बी ओ ए सी का विशाल बोइंग प्लेन काहिरा के अलमाजा एयरपोर्ट पर उतरा ।
सुनील ने अपनी सीट बैल्ट खोल दी ।
यह पहला मौका था जब सी आई बी की ब्रांच स्पेशल इन्टेलीजेंस के डायरेक्टर कर्नल मुखर्जी ने उसे आपरेशन के बारे में हल्का सा संकेत तक दिये बिना इतना आनन फानन अरब की ओर रवाना कर दिया था कि उसे ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में औपचारिक रूप से छुट्टी की अर्जी तक देने का मौका नहीं मिला था । साढे ग्यारह बजे उसकी फोन पर कर्नल मुखर्जी से बात हुई थी । सवा बारह बजे वह राजनगर एयरपोर्ट पर था जहां कर्नल मुखर्जी का नौकर धर्मसिंह उसका पासपोर्ट, हवाई जहाज का टिकट और एक छोटे सूटकेस में हल्का-सा सामान लिये पहले से ही इन्तजार कर रहा था । गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने टेलीफोन करके एक घण्टे में ही उसकी सारी कागजी कार्यवाही पूरी करवा दी थी । एक बजे प्लेन राजनगर से उड़ा था और दुबई, कुवैत और बेरूत रुकता हुआ अन्धेरा होने से पहले ही काहिरा पहुंच गया था ।
सुनील प्लेन से उतरा । कस्टम वगैरह से निपटकर वह एयरपोर्ट की इमारत से बाहर निकल आया । वह मारकी के एक खम्बे के साथ लगकर खड़ा हो गया । उसने अपना सूटकेस अपने पैरों के पास रख लिया और सिगरेट सुलगा लिया ।
“टैक्सी सर ?” - एक मोटा-सा अरब उसके समीप आकर बोला ।
सुनील ने बिना उसकी ओर देखे नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
अरब ने बुरा-सा मुंह बनाया और एक अन्य यात्री की ओर बढ गया ।
सुनील प्रतीक्षा करता रहा ।
कर्नल मुखर्जी के कथनानुसार टी पी शास्त्री नाम का एक आदमी उसे एयरपोर्ट पर ही मिलने वाला था ।
मारकी के एक अन्य खम्बे की ओट में एक थुलथुल शरीर वाला मोटा लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व वाला था । वह एक सफेद रंग का हल्का सूट पहने हुए था । उसके चेहरे पर काला चश्मा था और उसके सिर के दो तिहाई बाल उड़ चुके थे । उसके दोनों हाथों में एक खुला हुआ अखबार था, जिसकी ओट में से वह सुनील को परख रहा था ।
सुनील ने सिगरेट का आखिरी कश लगाकर उसे हवा में उछाल दिया ।
काले चश्मे वाले ने अखबार लपेटकर बगल में दबाया और फिर लम्बे डग भरता हुआ सुनील की ओर बढा ।
“मिस्टर सुनील !” - वह सुनील के समीप आकर बोला ।
“शास्त्री ?”
“दि सेम” - वह सिर को तनिक नवाकर बोला - “त्रिवेणी प्रसाद शास्त्री ।”
सुनील से उससे हाथ मिलाया ।
शास्त्री ने अपनी जेब से एक तह किया हुआ कागज निकालकर सुनील की ओर बढा दिया ।
सुनील ने कागज खोलकर देखा । वह टैलेक्स मेसेज था जो कर्नल मुखर्जी ने सुनील के सामने ही शास्त्री को भेजा था और जिसके द्वारा शास्त्री को काहिरा में सुनील के आगमन की सूचना दी गई थी। उस पर बी ओ ए सी की उस फ्लाईट का नम्बर लिखा हुआ था जिस पर सुनील आया था और उसमें शास्त्री को एयरपोर्ट पर सुनील को रिसीव करने का निर्देश था ।
सुनील ने कागज तह करके शास्त्री को वापिस कर दिया । कर्नल मुखर्जी ने शास्त्री का हुलिया बड़ी बारीकी से बयान किया था । सुनील उसे देखते ही पहचान गया था ।
“जरा अपना पासपोर्ट दिखाइयेगा !” - शास्त्री बोला ।
सुनील ने कोट की भीतरी जेब से पासपोर्ट निकालकर शास्त्री के हाथ में रख दिया ।
शास्त्री कुछ क्षण पासपोर्ट उलटता-पलटता रहा फिर उसने पासपोर्ट सुनील को लौटा दिया ।
“थैंक्यू” - वह बोला । उसके चेहरे पर एक सन्तुष्टिपुर्ण मुस्कराहट थी - “तशरीफ लाइये ।”
सुनील उसके साथ हो लिया ।
एयरपोर्ट की इमारत से जरा हटकर एक काली आस्टिन खड़ी थी । ड्राइविंग सीट पर एक वर्दीधारी शोफर बैठा दिखाई दे रहा था ।
शास्त्री और सुनील कार में बैठ गये ।
कार तुरन्त आगे बढ गई ।
अलमाजा एयरपोर्ट और काहिरा शहर के बीच का सोलह मील का फासला आस्टिन ने सुनील की आशा से जल्दी तय कर लिया । कार काहिरा के घने बाजारों में से गुजरने लगी ।
“आप पहले कभी काहिरा, आये हैं ?” - शास्त्री ने पूछा ।
“नहीं ।” - सुनील बोला ।
“बड़ी रंगीन जगह है । पहले काम हो जाये फिर आपको तफरीह करायेंगे ।”
सुनील चुप रहा ।
“सामने देखिये !” - शास्त्री बोला ।
सुनील ने देखा सामने एक बहुत विशाल चौक था जिससे कई सड़कें फूट रही थीं । चौक के बीचों-बीच एक मस्जिद खड़ी थी जिसकी मीनारें आसमान से छूती मालूम हो रही थीं ।
“माई गॉड !” - सुनील के मुंह से अपने आप ही निकल गया ।
“यह सुल्तान हसन मस्जिद है । छ: सौ साल पुरानी है । चौदहवीं सदी के आर्किटैक्चर का इससे बढिया नमूना आपको सारे अरब में नहीं मिलेगा । इसकी मीनारें दो सौ सत्तर फुट ऊंची हैं । काहिरा में तकरीबन हर जगह सुल्तान हसन मस्जिद की मीनारें दिखाई देती हैं । काहिरा में मस्जिदें बहुत हैं, मीनारें भी बहुत हैं लेकिन इससे ऊंची कोई नहीं ।”
“आई सी ।”
कार एक स्थान पर रुकी ।
“यह अल-हैलमिया स्ट्रीट है” - शास्त्री बोला - “आपको सुल्तान हसन मस्जिद के बारे में बताने का मतलब यह था कि यह स्थान मस्जिद के एकदम पास है । आप कभी यहां अकेले आयेंगे तो आपको तलाश करने में दिक्कत नहीं होगी । आइये ।”
दोनों कार से बाहर निकल आये ।
शास्त्री उसे एक ऐसी इमारत में ले आया जिसके बाहर दुकानें थीं । वे इमारत के एक बाजार के शोरगुल और गर्मी से मुक्त एक वातानुकूलित कमरे में पहुंचे । शास्त्री आबनूस की लकड़ी की बनी एक विशाल मेज के पीछे बैठ गया । उसका विशाल शरीर कुर्सी में बड़ी मुश्किल से समाया । कुर्सी विरोध में एक बार जोर से चरमराई और फिर शान्त हो गई ।
सुनील भी एक अन्य कुर्सी पर बैठ गया ।
“कुछ पीजिएगा ?” - शास्त्री बेाला ।
“क्या पिलाइएगा ?” - सुनील बोला ।
“बियर । बहुत ठण्डी । बहुत उम्दा ।”
“आई एम सोल्ड ।”
शास्त्री ने मेज पर टेलीफोन उठाया, उसका एक बटन दबाया और बोला - “बियर ।”
उसने फोन रख लिया ।
जब तक बियर नहीं आ गई तब तक शास्त्री कुर्सी पर अधलेटा-सा बैठा अपना पेट थपथपाता रहा ।
सुनील ने देखा, शास्त्री ने वहां भी काला चश्मा उतारने का उपक्रम नहीं किया था । शायद वह चौबीस घन्टे काला चश्मा लगाने का आदी था ।
एक वर्दीधारी चपरासी झाग से उफनते हुए दो मग उनके सामने छोड़ गया ।
शास्त्री ने बियर का एक बड़ा सा घूंट भरा, उसने तृप्ति की एक गहरी सांस ली और बोला - “लैट्स कम टु बिजनेस नाउ ।”
सुनील निर्विकार भाव से उसकी ओर देखता रहा ।
“आप कर्नल मकसूद अहमद को कैसे जानते हैं ?” - शास्त्री ने गम्भीर स्वर से पूछा ।
“कर्नल मकसूद अहमद !” - सुनील उलझनपूर्ण स्वर से बोला - “कौन है वो ?”
“आप किसी कर्नल मकसूद अहमद को नहीं जानते ?”
“मैंने ऐसा कोई नाम आज तक नहीं सुना ।”
“हैरानी है, साहब” - शास्त्री के चेहरे से वाकई हैरानी टपक रही थी - “वह तो आपको अच्छी तरह जानता है ।”
“वह है कौन ?”
शास्त्री एक क्षण चुप रहा और फिर तनिक आगे को झुककर बोला - “वह पकिस्तान की सीक्रेट सर्विस का डिप्टी डायरेक्टर है और इस वक्त काहिरा में है ।”
“पाकिस्तान सीक्रेट सर्विस का डिप्टी डायरेक्टर ! कर्नल मकसूद अहमद ! और वह कहता है कि वह मुझे जानता है ।”
“हां ।”
“किस्सा क्या है ?”
“किस्सा यह है कि पाकिस्तानी सीक्रेट सर्विस का डिप्टी डायरेक्टर कर्नल मकसूद अहमद पाकिस्तान से डिफैक्ट कर जाना चाहता है और वह भारत से शरण मांग रहा है । वह रावलपिंडी से ईराक किसी सरकारी काम से आया था । ईराक से वह चुपचाप यहां खिसक आया है । किसी प्रकार उसे मेरी जानकारी थी । मुझसे सम्पर्क स्थापित करके उसने मुझे अपना मन्तव्य बताया है ।”
“और वह डिफैक्ट क्यों कर रहा है ?”
“क्योंकि उसे अपनी जान को खतरा दिखाई दे रहा है । बंगलादेश के स्वाधीनता संग्राम के दौर में उसकी नियुक्ति ढाका में थी । उस पर यह इल्जाम लगाया जा रहा है । कि उसने अपने काम को जिम्मेदारी से अंजाम नहीं दिया । पूर्वी पाकिस्तान हाथ से निकल जाने के मामले में पाकिस्तानी हकूमत उसे काफी हद तक जिम्मेदार मानती है । उनके कथनानुसार मकसूद अहमद न तो मुक्तिवाहिनी की शक्ति और संगठन का सही अन्दाजा लगा पाया और न ही वह यह अन्दाजा लगा पाया कि मुक्तिवाहिनी का, शेख मुजीबुर्रहमान का और उसके अन्य अनुयायियों का भारत सरकार के साथ किस हद तक गठजोड़ है जिसकी वजह से पाकिस्तानी हकूमत अन्धेरे में रही और वह इंकलाब की आग को उसकी शुरूआत के वक्त ही दबा न पाई । अब उसे पता लगा है कि भुट्टो की सरकार उसके खिलाफ कोई सख्त कदम उठाने जा रही है ।”
“कितना सख्त ?”
“नौकरी तो उसकी जायेगी ही । कुछ साल के लिये जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है । और अगर इस बात में कोई दम है कि प्रैसीडेन्ट भुट्टो जनरल टिक्का खां के हाथ की कठपुतली मात्र ही है तो यह भी संभव है कि उसे एक दीवार के साथ खड़ा करके गोली मार दी जाये । बहरहाल कर्नल मकसूद अहमद का सितारा गर्दिश में है । उसे अपनी जान का सरासर खतरा दिखाई दे रहा है । और उसे अपनी सलामती इसी में दिखाई देती है कि वह कयामत टूटने से पहले ही पाकिस्तान से रफूचक्कर हो जाये । जिस साधन से उसे यह मालूम हुआ है कि उस पर एक्शन होने वाला है उसी ने उसे यह भी बताया है कि उसके ईराक से लौटने के फौरन बाद वह मिलिट्री पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जायेगा । इसलिये वह ईराक से लौटना ही नहीं चाहता ।”
“ये बातें उसे किसने बताई हैं ?”
“उसके कथनानुसार उसके ही विभाग के एक उससे जूनियर अफसर ने ।”
“आप लोग उसे भारत में शरण देना चाहते हैं ?”
“हां ।”
“क्यों ?”
“हमें फायदा है ।”
“क्या फायदा है ?”
“यह वक्त आने पर मालूम होगा ।”
“आल राइट । मकसूद अहमद डिफैक्ट करना चाहता है, आप उसे शरण देने के लिये तैयार हैं । वह इस वक्त काहिरा में है । आप उसे लेकर भारत चले जाइये । छुट्टी । मैं इस तस्वीर में कहां फिट हुआ ?”
“हम तो सोच रहे थे यह बात हमें आप बतायेंगे ।”
“क्या मतलब ?”
“कर्नल मकसूद अहमद आपको जानता है । मेरा विश्वास था कि आप भी उसे जरूर जानते होंगे ।”
“मैं उसे नहीं जानता । मेरा उसे जानने का सवाल भी नहीं पैदा होता । और मेरे ख्याल से उसे भी गलतफहमी ही हुई है कि वह मुझे जानता है ।”
शास्त्री कुछ क्षण चुप रहा ।
सुनील ने बियर का आखरी घूंट हलक से उतारा और एक सिगेरट सुलगा लिया । अपना लक्की स्ट्राइक का पैकेट उसने शास्त्री की ओर सरका दिया । शास्त्री ने सिगरेट की ओर हाथ नहीं बढाया । उसने मेज का एक दराज खोला । दराज में से एक पोस्टकार्ड साइज की तस्वीर निकालकर उसने सुनील के सामने रख दी ।
सुनील ने देखा, वह उसकी अपनी तस्वीर थी ।
“मेरी तस्वीर ?” - सुनील हैरानी से बोला - “तुम्हारे पास कहां से आई यह ?”
“मकसूद अहमद लाया है ।”
“और उसके पास मेरी तस्वीर कहां से आई ?”
“यह उसने नहीं बताया ।”
“उसके पास मेरी तस्वीर एक ही तरीके से आ सकती है ।”
“कैसे ?”
“तीस जनवरी 1970 को इण्डियन एयरलाइंस का जो फाकर फ्रैन्डशिप प्लेन हाईजैक करके लाहौर ले जाया गया था, उसके मुसाफिरों में मैं भी था । पाकिस्तानी प्रैस द्वारा एयरपोर्ट पर प्लेन के मुसाफिरों की बहुत तस्वीरें खींची गई थीं । पाकिस्तानी इंटैलीजेंस का अब्दुल वहीद कुरेशी नाम का एक एजेन्ट मुझे भारतीय सीक्रेट एजेन्ट के रूप में पहचान भी गया था । मेरे पाकिस्तान से भाग निकलने के बाद प्रैस फोटोग्राफरों द्वारा खींची गई मेरी तस्वीरो में से ही कोई तस्वीर पाकिस्तान इंटैलीजेंस के रिकार्ड में पहुंच गई होगी । मकसूद अहमद पाकिस्तानी इंटेलीजेंस का डिप्टी डायरेक्टर है । उसने मेरी तस्वीर जरूर इंटैलीजेंस के रिकार्ड में से उठाई होगी ।”
“हो सकता है ।” - शास्त्री ने स्वीकार किया ।
“और अब क्या तुम्हें यह नहीं लगता कि यह मकसूद अहमद द्वारा भारत की शरण में आने वाली बात सिर्फ एक कहानी है जो मुझे फांसने के लिए चारे की तरह तुम्हारे सामने डाली गई है । मैंने पाकिस्तानियों का बहुत नुकसान किया है । शास्त्री, मुझे फांसने के लिए वह कुछ भी कसर उठा नहीं रखेंगे । मकसूद अहमद की कहानी का इतना असर तो हुआ है कि कर्नल मुखर्जी ने तुम्हारे अनुरोध पर मुझे आनन-फानन में काहिरा रवाना कर दिया । क्या काहिरा में उन लोगों के लिये एक आदमी को शूट कर देना बहुत मुश्किल काम है ?”
शास्त्री चिन्तित दिखाई देने लगा ।
“और मुझे हैरानी है कि तुम्हें इसी बात से शक नहीं हुआ कि पाकिस्तानी इन्टैलीजेंस का इतना बड़ा अफसर डिफैक्ट करना चाहता है ।”
“इस दुनिया में कुछ भी मुमकिन है ।” - शास्त्री धीरे से बोला ।
“यानी कि अब भी तुम्हारा यह विश्वास हिला नहीं कि मकसूद अहमद वाकई डिफैक्ट करना चाहता है ?”
“देखो” - एकाएक शास्त्री तनिक आगे को झुका और व्यग्र स्वर से बोला - “मैं यह नहीं कहता कि यह सम्भव नहीं कि यह तुम्हे फंसाने के लिये पाकिस्तानियों की कोई चाल हो लेकिन इस बात की कोई गारन्टी नहीं है कि वह झूठ ही बोल रहा है । मेरी राय यह है कि तुम उससे मिल लो और देखो कि वह क्या कहता है । अगर तुम्हें तब भी यह लगे कि यह तुम्हें फांसने की एक चाल है तो मैं फौरन एक प्लेन चार्टर करके तुम्हें सुरक्षित हिन्दुस्तान पहुंचा दूंगा ।”
“उससे मेरा मिलना क्यों जरूरी है ? तुम बात कर लो उससे ।”
“यही तो मुसीबत है । वह तुम्हारे सिवाय किसी और से बात करने के लिये तैयार नहीं । वह तुम्हें हमारी सीक्रेट सर्विस का मेरे से ज्यादा जिम्मेदार अफसर समझता है ।”
“वह कहां है ?”
“रायल हिल्टन होटल में ।”
“मुलाकात कहां होगी ?”
“वहीं ।”
सुनील ने सिगरेट को ऐश ट्रे में झोंक दिया और बोला - “ओके ।”
***
रायल हिल्टन होटल नील नदी के किनारे पर बना हुआ शानदार होटल था । सिक्योरिटी के बड़े तगड़े इन्तजाम के साथ शास्त्री सुनील को वहां लाया । शास्त्री के कथनानुसार होटल के बारह भीतर लाबी में, लिफ्ट के आस-पास और चौथी मंजिल के उस कारीडोर में जिसमें मकसूद अहमद का कमरा था, हर जगह शास्त्री के आदमी मौजूद थे । कम से कम वहां सुनील को ऐसी सम्भावना नहीं दिखाई देती थी कि पाकिस्तानी उसे गोली मार दें या भगा कर ले जायें ।
लिफ्ट में शास्त्री ने चुपचाप सुनील के हाथ में एक छोटी-सी खूबसूरत रिवाल्वर सरका दी । सुनील ने अपना रिवाल्वर वाला हाथ कोट की जेब में डाल लिया ।
वे मकसूद अहमद के कमरे में पहुंचे ।
मकसूद अहमद एक लगभग पचास साल का बेहद तन्दुरुस्त और बेहद चिन्तित दिखाई देने वाला आदमी था । उसने बड़ी गर्मजोशी से शास्त्री और सुनील से हाथ मिलाया ।
शास्त्री ने सबसे पहले कमरे की सारी खिड़कियां खोलकर बाहर झांका, खिड़कियों को भीतर से बन्द किया और फिर बाथरूम और वार्डरोब को चैक किया ।
वहां कोई नहीं था ।
“मैं अभी हाजिर हुआ ।” - शास्त्री बोला और कमरे से बाहर निकल गया ।
अब सुनील और मकसूद अहमद कमरे में आमने सामने खड़े थे ।
“शैल वी सिट डाउन ?” - सुनील बोला ।
“ओह, यस । यस ।” - मकसूद अहमद हड़बड़ाकर बोला ।
दोनों एक सोफे पर अगल-बगल बैठ गये ।
“शास्त्री हमें इसलिऐ अकेला छेाड़ गया है कि शायद कोई ऐसी बात हो जो आप उसकी मौजूदगी में न कहना चाहतें हों ।”
मकसूद अहमद ने बैचेनी से पहलू बदला ।
“आप मुझे कैसे जानते हैं ?” - सुनील ने प्रश्न किया ।
“हमारे विभाग में तुम्हारी पूरी फाइल है” - मकसूद अहमद बोला - “हमारा एजेंट अब्दुल वहीद कुरेशी तुम्हारे में खास दिलचस्पी रखता है ।”
“मुझे मालूम है । मुझे याद है लाहौर में उसने मुझे कहा था कि अगर खुदा उसे जन्नत में से और मुझमें से एक चीज चुनने के लिए कहे तो वह यकीनन मुझे चुनेगा ।”
कर्नल मकसूद अहमद चुप रहा ।
“आप मुझसे मिलना चाहते थे ?” - सुनील सीधा मुख्य विषय पर आता हुआ बोला ।
“हां ।” - कर्नल मकसूद अहमद कठिन स्वर में बोला - “तुम्हें शास्त्री से मालूम हो ही चुका होगा कि मैं वास्तव में क्या चाहता हूं ।”
“हां” - सुनील बोला - “लेकिन इस बात का क्या भरोसा है कि यह कोई फ्राड नहीं है ?”
“कैसा फ्राड ?”
“शायद आपका डिफैक्ट करने का ख्याल केवल एक झांसा हो जिसके दम पर आप मुझे फांसने की कोशिश कर रहे हों ?”
“ऐसी कोई बात नहीं है” - कर्नल मकसूद अहमद व्यग्र स्वर में बोला - “फिलहाल मैं कोई सबूत पेश नहीं कर सकता लेकिन मेरा खुदा जानता है कि इस सारे सिलसिले में किसी धोखाधड़ी या फ्राड का हाथ नहीं है ।”
“आल राइट । वक्ती तौर पर मैं मान लेता हूं कि क्योंकि आप की जान को खतरा है इसलिए आप भारत की शरण में आना चाहते हैं लेकिन भारत को आपको शरण क्यों देनी चाहिए ? क्यों हम शत्रु राष्ट्र के एक सीक्रेट एजेण्ट की सुरक्षा की जिम्मेदारी लें ।”
“क्योंकि इसमें आपका भी फायदा है ।”
“अच्छा ! क्या फायदा है हमें ?”
“मिस्टर सुनील, मैंने जो पाकिस्तान से डिफैक्ट करने की इच्छा हिन्दुस्तान पर जाहिर की है, उसकी कोई वजह है । मैं आपसे किसी रहमोकरम या हमदर्दी की उम्मीद नहीं कर रहा हूं । मैं आपसे एक सौदा करना चाहता हूं । उस सौदे की रूह में आपको जो फायदा पहुंचेगा उसी के बदल में मैं आपकी सरकार से अपनी हिफाजत की शर्त रखना चाहता हूं ।”
“लेकिन ऐसे किसी सौदे के लिए आपने सिर्फ मेरे से ही बात करना क्यों जरूरी समझा ! इस काम के लिए तो शास्त्री मेरे से ज्यादा मुनासिब आदमी था और वह आपको आसानी से हासिल भी था ।”
“मुझे नहीं मालूम कि शास्त्री क्या चीज है ? वह कहता है कि वह हिन्दुस्तानी एजेण्ट है लेकिन मेरी निगाह में वह कुछ भी हो सकता है । और अगर वह हिन्दुस्तानी एजेण्ट है तो मुझे यह नहीं मालूम कि वह हिन्दुस्तानी सीक्रेट सर्विस की मशीनरी का किस हद तक जिम्मेदार पुर्जा है । तुम्हारे बारे में मैं जानता हूं इसलिए मैंने शास्त्री के सामने यह शर्त रखी थी अगर मैं बात करूंगा तो तुमसे ।”
“सौदा क्या है ?”
कर्नल मकसूद अहमद ने अपनी जेब से कुछ तह किये हुए कागज निकाले और उन्हें सुनील को थमा दिया ।
“यह उन बारह सौ आदमियों की लिस्ट है” - कर्नल मकसूद अहमद बोला - “जो बंगलादेश के नागरिक हैं और पाकिस्तानी सरकार की मदद से शेख मुजीबुर्रहमान की हाल ही में कायम हुई हुकूमत का तख्ता उलटने की साजिश रच रहे हैं ।”
“क-क्या ?” - सुनील हैरानी से उसका मुंह देखने लगा ।
“हां । शेख मुजीब अपने ही बारह सौ देशवासियों के विश्वासघात का शिकार होने वाला है ।”
“मैं शास्त्री को बुलाता हूं ।” - सुनील बोला ।
शास्त्री बाहर गलियारे में ही खड़ा था । सुनील के संकेत पर वह कमरे में आ गया । सुनील ने लिस्ट शास्त्री के हाथ में सौंपी और उसे बता दिया कि लिस्ट वास्तव में क्या थी ।
शास्त्री कितनी ही देर लिस्ट को उलटता-पलटता रहा । उसका चेहरा बेहद गम्भीर हो उठा था ।
“मेरे पास आठ सौ आदमियों की एक लिस्ट और भी है” - कर्नल मकसूद अहमद बोला - “दूसरी लिस्ट उन लोगों की है जो शेख मुजीबुर्रहमान के हितचिन्तक हैं और बंगलादेश के मौजूदा निजाम को कायम रखने में जिनका बहुत बड़ा हाथ है । पाकिस्तानी साजिश उन आठ सौ के आठ सौ आदमियों को एक साथ कत्ल करवा देने की है । आप लोगों को दोनों लिस्टें हासिल हो जाने से न केवल आप शेख मुजीब के आठ सौ हितचिन्तकों की जिन्दगी बचा सकते हैं बल्कि आप उसके ऐसे बारह सौ दुश्मनों का सफाया कर सकते हैं जो बंगलादेश को फिर पाकिस्तान का हिस्सा बनाने का सपना देख रहे हैं ।”
“दूसरी लिस्ट कहां है ?” - शास्त्री बोला ।
“वक्त आने पर वह भी आप लोगों को मिल जाएगी ।”
“यह लिस्ट भी फ्राड हो सकती है ।”
“क्या मतलब ?”
“मुमकिन है आपने ढाका की टेलीफोन डायरेक्ट्री खोली हो और उसमें से कोई से बारह सौ नाम लिखकर यह लिस्ट बना दी हो ।”
कर्नल मकसूद अहमद के नेत्र सिकुड़ गए । उसने यूं शास्त्री की ओर देखा जैसे उसने बहुत बचकानी बात कह दी हो । फिर उसने अपनी जेब से फाउन्टेन पैन और डायरी निकाली । डायरी में से उसने एक कागज फाड़ा, उस पर पैन से कुछ लिखा और कागज शास्त्री की ओर बढाता हुआ बोला - “क्या ये नाम भी मैंने ढाका की टेलीफोन डायरेक्ट्री में से देखकर लिखे हैं ?”
शास्त्री ने कागज लेकर पढा । उसने कागज की गोली सी बनाकर सावधानी से अपने कोट की जेब में डाल ली और बड़ी बेचैनी से अपना चश्मा ठीक करने लगा ।
“सॉरी !” - अंत में शास्त्री बोला - “दोनों लिस्टो को हासिल करने के लिए बदले में आपको भारत में शरण देने के अलावा भी हमें कुछ करना होगा ?”
“हां” - कर्नल मकसूद अहमद बोला - “आपको मेरी बीवी को सुरक्षित निकालकर लाना होगा ।”
“कहां से ? पाकिस्तान से ?”
“नहीं । ईराक से । वह इस वक्त बसरा में है । बसरा के समुद्र तट पर एक अल-हलाली नाम का टूरिस्ट होटल है । हम दोनों वहीं ठहरे हुए थे । मैं चुपचाप काहिरा खिसक आया था लेकिन मेरी बीवी अभी भी अल-हलाली होटल में ही है । मैं अब वापिस बसरा जाने का हौसला नहीं कर सकता । इसलिए सौदे की यह भी एक शर्त है कि आप लोग मेरी बीवी को सुरक्षित बसरा से निकाल लाने का इन्तजाम करें ।”
“आपके ख्याल से क्या पाकिस्तानी एजेण्ट बसरा में आपकी बीवी की निगरानी कर रहे होगे ?”
“मैं दावे से कुछ नहीं कह सकता ।”
“आपके ख्याल से क्या पाकिस्तानियों को मालूम हो चुका होगा कि आप बसरा से खिसक गए हैं ?”
“शायद नहीं । अपने आपको ऐसे किसी सन्देह से दूर रखने के लिए ही मैं अपनी बीवी को बसरा छोड़ आया था । वे मुझसे अपनी बीवी को असुरक्षित छोड़कर निकल भागने की उम्मीद नहीं करेंगे । जब तक मेरी बीवी बसरा के अल-हलाली होटल में मौजूद है तब तक अगर हमारी निगरानी हो रही है तो निगरानी करने वाले यही समझेंगे कि मैं इधर-उधर घूमने निकल गया हूं और लौटकर जरूर आऊंगा ।”
“आपके ख्याल से आपके भाग निकलने की बात कब तक छुपी रह सकती है ?”
“चौबीस तारीख तक । चौबीस तारीख को मुझे वापिस रावलपिंडी लौटना है ।”
“यानी कि हमारे पास तीन दिन का समय है । आने वाले तीन दिनों मे हमने आपकी बीवी को बसरा से निकालकर लाना है ।”
कर्नल मकसूद अहमद चुप रहा ।
“आपके पास अपनी बीवी की कोई तस्वीर है ?” - शास्त्री ने पूछा ।
कर्नल मकसूद अहमद ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“आल राइट” - शास्त्री बोला - “हम देखेंगे क्या किया जा सकता है ।”
“आप बसरा कब जाएंगे ?” - कर्नल मकसूद अहमद ने सुनील से पूछा ।
“सुनील का जाना जरूरी नहीं है” - शास्त्री बोला - “कोई दूसरा जिम्मेदारी आदमी...”
“सुनील का जाना जरूरी है ।” - कर्नल मकसूद अहमद बात काटकर बोला ।
“क्यों ?”
“क्योंकि मैंने अपनी बीवी को सुनील की तस्वीर दिखाई है । वह सुनील के अलावा किसी और के साथ आने के लिए तैयार नहीं होगी ।”
शास्त्री और सुनील की निगाहें मिलीं । सुनील कुछ नहीं बोला ।
“हम अभी हाजिर होते हैं ।” - शास्त्री उठता हुआ बोला । उसने सुनील को संकेत किया ।
दोनों कमरे से बाहर निकल आये ।
“क्या कहते हो ?” - शास्त्री बाहर गलियारे में आकर बोला ।
“जैसा तुम कहो ।” - सुनील बोला ।
“यह आदमी सच बोलता मालूम होता है । यह वाकई डिफैक्ट करना चाहता है । मुझे नहीं लगता कि यह तुम्हें फांसने की कोई चाल हो ।”
“सम्भव है ।”
“तुम्हें बसरा जाना ही होगा ।”
“आल राइट ।”
“मैं उससे फिर बात करता हूं ।”
“एक बात बताओ ।”
“पूछो !”
“उसने डायरी के पन्ने पर तुम्हें क्या लिखकर दिया था ?”
“हमारे तीन टाप सीक्रेट एजेन्टों के नाम जो बंगलादेश में काम कर रहे हैं । कर्नल मकसूद अहमद को हमारे उन तीनों एजेंटों के नाम मालूम होना एक करिश्मे से कम नहीं । मैं उन्हें फौरन वापिस बुलाने के लिये राजधानी निर्देश भेज रहा हूं ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुम नीचे लाबी में पहुंचो” - शास्त्री बोला - “मैं आता हूं ।”
सुनील बिना एक शब्द बोले लिफ्ट की ओर बढ गया ।
***
कर्नल मकसूद अहमद से सारा सिलसिला तय हो जाने के बाद सबसे पहला काम शास्त्री ने यह किया कि उसने कर्नल कमसूद अहमद को रायल हिल्टन होटल से नील नदी के पार हसन साबरी पाशा स्ट्रीट की एक विशाल और सुनसान इमारत में शिफ्ट कर दिया । इमारत के इर्द-गिर्द एक बारह फुट ऊंची चारदीवारी थी जिसमें सड़क की ओर मुंह किये हुए केवल एक ही लोहे का फाटक था । दोमंजिली इमारत और फाटक के बीच में घने पेड़ों से ढका एक लम्बा ड्राइव-वे था । पेड़ इतने घने थे कि फाटक से इमारत दिखाई नहीं देती थी । इमारत के पृष्ठ भाग में एक टेनिस कोर्ट और स्वीमिंग पूल भी था । इमारत का एक-एक कमरा बड़े ऐश्वर्यपूर्ण ढंग से सजा हुआ था और उसमें सुख-सुविधा के तमाम साधन मौजूद थे ।
शास्त्री की निगाह में काहिरा में कर्नल मकसूद अहमद के लिये उससे ज्यादा सुरक्षित स्थान कोई नहीं था ।
कर्नल मकसूद अहमद ने अपनी बीवी की एक रंगीन तस्वीर सुनील को दी थी । तस्वीर हाथ में आते ही सुनील ने यूं कर्नल मकसूद अहमद को देखा था जैसे वह कोई अजूबा हो क्योंकि तस्वीर एक लगभग पच्चीस साल की फिल्म अभिनेत्रियों जैसी खुबसूरत लड़की की थी । मकसूद अहमद जैसे पचास साल के बुढऊ की बीवी बनने के काबिल वह हरगिज भी नहीं थी । सुनील तो उसकी बीवी की कल्पना एक उसी जैसी अधेड़ उम्र की मोटी थुलथुल बीवी के रूप में कर रहा था लुकिन यहां तो लंगूर के पल्ले हूर बंधी मालूम हो रही थी ।
शास्त्री की निगाह में सुनील का कार द्वारा बसरा जाना ज्यादा सहज, सुरक्षित और सुविधाजनक तरीका था । प्रत्यक्षत: उसका काम बहुत आसान था । उसे एक टूरिस्ट की तरह इजराइल और जोर्डन होते हुए ईराक जाना था, कर्नल मकसूद अहमद की बीवी को यह सन्देश देना था कि वह एक निश्चित समय पर समुद्र के किनारे के एक निश्चित स्थान पर मौजूद रहे । वहां से एक किश्ती द्वारा उसे समुद्र में उस स्थान पर ले जाया जाना था जहां कि एक भारतीय मालवाहक जहाज पहले ही प्रतीक्षा कर रहा था । वह जहाज फारस की खाड़ी और अरब सागर में से होता हुआ बम्बई पहुंचने वाला था । कर्नल मकसूद अहमद की पत्नी के बम्बई पहुंच चुकने की सूचना हासिल होते ही एक चार्टर प्लेन द्वारा कर्नल को बम्बई ले जाया जाना था और आपरेशन समाप्त ।
सुनील ने कर्नल मकसूद अहमद की बीवी को सन्देशा देकर कार द्वारा ही आगे बढ जाना था । ईरान से गुजरकर उसने अफगानिस्तान पहुंचना था । वहां कार उसने काबुल स्थित भारतीय दूतावास में जमा करा देनी थी और स्वयं एशियाना की किसी उपलब्ध फ्लाइट द्वारा राजनगर पहुंच जाना था ।
शास्त्री ने उसे सूरत से पुरानी लगने वाली लेकिन हर लिहाज से चौकस मर्सिडीज कार दी थी ।
सुनील अमान और बगदाद में रुकता हुआ तीसरे दिन दोपहर को बसरा पहुंच गया ।
होटल अल हलाली फारस की खाड़ी के समुद्री तट पर बसा एक शानदार होटल था जिसमें अधिकतर विदेशी टूरिस्ट ही ठहरते थे । सुनील ने अपनी मर्सिडीज होटल के कार पार्क में खड़ी की और फिर अपना हल्का-सा सूटकेस सम्भाले होटल के रिसैप्शन पर पहुंचा । उसने स्वयं को एक कमरे में बुक किया, कपड़े बदले और फिर बीच पर आ गया ।
बीच पर पड़ी असंख्य मेजों में से एक पर वह बैठ गया । उसने बीयर का आर्डर दिया और एक सिगरेट सुलगा लिया ।
कर्नल मकसूद अहमद के कथनानुसार परवीन सुबह की गई लगभग एक बजे बीच से वापिस होटल लौटती थी और उस समय साढे बारह बजे थे ।
परवीन कर्नल मकसूद अहमद की नौजवान बीवी का नाम था ।
सुनील सिगरेट पीता और बीयर की चुस्कियां लेता हुआ प्रतीक्षा करता रहा ।
एक बजकर पांच मिनट पर उसे परवीन के दर्शन हुए । सुनील ने उसे तुरन्त पहचान लिया । वह एक बिकिनी स्वीमिंग सूट पहने समुद्र की ओर से लौट रही थी । उसके साथ एक हृष्ट-पुष्ट ईराकी युवक था । युवक का हाथ नंगी कमर से लिपटा हुआ था और परवीन को प्रत्यक्षत: युवक के हाथ की स्थिति से कोई एतराज नहीं मालूम होता था ।
परवीन और वह युवक सुनील की मेज के एकदम पास से गुजरे लेकिन दोनो में से किसी ने सुनील की ओर आंख उठाकर नहीं देखा ।
परवीन को इतना समीप से देखकर सुनील सिगरेट पीना भूल गया । परवीन अपनी तस्वीर से कहीं अधिक खूबसूरत थी । उसका गोरा शरीर संगमरमर में से तराशा हुआ मालूम होता था, चेहरे पर तन्दुरुस्ती की चमक थी और आंखों में जवानी का खुमार था । कर्नल मकसूद ने उसकी उम्र पच्चीस साल बताई थी लेकिन वह मुश्किल से उन्नीस साल की अनछुई कली मालूम होती थी । कर्नल मकसूद अहमद की शक्ल एक बार फिर सुनील की आंखों के सामने फिर गई ।
हे भगवान ! क्या जोड़ी थी । जरूर किसी मजबूरी में परवीन ने कर्नल मकसूद अहमद से शादी की थी ।
परवीन अपने साथी के साथ होटल के भीतर प्रविष्ट हो गई ।
सुनील ने एक गहरी सांस ली और एक नया सिगरेट सुलगा लिया ।
परवीन से सम्पर्क स्थापित करने के लिए अभी बहुत समय था । पहले उसने यह देखना था कि उसकी निगरानी तो नहीं हो रही थी । बीच पर मौजूद लगभग हर आदमी की तारीफी निगाहें समान रूप से परवीन पर पड़ रहीं थीं इसलिए यह जानना मुश्किल था कि कौन परवीन के सौन्दर्य और यौवन का रसास्वादन कर रहा था और कौन उसकी निगरानी कर रहा था ।
सुनील ने वेटर को बुलाकर बिल चुकाया और उठ खड़ा हुआ । लापरवाही से बीच पर चलता हुआ वह समुद्र के किनारे-किनारे आगे बढने लगा ।
थोड़ी देर बाद वह होटल और होटल के सामने मौजूद सैलानियों की भीड़भाड़ से आगे निकल आया ।
लगभग दो मील आगे निकल आने के बाद वह एक स्थान पर रुक गया । वह एक पथरीला इलाका था और वहां रेत नहीं थी । दिन में भी वह स्थान एकदम सुनसान पड़ा था । यही वह जगह थी जहां उसने परवीन को रात के सवा बारह बजे प्रतीक्षा करने के लिए कहना था ।
सुनील होटल में वापिस लौट आया ।
रिसैप्शन से उसे बड़ी आसानी से मालूम हो गया कि परवीन के कमरे का नम्बर 438 था ।
कर्नल मकसूद अहमद के कथनानुसार परवीन लंच के बाद कम से कम तीन घण्टे आराम करती थी ।
सुनील ने भी डायनिंग हाल में लंच लिया और अपने कमरे में जाकर सो गया ।
ठीक पांच बजे सुनील 438 नम्बर कमरे का दरवाजा खटखटा रहा था ।
“कौन है ?” - भीतर से एक शहद से लिपटा हुआ स्वर सुनाई दिया ।
“दोस्त ।” - सुनील बोला ।
“दरवाजा खुला है ।”
सुनील द्वार धकेलकर भीतर प्रविष्ट हो गया ।
परवीन ड्रैंसिंग टेबल के सामने बैठी अपने बालों को फिनिशिंग टच दे रही थी । वह बैलबाटम और एक ढीली-ढीला कमीज पहने हुए थी ।
“मेरा नाम सुनील है ।” - सुनील बोला ।
“मैंने तुम्हें पहचान लिया है । कर्नल साहब ने मुझे तुम्हारी तस्वीर दिखाई थी ।”
“वैरी गुड ।”
“तशरीफ रखिए ।”
सुनील ड्रैसिंग टेबल के पास ही एक कुर्सी खींचकर बैठ गया ।
परवीन ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“कर्नल साहब एकदम सुरक्षित हैं ।” - सुनील बोला ।
“जाहिर है” - परवीन सहज स्वर से बोली - “वर्ना तुम यहां न आए होते ।”
“आज रात को सवा बारह बजे तुमने बसरा से कूच कर जाना है ।”
“कैसे ?”
“यहां से लगभग दो मील परे एक चट्टानों से भरा समुद्र तट है । जहां तट एस की शक्ल में बल खा जाता है वहां तुम्हें एक पीले रंग की रबड़ की किस्ती मिलेगी जिसमें दो आदमी सवार होंगे । वे तुम्हें किश्ती द्वारा किनारे से परे समुद्र में ले जाएंगे जहां एक भारतीय मालवाहक जहाज प्रतीक्षा कर रहा होगा । तुम्हें उस जहाज में सवार करा दिया जाएगा । जहाज फारस की खाड़ी और अरब सागर से होता हुआ तुम्हें सुरक्षित बम्बई पहुंचा देगा वहीं तुम्हारी दुबारा अपने पति से मुलाकात होगी ।”
“मेरी पति गधा है ।” - परवीन विषाक्त स्वर से बोली ।
सुनील विस्मयपूर्ण नेत्रों से उसका मुंह देखने लगा ।
“उसे भागना नहीं चाहिए था ।” - परवीन बोली - “उसने भाग कर अपनी जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती की है ।”
“उसको अपनी जान का खतरा दिखाई दे रहा था ।”
“उसकी जान को कुछ होने वाला नहीं था । उसके किसी जूनियर अफसर ने उसे बहका दिया है कि पाकिस्तान वापिस लौटते ही वह मिलिट्री पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जायेगा और फिर शायद उसे एक दीवार के साथ खड़ा करके गोली मार दी जायेगी ।”
“जबकि तुम्हारे ख्याल से हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होने वाला है ?”
“ऐसा कुछ होने का सवाल ही नहीं पैदा होता । आखिर पूर्वी पाकिस्तान में जो कुछ हुआ उसके लिए अकेले मेरे पति को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है ! जब प्रैसीडेन्ट आगा मोहम्मद याहया खान, जनरल टिक्का खान, जनदल नियाजी और जनरल राव फरमान अली उसे सूरमा बंगलादेश के बनने को नहीं रोक सके तो पाकिस्तानी सीक्रेट सरविस का डिप्टी डायरेक्टर कर्नल मकसूद अहमद किस खेत की मूली था । और क्या यह बात मौजूदा पाकिस्तानी सरकार समझती नहीं ? जब बड़े-बड़े जनरलों और हुक्मरानों ने भंयकर गलतियां की हैं तो कर्नल मकसूद अहमद ही अपने काम को ठीक अंजाम नहीं दे पाया तो कौन-सी आफत आ गई !”
“तुम्हारा ख्याल है कि कर्नल साहब खामखाह डर रहे हैं ?”
“और नहीं तो क्या ! बंगलादेश के स्वाधीनता संग्राम की शुरूआत साल से ज्यादा पुरान बात हो गई है । क्या अब किसी को कर्नल साहब के कोर्ट मार्शल का ख्याल आयेगा ।”
“सम्भव है ।”
“सम्भव नहीं है । अगर मेरे पति पर कोई एक्शन होगा भी तो सिर्फ इतना होगा कि उसका महकमा तब्दील कर दिया जायेगा या उसको जबरदस्ती रिटायर कर दिया जायेगा । इतनी मामूली सी बात के लिए भगोड़ों की तरह अपना मुल्क छोड़ देना कहां की शराफत है !”
सुनील चुप रहा ।
“पाकिस्तान में हमारा रुतबा है, इज्जत है, ऊंची सोसायटी के लोगों से ताल्लुकात हैं । यह सब छोड़कर जब हम हिन्दुस्तान में जायेंगे तो बदले में हमें क्या मिलेगा ! गुमनामी और रुसवाई की जिन्दगी ! हर वक्त सिर पर मंडराती हुई मौत का खतरा और पता नहीं कैसी-कैसी मुस्तकिल और मुसलसल मुसीबतें ।”
“कहीं ऐसा तो नहीं” - सुनील आशंकित स्वर में बोला - “कि तुम्हारा यहां से निकल भागने का इरादा बदल रहा हो ?”
“यहां से तो मुझे निकलना ही पड़ेगा । अगर मैं नहीं गई तो ज्यों ही हमारी सरकार को पता लगेगा कि कर्नल साहब भारत को डिफैक्ट कर गए है, मैं गिरफ्तार कर ली जाऊंगी ।”
सुनील चुप रहा ।
“रात को कितने बजे तुम मुझे समुद्र के किनारे लेकर चलोगे ?” - परवीन ने बदले स्वर में पूछा ।
“वहां तो तुम्हें खुद ही जाना होगा, मैडम” - सुनील बोला - “मेरा काम तो तुम्हें यह सन्देशा देना भर ही था ।”
“तुम कहां जाओगे ?”
“मैं काहिरा से यहां तक कार पर आया हूं । कार पर ही ईरान होता हुआ अफगानिस्तान पहुंच जाऊंगा और फिर वहां से हवाई जहाज द्वारा भारत ।”
“तुम मुझे अपने साथ क्यों नहीं ले जा सकते ?”
“बहुत खतरा है अगर तुम्हारी निगरानी हो रही हुई तो हम किसी भी बार्डर पर पकड़े जायेंगे और काबुल से राजनगर तक तुम्हें हवाई जहाज पर ले जाना तो मेरे लिए बहुत ही मुश्किल काम होगा । मैं इतना रिस्क नहीं ले सकता । जो लोग तुम्हें जहाज द्वारा बम्बई ले जा रहे हैं वे तुम्हारी सुरक्षा की ज्यादा गारन्टी कर सकते हैं ।”
“मुझे पता कैसे लगेगा कि जो आदमी किश्ती पर मुझे लेने आयेंगे वे सही आदमी होंगे ?”
“पहले तो तुम उन्हें पीली किस्ती द्वारा ही पहचान सकती हो । आधी रात को मुझे उम्मीद नहीं, वहां कोई किश्ती आती हो । फिर किश्ती में मौजूद आदमियों में से एक तुमसे हिन्दुस्तानी में पूछेगा कि क्या यह जगह किश्ती खड़ी करने के लिए ठीक है । जवाब में तुम कहोगी कि वह सुरक्षित स्थान नहीं है दो फर्लांग आगे ज्यादा सुरक्षित स्थान है । वह आदमी तुमसे प्रार्थना करेगा कि तुम उसे वह सुरक्षित स्थान दिखा दो । तुम किश्ती पर सवार हो जाओगी । वे लोग तुम्हें समुद्र में भारतीय मालवाहक जहाज तक ले जायेंगे ।”
“अगर वहां मुझे किसी ने देख लिया ?”
“मुझे उम्मीद नहीं । वह एकदम सुनसान इलाका है । वहां तो दिन में भी कोई नहीं होता । आधी रात को किसी के वहां होने की कतई सम्भावना नहीं है ।”
“फिर भी...”
“फिर भी अगर किसी ने तुम्हें वहां देख लिया तो अव्वल तो कोई फर्क ही नहीं पड़ेगा और अगर फर्क पड़ने से कोई कठिनाई पैदा होगी तो किश्ती पर आने वाले दोनों आदमी स्थिति संभाल लेंगे ।”
“तुम मुझे आधी रात को वहां तक छोड़कर नहीं आ सकते ?”
“नहीं । क्योंकि मैं तुम्हारे साथ देखा जाना पसन्द नहीं करूंगा । अगर तुम्हारी निगरानी हो रही हुई तो लेाग तुम्हें एक अजनबी के साथ देखकर सन्दिग्ध हो उठेंगे ।”
“तुम्हारे ख्याल से मेरी निगरानी हो रही होगी ?”
“हो सकता है । नहीं भी हो सकता । मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता ।”
परवीन चुप रही ।
“एक बात और” - सुनील बोला - “दोपहर को बीच पर मैंने तुम्हारे साथ एक नौजवान देखा था । कौन था वह ?”
“उसका नाम अदनाम उबेदी है । वह यहां की सैन्ट्रल जेल के सुपरिन्टेन्डेन्ट का लड़का है ।”
“तुम्हारा उससे क्या सम्बन्ध है ?”
“कुछ भी नहीं । दोस्त है । तनहा लम्हों का साथी है ।”
“आई सी ।”
“तुम्हें जलन हो रही है क्या ?”
“मुझे भला क्यों जलन होने लगी ? मेरी बला से एक की जगह एक दर्जन दोस्तों के साथ घूमो । मेरा उस लड़के के बारे में पूछने का मतलब यह था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि ऐन मौके पर वह तुमसे चिपक जाये और तुम्हारा उससे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाये ।”
“ऐसा कुछ नहीं होगा ।”
“फिर भी सावधानी की जरूरत है । कहीं ऐसा न हो वह आधी रात को तुम्हारा पीछा करता-करता वहां पहुंच जाये जहां किश्ती आनी वाली है ।”
“अरे बाबा, कहा न ऐसा कुछ नहीं होगा ।”
“वैरी गुड” - सुनील अपने स्थान से उठता हुआ बोला - “बन्दा चला ।”
“अभी !” - परवीन बोली ।
“हां ।”
“जल्दी क्या है ?”
“जल्दी तो नहीं है लेकिन...”
“कुछ पियोगे ?” - परवीन के होंठों पर एक मादक मुस्कराहट उभर आई ।
सुनील हिचकिचाचा ।
“बैठो” - परवीन अपने स्थान से उठी और हाथ पकड़कर सुनील को सोफे पर बैठाती हुई बोली - “मैं रूम सरविस को फोन करती हूं ।”
उसी क्षण किसी ने द्वार खटखटाया ।
परवीन ने द्वार की ओर देखकर बुरा-सा मुंह बनाया । फिर उसने आगे बढकर द्वार खोला । आगन्तुक को भीतर प्रतिवष्ट होने देने के स्थान पर वह स्वयं बाहर गलियारे में चली गई ।
एक मिनट बाद वह वापिस लौटी ।
“कौन था ?” - सुनील ने पूछा ।
“अदनान उबेदी” - परवीन बोली - “मैंने उसे टाल दिया ।”
“मैडम” - सुनील बोला - “मेरा भी यहां से टल जाना ही ठीक रहेगा । हम दोनों का एक साथ देखा जाना मेरी तन्दुरुस्ती के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है ।”
“लेकिन...”
“खुदा ने चाहा तो फिर मिलेंगे ।”
“कब ? कहां ?”
“जब ऊपर वाला मिला दे । जहां ऊपर वाला मिला दें ।”
सुनील ने आगे बढकर दरवाजा खोला । उसने सावधानी से गरदन निकालकर गलियारे में झांका ।
गलियारा खाली था ।
“गुड बाई, मैडम ।” - सुनील बोला ।
परवीन ने उत्तर नहीं दिया ।
सुनील चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया ।
***
रात अंधेरी थी ।
सुनील ने अपनी घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
बारह बजने में अभी पांच मिनट बाकी थे ।
वह समुद्र तट से थोड़ी दूर हटकर एक ऊंची चट्टान के पीछे छुपा हुआ था । अपनी वर्तमान स्थिति में उसे समुद्र तट का वह भाग स्पष्ट दिखाई दे रहा था जहां रबड़ की पीले रंग की किश्ती आकर रुकने वाली थी और जहां सवा बारह बजे परवीन प्रकट होने वाली थी ।
उसे परवीन पर पूरा भरोसा नहीं था । शाम के वार्तालाप से वह इतना तो जान ही गया था कि उसे अपने पति से कोई मुहब्बत नहीं थी । उसे अपने पति के साथ डिफैक्ट करके भारत में रहना पसन्द नहीं था । वह तो केवल इसलिए वहां से निकल जाने के लिए हामी भर रही थी क्योंकि उसे भय था कि अपने पति के डिफैक्ट कर जाने की खबर आम होते ही वह पाकिस्तान सरकार द्वारा गिरफ्तार कर ली जायेगी । इसलिए सम्भावना इस बात की भी थी कि परवीन बजाय सुनील द्वारा सुझाई स्कीम के अनुसार ईराक से भाग निकलने के बजाय पाकिस्तानी सीक्रेट सरविस के किसी ऊंचे अधिकारी से सम्पर्क करके उसे सूचित कर दे कि उसका पति डिफैक्ट कर रहा है इसलिए उसे तुरन्त रोका जाए । पाकिस्तानी अधिकारियों के पास यह जानने को कोई साधन नहीं होगा कि कर्नल मकसूद अहमद पहले ही काहिरा पहुंचकर भारतीय सीक्रेट सरविस के एक एजेन्ट से सम्पर्क स्थापित कर चुका है । साथ ही वह उन्हें सुनील के बारे में बता दे कि वह कार द्वारा ईरान होता हुआ अफगानिस्तान जा रहा है । इस प्रकार उसे अपने पति के साथ भागना भी नहीं पड़ता और वह पाकिस्तानी सरकार की विश्वासपात्र भी बन जाती ।
अपने मन में पनपती ऐसी ही किसी शंका की वजह से सुनील उस समय यह देखने के लिए उस चट्टान के पीछे छुपा बैठा था कि निर्धारित समय पर परवीन वहां न आई तो वह कार द्वारा अफगानिस्तान तक जाने की गलती हरगिज नहीं करता । उस सूरत में परवीन से दुबारा सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश करना भी मौत के मुंह में कूदना होता । तब तो उसके लिए यही श्रेयस्कर था कि जो किश्ती वहां परवीन को लेने आने वाली थी, उस पर वह वहां से कूच कर जाता ।
ठीक बारह बजकर दस मिनट पर उसे परवीन दिखाई दी । वह एक काले रंग का परिधान पहने हुए थी और अन्धकार में साया मात्र ही दिखाई दे रही थी । वह समुद्र तट पर एक चट्टान के पास आकर खड़ी हो गई ।
कुछ क्षण बाद पानी में से सिर उठाये खड़ी एक चट्टान के पीछे से निशब्द एक किश्ती प्रकट हुई । किश्ती में चप्पू चलाते हुए दो साये दिखाई दे रहे थे । किश्ती परवीन के पास ही किनारे से आ लगी ।
परवीन चट्टान की ओट से हटी और तेज कदमों से किश्ती की ओर बढी ।
उसी क्षण किश्ती के आसपास का सारा समुद्र तट सर्चलाइट के तीव्र प्रकाश से नहा गया । साथ ही मशीनगन की रेट-रेट की आवाज से वातावरण गूंज उठा ।
परवीन के गले से निकली तीव्र और आतंक से भरी चीख मशीनगन की गोलियों की आवाज से भी ऊंची थी ।
एक क्षण के लिए शान्ति हुई और फिर मशीनगन चलने की आवाज आने लगी ।
किश्ती में मौजूद दोनों आदमियों के चिथड़े उड़ गए थे और अब किश्ती लावारिस सी पानी में डोल रही थी ।
फिर सन्नाटा छा गया ।
परवीन अपने हाथों में अपना सिर थामे आतंक की प्रतिमूर्ति बनी, पत्थर की प्रतिमा-सी वहां खड़ी थी ।
चार आदमी एक बड़ी-सी चट्टान के पीछे से निकल कर आगे बढे । सुनील की निगाहें जब सर्चलाइट के प्रकाश की आदी हो गई तो उसे दिखाई दिया कि सर्चलाइट एक जीप पर लगी हुई थी और जीप में ही एक आदमी मशीनगन लेकर बैठा हुआ था । सर्चलाइट की पोजीशन ऐसी थी कि अगर वह थोड़ी सी दाईं ओर घूम जाती तो उसका प्रकाश सीधे सुनील के ऊपर आकर पड़ता ।
चारों आदमी परवीन की ओर बढ रहे थे ।
सुनील घूमा और छाती के बल समुद्र तट से विपरीत दिशा में रेंगने लगा ।
काफी आगे निकल आने के बाद उसने सावधानी से पीछे घूमकर देखा । अब उसे परवीन या उसकी ओर बढते हुए चार आदमी दिखाई नहीं दे रहे थे ।
सुनील नि शब्द उठकर खड़ा हो गया और फिर तुरन्त जान छोड़कर भागा ।
समुद्र के रेतीले इलाके से दूर सड़क पर पहुंचकर ही उसने दम लिया । उसने हांफते हुए अपने कपड़ों से रेत झाड़ी ।
उसी क्षण सड़क पर एक गाड़ी की हैडलाइट्स का प्रकाश पडा़ ।
सुनील लपककर एक पेड़ के पीछे हो गया ।
सड़क पर उसके सामने से एक जीप गुजर गई । सुनील को जीप के पृष्ठ भाग में परवीन के राख की तरह सफेद चेहरे की एक झलक दिखाई दी ।
यानी कि परवीन की शुरू से ही निगरानी हो रही थी और परवीन को या सुनील को खबर भी नहीं लगी थी ।
अब सवाल यह था कि क्या दुश्मनों को सुनील की भी जानकारी थी ! अगर नहीं थी तो जानकारी होने में देर नहीं लगनी थी क्योंकि वे परवीन की जुबान बड़ी आसानी से खुलवा सकते थे ।
सुनील को फौरन कुछ करना था ।
वह वापिस होटल पहुंचा ।
उसने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
अभी एक बजने में पांच मिनट बाकी थे ।
सुनील होटल के मेन हॉल में पहुंचा ।
वहां रागरंग की महफिल गर्म थी । आर्केस्ट्रा वातावरण में पाश्चात्य संगीत की धुन प्रवाहित कर रहा था । जवान जोड़े एक दूसरे की बांहों में बांहें डाले संगीत की लय पर थिरक रहे थे ।
भीड़ में उसे परवीन का ईराकी मित्र अदनान उबेदी भी दिखाई दिया । अपनी विशाल और बलिष्ठ भुजाओं में वह एक खूबसूरत योरोपियन युवती को दबोचे हुए था ।
सुनील ने एक वेटर को रोका ।
उसने वेटर की मुट्ठी में एक एक दीनार का नोट खोंसा और फिर अदनान उबेदी की ओर संकेत करता हुआ बोला - “उन साहब को बोलो कोई बाहर लान में फव्वारे के पास उनकी प्रतीक्षा कर रहा है ।”
वेटर सिर नवाकर चला गया ।
सुनील बाहर लान में फव्वारे के पास पहुंच गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा ।
थोड़ी देर बाद अदनान उबेदी होटल से बाहर निकला । फव्वारे के पास क्योंकि सिर्फ सुनील ही मौजूद था इसलिए वह बिना हिचक लम्बे लग भरता हुआ सुनील की ओर बढा ।
समीप आकर उसने सिर से पांव तक सुनील को देखा और फिर अंग्रेजी में बोला - “तुमने बुलाया था मुझे ?”
“हां ।” - सुनील बोला ।
“कौन हो तुम ?”
“मेरा नाम सुनील है ।”
“क्या चाहते हो ?”
“तुम्हारी एक दोस्त मुसीबत में है । उसे तुम्हारी मदद की जरूरत है ।”
“मेरी दोस्त ! कौन ?”
“परवीन ।”
“परवीन ! कहां है वो ? मैं शाम से ही उसे तलाश कर रहा हूं ।”
“परवीन पाकिस्तानी सीक्रेट सर्विस के आदमियों द्वारा गिरफ्तार कर ली गई है ।”
“पागल हुए हो क्या ? शायद तुम जानते नहीं हो कि परवीन का पति कौन है ।”
“जानता हूं । परवीन का पति कर्नल मकसूद अहमद पाकिस्तानी सीक्रेट सर्विस का डिप्टी डायरेक्टर है ।”
“फिर ?”
“फिर भी जो मैंने कहा है सच है । अगर जल्दी ही उसकी रिहाई के लिए कुछ किया नहीं गया तो वह पाकिस्तान भेज दी जायेगी ।”
“तुम्हारी परवीन में क्या दिलचस्पी है ?”
“मैं उसका पुराना परिचित हूं । पहले मैं रावलपिंडी में भारतीय हाईकमान में काम करता था । वहीं मेरी परवीन से मुलाकात हुई थी । फिर मेरी बदली यहां हो गई । आजकल मैं बसरा में ही भारतीय दूतावास में नियुक्त हूं । संयोगवश ही मेरी यहां परवीन से मुलाकात हो गई थी ।”
“आज रात वह तुम्हारे साथ थी ?”
“हां । हम लोग बीच पर टहल रहे थे कि एकाएक एक जीप हमारे पास पहुंची । उसमें से चार आदमी उतरे । उन्होंने मुझे एक ओर धकेल दिया और वह परवीन को जीप में बिठा कर आनन-फानन वहां से रफूचक्कर हो गए ।”
“तुम्हें कैसे मालूम है कि वे लोग पाकिस्तानी सीक्रेट सर्विस के आदमी थे ।”
“शाम को परवीन ने मुझ पर अपना सन्देह व्यक्त किया था कि पाकिस्तानी सीक्रेट सर्विस के एजेण्ट उसकी निगरानी कर रहे हैं” - सुनील साफ झूठ बोलता हुआ बोला - “और फिर मैंने जीप की नम्बर प्लेट देखी थी । उस पर दूतावास का सी डी वाला नम्बर लिखा हुआ था ।”
“शायद परवीन अपनी मर्जी से उन लोगों के साथ गई हो ?”
“नहीं । वे लोग जबरदस्ती उसे लेकर गए थे । परवीन बहुत आतंकित थी । अगर वह अपनी मर्जी से उनके साथ गई होती तो उसने मुझसे इस बारे में जरूर कुछ कहा होता ।”
“मैं परवीन की क्या मदद कर सकता हूं ?”
“क्या तुम यह पता नहीं लगा सकते कि वे लोग परवीन को कहां ले गए हैं ?”
“पाकिस्तानी कौन्सूलेट में ले गए होंगे । परवीन की हैसियत की स्त्री को आखिर और कहां ले जाया जा सकता है । ...तुम मिस्टर, ऐसा करो, ठीक एक घन्टे बाद मुझे यहीं मिलो । इतने समय में मैं यह पता लगा लूंगा कि वह पाकिस्तानी कौन्सूलेट में है या नहीं और है तो किस हालत में है ।”
“ओके ।”
अदनान उबेदी वहां से चला गया ।
सुनील अपने होटल के कमरे में आया ।
***
ठीक ढाई बजे पहले वाली ही जगह पर सुनील और अदनान उबेदी की फिर मुलाकात हुई ।
अदनान उबेदी बेहद चिन्तित था ।
“परवीन पाकिस्तानी कौन्सूलेट में नहीं है, मिस्टर” - वह बोला - “वह बसरा की सैन्ट्रल जेल में है ।”
“जेल में ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“हां । मेरे डैडी बसरा की सैन्ट्रल जेल के सुपरिन्टेन्डेन्ट हैं इसलिए संयोगवश ही मुझे यह बात पता लग गई है । परवीन को किसी वजह से पाकिस्तानी कौन्सूलेट में नहीं रखा गया है और वहीं के किसी अधिकारी के अनुरोध पर उसे रात भर के लिए जेल के सुरक्षित वातावरण में रखा गया है । ऐसा सुनने में आया है कि कोई विदेशी एजेन्ट उसको अगुवा करके ले जाना चाहते थे लेकिन कामयाब नहीं हो सके थे । पाकिस्तानी कौन्सूलेट के अधिकारियों का ख्याल है कि विदेशी एजेण्ट परवीन को अपने अधिकार में करने की फिर कोशिश कर सकते हैं और उस लिहाज से पाकिस्तानी कौन्सूलेट की इमारत कोई सुरक्षित जगह नहीं है । सुरक्षा के ख्याल से ही परवीन को सैन्ट्रल जेल में रखने का इन्तजाम किया गया है । कल ग्यारह बजे पाकिस्तान से आये एक स्पेशल प्लेन पर वह रावलपिंडी भेज दी जाएगी ।”
“इस बात का जिक्र नहीं आया कि उन्होंने आखिर परवीन को गिरफ्तार क्यों किया है ?”
“वह यह कहां कह रहे हैं कि परवीन को गिरफ्तार किया गया है ! उनके कथनानुसार केवल सुरक्षा की दृष्टि से परवीन को कल ग्यारह बजे तक जेल में रखा जा रहा है क्योंकि उनकी निगाह में जेल से ज्यादा सुरक्षित स्थान कोई नहीं है ।”
“जेल है कहां ?”
“बगदाद हाइवे से लगभग आधा मील हटकर एक विशाल चटियल मैदान में जो किले जैसी विशाल और अभेद्य इमारत खड़ी है, वही जेल है । जेल के चारों कोनों पर शक्तिशाली सर्चलाइट लगी हुई हैं जिनकी वजह से रात में भी आस-पास का सारा इलाका रोशनी में नहाया रहता है । किले की चारदीवारी पर सब-मशीनगन धारी सिपाही पहरा देते हैं । सिपाहियों की मदद के लिए जेल के भीतर आधी दर्जन शेर जैसे भयंकर और खूंखार कुत्ते मौजूद हैं । कहने का मतलब यह है कि कोई अनजाना आदमी जेल के पास भी फटकने में कामयाब नहीं हो सकता, भीतर घुसने की तो कल्पना करना भी बेकार है यह सब मैं तुम्हें इसलिए बता रहा हूं कि तुम्हारा उसको जेल से निकाल लाने की कल्पना करना भी सरासर पागलपन होगा ।”
“लेकिन अगर कोई जेल के भीतर से मेरी मदद करे तो ?”
“जेल के भीतर से तुम्हारी कौन मदद करेगा ?”
“तुम । तुम जेल के सुपरिन्टेन्डेन्ट के लड़के हो । तुम मेरी बहुत मदद कर सकते हो ।”
“पागल हुए हो क्या ? मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि, क्योंकि मैं जेल में भीतर रहता जरूर हूं लेकिन जेल की व्यवस्था के बारे में जानता कुछ नहीं हूं ।”
“लेकिन चाहो तो सब कुछ जान सकते हो ।”
अदनान उबेदी ने उत्तर नहीं दिया ।
“उबेदी, तुम तो परवीन के मेरे से ज्यादा गहरे दोस्त हो । क्या तुम उसको मौजूदा मुश्किल से निकालने के लिए मेरी कोई मदद करना नहीं चहते हो ?”
अदनान उबेदी फिर भी चुप रहा ।
“तो क्या मैं यह समझूं कि तुम...”
“तुम कहां ठहरे हुए हो ?” - अदनान उबेदी ने उसकी बात काटकर पूछा ।
“इसी होटल में ।”
“कौन से कमरे में ?”
“दो सौ पांच में ।”
“तुम अपने कमरे में पहुंचो । मैं थोड़ी देर में तुम्हारे पास आता हूं ।”
“कितनी देर में ?”
“जल्दी से जल्दी ।”
“ओके ।” - सुनील अनिश्चयपूर्ण स्वर से बोला ।
अदनान उबेदी लम्बे डग भरता हुआ वहां से विदा हो गया ।
सुनील अपने होटल के कमरे में आ गया ।
न जाने क्यों उसे ऐसा लग रहा था कि अदनान उबेदी उससे पीछा छुड़ाकर भाग गया था । शायद उसे सुनील की कोई मदद करने से इन्कार करने से ज्यादा आसान वहां से चुपचाप खिसक जाना लगा था ।
लेकिन सुनील का ख्याल गलत निकला ।
लगभग चार बजे अदनान उबेदी उसके कमरे में पहुंचा । उसके साथ एक और आदमी था ।
“यह खलील अहमद है” - अदनान उबेदी बोला - “यह जेल में सिपाही है । मैंने इसे विश्वास दिलाया है कि अगर यह तुम्हारी मदद करेगा तो तुम इसे दो सौ दीनार दोगे ।”
“यह भरोसे का आदमी है ?” - सुनील ने पूछा ।
“बिल्कुल ।”
सुनील ने चुपचाप जेब से दो सौ दीनार के नोट निकाले और खलील अहमद के हवाले कर दिये । खलील अहमद ने नोट अपनी जेब में रख लिये ।
“बैठो ।” - सुनील बोला ।
खलील अहमद बैठ गया ।
अदनान उबेदी भी बैठ गया ।
सुनील ने उसे एक बड़ा-सा कागज और एक बाल प्वायन्ट पैन थमा दिया ।
“मुझे जेल का भीतरी नक्शा समझाओ ।” - वह बोला ।
खलील अहमद ने बड़े सधे हुए हाथ से कागज पर कुछ लकीरें और फिर कागज सुनील के सामने करता हुआ बोला - “यह जेल का मुख्य द्वार है । यहां पर लोहे के दोहरे फाटक लगे हुए हैं । दोनों फाटकों पर ताला पड़ा होता है और चाबियां दो अलग-अलग पहरेदारों के पास होती है । इसके अलावा जेल में घुसने का और कोई रास्ता नहीं है । इन फाटकों के आगे एक खुले मैदान में से गुजरता हुआ एक लम्बा रास्ता है । इस रास्ते के सिरे पर फिर जेल की इमारतें हैं । यह पुलिस के डाक्टर का दफ्तर है । इसके आगे यह पोस्टमार्टम का कमरा है । यह अगला कमरा मोर्ग है जहां लाशें रखी जाती हैं । इससे अगला कमरा खाली है । इन कमरों की कतार के आगे एक बन्द गलियारा है जो इन्हें बगल में ही मौजूद एक चार मंजिली इमारत से जोड़ता है । इस इमारत की चारों मंजिलों में जेल की कोठरियां हैं । चौथी मंजिल पर जनानी जेल है । उस मंजिल की एक कोठरी में उस पाकिस्तानी औरत को रखा गया है ।”
“तुम्हारा जेल में क्या काम है ?”
“मैं भी पहरा देता हूं ।”
“कहां ?”
“इसी चार मंजिली इमारत के ग्राउण्ड फ्लोर पर ।”
“कब से कब तक ?”
“सुबह छः से दो बजे तक ।”
“रहते कहां हो ?”
“जेल में ही क्वार्टर मिला हुआ है । उबेदी साहब मुझे मेरे क्वार्टर से सोते से जगाकर लाये हैं ।”
“चौथी मंजिल पर जनानी जेल में परवीन के अलावा और कितनी औरतें हैं ?”
“परवीन उस पाकिस्तानी औरत का नाम है ?”
“हां ।”
“चार... नहीं, नहीं । अब तीन । एक औरत रात को मर गई थी ।”
“कैसे ?”
“आत्महत्या करके ।”
“चौथी मंजिल पर पहरेदार कितने हैं ?”
“तीन । तीनों स्त्रियां हैं । लेकिन वे अक्सर तीसरी मंजिल के एक कमरे में सोई रहती हैं । जेल की सारी कोठरियों पर बाहर से मजबूत ताले पड़े होते हैं इसलिये न गम्भीरता से पहरा देने की जरूरत होती है और न वे परवाह करती हैं ।”
“इमारत में कुल कितने पहरेदार हैं ?”
“एक शिफ्ट में दस पहरेदारों की ड्यूटी होती है लेकिन परवीन के आने के बाद से जेलर साहब ने पांच और पहरेदार बाहर से बुलवा लिये हैं ।”
“सीढियां कहां हैं ?”
“गलियारे के इस कोने में” - खलील अहमद ने नक्शे पर एक स्थान को बाल प्वायन्ट की नोंक से छुआ - “लेकिन यहां साइड के गलियारे के सामने लिफ्ट भी है ।”
“तुम जेल से परवीन को बाहर निकालने की कोई तरकीब सुझा सकते हो ?”
“नहीं” - खलील अहमद जोरों से नकारात्मक ढंग से सिर हिलाता हुआ बोला - “कोई तरकीब मुमकिन नहीं । यह सरासर नामुमकिन काम है । जेल में हिफाजत का बहुत तगड़ा इन्तजाम है । वहां खूंखार कुत्ते और सशस्त्र पहरेदार तो हिफाजत के लिये हैं ही, जेल के आस-पास का पांच सौ गज का चटियल मैदान हर वक्त सर्चलाइट की रोशनियों से जगमगाता रहता है । भीतर घुसना तो दूर की बात है कोई अनजान आदमी बिना पहरेदारों की जानकारी में आये जेल के दरवाजे के पास तक नहीं फटक सकता ।”
“थोड़ी देर के लिये मान लो कि कोई जेल के दरवाजे तक पहुंच जाता है, फिर क्या होता है ?”
“फिर बाहरी फाटक पर मौजूद पहरेदार उस आदमी का पहचान-पत्र वगैरह चैक करेगा । अगर वह उस आदमी को भीतर प्रवेश पाने का हकदार पायेगा तो वह फाटक का ताला खोलकर उसे भीतर ले लेगा और उसे पिछले फाटक पर तैनात दूसरे पहरेदार को सौंप देगा और खुद बाहरी फाटक पर दोबारा ताला लगा देगा । भीतर पहरेदार उसका पहचान पत्र वगैरह फिर चैक करेगा और उसे पिछला फाटक खोलकर जेल के भीतर प्रविष्ट करा देगा । वहां से वह आदमी सीधा जेलर साहब के कमरे में ले जाया जायेगा लेकिन उस चार मंजिली इमारत में जिसमें परवीन रखी गई है, किसी को भी कदम रखने की इजाजत नहीं है यहां तक कि जेल के डॉक्टर को भी नहीं ।”
“अगर कोई कैदी बीमार हो जाये ?”
“तो कैदी डाक्टर के पास लाया जाता है ।”
“अगर कैदी इतना बीमार हो कि वह डाक्टर तक न आ सकता हो ?”
“तो जेलर खुद डाक्टर के साथ जाता है और तब तक डाक्टर के साथ रहता है जब तक डाक्टर मरीज का मुआयना नहीं कर लेता । रात को जिस औरत ने जेल में आत्महत्या कर ली थी, उसकी कोठरी में भी खुद जेलर डाक्टर को लेकर गया था ।”
“जो औरत जेल में आत्महत्या करके मर गई है, उसका क्या होगा ?”
“पहले सुबह उसका पोस्टमार्टम होगा । फिर उसका कफन-दफन का इन्तजाम कर दिया जायेगा ।”
“कहां ? जेल में ही ?”
“नहीं । जेल में मरने वालों के कफन-दफन का इन्तजाम जेल से बाहर किया जाता है । इस काम के लिये सरकार ने एक स्थायी अन्डरटेकर (कफन-दफन का इन्तजाम करने वाला) नियुक्त किया हुआ है । कोई मर जाये तो उसको सूचना दे दी जाती है । वह आकर लाश ले जाता है और उसके कफन-दफन का इन्तजाम कर देता है ।”
“ऐसा तो लावारिस लाशों के साथ ही होता होगा ?”
“सभी लाशों के साथ यही होता है । जेल से लाश वही ले जाता है । आगे रिश्तेदार चाहें तो कफन-दफन का अपना मन पसन्द इन्तजाम कर सकते हैं लेकिन वह अन्डरटेकर सारे बसरा में मशहूर है । ऐसा कभी हुआ नहीं कि किसी को उसका इन्तजाम पसन्द न आया हो ।”
“अन्डरटेकर का नाम, अता-पता वगैरह बताओ ।”
“उसका नाम अब्दुल जाहरा आरेफ है । वह अल हैदरी स्ट्रीट की चौदह नम्बर इमारत में रहता है ।”
“वहां और कौन रहता है ?”
“उसके साथ उसकी एक दस साल की लड़की रहती है और बस ।”
“जो औरत मर गई है, उसकी लाश कब अन्डरटेकर को सौंपी जायेगी ?”
“कल सुबह ही । आठ बजे पोस्टमार्टम हो जायेगा । उसके फौरन बाद अन्डरटेकर को फोन कर दिया जायेगा । बड़ी हद नौ बजे तक अन्डरटेकर अपने एक असिस्टेण्ट के साथ जेल में पहुंच जायेगा और लाश को अपने अधिकार में ले लेगा ।”
“असिस्टेण्ट क्यों ? अन्डरटेकर अकेला नहीं आता ?”
“लाश को सलीके से ताबूत में बन्द करना और फिर ताबूत को उठाकर गाड़ी पर लादना एक आदमी का काम नहीं है ।”
“यानी कि जब भी कोई मौत की घटना होती है, अन्डरटेकर के साथ एक असिस्टेण्ट हमेशा ही जेल में आता है ?”
“हां ।”
“आल राइट, खलील अहमद” - सुनील बोला - “तुम अब जा सकते हो । कल मैं तुम्हें जेल में मिलूंगा ।”
“जेल में ?” - खलील अहमद भौचक्का-सा सुनील का मुंह देखने लगा ।
“हां । शायद मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत पड़े ।”
“यानी कि... यानी कि आप जेल में दाखिल होने में कामयाब हो जायेंगे ।”
“हां ।” - सुनील सहज स्वर से बोला ।
चेहरे पर अविश्वास के स्पष्ट भाव लिए हुए खलील अहमद वहां से विदा हो गया ।
“कैसे ?” - खलील अहमद के पीछे दरवाजा बन्द होते ही अदनान उबेदी उत्सुकतापूर्ण स्वर से बोला ।
“ईजी !” - सुनील मुस्कराता हुआ बोला ।
“ओह, कम आन । डोन्ट बी मिस्टीरियस ।”
“कल सुबह अन्डरटेकर अब्दुल जाहरा आरेफ जेल में आत्महत्या करके मरी औरत की लाश लेने जायेगा । अपने असिस्टेण्ट की जगह अन्डरटेकर मुझे लेकर जायेगा ।”
“अन्डरटेकर ऐसा हरगिज नहीं करेगा ।”
“उसे मनाना होगा ।”
“वह नहीं मानेगा । वह मेरे डैडी का बहुत विश्वासपात्र आदमी है । वह ऐसी दगाबाजी हरगिज नहीं करेगा ।”
“अंडरटेकर की दस साल की एक लड़की है” - सुनील भावहीन स्वर से बोला - “वह हरगिज पसन्द नहीं करेगा कि उस पर कोई खतरा आये ।”
“यानी कि तुम...”
“मजबूरी है । अन्डरटेकर को उसकी बेटी के अनिष्ट की धमकी देकर हमें उसे अपने बस में करना होगा और उस काम में तुम मेरी मदद करोगे ।”
“हरगिज नहीं ।”
“नादान मत बनो । बेटी या बाप को कोई वास्तविक नुकसान होने वाला नहीं है । केवल एक डेढ घन्टे की बात है । मेरे जेल से वापिस लौट आने तक तुम्हें बेटी को अपने अधिकार में रखना होगा ताकि बाप मुझे जेल के भीतर ले जाकर फंसवा न दे ।”
“मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगा ।”
“उबेदी, प्लीज !” - सुनील याचनापूर्ण स्वर से बोला - “यह परवीन की जिंदगी और मौत का सवाल है और फिर क्या तुम्हें यह समझाने की जरूरत है कि जेल से निकलने के बाद परवीन तुम्हारे जैसे अपने अजीज दोस्त की किस हद तक शुक्रगुजार होगी ।”
अदनान उबेदी चुप रहा ।
“कम आन मैन । बी ए पाल ।”
“आल राइट ।” - अदनान उबेदी तीव्र अनिच्छापूर्ण स्वर से बोला ।
“थैंक्यू ।” - सुनील छुटकारे की गहरी सांस लेकर बोला ।
***
सुबह साढे सात बजे सुनील की कार पर सुनील और अदनान उबेदी अल हैदरी स्ट्रीट में पहुंचे ।
अन्डरटेकर अब्दुल जाहरा आरेफ का घर तलाश करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई ।
सुनील के अनुरोध पर अदनान उबेदी कहीं से एक रिवाल्वर ले आया था जो उसने सुनील को सौंप दी थी । सुनील ने वह रिवाल्वर अपनी पतलून की बैल्ट में खोंसी हुई थी और ऊपर से कोट के बटन बन्द किये हुए थे ।
अदनान उबेदी ने काल बैल का बटन दबाया ।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और उन्हें एक लगभग चालीस साल के हृष्ट-पुष्ट आदमी के दर्शन हुए । उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से उन दोनों को देखा ।
“अन्डरटेकर अब्दुल जाहरा आरेफ ?” - सुनील बोला ।
“मेरा नाम है ।” - अन्डरटेकर बोला ।
“भीतर चलो । तुमसे धन्धे की बात करनी है ।”
अंडरटेकर एक क्षण हिचकिचाया और फिर रास्ता छोड़कर एक ओर खड़ा हो गया ।
सुनील और अदनान उबेदी भीतर प्रविष्ट हुए ।
अंडरटेकर ने उनके पीछे द्वार बन्द कर दिया । वह उन दोनों को एक कमरे में ले आया । कमरे में दीवान पर एक लगभग दस साल की लड़की बैठी थी । उसने एक उत्सुक निगाह आगन्तुकों पर डाली और फिर खिड़की से बाहर देखने लगी ।
“आज तुम्हें सैन्ट्रल जेल से एक काल आने वाली है” - सुनील बिना एक क्षण भी बरबाद किये सीधा मतलब की बात पर आता हुआ बोला - “जेल में एक औरत मर गई है । हमेशा की तरह तुमने उसके कफन-दफन का इन्तजाम करना है ।”
“वह काल आ चुकी है” - अंडरटेकर बोला - “मैं ताबूत पहले ही तैयार कर चुका हूं । मुझे नौ बजे जेल में पहुंचना है ।”
“वैरी गुड ।”
“आप लोगों का मृत औरत से क्या सम्बन्ध है ?”
“कोई सम्बन्ध नहीं है लेकिन मुझे किसी और सिलसिले में तुम्हारी मदद की जरूरत है ।”
“किस सिलसिले में ?”
“तुम मुझे अपने असिस्टेण्ट के रूप में जेल के भीतर लेकर जाओगे ।”
“नामुमकिन !” - अंडरटेकर तीव्र विरोधपूर्ण स्वर से बोला - “मैं किसी अजनबी को अपने साथ जेल के भीतर कैसे ले जा सकता हूं । मैं ऐसा विश्वासघात नहीं कर सकता ।”
“तुम्हें करना होगा । इसी में तुम्हारी भलाई है ।”
“आप लोग मुझे धमकी दे रहे हैं ?”
“हां ।”
“मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं ।”
और वह टेलीफोन की ओर बढा ।
सुनील ने रिवाल्वर निकालकर उसकी ओर तान दी ।
रिवाल्वर पर निगाह पड़ते ही अंडरटेकर का मुंह सूख गया ।
“यह तुम्हारी बेटी है ?” - सुनील दीवान पर बैठी लड़की की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“हां ।” - बड़ी मुश्किल से अंडरटेकर के मुंह से आवाज निकली ।
“बहुत खूबसूरत बच्ची है ।” - सुनील प्रशंसात्मक स्वर से बोला ।
अंडरटेकर अपलक सुनील की ओर देखता रहा ।
“अगर इस लड़की को एकाएक कुछ हो जाये तो तुम्हें कैसा लगेगा ?”
“नहीं !” - अन्डरटेकर फुसफुसाया । उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं ।
“अगर इसकी सलामती चाहते हो तो जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो” - सुनील एकाएक कर्कश स्वर से बोला - “वर्ना मैं इसे अभी इसी वक्त शूट कर दूंगा ।”
“नहीं, नहीं” - अन्डरटेकर आतंकित स्वर से बोला - “तुम जो कहोगे मैं करूंगा ।”
“गुड” - सुनील गहरी सांस लेता हुआ बोला - “लाश तुम्हें कहां सौंपी जायेगी ?”
“पोस्टमार्टम वाले कमरे में ही ।”
“अक्सर तुम्हारा काम क्या होता है ?”
“मैं अपने असिस्टेण्ट के साथ लाश को कपड़े वगैरह पहनाता हूं और उसे कफन-दफन के लिये तैयार करता हूं । वहीं मैं लाश को ताबूत में बन्द कर देता हूं और फिर मैं और मेरा असिस्टण्ट ताबूत उठाकर बाहर ले आते हैं । ताबूत को गाड़ी पर लादकर हम यहां ले आते हैं । उसके बाद या तो हम ही लाश को दफनाने का इन्तजाम कर देते हैं और या फिर अगर मरने वाले के कोई रिश्तेदार हों और वे चाहें तो हम लाश को उन्हें सौंप देते हैं ।”
“तुमने कहा था कि ताबूत तैयार है ?”
“हां ।”
“कहां है ?”
“पिछले कमरे में ।”
सुनील से रिवाल्वर अदनान उबेदी के हाथ में थमा दी और फिर अण्डरटेकर से बोला - “दिखाओ ।”
अण्डरटेकर उसे पिछवाड़े के एक छोटे से कमरे में लाया ।
कमरे के बीचोंबीच एक बड़ा-सा ताबूत पड़ा था ।
सुनील ताबूत के समीप पहुंचा । उसने ताबूत का ढक्कन उठाया । भीतर ताबूत में लकड़ी के साथ-साथ कम से कम तीन इंच मोटी पैडिंग लगी हुई थी और तले पर एक मोटी चटाई बिछी हुई थी ।
“चटाई निकाल दो और पैडिंग उखाड़ दो ।” - सुनील ने आदेश दिया ।
सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाता हुआ अण्डरटेकर कहीं से एक पेचकस उठा लाया ।
दस मिनट बाद चटाई और पैडिंग ताबूत से बाहर पड़ी थी ।
“फुटा है ?” - सुनील ने पूछा ।
अण्डरटेकर एक फुटा ले आया ।
सुनील ने ताबूत की गहराई नापी ।
“ताबूत में लेटो ।” - सुनील बोला ।
“क... क्या ?” - वह हकलाकर बोला ।
सुनील ने जहर भरी निगाहों से उसकी ओर देखा ।
अण्डरटेकर तुरन्त ताबूत में लेट गया ।
सुनील फिर फुटे से अण्डरटेकर के शरीर के ऊपर ढक्कन तक का फासला नापने लगा । फिर उसके संकेत पर अण्डरटेकर बाहर निकल आया ।
“तुम मोटे आदमी हो” - सुनील बोला - “दो पतले पतले स्त्री शरीर बड़ी आसानी से एक दूसरे के ऊपर इस ताबूत में समा सकते हैं । क्या तुम इसमें एक नकली तला और फिट कर सकते हो ?”
“कर सकता हूं लेकिन दूसरा स्त्री शरीर किसका है ?”
“सुन लो । जेल में एक लड़की कैद है जिसे मैंने जेल से आजाद कराना है । उस लड़की को आजाद कराने का जो तरीका इस वक्त मेरे दिमाग में है वह यह है कि मैं उस लड़की को जेल में आत्महत्या करके मरी औरत के साथ इस ताबूत में बन्द कर के बाहर निकाल लाऊं ।”
“या अल्लाह !” - अन्डरटेकर बदहवास स्वर से बोला ।
“तुम अभी इस ताबूत में एक तला और फिट करो !” - सुनील ने आदेश दिया ।
अण्डरटेकर ने कांपते हुए सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“और ताबूत में हवा के लिए छेद करना मत भूलना वर्ना मुर्दे के साथ बन्द जिन्दा लड़की दम घुटकर मर जायेगी ।”
“नहीं भूलूंगा ।” - अण्डरटेकर बोला ।
***
ठीक नौ बजे अण्डरटेकर अब्दुल जाहरा आरेफ की घोड़ा गाड़ी जेल के दरवाजे के सामने पहुंची । घोड़ा गाड़ी के कोचवान के बक्से पर अण्डरटेकर और सुनील बैठे थे और उसके पृष्ठ भाग में ताबूत लदा हुआ था ।
अदनान उबेदी खलील अहमद से एक जेल के पहरेदार की यूनीफार्म ले आया था जो सुनील उस समय अण्डरटेकर के असिस्टेण्ट के लम्बे काले बन्द कालर के चोगे के नीचे पहने हुए था ।
“अगर वे लोग तुम्हारे पुराने असिस्टेण्ट के बारे में पूछेंगे तो तुम क्या जवाब दोगे ?” - सुनील ने पूछा ।
“मैं कह दूंगा” - अण्डरटेकर बोला - “कि वह एकाएक छुट्टी लेकर बसरा से कहीं बाहर चला गया है ।”
“अगर किसी ने मुझ पर शक किया तो उसका शक दूर करने के लिए मुनासिब जवाब तुम्हें देना होगा ।”
“हां ।”
“मेरा नाम क्या है ?”
“जलाल ।”
“एक बात मैं आखिरी बार फिर याद दिला देना चाहता हूं तुम्हें” - सुनील धमकी भरे स्वर से बोला - “मेरे जेल में प्रविष्ट हो जाने के बाद अगर तुमने कोई होशियारी दिखाने की कोशिश की तो फारस की खाड़ी की मछलियां तुम्हारी लड़की की लाश का नाश्ता कर रही होंगी ।”
अण्डरटेकर का चेहरा लाश की तरह सफेद हो गया । उस के मुंह से बोल नहीं फूटा ।
जेल की छत पर तैनात सशस्त्र सिपाही और जेल के दरवाजे पर खड़े पहरेदार सब अण्डरटेकर की घोड़ा गाड़ी को पहचानते थे । किसी ने घोड़ा गाड़ी के गेट तक पहुंचने तक उन्हें नहीं टोका ।
अन्डरटेकर और सुनील घोड़ा गाड़ी से नीचे उतरे और जेल के बाहरी जंगलेदार फाटक पर पहुंचे । पहरेदारों में और अण्डरटेकर में अभिवादन का आदान-प्रदान हुआ ।
“फिर कोई मर गया है ?” - एक पहरेदार ने पूछा ।
“हां ।” - अन्डरटेकर अपने स्वर को भरसक सन्तुलित रखता हुआ बोला - “मुझे यहां नौ बजे आने के लिए कहा गया था ।”
“मैं पता करता हूं ।” - पहरेदार बोला । उसने दीवार पर टंगे एक फोन का रिसीवर उठा लिया । और एक नम्बर डायल किया । कुछ देर वह फोन पर बात करता रहा फिर उसने रिसीवर रख दिया ।
“तुम्हारे साथ यह दूसरा आदमी कौन है ?” - पहरेदार ने पूछा ।
“मेरा असिस्टेण्ट है ।” - अण्डरटेकर बोला ।
“ठीक है ।” - पहरेदार बोला ।
पहरेदार ने जेब से चाबी निकाली और फाटक पर लटकता भारी ताला खोल दिया ।
अण्डरटेकर और सुनील फिर घोड़ा गाड़ी में आ बैठे । घोड़ों की रास सुनील के हाथ में थी । फाटक खुलते ही सुनील ने घोड़ा गाड़ी हांक दी और भीतरी फाटक के सामने ले जा खड़ी की ।
पहरेदार ने बाहरी फाटक में फिर ताला जड़ दिया ।
भीतरी फाटक पर तैनात पहरेदार ने भीतरी फाटक का ताला तभी खोला जबकि बाहरी फाटक मजबूती से बन्द हो गया ।
सुनील ने घोड़ा गाड़ी आगे हांक दी ।
भीतरी फाटक भी उसके पीछे बन्द हो गया ।
वह जेल के भीतर था ।
आगे कम से कम चार सौ गज लम्बा रास्ता मैदान में से गुजर रहा था । उस रास्ते के सिरे पर वह चार मन्जिली इमारत थी जिसमें परवीन कैद थी ।
अण्डरटेकर के चेहरे पर एकाएक हवाईयां उड़ने लगी थीं ।
“हुलिया सुधारो, खलीफा” - सुनील कर्कश स्वर से बोला - “वर्ना सब गुड़ गोबर हो जायेगा । तुम्हारी तो शक्ल पर ही लिखा हुआ है कि तुम यहां कोई गुनाह करने के लिए घुसे हो ।”
अण्डरटेकर ने थूक निगली ।
उस लम्बे रास्ते के सिरे पर एक बैरियर लगा हुआ था और उसके सामने तीन सशस्त्र सिपाही खड़े थे । संयोगवश तीनों ही अण्डरटेकर को अच्छी तरह जानते थे ।
“कैसे मिजाज हैं आरेफ मियां !” - एक भयानक चेहरे वाला सिपाही बोला ।
“इनायत है अल्लाह ताला की ।” - अण्डरटेकर बांस की तरह फटी आवाज में बोला ।
सुनील ने कहरभरी निगाहों से उसे घूरा ।
“लाश लेने आये हो ?”
“हां ।” - इस बार अण्डरटेकर ने अपेक्षाकृत सन्तुलित आवाज में उत्तर दिया ।
“ताबूत लाए हो ?”
“हां । ताबूत के बिना मेरा यहां क्या काम ?”
“जरा ताबूत खोलकर दिखाओ ।”
अन्डरटेकर हैरानी से उसका मुंह देखने लगा ।
“बुरा मत मानो बड़े मियां” - वही सिपाही बोला - “तुम भरोसे के आदमी हो और आज तक हमने पहले कभी ऐसी कोई फरमायश नहीं की लेकिन आज जेलर साहब की खास हिदायत के मुताबिक हमें ऐसा करना पड़ रहा है । भीतर एक ऐसा कैदी मौजूद है जिसे कुछ लोग रिहा कराने की कोशिश कर सकते हैं, इसीलिए इतना चौकस रहना पड़ रहा है ।”
“क्यों नहीं, क्यों नहीं । मैं भला क्यों बुरा मानूंगा ? आखिर तुम लोगों को अपनी ड्यूटी भुगतानी है ।”
सिपाही ने ताबूत को अच्छी तरह खोलकर दिखाया । सिपाही ने घोड़ा गाड़ी की भी हर सम्भावित तरीके से तलाशी ली । सुनील की यह देखकर जान में जान आ गई कि या तो सिपाही का ताबूत के नकली तले और हवा के प्रवेश के लिए बनाये छेदों की ओर ध्यान ही नहीं गया था और या फिर उसको उनकी ताबूत में मौजूदगी में कोई आपत्तिजनक बात नहीं दिखाई दी ।
“यह आदमी कौन है ?” - वह सिपाही सन्दिग्ध नेत्रों से सुनील को घूरता हुआ बोला ।
“यह जलाल है” - अण्डरटेकर जल्दी से बोला - “मेरा नया असिस्टेण्ट । हमीद एकाएक छुट्टी लेकर चला गया है ।”
सिपाही चुप रहा । उसके चेहरे पर उलझन के भाव थे । वह सन्दिग्ध नेत्रों से सुनील को घूर रहा था ।
प्रत्यक्षतः सुनील शान्त बैठा था लेकिन भीतर से उसका कलेजा मुंह को आ रहा था ।
“क्या बात है ?” - अण्डरटेकर बोला ।
“मुझे जेलर साहब की हिदायत है कि मैं किसी अनजाने आदमी को भीतर न जाने दूं । मैं तुम्हें जानता हूं । मैं तुम्हारे असिस्टेण्ट हमीद को जानता हूं जो हमेशा तुम्हारे साथ आया करता था लेकिन मैं इस आदमी को नहीं जानता ।”
“यह मेरा नया असिस्टेण्ट है । यह भरोसे का आदमी है । मैं इसकी जिम्मेदारी लेता हूं ।”
“मुझे जेलर साहब को खबर देनी होगी ।”
“जेलर साहब इस वक्त ब्रेकफास्ट के लिए गए हैं” - एक दूसरा सिपाही धीरे से बोला - “और तुम जानते ही हो कि वे ब्रेकफास्ट की टेबल पर डिस्टर्ब किया जाना कितना नापसन्द करते हैं । सुबह सवेरे उनका पारा चढ गया तो सारा दिन हम लोगों पर उनका कहर नाजिल होगा ।”
पहले सिपाही के चेहरे पर अनिश्चय के भाव उभरे ।
“और फिर आरेफ मियां भी तो कह रहे हैं कि वह भरोसे का आदमी है । अपने असिस्टटेण्ट की जिम्मेदारी तो इनकी है ।”
“यह बहुत शरीफ लड़का है” - अण्डरटेकर बोला - “किसी गलत आदमी को भला मैं अपना असिस्टेण्ट क्यों रखूंगा ?”
पहला सिपाही कुछ क्षण चुप रहा और फिर निर्णायात्मक स्वर में बोला - “तुम दोनों नीचे उतरो ।”
सुनील और अण्डरटेकर ने एक दूसरे की ओर देखा । फिर दोनों कोचवान के बक्से से नीचे उतर आये ।
सिपाही ने पहले अण्डरटेकर का और फिर सुनील का जिस्म थपथपाया । सुनील समझ गया कि वह देख रहा था कि उन दोनों में से किसी के पास कोई हथियार तो नहीं था । गनीमत यह हुई थी कि सिपाही ने सिर्फ खानापूरी की खातिर ही तलाशी ली थी इसलिए उसने उनके कपड़े नहीं खुलवाये थे । अगर सुनील को अपने काले चोगे के बटन खोलने पड़ जाते, तो सिपाही को चोगे के नीचे मौजूद जेल के पहरेदार की यूनीफार्म दिखाई दे जाती और फिर खेल खतम हो जाता । सुनील के लिए अपने शरीर पर जेल के पहरेदार की यूनीफार्म की मौजूदगी का कोई मुनासिब जवाब दे पाना सम्भव नहीं होता ।
उस सिपाही ने जब अपने साथियों को बैरियर उठाने का संकेत किया तो सुनील की जान में जान आई ।
सुनील और अण्डरटेकर फिर कोचवान के बक्से पर आ बैठे ।
सुनील ने घोड़ागाड़ी आगे हांक दी ।
उसी क्षण वातावरण एक हृदयविदारक चीख से गूंज उठा । घोड़ा जोर से हिनहिनाया । किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर सुनील ने घोड़े की रास खींच ली ।
सिपाही सिर उठाकर चार मंजिली इमारत की ऊपरली मंजिल की ओर देखने लगे थे । चीख की आवाज चौथी मंजिल के ही कमरे से आई थी ।
“कल रात आत्महत्या करके मरी औरत की मौत का और जेल के वातावरण का एक कैदी लड़की पर ऐसा असर हुआ है कि उसका दिमाग हिल गया है ।” - भयानक चेहरे वाला सिपाही धीरे से बोला - “लड़की कभी चीखने लगती है, कभी गगनभेदी अट्टहास करने लगती है और कभी फूट-फूटकर रोने लगती है । वह खुद तो पागल हो ही गई है लेकिन अगर फौरन उसे यहां से निकालकर पागलखाने न भेजा गया तो वह अपनी हरकतों से दो-तीन को और पागल करके छोड़ेगी ।”
“अल्लाह !” - अण्डरटेकर बोला ।
“लड़की पहले ही दिमागी तौर पर एकदम तन्दुरुस्त नहीं थी । वह कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार है । उसने अपने खाविन्द की छाती में डबल रोटी काटने वाली छुरी घोंप दी थी । अब यहां तो वह पागलपन की इस हद तक पहुंच चुकी है कि अगर उसका दांव लग जाये तो दो-चार आदमियों का तो वह अपने खाली हाथों से ही खून कर दे ।”
“देर हो रही है बड़े मियां ।” - सुनील दबे स्वर में बोला ।
“हां, हां” - अण्डरटेकर हड़बड़ाकर बोला - “हांको गाड़ी ।”
सुनील ने गाड़ी आगे हांक दी । पीछे बैरियर बन्द हो गया ।
अण्डरटेकर के निर्देश पर सुनील ने चार मन्जिली इमारत से जुड़ी एक मन्जिली इमारत के सामने एक स्थान पर घोड़ा गाड़ी ला खड़ी की । वे गाड़ी से नीचे कूद पड़े ।
इमारत के कम्पाउण्ड में दो सशस्त्र सिपाही खड़े थे । दोनों के हाथ में सूरत से ही खूंखार लगने वाले लम्बे चौड़े कद्दावर दो कुत्तों की जंजीरें थीं । कुत्तों की जुबानें बाहर लटक रही थीं और उनके मुंह से हांफने की डरावनी आवजें निकल रही थीं । उनकी जलती हुई निगाहें दहकती सलाखों की तरह अण्डरटेकर और सुनील के शरीर को चुभ रही थीं ।
बरामदे में भी पांच-छः सशस्त्र सिपाही पहरा दे रहे थे ।
जेल में सुरक्षा का बड़ा तगड़ा इन्तजाम था ।
सुनील और अण्डरटेकर ने गाड़ी पर से ताबूत उतार लिया । दोनों ताबूत को साइडों में लगे कुन्दों से थामें आगे बढे ।
एक सिपाही उनके साथ-साथ चलने लगा ।
छते हुए बरामदे में से होकर वे पोस्टमार्टम वाले कमरे के सामने पहुंचे । सिपाही उन्हें कमरे में छोड़कर वहां से विदा हो गया ।
दोनों ने ताबूत को जमीन पर रख दिया ।
लाश एक लम्बी मेज पर चादर से ढकी हुई पड़ी थी । एक डाक्टर कोने में लगे सिंक के सामने खड़ा हाथ धो रहा था ।
“मेरा काम खतम, आरेफ मियां” - डाक्टर बोला - “अब लाश तुम्हारे हवाले है । बेचारी ने पिसा हुआ शीशा खाकर आत्महत्या की है । पता नहीं जेल में इसने पिसा हुआ शीशा हासिल कहां से किया ।”
उसी समय इमारत एक गगनभेदी अट्टहास से गूंज उठी ।
अण्डरटेक्टर और सुनील की निगाहें अपने आप ही आवाज की दिशा में उठ गई ।
“जेल में एक लड़की पागल हो गई है” - डाक्टर खेदपूर्ण स्वर में बोला - “यह उसी के अट्टहास की आवाज थी । उसका यहां जेल में रहना ठीक नहीं वर्ना वह दो-चार कैदियों को पागल बना देगी ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“मैं चला, आरेफ मियां” - डाक्टर बोल - “तुम जाती बार डैथ सर्टीफिकेट मेरे आफिस से लेते जाना ।”
“बेहतर ।” - अण्डरटेकर बोला ।
डाक्टर ने एक उचटती निगाह सुनील पर डाली और पूछा - “यह कौन है ?”
“यह जलाल है - मेरा नया असिस्टेन्ट ।”
“ओह ! अच्छा, अच्छा ।”
डाक्टर कमरे से बाहर निकल गया ।
डाक्टर के बाहर निकलते ही लगभग तीस साल की एक महिला ने कमरे में कदम रखा । वह पुलिस की यूनीफार्म पहने हुए थी और उसके चेहरे पर क्रूरता के भाव थे ।
अण्डरटेक्टर ने उसका अभिवादन किया ।
“काम खत्म हो गया तुम्हारा ?” - उसने अधिकारपूर्ण स्वर से पूछा ।
“अभी तो काम शुरू भी नहीं हुआ” - अण्डरटेकर विनयशील स्वर में बोला - “मैं अभी, इसी क्षण यहां पहुंचा हूं ।”
“ठीक है, ठीक है” - वह बोली - “जल्दी से जल्दी निपटो और फूटो यहां से ।”
“यह लड़का कौन है ?” - उसका संकेत सुनील की ओर था ।
“यह मेरा असिस्टेण्ट जलाल है ।”
सुनील ने उसे सलाम किया ।
“पहले तो तुम्हारे साथ कोई और लड़का आया करता था ?” - महिला ने सुनील के अभिवादन की ओर तनिक भी ध्यान दिये बिना पूछा ।
“जी हां । दूसरा लड़का छुट्टी पर चला गया है ।”
“ठीक है, जल्दी काम खत्म करो ।”
वह घूमी और एड़ियां खटखटाती हुई कमरे से बाहर निकल गई ।
“यह कौन थी ?” - सुनील ने पूछा ।
“इसका नाम हलीमा है” - अण्डरटेकर बोला - “सार्जेंट है और चौथी मन्जिल की स्त्रियों की जेल की इन्चार्ज है ।”
“बहुत खतरनाक औरत मालूम होती है ।”
“बहुत ज्यादा ।”
सुनील ने धीरे से दरवाजा खोलकर बाहर गलियारे में झांका ।
गलियारा खाली पड़ा था ।
सुनील ने फुर्ती से अपना काला चोगा उतारा और उसे एक अलमारी में छुपा दिया ।
“बड़े मियां” - वह बोला - “तुम धीरे-धीरे लाश को कपड़े वगैरह पहनाकर तैयार करना आरम्भ करो । तुम्हारा काम खत्म होने तक मैं वापस आ जाऊंगा ।”
अण्डरटेकर ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया । वह बेहद भयभीत दिखाई देने लगा था ।
“मैं तुम्हें यहां अकेला छोड़कर जा रहा हूं इसलिए मौके का फायदा उठाकर मुझे फंसाने के लिए कोई शरारत करने की कोशिश मत करना । क्या तुम्हें दोबारा याद दिलाने की जरूरत है कि तुम्हारा एक गलत कदम तुम्हारी लड़की की क्या गत बन सकता है ।”
“मुझ पर भरोसा रखो ।” - वह कम्पित स्वर में बोला ।
सुनील कमरे से बाहर निकल आया ।
उस इमारत को चार मन्जिली इमारत के गलियारे से मिलाने वाले दरवाजे पर खलील अहमद खड़ा था । सुनील एक क्षण के लिए उसके समीप ठिठका । उतने समय में खलील अहमद ने सुनील के हाथ में एक रिवाल्वर और चाबी सरका दी ।
सुनील ने दोनों चीजें अपनी यूनीफार्म की जेब में डाल लीं ।
वह बिना खलील अहमद से निगाहें मिलाये लम्बे डग भरता हुआ आगे बढ गया ।
सीढियों के रास्ते वह निर्विघ्न चौथी मंजिल पर पहुंच गया ।
गलियारे में जहां से कैदियों की कोठरियां आरम्भ होती थीं वहां फर्श से छत तक लोहे की मजबूत जाली लगी हुई थी लेकिन उस जाली में बने दरवाजे की चाबी सुनील की जेब में थी ।
भीरत एक कोठरी में से पागल औरत के हिचकियां ले लेकर रोने की आवाज आ रही थी ।
वहीं किसी कोठरी में परवीन बन्द थी ।
सुनील का मुंह सूखने लगा । वह सावधानी से जाली की ओर बढा ।
उसी क्षण पागल औरत के भयानक चीत्कार से गलियारा गूंज गया ।
सुनील एक क्षण के लिए ठिठका । उसकी रीढ की हड्डी में एक ठंडक की लहर दौड़ गई । फिर उसके जबड़े भिंच गये और वह दृढ कदमों से आगे बढा ।
जाली के समीप के एक कमरे का दरवाजा खुला और उसमें से हलीमा ने गलियारे में कदम रखा ।
सुनील ठिठक गया ।
दोनों की निगाहें मिलीं ।
सुनील का अपने दिल की धड़कन रुकती महसूस हुई ।
हलीमा सन्दिग्ध नेत्रों से घूर रही थी ।
सुनील फिर दृढ कदमों से आगे बढने लगा । वह पहरेदार की यूनीफार्म पहने हुए था इसलिए वक्ती तौर पर आश्वस्त था ।
वह हलीमा के सामने जा खड़ा हुआ ।
“क्या गड़बड़ थी ?” - उसने सहज स्वर में पूछा ।
“गड़बड़” - हलीमा के माथे पर बल पड़ गये - “कैसी गड़बड़ ?”
“मैंने चीख पुकार की आवाजें सुनी थीं” - सुनील बोला - “मैं तीसरी मंजिल पर था । मैंने सोचा शायद यहां दंगा फसाद हो गया है, इसलिए भागा चला आया ।”
“अक्ल खराब है क्या तुम्हारी !” - वह सख्त नाराजगी भरे स्वर में बोली - “यहां क्या दंगा फसाद हो सकता है ?”
“मैंने सोचा शायद...”
“और फिर क्या मैं दंगा फसाद संभालने के लिये काफी नहीं हूं ?”
“नाराज क्यों होती हो ? मैं तो तुम्हारी मदद की खातिर ही यहां आया था । मैंने चीख पुकार की आवाज सुनी थी तो मैं समझा था कि शायद पागल औरत ने तुम्हें पकड़ लिया है । मैं फौरन यहां भागा चला आया ।”
“और यह भी भूल गये कि इस मंजिल पर मर्दो को आने की इजाजत नहीं है ।”
सुनील चुप रहा ।
“अब फूटो यहां से ।”
गहन पराजय की अनुभूति मन में दबाये सुनील वापिस जाने के लिए घूमा ।
“ठहरो ।” - हलीमा का कर्कश स्वर उसके कानों में पड़ा ।
सुनील ठिठक गया ।
“मेरी ओर घूमो ।”
सुनील घूमा । उसका कलेजा मुंह को आ रहा था ।
“मैंने तुम्हें पहले भी कहीं देखा है ?” - वह सुनील के चेहरे को घूरती हुई बोली ।
“नहीं हो सकता” - सुनील प्रत्यक्षतः स्थिर स्वर से बोला - “मैं तो आज ही से यहां ड्यूटी पर हूं । जेलर साहब ने जो पांच पहरेदार स्टेशन हैडक्वार्टर से बुलाये हैं, मैं उनमें से एक हूं । जेल में तुमने पहले वहां देखा होगा मुझे ।”
“मैं हाल ही की बात कर रही हूं ।”
“हाल ही में तो तुमने मुझे तीसरी मंजिल पर पहरा देते ही देखा होगा ।”
हलीमा के नेत्र सिकुड़ गए । फिर एकदम वह बदले स्वर में बोली - “तुम्हारी शक्ल अन्डरटेकर के नए असिस्टेन्ट से मिलती है ।”
बड़ी मुश्किल से सुनील अपने चेहरे पर दहशत के भाव प्रकट होने से रोक पाया । वह बड़ी मेहनत से अपने चेहरे पर एक मुस्कराहट पैदा करता हुआ बोला - “वह मेरा भाई है । हम दोनों की शक्ल इतनी मिलती है कि लोग अक्सर गलती खा जाते हैं । बस इतना फर्क है कि जलाल मेरे से जरा मोटा है ।”
हलीमा चुप रही ।
“मैं जलाल को यहां बुलाकर लाऊं !”
“जरूरत नहीं” - हलीमा एकाएक निर्णयात्मक स्वर में बोली - “और अब फूटो यहां से । और याद रखो इस मंजिल पर भूलकर भी कदम मत रखना चाहे यहां से तुम्हें किसी औरत की आवाज आये या बम फटने की आवाज सुनाई दे । समझ गए ?”
“समझ गया ।”
“मैं सब जानती हूं, वास्तव में तुम लोग चोरी छुपे चौथी मंजिल पर क्यों आते हो । तुम लोग महिला कैदियों से छेड़छाड़ करने की नीयत से यहां आते हो । ऐसी ही हरकतों की वजह से मैं पहले भी एक सिपाही को नौकरी से निकलवा चुकी हूं । कहीं तुम्हारा भी वही अंजाम न हो ।”
सुनील चुप रहा ।
“फूटो !”
सुनील घूमा और लम्बे डग भरता हुआ सीढियों की ओर बढ गया ।
सुनील सात आठ सीढियां उतरा और फिर दबे पांव वापिस सीढियां चढ आया ।
हलीमा गलियारे में से वापिस अपने कमरे में जा चुकी थी ।
सुनील गलियारे में दबे पांव भागता हुआ जाली के पास पहुंचा । फुर्ती से उसने अपनी जेब से जाली के दरवाजे की चाबी निकालकर ताला खोला । वह दरवाजा धकेलकर भीतर प्रविष्ट हो गया । अपने पीछे उसने दरवाजा बन्द कर दिया ।
उसने बारी-बारी जेल की एक-एक कोठरी में झांकना आरम्भ किया ।
पहली तीन कोठरियां खाली थीं ।
दूसरी कोठरी में एक बूढी औरत मौजूद थी । सुनील को देखकर वह कोठरी के लोहे के सींखचों वाले दरवाजे के समीप पहुंच गई । उसके चेहरे पर एक वीभत्स मुस्कराहट आई और वह खनखनाते हुए स्वर में बोली - “आ न मेरे दिलदार । तेरे ही इन्तजार में तो बैठी हूं मैं ।”
सुनील बिना उससे निगाह मिलाये आगे बढ गया ।
अगली कोठरी में सींखचों के पास एक बड़ी असहाय-सी लगने वाली जवान औरत चुपचाप खड़ी थी ।
सुनील उसके सामने से गुजरा ।
एकाएक उस औरत का एक हाथ गोली की तरह सींखचों से बाहर निकला और सुनील की बांह से लिपट गया ।
सुनील ने चौंककर उस औरत की ओर देखा ।
उस औरत ने एक गगनभेदी अट्टहास किया और सुनील को पूरी शक्ति से अपनी ओर खींचा ।
सुनील खिंचता हुआ सींखचों से जा टकराया ।
औरत के मुंह से एक सांप जैसी फुंफकार निकली । उसके होंठ भिंचे हुए थे और आंखों में एक शैतानी चमक थी । उसका दूसरा हाथ भी सींखचों से बाहर निकला और उसने सुनील को गिरहबान से थाम लिया ।
“खून पी जाउंगी ।” - वह जहर-भरे स्वर में बोली ।
सुनील सिर से पांव तक कांप गया । अनजाने में ही वह उस खूनी और पागल औरत की गिरफ्त में आ गया था जिसकी चीखों से सारी इमारत गूंजी हुई थी ।
“जरा अपनी गर्दन मेरे हाथ में आने दो ।” - वह गुर्राई ।
सुनील ने अपने पांव सींखचों के साथ लगाये और जोर से स्वयं को पीछे खींचा ।
पागल औरत की पकड़ उसके गिरहबान और बाजू से छूट गई और वह भरभराता हुआ पिछली दीवार से जा टकराया और जमीन पर ढेर हो गया । इससे पहले कि वह उठकर अपने पैरों पर खड़ा हो पाता, पागल औरत नीचे झुकी, उसके हाथ बिजली की फुर्ती से सींखचों से बाहर निकले और सुनील की टांग के गिर्द लिपट गये । सुनील ने जोर से अपनी टांग को झटका दिया लेकिन पागल औरत की पकड़ फौलाद जैसी मजबूत थी । उसकी हथेलियां जैसे गोंद से सुनील के टखने के गिर्द चिपकी हुई थीं । पागल औरत ने पूरी शक्ति से सुनील को अपनी ओर खींचा । सुनील गलियारे के फर्श पर पागल औरत की ओर फिसलता चला गया । उसने खूब-हाथ पांव झटकाये लेकिन वह स्वयं को पागल औरत की फौलादी पकड़ से आजाद न कर सका ।
बगल की कोठरी में मौजूद बूढी औरत पुलिस की दुर्गति से खुश होकर अट्टहास कर रही थी ।
आतंकित सुनील फिर खिंचता हुआ सींखचों के पास पहुंच गया । उसने सुनील का टखना छोड़ दिया और बड़ी फुर्ती से फिर उसका गिरहबान थाम लिया । उसकी बेचैन उंगलियां धीरे-धीरे सुनील की गरदन की ओर सरकने लगीं ।
सुनील ने धीरे से अपने शरीर के नीचे से अपना दायां पांव निकाला । उसने पांव सींखचों के बीच से गुजार कर पागल औरत की छाती पर टिका दिया । उसने अपने शरीर की सारी शक्ति लगाकर धक्का दिया ।
पागल औरत के मुंह से एक सिसकारी निकाली, सुनील के गिरहबान से उसकी पकड़ छूट गई और वह कोठरी के फर्श पर लोट गई ।
सुनील हांफता हुआ उठ खड़ा हुआ और सींखचों से दूर हट गया । वह सिर से पांव तक बुरी तरह कांप रहा था ।
उसी क्षण जाली का दरवाजा खुला और हलीमा ने भीतर कदम रखा ।
बूढी औरत जो अब गगनभेदी अट्टहास लगा रही थी, हलीमा पर निगाह पड़ते ही सहमकर चुप हो गयी और कोठरी की पिछली दीवार से लगकर खड़ी हो गई ।
हलीमा गलियारे के फर्श को रौदती हुई सुनील के सामने आ खड़ी हुई ।
“मैंने तुम्हें दुबारा यहां कदम न रखने के लिए कहा था ?” - वह आंखों से अंगारें बरसाती हुई चिल्लाई ।
सुनील के मुंह से बोल नहीं फूटा ।
“चलो ।” - वह जहर भरे स्वर से बोली ।
“कहां ?” - बड़ी मुश्किल से सुनील के मुंह से निकला ।
“जेलर के पास ।”
“क्यों बात बढाती हो । मैंने इस औरत की खूबसूरती की बहुत तारीफ सुनी थी । मैं तो सिर्फ इसकी सूरत देखने चला आया था !”
“ठीक है, ठीक है । अब जेलर की सूरत भी देख लो । उसकी खूबसूरती की भी बहुत तारीफ होती है बसरा में ।”
सुनील लड़खड़ाता हुआ उसकी ओर बढा और याचनापूर्ण स्वर से बोला - “सिर्फ इस बार और माफ कर दो, मोहतरमा । मैं दुबारा ऐसी गलती नहीं करूंगा ।”
“माफी जेलर से मांगना । जल्दी-जल्दी कदम उठाओ ।”
सुनील लड़खड़ाता हुआ उसके समीप पहुंचा । एकाएक वह सम्भला और अपने हाथ फैलाए बिजली की फुर्ती से हलीमा पर झपटा ।
लेकिन हलीमा उसकी उम्मीद से बहुत ज्यादा फुर्तीली औरत थी । एक शेरनी की फुर्ती से वह कूदकर अलग हट गई । उसका एक हाथ हवा में घूमा और भड़ाक से सुनील की गरदन से टकराया ।
सुनील जमीन चाट गया ।
“लगता है तुम्हारी मौत मेरे हाथों ही लिखी है” - हलीमा बोली और उसका दायां पांव जमीन पर गिरे सुनील की खोपड़ी की ओर घूमा । सुनील ने तेजी से करवट बदली और हलीमा का पांव हवा में ही थाम लिया और उसे जोर से अपनी ओर खींचा । हलीमा का सन्तुलन बिगड़ गया और वह भरभराकर उसी के ऊपर आ गिरी । सुनील ने उसे अपने ऊपर से झटका और फुर्ती से उठकर खड़ा हो गया । हलीमा भी लगभग उसके साथ ही उठकर खड़ी हो गई । वह शेरनी की तरह उस पर झपटी ।
सुनील ने अपने दायें हाथ का एक भरपूर घूसा उसकी कनपटी पर जमाया । हलीमा एक कदम पीछे को लड़खड़ा गई । सुनील का दूसरा घूंसा स्टीम रोलर की ठोकर की तरह उसके जबड़े से टकराया । हलीमा पीछे को गिरी और सम्भलती सम्भलती भी पागल औरत की कोठरी के जंगले से जा टकराई और भरभराकर वहीं गिर गई । इससे पहले कि वह उठकर अपने पैरों पर खड़ी हो पाती, पागल औरत के दोनों हाथ जंगले में से बाहर निकले और बड़ी मजबूती से हलीमा की गरदन से लिपट गये ।
हलीमा के गले से एक चीख निकली लेकिन वह चीख बीच में ही हलीमा के गले में घुट गई । पागल औरत की निगाहों से वहशत टपक रही थी । हलीमा पूरी शक्ति से स्वयं को पागल औरत के शिकंजे जैसे हाथों से मुक्त करने की कोशिश कर रही थी । वह बुरी तरह छटपटा रही थी, हाथ पांव पटक रही थी लेकिन स्वयं को स्वतन्त्र कर पाने में सफल नहीं हो रही थी । उसने अपने हाथ अपने सिर के पीछे फैलाकर पागल औरत के शरीर तक पहुंचाने चाहे लेकिन सलाखों की वजह से वह अपने प्रयत्न में कामयाब न हो सकी ।
सुनील सन्न-सा खड़ा सारा नजारा देख रहा था ।
हलीमा अब साफ-साफ आतंकित दिखाई दे रही थी और बुरी तरह चिल्ला रही थी लेकिन अब उसका पागल औरत की पकड़ से आजाद हो पाना मुमकिन नहीं लग रहा था ।
पागल औरत ने पूरी शक्ति से हलीमा को अपने शिकंजे में फंसा उसका सिर अपनी ओर खींचा ।
सिर सींखचों के बीच में से गुजरता चला गया ।
हलीमा के मुंह से एक खून सुखा देने वाली चीख निकली । साथ ही पागल औरत के गगनभेदी अट्टहास से वातावरण गूंज उठा ।
पहले सारा जेलखाना पागल औरत की चीखों से गूंजा हुआ था और अब उसके स्थान पर हलीमा चीख रही थी लेकिन सुनने वालों की निगाह में शायद यह फर्क नहीं आया था इसलिये कोई भी पहरेदार चौथी मंजिल व गलियारे में प्रकट नहीं हुआ था ।
सींखचों से सिर गुजरते समय हलीमा का एक कान आधा कट गया था और उस ओर से सारा चेहरा यूं छिल गया था जैसे उस पर रन्दा फिर गया हो ।
अब हलीमा को अपनी आंखों के सामने साक्षात मौत नाचती दिखाई दे रही थी । अब उसके मुंह से आवाज नहीं निकल रहा थी । मौत के भय से उसकी घिग्घी बंध गई थी । उसके चेहरे और नाक में से खून बह-बहकर उसके शरीर और गलियारे के फर्श पर गिर रहा था ।
सुनील मुंह बाये सब कुछ देख रहा था ।
अब पागल औरत उठकर खड़ी हो गई थी और उसने हलीमा के गले में अपनी कलाई लपेट ली थी । वह आंखें बन्द किये अपने दोनों पैर सींखचों के साथ अटकाये पूरी शक्ति से हलीमा का गला दबा रही थी ।
हलीमा का मुंह खुल गया, होंठ नीले पड़ गये और जुबान बाहर को लटकने लगी । उसकी आंखें अपनी कटोरियों से बाहर की ओर उबल पड़ी और उसका शरीर धनुष की तरह मुड़ गया ।
एक हल्की सी कड़ाक की आवाज हुई और हलीमा की गर्दन टूट कर एक ओर लटक गई । उसके हाथ-पांव ढीले पड़ गये । पागल औरत ने भी शायद यह अंतर महसूस किया । उसने हलीमा की गर्दन से अपनी कलाई निकाल ली और उठकर खड़ी हो गई ।
बड़ा वीभत्स दृश्य था । हलीमा की टूट हुई गर्दन सींखचों के बीच फंसी हुई लटक रही थी और उसका निर्जीव शरीर गलियारे के फर्श पर फैला हुआ था ।
सुनील के रोंगटे खड़े हो गये ।
उसी क्षण सुनील और पागल औरत की आंखें चार हुईं ।
पागल औरत ने सुनील को आंख मारी और फिर सींखचों के साथ लगकर मन्द-मन्द मुस्काने लगी । उसके चेहरे पर अपूर्व शान्ति थी और उसे देखकर ऐसा लगता था जैसे कुछ हुआ ही न हो ।
गलियारे में एकाएक मौत का-सा सन्नाटा छा गया था ।
सुनील लड़खड़ाता हुआ आगे बढा । पागल औरत की कोठरी के समीप पहुंचकर वह ठिठका ।
पागल औरत का ध्यान अब उसकी ओर नहीं था ।
सुनील हलीमा के शरीर को लांघकर आगे बढा ।
तीसरी कोठी में परवीन बन्द थी । वह एक तख्तपोश पर अचेत पड़ी थी ।
खलील अहमद की दी हुई चाबी से ही सुनील ने उस कोठरी का ताला भी खोला । वह कोठरी में प्रविष्ट हुआ । उसने परवीन के अचेत शरीर को अपने कन्धे पर लादा और कोठरी से बाहर निकल आया । लम्बे डग भरता हुआ वह गलियारे के उस भाग से बाहर निकल आया ।
संयोगवश लिफ्ट चौथी मंजिल पर खड़ी थी ।
सुनील लिफ्ट में प्रविष्ट हो गया और उसने ग्राउण्ड फ्लोर का बटन दबा दिया ।
लिफ्ट का पिंजरा तेजी से नीचे गिरने लगा ।
ग्राउण्ड फ्लोर पर आकर लिफ्ट रुकी । लिफ्ट का आटोमैटिक दरवाजा अपने आप खुल गया । सुनील ने सावधानी से बाहर झांका ।
गलियारा खाली था । एक सिरे पर खलील अहमद खड़ा था । दोनों की आंखें चार हुई । खलील अहमद ने उसे हाथ के इशारे से लिफ्ट में ही रहने का संकेत किया ।
सुनील ने परवीन को लिफ्ट के फर्श पर दीवार के सहारे बिठा दिया और अपनी यूनीफार्म में से रिवाल्वर निकाल ली ।
उसने सावधानी से सिर निकाल कर बाहर झांका ।
उसे गलियारे में दो रायफलधारी सिपाही दिखाई दिये ।
सुनील ने सिर भीतर खींच लिया और रिवाल्वर हाथ में थामे प्रतीक्षा करने लगा ।
उसी क्षण लिफ्ट का दरवाजा अपने आप बन्द होने लगा ।
सुनील घबरा गया । शायद किसी और मंजिल से किसी ने लिफ्ट बुलाने के लिए बटन दबा दिया था ।
लिफ्ट ऊपर को उठने लगी ।
सुनील ने एमरजेंसी स्टाफ का बटन दबाया लेकिन लिफ्ट की रफ्तार में कोई फर्क नहीं आया । लिफ्ट पूर्ववत् ऊपर को ऊठती रही ।
सुनील रिवाल्वर लिये तैयार खड़ा रहा ।
लिफ्ट तीसरी मंजिल पर आकर रूकी ।
दरवाजा खुला ।
सामने एक सिपाही खड़ा था । उसने लिफ्ट में घुसने के लिए कदम बढाया और फिर ठिठककर खड़ा हो गया । पहले उसकी निगाह सुनील पर फिर उसके हाथ में थमी रिवाल्वर पर और फिर फर्श पर पड़ी परवीन पर पड़ी । आश्चर्य और आतंक से उसके नेत्र फट पड़े । उसने चिल्लाने के लिये मुंह खोला ।
जो काम सुनील नहीं करना चाहता था, वही उसे करना पड़ा ।
उसने रिवाल्वर का घोड़ा दबा दिया ।
वातावरण फायर की आवाज से गूंज गया ।
गोली सिपाही के दिल से गुजर गई । वह कटे वृक्ष की तरह लिफ्ट के सामने फर्श पर ढेर हो गया ।
गलियारे में कोई चिल्लाया ।
सुनील ने लिफ्ट का ग्राउण्ड फ्लोर का बटन दबाया । लिफ्ट का दरवाजा बन्द हो गया और लिफ्ट फिर ग्राउण्ड फ्लोर की ओर चल पड़ी ।
लिफ्ट के ग्राउण्ड फ्लोर पर पहुंचने से पहले ही सुनील ने परवीन को उठाकर अपने बायें कन्धे पर लाद लिया । लिफ्ट का दरवाजा खुला और वह बिना अंजाम की परवाह किये बाहर गलियारे में निकल आया ।
सीढियों पर कई भारी कदम एक साथ पड़ने की धीमी-धीमी आवाजें आ रही थीं ।
गलियारे में वही दो रायफलधारी सिपाही खड़े थे जो सुनील ने पहले देखे थे । उनके सम्भलने से पहेल ही सुनील ने बेहिचक उन्हें शूट कर दिया ।
खलील अहमद के नेत्र आतंक से फट पड़े ।
सुनील परवीन को उठाये गलियारे में भागा ।
खलील अहमद उसे अपनी ओर आता देखकर हड़बड़ाकर एक ओर हट गया ।
सुनील उस गलियारे में प्रविष्ट हो गया जिसमें पोस्टमार्टम का कमरा था । सौभाग्यवश वह गलियारा खाली था । तीसरी मंजिल पर मची खलबली का असर अभी तक वहां नहीं हुआ था । सुनील निर्विघ्न पोस्टमार्टम रूम में पहुंच गया । उसने अपने पीछे द्वार भिड़का दिया ।
अण्डरटेकर एक दीवार के साथ लगकर खड़ा था । उसकी हालत ऐसी थी जैसे वहीं खड़े-खड़े उसके प्राण निकल चुके हों । सुनील को देखकर न वह बोला और न हिला ।
सुनील लपककर ताबूत के पास पहुंचा । उसने परवीन को ताबूत में लिटा दिया ।
“नकली तला लगाओ ।” - वह हांफता हुआ बोला ।
उसी क्षण परवीन को होश आ गया । उसने अपने आपको ताबूत में लेटा पाया तो उसके मुंह से एक भयभरी सिसकारी निकल गई । वह ताबूत में उठकर खड़ी हो गई ।
“लेटी रहो ।” - सुनील तीव्र स्वर में बोला ।
“नहीं ।” - परवीन तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोली ।
ज्यादा विचार करने का या उसे समझाने बुझाने का वक्त नहीं था । सुनील ने उसकी कनपटी पर एक कैरेट चाप का प्रहार किया ।
परवीन की आंखें उलट गई ।
सुनील ने फिर उसे ताबूत में लिटा दिया ।
“नकली तला लाओ, गधे ।” - सुनील दांत भींचे कर्कश स्वर से बोला ।
अण्डरटेकर की तन्द्रा टूटी । नकली तला उसने आपरेशन टेबल की साइड में रखा हुआ था । वह जल्दी से तला उठा लाया । उसने तले को ताबूत में परवीन के अचेत शरीर के ऊपर फिट कर दिया ।
सुनील ने पेचकस उठाकर फटाफट नकली तले के पेच कस दिये ।
“लाश उठाओ ।” - सुनील ने आदेश दिया ।
अण्डरटेकर आपरेशन टेबल के पास पहुंचा । उसने लाश पर से चादर खींच ली । वह लाश को कपड़े वगैरह पहना चुका था । सुनील ने लाश का सिर थामे और अण्डरटेकर ने पांव । दोनों ने लाश को उठाकर ताबूत में लिटा दिया । । अब ताबूत के निचले आधे भाग में परवीन का अचेत शरीर था और ऊपर के आधे भाग में वह लाश थी ।
“ढक्कन बन्द करो ।” - सुनील ने उसे कहा और वह स्वयं उस अलमारी की ओर झपटा जिसमें उसने अपना काला चोगा छुपया था । उसने आनन-फानन अपना काला चोगा पहने लिया और रिवाल्वर भी उसी की जेब में छुपा ली ।
उसी क्षण भड़ाक से कमरे का दरवाजा खुला । एक सार्जेन्ट और चार सशस्त्र सैनिक भीतर प्रविष्ट हुए ।
अण्डरटेकर का रंग उड़ गया और वह थर थर कांपने लगा । सुनील भी भयभीत होने का अभिनय करने लगा ।
“तुम दोनों के सिवाय अभी यहां कोई तीसरा आदमी आया था ?” - सार्जेन्ट ने अधिकारपूर्ण स्वर से पूछा ।
अण्डरटेकर ने कांपते हुए नकारात्मक ढंग से सिर हिलाया ।
“इसमें क्या है ?” - सार्जेन्ट का संकेत ताबूत की ओर था ।
“लाश ।” - अण्डरटेकर बड़ी मुश्किल से इतना ही बोल पाया ।
“ढक्कन उठाओ ।”
अण्डरटेकर, अपने स्थान से हिला भी नहीं ।
सुनील ने आगे बढकर ताबूत का ढक्कन उठाया ।
सार्जेन्ट ने ताबूत में पड़ी लाश पर निगाह डाली और फिर बोला - “ठीक है, ठीक है ।”
उसने एक सरसरी निगाह कमरे के चारों ओर दौड़ाई फिर उसने अपने साथियों को संकेत किया ।
सब लोग दनदनाते हुए कमरे से बाहर निकल गए ।
सुनील ने ताबूत का ढक्कन मजबूती से बन्द कर दिया । उसने अण्डरटेकर के पेचकस वगैरह उसके बैग में डाले और फिर बैग को ताबूत के ऊपर रख दिया । उसने अण्डरटेकर को कन्धों से पकड़कर झोड़ा ।
“ताबूत उठाओ ।” - सुनील कर्कश स्वर में बोला ।
अण्डरटेकर लड़खड़ाता हुआ आगे बढा और उसने ताबूत का एक ओर का हैंडल थाम लिया । सुनील ने दूसरी ओर का हैंडल थामा । दोनों ताबूत को उठाकर बाहर ले चले । ताबूत में दो शरीरों की मौजूदगी से ताबूत बहुत भारी हो गया था ।
“डैथ सार्टिफिकेट ?” - सुनील ने पूछा ।
“मैं पहले ही ले आया हूं ।” - अण्डरटेकर बड़ी मुश्किल से बोल पाया ।
दोनों ने ताबूत को बाहर लाकर घोड़ा गाड़ी पर लाद दिया । वे दोनों भी घोड़ा गाड़ी पर सवार हो गए ।
जेल की इमारत में इस हद तक आपाधापी मच चुकी थी कि किसी को लाश ले जाते हुए अण्डरटेकर और उसके असिस्टेण्ट की ओर ध्यान देने की फुरसत नहीं थी । सुनील ने अपनी जेब से रिवाल्वर निकालकर अपनी जांघ के नीचे दबा ली ।
इस बार घोड़ा गाड़ी अण्डरटेकर हांक रहा था ।
घोड़ा गाड़ी बैरियर के पास पहुंची ।
पहले वाले भयानक चेहरे वाले सिपाही ने ही घोड़ा गाड़ी की तलाशी ली, ताबूत का ढक्कन उठाकर भीतर झांका और फिर अपने साथी को बैरियर उठा देने का आदेश दिया ।
अण्डरटेकर ने घोड़ा गाड़ी आगे हांक दी ।
चार सौ गज लम्बा रास्ता तय करके वह जेल के दोहरे फाटक वाले मुख्य द्वार पर पहुंचे ।
“दरवाजा खोलो, सन्तरी जी ।” - सुनील बोला ।
“वापिस जाओ” - गेट पर खड़ा सन्तरी बोला - “मुझे जेलर साहब का आदेश मिला है कि किसी को जेल से बाहर न जाने दिया जाये ।”
“लेकिन वह आदेश तो अनजाने आदमियों के लिए है । हम तो थोड़ी देर पहले आपके समाने लाश लाने के लिए भीतर गए थे ।”
“मुझे किसी को बाहर न जाने देने का हुक्म हुआ है ।”
“और हमें लाश को फौरन यहां से ले जाने का हुक्म हुआ है । शहर में मरने वाली के रिश्तेदार लाश के पहुंचने का इन्तजार कर रहे हैं । डाक्टर ने अभी हमें डैथ सर्टिफिकेट लिखकर दिया है । जरा सोचो, अगर हमें लाश को फौरन यहां से ले जाने का हुक्म न होता तो क्या डाक्टर हमें फौरन डैथ सर्टिफिकेट देता ।”
सन्तरी एक क्षण हिचकिचाया और बोला - “डैथ सर्टिफिकेट दिखाओ ।”
सुनील के संकेत पर अण्डरटेकर गाड़ी से नीचे कूदा । उसने अपनी जेब से डैथ सर्टिफिकेट निकाला और फाटक के जंगले में से उसे सन्तरी को थमा दिया ।
सन्तरी ने बड़ी सावधानी से डैथ सर्टिफिकेट का मुआयना किया और सर्टिफिकेट अण्डरटेकर को लौटा दिया । उसके चेहरे पर अभी भी अनिश्चय के भाव थे ।
“चाहो तो फोन पर डाक्टर साहब से बात कर लो ।” - सुनील प्रत्यक्षतः निश्चिन्त स्वर में बोला जबकि मन ही मन उसे एक-एक क्षण भारी लग रहा था ।
दोनों फाटकों के सन्तरियों की एक दूसरे से निगाह मिली । फिर पहले फाटक के सन्तरी ने अपनी जेब से चाबी निकाल ली ।
सुनील की जान में जान आई ।
अण्डरटेकर वापिस गाड़ी में आ बैठा ।
फाटक खुला । सुनील ने गाड़ी फाटक में हांक दी । गाड़ी फाटक से पार होते ही सन्तरी ने फाटक बन्द कर लिया ।
“ठहर जाओ ।” - सन्तरी एकाएक अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
सुनील को अपने दिल की धड़कन रुकती महसूस हुई ।
हे भगवान ! अब क्या हो गया ।
घोड़ा गाड़ी रुक गई ।
उसका हाथ अपनी जांघ के नीचे दबी रिवाल्वर की ओर सरक गया ।
“ताबूत खोलकर दिखाओ ।” - सन्तरी बोला ।
“खुद ही देख लो ।” - सुनील बोला ।
सन्तरी घोड़ा गाड़ी पर चढ़ गया । उसने ताबूत का ढक्कन उठाकर भीतर झांका । लाश देखकर उसने बुरा-सा मुंह बनाया और ढक्कन नीचे गिराकर गाड़ी से कूद गया ।
“एक कैदी जेल से भाग निकला है ।” - सन्तरी यूं बोला जैसे वह अपने सन्देही व्यवहार की सफाई दे रहा हो - “इसलिए इतनी सावधानी बरतनी पड़ रही है ।”
“तुमने क्या समझा था कि लाश की जगह वह कैदी छुपा हुआ होगा !” - सुनील अट्टहास करता हुआ बोला ।
“ठीक है, ठीक है” - सन्तरी झुंझलाये स्वर में बोला - “ज्यादा बातें मत बनाओ और गाड़ी आगे बढाओ ।”
गाड़ी जेल से बाहर निकल आई ।
परवीन अब आजाद थी ।
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