“यह रेडियो सीलोन का व्यापार विभाग है ।” - रेडियो पर अनाउन्सर का व्यवसायिक स्वर सुनाई दे रहा था - “हमारा अगला प्रोग्राम सुनने से पहले सुनिये यह विशेष सन्देश ।”
अनाउन्सर एक क्षण के लिये रुका और फिर बोला - “राजनगर के डाक्टर भारद्वाज, जो इस समय विशालगढ में कहीं हैं, से प्रार्थना है कि वे फौरन घर वापिस लौट आयें क्योंकि उनकी पत्नी सख्त बीमार है ।”
यह सन्देश लाखों रेडियो सैटों पर सुना गया, लेकिन उस लाखों सुनने वालों के लिये वह संदेश निरर्थक था । लोगों ने साबुन का विज्ञापन सुनने की सी लापरवाही से इसे सुना और भुला दिया ।
संसार में केवल चार व्यक्ति थे । जो इस सन्देश का अर्थ समझते थे । इसीलिये केवल उन्हीं के लिये इस सन्देश का महत्व भी था ।
अनाउन्सर ने सन्देश को फिर दोहराया - “राजनगर के डाक्टर भारद्वाज, जो इस समय विशालगढ में कहीं हैं, से प्रार्थना है कि वे फौरन घर वापिस लौट आयें क्योंकि उनकी पत्नी श्रीमती रेणुका भारद्वाज सख्त बीमार हैं ।”
संयोगवश उन चार व्यक्तियों में से केवल तीन ही के कानों में वह सन्देश पड़ा । वे व्यक्ति थे:
अवकाश प्राप्त विंग कमान्डर रामू ।
नीलकमल का वेटर गोपाल ।
ब्लास्ट का विशेष प्रतिनिधि सुनील ।
तीनों वह सन्देश सुनते ही तमाम काम छोड़कर गोली की तरह समीपतम उपलब्ध टेलीफोन की ओर भागे ।
***
कर्नल मुखर्जी ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया । उन्होंने दीवार पर लगी घड़ी पर एक दृष्टि डाली । आठ बजकर बीस मिनट हुये थे । उन्होंने सन्तुष्टिपूर्वक ढंग से सिर हिलाया और अपनी पीठ को कुर्सी के कुशन के साथ लगाकर सामने की मेज पर टांगे फैला दी । उनके नेत्र बन्द हो गये थे । उनका बुझा हुआ पाईप उनके दांतों में दबा हुआ था, लेकिन उन्होंने उसे सुलगाने का उपक्रम नहीं किया ।
वे सन्तुष्ट थे क्योंकि उनके द्वारा प्रसारित सन्देश का आशातीत परिणाम सामने आ गया था । बीस मिनट में ही वे अपने स्टाफ के तीन सुयोग्य व्यक्तियों से सम्बन्ध स्थापित कर चुके थे ।
कर्नल मुखर्जी सी आई बी की एक नई शाखा स्पेशल इन्टेलीजेन्स के डायरेक्टर थे । उन्होंने अपना स्टाफ चुनने में बड़ी सावधानी से काम लिया था । उन्होंने अपना स्टाफ पहले से ही काम धन्धों में लगे हुये ऐसे लोगों में से चुना था जो भारत और भारतीयता पर मरते थे और जिनकी कार्य क्षमता असाधारण थी । ऐसे ही लोगों की नियुक्ति से स्पेशल इन्टेलीजेन्स ब्रांच का मिशन सफल हो सकता था । देश में विदेशी एजेन्टों की भरमार के कारण सी आई बी के जासूस छुपे नहीं रह पाते थे और कई बार इसका बड़ा भयंकर परिणाम भी निकला था । इसीलिये स्पेशल इन्टेलीजेंस ब्रांच की स्थापना की गई थी और उसके स्टाफ के लिये ऐसे लोग चुने गये थे जिनके जासूस होने के विषय में कोई स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था । उदाहरणतया सुनील नगर के प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘ब्लास्ट’ का अधिक प्रसिद्ध विशेष प्रतिनिधि था । अपने सर्कल में वह एक असाधारण प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति के रूप में जाना जाता था और पुलिस अधिकारियों और अपने परिचितों के विचार से वह तलवार की धार पर चलने जैसी रिस्क भरी और हंगामाखेज वह जिन्दगी गुजार रहा था । ऐसे व्यक्ति के विषय में कोई स्वप्न में नहीं सोच सकता था कि वह भारतीय सीक्रेट सर्विस (सेंट्रल इन्टेलीजेन्स ब्यूरो, सी आई बी) का एजेंट भी हो सकता है ।
सुनील की ओर कर्नल मुखर्जी का ध्यान स्वयं रक्षा मन्त्री ने आकर्षित किया था । रक्षा मन्त्री ने कर्नल मुखर्जी को बड़े गर्व के साथ बताया था कि किस प्रकार सुनील बिना किसी की सहायता से अपनी जान की बाजी लगा कर हांगकांग में चीनी और पाकिस्तानी जासूसों से भिड़ गया था और भारत से चोरी गए एक जहाज के अविष्कार से सम्बन्धित कागजात फिर हासिल करने में सफल हो गया था । (देखिए उपन्यास हांगकांग में हंगामा)
कर्नल मुखर्जी सुनील को भारी सम्मान की दृष्टि से देखते थे ।
विंग कमान्डर रामू अपनी सरविस के समय में सबसे अधिक कुशल और जांबाज पायलट समझा जाता था । एयरफोर्स के सीनियर आफिसर उसे गर्व की दृष्टि से देखा करते थे । भारत-पाक युद्ध में उसने इतने अदम्य साहस का परिचय दिया था और ऐसे विकट अभियानों में सफलता पाई थी कि देश का बच्चा-बच्चा उसका नाम जान गया था । लोग उसकी प्रशंसा के राग गाते थे और उसे इसी बात से सबसे अधिक उलझन होती थी । वह अखबार के रिपोर्टरों से कतराता था और अखबार में छपने के लिये फोटो खिंचवाने के लिये तो वह कभी तैयार होता ही नहीं था । उसी दौरान में वह फ्लाइट लैफ्टीनेन्ट से विंग कमान्डर बना दिया गया था । लेकिन युद्ध की समाप्ति के बाद उसे फेफड़ों के विकार के कारण ऐयरफोर्स की नौकरी छोड़नी पड़ी थी ।
जनसाधारण की नजर में वह लापरवाही और अलमस्ती की जिन्दगी बिताने वाला एयरफोर्स का एक रिटायर्ड आफिसर था लेकिन कर्नल मुखर्जी की नजर में वह उनकी ब्रांच का होनहार सदस्य था ।
गोपाल नीलकमल रेस्टोरेन्ट में वेटर था । उसका कई भाषाओं का ज्ञान मुखर्जी के लिये बड़ी लाभदायक चीज थी । नीलकमल में हर प्रकार के लोग आते थे और बड़ी अनोखी-अनोखी बातें करते थे । लोग कभी-कभार शराब के नशे में बहक जाते थे और भी अनोखी बाते करते थे । गोपाल उनकी बातों को कानों से सुनता था, फिर सुनी हुई बातों को अच्छी तरह परखता था और उन्हें कर्नल मुखर्जी को ट्रांसफर कर देता । एक बार तो केवल गोपाल की लाई हुई सूचना के आधार पर काम करके कर्नल मुखर्जी का विभाग एक बहुत बडे़ पाकिस्तानी स्पाई-रिंग का नाश करने में सफल हो गया था ।
“साहब ।” - उनके कानों में धर्म सिंह का स्वर पड़ा ।
धर्म सिंह उनका पीर, बबर्ची, भिश्ती, खर सब कुछ था । कभी कभार तो वह कर्नल मुखर्जी की गाड़ी भी ड्राईव किया करता था ।
“हां ।” - कर्नल मुखर्जी ने आंखें खोलकर पूछा ।
“साहब ।” - धर्म सिंह बोला - “एक भारद्वाज नाम का आदमी आया है । कहता है आपने उसे ड्राइवर की नौकरी दिलाने का वायदा किया है ।”
“बुलाओ ।” - कर्नल मुखर्जी बोले और उन्होंने मेज पर से पांव हटा लिये और सीधे बैठ गये ।
धर्म सिंह जाने के लिये मुड़ा ।
“सुनो ।” - कर्नल मुखर्जी ने आवाज दी - “एक साहब और आने वाले हैं । उनका नाम सुनील है । उन्हें सीधे यहीं भेज देना ।”
“अच्छा साहब ।” - धर्म सिंह बाहर निकल गया ।
कुछ ही क्षणों बाद गोपाल उनके सामने खड़ा था ।
“गुड इवनिंग सर ।” - गोपाल बोला ।
“गुड इवनिंग गोपाल ।” कर्नल मुखर्जी बोले - “प्लीज सिट डाउन ।”
गोपाल बैठ गया ।
कर्नल मुखर्जी ने अरसे का बुझा हुआ पाई फिर सुलगा लिया और गहरे-गहरे कश लेने लगे ।
“काफी गम्भीर मामला है, सर ?” - कई क्षण चुप रहने के बाद गोपाल उत्सुक स्वर में बोला ।
“हां, बेहद ।”
गोपाल आशापूर्ण नेत्रों से कर्नल मुखर्जी को देखता रहा लेकिन जब फिर भी उन्होंने बोलने का कोई उपक्रम नहीं किया तो उसने पूछा - “क्या कोई और भी आने वाला है ?”
“हां ।” - मुखर्जी बोले - “सुनील । तुम जानते हो न उसे ।”
“जी हां । केवल एक बार पहले उसके साथ काम करने का अवसर मिला है ।”
“बस वह आने ही वाला होगा ।” - कर्नल मुखर्जी घड़ी देखते हुए बोले - “नौ तो बज गये हैं ।”
उसी समय सुनील ने भीतर प्रवेश किया ।
“गुड इवनिंग, सर ।” - सुनील शिष्ट स्वर में बोला ।
“इवनिंग सुनील ।” - कर्नल मुखर्जी बोले - “तुम्हारा ही इन्तजार हो रहा था । बैठो ।”
सुनील गोपाल के बगल की कुर्सी पर बैठ गया ।
“हैल्लो, हाउ आर यू ।” - वह गोपाल से हाथ मिलाता हुआ बोला ।
“फाइन ।” - गोपाल ने उत्तर दिया ।
मुखर्जी ने अपनी कुर्सी में पहलू बदला ।
“जो मैं कहने लगा हूं, उसे बहुत ध्यान से सुनना ।” - वे बोले ।
“हम दो ही ?” - सुनील ने प्रश्न किया ।
“हां । एक आदमी और आने वाला है लेकिन वह बारह बजे से पहले नहीं पहुंच पाएगा । केवल तीन ही आदमियों ने मुझ से सम्पर्क किया है ।”
“तीसरा कौन है ?” - सुनील ने पूछा ।
“तुम लोग नहीं जानते उसे ।”
सुनील ने तीसरे आदमी के बारे में फिर प्रश्न नहीं किया । यह जानता था, बिना जरूरत कर्नल मुखर्जी तीसरे आदमी के बारे में एक शब्द भी नहीं बोलेगे । उनकी ब्रांच का सिद्धांत था कि जासूस को उतना ही जानना चाहिये जितने से कम में उसका काम न चल सकता हो । जितना अधिक वह अपने विभाग और विभाग के सदस्यों के विषय में जानेगा, शत्रु पक्ष द्वारा पकड़ लिये जाने पर और मुंह खुलवाने के लिये बुरी तरह टार्चर किये जाने पर उससे उतना ही अधिक बकने की सम्भावना होगी । जब वह अपने विभाग के विषय में अधिक जानेगा नहीं तो शत्रु पक्ष को अधिक बतायेगा कैसे ?
कर्नल मुखर्जी ने पाइप मुंह से निकाल लिया और फिर सावधानी से एक-एक शब्द का चयन करते हुये बोले - “नैशनल रिसर्च लैबोरेट्री के अध्यक्ष डाक्टर चन्द्रशेखरन का नाम सुना है ?”
गोपाल चुप रहा ।
“केवल नाम ही सुना है ।” - सुनील बोला ।
“बाकी मैं बताता हूं ।” - कर्नल मुखर्जी क्षण भर रुके और फिर बोले - “डाक्टर चन्द्रशेखरन लगभग पचास वर्ष के एक कमजोर से वृद्ध हैं । लेकिन उसका शरीर ही कमजोर है मस्तिष्क नहीं । संसार के गिने चुने पांच छ: वैज्ञानिकों में उसका नाम लिया जाता है काफी समय से वह नैशनल रिसर्च लैबोरेट्री के अध्यक्ष हैं और उसकी अध्यक्षता में लैबोरेट्री ने न्यूक्लियर शस्त्र बनाने की दिशा में कई नये प्रयोग किये हैं । कई महीनों के अनथक प्रयत्न के बाद हाल ही में उन्होंने एक नये प्रकार के विध्वंसक शस्त्र का अविष्कार किया है जिसका नाम उसने डेस्ट्रायर रखा है ।”
“बहुत भयानक शस्त्र है क्या वह ?” - गोपाल ने पूछा ।
“कम से कम कोई खिलौना तो नहीं है । उसकी विध्वंसक शक्ति पांच हजार टन टी एन टी (ट्राई नाइट्रो टालूईन) एक विस्फोटक पदार्थ के बराबर है, एक ‘डेस्ट्रायर’ शस्त्र एक वर्ग मील के क्षेत्रफल में मानव, बनस्पति वगैरह का समूल नाश कर देने की क्षमता रखता है । आजकल के जमाने में जबकि अमेरिका और रूस जैसे देश सौ-सौ मेगाटन के भयानक बम बनाने में सफल हो गये हैं, डेस्ट्रायर की कोई भारी हैसियत नहीं है लेकिन फिर भी भारत जैसे देश के लिये यह भी एक भारी उपलब्धि है । डेस्ट्रायर के अविष्कार में चन्द्र शेखरन का कमाल यह है कि डेस्ट्रायर में एल्यूमीनियम के खोल के अतिरिक्त उसमें कोई भी चीज कीमती नहीं है । अत: इसका उत्पादन बेहद सस्ता सिद्ध हो सकता है । यह बात, भारत जैसे देश के लिये जो अपनी सुरक्षा सामग्री का अधिकतर भार विदेशों से खरीदता है, बहुत महत्वपूर्ण है ।”
“हुआ क्या है ?” - सुनील ने बेसब्री से पूछा ।
“हुआ यह है कि डाक्टर चन्द्रशेखरन ने लगभग तीन दिन पहले प्रथम टैस्ट डेस्ट्रायर तैयार किया था और इस बात की जानकारी डाक्टर चन्द्रशेखरन के अतिरिक्त सुरक्षा मन्त्रालय के गिने चुने केवल दो या तीन उच्च अधिकारियों को थी ।”
“लैबोरेट्री के कर्मचारियों और डाक्टर चन्द्रशेखरन के साथ काम करने वालों को भी तो इस बात की जानकारी होगी ?”
“कर्मचारियों को नहीं । केवल डाक्टर चन्द्रशेखरन के दो असिस्टैन्टों को ही इस तथ्य की जानकारी थी कि उन्होंने डेस्ट्रायर तैयार कर लिया है । वे भी केवल इसीलिये जानते थे कि डाक्टर चन्द्रशेखरन को अपने काम में सहायता के लिये उन लोगों की परम आवश्यकता थी ।”
“फिर ?”
“फिर पूरी-पूरी सावधानी बरती जाने के बावजूद भी न जाने यह बात कैसे लीक हो गई कि डाक्टर चन्द्रशेखरन डेस्ट्रायर बनाने में सफल हो गये हैं । इसका परिणाम यह हुआ कि परसों रात डाक्टर चन्द्रशेखरन और उनका अविष्कार दोनों उड़ा लिये गये हैं ।”
“कैसे ?” - गोपाली हैरानी से बोला ।
“एक बेहद सनसनी भरे ढंग से । हालांकि इस बात को अड़तालीस घन्टे हो चुके हैं लेकिन अभी तक यह पता नहीं लग सका है कि डाक्टर चन्द्रशेखरन को अगवा करने वाले लोग लैबोरेट्री की इमारत की रखवाली के लिये नियुक्त पहरेदारों और चपरासियों की जानकारी में आये बिना भीतर कैसे घुसे । यह बात गौर करने की है कि लैबोरेट्री प्रतिरक्षा मन्त्रालय की है और उसकी निगरानी फौज के जवान करते हैं । इमारत में कोई भी बाहरी आदमी पास के बिना प्रवेश नहीं पा सकता और पास केवल उसी आदमी को ईशु किया जाता है जिसका भीतर आना बहुत जरूरी हो । मतलब यह कि कोई नया आदमी पहरेदारों की जानकारी में आये बिना इमारत में नहीं घुस सकता लेकिन फिर भी कम से कम दो आदमी उस शाम को इमारत में अनाधिकार प्रवेश पाने में सफल हो ही गये थे ।”
“लेकिन ।” - सुनील बोला - “जबकि इस घटना को घटे अड़तालीस घन्टे हो चुके हैं । इस सिलसिले में कुछ तो तफतीश की गई होगी कि वे लोग कैसे भीतर घुस पाये ?”
“वास्तविक बात पता नहीं लग पाई है लेकिन अनुमान यह लगाया जाता है कि उस इमारत में कुछ नये टेलीफोन लगाने के लिये जो आठ आदमी आये थे उनमें वे भी थे ।”
“टेलीफोन विभाग से इस विषय में पूछताछ की गई है ?”
“हां ! उन आदमियों का इन्चार्ज कसम खाकर कहता है कि वह आठ ही आदमी इमारत के भीतर लेकर गया था और काम करवा चुकने के बाद आठों को अपने साथ बाहर लाया था ।”
“इन्चार्ज उन आठों को जानता था ?”
“नहीं ! चार आदमी नये थे ।”
“फिर तो सम्भव है उनमें से दो वही आदमी हों ।”
“लेकिन वह तो कहता है कि आठों उसके साथ बाहर निकले थे ।”
“सम्भव है कि वे दोनों फिर लौट आये हों और यह बहाना बनाकर फिर भीतर घुस गये हों कि उनका सामान भीतर रह गया है ।”
“सम्भव है ।” - कर्नल मुखर्जी ने स्वीकार किया - “इस बात की पुष्टि उस चौकीदार से हो सकती थी जो उस गेट पर तैनात था लेकिन वह शत्रुओं की गोली खाकर मर चुका है । ...बहरहाल अब इस बात का कोई महत्त्व नहीं रह गया कि वे लोग भीतर कैसे घुसे ? महत्त्व तो इस बात का है कि वे अपने मिशन में सफल हो गये और हमें चोट दे गये ।”
“हुआ क्या था ?”
“उस शाम को लेबोरेट्री के लगभग सारे स्टाफ के छुट्टी कर आने के बाद भी डाक्टर चन्द्रशेखरन अपने दोनों सहायकों के साथ लेबोरेट्री में डेस्ट्रायर की फाइनल टेस्टिंग करते रहे थे । साढे पांच बजे से थोड़ी देर पहले दो आदमी हाथों में साइलेंसर लगे रिवाल्वर लिये उस लेबोरेट्री में घुसे जहां डाक्टर चन्द्रशेखरन अपने सहायकों के साथ मौजूद थे । उन्होंने आते ही दोनों सहायकों को गोली मार दी और फिर डाक्टर चन्द्रशेखरन को दबोच लिया । बाद में तफ्तीश के दौरान में वहां एक इन्जेक्शन की खाली शीशी मिली थी । टैस्ट करने पर पता लगा है कि उस शीशी में ट्रुथ सीरम नाम की एक दवा थी । दवा की विशेषता यह होती है कि मानव शरीर में पहुंचते ही वह मनुष्य को मानसिक व शारीरिक रूप से इतना शिथिल कर देती है कि आदमी की विरोध करने की क्षमता समाप्त हो जाती है । वह एक विचित्र प्रकार के सम्मोहन का शिकार हो जाता है और यन्त्र चलित सा, जैसा उसे करने के लिये कहा जाता है, वह कर देता है । जिन लोगों ने इस घटना के दौरान में डाक्टर चन्द्रशेखरन को देखा था, उनके कथन से इस बात की पुष्टि होती है कि डाक्टर चन्द्रशेखरन को वाकई ट्रुथ सीरम का इन्जेक्शन दिया गया था और वे उसी के प्रभाव के अन्तर्गत काम कर रहे थे । उस इन्जेक्शन के चमत्कार का तुम यहां से अनुमान लगा सकते हो कि उन्होंने अपने आदमियों को बुलाकर डेस्ट्रायर को अपनी कार में रखवाया ।”
“कमाल है ।” - गोपाल मन्त्र मुग्ध स्वर से बोला ।
“कमाल तो है ही । बाद में डाक्टर चन्द्रशेखरन अपनी कार में जा बैठे । उन दोनों आदमियों में से एक तो डिकी में घुस गया और दूसरा डाक्टर चन्द्रशेखरन के पैरों के पास फर्श पर लेट गया ताकि डाक्टर चन्द्रशेखरन अगर कोई उल्टी सीधी हरकत करें तो उन्हें चैक किया जा सके । डाक्टर चन्द्रशेखरन गाड़ी ड्राइव करते हुये मुख्य द्वार से निकल गये लेकिन एकाएक चौकीदार हरीराम को डिकी में छुपे आदमी की झलक दिखाई दे गई । डिकी का ढक्कन लगभग दो इन्च खुला हुआ था । हरीराम ने गाड़ी रोकने के लिये डाक्टर चन्द्रशेखरन को आवाज दी । डाक्टर चन्द्रशेखरन का मस्तिष्क तो ऐसी निर्बल स्थिति में था कि कोई भी उन्हें कोई आज्ञा देता तो वे फौरन उसका पालन करते थे । उन्होंने फौरन गाड़ी रोक दी । हरीराम और उसके साथ उस समय गेट पर खड़े उसके चार-पांच साथी गाड़ी की ओर बढे । स्थिति बिगड़ती देखकर वे दोनों आदमी गाड़ी से बाहर निकल आये । उन्होंने सारे चौकीदारों को गोली से उड़ा दिया और वहां से भाग निकले ।”
कर्नल मुखर्जी चुप हो गये । वे पाइप के गहरे कश लेने लगे लेकिन पाइप फिर बुझ चुका था । उन्होंने वितृष्णा के भाव से पाइप पर एक दृष्टि डाली और फिर उसका जला तम्बाकू एश ट्रे में पलट दिया ।
सुनील और गोपाल चुपचाप कर्नल मुखर्जी के बोलने की प्रतीक्षा करते रहे । वे दोनों ही अनुभव कर रहे थे कि घटना के उस पहलू में भी अभी कुछ कहना बाकी रह गया था ।
“इसे हमारा सौभाग्य समझ लो या हरीराम की किस्मत ।” - मुखर्जी बोले - “कि हरीराम को केवल बांह में गोली लगी । उस समय उसने अपूर्व कार्य तत्परता का परिचय दिया । कार निकल जाने तक वह चुपचाप जमीन पर पड़ा रहा और फिर उसने एक मोटर साइकिल पर उन लोगों का तारकपुर की पहाड़ियों तक पीछा किया । वहां उनके साथ चार आदमी और आ मिले और वे लोग डेस्ट्रायर और डाक्टर चन्द्रशेखरन को लेकर पहाड़ी रास्ते पर चढने लगे । हरीराम का बयान है कि उनमें से एक आदमी विदेशी था ।”
“उसने देखा उसे ?”
“नहीं ! हरीराम ने उसके बोलने के ढंग से यही अनुमान लगाया था ।”
“फिर ?”
“फिर हरीराम के कथनानुसार एक करिश्मा हो गया ।”
“क्या ?”
“केवल दो मिनट के लिये उसकी दृष्टि उन लोगों पर से हटी और वे गायब हो गये ।”
“गायब हो गये ?” - सुनील हैरानी से बोला - “कहां ?”
“पता नहीं । लेकिन यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि उस पहाड़ी के एक स्थान पर वे लोग दो मिनट पहले थे ओर दो मिनट बाद वहां से गायब हो गये ।”
“सम्भव है वहां कोई गुप्त रास्ता या कोई सुरंग हो ।”
“बहुत खोजने के बावजूद भी वहां ऐसी कोई चीज नहीं मिल पाई है ।”
“फिर तो वह वाकई करिश्मा है ।”
“मैं भी इसे करिश्मा मानता अगर उस स्थान से केवल तीन सौ मीटर दूर ठाकुर विक्रमसिंह की हवेली न होती ।” - मुखर्जी गंभीर स्वर से बोले ।
“ठाकुर विक्रमसिंह !” - सुनील एकदम चौंक पड़ा - “यह ठाकुर विक्रमसिंह वही है न जो पिछले सैशन में लोकसभा का सदस्य था और जिसने अपनी सदस्यता के दौरान में पुलिस के अपने विरूद्ध एक ऐक्शन में एक बार इतना हंगामा मचाया था कि इन्स्पेक्टर जनरल आफ पुलिस को लिखित रूप से उससे माफी मांगनी पड़ी थी और स्वयं गृह मन्त्री ने उस घटना पर खेद प्रकट किया था ।”
“एकदम वही ।” - कर्नल मुखर्जी प्रसन्नतापूर्ण स्वर से बोले - “मैं तुम्हारी याददाश्त की दाद देता हूं ।”
“उन दिनों उस केस के विषय में हमने ‘ब्लास्ट’ में बहुत कुछ छापा था ।”
“गोपाल !” - मुखर्जी गोपाल की ओर आकर्षित हुये - “तुम ठाकुर विक्रमसिंह के विषय में कुछ जानते हो ?”
“नहीं !” - गोपाल सरल स्वर से बोला ।
“मैं बताता हूं ।” - कर्नल मुखर्जी बोले - “ठाकुर विक्रमसिंह वह आदमी है रियासतों के जमाने में जिसके नाम मात्र से लोगों के प्राण तक कांप जाते थे । रियासतें तो समाप्त हो गई हैं लेकिन ठाकुर के स्वभाव अभी तक नहीं बदला है । रस्सी जल गई है, पर बल नहीं गये है । अपनी किले जैसी हवेली में अकेला रहता है और साधारण लोगों से मिलना अपना भारी अपमान समझता है । पिछले जनरल इलेक्शन में वह लोकसभा का सदस्य चुना गया था लेकिन आगामी बार वह इसलिये इलैक्शन में खड़ा नहीं हुआ क्योंकि वह कहता था कि लोकसभा में तो भंगी और चमार सभी पहुंच जाते हैं । ऐस निम्न वर्ग के लोगों के साथ बैठने से तो उसका दम घुटने लगता है । उसके दो लड़के इंगलैंड में रहते हैं और उनके अतिरिक्त उसका कोई होता-सोता नहीं है । हवेली में वह वर्षों से अपने एक जापानी नौकर के साथ अकेला रह रहा है ।”
“जापानी नौकर ?” - गोपाल ने पूछा ।
“हां । उसका नाम होशिता है वह स्वयं को जापानी कहता है लेकिन आम धारणा यह है कि वह चीनी है । वह वर्षों से भारत में रह रहा है, इसलिये साफ हिन्दी बोलता है । ठाकुर के साथ वह पिछले आठ वर्षों से है । उससे पहले वह कलकत्ते रहता था ।”
“अभी सुनील क्या बात कह रहा था ?” - गोपाल ने पूछा ।
“लगभग दो साल पहले की बात है । ठाकुर विक्रमसिंह पर विदेशी एजेन्ट होने का सन्देह प्रकट किया था ।”
“किस आधार पर ?”
“किसी विश्वस्त सूत्रों से पता लगा था कि भारत में विदेशी जासूसों का जाल फैला हुआ है । वे लोग अपनी रिपोर्ट ठाकुर विक्रमसिंह को देते हैं और ठाकुर हवेली में छुपे एक गुप्त ट्रांसमीटर पर वे रिपोर्ट बाहर कहीं ट्रांसफर कर देता है । यही नहीं बल्कि यह भी पता लगा था कि ठाकुर विदेशी जासूसों को अपनी हवेली में शरण देता है ।”
“कैसे ?”
“संयोगवश ही एक वायरलैस सन्देश सरकारी वायरलैस स्टेशन की पकड़ में आ गया था । तफ्तीश से पता लगा था कि वह ठाकुर की हवेली या उसके आस-पास सौ मीटर के व्यास में कहीं से प्रसारित किया गया था । पुलिस के द्वारा और सी. आई. बी. द्वारा ठाकुर पर सन्देह किये जाने के कई कारण थे ।”
“क्या ?”
“पहले तो ठाकुर का रहस्यपूर्ण रहन सहन । वह कभी किसी को हवेली में घुसने नहीं देता और कभी खुद किसी से मिलने नहीं जाता । उसने हवेली की चारदीवारी के भीतर लोहे के सीखचों की एक और चारदीवारी बनाई हुई है, जिसमें रात को बिजली का करेन्ट दौड़ता है । वहां बिजली पैदा करने के लिये जनरेटर भी उसने भीतर ही लगाया हुआ है । ताकि अगर कोई अनाधिकार प्रवेश करने का प्रयत्न करे तो बिजली का करेन्ट खाकर मारा जाये ।”
“इस सिलसिले में उस पर कोई भी रोक नहीं लगाई जा सकती ?”
“नहीं । हवेली उसकी प्राइवेट प्रापर्टी है और वह एक स्वतन्त्र देश का नागरिक होने के नाते अपनी प्रापर्टी की चारदीवारी के भीतर कोई भी ऐसा कार्य करने का पूरा हकदार है जो गैरकानूनी नहीं हो । लोहे की सींखचों में बिजली का करेन्ट दौड़ाना कोई गैरकानूनी काम नहीं है जबकि बाहर उसने लिखकर लगाया हुआ है कि भीतर आना मना है । अनाधिकार प्रवेश करने वाले को बिजली का शाक लग सकता है ।”
“इतनी सावधानी बरतने का उसने कोई कारण नहीं बतलाया ?”
“वह कहता है कि मैं इस उजाड़ स्थान में बनी हवेली में अकेला रहता हूं । मैं नहीं चाहता कोई मुझे लूट ले । खैर तुम आगे सुनो । ठाकुर पर सन्देह करने का दूसरा कारण उसका नौकर होशिता है जो स्वयं को जापानी कहता है लेकिन लोगों का ख्याल है कि वह चीनी है । होशिता कलकत्ता में अपनी कथित पत्नी के नाम हर महीने पांच सौ रुपये का मनीआर्डर भेजता है जिसका अर्थ यह है कि ठाकुर उसे बहुत मोटा वेतन दे रहा है । भला एक नौकर को कोई इतना रुपया क्यों देगा ?”
“होशिता के विषय में कभी जांच पड़ताल नहीं करवाई गई ?”
“होशिता के पिछले जीवन को बहुत ठोका बजाया गया लेकिन कोई ठोस बात हाथ नहीं आई है । तफतीश करने पर लगा कि नौ-दस साल पहले कलकत्ते में होशिता की सूरत से मिलता जुलता एक चीनी और उसका परिवार रहता था । वह चीनी रेडियो इन्जीनियर था और इलैक्ट्रोनिक्स का मास्टर था मकान में आग लग जाने के कारण वह और उसका सारा परिवार मर गया । सम्भव है वह चीनी किसी प्रकार बच गया हो और ठाकुर विक्रम सिंह के साथ उसकी हवेली में रह रहा हो ।”
“लेकिन होशिता अगर चीनी है तो भी ठाकुर इतनी मोटी तनख्वाह पर उसे नौकर क्यों रखेगा ?”
“उस चीनी के विषय में किसी ने बताया था कि वह केवल एक घन्टे के समय में रेडियो के कल पुर्जे निकालकर उनकी सहायता से वायरलैस ट्रान्समीटर बना लेने की क्षमता रखता था ।”
“फिर तो सम्भव है कि होशिता ही...”
“बिल्कुल सम्भव है । तुम किस्सा सुनो । इन बातों और ऐसी ही अन्य कई बातों के आधार पर लगभग दो साल पहले पुलिस ने ठाकुर पर विदेशी एजेन्ट होने का सन्देह प्रकट किया था और हवेली की तलाशी के लिये वारन्ट भी इशु करवा दिये थे । ठाकुर बेहद लाल-पीला हुआ था और उसने उस तलाशी के विरोध में बहुत हाथ-पांव मारे थे लेकिन सन्देह के कारण बड़े सबल थे । इसलिये कुछ हो नहीं पाया । ठाकुर को हवेली की तलाशी की इजाजत देनी ही पड़ी ।
“कुछ मिला ।”
“तीन दिनों में पुलिस के सिपाहियों ने हवेली का कोना-2 छान मारा, लेकिन वे एक भी ऐसी आपत्तिजनक चीज तलाश नहीं कर पाये । पुलिस को मुंह की खानी पड़ी, ठाकुर की बन आई । उसने इस बात को लेकर लोकसभा में वह बवाल मचाया कि जैसा अभी सुनील ने कहा है, इन्सपेक्टर जनरल आफ पुलिस को मुंह की खानी पड़ी और स्वयं गृह मन्त्री ने खेद प्रकट किया । उस समय मैं सी आई बी में डिप्टी डायरेक्टर था और स्पेशल इन्टेलीजेन्स ब्रांच की स्थापना तक नहीं हुई थी ।”
“कर्नल मुखर्जी चुप हो गए ।
“ठाकुर के विरुद्ध वह पुलिस और सी आई बी का संयुक्त मोर्चा था ।” - कुछ क्षण बाद फिर बोले - “और दोनों को ही मुंह की खानी पड़ी । प्रत्यक्ष में तो हम लोगों ने अपनी गलती मान ली लेकिन हमारे दिल में से सन्देह का बीज निकला नहीं । हमने ठाकुर को चैक करना नहीं छोड़ा । सरकारी वायरलैस स्टेशन उसके वायरलैस मेसेज पकड़ने का प्रयत्न करते रहे लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा । लेकिन हम लोगों ने प्रयत्न करना नहीं छोडा ।”
“फिर ?”
“फिर लगभग एक साल बाद हमारे विदेशी एजेन्ट हमें सूचना दी कि एशिया के एक बहुत विशाल स्पाई रिंग का चीफ आर्गेनाइजर काल प्लूमर पाकिस्तान के रास्ते से भारत प्रवेश करने वाला है और वह भारत आकर ठाकुर विक्रमसिंह से जरूर सम्पर्क स्थापित करेगा । हम सतर्क हो गये । कार्ल प्लूमर कोई ऐसी हस्ती नहीं थी जो आसानी से छुप सके । हमारा विभाग उसके बारे में इतनमा कुछ जानता था । हमने कभी सोचा भी नहीं था कि वह कभी भारत में कदम रखने का हौसला भी कर पायेगा । कार्ल प्लूमर की राष्ट्रीयता का किसी को ज्ञान नहीं है । नाम से तो वह जर्मन और इंगलिश रक्त के मिश्रण से उत्पन्न दोगली औलाद मालूम होता है । अपने शारीरिक विकारों के कारण वह कहीं भी छुप नहीं पाता है उसके चेहरे पर घनी दाढी मूंछ है और वह सिर से गंजा है । उसकी पीठ बड़ी कुबड़ी है और एक टांग दूसरी टांग से थोड़ी छोटी है जिसके कारण वह छड़ी के सहारे लंगड़ाकर चलता है ।”
“वह भारत आया ?”
“हमें इस सूचना प्राप्त होने के एक सप्ताह बाद ही वह एक टूरिस्ट की हैसियत से कराची से भारत आया । उसके पास पासपोर्ट और वीसा वगैरह सब कुछ था । हमने उसके भारत में कदम रखते ही उसकी निगरानी करनी आरम्भ कर दी । कुछ दिन तो वह सत्य ही एक टूरिस्ट की तरह भारत के विभिन्न नगरों में घूमता रहा और फिर राजनगर में आ गया । राजनगर से वह एक दिन तारकपुर गया । हमारे आदमियों ने बड़ी सावधानी से उसका पीछा किया । वह तारकपुर की पहाड़ियों से घूमता फिरता पलक झपकते ही हमारे आदमियों की आंखों से यूं लोप हो गया जैसे गधे के सिर से सींग । आस-पास का सारा इलाका छान मारा गया लेकिन उसकी हवा भी हमें नहीं लगी ।”
“लेकिन यह हुआ कैसे ?” - गोपाल हैरानी से बोला ।
“बिल्कुल वैसे ही जैसे डाक्टर शेखरन और उसका अविष्कार डेस्ट्रायर और वाकी लोग गायब हो गये थे ।”
“फिर तो वहां जरूर गुप्त सुरंगें होनी चाहिये ।”
“लेकिन तुम्हारे ख्याल से वह सुरंहें जाती कहां होंगी ।”
“अगर जैसा कि आपने कहा है कि ठाकुर की हवेली के सिवाय आस पास कोई इमारत नहीं है तो सुरंगें वहीं जाकर समाप्त होती होंगी ।”
“बिल्कुल ।” - कर्नल मुखर्जी ने समर्थन किया - “हमारा भी यही ख्याल था । दरअसल वह हवेली किसी किले से कम नहीं है । अगर वह ठाकुर विक्रम सिंह की निजी सम्पत्ति न मान ली गई होती तो आज उस पर भी पुरातत्व विभाग का नीला बोर्ड लगा होता और लोग उसे दूर-दूर से देखने आते । पुराने जमाने में हवेली से दूर कहीं खुलने वाली इन सुरंगों का बड़ा महत्व होता था । अगर हवेली शत्रुओं द्वारा घेर ली जाती थी तो ये सुरंगें हवेली में रसद पहुंचाने या राज परिवार के चुपचाप निकल भागने के काम आया करती थीं ।”
“आपने उन सुरंगों के विषय से ठाकुर से बात नहीं की ?”
“उसी रात मैंने ठाकुर से फोन पर सम्बन्ध स्थापित किया । मैंने ठाकुर से स्पष्ट शब्दों में पूछा कि क्या उसे उसकी हवेली से शुरू होने वाली किन्हीं ऐसी सुरंगों की जानकारी है जो तारकपुर की पहाड़ियों में जाकर खुलती हो । ठाकुर का उत्तर बड़ा अप्रत्याशित था । वह बोला कि ऐसी बीसों सुरगें हैं और पांच छः से अधिक की जानकारी खुद उसे भी नहीं है । जितनी सुरंगों की जानकारी उसे है उन्हें उसने सीमेंट से बन्द करवा दिया है । मुझे उससे ऐसे स्पष्ट उत्तर की आशा नहीं थी मैंने तो सोचा था कि वह झूठ बोलेगा और पुलिस को हवेली को टटोलने का दुबारा अवसर मिल जायेगा । अब स्थिति यह थी कि मुझे मालूम था कि कार्ल प्लूमर हवेली के भीतर ठाकुर के पास था लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते थे । अगर हम ठाकुर का कार्ल प्लूमर से सम्बन्ध सिद्ध कर देते तो ठाकुर को धर लेना बड़ा आसान था । मैं इंस्पेक्टर जनरल आफ पुलिस से मिला लेकिन उसका फिर हवेली पर हल्ला बोल देने का साहस नहीं हुआ वह इस अनुमान मात्र पर काम करने को तैयार नहीं था । कार्ल प्लूमर किसी गुप्त सुरंग में घुसकर गायब हो गया है तो जरूर हवेली में ही होगा । वह कहता था कि हवेली में घुसने पर अगर कार्ल प्लूमर नहीं मिला या हमारे पहुंचने तक वहां से निकल भागा और पुलिस यह सिद्ध न कर सकी कि वह वहां मौजूद था तो इस बार ठाकुर उसकी नौकरी छुटवाकर ही मानेगा । अन्त में हमने यह फैसला किया कि तारकपुर की पहाड़ियों में पुलिस के ढेर सारे आदमी फैला दिये जायें ताकि कार्ल प्लूमर उस रास्ते से भागे तो पता लगा जाये और फिर हवेली में एक चोर घुमाया जाये ।”
“चोर ?” - गोपाल हैरानी से बोला ।
“हां ! हमने सी आई बी के एक आदमी को चोर की तरह हवेली में घुस जाने के लिये कहा । उसे यह देखना था कि भीतर कार्ल प्लूमर है या नहीं । अगर वह अपने कार्य में सफल हो जाता तो उसके अनुसार पुलिस अपनी कार्यवाही करती और अगर वह पकड़ा जाता तो मामूली चोर मानकर ही उसका चालान कर देती ।”
“लेकिन वह लोहे के सींखचे कैसे पार कर सकता था जिसमें रात को करेन्ट प्रवाहित कर दिया जाता था ?”
“वह आदमी पोल वाल्ट का रिकार्ड होल्डर था । सींखचे केवल बारह फुट ऊंचे थे वह बड़ी आसानी से एक बांस के सहारे बिना उन्हें छुए पार कर गया । लेकिन फिर भी वह सफल नहीं हो सका ।”
“क्या हुआ ?”
“वह पकड़ा गया । ठाकुर ने उसे गोली से उड़ा दिया और फिर पुलिस को फोन कर दिया कि उसकी हवेली मे कोई चोर घुसा था और आत्मरक्षा के लिये उसने उसे गोली मार दी थी । पुलिस जानती थी कि ठाकुर ने जानबूझ कर उसे गोली मारी है लेकिन वह कुछ कर नहीं सकती थी । पुलिस के आदमी हवेली में गये । ठाकुर का बयान ले लिया गया । लाश वहां से उठवा ली गई और किस्सा खत्म । हम बैठे बिठाये उस उल्लू के पट्ठे के हाथों अपने एक आदमी हलाक करवा बैठे ।”
कर्नल मुखर्जी का गला भर आया ।
“कार्ल प्लूमर का क्या हुआ ?”
“अगले दिन सुबह वह अपने होटल में पाया गया । दोपहर तक वह भारत से कूच कर गया । किस्सा खत्म । हम पिटा-सा मुंह लेकर रह गये ।”
कर्नल मुखर्जी कई क्षण चुप रहे ।
सुनील और गोपाल सम्मानपूर्ण ढंग से बैठे कर्नल मुखर्जी के फिर बोलने की प्रतीक्षा करते रहे ।
“आज एक साल बाद फिर वही पहले जैसी स्थिति पैदा हो गई है । हरीराम के बयान से सहज ही यह नतीजा निकाला जा सकता है कि डाक्टर चन्द्रशेखरन और डेस्ट्रायर को किसी सुरंग के रास्ते से देशद्रोही ठाकुर विक्रमसिंह की हवेली में ले जाया गया है । लेकिन इस बार हम पहले की तरह ठाकुर के हाथों पिटेंगे नहीं । क्योंकि यह एक बेहद गंभीर मामला है । इसलिये इन्सपैक्टर जनरल ऑफ पुलिस को फिर हवेली के वारन्ट ईशू करवाने के लिये तैयार तो किया जा सकता है, लेकिन हमारा पिछला तजुर्बा बताता है कि जब तक पुलिस ठाकुर को वारन्ट सर्व करेगी तब तक डाक्टर चन्द्रशेखरन और उसके अविष्कार को हवेली निगल जायेगी और पुलिस सिर पटक-पटक कर मर जायेगी, उसे चन्द्रशेखरन और डेस्ट्रायर की हवा भी नहीं मिलेगी वहां ।”
“फिर आप चाहते क्या हैं ?”
“मैं चाहता हूं ?” - कर्नल मुखर्जी एकाएक उत्तेजित हो उठे - “मैं चाहता हूं ठाकुर किसी प्रकार बैठा-बैठा गायब हो जाये, वह मर जाये, वह हवेली से बाहर निकले और किसी दुर्घटना का शिकार हो जाये । वह किसी तरह हमारे रास्ते से हट जाये, उसकी दखलअन्दाजी बन्द हो जाये तो हम हवेली को जड़ से उखाड़ कर रख देंगे ।”
“लेकिन यह कैसे हो सकता है ?” - सुनील उलझनपूर्ण स्वर से बोला ।
“कैसे भी करो ।” - कर्नल मुखर्जी मेज पर मुक्का मार कर बोले - “यह मेरे विभाग की परीक्षा की घड़ी है । मेरे विभाग की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है इस बार । तुम लोगों को इस बार कुछ करना ही पड़ेगा । मैं इस बार असफलता का मुंह नहीं देखना चाहता । मैं चाहता हूं ठाकुर विक्रमसिंह किसी दुर्घटना का शिकार हो जाये और हमारा रास्ता साफ हो जाये ? लोग कारों और ट्रकों की चपेट में आकर मर ही जाते है, इतनी हैरानी की कौनसी बात है ।”
“लेकिन आप तो कहते हैं कि ठाकुर हवेली से बाहर नहीं निकलता ?”
“यह सच है, लेकिन उसे हवेली निकलना पड़ेगा ।”
सुनील चुप रहा ।
“यह काम तुम्हें करना है, सुनील !” - मुखर्जी बोले - “और तुम्हें दो से अधिक आदमियों की सहायता भी नहीं मिलेगी । क्योंकि मैं तुम्हारे अतिरिक्त विभाग के केवल दो ही आदमियों से सम्पर्क स्थापित कर पाया हूं ।”
सुनील कई क्षण चुप रहा ।
एक लम्बी खामोशी से बोला - “ठाकुर के पास कार है ?”
“एक नहीं दो हैं ।”
“आपने हवेली को देखा है ?”
“देखा है ।”
“आप मुझे हवेली की कुछ पोजीशन समझा सकते हैं ? जैसे ठाकुर का कमरा कौन सा है ? इतनी बड़ी हवेली के वह सारे कमरे तो इस्तेमाल नहीं करता होगा ? जनरेटर कहां लगा हुआ है ? गैरज कहां है ?”
“सब हो जायेगा ।”
“होशिता को भी रास्ते से हटाना होगा ।”
“होशिता रोज शाम को हवेली से दो मील दूर स्थित मार्केट का एक चक्कर लगाता है । कल वह अपने निर्धारित समय पर वापिस नहीं लौट पायेगा । वहां उसको कुछ हो जाये इसका इन्तजाम मैं कर दूंगा और कुछ ?”
“बस ।”
“तुम्हारी स्कीम क्या है ?”
“बताऊंगा पहले मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दीजिये ।” - सुनील बोला ।
“पूछो ।”
“पहला तो यह कि आप यह कैसे कह सकते हैं कि डाक्टर चन्द्रशेखरन को भगाने का काम विदेशी एजेन्टों ने किया है ।”
“क्योंकि उसके सिवाय डाक्टर चन्द्रशेखर का अविष्कार और किसी के लिये मायने नहीं रखता । दूसरी बात यह है कि हमारे कान में इस बात की भनक पहले ही पड़ चुकी थी कि कार्ल प्लूमर के एजेन्ट डाक्टर चन्द्रशेखरन का अविष्कार हथियाने का प्रयत्न करेंगे । लेकिन हमें यह आशा नहीं थी कि आक्रमण इतनी जल्दी हो जायेगा ।”
“दूसरी बात यह कि आप यह दावा कैसे कर सकते हैं कि डाक्टर चन्द्रशेखरन अभी भी हवेली में ही होंगे जबकि इस घटना को घंटे अड़तालीस घंटे गुजर चुके हैं ?”
“केवल अनुमान !” - मुखर्जी कमजोर स्वर से बोले - “या आशा कह लो । वैसे तारकपुर की पहाड़ियों के चप्पे-चप्पे में पुलिस के सिपाही फैले हुये हैं । अगर वे लोग सुरंग के रास्ते हवेली से बाहर निकले होते तो जरूर पुलिस की पकड़ में आ जाते ।”
“कोई आवश्यक तो नहीं है जबकि आप कहते हैं कि उस इलाके में हवेली से सम्बन्धित सुरंगों का जाल बिछा हुआ है ।”
“आवश्यक तो नहीं है ।” - कर्नल मुखर्जी स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिलाता हुये बोले - “लेकिन जबकि काम करने के लिये और कोई लाइन नहीं है, इस लाइन पर काम करने में क्या हर्ज है । ठाकुर का मर जाना तो हमारे लिये हर हाल में लाभदायक ही है ।”
“आखिरी बात और बताइये ।”
“क्या ?”
“कहीं डाक्टर चन्द्रशेखरन ही तो धोखा नहीं दे रहे ।”
“क्या मतलब ?”
“डेस्ट्रायर के अविष्कार में सफल हो जाने के बाद शायद शत्रुओं ने उन्हें कोई बहुत बड़ा लालच दिया हो और वे जानबूझकर उनके साथ भाग खड़े हुये हों ।”
“डाक्टर चन्द्रशेखरन ऐसे आदमी नहीं हैं । वे देश पर मर मिटने वाले इन्सान हैं । वह कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जो देश के हितों के प्रतिकूल हो और फिर तुम्हारी बात युक्तिसंगत भी तो नहीं है ।”
“क्यों ?”
“मान लो डाक्टर चन्द्रशेखरन की नीयत खराब ही थी तो उन्हें इतना हंगामा करने या करवाने की क्या जरूरत थी । डेस्ट्रायर को लोड करने का तरीका, उसके ब्लूप्रिन्ट वगैरह सब डाक्टर चन्द्रशेखरन के पास ही रहते थे । जो आदमी एक बार एक चीज बना सकता है, क्या वह उसे दुबारा नहीं बना सकता । अगर उन्हें कोई ऐसा देशद्रोहपूर्ण कार्य करना होता तो वे चुपचाप शत्रुओं के साथ गायब हो जाते । डेस्ट्रायर को भी साथ ले जाने का रिस्क लेने की क्या आवश्यकता थी ?”
“सम्भव है वे न चाहते हों कि हम लोग उस शस्त्र की सहायता से दुबारा वैसा शस्त्र बनाने का प्रयत्न करें ।”
कर्नल मुखर्जी चुप हो गये । प्रत्यक्ष या सन्देह का बीजारोपन उसके मस्तिष्क में भी हो चुका था ।
“गोपाल !” - सुनील गोपाल की ओर मुड़ा - “तुम ट्रक चलाना जानते हो ?”
“जानता हूं ।” - गोपाल बोला ।
“तुम्हारी स्कीम क्या है ?” - कर्नल मुखर्जी ने पूछा ।
“मेरी स्कीम यह है, सर !” - सुनील तनिक आगे झुककर बोला - “कि...”
***
अंधकार छाया हुआ था ।
ट्रक पहाड़ी सड़क के ब्लाइंड कार्नर पर आकर रुक गया ।
गोपाल ड्राइविंग सीट की बगल का द्वार खोलकर ट्रक से बाहर कूद पड़ा ।
सुनील ने ट्रक के पीछे मोटर साइकिल रोक दी और गोपाल के पास आ गया ।
सड़क के एक ओर दीवार की तरह पहाड़ खड़ा था और दूसरी ओर एक गहरी खाई थी ।
सुनील ने सड़क के किनारे के पास जाकर नीचे खाई में झांका । उसके शरीर में सिहरन सी दौड़ गई और वह जल्दी ही वहां से हट गया ।
“क्या हुआ ?” - गोपाल ने पूछा ।
“बहुत गहरी खाई है ।”
“हां !” - गोपाल ने अनुमोदन किया - “कोई इसमें गिर पड़े तो परखचे उड़ जायें उसके । शरीर की एक हड्डी भी सलामत न बचे ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुम्हें भरोसा है कि तुम उसे यहां तक जाने में सफल हो जाओगे ?” - गोपाल ने पूछा ।
“मैं क्यों लाऊंगा, प्यारे ? वह खुद आएगा । तुम ट्रक को थोड़ा पीछे हटा लो ताकि मोड़ पर आने से पहले ट्रक उसे दिखाई न दे । मेरा सिगनल मिलते ही ट्रक एकदम आगे बढा ले जाना ।”
“ओके ।”
“सावधान रहना । मुझे यहां लौटकर आने में आधा घन्टा लग जायेगा । इस समय साढ़े आठ बजे हैं ।”
“अच्छा ।”
सुनील वापिस मोटर साईकिल के पास आ पहुंचा । उसने मोटर साइकिल स्टार्ट की और उसे सड़क पर डाल दिया ।
वह ठाकुर विक्रमसिंह की हवेली की ओर बढ रहा था ।
हवेली से कुछ दूर पहुंच कर उसने मोटर साइकिल रोक दी और इन्जन बन्द कर दिया ।
सामने अन्धकार में ठाकुर की हवेली एक भूतों का खंडहर सी लग रही थी । हवेली का अधिकांश भाग वक्त की मार खा-खा कर गिर चुका था लेकिन फिर भी सामने का काफी बड़ा भाग सलामत था ।
सुनील ने मोटर साईकिल को ठेलकर झाड़ियों में छुपा दिया और फिर पैदल हवेली की ओर बढा ।
हवेली की चारदीवारी के द्वार के सामने पहुंच कर वह क्षण भर के लिये रुक गया । उसने अपने कोट की दाईं जेब को थपथपाया जिसमें कर्नल मुखर्जी का दिया हुआ 38 कैलिबर का दस फायर करने वाला जर्मन मोजर रिवाल्वर रखा था । मुखर्जी के कथनानुसार अपनी प्रकार के हथियारों में वह रिवाल्वर सबसे अधिक खतरनाक था । उसकी गोली की मार शरीर में इतना बड़ा झरोखा बना देती थी कि देखकर दहशत होने लगती थी । उस रिवाल्वर में केवल एक ही खराबी थी कि कभी-कभी गोली चलने के बाद गोली का खोल निकल कर इतनी जोर से मुंह से आकर टकराता था कि एक बार तो आंखों के सामने सितारे नाच जाते थे । खोल से चोट तो लगती थी लेकिन साथ ही इस बात की सन्तुष्टि भी होती थी कि जिसे गोली लगी होगी उसक तो इससे एक लाख गुना बुरा हाल हुआ होगा ।
सुनील कुछ क्षण वहीं चारदीवारी के द्वार के पास खड़ा रहा । फिर वह बांई ओर मुड़ा और चारदीवारी के साथ-साथ झाड़ियों में से होकर गुजरती एक पगडंडी पर चलने लगा ।
कुछ दूर जाकर वह रुक गया । उस स्थान पर चारदीवारी की ऊंचाई बाकी स्थानों के मुकाबले में कुछ कम थी ।
सुनील झाड़ियों में घुस गया ।
थोड़ी ही देर की तलाश के बाद उसे अपनी इच्छित वस्तु मिल गई । झाड़ियों में छुपी हुई जमीन पर एक लगभग पन्द्रह फुट लम्बी सीढी पड़ी थी । सुनील जानता था कर्नल मुखर्जी का इन्तजाम कभी कच्चा नहीं होता था उसे पहले ही बता दिया गया था कि उसे सीढी कहां मिलेगी ।
सुनील ने सीढी दीवार के साथ लगाई और ऊपर चढने लगा ।
दीवार पर पहुंचकर उसने सीढी ऊपर खींच ली और उसे चारदीवारी के भीतर की ओर लगा दिया ।
अगले ही क्षण वह हवेली के कम्पाउन्ड में था ।
सामने ही लोहे के सींखचों का जंगला था जिसमें मुखर्जी के कथनानुसार को बिजली का करेन्ट प्रवाहित होता था ।
सुनील ने अपनी जेब से एक सिक्का निकाला और उसे बंगले के सींखचों पर दे मारा ।
जहां सिक्का टकराया वहा से चिंगारियां सी फूट निकली ।
करेन्ट था ।
सुनील ने वही सीढी उठा कर जंगले के साथ टिका दी । सीढी जंगले के साथ काफी तिरछी लगी हुई थी लेकिन फिर भी वह जंगले से कम से कम दो फुट ऊंची थी ।
वह सावधानी से सीढी पर चढने लगा ।
जंगले के समीप पहुंच कर उसने सावधानी से दूसरी ओर छलांग लगा दी । उसके पैरों को एक जोर का झटका लगा और उसका सारा शरीर झनझना गया ।
वह सावधानी से उठ खड़ा हुआ । उसने एक सतर्क दृष्टि हवेली की ओर डाली लेकिन वहां सन्नाटा छाया हुआ था । केवल निचली मन्जिल के एक कमरे की रंग-बिरगे कांच से जड़ी खिड़कियों में से रंगीन प्रकाश बाहर फूट रहा था । मुखर्जी ने उसे बताया था, उस कमरे में ठाकुर रहता था ।
सुनील ने घास पर से पेड़ की टूटी हुई एक मोटी सी टहनी उठाई और उसने उसे जंगले के सीखचों में से गुजार कर सीढी के एक डंडे के साथ फंसाया और फिर पूरी शक्ति से टहनी को धक्का दिया ।
सीढी हल्की सी धप्प की आवाज के साथ उलट कर दूसरी ओर घास में गिर गई ।
वह कुछ क्षण वहीं खड़ा आहट लेता रहा और फिर हवेली की उस साइड की ओर बढा जहां गैरेज स्थित था ।
गैरेज का फाटक खुला था ।
गैरेज में आगे पीछे दो गाड़ियां खड़ी थीं । पीछे स्टेशन वैगन थी और आगे एक नई एम्बैसेडर खड़ी थी ।
वह कई क्षण एम्बसेडर का निरीक्षण करता रहा और फिर गैरेज से बाहर निकल आया ।
उसने द्वार पहले की तरह भिड़ा दिये ।
वह हवेली के पिछवाड़े में पहुंच गया ।
पिछवाड़े में एक द्वार था जिस पर बाहर की ओर एक ताला लटक रहा था ।
उसने अपनी जेब से रिवाल्वर निकाला, उसकी नाल पर साइलेंसर चढाया और फिर रिवाल्वर को एकदम ताले पर लगा कर ट्रेगर दबा दिया ।
ताले के परखचे उड़ गये ।
लोहे के पक्के फर्श पर गिरने की टन्न सी आवाज हुई और शान्ति छा गई ।
सुनील ने द्वार खोला और भीतर घुस गया ।
कई गलियारों और राहदारियों में से होता हुआ वह सामने के भाग में स्थित उस द्वार के पास जा पहुंचा जिसमें प्रकाश दिखाई दे रहा था ।
वह द्वार के पास आकर एक क्षण ठिठका । रिवाल्वर अब भी उसके हाथ में था ।
उसने द्वार को हौले से धकेल कर देखा । वह भीतर से बंद नहीं था ।
फिर उसने एक झटके से द्वार खोल दिया और रिवाल्वर हाथ में लिये भीतर घुस गया ।
ठाकुर एक सोफे पर अधलेटा सा बैठा था । उसे देखते ही वह एकदम उछल कर खड़ा हो गया और उसका हाथ बिजली की तरह अपने ड्रेसिंग गाउन की जेब की ओर लपका ।
“नो ।” - सुनील रिवाल्वर ठाकुर की ओर तानता हुआ धीमे किन्तु कठोर स्वर में बोला - “जेब में हाथ डालने की कोशिश मत कीजिये, ठाकुर साहब । आपके हाथ ऐसी स्थिति में मेरे सामने होने चाहियें कि वे मुझ साफ-साफ दिखाई देते रहे ।”
ठाकुर की जेब की ओर बढता हुआ हाथ रुक गया । वह सांप की तरह फुंफकारा - “कौन हो तुम ?”
“आपके ड्रैसिंग गाउन की जेब में रिवाल्वर है ?” - सुनील ने उसकी बात अनसुनी करके प्रश्न किया ।
ठाकुर चुप रहा ।
“गाउन उतार कर जमीन पर डाल दीजिये ।” - सुनील ने आदेश दिया ।
ठाकुर ने एक जलती हुई निगाह सुनील पर डाली और फिर आज्ञा का पालन किया । अब वह केवल एक नाइट सूट पहने सुनील के सामने खड़ा था ।
“कौन हो तुम ?” - वह बोला ।
“सवाल सिर्फ मैं करूंगा, ठाकुर साहब ।” - सुनील बोला - “आप सिर्फ जवाब देंगे ।”
ठाकुर चुप रहा ।
“डाक्टर चन्द्रशेखरन और डेस्ट्रायर को हवेली में कहां छुपाया है आपने ?”
“सीधे तरीके से तुम लोग मेरा मुकाबला करने का हौसला नहीं कर सके तो अब ऐसी नीच हरकतों पर उतर आये हो ।”
“नीच आदमियों के साथ नीच हरकतें ही ज्यादा कारगर सिद्ध होती हैं ।” - सुनील बोला - “और फिर आप तो जानते ही हैं, ठाकुर साहब, कि जितना होशियार अपराधी होता है उतने ही घटिया तरीके से उसका खात्मा होता है ।”
“मैं अपराधी हूं ?”
“नहीं, आप तो देश के सबसे अधिक देशभक्त नागरिक हैं । इसीलिये तो मैं आपसे आशा कर रहा हूं कि आप बिना कोई हुज्जत किये मुझे यह बता देंगे कि डाक्टर चन्द्रशेखरन और उसके अविष्कार को आपने कहां छुपाया है ।”
“तुम्हारा सिर फिर गया है ।” - ठाकुर चिल्लाकर बोला - “मैं किसी चन्द्रशेखरन को नहीं जानता ।”
“सच पूछिये ठाकुर साहब, तो मुझे आप से इससे बेहतर जवाब की आशा नहीं थी और मुझे आपके जवाब की परवाह भी नहीं है । मैंने तो यह सवाल यूं ही पूछ लिया था, यह देखने के लिये कि झूठ बोलते समय ठाकुर विक्रमसिंह के चेहरे पर कैसे भाव आते हैं । मैं तो ठाकुर साहब, केवल आपको अपने अधिकारियों के पास लिवा ले चलने के लिये आया हूं ।”
“कौन से अधिकारी ?”
“आपको खुद ही मालूम हो जायेगा ।”
“मैं नहीं आऊंगा ।” - ठाकुर चिल्लाया ।
“आपका तो बाबा भी जायेगा ।” - सुनील जल्दी से बोला - “और गला मत फाड़िये ।”
ठाकुर ने एक वितृष्णापूर्ण दृष्टि सुनील के हाथ में थमे रिवाल्वर पर डाली और फिर बोला - “तुम हो कौन ?”
“अभी थोड़ी देर पहले आपने मुझे क्या समझा था ?”
“पुलिस या सीक्रेट सर्विस का आदमी ।”
“मैं आपकी पहचान की दाद देता हूं । बिल्कुल ठीक पहचाना है आपने ?”
“कहीं तुम कोई विदेशी एजेन्ट तो नहीं ?” - ठाकुर हिचकिचा कर बोला ।
“अगर हूं भी तो इससे आपको स्थिति में कोई अन्तर आने वाला नहीं है । बहरहाल आपको एक बात बता देना चाहता हूं, मैं कुछ भी होऊं, अगर आप डाक्टर चन्द्रशेखरन के विषय में अपनी जुबान नहीं खोलेंगे तो विश्वास कीजिये आपका बड़ा भयंकर परिणाम होगा ।”
ठाकुर चुप रहा ।
“आप अपनी जबान नहीं खोलेंगे ?”
“जहन्नुम में जाओ ।” - ठाकुर दहाड़ा ।
“वहां तो आप जायेंगे, ठाकुर साहब । कपड़े बदल लीजिये ।”
ठाकुर ने जब तक कपड़े बदले, सुनील सावधानी से उसे रिवाल्वर कवर किये रहा ।
“आपके पास कार है न ?” - ठाकुर के कपड़े बदल चुकने पर सुनील ने पूछा ।
“है ।” - ठाकुर मरे स्वर से बोला ।
“गैरज में ?”
“हां ।”
“इग्नीशन की चाबी आपके पास है ?”
“है ।”
“तशरीफ ले चलिये ।”
ठाकुर कमरे से बाहर की ओर चल दिया ।
सुनील की रिवाल्वर उसकी पीठ से सटी हुई थी ।
वे गैरेज के पास जा पहुंचे ।
“गाड़ी आप चलायेंगे ।” - सुनील बोला ।
ठाकुर बिना प्रतिवाद किये स्टियरिंग पर जा बैठा । सुनील उसकी बगल में बैठ गया । उसने रिवाल्वर ठाकुर की पसलियो में सटा दी ।
“कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिये ।” - उसने वार्निंग दी ।
ठाकुर ने गाड़ी स्टार्ट करदी और गाड़ी को बजरी की राहदारी पर ड्राईव करता हुआ लोहे के जंगले के सामने ले आया ।
“जरा गेट खोल दो ।” - ठाकुर बोला ।
“बेवकूफ बनाने की कोशिश मत कीजिये ।” - सुनील शान्ति से बोला - “मुझे अपना जीवन प्यारा है । गेट आप ही खोलेगे ताकि बिजली का धक्का खाकर आप ही मरें ।”
“तुम भीतर कैसे आये थे ?”
“मैं तो जादुई गलीचे पर उड़कर आया था । आप गेट खोलिये ।”
ठाकुर गाड़ी से बाहर निकल आया । उसने एक स्थान पर घास में छुपा हुआ एक लिवर खींचा । गेट पर वह एक बार फिर कार रोक कार बाहर निकला और गेट का द्वार खोलकर वह फिर कार में आ बैठा ।
वह कार को मुख्य सड़क पर ले आया ।
“किधर जाना है ?” - उसने सुनील से पूछा ।
“एकदम सीधे चलिये । सामने पहाड़ियों की ओर ।” - सुनील बोला ।
“तुम मुझे ले कहां जा रहे हो ?”
“अभी मालूम हो जाएगा ।”
ठाकुर फिर गाड़ी चलाने लगा ।
“देखो मिस्टर ।” - कुछ क्षण बाद ठाकुर बोला - “तुम चाहे सीक्रेट सर्विस के आदमी हो या विदेशी एजेन्ट । जिन लोगों के पास तुम मुझे ले जा रहे हो, मेरा जवाब उन लोगों के लिये भी वही है जो मैंने तुम्हें दिया है । मैं डाक्टर चन्द्रशेखरन के विषय में कुछ नहीं जानता ।”
“आप जानते नहीं या बतायेंगे नहीं ?”
“एक ही बात है ।”
“मेरे अफसरों के लिये यह एक बात नहीं है । आदमी के पेट में से बात निकालने के उन्हें बहुत तरीके आते है ।”
“टार्चर ?”
“ऐसे कामों के लिये अब टार्चर से ज्यादा सभ्य तरीके इजाद हो चुके हैं ।”
“लेकिन मैं तो...”
“आप गाड़ी चलाने की ओर ध्यान दीजिये ।”
ठाकुर फिर नहीं बोला ।
सुनील ने देखा उसके चेहरे पर चिन्ता के लक्षण परिलक्षित होने लगे थे !
हरामजादा जरूर कोई बच निकलने की तरकीब सोच रहा होगा - सुनील मन ही मन बुदबुदाया ।
सुनील ने घड़ी देखी - आठ बजकर बावन मिनट हो चुके थे । वह मोड़ अब बहुत अधिक दूर नहीं रह गया था जहां गोपाल ट्रक लेकर खड़ा था ।
सुनील चिन्तित हो उठा । गाड़ी अभी भी बड़ी सफाई से चल रही थी ।
उसी समय ठाकुर ने एक स्थान पर बड़ी सफाई से मोड़ काटा । गाड़ी हल्की-सी लड़खड़ा गई ।
सुनील एकदम सीधा होकर बैठ गया । शुरूआत हो गई थी ।
“गाड़ी आराम से चलाइये ठाकुर साहब ।” - सुनील बोला - “क्यों खड्डे में गिरने का प्रोग्राम बना रहे हो । थोड़ी स्पीड कम कर दीजिये ।”
ठाकुर ने थोड़ी सी स्पीड घटा दी । स्पीडोमीटर की सुई पेंतीस किलोमीटर के आस-पास थिरक रही थी ।
उसी समय गाड़ी को एक बार फिर हल्का सा झटका लगा ।
“क्या बात है ?” - सुनील हैरानी का प्रर्दशन करता हुआ बोला - “गाड़ी में कोई खराबी हो गई है क्या ?”
“गाड़ी कुछ भारी चलने लगी है ।” - ठाकुर बोला - “और जम्प भी ज्यादा लेने लगी है । स्टियरिंग आपरेट करने में भी दिक्कत हो रही है ।”
“कहीं कोई पहिया तो नहीं बैठ रहा है ?”
“सम्भव है ।”
सुनील ने देखा, अब वे मोड़ से केवल सौ मीटर दूर रह गये थे ।
“गाड़ी को साइड में रोक दो । मैं देखता हूं ।” - एकाएक सुनील बोला ।
ठाकुर ने गाड़ी रोक दी ।
अब वे मोड़ से केवल पचास मीटर दूर थे ।
सुनील कार का अपनी ओर का दरवाजा खोल कर बाहर निकल आया ।
अपनी घड़ी देखी नौ बजने में तीन मिनट शेष थे ।
उसने कार के पिछले पहिये पर दृष्टि डाली । पिछला पहिया थोड़ा सा फ्लैट हो गया था ।
सुनील खिड़की के पास आकर ठाकुर से बोला - “कार के पिछले पहिये में से धीर-धीरे हवा निकल रही मालूम होती है । मैं पहिये को देखने लगा हूं । कोई गड़बड़ करने की कोशिश मत करना वरना...”
और उसने अपना रिवाल्वर वाला हाथ एक दम ठाकुर के मुंह के सामने कर दिया ।
“मैं कर ही क्या सकता हूं ?” - ठाकुर बोला ।
“यह सब से अच्छी बात है ।” - सुनील ने कहा और पिछले पहिये के पास आकर पैरों के बल बैठ गया ।
पिछले पहिये में वाकई स्लो पंचर था और उसमें से बहुत धीरे-धीरे हवा निकल रही थी । सुनील को ऐसे ही किसी परिणाम की आशा भी थी । क्योंकि उसी ने पहिये के वाल्व में ऐसी खराबी पैदा की थी कि हवा बहुत धीरे-धीरे निकलने लगे ।
सुनील उठ कर ठाकुर के पास पहुंचा ।
“डिकी में स्पेयर टायर है ?” - उसने पूछा ।
“है ।” - ठाकुर बोला ।
“और जैक वगैरह ?”
“सब कुछ है ।”
“मैं टायर बदलने लगा हूं । इस टायर में से हवा बहुत धीरे-धीरे निकल रही है । अगर सावधानी से चलाई जाये तो गाड़ी दो ढाई घन्टे तो ठाठ से चल सकती है । लेकिन मैं रिस्क नहीं लेना चाहता । सम्भव है हमें सारी रात ड्राइव करना पड़े । आप, ठाकुर साहब, चुपचाप बिना हिले डुले अपनी जगह पर बैठे रहिये और हाथ स्टियरिंग पर रख लीजिये । मेरी नजर हर समय आप पर होगी । आपकी कोई भी सन्देहास्पद हरकत आपकी ईहलीला की समाप्ति का कारण बन सकती है । समझ गये ?”
“समझ गया ।” - ठाकुर शान्ति से बोला ।
सुनील ने इग्नीशन में से चाबी निकालने का प्रयत्न नहीं किया । उसने रिवाल्वर कोट की बाईं जेब में डाल ली और कार के पीछे आ गया । उसने डिकी का ढक्कन खोला और उसमें से टायर, जैक स्पैनर वगैरह निकाल ली ।
वह टायर को लुढका कर साइड में ले जाने लगा ।
उसी समय एकाएक एक झटक के साथ गाड़ी स्टार्ट हो गई वह बन्दूक में से छुटी गोली की तरह सामने सड़क पर भाग निकली ।
सुनील के होठों पर मुस्कराहट फैल गई । वह जानता था ठाकुर ऐसा कोई काम जरूर करेगा ।
उसी क्षण सुनील ने अपने मुंह से दो बार उल्लू के बोलने जैसी आवाज निकाली और फिर वहीं खड़ा प्रतीक्षा करने लगा ।
मोड़ के समीप पहुंचने तक कार की स्पीड कम से कम साठ किलोमीटर प्रति घन्टा हो गई थी ।
“गुड लक गोपाल - गुड लक ।” - वह बड़बड़ाया ।
उसी क्षण मोड़ पर तेज रफ्तार से आता हुआ ट्रक प्रकट हुआ । ट्रक का सामने का भाग भड़ाक की आवाज से कार की साइड से टकराया । पहले कुछ गज ट्रक खाई की ओर सीधा बढा और फिर सड़क की ओर मोड़ पर घूम गया । दोनों गाड़ियों के टायरों के सड़क पर घिसटने से उत्पन्न चरचराहट की भयानक आवाज से वातावरण गूंज गया ।
ठाकुर की कार का पिछला भाग ट्रक की टक्कर के झटके से एक दम गोलाई में घूम गया और फिर कार एकदम उलट गई ।
उसी क्षण सुनील को कार का एक ओर का द्वार खुलता दिखाई दिया और उस द्वार में केवल क्षण भर के लिये उसे ठाकुर की झलक दिखाई दी । उत्कंठा से उसकी आंखें फट पड़ी ।
कार ने सड़क के किनारे से टकराकर एक गद्दा सा खाया और फिर कार दृष्टि से ओझल हो गई ।
कितनी ही देर बाद नीचे खाई में से एक जोरदार भड़ाक की आवाज उभरी ।
सुनील मोड़ की ओर भागा ।
गोपाल ट्रक के बोनेट के पास खड़ा एक गन्दे कपड़े से अपने हाथ पोंछ रहा था । उसके होठों में एक मैला सा मुड़ा तुड़ा आधा पिया सिगरेट लटक रहा था ।
“भगवान कसम मैं बच गया ।” - सुनील के समीप पहुंचते ही गोपाल उत्तेजित स्वर से बोला ।
“क्या हुआ ?”
“मेरा ट्रक भी कार के साथ ही खड्डे में जा रहा था । साला इतना भारी ट्रक है कि पूरे जोर से ब्रेक लगाते-लगाते भी एकदम खड्डे के सिरे पर पहुंच गया । अगर ट्रक थोड़ा-सा भी और आगे सरक जाता तो मैं भी खड्डे में गया था ।”
गोपाल ने मुंह से सिगरेट निकाल लिया । उसका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था । उसने उसी गन्दे कपड़े से अपना मुंह पोंछा और कपड़े को पीछे ट्रक की ओर उछाल दिया ।
वह ट्रक के पास से हट गया और सड़क के सिरे के पास पहुंचकर नीचे खड्डे में झांकने लगा ।
सुनील ने जेब से लक्की स्ट्राइक का एक सिगरेट निकाल कर सुलगाया और बड़े नर्वस ढंग से उसके लम्बे-लम्बे कश लेने लगा ।
“सुनील !” - उसके कान में गोपाल का चिड़चिड़ाया हुआ स्वर पड़ा ।
“हां ।” - सुनील बोला ।
“गड़बड़ हो गई ।”
“क्या हुआ ?” - सुनील शंकित स्वर में बोला ।
“यहां आकर देखो ?”
सुनील गोपाल के पास जा खड़ा हुआ ।
“जरा नीचे खड्ड में झांको ।”
सुनील ने चन्द्रमा के मध्यम प्रकाश में नीचे झांका । एक क्षण तो उसे कोई असाधारण बात नहीं दिखाई दी और फिर उसे जो दृश्य दिखाई दिया उससे उनके शरीर में सिरहन सी दौड़ गई ।
सड़क के लगभग बीस मीटर पीछे साइड से बाहर को निकली हुई एक पत्थर की चट्टान पर ठाकुर विक्रमसिंह का शरीर अटका हुआ था जब कि कार उससे कई सौ मीटर नीचे खड्ड में गिर चुकी थी ।
गोपाल धीरे से बोला - “कार के खड्ड में गिरने से पहले मैंने उसे कार का द्वार खोलते देखा था । लगता है वह पहले खड्ड में गिरा था और कार उसके बाद गिरी थी । ठाकुर का शरीर तो उस चट्टान पर जा गिरा और वहीं अटका रह गया । और कार बिना उसे छुए हुए सीधी खड्ड में जा गिरी ।”
“तो इससे फर्क क्या पड़ता है ?” - सुनील बोला ।
“बहुत फर्क पड़ता है । मान लो वह साला मरा न हो, अभी उसमें प्राण बाकी हों तो ?”
“फिर ?” - चिन्तित स्वर में सुनील बोला ।
“तुम सड़क पर नजर रखो । मैं करता हूं कुछ ।” - गोपाल निश्चयपूर्ण स्वर से बोला ।
“क्या ?”
“तुम देखते जाओ ।”
सुनील वहां से हट गया और ट्रक के पास आकर खड़ा हो गया । वह बारी बारी से सड़क की दोनों दिशाओं में भी देख लेता था ।
गोपाल ट्रक के पिछले भाग में गया और वहा से एक ट्रक का सामान बांधने वाली रस्सी का बड़ा सा गोला निकाल लाया । उसने रस्सी का एक सिरा बड़ी मजबूती से ट्रक के साथ बांधा और दूसरे सिरे को नीचे खाई में लटका दिया फिर वह सड़क के किनारे पर आ गया और रस्सी के सहारे नीचे खाई में उतरने लगा ।
सुनील ने सिगरेट का आखिरी कश लिया और उसे सड़क पर फेंक कर जूते से मसल दिया । वह बेहद चिन्तित था अगर ऐसे समय में कोई दूसरी का कार यहां पर आ जाये तो ।
फिर उसे खाई की गहराइयों में से उभरने वाली एक हल्की ही धम्म की आवाज सुनाई दी ।
लगभग दो मिनट बाद गोपाल का सिर खाई में से बाहर उभरा । वह सड़क का किनारा पकड़ कर सड़क पर चढ गया और रस्सी वापस खींचने लगा । उसने ट्रक से रस्सी खोली और उसका फिर पहले जैसा रोल बना कर उसे ट्रक के पिछले भाग में डाल दिया ।
वह अपनी पैंट की साइडों से हाथ रगड़ता हुआ सुनील के पास आ खड़ा हुआ ।
“उसे चट्टान से नीचे धकेल दिया मैंने ।” - वह सहज स्वर से बोला ।
“वह मरा हुआ था या जिन्दा था ?” - सुनील ने पूछा ।
“भगवान जाने ।” - गोपाल कन्धे उचका कर बोला - “मैंने देखा नहीं । लेकिन अगर वह पहले मरा हुआ नहीं था तो अब मर गया होगा ।”
सुनली ने शांति की सांस ली ।
“सुनील साहब, तकदीर अच्छी थी जो ट्रक में रस्सी निकल आई ।” - गोपाल बोला - “वर्ना इतना कुछ करने के बाद भी नतीजा सिफर ही निकलता ।”
“हां ।”
“अब ?”
“ठाकुर की कार का टायर, जैक, स्पैनर वगैरह पीछे सड़क पर पड़े हैं, वे भी खाई में फेंकने हैं ।”
“आओ ।”
“मेरी मोटर साइकिल हवेली के पास झाड़ियों में छिपी हुई खड़ी है । इस ट्रक पर ही तुम मुझे वहां छोड़ आओ ।” - सुनील बोला ।
“बैठो ।” - गोपाल ट्रक की ओर बढता हुआ बोला ।
दोनों ट्रक में बैठ गये, ट्रक हवेली की ओर चल दिया ।
“यह ट्रक मैं राजनगर के इन्डस्ट्रियल एरिया में से एक फैक्ट्री के सामने से चुराकर लाया हूं । इग्नीशन को बिना चाबी लगाये इग्नीशन को शार्ट सर्कट करके ट्रक स्टार्ट कर लेने की तरकीब मुझे आती है । सुबह होने से पहले यह ट्रक एकदम फिट हालत में अपने स्थान पर पहुंच जायेगा और इसे देखकर कोई यह भी नहीं कह सकेगा कि इसे खरोंच भी लगी है ।”
“फाइन ।” - सुनील सन्तुष्ट स्वर में बोला ।
गोपाल फिर ट्रक चलाने में मग्न हो गया ।
“मुझे मेन रोड पर उतार दो” - सुनील बोला - “आगे मैं पैदल चला जाऊंगा ।”
“ओके ।”
गोपाल ने ट्रक रोक दिया । सुनील ट्रक से उतर गया ।
“गुड नाइट ।” - गोपाल बोला ।
“यस ए वैरी गुड नाइट बट फार अस ओनली ।”
गोपाल के चेहरे पर मुस्कराहट दिखाई दी और फिर वह ट्रक बैक करने लगा ।
सुनील वापिस हवेली के समीप पहुंच गया ।
वह भीतर घुस गया और उस स्थान पर पहुंचा जहां उसने लोहे के जंगले के साथ सीढी लगायी थी ।
उसने सीढी उठाई और बाहर निकल आया । सीढी उसने वहीं डाल दी जहां से वह सीढी उठाई थी ।
बाद में उसने झाड़ियों में से अपनी मोटर साइकिल निकाली और वापिस राजनगर की ओर जाने वाली सड़क पर चल दिया ।
एक पेट्रोल पम्प पर उसे पब्लिक टेलीफोन बूथ दिखाई दिया ।
उसने मोटर साइकिल रोक दी और बूथ में घुस गया ।
उसने जेब से कुछ सिक्के निकाले और टेलीफोन डायरेक्ट्री में तारकपुर पुलिस स्टेशन का नम्बर देखकर वहां पर फोन कर दिया ।
दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही उसने कायन बाक्स में सिक्के डाले और बोला - “हैल्लो, पुलिस स्टेशन ?”
“यस ।” - उत्तर मिला ।
“मैं एक दुर्घटना ली सूचना देना चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
“फरमाइये ।” - दूसरी ओर से सर्तक आवाज सुनाई दी ।
“तारकपुर से हरीपुर की ओर पहाड़ियों के बीच में से गुजरती हुई जाने वाली जो सड़क है न...”
“हिल साइड रोड ?”
“मुझे नाम नहीं मालूम ।”
“उस सड़क का नाम हिल साइड रोड है । आप कहिये ।”
“सड़क पर काफी आगे जाकर एक बहुत गहरा मोड़ है जिसके एक ओर दीवार की तरह पहाड़ी खड़ी है और दूसरी ओर एक गहरी खाई है वहां एक भयानक एक्सीडेन्ट हो गया है ।”
“क्या हुआ है ?”
“मोड़ पर एक कार एक ट्रक से टकरा गई थी । ट्रक की टक्कर से कार खाई में जा गिरी थी ।”
“कार में कितने आदमी थे ?”
“मैं देख नहीं सका लेकिन मेरे ख्याल से एक या अधिक से अधिक दो थे ?”
“आप कौन है ?”
“मेरा नाम सुनील कुमार चक्रवर्ती है । राजनगर से निकलने वाले अखबार ‘ब्लास्ट’ का प्रतिनिधि हूं । तारकपुर होता हुआ राजनगर जा रहा था कि मैंने यह एक्सीडेन्ट देखा ।”
“ट्रक वाला कहां है ?”
“वह भाग गया ।”
“आप इस समय कहा है ?”
“मैं हाइवे फिलिंग स्टेशन पर हूं !”
“आप वहीं रहियेगा हम आ रहे हैं । हम आपको वहां से पिक कर लेंगे ।”
“लेकिन मैं यहां अधिक देर नहीं ठहर सकता ।”
“आपको अधिक देर ठहरना भी नहीं पड़ेगा । आप घटनास्थल दिखाने और अपना बयान दर्ज करवाने के बाद तशरीफ ले आइयेगा ।”
“ओके ।” - और सुनील ने काल डिस्कनैक्ट कर दी ।
सुनील बूथ से बाहर निकल आया ।
वह पैट्रोल पम्प के आफिस में घुस गया ।
आफिस में एक नाइट क्लर्क बैठा था ।
सुनील ने जेब से एक दस का नोट निकालकर हाथ में ले लिया ।
“यह सर ।” - कलर्क बोला ।
“मैं राजनगर काल करना चाहता हूं ।” - वह बोला - “राजनगर और तारकपुर में ट्रक-डायलिंग की सुविधा प्राप्त है ।”
लड़के ने एक नजर दस के नोट पर डाली और फिर टेलीफोन उसकी ओर सरका दिया ।
सुनील ने रिसीवर उठाया और नम्बर डायल कर दिया ।
दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह बोला - “हैलो । ...सर, मैं सुनील बोल रहा हूं... मैं हरीपुर से लौट रहा था कि तारकपुर के पास एक दुर्घटना हो गई - एक ट्रक ने एक कार को टक्कर मार दी और कार सौ फुट नीचे खड्डे में जा गिरी ।”
“च-च बड़ा बुरा हुआ ।” - कर्नल मुखर्जी का परम सन्तुष्टिपूर्ण स्वर सुनाई दिया ।
“मैंने पुलिस को रिपोर्ट कर दी है । पुलिस से निपटने में मुझे एक डेढ घन्टा लग जायेगा । तब तक आप वहां पहुंच जाईये । रास्ता साफ है मैं बाद में आ जाऊंगा ।”
“ओके ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
उसने लड़के के हाथ में दस का नोट थमाया और बाहर निकल आया ।
उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और पुलिस के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा ।
***
इतनी ढेर सारी मुसीबत उठाने के बावजूद भी परिणाम बड़ा निराशाजनक निकला । रात के दस बजे से लेकर सुबह के आठ बजे तक सीआईबी के पच्चीस आदमियों ने ठाकुर विक्रम सिंह की हवेली के बखिये उधेड़ दिये लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ ।
पंछी उड़ चुका था ।
कर्नल मुखर्जी का ख्याल था कि जितना समय ठाकुर की लाश पुलिस द्वारा बरामद करने में और फिर उसकी शिनाख्त करवाने में लगेगा उससे कहीं कम समय तो वह हवेली में से डाक्टर चन्द्रशेखरन और डेस्ट्रायर निकल चुके होंगे ।
विवशता और पराजय की भावना से मुखर्जी का चेहरा मुर्ख हो गया और वह एक ऐसे ज्वालामुखी से दिखाई देने लगे जिसके कभी भी फट पड़ने की आशका हो ।
ज्वालामुखी फटा ।
और उसका पहला शिकार हुआ होशिता जो उस समय भी पुलिस की हिरासत में था ।
पहले तो होशिता एक गूंगे की तरह चुप रहा लेकिन मुखर्जी ने अपनी सी आई बी की लम्बी सर्विस में बहुत से गूंगे बुलवाये थे ।
होशिता बोला तो बोलता ही चला गया ।
उसने स्वीकार किया कि ठाकुर विक्रम सिंह स्वयं विदेशी एजेन्ट था और कई विदेशी एजेन्ट हवेली में उससे मिलने या शरण लेने के लिये आया करते थे ।
उसने बताया कि उसे वास्तव में ही रेडियों के ही कल पुर्जों की सहायता से केवल आधे घन्टे के समय में वायरलैस ट्रांसमीटर तैयार कर लेने का अपूर्व हस्त कौशल आता है और वह एक पूर्व निर्धारित वेवलैंग्थ पर ठाकुर विक्रम सिंह के बताये हुए संदेश प्रसारित किया करता था । वे सन्देश कहां सुने जाते थे और उन्हें कौन सुनता था, यह उसे मालूम नहीं था । इसी कारण वह एक अन्य वेवलेंथ पर सन्देश रिसीव किया करता था । काम हो चुकते ही वह वायरलैस ट्रांसमीटर के कल पुर्जे खोल देता था । इसी कारण पुलिस के अप्रत्याक्षित ढंग से हवेली में घुस आने पर उन्हें कुछ प्राप्त नहीं हो सकता था ।
उसने यह भी स्वीकार किया कि डाक्टर चन्द्रशेखरन और उसके अधिकारी डेस्ट्रायर को हवेली के एक तहखाने में रखा गया था और वह सब कुछ जिस विदेशी के इशारों पर किया गया था वह निश्चय ही कार्ल प्लूमर था क्योंकि उसका हुलिया दस लाख लोगों में भी छुपाना असम्भव था ।
डाक्टर चन्द्रशेखरन और उसके अविष्कार के विषय में उसने बताया कि कार्ल प्लूमर अपने आदमियों की सहायता से पिछली रात शाम को ही दोनों की हवेली से निकाल कर ले गया था और हवेली की रहस्यपूर्ण सुरंगों की कृपा से पुलिस को उसकी हवा भी नहीं लगी थी ।
“कार्ल प्लूमर डाक्टर चन्द्रशेखरन को कहां ले गया है ?” - कर्नल मुखर्जी ने उसे झिंझोड़ते हुए पूछा ।
“मुझे नहीं मालूम ।” - होशिता लड़खड़ाये स्वर में बोला - “लेकिन मैंने दाढी वाले विदेशी को ठाकुर साहब से बात करते सुना था । विदेशी कहता था कि वह हवेली से सीधा लिंकन पर जायेगा । सब इन्तजाम हो चुका है ।”
“लिंकन क्या बला है ?” - मुखर्जी ने व्यग्र स्वर से पूछा ।
“लिंकन अमेरिका की एक प्राइवेट शिपिंग कम्पनी का जहाज है जो मुख्यतः एक भारी ऐश्वर्यपूर्ण यात्री वाहक जहाज है लेकिन जिसमें माल ढोने के लिये पांच कार्गो-होल्ड (माल रखने के बड़े-बड़े गोदाम ) भी हैं । दाढी वाले विदेशी ने कहा था कि लिंकन भारत में ही किसी बन्द्रगाह पर खड़ा है या पहुंचने वाला है और उसने वैज्ञानिक और उसके हथियार को उस पर ले जाने का पूरा इन्तजाम कर लिया है ।”
“विदेशी उन्हें कहां ले जाना चाहता था ?”
“नो सर । मी नाट नो ।”
“सच कह रहे हो ?”
“यस सर ।”
कर्नल मुखर्जी फौरन टेलीफोन की ओर झपटे ।
पांच मिनट तक टेलीफोन से उलझे रहने के बाद उन्होंने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया । उनके मुख से एक गहरी सांस निकल गई और वे रूमाल निकाल कर सर्दियों में भी चेहरे पर चुहचुहा आये पसीने को पोंछने लगे । फिर उन्होंने उड़ती सी दृष्टि कलाई पर बन्धी घड़ी पर डाली ।
सुनील की भी दृष्टि उनके साथ घड़ी पर उठ गई ।
दस बजे थे ।
“क्या हुआ सर ?” - सुनील ने धीरे से पूछा ।
“दैट डैम्ड शिप” - कर्नल मुखर्जी विवश स्वर से बोले - “वह साला जहाज ‘लिंकन’ आज सुबह पांज बजे तक राजनगर की ही बन्दरगाह पर मौजूद था । अब उसे किनारा छोड़े हुये पांच घन्टे हो चुके हैं ।”
“क्या कुछ किया नहीं जा सकता सर ?”
“जो किया जा सकता है, वह मैंने कर दिया है ।”
“क्या ?”
“लिंकन के कैप्टेन को एक रेडियो काल भेजी गई है कि वह फौरन अपना जहाज राजनगर की बन्दरगाह पर लौटा लाये ।”
“क्या वह जहाज को वापिस लाने के लिये तैयार हो जायेगा ।”
“क्या कहा जा सकता है ? भारतीय बन्दरगाह से क्लियरेन्स मिल जाने के बाद और एक बार हमारी समुद्री सीमा से बाहर निकल जाने के बाद हम उसे लौट आने पर मजबूर तो नहीं कर सकते लेकिन स्थिति की गम्भीरता समझ कर शायद लिंकन का कैप्टेन जहाज लौटा लाने के लिये तैयार हो जाये ।”
सुनील चुप हो गया ।
एकाएक कर्नल मुखर्जी उठ खड़े हुये ।
सुनील ने प्रश्न सूचक दृष्टि से कर्नल मुखर्जी को देखा ।
“चलो ।” - वे बोले ।
“कहां ?” - सुनील ने पूछा ।
“बन्दरगाह पर । जल सेना के एक बड़े अधिकरी भी वहां पहुंचने वाले हैं और मिनिस्टर आफ ट्रांसपोर्ट को भी सूचित कर दिया गया है ।”
चालीस मिनट बाद कर्नल मुखर्जी और सुनील बन्दरगाह के कन्ट्रोल टावर में थे ।
जल सेना के कमान्डर की वेशभूषा में एक आदमी मुखर्जी की ओर बढा ।
“हैल्लो कमान्डर ।” - कर्नल मुखर्जी बोले - “क्या स्थिति है ?”
मुखर्जी ने कमान्डर से सुनील का परिचय कराने का तनिक भी उपक्रम नहीं किया ।
“लिंकन के कैप्टेन का जवाब आया है कि जब तक उसे यह नहीं बताया जाएगा कि जहाज का वापिस राजनगर लौटा लाना क्यों जरूरी है वह जहाज वापिस नहीं लायेगा । कैप्टेन कहता है कि वह खामखाह अपने यात्रियों को परेशान नहीं कर सकता । उसे जब तक कोई ठोस कारण नहीं बताया जाएगा, वह जहाज वापिस नहीं लायेगा ।”
“फिर ।”
“हमने उसे बता दिया है कि हमारे देश का एक वैज्ञानिक अपने एक महत्वपूर्ण अविष्कार के साथ गायब है और हमें विश्वस्त सूत्रों से पता लगा है कि इस समय वैज्ञानिक और उस का अविष्कार दोनों ‘लिंकन’ में है । हम केवल यह जानना चाहते हैं कि यह बात सच है या नहीं ।”
“कैप्टेन का क्या उत्तर आया है ?”
“वह कहता है कि इतनी सी बात के लिये वह जहाज वापिस नहीं ला सकता । यह बात भारत सरकार के लिये तो महत्वपूर्ण हो सकती है, उसके लिये नहीं । वह अधिक से अधिक यह सहयोग दे सकता है कि हम उसे वैज्ञानिक और उसके अविष्कार का हुलिया बयान कर दें और वह जहाज की खुद तलाशी ले लेगा । अगर वैज्ञानिक जहाज पर हुआ तो वह जहाज वापिस ले आयेगा । आपने डाक्टर चन्द्रशेखरन को देखा है ?”
“हां ।” - कर्नल मुखर्जी बोले ।
“और उस अविष्कारक डेस्ट्रायर को भी ?”
“डेस्ट्रायर को देखा नहीं लेकिन में उसका हुलिया जानता हूं ।”
“आप दोनों का हुलिया एक काज पर लिख दीजिये । फिर मैं लिंकन के कैप्टन को सूचना भिजवा दूंगा ।”
कर्नल दोनों का हुलिया एक कागज पर लिख दीजिये । फिर मैं लिंकन के कैप्टन को सूचना भिजना दूंगा ।
कर्नल मुखर्जी ने कागज और पेन ले लिया और लिखा ।
डाक्टर चन्द्रशेखर का कद छः फुट चार डन्च, आयु पचास वर्ष, शरीर दुबला पतला, लम्बी नाक, चमकदार वाली आंखें, पतले होंठ, गेहुंआ रंग, बाल एकदम सफेद ।
डेस्ट्रायर लगभग साढे छः फुट लम्बा एल्यूमीनियम का सिलेन्डर, व्यास लगभग एक फुट, आगे का हिस्सा आधा फट राकेट की तरह मंक्वाकार, वजन चार मन । भयानक एटामिक शस्त्र जो एकदम स्थिर रहना चाहिये । जरा सा उल्टा सीधा झटका लग जाने से यह फट सकता है और एक वर्ग मील के क्षेत्रफल में भयानक तबाही ला सकता है ।
मुखर्जी ने कागज कमान्डर को सौंप दिया । कमान्डर के हाथ से वह कागज वायरलैस आपरेटर के पास पहुंच गया ।
सन्देश प्रसारित कर दिया गया ।
लगभग तीन घन्टे के बाद कैप्टन का आत्मविश्वास पूर्ण उत्तर प्राप्त हुआ कि लिंकन का चप्पा-चप्पा छान मारा गया है । डाक्टर चन्द्रशेखरन या डेस्ट्रायर जैसी कोई चीज जहाज पर मौजूद नहीं है ।
उसके बाद लिंकन के कैप्टन से सम्पर्क स्थापित करने के सारे प्रयत्न विफल हो गये । कैप्टन ने लौटने की तो बात ही क्या, इस सिलसिले से सम्बन्धित किसी बात का उत्तर देने से स्पष्ट इन्कार कर दिया ।
कर्नल मुखर्जी की मायूसी और बढ गई ।
“आपको मालूम है राजनगर के बाद लिंकन कौन सी बन्दरगाह पर रुकने वाला है ।” - कर्नल मुखर्जी ने पूछा ।
“हमारे पड़ोसी राष्ट्र नैटसीकाप ईहकैराक बन्दरगाह पर ।”
कर्नल मुखर्जी सोच में पड़ गये ।
“क्या इरादा है आपका ?” - कमांडर ने पूछा ।
“मेरा इरादा तो बड़ा भयानक है, कमांडर साहब” - कर्नल मुखर्जी गम्भीर स्वर में बोले - “लेकिन उसे कार्यरूप में परिणत करने से पहले मैं मन्त्री महोदय और जल सेना के वाइस एडमिरल से बात जरूर करना चाहता हूं ।”
कमांडर चुप रहा ।
***
भारत का पड़ोसी राष्ट्र नेटसीकाप तीन ओर से समुद्र से घिरा लगभग चार करोड़ की जनसंख्या वाला छोटा राष्ट्र था । तीन ओर से समुद्र से घिरा होने के बावजूद भी ईहकैराक नेटसीकाप की एक अच्छा बन्दरगाह थी । शासन की बागडोर जनरल ब्यूआ के हाथ में थी और अपने देश में उसकी स्थिति एक डिक्टेटर जैसी थी । जनरल ब्यूआ का कम्युनिस्टों से तगड़ा गठजोड़ था । देश में घोर गरीबी होने के बावजूद भी नैटसीकाप के बजट का एक बड़ा भाग डिफेन्स पर व्यय किया जाता था । नेटसीकाप की अर्थ व्यवस्था बुरी तरह बिगड़ चुकी थी और जनता गरीबी और अभाव से इतनी तंग आ चुकी थी कि अब जनरल ब्यूआ के दिखाये सब्जबाग भी जनता को प्रभावित नहीं कर पाते थे । देश का वातावरण हर समय ब्लेड की धार की तरह पैना रहता था और कभी भी भारी बगावत हो जाने की पूरी सम्भावा थी । जनरल ब्यूआ के विरुद्ध तोड़-फोड़ की छोटी-मोटी घटनायें तो अक्सर ही होती रहती थीं लेकिन जनरल ऐसे उपद्रवी तत्वों को बड़ी सख्ती से दबा देना था और नैशनल ब्राडकास्ट में यही कहता था कि शीघ्र ही देश में खुशहाली आने वाली है । लेकिन वह खुशहाली कैसे आने वाली है यह शायद जनरल ब्यूआ के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता था । बहरहाल अगर किसी भी क्षण यह समाचार प्राप्त होता कि नेटसीकाप में इन्कलाब आ गया है, बगावत फैल गई है, जनरल ब्यूआ की हकूमत का तख्ता पलट दिया गया है और जनरल का सिर काटकर टाउनहाल की टावर पर टांग दिया गया है तो संसार के किसी भी राष्ट्र को जरा भी हैरानी नहीं होती ।
अमेरिका की सिल्वर लाईन शिपिंग कम्पनी का शानदार जहाज ‘लिंकन’ प्रातः आठ बजे नेटसीकाप की बन्दरगाह ईककैराक पर जा लगा । फौरन ही ईहकैराक कस्टम के कई अधिकारी लिंकन पर चढ आये और लिंकन के कैप्टन ब्राउन से प्रार्थना की गई कि वह भारत की सरकारी सर्च पार्टी को लिंकन की तलाशी लेने की इजाजत दे दे और उन्होंने लिंकन की बगल में खड़े भारतीय युद्ध पोत की ओर संकेत कर दिया जिसके डैक पर सावधान की मुद्रा में आ खड़े भारतीय जल-सेना के अस्सी जवान अगले आर्डर की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
कैप्टन ब्राउन आग बबूला हो उठा । उसने कहा कि भारत सरकार को अपना उत्तर वह पहले ही दे चुका है और उसमय उसका जहाज एक स्वतन्त्र देश के फ्री पोर्ट पर खड़ा है । अगर किसी भारतीय सैनिक ने कैप्टन ब्राउन की इजाजत के बिना लिंकन पर कदम भी रखने की कोशिश की तो कैप्टन उसे घुसपैठ डकैती और अपनी स्वतन्त्रता पर आघात समझेगा और उसके बाद जो खूनखराबा होगा उसकी जिम्मेदारी कम से कम कैप्टन ब्राउन या अमेरिका की सरकार पर नहीं होगी ।
नेटसीकाप के कस्टम अधिकारी एकदम ठंडे पड़ गये । उन्होंने भारतीय युद्ध पोत के अधिकारियों को कैप्टन ब्राउन के निर्णय की सूचना दे दी ।
कर्नल मुखर्जी और सुनील स्वंय युद्ध पोत पर मौजूद थे । कर्नल मुखर्जी की राय पर अमेरिका सरकार और सिल्वर लाइन शिपिंग कम्पनी को केवल द्वारा कैप्टन ब्राउन के इरादे की सूचना दी गई और उनसे प्रार्थना की गई कि वे कैप्टन ब्राउन से कह दें कि वह अपनी हठ छोड़ दे ।
अमेरिका सरकार और सिल्वर लाइन शिपिंग कम्पनी दोनों का ही व्यवहार बड़ा मैत्रीपूर्ण सिद्ध हुआ । उन्होंने कैप्टन को वायरलैस मैसेज भेजा कि वह भारत सरकार को सहयोग दे, लेकिन ब्राउन अपनी जिद पर अड़ा रहा । उसकी कम्पनी और उसकी सरकार उस पर अधिक दबाव न डाल सके इसके लिये उसने यह इन्तजाम किया कि उसने अपना वायरलैस यन्त्र इस बहाने से बन्द करा दिया कि वह खराब हो गया है । ब्राउन ने वायरलैस ठीक करवाने के लिये ईहकैराक का ही एक इन्जीनियर बुला भेजा ।
अगले दिन के दो बज गये लेकिन ब्राउन के अपनी जिद नहीं छोड़ी । उसका अब भी यह उत्तर था कि वह जहाज को डुबो देगा लेकिन भारतीय नौसेना के जवानों को अपने जहाज पर कदम नहीं रखने देगा ।
कर्नल मुखर्जी सख्त परेशान थे ।
अन्त में उन्हें यह रास्ता सूझा ।
उन्होंने भारतीय युद्ध पोत के कैप्टन से ब्राउन से सम्बन्ध स्थापित करने के लिये कहा ।
ब्राउन को यह राय दी गई कि वह ईहकैराक के कस्टम अधिकारियों को जहाज की तलाशी लेने दे और भारतीय नौसेना के सैनिक तटस्थ भाव से अपने जहाज के डैक पर खड़े तमाशा देखते रहेंगे । ब्राउन ने हाय तौबा तो इस पर भी बहुत मचाई लेकिन अन्त में उसे ईहकैराक के कस्टम अधिकारियों के दबाव में आकर यह बात माननी पड़ी क्योंकि कस्टम अधिकारियों से झगड़ा उसके लिये हानिकारक सिद्ध हो सकता था । ब्राउन ने छः सौ टन से भी अधिक भार का सामान ईहकैराक के बन्दरगाह पर उतारना था और उस मामले में कस्टम अधिकारी उसे बहुत परेशान कर सकते थे ।
ब्राउन मान गया ।
तीन बजे तलाशी शुरू हुई ।
भारतीय नौसैनिक अपने जहाज के डैक पर खड़े रहे ।
ईहकैराक के कस्टम अधिकारियों की टीम लिंकन में डाक्टर चन्द्रशेखरन और उसके अविष्कार को खोजती रही ।
कैप्टन ब्राउन अपने जहाज पर खड़ा ज्वालामुखी की तरह धधकता रहा ।
कर्नल मुखर्जी और सुनील सांस थामे अपने जहाज के डैक पर खड़े रहे ।
शाम के आठ बजे तलाशी खत्म हुई ।
नतीजा कुछ भी नहीं निकला ।
ईहकैराक के कस्टम अधिकारियों ने भारतीय युद्ध पोत पर सूचना भिजवा दी कि लिंकन पर वैज्ञानिक चन्द्रशेखरन या उसका अविष्कार डेस्ट्रायर नहीं है ।
कर्नल मुखर्जी का चेहरा उतर गया ।
लिंकन को ईहकैराक हार्बर पर अपना सामान उतारने की इजाजत मिल गई ।
हार्बर की बड़ी-बड़ी क्रेनें सामान उतारने लगी ।
“मैं संतुषट नहीं हूं ।” - कर्नल मुखर्जी बोले ।
“लेकिन सर, अब असंतुष्टि दिखाने से भी तो कोई लाभ नहीं होने वाला है ।” - सुनील बोला - “और फिर यह भी तो संभव है कि होशिता ने हमें बेवकूफ बनाया हो या उसने जहाज का नाम गलत सुना हो ।”
कर्नल मुखर्जी चुप रहे ।
“चलो हार्बर पर चलें ।” - कर्नल मुखर्जी बोले ।
“क्या करने ?”
“यूं ही । सम्भव है लिंकन के क्रियू के किसी आदमी से कुछ जानने को मिले ।”
“चलिये !”
दोनों एक छोटी-सी बोट की सहायता से हार्बर पर आ गये ।
क्रेनें सामान उतार चुकने के बाद अब लिंकन में सामान चढा रही थीं ।
सुनील ने देखा कम से कम बीस फुट लम्बा आठ फुट चौड़ा और लगभग छः फुट ऊंचा लड़की का क्रेट क्रेन द्वारा जहाज में चढाया जा रहा था ।
“इस क्रेट में क्या है ?” - कर्नल मुखर्जी ने हार्बर पर खड़े एक कस्टम अधिकारी से पूछा ।
“डायनेमो और जनरेटर वगैरह, जो किसी व्यापारिक समझौते के अन्तर्गत नेटसीकाप सरकार अमेरिका को वापिस कर रही है ।” - कस्टम अधिकारी बोला ।
“ओह !” - मुखर्जी बोले और चुप हो गये ।
वैसे ही पांच क्रेट जहाज में और चढाये गये ।
लिंकन के अधिकारियों ने कस्टम से जहाज रानी के आवश्यक कागजातों पर हस्ताक्षर करवा लिये ।
एक घन्टा गुजर गया ।
लेकिन लिंकन, जो पहले ही दो घण्टे लेट हो चुका था, अपनी मंजिल की ओर रवाना नहीं हुआ ।
“क्या बात है ?” - कर्नल मुखर्जी ने अधिकारी से पूछा - “जहाज जाता क्यों नहीं अब ?”
“ईहकैराक के कुछ और यात्री चढने वाले हैं ।” - कस्टम अधिकरी बोला - “वे अभी पहुंचे नहीं हैं ।”
“अगर ये नहीं आयेंगे तो क्या जहाज नहीं चलेगा ?” - मुखर्जी ने हैरानी से पूछा ।
“साधारणतया तो ऐसा नहीं होता लेकिन उन यात्रियों की प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी ।”
“क्यों !”
“ईहकैराक में अमेरिका से आये कुछ टूरिस्ट एक कार दुर्घटना का शिकार हो गये हैं । उन में से दो मर गये हैं, एक की दोनों टांगे कट गई हैं और दो को केवल मामूली चोटें आई हैं । नैटसीकाप के अमेरिकी राजदूत की इसमें निजी दिलचस्पी है कि मृत व्यक्तियों के शरीर, घायल मिस्टर होस्डन और बाकी के स्मिथ और ग्रैगरी नाम के दो सज्जन सकुशल स्वदेश पहुंच जायें । अमेरिकन राजदूत की सिफारिश पर कैप्टन ब्राउन ताबूतों में बन्द लाशों और आदमियों को अपने जहाज पर ले जाने के लिये तैयार हो गया है । इन लोगों को ले जाने के लिये सिल्वर लाईन शिपिंग कम्पनी के एजेन्ट को कई रिजर्वेशन कैंसिल करनी पड़ी हैं ।”
“इतने दिन ताबूत में पड़ी लाशें सड़ेगी नहीं क्या ?” - सुनील ने पूछा ।
“नहीं ।” - कस्टम अधिकारी बोला - “ऐसा इन्तजाम कर दिया गया है कि लाशों का कुछ न बिगड़े । लाशें शीशे के बक्सों में एक विशेष प्रकार का मसाला लगाकर बन्द की गई हैं । उन बक्सों को फिर लकड़ी के ताबूतों में बन्द कर दिया गया है ।”
उसी क्षण वहां एक एम्बूलेंस आकर रुकी ।
कुछ आदमी बाहर निकले जिसमें दो नैटसीकाप पुलिस की वर्दी धारण किये सिपाही भी थे । एम्बूलैंस में से दो ताबूत निकाले गये और अगले पन्द्रह मिनट में वे भी जहाज में पहंच गये ।
एम्बूलेंस के यहां के हटते ही वहां दो कारें आ रुकी । पहली कार में बड़ी फुर्ती से एक सफेद वर्दीधारी शोफर निकला, उसने कार की छत के साथ बन्धी पहियों वाली कुर्सी उतार कर नीचे रख दी, फिर कार में एक नर्स निकली । नर्स एकदम सफेद यूनिफार्म पहने हुये थी । उसकी स्कर्ट इतनी लम्बी थी कि टखनों तक पहुंच रही थी । अजीब भौंडा अजीब-सा लगने वाला चेहरा था उसका और ऊपरी होंठ को देखकर यूं लगता था जैसे यहां से बाल उखाड़ती हो वह ।
शोफर और नर्स दोनों ने मिल कर कार मैं से एक वृद्ध आदमी को बाहर निकाला उसकी दोनों टांगे एक कम्बल से ढकी हुई थीं और पावों के पास जितना भाग कम्बल से बाहर निकला हुआ था उस पर पट्टियां बन्ध हुई थीं । उसके चेहरे पर फ्रेन्च कट दाढी और मूछें थी और सिर पर अंगारों की तरह जलते हुये लाल रंग के घने और रूखे बाल थे ।
दोनों ने वृद्ध को पहियों वागी कुर्सी पर बैठा दिया ।
पिछली कार में से भी दो आदमी निकले । उनमें से एक लगभग तीस साल का युवक था और दूसरा...
दूसरे को देखकर कर्नल मुखर्जी एकदम चौंक पड़े ।
वह कार्ल प्लूमर था ।
गंजा सिर, घनी दाढी मूंछ, पीठ का हल्का-सा कूबड़ और लंगड़ी चाल उसकी काफी से ज्यादा पहचान थी ।
वह अपने युवक साथी के कन्धे पर हाथ रखे छड़ी की सहायता से आगे बढ रहा था ।
कर्नल मूखर्जी लपक कर उसी कस्टम अधिकारी के पास पहुंचे जिससे वे पहले बातें कर रहे थे ।
“यही हैं वे यात्री ?” - कर्नल मुखर्जी ने पूछा ।
अधिकारी ने स्वीकृति सूचक सिर हिला दिया ।
“और उन लकड़ी के ताबूतों में लाशें थीं ?”
“यस ।”
“आपको क्या मालूम उन ताबूतों में लाशें हैं । सम्भव है वे कुछ स्मगल करके ले जा रहे हों ?”
“नैटसीकाप का कस्टम विभाग अन्धा नहीं है, साहब ।” - कस्टम अधिकारी बोला - “सब कुछ चैक कर लिया गया है और फिर यह मत भूलिये इसमें अमेरिकन राजदूत का दखल है ।”
कर्नल मुखर्जी चुपचाप वहां से हट गये ।
“क्या बात थी सर ?” - सुनील ने पूछा ।
“तुमने उस दाढी वाले आदमी को देखा था ?” - कर्नल मुखर्जी बोले ।
“जी हां देखा था ।”
“वह कार्ल प्लूमर था ।”
सुनील के मुख से आश्चर्य भरी सिसकारी निकल गई ।
“कार्ल प्लूमर की सूरत देखते ही मुझे एक नई सम्भावना दिखाई देने लगी है ।”
“क्या ?”
“हो सकता है उन ताबूतों में लाशों के स्थान पर डाक्टर चन्द्रशेखरन और डेस्ट्रायर हो ।”
“लेकिन यह कैसे हो सकता है ?” - सुनील बोला - “कस्टम वालों ने उन ताबूतों को चेक किया है और स्वयं अमेरिकन राजदूत का कथन है कि उनमें अमेरिकन नागरिक हैं ।”
“जब कार्ल प्लूमर सामने हो तो सभी कुछ सम्भव है । एक क्या, वह एक हजार कस्टम अधिकारियों की आंखों में धूल झोंक सकता है ।”
“फिर ।”
“फिर यह कि हम इसे रोक नहीं सकते । जब एक राष्ट्र की सरकार उससे संतुष्ट है और वह कस्टम अधिकारियों द्वारा चैक किये जाने के बाद कानूनी तौर पर लिंकन में सफर कर रहा है तो सिवाय हाथ मलने के कुछ नहीं कर सकते ।”
सुनील चुप रहा ।
“लेकिन हमें यह मालूम होगा ही चाहिये कि उन ताबूतों के क्या है ?”
“कैसे मालूम होगा ?”
“तुम मालूम करोगे ।”
“लेकिन कैसे ? मुझे जहाज पर चढने कौन देगा ? आपने देखा ही है हमारी लिंकन की तलाशी लेने की इच्छा को कैप्टन ब्राउन परह क्या प्रतिक्रिया हुई थी । वह बबाल खड़ा कर देगा ।”
“कोई बबाल खड़ा नहीं होगा । कैप्टन ब्राउन खुद तुम्हें अपने जहाज पर चढा लेगा ।”
“लेकिन... लेकिन कैसे ?” - सुनील और भी हैरान हो उठा ।
“कैप्टेन ब्राउन का लिंकन समुन्द्र में पहुंच से । फिर तुम एक हवाई दुर्घटना के शिकार होकर लिंकन के समीप जा गिराये और कैप्टन ब्राउन तुम्हें खुद बचायेगा ।”
“लेकिन यह सब होगा कैसे ?”
“अभी मेरे पास एक पुरुष का पता और है । वही सब कुछ करेगा ।”
“कौन ?”
“विंग कमाण्डर रामू ।” - मुखर्जी बोले और उनकी दृष्टि लिंकन की ओर उठ गई ।
नए यात्री जहाज में चढ चुके थे ।