4 सितम्बर, मंगलवार

शहर से बाहरी क्षेत्र की तरफ तेजी से बढ़ती हुई अनाधिकृत कॉलोनियों का हुजूम कुकुरमुत्ते की तरह उभर आया था । हो भी क्यों ना । दिल्ली-चंडीगढ़ हाईवे को जोड़ती हुई सड़क इस शहर से अब थोड़ी ही दूर से गुजरती थी । जब से सरकार ने इस जगह को टू-वे सड़क की मदद से मेन हाईवे से जोड़ दिया तो धीरे-धीरे दिल्ली से दूर लेकिन पहुँच में आसान जगह के रूप में लोगों के मन को भाने लगा था प्रेम नगर ।

अब तो जमीन के भाव इन कॉलोनियों में कुछ स्थिर हो गए हैं, पर सन दो हजार चौदह से पहले जमीनों के भाव आसमान पर पहुँचे हुए थे । तब यहाँ के प्रॉपर्टी डीलर बहुत मजे में थे । उनकी हर रोज पार्टियाँ होती थीं, कबाब के साथ शराब-नोशी की बयार बहती, जिसमें नए-नए पूंजीपति बने अमीरज़ादे अपनी अचानक रोशन हुई किस्मत के जेरे-साए दिन-पर-दिन मदहोश हुए जाते थे ।

इस कालोनी में निर्माण कार्य अब पूरे शबाब पर है । हर हफ्ते कोई-न-कोई नई बिल्डिंग धरती से सिर उठाने लगती है, मानो अपने से पहले बनी बिल्डिंग का मान-मर्दन करने के लिए ही अपनी नींव से उठ रही हो । अब तो इस कॉलोनी के पास कई निर्माण कंपनियाँ अपने दफ्तर खोलकर ऊँची-ऊँची हाउसिंग सोसाइटी का निर्माण शुरू कर चुकी थीं ।

प्रेम नगर के बीचोबीच कमेटी द्वारा बनाये गए पार्क की वजह से आसपास के मकानों की मार्केट वैल्यू काफी बढ़ गई थी । जब मकान पर मकान बनने लगे तो जाहिर है कि जनसंख्या बढ़ी और आबादी बढ़ने के बाद वहाँ का लोकल बाजार भी अब फलने-फूलने लगा था । धीरे-धीरे छोटी-छोटी दुकानें बड़े-बड़े शोरूम में और बड़े शोरूम विशालकाय शॉपिंग माल में बदलने लगे थे । जो गलियाँ पहले खाली-खाली लगती थीं, अब वहाँ एक नई रवानी मचलने लगी । जब बाजार सजे तो बाजार और भी ज्यादा सुंदर लगने लगे । सुंदर बाजार में अगर सुंदरियाँ न हो, तो लानत है ऐसी मार्केट पर ।

इन हालातों पर एक बात याद आती है – ‘जहाँ फूल, वहाँ भंवरे ।’

ताजा-ताजा जवान हुए लड़के बाजार में पूरे जोश के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने लगे । जोश-ए-जवानी अपना होश खोने लगी थी । भंवरे अब भंवरे ही रहते तो ठीक था, पर वह तो मक्खियों की तरह भिनभिनाने लगे । औरतों और लड़कियों के प्रति अपराध और छेड़छाड़ की घटनाएँ बढ़ने लगी । बाजार में लड़कियों और औरतों का निकलना धीरे-धीरे मुश्किल होने लगा । जो चीज़ पहले सब लोगों को नियामत लगती थी, अब वह सभी को अलामत लगने लगी ।

इस सुबह और शाम की बढ़ती हुई छेड़खानी की घटनाओं से तंग आकर इलाके के कुछ लोग इकट्ठा हुए । सब लोग अपनी परेशानी को लेकर इलाके के पार्षद से मिले ।

पार्षद जी का नाम था सम्पूर्ण सिंह, जिसने वार्ड में शायद ही कोई काम कभी पूरा किया होगा, पर इस काम में वह कामयाब रहा और उसकी कार्यवाही की वजह से इलाके में चौक पर, यानी चक्कर रोड पर रोजाना एक पीसीआर खड़ी रहने लगी ।

पुलिस अब हर रोज मार्केट में राउंड लगाती रहती और कुछ दिनों के बाद इसका कुछ-कुछ असर पड़ता दिखाई दिया । पर फिर भी कोई-न-कोई सिरफिरा मजनूं उस मार्केट में मिल ही जाता था । तब पुलिस की पीसीआर वैन में बोर हो रहे असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर रोशन वर्मा को अपने हवलदार कदम सिंह और सिपाही कृष्ण कुमार के साथ कुछ काम मिल जाता था । पकड़े गए इश्कबाज अपने बाप की कमाई में हुई बेजा बरकत का मजा मोटरसाइकिल पर तीन-तीन जने सवार होकर लेते हुए पाए जाते थे । रोशन वर्मा के लिए इन बरसाती मजनुओं से निपटना अब रोजमर्रा के एक रूटीन के काम की तरह होता जा रहा था । कुछ को धमका कर, कुछ की डंडा परेड कर, कइयों का चालान और किसी को रहमत दिखाकर और किसी की जेब हल्की करके ये रोजमर्रा के किस्से निपटाने में अब उसे भी बोरियत होने लगी थी ।

एक दिन ऐसी ही एक रूटीन की गश्त से फारिग होकर रोशन वर्मा रात को साढ़े ग्यारह बजे घर की तरफ जाने के लिए अपनी हीरो स्पलेंडर लेकर चौकी से निकलने ही वाला था कि पीछे से हवलदार कृष्ण की आवाज सुनकर वह रुक गया ।

“क्या हुआ ? क्या रह गया अब ?” वह बोला ।

“थाना सिटी से फोन आया है, साहब ! किसी ने 100 नंबर पर इत्तिला दी है कि वीरू के ढाबे के पास कोई लाश पड़ी है ।”

“इस साले फोन को भी अभी आना था ।” वर्मा मन-ही-मन भुनभुनाया ।

उसने अपनी मोटरसाइकिल वापिस चौकी के गेट के अंदर मोड़ दी ।

“बुला ड्राइवर को ।” वर्मा ने बाइक को स्टैंड पर खड़ी करते हुए कहा ।

रोशन वर्मा अपने साथ हवलदार कदम सिंह, कृष्ण और साथ में दो सिपाहियों को लेकर और पीसीआर वैन में बैठकर मौका-ए-वारदात के लिए निकल गया । 

वीरू का ढाबा प्रेम नगर पुलिस चौकी से लगभग आठ किलोमीटर दूर था । ढाबा धीरे-धीरे शहर में अपनी पहचान बना रहा था, पर वह पहचान उसे गैरकानूनी शराब परोसने और नौजवान तबके को ढके-छुपे ढंग से ड्रग्स मुहैया करवाने की बदनाम गलियों से गुजरकर मिली थी । उसके ढाबे पर अब धीरे-धीरे अवैध रूप से शराब रेगुलर परोसी जाने लगी थी, जिससे वहाँ पर रौनक बढ़ने लगी थी । ट्रक ड्राइवरों का ठीया बनने की वजह से अब वहाँ ड्रग्स की आमद भी अब आम होने लगी थी । पुलिस की गाड़ी ने ढाबे के ठीक सामने ब्रेक लगाए । 

“वीरू कहाँ है ?” वर्मा ने बाहर से ही वहाँ काम कर रहे एक नौकर से पूछा ।

“मालिक तो यहाँ पर नहीं है, साब ! बाहर गए हैं । कल सवेरे तक आएँगे ।” नौकर बोला ।

“अच्छा, क्या हादसा हुआ है यहाँ पर ?”

“यहाँ... यहाँ तो कुछ नहीं हुआ, साब ! पर दो-तीन किलोमीटर आगे जाकर एक लाश पड़ी हुई है, साब ! रजवाहे के पास वाली सड़क पर ।”

“बिल्कुल रोड पर ही ?”

“नहीं साब ! सड़क की बगल में एक कच्चा रास्ता उतरता है । लाश थोड़ा अंदर खेतों की तरफ जाकर ही मिली है, साब !” नौकर हाथ के इशारे से घटनास्थल की तरफ इशारा करता हुआ बोला ।

“चल भई, वहाँ पर चल !” रोशन वर्मा पीसीआर के ड्राइवर से बोला ।

लगभग दो किलोमीटर चलने के बाद सड़क से दायीं ओर एक कच्चा रास्ता सड़क से नीचे उतरता था । सड़क से तकरीबन दो सौ मीटर की दूरी तय करने के बाद वह सब उस घटना-स्थल पर पहुँचे । रात के टाइम उस जगह पर अंधेरा बहुत था, पर इक्का-दुक्का लोग वहाँ से वापिस आ रहे थे तो उनसे पूछने के बाद उन्हें उस जगह का अंदाजा हुआ ।

वहाँ एक बुरी तरह जली हुई लाश उनका इंतजार कर रही थी । वह इस कदर बुरी तरह से जली हुई थी कि उसे देखकर ये कहना मुहाल था कि मरने वाला आदमी है या औरत । वह शरीर इतनी बुरी तरह से झुलस चुका था कि देखने वालों को उसकी हड्डियाँ तक आसानी से दिखाई दे रही थी ।

रोशन वर्मा रात को मौका-ए-वारदात पर कदम सिंह को और एक सिपाही को छोड़कर वापिस अपने घर चला गया, क्योंकि अंधेरे में वहाँ किसी भी प्रकार की और कोई भी कागजी कार्रवाई करना लगभग असंभव काम था । इतनी रात को बिना लाइट की व्यवस्था के फॉरेंसिक वालों का भी काम करना बड़ा मुश्किल था । वहाँ पहुँचते-पहुँचते उन्हें ही रात के लगभग 12:30 बजे से ऊपर का टाइम हो गया था । अगली पुलिसिया कार्यवाही के लिए और फॉरेंसिक वालों को सुबह बुलाना ही उसे मुनासिब लगा ताकि कोई सुराग अगर वहाँ पर हो तो अंधेरे में नष्ट न होने पाए ।

5 सितम्बर, बुधवार

सुबह 9:00 बजे के करीब तैयार होकर रोशन वर्मा पहले प्रेम नगर चौकी गया और वहाँ से पीसीआर वैन में सवार होकर घटनास्थल पर अगले दिन दोबारा पहुँचा । चौकी से चलने से पहले उसने थाना सिटी के प्रभारी इंस्पेक्टर रणवीर कालीरमण को फोन कर दिया था क्योंकि आखिरकार उसे रिपोर्ट तो रणवीर कालीरमण को ही करनी थी ।

प्रेम नगर पुलिस चौकी सिटी पुलिस स्टेशन के अंतर्गत ही आती थी । जब वह घटनास्थल पर पहुँचा तो वहाँ पर हवलदार कदम सिंह पहले से मौजूद था । फॉरेंसिक विभाग के फोटोग्राफर, फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और डॉग स्क्वाड के लोग वहाँ पहुँचे हुए थे । उन लोगों ने अपनी तफ्तीश शुरू कर रखी थी । रोशन वर्मा के वहाँ पहुँचते ही कदम सिंह उसकी तरफ बढ़ा ।

“ जयहिंद जनाब !” सैल्यूट मारते हुए वह पूरी तत्परता से बोला ।

सिर को झुकाकर जवाब देते हुए वर्मा मौका-ए-वारदात की तरफ चल दिया । तभी ब्रेक की चीत्कार के साथ एक पुलिस की जीप धूल उड़ाती हुई घटनास्थल पर आकर रुकी । गाड़ी रुकने से पहले ही इंस्पेक्टर रणवीर कालीरमण वहाँ की जमीन पर खड़ा था । पुलिस के आम थुल-थुल और हाँफते हुए थानेदारों से अलग एक कसरती शरीर का मालिक था इंस्पेक्टर रणवीर कालीरमण । उसके पहुँचते ही वहाँ मौजूद महकमे के सारे मुलाजिमों में हलचल तेज हो गई ।

रणवीर कालीरमण ने हालात का जायजा लेने के बाद रोशन वर्मा को इशारा किया और फिर दोनों उस ओर बढ़ चले जहाँ पर वह लाश पड़ी थी । जैसे-जैसे दोनों उसके नजदीक पहुँच रहे थे, उसके जले हुए माँस की बदबू उनकी अंतरात्मा तक को परेशान कर रही थी । लाश बहुत बुरी तरह से जली हुई थी और माँस कई जगह हड्डियों का साथ पूरी तरह छोड़ चुका था । हड्डियाँ जिस्म की हद से बाहर झाँक रही थीं । कपड़े और खाल आपस में बुरी तरह चिपक गए थे । साफ दिखाई दे रहा था कि बहुत ही बुरी मौत मरा था मरने वाला ।

वीरू के ढाबे पर सुबह-सुबह ट्रक ड्राइवर और उनके चेले-चपाटे बहुत होते थे, इसी वजह से घटनास्थल के आसपास काफी सारे लोग उत्सुकतावश इकट्ठे हो गए थे ।

“कदम सिंह !” रणवीर ऊँची आवाज में बोला, “इन लोगों को बारी-बारी से लाश दिखाओ और पूछो कि किसी ने कल शाम को या रात को कुछ देखा हो या कोई संदिग्ध आदमी यहाँ घूमता दिखाई दिया हो ।”

“जी, जनाब ।” कदम सिंह तुरंत पास खड़ी भीड़ की तरफ मुखातिब हो अपनी डायरी निकालकर उन लोगों से इस बारे में पूछताछ करने लगा ।

रणवीर, रोशन वर्मा की तरफ देखता हुआ बोला, “क्या लगता है रोशन ! यहाँ पर आकर कैसे मरा होगा ये आदमी ?”

“जिस रास्ते पर ये लाश पड़ी है, इधर लोगों की आवाजाही तो बहुत कम ही है जनाब ! इस तरफ तो बस इधर के खेतों में काम करने वाले लोग ही आते-जाते हैं । इस वारदात के बारे में सूचना हमें रात को साढ़े ग्यारह बजे के आसपास वी॰टी॰ से मिली थी । लगभग बीस मिनट में हम लोग यहाँ पर पहुँच गए थे । अंधेरा होने के कारण यहाँ पर उस वक्त कुछ भी नहीं हो सकता था, इसीलिए मैं यहाँ पर कदम सिंह और दो सिपाहियों को छोड़ गया था कि कहीं रात को आवारा कुत्ते इस लाश को बिलकुल ही न बिखरा दें ।”

“फिंगरप्रिंट की क्या पोजीशन है ? आज वेदपाल नहीं आया फॉरेंसिक टीम के साथ ?”

“नहीं जनाब ! आज उसकी कोर्ट में पेशी है शायद । फिंगरप्रिंट का तो इस माहौल में मुझे कोई चांस लगता नहीं है ।”

“कोई जूते का निशान, हाथ की हथेली का या उँगलियों का कोई निशान मिला ? किसी व्हिकल के टायरों का कोई निशान मिला ?”

“कोई निशान नहीं है, जनाब ! यहाँ से लेकर मेन सड़क तक रास्ता कच्चा ही है । किसी व्हिकल के निशान या फुट प्रिंट्स यहाँ से बरामद होने तो चाहिए थे । पर मुझे लगता है कोई आदमी, या ऐसा भी हो सकता है वह खुद कातिल ही हो, किसी झाड़ी या पेड़ की बड़ी टहनी को ट्रेक्टर या ट्राली के पीछे बांधकर, यहाँ से निकला है, इसलिए यहाँ से किसी व्हिकल का निशान बरामद होना मुश्किल है । मेरे ख्याल से ऐसा कोई निशान अगर बना भी होगा तो शर्तिया मिट गया है ।”

“कहीं कोई हाथापाई का निशान या मारपीट का भी कोई सुराग नहीं मिला होगा ।” रणवीर बुदबुदाता हुआ-सा बोला ।

“अच्छा रोशन ! ये आदमी जला किस चीज से है ? कोई आइडिया लगा कर बताया फॉरेंसिक वालों ने ? पेट्रोल, डीजल या मिट्टी का तेल ?”

दोनों वहाँ मौजूद फॉरेंसिक वालों के पास पहुँचे । अनिल कुमार नाम का हैड कॉन्स्टेबल रैंक का आदमी अपने साथी के साथ वहाँ अपने काम में लगा हुआ था । उसने पोली बैग में मिट्टी का सैम्पल ले लिया था । लाश बाहर से बुरी तरह से जली हुई थी इसलिए डीएनए सैम्पल बॉडी के अंदरूनी भाग से ही लिए जा सकते थे, जो पोस्टमार्टम के दौरान ही सम्भव था । फोटोग्राफर भी लाश के विभिन्न एंगल्स से फोटो ले रहा था । इस सारी प्रक्रिया को वहाँ मौजूद सब लोग जल्द से जल्द पूरा करना चाह रहे थे, ताकि उस बदबू युक्त वातावरण से उन्हें निजात मिल सके ।

“अनिल ! मिट्टी की स्मेल से तुम्हें कुछ आइडिया लग रहा है, किस चीज का इस्तेमाल किया गया है इस आदमी को जलाने में ? मिट्टी की बदबू से तो मुझे पेट्रोल ही लग रहा है ।” रणवीर बोला । 

अनिल ने सहमति से सिर हिलाया ।

“जी सर ! पहली नजर में तो यही लग रहा है । बाकी पक्का तो लैब में टेस्ट से ही पता लगेगा ।”

इतनी देर में हवलदार कदम सिंह उनके पास पहुँचा और रणवीर सिंह से संबोधित होते हुए बोला, “जनाब ! यहाँ मौजूद सब लोगों से मैंने लाश के बारे में दरियाफ्त कर ली है । इस बारे में किसी से कोई पहचान सम्बन्धी जानकारी नहीं मिली और न ही किसी को कोई संदिग्ध गतिविधि होने का पता है ।”

“हम्म ! चलो, कोई बात नहीं । डॉग स्क्वाड को बुलाकर देखो, कहीं कोई सुराग मिलता हो तो ।”

रोशन बोला, “इंस्पेक्टर साहब ! आसपास कहीं भी खून का कोई निशान नहीं है । वैसे भी शरीर पर जलने की वजह से कोई कट या घाव के बारे में तसल्ली से कहना मुश्किल है । मुझे लगता है, यह आदमी अकेला यहाँ आया था और इसने अपना काम तमाम कर लिया ।”

“यह कहना अभी जल्दबाजी होगी, वर्मा जी ! पहले इस आदमी की कोई शिनाख्त तो हो जाए । इस आदमी ने अगर ख़ुदकुशी की होती तो यहाँ कोई पेट्रोल का डिब्बा या मरने से पहले उसके संघर्ष के कोई निशान तो हमें मिलते । ऐसा तो होगा नहीं कि एक जगह पड़े हुए कोई जल जाए । खून के निशान का मौका-ए-वारदात पर न होना इस बात का सबूत है कि शायद इसकी लाश को कहीं और से लाकर यहाँ डाला गया है । शायद जलने की वजह से जिस्म पर किसी गोली के निशान हमें दिखाई नहीं दे रहें है । इस बात का खुलासा तो अब पोस्टमार्टम से ही होगा ।” रणवीर बोला ।

तभी एक बाइक धूल उड़ाती हुई वहाँ आकर रुकी । उस पर शहर के लोकल चैनल के लिए कवरेज करने लोकल पत्रकार वरुण अपने कैमरामैन साथी नवीन के साथ वहाँ पर पहुँचा था ।

“राम राम, दरोगा जी !” बाइक को स्टैंड पर खड़ा करता हुआ वरुण बोला ।

“राम राम ! तुम्हें मिल गई खबर ।” रोशन वर्मा चिढ़ता हुआ-सा बोला ।

“रोजी-रोटी का सवाल है, दरोगा जी ! आना तो पड़ेगा ही । आज कौन साहब गए ऊपर ?”

“जाने वाला तो चला गया, पीछे लिफाफा छोड़ गया है तुम्हारे लिए और हमारे लिए कि भैया, तुम मजमून भाँपते रहो, हम तो चले ‘अर्पण गोस्वामी’ जी !” रणवीर हँसता हुआ बोला । 

“उड़ा लो, उड़ा लो ! गरीब आदमी का मजाक उड़ा लो बड़े दरोगा जी ! किसी दिन रजत शर्मा की तरह अपना न्यूज़ चैनल न खोला, तो आप मेरा नाम बदल देना ।”

“ठीक है, चैनल बाद में खोलना । पहले वह लिफाफा तो देख ले, जिसका मज़मून तुझे पढ़ना है ।”

रणवीर की शह पाकर वरुण ने आगे बढ़ने के लिए अपने साथी नवीन को इशारा किया ।

“दूर से । पास न जाना । काम चल रहा है तफ्तीश का ।” रोशन वार्निंग देता हुआ-सा बोला ।

“ठीक है, छोटे दरोगा जी ! जैसा मेरे आका का हुक्म । सुन लिया नवीन !”

नवीन ने कैमरा संभाल लिया और वरुण पहले कैमरे के सामने दुर्घटना की जानकारी देने लगा और उसके बैकग्राउंड में लाश के साथ तफ़्तीश करते पुलिसकर्मी दिखाई दे रहे थे ।

“आज इसको इतनी लिफ्ट क्यों दे दी ? पहले तो आप इसको पास भी नहीं फटकने देते थे ।” रोशन वर्मा ने इंस्पेक्टर रणवीर के सामने सवाल उठाया ।

“अरे समझा करो, वर्मा जी ! ये लोग इस वारदात की खबर आज ही पूरे दिन अपने चैनल पर चलाएँगे । शहर के लोग इस खबर को देखेंगे । इससे हमें शिनाख्त में मदद मिलेगी । अखबार में भी इस को न्यूज दे दो । इस डैड बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए भी जल्दी भिजवाने का इंतजाम करो ।” 

“ठीक है ।” इतना कहकर वर्मा वहाँ काम में लगे बाकी लोगों की तरफ मुड़ गया । कागजी कार्यवाही पूरी करने के बाद बॉडी को सिविल अस्पताल पहुँचाने के इंतजाम के लिए वह अपने मोबाइल पर उलझ गया ।

इंस्पेक्टर रणवीर कालीरमण वापिस अपनी गाड़ी पर सवार हो गया और सिटी पुलिस स्टेशन की ओर चल पड़ा । आज स्थानीय सचिवालय पर सत्ता विरोधी दल का प्रदर्शन था और सारा दिन उसका इसी जद्दोजहद में गुजर जाने वाला था ।

लाश के हालात इस घटना को आत्महत्या कह रहे थे पर कोई इतनी दूर आकर ये काम क्यों करेगा ! कोई ऐसा सबूत भी नहीं था । कोई ऐसा निशान भी वहाँ नहीं था, जो वहाँ हुई किसी कत्ल जैसी वारदात की तरफ इशारा करता हो । अगर ये आत्महत्या नहीं थी तो कातिल ने अपना काम पूरी सफाई से करने की कोशिश की थी । सारे कलाकार उसके ही पल्ले लिखे हैं । सीधा-सादा कोई केस कभी उसके सामने आता ही नहीं था ।

ऐसे ही कई प्रश्न उसके सामने मुँह बाए खड़े थे । जिनका जवाब उसे आने वाले वक्त में ढूँढना था ।

सचिवालय पर हुए प्रदर्शन से निपटने के बाद रणवीर कालीरमण सिटी पुलिस स्टेशन के अपने ऑफिस की कुर्सी पर ढेर होता हुआ बाहर अर्दली को एक कप चाय के लिए बोलकर सुबह के घटनाक्रम के बारे में सोचने लगा । रोशन वर्मा से फोन पर दरियाफ्त करने पर पता चला कि पोस्टमार्टम शाम को होगा और कल सुबह तक रिपोर्ट मिलेगी ।

चाय पीने के बाद वह उठकर मेस वाले कमरे में चला गया । लांगरी रसोई में स्टाफ के लिए खाना बनाने में व्यस्त था । मेस में स्टाफ के मनोरंजन के लिए टेलिविज़न रखा हुआ था, जिस पर कबड्डी के मैच का टेलीकास्ट आ रहा था । रणवीर ने चैनल बदलवाकर लोकल चैनल लगवा लिया ।

आज बुधवार था । आज के दिन लोकल न्यूज़ ब्रॉडकास्ट होनी थी । वह देखना चाहता था कि वरुण ने आज की घटना को किस तरह से कवरेज दी है । पहले सचिवालय पर हुए प्रदर्शन की न्यूज, फिर कर्मचारी नेताओं के भाषण के बाद उस जली हुई लाश की कवरेज शुरू हुई । कवरेज के अंत में मकतूल द्वारा आत्महत्या की संभावना दर्ज की गई थी । पुलिस की तरफ से लाश को पहचानने और इस सन्दर्भ में पुलिस के सहयोग की अपील के साथ न्यूज़ बुलेटिन खत्म हो गया । 

रणवीर वहाँ से थाने के मुंशी रतन लाल के कमरे में गया जो थाने के रोजनामचे में इलाके में लगने वाली गश्त का ब्यौरा लिखने में व्यस्त था । मुंशी रतनलाल को रणवीर ने हिदायत दी कि थाना सदर, प्रेम नगर, गोल चौक, रेलवे रोड, हीरा मंडी के थानों में फ़ोन करके पिछले तीन दिनों में गुमशुदा आदमियों के लिए दर्ज की गई रिपोर्ट का पता लगाए । मुंशी रतन लाल तुरंत फोन पर सब जगह संपर्क करने में लग गया ।

रणवीर वहाँ से उठकर वापिस अपने ऑफिस में पहुँचा । मुंशी फोन पर अभी लगा हुआ था । वह रात को गश्त की रिपोर्ट और रात को लगाई गई ड्यूटी देखने लगा । रात दस बजे से उसे भी गश्त पर निकलना था । मुंशी को घर जाने का इशारा कर वह अपने घर की तरफ रवाना हो गया ।

6 सितम्बर, गुरुवार

अगले दिन ऑफिस में पहुँचने के बाद रणवीर कालीरमण ने सबसे पहले मुंशी रतन लाल को ऑफिस में बुलाकर पिछले तीन-चार दिनों की मिसिंग पर्सन्स की रिपोर्ट के बारे में दरियाफ्त की । जिन रिपोर्ट के बारे में उसे पता चला वह सारी रिपोर्ट एक हफ्ते पहले की थी । लिहाजा कल की घटना से उनका संबंध नहीं हो सकता था । थोड़ी ही देर में रोशन वर्मा भी दफ्तर पहुँच गया । 

“जयहिंद जनाब !” एड़ियाँ खटकाकर असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर वर्मा ने अभिवादन किया ।

“जयहिंद, वर्मा जी ! आओ बैठो ! कल के केस के बारे में कोई डेवलपमेन्ट हुई ?” 

“सर ! मौका-ए-वारदात से लिए गए सारे फोटोग्राफ्स तैयार हैं । पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आज दोपहर तक हमें मिल जाएगी ।”

“ठीक है । दोपहर तक इस केस की सारी फ़ाइल तैयार करने के बाद मुझे दिखाओ । प्रेम नगर मार्केट में क्या हाल है अब ?”

“अब तो ठीक है, जनाब ! अगर पुलिस-वैन वहाँ पर तैनात रहे तब तो मनचले ठीक ही रहते हैं, काबू में रहते हैं । पहले से तो हालात में काफी फर्क पड़ा है अब वहाँ पर ।”

“हम्म ! कल की लाश बरामदगी की खबर आज के अखबारों में आई है क्या ? जल्दी में मुझे आज अखबार देखने को ही नहीं मिला ।”

“नेशनल लेवल के अखबारों में तो कोई खबर नहीं है, पर लोकल अखबार ‘दैनिक जगत’ में पब्लिश हुई है तस्वीर के साथ ।”

“लाश इतनी बुरी तरह जली हुई थी कि उसकी कोई पहचान या कोई आई-डी भी नहीं मिल सकी है ।”

“जी, जनाब ! अगर उसकी कोई शिनाख्त न हो पाई तो शाम को अखबार में इस बारे में सूचना प्रकाशित करवानी पड़ेगी ।”

“हाँ वर्मा जी ! रूटीन में जो कार्यवाही होती है, वह तो करवाओ । ‘शोरे गोगा’ का इश्तिहार जल्दी से जल्दी आ जाना चाहिए अखबारों में । मुंशी ने आसपास की चौकियों पर इत्तिला कर दी है । कोई भी गुमशुदा की रिपोर्ट हो तो वह लोग यहाँ पर पहुँचे । यहाँ से ही उनको हॉस्पिटल के मोर्ग में भेज देंगे । वहाँ हॉस्पिटल में चौकी से किसी की ड्यूटी लगा रक्खी है क्या ?”

“वहाँ दो सिपाही भेज रखे हैं । पोस्टमार्टम होने के बाद ही वो लोग वहाँ से फ्री हो पाएँगे ।”

“ठीक है वर्मा जी ! आज एसपी ऑफिस में मेरी मीटिंग है । मैं वहाँ पर जा रहा हूँ । एसपी प्रभात जोशी ने सारे जिले के थाना इंचार्ज आज अपने ऑफिस में बुलाए हुए हैं । मैं दोपहर बाद वापिस आकर ये रिपोर्ट देखता हूँ ।”

इतना कहकर रणवीर अपनी सीट से खड़ा हो गया और ऑफिस से बाहर पीसीआर में सवार हो चल पड़ा । उसके साथ में मुंशी रतन लाल भी था कुछ जरूरी रिकॉर्ड लेकर ।

रणवीर एसपी ऑफिस की मीटिंग से दोपहर को लगभग तीन बजे के करीब फारिग हुआ । रास्ते में सरकारी अस्पताल पड़ रहा था तो रणवीर ने गाड़ी अस्पताल की तरफ मुड़वा ली । सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए बनाए गए पैनल में दो डॉक्टर्स थे । डॉक्टर नवनीत कंसल पैनल-हेड की भूमिका निभाते थे । हॉस्पिटल की मेन-बिल्डिंग से अलग एक ऑटोप्सी डिपार्टमेंट था । बीच में लंबा गलियारा था जिसके एक तरफ लैब और मेडिकल रिकॉर्ड रूम स्थित थे । रिकॉर्ड रूम के बिल्कुल सामने डॉक्टर नवनीत कंसल का रूम था । 

“हेलो डॉक्टर साहब, कैसे हैं आप ?” रूम में दाखिल होते हुए रणवीर बोला ।

“आओ, इंस्पेक्टर रणवीर ! बहुत बढ़िया ! आज तुम्हारा इधर आना कैसे हुआ ?”

“कुछ खास बात तो नहीं है, डॉक्टर साहब ! मैंने सोचा, कल जो बॉडी मिली थी, उसकी रिपोर्ट आपसे डिस्कस करता चलूँ । फिर इस वजह से आपके पास दोबारा आना आज की डेट में शायद पॉसिबल न हो ।”

“उसकी रिपोर्ट तो वर्मा जी ले गए हैं । उसमें मैंने सारा कुछ दर्ज कर दिया है । मरने वाला कोई पच्चीस से तीस साल का आदमी था । कल रात को आठ बजे मैंने पोस्टमार्टम किया है । उसके मुताबिक उस आदमी की मौत लगभग चौबीस घंटे पहले रात आठ बजे से नौ बजे के बीच हुई है । यानी चार सितंबर की रात को । ये कहना मुश्किल है कि मौत कैसे हुई है । आंत से कोई फ़ूड पाइजन के संकेत नहीं मिले हैं । शरीर के सामने के हिस्से की खाल बुरी तरह से झुलस चुकी है । सिर्फ कमर की खाल कम जली हुई है । नौवीं और दसवीं पसली में फ्रैक्चर के टूटने की एविडेन्स हैं । मैं शरीर पर मिले जख्मों का हंड्रेड परसेंट सर्टिफिकेशन नहीं कर सकता क्योंकि बॉडी पर जलने से और आउटर एनवायरनमेंटल टेम्परेचर इम्बैलेंस के कारण से कई जगह से खाल फटी हुई हो सकती है । एब्डोमेन यानी पेट पर पसलियों से नीचे मुझे कुछ एक इंच के कट मिले हैं । हम यूँ भी कह सकते हैं कि खाल फटी हुई है ।

“रणवीर, उसके दोनों फेफड़े पंक्चर मिले हैं जो किसी रिवॉल्वर की गोली की वजह से ही हो सकते हैं । विसरा में जो फूड मिला है उसे मैंने केमिकल एक्सामिनेशन के लिए भेज दिया है ।

“वैसे इस बॉडी की आइडेंटिफिकेशन की प्रॉब्लम सॉल्व हुई इंस्पेक्टर रणवीर या अभी नहीं हुई ?”

“नहीं डॉक्टर साहब ! अभी तक उस लाश का कोई दावेदार नहीं आया है ।”

“हमने पोस्टमार्टम के बाद बॉडी मोर्ग में शिफ्ट करवा दी है । तुम काफी पीओगे ।”

“नहीं, डॉ. साहब ! फिर कभी । फिलहाल मैं चलता हूँ । वैसे भी मुझे थाने से लगातार फोन आ रहा है । अगर जरूरत पड़ी तो मैं आपसे दोबारा मिलता हूँ ।”

“वैसे बॉडी की शिनाख्त जितना जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा है । ये लाश हद से हद दो दिन तक और टिक पाएगी । उसके बाद बॉडी डीके (decay) बढ़ जाएगा । हमारे पास एडवांस रेफ्रिजरेशन की ज्यादा अच्छी व्यवस्था नहीं है ।”

“हम्म ! ठीक है । आइडेंटिफिकेशन जल्द ही हो गई तो ठीक है । नहीं तो फिर दो दिन बाद अंतिम संस्कार की कार्यवाही करवा देंगे ।” इतना कहकर रणवीर, डॉक्टर नवनीत कंसल से हाथ मिलाकर गाड़ी में सवार हो सिटी थाने की तरफ चल पड़ा ।

थाने में एंट्री करने पर उसने अपने ऑफिस के बाहर लोगों की भीड़ खड़ी देखी । ऑफिस में रोशन वर्मा और लोकल चैनल वाला रिपोर्टर वरुण बैठे थे ।

“क्या हुआ वर्मा ? ये थाने में इतनी भीड़ कैसे जमा हो गई है ?”

“सर ! बाहर चार फैमिली आई हुई हैं, जिनके घर से कोई-न-कोई मेम्बर लापता हैं । एक लड़की है और एक बुजुर्ग हैं, जिसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं बताते । दो फैमिली के मेम्बेर्स को वरुण यहाँ लेकर आया है ।”

“बड़े दरोगा जी ! ये हमारे दफ्तर में टीवी पर न्यूज़ देखकर आए थे । हमने इन्हें पहले अस्पताल भेज दिया पर वहाँ के स्टाफ ने पुलिस केस कहकर बॉडी दिखाने से मना कर दिया तो इनको लेकर मैं यहाँ हाजिर हो गया हूँ ।”

“वरुण ! वह पच्चीस से तीस साल का आदमी है, जिसकी लाश वहाँ हॉस्पिटल में पड़ी हुई है । वर्मा जी, जिनकी लड़की गुम हुई है, उनको कहो कि ये उनका केस नहीं है । बाकी है तो वह आदमी बुजुर्गवार भी नहीं । बाकी बचे दो, वो क्या कहते हैं ।”

“एक फैमिली से उनका बेटा गायब हैं और दूसरी फैमिली के लोग भी कोई 35-36 साल का आदमी कई दिनों से लापता बताते हैं ।” वरुण बोला ।

“रोशन, कदम और उसके साथ एक सिपाही को हॉस्पिटल इन लोगों के साथ भेजो, शिनाख्त के लिए और कन्फर्मेशन के लिए । अगर ये डीएनए टेस्ट करवाना चाहते हो तो डॉक्टर नवनीत से इनकी बात करवा देना ।”

“बड़े दरोगा जी ! अगर आप इजाजत दें तो मैं भी इनके साथ चला जाऊँ ।”

“जा मेरे भाई ! मेरे मना करने पर कौन-सा तूने रुकना है ।”

“थैंक्यू बड़े दारोगा जी !” कहकर वरुण अपनी बाइक की तरफ लपका ।

रोशन वर्मा बाहर जाकर कदम सिंह और सिपाही को इंस्ट्रक्शन देने लगा और दोनों परिवार अस्पताल की तरफ रवाना हो गए ।

शाम को स्थानीय लोकल चैनल पर खबर आ रही थी –

“जो लाश प्रेम नगर के स्थानीय होटल वीरू के ढाबे के पास से बरामद हुई, वह शहर के एक गारमेंट्स डीलर गौरव कालिया की थी । इतना समय बीत जाने के बाद भी पुलिस अब तक ये पता नहीं लगा पाई कि ये हत्या है या आत्महत्या । जबकि परिवार वाले इसे हत्या करार दे रहे हैं ।”

“स**** क***** ।” रणवीर के मुँह से वरुण के लिए कसैले शब्द अपने आप निकल गए ।

पुलिस के ऊपर उंगली उठाना इस दुनिया में सबसे आसान काम हो चला था ।

ये न्यूज़ रणवीर खाना खाते हुए अपने घर टीवी पर देख रहा था और रोशन वर्मा उसे पहले ही इस बारे में सूचना दे चुका था । अस्पताल में कागजी खानापूर्ति करने के बाद उस डेड बॉडी को अंतिम संस्कार के लिए गौरव कालिया के परिवार के सुपुर्द कर दिया गया था ।