देवराज चौहान के सामने टेबल पर शहर का छपा हुआ नक्शा पड़ा था और उसके ऊपर रखे बड़े से सादे कागज पर, पैन से वह अपना नक्शा बना रहा था। रह-रह कर वह छपे नक्शे पर भी निगाह मार लेता था।

इस काम में लगे उसे तीन घंटे से ऊपर हो चुके थे। इस बीच जगमोहन ने नींद भी ले ली थी। वह सोया उठा और हाथ-मुंह धोकर चाय बना लाया।

“अब बस भी करो। बाकी काम फिर कर लेना।" जगमोहन चाय का गिलास टेबल पर मौजूद छपे नक्शे पर रखता हुआ बोला--- "चाय पी लो.... ठण्डी हो जायेगी।"

“बस हो गया काम।” देवराज चौहान ने अपने हाथ के दबाये नक्शे को तह किया फिर टेबल पर पड़े, छपे, नक्शे को तह किया और दोनों जगमोहन को थमाकर बोला--- “इन्हें रख लो।"

जगमोहन नक्शे रखकर वापस कुर्सी पर जा बैठा।

“तुम क्या कर रहे थे?” जगमोहन ने चाय का घूंट भरते हुए कहा।

“बैंक डकैती के बाद किस रास्ते से फरार होना ठीक रहेगा, उस रास्ते का अलग से नक्शा बना रहा था।” देवराज चौहान ने चाय का गिलास उठा लिया--- “और आगे जाकर, हमें किन-किन रास्तों से निकलना है, वह सब चैक कर रहा था। सारा काम अब मुकम्मल कर लिया है।" कहकर उसने चाय का घूंट भरा।

“मुझे नहीं लगता कि बैंक डकैती सफल होगी।” जगमोहन ने सिर हिलाया।

देवराज चौहान ने प्रश्न भरी निगाहों से उसकी आंखों में झांका।

"जिस बैंक में तुम डकैती की योजना बना रहे हो, वह शहर के सबसे व्यस्त इलाके में है। हर समय वहां ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है। तीन सौ गज की दूरी पर पुलिस स्टेशन है। बैंक ग्राऊंड फ्लोर पर है और उसके ऊपर छः मंजिलों में बिजनेस आफिस है। बड़ी-बड़ी कम्पनियों और मिलों के आफिस हैं। शोरूम हैं। आसपास की इमारतें भी नौ बजे से लेकर रात नौ बजे तक खुली रहती हैं। ऐसी भीड़ वाले इलाके में मौजूद बैंक को लूट पाना असम्भव होगा। यह तो सरासर असफल डकैती होगी।”

देवराज चौहान मुस्कुराया और चाय का गिलास रखकर सिगरेट सुलगा ली।

"तुमने बैंक को लूटने की योजना मुझे बताई है, वह उससे भी ज्यादा खतरनाक है। कभी इस तरह बैंक लुटते देखे हैं तुमने? लुटेरों को इस तरह फरार होते देखा है? अगर यह डकैती करनी हो तो, ढेरों रास्ते और भी हैं। ऐसा घटिया रास्ता चुनने से क्या फायदा है?"

देवराज चौहान ने कश लेकर धुआं छत की तरफ फेंका।

"डकैती की योजना मैंने बनाई है जगमोहन! योजना का मैंने गहराई तक अध्ययन किया है। तुम गहराई तक नहीं सोच सकते, क्योंकि तुमने सिर्फ योजना सुनी है। खुद बनाई नहीं। मैं इस बात का दावा करता हूं कि डकैती हर हाल में सफल होगी। वहां पर पुलिस फैली होगी। बैंक का कम-से-कम डेढ़ सौ से अधिक आदमियों का स्टाफ होगा। आसपास की इमारतों के लोग भी वहां जमघट लगाये होंगे। हर किसी की निगाह हम पर होगी। परन्तु तब भी हमें कोई रोक नहीं पायेगा। करोड़ों रुपयों के साथ, सबकी आंखों के सामने से हम वहां से जायेंगे। यह सौ प्रतिशत सफल डकैती होगी। बिल्कुल सफल डकैती ।"

"मैं मान नहीं सकता।" जगमोहन एक-एक शब्द चबाकर कह उठा--- “वहां मौजूद हजारों लोगों में दो-चार दिल-गुर्दे वाले लोग होंगे। अगर किसी ने किसी प्रकार की जरा भी हिम्मत दिखा दी तो, जानते हो क्या होगा ?"

"इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा कि हममें से एक-आध मरेगा।" देवराज चौहान शब्दों को चबाकर कह उठा--- "परन्त डकैती असफल होने की सम्भावना नहीं है।"

जगमोहन देवराज को देखता रह गया।

"इसका मतलब कि तुम, पीछे नहीं हटोगे?"

"सवाल ही पैदा नहीं होता।"

"मेरी मानो, किसी और बैंक को अपना निशाना बना लो। ऐसे कई बैंक हैं जो एकान्त में होते हैं और तीस-चालीस लोगों का स्टाफ हो।"

"ऐसे बैंकों में लाख दो लाख से ऊपर की रकम नहीं होगी। इतनी कम रकम के लिए बैंक को लूटना समझदारी नहीं है। इतनी ही रकम चाहिए तो किसी लाला का घर लूट लो, बड़ी दुकान लूट लो, इतना बड़ा प्लान बनाने और सिर खपाने की जरूरत ही क्या है।" देवराज चौहान ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।

जगमोहन के चेहरे पर खीझ के भाव आ गये।

"ठीक है, बड़ी रकम पर हाथ मारना ही हमारे लिए मुनासिब है। परन्तु मेरी मानो जिस बैंक को तुम लूटने की सोच बैठे हो, जिस बैंक को लूटने का प्लान तुमने पूरा बना लिया है, उसे छोड़ दो। किसी ऐसे बैंक की तलाश कर लेते हैं, माल भी हमारी पसन्द का हो और खतरा भी कम हो।"

"नहीं।" देवराज चौहान ने सिर हिलाकर सख्त स्वर में कहा--- "हम इसी बैंक में डकैती करेंगे। यहां से हमें करोड़ों का माल हासिल हो सकता है। खतरे की परवाह मत करो। जहां जितनी ज्यादा दौलत होती है, खतरा वहां उतना ही ज्यादा होता है। वैसे भी मैंने प्लान इस तरह का बनाया है कि डकैती के बीच हम लापरवाही न बरतें, सावधान रहें तो खुद को करोड़ों की दौलत के साथ, वहां से सुरक्षित निकाल सकते हैं। डकैती के बीच अगर कोई मरेगा तो अपनी ही लापरवाही से मरेगा।"

जगमोहन मन-ही-मन गहरी सांस लेकर रह गया। वह समझ गया कि देवराज चौहान को उसके अपने प्लान पर पूरा भरोसा है और वह अब इस बैंक में डकैती से पीछे नहीं हटेगा। इसलिए इससे कुछ भी कहना फिजूल है।

"इस बैंक में।" जगमोहन ने पुनः कहा--- "तुमने जिन लोगों को साथी बनाने की सोची है, हो सकता है प्लान सुनकर वह इस पर काम करने से इंकार कर दें।"

“मैंने ऐसे लोगों को चुना है कि वे इंकार नहीं करेंगे।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "मौत से खेलना उनका पेशा है और दौलत पाना उनका ख्वाब। अभी इनसे बात करनी बाकी है। दो-तीन दिन में इन लोगों से बात कर लूंगा। वैसे भी योजना के मुताबिक डकैती के दिन में अभी पंद्रह दिन बाकी हैं।"

“चार को इस योजना में शामिल कर रहे हो ना?"

“हां। पहला मंगल पांडे।" देवराज चौहान ने कहा--- "मंगल पांडे खतरनाक इंसान है। हत्या करना उसका शौक है। डकैती में मास्टर है। कई डकैतियां उसने कर डालीं परन्तु पुलिस के पास कोई गवाह-सबूत उसके खिलाफ नहीं। मंगल पांडे दौलत के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है। बढ़िया आदमी है। बस, उसकी एक ही कमजोरी है, औरत। पैसा उसने बहुत इकट्ठा किया, परन्तु बाजारू औरत पर लुटा दिया।"

"दूसरा ?"

“उस्मान अली। वैसे तो आज तक कोई खास काम नहीं किया। घरों में घुसकर चोरियां करना, लूटपाट करना ही इसका काम है। और ऐसे ही कई मौकों पर मजबूरी में जान बचाने की खातिर चार हत्याएं भी कर चुका है। उस्मान अली की सबसे बड़ी खूबी है कि जहां से मोटी दौलत पाने की आशा हो, वहां पर जान की बाजी भी लगा देता है।"

“और तीसरा ?”

“डालचन्द ।” देवराज चौहान मुस्कुराया--- "देखा जाये तो शरीफ आदमी है। क्राइम की दुनिया से इसका कोई वास्ता नहीं । कार रेसिंग में तीन बार हिस्सा ले चुका है और तीनों ही बार चौथे नम्बर पर आया। बहुत ही दक्ष ड्राईवर। यूं समझो कि डालचन्द कार सड़क पर नहीं, सड़क से दो फीट ऊपर चलाता है।"

“इसका हमारे बीच क्या काम ?”

“बताता हूं।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- “पहले इसके बारे में पूरी बात तो सुन लो। घर में इसकी बूढ़ी मां और जवान बहन है। जिन्हें वह बहुत चाहता है। बूढ़ी मां सख्त बीमार है और जवान बहन शादी के लिए तैयार है। बहुत खूबसूरत है वह। आस-पड़ौस के छोकरों की डालचन्द कई बार पिटाई कर चुका है, क्योंकि वह उसकी खूबसूरत बहन पर निगाह रखते हैं। डालचन्द बहुत ही बड़ी कम्पनी में अच्छी पोस्ट पर था। परन्तु कैश में गड़बड़ होने पर उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ा। वह जेल भी चला जाता, परन्तु अपने पास मौजूद जमा पूंजी से कैश की गड़बड़ी को पूरा किया। कम्पनी के मालिकों ने उस पर रहम खाया और सिर्फ नौकरी से निकाला, उसे पुलिस में नहीं दिया। बहरहाल इस वक्त उसकी हालत बहुत ही बुरी है। पल्ले फूटी कौड़ी नहीं। घर का खर्च चलता नहीं, बीमार मां का इलाज कराना चाहता है, परन्तु पैसा नहीं। जवान बहन की शादी पैसे के बिना हो ही नहीं सकती। आज से तीन महीने पहले उसके पास राजाराम आया।"

"राजाराम ?”

"गैंगस्टर राजाराम ।"

“ओह, उसका डालचन्द जैसे इंसान से क्या काम ?”

“राजाराम को ऐसे कार ड्राईवर की जरूरत थी, उसका स्मगलिंग का माल हिफाजत से अपनी कार में लादकर दूसरे शहर तक पहुंचाता। जबकि उन दिनों सड़कों पर रेड अलर्ट था। हर तरफ - पुलिस की तगड़ी चौकसी थी। पैसे की जरूरत तो थी डालचन्द को । वह तैयार हो गया, इस शर्त पर कि उसका वास्ता सिर्फ कार ड्राइविंग से रहेगा। अगर पुलिस पीछे पड़ी तो उसका काम पुलिस से पीछा छुड़ाना होगा। स्मगलिंग का माल वह नहीं सम्भालेगा। उसे उसके आदमी ही सम्भालेंगे। राजाराम ने बात मंजूर कर ली। इस काम के लिए डालचन्द को पच्चीस हजार रुपये मिले और काम को उसने सफलतापूर्वक किया।”

जगमोहन ने सिर हिलाया ।

“अब हम बैंक डकैती का काम पूरा करेंगे तो आधे शहर को खबर लग चुकी होगी कि हम क्या कर हैं। शहर भर की सारी पैट्रोल गाड़ियों को सतर्क कर दिया जायेगा। जब हमें हर हाल में पुलिस से पीछा छुड़ाना है और डालचन्द ऐसे वक्त में हमारे प्लान की सबसे अहम कड़ी होगी। पुलिस से वह पीछा छुड़ायेगा हमारा ।"

“यानी कि इस प्लान में हमें दक्ष कार ड्राईवर की जरूरत है?"

"हां।”

“डालचन्द तैयार हो जायेगा ?”

“जब वह पच्चीस हजार के लिए, राजाराम के लिए काम करना मंजूर कर सकता है तो हमारे लिए क्यों नहीं करेगा!” देवराज चौहान ने विश्वास भरे स्वर में कहा--- “डालचन्द का हमारे लिए काम करना बहुत जरूरी है। उसे हर हाल में तैयार करना ही पड़ेगा।"

“और चौथा ?”

“चौथा?” देवराज चौहान ने पुनः सिगरेट का कश लिया---

"चौथी लड़की है। नीना पाटेकर। वह मंगल पांडे की ही तरह खतरनाक है। अण्डरवर्ल्ड में नाम रखती है। मां-बाप बचपन में ही मर गये थे। शराबी मामा ने पाल-पोसकर बड़ा किया कि उसकी जवानी को कैश कराकर अपना बुढ़ापा बिता लेगा और नीना पाटेकर के जवान होते ही उसके शराबी मामा ने मोटा पैसा लेकर उसके सामने ग्राहक खड़ा कर दिया। जबकि उसे नफरत थी कि कोई मर्द उसके जिस्म को हाथ लगाये। जब मामा नहीं माना तो उसने लोहे की छड़ उठाकर मामा और मामा के लाये ग्राहक के सिरों को फोड़कर उनकी हत्या की और फरार हो गई। वह समझ गई कि मर्दों की दुनिया में उसके लिए शराफत से जीने के लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए उसने बुरे कामों में पांव रख दिया। और दो सालों में ही अण्डरवर्ल्ड में उसकी दरिन्दगी के चर्चे गूंजने लगे। आज की तारीख में ऐसा कोई काम नहीं जो उसने न किया हो। कहने को वह सिर्फ अट्ठाइस साल की लड़की है, लेकिन वास्तव में वह मौत का दूसरा रूप है।"

जगमोहन की निगाहें देवराज चौहान के चेहरे पर टिकी थीं।

“नीना पाटेकर ने लूटपाट और नम्बर दो के धन्धों से बेपनाह पैसा इकट्ठा किया, इतना कि अब उसे कुछ भी करने की जरूरत नहीं। थी, परन्तु साल भर पहले उसकी बेपनाह दौलत को कोई ले उड़ा ।"

“ले उड़ा.... कौन?” जगमोहन चौंका।

"मालूम नहीं। यह काम ऐसे किसी इंसान ने ही किया होगा, जिसे इत्तफाक से मालूम हो गया है कि वह अपना माल कहां रखती है। नीना पाटेकर ने उस इंसान को तलाशने की बहुत चेष्टा की, जिसने उसे एकदम खाली कर दिया, परन्तु वह उसे नहीं मिला और मिलेगा भी नहीं। वह जो भी होगा, माल के साथ इस शहर से बहुत दूर पहुंच चुका होगा और सैकड़ों बार उसने कसम उठाई होगी कि इस शहर में उसने कभी दोबारा कदम नहीं रखना।"

जगमोहन ने सहमति से सिर हिलाया।

“यह हैं वे चारों, जो मेरी बनाई बैंक डकैती की योजना में शामिल होंगे। दो महीने से तुम और मैं इन लोगों पर नजर रख रहे हैं। बैंक डकैती में खतरा चाहे कितना भी हो, परन्तु इन चारों में से कोई काम करने के लिए इंकार करे, ऐसा नहीं होगा। सबको पैसे की जरूरत है और डालचन्द को छोड़कर, सब एक-दूसरे से खतरनाक हैं! मैं अब जल्दी ही उन लोगों से मिलकर बात करूंगा।"

“और अगर किसी ने इंकार कर दिया तो।”

“जब ऐसा वक्त आयेगा, देख लेंगे। पहले बात तो कर लूं।" देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा।

■■■

भीड़ भरी, वाहनों से लदी सड़क पर, वह कार ऐसी तूफानी गति से जा रही थी कि अन्य वाहन उसकी रफ्तार देखते ही हक्के-बक्के हो रहे थे। वाहनों के बीच में से सांप की भांति इधर-उधर से होकर गुजर रही वह कार, किसी भी वक्त खतरनाक एक्सीडेंट की वजह बन सकती थी।

इसके साथ ही पीछे से सायरन बजाकर आती पुलिसकार ने वहां और भी हैरानी और घबराहट पैदा कर दी थी। कई चालकों ने अपने वाहन धीमें कर दिये थे और कइयों ने अपने वाहनों को सड़क के किनारे ले जा रोका था। किसी की समझ में नहीं आया कि बात क्या है?

आगे वाली कार जिस-जिस तरह से रास्ता बनाकर आगे बढ़ रही थी, पीछे आ रही पुलिस कार भी उन्हीं रास्तों से तेजी से बढ़ती उस कार के पीछे लगी थी। पुलिस कार का ड्राईवर जैसे इस बात के लिए पक्का हुआ पड़ा था कि आगे वाली कार को हर हाल में पकड़कर रहना है।

तभी आगे वाली कार ने एक कार को जोर से टक्कर मारी। क्योंकि वह उसके सामने आकर उसके रास्ते बाधा बनने जा रही थी। दूसरी कार भड़ाक से अन्य कार के साथ जा टकराई और आगे वाली कार को रास्ता मिलते ही तीव्रता से आगे बढ़ती चली गई।

पुलिस कार मौजूदा फासले को कम नहीं कर पा रही थी।

तभी आगे चौराहा आया।

आगे वाली कार लाल बत्ती होने पर भी तेजी से बाईं तरफ मुड़ गई और कोई रास्ता न पाकर, पुलिस कार ने भी लाल बत्ती पार कर ली। आगे वाली कार का पीछा न छोड़ा।

आगे वाली कार के ड्राईवर ने चेहरे पर रूमाल बांधा हुआ था, ताकि पुलिस वाले उसके चेहरे को न देख सकें। उसकी सतर्क आंखें हर तरफ घूम रही थीं और बार-बार बैक मिरर में पीछे आ रही पुलिस पर जा रही थीं।

एकाएक उसकी आंखों की कठोरता बढ़ी। उसने कार की रफ्तार और भी तेज कर दी। इस सड़क पर खास ट्रैफिक नहीं था। कार की गति तेज होते ही पुलिस कार से फासला बढ़ने लगा।

पुलिस कार के ड्राईवर ने कार की रफ्तार तेज की। परन्तु आगे वाली दूर होती जा रही कार का फासला, नहीं पकड़ पाई।

पुलिस कार में ड्राईवर के अलावा, एक सब-इंस्पेक्टर और दो हवलदार थे।

“रामसिंह!” सब-इंस्पेक्टर दांत भींचकर बोला--- “आगे वाली कार दूर होती जा रही है।"

“सर ।” कार ड्राईव कर रहा रामसिंह झुंझलाकर कह उठा--- “उस कार का ड्राईवर बहुत एक्सपर्ट है।"

“तुम क्या कम हो ?”

"वह मुझसे भी ज्यादा है।"

“शटअप... ।” सब-इंस्पेक्टर ने कठोर स्वर में कहा--- “तुम जानते हो, उसे पकड़ना बहुत जरूरी है.... ।”

“मैं पूरी कोशिश कर रहा....।"

“फालतू की बात मत करो। आगे वाली कार को कवर करो।"

रामसिंह के दांत भिंच गये। उसने कार के एक्सीलेटर को पूरा दबा दिया। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आगे वाली कार दूर.... और दूर होती जा रही थी।

“वह हमारे हाथ नहीं आयेगा सर....।" पीछे बैठा हवलदार चिन्ता भरे स्वर में कह उठा।

तभी आगे वाली कार को दाईं तरफ मोड़ काटते देखा।

“सर, वो नाके पर जाने वाली सड़क पर जा रहा है।" दूसरा कांस्टेबल कह उठा ।

"अब वह नहीं बच पायेगा।" सब-इंस्पेक्टर ने कड़वे स्वर में कहा और वायरलैस सैट का रिसीवर उठाकर, नाके पर मौजूद पुलिस वालों से सम्बन्ध बनाने लगा।

कुछ ही क्षणों में सम्बन्ध बन गया। बात हुई।

“हैलो! हैलो! चार्ली। चार्ली.... ।”

“हैलो! मैं सब-इंस्पेक्टर रतनचंद हूं। नाके पर कितनी पुलिस है? ओवर....।"

“बारह....। क्या बात है! ओवर.....।"

“मैं ड्रग्स के एक खतरनाक मुजरिम का पीछा कर रहा हूं। लेकिन मुझे लगता है कि हम उसे पकड़ नहीं पायेंगे। वह हमारी पहुंच से दूर होता जा रहा है। ओवर....।"

"वह मुजरिम कार पर है। ओवर...?"

"हां....। और वह आपके नाके की तरफ ही बढ़ रहा है ओवर....।"

"कार का नम्बर....ओवर।"

"बी-एम-बी, थ्री-थ्री-थ्री-थ्री। गहरे नीले रंग की मारुति कार है। कार में वह अकेला है और उसे पकड़ना बहुत जरूरी है। ओवर।" सब-इंस्पेक्टर ने कहा।

"ओ०के० । हम उसकी घेराबंदी का इंतजाम करते हैं। वह निकल नहीं पायेगा। ओवर।"

"हम भी पीछे ही आ रहे हैं। वह तीन-चार मिनट तक नाके पर पहुंच जायेगा। ओवर एण्ड आल।" कहने के साथ ही सब-इंस्पेक्टर रतन चंद ने वायरलैस सैट ऑफ कर दिया।

तभी ड्राईवर रामसिंह ने भी कार को, नाके पर जाने वाली सड़क पर मोड़ दिया।

"सर।" पीछे बैठा कांस्टेबल कह उठा--- "नाके वाले उसे अवश्य पकड़ लेंगे।"

"हां।" रतनचंद की आवाज में विश्वास के भाव थे--- "अब वह नहीं बच पायेगा।"

■■■

नाके पर मौजूद पुलिस वालों में भगदड़ पैदा हो गई। इस वक्त वहां पर दो सब-इंस्पेक्टर, छः कांस्टेबल और चार हवलदार मौजूद थे। सब हथियारबंद थे।

वहां पर एक पुलिस जिप्सी और एक पुलिस कार मौजूद थी।

वह नाका पार करते ही, सीधी सड़क पर पच्चीस मिनट में दूसरे शहर पहुंचा देती थी। इस नाके पर अक्सर बड़े-बड़े अपराधी या फिर अवैध सामान ले जाने वाले पकड़े जाते थे। इसलिए यहां पर सतर्कता और सुरक्षा का हर वक्त ही तगड़ा इंतजाम रहता था।

फौरन ही वहां मौजूद सब पुलिस वालों को मालूम हो गया कि इस नाके की तरफ नीले रंग की मारूति कार बढ़ रही है। जिसमें ड्रग्स से वास्ता रखने वाले मुजरिम हैं और उसके पीछे पुलिस की कार लगी हुई है।

तुरन्त ही आने वाली कार को रोकने के इंतजाम होने लगे।

सब-इंस्पेक्टर के आदेश पर बैरियर गिरा दिया गया।

सड़क किनारे पर ही पुलिस वालों के लिए पक्का कमरा बना हुआ था। वहां पर दो हथियारबंद कांस्टेबलों को खड़ा कर दिया गया। खिड़की से उनकी गन की बैरलें, बैरियर की तरफ उठी थीं। उन्हें आर्डर मिल चुका था कि नीली कार के ड्राईवर को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए। जरूरत पड़ने पर कार के टायरों को ही निशाना लगाकर उन्हें बेकार किया जाये।

सड़क के दूसरे किनारे पर रेत की बोरियों के ढेर के पीछे कांस्टेबलों को तैनात करके उन्हें भी ऐसा ही आदेश दिया गया था। मारूति जिप्सी और पुलिस की ड्राइविंग सीट पर एक-एक हवलदार को बिठा दिया गया, ताकि किसी वजह से आने वाली कार का पीछा करने की जरूरत पड़े तो, ऐसा करने में देर न लगे। उन्हें पूरा विश्वास था कि नीली मारुति वालों को आसानी से पकड़ लेंगे।

बैरियर के दोनों किनारों की तरफ एक-एक सब-इंस्पेक्टर दो-दो हवलदारों के साथ सतर्क मुद्रा में खड़े हो गये। सबकी निगाहें उस दिशा की तरफ थीं जहां से कार आनी थी।

तब तक बैरियर पर चार वाहन आ खड़े हुए थे।

उनमें नीली मारूति नहीं थी।

“जल्दी से बैरियर हटाओ और इन वाहनों को जाने दो।" सब-इंस्पेक्टर ने कहा।

पास खड़ा हवलदार बैरियर को उठाने के लिए आगे बढ़ गया।

"सर।" पास खड़ा हवलदार कह उठा--- "मेरे ख्याल में एक कार को रोकने के लिए हमने कुछ ज्यादा ही इंतजाम कर लिए हैं।"

"कैसे?"

“बैरियर गिरा है तो ऐसे में वह कार तो हर हाल में रुकेगी ही....।" हवलदार बोला ।

“हां... ।” सब-इंस्पेक्टर ने चुभती निगाहों से हवलदार को देखा--- "बैरियर गिरा होने के कारण, वह कार तो रुकेगी ही। उसके बाद तुम कार वाले को पकड़ने के लिए आगे जाओगे। तुम्हारे साथ एक-दो और भी होंगे। मैं भी हो सकता हूं। इतने में कार वालों ने हम पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं तो?”

हवलदार कुछ नहीं कह सका।

"हमने आगे जाकर उस कार वाले को नहीं पकड़ना है।" सब-इंस्पेक्टर ने शब्द चबाकर कहा--- "बल्कि दूर रहकर, कार वाले को बाहर निकलने पर मजबूर करना है कि वह हाथ खड़े करके हमारी तरफ आये। हमारे लिये सतर्कता बरतनी जरूरी है।"

बैरियर पर खड़े वाहन वहां से आगे बढ़ गये तो बैरियर पुनः गिरा दिया गया।

सबको नीली मारूति के वहां पहुंचने का इंतजार था। जोकि पहुंचने ही वाली थी।

■■■

नीली मारूति तूफानी गति से सड़क पर दौड़ी जा रही थी। आगे आने वाले हर वाहन को वह ओवरटेक करती जा रही थी। कार चलाने वाला इस तरह कार चला रहा था कि जैसे कार न होकर, उसके लिए वह महज खिलौना हो ।

चेहरे पर बंधे रुमाल की वजह से न तो उसका चेहरा नजर आ रहा था और ना ही चेहरे के भाव। परन्तु उसकी आंखों से स्पष्ट महसूस किया जा सकता था कि वह कठोरता से घिरा हुआ है और उसकी निगाह हर तरफ है। बैक मिरर में अब पीछे आने वाली पुलिस कार नहीं नजर आ रही थी। उसे पहले ही विश्वास था कि पीछे लगी पुलिस कार से वह आसानी से पीछा छुड़ा लेगा।

कुछ देर बाद उसे नाके का गिरा हुआ बैरियर और सतर्क खड़े पुलिस वाले नजर आने लगे। उसकी आंखों में एकाएक ढेर सारी सख्ती और बढ़ गई। जाने क्यों उसे इस बात का एहसास हो गया कि बैरियर उसके लिए गिराया गया है। तभी उसे ध्यान आया कि पीछे लगी पुलिस कार ने उसे इस तरफ आते देखकर, कार में मौजूद वायरलैस सैट द्वारा नाके वालों को खबर कर दी होगी। उसे महसूस होने लगा कि जैसे वह घिरता जा रहा है।

पीछे जाने का भी फायदा नहीं था।

क्योंकि पीछे लगी पुलिस कार, अवश्य पीछे आ रही होगी। वह कार की स्पीड कम करने लगा और नाके की मौजूदा स्थिति को पहचानने लगा। उसकी निगाहों में रेत की बोरियों के पीछे बैठे कांस्टेबल आये। बैरियर के दायें-बायें हथियार सहित खड़े पुलिस वालों को देखा और बैरियर पर पुलिस को दोनों कारों में बैठे, कांस्टेबलों को देखा।

रुमाल के पीछे से उसके होंठ भिंचते स्पष्ट नजर आये।

सामान्य अवस्था में नाके पर पुलिस वाले इस तरह पोजीशन नहीं लेते।

मतलब कि इन्हें उसके पहुंचने की खबर मिल चुकी है। उसे ही पकड़ना चाहते हैं। इस सोच के साथ ही उसका दिल एकबारगी तेजी से धड़का। लेकिन फिर वह ठीक हो गया। इस सोच के साथ कि जो होगा देखा जायेगा। घबराने से फंस सकता है और समझदारी से बच भी सकता है।

कुछ ही पलों में उसने बैरियर के पास कार को ले जा रोका। इंजन चालू ही रहा। उसको देखते-ही-देखते पुलिस वालों के हथियार उसकी कार की तरफ उठते चले गये।

दांत भींचे उसने कार का हार्न बजाया।

तभी उसके कानों में बैरियर पर खड़े सब-इंस्पेक्टर का ऊंचा स्वर सुनाई दिया---

"बाहर निकलो...।"

"क्यों?" उसने ऊंचे स्वर में पूछा।

"हमने तुम्हारी कार की तलाशी लेनी है। तुमने मुंह पर रुमाल क्यों बांध रखा है?"

उसने कार का इंजन बंद कर दिया। वह समझ रहा था कि बातें करके सिर्फ वक्त ही बरबाद होगा। इसके पीछे वाली पुलिस कार आ पहुंची तो और मुसीबत में आ जायेगी। उसने पास रखा ब्रीफकेस उठाया और कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया। वह एक ठीक-ठाक, सेहतमंद व्यक्ति था। उसकी आंखों में दृढ़ता भरी चमक नजर आ रही थी।

बिना रुके वह तेजी से आगे बढ़ा और झुकते हुए बैरियर के नीचे से निकलकर दूसरी तरफ आ गया। किसी को आशा नहीं थी कि वह इतनी आसानी से पास आ पहुंचेगा।

पुलिस वालों के हथियार उसकी ही तरफ थे।

"तुम लोग ड्यूटी के बहाने दूसरों का वक्त खराब करते हो।" वह पास पहुंचते ही उखड़े स्वर में कह उठा--- "मैं कोई अपराधी हूं जो तुम लोग मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हो? मैं इस देश का शरीफ आदमी हूं। वह सामने कार खड़ी है, लो तलाशी। रही बात कि मैंने चेहरे पर रुमाल क्यों बांध रखा है, तो मुझे धूल से एलर्जी है। सांस की तकलीफ हो जाती है।"

उस सब-इंस्पेक्टर ने बैरियर के दूसरी तरफ सब-इंस्पेक्टर को कार की तलाशी लेने का इशारा किया तो वह पास मौजूद दोनों हवलदारों के साथ, कार की तरफ बढ़ गया।

"ब्रीफकेस में क्या है?" सब-इंस्पेक्टर ने कहा।

"कुछ नहीं। मेरे बिजनेस के कागजात हैं।" वह पहले वाले स्वर में बोला।

"ब्रीफकेस दिखाओ। चेहरे से रूमाल हटाकर अपना चेहरा दिखाओ।" सब-इंस्पेक्टर ने सख्त स्वर में कहा।

"देख लो। लेकिन मुझे जल्दी जाने दो। कहने के साथ ही उसने चंद कदम के फासले पर खड़ी पुलिस जिप्सी पर निगाह मारी---  "आओ, वहां रखकर, ब्रीफकेस खोलता हूं।" कहने के साथ ही वह जिप्सी की तरफ बढ़ गया। सब-इंस्पेक्टर साथ हो गया।

दूसरा सब-इंस्पेक्टर दोनों हवलदारों के साथ, कार की तलाशी ले रहा था।

“तुम्हारे पीछे पुलिस कार लगी थी। तुमने अपनी कार क्यों नहीं रोकी?" सब इंस्पेक्टर ने पूछा।

"मेरे पीछे?” उसने हैरानी जाहिर की--- "मेरे पीछे भला पुलिस कार क्यों लगेगी? मुझे लगता है कि तुम लोगों को भारी गलतफहमी हो गई। अभी सब कुछ सामने आ जायेगा।"

वह जिप्सी के पास पहुंच कर ठिठका।

जिप्सी का इंजन स्टार्ट था।

सब-इंस्पेक्टर के साथ दोनों हवलदार भी आये थे।

"पहले चेहरा दिखाऊं या ब्रीफकेस ?” सब-इंस्पेक्टर को देखकर पूछा।

"चेहरा....।" सब-इंस्पेक्टर ने कहा।

उसने ब्रीफकेस थामे दोनों हाथ इस तरह उठाये जैसे चेहरे से रुमाल हटाने जा रहा हो। सब-इंस्पेक्टर और दोनों हवलदार अब इतने सतर्क नहीं थे, जितने कि पहले थे। दोनों हाथ ऊपर उठाते ही उसने बला की फुर्ती के साथ सब-इंस्पेक्टर को जोरों से धक्का दिया।

सब-इंस्पेक्टर पास खड़े हवलदार से टकराया और उसे लिए नीचे जा गिरा। दूसरे हवलदार ने हाथ में थमी गन को सीधा करना चाहा कि तभी उसके हाथ में थमा ब्रीफकेस तेजी के साथ उसके कंधे पर पड़ा। हवलदार के होठों से तीव्र कराह निकली। गन उसके हाथ से छूट गई और कंधा थामें वह नीचे झुकता चला गया।

यह सब सैकिण्डों में हो गया।

पुलिस वालों के सम्भलने की बात तो दूर, उन्हें सम्भलने का मौका भी नहीं मिला कि अचानक यह क्या हो गया है। यहां तक कि जिप्सी पर कांस्टेबल, ड्राईविंग सीट पर बैठा, टांगें बाहर की तरफ किए हक्का-बक्का, नासमझी के दौर से गुजर रहा था कि ब्रीफकेस वाले ने एक पल गंवाये बिना उसके सिर के बाल पकड़कर बाहर खींचा तो वह छाती के बल नीचे जा गिरा।

दूसरे ही पल वह स्टार्ट हुई पड़ी जिप्सी के भीतर था और जिप्सी दौड़ पड़ी।

पुलिस वाले सम्भले ।

जाती जिप्सी पर गोलियां चलाईं। कोई फायदा नहीं हुआ। सब-इंस्पेक्टर और हवलदार स्टार्ट हुई पुलिस कार की तरफ भागे ताकि पीछा करके जिप्सी को रोका जा सके। तब तक पीछे लगी पुलिस कार भी वहां आ पहुंची थी।

दोनों पुलिस कारें जिप्सी के पीछे लग गईं।

जो हुआ, उसके लिए पुलिस वाले जिम्मेवार नहीं थे। ब्रीफकेस वाले ने ही हद से ज्यादा फुर्ती दिखा दी थी कि जिसकी आशा किसी को भी नहीं थी।

उसने जिप्सी के बैक मिरर से पीछे आती पुलिस कारों को देखा। लेकिन अब उसकी आंखों में किसी प्रकार का तनाव नहीं था। स्टेयरिंग उसके हाथ में था और उसे पूरा विश्वास था कि कुछ ही देर में पुलिस कारों से पीछा छुड़ा लेगा। बैरियर पर खड़ी नीली कार के बारे में उसे कोई फिक्र नहीं थी। उस कार के दम पर पुलिस उस तक नहीं पहुंच सकती थी। क्योंकि वह कार दो घंटे पहले ही अपने काम के लिए चोरी की थी।

जिप्सी जैसे हवा की रफ्तार से बराबरी कर रही थी। बैक मिरर से देखने पर स्पष्ट नजर आ रहा था कि पीछे लगी पुलिस कारें अब पीछे छूटने लगी थीं।

■■■

शहर की आबादी शुरू होते ही उसने पुलिस जिप्सी को सड़क के किनारे नीचे उतारा और कुछ आगे ले जाकर रोका और इंजन बंद कर दिया। आसपास पेड़ और झाड़ियां थीं। नीचे उतरकर उसने सतर्क निगाहों से आसपास देखा।

सब ठीक था। खतरे वाली कोई बात नहीं थी। पीछे आने वाली पुलिस कारों के बारे में उसे पूरा विश्वास था कि वह बहुत पीछे हैं। उसने अपनी कमीज उतारी और उससे जिप्सी में मौजूद अपनी उंगलियों के निशान साफ करने लगा। जहां-जहां उसके हाथ लगे थे और जहां नहीं लगे, वहां भी। वह किसी तरह भी लापरवाही नहीं करना चाहता था कि जो बाद में उसके लिए मुसीबत खड़ी करे।

अच्छी तरह साफ करने के पश्चात् उसने अपना ब्रीफकेस उठा कर बाहर रखा, फिर जिप्सी की पैट्रोल टंकी खोलकर, हाथ में पकड़ी कमीज की बत्ती बनाकर, उसे भीतर धकेला और जब बाहर निकाला तो वह पैट्रोल में भीगी हुई थी। उस कमीज को उसने एक तरफ नीचे रखकर पैंट उतारी और जेबों से सामान निकाल कर जिप्सी के बोनट पर रखा और पैट्रोल में भीगी कमीज पर पैंट रखकर उसने जेब से माचिस निकाली और कपड़ों को आग लगा दी।

कपड़े जलने लगे तो उसने चेहरे पर बंधा रुमाल उतारा और उसे भी आग में फैंककर, आगे बढ़ा और जिप्सी के बोनट पर पड़े। ब्रीफकेस को खोलकर उसमें से नई पैंट-शर्ट निकाली और ब्रीफकेस बंद कर दिया।

कमीज-पैंट पहनते हुए उसके पहले वाले कपड़े राख होते जा रहे थे। वह तब तक वहीं खड़ा रहा, जब तक कपड़े पूरी तरह जल नहीं गये। उसके बाद राख को चैक करके उसने तसल्ली की, फिर ब्रीफकेस थामें पेड़ों-झाड़ियों के झुरमुट को पार करता हुआ आगे बढ़ गया। यह कपड़े उसके लिए खतरा बन सकते थे। कपड़ों के दम पर पुलिस उसे पकड़ सकती थी। लेकिन अब ऐसा कोई खतरा सामने नहीं आने वाला।

पीछे लगी पुलिस के बारे में वह अब भूलता जा रहा था। जो ब्रीफकेस उनके हाथ में था, उसे पुलिस पहचानती थी। लेकिन ब्रीफकेस से भी अब जल्दी ही उसका पीछा छूट जाना था। कुछ देर बाद वह शहर में प्रवेश कर गया। पेड़-झाड़ियां समाप्त हो चुकी थीं। कुछ आगे जाकर, उसने टैक्सी पकड़ ली।

■■■

आधे घंटे बाद उसने अपार्टमेंट के एक फ्लैट की बेल बजाई। कुछ ही क्षणों में दरवाजा खुला। तीस वर्षीय, लम्बे बालों वाला युवक नजर आया। उसकी प्रश्न भरी निगाह, उस पर जा टिकी।

"घोड़े की सवारी करके आ रहा हूं।" ब्रीफकेस वाले ने कहा--- "बैठने को नहीं कहोगे?"

"मेरे पास घोड़ा नहीं है।" कहते हुए वह पीछे हट गया।

उसने भीतर प्रवेश किया और सामने नजर आ रहे टेबल की तरफ बढ़ गया। लम्बे बालों वाले युवक ने दरवाजा भीतर से बंद किया और पास आ पहुंचा। तब तक वह ब्रीफकेस खोल चुका था। ब्रीफकेस कोकीन के छोटे-छोटे पैकिटों से भरा पड़ा था। यह देखकर उस युवक की आंखों में चमक आ गई।

"वैरी गुड।" उसके होठों से निकला और पैकिटों की तरफ हाथ बढ़ाये।

परन्तु ब्रीफकेस वाले ने उसकी कलाई पकड़ ली।

लम्बे बालों वाले ने प्रश्न भरी निगाहों से उसे देखा।

"पहले ख़बर कर दो कि माल मिल गया है। उसके बाद तुम इन पैकिटों को हाथ लगा सकते हो।" उसने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा। कलाई छोड़ दी।

"ओ०के०।" कहने के साथ ही वह फोन की तरफ बढ़ा।

“नम्बर मैं मिलाऊंगा।" ब्रीफकेस वाला आगे बढ़ा और रिसीवर उठाकर नम्बर मिलाने लगा।

जब लाइन मिल गई तो रिसीवर लम्बे बालों वाले की तरफ बढ़ा दिया।

"हैलो। मैं बोल रहा हूं। माल मेरे पास पहुंच गया है। यस....अगले सप्ताह मुझे फिर चाहिये। ठीक है।" इसके साथ ही उसने रिसीवर ब्रीफकेस वाले की तरफ बढ़ाया--- “बात करो।"

“हां।" उसने रिसीवर लिया।

"मालूम पड़ा, तुम्हारे पीछे पुलिस पड़ गई। पुलिस ने तुम्हें पहचाना?" स्वर कानों में पड़ा।

"नहीं! मैं बिल्कुल ठीक हूँ....।"

"गुड। आकर अपनी पेमेन्ट ले लो....।" इसके साथ ही दूसरी तरफ से लाइन कट गई।

ब्रीफकेस वाले ने रिसीवर रखकर लम्बे बालों वाले को देखा।

"दरवाजा बंद कर लो।" कहने के साथ ही दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

अपार्टमेंट से बाहर आकर जेबों में हाथ डाले वह बस स्टैण्ड की तरफ बढ़ गया। जहां से बस पकड़ कर, वह वापस अपने शहर जा सके। ब्रीफकेस वाला और कोई नहीं, डालचन्द था। दक्ष कार ड्राईवर। तीन बार कार रेसिंग में हिस्सा ले चुका था। बीमार मां का इलाज और जवान बहन की शादी करना चाहता था। परन्तु पास में पैसा नहीं था। इस कार रेसर की निगाहें दौलत को तलाश कर रही थीं।

देवराज चौहान ने, जगमोहन से इसी कार रेसर डालचन्द के बारे में जिक्र किया था।

■■■

उस्मान अली ने अपने गालों पर हाथ फेरा और सड़क के आसपास देखा। कड़कती धूप होने की वजह से एक-दो लोग ही आते-जाते नजर आ रहे थे या फिर कभी कभार कोई वाहन गुजर जाता था। हर तरफ चुप्पी का माहौल नजर आ रहा था।

उस्मान अली की नजरें पुनः सामने नजर आ रहे बंगले पर जा टिकीं। उसे सब ठीक नजर आया। कपड़ों में छिपे चाकू पर हाथ फेरा, जिससे वह अब तक उन चार लोगों को खत्म कर चुका था जो उसके काम के आड़े आये थे। वह बंगले की दीवार की तरफ बढ़ा। कई सालों से उसने एक ही धंधा अपनाया हुआ था। घरों में घुसकर लूटपाट करना। कभी-कभी तो खासा माल हाथ लग जाता और जब तक माल खत्म होता, तब तक तो ऐश करता। उसके बाद पुनः नये शिकार की खोज में चल पड़ता।

उस्मान अली में खासियत थी कि दौलत के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता था।

दीवार के पास पहुंचकर उसने एक बारे फिर आसपास देखा। सब ठीक पाकर उसने नौ फीट ऊंची दीवार सैकिण्डों में फलांगी और बंगले के भीतरी हिस्से में था। हर तरफ नजर दौड़ाने पर भी उसे कोई नजर नहीं आया। उसने यही सोचा कि बंगले के नौकर और दूसरे लोग, गर्मी की अधिकता की वजह से आराम कर रहे होंगे।

उस्मान अली बंगले की इमारत के पास पहुंचा और दरवाजे-खिड़कियों को चैक करते हुए, भीतर प्रवेश करने के लिए कोई रास्ता तलाश करने लगा।

■■■

"बिजनेस.... बिजनेस....बिजनेस । काम बहुत ज्यादा है। फुर्सत नहीं। मैं तुम्हें बहुत अच्छी तरह जानता हूं। कोई काम नहीं होता तुम्हें। तुमने क्या हाथों से मशीन चलानी है। मिल को सम्भालने के लिए सैकड़ों का स्टाफ क्या तुमने यूं ही रखा हुआ है। तीन-तीन दिन तुम घर नहीं आते। मुझे बेवकूफ मत समझो। तुमने जो नई सैकेट्री रखी है, उससे ही तुम्हें फुर्सत नहीं मिलती कि मेरे पास आ सको। तुम यही समझते होगे कि तुम्हारे चर्चे मुझ तक नहीं पहुंचते। सब पहुंचते हैं। एक-एक पल की रिपोर्ट मेरे पास रहती है। कहो तो सबूत भी पेश कर दूंगी। अब तो तुमने हद ही कर दी। रातों को भी गायब रहने लगे। तुमने ही मुझे मजबूर किया है कि तुम्हारी तरह मैं भी किसी के साथ सोना शुरू कर दूं और...।"

उस्मान अली सब सुन रहा था। वह तैंतीस-चौंतीस बरस की खूबसूरत बला थी। उसके लम्बे खुले बाल कूल्हों तक आ रहे थे। बदन पर नाइटी थी जो उसके जानलेवा कूल्हों को कठिनता से ढांप रही थी। और स्पष्ट नजर आ रहा था कि उस नाइटी के अलावा उसने और कुछ नहीं पहन रखा था। सब कुछ तो स्पष्ट नजर आ रहा था।

उसकी पीठ उस्मान अली की तरफ थी। ए.सी. की ठण्डी हवा वहां व्याप्त थी।

उस्मान अली उसके शब्दों को सुनते हुए अपनी योजना बनाता रहा था।

“क्या कहा? आज घर आओगे। आओगे तो कौन-सा तीर मार लोगे। यह सोचकर आना कि मेरे से कुछ नहीं मिलेगा। अपना कोटा पूरा करके आना। तुमने मेरा प्यार देखा है। गुस्सा नहीं। अब मैं तुम्हारा वो हाल करूंगी कि....देखना।" कहने के साथ ही उसने रिसीवर पटक दिया।

वह पलटी तो उस्मान अली उसकी खूबसूरती को देखता रह गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि नाईटी से झांकता उसका जिस्म अच्छा है या चेहरा। दोनों में से उसे एक चीज को चुनना पड़े तो वह किसे चुनेगा ?

उस्मान अली पर निगाह पड़ते ही वह जोरों से चौंकी।

उस्मान अली अपने चेहरे पर सख्ती ले आया। फोन पर होने वाली बातचीत से उसने यह अन्दाजा तो लगा ही लिया था कि पति-पत्नी में खटपट रहती है। इसे कैसे सम्भालना है, उस्मान अली सोच चुका था।

"कौन हो तुम?" उसके होठों से निकला।

उस्मान अली ने कपड़ों से चाकू निकाला और बटन दबाकर खोल लिया।

चाकू को देखते ही उसके चेहरे पर खौफ भर आया।

"मैडम।" उस्मान अली चाकू लहराता, शब्दों को चबाकर कह उठा--- "मुझे वास्तव में अफसोस है। मुझे पहले नहीं पता था कि.... ।”

“कौन हो तुम? किस बात का अफसोस कर रहे हो? क्या नहीं पता था?” वह घबराई-सी बोली।

"मैडम। मुझे नहीं पता था कि आप इतनी खूबसूरत हैं। आपकी खूबसूरती के बारे में पता होता तो कम-से-कम आपकी हत्या का काम अपने हाथ में नहीं लेता।”

“म....मेरी हत्या....।” उसका गला सूखने लगा। दो कदम वह पीछे हटी।

"हां।"

“लेकिन....लेकिन तुम मुझे क्यों मा....मारना चाहते हो?"

"मैं नहीं चाहता। तुम्हारा पति चाहता है।" उस्मान अली चाकू लहरा कर खतरनाक स्वर में कह उठा--- "उसने मुझे पांच लाख दिए, तुम्हारी जान लेने के लिए...!"

“ओह.... ।" उस युवती के दांत भिंच गये--- “तो अब इस हद तक कमीनेपन पर आ...।”

“वह किसी दूसरी लड़की के चक्कर में है। उससे शादी भी करना चाहता है। लेकिन आप आड़े आ रही हैं। जब तक आप जिन्दा हैं, वह शादी कैसे कर सकता है!”

“वह कमीना इधर-उधर मुंह मारता फिरता है--- यह तो मैं जानती थी। लेकिन....लेकिन मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि....कि वह मुझे मारने के लिए....।"

“सोचना चाहिए। तुम्हें सब कुछ पहले ही सोच लेना चाहिये था कि दौलतमंद इंसान, अपनी दौलत के दम पर कुछ कर-करवा सकता है।" उस्मान अली का स्वर खतरनाक था।

उसने सूखे होठों पर जीभ फेरते हुए उस्मान अली को देखा।

"त....तुम मेरी जान लोगे?" उसकी आवाज में घबराहट और चेहरे पर भय था।

"हां....।" चाकू थामे उस्मान अली ने खतरनाक अन्दाज में एक कदम आगे बढ़ाया।

"नहीं! भगवान के लिए नहीं। मुझे मत मारो। मैं...मैं....।"

"मैडम। मैं बुरा आदमी जरूर हूं। लेकिन धंधे में गड़बड़ नहीं करता। पांच लाख लिया है तेरी जान लेने के लिए। जिसमें से  ढाई लाख खा-पी चुका हूं। अब मेरे पास पांच लाख भी नहीं कि तुम्हारे पति को वापस देकर, यह सौदा कैंसिल कर सकूं...।"

“सुनो।” वह जल्दी से कह उठी--- "मैं तुम्हें ढाई लाख दे देती हूं। तुम पांच लाख पूरे करके मेरे पति को वापस दे देना।"

“उसमें क्या फायदा! तुम्हारा पति पांच लाख किसी को देकर, तुम्हारी जान लेने के वास्ते भेज देगा। यह मामला तो तभी खत्म होगा, जब तुम मर जाओगी।”

“वह मुझ पर छोड़ दो। मैं सब ठीक कर लूंगी। तुम मेरी जान मत लो।" वह घबरा रही थी और उसके शरीर में खौफ से भरा कम्पन हो रहा था।

उस्मान अली ने जानबूझकर आधा मिनट चुप्पी में गुजारा।

“वैसे तो यह गलत है कि जो वायदा किया जाये, वह तोड़ दिया जाये। लेकिन जाने क्यों भरी जवानी में तेरा तीन-पांच करने का मन नहीं कर रहा। ठीक है। मानी तेरी बात । ढाई दे, ढाई मेरे पास पड़ा है। पांच पूरा करके, तेरे पति के मुंह पर मारता हूं। लेकिन तू मेरे मुंह पर क्या मारेगी?"

“क्या मतलब?"

“तेरी बात मैं खामखाह ही तो मानने से रहा। मुझे भी तो कुछ दाना-पानी चाहिये।”

सुनकर उसके चेहरे पर राहत के भाव आये। वह फौरन बोली---

“तुम्हें जो चाहिये.... ।” कहते हुए वह कुछ तन कर खड़ी हो गई--- “ले लो। सब हाजिर है।"

“बेकार की चीजों की बात मत करो। रोकड़ की बात करो।" उस्मान अली ने तीखे स्वर में कहा।

उसने उलझन भरी निगाहों से उस्मान अली को देखा। शायद उसे विश्वास नहीं आया कि सामने खड़े इंसान ने उसे नकार दिया है। एकाएक वह पलटी और वार्डरोब की तरफ बढ़ गई।

होंठ सिकोड़े उस्मान अली उसे देखे जा रहा था।

वार्डरोब के खाने को उसने चाबी निकाल कर खोला और उसमें से सोने और हीरे के कई गहने निकाल कर बैड पर रख लिए।

“यह साढ़े चार लाख से कम के नहीं हैं।" वह बोली।

उस्मान अली आगे बढ़ा और गहनों को देखने लगा। थोड़ी बहुत कीमत का अन्दाजा उसे भी था। वास्तव में वह चार लाख के आसपास के थे।

"तुम्हारा मतलब कि मैं ढाई तुम्हारे पति के खाते में डालूं और डेढ़ लाख मेरे....?" उस्मान अली बोला।

“हां...।"

“लेकिन डेढ़ लाख तो कम हैं।" उस्मान अली ने उसके खूबसूरत चेहरे पर नजर मारी।

“मेरे पास और नहीं है। यही गहने थे।" वह याचना भरे स्वर में कह उठी।

“कैश होगा। कुछ तो होगा ?"

“कैश....हां.... थोड़ा-सा है। एक मिनट....।" कहने के साथ ही वह पलटी और वार्डरोब के कपड़ों के नीचे से सौ-सौ की तीन गड्डियां निकल आईं--- “तीस हजार है।"

उस्मान अली ने गड्डियां लेकर जेब में डालीं और बैड पर बिखरे गहनों को समेट कर कपड़े में पैक किया और सीधा खड़े होते हुए बोला---

“हर कोई मेरी तरह शरीफ नहीं होता कि तेरी खूबसूरती पर तरस खा जाये। तेरा पति किसी दूसरे को भेजेगा तो वह तेरा गला काट कर ही जायेगा। तुम....।"

“मैं देख लूंगी उसे।” उसकी आंखों में खतरनाक चमक उभरी--- “आज वह घर आयेगा--- मैं उसे इस काबिल नहीं छोडूंगी कि वह दोबारा किसी को मेरी जान लेने के लिए भेज सके।”

“ऐसा हो गया तो फिर तुम्हारे जिन्दा रहने की गारंटी बनी रहेगी।"

इसके बाद उस्मान अली वहां से चलता बना। उसके होठों पर मुस्कान थी। कोई मेहनत नहीं करनी पड़ी। साढ़े पांच लाख का माल जेब में आ गया।

और देवराज चौहान इसी उस्मान अली को डकैती की योजना में लेने की सोचे बैठा था।

■■■

मंगल पांडे बेरहम हत्यारा था। चोरी और डकैती में भी अक्सर सफल रहता था। लेकिन उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी औरत। खूबसूरत नगीने को वह दौलत के दम पर काबू रखता था। जी-जान से उस पर दौलत उड़ाता था और उसकी वसूली भी बाखूबी करता था। औरत के मामले में मंगल पांडे की सोचें अलग थीं। वह चाहता था, उसकी पसन्द की औरत, उसके पास रहे तो उसके पास ही रहे। कहीं और मुंह न मारे । वह छोड़ दे तो फिर औरत जो भी करे, उसे क्या ?

इन दिनों मंगल पांडे के पास ढेर सारी दौलत थी। पिछले महीने तगड़ा हाथ मारा था। और रूबी नाम की खूबसूरत युवती इसकी दौलत पर फिदा थी और वह रूबी पर। अपने-अपने मतलब के लिए गाड़ी के दोनों पहिये एक-दूसरे की बराबरी करते दौड़ रहे थे।

रूबी का अपना छोटा-सा मकान था। बीस दिनों से मंगल पांडे उसके यहां भी डेरा डाले था। और मौज-बहार के दिन बिता रहा था और रूबी भी उससे दौलत वसूल-वसूल, इकट्ठे किये जा रही थी ।

तभी मंगल पांडे को दो दिन के लिए शहर से बाहर काम पर जाना पड़ा। रूबी को बोल गया कि दो दिन में लौट आयेगा। परन्तु वापसी हुई पांच दिन बाद।

रूबी तो दौलत की थी। इंसान की नहीं। दो दिन उसने मंगल पांडे की वापसी में गुजारे। उसके न आने पर, जैसे-तैसे दो दिन और बिता लिए। मंगल पांडे के न आने पर, रूबी समझ गई कि अब वह नहीं आयेगा। पांचवें दिन रूबी ने फोन करके अपने आशिक को बुला लिया।

मंगल पांडे के न आने पर रूबी का पुराना सिलसिला जारी हो गया।

लेकिन उसी पांचवें दिन मंगल पांडे वहां आ पहुंचा।

रूबी को किसी दूसरे के पहलू में देखकर उसका खून खौल उठा। क्योंकि उसके और रूबी के बीच यह तय था कि जब तक उसके पास रहेगी, उसकी ही बनकर रहेगी। दूसरे मर्द के पहलू में बैठना तो दूर, ऐसा कुछ सोचेगी भी नहीं ।

लेकिन यहां का नजारा देखा, वह वाह-वाह था।

"तुम...?" रूबी के होठों से निकला।

मंगल पांडे ने कड़वी जहरीली मुस्कान के साथ सिगरेट सुलगाई।

“मजे हो रहे हैं।” मंगल पांडे कड़वे स्वर में बोला।

“म मैं....मैंने....।” रूबी पास पड़े कपड़ों को अपने में समेटती हुई बोली--- "सोचा था कि अब तुम नहीं आओगे। इसलिए ....।”

“ठीक सोचा था। दो दिन के लिए गया। पांचवें दिन आया। तुमने ठीक सोच लिया। लेकिन अपनी मशीन को आराम दे लेना था। इतनी जल्दी चालू करने की क्या जरूरत थी? अगर तू मेरे दिए नोट ही गिनती तो कम-से-कम सात दिन बीत जाते। लेकिन तूने तो फौरन ही दौड़ लगा दी।" कहने के साथ ही मंगल पांडे ने रूबी के साथ वाले आदमी को देखा।

जो उलझन भरी निगाहों से उसे देख रहा था। अपने दोनों हाथ उसने टांगों के बीच रखे हुए थे। आखिरकार उसने रूबी को देखकर उखड़े स्वर में कहा---

“यह कौन है?”

“मंगल पांडे....।” रूबी के होठों से हड़बड़ाया स्वर निकला।

“मंगल पांडे हो या कोई भी हो। यह यहां क्यों आया। चलता करो इसे....।” वह मूड खराब होने वाले अंदाज में बोला ।

रूबी ने सूखे होठों पर जीभ फेरी।

“दफा हो यहां से....।” मंगल पांडे के माथे पर बल पड़े।

“मैं....?” उस व्यक्ति ने अजीब-से स्वर में कहा।

“जाओ.... ।” मंगल पांडे के कुछ कहने से पहले, रूबी ही उस व्यक्ति से कह उठी।

उस व्यक्ति ने गुस्से से भरी निगाहों से रूबी को देखा।

“क्यों जाऊं? ज्यादा पैसे देने वाला आ गया है तो मुझे धक्का दे रही हो। जबकि मैं तो तुम्हारी पुरानी पहचान वाला हूं। खुद ही फोन करके बुलाया। तीन हजार रुपया भी पहले धरवा लिया। मैं तो तुमसे निपट कर ही जाऊंगा।" एकाएक वह अड़ने वाले स्वर में कह उठा ।

रूबी ने बेचैन निगाहों से मंगल पांडे को देखा।

मंगल पांडे की सुर्ख निगाह, उस व्यक्ति पर टिकी थी।

"नहीं जायेगा?"

"तू दादा है क्या जो रौब झाड़ रहा है।" उसने क्रोध से कहा--- "लाइन में लग जा। मेरे बाद.....।"

मंगल पांडे के होठों से खतरनाक हंसी निकली। हल्की मध्यम-सी हंसी निकली।

"पागल मत बनो।" रूबी, तेज स्वर में उस व्यक्ति से कह उठी--- “चले जाओ। तीन हजार वापस मिल जायेंगे।"

"मुझे पैसे नहीं चाहिये।" वह जैसे अड़ चुका था।

"मतलब कि तू पैसों की वसूली करके ही जायेगा।" मंगल पांडे की आवाज में क्रूरता आ गई।

"हां....।" वह छाती ठोंकने वाले अंदाज में कह उठा।

“मेरे साथ कर ले...।"

"क्या ?"

“वसूली...।” मंगल पांडे के चेहरे पर क्रूरता नजर आने लगी।

रूबी की आंखों में व्याकुलता के अजीब-से भाव आ गये।

"बकवास मत करो।" वह नफरत से भरे स्वर में कह उठा--- “बाहर निकल जा। जब मैं यहां से जाऊं तो भीतर आ जाना।” उसने रूबी को देखा--- “तुम इसे जाने को क्यों नहीं कहतीं?"

"इस समय तो मैं तुम्हें जाने को कह रही हूं....।" रूबी ने दांत भींचकर कहा।

"मुझे? दिमाग तो नहीं खराब हो गया तुम्हारा? तुमने फोन करके बुलाया। अब तैयारी करके बैठा हूं और तुम जाने को कह रही हो.... । तुम....।"

तभी मंगल पांडे आगे बढ़ा और उस व्यक्ति की बांह पकड़कर, खींचते हुए उसे नीचे उतारा। गुस्से में उसने चीखकर बोलना चाहा कि तभी मंगल पांडे ने अपनी भारी हथेली उसके मुंह पर रखकर दबा दी। ऐसे में उसकी आंखें गुस्से और हड़बड़ाहट में फैलती नजर आने लगीं। वह मंगल पांडे की पकड़ से खुद को नहीं छुड़ा पाया।

रूबी की आंखों में घबराहट के भाव साफ दिखाई देने लगे।

“चल। बाथरूम में।" मंगल पांडे खतरनाक स्वर में बोला--- “तेरी वसूली कराता हूं...।"

खुद को छुड़ाने के लिए वह तड़पा।

“मंगल। प्लीज.....।" रूबी ने कहना चाहा--- "तुम....।"

"खामोश रहो।" मंगल पांडे ने कठोर स्वर में कहा--- "मैं इसे बाथरूम में छोड़ने जा रहा हूं। बस।"

रूबी सूखे होठों पर जीभ फेरकर रह गई।

"चल....।" मंगल पांडे ने उस व्यक्ति को बाथरूम की तरफ खींचा।

"कु.... कुछ करना नहीं मंगल....।" रूबी के स्वर में कम्पन था।

मंगल पांडे, उस व्यक्ति को लेकर, बाथरूम में जा पहुंचा।

"चिल्लाना नहीं।" मंगल पांडे ने दरिन्दगी भरे स्वर कहा और मुंह से हाथ हटाया तो वह हांफने के अंदाज में मुंह खोले, हांफने लगा।

मंगल पांडे ने अपना भारी हाथ, अपने गालों पर फेरा।

"यह क्या पागलपन है। दादागिरी दिखाते हो। करमचंद को जानते हो। सब उसके नाम से डरते हैं। वह मेरे पांवों को हाथ लगाता है। अगर उसे बोल दिया तो वह तुम्हारी....।"

"करमचंद बहुत खतरनाक है?" मंडल पांडे ने वहशी स्वर में कहा।

"हां....। वह....।"

तभी मंगल ने उसके माथे पर हथेली टिकाई और तेजी के साथ उसका सिर बाथरूम की दीवार से टकरा दिया। 'ठक' दबी-दबी मौत की आवाज उभरी और उस व्यक्ति के सिर का पिछला भाग खुल गया । आंखें फटी-की-फटी रह गई। एक पल में ही वह खत्म हो गया था। उसके माथे पर रखा हाथ, मंगल पांडे ने जब ढीला किया तो दीवार के साथ सटा-सटा उसका शरीर नीचे को सरकने लगा ।

मंगल पांडे ने उसके मृत शरीर की बांह पकड़ ली और धीरे-धीरे नीचे गिरा दिया। खून का बड़ा-सा निशान दीवार पर नजर आ रहा था। आसपास दीवार पर कुछ छींटे भी दिखाई दे रहे थे और बड़े निशान से खून नीचे को बह रहा था। नीचे पड़ी, उस व्यक्ति की लाश के सिर से भी बहता खून, फर्श पर बिखरता जा रहा था।

मंगल पांडे के हाथ पर खून की एक बूंद भी नहीं लगी थी। वह बाथरूम से बाहर निकला और दरवाजा बंद करके वापस उसी कमरे में आ गया।

रूबी अभी तक आतंक से जुड़ी हुई थी। उसने कपड़े पहन लिए थे।

"तू क्यों मरी जा रही है।" मंगल पांडे ने शांत स्वर में कहा।

"व....वो कहां है?" रूबी के होठों से कांपता स्वर निकला।

"बाथरूम में....।" मंगल पांडे ने लापरवाही से कहा।

"क्या किया है तुमने उसके....?"

"कुछ नहीं।" मंगल पांडे हंसा--- “बेहोश पड़ा है। होश आयेगा तो चला जायेगा।"

रूबी के होंठ हिले, परन्तु बोली कुछ नहीं।

“तूने कपड़े क्यों पहन लिए? उतार....।"

"मैं....।"

“बात बाद में....। चल।”

■■■

"तेरी हरकत बेकार की रही।" मंगल पांडे ने फुर्सत पाते ही कहा।

“तुम....।” रूबी ने अपने सूखे होठों पर जीभ फेरी--- “तुमने उसके साथ कुछ बुरा तो नहीं किया।"

“बाथरूम वाला।” मंगल पांडे खतरनाक स्वर में कहते हुए हंसा।

"हां...।"

“मेरे से पूछने की क्या जरूरत है। खुद ही जाकर देख ले तसल्ली हो जायेगी।"

रूबी पास पड़े कपड़े उठाते हुए बैठी तो मंगल पांडे कह उठा---

"बाथरूम में उसके पास जा रही हो?”

“हां। एक बार देख तो लूं कि तुमने उसके साथ क्या किया है।"

“ठीक है।" मंगल पांडे लापरवाही से कह उठा--- "मैं तुम्हें उसके पास पहुंचा देता हूं....।"

“तुम....।”

“क्या हर्ज है। तुम्हारे लिए तो जान भी हाजिर है। फिर छोटा-सा काम नहीं कर सकता।"

"कैसे पहुंचाओगे? उठाकर ले जाओगे वहां?” रूबी मुस्कुरा पड़ी।

"उठाने की भी जरूरत नहीं। मंगल पांडे के काम करने का अपना ही ढंग है।" मंगल पांडे की आवाज में क्रूरता भर आई थी। दूसरे ही पल उसका भारी हाथ उठा और मोटी-मोटी उंगलियां रूबी के नाजुक गले पर जा टिकीं।

"यह क्या कर रहे हो?" रूबी के होठों से निकला।

"तुम्हें बाथरूम वाले के पास पहुंचा रहा हूं.....।" मंगल पांडे ने दरिन्दगी से कहा-- और उंगलियों का दबाव बढ़ाता चला गया। रूबी का चेहरा लाल सुर्ख और आंखें फटकर बाहर आने को हो रही थीं--- “साली, हरामजादी! एक बार में दो कश्तियों पर पाँव रखती है। औरतों के मामले में हमेशा मेरी पहली शर्त रही है कि मंगल पांडे की गोद में बैठो तो मंगल पांडे की गोद में बैठो। दूसरी जगह मुंह मत मारो। यह बात तेरे को भी बोली थी। लेकिन तूने अपनी जात दिखा दी।"

आधे मिनट में ही रूबी की सांसें थम चुकी थीं। फटी आंखें, खुला मुंह, बेहद भयावह लग रहा था उसका चेहरा।

यह था मंगल पांडे, जिसे देवराज चौहान डकैती की योजना में शामिल करने की सोच चुका था।

■■■

नीना पाटेकर तपती सड़क पर, कार के पास खड़ी थी। धूप इतनी तेज थी कि उसे अपना जिस्म सुलगता महसूस हो रहा था। लेकिन इस बुरे हाल में भी उसकी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी। बार-बार उसकी निगाह पास ही मौजूद कार के पंचर हुए पहिये पर जा रही थी। इस वक्त दिक्कत आ रही थी कि कार की डिग्गी में स्टैपनी पहले से ही पेंचर हुई पड़ी थी। नहीं तो वह कब का पहिया बदल चुकी होती। धूप में इस तरह सड़ना न पड़ता।

दस मिनट से इस सड़क पर से कोई वाहन नहीं निकला था। यह सड़क ही ऐसी थी कि यहां से बहुत ही कम वाहन निकलते थे। बदन पर उसने ऐसी कमीज-सलवार डाल रखी थी कि 'लो' कट होने की वजह से छातियों का काफी हिस्सा स्पष्ट नजर आ रहा था। दुपट्टा रस्सी की भांति गले से लिपटा हुआ था। छातियों को ढांपने की उसने कोई चेष्टा नहीं की थी।

पांच मिनट और बीतने पर उसे एक कार आती दिखाई दी। वह फौरन आगे बढ़ी और कार को रुकने का इशारा करने लगी। कार की स्पीड कम होते पाकर उसने राहत की सांस ली।

कार पास आकर रुकी।

ड्राईविंग सीट पर चालीस-बयालीस बरस का अमीर लगने वाला व्यक्ति बैठा था। गले में सोने की भारी चेन। हाथ की उंगलियों में सोने की दो अंगूठियां ।

नीना पाटेकर के कुछ कहने से पहले ही वह कह उठा---

"कार पंचर हो गई मिस....?"

"जी हां। इजाजत हो तो भीतर आ जाऊं....?" वह दिलकश अन्दाज में मुस्कुराई। यूं ही नीचे झुककर, कार की खुली खिड़की से बात कर रही थी, इसीलिए उसकी छातियों का नजारा पूरा ही नजर आ रहा था। उस व्यक्ति की निगाह उसके चेहरे पर कम और छातियों पर ज्यादा थी।

“हां.... हां, क्यों नहीं।"

“थैंक्स।” नीना पाटेकर ने कहा और दरवाजा खोल कर भीतर बैठ गई।

"आपकी कार....?" उसने पूछना चाहा।

“किसी पहचान वाले की है।" नीना पाटेकर मुस्कुराकर कह उठ--- "उसे खबर कर दूंगी।"

"ओ० के० ।" कहने के साथ ही उस व्यक्ति ने कार आगे बढ़ा दी--- “मुझे मल्होत्रा कहते हैं।"

"मुझे नीना। मिस नीना....।"

“अच्छा नाम है।" मल्होत्रा मुस्कुराया ।

नीना पाटेकर हंसी ।

“कहां जाना है आपको?"

“जहां जा रही थी, वहां का वक्त तो निकल गया।" नीना पाटेकर ने गहरी सांस ली--- "कार के पहिये ने धोखा दे दिया। अब तो फुर्सत-ही-फुर्सत है। किसी अच्छी जगह लंच लूंगी।"

“लंच तो मैंने भी लेना है।" मल्होत्रा ने दांत सिकोड़कर उस पर नजर मारी।

उसका मतलब समझकर, नीना पाटेकर हंसी।

"एक साथ लंच लें तो कैसा रहे?" मल्होत्रा कह उठा।

"बहुत अच्छा रहेगा। बोरियत से बचने के लिए साथ मिल जायेगा।" नीना ने मुस्कुराहट भरे स्वर में कहा।

"वैरी गुड। किसी बहुत ही बढ़िया जगह लंच लेते हैं।"

"आप शायद किसी खास काम से जा रहे थे?"

"काम का क्या है! फिर हो जायेगा।" मल्होत्रा ने हंसकर लापरवाही से कहा--- "आप जैसी खूबसूरती के साथ लंच करने का मौका तो फिर नहीं मिलेगा। वैसे भी कोई खास काम नहीं था।" कहते हुए आदत के मुताबिक उसने पिछली सीट की तरफ इशारा किया--- "पार्टी को पेमेन्ट देनी थी। दो-चार घंटे बाद दे दूंगा।"

नीना पाटेकर ने छिपी आंखों से पिछली सीट पर नजर मारी। जहां बेहद खूबसूरत ब्रीफकेस पड़ा था। मतलब कि पार्टी की पेमेन्ट, ब्रीफकेस में थी।

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“यहां का लंच अच्छा है।" मल्होत्रा ने लंच समाप्त करते हुए नीना पाटेकर को देखा।

“जी। मैं अक्सर यहां लंच के लिए आती हूं....।"

“कॉफी हो जाये।” मल्होत्रा ने उसकी आंखों में देखा।

“मुझे क्या एतराज हो सकता है। मैं तो अब शाम तक फ्री हूं....।”

“गुड। अभी कॉफी शॉप में चलते हैं।" कहने के साथ ही मल्होत्रा ने इशारे से वेटर को बुलाकर बिल लाने को कहा, फिर नीना से बोला--- “आप करती क्या हैं?”

“मैं....?” नीना पाटेकर हंसी--- “मुझे कुछ करने की जरूरत ही क्या है!”

"क्यों?”

“मेरे पापा का इतना बड़ा बिजनेस है, जिसकी मैं अकेली ही मालकिन हूं....।" कहते हुए नीना पाटेकर ने गहरी सांस ली---  “आधे काम-धंधे तो मुझे सम्भालने पड़ते हैं। कोई छुट्टी नहीं है। मैं तो तंग आ गई हूं। काम ही इतना रहता है कि छुट्टी लेने का मन नहीं होता। लेकिन आज दिल पक्का करके, छुट्टी करके, छुट्टी मार ही ली। पापा नाराज हो रहे होंगे। लेकिन मैं क्या करूं! मुझे भी तो आराम चाहिये। मेरी भी जिन्दगी है। हर वक्त काम करके मैं पागल नहीं होना चाहती।”

“हर वक्त तो काम करना ही नहीं चाहिए....।" मल्होत्रा ने मुस्कुराकर कहा--- “मनोरंजन के साधन भी होने चाहिए। अब मुझे ही देखो। मैं तो काम के साथ-साथ मनोरंजन भी करना चाहता हूं....।"

“मैं भी ऐसा ही किया करूंगी....।"

"मेरे ख्याल में कमरा बुक करा लेते हैं। कॉफी पी लेंगे।" मल्होत्रा ने एकाएक कहा।

"लेकिन कॉफी के लिए कमरे की क्या जरूरत है?" नीना पाटेकर मुस्कुराई।

"लगे हाथ कुछ आराम भी हो जायेगा। शाम तक तो आपके पास वक्त है ही।"

"लेकिन...कमरा....।" नीना पाटेकर हिचकिचाई।

"ज्यादा मत सोचा करो।" मल्होत्रा अपना-पन दिखाता हुआ बोला— “बंद कमरे में हम दोनों ही तो होंगे। हमारी इस मुलाकात में ऐसा कुछ तो होना चाहिए, जो याद रहे।"

“जैसी आपकी मर्जी...।" नीना पाटेकर शर्माते हुए कह उठी।

मल्होत्रा ने लंच का बिल 'पे' किया और इसी होटल में ही कमरा बुक कराकर, कमरे में जा पहुंचे। अब मल्होत्रा को कॉफी के बारे में कहां होश था!

"मैं नहा लूं।” नीना पाटेकर मुस्कुराई--- “धूप में खड़े-खड़े पसीने से भर गई थी।"

“जल्दी करना.... ।"

“अभी हाजिर हुई.....।" कहने के साथ ही नीना पाटेकर बाथरूम की तरफ बढ़ गई।

पांच मिनट बाद वह बाथरूम से निकली। बदन पर वही कपड़े, थे।

“आप भी नहा लीजिए...।"

"मैं?” मल्होत्रा, नीना की तरफ बढ़ा--- "क्या जरूरत है। मैं तो....।".

“प्लीज। फ्रेश होकर आराम करना अच्छा लगता है।" नीना ने इठला कर कहां।

"ओ०के० । तुम्हारा कहा मैं इंकार कैसे कर सकता हूं!"

"देर तो नहीं लगेगी?" नीना ने ऐसे कहा जैसे, उतावली हो रही हो।

“पांच मिनट में आया.... ।"

“तब तक मैं कॉफी के लिए...।"

"नहीं। कॉफी बाद में।" मल्होत्रा बाथरूम की तरफ बढ़ता हुआ बोला--- "इस वक्त आराम की जरूरत है।"

मल्होत्रा के बाथरूम में प्रवेश करते ही, नीना पाटेकर जल्दी से बैड पर पड़े ब्रीफकेस के पास पहुंची और उसका लॉक खोलने की चेष्टा करने लगी। जैसे-तैसे जोड़-तोड़ करके उसने ब्रीफकेस का लॉक खोला। ब्रीफकेस खोला।

ब्रीफकेस नोटों की गड्डियों से ठसाठस भरा हुआ था। कितना माल होगा, यह सोचने में उसने वक्त नहीं खराब किया। ब्रीफकेस बंद किया और उसे थामे आगे बढ़ी और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गई। कुछ ही देर में वह टैक्सी के पीछे वाली सीट पर बैठी थी और नोटों की गड्डियों से भरा ब्रीफकेस पास ही पड़ा था।

तो यह थी नीना पाटेकर!

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"तुम तो मुझे भेड़ समझकर मसलते हो....।"

मंगल पांडे जवाब में हंसा और चादर छाती तक खींच कर सिगरेट सुलगा ली। निगाहें बाथरूम की तरफ भागती शामली पर थीं। उसके देखते-ही-देखते शामली बाथरूम में प्रवेश कर गई। मंगल पांडे मुंह बिगाड़ कर बड़बड़ा उठा।

“साली....खा-पीकर भेड़ बनती है। उल्लू की पट्टी!" उसके साथ ही वह उठा और कपड़े पहनकर कुर्सी पर बैठते ही कश लेने लगा।

चालीस वर्षीय मंगल पांडे अच्छा सेहतमंद, क्रूर व्यक्ति था। जिस्म गठा हुआ। आंखों में हर समय समाई रहने वाली खूंखारता । सिर पर छोटे-छोटे घुंघराले बाल। दस मिनट बाद शामली नहा कर बाथरूम से बाहर निकली।

जिस्म पर नाइलोन की नाइटी थी, जो कि भीगे बदन से चिपककर खूबसूरत नजारा पेश कर रही थी।

चूंकि मंगल पांडे का काम निकल चुका था, इसलिए उसने एक बार भी उसके तोप समान बदन पर निगाह न डाली।

"पैग बना! बड़ा वाला।”

“अभी लो जनाब।” खिलखिलाकर हंसती हुई शामली दूसरे कमरे में गई और शीशे के गिलास को व्हिस्की का आधा भर लाई।

“दे इधर ।” कहते हुए मंगल पांडे ने उसके हाथ से गिलास थामा और एक ही सांस में समाप्त करके, गिलास उसे वापस थमाकर कश लिया।

शामली ने गिलास टेबल पर रखा और मंगल पांडे के पैकेट में से सिगरेट निकालकर सुलगाती हुई सोफे पर अधलेटी-सी हो गई।

"कहां था तू-- पूरे दस दिन बाद आया है मेरे पास।" शामली बोली।

"तू क्या चाहती है, हर समय तेरी गोद में बैठा रहू!" मंगल पांडे मुंह बनाकर कह उठा--- "ढेरों काम है मुझे। एक तू ही नहीं है मेरे सामने....।"

"मेरे जैसी और कितनी पाल रखी हैं।"

"इतनी कि याद नहीं रखता मैं। पांच-सात तो होंगी। क्यों, तेरे को क्या प्राब्लम है। मेरी बीवी बनने की तो नहीं सोच रही न? बीवियां ही ऐसी बातें करती हैं।" मंगल पांडे ने मुंह बनाकर उसे देखा।

“तेरी बीवी तो मैं न बनूं।" शामली कश लेकर हंसी--- "तेरा क्या है। तू आज है तो कल पुलिस की गोली खाकर, कहीं मरा पड़ा होगा। नहीं तो जेल में चक्की पीस रहा होगा। ऐसे पति से तो, बिना पति ही अच्छी....।"

“समझदार है, जल्दी ही तरक्की करेगी...।"

“अब माल निकाल और भाग ले। मेरा भाई आने वाला होगा। उसने तुम्हें यहां देख लिया तो, रात भर पागलों की तरह आसपास पांव पटकता हुआ चिल्लाता रहेगा कि तेरे जैसे आदमी के साथ कोई रिश्ता रखूं।"

“तेरा भाई खूबचन्द भी खूब है। तेरे बिके शरीर का माल खाने में उसे कोई हर्ज नहीं, हर्ज है तो इस बात में कि मंगल पांडे जैसा खतरनाक इंसान उसके घर न आये। साला, कभी मेरे हाथों मारा जायेगा।" मंगल पांडे ने कड़वे स्वर में कहा।

“अब माल तो निकाल....।"

“माल.... ।” मंगल पांडे ने आंखें सिकोड़कर उसे देखा--- "तू माल मांगती है मुझसे। "

"हां....।" शामली बिजनेस वाले ढंग से कह उठी--- “पिछली बार का भी रह गया!"

मंगल पांडे ने सर्द निगाहों से उसे देखा है।

“एक बार का तू कितना लेती?"

"वैसे तो तीन हजार, पर तेरे लिए ढाई हजार कर रखे हैं।"

"और ऐसा कितनी बार हुआ है मेरी भेड़नी कि ढाई के पांच तुझे दिए हैं?"

“दिए होंगे। मैं कब मना करती हूं। जो एक बार दे दिया जाये, उसे दोबारा दोहराना अच्छा नहीं लगता। मैं तो अब के और पिछली बार के मांग रही हूँ।"

मंगल पांडे का चेहरा क्रोध से भर उठा।

"आज मेरे पास पैसे नहीं, हाथ तंग है तो तू अपना खाता खोल बैठी। जब माल होता है तो तू मेरे पैसे में पड़ी रहती है। तेरी तो...।"

"मंगल...।" शामली बोल पड़ी--- "तूने यह बात कही है, मेरा हाथ तंग है?"

"मेरे न देने का मतलब ही यही होता है कि....।"

"मुझे कोई सपना नहीं आने वाला कि, तेरा हाथ तंग है। मालूम होता तो तेरे से एक पैसा भी न मांगती। मैं तुझे ग्राहक नहीं अपना समझती हूँ। तेरे को चाहिए तो, मेरे पास जो भी पड़ा है, वह भी ले जा। तेरे से अच्छा नहीं है पैसा। बहुत दिया है तूने मुझे। अगर आज सारा भी ले जायेगा तो भी बैलेंस मेरी तरफ ही निकलेगा। बोल कितना दूं?"

एकाएक मंगल पांडे हंस पड़ा।

"तेरी यही तो अदा है जिस पर...।"

“ज्यादा मत बोल!" शामली शांत स्वर में कह उठी--- "कभी किसी चीज की जरूरत पड़े तो मेरे पास आ जाना। पीछे नहीं हटूंगी देने को। आजमाकर देखना.... ।”

हंसते हुए मंगल पांडे ने सिगरेट का कश लिया और खड़े होते हुए सिगरेट को ऐश ट्रे में डालकर, मुंह से धुआं निकालता हुआ बोला---

“एक बात तो है। तेरे जैसी भेड़नी तब जन्मी होगी जब हजार लोमड़ियां मरी होंगी।”

"अभी भी तू गलत समझ रहा है मुझे। शब्दों में कोई चालाकी नहीं है, साफ दिल से कहा है, जो भी कहा है। वक्त आया तो देख लेना तू.....।"

“ठीक है। ठीक है। बोलती रह। मैं जा रहा हूं...।”

"जल्दी है क्या?”

"मेरा क्या है। चार घण्टे और तेरी गोद में बैठ जाता हूं, लेकिन तेरा वो भाई है ना, क्या बोला मैं, खूबचन्द की बात कर रहा हूं। वह आ गया तो, मेरे जाने के बाद, तेरी जान खाता रहेगा कि तूने मुझे अन्दर क्यों आने दिया? किसी दिन मंगल पांडे लफड़े में फंसा तो तू भी उसके साथ फंसेगी। तू नहीं जानती कि वह कितना हरामी आदमी है.... वह....और भी जाने क्या....क्या बड़बड़ाता रहेगा और दोबारा मिलने पर तू ही मुझे बताएगी कि तब खूबचन्द ने तेरी खोपड़ी खराब कर दी। चलता हूं। मैं खुद भी साले के मुंह नहीं लगना चाहता। यूं ही मेरा हाथ पड़ गया तो डॉक्टरों के चक्कर लगाता फिरेगा।" कहने के साथ ही मंगल पांडे बाहर निकलता चला गया।

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