए। ऐसा हो तो ताकतें फौरन उसे ढूंढ लेती हैं।”

“मैंने सुना है कि खुंबरी एक क्रूर शासक रही।”

खुंबरी मुस्करा पड़ी तो निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“जरूर, ऐसा ही सुना होगा। नागाथ की ताकतें जिसके पास हों तो दो खुद-ब-खुद ही क्रूर बन जाता है। ताकतें मुझे किसी पर रहम नहीं करने देतीं। वो सिर्फ अपना काम पूरा करना जानती हैं। जो भी मेरे शासन के खिलाफ गया, मेरे योद्धा उसे मार देते थे। जिस किसी से भी मुझे खतरे का अंदेशा हुआ, उसे तुरंत खत्म कर दिया जाता था। कई बार तो मैं अपना राजकीय शासन चलाने के लिए, ताकतों से भी सलाह लेती थी। ऐसा अक्सर होता था कि मेरी ताकतें मुझे पहले ही इस बात का एहसास दिला देती थीं कि फलां-फलां इंसान आने वाले वक्त में, मेरे लिए मुसीबतें खड़ी करने वाला है तो तब मेरे इशारे पर मेरे तलवारबाज योद्धा उसे खत्म कर डालते थे।”

“बिना किसी कसूर के।”

“कसूर इतना ही है कि आने वाले वक्त में वो मेरे लिए मुसीबत बनेगा।”

“ये तो अजीब बात है।”

“मेरी ताकतें मुझे पहले ही सतर्क कर देती थीं। इसमें कुछ भी बुरा नहीं है। मैंने अपनी ताकतों के कहने पर ऐसे कई लोगों की जान ली, जो सदूर पर शासन करने की सोचने लगे थे कि कैसे मुझे खत्म कर सकें।”

“मैंने तो सुना है कि तुम अपने योद्धाओं की भी जान ले लेती थीं।”

“हां। ऐसा बहुत बार किया मैंने। मुझे सुस्त और आलसी योद्धा पसंद नहीं थे। मेरे खास लोग ऐसे योद्धाओं को तलाश करके उन्हें मार देते थे। जिससे कि बाकी योद्धा अपने काम को मौत के डर से बखूबी अंजाम दिया करते थे। सेवकों में डर बना रहे तो तो वो अच्छा काम करते हैं। पूरे सदूर पर सारे साम्राज्य को संभालना आसान काम भी तो नहीं। मैंने अपने सेवक, योद्धा, कर्मचारियों पर मौत का डर डाल रखा था कि वो ठीक से काम नहीं करेंगे तो उन्हें मार दिया जाएगा। जो बढ़िया काम करता था उसे ईनाम भी मिलता था। परंतु तब भी वो डरा रहता कि आने वाले वक्त में उससे कोई गलती न हो जाए। इस प्रकार मेरे सारे काम बहुत बढ़िया ढंग से होते थे। इधर मुझे अपनी ताकतों को भी तो खुश रखना होता था।”

“कैसे खुश रखती तुम तुम ताकतों को?”

“उनसे काम लेते रहो, वो खुश हैं। मैं जितनी क्रूरता का इस्तेमाल करूंगी वो खुशी होंगी। सदूर की रानी बनाने में उन ताकतों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। ताकतों ने मेरी राहें आसान की। मेरे दुश्मनों के प्रति पहले ही मुझे सचेत कर दिया जाता। मैं उन्हें पहले ही खत्म कर देती। इस तरह मैं सदूर की मालकिन बनती चली गई।”

“तुम बता रही थीं कि डुमरा की ताकतों ने तुम पर जश्न की रात हमला कर दिया।”

“वो बहुत बुरी रात थी मेरे लिए।” खुंबरी ने दुख भरे स्वर में कहा।

“तब तुम्हारी ताकतों ने तुम्हें आने वाले खतरे के प्रति सतर्क नहीं किया?” बबूसा ने कहा।

“किया। ताकतों ने बहुत कोशिश की, परंतु बटाका मेरे गले से गिर जाने के बाद ताकतें मेरे करीब नहीं पहुंच पा रही थीं। मेरे से दो कदम के फासले तक ही आ पा रही थीं। कारू की मदहोशी में नाचते-नाचते जब कभी नीचे गिरे बटाका (नग) पर मेरे पांव पड़ते तो वो ताकतें उसी पल मेरे सिर पर सवार होकर मुझे सतर्क करने की चेष्टा करतीं, परंतु जब मेरा पांव बटाका से हट जाता तो, ताकतें उसी पल मेरे से दूर हो जातीं।”

“मतलब कि बटाका के बिना तुम कुछ भी नहीं हो।”

“सच कहा तुमने।”

“तो बटाका खो जाने की स्थिति में ताकतें तुम्हें कैसे बताती हैं कि बटाका कहां पर मौजूद है।”

“ताकतों से सम्पर्क करने के तरीके मेरे पास और भी हैं। बटाका को अपने पास रखने का ये फायदा होता है कि मैं किसी भी पल, कैसे भी हालातों में मैं बटाका का इस्तेमाल करके, ताकतों से बात कर सकती हूं।”

“अब बिना बटाका के ताकतें तुम्हारे साथ, दूसरे ग्रह पृथ्वी पर भी हैं। ये कैसे मुमकिन है?”

चंद पल चुप रहकर खुंबरी कह उठी।

“मैंने तुम्हें अभी बताया था कि ताकतों ने श्राप मिलने और मेरे स्वीकार करने पर ये जान लिया था कि उनकी अगली मालिक भी मैं ही बनूंगी, बेशक मुझे पांच सौ सालों के लिए सदूर छोड़कर जाना है। ऐसे में उन ताकतों ने हर पल मेरी सहायता करने की ठान ली। ताकतों का अपना वजूद भी होता है। वो अपने फैसले तब लेती हैं, जब उनका मालिक कोई न रहे। ऐसे में उन ताकतों ने मेरा साथ कभी भी नहीं छोड़ा। मैंने जब शरीर को गुप्त जगह पर छोड़ा तो ताकतें उसी पल मेरी जान को संभाले पृथ्वी ग्रह की तरफ रवाना हो गईं। उन्होंने मुझे सुरक्षित पृथ्वी पर पहुंचाया और मेरा नया जन्म कराया। तब से दो-तीन ताकतें पृथ्वी पर हर समय मेरे साथ ही रहीं।”

बबूसा ने सोच-भरे गम्भीर अंदाज में सिर हिलाया।

“तो डुमरा ने तुम्हारे साथ क्या किया?” बबूसा ने पूछा।

“उसकी शक्तियों ने जश्न की उस रात, मेरे से बटका के जुदा होते ही घेर लिया। नाचते-नाचते मेरे पांव जैसे जमीन से चिपक गए। मैं लाख कोशिश करके भी पांवों को न हिला सकी। मेरी आंखें खुलीं थीं। दिमाग काम कर रहा था। मैंने गले में पड़े ‘बटाका’ को छूना चाहा तो वो गले में नहीं मिला। उसी पल मैं समझ गई कि बटाका कहीं गिर गया है और डुमरा की शक्तियों ने मुझे पकड़ लिया है। कारू का नशा मेरे सिर पर सवार था। मैं समझ सब कुछ रही थी परंतु कुछ बोल न पा रही थी। वहां मौजूद लोगों ने मेरी हालत देखी तो मुझे सहायता देने पास आ पहुंचे, परंतु जमीन से चिपके पांवों को वो अलग न कर सके। उसी हाल में खड़े-खड़े सुबह हो गई। तब मेरी नजर कुछ दूर पड़े बटाका पर गई। उसका धागा टूट गया था। वो अभी भी धागे में फंसा कुछ दूर जमीन पर पड़ा था। लोगों के पांवों के नीचे आ रहा था। मेरा नशा उतर चुका था। वहां अभी भी रात वाले लोग मौजूद थे और इस बात से हैरान हो रहे थे कि मुझे क्या हो गया है। मैंने चीखकर कहा कि वो नग मुझे दे दें। परंतु जैसे उन लोगों को मेरी आवाज सुनाई ही नहीं दे रही थी। मेरे कहने का उन पर कोई असर नहीं हुआ। बहुत बार कहा मैंने। सब बेकार रहा। जब अच्छी तरह दिन निकल आया, सूर्य भी दिखने लगा तो मैंने डुमरा को अपने पास आते देखा। वो मुस्करा रहा था। उसके चेहरे पर शांत भाव थे। वो मेरे पास आकर ठिठका और बोला।

“तुम्हारी आवाज किसी के कानों तक नहीं पहुंच रही। मेरी शक्तियों ने तुम्हारे सब दरवाजे बंद कर दिए हैं। तुम अब साधारण युवती बनकर रह गई हो। तुम्हें जश्न में कारू के नशे में इस तरह नहीं नाचना चाहिए था। कम-से-कम बटाका का तो ध्यान रखती जो तुम्हें सुरक्षित रखे हुए था। तुम तो बहुत लापरवाह निकलीं।”

खुंबरी गुर्रा पड़ी।

डुमरा हंस पड़ा।

“तो अब तुम अपने भाई ओमाच की मौत का बदला मुझसे लोगे।”

“नहीं। ये बात तो बिल्कुल नहीं है।”

“ये ही बात है। तभी तो तुम कब से मेरे पीछे पड़े हुए हो।” खुंबरी ने दांत पीसकर कहा।

“इन बातों का ओमाच की मौत से कोई वास्ता नहीं है।” डुमरा बोला।

“तो क्या चाहते हो?”

“मुझे पसंद नहीं कि कोई नागाथ की ताकतों का इस्तेमाल करे।” डुमरा गम्भीर हो गया।

“क्यों?”

“नागाथ की ताकतें बुरी हैं। वो लोगों को तकलीफ देती हैं। तुम उनका क्रूरता से इस्तेमाल करती हो।”

“तो वो ताकतें तुम ले लेना चाहते...”

“उन ताकतों को लेने की मैं सोच भी नहीं सकता। क्योंकि मेरी राहें तुमसे बहुत अलग हैं।”

“चाहते क्या हो?”

“तुम उन ताकतों से छुटकारा पा लो। उन्हें आजाद कर दो।” डुमरा ने शांत स्वर में कहा।

“हरगिज नहीं। तुमने कैसे सोच लिया कि मैं ऐसा करूंगी।” खुंबरी दांत पीस उठी।

“ऐसा ही करना होगा तुम्हें।”

“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है जो तुमने ऐसा कहा। नागाथ की दी ताकतों की मेरी जिंदगी में क्या अहमियत है, वो तुम नहीं समझ सकते। आज मेरा जो रुतबा है, नागाथ की ताकतों की वजह से ही...”

“मुझे हर बात का ज्ञान है।”

“तो तुम्हें इस बात का भी ज्ञान होगा कि मैं ताकतों को अपने से जुदा नहीं होने दूंगी।” खुंबरी गुस्से में पागल हो रही थी-“मैं तुम्हारी परवाह नहीं करती डुमरा। मैं तुम्हारी कोई बात नहीं मानूंगी।”

डुमरा गम्भीर निगाहों से, खुंबरी को देख रहा था।

“मुझे बहुत बातों का ज्ञान पहले से ही है कि आगे क्या होने वाला है।” डुमरा गम्भीर था।

“तू मेरे हाथों से मरेगा डुमरा।” खुंबरी गुर्रा उठी।

“अभी तो ऐसा होना मुझे दिख नहीं रहा खुंबरी।” डुमरा ने कहा-“बेहतर होगा तुम मेरी बात को मानते हुए नागाथ की दी ताकतों को छोड़ दो। तुम हां कहो, पीछा मैं छुड़ा दूंगा।”

“कभी नहीं, वो ताकतें तो मेरी जान हैं। उनके साथ जीने की मुझे आदत पड़ गई है। वो सिर्फ मेरी हैं। मैं उन्हें अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती हूं।” खुंबरी चीख उठी-“मैं उन्हें अपने से दूर नहीं करूंगी।”

“इस वक्त तुम्हारी वो ताकतें आसपास ही हैं, परंतु तुम्हें बचाने में असमर्थ हैं।”

खुंबरी की निगाह कुछ दूर गिरे पड़े बटाका पर पड़ी।

“तुम्हें अपनी शक्तियों पर बहुत नाज है डुमरा।”

“गलत शब्द इस्तेमाल मत करो। मुझे कभी भी अपनी शक्तियों पर नाज नहीं रहा। मैंने अपनी शक्तियों का हमेशा आदर किया है। वो मेरे लिए पूजनीय हैं।” डुमरा ने सिर हिलाकर कहा-“मैं हमेशा उनका आभारी रहता हूं।”

“लेकिन मुझे अपनी ताकतों पर नाज है।”

डुमरा ने खुंबरी की आंखों में झांका।

“वो सामने-जमीन पर धागे में फंसा नग पड़ा है। उसे उठाकर मेरे हाथों में दे दो।” खुंबरी कह उठी।

डुमरा ने गर्दन घुमाकर उस तरफ देखने की कोशिश नहीं की और बोला।

“तुम ‘बटाका’ की बात कर रही हो। मुझे कब से इंतजार था कि ‘बटाका’ एक पल के लिए भी तुमसे अलग हो और मेरी शक्तियां तुम पर काबू पा लें। ऐसा हुआ और मुझे मौका मिल गया।”

“तो तुम ‘बटाका’ के बारे में जानकारी रखते हो।” खुंबरी ने दांत पीसे।

“मैं तुमसे वास्ता रखती अधिकतर चीजों का ज्ञान रखता हूं। बात भाई ओमाच के मरने की नहीं है। जब मुझे मेरी शक्तियों ने बताया कि नागाथ अपना शरीर छोड़ते समय, अपनी ताकतें तुम्हें दे गया है तो तभी से मेरी नजर तुम पर टिक गई थी। नागाथ की ताकतें जो भी काम करेंगी, बुरा करेंगी। वो ताकतें क्रूरता को बढ़ावा देती हैं। मैं चाहता हूं कि तुम उन ताकतों को आजाद कर दो। उसके बाद मैं उन ताकतों को किसी चीज में बंद करके, जमीन में दबा दूंगा। इस तरह जमीन से बुराई कम होगी। मेरी शक्तियां भी ऐसा करने की इच्छा रखती हैं।”

“तुम अपनी कोशिश में कभी सफल नहीं हो सकते डुमरा।”

“मेरी बात मान जाओ। नहीं तो मेरे पास और भी रास्ते हैं।” डुमरा ने शांत गम्भीर स्वर में कहा।

“मैं तुम्हारी धमकी से डरने वाली नहीं।”

“मेरी सलाह को धमकी मत कहो।”

“मैंने तुम्हें कभी भी पसंद नहीं किया।” खुंबरी ने सुलगते स्वर में कहा।

“जिसके पास ताकतें हो, वो मुझे कभी भी पसंद नहीं करेगा।”

“मैंने तुम्हें कभी कुछ नहीं कहा। हमारे में दुश्मनी जैसा कुछ हुआ तो उसकी शुरुआत तुमने ही की थी।”

“स्वीकार करता हूं तुम्हारी बात को। जिस तरह तुम्हारी ताकतें तुम्हें बुरा करने पर मजबूर करती हैं उसी तरह मेरी शक्तियां मुझे मजबूर करती हैं कि मैं बुराई को रोकूं। यही वजह है कि मुझे आगे आना पड़ा। नागाथ की दी ताकतों को छोड़ दो। इसी में सबका भला है। मैं वादा करता हूं सदूर पर तब भी तुम्हारी हुकूमत कायम रहेगी।”

“मुझे उन ताकतों से प्यार है।” खुंबरी विषैले अंदाज में हंस पड़ी-’मैं तुमसे कभी नहीं डरती।”

“मुझे सख्ती पर मजबूर मत करो खुंबरी।” डुमरा बेहद गम्भीर दिखने लगा।

“तुम जो चाहो कर लो डुमरा, परंतु मुझे मेरी ताकतों से तुम जुदा नहीं कर सकते।” खुंबरी पागलों की तरह गुर्रा पड़ी।

“मेरी शक्तियों को पसंद नहीं कि वो किसी की जान लें। इस बात को पाप समझती हैं वो। परंतु मेरे आदेश पर और हालातों को देखते हुए वो ऐसा कर सकती हैं। मैं तुम्हें पांच सौ सालों के लिए श्राप देता हूं कि सदूर से दूर चली जाओ। अगर तुम मेरा श्राप स्वीकार करती हो तो मेरी शक्तियां तुम्हें अभी आजाद कर देंगी। नहीं तो इसी तरह खड़े-खड़े तुम जान दे दोगी। इसके अलावा ये बात अभी भी तुम्हारे सामने है कि तुम नागाथ की दी ताकतों से दूर होना चाहो तो बता दो।”

खुंबरी गुस्से से चीख उठी।

डुमरा शांत खड़ा उसे देखता रहा।

वहां सैकड़ों-हजारों की भीड़ में खड़े सब देख रहे थे परंतु उनके लिए उलझन की बात थी कि डुमरा या खुंबरी की आवाजें वो न सुन पा रहे थे। उन्हें नहीं पता था कि क्या हो रहा है।

“मैं श्राप दे चुका हूं।” डुमरा ने स्थिर आवाज में कहा-“और तुम अच्छी तरह जानती हो कि मेरे शब्द खाली नहीं जाएंगे। पांच सौ साल के लिए तुम्हें सदूर छोड़कर जाना होगा। श्राप स्वीकार नहीं करोगी तो इसी तरह खड़े-खड़े तुम्हारी जान निकल जाएगी। तीसरी बात ये कि नागाथ की शक्तियों को आजाद कर दो और इसी प्रकार सदूर पर शासन करती रहो।

जो भी तुम्हें मंजूर हो। वो करो। मुझे कोई जल्दी नहीं है। मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार...”

“मेरा जवाब तुम सुन चुके हो डुमरा।” खुंबरी पुनः चीखी-“वो ताकतें अब मेरा हिस्सा बन चुकी हैं। उनके बिना मैं जीवन बिताने की सोच भी नहीं सकती। उन ताकतों में मेरी जान बसती है।”

डुमरा स्थिर-सा खुंबरी को देखता रहा।

क्रोध में खुंबरी का चेहरा तप रहा था।

“कोई और राह निकालो डुमरा।” खुंबरी एकाएक तेज सांसें लेने लगी।

“और कोई रास्ता नहीं है।” डुमरा बोला।

“तुम अपनी शक्तियों के माध्यम से किसी की जान नहीं ले सकते। शक्तियां ये बात नहीं मानेगी।”

“वो मान रही हैं।”

“तुम झूठ कह रहे हो।”

“मैं झूठ नहीं बोलता कभी। शक्तियां तुम्हारी जान लेने को तैयार हैं, परंतु ये पाप मुझे अपने सिर लेना होगा।”

खुंबरी गुर्राकर रह गई।

“मेरे हुक्म पर शक्तियां तुम्हारे पांवों को तब तक आजाद नहीं करेंगी, जब तक कि तुम बेजान होकर गिर न जाओ। तुम्हारे प्राण न निकल जाएं।” डुमरा ने कहा।

“तुम तो बहुत गिरे हुए इंसान हो डुमरा।” खुंबरी की निगाह पुनः ‘बटाका’ की तरफ गई।

“अभी भी तुम्हारे पास समय है कि तुम नागाथ की शक्तियों को आजाद कर दो और सदूर पर शासन करो।”

“मैं उन ताकतों को अपने से दूर नहीं करूंगी डुमरा। खुंबरी पागलों की तरह चीख उठी-“मुझे तुम्हारा श्राप स्वीकार है। मैं पांच सौ सालों के लिए सदूर से दूर जाने को तैयार हूं।”

“अब तुमने श्राप स्वीकार कर लिया है। अगर तुम सदूर से नहीं गई तो खुद-ब-खुद ही तुम्हारी जान निकल जाएगी।”

“जानती हूं।” खुंबरी का चेहरा दहक रहा था लेकिन मैं वापस आऊंगी डुमरा। तेरे से एक-एक बात का बदला लूंगी और तेरी जान लेकर रहूंगी। तब मेरी ताकतें मेरा साथ देंगी।”

“पांच सौ सालों के बाद क्या होगा, ये न तो तुम जानती हो और न ही मैं।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी।”

“पांच सौ साल बहुत ज्यादा होते हैं खुंबरी। शायद इतनी देर वो ताकतें तुम्हारा इंतजार न कर सकें और खुद ही चली जाएं। ये अच्छी बात होती अगर तुम उन ताकतों को छोड़ने का फैसला कर लेती और सदूर पर शासन चलाती।”

“जिसे उन ताकतों का नशा हो जाए, वो ही जानता है कि ताकतों के साथ सदूर की रानी बनने में क्या मजा है।” खुंबरी ने मौत से भरे स्वर में कहा-“इस बार तो तेरी चल गई डुमरा परंतु अगली बारी मेरी होगी।”

डुमरा ने अपना हाथ हवा में लहराया।

उसी पल खुंबरी के पांव आजाद हो गए।

ऐसा होते ही खुंबरी पागलों की तरह डुमरा पर झपट पड़ी।

अगले ही पल खुंबरी के पैर पुनः जमीन से चिपक गए।

“ऐसा मत करना। कुछ भी मत करना अब।” डुमरा ने शांत स्वर में कहा-“तुम श्राप में बंध चुकी हो। अब कुछ भी करने का हक खो चुकी हो। अगर तुमने फिर भी कुछ करने की कोशिश की तो तुम्हें अपने शरीर के अंगों की क्षति सहनी पड़ेगी।”

पुनः खुंबरी के पैर आजाद हो गए।

खुंबरी ने गहरी सांसें ली और मौत की-सी निगाहों से डुमरा को देखा।

डुमरा पलटकर जाने लगा तो खुंबरी गुर्रा उठी।

“मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूंगी डुमरा।” खुंबरी के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी।

डुमरा ने शांत निगाहों से खुंबरी को देखा।

“हो सका तो तुमसे आज के दिन का पूरा बदला लूंगी।” खुंबरी ने दांत किटकिटाकर कहा।

डुमरा पलटकर आगे बढ़ गया।

“मुझे कुछ वक्त चाहिए डुमरा सदूर छोड़ने के लिए। मुझे कुछ तैयारियां करनी हैं।”

“कितना वक्त?” उसी तरह चलते-चलते डुमरा ने पूछा। पीछे नहीं देखा।

“दस दिन।”

“मैं तुम्हें पंद्रह दिन देता हूं। सोलहवें दिन तुमने श्राप का पालन नहीं किया तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।” कहने के साथ ही डुमरा आगे बढ़ता भीड़ में गुम होता चला गया।

खुंबरी सब कुछ बताने के बाद रुकी।

बबूसा की निगाह खुंबरी पर टिकी थी। वो ऐसी बातें जान रहा था जिनका उसे पता नहीं था।

“फिर-फिर...?” बबूसा के होंठों से निकला।

“आगे क्या बताऊं।” खुंबरी मुस्कराई। निचला होंठ टेढ़ा हो गया-“बता ही चुकी हूं तुम्हें कि मेरे आगे के सफर में क्या रहा। अब वापस सदूर पर जा रही हूं पांच सौ सालों बाद। डुमरा ने सोचा था जैसे पांच सौ साल कभी पूरे ही नहीं होंगे, लेकिन वक्त कभी ठहरता नहीं। अब मैं...”

“तुम्हारी ताकतें अब भी तुम्हारे साथ हैं पूरी तरह?” बबूसा गम्भीर दिखने लगा था।

“जितनी मुझे जरूरत है, उतनी तो साथ ही हैं।” खुंबरी बोली-“अब मेरे सदूर पर पहुंचने पर सब ठीक हो जएगा।”

“बटाका दोलाम ने संभाल रखा है।”

“पूरी हिफाजत से।”

“मैं तुम्हें धरा कहूं या खुंबरी?”

“मैं खुंबरी का रूप भर हूं। मैं धरा हूं। खुंबरी तो सदूर पर गहरी नींद में डूबी है, पांच सौ सालों से। मैं जाकर उसे जगाऊंगी।”

“तुम जगाओगी? कैसे?”

“वो मुझे पता है।”

“खुंबरी सदूर में कहां पर है?”

“ये मैं तुम्हें नहीं बताने वाली।”

“तुम्हें मालूम है?”

“मुझे क्यों न मालूम होगा।”

“तो तुम धरा हो। खुंबरी का ही रूप। सदूर पर पहुंचकर तुम्हारी क्या स्थिति होगी?”

“मैं खुंबरी की सहेली-दोस्त, उसकी करीबी बनकर रहूंगी। मैं खुंबरी का ही तो हिस्सा हूं।”

“तो खुंबरी पहले डुमरा से बदला लेगी उसके बाद सदूर की रानी बनने की कोशिश करेगी?” बबूसा गम्भीर था।

“कोशिश?” धरा मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा दिखने लगा-“खुंबरी को कोशिश करनी है। सदूर उसी का तो है। ताकतें खुंबरी की सहायता करेगी और खुंबरी सदूर की मालकिन बन जाएगी। टुकड़े-टुकड़े हो चुका सदूर वापस सदूर से आ मिलेगा। बहुत बड़ा सदूर बन जाएगा। डुमरा के श्राप के शुरू होते ही सदूर कई टुकड़ों में बदल गया था ताकि खुंबरी की बची ताकतें टुकड़ों में बिखर जाएं। परंतु अब सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा।” धरा की आंखों में चमक थी-“लेकिन सबसे पहले मैं डुमरा को खत्म करूंगी। नहीं तो वो फिर मेरी राह में मुसीबतें इकट्ठी करने की कोशिश करेगा। मैंने उससे बदला लेना है।”

बबूसा, खुंबरी उर्फ धरा को देखता रहा। फिर बोला।

“तुम्हारे बारे में काफी सुन रखा था। परंतु अब जाना कि खुंबरी की असलियत क्या है।”

“डुमरा ही मेरे रास्ते में आया था वो ही मेरे पीछे पड़ा था। मैंने तो उसे कुछ नहीं कहा था।” धरा गुस्से में भर उठी।

“उसे तुम्हारी बुरी ताकतों से शिकायत थी।”

“वो ताकतें जैसी भी हैं मुझे उनसे प्यार है। तुम देख ही रहे हो कि वो मेरा कितना ख्याल रखती हैं।”

“ताकतों को तुम्हारी चिंता क्यों है?”

“क्योंकि मेरे पास रहकर वो सक्रिय रहेंगी। मेरे साथ ही उनका जीवन है। कोई दूसरा नहीं जानता कि उन्हें कैसे संभालना है। दूसरा तभी जानेगा। जब मैं ताकतों को संभालने का तरीका बताऊंगी और ये बातें मैंने अभी तक किसी को नहीं बताई।”

“तुम चाहती तो ताकतों से अलग होकर, सदूर की रानी बनी रह सकती थी।” बबूसा ने कहा।

“वो ताकतें मेरा नशा है। मैं उनसे अलग होने की सोच भी नहीं सकती। उनके बिना मेरा जीना बेकार है। वो मेरा ख्याल रखती हैं और मैं उनका ख्याल रखती हूं। मैं उनसे कभी भी अलग नहीं होना चाहूंगी।”

“तो तुम सदूर पर फिर से अपनी क्रूरता का प्रदर्शन करोगी?”

“ये तो होगा ही।” धरा मुस्कराई तो निचला होंठ टेढ़ा हो गया-“मेरी ताकतें हैं ही ऐसी। वो किसी पर रहम नहीं करतीं।”

“तुम बुराई नहीं छोड़ोगी?”

“ये बुराई नहीं, मेरा शासन करने का तरीका है। मेरी ताकतें मुझे रास्ता दिखाती हैं और मैं सलामत रहती हूं उस रास्ते पर चलकर।”

बबूसा सिर हिलाकर बोला।

“मैंने तुमसे बहुत कुछ नया जाना है।” चेहरे पर गम्भीरता थी।

धरा उसी मुस्कान के साथ बबूसा के देखती रही।

“अब मैं चलूंगा।” बबूसा ने कहा और पलटकर दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

बबूसा बाहर निकल गया।

धरा खुलकर मुस्कराई तो निचला होंठ टेढ़ा दिखने लगा।

‘तेरे को कोई नहीं जीत सकेगा अब खुंबरी।’ वो बड़बड़ाई-’सदूर पर तू सबसे महान बन जाएगी।’

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