विमल रिसैप्शन पर पहुंचा ।
“मेरा नाम कालीचरण है ।” - वह बड़े सभ्य स्वर में रिसैप्शनिस्ट युवती से बोला - “मुझे मोटलानी साहब से मिलना है ।”
“आपकी उनसे अप्वायण्टमे्ण्ट है ?”
“हां ।”
युवती ने एक फोन उठाया, फोन पर लगा एक बटन दबाया, और माउथपीस में कुछ कहा ।
फिर उसने फोन रख दिया और विमल से बोली - “आप उधर बैठ जाइये ।”
“बैठ जाऊं ?” - विमल बोला - “क्या इन्तजार करना पडे़गा ?”
“जी हां ।”
“कब तक ?”
“कहना सुहाल है । लेकिन आप इन्तजार करने के लिए बाध्य नहीं हैं । आप चाहें तो अभी यहां से जा सकते हैं ।”
“मोटलानी साहब से बिना मिले ?”
“हां ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ?”
“नहीं हो सकता है तो उधर जाकर बैठ जाइए ।”
विमल रिसैप्शन डेस्क से परे पड़ी कुर्सियों में से एक पर बैठ गया । यूं बैठना उसे रास नहीं आ रहा था । ऐसे चुपचाप उसका मुआयना किया जा सकता था और उसे पहचाना जा सकता था । लेकिन उसकी मजबूरी थी । इन्तजार के अलावा कोई चारा नहीं था ।
प्लास्ट‍िक बम वाला बटन उसके मुंह में उसकी जुबान के नीचे मौजूद था ।
उसने टेबल पर पड़ी एक पत्रिका उठा ली और उसे खोलकर उसकी ओट में अपना चेहरा छुपा कर उसे पढने का अभिनय करने लगा ।
बेचैनी से पहले बदलता वह इन्तजार करता रहा ।
कुछ क्षण बाद उसकी तवज्जो अपने आप ही उसकी गुजरी जिन्दगी की तरफ चली गयी ।
और कुछ क्षण बाद वह एक बार फिर धुआंधार रफ्तार से गुजरी अपनी हाल ही की जिन्दगी को रिव्यू करने की कोशिश‍ कर रहा था ।
क्या करने घर से निकला था वह, और क्या हो रहा था ।
“दाता !” - वह होंठो में बुदबुदाया - “सोचै सोचि न होवई जो सोची लखवार !”
अपनी कल्पना में वह एक बार फिर चण्डीगढ में नीलम के फ्लैट के इत्मीनान और सकून में पहुंच गया । उसे उस औरत की कुरबानी की याद आई जो उसकी कोई नहीं थी लेकिन सिर्फ उसी की वजह से खूंखार भेड़ियों के चंगुल में फंसी हुई थी ।
नीलम ! जो उसके हर दु:ख-सुख में शरीक थी और जो चण्डीगढ से लेकर बम्बई तक हर जगह साये की तरह उसके साथ रही थी ।
चण्डीगढ में उसके मुंह से निकल गया कि उसकी आने वाली जिन्दगी में उसकी सलामती इस बात पर निर्भर करती थी कि विमल को प्लास्ट‍िक सर्जरी से नया चेहरा हासिल हो जाए । स्लेटर नाम के जिस डॉक्टर से उसे नया चेहरा हासिल हो सकता था, उसकी ऐसी सेवाओं की फीस पांच लाख रूपये थी, जबकि विमल के पल्ले एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी । वह रकम उसके लिए नीलम ने मुहैया की थी । अपना मकान बेचकर । अपने जेवर बेचकर । बैंक से अपना फिक्स डिपाजिट निकलवाकर ।
फिर विमल अपनी हरजाई बीवी की तलाश में, उसे उसके कुकर्मो की सजा देने की नीयत से चण्डीगढ से इलाहाबाद और इलाहाबाद से बम्बई पहुंचा । वहां उसने सुरजीत को बान्द्रा के एक फैशनेबल फ्लैट में अकेले रहते पाया । सुरजीत ने ही उसे बताया कि उसका यार ज्ञान प्रकाश डोगरा उससे उकता चुका था लेकिन उसने यारी का इतना फर्ज जरूर निभाया था कि असने सुरजीत को वह ऐश्वर्यशाली फ्लैट ले दिया था और हर पहली तारीख को वह खर्चे पानी के लिए उसे दो हजार रूपये भिजवा दिया करता था ।
विमल वहां अपनी बेवफा और हरजाई बीवी का कत्ल करने आया था । उसके कुकर्मो के बदले में वह उसे मौत की सजा देने आया था, लेकिन विमल ने ऐसा नहीं किया । उसकी जगह उसने अपनी बीवी को इतना जलील किया कि अगर उस जलालत की जगह उसे मौत की सजा भी मिलती तो वह कई दर्जे कम होती ।
उसने उसी रात पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली ।
सुरजीत कौर ने साबित कर दिया कि वह बेवफा थी, लेकिन बेहया नहीं थी । उसने विमल की जानबख्शी कबूल नहीं की । उसने अपनी जान खुद ले ली । उसने साबित करके दिखाया कि वह हारकर भी जीत गई थी और विमल जीतकर भी हार गया था ।
उन्होंने सुरजीत की लाश को रेफ्रीजेटर में बन्द करके रेफ्रीजेटर समुद्र में फेंक दिया ।
पहली तारीख को विमल ने सखाराम चित्रे नामक उस आदमी को धर दबोचा जो सुरजीत को दो हजार रुपये की माहवारी पहुंचाने के लिए उसके फ्लैट पर पहुंचा था ।
सखाराम चित्रे के माध्यम से वह उसके बॉस रुस्तम भाई अन्धेरीवाला तक पहुंचा जो कि अन्धेरी की न्यू बाम्बे टूरिस्ट टैक्सी सर्विस का मालिक था ।
रुस्तम भाई से मालूम हुआ कि डोगरा अब बम्बई के अण्डरवर्ल्ड के बेताज बादशाह राजबहादुर बखिया उर्फ काला पहाड़ के गैंग का एक महत्वपूर्ण आदमी बन चुका था और स्थाई तौर पर काले पहाड़ की ‘कम्पनी’ के नाम से जानी जाने वाल आर्गेनाइजेशन के हैडक्वार्टर होटल सी व्यू की दूसरी मंजिल के एक सुइट में रहता था ।
रुस्तम भाई ने विमल से वादा करके भी, कि वह विमल की बाबत डोगरा को आगाह नहीं करेगा, उससे वादाखिलाफी की और डोगरा को विमल के अपने पास आगमन के बारे में सब कुछ बता दिया । उसने उसे यह भी बताया कि विमल सुरजीत को पहले ही कत्ल कर चुका था और अब वह फिराक में था डोगरा के कत्ल की और उन पचास हजार रुपयों की जिन्हें इलाहाबाद में डोगरा डकार गया था लेकिन जिनके गबन के इल्जाम में जेल की हवा सोहल को खानी पड़ी थी ।
विमल और नीलम होटल सी-व्यू पहुंचे और उसकी आठवीं मंजिल पर स्थित सुइट नम्बर 805 में बुक हो गए । वहां थोड़ी-सी कोशिश से ही विमल ने इस बात की तसदीक कर ली कि डोगरा वहीं रहता था ।
एक रात को विमल ने होटल के पहलू में खड़ी एक कार को आग लगा दी । उसे उम्मीद थी कि उस आग से मचे कोहराम की वजह से डोगरा अपने सुइट की बाल्कनी पर प्रकट होगा और वह बड़ी सहूलियत से उसे शूट कर देगा ।
ऐसा हुआ भी; लेकिन डोगरा बाल बाल बचा । विमल द्वारा उसकी बाल्कनी पर बरसाई गई गोलियों में से एक भी उसे न लगी । लेकिन उस आक्रमण से वह इतना बौखलाया कि वह मदद हासिल करने की नीयत से कम्पनी के अपने से ऊंचे ओहदेदार मुहम्मद सुलेमान की शरण में पहुंच गया । उसने सारा वाकिया सुलेमान के सामने बयान किया ।
सुलेमान का जो जवाब उसे मिला उसने उसकी दुश्वारियों को दोबाला कर दिया ।
सुलेमान ने कहा कि सोहल से अदावत डोगरा का जाती मामला था, जिसे वह खुद ही भुगते । इस बाबत ‘कम्पनी’ की कोई मदद उसे मुहैया नहीं कराई जा सकती थी और यह कि क्योंकिे उसकी वजह से ‘कम्पनी’ के इज्जतदार होटल पर गोलियां बरसने की नौबत आई थी, इसलिए जब तक वह सोहल से अपनी अदावत का कोई आर या पार जैसा निपटारा नहीं कर लेता तब तक के लिए वह होटल का अपना सुइट खाली कर दे ।
उसी रोज आधी रात को विमल आठवीं मंजिल की अपनी बाल्कनी से एक रस्सी के सहारे नीचे दूसरे मंजिल की एक बाल्कनी पर उतरा । वह बाल्कनी डोगरा जैसी ही ‘कम्पनी’ के एक अन्य ओहदेदार शान्तिलाल के सुइट की थी जोकि उस वक्त अपने बैडरूम में सिल्विया नामक ‘कम्पनी’ की एक होस्टेस के साथ लिपटा सोया पड़ा था ।
सिल्विया की सहायता से विमल डोगरा के सुइट तक पहुंचा । लेकिन उसकी सारी मेहनत बेकार गई । सुइट खाली पड़ा था । मुहम्मद सुलेमान के ओदश की तहत डोगरा वहां से पहले ही कूच कर गया था ।
विमल रस्सी के सहारे ही वापिस लौटा । लेकिन सिल्विया की धोखेबाजी की वजह से ‘कम्पनी’ के प्यादों को उसकी खबर लग गई । बड़ी कठिनाई से वाह अपनी बाल्कनी तक पहुंच पाया ।
प्यादे उसके सुइट में भी पहुंचे लेकिन उन्होंने विमल और नीलम को सम्पूर्ण नग्नावस्था में पलंग पर एक दूसरे से गुत्थम-गुत्था हुए सोये पाया । यही समझा गया कि चण्डीगढ से हनीमून के लिए वहां आए उस नव-विवाहित जोड़े को अपनी मदहोशी में दरवाजा भीतर से बन्द करने का ख्याल नहीं रहा था, ‘चोर’ चुपचाप उनकी बाल्कनी में पहुंच गया था और रस्सी के सहारे नीचे शान्तिलाल की बाल्कनी में उतर गया था ।
विमल पकड़े जाने से बाल बाल बचा ।
‘कम्पनी’ की छत्रछाया से बेपनाह होकर डोगरा होटल नटरज में पहुंचा ।
उसका कोई अता-पता हासिल करने की नीयत से विमल और नीलम डोगरा के लेफ्टिनेण्ट घोरपड़े के पीछे पड़े । वे कमाठीपुरे में घोरपड़े के घर पहुंचे । वहां विमल ने अपने आपको सुलेमान साहबा का ‘खास आदमी’ कालीचरण और नीलम को कम्पनी की होस्टेस रोजी बताया जो कि घोरपड़े का इनाम हो सकती थी - उस सूरत में जबकि वह यह बताने में कामयाब हो जाता कि डोगरा कहां था । विमल ने उसे कहा कि डोगरा का ‘कम्पनी’ से पत्ता कट चुका था, होटल से उसे निकाला जा चुका था, उसके खलास होने का हुक्म हो चुका था और उसकी जगह लेने के लिए कोई मुनासिब आदमी भी तलाश किया जा रहा था जो कि खुद घोरपड़े ही हो सकता था ।
घोरपड़े फूलकर कुप्पा हो गया । उसने बताया कि उसे डोगरा का पता तो नहीं मालूम था लेकिन एक जगह से उसका पता जाना जा सकता था । वह जगह सायन में स्थित मिसेज पिन्टो का वेश्यालय था ।
बकौल घोरपड़े डोगरा पक्का औरतखोर था । औरत के बिना वह एक दिन भी नहीं रह सकता था । वह जहां भी होगा, मिसेज पिन्टो के वेश्यालय से उसने अपने लिए कोई कॉलगर्ल जरूर तलब की होगी यानी कि उसने मिसेज पिन्टो को जरूर बताया होगा कि उसके लिए कॉलगर्ल मिसेज पिन्टो ने कहां भेजनी थी ।
वे सायन पहुंचे । वहां घोरपड़े ने जबरन मिसेज पिन्टो से कुबूलवा लिया कि उसने संध्या नामक एक कॉलगर्ल को मैरिन ड्रॉइव पर स्थित होटल नटराज के सुइट नम्बर 412 में डोगरा के पास भेजा था ।
मिसेज पिन्टो डोगरा को खबरदार न कर सके, इसलिये घोरपड़े को उसकी छाती पर बिठाकर विमल नीलम के साथ होटल नटराज पहुंचा । वहां विमल ने पहले डोगरा के साथ मौजूद कॉलगर्ल संध्या को वहां से विदा किया और फिर डोगरा का कत्ल कर दिया । डोगरा की जेब से केवल पांच सौ रुपये बरामद हुए । यानी कि कम्पनी अब उसकी साढ़े सैंतालीस हजार रुपये की कर्जाई थी जो कि हर हाल में उसने कम्पनी से वसूल करने थे । (यहां तक की कहानी आपने ‘हार जीत’ में पढी ।)
डोगरा की लाश के पास से ही विमल ने डोगरा के बॉस मुहम्मद सुलेमान को फोन किया और उसे यह क्लासिक धमकी दी:
“सुलेमान सहाब, अगर चौबीस घण्टों में आपने मेरा रुपया मुझे न लौटाया तो रुपया लौटाने मे हर एक दिन की देरी का मैं आप पर एक लाख रुपया रोज के हिसाब से जुर्माना करूंगा और रोज आपकी आर्गेनाइजेशन के एक आदमी को मौत के घाट उतार दूंगा ।”
अपनी इस धमकी पर विमल सबसे पहले ‘कम्पनी’ के शिवाजी राव नाम के एक ओहदेदार का कत्ल करके खरा उतरा । शिवाजी राव एक दुर्दान्त हत्यारा था जो शान्ताराम नामक एक स्मगलर और उसके सारे परिवार का कत्ल करने के इल्जाम में गिफ्तार था । जिस रोज वह ‘लैक ऑफ एवीडेंस’ की बिना पर अदालत से बरी होकर छूटा, उसी रोज विमल ने दिन-दहाड़े, सरेआम उसे शूट कर दिया ।
शान्ताराम के तुकाराम, बालेराम, जीवाराम और देवाराम नामक चार भाइयों ने इसे अपने भाई की मौत का बदला माना, वे विमल के मुरीद बन गए और उसके सहयोगी बनने के लिए उसे तलाश करने लगे ।
‘कम्पनी’ के आदमी विमल को पहले से ही तलाश कर रहे थे । और अब पुलिस को भी मालूम हो चुका था कि मशहूर इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल उर्फ विमल कुमार खन्ना उर्फ गिरीश माथुर उर्फ बनवारीलाल तांगेवाला उर्फ रमेश कुमार शर्मा उर्फ कैलाश मल्होत्रा उर्फ बसन्त कुमार मोटर मैकेनिक उर्फ नितिन मेहता उर्फ कालीचरण अब बम्बई में था और वहां एकाएक छिड़ पड़ी गैंगवार में घी में खिचड़ी की तरह हिला-मिला हुआ था ।
पुलिस को भी उसकी तलाश थी ।
विमल का अगला आक्रमण ‘कम्पनी’ की सरपस्ती में चलने वाले जुआघर क्लब-29 पर हुआ, जहां कैसीनो का वाल्ट तो एक एकाउंटेण्ट की हिम्मत और होशियारी से लुटने से बच गया लेकिन एक गार्ड मारा गया, क्लब के इंचार्ज कम्पनी के शान्तिलाल नामक एक ओहदेदार के हाथ की एक उंगली कटी और वहां मौजूद करोड़ों रुपयों में से विमल के पल्ले बहत्तर हजार सात सौ पचास रुपये की हकीर रकम पड़ी ।
यानी कि काला पहाड़ अभी भी पूरे दो लाख की रकम का विमल का कर्जाई था ।
अब विमल के आतंक की खबर मुहम्मद सुलेमान के ऊपर के ओहदेदार जॉन रोडरीगुएज तक पहुंची । वह बखिया का दायां हाथ माना जाता था और ‘कम्पनी’ के निजाम में उससे ऊपर केवल बखिया ही था ।
जॉन रोडरीगुएज ने सुलेमान को अल्टीमेट दिया कि चौबीस घण्टों में या तो विमल को तलाश करके उसे खलास कर दे और या उसकी मांग कबूल करके वह रकम उसे सौंप दी जाए जिस पर कि विमल अपना हक मानता था ।
किसी नये टार्गेट की तलाश में विमल संध्या नाम की उस कॉलगर्ल से मिला जिसे डोगरा के कत्ल की रात को उसने डोगरा के पहलू में पाया था । संध्या उसकी अहसासनमन्द थी कि डोगरा के साथ उसने उसे भी शूट नहीं कर दिया था । उसने ‘कम्पनी’ के निजाम और ओहदेदार के बारे में विमल को कमाल की जानकारी दी । ‘मटका’ नाम के जुए और कम्पनी के सारे एशिया में फैले हेरोइन के व्यापार के बारे में विमल को संध्या से ही मालूम हुआ ।
अगली रात को विमल ने मिसेज पिन्टो के बंगले को आग लगा दी ।
आग की खबर सुनकर ‘कम्पनी’ के प्रॉस्टीच्यूशन ट्रेड का इन्चार्ज पालकीवाला जब वहां पहुंचा तो विमल ने उसे शूट कर दिया । वहीं विमल तुकाराम की निगाह में आ गया जो कि विमल के वहां प्रकट होने की उम्मीद में ही बंगले की निगरानी कर रहा था । विमल के पीछे लगकर तुकाराम को दो बातें मालूम हुई:
कि वह ‘कम्पनी’ की ऐन नाक के नीचे बखिया के हैडक्वार्टर होटल सी व्यू की आठवीं मंजिल के सुइट नम्बर 805 में रह रहा था और उसके साथ जो उसका सहयोगी था वह वास्तव में एक सुन्दर युवती थी ।
तुकाराम ने वागले नाम के अपने एक आदमी को विमल की निगरानी के लिए होटल सी व्यू में प्लांट कर दिया ।
उसी रात विमल ने जॉन रोडरीगुएज की कोठी में घुसकर भारी उत्पात मचाया और यह स्थापित कर दिया कि वह जब चाहता जॉन रोडरीगुएज जैसे समर्थ और शक्तिशाली आदमी को भी चींटी की तरह मसल सकता था । नतीजा यह हुआ कि विमल को कह दिया गया कि उसकी मांग कबूल कर ली गई थी इसलिए वह अपनी मारकाट बन्द कर दे । लेकिन वास्तव में वह एक गहरी चाल थी जो विमल को खत्म कर सकती थी । विमल को जो रकम सौंपी जानी थी, वह उन्होंने ऐसे ब्रीफकेस में बन्द की जिसमें बम फिट था । ब्रीफकेस से नोट निकालते ही ब्रीफकेस बम की तरह फट सकता था और जिस व्यक्ति के अधिकार में वह होता, उसकी जान ले सकता था ।
वह ब्रीफकेस ‘कम्पनी’ के सिपाहसालार ने आधी रात को बोरीवली स्टेशन पर विमल को सौंप दिया । लेकिन उस बम का शिकार हुआ वह सब-इन्स्पेक्टर, जिसने विमल को गिरफ्तार कर के ब्रीफकेस अपने अधिकार में ले लिया था और उसमें से नोट बरामद किए थे ।
विमल पुलिस से बच गया । लेकिन होटल सी व्यू में घोरपड़े द्वारा पहचान लिए जाने की वजह से नीलम सुलेमान की गिरफ्त में आ गई ।
और अब सुलेमान होटल में नीलम की छाती पर सवार विमल के वहां पहुंचने का इन्तजार कर रहा था ।
जैसा कि अपेक्षित था, विमल होटल पहुंचा । लेकिन वागले उसे होटल के बाहर से ही वहां से भगाकर ले गया । उसी ने विमल को बताया कि नीलम मुहम्मद सुलेमान के चंगुल में पहुंच गई थी और यह कि वह शान्ताराम के भाइयों का आदमी था और उसे उनसे मिलवाने अन्धेरी ले जा रहा था ।
अन्धेरी के रास्ते से ही विमल ने सुलेमान को फोन किया ।
सुलेमान ने उसे अल्टीमेटम दिया कि अगर वह नीलम को भारी दुर्गति से बचाना चाहता था वो वह शाम तक स्वयं को ‘कम्पनी’ के हवाले कर दे । विमल उसके लिए भी तैयार हो गया लेकिन वागले ने उसे जबरन ऐसा करने से रोका ।
विमल की मुलाकात शान्ताराम के भाइयों से हुई । उन्होंने उसे बताया कि क्योंकि बखिया उनका भी दुश्मन था, और वे भी उसका सर्वनाश चाहते थे इसलिए वो चारों भी विमल की ऐसी कोई भी मदद करने को तैयार थे जो बखिया की बादशाह ढाने का सामान कर सके । साथ ही उन्होंने शाम से पहले नीमल की रिहाई की भी कोई सूरत निकालने का वादा किया ।
वह मदद हासिल होते की विमल ने उन चारों भाइयों में सबसे छोटे भाई देवाराम के साथ ‘कम्पनी’ के जेकब सर्कल वाले आफिस पर हल्ला बोल दिया । वहां उसने ‘कम्पनी’ के ओहदेदार कान्ति देसाई को ‘कम्पनी’ के कफ परेड वाले हैड ऑफिस में अपने से ऊपर के ओहदेदारों को यह फोन करने पर मजबूर किया कि वह कालीचरण (विमल) को उसके पास भेज रहा था । फिर विमल ने देसाई को शूट कर दिया और वहां से ‘मटके’ का बाईस लाख रुपया लूट लिया ।
देवाराम ने ऑफिस में बम लगा दिये जिसकी वजह से उसके वहां से निकलते ही सारा ऑफिस ही स्वाहा हो गया ।
नीलम को छुड़ाने की कोई तरकीब शान्ताराम के बाकी भाइयों को न सूझी तो उन्होंने पुलिस कमिश्नर को फोन कर दिया और उसे होटल सी व्यू के सुइट नम्बर 805 में सोहल की सहयोगिनी नीलम की मौजूदगी और सोहल की सम्भावित मौजूदगी के बारे में बता दिया ।
पुलिस कमिश्नर खुद होटल सी व्यू की तरफ रवाना हुआ लेकिन उसने वहां के कमरा नम्बर 805 में पहुंचने से पहले ही बावजूद ‘कम्पनी’ के सिपाहसालार दण्डवते और एक ओहदेदार शान्तिलाल के मना करने के मुहम्मद सुलेमान नीमल के साथ मुंह काला कर चुका था और नीमल को टार्चर करने की नीयत से ‘कम्पनी’ के जल्लाद जोजो को वहां तलब कर चुका था ।
विमल कालीचरण बनकर मोटलानी से निलने की नीयत से ‘कम्पनी’ के कफ परेड वाले आफिस में पहुंचा । उस आफिस की जिमी नामक एक आदमी निगरानी कर रहा थी जिसने कि कालीचरण के बहुरूप में भी विमल को पहचान लिया । तुरन्त उसने सनसनीखेज खबर फोन पर अपने बॉस मारियो को दी और यह भी सम्भावना व्यक्त की कि सोहल वहां का अभेद्य वाल्ट खोल कर उसमें से लिटल ब्लैक बुक निकालने की फिराक में यहां पहुंचा हो सकता था । (यहां तक की कहानी आपने ‘विमल का इन्साफ’ में पढी ।)
और अब विमल मोटलानी के आफिस के रिसैप्शन पर बेचैनी से पहलू बदलता बैठा, मोटलानी से मुलाकात होने की प्रतीक्षा कर रहा था ।
***
पुलिस कमिश्नर तजुर्बेकार पुलसिया था । वह जानता था कि बखिया के होटल में वर्दी में कदम रखने पर आधे मिनट में सारे होटल में नीचे से ऊपर तक उसकी यहां मौजूदगी का ढोल पिट सकता था जबकि वह सुइट नम्बर 805 तक चुपचाप, सीधा पहुंचना चाहता था ।
इसलिये वह एक मामूली एम्बेसेडर कार में, सादे कपड़ों वाले मातहतों के साथ खुद भी सादे कपड़ों में होटल तक पहुंचा ।
वैसे सशस्त्र वर्दीधारी पुलिसियों से लदी फदी एक जीप होटल से कोई दो फर्लांग दूर तक उसके साथ आयी थी ।
ड्राइवर को एम्बेसेडर में ही छोड़कर अपने दो मातहतों के साथ कमिश्नर ने होटल की लाबी में कदम रखा ।
रिसैप्शन के आगे से गुजरते समय उसने एक सतर्क निगाह रिसैप्शन के पृष्ठ भाग में बने की बोर्ड पर डाली । वहां 805 की चाबी नहीं थी । कमिश्नर तनिक आश्वस्त हुआ । लिफ्ट के रास्ते वे आठवी की जगह नौंवीं मंजिल पर पहुंचे । वहां से एक मंजिल सीढियां उतर कर वे आठवीं मंजिल पर पहुंचे ।
गलियारी खाली था । वे निविघ्न 805 के बन्द दरवाजे के सामने पहुंचे ।
कमिश्नर ने हौले से दरवाजे पर दस्तक दी ।
***
रिसैप्शन के पहलू में बना एक दरवाजा खुला और उसमें से एक चपरासी प्रकट हुआ । उसने रिसैप्शनिस्ट युवती से कुछ पूछा । युवती ने परे बैठे विमल की तरफ संकेत कर दिया ।
चपरासी लम्बे डग भरता हुआ उसके करीब पहुंचा और बड़े अदब से बोला - “आइये साहब ।”
विमल ने पत्रिका मेज पर वापिस फेंक दी और उठकर उसके साथ हो लिया ।
चपरासी उसे एक छाटे से कमरे में छोड़ गया जहां कि दो आदमी बैठे थे ।
“तुम्हारा नाम कालीचरण है ?” - एक बोला ।
“हां ।” - विमल बोला - “मुझे मोटलानी साहब से मिलना है । उन्हें खबर है कि मैं आने वाला हूं ।”
“कैसे खबर है ?”
“मैं अपने बारे में फोन कराकर यहां आया था ।”
“किससे फोन कराकर आये थे ?”
“भई, मैं जेकब सर्कल वाले आफिस से आया हूं ।” - वह झुंझलाने का अभिनय करता हुआ बोला ।
“तो साफ क्यों नहीं कहते हो की तुम्हें देसाई साहब ने भेजा है ?”
“यह तो कह रहा हूं ।” - विमल बोला - “मैने तो सोचा था कि तुम्हें मालूम होगा कि मोटालानी साहब से मिलने कालीचरण आ रहा है ।”
“कालीचरण न हुआ, अमिताभ बच्चन हो गया !” - वह आदमी व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “जिसके यहां आगमन की सब को खबर होनी चाहिए । अरे, साहब की साहब से बात हुई; साहब को मालूम है ।”
“ठीक है, ठीक है । अब मुलाकात तो कराओ ।”
“हाथ ऊपर करो ।”
“क्या ?”
“हाथ ऊपर । सुना नहीं ?”
“लेकिन मैं क्या कोई...”
“बकवास मत करो । तुमने साहब से मिलना है कि नहीं मिलना ?”
“मिलना क्यों नहीं ? और मैं यहां आया किसलिए हूं ?”
“तो फिर जो कहा जाये, करो ।”
विमल ने भुनभुनाते हुए हाथ ऊपर उठा दिये ।
वह आदमी उसकी तलाशी लेने लगा ।
“मेरे मुंह में तोप है ।” - विमल घीरे से बोला ।
“बकवास मत करो ।” - तालाशी लेता आदमी गुर्राया - “ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश मत करो ।”
“अच्छा ।”
विमल ने नोट किया, जब एक आदमी उसकी तलाशी ले रहा था तो दूसरा अपनी मेज के पीछे उसके एक दराज में हाथ डाले एक पहरेदार जैसी मुद्रा बनाए बैठा केवल विमल को ही देख रहा था ।
दराज में रिवॉल्वर रखना ‘कम्पनी’ में रिवाज मालूम होता था ।
“हाथ नीचे गिरा लो ।” - थोड़ी देर बाद तलाशी लेने वाला बोला ।
विमल ने हाथ नीचे गिरा लिये ।
“चलो ।”
विमल उसके साथ हो लिया ।
उन्होंने एक लम्बे गलियारे में कदम रखा ।
“तुम कौन हो, दोस्त ?” - विमल बड़े आत्मीयतापूर्ण स्वर में बोला ।
“मै मोटलानी साहब का बॉडीगार्ड हूं ।” - वह बोला ।
“तुम साहब की बॉडी को गार्ड करते हो ?”
“हां ।”
“लेकिन गार्ड करने लायक बॉडी तो नौजवान लड़कियों की होती है । तुम्हारा साहब क्या...”
“बकवास मत करो ।”
“अच्छा ।”
वे गलियारे में चलते रहे ।
गलियारे के सिरे पर पहुंचने तक विमल भाप चुका था कि रिवाल्वर गार्ड के कोट दाई जेब में थी ।
गार्ड एक दरवाजे के सामने ठिठका । उसने दरवाजे पर दस्तक दी और फिर उसे खोला । दोनों भीतर दाखिल हुए । गार्ड ने पीछे दरवाजा बन्द कर दिया । दोनों आगे बढे और आबनूस की उस विशाल मेज के सामने जा खड़े हूए जिसके पीछे एक अधेड़ावस्था का दुबला पतला व्यक्ति बैठा था ।
विमल मे उसका अभिवादन किया ।
दुबले पतले व्यक्ति ने सिर के हल्के से झटके से अभिवादन स्वीकार किया और बोला - “तो तुम हो कालीचरण !”
“जी हां !” - विमल बोला - “आप मोटलानी साहब हैं ?”
“हां ।”
विमल ने फिर उसका अभिवादन किया ।
“देसाई साहब यूं किसी के बारे में कभी फोन करते तो नहीं । लगता है, बहुत भरोसे के आदमी हो तुम उनके ।”
“जी हां ।” - विमल बड़े अदब से बोला - “मुझे यह फख्र हासिल है ।”
हकीकतन उसकी तवज्जो मोटलानी की जगह गार्ड की तरफ थी ।
“बैठो ।”
“शुक्रिया ।”
विमल एक कुर्सी पर बैठ गया ।
उसके बैठने के बाद गार्ड घूमा ।
दरवाजे के करीब एक इकलौती चेयर पड़ी थी जो शायद उसी के लिए थी ।
विमल ने बिजली की फुर्ती ले अपने बायें हाथ की उंगलियों को कस कर उनका प्रहार उसकी बाईं पसलियों के नीचे पेट में किया । उसके मुंह से एक सिसकारी निकली और उसका शरीर आगे को झुका ।
बैठे-बैठे ही विमल ने उसके कोट की दाईं जेब में हाथ डालकर उसकी रिवॉल्वर निकाल ली और उसका प्रहार उसकी आगे को झुकी हुई कनपटी पर किया ।
गार्ड उसके पैरों के पास ढेर हो गया ।
तब तक मोटलानी मे अपनी मेज का एक दराज खोल लिया था । लेकिन जब विमल के हाथ में थमी रिवॉल्वर को उसने अपनी खोपड़ी की तरफ तनी पाया तो उसकी दराज में हाथ डालने की हिम्मत न हुई । हाथ रास्ते में ही फ्रीज हो गया ।
“दराज बन्द !” - विमल बोला ।
मोटलानी ने दराज बन्द कर दिया ।
“हाथ ऊपर मेज पर । दोनों ।”
मोटलानी को दोनों हाथ मेज पर प्रकट हुए । वह बड़े असहाय भाव से कालीन पर लुढके पड़े अपने बॉडीगार्ड को देख रहा था ।
“इससे बेहतर” - वह बोला - “बॉडीगार्ड और गनमैन सारी बम्बई में उपलब्ध नहीं ।”
“गलत ख्याल है आपका ।” - विमल हाथ में थमी रिवॉल्वर से खिलवाड़ करता हुआ बोला - “यह काहिल है और लापरवाह है । यहां कभी कुछ होता नहीं इसलिए वह समझने लगा था कि यहां कभी कुछ होगा भी नहीं वर्ना रिवॉल्वर को चाबियों के गुच्छे की तरह इसने अपने कोट की बाहरी अपने कोट की बाहरी जेब में न डाला हुआ होता ।”
मोटलानी ने बड़ी सावधानी से कुर्सी में पहलू बदला ।
“अगर आप मदद बुलाने के लिए कोई घण्टी वण्टी बजाना चाहते हैं” - विमल - “तो बखुशी बजा लीजिये ।”
वह सकपकाया ।
“सच पूछिये तो मुझे तो इस रिवॉल्वर की भी जरुरत नहीं है । सबूत के तौर यह लीजिए, आपका माल मैं आपको ही सौंप देता हूं ।”
विमल ने रिवॉल्वर में से गोलियां निकाल ली और रिवॉल्वर को उछाल कर मोटलानी की गोद में डाल दिया ।
गोलियां उसने अपने सामने रख लीं ।
मोटलानी के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे ।
विमल ने अपने मुंह से बटन के आकार का प्लास्टिक बम निकाला और उसे अपने और मोटलानी के ऐन बीच में मेज पर रख दिया ।
“यह क्या है ?” - मोटलानी संशक स्वर में बोला ।
“बम ।” - विमल बोला ।
“क्या ?” - मोटलानी बोला - “मुझे तो यह कोट का बटन मालूम हो रहा है !”
“आप इसे बखुशी कोट का बटन समझिये लेकिन हकीकतन यह एक इलैक्ट्रानिक बम है जिसे रिमोट कण्ट्रोल से एक्चुएट किया जा सकता है । इसका कण्ट्रोल मेरे कोट की दाईं जेब में है । मैं जेब में हाथ डालकर सिर्फ एक बटन दबाऊंगा और यहां आपके इस खूबसूरत आफिस में प्रलय आ जायेगी ।”
वह खामोश रहा ।
“आपने कोई घण्टी बजाई जिसके जवाब में यहां का दरवाजा भी खुला तो मैं बटन दबा दूंगा । फिर आपके जिस्म के सारे कलपुर्जे इस सारे कमरे में बिखरे पड़े होंगे ।”
“और तुम्हारा” - मोटलानी फंसे स्वर में बोला - “तुम्हारा क्या होगा ?”
“मेरा भी वही होगा जो आपका होगा । लेकिन मैंने तो तभी अपनी जान की परवाह करनी छोड़ दी थी जब मैं यूनियन बैंक वैन रॉबरी के सिलसिले में दिल्ली में गिरफ्तार हुआ था और तिहाड़ जेल में बन्द कर दिया गया था । तब तक भी मैं कई खून कर चुका था और कई डाके डाल चुका था ।”
“क... क... कौन हो तुम ?”
“बन्दे को विमल कहते हैं ।”
“कौन ?”
“लेकिन मैं सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल के नाम से बेहतर जाना जाता हूं ।”
मोटलानी के नेत्र फट पड़े ।
“तुम वह आदमी हो ?” ­ उसके मुंह से निकला ।
“हां ।”
“कम्पनी’ के दुश्मन ?”
“सिर्फ दुश्मन नहीं । आज की तारीख में ‘कम्पनी’ का सबसे बड़ा दुश्मन ।”
“यानी कि देसाई ने जिस आदमी के बारे में फोन किया था, वह कोई और था ?”
“वह भी मैं ही था ।”
“फिर तो देसाई की खैर नहीं ।”
“दुरुस्त ।”
“दुरुस्त ! क्या दुरुस्त ?”
“देसाई की खैर नहीं । उसके चार गार्डो की खैर नहीं । उसके सारे स्टाफ की खैर नहीं । उसकी सेफ में मौजूद बाइस लाख रुपयों की खैर नहीं ।”
“मतलब ?”
“मतलब यह कि अब भविष्य में आप यह कहा करेंगे कि कभी जेकब सर्कल पर भी आपकी ‘कम्पनी’ का एक ब्रांच ऑफिस हुआ करता था ।” ­ विमल ने ‘था’ पर विशेष जोर दिया ।
मोटलानी आंखें फाड़-फाड़कर उसे देखने लगा ।
विमल बड़ी लापरवाही से अपने सामने रखी गोलियों से खेलता रहा ।
मोटलानी की निगाह फिर मेज पर पड़े बटन पर पड़ी ।
“यह बम नहीं हो सकता ।” ­ वह बोला ।
“हाथ कंगन को आरसी क्या !” ­ विमल मुस्कराया ­ “आजमा कर देख लीजिए कि यह है या नहीं । ऐसी कोई हरकत, कोई एक इकलौती ऐसी हरकत कीजिये जिसका रूह में रिमोट कन्ट्रोल का बटन दबाना मेरे लिये जरूरी हो जाए । हकीकत सामने आ जाएगी ।”
मोटलानी की पहलू बदलने की भी हिम्मत न हुई ।
“दरअसल यह असासीनेशन का लेटेस्ट माफिया स्टाइल है जिसमें मारने वाला मरने वाले के साथ मरता है ।”
“तुम चाहते क्या हो ?”
“बहुत देर में पूछना सूझा आपको यह सवाल ।”
“क्या चाहते हो ?”
“मैं जो चाहता हूं, वह आपके चाहने पर निर्भर करता है । अगर आप मरना चाहते हैं तो मैं कुछ नहीं चाहता लेकिन अगर आप जिन्दा रहना चाहते हैं तो मैं चाहता हूं कि आप जॉन रोडरीगुएज को फोन करें ।”
“क्या ?”
“लगता है, काले पहाड़ के सारे ओहदेदार या तो बहरे हैं और या इतने कमअक्ल हैं कि दोहराये बिना बात उनकी समझ में नहीं आती । मैंने अर्ज किया है कि मैं चाहता हूं कि आप जॉन रोडगीगुएज को फोन करें ।”
“क्यों ?”
“ताकि मैं उससे बात कर सकूं ।”
“इतना हंगामा तुमने सिर्फ रोडरीगुएज से बात करने के लिए बरपाया है ?”
“यही समझ लीजिये ।”
तभी कालीन पर लेटा पड़ा गार्ड कुनमुनाया । उसके शरीर में हल्की सी हरकत हुई ।
विमल ने अपने जूते को एक भरपूर ठोकर उसकी कनपटी पर जमाई । तुरन्त हरकत गायब हो गई, कुनमुनाहट खामोश हो गयी ।
“रोडरीगुएज को फोन करो !” ­ एकाएक विमल कर्कश स्वर में बोला ।
“तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा ।”
“फोन करो ।”
“अच्छी बात है ।”
मोटलानी ने मेज पर पड़े तीन टेलीफोनों में से एक अपनी तरफ घसीटा । उसका रिसीवर उठाकर कान से लगाया और एक नम्बर उसने डायल किया ।
“हल्लो !” ­ एक क्षण वह माउथपीस में बोला ­ “मोटलानी बोल रहा हूं स्वीट हार्ट ! बॉस से बात कराओ ।”
जो नम्बर उसने डायल किया था, वह विमल ने याद कर लिया था ।
मोटलानी एक क्षण ठिठका, उसके चेहरे पर झुंझलाहट के भाव आए और फिर वह तनिक झल्लाकर बोला ­ “रोडरीगुएज । रोडरीगुएज साहब से बात करना चाहता हूं मैं । मैं मोटलानी हूं ।”
फिर खामोश छा गयी ।
मोटलानी कितनी ही देर रिसीवर कान से लगाए निश्चेष्ट बैठा रहा ।
“गुड आफ्टर नून सर !” ­ फिर एकाएक वह बड़े अदब से बोला ­ “मैं मोटलानी बोल रहा था । मैं फोन पर आपका नाम नहीं लेना चाहता था लेकिन आपकी सैक्रेटरी ने ही अपनी नासमझी से मुझे मजबूर कर दिया था कि मैं फोन पर आपका नाम लूं । ...थैंक्यू सर, यहां एक आदमी मौजूद है जो सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल होने का दावा करता है... दावा करता है मैंने इसलिए कहा है क्योंकि अखबार में छपी तस्वीर से उसकी शक्ल तो मिलती नहीं । इसके चेहरे पर तो बड़ी-बड़ी मूछें हैं और आंखों पर चश्मा ...।”
विमल ने मूछें और चश्मा दोनों चीजें चेहरे से उतार कर अपने सामने मेज पर रख दीं ।
“...सर, यह वही है ।” ­ मोटलानी टेलीफोन में बोला ­ “इसने दोनों चीजें चेहरे से उतार कर मेज पर रख दी हैं... सर, मैं कुछ नहीं चाहता, यही आपसे बात करना चाहता है । इसी ने मुझे आपको फोन करने पर मजबूर किया है । यह कहता है अगर मैंने आपको फोन न किया तो यह मुझे जान से मार डालेगा... अब मैं क्या कहूं सर ! मुझे तो यह अपनी धमकी पर खरा उतरने में पूरी तरह से सक्षम लग रहा है... होल्ड कीजिये, मैं कहता हूं ।”
मोटलानी ने खाली हाथ से रिसीवर से माउथपीस को ढक लिया और विमल से बोला ­ “रोडरीगुएज साहब कह रहे हैं कि वे इस समय बिजी हैं, पन्द्रह मिनट बाद उन्हें दोबारा फोन क्या जाए ।”
विमल ने इन्कार में सिर हिलाया ।
“उसे पन्द्रह मिनट यहां अपनी फौज भेजने के लिए चाहिए !” ­ विमल बोला ­ “रिसीवर रखते ही वह यहां दर्जनों आदमी दौड़ा देगा । उसे कहो कि... या ठहरो, फोन मुझे दो ।”
विमल अपने स्थान से उठा और मेज के पीछे पहुंचा । मोटलानी को उसने कुर्सी समेत थोड़ा परे धकेल दिया और रिसीवर जबरन उसके हाथ से ले लिया ।
“हल्लो ।” ­ वह मेज पर बैठ गया और फोन में बोला ­ “रोडरीगुएज साहब ?,
“हां । तुम सोहल हो ?”
“और कौन होगा ?”
“क्या चाहते हो ?”
“आपको हैरानी नहीं हुई कि मैं आपके बम वाले ब्रीफकेस से बच गया ।”
“कैसा बम ?”
“या शायद आप सोच रहे हैं कि अभी तक मैंने ब्रीफकेस को खोलकर उसे नोटों से खाली नहीं किया होगा ।”
“कैसा बम ?”
“उस बम वाले ब्रीफकेस की वजह से मेरे खिलाफ कोई कामयाबी हासिल होने का ख्याल छोड़ दीजिए क्योंकि वह बम फट चुका है लेकिन मैं सही सलामत आपसे फोन पर बात कर रहा हूं ।”
“क्या सबूत है कि तुम सोहल हो ?”
“और किसकी मां ने सवा सेर सोंठ खाई है जो सोहल होगा ?”
“मैं कहता हूं क्या सबूत है कि...”
“कमाल है । आप से बेहतर तो आपकी स्टडी में लगी वह पोट्रेट मुझे पहचानती है जिसकी आंखों की जगह अब दो छेद...”
“तुम सोहल हो ।” - रोडरीगुएज ने फौरन कबूल किया ।
“और मानना पड़ेगा कि आपकी नौजवानी बीवी से खूबसूरत शायद ही कोई अभिनेत्री बम्बई में हो ?”
“क्या चाहते हो ?”
“नीलम की रिहाई ।”
“कौन नीलम ? कैसी रिहाई ?”
“आपको सब कुछ मालूम है । नहीं मालूम हो तो मालूम कर लीजिए । मेरे साथ एक लड़की थी जो इस वक्त सुलेमान की गिरफ्त में है । उसे फौरन छोड़ दीजिए वरना...”
“वरना तुम क्या करोगे ?”
“वरना काले पहाड़ का एक भी ओहदेदार जिन्दा नहीं बचेगा । सुलेमान भी नहीं । आप भी नहीं ।”
“तुम मुझे धमका नहीं सकते ।”
“धमका सकता हूं । धमका रहा हूं । मैं दो बार खुद आपकी जानबख्शी कर चुका हूं । उसी से आपको अन्दाजा होना चाहिए कि मैं अपनी धमकी पर खरा उतर सकता हूं या नहीं ।”
“लड़की की जान सिर्फ तुम्हारी जान के बदले में बख्शी जा सकती है ।”
“आपका यह फैसला नादानी है । मैं आपको सुलेमान से ज्यादा समझदार आदमी समझता था ।
“तुम...”
“ठहरिये । पहले यह बताइये कि क्या मोटलानी की आपके लिए कोई कीमत नहीं ?”
“क्यों पूछ रहे हो ?”
“जवाब दीजिये ।”
“मोटलानी कम्पनी का एक ऊंचा ओहदेदार है ।”
“यानी कि कीमती हुआ ?”
“हां । लेकिन...”
“आप नीलम को छोड़ते हैं या नहीं ।”
“देखो, तुम...”
“हां या न में जवाब दीजिये ।”
“नहीं । हरगिज नहीं ।”
“एक मिनट होल्ड कीजिये ।”
विमल ने रिसीवर मेज पर रख दिया और मेज का ऊपरला दराज खोला ।
मोटलानी की हाथी दांत के दस्ते वाली चमचमाती रिवॉल्वर उसमें मौजूद थी ।
मोटलानी भी रिवॉल्वर की तरफ झपटा लेकिन विमल ने बड़ी सरलतात से उससे पहले दराज में से रिवाल्वर उठा ली ।
उठकर आगे बढ आये मोटलानी को उसने वापिस कुर्सी पर धक्का दे दिया ।
फिर उसने रिवॉल्वर की नाल उसके खुले हुए मुंह में घुसेड़ दी और उसका घोड़ा दबा दिया ।
मोटलानी का भेजा उड़ गया ।
उसका जिस्म कुर्सी पर से फिसला और मेज के बीच में फर्श पर ढेर हो गया ।
विमल ने रिसीवर फिर उठा लिया ।
“गोली चलने की आवाज” - विमल माउथपीस में बोला - “आपने सुनी होगी, रोडरीगुएज साहब ?”
“हां । क्या तुमने...”
“आपका कीमती ओहदेदार जन्नतनशीन हो गया है । उसके लिये ‘कम्पनी’ की ओर से कोई फूल-वूल भिजवाने हों तो बेशक अभी भिजवा दीजिये ।”
“तुम बच नहीं सकते !”
“ऐसी ढिठाई की मुझे कम से कम आपसे उम्मीद नहीं थी, रोडरीगुएज साहब !”
“तुम...”
“मुझे कहने दीजिये । बहुत बच चुके आप । एक बात कान खोलकर सुन लीजिये । अगर नीलम को कुछ हुआ तो मैं सुवेगा के आपके इस इण्टरनेशनल आफिस से लेकर आपके घर तक लाशें ही लाशें बिछा दूंगा और लाशों की उस कतार के सिरे पर आखिरी लाश आपकी होगी । विचार कर लीजियेगा । खुद विचार करने में दिक्कत महसूस करें तो अपने बाप बखिया से कन्सल्ट कर लीजिएगा । कोई और बाप हो तो उसका मशवरा भी हासिल कर लीजिएगा । मुझे आपका प्राइवेट फोन नम्बर मालूम हो गया है । आधे घण्टे बाद मैं आपको फिर फोन करूंगा तब तक के लिये नमस्ते ।”
विमल ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
गोली की आवाज सुनकर वहां कोई नहीं पहुंचा था । इससे साबित होता था कि कमरा साउण्डप्रूफ था ।
उसने मेज पर से बटन उठाकर जेब में रखा, चश्मा और मूंछें उठाई, एक तरफ शीशे में देखकर मूंछें ठीक से चेहरे पर लगाई, चश्मा नाक पर टिकाया और फिर मोटलानी के मृत शरीर पर निगाह डाली ।
“मुझे तुम्हारी मौत का अफसोस है, दोस्त !” - वह भर्राये स्वर में बोला - “लेकिन तुमने भी ऐसे खेल का खिलाड़ी बनना कबूल किया जिसके कोई रूल्स नहीं होते और जिसमें गेहूं के साथ घुन का पिसना जरूरी होता है ।”
***
जोजो उसी क्षण वहां पहुंचा था ।
वह एक साढे छः फुट से भी निकलते कद का, चार मन वजन का, पहलवानों जैसे जिस्म और जान वाला आदमी था ।
‘कम्पनी’ की छत्रछाया में आने से पहले वह फिल्मों में स्टण्ट मास्टर हुआ करता था और उससे पहले अखाड़े का पहलवान ।
वह ‘कम्पनी’ का जल्लाद था लेकिन उसका चेहरा जल्लादों जैसा नहीं था । उसके चेहरे पर कोई फुट-फुट की मूछें नहीं थीं, उसकी आंखों में अंगारों जैसी दहक नहीं थी, उसके तेवर खूंखार नहीं थे । इसके विपरीत जोजो एक गोरा, चिट्टा कामदेव जैसा सुन्दर आदमी था जिसके चेहरे पर हर वक्त एक मधुर मुस्कराहट खेलती रहती थी ।
लेकिन जिनका जोजो से वास्ता पड़ चुका था, वही जानते थे कि वह मुस्कुराहट कितनी भ्रामक थी, कि वह मुस्कराहट एक हिंसक बब्बर शेर का पर्दा था, पहली बार जिससे हर कोई धोखा खा जाता था ।
जोजो ने नीलम को यूं परखा जैसे कोई कसाई किसी बकरे को देखकर यह अन्दाजा लगाने की कोशिश कर रहा हो उसमें से कितना गोश्त निकलेगा ।
“हल्लो देयर !” - वह मुस्कराता हुआ नीलम से यूं बोला जैसे वह फुटपाथ पर मिल गई अपने पड़ोस की किसी लड़की को विश कर रहा हो ।
“जोजो !” - सुलेमान बोला ।
“यस, बॉस !” - जोजो बोला ।
“यह लड़की लड़की नहीं है । यह संगमरमर से तराशे गये बुत की तरह बेहिस है । यह बर्फ की सिल्ली की तरह सर्द है ।”
“अच्छा !”
“हां । मैं चाहता हूं तुम इसकी ऐसी हालत बनाकर दिखाओ कि पुरुष का सहवास इसे अपनी जिन्दगी का सबसे अजीज काम और जिस्म की सबसे अहम जरूरत लगने लगे । इसे मर्द हासिल न हो तो यह आत्महत्या करने पर उतारू हो जाए ।”
“मालूमी काम है ।”
“तो फिर शुरु हो जाओ ।”
“लेकिन बॉस, इस काम के लिए यह जगह मुनासिब नहीं ।”
“क्यों ?”
“इसकी चीख पुकार से यहां की दीवारें हिल जायेंगी ...।”
नीलम का जिस्म पत्ते की तरह कांपा ।
“...इसका मुंह बन्द करके इसे चीखने से रोक सकता हूं लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता । मैं चाहता हूं कि यह चीखे-चिल्लाए, तब तक चीखे-चिल्लाए जब तक इसे खुद ही यह अहसास न हो जाये कि चीखना चिल्लाना बेकार है या जब तक चीखना-चिल्लाना इसके बस की बात न रहे । तब आप अगर इसे कहेंगे कि प्यास लगी होगी, पानी पी ले तो यह कहेगी, पहले मर्द लाओ । आप इसे कहेंगे, भूख लगी होगी, खाना खा ले तो यह कहेगी पहले मर्द लाओ ।”
“गुड !” - सुलेमान सन्तुष्टिपूर्ण स्वर में बोला - “फिर ऐसी ही हालत में हम इसे इसके यार के सामने पेश करेंगे । वाह ! क्या नजारा होगा ! मुझे तो अभी से मजा आने लगा है ।”
वह हो हो करके हंसा ।
“इसे तहखाने में ले जाना होगा ।” - जोजो बोला ।
“ठीक है ।”
“इसे कपड़े दे दो ।”
नीलम के जिस्म के कपड़े तो सुलेमान ने तार तार कर दिये हुए थे ।
“यहां इसके बहुत कपड़े होंगे ।” - सुलेमान बोला ।
जोजो ने आगे बढकर एक वार्डरोब का दरवाजा खोला । वहां से एक सूट निकालकर उसने नीलम की तरफ उछाल दिया ।
शर्म से गड़ी जा रही नीलम ने सूट लपक लिया । उसने देखा वह सिल्क का वह सूट था जो विमल को खास तौर से पसन्द था । उसके आंसुओं की गंगा जमना फिर वह निकली ।
“कपडे बदलो !” - सुलेमान ने आदेश दिया ।
वह उठी और लड़खड़ाते कदमों से बाथरूम की तरफ बढी ।
“यहीं बदलो !” - सुलेमान गुर्राया ।
“जाने दो बॉस !” - जोजो बड़ी दयानतदारी से बोला - “आज के बाद पता नहीं कब इसे यूं कुलवन्ती गृहणियों की तरह कपड़े पहनने का मौका मिलेगा ।”
सुलेमान खामोश हो गया ।
तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।
“देखो, कौन है ?” - सुलेमान बोला ।
उसने किसी व्यक्ति विशेष को आदेश नहीं दिया था लेकिन आगे दण्डवते बढा ।
वह बाहर के कमरे में पहुंचा । किसी का आगमन अपेक्षित नहीं था, इसलिए उसने पहले दरवाजे में लगे लैंस में आंख लगा कर बाहर झांका । लैंस के पार उसे जो चेहरा दिखाई दिया, उसने उसके होश उड़ा दिये । वह घूमा और लपक कर वापिस पिछले कमरे में पहुंचा ।
“कौन था ?” - सुलेमान ने सहज भाव से पूछा ।
“कमिश्नर !” - दण्डवते बौखलाये स्वर में बोला ।
“क्या ?” सुलेमान हड़बड़ाकर बोला ।
“बाहर पुलिस कमिश्नर खड़ा है ।”
“वह यहां कैसे पहुंच गया ?”
“क्या पता कैसे पहुंच गया ?”
“तुमने उसको ठीक से तो पहचाना है ?”
“एकदम ठीक से पहचाना है ।”
“क्या चाहता होगा वह ?” - सुलेमान बड़बड़ाया ।
दरवाजे पर फिर दस्तक पड़ी ।
सुलेमान की निगाह बाथरूम में दाखिल होती नीलम की तरफ पड़ी । वह लपक कर उसके पास पहुंचा ।
“एक मिनट में कपड़े पहनो और हुलिया सुधार लो ।” - वह जल्दी से बोला - “और मेरी बात सुनो । अपनी नहीं तो सोहल की सलामती के लिए मेरी बात सुनो ।”
नीलम ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
“जल्दी करो ।”
“पहले बताओ; क्या हुआ ?” - नीलम कठिन स्वर में बोली ।
“ज्यादा बात करने का वक्त नहीं है...”
“बताओ ।”
सुलेमान को बताना पड़ा ।
“बाहर पुलिस आई है । शायद उन्हें किसी प्रकार सोहल की यहां मौजूदगी की खबर लग गयी है । तुम हमें सहयोग नहीं दोगी तो सोहल हमारे हाथों से तो बच जाएगा लेकिन फिर पुलिस के हाथों में पड़ने से नहीं बच पाएगा । हम तो शायद किसी सौदेबाजी के तहत उसे छोड़ भी दें लेकिन पुलिस उसे नहीं छोड़ने वाली । अगर तुम चाहती हो कि सोहल पुलिस के हाथों में पड़ कर फांसी पर चढ जाए तो जो मर्जी करो लेकिन अगर उसे बचाना चाहती हो तो हमारा कहना मानो ।”
“क्या कहना मानूं ?”
“सब से पहले कपड़े बदलो ।”
नीलम उसकी तरफ ठीक करके कपड़े पहनने लगी ।
“हम तुम्हें यहां छुपा नहीं सकते” - सुलेमान जल्दी जल्दी बोलता रहा - “इसलिए तुम पुलिस की निगाहों में तो जरूर आओगी । लेकिन तुमने पुलिस को यह नहीं बताना है कि हकीकतन तुम कौन हो ।”
“पूछे जाने पर मैं क्या कहूं ?”
“कहना कि तुम एक कालगर्ल हो - और तुम्हें तफरीह के लिए यहां बुलाया गया है । हम भी यही कहेंगे । पुलिस तुमसे सोहल के बारे में पूछे तो कह देना, तुम किसी सोहल को नहीं जानतीं । ओके ?”
नीलम ने सहमति में सिर हिलाया ।
“और तुम्हारे व्यवहार से ऐसा कुछ जाहिर नहीं होना चाहिए कि यहां तुम्हारे साथ कोई जुल्म या जोर जबरदस्ती हुई है ।”
“अच्छा !”
“अपना हुलिया भी सुधारो ।”
“मेरे इस सहयोग के बदले में तुम विमल का पीछा छोड़ दोगे ?”
“हां ।”
“और मुझे ?”
“तुम्हें भी ।”
“कसम खाओ ।”
दरवाजे पर फिर दस्तक पड़ी ।
“कसम खाओ ।” - नीलम बोली ।
“किसकी ?”
“जिसको भी तुम मानते हो ।”
“खुदा की कसम, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा ।”
“और विमल का भी पीछा छोड़ दोगे ?”
“हां । लेकिन उसे भी समझाना कि वह भी हमारा पीछा छोड़ दे ।”
“मैं समझाऊंगी ।”
“शाबाश ! दैट्स ए गुड गर्ल । जो हुआ उसके लिए मुझे माफ करना ।”
नीलम ने सहमति में सिर हिलाया ।
वह अपने बालों में कंघी फिराने लगी ।
सुलेमान लपक पर बाहर के कमरे में पहुंचा ।
“खोलो !” - वह दण्डवते से बोला ।
दण्डवते ने आगे बढकर दरवाजा खोल दिया । पुलिस कमिश्नर ने भीतर कदम रखा । उसके पीछे-पीछे उसके दो आदमी भी भीतर दाखिल हुए । कमिश्नर की निगाह पैन होती हुई सारे सुइट में घूम गयी । फिर वह एक एक चेहरे पर फिरी । मौजूद लोगों में दो सूरतें उसकी जानी-पहचानी थीं - सुलेमान और दण्डवते की ।
“आइये कमिश्नर साहब !” - सुलेमान एक हाथ फैलाए आगे बढा - “आप यहां कैसे ?”
कमिश्नर ने सुलेमान के बढे हुए हाथ को साफ नजरअंदाज कर दिया । उसने तुरन्त उत्तर न दिया ।
“वाट्स गोइंग ऑन ?” - फिर वह बोला - “क्या हो रहा है यहां ?”
“ऐसा कुछ नहीं हो रहा, कमिश्नर साहब !” - सुलेमान चिकने-चुपड़े स्वर में बोला - “जिसमें पुलिस को दिलचस्पी हो ।”
कमिश्नर ने घूर कर उसे देखा ।
“आप यहां कैसे, माई-बाप ?” - सुलेमान बोला ।
“भीतर कौन है ?” - कमिश्नर ने पूछा ।
“कोई भी नहीं ।”
“ये सब तुम्हारे आदमी हैं ?”
“हां ।”
“इतने लोग यहां क्या कर रहे हैं ?”
“कमिश्नर साहब !” - सुलेमान उपहासपूर्ण स्वर में बोला - “किसी एक कमरे में इतने लोगों की मौजूदगी क्या बम्बई में गैरकानूनी करार दे दी गयी है ?”
“नहीं” - कमिश्ननर बड़े सब्र के साथ बोला - “ऐसी कोई बात नहीं है, ले न किसी दूसरे के सुइट में...”
“यह किसी दूसरे का सुइट नहीं । यह सुइट तो खाली है ।”
“खाली है ?”
“जी हां ।”
“लेकिन नीचे रिसैप्शन से गुजरते समय इन्डैक्स में तो मैंने इस सुइट के नम्बर के नीचे मिस्टर एण्ड मिसेज मल्होत्रा लिखा देखा था ।”
“ऐसा कोई जोड़ा पहले यहां रहता होगा लेकिन आज दोपहर बाद से तो यह सुइट खाली है ।”
“तो फिर नीचे इण्डैक्स में...”
“रिसैप्शनिस्ट उसमें से मिस्टर एण्ड मिसेज मल्होत्रा का कार्ड निकालना भूल गया होगा ।”
कमिश्नर रत्ती भर भी आश्वस्त न हुआ । उसे और भी विश्वास हो गया कि मुखबिर द्वारा हासिल हुई खबर गलत नहीं थी । इतने लोगों की यहां मौजूदगी बेमानी और खामखाह नहीं हो सकती थी ।
“भीतर कौन है ?” - कमिश्नर ने फिर सवाल किया ।
“मैंने पहले ही अर्ज किया है,” - सुलेमान नम्रता से बोला - “भीतर कोई नहीं है ।”
“मैं एक निगाह भीतर डालना चाहूं तो कोई एतराज ?”
सुलेमान हिचकिचाया ।
“यानी कि एतराज है ?” - कमिश्नर कठोरता से बोला ।
“नहीं” - सुलेमान कठिन स्वर में बोला - “एतराज नहीं है, लेकिन...”
“क्या लेकिन ?”
“आप एक मिनट इधर आइये ।”
“इधर किधर ?”
“जरा इधर आइये तो !”
सुलेमान ने कमिश्नर की बांह थामकर उसे ड्राइंगरूम के एक कोने में ले जाना चाहा । कमिश्नर ने अपनी बांह पर से उसका हाथ झटक दिया लेकिन उसके साथ भीड़ से परे कोने में जाने से एतराज नहीं किया ।
“दरअसल बात यह है, कमिश्नर साहब” - सुलेमान धीमे स्वर में बोला - “भीतर एक लड़की है ।”
“लड़की !”
“खूबसूरत लड़की । नौजवान लड़की । रजामन्द लड़की । पेशेवर लड़की ।”
“तो ?”
“दरअसल हम लोग यहां तफरीह के लिए इकट्ठे हुए हैं ।”
“आप आठ साहबान एक साथ तफरीह करेंगे ?”
“नहीं । चार हमारे जूनियर कर्मचारी हैं जो अभी यहां से भेज दिए जाने वाले थे ।”
“आई सी !”
“यह सुइट अभी खाली हुआ था इसलिए, तफरीह के लिए इसे हमने अपने अधिकार में कर लिया था ।”
“हूं, तो यहां तफरीह का प्रोग्राम हो रहा है ?”
“जी हां ।”
“मैं भी तफरीह करना चाहता हूं ।”
सुलेमान ने हैरानी से कमिश्नर की तरफ देखा ।
“वाकई ?” - सुलेमान बोला ।
“हां ।” - कमिश्नर बड़े सहज भाव से बोला ।
“कमिश्वर साहब !” - सुलेमान उत्साहपूर्ण स्वर में बोला - “मैं आपके लिए तफरीह का वो इन्तजाम करता हूं जो कभी किसी ने, किसी के लिए न किया हो । मैं आपके लिए बम्बई की सबसे खूबसूरत, कमसिन, अनछुई, लड़की मंगवाता हूं ।”
“इतनी जहमत उठाने की जरूरत नहीं । मुझे उम्मीद है, मुझे वही लड़की पसन्द आ जाएगी जो आप लोगों के लिए यहां मौजूद है । जो आपके लिए ठीक है, वह मेरे लिए भी ठीक है ।”
“लेकिन...”
“मुझे लड़की की शक्ल तो देखने दो । मुझे नापसन्द होगी तो मैं कह दूंगा ।”
“आप वाकई तफरीह के मूड में हैं ?”
“अब क्या लिखकर देना होगा ?”
“नहीं । लेकिन... विश्वास नहीं होता ।”
“हो जाएगा । हो जाएगा ।”
और फिर कमिश्नर बैडरूम की तरफ बढा ।
सुलेमान लपक कर उसके साथ हो लिया ।
आगे-पीछे दोनों बैडरूम में दाखिल हुए ।
नीलम सहमी सी बाल्कनी के दरवाजे के पास खड़ी थी ।
कमिश्नर की तजुर्बेकार और पारखी निगाहों ने एक क्षण में भाप लिया कि वह लड़की कॉलगर्ल नहीं हो सकती थी । उस उम्र की कॉलगर्ल की सूरत पर जो बेबाकी और निडरता के भाव दिखाई देने चाहिए थे, वे कमिश्नर को नहीं दिखाई दे रहे थे । लड़की ऊपर से दिलेरी दिखा रही थी लेकिन उसकी आंखों में से पिंजरे में फंसी हुई कबूतरी जैसी व्याकुलता झलक रही थी, उसके चेहरे पर घायल हिरणी जैसे भाव थे ।
उसके चेहरे में कमिश्नर को और भी अपनी चुगली आप करने वाले कई लक्षण दिखाई दिए । जैसे - उसका चेहरा सूजा हुआ लग रहा था । एक आंख के नीचे एक काला दायरा था जिसे पाउडर की परत की नीचे छुपाने की कोशिश की गई थी । लिपस्टिक की मोटी परत के बावजूद निचला होंठ एक स्थान से ताजा ताजा कटा हुआ साफ दिखाई दे रहा था । हालात पुकार-पुकार कर कह रहे थे कि उस लड़की की ताजी ताजी मरम्मत हुई थी । ऐसी लड़की स्वेच्छा से लोगों की तफरीह के लिए आई हुई कॉलगर्ल कैसे हो सकती थी ?
कमिश्नर को पूरा विश्वास हो गया कि वही लड़की सोहल की कथित सहयोगिनी नीलम थी जो कि उस वक्त बाहर मौजूद सफेदपोश बदमाशों की गिरफ्त में थी ।
उसकी निगाह ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी । वहां पर शीशे के सामने कई सौन्दर्य-प्रसाधन बिखरे पड़े थे । बाथरूम के अधखुले दरवाजे में से भीतर का सिंक दिखाई दे रहा था जहां कि शेव का सामान पड़ा था । उसने आगे बढकर वार्डरोब का दरवाजा खोला । भीतर उसे कई जनानी, मर्दानी पोशाकें लटकी दिखाई दीं । एक शैल्फ पर एक बड़ा सा सूटकेस भी पड़ा था ।
नहीं, सुइट खाली नहीं था । अगर सुइट खाली था तो खाली करने वाला जरूर दीन-दुनिया, मोह-माया त्याग गया था जो अपने सारे भौतिक पदार्थों से विरक्त होकर उन्हें पीछे छोड़ गया था ।
उसने वार्डरोब का दरवाजा बन्द कर दिया और वापिस घूमा ।
सुलेमान की चिन्तित निगाह उसकी हर प्रक्रिया को नोट कर रही थी ।
कमिश्नर ने एक बार फिर लड़की की तरफ देखा । एकाएक उसके होंठों पर मुस्कराहट उभरी ।
“मुझे लड़की पसन्द है ।” - उसने घोषणा की ।
सुलेमान हड़बड़ाया ।
“इसे मैं अपने साथ ले जा रहा हूं ।”
“जी ?”
“मैंने कहा, लड़की को मैं अपने साथ ले जा रहा हूं ।”
“कहां ?”
“किसी प्राइवेट जगह । जहां बिना किसी व्यवधान के तफरीह हो सके ।”
“लेकिन...”
“क्या लेकिन ?”
“इसे आप यहां से नहीं ले जा सकते ।” - सुलेमान फट पड़ा ।
“क्यों नहीं ले जा सकता ?”
“क्योंकि यह यहां से जाना नहीं चाहती ।”
“तुम्हें क्या पता, यह जाना चाहती है या नहीं जाना चाहती ?”
“आप इसी से पूछ लीजिए ।” - सुलेमान नीलम की तरफ घूमा और बड़े हिंसक भाव से उसे घूरता हुआ बोला - “तुम जाना चाहती हो यहां से ?”
नीलम ने भयभीत भाव से जोर से इन्कार में गरदन हिलाई ।
“देखा !” - सुलेमान बोला ।
“देखा ।” - कमिश्नर बोला ।
“जब इसकी यहां से जाने की मर्जी नहीं है तो...”
कमिश्नर ने यूं हाथ उठाया जैसे सुलेमान के मुंह से निकलते शब्द उसके मुंह में वापिस धकेल रहा हो ।
“तुम” - वह नीलम से सम्बोधित हुआ - “क्या नाम है तुम्हारा ?”
“नी... रोजी ।” - नीलम हड़बड़ा कर बोली ।
“तुम कॉलगर्ल हो ?”
“हां !”
“यहां धन्धा करने आयी हो ?”
“हां !”
“अपनी मर्जी से ?”
“हां !”
“ग्राहक पटाकर उससे कमाई करने की खातिर ?”
“हां !”
“मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूं ।”
“जी !”
सुलेमान भी हड़बड़ाया ।
“तुम्हारे अपने हलिफया बयान की बिना पर मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूं । सालिसिटिंग इज ए क्राइम । यूं धन्धा करना जुर्म है और इसके तहत मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूं । चलो मेरे साथ ।”
“आप” - एकाएक सुलेमान आगे बढकर नीलम और कमिश्नर के बीच में आन खड़ा हुआ - “इसे यहां से नहीं ले जा सकते ।”
फिर एकाएक कमिश्नर का धीरज छूट गया ।
“क्यों नहीं ले जा सकता ?” - वह इतनी जोर से गर्जा कि बाहर मौजूद तमाम लोग हड़बड़ा कर बैडरूम की चौखट पर पहुंच गए ।
सुलेमान को एकाएक जवाब न सूझा ।
“यह धांधली है ।” - वह बोला ।
“ठीक है । धांधली ही सही । क्या कर कर सकते हो तुम इस धांधली के खिलाफ ?”
“कर तो मैं ऐसा कुछ सकता हूं कि आपके फरिश्ते पनाह मांग जायें...”
“तुम मुझे धमकी दे रहे हो ?”
“धमकी नहीं । वार्निंग । ठण्डे-ठण्डे यहां से चले जाइये, कमिश्नर साहब, नहीं तो...”
“नहीं तो क्या होगा ?”
“रिश्तेदारों को अन्तिम संस्कार तक करना नसीब नहीं होगा ।”
“अच्छा ! वो कैसे ?”
सुलेमान ने जेब से रिवॉल्वर निकाल ली ।
तुरन्त सादी वर्दी में कमिश्नर के साथ आए दोनों व्यक्तियों के हाथों में भी रिवॉल्वर प्रकट हुई ।
कमिश्नर ने हाथ के इशारे से उन्हें कोई भी खतरनाक कदम उठाने से रोका ।
दण्डवते, शान्तिलाल और जोजो ने व्याकुल भाव से सुलेमान की तरफ देखा । प्रत्यक्षत: कोई भी सुलेमान के उस एक्शन से सहमत नहीं था ।
“रिवॉल्वर अच्छी है ।” - कमिश्नर शान्ति से बोला - “मुझे पसन्द है । दिखाने के लिए शुक्रिया । मुझे भेंट में देना चाहते हो तो मेहरबानी वर्ना इसे जेब में रख लो ताकि मुझे इसका लालच न आए और मैं इसे तुमसे छीन न लूं ।”
सुलेमान के चेहरे पर अनिश्चय के भाव आये ।
“मैं क्रिकेट का फैन हूं । आज हिन्दोस्तान की क्रिकेट टीम ने प्रूडेन्शल कप जीता है । इसलिये मैं बहुत दयानतदारी के मूड में हूं और इसीलिये मैं यह मानने को तैयार हूं कि तुम यह रिवॉल्वर मुझे दिखा रहे हो, मुझ पर तान नहीं रहे हो । लेकिन मेरा मूड बदल सकता है ।”
“सुलेमान साहब !” - दण्डवते हिम्मत करके बोला - “कमिश्नर साहब ठीक कह रहे हैं ।”
“मेरे साथ आये ये दोनों सज्जन पुलिस इन्स्पेक्टर हैं ।” - कमिश्नर बोला - “और हर तरह की शूटिंग में गोल्ड मैडल हासिल कर चुके हैं । इनकी निगाह में आज यह करिश्मा हो रहा है कि मेरी तरफ रिवॉल्वर तान चुकने के बाद भी कोई अपने पैरों पर खड़ा है । इसीलिये मैं इन्हें भी - यही विश्वास दिला रहा हूं कि तुम यह रिवॉल्वर सिर्फ दिखा रहे हो मुझे, पसन्द करवा रहे हो मुझसे । मुझ पर तान नहीं रहे हो । अक्लमन्द के लिये इशारा काफी होता है । बेवकूफ के लिये गोली भी कम है । अण्डरस्टैण्ड ?”
चेहरे पर तीव्र अनिच्छा के भाव लिए सुलेमान ने रिवॉल्वर जेब में रख ली ।
“गुड !” - कमिश्नर सन्तुष्टिपूर्ण स्वर में बोला - “आई एम ग्लैड । नीलम ?”
“हां !” - नीलम तुरन्त सिर उठाकर बोली ।
“अभी तो तुमने अपना नाम रोजी बताया था ?”
नीलम ने सिर झुका लिया ।
“मैं चाहूं तो मैं अभी यहीं इस लड़की से कबूल करवा सकता हूं कि तुम लोगों ने इसके साथ जोर जबरदस्ती की है और इस की मर्जी के खिलाफ यहां रोककर रखा हुआ है लेकिन मैं ऐसा नहीं कर रहा । इसलिये नहीं कर रहा क्योंकि मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूं कि आज मैं बहुत खुश हूं और बहुत दयानतदारी के मूड में हूं । इन्स्पेक्टर खरे ?”
“यस सर !” - एक इन्स्पेक्टर बोला ।
“लड़की को हिरासत में ले लो ।”
अगले ही क्षण नीलम दोनों इन्स्पेक्टरों के बीच में खड़ी दिखाई देने लगी ।
कमिश्नर तनिक आगे बढा और ऐन सुलेमान के सामने जा खड़ा हुआ ।
“मैं यहां” - कमिश्नर यूं बोला जैसे कोई अध्यापक प्राइमरी स्कूल के बच्चे को समझा रहा हो - “बीस हथियारबन्द बावर्दी आदमी साथ लेकर आया था लेकिन फिर भी मैंने सिर्फ दो आदमियों के साथ सादी वर्दी में होटल के भीतर कदम रखने की शराफत दिखाई ताकि तुम्हारे होटल की साख न बिगड़े । तुमने जो हरकत की है उसकी रूह में मुझे करना यह चाहिए कि मैं यहां दो सौ आदमी और बुलाऊं जो कि सारे होटल को घेर लें और इसके एक-एक फ्लोर पर फैल जायें और फिर तुम सबको गिरफ्तार करके सबके बीच में से परेड कराता हुआ तुम्हें यहां से लेकर जाऊं ताकि तुम्हारे इस होटल की ऐसी साख बिगड़ जाए कि यहां कोई हिप्पी या मवाली भी आकर रहने को तैयार न हो, लेकिन मैंने पहले भी कहा है और फिर कह रहा हूं कि आज मैं बहुत खुश हूं और दयानतदारी के मूड में हूं इसलिए एक पुलिस कमिश्नर की तरफ रिवॉल्वर तानने की मैं तुम्हें बहुत मामूली सजा देकर जा रहा हूं ।”
और कमिश्नर के खुले हाथ का एक झापड़ सुलेमान के मुंह पर पड़ा ।
झापड़ मामूली था । उसका मकसद सुलेमान को चोट पहुंचाना नहीं बल्किं उसे उसके मातहतों के सामने अपमानित करना था ।
झापड़ की प्रतिक्रियास्वरूप सुलेमान घायल शेर की तरह तड़पा । उसका हाथ अपनी रिवाल्वर वाली जेब की तरफ बढा लेकिन दण्डवते ने पहले ही उसका हाथ पकड़ लिया ।
“तुम फिर रिवॉल्वर निकालने जा रहे थे ?” - कमिश्नर खा जाने वाली निगाहों से उसे घूरता हुआ बोला ।
“आपको वहम हुआ है, कमिश्नर साहब !” - दण्डवते जल्दी से बोला - “साहब का ऐसा कोई इरादा नहीं था ।”
“दण्डवते ठीक कह रहा है ?” - कमिश्नर पूर्ववत सुलेमान को घूरता हुआ बोला ।
सुलेमान ने बड़ी कठिनाई से सहमति में सिर हिलाया ।
मन ही मन वह अंगारों पर लोट रहा था और कमिश्नर को कच्चा चबा जाने की ख्वाहिश कर रहा था । ऐसी जिल्लत का सामना - और वह भी अपने मातहतों के सामने, एक छोकरी के सामने - उसे जिन्दगी में कभी नहीं करना पड़ा था ।
“गुड !” - कमिश्नर बोला - “आई एम ग्लैड ।”
***
रोडरीगुएज ने रिसीवर को धीरे से क्रेडिल पर रख दिया । चेहरे पर चिन्ता के भाव लिये वह कई क्षण खामोश बैठा रहा । फिर उसने रिसीवर दोबारा उठाकर कान से लगा लिया । उसने सैक्रेटरी के फोन का बजर बजाने की नीयत से हाथ आगे बढाया लेकिन फिर कुछ सोचकर उसी उंगली से एक नम्बर डायल करना आरम्भ कर दिया जिससे कि वह बजर बजाना चाहता था ।
वह सम्पर्क स्थापित होने की प्रतीक्षा करने लगा ।
“हल्लो !” - एकाएक घण्टी बजनी बन्द हो गयी और दूसरी ओर से एक भारी आवाज आई ।
“जोशी !” - रोडरीगुएज बोला ।
“हां । कौन ?”
“जोशी, मैं रोडरीगुएज बोल रहा हूं ।”
“गुड आफ्टर नून सर !” - उसे जोशी का हड़बड़ाया हुआ स्वर सुनाई दिया ।
आखिर रोडरीगुएज का यूं उसके पास फोन आना कोई रोज-रोज की बात तो नहीं थी ।
“गुड आफ्टर नून । एक काम करो जोशी !”
“हुक्म कीजिए, सर !”
“मोटलानी के ऑफिस में खुद जाकर देखकर आओ कि वो किस हालत में है ।”
“हालत में ? हालत को क्या हुआ होगा उसकी साहब ?”
“जो कह रहा हूं, करो । मैं होल्ड कर रहा हूं । जल्दी लौटना ।”
“यस सर !”
“किसी को भेजना नहीं है । खुद जाना है ।”
“आई अण्टरस्टैण्ड सर !”
“गुड !”
रोडरीगुएज रिसीवर कान से लगाये प्रतीक्षा करने लगा । जोशी मोटलानी के बराबर के रुतबे का ओहदेदार था और ‘कम्पनी’ के नारकाटिक्स विंग का इन्चार्ज था ।
कुछ क्षण की प्रतीक्षा के बाद एकाएक रोडरीगुएज ने बड़े बेसब्रेपन से सैक्रेटरी का कॉल बटन दबाकर बजर बजाया ।
“यस सर !” - सैक्रेटरी तुरन्त लाइन पर आई ।
“मालूम करो” - उसने आदेश दिया - “सुलेमान साहब कहां हैं ।”
“राइट सर !”
उसने फिर एक्सचेन्ज का बटन दबा दिया और जोशी के लाइन पर आने की प्रतिक्षा करने लगा ।
“रोडरीगुएज साहब !” - एकाएक उसके कान में जोशी की बुरी तरह से बौखलाई हुई आवाज पड़ी ।
“हां वह फोन में बोला ।”
“साहब, मोटलानी अपने ऑफिस में मरा पड़ा है । किसी ने उसे शूट कर दिया है । और उसका बॉडीगार्ड उसके करीब ही बेहोश...”
रोडरीगुएज ने धीरे से रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
तो सोहल झूठ नहीं बोल रहा था ।
“वाट ए मैन !” - उसके मुंह से निकला - “वाट ए मैन !”
बजर बजा ।
उसने फिर रिसीबर उठाकर कान से लगाया ।
“सुलेमान साहब” - सैक्रेटरी ने बताया - “आठ सौ पांच नम्बर सुइट में हैं ।”
“थैंक्यू ।”
उसने रिसीवर रख दिया ।
वह अपने सुइट से बाहर निकला ।
‘कम्पनी’ की लिफ्ट द्वारा वह पहले ग्राउण्ड फ्लोर पर पहुंचा और फिर होटल की लिफ्ट द्वारा आठवीं मन्जिल पर ।
जिस वक्त आठवीं मंजिल पर उसकी लिफ्ट का दरवाजा खुला, ऐन उसी वक्त बगल की उस लिफ्ट का दरवाजा बन्द हुआ जिसमें पुलिस कमिश्नर, उसके दो इन्स्पेक्टर और नीलम सवार थे ।
रोडरीगुएज लिफ्ट से निकला और भारी कदमों से गलियारे में चलता हा आगे बढा ।
वह 805 के सामने पहुंचा । दरवाजा खुला था । उसने भीतर कदम रखा तो उसे यूं लगा जैसे मरघट में उसके कदम पड़े हों ।
रोडरीगुएज की नजर एक-एक सूरत पर घूम गई ।
“कौन मर गया ?” - वह बोला ।
कोई कुछ न बोला । सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे । सब से ज्यादा फटकार उसे सुलेमान के चेहरे पर बरसती दिखाई दी ।
फिर वह चार प्यादों की तरफ आकर्षित हुआ ।
“आप लोग तशरीफ ले जाइये ।” - वह बोला ।
चारों प्यादे फौरन वहां से बाहर निकल गए ।
“आप भी ।” - वह जोजो से बोला ।
जोजो भी वहां से कूंच कर गया ।
“दरवाजा बन्द कर दीजिये ।” - वह दण्डवते से बोला ।
दण्डवते ने तुरन्त आदेश का पालन किया ।
“तशरीफ रखिए ।”
सब ड्राइंगरूम में बैठ गए ।
“लड़की कहां है ?”
सब फिर एक दूसरे का मुंह देखने लगे ।
रोडरीगुएज का चेहरा सुर्ख होने लगा ।
“लड़की को” - दण्डवते हड़बड़ाकर बोला - “पुलिस ले गई ।”
“क्या ?”
दण्डवते खामोश रहा ।
“यहां पुलिस आई थी ?”
“खुद कमिश्नर आया था, रोडरीगुएज साहब ।”
“क्या माजरा है ? बरायमेहरबानी सारी बात एक ही बार में सुनाइए, किश्तों में नहीं ।”
दण्डवते ने वह जिम्मेदारी भुगताई ।
रोडरीगुएज ने हैरानी से सुलेमान के अपमान से तमतमाए चेहरे की तरफ देखा ।
“एक सार्वजनिक स्थान पर” - रोडरीगुएज तिरस्कारपूर्ण स्वर में बोला - “गवाहों की मौजूगी में, खुद पुलिस कमिश्नर पर रिवाल्वर तानने की हिमातल और कमअक्ली की उम्मीद तो मैं ‘कम्पनी’ के किसी प्यादे से नहीं कर सकता । आपकी अक्ल को क्या होता जा रहा है, सुलेमान साहब ?”
सुलेमान के मुंह से कुछ न फूटा ।
“आपने मुझे बताया था कि आपने सोहल को आत्मसमर्पण के लिए शाम तक का वक्त दिया है । फिर वह प्रोग्राम शाम से पहेल ही शुरू क्यों हो गया जिसमें जोजो की मौजूदगी अनिवार्य समझी जाती है ? शाम तक सब्र क्यों नहीं हुआ आपसे ? आप क्या भूल गए हैं कि वादाखिलाफी और वादाखिलाफी करने वाला शख्स बखिया साहब को किस कदर नापसन्द है ?”
उत्तर देने के स्थान पर सुलेमान ने जोर से थूक निगली ।
“आप बता सकते हैं, एकाएक पुलिस यहां क्योंकर पहुंच गई ? क्योंकर खबर हुई पुलिस को सोहल की सहेली की यहां मौजूदगी की ?”
सुलेमान ने बेचैनी से पहलू बदला । उसके पास रोडरीगुएज के किसी सवाल का जवाब नहीं था ।
“आपकी जानकारी के लिए सोहल अब तक सुवेगा के जेकब सर्कल वाले आफिस को उसके तमाम कर्मचारियों सहित जलाकर खाक कर चुका है और वहां से मटके का बाइस लाख रुपया लूट चुका है । उसके पांव कफ परेड के आफिस में भी पड़ चुके हैं और वह वहां हमारे एक ओहदेदार का खून कर भी चुका है । उसने मुझसे कहा है कि अगर हमने नीलम को आजाद न किया तो वह ‘कम्पनी’ के एक भी आदमी को जिन्दा नहीं छोड़ेगा । अब आप मुझे यह बताइए कि अब अगर हम नीलम को आजाद करना भी चाहेंगे तो कैसे करेंगे ?”
सुलेमान क्या बताता !
“किसी भी मशीन को सुचारू रूप से चलाए रखने का बुनियादी दस्तूर यह होता है कि वक्त-वक्त पर उसे चैक करते रहा जाए, उसमें जो पुर्जा बिगड़ रहा हो या बिगड़ चुका हो उसे दुरुस्त किया जाए या उसे तब्दील किया जाए ताकि वह एक पुर्जा सारी ही मशीन का बेड़ा गर्क न कर दे । अब आप खुद बताइए कि आज की तारीख में आप कम्पनी के मरम्मत के काबिल पुर्जे हैं या तब्दील कर दिए जाने के काबिल ?”
सुलेमान ने अपने एकाएक सूख आए होंठों पर जुबान फेरी । जो भाषा उसने कभी डोगरा के सामने बोली थी, वह उसे आज खुद सुननी पड़ रही थी । उसका मनोबल तो कमिश्नर के वाहिद तमाचे ने ही तोड़ दिया था, अब रही-सही कसर यह रोडरीगुएज का बच्चा निकाले दे रहा था ।
“लगता है” - रोडरीगुएज उसे घूरता हुआ बोला - “मेरे किसी सवाल का जवाब आपके पास नहीं है ।”
“रोडरीगुएज साहब !” - सुलेमान ने कहना चाहा - “मैं...”
“नैवर माइण्ड ।” - रोडरीगुएज ने उसे बीच में ही रोक दिया - “ओछा, नाकारा, ऊटपटांग जवाब देने से जवाब न देना कहीं बेहतर है । इट इज बैटर टू बी क्वाइट एण्ट कनसिडर्ड ए फूल दैन टू स्पीक एण्ड रिमूव आल डाउट्स ।”
सुलेमान पिटा-सा मुंह लेकर रह गया ।
रोडरीगुएज उठकर खड़ा हो गया ।
“साहबान !” - वह बोला - “लगता है, हालात को बखिया साहब की तवज्जो में लाने का वक्त आ गया है ।”
उस घोषणा से तीनों श्रोताओं के बदन में झुरझुरी दौड़ गई ।
***
“तुम्हारा जोड़ीदार कहां है ?” - कमिश्नर ने पूछा ।
“कौन जोड़ीदार ?” - नीलम सहज स्वर में बोली ।
“इतनी नादान न बनो । मैं सोहल की बात कर रहा हूं ।”
“मैं किसी सोहल को नहीं जानती ।”
नीलम उस वक्त पुलिस कमिश्नर के आफिस में उसके सामने बैठी थी ।
उस वक्त ‘आसमान से गिरा खजूर में अटका’ वाली कहावत उसकी हालत पर पूरी तरह से चरितार्थ हो रही थी ।
“तुम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल को नहीं जानतीं ?” - कमिश्नर उसे घूरता हुआ बोला ।
“मैं नहीं जानती !” - नीलम बोली ।
“कभी नाम भी नहीं सुना ?”
“नहीं ।”
“झूठ मत बोलो । तुम्हारे साथ जो आदमी होटल सी व्यू में रह रहा था वो सोहल था ।”
“वो मेरा पति है ।”
“अच्छी बात है । यही बताओ, तुम्हारा पति कहां है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“तुम्हारा कथित पति सोहल नहीं ?”
“नहीं ।”
“वह कोई गुनहगार व्यक्ति नहीं ?”
“सवाल ही पैदा नहीं होता ।”
“वह एक नेक शहरी है, निर्दोष व्यक्ति है ?”
“हां ।”
“अगर ऐसी बात है तो वह एकाएक कहीं गायब क्यों हो गया है ?”
“वजह मुझे नहीं मालूम । मैं खुद हैरान हूं ।”
“देखो । मैं कोई कल का छोकरा नहीं हूं । बाल सफेद हो गए हैं मेरे पुलिस की नौकरी में । मैं उड़ते पंछी के पर गिन लेने की कूवत रखता हूं । होटल में तुम्हारी जो दुर्गति हो चुकी थी और जो अभी और होने वाली थी, वह मुझसे छुपी नहीं । तुम अपने-आपको खुशकिस्मत समझो कि वक्त रहते पुलिस वहां पहुंच गई और तुम अपने एक बेहद हौलनाक अंजाम से निजात पा गयीं ।”
नीलम खामोश रही ।
“वे लोग क्यों तुम्हारे पीछे पड़े हुए थे, इसे समझना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है । सोहल ने जो जंग उन लोगों के खिलाफ छेड़ी हुई है, ये लोग उस जंग को तुम्हें मोहरा बनाकर जीतना चाहते थे ।”
“आप यह जानते हैं तो उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं करते ?”
“किस बिना पर गिरफ्ततार करें ? क्या किया था उन्होंने ? किया तो जो कुछ भी है, वो सोहल ने है ।”
“जो कुछ उन्होंने मेरे साथ किया, वो किसी गिनती में नहीं आता ? वो कानून की किसी परिभाषा में अपराध नहीं है ?”
“है । लेकिन जो कुछ हुआ उससे तुमने शिकायत कब जाहिर की ? तुम तो उलटे उनकी खातिर झूठ बोल रही थीं । अपने-आपको अपनी मर्जी से वहां धन्धा करने आई कालगर्ल बता रही थीं ।”
“मैं खौफ खाए हुए थी ।”
“किस बात का खौफ खाए हुए थीं तुम ?”
“अपने किसी बुरे अंजाम का ।”
“अपने या सोहल के ?”
“अपने ।”
“पुलिस के सामने खौफ खाने की क्या जरूरत थी ?”
“मुझे क्या पता था, आप लोग पुलिस थे ?”
“तुम्हारे सामने लोग मुझे ‘कमिश्नर साहब’ कहकर सम्बोधित कर रहे थे ।”
“मुझे नहीं मालूम कि कमिश्नर साहब पुलिस होता है ।”
कमिश्नर ने एक आह भरी ।
“अब तो तुम खौफ खाए हुए नहीं हो । अब तो तुम पुलिस के हाथों में हो । अब तो तुम सुरक्षित हो ।”
“क्या गारण्टी है ?”
“किस बात की ?”
“इसी बात की कि मैं पुलिस के हाथों में सुरक्षित हूं ?”
कमिश्नर हड़बड़ाया ।
“क्या मतलब ?”
“मैं एक संगठित संस्था के हाथों से निकलकर एक दूसरी संगठित संस्था के चंगुल में फंस गई हूं । पहली संस्थ अपने-आपको ‘कम्पनी’ कहती थी; दूसरी पुलिस कहती है । मुझे तो बम्बई शहर में दबदबा दोनों का बराबर मालूम होता है ।”
“वे लोग तुम्हारे साथ बलात्कार के लिए आमादा थे...”
“कर चुके थे ।”
“यहां भी तुम अपने साथ ऐसे ही व्यवहार की उम्मीद करती हो ?”
“मैं वहां भी गिरफ्तार थी, यहां भी गिरफ्तार हूं । मुझ पर वहां भी दबाव डाला जा रहा था, यहां भी दबाव डाला जा रहा है । एक खास बात मुझसे कुबुलवाने की खातिर जो जुल्म मुझ पर वहां हुए थे, क्या गारन्टी है कि वे यहां नहीं होंगे ?”
“ऐसा नहीं हो सकता ।”
“क्या गारण्टी है ?”
“हम मुजरिम नहीं हैं । हम कानून के रखवाले और नेक शहरियों के मुहाफिज हैं ।”
“नेक शहरी कौन होता है ?”
“जो सामाजिक मर्यादाओं में बंधकर रहता है, जिसने कोई अपराध नहीं किया होता; जिसने कानून की कोई धारा नहीं भंग की होती ।”
“मैंने क्या अपराध किया है ? मैंने कानून की कौन सी धारा भंग की है ?”
“अपराध किया है तुमने ।”
“क्या ?”
“तुमने एक खतरनाक डकैत; खूंखार कातिल और इश्तिहारी मुजरिम की मदद की है । नेक शहरियों का काम होता है ऐसे लोगों को कानून की पकड़ तक पहुंचाने में हमारी मदद करना, न कि उनकी हिफाजत करना और उनकी सलामती की खातिर झूठ बोलना ।”
“मैंने कोई झूठ नहीं बोला । मैंने किसी मुजरिम की मदद या हिफाजत नहीं की । आप खामखाह मुझे गिरफ्तार किए हुए हैं ।”
“तुम अभी गिरफ्तार नहीं हो ।”
“मैं गिरफ्तार नहीं हूं तो जाने दीजिए मुझे यहां से ।”
“तुम एक मैटीरियल विटनेस के तौर पर इस वक्त पुलिस की हिरासत में हो ।”
“मेरी निगाह में हिरासत और गिरफ्तारी में कोई फर्क नहीं होता ।”
“फर्क होता है । गिरफ्तार व्यक्ति पर चार्ज लगाना पड़ता है और उसे अदालत में पेश किया जाना होता है, हिरासत में किसी को भी लिया जा सकता है ।”
“बिना चार्ज लगाए ?”
“हां ।”
“फिर भी आप कहते हैं गुण्डे बदमाशों के किसी संगठन में और पुलिस फोर्स में फर्क होता है ?”
“जबानदराजी अच्छी कर लेती हो ।”
नीलम बड़े विद्रुपपूर्ण ढंग से हंसी ।
“पढी लिखी हो ?”
“नहीं । निरी फूलनदेवी हूं ।”
“मजाक मत करो । मुझे मजाक पसन्द नहीं ।”
नीलम खामोश रही ।
कमिश्नर कुछ क्षण एकटक उसे देखता रहा और फिर बोला - “देखो, तुम इस बात से हरगिज इनकार नहीं कर सकती हो कि तुम सोहल की सहयोगिनी हो ।”
“मैं...”
“एक मिनट चुप बैठो । आज सुबह बोरीवली के एक होटल में सोहल गिरफ्तारी से बाल बाल बचा था । उस होटल में उसके साथ एक स्त्री मौजूद थी जिसने पिछली रात सोहल से पहले होटल में पहुंच कर मिस्टर एण्ड मिसेज मल्होत्रा के नाम से एक कमरा बुक किया था । सुबह वह स्त्री एक बहाना बनाकर होटल के पिछवाड़े के रास्ते से वहां से निकल कर गायब हो गई थी । जो हुलिया पुलिस को उस स्त्री का बताया गया था, वह तुमसे साफ साफ मिलता है । होटल के स्टाफ से हम तुम्हारा आमना सामना करायेंगे तो वे लोग शर्तिया तुम्हें पहचान लेंगे । यह हमें पहले से ही मालूम है कि कल रात जिस शख्स को तुमने मिस्टर मल्होत्रा बताया था, वह सोहल था । तब तुम कैसे यही राग अलापती रह सकोगी कि तुम सोहल को नहीं जानती ?”
“मैं किसी सोहल को नहीं जानती ।”
“तुम न सिर्फ सोहल को जानती हो बल्कि उसकी सहयोगिनी हो और उसके हर अपराध में बराबर की हिस्सेदार हो ।”
“मैं किसी सोहल को नहीं जानती ।”
“तुम्हारा पति कहां गया ?”
“क्या पता कहां गया ? और कमिश्नर साहब, एक ही सवाल बार बार मत पूछिये ।”
“तुम भी एक ही जवाब बार बार मत दो ।”
नीलम खामोश रही ।
“तुम्हें उम्मीद है कि तुम्हारा कथित पति लौटकर आएगा ?”
नीलम ने हिचकिचाते हुए हामी भर दी ।
“अगर वह न आया तो ?”
“तो मैं यही समझूंगी कि वह भी और मर्दो की तरह बेवफा और हरजाई निकला ।”
“तुम्हारी शादी हुए कितना अरसा हुआ है ?”
उसने तुरन्त उत्तर न दिया ।
“तुम्हारी कलाई में मौजूद लाल चूड़ा बता रहा है कि तुम्हारी ताजी ताजी शादी हुई है ।”
“हां ।”
“तुम यहां हनीमून के लिए आई हो ?”
“हां ।”
“कहां से ?”
वह हिचकिचाई ।
“झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं होगा । तुम्हारे घर का पता तो होटल के रजिस्टर में भी लिखा होगा । बोलो, कहां की रहने वाला हो ?”
“चण्डीगढ की ।”
“तुम्हारा पति भी वहीं का रहने वाला है ?”
“हां ।”
“अपनी जुम्मा-जुम्मा आठ रोज की शादी में ही तुम्हें उम्मीद है कि शायद तुम्हारा पति बेवफा और हरजाई निकले और शायद लौटकर न आये ?”
“मर्द की जात का क्या भरोसा है ?”
“उसकी जात का भरोसा न सही लेकिन उसके जिन्सी लालच का भरोसा होता है । कोई नहीं छोड़ता यूं अपनी ताजी ब्याही बीवी को । बाद की बात और होती है लेकिन जब अभी बीवी के हाथों को मेंहदी का रंग भी फीका न पड़ा हो, तब कोई नहीं छोड़ता । मेरा मतलब है, बिना किसी वजह के ।”
नीलम खामोश रही ।
“उन लोगों का रवैया साफ जाहिर करता था कि सोहल का वहां आना अपेक्षित था लेकिन वह वहां न पहुंचा । क्यों न पहुंचा ? कैसे भनक लगी सोहल को कि जहां वह अब तक सुरक्षित था, वहां एकाएक उसके लिये खतरा पैदा हो गया था ?”
“मैं किसी सोहल को नहीं जानती ।”
“यह जावब तुमने तोते की तरह रट लिया मालूम होता है ।”
नीलम नीचे देखने लगी ।
“खुशकिस्मत है सोहल” - कमिश्नर एक गहरी सांस लेकर बोला - “जो उसे तुम्हारे जैसी संगिनी मिली, जो तुम्हारे जैसी स्त्री मिली जो उसकी बीवी भी नहीं लेकिन फिर भी उसके प्रति इतनी वफादार है ।”
नीलम ने सिर न उठाया ।
“तो यह तुम्हारा आखिरी फैसला कि तुम सोहल को पकड़वाने में हमारी कोई मदद नहीं करोगी ?”
“मैं किसी सोहल को नहीं जानती ।”
कमिश्नर ने असहाय भाव से गरदन हिलाई । उसने मेज की पैनल लगे बैलपुश पर उंगली रखी ।
एक सब इन्स्पेक्टर दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हुआ और सैल्यूट मार कर अदब से खड़ा हो गया ।
“इसे ले जाकर लाकअप में बन्द कर दो ।” - कमिश्नर ने आदेश दिया - “और बोरीवली वाले होटल के स्टाफ से इसका आमना-सामना करवाने का इन्तजार करो ।”
“उससे क्या होगा ?” - नीलम तनिक दिलेरी से बोला ।
“उससे अपराधी की सहयोगिनी होने का तुम्हारा जुर्म साबित होगा ।”
“उससे यह होगा कि तुमसे अपना जुर्म कुबूलवाया जायेगा और तुम्हें सोहल का पता बताने के लिये मजबूर किया जायेगा ।”
“कैसे मजबूर किया जायेगा ?”
“जल्दी ही मालूम हो जायेगा तुम्हें ।”
“यानी कि दबाव डालने के ‘कम्पनी’ के बर्बर तरीकों के मुकाबले में आप जरा सभ्य तरीके इस्तेमाल करेंगे । टार्चर की जो खुराक वहां मुझे सीधे-सीधे दी जा रही थी, उसे आप यहां मुझे शर्बत मिलाकर देंगे । जुल्म और जोर जबरदस्ती की सोने-चांदी के वर्क की सजावट के साथ पेश किया जाएगा । यहां मेरे साथ वो सलूक किया जाएगा जिसके बारे में यह सोचने पर मजबूर हो जाऊंगी कि इससे तो उन जालिमों का सामूहिक बलात्कार ही अच्छा था...”
“शट अप !”
“और अभी आप फरमा कर हटे हैं कि गुण्डे बदमाशों की किसी संस्था और पुलिस फोर्स में फर्क होता है । मुझसे पूछिये तो गुण्डे बदमाशों की जरा ज्यादा संगठित संस्था का नाम...”
“आई सैड शट अप !”
नीलम ने होंठ भींच लिया ।
“एक खतरनाक मुजरिम को पुलिस कि गिरफ्त से दूर रख कर तुम समझती हो, तुम बहुत बड़ा तीर मार रही हो ! तुम जानती नहीं हो कि ऐसा शख्स इन्सानियत के लिए कितना बड़ा खतरा है ?”
“इन्सानियत के लिए नहीं, हैवानियत के लिए ।” - नीलम नफरत-भरे स्वर में बोली - “जिन खूंखार भूखे भेड़ियों के चुंगल से आप मुझे अभी निकाल कर लाये हैं, वे आपको इन्सान लगते थे ? हैवानों से गये बीते थे वो । क्या वे इतने रहम के भी काबिल थे जितने के काबिल वह पागल कुत्ता होता है जिसे कमेटी वाले जहर देकर मार डालते हैं ?”
“लेकिन वो सब-इन्स्पेक्टर” - कमिश्नर मेज पर घूंसा मार कर गरजा - “कोई पागल कुत्ता नहीं था जो सोहल की वजह से बोरीवली के होटल में बम-ब्लास्ट में मारा गया, वो हवलदार हैवान नहीं था जो वहां बुरी तरह से जख्मी हुआ और उस वक्त मरणासन्न अवस्था में पड़ा है ।”
“विमल की उसमें क्या गलती थी ?” - नीलम के मुंह के निकल गया ।
“विमल ! यह भी सोहल के कई नामों में से एक नाम है ?”
नीलम ने होंठ काट लिए ।
“उसकी गलती जानना चाहती हो, बिना यह कुबूल किये कि तुम सोहल की सहचरी हो ?”
“मैं किसी सोहल को नहीं जानती ।”
“पहुंच गई रिकार्ड की सुई अपनी फिर पुरानी लकीर पर ।”
नीलम ने बड़ी मजबूती से होंठ भींच लिया ।
कमिश्नर ने सब-इन्स्पेक्टर को इशारा किया ।
“उठो !” - सब-इन्स्पेक्टर बोला ।
नीलम उठकर सब-इन्स्पेक्टर से साथ हो ली ।
कमिश्नर कुछ क्षण गम्भीर मुद्रा बनाए खामोश बैठा रहा ।
फिर उसने इन्टरकाम उठाकर एक नम्बर डायल किया ।
“इन्स्पेक्टर काशीनाथ !” - दूसरी तरफ से वांछित स्वर सुनाई देते ही कमिश्नर बोला - “घोरपड़े को फौरन तलाश करो और उसे दोबारा हिरासत में ले लो । तुमने उसका आमना-सामना नीलम से कराना है और देखना है कि इस बारे में घोरपड़े क्या कहता है या क्या नहीं कहता ।”
कमिश्नर ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया ।
***
महालक्ष्मी रेस कोर्स के ऐन सामने सड़क के पार वह पेट्रोल पम्प जिसके शीशे की खिड़कियों और दरवाजों वाले ऑफिस में से रेसट्रैक का काफी सारा भाग साफ दिखाई देता था । ऑफिस के भीतर एक कुर्सी पर बैठा, बीड़ी फूंकता राहुल राव बैठा था और मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि वहां मौजूद नामुराद टेलीफोन फिर न बजे । टेलीफोन अगर बजता था और कॉल अगर उसके लिए होती थी तो उसे कोई विशिष्ट रेस शुरू होने से पहले आंधी तूफान की तरह भागते हुए रेसकोर्स की खिड़की पर पहुंचना होता था । उसके वहां पहुंचने से पहले रेस शुरू हो जाने की सूरत में उसकी जो ऐसी-तैसी फिर सकती थी, उसके ख्याल भर से ही उसके जिस्म में झुरझुरी दौड़ जाती थी । वह एक चालीस के पेटे में पहुंचा, दिन-ब-दिन मुटियाता जा रहा व्यक्ति था और भागदौड़ उसके लिए एक भारी सजा का काम था ।
लेकिन रेस के दिनों में वह भागदौड़ उसकी मजबूरी थी, लाजमी थी । इसी में उसका कल्याण था । वह शिद्दत और जिम्मेदारी ही उसके रोजी रोटी की गारण्टी थी ।
राहुल राव ‘कम्पनी’ के सिपहसालर दण्डवते का सगा इकलौता, भांजा था । वह दण्डवते की, उससे उम्र में बहुत बड़ी, बहन का इकलौता लड़का था और उम्र में दण्डवते से चार-पांच साल ही छोटा था । बुनियादी तौर पर राहुल राव एक नकारा और कामचोर व्यक्ति था । आठवीं जमात से वह स्कूल से उठा हुआ था और रोजी रोटी कमाने लायक कोई हुनर उसने सीखा नहीं था । कई सालों की सरकारी सांड जैसी नकारा और आरामतलबी की जिन्दगी गुजार चुकने के बाद आपने मामा की मेहरबानी से पिछले साल से ही वह उस काम में लगा था जिसके लिए दण्डवते की उसे वार्निंग थी की अगर उसने उस काम में कोई घोटला किया या उसे पूरी मेहनत और दिलचस्पी से अन्जाम देने में कोताही की तो ‘साले, हलकट, मेरी विधवा बहन मुकम्मल तौर पर बेआसरा हो जाएगी’ ।
राहुल राव उस धमकी का मतलब बखूबी समझता था और अपने वैसे किसी अन्जाम के ख्याल से ही उसका रोम-रोम कांप जाता था ।
अपने मामा की वजह से जिस धन्धे का वह एक मामूली पुर्जा था, वह भी बखिया के कई धन्धों में से एक था और वह रेस के सीजन में ही चलता था । बाकी वक्त राहुल राव को रेस के अगले सीजन के इन्तजार में खाली बैठना पड़ता था लेकिन फिर भी बतौर कमीशन उसे इतनी प्राप्ती हो जाती थी कि रोजी-रोटी का और थोड़ी बहुत एैयाशी का अच्छा खासा जुगाड़ हो जाता था ।
फोन बजने पर उसे फोन का दुबला पतला मालिक मंगवानी उठाता था । दूसरी तरफ से आती आवाज सुन कर अगर वह रिसीवर राहुल राव की तरफ बढा देता था तो राहुल राव मुंह में लगी बीड़ी थूक कर, यूं चिहंक कर उठता था जैसे एकाएक कुर्सी में बिजली का करेण्ट दौड़ गया हो । वह ‘सेफ खोलो ! सेफ खोलो !’ पुकारता फोन पर झपटता था और इतनी ही क्रिया में हांफने लगता था जबकि अभी उसने रेसकोर्स की बुकिंग विण्डो तक दौड़ कर जाना होता था । रिसीवर कान से लगाते ही उसे हुक्म होता था - ‘ब्लैक ब्यूटी’ पर बीस ।
यानी कि ‘ब्लैक ब्यूटी’ नाम के घोड़े पर उसने बीस हजार रुपये का दांव लगाकर आना था ।
और ऐसी कॉल आमतौर पर उस रेस के स्टार्ट होने से मुश्किकल से दस मिनट पहले आती थी जिसमें कि ‘ब्लैक ब्यूटी’ नाम का घोड़ा दौड़ रहा होता था ।
“ब्लैक ब्यूटी पर बीस ।” - राहुल राव फोन में दोहराता था, रिसीवर क्रेडिल पर पटकता था और फिर गंगवानी पर चिल्लाने लगता था - “अरे, सेफ खुली कि नहीं खुली ।”
गंगवानी, जो कि हमेशा ही तब तक सेफ खोल चुका होता था, झल्लाता हुआ पूछता था - “वड़ी साईं खाली-पीली शोर क्यों मच्चाता है, नी ? वड़ी कितनी निकालूं, नी ?”
“बीस !”
“और गंगवानी सेफ में से बीस हजार रुपये निकालकर उसकी तरफ बढा देता था जिन्हें कि गंगवानी के हाथ से लगभग झपट कर राहुल राव रेसकोर्स की तरफ भागता था कि वह हजार रुपये की ‘विन’ की खिड़की पर पहुंचकर अपनी उखड़ती सांसो के साथ बड़ी मुश्किल से कह पता था - “ब्लैक ब्यूटी पर बीस हजार ।”
बुकिंग क्लर्क से उसे हजार-हजार रुपये की बीस टिकटें हासिल हो जाती थी ।
तब कहीं जाकर राहुल राव की जान में जान आती थी और वह अपनी पसलियों के साथ धाड़-धाड़ बजते दिल को काबू में करने की काशिश करनी शुरू करता था ।
अब उसे उस रेस के नतीजे का इन्तजार करना होता था जिसमें कि ‘ब्लैक ब्यूटी’ नामक घोड़ा दौड़ रहा होता था ।
रेस में अगर ‘ब्लैक ब्यूटी’ जीत जाता था तो वह बीस टिकटें लेकर फिर बुकिंग पर पहुंचता था और उन्हें कैश करा लेता था । अगर घोड़ा हार जाता था तो वह टिकटें लेकर वापिस पेट्रोल पम्प पर आ जाता था । वह टिकटों को एक लिफाफे में बन्द करता था और लिफाफे को संभालकर सेफ में रख देता था ।
यही काम था उसका जिसके बदले में उसे दांव पर लगी कुल रकम पर पांच प्रतिशत कमीशन मिलती थी जिसमें से कि दो प्रतिशत उसने गंगवानी को देना होता था ।
कमीशन की रकम से वह सन्तुष्ट नहीं होता था इसलिए कई बार उसके मन में यह खुराफाती ख्याल आ चुका था कि अगर वह रकम को टेलीफोन पर हासिल हुई हिदायत के मुताबिक दांव पर न लगाए और घोड़े के रेस में हार जाने की दुआ करे तो ?
उसकी उस प्रबल आशावादी विचारधारा में दो नुक्स थे ।
एक तो उसकी दुआ नाकुबूल हो सकती थी और उसे लेने के देने पड़ सकते थे । घोड़ा जीत सकता था और उस पर लगे दांव को कवर करने के लिए उसे अपने पल्ले में एक के बदले में बस, बारह या पन्द्रह या और भी ज्यादा, भरने पड़ सकते थे ।
और उसके पल्ले इतना पैसा होने का सवाल नहीं होता था ।
घोड़े के जीत जाने की सूरत में जीत की रकम के साथ पेट्रोल पम्प पर न लौटने पर उसकी जो गत बन सकती थी उससे वह जानता था कि, उसका मामा भी उसे नहीं बचा सकता था ।
दूसरे हारे हुए घोड़े की टिकटें उसे संभालकर रखनी होती थीं । ऐसी टिकटों का रेस खेलने वाले उन और लोगों के पास होना भी लाजमी था जिन्होंने कि हारे हुए घोड़े पर दांव लगाया होता था और वह उनके द्वारा फेंकी हुई टिकटें बटोर सकता था और उन्हें आगे पेश कर सकता था लेकिन उसने अक्सर देखा था कि रेस हार जाने पर लोग अपने मन की भड़ास टिकटों पर ही निकालते थे ।
वे टिकटों को फेंकने से पहले उनकी धज्जियां उड़ा देते थे ।
इसलिए बहुत चाहते हुए भी उस खतरनाक ख्याल पर कभी अमल करने की कोशिश नहीं की थी ।
गंगवानी और राहुल राव के माध्यम से रेस पर दांव लगाने का जो धन्धा चलता था, वह किसी की भी कल्पना से ज्यादा व्यापक था । उस इन्तजाम से रेस बम्बई में होती थी लेकिन उस पर दांव सारे हिन्दुस्तान में लगाए जाते थे । उस सुविधा का लाभ बम्बई के वे रईस लोग भी उठाते थे जो कि रेस तो खेलना चाहते थे लेकिन रेसकोर्स नहीं जाना चाहते थे । रेस के मौसम में ‘कम्पनी’ के कफ परेड के ऑफिस में लगे चार टेलेक्स और कई टेलीफोन लगातार बजते थे । वहां बड़ी बड़ी रकमों के दांव पहुंचते थे जिन्हें तुरन्त रेसकोर्स स्थानान्तरित कर दिया जाता था । राहुल राव और गंगावानी की सेवाओं को उन्हीं दांवों के लिए इस्तेमाल किया जाता था जो कि इतनी लेट आते थे कि किसी का वक्त रहते कफ परेड में महालक्ष्मी रेसकोर्स पहुंच पाना नामुमकिन होता था ।
‘कम्पनी’ इन सेवाओं के लिए दांव पर लगी कुल रकम का दस प्रतिशत चार्ज करती थी ।
पेट्रोल पम्प की सेफ में ‘कम्पनी’ का काम से कम दस पन्द्रह लाख रुपया हमेशा मौजूद होता था । सीजन बहुत जोरों पर होता था तो यह रकम चालीस पचास लाख तक भी पहुंच जाती थी और बीच बीच में वक्त जरूरत वहां और रकम भी भिजवाई जाती रहती थी । ‘कम्पनी’ से कोई जिम्मेदार आदमी वहां आता था जो सेफ को नोटों से फिर भर जाता था और हारे हुए घोड़ों की टिकटों के लिफाफे वहां से ले जाता था ।
हार की जगह अगर जीत पर जोर होता था और अगर सेफ नोटों से जरूरत से ज्यादा भर जाती थी तो ‘कम्पनी’ का वही आदमी फालतू रुपया वहां से ले जा रहा था ।
उस रोज सेफ में लगभग बीस लाख रुपये मौजूद थे ।
‘कम्पनी’ का बीस लाख रुपया महालक्ष्मी रेसकोर्स के सामने स्थित उस मामूली से पेट्रोल पम्प की मामूली सी सेफ में बन्द था और -
उस पर किसी की निगाह थी ।
***
रोडरीगुएज के प्राइवेट टेलीफोन की घण्टी बजी ।
उसकी सैक्रेटरी ने फोन उठाया ।
“हल्लो !” - वह माउथपीयस में बोली ।
“रोडरीगुएज को फोन दो ।” - दूसरी ओर से आवाज आई ।
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
“अपने बाप को फोन दे, बिस्तर की रौनक !”
सैक्रेटरी के सारे शरीर में झुरझुरी दौड़ गयी ।
ऐसा कहर-भरा स्वर उसने पहले कभी नहीं सुना था ।
तभी रोडरीगुएज ने बाहर से वहां कदम रखा ।
सैक्रेटरी का रंग बदरंग हुआ देखकर उने उत्सुक भाव से पूछा - “क्या बात है ?”
“कोई आपसे बात करना चाहता है ।” - सैक्रेटरी बोली - “लेकिन नाम नहीं बता रहा । और मुझे... मुझे गालियां दे रहा है ।”
रोडरीगुएज ने अपनी कलाई की घड़ी पर निगाह डाली ।
सोहल की कॉल आए ठीक आधा घण्टा हो चुका था ।
“रिसीवर मुझे दो ।” - वह आगे बढता हुआ बोला ।
सैक्रेटरी ने उसे रिसीवर थमा दिया ।
“हल्लो !” - रोडरीगुएज माउथपीस में बोला ।
“रोडरीगुएज साहब !” - दूसरी ओर से आवाज आई ।
“हां, कौन ? सोहल ?”
“वही । एकदम ठीक पहचाना आपने । अब जल्दी बोलिये, क्या फैसला है आपका ?”
रोडरीगुएज के लिए फैसला बहुत कठिन था । जो लड़की अब उसके अधिकार में ही नहीं रही थी, उसको वह रिहा कैसे कर सकता था ?
लेकिन सवाल यहां था कि क्या विमल इस बात पर विश्वास कर लेता कि लड़की उसके अधिकार में नहीं थी ? वह इस बात को लड़की कौन छोड़ने की नीयत से बोला गया झूठ भी मान सकता था ।
“हल्लो !” - दूसरी तरफ से आवाज आई ।
“यह फैसला मेरे हाथ में नहीं ।” - रोडरीगुएज बड़ी संजीदगी से बोला ।
“तो फिर किसके हाथ में है ?”
“बखिया साहब के हाथ में ।”
“लेकिन लड़की तो सुलेमान की गिरफ्त में है जो कि आपका मातहत है ।”
“हम सब बखिया साहब के मातहत हैं और लड़की किसी एक शख्स के नहीं, ‘कम्पनी’ के हाथ में है ।”
“ये सब फैन्सी बातें हैं । मुझे फैन्सी बातें नहीं सुननी आपका फैसला सुनना है ।”
“फैसला बखिया साहब सुनायेंगे ।”
“तो बखिया को फोन दो ।”
“बखिया साहब गोवा में हैं ।”
“ये सब टालने की बातें हैं ।”
“लेकिन आज ही रात को वे वापिस बम्बई आ रहे हैं । मेरी तुम्हें राय हैं कि तुम कल सुबह तक इन्तजार करो । कल सुबह तक तुम खामोश बैठो ।”
“तब तक सुलेमान लड़की का भुरता बना देगा ।”
“लड़की का बाल भी बांका नहीं होगा । यह मेरा तुमसे वादा है । मैं कल के बाद का वादा नहीं कर सकता, लेकिन कल सुबह तक उसे कुछ नहीं होगा यह मेरी गारण्टी है ।”
“और उसके बाद ?”
“उसके बाद अगर बखिया साहब का जवाब इनकार में होता है तो खुद वही लड़की पर कहर ढाये जाने का हुक्म सुन सकते हैं । लेकिन” - रोडरीगुएज ने जल्दी से फिकरा जोड़ा - “जरूरी नहीं कि बखिया साहब का जवाब इनकार में हो ।”
विमल सोच में पड़ गया ।
“देखो” - रोडरीगुएज समझाने के अन्दाज में बोला - “मेरी तुमसे कोई जाती अदावत नहीं है । हम दोनों के बीच जो हो रहा है, वह बिजनेस है ।”
“मेरी भी आपसे कोई जाती अदावत नहीं है ।”
“ऐग्जैक्टली । इसीलिए मैं तुम्हें अपनी बड़ी नेक राय दे रहा हूं कि कल सुबह तक इन्तजार कर लो ।”
“आपका वादा है कि कल सुबह तक लड़की पर कोई जुल्म नहीं ढाया जाएगा ?”
“हां ।”
“लेकिन अगर मुझे पता लगा कि लड़की पर कोई जुल्म ढाया गया है तो बखिया ने अगर लड़की को छोड़ देने का भी हुक्म दिया तो भी मैं आप लोगों को नहीं छोडूंगा । मैं किसी को जिन्दा नहीं छोडूंगा । अगर मुझे खून के आंसू रोना पड़ा तो आपका बखिया भी खून के आंसू रोयेगा । समझ गए आप ?”
“हां । लेकिन अब तुम भी एक वादा करो ।”
“क्या ?”
“कल सुबह तक तुम खामोश बैठोगे । तुम ‘कम्पनी’ को कोई नई चोट पहुंचाने की कोशिश नहीं करोगे । तुम पहले ही ‘कम्पनी’ का बहुत नुकसान कर चुके हो ।”
“उसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं । मेरी बुनियादी मांग बहुत मामूली थी । आप लोगों को वह कबूल कर लेनी चाहिए थी ।”
“कम्पनी’ यूं किसी का दबाव बर्दाश्त नहीं कर सकती ।”
“अब भी तो कर रही है ।”
“छोड़ो । अब इन बातों से कोई फायदा नहीं । अब हम दोनों के बीच में यह वादा रहा कि कल सुबह तक अमन की स्थिति रहेगी । ओके ?”
“ओके । मैं सुबह आठ बजे इसी नम्बर पर फिर फोन करूंगा ।”
“मंजूर ।”
***
“होटल में मौजूद हमारे भेदिए ने खबर दी है” - बालेराम बोला - “कि नीलम को पुलिस पकड़कर ले गई है । पुलिस कमिश्नर खुद वहां पहुंचा था ।”
“यानी कि” - तुकाराम बोला - “पुलिस को गुमनाम टेलीफोन कॉल वाली हमारी ट्रिक काम कर गई !”
“हां । मैंने पहले ही कहा था कि जो काम हम नहीं कर सकते थे, वह पुलिस कर सकती थी । मैंने पहले ही कहा था कि पुलिस को यह टिप मिलने की देर थी कि मशहूर इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल होटल सी व्यू में मौजूद था कि उन्होंने आंधी-तुफान की तरह होटल पर टूट पड़ना था ।”
“लेकिन” - जीवाराम बोला - “इससे समस्या तो कोई भी हल न हुई ।”
दोनों भाई जीवाराम की तरफ घूमे ।
“यह बात सोहल को क्या सन्तुष्टि देगी कि नीमल ‘कम्पनी’ के चंगुल से तो निकल गई है लेकिन पुलिस की गिरफ्त में पहुंच गई है ?”
“नीलम को ‘कम्पनी’ के पास से छुड़ाना हमारे बस की बात नहीं थी ।” - बालेराम बोला - “लेकिन उसे पुलिस के पास से छुड़ाने की कोशिश हम कर सकते हैं ।”
“आप मेरी बात नहीं समझ रहे । फर्ज कीजिये, हम नीलम को पुलिस के चंगुल से छुड़ाने में कामयाब हो जाते हैं । लेकिन इससे तो सिर्फ सोहल का काम बना । हमारा काम तो न बना । आप भूल रहे हैं कि हम सोहल का साथ इसलिए दे रहे हैं ताकि उसको ढाल बनाकर हम काले पहाड़ से शान्ता की मौत का बदला ले सकें । सोहल ने ‘कम्पनी’ के खिलाफ जो जेहाद छेड़ा हुआ है अगर उसने उससे हाथ खींच लिया तो हमारी ढाल तो गई हमारे हाथ से ।”
“जीवा ठीक कह रहा है ।” - बालेराम बोला - “नीलम की सलामती की फिक्र में ही सोहल आफत का परकाला बना हुआ है । उसकी यह फिक्र दूर हो गई तो वह झाग की तरह बैठ सकता है । वैसा सोहल हमारे किस काम का ? उसका रौद्र रूप और ‘कम्पनी’ के प्रति उसके हिंसक इरादे ही हमारे किसी काम आ सकते हैं । हमें तोप का गोला सोहल चाहिए, गीला पटाखा सोहल नहीं ।”
“उसकी ओट के बिना हम कुछ नहीं कर सकते ।” - जीवाराम बोला - “कर सकते होते तो शान्ता की मौत के इतने अरसे बाद तक हम हाथ पर हाथ धरकर न बैठे रहे होते ।”
“बात तो तुम्हारी ठीक है लेकिन अब क्या किया जाए ?”
तरकीब फिर जीवाराम ने ही बताई ।
दोनों भाइयों को जीवाराम की तरकीब पसन्द आई ।
तभी देवाराम वहां पहुंचा ।
“सोहल कहां है ?” - उसे अकेले आया पाकर तुकाराम ने पूछा ।
“वह दादर में किसी लड़की से मिलना चाहता था ।” - देवाराम ने बताया - “लेकिन मुझे साथ नहीं ले जाना चाहता था ।”
“उसे यहां का पता अच्छी तरह से समझा दिया था ? खुद लौट सकेगा वह यहां ?”
“क्यों नहीं लौट सकेगा ? वह कोई बच्चा है ?”
“क्या हुआ दिन-भर में ?” - बालेराम ने उत्सुक स्वर में पूछा ।
देवाराम ने उन्हें नोटों से भरा झोला दिखाया और सुवेगा के जेकब सर्कल वाले आफिस की तबाही और कफ परेड के आफिस में मोटलानी के कत्ल की कहानी सुनाई ।
तुरन्त तीनों भाइयों के चेहरों पर सन्तुष्टि के भाव प्रकट हुए ।
“लेकिन” - तुकाराम बोला - “यह सिलसिला बन्द क्यों हो गया ?”
“सोहल ने” - देवराम ने बताया - “निर्धारित समय पर नीलम की रिहाई की बाबत रोडरीगुएज को फोन किया था । उसने सुबह आठ बजे तक सोहल को इन्तजार करने के लिए कहा है ।”
“क्यों ?”
“वह कहता है कि नीलम को छोड़ा जाए या नहीं, इस बात का फैसला खुद बखिया आकर करेगा ।”
“बखिया गोवा से वापिस आ रहा है ?”
“हां । आज ही रात को ।”
“देवा की बात में” - जीवाराम बोला - “नोट करने वाली बात यह है कि वे अभी विचार करेंगे कि वे नीलम को छोड़ें या नहीं । जो लड़की अब उनकी गिरफ्त में ही नहीं है, उसकी रिहाई पर वे विचार करेंगे ।”
“सोहल ने फोन रोडरीगुएज को किया था ?” - तुकाराम ने पूछा ।
“हां ।” - देवाराम बोला ।
“यह हो सकता है कि रोडरीगुएज को खबर ही न हो कि नीलम को होटल से पुलिस छुड़ाकर ले गई थी !”
“रोडरीगुएज को उसने फोन उसके घर किया था या होटल में ?” - बालेराम ने पूछा ।
“होटल में ।” - देवाराम बोला ।
“फिर नहीं हो सकता ।” - बालेराम निर्णयात्मक स्वर में बोला - “फिर नहीं हो सकता कि रोडरीगुएज को खबर न हो कि नीलम उनके चंगुल से निकल चुकी थी ।”
“फिर से झूठ का मतलब ?” - तुकाराम उलझनपूर्ण स्वर में बोला ।
“मतलब कुछ भी हो ।” - जीवाराम बोला - “यह सिचुएशन हमारे फायदे की है कि रोडरीगुएज ने सोहल से यह झूठ बोला है कि लड़की अभी भी उनके चंगुल में है । अब जो कहानी हमने सोहल को सुनाने के लिए तैयार की है, उसमें ज्यादा रंग आ सकता है । अगर रोडरीगुएज सोहल को बता देता कि लड़की को पुलिस पकड़कर ले गई थी तो हमारी कहानी भी बेकार हो जाती और हमारा मिशन भी पिट जाता ।”
“लेकिन ।” - तुकाराम बोला - “यह बात छुपी रहने वाली नहीं है कि नीलम को पुलिस ले गई ।”
“क्यों नहीं छुपी रहने वाली ?”
“इस बारे में उन्होंने सोहल को अब नहीं बताया तो बाद में भी क्या बताएंगे ?”
“लेकिन खबर अखबार में छप सकती है ।” - बालेराम बोला ।
“शायद न छपे ।” - जीवाराम बोला ।
सबने जीवाराम की तरफ देखा ।
“पुलिस नीलम की हकीकत से नावाफिक नहीं ।” - जीवाराम बोला - “नीलम से उन्हें सिवाय इसके कुछ हासिल नहीं कि वह उन्हें सोहल का कोई ऐसा पता बता सकती है जहां से कि वह गिरफ्तार किया जा सकता हो । इस बात को निगाह में रखकर सोचा जाए तो नीलम की गिरफ्तारी की बात ज्यादा से ज्यादा देर तक छुपाए रखने में ही पुलिस का कल्याण है ।”
“जीवा ठीक कह रहा है ।” - बालेराम बोला ।
“और फिर हाथ कंगन को आरसी क्या !” - देवाराम बोला - “कल का अखबार आने दो, बात साफ हो जाएगी ।”
“यानी कि” - तुकाराम बोला - “नीलम के अंजाम की बाबत हमारा झूठ चल सकता है ।”
“सरासर चल सकता है ।” - जीवाराम बोला - “चलना ही चाहिए, वर्ना हमारा मिशन फेल हो जाएगा ।”
***
“संध्या कहां है ?” - दण्डवते ने पूछा ।
“वो आज नहीं आई ।” - मिसेज पिन्टो ने बताया ।
“क्यों ?”
“आज उसकी छुट्टी है ।”
“कैसी छुट्टी ?”
“अरे वही छुट्टी जो इस धन्धे मे लड़कियों की खुदा ने मुकर्रर की हुई है ।”
“ओह ! फिर तो वह अपने घर पर ही होगी ?”
“और कहां जाएगी ?”
“अभी भी वो अपने उसी दादर वाले फ्लैट में ही रहती है न ?”
“हां ।”
“तो उस रोज संध्या सुलेमान साहब के बुलावे पर होटल गई थी ?”
“हां ! क्यों ?”
“सुलेमान साहब ने खुद कहा था कि उसे होटल भेजा जाए ?”
“नहीं । उसकी सैक्रेटरी का फोन आया था ।”
“फोन तुमने सुना था या संध्या ने ?”
“मैंने सुना था । हमेशा ही मैं सुनती हूं ।”
“क्या कहा गया था फोन पर ?”
“बात क्या है, दण्डवते ? तुम बहुत सवाल...”
“क्या कहा गया था फोन पर ?” - दण्डवते ने सख्ती से पूछा ।
“यही कि सुलेमान साहब ने पुछवाया था कि क्या संध्या फ्री थी ? अगर फ्री थी तो मैं उसे एक घण्टे बाद होटल में भेज दूं जहां कि वह सीधी सुलेमान साहब के सुइट में चली जाए । सुलेमान साहब को अपने किसी बहुत ही मुअज्जिज मेहमान को एंटरटेन करने के लिए संध्या की जरूरत थी ।”
“तुम्हें कैसे पता है कि फोन सुलेमान साहब की सैक्रेटरी का था ?”
“और किसका होता ? और कौन सुलेमान साहब की तरफ से मुझे यहां फोन कर सकती थी ?”
“मिसेज पिन्टो, सुलेमान साहब की सैक्रेटरी ने ऐसा कोई फोन नहीं किया था । सुलेमान साहब ने संध्या को नहीं बुलवाया था ।”
“यह कैसे हो सकता है ?” - मिसेज पिन्टो तमककर बोली - “लड़की वहां पहुंची थी । सीधे वहां पहुंची थी ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“अगले रोज उसने मुझे लिफाफा जो दिया था । तुम्हारे सामने उसने मुझे दो हजार के नोट दिए थे...”
“महज उन नोटों की वजह से ही तुम समझ रही हो न कि वह होटल गई थी ?”
“हां ।”
“और बाकी तो तुम अन्दाजा ही लगा रही हो । मेरे सामने तो संध्या ने एक बार भी अपनी जुबान से नहीं कहा था कि वह होटल गई थी । उसने तुम्हें नोटों का लिफाफा थमाया और तुम कूदकर इस नतीजे पर पहुंच गयीं कि वह होटल गई थी । नहीं ?”
मिसेज पिन्टो हक्की-बक्की-सी दण्डवते का मुंह देखने लगी ।
“सुलेमान साहब ने संध्या को नहीं बुलवाया था ।” - दण्डवते दृढ स्वर में बोला - “इस बात की तसदीक खुद सुलेमान साहब की जुबानी हो चुकी है ।”
“कमाल है !”
“लड़की होटल नहीं गई थी ।”
“यानी कि” - मिसेज पिन्टो तैश में आ गई - “हरामजादी प्राइवेट धन्धा करने लगी है ? मैं उसकी भट्टी में...”
“शट अप !”
मिसेज पिन्टो चुप हो गई । उसने सकपकाकर दण्डवते की तरफ देखा ।
“यहां से रवाना होते वक्त संध्या को नहीं मालूम था कि वह होटल नहीं पहुंचने वाली थी । वह रास्ते में ही किसी और के पल्ले पड़ गई थी ।”
“किसके ?”
“सोहल के ।”
“सोहल ?”
“जिसे तुम कालीचरण के नाम से जानती हो, जिसने तुम्हारे बंगले को आग लगाई थी ।”
“सत्यानाश हो उस हलकट का !”
“उसी ने तुम्हें वह फोन कॉल करवाई थी जिसके जवाब में तुमने संध्या को होटल के लिए रवाना किया था ।”
“यानी कि हमें सुलेमान साहब के नाम से धोखा दिया गया था ?”
“हां ।”
“फिर इसमें मेरी क्या गलती है ? ऐसा धोखा कोई भी खा सकता है । संध्या की क्या गलती है ? उस मवाली कालीचरण ने अगर संध्या को जबरदस्ती पकड़ लिया था तो...”
“यहां तक किसी की कोई गलती नहीं । लेकिन आगे गलती है । आगे संध्या की गलती है ।”
“क्या ?”
“देखो, डोगरा के कत्ल के वक्त संध्या उसके साथ मौजूद थी इसलिए सोहल संध्या को जानता था । संध्या वह इकलौती लड़की थी जिसके ‘कम्पनी’ के सम्पर्क से वह वाकिफ हो चुका था और जिसे वह जानता था । इसलिए दोबारा उसने संध्या पर हाथ डाला ।”
“लेकिन संध्या की गलती...”
“यह थी कि उसने लौटकर यह नहीं बताया कि वह सोहल के चंगुल में फंस गई थी । न सिर्फ बताया नहीं बल्किह उस रात अपने गायब हो जाने को कवर करने के लिए उसने अपने पल्ले से तुम्हें दो हजार रुपये दिये और तुम्हें आश्वस्त कर दिया कि वह कल रात होटल में रही थी । होटल तो वह पहुंची ही नहीं । अगर वह होटल पहुंची होती तो उसको चुटकियों में पता लगा जाता कि उसे वहां नहीं बुलाया गया था, वह टेलीफोन कॉल बोगस थी । उसका इस बारे में खामोश रहना और तुम्हें लिफाफा भी लाकर देना साफ साबित करता है कि उसने स्वेच्छा से सोहल की - कम्पनी के दुश्मन की - मदद की थी ।”
“साली ! हरामजादी !” - मिसेस पिन्टो दांत पीस कर बोली ।
“वह अभी भी सोहल की मदद कर रही हो तो कोई बड़ी बात नहीं, कोई बड़ी बात नहीं कि यह भी उसका बहाना हो कि आज उसकी डेट आ गई थी । इस लड़की का मुझे कभी भरोसा नहीं हुआ । आज भी वह अपने बाप की मौत के लिए ‘कम्पनी’ को जिम्मेदार ठहराती है इसलिए उसके दिल के किसी कोने में बदले की भावना दफन जरूर है जिसे सोहल ने अपनी पुच-पुच से कुरेदकर उजागर कर लिया मालूम होता है ।”
“कमीनी ! कुतिया ! मैं उसकी खाल खींच लूंगी ।”
“यह काम तुमसे नहीं होगा । यह काम मुझे करना होगा ।”
“मुझे उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसा धोखा देगी ।”
“धोखा हमेशा वही देता है जिससे आपको धोखे की उम्मीद नहीं होती ।”
“दण्डवते !”
“हां ।”
“मैं एक बात और बता दूं ?”
“क्या ?”
“मैंने तुम्हें बताया था न कि होटल नटराज में डोगरा का कत्ल करने के लिए कालीचरण संध्या की मौजूदगी में पहुंचा था ?”
“हां । और जैसे फौरन वह बात उसने तुम्हें बता दी थी वैसे ही फौरन उसे यह भी बताना चाहिए था कि वह होटल पहुंचने की जगह सोहल के चंगुल में फंस गई थी ।”
“दण्डवते ! यह बात भी संध्या ने मुझे फौरन नहीं बताई थी ।”
“क्या ?”
“वह बात संध्या ने मुझे दो दिन बाद बताई थी और अपनी मर्जी से नहीं बताई थी । हकीकतन मुझे उससे जबरन कुबुलवानी पड़ी थी ।”
“अच्छा !”
“मैंने उसकी खातिर तुझसे झूठ बोल दिया था, बेचारी खामखाह किसी मुसीबत में न पड़े इसलिए...”
“वह बेचारी नहीं है ।”
“अब तो मुझे भी मालूम है लेकिन तब तो...”
दण्डवते उठ खड़ा हुआ ।
“मैं दादर जा रहा हूं ।” - वह बोला - “अगर वह मुझे घर पर न मिली तो यह भी इस बात का सबूत होगा कि वह लड़की कोई बहुत खतरनाक खेल खेल रही है ।”
“अच्छा सबक देना, हरामजादी को ।”
“बहुत अच्छा सबक दूंगा । मुझसे भी अच्छा सबका बाद में उसे जोजो देगा । अपनी लड़कियों को तमाशे के लिए तैयार रखना ।”
***
संध्या का फ्लैट दादर की चार मंजिली इमारत की दूसरी मंजिल पर था । उस वक्त विमल को संध्या के घर होने की कतई उम्मीद नहीं थी लेकिन देवाराम के साथ दादर से गुजरते समय एकाएक ही उसे सूझा था कि क्यों न वह एक बार झांकता चले कि संध्या घर पर थी या नहीं !
शायद वह घर पर हो !
रोडरीगुएज से उसने सुबह आठ बजे तक अमन का वादा किया था लेकिन उस वादे के जेरेसाया हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहना उसे दूभर लग रहा था । खाली होते ही उसे नीलम का ख्याल आने लगता था और उसकी दुश्वारी के बारे में सोच-सोच कर वह व्याकुल हो उठता था ।
बखिया सहज ही नीलम को छोड़ देगा, इस बात की उम्मीद उसे बहुत कम थी । उसके इनकार की सूरत में उसकी खिलाफत के लिए आज की हुई तैयारी कल काम आ सकती थी, इसलिए वह वहां पहुंचा था ।
इस बात से अच्छी तरह आश्वस्त होकर कि वह किसी व्यक्ति विशेष की खास निगाहों में नहीं था, उसने इमारत में कदम रखा ।
सीढियों के रास्ते वह दूसरी मंजिल पर पहुंचा ।
वह एक विशाल इमारत थी जिसकी एक-एक मंजिल पर कई-कई फ्लैट थे ।
उसने गलियारे को खाली पाया ।
दरवाजे में स्प्रिंग लॉक लगा हुआ था इसलिए बन्द दरवाजे से यह भांप पाना सम्भव नहीं था कि भीतर फ्लैट में कोई था या नहीं ।
उसने कॉलबैल बजाई ।
“कौन ?” - फौरन उसे भीतर से आती संध्या की आवाज सुनाई दी ।
“मैं !” - विमल बोला ।
“मैं कौन ?”
“डोगरा का दोस्त । नटराज होटल वाला ।”
दरवाजे में वह लैंस फिट था जिससे भीतर से बाहर तो झांका जा सकता था लेकिन बाहर से भीतर नहीं झांका जा सकता था ।
विमल उस लैंस की सीध में हो गया ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
फिर एकाएक दरवाजा खुला ।
चौखट पर एक दर्जन रंगों वाला कफ्तान पहने संध्या प्रकट हुई ।
“तुम !” - वह बोली ।
विमल ने सिर नवाकर अभिवाद किया ।
“तुम !” - उसके मुंह से फिर निकला ।
“लगता है” - विमल तनिक आहत भाव से बोला - “मेरा यहां आना तुम्हें नागवार गुजरा है । अगर ऐसी बात थी तो तुम्हें पहले ही मुझे अपना घर नहीं दिखाना चाहिए था ।”
“नहीं, नहीं, यह बात नहीं ।” - वह हड़बड़ा कर बोली ।
“तो क्या बात है ?”
“मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम कभी यहां आओगे । हैरानी हो रही है मुझे तुम्हें यहां आया देखकर ।”
“अगर हम अन्दर चल कर, कहीं बैठ कर हैरान हो लें तो कैसा रहे ?”
“सॉरी ! आओ ।”
वह दरवाजे से हटी
“थैंक्यू !” - विमल बोला और भीतर दाखिल हुआ ।
संध्या ने दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया और उसे उसी सजे हुए ड्राइंगरूम में बिठाया जहां उसके कदम पहले भी एक बार पड़ चुके थे ।
“कुछ पियोगे ?” - वह बोली ।
“नहीं ।”
“कुछ खाओगे ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“मूड नहीं है । तुम तकल्लुफ में मत पड़ो । सिर्फ बैठ जाओ मेरे सामने ।”
वह बैठ गई ।
“मुझे उम्मीद नहीं थी तुम्हारे घर मिलने की ।” - विमल बोला - “फिर भी दादर से गुजर रहा था इसलिए सोचा, झांकता चलूं ।”
“यह वक्त तो मेरी मिसेज पिन्टो के दरबार में मौजूदगी का होता है ।” - वह बोली - “सिर्फ ‘उन’ दिनों में ही मैं इस वक्त घर पर होती हूं ।”
“किन दिनों में ?”
वह मुस्कराई ।
“ओह !”
“सायन में तुमने जो गुल खिलाया, वो मुझे पसन्द आया । लेकिन तुमने मिसेज पिन्टो को क्यो छोड़ दिया ?”
“मुझसे औरत जात पर हाथ उठाते न बना ।”
“क्या कहने ! यह वो शख्स कह रहा है जो दर्जनों कत्ल कर चुका है ?”
“हां ।”
“यानी कि आज तक तुमने किसी औरत का कत्ल नहीं किया ?”
“किया है । गुनाहों से पिरोई अपनी इस जिन्दगी में जो पहला ही कत्ल मेरे हाथ से हुआ था, वह एक औरत का था ।”
“अच्छा ! उसकी हिम्मत कैसे जुटा पाये तुम ?”
“मैं उसका कत्ल न करता तो वह अपने अपाहिज पति का और अपनी नौजवान सौतेली बेटी का कत्ल कर डालती । एक अपाहिज बाप और मासूम बेटी की जान बचाने के लिए उस वक्त मुझे उस शैतान की बेटी का कत्ल करने में कोई हर्ज नहीं लगा था । वैसे उसी कत्ल से मेरे सर्वनाश की यह हाहाकारी दास्तान शुरू हुई थी । मैं दूसरे का भला करता-करता अपना बेड़ा गर्क कर बैठा था और एक खूनी और फरार अपराधी बन गया था ।”
“कहां की बात है यह ?”
“यहीं की । बम्बई की ।”
“किसका कत्ल किया था तुमने ?”
“लेडी शान्ता गोकुलदास का ।”
“वह कत्ल” - वह नेत्र फैलाकर बोली - “तुमने किया था ?”
“हां ।”
“गोकुलदास एस्टेट के वह नौकर तुम थे जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने लेडी शान्ता गोकुलदास का सच्चे मोतियों का हार चुराने की खातिर उसके सिर में वीनस की भारी मूर्ति दे मारी थी ।”
“हार चुराने के लिए नहीं” - विमल वितृष्णापूर्ण स्वर में बोला - “उसे अपने अपाहिज पति गोकुलदास का खून करने से रोकने के लिए । गोकुलदास की कमसिन बेटी को बास्को नाम के मवाली के बलात्कार और फिर कत्ल से बचाने के लिए ।”
“कमाल है । लोग तो कुछ और ही कहते हैं ।”
“मुझे मालूम है, लोग क्या कहते हैं । लेकिन छोड़ो । मैं यहां अपनी बायोग्राफी डिसकस करने नहीं आया ।”
“तो करो आये हो ?”
“मैं तुमसे कोई मदद हासिल होने की उम्मीद में यहां आया हूं ।”
“कैसी मदद ?”
“देखो,” - विमल आर्द्र स्वर में बोला - “मैं इस वक्त बहुत संकट की घड़ी में हूं । किसी बेगुनाह की जान मेरी करतूतों की वजह से सलीब पर टंगी हुई है । एक ऐसी जान को खतरा है जिसके मुकाबले में अपनी जान की कीमत मैं कुछ भी नहीं समझता ।”
“कौन है वो ?”
विमल ने उसे नीलम के बारे में बताया ।
“खुशकिस्मत है वो ।” - संध्या गहरी सांस लेकर बोली - “बहुत खुशकिस्मत है वो जिसे ऐसा अगाध प्यार करने वाला मर्द मिला । जिसे औरत को जिन्दगी में ऐसा मर्द हासिल हो और क्या चाहिए उसे ?”
विमल खामोश रहा ।
“मुझसे क्या मदद चाहते हो तुम ?”
“देखो” - विमल गम्भीरता से बोला - “कोई फौज तो है नहीं मेरे पास नीलम को छुड़ाने के लिए, जिसे लेकर मैं बखिया के हैडक्वार्टर पर हमला कर दूं । मेरे पास एक ही तरीका है कि मैं उन्हें दिखा सकूं कि नीलम की जान लेकर जो नुकसान ‘कम्पनी’ मेरा कर सकती है, नीलम की जान जाने की नौबत आने से पहले उससे कहीं ज्यादा, कहीं बड़ा, नुकसान मैं ‘कम्पनी’ का कर सकता हूं ।”
“ऐसा कोई नुकसान ‘कम्पनी’ का किया है तुमने ?”
“हां ।”
“क्या किया है ?”
विमल ने उसे सुवेगा के जेकब सर्कल वाले ऑफिस की तबाही और मोटलानी की मौत की दास्तान सुनाई ।
“तुम सुवेगा के” - वह, हैरानी से बोली - “कफ परेड वाले ऑफिस में भी घुस आए हो ?”
“हां ।”
“यह काम तुमने किया, सिर्फ तुमने ?”
“नहीं । मुझे मदद हासिल है । पहले मैं अकेला था लेकिन अब मुझे मदद हासिल है ।”
“बावजूद इसके तुम्हें मेरी मदद भी दरकार है ?”
“हां ।”
“वजह ?”
“देखो । तुम बात को यूं समझो कि मेरे रास्ते में चट्टानें पड़ी है जिन्हें सरकाने में मेरे नये मेहरबान मेरी मदद कर सकते हैं लेकिन वो सभी चट्टानें मेरे और नीलम के बीच में नहीं अड़ी खड़ी । वे सैकड़ों चट्टानें अपने मेहरबानों की मदद से मैं सरकाता चला जाऊंगा तो स्वाभाविक है मैं उस चट्टान तक भी पहुंचूंगा जो मेरे और नीलम के बीच में है लेकिन ऐसा पता नहीं कब होगा ! चट्टान सरकाने के लिए मदद हासिल है मुझे लेकिन मुझे कौन-सा चट्टान सरकाने में फायदा है, यह बात तुमसे मालूम होने की उम्मीद में मैं यहां आया हूं ।”
“ओह !”
“मटके का बाइस लाख रुपया लूटकर या उनके कुछ ओहदेदारों का कत्ल करके मैंने उन्हें नुकसान तो पहुंचाया है लेकिन हालात जाहिर कर रहे हैं कि उस नुकसान से बखिया के एम्पायर को सिर्फ चोट पहुंची है, उससे वह डिगा नहीं है । डिगा होता तो उन्होंने फौरन नीलम को छोड़ दिया होता । इस वक्त जरूरत इस बात की है कि मैं एन कील के सिर पर हथौड़े की चोट जैसा कोई नुकसान उन्हें पहुंचाऊं, तभी वे मेरा खौफ खायेंगे और तभी उन्हें नीलम को पकड़े रखना अपनी मूर्खता लगेगी । ऐसा कोई नुकसान अगर तुम मुझे सुझा सको तो मेरा कल्याण हो जाएगा ।”
वह सोचने लगी ।
विमल धैर्यपूर्ण मुद्रा बनाये उसका मुंह ताकता उसके सामने बैठा रहा ।
“विमल ।” - अन्त में वह बोली - “मदद तो मैं तुम्हारी करना चाहती हूं । दो वजह से करना चाहती हूं । एक तो इसीलिए कि अगर ‘कम्पनी’ का सत्यानाश होगा तो मेरे मृत परिवार की आत्मा को भी शान्ति पहुंचेगी । और दूसरे...”
“दूसरे क्या ?”
“दूसरे पता नहीं ऐसा क्या है तुममें कि तुम्हारी शक्ल देखते ही मेरा अपना दिल करने लगता है कि मैं तुम्हारे किसी काम आऊं, मैं तुम्हारी सारी बलायें अपने सिर ले लूं, मैं यूं तुम्हें अपनी गोद में छुपा लूं जैसे कोई मां अपने बच्चे को छुपा लेती है लेकिन...”
“लेकिन क्या ?”
“लेकिन फिर मेरी दुनियादार अक्ल मुझसे बहसें करने लगती है कि मैं होम करते हाथ जलाने जैसी किस्म का कोई काम क्यों करूं ? तुम्हारी जानकारी के लिए दण्डवते को शक है कि ‘कम्पनी’ को अन्दरूनी बातों की जानकारी तुम्हें मेरी जैसी किसी लड़की से हासिल हुई है । इस बारे में मेरे से सवाल भी किया गया था कि परसों रात कॉल पर मैं कहां गई थी । अब अगर उसे पता लग गया कि मैंने झूठ बोला था कि मैं होटल में सुलेमान साहब के किसी मेहमान के साथ थी तो मेरी शामत आ जायेगी । जोजो मेरी क्या गत बताएगा, यह सोचकर मेरी रूह कांप जाती है ।”
“वही गत नीलम की भी बन सकती है ।” - विमल धीरे से बोला ।
“दुरुस्त । लेकिन उसके हिमायती तो तुम हो जो कि जमीन-आसमान एक कर देने पर उतारू हो । मेरा हिमायती कौन है ?”
“मैं ।”
वह हंसी ।
“जब मुझे कुछ होगा तो तुम्हें खबर भी नहीं लगेगी कि कुछ हो गया है । समुद्र में से जब मेरी लाश निकाली जाएगी तो अखबार में छपी लाश की तस्वीर देखकर भी तुम यही कहोगे कि देखो, संध्या से कितनी शक्ल मिलती है मरने वाली की !”
विमल उठकर खड़ा हो गया ।
“क्या हुआ ?” - संध्या सकपकाई ।
“मेरे संस्कार” - विमल बोला - “मेरा धर्म, मेरा वाहेगुरू, मुझे इस बात की इजाजत नहीं देता कि मैं किसी का बुरा करने में वजह बनूं । अगर मैं तुम्हारा कोई भला नहीं कर सकता तो तुम्हारा कोई बुरा भी मुझे नहीं करना चाहिए । मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हारे ऊपर कोई विपत्ति आए । मैं जाता हूं । समझ लो, मैं यहां आया ही नहीं था ।”
उसने दरवाजे की तरफ कदम बढाया ।
“अरे, सुनो तो !” - संध्या हड़बड़ाकर बोली ।
विमल ठिठका ।
“वापिस आओ ।”
वह घूमा ।
“बैठो ।”
विमल ठिठका खड़ा रहा ।
“सुना नहीं !”
बात संध्या ने ऐसे अधिकारपूर्ण ढंग से कही जैसे उसकी विमल से बरसों की रिश्तेदारी हो ।
विमल बैठ गया ।
“कम्पनी’ से ताल्लुक रखती बातें मैंने तुम्हें स्वेच्छा से बताई थीं ।” - संध्या बोली - “उन्हें बताकर अगर मुझसे कोई गलती हुई है, तो उस गलती को दुरुस्त करने का अब मेरे पास कोई तरीका नहीं है । जो कदम मैं उठा चुकी हूं, उसे अब मैं वापिस नहीं ले सकती । इसलिए जो हो गया, सो हो गया ।”
विमल खामोश रहा ।
संध्या अपने स्थान से उठी और उस सोफे पर विमल के समीप आ बैठी जहां कि वह बैठा हुआ था ।
उसने अपलक विमल की तरफ देखा ।
फिर उसका एक हाथ आगे बढा ।
“न जाने क्यों” - वह उसके बाल संवारती हुई बोली - “मुझे तुम्हारे में अपने उस भाई की झलक दिखाई देती है जो मेरे ही बाप की दुर्दान्तता का शिकार होकर भरी नौजवानी में इस दुनिया से किनारा कर गया था ।”
विमल भी जज्बाती हुए बिना न रह सका ।
“मैं तुम्हें वैसी फिल्मी बहन बनकर तो नहीं दिखा सकती जो अभी अपना आंचल फाड़कर तुम्हें राखी बांध दे या ‘भैया-भैया’ पुकारती तुम्हारे गले से लिपट जाए । उस जज्बाती उम्र से मैं गुजर चुकी हूं और जानती हूं कि ‘भैया’ जैसा कोई एक शब्द, राखी जैसा कोई एक धागा, किसी को मेरा मां-जाया नहीं बना सकता । जो मेरी असलियत है, उसको निगाह में रखते हुए मेरा किसी को भाई कहना उसको गाली देने के समान है ।”
“अगर तुम ऐसा समझती हो तो वह तुम्हारी महानता है । तुम बुरी हो तो मैं तुमसे एक हजार गुणा बुरा हूं । तुमने एक गुनाह किया तो मैंने एक हजार गुनाह किए हैं । जो गुनाह तुमने किया है, उसमें तुमने अपना आपा खराब किया है लेकिन मैंने तो औरों को तबाही और बरबादी के अन्धेरे कुएं में धकेला है । एक रात के लिए अगर तुम किसी के बिस्तर की शोभा बनीं तो तुमने किसी का क्या बिगाड़ा ? तुमने जो बिगाड़ा अपना बिगाड़ा लेकिन अगर मैंने किसी का कत्ल किया तो क्या कभी यह सोचा कि मेरी उस एक करतूत से कितनी जिन्दगियां प्रभावित थीं ? कभी सोचा मैंने कि मेरे हाथों एक शख्स के मर जाने से कोई औरत विधवा हो गई है, कोई बच्चा अनाथ हो गया है, कोई मां बेऔलाद हो गयी है ? कभी सोचा मैंने ? हम सब ‘उसके’ हाथों की कठपुतलियां हैं । वह जैसे चाहता है, हमें नचाता है, जब तक चाहता है हमें नचाता है, वह जब चाहे हमें तोड़-मरोड़कर कूड़े के ढेर में फेंक सकता है । हमारे बेशुमार गुनाहों के बावजूद वह हमें गारत नहीं करता, हमें जहन्नुम की आग में झुलसने के लिए नहीं धकेलता इसकी भी कोई वजह होती है जिसे सिर्फ वही जानता है । बेगुनाह मारा जाता है, गुनहगार सलामत रहता है, ये सब उसी के खेल हैं ।” - विमल एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “तभी तो हमारे धर्मग्रन्थ में लिखा है - आपे साजे, आप रंगे, आपे नदरि करेड ।”
वह खामोश रही ।
“मैं तुम्हारे लिए चाय बनाकर लाती हूं ।” - एकाएक वह उठती हुई बोली ।
इस बार उसने एतराज नहीं किया ।
संध्या वहां से उठकर चली गयी ।
विमल खामोश बैठा प्रतीक्षा करता रहा ।
***
गंगवानी के पेट्रोल पम्प से थोड़ी दूर एक बनती हुई इमारत थी जिसका निर्माण-कार्य उन दिनों किसी वजह से बन्द पड़ा था । उस उजाड इमारत के कम्पाउण्ड के भीतर उसकी चार-दीवारी की ओट में एक पुरानी-सी फियेट कार खड़ी थी । उस कार की ड्राइविंग सीट पर आंखों पर दूरबीन लगाए एक युवक बैठा था ।
दूरबीन का लक्ष्य पेट्रोल पम्प था ।
लगभग बत्तीस वर्षीय उस युवक का नाम तिलकराज था ।
वह पिछले पांच दिनों से उस पेट्रोल पम्प को वाच कर रहा था ।
वह बड़े सब्र का काम था लेकिन तिलकराज में सब्र की कमी नहीं थी ।
हकीकत में सब्र ही उसकी विशेषता थी और उसकी सुरक्षा की गारण्टी थी ।
हड़बडी में कोई काम करना तो उसने सीखा ही नहीं था ।
हालात को ठीक तरह से ठोक-बजाकर परख चुकने से पहले वह कभी कोई कदम नहीं उठाता था ।
इसी वजह से चोरी और डकैती के चौबीस कारनामों को अंजाम दे चुकने के बाद भी वह आज तक कभी पकड़ा नहीं गया था ।
पकड़ा जाना तो दूर, किसी को कभी यह शक भी नहीं हुआ था कि वह एक सम्भ्रान्त व्यक्ति नहीं था ।
चोरी-चकारी के धन्धे में उसकी कार्य-प्रणाली की अपनी बानगी थी ।
चौबीस में से बीस बार उसने चोर को मोर बनकर दिखाया था ।
चोरी या डकैती का कोई दुस्साहसपूर्ण काम जब कोई दूसरा कर चुका होता था तो वह बड़ी चतुराई और बड़ी नफासत से उससे उसका माल झटक लेता था ।
ऐसी ही किसी कोशिश में एक बार पूरे तीन महीने वह सुवेगा इण्टरनेशनल के कफ परेड वाले आफिस की निगरानी करता रहा था । उसे कहीं से भनक लगी थी कि कोई वहां का वाल्ट खोलकर बखिया की फेमस ‘लिटल ब्लैक बुक’ हथियाने की फिराक में था ।
वहां का वाल्ट खोलना असम्भव काम बताया जाता था ।
लेकिन अगर कोई वाल्ट खोलने के असम्भव काम को अंजाम दे सकता था तो उससे ‘लिटल ब्लैक बुक’ झटक लेने के आसान काम को अंजाम देने की वह कोशिश कर सकता था ।
लेकिन लम्बे इन्तजार में लगी उसकी मेहनत बेकार गयी थी ।
वाल्ट खोलने की कोशिश करने कोई नहीं आया था ।
अब अपने सब्र का नया इम्तहान वह उस पेट्रोल पम्प की निगरानी करते दे रहा था ।
पेट्रोल पम्प पेट्रोल पम्प होने के अलावा कुछ और भी था; यह बात इत्तफाक से ही उसकी जानकारी में आई थी ।
कोई एक हफ्ता पहले अपनी कार में पेट्रोल डलवाने की नीयत से वह उस पम्प पर पहुंचा था ।
पम्प पर कोई पेट्रोल डालने वाला मौजूद नहीं था ।
भीतर ऑफिस में एक भारी भरकम आदमी एक कुर्सी पर बैठा था । वह बीड़ी पी रहा था । उसने अपनी कुर्सी की पीठ को एक दीवार के साथ टिकाकर उसे तिरछा किया हुआ था और अपने पांव मेज पर रखे हुए था ।
उसने तिलकराज की कार को देखकर भी अनदेखा कर दिया था ।
तिलकराज कार से निकला और ऑफिस के भीतर दाखिल हुआ ।
“पेट्रोल डालो, भई !” - उसने तनिक झुंझलाये स्वर में कहा ।
बीड़ी पीते आदमी ने हड़बड़ाकर पांव नीचे किए और बोला - “एक मिनट ठहरो । अटैन्डर खाना खाने गया है और मालिक टॉयलेट में है ।”
“और कोई नहीं है यहां ?”
“नहीं ।”
“तुम पेट्रोल नहीं डाल सकते ?”
“नहीं । मुझे पम्प चलाना नहीं आता ।”
“तुम कौन हो ?”
उसने तिलकराज के प्रश्न की ओर ध्यान नहीं दिया ।
“गंगवानी !” - वह उच्च स्वर में बोला - “गंगवानी !”
पिछवाड़े का एक दरवाजा खुला और उसमें से एक दुबला-पतला आदमी बाहर निकला ।
बीड़ी पीते व्यक्ति ने तिलकराज की तरफ इशारा कर दिया ।
“पेट्रोल ।” - तिलकराज बोला - “दस लीटर ।”
“आओ ।” - गंगवानी बोला ।
“मैं एक फोन कर सकता हूं ?”
“फोन” - उत्तर बीड़ी पीते व्यक्ति ने दिया - “खराब है ।”
“ओह !”
वह गंगवानी के साथ बाहर आ गया ।
उसने पेट्रोल डलवाया और उसके दाम चुकता किेये ।
तभी भीतर फोन की घण्टी बजी ।
गंगवानी तुरन्त हड़बड़ाकर भीतर को लपका ।
तब तक भीतर मौजूद आदमी फोन उठा चुका था ।
वह बड़े उतावले ढंग से गंगवानी को देखता हुआ ऑफिस में मौजूद सेफ की तरफ इशारा कर रहा था ।
तिलकराज जानबूझकर कार को स्टार्ट करने में देर लगाने लगा ।
गंगवानी ने सेफ खोली ।
दूसरा व्यक्ति तब तक रिसीवर वापिस क्रेडिल पर पटक चुका था । टेलीफोन मुश्किल से दो सैकेण्ड उसके हाथ में रहा था ।
गंगवानी ने सेफ से नोटों की दो मोटी-मोटी गड्डियां निकालकर दूसरे व्यक्ति को सौंपीं । दूसरा व्यक्ति तुरन्त ऑफिस से बाहर निकला और सड़क के पार भागा ।
सड़क के पार रेसकोर्स था ।
पलक झपकते तिलकराज सारा माजरा समझ गया ।
अगले दो दिन उसने बम्बई के अण्डरवर्ल्ड में पम्प की बाबत बहुत ढंकी-छुपी पूछताछ में गुजारे ।
किसी को कुछ मालूम न था ।
लेकिन तिलकराज ने जो कुछ इत्तफाकिया अपनी आंखों से देख लिया था, वह उसे बहुत उम्मीद अफजाह लग रहा था ।
फिर अगले पूरे पांच दिन उसने पम्प की निगरानी में सर्फ कर दिए ।
उन पांच दिनों मे उसने बखूबी यह अन्दाजा लगा लिया कि
- पम्प के आफिस में मौजूद सेफ में एक मुश्त लाखों रुपया मौजूद होता था ।
- वहां सुरक्षा का कोई अतिरिक्त इन्तजाम नहीं था ।
- पम्प पर दो अटैण्डर थे लेकिन दोनों इकट्ठे कभी वहां मौजूद नहीं होते थे । एक की ड्यूटी खत्म होने पर ही दूसरा वहां पहुंचता था ।
- लंच के लिए अटैण्डर करीब के एक ढाबे में जाता था । उसकी गैरहाजिरी में पम्प का मालिक गंगवानी खुद ग्राहकों को अटैण्ड करता था ।
- उस पम्प की ग्राहकी बहुत सीमित थी ।
- बीड़ी पीता मोटा आदमी उतना ही अरसा वहां मौजूद होता था जितना अरसा वहां घोड़े दौड़ते थे ।
- शाम को एक बढिया कार पर बैठकर एक आदमी वहां पहुंचता था । तब उसकी मौजूदगी में सेफ जरूर खुलती थी ।
यह इत्तफाक ही था कि तिलकराज उस आदमी को पहचानता था ।
वह जानता था कि वह बखिया का आदमी था ।
यानी कि पम्प का वह सैट-अप भी काले पहाड़ के ही बेशुमार धन्धों में से किसी धन्धे की एक ब्रांच थी ।
काम आसान था ।
लेकिन काम बखिया के निजाम पर चोट हो सकता था इसलिए अतिरिक्त सावधानी बरतने की नीयत से तिलकराज उसकी निगरानी में पांच दिन लगा चुका था ।
यहां का माल लूटने में कामयाब हो जाने के बाद बखिया के कहर का रुख किसी और तरफ मोड़ने की तरकीब भी उसने सोची हुई थी ।
उन दिनों किस कदर सारा बम्बई शहर मशहूर इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल के आतंक से थर्रा रहा था, बम्बई के अण्डरवर्ल्ड में यह बात तिलकराज समेत किसी से छुपी हुई नहीं थी । सोहल के काले पहाड़ के खिलाफ छेड़े जेहाद का नजारा हर कोई सांस रोके कर रहा था । तिलकराज इतना नासमझ नहीं था कि इतनी मामूली-सी बात न समझता कि बखिया की खिलाफत में उठे किसी भी कदम के लिए उन दिनों सोहल को, सिर्फ सोहल को, जिम्मेदार करार दिया जा सकता था ।
यह तिलकराज के लिए भारी फायदे की सिचुएशन थी ।
आज उसने झपट्टा मारने का फैसला किया हुआ था ।
जिस फियेट पर वह सवार था, वह उसने पांच दिन पहले ही एक फर्जी नाम से खरीदी थी और उसकी नम्बर-प्लेटों पर लिखा रजिस्ट्रेशन नम्बर फर्जी था । काम हो जाने के बाद उसका इरादा उस कार को समुद्र में डुबो देने का था ।
सभी उसने अटैण्डर को वहां से रवाना होते देखा ।
वह निश्चय ही लंच के लिए जा रहा था ।
हमेशा वह उसी वक्त जाता था और आधे घण्टे से पहले लौटकर नहीं आता था ।
उसने दूरबीन आंखों पर से हटाकर अपनी गोद में रख ली, अपने पहलू में रखा एक बैग खोला और उसमें से पहले से ही तैयारशुदा नकली दाढी-मूंछ निकाल लीं । रियर व्यू मिरर में देखते हुए बड़ी फुर्ती से दाढी-मूंछ उसने अपने चेहरे पर चिपकाई । उसने अपने माथे पर एक फिफ्टी बांधी और फिर पहले से ही बांधी हुई पगड़ी अपने सिर पर टिका ली । उसने एक आखिरी निगाह रियर व्यू मिरर में से अपनी तरफ झांकते सिख नौजवान पर डाली और सन्तुष्टि में सिर हिलाया । बैग में से ही उसने एक रिवाल्वर बरामद की और उसे अपने कोट की दायीं तरफ की बाहरी जेब में डाल लिया ।
दूरबीन उसने फिर आंखों पर लगा ली ।
अब उसे इन्तजार था अटैण्डर की गैरहाजिरी में टेलीफोन की घण्टी बजने का ।
टेलीफोन आने पर सेफ जरूर खुलती थी और उस वक्त झपट्टा मारने पर वह सेफ खुद खोलने या उसे जबरन खुलवाने की जहमत से बच सकता था । वैसे भी दिन-दहाड़े ऐसी कोई कोशिश जानलेवा साबित हो सकती थी । वह वक्त खोने वाला काम होता और उस दौरान वहां कोई ग्राहक भी पहुंच सकता था । इसके विपरीत खुली सेफ में से माल झपटने का काम आनन-फानन हो सकता था ।
दस मिनट गुजर गए ।
हर क्षण वह उम्मीद कर रहा था कि घण्टी बजी कि बजी ।
और पांच मिनट गुजर गए ।
उत्कण्ठा में तिलकराज के दिल की धड़कन तेज होने लगी । धड़कन की ताल पर उसकी कनपटियों में खून बजने लगा ।
पांच मिनट और गुजर गए ।
वह बेचैनी से पहलू बदलने लगा ।
कहीं आज का दिन जाया ही तो नहीं जाने वाला था ?
तभी एकाएक उसने गंगवानी को फोन की तरफ हाथ बढाते देखा ।
उसने तुरन्त इंजन स्टार्ट किया ।
उसने कार को कम्पाउण्ड से बाहर को दौड़ा दिया ।
उसकी निगाह हर क्षण पम्प पर थी ।
उसने गंगवानी को रिसीवर भारी-भरकम आदमी को थमाते देखा ।
जिस वक्त उसने कार को पम्प के ऑफिस के सामने ले जाकर रोका, उस वक्त गंगवानी सेफ खोल रहा था ।
राहुल राव ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया था और अपने पंजों पर गेंद की तरह उछलता हुआ कह रहा था - “शाने पंजाब पर पचास ! शाने पंजाब पर पचास !”
सेफ के भीतर झुका गंगवानी नोट गिन रहा था जबकि हाथ में रिवॉल्वर लिए तिलकराज ने ऑफिस का दरवाजा ठेलकर भीतर कदम रखा ।
“सेफ से परे हट जाओ ।” - वह सांप की तरह फुंफकारा - “उसका दरवाजा बन्द करने की कोशिश की तो तुम्हारी सांस बन्द हो जाएगी ।”
दोनों चिहुंककर वापिस घूमे ।
अपने सामने खड़े सिख नौजवान की सूरत से भी पहले उन्हें उसके हाथ में थमी खतरनाक रिवॉल्वर दिखाई दी ।
गंगवानी का दुबला-पतला शरीर पत्ते की तरह कांपने लगा । उसके हाथ में थमे नोट उंगलियों में से फिसलकरक फर्श पर जा गिरे । वह खुली सेफ से परे सरकाने लगा ।
“गंगवानी ! दरवाजा बन्द कर दे !” - राहुल राव विक्षिप्तों की तरह चिल्लाया - “सेफ बन्द कर ! सेफ बन्द कर !”
तिलकराज ने एक कदम आगे बढाया । फिर बिजली की तरह उसका रिवॉल्वर वाला हाथ राहुल राव की तरफ घूमा और रिवॉल्वर की पक्के लोहे की मजबूत नाल उसकी बाई आंख के नीचे उसके गाल की हडडी से टकराई । उस एक ही प्रहार ने उसके कसबल निकाल दिए । उसके घुटने मुड़े और फिर वह रेत उसके कसबल निकाल दिए । उसके घुटने मुड़े और फिर वह रेत के बोरे की तरह भरभराकर फर्श पर ढेर हो गया । उसे अपनी आंखों के आगे गहरे लाल रंग का पर्दा-सा पड़ता मालूम हो रहा था । उस पर्दे की धुंधलाहट में से ही उसने सिख नौजवान की रिवॉल्वर का प्रहार गंगवानी की नाजुक खोपड़ी पर पड़ते देखा ।
गंगवानी लहराकर उसकी बगल में आकर गिरा ।
“जो अपने सिर में सुराख बना देखना चाहता हो” - तिलकराज कहर-भरे स्वर में बोला - “वही सिर उठाए ।”
दोनों में से किसी की फर्श पर से हिलने की हिम्मत न हुई । तिलकराज सेफ में से नोटों की गड्डियां निकाल-निकालकर अपने हाथ में थामे बैग में भरने लगा ।
आधे मिनट में सेफ के सारे नोट बैग सें भर गए ।
“क... कौन हो तुम ?” - राहुल राव कम्पित स्वर में बोला ।
“सोहल !” - तिलकराज चेहरे पर एक कुटिल मुस्कराहट आयी ।
“सोहल !” - राहुल राव चिहुंककर बोला ।
“सरदार सुरेन्द्रसिह सोहल !” - तिलकराज बढे नाटकीय स्वर में बोला - “नाम याद रखना ।”
“सोहल !” - राहुल राव यूं होंठों में बुदबुदाने लगा जैसे जो उसने सुना था, उस पर उसे विश्वास न आ रहा हो - “सोहल ! सोहल !”
“वही ।” - तिलकराज बोला - “याद रखना नाम । भूल न जाना ।”
“सोहल ! सोहल !” - राहुल राव के मुंह से यूं निकल रहा था जैसे रिकॉर्ड की सुई अटक गयी हो ।
“शाबाश !” - तिलकराज बोला - “यूं ही सोहल-सोहल भजते रहो । लेकिन सिर उठाने की कोशिश न करना । सिर उठा तो मैं खिड़की में से गोली चला दूंगा । समझ गए तुम दोनों ।”
कोई कुछ न बोला ।
फिर वह लपककर वहां से बाहर निकला, बाहर खड़ी फियेट कार पर सवार हुआ और अगले ही क्षण फियेट यह जा वह जा ।
पीछे गंगवानी स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह फर्श पर से उठा और छंलाग मारकर वहां से बाहर निकल गया ।
एक मिनट बाद वह लड़खड़ाता हुआ वापिस आया और उठने का उपक्रम करते हुए भारी-भरकम राहुल राव से आकर टकराया ।
“एम आर ए 4472 ।” - गंगवानी बोला - “फियेट का नम्बर एन आर ए 4472 था, साईं । वड़ी, रास्ता छोड़ो, नीं । मैं फोन करता हूं ।”
“फोन !” - राहुल राव होंठों में बुदबुदाया - “किसे ?”
“वड़ी पुलिस को । और किसे ?”
“नहीं नहीं !” - राहुल राव एकाएक आतंकित भाव से बोला ।
“क्या नहीं नहीं ? - गंगवानी हैरानी से बोला ।
“पुलिस को फोन नहीं करने का है ।”
“साईं, तुम्हारी अक्कल तो खराब नहीं ? वड़ी पुलिस को फोन नहीं करना तो वो कर्मामारा डाकू पक्कड़ा कैसे जाएगा नी ?”
“अरे मूर्ख !” - राहुल राव झुंझलाए स्वर में बोला - “हम पुलिस को फोन नहीं कर सकते । सेफ में मौजूद रुपये की हम कोई सफाई जो नहीं दे सकते ।”
“ओह !” - गंगवानी के मुंह से निकला - “फिर तो वह डाकू का पुटड़ा साफ डकार गया बीस लाख रुपया ।”
“गंगवानी !” - राहुल राव बड़े त्रस्त भाव से बोला - “मैं ‘कम्पनी’ में मामा का फोन करने लगा हूं । ‘कम्पनी’ को हालात की खबर देना जरूरी है । गंगवानी, तम्हें इस बात की तसदीक करनी होगी कि हालात मेरे काबू से बाहर थे । ठीक ? ‘कम्पनी’ का रुपया बचाने के लिए मैं कुछ नहीं कर सकता था । ठीक ? तुम खुद गवाह हो मेरी लाचारी के । ठीक ?”
“ठीक ।” - गंगवानी अनिश्चयपूर्ण स्वर में बोला ।
राहुल राव कांपती उंगलियों से कम्पनी के सिपहसालार दण्डवते का नम्बर डायल करने लगा ।
दूसरी तरफ घण्टी बजाने लगी ।
“अगर ‘शाने पंजाब’ रेस में जीत गया तो ?” - सम्पर्क स्थापित होने का इन्तजार करता हुआ राहुल राव मन्त्रमुग्ध स्वर में बोला ।
“मतलब ?” - गंगवानी उलझनपूर्ण स्वर में बोला ।
“उस पर एक पर बाहर का दांव था ।”
“झूलेलाल !” - गंगवानी बोला - “छः लाख रुपया और मिट्टी ।”
दूसरी तरफ घण्टी बजती रही, बजती रही ।