करीमगंज ।



उपनगरीय इलाके विकासपुरी में पुलिस स्टेशन में सादा लिबास वाले दोनों पुलिस अफसरों की कड़ी निगाहें युवक के चेहरे पर जमी थीं ।



–"तुम राकेश मोहन हो ?" ऊँचे कद वाले ने कठोर स्वर में पूछा ।



युवक ने बेचैनी से कुर्सी पर पहलू बदला ।



–"हां !"



–"ग्रे कलर की वो बेंटले कार तुम्हारी है ?"



–"हां, लेकिन...!"



–"शटअप !" उसने अपना परिचय पत्र खोलकर राकेश मोहन के चेहरे के सामने हिलाया–"आयम निरंजन सिंह, इंसपेक्टर क्राइम ब्रांच ऑफ पुलिस !"



हैरान–परेशान राकेश मोहन चुप रहा ।



–"इसका मतलब जानते हो ?" सिंह ने पूछा ।



–"किसका ?"



–"क्राइम ब्रांच का ?"



–"नहीं ।"



–"जान जाओगे । मेरा साथी भी क्राइम ब्रांच से है सब इंसपेक्टर मनोहर लाल । एक बार जो मुज़रिम हमारे हाथ पड़ जाता है वह या तो जुर्म से तौबा कर लेता है या फिर ऊपर वाले से एक ही दुआ करता है–दोबारा हमारे सामने न पड़े ।"



एस० आई० सर्द ढंग से मुस्करा दिया ।



राकेश उठने लगा ।



सिंह ने आगे झुककर उसे वापस कुर्सी में धकेल दिया ।



–"अभी नहीं, लड़के ! उस ग्रे बेंटले के मलिक तुम्ही हो...?"



–"मैंने बताया तो था, हां...!"



–"जिसका नम्बर डी० एस० 1567 है ?"



–"हां, मेरी ही कार है । तुम इसे चोरी की समझ रहे हो ?"



–"नहीं ।"



–"तो फिर बार–बार क्यों पूछ रहे हो ?"



–"सवाल मत करो, जवाब दो । तुम इसी कार में आज सुबह शहर में दाखिल हुये थे ?"



–"हां !"



–"बहुत तेज दिमाग है ।" सिंह ने अपने एस० आई० की ओर देखा–"होना भी चाहिये । आखिरकार इम्पोर्टेड कार में विदेश की सैर करके लौटा है ।" फिर राकेश मोहन से मुखातिब हुआ–"तुम अपनी बेंटले लेकर छुट्टियाँ मनाने गये थे ?"



–"हां ।"



–"कहां ?"



–"नेपाल ! लेकिन मैं...।"



–"नेपाल में कहां ?"



–"काठमाण्डू !"



–"वहां ठहरे थे या वहां से गुजरे थे ?"



–"दो रातें जाती बार वहां ठहरा था और एक रात लौटती दफा ।"



–"खूब ऐश की ?"



राकेश ने जवाब नहीं दिया ।



–"कहां जाने के लिये काठमाण्डू से गुजरे थे और वापस कहां से लौटे ?"



राकेश को गुस्सा आ गया ।



–"तुम्हारे सवालों का जवाब देना जरूरी है ?"



–"हां ।"



–"क्यों ।"



–"अगर जवाब नहीं दोगे तो तुम्हारे हलक में हाथ घुसेड़कर मुझे जवाब बाहर निकालना पड़ेगा ।"



"लेकिन क्यों ? आखिर मैंने किया क्या है ?"



–"यह भी तुम्हीं बताओगे ।"



–"नाराज़ मत होओ, लड़के ! जो पूछा जाये उसका सीधा और सही जवाब देने में ही तुम्हारी भलाई है ।" मनोहर लाल पहली बार बोला । उसका लहजा बर्फ–सा सर्द था–"हमें सख्ती करने पर मजबूर मत करो...नाऊ बी ए गुड बॉय एण्ड आन्सर दी क्वेश्च्यन्स ।"



–"नेपाल में कहां ?" सिंह ने अपना सवाल दोहराया ।



–"बीरगंज !"



–"गये किस रास्ते से थे ?"



–"नेपालगंज से ।"



–"वापस कहां से लौटे ?"



–"उधर से ही ।"



–"बीरगंज में क्या किया ?"



–"वही जो टूरिस्ट करते हैं ।"



"सैर–सपाटा तफरीह और अय्याशी ?"



–"हां, वैसा ही कुछ ।"



–"वापस लौटती बार नेपालगंज में ठहरे थे ?"



–"सिर्फ एक रात...कम से कम इतना तो बता दो मुझे यहां क्यों लाया गया है ? मैंने क्या किया है ? मुझ से क्यों यह पूछताछ की जा रही है ?"



–"तुम वाकई नहीं जानते ?"



–नहीं, बिल्कुल नहीं । अगर तुम लोग मुझ पर चार्ज नहीं लगा रहे हो तो मुझे जाने दो । वरना चार्ज लगाओ...मैं फोन करके अपने वकील को बुलाऊंगा ।"



–"तुम्हारा वकील करीमगंज में है ?"



–"हाँ ।"



–"तुम नेपालगंज में एक रात ठहरे थे ?"



–"बताया तो है ।"



–"कहां ? होटल में ?"



–"हां !" राकेश ने होटल का नाम बता दिया ।



–"और मेरा ख्याल है, तुमने कार किसी गैराज में भेज दी थी ?"



"तुम्हें कैसे पता...'हां, हैडलाइट्स में कुछ नुक्स था ।"



––"तुमने पूरी रात कार गैराज में रखी थी ?"



–"हाँ ।"



–इतनी देर तक...?"



–"हां, लाइटें ठीक करायी थीं ।"



–"बस ?"



–"हां, और क्या करना था ?"



–"खेप उठानी थी ।"



–"खेप ? कैसी खेप ?"



–"छोड़ो, यह बताओ नेपालगंज में तुमने रात कैसे गुजारी ?"



–"बेचैनी से !"



–"तुम साबित कर सकते हो कहां थे ?"



–"हां ।"



–"कैसे ?"



–"मेरे साथ एक लड़की थी ।"



–"वह रात भर साथ रही ?"



–"हां ।"



–"उस लड़की को लाये कहां से–बीरगंज से ?"



–"नहीं !"



–"काठमाण्डू से ?"



–"नहीं ! वह नेपालगंज की ही थी ।"



–"रण्डी थी ?"



–"बस ऐसे ही एक लड़की थी ।"



–"पेशा करने वाली ? बाजारू ?"



–"नहीं !"



–"महंगी कॉलगर्ल ?"



–"हां !"



–"तुम्हें कैसे मिली ?"



–"एक आदमी ने उसका फोन नम्बर दिया था ।"



–"वहीं ?"



–"नहीं, बीरगंज में ।"



–"आदमी कौन था ?"



–"कोई टूरिस्ट ही था । उसने लड़की की काफी तारीफ की थी । मैंने उसे बताया, नेपालगंज जा रहा था तो उसने फोन नम्बर दे दिया ।"



–"किसने ? कौन था वह ?"



–"बताया तो है, कोई टूरिस्ट था । बार में मिला था ।"



–"और तुम उस लड़की के साथ रहे ?"



–"हां !"



–"पूरी रात ?"



–"हां !"



–"वह तुम्हारी इस बात की पुष्टि कर देगी ?"



–"पता नहीं ! उम्मीद तो है ।"



–"और तुमने हैडलाइटें ठीक कराने के लिये कार गैराज में छोड़ दी थी ?"



–"हां !"



–"इस काम की पेमेंट भी की होगी ?"



–"वो तो करनी ही थी ।"



–"गैराज की रसीद है तुम्हारे पास ?"



–"नहीं, अगली सुबह मैंने नकद पेमेंट की थी ।"



–"कौन–से गैराज में ?"



–"नाम मुझे याद नहीं । होटल के पास ही था । बेकार बाल की खाल निकालने से कुछ नहीं होगा । अगर मुझ पर यकीन नहीं है तो मैं तुम्हें वहां ले जा सकता हूं ।"



–"बको मत ! तुम जानते हो, इस काम के लिये पुलिस वहां नहीं जायेगी ।"



–"यानि तुम मुझ पर कोई चार्ज जरूर लगाओगे ?"



–"चार्ज तो तुम पर लगेगा ही ।"



–"क्या ? नेपाल में कॉलगर्ल के साथ रात गुजारने का ?"



–"नहीं, उस बेंटले को यहां लाने का जिसके दोहरे फर्श में जहर भरा है ।"



–"दोहरा फर्श ? जहर ?"



–"उस कार में कम से कम सौ किलो हेरोइन छिपाकर भरी गयी है ।"



राकेश मोहन मानों आसमान से गिरा ।



–"क्या ?"



–"हां, उस कार के दोहरे फर्श में सौ किलो हेरोइन छिपाकर लायी गयी है ।"



–"हेरोइन ? तुम पागल हो ।"



–"कार तुम्हारी है । तुम्हारे पास ही रही है और उसमें हेरोइन भरी है । किसका माल है वो ?"



राकेश मोहन का चेहरा सफेद पड़ गया था । उसे पसीने छूट रहे थे ।



–"म...मुझे नहीं मालूम । मैं कुछ नहीं जानता ।"



–"किसने भेजा है ?"



–"मुझे नहीं पता ?"



–"यहां किसे डिलीवर करना था ?"



–"में इस बारे में कुछ नहीं जानता ।"



–"क्या कहा गया था तुझे ? बदले में पैसा मिलेगा ?"



–"मुझसे किसी ने कुछ नहीं कहा । हेरोइन के बारे में कुछ नहीं जानता...मैं सच कह रहा हूं..."म...मेरा यकीन करो ।"



–"मुझे तुम पर यकीन है, राकेश ! लेकिन असलियत यह है तुम सौ किलो हेरोइन के साथ पकड़े गये हो । इन्टरनेशनल मार्केट में इसकी कीमत सौ करोड़ रुपये से कम नहीं है । यह माल तुम्हारा नहीं हो सकता । तुम या तो पागल हो या फिर मज़बूरन इसे यहां लेकर आये हो । बेहतरी इसी में है, हमारे साथ सहयोग करो । सब कुछ साफ–साफ बता दो । इस काम के लिये किसने तुम्हें पैसा दिया ? किसने यह सारा इंतजाम किया ?"



–"किसी ने कोई पैसा नहीं दिया । कोई इंतजाम नहीं किया । में छुट्टियां मनाने गया था । वही करके लौटा हूं ।"



–"मैं तुम्हें अंधा या बेवकूफ़ नजर आता हूं ?"



–"नहीं ।"



–"पुलिस इंसपेक्टर नहीं घसियारा लगता हूं ?"



–"नहीं ।"



–"तो फिर सच्चाई कबूल क्यों नहीं करते ?"



–"मैंने सच ही कहा है । इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता ।"



–"यह राग अलापना बंद करो ।"



–"लेकिन यह सच है ।"



इंसपेक्टर का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था ।



–"सच्चाई क्या है, मैं बताता हूं । तुम्हें मोटा पैसा दिया गया था–कार लेकर नेपालगंज जाने और वहां खूब ऐश करने के लिये । तुमने नेपालगंज से काठमाण्डू होते हुये बीरगंज जाना था और इसी तरह वापस लौटना था । तुमसे कहा गया था हैडलाइट में थोड़ा नुक्स पैदा करो और फिर उस नुक्स को दूर कराने के लिये कार एक खास गैराज में छोड़ दो । तुम्हें एक फोन नम्बर भी बताया गया । वहां फोन करने पर एक पेशेवर लड़की तुम्हें मुहैया करा दी गयी । तुम सारी रात उस लड़की के साथ मौज–मस्ती करते रहे और गैराज में तुम्हारी कार में फर्श को दोहरा करके बीच में हेरोइन छिपा दी गयी...!"



–"नहीं ।"



–"लेकिन सच्चाई यही है । तुम महज एक 'कूरियर' हो । इस काम के लिये किसने तुम्हें पैसा दिया था ?"



–"मुझे किसी ने कोई पैसा नहीं दिया ।"



–"बको मत…।"



–"मैं सच कह रहा हूं…यकीन करो, मैं वाकई कुछ नहीं जानता…मुझे फंसाया गया है…अपने वकील को बुलाना चाहता हूँ ।"



–"वह करीमगंज में है ? "



–"हां ।"



–"हम तुम्हें वहीं ले चलते हैं । शायद रास्ते में तुम्हारा इरादा बदल जाये ओर तुम बता दो पैसा देने वाला कौन है, कहां रहता है ।"



–"मैं कह चुका हूँ...।"



–"शटअप !" इंसपेक्टर दहाड़ा ।



–"मैं अपने वकील को बुलाना चाहता हूं ।"



–"अगर तुमने अपना यह राग बदलकर सही रिकार्ड चालू नहीं किया तो तुम्हें वकील नहीं, डॉक्टर की जरूरत पड़ेगी ।" इंसपेक्टर ने उसे गिरेहबान से पकड़कर कुर्सी से खींचा । दोनों हाथ पीठ के पीछे ले जाकर उनमें हथकड़ियां लगा दी । उसे दरवाजे की ओर धकेलता हुआ बोला–"मनोहर लाल कार लाओ । इस हरामजादे को पुलिस हैडक्वार्टर्स ले जाना है ।"