वह एक प्राइवेट पार्टी थी ।
हाल एक होटल का था लेकिन उसके सारे दरवाजे भीतर से बन्द थे। वातावरण विलायती संगीत की तीव्र धुनों से गूंज रहा था । सारा हाल तीव्र कृत्रिम प्रकाश से जगमगा रहा था । हाल में लगभग पचास व्यक्ति मौजूद थे । पुरुष सब अधेड़ उम्र के व्यापारी थे जिनके चेहरों पर सफलता की छाप थी और आंखों में विलास का रंग था । युवतियां सब जवान थीं, खूबसूरत थीं और कम उम्र थीं ।
सारे हाल में वर्दीधारी चुस्त वेटर घूम रहे थे जो मेहमानों की शराब और भोज्य पदार्थों की जरूरतें पूरी कर रहे थे ।
लेकिन उस समय किसी को न खाने की सुध थी और न पीने की । हाल में मौजूद हर व्यक्ति की वासनापूर्ण निगाहें हाल के बीच में बने एक ऊंचे प्लेटफार्म पर टिकी हुईं थीं जिस पर संगीत की ताल पर एक बेहद खूबसूरत युवती नाच रही थी । युवती के शरीर पर केवल एक छोटा-सा अण्डरवियर और न होने जैसी चोली थी । उसके लम्बे घने काले बाल उसकी पीठ पर बिखरे हुए थे । कभी-कभी वह अपने सिर को जोर का झटका देती थी तो बाल उसके चेहरे और लगभग नग्न वक्ष पर बिखर जाते थे ।
कृत्रिम प्रकाश में उसका शरीर संगमरमर की तरह चमक रहा था ।
युवती झूम-झूम कर नाच रही थी । वह न केवल नाच रही थी । बल्कि अपनी भाव भंगिमाओं से अपने हाथों के एक्शन से बल्कि अपने सारे शरीर से नृत्य देखने वालों को बड़े अश्लील संकेत दे रही थी ।
उस डांसर के एक-एक एक्शन से अधेड़ आयु के व्यापारी तड़फ-तड़फ उठते थे ।
उसी क्षण डांसर ने अपने हाथ अपनी पीठ पीछे ले जाकर अपनी चोली का हुक खोल दिया । कुछ क्षण चोली खुल जाने के बाद भी उसके उन्नत वक्ष पर अटकी रही लेकिन उसके पारे जैसे थिरकते शरीर के अगले कुछ ही झटकों में वह चोली उसके वक्ष से अलग हो गई और प्लेटफार्म के समीप की एक मेज पर बैठे वृद्ध के गंजे सिर पर जा गिरी ।
आस पास की मेजों के लोग हो-हो करके हंसने लगे ।
वृद्ध तनिक सकपकाया । फिर उसने चोली उठाई, दो-तीन बार उसे अपने हाथों से मसला और फिर उसे डांसर की ओर उछाल दिया ।
वृद्ध के साथ बैठी युवती उसके साथ और सट गई । उसका एक हाथ वृद्ध की जांघ पर सरक गया ।
संगीत की ताल पर झटके खाते युवती के शरीर के साथ उसके मुक्त उरोज उछल रहे थे ।
नृत्य देखने वालों के दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी । डांसर नृत्य के दौरान में बड़े संकेतात्मक ढंग से अपना हाथ अण्डरवियर की ओर बढाती थी । देखने वालों को ऐसा लगता था जैसे अभी वह अपने शरीर से चोली की तरह ही अण्डरवियर भी अलग कर देगी लेकिन ऐसा होता नहीं था ।
देखने वालों के कलेजों पर सांप लोट जाता था ।
डांसर के अण्डरवियर की ओर बढे हाथ अलग हट गये । उसने दोनों हाथों को अपने उरोजों पर रख लिया और उन्हें तेजी से मसलने लगी ।
डांसर जानबूझकर क्लाइमेक्स लेट किये जा रही थी ।
आर्केस्ट्रा के ड्रम पर पड़ती हुई चोटे तेज होती जा रही थीं लोग मुंह बाये डांसर की ओर देख रहे थे ।
हाल के एक कोने में चार आदमी खड़े थे । उनके हाथों में विस्की के गिलास थे । उनके चेहरों पर हाल के हंगामे के प्रति अपार निर्लिप्तता के भाव थे । और हाल में मौजूद लोगों में से वही चार व्यक्ति ऐसे थे जिनके साथ कोई जवान लड़की नहीं थी ।
उन चारों में एक व्यक्ति ऐसा था जिसके प्रति बाकी तीनों के चेहरों पर सम्मान के भाव थे ।
“ऊपर सब ठीक है न ?” - उस व्यक्ति ने अपने दायें खड़े एक ठिगने से व्यक्ति से पूछा ।
“यस बास ।” - ठिगना तत्पर स्वर में बोला ।
“कोई गड़बड़ तो नहीं होगी ?”
“सवाल ही पैदा नहीं होता ।”
“लड़की नई है...”
“कोई फर्क नहीं पड़ता बास । शुरू में तो हर लड़की नई होती है ।”
बास चुप हो गया । उसकी निगाह दूर ऊंचे प्लेटफार्म पर नाचती हुई डांसर की ओर उठ गई ।
अण्डरवियर अभी भी डांसर के शरीर पर मौजूद था लेकिन अब उसके हाव-भाव इतने अधिक अश्लील हो गये थे कि अगर कानून के रखवालों को उस नृत्य की खबर लग जाती तो सब लोग जरूर गिरफ्तार हो जाते ।
“आज तो सिल्विया कमाल कर रही है ।” - बास प्रशंसात्मक स्वर से बोला ।
“सिल्विया तो हमेशा ही कमाल करती है, बास ।” - ठिगना आदरपूर्ण स्वर से बोला ।
“डांस के बाद मैं इससे मिलना चाहता हूं ।”
“जरूर ।”
उसी क्षण हाल के दूसरे सिरे का एक दरवाजा खुला और एक आदमी ने भीतर झांका ।
“बास !” - ठिगना दरवाजे से झांकते आदमी की ओर बास का ध्यान आकर्षित करता हुआ बोला ।
बास ने दरवाजे की ओर देखा और फिर जल्दी से बोला - “जाकर देखो क्या बात है ।”
ठिगना फौरन आगे बढा ।
लोगों की भीड़ में गुजरता हुआ वह द्वार के पास पहुंचा ।
द्वार से भीतर झांकते आदमी ने जल्दी-जल्दी उसके कानों में कुछ कहा ।
ठिगने के चेहरे का रंग उड़ गया ।
वह तेजी से वापिस बास के पास लौटा ।
“बास !” - वह तीव्र स्वर से बोला ।
“क्या हुआ ?” - बास हड़बड़ाकर बोला । ठिगने के स्वर की घबराहट उससे छुपी न रही ।
“मेरे साथ आइये । सिर्फ आप ।”
“तुम दोनों यहीं ठहरो ।” - बास अपने पास खड़े दोनों आदमियों से बोला और फिर लम्बे डग भरता हुआ ठिगने के साथ हो लिया ।
शीघ्र ही वे दोनों हाल के शोर और उत्तेजना से भरे वातावरण से बाहर निकल गये ।
एक लम्बा गलियारा लांघ कर वे एक दरवाजे के सामने पहुंचे ।
ठिगने ने धकेलकर दरवाजा खोला और सम्मानपूर्ण ढंग से एक ओर हट गया ।
बास भीतर प्रविष्ट हुआ ।
ठिगना भी प्रविष्ट हो गया । उसने अपने पीछे द्वार बन्द कर लिया ।
कमरे में एक ईजी चेयर पर एक अधेड़ आयु का व्यक्ति बैठा हुआ था । उसका चेहरा भय से सफेद हो गया था और वह बुरी तरफ कांप रहा था । उसने खाली-खाली निगाहों से बास की ओर देखा । उसके होंठ फड़फड़ाये लेकिन मुंह से एक शब्द नहीं निकला ।
बास उसके सामने जा खड़ा हुआ ।
“जमनादास जी !” - वह बोला ।
अधेड़ मुंह बाये बास को देखने लगा ।
“क्या हुआ ?”
जमनादास और जोरों से कांपने लगा । उसके मुंह से बोल नहीं फूटा । बास ने ठिगने को संकेत किया ।
ठिगना आगे बढा । उसने जमनादास को गिरहबान से पकड़ा और एक शक्तिशाली झटके से उसे अपने पैरों पर खड़ा कर दिया । उसने कांपते शरीर को एक दो झटके देकर छोड़ दिया । जमनादास कुर्सी की पीठ का सहारा लेकर खड़ा हो गया ।
“क्या हुआ था ?” - बास ने अपना प्रश्न दोहराया ।
जमनादास की भयभीत निगाहें कमरे की खुली खिड़की की ओर उठ गई लेकिन उसके मुंह से बोल नहीं फूटा ।
बास और ठिगना खिड़की के समीप पहुंचे । दोनों ने नीचे झांका ।
वह कमरा आठवीं मंजिल पर था । नीचे अर्धप्रकाशित सड़क पर सन्नाटा छाया हुआ था ।
बास ठिगने की ओर घूमा ।
“मैं बूढे को सम्भाल लूंगा” - बास धीमे स्वर से बोला - “तुम जाकर लाश का इन्तजाम करो और होटल के मैनेजर को मेरे पास भेज दो ।”
“ओके बास ।” - ठिगना बोला और तेजी से बाहर निकल गया ।
बास फिर जमनादास के सामने जा खड़ा हुआ ।
“होश में आओ ।” - बास कर्कश स्वर से बोला ।
जमनादास ने सकपका कर उसकी ओर देखा ।
“अपनी खैरियत चाहते हो तो जल्दी बोलो क्या हुआ था ?”
न वृद्ध का शरीर कांपना बन्द हुआ और न ही उसके मुंह से बोल फूटा ।
“ओके” - बास निर्णयात्मक स्वर से बोला - “मैं पुलिस को फोन करता हूं ।”
और वह दृढता से टेलीफोन की ओर बढा ।
“नहीं ।” - जमनादास कम्पित स्वर से बोला ।
बास रुक गया ।
“क्या आपको बताने की जरूरत है कि आपने हत्या जैसा जघन्य अपराध किया है !” - बास बोला ।
“नहीं” - जमनादास आतंकित स्वर में बोला - “बाई गाड, नहीं । मैंने हत्या नहीं की ।”
“तो फिर ?”
“दुर्घटना । वह सिर्फ एक दुर्घटना थी ।”
“दुर्घटना !” - बास व्यंग्य पूर्ण स्वर से बोला - “कैसे हो गई दुर्घटना ?”
“थोड़ी हाथापाई हो गई थी ।”
“थोड़ी हाथापाई ?”
“हां । मैं उसे अपने काबू में करने की कोशिश कर रहा था । उसी छीना झपटी में उसे धक्का लग गया और वह खिड़की से बाहर गिर गई ।”
“आप झूठ बोल रहे हैं” - बास तीव्र स्वर से बोला - “आप शराब के नशे में धुत्त हैं । लड़की आपके काबू में नहीं आई तो आप ने क्रोधित होकर उसे खिड़की से नीचे धकेल दिया ।”
“ओह नो” - जमनादास विक्षप्तों की तरह बोला - “यह झूठ है । बाई गाड मैंने जानकर ऐसा नहीं किया । वह केवल दुर्घटना थी जो मेरी बदकिस्मती से हो गई ।”
“चलिये मैं आपकी बात मान लेता हूं लेकिन सेठजी, अगर अभी यहां पुलिस आ जाये तो क्या उन्हें विश्वास दिला पायेंगे कि जो कुछ हुआ है केवल दुर्घटना है ।”
“पुलिस !” - जमनादास फुसफुसाया ।
“जी हां । किसी की जान चली गई है । पुलिस को तो सूचित करना ही पड़ेगा ।”
“नहीं । हे भगवान !”
बास चुप रहा ।
“भगवान के लिये कुछ करो ।” - जमनादास याचनापूर्ण स्वर से बोला ।
“मैं क्या करूं ?”
“कुछ भी करो लेकिन मुझे इस मुसीबत से निकालो ।” - जमनादास साफ-साफ गिड़गिड़ा रहा था ।
उसी क्षण किसी ने बाहर से दरवाजा खटखटाया ।
“कम इन ।” - बास बोला ।
कमरे में ठिगने के साथ होटल का मैनेजर प्रविष्ट हुआ ।
“यह मैं क्या सुन रहा हूं” - मैनेजर बोला - “मैं...”
“शट अप !” - बास बोला - “चुपचाप भीतर आ जाओ ।”
“लेकिन...”
“आई से शट अप !” - बास गर्जा ।
मैनेजर सहम कर चुप हो गया ।
बास ने प्रश्न सूचक नेत्रों से ठिगने की ओर देखा ।
“खत्म ।” - ठिगना बोला ।
“ये जमना ग्लास इन्डस्ट्री के मालिक सेठ जमनादास हैं” - बास मैनेजर से बोला - “इन से अनजाने में एक हत्या हो गई है । हमें किसी भी सूरत में इन्हें किसी बखेड़े में फंसने से बचाना है ।”
“लेकिन...”
“पहले मेरी पूरी बात सुन लो । उसके बाद जो जी में आये कहना ।”
मैनेजर फिर चुप हो गया ।
बास धीरे-धीरे बोलने लगा । बास बोलता रहा । मैनेजर और जमनादास सुनते रहे । बीच में कई बार कभी मैनेजर ने और कभी जमनादास ने प्रतिवाद करना चाहा लेकिन बास ने उन्हें हाथ उठाकर रोक दिया । अन्त में जब बास चुप हुए तो न मैनेजर बोला और न जमनादास ।
“ओके ?” - बास मैनेजर से बोला ।
मैनेजर ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“तो फिर फूटो यहां से ।”
मैनेजर कमरे से बाहर निकल गया ।
“लेकिन...” - जमनादास ने कहना चाहा ।
“सेठ जी” - बास बोला - “अगर जिन्दगी ही नहीं रहेगी तो दौलत का क्या होगा । आपकी दौलत ही आपको इतने बड़े बखेड़े से निकाल सकती है ।”
“लेकिन वह सब दुर्घटनावश हुआ था ।”
“मैंने मान लिया लेकिन क्या पुलिस भी यह बात मान लेगी ? और अगर पुलिस मान भी लेगी तो आप इस की क्या सफाई देंगे कि आप होटल के इस कमरे में क्या कर रहे थे । आपके नाम पर थू थू हो जाएगी ।”
जमनादास के चेहरे से फिर रंग उड़ गया ।
बास के चेहरे पर एक संतोषपूर्ण मुस्कराहट उभर आई । उसके संकेत से ठिगना सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाता हुआ कमरे से निकल गया ।
जमनादास कुर्सी पर ढेर हो गया था । उसका सिर उसका सिर उसकी छाती पर झुक गया था और उसका शरीर फिर कांपने लगा था ।
दो मिनट बाद ठिगना वापिस लौटा । उसके साथ एक बेहद खूबसूरत लड़की थी ।
लड़की चुपचाप आकर बास के सामने खड़ी हो गई ।
बास ने एक बार आंख भरकर लड़की को सिर से पांव तक देखा । लड़की का जिस्म संगमरमर में से तराशकर बनाया मालूम होता था । बास ने एक गहरी सांस ली और बोला - “मैं तुम्हें एक काम सौंप रहा हूं । अगर तुमने ठीक से किया तो मैं तुम्हें पांच हजार रुपये दूंगा । जरा-सी भी कोई गड़बड़ की तो फिर तुम्हारा भगवान ही मालिक है ।”
लड़की की आंखों में भय की छाया तक नहीं आई ।
“क्या काम है ?”
“इस आदमी की हालत खराब है । यह अपने आपे में नहीं है । इसे बहुत भारी सदमा पहुंचा है । मेरा बीच रोड पर एक बंगला है । इस आदमी को तुम अपने साथ वहां ले जाओ । और अगले कुछ दिन तक - जब तक कि यह ठीक न हो जाये - इसकी हर प्रकार की खातिर करो, इसको हर प्रकार से खुश रखो । यह जो भी करने को कहे करो ।”
“कैच ।” - लड़की बोली ।
“और अगर तुमने कोई गलती की, कोई गड़बड़ की तो तुम्हारी लाश समुद्र में तैरती मिलेगी ।”
“कोई गड़बड़ नहीं होगी ।” - लड़की विश्वासपूर्ण स्वर में बोली ।
“शाबाश, मुझे तुमसे यही उम्मीद थी ।”
फिर बास ने ठिगने को संकेत किया ।
ठिगना आगे बढा । उसने जमनादास की बांह पकड़कर उसे कुर्सी से उठा दिया । लड़की ने और ठिगने ने वृद्ध को दाएं-बाएं से सम्भाल लिया और उसे जबरदस्ती चलाते हुए कमरे से बाहर की ओर चल दिये ।
अगले ही क्षण बास कमरे में अकेला खड़ा था । कुछ क्षण वह पत्थर की प्रतिमा की तरह अपने स्थान पर खड़ा रहा । फिर उसने सिगार सुलगा लिया लम्बे कश लगाता हुआ कमरे से बाहर निकला आया ।
वह वापिस हाल में पहुंचा ।
हाल में कोहराम मचा हुआ था । संगीत का शोर अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया था ।
डांसर के शरीर से कपड़े की आखिरी धज्जी भी हट चुकी थी और अब वह हव्वा के परिधान में विलासी रईसों के समूह में नाच रही थी ।
बास हाल से बाहर निकल आया ।
वह लापरवाही से चलता हुआ होटल के बगल की सड़क पर पुहंचा ।
एक स्थान पर आकर वह रुक गया ।
उसने सिर उठाकर होटल की विशाल इमारत की ऊंचाई की ओर देखा ।
जमनादास के कमरे की खुली खिड़की उसे वहां से दिखाई दे रही थी ।
उसने नीचे सड़क पर निगाह फिराई ।
सड़क का उतना टुकड़ा अच्छी तरह धोया जा चुका था ।
सुबह तक वह स्थान सूख जाएगा और फिर कोई यह नहीं कह सकेगा कि वहां किसी का अपनी मौत से साक्षात्कार हुआ था ।
बास सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाता हुआ वापिस होटल की ओर लौट चला ।
***
सुनील के ‘ब्लास्ट’ के आफिस में स्थित छोटे से केबिन में लगी टेलीफोन एक्सटेंशन की घन्टी बज उठी ।
सुनील ने हाथ बढाकर रिसीवर उठाया और माउथपीस में बोला - “हल्लो ।”
“सोनू” - दूसरी ओर से टेलीफोन आपरेटर-कम-रिसैप्शनिस्ट रेणु का मधुर स्वर सुनाई दिया - “तुम्हारा ससुर आया है ।”
“क्या ?” - सुनील बौखला कर बोला ।
“तुम्हारा ससुर तुमसे मिलने आया है ।”
“क्या बक रही है रेणु की बच्ची !”
“मैं यह बक रही हूं कि यहां रिसैप्शन पर एक बुजुर्गवार बैठ हैं जो ‘बरखुरदार सुनील कुमार’ से मिलना चाहते हैं । तुम्हारे डैडी तो तुम मुझे पहले ही बता चुके हो कि तुम्हारे पैदा होने पर तुम्हारी सूरत देखकर ही परलोक सिधार गए थे और तुम्हारा कोई सगा-सम्बन्धी है नहीं इसलिए मैंने सोचा ये बुजुर्गवार किसी ब्याहने के काबिल लड़की के बाप ही होंगे ।”
“ओह शटअप !”
“हाय राजा, कैसी है वो ?”
“कौन ?”
“मुझसे ज्यादा खूबसूरत है क्या ?”
“अरे बाबा कौन ?”
“वही जिसका बाप तुमसे मिलने आया है ।”
“उससे पूछो वह किसका बाप है ? कामिनी का, गीता का, रोजी का, मार्गरेट का, कमला का, विमला का, सलमा का रीता, नीता, पपीता, फजीता में से किसका ?”
“हे भगवान ! इतनी लड़कियों से ‘वैसे’ सम्बन्ध हैं तुम्हारे ?”
“लड़कियां तो और भी बहुत हैं” - सुनील अकड़कर बोला - “ये तो मैंने तुम्हें उन लड़कियों के नाम बताये हैं जिनके बाप हाथ में बन्दूक लेकर या साथ में पुलिस लेकर मुझसे मिलने आ सकते हैं ।”
“लेकिन ये बुजुर्गवार तो न हाथ में बन्दूक लाये हैं और न साथ में पुलिस लाये हैं ।”
“तो फिर वे मेरे ससुर नहीं हो सकते । उन्हें फिर से पूछो शायद वे तुम्हारे ससुर हों ।”
“मेरा ससुर तो तुम्हारे पैदा होते ही मर गया था ।”
“ओफ्फोह रेणु की बच्ची, अब मतलब की बात करेगी या फोन बन्द करूं ।”
“एक बेहद खस्ताहाल बुजुर्गवार तुम्हें पूछ रहे हैं ।” - रेणु एकाएक बदले स्वर में बोली - “मेरे ख्याल से तुम उनसे सड़क से पार के चाय वाले खोखे में मिल लो । मलिक साहब ने अगर उन्हें दफ्तर में तुम्हारे साथ देख लिया तो वे समझेंगे कि या तो तुम लोकसभा का इलैक्शन लड़ने वाले हो इसलिए हर वोटर को मक्खन लगा रहो हो और या फिर तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है ।”
“यह बात तुम उन बुजुर्गवार के सामने कह रही हो ?”
“हां ।”
“शर्म करो !”
“लेकिन वे सुन नहीं रहे हैं ।”
“फिर ठीक है । उन्हें मेरे केबिन में भेज दो ।”
“सीरियस ?”
“रेणु !”
“पहले एक बार आकर उनकी सूरत देख लेते तो अच्छा था ।”
“रेणु, बाई गाड, चांटा मार दूंगा ।”
“टेलीफोन पर ही ?”
“हां ।”
“मारो तो ।”
सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया ।
लगभग दो मिनट बाद चपरासी एक बूढे से देहाती को सुनील के केबिन में छोड़ गया । वह एक खद्दर की धोती कुर्ता और पगड़ी पहने हुए था । उसकी हजामत बढी हुई थी और उसके घुटनों तक मिट्टी चढी हुई थी ।
“तशरीफ रखिये ।” - सुनील आदरपूर्ण स्वर से बोला ।
बूढा झिझकता हुआ बैठ गया ।
“फरमाइये ।”
बूढे ने एक बार खंखार कर गला साफ किया, फिर बेचैनी से दाएं-बाएं देखा और फिर अटकता हुआ बोला - “सुनील तुम्हारा नाम है, बेटा ?”
“जी हां । फरमाइये ।”
फरमाने से पहले बूढे ने अपनी जेब से एक कपड़े में लिपटा हुआ पुलन्दा निकाला । कपड़ा खोलकर उसने सुनील के सामने कर दिया । सुनील ने देखा उसमें एक के, पांच के, दस के, कई नोट एक डोरी की सहायता से बन्धे हुए थे ।
“ये आठ सौ रुपये हैं, बेटा” - बूढा भर्राये स्वर में बोला - “इनके अलावा मेरे पास एक नया पैसा नहीं है । तुम ये सब ले लो लेकिन किसी तरह मेरी मीरा को ढूंढ दो ।”
“मीरा कौन ?”
“मीरा मेरी बेटी है ।”
“लेकिन किस्सा क्या है । ठहरिये, मुझे तरीके से सब कुछ बताइये । आप कौन हैं ? कहां से तशरीफ लाये हैं ?”
“नाम हीरासिंह है” - वह बोला - “कौम जाट । बलरामपुर का रहने वाला हूं ।”
“और मीरा का क्या किस्सा है ?”
“मीरा मेरी बेटी है । वह इण्टर तक पढी है और उसे हमारा देहाती रहन-सहन बिल्कुल पसन्द नहीं । हमारे बलरामपुर की एक कामिनी नाम की लड़की शहर में आकर, सुनते हैं बहुत मशहूर हो गई है । उसका बाप कहता है कि वह फिल्मों में काम करती है । वह शहर से अपने घर खूब रुपया पैसा भेजती है और खुद भी कई बार बलरामपुर में आती है । बेटा, कामिनी देहात की लड़की तो लगती ही नहीं । वह तो एकदम चमकदार गोरी चिट्टी मेम बन गई है । वह जब-जब बलरामपुर में आती जाती है सारे इलाके में तहलका मचा जाती है । कामिनी मीरा की शुरू से सहेली थी । पता नहीं वह मीरा के कानों में क्या मन्तर फूंकती रही कि एक दिन मीरा जिद करके हमसे लड़-झगड़कर कामिनी के पास शहर चली आई ।”
“शहर कहां ?”
“यहां राजनगर में ।”
“कब ?”
“तकरीबन छः महीने पहले ।”
“आपने उसे रोका नहीं ?”
“रोकने का कोई फायदा नहीं था बेटा । जमाने की हवा बहुत खराब है । मेरे रोकने से वह रुकने वाली थी भी नहीं । वह चुपचाप घर से भाग जाती और हमारी बदनामी होती । और फिर कामिनी ने वायदा किया था कि वह मीरा का शहर में पूरा ख्याल रखेगी ।”
“फिर ?”
“फिर क्या ? शहर से हमें मीरा की चिट्ठयां आती रहीं कि वह सुख से है । कामिनी उसका पूरा ख्याल रख रही है और उसके लिये अच्छी नौकरी का भी इन्तजाम कर रही है और शीघ्र ही बलरामपुर वापिस आयेगी । फिर एक चिट्ठी में उसने लिखा कि वह राजनगर के एक बहुत बड़े उद्योगपति सेठ मुकन्द लाल की पत्नी की निजी सेक्रेटरी बन गई है । हम सन्तुष्ट हो गये कि लड़की सुख से है और किसी गलत रास्ते पर नहीं चल रही है । फिर एक महीने पहले वह गायब हो गई ।”
“कैसे ? कहां ?”
“मालूम नहीं । वह मुझे हर हफ्ते चिट्ठी लिखा करती थी । फिर एक महीने उसकी कोई चिट्ठी नहीं आई । मैंने उसे चिट्ठी लिखवाई और वह चिट्ठी वापिस आ गई । मैंने सेठ मुकन्दलाल की पत्नी के नाम चिट्ठी लिखवाई जिसके जवाब में चिट्ठी आ गई कि मीरा नौकरी छोड़ कर चली गई है । कहां चली गई है । इसकी उन्हें खबर नहीं ।”
“आप राजनगर कब आये ?”
“कल रात को ।”
“आप मीरा के बारे में पूछने सेठ मुकन्दलाल के निवास स्थान पर गये थे ?”
“गया था लेकिन बेटा, उनके चौकीदार ने तो मुझे दरवाजे के पास भी नहीं फटकने दिया ।”
“आप कामिनी से मिले ?”
“कामिनी मुझे नहीं मिली । बलरामपुर में उसके बाप ने मुझे कामिनी का जो पता बताया था, मैं वहां गया था । वहां से मुझे मालूम हुआ कि कामिनी अब वहां नहीं रहती । अब वह कहां रहती है, इसकी किसी को खबर नहीं ।”
“आप मेरे पास कैसे आये ?”
“पैदल चल कर आया हूं बेटा ।”
“नहीं, नहीं । मेरा मतलब यह नहीं था । मेरा मतलब है आपको मेरी जानकारी कैसे हुई ? आपको यह कैसे मालूम हुआ कि आपकी बेटी की तलाश में मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूं ? और... और अगर आप समझते हैं कि आपकी बेटी के गुम हो जाने में की गड़बड़ है, कोई रहस्य है तो आपने पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं की ?”
“मैं पुलिस स्टेशन गया था, बेटा । लेकिन रिपोर्ट लिखना तो दूर की बात है, उन्होंने तो ढंग से मेरी बात भी नहीं सुनी । उन्होंने तो मुझे सिरफिरा देहाती समझ कर दुत्कार कर वहां से भगा दिया कि मैं तो खामख्वाह अपनी बालिग लड़की की चिन्ता में मरा जा रहा हूं और बेटा उन्होंने तो मेरी मीरा के बारे में बहुत गन्दी बातें कहीं जैसे उन्होंने कहा...”
“छोड़ये” - सुनील जल्दी से बोला - “मुझे मालूम है, ऐसी स्थिति में लोग किसी लड़की पर किस प्रकार का कीचड़ उछाल सकते हैं । आप मुझ तक कैसे पहुंचे ?”
“पुलिस स्टेशन पर एक सिपाही मिल गया था, जो हमारी ओर का था । उसी ने मुझे बताया था कि तुम मीरा को तलाश करने में मेरी पुलिस से ज्यादा मदद कर सकते हो लेकिन तुम रुपया लिये बिना कुछ नहीं करोगे । सो बेटा, मेरे पास जो कुछ है, तुम्हारे सामने रखा है ।”
सुनील ने एक उचटती सी निगाह अपने और बूढे के बीच में पड़े नोटों पर डाली - “आपके पास मीरा की कोई तस्वीर है ?”
बूढे ने फिर अपने कुर्ते की जेब में हाथ डाला और एक छोटी सी तस्वीर निकाली दो लड़कियां एक नहर के किनारे खड़ी थीं । तस्वीर बहुत पुरानी थी और बहुत दूर से खींची गई थी । उस तस्वीर के दम पर वास्तविक जीवन में तस्वीर वाली की सूरत पहचान पाना बड़ा कठिन काम था ।
“इन में से मीरा कौन सी है ?” - सुनील ने पूछा ।
बूढे ने तस्वीर में दाईं ओर लड़की पर उंगली रख दी ।
“दूसरी लड़की कौन है ?”
“कामिनी ।”
“यह तस्वीर कितनी पुरानी है ?”
“पांच साल पुरानी ।”
“अब मीरा कितने साल की है ?”
“बीस साल की ।”
“आप मीरा का हुलिया बयान कर सकते हैं ?”
बूढे ने मीरा का हुलिया बयान किया लेकिन उससे सुनील को कोई लाभ नहीं हुआ । शक्ल में, अक्ल में बूढे ने वे तमाम खूबियां अपनी बेटी में गिनवा दी थीं जो एक बाप अपनी औलाद में देखना चाहता है । केवल एक बात थी जो उसकी कल्पना शक्ति की उपज नहीं हो सकती थी । उसके कथनानुसार मीरा के पेट पर अपैन्डेसाइटिस के आप्रेशन का निशान था । लेकिन उस बात का सुनील को कोई विशेष लाभ नहीं होने वाला था । वह मीरा की तलाश में राजनगर में मौजूद हजारों जवान लड़कियों के पेट उघाड़-उघाड़ कर नहीं देख सकता था । और फिर इस बात की भी कोई गारन्टी नहीं थी कि मीरा राजनगर में ही थी ।
“देखिये बुजर्गवार” - सुनील बोला - “मैं आप को मीरा से मिला सकूं, इसकी मुझे खुशी होगी लेकिन अगर मैं पूरी ईमानदारी से भी आपकी मदद करूं तो भी मैं इस बात की की गारन्टी नहीं कर सकता कि मैं मीरा को खोज ही निकालूंगा । राजनगर बहुत बड़ा शहर है । चालीस लाख की आबादी में से एक अनजान लड़की को खोज निकालना भुस के ढेर में से सुई खोज निकालने जैसा है और यह बात मैं यह मानकर कह रहा हूं कि मीरा राजनगर में ही है । आप मेरी बात समझ रहे हैं न ?”
“समझ रहा हूं ।”
“वैसे मैं आप को विश्वास दिलाता हूं कि मैं मीरा को तलाश करने में अपनी ओर से कोई कोशिश उठा नहीं रखूंगा ।”
“मैं तुम्हारा बहुत अहसानमन्द हूं बेटा ।” - बूढे ने कृतज्ञ स्वर से कहा ।
“और ये रुपये आप अपने पास रखिये ।”
बूढे ने यूं सुनील की ओर देखा जैसे उसे सुनील की बात समझ न आई हो ।
“इनकी जरूरत नही पड़ेगी ।”
“तुम काम की फीस नहीं लेते ?”
सुनील के होंठों पर एक हल्की-सी मुस्कराहट आ गई ।
“लेता हूं, लेकिन उन लोगों से जिनके पास मुझे एक रुपया देने के बाद एक लाख रुपये बाकी भी बच जाते हैं ।”
“लेकिन बेटा, मैं किसी की दया का पात्र बनना नहीं चाहता ।”
“आप मेरी दया के पात्र नहीं बन रहे हैं । विश्वास जानिये आप के काम में इतना रुपया खर्च होने वाला नहीं है और जो रुपया खर्च होगा उसे मैं अपने मेहनताने सहित आप से बाद में चार्ज कर लूंगा । ठीक है ?”
बूढे ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया और झिझकते हुए नोट उठाकर जेब में रख लिये ।
“राजनगर में आप ठहरे कहां हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
बूढा निगाहें चुराने लगा ।
“मैं आप के ठहरने का इन्तजाम करता हूं ।” - सुनील बोला ।
उसने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और रेणु से यूथ क्लब का नम्बर मांगा ।
“सोनू” - कुछ क्षण बाद रेणु की आवाज उसके कानों में पड़ी - “दूसरी ओर घन्टी जा रही है लेकिन कोई टेलीफोन नहीं उठा रहा है ।”
सुनील ने घड़ी देखी । साढे ग्यारह बजे थे । अभी रमाकांत के सो कर उठने का समय नहीं हुआ था । रमाकांत यूथ क्लब की हंगामाखेज जिन्दगी की वजह से कभी रात के दो-तीन बजे से पहले सोता नहीं था और इसीलिये कभी दिन में दो-बजे से पहले उठता नहीं था । और आपरेटर तीन बजे से पहले आती नहीं थी ।
“घन्टी बजने दो ।” - सुनील बोला ।
थोड़ी देर बाद घन्टी बजनी बन्द हो गई और रमाकांत का नींद में डूबा हुआ स्वर सुनाई दिया - “हल्लो ।”
“मोहन प्यारे जागो” - सुनील मीठे स्वर से बोला - “शाम हो गई ।”
“कौन बोल रहा है ?”
“तुम्हारा सबसे प्यारा दोस्त ।”
“लानत है तुम पर ।”
“प्यारेलाल कभी तो दो मीठे बोल साफ बोला करो ।”
“मीठे बोल बोलने के लिए मैंने आपरेटर रखी हुई है । तुम बको क्यों फोन किया है ?”
“प्यारे...”
“और एक बात एडवांस में सुन लो । मुझे कोई काम नहीं बताना । मैं कोई काम नहीं करवाऊंगा । बाई गाड मैं कोई काम नहीं करवाऊंगा ।”
“इतना उखड़ क्यों रहे हो ?”
“तुमसे मतलब ?”
“रात को पपलू में ज्यादा रुपये हार गए हो या किसी लडकी ने लिफ्ट नहीं दी है ?”
“पपलू में ज्यादा रुपये हार गया हूं ।” - रमाकांत ने बड़ी शराफत से स्वीकार किया ।
“कितने ?”
“तीन सौ रुपये ।”
“तो, फिर मर क्यों रहे हो ? इतना कमाते हो ?”
“इतना खर्च भी तो करता हूं । मेहनत करके कमाता हूं । तुम्हारी तरह हराम की कमाई थोड़े ही है मुझे ।”
“मुझे कौन-सी हराम की कमाई है ?”
“और नहीं तो क्या ? ब्लास्ट से तनखाह अलग पीटते हो और राजनगर के रइसों को या उनकी छोकरियों को अलग ब्लैकमेल करते हो । बाई गाड तुम जरूर किसी दिन जेल जाओगे । इंस्पेक्टर प्रभूदयाल की बरसों की कामना जरूर पूरी होगी ।”
“अभी तो तुम्हें मेरी बात सुनने की फुरसत नहीं थी और अब बकवास पर बकवास किए जा रहे हो । खुद भौंक रहे हो तो नींद खराब नहीं हो रही तुम्हारी ?”
“ठीक है । ठीक है । बोलो क्यों फोन किया है ?”
“गांव से मेरे एक रिश्तेदार आए हैं । उन्हें तुमने कुछ दिन अपने पास रखना है ।”
“कौन रिश्तेदार आए हैं ?”
“मेरे बाप समझ लो ।”
“फिर मेरा तो वह बाप पर बाप हुआ । तुम मेरे बाप वो तुम्हारा बाप ।”
“फिर ?”
“उसे कुछ दिन तुमने अपने पास रखना है ।”
“तुम अपने फ्लैट में क्यों नहीं रखते ?”
“क्योंकि वहां कोई रोटियां पकाने वाली बीवी नहीं बैठी मेरी ।”
“जैसे यहां बैठी है ।”
“अब बकवास बन्द करो । बात का मतलब समझा करो । उसके पीछे लठ लेकर मत पड़ जाया करो । अपना कोई आदमी यहां भेज दो जो बुजुर्गवार को अपने साथ ले जाए और साथ ही उसके हाथ में एक बर्फी का डिब्बा भेज देना ।”
“क्या !”
“बर्फी का डिब्बा । बर्फी का डिब्बा । बर्फी नहीं समझते हो या डिब्बा नहीं समझते हो ?”
“उसका क्या होगा ?”
“सच सच बता दूं ?”
“अगर जुकाम न हुआ हो तो बता दो ।”
“रेणु के साथ मजाक करना है ।”
“आजकल उस बेचारी आपरेटर को फंसा रहे हो ?”
“मैं उसे नहीं फंसा रहा हूं । वह मुझे फंसा रही है और वह बेचारी हरगिज नहीं है ।”
“तो फिर फंस जाओ । अच्छी खासी लड़की है ।”
“मैं भी यही सोच रहा हूं । तुमसे जो मैंने कहा है करो ।”
“अच्छा और भगवान करे जल्दी ही तुम्हारी टांग टूट जाए ।”
“यह आशीर्वाद किस खुशी में ?”
“मुझे कच्ची नींद जो जगाया है तुमने ।”
“टेलीफोन पकड़े रहो, मैं लोरी गा कर सुलाता हूं ।”
दूसरी ओर सम्बन्ध विच्छेद होने की आवाज आई ।
सुनील ने भी रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
दस मिनट में रमाकांत का एक आदमी वहां हाजिर हो गया । सुनील ने हीरासिंह को सारी स्थिति समझा कर उसे और रमाकांत के आदमी को रवाना कर दिया ।
उसने कामिनी और मीरा की पांच साल पुरानी तस्वीर अपनी जेब में रख ली । उसने कुर्सी की पीठ से अपना कोट उतार कर पहना, टाई की गांठ की, बालों में कंघी फिराई और रमाकांत के आदमी का लाया बर्फी का डिब्बा उठाकर केबिन से बाहर निकल आया ।
गैंगवे जैसे गलियारे से होता हुआ वह रिसैप्शन पर पहुंचा ।
रेणु उसे देखकर मुस्कराई ।
सुनील शरमाता हुआ काउन्टर के समीप पहुंचा । उसने बर्फी का डिब्बा रेणु के सामने कर दिया ।
“यह क्या है ?” - रेणु बोली ।
“मिठाई ।”
“किश खुशी में ?”
“सबसे पहले मेरे ससुर के आगमन की सूचना मुझे तुमने दी थी न, इसलिए सबसे पहले मिठाई भी मैं तुम्हारे पास ही लाय हूं ।”
“लेकिन मामला क्या है ?”
“मेरी सगाई पक्की हो गई है ।”
रेणु के चेहरे से मुस्कराहट उड़ गई । वह यूं आंखें फाड़-फाड़ कर सुनील की ओर देखने लगी जैसे सामने सुनील नहीं उसका भूत खड़ा हो ।
“ये मिठाई वो बुजुर्गवार लाये थे ?” - वह बोली ।
“और नहीं तो क्या ?”
“वे वाकई तुमसे अपनी लड़की का रिश्ता करने आये थे ?”
“हां ।”
“और सगाई पक्की हो गई है ?”
“हां ।”
“ओह !”
“तुम्हें खुशी नहीं हुई ?”
रेणु ने एक गहरी सांस ली और धीमे स्वर से बोली - “मुझे बहुत खुशी हुई है । मुबारक हो ।”
“यह बर्फी तो खाओ ।”
“मैं मीठा नहीं खाती ।”
“थोड़ी-सी तो खाओ ।”
रेणु ने बर्फी का टुकड़ा उठाया और उसने अपने सामने पीबीएक्स बोर्ड पर रख लिया । उसने सुनील की ओर से निगाहें फिरा लीं और बड़ी व्यस्तता से बोर्ड आपरेट करने में जुट गई ।
सुनील वहां से हट गया । वह गेट के समीप बैठे चपरासी के पास पहुंचा और उच्च स्वर से बोला - “प्यारेलाल यह बर्फी दफ्तर में मेरे दोस्तों को बांट दो ।”
“किस खुशी में साहब ?” - चपरासी डिब्बा लेता हुआ बोला ।
“कहना सुनील के लड़का हुआ है ।”
“लेकिन साहब आपके तो बीवी नहीं है ।”
“मैंने यह कब कहा है, मेरी बीवी के लड़का हुआ है । मैंने कहा है - मेरे लड़का हुआ है ।”
सुनील ने देखा रेणु मुंह बाये उसकी ओर देख रही थी । वह बिना एक शब्द बोले तीर की तरह कमरे से बाहर निकल गया ।
***
सेठ मुकन्दलाल की महल जैसी विशाल कोठी राजनगर के रइसों के इलाके शंकर रोड पर स्थित थी ।
सेठ मुकन्दलाल कोठी पर मौजूद नहीं थे ।
सुनील की प्रार्थना पर एक नौकर उसे सेठ मुकन्दलाल की पत्नी के पास छोड़ गया ।
मिसेज मुकन्दलाल को देखकर सुनील को झटका-सा लगा । उसने सुना था कि सेठ मुकन्दलाल लगभग साठ साल के पुराने जमाने के व्यक्ति थे और वह अपेक्षा कर रहा था कि उनकी पत्नी कोई उन्हीं जैसी मोटी थुलथुल वृद्धा होगी । लेकिन जिस मिसेज मुकन्दलाल के सामने नौकर उसे खड़ा कर गया था वह मुश्किल से पच्चीस साल की बेहद आधुनिक युवती थी । वह बैलबाटम पहने हुए थी और उसके बाल कटे हुए थे । उसकी खोजपूर्ण निगाह सुनील को सिर से पांव तक नापने लगी ।
सुनील तनिक विचलित हो उठा । वह उसे यूं देख रही थी जैसे वह माइक्रोस्कोप की सहायता से किसी कीड़े का परीक्षण कर रही हो । या सोच रही हो कि अगर सुनील इन्सान होने के स्थान पर बकरा होता तो उसमें से कितना गोश्त निकलता ।
“मैडम” - सुनील अपने चेहरे पर एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट लाता हुआ बोला - “मेरा नाम सुनील है । मैं ‘ब्लास्ट’ का विशेष प्रतिनिधि हूं ।”
“हूं” - युवती यूं बोली जैसे कहना चाह रही हो कि सुनील चाहे काला चोर हो उसे उससे क्या फर्क पड़ता था - “बैठो ।”
सुनील उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“क्या चाहते हो ?” - सवाल ऐसा था जैसे किसी चन्दा मांगने वाले से पूछा गया हो ।
“मैं मीरा नाम की उस लड़की के बारे में आपसे बात करना चाहता था जो कुछ अरसा पहले आपके पास काम करती थी ।” - सुनील मीठे स्वर से बोला ।
“क्या बात करना चाहते हो ?”
“आपको मालूम है वह एकदम गायब हो गई है ?”
“मैंने सुना है ।”
“आप उसके बारे में चिन्तित नहीं हैं ?”
“क्या मूर्खो जैसी बातें करते हो, मिस्टर ! मुझे उसके बारे में चिन्तित होने की क्या जरूरत है । वह बालिग है । चली गई होगी कहीं ।”
“यूं एकाएक ?”
“बिल्कुल ।”
“शायद आपको मालूम न हो कि मीरा का बाप मीरा के लिए बहुत चिन्तित है और वह मीरा को खोजता हुआ बलरामपुर से राजनगर आ गया है ।”
“हो सकता है । पुराने जमाने के लोग औलाद से इस प्रकार का लगाव रखा ही करते हैं ।” - मिसेज मुकन्दलाल भावहीन स्वर से बोली ।
“आपको इस बारे में कतई कोई आइडिया नहीं है कि मीरा एकाएक कहां गायब हो गई ?”
“नहीं ।”
“आपने उसे तलाश करने की कोशिश भी नहीं की ?”
“मैं कहां तलाश करती उसे ? मैं तो उसका कोई पता ठिकाना जानती नहीं ।”
“आपने ऐसी अनजान लड़की को नौकर कैसे रख लिया ?”
“किसी ने उसकी सिफारिश की थी ।”
“किसने ?”
“चमनलाल ने । तुम जानते हो उसे ?”
“नहीं ।”
“मशहूर आदमी है ।”
“कौन है वह ?”
“परिवार का मित्र है । उसी ने मीरा को नौकरी के लिए मेरे पास भेजा था ।”
“मीरा के गायब हो जाने पर आपने मीरा के बारे में चमनलाल से नहीं पूछा ?”
“पूछा था, मीरा के गायब हो जाने के दो दिन बाद चमनलाल का फोन आया था । उसने मीरा के बारे में पूछा था । तब मैंने उसे बताया था कि मीरा मालूम नहीं कहां है । वह खुद हैरान था कि मीरा एकाएक कहां गायब हो गई ।”
“ये चमनलाल साहब रहते कहां हैं ?”
“मुझे उसका पता याद नहीं । उसका नाम डायरेक्ट्री में है । वहीं से पता देख लेना ।”
“क्या आप ऐसी कोई बात बता सकती हैं जिसका सम्बन्ध मीरा के गायब होने से जोड़ा जा सके ।”
“नहीं ।”
“वह यहीं रहती थी ?”
“और कहां रहती थी ?”
“क्या उससे मिलने-जुलने वाले यहां आया करते थे ?”
“कभी कोई नहीं आया और न ही वह कहीं जाती थी । वह लड़की अपने काम में बहुत होशियार थी और सूरत शक्ल से बहुत खूबसूरत और मॉडर्न लगती थी लेकिन थी बहुत बैकवर्ड । उसका कोई मिलने-जुलने वाला ही नहीं था ।”
“जिस खूबसूरत लड़की का कोई चाहने वाला न हो वह बैकवर्ड होती है ?”
“और नहीं तो क्या ? क्या तुम्हें कोई नहीं चाहता ?”
“मैं लड़की नहीं हूं, मैडम ।”
“जाहिर है । और अगर लड़की होते भी तो शायद इतने खूबसूरत न लगते । मेरा मतलब था कि तुम्हारी भी कोई चाहने वाली जरूर होगी ।”
सुनील ने उत्तर नहीं दिया ।
“है न ?”
“ऊपर वाले की इनायत है ।”
“या चाहने वालियां होंगी ?”
सुनील चुप रहा ।
“तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया ?”
“हम मीरा के बारे में बात कर रहे थे ।” - सुनील जल्दी से बोला ।
“अरे, भाड़ में झोंको मीरा को । थी कोई लड़की जो खिसक गई कहीं । तुम्हें क्यों चिन्ता हो रही है उसकी ?”
“उसके बाप को बहुत चिन्ता हो रही है ।”
“तो बाप को चिन्ता करने दो । बापों का तो काम ही औलाद की चिन्ता करना होता है, तुम उसके बाप थोड़े ही हो ।”
“मीरा के बाप ने हमारे अखबार से अपील की है कि हम उसका पता लगाने के बारे में कुछ करें ।”
“यह पुलिस का काम है ।”
“पुलिस ने उसकी एक नहीं सुनी ।”
“बोर कर रहे हो ।” - युवती मुंह बिगड़ाकर बोली ।
“मुझे खेद है ।”
“मैंने तुम्हें एक बहुत मनोरंजक आदमी समझा था ।”
“आपने गलत नहीं समझा था लेकिन वक्त-वक्त की बात है मैडम यह वक्त मनोरंजन का नहीं । इस वक्त मैं एक बेसहारा बूढे की जवान लड़की को तलाश करने की कोशिश कर रहा हूं ।”
युवती मुंह से कुछ नहीं बोली । वह दुबारा सुनील को सिर से पांव तक देखने लगी । एकाएक उसकी आंखों में एक नई चमक पैदा हो गई थी ।
“क्या नाम बताया तुमने अपना ?” - वह तनिक भर्राये स्वर में बोली ।
“सुनील ।” - सुनील ने उत्तर दिया ।
“यहां आओ ।”
“जी ।”
“आई सैड कम हेयर ।”
सुनील अपनी कुर्सी से उठा और युवती की कुर्सी के पास आ खड़ा हुआ ।
“किस मी ।” - वह बोली और उसने अपने नेत्र बन्द कर लिये ।
“मैं इजाजत चाहूंगा ।” - सुनील अपने स्वर को भरसक सन्तुलित रखता हुआ बोला ।
युवती के चेहरे ने एकदम भाव बदले । उसने नेत्र खोले और कहर भरी निगाहों से सुनील की ओर देखा ।
“यू बास्टर्ड ।” - वह दांत पीसकर बोली ।
“आप मीरा की तलाश की दिशा में वाकई मेरी मदद नहीं कर सकतीं ?” - सुनील यूं बोला जैसे गाली उसने सुनी ही नहीं ।
“आउट !” - वह गर्जी ।
सुनील ने बड़ी शान्ति से अपनी जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और उसे उसकी कोहनी के पास रखी एक छोटी सी तिपाई पर रखता हुआ बोला - “यह मेरा कार्ड है । इसमें मेरा टेलीफोन नम्बर लिखा है । अगर आपको कोई ऐसी बात सूझ जाये जो मीरा की तलाश में सहायक सिद्ध हो सकती हो तो कृप्या मुझे फोन कर दीजियेगा ।”
“गो टू हैल ।” - वह नफरत भरे स्वर में बोली ।
“राइट अवे मैडम ।” - सुनील मुस्कराता हुआ बोला । उसने कमर तक झुककर उसका अभिवादन किया और फिर लम्बे डग भरता हुआ कमरे से बाहर निकल गया ।
बूढे सेठ मुकन्दलाल की जवान बीवी के व्यवहार से उसे हैरानी नहीं हुई थी । बूढे नाकारा सेठों की कड़क जवान बीवियां अगर भूखी बिल्लियों की तरह नवयुवकों पर नहीं झपटेंगी तो मानसिक कुण्ठा से मर नहीं जायेंगी ।
***
टेलीफोन डायरेक्ट्री के अनुसार चमनलाल हर्नबी रोड की तेरह नम्बर इमारत में रहता था ।
सुनील अपनी मोटर साइकिल पर हर्नबी रोड पहुंचा । तेरह नम्बर इमारत के सामने फुटपाथ पर चढाकर उसने मोटर साइकिल खड़ी कर दी ।
तेरह नम्बर एक विशाल पांच मंजिली इमारती थी जिसमें बीसियों किरायेदार रहते थे । पूछने से मालूम हुआ कि चमनलाल चौथी मंजिल पर दाईं ओर के पहले फ्लैट में रहता था ।
सीढियां तय करके सुनील चौथी मंजिल पर पहुंचा । उसने चमनलाल का फ्लैट खटखटाया ।
“कौन है ?” - भीतर से एक भारी आवाज आई ।
“चमनलाल जी हैं ?” - सुनील ने पुकारा ।
“क्या काम है ?”
“जरा उनसे बात करनी है ।”
“भीतर आ जाओ । दरवाजा खुला है ।”
सुनील द्वार धकेलकर भीतर प्रविष्ट हो गया ।
भीतर कमरे में मेज के पीछे एक इकहरे बदन का आदमी बैठा था ।
“मिस्टर चमनलाल !” - सुनील बोला ।
“मेरा नाम है ।” - वह आदमी बोला - “तशरीफ रखिये ।”
सुनील उसके सामने कुर्सी पर बैठ गया ।
“फरमाइये !”
सुनील ने जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर मेज पर उसके सामने रख दिया और फिर बोला - मेरा नाम सुनील है । मैं ब्लास्ट का प्रतिनिधि हूं ।”
“यह तो आपके कार्ड पर लिखा है । मुझसे क्या चाहते हैं आप ?”
“मैं आप से मीरा के बारे में बात करने आया था ।”
“मीरा ! कौन मीरा ?”
“जिसे आपने मिसेज मुकन्दलाल की सेक्रेट्री की नौकरी दिलवाई थी ।”
“अच्छा वह लड़की ! क्या पूछना चाहते हो उसके बारे में ?”
“वह लड़की एकाएक गायब हो गयी है ।”
“गायब हो गयी है ? क्या मतलब ?”
“गायब का मतलब गायब ही होता है साहब । एक महीने पहले वह सेठ मुकन्दलाल की कोठी से गायब हो गई है और किसी को मालूम नहीं है कि वह कहां है ?”
“तो फिर मुझे कैसे मालूम हो सकता है ?”
“आप उसे जानते थे । आप ही ने उसे मुदन्दलाल के यहां नौकरी दिलवाई थी इसलिए मैंने सोचा कि शायद आप जानते हों कि लड़की कहां हो सकती है ।”
“यह आपको किसने बताया है कि मैंने मीरा को सेठ मुकन्दलाल के यहां नौकरी दिलवाई थी ?”
“सेठ मुकन्दलाल की पत्नी ने ।”
“ओह ! तो तुम वहां पहले ही हो आये ।”
“मैं सीधा वहीं से आ रहा हूं । उन्होंने ही मुझे आपके बारे में बताया था ।”
“आई सी !”
“आप मीरा को कैसे जानते हैं ?”
“बस जानता हूं ।” - चमनलाल लापरवाही से बोला ।
“कैसे जानते हैं ? आप उसके सम्पर्क में कैसे आये ?”
“मुझे याद नहीं, मैं उसके सम्पर्क में कैसे आया ? मैं इस नगर की बीसियों लड़कियों को जानता हूं । मीरा भी उन्हीं में से एक थी । मेरी उसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं । मिसेज मुकन्दलाल को सेक्रेट्री की जरूरत थी, मीरा को नौकरी की जरूरत थी, मैंने दोनों को मिलवा दिया, छुट्टी । अब मीरा कहां है, इस बारे में कोई जानकारी मुझे कैसे हो सकती है ?”
“आप याद करने की कोशिश तो कीजिये कि आप मीरा के सम्पर्क में कैसे आये थे ।”
“क्यों करूं कोशिश साहब ? एक वाहियात सी बात के लिए अपने दिमाग पर जोर देने की क्या जरूरत है ?”
“मानवता के नाते ऐसा करना चाहिए ।”
चमनलाल यूं हंसा जैसे उसने भारी मजाक की बात सुन ली हो ।
“शायद हाल ही की एक बात आपको न भूली हो ।” - सुनील बोला - “लगभग एक महीने पहले आपने मिसेज मुकन्दलाल को फोन किया था और उनसे मीरा के बारे में पूछा था ।”
“हां पूछा था ।” - चमनलाल अपनी ठोडी खुजलाता हुआ बोला - “तभी मिसेज मुकन्दलाल ने मुझे बताया कि मीरा गायब है ।”
“आप मीरा को किसलिए पूछ रहे थे ?”
“कोई थी बात । अब याद नहीं मुझे ।”
“या आप बताना नहीं चाहते ?”
“ऐसा ही समझ लीजिए ।”
“आप मीरा के किसी अन्य परिचित को जानते हैं जिससे मीरा के बारे में जानकारी हासिल हो सके ?”
“नहीं ।”
“आप कोई खास मदद नहीं कर रहे हैं ?”
“मैं आपकी यही बहुत मदद कर रहा हूं ।”
सुनील ने एक गहरी सांस ली और उठ खड़ा हुआ । चमनलाल बहुत बदतमीज आदमी था और किसी की कोई मदद करने में विश्वास रखता मालूम नहीं होता था ।
“अच्छी बात है, साहब !” - सुनील बोला - “भगवान न करे जिन्दगी में दुबारा कभी आप जैसे किसी को सहयोग देने में कतई विश्वास न रखने वाले आदमी से मेरा वास्ता पड़े ।”
और इससे पहले चमनलाल कुछ कह पाता सुनील लम्बे डग भरता हुआ फ्लैट से बाहर निकल गया ।
सुनील इमारत से बाहर निकल आया । फुथपाथ पर खड़े होकर उसने चमनलाल के फ्लैट की ओर देखा । उसके फ्लैट की एक खिड़की के पर्दे के पीछे उसे एक साये का आभास मिला जो सुनील को फ्लैट की ओर देखता पाकर फौरन वहां से हट गया ।
चमनलाल सुनील को जाता देख रहा था ।
वह हर्नबी रोड पर आगे बढ गया ।
थोड़ी दूर जाकर उसने मोटर साइकिल को एक गली में मोड़कर रोक दिया । उसने मोटर साइकिल वहीं खड़ी की और फिर पैदल वापस तेरह नम्बर इमारत की ओर लौट पड़ा । बिजली के खम्बों की ओट लेता हुआ वह वापस तेरह नम्बर इमारत के समीप पहुंच गया । वह एक बिजली के खम्बे के पीछे रुक गया । उसने अपनी जेब से लक्की स्ट्राईक का पैकेट निकाल लिया । एक सिगरेट सुलगाया और उसके लम्बे-लम्बे कश लेता हुआ प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग पांच मिनट बाद चमनलाल तेरह नम्बर इमारत से बाहर निकला । उसने सड़क पार की ओर सीधा तेरह नम्बर इमारत के एकदम सामने की एक इमारत में घुस गया ।
सुनील ने देखा उस इमारत पर लगे विशाल बोर्ड पर लिखा था -
माड्रन बार एण्ड रेस्टोरेन्ट
सुनील कुछ क्षण हिचकिचाया । फिर सिगरेट फेंक दिया और माड्रन बार एण्ड रेस्टोरेन्ट में प्रविष्ट हो गया ।
भीतर अपेक्षाकृत बहुत प्रकाश था । सुनील चुपचाप कोने की एक खाली मेज पर जा बैठा । उसने एक नया सिगरेट सुलगा लिया । उसने सावधानी से अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई ।
उससे लगभग आधी दर्जन मेजें दूर चमनलाल बैठा था । उसके सामने एक मोटा-ताजा आदमी बैठा था । दोनों के सामने बियर के गिलास रखे थे और वे सिर झुकाये बड़ी तन्मयता से बातें कर रहे थे ।
सुनील ने भी बियर का आर्डर दे दिया ।
लगभग दस मिनट बाद सुनील को चमनलाल अपने स्थान से उठने के लिए तैयार होता दिखायी दिया । सुनील ने भी जल्दी से अपना बिल चुकाया और फिर चमनलाल और उसके मोटे साथी से पहले बाहर निकल आया । वह बार से थोड़ी दुर एक पेड़ की ओट में जा खड़ा हुआ । चमनलाल अपने मोटे साथी के साथ बार से बाहर निकला । उसने मोटे से हाथ मिलाया और सड़क पार करके वापस तेरह नम्बर इमारत में प्रविष्ट हो गया ।
मोटा फुटपाथ पर आगे बढा ।
सुनील उसके पीछे हो लिया ।
मोटे ने एक जाती हुई टैक्सी को संकेत करके रुकवाया और उसमें सवार हो गया । टैक्सी आगे बढी ।
सुनील भागता हुआ उस गली में पहुंचा जहां उसने अपनी मोटर साइकिल खड़ी की थी । वह फुर्ती से मोटर साइकिल पर सवार हुआ और उसे मुख्य सड़क पर ले आया ।
सौभाग्यवश टैक्सी अभी भी मुख्य सड़क पर थी । सुनील ने सावधानी से टैक्सी का पीछा करना आरम्भ कर दिया । टैक्सी मेहता रोड पर स्थित एक दम मंजली इमारत के सामने रुकी । मोटा टैक्सी से निकल आया । उसने टैक्सी का बिल चुकाया और इमारत में प्रविष्ट हो गया ।
सुनील ने भी मोटर साइकिल स्टैण्ड पर खड़ी की और उसके पीछे हो लिया ।
सुनील ने देखा इमारत के मुख्य द्वार लिखा था -
मंगतराम पैलेस
उसने मोटे को एक स्वचलित लिफ्ट में प्रविष्ट होते देखा । उसके देखते ही लिफ्ट का द्वार बन्द हो गया । सुनील उस लिफ्ट के सामने खड़ा हुआ । उसकी निगाह लिफ्ट की बगल में लगे इण्डीकेटर पर टिक गई ।
इण्डीकेटर के अनुसार लिफ्ट छठी मंजिल पर जाकर रुक गई । इण्डीकेटर में उस पर लाल बत्ती स्थिर हो गई ।
सुनील ने लिफ्ट को नीचे बुलाने का बटन दबाया । थोड़ी ही देर में लिफ्ट लाबी में आ खड़ी हुई और उसका दरवाजा खुल गया । सुनील भीतर प्रविष्ट हुआ । उसने छठी मंजिल का बटन दबा दिया ।
छठी मंजिल पर सुनील लिफ्ट से बाहर निकल आया ।
मोटे का कहीं नाम निशान नहीं था । वहां कम कम से आया आठ विभिन्न कम्पनियों के दफ्तर थे और यह जानने का कोई साधन नहीं था कि मोटा उन दफ्तरों में से किसमें गया था ।
सुनील लिफ्ट से एक ओर हट गया । उसने एक नया सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा । उसकी निगाह दफ्तरों के बीच में से गुजरते लम्बे गलियारे पर टिकी हुई थी ।
लगभग दस मिनट बाद एक दरवाजा खुला और मोटे ने गलियारे में कदम रखा । उसने उसकी ओर पीठ फेर ली ।
मोटा लिफ्ट में प्रविष्ट हो गया । लिफ्ट का स्वचलित द्वार बन्द हो गया ।
सुनील ने सिगरेट फेंक दिया और गलियारे में प्रविष्ट हो गया । वह उस द्वार के सामने पहुंचा जिसमें से उसने मोटे को निकलता देखा था ।
द्वार पर लिखा था -
जीना टूरिस्ट एजेन्सी
सुनील वह द्वार धकेलकर भीरत प्रविष्ट हो गया ।
सामने एक छोटा-सा खूबसूरत रिसैप्शन डेस्क था जिसके पीछे फिल्म अभिनेत्रियों जैसी खूबसूरत और चमकदार लड़की बैठी थी । सुनील पर निगाह पड़ते ही उसके चेहरे पर यूं मुस्कराहट आई जैसे बिजली का स्विच ऑन करने से हजार वाट का बल्ब जल उठता है । जितनी शानदार वह लड़की थी, उतनी ही शानदार उसकी मुस्कराहट थी ।
“कुर्बान !” - सुनील होंठो में बुदबुदाया ।
“यस ।” - वह सूरत और मुस्कराहट से मैच करती हुई आवाज से बोली ।
सुनील ने देखा रिसैप्शन डेस्क के पीछे एक दरवाजा था जिस पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था -
एस के भटनागर
मैनेजर
“मैं मैनेजर से मिलना चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
“किस विषय में ?”
“पुलिस का मासला है ।”
लड़की के चेहरे से फौरन मुस्कराहट उड़ गई । उसने यूं घूरकर सुनील की ओर देखा जैसे कोई अवांछित व्यक्ति आफिस में आया हो ।
“जस्ट ए मिनट ।” - लड़की बोली । वह अपने स्थान से उठी और पिछला दरवाजा खोलकर भीतर घुस गई ।
पिछले कमरे में उसने एक मिनट से कम समय लगाया ।
“दिस वे सर ।” - वह बोली । अब उसके स्वर में व्यवसाय सुलभ तत्परता तो थी लेकिन मिठास नहीं थी ।
सुनील उसकी बगल से गुजरता हुआ पुछले कमरे में प्रविष्ट हो गया । द्वार उसके पीछे बन्द हो गया ।
भीतर एक विशाल मेज पीछे एक लगभग चालीस साल का आदमी बैठा था । सुनील को देखते ही वह बड़े मित्रतापूर्ण ढंग से मुस्कराया और फिर बोला - “आइये साहब, तशरीफ रखिये ।”
सुनील उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“फरमाइए साहब” - मैनेजर बोला - “पुलिस की क्या मदद कर सकता हूं मैं ?”
“मुझे क्या मालूम ?”
“जी क्या फरमाया ?” - मैनेजर उलझनपूर्ण स्वर में बोला ।
“मैंने फरमाया है कि मुझे क्या मालूम आप पुलिस की क्या मदद कर सकते हैं । मैं कोई पुलिस वाला थोड़े ही हूं ।”
“लेकिन मेरी सैक्रेट्री ने तो मुझे बताया था कि...”
“यह पुलिस का मामला है । उसने ठीक बताया था लेकिन मामला ही तो पुलिस का है । मैंने यह कब कहा था कि मैं पुलिस से सम्बन्धित हूं ।”
“आप पुलिस से सम्बन्धित नहीं हैं ?”
“बिल्कुल भी नहीं ।”
मैनेजर साफ-साफ नाराज दिखाई देने लगा ।
“और वास्तव में आप क्या चीज हैं ?”
सुनील ने अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर मैनेजर के सामने रख दिया ।
“सुनील कुमार चक्रवर्ती” - मैनेजर कार्ड पढने लगा - “स्पेशल कारस्पान्डेन्ट ‘ब्लास्ट’ । मुझसे क्या चाहते हैं आप ? और जो कहना है जल्दी कहिये । मेरे पास ज्यादा समय नहीं है ।”
“मेरे पास भी ज्यादा समय नहीं है । इसलिए मेरे सवाल के जवाब में जो कहिएगा, जल्दी कहिएगा और सच कहिएगा ।”
“ओफ्फोह साहब अब कुछ कह भी चुकिए ।”
“मीरा कहां है ?” - सुनील ने धीमे किन्तु स्पष्ट स्वर में पूछा ।
मैनेजर भौचक्का सा सुनील का मुंह देखने लगा जैसे सुनील का प्रश्न उसकी समझ में न आया हो ।
“क्या पूछा तुमने ?” - वह कठोर स्वर में बोला ।
“मीरा कहां है ?” - सुनील ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“मीरा कौन है ?”
“जैसे आपको मालूम नहीं है नहीं ।”
“देखो मिस्टर, पहेलियां बुझानी बन्द करो । अगर कोई ढंग की बात कहनी है तो कहो नहीं तो चलते बनो ।”
“मीरा कहा है ?”
“अब क्या मैं तुम्हें यहां से निकलवाने के लिए पुलिस को बुलाऊं ?”
“पुलिस को बुलाने की जरूरत नहीं । पुलिस खुद ही आ जाएगी । मेरे कार्ड पर मेरे घर का और मेरे आफिस का टेलीफोन नम्बर लिखा हुआ है । अगर कल सुबह तक तुमने मुझे यह नहीं बताया कि मीरा कहां है तो में सारे मामले की सूचना पुलिस को दे दूंगा ।”
“क्या बकवास कर रहे हो ?” - मैनेजर नफरत भरे स्वर से बोला - “लगता है तुम्हारा अकल से कोई वास्ता नहीं है । तुम इन्सान हो कि क्या हो । पहले धोखे से मेरे दफ्तर में घुस आये हो और अब सिरफिरों जैसी बातें कर रहे हो और मुझे बेबुनियाद धमकियां दे रहे हो । तुम अभी इसी वक्त यहां से दफा हो जाओ वर्ना मैं पुलिस को फोन करता हूं ।”
और उसने टेलीफोन की ओर हाथ बढाया ।
सुनील अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ ।
“तुम पछताओगे ।” - सुनील बोला ।
“ओह टेक दि हैल आउट आफ हेयर ।”
सुनील मैनेजर के आफिस से बाहर निकल आया ।
उसकी चाल नाकामयाब रही थी । उसका ख्याल था कि मीरा के बारे में सीधा और अकस्मात सवाल करने से मैनेजर के चेहरे पर कोर्ई प्रतिक्रिया होगी और उसको यह अनुमान लगाने में सुविधा होगी कि मैनेजर का मीरा के गायब होने से कोई वास्ता था या नहीं लेकिन उसके हाथ निराशा ही लगी । या तो मैनेजर बहुत बढिया एक्टर था और या फिर वह वाकई मीरा के बारे में कुछ नहीं जानता था । मोटे के चमनलाल से मिलकर सीथे मैनेजर के पास आने की वजह से सुनील यह समझ बैठा था कि शायद मैनेजर भी उसी जंजीर की एक कड़ी था लेकिन वर्तमान स्थिति से मालूम होता था कि मैनेजर का मीरा के गायब होने से कोई सम्बन्ध नहीं था ।
बाहर बैठी रिसैप्शनिस्ट ने बाहर द्वार की ओर बढते हुए सुनील की ओर देखा लेकिन उसके चेहरे पर मीठी मुस्कराहट नहीं आई ।
सुनील चुपचाप जीना टूरिस्ट एजेन्सी के बाहर निकल आया ।
***
शाम को सात बजे सुनील तीन बैंक स्ट्रीट में स्थित अपने फ्लैट पर पहुंचा ।
सुनील के फ्लैट में प्रविष्ट होते ही काल बैल बज उठी ।
सुनील ने द्वार खोला । बाहर एक लगभग उसी की उम्र का युवक खड़ा था । मोटर साइकिल पार्क करते समय सुनील ने उसे इमारत के सामने टहलते देखा था ।
“यस ।” - सुनील बोला ।
“मिस्टर सुनील ।” - युवक आशापूर्ण स्वर से बोला ।
“दी सेम ।” - सुनील बोला ।
“मैं आप ही से मिलने आया हूं । क्या मैं भीतर आ सकता हूं ?”
उत्तर में सुनील द्वार से एक ओर हट गया ।
युवक झिझकता हुआ भीतर प्रविष्ट हुआ । सुनील के संकेत पर वह एक सोफे पर बैठ गया । सुनील उसके सामने बैठ गया और प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखने लगा ।
“मिस्टर सुनील” - युवक बोला - “मैं सीधा मतलब की बात पर आ रहा हूं ।”
“वैरी गुड । इससे टाइम बचेगा ।”
“आपकी मीरा में क्या दिलचस्पी है ?” - युवक ने पूछा ।
सुनील हैरानी से उसका मुंह देखने लगा । उसे कतई आशा नहीं थी कि वह युवक भी मीरा के बारे में ही बात करेगा ।
“पहले तुम बताओ” - सुनील सावधानी से बोला - “तुम्हारा मीरा से क्या सम्बन्ध है ?”
युवक कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “बेहतर । पहले मैं ही बताता हूं लेकिन वायदा कीजिए, मिस्टर सुनील जो कुछ मैं आपको बताऊंगा आप उसे रहस्य ही रखेंगे ।”
“मैं ऐसा कोई वादा नहीं कर सकता क्योंकि मैं किसी और के लिए काम कर रहा हूं ।”
“कम से कम आप मुझे इतना तो विश्वास दिला ही सकते हैं कि जिसके लिए आप काम कर रहे हैं उसके सिवाय आप मेरी बताई बातों का जिक्र किसी के सामने नहीं करेंगे और उस आदमी के सामने भी आप मेरी बातें तभी करेंगे जबकि बताये बिना गुजर न होती हो ।”
“आल राइट ।”
“मिस्टर सुनील, मैं अपने एक मित्र के प्रतिनिधि के रूप में आया हूं । मेरे उस मित्र की वजह से ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि मीरा को थोड़े समय के लिए गायब हो जाना पड़ा है ।”
“वह मित्र कौन है ?”
“मैं क्षमा चाहता हूं ।”
“अपना नाम तो बता सकते हो ?”
“मेरा नाम जानने से आपको फर्क नहीं पड़ता ।”
“आल राइट । वह स्थिति क्या है जिसकी वजह से मीरा को गायब हो जाना पड़ा है ?”
युवक कुछ क्षण चुप रहा और फिर धीरे से बोला - “मीरा गर्भवती है ।”
“तुम्हारे मित्र की वजह से ?”
“जी हां ।”
“यह तो बड़ी गम्भीर बात है । मीरा एक कुंवारी लड़की है और...”
“जी हां, हम जानते हैं यह गम्भीर बात है इसलिए बहुत सावधानी से इस बात का इन्तजाम किया जा रहा है कि मेरे मित्र को या मीरा को कोई नुकसान भी न पहुंचे और मामला भी सुलझ जाए ।”
“ऐसा कैसे होगा ? क्या तुम्हारा मित्र मीरा से शादी कर लेगा ?”
“नहीं कर सकता । चाह कर भी नहीं कर सकता । मेरा मित्र पहले से ही विवाहित है ।”
“तो फिर मामला कैसे सुलझेगा ?”
“गर्भपात द्वारा ।”
“जानते हो यह कितना बड़ा अपराध है ?”
“जानता हूं लेकिन इस समय यह अपराध करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं है । मीरा इस समय बहुत सुरक्षित स्थान पर बहुत सुरक्षित हाथों में है । मीरा की कुछ निजी गलतियों की वजह से केस थोड़ा बिगड़ गया है इसलिए तत्काल आपरेशन करने में उसकी जान का खतरा था इसलिए मीरा पिछले एक महीने से एक बहुत काबिल डाक्टर की हिफाजत में रखी गयी है । समय आने पर वह मीरा का आपरेशन कर देगा और फिर सब ठीक हो जायेगा । मेरा मित्र पैसे वाला आदमी है । इस सिलसिले में वह बहुत रुपया खर्च कर रहा है । गर्भपात के बाद स्वस्थ होकर मीरा फिर प्रकट हो जायेगी और किसी को भनक भी नहीं पड़ेगी कि वह कितनी बड़ी पेचीदगी में फंस गई थी ।”
“तुम मेरे पास क्यों आये ?”
“क्योंकि आप मीरा को तलाश कर रहे हैं । आप उसके बारे में पूछताछ करते फिर रहे थे । हम बड़ी मेहनत से मीरा की वर्तमान स्थिति को गुप्त रखने की कोशिश कर रहे हैं । आप एक समर्थ आदमी हैं । हमें भय है कि आप अपनी तलाश में कामयाब हो जायेंगे और फिर मीरा की हालत सबकी जानकारी में आ जायेगी जो कि हम नहीं चाहते । मैं आपके पास यह प्रार्थना लेकर आया हूं कि आप ठहरे हुए पानी में पत्थर फेंकना बन्द कर दें । मीरा एकदम ठीक है । अधिक से अधिक पन्द्रह दिनों में वह खुद ही प्रकट हो जायेगी ।”
“मैं कैसे मान लूं कि मीरा एकदम ठीक है ।”
“मुझे आप से इसी प्रश्न की आशा थी, मैं पहले ही आपकी मीरा से मुलाकात का प्रबन्ध करके आया हूं ।”
“मीरा इस वक्त कहां है ?”
“वह नगर के ही एक होटल में है । आप चाहें तो इसी वक्त मीरा से मिलने के लिये मेरे साथ चल सकते हैं ।”
“चलता हूं । पहले मेरी एक बात का जवाब दो ।”
“पूछिये ।”
“तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि मीरा के बारे में मैं पूछताछ कर रहा हूं ?”
“मुझे मेरे मित्र ने बताया था ।”
“और तुम्हारे मित्र को कैसे मालूम हुआ ?”
“यह मैंने उससे पूछा नहीं ।”
“तुम्हारा वह मित्र सेठ मुकन्दलाल तो नहीं ?”
युवक के होंठों पर एक खेद पूर्ण मुस्कराहट आई ।
“इतना ही कह दो कि सेठ मुकन्दलाल नहीं कोई और है ।”
“इस विषय में मैं चुप रहना ही पसन्द करूंगा ।”
“ओके ।” - सुनील गहरी सांस लेकर बोला - “कहां चलना होगा ?”
“तशरीफ लाईये ।” - युवक उठता हुआ बोला । सुनील ने फ्लैट को ताला लगाया और युवक के साथ हो लिया ।
युवक बैंक स्ट्रीट में खड़ी एक एम्बैसेडर कार के पास पहुंचा दोनों कार में सवार हुए । युवक कार चलाने लगा ।
दस मिनट बाद उसने कार को इम्पीरियल होटल के सामने ला खड़ा किया ।
“तशरीक लाइये ।” - वह बोला ।
“मीरा इस होटल में है ?” - सुनील ने कार से बाहर निकलते हुए पूछा ।
“जी हां ।” - युवक बोला ।
दोनों होटल की लाबी में प्रविष्ट हो गये ।
इम्पीरियल एक बहुत महंगा होटल था । मीरा को उस होटल में रखा जाना यह सिद्ध करता था कि उसको गर्भवती बनाने वाला कोई रईस आदमी था ।
युवक रिसैप्शन पर पहुंचा ।
“कृपया मिस मीरा को सूचित कर दीजिये ।” - वह रिसैप्शनिस्ट से बोला - “कि मिस्टर सुनील उनसे मिलने आये हैं ।”
“वैरी वैल सर” - रिसैप्शनिस्ट बोला - उसने टैलीफोन का रिसीवर उठाकर कान से लागा लिया । कुछ क्षण वह टेलीफोन में बोलता रहा फिर उसने रिसीवर रख दिया ।
“सूट नम्बर 402 ।” - वह बोला - “मिस मीरा आप की प्रतीक्षा कर रही हैं ।”
“थैंक्यू ।” - युवक बोला । उसने सुनील को संकेत किया । दोनों आगे बढे । लिफ्ट द्वारा वे चौथी मंजिल पर पहुंच गये ।
402 नम्बर के सामने पहुंच कर युवक ने द्वार खटखटाया ।
“कम इन ।” - भीतर से एक स्त्री का स्वर सुनाई दिया । युवक ने ठेलकर द्वार खोला । दोनों भीरत प्रविष्ट हो गये ।
सुनील ने देखा खिड़की के पास एक लगभग बीस इक्कीस साल की बेहद खूबसूरत युवती खड़ी थी । उसके चेहरे की रंगत पीली थी और उसके ढीले-ढाले गाऊन में से उसके बढे पेट का आभास मिल रहा था ।
“मीरा” - युवक बोला - “ये मिस्टर सुनील हैं ।”
“मिस्टर सुनील” - युवती धीमे किन्तु स्पष्ट स्वर से बोली - “सुना है आप मुझे तलाश कर रहे थे ।”
“जी हां । क्या मैं तनहाई में आप से बात कर सकता हूं ?”
मीरा ने युवक की ओर देखा ।
“आफ कोर्स ।” - युवक बोला । वह तत्काल कमरे से बाहर निकल गया ।
“फरमाइये ।” - वह बोली ।
तुम्हारे पिता हीरा सिंह आजकल राजनगर में हैं । वे तुम्हारे बारे में बहुत चिन्तित हैं । उन्हीं की वहज से मैं तुम्हें तलाश कर रहा था ।”
“मैं एकदम ठीक हूं ।”
“एकदम ठीक तो नहीं हो तुम ।” - सुनील अर्थपूर्ण स्वर से बोला ।
“नहीं हूं तो हो जाऊंगी । मुझे इस संकट से निकालने के लिये जो किया जा सकता है किया जा रहा है ।”
“यह सब किसकी वजह से हुआ ?”
“मैं उस आदमी का नाम नहीं बता सकती । उसका नाम बताना उसके साथ विश्वासघात करना होगा । वह आदमी मेरे लिये बहुत कुछ कर रहा है । जब कि वह चाहता तो वह सारे बखेड़े से हाथ झाड़कर अलग हो सकता था । उस सूरत में मैं सीधी-साधी देहात की लड़की उसका क्या कर सकती थी ।”
“मैं तुम्हारे पिता को क्या जवाब दूं ?”
“उन्हें समझा दीजिये कि मैं एक दम ठीक हूं । उन्हें किसी प्रकार यह भी समझा दीजिये कि मैं उनसे मिल नहीं सकती लेकिन मैं कल ही उन्हें पत्र लिख दूंगी और शीघ्र ही मैं घर वापिस लौट आऊंगी ।”
“तुमने अपने पिता को एकाएक पत्र लिखना बन्द क्यों कर दिया था ?”
“मैं बहुत घबरा गई थी । इसी वजह से मैं मिसेज मुकन्दलाल की कोठी से बिना उन्हें बताये निकल आई थी । फिर अपनी गलती से मैं बहुत बीमार हो गई । इसी सिलसिले में एक महीना गुजर गया और घर चिट्ठी लिखने की नौबत ही नहीं आई ।”
“क्या तुम्हारा अपने पिता से मिल लेना ज्यादा अच्छा नहीं होगा । वे इतनी दूर से चलकर आए हैं ।”
“यह असम्भव है । मैं इस हालत में” - उसने अपना पेट छुआ - “अपने बाप के सामने कैसे आ सकती हूं ।”
“आल राइट ।” - सुनील पटाक्षेप करता हुआ बोला - “मैं तुम्हारे पिता को कह दूंगा कि तुम्हारा कोई मित्र मुझे मिला था उसने मुझे बताया था कि आजकल तुम बम्बई में हो । एक दुर्घटना में तुम्हारी बांह टूट गई थी । जिसकी वजह से घर चिट्ठी नहीं लिख सकी थी । अब तुम ठीक हो और शीघ्र ही घर चिट्ठी लिख रही हो । ठीक है ?”
“एकदम ठीक है, सुनील साहब । मैं आपकी अहसानमन्द हूं ।”
“लेकिन चिट्ठी लिखना मत भूलना ।”
“नहीं भूलूंगी ।”
“और मेरा यह कार्ड रख लो” - सुनील अपनी जेब से अपना एक विजिटिंग कार्ड निकालकर उसे थमाता हुआ बोला - “इस पर मेरा पता और फोन नम्बर लिखा हुआ है । कभी मेरी मदद की जरूरत पड़े तो मुझे रिंग कर देना ।”
“बहुत बहुत धन्यवाद आपका । आप बहुत उदार व्यक्ति हैं, मिस्टर सुनील ।”
सुनील वहां से विदा हो गया ।
जिस युवक के साथ वह वहां तक आया था वह उसे कहीं दिखाई नहीं दिया ।
वह नीचे रिसैप्शन पर पहुंचा ।
“मुझे पहचानते हो ?” - उसने रिसैप्शनिस्ट से पूछा ।
“जी हां ! पहचानता हूं ।” - रिसैप्शनिस्ट मीठे स्वर में बोला - “थोड़ी देर पहले आप मिस मीरा के सूट में गए थे ।”
“और मेरे साथ एक युवक था ?”
“जी हां ।”
“कौन था वह ?”
रिसैप्शनिस्ट कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर बोला – “मैं उसका नाम तो नहीं जानता लेकिन वह मिस्टर भटनागर से सम्बन्धित हैं ।”
“मिस्टर भटनागर कौन ?”
“मिस्टर एस के भटनागर जीना टूरिस्ट एजेनसी के मैनेजर हैं । हमारे होटल को बड़ी-बड़ी सभाओं, कान्फ्रेंसों और पार्टियों का बिजनेस मिस्टर भटनागर की वजह से ही मिलता है ।”
“आई सी ।” - सुनील बोला - “वैल, थैंक्यू वैरी मच ।”
“यू आर मोस्ट वैलकम सर ।”
सुनील रिसैप्शन से हट गया । उस युवक के उसे दुबारा दर्शन नहीं हुए ।
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